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Update 59
ट्रेन ठीक 7 बजे पहुँच गयी देहरादून. गौरव और रीमा ने ख़ुशी ख़ुशी एक दूसरे को बाय किया और अपने अपने रास्ते निकल पड़े.
ठीक 10 बजे गौरव थाने में था.
"आ गये आप?" चौहान ने कहा
"जी हां आ गये."
"ए एस पी साहिबा आपका इंतजार कर रही हैं. संभाल कर रहना कयामत है कयामत. मेरी तो जान झूठी आपके आने से. अब साइको का केस आप संभालेंगे."
"कोई बात नही साइको को भी देख लेंगे. मैं ए एस पी साहिबा से मिल कर आता हूँ."
इनस्पेक्टर गौरव पांडे अंकिता के केबिन की तरफ चल दिया.
"अब पता चलेगा इसे की पोलीस की नौकरी क्या होती है...गौरव पांडे हा." चौहान बड़बड़ाया.
गौरव घुस गया आ स प साहिबा के केबिन में. अंकिता फोन पर व्यस्त थी. गौरव चुपचाप अंदर आ कर उनकी टेबल के सामने खड़ा हो गया. अंकिता ने फोन पटका और बोली, "यस हू आर यू."
"आय ऍम गौरव मेडम. गौरव पांडे..."
"ओह हां...आज ही आ गये तुम."
"अब जब आपने मेरा सस्पेंशन कैंसिल करवा दिया तो देर क्यू करता आने में."
"गुड...बैठो, मैने तुम्हारा सर्विस रेकॉर्ड देखा. मैं तुम्हे एक इम्पोर्टेन्ट केस देना चाहती हूँ. हैंडल कर पाओगे."
"बेशक मेडम आप हुकुम कीजिए, मेरा सस्पेंशन अच्छा काम करने के कारण ही हुआ था. पॉलिटीशियन के बेटे को रेप के केस में अंदर डाल दिया था मैने. सज़ा भी दिलवाता उसे. पर मुझे अवॉर्ड तो क्या मिलता उल्टा सस्पेंशन ऑर्डर मिल गया. पुणे चला गया था मैं तो अपने चाचा जी के पास.."
"बस बस ज़्यादा कहानियाँ मत सूनाओ. मैं जानती हूँ सब तभी तुम्हे वापिस लिया गया है महकमे में."
"बहुत कड़क है भाई ये तो." गौरव ने सोचा.
"साइको किलर का केस अब से तुम हैंडल करोगे. और मुझे रिज़ल्ट्स चाहिए. बहुत दबाव है उपर से."
"आइ विल डू मी बेस्ट मेडम. आपको निराश नही करूँगा." गौरव ने कहा.
"जाओ जाकर चौहान से सारा केस रेकॉर्ड ले लो. उस साइको ने ऍम.पि. की बेटी को अगवा कर रखा है और बदले में अपर्णा को माँग रहा है. हमें ऍम.पि. की बेटी को भी सुरक्षित छुड़ाना है और अपर्णा को भी उसे नही सोंपना. अब तुम देखो तुम क्या कर सकते हो. मुझे जल्द से जल्द वो साइको सलाखों के पीछे चाहिए."
"मुझे उम्मीद है की आपको निराश नही करूँगा."
"तुम्हारे पास ऑप्शन भी नही है. अगर कुछ नही कर पाए तो मैं तुम फिर से सस्पेंड हो जाओगे. इज़ देट क्लियर.
"सभी कुछ क्लियर हो गया अब तो."
"गुड, नाओ गो एन्ड डू योर ड्यूटी. और मुझे शक्ल तभी दिखाना जब कुछ कर लो. इज़ देट क्लियर."
"सभी कुछ क्लियर है मेडम." गौरव का गला सुख गया बोलते-बोलते.
"फाइन, यू कैन गो नाओ."
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गौरव बाहर आया तो उसके माथे पे पसीने थे.
"बाप रे बाप...सही कहता था वो कमीना चौहान ये तो सच में कयामत है...उफ्फ हालत खराब कर दी. "
गौरव सीधा चौहान के कमरे की तरफ चल दिया.
"गुड मॉर्निंग सर."
"गुड मॉर्निंग भोलू...कैसे हो?"
"ठीक हूँ सर. अच्छा लगा आपको वापिस देख कर." भोलू ने कहा.
गौरव चौहान के कमरे में घुसा तो वो चाय पी रहा था.
"बैठे रहते हैं आप यहाँ...चाय पीते रहते है. तभी तो मुजरिम खुले आम घूम रहे हैं." गौरव ने कहा.
"ज़्यादा बकवास तो करो मत. तुम अभी नये नये हो पोलीस में. देखता हूँ क्या करोगे. ज़्यादा ही दम है तो पकड़ो इस साइको को जिसने बाहर में आतंक मचा रखा है."
"केस रेकॉर्ड्स तो दे दो सारा उसके बिना क्या घंटा पकडूँगा मैं."
"देता हूँ...पहले चाय तो पी लू...मेरे साथ ज़्यादा पंगा मत लिया कर...बड़ी मुश्किल से बहाल हुआ है नौकरी पे. फिर से सस्पेंड हो सकते हो. तुम्हे पता नही मैं कौन हूँ."
"इसको अगर पता चल गया कि मैने इसकी बहन की ली है तो बीफ़र जाएगा ये." गौरव ने मन में सोचा और हँसने लगा.
"क्या हुआ हंस क्यों रहे हो?" चौहान ने पूछा.
"कुछ नही आप मुझे रेकॉर्ड्स दे दो. वक्त कम है मेरे पास. कुछ नही किया तो फिर से सस्पेंड हो जाउन्गा."
"वो तो तुम्हे होना ही है." चौहान ने उठते हुए कहा.
चौहान ने सारा रेकॉर्ड गौरव को सौंप दिया और गौरव ने बड़ी बारीकी से सब कुछ पड़ा.
"ह्म्म....एक बात है...इस साइको का कोई पॅटर्न नही है जिसे समझ कर हम कुछ एनालिसिस कर सकें. या फिर पॅटर्न है...जो समझ नही आ रहा. ये केके कौन हो सकता है. इतना मुश्किल केस और इतना कम वक्त. गौरव बेटा तेरी सस्पेंशन तो फिर से पक्की है."
गौरव सब कुछ पढ़ कर अपने केबिन से बाहर निकला तो उसने देखा की अंकिता चेहरे पर शिकन सी लिए अपने केबिन से निकल रही हैं.
गौरव की हिम्मत नही हुई अंकिता के पास जाने की. अंकिता उसके आगे से निकली तो बोली, "स्टडी किया तुमने केस?"
"हां मेडम कर लिया."
"चलो एसपी साहिब ने बुलाया है मुझे. तुम भी साथ चलो."
"जैसी आपकी मर्ज़ी मेडम." गौरव ने कहा. "डाँट पड़ेगी शायद ए एस पी साहिबा को. क्योंकि वो कमीना डाँट-ने के लिए ही बुलाता है. बहुत डांटा था एक बार बुला के मुझे साले ने."
"मेडम क्या आप मिली हैं एसपी साहिब से पहले."
"हां मिली हूँ...जब यहाँ जॉइन किया था तभी मिली थी. आज उन्होने पहली बार बुलाया है."
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ." गौरव ने कहा.
"अपना मूह बंद रखो...मुझे ज़्यादा बकवास सुनना अच्छा नही लगता."
गौरव की तो बोलती बंद हो गयी. एसपी साहिब के यहाँ पहुँच कर अंकिता ने कहा, "तुम यही रूको मैं मिल कर आती हूँ. कोई भी ज़रूरत हुई तो तुम्हे बुला लूँगी."
"ठीक है मेडम मैं यही खड़ा हूँ."
अंकिता अंदर घुस गयी. वो काफ़ी तनाव में थी.
"आओ...आओ ए एस पी साहिबा, क्या हुआ साइको के केस का. ऍम.पि. की बेटी का कुछ पता चला. कुछ कर भी रही हो या हाथ पे हाथ धर के बैठी हो."
"सर हम पूरी कोशिश कर रहे हैं."
"क्या कोशिश कर रही हो तुम. 24 घंटे से ज़्यादा हो गये ऍम.पि. की बेटी को अगवा हुए. कुछ नही किया तुमने अब तक. सारी डाँट तो मुझे खानी पड़ रही है."
"सर आय ऍम ट्राइयिंग माय बेस्ट."
"बुलशिट....अगर बेस्ट ट्राइ किया होता तो कोई रिज़ल्ट होता तुम्हारे पास.पोलीस में आने की बजाए मॉडलिंग करनी चाहिए थी तुम्हे. आ गयी यहाँ अपनी गान्ड मरवाने के लिए पोलीस में. जाओ दफ़ा हो जाओ और कुछ करो वरना बर्खास्त कर दूँगा तुम्हे."
अंकिता को इस तरह की फटकार का अंदाज़ा नही था. वो कुछ भी नही बोल पाई.
"मुझे वो साइको जींदा या मुर्दा चाहिए. निशा और अपर्णा दोनो को कुछ नही होना चाहिए...जाओ अब यहाँ से खड़ी खड़ी क्या सोच रही हो."
"थॅंक यू सर." अंकिता कुछ और नही बोल पाई और चुपचाप बाहर आ गयी.
जब वो बाहर आई तो उसकी आँखे नम थी.
गौरव अंकिता को देखते ही समझ गया कि खूब डाँट पड़ी है उन्हे. उसने कुछ नही पूछा अंकिता से. डर भी तो था उसे कही वो उस पर ना भड़क जाए.
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लंच ब्रेक में अपर्णा अपनी एक कलीग के साथ थोड़ा बाहर टहलने आई तो आशुतोष की तो आँखे खिल गयी. पहुच गया टहलता टहलता उसके पास.
"अपर्णा जी ज़्यादा दूर मत जाना. यही आस पास ही रहना." आशुतोष ने कहा.
अपर्णा ने कोई जवाब नही दिया पर उसकी कलीग बोली, "तो ये हैं तुम्हारी सुरक्षा के लिए तुम्हारे साथ."
"हां यही है. वैसे इन्होने मूत दिया था एक बार मेरे सामने...डर के मारे. पता नही कैसी सुरक्षा करेंगे."
अपर्णा के साथ जो थी वो तो लोटपोट हो गयी
आशुतोष का चेहरा उतर गया वो समझ ही नही पाया कि क्या करे फिर भी वो बोला, "थोड़ी प्रॉब्लम है मुझे. वो अचानक डर गया था मैं उस दिन. बचपन में भी हुआ था एक दो बार ऐसा. इलाज़ भी करवाया मैने. सब ठीक हो गया था. पर उस दिन फिर से ऐसा हो गया."
"अपर्णा तुम भी कितनी खराब हो. इनकी मेडिकल प्रॉब्लम है और तुम मज़ाक बना रही हो इनका."
आशुतोष की बाते सुन कर अपर्णा भी सकपका गयी थी. उसे अहसास हुआ कि उसने क्यों अपनी कलीग के सामने ऐसा बोल दिया. उसने अपनी कलीग से कहा, "तुम जाओ मैं अभी आती हूँ."
"क्या बात है. लेट मत हो जाना वरना बॉस से डाँट पड़ेगी."
"हां मैं बस आ ही रही हूँ." अपर्णा ने कहा.
वो चली गयी तो अपर्णा बोली, सॉरी आशुतोष पता नही क्यों मैने ऐसा बोल दिया. ई आम रियली सॉरी. मैने सुना तो था इस बारे में की ऐसा होता है. पर आज यकीन हुआ कि डर के कारण ऐसा हो सकता है."
"कोई बात नही अपर्णा जी. बहुत सालो बाद हुआ था ऐसा. कोई बात नही मेरे कारण किसी के चेहरे पे हँसी आ गयी. बहुत बड़ी बात है ये. आप जाओ..... लेट हो जाओगे."
"आगे से मैं मन में सोच कर भी नही हँसूगी. आय ऍम रियली सॉरी."
"आप हँसिए ना दिक्कत क्या है. मेरे कारण आपके चेहरे पे मुस्कान आ जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी."
"बस-बस अब फ्लर्ट शुरू मत करो. चलती हूँ मैं." अपर्णा कह कर ऑफीस की तरफ मूड गयी.
दोनो को ही ज़रा भी खबर नही थी कि दूर से दो खूंखार आँखे लगातार उन्हे देख रही हैं.
"देखता हूँ कब तक बचोगी तुम. तुम्हारे लिए तो ऐसा आर्टिस्टिक प्लान है मेरा कि तुम्हे फख्र होगा कि तुम मेरे हाथो मारी गयी...हे....हे...हे" साइको हँसने लगा.
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अंकिता और गौरव थाने वापिस आ गये. अंकिता बिना कुछ कहे अपने केबिन की तरफ चली गयी. गौरव ने कुछ भी कहना ठीक नही समझा क्योंकि ए एस पी साहिबा सारा गुस्सा उस पर निकाल सकती थी.
अंकिता ने थोड़ी देर बाद खुद ही गौरव को अपने पास बुला लिया.
"कहिए मेडम क्या हुक्म है?" गौरव ने कहा.
"केस फाइल पढ़के तुम्हे क्या लगता है" अंकिता ने पूछा.
"देखिए मेडम अभी तक तो मुझे बस 2 बाते ही काम की लगी हैं. एक विटनेस है अपर्णा जिसने साइको को देखा है. जितने भी क्रिमिनल्स की फोटोस हमारे पास हैं वो सभी अपर्णा को दिखानी होंगी. शायद ये साइको कोई पुराना मुजरिम हो. दूसरी बात काम की है उस आदमी का नाम जो उस रात सुरिंदर से मिलने आया था. लेकिन वो नाम अधूरा है. केके का कुछ भी मतलब हो सकता है. मैं कल अपर्णा से मिलूँगा. उसे सभी क्रिमिनल्स की फोटोस देखाउन्गा. हो सकता है उनमे से ही हो कोई साइको. इसी बहाने अपर्णा से मुलाकात भी हो जाएगी."
"क्या तुम जानते हो अपर्णा को."
"जी हां. कॉलेज में पढ़ते थे हम साथ."
"इस चौहान ने कोई काम ढंग का नही किया. क्रिमिनल्स की फोटोस तो बहुत पहले दिखानी चाहिए थी अपर्णा को."
"एक बात और है मेडम. ज़्यादा तर मर्डर जंगल के आस पास हुए हैं. ज़रूर कुछ गड़बड़ है जंगल में."
"ओह हां आशुतोष भी यही कह रहा था."
"कौन आशुतोष मेडम?"
"सब इनस्पेक्टर है वो. अभी थोड़े दिन पहले ही जॉइन किया है उसने. मैने उसे 24 घंटे अपर्णा की प्रोटेक्शन की ड्यूटी पर लगा दिया है."
"ये काम किसी नौसिखिए को नही देना चाहिए था मेडम."
"मेरी जड्ज्मेंट पर सवाल मत करना कभी. इज़ देट क्लियर."
"जी मेडम सब कुछ क्लियर है"
"देखो एक बात ध्यान से सुनो. एक बात और है जो तुम्हे फाइल में नही मिलेगी." अंकिता ने जंगल की घटना सुनाई.
"उस साइको ने जो गोली चलाई थी मुझ पर वो पोलीस महकमे की है. मुझे यहाँ किसी पर विश्वास नही है. इसलिए आशुतोष को अपर्णा की सुरक्षा पर लगाया है. और इसी लिए तुम्हारा सस्पेंशन कैंसिल करवा कर तुम्हे ये केस सौंपा है. अब समझे कुछ. बिना सोचे समझे कुछ मत बोला करो." अंकिता ने कहा.
"सॉरी मेडम" गौरव का चेहरा लटक गया.
"इट्स ओके...पर आगे से ध्यान रखना. मेरे सामने सोच समझ कर बोलना."
"ध्यान रखूँगा मेडम."
"ये अपर्णा को फोटोस दिखाने वाला आइडिया अच्छा है. यही काम करो पहले" अंकिता ने कहा.
"बिल्कुल मेडम. पर ये काम कल ही हो पाएगा. सभी क्रिमिनल्स की फोटोस उपलब्ध नही है आज."
"तब तक फील्ड एंक्वाइरी करो. किसी को कुछ तो पता होगा साइको के बारे में."
"वही करने जा रहा हूँ मेडम. आप इज़ाज़त दे तो मैं चलु."
"येस ऑफ कोर्स...गुड लक."
गौरव कमरे से बाहर आ गया. "भोलू जीप लग्वाओ मेरी हमें फील्ड में निकलना है."
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Update 60
गौरव जीप में बैठ कर चल पड़ा. "कल्लू जुर्म की दुनिया की सारी जानकारी रखता है. उसी से मिलता हूँ जाकर."
कुछ ही देर बाद गौरव कल्लू के घर के बाहर खड़ा था. उसने घर का दरवाजा खड़काया.
"कौन है? बाद में आना अभी टाइम नही है." अंदर से आवाज़ आई.
गौरव भड़क गया उसने दरवाजे पर ज़ोर से लात मारी और दरवाजा खुल गया. गौरव अंदर आया तो दंग रह गया.
कल्लू एक महिला के उपर चढ़ा हुआ था. वो चूत में ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहा था.
"अबे रुक...मुझे ज़रूरी बात करनी है तुझसे."
"अभी नही रुक सकता. अभी तो शुरूर आया है चुदाई का. ठोक लेने दो सर"
"कितना वक्त लगाएगा तू..मेरे पास टाइम नही है." गौरव ने कहा.
"मेरी छम्मक छल्लो तू बता कितनी देर चुदवायेगी तू."
"जब तक तुम्हारा मन करे आआहह."
"देखा सर थोड़ी देर रुकना पड़ेगा आपको. रोज रोज इस तरह नही देती ये चूत. आज दे रही है तो मुझे टोटल मस्ती कर लेने दो."
गौरव ने पिस्टल निकाली और कल्लू के सर पर रख दी. "तेरी मस्ती पूरी होने तक का वक्त नही है मेरे पास. रुक जा वरना गोली मार दूँगा."
कल्लू ने उस महिला की चूत से लंड निकाल लिया. वो महिला अपने कपड़े पहन कर वहाँ से चली गयी. "सर आप भी ना हमेशा घोड़े पर सवार हो कर आते हो. लीजिए रुक गया. क्या बात है बोलिए."
"साइको किलर जिसने बाहर में आतंक मचा रखा है...क्या कुछ जानते हो उसके बारे में." गौरव ने पूछा.
"मुझे कुछ नही पता सर उसके बारे में. बल्कि किसी को कुछ नही पता. मैं तो खुद डरा रहता हूँ उस से.मैं कभी रात को बाहर नही घूमता अब. 9 बजने से पहले ही घर आ जाता हूँ. सॉरी मैं इस बारे में आपकी कोई मदद नही कर सकता. मुजरिमो की दुनिया में उसका कोई निशान नही है""
"ह्म्म....चल ठीक है कोई बात नही." गौरव ने कहा और 500 का नोट थमा दिया कल्लू को. "ये दरवाजा ठीक करवा लेना."
गौरव जीप में बैठ कर चल दिया.
"लगता है ये साइको एक ऐसा व्यक्ति है जिसकी कि समाज में इज़्ज़त है. वो अपर्णा को इसलिए माँग रहा है क्योंकि उसे डर है कि कही वो बेनकाब ना हो जाए. शायद वो सारे आम हमारे सामने घूमता हो रोज पर हम उसे पहचान नही पाते क्योंकि हमे ज़रा भी अंदाज़ा नही रहता कि वो कातिल हो सकता है. मिस्टर साइको तुम्हे छोड़ूँगा नही मैं. देखता हूँ कब तक बचोगे.""
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शाम हो चुकी है और अपर्णा ऑफीस से निकल रही है. आशुतोष एज़ यूसवल ख़ुशी से झूम उठता है. फ़ौरन आ जाता है वो अपर्णा के पास.
"हो गयी छुट्टी आपकी." आशुतोष ने पूछा.
"आशुतोष तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान रखो. मुझसे फालतू की बाते मत किया करो"
"आप मुझसे खफा-खफा क्यूँ रहती है. प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही" आख़िर जज़्बात में बह कर आशुतोष के मूह से निकल ही गयी दिल की बात. वो खुद पछताया बोल कर क्योंकि अपर्णा की आँखे ये सुनते ही गुस्से से लाल हो गयी. थप्पड़ जड़ दिया उसने आशुतोष के गाल पर.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की...दफ़ा हो जाओ यहाँ से. नही चाहिए मुझे कोई प्रोटेक्शन."
"सॉरी अपर्णा जी ग़लती हो गयी. मूह से निकल गया यू ही. कहना नही चाहता था आपसे कुछ भी. पर पता नही क्यों ये सब बोल दिया मैने." आशुतोष गिड़गिडया.
"तुम्हारा मूत अपने आप निकल जाता है. मूह से भी कुछ भी निकल जाता है. तुम आख़िर हो क्या."
बेचारा आशुतोष करे भी तो क्या करे. कुछ भी नही बोल पाया अपर्णा को. बस सर झुकाए खड़ा रहा. अपर्णा को ज़रा भी अहसास नही हुआ कि वो सच में उसे प्यार करता है. वो तो अपने सपने के कारण आशुतोष से चिड़ी हुई थी और कुछ भी करके उस बद्सूरत सपने को टालना चाहती थी. इसी बोखलाहट में थप्पड़ जड़ दिया था उसने आशुतोष के मूह पर.
"चुप क्यों खड़े हो बोलते क्यों नही कुछ" अपर्णा ने कहा.
"क्या कहु आपसे. गुनहगार हू आपका. चलिए आप लेट हो रही हैं...सॉरी मैं आगे से ऐसा नही बोलूँगा."
"तुम्हारे बस में कुछ है भी. तुम्हारा तो सब कुछ अपने आप निकल जाता है." अपर्णा ने कहा और अपनी कार में बैठ गयी.
आशुतोष भी अपनी जीप में बैठ कर उसके पीछे चल दिया. घर पहुँच कर अपर्णा सीधा घर में घुस गयी. वो आशुतोष से कोई बात नही करना चाहती थी.
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घने जंगल का दृश्य है. चारो तरफ खौफनाक सन्नाटा है. अपर्णा और आशुतोष घबराए खड़े हैं.घबराए भी क्यों ना उनके सामने साइको खड़ा है उनकी तरफ बंदूक ताने.
"तुम दोनो डिसाइड करलो पहले कौन मरना चाहता है." साइको ने कहा.
"हमने डिसाइड कर लिया. पहले तुम मरोगे." आशुतोष ने पाँव से मिट्टी उछाल दी साइको की तरफ और उस पर टूट पड़ा. साइको के हाथ से पिस्टल छूट कर दूर गिर गयी. उसका चाकू भी ज़मीन पर गिर गया. मगर साइको पिस्टल के बिना भी बलशाली था. वो आशुतोष पर भारी पड़ रहा था. किसी तरह आशुतोष के हाथ चाकू आ गया और उसने चाकू साइको के पेट में गाढ दिया. साइको ढेर हो गया ज़मीन पर. आशुतोष को लगा साइको का काम ख़तम. वो अपर्णा की तरफ बढ़ा. लेकिन तभी साइको बोला, "पहले अपर्णा ही मरेगी...बचा सको तो बचा लो."
आशुतोष ने तुरंत पीछे मूड कर देखा. साइको के हाथ में पिस्टल थी और उसने अपर्णा को निशाना बना रखा था. वक्त रहते आशुतोष अपर्णा और गोली के बीच आ गया और आशुतोष ज़मीन पर ढेर हो गया. गोली बिल्कुल दिल के पास लगी थी.
अपर्णा भाग कर आई आशुतोष के पास और फूट फूट कर रोने लगी. "ऐसा क्यों किया तुमने. मुझे मर जाने देते."
"प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही" आशुतोष ने कहा और उसने दम तोड़ दिया.
"आशुतोष!" और अपर्णा चिल्ला कर फ़ौरन उठ गयी गहरी नींद से. सपना था ही कुछ ऐसा. उसने अपने दिल पर हाथ रखा और बोली, "प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही...आशुतोष ने यही कहा था शाम को. उफ्फ क्या हो रहा है मेरे साथ. इतने अजीब सपने क्यों आते हैं मुझे. ओह..आशुतोष मुझे क्यों परेशान कर रहे हो."
अपर्णा सपने के बाद बहुत बेचैन हो गयी थी. उसने घड़ी की तरफ देखा तो पाया कि रात के 2 बज रहे हैं. वो उठी और पानी पिया.
पानी पीने के बाद अपर्णा खिड़की में आई और परदा हटा कर बाहर देखा. उसे अपने घर के बाहर सिर्फ़ आशुतोष दिखाई दिया. वो जीप का सहारा लेकर खड़ा था. आशुतोष ने अपर्णा को खिड़की से झाँकते हुए देख लिया. वो तुरंत जीप का सहारा छोड़ कर सीधा खड़ा हो गया...जैसे कि कुछ कहना चाहता हो.
अपर्णा ने फ़ौरन परदा छोड़ दिया और वापिस आ कर बिस्तर पर गिर गयी. बहुत कोशिश की उसने दिमाग़ को डाइवर्ट करने की मगर बार बार उसके दिमाग़ में आशुतोष के यही बोल गूँज रहे थे, "प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही."
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निशा अचानक उठती है और खुद को कमरे में अकेला पाती है. वो पाती है कि उसके शरीर पर अब एक भी कपड़ा नही है. उसे याद आता है कि साइको ने उसे कुछ खाने को दिया था. खाते ही वो गहरी नींद सो गयी थी. उसका सर घूम रहा था.वो दीवार घड़ी की और देखती है. घड़ी 2 बजा रही थी.
"ये दिन के 2 बजे हैं या रात के 2" निशा सोचती है. मगर उसके पास जान-ने का कोई चारा नही है. उस कमरे में कोई खिड़की नही है. एक दरवाजा है जो कि बंद है. वो चारो तरफ ध्यान से देखती है. उसे एक टॉयलेट दिखाई देता है. वो उठती है और काँपते हुए टॉयलेट
की तरफ बढ़ती है. टॉयलेट में कोई दरवाजा नही है. वो अंदर झाँक कर देखती है तो पाती है कि टॉयलेट में भी कोई खिड़की नही है.
"ये कैसा कमरा है. कोई खिड़की नही है इसमे. और वो साइको कहाँ है?"
निशा टॉयलेट से दरवाजे की तरफ बढ़ती है. वो दरवाजे पर कान लगा कर देखती है. उसे बस सन्नाटा सुनाई देता है.
"कोई भी आवाज़ नही आ रही कही से...आख़िर मैं कहा हूँ. क्या ये कमरा देहरादून में ही है या कही और. डेडी प्लीज़ कुछ कीजिए मैं मरना नही चाहती." निशा फूट फूट कर रोने लगती है.
तभी निशा को दरवाजे पर कुछ हलचल सुनाई देती है और वो फ़ौरन भाग कर बिस्तर पर आकर लेट जाती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है.
दरवाजा खुलता है और धदाम की आवाज़ होती है. निशा उत्सुकता में आँखे खोल कर देखती है. "रामू काका!"
रामू निशा के घर का नौकर था. कोई 45-46 साल की उमर का था. निशा ने रामू को देखते ही अपने उभारो पर हाथ रख लिए. मगर उसकी योनि को छुपाने के लिए कुछ नही बचा था.
"मेमसाहब! आअहह" रामू कराहते हुए बोला. उसके सर से खून निकल रहा था.
साइको ने रामू को कमरे में पटका था. जिस से धदाम की आवाज़ हुई थी
"अब तुम क्या करना चाहते हो?" निशा रोते हुए बोली.
"जब तक अपर्णा को मुझे नही सौंपा जाता क्यों ना एक-आध गेम हो जाए." साइको ने कहा
"अब कौन सी गेम खेलना चाहते हो...प्लीज़ मुझे जाने दो" निशा रोने लगी
"वाओ क्या ख़ौफ़ है तुम्हारी आँखो में. सच में मज़ा आ गया. अब और मज़ा आएगा."
"मुझे यहाँ क्यों लाए हो भाई." रामू ने पूछा.
"डरो मत तुम. बल्कि गर्व करो कि तुम मेरी आर्ट का हिस्सा बन-ने जा रहे हो."
रामू को कुछ समझ नही आया.
"खेल बहुत सिंपल है. ये चाकू देखो" साइको ने हाथ में पकड़े चाकू को हिलाया.
रामू बड़ी हैरानी से सब सुन रहा था. उसके रोंगटे खड़े हो रखे थे.
"तुम्हारे पास तीन ऑप्शन्स है. पहली ऑप्शन ये है कि ये चाकू लो और अपना पेट चीर लो. तुम्हारी मेमसाहब को जाने दूँगा मैं अगर ऐसा करोगे तो."
रामू ने निशा की ओर देखा. उसकी रूह काँप उठी थी ये सब सुन कर.
"दूसरी ऑप्शन है कि तुम ये चाकू लो और निशा का पेट चीर डालो. उसका पेट चीरने के बाद तुम यहाँ से जा सकते हो. तुम्हे कुछ नही करूँगा."
रामू की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.
"तीसरा ऑप्शन भी है. तुम अपनी मेमसाहब की चूत में लंड डाल दो. मगर लंड उसकी मर्ज़ी से डालना. रेप की इज़ाज़त नही है तुम्हे. आधा घंटा है तुम्हारे पास इन तीनो में से एक काम करने का. कुछ भी नही किया तो तुम्हे काट डालूँगा. लो पकड़ो ये चाकू." साइको ने चाकू रामू को दे दिया और खुद कुर्सी पर हाथ में पिस्टल ले कर बैठ गया.
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रामू असमांजस में था कि क्या करे. खुद का पेट वो चीर नही सकता था. तीसरा काम भी वो नही कर सकता था. बस एक ही ऑप्शन बचा था कि वो काट डाले निशा को.
"दूसरी ऑप्शन ही ठीक है रामू. चीर दे पेट मेमसाहब का. उनके मरने से तुम जिंदा रह सकते हो तो क्या दिक्कत है." वो काँपते हुए हाथ में चाकू लिए निशा की तरफ बढ़ता है.
"माफ़ करना मेमसाहब और कोई चारा नही है. आप आँखे बंद कर लो"
"नमक हराम, अपना पेट क्यों नही चीर लेते. दिखा दी अपनी औकात तुमने." निशा चिल्लाई.
"मुझे भी जीने का हक़ है. आपके मरने से मैं जींदा रह सकता हूँ तो क्या दिक्कत है." रामू चाकू हवा में लहराता है. निशा काँप उठती है.
"रूको...तीसरी ऑप्शन भी तो है." निशा रोते हुए कहती है.
रामू का हाथ हवा में ही रुक जाता है. "तो क्या आप डलवा लेंगी?"
"हां आ जाओ" निशा फूट फूट कर रोने लगती है.
साइको तालिया पीटने लगता है. "वाह भाई वाह, क्या बात है. ये तो पूरी बेशर्मी पर उतर आई है. कितनी प्यास है इसकी चूत में लंड के लिए. अपने नौकर का लेने के लिए भी तैयार हो गयी है. ऐसी बदचलन रंडी मैने आज तक नही देखी. निशा जी हैट्स ऑफ टू यू. कीप इट अप. जल्दी करो 5 मिनिट बर्बाद कर चुके हो तुम रामू. आधा घंटा है सिर्फ़ तुम्हारे पास."
रामू की तो आँखे ही चमक उठी थी ये सुनके. उसके लिंग में तुरंत हरकत होने लगी थी. उसने चाकू एक तरफ रखा और चढ़ गया बिस्तर पर.
"कहीं और मत छूना मुझे." निशा ने कहा
"ये करने को मिल रहा है, यही बहुत बड़ी बात है" रामू ने कहा और अपनी पेण्ट उतार दी. फुर्ती से उसने अंडरवेर भी उतार दिया. बहुत बेचैन हो रहा था.
निशा ने अपनी आँखे बंद कर ली. टाइम बीत-ता जा रहा था. रामू ने तुरत अपने लिंग पर थूक लगाया और टिका दिया निशा की योनि पर.
एक ही धक्के में रामू ने पूरा लिंग निशा की योनि में उतार दिया. "आआआहह....नऊओ" निशा कराह उठी.
निशा सोच रही थी कि अब साइको रामू का गला काट देगा और ये गंदा काम जल्दी ख़तम हो जाएगा. इसीलिए तो वो इसके लिए तैयार भी हुई थी.
पर वो चोंक गयी. रामू ने मज़े से धक्के लगाने शुरू कर दिए और ऐसा कुछ नही हुआ जैसा वो सोच रही थी. उसने साइको की तरफ देखा. वो कुर्सी पर बैठा था. उसके चेहरे पर नकाब था. इसलिए वो उसके चेहरे के भाव नही देख पाई. पर वो समझ गयी कि वो पूरे दृश्य का आनंद ले रहा था.
पहली बार निशा की योनि में लिंग अंदर बाहर घूम रहा था. मगर वो कुछ भी फील नही कर पा रही थी. उसकी आँखे टपक रही थी. रामू तो लगा हुआ था अपने काम में. उसे तो जैसे जन्नत मिल गयी थी.तूफान मचा दिया था उसने बिस्तर पर. भरपूर मज़ा ले रहा था वो निशा का. रुका नही एक भी बार. निशा की आँखो के आँसू भी नही दीखे उसे. लगा रहा बस. अपने चरम पर पहुँच कर गिर गया वो निशा के उपर और बोला, "माफ़ करना मुझे मेमसाहब. कोई और चारा नही था."
मगर तभी छींख गूँज उठी रामू की कमरे में. साइको ने उसकी गर्दन के पीछे सर के बिल्कुल नीचे चाकू घुसा दिया. बड़ी बेरहमी से उसने वो चाकू नीचे की ओर खींचा और रामू की पीठ चीर डाली. चारो तरफ खून ही खून फैल गया. बिस्तर लाल हो गया. साइको ने रामू को टाँग पकड़ कर निशा के उपर से खींचा और ज़मीन पर पटक दिया.
"क्या सीन बना है. क्यों री रंडी. मिल गया तेरी चूत को पानी. अब तो खुश है तू. मैं चाहता था कि वो तुझे काट डाले. मगर नही. तुझे तो लंड चाहिए था उसका. बुझ गयी प्यास तेरी अब. अपनी चूत में लंड ले ले कर लोगो को मरवा रही है. तेरे जैसी रंडी नही देखि दुनिया में. बस बहुत हो गया तेरा ये गंदा खेल. नही चलने दूँगा मैं ये सब. साइको ने निशा के बाल पकड़े और उसे घसीट कर रामू की लाश पर पटक दिया. इसके साथ तू भी मरेगी अब. मुझे रंडी बिल्कुल पसंद नही." साइको की बातो में बहुत कठोरता थी
और फिर कमरे में दरिंदगी का वो खेल हुआ जिसे देख कर किसी की भी रूह काँप जाए. बड़ी बेरहमी से काट डाला था साइको ने निशा को. दम तोड़ दिया था उसने बहुत जल्दी. मगर साइको का चाकू नही थमा. वार पर वार करता रहा वो.
"मेरी गेम खराब करती है साली. मैं क्या यहाँ पॉर्न देखने बैठा था जो कि लंड ले लिया तूने मज़े से. साली रंडी..........." पता नही और क्या क्या बकवास करता रहा वो.
कमरे में बहुत ही दर्दनाक और खौफनाक दृश्य हुआ था. जिसका पूरा वर्णन बहुत ही मुश्किल है.
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गौरव भोलू के साथ बाहर का चक्कर लगा रहा है.
"सर ये साइको बिना मतलब क्यों मारता फिरता है लोगो को." भोलू ने कहा.
"क्योंकि वो साइको है. पागल हो गया है साला...एक बार मिल जाए मुझे. सारा साइको पाना निकाल दूँगा साले का."
अचानक उनकी जीप के आगे से एक बायक निकलती है.
"ये कौन घूम रहा है बायक पर इतनी रात को." गौरव जीप की स्पीड बढ़ा कर बायक के आगे आ जाता है और बायक सवार को रुकने पर मजबूर कर देता है.
"ये तो सौरभ है?" भोलू कहता है.
"कौन सौरभ?"
"मेरे घर के पास ही रहता है सर."
"तुम इतनी रात को कहा घूम रहे हो. किसी का खून करके तो नही आ रहे" गौरव ने पूछा.
"मैं अपनी ड्यूटी से आ रहा हूँ. घर जा रहा हूँ." सौरभ ने कहा.
"क्या काम करते हो?" गौरव ने पूछा.
"प्राइवेट डीटेक्टिव हूँ."
"देट्स इंट्रेस्टिंग. साइको का डर नही तुम्हे."
"2 बार सामना हो चुका है उस से. अब दर नही लगता उस से. मुझे मिला दुबारा तो बचेगा नही इस बार वो." सौरभ ने कहा.
"पढ़ी है मैने केस फाइल. तुमने उसे घायल किया था."
"हां पेट चीर दिया था मैने उसका." सौरभ ने कहा.
"फिर तो उसके पेट पे निशान होना चाहिए. मेरा ध्यान नही गया था इस बात पर. ये बहुत इम्पोर्टेन्ट क्लू है."
"क्या मैं जा सकता हूँ अब." सौरभ ने कहा.
"हां बिल्कुल. क्या तुमने रास्ते में कुछ अजीब देखा. जैसे कि कोई व्यक्ति घूमता हुआ."
"मैने एक ब्लॅक स्कॉर्पियो देखी खड़ी हुई मंदिर के बाहर. मंदिर से एक आदमी निकला और स्कॉर्पियो में बैठ कर चला गया. मैं शक्ल नही देख पाया उसकी. मुझे ये अजीब सा लगा कुछ." सौरभ ने कहा.
"कौन से मंदिर की बात कर रहे हो तुम." गौरव ने पूछा.
"बहुत पुराना सा मंदिर है भोले नाथ का. मैं वहाँ कभी गया नही." सौरभ ने कहा
"बस स्टॅंड के सामने जो है उसकी बात तो नही कर रहे कही." गौरव ने कहा.
"हां हां वही मंदिर."
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"वो मंदिर नही खँडहर है मेरे भाई...मतलब ज़रूर कुछ गड़बड़ है. भोलू चलो जल्दी" गौरव ने कहा.
"क्या मैं भी चल सकता हूँ आपके साथ?" सौरभ ने कहा.
"आ जाओ...कोई दिक्कत की बात नही है." गौरव ने कहा.
सौरभ ने बायक वही सड़क के किनारे खड़ी कर दी और जीप में बैठ गया.
गौरव ने पूरी स्पीड से जीप सड़क पर दौड़ा दी.
गौरव कुछ ही देर में सौरभ और भोलू के साथ उस पुराने मंदिर में पहुँच गया. उसने जीप पार्क की मंदिर के सामने और अपनी पिस्टल निकाल ली. पिस्टल हाथ में ताने वो खँडहर में घुस गया.
खँडहर में काई अलग अलग टूटे हुए कमरे थे जिनकी दीवारे तो थी मगर छत नही थी. गौरव ने एक एक करके सभी तरफ देखा.
“भोलू टॉर्च देना मुझे.” गौरव को शायद कुछ दिखा एक टूटे कमरे में.
भोलू ने टॉर्च गौरव को पकड़ा दी. गौरव ने जब टॉर्च जला कर कमरे की तरफ की तो सभी के होश उड़ गये.
“हे भगवान .” तीनो के मूह से यही निकलता है.
गौरव तुरंत ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता है. रात के सादे तीन हो रहे थे. अंकिता गहरी नींद में सोई थी.
“उफ्फ किसका फोन है इस वक्त.” अंकिता ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया.
“सॉरी मेडम आपको इस वक्त डिस्टर्ब कर रहा हूँ.”
“क्या बात है, गौरव?” अंकिता ने पूछा.
“आप तुरंत यहाँ आ जाइए. बहुत भयानक मंज़र क्रियेट किया है साइको ने.” गौरव उसे वो सब बताता है जो कि उसने देखा.
अंकिता तुरंत तैयार हो कर खँडहर की तरफ निकल देती है. उसके साथ चार कॉन्स्टेबल्स भी होते हैं. कुछ ही देर में अंकिता वहाँ पहुँच जाती है.
जब अंकिता अपनी आँखो से सब देखती है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. साइको ने निशा का सर काट कर रामू के सर पर लगा रखा था और रामू का सर काट कर निशा के सर पर लगा रखा था. दोनो लाशो को उसने दीवार के साहारे खड़ा कर रखा था. दीवार पर लिखा था “दो पापी, निशा और रामू आपके सामने हैं. दे आर प्राउड विक्टिम ऑफ माय आर्टिस्टिक मर्डर.”
“जीसस…दिस साइको ईज़ शिज़ोफ्रेनिक” अंकिता कहती है.
“मेडम, जब मैं इसे पकडूँगा तो थाने नही लाऊंगा. इसका एनकाउंटर करूँगा मैं.” गौरव ने कहा.
“क्या बकवास कर रहे हो. मेरे सामने ऐसी बात मत करना कभी. हमें जो भी करना है क़ानून के दायरे में करना है.” अंकिता भड़क गयी गौरव की बात सुन कर.
“कौन सा क़ानून मेडम, इसी क़ानून का सहारा ले कर छ्छूट जाते हैं ऐसे लोग. वो पॉलिटीशियन का लड़का जिसे मैने रेप के केस में अंदर किया था आज आज़ाद घूम रहा है. जिसका रेप हुआ था उसने स्यूयिसाइड कर ली है. क्या इंसाफ़ दिया हमने उस बेचारी को. उसे मैं जैल में डालने की बजाए गोली मार देता तो कुछ तो इंसाफ़ मिलता उस बेचारी को.”
“शट अप आइ से, सब तुम्हारी तरह सोचेंगे तो लॉ एन्ड ऑर्डर की धज़ियाँ उड़ जाएँगी. मेरे सामने ऐसी बाते कभी मत करना.”
“नही करूँगा पर आप खुद सोच कर देखो. क्या ऐसा घिनोना काम कोई इंसान कर सकता है. वो इंसान नही है मेडम. उस पर क़ानून लागू नही होता. जानवर है वो, हैवान है. ऐसे जानवरो को गोली मारनी चाहिए सीधा सर में. मोका नही देना चाहिए कोई भी.”
“तुम जज्बाती हो रहे हो…बाद में बात करेंगे.” अंकिता ने बात को ख़तम करना सही समझा.
“पोस्ट मॉर्टेम के लिए भेज दो दोनो बॉडीस को” अंकिता ने कहा.
“क्या तुमने उस ब्लॅक स्कॉर्पियो का नंबर नोट किया सौरभ.” गौरव ने सौरभ से पूछा.
“नही, मैने इस बात पर गौर ही नही किया कि ऐसा हो सकता है.” सौरभ ने कहा.
“बाहर में जिस-जिस के नाम भी ब्लॅक स्कॉर्पियो है उनका पता करो. ये बहुत इम्पोर्टेन्ट क्लू है हमारे लिए” अंकिता ने कहा.
“जी मेडम. मैं भी यही सोच रहा था.” गौरव ने कहा.
“टॉर्च दो मुझे.” अंकिता ने कहा.
गौरव ने टॉर्च अंकिता को पकड़ा दी.
अंकिता ने बहुत बारीकी से बॉडीस को एग्ज़ॅमिन किया. “खून उसने कही और किया और बॉडीस यहाँ ला कर सज़ा दी. वो तो अपर्णा को माँग रहा था निशा के बदले में. अभी उसकी दी हुई मोहलत भी पूरी नही हुई थी. आख़िर ये साइको चाहता क्या है.” अंकिता ने कहा.
“पागल है वो मेडम. और पागलो को समझा नही जा सकता.” गौरव ने कहा.
“चलो फिलहाल इन बॉडीस को पोस्ट मॉर्टेम के लिए भेज दो. और हां ध्यान रखना ये न्यूज़ मीडीया में लीक ना हो जाए. सनसनी फैल जाएगी बाहर में. लोग वैसे ही बहुत डरे हुए हैं.”
“मैं ध्यान रखूँगा मेडम?” गौरव ने कहा.
“एक काम करो सभी पोलीस कॉंटरों रूम को अलर्ट कर दो इस ब्लॅक स्कॉर्पियो के बारे में.” अंकिता ने कहा.
“ऑलरेडी कर दिया है. अब खुद भी एक राउंड पर निकल रहा हूँ.”
“गुड. कीप इट अप” अंकिता ने कहा.
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पोलीस डिपार्टमेंट ने तो न्यूज़ दबा कर रखी मगर सुबह सवेरे हर चॅनेल पर एक वीडियो दिखाई जा रही थी. ये वीडियो साइको ने बनाई थी. उसने कमेरे का फोकस बोडेयस पर कर रखा था और बोल रहा था, “अपर्णा देखो कितना खुब्शुरत कटाल किया है मैने. मैं एक आर्टिस्ट हूँ. तुम मुझसे डरो मत और मुझे एक मोका दो. सच कहता हूँ तुम्हे फख्र होगा की तुम मेरे हाथो मारी गयी. एक खूबशुरआत मौत दूँगा तुम्हे मैं. मेरे हाथो मरने के बाद सीधा स्वर्ग जाओगी. तुम बेवजह डर कर भाग गयी उस दिन. तुम बहुत सुंदर हो अपर्णा. तुम्हारे जैसा इस बाहर में कोई नही. तुम्हारे जैसी खुब्शुरत लड़की को खुब्शुरत मौत ही मिलनी चाहिए. और ये काम मैं बखूबी कर सकता हूँ. इन दोनो का खून मैने तुम्हारे कारण किया है. जब तक तुम मेरे पास नही आओगी. ऐसे नज़ारे बाहर वासियों को मिलते रहेंगे. सभी की भलाई इसी में है की तुम मेरे पास आ जाओ और एक खुब्शुरत मौत को स्वीकार करो. ये मत सचना अपर्णा कि अगर तुम नही आओगी मेरे पास तो बच जाओगी. मरना तो तुम्हे है ही. यू कैन रन बट यू कैन नेवेर हाइड. तुम्हे तो मैं एक खुब्शुरत मौत दे कर रहूँगा चाहे कुछ हो जाए. आज तक तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की को नही मारा. ये इच्छा भी पूरी हो कर रहेगी…हे…हे…हे.”
टीवी पर बार बार ये वीडियो दिखाई जा रही थी.
“ये न्यूज़ वाले भी ना. अपना फायदा देखते हैं बस. मुजरिमो का काम आसान कर देते हैं ये मीडीया वाले. बार बार दिखा रहे हैं ये विसडेव. सनसनी फैलाने में पूरा साथ दे रहे हैं साइको का.” गौरव ने कहा.
“निकल गयी हवा सारी बेटा. अब तुम्हे लग रहा होगा की तुम सस्पेंड ही अच्छे थे, है ना मिस्टर गौरव पांडे.” चौहान ने गौरव का मज़ाक उड़ाया.
“जितने दिन ये केस आपके पास रहा, उतने दिन मेरे पास होता तो ये नौबत ही नही आती. वैसे आप थे कहा रात. ए एस पी साहिबा तो पहुँच गयी वहाँ पर आप नही आए. थे कहाँ आप.”
“मैं कही भी रहूं, तुमसे मतलब. अपना काम करो हा.” चौहान मूह सिकोड कर चला जाता है.
“मुझे तो इस चौहान पर भी शक है. कोई एंक्वाइरी ठीक से नही की इसने. ए एस पी साहिबा कह भी रही थी कि पोलीस महकमे की गोली चली थी उन पर. इस चौहान पर नज़र रखनी पड़ेगी मुझे.” गौरव ने खुद से कहा.
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जब टीवी पर अपर्णा ने न्यूज़ देखी तो उसके पाँव के नीचे से तो ज़मीन ही निकल गयी. रोंगटे खड़े हो गये उसके न्यूज़ सुन कर. साइको के एक एक बोल ने उसकी रूह को काँपने पर मजबूर कर दिया.
“बेटा कही मत जा तू थोड़े दिन. बस यही घर पर ही रहो.” अपर्णा की मम्मी ने कहा.
“हां बेटा तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही है. जब तक ये वाहसी दरिन्दा पकड़ा नही जाता तुम घर पर ही रहो. रोज ऑफीस आने जाने में तुम्हारी जान को ख़तरा रहेगा.” अपर्णा के दादी ने कहा.
आशुतोष सुबह जब दिन निकलने लगा था तो हवलदारो को चोकस करके जीप में ही शो गया था. 24 घंटे की ड्यूटी थी. थोड़ी नींद भी ज़रूरी थी.पर सादे 9 बजे वो बिल्कुल तैयार था अपर्णा के साथ ऑफीस जाने के लिए. वो इंतजार करता रहा. 10 बज गये तो उसने घर की बेल बजाई. अपर्णा के दादी ने दरवाजा खोला.
“क्या अपर्णा जी आज ऑफीस नही जाएँगी” आशुतोष ने कहा.
“नही बेटा अब वो ऑफीस नही जाएगी. मैं अपनी बेटी को खोना नही चाहता.” अपर्णा के पिता की आँखे नम हो गयी.
“क्या बात है आप परेशान क्यों लग रहे हैं.” आशुतोष ने पूछा.
“तुम्हे नही पता कुछ भी? ओह हां तुम तो बाहर बैठे रहते हो. आओ टीवी पर न्यूज़ देखो, सब समझ जाओगे.”
आशुतोष अंदर आ गया. सोफे पर टीवी के सामने अपर्णा अपनी मम्मी के कंधे पर सर रख कर बैठी थी. आशुतोष ने जब टीवी पर न्यूज़ देखी तो उसके होश उड़ गये. खँडहर का पूरा दृश्य दिखाया जा रहा था. लेकिन जब साइको ने अपर्णा के बारे में बोलना शुरू किया तो आशुतोष आग बाबूला हो गया.
“ये कमीना ऐसा सोच भी कैसे सकता है. मैं उसका खून पी जाउन्गा.” आशुतोष चिल्लाया.
अपर्णा, अपर्णा के दादी और मम्मी तीनो हैरान रह गये आशुतोष के रिक्षन पर.
“मेरे होते हुए आपको कुछ नही होगा अपर्णा जी. आप तक पहुँचने से पहले उसे मुझसे टकराना होगा. जब तक मैं जींदा हूँ वो अपने इरादो में कामयाब नही हो सकता.” आशुतोष ने अपर्णा की ओर देखते हुए कहा.
अनायास ही अपर्णा को रात का सपना याद आ गया जिसमे उसने आशुतोष को मरते देखा था अपने लिए. कुछ कहना चाहती थी आशुतोष को पर कुछ बोल नही पाई. शायद अपने मम्मी, पापा की उपस्थिति के कारण चुप रही. मगर उसने एक बार बहुत प्यार से देखा आशुतोष की तरफ और गहरी साँस ले कर अपनी आँखे बंद कर ली.
आशुतोष ने अपर्णा की आँखे पढ़ने की कोशिश तो की मगर वो कुछ समझ नही पाया. “क्या था इन म्रिग्नय्नि सी आँखो में जो मैं समझ नही पाया. आँखो की भाषा क्यों नही सीखी मैने.” आशुतोष सोच में पड़ गया.
“मुझे नींद आ रही है. मैं सोने जा रही हूँ. रात भर ठीक से शो नही पाई” अपर्णा ने कहा और उठ कर वहाँ से चल दी.
“आपकी इज़ाज़त हो तो, क्या मैं अपर्णा जी से अकेले में कुछ बात कर सकता हूँ.” आशुतोष ने अपर्णा के डेडी से पूछा.
“यही रोक लेते उसे, अब तो वो चली गयी.” अपर्णा के दादी ने कहा.
“बहुत इम्पोर्टेन्ट बात है प्लीज़.” आशुतोष ने फिर रिक्वेस्ट की.
“ओके चले जाओ, अभी तो वो अपने कमरे में पहुँची भी नही होगी.”
अपर्णा का कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था. और वो सीढ़िया चढ़ रही थी. आशुतोष दौड़-ता हुआ आया और बोला, “आप बिल्कुल चिंता ना करो, मैं हूँ ना.”
“थॅंकआइयू, मैं खुद को संभाल सकती हूँ. तुम अपना ख्याल रखना आशुतोष.” अपर्णा सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने कमरे में आ गयी और अपना दरवाजा बंद कर लिया.
आशुतोष भी आ तो गया सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर. पर दरवाजा खड़काने की हिम्मत नही जुटा पाया. आ गया वापिस अपना सा मूह लेकर. “अपना ख्याल रखने को क्यों कहा अपर्णा जी ने मुझे. क्या उन्हे मेरी चिंता है. नही…नही शायद उन्होने ऐसे ही कह दिया होगा. वो मेरी फिकर क्यों करेंगी. मैं भी बिल्कुल पागल हूँ. छोड़ दे प्यार के सपने और अपनी पुरानी जिंदगी में वापिस लौट जा. प्यार व्यार अपनी किस्मत में नही है.”
आशुतोष घर से बाहर आ गया. उसने सभी कॉन्स्टेबल्स को हिदायत दी की हर वक्त बिल्कुल सतर्क रहें.
“मैने किसी को भी लापरवाही करते देखा तो देख लेना, मुझसे बुरा कोई नही होगा.” आशुतोष ने कहा.
आशुतोष वापिस घर के बाहर खड़ी अपनी जीप में बैठ गया. “अब इस साइको ने हद कर दी है. अपर्णा जी के बारे में ऐसी बाते बोली. जींदा नही छोड़ूँगा कामीने को, बस मिल जाए एक बार वो मुझे.”
मगर बार-बार आशुतोष की आँखो के सामने वो दृश्य घूम रहा था जब अपर्णा बड़े प्यार से उसे देख रही थी. “कुछ तो था उन मृज्नेयनी सी आँखो में. काश समझ पाता मैं.”
गौरव थाने से निकल ही रहा था कि सामने से ए एस पी साहिबा आ गयी.
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Update 62
"क्या चल रहा है गौरव, कोई नयी डेवेलपमेंट?" अंकिता ने कहा.
"साइको ने अपनी करतूत की वीडियो सर्क्युलेट कर दी है मीडीया में और मीडीया वाले पागलो की तरह उसे दिखा रहे हैं." गौरव ने कहा.
"हां पता चला मुझे सब कुछ. अब कहा जा रहे थे तुम?"
"मेडम, अपर्णा को फोटोस दिखाने जा रहा हूँ."
"गुड, उसकी सुरक्षा अरेंजमेंट भी चेक कर लेना. और सुरक्षा की ज़रूरत हो तो दी जा सकती है."
"बिल्कुल मेडम, मैं देख लूँगा."
"ओके...गुड लक" अंकिता कह कर अपने केबिन की तरफ चल दी.
गौरव अपनी जीप में बैठ कर अपर्णा के घर की तरफ चल दिया.
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आशुतोष बैठा था जीप में चुपचाप. पर उसके दिमाग़ में एक तूफान चल रहा था.
"ये अब मेरी पर्सनल बॅटल है. साइको की हिम्मत कैसे हुई अपर्णा जी के बारे में ऐसा बोलने की. गोली मार दूँगा साले को मिल जाए एक बार मुझे वो. देखा जाएगा बाद में जो होगा. नही छोड़ूँगा उसे मैं जींदा. उसे नही पता की अपर्णा जी के बारे में इतनी घिनोनी बाते करके उसने अपनी जान आफ़त में डाल ली है."
तभी अपर्णा की खिड़की का परदा खुलता है. आशुतोष तो देख ही रहा था बार-बार खिड़की की तरफ. जैसे ही उसे अपर्णा दिखी आ गया फ़ौरन जीप से बाहर. अपर्णा ने फिर बहुत प्यार से देखा आशुतोष को. आशुतोष तो बस देखता ही रह गया अपर्णा को. वक्त जैसे थम सा गया था.
तभी एक जीप आकर रुकी अपर्णा के घर के बाहर और गौरव उसमे से उतर गया.
"गौरव!" अपर्णा ने कहा और परदा गिरा दिया.
आशुतोष के दिल पे तो जैसे साँप लेट गया. बहुत प्यार से देख रही थी अपर्णा आशुतोष को. ये जीप बीच में ना आती तो शायद वो समझ जाता इस बार की क्या है अपर्णा की म्रिग्नय्नि आँखो में.
"तो तुम हो आशुतोष ?" गौरव ने पूछा.
"जी हां बिल्कुल."
"आय ऍम इनस्पेक्टर गौरव पांडे."
"ओह...गुड मॉर्निंग सर. सॉरी आपको पहचान नही पाया. भोलू ने बातया था कि अब साइको वाला केस आप हैंडल कर रहे हैं."
"इट्स ओके. यहाँ सब कैसा चल रहा है."
"ठीक चल रहा है सर"
"देखो वो साइको हाथ धो कर पड़ा है अपर्णा के पीछे. तुम्हे बहुत ज़्यादा सतर्क रहना होगा. मैं 2 गन्मन लगा रहा हूँ यहाँ तुम्हारे साथ. कीप एवेरितिंग अंडर कंट्रोल."
"राइट सीर."
गौरव अपर्णा के घर की बेल बजाता है. उसके डेडी दरवाजा खोलते हैं.
"जी कहिए."
"आय ऍम इनस्पेक्टर गौरव पांडे. मुझे अपर्णा से मिलना है"
"वो अपने कमरे में सो रही है."
"देखिए मेरा उनसे मिलना बहुत ज़रूरी है. प्लीज़ बुला दीजिए उन्हे."
"ठीक है, बैठो आप मैं बुला कर लाता हूँ अपर्णा को"
जब अपर्णा के डेडी ने अपर्णा को बताया कि उस से कोई गौरव पांडे मिलने आया है तो उसने माना कर दिया मिलने से. "मेरे सर में दर्द है पापा. मैं किसी से नही मिलना चाहती."
अपर्णा के दादी ने ये बात आकर गौरव को बता दी.
"लगता है अब तक नाराज़ है मुझसे." गौरव ने मन ही मन सोचा.
"आप बाद में आ जाना."
"बहुत अर्जेंट था. क्रिमिनल्स की फोटोस लाया था उन्हे दिखाने के लिए. क्या पता इन्ही में से हो वो साइको."
ये बात सुनते ही अपर्णा के डेडी दुबारा गये अपर्णा के पास और उसे किसी तरह ले आए अपने साथ.
अपर्णा को देखते ही गौरव खड़ा हो गया. दोनो की आँखे टकराई पर कुछ कहा नही एक दूसरे को.
"ये फोटोस हैं क्रिमिनल्स की. इन्हे ध्यान से देखिए...हो सकता है साइको इन्ही में से कोई हो."
अपर्णा ने फाइल पकड़ी और बैठ गयी सोफे पे. एक एक फोटो को वो गौर से देखने लगी. जब अपर्णा के डेडी वहाँ से हटे तो गौरव ने कहा, "कैसी हो अपर्णा"
"इनमे से कोई नही है." अपर्णा ने कहा और फाइल टेबल पर रख दी. उसने गौरव की बात का कोई जवाब नही दिया.
"इतने दिनो बाद मिली हो, क्या बात भी नही करोगी." गौरव ने कहा.
अपर्णा कुछ नही बोली और चुपचाप वहाँ से उठ कर चली गयी.
गौरव ने फाइल उठाई और घर से बाहर आ गया. "बिल्कुल नही बदली अपर्णा. आज भी वैसी ही है. वही गुस्सा, वही अदा. सब कुछ वही है. आँखो की गहराई भी वही है. शूकर है उसने मेरी तरफ देखा तो. लगता है कभी माफ़ नही करेगी मुझे. ऐसी हसीना की नाराज़गी से तो मौत अच्छी"
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गौरव आशुतोष के पास आया और बोला, "अपने पास जो भी फोटोस थे क्रिमिनल्स के उनमे से कोई नही है साइको."
"सर अभी मैं एक बात सोच रहा था, बुरा ना माने तो बोलूं"
"बेझीजक कुछ भी बोलो यार. चौहान की तरह पागल नही हूँ मैं."
"ए एस पी साहिबा पर पोलीस महकमे की गोली चली थी. अगर अस्यूम करके चलें कि साइको एक पोलीस वाला है तो पीछले दिनो की कुछ बाते गौर की मैने"
"हां हां बोलते जाओ." गौरव ने कहा.
"एक पोलीस वाले पर शक है मुझे. वो है सब इनस्पेक्टर विजय."
"ऐसा कैसे कह सकते हो तुम. मैं जानता हूँ उसे. अच्छा बंदा है वो तो"
"देखिए सर जब मेरे दोस्त सौरभ ने साइको का पेट चीर दिया था तभी से विजय छुट्टी पर चला गया. फोन किया उसने बस की मैं मुंबई शादी में जा रहा हूँ. पूरे 2 हफ्ते बाद लौटा वो ड्यूटी पर. फिर जब ए एस पी साहिबा पर गोली चली थी, तब भी वो गायब था. ये कुछ बाते हैं जो दर्साति हैं कि कुछ गड़बड़ है."
"मान-ना पड़ेगा दिमाग़ तेज चलता है तुम्हारा. यू विल बी वेरी सक्सेस्फुल इन पोलीस डेप्ट. मैं गौर करूँगा इस बात पर. आज ही खबर लेता हूँ विजय की."
"थॅंक यू सर. ये मेरा गेस है. मैं ग़लत भी हो सकता हूँ."
"इन्वेस्टिगेशन में गेस के सहारे ही आगे बढ़ना पड़ता है. जो गेस नही कर सकता वो इन्वेस्टिगेशन भी नही कर सकता. ख़ुशी हुई मुझे तुमसे मिल कर. मैं चलता हूँ अब. बी अलर्ट हियर ऑल दा टाइम."
गौरव अपनी जीप में बैठ कर वापिस चला गया.
"सर जो भी हो. ग़लत वक्त पर आए आप. पता नही कब हटेगा परदा ये अब. रोज रोज कहा अपर्णा जी हमारी तरफ ऐसे देखती हैं. पता नही क्या बात है. "
सौरभ भी टीवी पर साइको द्वारा बनाई गयी वीडियो देख कर परेशान हो गया.
"एक तो ये कमीना इतने वहान्सि तरीके से खून कर रहा है. उपर से ऐसी वीडियो बना कर मीडीया में भेज रहा है. बहुत भयानक खेल, खेल रहा है ये प्यचओ. काश मैं इसे उसी दिन मार डालता."
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सौरभ तैयार हो कर अपनी ड्यूटी के लिए निकल दिया. सुबह के 11 बज रहे थे. वो थोड़ा लेट हो गया था.
"लेट हो गया यार इस साइको के चक्कर में. जल्दी निकलता हूँ."
सौरभ बायक ले कर अपने ऑफीस की तरफ निकल देता है. रास्ते में कुछ ही दूरी पर एक बस स्टॉप पर उसे पूजा खड़ी दिखाई देती है. उसकी तो आँखे चमक जाती हैं पूजा को देख कर. रोक देता है बायक पूजा के सामने. "कॉलेज जा रही हो? मैं भी उसी तरफ जा रहा हूँ. आओ बैठ जाओ छोड़ दूँगा तुम्हे कॉलेज तक."
"अपना रास्ता देखो मिस्टर सौरभ. पागल नही हूँ मैं जो कि तुम्हारे साथ जाउंगी" पूजा ने कहा.
"तुम हसिनाओ की यही दिक्कत है. कभी प्यार की कदर नही करती. इतना कठोर दिल कहा से आया तुम्हारे पास. इतनी सुंदर हो कर इतनी कठोर बाते सोभा नही देती तुम्हे. हुसान को प्यार की ज़रूरत हमेशा रहती है. प्यार मिले तो उसे ठुकराना नही चाहिए. आ जाओ बैठ जाओ. कुछ बिगड़ नही जाएगा तुम्हारा मेरे साथ चलने से."
"गेट लॉस्ट, मुझे एक कदम भी नही चलना तुम्हारे साथ" पूजा ने गुस्से में कहा.
"आना पड़ेगा तुम्हे मेरी ही बाहों में एक दिन, देख लेना एक दिन तुम भी मेरे प्यार में तड़पोगी"
"ऐसा दिन आने से पहले मैं मर जाउंगी. चले जाओ यहाँ से. मुझे परेशान मत करो."
"अच्छा एक ज़रूरी बात है, ध्यान से सुनो. साइको किलर और भी ज़्यादा दरिंदगी पर उतर आया है. बे केर्फुल ऑल दा टाइम. मुझे तुम्हारी चिंता रहती है."
"हे...हे...हे...मेरी चिंता. मैं सब समझ रही हूँ. तुम्हे मेरी नही अपनी चिंता है. अगर मैं मर गयी तो तुम किसके साथ हवस की प्यास बुझाओगे. मेरी चिंता मत करो मिस्टर सौरभ. अपनी चिंता किया करो. तुम्हारा तो 2 बार सामना हो चुका है साइको से.तुम्हे मेरा शरीर चाहिए और कुछ नही."
"तुम तो देखने भी नही आई एक भी बार मुझे. हॉस्पियाल में जब भी कुछ आहट होती थी तो मैं इस उम्मीद में आँखे खोल कर देखता था कि कही तुम तो नही. पर तुम तो बड़ी निर्दयी निकली. एक बार भी नही आई तुम."
"क्यों आउ मैं तुम्हे देखने. क्या लगते हो तुम मेरे?"
"आशिक़ हूँ तुम्हारा. तुम मानो या ना मानो कुछ तो रिश्ता बनता ही है"
"तुम जाते हो कि नही या पोलीस को बुलाउ." पूजा ने गुस्से में कहा.
"जा रहा हूँ यार, मैं तो वैसे ही लेट हो रहा हूँ." सौरभ ने कहा.
सौरभ ने अपनी बायक स्टार्ट कर दी और अपना सा मूह लेकर निकल गया आगे.
"ओफ यार ये नही पटेगी. " सौरभ ने कहा.
सौरभ के जाने के बाद पूजा ने राहत की साँस ली. "ये बस कब आएगी. आधा घंटा हो गया खड़े हुए यहाँ." पूजा अकेली ही खड़ी थी बस स्टॉप पर और कोई नही था.
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पूजा अंजान थी इस बात से कि एक नयी मुसीबत उसकी ओर बढ़ रही थी जिसका उसे अंदाज़ा भी नही था.
सब इनस्पेक्टर विजय पोलीस की जीप में उधर से गुजर रहा था. उसने पूजा को पहचान लिया, "अरे ये तो वही एस्कॉर्ट है जो उस दिन उस बंदे के साथ होटेल में थी. 50,000 वाली एस्कॉर्ट. टॉप क्लास रंडी."
विजय ने जीप पूजा के आगे रोक दी. "नाम भूल गया मैं तुम्हारा पर काम नही भुला. कौन से होटेल जा रही हो. रेट अभी भी 50,000 है या बढ़ा दिया. तेरे लिए 50,000 बहुत कम है वैसे. मुझे क्या मुझे तो फ्री में लेनी है तेरी. चल बैठ जा जीप में. बहुत दिन से ड्यू है तुम्हारी ठुकाई मेरे हाथो."
पूजा के चेहरे का तो रंग उड़ गया ये सब सुन कर. उसके पाँव काँपने लगे. उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे. वो भाग जाना चाहती थी वहाँ से पर उसके कदम ही नही हीले.
"सोच क्या रही है बैठ जल्दी. चल अपने घर ले चलता हूँ तुझे. खूब अच्छे से लूँगा तेरी."
"सर वो मेरा पहली और आखरी बार था. मुझे ब्लॅकमेल करके एस्कॉर्ट बन-ने पर मजबूर किया गया था."
"हर रंडी पकड़े जाने पे ऐसी ही कहानी सुनाती है. चुपचाप बैठ जा वरना प्रॉस्टिट्यूशन के केस में जैल में डाल दूँगा"
"सर प्लीज़." पूजा गिड़गिडाई
"अगर एक मिनिट के अंदर नही बैठी तो बाल पकड़ कर घसीट कर ले जाउन्गा" विजय कठोरता से बोला
पूजा बहुत डर गयी. डर स्वाभाविक भी था. वो काँपते कदमो से जीप में बैठ गयी. उसके पास इसके अलावा कोई चारा भी नही था.
विजय पूजा को लेकर चल पड़ा अपने घर की तरफ. "बीवी मायके गयी है मेरी. शाम तक लौटेगी. तब तक तू मेरे साथ मेरे घर पर रहेगी. छुट्टी ले लूँगा मैं ड्यूटी से. खूब चोदुन्गा तुझे सारा दिन."
पूजा कुछ नही बोल पाई बस दो आँसू टपक गये उसकी आँखो से.
विजय पूजा को अपने घर ले आया.
"सारे कपड़े उतार दे जल्दी से. मैं भी तो देखूं जो माल 50,000 में बिकता है वो कैसा दीखता है."
"आप समझते क्यों नही मैं एस्कॉर्ट नही हूँ. उस दिन ज़बरदस्ती भेजा गया था मुझे होटेल में."
विजय पर तो मानो कुछ असर ही नही हुआ. उसने पूजा को बाहों में भर लिया और उसके नितंबो को मसल्ने लगा. "क्या फर्क पड़ता है. धंधा तो तूने किया ना. एक बार या सौ बार. धंधा तो धंधा है."
पूजा कुछ नही बोल पाई. खड़ी रही चुपचाप और पीसती रही विजय की बाहों में. बड़ी बेरहमी से मसल रहा था विजय पूजा के नितंबो को.
"मान-ना पड़ेगा. एक दम मखमली गान्ड है तेरी. 50,000 तो केवल इसी के दे देते होंगे लोग तुझे. क्यों सच कह रहा हूँ ना मैं."
पूजा ने कुछ भी कहना सही नही समझा. वो कुछ कह भी नही सकती थी. बस आँखे बंद किए चुपचाप अपने शरीर से खिलवाड़ होते देखती रही.
विजय ने उसके सारे कपड़े निकाल दिए और पटक दिया उसे बिस्तर पर. वो खुद भी नंगा हो कर पूजा के उपर आ गया. पूजा तो एक जींदा लाश की तरह हो गयी. विजय ने उसकी टांगे अपने कंधे पर रखी और समा गया उसके अंदर.
जब विजय पूजा के अंदर समाया तो उसकी आँखे छलक गयी और उसने मन ही मन सोचा,"प्यार किया था मैने. सच्चा प्यार. क्या ग़लती थी मेरी मेरे भगवान जो प्यार में मुझे इतना बड़ा धोका मिला. प्यार ने मुझे वेश्या बना दिया. नही जी पाउन्गि अब मैं. पहले चौहान और परवीन ने एक साथ मेरी इज़्ज़त की धज़िया उड़ाई. अब ये उड़ा रहा है. प्यार ऐसे दिन दिखाएगा सोचा नही था मैने. बस ये आखरी बार है. ये सब सहने के लिए मैं जींदा नही रहूंगी अब."
विजय तो पागलो की तरह अपने काम में लीन था. तूफान मच्चा रखा था उसने पूजा की योनि के अंदर. मगर पूजा कुछ भी महसूस नही कर रही थी. बहुत व्यथीत थी आज. चौहान और परवीन के साथ तो वो फिर भी संभोग के आनंद में खो गयी थी. जिसका उसे बाद में अफ़सोस भी रहा. मगर आज वो कुछ भी महसूस नही कर रही थी. शायद ये बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी कि उसकी जिंदगी कहा से कहा पहुँच गयी. चौहान और परवीन के साथ तो वो अंजाने में ही खो गयी थी, बहक गयी थी...मगर आज ऐसा कुछ नही हो रहा था. आँसू पे आँसू टपक रहे थे उसकी आँखो से.
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Update 63
मगर कब तक बचती वो लिंग के घर्सन से. देर से ही सही कमरे में उसकी सिसकियाँ गूंजने लगी. ये बात और थी कि उसकी शिसकियों में आनंद के साथ साथ शरम और ग्लानि भी मौजूद थी. पूजा की सिसकियाँ उसकी व्यतीत मनोस्थिति को बखूबी दर्साति थी. मगर विजय को तो लग रहा था कि वो आनंद के सागर में गोते लगा रही है.
आनंद था योनि में लिंग के घर्षण का. शरम और ग्लानि थी इस बात की, की उसकी योनि में घर्षण करने वाला उसका प्रेमी नही था बल्कि वो इंसान था जो की उसे वैश्या समझता था और वैश्या के ही नाते उस पर चढ़ा हुआ था.
"अब कुछ नही बचा...सब ख़तम हो गया...आआहह"
"क्या कहा तूने, मुझे डिस्टर्ब मत कर आराम से फक्किंग करने दे"
पूजा ने कुछ नही कहा. हां उसकी 2 अहसासो में डूबी सिसकियाँ बरकरार रही.
तीन बार सहना पड़ा उसे विजय की हवस को.
6 बजे फ्री किया विजय ने पूजा को. विजय ने पूजा को अपने घर से थोड़ी दूर एक मार्केट में छोड़ दिया. "अगले हफ्ते मेरे 2 दोस्त आ रहें हैं देल्ही से. मिल कर एंजाय करेंगे तेरे साथ."
पूजा ने कुछ नही कहा और मुरझाया चेहरा ले कर लड़खड़ाते कदमो से चल पड़ी. घर नही जाना चाहती थी वो अब. मर जाना चाहती थी कही जाकर. एक कार ने तो उसे उड़ा ही दिया होता. शूकर है वक्त पर ब्रेक लग गयी. "पागल हो गयी हो तुम. मरना है तो कही और जा कर मरो." कार वाला चिल्लाया. सड़क पार कर रही थी पूजा बिना सोचे समझे. ध्यान ही नही था उसका कार पर. वो तो बस चले जा रही थी. शायद वो कही जा कर मार ही जाती. पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
सौरभ गुजर रहा था वहाँ से. उसने पूजा को ऐसी हालत में गुमशुम भटकते देख लिया.
"पूजा कहाँ जा रही हो. देख कर भी नही चल रही. ठीक तो हो."
"ओह सौरभ...बहुत अच्छे वक्त पे आए तुम, देखो मेरा तमासा तुम भी."
"क्या बोल रही हो. चलो बैठो तुम्हे घर छोड़ देता हूँ."
"नही घर नही जाउंगी आज. तुम जाओ."
सौरभ को पूजा का ऐसा बर्ताव बहुत अजीब लग रहा था.
"बात क्या है पूजा, कुछ बदली बदली सी लग रही हो."
"हे...हे...बदली बदली और मैं. जिंदगी है चलता है सब. मैं घर नही जाउंगी."
"बैठो तो सही...जहा कहोगी वहाँ ले चलूँगा." सौरभ ने कहा.
"ओह हां एक काम करते हैं, तुम्हारे घर चलें." पूजा ने कहा.
"चलो चलने में कोई बुराई नही है...आओ." सौरभ ने कहा.
"लेकिन मैं अपने घर नही जाउंगी पहले ही बता देती हूँ."
"बैठो तो सही...फिर देखते है." सौरभ ने कहा.
"नही जाना है मुझे घर जान लो तुम." पूजा बोलते हुए बैठ गयी सौरभ की बायक पर.
पूजा कुछ नही बोली बाद में. सौरभ ने भी कुछ नही कहा. ले आया सौरभ पूजा को अपने घर.
"कुण्डी लगा दो सौरभ." पूजा ने कहा.
सौरभ तो कुछ भी नही समझ पा रहा था. कुण्डी लगा कर वो पूजा के पास आया जो की बिस्तर के पास खड़ी थी. पूजा ने सौरभ की आँखो में देखा और अपना टॉप उतार दिया.
"ये क्या कर रही हो."
"अपने आशिक़ को तोहफा देना चाहती हूँ." पूजा ने कहा और अपनी ब्रा उतार कर फेंक दी. अब उसके उभार सौरभ की नज़रो के सामने थे.
"तुम ये सब क्यों कर रही हो पूजा."
पूजा कुछ नही बोली और झट से अपनी जीन्स और पॅंटी भी उतार दी. अब वो सौरभ के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी. सौरभ तो देखता ही रह गया उसके नागन शरीर को. इतनी सुंदर बॉडी आज तक नही देखी थी उसने.
"पूजा मेरी कुछ समझ में नही आ रहा. क्यों कर रही हो तुम ये सब. तुम बहुत अजीब बिहेव कर रही हो."
पूजा सौरभ से लिपट गयी और बोली, "जल्दी से प्यास भुजा लो अपनी. फिर कभी नही मिलूंगी तुम्हे."
सौरभ तो अजीब उलझन में फँस गया था. ना चाहते हुए भी उसका लिंग उत्तेजित हो गया था. पूजा को वो अपनी योनि पर महसूस हुआ. वो बैठ गयी सौरभ के आगे और सौरभ की ज़िप खोल कर उसके लिंग को बाहर निकाल लिया.
"ये सच में बड़ा है सौरभ. रियली इट्स आ नाइस डिक."
सौरभ तो भड़क ही उठा और पूजा को गोदी में उठाया और लेटा दिया बिस्तर पर. इतना उत्तेजित हो रहा था वो कि तुरंत समा जाना चाहता था पूजा के अंदर.
उसने अपने लिंग को पकड़ा और दो उंगलियों से पूजा की योनि की पंखुड़ियों को फैला कर उस पर लिंग टिकाने लगा. मगर तभी उसकी नज़र योनि के आस पास सफेद सी चीज़ पर गयी. उसने गौर से देखा तो उसे समझते देर नही लगी की वो वीर्य की बूंदे थी जो की शूख गयी थी.
सौरभ ने पूजा के चेहरे पे हाथ रखा और बोला, "पूजा बताओगि कि क्या हुआ है तुम्हारे साथ."
"क्या फर्क पड़ता है उस से. तुम्हारे पास टाइम कम है. अपनी प्यास बुझा लो जल्दी से. बाद में मोका नही मिलेगा तुम्हे."
"तुम यकीन करो या ना करो प्यार करता हूँ तुम्हे मैं. प्लीज़ बताओ क्या हुआ तुम्हारे साथ. कौन था वो बताओ मैं उसे जींदा नही छोड़ूँगा."
"हे...हे...हे...प्यार का नाम मत लो. प्यार ने तो मुझे रंडी बना दिया. जिसका मन होता है चढ़ जाता है मुझ पे. किसी का कसूर नही है. सब प्यार का ही दोष है. आओ ना तुम भी चढ़ जाओ भरपूर मज़ा दूँगी तुम्हे."
सुना नही गया सौरभ से ये सब और उसने थप्पड़ जड़ दिया पूजा के गाल पर, "कपड़े पहनो अपने और घर जाओ अपने. मेरा प्यार ऐसा नही है जैसा तुम समझ रही हो."
सौरभ बिस्तर से उतर गया. पूजा फूट -फूट कर रोने लगी. वो उठी और अपने कपड़े पहन लिए.
"मैं तुम्हे घर छोड़ आता हूँ"
"नही चली जाउंगी खुद ही." पूजा सूबक रही थी. सुबक्ते सुबक्ते निकल गयी घर से. सौरभ पीछे पीछे गया उसके ये देखने की वो घर ही जा रही है या कही और.
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पूजा अपने घर आ कर बिस्तर पर गिर गयी और फूट फूट कर रोने लगी.
श्रद्धा ने तुरंत आकर पूछा, "क्या बात है पूजा...रो क्यों रही हो"
"मुझे अकेला छोड़ दो दीदी...प्लीज़." पूजा रोते हुए बोली.
सौरभ भी वापिस आकर बिस्तर पर सर पकड़ कर बैठ गया. बहुत दुखी था पूजा के लिए. प्यार जो करता था उसे.
परेशान था सौरभ. बहुत ही परेशान. इतना परेशान कि उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे. कुछ करना चाहता था वो पूजा के लिए. सोच रहा था वो बार बार कि क्या किया जाए. इसी उधेड़बुन में वो उठा और अपने कमरे का ताला लगा कर पूजा के घर की तरफ चल दिया. जब वो पूजा के घर पहुँचा तो घर का दरवाजा बंद था. उसने दरवाजा खड़काया. श्रद्धा ने दरवाजा खोला.
"सौरभ तुम! यहाँ कैसे?" श्रद्धा ने पूछा.
"पूजा से बात करनी है मुझे, क्या मैं मिल सकता हूँ उस से"
"पूजा से बात! पूजा से तुम्हे क्या लेना देना?" श्रद्धा हैरानी में पड़ गयी.
"मैं बहुत परेशान हूँ पहले ही, और परेशान मत करो. प्लीज़ मुझे पूजा से मिलने दो."
"तो क्या जिसे तुम प्यार करते हो वो पूजा है?" श्रद्धा ने पूछा.
"हां"
श्रद्धा ने गर्दन पकड़ ली सौरभ की और बोली, "क्या किया तुमने मेरी बहन के साथ. जब से आई है वो रो रही है."
"काश वो मेरे कारण रो रही होती. बात कुछ और ही है. प्लीज़ मुझे मिलने दो उस से वरना मैं मर जाउन्गा." सौरभ ने भावुक हो कर कहा.
"ठीक है...ठीक है, आ जाओ अंदर." श्रद्धा ने कहा.
सौरभ अंदर आ गया. श्रद्धा उसे पूजा के पास ले आई. पूजा पेट के बाल हाथो में चेहरा छुपाए लेटी हुई थी.
"श्रद्धा मैं अकेले में बात करना चाहता हूँ. प्लीज़ थोड़ी देर के लिए....." सौरभ ने कहा.
श्रद्धा बिना कुछ कहे वहाँ से चली गयी.
सौरभ पूजा के पास बैठ गया और उसके सर पर हाथ रख कर बोला," पूजा आइ लव यू. बात करना चाहता हूँ तुमसे कुछ."
"सौरभ प्लीज़ चले जाओ. मैं बात करने की हालत में नही हूँ." पूजा सुबक्ते हुए बोली.
सौरभ वहाँ से उठ कर पूजा के पैरो पर सर रख कर बैठ गया और बोला, "मुझसे कोई भूल हुई हो तो मुझे माफ़ कर दो. हां शुरू शुरू में मैने तुम्हे बस एक शरीर समझा. पाना चाहता था तुम्हे. मगर कब प्यार की भावना जाग गयी मुझे भी नही पता. शायद हवस शामिल है इस प्यार में मेरे. माफी चाहता हूँ उसके लिए. तुम मुझे बदले में प्यार बेशक मत दो. लायक भी नही हूँ तुम्हारे प्यार के मैं. मगर प्लीज़ एक बार बता दो कि क्या हुआ तुम्हारे साथ और किसने किया. मैं बहुत बेचैन हूँ पूजा. जब तक नही बताओगि मैं तड़प्ता रहूँगा. प्लीज़ बताओ मुझे कौन है इन आँसुओ का कारण."
"क्यों जान-ना चाहते हो तुम. क्या करोगे जान कर. कुछ बदल नही जाएगा तुम्हे बता कर. प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो."
"मैं मर जाउन्गा पूजा. नही देख सकता हूँ तुम्हे ऐसी हालत में. जब तक बताओगि नही जाउन्गा नही मैं यहाँ से."
पूजा उठ कर बैठ गयी और अपने पाँव सिकोड कर घुटनो पर सर टिका कर बोली, "कौन हो तुम मेरे जिसे सब बताउ मैं."
"प्यार करता हूँ तुम्हे मैं. इतना रिश्ता काफ़ी होना चाहिए."
"ठीक है सुनो फिर..............
कविता ने मिलाया था मुझे विक्की से. बहुत प्यार से देखता था मेरी तरफ वो. अच्छा दोस्त बन गया मेरा वो. धीरे धीरे मैं उसे चाहने लगी. मुझे नही पता था कि उसका मुझसे मिलना, दोस्ती और फिर प्यार सब एक साजिस का हिस्सा था. ये बात मुझे अब समझ आई. काश पहले समझ जाती. खूब प्यार का नाटक किया विक्की ने मेरे साथ. प्यार में पागल हो कर सब कुछ न्योछावर कर दिया मैने विक्की पर. पर मुझे क्या पता था की मेरे प्यार की वीडियो बनाई जा रही है. बहुत धक्का लगा दिल को मेरे. फिर ब्लॅकमेलिंग का गंदा खेल शुरू हुआ. मुझसे कहा गया कि तुम एक एस्कॉर्ट बन जाओ वरना ये वीडियो इंटरनेट पर डाल देंगे. बहुत विचलित रही मैं इन बातो के कारण. प्यार में ऐसा होगा सोचा नही था मैने. बहुत रेज़िस्ट किया मैने पर एक दिन मुझे एस्कॉर्ट बन कर जाना ही पड़ा............
फार्म हाउस पर मेरी इज़्ज़त की वो धज्जिया उड़ाई चौहान और परवीन ने कि मैं कुछ कह नही सकती. दुख की बात ये है कि थोड़ा थोड़ा तो मैने भी एंजाय किया. यही मेरी चिंता का कारण है. बीखर गया है चरित्र मेरा. शायद मैं सच में वैश्या बन गयी हूँ."
"प्लीज़ ऐसा मत कहो. आज क्या हुआ वो बताओ."
"आज जब तुम गये तो एक पोलीस वाला आ गया वहाँ. उसने मुझे पहचान लिया. ज़बरदस्ती घर ले गया मुझे वो और.......................बस कह नही पाउन्गि."
"क्या नाम है उसका?" सौरभ ने पूछा.
"उसका नाम नही पता बस इतना पता है कि वो पोलीस वाला है."
"कोई और पहचान उसकी."
"क्या करोगे जान कर?"
"वैसे ही पूछ रहा हूँ, क्या कुछ और बता सकती हो उसके बारे में."
"और तो कुछ नही पता. ओह हां पेट पर अजीब सा निशान था उसके."
"कैसा निशान?" सौरभ का माता ठनका.
"लंबा सा निशान था. ज़्यादा गौर नही दिया मैने. क्या करना उस से तुम्हे... छोड़ो."
"घर की लोकेशन बता सकती हो."
पूजा ने विजय के घर में घुसते वक्त हाउस नंबर देखा था. उसने सौरभ को लेकेशन और हाउस नंबर बता दिया.
"वो तो बबलू के साथ वाला घर है. इसका मतलब विजय सरिता का हज़्बेंड है." सौरभ ने सोचा.
"थॅंक यू पूजा तुमने मुझे इतना कुछ बताया. आराम करो तुम अब." सौरभ ने कहा.
"तुम ये सब क्यों जान-ना चाहते थे."
"ताकि तुम्हारा मन हल्का हो जाए बता कर. आराम करो तुम अब. मैं चलता हूँ." सौरभ जल्दी में लग रहा था.
पूजा बैठी रही घुटनो पर सर टिकाए. सौरभ ने उसके सर पर हाथ रखा और बोला, "सब ठीक हो जाएगा तुम चिंता मत करो." सौरभ आ गया बाहर.
सौरभ जैसे ही उस कमरे से बाहर निकला उसने श्रद्धा को वहाँ खड़े पाया. श्रद्धा की आँखो में आँसू थे. उसने पूजा की सारी बाते सुन ली थी. सौरभ ने श्रद्धा को गले लगाया और बोला, "न्याय होगा पूजा के साथ." और बाहर आ गया.
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