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Update 48
"धन्यवाद सोनिया जी...भूल चूक माफ़ करना. आपको अगर कोई भी नयी जानकारी मिले तो मुझे तुरंत इस नंबर पर फोन करना." चौहान ने अपना कार्ड सोनिया को दे दिया.
जाते जाते चौहान ने सोनिया को बाहों मे भरा और बोला,"दोनो होल एक से बढ़ कर एक हैं. गान्ड में पहले भी लिया है क्या कभी."
"पहले ना किया होता तो जाता तुम्हारा इतना मोटा." सोनिया हंस दी.
"दुबारा मेरी सेवा की ज़रूरत हो तो बताना." चौहान ने सोनिया को किस किया और वहाँ से चल दिया.
"ओफ बारिश हो रही है...शूकर है गाड़ी नज़दीक खड़ी की मैने." चौहान ने कहा और सोनिया के घर से निकल गया.
चौहान के जाते ही सोनिया ने अपना मोबायल उठाया और नरेश को फोन लगाया.
"आ जाओ तुम...इनस्पेक्टर चला गया."
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मोनिका चाय लाई और आशुतोष ने चुपचाप दरवाजे पर खड़े खड़े चाय पी बारिश की बूँदो को देखते हुए.
"मोनिका जी मुझे लगता है कि मुझे निकलना चाहिए. मेरा यहाँ रुकना ठीक नही."
" जैसी आपकी मर्ज़ी."
"मेरा नंबर रख लीजिए आपको कुछ और याद आए तो प्लीज़ ज़रूर बताना. उस साइको को पकड़ना बहुत ज़रूरी है."
"जी बिल्कुल"
आशुतोष बारिश में ही निकल पड़ा. जीप तक पहुँचते-पहुँचते आशुतोष पूरी तरह भीग गया. जैसे ही वो जीप में बैठा उसका मोबायल बज उठा.
"हेलो"
"मैं मोनिका बोल रही हूँ...एक बात बताना भूल गयी आपको."
"कुछ इम्पोर्टेन्ट है क्या."
"हां."
"रूको मोबायल में आवाज़ साफ नही आ रही मैं जीप लेकर वही आता हूँ."
आशुतोष ने जीप घुमाई और वापिस मोनिका के घर के बाहर आ गया.
आशुतोष बुरी तरह से भीगा हुआ मोनिका के घर में परवेश करता है.
"एयेए चाइयीयियी....कहिए क्या बात है?" आशुतोष को छींक आ गयी.
"आप तो पूरे भीग गये हैं...मैं तोलिया लाती हूँ." मोनिका ने कहा.
"वो मेरी जीप ज़रा दूर खड़ी थी. वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते पूरा भीग गया."
मोनिका ने टोलिया ला कर आशुतोष के हाथ में दे दिया, "लीजिए आप अपना सर सूखा लीजिए"
आशुतोष ने तोलिया पकड़ा और बोला, "थॅंक यू सो मच. आप बहुत अच्छी हैं"
मोनिका नज़रे झुका कर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली,"आप भी बहुत अच्छे हैं."
"हां तो बोलिए अब. क्या बताना भूल गयी थी आप?" आशुतोष सर पर तोलिया रगड़ते हुए बोला.
तभी अचानक बहुत ज़ोर की बिजली कदकी. बहुत ही भयानक आवाज़ हुई. मोनिका इतनी डर गयी कि वो फ़ौरन आशुतोष से चिपक गयी.
"मुझे कोई प्रॉब्लम नही है आपको गले लगाने में लेकिन आपके कपड़े गीले हो जाएँगे." आशुतोष ने हंसते हुए कहा.
मोनिका तुरंत आशुतोष से दूर हो गयी और नज़र झुका कर बोली, "ओह सॉरी मैं बिजली की आवाज़ से डर गयी थी."
आशुतोष मोनिका के करीब आता है और कहता है, "कोई बात नही मोनिका जी. मुझे अच्छा लगा कि आपने मुझे इस काबिल समझा. आप नज़दीक आई तो सर्दी दूर भाग गयी. एक बात कहु अगर बुरा ना माने तो"
"जी कहिए."
"हमारे बीच बहुत सुंदर संभोग की संभावना बन रही है. मैं आपके लिए बहक रहा हूँ. इस से पहले कि कुछ हो जाए आप मुझे वो बात बता दो ताकि मैं चुपचाप जल्द से जल्द यहाँ से चला जाऊ."
"वही बताने जा रही थी कि कदक्ति बिजली ने डरा दिया."
"कोई बात नही ऐसी बिजली किसी को भी डरा सकती है. एक पल को तो मैं भी डर गया था. लगता है कही नज़दीक ही गिरी है बिजली."
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"हां शायद...अच्छा मैं ये बताना चाहती थी कि उस रात भी मैं सुरिंदर के साथ ही थी."
"किस रात की बात कर रही हैं आप" आशुतोष ने उत्शुक हो कर पूछा.
"जिस रात सुरिंदर ने पोलीस में जाकर झूठी गवाही दी थी."
"ओह...डीटेल में बताओ. ये तो बहुत काम की बात लगती है"
मोनिका विस्तार में बताना शुरू करती है :-
मैं कोई रात के दस बजे पहुँची थी सुरिंदर के घर. मेरे पति घर नही थे इसलिए मैने सारी रात सुरिंदर के घर ही रहने का प्लान बनाया था. डिन्नर भी मैने वही बनाया और हम दोनो ने एक साथ खाया. कुछ देर हम टीवी देखते रहे और फिर बिस्तर पर आ गये. हमने खूब बाते की. अभी हमारे बीच कुछ भी शुरू नही हुआ था. बातो बातो में रात का एक बज गया था. हमारे पास खुला वक्त होता था तो हम अक्सर यू ही मस्ती करते थे. हमारे बीच कामुक पल शुरू होने ही वाले थे कि घर की डोर बेल बज उठी. हम दोनो हैरान थे कि इतनी रात को एक बजे कौन हो सकता है. सुरिंदर ने कपड़े पहने और लाइट बंद कर दी. मैं रज़ाई में दुबक गयी. मुझे कुछ बहुत ही अजीब लग रहा था. मुझे सबसे ज़्यादा ये डर था कि जिसने भी बेल बजाई है वो अंदर ना आ जाए. लेकिन फिर भी मैं चुपचाप मूह ढके पड़ी रही. सुरिंदर दरवाजा खोलने चला गया. बेडरूम ड्रॉयिंग रूम के बिल्कुल नज़दीक था इसलिए मुझे दरवाजा खुलने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी. सुरिंदर ने दरवाजा खोलते ही कहा, "अब के के तू. इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा है." मुझे बस सुरिंदर की ही आवाज़ सुनाई दी थी. ये के के शायद बहुत धीरे बोल रहा था या फिर हो सकता है की वो सुरिंदर को दरवाजे से दूर बाहर की ओर ले गया हो. जो भी हो मुझे इस के के की कोई आवाज़ सुनाई नही दी.
थोड़ी देर बाद सुरिंदर वापिस आया और दूसरे कपड़े पहन-ने लगा. मैने पूछा कि क्या बात है तो वो बोला कि अभी किसी ज़रूरी काम से बाहर जाना है, थोड़ी देर में लौट अवँगा. मुझे बहुत हैरानी हुई.मैने पूछा सुरिंदर से कि कौन आया था उस से मिलने लेकिन उसने कोई जवाब नही दिया. उसने यही कहा कि वापिस आ कर सब बताएगा. वो चला गया. शायद उसी केके के साथ गया था. मैने बहुत वेट किया सुरिंदर का. वेट करते-करते सुबह के 6 बज गये लेकिन सुरिंदर वापिस नही आया. तक हार कर मैं वापिस अपने घर आ गयी. अगले दिन टी वी पर देखा कि सुरिंदर विटनेस बना हुआ है. मुझे कुछ समझ नही आया. वैसे सुरिंदर मुझसे अपनी जिंदगी की काफ़ी बाते शेर करता था लेकिन ये विटनेस बन-ने वाली बात के बारे में उसने कुछ नही बताया. मैं खुद हैरान थी की ऐसा कैसे हुआ. सुरिंदर तो केके के साथ गया था फिर वो मर्डर सीन पर कैसे पहुँच गया. मैने अगले दिन इस बारे में पूछा भी. मुझे वो अपर्णा किसी भी आंगल से कातिल नही लगी. लेकिन सुरिंदर ने यही कहा की सब कुछ उसने अपनी आँखो से देखा है और वो सच बोल रहा है. मैने और ज़्यादा इस बारे में बात नहिकी. बाकी मैं बता ही चुकी हूँ. अगले दिन मेरे सुरिंदर के घर से जाने के बाद उसका कतल हो गया.
ये थी वो बात जो आपको बताना चाहती थी. शायद इस से आपको इस केस में कुछ मदद मिले.
आशुतोष ने बड़े ध्यान से एक एक बात बड़े गौर से सुनी थी. "ह्म्म बहुत ही काम की बात बताई है मोनिका जी आपने. ये सब आपने पहले क्यों नही बताया."
"मैं इस पचदे में नही पड़ना चाहती थी. आपको पता ही है पोलीस के मामलो में अक्सर लोगो को परेशानी ही परेशानी मिलती है. और मैं अपनी मॅरीड लाइफ में कोई ट्रबल नही चाहती. आप मुझे नेक इंसान लगे इसलिए आपको बता दिया. प्लीज़ मेरा नाम कही नही आना चाहिए. पूरे वाक्येसे मेरी इज़्ज़त जुड़ी है."
"मैं समझ सकता हूँ. आपके विश्वास को नही तोड़ूँगा. वैसे आपको क्या लगता है ये के के कौन हो सकता है.?"
"मुझे बिल्कुल आइडिया नही है. पता होता तो आपके पूछने से पहले बता देती. सुरिंदर ने कभी मेरे सामने किसी के के का जीकर नही किया."
"कोई बात नही इस सीसी को भी जल्दी ढूँढ निकालूँगा. हो ना हो वही साइको किलर है."
"बिल्कुल मुझे भी ऐसा ही लगता है. जिस तरह से पूरा वाक़या हुआ है उस से तो यही लगता है कि के के ही साइको है."
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बारिश और भी ज़्यादा तेज होती जा रही थी और बाहर घने बादलो के कारण अंधेरे जैसी हालत हो गयी थी. अचानक फिर से बिजली कदक्ति है और मोनिका काँप उठती है.
"क्या हुआ मोनिका जी इस बार आप मेरे करीब नही आई. नाराज़ हैं क्या?"
मोनिका शर्मा उठी और बोली, "कैसी बात करते हैं आप."
आशुतोष मोनिका के नज़दीक आता है और उसकी आँखो में झाँक कर बोलता है.
"मोनिका जी बहुत प्यारा मौसम हो रहा है. बहुत ही सुंदर संभावना बन रही है हमारे बीचसंभोग की. अगर ये संभावना सच हो जाए तो कसम खा कर कहता हूँ बहुत ही भयंकर संभोग होगा हमारे बीच जिसे हम दोनो चाह कर भी नही भूल पाएँगे. मुझे बस आपकी इज़ाज़त की ज़रूरत है. कोई दबाव नही है आप पर. हमारा संभोग बहुत ही सुंदर रहेगा ये यकीन है मुझे. बाकी सब आपके उपर है."
मोनिका ने आशुतोष की आँखो में झाँक कर देखा. आशुतोष तो जैसे मोनिका की झील सी आँखो में खो गया. दोनो चुपचाप खड़े खड़े एक दूसरे को देखते रहे. मोनिका ने आशुतोष के सवाल का कोई जवाब तो नही दिया लेकिन उसकी आँखे बहुत कुछ कह रही थी जिसे आशुतोष शायद समझ नही पा रहा था.
"क्या हुआ आपने कुछ जवाब नही दिया." आशुतोष ने पूछा.
"इन सवालो के जवाब नही होते एक औरत के पास." मोनिका प्यार से बोली.
"चलिए छोड़िए एक चाय ही दे दीजिए ठंड लग रही है."
मोनिका मुस्कुराइ और बोली, "अभी लाती हूँ."
"शायद कुछ संभावनाए, संभावनाए ही रहती हैं" आशुतोष ने कहा.
"शायद" मोनिका ने कहा और हंसते हुए किचन की तरफ चली गयी.
मोनिका मुस्कुराते हुए हाथ में ट्रे लिए हुए आशुतोष की तरफ आ रही थी.
आशुतोष ने उसे मुस्कुराते हुए देख लिया और बोला, "क्या बात है आप मुस्कुरा क्यों रही हैं"
"कुछ नही लीजिए चाय लीजिए"
आशुतोष ने चाय पकड़ी और चाय का कप ले कर वो दरवाजे पर आ गया.
"उफ्फ ये बारिश तो थमने का नाम ही नही ले रही." आशुतोष ने चाय की घूँट भर कर कहा.
मोनिका आशुतोष की बात सुन कर उसके बाजू में आ गयी और बोली," बहुत दिनो बाद ऐसी बारिश हुई है."
"सही कह रही हैं आप. आप अपने लिए चाय नही लाई." आशुतोष ने पूछा.
"मैं चाय कम ही पीती हूँ."
"अच्छी बात है, कोई हेल्ती चीज़ तो है नही ये." आशुतोष ने चाय ख़तम की और कप को एक तरफ रख दिया.
"बिल्कुल सही कहा."
"मोनिका जी आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया" आशुतोष ने मोनिका की आँखो में झाँक कर पूछा.
"कौन सा सवाल" मोनिका ने हंसते हुए कहा.
"सुंदर संभोग की संभावना है हमारे बीच. क्या आप इस संभावना को हक़ीकत करना चाहेंगी."
"आपको क्या लगता है?" मोनिका ने हंसते हुए पूछा.
आशुतोष ने मोनिका की तरफ कदम बढ़ाए और मोनिका पीछे हटने लगी.
"क्या कर रहे हैं आप." मोनिका दीवार से टकरा कर रुक गयी.
आशुतोष फिर से उसी पोज़िशन में था जिसमे उसने पहले मोनिका के होंठो को चूमा था.
"मुझे पता नही क्यों ऐसा लगता है कि आप का जवाब हां है लेकिन आप कहना नही चाहती."
"एक बात कहना चाहती हूँ आपसे"
"हां बोलिए."
"मैं हमेशा सुरिंदर के साथ रिस्ते को लेकर व्यथीत रही हूँ. मेरे मन में हमेशा कसंकश रही है. मुझे हमेशा ये अहसास रहा है की मैं अपने पति को धोका दे रही हूँ. मैं सुरिंदर के साथ संबंध ख़तम करना चाहती थी. पर पता नही क्यों कर नही पाई. अब जबकि वो मर चुका है तो ये संबंध अपने आप ख़तम हो गया है. मुझे पता है और यकीन है कि आप मुझे संभोग की असीम गहराईयों में ले जाएँगे. और शायद इस सफ़र में मैं भी जाना चाहती हूँ. लेकिन दिल के एक कोने में मेरे ये अहसास भी है कि ये संभोग हर हाल में ग़लत होगा. मैं दुबारा भटकना नही चाहती. अब आपके सामने हूँ. आप कोशिश करेंगे तो आपको रोकूंगी नही. आप मुझे अच्छे लगे. लेकिन आप भी सच्चे मन से सोचिए की क्या ये सब ठीक है. सुरिंदर से नाता जोड़ के हर पल मैने घुट घुट कर जिया है. अब दुबारा शायद ऐसा हुआ तो मेरा चरित्र पूरी तरह बिखर जाएगा. हालाँकि ये बात बिल्कुल सही है कि हमारे बीच बहुत सुंदर संभोग की संभावना है. लेकिन मेरी परिस्थितियों के कारण ये सुंदरता मुझे नर्क के समान लगती है. यही कारण था कि मैने आपके सवाल का जवाब नही दिया."
.
आशुतोष ये सब सुन कर मोनिका से दूर हट जाता है.
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Update 49
"आपको बुरी तो नही लगी मेरी बात."
"नही मोनिका जी. दिल से कही हुई बात कभी बुरी नही लगती. बहुत कम लोग ऐसे हैं दुनिया में जिन्हे ग़लत काम करते वक्त ये अहसास रहता है कि वो कुछ ग़लत कर रहे हैं. यही अहसास इंसान को इंसान बनाता है. यू आर ए गुड वुमन. मेरे दिल में हमेशा आपके लिए इज़्ज़त रहेगी. आपका एक एक बोल मेरे दिल को छू गया. ये सब स्वीकार करना कोई आसान बात नही है. बहुत बड़ा जिगर चाहिए. एक बात मैं भी कहना चाहूँगा."
"हां बोलिए."
"मैं भी हमेशा से ऐसा नही था. मेरी तमन्ना थी कि बस एक लड़की से प्यार करू. एक लड़की से अफेर हुआ भी कॉलेज में. बहुत खुश रहता था उन दिनो मैं. हम घूमते फिरते थे साथ और काई बार सिनिमा भी गये. मैने कभी उसे छुआ तक नही. बस प्यार करता था उसे...बहुत प्यार. लेकिन उसने मेरे प्यार को ठुकरा दिया. एक साल तक मेरे साथ घूमी फिरी फिर अचानक एक अमीर बाप के बेटे के साथ उठने बैठने लगी. मुझसे मिलना ही बंद कर दिया उसने. मुझे बताया तक नही कि मैं तुम्हे छोड़ रही हूँ. फैल होते होते बचा मैं. बहुत मुश्किल से पास हुआ. दिल पर बड़ी भारी चोट लगी. दिल में पता नही कहा से ये ख्याल आने लगे की काश इसे ठोक देता तो अच्छा रहता. प्यार का कोई मोल नही है दुनिया में ऐसा लगा मुझे. उसके बाद तो जो सामने आई मैने ज़्यादा देर नही लगाई ठोकने में. मैं एक प्रेमी से कब फ्लर्ट बन गया मुझे पता ही नही चला. किसी ने मुझसे ऐसी बात नही बोली जैसी आज आपने कही. खुश रहें आप अपनी जिंदगी में. मेरी कभी भी ज़रूरत हो तो याद करना. मुझे अपना एक अच्छा दोस्त समझना."
"मुझे पता था की आप अच्छे इंसान हैं तभी आपको सारी बाते बताई मैने."
"अच्छा मोनिका जी मैं चलता हूँ. मुझसे जो ग़लती हुई है उसके लिए मुझे माफ़ करना. गॉड ब्लेस्स यू. टेक केर."
दोनो ने प्यारी से मुस्कान दी एक दूसरे को और आशुतोष वहाँ से चल पड़ा. आशुतोष और मोनिका दोनो के चरित्र के कुछ और ही पहलू सामने आ रहे थे जो की जीवन की सुंदरता लिए हुए थे.
आशुतोष ने जीप में बैठ कर चौहान को फोन लगाया.
"सर मोबायल वाला काम हो गया है. आप कहाँ हैं?"
"मैं थाने में हूँ बर्खुरदार यही आ जाओ." चौहान ने कहा.
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01-01-2020, 12:26 PM
.....
अपर्णा अपने रूम की खिड़की में खड़ी हुई बारिश का आनंद ले रही है. बारिश की छम-छम से वो उद्वेलित हो रही है. वो चाहती है कि बारिश में निकल कर बारिश की बूँदो में भीगा जाए पर ठंड का मौसम इसकी इज़ाज़त नही देता था. गर्मियों की बारिश में वो खूब झूम झूम कर बारिश का आनंद लेती थी ठंड में ऐसा नही हो सकता था. हां पर बारिश की बूँदो को देख कर हल्की हल्की मुस्कान अपर्णा के होंठो पर बिखर रही थी.
"बेटा कब से खड़ी हो यहाँ...चलो कुछ खा लो."
"नही मम्मी अभी नही...आपको पता है ना मुझे बारिश बहुत अच्छी लगती है. मुझे यही रहने दीजिए अभी."
"जैसी तेरी मर्ज़ी...पागल हो जाती हो बारिश को देख कर."
अपर्णा की मम्मी चली गयी और अपर्णा खिड़की पर ही खड़ी रही.
"मैं कब तक घर में क़ैद रहूंगी मुझे कल से ऑफीस जाना चाहिए. बॉस से बात भी हो गयी है. डर कर घर में बैठने से क्या फायदा. इनस्पेक्टर या फिर आशुतोष से बात करनी पड़ेगी इस बारे में."
अपर्णा का सोचना सही ही था. उसकी जॉब सफर हो रही थी और अच्छी जॉब रोज रोज नही मिलती. और ये भी था की जॉब के कारण अपर्णा को ये नही लगता था कि वो अपने मा बाप पर बोझ है.
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आशुतोष चौहान को के के के बारे में बताता है.
वो तुरंत सोनिया को फोन मिलाता है.
सोनिया तो नरेश के उपर चढ़ि हुई थी और उसके उपर राइड कर रही थी.
"आअहह नरेश तुम भी तो पुश करो नीचे से आआहह."
"कर तो रहा हूँ...और कितना पुश करू."
सोनिया का फोन बजा तो वो इरिटेट हो गयी.
"उफ्फ अब कौन है?"
"लगता है आज लोग हमें चैन से नही करने देंगे कुछ." नरेश ने कहा.
"तुम हाथ बढ़ाओ और फोन पकड़ाओ मैं तुम्हारे उपर से उतरने वाली नही हूँ आअहह"
"कह कौन रहा है उतरने को....ये लो फोन."
सोनिया ने कॉल रिसीव की. "हेलो"
"हां सोनिया जी मैं चौहान बोल रहा हूँ."
"आआहह हां बोलिए."
"आप कराह क्यों रही हैं. ठीक तो हैं आप."
"हां मैं ठीक हूँ...बोलिए आप."
"क्या आप सुरिंदर के किसी ऐसे दोस्त को जानती हैं जिसे वो केके कहता हो."
"ऊऊहह मैं...मैं किसी केके को नही जानती. देखिए मुझे जो पता था बता दिया. मेरी रिक्वेस्ट है कि मुझे बार बार परेशान ना किया जाए आअहह. मुझे और भी ज़रूरी काम हैं."
"आपके ज़रूरी काम मुझे समझ आ गये. सच बताना नरेश का लंड है ना इस वक्त तेरी चूत में."
"उस से आपको क्या लेना देना." सोनिया ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ?" नरेश ने पूछा.
"कुछ नही उस इनस्पेक्टर को पता नही कैसे पता चल गया कि तुम्हारा डिक मेरी पुश्सी में है."
"पता कैसे नही चलेगा आअहह ऊओह करके बाते जो कर रही थी."
"लीव इट....फक मी हार्डर आआहह."
नरेश ने नीचे से अपनी स्पीड बढ़ा दी और सोनिया की आहें कमरे में गूंजने लगी.
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सौरभ की हालत सुधर रही थी. सौरभ आँखे बिछाए पूजा का इंतजार करता रहा लेकिन वो नही आई. आशुतोष ने पूजा को रिक्वेस्ट भी की लेकिन वो नही मानी. उसने कहा मुझे सौरभ से कुछ लेना देना नही है. बात काफ़ी हद तक सही भी थी.
आशुतोष और चौहान के के को ढूँढने में लग गये. लेकिन उन्हे केके का कोई भी सुराग नही मिला. एक हफ़्ता बीत गया यू ही भागते दौड़ते. एक शुकून की बात ये थी की पूरा हफ़्ता कोई वारदात नही हुई. ये सब शायद सौरभ का कमाल था. उसी ने तो साइको के पेट में चाकू मारा था. कारण कुछ भी हो एक हफ्ते से बाहर में शांति थी. लेकिन एक हफ़्ता बहुत कम वक्त होता है डर को दूर भगाने में. बाहर के लोगो में साइको का ख़ौफ़ बरकरार था.
सौरभ घर वापिस आ गया. उसके घाव अभी पूरी तरह भर रहे थे .
धीरे धीरे एक महीना बीत गया. साइको का कुछ सुराग नही मिला. लेकिन इस एक महीने के दौरान बाहर में कोई वारदात नही हुई. मगर पोलीस फिर भी दबाव में थी, क्योंकि साइको अभी पकड़ा नही गया था.
सुबह के 10 बज रहे थे और चौहान चेहरे पर तनाव लिए इधर उधर घूम रहा था. आशुतोष थाने में घुसा तो उसने चौहान को देख लिया.
"क्या बात है सर, आप कुछ परेशान लग रहे हैं." आशुतोष ने पूछा.
"पूछो मत शामत आने वाली है शामत. मेडम साहिबा ने अर्जेंट मीटिंग बुलाई है. खूब डाँट पड़ने वाली है आज."
"हम जो कर सकते थे कर रहे है और क्या करें."
"उसके सामने मत बोल देना ये बात. ज़ुबान खींच लेगी तुम्हारी."
"नही सर उनके सामने भला मैं क्यों बोलूँगा...मेरा क्या दिमाग़ खराब है. पर सर मुझे लगता है कि शायद वो साइको अब अंडर ग्राउंड हो गया है. मैने हॉलीवुड की फ़िल्मो में देखा है की ऐसे साइको अचानक गायब हो जाते हैं और अचानक ही वापिस भी आ जाते हैं."
"ये फिल्म नही चल रही, ये हक़ीकत है बर्खुरदार. क्या पता क्या हो रहा है...साला ये के के का भी कुछ पता नही चला.."
"सर एक बात और हो सकती है?"
"क्या?" चौहान उत्शुक हो गया.
"मेरे दोस्त ने चाकू मारा था उस साइको के पेट में. हमनें सभी हॉस्पिटल और क्लिनिक छान मारे लेकिन वो कही अड्मिट नही हुआ था. शायद उसने अपना पेट अपने घर पर ही शीलवाया हो. अगर उसे कोई ठीक ठाक डॉक्टर नही मिला होगा तो दिक्कत तो हुई होगी सेयेल को. कही वो साइको मर ना गया हो."
"हो भी सकता है और नही भी. इस बात से हमारा केस तो सॉल्व नही होता ना."
तभी सब इनस्पेक्टर विजय भी वहाँ आ जाता है.
"क्या बात है सर...कुछ गंभीर सी बाते हो रही है. चलिए मीटिंग का वक्त हो गया."
"ओह हां मुझे ध्यान ही नही रहा. चलो जल्दी कही इसी बात बार बरस पड़े वो कयामत."
तीनो मीटिंग रूम की तरफ बढ़ते हैं. ए एस पी अंकिता वहाँ पहले से मौज़ूद थी. उन्हे देखते ही चौहान का गला सूख गया.
"मिस्टर चौहान क्या स्टेटस है साइको वाले केस का."
"चौहान बगले झाँकने लगा. उस से कुछ बोले नही बन रहा था."
"हम पूरी कोशिश कर रहे हैं मेडम. वो साइको शायद अंडरग्राउंड हो गया है" आशुतोष बीच में बोल पढ़ा.
"मैने तुमसे पूछा कुछ. जिस से पूछा जाए वही जवाब दे." अंकिता ने आशुतोष को डाँट दिया.
"मेडम हम पूरी कोशिश कर रहे हैं. दिन रात हम इसी केस में लगे रहते हैं" चौहान हिम्मत करके बोला.
"क्या फायदा इस दिन रात की मेहनत का कोई रिज़ल्ट भी तो आना चाहिए. मीडीया में रोज पोलीस की किरकिरी हो रही है. जवाब तो मुझे देना पड़ता है ना उपर. अच्छा मैं थोड़ी देर में राउंड लगाना चाहती हूँ बाहर का कौन चलेगा मेरे साथ."
"सब इनस्पेक्टर विजय को ले जाए मेडम." चौहान ने कहा.
"सर वो मुझे अपनी बीवी को डॉक्टर के पास ले जाना था. बताया था ना आपको. मैं तो मीटिंग की वजह से आया था आज." विजय ने कहा.
चौहान खुद जाना नही चाहता था. डरता जो था मेडम से. उसने कहा, "आशुतोष चला जाएगा फिर आपके साथ मेडम."
आशुतोष ने तुरंत चौहान को घूरा. चौहान उसकी तरफ मुस्कुरा दिया.
"ठीक है. हम थोड़ी देर में निकलेंगे. मीटिंग समाप्त होती है. और हन और ज़्यादा मेहनत करो इस साइको वाले केस पर."
"बिल्कुल मेडम आप चिंता ना करो." चौहान ने कहा.
अंकिता उठ कर चली गयी.
उसके जाते ही आशुतोष बोला, "सर मुझे क्यों फँसा दिया."
"कोई बात नही बर्खुरदार तुम्हे ऑफीसर से डील करना भी आना चाहिए. बस ज़रा अपनी ज़ुबान कम खोलना उनके सामने. बाकी तुम सब संभाल लोगे मुझे पूरा यकीन है."
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Update 50
सौरभ अब बिल्कुल ठीक था. लेकिन उसका दिल बीमार हो गया था शायद. बायक लेकर वो पूजा के कॉलेज के सामने खड़ा था. कॉलेज की लड़किया अंदर बाहर जा रही थी लेकिन पूजा उसे कही नज़र नही आ रही थी. उसके चेहरे पर निराशा उभरने लगी थी.
"कहाँ हो पूजा तुम. हर वक्त क्लास में बैठी रहती हो क्या." सौरभ ने सोचा.
तभी उसे दो लड़कियों के साथ कॉलेज के गेट से पूजा निकलती हुई दिखाई दी. सौरभ का चेहरा खिल उठा. उसने तुरंत बायक स्टार्ट की और पूजा के आगे रोक दी. अचानक अपने सामने बायक देख कर लड़किया थीतक गयी. पूजा की आँखो में खून उतर आया.
"तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" पूजा ने पूछा.
"तुम जानती हो इसे." एक लड़की ने पुछस.
"हां हमारे पड़ोस में रहता है."
"दिल में भी तो नही रहता कहीं...हे...हे...हे." दूसरी लड़की ने चुस्की ली.
"ऐसा कुछ नही है. आइ हटे हिं."
सौरभ सब सुन रहा था. "नफ़रत में भी उनकी प्यार नज़र आता है, मैं लाख संभोलू दिल को ये उनकी ओर खींचा जाता है."
"ये तो कोई शायर लगता है हे..हे..हे." दोनो लड़किया हँसने लगी.
"चलो यहाँ से ये पागल है." पूजा दोनो को लेकर आगे बढ़ गयी. लेकिन दोनो लड़किया पीछे मूड के सौरभ को देखती रही.
"हमें छोड़ के जा रही हो, हम तड़प कर रह जाएँगे
तुम्हारे साथ तो दो कलियाँ हैं हम अकेले रह जाएँगे."
"वाओ सो रोमॅंटिक. देखा वो हमें कलियाँ कह रहा है. रूको ना यार अच्छा बंदा लगता है." एक लड़की ने कहा.
"बहुत बड़ा फ्लर्ट है वो. चलो हमें मूवी के लिए देर हो जाएगी." पूजा ने कहा.
ये बात सौरभ ने भी सुन ली. उन तीनो ने एक ऑटो पकड़ा और थियेटर के लिए निकल पड़ी. पीछे पीछे सौरभ ने भी अपनी बायक लगा दी.
"अगर तुम्हे पटा नही पाया तो जिंदगी बेकार है मेरी." सौरभ ने सोचा.
थियेटर पहुँच कर तीनो लड़किया अंदर घुस गयी. उन्होने सौरभ को नही देखा. सौरभ भी टिकेट ले करूके पीछे पीछे आ गया.
"हाई...ये तो दीवाना लगता है. तुम्हारे पीछे यहाँ तक आ गया."
"मज़ाक कर रही हो ना कविता?" पूजा ने पूछा.
"मूड के तो देख वो बिल्कुल तेरे पीछे बैठा है." कविता ने कहा.
अभी पिक्चर शुरू नही हुई थी. इसलिए लाइट जली हुई थी.
पूजा ने तुरंत पीछे मूड कर देखा, "तुम यहाँ भी आ गये. क्या चाहते हो तुम."
सौरभ पूजा की ओर झुका और बोला, "मुझे जो चाहिए वो तुम्हे पता है. इनके सामने कैसे कहु समझा करो."
"शट उप." पूजा ने डाँट दिया.
"क्या कह रहा था वो चुपके से तुझे?" कविता ने पूछा.
"कुछ नही...तू उस पर ज़्यादा ध्यान मत दे...पागल है वो." पूजा ने कहा.
लाइट बंद हो गयी और पिक्चर शुरू हो गयी. सौरभ पूजा की तरफ झुका और बोला, "हम दोनो साथ में देखे ये रोमॅंटिक पिक्चर तो ज़्यादा अच्छा लगेगा. पीछे आ जाओ ना मेरे साथ. मेरे साथ की सीट खाली पड़ी है."
"क्या समझते हो खुद को तुम. तुम बुलाओगे और मैं आ जाउंगी हा. तुम्हारे पास आएगी मेरी जुत्ति. चुपचाप बैठे रहो वरना चप्पल मारूँगी निकाल के."
"नही नही ऐसा काम मत करना. आज तक मैने चप्पल नही खाई." सौरभ ने कहा.
"नही खाई तो अब खाओगे. मुझे गुस्सा मत दिलाओ चुपचाप बैठे रहो"
सौरभ वापिस चुपचाप सीट पर बैठ गया.
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"क्या करू ये तो आग उगल रही है?" सौरभ बड़बड़ाया.
कुछ देर बाद कविता को पता नही क्या सूझी, वो अपनी सीट से उठ कर सौरभ के पास आ कर बैठ गयी. पूजा भी ये देख कर हैरान रह गयी. लेकिन वो कुछ नही बोली. सौरभ तो हैरान था ही.
"तुम्हारा शायराना अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा. मेरा नाम कविता है. क्या मुझपे कविता लिखोगे." कविता सौरभ के घुटने पर हाथ रख कर बोली.
"मैं कोई शायर नही हूँ देवी जी. वो तो मैं यू ही कुछ जोड़-तोड़ कर बोल रहा था आपकी सहेली के लिए. पूजा से मेरा टांका भिड़वा दो ना." सौरभ ने कहा.
"मुझे लगता है उसका तुम्हारे में कोई इंटेरेस्ट नही है. तुम किसी और पर ट्राइ क्यों नही करते."
"किस पर ट्राइ करू आप ही बता दो."
"मैं हूँ ना. तुम शायर हो. मैं तुम्हारी कविता बन जाउंगी." कविता का हाथ धीरे धीरे सौरभ की जाँघ की तरफ बढ़ रहा था.
"ये आप क्या कह रही है." सौरभ तो भोंचक्का रह गया. लेकिन उसने कविता का हाथ नही हटाया. हटाता भी क्यों. ऐसा रोज रोज थोडा होता है किसी के साथ.
"आपका हाथ ग़लत जगह पर पहुँच रहा है. आपकी सहेली ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी."
"छोड़िए ना उसे अपनी बात कीजिए." कविता का हाथ सौरभ के लंड पर पहुँच गया. लंड पर कविता का हाथ पड़ते ही वो तुरंत हार्ड हो गया.
"आअहह आप तो शीतम ढा रही हैं मुझ पर." सौरभ ने कहा.
कविता ने सौरभ की पेण्ट की ज़िप खोल दी और उसके तने हुए मोटे लंड को बाहर खींच लिया.
"ओह माय गॉड इट्स आ वंडरफुल कॉक. इट्स ह्यूज. मैने इतना बड़ा नही देखा आज तक."
"देवी जी कितने देखे हैं आप ने ये भी बता दीजिए."
"मेरे अब तक तीन बाय्फ्रेंड रहे हैं और मैने तीनो के देखे हैं."
"बहुत खूब. देखे ही हैं या लिए भी हैं आपने." सौरभ ने चुस्की ली.
"तुम्हे क्या लगता है?"
"नही लिए होंगे. आप सिर्फ़ देखती होंगी उन्हे हैं ना." सौरभ ने मज़ाक में कहा.
"नही जनाब तीनो पूरे के पूरे लिए हैं. तुम्हारा क्या विचार है. मुझसे दोस्ती करोगे?"
"मैं पूजा को चाहता हूँ." सौरभ ने कहा.
कविता ने सौरभ के लंड को ज़ोर से दबाया और बोली, "पूजा को मारिए गोली. वहाँ तुम्हे कुछ नही मिलेगा. देखा नही वो तुमसे बात भी नही कर रही. वो तुम्हे पागल कह रही थी. खुद पागल है वो."
पूजा और दूसरी लड़की रीमा पिक्चर देखने में मगन थे. उन्हे इस बात का अंदाज़ा भी नही था की उनके पीछे कविता सौरभ का लंड हाथ में लिए बैठी है.
"मैं तुम्हे वो ख़ुशी दूँगी कि भूल जाओगे सब कुछ." कविता ने कहा और आगे झुक कर सौरभ के लंड को अपने होंठो में दबा लिया.
"आअहह पहली बार ये किसी के मूह में गया है."
कविता ने सौरभ के लंड से मूह हटाया और बोली, "क्या? इतने सेक्सी डिक को अभी तक ब्लो जॉब नही मिली. आइ कॅंट बिलीव इट."
"नही मिली तो नही मिली अब क्या कर सकते हैं. हर लड़की मूह में नही लेती है."
"मुझसे दोस्ती करोगे तो मज़े में रहोगे. आइ लव टू सक. कोई शायरी कहो ना."
"मेरे लंड को लिया आपने मूह में तो मच्छल उठा हूँ मैं
मगर अगर पूजा ने देख लिया तो बर्बाद हो जाउन्गा."
"ये कैसी शायरी है. पूजा को बीच में क्यों लेट हो." कविता ने कहा और फिर से सौरभ के लोंड को मूह में घुसा लिया.
वो दोनो धीरे धीरे बोल रहे थे लेकिन फिर भी डिस्टर्बेन्स हो रही थी पूजा को. उसे समझ तो कुछ नही आ रहा था लेकिन ख़ुसर फुसर से परेशान हो रही थी.
"क्यों बाते कर......" पूजा पीछे मूड कर बोली लेकिन बोलते बोलते रुक गयी क्योंकि वो भोंचक्की रह गयी थी.
सौरभ का लंड तो पूजा को नही दिखा. वो तो कविता के मूह में छिपा था. वैसे भी अंधेरा था. पूजा को समझने में देर नही लगी कि उसके बिल्कुल पीछे ब्लो जॉब दी जा रही है. सौरभ की आँखे बंद थी. वो तो पहली ब्लो जॉब के सरूर में खोया था. लेकिन कोयिन्सिडेन्स था कि जब पूजा पीछे मूडी उसकी आँखे खुल गयी.
"अरे हटो क्या कर रही हो. मेरी तो आँख ही लग गयी थी. ये सब क्या हो रहा है यहाँ." सौरभ ने कविता के सर को धक्का दिया.
कविता ने लंड को मूह से निकाल दिया और बोली, "ये क्या बोल रहे हो?"
तभी उसकी नज़र पूजा पर गयी, "अच्छा पूजा ने देख लिया ह्म्म. हे..हे...हे...पूजा तुम्हे तो कोई दिक्कत नही है ना."
"तुम दोनो भाड़ में जाओ मुझे कुछ नही लेना देना." पूजा वापिस मूड गयी.
"करवा दिया मेरा काम खराब तुमने. अब दुबारा ऐसा मत करना लीव मी अलोन."
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"मैं बाहर टॉयलेट में जा रही हूँ. आ जाओ पूरा अंदर ले लूँगी." कविता ने कहा.
"तू तो मुझे भी अंदर ले लेगी पूरा. मुझे माफ़ करो मेरा कोई इंटेरेस्ट नही है. आपने बहुत मनोरंजन कर दिया मेरा अब प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. मुझे मूवी देखनी है."
"मूवी देखने तो नही आए थे तुम. झूठ बोल रहे हो."
सौरभ ने अपने लंड को वापिस पेण्ट में डाल लिया और चुपचाप बैठ गया. कविता भी चुपचाप वही बैठी रही.
"पूजा सॉरी, ये सब कविता ने किया. सच में मेरी कोई मर्ज़ी नही थी." सौरभ ने पूजा की तरफ झुक कर कहा.
"आइ डोंट गिव ए डॅम अबौट इट. लीव मी अलोन." पूजा ने गुस्से में कहा.
कविता ये देखते हुए भी की सौरभ उसमे कोई इंटेरेस्ट नही ले रहा है फिर भी उसके पास से नही उठी. सौरभ तो हैरान और परेशान बैठा था. पूजा के सामने उसकी छवि और खराब हो गयी थी.
"लगता है कोई चान्स नही है मेरा अब. अब तो और भी मुश्किल हो गयी है. क्या करू अब?" सौरभ सोच में डूबा था.
"तुम कहा खो गये? इस पूजा की चिंता आप मत कीजिए, ये ऐसी ही है तुनक मिज़ाज़."
"फिर किसकी चिंता करू अगर उसकी नही करू तो" सौरभ इरिटेटेड टोन में बोला.
"मुझमे क्या कमी है. मुझे तुम्हारा शायराना अंदाज़ पसंद आया. मुझे लगा कि हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं. लेकिन तुम तो खफा ही हो गये."
"देखो मैं सिर्फ़ पूजा के लिए यहाँ बैठा हूँ वरना कब का चला जाता. मुझे अकेला छोड़ दो प्लीज़."
"मज़ा तो तुम्हे खूब आ रहा था जब मैं सक कर रही थी. पूजा ने देख लिया तो तुम अपना मज़ा भूल गये. मैं हर किसी को ब्लो जॉब नही देती हूँ. रही बात पूजा की तो सुनो उसका अफेर है एक लड़के से. खूब अच्छे से देती है ये उसे. तुम उस पर वक्त बर्बाद मत करो. मेरा ब्रेकप हो चुका है और मैं अभी फ्री हूँ. मुझे यकीन है कि हमारी खूब जमेगी."
"किसके साथ अफेर है पूजा...विक्की के साथ?" सौरभ ने पूछा.
"हां हां, तुम्हे कैसे पता?"
"तुम्हे उस से कोई लेना देना नही है."
"उफ्फ यही अदा तुम्हारी जान ले रही है. जालिम हो एक नंबर के तुम तो."
"मेरी मा छोड़ दे अकेला मुझे तू अब. मुझे पूजा के साथ सेट्टिंग करनी है जो कि तुम्हारे होते नही हो पाएगी."
"पूजा के चक्कर में तुम वेट एन्ड हॉट पुश्सी से हाथ धो बैठोगे. आय ऍम रेडी फॉर यू. टेक मी."
"माइ गॉड...तुम्हारे जैसी लड़की नही देखी मैने आज तक जो खुद अपनी चूत पारोष दे बिना माँगे."
"अब पारोष दी है तो ये बताओ कि खाओगे की नही."
ना चाहते हुए भी इन बातो से सौरभ के अंदर बेचैनी होने लगी थी. उसका लंड हरकत करने लगा था. कविता शायद ये समझ रही थी. उसने सौरभ के घुटने पर हाथ रख कर धीरे धीरे हाथ को सौरभ के लंड तक सरका लिया था. उसके उत्तेजित लंड को वो महसूस कर रही थी.
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"मैने जो तुम्हे पारोशा है उसे देख कर मूह में पानी तो आ गया है तुम्हारे लेकिन पूजा के कारण खाने से डर रहे हो. खाना ठंडा हो जाए इस से पहले खा लो. किस्मत वाले हो तुम जो तुम्हे पारोष रही हूँ. हर किसी को नही परोसती मैं."
"यहाँ कैसे खाउ मेरी मा. पूजा ने देख लिया तो रहा सहा चान्स भी ख़तम हो जाएगा. मुझे बहकाओ मत, अगर मैं बहक गया तो बुरा हाल कर दूँगा मैं तुम्हारा."
"थियेटर खाली ही है. पीछे की तरफ चलते हैं...वहाँ तक पूजा की नज़र नही जाएगी." कविता ने कहा.
सौरभ फ़ौरन सीट से उठ जाता है. उसे ऐसा लगता है कि अगर कविता के साथ वो बहक गया तो पूजा को पटाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा. वो पूजा के सर के पास झुका और बोला, "कैसी-कैसी थर्कि सहेलिया बना रखी है तुमने. परेशान कर दिया मुझे. जा रहा हूँ मैं ये अच्छी ख़ासी पिक्चर छोड़ के."
"तो जाओ ना हू केर्स." पूजा ने कहा.
"अपने आशिक़ की कभी तो चिंता किया करो." सौरभ ने कहा.
"गो टू हेल"
"ओके गोयिंग, मैं हाथ में फूल ले कर इंतज़ार करूँगा वहाँ तुम्हारा. तुम कब आओगी."
"हेल ईज़ फॉर यू, नोट फॉर मी...गेट लॉस्ट."
"बहुत गरम हो भाई, कसम से बदन जल जाएगा मेरा जब मैं तुमसे लिपटुँगा."
"जाते हो कि नही तुम. मुझे पिक्चर देखने दो."
"जा रहा हूँ जी. बहुत बहुत धन्यवाद आपका."
कविता लगातार सौरभ को ही देख रही थी. लेकिन वो उसे इग्नोर करके सीधा बाहर आ गया. उसने अपनी बायक पर बैठ कर बायक स्टार्ट की ही थी के उसे कविता आती दिखाई थी.
"आ गयी चूत परोसने वाली क्या करू इसका. जल्दी निकलता हूँ यहाँ से"
लेकिन कविता तो तेज़ी से आकर उसके पीछे बैठ गयी.
"अच्छा किया तुमने जो बाहर आ गये. चलो कही और चलते हैं जहा सिर्फ़ हम तुम हो"
"तुम ऐसे नही मानोगी. चल तेरी चूत की आग बुझाता हूँ आज." सौरभ बायक स्टार्ट करते हुए बोला.
"मैं तो कब से तड़प रही हूँ...बुझाओ ना."
"आज तुझे पता चलेगा कि तूने ग़लत बंदे को पारोष दी चूत अपनी. बहुत बुरी तरह खाता हूँ मैं."
"हाई राम मैं तो मर ही जाउंगी. जैसे भी खाना खाना ज़रूर."
"थर्कि हो तुम...थर्कि"
"ये थर्कि क्या होता है?" कविता ने पूछा.
"खुद को समझ लॉगी तो थर्कि का मतलब जान जाओगी"
"बहुत अकेली थी मैं कुछ दिनो से. तुम मिले तो बहार आ गयी."
"क्या हुआ तुम्हारे बॉय फ्रेंड का?"
"ब्रेक अप हो गया बताया ना."
"ओह हां तो कोई और बॉय फ्रेंड ढूँढ लो."
"ढूँढ तो लिया... तुम हो ना"
"मैं बिल्कुल नही हूँ समझ लो अच्छे से"
"कोई बात नही आज के लिए तो हो ही."
"बिल्कुल बिल्कुल ये ठीक है"
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सौरभ का घर वैसे खाली था. लेकिन वो कविता को घर नही ले जाना चाहता था. क्योंकि उसे डर था कि कही रोज ना टपक पड़े वो उसके घर. इसलिए सौरभ ने बायक घने जुंगलो की तरफ मोड़ ली.
"जंगल में मंगल करोगे तुम?" कविता ने पूछा.
"बिल्कुल तुम्हारे जैसी वाइल्ड नेचर की लड़की के लिए ये जंगल ही ठीक है."
सौरभ ने बायक जंगल में घुसा दी और रोक दी. "ज़्यादा अंदर नही जाएँगे यही सड़क के नज़दीक ठीक रहेगा."
"थोड़ा तो आगे चलो...सड़क के किनारे डर लगेगा मुझे."
सौरभ ने बायक वही खड़ी कर दी और कविता का हाथ पकड़ कर थोड़ा और आगे आ गया जंगल में.
"कुछ भयानक सा सन्नाटा है यहाँ. तुम मुझे अपने घर नही ले जा सकते थे क्या? डर लग रहा है मुझे यहाँ." कविता ने कहा.
"डरने की क्या बात है. मैं हूँ ना साथ में."
"फिर भी डर लग रहा है मुझे. प्लीज़ मुझे कही और ले चलो."
"पहले तो बड़ी बेचैन हो रही थी चूत ठुकवाने के लिए...अब तुम्हे डर लग रहा है."
"देखो मुझे पता नही क्यों कुछ अहसास हो रहा है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है. देखो ना अजीब सी खामोसी और सन्नाटा है यहाँ. मेरी बात मानो चलो यहाँ से."
"जंगल ऐसे ही होते हैं. यहाँ कोई बॅंड बाजा तो लेकर घूमेगा नही तुम्हारे लिए. अब यहाँ आ गये हैं तो काम करके ही जाएँगे. भड़का दिया है तुमने मुझे अब भुगतो."
"वो तो मैं भुगत लूँगी पर मेरा यकीन करो यहाँ कुछ अजीब लग रहा है मुझे."
"कुछ अजीब नही है. जल्दी से ये जीन्स नीचे सरकाओ और जो पोज़िशन तुम्हे कंफर्टबल लगे लगा लो. मेरा लंड तैयार है आपके लिए." सौरभ ने लंड बाहर खींच लिया.
"इतना प्यारा लंड दिखाओगे तो कोई कैसे थामेगा खुद को. मुझे डर तो लग रहा है. तुम कहते हो तो ठीक है. लेट्स डू इट क्विक्ली."
"क्विक्ली नही देवी जी. अब जब आपने भड़का दिया है मुझे तो बहुत तसल्ली से लूँगा तुम्हारी मैं...जल्दी फ्री नही होने वाली तुम."
"तो फिर घर ले जाते ना मुझे यहाँ क्यों लाए हो. ये जंगल क्या तसल्ली से करने की जगह है."
"तू ख़ामा खा डर रही है. पूरी तरह सेफ है ये .."
"तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो."
सौरभ के पास कोई जवाब नही था.
.........................................................
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आशुतोष अंकिता के साथ जीप में निकल चुका था. वो ड्राइव कर रहा था और अंकिता साथ बैठी थी.
"ट्रैनिंग कैसी चल रही है तुम्हारी."
"जी मेडम बिल्कुल ठीक चल रही है. चौहान जी बहुत अच्छे से सीखा रहे हैं मुझे." आशुतोष ने कहा.
"गुड. अपर्णा को मेरे पास ला कर अच्छा किया था तुमने."
"हां मेडम. मुझे यकीन था कि आप सच को समझेंगी. आप ही के कारण तो ये नौकरी मिली है मुझे. मैं तो चक्कर लगा लगा कर थक गया था. आप ना आती तो मेरी जॉइनिंग कभी ना होती."
"ईमानदारी से ड्यूटी करना हमेशा. पोलीस में आकर बिगड़ जाते हैं लोग अक्सर."
"आपको शिकायत का मोका नही दूँगा मेडम. वैसे बाहर में कहाँ जाना चाहेंगी आप"
"वैसे ही राउंड लेने का मन था. पूरे बाहर का चक्कर लगाना है मुझे."
"मेडम जी एक बात पुँच्छू बुरा ना माने तो."
"हां पूछो?"
"आप पोलीस में कैसे आ गयी."
"कैसे आ गयी मतलब. सिविल सर्विस का एग्ज़ॅम पास करके आई हूँ."
"सॉरी मेडम मेरा मतलब ये था कि क्या आपका इंटेरेस्ट था पोलीस में या फिर...."
"आइ एफ एस बन-ना चाहती थी मैं तो बन गयी आइ पी एस पर कोई बात नही दिस ईज़ गुड सर्विस."
"मेरी तो हमेशा से इच्छा थी पोलीस में आने की आपके कारण सपना साकार हुआ मेरा. आपका अहसान जिंदगी भर नही भूलूंगा मैं."
"ये कहाँ आ गये हम ये तो दोनो तरफ जंगल है." अंकिता ने कहा.
"हां मेडम ये बहुत बड़ा जंगल है. इसी रोड पर हादसा हुआ था अपर्णा जी के साथ."
"ओह हां याद आया. पहली बार आई हूँ मैं इस तरफ."
"बहुत बड़ा जंगल है मेडम ये बाहर के बीच में. क्रिमिनल लोग अच्छा फायदा उठाते होंगे इसका."
"बिल्कुल सही कह रहे हो. ऐसे सुनसान जंगल अक्सर क्राइम का अड्डा बन जाते हैं. वो...वो...कौन हैं जंगल में."
आशुतोष फ़ौरन जीप रोक देता है.
"कहाँ मेडम...मुझे कुछ दिखाई नही दिया."
"नही मैने देखा अभी एक साए को इस तरफ. शायद उसने भी हमें देखा. वो छुप गया है शायद. चलो देखते हैं." अंकिता जीप से उतर जाती है.
"क्या देख लिया इन मेडम साहिबा ने मुझे कुछ दिखाई नही दिया." आशुतोष जीप से उतरते वक्त बड़बड़ाया.
अंकिता ने अपनी सर्विस पिस्टल निकाल ली और बोली, "कौन है वहाँ बाहर आ जाओ वरना गोली मार दूँगी."
"किसी जुंगली जानवर को ना मार दे ये कयामत. बैठे बिठाये मुसीबत हो जाएगी."
"मेडम शायद कोई जानवर होगा?"
"शट अप यू ईडियट. मेरी आँखे धोका नही खा सकती. मैने देखा था किसी को....हे कौन हो तुम बाहर आओ."
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बाहर तो कोई नही आया लेकिन एक गोली तेज़ी से अंकिता की और आई और उसके सर के बिल्कुल बाजू से निकल गयी. अंकिता फ़ौरन ज़मीन पर लेट गयी. आशुतोष के पास तो कुछ था नही. वो जीप के पीछे छुप गया."मेडम सही कह रही थी. कौन है ये बंदा जो सारे आम पोलीस पर गोली चला रहा है."
अंकिता धीरे धीरे झुके झुके हाथ में पिस्टल लिए आगे बढ़ रही थी. अंकिता ने फाइयर किया. फाइयर होते ही किसी के भागने की आहट हुई. आशुतोष भी नीचे झुक कर धीरे धीरे अंकिता के पास आ गया.
"आप सही कह रही थी मेडम"
"मैं हमेशा सही कहती हूँ. आगे से मेरी स्टेट्मेंट पर डाउट किया तो सस्पेंड कर दूँगी"
"नही करूँगा मेडम. बिल्कुल नही करूँगा. लगता है वो भाग गया."
"मेरे उपर गोली चलाने वाले को मैं छोड़ूँगी नही...चलो पकड़ते हैं उसे."
"मेडम हम सिर्फ़ 2 हैं. और लोगो को बुला लूँ क्या."
"हां चौहान को फोन करो...तब तक हम कोशिश करते हैं उसे पकड़ने की."
"मेडम देख लो ये जंगल है. वो छुपा बैठा होगा कही और हमें निशाने पर ले लेगा. मेरे पास तो कुछ भी नही है. अभी तक सर्विस पिस्टल नही मिली मुझे."
"तुम मेरे पीछे पीछे आओ मैं हूँ ना साथ"
आशुतोष चौहान को फोन करता है और उसे सारी सिचुयेशन बता देता है. वो कहता है कि 20 मिनिट में पोलीस की 2 पार्टीस पहुँच जाएँगी वहाँ.
"मेडम कही ये साइको ही तो नही है. बिना सोचे समझे पोलीस पर गोली चला दी इसने. ऐसा कोई पागल ही कर सकता है. उसे बाहर आने को ही तो बोल रही थी आप. कुछ और तो नही कहा था उसे."
"सही कह रहे हो शायद ये साइको ही है." अंकिता का ध्यान बोलते वक्त भटक जाता है और वो एक . से टकरा कर गिरने लगती है. आशुतोष उसे संभालने की कोशिश करता है लेकिन उसका बॅलेन्स भी डगमगा जाता है और वो अंकिता को संभालने की बजाए उसको साथ लेकर उसके उपर गिरता है. बहुत ही चिंता ज़नक और नाज़ुक स्थिति बन जाती है. ए एस पी साहिबा नीचे पड़ी है और अपना आशुतोष उसके उपर.
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"मेडम आपको चोट तो नही आई."
"उतरो तो सही पहले मेरे उपर से तुम."
आशुतोष फ़ौरन एक तरफ़ लूड़क जाता है.
"क्या करना चाह रहे थे एग्ज़ॅक्ट्ली तुम."
"सॉरी मेडम आप गिरने लगी थी. आपको थामने के चक्कर में मैं भी गिर गया."
"आअहह कमर तोड़ दी तुमने मेरी. वैसे मैं बच जाती शायद.... स्टुपिड"
"सॉरी मेडम मैं तो बस....."
"शूट अप... मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नही कभी भी समझे तुम. आगे से ऐसा किया तो सस्पेंड कर दूँगी तुम्हे."
"मेरी तो नौकरी हर वक्त तलवार की धार पर लटकी है." आशुतोष धीरे से बड़बड़ाया.
"क्या कहा तुमने?"
"कुछ नही मैं सोच रहा था कि किस तरफ गया होगा वो पोलीस पर गोली चलाने वाला. जंगल तो बहुत बड़ा है ये. हमें किस तरफ जाना चाहिए."
"जिस तरफ मैं चलूंगी तुम उस तरफ चलोगे बस. बाकी बाते भूल जाओ."
"कयामत से भी कुछ ज़्यादा है मेडम साहिबा संभाल कर रहना होगा इनसे वरना नौकरी गयी समझो." आशुतोष ने सोचा.
"क्या सोच रहे हो चलो अब या फिर इन्विटेशन देना पड़ेगा तुम्हे"
"चलिए मेडम...आप मुझे पिस्टल दिलवा दीजिए एक ऐसे मोको पर ज़रूरत पड़ जाती है."
"देखेंगे वापिस जा करो अभी चुपचाप आगे बढ़ो"
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"मेरा यकीन करो मैने गोली की आवाज़ सुनी अभी."
"मुझे क्यों नही सुनी यार तुम थियेटर में तो बड़ी गर्मी दिखा रही थी यहाँ तुम्हारी चूत ठंडी पड़ गयी. अब देनी है तो दो वरना मैं चला. जीन्स भी नही सर्कायि अब तक तुमने."
"एक तो ऐसी जगह ले आए मुझे उपर से ऐसी बाते बोलते हो हा लाओ पहले तुम्हारा लंड चूस्ति हूँ मूड ठीक हो जाएगा मेरा. तुम आस पास नज़र रखना."
कविता सौरभ के आगे बैठ जाती है और उसका लंड मूह में ले लेती है.
"आआहह फाइनलि आय ऍम गेटिंग आ नाइस ब्लो जॉब इन कंप्लीट प्राइवसी."
जंगल में कितनी प्राइवसी थी वो तो कुछ देर में पता लगने वाला था सौरभ को
सौरभ आँखे बंद किए पूरा पूरा मज़ा ले रहा था चुसाई का.
"मुझे नही पता था कि ब्लो जॉब इतनी मस्त होती है. वाओ यू आर ग्रेट कविता...आआहह सक इट बेबी." सौरभ ने कविता के सर पर हाथ रख दिया.
कविता ने सौरभ का लंड मूह से निकाला और बोली, "कुछ शायरी ही कह दो मेरे लिए पूजा के लिए तो खूब कह रहे थे."
"मैं कोई शायर नही हूँ. वो तो बस पूजा को पटाने की कोशिश कर रहा था. कोई रास्ता सुझाओ ना तुम. तुम तो फ्रेंड हो उसकी."
"मैं कुछ नही कर सकती इसमें ये तो उसी पर निर्भर है."
"चलो छोड़ो यू डू योर ब्लो जॉब."
"मुझसे दोस्ती रखोगे तो ऐसी ब्लो जॉब रोज मिलेगी तुम्हे." कविता ने कहा और सौरभ के लंड को मूह में ले लिया.
"यस आअहह कीप सकिंग."
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अंकिता पिस्टल ताने आगे बढ़ रही थी. आशुतोष उसके पीछे पीछे था.
"कहाँ गया वो?" अंकिता ने कहा.
"इतना बड़ा जंगल है मेडम कही भी जा सकता है वो."
"हर तरफ नज़र रखो तुम वो यही कही छुपा हो सकता है."
"ठीक है मेडम मैं नज़र रखे हुए हूँ." आशुतोष ने कहा.
अचानक कुछ हलचल होती है और अंकिता थम जाती है. आशुतोष का ध्यान दूसरी तरफ रहता है वो सीधा ए एस पी साहिबा से टकराता है. उनका सर पेड़ की एक डाली से टकराता है और उनका पारा चढ़ जाता है. आशुतोष के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल जाती है. उस से कुछ कहे नही बनता. चेहरा लटक जाता है बेचारे का.
"ध्यान कहाँ है तुम्हारा कभी मेरे उपर गिर जाते हो कभी पीछे से टकराते हो. ये सारी की सारी गोलिया तुम्हारे भेजे में उतार दूँगी अभी. पता नही किस लंगूर को साथ ले आई मैं."
"सॉरी मेडम मेरा ध्यान दूसरी तरफ था डाँट लीजिए मुझे जितना भी पर लंगूर मत कहिए."
"क्यों ना कहु?"
"लंगूर मुझे अच्छे नही लगते किसी और जानवर का नाम दे दीजिए." आशुतोष ने गंभीर मुद्रा में कहा.
"जीसस...चुप रहो अभी तुम. क्या तुम्हे कुछ हलचल सुनाई दी सामने की झाड़ियों में."
"हां सुनाई तो दी मेडम"
"बिल्कुल चुपचाप दबे कदमो से चलो आवाज़ मत करना कोई."
"आवाज़ निकालने लायक छोड़ा है आपने जो आवाज़ करूँगा." आशुतोष धीरे से फुसफुसाया.
"कुछ कहा तुमने?"
"नही नही कुछ नही कहा..चलिए देखते हैं क्या हैं इन झाड़ियों में." आशुतोष ने धीरे से कहा.
अंकिता दबे पाँव पिस्टल ताने झाड़ियों की और बढ़ी आशुतोष बिल्कुल उसके पीछे था. झाड़ियों को हटाते हुए अंकिता आगे बढ़ रही थी. झाड़ियों के पीछे कुछ और नही बल्कि एक जुंगली बिल्ली थी अंकिता को देखते ही वो भाग खड़ी हुई. बस दिक्कत ये रही कि वो अंकिता के पाँव के बिल्कुल करीब से भागी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की अंकिता और आशुतोष थोड़ा सकपका गये. अंकिता से तो थमा ही नही गया और वो बिल्ली को देखते ही आशुतोष की तरफ घूमी और कब वो आशुतोष को लेकर गिर गयी उसे पता ही नही चला. इस बार अपना आशुतोष नीचे था और ए एस पी साहिबा उपर. "खड़े खड़े देख रहे थे कुछ कर नही सकते थे तुम." अंकिता फ़ौरन उठ खड़ी हुई.
"आप ही ने तो कहा था कि आपको किसी की मदद की ज़रूरत नही. मैने इस लिए नही थामा आपको कि कही मैं सस्पेंड ना हो जाऊ."
"शट अप चलो आगे बढ़ते हैं."
"सॉरी मेडम...चलिए."
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इधर सौरभ जन्नत के नज़ारे ले रहा था. कविता के गरम गरम होंठो के बीच उसे अपना लंड बहुत खुशकिस्मत लग रहा था.
"बस कविता बस बहुत हो गया. अब जल्दी से ये जीन्स उतारो तुम्हारी चूत की गर्मी उतारनी है मुझे."
"वो गर्मी कोई नही उतार पाया आज तक." कविता ने हंसते हुए कहा.
"मैं उतारूँगा अब चलो उतारो ये जीन्स."
"यहाँ जंगल में जीन्स नही उतारुँगी मैं. थोड़ा सरका लेती हूँ."
"जो भी करो जल्दी करो. मैं भड़क रहा हूँ."
कविता जीन्स नीचे सरका कर सौरभ के आगे घूम जाती है.
"लेट जाओ ना नीचे कमर के बल." सौरभ ने कहा.
"नही नही कपड़े गंदे हो जाएँगे...ऐसे आराम से हो जाएगा तुम करो तो."
"वो तो हो जाएगा लेकिन लेटा कर लेने का मन था मेरा. चलो कोई बात नही डॉगी स्टाइल ईज़ ऑल्वेज़ गुड."
कविता झुकी हुई थी सौरभ के आगे. बाकी का काम मिहित को करना था. सौरभ ने लंड चूत पे रखा और ज़ोर से पुश किया. एक झटके में लंड चूत में सरक गया.
"रास्ता कुछ ज़्यादा ही स्मूद हैं तुम्हारी चूत का. लगता है बहुत लोग घूम चुके हैं यहाँ हे..हे..हे."
"सिर्फ़ तीन घूमे हैं. हां वैसे वो तीनो बहुत बार घूमे हैं आअहह फक." सौरभ ने काम शुरू कर दिया था.
"एनीवे इट्स ए नाइस जुवैसी पुश्सी फॉर आ गुड फक." सौरभ ने लंड धकेलते हुए कहा.
"एन्ड यू गॉट सुपर्ब डिक फॉर आ ड्रीम फक."
"ऐसा है क्या तो ये ले आअहह." और सौरभ ने अपने आगे झुकी कविता के अंदर लंड के धक्को की बोछार शुरू कर दी.
"आअहह यू आर आ डॅम गुड फख्र."
"एन्ड यू आर डॅम हॉट स्लट."
"ऑफ कोर्स...आआहह फक मी हार्डर."
सौरभ कुछ देर तक कविता की चूत ठोकता रहा. अचानक उसने सोचा, "इसे कोई मज़ा तो चखाया ही नही. ऐसा करता हूँ इसकी गान्ड में डालता हूँ. फिर पता चलेगा कि मुझसे पंगा लेने का क्या मतलब है. सारा मामला बिगाड़ दिया आज इसने."
सौरभ ने लंड चूत से निकाला और तुरंत गान्ड के छेद पर रख कर ज़ोर से पुश किया. इस से पहले कविता कुछ समझ पाती सौरभ के लंड का मूह गान्ड में घुस चुका था.
"नहियीईईईईईईईईई मैं अनल नही करती ओफ आअहह निकालो."
"अब नही निकलेगा फँस गया है." सौरभ ने थोड़ा और पुश किया और आधा इंच और गान्ड में घुस गया.
"नो...ओह....नो प्लीज़ निकाल लो. बहुत पेन हो रहा है नहियीईईईई आआआययययीीई." सौरभ ने थोड़ा और पुश कर दिया.
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"तुमने ये चीख सुनी लगता है कोई मुसीबत में है." अंकिता ने कहा.
"हां मेडम सुनी...किसी लड़की की चीख लगती है चलिए मेडम देखते हैं."
दोनो आवाज़ की दिशा में बढ़ते हैं.
"नही प्लीज़ रहने दो आआहह."
"आवाज़ नज़दीक से ही आ रही है." अंकिता ने सामने की झाड़ियों को हटाया तो दंग रह गयी. सौरभ की पीठ थी उसकी तरफ इसलिए शक्ल दिखाई नही दी. आशुतोष भी सौरभ को पहचान नही पाया. उन दोनो को यही लगा कि रेप हो रहा है.
अंकिता बिना वक्त गवाए दबे पाँव से आगे बढ़ी और सौरभ के सर के पीछे बंदूक रख दी.
"छोड़ दो उसे वरना भेजा उड़ा दूँगी...अपने हाथ उपर करो." अंकिता ने कड़क आवाज़ में कहा.
सौरभ की तो सिट्टी पिटी गुम हो गयी. उसने हाथ खड़े कर लिए. लेकिन उसका लंड अभी भी कविता की गान्ड में फँसा था.
आशुतोष आगे बढ़ता है और कविता से कहता है, हट जाओ आप एक तरफ झुकी ही रहेंगी क्या. हम आ गये हैं अब." कह कर वो सौरभ की तरफ देखता है.
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