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Update 53
"गुरु तुम! रेप कब्से करने लगे तुम?"
"जानते हो तुम इसे?" अंकिता ने पूछा.
"हाँ मेडम ये मेरा दोस्त है. लेकिन अब बहुत शर्मिंदगी हो रही है इसे दोस्त कहते हुए."
"ऐसा कुछ नही है जो तुम समझ रहे हो ये यू ही चिल्ला रही थी."
"अच्छा यू ही क्यों चिल्लाउन्गि मैं. ज़बरदस्ती डाल रहे थे गान्ड में तुम."
"आप हट तो जाओ पहले यहाँ से." आशुतोष ने कहा.
"ये बाहर निकॅलेगा तभी ना."
"गुरु तमासा बंद करो हमारी ए एस पी साहिबा हैं साथ में. जल्दी से अपनी हालत ठीक करो." आशुतोष ने कहा.
"मेरे सर से बंदूक तो हटा ओ." सौरभ ने कहा.
आशुतोष अंकिता की तरफ देखता है. अंकिता बंदूक हटा कर घूम जाती है ताकि उसे कुछ अश्लील दृश्य ना दीखे.
सौरभ कविता की गान्ड से लंड बाहर निकालता है.
"उफ्फ बहुत टाइट है भाई ग़लती करली फँसा कर इसमे." सौरभ ने कहा.
"कुछ बोलो मत मेडम गोली मार देंगी तुम्हे गुस्सा आ गया तो." आशुतोष ने कहा.
"मज़ाक कर रहे हो."
"नही सच बोल रहा हूँ. बहुत कड़क ऑफीसर हैं."
"ओके"
सौरभ और कविता दोनो अपने कपड़े ठीक करते हैं. अंकिता घूमती है और कहती है, "हे लड़की सच सच बताओ क्या ये रेप कर रहा था तुम्हारा. इसे अभी जैल में डाल दूँगी."
"नही मेडम रेप तो नही कर रहा था. मैं खुद इसके साथ आई थी."
"फिर इतना चिल्ला क्यों रही थी."
"मैने कभी अनल नही किया इसलिए दर्द हो रहा था."
"ठीक है...ठीक है...आशुतोष इन दोनो से कहो दफ़ा हो जायें यहाँ से बेकार में हमारा वक्त बर्बाद किया"
"नहियीईईईईईईईईई कोई है वहाँ बंदूक तान रखी है इस तरफ उसने." कविता चिल्लाई.
आशुतोष ने तुरंत देखा उस तरफ. एक नकाब पोश ने अंकिता को निशाना बना रखा था. गोली उसकी बंदूक से निकल चुकी थी. आशुतोष फ़ौरन अंकिता की तरफ कुदा और उसे ले कर ज़मीन पर गिर गया. एक बार फिर आशुतोष अंकिता के उपर था. अंकिता ने तुरंत उसी दिशा में फाइयर किया. लेकिन नकाब पोश भाग चुका था.
"हटो भी अब. मेरे उपर ही पड़े रहोगे क्या तुम." अंकिता ने आशुतोष को धक्का दिया.
"सॉरी मेडम अगर मैं वक्त पर आपको ना गिराता तो गोली लग जाती आपको." आशुतोष ने कहा.
अंकिता ने आशुतोष की तरफ देखा लेकिन कुछ कहा नही.
"एक बार फिर बच गया कमीना." अंकिता ने इरिटेटेड टोन में कहा.
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तब तक पोलीस पार्टीस भी वहाँ पहुँच गयी. पूरे जंगल को छान मारा गया. लेकिन वो नकाब पोश कही नही मिला.
सौरभ और कविता बायक पर जंगल से निकल गये. अंकिता आशुतोष के साथ ही पोलीस स्टेशन की तरफ चल दी.
"एक दम निक्कमि पोलीस फोर्स है हमारी. एक तो देर से पहुँचे उपर से कुछ नही ढूँढ पाए जंगल में." अंकिता ने कहा.
"पर एक बात है मेडम. वो नकाब पोश ज़रूर साइको ही है. वो वापिस आ गया है अब. जैसे बेखौफ़ हो कर वो गोली चला रहा था उस से तो यही लगता है कि ये साइको ही है."
"सही कह रहे हो आशुतोष तुम. पर एक अहसान कर दिया तुमने हम पर आज."
"वो क्या मेडम?"
"हमारी जान बचाई तुमने आज शुक्रिया तुम्हारा. उस वक्त मैं कुछ बोल नही पाई थी."
"मेरे होते हुए आपका कोई बॉल भी बांका नही कर सकता मेडम. इस साइको की तो वाट लगानी है मुझे."
आशुतोष की बाते सुन कर एक हल्की सी मुस्कान अंकिता के होंठो पे बिखर गयी. आशुतोष ने उसके होंठो पर मुस्कान देख ली और बोला, "पहली बार आपको हंसते हुए देख रहा हूँ मेडम."
"मैं भी इंसान ही हूँ कोई पत्थर नही हूँ."
"मेडम अगर ये साइको ही है तो हमें चोककन्ना रहना होगा अब. इस बार ये हाथ से निकलना नही चाहिए."
"तुम्ही लोगो को करना है ये काम."
"मेडम वो सर्विस रेवोल्वेर ज़रूर दिला दीजिए. आज मेरे हाथ में भी होती तो भेजा उड़ा देता मैं उसका."
"मिल जाएगी आज शाम तक तुम्हे" अंकिता ने कहा.
आशुतोष को रेवोल्वेर मिल गयी थी. अंकिता जो कहती है कर देती है. आशुतोष रेवोल्वेर ले कर थाने से निकल पड़ा. उसके दिमाग़ में कुछ उधेड़बून चल रही थी.
"अपर्णा जी से मिलना होगा तुरंत मुझे. अगर आज जंगल में साइको ही था तो वो ज़रूर कोशिश करेगा अपर्णा जी को रास्ते से हटाने की. वही तो जानती है कि वो कौन है. लेकिन एक बात है. इस जंगल में ज़रूर कुछ गड़बड़ है. मॅग्ज़िमम खून जंगल के आस पास ही हुए हैं एक आध को छोड़ कर. उस रात अपर्णा जी के साथ जो वाक़या हुआ था वो भी तो जंगल के बीच की सड़क पर ही हुआ था. आज वो दिन में ही जंगल में घूम रहा था बंदूक लेकर. कुछ गड़बड़ ज़रूर है जंगल में. ये बात ए एस पी साहिबा को बतानी होगी. पहले अपर्णा जी से मिल आता हूँ. वो निकल ना जाए कही ऑफीस से. रास्ता भी वो जंगल का ही लेंगी."
ये सब सोचता हुआ आशुतोष जीप में बैठ गया और अपर्णा के ऑफीस की तरफ चल पड़ा. जब वो ऑफीस पहुँचा तो अपर्णा अपने ऑफीस से बाहर आ रही थी. उसने ब्लू जीन्स और वाइट टॉप पहना हुआ था. आशुतोष तो अपर्णा को देखता ही रह गया. पहली बार आशुतोष ने अपर्णा को जीन्स में देखा था. वो तो दूर से अपर्णा को पहचान ही नही पाया.
"जो भी हो भगवान ने जो रूप और सुंदरता अपर्णा जी को बख्सि है वो अनमोल है. मेरी नज़र ना लग जाए इन्हे." आशुतोष सोचता हुआ अपर्णा की ओर बढ़ा.
अपर्णा तो अपनी ही धुन में थी. वो सीधा अपनी कार के पास पहुँची और दरवाजा खोला. उसने देखा ही नही कि आशुतोष पीछे है और उसकी तरफ बढ़ रहा है.
"अपर्णा जी रुकिये." आशुतोष ने कहा.
अपर्णा अचानक आवाज़ सुन कर चोंक गयी और तुरंत पीछे मूडी. उसने अपने सीने पे हाथ रखा और बोली, "आशुतोष तुम! तुमने तो मुझे डरा दिया."
"मैं तो आपको पहचान ही नही पाया." आशुतोष ने कहा.
"क्या बात है आशुतोष तुम यहाँ कैसे?" अपर्णा ने पूछा.
"आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी."
"किस बारे में."
"शायद साइको किलर लौट आया है." आशुतोष जंगल की बात बताता है. सौरभ वाली बात छोड़ कर सब बता देता है क्योंकि वो जानता है कि अपर्णा वो सब नही सुनेगी.
"ये सब कब ख़तम होगा. मुझे लगा सब ठीक है अब. लेकिन अब फिर वही."
"जब तक ये साइको पकड़ा नही जाएगा या फिर उसका एनकाउंटर नही होगा तब तक वो यू ही वारदात करता रहेगा...मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप ध्यान रखना अपना. हर वक्त पोलीस साथ नही रहेगी आपके. कोई भी बात हो तो मुझे तुरंत फोन करना."
"थॅंक यू फॉर योर क्न्सर्न मैं ध्यान रखूँगी."
"एक बात और है."
"क्या?"
"उस जंगल से आपका निकलना ठीक नही है. पता नही क्यों मुझे लग रहा कि वहाँ कुछ गड़बड़ है."
"मुझे भी वो रास्ता पसंद नही पर कोई और रास्ता भी तो नही है. घर जाने के लिए मुझे वही से गुज़रना होगा."
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"आप बुरा ना माने तो मैं आपके साथ चलता हूँ अपर्णा जी. आपका अकेले वहाँ से गुज़रना ठीक नही होगा."
"नही..नही मैं चली जाउंगी तुम रहने दो."
"वैसे अब तक आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया. आप मुझसे दूर क्यों भागती है. कोई डर है क्या आपको मुझसे."
"नही...नही ऐसा कुछ नही है"
अब अपर्णा कैसे बताए अपने सपने का आशु. वो तो हर हाल में आशुतोष से दूरी बनाए रखना चाहती है.
"अपर्णा जी रोज याद करता हूँ उस दिन को जब आप आग बाबूला हो कर मेरे सामने आई थी और मेरी हालत पतली हो गयी थी. पता नही कैसे पेण्ट गीली हो गयी."
अपर्णा के होंठो पे मुस्कान बिखर आई और वो बोली, "तुम याद करते हो उस वाकये को. तुम्हे तो भूल जाना चाहिए हे...हे..हे."
"बस ये प्यारी सी हँसी देखनी थी आपकी इसलिए ये सब बोल रहा था."
अपर्णा फ़ौरन चुप हो गयी. "अच्छा मैं चलती हूँ."
"अपर्णा जी बुरा मत मानीएगा आप बहुत सुंदर लग रही हैं इन कपड़ो में." आशुतोष ने कहा.
"मुझे फ्लर्ट पसंद नही है आशुतोष, दुबारा ऐसा मत बोलना."
"पर मैं फ्लर्ट नही कर रहा मैं तो...."
"मैं तो क्या आशुतोष...मैं खूब जानती हूँ कि तुम्हारा मकसद क्या है?"
"कैसी बाते कर रही हैं आप. मैं तो आपकी यू ही प्रशन्षा कर रहा था. आपको मेरी बात बुरी लगी है तो माफ़ कर दीजिए."
"आशुतोष मैं सब समझ रही हूँ. पागल नही हूँ मैं. मैं जा रही हूँ. शुक्रिया तुम्हारा कि तुमने मुझे अलर्ट किया." अपर्णा कार में बैठी और चली गयी.
"मेरी छवि कितनी कराब हो रखी है दुनिया में. पता नही श्रद्धा ने क्या क्या बताया होगा अपर्णा जी को. मेरी भी ग़लती है. उस दिन बहुत अश्लील बाते बोल दी थी अपर्णा जी के बारे में. शायद वो भूली नही वो बाते. कुछ करना होगा अपनी छवि सुधारने के लिए. फिलहाल जीप ले कर पीछे चलता हूँ इनके. ये समझ नही रहीं है कि उनकी जान को ख़तरा है."
आशुतोष अपनी जीप अपर्णा की कार के पीछे लगा देता है. ना अपर्णा ने ध्यान दिया ना ही आशुतोष ने पास ही एक ब्लॅक स्कॉर्पियो कार में एक शख्स बैठा उन्हे लगातार घूर रहा था. उसका हाथ बाजू की सीट पर पड़े चाकू पर था. वो चाकू पर हल्का हल्का हाथ घुमा रहा था. "कोई बात नही अपर्णा का पेट चीर्ने को भी मिलेगा तुझे. कुछ दिन और जी लेने दो बेचारी को हे..हे...हे. चल किसी और को काट-ते हैं."
अपर्णा ने देख लिया कि आशुतोष उसके पीछे जीप लेकर आ रहा है. "साइको से ज़्यादा तो मुझे इस से डर लगता है. वो गंदा सपना कभी सच नही हो सकता. ना मैं आशुतोष से प्यार करूगि और ना ही वो सब होने दूँगी."
अपर्णा शांति से घर पहुँच गयी. घर पहुँचते ही वो आशुतोष को इग्नोर करते हुए घर के दरवाजे की तरफ लपकी.
"अपर्णा जी रुकिये."
"क्या बात है क्यों आए तुम पीछे मेरे."
"आपको अकेले कैसे आने देता मैं. कल से 2 कॉन्स्टेबल लगवा दूँगा आपके साथ जो आपके साथ रहेंगे आते जाते वक्त. घर पर तो 4 पहले से हैं ही."
"बहुत बहुत शुक्रिया इस सब के लिए. अब मैं जाऊ."
"अपर्णा जी मैं इतना बुरा भी नही हूँ जैसा आपने शायद सोच लिया है. हां मैं मानता हूँ की मैं फ्लर्ट हूँ. लेकिन मेरी तारीफ़ में फ्लर्ट नही था. वो तो मुझे आप बहुत सुंदर लगी आज इसलिए बोल दिया. फिर भी अगर आपको दुख हुआ है तो मुझे माफ़ कर दीजिए. मैं सच कह रहा हूँ मेरा आपके प्रति कोई ग़लत इरादा नही है."
"इरादे रखना भी मत" अपर्णा ने कहा.
"आपके चेहरे पे गुस्सा और मुस्कान दोनो बहुत प्यारे लगते हैं. अब ये इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आपको देख कर ये ख्याल आता है मुझे और मैं बोल देता हूँ. इसमें फ्लर्ट शामिल नही रहता. और मैं आपसे फ्लर्ट क्यों करूँगा. कहाँ आप कहाँ मैं. मुझे पता है की मेरा कोई चान्स ही नही है. बहुत किरकिरी हो चुकी है आपके सामने मेरी अब बस यही चाहता हूँ की आप मुझे ग़लत ना समझे. आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ मैं. आइ नेवेर एवर सीन वुमन लाइक यू. आप सुंदर भी हैं और आपका चरित्र भी उँचा है. दोनो एक कॉंबिनेशन में कम ही मिलते हैं."
"जनाब कुछ ज़्यादा नही हो रहा अब. तुम्हे चलना चाहिए अब."
"ओह हां बिल्कुल...गुड नाइट अपर्णा जी. स्वीट ड्रीम्स."
आशुतोष चला गया. अपर्णा सर हिलेट हुए घर में घुस गयी.
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Update 54
रात के कोई 2 बजे आँख खुल गयी बेचारी अपर्णा की.
स्वीट ड्रीम्स की जगह वेट ड्रीम्स हो गया था. इस बार फिर कारण आशुतोष ही था. सपने में अपर्णा ने देखा कि आशुतोष उसके उभारो को चूम रहा है और उसने आशुतोष के सर को थाम रखा है. वो आशुतोष को बार बार कह रही थी 'आइ लव यू....आइ लव यू'
"उफ्फ फिर से वही भयानक सपना. पर ये सच नही होगा. रात के 2 बजे हैं. सुबह के सपने ही सच होते हैं. पर पहले वाला सपना सुबह आया था. नही नही आशुतोष के साथ ये सब छी....कभी नही. पता नही ये आशुतोष मेरे पीछे क्यों पड़ गया है. मैं उसके इरादे कभी कामयाब नही होने दूँगी.
आशुतोष अपर्णा को घर छोड़ कर सीधा घर पहुँचा था. घर पहुँचते ही उसे श्रद्धा का फोन आया. "पोलीस वाला बनके तू तो भूल ही गया मुझे."
"नही श्रद्धा तुझे कैसे भूल सकता हूँ. बताओ क्या बात है."
"बापू गये फिर से किसी काम से बाहर आ रही हूँ मैं तेरे पास."
"नही श्रद्धा सुन." पर श्रद्धा फोन काट चुकी थी.
आशुतोष तो अपर्णा जी के ख़यालो में खोया था. वो परेशान हो रहा था कि पता नही क्यों अपर्णा जी उस से ऐसा बर्ताव करती हैं जबकि उसकी इंटेन्षन तो हमेशा उनकी मदद करने की रहती है. बार-बार अपर्णा जी का चेहरा उसकी आँखो में घूम जाता है. वो कुछ हैरान सा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन अपर्णा जी के रूप का जादू कुछ अजीब सा असर कर रहा था आशुतोष के दिलो दीमाग पर. हालाँकि अपना आशुतोष इन बातों से बिल्कुल बेख़बर था.
श्रद्धा ने दरवाजा खड़काया तो आशुतोष परेशान हो गया. दरअसल पता नही क्यों वो अकेला रहना चाहता था. खूबसूरत ख़यालो में जो खोया था.
"खोलता हूँ बाबा."
दरवाजा खुलते ही श्रद्धा आशुतोष से लिपट गयी.
"बहुत दिन हो गये तुमसे मिले आशुतोष. तुमसे मिलने आई हूँ मैं आज."
"ग़लत वक्त पर आई है तू. थोड़ा परेशान सा था मैं."
"क्या हुआ मेरे आशुतोष को?"
"कुछ नही बस यू ही."
"अभी इलाज़ करती हूँ मैं तेरा. चल बिस्तर पर."
"नही श्रद्धा आज कुछ मूड नही है."
"बहुत दिन हो गये तू मुझसे एक बार भी नही मिला और आज मूड नही है तेरा. कोई बहाना नही चलेगा तेरा. और हां मुझे कुछ नही चाहिए तुझसे. कुछ देना ही चाहती हूँ तुझे."
"क्या देना चाहती हो श्रद्धा?"
"चलो तो सही बिस्तर पे बताती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष को पीछे धक्का देते हुए बिस्तर के नज़दीक ले आती है और फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा देती है. वो आशुतोष की टाँगो के बीच बैठ जाती है और उसकी ज़िप खोलने लगती है.
"क्या कर रही है. मेरा सच में मूड नही है."
"रुक तो सही देखता जा मैं क्या करती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष का लंड निकाल लेती है बाहर. "ये तो शोया पड़ा है. पहले तो मेरा हाथ लगते ही उठ जाता था. चलो कोई बात नही अभी जाग जाएगा ये."
श्रद्धा शोए हुए, मुरझाए हुए लंड को मूह में ले लेती है और चूसने लगती है.
"तू तो कभी नही लेती थी मूह में. आज क्या हो गया."
"वो कमीना भोलू काई बार चुस्वा चुका है मुझसे. जब उसका चूस लिया तो क्या मेरे आशुतोष का नही चुसुन्गि क्या?"
"ग़लत टाइम पे आई तू ये करने आज थोड़ा व्यथित हूँ मैं."
श्रद्धा आशुतोष के लंड को मूह से निकाल कर उसके उपर लेट जाती है और उसकी आँखो में झाँक कर पूछती है, "क्या हुआ मेरे आशुतोष को. बताओ मुझे."
"कुछ नही तू नही समझेगी."
"समझूंगी क्यों नही तू बता तो."
"आज अपर्णा जी से मिला था. पता नही क्यों. वो मुझसे सीधे मूह बात ही नही करती." आशुतोष पूरी बात बताता है श्रद्धा को.
"बस इतनी सी बात है. अरे वो डरती होगी कि कही तुम किसी दिन झुका कर उसे उसकी गान्ड ना मार लो. सब बता रखा है मैने उसे की कैसे झुका कर लेते हो तुम...हा...हा...हा...हे...हे."
"क्या! कैसी कैसी बाते बता रखी हैं तूने मेरे बारे में अपर्णा जी को. तभी कहु वो इतना दूर क्यों भागती है मुझसे."
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"छोड़ ना उसे तू. क्यों बेकार में परेशान हो रहा है उसके लिए. मैं तेरे लिए कुछ अलग करने आई थी और तू ये रोना लेकर बैठ गया. चल मुख मैथुन का आनंद ले." श्रद्धा वापिस आ कर आशुतोष के लंड पर झुक गयी और उसे मूह में लेकर चूसने लगी.
"और क्या बता रखा है मेरे बारे में तूने?"
श्रद्धा आशुतोष का लंड मूह से निकालती है और कहती है, "तेरे लंड का साइज़, तेरे प्यार करने का तरीका सब बता रखा है. ये भी बता रखा है कि कैसे गान्ड पकड़ कर तुम चूत में लंड घुसाते हो. और ये भी बता रखा है कि तुम चुचियों को बहुत अच्छे से चूस्ते हो. तुम्हारे बारे में बातो बातो में सब बता रखा है."
"मतलब कि बहुत अच्छे तरीके से मिट्टी पलीट कर रखी है तूने मेरी. तुझे शरम नही आई उनसे ये बाते करते हुए. वो तो ये बाते सुनती ही नही होंगी. तूने ज़बरदस्ती सुनाई होंगी."
"मुझे बोलने की आदत है. बोल दिया सब बातो बातो में. क्यों परेशान हो रहे हो."
"परेशान होने की बात ही है. मेरी छवि खराब हो रखी है उनकी नज़रो में.. सीधे मूह बात भी नही करती वो मुझसे. आज बहुत दुख हुआ मुझे तू नही समझेगी."
"मैं सब समझ गयी. तेरा मन मुझसे भर गया है और अब तू अपर्णा जी की लेना चाहता है. हां मानती हूँ बहुत सुंदर है वो लेकिन जैसा मज़ा मैं देती हूँ तुझे वो सात जनम भी नही दे सकती."
"श्रद्धा! चुप रहो." आशुतोष चिल्लाता है. "कुछ भी बोल देती हो. मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ उनकी. ऐसा कुछ नही है जो तू समझ रही है."
"बस अब यही कमी रह गयी थी. अब अपर्णा के लिए मुझे डाँट भी पड़ रही है. ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुझ पर. सच सच बता तू कही प्यार तो नही करने लगा अपर्णा जी को."
"प्यार नाम के शब्द से भी कोसो दूर रहता हूँ मैं तू ये अच्छे से जानती है. मैने अपर्णा जैसी लड़की नही देखी दुनिया में कही. मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बस."
"आशुतोष मैने कभी प्यार नही पाया किसी का. कोई मिला ही नही जो मुझे प्यार करे. सब मेरे शरीर के पीछे थे. मैने भी कोशिश नही की प्यार पाने की. पर प्यार के अहसास को समझती हूँ मैं. हिन्दी फ़िल्मो में खूब देखा है प्यार का जलवा मैने. तुम्हारी बातो से यही लगता है कि तुम अपर्णा को चाहने लगे हो. वरना तुम भला क्यों परवाह करोगे कि वो तुम्हारे बारे में क्या सोचती है. जिस तरह से तुम बाते कर रहे हो, कोई भी बता सकता है कि तुम अपर्णा के प्रेम-जाल में फँस चुके हो. मेरा अब यहाँ कोई काम नही है. मैं चलती हूँ. अपना ख्याल रखना."
श्रद्धा उठ कर चल देती है.
आशुतोष अपने लिंग को वापिस पंत में डालता है और उठ कर श्रद्धा का हाथ पकड़ लेता है.
"तू तो नाराज़ हो गयी. बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रही है पगली कही की. चल आ बैठ तो सही."
"नही आशुतोष, तुम्हारी आँखो में अब अपर्णा का चेहरा दीख रहा है मुझे. तुम खुद सोच कर देखो. क्यों करते हो इतनी परवाह और चिंता अपर्णा की तुम."
"शायद इंसानियत के नाते."
"आज क्यों गये थे अपर्णा के ऑफीस तुम."
"मुझे उनकी चिंता हो रही थी. मुझे डर था की कही साइको उन्हे नुकसान ना पहुँचा दे."
"पूरे पोलीस महकमे में तुम्हे ही ये ख़याल आया. क्या कोई और नही है पोलीस में जिसे अपर्णा की चिंता हो."
"कैसी बाते करती है. मुझे उनका ख़याल आया और मैं चला गया. हर कोई अपर्णा जी की चिंता क्यों करेगा."
"वही तो मैं कहना चाहती हूँ. दिल में बस चुकी है अपर्णा तुम्हारे. अपने आप को धोका मत दो."
आशुतोष का सर घूमने लगता है और वो वापिस बिस्तर पर आकर सर पकड़ कर बैठ जाता है. श्रद्धा आशुतोष के पास आती है और उसके सर पर हाथ रखती है.
"क्या हुआ आशुतोष?"
"सर घूम रहा है मेरा. कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या कह रही हो तुम."
"मुझे जो लगा मैने बोल दिया. मैं ग़लत भी हो सकती हूँ. असली बात तो तुम ही जानते हो."
"मुझे कुछ नही पता श्रद्धा, सच में कुछ नही पता."
"क्या मैं यही रुक जाऊ तेरे पास. मुझे तेरी चिंता हो रही है. परेशान नही कारूगी बिल्कुल भी. आओ तुम्हारे सर की मालिस किए देती हूँ. अभी ठीक हो जाएगा."
"श्रद्धा बुरा मत मान-ना. तुम्हारी बातो ने मुझे झकझोर दिया है. मैं अकेला रहना चाहता हूँ."
"मुबारक हो. मैं बिल्कुल सही थी. तुम्हे सच में प्यार हो गया है. प्यार में डूबे आशिक अक्सर ऐसी बाते बोलते हैं. ठीक है अपना ख़याल रखना. कोई भी बात हो मुझे फोन कर देना मैं तुरंत आ जाउंगी."
"मैं तुम्हे छोड़ आउ."
"नही मैं चली जवँगी. अभी तो 9 ही बजे हैं."
श्रद्धा चली गयी और आशुतोष किन्ही गहरे ख़यालो में खो गया. कब उसने बाहों में तकिया दबोच लिया उसे पता ही नही चला. "अपर्णा जी ठीक से कुछ कह नही सकता. पर हां शायद आपसे प्यार हो गया है. भगवान भली करें अब मेरी. फिर से कही मैं बर्बाद ना हो जाऊ प्यार में."
आशुतोष को तो नींद ही नही आई सारी रात. ताकिया बाहों में दबाए कभी इस करवे कभी उस करवट. "आशुतोष सो जा आराम से कुछ मिलने वाला नही है प्यार में. पहले जब ये आया था जिंदगी में तो बहुत गहरी चोट दे गया था. अब क्या सितम ढाएगा पता नही. अपर्णा जी तुझे पसंद नही करती हैं समझ ले. तू उनके लायक भी नही है. ऐसे में क्यों सर दर्द मोल लेते हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो. कोई ख़तरनाक एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नही है, जान पर बन सकती है. सो जाओ कल को ड्यूटी पर भी जाना है. रात के 2 बज गये हैं....उफ्फ."
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आशुतोष ये सब सोच रहा था और उसी वक्त अपर्णा फिर से एक वेट ड्रीम के कारण उठ बैठी थी अपने बिस्तर पर.
सपने में आशुतोष उसके उभारो का रस पान कर रहा था और वो उसका सर पकड़ कर आइ लव यू कह रही थी.
अपर्णा दिल पर हाथ रख कर बैठी थी. उसकी हालत देखने वाली थी. "क्या हो रहा है मेरे साथ ये. क्यों आ रहे हैं ये गंदे और भयानक सपने मुझे. आशुतोष को तो मैं कभी माफ़ नही कारूगी. बदतमीज़ कही का. उसे कोई हक़ नही है मुझे छूने का चाहे वो हक़ीकत हो या सपना."" अपर्णा ने कहा.
अपर्णा उठी और पानी पिया. पानी पी कर वो खिड़की पर आ गयी. उसने बाहर झाँक कर देखा. बहुत भयानक सन्नाटा था बाहर. एक ही कॉन्स्टेबल नज़र आ रहा था उसे अपने घर के बाहर. "एक ही खड़ा है ये तो. बाकी के तीन कही दिखाई नही दे रहे. पता नही कैसी सुरक्षा है ये."
अपर्णा वापिस आ कर लेट गयी. लेकिन दुबारा उसे नींद नही आई.
..............................
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रात बीत गयी और सुबह ने दस्तक दी. आशुतोष तो एक पल भी नही शोया था. वो नहा धो कर वर्दी पहन कर सौरभ के घर की तरफ निकल पड़ा. दिल जब बहुत बेचैन हो किसी बात को लेकर तो अक्सर एक अच्छे दोस्त की याद आती है जिसके साथ अपना गम बाँटने की इच्छा रहती है.
"आशुतोष तू...सुबह सुबह आज कैसे याद आ गयी मेरी." सौरभ ने पूछा.
"पहले ये बता कल क्या तमासा लगा रखा था जंगल में. शूकर मनाओ की मैं साथ था ए एस पी साहिबा के वरना तुम जैल मे पड़े होते अभी. कौन थी वो लड़की और उसे जंगल में क्यों ले गये थे तुम."
"पूछ मत यार. आ बैठ. वर्दी बहुत जच रही है तुझ पे."
आशुतोष कुर्सी पर बैठ जाता है और सौरभ अपने बिस्तर पर.
"हां बताओ अब गुरु क्या मामला था."
"कल पूजा के कॉलेज गया था. अब यार कुछ तो करना होगा ना पूजा को पटाने के लिए. पूजा के साथ दो लड़किया थी. उनमे से एक कविता थी. उसने सारा मामला बिगाड़ दिया मेरा." सौरभ पूरी बात डीटेल में बताता है.
"बस मैं उस कविता को मज़ा चखाने के लिए उसकी गान्ड में डाल रहा था. बस फिर तुम लोग आ गये. बहुत अच्छी फ़ज़ीहत हुई मेरी. कही मूह दिखाने लायक नही रहा."
"शूकर मना उस कविता ने बोल दिया कि तुम रेप नही कर रहे थे वरना ए एस पी साहिबा जैल में डाल देती तुम्हे."
"ये तो है...बाल-बाल बचा हूँ मैं. शुक्रिया तेरा दोस्त. अच्छा ये बता कैसा चल रहा है. कल से मैं भी जा रहा हूँ जॉब पर."
"कौन सी जॉब?" आशुतोष ने पूछा.
"एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी जॉइन कर ली है मैने. कल से मैं भी बिज़ी रहूँगा."
"बहुत अच्छी बात है ये तो गुरु. मैं पोलीस तुम डीटेक्टिव."
"और बताओ क्या चल रहा है." सौरभ ने कहा
"पूछ मत गुरु, एक अजीब मुसीबत में पड़ गया हूँ मैं. कल सारी रात सो भी नही पाया."
"ऐसा क्या हो गया आशुतोष." सौरभ ने पूछा
"लगता है फिर से प्यार हो गया है मुझे."
"क्या बात कर रहा है, कौन है वो बदनसीब?"
"मज़ाक मत करो गुरु. ये मज़ाक की बात नही है." आशुतोष के चेहरे पर गंभीर भाव थे.
"तूने भी तो मुझे यही कहा था जब मैं हॉस्पिटल में था. कुछ याद आया. अच्छा चल छोड़. बताओ कौन है वो हसीना जो तेरा दिल ले उड़ी."
"अपर्णा जी...पर किसी को बताना मत." आशुतोष ने कहा.
"क्या! तुझे अपर्णा से प्यार हो गया...... क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहा है."
"मैं पहले ही परेशान हू गुरु अब और परेशान मत करो."
"तूने कुछ कहा अभी तक उसे?"
"पागल हो क्या, ज़ुबान खींच लेंगी वो मेरी. कुछ कहूँगा नही कभी. बस अपने दिल तक ही शिमित रखूँगा इस प्यार को मैं."
"फिर तो परेशानी की कोई बात ही नही है, क्यों परेशान हो फिर."
"कल रात नींद नही आई भाई इस चक्कर में. बताओ मैं क्या करू."
"ऐसा है तो बोल दो जाके अपने दिल का हाल अपर्णा को. दिक्कत क्या है."
"नही गुरु उन्हे कुछ नही कह पाउन्गा. मैं तो बस तुम्हे बता रहा था. मेरा कोई इरादा नही है कि लव के पछदे में पडू फिर से."
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Update 55
"पछदे में तो तू पड़ ही चुका है. तेरा दिल अपर्णा ले गयी मेरा दिल पूजा ले गयी. हम दोनो ही फँस गये यार."
"तेरा तो कुछ हो भी सकता है. मेरा तो दिल ऐसी जगह लगा है जहा कोई चान्स नही है. अच्छा मैं चलता हूँ. 9 बज रहे हैं, ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूँ. अरे हां एक बात और करनी थी."
"हां बोलो."
"मुझे लगता है जंगल में कुछ गड़बड़ है. वो साइको जंगल के पास ही वारदात करता है अधिकतर. तुझे क्या लगता है क्या कारण हो सकता है."
"बात तो सही कह रहे हो...हो सकता है कि कुछ आशु छुपा हो जंगल में." सौरभ ने कहा.
तभी सौरभ के रूम का दरवाजा खड़का. सौरभ ने आकर देखा. वो तो भोंचक्का रह गया.
"तुम! यहाँ कैसे."
"पूजा से अड्रेस लिया तुम्हारा और पहुँच गयी." कविता ने कहा और कमरे में घुस गयी. उसने आशुतोष को पहचान लिया. वो बोली, "ओह आप भी यहाँ है, कल आप ना आते वक्त पर तो ये हमें मार डालते."
आशुतोष फ़ौरन खड़ा हो गया और चल दिया, "अच्छा गुरु मैं चलता हूँ."
"आशुतोष रूको यार अकेला छोड़ कर मत जाओ मुझे." सौरभ ने कहा.
"हन रुक जाओ ना आप...मेरे आते ही क्यों भाग रहे हैं." कविता ने कहा.
"मोहतार्मा अभी हमारा मन ज़रा व्यथित है वरना आपका वो हाल करते कि आप हमें कभी रुकने को ना कहती. गुरु सम्भालो इस जंजाल को मैं लेट हो रहा हूँ." आशुतोष कह कर कमरे से निकल जाता है.
"तुम्हारा दोस्त तो बड़ा आरोगेंट है. तमीज़ ही नही बात करने की." कविता बोली.
"यहाँ क्यों आई हो अब मेरी मा. ले तो ली थी कल तुम्हारी मैने. अड्रेस भी पूजा से लेकर आई हो. क्यों बिगाड़ने पे तूलि हो मेरा काम तुम. तुम्हे क्या कमी है लड़को की जो मेरे पीछे पड़ गयी."
"लड़के तो बहुत हैं पर आप जैसा शायर नही मिला कोई."
"मैं कोई शायर नही हूँ...वो तो यू ही बोल दी थी कुछ लाइन्स मैने."
दरवाजा खुला ही था. श्रद्धा आ गयी अंदर.
"अरे श्रद्धा तुम आओ...आओ बहुत अच्छे वक्त पर आई हो." सौरभ तो खुश हो गया श्रद्धा को देख कर.
"ये कौन है?" कविता ने पूछा. कविता पूजा की बहन से मिली नही थी इसलिए श्रद्धा को नही जानती थी.
"ये मेरी गर्ल फ्रेंड है...श्रद्धा"
"गुड फिर तो बहुत अच्छी ऑपर्चुनिटी है. लेट्स हॅव आ फन टुगेदर."
"क्या बकवास कर रही हो. मेरी गर्ल फ्रेंड के सामने ऐसी बाते मत करो." सौरभ ने कहा और श्रद्धा के पास आकर उसके कान में कहा,"इस से छुटकारा दिलवा तो श्रद्धा, मेरे पीछे पड़ी है."
श्रद्धा कविता के पास आई और बोली, "चली जाओ यहाँ से, मेरे बॉय फ्रेंड को अकेला छोड़ दो."
"तू भी यहाँ मस्ती करने आई है ना. साथ में मस्ती करते हैं. हम आपस में भी कुछ....." कविता श्रद्धा की तरफ बढ़ी.
"एक साथ मस्ती, ये क्या बकवास है. दफ़ा हो जाओ यहाँ से." श्रद्धा ने पीछे हट-ते हुए कहा.
लेकिन श्रद्धा दीवार से टकरा कर रुक गयी. कविता उसके बहुत करीब आ गयी. इतना करीब की दोनो के बूब्स आपस में टकरा रहे थे. श्रद्धा की तो हालत पतली हो गयी. इस से पहले की वो कुछ कर पाती कविता ने उसके होंठो पर अपने होठ टिका दिए. श्रद्धा तो सकपका गयी और उसने कविता को ज़ोर से धक्का मारा. कविता फर्श पर गिर गयी.
"उफ्फ ये क्या बला है...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की." श्रद्धा ने कहा और टूट पड़ी कविता पर. बाल नोच लिए उसने उसके.
"बच्चाओ मुझे आअहह." कविता सौरभ की तरफ देख कर गिड़गिडाई.
"भुगतो अब...मेरी गर्ल फ्रेंड को लेज़्बीयन आक्ट बिल्कुल पसंद नही है" सौरभ ने कहा.
"छोड़ तो मुझे आअहह." कविता ने कहा.
"मेरी किस क्यों ली तूने बता मुझे. जींदा नही छोड़ूँगी तुझे मैं." श्रद्धा ने कहा.
श्रद्धा तो छोड़ ही नही रही थी कविता को. मामला गंभीर होता देख सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ कर कविता के उपर से खींच लिया. "छोड़ दो बहुत हो गया. सारे बाल नोच लोगि क्या बेचारी के."
कविता फ़ौरन उठी और वहाँ से रफू चक्कर हो गयी. उसने पीछे मूड कर भी नही देखा. कविता नाम की बला सौरभ के सर से शायद टल गयी थी.
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"बहुत बहुत शुक्रिया तुम्हारा श्रद्धा. वो तो पीछे ही पड़ गयी थी मेरे."
"तुम ना हटाते मुझे तो जान से मार देती कुतिया को. सारा मूड खराब कर दिया मेरा."
सौरभ ने दरवाजा बंद किया और श्रद्धा का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर ले आया. "अब शांत हो जाओ...पानी दू क्या?"
"नही मैं ठीक हूँ. कौन थी वैसे ये छिनाल."
"छोड़ो उसे ये बताओ आज मेरी याद कैसे आई तुम्हे."
"बापू घर पर नही है. तुम्हे वादा कर रखा था कभी..इसलिए आई थी...पर सारा मूड खराब कर दिया उसने."
"उसे गोली मारो तुम...आओ हम अपना काम करते हैं. वैसे आजकल मेरा दिल एक लड़की में अटका है...इसलिए मन नही होता किसी के साथ कुछ करने का. लेकिन अपनी बहुत पहले बात हुई थी इसलिए उसे पूरा करते हैं आज."
"आशुतोष का दिल भी कही अटका है, तुम्हारा भी अटका है...हो क्या रहा है. आशुतोष तो अपर्णा के जाल में फँस गया. तुम्हारा दिल कौन ले उड़ी." श्रद्धा ने पूछा.
अब सौरभ कैसे बताए पूजा का नाम. दिक्कत हो जाएगी. "छोड़ ना ये बाते मूड ही खराब होगा."
"शूकर है...मतलब कि तुम्हारा मूड है."
"और नही तो क्या?"
"मैं तो डर ही गयी थी...एक काम करने का मन है...करू"
"हां-हां करो."
"सीधे लेट जाओ फिर." श्रद्धा ने कहा.
सौरभ लेट गया और श्रद्धा उसकी टाँगो के बीच बैठ गयी. उसने सौरभ की पेण्ट की ज़िप खोली और सौरभ का लंड बाहर निकाल लिया. वो काले नाग की तरह फन-फ़ना रहा था.श्रद्धा ने लंड को मूह में ले लिया और चूसने लगी.
"कहा तो ब्लो जॉब मिलती नही थी अब लड़किया खुद मेहरबान हो रही हैं. वाओ बहुत अच्छा चूस रही हो श्रद्धा. लगी रहो."
श्रद्धा कुछ देर तक यू ही चूस्ति रही लंड और सौरभ उसके सर को सहलाता रहा. कुछ देर बाद श्रद्धा ने अपनी सलवार का नाडा खोला और लंड को सीधा पकड़ कर उस पर अपनी चूत टिका दी.
"पहली बार तुम्हारा लंड चूत में ले रही हूँ...देखते हैं कैसा लगता है."
श्रद्धा ने अपनी गान्ड को नीचे की तरफ पुश किया और सौरभ का लंड श्रद्धा की चूत में घुसता चला गया.
"अच्छी चूत है तुम्हारी...पकड़ अच्छी है लंड पर...गुड...पूरा घुसा लो अंदर आआहह." सौरभ कराह उठा. श्रद्धा ने पूरा अंदर ले लिया था.
अब वो धीरे धीरे सौरभ के लंड को चूत में फँसाए हुए अपनी गान्ड को उछालने लगी.
"आआअहह अच्छा लग रहा है ये लंड चूत में. गांद में तो बहुत दर्द दिया था इसने आअहह." श्रद्धा आँखे बंद किए हुए सौरभ के उपर उछल रही थी.
जल्दी ही सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ा और उसे अपने नीचे ले आया. इस दौरान लंड चूत में ही फँसा रहा. श्रद्धा को नीचे लाकर सौरभ ने उसकी टाँगो को कंधे पर रखा और धक्को की बोछार शुरू कर दी श्रद्धा की चूत में.
श्रद्धा तो लगातार काई बार झड़ी. उसकी शिसकिया कमरे में गूँज रही थी. अचानक सौरभ ने स्पीड बहुत तेज बढ़ा दी. और वो कुछ देर बाद ढेर हो गया श्रद्धा के उपर.
"कैसा लगा मेरा लंड तुम्हारी चूत को."
"बहुत अच्छा लगा. एक बार फिर से करना पड़ेगा तुम्हे."
"करूँगा ज़रूर करूँगा. एक बात कहु"
"हां कहो."
"काश तुम पर ही दिल आ जाता मेरा. तुम अच्छी लड़की हो." सौरभ ने कहा.
"अगर ऐसा होता तो मैं सब कुछ छोड़ देती तुम्हारे लिए. पर प्यार कहा अपनी किस्मत में. अपनी किस्मत में तो लंड के धक्के लिखे हैं."
"शादी कब कर रही हो तुम."
"शादी और मैं, ये सवाल मत पूछो तुम."
"क्यों क्या हुआ, शादी की उमर तो है तुम्हारी. शादी नही करना चाहती क्या. या फिर यू ही मज़े लोगि तुम"
"तुम नही समझोगे रहने दो"
"क्या बात है बताओ तो" सौरभ ने उत्सुकता से पूछा.
"दहेज के लिए पैसा कहाँ है बापू के पास जो शादी होगी. वैसे भी मेरा मन नही है शादी करने का. मेरी बहन पूजा की शादी हो जाए बस कही अच्छी जगह. उसी के लिए दुवा करती हूँ. बापू हम दोनो का बोझ नही उठा सकते सौरभ. एक की ही शादी हो सकती है. और मैं चाहती हूँ कि पूजा का घर बस जाए. मेरा क्या है...मेरा चरित्र तो बीवी बन-ने लायक रहा भी नही है. क्यों किसी को धोका दू." कहते-कहते श्रद्धा की आँखे भर आई थी.
सौरभ श्रद्धा के उपर था और अभी भी उसमें समाया हुआ था. वो तो श्रद्धा को देखता ही रह गया. उसने श्रद्धा के होंठो को किस किया और बोला, "मुझे नही पता था कि श्रद्धा ऐसी बाते भी कर सकती है."
"मैं क्या इंसान नही हूँ" श्रद्धा ने सवाल किया.
"मेरा वो मतलब नही है."
"निकाल लो बाहर सौरभ. थोड़ा सा भावुक हो गयी हूँ. मन हुआ तो थोड़ी देर में करेंगे." श्रद्धा ने कहा.
"ओह हां सॉरी...." सौरभ ने लिंग बाहर खींच लिया.
"मुझे गर्व है खुद पे की मैने तुम्हारे साथ संभोग किया श्रद्धा." सौरभ ने कहा.
दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खो गये कही अपने बीच उभरे जज्बातो में. दोनो लिपटे ही रहे कुछ कर नही पाए बाद में. शायद एक दूसरे से लिपटे रहना ज़्यादा अच्छा लग रहा था दोनो को.
"श्रद्धा मैं तो तुम्हे बहुत बुरी समझता था. लेकिन आज मेरा नज़रिया बदल गया." सौरभ ने कहा.
"बुरी तो मैं हूँ ही. तुम ठीक ही समझते थे. जानते तो हो ही मेरे बारे में सब." श्रद्धा ने कहा.
"हां जानता हूँ. पर तुम्हारा ये जज्बाती रूप नही देखा था मैने. तुम उतनी बुरी नही हो जितना मैं समझता था. तुम अच्छी लड़की हो."
"अच्छी हूँ तो क्या प्यार कर सकते हो मुझसे" श्रद्धा ने सौरभ की आँखो में झाँक कर पूछा.
"चाहने लगा हूँ किसी और को वरना कर लेता तुझे प्यार." सौरभ ने कहा.
"अच्छा छोड़ो उसका नाम तो बताओ, कौन है वो, कहा रहती है, क्या करती है. कुछ तो बताओ."
"अभी कुछ नही बता सकता...सॉरी...अच्छा ये बता तेरा बापू कहाँ चला जाता है बार-बार...काम पर ध्यान देगा वो तो अच्छा कमा लेगा."
"छोटी सी पान की दुकान है बापू की. क्या कमाएँगे. गाँव में खेत है छोटा सा उसकी देख रेख के लिए जाते रहते हैं वो."
"ह्म्म...चल चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा."
"तुम्हारे लंड में हरकत हो रही है, कुछ करने का मन है क्या?" श्रद्धा ने सौरभ से पूछा.
"मन कैसे नही होगा तू इतने पास जो पड़ी है." सौरभ ने कहा.
"आ जाओ फिर. मुझे गम भुलाने के लिए एक तूफान की ज़रूरत है. मचा दो तूफान मेरे अंदर." श्रद्धा ने कहा.
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Update 56
सौरभ का लंड ये सुनते ही फूँकारे मारने लगा. वो श्रद्धा के उपर आ गया और लंड को उसकी चूत पर रख दिया. "डाल दू एक झटके में."
"जैसे मर्ज़ी करो मुझे बस एक तूफान चाहिए हमारे बीच."
ये सुनते ही सौरभ ने एक झटके में पूरा लंड श्रद्धा की चूत में डाल दिया. श्रद्धा कराह उठी, "आआहह"
"पहले से ज़्यादा अच्छी एंट्री दी है चूत ने तुम्हारी...क्या कारण है."
"प्यारी बाते करके कर रहे हैं ना हम शायद इसलिए. करो ज़ोर ज़ोर से मैं खो जाना चाहती हूँ आआअहह"
कमरे में वाकाई में तूफान आ गया था. श्रद्धा ने सौरभ की कमर में अपने नाख़ून गाढ दिए थे उत्तेजना में. सौरभ इतने जोरो से लंड धकैल रहा था श्रद्धा की चूत में की बेड भी चर-चर की आवाज़ करने लगा था.
तूफान जब थमा तो दोनो यू ही एक दूसरे में समाए हुए चुपचाप पड़े रहे. कब नींद आ गयी पता ही नही चला उन्हे.
..............................
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....................................
आशुतोष ने थाने पहुँच कर चौहान से अपर्णा के लिए 2 और कॉन्स्टेबल की माँग की जो उसे ऑफीस से घर और घर से ऑफीस छोड़ेंगे.
"जिन्हे ऑफीस के बाहर लगाया है वो ही अपर्णा के साथ चले जाया करेंगे. इसमे दिक्कत क्या है."
"बिल्कुल ठीक है सर. मैं ज़रा ए एस पी साहिबा से मिल आउ." आशुतोष ने कहा.
"बिल्कुल मिल आओ. हम तो दूर ही रहते हैं ऐसी कयामत से."
आशुतोष अंकिता के कमरे में आता है.
"मिल गयी रेवोल्वेर तुम्हे?" अंकिता ने पूछा.
"मिल गयी मेडम, थॅंक यू वेरी मच. मेडम आपसे कुछ बात करनी थी."
"थोड़ा बिज़ी हो...बहुत ज़रूरी हो तो बोलो." अंकिता ने कहा.
"मेडम...साइको के बारे में है ये."
"क्या है...बैठो और बताओ क्या बात है."
"मेडम मैने नोट किया है कि साइको ने अधिकतर वारदात जंगल के आस-पास ही की है."
"आज की वारदात का पता चला तुम्हे."
"नही मेडम क्या हुआ."
"अपर्णा के ऑफीस के ठीक बाहर मर्डर हुआ है कल कहाँ रहते हो तुम. ऐसे ही करोगे क्या नौकरी."
"क्या! मुझे ये किसी ने नही बताया." आशुतोष ने कहा.
"आस पास क्या हो रहा है उसकी खबर रखना तुम्हारी ड्यूटी है. ऐसे बेख़बर रहोगे तो सस्पेंड कर दूँगी तुम्हे."
आशुतोष का तो चेहरा ही उतर गया.
"मुझे लगता है वो साइको अपर्णा के लिए ही आया था वहाँ. लेकिन किसी कारण वश वो अपर्णा को नुकसान नही पहुँचा सका."
"इसका मतलब अपर्णा जी को और ज़्यादा प्रोटेक्शन की ज़रूरत है."
"बिल्कुल. आज से तुम उसके साथ 24 घंटे रहोगे. अपर्णा की रक्षा करना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है अब. मैने अपर्णा को भी बता दी है ये बात. पता नही वो क्यों कह रही थी कि तुम्हारी जगह किसी और को रखा जाए उसके साथ. लेकिन कुछ कारनो से मुझे किसी और पर विश्वास नही है अभी."
"ऐसा क्यों मेडम?"
"जो गोली चलाई थी उस साइको ने मेरी तरफ सड़क पर वो पोलीस महकमे की है. वो गोली जीप में घुस गयी थी. जाँच कराई मैने उसकी."
"ये तो बहुत गंभीर बात है मेडम. आपने इतनी बड़ी बात मुझे बताई. क्या आपको विश्वास है मुझ पर."
"है लेकिन अगर तुम ऐसे बेख़बर रहोगे तो विश्वास खो दोगे मेरा. बहुत अलर्ट रहने की ज़रूरत है तुम्हे."
"समझ गया मेडम."
"जाओ अब से तुम्हारी ड्यूटी बस अपर्णा की प्रोटेक्शन की है. उसका जींदा रहना ज़रूरी है अगर साइको को पकड़ना है तो."
"वो जींदा रहेंगी तभी मैं भी जींदा रहूँगा." आशुतोष बहुत धीरे से बोला.
"कुछ कहा तुमने?"
"नही मेडम, आपकी इज़ाज़त हो तो मैं चलु."
"हां जाओ. और हन सारे कॉन्स्टेबल जो अपर्णा की सुरक्षा के लिए लगे हैं वो सब तुम्हारे अंडर हैं अब. डू योर जॉब प्रॉपर्ली वरना."
"सस्पेंड नही होना मुझे.... समझ गया मैं मेडम." आशुतोष ने कहा.
"ओके दॅन डू योर ड्यूटी." अंकिता ने कहा.
"थॅंक यू मेडम" आशुतोष बाहर आ जाता है.
"अपर्णा जी के साथ 24 घंटे. इस से अच्छा कुछ नही हो सकता मेरे लिए. पर अपर्णा जी पता नही कैसे लेंगी इस बात को." आशुतोष थाने से बाहर निकलते हुए सोच रहा है.
आशुतोष जीप में बैठा अपर्णा के ऑफीस की तरफ बढ़ रहा था. "इस वक्त तो ऑफीस में ही होंगी अपर्णा जी. पता नही कैसे रिक्ट करेंगी मुझे देख कर. पर ये गोली वाला मसला तो बहुत गंभीर है. मडड़म साहिबा का मतलब क्या था. क्या साइको पोलीस वाला? या फिर वो ब्लॅक मार्केट से पोलीस की गोलिया खरीद कर पोलीस पर ही बरसा रहा है. गोली पोलीस महकमे की होने से ये साबित नही होता की वो पोलीस वाला है. लेकिन जो भी हो ये मुद्दा है बहुत गंभीर. मुझे अलर्ट रहना होगा. मेरे होते हुए अपर्णा जी को कोई भी ज़रा सा भी नुकसान नही पहुँचा सकता."
अपर्णा के ऑफीस पहुँच कर आशुतोष एक कॉन्स्टेबल से पूछता है. "कहाँ हुआ खून कल रात."
"सर जहा आप खड़े हैं बिल्कुल यही मिली थी लाश."
"क्या! यहाँ." आशुतोष तुरंत वहाँ से हट जाता है.
"तुम लोगो ने देखा कुछ?" आशुतोष ने पूछा.
"सर उन मेडम के जाने के बाद हम भी चले गये थे. हमने कुछ नही देखा."
"ह्म्म...मेरी ड्यूटी भी अब मेडम को प्रोटेक्ट करने की है. मुझे बताए बिना इधर उधर मत जाना. मेरा मोबायल नंबर ले लो. कोई भी बात हो तो तुरंत मुझे कॉल करना."
"जी सर बिल्कुल" दोनो कॉन्स्टेबल्स ने जवाब दिया.
आशुतोष ने ऑफीस के बाहर अच्छी तरह मूवाईना किया. पहले तो अपर्णा के कारण ऑफीस के अंदर जाने की उसकी हिम्मत नही हुई. लेकिन फिर वो हिम्मत करके घुस ही गया. "कोई और रास्ता है ऑफीस में घुसने का." आशुतोष ने चौकीदार से पूछा.
"नही साहिब बस यही एक रास्ता है जहा से आप आए हैं."
"पिछली तरफ तो कोई गेट नही है ना." आशुतोष ने पूछा.
"नही साहिब पीछे कोई गेट नही है"
अपर्णा एक फाइल हाथ में लिए अपने बॉस के केबिन की तरफ बढ़ रही थी. सामने से आशुतोष चौकीदार से बाते करता हुआ आ रहा था. दोनो का ध्यान एक दूसरे पर नही गया. टक्कर हो ही जाती वो तो आखरी मोमेंट पर अपर्णा ने देख लिया आशुतोष को. "तुम ऑफीस में क्या कर रहे हो?"
"अपर्णा जी आपकी सुरक्षा के लिए मूवाईना कर रहा था ऑफीस का मैं. देख लिया मैने सब कुछ. यहाँ अंदर कोई ख़तरा नही है आपको. बाहर हम हैं ही."
"अच्छी बात है, इसका मतलब तुम बाहर ही रहोगे. शूकर है...." अपर्णा ने कहा.
"हां मैं बाहर ही रहूँगा, कोई भी बात हो तो आप तुरंत फोन करना मुझे."
"हां ये ठीक है. बाहर ही रहो तुम. अंदर मत आना बार-बार ऑफीस के काम में डिस्टर्बेन्स होती है."
"आप चिंता ना करो अपर्णा जी. मेरी वजह से कोई परेशानी नही होगी आपको."
आशुतोष बाहर आ गया ऑफीस से और ऑफीस के सामने खड़ी अपनी जीप में बैठ गया.
"बहुत सुंदर लग रही थी आज भी अपर्णा जी. चेहरे पर गुस्सा था मुझे देख कर. भगवान हसीन लोगों को इतना गुस्सैल क्यों बनाते हैं."
................................................................
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अंधेरा था चारो तरफ. घनघोर अंधेरा. उसकी आँख खुली तो वो बहुत घबरा गयी. पहले तो उसे लगा कि ये एक सपना है मगर नही ये सपना नही था. वो अंधेरे में हाथ मारते हुए उठ गयी. "कहा हूँ मैं" उसने सोचा.
वो अंधेरे में हाथ मारते हुए इधर उधर भटक रही थी. अचानक वो किसी से टकरा गयी. "क...क...कौन है" और वो वहाँ से पीछे हट गयी.
"पहले तुम बताओ तुम कौन हो?" उसे आवाज़ आई.
"क्या मज़ाक है ये. मैं यहाँ कैसे आई."
"क्या तुम्हारी आँख भी यही खुली है. मुझे भी अभी होश आया और खुद को इस अंधेरी जगह पाया."
तभी एक बल्ब वहाँ जगमगा उठा और कमरे में रोशनी हो गयी. दोनो की नज़र एक दूसरे पर पड़ी. लड़की जवान थी. कोई 21-22 साल की होगी. आदमी 40-45 का लगता था. उन्होने एक दूसरे को देखा और काई सवाल उनके मन में उभर आए.
"वेलकम हियर. स्वागत है आप दोनो का यहाँ." कुर्सी पर बैठा नकाब पोश बोला.
दोनो ये सुन कर हैरान रह गये. उन्हे लगा था कि वो दोनो वहाँ अकेले हैं.
"कौन हो तुम भाई और हमे यहाँ क्यों लाया गया है." आदमी ने पूछा.
"साइको किलर से उसकी पहचान पूछते हो. ज़्यादा सवाल करोगे तो अभी काट डालूँगा."
दोनो ये सुनते ही थर थर काँपने लगते हैं.
"क्या चाहते हैं आप हमसे?" आदमी ने पूछा.
"इस लड़की का रेप करो. ये लड़की बचने को कोशिश करेगी. तुम रेप करने में कामयाब रहे तो तुम्हे छोड़ दूँगा और इस लड़की को काट डालूँगा. अगर ये तुम्हारे रेप अटम्ट से बच जाएगी तो इसे यहाँ से जाने दूँगा और तुम्हे काट डालूँगा. सिंपल सी गेम है चलो शुरू हो जाओ." साइको ने कहा.
दोनो ये सुन कर भोंचके रह गये. "ये क्या बकवास है, तुम ऐसा नही कर सकते हमारे साथ." लड़की ने कहा.
"एक घंटे का वक्त है तुम दोनो के पास ये गेम खेलने का. नही खेलोगे तो दोनो मरोगे. खेल में एक की जान बच सकती है." साइको ने कहा.
"देखो मैं ऐसा नही कर सकता...प्लीज़ हमें जाने दो."
साइको ने बंदूक निकाल ली और आदमी को निशाना बनाया.
"रूको....मैं कोशिश करूँगा." आदमी ने कहा.
"व्हाट! तुम मेरा रेप करोगे इस साइको से डर कर. मैं ये हरगिज़ नही होने दूँगी."
"हा...हा...हा...हे...हे...यही तो सारी गेम है. ये लड़की तो बड़ी जल्दी समझ गयी." साइको क्रूरता से हंस कर बोला. "वक्त बर्बाद मत करो वरना दोनो मारे जाओगे."
आदमी लड़की के पास आया और उसे दबोच लिया, "मुझे यहाँ से जींदा निकलना है."
लड़की ने उसे ज़ोर से धक्का मारा और वो दूर जा कर गिरा. "पागल मत बनो. ये वैसे भी हमें छोड़ने वाला नही है."
लेकिन आदमी उठ कर इस बार बुरी तरह टूट पड़ा लड़की पर. उसने इतना मारा उसे कि वो गिर गयी ज़मीन पर ."मुझे माफ़ करना पर मैं मरना नही चाहता"
लड़की जीन्स पहने थी. आदमी ने जीन्स के बटन खोल कर जीन्स नीचे सरका दी.
"नही रुक जाओ. पागल मत बनो. आय ऍम वर्जिन. ऐसा मत करो."
आदमी ने चार पाँच थप्पड़ जड़ दिए लड़की के मूह पर. "समझने की कोशिश करो मैं मरना नही चाहता.
"बहुत खूब. तुम यहाँ से बाहर ज़रूर निकलोगे." साइको ने कहा.
आदमी ने जीन्स निकाल दी लड़की की और उसकी पॅंटी भी खींच कर फुर्ती से उसके शरीर से अलग कर दी. उसने अपने लंड को बाहर निकाला और लड़की की टांगे फैला कर.................................
"आआअहह नहियीईईईईईईईईईई" लड़की दर्द से कराह उठी.
लेकिन अगले ही पल वो आदमी भी दर्द से चिल्लाया.
"ओह...नो." उसकी गर्दन में चाकू गोंप दिया था साइको ने.
लड़की ने ये सब अपनी आँखो से देखा. इतना शॉक लगा उसे कि वो बेहोश हो गयी.
"ये काम अच्छा है. शिकार को यहाँ लाओ उठा कर और आराम से जब मन करे काट डालो. ये लड़की तो बेहोश हो गयी शायद. बहुत काम आएगी ये....हे...हे...हे"
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Update 57
अंकिता अपने कमरे में फोन पर बात कर रही थी. वो बहुत परेशान लग रही थी. फोन रख कर उसने बेल बजाई.
"जी मेडम"
"इनस्पेक्टर चौहान को बुलाओ जल्दी." अंकिता ने कहा.
"जी मेडम"
चौहान भागा भागा आता है.
"यस मेडम. आपने बुलाया."
"हमारे यहाँ से जो ऍम.पि. हैं उनकी बेटी निशा को अगवा कर लिया है साइको ने और डिमांड की है कि अपर्णा को उसे सौंप दिया जाए वरना वो मार डालेगा निशा को."
"उफ्फ नाक में दम कर रखा है इस साइको ने." चौहान ने कहा.
"हम अपना काम ठीक से नही करेंगे तो यही होगा. कल जंगल में एक घंटे में पहुँची पोलीस. निक्कममे हो तुम सब लोग."
"सॉरी मेडम पर सब को इक्कथा करने में वक्त भी तो लगता है."
"मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. जाओ ये पता करो कि फोन कहाँ से किया उस साइको ने ऍम.पि. के घर. कुछ करो वरना हम सबकी नौकरी ख़तरे में है."
"आप फिकर ना करें मेडम, मैं पूरी कोशिश करूँगा. मुझे इज़ाज़त दीजिए." चौहान ने कहा.
"ठीक है जाओ और कुछ रिज़ल्ट्स लाओ." अंकिता ने कहा.
चौहान के जाने के बाद अंकिता सर पकड़ कर बैठ गयी. "मेरे यही होना था ये सब."
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"निशा...मेरी प्यारी निशा...उठ जाओ कब से इंतजार कर रहा हूँ तुम्हारा. उठो ना." साइको निशा के पास बैठा बोल रहा था.
निशा को बहुत गहरा सदमा लगा था और वो अभी भी बेहोश ही थी. साइको बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि वो उठ जाए.
साइको ने निशा की नंगी टाँगो पर हाथ रखा और बोला, "उठो निशा और मुझे तुम्हारी आँखो में ख़ौफ़ दिखाओ. बहुत हसीन ख़ौफ़ है तुम्हारा. जब मैने लाइट जलाई थी तो बहुत सुंदर ख़ौफ़ था तुम्हारे चेहरे पे. ऐसा सुंदर ख़ौफ़ बहुत कम देखा है मैने. उठो और मुझे दीदार करने दो तुम्हारे ख़ौफ़ का."
जैसी कि ये खौफनाक बाते सुन ली निशा ने और उसकी आँख खुल गयी. लेकिन साइको को पास खड़े देख उसकी टांगे थर थर काँपने लगी. बहुत ज़्यादा डरी हुई थी वो.
"उठ गयी मेरी प्यारी निशा...गुड. अब मज़ा आएगा."
"मुझे छोड़ दो प्लीज़. मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है." निशा रो पड़ी.
"मेरा कोई कुछ बिगाड़ भी नही सकता. अगर इस हिसाब से चलूँगा तो किस को कातूंगा मैं. बात को समझने की कोशिश करो."
निशा ने गौर किया कि वो उस जगह नही है जहाँ उसकी आँख खुली थी. वहाँ तो कमरे में कोई बेड नही था. लेकिन अब वो बेड पर पड़ी थी और साइको उसके पास खड़ा था. कमरा उस पहले वाले कमरे से कुछ मिलता जुलता ही था.
"क्या देख रही है चारो तरफ. चल एक गेम खेलते हैं. ये चाकू देख कितना तीखा है. अब मेरा लंड भी देख वो भी तीखा है." साइको अपनी ज़िप खोलने लगा.
साइको ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर खींच लिया. लिंग पूरी तरह तना हुआ था.
"देख इस लंड को. अब तुझे हाथ रख कर ये बताना है कि तू अपनी चूत में ये चाकू लेगी या फिर ये लंड लेगी. हाथ रख कर बोलना भी है. चाकू पर हाथ रखोगी तो चाकू बोलना, लंड पे हाथ रखोगी तो लंड बोलना"
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ. प्लीज़ मुझे जाने दो." निशा फूट फूट कर रोने लगी."
"आर्टिस्ट हूँ मैं आर्टिस्ट. कत्ल करना भी एक आर्ट है. बहुत आर्टिस्टिक तरीके से मारता हूँ मैं लोगो को. मरने वालो को फख्र होना चाहिए की वो मेरी आर्ट का हिस्सा हैं. देखा ना तुमने कितने हसीन तरीके से मारा था मैने उस आदमी को. क्या पोज़ बना था कसम से. उसका लंड तेरी चूत में था. तू उसके नीचे थी. मैने पीछे से आकर उसकी गर्दन काट दी. लंड तो घुसा दिया था उसने तेरी चूत में पर एक भी धक्का नही लगा पाया बेचारा. रेप करना ग़लत बात है. यही सिखाया मैने उस आर्टिस्टिक कतल में. सबको सीख मिलेगी इस से. अब तुम बताओ कि क्या लेना चाहोगी तुम चूत में, लंड या चाकू. जल्दी बताओ वरना मैं खुद डिसाइड कर लूँगा. और मेरा डिसीज़न तुम्हे अच्छा नही लगेगा."
निशा करती भी तो क्या करती. उसने रोते हुए साइको के लिंग पर हाथ रख दिया.
"बोलेगा कौन, तेरा बाप बोलेगा क्या?"
"लंड" निशा रोते हुए बोली.
"तेरे जैसी बेशरम लड़की नही देखी मैने आज तक. पहले तो अपनी कुँवारी चूत में उस आदमी का ले लिया अब मेरा लेना चाहती है. तू तो एक ही दिन में रंडी बन गयी. तेरी चूत में चाकू ही जाएगा समझ ले. तेरे जैसी बेशरम लड़की की चूत में लंड नही डालूँगा मैं. तेरी चूत में जब चाकू जाएगा तो कुछ अलग ही आर्ट बनेगी हे...हे...हे. लेकिन अभी इंतजार करना होगा. तेरे बदले में अपर्णा को माँगा है मैने. इस साली अपर्णा ने देख लिया था मुझे. लेकिन तब से मैं होशियार हूँ. नकाब पहन के रखता हूँ मैं अब. मेरे जैसे आर्टिस्ट गुमनाम ही रहे तो ज़्यादा अच्छा है. क्यों सही कह रहा हूँ ना मैं."
"जब ये अपर्णा तुम्हे मिल जाएगी तो तुम मुझे छोड़ दोगे ना." निशा ने शूबक्ते हुए पूछा.
"मेरी ओरिजिनल गेम मैं किसी से डिस्कस नही करता. उस आदमी को ये पता था कि वो रेप करेगा तो बच जाएगा. लेकिन मेरी गेम ये थी के जैसे ही वो तेरी चूत में लंड डालेगा मैं उसकी गर्दन काट दूँगा. बहुत बारीकी का काम है ये आर्ट. हर किसी के बस्कि नही है. एक बार बस अपर्णा मिल जाए. तुम्हारे साथ क्या होगा सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ....हे...हे...हे." साइको बहुत ही भयानक तरीके से हँसने लगा.
"अगर तुम्हारा मन है तो कर लो प्लीज़ पर मुझे मत मारो. मैं मरना नही चाहती." निशा ने कहा. उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था.
"यही तो वो ख़ौफ़ है जो कि खुब्शुरत है. मज़ा आ गया यार. अति सुंदर."
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अंकिता बहुत परेशान हालत में थी. उसे बार-बार फोन आ रहे थे उपर से. उसकी तो जान पर बन आई थी. बहुत ज़्यादा पोलिटिकल प्रेशर था अंकिता पर. सीनियर ऑफीसर भी खूब डाँट रहे थे. उस पर यही दबाव बनाया जा रहा था कि अपर्णा को चुपचाप उसे सौंप दिया जाए और ऍम.पि. की बेटी को बचा लिया जाए. वविप की बेटी की जिंदगी ज़्यादा कीमती थी एक आम सहरी के मुक़ाबले.
अंकिता ने आशुतोष को फोन लगाया.
"जी मेडम बोलिए."
"कैसा चल रहा है वहाँ आशुतोष."
"सब ठीक है मेडम. मैं ऑफीस के बाहर बैठा हूँ. मेरी नज़र है ऑफीस पर."
"ऑफीस पर नज़र रख कर क्या करोगे बेवकूफ़. अपर्णा के पास रहो. उस पर नज़र होनी चाहिए तुम्हारी. बात बहुत सीरीयस होती जा रही है."
"क्या बात है मेडम आप इतनी परेशान क्यों लग रही है."
"परेशानी की बात ही है." अंकिता आशुतोष को सारी बात बताती है.
"ओह गॉड. इस साइको की तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है."
"जब पोलीस कुछ कर ही नही पाती उसका तो यही होगा. तुम बहुत सतर्क रहो."
"मेडम क्या हम अपर्णा जी को उस बेरहम साइको को सौंप देंगे."
अंकिता कुछ नही बोली. उसके पास कोई जवाब ही नही था.
"अगर ऐसा हुआ मेडम तो मैं तो ये नौकरी छोड़ दूँगा अभी. नही चाहिए ऐसी नौकरी मुझे." आशुतोष भावुक हो गया.
"पागलो जैसी बाते मत करो. ये वक्त है ऐसी बाते करने का. अभी कुछ डिसाइड नही किया मैने. और एक बात सुन लो. इस्तीफ़ा दे दूँगी मैं भी अगर उस साइको के आगे झुकना पड़ा तो. तुम सतर्क रहो वहाँ. ये साइको बहुत ख़तरनाक खेल, खेल रहा है"
"मैं सतर्क हूँ मेडम आप चिंता ना करो."
जैसे ही आशुतोष ने फोन रखा उसे ऑफीस के गेट से अपर्णा आती दिखाई दी. आशुतोष की आँखे ही चिपक गयी उस पर. एक तक देखे जा रहा था उसको. देखते देखते उसकी आँखे छलक गयी, "मैं आपको कुछ नही होने दूँगा अपर्णा जी. कुछ नही होने दूँगा."
अपर्णा अपनी कार से कुछ लेने आई थी. कुछ ज़रूरी काग़ज़ पड़े थे कार में. वो काग़ज़ ले कर जब वापिस ऑफीस की तरफ मूडी तो उसने आशुतोष को अपनी तरफ घूरते देखा. बस फिर क्या था शोले उतर आए आँखो में. तुरंत आई आग बाबूला हो कर आशुतोष के पास. आशुतोष की तो हालत पतली हो गयी उसे अपनी ओर आते देख.
"समझते क्या हो तुम खुद को. क्यों घूर रहे थे मुझे. तुम्हे यहाँ मेरी सुरक्षा के लिया रखा गया है. मुझे घूरने के लिए नही. तुम्हारी शिकायत कर दूँगी मैं तुम्हारी मेडम से."
आशुतोष कुछ बोल ही नही पाया. वो वैसे भी भावुक हो रहा था उस वक्त अपर्णा के लिए. अपर्णा की फटकार ऐसी लग रही थी जैसे की कोई फूल बरसा रहा हो उस पर. बस देखता रहा वो अपर्णा को.
"बहुत बेशरम हो तुम तो. अभी भी देखे जा रहे हो मुझे." अपर्णा ने गुस्से में कहा.
आशुतोष को होश आया, "ओह सॉरी अपर्णा जी. आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"ग़लत नही मैं तुम्हे बिल्कुल सही समझ रही हूँ. इस तरह टकटकी लगा कर मुझे घूरने का मतलब क्या है."
"ए एस पी साहिबा ने कहा था कि आप पर नज़र रखूं. सॉरी आपको बुरा लगा तो."
"आगे से ऐसा किया तो खैर नही तुम्हारी." अपर्णा ने कहा और चली गयी.
"वो डाँट रहे थे हमको हम समझ नही पाए - हमें लगा वो हमको प्यार दे रहे हैं." खुद-ब-खुद आशुतोष के होंठो पर ये बोल आ गये.
आशुतोष अपर्णा को जाते हुए देख रहा था. उसकी हिरनी जैसी चाल आशुतोष के दिल पर सितम ढा रही थी.
"काश कह पाता आपको अपने दिल की बात. पर जो बात मुमकिन नही उसे कहने से भी क्या फायदा. भगवान आपको सही सलामत रखे अपर्णा जी. मेरी उमर भी लग जाए आपको. आप सब से यूनीक हो, अलग हो. आपकी बराबरी कोई नही कर सकता. गॉड ब्लेस्स यू."
4 दिन का वक्त दिया था साइको ने अपर्णा को सौंपने के लिए. पोलीस महकमे में अफ़रा तफ़री मची हुई थी. बहुत कोशिश की गयी साइको को ट्रेस करने की लेकिन कुछ हाँसिल नही हुआ. अंकिता सबसे ज़्यादा प्रेशर में थी. प्रेशर की बात ही थी. उसे हायर अथॉरिटीज़ से तरह तरह की बाते सुन-नी पड़ रही थी.
आशुतोष अपर्णा को लेकर बहुत चिंतित था. सारा दिन वो पूरी सतर्कता से ऑफीस के बाहर बैठा रहा. शाम के वक्त वो अपर्णा के साथ उसके घर आ गया. 24 घंटे साथ जो रहना था उसे अपर्णा के.
"अपर्णा जी आप किसी बात की चिंता मत करना. मैं हूँ ना यहाँ हर वक्त."
"तुम हो तभी तो चिंता है..." अपर्णा धीरे से बड़बड़ाई.
"कुछ कहा आपने?"
"कुछ नही...." अपर्णा कह कर घर में घुस गयी. आशुतोष अपनी जीप में बाहर बैठ गया. चारो कॉन्स्टेबल्स को उसने सतर्क रहने के लिए बोल दिया.
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गौरव पांडे
रात के 10 बज रहे थे और एक ट्रेन देहरादून की तरफ बढ़ रही थी. सुबह 7 बजे तक ही पहुँच पाएगी ट्रेन देहरादून.
एक हसीन सी लड़की कोई 21 साल की अपनी सीट पर बैठ कर नॉवेल पढ़ रही थी. नॉवेल का नाम था 'दा टाइम मशीन'. अकेली थी वो एसी-2 के उस बर्थ में. खोई थी नॉवेल में पूरी तरह.
अचानक ट्रेन रुकी और मामला बिगड़ गया. ढेर सारा सामान लेकर आ गया एक लड़का. कोई 25-26 साल का था दिखने में.
"उफ्फ इतना सारा समान कहा अड्जस्ट होगा. एक बेग मैं छोड़ सकता था. ट्रेन चल पड़ी और वो लड़का समान अड्जस्ट करने में लग गया. बहुत तूफान मचा रखा था उसने बर्थ में.
"एक्सक्यूस मी. यहाँ कोई और भी है. यू आर डिसटरबिंग मी."
"आप पे तो सबसे पहले नज़र गयी थी. सॉरी समान ज़्यादा था. हो गया अड्जस्ट अब. प्लीज़ कंटिन्यू वित योर नॉवेल. बाय दा वे आइ ऍम गौरव. गौरव पांडे. देहरादून जा रहा हूँ. क्या आप भी वही जा रही हैं."
"जी हां. अब डिस्टर्ब मत करना. आय ऍम रीडिंग."
"ऑफ कोर्स" गौरव हंस दिया. "ह्म्म टाइम मशीन पढ़ रही हैं आप. गुड. एच.जी वेल्स का ये नॉवेल पीछले साल पढ़ा था मैने. बहुत इंट्रेस्टिंग है."
लड़की ने गौरव की बातो का कोई जवाब नही दिया और नॉवेल पढ़ने में व्यस्त हो गयी. "स्टुपिड" उसने मन ही मन कहा.
"शूकर है भाई मोबायल है. मैं भी छोटी सी भूल पढ़ता हूँ बैठ कर. आप भी पढ़िए हम भी पढ़ते हैं. गौरव बोल कर लड़की के सामने वाली सीट पर बैठ गया.
लड़की ने उत्सुकता से उसकी और देखा और बोली, "आप छोटी सी भूल पढ़ रहे हैं. किस बारे में है ये?"
"जी हां. ये एक लड़की की कहानी है जो की छोटी सी भूल करके फँस जाती है. सिंपल सी स्टोरी है कोई ऐसी वैसी बात नही है इसमे. कॉलेज की एक लड़की एग्ज़ॅम मे ग़लती करके पछताती है. नकल करते पकड़ी जाती है." गौरव झूठी कहानियाँ सुना देता है. अब कैसे बताए कि वो एरॉटिक स्टोरी पढ़ रहा है...
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Update 58
"मैने पढ़ी है ये स्टोरी."
"क्या फिर तो आप सब जानती हैं."
"जी बिल्कुल आपको झीजकने की ज़रूरत नही है. एक खुब्शुरत कहानी पढ़ रहें हैं आप."
"लो जी एक और रेकमेंडेशन मिल गयी. एफ.जे. बडी, जावेद भाई, और मनीस भाई के साथ आपका नाम भी जुड़ गया."
"मैं कुछ समझी नही."
"इन लोगो ने जतिन भाई की ये स्टोरी मुझे रेकमेंड की थी और मैं बस इसी में उलझा हुआ हूँ."
"फिर तो वो इंट्रेस्टिंग लोग हैं."
"कोई इंट्रेस्टिंग नही हैं. दूर रहना आप इन लोगो से. इनका कोई भरोसा नही."
"चलिए आप पढ़िए. मुझे भी पढ़ने दीजिए."
"आपका नाम जान सकता हूँ?"
"रीमा." लड़की ने जवाब दिया.
"ओ.ऍम.जी. कही आप रीमा थे गोल्डन गर्ल तो नही... " गौरव ने कहा.
"जी नही... वैसे कौन है ये?"
"आपने ये स्टोरी आशुतोष के ब्लॉग पर नही पढ़ी."
"नही मेरी एक सहेली ने ये मुझे मैल की थी."
"तभी...पढ़ती तो पहले ही चॅप्टर में जान जाती उस रीमा को."
"आप पढ़िए. मैं अपना नॉवेल पढ़ना चाहती हूँ." रीमा ने कहा.
"मैने अभी पहला चॅप्टर फीनिस किया है. कुछ डिस्कस करें इस बारे में. आपको क्या लगता है क्या ऋतु ग़लत है. और बिल्लू के बारे में क्या कहना है आपका."
"आप पढ़ लीजिए आराम से. मैं अपना नॉवेल पढ़ना चाहती हूँ."
"वैसे उस दोपहर क्या सीन बना था. बिल्लू ने बड़ी चालाकी से ऋतु को एमोशनल करके उसकी ले ली"
रीमा की तो साँसे अटक गयी ये सुन के, "एक्सक्यूस मी मैं सब पढ़ चुकी हूँ. आप आगे पढ़िए ना. पहले ही चॅप्टर पे अटके रहोगे क्या."
"ओह हां अब आगे ही बढ़ना है. क्या कभी आपके सामने ऐसी स्तिथि आई जैसी की ऋतु के सामने आई थी."
"क्या करेंगे जान कर. मैं अपनी पर्सनल लाइफ डिस्कस नही करना चाहती. प्लीज़ अपनी कहानी पढ़िए और मुझे मेरी पढ़ने दीजिये."
"ओके...ओके फाइन वित मी."
गौरव पढ़ने में खो गया. अब इतनी जबरदस्त एरॉटिका पढ़ेगा तो भड़केगा तो है ही. पढ़ते पढ़ते उसका हाथ अपने लिंग पर पहुँच गया और उसे सहलाने लगा.
रीमा की नज़र भी चली गयी गौरव पर और उसकी पेण्ट में बने तंबू पर. वो देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी.
गौरव ने देख लिया उसे हंसते हुए और तुरंत अपना हाथ हटा लिया अपने लिंग से.
"ओह सॉरी...ध्यान ही नही रहा की आप बैठी हैं सामने."
"कोई बात नही होता है ऐसा."
"तो क्या बाहर निकाल कर आराम से पढ़ लू"
"क्या मतलब?"
"कुछ नही मैं ये कह रहा था कि मुझे विश्वास नही हुआ कि आपने ये कहानी पढ़ी."
"पूरी पढ़ लेंगे तो विश्वास हो जाएगा. ये मेरी फेवरिट स्टोरी है."
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"फिर कुछ डिस्कस क्यों नही करती आप. क्या पता ऋतु और बिल्लू की तरह हम भी....."
"सोचिए भी मत ऐसा तो. मेरे भैया पोलीस में हैं. अंदर करवा दूँगी."
"सॉरी सॉरी मैं तो मज़ाक कर रहा था. पर आप मेरी हालत देख कर मुस्कुरा क्यों रही थी. अब ऐसी स्टोरी पढ़ुंगा तो लंड तो खड़ा होगा ही."
"व्हाट ऐसी बाते कैसे कर सकते हो तुम."
"छोड़िए भी ये तमासा आपने क्या इस स्टोरी में लंड शब्द को नही पढ़ा."
"पढ़ा है पर मैं आपसे क्यों सुनू ये सब."
"पढ़ लीजिए आप अपनी कहानी. मेरी हालत पर हँसना मत दुबारा. वरना आपके हाथ में पकड़ा दूँगा निकाल कर."
"अच्छा ऐसे मसलूंगी कि दुबारा नही पकड़ाओगे किसी को."
"ये चॅलेंज है क्या? मुझे चॅलेंज बहुत अच्छा लगता है."
"कुछ भी समझ लो." रीमा मुस्कुरा कर बोली.
"पता नही क्या मतलब है इसकी बात का. कही सच में ना कीमा निकाल दे मेरे बेचारे लंड का." गौरव सोच में पड़ गया.
रीमा अपने नॉवेल में खो गयी. गौरव भी वापिस अपनी कहानी पढ़ने में व्यस्त हो गया.
पर रीमा बार बार गौरव की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी.
"क्या करू यार ये तो हंस रही है देख कर. पकड़ा दू क्या इसके हाथ में. क्या करू." गौरव सोच रहा था.
"कौन सा सीन चल रहा है." रीमा ने पूछा.
"क्या करेंगी जान कर. कुछ डिस्कस करना है नही आपको. रहने दीजिए."
"वैसे ही पूछ रही थी. कीप रीडिंग."
"लगता है ये लड़की दिखावा कर रही है. मरी जा रही है डिस्कस करने के लिए पर करना नही चाहती. कुछ करना पड़ेगा इसका."
गौरव उठा और कम्पार्टमेंट से बाहर जाने लगा.
"क्या हुआ..." रीमा ने पूछा.
"कुछ नही...मुझे आपके सामने नही बैठा. कही और जा कर पढ़ता हूँ कहानी. आप तो हँसे जा रही हैं. क्या लंड खड़ा नही होगा ऐसी कहानी पढ़ कर. क्या आपकी गीली नही हुई थी पढ़ते वक्त."
"जैसी आपकी मर्ज़ी...सॉरी अगर मैने आपको डिस्टर्ब किया तो."
गौरव, रीमा के पास बैठ गया और बोला, "सॉरी की बात नही है. आप हमें यू देख कर तडपा रही हैं. हम बहक गये तो संभाल नही पाएँगे खुद को."
"अब नही देखूँगी. पढ़ लीजिए आप बैठ कर."
"क्या हम दोनो साथ में पढ़े"
रीमा मुस्कुराइ और बोली, "मुझे क्या पागल समझ रखा है. मैं छोटी सी भूल नही करूगी."
गौरव ने रीमा का हाथ पकड़ लिया और बोला, भूल तो हो चुकी है आपसे मेरी तरफ हंस कर. अब ऋतु की तरह आपको भी भुगतना पड़ेगा."
"यहाँ झाड़िया नही हैं."
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"सादे 11 बज रहे हैं. बर्थ में हम अकेले हैं. परदा लगा लेते हैं. वही माहौल बन जाएगा."
"उफ्फ आप तो बहुत बड़े फ्लर्ट निकले."
"ईमानदारी रखता हूँ. जिंदगी में. लड़की की मर्ज़ी के बिना कुछ नही करता. इज़ात करता हूँ पूरी वीमेन की."
"कोई आ गया तो. यहाँ 2 सीट्स खाली हैं. कोई तो आएगा इस बर्थ में."
"जब आएगा तब धखेंगे अभी तो हम एक दूसरे में खो सकते हैं."
"क्या आप मॅरीड हैं."
"बस 26 का हूँ अभी. अभी मेरे हँसने खेलने के दिन है. शादी नही करना चाहता अभी. क्या आप मॅरीड हैं."
" मैं 20 की हूँ. क्या शादी शुदा लगती हूँ तुम्हे.?"
"नही नही वैसे ही पूछ रहा था. क्या आप कुँवारी हैं."
"उस से कुछ फर्क पड़ेगा क्या."
"कुछ फर्क नही पड़ेगा लेकिन किसी कुँवारी कन्या को मैं हवस के जंजाल में नही फँसा सकता. एक बार लंड ले लिया तो आदत पड़ जाती है. बिगड़ जाते हैं लोग."
"जैसे आप बिगड़े हुए हैं."
"हाँ बिल्कुल. हम तो बिगड़ ही चुके हैं. किसी और को क्यों बिगाड़े. वैसे आप कुँवारी भी होंगी तो भी चोदने वाला नही आपको. भड़का दिया है आपके हुसन ने मुझे."
"मेरा बॉय फ्रेंड है"
"ओके देट्स मीन आप पहले ले चुकी हैं...गुड. नाओ इट्स माय टर्न "
"पर यहाँ ख़तरा है."
"ख़तरे को मारिए गोली वो मैं संभाल लूँगा. आप ये लंड पकडीए बस." गौरव ने रीमा का हाथ अपने तंबू पर टिका दिया.
"उफ्फ ये तो भारी भरकम लग रहा है."
"ऐसा कुछ नही है डरिये मत ... निकाल देता हूँ आपके लिए. ये नॉवेल एक तरफ रख दीजिए अब. कुछ बहुत इम्पोर्टेन्ट करने जा रहे हैं हम."
रीमा ने नॉवेल एक तरफ रख दिया. गौरव ने अपनी पेण्ट की ज़िप खोली और लंड को बाहर निकाल लिया और उसे रीमा के हाथ में थमा दिया.
"ओ.ऍम.जी. ये तो सच में बहुत बड़ा है."
"मज़ाक मत कीजिए आप. ऐसा कुछ नही है. प्यार कीजिए इसे डरिये मत. मूह में लेती हैं तो थोड़ा चूस भी सकती हैं."
"आप ध्यान रखो चारो तरफ. आइ डोंट सक. बट दिस मॅग्निफिसेंट डिक डिज़र्व्स आ ब्लो जॉब."
"धन्य हो गया मैं तो ये सुन कर. प्लीज़ फील फ्री टू सक इट द वे यू लाइक."
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रीमा बैठे बैठे ही गौरव के लंड पर झुक गयी और उसे मूह में ले लिया.
"वाओ...सिंप्ली ग्रेट. अच्छी एंट्री दी है मूह में मेरे लंड को...आहह" गौरव कराह उठा.
बर्थ का परदा लगा हुआ था और रीमा गौरव का लंड इतमीनान से चूस रही थी.
"अच्छा चूस लेती हैं आप. अब ज़रा ओरिजिनल गेम हो जाए. उतार दीजिए ये जीन्स."
"जीन्स नही उतारुँगी मैं. कोई अचानक आ गया तो. "
"थोड़ा सरकाना तो पड़ेगा ही. या वो भी नही करेंगी..."
रीमा मुस्कुराइ और अपनी जीन्स के बटन खोलने लगी. वो जीन्स सरका कर लेट गयी और गौरव उसके उपर आ गया.
"उफ्फ ट्रेन में सेक्स करना बहुत मुश्किल काम है." गौरव ने किसी तरह रीमा की टांगे उपर करके उसकी चूत पर लंड रख दिया. उसे रीमा की जीन्स परेशान कर रही थी.
"आआआअहह लगता है ये नही जाएगा."
"जाएगा तो ये ज़रूर ये जीन्स परेशान कर रही है. आप ऐसा कीजिए घूम कर डॉगी स्टाइल में आ जाओ. जीन्स के साथ वही पोज़िशन ठीक रहेगी."
"ठीक है..." रीमा घूम गयी सीट पर गौरव के आयेज और झुक कर डॉगी स्टाइल में आ गयी.
गौरव के सामने अब रीमा की सुंदर गान्ड और चूत थी. उसने गान्ड को पकड़ा और रीमा की चूत में आधा लंड घुसा दिया.
"म्म्म्ममममम न्न्ननणणन् इट्स पेनिंग."
"आवाज़ धीरे रखिए कोई सुन लेगा." गौरव ने कहा और एक झटके में पूरा लंड रीमा की चूत में उतार दिया.
"आआहह... मैं चिल्ला भी नही सकती..जान निकाल दी आपने मेरी."
"थोड़ा धैर्य रखें रीमा जी अभी आपको अद्वितीय आनंद भी देंगे" गौरव ने चूत में लंड को अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
"ऊओह.... यस आअहह."
"कृपया करके ऊओह आअहह कम करें हम ट्रेन में हैं. आस पास लोग सो रहे हैं."
"क्या करू आपने हालत ही ऐसी कर दी है आअहह."
एक ट्रेन की हलचल उपर से गौरव के झटके लंड चूत में बहुत अच्छे तरीके से घूम रहा था.
रीमा तो कई बार झड़ चुकी थी.
"अब रुक भी जाइए. या फिर देहरादून जा कर ही रुकेंगे. आपने तो रेल बना दी मेरी आअहह."
"चलिए आपने कहा हम रुक गये.....आआआहह ऊओ" और गौरव ने अपने वीर्य से रीमा की चूत को भर दिया.
"दिस वाज़ फर्स्ट फक ऑफ माय लाइफ इन ट्रेन." गौरव ने कहा.
"मेरी पहली और आखरी अब ऐसी भूल नही करूगी. छोटी सी भूल ने मुझे ही फँसा दिया."
गौरव ने लंड बाहर निकाला और रीमा फ़ौरन जीन्स उपर चढ़ा कर सीट पर लेट गयी.
गौरव भी उसके उपर चढ़ गया और उसके होंठो को चूम कर बोला, "आइ विल ऑल्वेज़ रिमेंबर यू. अच्छा तुम्हारे भैया का क्या नाम है."
"रंजीत चौहान....क्यों? " रीमा ने जवाब दिया.
"कुछ नही वैसे ही पूछ रहा था...एक बार और खेल सकते हैं हम ये गेम आप चाहें तो."
"एक बार में ही जान निकाल दी मेरी. दुबारा की गुंजाईश नही है अब."
"ओके नो प्रॉब्लम....कूल"
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