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07-12-2019, 07:39 PM
दीपा ने मेरी और कुछ देर तक एकटकी लगाकर देखते हुए कहा,"तुम क्यों पूछ रहे हो? मैंने अभी अभी क्या कहा? आज तक ऐसा कभी हुआ है की मैंने ना नुक्कड़ भले ही की हो, पर तुम्हें कहीं भी किसी भी मामले में साथ ना दिया हो? चाहे मैं राजी हूँ या नहीं पर मैंने आखिर में जा कर तुम्हारी बात मानी है की नहीं?" फिर क्यों पूछ रहे हो? बोलो तुम मुझसे क्या चाहते हो?"
मैं क्या बोलता? यदि मैं उस समय दीपा को अचानक यह साफ़ साफ़ कह देता की मुझे उसको तरुण से चुदवाना है, तो पता नहीं क्या होता? शायद दीपा मेरी बात पर सोचती और शायद मान भी जाती, पर ज्यादातर मुझे यही लगा की वह मुझे वहीँ की वहीँ ऐसा लताड़ती की सब कुछ गड़बड़ हो जाता। और तरुण की भी शायद ऐसी की तैसी कर देती। मैंने उस समय इस बात को आगे बढ़ाना ठीक नहीं समझा और चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। पर हाँ, मुझे तब यकीन हो गया की अब कहीं ना कहीं दीपा भी शायद समझ गयी थी की हम दोनों उसे चोदने का प्लान कर रहे थे और उसे चोद कर ही छोड़ेंगे। पर तब भी शायद वह यह बात हम से सुन कर उसे पचा ना पाती और हमारे प्लान पर पानी फेर देती।
मुझे मेरी प्यारी बीबी को खुद ही चुदाई करवाने के लिए राजी हो जाए ऐसी स्थिति में लाना था। हालांकि शायद वह मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थी पर उस समय दीपा काफी उत्तेजक स्थिति में थी और तरुण की हरकतों से तंग आ चुकी थी। मैं मेरी प्यारी बीबी को तंग होकर चुदवाने के लिए तैयार नहीं करना चाहता था। लोहा गरम हो चुका था। मौक़ा देख कर अब हथोड़ा ही मारना था। तो अब फ़ौरन बिना समय गँवाये सही समय और माहौल बनाना पडेगा जिससे की दीपा खुद ही अपनी मर्जी से मेरे सामने ही तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो जाए। और मुझे काफी हद तक यह भरोसा हो गया की दीपा शायद तैयार हो ही जाए। हमारा प्लान तैयार था। बस मौके का इंतजार था।
मैंने कहा, "तुम पूछती हो हम क्या चाहते हैं? आजकी रात हम दोनों को बस दीपा चाहिए। आज तुम हमारे साथ बेझिझक मौज करो यही हम चाहते हैं। जानेमन, हम तो आज होली के मजे लेने के लिए आये हैं। तरुण ने थोड़ी सी छूट लेली तो इतना क्यों तिलमिलाती हो डार्लिंग? मैं तो तुम्हारे पीछे पागल हूँ ही। वैसे ही तरुण भी तुम्हारे सामने आते ही लम्पट बन्दर की तरह पागल सा हो जाता है और तुम्हारे तलवे चाटने लगता है। अब शांत हो जाओ और देखो यह तुम्हारा पागल बन्दर अब तक उठक बैठक कर रहा है। उसे मनाओ।"
दीपा ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "अरे मैं शांत ही हूँ। और तुम्हारी दीपा कहाँ भागी जा रही है? मैं तुम दोनों के साथ ही हूँ ना, और एन्जॉय भी कर रही हूँ। तुमने मुझे ऐसा सेक्सी ड्रेस पहनने को कहा और मंब बेवकूफ तुम्हारी बातों में आ गयी और मैंने पहन भी लिया। अब देखो क्या हो रहा है? तुम्हारे बन्दर ने और तुमने मिल कर मेरे ड्रेस की ऐसी की तैसी कर दी। मुझे तुम लोगों ने आधी नंगी ही कर दिया। तुम कहीं सचमुच मुझे तरुण के सामने पूरी नंगी तो नहीं करना चाहते हो? लगता है, मुझे तो तुम्हारे इस बन्दर के सामने बुरखा पहन कर ही आना चाहिए था। तब अगर उसे मेरी शकल ना दिखे तो हो सकता है वह मेरे से कुछ सभ्यता से पेश आये।"
मैं दीपा से कहा, "डार्लिंग, आज की रात तो सभ्यता की बात ना करो प्लीज?"
तरुण कार के बाहर उठक बैठक लगा रहा था उसे देख कर दीपा हँस पड़ी और बोली, "बस करो बन्दर। अब तुम ज़रा दूसरी तरफ घूम जाओ। तुमने मेरे कपड़ों की ऐसी की तैसी कर दी है, उसे ठीक करने दो। भाई अगर तुम बन्दर हो तो मैं बंदरिया ही हुई ना? तुम्हारी इस बंदरिया को मतलब मुझे साडी बगैरह कपडे ठीक तरह से पहनने दो।" आखिर में दीपा ने अपने आप ही खुद को तरुण की बंदरिया बता दिया ताकि तरुण बन्दर कहे जाने पर बुरा ना मान जाए।
तरुण ने भाभी को हाथ जोड़ कर कहा, "भाभीजी अब माफ़ भी करदो। आप ने मुझे बन्दर तो करार कर ही दिया है तो मेरी हरकतों का बुरा मत मानना, प्लीज। अब तो हम बन्दर बंदरिया का खेल खेल सकते हैं ना?"
दीपा ने थोड़ा मुस्करा कर एक हाथ ऊपर कर कहा, "ठीक है भाई, इस बंदरिया ने तुम बन्दर को माफ़ कर दिया। पता नहीं तुम दोनों भाई मिल कर मेरे साथ क्या क्या खेल खेलोगे? तुम दोनों ने मिलकर तो मुझे करीब करीब नंगी ही कर दिया है। मैं ऐसे कपड़ों में तो प्रोग्राम में जा नहीं सकती। अब तुम मुझे मेरे कपडे ठीक से पहनने दो। यार अब थोड़ा सीरियस हो जाओ।"
तरुण कार से थोड़ी दूर अँधेरे में घूम कर जा खड़ा हुआ। दीपा ने अपनी साडी फिर ठीक तरह से बाँध ली और ब्रा और ब्लाउज ठीक किये। मेरी बात सुनकर दीपा थोड़ी सी रिलैक्स लग रही थी। अपने आप को सम्हाल कर बोली, "देखो, छेड़ाछाड़ी ठीक है, पर एक लिमिट होनी चाहिए। यह बन्दा कभी सीरियस भी होगा की नहीं?"
मैंने कहा, " मैंने कहा, "मेरी बात मानो, वह बहुत ज्यादा सीरियस है। उसे सीरियस होने के लिए मत कहो। बस वह तुन्हें देखता है और तुम्हारे साथ मस्ती करता है तभी वह कुछ देर के लिए अपना दर्द भूल जाता है। आज टीना नहीं है तो वह और भी परेशान है। उसके सर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या तुम्हें पता है, उस बेचारे के साथ क्या हुआ है?"
दीपा मेरी बात सुन कर चौंक सी गयी। तरुण ने कई बार कुछ सीरियस बात है उसका जिक्र किया तो था पर तब तक दीपा सोच रही थी की कोई मामूली सी बात होगी। पर मामला कुछ ज्यादा ही सीरियस लग रहा था। दीपा ने मेरी और चिंता भरी नजरों से देखा और बोली, " हुआ क्या?"
मैंने कहा, "चलो तरुण को ही पूछ लेते हैं।" हम ने तरुण को बुलाया।
तरुण मुझे और दीपा को फुस्फुस करते देख कर बोला, "क्या बात है? मियाँ बीबी क्या फुस्फुस कर रहे हो? भाभी, आज आपने मुझे काफी झाड़ लगा दी है। मुझे झाड़ने की कोई और बात तो नहीं है?"
दीपा ने कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं। पर तुम बताओ, तुम दीपक को कह रहे थे की तुम कोई ख़ास बात करना चाहते हो? क्या बात है?"
तरुण मेरी बात सुनकर तरुण थोड़ा सीरियस हो गया। उसने कहा, "भाभी, मैं बताऊंगा। आपको नहीं बताऊंगा तो किसको बताऊंगा? पर आज आपकी कंपनी में मैं बिलकुल सीरियस होना नहीं चाहता। मैं आज होली की मस्ती और पागलपन ही करना चाहता हूँ। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। अभी तो आप यह बताओ की अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"
मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।"
दीपा ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "तरुण अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "
मैंने कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"
तरुण ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है दीपक? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है दीपा को पाकर? दीपा भाभी जितनी अक्लमंद, सुन्दर, सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है।"
मैंने तरुण को टोकते हुए कहा, "ऐसा मत बोल यार। टीना भी बहुत अच्छी हैं। तू भी बहोत तक़दीर वाला है।"
तरुण ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "मैंने माना की टीना भी बहोत अच्छी है, पर भाभी से कोई मुकाबला नहीं। तूम तो यार सच में तक़दीर वाले हो। देखो मेरी बात को सीरियसली मत लेना पर मैं सच में कह रहा हूँ आज भी अगर तुम और भाभी तैयार हों तो मैं तो अदलाबदली के लिए तैयार हूँ। भाई आप भाभी मुझे देदो और टीना को आप रखलो। भाई मैं दीपा भाभी की पूजा करूंगा और उनपर कोई भी कष्ट का साया तक नहीं पड़ने दूंगा।"
तरुण की बात सुन कर मैं दंग रह गया। तरुण ने बीबियों की अदलाबदली करने वाली बात उस रात साफ़ साफ़ हम दोनों को कह दी। मैंने दीपा की और देखा। वह भी तरुण की बात सुन कर उसकी और अजीब सी नजरों से देखने लगी। तब तरुण ने बात को घुमाते हुए कहा, " यह तो खैर कहने वाली बात है। पर वाकई में दीपक भाई, मैंने आजतक दीपा भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि।"
मैंने देखा की दीपा ने अदला बदली वाली बात को अनसुना कर दिया। पर तरुण की तारीफ़ सुनकर दीपा को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "तुम यह तो मानोगे की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को बहोत करीब से देखा है और समझा है। तुम मानते हो ना की वह स्त्रियों का एक्सपर्ट है? तो सुनो, तुम्हारा अपना दोस्त मेरे बारे में क्या कह रहा है? पर तुम्हे मेरी कद्र कहाँ? मैं तुम्हारी बीबी जो हूँ। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।"
मेरा मन किया की मैं अपनी बीबी को कहूं की, "दीपा डार्लिंग यह क्यों नहीं कहती हो की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को चोदा है? इसी लिए वह लड़कियों और औरतों का एक्सपर्ट है? पता नहीं अब तुम्हें उसमें शामिल करने के लिए तो कहीं वह तुम्हारी तारीफ़ नहीं कर रहा?" पर मैं चुप रहा क्यूंकि ऐसा कहने से दीपा एकदम बिदक जाती।
मैं अपने मन में तरुण की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। उसने तो अदलाबदली वाली बात भी कह डाली। मुझे वाकई में उसकी अदलाबदली वाली बात सुन कर लगा की "अपना टाइम आएगा।" आश्चर्य की बात तो यह थी की इतना कुछ करने के बावजूद भी दीपा की समझ से तरुण जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं।
मैंने तरुण से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बता दो की क्या बात थी?"
मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक तरुण के चेहरे पर जैसे काला साया छा गया। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब तरुण ने बड़ी गंभीरता से दीपा को कहा, "दीपा भाभी, मैं आज इस रंगीली रात में वह सारी बातें भूलना चाहता हूँ। छोडो भाभी। आप सुनेंगे तो आप भी दुखी हो जाएंगे। मैं आपको दुखी देखना नहीं चाहता।"
दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और बोली, "नहीं तरुण, तुम बताओ, क्या बात है। शायद हम तुम्हारी कुछ मदद कर पाएं। अगर मदद ना भी कर पाएं तो तुम उस बात को कह कर अपना बोझ तो जरूर हल्का महसूस कर पाओगे। अपनों से बात करने से हल निकलता है। देखो हम तुम्हारे अपने निजी हैं के नहीं? अगर तुम मुझे और दीपक को एकदम करीबी अपना समझते हो तो सारी बात खुल कर बताओ। जो वाकई में अपने हैं उनसे कुछभी छुपाते नहीं। हमें एक दूसरे से कितनी ही सीक्रेट बात क्यों ना हो कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए। जहां तक दुःख की बात है, तो क्या हमें एक दूसरे से सुख और दुःख बांटना नहीं चाहिए? क्या तुम टीना से कुछ छुपाते हो? तो फिर हमसे क्यों?" मैंने भी तरुण को कहने का इशारा किया।
तरुण ने दीपा की और देखते हुए कहा, "भाभी, मैं आप को अपना नहीं समझता होता तो आप या भाई से इतनी छूट लेता क्या? आप लोगों से मुझे कोई भी झिझक नहीं है। आप इतना कहती हो तो मैं बताऊंगा। आप कहती हो ना की स्त्रियां पुरुष के बराबर होती हैं? मैं आप की बात करता हूँ। आप मुझ जैसे पुरुष से कहीं ज्यादा बुद्धिमान और अक्लमंद हो। मैं आपको मेरी दर्द भरी कहानी इस लिए भी कहूंगा क्यूंकि मैं समझता हूँ की आप सिर्फ मेरे अपने ही नहीं हैं, आप इतनी धीर गंभीर और समझदार हैं की शायद आप ही मुझे कुछ रास्ता बता सकते हो।" यह कह कर तरुण रुक गया।
मैंने देखा की अपनी ऐसी तारीफ़ सुन कर दीपा खिल उठी और उस ने मेरी तरफ कुछ तिरस्कार भरी नज़रों से देखा। फिर तरुण की और मुड़ कर बोली, "ठीक है बोलते जाओ।"
तरुण ने कहा, "मैं तो यह सब सोच कर थक हार चुका हूँ। आज मैं जबरदस्ती अपने आपको मजाकिया मूड में लाने की कोशिश कर रहा था शायद इसी लिए मैंने आपको इतना परेशान किया। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता। पर यह सब सुनने के लिए और मेरी मदद करने के लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा। यहां बाहर कार में बैठे बैठे मैं कह नहीं पाउँगा।"
तरुण ने दीपा को इतनी महत्ता दे दी की उस की बात सुन कर दीपा का चौड़ा सीना (!!) और चौड़ा हो गया। दीपा खुश नजर आ रही थी। पर तरुण के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी ।
मैंने दीपा से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात सुनसान रास्ते पर कार खड़ी कर इस तरह बात करने से कुछ शकिया माहौल हो सकता है, कुछ अनहोनी हो सकती है। तरुण के घर में और कोई है भी नहीं। चलो तरुण के घर ही चलते हैं।" उस पर दीपा ने भी अपनी मुहर लगा दी और तरुण ने कार अपने घर की और मोड़ी।
पुरे रास्ते में तरुण के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने दीपा के कान में कहा, " मैंने कहा था ना की गंभीर बात है। अब तक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम तरुण के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे और तुम थोड़ा उसको छेड़ना तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।"
दीपा की नजर में तरुण एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी दीपा तरुण की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही तरुण के घर पहुंचे तो दीपा ने तरुण की कमर पर हाथ रखा और बोली, "आज मैं तुम दोनों के साथ एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। आप लोगों के साथ मुझे एक अनूठा अपनापन लग रहा है। मुझे आज मेरे पति और मेरे देवर के साथ बड़ा अच्छा लग रहा है। और देवरजी इसका श्रेय तुम्हे जाता है। मैं तुम्हें देवर कहूं या बहनोई?"
मैं जानता था की दीपा का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास और तरुण का तास के पत्तों से बना वह तारीफों का पूल था। पर यह देवर कहूं या बहनोई वाली बात कह कर कहीं मेरी बीबी तरुण को आधी घरवाली वाली बात पर तो नहीं लाना चाहती थी? मतलब कहीं तरुण को और छेड़ने के लिए तो नहीं उकसा नहीं रही थी? अगर ऐसा था तो जरूर वह चुदवाने के बारे में अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। उसके मन में क्या था? यह जानना मेरे लिए जरुरी था।
दीपा सोचती थी की शायद तरुण कुछ जवाब देगा। पर तरुण ने तो जैसे मौन व्रत धारण किया हो ऐसे ही मुंह लटका कर चुप था।
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07-12-2019, 07:40 PM
मौक़ा देख कर मैंने कह दिया, "तुम तरुण को देवर समझो या बहनोई, या तरुण तुम्हें भाभी समझे या साली, क्या फर्क पड़ता है? छुरी पर खरबूजा गिरे या खरबूजे पर छुरी, कटना तो खरबूजा ही है।"
दीपा ने आँखें टेढ़ी करके पूछा, "आपका क्या मतलब है? मैं साली हूँ या भाभी, मैं आधी घरवाली तो रहूंगी ही, क्या तुम ऐसा कहना चाहते हो? या फिर तुम यह कहना चाहते हो की आज चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगों से मुझे ही कटना है?"
मुझे मेरी बीबी की बात से ऐसा लगने लगा की कहीं ना कहीं उसके मन में यह साफ़ हो गया था की मैं और तरुण मिलकर मेरी प्यारी बीबी को चोदने का प्लान बना रहे थे। और अब तो वह तरुण को भी उसे छेड़ने के लिए उकसा रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं की वह खुद तरुण से चुदवाना चाहती थी और हमें मोहरा बना रही थी?
तरुण ने मुस्काने की कोशिश की पर उसकी मुस्कान में भी ग़म की छाया थी। तरुण ने दीपा की और दुःख भरी नज़रों से देखा पर कुछ ना बोला।
तरुण को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर तरुण की शक्ल रोनी सी हो रही थी। दीपा बड़ी उलझन में थी। तरुण के मूड में यह परिवर्तन दीपा की समझ में नहीं आया। दीपा ने तब मुझे इशारा किया की मैं सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
तरुण ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। तरुण ने तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो दीपा ने जोर से कहा, "तरुण, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ की एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "
दीपा ने तरुण के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। तरुण भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो दीपा ने व्हिस्की के साथ कुछ भी मिलाया नहीं और वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। व्हिस्की अंदर जाने से दीपा ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। उसे व्हिस्की का टेस्ट जमा नहीं पर दीपा कैसे भी व्हिस्की को गटागट पी गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।
मैंने और तरुण ने भी अपने गिलास खाली किये। तरुण ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आप जो सुनना चाहते हो वह एक लम्बी कहानी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। बात कर के हम चाहें तो सुबह थोड़ी देर के लिए सो सकते हैं। दीपक, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। दीपा भाभी क्या मैं आप को टीना की कोई नाईटी दूँ?"
मैंने दीपा की और इशारा करते हुए तरुण को बोला, " लाओ भाई। मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे खुले में कपडे बदलने में कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"
तरुण ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और दीपा और तरुण के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए तरुण का कुर्ता पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया और पजामा पहना। ऐसा करते हुए, मेरा आधा खड़ा लण्ड सब को दिख गया। मैंने उसे छुपाने की कोशिश नहीं की। मैं मेरी बीबी को दिखाना चाहता था की मर्द को औरत की तरह फ़ालतू की शर्म नहीं होती। दीपा मेरे लण्ड का तरुण के सामने मुझे प्रदर्शन करते हुए देख कर चौंक गयी और कुछ सहम भी गयी। दीपा और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।
दीपा ने तरुण की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "सुना और देखा तुमने तरुण? मेरे पति कितने बेशर्म और निर्लज्ज हैं? खुद को नंगा होने में शर्म नहीं पर क्या वह अपनी पत्नी को भी दूसरे के सामने नंगी करवाना चाहते हैं?"
मैंने पट से कहा, "अरे भाई तरुण कोई दुसरा या बाहर का थोड़े ही है? अभी अभी तो तुम कह रही थी की हम तरुण के करीबी हैं और तरुण हमारा अपना करीबी है और हमको एक दूसरे से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए?"
दीपा ने कहा, "बात अगर जिद की है, तो मैं भी पीछे हटनेवालों में से नहीं हूँ। अगर मेरे पति ही मुझे नंगी करना चाहते हैं तो भला मैं क्यों पीछे हटूंगी? बात आज इज्जत की है। अगर वह जिद्दी हैं तो मैं डबल जिद्दी हूँ। मुझे तुम्हारे या टीना के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है टीना का नाईट गाउन?" दीपा की आवाज में साफ़ थरथर्राहट थी। मैं समझ गया की दीपा को अच्छी खासी चढ़ गयी है।
तरुण ने जल्दी से चुन कर टीना का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। तरुण ने अपने हनीमून पर टीना के लीये वह ख़रीदा था।
तरुण ने आगे से थोड़ा झुक कर बड़े अदब से कहा, "भाभीजी, भले ही मैं आपके खूबसूरत बदन को सेक्सी नजर से देखता हूँ और उसे चाहता हूँ, पर इसका मतलब यह नहीं है की आप मेरे लिए बड़े सम्मान के पात्र नहीं हो। दीपक तो पागल हो गया है। अरे उसे शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं?"
फिर मेरी और मुड़ कर बोला, "भाई आप का दिमाग ठिकाने नहीं है। आप को मुझे सम्हालना चाहिए। उसकी जगह आप तो मेरी भाभी को ही परेशान कर रहे हो। मैं अकेला ही काफी हूँ भाभी को परेशान करने के लिए। मेरा दिमाग वैसे ही बिगड़ा हुआ है, उसे और मत बिगाड़ो।"
तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी, भाई का भी दिमाग खराब है। उनकी मत सुनो। स्त्रियों का पुरुषों से कोई मुकाबला ही नहीं है। स्त्रियाँ पुरुषों से कहीं ज्यादा ऊँची और कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है। जो काम स्त्रियां कर सकती हैं क्या वह पुरुष कर सकता है? क्या पुरुष बच्चों को जनम दे सकता है?"
फिर तरुण ने मुझे कहा, "भाई फ़ालतू की बातें मत करो यार! क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? आप को शिष्टता का ध्यान ना हो पर मुझे तो है ना?"
और फिर दीपा को कहा, "भाभीजी आप रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।"
दीपा को वह गाउन पकड़ा कर तरुण वहाँ से गायब हो गया। तरुण का सभ्यता पूर्ण व्यवहार देख कर दीपा हैरान रह गयी। उसे डर था की कहीं तरुण वहां खड़े रहने की जिद ना करे। तरुण यदि जिद करता तो दीपा को शायद उसके सामने मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। तब तरुण मेरी बीबी को ब्रा और पैंटी में देख लेता। दीपा की नंगी जाँघों की झलक ही तरुण ने पहले देखीं थीं। अगर तरुण की हाजरी में कपडे बदलती तो दीपा की सुआकार नंगी जांघें भी तरुण दुबारा देख लेता। मेरी बीबी रात को अंडरवियर पहनना पसंद नहीं करती थी। अगर तरुण देखता तो मजबूरन उसे पैंटी और ब्रा पहननी पड़तीं। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने दीपा को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से दीपा तरुण की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।
अब दीपा के मनमें तरुण के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए तरुण एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अगर तरुण ने पहले दीपा से कुछ ज्यादा ही छूट ली थी तो वह एक वीर्यवान मर्द का एक सेक्सी स्त्री को देख कर होने वाली स्वाभाविक प्रतिक्रया मात्र थी ("क्या करें? ऐसा हो जाता है") ऐसा दीपा मानने लगी थी। सुबह और अभी कुछ देर पहले वाली तरुण की शरारत को वह ना सिर्फ माफ़ कर चुकी थी बल्कि भूल चुकी थी।
दीपा ने टीना का गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। दीपा ने इधर उधर देखा। तरुण जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। वैसे तो मेरी बीबी मेरे सामने नंगी होने में हमेशा सकुचाती थी, पर उस रात को उसने मेरे सामने बेधड़क नंगी हो कर अपने कपडे बदले। वह साबित करना चाहती थी की वह भी मुझसे कुछ कम नहीं थी। मुझे डर था की कहीं तरुण दरवाजे के पीछे से छुपकर ना देख रहा हो। पर तरुण ने जाते हुए दरवाजा बंद कर दिया था।
मैंने दीपा को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। दीपा की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसकी तरुण द्वारा की गयी भूरी भूरी प्रशंशा से दीपा को अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। तरुण दीपा को स्त्री होना एक गर्व की बात थी यह अहसास दिलाने में कामयाब हुआ था।
मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। ऊपर से वह गाउन काफी खुला हुआ था। उसमें से दीपा के दोनों मस्त स्तन आधे दिख रहे थे। बस निप्प्लें छिपी हुई थीं। वह गाउन इतना पारदर्शी सा था की उसके पिछे की रौशनी में उसकी जांघें, दीपा की नुकीली और सुआकार गाँड़, उसके गुब्बारे जैसे भरे हुए करारे तने हुए स्तन, चॉकलेटी एरोला के बिलकुल बिच में कड़क गाढ़ी निप्पलेँ बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब तरुण उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।
मुझे डर था की कहीं दीपा को ऐसी ड्रेस पहनी हुई देख कर वह अपना आपा ना खो बैठे और दीपा को बाँहों में पकड़ा कर वह गाउन को उतार कर उसे चोदने के लिये आमादा ना हो जाए।
तभी मैंने तरुण को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने दीपा को उस गाउन में देख लिया था। वह दीपा के पास आया और जैसे दीपा के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।"
तरुण ने आगे बढ़कर दीपा से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"
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07-12-2019, 07:41 PM
अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर दीपा तो जैसे बौखला ही गयी। मेरी प्यारी बीबी के गाल तरुण की भूरी भूरी प्रशंषा के कारण शर्म के मारे लाल लाल हो रहे थे। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। पर उसके चेहरे की लालिमा से यह तो लगता ही था की उसे शायद आईडिया हो गया था की उस गाउन में उसके अंग काफी साफ़ दिख रहे थे। पर उसने उस गाउन को पहनने में एतराज नहीं किया क्यूंकि कहीं मैं उसे यह कह कर ना चिढाऊँ की मेरी बीबी एक औरत होने के कारण वह ऐसे कपडे पहनने से डरतीं थीं। जिन और व्हिस्की का जो मिश्रण उसके दिमाग को घुमा रहा था और उद्दंड बना रहा था उससे वह ऐसी छोटीमोटी चिंताओं से ऊपर जा चुकी थी।
बल्कि वह तो तरुण की प्रशंषा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही तरुण के पास आई और तरुण ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मेरी बीबी के फुले हुए गुम्बज के सामान दो गोरे गोरे अल्लड स्तन और उनकी चोटी सम हलकी चॉकलेटी रंग की निप्पलँे जो पतले गाउन में साफ़ दिख रहीं थीं वह सुनील के बाजुओं को छू रहीं थीं। इस बात से दीपा या तो बेखबर थी या उसको उस बात की चिंता नहीं थी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग रह गया। दीपा ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह तरुण के बाँहों में से बाहर आकर तरुण के ही बगल मैं बैठ गयी। दीपा ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें बैठी हुयी थी। दीपा ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ तरुण के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।
दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कुछ हलके से लहजे में पूछा, "तरुण यार मेरी तारीफों के पुल बाँधना छोडो और अब यह बताओ की वह कौनसी ऐसी समस्या है जिस के कारण तुम इतने ज्यादा परेशान हो। तुम आज निस्संकोच हमें बताओ।"
तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "दीपक और दीपा, आप दोनों मेरे लिए एक बहुत बड़े सहारे हो। मैं आज अकेला हूँ पर आप दोनों के कारण मैं अकेला नहीं फील कर रहा हूँ। मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अपने माता और पिता तक को नहीं बताया।"
अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
तरुण ने कहा, "मुझे मेरी कंपनी की और से निकासी का आर्डर मिल गया है। मुझे एक महीने का नोटिस मिला है। दर असल मेरी कंपनी के बड़े बॉस से कोई बात को लेकर मेरी कुछ बहस हो गयी थी जिसके अंत में बॉस ने मुझे नोटिस दे दिया है। उसी कारण से टीना और मेरे बिच में भी तनाव हो गया है। मेरे बॉस से झगडे से टीना खुश नहीं है। ऊपर से उसे मुझ पर एक मेरी पुरानी दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में भी कुछ जबरदस्त गलत फहमी हुई है। मुझसे झगड़ कर टीना पिछले १५ दिनसे मायके चली गयी है। मैंने उसे समझाने की और मनाने की लाख कोशिश की पर वह मुझ पर इतनी नाराज है की वापस आने का नाम ही नहीं लेती। अब मेरे पास कोई जॉब नहीं है, बीबी मुझे छोड़ कर चली गयी है। अगर मैं १५ दिन में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पाया तो मुझे घर बैठना पड़ेगा। भाभी, बात यहां तक बिगड़ चुकी है की मुझे समझ नहीं आता की मैं घर का इन्सटॉलमेंट कैसे भर पाउँगा और मैं करूँ तो क्या करूँ? मुझे अपने से और अपनी खुदकी जिंदगी से नफरत हो गयी है।" कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
तरुण की बात सुनकर मैं और मेरी बीबी दीपा हम दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देखते ही रहे। दीपा का तो हाल ही खराब लग रहा था। वह जो अब तक सुरूर और जोश में थी, तरुण की बात सुनकर उसे जबरदस्त झटका लगा।
अब तरुण वह तरुण नहीं लग रहा था। हम जानते थे की तरुण का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालत क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। कमरे में जैसे समशान सी शान्ति छा गयी। दीपा ने तरुण का हाथ थामा तो तरुण की आँखों में आंसू भर आये। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और दीपा ने तरुण को थामा और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर तरुण के आंसू थम ने का नाम नहीं ले रहे थे।
दीपा तरुण के एकदम करीब जा बैठी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे दबा कर सहलाने लगी। इससे तो तरुण के आंसूं की धार बहने लगी। तरुण अपने जज्बात पर कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। वह दीपा के हाथों को चूमते हुए बोलने लगा, "भाभी जी कोई क्या कर सकता है? आप भी क्या कर सकती हैं? जब टीना ही मुझे छोड़ कर चली गयी तो और क्या हो सकता है? जब अपने ही अपने नहीं रहे तो मैं आपसे क्या उम्मीद रखूं? आप बहुत अच्छीं है। आप मुझे अपना समझती हैं यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं आपको इतना परेशान कर रहा हूँ फिर भी आप मुझे झेल रहे हो इससे मुझे कितना सकून मिलता है यह आप नहीं जानतीं। पर आखिर में आपकी भी तो मजबूरियां है ना? इसमें आपका क्या दोष है? मेरा तो जो होगा देखा जाएगा। मैं जानता हूँ की आप पर भाई काअधिकार है मेरा नहीं। भाभी मैं तो आपको छेड़ कर अपना दिल बहला लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए एक खूबसूरत सपना देख लेता हूँ बस। मैं आपसे मेरी हरकतों के लिए माफ़ी माँगता हूँ। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। जब मेरे अपने ही मुझे छोड़ कर चले गए तो मेरे रहने ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?" ऐसा कहता हुआ तरुण एकदम उठ खड़ा हुआ और अपने आँसूं पोंछता हुआ बैडरूम से निकल कर ड्राइंग रूम को पार कर हमसे दूर बाहर बरामदे में जा कर बाहर सोफे पर बैठ कर दूर दूर अँधेरे में सुनी सड़क को सुनी आँखों से ताकने लगा। मैं उसे बैडरूम और ड्राइंग रूम के खुले दवाजे में से देख सकता था, हालांकि हमारी आवाज तरुण तक नहीं पहुँच सकती थी। उस समय उसके जहन में क्या उथल पुथल हो रही थी वह किसी को नहीं पता।
दीपा भी भावुक हो रही थी। वैसे ही मेरी संवेदनशील बीबी से किसीकी परेशानी देखि नहीं जाती। उपर से उस रात को इतनी अठखेलियां मजाक और छेड़खानी करने के बाद अचानक ही तरुण का ऐसा हाल देख कर दीपा घबड़ा गयी। तरुण की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। दीपा उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली, "अरे देखो तो, तरुण का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? इतना जाबांज और नटखट छैले की तरह बात कर रहा था वह, अब क्या हो गया? यार तुम उसके दोस्त हो। जाओ और उसे सम्हालो। टीना को इस वक्त तरुण के पास होना चाहिए था। वह पगली तरुण को ऐसे वक्त में क्यों छोड़ कर चली गयी? तुम क्या कर रहे हो? जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"
तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। तुम क्यों परेशान हो रही हो? हाँ, यह सही है की हमें तरुण को अपने प्यार से शांत करना चाहिए। पर तरुण मेरे ढाढस देने से शांत नहीं होगा। वह तुम्हें इतना चाहता है तुम्हारी खूबसूरती, सेक्सीपन और अक्ल पर इतना फ़िदा है और तुम्हारी इतनी रेस्पेक्ट करता है पर वह तुम से भी नहीं माना तो मेरे कहने से वह थोड़े ही मानेगा? ऐसे वक्त में तो एक पत्नी ही पति को अपना शारीरिक प्रेम देकर शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी टीना वाली बात बिलकुल सही है।"
दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और पूछा, "कौनसी बात?"
मैंने कहा, "इस वक्त टीना को यहां तरुण के पास होना चाहिए था। अगर वह होती तो बेझिझक तरुण को अपनी बाँहों में ले लेती और उससे लिपट कर अपनी छाती में उसका सर छुपाकर अपने बूब्स तरुण के मुंह में दे देती, और उसे अपने बच्चे की तरह अपना दूध चूसने देती, खूब प्यार करती और उसे समझा बुझा कर शांत करती। पर अफ़सोस वह पिछले पंद्रह दिन से यहां नहीं है। तरुण बेचारा वैसे ही पंद्रह दिनों से टीना के बगैर और स्त्री के संग के बगैर ब्रह्मचर्य रख कर तड़प रहा है। उसके जैसे वीर्यवान पुरुष के लिए इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य रखना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए उसने तुमको आज ज्यादा परेशान किया।"
मेरी बात सुन कर दीपा ने सहमति में कुछ भी बोले बगैर अपना सर हिलाया। मेरी पत्नी सोच में पड़ गयी। मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "देखो तरुण ने क्या कहा? उसने कहा की जब अपने, मतलब टीना, ही यहां नहीं है तो वह तुमसे क्या उम्मीद रखे? इसका मतलब है अभी तक तरुण तुम्हें अपनी नहीं समझता। क्या तुम तरुण को अपना समझती हो? तरुण शायद यही कहना चाह रहा था की अपने ही उसे शांत कर सकते हैं।"
मेरी बात सुन कर दीपा का चेहरा कुछ मुरझा सा गया। उसने कहा, "मैंने तरुण को हमेशा अपना समझा है। तभी तो उसकी इतनी सारी छेड़ने वाली हरकतों के बावजूद भी मैंने उसे ज्यादा कुछ नहीं कहा। क्या इतना कुछ करने पर भी तरुण मुझे अपनी नहीं समझता? यह तो गलत है ना?"
मैंने कहा, "वह शायद इस लिए तुम्हें अपनी नहीं समझता क्यों की तरुण जब जोश में आ कर तुम्हारे साथ कभी कुछ ज्यादा छूट ले लेता है तो तुम बिगड़ जाती हो। बात तो सही है। क्यूंकि तुम तरुण और मेरे बिच में फर्क समझती हो। तरुण अगर तुम्हें अपनी मान भी ले तो तुम उसे पत्नी की तरह प्यार थोड़े ही करने दोगी? मेरा यह मानना है की तरुण के इस हाल में औपचारिक ढाढस देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। अभी तो प्यार से उसका दिमाग घुमाने की जरुरत है और वह एक पत्नी ही कर सकती है। हाँ अगर चाहो तो तुम जरूर कर सकती हो, क्यूंकि वह तो तुम्हें अपनी पत्नी की तरह ही मानने के और प्यार करने के सपने देखता है, पर वह जानता है की तुम उसे अपना नहीं मानती। क्या मैं गलत कह रहा हूँ?"
मुझे मेरी बीबी का अभिप्राय जानना था। दीपा की आँखें भर आयी थीं। उसने मेरी और देखा और बोली, "दीपक मुझे तुमको एक बात बतानी है। तुम ठीक कह रहे हो। उस दिन जब वह आटे के डिब्बे वाला किस्सा हुआ था ना? याद है? उस दिन बाथरूम में तरुण ने मुझे बहुत परेशान किया था। उसने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी मसली और मुझे लिपट कर किस भी की। वह तो मैंने तुम्हें बताया पर एक बात मैंने तुमसे छुपाई वह यह थी की मैं जब निचे बैठकर उसके पतलून से आटा साफ़ कर रही थी तब उसने अपना लण्ड मेरे मुंह में घुसा दिया था। मतलब लण्ड पतलून के अंदर था पर उसने धक्का मार कर उसे मेरे मुंह में डाल दिया। मैं उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो गयी थी की मैंने उसे हाथ जोड़कर मुझे छोड़ने के लिए यह कहा की मैं बाद में वह जो कहेगा वह करुँगी पर उस समय मुझे जाने दे।"
मैं मेरी बीबी की और खुले मुंह देखता ही रहा। मेरा चेहरा देख कर दीपा कुछ सहम गयी और बोली, "मुझे माफ़ कर देना पर मुझे अपने आप पर इतनी नफरत हो गयी थी की क्या बताऊं? तुम्हें यह बता नहीं सकी। मैं उसके चंगुल से भागना चाहती थी। और आज शामको जब हम बाहर निकले और तुम जब फ़ोन पर तुम्हारी बहन से बात कर रहे थे तब पता है उसने क्या किया?"
मैंने पूछा, "क्या किया?"
दीपा ने कहा, "उसने मुझसे वह वचन पूरा करने को कहा।""
मरे लिए तो मेरी भोली बीबी की यह बात एक बिजली गिरने जैसी थी। हालांकि मैं समझ गया था की तरुण ने क्या माँगा होगा, फिर भी मैंने पूछा, "क्या वचन माँगा उसने?"
दीपा ने मुरझाती हुई आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा, "उसने मुझे उससे चुदवाने का वचन आज मांग लिया।"
मैंने जैसे बिजली गिरी हो ऐसे आश्चर्य दिखाते हुए पूछा, "क्या? दीपा तुम क्या कह रही हो? फिर तुमने क्या कहा?"
दीपा की आँखों में आँसूं भर आये। वह बोल नहीं पा रही थी। आखिर में उसने कहा, "मैं क्या कहती? मैंने उसे कहा, यह उसने गलत किया है। उसने मुझसे धोखाधड़ी की है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने उसे वचन जो दे दिया था?" उसने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
मैंने मेरी बीबी को ढाढस दिलाते हुए कहा, "धोखे से दिया गया वचन पालने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है। वैसे मुझे लगता है की यह अच्छा ही हुआ की तुमने उसे ऐसा वचन दिया।"
दीपा ने मेरी और पैनी नजर से देखा और पूछा, "क्यों? तुम ऐसा क्यों कहते हो?"
मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा, "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ क्यूंकि अब तुम्हें अगर तरुण चोदता भी है तो तुम्हें कोई रंज नहीं होना चाहिए। वैसे भी तो तुम्हें उससे चुदवाना पडेगा ही क्यों की तुमने वचन जो दिया है? तो बेहतर ही की तुम तरुण को यह एहसास दिलाओ की टीना नहीं है तो क्या हुआ? तुम पत्नी भले ही नहीं हो पर तुम उसे पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती? तुम उसे यह एहसास दिलाओ की तरुण भी तुम्हारा अपना है। तरुण का भी तुम पर अधिकार है। तुम सिर्फ अपने पति की ही नहीं, तरुण की जरुरत का भी ध्यान तुम एक पत्नी की तरह रख सकती हो। जैसे टीना नहीं है तो तुम तरुण के खाने का ख्याल रख सकती हो वैसे ही आज जब टीना नहीं है तो क्या तुम तरुण की दूसरी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकती? क्या तुम तरुण को एक पत्नी का प्यार नहीं दे सकती? क्या तुम तरुण को नयी जिंदगी नहीं दे सकती? क्या प्यार का मतलब सिर्फ छेड़खानी करना या हंसी मजाक करना ही है?"
मेरी बात सुनकर दीपा सहम गयी और कुछ देर तक सोचने लग गयी। फिर बोली, "आप की बात तो सही है, पर अगर मैंने उसे अपने गले लगाकर शांत करने की कोशिश की और जो आपने कहा वह सब मैंने उसे कहा तो तरुण को तो आप जानते ही हो। वह तो अपने आप को रोकने से रहा। फिर तो मेरा सारा काम तमाम ही हो जाएगा ना?"
मैंने कहा, "तो क्या होगा? याद करो, जब मैंने तुम्हें तरुण को उकसाने के लिए कहा था तब तुमने मुझसे यही सवाल किया था की कुछ ऊपर निचे हो गया तो? तब मैंने क्या कहा था? मेरा आज भी वही जवाब है। अगर कुछ भी हो जाये तो मैं तुम्हें दोष नहीं दूंगा। तरुण तुम्हें क्या कर लेगा जो आज तक उसने नहीं किया। सुबह और अभी कुछ देर पहले ही उसने तुम्हारे बॉल दबाये तो क्या हुआ? कौन सा आसमान टूट पड़ा? वह उन्हें दुबारा दबाएगा और मलेगा? शायद वह तुम्हें मुंह पर चुम्बन कर सकता है। पहले भी तो तुम्हें मुंह में चूमा तो है ही ना? तुम तो कह रही थी की उसने तुम्हारे मुंह में अपना पतलून में ढका हुआ लण्ड भी डाल दिया है? तुम्हारे कूल्हे उसने दबाये है, उसने सब कुछ तो किया है। और क्या करेगा? हाँ उसने तुम्हें चोदा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वह क्या करेगा? उसका लण्ड तुमने पकड़ा या चूसा नहीं है। तो शायद वह तुम्हारे हाथ में उसका लण्ड पकड़ा देगा? तुम्हें चोदने की कोशिश करेगा ना? मानलो की अगर आवेश में उसने तुम्हें चोदने की जिद की और तुम अगर उसे मना नहीं कर पायी तो मैं तुम्हें दोषी नहीं ठहराऊंगा। और तुम्हारा दिया हुआ वचन भी पूरा हो जाएगा।"
मेरी बात सुनकर दीपा चौंक कर मेरी और देख कर बोली, "राज, आप क्या कह रहे हो? आपको कुछ ख्याल भी है की आप क्या कह रहे हो?"
मैंने बिना रुके कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की मैं क्या कह रहा हूँ। देखो, अब बनने की क्या जरुरत है। उसने तुम्हें चुदवाने के लिए राजी कर ही लिया है ना? तरुण ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो तुम उसे करने नहीं दोगी। जो तुम्हें अच्छा ना लगे वह बिलकुल मत करना। मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना? तुम्हें जो मंजूर है वह तुम्हें करने से मैं नहीं रोकूंगा और जो तुम्हें नामंजूर है वह मैं तरुण को करने नहीं दूंगा। वह क्या करेगा, क्या नहीं करेगा, तुमसे अच्छा कौन जानता है? तुम तरुण को भली भाँती जानती हो। देखो डार्लिंग, अगर उसने तुम्हें चोद दिया तो क्या होगा? आखिर बात तो अपनों की है। अगर अपने हमें कुछ कष्ट भी देते हैं तो हम झेलते हैं की नहीं?"
मेरी प्यारी बीबी गहरे सोच में डूबी हुई मेरी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी और बार बार अपना सर हिला अपनी सहमति जता रही थी। दीपा की सकारत्मक प्रक्रिया देख कर मैं रुकने वाला कहाँ था? मैंने कहा, "मैं तो यहां हूँ ना? फिर तुम्हें डर कैसा? तुम खुद ही तो कह रही थी की तरुण एक बड़ा ही सभ्य व्यक्ति है? वह तुम्हें इतना प्यार करता है, वह तुम्हारा इतना सम्मान जो करता है? तुम्हारे पीछे पागल है और एक देवी की तरह तुम्हें पूजता है। तो फिर अगर तुम नहीं चाहोगी तो वह तुम्हारे साथ असभ्य वर्तन क्यों करेगा? और अगर वह तुम्हें चोदेगा तो वह कभी भी तुम्हारी बदनामी नहीं करेगा। इसका तुम्हें पूरा भरोसा है या नहीं?"
दीपा ने कहा, "हाँ डार्लिंग, उसका तो मुझे पूरा भरोसा है, वरना मैं तरुण को क्या आगे बढ़ने देती? पर यह वक्त बहोत नाजुक है। तरुण बड़ी ही संवेदनशील अवस्था में है। मुझे उसे ढाढस देने के लिए उसके काफी करीब जाना पडेगा। उसको गले लगाना पडेगा। मैंने जो पहना है वह तो तुम देख ही रहे हो। ऐसे हालात में तरुण जैसे एक वीर्यवान मर्द को मैं कैसे रोक पाउंगी? वैसे ही वह मुझ पर पागल है और ऐसी हालत में और भी पगला जाएगा। खैर यह ठीक है की वह जबरदस्ती नहीं करेगा। मेरे साफ़ मना करने पर वह आगे नहीं बढ़ सकता। पर अगर उसने जिद की तो मैं इस हालात में उसको रोक भी कैसे सकती हूँ? मैं उसको और दुखी करना नहीं चाहती। और अगर बात कुछ आगे बढ़ी तो फिर उसके बाद हमारा कोई कण्ट्रोल नहीं रह जाएगा। यह तो बड़ी गड़बड़ बात हो गयी। काश टीना यहाँ होती।"
दीपा की बात सुनकर मैं तो मन ही मन दुखी हो गया। मेरे इतना कहने पर मेरी पत्नी इधर उधर की बात कर रही थी पर सीधी चुदवाने की बात पर आ नहीं रही थी। मुझे इतना तो यकीन हो गया था की मेरी बीबी अपने आप को तरुण से चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। वह रात को ही शायद हमारा ध्येय सिद्ध होने वाला था। मेरा दिल तेजी से धड़क धड़क कर रहा था। जल्द ही मेरी बीबी तरुण से चुदने वाली थी उसकी मुझे काफी उम्मीद लग रही थी। बस अब मुझे आखिरी चाल चलनी थी।
मैंने मेरी स्वीटी को मेरी बाँहों में ले लिया और उसे कहा, "डार्लिंग, देखो, टीना होती तो क्या होता यह कौन जानता है? पर आज तुम तो टीना की जगह हो ना? इस समय जरुरी क्या है? जरुरी है अपने दोस्त को ढाढस देना। वह जैसा भी है, हमारा हमदर्द है। देखो तरुण ने तुमसे इतनी बदतमीजी या छेड़छाड़ की पर आखिर में जा कर तुमने क्यों माफ़ कर दिया? क्या कोई और होता तो तुम माफ़ करती? नहीं करती। तुमने माफ़ किया क्यूंकि तुम सच्चे दिल से उसे चाहती हो। हम दोनों तरुण को चाहते हैं। उसे प्यार करते हैं। यह हकीकत है की तुम भी तरुण को चाहती हो, उसे अपना मानती हो। सच सच बोलो तुम तरुण को चाहती हो की नहीं?" मैंने दीपा को जवाब देने पर मजबूर किया। यह एक कांटे की बात थी और मुझे दीपा से कबुल करवाना ही था।
दीपा कुछ देर तक मुझे अजीब सी नज़रों से देखती रही। फीर धीरे से उसने अपनी मुंडी हिलाकर "हाँ, हम दोनों तरुण को चाहते हैं। तुम मुझसे कहलवाना चाहते हो तो मैं कहती हूँ की मैं भी तरुण को चाहती हूँ तभी तो ऐसे यहां तक तुम दोनों के साथ आयी हूँ।"
मेरे लिए यह आखरी तीर था जो अब दीपा के जिगर के पार हो चुका था। अब तो बस फ़तेह करनी थी।
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07-12-2019, 07:42 PM
मैंने कहा, "तो फिर सोचती क्या हो? जिसे हम चाहते हैं उसे बचाने के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। मैं तुम्हारे साथ हूँ ना? और क्या तुम्हें तरुण पर भरोसा है या नहीं की वह तुम पर जबरदस्ती नहीं करेगा?"
दीपा ने बेझिझक कहा, "खैर तरुण जबरदस्ती तो नहीं करेगा। पर ऐसे हालात में तो मुझे अपने आप पर ही भरोसा नहीं है। अगर तरुण ने कुछ ऐसा वैसा किया और मैं उसे रोक नहीं पायी तो? फिर तो तुम्हें आकर मुझे उस झंझट में से निकालना पडेगा।"
मैंने आखिर वाला तीर मार कर कहा, "जब मैं हूँ तो फिर तुम्हें चिंता किस बात की? जाओ और आगे बढ़ो। सोचना क्या है? क्या होगा? जो होगा वह देखा जाएगा। ज्यादा से ज्यादा तुम यही सोच रही हो ना की कहीं वह तुम्हें चोदने के लिए जिद करेगा और तुम उसे मना नहीं कर पाओगी? जब मैं खुद तुम्हें आगे बढ़ने के लिए कह रहा हूँ की उसके लिए मैं जिम्मेवार होऊंगा, तुम नहीं। तरुण एक अच्छा इंसान है और तुम्हारी इज्जत करता है। ज्यादा सोचा मत करो। मैं तुम्हारा पति तुम्हे कह रहा हूँ। जो थ्रीसम एम.एम.एफ. मैं करना चाहता था वह अगर होगा हम तीनों की मर्जी से होगा। हम सब साथ हैं। अगर हम सब की मर्जी से कुछ भी होता है तो डार्लिंग तुम खुद ही कह रही थी ना की वह ठीक ही है? यह पीछे हटने का वक्त नहीं है। तुम मेरे साथ चलो और उसका सर अपने सीने से लगा कर वह तुम्हारे बूब्स को चूसता है तो चूसने दो पर उसे अपने आँचल में लेकर शांत करो। और साथ साथ अपना वचन भी पूरा करो।"
मैंने देखा की मेरी बात सुनने के बावजूद भी मेरी प्यारी बीबी वहीँ मंत्रमुग्ध सी बैठी रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। उसके दिल और दिमाग के बिच का यह बड़ा जंग चल रहा था। मैं परेशान हो गया। अगर यह मौक़ा चूक गए तो फिर गड़बड़ हो जायेगी।
मैंने फिर मेरा ब्रह्मास्त्र छोड़ा। मैंने कहा, "देखो, तरुण बेचारा पागल हुआ जा रहा है। अगर इस वक्त उसे सम्हाला नहीं गया तो कहीं वह कुछ उलटा पुल्टा कर ना बैठे। एक तुम ही हो जिस के प्यार करने से और प्यार से कहने से वह फिर से अपने आप पर काबू पा सकता है। वह जब तुम्हारे करीब होता है तो अपना सारा गम भूल जाता है और तुम्हारा पागलपन उस पर सवार होजाता है। अगर तुम उसे अपनी बाँहों में ले कर प्यार करती हो तो वह तुम्हारे साथ पागलपन जरूर करेगा। वह उसका पागलपन नहीं, प्यार करने का एक तरिका है। अपना प्यार जताते हुए जरूर वह तुम्हें चोदने के लिए तैयार हो जाएगा। अगर इसमें तुम्हें और मुझे कोई आपत्ति नहीं है तो फिर उसमें क्या बुराई है? आज तक कभी कोई मर्द ने किसी और की बीबी को पहले कभी चोदा नहीं क्या? क्या तुम पहली बीबी हो जिसे किसी गैर मर्द ने चोदा होगा? अरे मैं समझता हूँ शायद ही कोई पत्नी ऐसी होगी जिसको किसी गैर मर्द ने चोदा ना हो। आज की तारीख में शायद तुम ही अकेली ऐसी औरत होगी जिसको उसके पति के अलावा किसी गैर मर्द ने चोदा ना हो।"
मैंने मेरी बीबी के होँठ पर हलकी सी चुम्मी करते हुए हँसते हुए मजाक में कहा, "मैं मेरी बीबी के माथे पर लगे हुए उस कलंक को मिटाना चाहता हूँ।"
मेरी बात सुन कर दीपा को भी हंसी आ गयी। मुझे नकली घूंसा मारते हुए वह बोली, "मेरा पति महान है जो अपनी बीबी को किसी गैर मर्द से चुदवाने के लिए इतना उकसा रहा है।"
मैंने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा, "जैसा वक्त हो ऐसे चलना चाहिए। तुम उसे रोकोगी नहीं और उसे पूरा प्यार करने दोगी तो वह तुम्हारे प्यार करने से मुसीबतों के समंदर को पार कर सकता है। तुम उसे अपना प्यार देकर समझाओगी की जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए है, भागने के लिए या हार मानने के लिए नहीं है; तो वह जरूर समझेगा।
तरुण तुमसे प्यार करता है और तुम्हारी अक्ल और सूझबूझ की वह बड़ी इज्जत भी करता है। शायद यह अच्छा है की आज टीना यहां नहीं है, क्यूंकि वह तरुण को प्यार तो कर सकती है पर शायद ऐसे नहीं समझा पाती जैसे तुम उसे अपनी सूझ बुझ और प्यार से समझा सकती हो। अब यह तुम पर निर्भर है की तुम उसे प्यार देती हो या दुत्कार। तुम तो जानती हो तरुण तुम्हें बेतहाशा प्यार करता है। और तुम भी तो उसे प्यार करती हो।"
दीपा हैरानगी से मेरी और देखती रही। यह उसके लिए कांटे की बात थी। उसने कुछ झिझकते स्वर में कहा, "हाँ ठीक है, मैं भी उसे प्यार करती हूँ पर डार्लिंग, यह प्यार से कहीं आगे की बात है।"
मैंने दीपा का हाथ थाम कर उसे दबा कर कहा, "डार्लिंग, जब सच्चा और बेतहाशा प्यार होता है तो फिर उस प्यार से आगे कुछ नहीं होता। कहते हैं ना की जंग और प्यार में सब कुछ जायज है। प्यार का मतलब है एक दूसरे के गम को दूर करना और एक दूसरे को आनंद देना और लेना। जिस किसी भी तरीके से प्यार करने वाले आनंद लेना चाहें। मैं तुम्हारा पति हूँ और उस अधिकार से मैं कह रहा हूँ की अगर तुम्हें कोई एतराज नहीं है तो मैं तुम्हें कहता हूँ की तुम्हें उसे आनंद देना है और उससे आनंद लेना है। सबसे ज्यादा जरुरी प्यार है। चुदाई उत्कट प्यार का इजहार है, प्यार की अभिव्यक्ति है। वह उन्मत्त प्यार का परिणाम है। चुदाई प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। जब किसी से दिलो जान से प्यार होता है ना, तो आवेश के लम्हों में एक जवान वीर्यवान मर्द और एक खूबसूरत सेक्सी औरत में चुदाई का होना लाज़मी है। चुदाई हो ही जाती है। चुदाई होनी ही चाहिए, तभी तो प्यार की सच्ची ऊंचाई सामने आती है। चुदाई तो प्यार जताने का एक तरिका है। जब तुम उसे दिल खोल कर प्यार दोगी तो चुदाई तो होगी ही। जब चुदाई होगी तभी तो वह न सिर्फ तुम्हारे प्यार में खो जाएगा और शांत होगा, बल्कि वह अपने गम बिलकुल भूल जाएगा और एक बार फिर से हमारे कहने पर जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। अगर प्यार करने वाले मर्द और औरत चुदाई के डर से दूर भागेंगे तो फिर प्यार कैसे होगा? चुदाई से प्यार की इज्जत बढ़ती है, कम नहीं होती।"
मैं मेरी बीबी के दिमाग में यह बात बार बार ठोकना चाहता था की वह चुदाई के डर से भागे नहीं। बल्कि वह चुदाई के लिए तैयार रहे। चुदाई को हँस कर स्वीकार करे। मैंने मेरी बात जारी रखते हुए कहा, "वह बिना किसी से शेयर किये पिछले पद्रह दिनसे यह भ्रह्म्चर्य का दर्द झेल रहा है। इसी लिए तरुण तुम्हारे प्रेम के लिए तड़पता रहता था और अभी भी तड़प रहा है। उस तड़प में वह तुम्हें चोदना जरूर चाहेगा। और मैं पक्का मानता हूँ की तुम्हें भी बड़े प्यार से तरुण से चुदवाना ही चाहिए। अगर मैं और तुम दोनों को इससे कोई एतराज नहीं हो तो फिर चुदवाने में गलत क्या है? बल्कि मैं भी तुम्हें तरुण के साथ और तरुण के सामने उसे देखते हुए चोदुँगा।"
मैं देख रहा था की दीपा मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। उसने एक बार भी मेरी बात का विरोध नहीं किया जो दर्शाता था की वह भी मेरी बात से सहमत थी।
मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "वह आज तक सिर्फ जब तक तुम्हारे साथ होता है तब तक सब कुछ भूल जाता है और ठीक रहता है। अगर उसे अभी तुम्हारा पूरा सहारा मिला और अगर तुमने उसे प्यार से चोदने दिया तो वह तुम्हारी सब बात मानेगा और सब ठीक हो जाएगा। वह तुमसे बहुत प्यार करता है। अगर तुमने उसे अपना प्यार देकर नहीं समझाया और अगर तुमने उसे प्यार से तुम्हें चोदने से रोका तो वह जरूर अपने आप पर कुछ पागलपन कर बैठेगा। कहीं वह पागलपन में अपनी जान ही ना खो बैठे। कहीं पागलपन में वह खुदकुशी ना कर बैठे। वह खतम हो जाएगा। और अगर ऐसा कुछ हुआ तो तुम अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाओगी।"
जब मैंने कहा की कहीं तरुण अपनी जान ही ना देदे या कहीं वह ख़ुदकुशी ही ना कर ले तो दीपा के चेहरे पर आतंक सा छा गया। वह बेचैन हो उठी। उसने कहा, "दीपक, क्या कह रहे हो? क्या तरुण इतना ज्यादा परेशान है? ख़ुदकुशी तक की नौबत आ गयी? "
फिर कुछ रुक कर बोली, "अब बात मेरी समझ में आयी। वह खुद बार बार कह रहा था की वह बहोत परेशान है और अपनी जान की भी उसे परवाह नहीं है; पर वह जब मेरे साथ रहता है तभी उसे सकून मिलता है। बापरे मुझे पता ही नहीं चला की बात यहाँ तक पहुँच गयी है।"
मैं समझ गया की अब तो समझो अपना काम हो गया। मैंने कहा, "दीपा पता नहीं तुम कैसे नहीं समझ पायी। वह पिछले पंद्रह दिनसे हमेशा कह रहा है की वह परेशान है। तुमने उसे लताड़ दिया था तो वह तुमसे मिल नहीं पा रहा था। उसीके कारण शायद उसका यह हाल हुआ है। कहीं तरुण ने कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो गजब हो जाएगा।"
दीपा बड़ी उलझन में पड़ गयी और बोली, "फिर दीपक तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूँ?"
मैंने कहा, "अब झिझकने से या हिचकिचाने से या फालतू का पर्दा रखने से काम नहीं चलेगा। अब तो हम दोनों को एकदम बेशर्म होना पडेगा। तुम्हें कुछ नहीं करना है। तुम जाओ उसको गले मिलो और पकड़ कर मेरे पास ले आओ। फिर मैं तरुण के देखते हुए ही में तुम्हारे बूब्स दबाऊंगा, तुम्हें किस करूंगा और तुम्हारे गाउन को ऊपर उठाऊंगा और मेरा लण्ड तुम्हारे हाथ में दूंगा। मैं जानता हूँ की तुम्हारे पास होते ही वह अपने आप को सम्हाल नहीं पायेगा। वह एकदम गरम हो जाएगा और एकदम गरम हो कर तुम्हारे साथ छेड़खानी शुरू कर देगा। अगर तुम भी उसे खूब प्यार करोगी और उसे बिना रोकटोक प्यार करने दोगी तो जरूर वह तुम्हें चोदने के लिए तैयार हो जाएगा। फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और थ्रीसम एम.एम.एफ मनाएंगे। बोलो क्या कहती हो?"
दीपा नजरें निचीं कर बोली, "मैं क्या बोलूं? मैं तुम से अलग थोड़े ही हूँ? मैं तो तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें ठीक लगे वह मेरे लिए भी ठीक है। मैं कोई अवरोध नहीं करुँगी। तुम मुझे सम्हाल लेना। वैसे ही तरुण महीनों से मेरे पीछे पड़ा हुआ था। तुम कहते हो तो चलो आज मैं उसके मन की और तुम्हारे मन की थ्रीसम की इच्छा भी पूरी कर दूंगी।"
मैंने कहा, "तो फिर जाओ और अपना कर्तव्य पूरा करो। तुम यह चिंता मत करो की वह तुम्हारे साथ क्या करेगा। तुम उसे यह कहो की पहले तो उसकी जॉब जायेगी ही नहीं, क्यूंकि उसके जैसा मेहनती एम्प्लोयी उसकी कंपनी को कहाँ मिलेगा? और अगर उसकी नौकरी गयी भी तो मैं मेरे बॉस से बात कर उसको जॉब दिलवा सकता हूँ। बस उसे चिंता नहीं करनी है। जरुरत पड़ी तो वह और टीना हमारे साथ रह सकते हैं जब तक उसे दुसरा जॉब ना मिले। तुम उसे पटा कर मेरे पास ले आओ, फिर हम दोनों मिलकर उसे गरम करेंगे। और अगर एक बार तरुण गरम हो गया तो फिर तो तुम भी जानती हो की उसको रोकना नामुमकिन है। वह अपने सब ग़म भूल जाएगा मैं और तरुण हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और मुझे यकीन है की तरुण तुम्हारी बात मान कर फिर से काम पर लग जाएगा।"
मेरी बात सुन कर मेरी और आशंका से देखती हुई अपने ही अंदर की उधेड़बुन में खोई दीपा घबड़ाई हुई हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। हलकी सी लड़खड़ाती हुई वह तरुण जहां बाहर बरामदे में बैठा था उसके पास गयी। मेरी बीबी की चाल में कुछ अस्थिरता थी। मेरी बीबी को देख कर मुझे उसका अभिसारिका का रूप दिखा। मुझे ऐसा महसूस हुआ की अपने मन में उसने यह तय कर लिया था की उस रात वह तरुण से चुदवायेगी। वह तरुण को उसे चोदने से नहीं रोकेगी। वह मुझसे और तरुण से चुदवायेगी।
मैं खुले हुए दरवाजे से देख रहा था की मेरी बीबी तरुण के पास पहुँच कर तरुण को खड़ा कर उसका हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आयी। घर का दरवाजा अंदर से बंद कर वह खड़ी खड़ी तरुण से लिपट गयी। दीपा जब तरुण से ऐसे बेझिझक लिपट गयी जैसे एक बेल कोई पेड़ के साथ लिपट जाती है तो तरुण के चेहरे पर अजीब से भाव दिख रहे थे। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जब तरुण वैसे ही खड़ा हुआ दीपा के बदन को फील करता रहा तब दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और उसे खीच कर बैडरूम में जहां मैं बैठा था वहाँ ले आई। तरुण की आँखों के आंसूं तब तक सूखे नहीं थे। पलंग पर तरुण को बिठा कर दीपा ने तरुण के आंसूं अपने गाउन के छोर को ऊपर उठाकर पोंछे। दीपा को यह चिंता नहीं थी की ऐसा करने पर दीपा का गाउन उसके घुटनों से भी काफी ऊपर तक उठ गया था और दीपा की करारी जाँघें नंगी दिख रहीं थीं। आंसूं पोंछ कर वह मेरे और तरुण के बिच बैठी। उसने तरुण को लिटा कर उस का सर अपनी गोद में लिया और उसके काले घने बालों में अपनी उंगलियां ऐसे फेरने लगी जैसे माँ अपने छोटे बेटे को अपनी उँगलियों से कंघा कर रही हो।
दीपा ने तरुण के सर के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए प्यार भरी धीमी आवाज में पर शुरू में थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तरुण बाहर जाने से पहले तुमने क्या कहा था? टीना तुम्हारी हैं। और मैं? मैं परायी हूँ? क्या मैं तुम्हारी अपनी नहीं हूँ? मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ तो क्या हुआ? क्या मैं तुम्हारी पत्नी से गयी बीती हूँ? तुम मुझ पर अपना अधिकार नहीं मानते? क्या हम तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो तरुण, हम तुम्हारे ही हैं। तुम्हारे साथ हैं। मुझे लगता है तुम्हारा बॉस सिर्फ तुम्हें डरा रहा है। तुम्हारी कंपनी तुम्हें निकालेगी नहीं। भला तुम्हारी कंपनी को तुम्हारे जैसे मेहनत से काम करने वाले कहाँ मिलेंगे? फिर भी अगर मानलो की तुम्हें निकाल देते हैं तो तुम्हें दीपक अपनी कंपनी में रखने की शिफारिश कर देगा। दीपक का बॉस तुम्हारे बारे में भी जानता है।"
दीपा की बात सुनकर तरुण ने दीपा की गोद में लेटे हुए दीपा की आँखों से आँखें मिलायीं और बड़े प्यार से दीपा का सर अपने हाथोँ के बिच में पकड़ कर बोला, "भाभी क्या ऐसा हो सकता है?"
दीपा ने बड़े ही आत्मविश्वास और गौरव के साथ कहा, "तुम बिलकुल फ़िक्र ना करो और अपना मूड खराब मत करो। दीपक की कंपनी में अच्छी चलती है। दीपक की बात दीपक के बॉस नकार नहीं देंगे। जरुरत पड़ी तो मैं भी दीपक के बोस से बात कर सकती हूँ। तुम्हारे लिए मैं दीपक के बॉस से ख़ास रिक्वेस्ट करुँगी। वह मेरी बात टाल नहीं पाएंगे। तुम्हें याद है, उस पार्टी में दीपक का बॉस भी आया था और उसने मुझे डान्स के लिए भी आमंत्रित किया था? दीपक मुझे कह रहा था की वह मुझ से बड़ा इम्प्रेस्सेड है या साफ़ साफ़ कहूं तो वह भी तुम्हारी तरह मुझ पर फ़िदा है। यार दुखी मत हो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ।" मेरी बीबी ने कुछ शर्म से नजरें झुका कर और कुछ गर्व से अपना सर उठा कर कहा।
दीपा की बात से मैं हैरान था की मेरी रूढ़िवादी बीबी कैसी बातें कर रही थी। ऐसा कह कर मेरी बीबी शायद तरुण को यह सन्देश देना चाहती थी की अगर जरुरत पड़ी तो वह तरुण के जॉब के लिए मेरे बॉस से चुदवाने के लिए भी तैयार थी।
तरुण ने दीपा की और प्यार भरी नज़रों से देखा और दीपा के हाथ पर चुम्मी करते हुए बोला, "क्या आप मेरे लिए इतना सब कुछ कर सकती हो? क्या मेरी जॉब के लिए आप दीपक के बॉस से भी अपने आप के ऊपर समझौता करने के लिए तैयार हो?
दीपा ने कहा, "तरुण, बात तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के भले की है। मैं उसके लिए कोई भी समझौता कर सकती हूँ। वैसे तो मैं किसी के लिए कुछ नहीं करती। पर जिनको मैं अपना समझती हूँ उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर सकती हूँ। मैं ही नहीं मैं और दीपक दोनों ही तुम्हें अपना मानते हैं।"
मैंने देखा की तरुण की आँखें नम हो रहीं थीं। दीपा की बात सुन कर वह भावुक हो रहा था। तरुण ने कहा, "भाभी पहले तो मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ। मैंने आपको बहुत परेशानं किया। मैं सच बताता हूँ, आप और दीपक मेरी जिंदगी का सहारा हो। मैंने आपको इतना छेड़ा फिर भी आपने मुझे हमेशा माफ़ किया। आपके मधुर शब्दों से आपने मुझे जो भरोसा दिलाया है उससे मुझे बड़ी ताकत और हौसला मिला है। मैं तो आपकी पूजा करता हूँ। मैं सच कहता हूँ, अगर मेरा बस चलता तो मैं आपको अपनी पलकों में बिठाये रखता। मैं आपकी कितनी इज्जत करता हूँ यह टीना भी जानती है। मैंने उसे भी कह दिया था की भले ही उसे बुरा लगे पर यह सच है की मैं दीपा भाभी पर कुर्बान हूँ।" बोलते बोलते तरुण की आँखों में से आंसू भर आये।
दीपा ने तरुण की आँखों में आंसूं देखे तो उसकी आँखें भी फिर से छलक उठीं। तरुण ने मेरी और घूम कर कहा, "भाई तुम बड़े लकी हो की तुम्हें दीपा भाभी जैसी बीबी मिली और तुम जब चाहो भाभी को प्यार कर सकते हो। मुझे तुमसे जलन हो रही है।"
दीपा ने छलकते हुए आँसुओं के साथ साथ मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा, "तरुण, तुम्हें तुम्हारे भाई की इर्षा करने की कोई जरूरत नहीं है। हम सब एक ही हैं ना? तुम्ही ने तो कहा था न की तरुण हो या दीपक मेरे लिए एक ही हैं? और टीना हो या मैं तुम्हारे लिए भी एक ही हैं? तुम तो यार बहुत ही चालु हो। पहले से ही मुझे फाँसने का प्रोग्राम बना लिया था तुमने। तो तुम मुझसे हिच किचाते क्यों हो? क्या तुम टीना से हिचकिचाते हो? यह क्यों कह रहे हो की यहाँ तुम्हारे पास तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो आज की रात होली की प्यार भरी रात है। और टीना नहीं है तो क्या हुआ? मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम सब साथ है ना? तुम्हारे भाई मुझे प्यार कर सकते हैं तो तुम भी मुझे प्यार कर सकते हो। यह आंसूं हटाओ और खुल कर मुस्कुराओ। जॉब की चिंता मत करो। अगर वाकई मैं कुछ हुआ भी तो तुम हमारे साथ रहने के लिए आ जाना। जो हमें मिलता है उसमें हम सब मिल बाँट कर खा लेंगे।"
फिर मेरी प्यारी बीबी ने शर्माते हुए कहा, "तरुण जहां तक तुम्हारी छेड़खानी का सवाल है तो मैं यह कहूँगी की सच तो यह है की तुम्हारी छेड़खानी का मैंने कतई बुरा नहीं माना। बल्कि तुम्हारा छेड़ना मुझे अच्छा लगता था। मैं देखना चाहती थी की तुम मुझे कितना छेड़ते हो? उस समय अगर तुमने मुझ पर और ज्यादा दबाव डाला होता तो मैं तुम्हें रोकती नहीं। जो पीछे हटता नहीं है वही आदमी जो चाहता है वह पाता है। तुम तो मेरे पीछे ऐसे हाथ धो कर पड़े थे आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।"
मैं समझ गया की मेरी बीबी तरुण को यह कहने की कोशिश कर रही थी की अगर उसने जबरदस्ती की होती तो वह तरुण से चुदवाने के लिए मान जाती। "आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।" यह कह कर शायद जाने अनजाने में मेरी बीबी ने तरुण को हरी झंडी दिखा ही दी।
दीपा ने झुक कर तरुण के सर पर हलके से चुम्मा किया। दीपा के झुकते ही दीपा की गोद में सर रख कर बैठे हुए तरुण का नाक दीपा के पके हुए आम के समान स्तनों को छू रहा था। दीपा की तनी हुयी सख्त निप्पलोँ को वह महसूस कर रहा था। पतले से पारदर्शी गाउन में से उसे उनकी भली भाँती झांकी भी हो रही थी। तरुण का हाल देखने वाला था। दीपा जैसे ही थोड़ी झुकी की उसकी मद मस्त चूंचियां तरुण के नाक पर रगड़ने लगीं। दीपा सिहर उठी और सीधी बैठ गयी। तरुण भी दीपा की गोद में से सर हटा कर वापस अपनी जगह पर बैठ गया।
तरुण दीपा के एकदम करीब खिसका और उसने अपना हाथ दीपा के गाउन के ऊपर रखा और वह दीपा की जाँघों को अपनी हथेली से दबाने और सेहलाने लगा। दीपा ने देखा पर तरुण को रोकने के बजाये दीपा ने भी तरुण की जाँघ पर अपना हाथ रखा और वह भी तरुण की शशक्त करारी जाँघों को पाजामे के ऊपर से सहलाने लगी।
मेरा लण्ड यह देख कर मेरे पाजामे में खड़ा हो गया। मैं भी दीपा की दूसरी जाँघ पर हाथ रख कर उसे सहलाने लगा और धीरे धीरे दीपा का गाउन ऊपर की और खींचने लगा। मेरी हरकत से दीपा थोड़ी सावधान सी हो गयी और उसने अपने दोनों पाँव सख्ती से कस कर भींच लिए। मैंने फिर दीपा की जाँघ पर चूँटी भरकर उसे याद दिलाया की उस रात उसे कोई विरोध नहीं करना है। दीपा ने मेरी तरफ देखा तो मैंने अपनी पलकों से इशारा किया की उसे शांत रहना है। मेरा इशारा पाकर दीपा ने अपनी टाँगें खोल दीं और मैंने मेरा हाथ उसकी जाँघों के बिच में डाल दिया और दीपा की चूत को उसके गाउन के ऊपर से ही धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगा।
दीपा ने अपनी बाँहें फैलायीं और तरुण को बाहुपाश में आने आह्वान करते हुए कहा, "तरुण, तुम कह रहे थे ना, की आज की रात खुशियां मनाने की है? तो फिर यह सब गम छोडो। आओ हम से गले मिल जाओ और हम सब मिलकर आज होली की रात को बस खुशियां मनाये। अब तुम्हारे ग़म हमारे ग़म और तुम्हारी ख़ुशी हमारी ख़ुशी। तुम्हारी जो भी परेशानी है हम सब मिलकर झेलेंगे और उसका हल भी हम सब मिलकर निकालेंगे।"
तरुण ने मेरी बीबी की फैली हुई बाँहें देखि तो उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। तरुण फ़ौरन दीपा की फैली हुई बांहो में समा गया। दीपा ने तरुण को अपने आहोश में लेते हुए कहा, "तुम मुझसे प्यार करना चाहते थे ना? मैं आज तुम्हें कह रही हूँ की, मैं ना रोकूंगी, ना टोकूँगी।आज मैं तुमको तुम्हारे भाई और मेरे पति के सामने कह रही हूँ की आज रात तुम मुझसे दिल्लगी नहीं, दिलकी लगी करो, आज की रात तुम मुझे चाहे जितना प्यार करो। पर मेरी प्यार भरी बिनती है की मुसीबतों से हार मत मानो। हम सब मिलकर जिंदगी की लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे। बोलो, हँसते हँसते लड़ोगे और जीतोगे ना?"
तरुण ने अपने आँसूं पोंछते हुए मुस्काने की कोशिश करते हुए कहा, "भाभी, अगर आप मेरे साथ हो तो मुझे कुछ भी नहीं हो सकता। अब मुझे किसी बात की फ़िक्र नहीं है।"
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07-12-2019, 07:43 PM
दीपा ने मेरी और मूड़ कर देखा और बोली, "तो फिर आओ, आप दोनों और मैं हम तीनों मिलकर सही मायने में होली मनाएं। तुम तो एम.एम.एफ. थ्रीसम के एक्सपर्ट हो ना? तो आज तुम दो मर्दों के साथ मैं एक बेचारी अकेली औरत हूँ। चलो हम वही थ्रीसम मनाएं। हम अपने ग़म भूल जाएँ और एक दूसरे को पूरा आनंद दें और एक दूसरे से पूरा आनंद लें।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मुझे भी अपनी बाँहों में लिया और अपने रसीले होँठ मुझे चूमने के लिए प्रस्तुत किये।
दीपा सीधी बैठी और तरुण और मुझे अपनी दोनों बाँहों में लिया। दीपा की एक बाँह में जाते ही मैं दीपा की और घूम गया। दीपा के चेहरे के सामने अपना चेहरा रख कर मैंने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ रख दिए और उसके होँठों को चूसने लगा। मेरी बीबी के रसीले होँठ चूमते और चूसते हुए मैंने मेरी बीबी से कहा, "डार्लिंग, तरुण सच कहता है। मैं बहोत ही लकी हूँ की मुझे तुम्हारे जैसी हिम्मतवान, प्यार भरी, संवेदन शील और सेक्सी बीबी मिली है।"
मैंने तरुण की और घूम कर देखा और बोला, "तरुण तुम्हारी हाजरी की ऐसी की तैसी। मैं आज मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता और डार्लिंग तुम मुझे मत रोकना।"
दीपा ने अपनी आँखें बंद कर ली। फिर मेरी नाक से अपनी नाक रगड़ती हुई बोली, "मैंने तुम लोगों को मुझे प्यार करने से कहाँ रोका है? इसके लिए बेचारे तरुण को क्यों बदनाम कर रहे हो?"
प्यार की उत्तेजना में दीपा भूल गयी की उसके मुंह से गलती से "तुम्हें" की बजाय निकल गया "तुम लोगों को" . इसका मतलब यह हुआ की तरुण भी उसमें शामिल था। फिर मैंने सोचा क्या दीपा भूल गयी थी या जानबूझ कर उसने "तुम लोगों" बोला?
ऐसा बोल कर दीपा मेरे साथ आँखे बंद कर चुम्बन में मशगूल हो गयी। तरुण ने हमें चुम्बन करते देखा तो वह भी मेरे साथ ही दीपा के सामने आ गया। उसने भी "तुम लोगों" सूना था। अब तो दीपा ने उसे भी प्यार करने का अधिकार दे दिया था। तरुण ने हमारे मुंह के बिच अपना मुँह घुसेड़ दिया। जब मैंने देखा की तरुण भी दीपा के रसीले होंठो को चूसने और उसे किस करने के लिए उतावला हो रहा था तो मैंने बीचमें से अपना मुंह हटा लिया।
तरुण और दीपा के रसभरे होंठ मिल गये और तरुण ने दीपा का सर अपने हाथ में पकड़ कर दीपा के होठों को चूसना शुरू किया। दीपा की आँखे बंद थीं। पर जैसे ही तरुण की मूछें उसने महसूस की, तो उसने आँख खोली और तरुण को उस से चुम्बन करते पाया। वह थोड़ी छटपटाई। पर तरुण ने उसका सर कस के पकड़ा था। वह हिल न पायी और उसने तरुण को अपना प्यार देनेका वादा किया था। यह सोच कर वह शांत हो गई और तरुण के चुम्बन में उसकी सहभागिनी हो गयी।
तरुण ने दीपा के रस भरे होंठों को चूमते हुए कहा, "भाभी सच कहता हूँ, जब आप ने मुझे इतना सम्मान दिया है की आपने अपने आपको मेरे हवाले किया है और आप और दीपक मुझे इतना हौसला देते हो तो मुझे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। मैं मुसीबतों से लडूंगा और विजयी हूँगा। पर मुझे आपका साथ चाहिए।"
दीपा ने तरुण को चूमते हुए टूटेफूटे शब्दों में कहा, "तरुण, मैं और दीपक पराये नहीं हैं। दीपक भी तुम्हारे हैं और मैं भी तुम्हारी हूँ।" मेरी पत्नी और कुछ बोल नहीं पायी क्यूंकि उसके होंठ पर तरुण के होंठों ने कब्जा कर लिया था।
मेरे लिए यह एक अकल्पनीय द्रष्य था। मेरी रूढ़िवादी पत्नी मेरे प्रिय मित्र को लिपट कर किस कर रही थी। दीपा ने जब महसूस किया की तरुण उसकी जीभ को भी चूसना चाहता था तब दीपा ने तरुण के मुंह में अपनी जीभ को जाने दिया।
तरुण मेरी प्रिय पत्नी को ऐसे चुम्बन कर रहा था जैसे वह अब उसे नहीं छोड़ेगा। दीपा ने एक हाथ से मुझे पीछे से चिपकने का इशारा किया और फौरन, तरुण का सर अपनी हाथोँ में कस के पकड़ा और तरुण के होँठों को अपने होँठों पर और कसके दबाया और तरुण को बेतहाशा चुम्बन करने लग गयी।
तरुण ने सामने से और मैंने पीछे से दीपा को कस के अपनी बाँहों में जकड लिया। मेरी और तरुण की बाँहों के बिच में मेरी प्यारी दीपा जकड़ी हुई थी। हम दोनों दीपा को अपनी बाँहों में जकड़े हुए पलंग पर लेट गए। दीपा का मुंह तरुण की और था। मैं दीपा के पीछे लेटा था। दीपा और जोश से तरुण को चुम्बन करने लगी। तब तरुण और मेरी पत्नी ऐसे चुम्बन कर रहे थे जैसे दो प्रेमी सालों के बाद मिले हों। दीपा के दोनों हाथ तरुण के सर को जकड़े हुए थे। तरुण ने भी मेरी पत्नी को कमर से कस के अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।
यह द्रष्य मेरे लिए एकदम उत्तेजित करने वाला था। मेरा लण्ड एकदम कड़क खड़ा हो गया था। मैंने दीपा को पीछे से मेरी बाहोँ में जकड़ा हुआ था। दीपा के गाउन के ऊपर से मेरी पत्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर मैंने मसलना शुरू किया। हम तीनों पलंग पर लेटे हुए थे। मैंने फिर मेंरे कड़े लण्ड को मेरी पत्नी के गाउन ऊपर से उसकी गाँड़ में डालना चाहा। मैं उसे पीछे से धक्का दे रहा था। इस कारण वह तरुण में घुसी जा रही थी। तरुण पलंग के उस छौर पर पहुँच गया जहाँ दीवार थी और उसके लिए और पीछे खिसकना संभव नहीं था।
अचानक दीपा जोर से हँस पड़ी। उसे हँसते देख तरुण ने पूछा, "भाभीजी, क्या बात है? आप क्यों हंस रही हो?"
तब दीपा सहज रूप से बोल पड़ी, "तुम्हारे भैया मुझे पिछेसे धक्का दे रहे हैं। उनका कड़क लण्ड वह मेरे पिछवाड़े में घुसेड़ ने की कोशिश कर रहे है। इनकी हालत देख मुझे हंसी आ गयी।"
मैंने पहली बार मेरी रूढ़ि वादी पत्नी के मुंह से तरुण के सामने इतने सहज भाव से लण्ड शब्द का इस्तमाल करते हुए सुना। मुझे लगा की जीन और व्हिस्की की मिलावट के दो पुरे पेग पीनेसे अब मेरी बीबी बेफिक्र हो गयी थी। साथ में वह अब तरुण से पहले से काफी अधिक घनिष्ठता महसूस कर रही थी।
इसे सुनकर तरुण ने रिसियायी आवाज में कहा, "भाभीजी, एक बात कहूं? आपने अपने पति की हालत तो देखी पर मेरे हाल नहीं देखे। यह देखिये मेरा क्या हाल है?" ऐसा कहते ही दीपा को कोई मौका ना देते हुए तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ कर अपने दोनों पांव के बीच अपने लण्ड पर रख दिया और ऊपर से दीपा के हाथ को जोरों से अपने लण्ड ऊपर दबाने लगा। मेरे पीछे से धक्का देने के कारण दीपा के बहुत कोशिश करने पर भी वह वहां से हाथ जब हटा नहीं पायी तब दीपा ने तरुण के लण्ड को अपने हाथों में पकड़ा। तरुण का पाजामा उस जगह पर चिकनाहट से भरा हुआ गिला हो चुका था। यह देख कर मैं ख़ुशी से पागल हो रहा था।
मैंने तब दीपा को पीछे से धक्का मारना बंद किया और मैं पीछे हट गया। अब दीपा चाहती तो अपना हाथ वहां से हटा सकती थी। परंतु मुझे यह दीख रहा था की दीपा ने अपना हाथ वहां ही रखा। वह शायद तरुण के लण्ड की लंबाई और मोटाई भाँप ने की कोशीश कर रही थी। तरुण के पाजामे के ऊपर से भी उसे तरुण के लंबे और मोटे लण्ड की पैमायश का अंदाज तो हो ही गया था।
मेरी प्यारी बीबी जब तरुण के लण्ड की पैमाइश कर रही थी तब अचानक ही उसके गाउन की ज़िप का लीवर मेरे हाथों लगा। मैंने कुछ न सोचते हुए उसे नीचे सरकाया और उसको दीपा की कमर तक ले गया।
उसके गाउन के दोनों पट खुल गए। दीपा ने अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जैसे ही गाउन के पट खुले और ज़िप कमर तक पहुँच गयी तो उसके दो बड़े बड़े अनार मेरे हाथों में आ गये। जैसे ही तरुण ने दीपा के नंगे स्तनों को देखा तो वह पागल सा हो गया। इन स्तनों को ब्लाउज के निचे दबे हुए वह कई बार चोरी चोरी देखता था। तरुण ने उनको अधखुले हुए भी देखा था। उस समय उसने सपने में भी यह सोचा नहीं होगा की एक समय वह उन मम्मों को कोई भी आवरण के बिना बिलकुल खुले हुए देख पायेगा।
तरुण को और कुछ नहीं चाहिए था। वह तो दीपा के दूध को पीने के लिए अधीरा था। परंतु मुझे तब बड़ा आश्चर्य यह हुआ की उसके सामने दीपा के बड़े बड़े और सख्त मम्मे गुरुत्वाकर्षण के नियम को न मानते हुए उद्दंड से ऐसे खड़े थे जैसे तरुण को चुनौती दे रहे हों। फिर भी तरुण ने उन्हें हाथों में न पकड़ते हुए दीपा के कानों में कुछ कहा। यह सुनकर दीपा मुस्कायी और उसने अपना सर हामी दर्शाते हुए हिलाया। मुझसे अपनी जिज्ञासा रोकी नहीं गयी। मैंने तरुण से पूछा, "तुमने दीपा से क्या कहा?
तरुण ने इसका कोई जवाब न देते हुए मेरी पत्त्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में भरते हुए कहा, "मैंने दीपा भाभी से इनसे खेलने की इजाजत मांगी।"
मैं तरुण की इस हरकत से हैरान रह गया। कमीना, उसने अपना काम भी करवा लिया और ऊपर से शराफत का नाटक भी कर के दीपा की आँखों में शरीफ बन गया।
उसने दीपा की दोनों बड़ी पूरी फूली हुई गोरी गोरी चूँचियों को अपने दोनों हाथों में बड़ी मुश्किल समाते हुए रखा और बोला, "भाभीजी, आपके स्तनों का कोई मुकाबला नहीं। मैंने कभी किसी भी औरत के इतने सुन्दर बॉल नहीं देखे। इसमें टीना भी शामिल है। आज मैं आप से छिपाऊंगा नहीं की जब पहले दिन मैंने आपको देखा था उस दिन से मैं आपके इन बड़े और सख्त मम्मों को देखने के लिए पागल हो रहा था, पर आपने मुझे अब तक बिलकुल मौक़ा नहीं दिया।अब मुझे मत रोकिये प्लीज?"
मेरी बीबी ने तरुण को अपनी और खींचा और उसके मुंह को अपने स्तनों में घुसा दिया। तरुण को तो जैसे जन्नत मिल गयी। दीपा ने तरुण के कानों में कहा, "देवरजी, अभी भी पूछ रहे हो? तुम्हें रोका किसने है? और फिर अगर मैं रोकूंगी भी तो क्या तुम रुकोगे?"
बस और क्या था? अब तो तरुण को जैसे लाइसेंस मिल गया था। तरुण का मुंह बारी बारी कभी एक मम्मे को तो कभी दूसरे को जोर से चूसने लगा। जब वह मेरी बीबी के एक स्तन को चूसता था तो दूसरे को जोर से दबाता और खींचता था और अपनी उँगलियों में दीपा की निप्पलों को जैसे चूंटी भर रहा हो ऐसे दबाता था। कई बार तो वह इतना जोर से दबा देता की दीपा के मुंह से टीस सी निकल जाती। तब वह तरुण को धीरे दबाने का इशारा करती।
मैंने भी दीपा के रस से भरे मम्मों को चूसना शुरू किया। अब तरुण कहाँ रुकने वाला था? वह दीपा के दूसरे मम्मे को अपने मुंह में रख कर उसकी निप्पल को काट ने लगा। दीपा के हाल का क्या कहना? उसकी जिंदगी में पहली बार उसके स्तनों को दो मर्द एक साथ चूस रहे थे। दीपा इतनी गरम और उत्तेजित हो गयी थी की वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। अब तक जो मर्यादा का बांध उसके अपने मन में था अब वह टूट चुका था। अपने स्तनों पर तरुण के मुंह के स्पर्श से ही अब वह पागल सी हो रही थी।
मैंने झुक कर प्यार से मेरी प्यारी पत्नी के रसीले होठों पर चुम्बन किया और उसके कानों में फुसफुसा कर बोला, "मेरी जान, आज तूमने मुझे वह गिफ्ट दिया है जिसके लिए में तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमने मेरे कहने पर अपनी लज्जा का बलिदान किया है इसका ऋण मैं चूका नहीं सकता। दीपा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और अब तो मैं तुमसे और भी प्यार करने लगा हूँ। मैं चाहता हूँ की आज तुम लज्जा को एक तरफ रख कर हम दोनों से चुदाई का पूरा आनंद लो और हमें चुदाई का पूरा आनंद दो। आज तुम हम दोनों के साथ यह समझ कर खुल कर सेक्स करो जैसे हम दोनों ही आज रात के लिए तुम्हारे पति हैं।"
दीपा आँखे बंद कर मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। जब वह कुछ न बोली तो मैंने उसे कहा, "डार्लिंग, अब आँखे खोलो और मुझे जवाब दो।"
तब मेरी शर्मीली खूबसूरत पत्नी ने अपनी आँखे खोली और और मेरी आँखों में आँखे डाल कर मुस्काई। उसने मेरा सर अपने दोनों हाथों में लेकर मेरे होंठ अपने होंठो पर दबा दिए और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल दी। ऐसे थोड़ी देर चुम्बन करने के बाद धीमी आवाज में बोली, "देखो, जो आज हुआ वह तो होना ही था। जिस तरह से तुम तरुण से चुदवाने के लिए मुझे राजी करने के लिए मेरे पीछे पड़े थे , मैं जान गयी थी की तुम मुझे तरुण से चुदवाये बगैर चैन नहीं लोगे। मुझे फाँसने का यह सब प्लान तुम दोनों ने मिल कर पहले से ही बना लिया था ना? सच बोलो? मैं भी समझ गयी थी। पर मैं भी तो तुम्हारी बीबी हूँ। आसानी से थोड़ी ही पटने वाली थी मैं? मैंने तय किया था की अब मैं भी देखती हूँ तुम और तरुण कितने पापड़ बेलते हो मुझे पाने के लिए? कहते हैं ना की मेहनत का फल मीठा। तुमको मैंने वादा किया था ना की मैं मौज कराउंगी? उसी समय मैं समझ गयी थी की मुझे आज रात को तुम दोनों से चुदवाना ही पडेगा। तो अब मैं तुम दोनों के लिए तैयार हूँ।"
तरुण ने जब हमारा आपस में प्रेमआलाप देखा और सूना तो वह भी मुस्काया और समझ गया की अब दीपा भी हमारे साथ है। मैंने प्यार से दीपा को पलंग पर लिटा दिया। हम दोनों उसके दोनों और लेट गए और उसकी चूचियों को चूसने लगे। दीपा ने अपना हाथ बढ़ाया और पाजामे के ऊपर से हम दोनों के लण्ड को एक एक हाथ से दुलार से सहलाने लगी। जाहिर है की हम दोनों के लण्ड तन कर खड़े हो चुके थे। पाजामें के अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण पाजामे का वह हिस्सा चिकनाहट से गीला हो चुका था। दीपा ने हमें प्यार भरी नजर से देखा और फिर अपनी आँखें बंद करली। अब वह हमारे प्यार का आनंद ले रही थी।
दीपा हम दोनों मर्दों के बिच में सीधी लेटी हुई थी। उसका कुल्हा बिस्तर पर था और चूँचियाँ फुले हुए गुब्बारे के समान बिना दबे हुए ऊपर की और उठी हुई अक्कड़ थीं। हम दोनों मिलकर उन चूँचियों को अपने मुंह में लेकर उनका रसास्वादन कर रहे थे। हमारे दोनों के दीपा की उभरी चूँचियों को चूसने और निप्पलोँ को काटने से उसकी चूत में गजब की हलचल हो रही होगी जो उसके पलंग पर मचलने से साफ़ दिखाई दे रही थी। तरुण बार बार दीपा की चूत वाले हिस्से को अपने हाथों से हलके से कुरेद कर दीपा की चूत को और उन्मादित कर रहा था। दीपा को ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। आज तक उसने सिर्फ मेरे प्यार का ही अनुभव किया था। अब उसे दो प्रेमियों के दो मुँह और चार हाथोँ का एक साथ प्यार का आनंद मिल रहा था। आगे चलकर यह अनुभव क्या रंग लाएगा उसकी कल्पना मात्र से ही वह उत्तेजित हो रही थी और मैंने वह उसके शरीर में हो रहे कम्पन से महसूस किया।
मैंने धीरे से मेरा हाथ उसके गाउन के अंदर डाला। उसकी नाभि और उसके पतले पेट का जो उभार था उसको मैं प्यार से सहलाने लगा। मेरी पत्नी मेरे स्पर्श से काँप उठी। मैंने मेरे हाथ दीपा की पीठ के नीचे डाल दिए और उसे धीरे से बैठाया। उसे बिठाते ही उसका खुला गाउन नीचेकी और सरक गया और वह आगे और पीछे से ऊपर से नंगी हो गयी। तरुण जिसकी मात्र कल्पना ही तब तक करता था वह दीपा के कमसिन जिस्म को ऊपर से पूरा नंगा देख कर उसे तो कुबेर का खजाना ही जैसे मिल गया।
तरुण ने दीपा के दोनों स्तनों को ऐसे ताकत से पकड़ रखा था की जैसे वह उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी वह उन्हें मसाज करता था तो कभी निप्पलों को अपनी उँगलियों में दबाता तो कभी झुक कर एक को चूसता और दूसरे को जोरों से दबाता।
दीपा अब हम दोनों प्रेमियों का उसके मम्मों को चूसना और मलने की प्रक्रिया से इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी के उस से अपने जिस्म को नियत्रण में रखना मुश्किल हो रहा था। दीपा की उन्माद भरी अवस्था को मैं ऐसे महसूस कर पाता था की उसकी हम दोनों मर्दों के लण्ड सेहलानी की गति उसके उन्माद के साथ बढ़ती जाती थी। वह उन्मादपूर्ण अवस्था में कभी मेरी आँखों में आँखें मिला रही थी तो कभी तरुण की आँखों में। जब वह कुछ देर के लिए हमें बारी बारी से देखती थी तब दीपा की आँखों में वही प्यार और कामुकता भरा उन्माद नजर आरहा था। पर ज्यादातर तो वह आँखें मूँद कर ही हमारी हरकतों का आनंद ले रही थी।
मैं देख रहा था की वह हम दोनों के उसके स्तन मंडल के साथ प्यार करने से अब वह अपने कामोन्माद से एकदम असहाय सी लग रही थी। दीपा तब अपनी कमर और अपनी नीचे के बदन को उछालते हुए बोलने लगी, "दीपक, तरुण जल्दी करो, और चुसो जल्दी। ... आह्ह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह... मेरी चूंचियां और दबाव ओओफ़फ़फ़। तब मुझे लगा की वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मैंने तरुण को इशारा किया और हम दोनों उसके मम्मों को और फुर्ती से दबाने और चूसने लगे।
जल्द ही मेरी प्रियतमा एक दबी हुयी टीस और आह के साथ उस रात पहली बार झड़ गयी। उसकी साँसे तेज चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने अपनी आँखें खोली और हम दोनों की और देखा। कुछ देर तक कमरे में मेरी बीबी की गर्म साँसों की तेज गति के अलावा सब सुनसान था।
मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग, अब हम लोगों से क्या परदा? अब हमें अपना लुभावना सुन्दर जिस्म के दर्शन कराओ। अब मत शर्माओ। दीपा ने मेरी और देखा पर कुछ न बोली। मैंने तरुण को इशारा किया की अब वह काम हम ही कर लेते हैं। तरुण थोड़ा हिचकिचाता आगे बढ़ा और दीपा के बदन से गाउन निकालने लगा। दीपा ने शर्म के मारे अपना गाउन को तरुण को उतारने नहीं दिया और अपने हांथों में पकड़ रखा। मैंने दीपा को खड़ा होने को कहा तो वह शर्मा कर बोली, "आप पहले लाइटें बुझा दीजिये।"
यह बात मेरी समझ में नहीं आती। हमारी भारतीय स्त्रियाँ चुदवाने के लिए तो तैयार हो जाती है और चुदवाती भी है, पर अपने स्तनोँ का, अपनी चूत का दर्शन कराने में क्यों झिझकती है, यह मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ।
तरुण ने उठकर कमरे की सारी लाइटें बुझा दी, बस एक डिम लाइट चालू रक्खी। वह धीमी रोशनी भी कमरे में काफी प्रकाश फैलाये हुए थी। बाहर की रोड लाइटों का प्रकाश भी कमरे में आ रहा था। दीपा जब उठ खड़ी हुयी तब उसका गाउन अपने आप ही नीचे सरक गया और मेरी शर्मीली रूढ़ि वादी पत्नी हम दोनों के सामने पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी। पर फिर भी स्त्री सुलभ लज्जा के कारण दीपा ने अपना एक हाथ अपने स्तनों के ऊपर और दुसरा हाथ अपनी खूब सूरत चूत को ढकने के लिए आगे किया। मैंने मेरी बीबी के होंठों को हलके से चूमा और कहा, "दीपा अब छोडो भी। मैंने तो तुम्हारा पूरा बदन कई बार देखा है। तरुण बेचारा तुम्हारे नंगे बदन के दर्शन के लिए कभी से तड़प रहा है। तुम्हारी सुंदरता को उसे भी तो निहारने दो।"
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07-12-2019, 07:45 PM
मैंने हलके से दीपा की सुंदरता को ढकने के प्रयास करते हुए दीपा के दोनों हाथ उसकी चूत और स्तनों पर से हटा लिए। मैं अपने सपने में ही यह दृश्य की कल्पना कर सकता था। जो मेरे सामने भी ऐसी नंगी खड़ी होने में शर्माती थी वह मेरी बीबी उस रात मेरे और तरुण के सामने समूर्ण नग्न खड़ी हुई रति के सामान खूबसूरती, कामुकता , नजाकत और स्त्री सुलभ लज्जा का एक अद्भुत संगम सी दिख रही थी। यह उसका पहला अनुभव था जब वह अपने पति के अलावा किसी और व्यक्ति के सामने नंगी खड़ी थी।
तरुण और मैं दोनों दीपा के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। तरुण ने दीपा को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा। मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।
शायद कहीं ना कहीं उसके मन में यह जूनून था की वह कभी ना कभी तरुण को अपना यह रूप जरूर दिखाएगी ताकि तरुण को पता लगे की दीपा भी टीना से अगर ज्यादा नहीं तो कम सेक्सी भी नहीं थी। टीना की वह बिकिनी में मुश्किल से अपने सेक्सी बदन को छुपाती हुई तस्वीरों को देखकर अपने मन ही मन में दीपा की स्त्री सहज जलन का यह शायद रोमांचक नतीजा था।
तरुण बेचारा भौंचक्का सा दीपा के नग्न बदन को देखता ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। जिसके नंगे बदन की कल्पना वह दिन रात सपनों में करता रहता था, वह उसके सामने नग्न खड़ी थी। तरुण ने दीपा का अर्ध नग्न बदन तो कई बार देखा था पर पूरा अनावृत बदन अपनी पूरी छटा में पहली बार उसने देखा और उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की दीपा का साक्षात नंगा बदन उसकी कल्पना से भी कई गुना सुन्दर उसको लगा।
तरुण नंगी खड़ी हुई दीपा को देखता ही रह गया। दीपा की गालों, कंधे और छाती पर बिखरे हुए केश दीपा के उन्मत्त गुम्बज के सामान फुले हुए पर बिनाझुके खड़े हुए और दो चोटियों के सामान निप्पलों से आच्छादित स्तन मण्डल को छुपाने में असमर्थ थे। उस रोशनी में भी दीपा की स्तनों की चोटियों की चारों और फैली हुई एरोला अद्भुत कामुक लग रही थीं। दीपा के स्तनों की एरोला में कई फुंसियां खड़ी थीं जो दीपा की उत्तेजना की चुगली खा रहीं थीं।
दीपा की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में खाई हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था। उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी चूत के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी चूत में से रस चू रहा था। वह दीपा के हालात को बयाँ रहा था।
तरुण ने आगे बढ़कर दीपा को अपनी बाहों में लिया। तरुण ने अपने बदन से दीपा का नग्न बदन चिपका कर दीपा को कहा, "दीपा भाभी, आज मैं सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने इतनी सारी लडकियां और औरतें के बदन देखे हैं, पर आपका सा सेक्सी बदन मैंने नहीं देखा।"
दीपा ने शर्माते हुए धीमी दबी हुई कहा, "अच्छा जनाब? झूठ मत बोलो। तुम तो दीपक को कह रहे थे, मैं सुन्दर तो हूँ, पर टीना जैसी सेक्सी नहीं?"
दीपा की बात सुनकर तरुण आश्चर्य से मेरी और देखने लगा और बोला, "भाई, मैंने यह कब कहा? मैं यह सपने में भी नहीं कह सकता। भाभी, जिसे देख कर कोई भी मर्द का लण्ड खड़ा हो जाए और वह उसे चोदने के लिए बेचैन हो जाए उसीको सेक्सी कहते हैं। सेक्सी होना खूबसूरत होने से कहीं आगे है। टीना बेशक खूबसूरत और कुछ हद तक सेक्सी भी है, पर चाहे आप सीधी सी साडी पहनो चाहे जीन्स, आपको देख कर जो मेरे अंदर के हॉर्मोन्स कूदने लगते हैं ऐसा टीना के साथ कभी नहीं हुआ।"
मैं तरुण की बात सुनकर सकपका गया और बोला, "दीपा, मुझे माफ़ करना, तरुण ने ऐसा कभी नहीं कहा। वह तो तुम्हें बहकाने के लिए मैंने ही वह बात बना दी थी।"
दीपा ने टेढ़ी नजर कर मुझे कहा, "पता नहीं और भी कितनी सारी बातें तुमने मुझे उकसाने के लिए कही होंगी?"
उस रात मेरी शर्मीली पत्नी ने यह मन बना लिया था की आज वह मेरी और तरुण ख्वाहिश पूरी करेगी। वह तरुण की बाँहों में समां गयी और उस ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली। तरुण को तो जैसे स्वर्ग मिल गया। वह अपने हाथोँ से दीपा के नंगे बदन को सहला रहा था। उसके दोनोँ हाथ दीपा के पीछे, उसकी रीढ़ की खाई में ऊपर नीचे हो रहे थे। कभी वह अपना हाथ दीपा के चूतड़ों के ऊपर रखता और दीपा की गाँड़ के गालों को दबाता, तो कभी अपनी उंगली को उस गाँड़ के होठों के बिच की दरार में डालता था। उसने मेरी पत्नीको इस हालात में देखने की कल्पना मात्र की थी। उसे यह मानना बड़ा अजीब लग रहा था की तब दीपा का वह बदन उसका होने वाला था।
तरुण नीचे झुक कर दीपा के पीछे गया। वह अपना सर ऊपर कर मेरी और देखते हुए बोला, "क्या मैं भाभी के कूल्हों को महसूस कर सकता हूँ? मैं कई महीनों से, जबसे मैंने दीपा भाभी को पहली बार देखा था तबसे इन कूल्हों को सहलाने के लिए तड़प रहा हूँ।"
दीपा पहले मुस्काई और फिर थोड़ा हीचकिचाते हुए मेरी और देखा। मैंने अपनी पलकें झुका और गर्दन हिला कर तरुण को अपनी अनुमति दे दी। तरुण ने अपने घुटनों पर बैठ कर तुरंत ही मेरी बीबी की सुडौल गाँड़ के दोनों गालों को चूमा और काफी देर तक चूमता ही रहा। दीपा की गाँड़ का घुमाव और उसकी वक्रता में तरुण अपनी जीभ घुसा कर उन्हें चूमने और अपने हाथों से सहलाने लगा। जब उसने दीपा की गाँड़ के छिद्र में अपनी जीभ घुसाई तो दीपा के बदन में कम्पन होने लगा। उस समय जरूर मेरी बीबी के सारे रोंगटे खड़े हो गए होंगे और सिहरन उसके पुरे बदन में फ़ैल गयी होगी, क्यूंकि मैं महसूस कर रहा था की वह मारे रोमांच के काँप रही थी।
मैं उन दोनो की और आगे बढ़ा। मैंने धीरे से तरुण को मेरी बीबी के बिलकुल सामने खड़ा किया और दीपा का हाथ तरुण की टांगों के बिच में रखा और उसके लण्ड को हिलाने के लिए उसे प्रेरित किया। दीपा मेरा इशारा समझ गयी और तरुण के लण्ड को उसके पाजामे के उपरसे सहलाने लगी। मैं धीरे से तरुण के पीछे गया और अपना हाथ तरुण की कमर के आसपास लपेटते हुए तरुण के पाजामे का नाड़ा मैंने खोल दिया।
तरुण पागल हुआ जा रहा था। जैसे ही उसका पाजामा फर्श पर गिरा तो उसका लंबा और मोटा लण्ड हवा में लहराने लगा। वह एकदम कड़क हो चूका था। वह बिलकुल बिना झुके अपना सर उठा के खड़ा हुआ था। ऐसे लग रहा था जैसे वह दीपा की चूत की और जाने को मचल रहा था। तरुण के नंगे होते ही दीपा की आँखें तरुण का लण्ड देख कर फटी की फटी ही रह गयीं। जिस तरह तरुण का लण्ड जो उसके पाजामे में गोल घूम कर समाया हुआ था वह पाजामें का बंधन खुलते ही जैसे एक अजगर या बड़ा साँप अपनी टोकरी में से सर निकालते हुए बाहर निकल कर शान से अपना फ़न फैलाता हुआ अकड़ कर खड़ा होता है वैसे ही एकदम दीपा की चूत के सामने खड़ा हो गया। तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर मेरी बीबी दो कदम पीछे हट गयी शायद उसे डर लगा की कहीं तरुण का इतना लंबा लण्ड इतनी दुरी से भी बिना कुछ जोर लगाए उसकी चूत में सीधा घुस ना जाए।
शायद उस समय पहली बार दीपा को तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई का सही सही अंदाज हुआ जो उसके पहले के अंदाज से कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था। तरुण का लण्ड मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा लंबा और मोटा भी था। जैसे ही तरुण का पाजामा नीचे गिरा दीपा का हाथ अनायास ही तरुण के लण्ड को छू गया। अब तक मेरी प्यारी बीबी ने कोई पराये मर्द का लण्ड देखा नहीं था। उसके लिए तो यह एक अजूबा सा था। इतना मोटा और लंबा लण्ड देख दीपा के चेहरे की भाव भंगिमा देखते ही बनती थी।
तरुण का लण्ड देखते ही बिना सोचे समझे दीपा के मुंह से आवाज निकल गयी, "बापरे! इतना बड़ा?" बोल कर वह चुप हो गयी। और कुछ बोल नहीं पायी।
दीपा ने तरुण का लण्ड देखने के बाद मेरी और देखा। मैं समझ गया की वह तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई, जो मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा थी, से उत्तेजित हो रही थी। शायद उसे भी यह महसूस होगा की मैं भी यह देख कर छोटा महसूस ना करूँ।
तरुण का इतना तगड़ा लण्ड देखते ही मैंने देखा की अनायास ही मेरी बीबी ने अपनी दोनों टाँगे इकट्ठी कर लीं। वह क्या सोच रही थी, मैं उसकी कल्पना ही कर सकता था। शायद वह यह सोच रही होगी की कभी न कभी तो उस लण्ड को उसकी चूत में घुसना ही था। उस समय उसका क्या हाल होगा उसे कैसा महसूस होगा शायद वह यही सोच रही होगी। यह सोच कर थोड़ी देर के लिए दीपा जैसे ठिठक सी गयी। फिर दीपा ने से धीरे से तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया। वह अपनी मुठी में उसे पूरी तरह से ले न पायी, पर फिर भी उसने अपनी आधी मुठी से ही तरुण के लण्ड को सहलाना शुरू किया। वह शायद तरुण को कुछ सुकून देने के लिए उसके लण्ड को कुछ देर तक सहलाती रही।
तरुण ने वहां तक पहुँचने के लिए कितनी जहमत उठाई थी वह दीपा भली भाँती जानती थी। दीपा को पटाने के लिए तरुण ने क्या क्या नहीं किया? आखिर में जाकर उसने दीपा को पटा ही लिया।
तरुण का लण्ड हलकी सी रोशनी में भी चमक रहा था। तरुण की तरह उसका लण्ड भी गोरा था। उसकी पूरी गोलाई पर उसका पूर्व रस फैला हुआ था। चारों और से चिकनी मलाई फ़ैल जाने के कारण वह स्निग्ध दिख रहा था। सबसे खूबसूरत उसकी पूरी लंबाई पर बिछी हुयी रगें थीं। उसकी गोरी चमड़ी पर थोड़ी सी श्यामल रंग की नसोँ का जाल बिछा हुआ था। जिस वक्त दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया उसके लण्ड की चमड़ी के तले बिछी हुयी नसोँ में जैसे गरम खून का सैलाब फर्राटे मारता हुआ दौड़ने लगा। उसकी नसें फूल रही थीं। तरुण का लण्ड पूरी तरह अपनी चरम ताकत से खड़ा था।
तरुण के तने हुए लण्ड को देख दीपा के गाल एकदम लाल हो गए। उसे महसूस हुआ की वह अपने पति के मित्र के सामने नंग धड़ंग खड़ी थी और उसके पति का मित्र भी नंगा उसके सामने खड़ा था और अपने लंबे, मोटे लण्ड का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसा वास्तव में हो सकेगा यह कभी उसने सोचा भी नहीं था। हाँ उसने कभी अपने सपने में ऐसा होने की उम्मीद जरूर की होगी।
दीपा के मुंह के भाव को तरुण समझ गया और उसने मेरी पत्नी को अपने आहोश में लेकर थोड़ा झुक कर पहले उसके गालोँ पर और फिर उसके होठों पर अपने होँठ रख दिए और वह दीपा को बेतहाशा चूमने लगा। दीपा को होठों पर चूमते चूमते थोड़ा और झुक कर तरुण दीपा के स्तनों को भी चूमने और चाटने लगा। दीपा से उसका जी नहीं भर रहा था।
मेरी निष्ठावान पत्नी भी तरुण से लिपट गयी और उसके होठों को चूसने और चूमने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे उसे अपनी कितने सालों की प्यास बुझाने का मौका मिल गया था। मेरी पत्नी और मेरा ख़ास दोस्त अब मेरे ही सामने एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए एक दूसरे को चुम्बन कर रहे थे जैसे काफी अरसे के बाद मिलन के लिए तड़पते हुए वह पति पत्नी या घनिष्ठ प्रेमी हों।
मैं उन दोनों को देखता ही रहा। उस वक्त कुछ क्षणों के लिए मेरे मनमे जरा सा ईर्ष्या का भाव आया। इस तरह का उन्मत्त चुम्बन करने के बाद, जब मेरी पत्नी ने मेरी और देखा तो वह मेरे मन के भावों को ताड़ गयी। वह तुरंत तरुण की बाँहों में से निकल कर मेरे पास आयी और मुझे अपनी बाँहों में लेने के लिए मेरी और देखने लगी।
मैंने तुरंत ही उसे अपनी बाहों में लिया, तब उसने तरुण भी सुन सके ऐसे कहा, "अपनी बीबी को किसी और मर्द की बाँहों में देख कर कुछ जलन सी हो रही है ना?"
मैं चुप रहा तो दीपा बोली, "यही तो मैं आपको समझाने की कशिश कर रही थी। मर्दों के लिए पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ बाँटना उनके अहम् को आहत करता है, क्यूंकि वह अपनी पत्नी पर एक तरह से अधिपत्य यानी मालिकाना भाव रखते हैं। वैसी औरतों को कुछ हद तक ऐसा मालिकाना भाव अच्छा भी लगता है, पर सिर्फ कुछ हद तक। हालांकि आप में यह मालिकाना भाव उतना ज्यादा नहीं है। ठीक होता अगर आप मुझे और तरुण को एक दूसरे के करीबी जातीय संपर्क में आने के लिए ना उकसाते। पर यकीन मानो अगर आप ने यह किया है तो इससे कुछ नहीं बदलेगा। आप मेरे सर्वस्व हैं और हमेशा रहेंगे। आज कुछ भी हो जाए, मैं आप की ही हूँ और हमेशा रहूंगी। मैं आप के बिना अधूरी हूँ और आपके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती। आप दुनिया के सर्वोत्तम पति हो यह मैं निसंकोच कह सकती हूँ।
आज मैं यह मानती हूँ की मेरे मन में तरुण के प्रति जातीय आकर्षण था। आपने भी शायद इसे भाँप लिया था। आप मुझे हमेशा तरुण के साथ सेक्स करने का अनुभव करने के लिए कहते रहे और उकसाते रहे। मैं उसका विरोध करती रही। आखिर में आपने और तरुण ने मिलकर मेरे तरुण के प्रति जातीय भाव को इतना भड़का दिया की मैं तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी। आज रात आपने मेरे और तरुण के शारीरिक सम्भोग की व्यवस्था करही दी, और मुझे भी इतने सारे तिकड़म कर तैयार कर ही दिया। आपने जो किया वह आप नहीं करते तो मैं आज ऐसे यहाँ ना होती। यदि आप मुझे इसके लिये मजबूर न करते तो मैं कभी तरुण को अपने बदन को छूने भी नहीं देती। आज जो भी हो, मैं आपकी थी, आपकी हूँ और हमेशा आपकी रहूंगी। इसको कोई भी व्यक्ति बदल नहीं सकता।"
तरुण ने दीपा की बात सुनी और उसे अपने आहोश में लेते हुए तरुण ने मेरी और देखा और बोला, "दीपक, मैं ना कहता था की मेरी भाभी जितनी खूबसूरत और सेक्सी भी है उतनी ही समझदार भी है? कई औरतें जिनको मैंने चोदा, वह मुझसे शादी तक करने के लिए तैयार हो जाती थीं। पर भाभी ने आज एक मर्यादा की रेखा खिंच दी है और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अब दीपा भाभी ने मन बना ही लिया है तो मुझे उनकी चमचागिरी करने की कोई जरुरत नहीं पर मैं यह कहना चाहता हूँ की आप बहुत ही खुशनसीब हो की आप को दीपा भाभी जैसी बीबी मिली। वह मेरी भाभी है और आप की बीबी है। मैंने तो उन्हें एक रात के लिए आप से उधार मांगा है।"
दीपा ने तब तरुण की और टेढ़ी नज़रों से देखा और पट से कहा, "क्यों भाई, जब तुम दोनों ने मुझे फँसा ही दिया है तो फिर एक रात के लिए ही क्यों? कहते हैं ना की खून एक करो या दस, फाँसी तो एक ही बार मिलनी है। तो फिर एक बार क्यों? अब तो तीर कमान से निकल चुका है। अब तो मैं जब मर्जी चाहे तरुण से चुदवाउंगी। मेरे पति को मुझे इसकी इजाजत देनी पड़ेगी।"
तरुण दीपा की बात सुनकर हँस पड़ा और बोला, "ना भाभी ना। आप तो टेम्पररी की बात कर रहे हो, मैं तो भैया को यह कहूंगा की अगर भगवान ना करे और आपकी और भाभी की लड़ाई हो जाए और ऐसी नौबत आ जाये की आप दोनों को तलाक़ लेना पड़े तो भाभी, मेरा खुला आमंत्रण है की आप दीपक को छोड़ मेरे साथ शादी कर लेना, मैं टीना को तलाक़ दे कर आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
दीपा भी ताव में आ कर धीरे से बोली, "तरुण, यह शादी तलाक के चक्कर छोडो। तुम्हारा जब मन करे तुम आ जाना और हमारे साथ रहना। दीपक ना भी हो तो रात को चुपचाप आ जाना। सुबह होने से पहले चले जाना। तुम्ही ने तो कहा था ना की मैं तुम में और दीपक में फर्क ना समझूँ? तुम भी टीना में और मुझ में फर्क ना समझना। जब दीपक मुझसे ऊब जाएँ या जब तुम टीना से ऊब जाओ तब तुम मेरे पास आ जाना और दीपक को मैं टीना के पास भेज दूंगी। तलाक़ जैसी फ़ालतू चीज़ों के लफड़े में पड़ने की क्या जरुरत है? फिर जब तुम्हारा मन मुझसे भर जाए और दीपक का मन टीना से भर जाए तब वापस आ जाना।"
तरुण ने तालियां बजाते हुए कहा, "वाह मेरी भाभी वाह! क्या दिमाग पाया है? देखो भाई, कितना सटीक हल निकाला है भाभी ने? साला ऐसा आईडिया अपुन के दिमाग नहीं आया?" तरुण की सराहना सुनकर मेरी बीबी ने गर्व से सर ऊंचा कर मेरी और देखा।
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07-12-2019, 07:47 PM
दीपा ने पूछा, "पर तरुण सच सच बताना। तुमने मुझे पटाने का फैसला कब किया? मैं वैसे तो किसीके बातों में नहीं आने वाली थी। मैं तो पहले से ही मेरी मोरालिटी क बारे में एकदम स्ट्रिक्ट थी। पता नहीं मैंने क्या देख तुम में? शायद तुम्हारी सच्चाई मुझे भाई। तुम गलत काम भी करते थे तो सच्चाई से करते थे। दीपक ने तो बताया ही होगा, मेरे बारे में। तो फिर तुमने मुझमें क्या बात देखि, की ऐसे मेरे पीछे ही पड़ गए?"
तरुण ने कुछ पल के लिए दीपा का हाथ पकड़ा और दबाया और बोला, "भाभीजी, सच बताऊँ? मैं आपके बारेमें काफी जान गया था। भाई ने भी बताया था की आप तो बिलकुल रूखे हो। पर भाभी, जब पहली बार मैंने आपसे बात की तो मैं समझ गया, की आप का ह्रदय बड़ा कोमल और साफ़ है। आपकी हँसी मेरे जिगर को छू गयी और आपकी सेक्सी फिगर और खूबसूरती ने मुझे मजबूर कर दिया।"
तरुण की बात सुनकर दीपा बोली, "ठीक है तरुण। अब मेरे पति को भी तैयार करो यार।"
तरुण मेरे पीछे आया और एक झटके में ही मेरे पाजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। मैंने भी मेरा कुरता निकाल फेंका और मैं भी दीपा और तरुण जैसे ही नंगा हो गया। मेरे नंगे होते ही मेरा लण्ड अपने बंधन में से बाहर कूद पड़ा। वह अकड़ कर खड़ा था और मेरी पत्नी की चूत को चूमने के लिए उतावला हो ऐसे उसकी दिशा में इंगित कर रहा था। दीपा ने अपने नित्य चुदसखा को अपने हाथ में लिया और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगी।
मैंने दीपा को तरुण की और धकेला और जब दोनों एक साथ हुए तो उनको एक धक्का मार कर पलंग के ऊपर गिराया। गिरते हुए तरुण ने मेरी बाँह पकड़ी और मुझे भी अपने साथ खिंच लीया। हम तीनों धड़ाम से पलंग पर गिरे। मैं अपनी निष्ठावान और शर्मीली पत्नी को मेरे ही घनिष्ठ मित्र की बाहों मेरी मर्जी ही नहीं, मेरे आग्रह से नंगा लिपटते हुए देख उन्मादित हो गया।
तरुण ने दीपा को अपनी दोनों टांगों में जकड़ लिया। उसकी शशक्त जाँघें मेरी बीवी के नंगे बदन ऊपर जैसे अजगर अपने शिकार को अपने आहोश में जकड लेता है वैसे ही लिपटी हुयी थीं। मेरी पत्नी उसमे समा गयी थी। तरुण का लण्ड दीपा की चूत पर रगड़ रहा था। ऐसे कड़क लण्ड को सम्हालना तरुण के लिए वास्तव में मुश्किल हो रहा होगा। दीपा और तरुण एक दुसरेकी आहोश में चुम्बन कर रहे थे। दीपा ने अपने और तरुण के बदन के बीचमें एक हाथ डाल कर तरुण का लण्ड पकड़ रखा था, जिसे वह सेहला रही थी। उसका दुसरा हाथ मेरी और बढ़ा और मेर लण्ड को पकड़ा। मेरा लण्ड पकड़ ने में दीपा को कुछ परेशानी जरूर हो रही थी क्यों की मैं दीपा के पीछे उसकी गाँड़ में अपना लण्ड सटा कर लेटा था। दीपा तरुण के होँठों से अपने होँठ चिपका कर उसकी बाँहों और टाँगों में जकड़ी हुई थी। मेरा लण्ड पकड़ने के लिए उसे हाथ पीछे करने पड़ रहे थे। पर फिर भी वह मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी गाँड़ के गालोँ पर रगड़ रही थी।
मेरी शर्मीली और रूढ़िवादी पत्नी तब एक हाथ में मेरा और दूसरे हाथ में तरुण का लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर बड़े प्रेम से सहला रही थी। हम तीनों पूण रूप से नग्न हालात में थे और एक दूसरे को लिपटे हुए थे। दीपा बिच बिच में तरुण के अंडकोष को अपने हाथों से इतने प्यार से सहलाती थी की तरुण का बदन दीपा की उस हरकत से मचल उठता था। मैं जानता था की उस समय तरुण का हाल कैसा हो रहा होगा। दीपा के हाथ में एक जादू था। वह मेरे एंडकोष को ऐसे सहलाती थी की मैं उस आनंद का कोई वर्णन कही कर सकता।
उधर तरुण और मेरी पत्नी ऐसे चिपके थे जैसे अलग ही नहीं होंगे। दीपा भी तरुण की बाँहों मैं ऐसे समा गयी थी के पता ही नहीं चलता था के वह गयी कहाँ। तरुण के हाथ दीपा के नंगे पिछवाड़े को सहला रहे थे। तरुण का हाथ बार बार दीपा के कूल्हों को दबाता रहता था और उसकी उँगलियाँ कूल्हों के बिच वाली दरार में बार बार घुस कर दीपा की गाँड़ के छिद्र में घुसेड़ता रहता था। ऐसा करते हुए उसकीं उंगलियां कई बार मेरे लण्ड को भी छू जाती थीं। कभी कभी तरुण मेरे लण्ड को भी अपनी उँगलियों से सेहला देता था। इस से दीपा और उत्तेजित हो कर गहरी साँसे लेकर, "तरुण यह क्या कर रहे हो? प्लीज मैं बहुत गरम हो रही हूँ। आहहह... बोलती रहती थी। दीपा की उत्तेजना उसकी धीमी सी कराहटों में मेहसूस हो रही थीं।
धीरे धीरे तरुण की कामुक हरकतों से दीपा इतनी गरम और उत्तेजित हो चुकी थी की वह कामोत्तेजना में कराह रही थी। और धीरे धीरे जैसे शर्म की मात्रा कम होती जा रही थी, वैसे वैसे दीपा की कराहट की आवाज की तीव्रता बढ़ती जा रही थी। एक समय तो मुझे ऐसा लगा जैसे वह दीपा नहीं कोई शेरनी गुर्रा रही हो।
मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ की कुछ भी ख़ास कार्यवाही किये बगैर ही मेरी बीबी मात्र तरुण के स्पर्श से ही इतनी उत्तेजित हो रही थी की किसी भी समय उसका छूट जाने वाला था। तरुण भी मेरी बीबी की इस उत्तेजना को अच्छी तरह से समझ रहा था। वह जानता था की भले ही दीपा ने उसे कई बार लताड़ा होगा या भगा दिया होगा, पर कहीं ना कहीं दीपा के मन के कोने में यह इच्छा प्रबल थी की तरुण उसे और छेड़े, जबरदस्ती करे और उसे चुदवाने के लिए मजबूर करे ताकि दीपा उससे चुदाई भी करवाए और दीपा सारा दोष तरुण के सर पर लाद भी दे। जरूर दीपा के मन में तरुण से चुदवाने की इच्छा पहले से ही रही होगी।
और शायद यही कारण था की दीपा के कई बार जबरदस्त लताड़ने पर भी तरुण कभी डरा नहीं और नाहिम्मत भी नहीं हुआ और दीपा को छेड़ कर और उकसाने के लिए दीपा के पीछे लगा रहा। दीपा का गरम मिज़ाज शांत करने के लिए वह बार बार दीपा से माफ़ी माँगता रहता था, ताकि दीपा उसे कहीं गुस्से में ऐसा कुछ ना कह दे जिससे रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाए। फिर भी उस सुबह बाथरूम में तो एक बार ऐसी नौबत आ ही गयी थी, जब दीपा ने तरुण को कह दिया था की "मुझे तुम अब अपनी शकल भी मत दिखाना।" जिसको मैंने बड़े सलीके से सम्हाल लिया था।
तरुण दीपा की पतली कमर पर अपना मुंह रख कर मेरी बीबी की नाभि को चाटने एवं चूमने लगा। उसकी जीभ से लार दीपा के पेट पर गिर रही थी, वह उसे चाटकर दीपा के पेट पर अपना मुंह दबाकर उसे इतने प्यार से चुम्बन कर रहा था की मेरी बीबी की कामुक कराहटें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं। अपना मुंह दीपा के पेट, नाभि और नाभि के नीचे वाले और चूत के ज़रा सा ऊपर उभार पर इतने प्यार से चूमने से मेरी बीबी की कामाग्नि की आग और तेज़ी से भड़क रही था। मैं मान गया की आज तक मैंने इतने सालों मे अपनी पत्नी के बदन को इस तरह नहीं चूमा था।
दीपा कीउत्तेजना को देख तरुण और मैं भी फुर्ती से मेरी बीबी के पुरे बदन को चूमने और चाटने लगा और अपने हाथोँ से दीपा के पुरे बदन को बड़े प्यार से सहलाने लगा। वह दीपा के पाँव से लेकर धीरे धीरे दीपा की चूत तक मसाज करने लगा। दीपा की उत्तेजना जैसे जैसे तरुण के हाथ दीपा की जाँघों से हो कर उसकी चूत के करीब पहुँच रहे थे वैसे वैसे बढ़ने लगी। दीपा के मुंह से हाय... ओह... उफ़... की कराहट बिना रुके निकल रही थी। दीपा बार बार कभी अपनी गाँड़ तो कभी अपना पूरा बदन हिलाकर अपनी उत्तेजना को जाहिर कर रही थी। जब तरुण दीपा की जाँघों के बिच उसकी चूत के पास पहुँच ही रहा था की पुरे बदन को हिला देने वाला काम का अतिरेक समा उन्माद से भरा जबर दस्त ओर्गास्म से दीपा काँप उठी।
जैसे ही तरुण ने दीपा का ओर्गास्म महसूस किया तो वह कुछ समय के लिए रुक गया। वह अपनी प्रियतमा को कुछ देर साँस लेने का मौक़ा देना चाहता था। पर दीपा को चैन कहाँ? वह रात शायद दीपा के लिए उसकी जिंदगी की सबसे उत्तेजक रात थी।
कुछ ही पल दीपा ने पलंग पर अपने धमाके समान ओर्गास्म का आनंद लिया और फ़ौरन ही उसने तरुण से अपने आप को अलग कर उसे अपनी टांगो के पास जाने का इशारा किया और उसका मुंह अपनी नाभि पर रखा। तरुण को और क्या चाहिए था। उसे अपनी कामाङ्गना (सेक्स पार्टनर) का आदेश जो मिला था।
उसका हाथ अनायास ही मेरी बीबी की चूत पर रुक गया। दीपा की चूत का उभार कितना सेक्सी है वह तो मैं जानता ही था। मुझे यह भी पता था की वहाँ हाथ रखने मात्र से मेरी अर्धांगिनी कैसे फुदकती है। तरुण के वहां छूते ही दीपा अपने कूल्हों को गद्दे पर रगड़ ने लगी। तरुण अचानक रुक गया।
तरुण दीपा की चूत में उंगली डालना चाहता था। पर साथ में कहीं ना कहीं उसके मन के कोने में डर था की कहीं दीपा भड़क ना जाये। तरुण ने दीपा की चूत के उभार पर अपनी हथेली रक्खी और वह दीपा की और देखने लगा जैसे वह उसकी इजाजत मांग रहा हो। मेरी प्यारी पतिव्रता पत्नी ने मेरी और देखा। वह शायद मेरी अनुमति चाह रही थी या फिर यह देखने की कोशिश कर रही थी की तरुण के उसकी चूत में उंगली डालने से कहीं मैं फिरसे इर्षा की आग में जलने तो नहीं लगूंगा?
तब मैंने दोनों सुन सके ऐसे कहा। "डार्लिंग, हमारा पति पत्नी का रिश्ता अटूट और पवित्र है। जब तक हम एक दूसरे के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे तब तक इसे आंच नहीं आ सकती। मैं तुम्हारा पति आज तुम्हें तरुण के साथ पूरा सम्भोग करनेकी न सिर्फ इजाजत देता हूँ, मैं तुम्हे आग्रह करता हूँ के आज की रात तुम कोई भी हिचकिचाहट और झिझक के बगैर उसे अपने पति की तरह मानकर उसे सब शारीरिक सुख दो जो तुम दे सकती हो और उससे सारे शारीरिक सुख लो जो वह तुम्हे देना चाहता है। अगर साफ़ साफ़ कहूं तो अब तुम हम दोनों को खुल्लमखुल्ला बेझिझक चोदो और हम दोनों से खुल्लमखुल्ला बेझिझक चुदवाओ।"
मेंरी बात सुन कर दीपा और तरुण दोनोँ में अब जैसे नयी स्फूर्ति आ गयी। मर्यादा के बचे खुचे बंधन तब चकना चूर हो गए। अब तरुण ने दीपा की चूत पर अपना दायां हाथ रखा और वह चूत के होठों को बड़े प्यार से सहलाने लगा। मैं यह दृश्य देख कर अपने हर्षोन्माद पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था। दीपा के लिए तो वह पहला मौका था जब एक पर पुरुष ने उस जगह पर उसे छुआ था। और जब तरुण ने उसके छोटे छिद्र में अपनी उंगली डाली तो दीपा एकदम उछल पड़ी। वह तरुण की उँगलियों को अपने छोटे से प्रेम छिद्र से खेलते अनुभव कर पगला सी गयी थी।
तरुण ने जब दीपा की चूत के दोनों होठों को चौड़ा कर के देखा तो कुछ सोच में पड़ गया। शायद तरुण की बीबी टीना का प्रेम छिद्र और योनि मार्ग (चूत का छेद) ज्यादा खुला हुआ होगा, क्योंकि दीपा का इतना छोटा सा छिद्र देख तरुण अनायास ही बोल उठा, "दीपा तुम्हारा होल (चूत का छिद्र) तो एकदम छोटा सा है।"
मेरी बीबी समझ गयी की तरुण कहना चाहता था की दीपा के छोटे से चूत के छिद्र में तरुण का इतना मोटा और लंबा लण्ड कैसे घुसेगा? वह तो खुद ही इस विचार से पहले से ही परेशान हो रही थी। मेरे छोटे से लण्ड को लेने में भी दीपा को दिक्कत होती थी, तो तरुण का लण्ड कैसे घुसा पाएगी यह शंका उसे मारे जा रही थी।
खैर उस समय तो दीपा का पूरा ध्यान तरुण की उंगली पर था जो दीपा की चूत में खेल रही थीं। मैं तो जानता था की मेरी पत्नी को सेक्स के लिए तैयार करने का इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं था। जब दीपा को चुदवाने के लिए तैयार करना होता था, तब मैं उसकी चूत में प्यार से अपनी एक उंगली डाल कर उसकी चूत के होठ को अंदर से धीरे धीरे रगड़ कर उसे चुदवाने के लिए मजबूर कर देता था। तरुण के उंगली डालने से जब दीपा छटपटाई तो तरुण भी यह तरकीब समझ गया। वह बड़े प्यार से मेरी बीबी की चूत में अपनी उंगली को वह जगह रगड़ रहा था जहाँ पर रगड़ने से दीपा एकदम पागल सी होकर चुदवाने के लिए बेबस हो जाती थी।
दीपा की बेबसी अब देखते ही बनती थी। तरुण के लगातार क्लाइटोरिस पर उंगली रगड़ते रहने से दीपा कामुकता भरी आवाज में कराहने लगी। जैसे जैसे दीपा की छटपटाहट और कामातुर आवाजें बढती गयी, तरुण अपनी उंगली उतनी ही ज्यादा फुर्ती से और रगड़ने लगा। मेरी कामातुर पत्नी तब तरुण से चुदवाने के लिए तरुण का हाथ पकड़ कर कहने लगी, "तरुण, यार यह मत करो। मैं पागल हुयी जा रही हूँ। मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही। देखो, मैं पहले ही जान गयी थी की तुम कई महीनों से मुझे चोदने के लिए मेरे पीछे पड़े हुए थे। मुझे चोदने के लिए तुमने क्या क्या पापड नहीं बेले? अब मैं तुम्हें आह्वान कर यहीं हूँ की जल्दी आओ, जल्दी मुझ पर चढ़ जाओ और प्लीज मेरी चुदाई करो।"
पर तरुण तो रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उस रात जैसे उसने ठान ली थी की अब तो वह दीपा को अपनी कामाङ्गिनी बना कर ही छोड़ेगा। वह दीपा को इतना उत्तेजित करेगा की दीपा आगे भी महीनों तक तरुण से चुदवाने के लिए तड़पती रहे। तरुण के उंगली चोदन से दीपा अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। दीपा की साँसे जैसे फुफकार मार रही थी। दीपा के मुंह से सतत आह... ओह... की कराहटें निकल रहीं थीं। बेड पर वह अपने कूल्हों को उछाल के फिर पटक रही थी।
उसके दिल की धड़कन की रफ़्तार तेज हो गयी। मैं जान गया के अब मेरी बीबी झड़ने वाली है। वह कामुकता के चरम पर पहुँच रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने स्तनोँ को चूसने और मलने के लिए इशारा करने लगी। तरुण ने जब यह देखा तो उसने एक हाथ से दीपा के दूध दबाने शुरू कर दिए। मैं भी उसके दूसरे स्तन पर चिपक गया और उसे चूसने और जोर से दबाने लगा। उस समय न सिर्फ मेरी बीबी, किन्तु हम तीनों कामुकता की ज्वाला में जल रहे थे। दीपा तब झड़ने वाली थी।
फिर एक कराह और एक आह्ह की सिसकारी छोड़ते हुए दीपा एकदम शिथिल होकर बिस्तर पर ढेर हो गयी। अब उसकी साँसें भी धीमी हो गयी। करीब पांच मिनट तक तरुण की ऊँगली से चुदने पर कामान्धता की चरम पर पहुँच ने के बाद उन्माद भरे नशे का वह जैसे आस्वादन कर रही थी। कुछ क्षणों बाद उसने मेरे गले में अपनी बाहों के माला डाली और मेरे होठों से होंठ मिलाकर बिना बोले उन्हें चूसने लगी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे इस नए अनुभव करवानेके लिए वह मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शा रही थी।
थोड़ी देर बाद मेरी प्यारी पत्नी बैठी और मेरी और तरुण को और देख कर बोली, "दीपक और तरुण। अब तक तुम दोनों ने मुझे खुश किया, अब मेरी बारी है। पर पहले जाओ और अपना लण्ड अच्छी तरह साफ़ कर लाओ।" हम समझ गए की दीपा हमारा लण्ड चूमना और चूसना चाहती थी। मेरा लण्ड तो ठीक पर वह तरुण का लण्ड चूसना चाहती थी। खैर हम दोनों फटाफट बाथरूम में गए और पहले तरुण ने और फिर मैंने वाश बेसिन में खड़े हो कर अपने अपने लंड साफ़ किये। तरुण तो इतना उत्तेजित हो गया था की वह बार बार मुझे कह रहा था, "भाई आज दीपा भाभी ने मेरे लंड को चूसने का ऑफर दिया है। भाई क्या भाभी आपका लण्ड भी चुस्ती रहती है? क्या उन्हें लण्ड चूसना अच्छा लगता है?"
मैं क्या कहता? दीपा को मेरा लण्ड चूसना अच्छा नहीं लगता था। पहले जब जब मैं उसे कहता तो बड़ा मुंह बना कर कभी कभी वह चूसती थी। पर हाँ एक बार अगर उसने चूसना शुरू किया तो फिर तो वह मेरा छूट ना जाये तब तक लगी रहती थी। मैंने तरुण को अपना सर हिला कर "हाँ" का इशारा किया।"
दीपा के पास वापस पहुँचते ही दीपा ने हम दोनों को फर्श पर खड़ा किया और खुद अपने घुटनों को मोड़ कर अपने कूल्हों पर बैठ गयी। इस पोज़ में वह एकदम सेक्स की देवी लग रही थी। उसके उन्मत्त उरोज उसकी छाती पर ऐसे फैले थे जैसे गुलाबी रंग के दो गुब्बारे उसकी छाती पर चिपका दिये हों। दीपा के स्तन एकदम उन्मत्त और गुब्बारे की तरह फुले हुए थे। जाहिर है की मेरा और तरुण का लण्ड पुरे तनाव में था। दीपा ने मेरी और देखा और हम दोनों का लण्ड अपने दोनों हाथों में लेकर धीरे धीरे सहलाने लगी। हालांकि हम दोनों का लण्ड उसके हाथोँ में था, मैं देख रहा था की उसका ध्यान तरुण के मोटे और लंबे लण्ड पर ज्यादा था। उसका इतना तना हुआ अकड़ा, मोटा और लंबा लण्ड को हाथ में पकड़ कर मुझसे नजरें बचा कर वह उसे घूर घूर कर देखती रहती थी।
थोड़ा सा सहलाने के बाद दीपा ने मेरे लण्ड को अपने होठ से चूमा और अपनी जीभ से मेरे लण्ड पर फैले हुए मेरे रस को चाटा और धीरे से उसके अग्र भाग को अपने होठों के बिच लिया। मेरे लण्ड के छोटे से हिस्से को मुंह में लेकर वह उसको ऊपर नीचे अपनी जीभ से रगड़ ने लगी। जब मेरी बीबी ज्यादा कामातुर हो जाती थी तो मुझे कभी कभी यह लाभ मिलता था। वरना मुझे ही उसे बार बार पूछना पड़ता था की क्या वह मेरा लण्ड चूसेगी? और ज्यादातर वह टाल देती थी। मेरी सात साल की शादी के जीवन में यह शायद तीसरा या चौथा मौका था जब मेरी बीबी ने मुझे अपने आप मेरे बिना कहे मेरा लण्ड चूसने की यह सेवा दी थी। उधर वह दूसरे हाथ से तरुण के लण्ड को आराम से सहलाये जा रही थी।
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07-12-2019, 07:48 PM
थोड़ी देर मेरा लण्ड चूसने के बाद दीपा ने अपना मुंह तरुण के लण्ड की और किया। धीरे से तरुण की और नजर उठाते हुए दीपा ने तरुण के लण्ड को भी मेरी ही तरह चाटने लगी। तरुण स्तंभित होकर देखता ही रह गया। जब दीपा तरुण के लण्ड को चुम रही थी और चाट रही थी तब तरुण दीपा के सर के बालों को अपने हाथ में ले कर उनको सँवार रहा था और कभी कभी हाथ को नीचा कर दीपा के गले, गाल, कपाल और आँखों पर फिरा कर अपनी उत्तेजना दिखा रहा था।
उसकी स्वप्न सुंदरी आज उसके लण्ड का चुम्बन कर रही थी और उसे चूस रही थी यह उसके लिए अकल्पनीय सा था। दीपा ने धीरे धीरे तरुण को लण्ड को मुंह में डालने की कोशिश की। पर उसका मुंह इतना खुल नहीं पा रहा था। तब दीपा ने तरुण के लण्ड के सिर्फ अग्र भाग को थोड़ा सा मुंह में डाला और उसे चूमने एवं चाटने लगी। धीरे धीरे वह उसमें इतनी मग्न हो गयी की तरुण के लण्ड को वह बार बार चूमने लगी और जैसे वह उसे छोड़ना ही नहीं चाह रही थी। तरुण के लिए यह बड़ी मुश्किल की घडी थी। वह उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहा था। उसी उत्तेजना में उसने दीपा का सर हाथ में लेकर अपना मोटा और लंबा लण्ड दीपा के मुंह में घुसेड़ दिया।
उतना मोटा और लंबा लण्ड दीपा के मुंह में जैसे घुसा की दीपा की हालत खराब हो गयी। तरुण का लण्ड दीपा के गले तक घुस गया था और दीपा को खांसी आने लगी थी। शायद उसकी साँसे रुंध रहीं थीं। मेरी प्यारी पत्नी की आँखें लाल हो गयीं थीं। उनमें पानी भर गया दिख रहा था। दीपा के गाल तरुण का लण्ड दीपा के मुंह में घुसने के कारण फूल गए थे। उस गाल के आकार से ही अंदाज लगाया जा सकता था की तरुण का लण्ड कितना मोटा होगा। और तब वह तीन चौथाई से कहीं ज्यादा तो दीपा के मुंह से बाहर था। जब दीपा की साँस रुंधने लगी तब तरुण ने अपना लण्ड दीपा के मुंह से बाहर निकालना चाहा। पर दीपा ने तरुण को रोका और बस थोड़ा सा बाहर निकालने दिया ताकि वह साँस ले सके।
दीपा को यह भी ध्यान रखना था की दीपा के दाँत कहीं तरुण के लण्ड को काटें नहीं। कुछ देर बाद जब दीपा की साँस ठीक चलने लगी तब दीपा ने अपना मुंह आगे पीछे कर अपने मुंह को तरुण के लण्ड से चुदवाने लगी। दीपा के मुंह को चोदते हुए कुछ ही देर में तरुण का बदन एकदम अकड़ गया। वह अपने आप को रोक नहीं पाया और एक आह्हः... के साथ उसके लण्ड में से फव्वारा छूटा और उसका वीर्य निकल पड़ा और मेरी सुन्दर नग्न पत्नी के मुंह को पूरा भर कर उसके नंगे बदन पर गिरा और फ़ैल गया। तब मैं मेरी बीबी के स्तनों को मेरे दोनों हाथो से दबा रहा था। तरुण का गरमा गरम वीर्य मेरे हाथों को छुआ और मेरी बीबी के स्तनों पर जैसे कोई मलाई फैली हो ऐसे फ़ैल गया। वह मलाई धीरे धीरे और भी नीचे टपकने लगी। पता नहीं कितना माल तरुण ने मेरी बीबी के मुंह में भर डाला था।
तरुण के वीर्य स्खलन होने पर मैंने देखा तो दीपा थोड़ी सी सकुचायी या निराश सी लग रही थी। उसने मेरी और देखा। मैं समझ गया की शायद उसे इसलिए निराशा हो रही होगी की अब तरुण तो झड़ गया। अब वह उसे चोद नहीं पायेगा। मैं धीरेसे दीपा के कान के पास गया और उसके कान में बोला, "डार्लिंग, निराश न हो। वह थोड़े ही अपनी पत्नी को चोदने जा रहा है, जो थक जाएगा या ऊब जाएगा? वह तो उसकी प्रेमिका को चोदने जा रहा है। यही तो अंतर है पत्नी और प्रेमिका में। प्रेमिका के लिए उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहेगा। उलटा एक बार झड़ जानेसे उसका स्टैमिना और बढ़ जायेगा। तरुण अब तुम्हें आसानी से नहीं छोड़ेगा। वह अब तुम्हे दोगुना जोर से चोदेगा। उसके अंडकोष के अंदर तुम्हारे लिए पता नहीं कितना और माल भरा है।"
मेरी इतने खुले से ऐसा कहने पर मेरी शर्मीली बीबी शर्म से लाल हो गयी।
तरुण हमारी काना फूसि देखरहा था। वह धीरेसे बोला, "कहीं तुम मियां बीबी मुझे फंसाने को कोई प्रोग्राम तो नहीं बना रहे हो ना?"
तब दीपा अनायास ही बोल पड़ी, "हम तुम्हे क्या फंसायेंगे? तुम दोनों ने मिलकर तो आज मुझे फंसा दिया। "
पर अब दीपा को मेरी और से कोई संकोच नहीं रहा। दीपा ने तरुण को अपनी बाँहों में लिया और उसके होठों पर चुबन की एक चुस्की लेकर अपने स्तनों को तरुण के मुंह में डाल दिया। वह उसे अपने मम्मो को चुसवाना चाहती थी। जैसे ही तरुण ने मेरी बीबी के मम्मो को चूसना शुरूकिया तो दीपा के बदन में जोश भर गया और उसने अपने मुंह में मेरा लण्ड लिया। वह मुझे यह महसूस नहीं होने देना चाहता थी, की वह मुझे भूलकर तरुण के पीछे लग गयी है। मैं भी दीपा का सर पकड़ कर उस के मुंह को चोदने लगा। मुझे आज उसके मुंह को चोदने में बहुत आनंद आ रहा था, क्योंकि आज मैं अपनी पत्नी की मुंह चुदाई मेरे मित्र के सामने कर रहा था।
थोड़ी ही देर मैं मैं भी अपने जोश पर नियंत्रण नहीं रख पाया। मेरे मुंह से एक आह सी निकल गयी और मैंने मेरी बीबी के मुंह में अपना सारा वीर्य छोड़ दिया। दीपा तरुण के वीर्य का स्वाद तो जानती ही थी। मेरी पत्नी मेरा वीर्य भी पहले ही की तरह निगल गयी। मेरे इतने सालों के वैवाहिक जीवन में यह पहली बार हुआ की मेरी बीबी मेरे वीर्य को निगल गयी हो। तब तक जब भी कोई ऐसा बिरला मौका होता था जब दीपा मेर लण्ड को अपने मुंह में डालती थी तो या तो मैं थोड़ी देर के बाद मेरा लण्ड निकाल लेता था, या फिर मेरी बीबी मुझे मुंह में मेरा वीर्य नहीं छोड़ने की हिदायत देती थी। वह दिन मेरे लिए ऐतिहासिक था।
तरुण और मैं हम दोनों ही दीपा के इस भाव प्रदर्शन से आश्चर्यचकित हो गए थे। मैं बता नहीं सकता की जब घरेलु, रूढ़िवादी समझी जानेवाली और समाज के कड़क बंधनों में पली अपनी बीबी को मेरे कहने पर सारी शर्मोहया को ताक पर रख कर इस तरह सेक्स में हमें उन्मादक आनंद देने के लिए कटिबद्ध होते देख कर एक पति को कितना उन्मादक आनंद मिलता है। मैंने भी तय किया की मैं और तरुण मिलकर मेरी पत्नी को सेक्स का ऐसे उन्मादअनुभव कराएंगे जो उसने पहले कभी नहीं किया हो। मैंने तरुण के कानों में बोला, "क्यों न हम दीपा को अब सेक्स का ऐसा अनुभव कराएं जो उसने पहले कभी किया ना हो?"
तरुण ने मेरी और देखा और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर सख्ती से पकड़ा और बोला, "मैं तुमसे पूरी तरह सहमत हूँ। मेरा भी उसमें एक स्वार्थ है। मैं भी दीपा को सेक्स की पराकाष्ठा पर ले जाना चाहता हूँ, जिससे वह मुझसे दुबारा सेक्स करने को इच्छुक हो। पर उसके लिए तुम्हारी अनुमति भी आवश्यक है।"
तब मैंने उसे कहा, "मैं यह मानता हूँ की यदि हम सब साथ में एक दूसरे से कुछ भी न छुपाकर सेक्स करते हैं तो वह आनंद देता है। पर यदि चोरी से या छुपी कर सेक्स करते हैं तो परेशानी और ईर्ष्या का कारण बन जाता है। मैं चाहता हूँ की टीना भी हमारे साथ शामिल हो। हम सब मिलकर एक दूसरे को एन्जॉय करें और करते रहें। "
दीपा ने हमारी और देखा। वह समझ गयी के मैं और तरुण उससे सेक्स करनें के बारे में ही कुछ बात कर रहें होंगे। मैंने उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए कहा, " तरुण तुम्हें बार बार चोदने के लिए पूछ रहा था। मैंने उसे कहा की अगर हम सब राजी हैं तो कोई रुकावट नहीं है।" दीपा मेरी बात सुनकर शर्म से लाल हो गयी पर उसने कोई टिपण्णी नहीं की।
दीपा अब काफी खुल गयी थी। वह उठ खड़ी हुयी और हम दोनों के साथ पलंग पर वापस आ गयी। फिर फुर्ती से वह मेरी गोद मैं बैठ गयी। उसने अपने दोनों पाँव मेरी कमर के दोनों और फैला कर मुझे अपने पाँव में जकड लिया। मेरे होठ से होठ मिलाकर बोली, "मेरे प्राणनाथ, डार्लिंग पूरी दुनिया में तुम शायद गिने चुने लोगों में से हो जो अपनी बीबी को दूसरे मर्द से चुदवाने के लिए लिए उकसाता है। पर जैसे की तरुण ने पूछा अगर मुझे इसकी लत पड़ गयी तो तुम क्या करोगे? कहीं ऐसा न हो की मैं रोज किसी और के साथ चुदवाना चाहूँ तो?" ऐसा बोल उसने मुझे पुरे जोश से चूमना शुरू किया। तब तरुण उसके पीछे सरक कर पहुँच गया और मेरे और दीपा के बिच में हाथ डालकर दीपा की चूँचियों को सहलाने और दबाने लगा।
मैंने दीपा के भरे तने बूब्स को मसलते हुए उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा, "देखो, भले ही तरुण तुम्हें पहले दिन से ही पसंद होगा या तुम उसे चुदवाने के लिए इच्छुक रही होगी, पर तरुण को आज यहां तक पहुँचने में कितना समय लगा और कितने पापड़ बेलने पड़े? क्या तुमने उसे आसानी से चोदने की इजाजत दी? वैसे ही अगर कोई इतना परिश्रम करता है और ऐसे ही पापड़ बेलता है और तुम्हारी और मेरी मर्जी से बात अगर आगे बढ़ती है तो भला मुझे क्या आपत्ति है?"
दीपा ने पीछे घूम कर मेरे होँठों को चूमते हुए कहा, "अरे मैं तो मजाक कर रही थी। मेरे लिए आजसे तुम दोनों हे मेरे पति के समान हो। तुम मेरा सर्वस्व हो और तरुण मेरे बदन का भोक्ता है। मुझे और कोई नहीं चाहिए। तुम दोनों ही काफी हो।"
दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और तरुण को अपनी और खिंचा। तरुण दीपा के कूल्हों से अपना लण्ड सटाकर बैठ गया। दीपा की गरम चूत का स्पर्श होते ही धीरे धीरे मेरा लण्ड कड़क होने लगा। उसके वीर्य का फौवारा निकलने पर भी तरुण का लण्ड तो ढीला पड़ा ही न था। मैं तरुण की क्षमता देख हैरान रह गया। खैर, उस दिन का माहौल ही कुछ ऐसा था। मेरा लण्ड भी तो एक बार झड़ने के बाद फिर से कड़क हो गया था।
थोड़ी देर तक मेरी नंगी बीबी को चूमने के बाद मैंने उसे पलंग के किनारे सुलाया और उसे अपनी टांगें नीचे लटकाने को कहा। तरुण तो जैसे दीपा से चिपका हुआ ही था। जब दीपा पलंग के किनारे अपनी टाँगे नीचे लटका के पलंग के ऊपर लेट गयी तो तरुण उसकी छाती पर अपना मुंह रख कर लेट गया। मैं झट से पलंग के नीचे उतरा और अपनी बीबी की टांगो को फैला कर उसकी चूत चाटने लगा। मेरी जीभ जैसे ही दीपा की चूत में घुसी की दीपा छटपटाने लगी। मुझे पता था की दीपा की चूत चाटने से या उंगली से चोदने से वह इतनी कामान्ध हो जाती थी की तब वह बार बार मुझे चोदने के लिए गिड़गिड़ाती थी। आज मैं उसे हम दोनों से चुदवाना चाहता था। इसके लिए हमें उसे इतना उत्तेजित करना था की वह शर्म के सारे बंधन तोड़ कर हम दोनों से चुदवाने के लिए बाध्य हो जाए।
मेरी पत्नी की छटपटाहट पर ध्यान ना देते हुए मैंने उसकी चूत मैं एक उंगली डाल कर उसे उंगली से बड़ी फुर्ती और जोर से चोदना शुरू किया। दीपा के छटपटाहट देखते ही बनती थी। वह अपना पूरा बदन हिलाकर अपने कूल्हों को बेड पर रगड़ रगड़ कर कामाग्नि से कराह रही थी। उसका अपने बदन पर तब कोई नियंत्रण न रहा था। वह मुझे कहने लगी, "दीपक डार्लिंग, ऐसा मत करो। मुझे चोदो। अरे भाई तुम मुझे तरुण से भी चुदवाना चाहते हो तो चुदवाओ पर यह मत करो। मैं पागल हो जा रही हूँ।" मैं दीपा की बात पर ध्यान दिए बगैर, जोर शोर से उसको उंगली से चोद रहा था। तब दीपा ने तरुण का मुंह अपने मुंह पर रखा और उसे जोश चूमने लगी। मैंने उसे तरुण को यह कहते हुए सुन लिया, "तरुण अपने दोस्त से कहा, मुझे चोदे। आओ तुम भी आ जाओ आज मैं तुम दोनों से चुदवाऊंगी। तुम मुझे चोदने के लिए बड़े व्याकुल थे न? आज मैं तुमसे चुदवाऊंगी। पर दीपक को वहां से हटाओ"
जब मैं फिर भी ना रुका तो एकदम दीपा के मुंह से दबी हुयी चीख सी निकल पड़ी, "आह... ह... ह... दीपक... तरुण... " ऐसे बोलते ही दीपा एकदम ढेर सी शिथिल हो कर झड़ गयी। मैंने आजतक दीपा को इतना जबरदस्त ओर्गास्म करते हुए नहीं पाया था। उसकी चूत में से जैसी एक फव्वारा सा छूटा और मेर हाथ और मुंह को उसके रस से भर दिया। वह दीपा का उस रात शायद चौथा ओर्गास्म था। मैं हैरान रह गया। मेरी बीबी आज तक के इतने सालों में मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा एक रात में मुश्किल से दो बार झड़ी होगी।
मैं थम गया। मैंने देखा की दीपा थोड़ी सी थकी हुई लग रही थी। मैं उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था। मुझे तो उसको हम दोनों से चुदवाने के किये बाध्य करना था, सो काम तो हो गया। दीपा ने थोड़ी देर बाद अपनी आँखे खोली और मुझे और तरुण को उसके बदन के पास ऊपर से उसको घूरते हुए देखा। वह मुस्कुरायी।
उसने हम दोनों के हाथ अपने हाथों में लिए और अपनी पोजीशन बदल कर बिस्तर पर खिसक कर सिरहाने पर सर रख कर लेट गयी। उसने मुझे अपनी टांगों की और धक्का दिया। मैं फिर उसकी चूत के पास पहुँच गया। तब दीपा ने मुझे खिंच कर मेरा मुंह उसके मुंह से मिलाकर मेर लण्ड को अपने हाथ में लिया और अपनी टांगो को फिर ऊपर करके मेर लण्ड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी। वह मुझसे चुदवाना चाहती थी।
मैंने तरुण को अपनी और खींचा और मैं वहाँ से हट गया। अब तरुण दीपा की टांगो के बिच था। मेरी बीबी समझ गयी की मैं उसे पहले तरुण से चुदवाना चाहता हूँ। तरुण का मुंह मेरी बीबी के मुंह के पास आ गया। दोनों एक दूसरे की आँखों में झांकने लगे। तरुण झुक कर मेरी बीबी को बड़े जोश से चुम्बन करने लगा। तरुण उस वक्त कामाग्नि से जल रहा था। इतने महीनों से जिसको चोदने के वह सपने देख रहा था और सपने में ही वह अपना वीर्य स्खलन कर जाता था वह दीपा अब नंगी उसके नीचे लेटी हुयी थी और उससे चुदने वाली थी।
दीपा समझ गयी की अब क़यामत की घडी आ गयी है। तरुण का लटकता लण्ड दीपा की चूत पर टकरा रहा था। दीपा ने धीरेसे तरुण का मोटा और लंबा लण्ड अपने हाथों में लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। अचानक वह थोड़ी थम सी गयी और कुछ सोच में पड़ गयी। तरुण ने अपने होंठ दीपा के होंठ से हटाये और पूछा, "क्या बात है? क्या सोच रही हो? क्या अब भी आप शर्मा रही हो?"
दीपा ने कुछ शर्माते हुए कहा, "मैं शर्मा नहीं रही हूँ। मैंने तो तबसे तुमसे चुदवाने का प्लान बना लिया था जबसे मुझे यह यकीन हो गया था की तुम एक भरोसे मंद आदमी हो जिसको औरत की इज्जत का बहुत ही ज्यादा ख़याल होता है। तुमने मेरे साथ इतनी ज्यादा हरकतें की और मुझे इतना ज्यादा छेड़ा पर कभी मुझे नीचा नहीं समझा और नाही मेरे बारे में कोई ओछी बात बोली। शायद मेरे पति को भी तुमपर बहुत ही ज्यादा भरोसा है की हमारे बिच की बात तुम कभी बाहर जाहिर नहीं करोगे। इसी लिए वह भी मुझे तुमसे सेक्स करने के लिए उकसाते रहे।
मैं तुमसे उसी दिन चुदवाने के लिए राजी हो जाती जिस दिन तुम सुबह सुबह मेरे पति के कहने पर मेरे घर आये जब मैं आधी नंगी तौलिया पहन कर तुम्हारे सामने आयी। पर तुमने मेरे साथ मुझे चोदने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की वह मुझे बहोत अच्छा लगा। उस समय अगर तुम मुझ पर जबरदस्ती करते तो शायद एकाध बार तो मैं तुमसे चुदवा लेती पर बाद में तुम्हें मेरे पास फरक ने नहीं देती। पर अब तो मैं तुमसे बार बार चुदवाउंगी।"
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07-12-2019, 07:49 PM
तब दीपा तरुण के कानों में फुसफुसाई, " पर बाबा, यह तुम्हारा लण्ड इतना मोटा और लंबा एक घोड़े के लण्ड जैसा है। मेरी चूत का छेद तो छोटा सा है। उसमें कैसे डालोगे? अगर तुमने डाल भी दिया और जल्दबाजी की तो मैं तो मर ही जाऊंगी। ज़रा ध्यान रखना। मुझे मार मत डालना। और फिर दीपा ने तरुण को अपनी बाहों में इतना सख्त जकड़ा और इतने जोश से उसे चुबन करने लगी और तरुण की जीभ को चूसने लगी की मैं तो देखता ही रह गया।
तरुण ने तब दीपा को ढाढस देते हुए कहा, "आप ज़रा भी चिंता मत करो। मैं ध्यान रखूँगा।" उस बार मैंने अपनी पत्नी का पर पुरुष गामिनी वाला पहलु पहली बार देखा। तब तक मैं उसे निष्ठावान, पतिव्रता और रूढ़िवादी मानता रहा था। आज उसने मुझे अपने वह पहलु के दर्शन दिए जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पर हाँ, उसे यहां तक लाने में मेरा पूरा योगदान था।
तरुण खड़ा हो कर अपना लण्ड लहराता हुआ एक अलमारी की और गया और उसमें से उसने एक बोतल निकाली। बोतल में कोई आयल था। तरुण ने उसे अपने लण्ड पर लगाया और दीपा की चूत में भी उसे उदारता से लगाया। फिर बोतल को बाजू में टेबल पर रख कर तरुण ने ध्यान से अपने मोटे और लम्बे लण्ड को दीपा के प्रेम छिद्र के केंद्र में रखा। फिर उसे उसकी चूत के होठों पर प्यार से रगड़ने लगा। मेरी पत्नी की नाली में से तो जैसे रस की धार बह रही थी। तरुण का बड़ा घंटा भी तो रस बहा रहा था। तरुण का डंड़ा तब सारे रस से सराबोर लथपथ था। उसने धीरे से अपने लण्ड को दीपा की चूत में थोड़ा घुसाया। दीपा ने भी तरुण के लण्ड को थोड़ा अंदर घुसते हुए महसूस किया। उसे कोई भी दर्द महसूस नहीं हुआ। तरुण की आँखे हर वक्त दीपा के चेहरे पर टिकी हुयी थीं। कहीं दीपा के चहेरे पर थोड़ी सी भी दर्द की शिकन आए तो वह थम जाएगा, यही वह सोच रहा था।
तरुण ने तरुण ने थोड़ा और धक्का दे कर अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा। अब दीपा को तरुण के लण्ड की मोटाई महसूस होने लगी। फिर भी उसको ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था। तरुण ने जब अपना लण्ड थोड़ा और जोर से दीपा की चूत में धकेला तो दीपा के मुंह से आह निकल पड़ी।
दीपा की आह सुनकर तरुण थोड़ी देर थम गया। उसने धीरे से अपना लण्ड थोड़ा निकाला। दीपा को थोड़ी सी राहत हुयी। तब उसकी बात सुन कर मैं तो भौचका ही रह गया। उसने तरुण से कहा, "डालो अंदर। दर्द तो हो रहा है पर यह दर्द भी मीठा है।"
दीपा कि बात सुन कर मैं भौंचक्का सा हो गया। तरुण ने अपना पेंडू से थोड़ा धक्का दिया और अपने बड़े लण्ड को थोड़ा और घुसेड़ा। दीपा ने अपनी आँख सख्ती से भींच ली थी। उसको कितना दर्द हो रहा होगा यह दिख रहा था। पर वह कुछ नहीं बोली और अपने हाथ से तरुण की कमर को खिंच रही थी और यह इशारा कर रही थी की तरुण अपना लण्ड और अंदर डाले, रुके नहीं।
तरुण बड़े असमंजस में था। उसने धीरे धीरे एक बार अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा अंदर घुसेड़ा तो थोड़ा बाहर निकाला। इस तरह धीरे धीरे और अंदर घुसाता गया। मैं समझता हूँ की उस समय दीपा की चूत की दिवार अपने चरम पर खिंच चुकी होगी।
तरुण का मोटा लण्ड लगभग आधा अंदर जा चूका था। मेरी बीबी की चूत के दोनों होठ पुरे फुले हुए थे और तरुण के लौड़े को बड़ी सख्ती से अपने में जकड़ा हुआ था। तरुण के लण्ड और दीपा की चूत के मिलन सतह पर चारों और उनके रस की मलाई फैली हुई थी। ऐसे लग रहा था जैसे एक पिस्टन सिलिंडर से अंदर बाहर होता है तब चारो और आयल फैला हुआ होता है।
मुझे तरुण के मोटे लौड़े को दीपा की छोटी सी चूत में जकड़ा हुआ देख कर आश्चर्य और उत्तेजना दोनों हुए। जैसे एक गुब्बारेको उसकी क्षमता से ज्यादा खिंच कर उंगली पर लपेटने से उसकी चमड़ी कितनी पतली हो जाती है और अगर और ज्यादा खींचा जाए तो फट जाती है, ठीक वैसे ही, मेरी प्यारी बीवी की चूत की चमड़ी एकदम पतली हो गयी हो ऐसे दिखती थी और मुझे डर था की कहीं वह फट न जाय और खून न बहने लगे।
तरुण ने एक और धक्का दिया और मेरे देखते ही देखते उसका तीन चौथाई लण्ड अंदर चला गया। दीपा के ललाट से पसीने की बूंदें टपकने लगीं। पर उस बार दीपा ने एक भी आह न निकाली। उसे काफी दर्द हो रहा होगा यह मैं उसके चेहरे के भाव अभिव्यक्ति से अनुभव कर रहा था। वैसे भी, दीपा जब मुझसे भी चुदाई करवाती थी तब भी हमेशा उसे थोड़ी सी परेशानी जरूर महसूस होती थी। खास कर तब जब वह मूड मैं नहीं होती थी, उसकी चूत सुखी होती थी और वह चुदाई करवाते परेशान हो जाती थी।
तरुण का लौड़ा तो मेरे से काफी मोटा था। परेशानी तो उसे जरूर हुयी होगी। पर उसकी चूत रस से सराबोर थी। उपरसे तरुण का लौड़ा भी चिकनाई से लथपथ था। उसे दर्द तो हुआ पर शायद उतना नहीं जितना हो सकता था। पर मैंने देखा की तरुण के मोटे और लंबे लण्ड के धीरे धीरे अंदर बहार होने से अब मेरी बीबी की कामुकता बढ़ रही थी और उसी अनुपात में उसका दर्द उसे मीठा लगने लगा था। धीरे धीरे अंदर बहार करते हुए तरुण ने जब देखा की अब दीपा काम क्रीड़ा के मज़े लेने लगी है तो एक थोड़े जोर का धक्का दे कर उस ने अपना पूरा लण्ड दीपा की संकड़ी चूत में पेल दिया।
मेरी प्यारी बीवी के मुंह से एक जोरों की चीख निकल गयी। तरुण एकदम रुक गया और जैसे ही अपना लौड़ा निकाल ने लगा था, की दीपा बोल पड़ी, "तरुण मत रुको। मुझे यह दर्द बहुत अच्छा लग रहा है। अब तुम मुझे बगैर रुके चोदो। मेरे दर्द की परवाह मत करो। मैं जानती हूँ यह दर्द जल्द ही गायब हो जायगा और अगर तुम थम गए तो मेरी कामाग्नि की भूख मैं सहन कर नहीं पाऊंगी। मैं बहोत गरम हो चुकी हूँ। सच कहती हूँ, जब जब तुम मुझे छेड़ते थे तो मैं बहोत गरम हो जाती थी। उस समय अगर तुमने और थोड़ी ज्यादा जबरदस्ती की होती तो मैं तुम्हें मुझे चोदने से नहीं रोक पाती। इस लिए नहीं की तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर थे, पर इस लिए की तुम ने मुझे इतना गरम कर दिया था मैं सारी मर्यादाओं को तोड़कर तुमसे चुदवाने के लिए मजबूर हो जाती। अब जब कोई बंधन और मर्यादा नहीं है तो मैं तुमसे बिना थमे चुदना चाहती हूँ।"
मेरी शर्मीली पत्नी का रम्भा रूप या अभद्र भाषा में कहें तो छिनाल रूप तब मैंने देखा। अब तरुण से मेरी बीबी बेझिझक चुदना चाहती थी। यह मेरी वही पत्नी थी जो तरुण के नजदीक आने से भी डरती थी और एक नागिन की तरह तरुण को अपना गुस्सा और फुंफकार दिखा कर उसे दूर रखती थी।
दीपा के चूत में तरुण के लण्ड का घुसना और बादमें अंदर बाहर होने का दृश्य मेरे लिए कोई अद्भुत दृश्य से कम नहीं था। एक बड़ा रबर का चिकनाहट से लोथपोथ गोरे रंग का मोटा और लंबा रस्सा जैसे मेरी बीबी की चूत के अंदरबाहर हो रहा था और दीपा की चूत की त्वचा उस रस्से के आसपास सख्ती से चिपकी हुई थी और तरुण के लण्ड के अंदर बाहर होने से चूत की गहराइयों में कभी वह चूत के अंदर चली जाती थी तो कभी तरुण के लण्ड के वापस बाहर निकालने के समय बाहर निकल आती थी। मैंने पहले कभी किसी मर्द औरत को चुदाई करते हुए देखा नहीं था। मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। और मैं अपनी पत्नी को ही मेरे ही दोस्त से चुदाई करवाते हुए देख रहा था।
जैसे जैसे तरुण ने अपनी चोदने की गति बढ़ायी वैसे ही दीपा का दर्द उसकी कामाग्नि में जल कर राख हो गया अब वह अग्नि दीपा के बदन को वासना से जला रही थी। मेरी पत्नी की चुदाई की भूख बढ़ती ही जा रही थी। वह उँह... उँह...की उंह्कार देती हुयी चुदवाने का मजा ले रही थी। जैसे ही तरुण दीपा की चूत में जोर का धक्का देता था वैसे ही दीपा के मुंह से अनायास ही उँह की आवाज निकल जाती थी। अचानक दीपा ने तरुण को थमने का इशारा किया और मुझे एक तकिया अपने कूल्हे के नीचे रखने को कहा।
मैंने फ़टाफ़ट एक तकिया मेरी बीबी की गाँड़ के नीचे रखा। दीपा ने तरुण का मुंह अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसका लण्ड अपनी चूत में रखे रहते हुए तरुण को पुरे जोश से अपनी बाँहों में लिया। उसने तरुण के होठों से अपने होंठ भिड़ा दिए और एक अगाढ़ चुम्बन मैं तरुण और दीपा जकड गए। तरुण की जीभ को दीपा ने अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी। उसने फिर तरुण को उसकी जीभ अपने मुंह में अंदर बाहर करने का इशारा किया। मुझे ऐसे लगा जैसे दीपा अपना मुंह भी तरुण की जीभ से चुदवाना चाहती थी। तरुण को तो जैसे सातवाँ आसमान मिल गया। वह अपने लण्ड से दीपा की चूत के साथ साथ दीपा का मुंह अपनी जिह्वा से चोदने लगा।
धीरे धीरे तरुण ने दीपा की चूत में हलके से धक्के मारने के बजाय जोर से धक्के मारने शुरू किये। तरुण का लंड दीपा की चूत में कोई ज्यादा कष्ट नहीं दे रहा था। जैसे जैसे वह आसानी से दीपा की चूत में घुस रहा था वैसे तरुण के झटके और शक्ति शाली होते गए। लगभग तीन चौथाई लण्ड डालने के बाद तरुण एक ऐसा जबरदस्त धक्का मार कर अपना लण्ड दीपा की चूत में जोर से घुसाता था की दीपा का पूरा बदन हिल जाता था। पर दीपा तरुण के ऐसे धक्कों को बहुत एन्जॉय कर रही थी ऐसा उसके चेहरे से लगता था।
दीपा अपने कूल्हे को उठा उठा कर तरुण के लण्ड के एक एक धक्के को अपने अंदर पूरी तरह से घुसड़वा रही थी। उसदिन दीपा तरुण के लण्ड को अपने बदन की वह गहराईयों तक ले जाना चाहती थी जहां उसका पति भी नहीं पहुँच पाया था। अपनी वासना की धधकती आग में जलते हुए मेरी बीबी ने तब तरुण को मेरे सुनते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, "तरुण आज पूरी रात तुम मुझे एक रंडी की तरह चोदो। यह मत सोचो की मैं तुम्हारी भाभी हूँ। तुम यह सोचो की मैं तुम्हारी चोरी छुपी से मिलने वाली प्रियतमा हूँ, जिसे तुम सालों से चोदना चाहते थे। आज अचानक मैं तुम्हारे हाथ लग गयी हूँ और तुम मुझे ऐसा चोदो की जैसा तुमने टीना को कभी नहीं चोदा।"
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07-12-2019, 07:49 PM
बस फिर क्या था। तरुण दीपा को ऐसे जोर जोर से धक्के पेलने लगा की मुझे डर लग रहा था की कहीं वह मेरी पत्नी की चूत को फाड़ न दे। पर मेरी बीबी भी कोई कम थोड़ी ही थी। वह भी तरुण के नीचे अपने चूतड़ ऐसे उछाल रही थी जैसे उसपर कोई भूत सवार हो गया हो। तरुण का मोटा लण्ड तब उसे अद्भुत मीठा आनंद दे रहा था।
जब तरुण एक जोरदार धक्का मारता था तो मेरी बीबी दीपा का पूरा बदन इतना हिल जाता था की उसके सख्त स्तन भी इधर उधर फ़ैल कर हिलते थे जैसे कोई गले में डाली हुई माला हिल रही हो। तरुण उन स्तनोँ को हिलते देख कर उनको अपने हाथों में जकड लेता था और उन्हें दबा कर ऐसे निचोड़ने की कोशिश करता था जैसे वह दूध निकालने वाला है। कई बार दीपा तरुण के मोटे लंड के बार बार घुसने के दर्द से नहीं पर तरुण के उसके स्तन इस तरह जोर से मसलने से होते हुए दर्द के कारण कराह उठती थी।
तरुण जब काफी जोर से धक्का मारता था तो दीपा को उसका लण्ड उसकी चूत की नाली में बिलकुल अंदर तक घुसा हुआ महसूस होता था जो उसके बदन में कामुकता की ऐसी आग पैदा करता था की वह आँखें बंद कर तरुण के लण्ड की मोटाई और लम्बाई अपने बदन में महसूस कर आनंद के उन्माद से काँप उठती थी।
एक मर्द को मोटा और लंबा लण्ड घुसने से एक स्त्री के जहन में और उसके बदन में कैसे भाव और उन्माद पैदा होते हैं वह हम मर्द कभी नहीं समझ सकते। उस समय वह औरत अपने सारी परेशानियां और दुःख दर्द भूल कर उस लण्ड की उसकी चूत में जो घर्षण के कारण उन्माद पैदा होता है उसका आनंद पूर्ण अनुभव करने में ही उसका पूरा ध्यान होता है।
भगवान ने औरत की चूत कैसी स्थितिस्थापक लचीली बनायी है की थोड़ा मोटा लण्ड घुसाने में भी उसे दिक्कत होती है, पर वही चूत में से लण्ड की मोटाई से कहीं मोटा बच्चा जनम के समय निकल जाता है। हाँ औरत को दोनों बार काफी दर्द झेलना पड़ता है। पर इसी दर्द का कमाल है की वह बच्चा औरत को अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा होता है।
जैसे तरुण दीपा की चूत में एक जोर का धक्का देता, वैसे ही तरुण के अण्डकोश मेरी बीबी की गाँड़ पर फटकार मार रहे थे। उन दोनों के चोदने से फच्च फच्च और फट्ट् फट्ट की आवाज उस बैडरूम में चारों और गूंज रही थी। साथ ही साथ मैं मेरी बीबी जोर जोर से हर एक गहरे धक्के के साथ ऊँह ऊँह कराहती हुयी मेरे दोस्त के धक्के के मुकाबले में बराबर खरी उतर रही थी। दीपा तरुण को सामने से धक्का दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों के बिच चोदने की प्रतिस्पर्धा लगी थी। आज की मेरी बीबी की उत्तेजना वैसी थी जैसी हमारी शादी के बाद जब उसकी शुरुआत की शर्म मिट चुकी थी तब चुदवाने के समय होती थी।
मैं मेरी बीबी की मेरे प्यारे दोस्त से चुदाई देखने में इतना मशगूल हो गया था, की जब दीपा ने मेरा हाथ पकड़ा और दबाया तब मैं अपनीं तरंगों की दुनिया से बाहर आया और मैंने दीपा को अपनी चरम पर देखा। वह उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी थी और कामातुरता की उन्नततम अवस्था में अपने रस भण्डार के दरवाजे खोल ने वाली थी। अर्थात तब वह झड़ ने की स्थिति में पहुँच गयी थी। उसने एक लम्बी कामुक आवाज में आह... ह... ह... ह... ...ह भरी और झड़ गयी। मैं उस की चूत में से निकलते रस को तरुण के लण्ड और मेरी पत्नी की चूत के बिच में से चूते हुए देख रहा था।
दीपा को झड़ते देख तरुण कुछ देर तक रुक गया। उसका लण्ड तब भी पुरे तनाव में था। बल्कि दीपा को झड़ते देख तरुण की उत्तेजना और बढ़ गई होगी। पर फिर भी उसने धीरेसे अपना लण्ड मेरी बीबी की चूत से निकाला। मैं आश्चर्य से उसके पथ्थर जैसे कड़क लण्ड को ऊर्ध्वगामी (ऊपर की तरफ सर उठाते हुए) दिशा में खड़ा देखता ही रहा। दीपा ने तरुण के नीचे से तरुण को पूछा "डार्लिंग, तुम रुक क्योँ गए? मैं अभी बिलकुल नहीं थकी हूँ। मेरे झड़ने से मेरी चुदवाने की तड़प कम नहीं हुयी, उलटी बढ़ गयी है। प्लीज अब रुको नहीं मुझे चोदते रहो जब तक तुम में दम है।"
तरुण ने मेरी और देखा और मुझे दीपा पर चढ़ने के लिए आवाहन दिया। मेरा दोस्त मुझे मेरी पत्नी को चोदने का आमंत्रण दे रहा था। आप लोग सोचिये, ऐसे होते हुए देख कर कोई भी पति को कैसा लगता होगा। पर मुझे अच्च्छा लगा। इस हालात में शायद ही कोई चुदक्कड़ पूरी तरह झड़े और अपना माल निकाले बिना दीपा के उपरसे नीचे उतरेगा। दीपा ने मेरी और देखा। वह समझ गयी की तरुण तब खुद झड़ना नहीं चाहता था। दीपा मेरी और मुड़ी और मुझे खिंच अपने उपर चढ़ने को इशारा करते हुए बोली, "तुम इतने महीनों से तरुण के साथ मिलकर मुझे चोदने का प्लान कर रहे थे। आज मैंने भी तय कर लिया था की मैं आज तुम्हारी वह इच्छा भी पूरी कर दूंगी। तरुण को मुझे चोदते हुए तो तुमने देख ही लिया है। अब तरुण के सामने तुम मुझे चोदो। अब तरुण को भी हमारी चुदाई देखने का मजा लेने दो।"
मैं तो इंतेजार ही कर रहा था की कब मेरा नंबर लगे। मैं तरुण को मेरी बीबी की चुदाई करते देख अपने लोहेकी छड़ के सरीखे तने हुए लण्ड को सहला कर अपनी कामुकता को शांत करने की कोशिश कर रहा था।
जैसे ही तरुण दीपा के ऊपर से हट कर दीपा के बाजू में आया, मैंने मेरी बीबी की खूबसूरत टाँगों के बीचमें अपनी पोजीशन ले ली। दीपा ने फिर अपनी दोनों टांगें घुटनों को टेढ़ा कर मेरे सर के दोनों और मेरे कन्धों पर रख दी। अपने लण्ड को अपने ही हाथ से सहलाते हुए मैंने प्यार से मेरी बीबी की चूत के छिद्र के साथ रगड़ा। दीपा ने उसके कई सालों के चुदाई साथीदार को अपने हाथों में लिया और धीरेसे अपनी चूत के छिद्र पर केंन्द्रित करते हुए अपने हाथसे मेरे लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ा। मेरे एक धक्का देते ही मेरा लण्ड मेरी बीबी की चूत में घुस गया। तरुण के मोटे और लंबे लण्ड से इतनी देर चुदने के बाद मेरे लण्ड को अंदर घुसाने में दीपा को कोई परेशानी नहीं हुई।
तरुण को मेरी बीबी को चोदते हुए देख मेरी महीनों की या यूँ कहें की सालों की छुपी इच्छा उसदिन फलीभूत हुयी थी। इस वजह से मैं कामुकता के वह स्टेज पर पहुँच गया था की अब मेरी बीबी को चोदने में अनोखा नशा मिल रहा था।
मेरी बीबी को तरुण से चुदवाने के बाद जब मैं मेरी बीबी पर चढ़ा तो वह तो मुझपर इतनी मेहरबान हो गयी की मैं हैरान रह गया। उसने मेरा सर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने सर के साथ लगाया। मेरे होठ अपने होठ पर चिपका कर वह मुझे जोरों से चुम्बन करने लगी। जैसे उसने तरुण से अपना मुंह चुदवाया था, वैसे ही वह मुझसे भी अपना मुंह चुदवाना चाहती थी।
मैं मेरी बीबी का मुंह चोदने को तैयार हो रहा था, तब उसने मुझे थोड़े से ऊँचे आवाज में कहा जिसे तरुण भी सुन सके। उसने कहा, "मैं वास्तव में दुनिया की सबसे भाग्यशाली बीबी हूँ के मुझे आप जैसे पति मिले। मैं जान गयी थी की आप मुझे तरुण के साथ मिलकर चोदना चाहते हो। खैर यह तो आपने ही मुझे बताया था। तब मैं आपका विरोध करती रही। एक कारण तो यह था की मुझे भरोसा न था, की आप वास्तव में अगर तरुण ने मुझे चोदा तो आप उसको देख पाओगे और उसको सह पाओगे। पर अब मैं देख रही हूँ की आप भी मेरे साथ बहुत एंजॉय कर रहे हो। आप को तरुण से कोई ईर्ष्या नहीं है। और आप मुझसे अब भी उतना ही प्यार कर रहे हो। ऐसा पति कोई कोई पत्नी को भाग्य से ही मिलता है।"
"जैसे की पहले आप ने मुझसे कहा था, चलो हम तीनों साथ मिल कर इस होली के त्यौहार का आनंद उठाएं। मैं आज आप दोनों से खूब चुदना चाहती हूँ। आज तुम दोनों मिलकर मुझे ऐसे चोदो की मैं ये कभी न भूल पाऊँ। मैं भी आप दोनों से इतना चुदवाऊँगी और इतना आनंद देना चाहती हूँ की हम सब इसे जिंदगी भर याद रखें और यह रात हमारी जिंदगी की सबसे यादगार रात बने।"
बस और क्या था। मैं उस वक्त यह भूल गया की मैं दीपा का पति था और वह मेरी पत्नी थी। मेरे जहन में तो बस यही था की मैं अपनी प्रेमिका को, किसी और की पत्नी को चोरी छुपी से चोद रहा हूँ। मैं उस समय ऐसा उत्तेजित था, जैसे शादी तय होने के बाद शादी से सात दिन पहले मैंने दीपा को बड़ी मुश्किल से पटा कर पहली बार चोदा था तब था। मैं नर्वस था पर बहोत जोश में था। मैं जोश में चोदने लगा। दीपा भी मुझे उछल उछल कर सामने से धक्के मार कर मेरा पूरा साथ दे रही थी।
तरुण का मुंह मेरी पत्नी की चूँचियों पर जैसे चिपका हुआ था। वह दीपा के मम्मों को मुंहसे निकाल ही नहीं रहा था। उसकी जीभ दीपा की निप्पलों को चूस रही थी। कभी कभी वह उन निप्पलों को अपने होठों के बिच जोरसे दबा कर चूसता हुआ खींचता था। दीपा के हाथमें तरुण का तना हुआ लण्ड था, जिसे वह बड़े प्यार से सहला और हिला रही थी। कभी कभी वह तरुण के बड़े गोटों (अंडकोषों) को इतनी नजाकत और प्यार से सहला रही थी और दुलार कर रही थी तो कभी वह तरुण के लण्ड को थोड़ी सख्ती से दबा देती थी। तरुण की बंद आँखें भी तरुण के मन की उनमत्तता को प्रदर्शित कर रही थी। बिच बिच में वह अपनी आँखे खोल कर मुझे दीपा को चोदते हुए देख लेता था और उसके मुंह पर मुस्कान छा जाती थी।
मैं उस रात दुबारा झड़ने की तैयारी में था। मैं अपनी उन्मत्तता के चरम शिखर पर पहुंचा हुआ था। अपनी उत्तेजना को नियंत्रण में न रख पाने के कारण मैंने हलके हलके गुर्राना शुरू किया। मेरी बीबी को यह इशारा थी की मैं तब मेरा फव्वारा छोड़ ने वाला था। पर दीपा थी की धीरे पड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। तब ऐसे लग रहा था जैसे मैं उसे नहीं, वह मुझे चोद रही थी। उसकी गति तो पहले से और तेज हो गयी। उसने अपनी चूत के बिच मेरा लण्ड सख्ती से जकड़ा था और वह अपनी पीठ को उछाल उछाल कर निचे से ही मुझे चोद रही थी। मैंने बड़े जोर से हुंकार करते हुए एकदम अपना फव्वारा छोड़ा और मेरी बीवी की चूत को मेरे वीर्य से भर दिया।
तब मेरे लण्ड पर मेरी बीवी की चूत की पकड़ कुछ ढीली पड़ी। मेरा माल पूरा निकल जाने पर मेरा लण्ड भी ढीला पड़ गया, जिसे मैंने धीरे से चूत में से निकालना चाहा। तब मैंने देखा की मेरी बीबी पर तो जैसे भूत सवार था। वह मेरा लण्ड छोड़ने को तैयार ही नहीं थी। मैंने जैसे तैसे मेरा लण्ड निकाला, और मैं दीपा पर पूरा लेट गया। मैंने अपने होंठ दीपा के होंठ से मिलाये और मैं अपनी पत्नी के होठों को चूमने लगा। तब मेरी बीबी ने मुझे मेरे कान में धीरेसे कहा , "जानूँ, मैं अब भी बहुत चुदाई करवाना चाहती हूँ। मुझे चोदो।"
जब दीपा ने देखा की मैं थोड़ा थका हुआ था और मेरे लण्ड को खड़ा होने में समय लगेगा, तब दीपा ने तरुण को अपनी और खींचा। जब तरुण ने दीपा के स्तनों से अपना मुंह हटाया तब मैंने देखा की मेरी बीबी के गोरे गोरे मम्मे लाल हो चुके थे। तरुण के दाँतों के निशान भी कहीं कहीं दिखते थे। दीपा की निप्पलेँ कड़क तनी हुयी थी। जैसे ही मैंने दीपा के इर्दगिर्द से मेरी टाँगें हटायीं और उसके दोनों पॉंव मेरे कंधे से उतारे, तो मेरी बीबी ने मेरे मित्र को अपने ऊपर चढ़ने का आह्वान दिया। तरुण का लण्ड तो जैसे इस का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा था की कब मैं उतरूँ और कब वह अपनी पोजीशन दोबारा सम्हाले।
तरुण का घोडे के लण्ड के सामान लंबा और मोटा लण्ड तब मेरी बीबी की चूत पर रगड़ने लगा। तब भी वह अपने पूर्व रस झरने से गिला और स्निग्ध था। मेरी पत्नी की चूत भी मेरी मलाई से भरी हुई थी। शायद तरुण के मनमें यह बात आयी होगी की उसे अब वह आनंद नहीं मिलेगा जो पहली बार दीपा को चोदने में मिला था, क्योंकि दीपा की चूत मेरी मलाई से भरी हुयी थी। पर उसकी यह शंका उसके दीपा की चूत में अपने लण्ड का एक धक्का देने से ही दूर हो गयी होगी, क्योंकि जैसे ही तरुण ने अपना लण्ड मेरी बीबी की चूत में धकेला की मेरा सारा वीर्य दीपा की चूत से उफान मारता हुआ बाहर निकल पड़ा। दीपा के मुंह से तब एक हलकी सी सिसकारी निकल पड़ी। वह आनंद की सिसकारी थी या दर्द की यह कहना मुश्किल था।
धीरे धीरे तरुण ने मेरी पत्नी को बड़े प्यार से दोबारा चोदना शुरू किया। दीपा को तो जैसे कोई चैन ही नहीं था। तरुण के शुरू होते ही दीपा ने अपने चूतड़ों को उछालना शुरू किया। वह तरुण की चुदाई का पूरा आनंद लेना चाहती थी। तरुण की चोदने रफ़्तार जैसे बढती गयी वैसे ही दीपा की अपने कूल्हों को उछाल ने की रफ़्तार भी बढ़ गयी। तरुण के हाथ तब भी मेरी बीबी के मम्मों को छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे। दीपा ने तरुण का सर अपने हाथों में लिया और चुदाई करवाते हुए दीपा ने तरुण को अपने स्तनों को चूसने को इशारा किया। मुझे ऐसा लगा की तरुण के दीपा के मम्मों को चूसना दीपा को ज्यादा ही उत्तेजित कर रहा था।
उनकी चुदाई देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था। मैं तब समझा की तरुण और दीपा कई हफ़्तों या महीनों से एक दुसरे को चोदने और चुदवाने के सपने देख रहे होंगे। ऐसा लग रहा था की दोनों में से कोई भी दूसरे को छोड़ने को राजी नहीं था। मुझे इन दोनों की चुदाई से इतनी उत्तेजना हो रही थी की मुझसे रहा नहीं गया और मैंने दीपा की चूत पर हाथ रखा और मेरे अंगूठे और तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) से तरुण के पिस्टन जैसे लण्ड को दबाया। तरुण अपने लण्ड को दीपा की चूत के अंदर घुसेड़ रहा था और निकाल रहा था। उसकी फुर्ती काफी तेज थी। जब मैंने अंगूठे और तर्जनी से उसके लण्ड को मुठ में दबाने की कोशिश की तो शायद तरुण को दो दो चूतो को चोदने जैसा अनुभव हुआ होगा। दीपा ने भी मेरा हाथ पकड़ा और वह मेरी इस चेष्टा से वह बड़ी खुश नजर आ रही थी।
अचानक तरुण थम गया। दीपा तरुण को देखने लगी की क्या बात है। तरुण ने दीपा की चूत में से अपना लण्ड निकाल दिया और मेरी बीबी की कमर को पकड़ कर उसे पलंग से नीचे उतरने का इशारा किया। दीपा पहले तो समझ न पायी की क्या बात है। पर जब तरुण ने उसे पलंग से सहारा लेकर झुक कर खड़ा होने को कहा वह समझ गयी की तरुण उसे डोगी स्टाइल में (जैसे कुत्ता कुतीया को चोदता है) उसे चोदना चाहता है। दीपा उस ख़याल से थोड़ा डर गयी होगी की कहीं तरुण उसकी गाँड़ में अपना लण्ड घुसेड़ न दे, क्योंकि उसने मेरी और भयभरी आँखों से देखा। उसके डर का कारण मैं समझ गया था। मैंने उसे शांत रहने को और धीरज रखने का इशारा किया।
शायद मेरा इशारा समझ कर वह चुपचाप पलंग पर अपने हाथ टीका कर आगे की और झुक कर फर्श पर खड़ी हो गयी। तरुण मेरी बीबी की खूबसूरत गाँड़ को अपने हाथों में मसलने लगा। आगे की और झुकी हुई और अपनी गाँड़ और चूत तरुण को समर्पण करती हुई मेरी पत्नी कमाल लग रही थी। ऐसे लग रहा था की कोई कुतिया अपने प्यारे कुत्तेसे चुदवाने के लिए उतावली हो रही थी। दीपा पूरी गर्मी में थी। उस पर तरुण से चुदवाने का जनून सवार था। उस समय यदि तरुण मेरी बीबी की गाँड़ में अपना लण्ड पेल देता तो वह दर्द से कराहती, जरूर खून भी निकलता और शोर भी जरूर मचाती पर शायद तरुण को छोड़ती नहीं और उससे अपनी गाँड़ भी मरवा लेती।
तरुण दीपा के पीछे आ गया और उसने थोड़ा झूक कर अपना लण्ड दीपा की गाँड़ पर और फिर उसकी चूत पर रगड़ा। फिर तरुण ने और झूक कर दीपा के मम्मों को दोनों हाथों में पकड़ा और उन्हें दबाने, मसलने और खींचने लगा। उसने अपने दोनों अंगूठे दीपा के स्तनों पर दबा रखे थे। फिर उसने अपना लण्ड बड़े प्यार से मेरी बीबी की गरमा गरम चूत में धीरेसे डाला। तरुण का स्निग्ध चिकनाहट भरा लण्ड मेरी बीबी की चूत में घुस तो गया, पर जैसे ही तरुण ने एक धक्का देकर उसे थोड़ा और अंदर धकेला तो दीपा दर्द से चीख उठी। उसने तरुण को पीछे हटाने की कोशिश की। तरुण ने अपना अंदर घुसा हुआ लण्ड थोडा सा वापस खिंच लिया। मेरी सुन्दर पत्नी ने एक चैन की साँस ली। पर तरुण ने फिर एक धक्का मारा और अपना लण्ड फिर अंदर घुसेड़ा। दीपा के मुंह से फिर चीख निकल गयी। फिर तरुण ने थोड़ा वापस लिया और फिर एक धक्का मार कर और अंदर घुसेड़ा।
तब मैंने देखा की मेरी पत्नी अपनी आँखे जोर से बंद करके, अपने होठ भींच कर चुप रही। उसने कोई चीख नहीं निकाली, हालांकि उसे दर्द महसूस हो रहा होगा। दीपा के कपोल पर पसीने की बूंदें झलक रही थी। आज तक मेरा लण्ड कभी भी मेरी पत्नी की चूत की उस गहरायी तक नहीं पहुँच पाया था, जहाँ तक तरुण का लण्ड उस रात पहुँच गया था।
वैसे तो इस पोज़ में दीपा और तरुण को मैंने पहले भी देखा था जब बाथरूम में कपडे पहने तरुण पीछे आकर दीपा की गांड में अपना लण्ड घुसाने की कोशिश कर रहा था और आगे दीपा के पके फल जैसे बूब्स को उसके ब्लाउज के ऊपर से अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। उसके पहले रसोई में भी तरुण ने दीपा के निचे से दीपा की गांड में अपना लण्ड सटाया हुआ रखा था और अपने दोनों हाथों से वह दीपा के बूब्स मसल रहा था। पस उस रात का नजारा कुछ और था। इस बार दीपा खुद आगे झुक कर अपनी सुन्दर गाँड़ तरुण को अर्पण कर रही थी और तरुण बिना कपड़ों के व्यावधान के दीपा के पीछे खड़ा हो कर दीपा की चूत में अपना लण्ड बड़े ही प्यार भरे पर आक्रामक रवैये से पेले जा रहा था।
तरुण और मेरी सुन्दर पत्नी अब एक दूसरे से आनंद पाने की कोशिश कर रहे थे। धीरे धीरे दीपा का दर्द कम होने लगा होगा। क्योंकि अब वह दर्द भरे भाव उसके चेहरे पर नजर नहीं आ रहे थे। उसकी जगह वह अब तरुण के धक्कों के मजे ले रही थी। तरुण ने धीरे से अपनी चोदने की रफ़्तार बढ़ाई। साथ ही साथ वह मेरी बीबी के मम्मों को भी अपनी हथेली और अंगूठों में भींच रहा था। दीपा मेरे मित्र के इस दोहरे आक्रमण से पागल सी हो रही थी। तब मेरी बीबी को शायद थोड़ा दर्द, थोड़ा मजा महसूस हो रहा होगा। तरुण की बढ़ी हुयी रफ़्तार को मेरी बीबी एन्जॉय करने लगी थी।
तरुण के अंडकोष मेरी पत्नी की गाँड़ पर फटकार मार रहे थे। उनके चोदने की फच्च फच्च आवाज कमरे में चारो और गूंज रही थी। दीपा ने तब कामातुरता भरी धीमी कराहट मारना शुरू किया। वह तरुण के चोदने की प्रक्रिया का पूरा आनंद लेना चाहती थी। शायद कहीं न कहीं उसके मन में यह डर था की क्या पता, कहीं उसे तरुण से दुबारा चुदवा ने का मौका न मिले।
दीपा ने उंह्कार मारना शुरू किया तो तरुण को और भी जोश चढ़ा। अब वह मेरी बीबी की चूत में इतनी फुर्ती से अपना मोटा और लंबा लण्ड पेल रहा था की दीपा अपना आपा खो रही थी। उधर जैसे ही अपना लण्ड एक के बाद एक तगड़े धक्के देकर तरुण मेरी बीबी की चूत में पेलता था, तब अनायास ही के उसके मुंह से भी "ओह... हूँ... " की आवाजें निकलती जा रही थी। मेरी पत्नी और मेरा मित्र दोनों वासना के पाशमें एक दूसरे के संग में सारी दुनिया को भूल कर काम आनन्दातिरेक का अनुभव कर रहे थे। पुरे कमरे में जैसे चोदने की आवाजें और हम तीनों के रस और वीर्य की कामुकता भरी खुशबु फैली हुई थी।
दीपा की उंह्कार तेज होने लगी। अब वह दर्द के मारे नहीं पर उत्तेजना और कामाग्नि के मारे हर एक धक्के पर कराह रही थी। जैसे जैसे वह अपने चरम शिखर पर पहुँच रही थी वैसे वैसे दीपा ने जोर से कराहना शुरू किया और फिर तरुण को और जोरसे चोदने के लिए कहने लगी। 'तरुण, मुझे और चोदो। और जोरसे। मेरी चूत का आज भोसड़ा बना डालो। रुकना मत। मैं अब झड़ने वाली हूँ। चोदो मुझे। हाय... आह... बापरे... ऑफ़... " ऐसे कराहते हुए मेरी बीबी उस रात पता नहीं शायद चौथी या पांचवी बार झड़ी।
दीपा के झड़ने से तरुण जैसे ही थम रहा था वैसे ही मेरी बीबी ने उसे लताड़ दिया। "अरे तुम रुक क्यों गए? मैं झड़ी हूँ पर अभी भी खड़ी हूँ। खैर, पीछे हटो। चलो अब मैं तुम्हें चोद्ती हूँ।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे पलंग पर लेटाया। खुद वह तरुण के ऊपर चढ़ गयी और उसकी कमर के दोनों और अपनी दोनों टाँगों को फैला कर अपनी दोनों टांगों के बिच तरुण की कमर रख अपनी टांगों को टेढा कर अपने घुटनों पर बैठ गयी। धीरे से दीपा ने तरुण का तना और मोटा लण्ड अपनी चूत के अंदर डाला और उसे अपने शरीर को नीचे की और दबा कर अंदर घुसेड़ा।
धीरे धीरे जैसे दीपा अपने चूतड़ों को ऊपर निचे उठाने लगी, वैसे ही तरुण भी निचे से अपने कूल्हों को ऊपर उठाकर दीपा की चूत में अपने लण्ड को घुसेड़ रहा था। पर दीपा को कोई दर्द नहीं बल्कि उसके चेहरे पर एक अद्भुत आनंद की लहर दौड़ रही थी। वह उस रात हमारी सेक्स की स्वामिनी बनी हुई थी। तरुण और मैं हम दोनों जैसे दीपा के सेक्स गुलाम थे, और वह हमारी मलिका।
मैं हैरान इस बात पर था की कोई भी आसन में या पोजीशन में तरुण दीपा के मम्मों को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था। उसने मेरी बीबी के स्तनों पर जैसे अपना एक मात्र अधिकार जमा रखा था। मैं तरुण का दीपा के मम्मों के प्रति पागलपन को समझ सकता था। जब एक इंसान इतने महीनों से जिस के सपने देखता हो। जो इतने महीनो से जिसको पाने के लिए जीता हो और वह उसे मिल जाए तो भला उसे आसानी से कैसे छोड़ेगा?
मेरी पत्नी पर तो जैसे चुदने का बुखार चढ़ा था। वह उछल उछल कर तरुण को चोद रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह पूरी रात तरुण को नहीं छोड़ेगी। उनकी रफ़्तार इतनी तेज हो गयी थी की मैं डर रहा था की कहीं उसके शरीर पर उसका विपरीत असर न हो जाय। जैसे दीपा उछलती तो उसके मम्मे भी उछलते थे। और साथ में तरुण के हाथ जिसमें तरुण ने उन मम्मों को दबा के पकड़ रखा था। सारा दृश्य देखने लायक था। मैंने पहेली बार मेरी पत्नी को इतने जोश में चोदते देखा था।
जब दीपा मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोद्ती थी, तब उसे भी और मुझे भी चुदाई में अनोखा आनंद मिलता था। दीपा भी बहुत उत्तेजित हो जाती थी, और मैं भी। हम दोनों जल्दी ही झड़ जाते थे। दीपा इन दिनों थक जाने का बहाना करके मेरे ऊपर चढ़ कर चोदने से बचना चाहती थी। पर उस रात की बात कुछ और ही थी। पता नहीं शराब का असर था या शबाब का। उस रात मेरी पत्नी के चेहरे पर थकान का नामो निशान नहीं था।
वह जैसे ही एक धक्का मार कर तरुण के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में घुसेड़ ती तो उसके साथ एक कामुकता भरी आवाज में "ऊम्फ..." की आवाज निकालती। जैसे महिला खिलाडी टेनिस के मैच में जब गेंद को रैकेट से मारकर कराहते हैं, बिलकुल वैसे ही। मेरी प्यारी और सेक्सी बीबी दीपा बहुत जल्द झड़ने वाली थी। उसके चेहरे का उन्माद बढ़ने लगा था। उसका पूरा ध्यान उसकी जननेन्द्रिय पर हो रहे सम्भोग के आनंदातिरेक पर था। वह तरुण को शारीरिक सम्भोग का पूरा आनंद देना चाहती थी और तरुण से पूरा शारीरिक सम्भोग का आनंद लेना चाहती थी।
हाँ मैं यह जानता था की अब वह तुरंत अपना फव्वारा खोलने वाली थी। उसके कपोल पर तनी लकीरों से और चेहरे के भाव से यह स्पष्ट था की वह अब अपनी सीमा पर पहुँचने वाली है। दीपा ने तरुण के निप्पलों को अपनी उँगलियों में जोर से भींचा और कामुकता भरी दबी आवाज में बोल पड़ी, "हाय... तरुण... दीपक... ऑफ़... ओह... मैं अब अपना रस छोड़ने वाली हूँ।" ऐसे कहते हुए दीपा ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई।
मैंने महसूस किया की तरुण भी तब अपनी कामुकता की चोटी पर पहुँच रहा था। वह मेरी बीबी के मम्मों को कस कर अपनी हथेलियों में भींचते हुए बोल पड़ा, "दीपा, मैं भी छोड़ने वाला हूँ। क्या मैं इसे बाहर निकाल लूँ?"
दीपा ने उसकी छाती पर एक सख्त चूँटी भरते हुए कहा, "नहीं तरुण, आज मैं सुरक्षित हूँ। तुम अपना सारा वीर्य मेरी चूत में भर दो। मैं आज तुम दोनों के वीर्य को अपनी चूत में सारी रात भर के रखना चाहती हूँ। तुम खुल कर मेरी चूत भर दो।"
अचानक मैंने देखा की तरुण और मेरी बीबी एक दूसरे से चिपक गए। दोनों ने एक दूसरे को अपनी आहोश में इतना कस कर भींच लिया जैसे वह एक ही हो जाना चाहते हों। उनके मुंह एक दूसरे ऐसे चिपके थे की उन दोनों के मुंह में क्या हो रहा था वह सोचा ही जा सकता था। तरुण शायद उस समय मेरी पत्नी को न मात्र अपने लण्ड से बल्कि वह दीपा को अपनी जीभ से भी चोद रहा था। जैसे ही दोनों ने एक साथ अपना रस छोड़ा तो दोनों की कामुक कराहट से सारा कमरा गूंज उठा। मैंने इस से पहले ऐसा दृश्य ब्लू फिल्मों में भी नहीं देखा था।
मैंने तरुण के स्निग्ध लण्ड, जो तब भी मेरी बीबी की चूत में था और अपना घना और घाड़ा वीर्य दीपा की चूत में उँडेल रहा था; अपनी मुठी मैं लेकर दबाया और मेरी एक उंगली मेरी बीबी की चूत में डाली। मेरी उंगली तरुण के वीर्य से लथपथ थी। दीपा ने मुझे भी तरुण के साथ साथ अपनी बाँहों में जकड लिया।
अब दीपा शर्म का पर्दा पूरी तरह से फाड् चुकी थी। उसने तरुण का और मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और बोली, "तुम दोनों बहुत चालु हो। तुम दोनों ने मिलकर यह मुझे चोदने का प्लान बनाया। हाय माँ मैं भी कितनी गधी निकली की मुझे यह समझ में नहीं आया। डार्लिंग, आज मैं प्रेम मय सेक्स (लविंग सेक्स) का सच्चा मतलब समझ रही हूँ। तुम दोनों ने आज मुझे वह दिया जो शायद मैं कभी पा ने की उम्मीद भी कर नहीं सकती थी। दीपक आप न सिर्फ मेरे प्राणनाथ पति हो। आप एक सच्चे मित्र और जीवन साथी हो। मैं आज यह मानती हूँ की मेरे जहन में कहीं न कहींतरुण से चुदने की कामना थी। पर शर्म और मर्यादा के आगे मैंने अपनी यह कामना दबा रखी थी। शायद दीपक यह भांप गया था। तरुण तो मेरे पीछे पहले से ही पड़ा था। यह तो बिलकुल साफ़ था की वह मुझे चोदना चाहता था।
मैं मेरी बीबी की बात सुन कर हैरान था। मेरी शर्मीली बीबी आज खुल कर बोल रही थी। मैं दीपा को बड़े ध्यान से सुन रहा था। वह बोली, "पर डार्लिंग, यह मत समझना की मैं आज आखरी बार तरुण से चुदवा रही हूँ। तरुण गजब का चुदक्कड़ है। मैं उससे बार बार चुदना चाहती हूँ। तुम्हें मुझे इसकी इजाजत देनीं होगी। जब तुम मुझे तरुण से चुदवानेका प्लान बना रहे थे तब मैंने तुम्हें इसके बारे में आगाह किया था। और हाँ, मैं यह भी जानती हूँ की तुम टीना को चोदना चाहते हो। शायद इसिलए तुम दोनों ने मिलकर यह धूर्त प्लान बनाया। तुम ने सोचा होगा की दीपा को पहले फांसेंगे तो टीना बेचारी को तो हम तीनों मिलकर फांस ही लेंगे। यदि तुमने यह सोचा था तो सही सोचा था। अब मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब मैं तुम दोनों से चुद गयी तो टीना कैसे बचेगी? आज मैं भी तुम्हारी धूर्त मंडली में शामिल हो गयी।"
दीपा ने मुझे और तरुण को अपने बाहु पाश में ले लिया। उस रात और उस के बाद कई रातों में हम दोनों ने मिलकर दीपा को खूब चोदा और चोदते रहे। जब तक टीना नहीं आयी तब तक दीपा हम दोनों से जोश से चुदवाती रहीं। कई बार ऐसा भी हुआ की जब तरुण का दीपा को चोदने का बड़ा मन होता था तो वह मेरी गैर हाजरी में तरुण घर पहुँच जाता था और दीपा और तरुण दोनों जमकर चुदाई करते थे। पर यह सब मेरी सहमति से और मुझे बता कर होता था। ज्यादातर तो तरुण और मैं मिलकर ही दीपा को चोदते थे।
टीना कुछ हफ़्तों में वापस आ गयी। हम तीनों ने मिलकर टीना को भी अपने जाल में आखिर फांस ही लिया। पर उसमें हमें काफी मशक्कत भी करनी पड़ी। पर वह फंसने वाली तो थी ही। और फँसी भी। और जब टीना फँसी तो उसने हमें दो मर्दों से एक साथ चुदवाने की एक नयी रीत सिखाई। उसको डी.पी. कहते हैं। डी.पी. मतलब डबल पेनिट्रेशन मतलब औरत के दोनों छिद्र गाँड़ और चूत दोनों में एक साथ एक एक लण्ड लेना। मतलब एक ही साथ दो मर्द एक औरत को चॉद सकते हैं। एक गाँड़ चोदेगा और दुसरा चूत।
वह कैसे फँसी, हमें उसको फाँसने के लिए क्या क्या करना पड़ा, वह एक अलग ही कहानी है। उसके बाद दोनों मर्दों ने मिलकर एक दूसरे की बीबी को खूब चोदा। खूब मजे किये। समय को कोई रोक नहीं सकता। समय बीतता गया। तरुण और टीना कहीं दूर चले गए। हम भी वहाँ से शिफ्ट हो गए। अब तो सिर्फ उनदिनों की याद ही बाकी है। पर हम उन्हें अभी भी भूले नहीं।
मैं मेरे इस अनुभव को छोटी सी सीमा में बाँधना नहीं चाहता। था पर शायद यह कहानी कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है। मैं उम्मीद रखता हूँ की आप भी इसे पढ़कर उतना ही आनंद पाएंगे जितना मुझे लिखने में मिला।
The End...
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मेरे एक पाठक ने ई-मेल पे पूछा है कि...
" महोदय , आप इतनी जल्दी जल्दी पोस्ट क्यों डाल रहे हो...
हम तो पुरा पोस्ट पढ कर कमेन्ट करना चाहते हैं , उतने में आपके 4 नये पोस्ट आ जा रहे हैं...
भाई ... पहली बात - जैसा कि मैं हमेशा कहता हूँ कि मैं ओरिजनल राईटर नहीं हुं... और सेव की हुई कहानियों को पैस्ट करता हुं...
मुझे किसी कि लिखी कहानियों को अपने नाम से छापना या उसका क्रेडिट लेना भी पसंद नहीं है... तो किसी पाठक को अपडेट के लिए वेट क्यों करवाया जाए...
और दुसरा रिज़न ये है कि कुछ चु** पाठक अजीब माँग करने लगते हैं कि ये करवाओ...
वो करवाओ... ऐसे चुसवाओ... मुत पिलाओ... माँ भेन टिचर से करवा... रोल प्ले करवा
ऐसे करवा... वेसे करवा
(भाषा का सटीक उपयोग मेरे उपर किया गया है मित्रों)
तुने ये नहीं करवाया... तो हम कहानि नहीं पढेंगे...
और तो और कभी पोस्ट मैं देर हो जाए तो यही चु**, एम. सी. & बि.सि. पाठक थ्रेड पर धमकी भी देते हैं कि कहानी खत्म नहीं करना थी तो शुरू क्यों कि...
अपनी पसंद का कुछ लिखो तो भी इनका पेट दुखता है... और जल्दी जल्दी पोस्ट देने पर तो मेल पर भी शीकायत करते हैं...
??
ऐसे सभी सम्माननिय पाठकों से नीवेदन है... ये सभी कहानियां मेने अपने मनोरंजन के लिए नेट से ही कापि पेस्ट कि हैं... और चाहता हूं कि आप भी इनका आनंद लें...
मुझे या अन्य किसी लेखक को परेशान किए बगैर...
धन्यवाद
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Surely this story ends here... but my other threads (https://xossipy.com/search.php?action=re...2cb70cbb3b) will continue & give joy's of new Incest, Adultery Non erotic & Erotic stories to all of my friends...
As I always say ... I am not the original writer, I just Copy some best stories from different internet sites & pest them here...
ALL THANKS TO ORIGINAL WRITER'S FOR WRITING SUCH A INTERESTING STORIES
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Thanks for reading this story.
I am always very fond of this kind of slow seductive story. In reality, a woman needs time to involved in an affair. All women are not sex-starved or whore that they can easily be driven by anyone.
Most of the cases, there is a very particular and valid reason to involve in any illicit relationship. Sometimes they forced by other persons, sometimes they forced by the situation which arises unexpectedly in front of her.
I read a lot of stories which look very unrealistic as in those, a married woman shows like a characterless slut, but the reality is different.
I am not the original writer, I collect stories from different internet sites like old EXBII, XOSSIP, RSS, ISS, NIFTY, ASSTR, & LITEROTICA.
I just copy and pest them here for my as well as your enjoyment... all credit goes to the unsung writer's who are the original heroes.
So, I request to all my fellow authors to write more slow seductive real stories regarding married women.
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best story ever, I have read many different versions of this story. dp wala part kab daloge
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so hot and erotic... thanks for sharing
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