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Update 96
“अरे यार किस से याद आया. मैने आशुतोष को अपर्णा की पप्पी लेने के लिए उकसा दिया है. बहुत जबरदस्त चुटकुला बन-ने वाला है आशुतोष का.”
“क्या? ऐसा क्यों किया तुमने. क्यों मरवा रहे हो बेचारे को.”
“अरे लेकिन इस से ये तो पता चलेगा कि कैसा प्यार है अपर्णा का. कही बेकार में हमारा आशुतोष उलझा रहे उसके सोन्दर्य के जाल में.”
दोनो बाते कर रहे थे कि अचानक घर के बाहर कुछ अजीब सी हलचल हुई.
“ये कैसी आवाज़ थी सौरभ. शूकर है कि तुम यहाँ हो…वरना मैं तो मर जाती अकेले में.” पूजा ने कहा.
“लगता है…बाहर कोई है?” सौरभ ने कहा.
“कौन हो सकता है?”
“हटो मुझे देखने दो.”
“नही बाहर जाने की कोई ज़रूरत नही है. जो कोई भी होगा चला जाएगा.”
पूजा के घर के बाहर होती हलचल ने एक दह्सत का माहौल क्रियेट कर दिया था. पूजा सौरभ से लिपटी हुई थी.
“ऐसे लिपटी रहोगी तो कुछ हो जाएगा हमारे बीच. फिर मत कहना मुझे.” सौरभ ने कहा.
“ऐसे में भी तुम्हे ये सब सूझ रहा है. मुझे डर लग रहा है. कही हमारे घर के बाहर साइको तो नही घूम रहा.” पूजा ने कहा.
“तभी कह रहा हूँ मुझे देखने दो. देखो ऐसा हो सकता है कि वो मेरे पीछे यहा आया हो. बहुत शातिर है वो…इस से पहले कि वो वार करे मुझे कुछ करने दो.”
“तुम्हारे पीछे क्यों आएगा वो.”
“दो बार मेरा उस से सामना हुआ है और एक बार कॉपीकॅट साइको विजय से सामना हुआ है. मुझे वो ज़रूर जानता होगा. कोई बड़ी बात नही है कि मेरे पीछे वो यहाँ तक आ गया हो.”
“ऐसा है तो अब क्या करेंगे हम?”
“चिंता मत करो. फोन है मेरे पास.पोलीस को बुला लेंगे. पहले पता तो चले कि बाहर कौन है?”
तभी बाहर सड़क पर पोलीस साइरन की आवाज़ सुनाई दी.
“पोलीस भी आ गयी…अब तो पक्का है कि ज़रूर कुछ गड़बड़ है.”
“जो कुछ भी होगा पोलीस देख लेगी…तुम बेकार में टेन्षन मत लो.”
“टेन्षन लेनी पड़ेगी पूजा अगर कुछ बन-ना है जींदगी में तो. बिना टेन्षन लिए कुछ नही होता. सोचो अगर साइको का आशु मैं खोल पाया तो कितना नाम होगा मेरा. मैं अपनी खुद की इन्वेस्टिगेशन एजेन्सी खोल सकता हूँ फिर. नाम होने के बाद काम ही काम होगा. फिर तुम जितना मर्ज़ी लूटना मुझे हिहीही.”
“सौरभ कोई ज़रूरत नही है इस तरह से नाम करने की तुम्हे.”
तभी अचानक घर का दरवाजा खड़का. पूजा ने सौरभ को काश के जाकड़ लिया अपनी बाहों में, “दरवाजा मत खोलना.”
“अरे पागल हो क्या…हटो…पोलीस भी तो है बाहर.”
“नही प्लीज़…मुझे डर लग रहा है.” पूजा ने कहा.
“मेरे होते हुए क्यों डर रही हो तुम. देखने तो दो कौन है.” सौरभ ने कहा.
दरवाजा लगातार खाड़के जा रहा था. सौरभ ने पूजा को खुद से अलग किया और दरवाजे की तरफ बढ़ा और दरवाजा खोला.
“इतनी देर क्यों लगाई दरवाजा खोलने में” चौहान ने कहा.
“तुम्हारे लिए दरवाजे पर नही बैठे थे हम”
“ओह…मिस पूजा…व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़. तुम तो बाद में मिली ही नही. एस्कॉर्ट बिज्निस कैसा चल रहा है तुम्हारा.”
“मुझसे बात कर जो करनी है. जब घर में आदमी खड़ा हो तो औरत से बात नही करते.”
“तुम यहाँ कर क्या रहे हो पहले ये बताओ?”
“ये हमारा प्राइवेट मामला है, तुमसे मतलब.”
“मतलब है…मैं एक साए का पीछा कर रहा था. मुझे यकीन है कि वो साइको था. वो इसी तरफ आया था. यहाँ तुम मौजूद हो…और बहुत देर में दरवाजा खोला तुमने. तभी पूछ रहा था कि दरवाजा खोलने में देर क्यों की.”
“तो तुम्हे लगता है कि मैं साइको हूँ.”
“कुछ भी हो सकता है… पूरे घर की तलाशी लो.” चौहान ने कॉन्स्टेबल्स को ऑर्डर दिया.
जब घर में कुछ नही मिला तो चौहान बोला, “मिस पूजा कब आया था ये यहाँ.”
“ये बहुत देर से हैं यहा.”
“ह्म्म…मिस पूजा तुम्हे पता है. जिस आदमी के पास तुम होटेल में एस्कॉर्ट बन कर गयी थी, उस पर साइको होने का शक है. तुम्हारी गांद लेने के बाद तुम्हे मार सकता था वो. शूकर है मैं वक्त पर पहुँच गया. हमनें ली तुम्हारी पर तुम्हारी जान बच गयी हिहीही…चलता हूँ दरवाजा बंद कर लो हाहहाहा.” चौहान बेशर्मी से हंसता हुआ वहाँ से चला गया. सौरभ दाँत भींच कर रह गया.
सौरभ ने दरवाजा बंद किया और पूजा की तरफ मुड़ा. पूजा की आँखो से आँसू टपक रहे थे.
“अरे पूजा…” सौरभ ने बाहों में भर लिया पूजा को.
“कितना बेकार लग रहा है मुझे. सब कुछ याद आ गया फिर से. ” पूजा सुबक्ते हुए बोली.
“तभी कह रहा था कि इन लोगो को मारना ज़रूरी है. अगर इसे मार देता तो ये सब नही सुन-ना पड़ता मुझे.”
“मैं सुन लूँगी सब कुछ पर तुम खून ख़राबा बिल्कुल नही करोगे. कसम है तुम्हे मेरी.” पूजा ने कहा.
“कहाँ कर रहा हूँ खून ख़राबा. तुम्हे किया वादा नही तौड़ूँगा.”
“सौरभ तुम मुझे ग़लत तो नही समझोगे ना. कभी-कभी लगता है कि तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ मैं.”
“पागल हो क्या. ग़लत क्यों समझूंगा तुम्हे मैं. तुम्हारा शरीर ज़रूर मैला हुआ था इन बातों से मगर तुम्हारा मन हमेशा से पवित्र है. तुमसे ज़्यादा लायक प्यार के कोई हो ही नही सकता मेरे लिए. और मैं कोई दूध का धुला नही हूँ. तुम्हारी दीदी तक को नही छोड़ा मैने.”
“अब तो मेरे सिवा कोई और नही है ना तुम्हारी जींदगी में.”
“नही…जब से तुम आई हो जींदगी में, किसी और को देखने का मन तक नही करता…जींदगी में आने का तो सवाल ही नही है.” सौरभ ने गोदी में उठा लिया पूजा को.
“क्या कर रहे हो?”
“अब रुकना मुश्किल हो रहा है…प्लीज़ मुझे रोकना मत.” सौरभ पूजा को बिस्तर पर ले आया और उसे लेटा कर उसके उभारो को अपने दोनो हाथो में जाकड़ लिया.
“ये क्या कर रहे हो…हटो.”
“आग भड़का रहा हूँ तुम्हारे अंदर…हिहीही.” सौरभ हाथों से उभारों को दबा रहा था.
“रोक नही पाउन्गि तुम्हे मैं….प्लीज़…. अगर शादी के बाद सब कुछ हो तो अच्छा लगेगा मुझे. सुहाग रात नाम की भी कोई चीज़ होती है.” पूजा ने कहा.
सौरभ पूजा के उपर से हट गया और उसके बाजू में लेट गया, “हे भगवान…इस कदर कभी नही बहका मैं किसी के साथ. सब कुछ कंट्रोल में रखता था हमेशा. यू आर टू हॉट टू हैंडल.”
“बस…बस चुप हो जाओ…मुझे कुछ-कुछ होता है.”
“यार हो जाने दो ना कुछ-कुछ…बुराई क्या है इसमें.”
“बुराई नही है सौरभ. बस हनिमून पर कुछ ख़ास रहना चाहिए.”
“आग कुछ इस कदर भड़क रही है की हनिमून एक दिन का नही बल्कि पूरा महीने का होगा…फिर भी शायद प्यार बाकी रहेगी. तुम्हारे सोन्दर्य का रश्पान जितना भी किया जाए कम ही होगा. हम तो हमेशा प्यासे ही रहेंगे.”
“बस…बस ज़्यादा माखन मत लगाओ…मैं कुछ नही करने दूँगी.”
“वैसे माखन लगाने से बहुत प्यार से फिसल जाएगा.”
“क्या फिसल जाएगा… …” पूजा सोच में पड़ गयी.
“क्या फिसल सकता है…सोचो..सोचो…. ….” सौरभ ने कहा.
पूजा उठी और अपने तकिये को दे मारा सौरभ के सर पर, “बदमाश कही के. कितनी अश्लील बाते करते हो मेरे साथ. शरम नही आती तुम्हे.”
“शरम क्यों आएगी इसमें ये हँसी मज़ाक तो स्त्री पुरूस के रिस्ते को सुंदर बनाता है.”
“हां शायद तुम ठीक कह रहे हो. पर ज़्यादा मत बाते किया करो ऐसी, मुझे कुछ-कुछ होता है.”
“हाहहाहा….छोड़ो सब कुछ…चलो सोते हैं. अब मैं अर्ली मॉर्निंग ही जाउन्गा यहाँ से.” सौरभ ने कहा.
“तुम जाना चाहोगे अभी तो भी नही जाने दूँगी. लेकिन कोई बदमासी नही चलेगी. सो जाओ चुपचाप.”
“बिल्कुल सो जाउन्गा, एक गुड नाइट पप्पी तो दे दो मुझे. नींद नही आएगी उसके बिना.” सौरभ ने कहा.
“हहहे…तुम पागल हो…ये लो.” पूजा ने उठ कर सौरभ के होंटो पर होठ टीका दिया. एक मिनिट के लिए दोनो ने डीप्ली किस किया एक दूसरे को.
“थॅंक यू.” सौरभ ने कहा.
“माइ प्लेषर. अब सो जाओ. गुड नाइट.”
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……
गौरव अंकिता के कहे अनुसार आराम करने के लिए उसी कमरे में आ गया जिसमे वो अड्मिट था. रह-रह कर उसे अंकिता की आँखे देखाई दे रही थी.
“डुबो दिया मेडम ने तो मुझे अपनी आँखो की गहराई में. क्या वो भी मेरे बारे में ऐसा ही सोच रही होंगी, जैसा कि मैं सोच रहा हूँ उनके बारे में. हो भी सकता है और नही भी हो सकता. उनका नेचर बाकी नर्माल लड़कियों से बहुत डिफरेंट है. समझना मुश्किल है उन्हे.”
अचानक्ब गौरव को कुछ हलचल सुनाई दी अपने कमरे के बाहर. गौरव अपनी पिस्टल ले कर दबे पाँव बाहर निकला. उसने कमरे से बाहर झाँक कर देखा. बाहर कुछ नज़र नही आया. गौरव ए एस पी साहिबा के रूम की तरफ बढ़ा, “जा कर देख लूँ कि सब ठीक तो है वहाँ.”
गौरव वहां पहुँचा तो देखा कि 4 कॉन्स्टेबल्स खड़े हैं वहाँ मगर चौहान गायब है.
“इनस्पेक्टर साहिब कहाँ गये?” गौरव ने पूछा.
“वो शहर के राउंड पर गये हैं.” एक कॉन्स्टेबल ने कहा.
“उनकी ड्यूटी तो यहा थी ना मेडम की प्रोटेक्शन की.” गौरव ने कहा.
“हमें नही पता सर. वो हमें यहा छोड़ कर गये हैं.”
अचानक गौरव की नज़र दूर से दीवार के कोने से झाँकते एक आदमी पर पड़ी. चेहरा नही देख पाया गौरव ठीक से…क्योंकि डिस्टेन्स ज़्यादा था.
“हे रूको…कौन हो तुम.” गौरव चिल्लाया.
“मगर अगले ही पल वो आदमी वहां से हट गया. गौरव पिस्टल ले कर लड़खड़ाते कदमो से भागा उस तरफ.
मगर वहाँ कुछ नज़र नही आया. गौरव भागते-भागते हॉस्पिटल के पीछे बने गार्डेन में आ गया. दबे पाँव चल रहा था वो हाथ में पिस्टल लिए. अंधेरा था वहां इसलिए कुछ ठीक से दीख नही रहा था.
अचानक एक पंच पड़ा गौरव के मुँह पर और अगले ही पल एक लात भी पड़ी पेट पर. गौरव फाइयर करने वाला था उस साए पर जिसने ये सब किया उसके साथ मगर फिर उस साए की आवाज़ सुन कर रुक गया.
“मिस्टर साइको आज तुम्हारी खैर नही. कॅमरा ऑन करो इसका इंटरव्यू लेंगे.”
“अरे झाँसी की रानी ये मैं हूँ इनस्पेक्टर गौरव. क्या कर रही हो तुम यहाँ ऋतू.”
“इनस्पेक्टर साहिब आप…सॉरी..सॉरी…हम तो एक साए का पीछा कर रहे थे. मुझे लगा था कि वो साइको है.”
“बच गयी तुम आज. इतने में तो गोली चला देता हूँ मैं. शरीर की पहले ही बॅंड बजी हुई है. तुमने और ज़्यादा ऐसी तैसी कर दी. क्या कराटे सीख रखें हैं तुमने.”
“हां मेरे पास ब्लॅक बेल्ट है.”
“जीसस एक तो रिपोर्टर उपर से ब्लॅक बेल्ट होल्डर. भगवान भली करे.”
“क्या कहा आपने.”
“कुछ नही.”
“अब आप मिल ही गये हैं तो एक बात बतायें. आपकी निकम्मी पोलीस अब हॉस्पिटल में पड़ी है. शहर वासियों का क्या होगा. लगता है धीरे धीरे सभी की आर्ट बन जाएगी इस शहर में और पोलीस बस तमाशा देखती रहेगी.” ऋतू ने मायक को गौरव के मुँह के आगे रख कर कहा.
“नो कॉमेंट्स…” गौरव कह कर चल दिया वहाँ से.
“कुछ कहने को होगा, तब ना कहेंगे. ये हाल है हमारी पोलीस का. बात साफ है. हमें अपनी रक्षा खुद करनी होगी. पोलीस के सहारे रहे तो हम सब मारे जाएँगे. ओवर टू यू…..”
“ये ऋतू तो पीछे पड़ गयी है मेरे. कितनी ज़ोर की लात मारी मेरे पेट में ओफ…
गौरव ने हर तरफ देखा हॉस्पिटल में मगर उसे कुछ नही मिला. “क्या पता कोई वैसे ही झाँक रहा हो. पोलीस को देख कर लोग तान्क झाँक करते ही हैं. साइको तो वैसे भी नकाब लगा कर घूमता है. साला इस केस ने इतना उलझा दिया है दिलो दीमग को कि हर कोई साइको ही नज़र आता है. मेडम से मिलता हूँ अब जाकर. क्या पता वो जाग रही हों.” गौरव ए एस पी साहिबा के कमरे की तरफ चल दिया.
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02-01-2020, 06:35 PM
Update 97
रात के 12 बज रहे थे. हर तरफ रात का सन्नाटा फैला था. हर तरफ एक अजीब सी खामोसी थी. आशुतोष जीप में बैठा हुआ अपनी किस्मत को रो रहा था. “यार ये किस पत्थर से प्यार हो गया है. फोन ही नही उठा रही है. और ना ही दरवाजा खोल रही है. ऐसे ही चलता रहा ये प्यार तो बड़ी जल्दी स्वर्ग सिधार जाउन्गा.”
आशुतोष काई बार बेल बजा चुका था घर की मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“एक बार फिर ट्राइ करता हूँ. अगर अब भी नही खोला तो दुबारा कोशिश नही करूँगा.” आशुतोष ने घर की बेल बजाई. कोई एक मिनिट बाद अंदर कदमो की आहट सुनाई दी.
अपर्णा ने दरवाजा खोला और बोली, “इतनी रात को क्यों परेशान कर रहे हो. मैं सो रही थी.”
“ओह सॉरी…चलिए सो जाईए आप. मैं तो बस गुड नाइट बोलने आया था.” आशुतोष मूड कर चल दिया.
“रूको… कुछ कहना चाहते थे क्या?”
“हां कहना तो बहुत कुछ था. मगर अब रात ज़्यादा हो गयी है और आपको नींद भी आ रही है…कल बात कर लेंगे. गुड नाइट.”
“नही रूको…अभी बात कर लेते हैं.”
“सच…मेरी आँखे नम हो गयी ये सुन कर.” आशुतोष ने मज़ाक में कहा.
“क्या मैं तुमसे बात नही करती हूँ…जो कि ऐसा बोल रहे हो.”
“एक बार भी फोन नही उठाया आपने. ना ही दरवाजा खोला. ऐसा कौन सा गुनाह हो गया था मुझसे. आपके पास दिल नाम की चीज़ ही नही है.”
“आशुतोष यही बात तुम पर भी लागू होती है. सुबह मैं उठी तो तुम्हे हर तरफ देखा. पर तुम यहाँ होते तो मिलते. कॉन्स्टेबल्स से पूछा तो पता चला कि तुम तो सुबह होते ही यहा से चले गये थे. क्या तुम मुझे नही बता सकते थे ये बात. एक मेसेज तो कर ही सकते थे तुम.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं आपको डिस्टर्ब नही करना चाहता था. इसलिए फोन नही किया आपको. लेकिन ये जान कर बहुत अच्छा लग रहा है कि आप मुझे ढूंड रही थी. वैसे क्यों ढूंड रही थी आप मुझे…टेल…टेल.” आशुतोष ने हंसते हुए कहा.
“कुछ बनाया था ख़ास आज नाश्ते में. तुम्हे चखाना चाहती थी. और कोई बात नही थी. ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है.”
“फिर तो अच्छा ही हुआ कि मैं यहाँ नही था. पता नही क्या बनाया था आपने. खा कर बेहोश हो जाता तो.”
“कभी खाया भी है तुमने मेरे हाथ का कुछ जो ऐसा बोल रहे हो. बहुत अच्छा खाना बनाती हूँ मैं.”
“ऐसे कैसे यकीन कर लूँ मैं. मैने तो यही सुना था कि हसिनाओं को खाना…वाना बनाना नही आता. बस अपनी अदाओं से घायल करना आता है.”
“अभी बना कर दूं कुछ तो क्या यकीन करोगे?”
“इस वक्त…इतनी रात को आप मेरे लिए कुछ बनाएँगी. कितना प्यार करने लगी हैं आप मुझे. मेरे आँखे अब सच में नम हो गयी हैं.” आशुतोष ने झूठ मूठ आँखे मलते हुए कहा.
“जाओ चुपचाप बैठ जाओ अपनी जीप में जाकर…कुछ नही बना रही हूँ मैं. हद होती है मज़ाक की भी. मुझे नही पता था कि तुम इतना मज़ाक करते हो.”
“अरे मज़ाक का बुरा मान गयी आप. मज़ाक का कोई बुरा मानता है क्या?”
“क्या कहते थे तुम मुझे, प्यार करते हैं हम आपसे…कोई मज़ाक नही. अब ऐसा लग रहा है कि मज़ाक वाला पार्ट ही सही है इसमे बाकी सब झूठ है.”
“आपसे थोड़ा सा हँसी मज़ाक करके दिल खुश हो गया आज. क्या ये खुशी छीन लेंगी आप मुझसे. आपको अगर इतना बुरा लगा तो नही करूँगा मज़ाक आजसे कभी.”
“ऐसी बात नही है आशुतोष… सॉरी… आक्च्युयली मैं सच में अच्छा खाना बनाती हूँ. सब तारीफ़ करते हैं मेरे हाथ के खाने की. इसलिए तुम्हारा मज़ाक बुरा लग गया मुझे.”
“चलिए फिर…तारीफ़ करने वालो में मैं भी शामिल होना चाहता हूँ.” आशुतोष ने कहा.
“तुम यही रूको मैं बना कर लाती हूँ.” अपर्णा ने कहा.
“क्या मैं आपके साथ किचन में नही आ सकता. देखना चाहता हूँ आपको बनाते हुए.”
अपर्णा ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोली, “आ जाओ”
“इतना सोचा क्यों आपने मुझे अंदर बुलेट हुए. मैं क्या आपको खा जाउन्गा.”
“कुछ नही…तुम नही समझोगे.” अब अपना सपना कैसे सुनाए अपर्णा आशुतोष को
अपर्णा किचन में गयी और सबसे पहले गॅस ऑन किया. “ओह नो…”
“क्या हुआ?”
“गॅस ख़तम हो गयी…दूसरा सिलिंडर भी नही है.”
“चलिए परेशान होने की कोई ज़रूरत नही है…हम बैठ कर बाते करते हैं.”
“हां पर मेरा मन था कुछ बनाने का. भूक भी लग रही है. उफ्फ ये गॅस भी आज ही ख़तम होनी थी.” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.
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02-01-2020, 06:38 PM
आशुतोष तो देखता ही रह गया अपर्णा को. गजब की मासूमियत थी अपर्णा के चेहरे पर. ऐसा लग रहा था जैसे की किसी बच्चे का खिलोना टूट गया हो और वो रोने वाला हो.
“अपर्णा जी छोड़िए ना…चलिए प्यार भरी बाते करते हैं. अब आपसे प्यार का रिस्ता जुड़ गया है…खाना पीना तो होता ही रहेगा.” आशुतोष ने कहा.
“हां अब यही कर सकते हैं.”
अपर्णा किचॅन के बाहर दीवार के सहारे खड़ी थी. आशुतोष उसके सामने खड़ा था. आशुतोष चुपके-चुपके अपर्णा के गुलाबी होंटो को देखे जा रहा था.
“क्या देख रहे हो तुम घूर-घूर कर बार बार.”
“क…क…कुछ नही. क्या आपको देख नही सकता मैं. बहुत प्यारी लग रही हैं आप.”
अपर्णा ना चाहते हुए भी शर्मा गयी.
“अरे आप तो शरमाती भी बहुत अच्छा हैं.” आशुतोष ने अपर्णा की आँखो में देखते हुए कहा.
अपर्णा ने अपनी नज़रे झुका ली. कोई जवाब नही दिया आशुतोष को.
“यही मोका है आशुतोष…बढ़ आगे और जाकड़ ले इन गुलाबी पंखुड़ियों को अपने होंटो में. अपर्णा जी अच्छे मूड में लग रही हैं. इस से अच्छा मोका नही मिलेगा पप्पी करने का.” आशुतोष दृढ़ता से अपर्णा की तरफ बढ़ा और बिल्कुल करीब आ गया अपर्णा के.
इस से पहले की अपर्णा कुछ समझ पाती आशुतोष ने अपने होठ टिका दिए अपर्णा के होंटो पर और दोनो हाथो से अपर्णा के सर को कुछ इस कदर पकड़ लिया की अपर्णा अपने होठ उसके होंटो से जुदा ना कर पाए. अपर्णा ने पूरी कोशिश की आशुतोष को हटाने की पर अपना आशुतोष कहाँ रुकने वाला था. अपना प्यार मजबूत करना था उसे इसलिए अपर्णा के गुलाबी होंटो को पूरी शिदत से चूस्ता रहा अपने होंटो में दबा कर. अपर्णा बस कू..कू करती रही…मुँह से बोलती भी तो कैसे बोलती कुछ. पूरे 2 मिनिट बाद हटा आशुतोष और बोला, “गुलाब की पंखुड़ियों से भी मुलायम होठ हैं आपके. कैसी लगी हमारी पहली किस.”
अपर्णा ने कुछ कहने की बजाए थप्पड़ जड़ दिया आशुतोष को, “ऐसी लगी ये बेहूदा किस. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे ज़बरदस्ती किस करने की. क्या यही प्यार है तुम्हारा. ये किसी रेप से कम नही था. मेरे पास मत आना आज के बाद तुम.”
“मेरा प्यार क्या रेप लगता है आपको. किस प्यार की ज़रूरत होती है. नही तो प्यार मजबूत कैसे होगा. हम इज़हार कैसे करेंगे प्यार का अगर किस नही करेंगे तो. क्या आप मुझे किस नही करना चाहती थी.”
“दूर हो जाओ तुम मेरी नज़रो से. एक तो ग़लत काम करते हो उपर से उसे जस्टिफाइ भी करते हो. हर चीज़ का एक तरीका होता है. ये नही कि ज़बरदस्ती पकड़ कर जो मन में आए कर लो.”
“ओह सो सॉरी अपर्णा जी. मुझे इस बात का अहसास ही नही हुआ. मैं किसी के बहकावे में आ गया था और ये सब कर बैठा.”
“किसने बहकाया तुम्हे.”
“गुरु ने कहा था कि किस करने से प्यार मजबूत होगा इसलिए जल्द से जल्द एक किस कर लो.”
“वो कहेगा कुवें में कूद जाओ तो क्या कूद जाओगे.”
“सॉरी आगे से किसी की बातों में नही आउन्गा. मगर एक बात कहना चाहूँगा.”
“क्या?”
“मैं आपके होठ देख कर बहक गया था. कोई मुझे ना भी भड़काता तो भी मैं ये गुस्ताख़ी कर ही देता. थप्पड़ पड़ा आपका. अहसास भी हुआ कि ग़लत किया कुछ. मगर जो अहसास मैने पाया है आपके गुलाबी होंटो को चूमने का वो इतना अनमोल है कि आप मेरी गर्दन भी काट दें अब तो गम नही होगा क्योंकि कुछ बहुत ही ज़्यादा अनमोल पा चुका हूँ मैं अब. चलता हूँ मैं बाहर. हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा. गॉड ब्लेस्स यू.” आशुतोष मूड कर चल दिया.
“रूको…”
“जी कहिए.”
“क्या बस किस ही करनी थी मुझे. क्या बात नही करेंगे हम अब.”
“ओ.ऍम.जी.…क्या आपने मुझे माफ़ कर दिया. विश्वास नही होता. ऐसा मत कीजिए. मैं बहुत बदमाश हूँ…फिर से जाकड़ कर पप्पी ले सकता हूँ आपकी.”
“आशुतोष तुम्हे प्यार करती हूँ मैं. तुम इतने उतावले क्यों हो रहे हो किस के लिए. हमे पहले एक दूसरे को समझना चाहिए. एक बुनियाद बनानी चाहिए रिस्ते की. ये बातें बहुत बाद में आनी चाहिए.”
“कितनी प्यारी बात कही आपने. जिन होंटो से ये बात कही उन्हे चूमने का मन कर रहा है. अब आप ही बतायें क्या करूँ.”
“एक थप्पड़ और खाओगे मुझसे”
“मंजूर है हर जुल्मो-शितम आपका, बस होंतों को होंटो से टकराने दीजिए.” आशुतोष ने कहा और अपर्णा की तरफ बढ़ा.
अपर्णा ने वाकाई एक थप्पड़ और जड़ दिया आशुतोष के मुँह पर. मगर आशुतोष नही रुका और अपर्णा को पकड़ कर फिर से उसके होंटो को जाकड़ लिया अपने होंटो के बीच में. इस बार और भी ज़्यादा गहराई से चुंबन लिया आशुतोष ने अपर्णा का. पूरे 5 मिनिट चूस्ता रहा वो अपर्णा के होंटो को.
5 मिनिट बाद अपर्णा के होंटो को आज़ाद करके आशुतोष बोला, “मुझे नही पता कि आपको कैसा लगा. मगर मैने जन्नत पा ली इन पलों में. और हां आपके होठ पूरा सहयोग दे रहे थे वरना चुंबन मुमकिन नही था. धन्यवाद आपका.”
“रूको मैने कोई सहयोग नही किया तुम्हे.”
“जानता हूँ…मैने आपके होंटो को कहा…आपको नही. आपके होठ मेरे हैं अब. आप चाह कर भी उन्हे मुझसे दूर नही रख सकती. गुड नाइट.”
“तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी मैं इस सब के लिए. आइ हेट यू.”
आशुतोष मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया, “नफ़रत झूठी है आपकी. आपके होठ तो इतना प्यार दे रहे थे कि पूछो मत. इट वाज़ मोस्ट ब्यूटिफुल किस ऑफ माय लाइफ. आइ कैन डाइ फॉर इट.”
अपर्णा ठगी सी आशुतोष को बाहर जाते हुए देख रही थी. आशुतोष के जाने के बाद अपर्णा ने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया.
“बदतमीज़ कही का. मुझे नही पता था कि ये ऐसा करेगा मेरे साथ. क्यों प्यार कर बैठी हूँ मैं इस से. इसे तो भले बुरे की समझ ही नही है. प्यार में ज़बरदस्ती किस करता है क्या कोई. ग़लती कर ली थी मैने इसे घर में बुला कर. आगे से इसे कभी अंदर नही घुसने दूँगी.” अपर्णा दरवाजे के सहारे खड़े हो कर सब सोच रही थी.
अचानक अपर्णा को कुछ ख़याल आया और वो वहाँ से चल दी अपने कमरे की तरफ. अपने कमरे में लगे दर्पण के आगे खड़ी हो कर उसने खुद को बड़े गौर से देखा. अंजाने में ही उसका दायां हाथ खुद-ब-खुद उसके होंटो तक पहुँच गया. उसने अपने होंटो पर उंगलियाँ फिराई और धीरे से बोली, “तुम क्यों उसके साथ मिल गये थे.”
अपर्णा को अपने अंदर से जो जवाब आया उस पर वो विश्वास नही कर पाई. “किस ऐसी भी हो सकती है, कभी सोचा नही था.”
“छी ये सब मैं क्या सोच रही हूँ. ये आशुतोष अपने जैसा ही बनाने पर तुला है मुझे. पर मैं क्या करूँ प्यार कर बैठी हूँ इस पागल से दूर भी नही रह सकती उस से. वो सुबह बिना बताए चला गया था तो कितनी बेचैन रही थी मैं. ऐसा क्यों होता है प्यार में?” पर अपर्णा के पास अपने स्वाल का कोई जवाब नही था.
“मुझे हाथ नही उठाना चाहिए था आशुतोष पर. बुरा लगा होगा उसे. पर मैं क्या करती…अचानक जाकड़ लिया उसने मुझे. मुझे सोचने समझने का मोका तक नही दिया.पहली बार मैने किसी को थप्पड़ मारा है. जिसे मारना चाहिए था उसे तो आज तक नही मार पाई और जो मुझे इतना प्यार करता है उस पर हाथ उठा दिया. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.”
अपर्णा खिड़की के पास आई और पर्दे को हल्का सा हटा कर देखा. आशुतोष अपनी जीप में आँखे बंद किए बैठा था. “कही नाराज़ तो नही हो गया आशुतोष मुझसे.” अपर्णा ने मन ही मन सोचा.
आशुतोष के शरीर में हलचल हुई तो अपर्णा ने फ़ौरन परदा गिरा दिया और दिल पर हाथ रख कर बोली, “कही देख तो नही लिया उसने मुझे. नही…नही..वो नींद में है शायद. अब मुझे भी सो जाना चाहिए.”
लेकिन खिड़के से हटने से पहले अपर्णा ने एक बार फिर परदा हटा कर देखा. आशुतोष वैसे ही आँखे बंद किए पड़ा था. “शुकर है नही देखा इसने मुझे…नही तो मज़ाक उड़ाता सुबह मेरा.” अपर्णा मुस्कुराते हुए सोच रही थी.
अपर्णा अपने बिस्तर पर आकर गिर गयी और आँखे बंद करके धीरे से बोली,“ सॉरी आशुतोष…मुझे तुम्हे थप्पड़ नही मारना चाहिए था. प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत होना. तुम्हारे शिवा कोई नही है मेरा अब.”
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गौरव अंकिता के रूम पर पहुँचा तो देखा की अंदर से एक नर्स निकल रही है. गौरव ने उस नर्स को रोका और पूछा, “मेडम जाग रही हैं या सो रही हैं.”
“अभी-अभी इंजेक्षन दे कर आई हूँ उन्हे. वो जाग रही हैं.”
गौरव का चेहरा चमक उठा ये सुन कर. वो घुस गया कमरे में. अंकिता आँखे मीचे पड़ी थी.
“मेडम सब ठीक है ना. कोई तकलीफ़ तो नही है.” गौरव ने धीरे से कहा.
“गौरव तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो. आराम करने को कहा था ना मैने.”
“आराम ही कर रहा था मैं कमरे में की अचानक” गौरव ने पूरी बात बताई ए एस पी साहिबा को.
“ओह…फिर भी दूसरे पोलीस वाले भी हैं यहा.”
“मेडम क्या चौहान को आपने कही भेजा है.”
“नही मैने तो कही नही भेजा.” अंकिता ने कहा.
“ओह…शायद किसी काम से गये होंगे?” गौरव ने कहा.
“गौरव!” अंकिता ने आवाज़ दी.
“जी मेडम बोलिए.”
“कुछ नही…जाओ सो जाओ.” अंकिता ने गहरी साँस लेकर कहा.
“क्या बात है बोलिए ना?”
“नही रहने दो…कोई बात नही है.”
“क्या आप नाराज़ हैं मुझसे.”
“नही गौरव”
“फिर बोलिए ना क्या बात है.”
“किसी ने मुझे ऐसे नही डांटा कभी जैसे तुमने डांटा था वहाँ जंगल में.”
“सॉरी मेडम, जो सज़ा देनी है दे दीजिए. चाहे तो सस्पेंड कर दीजिए तुरंत, बुरा नही मानूँगा बिल्कुल भी.”
“नही मेरा वो मतलब नही था.”
“फिर आप अब मुझे डाँट कर दिल की भादास निकाल लीजिए.”
“नही वो भी नही करना चाहती”
“फिर क्या करना चाहती हैं आप.”
“कुछ नही..तुम सो जाओ जाकर. मुझे अब नींद आ रही है.”
गौरव सर खुजाता हुआ बाहर आ गया
“मेडम कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हैं. पता नही क्या चक्कर है …कही वही चक्कर तो नही जो कि मैं सोच रहा था. ”
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02-01-2020, 06:50 PM
Update 98
बिस्तर पर पड़ते ही अपर्णा गहरी नींद में समा गयी थी. सुबह उसकी आँख डोर बेल से खुली. अपर्णा ने टाइम देखा, सुबह के 8 बज रहे थे.
“कौन है इस वक्त?” अपर्णा ने सोचा और खिड़की के पास आ कर बाहर झाँक कर देखा. आशुतोष जीप में नही था.
“आशुतोष ही है शायद.”
अपर्णा दर्पण के सामने आई और हाथ से अपने बॉल संवार कर, आँखे पोंछ कर कमरे से निकल गयी.
अपर्णा ने दरवाजा खोला.
“लीजिए सिलिंडर.” आशुतोष कह कर चल दिया.
“नाराज़ हो मुझसे?”
“आप खुद सोचिए. अपनी प्रेमिका का चुंबन लिया था मैने…कोई गुनाह नही कर दिया था जो कि थप्पड़ पे थप्पड़ जड़ दिए आपने. बहुत बुरा लगा मुझे. आप प्यार नही मज़ाक करती हैं मुझसे.”
“ऐसा नही है…बहुत प्यार करती हूँ तुमसे मैं. मुझे अपनी ग़लती का अहसास है.” अपर्णा ने मासूमियत से कहा.
आशुतोष तो देखता ही रह गया अपर्णा को. अपर्णा की आँखो में उभर आए प्यार में खो गया था वो.
“कुछ इस तरह से कहा है आपने ये सब की थप्पड़ का नामो निशान भूल गया हूँ. अब तक कहाँ छुपा रखा था ये प्यार आपने. शीतम ढा रही हैं आप मुझ पर अब.”
अपर्णा शरमाये बिना ना रह सकी. वो हल्की सी नज़रे झुका कर बोली, “तो तुमने मुझे माफ़ कर दिया.”
“आपसे नाराज़ हो कर कहा जाउन्गा मैं. आप यकीन करें या ना करें मगर आप मेरी जींदगी बन गयी हैं.”
“आशुतोष सच-सच बताना तुम्हारा मकसद क्या है इस प्यार में.?”
“मकसद एक ही है…आपसे शादी करना चाहता हूँ. जींदगी भर आपके साथ रहना चाहता हूँ.”
“क्या तुम्हे पता है कि मैं तुमसे उमर में बड़ी हूँ. कोई 1 या 2 साल बड़ी हूँ तुमसे मैं.”
“उस से कुछ फर्क नही पड़ता अपर्णा जी.”
“ये जी क्यों लगाते हो मेरे नाम के पीछे हर बार तुम. क्या मुझे सिर्फ़ अपर्णा नही कह सकते.”
“ठीक है अपर्णा जी…ओह सॉरी अपर्णा…आज से ही जी को दूर फेंक दिया जाएगा. चलिए मैं ये सिलिंडर अंदर रख देता हूँ.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा सोच में पड़ गयी.
“इतनी सुबह-सुबह कहाँ से लाए सिलिंडर तुम.”
“अपने घर से लाया हूँ. वहाँ बेकार ही पड़ा था.”
“रहने दो मैं ले जाउंगी.”
“कैसी बात करती हैं आप. आप क्यों ले जाएँगी इसे उठा कर मेरे होते हुए. हटिए एक तरफ.”
आशुतोष सिलिंडर ले कर अंदर आ गया और उसे किचन में ले जाकर चूल्हे से कनेक्ट कर दिया.
अपर्णा किचन के दरवाजे पर खड़ी सब देखती रही. जब आशुतोष सब काम करके मुड़ा तो अपर्णा ने पूछा, “क्या खाओगे तुम.”
“अगर थप्पड़ नही पड़ेंगे तो एक चीज़ खाना चाहूँगा.”
“नहियीईईई….क्या तुम्हारा मन नही भरा.” अपर्णा दो कदम पीछे हट गयी.
“कैसी बात करती हैं आप. आशुतोष से प्यार किया है आपने. मेरा मन आप जैसी हसीना के लिए कभी नही भरेगा.”
“मैने अभी कोल्गेट भी नही किया है?” अपर्णा ने टालने की कोशिश की.
“कोई बात नही…मैने एक बार कही पढ़ा था कि किस मुँह में मौजूद बॅक्टीरिया का ख़ात्मा करती है.”
“झूठ बोल रहे हो?”
“नही सच बोल रहा हूँ मैं.”
अपर्णा आशुतोष से बचने के लिए अपने कमरे की तरफ भागी.
“अरे रुकिये कहाँ भाग रही हैं आप. मुझसे आपको कोई नही बचा सकता.”
आशुतोष भी अपर्णा के पीछे भागा. आधी सीढ़ियाँ चढ़ चुकी थी अपर्णा. मगर आशुतोष ने हाथ पकड़ लिया भाग कर. अपर्णा ने मूड कर आशुतोष से हाथ छुड़ाने के लिए झटका दिया. आशुतोष का पाँव फिसल गया और वो लूड़क गया सीढ़ियों से.
“आशुतोष!” अपर्णा भाग कर आई आशुतोष के पास. माथे से हल्का सा खून बह रहा था आशुतोष के.
“सो सॉरी आशुतोष…ज़्यादा तो नही लगी.”
आशुतोष ने जवाब देने की बजाए अपर्णा को पकड़ लिया
“आशुतोष प्लीज़.... छोड़ो मेरा हाथ…तुम तो पागल हो गये हो.” अपर्णा गिड़गिडाई
आशुतोष अपर्णा का हाथ पकड़े हुए खड़ा हुआ और उसे दीवार से सटा दिया.
“अब भागो कहा भागोगी. बहुत सताया है आपने मुझे. बहुत नाटक झेलें हैं आपके. अब आपसे गिन-गिन कर बदले लूँगा.”
“तो तुम मुझसे बदला ले रहे हो.”
“हां ऐसा बदला जिसमे प्यार ही प्यार है.”
“उफ्फ तुम पागल हो गये हो. कहाँ फँस गयी मैं इस पागल के साथ.”
आशुतोष ने अपर्णा को बाहों में जाकड़ लिया और अपने होठ अपर्णा के दहक्ते अंगारों पर टिका दिए. अपर्णा चाहती तो अपने होठ हटा सकती थी. मगर वो बुत बनी खड़ी रही. शुरू के कुछ पलों में तो बस आशुतोष चूम रहा था प्दमीनी को. मगर कुछ ही देर बाद अपर्णा भी आशुतोष के होंटो को तरह तरह से अपने होंटो में जाकड़ रही थी.
5 मिनिट तक पागलों की तरह चूमते रहे वो एक दूसरे को. वो दोनो चुंबन के शुरूर में खो कर प्यार रूपी समुंदर में गोते लगा रहे थे.
अचानक अपर्णा को अजीब सी चुभन महसूस हुई अपनी योनि के करीब. अपर्णा ने आशुतोष को खुद से दूर धकैल दिया.
“क्या हुआ?”
अपर्णा ने अपने दिल पर हाथ रखा और बोली, “जैसे तुम्हे कुछ नही पता.”
आशुतोष ने नज़रे झुका कर अपनी पेण्ट पर बने उभार को देखा और बोला, “ओह सॉरी…ये मेरे बस में नही है. ये तंबू इसने खुद खड़ा किया है.”
“तुम जाओ अब. मुझे फ्रेश होना है.” अपर्णा गुस्से में कहा
“ओह हां ऑफ कोर्स. शूकर है थप्पड़ नही पड़ा आज... हिहिहीही.” आशुतोष हंसते हुए चल दिया वहाँ से.
“हे भगवान किस पागल के प्यार में फँस गयी मैं.” अपर्णा ने सोचा.
आशुतोष के जाने के बाद अपर्णा ने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया और खुद से बोली, “अब इसे दुबारा अंदर नही आने दूँगी. ये तो पागल है पूरा. क्या ऐसा करता है कोई…जैसा ये करता है.”
अपर्णा ने अपने दिल पर हाथ रखा. वो अभी भी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. “पर मुझे क्या हो जाता है…क्यों उसका साथ देती हूँ मैं. क्या उसके हाथो का खिलोना बन गयी हूँ मैं. नही…ऐसा नही होने दूँगी मैं……”
अपर्णा जितना आशुतोष से प्यार करती थी. उतना ही अपने चरित्र के लिए प्रोटेक्टिव भी थी. अजीब सी सिचुयेशन थी अपर्णा के सामने.
आशुतोष बाहर आकर जीप में बैठ गया था और चुंबन के शुरूर में खो गया था. “सच में प्यार बहुत सुंदर होता है. ऐसी किस किसी से नही मिली. अपर्णा के होठ मेरे होंटो पर हरकत तो कर रहे थे परंतु एक झीजक सी बरकरार थी. मगर उसके होंटो की हर हरकत चिल्ला-चिल्ला कर यही कह रही थी कि ‘मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ आशुतोष’. वैसे वो मानेगी नही ये बात पर मैं जान गया हूँ. शी ईज़ रियली अमेज़िंग. धन्य हो गया हूँ आपसे प्यार करके अपर्णा जी…” आशुतोष सोचते हुए मुस्कुरा रहा था.
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सौरभ सुबह होते ही पूजा के घर से निकल गया था. जाते-जाते वो पूजा को बोल गया था कि आज सारा दिन बिज़ी रहेगा क्योंकि काफ़ी काम है. दरअसल उसे इन्वेस्टिगेशन पर दिलो-जान से जुटना था. पहले सौरभ घर गया और नहा धो कर अपना जासूसी का समान ले कर निकल पड़ा अपने काम पर.
“सबसे पहले इस कर्नल की ही इंक्वाइरी करता हूँ. यही सबसे बड़ा सस्पेक्ट है.” सौरभ ने कहा.
सौरभ, कर्नल के घर के बिल्कुल सामने बने घर पर पहुँचा. वहां एक बुजुर्ग से बात की उसने जो की अपनी बीवी के साथ अकेला रहता था.उसे यही पता चला कि कर्नल बहुत अच्छा इंसान है. बहुत अच्छा नेचर है उसका. बहुत अच्छे से शालीनता से बात करता है. लेकिन एक अजीब बात पता चली सौरभ को बातो बातो में. वो ये थी कि कर्नल अब उस घर में नही रहता है. बुजुर्ग के अनुसार वो घर शायद कर्नल ने किसी को किराए पर दे दिया था.
“किसको किराए पर दिया था क्या बता सकते हैं?”
“पता नही कौन है वो. कभी शक्ल नही देखी उसकी. आँखे भी कमजोर हो चली हैं. ठीक से दीखता भी कहाँ है. हां पर इतना पक्का है कि इस घर में अब कोई और रह रहा था. कभी उस से मुलाक़ात नही हुई.”
“एक नौकर भी रहता था यहा…उसके बारे में कुछ जानते हैं.”
“नौकर भी तो अभी देखा मैने. कर्नल ने किसी नौकर को नही रख रखा था घर पर. वो ज़्यादा तर काम खुद ही करते थे अपना. वैसे बेटा तुमने बताया नही कि तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो.”
“ आपको पता ही होगा कि ये घर पोलीस ने सील कर दिया है. मैं एक प्राइवेट डीटेक्टिव हूँ बस ये जान-ना चाहता हूँ कि यहण क्या हो रहा था ऐसा कि ये घर सील हो गया. क्या कुछ बता सकते हैं.”
“एक बात नोट की मैने. जो कोई भी यहण रहता था उन्हे कर्नल की ही तरह पैंटिंग का भी शौक था. कुछ दिन पहले ग़लती से पैंटिंग के समान की डेलिवरी देने यहा हमारे घर आ गया था कोई. मैने उसे कर्नल के घर भेजा था.”
“ह्म्म…कुछ और बता सकते हैं आप.”
“जितना पता था बता दिया बेटा. और मुझे कुछ नही पता.”
“ह्म्म मेरा नंबर रख लीजिए. कुछ याद आए तो बता दीजिएगा फोन करके.” सौरभ कह कर चल दिया.
सौरभ ने आस-पाडोश में कुछ और लोगो से भी बात की. लेकिन किसी को कुछ ज़्यादा जानकारी नही थी. सबको यही पता था कि कर्नल ही रहते हैं वहां. किसी और के रहने की किसी को खबर नही थी.
“बड़ी बड़ी कोठी हैं यहाँ. सब लोग अपने कामो में मगन रहते हैं शायद. सुनसान सी सड़के हैं यहा. उस बुजुर्ग के पास खाली वक्त है और घर भी कॉलोनेक के घर के सामने है इसलिए गौर कर लिया होगा. वैसे भी जो कोई भी उस घर में आया था…कुछ दिन पहले ही आया था. ये सब बाते अभी तुरंत गौरव को बताता हूँ.”
सौरभ ने गौरव को फोन मिलाया.
“हेलो सौरभ…हाउ आर यू?”
“सर कुछ बहुत इम्पोर्टेन्ट पता चला है”
“हां बोलो?’’
“अभी-अभी मैने कर्नल के घर के सामने रहने वाले एक बुजुर्ग से बात की.” सौरभ ने गौरव को पूरी बात बता दी.
“जीसस…ये तो मामला और ज़्यादा उलझ गया. अब ये कैसे पता चलेगा कि कौन रह रहा था उस घर में. कर्नल का तो कुछ आता पता नही है.”
“सर एक डाउट हो रहा है. हो सकता है कर्नल को मार कर उसके घर और गाड़ी पर कब्जा कर लिया हो साइको ने. सोचा होगा कि अच्छा ठिकाना रहेगा. कर्नल का घर एक सेफ प्लेस माना जा सकता है. और मुझे ये भी लग रहा है कि हो सकता है कि जो कोई भी यहाँ रह रहा था वो कर्नल को अच्छे से जानता था और यारी दोस्ती में उन्होने ये घर उसे दे दिया हो.”
“इन बातों का जवाब तो कर्नल ही दे सकता है. मगर उसका कुछ आता-पता नही है. देल्ही और मुंबई में कर्नल के रिलेटिव्स थे. मैने वहाँ की लोकल पोलीस से कॉंटॅक्ट करके एंक्वाइरी के लिए कहा है. शायद कुछ पता चल जाए कर्नल के बारे में. ”
“ओके जैसे ही कुछ पता चले मुझे भी बता देना सर. मैं फिलहाल संजय की खबर लेने जा रहा हूँ.”
“ओके ऑल दा बेस्ट. बहुत अच्छा काम कर रहे हो. बल्कि जो हमें करना चाहिए था वो तुम कर रहे हो. दरअसल सोचने समझने का टाइम ही नही दिया इस साइको ने पीछले कुछ दिन. तुम लगे रहो. और कुछ पता चले तो तुरंत बताना.”
गौरव उस वक्त एसपी साहिब के कमरे के बाहर खड़ा था उनसे मिलने के लिए. फोन रख कर वो कमरे में घुस गया.
“कैसे हैं सर आप.”
“मैं ठीक हूँ. ए एस पी साहिबा कैसी हैं.”
“वो भी ठीक हैं सर. 2 दिन बाद छुट्टी कर देंगे. सर क्या बता सकते हैं कि कैसे हुआ ये सब.”
हां मैं बाथरूम से नहा कर निकल रहा था कि अचानक मुझे पीछे से जाकड़ कर मेरे मुँह पर कुछ रख दिया उसने. मैने साँस रोक ली और उसे दूर धकैल दिया. उसके पास चाकू था…मैं खाली हाथ क्योंकि नहा कर निकल रहा था. कई वार किए हराम्खोर ने पेट पर. छोड़ूँगा नही हरामी को बस मिल जाए एक बार.”
“शूकर है सर कि ज़्यादा नुकसान नही हुआ. शायद वो आपको बेहोश करके कहीं ले जाने वाला था. वो ऐसा ही करता है. अपने ठीकने पर ले जाकर आर्टिस्टिक मर्डर करता है.”
“बस-बस मुझे हॉरर स्टोरी मत सुनाओ. बिल्कुल पसंद नही मुझे डरावनी बातें.”
“सॉरी सर.”
“मुझे भी शायद 2-3 दिन में छुट्टी मिल जाएगी.” एसपी ने कहा.
गौरव एसपी से मिलने के बाद अंकिता से मिलने पहुँचा.
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Update 99
वो अंकिता के कमरे में घुसा तो देखा कि वहाँ चौहान खड़ा था.
“आओ गौरव” अंकिता ने कहा.
“कैसी हैं मेडम आप?” गौरव ने पूछा.
“ठीक है मिस्टर चौहान आप जायें और इतमीनान से अपनी बहन की सगाई की तैयारी करें.” अंकिता ने कहा.
“थॅंक यू मेडम” चौहान गौरव को घूरता हुआ कमरे से निकल गया.
“पता नही कैसी हूँ. जब पेट से ये पट्टी हटेगी तभी पता चलेगा की कैसी हूँ. आज हटा कर देखेंगे इसे.”
“सब ठीक रहेगा मेडम…आप चिंता मत करो.”
“चौहान अपनी सिस्टर की सगाई और शादी करने जा रहा है इसी हफ्ते. ये अचानक क्या हो गया इसे?” अंकिता ने पूछा.
गौरव चुप ही रहा. झूठ बोलना नही चाहता था और सच बोलने की हिम्मत नही थी.
“खैर तुम सुनाओ…कैसे हो.?” अंकिता ने पूछा.
“ठीक हूँ मेडम. एक नयी डेवेलपमेंट हुई है साइको के केस में.”
“कोई हैरानी नही हुई सुन कर. शुरू से यही तो हो रहा है इस केस में. बताओ क्या डेवेलपमेंट है.”
गौरव ने पूरी बात अंकिता को बता दी.
“ह्म्म…मतलब कर्नल की बजाए हमें अब इस अंजान व्यक्ति को ढूंडना होगा. और ज़्यादा कॉंप्लिकेटेड हो गया मामला तो.”
“जी मेडम…आपकी इजाज़त हो तो मैं भी लग जाउ काम पर.”
“मेरी इजाज़त चाहिए तुम्हे?”
“जी हां.”
“तुम्हारे घाव भर गये सब?”
“भर जाएँगे मेडम. चल फिर तो रहा ही हूँ. कोई दिक्कत नही है. ज़्यादा देर यहा नही बैठ सकता मैं. ये केस सॉल्व करना बहुत ज़रूरी है. पोलीस ऑफिसर्स को हॉस्पिटल पहुँचा दिया उसने. बहुत गंभीर बात है ये. मीडीया में थू-थू हो रही है पोलीस की. जल्द से जल्द कुछ करना होगा.”
“हम बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा. ज़्यादा टेन्षन मत लो मीडीया की. इनका यही काम है.”
“मेडम आप कुछ बदली बदली सी हैं…आप मुझे बहुत कम डाँट रही हैं अब”
“तुम्हे डाँट खानी है क्या?”
“नही वो तो नही खानी?”
“फिर क्यों परेशान हो रहे हो.”
“कुछ नही वैसे ही पूछ रहा था.” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“लगता है तुम्हे डाँट खाने की आदत पड़ गयी है” अंकिता ने भी हंसते हुए कहा.
“हां शायद.” गौरव ने कहा.
तभी डॉक्टर दाखिल हुआ कमरे में.
“हाउ आर यू नाओ.” डॉक्टर ने पूछा.
“ये तो आप ही बता सकते हैं.” अंकिता ने कहा.
“हम अभी ये ड्रेसिंग खोल कर देखते हैं. आइ होप दट एवेरितिंग विल बी फाइन.” डॉक्टर ने कहा.
गौरव बाहर आ गया कमरे से. डॉक्टर के जाने के बाद वो अंदर आया.
“क्या कहा डॉक्टर ने मेडम?”
“सब ठीक है. स्टिचस ठीक हैं. 2 दिन में छुट्टी मिल जाएगी.”
“बहुत खुशी हुई ये सुन कर मेडम. डॉक्टर ने अच्छा काम किया है.”
“तुम मुझे ना लेट तो कोई कुछ नही कर पाता.” अंकिता ने गौरव की आँखो में देख कर कहा. फिर से दोनो एक दूसरे की आँखो में डूब गये.
एक अनकहा प्यार पनप रहा था दोनो के बीच. जिसके बारे में कुछ कहने की हिम्मत दोनो ही नही जुटा पा रहे थे. प्यार भी अजीब चीज़ है.
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सौरभ संजय की तलाश में जुटा था. उसने संजय के घर के आस पास इंक्वाइरी की. किसी को संजय के बारे में कुछ नही पता था. सौरभ इसीसी बॅंक भी गया. वहाँ भी कुछ पता नही चला.
“आख़िर गया कहाँ ये. इसे ज़मीन खा गयी या आसमान निगल गया. सिमरन की कार भी उसी के पास है अभी तक. चल कर उसकी पत्नी से ही बात करता हूँ. उसे ज़रूर कुछ पता होगा.” सौरभ ने सोचा.
सौरभ, मोनिका से मिलने उसके घर पहुँच गया. लेकिन वहां चल कर उसने पाया कि मोनिका खुद व्यथित है संजय को लेकर. उसे भी संजय का कुछ आता पता नही था.
सौरभ ने गौरव को फोन लगाया, “आप कह रहे थे ना कि आपने कॉन्स्टेबल्स लगा रखे हैं निगरानी के लिए संजय और कर्नल के घर. पर कोई देखाई तो दिया नही.”
“सब सिविल में होंगे. लेकिन अभी किसी ने कोई ख़ास खबर नही दी.”
“ह्म्म…सर ये संजय तो अभी तक गायब है. किसी को उसका कुछ अता पता नही. अब जबकि कर्नल से शक हट सा गया है, पूरा शक संजय पर गहराता जा रहा है. आपको क्या लगता है.”
“यार सच पूछो तो इतनी बार इतना कुछ लग चुका है कि अब कुछ समझ में नही आता कि मुझे क्या लगता है. ऐसा लगता है एक मायाजाल बना रखा है साइको ने हमारे चारो तरफ और हम लोग उसमें फँसते जा रहे हैं. वो हमें कठपुतलियों की तरह नचा रहा है.” गौरव ने कहा.
“हां लगता तो मुझे भी ऐसा ही है.”
“लेकिन मुझे यकीन है की एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब बाजी हमारे हाथ में होगी और हम एक गेम खेल रहे होंगे साइको के साथ.”
“मैं उस दिन का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा हूँ.” सौरभ ने कहा.
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अपर्णा ने दिन भर दरवाजा भी बंद रखा और अपना फोन भी बंद रखा. वो आशुतोष को देखने के लिए खिड़की में भी नही आई. कयी बार मन हुआ उसका की फोन ऑन करके आशुतोष से बात करे या फिर खिड़की से झाँक कर उसे देखे मगर कुछ सोच कर हर बार रुक जाती, “नही…नही उसे समझना होगा कि मेरे साथ कैसे बिहेव करना है. क्या मैं कोई खिलोना हूँ जिसके साथ जैसे मर्ज़ी खेल लिया और चलते बने. मेरी भावनाओ की कदर करनी चाहिए उसे. प्यार का मतलब ये तो नही है कि कुछ भी कर लो. आज बिल्कुल बात नही करूँगी…चाहे कुछ हो जाए..”
आशुतोष डोरबेल बजा बजा कर थक गया मगर अपर्णा ने दरवाजा नही खोला. “यार ये अजीब मोहब्बत हो गयी है इनसे. लगता है यहा रोज कोई ना कोई नाटक झेलना पड़ेगा इनका. लगता है बर्बाद करड़ेगी मुझे ये मोहब्बत.”
थक हार कर आशुतोष वापिस अपनी जीप में जाकर बैठ गया.
रात के 12 बज रहे थे तब. बहुत उदास और मायूस नज़र आ रहा था वो. केयी बार बेल बजाई थी उसने मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“क्या मैने आज कुछ ज़्यादा कर दिया. लेकिन प्यार में क्या ज़्यादा क्या कम. भावनायें साची हों तो क्या इन बातों से कोई फर्क पड़ता है.” आशुतोष सोच रहा था. सोचते सोचते उसे नींद की झपकीयाँ आ रही थी.
रात के ठीक 1 बजे एक कॉन्स्टेबल भागता हुआ आशुतोष के पास आया.
“सर…सर…”
आशुतोष की आँख लग गयी थी. वो फ़ौरन चोंक कर उठ गया, “क्या हुआ?”
“सर घर के पीछे गन्मन और हवलदार मरे पड़े हैं.”
“क्या …”
आशुतोष ने अपनी पिस्टल निकाली और घर के आगे खड़े गन्मन और कॉन्स्टेबल्स से कहा, “तुम लोग यहाँ से हिलना मत मैं अभी आया.”
आशुतोष उस कॉन्स्टेबल को लेकर घर के पीछे की तरफ भागा. वहाँ सच में गन्मन और कॉन्स्टेबल्स की लाशे पड़ी थी.
“लगता है साइलेनसर लगा कर सूट किया गया है इन्हे, क्योंकि गोली की ज़रा भी आवाज़ नही आई. बिल्कुल सर में गोली मारी गयी है.”
आशुतोष ने तुरंत अपना मोबायल निकाला और गौरव को फोन मिलाया. मगर फोन नही मिला. मिलता भी कैसे फोन में नेटवर्क ही नही था.
“उफ्फ ये नेटवर्क को भी अभी गायब होना था. तुम्हारे फोन से ट्राइ करना गौरव सर का नंबर.”
“सर मेरे फोन में भी नेटवर्क नही है.”
“मेरी जीप में वाइर्ले पड़ा है उस से ट्राइ करते हैं.” दोनो भाग कर आगे आए.
“तुम ट्राइ करो और सारी सिचुयेशन बता दो.” आशुतोष कह कर अपर्णा के घर की तरफ बढ़ा.
आशुतोष ने लगातार घर की बेल बजानी शुरू कर दी.
अपर्णा गहरी नींद से आँखे मलति हुई बिस्तर पर बैठ गयी, “पागल हो गया है क्या ये आशुतोष. रात के 1 बज रहे हैं. बार-बार बेल क्यों बजा रहा है. अपर्णा खिड़की में आई और उसने जो बाहर देखा उसे देख कर उसकी रूह काँप उठी. जीप से सॅट कर एक नकाब पोश खड़ा था और उसके हाथ में बंदूक थी. जीप में एक लाश साफ देखाई दे रही थी.
आशुतोष को ध्यान भी नही था कि बाकी बचे पोलीस वाले भी सूट कर दिए गये हैं और अब उस पर निशाना लगाया जा रहा है. अपर्णा भाग कर आई नीचे. सीढ़ियों से गिरते-गिरते बची. फ़ौरन दरवाजा खोला और आशुतोष को अंदर खींच कर कुण्डी लगा ली.
“अपर्णा जी…साइको है यहाँ.”
“हां मैने देखा उसे.” अपर्णा कांपति आवाज़ में बोली.
“कहाँ देखा?”
“तुम्हारे जीप के पीछे छुपा था. खिड़की से देखा मैने. उसने सब को मार दिया.” अपर्णा थर-थर काँप रही थी.
“शायद उसने मोबायल जॅमर लगा दिया है कही आस-पास. फोन में नेटवर्क नही आ रहा. किसी को बुला भी नही सकते.” आशुतोष की आवाज़ में भी डर देखाई दे रहा था.
“हे भगवान अब क्या होगा?”
“आप चिंता क्यों करती हैं…मैं हूँ ना. मेरे होते हुए आपको कुछ नही होगा.” आशुतोष ने दिलासा दिया.
अपर्णा आशुतोष से चिपक गयी और बोली, “अपनी चिंता नही है मुझे. तुम्हारी चिंता है. मेरे लिए अपनी जींदगी को ख़तरे में मत डालना चाहे कुछ हो जाए.”
“कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हैं आप. आपके लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ. मेरा हक़ मत छीनिए मुझसे.” आशुतोष ने कहा.
“आशुतोष तुम नही जानते. मैने एक सपना देखा था जिसमे साइको ने तुम्हे गोली मार दी थी.”
“ये साइको मेरा बाल भी बांका नही कर सकता. इसकी तो मैं वाट लगाने वाला हूँ आज.” आशुतोष ने अपर्णा का डर कम करने की कोशिश की
अचानक कमरे की लाइट चली गयी.
“अब लाइट को क्या हो गया?”
“बहुत शातिर है. पूरी प्लॅनिंग से काम कर रहा है” आशुतोष कांपति आवाज़ में बोला.
“आशुतोष वो घर के आगे है. हम घर के पीछे से यहाँ से निकल कर भाग सकते हैं.”
“भागेंगे नही हम कही भी सुन लीजिए आप. आज इस साइको का खेल ख़तम करना है.”
“तुम पागल हो क्या. सब पोलीस वाले मारे गये. तुम अकेले हो अभी. और वो खूंखार हत्यारा है. क्या मेरी बात नही मानोगे. प्लीज़ आशुतोष. मेरे लिए क्या इतना भी नही कर सकते.”
“बस आप ऐसे कहेंगी तो मना नही कर पाउन्गा. चलिए देखते हैं. लेकिन आप को सुरक्षित जगह छोड़ कर मैं वापिस आउन्गा यहाँ.”
“चलो तो सही पहले”
आशुतोष और अपर्णा घर के पीछे भाग की तरफ बढ़े. मगर जब उन्होने पिछला दरवाजा खोलने की कोशिश की तो उनके होश उड़ गये. पिछला दरवाजा बाहर से बंद था.
“इसे बाहर से किसने बंद कर दिया ” अपर्णा ने आश्चर्य में कहा.
“और कौन करेगा साइको के सिवा.”
“हे भगवान ये क्या हो रहा है?”
अपर्णा और आशुतोष बुरी तरह से घिर चुके थे. दोनो के ही मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे.
आशुतोष ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोला, “चलिए यहाँ से चलते हैं. किसी भी खिड़की या दरवाजे के पास रुकना ख़तरे से खाली नही है.”
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02-01-2020, 07:01 PM
Update 100
“तुम्हे क्या लगता है…क्या वो अंदर आ सकता है”
“उसे जो करना है करने दो. पिस्टल है मेरे पास भी.” आशुतोष अपर्णा का हाथ पकड़ कर किचन के पास ले आया और बोला, “ये जगह ठीक है. किचन के बाहर रह कर हम हर तरफ नज़र रख सकते हैं. ”
“तुम्हे तो मेरे घर का चप्पा-चप्पा पता है. अंधेरे में भी किचन ढूंड लिया.”
“इस जगह आपने मुझे एक अनमोल किस दी थी. वो किस कभी नही भूल पाउन्गा. ना ही ये जगह भूल पाउन्गा.”
“तुमने ली थी ज़बरदस्ती… मैने दी नही थी… भूल गये इतनी जल्दी” अपर्णा ने आशुतोष के हाथ से हाथ छुड़ाते हुए कहा.
तभी कुछ आहट हुई और अपर्णा ने तुरंत आशुतोष का हाथ पकड़ लिया, “ये कैसी आवाज़ थी.”
“शायद साइको घर में घुसने की कोशिश कर रहा है” आशुतोष ने कहा.
“हे भगवान अब क्या होगा?”
“जो होगा देखा जाएगा…पहले आप ये बतायें कि क्या नाटक है ये. जब मर्ज़ी हुई हाथ पकड़ लिया और जब मर्ज़ी हुई छोड़ दिया.”
अपर्णा ने तुरंत हाथ छोड़ दिया और बोली, “अब नही पाकडूँगी…खुश.”
“ष्ह…ये कैसी आवाज़ है.” आशुतोष ने कहा
“ये तो घर के उपर से आ रही है.”
“इसका मतलब वो उपर किसी कमरे से घुसने की कोशिश कर रहा है.”
“ऐसा मत कहो…मुझे बहुत डर लग रहा है.”
“डरने की बजाए हमें कुछ करना होगा अपर्णा जी.”
“बताओ क्या करना है…मैं तुम्हारे साथ हूँ.”
“क्यों ना हम सीढ़ियों पर कोई चिकना पदार्थ गिरा दे जिस से कि वो फिसल जाए और सीढ़ियों से लूड़क जाए. सीढ़ियों से गिरेगा तो अकल ठिकाने आ जाएगी उसकी. उसके गिरते ही हम उसे दबोच लेंगे.” आशुतोष ने कहा.
“ये काम हमें तुरंत करना होगा” अपर्णा ने कहा.
“हां चलो….तुम किचन में ढूंड लोगि ना आयिल अंधेरे में?”
“हां तुम यही रूको मैं आयिल का डिब्बा लाती हूँ.”
अपर्णा ने आयिल का डिब्बा आशुतोष को दे दिया लाकर और बोला, “आप यही रूको…मैं ये आयिल सीढ़ियों पर गिरा कर आता हूँ.”
“नही मैं तुम्हारे साथ चलूंगी…अकेला नही छोड़ सकती तुम्हे.”
“जब इतना प्यार है आपको मुझसे तो सुबह से क्यों सब बंद करके बैठी थी. दरवाजा भी बंद रखा और फोन भी बंद रखा.”
“बातें बाद में भी हो जाएँगी पहले ये काम कर लेते हैं.” अपर्णा ने कहा.
“क्या करूँ ध्यान आप पर ही रहता है हर वक्त. निकम्मा कर दिया आपके प्यार ने मुझे.” आशुतोष ने कहा.
दोनो बहुत धीरे धीरे बात कर रहे थे. सीढ़ियाँ चढ़ कर आशुतोष ने सबसे उपर के स्टेप से आयिल गिराना शुरू किया और आधी सीढ़ियों तक आयिल गिरा दिया.
“इतने से काम बन जाएगा. सीधा नीचे गिरेगा आकर वो. जैसे ही नीचे गिरेगा वो मैं उसे गोली मार दूँगा.”
दोनो आकर वापिस किचन के बाहर बैठ गये.
“लेकिन आशुतोष कोई आवाज़ नही आ रही अब कही से.” अपर्णा ने कहा.
“वो ज़रूर घर में घुस चुका है…क्या आपके पास कोई टॉर्च है?”
“टॉर्च तो है पर वो मेरे बेडरूम में पड़ी है.” अपर्णा ने कहा.
“आपके बेडरूम में तो अब हम जा ही नही सकते”
“लेकिन बहुत अजीब बात है कोई भी हलचल नही हो रही. बिल्कुल सन्नाटा है. कही वो चला तो नही गया.”
“बहुत शातिर दिमाग़ है वो. हर हरकत सोच समझ कर करता है. वो यही कही है…” आशुतोष ने कहा.
“आशुतोष तुम्हे क्या लगता है…क्या हम जींदगी में साथ रह पाएँगे?”
“बिल्कुल रहेंगे साथ और बहुत प्यार से रहेंगे…ऐसा क्यों पूछ रही हैं.”
“अपने सपने से डर लगता है. तुम्हे पता है भगवान ने मुझे ये अजीब सा गिफ्ट दिया है. बचपन से लेकर आज तक मेरे केयी सपने सच हुए हैं. होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है मुझे. जब से सपने में तुम्हे गोली लगते देखा तब से बेचैन हूँ मैं.”
“मतलब आप बहुत पहले से प्यार करती हैं मुझे. मगर अब तक दिल में छुपा रखा था ये प्यार. हसिनाओ की यही दिक्कत होती है, प्रेमी को तडपा तडपा कर मार डालो पहले फिर आइ लव यू बोल दो.”
“ऐसा नही है आशुतोष…तुमसे प्यार तो हो गया था मगर समझ नही पा रही थी कि कैसे कहूँ. दिल की बात ज़ुबान पर आकर अटक जाती थी.”
“मगर आपकी म्रिग्नय्नि आँखो में मैने हमेशा अपने लिए कुछ देखा. पर समझ नही पाता था कि क्या है. बस अंदाज़ा ही लगाता था कि हो ना हो आपकी आँखो में प्यार है मेरे लिए.”
“हां शायद जो बात ज़ुबान नही कह पा रही थी वो मेरी आँखे कह रही थी.सब अपने आप हो रहा था. मेरे बस में कुछ भी नही था. बस में होता तो शायद तुमसे प्यार ना करती.”
“ऐसा क्यों कह रही हैं आप?”
“मुझे तुम्हारी कुछ बातें बिल्कुल अच्छी नही लगती…फिर भी ना जाने क्यों प्यार हो गया तुमसे.”
“क्या आप अब पछता रही हैं?”
“नही पछता नही रही हूँ बस परेशान हूँ तुम्हारी हरकतों से. क्या तुम शालीनता से पेश नही आ सकते मेरे साथ?”
आशुतोष, अपर्णा की तरफ सरका और उसे पकड़ कर ज़बरदस्ती फर्श पर लेटा कर उस पर चढ़ गया.
“अगर आप जैसी हसीना से शालीनता से पेश आउन्गा तो आपकी सुंदरता का अपमान होगा वो. मैं ये गुनाह नही कर सकता.”
“क्या कर रहे हो हटो..क्या ये वक्त है ये सब करने का..साइको घूम रहा है यहा हमारी जान के पीछे.” अपर्णा ने आशुतोष को हटाने की कोशिश की मगर आशुतोष नही हटा.
“तभी तो ये प्यार करना ज़रूरी है…क्या पता कल हो ना हो…जींदगी का कोई भरोसा नही है.”
अपर्णा अब तक छटपटा रही थी आशुतोष के नीचे मगर आशुतोष की ये बात सुनते ही शांत हो गयी और उसके मुँह पर हाथ रख दिया, “ऐसा नही कहते…तुम्हे कुछ नही होगा. मैं बस ये कह रही हूँ कि मैं तुम्हारी हूँ…थोड़ा संयम रखो.”
“यही बातें तो प्यारी लगती हैं आपकी. पर ये मुझे और ज़्यादा भड़का देती हैं. आपसे दूर नही रह सकता अब.”
“हद है ये तो…छोड़ो मुझे. तुम सच में पागल हो.”
“हां आपके प्यार में पागल हिहिहीही.”
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तभी धड़ाम की आवाज़ हुई और आशुतोष फ़ौरन अपर्णा के उपर से हट गया और अपनी पिस्टल उठा ली. अपर्णा भी फ़ौरन उठ गयी.
“ये कैसी आवाज़ थी. क्या वो सीढ़ियों से गिर गया.” अपर्णा ने कहा
“नही ये गिरने की आवाज़ तो नही लगती…क्योंकि ये आवाज़ सीढ़ियों से तो नही आई.”
तभी उन्हे कदमो की आहट सुनाई दी.
“वो उपर है आशुतोष. वो घर में घुस चुका है.”
“आने दो उसे…सीढ़ियों से गिरेगा तो अकल ठीकने आ जाएगी.” आशुतोष ने कहा.
उपर से रह रह कर कदमो की आवाज़ आ रही थी. आशुतोष और अपर्णा सहमे बैठे थे चुपचाप नीचे एक दूसरे के पास. अपर्णा तो काँप उठती थी हर आहट पर. साइको का ख़ौफ़ दोनो पर ही असर देखा रहा था पर.
"आशुतोष क्या कल की सुबह देख पाएँगे हम?"
"ज़रूर देखेंगे कल की सुबह. सुबह आपकी बिना कोल्गेट वाली पप्पी भी लेनी है. "
" ये वक्त है क्या मज़ाक करने का."
"मैने मज़ाक नही किया."
"हे भगवान यू आर टू मच."
"अपर्णा जी आप परेसान क्यों हो रही हैं."
"जी क्यों लगाते हो बार बार मना किया था ना मैने." अपर्णा ने कहा
"ओह सॉरी अपर्णा...आगे से ऐसा नही होगा."
"अपर्णा मैं ये कहना चाहता था कि आप चिंता मत करो ये साइको हमारा कुछ नही बिगाड़ पाएगा."
"मुझे ये बात समझ में नही आती कि इस साइको को लोगो का खून करने से मिलता क्या है."
"क्या पता क्या मिलता है.आज इसी से पूछ लेते हैं. " आशुतोष ने कहा.
"ष्ह...सुनो ये पोलीस साइरन की आवाज़ है ना?"
"हां आवाज़ तो वही है...शायद उसने मरने से पहले वाइर्ले से मेसेज भेज दिया था." आशुतोष ने कहा
"अगर ऐसा है तो ये साइको बचना नही चाहिए आज...बहुत हो गया उसका तमासा." अपर्णा ने कहा.
"लेकिन अजीब बात है...ये साइको उपर ही घूम रहा है बहुत देर से. कर क्या रहा है ये उपर?"
"कही वो सीढ़ियों की बजाए कही और से तो नही आ रहा?"
"और कौन सा रास्ता है...यहा आने का.?"
"कई खिड़कियाँ हैं नीचे."
"सभी कमरो के दरवाजे चेक करते हैं" आशुतोष ने कहा.
"हां चलो...वैसे नीचे कोई हलचल तो सुनाई नही दी."
"फिर भी हमे हर कमरे के दरवाजे को लॉक कर देना चाहिए." आशुतोष कह कर हटा ही था कि घर का मुख्य दरवाजा खड़कने लगा ज़ोर-ज़ोर से.
"पोलीस वाले पहुँच गये शायद." अपर्णा ने कहा.
"आप यही रुकिये मैं देखता हूँ."
"नही मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी." अपर्णा ने कहा.
आशुतोष दरवाजे के पास आया अपर्णा को लेकर और चिल्ला कर बोला, "हू ईज़ दिस?"
"आशुतोष मैं हूँ गौरव...ओपन दा डोर." बाहर से आवाज़ आई
आशुतोष ने दरवाजा खोला, "सर आपको मेसेज मिल गया था?"
"हां अपर्णा कहाँ है...ठीक तो है ना वो?" गौरव ने पूछा.
"हां मैं ठीक हूँ गौरव."
"हमने पूरे घर को घेर लिया है. लाइट भी आ जाएगी थोड़ी देर में." गौरव ने कहा.
"सर लगता है साइको उपर है...बहुत हलचल हो रही थी उपर."
"2 लोग यही रूको...बाकी मेरे साथ आओ." गौरव ने सीढ़ियों की तरफ बढ़ते हुए कहा.
"सर सीढ़ियों से नही जा सकते आप."
"क्यों?"
"सीढ़ियों पर हमने आयिल गिरा रखा था साइको को गिराने के लिए. पर वो उपर से नीचे आया ही नही. पता नही क्या कर रहा है उपर?"
"ह्म्म...कोई और रास्ता देखना होगा." गौरव ने कहा.
रेडीमेड सीधी मंगाई गयी पाडोश से और उसे बाहर अपर्णा के रूम की खिड़की के बाहर लगा दिया गया. घर की लाइट भी ठीक कर दी गयी.
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Update 101
"आशुतोष तुम अपर्णा के साथ ही रहो...नीचे हर तरफ नज़र रखना."
"जी सर." आशुतोष ने कहा.
गौरव उपर पहुँचा तो हैरान रह गया. अपर्णा के कमरे में बिस्तर पर एक पैंटिंग पड़ी थी. साइको कहीं नही दीख रहा था.
"हर तरफ ध्यान से देखो...वो ज़रूर यही कही होगा." गौरव ने कहा.
गौरव ने पैंटिंग को गौर से देखा. पैंटिंग में घुटनो पर सर टीका कर एक लड़की बैठी थी. उसकी पीठ में खंजर गढ़ा था. लड़की का चेहरा अपर्णा से मिलता जुलता था. लड़की के चारो तरफ हरी हरी घास थी.
"सर यहाँ कोई भी नही है."
"ऐसा कैसे हो सकता है. दुबारा अच्छे से चेक करो."
गौरव ने खुद उपर के फ्लोर को अच्छे से चेक किया पर वहाँ साइको का नामो निशान नही था.
"हमारे आते ही निकल गया क्या वो. इतना डरपोक है तो क्यों करता है ये काम." गौरव ने सोचा.
"आशुतोष ने कहा कि वो बहुत देर से उपर ही था. क्या कर रहा था वो यहा? क्या वो अपर्णा के लिए नही आया था यहाँ? क्या उसे सिर्फ़ ये पैंटिंग रखनी थी यहाँ? या फिर हो सकता है कि हमारे साइरन की आवाज़ सुन कर भागा हो. साइको का मायाजाल है ये...कुछ भी हो सकता है."
घर के आस-पास हर तरफ देखा गया मगर साइको नही मिला.
“वो अपर्णा के कमरे की खिड़की से दाखिल हुआ था अंदर. खिड़की का दरवाजा टूटा हुआ है.” गौरव ने कहा.
“सर बहुत देर रहा उपर वो…क्या किया होगा उसने उपर इतनी देर?” आशुतोष ने पूछा
“उपर एक पैंटिंग पड़ी है…लेकिन वो यहाँ आकर तो नही बनाई उसने. कलर फ्रेश तो नही हैं. पता नही क्या किया उसने इतनी देर उपर. शायद दहशत फैलाना चाहता हो अपर्णा के मन में. या फिर वो नीचे आता थोड़ी देर में पर पोलीस के आते ही भाग गया.”
“सर यहाँ जो लोग भी थे मेरे साथ सब मार दिए उसने. बंदूक की गोली की एक आवाज़ तक नही सुनाई दी. सभी को सूट किया उसने छुप कर.” आशुतोष ने कहा.
“ह्म्म्म…बहुत बुरा हुआ…ये पोलीस वालो को मारे जा रहा है और हम कुछ नही कर पा रहे.”
“सर आज बचता नही वो अगर नीचे आता तो. हमने आयिल गिराया था सीढ़ियों पर लेकिन वो हमारे जाल में फँसा ही नही.”
“मैं तुम्हे दूसरे लोग दे देता हूँ…फिलहाल निकलता हूँ. शहर में एक राउंड ले लेता हूँ. कही से तो भागा होगा वो.” गौरव ने कहा.
गौरव 4 कॉन्स्टेबल और 2 गन्मन वही छोड़ कर चला गया. मोबायल जॅमर का कुछ पता नही चला. वैसे फोन में सिग्नल वापिस आ गया था. शायद साइको अपना जॅमर वापिस ले गया था.
गौरव के जाने के बाद आशुतोष ने कॉन्स्टेबल्स और गन्मन को तैनात कर दिया.
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02-01-2020, 07:09 PM
बाहर अच्छे से सभी को सतर्कता का आदेश दे कर आशुतोष वापिस अपर्णा के पास आया और बोला, “अगर आपकी इज़ाज़त हो तो मैं आपके साथ ही रहना चाहूँगा”
“नही तुम मेरे साथ नही रह सकते. तुम्हारा कोई भरोसा नही है.”
“पर मैं आपको अब अकेला नही छोड़ सकता. पता नही क्या गेम खेल रहा है साइको. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है.”
“कैसी गड़बड़?”
“देखिए ना उसने सभी को मार दिया था यहा. सिर्फ़ मैं और आप बचे थे. सब कुछ उसके कंट्रोल में था…फिर भी वो बस एक पैंटिंग रख कर चला गया. कुछ अजीब सा लगता है. कोई बहुत ही ख़तरनाक गेम लगती है उसकी जो कि हम समझ नही पा रहे.”
“डराओ मत मुझे.”
“देखिए आप कुछ भी कहें पर मैं आपको अकेले छोड़ने वाला नही हूँ अब. हर वक्त आपके साथ ही रहूँगा…यही अंदर.”
“तुम ये सब जान बुझ कर बोल रहे हो ताकि तुम्हे मेरे साथ छेड़कानी के मोके मिलते रहें हैं ना?”
“आपकी कसम खा कर कहता हूँ ऐसा कुछ नही है. मुझे सच में गड़बड़ लग रही है.”
“ठीक है फिर…मैं मम्मी-डेडी के कमरे में सो जाती हूँ तुम उस कमरे में सो जाओ.”
“नही ये नही चलेगा.”
“तो क्या मुझसे चिपक कर रहोगे तुम”
आशुतोष ने अपर्णा को बाहों में भर लिया और बोला, “बुराई क्या है आपके साथ रहने में. हम प्यार करते हैं एक दूसरे से.”
“हां पर हमारी शादी नही हुई अभी और तुम पागलपन सवार है. मुझे तुमसे डर लगता है.”
“किस बात का डर?”
“छोड़ो तुम नही समझोगे…”
“ठीक है ऐसा करते हैं आप अपने पेरेंट्स के बेडरूम में सो जाओ मैं चदडार बिछा कर उसके बाहर लेट जाता हूँ. ये तो ठीक रहेगा ना. या फिर इसमे भी कोई दिक्कत है.”
“पर तुम ज़मीन पर कैसे सो पाओगे.”
“आपके लिए कही भी सो जाउन्गा. और वैसे भी मुझे जागना है. दिमाग़ की दही कर दी है इस साइको ने. सब को मार कर घर में घुसा और बिना किसी हंगामे के चुपचाप चला गया. इस पहेली को सुलझाना होगा. मुझे नींद नही आएगी…आप निसचिंत हो कर सो जाओ.”
“ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. नींद तो मुझे भी नही आएगी शायद. फिर भी सोने की कोशिश करती हूँ. सर बहुत भारी हो रहा है.”
“हां आप सो जाओ…लेकिन एक गुड नाइट किस तो देती जाओ.” आशुतोष ने अपर्णा के होंटो को जाकड़ लिया अपने होंटो के बीच.
अपर्णा ने कोई ज़्यादा विरोध नही किया.
“बस अब जाउ…हर वक्त एक ही काम में मन रहता है तुम्हारा.”
“क्या करें ये प्यार मजबूर कर देता है इस सब के लिए.” आशुतोष ने कहा.
“रहने दो प्यार मैं भी करती हूँ पर तुम तो पागल हो गये हो.”
अपर्णा ने आशुतोष को एक चदडार और तकिया दे दिया और अपने बेडरूम में जाते वक्त बोली, “यहा नींद ना आए तो उस बेडरूम में सो जाना जाकर.”
“जी बिल्कुल. आपको नींद ना आए तो मेरी बाहों में चली आना मैं लोरी सुना कर सुना दूँगा आपको.”
“पता है मुझे तुम क्या सूनाओगे…गुड नाइट.” अपर्णा बेडरूम में घुस गयी.
आशुतोष चदडार बिछा कर लेट गया. वो गहरे ख़यालों में खो गया.
“क्या चाहता है ये साइको…हर बार कुछ अलग सा करता है. इस बार क्या गेम है इसकी. पता लगा कर रहूँगा मैं भी चाहे कुछ हो जाए.”
आशुतोष के मन में उथल पुथल चल रही थी. नींद कोसो दूर थी उसकी आँखो से. उसकी आँखो के सामने सब कुछ हुआ था. इसलिए उसके दिमाग़ का इन सवालों में उलझना लाज़मी था.
“वो सिर्फ़ पैंटिंग रखने के लिए तो यहा नही आया था. इतने पोलीस वालो को मारा उसने. इतना ख़तरा मोल लिया. और जब सिचुयेशन उसके कंट्रोल में थी तो चला गया. इट्स वेरी…वेरी स्ट्रेंज.” आशुतोष ने सोचा.
नींद अपर्णा की आँखो से भी कोसो दूर थी. साइको का ख़ौफ़ उसके दिलो दिमाग़ को घेरे हुए था.अचानक उसे ख्याल आया, “मुझे कंफर्टबल बिस्तर पर नींद नही आ रही तो आशुतोष को ज़मीन पर कैसे नींद आ रही होगी.”
कुछ सोच कर वो उठी और बेडरूम का दरवाजा खोल कर बाहर आई, “तुम जाग रहे हो.”
“आपके बिना नींद कैसे आएगी.”
“रहने दो…मैं ये कहने आई थी कि दूसरे बेडरूम से गद्दा ले आओ यहा फर्श पर नींद नही आएगी.”
आशुतोष उठा और अपर्णा के पास आ कर उसके चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “गद्दे को मारिए गोली और आप आ जाओ यहाँ. सच तो ये है कि हमें एक दूसरे के बिना नींद नही आएगी.” आशुतोष ने कहा
“ऐसा कुछ नही है…मुझे तो इस साइको ने जगा रखा है. पता नही क्या चाहता है?”
“तो क्या मुझसे दूरी बर्दास्त कर लेती हैं आप.”
“हां बल्कि तुमसे दूरियाँ तो दिल को सुकून देती हैं” अपर्णा ने हंसते हुए कहा.
“अच्छा अगर हमेशा के लिए दूर हो गये आपसे तो सुकून से भर जाएगी जींदगी आपकी.”
अपर्णा ने आशुतोष के मुँह पर हाथ रखा, “चुप रहो…मज़ाक कर रही थी मैं.”
आशुतोष ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोला, “आओ ना साथ लेट कर प्यारी-प्यारी बाते करेंगे. वैसे भी नींद तो आएगी नही हमें क्यों ना साथ रह कर ये पल हसीन बना दें.”
“नही आशुतोष मुझे नींद आ रही है…जाने दो”
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02-01-2020, 07:12 PM
“झूठ…प्यार में साथ रहना चाहिए ना कि अलग-अलग. नींद आएगी तो यही सो जाना”
“आशुतोष मज़ाक नही है ये कोई…छोड़ो.” अपर्णा ने गुस्से में कहा.
“आप को साथ रहने को बोल रहा हूँ…कोई सुहागरात मनाने को नही बोल रहा. जाओ जाना है तो…मुझे तो नींद नही आ रही.” आशुतोष ने अपर्णा का हाथ छोड़ दिया.
आशुतोष फर्श पर पड़ी चदडार पर आ कर लेट गया अपर्णा खड़ी-खड़ी देखती रही. अजीब सी स्थिति में फँस गयी थी वो. आशुतोष की नाराज़ भी नही देख सकती थी और उसके पास भी नही जा सकती थी.
“कैसे लेट जाउ इसके पास जाकर…इसका भरोसा तो कोई है नही.” अपर्णा ने सोचा.
आशुतोष आँखो पर बाजू रख कर पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि बहुत नाराज़ है अपर्णा से. अपर्णा खड़े-खड़े उसे देख रही थी. अजीब कसंकश में थी वो. ना वो आशुतोष को नाराज़ छोड़ कर वापिस बेडरूम में जा सकती थी और ना आशुतोष के पास जा कर लेट सकती थी. कुछ सोच कर वो आगे बढ़ी और आशुतोष के पास आकर बैठ गयी और धीरे से बोली, “नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष ने कोई जवाब नही दिया. चुपचाप पड़ा रहा.
“बात नही करोगे मुझसे…” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.
“ओह आप…आप कब आई. मुझे तो नींद आ गयी थी.” आशुतोष ने कहा.
“नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष अचानक उठा और अपर्णा को बिस्तर पर लेटा कर चढ़ गया उसके उपर.
“आपसे नाराज़ हो कर कहाँ जाउन्गा. मुझे पता था कि आप ज़रूर आएँगी.”
“मैं बात करने आई हूँ ना कि ये सब करने…हटो.” अपर्णा छटपटाते हुए बोली.
आशुतोष ने बिना कुछ कहे अपर्णा की गर्दन पर अपने गरम-गरम होठ टिका दिए. अपर्णा के शरीर में बीजली की लहर दौड़ गयी. वो बोली, “हट जाओ आशुतोष…प्लीज़.”
मगर आशुतोष अपर्णा की गर्दन को यहाँ वहाँ चूमता रहा. अपर्णा छटपटाती रही उसके नीचे.
अचानक वो रुक गया और अपने होठ हटा लिए अपर्णा की गर्दन से.
“क्या बात है. आपके हर अंग में कामुक रस है. म्रिग्नय्नि सी आँखें हैं आपकी और म्रिग्नय्नि सी ही गर्दन है. मज़ा आ गया”
“अब हटने का कष्ट करोगे?”
आशुतोष हँसने लगा और बोला, “बिल्कुल नही…आज थोड़ा आगे बढ़ेंगे प्यार में.”
“क्या मतलब?”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारो को थाम लिया दोनो हाथो से. अपर्णा के पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
“आशुतोष…ये क्या कर रहे हो…हटो.” अपर्णा ने आशुतोष के हाथ दूर झटक दिए.
“छू लेने दीजिए ना…प्यार करते हैं हम आपसे कोई मज़ाक नही.”
“अब तो ये सब मज़ाक ही बन चुका है. तुम मेरे शरीर से खेल रहे हो और कुछ नही. शक होता है मुझे कि ये प्यार है तुम्हारा या हवस.”
“लव ईज़ प्यूरेस्ट फॉर्म ऑफ लस्ट…आइ गेस. जब प्यार हो गया आपको मुझसे तो खुद को बंधनों में क्यों जाकड़ रखा है आपने. आज़ाद कीजिए खुद को और मेरे साथ प्यार के हसीन सफ़र पर चलिए. यकीन दिलाता हूँ आपको कि आप निराश नही होंगी.”
आशुतोष ने फिर से अपर्णा के उभारों को थाम लिया और उन्हे ज़ोर से दबाते हुए बोला, “माफ़ कीजिएगा मुझे पर मैं अपनी प्रेमिका से दूर नही रह सकता. वो भी तब जब वो मुझे बहुत प्यार करती है.”
अपने उभारों पर आशुतोष के हाथों का कसाव पड़ने से अपर्णा सिहर उठी. उसकी साँसे तेज हो गयी और टांगे काँपने लगी. हिम्मत जुटा कर वो बोली, “आशुतोष आइ हेट यू.”
“मज़ाक कर रही हैं आप है ना.”
“मज़ाक नही है ये. ये प्यार नफ़रत में बदल जाएगा अगर तुम नही रुके तो.”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारों को छोड़ दिया और अपर्णा के उपर से हट कर उसके बाजू में लेट गया, “आपकी नफ़रत मंजूर नही है. प्यार में दूरी सह लूँगा.”
“मेरी कुछ मर्यादाए हैं. मैं ऐसा सोच भी नही सकती जैसा तुम मेरे साथ कर रहे हो. प्यार हुआ है हमें शादी नही जो कि कुछ भी कर लोगे तुम.”
“मुझे तो शक है कि शादी के बाद भी हम नज़दीक आ पाएँगे या नही. आप कुछ भी नही करने देंगी मुझे.”
आशुतोष करवट ले कर लेट गया.
“लो अब नाराज़ हो गये. अपने आप शैतानी करते हो और नाराज़ भी खुद ही हो जाते हो. ये बहुत बढ़िया है. ” अपर्णा ने कहा आशुतोष के नज़दीक आ कर उस से लिपट गयी.
“हट जाओ तुम अब मैं दूर ही रहूँगा तुमसे. मुझे कुछ नही चाहिए तुमसे. ना अब ना शादी के बाद.”
“प्यार करती हूँ तुमसे कोई मज़ाक नही. क्यों हटु मैं. हां मैं इतना आगे नही बढ़ सकती जितना तुम चाहते हो पर दूर मैं भी नही रह सकती तुमसे.”
“हाहहहाहा….ऐसा जोक आज तक नही सुना मैने. मेरे पेट में दर्द हो जाएगा हंसते-हंसते दुबारा मत सुनाना ऐसा जोक.”
“मैं मज़ाक नही कर रही…काश तुम मुझे समझ पाते.” अपर्णा ने भावुक अंदाज में कहा.
आशुतोष तुरंत अपर्णा की तरफ मुड़ा और देखा कि अपर्णा सूबक रही है.
“अरे इन म्रिग्नय्नि आँखों में ये आँसू क्यों भर लिए. प्यार में छोटी मोटी लड़ाई तो चलती रहती है.”
“चलती होंगी पर मुझसे तुम्हारी नाराज़गी बर्दास्त नही होती. मुझसे नाराज़ मत हुआ करो.” सारी दुनिया की मासूमियत झलक रही थी अपर्णा की इस बात में.
आशुतोष ने बाहों में भर लिया अपर्णा को और उसके माथे को चूम कर बोला, “बस चुप हो जाओ. मैं भी क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ. कंट्रोल नही होता मुझसे. ग़लत मत समझो मुझे. मेरी हर बात में प्यार है… बस प्यार. और ये प्यार जींदगी भर रहेगा.”
दोनो एक दूसरे की बाहों में खो गये. इस कदर डूब गये एक दूसरे में कि साइको को बिल्कुल भूल ही गये. कब नींद आ गयी दोनो को पता ही नही चला.
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02-01-2020, 07:13 PM
Update 102
सुबह 8 बजे जब दूध वाले ने बेल बजाई तब अपर्णा की आँख खुली. वो पेट के बल पड़ी थी और आशुतोष उसके उभारों पर हाथ और टाँगो पर टाँग डाले पड़ा था.
अपर्णा ने धीरे से आशुतोष का हाथ अपने उभारों से हटाया, “बदमाश कही का नींद में भी चैन नही इसे.”
मगर आशुतोष की आँख खुल गयी और वो बोला, “क्या हुआ?”
“सुबह हो गयी है”
“अरे हम दोनो साथ सो गये थे…मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा.”
“दूध वाला है शायद. हटो मुझे जाने दो.”
“ऐसी नींद कभी नही आई जींदगी में. आने वाली जींदगी बहुत हसीन नज़र आ रही है मुझे. थॅंक यू अपर्णा मेरी जींदगी में आने के लिए.”
अपर्णा शर्मा गयी ये सुन कर और बोली, “बस…बस रहने दो प्यार हो चुका है अब. फ्लर्ट की ज़रूरत नही है तुम्हे.”
“आपसे कभी फ्लर्ट नही किया. बस प्यार किया है.”
“तुम सच में पागल हो.”
“आपके प्यार में पागल हहहे.”
अपर्णा उठ कर चली गयी दूध लेने और आशुतोष आँखे बंद करके वापिस हसीन ख़यालों में खो गया.
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03-01-2020, 10:01 AM
***
गौरव रात भर साइको की तलाश में शहर में भटकने के बाद घर चला गया था. घर जा कर बिस्तर पर गिरते ही उसे बहुत गहरी नींद आ गयी थी.
सुबह 10 बजे उठा वो और तैयार हो कर 11 बजे हॉस्पिटल चल दिया. जब वो हॉस्पिटल पहुँचा तो एसपी साहिब को डिसचार्ज किया जा रहा था. मगर अंकिता को अभी 1 दिन और हॉस्पिटल में रहना था. एसपी साहिब को सी ऑफ करने के बाद वो ए एस पी साहिबा से मिलने पहुँचा.
जब गौरव कमरे में घुसा तो देखा कि चौहान अंकिता से बात कर रहा था. अंकिता ने गौरव को देखा मगर इग्नोर करके चौहान से बाते करती रही.
“ओह मिस्टर गौरव पांडे आए हैं. अच्छा मेडम मैं चलता हूँ.” चौहान गौरव की तरफ हंसता हुआ बाहर चला गया.
गौरव दूर खड़ा सब देखता रहा. वही खड़ा-खड़ा बोला, “मेडम कैसी हैं आप.”
“ठीक हूँ…जिंदा हूँ…अभी तुम जाओ बाद में बात करेंगे.” अंकिता ने बेरूख़ी से कहा.
“तो चौहान अपनी गेम खेल गया. तभी हंस रहा था मेरी तरफ. कोई बात नही मेडम…प्यार पहली बार दूर नही हुआ मुझसे. अब तो आदत सी है इन बातों की. खुश रहें आप हमेशा.” गौरव भारी मन से बाहर आ गया. उसकी आँखे नम थी
पूरा दिन किसी काम में मन नही लगा गौरव का. बस अपनी जीप ले कर शहर में यहाँ वहाँ घूमता रहा. दुबारा हॉस्पिटल नही गया वो. शाम को कोई 5 बजे थाने पहुँचा तो चौहान से वहाँ भी सामना हो गया.
“मिस्टर गौरव पांडे कहाँ थे आप. कब से ढूंड रहा हूँ आपको.”
“फोन नंबर है शायद आपके पास मेरा.”
“ वो सब छोड़ो ये बताओ कि तुम सस्पेंड होने के बाद कहाँ चले गये थे.”
“क्यों आपको क्या लेना देना.”
“क्योंकि आपको वापिस वही जाना पड़ेगा आप सस्पेंड हो गये हैं हहेहहे.”
गौरव की आँखे फटी की फटी रह गयी ये सुन कर.
“क्या बकवास कर रहे हो. क्या ए एस पी साहिबा ने आपको नही बताया. आप तो बहुत मिलते जुलते हैं आजकल उनसे.”
गौरव दाँत भींच कर रह गया. मन तो कर रहा था कि मुँह तोड़ दे चौहान का मगर चुप रहा.
चौहान ने उसे सस्पेंशन ऑर्डर थमाया और बोला, “ये लो और दफ़ा हो जाओ यहाँ से. और इस बार वापिस आने की सोचना भी मत क्योंकि मैं ऐसा कभी नही होने दूँगा.”
“ग्रेट बस अब यही होना बाकी था. मेडम को पता था इस बारे में पर बताया नही मुझे. सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है.”
गौरव अपनी पिस्टल बेल्ट थाने में जमा करवा कर पैदल ही निकल पड़ा थाने से. पीछे से भोलू ने आवाज़ दी, “सर रुकिये मैं आपको अपने स्कूटर से छोड़ देता हूँ.”
“नही रहने दो भोलू. जींदगी सड़को पर ही बीताई है ज़्यादातर धक्के खाते हुए. अच्छी बात है…कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो जाएँगी. वैसे मेरी जगह किसको दिया जा रहा है ये साइको का केस.
”
“सर सिकेन्दर नाम है उनका. पूरा नाम नही पता मुझे. कल सुबह जॉइन कर लेंगे यहा. सुना है कि काफ़ी शिफारिस लगवा रहे थे वो यहाँ आने के लिए. इस केस पर तो ख़ास नज़र थी उनकी.”
“ह्म्म…ओके मैं चलता हूँ.”
गौरव थाने से बाहर आ गया और सोच में पड़ गया, “कल अपर्णा के घर अटॅक किया साइको ने. फिर बस एक पैंटिंग रख कर चला गया. अब मेरा सस्पेंशन हो गया. ये केस सिकेन्दर को मिल गया. सब कुछ जुड़ा हुआ है या फिर इत्तेफ़ाक है. कही सब कुछ साइको के मायाजाल का हिस्सा तो नही. और ये सिकेन्दर क्यों ज़ोर लगा रहा था यहाँ आने के लिए. ज़रूर कुछ गड़बड़ है. खैर अब मैं क्या कर सकता हूँ. मेडम नाराज़ हो गयी. नौकरी भी चली गयी. जींदगी भी क्या कुछ नही देखती हमें.”
गौरव मुरझाया हुआ चेहरा ले कर आगे बढ़ा जा रहा था. रह-रह कर अंकिता का चेहरा उसकी आँखो के सामने घूम रहा था.
"एक और प्यार मेरे इज़हार करने से पहले ही ख़तम हो गया. अपर्णा ने भी ठुकरा दिया था मेरा प्यार बिना मेरी बात सुने. मेडम ने भी वही किया. लगता है किस्मत में किसी का प्यार है ही नही."
अचानक गौरव का फोन बजा और उसका ध्यान टूटा.
"किसका फोन है?" गौरव ने फोन जेब से निकालते हुए सोचा.
फोन सौरभ का था.
"हेलो...हां सौरभ हाउ आर यू."
"मैं ठीक हूँ सर. आप सुनाए. आशुतोष ने मुझे बताया कि साइको ने अपर्णा के घर अटॅक किया कल रात."
"ये आशुतोष कौन है?" गौरव ने पूछा.
"सर आशु को हम आशुतोष कहते हैं."
"ओह...हां साइको पूरी प्लॅनिंग से आया था मगर बिना कुछ किए चला गया. पोलीस वालो को मार कर घर में घुसा और एक पैंटिंग रख कर चला गया. अपर्णा तक पहुँचने की कोशिश ही नही की उसने. जबकि सब कुछ उसके कंट्रोल में था. मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा. ये एक मायाजाल है जिसमें हम सब उलझ चुके हैं."
"सर मायाजाल ठीक नाम दिया आपने इसे. सब कुछ उलझा हुआ है."
"भाई मेरी नौकरी चली गयी है. मुझे सर मत कहो. अब मैं इनस्पेक्टर नही हूँ. मुझे गौरव कहो..अच्छा लगेगा मुझे."
"नौकरी चली गयी...पर कैसे?"
"सस्पेंड हो गया हूँ मैं."
"पर किस बात के लिए?"
"यहाँ किसी बात की ज़रूरत नही होती. अगर बात पूछने जाएँगे तो कोई भी उल जलूल बात बोल देंगे."
"किसने किया सस्पेंड आपका, क्या ए एस पी साहिबा ने?"
"नही आइजी साहिब ने सस्पेंड किया है. मेडम का कोई रोल नही है इसमें."
"फिर अब आप क्या करोगे."
"घर जा रहा हूँ फिलहाल. आगे का कुछ नही पता."
"गौरव अगर बुरा ना मानो तो मेरे साथ आ जाओ. हम मिलकर कोई ना कोई सुराग ढूंड ही लेंगे साइको का."
"यार क्या कहु तुम्हे. मैं खुद यही सोच रहा था कि तुम्हारे साथ मिल कर इस साइको की खोज जारी रखूँगा. मगर सौरभ हमें कुछ हथियारों की ज़रूरत होगी. खाली हाथ साइको के पीछे घूमना ख़तरे से खाली नही. मेरी पिस्टल तो मैने जमा करवा दी है."
"मेरे पास तो देसी कॅटा है एक. वही रखता हूँ साथ."
"उस से बात नही बनेगी. मैं कुछ करता हूँ. पोलीस की नौकरी का एक्सपीरियेन्स कब काम आएगा. मैं तुम्हे 9 बजे अपने घर मिलूँगा. वही आ जाना. बैठ कर आगे का डिस्कस करते हैं."
"गौरव हमें ये जान-ना है कि कर्नल के घर में कौन रह रहा था. मुझे लगता है कि सब तार अब उसी घर से जुड़े हैं."
"हां तुम ठीक कह रहे हो. अभी तक कर्नल के रिलेटिव्स के यहाँ से भी कुछ पता नही चला. शायद वहाँ की लोकल पोलीस कोई इंटेरेस्ट नही ले रही."
"कोई बात नही हम खुद भी जा सकते हैं वहाँ पूछताछ करने."
"हां ठीक है...तुम शाम को घर आना बाकी बातें वही होंगी."
गौरव ने फोन काट दिया.
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जैसे ही उसने फोन जेब में रखा एक कार रुकी उसके सामने आकर. उसमे से ऋतू निकली बाहर और बोली, "क्या हुआ इनस्पेक्टर साहिब...आज पैदल कहाँ घूम रहे हैं."
"मैं अब इनस्पेक्टर नही हूँ...मेरा सस्पेंशन हो गया है."
"क्या? पर क्यों."
"आपने बदनाम जो कर दिया था मीडीया में हमें."
"देखिए पोलीस पर दबाव बना रही थी मैं और कुछ नही. नतिंग पर्सनल अगेन्स्ट यू."
"जानता हूँ...यही तो आपका काम है."
"उस दिन के लिए सॉरी. ज़्यादा तेज तो नही लगी थी आपको."
"कोई बात नही मैं वो सब भूल चुका हूँ. ऋतू तुम भी काफ़ी समय से इस केस को फॉलो कर रही हो. क्या एक काम कर सकती हो."
"हां बोलो."
"पोलीस से तो निकल गया हूँ पर इस केस को सॉल्व करके रहूँगा मैं. हम एक टीम बना रहे हैं...क्या तुम शामिल होना चाहोगी. बहुत हेल्प मिलेगी हमें."
"ऑफ कोर्स मैं साथ हूँ तुम्हारे. बताओ क्या करना है."
"आज रात ठीक 9 बजे मेरे घर पहुँच जाना. और तुम्हारे पास अब तक की जो भी जानकारी हो लेती आना."
"ओके आ जाउंगी मैं ठीक 9 बजे."
ऋतू कार में बैठ कर चली गयी.
"मिस्टर साइको बेसक मेरी नौकरी चली गयी मगर तुम्हारी तलाश अभी बाकी है. छोड़ूँगा नही तुम्हे मैं." गौरव ने मन ही मन सोचा.
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Update 103
अंकिता हॉस्पिटल के कमरे में उदास पड़ी थी.
सुबह उसने गौरव को इग्नोर किया था और ठीक से बात भी नही की थी. लेकिन जबसे उसे गौरव के सस्पेंशन का पता चला था तब से बार-बार दरवाजे की ओर देखती थी. कुछ भी आहट होती थी तो आँखो में उम्मीद लेकर दरवाजे की ओर देखती थी कि कही गौरव तो नही.
"गौरव बहुत बुरा लग रहा है मुझे. तुम्हे बात किए बिना ही भगा दिया यहा से. पता नही क्या हो गया था मुझे. चौहान ने जो कुछ बताया तुम्हारे और उसकी बहन के बारे में वो सब सुन कर बहुत बुरा लगा. तुमने मुझे कुछ क्यों नही बताया जबकि मैने तुमसे पूछा भी था. अच्छा नही लगा ये सब सुन कर." अंकिता मन ही मन सोच रही थी.
अंकिता ने फोन उठाया और गौरव को फोन मिलाया. मगर नेटवर्क बिज़ी होने के कारण फोन मिल नही पाया. गौरव ने भी अंकिता का फोन ट्राइ किया मगर एक बार भी नंबर नही मिला.अक्सर वक्त पड़ने पर कम्यूनिकेशन नही हो पाता. ऐसा ही कुछ अंकिता और गौरव के साथ हो रहा था.
“कही मेडम ने मेरे नंबर पर डाइवर्ट तो नही लगा दिया.” गौरव ने सोचा.
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03-01-2020, 10:09 AM
रात ठीक 9 बजे गौरव के घर साइको को ट्रॅक करने के लिए टीम तैयार हो रही थी. आशुतोष भी आ गया था वहाँ अपर्णा को लेकर. एक तरह से एक स्पेशल टास्क फोर्स तैयार हो रही थी.
गौरव ने सभी का स्वागत किया घर पर.
“हम यहा एक ख़ास मकसद से इक्कथा हुए हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि शहर में साइको ने ख़ौफ़ मचा रखा है. हम सभी का कभी ना कभी सामना हो चुका है साइको से. इसलिए ये हमारी मोरल ड्यूटी बनती है की उसे पकड़ने की हर संभव कोशिश करें.” गौरव ने कहा.
“मेरा कभी सामना नही हुआ साइको से” ऋतू ने कहा.
“ओह मुझे लगा रिपोर्टर होने के नाते तुम भी कही ना कही टकरा गयी होहि साइको से. लेकिन एक बात सुन लीजिए. साइको बिना नकाब के रोज हम सभी के सामने घूम रहा है. वो नकाब इसलिए लगाता है अब क्योंकि वो समाज में अपनी इज़्ज़त खोने से डरता है. ऋतू तुम शायद साइको से ज़रूर मिली होगी पर तुम्हे ये नही पता कि वो साइको है.”
“ह्म्म इंट्रेस्टिंग.” ऋतू ने कहा.
“सर कल रात उसने बहुत अजीब किया अपर्णा के घर पर. उसकी क्या एक्सप्लनेशन है…वो सिर्फ़ पैंटिंग रखने नही आएगा घर पर.?” आशुतोष ने कहा
“इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए हम यहा इकट्ठा हुए हैं. चलिए हम सब मिल कर सोचते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया होगा.”
“उसे अपने विक्टिम में ख़ौफ़ फैलाने में मज़ा आता है. हो सकता है वो बस ये काम करने गया हो कल रात अपर्णा के घर.” ऋतू ने कहा.
“लेकिन इसके लिए उसने बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया. कारण ज़रूर कोई बड़ा होना चाहिए.” गौरव ने कहा.
“हो सकता है कि वो पोलीस से डर से भाग गया हो?” सौरभ ने कहा.
“पर पोलीस बहुत देर से पहुँची थी. वो बहुत देर तक उपर घूमता रहा था.” आशुतोष ने कहा.
“जो पैंटिंग वो लाया था वो भी कोई फ्रेश पैंटिंग नही थी. इसलिए ये भी नही कह सकते कि वो पैंटिंग बना रहा था उपर.” गौरव ने कहा.
“गौरव तुम सही कह रहे थे. ये ज़रूर कोई मायाजाल है साइको का. उसने ऐसा क्यों किया ये सिर्फ़ वही बता सकता है.” सौरभ ने कहा.
“मायाजाल तो है पर मुझे यकीन है कि हम सब मिल कर इसे सुलझा सकते हैं.” गौरव ने कहा.
अपर्णा चुपचाप बैठी सब सुन रही थी. गौरव ने उसकी तरफ देखा और बोला, “अपर्णा तुम भी कुछ बोलो.हम सब यहाँ एक मकसद से इकट्ठा हुए हैं. इस से पहले की साइको हमारी आर्ट बना दे हमें उसकी आर्ट बनानी होगी. ये हम तभी कर पाएँगे जब हम उसे ढूंड लेंगे.”
“गौरव मेरे दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया है. मैने उसे देखा था और देख कर भूल गयी. अगर उसका चेहरा याद होता तो कुछ कर भी पाती…अब क्या करूँ कुछ समझ में नही आता.”
“कोई बात नही अपर्णा…तुम हमारे साथ हो यहा यही बड़ी बात है हमारे लिए. कुछ भी ध्यान आए तो शेर ज़रूर करना.” गौरव ने कहा
“हां शुवर.” अपर्णा ने कहा.
“हमारा प्लान ऑफ आक्षन क्या है?” आशुतोष ने कहा.
“हमें कर्नल के घर के रहश्य से परदा उठाना है. पता करना है कि वहाँ कौन रह रहा था. ये काम मैं और सौरभ करेंगे.” गौरव ने कहा.
“मेरे लिए क्या हुकुम है.” ऋतू ने पूछा.
“तुम कुछ भी इन्फर्मेशन नही लाई साइको के बारे में.” गौरव ने कहा.
“जितना तुम्हे पता है उतना ही मुझे पता है. ज़्यादा कुछ मैं भी नही जानती.” ऋतू ने कहा.
“लेकिन अब हमें सब कुछ जान-ना है इस बारे में. सभी एक दूसरे का नंबर ले लेते हैं. कोई भी नयी जानकारी मिलेगी किसी को तो तुरंत एक दूसरे से कॉंटॅक्ट करेंगे. और आशुतोष तुम हर वक्त सतर्क रहना. साइको फिर से आएगा वहाँ.”
“गौरव क्यों ना अपर्णा के घर के आस-पास ही हम भी एक कमरा ले लें. साइको अपर्णा के पीछे है. वो वही आएगा दुबारा. हम वही उसे ट्रॅप कर सकते हैं.”
“हां ठीक कह रहे हो. कल ही ये काम कर देंगे. दिन में हम चाहे कही भी रहें पर रात को अपर्णा के घर के आस-पास रहना ज़रूरी है.” गौरव ने कहा.
बाते करते करते 10:30 हो गये. सभी अपने अपने घर चल दिए.
गौरव आशुतोष और अपर्णा के साथ अपनी कार ले कर चल दिया. उसे हॉस्पिटल जाना था अंकिता से मिलने के लिए.
रास्ते में गौरव हॉस्पिटल की तरफ मूड गया और आशुतोष अपर्णा के घर की तरफ.
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