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Update 84
गौरव अपनी जीप में बैठा और सिमरन के घर की तरफ चल दिया. घर जा कर पता चला कि वो बॅंक में है. इcइcइ में ब्रांच मॅनेजर थी वो. गौरव इcइcइ बॅंक पहुँच गया.
जब वो सिमरन के ऑफीस में घुसा तो बोला, “अरे तुम”
“व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़. आओ-आओ बैठो” सिमरन ने कहा.
सिमरन और गौरव एक दूसरे को जानते थे. देल्ही में एक मॅरेज रिसेप्षन के दौरान मुलाक़ात हुई थी उन दोनो की. गौरव ने उस दिन थोड़ा-थोड़ा फ्लर्ट भी किया था उस दिन सिमरन से… …. फँस ही गयी थी सिमरन जाल में मगर पता नही कहाँ से उसका भाई आ गया अच्छानक और सारा मामला बिगड़ गया …
“मुझे नही पता था कि आप देहरादून में हो.”
“8 महीने पहले ही आई हूँ यहाँ. आप क्या पोलीस में हैं.”
“जी हां ये वर्दी किसी नाटक में भाग लेने के लिए नही पहनी मैने ……”
“अरे हां याद आया आपने बताया था कि आप पोलीस में हैं. कहिए कैसे आना हुआ यहाँ.”
“चलिए पहले काम की बात करते हैं. बाकी बाते तो अब होती ही रहेंगी …”
“बाकी बाते मतलब … …”
“वो सब बाद में. पहले ये बतायें कि क्या आपके पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है.”
“हां है…क्यों?”
“आपको पता ही होगा कि शहर में साइको का आतंक है.”
“हां बिल्कुल पता है. मैं खुद शाम ढलते के बाद कभी घर से बाहर नही जाती. ऑफीस से घर भी जल्दी चली जाती हूँ. पर इस सबका मेरी ब्लॅक स्कॉर्पियो से क्या लेना देना.”
“दरअसल साइको ब्लॅक स्कॉर्पियो में ही घूमता है.”
“तो क्या मैं तुम्हें साइको नज़र आती हूँ …”
“अरे नही सिमरन, कैसी बात करती हो. मुझे पता लगा था कि एक ब्लॅक स्कॉर्पियो आप के पास भी है. मुझे नही पता था कि आप वही ब्यूटिफुल सिमरन हैं जिन्हे मैं देल्ही में मिला था.”
“अच्छा.”
“जी हां…आइ मिस्ड यू आ लॉट. आपने अपना नंबर भी नही दिया था वरना आप से बात चीत होती रहती”
“अच्छा नंबर दे कर क्या मैं आपके फ्लर्ट को बढ़ावा देती.”
“फूल भंवरे को बढ़ावा नही देगा तो कैसे चलेगा. हम तो आपके दीवाने हो गये थे आपको देखते ही.”
“हम बाद में मिलें. अभी मैं थोड़ा बिज़ी हूँ. लिख लो मेरा नंबर अब.”
“लिखने की ज़रूरत नही है, आप बोल दीजिए नंबर…दिल की गहराई में उतर जाएगा वो.”
“अच्छा.” सिमरन शर्मा गयी ये सुन कर.
“आप बिल्कुल नही बदली. आज भी वैसे ही शर्मा रही हैं.”
“प्लीज़…ऐसी बातें ना करें अभी. बॅंक के काम में मन उलझा हुआ है अभी.”
सिमरन ने अपना नंबर बता दिया गौरव को. गौरव ने उसे दिल में छाप लिया
सिमरन से मिलने के बाद गौरव सीधा थाने पहुँचा. वो अंकिता से मिल कर केस को डिस्कस करना चाहता था.
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“मेडम कुछ नयी बाते सामने आईं हैं, सोचा आप से डिस्कस कर लूँ.”
“हां बोलो…क्या बात है?”
“मेडम एक उलझन पैदा हो गयी है. मैं आज कर्नल देवेंदर सिंग के यहाँ गया था. उनके ड्रॉयिंग रूम में एक बहूत ही अजीब पैंटिंग देखी मैने.” गौरव ने डीटेल में पूरी बात बताई.
“ह्म्म…एक और ओनर था ना ब्लॅक स्कॉर्पियो का, क्या नाम था उसका ..”
“हां मेडम सिमरन नाम है उसका, उस से भी मिल आया हूँ मैं. उस पर शक का कोई कारण नही है. वैसे भी हमारा सस्पेक्ट एक मेल है और सिमरन फीमेल है. और मैं उसे जानता भी हूँ.”
“ह्म्म…तुम गौरव और देवेंदर दोनो पर कड़ी नज़र रखो…साइको इन दोनो में से ही एक होना चाहिए.”
“जी मेडम”
गौरव जैसे ही अंकिता के कमरे से बाहर निकला उसे चौहान दिखाई दिया. गौरव को देखते ही वो आग बाबूला हो गया, “साले कब से ढूँढ रहा हूँ तुझे मैं. आज तेरी खैर नही.”
चौहान आग बरसाता हुआ गौरव की तरफ बढ़ा. गौरव के कुछ समझ नही आया कि वो अब क्या करे. भागने का रास्ता भी नही था . शूकर है तभी एएसपी साहिबा बाहर आ गयीं.
“गौरव तुम मेरे साथ चलो, एसपी साहिब ने बुलाया है. वैसे मैं अकेली ही जा रही थी मगर अभी-अभी वहाँ से फोन आया है कि एसपी साहिब तुमसे भी मिलना चाहते हैं.”
गौरव ने अंकिता के आने से राहत की साँस ली. वो चौहान के कहर से बच गया था.
“जाओ बेटा आज तुम्हारी खैर नही. खूब खाल उधेड़ेंगे आज एसपी साहिब तुम्हारी.” चौहान ने धीरे से गौरव को कहा.
गौरव ने चौहान को कुछ भी कहना ठीक नही समझा. वो चुपचाप अंकिता के साथ चल दिया.
जैसी की उम्मीद थी अंकिता और गौरव को खूब डाँट पड़ी.
“जंगल में अंडरगाउंड कन्स्ट्रक्षन बहुत बड़ा शुराग है पर तुम दोनो कुछ नही कर पा रहे. अरे पता करो उसके बारे में. ऐसे ही चलता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी. रोज डाँट मुझे सुन-नी पड़ती है. कितना वक्त और चाहिए तुम्हे इस हराम्खोर साइको को पकड़ने के लिए.”
“सर हमें कुछ इम्पोर्टेन्ट क्लू मिलें हैं. हमें उम्मीद है कि हम जल्द साइको को पकड़ लेंगे.”
“दट ईज़ गुड न्यूज़. बट आइ निड सम्तिंग इन रियल डियर. जिंदा या मुर्दा चाहिए मुझे वो साइको. अपनी पूरी ताक़त लगा दो. जल्दी से मुझे कुछ रिज़ल्ट दो.”
एसपी साहिब के रूम से निकल कर अंकिता ने कहा, “ गौरव और देवेंदर पर 24 घंटे निगरानी रखो. हमें कुछ ना कुछ हाथ ज़रूर लगेगा.”
“जी मेडम आप चिंता ना करें. आइ विल टेक केर ऑफ एवेरितिंग.”
एएसपी साहिबा अपनी जीप में बैठ कर अपने घर चली गयी. गौरव ने गौरव और कर्नल देवेंदर सिंग की निगरानी के लिए 2-2 कॉन्स्टेबल्स लगा दिए और उनके हिदायत दे दी कि पल-पल की खबर वो उसे देते रहें.
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गौरव शहर के राउंड पर निकल पड़ा. काफ़ी देर तक वो यहाँ वहाँ घूमता रहा. अचानक उसे रीमा का ख्याल आया. उसने अपना मोबायल निकाला जेब से और रीमा का नंबर डाइयल किया. मगर डाइयल करते ही तुरंत काट दिया, “उफ्फ फोन तो उस कामीने चौहान के पास. लगता है रीमा पर पाबंदियाँ लगा दी हैं चौहान ने. लगता है ये अफेर यही ख़तम हो गया है. अचानक ही हम मिले और अचानक ही बिछड़ गये. टेक केर रीमा. हम चाहे मिले ना मिले पर हमारी दोस्ती बनी रहेगी.”
अचानक गौरव को सिमरन का ख़याल आया. “अरे सिमरन को फोन करता हूँ. उसके साथ भी तो कुछ संभावनायें हैं ..”
गौरव ने सिमरन को फोन मिलाया.
“हाई सिमरन…सो गयी क्या?”
“हू ईज़ तीस?”
“अरे मैं गौरव बोल रहा हूँ.”
“ओह तुम. सॉरी तुम्हारा नंबर नही था ना मोबायल में इसलिए तुम्हे पहचान नही पाई.”
“कोई बात नही सिमरन जी. अब तो पहचान लिया ना. कहा हैं आप इस वक्त.”
“मैं अपने घर पर हूँ.”
“अकेली हैं क्या …”
“क्यों .. …”सिमरन ने पूछा.
“अगर आप अकेली हैं तो हम आपके पास आ जाते हैं आपका मन बहलाने के लिए.”
“अच्छा…”
“जी हां…बोलिए क्या कहती हैं आप. बड़े दिनो बाद मिलें हैं हम आज. क्यों ना आज के दिन को यादगार बना दे हम.”
“यादगार कैसे बनाएँगे वो भी बता दीजिए.”
“आप मिलिए तो सही…हमारी मुलाक़ात खुद-ब-खुद यादगार बन जाएगी.”
सिमरन मुस्कुरा कर बोली, “आप कहाँ हैं इस वक्त?”
“मैं शहर का राउंड ले रहा हूँ. आप कहेंगी तो तुरंत आपके पास आ जाउन्गा.”
“क्यों आ जाएँगे, साइको को नही पकड़ना क्या आपको.”
“पकड़ना है बिल्कुल पकड़ना है. दिन रात इसी चक्कर में रहता हूँ. आज रात आपको पकड़ लेता हूँ, साइको को बाद में देख लूँगा.”
“ह्म्म…मुझे पकड़ कर क्या कीजिएगा. जैल में तो नही डाल देंगे कही.”
“हाहाहा, जैल में नही आपको पकड़ कर अपने दिल में डालने का इरादा है. आ जाउ क्या आपको अपने दिल में डालने के लिए.”
“ह्म्म आ जाओ…”
“अपना अड्रेस दे दीजिए. मैं अभी तुरंत आ जाउन्गा आपके पास.”
सिमरन ने अपना अड्रेस दे दिया गौरव को. गौरव बिना वक्त गवाए कोई 20 मिनिट में पहुँच गया सिमरन के घर.
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गौरव ने सिमरन के घर पहुँच कर गौर किया की उसके घर के बाहर ब्लॅक स्कॉर्पियो नही है. “हो सकता है कि उसने गॅरेज में खड़ी की हो स्कॉर्पियो.”
गौरव ने कन्फ्यूज़्ड माइंड से सिमरन के घर की बेल बजाई. सिमरन ने दरवाजा खोला.
“हाई सिमरन…एक बात बताओ, तुम्हारी ब्लॅक स्कॉर्पियो कहाँ खड़ी करती हो तुम.”
“छोडो भी…यहाँ इन्वेस्टिगेशन करने आए हो या फिर…..”
“पोलीस वाला हूँ ना कोई ना कोई सवाल घूमता रहता है दिमाग़ में. बताओ ना, कहा खड़ी करती हो अपनी कार तुम.”
“हद करते हो. आते ही सवाल जवाब शुरू. पहले अंदर तो आओ.”
ना जाने क्यों गौरव का माथा कुछ ठनक रहा था. “बड़ी जल्दी मान गयी वैसे सिमरन. इतनी जल्दी मुझे घर इन्वाइट कर लेगी, सोचा नही था मैने. अपनी स्कॉर्पियो के बारे में भी कुछ नही बता रही. कही कुछ गड़बड़ तो नही.”
“आओ ना गौरव सोच क्या रहे हो?”
“नही कुछ नही…अच्छा लगा मुझे जो कि आपने मुझे इन्वाइट किया अपने घर.”
“फिर झीजक क्यों रहे हैं. आइए ना.” सिमरन ने कहा.
सिमरन गौरव को अंदर इन्वाइट कर रही थी मगर, गौरव के मान में काई सवाल घूम रहे थे. वो सोच रहा था कि आख़िर सिमरन साफ-साफ ये क्यों नही बता रही कि उसकी ब्लॅक स्कॉर्पियो कहाँ हैं. क्योंकि हर सवाल का जवाब उसे सिमरन से ही मिलना था इसलिए वो मुस्कुराता हुआ सिमरन के घर में घुस गया.
“क्या लेंगे आप चाय या कॉफफी या कुछ ठंडा.”
“फिलहाल हो सके तो अंगूर खिला दीजिए. आपके टॉप से बाहर निकले जा रहे हैं ये. क्या कीजिएगा इन्हे संभाल कर, दे दीजिए हमें हम संभाल लेंगे इन्हे.”
“बहुत बेशरम हैं आप…ऐसा कहता है क्या कोई. …”
“अब आप पूछ रही थी कि क्या लूँगा तो अपनी चाय्स बता दी.”
“घर में घुसते ही क्या आपको बस अंगूर नज़र आए.” सिमरन ने पूछा.
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02-01-2020, 03:16 PM
Update 85
“नज़र तो बहुत कुछ आया मगर अंगूर कुछ इस तरह ज़ोर मार रहें हैं आपके टॉप के पीछे से कि देखता ही रह गया. दे आर वेरी शार्प, कही फाड़ ना दें आपके टॉप को.”
“अच्छा.”
“जी हां, वैसे आप बहुत अच्छी लग रही हैं.”
“फ्लर्ट में तो माहिर हैं आप. बैठिए आप मैं चाय लाती हूँ. कुछ तो लेना ही पड़ेगा आपको.”
गौरव ने आगे बढ़ कर सिमरन का हाथ पकड़ लिया और इस से पहले की वो कुछ समझ पाती उसके होंटो को अपने होंटो में जाकड़ लिया.
“उम्म्म्म… छोड़िए.” सिमरन ने कहा.
“चाय क्यों ला रही हैं. मैं बहुत कुछ लेने वाला हूँ आप चिंता ना करें. …”
“वैसे चाय के बाद मैं ज़्यादा एग्ज़ाइटेड फील करती हूँ…सोच लीजिए.”
“उफ्फ अगर ऐसा है तो चाय मुझे भी दीजिए…वैसे चाय में कुछ मिलाती तो नही हैं आप .. …”
“नही बस सिंपल चाय लेती हूँ मैं.”
“कूल, ले आइए चाय, आय ऍम वेटिंग.”
गौरव सोफे पर बैठ गया. सिमरन किचन में चली गयी.
कुछ देर बाद सिमरन चाय ले कर आई. एक कप उसने गौरव को दे दिया और एक कप खुद लेकर गौरव के सामने दूसरे सोफे पर बैठ गयी.
गौरव को ना जाने क्यों सिमरन पर कुछ शक हो रहा था. वो सोफे से उठा और बोला, “आइए अपने कप एक्सचेंज कर लेते हैं, इस से प्यार बढ़ता है.”
गौरव को लग रहा था कि अगर उसने उसके कप में कुछ मिलाया होगा तो वो कप एक्सचेंज करने से मना कर देगी. मगर सिमरन ने चुपचाप मुस्कुराते हुए कप एक्सचेंज कर लिए.
“ह्म्म अच्छी चाय बनाई है आपने. देखने वाली बात अब ये है की आप कितनी एग्ज़ाइट होती हैं चाय पे कर. शायद मुझे एग्ज़ाइट्मेंट में एक ब्लो जॉब मिल जाए.”
“हाहाहा…इतनी भी एग्ज़ाइट नही होती हूँ मैं की किसी का डिक मूह में ले लूँ.”
“वैसे इतना एग्ज़ाइट करने के लिए क्या करना होगा मुझे, आइ वॉंट टू प्लेस माय डिक बेटवीन योर ब्यूटिफुल लिप्स.” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“तुम कुछ नही कर सकते, आइ डॉन’ट लाइक सकिंग. …” सिमरन भी हंसते हुए बोली.
गौरव सिमरन के पास आया और उसे उसका हाथ पकड़ कर सोफे से उठा लिया और बोला, “आपको क्या पसंद है और क्या नही वो सब हम बाद में देखेंगे, मुझे अपने अंगूर दे दीजिए फिलहाल …”
“अंगूर खट्टे हुए तो ?”
“इतनी सुंदर बगिया के अंगूर खट्टे हो ही नही सकते.” गौरव ने कहा और सिमरन के टॉप को उतारने लगा.
“वैसे चख कर देख लेता हूँ अभी ..”
“बड़े उतावले हो रहे हैं आप. रुकिये थोड़ी देर. थोड़ा बात चीत तो कर लें.”
“बात चीत भी होती रहेगी और काम भी होता रहेगा …” गौरव ने कहा और एक झटके में सिमरन का टॉप उतार कर सोफे पर फेंक दिया.
“अरे ये अंगूर तो बिना ब्रा के ही टॉप के पीछे छुपे थे. तभी कहु क्यों टक्कर मार रहे हैं टॉप में. यू हॅव गॉट ब्यूटिफुल बूब्स सिमरन.”
“अच्छा”
“हां, बहुत सुंदर हैं…लेट मी सक देम नाओ.” गौरव ने सिमरन के बायें बूब्स को थाम लिया और उसके निपल्स को चूसने लगा.
“आअहह….इतनी जल्दी सब शुरू हो जाएगा मैने सोचा नही था.”
“आपने मुझे घर बुला लिया अपने तो जल्दी तो मुझे करनी ही थी हहहे.”
“यू आर डर्टी कॉप.”
“आइ नो, बट आय ऍम हार्मलेस…”
“आअहह दाँत मार दिए और बोलते हो हार्मलेस …”
“सॉरी…सॉरी…सॉरी हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गयी.” गौरव ने हंसते हुए कहा.
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“निकालो अपना पेनिस बाहर मैं भी दाँत मारूँगी.”
“विल यू सक इट पर तुम तो लाइक नही करती ना.” गौरव ने कहा.
“सक नही करूँगी बल्कि दाँत मारूँगी…निकालो बाहर.”
“ओके बाय दा वे माय डिक लाइक्स अड्वेंचर, देखते हैं कि क्या करोगी तुम.” गौरव ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर खींच लिया.
“ह्म्म… नाइस डिक…नाओ आइ विल गिव दा सेम ट्रीटमेंट टू योर डिक विच यू हॅव गिवन टू मी निपल्स. आर यू रेडी.”
“ऑल्वेज़ रेडी फॉर यू, कम ऑन सक इट हार्ड एन्ड नाइस.” गौरव ने कहा.
सिमरन गौरव के सामने घुटनो के बल बैठ गयी और उसके लिंग को अपने होंटो के बीच दबा लिया.
“आआहह वेरी गुड, प्लीज़ कंटिन्यू….” गौरव ने कहा. मगर अगले ही पल गौरव कराह उठा, “आउच.”
“क्या हुआ गौरव.” सिमरन ने पूछा.
“यार तुमने सच में दाँत मार दिए, ये सच में अड्वेंचर हो गया. अब आपके मूह में लंड रखना ख़तरे से खाली नही…आपकी चूत ही ठीक रहेगी लंड रखने के लिए.”
“ग़लती से लग गये दाँत. सॉरी…मैने इंटेन्षनली नही किया.”
“इट्स ओके…बट आइ कैन’ट टेक दा रिस्क…प्लीज़ आपकी चूत को सामने लायें और हमें सुखद परवेश परदान करें.”
गौरव ने सिमरन को अपनी गोदी में उठा लिया और बोला, “चलिए आपके बेडरूम में चलते हैं. अगर यही ड्रॉयिंग रूम में ही ठुकवानी है तो वो भी बोल दीजिए.”
“नही मेरा मखमली बिस्तर मुझे अच्छा लगता है. फील फ्री टू टेक मी देर.”
गौरव सिमरन को उसके बेडरूम में ले आया और तुरंत उसके सारे कपड़े उतार दिए. खुद के कपड़े उतार कर वो सिमरन के उपर चढ़ गया और बोला, “पहली बार संभोग में उतर रहे हैं हम दोनो. मेरे लंड को किस पोज़िशन में परवेश देना पसंद करेंगी आप.”
“ह्म्म…आइ ऑल्वेज़ प्रिफर मिशनरी पोज़िशन. रेस्ट अप्ट यू.”
“अब आपको जो पसंद है उसी पोज़िशन में परवेश करेंगे. टांगे खोल कर मेरी कमर पर काश लीजिए आपको एक लंबे सफ़र पे ले जा रहा हूँ मैं ..”
“अच्छा…”
“जी हां बिल्कुल.”
गौरव ने सिमरन की टांगे खोल कर उसकी योनि पर अपना लिंग टिका दिया और ज़्यादा वक्त ना गवाते हुए एक धक्के में अपने लिंग को तकरीबन आधा सिमरन की योनि में सरका दिया. सिमरन कराह उठी, “ऊओह यस…”
“वाओ व्हाट आ स्मूद पुसी यू हॅव. वेरी नाइस. लीजिए अब पूरा जाकड़ लीजिए मेरे लंड को.” गौरव ने खुद को पूरा धकैल दिया सिमरन की योनि में. इस दौरान सिमरन ने बिस्तर की चादर को पूरे ज़ोर से मुथि में भींच रखा था.
“उफ़फ्फ़ आपने जान निकाल दी मेरी.”
“इतनी जल्दी जान निकल गयी, अभी जब आपकी रेल बनेगी तब क्या होगा …”
“रेल बनेगी मतलब… … क्या मतलब है तुम्हारा.”
“कुछ नही घबराए नही मज़ाक कर रहे हैं हम. अब अगर आपकी इज़ाज़त हो तो हम आपकी थुकायी कर लें.”
“कीजिए ना हमने रोका है क्या, वैसे रेल का मतलब क्या था …”
गौरव ने बिना कुछ कहे सिमरन की योनि को अपने लिंग से रगड़ना शुरू कर दिया और बोला, “रेल का मतलब भी पता चल जाएगा, ज़रा धर्य रखें.”
कुछ ही मिंटो में सिमरन की सिसकियाँ गूँज रही थी कमरे में. वो अपने दोनो पाँव पटक रही थी बिस्तर पर.
“उउउहह गौरव प्लीज़ रुकना मत आआहह”
ये सुनते ही गौरव रुक गया और सिमरन की योनि से अपना लिंग निकाल लिया और बोला, “अब एक सवाल है.”
“व्हाट मज़ाक मत करो, जल्दी वापिस डालो, मेरा ऑर्गॅज़म रोक दिया तुमने …” सिमरन ने निराशा भरे शब्दो में कहा.
“डाल दूँगा वापिस पहले विवेक भाई की तरह कुछ सवाल पूछ लूँ …”
“ये क्या मज़ाक है गौरव, प्लीज़ डाल दो ना.” सिमरन गिड़गिडाई.
“पहले ये बताओ कि तुम्हारी ब्लॅक स्कॉर्पियो कहाँ है.”
“यार तुम यहाँ अपनी इन्वेस्टिगेशन पे आए हो या फिर मुझसे मिलने ….”
“ड्यूटी सबसे पहले है, बाकी काम बाद में. आपने भी तो आज दिन में मुझे अपने ऑफीस से चले जाने को बोल दिया था. मुझे अपने सवालो के जवाब चाहिए, अगर जवाब नही मिलेगा तो आपकी चूत प्यासी रह जाएगी.”
“ये तो हद हो गयी. किसी ने मेरे साथ ऐसा नही किया.”
“बताओ ना मुझे कि कहाँ है तुम्हारी कार. क्यों झीजक रही हो. जल्दी से बताओ, आइ विल फक यू ईवन हार्डर आफ्टर दट.”
“कार मेरे बॉय फ्रेंड के पास है. वो देल्ही ले गया है ड्राइव करके. कल शाम तक लौट आएगा. तुम्हे अपने बॉय फ्रेंड के बारे में बताना नही चाहती थी इसलिए झीजक रही थी.”
“ह्म्म… क्या नाम है तुम्हारे बॉय फ्रेंड का.”
“उस से तुम्हे क्या मतलब? तुम मुझसे मतलब रखो.”
“मतलब है मुझे. शहर में साइको ने आतंक मचा रखा है और वो ब्लॅक स्कॉर्पियो लेकर घूमता है. क्या अक्सर तुम्हारी कार तुम्हारे बॉय फ्रेंड के पास होती है.”
“हां होती तो है…तुम्हे क्या लेना देना, हटो मेरे उपर से आइ डॉन’ट वॉंट योर डिक अनीमोर.”
मगर गौरव ने तुरंत अपने लिंग को सिमरन की योनि में डाल दिया.
“आअहह… अब क्यों डाला तुमने.”
“काफ़ी सवालो के जवाब मिल गये इसलिए. प्लीज़ बताओ ना कि कौन है तुम्हारा बॉय फ्रेंड.”
“संजय नाम है उसका…”
“ह्म्म…लव अफेर चल रहा है क्या तुम्हारा उसके साथ.”
“पागल हो क्या, ही ईज़ मॅरीड ओर अगर लव अफेर चल रहा होता तो तुम अपना ये ब्लॅकमेलिंग डिक डाल कर नही पड़े होते मेरे अंदर. ही ईज़ जस्ट टाइम पास.”
“टाइम पास फ्रेंड…वाह मान गया आपको ….” गौरव हँसने लगा.
“हँसो मत और अब अपना काम करो.”
“बस एक और सवाल.” गौरव ने कहा.
“अब क्या है…लगता है तुम्हारा संभोग का मूड नही है.”
“बस संजय का अड्रेस दे दीजिए मुझे.”
“क्या उसका अड्रेस क्यों दू तुम्हे. तुम उस पर शक मत करो. वो बहुत शरीफ बंदा है.”
“शरीफ बंदे की ही तलाश है मुझे. मुझे लगता है साइको कोई शरीफ बंदा ही है जिस पर कि हमारी नज़र नही गयी अब तक. वैसे ये अंदाज़ा ही है.”
“यार तुम साइको को पकड़ो जाकर मेरा क्यों मूड खराब कर रहे हो. कब से अंदर डाल कर पड़े हो, एक धक्का भी नही मारा तुमने. दे दूँगी अड्रेस…पहले ये काम फीनिस करो.”
“धन्यवाद आपका, ये लीजिए अब आपकी रेल बनेगी.” गौरव ने कहा और बिस्तर पर तूफान मचा दिया.
वो इतनी ज़ोर से धक्के मार रहा था कि बेड भी आवाज़ करने लगा.
“आअहह एस… प्लीज़ कंटिन्यू….अब मत रुकना.”
“हाहहाहा…..वैसे एक सवाल बाकी है अभी …”
“क्या नहियीईई प्लीज़ मेरा ऑर्गॅज़म हो जाने दो. मैं बहुत नज़दीक हूँ. प्लीज़…कंटिन्यू आआहह.”
“जस्ट जोकिंग सिमरन, एंजाय योर ऑर्गॅज़म.”
“थॅंक्स गौरव. आआहह यू आर टू गुड. ईच थ्रस्ट ऑफ युवर्ज़ ईज़ वेरी-वेरी पॉवेरफ़ुल्ल. आय ऍम फाइलिंग योर थ्रस्ट ऑल ओवर माय बॉडी. प्लीज़ रुकना मत अब.”
वैसे गौरव अब रुकने के मूड में नही था. सभी सवालो के जवाब उसे मिल गये थे. उसके धक्को की तेज़ी बढ़ती जा रही थी.
अचानक सिमरन बहुत ज़ोर से चिल्लाई, “ओह्ह्ह नूऊ…. यस आआहह..प्लीज़ रुक जाओ…आहह.”
सिमरन ने आख़िरकार अपना ऑर्गॅज़म पा लिया था
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Update 86
मगर गौरव ने अपनी मूव्मेंट जारी रखी. उसका ऑर्गॅज़म अभी बाकी था. वो लगा हुआ था तेज तेज धक्के मारने में. वो बस पहुँचने ही वाला था अपने चरम पर की अचानक उसका मोबायल बज उठा.
“उफ्फ कौन है इस वक्त.”
“तुम लगे रहो, बाद में देखना, अपना काम भी तो पूरा करो, आइ वॉंट योर हॉट वॉटर इनसाइड मी.”
“पानी की नदी बहा दूँगा, पहले देख लूँ कि किसका मेसेज आया है.”
गौरव ने बिस्तर पर पड़ी अपनी पंत को हाथ बढ़ा कर अपनी तरफ खींच लिया. और पेण्ट की जेब से अपने मोबायल को निकाल कर मेसेज रेड करने लगा. मेसेज पढ़ते ही उसके होश उड़ गये.
मेसेज कुछ इस प्रकार था.
“मिस्टर गौरव पांडे. मेरे ठिकाने से ही बच कर निकल गये तुम. वेरी नाइस. तुम्हारी ए एस पी साहिबा भी पूरी पोलीस फोर्स ले कर पहुँच गयी थी जंगल में. वो ना आती तो तुम्हारा वो हाल करता कि दुबारा जनम नही लेते धरती पर. तुम्हारी ए एस पी साहिबा मेरे कब्ज़े में है. बहुत ही बुरी मौत दूँगा ए एस पी साहिबा को मैं. कुछ कर सकते हो तो कर लो. तडपा तडपा कर मारूँगा उसे मैं.”
गौरव तुरंत सिमरन के उपर से हट गया.
“क्या हुआ…डॉन’ट यू वॉंट योर ऑर्गॅज़म.”
“ऑर्गॅज़म से भी ज़्यादा कीमती चीज़ दाँव पर लगी है सिमरन. मुझे तुरंत जाना होगा.”
गौरव ने फ़ौरन अपने कपड़े पहन लिए और बोला, “मुझे संजय का अड्रेस दो जल्दी.”
“आख़िर बात क्या है बताओ तो.”
“प्लीज़ गिव मी दा डॅम अड्रेस. बाते करने का वक्त नही है.”
सिमरन ने गौरव को संजय का अड्रेस दे दिया. गौरव तुरंत वो अड्रेस ले कर सिमरन के घर से निकल गया. उसके चेहरे पर बहुत ज़्यादा गुस्सा था.
सिमरन के घर से निकलते ही गौरव ने ए एस पी साहिबा को फोन मिलाया. वो कन्फर्म करना चाहता था कि साइको सच बोल रहा है या झूठ. मगर फोन साइको ने उठाया.
“हेलो मिस्टर पांडे, अब जब ए एस पी साहिबा मेरे कब्ज़े में हैं तो फोन भी तो मेरे पास ही होगा. कैसे बेवकूफ़ पोलीस वाले हो तुम. चलो कोई बात नही. मैं खुद तुम्हे फोन करने वाला था. सोच रहा हूँ क्यों ए एस पी साहिबा की खूबसूरती को बेकार किया जाए. वो भी अपर्णा से कम सुंदर नही है. उफ्फ क्या गुस्सा है इसकी आँखो में. बेचारी छटपटा रही है. बहुत ही सुंदर लग रही है. अभी डर नही है इसकी आँखो में. डर भी आएगा. डर में ये और ज़्यादा सुंदर लगेगी. ए एस पी साहिबा को भी एक आर्टिस्टिक मौत मिलनी चाहिए. शी डिज़र्व्स आ ब्यूटिफुल डेत.”
“ब्यूटिफुल डेत तो तुम्हे मैं दूँगा, नपुंसक साइको.” गौरव चिल्लाया.
“हाहहाहा, देखते हैं आज की कौन नपुंसक है. चलो तुम्हे मोका देता हूँ ए एस पी साहिबा को बचाने का. हालाँकि वो मेरे हाथो हर हाल में मरेगी. अभी इसी वक्त मसूरी की तरफमोड़ लो अपनी गाड़ी. पाहाड़ों में चित्रकारी करने का मन है इस बार. तुम्हे मेरी ब्लॅक स्कॉर्पियो खड़ी मिलेगी सड़क किनारे. बस तुम चलते जाना. जहा ब्लॅक स्कॉर्पियो खड़ी मिले वही रुक जाना. आगे मैं संभाल लूँगा.कोई होशियारी मार करना वरना तुम जानते ही हो कि मैं क्या कर सकता हूँ. वेटिंग फॉर यू मिस्टर पांडे. किसी को भी फोन करने की कोशिश मत करना. जीप में कॅमरा है तुम्हारी. देख रहा हूँ तुम्हे मैं. अब चुपचाप मसूरी की हसीन वादियों की तरफ आ जाओ. वैसे तुम्हारे पास चाय्स है ना आने की, वो तुम्हारी लगती भी क्या है. नही आओगे तो अगले 15 मिनिट में ए एस पी साहिबा मेरी आर्ट का हिस्सा बन जाएगी. अगर आओगे तो ए एस पी साहिबा के साथ तुम भी सामिल हो जाओगे मेरी आर्ट में. चाय्स तुम्हारी है, बताओ मैं वेट करूँ तुम्हारा या फिर बना दूं अंकिता की आर्ट इसी वक्त.”
“मैं आ रहा हूँ साले, नामार्द साइको. तेरी बुजदिली जाहिर होती है इन हर्कतो से. सच बता तू अपने बाप की औलाद नही है ना. शायद किसी पड़ोसी की मेहरबानी का नतीज़ा हो तुम. “
“तुम्हे मारने में बहुत मज़ा आएगा मिस्टर गौरव पांडे. जल्दी आ जाओ अब देर मत करो. मेरा चाकू प्यासा है. और इस फोन की कोई ज़रूरत नही है तुम्हे अब. फेंक दो इसे एक तरफ. बंदूक का भी क्या करोगे तुम, उसे भी एक तरफ फेंक दो.” साइको ने फोन काट दिया ये बोल कर
“मेरी जीप में कॅमरा कब लगा गया ये कमीना …बहुत शातिर है ये.” गौरव ने फोन और बंदूक फेंक दिए एक तरफ और जीप में बैठ कर मसूरी की तरफ चल दिया.
रात के 12 बाज रहे थे. सदके सुनशान थी. हर तरफ खौफनाक सन्नाटा था. गौरव पूरी तेज़ी से मसूरी की तरफ बढ़े जा रहा था. कोई 40 मिनिट चलने के बाद उसे एक ब्लॅक स्कॉर्पियो देखाई दी सड़क पर खड़ी हुई. उसने अपनी जीप उसके पीछे रोक दी.
“बहुत बढ़िया कार पे नंबर प्लेट ही नही है. वाह भाई वाह. मान गये साइको जी आपको” गौरव ने मन ही मन कहा.
गौरव चुपचाप जीप से निकल कर बाहर आया.
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“आओ मिस्टर गौरव पांडे, बड़ी जल्दी आ गये तुम. मान-ना पड़ेगा हिम्मत बहुत है तुम में.” साइको ने कहा. वो एक पेड़ के सहारे खड़ा था और उसके चेहरे पर काला नकाब था.
“तुम्हारी तरह नपुंसक नही हूँ.”
“हाहहाहा रस्सी जल गयी पर बल नही गये. अपनी बंदूक निकाल कर अपनी जीप में रख दो और चुपचाप मेरे साथ चलो.”
“एक बात पूछूँ, तुम ये सब क्यों करते हो.”
“आर्टिस्ट को अपना हुनर देखने के लिए किसी कारण की ज़रूरत नही होती. आओ आपको अंधेरे जंगल में ले चलते हैं.”
“यहा नया ठिकाना बना लिया क्या तुमने.”
“जल्दी चलो वरना ए एस पी साहिबा गहरी खाई में गिर जाएगी.”
“अब कौन सी गेम खेल रहे हो तुम.”
“चलो चुपचाप, सब पता चल जाएगा.”
गौरव चुपचाप साइको के आगे चल दिया.
“अपना चेहरा तो देखा देते एक बार. इतना डरते क्यों हो तुम.”
“मिस्टर पांडे मैं किसी से नही डरता हूँ, आर्टिस्ट हूँ मैं. खुद को गुमनाम रखना चाहता हूँ.”
“अपने डर को छुपाने की कोशिश कर रहे हो तुम. गुमनाम रहना तो एक बहाना है.”
“चुप कर बहुत हो गयी तेरी बड़बड़, अब एक शब्द भी बोला तो भेजा उड़ा दूँगा तेरा.”
“हाहहाहा, तू मुझे ऐसे नही मारेगा मुझे पता है. अपने प्लान के मुताबिक मारेगा. देखता हूँ मेरे लिए तेरे जैसे हिजड़े ने क्या प्लान बना रखा है.”
“दिमाग़ कराब मत कर. प्लान के बिना भी मार सकता हूँ तुझे मैं.”
“वो पता है मुझे. तभी तो तुझे साइको कहते हैं लोग.”
“साइको मत बोलो मुझे, मैं एक आर्टिस्ट हूँ, कितनी बार बताना पड़ेगा.”
“तुम ले जा कहाँ रहे हो मुझे.”
“चलते रहो चुपचाप बस कुछ ही देर में पहुँचने वाले हैं.”
कुछ देर बाद साइको बोला, “लो पहुँच गये”
“हर तरफ अंधेरा है. ए एस पी साहिबा कहा हैं.” गौरव ने पूछा.
साइको ने अपनी जेब से एक टॉर्च निकाली और रोशनी को एक पेड़ की ओर किया.
गौरव की आँखे फटी की फटी रह गयी पेड़ की तरफ देख कर.
अंकिता के दोनो हाथ रस्सी से बँधे हुए थे और वो पेड़ के एक लंबे तने के सहारे लटकी हुई थी. उसके मुँह में कुछ ठूंस रखा था साइको ने जिसके कारण वो कुछ भी नही बोल पा रही थी. शूकर था कि उसके शरीर पर कपड़े थे. वो जीन्स और टॉप पहने हुए थी.
“अब तुम जाओ और उसे बचा लो. हाथ खोल कर उसे ज़मीन पर गिरा देना. सिंपल सी गेम है. ज़्यादा पेचिदगी नही है. जाओ चढ़ जाओ पेड़ पर.” साइको ने कहा.
“गेम सिंपल नही हो सकती ये. कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ है …” गौरव ने सोचा.
“क्या सोच रहे हो. जाओ और उसकी मदद करो. एक मिनिट की भी देरी की तो उसे भी गोलियो से भुन दूँगा और तुम्हे भी.” साइको चिल्लाया.
गौरव मन में दुविधा लिए पेड़ की तरफ बढ़ने लगा. गौरव ने पीछे मूड कर देखा तो पाया की साइको पैंटिंग करने की तैयारी में है. लाइट का इंतज़ाम कर रखा था साइको ने अपनी पैंटिंग के लिए. मगर अंकिता के सिर्फ़ चेहरे पर ही टॉर्च की रोशनी पड़ रही थी. बाकी आस-पास का कुछ भी नही देखाई दे रहा था.
गौरव मन में दुविधा लिए धीरे-धीरे पेड़ की तरफ बढ़ा.
“कोई ख़तरनाक गेम है जो की समझ नही आ रही मुझे.” गौरव के मन में ढेर सारे सवाल थे.
साइको चुपचाप कॅन्वस पर पैंटिंग करने में लग गया. उस पर पेड़ से टगी अंकिता तो ऑलरेडी पेंटेड थे, अब वो उस टहनी पर जिस पर की अंकिता लटकी थी एक आकृति बना रहा था. जो कि शायद गौरव की थी.
“दिस विल बी मास्टरपीस क्रियेशन. ए एस पी साहिबा और गौरव पांडे पेड़ के मायाजाल में उलझे हुए बड़े सुंदर लगेंगे हिहिहीही.” साइको धीरे से मुस्कुरआया.
गौरव बहुत ज़्यादा कन्फ्यूषन में था. उसे साइको की गेम समझ नही आ रही थी."आख़िर क्या चाहता है ये कमीना साइको. इसके जैसा शातिर और कमीना इतनी आसान गेम नही खेल सकता. कुछ तो है ख़तरनाक इस गेम में जो कि मुझे समझ नही आ रहा." गौरव पेड़ पर चढ़ते हुए सोच रहा था.
"आप बिल्कुल चिंता मत करो मेडम, मेरे होते हुए आपको कुछ नही होगा. हां मर गया तो कुछ कह नही सकता, पता नही कैसी गेम है ये इस कामीने की."
अंकिता गौरव की बात सुनते ही उसकी तरफ देखते हुए छटपटाने लगी. उसके मुँह में कुछ ठूंस रखा था साइको ने. मगर वो चटपटाते हुए मुँह से बिना शब्दो के घुटन भरी आवाज़ कर रही थी. मानो इशारो में कुछ कह रही हो. गौरव समझ तो कुछ नही पाया मगर उसे इतना अहसास ज़रूर हो गया कि ए एस पी साहिबा कुछ कह रही हैं.
"मिस्टर गौरव पांडे बहुत ढीले पोलीस वाले हो तुम. जल्दी करो, देखो कैसे छटपटा रही हैं ए एस पी साहिबा. बहुत देर से टगी हैं ये इस पेड़ से. जल्दी से रस्सी खोल दो और इन्हे ज़मीन पर गिरा दो. धूल चटा दो इन्हे ज़मीन की. और हां तुम्हारे पास इनको उपर खींचने की ऑप्शन नही है. इन्हे उपर खींचा तो तुरंत गोलियों से भुन दूँगा तुम दोनो को. गेम जैसे मैं कहता हूँ वैसे ही खेलो तुम दोनो का कुछ नही बिगड़ेगा." साइको ने तेज आवाज़ में कहा.
ये सुनते ही गौरव का माथा ठनका, "कही ये कमीना मेरे हाथो मेडम को मरवाना तो नही चाहता. कही ज़मीन पर कुछ ऐसा तो नही है जिस पर गिरते ही मेडम की मौत हो जाए और साइको की घिनोनी आर्ट पूरी हो जाए." गौरव ने बड़े गौर से नीचे देखा. अंधेरा इतना ज़्यादा था कि उसे कुछ दिखाई नही दिया.
"क्या सोच रहे हो मिस्टर पांडे, कितना वक्त लगा रहे हो तुम. एक मिनिट की भी देरी की अब तो भून दूँगा तुम दोनो को." साइको चिल्लाया.
"हे भगवान कैसे गिरा दू अंधेरे में मेडम को. नीचे कुछ नज़र नही आ रहा कि क्या है. ये कैसी परीक्षा में डाल दिया मुझे. मेरे कारण मेडम को कुछ हुआ तो खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा."
साइको बंदूक लेकर आगे बढ़ा, "5 तक गिनूंगा मैं, 5 तक इसे नीचे नही गिराया तो भेजा उड़ा दूँगा इसका. और इसे मारने के बाद तुम्हे भी टपका दूँगा."
साइको ने गिनती शुरू कर दी. गौरव ने रस्सी खोलनी शुरू कर दी. उसके हाथ काँप रहे थे रस्सी खोलते हुए. जैसे तैसे उसने रस्सी खोल दी मगर रस्सी को हाथ में थामे रहा.
"मुझे पता था तुम इसे नीचे नही गिराओगे. यही मेरी गेम थी हाहहाहा." साइको क्रूरता से हँसने लगा.
गौरव ये सुन कर हैरान रह गया. "साले तू चाहता क्या है. साफ-साफ बता ना." अंकिता के कारण गौरव कोई गंदी गाली नही दे पाया साइको को.
"हाहहहाहा अभी पता चल जाएगा थोड़ी देर रुक तो सही." साइको ने कहा.
साइको ने एक एलेक्ट्रिक लकड़ी काटने की मशीन उठाई और उस तने पर रख दी जिस पर गौरव चढ़ा था.
"धन्यवाद तुम दोनो का मेरी आर्ट का हिस्सा बन-ने के लिए. गो टू हेल नाओ हाहहहाहा."
गौरव के तो कुछ समझ नही आया कि हो क्या रहा है.
"बाय दा वे, ये पेड़ खाई के बिल्कुल किनारे पर है. इन पहाड़ियों की सबसे गहरी खाई है ये. जाओ इस खाई का आनंद लो हाहहहाहा."
कुछ भी करने और कहने का मोका नही मिला गौरव को. पेड़ का तना झट से काट दिया साइको ने और तने के कट-ते ही खौफनाक खाई ने खींच लिया गौरव और अंकिता को. गिरते हुए गौरव चिल्लाया, "हम मर रहे हैं पर तुझे तेरे पापो की सज़ा ज़रूर मिलेगी कामीने."
"मेरा बदला पूरा हुआ. तुम दोनो को भयानक मगर सुंदर मौत दी और मेरी आर्ट का हिस्सा भी बन गये तुम दोनो हिहिहिहीही अब अपर्णा की बारी है. उसका तो मास्टर पीस बनाओन्गा मैं. वैसे तुम दोनो की ये मौत भी मास्टर पीस से कम नही है हहेहहे."
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Update 87
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अपर्णा गहरी नींद से चिल्ला कर उठी, "गौरव...."
आवाज़ बाहर जीप में बैठे आशुतोष को भी सुनाई दी. वो दरवाजे की तरफ भागा. और उसने घर की बेल बजाई. घर में काम वाली बाई रुकी हुई थी. उसने दरवाजा खोला.
"क्या हुआ, अपर्णा जी क्यों चिल्लाई."
"मुझे नही पता. मैं भी उनकी आवाज़ सुन कर अभी उठी."
आशुतोष अपर्णा के कमरे की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया और अपर्णा के रूम के दरवाजे को पीटने लगा, "अपर्णा जी क्या हुआ, दरवाजा खोलिए."
अपर्णा काँपते कदमो से उठी बिस्तर से और दरवाजा खोला. वो बहुत डरी हुई लग रही थी.
"क्या हुआ अपर्णा जी आप क्यों चिल्लाई थी."
"मैने बहुत भयानक सपना देखा आशुतोष, मुझे बहुत डर लग रहा है."
"ओह...सपना ही तो था. इसमे डरने की क्या बात है. वैसे क्या देखा आपने सपने में."
"मैने देखा की पोलीस स्टेशन में ही साइको ने गौरव की गर्दन....नही बोल सकती मैं..."
"कोई बात नही मैं समझ गया. आप घबराओ मत. लगता है गौरव सर आपके अच्छे दोस्त थे कॉलेज में."
"हां बहुत अच्छे दोस्त थे हम. मैं गौरव से बात करना चाहती हूँ. क्या उसका नंबर है तुम्हारे पास."
"नंबर तो है पर इस वक्त रात के 2 बजे हैं और शायद वो सो रहे होंगे."
"मुझे नंबर दो प्लीज़ मुझे अभी बात करनी है गौरव से."
"क्या आप प्यार करती हैं गौरव सर से." आशुतोष ने दर्द भारी आवाज़ में कहा.
"ओह कम ऑन, नंबर दो प्लीज़. हम अच्छे दोस्त थे बस कितनी बार कहूँ और तुम्हे क्या हक़ है ये सवाल करने का, खुद तो 10-10 लड़कियों से संबंध रखते हो और मुझसे ऐसा सवाल करते हो."
आशुतोष ने नंबर दे दिया अपर्णा को. अपर्णा ने तुरंत नंबर मिलाया.
"हेलो गौरव, थॅंक गॉड तुमने फोन उठाया."
"ओह तो ये फोन किसी गौरव का है."
"कौन हो तुम?" अपर्णा ने पूछा.
"मुझे ये फोन सड़क किनारे पड़ा मिला. मैने उठा लिया. सोच रहा था कि सुबह पोलीस स्टेशन जमा कर दूँगा. आप अपना अड्रेस दे दो मैं फोन आपके अड्रेस पर दे दूँगा."
अपर्णा ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ अपर्णा जी."
"फोन किसी आदमी के पास था. कह रहा था कि उसे वो सड़क किनारे मिला. मुझे तो गौरव की चिंता हो रही है...कही सच में तो साइको ने उसे...."
आशुतोष ने अपने फोन से फोन मिलाया गौरव का और उस आदमी को अपर्णा के घर का अड्रेस दे दिया.
"है तो बहुत अजीब बात. पर हो सकता है की गौरव सर का फोन ग़लती से सड़क पर गिर गया हो."
"आशुतोष, पहले वो सपना अब ये गौरव का फोन सड़क पर मिलना, मुझे किसी अनहोनी का अंदेसा हो रहा है."
"आप घबराओ मत, सो जाओ आराम से. ये सब इत्तेफ़ाक है"
"नही मेरा दिल घबरा रहा है, कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है."
"मैं ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता हूँ. शायद उन्हे कुछ पता हो." आशुतोष ने अंकिता का फोन मिलाया.
"हेलो मेडम मैं आशुतोष बोल रहा हूँ."
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02-01-2020, 03:29 PM
"हिहिहिहीही बोलते रहो बेटा वो तो मेरी आर्ट का हिस्सा बन चुकी है हाहहहाहा अब अपर्णा की बारी है. तू घर पर है ना उसके. उसे समझा कि आँखो में ख़ौफ़ भर ले अब उसका नंबर आ गया है. बहुत इंतेज़ार कर लिया मैने."
आशुतोष को बहुत गुस्सा आ रहा था मगर अपर्णा के कारण चुप रहा.
"ओह थॅंक यू मेडम, ठीक है गौरव सर का फोन नही मिल रहा था इसलिए ट्राइ किया."
"अबे उल्लू के पत्थे गौरव भी टपका दिया अंकिता के साथ, और ये अजीब बातें क्यों कर रहा है मेरी बात समझ नही आ रही क्या तुझे हिहिहीही."
"ओके गुड नाइट मेडम." आशुतोष ने भारी मन से कहा. उसकी आँखे नम हो गयी थी गौरव और अंकिता के बारे में सुन कर.
आशुतोष ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ तुम्हारी आँखे नम क्यों हैं." अपर्णा ने पूछा.
आशुतोष अपर्णा को सब कुछ बता कर डराना नही चाहता था. "कुछ नही मेडम ने आज पहली बार प्यार से बात की."
"तुम्हारा उसके उपर भी दिल है क्या, निकल जाओ अभी मेरे घर से. पता नही कैसा प्यार है तुम्हारा."
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"खो...खो...आअहह" खाँसते हुए उठा वो. मुँह से मानो खून की नादिया बह रही थी उसके. आँखे खोली उसने. हल्की सी रोशनी देखाई दी उसे.
"लगता है सुबह हो गयी है" उसने मन ही मन सोचा और अचानक वो बेचैन हो गया और बड़बड़ाया,"मेडम कहाँ है."
गौरव ने उठने की कोशिश की पर वो उठ नही पाया.
"खो...खो...आअहह...गौरव"
"मेडम.... आप कहाँ हो"
"तुम्हारे सर के बिल्कुल उपर. उठो गौरव और मुझे मार दो प्लीज़ आहह."
"ये..ये आप क्या कह रही हैं...प्लीज़ ये सब मत बोलिए. मुझे माफ़ कर दीजिए कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"तो अब कर दो, मुझे मार दो प्लीज़." अंकिता गिड़गिडाई.
गौरव के मन में खाई में गिरने का पूरा नज़ारा घूम गया. उपर से गिरने के बाद वो दोनो तीन बार अलग अलग पेड़ में अटके. इस कारण वो सीधा नीचे गिरने से बच गये मगर अब उनको अपना बचना भी कष्टदायी लग रहा था.
गौरव ने पूरा ज़ोर लगा कर हल्की सी अपनी गर्दन उठाई. अपने शरीर को देख कर काँप गया वो. उसके घुटने बुरी तरह छिल गये थे और उनमे से खून बहे जा रहा था. कुछ ऐसा ही हाल था लगभग शरीर के हर अंग का. गौरव ने पूरी कोशिश की उठने की मगर उठ नही पाया. किसी तरह से उसने करवट ली और सर को उठा कर अंकिता की तरफ देखा. रो पड़ा वो अंकिता को देख कर. पेट में एक लकड़ी घुसी हुई थी अंकिता के और वो दर्द से छट पटा रही थी. अब गौरव को समझ में आया की वो क्यों उसे उसको मारने को बोल रही थी.
गौरव आँखो में आँसू लिए ज़मीन पर खुद को घसीट-ता हुआ अंकिता की ओर बढ़ा और उसके पास आ कर बोला, "माफ़ कर दीजिए मुझे मेडम, कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"र..गौरव मैं सह नही पा रही हूँ. प्लीज़ मुझे मार दो."
"नही कर पाउन्गा ये पाप, प्लीज़ ये सब करने को ना बोलिए."
"तुम समझ नही रहे हो मैं तड़प रही हूँ कब से पर ये जान पता नही क्यों नही जा रही...." रोने लगी अंकिता ये बोल कर.
"हे भगवान मेरी मदद कर." गौरव ने कहा और पूरा ज़ोर लगा कर उठने की कोशिश की.
उठते वक्त उसे ऐसा लगा जैसे की उसका घुटना बाहर आ जाएगा. मगर अंकिता की हालत देख कर उसमे कुछ करने का जोश आ गया था और वो किसी तरह से उठ गया.
"मेडम आपको हॉस्पिटल ले जाउन्गा मैं. आप मरने की बाते मत करो प्लीज़." गौरव बोल कर लड़खड़ा कर फिर से गिर गया.
"कैसे ले जाओगे गौरव. तुम खुद को नही संभाल पा रहे हो. मुझे मार कर निकल जाओ यहा से, प्लीज़."
"आपके साथ ही मारना पसंद करूँगा मैं यहा से अकेले जाने की बजाए."
"तुम पागल हो गये हो. अच्छा मत मारो मुझे मगर यहा से निकल जाओ तुम. मैं कुछ ही पल की मेहमान हूँ लगता है. मेरे उपर वक्त बर्बाद मत करो...जाओ."
"आपको छोड़ कर कही नही जा रहा मैं." गौरव फिर से हिम्मत करके खड़ा हो गया.
"इट्स आन ऑर्डर गौरव चले जाओ."
"जाउन्गा तो आपको साथ लेकर ही जाउन्गा. आपके किसी ऑर्डर को नही मानूँगा आज."
गौरव ने बड़ी मुश्किल से उठाया शालिमि को और उसे गोदी में लेकर वहां से चल दिया लड़खड़ाते हुए कदमो से.
"ये लकड़ी तो खींच लो बाहर कम से कम." अंकिता गिड़गिडाई.
"नही इसे अभी निकाला तो आपकी जान को ख़तरा बढ़ जाएगा."
"गौरव खाई में हैं हम. कैसे निकलेंगे यहाँ से. मुझे उठा कर कैसे चढ़ोगे पहाड़ पर. मेरी बात मानो तुम निकल जाओ यहा से और जींदा मत छोड़ना साइको को. गोली मारना उसके सर में." अंकिता ने कहा.
"आप मारेंगी उसे गोली और आप चुप रहो बस.. जैसे भी हो मैं आपको ले चलूँगा हॉस्पिटल."
गौरव हिम्मत करके गोदी में उठा कर चल तो रहा था अंकिता को मगर जल्द ही उसे ये अहसास हो गया कि वो हारी हुई बाजी खेल रहा है. खाई के चारो तरफ पहाड़ियाँ बहुत स्टीप थी. उनपर अंकिता को गोदी में लेकर चढ़ना नामुमकिन था. उसकी गोदी में अंकिता दर्द से छटपटा रही थी और उसे अंकिता की मौत नज़दीक नज़र आ रही थी. इतना निराश हो गया गौरव कि रो पड़ा फिर से.
"मैं क्या करूँ भगवान कोई तो रास्ता दिखाओ, मैं कैसे और कहा से लेकर जाउ मेडम को हॉस्पिटल."
अंकिता ने आँखे खोल कर गौरव की ओर देखा. वो भी रो पड़ी, रोक नही पाई खुद को. उसने गौरव के गाल पर हाथ रखा और बोली, "गौरव एक ही रास्ता है जिसे तुम देख कर भी इग्नोर कर रहे हो. क्यों ढो रहे हो मुझे. मरने ही वाली हूँ मैं. तुम बेवजह अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो. क्या अपनी मेडम की बात नही मानोगे, प्लीज़ छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर और यहाँ से निकल जाओ. तुम्हे भी मेडिकल अटेन्षन की ज़रूरत है. जाओ तुम्हे उस साइको को गोली मारनी है अभी. मैं बॉस हूँ तुम्हारी मेरी बात मान-नी पड़ेगी तुम्हे."
"शट अप, बकवास बंद करो अपनी. आई मेरी बॉस. बॉस हो तो क्या कुछ भी बोलोगी. तुम्हारे बिना जंगल से नही जाउन्गा मैं. तुम्हे कुछ हो गया तो खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा. चुप रहो बिल्कुल, एक शब्द भी निकाला मुँह से तो थप्पड़ पड़ेगा अब. आई बड़ी बॉस हुह."
"बॉस को डाँट रहे हो, आप से तुम पर आ गये, और थप्पड़ क्यों मारोगे तुम, अपनी हद में रहो आअहह." अंकिता दर्द से कराह उठी.
"दुबारा बेहूदा बात की मुझसे तो थप्पड़ ज़रूर पड़ेगा. क्या समझती हो खुद को तुम. हर वक्त तुम्हारी ही बात मानी जाएगी क्या."
"गौरव प्लीज़, मैं तुम्हारे लिए बोल रही हूँ. कोई रास्ता नही है यहा से निकलने का. मुझे उठा कर तो कभी नही निकल पाओगे. मेरी बात मान लो छोड़ दो मुझे यही."
"मैने कहा ना अकेले यहा से नही जाउन्गा मैं. यहा से हम साथ जाएँगे. नही जा पाए तो साथ मरेंगे यही."
"कौन हूँ मैं तुम्हारी जो ऐसी बाते कर रहे हो?"
"इंसानियत का रिस्ता है आपसे. इतना काफ़ी है आपसे ऐसी बाते करने के लिए."
"कोई भी रास्ता नही है गौरव, समझते क्यों नही तुम आआहह."
"कहते हैं कि जहाँ चाह, वहाँ राह. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा हमें. वैसे साइको ने आपको कैसे किडनॅप कर लिया."
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Update 88
कुछ भी करने और कहने का मन नही था
"थाने से आकर रोज जिम जाती हूँ मैं. कल अकेली ही निकल गयी अपनी कार लेकर. जिम ख़तम करके अपनी कार की और जा रही थी. साइको ने पीछे से अचानक दबोच लिया और कुछ सूँघा दिया मुझे. सुनसान था पार्किंग एरिया शायद किसी ने ये सब नही देखा. आँख खुली तो खुद को पेड़ से टँगे पाया. साइको ने मुझे अपनी सारी गेम बता दी थी. मेरे सामने ही उसने तुमसे फोन पर बात की. मुझे लग रहा था कि तुम नही आओगे मौत के मुँह में. पर तुम आ गये."
"आता क्यों नही. आप मेरी बॉस हो."
"मैं फिर से बॉस बन गयी और आप भी बन गयी हरे आआहह."
"आप कम बोलो तो अच्छा है. मुझ पर विश्वास रखो मैं कोई ना कोई रास्ता ढूंड लूँगा."
"साइको अपने विक्टिम्स की मौत की पैंटिंग बनाता है गौरव. सब इंतज़ाम कर रखा था उसने वहाँ उपर. लाइट का भी इंतज़ाम कर रखा था. ये साइको बहुत शातिर है गौरव."
"रहने दो शातिर उसे. अब बचेगा नही वो ज़्यादा दिन. उसके पाप का घड़ा भर चुका है. अब मुझे सबसे ज़्यादा कर्नल देवेंदर सिंग पर शक हो रहा है. उसे पैंटिंग का शौक है और उसके घर मैने बहुत अज़ीब पैंटिंग देखी थी. वैसी पैंटिंग कोई साइको ही बना सकता है."
"छोड़ना मत इस साइको को गौरव. तडपा-तडपा कर मारना उसे."
"आप खुद देखेंगी उसे मरते हुए, फिर से निराशा भरी बाते मत करो वरना अब सच में थप्पड़ लगेगा."
"सॉरी गौरव." अंकिता ने मासूमियत भरे लहज़े में कहा.
"हाहहाहा मेरी बॉस ने मुझे सॉरी कहा हरे."
"देख लूँगी बाद में तुम्हे, एक बार हॉस्पिटल पहुँचने दो मुझे."
"देख लेना जी भरके हॉस्पिटल तो आप हर हाल में पहुँचेगी."
गौरव दिल में उम्मीद की किरण लिए अंकिता को गोद में लेकर आगे बढ़ता रहा. अंकिता ने अपनी आँखे बंद कर ली थी और खुद को किस्मत के सहारे छोड़ दिया था.
“क्या आप सो गयी” गौरव ने पूछा.
“सर चकरा रहा है, बस यू ही आँखे बंद कर रखी हैं. शरीर में इतना दर्द हो तो कोई कैसे सो सकता है.”
“हां ये भी है. मेरा भी अंग-अंग दुख रहा है. रात को नीचे गिरने के बाद तो हम शायद बेहोश हो गये थे. मेरी तो सुबह ही आँख खुली.”
“मेरी भी सुबह ही खुली. और आँख खुलते ही इतना दर्द महसूस हुआ कि यही लगा की काश आँख कभी ना खुलती.”
“बस अब चुप ही रहें आप. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा.”
कोई एक घंटे तक गौरव अंकिता को उठाए आगे बढ़ता रहा. धीरे धीरे चल पा रहा था वो क्योंकि उसके पाँव खुद बुरी तरह से घायल थे. अचानक उसे दूर एक भेड़ चरती हुई देखाई दी.
“ये तो पालतू भेड़ लगती है. ज़रूर पूरा झुंड होगा आस-पास और साथ में चरवहां भी होगा.” गौरव ने मन ही मन सोचा और तेज़ी से उस भेड़ की तरफ बढ़ा.
उसका अंदाज़ा सही था. जब वो कुछ आगे बढ़ा तो उसे पूरा झुंड देखाई दिया. मगर उसे कोई चरवहां नही दिखा.
“हे किसकी भेड़ हैं ये.” गौरव चिल्लाया.
गौरव की आवाज़ सुन कर अंकिता चोंक गयी और आँखे खोल कर सर घुमा कर देखने लगी. “अगर यहाँ भेड़ हैं तो कोई रास्ता ज़रूर होगा.” अंकिता ने कहा.
“वही मैं भी सोच रहा हूँ. चरवहां मिलेगा तभी बात बनेगी.” गौरव ने फिर से आवाज़ लगाई.
एक 14-15 साल का लड़का भाग कर आया गौरव के पास.
“हमें तुरंत हॉस्पिटल पहुँचना है. जल्दी से सड़क तक जाने का रास्ता बताओ.” गौरव ने पूछा.
“हे भगवान क्या हुआ इन्हे….” लड़के ने अंकिता को देख कर कहा.
“जल्दी से रास्ता बताओ, हमारे पास ज़्यादा वक्त नही है.
“पर मैं अपने भेड़ को छोड़ कर कही नही जा सकता. मालिक से डाँट पड़ेगी.”
“तुम्हारे मालिक को मैं देख लूँगा, फिलहाल रास्ता बताओ इनका वक्त पर हॉस्पिटल पहुँचना ज़रूरी है.” गौरव ने कहा
वो लड़का गौरव के आगे आगे चल दिया. कहीं कही थोड़ी चढ़ाई भी थी. बहुत मुश्किल हुई गौरव को चढ़ने में. मगर धीरे-धीरे वो चढ़ ही गया. मगर एक जगह उसका पाँव फिसल गया. अंकिता के पेट में गाड़ी लकड़ी गौरव की गर्दन से टकराई. अंकिता कराह उठी. “आअहह.”
“सॉरी मेडम, पाँव फिसल गया था थोड़ा सा.”
“कोई बात नही, इतना कुछ कर रहे हो तुम मेरे लिए, तुम्हारे कारण भी थोड़ा दर्द सह ही सकती हूँ.” अंकिता ने मुस्कुराते हुए कहा.
“मुझे पता है बाद में इस सब की सज़ा मिलने वाली है मुझे…” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“हां वो तो मिलनी ही है…” अंकिता भी हंसते हुए बोली.
धीरे धीरे एक घंटे में वो लड़का गौरव को सड़क के किनारे ले आया. सड़क को दूर से देखते ही गौरव की आँखे चमक उठी.
“थॅंक यू, क्या नाम है तुम्हारा.” गौरव ने कहा.
“कृष्णा”
“तुम सच में हमारे लिए कृष्णा ही हो. बाद में मिलूँगा तुम्हे आकर. कहाँ मिलोगे तुम.”
“मैं यही भेड़ चराता हूँ रोज” उसने अपना अड्रेस भी बता दिया
“ठीक है जाओ तुम” गौरव ने उसे भेज दिया.
गौरव अंकिता को लेकर सड़क किनारे आ गया. उसने अंकिता को धीरे से ज़मीन पर लेटा दिया, “मैं किसी कार को रोकता हूँ.”
गौरव को कोई 5 मिनिट बाद एक कार आती दिखाई दी वो उसे रोकने के लिए बीच सड़क में आ गया और उसे रुकने पर मजबूर कर दिया.
“क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी.” कार चालक चिल्लाया.
“देखो मुझे लिफ्ट चाहिए एमर्जेन्सी है. मुझे हॉस्पिटल पहुँचना है जल्द से जल्द.”
“दारू पीकर गिर गये थे क्या कही. क्या हालत बना रखी है. आओ बैठ जाओ.”
“रूको थोड़ी देर.” गौरव ने कहा और अंकिता की ओर चल दिया.
गौरव अंकिता को उठा लाया.
“क्या हुआ इनको?”
“लंबी कहानी है…तुम प्लीज़ जल्दी चलाओ.” गौरव अंकिता को लेकर पीछे बैठ गया.
“मेडम…मेडम” गौरव ने कहा.
पर अंकिता ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया. “लगता है बेहोश हो गयी हैं. खून बहुत बह गया है. बेहोश होना लाज़मी है.”
40 मिनिट में देहरादून पहुँच गये वो और कार वाले ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल के सामने कार रोक दी.
“ये अच्छा हॉस्पिटल है. ले जाओ इनको. भगवान सब भली करेंगे.” कार वाले ने कहा.
गौरव ने अंकिता को उठाया और तुरंत हॉस्पिटल में घुस गया. तुरंत अंकिता को ऑपरेशन थियेटर भेज दिया गया.
“शुकर है आपने ये लकड़ी नही निकाली बाहर, वरना इनका बचना मुश्किल हो जाता.” डॉक्टर ने कहा.
गौरव को भी अड्मिट कर लिया गया. हॉस्पिटल से गौरव ने थाने फोन किया, चौहान ने फोन उठाया. गौरव ने सारी बात बताई चौहान को.
“अच्छा हुआ जो कि तुम बच गये. तुम्हे तो मैं मारूँगा अपने हाथो से.”
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“सर आप मेडम के लिए प्रोटेक्शन भेजिए…और हां आपके पास आशुतोष का नंबर हो तो मुझे दे दीजिए.” गौरव ने कहा.
चौहान ने आशुतोष का नंबर दे दिया गौरव को. गौरव ने तुरंत आशुतोष को फोन मिलाया.
“आशुतोष मैं गौरव बोल रहा.”
“सर आप…वो साइको तो बोल रहा था कि उसने आपको और मेडम को…”
“उसके बोलने से क्या होता है. साले को छोड़ेंगे नही हम. मैं ठीक हूँ. मेडम की हालत नाज़ुक है. उनका ऑपरेशन चल रहा है. वहाँ सब ठीक है ना.”
“हां सर सब ठीक है…आप यहा की चिंता मत करो. आप अपना ख्याल रखो.”
आशुतोष ने गौरव से बात करने के बाद अपर्णा को सारी बात बताई.
“तो तुम रात झूठ बोल रहे थे हा.क्या ज़रूरत थी ऐसा करने की.” अपर्णा ने पूछा.
“आपको और ज़्यादा परेशान नही करना चाहता था. आप पहले ही सपने के कारण डरी हुई थी.”
“मैं गौरव से मिलने जाना चाहती हूँ.”
“वैसे तो ख़तरा बहुत है इसमें पर आपकी बात नही तालूँगा. चलिए चलते हैं. मुझे भी गौरव सर और मेडम की चिंता हो रही है.”
आशुतोष, अपर्णा को लेकर हॉस्पिटल चल दिया. साथ में दोनो गन्मन भी थे. आशुतोष चुपचाप ड्राइव करता रहा. अपर्णा भी चुपचाप रही.
हॉस्पिटल पहुँच कर वो सीधा गौरव के कमरे में पहुँच गये.
गौरव उस वक्त आँखे बंद करके लेटा हुआ था.
“गौरव कैसे हो तुम?”
“ओह अपर्णा तुम, व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़. मगर तुम्हे यहा नही आना चाहिए था… …”
“सॉरी मैने तुम्हारे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया?” अपर्णा ने कहा.
“आप बात कीजिए मैं बाहर वेट करता हूँ.” आशुतोष ने कहा और वहाँ से बाहर आ गया.
“कोई बात नही. शायद किस्मत में हमारा साथ नही था.” गौरव ने कहा.
“हां शायद. मगर मुझे तुम्हारी दोस्ती हमेशा याद रहेगी. आज भी जब कभी ‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ती हूँ तो तुम्हारी बहुत याद आती है. दोस्ती का एक अच्छा रूप देखा था हमने पर ना जाने क्यों सब बिखर गया.”
“कोई बात नही अपर्णा. तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं अभी भी तुम्हारा दोस्त हूँ.”
“तुम क्या कहना चाहते थे उस दिन कॅंटीन में जब गब्बर ने आकर हमें परेशान कर दिया था.”
“अब वो सब क्यों जान-ना चाहती हो. जो था वो बिखर गया. काश तुमने मुझे मोका दिया होता.”
“चाहने लगी थी तुम्हे. प्यार करने लगी थी तुमसे. बहुत बुरा लगा था मुझे कि तुम सब कुछ एक बेट के लिए कर रहे थे.”
“जिंदगी में इंसान किसी ना किसी बहाने एक दूसरे के करीब आते हैं. हम एक बेट के सहारे दोस्त बने. प्यार हो गया था हमें अब ये तुम भी मानती हो. पर कितनी आसानी से ख़तम कर दिया तुमने इस अनकहे प्यार को. एक मोका तक नही दिया तुमने मुझे अपनी बात कहने का. खैर छोड़ो अब फायदा भी क्या है इन सब बातो का.”
“जानती हूँ की कोई फायदा नही है. बस तुमसे सॉरी बोलने आई थी. मैने तुम्हारा पक्ष जान-ने की कोशिश ही नही की. गब्बर ने भी मुझे खूब भड़काया. मुझे माफ़ कर देना. मेरे दोस्त रहना हमेशा हो सके तो.”
“पता है एक लड़की मुझे बहुत प्यार करती है. उसने मुझे बोल दिया है पर मुझे समझ नही आ रहा कि क्या करूँ. मुझे वो बहुत अच्छी लगती है. पर अभी डिसाइड नही कर पा रहा हूँ. उपर से उसके भाई ने हमारा मिलना जुलना बंद कर दिया है.”
“अगर प्यार करते हो उसे तो बोल दो जाकर. उसके प्यार को इग्नोर मत करो.”
“हां सोचूँगा इस बारे में. इस साइको के केस में उलझा रहता हूँ दिन रात. वक्त ही नही मिलता कुछ सोचने का. अच्छा एक बात बताओ. क्या तुम सच में साइको के चेहरे को भूल गयी हो.”
“हां गौरव मुझे सच में अब कुछ याद नही है. धीरे धीरे उसके चेहरे की छवि गायब हो गयी ज़हन से.”
“कोई बात नही ऐसा ही होता है हमारी मेमोरी के साथ. एक ही बार तो देखा था तुमने उसे.”
“ठीक है गौरव मैं चलती हूँ…अपना ख्याल रखना.”
“बहुत अच्छा लगा अपर्णा जो कि तुम आई. अब सारे घाव भर जाएँगे.”
“टेक केर, बाय.” अपर्णा मुस्कुरा कर बोली और कमरे से बाहर आ गयी.
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Update 89
अपर्णा के जाने के बाद आशुतोष अंदर आया. “आशुतोष अगर तुम्हे अपर्णा के घर से हटा कर दूसरा काम दूं तो क्या कर पाओगे.”
“आप हुकुम कीजिए सर.”
“मेरे तकिये के पास से मेरा पर्स उठाओ. उसमे एक काग़ज़ का टुकड़ा है. उस पर किसी संजय नाम के व्यक्ति का अड्रेस है. संजय के सिमरन के साथ संबंध हैं जो की इसीसी बॅंक में काम करती है. सिमरन के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है. साइको भी ब्लॅक स्कॉर्पियो में घूमता है. सिमरन की ब्लॅक स्कॉर्पियो संजय के पास थी कल. तुम उसके घर जा कर उसकी इंक्वाइरी करो. कल रात वो कहाँ था ज़रूर पूछना उस से. अपर्णा के घर मैं किसी और की ड्यूटी लगा देता हूँ. तुम अपना ये काम करके मुझे रिपोर्ट दे कर वापिस अपर्णा के घर चले जाना.”
“राइट सर एइज यू विस. पर सर क्या मैं पहले अपर्णा जी को घर छोड़ आउ सुरक्षित.”
“हां ऐसा करलो. मैं दूसरे को घर ही भेज दूँगा.” गौरव ने कहा.
“ओह ,मैं भूल गया, सर ये लीजिए आपका फोन. एक आदमी अपर्णा जी के घर पकड़ा गया था मुझे.”
“अच्छा हुआ जो कि फोन ले आए. कोई भी बात हो तो तुरंत मुझे फोन करना. साथ में 4-5 कॉन्स्टेबल्स ले जाओ. अच्छे से पूछ ताछ करना.”
“ओके सर.” आशुतोष ने पर्स से वो काग़ज़ निकाला और अड्रेस देख कर बोला, “अरे ये तो मोनिका जी का घर है. इसका मतलब मोनिका संजय की बीवी है.”
“कौन मोनिका?” गौरव ने पूछा.
“मोनिका का सुरिंदर के साथ संबंध था सर. वो उस रात सुरिंदर के ही साथ थी जिस रात उसने पोलीस स्टेशन आकर झूठी गवाही दी थी अपर्णा जी को फसाने के लिए.”
“ह्म्म…मोनिका सुरिंदर को जानती थी. संजय मोनिका का पति है. संजय ब्लॅक स्कॉर्पियो लेकर घूम रहा है. क्या सुरिंदर ने झुटि गवाही मोनिका के कहने पे दी थी?. ये सब इत्तेफ़ाक है या फिर बेवजह की हमारा टाइम कराब करने की साजिश.” गौरव ने कहा.
“सर मोनिका से मिला हूँ मैं. वो कोई साजिस करने वाली वुमन नही है. शी ईज़ नाइस वुमन. फिर भी एक बार ओपन माइंड से फिर से एक बार फिर से उनसे भी पूछ ताछ कर लूँगा.”
“हां ज़रूर करो. किसी के बारे में अपनी जग्डमेंट मत बनाओ. लोग यहा पल पल में रंग बदलते हैं. वैसे तो मुझे इस वक्त सबसे ज़्यादा कर्नल देवेंदर सिंग पर शक है, मगर संजय की इंक्वाइरी ज़रूरी है. अभी कुछ भी क्लियर नही है हमें. फूँक-फूँक कर कदम रखने होंगे हमें.”
“बिल्कुल सर, अगर संजय ब्लॅक स्कॉर्पियो लेकर घूम रहा है शहर में तो उसकी इंक्वाइरी बहुत ज़रूरी है.”
“मुझे यकीन था तुम इंटेरेस्ट लोगे इस इंक्वाइरी में. इसलिए तुम्हे भेज रहा हूँ. ऑल दा बेस्ट.”
“ओके सर मैं चलता हूँ. अपर्णा जी को घर छोड़ कर. मैं इस काम के लिए निकल जाउन्गा.”
बाहर आकर आशुतोष ने अपर्णा से कहा, “मेरी ड्यूटी चेंज हो गयी है. मुझे दूसरे काम पर लगा दिया है गौरव सर ने. आपको घर छोड़ कर मैं चला जाउन्गा.”
“दूसरा काम, कौन सा दूसरा काम?” अपर्णा ने हैरानी में पूछा.
“एक ज़रूरी इंक्वाइरी है. मुझे ही करनी होगी.”
“क्या कोई और नही कर सकता ये…मैं गौरव को बोल देती हूँ.”
“रहने दीजिए….मुझे ही करनी होगी ये इंक्वाइरी. मैं खुद करना चाहता हूँ.”
“तो ये कहो ना तुम थक गये हो मेरे घर के बाहर खड़े रहकर. तुम्हारे 10-10 लड़कियों से संबंध भी तो सफ़र हो रहे हैं. जाओ जहा मर्ज़ी मुझे क्या लेना देना.”
“प्यार करते हैं आपसे कोई मज़ाक नही. और आज लग रहा है कि आप भी प्यार करती है मुझे. शाम तक लौट आउन्गा मैं वापिस. तब तक कोई और ड्यूटी करेगा मेरी जगह.”
“मुझे तुमसे कोई प्यार नही है. बस चिंता कर रही थी कि कहाँ भटकोगे बेवजह.”
“ठीक है फिर मैं शाम को भी नही आउन्गा. गौरव सर से बोल कर ड्यूटी पर्मनेंट्ली चेंज करवा लेता हूँ.”
“तो करवा लो चेंज…मेरे उपर क्या अहसान करोगे मेरे घर रह कर. तुम चाहते हो मुझे मैं नही.”
अपर्णा गुस्से में जीप में चल दी जीप की तरफ. आशुतोष ने तुरंत हाथ पकड़ लिया.
“हाथ छोड़ो लोग देख रहे हैं.”
“पहले आप ये बतायें कि आपको मुझसे प्यार है कि नही. अब मैं चुप नही बैठूँगा. बहुत हो लिया आपका नाटक.”
“छोड़ो पागल हो क्या. लोग देख रहे हैं. घर चल कर बात करेंगे.”
“मैं जा रहा हूँ काम से बताया ना. अभी बताना होगा आपको कि क्या है आपके दिल में मेरे लिए.”
“तुम शाम को तो आओगे ना. फिर बात करेंगे, मेरा हाथ छोड़ो प्लीज़.” अपर्णा गिड़गिडाई.
“शायद शाम तक जिंदा ना रहू मैं, जींदगी का क्या भरोसा है. चलिए छोड़ रहा हूँ हाथ आपका. शाम को भी नही आउन्गा मैं. अपनी ड्यूटी अभी हटवा लूँगा मैं.”
अपर्णा ने कुछ नही कहा और जीप में आकर बैठ गयी. वापसीं का सफ़र बिल्कुल शांत रहा.
अपर्णा ने तीर्चि नज़रो से कई बार आशुतोष की तरफ देखा. पर वो कुछ बोल नही पाई क्योंकि बहुत गुस्सा था आशुतोष के चेहरे पर.
अपर्णा को घर छोड़ कर जीप से उतरे बिना आशुतोष जीप घुमा कर वापिस चला गया. अपर्णा बस उसे देखती रह गयी.
“क्या मैं ये प्यार भी खो दूँगी…आशुतोष प्लीज़ शाम को आ जाना वापिस.” अपर्णा ने मन ही मन कहा और अपने घर में घुस गयी. उसकी आँखे नम थी.
अपर्णा ने घर में घुस कर आशुतोष का फोन मिलाया मगर रिंग जाने से पहले ही काट दिया, “उसने जाते वक्त मूड कर भी नही देखा मुझे. समझता क्या है वो खुद को.जीप घुमा कर निकल गया चुपचाप. अगर शाम को नही आया वो तो कभी बात नही करूँगी उस से.”
आशुतोष को कई दिनो बाद गुस्सा आया था ऐसा.
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बहुत तेज चला रहा था जीप. पहले वो थाने गया और गौरव के कहे अनुसार 4 कॉन्स्टेबल्स लिए साथ में और चल दिया मोनिका के घर की तरफ. 20 मिनिट में ही उसके घर पहुँच गया वो.
आशुतोष ने दरवाजा खड़काया. दरवाजा मोनिका ने खोला, “आप…आज मैं आपको ही याद कर रही थी.”
“मुझे याद कर रही थी…क्यों भला.” आशुतोष ने कहा. उसका मूड अभी भी ऑफ था.
“वैसे ही…अच्छे लोगो को अक्सर याद करके दिल खुश हो जाता है.”
“आपके पति का नाम संजय है?” आशुतोष ने मोनिका की बात इग्नोर करके पूछा.
“जी हां, शायद आपको बताया था मैने पहले.”
“बताया होगा, मुझे याद नही है अभी. कहाँ हैं आपके पति” आशुतोष ने कहा.
“बात क्या है, आप तो पूरी पोलीस फोर्स ले आए हैं घर पर मेरे. क्या जान सकती हूँ कि बात क्या है.”
“मोनिका जी…मेरा मूड बहुत खराब है अभी…प्लीज़ जल्दी से ये बतायें कि संजय कहा है?”
“वो तो देल्ही गये हुए हैं पीछले 2 दिन से. उनकी जॉब ऐसी है कि उनका घूमना फिरना लगा रहता है.” मोनिका ने कहा.
“ह्म्म…ब्लॅक स्कॉर्पियो में गये हैं क्या वो देल्ही?”आशुतोष ने पूछा.
“ब्लॅक स्कॉर्पियो!...हमारे पास कोई ब्लॅक स्कॉर्पियो नही है.” मोनिका ने कहा.
आशुतोष ने सभी कॉन्स्टेबल्स को बाहर जीप के पास रुकने को कहा और मोनिका से बोला, “आपके पास नही है. मगर सिमरन के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है और आपके पति के उसके साथ संबंध हैं.”
“सिमरन…कौन सिमरन?”
“वो सब छोड़िए और ये बतायें कि देल्ही में कहा गये हैं आपके पति.”
“इतना सब कुछ वो मुझे नही बताते हैं. और ना ही मैं पूछती हूँ.”
“अच्छा…इट्स वेरी स्ट्रेंज…आपको आपके पति के बारे में नही पता. पत्नियाँ तो अक्सर पूरी जानकारी रखती हैं पति के बारे में.”
“मुझे कभी उन पर नज़र रखने की ज़रूरत नही पड़ी”
“क्या काम करते हैं आपके पति.”
“इसीसी बॅंक में हैं वो”
“ह्म्म…ठीक है…मैं इसीसी बॅंक ही जा रहा हूँ यहाँ से सीधा. आप ये बतायें कि क्या अक्सर आपके पति घर से गायब रहते हैं”
“अक्सर तो नही हां कभी कभी वो घर नही आते. पर वो अपने काम के सिलसिले में ही बाहर जाते हैं.”
“ये तो इसीसी बॅंक जाकर ही पता लगेगा कि काम के शील्षिले में जाते हैं या यू ही.” आशुतोष ने कहा और चल दिया वहां से.
आशुतोष सीधा इसीसी बॅंक पहुँचा और बॅंक में घुसते ही सिमरन के केबिन में घुस गया, “क्या आपकी ब्लॅक स्कॉर्पियो आपके पास है अब.”
“देखिए मैने गौरव को सब बता दिया था. प्लीज़ डॉन’ट वेस्ट माय टाइम.
“गौरव सर ने ही भेजा है मुझे. संजय के पास थी ना आपकी ब्लॅक स्कॉर्पियो, कहाँ है संजय बुलाओ उसे.”
“वो आज ड्यूटी पर नही आया.”
“क्या बॅंक के किसी काम से बाहर भेजा गया है उसे?”
“नही बॅंक के किसी काम से बाहर नही भेजा गया उसे. वो शायद घर होगा.”
“घर पर उसकी बीवी ने बताया कि वो देल्ही गया है…काम के सिलसिले में.”
“नही हमने उसे देल्ही नही भेजा…उनकी पत्नी को कोई ग़लतफहमी हुई होगी.”
आशुतोष ने सारी बात फोन पर गौरव को बताई, “सर मोनिका कह रही है कि संजय देल्ही गया है मगर इसीसी बॅंक में मैने ब्रांच मॅनेजर सिमरन से बात की. उसके अनुसार उसे देल्ही नही भेजा गया. कही ये संजय ही तो साइको नही. ”
“ह्म्म…खैर सब कुछ इत्तेफ़ाक भी हो सकता है. मगर इम्पोर्टेन्ट जानकारी हाँसिल की है तुमने. सिमरन को फोन दो.” गौरव ने आशुतोष से कहा.
आशुतोष ने फोन सिमरन को पकड़ा दिया.
“सिमरन जब भी संजय आए या तुम्हे उसके बारे में कुछ भी पता चले, तुरंत मुझे फोन करना.”
“ठीक है गौरव…जैसे ही वो आएगा मैं तुम्हे इनफॉर्म कर दूँगी.”
आशुतोष को फोन वापिस दे दिया सिमरन ने.
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“सर एक रिक्वेस्ट थी आपसे.” आशुतोष ने कहा.
“हां बोलो आशुतोष”
“मेरी ड्यूटी अपर्णा जी के वहाँ से हटवा दीजिए.”
“आशुतोष वैसे तो मैं तुरंत तुम्हारी बात मान लेता. मगर अपर्णा के साथ तुम्हारी ड्यूटी मेडम ने लगाई थी.”
“कोई बात नही सर, वैसे कैसी हैं मेडम अब सर.”
“ऑपरेशन तो हो गया है..मगर अभी उनको आइक्यू में रखा गया है. अभी उन्हे होश नही आया है. डॉक्टर कह रहा था कि शायद सुबह तक होश आ जाएगा. तुम अब अपर्णा के घर जाओ. बाद में देखेंगे कि क्या करना है. और हां बहुत ज़्यादा सतर्क रहना होगा तुम्हे इन दिनो.”
“ओके सर.”
आशुतोष ने सभी कॉन्स्टेबल्स को पहले थाने छोड़ दिया और फिर अपर्णा के घर की तरफ चल दिया.
……………………………………………………………………..
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शाम के वक्त सौरभ पूजा के कॉलेज के बाहर खड़ा उसका वेट कर रहा था. कॉलेज में कोई फंक्षन चल रहा था इसलिए पूजा देर तक कॉलेज में थी. वो बाहर आई तो सौरभ झूम उठा उसे देखते ही.
“बहुत प्यारी लग रही हो पूजा…क्यों इतने सितम ढा रही हो मुझ पर.”
“अच्छा…झुटे कही के. सुबह भी तुम यही सब कह रहे थे.”
“अब क्या करूँ तुम्हे देखते ही मुँह से तुम्हारे लिए प्रसंसा खुद-ब-खुद निकल जाती है.” सौरभ ने कहा.
“सौरभ मन कर रहा था कि कही बैठ कर बाते करते पर लेट हो गयी हूँ.” पूजा ने कहा.
“आओ बैठ जाओ, प्यार के कुछ मीठे पल तो हम निकाल ही लेंगे.” सौरभ ने कहा.
पूजा हंसते हुए बैठ गयी सौरभ की बायक पर और वो उसके बैठते ही बायक को उड़ा ले चला.
“पूजा एक किस हो जाए आज. देखो कितनी हसीन शाम है. ऐसा मोका रोज नही आता.”
“मैं बाते करना चाहती थी और तुम्हे किस की पड़ी है. ये बताओ हमारा क्या होगा. कब बात करोगे बापू से.”
“तुम कहती हो तो आज ही कर लेता हूँ. मैं सोच रहा था कि तुम पहले कॉलेज फीनिस कर लो फिर आराम से शादी करेंगे.”
“तो किस की इतनी जल्दी क्यों पड़ गयी आपको. शादी तक इंतेज़ार नही कर सकते क्या.”
सौरभ ने तुरंत बिके सड़क किनारे रोक दी. सड़क एक दम सुनसान थी. बिके से उतार गया वो. पूजा भी उतार गयी.
“क्या हुआ सौरभ…इस सुनसान सड़क पर बायक क्यों रोक दी.” पूजा ने पूछा.
सौरभ ने बिना कुछ कहे पूजा के चेहरे को जाकड़ लिया और अपने होठ टिका दिए उसके होंटो पर. पूरे 2 मिनिट बाद छोड़ा उसने पूजा के होंटो को.
“शादी तक इंतेज़ार नही कर सकता. किस तो एक प्रेमी का फंडमेंटल राइट है. ये तुम मुझसे नही छीन सकती.”
“फंडमेंटल राइट के साथ फंडमेंटल ड्यूटी भी याद रखना.मुझे कभी अकेला मत छोड़ देना..जी नही पाउन्गि. बहुत प्यार करती हूँ तुम्हे.”
“जानता हूँ…बेफिकर रहो तुम. तुम्हे तो मैं पॅल्को पर बैठा कर रखूँगा.”
“हहेहहे…तुम्हारी पॅल्को पर कैसे बैठूँगी…वहाँ इतनी जगह नही है.”
“ठीक है कही और बैठ जाना, वहां जगह बहुत है…मगर बदले में कुछ काम भी करना होगा तुम्हे.”
“कैसा काम, और ये कौन सी जगह की बात हो रही है ..” पूजा ने कहा
“बस मेरे उपर बैठ कर उछालती रहना तुम, ऐसी जगह है ..” सौरभ ने कहा.
“जनाब चलिएगा कि नही या फिर सुहाने खवाब ही देखते रहेंगे इस सुनसान सड़क पर.” पूजा ने कहा.
“ओह हां सॉरी…चलते हैं. मैं तो बस अपनी पूजा की पप्पी लेने के लिए रुका था.”
“खबरदार जो दुबारा पप्पी की यू सड़क पर रोक कर. मुझे डर लगता है.”
“ठीक है आगे से बायक पर चलते चलते करूँगा… …”
“वो कैसे मुमकिन होगा …”
“सब कुछ मुमकिन है तुम बस पप्पी देने वाली बनो.”
“नही मिलेगी अब…दुबारा मत माँगना”
“ओफ अब तो दुबारा फिर लेनी पड़ेगी. तुम्हारी पप्पी लेने में बहुत मज़ा आता है.”
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तभी अचानक एक ब्लॅक स्कॉर्पियो निकली उनके बाजू से.
“पूजा जल्दी बैठो…इस ब्लॅक स्कॉर्पियो का पीछा करना है.”
“क्या बात है..कौन है इस ब्लॅक स्कॉर्पियो में.”
“ब्लॅक स्कॉर्पियो में ही घूमता है साइको…आओ देखते हैं ये ब्लॅक स्कॉर्पियो कहाँ जा रही है.”
“सौरभ मुझे डर लग रहा है, रात होने वाली है. घर पर मेरा इंतेज़ार हो रहा होगा..”
“पूजा अगर मैं तुम्हे ऑटो में बैठा दू तो क्या तुम चली जाओगी…मुझे इस कार के पीछे जाना होगा, क्या पता वो साइको इसी में हो.”
“ठीक है तुम मुझे किसी ऑटो में बैठा दो. मैं चली जाउंगी.”
सौरभ ने कुछ दूरी पर एक ऑटो रोक कर पूजा को उसमे बैठा दिया और खुद पूरी स्पीड से बायक दौड़ा कर उस ब्लॅक स्कॉर्पियो के पीछे लगा दी.
………………………………………………………………………………
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आशुतोष जब वापिस अपर्णा के घर पहुँचा तो अपर्णा अपने रूम की खिड़की में ही खड़ी थी और बाहर झाँक रही थी. आशुतोष को देखते ही उसने परदा गिरा दिया.
“ये लो हो गया इनका नाटक शुरू. समझ गया हूँ मैं आपको. दिमाग़ खराब था मेरा जो आपसे प्यार कर बैठा. मुझे देखते ही परदा गिरा दिया…क्या इतनी बुरी शक्ल है मेरी. बस अब बहुत हो गया आपसे कोई बात नही करूँगा मैं.” आशुतोष चुपचाप आँखे बंद करके जीप में बैठ गया.
आशुतोष ने ध्यान ही नही दिया की अपर्णा घर का दरवाजा खोल कर खड़ी है.उसे देखते ही वो नीचे आ गयी थी. “कहा तो था कि शाम को बात करेंगे. चुपचाप आँखे बंद करके बैठ गया है. ये समझता क्या है खुद को. मुझे कोई बात नही करनी इस से.” दरवाजा पटक दिया ज़ोर से अपर्णा ने और कुण्डी लगा ली.
दरवाजे की आवाज़ से आशुतोष ने तुरंत आँख खोल कर देखा, “ये कैसी आवाज़ थी” आशुतोष ने गन्मन से पूछा.
“दरवाजा बंद होने की आवाज़ थी सर. शायद घर के अंदर से आई थी.”
“ह्म्म…ठीक है तुम सतर्क रहो.” आशुतोष ने कहा.
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सौरभ ब्लॅक स्कॉर्पियो से कुछ दूरी बनाए हुआ था. मगर उसने गाड़ी का नंबर देख लिया, “कार तो ये गौरव मेहरा की है. चलो देखता हूँ आज कहाँ जा रहा है ये.”
कार एक घर के आगे आकर रुकी. कार में से गौरव मेहरा उतरा और घर में घुस गया. सौरभ ने कुछ दूरी पर बायक रोक दी और अपना कॅमरा लेकर दबे पाँव घर की तरफ बढ़ा. अंधेरा घिर आया था इसलिए सौरभ का काम थोड़ा आसान हो गया था.
सौरभ घर की खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया. खिड़की में पर्दे टँगे थे. सौरभ ने पर्दे को हल्का सा हाथ से हटाया और अंदर झाँक कर देखा. अंदर गौरव एक लड़की के सामने खड़ा था. लड़की देखने में सुंदर लग रही थी.
“स्वेता कितने फोन किए तुम्हे…तुम्हे मेरे साथ काम करना है या नही.”
“काम करना है सर…मेरी तबीयत खराब थी कुछ दिन से.”
“तो साली इनफॉर्म क्या तेरा बाप करेगा. इतनी सॅलरी देता हूँ तुझे. ये घर भी खरीद कर दिया तुझे..फिर भी मेरी कदर नही है तुम्हे.”
“सर आपने जो कुछ मेरे साथ किया अपनी बीवी के सामने वो ठीक नही था. मुझे रंडी और पता नही क्या-क्या कहा आपने.”
“मेरा मूड ठीक नही था उस दिन. वो साला दो कौड़ी का पोलीस वाला मुझे घर से घसीट कर ले गया था. दिमाग़ खराब हो गया था मेरा.”
“सर आपको मैने अपना सब कुछ दिया…और आप ऐसा बर्ताव करते हैं मेरे साथ.”
“चल ठीक है…आगे से ध्यान रखूँगा. आज बहुत मन कर रहा है तेरी लेने का…चल मस्ती करते हैं.”
“वो तो ठीक है पर आप प्लीज़ मुझे दुबारा रंडी मत कहना.”
“अरे ठीक है…बोला ना गुस्से में था उस दिन. चल लंड निकाल बाहर और चूसना शुरू कर. जिस तरह से तू चूस्ति है लंड मेरा आज तक किसी ने नही चूसा. तभी अपनी बीवी को दिखा रहा था हहहे.”
“पर क्या बीती होगी उन पर. आपको ऐसा नही करना चाहिए था.” स्वेता ने कहा.
“चल छोड़ ना ये सब जल्दी से लंड निकाल कर डाल ले इन खूबसूरत होंटो के बीच.”
स्वेता ने गौरव की ज़िप खोल कर उसके लिंग को बाहर निकाला और प्यार से चूसने लगी.
“गुड वेरी गुड..इसी काम की सॅलरी देता हूँ मैं तुम्हे…हाहहाहा.”
स्वेता चुपचाप सकिंग करती रही. सौरभ ने चुपचाप चतुराई से उनकी फोटो ले ली. “ये फोटो दीपिका के काम आएगी.”
स्वेता का मुँह दुखने लगा सकिंग करते करते पर गौरव फिर भी चूस्वाता रहा.
“सर कुछ और नही करेंगे क्या…मुँह दुखने लगा है.”
“ऐसा करता हूँ आज तेरी गांद लेता हूँ. तेरी अब तक गांद नही ली ना मैने.”
“सर नही…वो रहने दीजिए.”
“क्यों रहने दूं..चल कपड़े उतार और झुक जा…इस बार बोनस दूँगा तुझे, तू गांद में लेकर तो देख. हाहाहा”
“सर प्लीज़..”
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