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विक्की ने एक नयी लड़की फँसाई थी और उसे बर्बाद करने की तैयारी में था. धोके से उसे नासीली चीज़ खिला कर उसके साथ अपना मूह काला करने की तैयारी में था. कॅमरा सेट कर रखा था उसने. कपड़े उतार कर नंगा कर रखा था उसे और उसके अंगो से खेल रहा था.
"नशा अच्छा शॉर्टकट है हे....हे...हे. ऐसे कभी नही मानती ये." विक्की लड़की के उभारो को चूस रहा था और लड़की नशे की हालत में सिसकियाँ भर रही थी. कॅमरा में सब कुछ रेकॉर्ड हो रहा था.
"ले चूस ये लंड साली और अच्छा पोज़ दे....हे...हे...हे."
लड़की नशे की हालत में कुछ नही समझ पा रही थी. मूह खोला उसने और विक्की के लिंग को मूह में ले लिया. बहुत देर तक सक करवाया विक्की ने. फिर उसने उसकी टांगे फैलाई और समा गया लड़की में.
"आआअहह."
"जबरदस्त एस्कॉर्ट बनेगी तू. क्या एंट्री दी है मेरे लंड को."
और नशे में लड़की का बलात्कार जारी रहा.........
विक्की बेख़बर था कि उसके घर में एक नकाब पोश घुस गया है. वो अपने पाप में लिप्त था. नकाब पोश उसके पास आ कर खड़ा हो गया और उसे खबर भी नही हुई. नकाब पोश ने खींच लिया उसे लड़की के उपर से और ज़मीन पर पटक दिया.
"बेटा ये सब ठीक नही है." नकाब पोश ने कहा.
"क...कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो?" विक्की घबरा गया.
"नाम में क्या रखा है, काम देखो मेरा." और टूट पड़ा नक़ाबपोश विक्की पर. इतने वार हुए चाकू के कि कमरे का पूरा फार्स लाल हो गया. लड़की नशे में थी. उसे तो पता ही नही चला कि क्या हुआ.
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परवीन फार्म हाउस पर था. 2 कॉल गर्ल्स बुला रखी थी उसने. बैठा हुआ था सोफे पर और दोनो लड़कियाँ उसका लिंग चूस रही थी.
"एक से बढ़ कर एक हो तुम दोनो क्या बात है. पहले क्यों नही मिली मुझे. कॉलेज गर्ल्स मुझे बहुत पसंद है. अब मिलते रहना."
"आप जेब ढीली करते रहना हम मिलते रहेंगे." एक लड़की ने कहा.
"पैसो की चिंता मत करो. मुझे खुश रखो बस. सब कुछ लूटा दूँगा तुम दोनो पर. चलो अब ऐसी पोज़िशन बनाओ कि मैं दोनो की एक साथ ले सकूँ."
एक लड़की पीठ के बाल बिस्तर पर लेट गयी. दूसरी भी उसके उपर पीठ के बल लेट गयी. दोनो लड़कियों की योनि एक दूसरे के उपर थी.
"वाह क्या पोज़िशन लगाई है"
परवीन ने पहले नीचे वाली की चूत में लंड डाल दिया.
"आआहह...यस."
बस 2 धक्के मार के उसने लंड बाहर खींच लिया और उपर वाली चूत में लंड डाल दिया.
"आआहह...वाओ यू आर फॅंटॅस्टिक." परवीन ने कहा.
इस तरह एक साथ परवीन 2 लड़कियों से मज़े ले रहा था. उसे अंदाज़ा भी नही था की एक नकाब पोश फार्म हाउस में घुस आया है और उसकी तरफ बढ़ रहा है.
"अब तुम दोनो की गान्ड भी एक साथ मारूँगा."
पहले परवीन ने उपर वाली लड़की की गान्ड में लंड डाल दिया और चार-पाँच धक्के लगा कर नीचे वाली लड़की की गान्ड में लंड घुसा दिया.
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Update 64
"वाह भाई वाह एक साथ दोनो का मज़ा. बहुत खूब."
परवीन चोंक गया और पीछे मूड कर देखा. एक नकाब पोश खड़ा था पीछे.
"कौन हो तुम? ये नकाब उतार कर बात करो." परवीन ने नीचे वाली लड़की की गान्ड से लंड बाहर खींच लिया.
"मेरे नाम, और पहचान में क्या रखा है. तुम मेरा काम देखो." नकाब पोश ने एक तेज धार चाकू निकाल लिया.
परवीन के तो होश उड़ गये. लड़कियाँ भी डर गयी. उन्होने फटाफट कपड़े पहने और रफू चक्कर हो गयी वहाँ से.
"क्या चाहते हो तुम मुझसे." परवीन डरता हुआ बोला.
"मुझे कुछ नही चाहिए. इस चाकू से बात करो. ये तुम्हारे खून का प्यासा है."
परवीन ये सुनते ही भागा मगर जल्द ही नकाब पोश ने उसे दबोच लिया. और फिर चाकू की बोछार हो गयी परवीन पर. खून की नादिया बह गयी वहाँ. तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया परवीन ने.
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गौरव विक्की के घर से फार्म हाउस पहुँचा.
"यहाँ भी खून की नादिया बह रही है. सर क्या ये दोनो खून साइको ने ही किए हैं." भोलू ने पूछा.
"और कौन कर सकता है. इतनी दरिंदगी सिर्फ़ वही कर सकता है" गौरव ने कहा.
"हां सर, दरिन्दा है ये साइको, इंसान नही है" भोलू ने कहा.
"इस लाश को भी पोस्ट मॉर्टेम के लिए भेज दो." गौरव ने भोलू से कहा.
"जी सर."
गौरव फार्म हाउस से सीधा थाने पहुँचता है और ए एस पी साहिबा से मिलता है. वो अंकिता को क्राइम सीन की डीटेल्स बताता है.
“क्या ये साइको का ही काम है?” अंकिता ने पूछा.
“प्रीमा फेसी तो यही लगता है. दोनो लोगो के शरीर पर बड़ी बेरहमी से वार हुए हैं चाकू के. बाकी पोस्ट-मॉर्टेम में पता चलेगा.”
“एसपी साहिब आ रहे हैं आज यहाँ, और हमारे पास फिर से कुछ भी दिखाने को नही है. तुम भी ये केस हैंडल नही कर पा रहे हो.”
“सॉरी तो से मेडम, पर मुझे दिन ही कितने हुए हैं अभी. मुझे थोडा वक्त और दीजिए.” गौरव ने कहा.
“वक्त ही नही है हमारे पास. एसपी साहिब आएँगे तो बताओ क्या बोलूं मैं उन्हे.”
तभी अंकिता के कमरे में पीयान आया, “मेडम एसपी साहिब आए हैं.”
अंकिता फ़ौरन खड़ी हुई और केबिन से बाहर आई. गौरव भी उसी के साथ बाहर आ गया.
“ह्म्म, ए एस पी साहिबा क्या चल रहा है. पूरे शहर को मरवा देंगी क्या आप. कब पकड़ा जाएगा ये साइको.” एसपी ने कहा.
“हम पूरी कोशिश कर रहें हैं सर.”
“कोशिश कर रहें हैं. कैसी कोशिश है ये जिसका कोई नतीजा नही निकलता. ऍम.पि. की बेटी भी मार डाली उस दरिंदे ने. सारी डाँट मुझे खानी पड़ती है. कोई आल्टर्नेटिव नही है वरना तुम्हे उठा कर बाहर फेंक देता.” एसपी ने बड़े कठोर शब्दो में कहा.
अंकिता चुपचाप खड़ी रही. अहसास था उसे भी कि एसपी साहिब पर भी दबाव है वरना वो ऐसी बाते नही करते. उसने कुछ भी कहना सही नही समझा.
“मैं बस यही कहने आया था कि डू वॉटेवर यू कैन. मुझे जल्द से जल्द वो साइको सलाखों के पीछे चाहिए.” एसपी ने कहा और चला गया.
अंकिता ने राहत की साँस ली और वापिस अपने केबिन में आ गयी. गौरव भी उसके पीछे-पीछे केबिन में आ गया.
“सुना तुमने गौरव. अब जाओ और कुछ करो. वरना एसपी साहिब मुझे बाहर फेंके या ना फेंके मैं तुम्हे ज़रूर फेंक दूँगी बाहर.” अंकिता ने कठोर शब्दो में कहा.
गौरव गहरी साँस लेकर बाहर आ गया. उसके माथे पर पसीने थे.
“कुछ भी हो बात घूम फिर कर मेरे सर पर ही आनी है. ये केस मैं जो हैंडल कर रहा हूँ. उफ्फ मेडम जब डाँट-ती हैं तो जान निकाल देती हैं. कुछ करना होगा अब. ये स्कॉर्पियो कार के बारे में पता करता हूँ. ”
गौरव निकल पड़ा ब्लॅक स्कॉर्पियो कार की जाँच पड़ताल में. उसने एजेन्सी से सभी ओनर्स की लिस्ट निकलवाई. बाहर में ब्लॅक स्कॉर्पियो केवल 4 लोगो के पास थी. एक स्कॉर्पियो का ओनर था गुआराव मेहरा, वो एक बिज़्नेसमॅन था और बाहर में उसका काफ़ी नाम था. एक ब्लॅक स्कॉर्पियो आर्मी के कर्नल देवेंदर के पास थी. एक ब्लॅक स्कॉर्पियो एक लेडी के नाम थी, नाम था सिमरन. वो इcइcइ बॅंक में काम करती थी. सबसे ख़ास बात ये थी की एक ब्लॅक स्कॉर्पियो सब-इनपेक्टोर विजय के नाम भी थी.
“ विजय के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो आशुतोष का शक सही है शायद. इस विजय पर नज़र रखनी पड़ेगी.” गौरव ने सोचा और एजेन्सी से वापिस थाने की तरफ चल दिया.
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अपर्णा की तबीयत खराब हो गयी थी अचानक. बहुत तेज टेंप्रेचर था. पड़ी हुई थी बिस्तर पर. डॉक्टर को बुलाया गया था घर पर ही. क्योंकि अपर्णा के डेडी अपर्णा को डॉक्टर के पास नही ले जाना चाहते थे. उन्हे साइको का डर जो था.
अपर्णा के दर्शन मुश्किल हो गये आशुतोष के लिए. आखरी बार तब ही देखा था उसने अपर्णा को जब इनस्पेक्टर गौरव पांडे ने आकर अपनी टाँग अड़ा दी थी . देखता रहता था बार-बार खिड़की की तरफ पर हमेशा निराशा ही हाथ लगती थी. आशुतोष ने काई बार सोचा की जाकर तबीयत पूछ आए मगर उसकी हिम्मत नही हुई. उसे डर था की कही अपर्णा बुरा मान जाए. इसलिए नही गया पूछने कुछ भी.
अपर्णा मेडिसिन ले कर लेती हुई थी. खोई हुई थी किन्ही ख़यालो में. गौरव से बड़े दिनो बाद मिली थी वो इसलिए कॉलेज के दिन याद आ गये थे उसे. बार बार सोच रही थी उन दिनो को अपर्णा.
“तुम अपनी शक्ल ना ही दिखाते मुझे तो अच्छा था. मैं तुमसे बात क्यों करूगी. दुबारा सामने मत आना मेरे. दगाबाज हो तुम.” अपर्णा ने गौरव के लिए कहा.
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02-01-2020, 10:49 AM
गौरव एजेन्सी से ब्लॅक स्कॉर्पियो के ओनर्स की लिस्ट ले कर थाने की तरफ बढ़ रहा था. वो कॉलेज के सामने से निकला तो अचानक एक लड़की पर नज़र पड़ी उसकी.
“ये तो रीमा है, मिलता हूँ इस से. ट्रेन की मुलाकात के बाद बात ही नही हुई इस से.” गौरव ने सोचा.
गौरव ने जीप रोक दी कॉलेज के बाहर और रीमा को आवाज़ दी. वो अकेली ही निकल रही थी कॉलेज से. गौरव को देख कर चोंक गयी. गौरव के पास आई और बोली, “तुम पोलीस की जीप में क्या कर रहे हो.”
“तुम्हारे निक्कम्मे भैया की तरह मैं भी पोलीस वाला हूँ.”
“मेरे भैया को निकम्मा मत कहो. दिन रात ड्यूटी करते हैं वो.”
“वो तो है चलो छोड़ो…और बताओ कैसी हो. ट्रेन की उस मुलाकात के बाद तो आपने याद ही नही किया मुझे.”
“ठीक हूँ मैं. वक्त ही नही मिला. वैसे भी आपने कौन सा नंबर या पता दिया था अपना जो याद करती.”
“ऐसा है क्या, ठीक है आज अपना अड्रेस और नंबर दे देता हूँ. पर मेरे घर पर जगह नही रहती. मेरे पेरेंट्स साथ रहते हैं. एक छोटी बहन भी है ज्योति. वहाँ काम-क्रीड़ा नही की जा सकती.”
“भैया अक्सर बाहर रहते हैं मेरे. घर पर अकेली ही रहती हूँ अक्सर. आज भी अकेली हूँ. भैया देल्ही गये हुए हैं. अभी घर ही जा रही हूँ.”
“यार अभी कैसे मुमकिन होगा…मैं इस साइको के केस में उलझा हुआ हूँ.”
“पहले छोटी सी भूल में उलझे हुए थे अब साइको के केस में उलझ गये.”
“क्या करू अपनी लाइफ ही कुछ ऐसी है. पढ़ रहा हूँ छोटी सी भूल भी धीरे-धीरे टाइम की कमी रहती है.”
“मैं चलूं फिर. आपके पास तो वक्त ही नही है.” रीमा ने कहा.
गौरव ने रीमा की तरफ देखा. रीमा के होंठो पर एक सेडक्टिव मुस्कान थी.
“ऐसे मत देखिए मेरी नौकरी दिक्कत में पड़ जाएगी. कभी भी सस्पेंड हो सकता हूँ मैं.”
“मैने तो कुछ नही कहा आपसे. जनाब आप चलिए…हमें देर हो रही है.” रीमा ने मुस्कुराते हुए कहा.
“उफ्फ आप नही मानेंगी…लगता है फिर से रेल बनानी पड़ेगी आपकी. आओ बैठो आपके घर चलते हैं.” गौरव ने कहा.
“ना बाबा ना, मुझे अपनी रेल नही बनवानी है. मैं तो मज़ाक कर रही थी. मुझे कही नही जाना आपके साथ.” रीमा ने शरारती अंदाज़ में कहा.
“उफ्फ क्या अदा है आपकी. देखिए अब तो रेल बनके रहेगी आपकी. आप अब हमसे बच नही सकती. एक बार लंड हरकत में आ जाए हमारा तो हम पीछे नही हट-ते. आपने लंड खड़ा कर दिया हमारा. अब ये आपकी रेल बना कर ही बैठेगा.”
“कैसी बात करते हैं आप आपको शरम नही आती.” रीमा शर्मा कर बोली.
“उफ्फ शरमाती भी हैं आप तो. गुड…मज़ा आएगा अब. चलो बैठो जल्दी. काम-क्रीड़ा का ऐसा रूप दिखाउन्गा आपको आज कि सब कुछ भूल जाओगी.”
“आपके इरादे नेक नही लगते, आपके साथ नही जाउंगी मैं.” रीमा ने कहा.
“अब बैठिए भी. हम तड़प रहें है और आप समझ नही रही.”
रीमा मुस्कुराते हुए जीप में बैठ जाती है. “वैसे मुझे आपसे डर लग रहा है…मगर फिर भी चल रही हूँ आपके साथ. ज़्यादा परेशान मत करना मुझे.”
“रीमा जी परेशानी में ही तो मज़ा आता है. कैसी बात करती हैं आप भी. जो परेशानी मैं दूँगा आपको वो आप जिंदगी भर याद रखेंगी.” गौरव ने रीमा की तरफ देख कर कहा.
रीमा कुछ नही बोली. बस अपने निचले होठ को दांतो तले दबा कर हल्का सा मुस्कुरा दी.
“उफ्फ आज तो आप शितम ढा रही हैं. रेल में कहाँ छुपा रखी थी ये जालिम अदायें आपने. मेरे लंड में तूफान खड़ा कर दिया आपने.” गौरव ने फिर से रीमा की तरफ देख कर कहा.
“सामने देख कर चलिए कही आक्सिडेंट ना हो जाए.” रीमा ने कहा.
“आक्सिडेंट तो हो ही चुका है आपके साथ. बस अब जान जानी बाकी है. घर पहुँच कर इन जालिम अदाओं से वो भी निकाल देना. उफ्फ यू आर टू हॉट”
“रहने दीजिए हर लड़की को यही बोलते होंगे आप.”
“जिसमे जो दिखता है वही बोलता हूँ मैं. आपमे जो दिखा बोल दिया. आपका घर कब आएगा?”
“बस पहुँच गये हम. अगले वाली गली से अंदर मोड़ लीजिए.”
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02-01-2020, 11:01 AM
घर में पहुँचते ही गौरव ने रीमा को बाहों में भर लिया.
“रुकिये चाय पानी तो पी लीजिए, पहली बार घर आए हैं हमारे.”
“आपके हुश्न का रस पीना है मुझे. चाय पानी मज़ा खराब करेगा.”
“आप तो बहुत बेचैन हो रहे हैं.”
“क्या आप नही हैं?”
“बिल्कुल भी नही…मुझे तो ऐसा कुछ नही हो रहा.”
“अच्छा अभी आपकी चूत में उंगली डाल कर देखता हूँ. सब क्लियर हो जाएगा. खोलिए नाडा अपना.”
“पागल नही हूँ मैं जो एक दम से नाडा खोल दूँगी अपना. क्या समझते हैं आप खुद को.” रीमा मुस्कुराते हुए बोली.
“उफ्फ अब कब तक बिजली गिराएँगी आप. चलिए आपके बेड रूम में चलते हैं.”
गौरव ने रीमा को अपनी गोदी में उठा लिया और बोला, “कहा है बेडरूम आपका. आज आपके खुद के बेडरूम में रेल बनाता हूँ आपकी.”
“ढूँढ लीजिए खुद ही. मैं आपका साथ क्यों दूं आपके मकसद में.”
“क्योंकि आपको भी अपनी रेल बनवानी है इसलिए.”
“मुझे कोई रेल नही बनवानी छोड़िए मुझे.”
गौरव ने रीमा का कमरा ढूँढ ही लिया. और उसे लाकर बिस्तर पर लेटा दिया और टूट पड़ा उस पर. उसने रीमा के होंठो को जाकड़ लिया होंठो में और दोनो के बीच बहुत ही गहरी किस हुई. किस करते करते ही गौरव ने अपने दोनो हाथ नीचे बढ़ाए और रीमा का नाडा खोल दिया. नाडा खुलते ही उसने पनटी में हाथ डाल कर रीमा की चूत में उंगली डाल दी.
“मुझसे भी ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो तुम तो. इतनी गीली चूत नही देखी मैने आज तक. ओफ मज़ा आएगा आज बहुत.” गौरव ने कहा और रीमा के सारे कपड़े उतारने लगा.
जब रीमा पूरी तरह निर्वस्त्र हो गयी तो गौरव तो देखता ही रह गया, “रेल में नही देख पाया था ये मदहोश जवानी आपकी. आपका शरीर तो बहुत सुंदर है. कमर का कटाव उफ्फ…जालिम है जालिम. इन उभारो का तो क्या कहना. मॅग्निफिसेंट टिट्स इनडीड. तोड़ा सा घूमिएे आपकी गान्ड भी देखना चाहता हूँ मैं.”
“रहने दीजिए मुझे शरम आती है. आप ज़्यादा मत बोलिए.”
“इन्ही अदाओ पे तो मर मिटा हूँ मैं. घूमिएे ना. क्या मुझे आपकी सुंदर गान्ड के दर्शन नही करवाएँगी.” गौरव ने कहा.
रीमा घूम गयी गौरव के सामने. “ओफ जैसा सोचा था उस से कही ज़्यादा कामुक गान्ड है आपकी.” गौरव ने कहा.
“आप इतना मत बोलिए. मुझे शरम आती है.” रीमा ने अपना चेहरा छुपा लिया हाथो में.
गौरव ने दोनो हाथो से रीमा की गान्ड को थाम लिया और उसे सहलाने लगा, “नाइस एन्ड सॉफ्ट आस चीक्स.”
गौरव ने अपने कपड़े भी उतार दिया फटाफट और चढ़ गया रीमा के उपर. उसने रीमा की गान्ड पर लंड रगड़ना शुरू कर दिया.
“क्या कर रहे हैं आप.”
“आग लगाने की कोशिश कर रहा हूँ इस गान्ड में. ये गरम हो जाएगी तो चोदा जा सकता है इसे भी.”
“नही ऐसा नही होगा कुछ भी. मैने आज तक अनल नही किया है. और करने का इरादा नही है.”
“क्या बात करती है आप भी. इतनी सुंदर गान्ड को आप लंड के सुख से दूर रखेंगी. ऐसा जुलम मत कीजिए इस बेचारी मासूम सी गान्ड पर.”
“आप कैसी बाते कर रहे हैं हटिए.”
मगर हटने की बजाए गौरव ने आगे बढ़ कर रीमा की आस चीक्स को चूमना शुरू कर दिया. रीमा सिहर उठी.
“आअहह…..मत कीजिए ऐसा.”
“क्यों कुछ-कुछ होता है क्या?”
“हां”
“दट मीन्स दिस आस डिज़र्व्स आ डिक इनसाइड. ट्रस्ट मी यू विल लाइक इट. चलिए आज आपकी गान्ड को भी काम-क्रीड़ा का आनंद दे दिया जाए.”
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02-01-2020, 11:04 AM
Update 65
गौरव ने थूक लगा लिया अपने लंड पर और उसे अच्छे से चिकना कर लिया.
“मैने सुना है की बहुत पेनफुल होता है अनल सेक्स.”
“होता होगा दूसरो के लिए आपके लिए नही होगा ट्रस्ट मी.” गौरव ने कहा और गान्ड को चोडा करके लंड टिका दिया रीमा के छेद पर.
“मज़ा आएगा आपको. डिफरेंट मज़ा.” गौरव ने कहा और खुद को धकैल दिया रीमा के अंदर.
“ऊऊओह….नूऊऊऊऊ पुल इट आउट…पुल इट आउट….नो”
“एंट्री में हि प्रोब्लम है थोड़ी सी. ज़रा रुकिये सब ठीक हो जाएगा…खि…खि..खि.”
“मेरी जान निकल रही है और आपको हँसी आ रही है. आआहह”
गौरव ने एक और धक्का मारा और लंड थोड़ा सा और उतर गया गान्ड में. रीमा फिर से कराह उठी, “ऊऊहह…नो मुझे नही लगता इस काम में कुछ मज़ा है. इसे निकाल कर सही जगह डालिए. ये अच्छा नही लग रहा मुझे.”
“अच्छा भी लगेगा थोड़ा सबर तो कीजिए” गौरव ने एक और धक्का मारा. पर इस बार बहुत ज़ोर का धक्का था. तेज धक्के के कारण इस बार पूरा का पूरा लंड रीमा की गान्ड में उतर गया.
“रीमा दा गोल्डन गर्ल बना दूँगा आज आपको.” गौरव ने कहा.
“मुझे रीमा ही रहने दो…आआहह.” रीमा कराहते हुए बोली.
“अब देखिए नज़ारे अनल सेक्स के. उफ्फ क्या गान्ड है आपकी.”
गौरव अब तैयार था अनल सेक्स के लिए. रीमा का दर्द भी कम हो गया था. धीरे धीरे शुरू हुआ शिल्षिला गान्ड में लंड के घर्षण का और रफ़्तार धीरे धीरे बढ़ती गयी. पहले पहले तो रीमा शांत पड़ी रही गौरव के नीचे. मगर जल्दी ही लंड के घर्षण उसे बहकाने लगे और कमरे में उसकी सिसकियाँ गूंजने लगी.
“आअहह गौरव…फास्टर.” रीमा ने मदहोशी में कहा.
“आने लगा स्वाद आपको अब. गुड.”
“फास्टर गौरव…प्लीज़.”
“बिल्कुल रीमा जी फिकर ना करें आप. तूफान आएगा अब संभालिएगा आप.”
गौरव इतने जोरो से धक्के लगाने लगा रीमा कि गान्ड में कि पूरा का पूरा बेड हिलने लगा. रीमा अपनी टांगे इधर उधर पटक रही थी. बहुत ही उत्तेजना में थे दोनो. गौरव लगा रहा रीमा की गान्ड में तूफान मचाने में मगर अब रीमा की हालत पतली होने लगी थी.
“बस…बस…बस गौरव और नही सह पाउन्गि…बस रुक जाओ”
“कैसी बात करती है आप…अभी तो आपकी रेल बनेगी…ज़रा रुकिये ना…खि…खि…खि.”
“रेल बन चुकी है गौरव….अब और बर्दास्त नही कर सकती प्लीज़ रुक जाओ आआअहह.”
“मज़ा नही आ रहा आपको”
“नही कुछ ज़्यादा ही मज़ा आ रहा है. बर्दास्त के बाहर है सब प्लीज़ रुक जाओ…आअहह.”
रुकने वाला कहा था गौरव. उसे तो पूरी रेल बनानी थी रीमा की. रीमा आनंद के सागर में गोते लगा रही थी. पर थक गयी थी अब गोते लगाते लगाते. और उस से अब लंड का घर्षण बर्दास्त भी नही हो रहा था.
“रुक भी जाइए अब. मार डालेंगे क्या हमें.”
“ओफ क्या बात है…लीजिए ये तूफान थमने ही वाला है.”
गौरव ने और ज़्यादा स्पीड बढ़ा दी. रीमा की तो सांसो ने जैसे काम ही करना बंद कर दिया. अचानक ज़ोर-ज़ोर से हांपते हुए गौरव रीमा के उपर ढेर हो गया. भर दिया उसने रीमा की गान्ड को अपने वीर्य से.
“उफ्फ क्यों लाई तुम्हे मैं साथ. फिर से छोटी सी भूल हो गयी मुझसे.”
“कोई भूल नही हुई है आपसे. बिल्लू की तरह आपके साथ कोई मक्कारी नही कर रहा हूँ मैं. ये एक सुंदर संभोग था.” गौरव ने बोलते हुए लंड बाहर खींच लिया रीमा की गान्ड से और उसे घुमा कर उस से लिपट गया. दोनो के होठ खुद-ब-खुद मिल गये और एक डीप किस में खो गये दोनो.
जब होठ हटे तो रीमा ने पूछा, “तुमने कभी किसी से प्यार किया है.”
“क्यों पूछ रही हो”
“तुम मुझे ऐसे किस कर रहे थे जैसे की प्यार करते हो मुझसे.”
“पता नही क्या मतलब होता है प्यार का. हमारे बीच एक खुब्शुरत संभोग हुआ है. उसके बाद एक प्यारा सा चुंबन नॅचुरल है. कुछ भी कह सकती हो इसे. हम दोनो ने एक अच्छा वक्त बीताया साथ. दो इंसान आपस में जुड़े. बेसक सेक्स के लिए ही जुड़े, फिर भी दो लोग जुड़े तो. हां शायद, दो पल का ही सही प्यार तो शामिल है ही इस संबंध में. ज़्यादा कुछ नही कह सकता.
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02-01-2020, 11:06 AM
मूरख और अग्यानि हूँ मैं प्यार के मामले में वरना अपर्णा को नही खोता.”
“अपर्णा? कौन अपर्णा… …”
“कॉलेज में थे हम दोनो साथ में.”
“बताओ ना उसके बारे में मैं सुन-ना चाहती हूँ.”
“नही रहने दो. मेरे जखम ही हरे होंगे.”
“बताओ ना प्लीज़. बताओगे तो एक बार फिर से अपनी रेल बनाने का मोका दूँगी तुम्हे.”
“अच्छा ऐसी बात है तो सुनो फिर……………..
अपर्णा एक ऐसी हसीना है जिसे देख कर किसी का भी दिल बहक सकता है. कॉलेज में कौन सा ऐसा लड़का था जो की उसके उपर मरता नही था. मगर अपर्णा जितनी सुंदर थी उसका चरित्र भी उतना ही सुंदर था. कभी किसी को मोका नही दिया उसने. किसी की तरफ नही देखती थी. बस अपने काम से काम रखती थी. अपर्णा के चाहने वालो में मैं भी शामिल था. रोज देखता था उसे चुप-चुप कर. मगर उसे पता नही चलने देता था.
अपर्णा का एक कज़िन ब्रदर भी उसी कॉलेज में पढ़ता था. उसका नाम हेमंत था. वैसे हम लोग उसे गब्बर कह कर बुलेट थे. उसके पापा पोलीस में थे. अक्सर अपने पापा की खाली बंदूक से खेलता रहता था वो. पर इस कारण एक अजीब आदत बन गयी थी उसकी. बात बात पर गोली मारने की बात करता था. कोई भी बात हो, उसे गोली मारने की बात तो करनी ही है. एक बार चाय गिर गयी मुझसे उसके उपर. तुरंत बोला, गौरव तुझे गोली मार दूँगा मैं.”
दिमाग़ खिसका हुआ था गब्बर का. पर अपर्णा का भाई था इसलिए बर्दास्त करते थे उसे हम. वही तो रास्ता था अपर्णा तक पहुँचने का. अपर्णा अक्सर गब्बर के साथ आती थी बायक पर बैठ कर. मैं गब्बर को ही बोलने के बहाने अपर्णा से भी कुछ बात कर लेता था.
अपर्णा तो कुछ भी बोलो, ही…हेलो से ज़्यादा कुछ बोलती ही नही थी. मैने भी ठान ली कि अपर्णा को पटा कर रहूँगा.
ये बात बताई मैने फ.ज.बडी को, जावेद को और मनीस को. तीनो लौटपोट हो गये मेरी बात सुन कर
“तुम और अपर्णा को पटाओगे. भूल जाओ बेटा और पढ़ाई पर ध्यान दो. गब्बर को पता चला तो गोली मार देगा तुम्हे.” जावेद भाई ने कहा.
फ.ज.बडी ने तो मुझे गले लगा लिया पता नही क्यों. उन्हे गले लगाने की बहुत आदत है. गले लगा कर बोले, “गौरव भाई…रहने दो…फ्री फंड में मारे जाओगे. अपर्णा ने किसका दिल नही तोड़ा जो तुम बचोगे…वो लड़की प्यार-व्यार में इंटेरेस्ट नही रखती”
पर मैं कहा मान-ने वाला था मैने कहा, “नही मैं पटा कर रहूँगा अपर्णा को चाहे कुछ हो जाए.”
“तुम नही पता सकते समझ लो ये बात. हम शर्त लगा सकते हैं तुमसे.”
“बेट लगाते हो मुझे चॅलेंज करते हो. अब तो मैं ये काम कर के रहूँगा.” मैं कह कर चल दिया वहाँ से.
पास ही विवेक भी सब सुन रहा था. हंसते हुए बोला, “पहले गब्बर से निपटना पड़ेगा तुम्हे…गोली मार देगा वो तुम्हे…ध्यान रखना.”
“क्या विवेक भाई आप भी शुरू हो गये. वैसे मैं गब्बर को ही सीधी बना कर बढ़ुंगा आगे. बेचारे को पता भी नही चलेगा ” मैने कहा
रोज गब्बर को मैं चारा डालने लगा. ताकि अच्छी दोस्ती बन जाए. काई बार उसे रेस्टोरेंट में खाना खिलाया. मैने किसी तरह से उसे राज़ी किया की तुम रोज सुबह मेरे साथ कॉलेज जाया करोगे. वो बोला की अपर्णा साथ होती है. मैने कहा तो रहने दो. उसके रहने से क्या फर्क पड़ता है. हम कौन सा अश्लील बाते करते जाएँगे.
खैर किसी तरह शील्षिला शुरू हुआ. रोज हितक्श और अपर्णा के साथ जाने लगा मैं कॉलेज. एक बार मैने गब्बर का टाइयर पंक्चर कर दिया कॉलेज में. अपर्णा को जल्दी घर जाना था कुछ काम था उसे. मुझे पता थी ये बात. गब्बर तो आग बाबूला हो गया, “किसने किया टाइयर पंक्चर मेरा मैं उसे गोली मार दूँगा.”
मैने कहा शांति रखो गब्बर भाई. मैं छोड़ आता हूँ अपर्णा को. अपर्णा ये सुनते ही बोली, “नही…नही…मैं ऑटो लेकर चली जवँगी.”
“कैसी बात करती है आप. हमारे होते हुए ऑटो पर क्यों जाएँगी आप.” मैने कहा.
बड़ी मुश्किल से मानी अपर्णा पर बैठ ही गयी मेरे पीछे मेरी बायक पर. पूछो मत मैं तो ख़ुशी से पागल हो गया. फ.ज.बडी, जावेद, और मनीस ने जब ये देखा तो बड़े परेशान हो गये. बेट हारने की चिंता सताने लगी उन्हे. मुझे क्या था मैं अपर्णा को लेकर आगे बढ़ गया.
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जानबूझ कर एक जगह अचानक ब्रेक लगाया मैने और टकरा गया अपर्णा का जिस्म मेरे जिस्म से. मेरे बदन में तो आग लग गयी.
“अपर्णा ऐसे नज़दीक मत आओ. मुझे कुछ-कुछ होता है.” मैने कहा
“मुझे शॉंक नही है तुम्हारे नज़दीक आने का. ध्यान से चलाओ तुम”
वाह क्या गुस्सा था उसकी बात में. ऐसा लग रहा था जैसे कि फूल बरसा रही हो.
अपर्णा को बिके पर बैठा कर ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत मिल गयी मुझे. कुछ ही दूर चले थे की दो गुंडे पीछे पड़ गये हमारे. वो दोनो बायक्स पर थे. एक हमारे दाईं तरफ था ओर एक बाईं तरफ. गुंडे वैसे मैने ही बुलाए थे अपर्णा को इंप्रेस करने के लिए
वो कामीने अपनी आदत से मजबूर छेड़ने लगे अपर्णा को. जितना मैने कहा था उस से कुछ ज़्यादा ही बोल रहे थे. इस से पहले मैं कुछ कहता अपर्णा बोली, “गौरव बिके रोको इन्हे अभी बताती हूँ मैं. हे मिस्टर रूको ज़रा.”
ये काम तो मुझे करना था पर अपर्णा करने लगी. खेल बिगड़ता दीख रहा था. खैर अपर्णा की बात कैसे टालता मैं. रोक दी बायक मैने.उन दोनो गुणडो को तो रुकना ही था प्लान के मुताबिक.
अपर्णा ने तो अपनी सैंडल निकाल ली और एक के सर पर दे मारी. मैं क्या कहता. वो गुंडा चिल्लाया गुस्से में और अनाप सनाप बकने लगा. लोग इक्कथा हो गये वहाँ. खूब मारा लोगो ने उन दोनो गुणडो को. मुझे तो कुछ भी करने का मोका नही मिला . सारा प्लान धारसाई हो गया.
छोड़ दिया चुपचाप अपर्णा को घर. थॅंक्स तक नही किया उसने. चली गयी चुपचाप अंदर. कुछ भी वैसा नही हुआ जैसा मैने सोचा था. अपर्णा को पटाना बहुत मुश्किल काम था.
बताया मैने ये वाक़या फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई को. खूब हँसे सब मिल कर पता नही क्यों बताया इन लोगो को मैने. शायद दोस्ती के कारण. पर उन्हे तो हँसने से मतलब था.
खैर अभी कुछ बिगड़ा नही था.
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02-01-2020, 11:10 AM
Update 66
रोज सुबह बायक ले कर मैं गब्बर और अपर्णा के साथ चलता था. अपनी बायक मैं गब्बर की बायक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि अपर्णा पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उसकी सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसन किसके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उसके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.
खैर एक और पासा फेंका मैने. इस बार मैने गुणडो से कहा कि गब्बर को रास्ते में रोक कर खूब पीटना शुरू कर देना. मैं बीच में पड़ कर उसे बचा लूँगा और अपर्णा की आँखो में हीरो बन जाउन्गा.
पर रीमा इस बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते गब्बर को. गब्बर ने इतनी रेल बनाई उनकी कि गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये गब्बर से. जाते जाते गब्बर ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”
गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कम्मे गुंडे चूस कर लिए थे
ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. अपर्णा बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था कि क्या करू.
एक दिन मैने अपर्णा को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाओ’ ईकार्ट टोल ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की अपर्णा रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था अपर्णा को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़तम कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं अपर्णा से डिस्कशन के लिए तैयार था
अगले दिन गब्बर और अपर्णा के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल ने. पवर ऑफ नाओ पढ़ी है क्या तुमने गब्बर भाई.”
गब्बर इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही करता अपना बेकार की बातों में.”
“नही भैया पवर ऑफ नाओ बहुत अच्छी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” अपर्णा ने कहा.
बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”
“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”
मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया कि क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उसकी मैं बोला, “आज में, इस पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पास्ट और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”
अपर्णा तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उसके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन म्रिग्नय्नि सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उसे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चिल गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस अपर्णा को देखता रहा फिर भी. वो आई गब्बर के साथ मुझे उठाने. “कहाँ देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” अपर्णा ने कहा.
“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”
गब्बर तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और अपर्णा जानते थे कि मैं कहा देख रहा था. उसकी म्रिग्नय्नि आँखो में ही तो डूब गया था.
मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. गब्बर और अपर्णा भी साथ ही थे. अपर्णा के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“तुम घर जाओ गौरव अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” गब्बर ने कहा.
“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”
“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” अपर्णा ने हैरानी में पूछा.
“मैं पवर ऑफ नाओ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उसके बारे में बताउन्गा.”
“मेरे से बात मत करना उसके बारे में. मैं सिर्फ़ गन की पवर पर विश्वास रखता हूँ.” गब्बर ने कहा.
कुछ अजीब नही लगा ये सुन के मुझे. गब्बर का दिमाग़ सच में सरका हुआ था. खैर गया मैं कॉलेज किसी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने अपर्णा से कहा, “अपर्णा पवर ऑफ नाओ के बारे में कुछ बात करें.”
“हां-हां बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अच्छी लगी.” अपर्णा ने कहा.
“तुम लोग पवर ऑफ नाओ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” गब्बर ने कहा
“गिल्ली डंडा इस उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.
“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” गब्बर चिल्लाया
मैं किसी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अच्छा ही था. गब्बर गिल्ली डंडा खेले और मैं अपर्णा पर लाइन मारु इस से अच्छा और क्या हो सकता था
गब्बर के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के सीने पर तो साँप लेट गया अपर्णा को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जीतनी थी और अपर्णा का दिल भी जितना था
पवर ऑफ नाओ के बारे में खूब बाते की हमने.अपर्णा इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.
“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”
“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”
“ह्म्म, अच्छी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” अपर्णा ने कहा.
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इस तरह बातो का शील्षिला शुरू हुआ. अपर्णा और मैं अच्छे दोस्त बन गये. मैं अपर्णा को इंप्रेस करने के लिए पहले से किताब के बारे में कोई अच्छी बात सोच कर रखता था. और वो बड़े प्यार से सुनती थी मेरी बातो को. अब उसकी नज़रे मुझे ढूँढ-ती रहती थी कॉलेज में पता नही क्यों . जब मैं उसके सामने आता था तो चेहरा खील उठ-ता था उसका. बड़े प्यार से देखती थी और बड़े प्यार से हल्का मुस्कुराती थी. बहुत प्यारा अहसास होता था वो मेरे लिए. प्यार हो गया था मुझे उस से. सच्चा प्यार. पर कहने की हिम्मत नही होती थी.
पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किसी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उसके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सच्चाई देख कर कभी मन नही हुआ उसके बारे में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही अपर्णा कुछ बोलती थी.
‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ ली थी अपर्णा ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उस से बाते करते करते मैं उस किताब की गहराई को समझ पाया. मैने दुबारा इश्यू करवाई किताब और इस बार सच्चे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इस बार मैने ‘पवर ऑफ नाओ’ पर.
और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे कि प्यार करने लगी है अपर्णा मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुए. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘आइ लव यू गौरव’.
मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे कहु समझ नही पा रहा था. उसका रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उसकी प्यार मुझे. लगता था प्यार करती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.
एक दिन कॅंटीन में चाय पीते वक्त मैने कहा, “अपर्णा कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा कि कैसे कहूँ.”
अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं सुन रही हूँ.”
मैने देखा बहुत प्यार से उसकी तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.
“बोलो ना गौरव. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” अपर्णा ने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं अब बोलने ही वाला था कि गब्बर आ गया वहाँ, “चलो अपर्णा चलते हैं.”
बहुत गुस्सा आया मुझे गब्बर पर, पर मैने कुछ नही कहा
शूकर है अपर्णा नही उठी वहाँ से. उसने गब्बर से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”
दिल को राहत मिली मेरे. पर गब्बर नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. अपर्णा के चेहरे पर भी गुस्सा दिखा मुझे गब्बर की इस हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. गौरव बाद में बताना ये बात ओके.”
“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” गब्बर ने कहा.
“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाय गौरव कल मिलते हैं.”
दुखी मन से बाय की मैने अपर्णा को. कामीने गब्बर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुश्किल से तो दिल की बात होंठो तक आई थी. कमीना कहीं का .
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Update 67
फिर वो दर्दनाक दिन आया जिसे मैं कभी नही भूल सकता.
अगले दिन कॉलेज के एक कमरे में मैं अपने दोस्तो, रवि,जावेद,मनीष और विवेक के साथ बैठा था. हँसी मज़ाक चल रहा था. अपर्णा के बारे में बाते हो रही थी.
“कहा पहुँची तुम्हारी स्टोरी गौरव भाई.” मनीष ने पूछा.’
“बस पूछो मत यार. कल इस कम्बख़त गब्बर ने आकर काम खराब कर दिया वरना कल सब कुछ बोल देता मैं.”
“मतलब अभी तुम शर्त जीते नही हो.” जावेद भाई ने चुस्की ली
“शर्त तो मैं जीत ही जाउन्गा, ज़्यादा देर नही है उसमे. बात अब अपर्णा का दिल जीतने की है. प्यार हो गया यार मुझे उस से मज़ाक मज़ाक में. बुरा हाल है मेरा.” मैने कहा.
“बुरा हाल तो गब्बर करेगा तुम्हारा, जब उसे पता चलेगा कि कितना अच्छा यूज़ किया तुमने उसका .” विवेक भाई ने कहा.
“हम तो लगता है शर्त हार गये भाई, आओ गले लग जाओ, अपर्णा मुबारक हो तुम्हे.” रवि भाई ने कहा.
“इतना बड़ा धोका…….” हम सब चोंक गये अपर्णा की आवाज़ सुन कर.
हमने मूड कर देखा तो पाया कि रूम के दरवाजे पर अपर्णा खड़ी थी. साथ में गब्बर भी था.
“देख लो इस मक्कार को अपनी आँखो से. इसी ने गुंडे भी भेजे थे. कितना गिरा हुआ इंसान है ये.” गब्बर ने कहा.
मेरे तो पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी अपर्णा को देख कर. उसकी आँखो में खून उतर आया था. बहुत गुस्से में थी. शायद सारी बाते सुन ली थी उसने हमारी. मैं भाग कर गया अपर्णा के पास. “अपर्णा कुछ ग़लत मत समझना, हां शर्त लगाई थी मैने पर मैं सच में…………” नही बोल पाया आगे कुछ भी क्योंकि थप्पड़ जड़ दिया था अपर्णा ने मेरे गाल पर.
“एक और मारो इस कामीने को.” गब्बर ने आग उगली.
चली गयी अपर्णा वहाँ से और मैं वही खड़ा रहा. कर भी क्या सकता था. अपर्णा कुछ सुन-ने को तैयार ही नही थी. प्यार शुरू होने से पहले ही ख़तम हो गया. अपने प्यार का इज़हार भी नही कर पाया मैं. मैं ही जानता हूँ कि मुझ पर क्या बीती. मेरे दोस्तो ने मुझे संभाल लिया वरना मैं बिखर गया था.
“बहुत दुख हुआ ये सब जान कर. तुम्हारी आँखो में आँसू आ गये हैं. अपर्णा को एक तो मौका देना चाहिए था.” रीमा ने कहा.
“उसने एक बार भी मुझसे बात नही की बाद में. देखती थी मुझे मगर कभी भी बात नही की. इस से बड़ी सज़ा नही मिल सकती थी मुझे. मर जाने को जी चाहता था. ओफ प्यार बड़ी अजीब चीज़ है.” गौरव ने अपनी आँखो के आँसू पोंछते हुए कहा.
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02-01-2020, 11:16 AM
“अभी कहा है अपर्णा?”
“यही देहरादून में ही है. शादी हो चुकी है उसकी. मगर अपने मायके में है. कुछ झगड़ा चल रहा है उसका अपने पति से. ज़्यादा डीटेल नही पता मुझे. मिला था अभी कुछ दिन पहले उस से. गुस्सा अभी तक बरकरार था उसका. इतने दिनो बाद भी वही नाराज़गी थी चेहरे पर. चलो छोड़ो….मेरे अधूरे प्यार की दास्तान यही ख़तम होती है.”
“मुझे नही लगता कि अब रेल बना पाओगे तुम मेरी. अपर्णा की बाते करके दीवाने से लग रहे हो.”
“अपर्णा के अलावा किसी से प्यार नही किया मैने रीमा. लेकिन उसने मेरे प्यार को समझा ही नही. एक मौका भी नही दिया. चलो छोड़ो अब और बात नही करूँगा.”
“कुछ खाओगे ?”
“नेकी और पूछ-पूछ…ले आओ कुछ.”
“हटो फिर मेरे उपर से…लाती हूँ कुछ.” रीमा ने कहा.
गौरव हट गया रीमा के उपर से. रीमा ने अपने कपड़े उठाए और पहन-ने लगी. गौरव ने कपड़े छीन लिए.
“ये सितम मत करो रीमा जी, ये सुंदरता अगर इन कपड़ो में ढक लोगि तो हमारा क्या होगा. हम तड़प-तड़प कर मर जाएँगे. उफ्फ यू आर डॅम हॉट” गौरव ने कहा.
“अच्छा ऐसा है क्या?”
“बिल्कुल जी.”
“मैं तुम्हारे सामने नंगी नही घूमूंगी. तुम्हारा कोई भरोसा नही कब रेल बना दो मेरी.”
“देखिए रेल तो बन-नी ही है आपकी. चाहे आप कपड़े पहनो या ना पहनो. निर्वस्त्र रहेंगी तो हमारी आँखो को आराम मिलेगा.”
रीमा मुस्कुराइ और कमर मत्काति हुई चल दी वहाँ से.
“उफ्फ क्या चाल है. ये धरती ना हिल जाए, ऐसे ना चलिए मटक-मटक कर.” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“चुप रहिए आप. एक तो हमें नंगा घुमाया जा रहा है हमारे ही घर में उपर से ये अश्लील बाते हम ये बर्दास्त नही करेंगे.” राइम चलते-चलते बोली.
गौरव दौड़ कर आया रीमा के पास और उसे दबोच लिया पीछे से. “उफ्फ क्या अदा है आपकी. रुका नही जाएगा अब कसम से.”
“क्या .......कुछ खा तो लो पहले.”
“कुछ खाने की इच्छा नही है बस आप साथ रहो मेरे.” गौरव ने कहा.
“ओह नो अब मेरा क्या होगा तुम तो फिर से उत्तेजित हो गये .” रीमा ने कहा.
रीमा को अपने नितंबो पर गौरव का ताना हुआ लिंग महसूस जो रहा था.
“अब तुम्हारी चूत की रेल बनाई जाएगी. चलो वापिस बिस्तर पर.” उठा लिया गौरव ने रीमा को गोदी में और ले आया उसे वापिस बिस्तर पर.
“कुछ खा लेते तो एनर्जी मिलती. आचे से रेल बना सकते थे फिर.”
“मेरा एंजिन खाली पेट भी बहुत अच्छा चलता है. घबराओ मत कोई कमी नही छोड़ूँगा.”
“पता है मुझे तभी तो डर रही हूँ .”
गौरव ने पटक दिया रीमा को बिस्तर पर
“आअहह….ये क्या किया.”
“गुस्सा देखना था तुम्हारे चेहरे पे. इसी की कमी थी वाह क्या बात है. ट्रेन में बड़ी प्यारी लग रही थी गुस्से में.”
“गुस्सा देखने के लिए हाथ-पैर तोड़ दो किसी के .”
“सॉरी रीमा जी. ज़्यादा ज़ोर से गिरा दिया शायद.”
“शायद मेरी कमर टूट गयी है. मेरी रेल बनाते-बनाते अब तुम मेरी जान ले लोगे लगता है .” रीमा के चेहरे पर गुस्सा था.
गौरव रीमा के उपर आ गया और उसके होंटो को किस करने लगा पर रीमा ने चेहरा घुमा लिया, “हट जाओ तुम बस अब, मुझे कुछ नही करना तुम्हारे साथ.”
“गुस्सा थूक दीजिए. बहुत प्यारी लग रही हैं आप कसम से. पर ये गुस्सा ज़्यादा देर तक नही होना चाहिए.” गौरव ने कहा और रीमा के बायें उभार के निपल को मूह में लेकर चूसने लगा.
“आअहह ये क्या कर रहे हो हटो. मैं तुमसे नाराज़ हूँ और तुम……हटो….आआअहह.”
“हटाना पड़ेगा धकैल कर आपको खुद ही. इन सुंदर उभारो से खुद नही हटूँगा.”
रीमा हंस पड़ी इस बात पर, “बदमास हो तुम पक्के.”
“जैसा भी हूँ तुम्हारे सामने हूँ. मेरी बदमासी अपने भैया को मत बताना. बहुत चिदते हैं वो मुझसे. आग बाबूला हो जाएँगे वो.”
“पागल हो क्या. ये बातें क्या किसी को बताने की होती हैं.”
गौरव ने अब रीमा के दूसरे उभर को थाम लिया और उसके निपल को चूसने लगा. बारी बारी से वो दोनो उभारो से खेल रहा था. कमरे में सिसकियाँ गूँज-ने लगी रीमा की.
“टांगे खोलो अपनी” गौरव ने कहा.
“ज़्यादा देर मत लगाना इस बार. पहले ही थॅकी हुई हूँ मैं .”
“ओके जी कम वक्त में बड़ा काम कर देंगे. आप टांगे खोल कर अपनी चूत के लिए रास्ता तो दीजिए” गौरव ने कहा.
रीमा ने हंसते हुए टांगे खोल दी. गौरव ने टांगे अपने कंधो पर रख ली और समा गया एक ही झटके में रीमा के अंदर.
“ऊऊऊओह…..म्म्म्ममम…..एक ही बार में डाल दिया क्या पूरा .”
“जी हां बिल्कुल आपको जल्दी निपटाना था काम मैने सोचा क्यों एक-एक इंच सरकाए. वक्त की कमी के कारण पूरा डाल दिया जी.”
“यू आर टू मच…..आआहह…अब जल्दी कीजिएगा हमें बाजार भी जाना है शाम को.”
“बिल्कुल जी ये लीजिए काम शुरू भी हो गया.” गौरव ने पहला धक्का मारा
“ऊऊहह एस.” रीमा कराह उठी.
फिर तो धक्को की बोचार हो गयी रीमा के अंदर. हर धक्के पर रीमा पागलो की तरह कराह रही थी.
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अचानक गौरव का फोन बज उठा. उसने हाथ बढ़ा कर फोन उठाया और बोला, “हेलो”
“कहाँ हो तुम गौरव.” अंकिता की आवाज़ आई
“जी रेल बना रहा हूँ….म..मेरा मतलब अभी आ रहा हूँ मेडम. कोई ख़ास बात है क्या?”
“जल्दी आओ, कुछ अर्जेंट है.” अंकिता ने ये बोल कर फोन काट दिया.
गौरव तो बिल्कुल थम गया था.
“तुम तो रुक गये बिल्कुल. फोन करते वक्त भी एक-दो बार तो हिल ही सकते थे.”
“ऐसी कयामत है ये, इसकी आवाज़ सुन कर तो दुनिया थम जाए, मेरी तो औकात ही क्या है. मुझे जाना होगा.”
“क्या अधूरा काम छोड़ कर जाओगे…वेरी बॅड .”
“कोई चारा नही है रीमा. नही पहुँचा तुरंत तो मेरी नौकरी चली जाएगी. बड़ी मुश्किल से तो वापिस मिली है. तुम चिंता मत करो हमारी काम-क्रीड़ा जारी रहेगी.”
“फिर कब मिलोगे?”
“बाद में बताउन्गा, तुम नंबर फ़ीड कर दो मेरे फोन में अपना, मैं कपड़े पहनता हूँ.”
गौरव ने जल्दी से कपड़े पहने और रीमा को किस करके फ़ौरन निकल दिया वहाँ से.
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20 मिनिट में वो थाने पहुँच गया. थाने पहुँचते ही वो सीधा एएसपी साहिबा के कमरे की तरफ बढ़ा.
"यस मेडम, आपने याद किया."
"हां बैठो, क्या प्रोग्रेस है?"
"मेडम ब्लॅक स्कॉर्पियो के ओनर्स की लिस्ट लाया हूँ. 4 लोगो के पास है ब्लॅक स्कॉर्पियो शहर में." गौरव ने पेपर अंकिता की तरफ बढ़ाया.
"ह्म्म गुड, इस लिस्ट में विजय का नाम भी होगा." अंकिता ने पेपर पकड़ते हुए कहा.
"आपको कैसे पता ....." गौरव हैरान रह गया.
"चौहान ने बताया मुझे कि 6 महीने पहले विजय ने ब्लॅक स्कॉर्पियो खरीदी थी."
"पर चौहान तो यहाँ नही है, वो तो आउट ऑफ स्टेशन है"
"बेवकूफ़ फोन पे बात की मैने. मुझे विजय पर शक था. वो अक्सर ड्यूटी से गायब रहता है. मैने चौहान से फोन करके पूछा कि क्या विजय के पास ब्लॅक स्कॉर्पियो है, तो उसका जवाब हां था. नज़र रखो विजय पर. इसीलिए बुलाया तुम्हे यहाँ."
"मैं खुद यही सोच रहा था मेडम."
"अब सोचो कम और काम ज़्यादा करो. मुझे कुछ नतीजा चाहिए जल्दी समझे वरना...."
"समझ गया मेडम, इज़ाज़त दीजिए मुझे."
"हां जाओ और विजय के साथ साथ बाकी तीनो पर भी नज़र रखो. साइको इन चारो में से ही कोई है."
"बिल्कुल मेडम ऐसा ही करूँगा. वैसे विजय कल से गायब है फिर से. आज भी ड्यूटी पर नही आया वो." गौरव ने कहा.
"तभी तो मुझे शक है उस पर. नाओ डोंट वेस्ट योर टाइम."
"जी मेडम" गौरव ने कहा और उठ कर बाहर आ गया.
"उफ्फ जान निकाल देती हैं मेडम." गौरव ने बाहर आ कर कहा.
..............................
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02-01-2020, 11:23 AM
Update 68
शाम के 6 बज रहे हैं. हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा है.
सरिता विजय की पत्नी, बाजार से कुछ समान ले कर लौट रही है. घर पहुँच कर वो पाती है की उनके घर के बाहर कोई खड़ा है बायक ले कर. वो उसे पहचान जाती है. "ये तो सौरभ है."
सौरभ सरिता को देखते ही बोला, आपका ही इंतेज़ार कर रहा था मैं. कैसी हैं आप."
"मैं ठीक हूँ, अंदर आइए."
सरिता ने दरवाजे का ताला खोला और सौरभ को अंदर इन्वाइट किया.
"मेरे पति घर पर नही हैं. आप अच्छे वक्त पर आयें हैं. मैं बिना किसी चिंता के अपना क़र्ज़ उतार सकती हूँ."
"कहाँ हैं आपके पति देव."
"देल्ही गये हैं कल से किसी काम से. अब कल ही लोटेंगे"
"ह्म्म..."
"वैसे मुझे डर लग रहा है, पर अपना क़र्ज़ मैं चुकाना चाहती हूँ. आपके सामने हूँ आप जैसा चाहें कर सकते हैं."
"आप हर क़र्ज़ से आज़ाद हैं सरिता जी. मुझे आपसे कुछ नही चाहिए. मैं तो वैसे ही मिलने आया था. बस एक बात बता दीजिए अगर हो सके तो."
"जी पूछिए." सरिता ने कहा.
"आपके पति के पेट पर निशान क्यों है, बहुत बड़ा लंबा सा."
"आप क्यों जान-ना चाहते हैं?"
"प्लीज़ हो सके तो बता दीजिए...मुझसे कारण मत पूछिए."
"उस रात आपके जाने के बाद मेरे पति घर आए थे. उन पर साइको ने हमला किया था. उनके पेट पर वार किया. किसी तरह से बच गये वो. बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे."
"ह्म्म तो आप कौन से हॉस्पिटल में ले गयी थी उन्हे."
"उन्होने मना कर दिया हॉस्पिटल जाने से. कह रहे थे की सबको पता चलेगा तो पोलीस की बदनामी होगी. वैसे मैं खुद एक डॉक्टर हूँ. मैने घर पर ही जैसे तैसे ऑपरेट किया. थॅंक गॉड सब कुछ ठीक रहा."
"ह्म्म....."
"आप ये सब क्यों जान-ना चाहते थे."
"कोई ख़ास बात नही वैसे ही. अब मैं चलता हूँ. टेक केर."
सरिता को तो कुछ भी समझ नही आ रहा था
सौरभ आ गया चुपचाप बाहर और बायक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिया.
सौरभ घर पहुँचा तो उसे अपने घर के बाहर पूजा खड़ी मिली.
"तुम यहाँ क्या कर रही हो पूजा. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे"
"क्यों कर रहे हो ये सब. कुछ बदल नही जाएगा खून ख़राबे से."
"मैं कुछ समझा नही." सौरभ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा.
"मैने अभी अभी देखा कल का न्यूज़ पेपर. विक्की और परवीन को किसी ने बेरहमी से मार दिया."
"अच्छा हुआ वो लोग इसी लायक थे. पर उन्हे किसी ने नही बल्कि साइको ने मारा है."
"मेरी आँखो में देख कर बोलो क्यों कर रहे हो ये सब."
"अंदर चल कर बात करते हैं, लोग देख रहे हैं." सौरभ ने कहा और कमरे का ताला खोल दिया. "आओ बैठ कर आराम से बातें करते हैं."
"कोई बात नही करूँगी जब तक ये सब बंद नही करोगे." पूजा ने कहा.
"तुम्हे कुछ ग़लत-फ़हमी हो गयी है. मैने कुछ नही किया ऐसा."
"मतलब की तुम रुकोगे नही, खून की होली खेलते रहोगे. मेरी चिंता नही तुम्हे बिल्कुल भी क्या."
"क्या मतलब.... आओ आओ अंदर आओ अब काम की बात की तुमने. पहली बार तुम्हारी आँखो में मेरे लिए प्यार दिखाई दे रहा है."
"ये प्यार नही तुम्हारे लिए चिंता है. रोक दो ये सब वरना तुमसे कभी बात नही करूँगी."
"2 लोग बाकी हैं अभी पूजा. न्याय पूरा करूँगा मैं अधूरा नही."
"मतलब तुम नही रुकोगे."
"नही."
पूजा चल पड़ी मूड कर अपने घर की तरफ. सौरभ ने उसे रोकने की कोशिश नही की.
"तुम समझ नही रही हो पूजा. अगर ये लोग जिंदा रहे तो परेशान करते रहेंगे तुम्हे. इनका मारना ज़रूरी है. तभी तुम शांति से जी पाओगि.
पूजा चल तो पड़ी थी मूह फेर कर अपने घर की ओर पर उसके कदम आगे ही नही बढ़ रहे थे. बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी वो आगे. वो किसी उधेड़बुन में थी. अचानक वो रुक गयी और अपने कदम वापिस सौरभ के घर की तरफ मोड़ दिए. "मैं नही करने दूँगी सौरभ को ये सब, उसे मेरी बात मान-नी पड़ेगी." पूजा ने ध्रिद निस्चय से कहा और तेज कदमो से चल पड़ी.
2 मिनिट में ही पूजा वापिस सौरभ के घर के बाहर थी.
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सौरभ ने पूजा के जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया था. वो नहाने की तैयारी कर रहा था. सारे कपड़े निकाल कर बस अंडरवेर में था. कंधे पर तोलिया टाँग रखा था.दरवाजा खड़का तो हड़बड़ा गया वो. फुर्ती से टोलिया लपेट कर दरवाजा खोला उसने.
"पूजा तुम रूको...रूको मैं कपड़े पहन लूँ" सौरभ ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
पूजा हंस पड़ी सौरभ को ऐसी हालत में देख कर. सौरभ ने तुरंत कपड़े पहन कर दरवाजा खोला, "आओ पूजा, मुझे लगा तुम चली गयी. मैं नहाने जा रहा था. सॉरी."
पूजा अंदर आ गयी और बोली, "मेरी खातिर रुक जाओ सौरभ. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा. तुम्ही बताओ क्या हाँसिल होगा मुझे उनके मरने से. कुछ भी तो नही. मेरे साथ जो होना था हो ही चुका है. कुछ भी तो बदल नही जाएगा. तुम बेकार में उनके गंदे खून से अपने हाथ रंग रहे हो."
"क्या तुम्हे नही लगता कि उन्हे उनके किए की सज़ा मिलनी चाहिए." सौरभ ने कहा.
"सज़ा तो मुझे भी मिलनी चाहिए उस हिसाब से. मेरी खुद की कम ग़लतियाँ नही हैं. आँख मिच कर अपना सब कुछ सौंप दिया था मैने विक्की को. क्या मैने ग़लत नही किया. चौहान और परवीन को मैने भी थोड़ा ही सही सहयोग तो दिया. क्या मैं पापी नही हूँ. मुझे मारो सबसे पहले. तुम मेरे लिए कर रहे हो ना ये सब. प्यार करते हो मुझसे तुम. लेकिन सौरभ जिसे तुम प्यार करते हो उसके दामन पर दाग है. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ. मुझे भी तो मारो. मैं भी उतनी ही पापी हूँ जीतने की ये लोग जिन्हे तुम मारने पर उतारू हो." पूजा ने भावुक शब्दो में कहा.
"पूजा मुझे पता है किसकी कितनी ग़लती है. तुम्हारे साथ प्यार का नाटक हुआ, तुम्हारी वीडियो बनाई गयी. तुम्हे ब्लॅकमेल किया गया. चौहान ने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया और अपने कुकर्म में परवीन को भी सामिल किया. मानता हूँ मैं कि थोड़ा सहयोग दिया होगा तुमने उन्हे. पर शायद वो सहयोग तुम्हारी मजबूरी थी. तुम्हारी कहानी सुन कर तो यही लगा था मुझे. तुम पापी हो ही नही सकती. पापी वो लोग हैं जिन्होने तुम्हारे मासूम चरित्र की धज्जियाँ उड़ाई. नही छोड़ूँगा मैं बाकी के 2 लोगो को भी."
"नही सौरभ प्लीज़. कहने को प्यार करते हो मुझसे और मेरी एक बात भी मान-ने को तैयार नही. क्या यही प्यार है तुम्हारा. तुम ये भी नही सोच रहे हो कि अगर तुम्हे ही साइको समझ लिया गया तो फिर क्या होगा."
"क्या तुम प्यार करने लगी हो मुझसे पूजा जो कि इतनी चिंता कर रही हो मेरी."
"प्यार मेरे लिए एक कन्फ्यूषन बन गया है. प्यार नही कर पाउन्गि जिंदगी में दुबारा. इंसानियत के नाते तुम्हारी चिंता है मुझे."
"तुमने बाहर कहा था की क्या मेरी चिंता नही तुम्हे, क्यों कहा था ऐसा तुमने"
"तुम अगर मेरे लिए खून ख़राबा करोगे तो क्या ख़ुशी मिलेगी मुझे. परेशान ही तो रहूंगी. जब प्यार करते हो मुझसे तो क्या मुझे परेशानी में डालोगे. तुम ऐसा करोगे तो क्या मैं चिंता नही करूँगी तुम्हारी. ख़तरनाक खेल खेल रहे हो तुम जिसमे तुम्हारी जान भी जा सकती है."
"वाओ...तुम्हे मेरी फिकर हो रही है. यही तो प्यार है. देखा पटा ही लिया मैने तुम्हे." सौरभ ने हंसते हुए कहा.
"दुबारा प्यार मेरे लिए असंभव है. प्यार नही है ये. तुम्हारी चिंता है मुझे और कुछ नही...सौरभ. कर बैठती प्यार तुमसे इस दीवाने पन के लिए अगर प्यार में धोका ना खाया होता मैने. प्यार नही कर पाउन्गि तुम्हे, मजबूर हूँ अपने दिल के हातो. लेकिन तुम अगर मुझे सच में प्यार करते हो तो तुम्हे तुरंत ये खून ख़राबा बंद करना पड़ेगा."
सौरभ ने गहरी साँस ली और बोला, "ठीक है पूजा, एनितिंग फॉर यू. लेकिन कम से कम इस विजय का खेल तो ख़तम करने दो. वही है वो साइको जिसने शहर में आतंक मचा रखा है."
"कौन विजय?"
"वही पोलीस वाला जो तुम्हे ज़बरदस्ती घर ले गया था. उसका नाम विजय है"
"अगर ऐसा भी है तो तुम क्यों क़ानून अपने हाथ में लेते हो. मेरे जीते जी तुम कुछ नही करोगे ऐसा समझ लो. मुझे मार दो फिर कर लेना जो करना है"
"अच्छा ठीक है बाबा. मैं ये बात इनस्पेक्टर गौरव को बता देता हूँ. देख लेंगे आगे वो खुद."
"थॅंक यू सौरभ. बहुत शुकून मिला मेरे दिल को ये सुन कर. काश तुम मुझे पहले मिले होते." पूजा ने गहरी साँस ली.
"पूजा इंतेज़ार करूँगा तुम्हारा. मुझे यकीन है कि तुम मेरे प्यार से दूर नही रह पाओगि. मेरा प्यार सच्चा है तो तुम्हे भी प्यार हो ही जाएगा."
पूजा की आँखे भी भर आई और वो मुस्कुरा भी पड़ी सौरभ की बात पर. एक साथ दो भावनाए जाग गयी थी पूजा के अंदर. "मैं चलती हूँ सौरभ. दीदी मेरे लिए परेशान हो रही होगी."
"मिलती रहना मुझसे, एक आचे दोस्त तो हम रह ही सकते हैं."
"हां बिल्कुल" पूजा सौरभ की आँखो में देख कर मुस्कुराइ और धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी.
"कितना प्यार है तुम्हारी आँखो में मेरे लिए, पर तुम स्वीकार नही करना चाहती इस प्यार को. देखता हूँ मैं भी कब तक धोका दोगि खुद को." सौरभ ने कहा.
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Update 69
गौरव ने भोलू को बुलाया और कहा, "सब-इनस्पेक्टर विजय की फोटो चाहिए मुझे."
"उनकी फोटो का क्या करेंगे सर."
"है कुछ काम, तुम फोटो लाओ."
"जी सर."
गौरव ने भोलू के जाने के बाद आशुतोष को फोन मिलाया, "हेलो आशुतोष, एक बात बताओ क्या अपर्णा ने सब-इनस्पेक्टर विजय को देखा है क्या"
"नही सिर विजय उसके सामने नही आया कभी." आशुतोष ने जवाब दिया.
"ह्म्म कल सुबह मैं विजय की फोटो लेकर आउन्गा अपर्णा को दिखाने के लिए. मुझे लग रहा है कि विजय ही साइको है."
गौरव ने अचानक फोन काट दिया. उसके दरवाजे पर विजय खड़ा था.
"गुड ईव्निंग सर कैसे हैं आप." विजय ने कहा.
"विजय तुम आओ...आओ." गौरव ने कहा.
"अभी अभी देल्ही से आया हूँ सर. जल्द मिलूँगा आपसे." विजय कह कर चला गया वहाँ से.
"वेरी स्ट्रेंज. मैं उसका सीनियर हूँ, अंदर बुला रहा हूँ और वो टाल कर चला गया. शायद उसने फोन पर मेरी बाते सुन ली." गौरव सोच में पड़ गया.
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02-01-2020, 11:28 AM
.....................................................
तभी गौरव का फोन बाज उठा. फोन उसकी छोटी बहन पिंकी का था.
"भैया मेरे बर्थडे पर तो वक्त से आ जाओ. मम्मी, पापा भी नही हैं आज यहाँ. ऐसा बर्थडे कभी नही मना मेरा कभी ." पिंकी ने कहा.
"आ रहा हूँ बस थोड़ी देर में. बता क्या गिफ्ट लाउ तेरे लिए."
"मुझे कॅश दे देना मैं खुद खरीद लूँगी. तुम्हारा लाया गिफ्ट कभी अच्छा नही लगता ."
"जैसी तेरी मर्ज़ी.... आ रहा हूँ थोड़ी देर में."
कुछ देर गौरव यू ही बैठा रहा और विजय के बारे में सोचता रहा. "इसे रंगे हाथ पकड़ना होगा तभी बात बनेगी....फिलहाल घर चलता हूँ वरना पिंकी जान ले लेगी."
गौरव चल दिया अपनी जीप में घर की तरफ. रास्ते से उसने एक शोरुम से जीन्स खरीद ली पिंकी के लिए. घर पहुँच कर गौरव ने चुपचाप दरवाजा खोला. "ये अंधेरा क्यों कर रखा है पिंकी ने." गौरव ने तुरंत लाइट जलाई.
मगर लाइट जला कर जैसे ही वो मुड़ा उसके पाँव के नीचे से ज़मीन निकल गयी. ड्रॉयिंग रूम के बीचो बीच एक कुर्सी पर पिंकी बैठी थी बिना कपड़ो के. उसके हाथ बँधे हुए थे. उसके बिल्कुल पीछे एक नकाब पोश खड़ा था जिसने की पिंकी के सर पर बंदूक तान रखी थी.
"मैने सोचा बर्थडे पर मैं भी शामिल हो जाउ...हहहे. अपनी पिस्टल मुझे दे दो और हाथ उपर करके खड़े हो जाओ." नकाब पोश ने कहा.
"विजय यू बस्टर्ड...तुम्हारी इतनी हिम्मत"
"मेरे पीछे पड़े हो हा. आज पता चलेगा तुम्हे...हाहाहा. जल्दी से अपनी पिस्टल मुझे दो वरना तुम्हारी बहन का भेजा उड़ा दूँगा."
गौरव के पास कोई चारा नही था. उसने बंदूक निकाल कर ज़मीन पर रख दी और पाँव से ठोकर मार कर नकाब पोश की तरफ धकैल दी.
"गुड.... अब अपने हाथ उपर करो. कोई भी हरकत की तो अंजाम बहुत बुरा होगा सर हाहाहा."
“मिस्टर गौरव पांडे सामने सोफे पर देखो एक इंजेक्षन पड़ा है. वो लगा लो अपने हाथ में. और कोई भी होशियारी की तो भेजा उड़ा दूँगा तुम्हारी बहन का.”
“तुम चाहते क्या हो?”
“चुपचाप वो इंजेक्षन लगाओ…वरना देर नही करूँगा इसका भेजा उड़ाने में.”
गौरव ने इंजेक्षन उठाया और बोला, “मुझे ये इंजेक्षन लगाना नही आता. मैं कोई डॉक्टर नही हूँ जो इंजेक्षन ठोक लूँ अपने हाथ में.”
“ज़्यादा बकवास मत करो…कुछ ज़्यादा नही करना तुम्हे…बस इंजेक्षन घुसा लो कही भी हहहे.”
“तुम पागल हो.”
“हाहाहा…जल्दी करो वरना…”
गौरव सोच में पड़ गया. “
“क्या सोच रहे हो जल्दी करो….वरना.”
“तुम ये सब क्यों कर रहे हो.”
“ज़्यादा बाते मत करो जो कहा है वो करो…वरना” नकाब पोश ने पिंकी के मूह पर चाँटा मारा. उसका मूह पहले से सूजा हुआ था. वो रोने लगी चाँटा पड़ते ही.
“चुप कर साली, अपने भैया को बोल जो कहा है वो करे वरना तेरा वो हाल करूँगा कि तेरी रूह काँप उठेगी.
“कामीने दूर रह मेरी बहन से वरना जिंदा नही छोड़ूँगा तुझे.” गौरव चिल्लाया.
“अच्छा ये ले एक और मारा साली को.”
“भैया……मुझे बचा लो….”
“तुम चाहते क्या हो साफ-साफ बोलो. ये इंजेक्षन मैं क्यों लगाउ.”
“क्योंकि मैं कह रहा हूँ इसलिए. अब मैं दुबारा नही कहूँगा. ज़रा भी देर की तो इसका भेजा उड़ा दूँगा.”
गौरव असमंजस में पड़ गया की क्या करे क्या ना करे. “देखो एक बात ध्यान से सुनो. तुम मुझे गोली मार दो बेसक पर मेरी बहन को कुछ मत करो. उसे इस सब से दूर रखो. वो ये सब नही सह सकती. प्लीज़.”
“आया तो मैं तुम्हे मारने ही था. ये मिल गयी तो मज़ा और भी ज़्यादा आएगा. बर्थडे के लिए घर सज़ा रखा है पर किसी को बुलाया ही नही. ऐसा क्यों. अच्छा किया जो मैं आ गया. हहहे.”
“तुम आख़िर चाहते क्या हो.”
“मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी बहन मेरा लंड चूसे और तुम चुपचाप बैठ कर देखो. बोलो करोगे ऐसा.”
“विजय तुम्हे शरम आनी चाहिए…ये सब बोलते हुए. क्या तुम्हारी कोई बहन नही.”
“अब तुम पहचान ही गये हो मुझे तो ये नकाब उतार देता हूँ हहहे.” विजय ने नकाब उतार दिया.
“विजय मार दो मुझे अभी…क्योंकि अगर मैं बच गया तो बहुत बुरी मौत दूँगा तुम्हे.”
“हाहाहा, अगर तुम मेरे पीछे ना पड़ते तो ये नौबत नही आती. रहीं बात तुम्हारे मरने की तो वो तो तुम्हे मारना ही है. तुम्हारे साथ तुम्हारी बहन भी मरेगी हाहाहा.”
“तो फिर मारो गोली ये इंजेक्षन का नाटक किसलिए कर रहे हो. चलाओ गोली किस बात का इंतेज़ार कर रहे हो.” गौरव चिल्लाया.
“तुम्हारी बहन बहुत सेक्सी है सिर, सोच रहा था कि आप बेहोश हो जाते तो कुछ मौज मस्ती कर लेता और फिर तुम दोनो का काम ख़तम कर देता. पर नही मुझे लगता है तुम अपनी बहन को चुद-ते हुए देखना चाहते हो.”
गौरव सुन नही पाया ये सब और उसने इंजेक्षन फेंक कर मारा विजय की तरफ. विजय ने फाइयर किया गौरव की तरफ मगर निशाना चूक गया. तब तक गौरव ने आगे बढ़ कर विजय को दबोच लिया. दोनो ज़मीन पर गिर गये. विजय के हाथ में इंजेक्षन आ गया और उसने वो गौरव के गले में गाढ दिया. गौरव के हाथ गन तो आ गयी थी मगर वो चला नही पाया. बेहोश हो कर वो वही गिर गया.
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