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Adultery बात एक रात की - The Immortal Romance - {Completed}
आशु ने श्रद्धा को घर जाने को बोल दिया. श्रद्धा ऑटो पकड़ कर घर गयी.

 
श्रद्धा ने घर कर अपने घर का ताला खोला और चुपचाप अंदर गयी.
 
"बहुत बढ़िया... मुझे यहा बंद करके बहुत अच्छा किया आपने दीदी" पूजा ने कहा.
 
"ओह तुम उठ गयी...सॉरी मुझे बाहर से ताला लगा कर जाना पड़ा." श्रद्धा ने कहा.
 
"किसके साथ गयी थी आप ताला लगा कर आशु के साथ या सौरभ के साथ."
 
"भोलू ले गया था मुझे.." श्रद्धा ने कहा.
 
"छी वो भोलू हवलदार...उसकी शक्ल देखी है छी...अब आप किसी के साथ भी चल देती हैं?"
 
"मेरे मामलो में टाँग ना अड़ाओ समझी मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगी...तुम अपने काम से काम रखो...और मैं अभी हॉस्पिटल से रही हूँ."
 
"हॉस्पिटल...क्यों?"
 
श्रद्धा पूजा को सौरभ के बारे में बताती है.
 
"ह्म्म...चलो छोडो...मुझे कॉलेज के लिए तैयार होना है" पूजा कह कर बाथरूम में घुस गयी.
 
"कॉलेज के लिए तैयार होना है हा...खुद पता नही क्या क्या करती होगी कॉलेज में...मुझे नसीहत देती है." श्रद्धा गुस्से में बड़बड़ाई.
 
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..

 
आशु ने पूरा हॉस्पिटल छान मारा उसने पेशेंट रिजिस्टर भी चेक किया. पर वहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति नही मिला जो की अपने पेट के ऑपरेशन के लिए वहाँ आया हो. बाकी पोलीस वालो को भी किसी हॉस्पिटल, क्लिनिक में कुछ नही मिला.
 
"अगर उसे चाकू लगा था तो वो गया कहाँ? क्या घर पर ही ऑपरेट करवा रहा है. बहुत शातिर है ये साइको." आशु ने सोचा.
 
पूरा दिन बीत गया. सौरभ की हालत में धीरे धीरे सुधार हो रहा था. एक हफ़्ता उसे हॉस्पिटल में ही रहना था.
 
"तुम घर जा कर आराम करो आशु कब तक यहा बैठे रहोगे...सादे दस हो गये हैं."
 
"साइको का कुछ पता नही चला गुरु पता नही साला कहा गया होगा अपना पेट सीलवाने."
 
"कुछ दिन अब वो किसी को मारने की हिम्मत नही करेगा...पेट फाड़ दिया है मैने उसका."
 
"ये तो हैं बैठा होगा कही साला सर पकड़ के...उसे भी तो पता चला कि चाकू लगने से कैसा लगता है."
 
"आआहह."
 
"क्या हुआ गुरु?"
 
"यार ये सरिंज जो हाथ में लगा रखी है बहुत दर्द हो रहा है इसमें"
 
"ग्लूकोस के लिए है ना ये?"
 
"हां"
 
"रूको मैं किसी नर्स को बुलाता हूँ." आशु ने कहा.
 
आशु बाहर आया. उसने चारो तरफ देखा कोई नही था. वो ढूँढते ढूँढते थोड़ा आगे गया.
 
"शायड इस कमरे में होगी नर्स." आशु ने सोचा क्योंकि कमरे पे लिखा था 'रेस्टरूम फॉर स्टाफ'
 
आशु कमरे के नज़दीक गया तो उसे अंदर से कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी. उसने दरवाजा खोला तो दंग रह गया.
 
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Update 41

 
 
"मेरे दोस्त के हाथ में जो सरिंज लगी है... दर्द कर रही है आकर ज़रा देख लीजिए."
 
"ठीक है मैं आती हूँ जाओ."
 
"अभी चलिए वो परेशान है."
 
"ओये बोला ना इन्होने...जाओ यहा से."
 
आशु आगे बढ़ा और गार्ड की गर्दन पकड़ ली. "साले जैल में डाल दूँगा...ज़्यादा बकवास की तो."
 
"आप क्या पोलीस में हो." गार्ड गिड़गिदाया.
 
"और नही तो क्या...मेरा इरादा तुम दोनो को डिस्टर्ब करने का नही था...मैं तो जा ही रहा था कि इन्होने मुझे देख लिया."
 
"सॉरी सर चलिए आपके दोस्त को देख लेती हूँ ." स्निग्धा के तेवर भी ढीले हो गये.
 
स्निग्धा आशु के साथ चल दी.
 
"कुण्डी तो लगा लिया कीजिए कोई भी झाँक सकता है."
 
"सॉरी सर...ग़लती हो गयी किसी को बताना मत प्लीज़ मेरी नौकरी चली जाएगी."
 
आशु ने चलते चलते स्निग्धा की गान्ड पर हाथ मारा और बोला, "कोई बात नही आप मेरे दोस्त की केर कीजिए बस...आप उसे छोड़ कर यहाँ वहाँ रहेंगी तो कैसे चलेगा."
 
"सॉरी सर...मैं उनका पूरा ध्यान रखूँगी" स्निग्धा ने कहा.
 
स्निग्धा ने सरिंज चैक की.
 
"दर्द तो इसमे रहेगा...आप हाथ ज़्यादा मत हिलाओ." स्निग्धा ने सौरभ को कहा.
 
"क्या इसे निकाल नही सकते." सौरभ ने कहा.
 
"नही ग्लूकोस ज़रूरी है आपके लिए"
 
"कोई बात नही गुरु...हाथ का थोड़ा ध्यान रखो दर्द कम हो जाएगा."
 
सौरभ ने आशु को इशारे से अपने पास बुलाया और बोला, "इस नर्स की लेने के चक्कर में तो नही है तू...बड़ा घूर रहा है इसकी गान्ड को."
 
"गुरु कोशिश तो पूरी है...शायद काम बन जाए."
 
"चल मज़े कर तू...मुझे नींद रही है"
 
"गुरु बाहर एक कॉन्स्टेबल है...चिंता मत करना मैं इस नर्स का काम निपटा कर जल्दी जाउन्गा."
 
"जाओ ऐश करो." सौरभ हंस कर बोला.
 
"थॅंक यू स्निग्धा जी...आओ बाहर चलते हैं. मेरे दोस्त को नींद रही है."
 
आशु स्निग्धा के साथ बाहर जाता है.
 
"सर मुझे दूसरे पटेंट भी देखने हैं मैं चलती हूँ....कोई ज़रूरत हो तो बुला लीजिएगा" स्निग्धा ने कहा.
 
"ज़रूरत तो आपकी हर वक्त रहेगी...कहा मिलेंगी आप." आशु ने कहा.
 
"मैं उसी कमरे में मिलूंगी" स्निग्धा ने नज़रे झुका कर कहा.
 
"कितना वक्त लगेगा आपको सभी पेशेंट्स को अटेंड करने में"
 
"यही कोई एक घंटा."
 
"एक घंटा!" आशु के चेहरे पर हैरानी के भाव गये.
 
"हां सर इतना वक्त तो लगता ही है." सनेहा ने कहा और वहाँ से चली गयी.
 
आशु स्निग्धा को जाते हुए घूरता रहा. स्निग्धा की गान्ड चलते हुए कामुक अंदाज़ में चालक रही थी .आशु तो बस देखता ही रह गया.
 
"यार मामला कुछ जमता नज़र नही रहा...मैने इसकी गान्ड पर हाथ तो मारा था....शायद मेरा सिग्नल समझी नही ये." आशु सोच में पड़ गया.
 
"चलो कोई बात नही पेशेंट्स को अटेंड करना भी ज़रूरी है . वापिस आएगी तो फिर से ट्राइ करूँगा...मानेगी तो ठीक है वरना रहने देंगे." आशु वापिस सौरभ के पास गया. पर सौरभ तब तक सो चुका था.
 
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आशु सौरभ के पास ही बैठ जाता है. कुछ देर तक तो वो जागा रहता है लेकिन धीरे धीरे नींद उसे घेर ही लेती है और वो बैठा बैठा कुर्सी पर झूलने लगता है. कुर्सी के लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाता है. आख़िर कार वो लूड़क जाता है और उसकी आँख खुल जाती है.

 
"12:30 हो गये...देखता हूँ एक बार ट्राइ करके क्या पता बात बन जाए...अब तो वो उसी कमरे में होगी."
 
आशु उसी कमरे पर पहुँच जाता है. वो दरवाजा खोल कर देखता है पर स्निग्धा वहाँ नही मिलती.
 
"कहा गयी ये...छोड़ो यार क्यों अपना वक्त खराब कर रहा हू इसके लिए...छाए पी कर आता हूँ वरना फिर नींद जाएगी."
 
आशु हॉस्पिटल की कॅंटीन में आकर चाय ऑर्डर करता है. वही उसे स्निग्धा दीख जाती है. स्निग्धा के साथ एक नर्स और थी और वो भी चाय पी रहे थे.
 
आशु चाय लेकर स्निग्धा के पास जाता है. आशु को देख कर स्निग्धा कहती है,"मैं थोड़ी देर पहले आई तो आपके दोस्त को देखने. ग्लूकोस की नयी बॉटल लगा कर आई हूँ. आप सो रहे थे."
 
"ओह हां मुझे नींद गयी थी...मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है"
 
"हां बोलिए"
 
"अकेले में बात करनी है."
 
"ओके...मैं चाय पी लू क्या?" स्निग्धा मुस्कुरा कर बोली.
 
"हां-हां बिल्कुल मेरी भी चाय बाकी है"आशु भी मुस्कुरा दिया.
 
"लाइन क्लियर लगती है...यही मोका है पासा फेकने का...इसकी चाय कब ख़तम होगी कप है या बाल्टी मेरी तो ख़तम भी हो गयी."
 
"आप मेरे कप को क्यूँ घूर रहे हैं"स्निग्धा ने पूछा.
 
"अच्छा कप है काफ़ी चाय जाती है इसमे...वही देख रहा था."
 
स्निग्धा हँसने लगती है और बोलती है, "आपके पास भी सेम कप था...चलिए मेरी चाय ख़तम हो गयी."
 
"शूकर है." आशु ने कहा.
 
स्निग्धा ने अपने साथ आई नर्स को बाय किया और आशु के साथ चल दी.
 
"कहिए क्या ज़रूरी बात थी."
 
"कोई ज़रूरी बात नही है...आपके साथ कुछ पल बिताने थे बस."
 
"ह्म्म...चाय कैसी लगी आपको इस कॅंटीन की चाय बहुत अच्छी है."
 
"चाय पी कौन रहा था...मेरी नज़र तो बस आप पर थी."
 
स्निग्धा शर्मा जाती है और बोलती है, "छोड़िए ऐसी बाते मत कीजिए."
 
"इतनी खूबसूरत हैं आप और उस सेक्यूरिटी गार्ड के साथ छी...आपके लायक नही है वो ना शक्ल ना सूरत."
 
स्निग्धा ने आशु की बात का कोई जवाब नही दिया.
 
"मैने कुछ ग़लत कहा क्या?"
 
"नही सर ऐसी बात नही है आप ये सब क्यों बोल रहे हैं"
 
आशु और स्निग्धा बाते करते करते कॅंटीन से काफ़ी दूर गये थे. वो अब अंधेरी सड़क पर चल रहे थे.
 
"वैसे ही बोल रहा हूँ."
 
"सर इस सड़क पर रोशनी नही है वापिस चलते हैं...अंधेरे से मुझे डर लगता है." स्निग्धा ने कहा.
 
आशु ने स्निग्धा का हाथ थाम लिया और बोला, "डरने की कोई ज़रूरत नही है मैं हू ना साथ."
 
"मुझे लगता है आप मुझे ब्लॅकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं. छोड़िए मेरा हाथ."
 
आशु ने हाथ छोड़ दिया. "आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
 
"पहले आपने मेरी बॅक पर हाथ मारा था...मैने कुछ नही कहा अब आप ये सब घुमा फिरा कर बोल रहे हैं."
 
"मैं आपको ब्लॅकमेल नही कर रहा हूँ...पटा रहा हूँ इतना भी नही समझती..तुम जाना चाहो तो जा सकती हो मैं तो यही घूमूंगा अभी."
 
"मुझे पता रहे हैं पर क्यों?"
 
"क्योंकि मुझे आपकी चूत लेनी है इसलिए...अब साफ साफ बोल दिया फिर मत कहना."
 
"ओह गॉड आप कैसी बाते करते हैं."
 
"देखो मैने तुम्हे डिस्टर्ब किया था...आपका काम अधूरा रह गया था. मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपका काम पूरा किया जाए."
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"आप बहुत अश्लील बाते करते हो."

 
"अब जल्दी से ऐसी जगह बताओ जहा मैं आराम से तुम्हारी चूत में लंड घुसा सकूँ"
 
"ऐसी कोई जगह नही है यहा हे..हे" स्निग्धा हँसने लगती है.
 
"कोई बात नही ये सड़क काम करेगी चलो उस पेड़ के पीछे चलते हैं." आशु ने कहा.
 
"यहा नही नही आप पागल हो गये हैं."
 
आशु ने स्निग्धा का हाथ पकड़ा और बोला,"अरे आओ ना कब से तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए और तुम हो की नखरे कर रही हो."
 
आशु स्निग्धा को खींच कर पेड़ के पीछे ले आया.
 
"आप समझ नही रहे हैं...यहा ख़तरा है...कोई भी कभी भी सकता है."
 
"कितनी देर से हम यहा घूम रहे हैं...अभी तक तो कोई आया नही...कोई नही आएगा यहा."
 
आशु ने अपनी पेण्ट की चैन खोली और अपने भीमकाय लंड को बाहर खींच लिया.
 
"थामिये अपने हाथ में कोई आपका इंतेज़ार कर रहा है.
 
"आप ये ठीक नही कर रहे."
 
आशु ने स्निग्धा का हाथ पकड़ा और अपने तने हुए लंड पर रख दिया.
 
"ओह माय गॉड ये क्या है."
 
"लंड है भाई...ऐसे कह रही हो जैसे पहली बार देख रही हो...वो गुआर्द लंड ही तो पाले रहा था तुम्हारी चूत में. भूल जाती हो क्या लंड लेकर लंड को.?"
 
"पर ये कुछ ज़्यादा ही बड़ा है."
 
"मज़ाक अच्छा कर लेती हो अब ये मत कहना कि तुम इसे गान्ड में नही ले पाओगि क्योंकि मैने ये पूरा का पूरा तुम्हारी सेक्सी गान्ड में डालना है."
 
"ओह नो...आप कैसी बाते करते हैं."
 
आशु स्निग्धा को बाहों में जाकड़ लेता है और उसके होंठो को चूसने लगता है.
 
"वाओ यू आर वंडरफुल क्या होंठ है तुम्हारे...तुम्हारी चूत के होंठ भी ऐसे ही हैं क्या."
 
"मुझे नही पता...आहह" आशु ने उसके बूब्स को मसल दिया था.
 
आशु ने स्निग्धा के बूब्स को बाहर निकाल लिया और उन्हे चूसने लगा.
 
"आअहह सर कोई गया तो."
 
"कोई नही आएगा...तुम बस मज़े करो."
 
आशु ने अब स्निग्धा की गान्ड को थाम लिया और गान्ड के दोनो पुतो को मसल्ने लगा.
 
"अयाया आराम से."
 
"गान्ड में लिया हैं ना आपने पहले"
 
"हां पर इतना बड़ा नही आआहह."
 
"घूम जाओ और घूम कर झुक जाओ...वक्त बर्बाद करना ठीक नही है...तुम्हे अपनी ड्यूटी भी करनी है"
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Update 42

 
स्निग्धा पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी. वो बिना किसी झीजक के आशु के आगे घूम गयी और झुक गयी. आशु ने उसकी स्कर्ट उपर उठाई और उसकी पॅंटी नीचे सरका दी.
 
"सर मुझे बस यही डर है कि कही कोई ना जाए."
 
आशु अपने लंड पर थूक रगड़ रहा था. "आप चिंता मत करो कोई आएगा भी तो मैं संभाल लूँगा."
 
"आप वहाँ तो नही डालेंगे ना?"
 
"कहा?" आशु ने पूछा.
 
"वही गान्ड में."
 
"नही पहले आपकी चूत को रागडूंगा. जब उसकी तसल्ली हो जाएगी फिर गान्ड में डालूँगा."
 
"इतना बड़ा मेरे वहाँ नही जाएगा सर आगे की बात और है हालाँकि वहाँ भी मुश्किल होने वाली है."
 
"आप बिल्कुल चिंता मत करो मुझे अब गान्ड मारनी आती है...हे..हे."
 
आशु ने स्निग्धा की गान्ड को पकड़ लिया और एक ही झटके में पूरा लंड स्निग्धा की चूत में उतार दिया.
 
"ऊऊऊहह म्म्म्ममममममम मैं चिल्ला भी नही सकती आआहह बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा है"
 
"थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा हे..हे..हे" आशु हँसने लगा.
 
"आप हँसो मत कोई सुन लेगा...आअहह"
 
"ओह हां.... सॉरी."
 
कुछ देर बाद आशु ने अपने लंड को स्निग्धा की चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. उसके आँड बार बार स्निग्धा की चूत की पंखुड़ियों से टकरा रहे थे.
 
"आआहह ऊऊऊहह एस..." स्निग्धा जल्दी ही झाड़ गयी.
 
लेकिन आशु रुका नही और स्निग्धा की गान्ड को पकड़ कर लगातार उसकी चूत में लंड को घुमाता रहा.
 
"ऊऊहह नो प्लीज़ स्टॉप आआआहह" स्निग्धा एक और ऑर्गॅज़म में डूब गयी.
 
"कैसा लग रहा है?" आशु ने पूछा.
 
"इतनी गहराई तक कोई नही पहुँचा आज तक आअहह बर्दास्त
 
के बाहर हो रहा है...प्लीज़ अब रुक जाओ......आआआहह नो.....ओह....यस." स्निग्धा एक बार फिर झाड़ जाती है.
 
आशु स्निग्धा की चूत से लंड बाहर निकाल लेता है और उसकी गान्ड फैला कर उसकी गान्ड के छेद पर थूक लगा देता है. "अब आपकी गान्ड मारी जाएगी."
 
"मुझे डर लग रहा है इतना बड़ा कैसे घुसेगा वहाँ."
 
"घुस जाएगा आप धीरज रखो...ऐसा करो अपने दोनो हाथो से गान्ड को फैला लो...लंड घुसने में आसानी होगी."
 
स्निग्धा मरती क्या ना करती. उसने अपनी गान्ड आशु के लंड के लिए फैला ली. आशु ने गान्ड के छेद पर लंड टिका दिया और बोला, "तैयार हो ना मैं घुसा रहा हूँ."
 
स्निग्धा कुछ नही बोली. पर आशु ने धक्का लगा दिया और लंड का उपरी हिस्सा स्निग्धा की गान्ड में घुस गया.
 
"उफ्फ बहुत टाइट गान्ड है...किसी ने ली भी है ये या झूठ बोल रही थी..ये तो घुस ही नही रहा."
 
"तुम्हारा इतना बड़ा है तो मैं क्या करूँ....वो गुआर्द तो आराम से घुसा देता है."
 
"मूँगफली तो आराम से जाएगी ही असली बात तो मेरे जैसे लंड की है."
 
"आप रहने दीजिए....आआअहह नो....म्म्म्मममम" आशु ने लंड थोड़ा और अंदर सरका दिया था.
 
"जा रहा है धीरे धीरे...आआहह" आशु ने कहा.
 
धीरे धीरे आशु ने स्निग्धा की गान्ड में अपना पूरा लंड घुसेड दिया.
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"अब तो खुश होंगे आप डाल दिया ना पूरा आआहह कितना दर्द हो रहा है."

 
"थोड़ी देर में जैसे चूत का दर्द गया था गान्ड का भी चला जाएगा"
 
आशु कुछ देर तक स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा. स्निग्धा भी चुपचाप गान्ड में लिए पेड़ का सहारा ले कर झुकी रही. कुछ देर बाद आशु हल्का हल्का हिलने लगा.
 
"आआहह व्हाट बट यू हॅव आआहह फक इट आआहह"
 
"ऊऊओह आआहह योर लंड ईज़ गोयिंग सो डीप आआहह"
 
"डीप तो जाएगा ही बड़ा जो है....हे..हे..हे."
 
"प्लीज़ हँसिए मत."
 
"ओह सॉरी...आप चिंता मत करो...खो जाओ मेरे लंड के धक्को में...आआहह"
 
"मैं कब से झुकी हुई हूँ...कमर दुखने लगी है मेरी आआहह."
 
"खड़ी हो जाओ फिर....और पेड़ से चिपक जाओ मैं खड़े खड़े मार लूँगा गान्ड तुम्हारी."
 
स्निग्धा लंड को गान्ड में लिए-लिए खड़ी हो गयी और पेड़ से चिपक गयी. आशु अब स्निग्धा को खड़े खड़े ठोक रहा था.
 
"कब तक करेंगे आप मैं थक गयी हूँ."
 
"कर दू क्या ख़तम?"
 
"और नही तो क्या मुझे ड्यूटी भी करनी है अपनी और मैं थक भी गयी हूँ."
 
"पेड़ को कस के पकड़ लो अब ज़ोर ज़ोर से मारूँगा मैं आआहह"
 
आशु अब अपने ऑर्गॅज़म के लिए स्निग्धा की गान्ड पर पिल जाता है.
 
"आआआहह ऊऊऊहह थोड़ा धीएरे कीजिए अयाया दर्द हो रहा है फिर से आआहह"
 
पर आशु अपने चरम के नज़दीक था. उसके धक्को की स्पीड और बढ़ती गयी.
 
"ऊऊओह ये लो छोड़ रहा हूँ मैं अपना वीर्य तुम्हारी सेक्सी गान्ड में आआअहह ऊओह"
 
और आख़िर कार आशु का ऑर्गॅज़म हो ही गया. कुछ देर तक आशु यू ही स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा.
 
"निकालिए भी अब ...मुझे जाना है...ड्यूटी भी करनी है." स्निग्धा ने कहा.
 
"ओह सॉरी...अभी निकालता हूँ." आशु स्निग्धा की गान्ड से लंड बाहर खींच लेता है.
 
"आआहह." स्निग्धा लंड के निकालने पर कराह उठती है.
 
दोनो वापिस हॉस्पिटल की ओर चल देते हैं.
 
"आप से एक बात पूछनी थी." आशु ने कहा.
 
"मेरे दोस्त ने साइको किलर के पेट में चाकू मारा था. पर किसी भी हॉस्पिटल या क्लिनिक में ऐसा व्यक्ति नही आया जिसके पेट में चाकू लगा हो."
 
"हो सकता है वो अपना इलाज़ घर पर करवा रहा हो." स्निग्धा ने कहा
 
"ओह हां...ऐसा हो सकता है इस बात पर तो मेरा ध्यान ही नही गया."
 
"क्या इस से कुछ मदद मिलेगी."
 
"बिल्कुल मिलेगी"
 
स्निग्धा सौरभ को एक और ग्लूकोस की बॉटल लगा देती है. सौरभ अभी भी गहरी नींद में सोया है.
 
जब स्निग्धा जाने लगती है तो आशु उसका हाथ पकड़ लेता है.
 
"थॅंक यू.... मुझे आपके अंदर लगाया हर धक्का याद रहेगा."
 
"बहुत स्टॅमिना है आप में... आपने तो जान निकाल दी मेरी"
 
"मोका मिला तो फिर लूँगा तुम्हारी मेरा दोस्त यहा हफ्ते के लिए है."
 
"ह्म्म सोचूँगी की आपको दुबारा दी जाए या नही आप तो जान निकाल देते हो."
 
"मज़ा भी तो उतना ही देता हूँ."
 
"वो तो है...इतने ऑर्गॅज़म एक बार में आज तक नही हुए मुझे जालिम हो तुम तो."
 
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"आपके साथ जो चाय पी रही थी...वो भी सुंदर थी...उस से भी मिलवाओ ना."

 
"वो आपके बस में नही आएगी...रहने दीजिए."
 
"ट्राइ करने में हर्ज़ क्या है...आप बस मेरे साथ का एक्सपीरियेन्स सुना देना उसे...बाकी मैं संभाल लूँगा."
 
"यू आर टू मच..." स्निग्धा वहाँ से हंसते हुए चली जाती है
 
..............................................
 
रात बीत जाती है. सुबह होने पर आशु चौहान को फोन करता है.
 
"सर ये भोलू हवलदार आया था क्या ड्यूटी पर आज."
 
"नही वो नही आया क्यों?"
 
"वैसे ही पूछ रहा हूँ."
 
"अच्छा सुनो तुम फ़ौरन थाने जाओ...सब इनस्पेक्टर विजय अपनी बहन की शादी में मुंबई गये हैं...काम कुछ ज़्यादा है तुम जल्दी जाना."
 
"ठीक है सर मैं अभी रहा हूँ." आशु ने कहा.
 
आशु थाने पहुँचता है.
 
"आशु हमें किसी भी तरह उस लेडी का पता लगाना होगा जो कि उस रात सुरिंदर के साथ थी" चौहान ने कहा.
 
"बिल्कुल सर...बोलिए मुझे क्या करना है."
 
"ये नंबर था तो सुरिंदर के नाम पर उसे तो वो लेडी करती थी. वो कही ना कही से टॉक टाइम भी दल्वाति होगी. और हो ना हो उसने टॉक टाइम घर के आस पास ही किसी से करवाया होगा."
 
"समझ गया सर अभी इस नंबर के मोबायल ऑपरेटर से सारी जानकारी इक्कथा करता हूँ"
 
"तुम अच्छा काम कर रहे हो तभी तुम्हे ये काम दे रहा हूँ"
 
"आप चिंता ना करो सर आपको निराश नही करूँगा." आशु ने कहा.
 
आशु की फोन की बाते सौरभ भी सुन लेता है.
 
"यार आशु तू तो पक्का पोलीस वाला बन गया." सौरभ ने कहा.
 
"अच्छा ऐसा है क्या...मैं तो बस...." आशु एक दूसरी नर्स को अंदर आते देखता है और बोलते बोलते रुक जाता है.
 
सौरभ ने आशु को इशारे से अपने पास बुलाया और कहा, "क्या हुआ बोलती क्यों बंद हो गयी"
 
"गुरु तुम्हे तो एक से बढ़कर एक नर्स मिल रही है अटेंड करने को...क्या किस्मत पाई है तुमने."
 
"किस्मत मेरी है या तेरी...ये बता क्या बना कल रात उस दूसरी नर्स का."
 
"जबरदस्त थी वो गुरु....खूब मज़ा आया उसके साथ पूरी डीटेल बाद में बताउन्गा कही इस नर्स को सुन जाए."
 
"हां और कहीं ये तेरे से पहले से ही चोकन्नि है जाए हे..हे..हे."
 
"आपके लिए हसना ठीक नही है." नर्स ने कहा.
 
"गुरु क्या करते हो तुम भी....स्निग्धा की जगह क्या आप आई हैं.?" आशु ने कहा.
 
"हां..." नर्स ग्लूकोस की नयी बॉटल लगा देती है.
 
"क्या नाम है आपका?" आशु ने पूछा.
 
नर्स ने आशु को घूर के देखा और बोली, "माला...क्यों."
 
"अगर कोई ज़रूरत हुई तो आपको बुलाना होगा ना." आशु ने कहा.
 
"सब नाम की बजाए हमे सिस्टर कहते है...आप नाम की बजाए सिस्टर कह कर बुला सकते हैं."
 
"वो तो है पर आप जैसी को सिस्टर कहना ग़लत लगता है." आशु ने कहा.
 
"क्या मतलब मैं...समझी नही."
 
"कुछ नही जाने दीजिए." आशु ने कहा.
 
नर्स कन्फ्यूज़ सी होकर वहाँ से चली गयी.
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Update 43

 
"आशु ध्यान रखना कभी चप्पल भी पड़ सकती है तुझे...हे..हे..हे."
 
"गुरु हँसने को मना किया है उसने...चुप रहो...ये नर्स तो बड़ी कठोर दिल की है शायद."
 
"तभी कह रहा हूँ बच के रहना कही चप्पल खाओ...एक हसीना के आगे तुम वैसे ही मूत चुके हो"
 
"गुरु वो याद मत दिलाओ वो हालत ही कुछ ऐसे थे. मैं अपर्णा जी के बारे में कुछ भी बोले जा रहा था. जब वो अचानक सामने गयी, वो भी आग बाबूला हो कर तो मेरे होश उड़ गये, मुझे लगा मैं गया अब. ऐसी हालत सिर्फ़ अपर्णा जी ही कर सकती थी मेरी और कोई नही कर सकता"
 
"अपर्णा जी की बड़ी इज़्ज़त करता है तू क्यों....अच्छा ये बता तुझे प्यार हुआ है कभी"
 
"प्यार व्यार के झांजाट में मैं नही पड़ता अब...एक बार हुआ था कॉलेज में. दिल तोड़ दिया था लड़की ने. इतना सदमा लगा था कि पूछो मत. फैल होने की नौबत गयी थी मेरी. उसके बाद प्यार व्यार से दूर ही रहा मैं. करना क्या है प्यार करके. बेकार की सिरदर्दी मौल लेने वाली बात है. प्यार के बिना लड़कियों की कमी है क्या मुझे जो मैं प्यार के पचदे में पदू."
 
"बस...बस भाई...तू तो बुरा ही मान गया...मैं तो वैसे ही पूछ रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि तू अपर्णा जी से प्यार कर बैठा है."
 
"अपर्णा जी प्यार करने लायक हैं पर उनके साथ मेरा कोई स्कोप नही है."
 
"मतलब की अगर अपर्णा जी तैयार हो जाए तो तुम उनसे लव अफेर चला सकते हो."
 
आशु के दिल की धड़कन तेज हो जाती है और वो गहरे ख़यालो में खो जाता है.
 
"अरे क्या हुआ...मैं कुछ पूछ रहा हूँ."
 
"गुरु एक रिक्वेस्ट है...अपर्णा जी के बारे में ऐसी बाते मत किया करो...मुझे कुछ कुछ होता है."
 
"ये कुछ..कुछ प्यार तो नही." सौरभ ने पूछा.
 
"गुरु क्यों बातो में उलझा रहे हो मुझे...मैं लेट हो रहा हूँ"
 
"बस एक बात और कहूँगा."
 
"हां बोलो...क्या है?"
 
"मुझे ऐसा लगता है कि मुझे प्यार हो गया है."
 
आशु तो लोटपोट हो जाता है सौरभ की बात सुन कर.
 
"प्यार और तुम्हे...कौन बदनसीब है वो."
 
"जाओ आशु तुम लेट हो रहे हो."
 
"गुरु मज़ाक कर रहा हूँ...बताओ ना कौन है वो."
 
"पूजा."
 
"पूजा!"
 
"हां पूजा. दिल में अब बस वही है यार. उसे किसी तरह मेसेज दे दो मेरे बारे में क्या पता देखने जाए मुझे."
 
"तुम तो सच में सीरीयस हो गये गुरु...ऐसा कैसे हो गया. तभी कहु क्यों प्यार व्यार की बाते हो रही हैं."
 
"यार बहुत याद रही है सुबह से उसकी कुछ कर ना...वो मुझे देखने आएगी तो अच्छा लगेगा."
 
"अच्छा ट्राइ करूँगा...मैं चलता हूँ अब बाय... अपना ख्याल रखना...बाहर कॉन्स्टेबल है...कोई भी ज़रूरत हो तो उसे बता देना."
 
"पूजा की ज़रूरत है बस तू उसे भिजवा दे किसी तरह."
 
"ठीक है गुरु मैं पूरी कोशिश करूँगा." आशु वहाँ से चल दिया.
 
आशु पोलीस की जीप ले के हॉस्पिटल से निकल पड़ा.
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"थाने जाने से पहले इस भोलू की खबर लेता हूँ...गुरु का काम भी करता आउन्गा." आशु ने कहा.

 
कोई 20 मिनिट में आशु भोलू के घर पहुँच गया.
 
"दरवाजा अंदर से बंद है अभी.... शायद भोलू अंदर ही है." आशु ने दरवाजा खड़काया.
 
भोलू ने आँखे मलते हुए दरवाजा खोला. उसने अपने चारो तरफ़ चादर लपेट रखी थी.
 
"ओह आशु सर."
 
"ज़्यादा नाटक मत कर...ये बता तू था कहाँ...श्रद्धा को छोड़ के कहाँ गया था तू इतनी रात को...सच सच बताना वरना मुजसे बुरा कोई नही होगा."
 
"मैं एक दोस्त के पास गया था...ज़रूरी काम था कुछ."
 
"इतनी रात को जाने की क्या ज़रूरत थी...ये चादर हटाओ और मुझे अपना पेट दिखाओ."
 
"बात क्या है आशु सर."
 
"जैसा कहा है वैसा करो."
 
भोलू ने चादर हटाई और अपनी बन्यान उपर उठा कर अपना पेट दिखाया.
 
"मा की आँख...एक भी निशान नही है तेरे पेट पे तो...फिर चूतिया कट गया मेरा."
 
"बात क्या है आशु सर कुछ बताओ तो" भोलू ने पूछा.
 
"कुछ नही तुम तैयार हो कर जल्दी थाने आओ इनस्पेक्टर साहिब कह रहे थे कि बहुत काम है आज."
 
"ठीक है आशु सर."
 
आशु अब पूजा के घर की तरफ चल दिया. श्रद्धा आशु को घर के बाहर ही मिल गयी.
 
"श्रद्धा तुम्हारी बहन पूजा है क्या घर में."
 
"क्यों उस से क्या काम पड़ गया तुम्हे." श्रद्धा ने पूछा.
 
"है कुछ काम अभी नही बता सकता."
 
"मेरी बहन से दूर रहो."
 
"वैसी बात नही है श्रद्धा...कुछ और काम है."
 
"वो कॉलेज चली गयी."
 
"पूजा से बाद में मिलूँगा...पहले थाने चलता हूँ." आशु सोचता है.
 
"क्या बात है बताओ तो?" श्रद्धा ने पूछा.
 
"कोई ख़ास बात नही है...मैं चलता हूँ अभी ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूँ"
 
आशु सीधा थाने पहुँचता है और चौहान के कमरे की तरफ बढ़ता है. चौहान उसे बाहर ही मिल जाता है.
 
"अच्छा किया जो तुम गये...देखो मेडम साहिबा आग बाबूला हो रही हैं...बार बार मुझे डाँट पड़ रही है. हमें इस केस को जल्द से जल्द सॉल्व करना होगा."
 
"मैं आपके साथ हूँ सर...एक बात पूछनी थी आपसे."
 
"हां पूछो?"
 
"सुरिंदर ने झूठा बयान क्यों दिया सर."
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"वही तो नही समझ रहा...वो रात के कोई ढाई बजे थाने आया था और उसने खुद कहा कि मैने एक लड़की को खून करते देखा है. उसने ये भी बताया कि लड़की के साथ एक नक़ाबपोश था. उसका कहना था कि उसने लड़की और नकाब पोश को आवाज़ लगाई लेकिन दोनो कार छोड़ कर जंगल में भाग गये. उसने हमें जगह दिखाई और हमने कार जब्त कर ली. कार में अपर्णा के पर्स से पता चला कि कार अपर्णा चला रही थी. इस तरह से सारा इल्ज़ाम अपर्णा पर गया. पता नही मीडीया वालो को कैसे खबर लग गयी और ये बात फैलती चली गयी. ये थी सारी बात."

 
"ह्म्म...सारे तार सुरिंदर से ही जुड़े हैं मतलब...फिर तो उस लेडी को ढूँढना बहुत ज़रूरी है क्या पता उसे कुछ पता हो."
 
"सुरिंदर की एक बहन भी है सोनिया...उस से भी पूछताछ करनी होगी."
 
"बिल्कुल सर ये जान-ना बहुत ज़रूरी है की उसने झूठा ब्यान क्यों दिया और किसके कहने पे दिया. जिसके कहने पे उसने ये सब किया...वही साइको है."
 
"बिल्कुल सही जा रहे हो बर्खुरदार...जाओ तुम वो मोबायल वाला काम करो मैं सोनिया से पूछताछ करने जा रहा हूँ. अपने पति के साथ यही देहरादून में ही रहती है वो."
 
"ऑल दा बेस्ट सर...हम ये केस जल्दी सॉल्व करेंगे." आशु ने कहा.
 
"बिल्कुल बर्खुरदार...इस से पहले की वो कयामत मेरी जान ले ले ये केस हमें सॉल्व करना ही होगा."
 
आशु और चौहान केस की बाते कर रहे थे. एक कॉन्स्टेबल वहाँ आता है और कहता है,"सर टीवी पर साइको की न्यूज़ रही है."
 
"क्या दिखा रहे हैं ये अब." चौहान ने कहा.
 
"उस लड़की से बात चित दिखा रहे हैं सिर...जिनकी पहले हमें तलाश." कॉन्स्टेबल ने कहा.
 
"अच्छा अपर्णा जी से बात कर रहे हैं ये मीडीया वाले." आशु ने कहा.
 
"चलो पहले ये खबर देखते हैं फिर निकलते हैं...अपने अपने काम पर." चौहान ने कहा.
 
"जी सर चलिए." आशु ने कहा.
 
टीवी न्यूज़ : "हम इस वक्त सीधे अपर्णा पाठक के घर की . तस्वीरे दिखा रहे हैं. जी हां ये वही अपर्णा पाठक है जिस पर की साइको किलर होने का इल्ज़ाम लगा था. मगर अब मामला और पेचीदा हो गया है. हमारे सूत्रो के मुताबिक असली विटनेस सुरिंदर नही बल्कि अपर्णा पाठक है. अपर्णा पाठक ने खुद अपनी आँखो से मर्डर होते देखा है. ये भी खबर मिली है की इस वक्त सिर्फ़ और सिर्फ़ अपर्णा पाठक ही ये जानती हैं की साइको किलर कौन है क्योंकि उन्होने साइको को बड़े नज़दीक से देखा है. हम अभी आपसे हमारे सवान्द दाता से हुई अपर्णा पाठक की बात चीत दिखाएँगे.
 
"हां तो अपर्णा जी क्या ये सच है कि आपने साइको को देखा है."
 
"देखिए मुझे जो कुछ पता था मैने पोलीस को बता दिया है." अपर्णा ने कहा.
 
"आपके घर के बाहर चार पोलीस वाले मोज़ूद हैं...क्या आपको डर है कि साइको आपको मार सकता है...क्योंकि सिर्फ़ आप ही ने उसे देखा है."
 
"आप ये सब बाते पोलीस से जाके पूछिए मैं कुछ नही कह सकती."
 
बस इतना ही इंटरव्यू दिखाया जाता है अपर्णा का.
 
"पता नही ये मीडीया वाले कहा से ये सब ख़बरे निकाल लेते हैं. चलो आशु हम अपना काम करते हैं. ये सब तो चलता ही रहेगा." चौहान ने कहा.
 
"बिल्कुल सर...चलिए." आशु ने कहा.
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चौहान सुरिंदर की बहन सोनिया के घर की तरफ निकल पड़ता है. आशु भी अपनी इन्वेस्टिगेशन के लिए निकल देता है.

 
चौहान कुछ ही देर में सोनिया के घर पहुँच जाता है. सुबह के दस बाज चुके हैं. चौहान डोर बेल बजाता है.
 
अंदर डोर बेल सुनते ही सोनिया हड़बड़ाहत में सोवर बंद करती है. वो आनन फानन में कपड़े पहनती है और बेडरूम की तरफ भागती है.
 
"उठो...कोई बेल बजा रहा है...जल्दी उठो." सोनिया कहती है.
 
"तुम्हारा घर है तुम जा कर देखो मैं देखूँगा तो दिक्कत हो जाएगी."
 
"बेवकूफ़ मैं दरवाजा खोलने को नही कह रही हूँ...जल्दी कही छुप जाओ."
 
"तुम तो कह रही थी की पूरी रात और पूरा दिन मस्ती करेंगे. काम वाली की भी छुट्टी कर रखी थी तुमने अब ये कौन गया."
 
"देख कर ही बताउन्गि ना नरेश...तुम कही छुप जाओ."
 
"ठीक है यार जो कोई भी हो जल्दी से रफ़ा दफ़ा करो सारा दिन मस्ती करनी है हमें आज." नरेश ने कहा.
 
चौहान बेल बजा बजा कर थक गया है.
 
"कहा है घर के सब लोग कोई दरवाजा क्यों नही खोल रहा." चौहान इरिटेट हो गया.
 
तभी सोनिया ने दरवाजा खोला. पोलीस की वर्दी में चौहान को देख कर वो सकपका गयी.
 
"कहिए क्या बात है?"
 
"क्या आप ही सोनिया हैं?" चौहान ने पूछा.
 
"जी हां...बोलिए क्या बात है."
 
"मुझे आपके भाई के बारे में कुछ पूछताछ करनी है आपसे क्या मैं अंदर सकता हूँ."
 
"जी बिल्कुल आईए."
 
चौहान अंदर गया. उसने घर को पूरे गौर से देखा.
 
"बहुत देर लगाई आपने दरवाजा खोलने में."
 
"वो...वो मैं नहा रही थी."
 
"आप घबराओ मत मैं तो यू ही पूछ रहा था."
 
"क्या जान-ना चाहते हैं आप मुझसे?" सोनिया ने कहा.
 
चौहान बोलने ही वाला होता है कि बेडरूम से नरेश बाहर आता है. वो सिर्फ़ चढ़ि और बनियान पहने था. उसे लगा कि सोनिया ने अब तक जो कोई भी आया होगा उसे रफ़ा दफ़ा कर दिया होगा.
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Update 44

 
नरेश की चौहान को देखते ही फूँक सरक गयी. सोनिया की तो हालत ही पतली हो गयी.
 
"ये कौन है सोनिया जी." चौहान ने पूछा.
 
"ये मेरे पति के दोस्त है." सोनिया ने किसी तरह हिम्मत जुटा कर कहा.
 
"क्या नाम है तुम्हारा?" चौहान ने पूछा.
 
"जी नरेश." नरेश ने जवाब दिया.
 
"अच्छा...आपके पति कहा हैं...उन्हे बुलाओ." चौहान ने सोनिया से कहा.
 
"वो किसी काम से बाहर गये हैं...कल शाम को लोटेंगे." सोनिया ने कहा.
 
"वाह भाई वाह मिया घर नही आपको किसी का डर नही...मस्ती हो रही है पति की पीठ पीछे हा....हा...हा...हा" चौहान हस्ने लगता है.
 
नरेश फ़ौरन बेडरूम में जाकर कपड़े पहनकर बाहर आता है और कहता है, "थॅंक यू सोनिया जो तुमने मुझे कल रात यहाँ रुकने दिया...अब मैं चलता हूँ....बाद में मिलते हैं."
 
"ठीक है...कुछ खा कर जाते तो अच्छा था." सोनिया ने कहा.
 
"नही अभी लेट हो रहा हूँ...मैं चलता हूँ." नरेश वहाँ से चला जाता है.
 
"क्या नाटक कर रहे हो मेरे सामने." चौहान ने कहा.
 
"ये नाटक नही है...वो मेरे पति का बहुत अच्छा दोस्त है. कल देर रात मुंबई से आया था. उसे नही पता था कि मेरे पति घर पे नही है. मैने उसे यही सोने के लिए अपना बेडरूम दे दिया."
 
"आप भी अपने बेडरूम में ही सोई." चौहान ने कहा.
 
"आप जो जान-ना चाहते हैं वो पूछिए मेरी निजी जिंदगी से आपको कोई मतलब नही होना चाहिए."
 
"मतलब निकल आता है सोनिया जी...कभी भी कही भी कोई मतलब निकल सकता है."
 
"आप क्या जान-ना चाहते हैं मुझसे." सोनिया ने कहा.
 
"एक गिलाश पानी मिलेगा पहले बहुत प्यास लगी है." चौहान ने कहा.
 
सोनिया ने चौहान को घूर के देखा और बोली,"अभी लाती हूँ."
 
सोनिया किचन की तरफ बढ़ती है. चौहान सोनिया को जाते हुए देखता है. उसकी नज़रे सोनिया की चलकती गान्ड पर पड़ती है और वही फिक्स हो जाती है.
 
"उफ्फ व्हाट शेकिंग बट शी हॅज़...गुड वन."
 
सोनिया पानी लाती है. इस बार चौहान सोनिया के फ्रंट का नज़ारा लेता है. सोनिया जब हाथ में पानी की ट्रे लिए आगे बढ़ रही थी तो उसके बूब्स उपर नीचे छलक रहे थे. दरअसल जल्दबाज़ी में सोनिया ब्रा पहन-ना भूल गयी थी...जिसके कारण उसके फ्री बूब्स कुछ ज़्यादा ही उछल रहे थे.
 
"उफ्फ व्हाट जंपिंग टिट्स शी हॅज़...गुड वन." चौहान ने कहा.
 
"लीजिए पानी पीजिए." सोनिया ने कहा.
 
"सब कुछ ऐसे ही हिलता है क्या यहाँ.?"
 
"क्या हिलता है...मैं कुछ समझी नही." सोनिया ने कहा.
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"ओह रहने दीजिए आपकी समझ में नही आएगा...अच्छा ये बताए कि आपके भाई ने अपर्णा पाठक के खिलाफ झूठी गवाही क्यों दी...क्या दुश्मनी थी सुरिंदर की अपर्णा से."

 
"वो सब मुझे नही पता...मेरी इस बारे में ज़्यादा बात नही हुई सुरिंदर से."
 
"कुछ तो मालूम होगा आपको. देखिए सुरिंदर ने ये सब किसी के कहने पे किया है. क्या आप हमें बता सकती हैं कि कौन ऐसा शख्स है जो सुरिंदर से ये काम करवा सकता है."
 
"देखिए मैं सच कह रही हूँ...मुझे इस बारे में कुछ नही पता. आप अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं."
 
"अच्छा एक काम कीजिए मुझे सुरिंदर के सभी दोस्तो के नाम पते दे दीजिए...शायद कुछ बात बन जाए."
 
"देखिए मैं उसके सभी दोस्तो को नही जानती...कुछ का मुझे पता है लेकिन उनके भी अड्रेस मेरे पास नही हैं."
 
"सुरिंदर का किसी लड़की से अफेर था क्या."
 
"मेरी जानकारी में तो नही था" सोनिया ने कहा.
 
"ह्म्म...लेकिन आपका अफेर अच्छा चल रहा है क्यों...क्या आपके पति से बात हो सकती है अभी."
 
"किस बारे में?"
 
"जान-ना चाहता हूँ कि ये नरेश उनका कितना अच्छा दोस्त है."
 
"उसका आपके केस से क्या लेना देना."
 
"लेना देना है सोनिया जी आप नही समझेंगी...चलिए आज नही तो कल बात कर लेंगे उनसे."
 
"देखिए आप नरेश के बारे में उनसे कुछ ना कहे उन्हे बुरा लगेगा. मैने उनसे पूछे बिना नरेश को यहाँ रोक लिया था."
 
"अच्छा ऐसा है क्या...कहीं उनसे पूछे बिना कुछ और तो नही किया आपने, नरेश के लिए?"चौहान ने शरारती अंदाज़ में पूछा.
 
"मैं समझी नही आपका मतलब." सोनिया ने कहा.
 
"जैसे कि कही आप नरेश के उपर तो नही चढ़ि या फिर कही नरेश तो आपके उपर नही चढ़ा....हे..हे..हे...ऐसा ही कुछ कुछ"
 
"कैसी बाते करते हैं आप...नही ऐसा कुछ नही था."
 
"फिर आपके पति से बात करने में क्या हर्ज़ है...मैं कल शाम को आउन्गा." चौहान सोफे से उठ जाता है.
 
सोनिया भी फ़ौरन उठ जाती है. "देखिए आप उनसे मिलिए ज़रूर लेकिन नरेश के बारे में कुछ ना बोले तो सही रहेगा. आप नही जानते वो बहुत शक्की किस्म के हैं. बेकार में मेरी शादी शुदा जिंदगी में दिक्कत जाएगी."
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Update 45

 
चौहान सोनिया के पास आता है और उसकी मखमली गान्ड पर हाथ रख कर बोलता है, "सच बोलोगि तो मैं तुम्हारे पति से कोई बात नही करूँगा. कितनी बार ठोका नरेश ने तुझे कल रात."
 
"आप ये क्या बोल रहे हैं.? ऐसा कुछ नही है."
 
चौहान सोनिया की गान्ड से हाथ हटा लेता है और चलने लगता है, "ठीक है फिर कल शाम को तुम्हारे पति को सब कुछ बताया जाएगा."
 
"नही रुकिये...एक बार." सोनिया ने अपनी नज़रे झुका कर कहा.
 
"बस एक बार...इतनी मदमस्त जवानी को तो सारी रात ठोकना था...बेवकूफ़ है ये नरेश."
 
चौहान वापिस सोनिया के पास आया और फिर से उसकी गान्ड पर हाथ रखा. इस बार वो हाथ से गान्ड के पुतो को सहलाने लगा.
 
"मज़ा आया था तुझे."
 
"हाथ हटा लो प्लीज़."
 
"जो पूछ रहा हूँ उसका जवाब दे."
 
"हां आया था."
 
"गुड...और मज़ा लेना चाहोगी."
 
"हाथ हटा लीजिए."
 
"क्यों अच्छा नही लग रहा तुम्हे. ऐसी मखमली गान्ड पर तो खूब हाथ फिराने चाहिए और तुझे खूब मज़े लेने चाहिए."
 
सोनिया चौहान का हाथ पकड़ कर अपनी गान्ड से हटा देती है और कहती है, "कल शाम को मेरे पति से मिल लेना."
 
"वो तो मिलूँगा ही...तुमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया. और मज़ा लेना चाहोगी क्या?"
 
सोनिया किसी गहरी सोच में डूब गयी. चौहान खड़े खड़े सोनिया के जवाब का इंतजार करता रहा.
 
……………………………………………………….
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आशुतोष मोबायल ऑपरेटर रोडफोने के ऑफीस से उस मोबायल नंबर की सारी डीटेल्स निकलवाता है.

 
"सर इस नंबर में जिन जिन जगह से पैसे डलवाए गये हैं वो सारी डीटेल इस पेज में है."
 
"ओह थॅंक यू, शायद इस से काम बन जाएगा"
 
"माइ प्लेषर सर."
 
आशुतोष रोडफोने के ऑफीस से बाहर आता है और उस पेज को ध्यान से देखता है,
 
"ह्म्म मॅग्ज़िमम टाइम एक ही वेंडर से पैसे डलवाए गये हैं. सबसे पहले इसे ही चेक करता हूँ." आशुतोष सोचता है.
 
आशुतोष जल्दी ही उस वेंडर के पास पहुँच जाता है. ये एक मेडिकल स्टोर था जहा पर की मोबायल में टॉक टाइम भरने का काम भी होता था.
 
"एक्सक्यूस मी ये नंबर किसका है" आशुतोष ने पूछा.
 
"आप नंबर ले कर घूम रहे हैं आपको पता होगा." स्टोर वाले ने कहा.
 
"देखो मैं पोलीस से हू. जल्दी इस नंबर के बारे में बताओ वरना..." आशुतोष ने कहा.
 
"सॉरी सर पहले बताना था ना...ये नंबर उँ...अरे हां ये तो मोनिका जी का है."
 
"कौन मोनिका और कहा रहती है ये.?"
 
"कोई सीरीयस बात है क्या सर?"
 
"तुम उसका अड्रेस बताओ सीरीयस है या नही उस से तुम्हे क्या लेना देना."
 
"सॉरी सर वैसे ही पूछ रहा था. मोनिका जी का घर यही नज़दीक ही है. मैं आपको दिखा देता हूँ."
 
"ठीक है जल्दी चलो."
 
स्टोर वाला आशुतोष के साथ चल कर आशुतोष को मोनिका का घर दिखा देता है.
 
आशुतोष डोर बेल बजाता है. मोनिका दरवाजा खोलती है.
 
"जी कहिए."
 
"क्या आप ही मोनिका हैं."
 
"हां क्यों? क्या काम है."
 
"आप ने मुझे पहचाना नही..."
 
"नही...कौन हैं आप. मैं आपको नही जानती"
 
"कुछ दिन पहले फोन पे बात हुई थी. आप ने सुरिंदर को फोन मिलाया था. ग़लती से मैने उठा लिया. आय ऍम सब इनस्पेक्टर आशुतोष . कुछ याद आया."
 
मोनिका के तो पाँव के नीचे से जैसे ज़मीन ही निकल गयी. लेकिन फिर भी वो बोली,"आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही रहा."
 
"आप झूठ बोल कर अपनी ही दिक्कत बढ़ा रही हैं. पहले आपने मोबायल सिम सहित जंगल में फेंक दिया और अब आप झूठ बोल रही हैं. इस सब से तो यही लगता है कि आप बहुत कुछ छुपा रही हैं. अगर आप यहाँ सच नही बताएँगी तो पोलीस स्टेशन में बताएँगी. सच तो आपको बोलना ही पड़ेगा. मर्ज़ी आपकी है."
 
मोनिका घबरा जाती है और बोलती है, "सर आप अंदर आईए"
 
"अंदर तो जाउन्गा पहले आप सच स्वीकार कीजिए."
 
"क्या चाहिए आपको मुझसे?"
 
"ये हुई ना बात...चलिए बैठ कर बात करते हैं." आशुतोष ने कहा.
 
"आप कुछ लेंगे चाय...ठंडा." मोनिका ने पूछा.
 
"बस एक गिलाश पानी दे दीजिए."
 
मोनिका पानी का गिलाश लाती है. "आप काफ़ी यंग ऑफीसर हैं."
 
"हां बस अभी भरती हुआ हूँ...आप भी काफ़ी यंग हैं...आर यू मॅरीड." आशुतोष ने कहा.
 
"यस आय ऍम मॅरीड."
 
"आपके हज़्बेंड कहा हैं....जॉब पे गये होंगे शायद"
 
"हां...वो बाहर गये हैं."
 
"बाहर मतलब घर से बाहर या बाहर से बाहर."
 
"देल्ही गये हैं वो. उनके अक्सर टूर लगते रहते हैं."
 
"तभी आपने सुरिंदर के साथ एक्सट्रा मेरिटल रिश्ता बना लिया."
 
"उस बारे में मैं बात नही करना चाहती. आप काम की बात कीजिए."
 
"सॉरी अगर आपको बुरा लगा तो. मेरे मूह से वैसे ही निकल गया."
 
"इट्स ओके."
 
"आपने क्यों किया ऐसा. मोबायल सिम सहित फेंक दिया. क्या डर था आपको."

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Update 46

 
देखिए मैं किसी मुसीबत में नही फासना चाहती थी. आपसे फोन पर बात करने के बाद मुझे पता चला था कि सुरिंदर मर गया. अब मैं उस रात उसके साथ थी. मुझे डर लग रहा था कि मैं बेकार में मुसीबत में फँस जाउंगी और मेरी बदनामी होगी. इसलिए मैने मोबायल फेंक दिया था."
 
"देखिए साइको किलर बाहर में सारे आम घूम रहा है. आपको कुछ भी पता हो तो बता दो. मैं यकीन दिलाता हूँ आपको कि आपकी प्राइवसी का ध्यान रखा जाएगा."
 
"जब मैं सुरिंदर के घर में थी तो मुझे घर के पीछे कुछ आहट सुनाई दी थी. मैने इस बारे में सुरिंदर को बताया भी था. लेकिन उसने ध्यान नही दिया. सब कुछ मेरे जाने के बाद हुआ."
 
"क्या आपने किसी को देखा वहाँ."
 
"नही मैने बस दो पोलीस वालो को देखा था."
 
"वो बेचारे तो खुद मारे गये."
 
"हां...न्यूज़ पर देखा सब."
 
"आपको क्या लगता है. सुरिंदर ने झूठी गवाही क्यों दी पोलीस को."
 
"मुझे खुद यकीन नही था कि वो लड़की खूनी है. और वही हुआ भी. मैने सुरिंदर से इस बारे में पूछा था. लेकिन उसने यही कहा कि उसने खुद उस लड़की को खून करते देखा है. मैने और ज़्यादा इस बारे में उस से बात नही की."
 
"थॅंक यू वेरी मच मोनिका जी. अब मैं चलता हूँ."
 
"जो मुझे पता था बता दिया सर. प्लीज़ इस केस में मेरा नाम ना आए. मेरी शादी शुदा जिंदगी का सवाल है."
 
"मैं समझ रहा हूँ...आप बेफिकर रहें."
 
आशुतोष उठ कर चल देता है. लेकिन दरवाजे पर आकर पाता है कि बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है.
 
"उफ्फ मैं तो अपनी जीप भी पीछे छोड़ आया. बहुत तेज बारिश हो रही है."
 
"थोड़ी देर रुक जाइए आप."
 
"मैं तो रुक जाउन्गा लेकिन ऐसे मौसम में मैं कही बहक ना जाऊ...आप बहुत सुंदर हो."
 
मोनिका शर्मा जाती है और नज़रे झुका कर कहती है, मज़ाक मत कीजिए."
 
"मज़ाक नही कर रहा हूँ. आप सच में सुंदर हैं. ऐसे मौसम में कोई भी बहक जाएगा आपको देख के."
 
मोनिका हस्ने लगती है. "बस...बस आप तो फ्लर्ट कर रहे हैं."
 
यही दिक्कत है आदमी के मूह से निकला हर सच औरत को फ्लर्ट ही लगता है.
 
"आपने मेरा डर ही भगा दिया. अगर आपकी जगह कोई और पोलीस वाला आता तो मेरी जान निकल जाती अब तक. मैं वैसे ही कई दिनो से परेशान थी इस बात को लेकर."
 
आशुतोष मोनिका को बड़े प्यार से देखता है और कहता है, "मोनिका जी ये सच है कि मैं फ्लर्ट हूँ. आदत से थोड़ा मज़बूर हूँ. लेकिन ये बिल्कुल सच है कि आप बहुत ही क्यूट हो. सुरिंदर जैसे लोगो के हाथो में मत पड़ा कीजिए. देखिए ना कितनी बड़ी मक्कारी की है उसने पोलीस डेप्ट के साथ. सोच समझ कर दिल लगाया कीजिए."
 
"मेरा आगे से ऐसा कोई इरादा नही है. मुझे अपनी ग़लती का अहसास है."
 
"ऐसा ना कहिए मेरे जैसो का दिल टूट जाएगा." आशुतोष की बात पर मोनिका शर्मा गयी.
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"लगता है मेरा फ्लर्ट काम कर रहा है. आप तो मेरे जाल में फस्ति जा रही हैं." आशुतोष ने हंसते हुए कहा.

 
"ऐसा कुछ नही है. आपको वेहम हो रहा है."
 
"आप मेरे चक्कर में मत फासना मेरा तो यही काम है"
 
"आप अपने खिलाफ ही बोल रहे हैं."
 
"आपको चेतावनी देना मेरा फ़र्ज़ है."
 
"यू आर वेरी इंट्रेस्टिंग पर्सन."
 
"आप ऐसी बाते करेंगी तो मेरा हॉंसला बढ़ेगा और फ्लर्ट करने का. कभी किसी को ऐसा मोका मत दीजिए."
 
"आप घबराओ मत आपका कोई चान्स नही है यहाँ."
 
"अच्छा ऐसा है क्या?" आशुतोष कहता है और मोनिका की तरफ बढ़ता है. वो अपने होंठो पर जीभ फ़ीरा कर अपनी इंटेन्षन क्लियर कर देता है कि वो किस करने वाला है. ज़्यादा दूर नही थी मोनिका आशुतोष से. बस दो कदम का फांसला था.
 
"आप क्या करने वाले हैं दूर रहिए." मोनिका पीछे कदम बढ़ाती है.
 
"चेक करना चाहता हूँ की मेरा चान्स है कि नही." आशुतोष आगे बढ़ते हुए बोलता है.
 
मोनिका पीछे हटती चली जाती है और फाइनलि दीवार के सहारे खड़ी हो जाती है. आशुतोष मोनिका की आँखो में देखता हुआ आगे बढ़ता रहता है. मोनिका के बिल्कुल पास पहुँच कर वो मोनिका के सर के दोनो तरफ देवार पर अपने हाथ रख लेता है और मोनिका की आँखो में झाँक कर देखता है.
 
"आप ये क्या कर रहे हैं." मोनिका शर्मा कर पूछती है.
 
आशुतोष बिना कुछ कहे अपने होठ मोनिका के होंठो पर टिका देता है. मोनिका चुपचाप खड़ी रहती है. आशुतोष उसके रश भरे होंठो को चूमता रहता है. अचानक वो हट जाता है और वापिस दरवाजे पर जाता है और बोलता है, "मेरा चान्स तो बहुत तगड़ा है. आप झूठ बोल रही थी."
 
मोनिका दिल पर हाथ रखे दीवार के सहारे खड़ी रहती है. उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थी.
 
"उफ्फ ये बारिश तो रुकने का नाम ही नही ले रही. और तेज होती जा रही है. चाय ही पीला दीजिए थोड़ी, मौसम ठंडा हो रहा है" आशुतोष ने कहा.
 
"लाती हूँ अभी आप वेट कीजिए...चीनी कितनी लेंगे."
 
"बहुत थोड़ी...आपके होंठो का मीठा रस पीकर बहुत मिठास भर गयी है दिल में."
 
मोनिका नज़रे झुका कर, शर्मा कर वहाँ से किचन की ओर चली जाती है.
 
"फँस चुकी है ये तो. पर रहने देता हूँ. उसे कही ये ना लगे कि मैं इस केस का दबाव बना कर फ्लर्ट कर रहा हूँ. ऐसे अच्छा नही लगेगा. रहने दो खुश अपनी जिंदगी में. मुझे लड़कियों की क्या कमी है. ये भी हो सकता है कि वो सिर्फ़ नाटक कर रही हो. आख़िर वो परेशान थी. यही ठीक रहेगा रहने देता हूँ इसके साथ. ऐसी बातो से पोलीस की बदनामी होती है."
 
बारिश बढ़ती ही जा रही थी और आशुतोष दरवाजे पर खड़ा खड़ा कशमकश में खोया था.

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Update 47

 
इधर चौहान अपनी आदत से मजबूर, मोका हाथ से गवाना नही चाहता था. जैसे उसने पूजा पर दबाव बना कर उसकी ली थी ऐसे ही वो सोनिया के साथ भी करना चाहता था.
 
"क्या हुआ सोनिया जी आप तो गहरी चिंता में खो गयी. मेरे स्वाल का जवाब नही दिया आपने. वैसे कहा जाता है की खामोशी का मतलब हां ही होता है. मैं हां समझू क्या"
 
अब सोनिया कहे भी तो क्या. हां उसका नरेश से संबंध था पर इसका मतलब ये नही था कि वो किसी को भी दे देगी.
 
चौहान सोनिया के पास आया और उसकी गान्ड पर फिर से हाथ रख दिया. "आओ तुम्हारे बेडरूम में चलते हैं. तुम्हे अच्छा लगेगा."
 
"आप क्या यहाँ ये सब करने आए थे." सोनिया ने कहा.
 
"चलिए ये सब नही करते...कल मिलते हैं. मुझे इस केस के बारे में आपके पति से भी तो मिलना होगा." चौहान फिर से चलने का नाटक करता है.
 
"रुकिये...कर लीजिए जो करना है."
 
"ये हुई ना बात. तुझे क्या फर्क पड़ेगा. अपने पति को एक धोका और सही हे..हे...हे." चौहान आगे बढ़ कर सोनिया को गोदी में उठा लेता है.
 
"ऐसी चूत मारूँगा तेरी की उस नरेश को भूल जाएगी तू." चौहान बेडरूम की तरफ बढ़ते हुए बोलता है.
 
चौहान सोनिया को उसके बेडरूम में ले आया और उसे बिस्तर पर लेटा दिया. वो खुद बिस्तर के किनारे खड़े हो कर अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. सोनिया हैरानी भरी नज़रो से उसे देख रही थी.
 
"ऐसे क्या देख रही है...बहुत बेचैन हो रही है क्या...हे..हे..हे?" चौहान ने कहा.
 
"यू आर बॅड कॉप."
 
"एन्ड यू अरे बाद वाइफ. इट विल बी गुड कॉंबिनेशन इस्न' इट...लेट्स एंजाय टुगेदर खि...खि...खि."
 
चौहान अपनी शर्ट उतार कर बिस्तर पर चढ़ गया.
 
"मूह में लेगी क्या पहले?" चौहान ने पूछा.
 
"आइ डोंट गिव हेड"
 
"ओके...देट्स कूल बेबी...बट आइ लाइक पटिंग माय डिक इन दा माउत. सो यू बेटर सक इट टुडे."
 
"आइ डोंट नो हाउ टू सक. आइ कॅंट डू इट."
 
"कोई बात नही...मूह में लंड डालूँगा तो चूसना सीख ही जाओगी." चौहान ने कहा.
 
चौहान ने अपनी पेण्ट की ज़िप खोली और अपने लंड को बाहर निकाल लिया. सोनिया की नज़र चौहान के लंड पे पड़ी तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी.
 
"क्या देख रही है. इस्न'टी इट गुड कॉक."
 
चौहान सोनिया की छाती पर चढ़ गया. उसका लंड सोनिया के मूह के बिल्कुल पास था.
 
"मूह खोलिए कोई बड़ी बेसब्री से आपका इंतजार कर रहा है." चौहान ने कहा.
 
"यू आर सिक कॉप."
 
"एन्ड यू आर सिक वाइफ. अब मूह खोल और चुपचाप चूस इसे."
 
"ठीक है मैं सक कारूगी. पर तुम मेरे पति से नही मिलोगे."
 
"अगर तुम मेरा साथ दोगि तो मुझे क्या करना है तुम्हारे पति से मिल के."
 
"देट्स कूल."
 
"तू चिंता मत कर एक बार मेरे साथ एंजाय करेगी ना तो अपने नरेश को भूल जाएगी."
 
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"एक बात तो है."

 
"क्या बोलो."
 
"तुम्हारा नरेश से थोड़ा बड़ा है."
 
"मज़ा भी ये बड़ा ही देगा मेरी जान तू मूह में तो ले."
 
"सोनिया चौहान के लंड के उपरी हिस्से को मूह में ले लेती है."
 
"आअहह मार डाला जालिम ने...आअहह क्या पकड़ा है मेरे लंड को अपने होंठो से. यू आर गुड सकर."
 
सोनिया ने चौहान के लंड को मूह से निकाला और बोली,"इट्स माय फर्स्ट टाइम."
 
"पहली बार में ही धमाका. वाओ सक इट बेबी."
 
सोनिया ने चौहान के लंड को फिर से मूह में डाल लिया और चूसने लगी.
 
"बहुत अच्छे से चूस रही हो. लगता है अच्छा लग रहा है तुम्हे मेरा लंड."
 
"तुम चुसवा रहे हो मैं चूस रही हूँ. इस से ज़्यादा और कुछ नही है" सोनिया ने चौहान के लंड को मूह से निकाल कर कहा.
 
"कोई बात नही तुम चूसो...एक आध बार अपनी जीभ मेरी बॉल्स पर भी फिरा दो."
 
सोनिया ने चौहान के लंड को वापिस मूह में ले लिया.
 
"आआहह यस सक इट बेबी." चौहान ने सोनिया के सर को पकड़ लिया और उसके मूह में धक्के लगाने लगा.
 
चौहान ने अचानक अपने लंड को सोनिया के मूह से बाहर खींच लिया और और सोनिया की छाती से हट कर उसकी टाँगो को फैला कर उनके बीच बैठ गया. उसने सोनिया की सलवार का नाडा पकड़ा और उसे एक झटके में खोल दिया. सोनिया पॅंटी भी नही पहने थी इसलिए उसकी नंगी चूत तुरंत चौहान की आँखो के सामने गयी.
 
"वाह क्या चिकनी चूत है. एक भी बाल नही है." चौहान ने कहा.
 
सोनिया ने शर्मा कर अपनी आँखे बंद कर ली. चौहान सोनिया के उपर झुक गया और उसके होंठो को चूम लिया. उसका लंड खुद--खुद सोनिया की चूत के उपर पोज़िशन ले चुका था. एक्सपर्ट लंड था होल को ढूँढने में उसे ज़्यादा परेशानी नही हुई. चौहान का लंड जब सोनिया की चूत में घुसा तो वो कराह उठी.
 
"आआहह...म्म्म्मममममम"
 
चौहान ने एक ही झटके में पूरा लंड सोनिया की चूत में उतार दिया था. लंड अंदर घुसाते ही वो धक्के भी मारने लगा. सोनिया की तो हालत पतली ही गयी. कुछ देर तक वो सोनिया की चूत उसी पोज़िशन में ठोकता रहा. कुछ देर बाद उसने लंड बाहर निकाला और सोनिया को कहा कि घूम जाओ. सोनिया चौहान के नीचे घूम गयी और चौहान ने उसकी गान्ड फैला कर चूत में लंड डाल दिया.
 
"आआआहह ये पोज़िशन पहली बार लगाई मैने आअहह." सोनिया ने कहा. उसको इस पोज़िशन में अलग ही मज़ा रहा था.
 
चौहान सोनिया की चूत यू ही रगड़ता रहा. सोनिया इतने में 2 बार झाड़ गयी.
 
चौहान ने अचानक लंड बाहर निकाला और सोनिया की गान्ड के छेद पर टीका दिया. इस से पहले की सोनिया कुछ समझ पाती उसकी गान्ड में आधा लंड घुस चुका था.
 
"उउऊययययीीई मा ये क्या किया...नही....ऊओह."
 
पर चौहान कहा रुकने वाला था. उसने तो पूरा लंड सोनिया की गान्ड में उतार दिया और धक्के भी मारने शुरू कर दिए.
 
"ये मखमली गान्ड तो मारनी ज़रूरी थी....खि...खि..खि."
 
"यहाँ टाइम ज़्यादा मत लगाना दर्द हो रहा है....आआहह"
 
चौहान सोनिया की गान्ड में ज़ोर ज़ोर से लंड को रगड़ रहा था और मज़े की शिसकिया ले रहा था. चौहान के हर धक्के के साथ सोनिया की गान्ड छलक उठी थी.
 
"वाओ सच नाइस पीस ऑफ बट."
 
जल्दी ही चौहान ने सोनिया की गान्ड को अपने वीर्य से भर दिया.
 
"ओह व्हाट फक." चौहान हांप रहा था.
 
"निकाल लीजिए अब तो." सोनिया भी हांपते हुए बोली.
 
"ओह हां बिल्कुल...ये लो" चौहान ने सोनिया की गान्ड से लंड बाहर खींच लिया. लंड के निकलने पर ग्लूप की आवाज़ हुई.
 
सोनिया तुरंत टॉयलेट की तरफ भागी. जब वो वापिस आई तो चौहान कपड़े पहन चुका था. उसने भी अपने कपड़े पहन लिए.
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