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“अब तुम्हारा बर्थडे अच्छे से मनाएँगे हम हाहहाहा.”
“प्लीज़….क्यों कर रहे हो तुम ऐसा.”
“चुप कर साली. मुझे तेरे जैसी कॉलेज गर्ल्स बहुत पसंद है. अभी कुछ दिन पहले एक कॉलेज गर्ल की अच्छे से ली थी. वाह क्या मज़ा दिया था उसने. तू भी मज़े कर आज अपने जनमदिन पर. मरने से पहले थोड़ा मज़ा कर लेगी तो तेरी आत्मा को शांति मिलेगी हाहाहा.”
विजय ने गौरव को एक कुर्सी ले कर उस पर रस्सी से बाँध दिया काश कर और उसके गले पर एक इंजेक्षन लगा दिया. “जल्दी ही होश आ जाएगा इसे और ये खुद तुझे चुद-ते हुए देखेगा. एक बार बहुत डांटा था इसने मुझे एक बात पर पिछले साल. वो भी दो लोगो के सामने. आज तक मैं चुपचाप रहा. पर ये तो मेरे पीछे ही पड़ गया. आज मेरा बदला पूरा होगा.हाहाहा”
“प्लीज़ ऐसा अनर्थ मत करो.” पिंकी सुबक्ते हुए बोली.
“कुछ भी बोलो, मैं तुम्हारी ले कर रहूँगा वो भी तेरे इस भाई के सामने हहहे.”
“तुम सच में साइको हो.”
“हाहहाहा…बहुत खूब….देख देख तेरे भाई को होश आ गया. वेलकम बॅक सर. कैसे हैं आप.”
“विजय तुम्हे तुम्हारे गुनाहो की सज़ा ज़रूर मिलेगी. मैं नही दे पाया तो कोई और देगा मगर तू मरेगा ज़रूर. मैं तो हैरान हू कि तुम्ही हो वो साइको जिसने शहर में आतंक मचा रखा था.”
“ज़्यादा बकवास मत करो और देखो तुम्हारी बहन कैसे मज़े देती है मुझे.”
विजय ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे पिंकी के मूह के आगे झुलाने लगा, “ले अपने बर्थडे के दिन ब्लो जॉब का मज़ा ले हाहाहा.”
“कमिने दूर हटो उस से वरना खून पी जाउन्गा तुम्हारा मैं.”
विजय ने अपनी बंदूक एक तरफ रख दी और पिंकी के उभारो को पकड़ लिया दोनो हाथो से.
कमरे में चींख गूँज उठी पिंकी की. बहुत दर्दनाक चींख. बहुत ज़ोर से दबाया था विजय ने उसके उभारो को.
“कमिने हट जा वरना तेरा वो हाल करूँगा की तेरी रूह काँप उठेगी.”
“अगर तुमने अपना मूह खोल कर ये लंड चूसना शुरू नही किया तो मैं ये बूब्स और ज़ोर से दबाउन्गा.”
पिंकी ने मूह खोलने की बजाए मूह और कस कर बंद कर लिया और अपनी आँखे बंद कर ली.
“अच्छा ये बात है. मैं भी देखता हूँ कि तुम मूह कैसे नही खोलती.” विजय ने अपनी बंदूक उठा ली और गौरव की तरफ तान दी.
“अगर तुरंत मूह खोल कर ये लंड तुमने मूह में नही लिया तो मैं तेरे भाई का भेजा उड़ा दूँगा.”
“पिंकी…कुछ मत करना ऐसा. मर जाने दो मुझे बेसक. मगर इसकी कोई बात मत मान-ना.” गौरव ने भावुक हो कर कहा.
“वाह भाई वाह…क्या बात है. देखता हूँ मैं भी कि ये किसकी बात मानती है. मेरी या तुम्हारी.”
विजय ने अपने लिंग को पिंकी के बंद मूह पर रगड़ना शुरू कर दिया, “जल्दी खोल ये मूह वरना तेरा भाई मारा जाएगा. बिल्कुल चिंता नही है क्या तुझे अपने भाई की. अपने भाई के लिए इतना भी नही कर सकती . कैसी बहन है तू. ठीक है फिर देख अपने भाई को मरते हुए.”
“नही रूको…”
“नही पिंकी…नही…ओह नो…” गौरव ने आँखे बंद कर ली.
पिंकी ने मूह खोल दिया था और विजय ने झट से अपने लिंग को उसके मूह में डाल दिया था. पिंकी की आँखो से आँसुओ की बरसात होने लगी. गौरव छटपटा रहा था कुर्सी पर. आँख खोल कर नही देख पाया कि उसकी छोटी बहन के साथ क्या हो रहा है. आँखे भर आई उसकी ऐसी हालत में. खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था वो. बहुत कोशिश की उसने रस्सी से आज़ाद होने की मगर विजय ने उसे बहुत मजबूती से बाँध रखा था.
विजय ने पिंकी के बॉल खींचे ज़ोर से और बोला, “अच्छे से चूस साली ये क्या मज़ाक लगा रखा है. बिल्कुल मज़ा नही आ रहा.”
इतनी ज़ोर से बॉल खींचे थे विजय ने कि पिंकी ज़ोर से कराह उठी थी. विजय ने उसके मूह से लिंग निकाल लिया और बोला, “कोई फायदा नही तेरे मूह में लंड रखने का. तेरी चूत में डालता हूँ.”
विजय ने बहुत ज़ोर से दबाया फिर से पिंकी के उभारो को. इस बार वो और भी ज़्यादा ज़ोर से चीखी. विजय ने पिंकी के हाथ पाँव खोल दिए कुर्सी से और उसे फर्श पर पटक दिया. कराह उठी पिंकी.
“विजय!” गौरव बहुत ज़ोर से चिल्लाया.
“क्या बात है सर, खोल ही ली आपने आँखे. अब देखिए मैं कैसे लेता हूँ आपकी बहन की हहहे.”
तभी अचानक धदाम की आवाज़ हुई.
“ये कैसी आवाज़ थी.” विजय ने हैरानी में कहा.
गौरव समझ गया कि आवाज़ घर के पीछे से आई है. मगर वो कुछ नही बोला.
“क्या कोई और भी है तुम दोनो के अलावा घर में.” विजय ने पिंकी के बॉल खींचते हुए कहा
“कोई और नही है, बस हम दोनो ही हैं. साथ वाले घर में बच्चे धूम मचाते रहते हैं. वही से आवाज़े आती रहती हैं ऐसी.”
“ह्म्म ठीक है सर, अब आप अपनी बहन को चुद-ते हुए देखिए. आपके घर में भी खूब आवाज़े होंगी अब.”
विजय बंदूक एक तरफ रख कर पिंकी के उपर चढ़ गया. पिंकी ने अपनी आँखे बंद कर ली. “क्या बात है, सो क्यूट. मज़ा आएगा तेरी लेने में.”
“विजय!” गौरव चिल्लाया और बहुत छटपटाया कुर्सी पर.
“हां सर बोलिए क्या बात है…आप बता दीजिए कि कौन सी पोज़िशन में लूँ मैं आपकी बहना की. ये ठीक रहेगी या दोगि स्टाइल लगा लूँ. हाहाहा.”
“कमिने तुझे भगवान कभी माफ़ नही करेंगे” गौरव चिल्लाया.
“हाहहाहा….क्या बात है सर….बस आप माफ़ कर देना, भगवान को मैं संभाल लूँगा.”
पिंकी बहुत छटपटा रही थी विजय के नीचे मगर विजय ने उसे पूरी तरह काबू में कर रखा था. “एक बार घुस्वा लो मेरी जान क्यों छटपटा रही हो. मरने से पहले एक चुदाई तुम्हे अच्छी लगेगी..सच कह रहा हूँ हहहे….क…क…कौन है.” विजय हंसते हंसते अचानक हैरानी में बोला.
“तेरा बाप हूँ बेटा.” सौरभ ने विजय को पिंकी के उपर से खींच लिया और उसे ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया और टूट पड़ा उस पर.
विजय जल्दी ही संभाल गया और दोनो के बीच जबरदस्त हाथापाई शुरू हो गयी. कभी सौरभ हावी होता था तो कभी विजय.
सौरभ के हाथ बंदूक आ गयी किसी तरह. और उसने रख दी विजय के सर पर, “बस खेल ख़तम होता है तुम्हारा. किसी को वादा किया है खून ना बहाने का वरना अभी उड़ा देता भेजा तुम्हारा.”
मगर अचानक विजय ने सौरभ की गर्दन पर इंजेक्षन गाढ दिया. सौरभ दर्द से कराह उठा. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा और वो गिर गया विजय के उपर बेहोश हो कर. मगर इस दौरान पिंकी ने एक अच्छा काम किया. उसने गौरव के हाथ, पाँव खोल दिए. “पिंकी तुम अपने कमरे में जाओ…और कुण्डी लगा लो.”
पिंकी तुरंत भाग गयी वहाँ से और अपने कमरे में आ गयी.
विजय ने सौरभ को एक तरफ धकेला और उसके हाथ से बंदूक ले कर गौरव की तरफ तान दी. मगर गौरव आगे ही बढ़ता गया रुका नही.
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02-01-2020, 11:32 AM
Update 70
“क्या हुआ चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूरता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उसके हाथ से छ्छूट गयी. गौरव ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से गौरव ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था कि विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उसका मूह खून से लथपथ हो गया.
उसके बाद तो वो पिता गौरव ने विजय को कि पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था गौरव. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार करता था गौरव अपनी बहन को और उसने उसके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. गौरव रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को छुआ तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साइको है तू हां, आज तेरा साइको पना निकालता हूँ.” गौरव ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर गौरव ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इसी वक्त होगा.”
“देखो मैं साइको किलर नही हूँ.”
“अच्छा फिर कौन हो तुम, उसके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ. हां मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो एस.आइ. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हां पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम सुन रहा है. और मेरा दिमाग़ भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव ए नाइस जर्नी टू दा हेल…गुड बाय.” गौरव ने कहा और विजय का भेजा उड़ा दिया. उसके खून की छींटे उसके मूह पर भी पड़ी.
गौरव ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और एएसपी साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साइको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उसकी…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया गौरव ने.
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02-01-2020, 11:33 AM
अंकिता 20 मिनिट में पहुँच गयी गौरव के घर. गौरव गुमशुम चुपचाप बैठा था सोफे पर पिंकी के साथ.
दरवाजा खुला ही रख छोड़ा था गौरव ने. सौरभ को भी होश आ गया था. गौरव ने अंकिता को फोन करने के बाद डॉक्टर को फोन करके बुला लिया था. डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद सौरभ को होश आ गया था.
“कौन था ये…गौरव.” अंकिता ने पूछा. अंकिता खून से लटपथ चेहरे को पहचान नही पाई.
“वही जिस पर हमें शक था मेडम, विजय.”
“तुम्हे ये नही करना चाहिए था. अब मुझे मजबूर हो कर तुम्हारे खिलाफ कुछ आक्षन लेना पड़ेगा.”
“ले लीजिए जो आक्षन लेना है…मगर मैं इसे किसी भी हालत में जिंदा नही छोड़ सकता था…मेरे सामने इसने मेरी बहन के साथ…….” आंशु भर आए गौरव की आँखो में.
“बस भैया….बस.” पिंकी ने गौरव के सर पर हाथ रखा.
“ह्म्म…गौरव, ये गोली तुमने सेल्फ़ डिफेन्स में मारी है, इज़ देट क्लियर.”
“जैसा आप कहें मेडम, मैने आपको सब सच बता दिया.” गौरव ने अंकिता की आँखो में देख कर कहा.
“ये बात हम दोनो के बीच रहेगी. धिंडोरा मत पीटना कि तुमने साइको को गोली मार दी. समझे.” अंकिता ने कहा.
“समझ गया मेडम, समझ गया.” गौरव ने कहा.
“चलो ये केस आख़िर कार क्लोज़ हो गया, कंग्रॅजुलेशन गौरव, गुड जॉब.”
गौरव ने अंकिता की आँखो में देखा और बोला, “थॅंक योउ मेडम…सब आपकी डाँट का नतीजा है.”
अंकिता हंस पड़ी इस बात पर, “वो तो है, और ये मत सोचना कि आगे डाँट नही पड़ेगी. अभी और भी बहुत केसस पड़े हैं जिन्हे तुम्हे हैंडल करना है. इज़ देट क्लियर.” हँसी के बाद अंकिता की बात में थोड़ी कठोरता आ गयी थी.
“बिल्कुल मेडम…सब क्लियर है.”
अंकिता की नज़र सौरभ पर पड़ी तो वो बोली, "ये यहाँ क्या कर रहा है?"
"ये अगर वक्त पे ना आता तो मेरे सामने ही मेरी बहन का रेप हो जाता. हां सौरभ पर तुम यहाँ आए कैसे " गौरव ने कहा.
"मैं आपको बताना चाहता था कि विजय ही साइको है. मैं विजय की बीवी से मिला था. उसने मुझे बताया कि विजय उस रात घायल अवस्था में घर लोटा था जिस रात मेरी साइको से झड़प हुई थी. विजय के पेट को उसकी बीवी ने घर पर ही शिया. इतना क्लू काफ़ी था मुझे समझने के लिए कि विजय ही साइको है. बस ये बात बताने मैं थाने पहुँचा आपसे मिलने. वहाँ पता चला कि आप घर चले गये हैं. आपके घर का अड्रेस ले कर यहाँ आ गया. जब मैं दरवाजे की बेल बजाने लगा तो मुझे अंदर से किसी के चीखने की आवाज़ आई. मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. मैने खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उड़ गये. मैं आपके घर के पीछे गया और पीछे का दरवाजा तोड़ दिया. वही से अंदर आया मैं. बाकी तो आपको पता ही है."
"ह्म्म्म....आवाज़ तो हुई थी पीछे, पर ये नही सोचा था मैने कि तुम आए हो." गौरव ने कह कर सौरभ को गले लगा लिया "तुम वक्त पर ना आते तो अनर्थ हो जाता. मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता कि मेरे सामने......"
"अपना फ़र्ज़ निभाया मैने और कुछ नही. मैं चलता हूँ अब." सौरभ ने कहा.
विजय की डेड बॉडी को वहाँ से हटा लिया गया. सबके जाने के बाद गौरव ने पिंकी से कहा, "कितना कुछ सहना पड़ा तुम्हे मेरे होते हुए. मुझे माफ़ कर दे."
"भैया ऐसा मत बोलो. उसने हालात ही कुछ ऐसे पैदा कर दिए थे. चलो अब मेरा गिफ्ट दो."
गौरव ने गले लगा लिया पिंकी को और बोला, "दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ मैं तुम्हे."
"मुझे पता है भैया, पता है मुझे."
दोनो भाई बहन भावुक हो रहे थे. उनके रिस्ते में और ज़्यादा गहराई आ गयी थी इस वाकये के बाद.
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अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दिखाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि कैसे एक पोलीस वाला ही साइको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था जो कि मान-ने को तैयार नही थी कि उसका पति साइको था.
आशुतोष को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. सौरभ ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये सुनते ही अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो अपर्णा के डेडी ने दरवाजा खोला.
"मुझे अभी अभी पता चला कि साइको मारा गया, क्या मैं अपर्णा जी से मिल सकता हूँ."
"मारा गया वो.....बहुत अच्छा हुआ...अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी."
"क्या मैं मिल सकता हूँ अपर्णा जी से." आशुतोष ने कहा.
"वो अभी सोई है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा."
"चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा."
"हां बेटा कल सुबह मिल लेना...."
आशुतोष तड़प रहा था ये न्यूज़ अपर्णा को सुनने के लिए. मगर कोई चारा नही था उसके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे अंकिता का फोन आया, "आशुतोष साइको विजय ही था एन्ड ही ईज़ डेड नाओ."
"हां पता चला मुझे मेडम."
"तुम्हारी वहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हां बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो."
"जी मेडम."
आशुतोष ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे अपर्णा से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी अपर्णा के कमरे की खिड़की को देखते वक्त कि वो उठा और चल दिया उस खिड़की की तरफ.
"ह्म्म चढ़ा जा सकता है उपर." आशुतोष ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किसी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उस खिड़की तक जिसमे से अपर्णा झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़काया उसने. अपर्णा वाकाई सोई हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उसकी आँख खुल गयी.
"कौन दरवाजा पीट रहा है इस वक्त" अपर्णा ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी कि आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. अपर्णा हैरान रह गयी. वो उठी डरते-डरते और खिड़की का परदा हटाया, "आशुतोष तुम ..........तुम यहाँ क्या कर रहे हो."
"अपर्णा जी साइको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरत नही है"
अपर्णा को समझ नही आया कि वो कैसे रिक्ट करे.
"क्या हुआ ख़ुशी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुशी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है."
"आशुतोष तुम गिर गये तो, ऐसे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."
"मैने आपके डेडी को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिक्वेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा कि आप गोली ले कर सो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहाँ आ गया."
"ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे."
"आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर."
"पागल हो गये हो क्या, यहाँ खिड़की में टँगे हुए बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे."
"ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जाउन्गा यहाँ से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़ारुँगा."
"क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?"
"फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी."
"नही मारूँगी बोलो तुम."
"प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही."
"एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अच्छा लगेगा ये."
"नही नही अपर्णा जी मुझे ये बिल्कुल अच्छा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा."
अपर्णा हंस पड़ी आशुतोष की बात पर और बोली, "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी"
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा."
"हां-हां बोलो."
"आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही दुवा करता हूँ."
तभी अपर्णा के रूम का दरवाजा खड़का, "तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना."
"ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जाउन्गा." आशुतोष ने कहा.
"अब जाओ भी." अपर्णा ने दाँत भींच कर कहा.
आशुतोष झट से नीचे उतर गया. उसके चेहरे पर हल्की हल्की मुस्कान थी. "अपर्णा जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो."
अपर्णा ने दरवाजा खोला. उसकी मम्मी ही थी. "कैसी तबीयत है"
"ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी."
"तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?"
अपर्णा सोच में पड़ गयी. झूठ बोला पड़ा उसे, "ओह हां मैं फोन पर थी."
"सो जाओ बेटा, आराम करो... तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी" अपर्णा की मम्मी कह कर चली गयी.
"क्या ज़रूरत थी आशुतोष को खिड़की में आने की. बेवजह झूठ बोलना पड़ा." अपर्णा लेट गयी बिस्तर पर वापिस और सो गयी.
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अगली सुबह अपर्णा जल्दी उठ गयी और अपने कमरे का टीवी ऑन किया. वो साइको की न्यूज़ सुन-ना चाहती थी. उसे पता था कि टीवी पर ज़रूर साइको की न्यूज़ चल रही होगी.
जब उसने न्यूज़ देखनी शुरू की तो राहत मिली दिल को कि साइको सच में मारा गया. मगर जब टीवी पर विजय की तस्वीर दिखाई गयी तो उसके पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
" ये साइको नही है" अपर्णा बड़बड़ाई.
उसने तुरंत खिड़की से परदा हटा कर बाहर देखा. आशुतोष जीप में बैठा सो रहा था. वो तुरंत भाग कर सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आई और दरवाजा खोल कर आशुतोष की जीप की तरफ बढ़ी.
उसने आशुतोष का कंधा पकड़ कर हिलाया.
"क...क...कौन है." आशुतोष हड़बड़ा कर उठ गया. "अपर्णा जी आप"
"वो जो मारा गया वो साइको नही है."
"क्या आपको कैसे पता चला." आशुतोष ने हैरानी में पूछा.
"मैने अभी-अभी न्यूज़ देखी. मरने वाला साइको नही कोई और है."
"ओह नो." आशुतोष जीप से बाहर आता है और तुरंत एएसपी साहिबा को फोन लगाता है.
"मेडम विजय साइको नही था, अपर्णा जी ने अभी न्यूज़ देख कर बताया कि विजय साइको नही है."
"क्या " अंकिता भी हैरान रह गयी.
"आशुतोष फोन दो ज़रा अपर्णा को." अंकिता ने कहा.
आशुतोष ने फोन अपर्णा को पकड़ा दिया, एएसपी साहिबा बात करना चाहती हैं"
"हां अपर्णा क्या आशुतोष जो बोल रहा है वो ठीक है?"
"जी हां मेडम....जिसे मारा गया है वो साइको नही है."
"जीसस...फोन दो आशुतोष को."
"आशुतोष ये लो बात करो." अपर्णा ने फोन वापिस थमा दिया आशुतोष को.
"हां आशुतोष तुम वही रूको. बाकी की तुम्हारी टीम कहाँ है."
"उन्हे तो मैने भेज दिया था रात ही आपसे बात करने के बाद."
"ठीक है मैं सभी को वापिस भेजती हूँ, तुम वही रूको और सतर्क रहो."
"आप चिंता ना करें मेडम, मेरे होते हुए यहाँ कुछ नही होगा."
"गुड." अंकिता ने फोन काट दिया.
"अपर्णा जी आप अंदर जाओ, यहाँ बाहर ख़तरा है."
"हां जा रही हूँ, तुम भी ख्याल रखना अपना आशुतोष." अपर्णा कह कर वापिस अंदर आ गयी.
अंकिता ने आशुतोष से बात करने के बाद तुरंत गौरव को फोन मिलाया.
“गुड मॉर्निंग मेडम. ”
“गुड मॉर्निंग कैसे हो.”
“ठीक हूँ मेडम , आज ड्यूटी नही आ पाउन्गा मेडम.”
“आना पड़ेगा तुम्हे, साइको अभी भी आज़ाद घूम रहा है.”
“क्या ऐसा कैसे हो सकता है.”
“ऐसा ही है, अपर्णा के अनुसार विजय साइको नही था. अभी अभी बात की मैने उस से.”
“ऐसा कैसे हो सकता है ….”
“ऐसा ही है, तुम जल्दी से पहुँचो थाने, मैं भी पहुँच रही हूँ. अब सब कुछ नये सिरे से सोचना पड़ेगा.”
“आ रहा हूँ मेडम…. ……” गौरव ने मायूसी में कहा.
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“अच्छा हुआ जो कि मैं रात यही रहा. अगर विजय साइको नही था तो फिर कौन है साइको. ये बात तो और ज़्यादा उलझती जा रही है. अब टीवी पर आ रही न्यूज़ के कारण साइको और ज़्यादा चोक्कन्ना हो जाएगा.” आशुतोष सोच में डूबा था.
अपर्णा के मम्मी, डेडी कही जा रहे थे किसी काम से सुबह 10 बजे. अपर्णा के दादी ने आशुतोष से कहा, “किसी और को ही मार दिया तुम लोगो ने. क्या ऐसे ही काम करते हो तुम लोग. असली मुजरिम आज़ाद घूम रहा और एक बेकसूर को मार डाला. मेरा तो विश्वास उठ चुका है पोलीस के उपर से.”
“आप शायद ठीक कह रहे हैं मगर हम लोग भी इंसान ही हैं. ग़लती हो सकती है हम लोगो से भी.”
“तुम लोगो की ग़लती के कारण कोई बेकसूर मारे जाए, उसका क्या.”
आशुतोष ने चुप रहना ही ठीक समझा.
“अगर मान लो ये झूठी बात सुन कर अपर्णा बाहर निकलती और साइको का शिकार हो जाती तो क्या होता. वो तो शूकर है उसने टीवी पर देख लिया. वरना तो मुसीबत तो मेरी बेटी के गले पड़नी थी.”
“मैं समझ सकता हूँ…” आशुतोष ने कहा.
“अब तुम अकेले ही हो यहाँ, कैसी सुरक्षा दे रहे हो मेरी बेटी को.”
“बाकी लोग आ रहे हैं आप चिंता ना करें. मेरे होते हुए अपर्णा जी को कुछ नही होगा.” आशुतोष ने कहा.
“हमें ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ रहा है. हम शाम तक लौटेंगे.”
“आप निसचिंत हो कर जायें.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा के डेडी और मम्मी कार में बैठ कर चले गये. उनके जाते ही 2 गन्मन और 4 कॉन्स्टेबल्स आ गये.
आशुतोष ने 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के पीछे लगा दिए और 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के आगे. “बिल्कुल सतर्क रहना तुम लोग.” आशुतोष ने सभी को हिदायत दी.
“रात कुछ कहते-कहते रुक गयी थी अपर्णा जी. अच्छा मौका है, उनके मम्मी, पापा घर नही है. अब बात हो सकती है.” आशुतोष ने सोचा और अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ चल दिया. गहरी साँस ले कर उसने बेल बजाई. अपर्णा ने दरवाजा खोला.
“आशुतोष तुम…बोलो क्या बात है.” अपर्णा ने गहरी साँस ले कर कहा.
“अपर्णा जी आप कुछ कहना चाहती थी कल. अगर आपका मन हो तो बता दीजिए अब.”
अपर्णा ने आशुतोष को घर के अंदर नही बुलाया बल्कि खुद बाहर आ कर दरवाजा अपने पीछे बंद कर लिया. वो घर में अकेली थी इसलिए आशुतोष को अंदर नही बुलाना चाहती थी.
“आशुतोष एक बात बताओ.”
“हां पूछिए.” आशुतोष ने उत्सुकता से पूछा.
“तुमने कल दूसरी बार कहा मुझे कि ‘प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही’ . क्या मैं जान सकती हूँ कि इस बात का मतलब क्या है.” अपर्णा की बात में थोड़ी कठोरता थी.
“मतलब नही बता पाउन्गा अपर्णा जी.” आशुतोष ने धीरे से कहा.
“अच्छा…तुम कुछ कहते हो अपने मूह से और उसका मतलब तुम नही जानते. कितनी अजीब बात है, है ना.”
“मैं बस इतना जानता हूँ कि आपको चाहने लगा हूँ. अब इस चाहत का मतलब कैसे बताउ मैं आपको. मुझे खुद कुछ नही पता.”
“बस इतनी ही बात करनी थी मैने. जान-ना चाहती थी कि क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में. कल रात तुम खिड़की में आ गये. क्या पूछ सकती हूँ कि क्यों किया तुमने ऐसा. तुमने ज़रा भी नही सोचा कि कोई देख लेता तो कितनी बदनामी होती मेरी.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बस आपको बताना चाहता था साइको के बारे में. एग्ज़ाइटेड था आप तक ये खबर पहुँचाने के लिए.”
“पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे मन में हवस है मेरे लिए और प्यार का दिखावा कर रहे हो. याद है तुम्हे क्या-क्या बोल रहे थे तुम उस दिन सौरभ के घर पर मेरे बारे में. कुछ अश्चर्य नही हुआ था मुझे वो सुन कर. ज़्यादा तर लड़को ने मेरे शरीर को ही देखा है. किसी ने मेरी आत्मा में झाँकने की कोशिश नही की. आज तुम प्यार की बात कर रहे हो. तुम्हे पता भी है कि प्यार क्या होता है. सच-सच बताओ अब तक कितनी लड़कियों से संबंध रह चुके हैं तुम्हारे और कितनो को तुम ये डाइलॉग बोल चुके हो कि ‘प्यार करते हैं आपसे हम, कोई मज़ाक नही. मुझे झुत बिल्कुल पसंद नही है. सच-सच बताना.”
“अगर सेक्स को ही संबंध कहा जा सकता है तो 10 लड़कियों से संबंध रहे हैं मेरे.”
“10 लड़कियाँ ….ग्रेट….मैने 2-3 का अंदाज़ा लगाया था. तुम तो उम्मीद से भी ज़्यादा आगे निकले मेरी. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से.”
“अपर्णा जी मगर मैने कभी किसी के लिए ऐसा प्यार महसूस नही किया जैसा आपके लिए कर रहा हूँ. मेरे दिल में कोई हवस नही है आपके लिए. आपको यकीन बेशक ना हो पर प्यार करता हूँ आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“बंद करो अपनी बकवास तुम. 10-10 लड़कियों से तुम्हारी प्यास नही बुझी अब मेरे उपर नज़र है तुम्हारी. ये प्यार नही हवस है. सब जानती हूँ मैं. देख रही हूँ तुम्हे कुछ दिनो से. जान-ना चाहती थी की तुम्हारी मंशा क्या है. कैसे प्यार कर सकते हो तुम किसी से. तुम्हे तो बस शरीर से खेलना आता है. मेरे से बात मत करना आगे से. दुख हुआ मुझे तुमसे बात करके. मुझे नही पता था कि इतनी लड़कियाँ आ चुकी हैं तुम्हारी जिंदगी में.” आँखे नम हो गयी अपर्णा की बोलते-बोलते और उसने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया.
आशुतोष को समझ नही आया कि वो क्या करे. दरवाजा पीटा उसने, “अपर्णा जी सच बोल दिया आपसे. झूठ नही बोल सकता था. प्लीज़ मेरे प्यार को हवस का नाम मत दीजिए. बात बेशक मत कीजिएगा मगर मुझे ग़लत मत समझिएगा.”
“चले जाओ तुम. एक नंबर के मक्कार हो तुम. झूठ ही बोल देते मुझसे…इतना कड़वा सच बोलने की ज़रूरत क्या थी. मुझे तुमसे कोई भी बात नही करनी है. आइन्दा मेरी तरफ मत देखना वरना आँखे नोच लूँगी तुम्हारी.” अपर्णा को बहुत दुख हुआ था.
“सच बोलने की इतनी बड़ी सज़ा मत दीजिए अपर्णा जी. मुझे एक मौका दीजिए.”
“मेरा 11 नंबर होगा, फिर 12 नंबर भी होगा किसी का. ये हवस का सिलसिला चलता रहेगा. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से तुम. मुझे तुमसे कुछ लेना देना नही है. दफ़ा हो जाओ.”
“ठीक है अपर्णा जी…आपकी कसम मैं दुबारा नही कहूँगा आपको कुछ भी. पर आप ऐसे परेशान मत हो. जा रहा हूँ मैं. अब आपको नही देखूँगा…ना ही कुछ कहूँगा आपको. हां मुझे नही पता कि प्यार क्या होता है. शायद हवस को ही प्यार बोल रहा हूँ मैं. मुझे सच में नही पता. पता होता तो भटकता नही अपनी जिंदगी में. आपके लायक नही था मैं फिर भी आपके खवाब देख रहा था. पागल हो गया हूँ शायद. माफ़ कीजिएगा मुझे आज के बाद आपको कभी परेशान नही करूँगा. खुश रहें आप अपनी जिंदगी में और हर बाला से दूर रहें. गॉड ब्लेस्स यू.”
“तुम ऐसे क्यों हो आशुतोष..क्यों हो ऐसे…नही कर सकती तुमसे प्यार मैं. नही कर सकती…………” अपर्णा फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने सुन लिया सब कुछ मगर कुछ कहने की हिम्मत नही हुई. चल दिया चुपचाप आँखो में आँसू लिया वहाँ से. “काश आप समझ पाती मेरे दिल की बात. पर आपसे शिकायत भी क्या करूँ. मैं खुद भी अपने आप को समझ नही पाया आज तक. बहुत समझाया अपने दिल को की प्यार मत करो और फिर वही हुआ जिसका डर था. मेरी किस्मत में प्यार लिखा ही नही भगवान ने. नही कहूँगा कुछ भी अब. आपको बिल्कुल परेशान नही करूँगा. मुझे आपकी आँखो में कुछ लगता था जिसके कारण मेरी हिम्मत बढ़ गयी. वरना मैं कहा हिम्मत कर पाता आपकी खिड़की तक पहुँचने की. खुश रहें आप और क्या कहूँ….मेरी उमर लग जाए आपको……….”
अपर्णा बंद रही कमरे में सारा दिन और बिल्कुल दरवाजा नही खोला. ना ही उसने खिड़की से झाँक कर देखा बाहर. आशुतोष भी चुपचाप आँखे मिचे जीप में बैठा रहा.
शाम के कोई 7 बजे एक आदमी आया. उसके हाथ में 2 डब्बे थे. उसने आशुतोष से पूछा, “क्या अपर्णा जी यही रहती हैं.”
“हां यही रहती हैं. क्या काम है?”
“उनका कौरीएर है.” आदमी ने कहा.
आशुतोष ने एक कॉन्स्टेबल से कहा कि तलासी लेकर इसके साथ जाओ तुम. कॉन्स्टेबल ने आचे से तलासी ली उसकी और उसके साथ चल दिया.
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Update 72
अपर्णा ने बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोला. उसे लग रहा था कि दरवाजे पर आशुतोष ही होगा. मगर जब उस आदमी ने चिल्ला कर कहा कि आपका कौरीएर है तो उसने दरवाजा खोल कर साइन करके दोनो डब्बे ले लिए.
“किसने भेजे हैं ये डब्बे.”
अपर्णा ने फ़ौरन एक डब्बा खोला और जो उसने अंदर देखा उसे देख कर वो इतनी ज़ोर से चिल्लाई कि पूरा आस पदोष में उसकी चींख गूँज गयी. चींख के बाद वो फूट-फूट कर रोने लगी….पापा…नही………”
आशुतोष फ़ौरन पिस्टल हाथ में लेकर घर की तरफ भागा. दरवाजा बंद था अंदर से. आशुतोष ने दरवाजा खड़काया. मगर अपर्णा ऐसी हालत में नही थी कि वो दरवाजा खोल पाए. आशुतोष ने दरवाजे को ज़ोर से धक्का मारा. पर दरवाजा बहुत मजबूत था. पर आशुतोष रुका नही. उसने बार-बार कोशिश की. कॉन्स्टेबल्स और गन्मन ने भी आशुतोष का साथ दिया. आख़िरकार दरवाजा टूट गया. आशुतोष अंदर आया तो देखा की अपर्णा फूट-फूट कर रो रही है खुले हुए डब्बे के पास. आशुतोष करीब आया तो देख नही पाया, “ओह माय गॉड…..नही…ये सब कैसे…अपर्णा जी….”
डब्बे में अपर्णा के डेडी का कटा हुआ सर था. साथ में एक काग़ज़ का टुकड़ा भी था. आशुतोष ने काँपते हाथो से वो उठाया उसमे लिखा था, “अपर्णा ये तोहफा भेज रहा हूँ तुम्हारे लिए. उम्मीद है तुम्हे पसंद आएगा. जो डर तुम्हारे चेहरे पर आएगा इसे देख कर वो बहुत ही खूबसूरत होगा. ये डर बनाए रखना क्योंकि बहुत जल्द मिलूँगा तुमसे मैं. और याद रखना, ‘यू कैन रन, बट यू कैन नेवेर हाइड. जल्द मिलते हैं.”
दूसरे डब्बे में क्या होगा ये सोच कर ही रूह काँप गयी आशुतोष की. उसने खोला वो डब्बा और जैसा शक था उसे उसमें अपर्णा की मम्मी का सर था. अपर्णा ये बात पहले ही समझ गयी थी शायद. इसलिए उसने आँखे खोल कर नही देखा. वैसे उसकी हालत थी भी नही की वो कुछ देखे. पागल सी हो गयी थी ये सब देख कर.
आशुतोष ने तुरंत अंकिता को फोन लगाया, “मेडम अनर्थ हो गया.”
“क्या हुआ आशुतोष.”
“दो डब्बे आए कौरीएर से अभी अपर्णा जी के घर उनमे अपर्णा के मम्मी, पापा के कटे हुए सर है. मैं तो समझ ही नही पा रहा हूँ कि क्या करूँ.”
“ओह गॉड इतना घिनोना काम किया उसने.” अंकिता ने कहा.
अंकिता के सामने ही गौरव बैठा था , “क्या हुआ मेडम.”
“साइको ने दो डब्बो में अपर्णा के मम्मी, दादी के कटे हुए सर भेजे हैं.” अंकिता ने गौरव से कहा.
“ओह..नो…” गौरव स्तब्ध रह गया.
“आशुतोष हम अभी आते हैं वहाँ..तुम चिंता मत करो.” अंकिता ने कहा.
अंकिता ने फोन रखा ही था कि कमरे में भोलू आया भागता हुआ. “मेडम जी अनर्थ हो गया.”
“क्या हुआ?” अंकिता ने पूछा.
“थाने के बिल्कुल सामने 2 लाश गिरा गया कोई. उनके सर गायब हैं.”
“क्या …” गौरव और अंकिता एक साथ चिल्लाए.
दोनो बाहर आए फ़ौरन. थाने के बिल्कुल बाहर 2 लाश पड़ी थी.
“दिन दहाड़े गिरा गया वो लाश और किसी ने देखा भी नही…वाह” अंकिता ने गुस्से में कहा.
गौरव को एक काग़ज़ दिखाई दिया लाश की जेब में. गौरव ने काग़ज़ निकाला. उस पर लिखा था, “मिस्टर गौरव पांडे. आज न्यूज़ में छाए हुए थे. कंग्रॅजुलेशन टू यू. तुम्हारे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान तैयार है. जल्दी मिलेंगे.”
“तुम मिलो तो सही वो हाल करूँगा की याद रखोगे.” गौरव ने दाँत भींच कर कहा.
“क्या लिखा है काग़ज़ में गौरव.” अंकिता ने पूछा.
“मेरे लिए भी एक आर्टिस्टिक प्लान बनाया है साइको ने. चेतावनी दी है मुझे.” गौरव ने कहा.
“चेतावनी तुम्हे ही नही पूरे पोलीस डेप्ट को दी है उसने. बहुत ज़्यादा गट्स हैं उसमें. पोलीस स्टेशन के बाहर दो लाशें फेंक गया वो. वक्त आ गया है अब उसे उसके किए की सज़ा देने का. डू वॉटेवर यू कैन बट आइ वॉंट दिस बस्टर्ड बिहाइंड बार्स.” अंकिता ने कहा.
“हो जाएगा मेडम हो जाएगा. ज़्यादा दिन नही चलेगा खेल इसका.” गौरव ने कहा.
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तभी अचानक एक तेज तर्रार रिपोर्टर आन धमकी वहाँ और गौरव के मूह के आगे मायक लगा कर बोली, “क्या मैं पूछ सकती हूँ की पोलीस स्टेशन के बाहर ये लाशें किसकी हैं.”
गौरव ने टालने के लिए बोला,”देखिए अभी कुछ नही कह सकता मैं. तहकीकात चल रही है.”
“तहकीकात करते रहना आप, एक दिन वो साइको हमें सबको मार देगा और आप हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे… ….”
“क्या नाम है आपका?”
“मेरे नाम से कोई मतलब नही है आपको मगर फिर भी बता देती हूँ मैं. ऋतू नाम है मेरा. मैं भी साइको के केस को क्लोस्ली फॉलो कर रही हूँ. कल आपने जिसे मारा वो साइको नही था. साइको जिंदा है अभी. उसका सबूत ये लाशें हैं जो यहाँ पड़ी हैं.”
“क्या जान सकता हूँ कि कहा से पता चली ये सब बातें?” गौरव ने पूछा.
“मैं न्यूज़ रिपोर्टर हूँ. मेरा अपना तरीका है जानकारी इक्कथा करने का. आपको क्यों बताउ.”
“कूल… देखिए केस की इन्वेस्टिगेशन चल रही है. अभी कुछ भी कहना ठीक नही होगा.” गौरव कह कर चल दिया.
गौरव के बाद ऋतू ने अंकिता को घेर लिया, “कब तक चलेगा ये दरिंदगी का दौर. आख़िर पोलीस कुछ कर क्यों नही पा रही है.”
“हम पूरी कोशिश कर रहे हैं. पोलीस हाथ पर हाथ रख कर नही बैठी है. यकीन दिलाती हूँ आपको की साइको जल्दी पकड़ा जाएगा.”
अंकिता से बात करने के बाद ऋतू खड़ी हो गयी मायक ले कर कॅमरा के सामने और बोली, “अभी हमने आपको पोलीस का रावय्या दिखाया. पोलीस स्टेशन के बाहर 2 डेड बॉडीस फेंक गया कोई और इन्हे खबर भी नही लगी. अगर पोलीस स्टेशन के बाहर ही पोलीस अलर्ट नही है तो बाकी शहर की स्तिथि आप खुद समझ सकते हैं. साइको शहर में आज़ाद घूम रहा है और पोलीस सो रही है. ओवर टू यू……..”
अंकिता और गौरव अपर्णा के घर की तरफ चल दिए. ऋतू भी कॅमरमन के साथ उनके पीछे चल पड़ी, “अगर हम मीडीया वाले पोलीस पर दबाव नही डालेंगे तो ये कुछ नही करेंगे. एक नंबर की निकम्मी पोलीस है ये.”
गौरव और अंकिता एक ही जीप में जा रहे थे. अच्छानक अंकिता का मोबायल बज उठा. अंकिता ने मोबायल उठाया और बात की. बात करने के बाद वो बोली, “गौरव जंगल में मेरे उपर गोलिया चलाने वाला भी विजय ही था. जो गोली मुझपे चली थी वो विजय की उस बंदूक से मॅच हो गयी जो कल उसके पास थी. पता नही विजय ऐसा क्यों कर रहा था. सारा केस उलझा दिया उसने.”
“जहा तक मैं समझ पा रहा हूँ मेडम साइको ही था वो भी. हो सकता है कॉपीकॅट हो वो और असली साइको से परभावित हो. ये भी हो सकता है कि विजय असली साइको से मिला हुआ हो.”
“सही कह रहे हो. तहकीकात करो इस बात की. और हां बाकी तीन लोग जिनके पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है उनके बारे में अच्छे से तहकीकात करो.”
“जी मेडम….वही करूँगा.”
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Update 73
गौरव ने अपना मोबायल निकाला और एक नंबर डाइयल किया, “हेलो हेमंत भाई…कैसे हो……………”
गौरव ने हेमंत को अपर्णा के मा-बाप की मौत की खबर सुना दी. वो भी तुरंत अपर्णा के घर की तरफ निकल दिया.
“कौन है ये हेमंत?” अंकिता ने पूछा.
“अपर्णा का कज़िन है. वैसे हम उसे गब्बर कहते हैं. मुझे लगा उसे बता देता हूँ. अपर्णा अकेली होगी अब. किसी घर वाले को तो होना चाहिए उसके पास. मुस्सूरी में रहता है वो. ”
“ह्म्म… गुड.”
………………………………………………………………………………
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…………..
“कितने आँसू बहायें हम, अब इंतेहा हो चुकी है
वक्त की ऐसी करवट से, जिंदगी तबाह हो चुकी है
क्या गुनाह था मेरा, जो ये सज़ा दी मुझको
जीने की चाहत भी अब फ़ना हो चुकी है.”
आशुतोष को समझ नही आ रहा था की कैसे संभाले अपर्णा को. वो पागलो की तरह रोए जा रही थी. बिल्कुल उस डब्बे के पास ही बैठी थी जिसमे उसके पापा का सर था. अपर्णा को ऐसी हालत में देख कर आशुतोष की आँखे भी नम हो गयी. बिल्कुल नही देख पा रहा था वो अपर्णा को ऐसी हालत में. प्यार जो करता था उसे.
बहुत ही मुश्किल होता है उसे तड़प्ते हुए देखना जिसे आप बहुत प्यार करते हैं. और जब पता हो कि आप बस देख ही सकते हैं उसे तड़प्ते हुए कुछ कर नही सकते तो दिल पर क्या बीत-ती है उसे सबदो में नही कहा जा सकता. आशुतोष बिल्कुल ऐसी ही स्तिथि में था. कुछ भी तो नही कर पा रहा था अपर्णा के लिए. और अगर वो कुछ करता भी तो उसे डर था कि कही अपर्णा उसे डाँट ना दे. और परेशान नही करना चाहता था आशुतोष अपर्णा को. मगर फिर भी उसने सोचा की कुछ तो करना ही चाहिए उसे.
आशुतोष ने दोनो डब्बे वहाँ से हटवा दिए और सभी को बाहर भेज दिया, “तुम लोग बाहर नज़र रखो. कुछ भी ऐसा वैसा हो तो मुझे बताना.”
“जी सर”
आशुतोष बैठ गया वही अपर्णा के पास और बोला, “अपर्णा जी आपकी कसम खा कर कहता हूँ मैं तडपा-तडपा कर मारूँगा इस साइको को. आप प्लीज़ चुप हो जाओ.”
“कैसे चुप हो जाउ. अपने मा-बाप को खो दिया मैने. कितनी दर्दनाक मौत मिली है उन्हे. तुम मेरा गम नही समझ सकते. चले जाओ यहाँ से.”
“मैने बचपन में ही खो दिया था अपने मा-बाप को. बस 7 साल खा था जब वो आक्सिडेंट में मारे गये. अनाथ हूँ तभी से. मा-बाप को खोने का गम क्या होता है मुझसे बहतर कोई नही समझ सकता. आपके गम को अच्छे से समझ सकता हूँ मैं.” आशुतोष ने भावुक हो कर कहा.
अपर्णा ने अपने आँसू पोंछे और बोली, “तुमने पहले क्यों नही बताया.” एक अजीब सी मासूमियत थी अपर्णा के चेहरे पर बोलते हुए.
“बात ही कहाँ होती है आपसे. वैसे भी मैं बताता नही हूँ किसी को ये बात. आप प्लीज़ चुप हो जाओ, मुझसे देखा नही जा रहा.”
“मैं नही रोक सकती खुद को आशुतोष. तुम नही समझ सकते. ये आँसू खुद-ब-खुद आ रहे हैं.” अपर्णा सुबक्ते हुए बोली.
“समझ सकता हूँ. मैं भी 2 दिन लगातार रोता रहा था. कर लीजिए मन हल्का अपना. मैं बस आपको देख नही पा रहा इस हालत में इसलिए चुप होने को बोल रहा था. और मेरी तरफ से परेशान मत होना आप अब. मैं अपनी ग़लती समझ गया हूँ.”
तभी गौरव और अंकिता भी वहाँ पहुँच गये. गौरव तो कुछ नही बोल पाया उसे रोते देख. अंकिता उसके पास बैठ गयी और बोली, “बहुत ही बुरा हुआ है ये. मुझे बहुत दुख है अपर्णा. हम कुछ भी नही कर पाए. पूरा पोलीस डेप्ट तुम्हारा दोषी है. लेकिन यकीन दिलाती हूँ तुम्हे कि इस पाप की सज़ा जल्द मिलेगी उसे.”
“मुझे उसे सौप दीजिए. ये सब मेरे कारण हुआ है. अगर वो मारना चाहता है मुझे तो वही सही. वैसे भी अब जी कर करना भी क्या है. कुछ नही बचा मेरे पास. मेरी मौत से ये सिलसिला रुकता है तो मुझे मर जाने दीजिए.”
इस से पहले की अंकिता कुछ बोल पाती आशुतोष ने तुरंत कहा, “ये क्या बोल रही हैं आप. आपको कुछ नही होने दूँगा मैं. मरना उस साइको को है अब.”
अंकिता, गौरव और अपर्णा तीनो ने आशुतोष की तरफ देखा. “मैं सही कह रहा हूँ. आप क्यों मरेंगी. मरेगा अब वो जो की इतने घिनोने काम कर रहा है.”
“आशुतोष सही कह रहे हो तुम. यही जज़्बा चाहिए हमें पोलीस में.” गौरव ने कहा.
“चुप करो तुम. ग़लत बाते मत सिख़ाओ उसे. तुमसे ये उम्मीद नही रखती हूँ मैं… …..” अंकिता ने गौरव को डाँट दिया.
“सॉरी मेडम ….” गौरव ने मायूस स्वर में कहा.
“आशुतोष भावनाओ को काबू करना सीखो. और दुबारा ऐसी बात मत करना मेरे सामने. हां सज़ा मिलेगी उसे, ज़रूर मिलेगी.”
“बिल्कुल…उसे सज़ा मिलेगी काई सालो केस चलने के बाद. वो ऐसो-आराम से जैल की रोटिया तोड़ेगा. और हो सकता है…क़ानूनी दाँव पेंच लगा कर वो बच जाए.” गौरव ने कहा.
“स्टॉप दिस नॉनसेन्स आइ से.” अंकिता चिल्लाई.
गौरव ने कुछ नही कहा. बस चुपचाप खड़ा रहा. आशुतोष भी कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाया.
“ये सब बकवास करने की बजाए उन डब्बो का मूवायना करो और देखो कि कौरीएर कहाँ से आया था और किसने भेजा था. स्टुपिड.” अंकिता ने गुस्से में कहा.
“जी मेडम अभी देखता हूँ.” गौरव ने कहा. “आशुतोष कहा हैं वो डब्बे.”
“अपर्णा जी के सामने से हटवा दिए थे मैने. दूसरे कमरे में रखे हैं.”
“चलो देखते हैं.” गौरव ने कहा और आशुतोष के साथ उस कमरे में आ गया जहाँ डब्बे रखे थे.
“जीसस…” गौरव से देखा नही गया और उसने आँखे बंद कर ली.
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“फर्स्ट फ्लाइट से आया था कौरीएर सर ये.”
“ह्म्म…कौन दे कर गया?”
“था एक आदमी सर?”
“क्या नाम था उसका?”
“नाम नही पूछा सर”
“चलो कोई बात नही फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से सब पता चल जाएगा.”
जब गौरव बाहर आया तो अंकिता ने पूछा, “कुछ पता चला.”
“फर्स्ट फ्लाइट वालो से ही पता चलेगा सब कुछ मेडम.”
“ह्म्म तो पता करो जाकर.” अंकिता ने कहा.
अपर्णा को विस करके अंकिता बाहर की तरफ चल दी, “चलो गौरव.”
“आता हूँ अभी मेडम, अपर्णा से ज़रा बात कर लूँ.” गौरव ने कहा.
मगर आशुतोष वही खड़ा रहा.
“आशुतोष तुम घर के चारो तरफ राउंड ले कर आओ. देखो सब ठीक है की नही.”
आशुतोष को अजीब सा तो लगा मगर फिर भी वो चला गया.
आशुतोष के जाने के बाद गौरव अपर्णा के पास आया. वो अब सोफे पर गुमशुम बैठी थी.
“सब से बड़ा गुनहगार तो मैं हूँ तुम्हारा अपर्णा. मेरे होते हुए ते सब हो गया. खुद को माफ़ नही कर पाउन्गा. मगर मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ. जिंदा नही बचेगा वो…बस एक बार आ जाए मेरे सामने.”
अपर्णा कुछ नही बोली.
“जिंदगी भर नाराज़ रहोगी क्या. मुझे इस काबिल भी नही समझती की मैं तुमसे तुम्हारे गम बाँट सकूँ. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. कितनी बाते करते थे हम प्यारी-प्यारी…पता नही किसकी नज़र लग गयी हमारी दोस्ती को.”
“मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. मेरा सर फटा जा रहा है. प्लीज़ चले जाओ…प्लीज़. मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ…..” अपर्णा फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने ये सुन लिया. वो समझ नही पाया कि हो क्या रहा है. गौरव चुपचाप चल दिया वहाँ से. आँखे नम थी उसकी. आशुतोष ने देख लिया गौरव की आँखो की नमी को. असमंजस में पड़ गया और भी ज़्यादा. उसकी कुछ हिम्मत नही हुई गौरव से कुछ पूछने की.
आशुतोष अपर्णा के पास आया और बोला, “क्या बात थी अपर्णा जी. क्या आप जानती हैं गौरव को.”
“हां…बहुत अच्छे दोस्त थे हम. एक साथ पढ़ते थे कॉलेज में.” अपर्णा ने कहा.
“उनकी आँखो में आँसू थे यहाँ से जाते वक्त. मैं समझ नही पा रहा हूँ की क्या बात है.”
“आशुतोष प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. अभी मैं इस हालत में नही हूँ की कुछ कह पाउ…प्लीज़…”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बाहर ही हूँ. कोई भी बात हो तो बस एक आवाज़ देना तुरंत आ जाउन्गा.” आशुतोष ये कह कर बाहर आ गया.
गौरव अपर्णा के घर से सीधा फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस गया. मगर वहाँ कोई सुराग नही मिला उसे. यही पता चला की एक रिक्शे वाला आया था दो डब्बे लेकर और कोरियर करवा कर चला गया.
“क्या कुछ बता सकते हो उस रिक्शे वाले के बारे में.”
“अब क्या बताउ सर. बहुत लोग आते हैं यहाँ. कुछ नही पता मुझे.”
“बहुत ही चालक है ये साइको. किसी रिक्शे वाले को पकड़ के दो डब्बे पकड़ा दिए और कौरीएर करवा दिए अपर्णा के घर. बहुत शातिर दिमाग़ है.”
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फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से गौरव सीधा विजय के घर पहुँचा. उसने दरवाजा खड़काया. सरिता ने दरवाजा खोला.
“मैं इनस्पेक्टर गौरव पांडे हूँ. कुछ बात करनी थी आपसे.” गौरव ने कहा.
गौरव बोल कर हटा ही था कि उसके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दिया सरिता ने. “तुम्हे कैसे भूल सकती हूँ. तुम्ही ना मारा है ना मेरे पति को.”
थप्पड़ खाने के बाद एक पल को गौरव कुछ नही बोल पाया. मगर थप्पड़ मारने के बाद सरिता थोड़ी नरम पड़ गयी.
"बतायें अब मैं क्या मदद कर सकती हूँ आपकी?" सरिता ने कहा.
"मार लीजिए एक थप्पड़ और, फिर आराम से बात करेंगे. थप्पड़ मारने के बाद आप शांत सी हो गयी हो. मार लीजिए एक और...बुरा नही मानूँगा." गौरव ने कहा.
"आइए अंदर" सरिता ने कहा
गौरव अंदर आ कर चुपचाप सोफे पर बैठ गया. सरिता भी उसके सामने बैठ गयी.
"मेरी आँखो के सामने रेप अटेंप्ट किया विजय ने मेरी बहन का. आपको बता नही सकता कि क्या-क्या किया उसने. मुझे यही लगा कि वही साइको है. गुस्से में मार दी गोली मैने उसे. नही रोक पाया खुद को...सॉरी."
"मैने आपको थप्पड़ एक पत्नी के रूप में मारा. एक औरत होने के नाते कह सकती हूँ कि आपने ठीक ही किया. मेरी आँखो के सामने रेप किया था मेरी छोटी बहन का उन्होने. मार देना चाहती थी मैं भी उन्हे पर अपने पत्नी धरम के कारण चुप थी."
"कितने साल हुए आपकी शादी को." गौरव ने पूछा.
"3 साल"
"सरिता जी मुझे शक है कि आपके पति साइको के साथ मिले हुए थे. इसलिए यहाँ आया हूँ. उस साइको ने शहर में आतंक मचा रखा है. उसको पकड़ना बहुत ज़रूरी है वरना वो यू ही खून बहाता रहेगा. क्या आप कुछ ऐसा बता सकती हैं जो कि मेरी मदद कर सके."
"कुछ दिनो से वो सारा-सारा दिन बाहर रहते थे. रात को काई बार घर ही नही आते थे. कुछ पूछती थी तो मुझे मारने-पीटने लगते थे. एक दिन पेट पर चाकू खा कर आए थे. मैने यही घर पर ही पेट सिया था उनका. ज़्यादा कुछ नही जानती मैं. वो मेरे लिए हमेशा एक रहस्या ही रहे."
"ह्म्म्म माफ़ कीजिए मुझे मैने आपको बेवजह तकलीफ़ दी...मैं चलता हूँ." गौरव ने कहा और सोफे से खड़ा हो गया.
अचानक उसकी नज़र टीवी के उपर पड़ी एक मूवी की सीडी पर पड़ी. उसका टाइटल देख कर गौरव ने कहा,"ह्म्म्म....साइको...क्या ये मूवी आपके हज़्बेंड देखते थे."
"हां....बार बार इसे ही देखते थे वो. पता नही क्या है ऐसा इसमे. मैने कभी नही देखी."
"देखी तो मैने भी नही ये मूवी, हां पर नाम बहुत सुना है इसका. अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं ये सीडी ले सकता हूँ. लौटा दूँगा आपको जल्द."
"ले जाइए मुझे नही चाहिए ये वैसे भी. वापिस करने की भी कोई ज़रूरत नही है." सरिता ने कहा.
"थॅंक्स सरिता जी. मैं चलता हूँ अब."
जैसे ही गौरव घर से बाहर निकला ऋतू ने उसे घेर लिया, "क्या आप माफी माँगने आए थे विजय की पत्नी से. क्या आपको अब अहसास हो रहा है कि आपने ग़लत आदमी को मार दिया."
"देखिए इन्वेस्टिगेशन चल रही है. मैं कुछ नही कह सकता अभी."
"वैसे थप्पड़ क्यों पड़ा आपके गाल पे. कुछ बता सकते हैं."
"तुम्हे कैसे पता ..." गौरव सर्प्राइज़्ड रह गया.
"मैने खुद देखा अपनी आँखो से. रेकॉर्ड भी हो गया कॅमरा में"
"मुझे आपसे कोई बात नही करनी है...जो करना है करिए." गौरव बोल कर जीप में बैठ कर वहाँ से निकल गया.
"एक पत्नी ने आज अपने मन की भादास निकाली. एक करारा थप्पड़ मिला इनस्पेक्टर साहिब को. शायद ये थप्पड़ अब उनकी नींद तोड़ दे और वो और ज़्यादा सतर्क हो कर अपनी ड्यूटी करें....ओवर टू यू....." ऋतू ने कॅमरा के सामने खड़े हो कर कहा.
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Update 74
गौरव सीधा थाने पहुँचा. थाने के बाहर ही उसे भोलू मिल गया. वो कुछ परेशान सा लग रहा था.
"भोलू एएसपी साहिबा हैं क्या" गौरव ने पूछा.
"एक घंटा पहले निकल गयी मेडम...और उनके जाते ही अनर्थ हो रहा है."
"क्या हुआ भोलू...क्या अनर्थ हो रहा है?"
"चौहान सर एक औरत को मजबूर करके उसके साथ.....उसका पति एक छोटे से जुर्म में जैल में बंद है. दरखास्त करने आई थी वो अपने पति के लिए मगर चौहान सर मोके का फायदा उठा रहे हैं."
"मैं खबर लेता हूँ इस चौहान की."
"सर मेरा नाम मत लेना कि मैने बताया."
गौरव सीधा चौहान के कमरे की तरफ बढ़ा. दरवाजा झुका हुआ था...बंद नही था. गौरव ने झाँक कर देखा तो दंग रह गया. चौहान ने उस औरत को झुका रखा था और ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे हिल रहा था.
"आपसे ऐसी उम्मीद नही थी सर." गौरव ने कहा.
चौहान चोंक गया और रुक गया, "तुम....ज़बरदस्ती नही कर रहा मैं. ये खुद तैयार हुई है मेरे आगे झुकने के लिए. बदले में इसका पति आज़ाद हो रहा है और क्या चाहिए इसे."
चौहान फिर से हिलने लगा.
"आप जैसे लोगो के कारण पोलीस बदनाम है.लीव हर."
"लीव हेर....दफ़ा हो जाओ यहाँ से. ये अपनी मर्ज़ी से दे रही है. तुझे क्या तकलीफ़ है."
गौरव ने उस औरत की आँखो में देखा. उसकी आँखे नम थी. वो शरम और ग्लानि के कारण आँखे नही उठा पा रही थी.
"लीव हर....अदरवाइज़."
"अदरवाइज़ क्या ? .गोली मारोगे मुझे विजय की तरह?"
"बिल्कुल मारूँगा." गौरव ने बंदूक तान दी चौहान पर."
"पागल हो गये हो तुम ........बंदूक नीचे करो."
"बंदूक भी नीचे हो जाएगी पहले जो कहा है वो करो" गौरव ने दृढ़ता से कहा.
चौहान हट गया उस औरत के पीछे से और बोला, देख लूँगा तुझे."
उस औरत ने झट से कपड़े ठीक किए और बोली, "धन्यवाद साहिब."
"क्या नाम है तुम्हारे पति का और किस जुर्म में जैल में है वो."
"माधव प्रसाद. चोरी के झुटे इल्ज़ाम में फँसाया गया है उन्हे."
"ठीक है अभी जाओ तुम और कल मिलना मुझे 10 बजे. देखते हैं क्या हो सकता है.
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02-01-2020, 01:09 PM
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हेमंत (गब्बर) पहुच गया अपर्णा के घर. उसे देखते ही अपर्णा लिपट गयी उस से और फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
"भैया सब ख़तम हो गया. कुछ नही बचा."
"बस चुप हो जाओ. रोने से कोई फायदा नही है."
"पर मैं क्या करूँ. बहुत ही दर्दनाक मौत मिली है मम्मी,दादी को."
"मुझे गौरव ने बताया सब कुछ. तुम तो फोन ही नही करती हो कभी"
"अभी किसी को भी फोन नही किया मैने."
"कोई बात नही अब कर देंगे. अंतिम संस्कार पे तो सबको आना ही है."
"चाच्चा, चाची नही आए."
"आ रहे हैं वो भी. वो देल्ही गये थे परसो. रास्ते में ही हैं वो." हेमंत ने कहा.
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गौरव थाने से निकला ही था कि उसका फोन बज उठा.
"कहा हो जानेमन."
"हाई रीमा....कैसी हो..."
"आपको अगर याद हो तो कुछ काम अधूरे छोड़ गये थे आप. आ जाइए हम तड़प रहे हैं तभी से."
"उफ़फ्फ़ ऐसे बुलाएँगी आप तो मना नही कर पाएँगे. वैसे आपको अपने भैया का डर नही क्या."
"अभी-अभी भैया का फोन आया था. वो आज रात घर नही आएँगे."
"अच्छा....देख लो कही मरवा दो मुझे."
"तुम आओ ना. अच्छा छोटी सी भूल कहा तक पढ़ी. अब तक तो ख़तम हो गयी होगी."
"अरे नही यार. पढ़ ही रहा हूँ. परसो रात ख़तम करना चाहता था मगर कुछ लोगो से पंगा हो गया. फिर मन नही किया पढ़ने का. शांति से पढ़ुंगा मैं क्योंकि बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर है कहानी अब."
"ह्म्म्म....आ रहे हो कि नही."
"आ रहा हूँ जी...आप बिस्तर सज़ा कर रखो...."
"सजाने की क्या ज़रूरत है आपने उथल-पुथल तो कर ही देना है.... ......"
"हाहहाहा.... आ रहा हूँ मैं बस थोड़ी देर में तुम्हारी रेल बनाने."
"नहियीईईईईई....... अच्छा चलो आ जाओ... वेटिंग फॉर यू." रीमा ने कहा और फोन काट दिया.
"तुम बन ही गयी रीमा दा गोल्डन गिर ....... ....अच्छी बात है और ज़्यादा मज़ा आएगा संभोग में ... ...." गौरव सोच कर मुस्कुरआया और जीप में बैठ कर रीमा के घर की तरफ चल दिया.
गौरव पहुँच गया रीमा के पास कोई 30 मिनिट में. पहुच कर उसने बेल बजाई. रीमा ने दरवाजा खोला.
“बहुत जल्दी आ गये आप. मुझे लगा एक दो घंटे में आएँगे.”
“अब आपने कुछ इस तरीके से बुलाया की खुद को रोक नही पाए. खींचे चले आए आपके पास.”
रीमा हल्का सा मुस्कुराइ और बोली, “आइए जल्दी अंदर, कही कोई देख ना ले.”
“ओह हां…बिल्कुल”
गौरव अंदर आ गया और रीमा ने मुस्कुराते हुए कुण्डी बंद कर ली.
“तुम्हारे होंटो पे जो ये सेडक्टिव स्माइल रहती है वो बुरा हाल कर देती है मेरा. ऐसे ना सताया कीजिए हमें…पछताना आपको ही पड़ेगा.”
“अच्छा क्या पछताना पड़ेगा. हमें कुछ समझ नही आया.”
“वैसे आज हमारा मन खराब है. आपने याद किया तो आना पड़ा मुझे…वरना सीधा घर जा रहा था.”
“क्या हुआ ऐसा?”
“अपर्णा के साथ बहुत बुरा हुआ. उसके मा-बाप का सर काट कर डब्बे में सज़ा कर घर भेज दिया उसके उस साइको ने.”
“ओ.ऍम.जी. ….. बस आगे मत बताना कुछ. मैं सुन नही पाउन्गि. ये तो हद हो गयी दरिंदगी की.” रीमा ने मूह पर हाथ रख कर कहा.
“मैं बहुत परेशान हूँ अपर्णा के लिए. मगर कुछ कर नही सकता. वो मुझसे बोलने तक को राज़ी नही है.”
“ह्म्म्म… इसका मतलब आज मूड नही है जनाब का. कोई बात नही आपके आने से ही रोनक बढ़ गयी है यहाँ की. मेरे पास कुछ नयी मूवीस की द्वड पड़ी हैं….दोनो मिल कर देखते हैं.” रीमा ने कहा.
“ओह हां मूवी से याद आया. मेरे पास एक सीडी है साइको वो देखे.”
“वाओ क्या अल्फ़्रेड हिचकॉक की साइको की बात कर रहे हो. बहुत सुना है उसके बारे में.” रीमा ने उत्सुकता से कहा.
“अब ये तो नही पता कि ये वही है कि नही. सुना तो मैने भी है उसके बारे में. उसके उपर साइको लिखा ज़रूर है.”
“कहा है ड्व्ड आओ चला कर देखते हैं.”
“डीवीडी जीप में पड़ी है अभी लेकर आता हूँ”
“ठीक है ले आओ..तब तक मैं पॉपकॉर्न तैयार करती हूँ.”
गौरव जीप से ड्व्ड ले आया, “तुम्हारे कमरे में ही देखेंगे ना.”
“हां वही देखनेगे…तुम चलो मैं आ रही हूँ.”
रीमा स्नॅक्स ले कर आ गयी जल्दी ही. “लगा दी क्या ड्व्ड.”
“तुम खुद लगाओ ये लो.” गौरव ने ड्व्ड रीमा को पकड़ा दी.
“ह्म्म हां वही मूवी तो है…मज़ा आएगा. बहुत दिन से देखना चाह रही थी मैं.”
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Update 75
रीमा ने ड्व्ड, द्वड प्लेयर में डाल दी और प्ले करके गौरव के साथ बिस्तर पर आ कर बैठ गयी.
“अजीब बात है कोई नंबरिंग नही आई और मूवी शुरू हो गयी. पिक्चर क्वालिटी भी कुछ ज़्यादा अछी नही लग रही है. क्या साइको ऐसी ही है…फिर क्यों चर्चा है इसकी इतनी.”
“एक मिनिट…रीमा वो साइको 1960 की बनी हुई थी. इसे देखने से लगता है कि रीसेंट्ली बनी हुई है. तुम्हे ये सड़क कुछ जानी पहचानी सी नही लगती.”
“अरे हां ये सड़क ये मार्केट…देखी हुई सी लगती है.”
मूवी में बस सड़क दिखाई जा रही थी और मार्केट दिखाई जा रही थी. कोई आवाज़ नही आ रही थी. अचानक कॅमरा एक सुनसान सी जगह घूम गया. कॅमरा अब एक लड़की को फॉलो कर रहा था.”
“ओह माय गॉड….ये तो रागिनी है.”
“रागिनी कौन रागिनी?
“हमारे कॉलेज मैं पढ़ती थी. उसका खून हुआ था साइको के हाथो. तुम्हे तो पता होना चाहिए…कैसे बेख़बर पोलीस वाले हो तुम?”
“ओह हां याद आया, मैं भूल गया था आज दिमाग़ इतना घुमा हुआ है की पूछो मत. कही ये उसके मर्डर की वीडियो तो नही बना रखी साइको ने.”
तभी वीडियो में दिखाया गया कि अचानक किसी ने रागिनी को आकर पीछे से दबोच लिया और उसे कुछ सूँघा दिया. फिर उसे घसीट कर कार की डिकी में डाल दिया.
“ओ.ऍम.जी. ये तो रागिनी के मर्डर की ही वीडियो है. गौरव बंद करो इसे मैं नही देख सकती.” रीमा ने कहा.
“रीमा मुझे ये देखनी पड़ेगी. प्लीज़ तुम दूसरे कमरे में चली जाओ…जैसे ही ये ख़तम होगी मैं तुम्हे बुला लूँगा.”
“हॉरर मुझे अच्छी लगती है पर ये तो रियल है.”
“मेरी मानो मेरे साथ रहो. इसे देख कर एनालिसिस करेंगे, क्या पता साइको के खिलाफ कुछ मिल जाए.”
मूवी में अगला सीन एक घर का था. रागिनी नंगी पड़ी हुई थी फर्श पर और गिड़गिदा रही थी, “प्लीज़ मुझे जाने दो…प्लीज़.”
“हाहाहा….यहाँ से तुम कही नही जा सकती. यहाँ से अब तुम्हारी लाश ही बाहर जाएगी. घबराओ मत तुम्हे ऐसी मौत दूँगा की फख्र होगा तुम्हे कि तुम मेरे हाथो मारी गयी.”
मूवी में साइको का चेहरा नही दिख रहा था. पूरा फोकस रागिनी पर ही था.
“दो चाय्स हैं तुम्हारे पास. ये चाकू देख रही हो. इसे अपनी चूत में डाल लो. जिध तरह से लंड लेती हो चूत में उसी तरह से ये चाकू भी डाल लो. अगर तुम चुपचाप चाकू डाल लोगि तो तुम्हे कुछ नही करूँगा. और अगर नही डाला चाकू तुमने तो मैं डाल दूँगा. मेरे डालने से दर्द ज़्यादा होगा. खुद ही डाल लो तो अच्छा है.”
रागिनी फूट-फूट कर रोने लगी और बोली, “प्लीज़ मैं ये नही कर सकती…प्लीज़.”
“गौरव ये साइको तो बहुत ख़तरनाक है.”
“ये घर जहा ये वीडियो बनी है…कहाँ होगा ये घर…कुछ अजीब सा नही है ये कमरा. ऐसे कमरे कौन बनाता है आज कल. बहुत ही पुराना घर लगता है.”
“हां गौरव ऐसे घर तो गाँव में देखे थे कभी. अब ऐसी कन्स्ट्रक्षन कोई नही करवाता.”
अचानक मूवी रुक जाती है.
“ये क्या हुआ…इतनी ही है क्या ये.” गौरव ने कहा.
“अच्छा है जो इतनी ही है….आगे उसका मर्डर ही किया होगा उसने.”
“मुझे लग रहा था कि शायद साइको की शक्ल देखने को मिलेगी…पर ये तो यही रुक गयी.”
बहुत ट्राइ करते हैं वो दोनो मूवी को आगे बढ़ाने की मगर मूवी आगे नही बढ़ती. वो वही तक थी.
“ये द्वड तुम्हे कहा मिली गौरव.” रीमा ने पूछा.
“ये मुझे विजय के घर पर मिली. विजय को गोली मारी थी मैने. वही साइको लग रहा था मुझे. पर अब बात और भी उलझ गयी है. इस ड्व्ड का मतलब है कि विजय असली साइको से मिला हुआ था.” गौरव रीमा को अपने घर पर घटी सारी बात बताता है.
“ये भी तो हो सकता है कि उसे ये द्वड कही मिली हो और इस से प्रेरित हो कर उसने भी साइको जैसा करने की सोची हो. वो कॉपीकॅट भी हो सकता है.”
“कॉपीकॅट तो वो था ही. इसमे कोई शक नही मुझे. बस ये पता लगाना है कि क्या वो साइको से मिला हुआ था. इस ड्व्ड का विजय के घर से मिलना काफ़ी सारे सवाल खड़े करता है. जिनका जवाब मुझे ढूँढना होगा. मुझे जाना होगा रीमा…सॉरी…आज तुम्हे कोई सुख नही दे पाया.”
“अच्छा ही है मैं बच गयी. वरना आज जाने क्या हाल करते मेरा.”
“कब तक बचोगी…आज वैसे भी मूड ठीक नही था. अब ये द्वड देख कर दिमाग़ और ज़्यादा उलझ गया है.
ऐसी हालत में संभोग में परवेश मूर्खता है. धैर्या से फिर कभी आनंद लेंगे हम…और आपकी खूब रेल बनाएँगे”
“बना लीजिएगा हमें इंतेज़ार रहेगा.” रीमा ने मुस्कुराते हुए कहा.
“आपकी इन्ही बातों से बहक जाता हूँ मैं. ट्रेन में भी आपने मुझे बहका दिया था इन अदाओ से.”
“ट्रेन में ऐसा कुछ नही किया था मैने..वो सब आपका किया धरा था.”
“चलिए कोई बात नही मेरा किया धरा ही सही…मज़ा तो खूब मिला था ना आपको.”
“हां वो तो मिला था…तभी तो तरसते हैं आपके लिए.” रीमा ने नज़रे झुका कर कहा.
“उफ्फ क्या शर्मा रही हैं आप. मिलूँगा जल्दी ही आपसे. आज वो बात नही बन पाएगी…जिसकी आपको चाहत है. दिमाग़ बहुत सारी बातों से घिरा हुआ है.”
“मैं समझ सकती हूँ…आप जाओ अभी फिर मिलेंगे आराम से.” रीमा ने कहा.
“कूल…वी विल मीट सून एन्ड विल मेक ए ब्लास्ट.”
“अब ये ब्लास्ट क्या है रेल से ज़्यादा ख़तरनाक है क्या …”
“हां कुछ ऐसा ही समझ लो..”
गौरव ड्व्ड लेकर बाहर आ गया और वापिस विजय के घर की तरफ चल दिया, “क्या पता ऐसी और भी ड्व्ड हो विजय के पास…देखता हूँ जाकर.”
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02-01-2020, 01:18 PM
रास्ते में गौरव को एक सुनसान सड़क पर एक कार खड़ी मिली. उसमे हलचल हो रही थी. गौरव ने अपनी जीप रोकी और कार के शीसे का दरवाजा खड़काया.
“क्या है…क्या दिक्कत है.” एक लड़का शीशा खोल कर बोला.
“यहाँ सुनसान में क्या कर रहे हो. रात भी हो चुकी है. क्या तुम्हे साइको का डर नही.”
“तुम्हे क्या लेना देना…दफ़ा हो जाओ.”
“बड़े बाप की औलाद लगता है. पोलीस की वर्दी का कोई डर नही इसे.” गौरव ने मन में सोचा.
गौरव ने अंदर झाँक कर देखा तो पाया कि एक लड़की बैठी सूबक रही है. वो अपनी आँखो से आँसू पोंछ रही थी.
“कौन है ये लड़की…और ये रो क्यों रही है.”
“तेरी बहन है ये…तेरी बहन चोद रहा हूँ मैं. चल अब दफ़ा हो जा यहाँ से.”
“अच्छा ऐसी बात है क्या…बहना चलो बाहर आ जाओ” गौरव ने कहा.
गौरव ने ये बोला ही था कि उस लड़के ने बंदूक निकाल कर गौरव पर तान दी.
“एक बार समझ नही आता तुझे…चल निकल यहाँ से.”
अगले ही पल गौरव वो बंदूक छीन कर वापिस उस लड़के पर तान दी. “इन खिलोनो से खेलना ख़तरनाक है मुन्ना. चल चुपचाप बाहर निकल वरना तेरा भेजा उड़ा दूँगा अभी.”
“रूको…रूको निकलता हूँ… तुम जानते नही मुझे की मैं कौन हूँ. मैं गौरव मेहरा का भाई हूँ. पूरा डेप्ट खरीद सकता हूँ तुम्हारा.”
“गौरव मेहरा… इंट्रेस्टिंग. जल्द मुलाकात होगी तुमसे मुन्ना. चल अब ये कार यही छोड़ और पैदल निकल यहाँ से.”
“देख लूँगा तुम्हे मैं.” वो लड़का चलते हुए बोला.
“अबे सुन तेरे भाई के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है क्या?”
“हां है क्यों…”
“मुझे रेंट पर लेनी थी. कल आउन्गा तुम्हारे घर. सोच लेना अच्छी कमाई हो जाएगी तुम लोगो की ..”
“मेरे भैया के आगे बोलते ना ये तो अभी लाश गिरी होती तुम्हारी यहाँ.”
“लाश तो तेरी भी गिर सकती है चुपचाप निकल ले यहाँ से.”
वो लड़का भाग गया वहाँ से कार छोड़ कर.
“आओं बाहर…अब चिंता की कोई बात नही है.”
लड़की डरते-डरते बाहर आती है.
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“सुमन..”
“चलो आओ तुम्हे घर छोड़ देता हूँ.”
“मैं हॉस्टिल में रहती हूँ. कॉलेज छोड़ दीजिए मुझे.”
“हां-हां छोड़ दूँगा बैठो तो सही”
समान चुपचाप जीप में बैठ गयी.
“क्यों आई थी इसके साथ जब पता है की ऐसे लड़के अच्छा बर्ताव नही करते.”
“कुछ दिनो से ही ये बदल गया. पहले तो ऐसा नही था.”
“समझा कर उसे अब दूसरी लड़की मिल गयी होगी.”
“पता है मुझे. तभी नही आना चाहती थी उसके साथ. ज़बरदस्ती बंदूक दिखा कर लाया मुझे वो.”
“ह्म्म… कंप्लेंट लिखवा दे उसकी…अभी जैल में डाल दूँगा साले को.”
“छ्चोड़िए…बदनामी मेरी ही होगी और उसका कुछ नही बिगड़ेगा.”
“संभोग किया आपने उसके साथ..?”
“एक्सक्यूस मी…”
“छ्चोड़िए वैसे ही पूछ रहा था.”
“जी हां किया है…”
“ऐसे लोगो के साथ आपको इन लोगो से संभाल कर रहना चाहिए. ये अमीर बाप के बिगड़ैल लड़के भावनाओ को नही समझते. बस शोसन करते हैं. सब ऐसे नही होते मगर अधिकतर ऐसे ही होते हैं …”
“आप फ्लर्ट ना कीजिए मेरे साथ. अभी मेरा मन ठीक नही है.”
“मतलब किसी और वक्त चलेगा कूल कल मिलूँगा आपको.”
“फायदा होगा नही कुछ आपको…फिर भी मिल लीजिएगा.” सुमन हल्का सा मुस्कुरा दी.
“वैसे मैं फ्लर्ट नही कर रहा था…पता नही क्यों लगा ऐसा आपको. लीजिए कॉलेज आ गया आपका. वैसे नाम क्या था उसका.”
“संजीव मेहरा.”
“ह्म…ठीक है चलिए आप.”
“शुक्रिया आपका. आज वो मुझे मार पीट रहा था. पहली बार किया उसने ऐसा. बहुत बुरा लग रहा था मुझे. बहुत चोट पहुँची दिल को.”
“कोई बात नही जायें आप. गुड नाइट. अब उस से दूर ही रहना.”
गौरव चल दिया वहाँ से जीप लेकर विजय के घर की तरफ. “सरिता जी कही सो ना गयी हो.”
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Update 76
गौरव जब सरिता के घर पहुँचा तो रात के 11 बज चुके थे.
"घर की सारी लाइट्स बंद हैं, लगता है सरिता जी शो गयी हैं. उन्हे उठाना ठीक नही होगा. सुबह मिलूँगा उनसे."
गौरव अपनी जीप मोड़ कर वहाँ से चलने वाला ही था कि उसे एक चींख सुनाई दी. चींख घर के अंदर से ही आई थी. गौरव ने तुरंत अपनी पिस्टल निकाली और घर की तरफ भागा.उसने घर की बेल बजाई और दरवाजे को ज़ोर-ज़ोर से पीटा. मगर कुछ रेस्पॉन्स नही मिला. दुबारा कोई चींख तो नही आई घर के अंदर से कुछ-कुछ आवाज़े आ रही थी.
गौरव ने तुरंत फोन करके और पोलीस वालो को वहाँ बुलवा लिया.
"सरिता जी दरवाजा खोलिए...मैं हूँ इनस्पेक्टर गौरव."
मगर अंदर से कोई रेस्पॉन्स नही आया.
"ये दरवाजा तौड़ना होगा मुझे." गौरव ने कहा और डोर लॉक पर फाइयर किया.
दरवाजा खुल गया और गौरव हाथ में बंदूक ले कर तुरंत अंदर घुस गया. वो दीवार से चिपक गया और ध्यान से देखने की कोशिश की. अंधेरा था कमरे में पूरी तरह. गौरव कुछ भी नही देख पा रहा था. उसने दीवार पर लाइट्स के बटन्स ढूँढे और उन्हे ऑन किया. मगर कुछ भी नही जला.
"लाइट काट रखी है शायद." गौरव ने सोचा.
"सरिता जी आप कहाँ हो. मैं इनस्पेक्टर गौरव .... मिला था ना शाम को आपको. वहेरे आर यू."
"ओफ टॉर्च भी नही है आज. क्या करूँ इस अंधेरे में." गौरव ने सोचा.
तभी अचानक कुछ हलचल हुई और कोई टकरा गया गौरव से.
"क...क...कौन है..."
"सरिता जी मैं हूँ गौरव पांडे."
"आप क्यों कर रहे हैं मेरे साथ ऐसा..?"
गौरव को कुछ समझ नही आया. उसने फ़ौरन सरिता को दबोच लिया और उसके मूह पर हाथ रख दिया और उसके कान में बोला, "सस्शह...बिल्कुल चुप रहिए. कोई आपके घर में घुसा है शायद."
तभी घर के पिछली तरफ कुछ आवाज़ हुई.
"आपके पास कोई टॉर्च है?" गौरव ने पूछा.
"है...मगर वो किचन में पड़ी है और वही से ये आवाज़ आ रही है शायद."
"आप चिंता मत करो मैं हूँ यहाँ...बाकी पोलीस भी आ रही है. ये जो कोई भी घुसा है आपके घर में...पकड़ा जाएगा जल्दी ही."
तभी घर के पीछे ज़ोर की आहट हुई"
"आप रुकिये यही मैं देखता हूँ की कौन है"
गौरव हाथ में बंदूक ताने आगे बढ़ता है. पहुँच जाता है धीरे-धीरे घर के पीछे. गौरव अंजान था बिल्कुल की दीवार से एक साया चिपका खड़ा है बिल्कुल उसके पीछे. कदमो की हल्की से आहट सुनाई दी उसे और वो तुरंत मुड़ा मगर जब तक वो समझ पाता उसके सर पर एक वार हुआ और वो लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर गया. तभी पोलीस के साइरन की आवाज़ गूँज उठी. भाग गया वो साया गौरव को छोड़ कर.
गौरव का सर घूम रहा था. खून बह रहा था उसके सर से. उतना मुश्किल हो रहा था. मगर फिर भी वो हिम्मत करके उठा और बंदूक हाथ में ले कर लड़खड़ाते कदमो से आगे बढ़ा. पोलीस ने चारो तरफ से घेर लिया था घर को. हर तरफ देखा गया मगर वो साया नही मिला.
"निकल गया हाथ से साला. ये ज़रूर साइको ही था. पता नही क्या मारा मेरे सर पर कमिने ने, अभी तक सर घूम रहा है." गौरव ने कहा.
घर की बिजली ठीक कर दी गयी और रोशनी में फिर से पूरे घर को एक बार फिर से चेक किया गया. कुछ नही मिला.
"ह्म्म किचन की खिड़की से घुसा था वो अंदर...यही से भागा भी होगा शायद" गौरव ने कहा.
गौरव सरिता के पास आया. वो ड्रॉयिंग रूम में सोफे पर बैठ कर सूबक रही थी.
"सरिता जी माफी चाहता हूँ आपसे मगर एक बात पूछनी थी आपसे." गौरव ने कहा.
"जी पूछिए."
"जो ड्व्ड मैं ले गया था यहाँ से, क्या वैसी ड्व्ड और भी हैं."
"जी नही वो एक ही थी..."
"आर यू शुवर?"
"एस आय ऍम शुवर."
"सरिता जी प्लीज़ अगर आपको कुछ भी पता है तो बता दीजिए. इस साइको को पकड़ना बहुत ज़रूरी है."
"मुझे कुछ नही पता...मैं कोई भी मदद नही कर सकती हूँ आपकी."
"अगर आपको बुरा ना लगे तो आपके घर की तलासी लेना चाहता हूँ. क्या पता कुछ मिल जाए."
"बे-शक लीजिए तलासी. मुझे कोई ऐतराज़ नही है."
"थॅंक यू वेरी मच सरिता जी."
पूरे घर को अतचे से चेक किया जाता है. गौरव को उम्मीद थी और ड्व्ड मिलने की. मगर निराशा ही हाथ लगी."
गौरव ने 2 पोलीस वाले लगा दिए सरिता की प्रोटेक्शन के लिए. और जीप में बैठ कर चल दिया.
"थोड़ी मरहम-पट्टी करवा लेता हूँ.पता नही क्या मारा था कम्बख़त ने.
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सौरभ अपनी बायक पर जा रहा था ड्यूटी पर. दिख गयी पूजा उसे बस स्टॉप पर. आँखे चमक उठी उसकी.
पहुँच गया उसके पास और रोक दी बायक उसके आगे. पूजा हल्का सा मुस्कुरा दी उसे देख कर.
"कैसी हो पूजा?"
"मैं ठीक हूँ सौरभ. तुम कैसे हो?"
"ठीक हूँ मैं भी...लगता है कॉलेज से छुट्टी ले रखी थी. रोज देखता था तुम्हे यहाँ पर तुम नही दिखी."
"हां मन नही होता था कॉलेज जाने का. लेकिन कितनी छुट्टी लूँ, अब जाना ही होगा."
तभी पूजा की बस आ गयी.
"सौरभ बस आ गयी मेरी मैं जाउ." पूजा ने कहा.
"अगर रोकुंगा तो क्या रुक जाओगी?"
"रुक जाउंगी तुम कहोगे तो...पर क्यों रोकना चाहते हो मुझे."
"प्यार करता हूँ तुम्हे...जानती तो हो तुम...फिर भी पूछती हो क्यों. आओ बैठ जाओ तुम्हे घुमा कर लाता हूँ."
"कई दिनो बाद कॉलेज जा रही हूँ सौरभ...आज नही."
"बाद में चलोगि क्या...किसी और दिन."
"हां देख लेंगे...तुम जाओ अपनी ड्यूटी पर लेट हो जाओगे."
"निकल गयी बस तुम्हारी आओ तुम्हे छोड़ देता हूँ."
"कोई बात नही 20 मिनिट में दूसरी आ जाएगी. तुम जाओ लेट हो जाओगे."
"बैठ जाओ ना प्लीज़. मेरी खातिर."
एक हल्की सी मुस्कान बिखर गयी पूजा के चेहरे पर और वो बैठ गयी सौरभ की बायक पर.
"क्या तुम्हे पता है कि तुम मुझे प्यार करने लगी हो?"
"मुझे तो ऐसा कुछ नही पता."
"पर मुझे पता है."
"अच्छा...तुम्हे कैसे पता."
"बस पता है मुझे."
पूजा ने अपना सर टिका दिया सौरभ के कंधे पर और बोली,"शायद तुम ठीक कह रहे हो. मैं कुछ नही कह सकती क्योंकि मेरा दिमाग़ उलझन में फँसा हुआ है."
"उलझन दूर हो जाएगी सारी एक बार मेरे प्यार के शुरूर में डूब कर देखो"
"सौरभ वैसे कहाँ घुमाना चाहते थे मुझे."
"मसूरी ले चलता तुम्हे बायक पर ही...चलोगि."
"कल चलें...आज कॉलेज में देख लेती हूँ कि क्या चल रहा है."
सौरभ ने तुरंत बायक रोक दी सड़क के किनारे और बोला, "पूजा...मेरी खातिर बोल रही हो या सच में जाना चाहती हो."
"मुझे कुछ नही पता. तुम ले चलना मुझे बस. ख़ुशी ख़ुशी चलूंगी तुम्हारे साथ."
"ये तो सपना सा लग रहा है मुझे..."
"चलूंगी मैं सौरभ...तुम्हारे साथ कही भी चलूंगी. फिलहाल लेट हो रही हूँ...कॉलेज ले चलो ना जल्दी"
"ओह हां बिल्कुल" सौरभ ने दौड़ा दी बायक सड़क पर. कुछ ही देर में उसने पूजा को कॉलेज के बाहर उतार दिया.
"बाय...कल मिलते हैं." पूजा ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा.
"ध्यान रखना अपना पूजा."
"ओके जाओ अब लेट हो जाओगे." पूजा ने कहा.
"ओह हां...आज जल्दी पहुँचना था बाय-बाय. कल मिलते हैं."
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गौरव डॉक्टर के पास से मरहम पट्टी करवाने के बाद सीधा घर पहुँचा.
“भैया ये क्या हुआ, ये सर पे पट्टी क्यों बँधी है..?” पिंकी ने पूछा.
“सर पे पता नही क्या मार दिया जालिम ने. पिंकी एक बात सुनो मेरी. जब तक ये साइको पकड़ा नही जाता तुम देल्ही चली जाओ चाच्चा जी के पास. मम्मी दादी तो वहाँ गये ही हुए हैं. तुम तीनो वही रुक जाओ कुछ दिन.”
“भैया मेरा कॉलेज है यहाँ…मैं देल्ही कैसे जा सकती हूँ.”
“अरे छुट्टी ले लो ना. मगर तुम एक पल भी यहाँ नही रुकोगी. साइको ने चेतावनी दी है मुझे कि मेरे लिए प्लान बना रखा है उसने. मैं नही चाहता कि तुम लोगो पर कोई आँच आए.”
“भैया मैं ये बात नही मानूँगी.”
“थप्पड़ लगेगा एक गाल पर. जो कहा है वो करो. समान पॅक करो अपना. सुबह निकल रही हो तुम देल्ही. कॉलेज में छुट्टी के लिए मैं बोल दूँगा. मैं कोई बात नही सुनूँगा तुम्हारी.”
पिंकी पाँव पटक कर अपने कमरे में चली गयी और अंदर से कुण्डी लगा ली. गौरव उसके रूम के बाहर आ कर बोला, “सुबह मुझे कोई बहाना नही चाहिए. तुम सुबह 7 बजे निकल रही हो देल्ही. कार बुक करवा रहा हूँ मैं. सो जाओ और जल्दी उठ जाना.”
गौरव आ गया अपने रूम में और छोटी सी भूल पढ़ने बैठ गया. “आज ख़तम कर दूँगा मैं ये कहानी. सबने मेरे से पहले पढ़ ली.. ….. आज ख़तम करके रहूँगा.”
12 बजे बैठा था गौरव और 3 बजे तक पढ़ता रहा. पढ़ते वक्त उसकी आँखे नम थी. शायद कहानी ही कुछ ऐसी थी. पढ़ने के बाद चुपचाप सो गया.
सुबह 6 बजे उठ गया गौरव. 7 बजे जैसे तैसे पिंकी को देल्ही रवाना किया. बिल्कुल नही जाना चाहती थी पिंकी कही भी. मगर गौरव के आगे उसकी एक नही चली.
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