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Adultery चाहत... {completed}
#1
Heart 
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#2
Heart 
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मेरी फितरत नही किसी की चीज़ को अपने नाम करू...


so as i always say... all credit goes to unsung original writer...  [Image: yourock.gif]

[Image: Namaskar.png]

welcome
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#3
Heart 
 चाहत बीबी की... 

मेरा नाम दीपक है। यह वाक्या काफी सालों पहले का है। मैं उन दिनों जयपुर में रहता था।

एक प्राइवेट कंपनी ने में सेल्स डिपार्टमेंट में सीनियर मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव था। मेरा परफॉरमेंस अच्छा था और सेल्स में मैं हमारी कंपनी में अक्सर अव्वल या पुरे इंडिया में पहले पांच में रहता था। मेरा बॉस मुझसे बहुत खुश था। मेरी प्रमोशन के चांस अच्छे थे। एक बार एक पार्टी में जहां मैं मेरी पत्नी दीपा के साथ गया हुआ था वहाँ मेरे बॉस भी आये हुए थे। वहाँ मैंने मेरी पत्नी से बॉस को मिलाया। दीपा को देख कर मेरा बॉस काफी प्रभावित हुए। उस पार्टी में बॉस ने दीपा से काफी इधर उधर की बातें की।

मेरी पत्नी दीपा की जवानी और खिली हुयी लगती थी। वह उस समय कोई २८ साल की होगी। हमारी लव मैरिज हुई थी। दीपा अत्यन्त सुन्दर थी।

दीपा का चेहरा लंबा सा था। उसकी आँखें धारदार थीं और पलकें घनी, पतली और काली थीं। दीपा नाक नुकीली सीधी सुआकार थी। दीपा के गाल ना फुले हुए थे ना ही पिचके हुए थे। बिलकुल सही मात्रा में भरे हुए थे। दीपा के कान के इर्दगिर्द उसके बालों की जुल्फ घूमती नजर आ रही थी। घने और काले बाल दीपा की कमर तक लम्बे थे जिन्हें वह अक्सर बाँध कर रखती थी जिससे उसके सौन्दर्य में चार चाँद लग जाते थे। देखने में मेरी पत्नी कुछ हद तक हिंदी फिल्मों की पुराने जमाने की अभिनेत्री राखी की तरह दिखती थी, पर राखी से कहीं लम्बी थी। आजकल फिल्मों में उसे परिणीति चोपड़ा से कुछ हद तक तुलना कर सकते हैं।

दीपा कमर से तो पतली थी पर उसके उरोज (मम्मे) पूरे भरे भरे और तने हुए थे। कोई भी देखने वाले की नजर दीपा के चेहरे के बाद सबसे पहले उसके दो फुले हुए गुम्बजों (मम्मों) पर मजबूरन चली ही जाती थी। उसके तने हुए ब्लाउज में से वह इतने उभरते थे, की मेरी बीबी के लिए उन्हें छिपा के रखना असंभव था और इसी लिए काफी गेहमागहमी करने के बाद उसने अपने बूब्स छुपाने का विचार छोड़ दिया। क्या करें वह जब ऐसे हैं तो लोग तो देखेंगे ही। दीपा की पतली फ्रेम पर उसके दो गुम्बज को देखने से कोई भी मर्द अपने आप को रोक ही नहीं पायेगा ऐसे उसके भरे हुए सुडोल स्तन थे। दीपा उन्हें किसी भी प्रकार से छुपा नहीं पाती थी। मैंने उसे बार बार कहा की उसे उन्हें छुपा ने की कोई जरुरत नहीं है। आखिर में तंग आकर उसने उन्हें छुपाने का इरादा ही छोड़ दिया। उसका बदन लचीला और उसकी कमर से उसके उरोज का घुमाव और उसके नितम्ब का घुमाव को देख कर पुरुषों के मुंह में बरबस पानी आ जाना स्वाभाविक था।

ज्यादातर दीपा साडी पहनकर ही बाहर निकलती थी। उसे जीन्स पहनना टालती थी क्यूंकि उसकी लचिली जाँघें, गाँड़ और चूत का उभार देख कर मर्दों की नजर उसीके ऊपर लगी रहती थी। जब कभी दीपा जीन्स या लेग्गीन पहनती थी तो दीपा बड़ी ही अजीब महसूस करती थी क्यूंकि सब मर्द और कई औरतें भी दीपा की दोनों जाँघों के बिच में ही देखते रहते थे।

मैं और दीपा एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। मैं एक साल सीनियर था। कॉलेज में हजारों लड़को में कुछ ही लड़कियां थी। उनमे से एक दीपा थी। परन्तु वह मन की इतनी मज़बूत थी की कोई लड़का उसे छेड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। कई बार शरारती लड़कों को चप्पल से पीटने के कारण वह कॉलेज में बड़ी प्रख्यात थी।

दीपा बातूनी भी बड़ी थी। बचपन से ही उसे काफी बात करने की आदत थी। उसे पुरुषों से बात करने में कोई झिझक नहीं होती थी। उसकी इसी आदत के कारण कई बार मैं मजाक में ताने मार कर उसे बसंती (शोले पिक्चर वाली हेमामालिनी) कहकर बुलाता था। बात करते करते वह अक्सर खिल खिलाकर हँस भी पड़ती थी। दीपा की इसी मस्ती भरी बात करने की आदत और हँसी के कारण मैं दीपा से आकर्षित हुआ था। साथ साथ में वह काफी संवेदनशील (इमोशनल) भी थी। किसी अपाहिज को अथवा गरीब भिखारी को देख कर उसकी आँखों में आँसूं भर आते थे। हम जब कोई हिंदी मूवी देखने जाते तो करुणता भरा दृश्य देख कर वह रोने लगती थी। कॉलेज में कई लड़के दीपा को पटाने में जुटे हुए थे। पर उन सबके मुकाबले मैं दीपा का दिल जितने में कामयाब हुआ था। पता नहीं दीपा ने मुझ में क्या देखा जिसके कारण उन सब हैंडसम और रईस लड़कों के मुकाबले मुझे पसंद किया। शायद दीपा को मेरी सादगी और सच्चापन अच्छा लगा।

कॉलेज के लड़कों के मन में दीपा को पाने की ख्वाहिश तो थी। पर न पा सकने के कारण उसकी पीठ पीछे कई लड़के दीपा के बारेमें ऐसी वैसी अफवाएं जरूर फैलाया करते थे। खास तौर से मैंने कॉलेज के कुछ लडकोंको यह कहते सुना था की दीपा का उसके साथ या किसी और के साथ अफेयर था। वह कॉलेज में लडकोसे बिंदास मिलती थी पर किसकी क्या मजाल जो उससे भद्दा मजाक करने की हिम्मत करे। वह भी कोई ज़माना था जो बीत गया और अब हम शादीशुदा संसार के चक्रव्यूह में फँसे हुए अपना अपना काम कर रहे थे।

बॉस ने एक बार मुझे और दीपा को घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया। उन के घर में उनकी पत्नी और दो बच्चों से हमारी मुलाक़ात हुई। बॉस का घर काफी बड़ा था और उसमें कई कमरे थे और आगे एक बढ़िया सा बगीचा भी था। बॉस की बीबी कुछ रिजर्व्ड नेचर की थी और बहुत कम बोलती थी। बॉस स्मार्ट और हैंडसम थे। कुछ हद तक रंगीले मिजाज के भी थे। हालांकि उन्हें लम्पट नहीं कहा जा सकता। उन्हें हमें मिलकर अच्छा लगा। जहां तक बॉस की बीबी का सवाल था तो उसे हमसे बात करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और पहचान की औपचारिकता होने के बाद वह अपने बैडरूम में जाकर टीवी देखने में व्यस्त हो गयी।

बीबी के वहाँ से हटते ही बॉस तो जैसे आझाद पंछी हो गए और दीपा से बिंदास बातें करने में लग गए। दीपा बातूनी तो थी ही। सही श्रोता मिल जाने पर उसे बोलने से रोकना बड़ा ही मुश्किल था। दीपा को मेरे बॉस के साथ खुले दिल से बात करने में कोई हिचकिचाहट नहीं महसूस होती थी। मेरे बोस को शायद दीपा की यह बात अच्छी लगी। मेरे बॉस और दीपा ने काफी इधर उधर की बातें की। मेरे बॉस तो वैसे ही सेल्स के आदमी थे। वह बातें बनाने में माहिर थे। दीपा उनसे बातें करते हुए उतनी उत्साहित हो जाती की यह ख्याल किये बगैर की वह मेरे बॉस थे, दीपा कई बार बातों के जोश में बॉस का हाथ थाम लेती या उनकी जांघ के ऊपर या पीठ के ऊपर हलकी सी टपली लगा देती। दीपा के लिए वह आम बात थी पर बॉस इस के कारण उत्तेजित हो जाते और कुछ और ही सोचने लगे।

और जब मेरे बॉस बातें करने लगे मुझे यह समझने में देर नहीं लगी की मेरे बॉस दीपा पर फ़िदा थे और दीपा पर लाइन मार रहे थे। इसके दो कारण थे। पहला यह की मौका मिलते ही बॉस भी दीपा का हाथ थाम लेते थे। पर दीपा का बॉस का हाथ थामना और बॉस का दीपा का हाथ थामने में फर्क होता था। दीपा तो हाथ पकड़ कर छोड़ देती थी। पर बॉस दीपा का हाथ थामे रखते थे जब तक दीपा उसे अपने हाथों से छुड़ा ना लेती थी। मुझे लगा की शायद दीपा ने भी यह महसूस किया था। पर उसने उसको नजरअंदाज कर दिया। और दुसरा कारण यह था की मैंने बॉस की नजरें देखि थीं जो दीपा के सुआकार कूल्हों पर और दीपा की उभरी हुई छाती पर अक्सर अटक जाती थीं।

दीपा कुछ भी ना समझते हुए बातों पर बातें करे जा रही थी। कुछ देर बाद जब बॉस की बीबी आयी और उसने देखा की उस के पति दीपा से कुछ ज्यादा ही बात करने में जुटे हुए थे। तब उसने सब को खाने के लिए डाइनिंगरूम में आने को कहा। तब कहीं जा कर उनकी बातों का दौर खत्म हुआ। खैर दीपा के बातूनीपन से मुझे यह फायदा हुआ की मैं बॉस का और भी पसंदीदा बन गया। मुझे बॉस से कुछ ज्यादा ही मदद मिलने लगी। बॉस जब भी मुझे मिलते दीपा के बारे में जरूर पूछते।

एक बार जब बॉस की पत्नी और बच्चे बाहर गए हुए थे तो हमने बॉस को हमारे घर खाने पर बुलाया। बॉस ने जब हमारे घर की सजावट देखि और दीपा के हाथ का खाना खाया तो वह दीपा के कायल ही हो गए और दीपा की बड़ी तारीफ़ करने लगे। उस शाम दीपा और बॉस करीब दो घंटे तक बातें करते रहे। जब दीपा रसोई में कुछ बनाने जाती थी तो बॉस भी वहाँ चले जाते और खड़े खड़े दीपा को देखते हुए दीपा से इधर उधर की बातें करते रहते थे। मुझे पक्का यकीन था की दीपा जब रसोई में व्यस्त होती थी तो बॉस रसोई में दीपा की पीछे कुछ दूर खड़े हुए दीपा से इधर उधर की बातें करते करते दीपा की सुआकार गाँड़ को देख कर अपनी आँखों को सेक रहे होंगे।

उन दिनों दीपा के पिता को अचानक ह्रदय की बिमारी के कारण हॉस्पिटल में दाखिला हुआ और उसके लिए दीपा की फॅमिली को अतिरिक्त तीन लाख रुपये की जरुरत पड़ी। मेरे पास एक लाख की डिपाजिट बैंक में थी वह मैंने निकाल कर दी, पर दो लाख रुपये और चाहिए थे। जब मेरी दीपा से बातचीत हुई तो मैंने कहा एक ही आदमी हमारी मदद कर सकता है और वह है बॉस। पर मुझे बॉस से पैसे मांगने में हिचकिचाहट हो रही थी। दीपा ने कहा की वह मेरे बॉस से बातचीत करेगी।

दूसरे दिन दीपा मेरे ऑफिस में आयी और बॉस की केबिन में जा कर उसने बॉस से बात की। दीपा की बात सुन कर बॉस का दिल पसीज गया और बॉस दो लाख रुपये देने के लिए राजी हो गये। दीपा ने जब पूछा की उन्हें वापस कैसे करने होंगें, तब बॉस ने कहा, वह पैसे वापस देने की जरुरत नहीं होगी, क्यूंकि बॉस मेरे परफॉरमेंस इन्सेंटिव (कार्यक्षमता आधारित अधिकृत बोनस) में से ही यह पैसे वसूल कर लेंगे। उन्हें पक्का भरोसा था की इतना अधिक सेल तो मैं कर ही लूंगा। दीपा बॉस की इस उदारता से इतनी गदगद हो गयी की उस की आँखों में आँसूं भर आये और दीपा ने बॉस के दोनों हाथ पकड़ कर बहुत शुक्रिया अदा किया। बॉस ने फ़ौरन अपने खाते में से दो लाख रूपये निकाल कर दिए। दीपा मेरे बॉस की ऋणी हो गयी।

हमने वह पैसे तो वापस कर दिए पर दीपा मेरे बॉस की ऐसी ऋणी हो गयी की समय समय पर वह उन्हें कोई ना कोई गिफ्ट भेजती और जब बॉस की बीबी नहीं होती तो उन्हें खाना खाने के लिए बुलाती या खाना भिजवाती। बॉस भी मौक़ा मिलते ही दीपा को मिलने आ जाते या जन्म दिवस या शादी की सालगिराह पर आ जाते और महंगे तोहफे देते। ऐसे मुझे लगा की बॉस और दीपा के बिच में कुछ ना कुछ आकर्षण की बात बन रही थी।

मैंने दीपा को भी कहा की बॉस उसके ऊपर लट्टू हो गए थे। दीपा मेरी बात सुनकर शर्मायी और फिर हंसने लगी। उसने कहा, "क्यों? जलन हो रही है क्या? तुम्हारे बॉस है ही इतने अच्छे। स्मार्ट हैं, यंग हैं, भले आदमी हैं। अगर वह मुझे पसंद करते हैं तो यह अच्छी बात है।"

मुझे उस रात को सपना आया की जब मैं टूर पर गया था तो बॉस मेरे घर आये और दीपा और बॉस दोनों ने मिलकर जमकर चुदाई की। मैं इस सपने को देख कर इतना उत्तेजित हो गया की रात को नींद में मेरे पाजामे में ही मेरा छूट गया।

पहली बार मैंने महसूस किया की मैं भी एक तरह से ककोल्ड हूँ। ककोल्ड का मतलब है अपनी पत्नी को किसी गैर मर्द से चुदाई करवाने के लिए लालायित मर्द। शायद उसी दिन से मेरी बीबी को किसी गैर मर्द से चुदते हुए देखने की एक ललक मेरे मन में घर कर गयी।

हमारी शादी को सात साल हो चुके थे और कहते है की सात साल के बाद एक तरह की खुजली होती है जिसे कहते है सातवें साल की खुजली (seven year itch)। तब अजीब ख्याल आते है और सेक्स में कुछ नयापन लाने की प्रबल इच्छा होती है।

शादी के कुछ सालों तक तो हमारी सेक्स लाइफ बड़ी गर्मजोश हुआ करतीथी। हम २४ घंटों में पहले तो तीन तीन बार, फिर दो बार, फिर एक बार ओर जिस समय की मैं बात कर रहा हूँ उनदिनों में तो बस कभी कभी सेक्स करते थे। शादी के सात सालों के बाद बहुत कुछ बदल जाता है। पति पत्नी के बिच कोई नवीनता नहीं रहती। एक दूसरे की कमियां और विपरीत विचारों के कारण वैमनस्य पारस्परिक मधुरता पर हावी होने लगता है। और वैसे ही पति पत्नी एक दूसरे को "घर की मुर्गी दाल बराबर" समझने लगते हैं। उपरसे बच्चों की, नौकरी की, घर की, समाज की, भाई बहनों की, माँ बाप की, बगैरह जिम्मेदारी इतनी बढ़ जाती है की सेक्स के बारे में सोचने का समय बहुत कम मिलता है।

सामान्यतः मध्यम वर्ग की पत्नियों पर बोझ ज्यादा रहता है। इस कारण वह शाम होते होते शारीरिक एवं मानसिक रूपसे थक जाती है। वह अपने पति के क्रीड़ा केलि आलाप की ठीकठाक प्रतिक्रया देने में अपने को असमर्थ पाती है। उस समय पारस्परिक आकर्षण कम हो जाता है। अक्सर दीपा थक जाने की शिकायत करती और जल्दी सो जाती। गरम होने पर भी मुझे मन मसोस कर सो जाना पड़ता था। इस कारण धीरे धीरे मेरे मनमे एक शंका ने घर कर लिया की शायद वह मेरी सेक्स करने की क्षमता से संतुष्ट नहीं है। बात भी कुछ हद तक गलत नहीं थी। जब वह गरम हो जाती थी तब कई बार उस से पहले ही मैं मेरा वीर्य उसके अंदर छोड़ देता था। तब मेरी पत्नी शायद अपना मन मसोस कर रह जाती होगी। हालांकि दीपा ने मुझे कभी भी इस बारें में अपनी कोई शिकायत नहीं की।

मेरी बीबी को सेक्स मैं ज्यादा रस नहीं रहा था। जब मैं सेक्स के लिए ज्यादा तड़पता था और उसे आग्रह करता था, तो वह अपनी पैंटी निकाल कर, अपना घाघरा ऊपर करके, अपनी टाँगे खोलकर निष्क्रिय पड़ी रहती थी जब मैं उसे चोदता था। मुझे उसके यह वर्ताव से दुःख होता था, पर क्या करता?

पर कभी कबार अगर जब कोई कारण वश दीपा गरम हो जाती थी तो फिर खुब जोश से चुदाई करवाती थी। जब वह गरम होती थी तो उससे सेक्स करने का मज़ा ही कुछ और होता था। इसी लिए मैं ऐसे कारण ढूंढ़ता था जिससे वह गरम हो जाए।

मेरी पत्नी को घूमने फिरनेका और सांस्कृतिक अथवा मनोरंजन के कार्यक्रमों, जैसे संगीत, कवी सम्मलेन, नाटकों, फिल्मों, पार्टियों, पिकनिक इत्यादि में जानेका बड़ा शौक था। ऐसे मौके पर वह एकदम बनठन कर तैयार हो जाती थी। और अगर उसको वह प्रोग्राम में मझा आया तो वह बड़े चाव से उसके बारे में देर रात तक मेरे साथ बैडरूम में बात करने लगती।

मैं उसीकी ही बात को दुहराते हुए उसके कपडे धीरे धीरे निकालता, उसके मम्मों को सहलाता और उसकी चूत के उभार पर हलके से मसाज करता, झुक कर उसके रसीले होँठों और बॉल को किस करता और निप्पलों को अपने दाँतों में दबा कर धीरे से काटता, फिर उसके पेट, नाभि और चूत को चाटता और उसकी चूत में उंगली डाल कर उसे गरम करता। उस समय बाते करते हुए वह भी गरम हो जाती और बड़े आनंद से मेरा साथ देती और मुझसे अच्छी तरह चुदवाती। पर ऐसा मौक़ा ज्यादा नहीं मिलता था।

हालांकि मेरी पत्नी दीपा बहुत शर्मीली, रूखी और रूढ़िवादी (मैं तो यही सोचता था) थी, पर जब उसे बाहर घूमने का मौका मिलता था तो वह अच्छे से अच्छे कपडे पहन कर तैयार होती थी। उसे कपडे पहननेका शौक था और उस समय वह शालीनता पूर्वक अपने मर्यादित अंग प्रदर्शन करने में झिझकती नहीं थी।
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#4
Wink 
एक बार हमारे क्लब में सारे मेम्बरों का सिर्फ पति पत्नी ही आमंत्रित ऐसा मिलन समारोह हुआ। उस दिन जब हम वहाँ पहुंचे तब मैंने देखा की सारे पति वर्ग मेरी पत्नी दीपा को छिप छिप कर घूर रहे थे। उन बेचारों का क्या दोष? मेरी पत्नी दीपा थी ही ऐसी। उसके स्तन एकदम भरे हुए पके बड़े आम की तरह अपने ब्लाउज में बड़ी मुश्किल से समा पाते थे। मेरी बीबी के स्तनों का नाप ३४ से कम नहीं था। मैं अपनी हथेली में एक स्तन को मुश्किल से ले पाता था। उसकी पतली कमर एवं नोकीले सुन्दर नितम्ब ऐसे थे के उसे देख कर ही अच्छे अच्छों का पानी निकल जाए। वह हमेशां पुरुषों की लालची और स्त्रियों की ईर्ष्या भरी नज़रों का शिकार रहती थी।

उस दिन क्लब के मिलन समारोह में अपने घने लम्बे बाल दीपा ने खुले छोड़ रखे थे। इससे तो वह और भी सेक्सी लग रही थी।

उसने साड़ी तो पहन रक्खीथी पर अंचल की परत और ब्लाउज की बॉर्डर स्तनों से सटकर रुक जाती थी। स्तनों के किनारे से लेकर अपनी नाभि से काफी नीचे तक (जहाँ से उसकी चूत का उभार शुरू होता था) उसकी उतनी लंबी और कामुक नंगी कमर देखने वालों की नजरें नीति भ्रष्ट कर रही थी। जिसमे उसकी नाभि और नितम्ब के अंग भंगिमा को सब ताक रहे थे। वहाँ सारे मर्दों की पैनी नजरें देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे वहां सिर्फ मेरी पत्नी ही थी और कोई औरत थी ही नहीं। हालाँकि वहां करीब पचीस से तीस औरतें थीं। मुझे पुरुषों के दीपा को लालची निगाहों से देखना, पता नहीं क्यों, अच्छा लगता था। एक कारण तो यह था की मुझे बड़े गर्व का अनुभव होता था की मेरी पत्नी उन सब की पत्नियों से ज्यादा सुन्दर और सेक्सी है।

उस समय दीपा कुछ महिलाओं से बात करने मुझसे थोड़ी दूर चली गयी। तब घोषणा हुई की अब डांस होगा। सब को अपने साथीदार के साथ डांस फ्लोर पर आने के लिए कहा गया। दीपा और मुझे ना डांस आता था और नाही कोई डांस करने में इंटरेस्ट था। तब मेरे बॉस मेरे पास आये। उन्होंने मेरे पास आकर पूछा, "हेलो दीपक, कैसे हो? क्या मैं तुम्हारी खूबसूरत बीबी के साथ डांस कर सकता हूँ?"

मैंने बॉस से कहा, "सर उसे या मुझे डांस करना नहीं आता। बाकी आप देखलो। दीपा वहाँ खड़ी है।"

मैंने महसूस किया की मेरे बॉस की लालच भरी नजर मेरी बीबी पर कभी से टिकी हुई थी। मैं तो जानता ही था की मेरा बॉस तो पहले से ही मेरी बीबी पर फ़िदा था। बॉस मुझसे दूर दीपा जहां खड़ी थी वहाँ गए और दीपा से कुछ देर बात करने के बाद उन्होंने अपने साथ डांस करने के लिए दीपा का हाथ पकड़ा और उसे डांस करने के लिए आग्रह करने लगे। दीपा थोड़ी सी नानुक्कड करने लगी पर बॉस के ज्यादा आग्रह करने पर दीपा उन्हें मना नहीं कर पायी। वह बॉस की ऋणी थी की उन्होंने कांटे के समय पैसा दे कर दीपा के पिता का जीवन बचाया था। दीपा ने मेरी और देखा। मैंने कंधे हिला कर दीपा को बॉस के साथ डांस करने के लिए मेरी स्वीकृति देदी।

दीपा उनके साथ फ्लोर पर चली गयी। बॉस ने मेरी बीबी दीपा की कमर पर हाथ रखा और डांस के लिए कुछ स्टेप्स कैसे लेते हैं वह समझाने लगे। जैसे ही वह और मेरी खूबसूरत बीबी दीपा ने डांस करने की शुरुआत की तब पता नहीं कहाँ से अपने पति के साथ दीपा को डाँस करने की शुरुआत करते देख बॉस की बीबी फ़ौरन वहाँ पहुँच गयी। बॉस की बीबी के चेहरे के भाव देख कर दीपा वहाँ से बिना बोले, अपनी कमर पर रखे बॉस के हाथ हटाकर वहाँ से खिसकी और वापस मेरे पास आ गयी। बॉस को दीपा पर लाइन मारते देख मेरे अंदर एक अजीब तरह का रोमांच हो रहा था। मुझे कुछ निराशा हुई की दीपा को मेरे बॉस के साथ डांस करने का मौक़ा नहीं मिला।

उस पार्टी में मेरा एक दोस्त तरुण था। वह हमारे कॉम्पिटिटर की कंपनी में काम करता था। पर हमारे बिच अच्छी खासी दोस्ती थी। कई बार हम टूर पर ट्रैन में या दूसरे कोई शहर में मिल जाते थे तब कई इधरउधर की बातें भी करते थे। हमारी कंपनी में काम करती लडकियां और औरतों पर भी टिका टिपण्णी करते रहते थे। हम एक दूसरे की बिबयों के बारेमें भी ऐसी ही ऊलजलूल तंज कसते रहते थे। हालांकि सारी बातें सभ्य तरीके से ही होती थीं।

तरुण मेरी ही उम्र का था और अच्छा लंबा तंदुरस्त और सुगठित मांस पेशियोँ वाला था। उस समय उसकी कोई ३०-३२ साल की उम्र रही होगी। वह गोरा चिट्टा और गोल सा चेहरे वाला था। उसके बाल जैसे काले घने बादल समान थे। उसने मैरून रंग की शर्ट पहनी थी और गले में स्कार्फ़ सा बाँध रख था। उसकी धीमी और नरम आवाज और सबके साथ सहजसे घुलमिल जानेवाले स्वभाव के कारण सब उसे पसंद करते थे। यहां तक के सारी स्त्रियां भी उससे बात करने के लिए उतावली रहतीं थी। वह आसानी से महिलाओ से अच्छी खासी दोस्ती बना लेता था। बल्कि कई बार मैंने कुछ लोगों से यह भी सूना था की तरुण जब भी किसी महिला के पीछे हाथ धो कर पड़ जाता था तो अक्सर उसे अपनी शैयाभागिनी बना ही लेता था। मतलब उसे चोदे बगैर चैन नहीं लेता था। कुछ महिलायें और पुरुष उसे चुदक्कड़ भी कह डालते थे।

पहली बार जब मैंने उसे मेरी पत्नी दीपा से मिलाया तो वह दीपा को घूरता ही रह गया। जब उसे लगा की वह ज्यादा देर तक घूर रहा था तो उसने बड़ी विनम्रता और सहजता से माफ़ी मांगते हुए कहा, "भाभीजी, मुझे आपको घूर घूर कर देखने के लिए माफ़ कीजिये। मैंने इससे पहले आप सी सुन्दर लड़की नहीं देखी। मैं तो सोच भी नहीं सकता के आप शादी शुदा हैं।"

भला कोई अगर एक शादी शुदा एक बच्चे की माँ को यह बताये की वह एक बहुत सुन्दर लड़की है, तो वह तो पिघल जायेगी ही। बस और क्या था? मेरी पत्नी दीपा तो यह सुनते ही पानी पानी हो गयी, ऐसी भूरी भूरी प्रशंशा सुनकर शर्म के मारे दीपा के गाल लाल हो गए। वह खिलखिला कर हँस पड़ी, प्रशंषा से खिल उठी और अपने आप को सम्हालते हुए बोली, "तरुण, मुझे चने के पेड़ पर मत चढ़ाओ। में जानती हूँ की मैं कोई सुन्दर नहीं हूँ। यह तो तुम्हारी आँखों का कमाल है की मैं तुम्हें सुन्दर दिखती हूँ।"

मैंने मेरी बीबी की अपनी खुली तारीफ़ से शर्माते हुई हँसी देखि और मैं समझ गया की यह तो गयी। कहते हैं ना, की हँसी तो फँसी।

वहाँ से थोड़ा हट कर बाद में दीपा मुझसे बोली, "आपका मित्र वास्तव में बड़ा सभ्य और शालीन लगता है। क्या वह शादी शुदा है?" दीपा की बात से मुझे अचरज हुआ की इतनी जल्दी दीपा ने कैसे तय कर लिया की तरुण सभ्य और शालीन था?

तरुण हमें छोड़ कर कुछ और लोगों से मिलने चला गया। पर मैंने यह नोटिस किया की मेरी बीबी, तरुण से कुछ हद तक इम्प्रेस जरूर हुई थी। क्यूंकि हालांकि तरुण कुछ दुरी पर दूसरे छोर पर गया था, पर दीपा उसको कभी कभी अपनी तिरछी नज़रों से देखती अथवा ढूंढती रहती थी। तरुण भी तो बारी बारी मेरी बीबी को ताकता रहता था। जब उनकी नजरें मिल जातीं तो दीपा शर्मा कर थोड़ा सा मुस्करा कर अपनीं नज़रें घुमा लेती थी जैसे वह कहीं और देख रही हो।

मैंने मेरी बीबी से धीरे से कहा, "देखो डार्लिंग, तरुण ना सिर्फ शादीशुदा है, बल्कि वह एक बड़ा फ़्लर्ट भी है। मैंने सूना है की वह जिस औरत को पाने की ठान लेता है तो वह उसे अपने साथ बिस्तर में सुलाकर उसे चोद कर ही छोड़ता है। और इसमें खूबसूरती तो यह है की वह औरत को ऐसा इम्प्रेस कर देता है की वह भी उससे चुदवाने के लिए तड़पने लगती है। तुम तो उससे दूर ही रहना।"

मेरी बात सुनकर दीपा चौंक गयी और बोली, "क्या कहते हो? पर खैर मुझे क्या? मैंने जिंदगी में बड़े बड़े फ़्लर्ट देखें हैं और उनको चित्त किया है। मुझे उससे मिल ने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह तो तुम्हारा दोस्त है इस लिए मैं उससे बातें कर रही थी, वरना मुझे क्या? वैसे मुझे भी वह फ़्लर्ट ही लगा।"

मैं मन ही मन मुस्कराया। अभी अभी तो दीपा तरुण को शालीन कह रही थी। अचानक वह फ़्लर्ट हो गया? तब अचानक मेरे मन में एक ख्याल आया। मुझे तरुण का मेरी बीबी पर लाइन मारना बड़ा ही उत्तेजक लगा। मुझे लगा की शायद तरुण ही मेरी बीबी को अपने जाल में फाँस कर उसे वश कर सकता है। उसमें कैसे स्त्रियों से पेश आना और उन्हें ललचाना वह एक कला थी। एक अच्छी बात यह भी थी की तरुण कभी भी किसी भी महिला के बारे में असभ्यता भरी बात नहीं करता था। कभी उसने उसके पुराने अफेयर्स के बारे में मुझसे या किसी और से कोई बात नहीं की। मतलब वह सारी बातें कैसे सीक्रेट रखना वह भाली भाँती जानता था। उसका और उसके परिवार का अपना भी समाज में सम्मान था। मतलब उससे निजी सम्बन्ध रखने में जोखिम नहीं था। पता नहीं क्यों, मैं मेरी बीबी को तरुण के करीब लाना चाहने लगा। मैंने सोचा तरुण मेरी बीबी को फाँस कर चोदने की स्थिति तक लाने में कामयाब हो सकता है। यह सोच कर ही मेरा लण्ड मेरी पतलून में खड़ा हो गया।

पर तब मेरे तरुण के बारे में ऐसी नकारात्मक बात करने से दीपा के ऊपर उलटा असर होगा उसकी चिंता सताने लगी। अगर दीपा मेरी बात से भड़क गयी और तरुण से दूर रह कर उससे किनारा करने लगी तो फिर तो तरुण का दीपा को फाँसने में कामयाब होना नामुमकिन था।

तब मैंने अपनी ही बात को पलटते हुए दीपा से कहा, "अरे यार! परेशान मत हो। मैं तो तुम्हें फ़ालतू में चिढ़ा रहा था। तरुण ऐसा बिलकुल नहीं है। बेचारा तरुण शादीशुदा और सीधा है। उसकी एक बेटी भी है। हाँ यह सच है की वह तुम से शायद थोड़ा आकर्षित जरूर हुआ लगता है। पर मेरे ख़याल से इस महफ़िल मैं शायद ही कोई मर्द ऐसा हो जो तुम पर लाइन नहीं मार रहा।"

दीपा ने मेरी और टेढ़ी नज़रों से देखा और मुझे डाँटते हुए बोली, "तुम हमेशा ऊलजलूल बातें करते रहते हो। ऐसे किसी के बारे में गलत नहीं बोलना चाहिए। क्यों उस बेचारे सीधे सादे तरुण को फ़ालतू में बदनाम करते हो? ऐसी बातें करने से उसकी बदनामी हो सकती है। कहीं तुम्हें उससे जलन तो नहीं?" उसके चेहरे से लगा की वह मेरी बात से संतुष्ट और खुश लग रही थी।


मैं अपनी बीबी को कुछ लोगों से मिलाकर, जब वह किसी महिलाओं से बातचीत में मशगूल थी तब तरुण जिस जगह था वहाँ पहुंचा। मैं तरुण के करीब गया और बोला, "क्यों यार, क्या बात है? तुमने तो पहली बार मिलते ही मेरी बीबी पर लाइन मारना शुरू कर दिया।"

मेरी बात सुनकर तरुण कुछ खिसियाना सा मुझे देखता रहा। फिर सर झुका कर बोला, "आई ऍम सॉरी भाई। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। भाई, दीपा भाभी है ही बहुत खूबसूरत। आप बड़े लकी हो भाई।"

मैंने तरुण की कमर में मजाक में ही कोहनी मारते हुए कहा, "साले, मैं मजाक कर रहा था। वैसे जितनी चाहे लाइन मार ले, पर तेरी दाल गलने वाली है नहीं। मेरी बीबी ऐसी वैसी नहीं है। बड़ी ही पतिव्रता है। वह तेरी और देखेगी भी नहीं। तेरी जाल में फंसने वाली नहीं है। तू कहीं और अपने तीर चला।"

तरुण ने मेरी और घूम कर देखा और बोला, "भाई, ऐसे भरोसे में मत रहियो। अच्छी अच्छी सतियाँ भी फँस जातीं है, कई बार। वैसे आप कहोगे तो मैं भाभी से दूर ही रहूँगा।"

मैंने सोचा यह सही मौक़ा है तरुण को चुनौती दे कर उकसाने का। मैंने जवाब दिया, "अच्छा बच्चू! क्या तू मुझे चुनौती दे रहा है? अरे तुझे रोका किसने है? चाहे उतना जोर लगाले। कुछ नहीं होने वाला। बल्कि जरूर पड़ी तो मैं तेरी सिफारिश भी कर दूंगा। पर यार एक बात बता। मेरी बीबी को ताड़ने के मजे तो तू ले रहा है। पर क्या अपनी बीबी से नहीं मिलाओगे?"

तरुण ने कहा, "भाई, टीना आ ही रही है। आप तो उसे मिले हो। अगर आपको मेरा दीपा भाभी को घूरने से शिकायत है तो बदले में आप चाहे जितनी लाइन मार लेना मेरी बीबी टीना पर बस? मैं कुछ नहीं बोलूंगा। बल्कि जैसे आपने कहा वैसे मैं भी आप की शिफारिश करूंगा। भाई आपने जब चुनौती दे ही दी है तो अब देखते हैं कौन पहले बाजी मारता है।" मैं मन ही मन बड़ा खुश हुआ की अगर भगवान ने चाहा तो मेरी और तरुण की सेटिंग ठीक बैठ सकती है।

तभी तरुण की पत्नी टीना जो कही बाहर गयी थी वह कमरे में दाखिल हुई। उसके आते ही तरुण उसके पास पहुँच गया और उसको मुझसे और दीपा से मिलवाने ले आया। टीना थोड़ी लम्बी और तने हुए बदन की थी। उसकी मुस्कान मुझे बहुत आकर्षक लगती थी। दोनों पत्नियां मिली और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद दीपा और मैं एक और कपल से बातचीत करते हुए दूसरे कोने में जा के बैठ गए।

मैं देख रहा था की बार बार घूम फिर कर तरुण की आँखे मेरी बीबी को ताक रहीं थी। शायद दीपा ने भी यह महसूस किया होगा, पर वह कुछ न बोली। जब जब दोनों की आँखें मिलती थीं तो दीपा बरबस अपनी नजरें झुका लेती थी या कहीं और देखने लगती थी। यह मैंने कई बार देखा। मुझे ऐसे लग रहा था जैसे तरुण दीपा पर फ़िदा ही हो गया था। कुछ देर बाद तरुण खड़ा हो कर हॉल में इधर उधर घूम रहा था। तरुण की पत्नी टीना किसी और महिला से बातचीत करनेमें व्यस्त थी। घूमते घूमते जैसे स्वाभाविक रूपसे वह हमारे सामने आ खड़ा हुआ।

बड़ी सरलता से उसने अपना हाथ लम्बाया और अपना सर थोड़ा झुका कर उसने दीपा को डांस करने को आमंत्रित किया।

दीपा ने भोलेपन से कहा, "पर मुझे तो डांस करना नहीं आता।"

तरुण ने कहा, "यहां डांस कर रहे लोगों में से कितनों को आता है? आप चिंता मत करो। मैं आप को कुछ स्टेप्स सीखा दूंगा।"

दीपा ने मेरी तरफ देखा। वह मेरी इजाजत चाह रही थी। मैंने अपना सर हिला कर उसे इजाजत दे दी। दीपा तैयार हो गयी। मैंने देखा की तरुण मेरी पत्नी को अपनी बाँहों में लेकर एक हाथ उसकी कमर दूसरा उसके कंधे पर रखकर एकदम करीब से उसे स्टेप्स सीखा ने लगा। उनके डांस शुरू करने के दो तिन मिनट में ही संगीत की लय धीमी हो गयी जिससे डांस करने वाले एक दूसरे से लिपट कर डांस कर सके।

मैं उसी समय वाशरूम में जानेका बहाना करके खिसक गया और ऐसी जगह छिप गया जहाँसे मैं तो उन्हें देख सकता था, पर वह मुझे नहीं देख सकते थे। मैंने महसूस किया की तरुण की कुछ हरकतें महसूस कर मेरी बीबी कुछ अजीब फील कर रही थी। मेरी पत्नी बिच बिच में मुझे ढूंढ ने का प्रयास कर रही थी। मैंने देखा की तरुण मेरी पत्नी के साथ कुछ ऐसे स्टेप्स लेता था जिससे उन दोनों की कमर और उससे निचला हिस्सा और जिस्म एकदूसरे के साथ रगड़े। इस तरह दोनों ने थोड़े समय डांस किया।

तरुण को मेरी पत्नी के साथ अपने शरीर को रगड़ते हुए डांस करते देख कर मैं एकदम उत्तेजित सा हो गया। मुझे इसकी ईर्ष्या आनी चाहिए थी। पर उल्टा मैं तो गरम हो गया। पतलून में मेरा लण्ड खड़ा हो गया; जैसे की मैं चाहता था की तरुण मेरी पत्नी के साथ और भी छूट ले। मुझे मेरी पत्नी का पर पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध का विचार उकसाने लगा।

जब मैं वापस आया तो तरुण की पत्नी उसके पति को मेरी सुन्दर पत्नी के साथ करीब से डांस करते देख रही थी। मुझे टीना बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं तरुण की पत्नी टीना की और बहुत आकर्षित था, पर अपने विचारों को मन में ही दबा कर रखता था।

टीना का आकर्षण मुझे तीन कारणों से बहुत ज्यादा लगा। एक उसकी सेक्सी आँखें। मुझे हमेशा ऐसा लगता था जैसे वह मुझे अपने पास बुला रही है और चुनौती दे रही है की हिम्मत हो तो पास आओ। दूसरे उसके भरे और उफान मारते हुए स्तन (मम्मे ) जो उसके ब्लाउज और ब्रा का बंधन तोड़कर खुल जाने के लिए व्याकुल लग रहे थे। जैसे ही वह चलती थी तो उसकी छाती के दोनों परिपक्व फल ऐसे हिलते थे जैसे बारिश के मौसम में हवा के तेज झोँकोँ पर डालियाँ हिलती हैं। और तीसरे उसके कूल्हे। उसके बदन के परिमाण में वह थोड़े बड़े थे। पर थे बड़े सुडौल और सुगठित। अक्सर औरतो के बड़े कूल्हे भद्दे लगते हैं। पर टीना के कूल्हों को नंगा करके सहलाने का मेरा मन करता था।

मैंने आगे बढ़ कर उसको डांस करने के लिए आमंत्रित किया। वह मना कैसे करती? जिसकी पत्नी उसके पति के साथ डांस कर रही हो तो उसी के पति के साथ डांस करने से हिसाब बराबर हो जाता है ना? तरुण की पत्नी तैयार हो गयी। वह बहुत सुन्दर थी। शायद दीपा और टीना में सुंदरता का मुकाबला हो तो यह कहना बड़ा मुश्किल होगा की कौन ज्यादा सुन्दर है। फर्क सिर्फ इतना ही था की टीना थोड़ी सी ज्यादा भरे बदन की थी, जब की दीपा थोड़ी सी पतली थी। ज्यादा फर्क नहींथा।

अब चिंता करने की बारी मेरी थी। मैं भी टीना के साथ टीना के बदन से अपना बदन रगड़ कर कुछ ज्यादा ही नजदीकी स्टेप्स लेना चाह रहा था। मैं मेरी बीबी और तरुण की नजर में नहीं आना चाह रहा था। मैं धीरे धीरे डान्स करते हुए टीना को हॉल के दूसरे छोर पर ले गया। में फिर धीरे धीरे अपनी जांघें टीना की जाँघों के साथ रगड़ना और उसकी कमर को मेरी कमर से चिपका कर कपड़ों के अंदर छुपी हुई उसकी चूत में मेरा खड़ा लण्ड घुसेड़ने की कवायद करने की कोशिश में लग गया। आश्चर्य की बात तो यह थी की टीना को इससे कोई आपत्ति नहीं लग रही थी। बल्कि वह भी मुझे पूरा साथ दे रही थी।

मैं डांस ख़त्म होने के बाद जब अपनी पत्नी से मिला तो मैंने उसको ये जताया की उनके डांस शुरू होने के तुरंत बाद मैं वाशरूम गया था और वहां कोई मिल गया था उससे बात कर रहा था। ये जाहिर होने नहीं दिया की मैंने उसको और तरुण को बदन रगड़ते हुए डांस करते देखा था और मैंने भी वैसा ही डान्स टीना के साथ भी किया था।

जब हम वापस जा रहे थे तो मैंने दीपा से कहा, "यार आज वह बॉस की दिल जली बीबी के कारण बॉस तुम्हारे साथ डांस करने का एक बढ़िया मौक़ा चूक गए। बॉस बड़े ही अच्छे आदमी है और मुझसे बहुत खुश है। मेरा बड़ा आदर करते है। उन्होंने मुझे कहा है की उन्हें मेरे जैसे मेहनती और रिजल्ट लाने वाले आदमियों की सख्त जरुरत है। वह तो मुझे प्रमोशन देने की बात भी कर रहे है। और हाँ, मुझे यकीन है की वह तुम पर भी फ़िदा है। उनकी नजर तुम पर से हट ही नहीं रही थी। वह तुम्हारे साथ डांस करने के लिए बेताब थे। तुमको वहाँ से हट नहीं जाना चाहिए था। शायद वह कपड़ों के ऊपर से ही सही पर तुम्हारे करारे बदन का अपना बदन रगड़ कर थोड़ा बहोत का आस्वादन लेना चाहते थे। मुझे लगता है वह तुम्हें सपने में पता नहीं क्या करते होंगे? आज वह बेचारे बहुत ही दुखी होंगे। उनकी बीबी ने तो आज उन्हें बड़ा झटका दे दिया।"

मेरी बात सुनकर पहले तो दीपा के गाल शर्म से लाल हो गए। पर तुरंत बाद वह मुझसे चिढ गयी। दीपा ने कहा, "पता नहीं कभी कभी तुम्हें क्या हो जाता है और वैसे ही फ़ालतू बातें करने लगते हो? तुम्हारे दिमाग में सेक्स के अलावा कुछ है की नहीं? मैं तो उनसे डांस करने के लिए तैयार थी, पर उनकी बीबी शायद यह नहीं चाहती थी। इसी लिए मैं वहाँ से हट गयी। कहीं उनको बुरा तो नहीं लगा होगा की मैं वहाँ से हट गयी? आपके बॉस वाकई में अच्छे हैं, पर पता नहीं कैसी औरत से शादी कर बैठे? खैर, अगर मेरे पति को कोई आपत्ति न हो तो भला मुझे किसी के साथ भी डांस करने में क्या आपत्ति हो सकती है? पर अगर तुम्हें मेरे डांस करने से ऐसा लगता है की लोग मेरे बदन से बदन रगड़ रहे हैं और तुम्हें जलन हो रही है तो तुम्हें मुझे इजाजत नहीं देनी चाहिए। तुम बॉस से मेरी तरफ से मांफी मांग लेना।"

मैंने कहा, "मेरे माफ़ी मांगने से क्या होगा? सही तो यही होगा की मौक़ा मिलने पर तुम ही उनसे बात करना।"

दीपा ने कहा, "ठीक है, अगर वह तुम पर खुश है तो अगली बार जब तुम मिलाओगे तो मैं उनसे माफ़ी भी मांग लुंगी और उनकी नाराजगी दूर कर दूंगी। मुझे लगा की उनकी बीबी कुछ पंगा कर सकती है इस लिए मैं वहाँ से खिसक गयी। अगर उनकी बीबी को एतराज ना होता तो मैं उनके साथ डांस कर लेती। अगर वह मेरे साथ डांस करने से ही खुश हो जाता तो क्या प्रॉब्लम है? और तुम खुश तो मैं भी खुश।"

मैंने दीपा से पूछा, "क्या तरुण के साथ डांस करने में तुम्हे मझा आया?"

दीपा ने कहा, "इसमें मझे की क्या बात है? एक रस्म है डांस करने की तो मैंने निभाई, वर्ना डांस में क्या रखा है?"

तब मैंने अपनी भोली सी पत्नीसे कहा, "सारी कहानी डांस से ही तो शुरू होती है। पहले डांस, फिर एक दूसरे के बदन पर हाथ फेरना फिर और करीब से छूना, छेड़ खानी करना, बार बार मिलते रहना, मीठी मीठी बातें करके पटाते रहना और आखिर में सेक्स।"

दीपा मेरी तरफ थोडासा घबराते हुए देखने लगी और बोली, "दीपक, क्या डांस इसी लिए करते है? फिर तो गड़बड़ हो गयी। मुझे क्या पता? अब तरुण क्या सोचेगा? वह सोचेगा दीपा भाभी तो फिसल गयी। शायद इसी लिए वह मुझे दुबारा कब मिलेंगे ऐसे पूछने लगा। यह तो गलत हुआ। अब में क्या करूँ?"

मैंने हँसते हुए मेरी प्यारी पत्नी से कहा, "तुम ज़रा भी चिंता मत करो। मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था। ऐसे कोई नहीं समझता। डांस करना तो आम बात है। पर हाँ, मैंने देखा था की तरुण तुम्हारे साथ डांस करते करते काफी गरम हो गया था। उसकी पतलून में उसका लण्ड खड़ा हो गया था। क्या तुमने अनुभव नहीं किया?" तरुण और दीपा ने चिपककर जो डांस किया था उसके बारेमें ना तो मैंने दीपा से पूछा था ना दीपा ने मुझे बताया था ।

दीपा झेंप गयी। उसके गाल लाल से हो गए। तब मैं समझ गया की दीपा ने भी तरुण के लण्ड को महसूस किया था। शायद वह इसे नजर अंदाज़ कर गयी। मैंने उसे ढाढस देते हुए कहा, "ऐसे तो होता ही है। अगर उसका लण्ड कड़क हो गया तो उसके लिए तुम ही जिम्मेवार हो।"

दीपा ने मेरी और सख्त नजर से देखा और बोली, "वह कैसे?"

मैंने कहा, "उसका क्या दोष? तुम चीज़ ही ऐसी हो। तुम इतनी सेक्सी हो की तुम्हे देखकर ही अच्छे अच्छों का खड़ा क्या हो जाए उनका पानी भी निकल जाये। और फिर तरुण तो तुम्हारी जाँघों से जांघें रगड़ कर डांस जो कर रहा था? उसका कैसे खड़ा ना होता?"

दीपा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, "तुम भी तो टीना से बड़े चिपक चिपक कर डांस कर रहे थे। क्या तुम्हारा खड़ा नहीं हुआ था?" अब चुप रहने की बारी मेरी थी।

मैंने धीरे से कहा, "चलो हिसाब बराबर हो गया।"
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#5
Wink 
उस समय जयपुर बड़ी ही शांत जगह हुआ करती थी। हम एक शांत अच्छी कॉलोनी में रहते थे। तरुण हमसे करीब ३ किलो मीटर दूर दूसरी कॉलोनी में रहता था। उस पार्टी के कुछ ही समय के बाद तरुण ने मेरी कंपनी छोड़ दूसरी कंपनी में ज्वाइन कर लिया। उसे करीब एक साल हो चला था। इस बिच हमारी घनिष्ठता बढ़ी और हम एक दूसरे के घर जाने लगे। तरुण की पत्नी टीना और मेरी पत्नी दीपा दोनों एक दूसरे की ख़ास सहेलियां बन गयीं।


हम एक दूसरे के घर भी जाते थे और कई बार बाहर लंच या डिनर भी करते थे। हर बार मैं देखता था की तरुण अपनी बीबी की नजर चुरा कर मेरी बीबी पर डोरे डालने की कशिश से बाज नहीं आता था। दीपा ने भी यह महसूस किया और एकाध बार मुझसे शिकायत भी की। पर मैंने उसकी शिकायतों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। वैसे मैं भी तो दीपा की नजर चुकाकर टीना पर डोरे डाल रहा था। और टीना यह भली भाँती जानती थी। फर्क इतना ही था की टीना मुझे वापस स्माइल देती थी जब की दीपा आँखों से ही तरुण को हड़का देती थी।

हम एक दूसरे से चोरी छुपे एक दूसरे की पत्नियों को ललचा ने की कोशिश में लगे हुए थे। पर हमें बढ़िया मौका नहीं मिल रहा था। मैं टीना करीब जाने के लिए लालायित था और तरुण दीपा की और आकर्षित हुआ था। पर हमारी पत्नियां एक दूसरे के पति को कोई घास नहीं डाल रही थी। तरुण और मैं मिलते तो थे पर स्पष्ट बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

तरुण मेरे घर कई बार आता था। कई बार मैं घर में नहीं भी होता था। मेरी पत्नी दीपा उसे पानी चाय पिला देती थी, पर ज्यादा बात नहीं करती थी। तरुण जब भी मेरी अनुपस्थिति में घर आता था तो दीपा मुझे तरुण के आने के बारे में बता देती थी। एक बार दीपा ने मुझे कहा की तरुण की नियत कुछ ठीक नहीं लगती। दीपा को लगा की वह उसपर शायद लाइन मार रहा है। सुनकर मैं मनमें ही बड़ा उत्तेजित हो गया।

दीपा तरुण की शिकायत तो करती पर फिर चुप हो जाती और दुबारा उस बात को नहीं छेड़ती थी। इससे मुझे यह शंका हुई की मेरी बीबी कहीं शिकायत करने की एक औपचारिकता या खानापूर्ति ही तो नहीं कर रही थी, ताकि उस पर कभी यह इल्जाम ना लगे की जब भी तरुण उसपर दाना डालने की कोशिश कर रहा था तो उसने उसकी शिकायत क्यों नहीं की?

यदि तरुण मेरी पत्नी के पीछे पड़ा है तो इससे मैंने दो फायदे देखे। एक तो यह की तरुण का इतिहास और चरित्र देखते हुए तो यही लग रहा था दीपा के साथ वह कुछ न कुछ तो करेगा ही। यह सोच कर मेरी धड़कन बढ़ गयी। मैं चाहता था की मेरी पत्नी और तरुण के बिच बात आगे बढे। तभी तो मैं भी उसकी बीबी के पास आसानी से जा सकता था। हालांकि मेरी पत्नी तरुण से काफी प्रभावित तो थी परन्तु वह तरुण को जराभी आगे बढ़ने मौका नहीं दे रही थी।

एक बार तरुण ने प्रस्ताव दिया की हम शहर के बाहर एक पार्क में पिकनिक के लिए जाएँ। इतवार को हम दोनों कपल अपने अपने मोटर साइकिल पर निकल पड़े। वहाँ पार्क में हम ने कुछ और आये हुए लोगों के साथ मिलकर पकडा पकड़ी का खेल खेला जब हमें एक दूसरे की बीबियों को छूने का अच्छा अवसर मिला। उस समय मैंने देखा की तरुण जब दीपा को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा तब दीपा उससे बचने के लिए भागी पर एक पत्थर की ठोकर लगने से गिरने लगी तब तरुण ने उसे अपनी बाँहों में थाम लिया और अच्छी तरह कस कर अपनी बाहों में जकड़ा। कुछ दुरी होने के कारण मैं ठीक से देख नहीं पाया पर मुझे लगा की उसने दीपा के बूब्स भी अच्छी तरह दबाये। आखिर में दीपा ने झटका मार कर अपने आपको तरुण से अलग कर दिया।

मैंने भी उसी खेल में टीना को एक बार पकड़ा और अपने बदन से जकड कर रखा। दीपा की तरह टीना ने कोई विरोध नहीं किया और मुझे कोई झटका नहीं दिया और जब तक मैंने उसे जकड कर रखा, वह मेरी बाहों में खड़ी मैं आगे कुछ करता हूँ या नहीं उसका इंतजार करती रही। तभी मुझे दीपा दिखी, आखिर मैं मैंने ही उसे दीपा के डर के मारे छोड़ दिया।

मैंने दीपा को जब तरुण की बाँहों में जकड़े जाने की बात कह कर दीपा पर तंज कसने की कोशिश की तब फ़ौरन दीपा ने कहा, "ओह मिस्टर! तुम मर्दों को इधर उधर मुंह मारने की आदत क्यों है? अपनी बीबी से संतुष्टि नहीं होती क्या? तरुण की बात छोडो, तुम भी तो कोई कम नहीं हो। दोनों मर्द ना, एक दूसरे की बीबी पर लाएन मार रहे हो ऐसा मुझे लग रहा है। टीना का तो मुझे पता नहीं, पर तुम अपने दोस्त को तो कह देना की मुझसे दूर ही रहें। मैं तुम लोगों की चाल मैं नहीं फँसने वाली।"

उस बात के करीब दो या तीन हफ्ते बाद एक दिन मेरी अनुपस्थिति में तरुण मेरे घर पहुँच गया। वह जोधपुर से कुछ हेंडीक्राफ्ट ले आया था। उस ने मेरी पत्नी दीपा को वह उपहार देना चाहा। दीपा ने ना सिर्फ उसे लेने से इंकार कर दिया बल्कि तरुण को बुरी तरह झाड़ दिया और तरुण को हिदायत दी की ऐसा करके वह उसे ललचाने की कोशिश ना करे। दीपा ने तरुण को कहा, "देखो तरुण! हमारे तुम्हारे और टीना के सम्बन्ध इतने अच्छे हैं। मैं आपका सम्मान करती हूँ। आप अकेले में आकर मुझसे मिलकर मुझे ललचाने की कोशिश क्यों करते हैं? मेरे पति की हाजरी में हम कुछ हँसी मजाक कर लेते हैं, कुछ छेड़खानी कर लते हैं यह दिल्लगी ठीक है। पर यह मत सोचना की मैं मेरे पति को धोखा देकर तुमसे कोई सम्बन्ध रखूंगी। प्लीज ऐसा कर के हमारे समबन्धों को आहत मत करो।"

तरुण मायूस सा हो गया और बिना कुछ बोले वहाँ से दुखी हो कर उठ कर चला गया। दीपा ने जाते हुए तरुण का मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो उसे भी दुःख हुआ पर कुछ बोली नहीं और तरुण के पीछे दरवाजा बंद कर दिया।

जब हम अगली बार मिले तो मैंने तरुण को दुखी देख कर पूछा की आखिर बात क्या थी। तरुण ने बताया की वह जोधपुर गया था और वहां से एक अच्छे हेंडीक्राफ्ट के दो सैंपल लाया था जिसमे से एक वह हमें देना चाहता था, पर दीपा ने उसे हड़का दिया। तरुणने बात बात में मुझसे कहा की उसका मेरे छोटे से बेटे से खेलने का बहुत मन करता है। मेरा बेटा तरुण से काफी घुलमिल गया था। तरुण चाहता था की वह उसके लिए कुछ खिलौना लाये, पर वह दीपा से डरता था।

तब मैंने उसे कहा, "देखा? मैं तुम्हें ना कहता था? मेरी बीबी को पटाना इतना आसान नहीं है। खैर, तुम्हें चिंता करने की कोई जरुरत नहीं। मैं दीपा से आज रात जरूर बात करूंगा और उसे मना लूंगा।"

तरुण ने मेरा हाथ थाम कर मेरा शुक्रिया कहा।

उस रात जब हम सोने के लिए तैयार हुए तब मैंने दीपा को बाँहों में लिया और अपनी गोद में बिठा कर उसे प्यार जताने लगा। दीपा भी कुछ देर बाद जब गरम हो गयी तो मैंने मेरे होँठ मेरी बीबी के होंठ पर रखते हुए कहा, "दीपा डार्लिंग, आपने तरुण का दिल क्यों दुखाया? वह बेचारा हमारे लिए कुछ छोटी मोटी गिफ्ट लाया तो आपने उसे बुरी तरह से डांट दिया।"

यह सुन दीपा खिसिया गयी और बोली, "मुझे पता नहीं था की वह इस बारेमें आपसे बात करता है। मैंने सोचा शायद वह आपसे छुपाकर मुझसे मिलने आता है और ऐसे उपहार देकर मुझे पटाने की कोशिश कर रहा है।"

मैंने मेरी बीबी के गाउन में हाथ डालकर उसके बॉल को मसलते हुए कहा, "दीपा डार्लिंग, तुम तो कमाल हो! ऐसा नहीं है। वह मुझे सब कुछ बताता है। उसने मुझे फ़ोन पर बताया था की वह गिफ्ट लाया था और हमें देना चाहता था। मैंने उसे कहा ठीक है, आते जाते जब वक्त मिले तब दे देना। मैंने ही उसे हमारे यहाँ आकर मुन्नुसे खेलने के लिए कहा है। उसकी गिफ्ट तुमने वापस की तो वह बड़ा दुखी है। तुम उसकी गिफ्ट का गलत मतलब मत निकालना। वह गिफ्ट दे तो ले लेना।"

मेरी बात सुनकर दीपा कुछ सोचने लगी। मैंने मेरी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं मानता हूँ की वह तुम्हारी तरफ आकर्षित है। हो सकता है वह तुम्हें पटाने की कोशिश भी करता हो। तो यार क्या हुआ? उसमे भला उसका क्या दोष? भला कौन मर्द ऐसा है जो तुमसे आकर्षित न होगा और तुम्हें पटाने की कोशिश नहीं करेगा? क्या मेरा बॉस तुम्हें पटाने की कोशिश नहीं कर रहा? तुम इतनी सेक्सी जो हो। मुझसे शादी करने के लिए भी क्या मैंने तुम्हें नहीं पटाया था? शादी के पहले जब मैं और तुम तुम्हारी भाभी के साथ हिल स्टेशन पर गए थे तब रात में तुम जब मना कर रही थी तब तुम्हें चोदने के लिए मैंने कितने हथकंडे अपनाये थे और आखिर में तुम्हें पटा ही लिया था ना? और अभी भी जब तुम चुदाई करवाने में नानुक्कड करती हो तो तुम्हें चुदवाने के लिए राजी करने के लिए पटाना पड़ता है की नहीं? इन बातों को माइंड मत करो और इसकी आदत डाल लो। "

ऐसा कह कर मैंने दीपा को यह कह दिया की तरुण उसके प्रति आकर्षित है और अगर उसे पटाने की कोशिश कर रहा था तो वह स्वाभाविक था। बल्कि मैंने बात बात में यह भी इशारा कर दिया की हो सकता है की तरुण उसे चुदवाने के लिए पटाने की ही कोशिश कर रहा हो।

दीपा ने थोड़ा शर्मा कर और उलझन भरी आवाज में जैसे ऊपर वाले से बात कर रही हो ऐसे दोनों हाथ ऊपर कर बोली, "हे भगवान! मेरा पति तो कमाल का है। अपने दोस्त की कितनी तरफदारी कर रहा है? ठीक है बाबा, मैं मानती हूँ की गलती हो गयी। तुम कह रहे हो तो मैं उससे गिफ्ट ले लुंगी। अबसे मैं तुम्हारे दोस्त का ध्यान रखूंगी। उसे नहीं डाटूँगी, बस? अब तो खुश?"

मैंने दीपा के पास जाकर उसे बाँहों में भर कर एक चुम्बन कर लिया। मुझे ऐसे लगा जैसे मरी पत्नी ने मेरी यह बात सुन कर राहत की सांस ली। वह मेरी बात सुनकर खुश दिख रही थी। मुझे लगा जैसे मैंने उसके मन की बात ही कह डाली। शायद उसे खुद अफ़सोस हो रहा था की क्यों उसने तरुण को इतनी मामूली बात को लेकर इतना ज्यादा डाँट दिया था।

दीपा ने भी मेरे होंठ से होंठ चिपका कर और मेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर मेरा रस चूसते हुए मेरी बाँहों में सिमटकर बोली, "तुम बहुत ही भले इंसान और संवेदनशील पति हो। तुम्हारी जगह कोई और होता तो अपने दोस्त को इतना सपोर्ट न करता। मुझे तरुण का चाल चलन ठीक नहीं लग रहा था और इसी वजह से मैं उसे दूर रखना चाहती थी। उस दिन पिकनिक में भी जब मैं गिरने लगी थी तब उसने मुझे गिरने से तो बचा लिया पर बादमें उसने मुझे अपनों बाँहों में जकड लिया और अगर मैं उसे झटका दे कर हटा ना देती तो हो सकता है वह मुझे और भी छेड़ता। मेरी समझ में नहीं आया की मैं तरुण को मुझे बचाने के लिए शुक्रिया अदा करूँ या छेड़ने के लिए उसे डाटूँ? कई बार मुझे लगता है को वह एक अच्छा इंसान है। कभी कभी लगता है की वह मुझ पर फ़िदा है और मुझ पर डोरे डाल रहा है। अब तुम मुझे रोक रहे हो और उसे छूट दे रहे हो तो फिर मैं कया करूँ?"

एक पल के लिए मुझे लगा जैसे मेरी पत्नी ने अपनी नाराजगी और असहायता प्रगट की। फिर उस ने आँख नचाते हुए कहा, "मेरी राय में तो ऐसे चालु दोस्त को ज्यादा लिफ्ट देना ठीक नहीं , कहीं ऐसा न हो की वह तुम्हारी बीबी को फाँस ले और तुम हाथ मलते रह जाओ।"

मैं कहाँ चुप रहने वाला था। मैंने भी दीपा से उसी लहजे में कहा, "डार्लिंग तुम अपने आप को जानती हो उससे मैं तुम्हे ज्यादा अच्छा जानता हूँ। मैं जानता हूँ की तुम पर कोई कितने ही डोरे डाले या ऐसा हो जाए की आवेश में तुम किसी के साथ कुछ कर भी लो फिर भी तुम मेरी ही रहोगी। हमारे तन मात्र की ही शादी नहीं हुयी, शादी हमारे मन की और परिवार की भी तो हुयी है , सही है या गलत?"

मेरी सीधी सादी बीबी कुछ सोचमें पड़ गयी और फिर अपना सर हिलाते हुए कहा, "खैर वह तो तुम सही कह रहे हो।"

फिर वह मुझसे लिपट गयी और बोली, "डार्लिंग क्या सच में तुम्हें तुम्हारी पत्नी पर इतना विश्वास है?

मैंने बेझिझक कहा, "जितना तुम समझ रही हो उससे कहीं ज्यादा।" उस वक्त ही मैं समझ गया की मेरी घरेलु वफादार पत्नी असमंजस में तो है परंतु थोड़ी सी पिघली भी है।

मैंने दीपा को बाँहों में और करीब दबाते उसके ब्लाउज में हाथ डाला। उसके रसीले स्तन युगल को बारी बारी दबाते और उसकी निप्पल को सहलाते और दबाते हुए और भी छेड़ा। मैंने कहा, " कल हम तुम्हारे और टीना के बारे में बात कर रहे थे। हम दोनों अपनी बीबियों की तारीफ़ कर रहे थे। मैं जानता हूँ की वह तुम्हारे पीछे पागल है, पर बात ऐसे करता है की क्या बताऊँ? पता है वह कल क्या कह रहा था?"

दीपा ने मेरी और देखा और पूछा, "क्या?"

मैंने कहा, "वह तुम्हारे बारे में कह रहा था की दीपा भाभी बहुत ही खूबसूरत है पर टीना ज्यादा सेक्सी है। वह कह रहा था की टीना की फिगर कम कपड़ों में खिलकर उभरती है। वह कह रहा था की टीना को कॉलेज में "मिस यूनिवर्सिटी स्वीम्मर" से नवाजा गया था।"

दीपा बड़े ध्यान से सुन रही थी। वह धीमे से बोली, "तुम दोनों हमारे बारे में ऐसी बातें कर रहे थे? खैर फिर क्या हुआ?"


मैंने उससे पूछा, "सेक्सी का क्या मीनिंग है?"

तब उसने कहा, "जिसे देख कर उसे पाने का मन करे। मतलब जिसे देख कर उसे चोदने का मन करे वह सेक्सी है।"

मेरी बात सुनकर दीपा चौंक गयी। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव दिख रहे थे। उसने कहा, "बापरे! तुम मर्द लोग क्या क्या बातें करते हो?" फिर कुछ निराश स्वर में बोली, "वैसे तरुण फ़ालतू में ही मेरी बड़ाई कर रहा था। टीना मुझसे ज्यादा सुन्दर भी है और सेक्सी भी है। इसमें कोई शक नहीं।"

मैंने गुस्से में उबलते हुए कहा, "झूठ बोला तरुण ने। अपनी बीबी की झूठी बड़ाई कर रहा था वह। हकीकत तो यह है की तुम हमेशा उसके सामने सादगी से ही पेश होती हो। उसने तुमको कभी सेक्सी ड्रेस में या कम कपड़ों में देखा नहीं, वरना वह टीना को भूल जाएगा। उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो जायेगी।"

दीपा ने कहा, "ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं कोई सेक्सी नहीं हूँ। मेरी ऐसी कोई फिगर भी नहीं है। बाकी जो आदमी अपने मन को कण्ट्रोल कर सके उसे कोई ललचा नहीं सकता।"

मैंने कहा, "हनी, तुझे पता नहीं तुम कितनी सेक्सी हो। पर यह तो तुम भी मानती हो ना की तरुण तुम पर फ़िदा है। तुम्हारे लताड़ने पर बेचारा बहुत दुखी था। वह जब तुम को देखता है तो उसकी आँखे बार बार तुम्हारे बॉल पर ही टिक जाती है।"

दीपा एकदम सहम सी गयी। थोड़ी पीछे हट कर उस ने मेरी बात को खारिज करते हुए कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है। तुम मर्दों को तो सेक्स के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं। परन्तु तरुण ऐसा नहीं लगता।"

मैंने उसे और उकसाते हुए कहा, "अच्छा? तुम्हें कैसे पता? तरुण भी तो एक मर्द ही है। और सिर्फ मर्द ही नहीं, बड़ा वीर्यवान मर्द है। देखा नहीं तुमने की जब वह उत्तेजित हो जाता है तो उसका लण्ड उसकी पतलून में कितना बड़ा तम्बू बना देता है? तरुण का लण्ड भी तो काफी बड़ा है। कुछ दिन पहले जब हम सब पिकनिक पर गए थे तब मैं और तरुण एक साथ वाशरूम गए थे। पेशाब करने से पहले आननफानन में जब उसने अपनी ज़िप खोली तो उसका लण्ड पतलून के बाहर निकल पड़ा। बापरे! एक मोटे रस्से जैसे उसका ढीला लण्ड भी कितना मोटा और लंबा था! तुमने भी तो देखा होगा की ख़ास तौर से जब वह तुम्हारे करीब होता है, तब तो उसकी पतलून में उसका लण्ड लोहे के छड़ की तरह खड़ा हो जाता है। अगर फिर भी यदि तुम ऐसा समझती हो की तरुण ऐसा नहीं है तो चलो एक टेस्ट करते हैं। एक काम करो। तुम उसे थोड़ा उकसाओ। जब वह आये तो उसे अपने कुछ सेक्सी पोज़ दो, या फिर अपने बदन की थोड़ी नुमाइश करो। फिर देखो। अगर उसका लण्ड उसकी पतलून में खड़ा ना हो और तुम्हे वह कसके बाँहों में जकड न ले तो कहना।"

मेरी पत्नी यह सुनते ही एकदम गुस्सा कर बोली, "बस भी करो। शर्म नहीं आती अपनी बीबी से ऐसी बाते करते हुए? यह तुम तरुण के बारे में क्या अनापशनाप बातें करते जा रहे हो? उसका लण्ड उतना बड़ा है तो मुझे क्या? भुगतेगी उसकी बीबी टीना। मुझे क्यों यह सब सुना रहे हो?" गुस्सा हो कर दीपा पलट कर सो गयी।

मैंने उसे बाँहों में जकड कर बोला, 'अरे भाई माफ़ भी करो। मैं तो मजाक कर रहा था।"

तब दीपा ने करवट ली और नकली गुस्सा दिखाती हुई मुझसे लिपट कर बोली, "तुम ना बड़े गंदे हो। ऐसी बातें कर मुझे क्यों परेशान कर रहे हो?"

मैंने उसे बाँहों में और कस कर दबाया और बोला, " दीपा, एक बात बताऊँ? बेचारा तरुण, वास्तव में तुम्हारा आशिक हो गया है। अगर तुम मानती हो की वह सीधासादा है तो प्लीज उसे एक बार उकसा कर तो देखो ना? प्लीज मेरे लिए? देखें तो सही की वह कितना सीधासादा है?"

दीपा तब एकदम उत्तेजित हो गयी। मेरी बात को टालते हुए मेरे कड़क लण्ड पर हाथ रख कर उस को सहलाते हुए बोली, " देखो, मैं जानती हूँ की मैं कोई सुन्दर और सेक्सी नहीं हूँ। तरुण ने जो कहा था सच ही कहा था। मेरे सेक्सी पोज़ देने या ना देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। तुम भी कमाल के पति हो। अपनी बीबी को अपने दोस्त को उकसाने के लिए कह रहे हो? मेरे पति का जवाब नहीं। तुम अपने दोस्त पर इतने मेहरबान क्यों हो?"

मैंने कहा, "देखो वह और टीना हमारे एकदम करीबी दोस्त हो चुके हैं। मैंने उसे उस पार्टी में उसे लताड़ा था जब वह तुम्हें घूर घूर कर देख रहा था। तब उसने खुद कहा था की तुम सेक्सी तो हो पर वह तुम्हारी बहुत रिस्पेक्ट करता है। तुम भी अभी कह रही हो की वह सज्जन दिखता है। तो चलो ना आज चेक करते हैं की क्या उसकी मर्दानगी में ज्यादा दम है या उसकी सज्जनता में? भाई तुम्हें मेरी थोड़ी मदद करनी पड़ेगी।"

दीपा ने मेरी बात से झुंझलाते हुए पूछा, "यह बार बार तुम तरुण को उकसाने की बात क्यों कर रहे हो? आखिर तुम चाहते क्या हो?"

मैंने कहा, "यही की तुम अभी कह रही थी की वह सज्जन लगता है। कभी कहती हो की वह तुम पर डोरे डाल रहा है। तो पता तो चले की असल में वह कैसा है? तुम उसे जब भी मौक़ा मिले उकसाओ और देखो की तरुण कितना सज्जन है और कितना वीर्यवान मर्द? यार मान जाओ ना? एक बार उसे थोड़ा छेड़ कर तो देखें, कितने पानी में है वह?"

मेरे बार बार कहने पर जब मेरी बीबी ने महसूस किया की मैं मानने वाला नहीं तो उसने हथियार डाल दिए और मेरा कड़क लण्ड अपनी हथेली में हिलाते हुए उसे दिखाते हुए असहायता से कहा, "चलो ठीक है, मैं सोचूंगी, फिलहाल तरुण की बातों को छोडो। देखो तो, तुम्हारा यह लण्ड बेचारा कितना उतावला हो रहा है अपनी सहेली से मिलने के लिए। उसका भी तो ध्यान रखो। अब अपना काम तो पूरा करो।"

मैं समझ गया की दीपा गरम हो गयी थी । यही समय है उसे मनवाने का और उससे हाँ करवाने का। मैंने दीपा का गाउन ऊपर उठा कर उसकी गीली चूत में उंगली डालकर उसकी चूत को उंगली से रगड़ते हुए उसे गरम करते हुए अपनी जिद जारी रखते हुए कहा, "सोचूंगी नहीं, बोलो करुँगी?"

दीपा ने मेरे लण्ड को हिला हिला कर कड़क करते हुए मेरे उंगली चोदन से मचलते हुए अपनी गर्मी में बोली, "अरे तुम तरुण की बातों को छोडो ना? क्या कर रहे हो?"

मैंने जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "ना, अब तो तुम्हें बोलना ही पड़ेगा की करोगी या नहीं?"

आखिर में हार कर दीपा ने कहा, "तुम चाहते हो मैं उसे उकसाऊँ? उसे गरम करूँ? ठीक है बाबा करुँगी। पर अभी तुम तो कुछ करो? मैं खुद गरम हो रही हूँ।"

मैंने अपनी जिद जारी रखते हुए कहा,"और अगर वह तुम्हें छू ले या और कुछ हरकत कर बैठे तो तुम उस दिन की तरह उसे लताड़ मत देना, ठीक है?"

दीपा तब तक काफी गरम हो चुकी थी। मेरी उंगली की हरकत से वह पलंग पर मचलने लगी थी। उसने बिना कुछ और सोचे कहा, "ठीक है बाबा, आप जो कहोगे, मैं करुँगी। इस वक्त इधर उधर की बात मत करो। आप अब ऊपर आ जाओ और अपने इस कड़क लण्ड से मुझे चोदो प्लीज! मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा।"

मेरी बीबी को नहीं पता था की मैं अपनी चाल में उसे फँसा ने की भरसक कोशिश कर रहा था। मैं तुरंत अपना पजामा उतार कर नंगा हो गया और फुर्ती से दीपा के नाईट गाउन को भी उतार दिया। हमारे दो नंगे बदन एक दूसरे के साथ रगड़कर जैसे काम वासना की आग पैदा कर रहे थे। मेरा लण्ड एकदम फौलाद की तरह कड़क हो गया था। मैंने दीपा की चूत पर हाथ रखा तो पाया की वह तो अपना रस ऐसे बहा रही थी जैसे झरना बह रहा हो।

मैंने अपनी पत्नी को कहा, "जानेमन तुम बड़ी गरम हो गयी हो। क्या बात है?"

दीपा ने भी उसी लहजे में कहा, "तुम ऐसी बातें कर कर के मुझे गरम जो कर रहे हो।"

उस रात को मैं भूल नहीं पाउँगा। उस ने खूब चुदवाया। वह तिन बार झड़ गयी और मैं दो बार। मुझे लगा जैसे मेरे दोस्त तरुण का तीर निशाने पर लग रहा था। रात को दीपा के सो जाने के बाद अचानक मेरे मन में एक विचार आया।
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#6
Wink 
सुबह उठकर जब दीपा रसोई में काम कर रही थी तब मैंने चोरी छुपी मेरे घर के मुख्य दरवाजे की चिटकनी का ऊपर का हिस्सा स्क्रू ड्राइवर की मदद से चुपचाप दीपा को बिना बताये निकाल दिया, जिससे दरवाजे को चिटकनी लगाने पर भी दरवाजा बंद ना हो।


मैं ऑफिस के लिए निकल ने में थोड़ा लेट हो गया था। आखिर मैं जब ऑफिस जा रहा था तब मैंने जाते जाते दीपा को एक लम्बी सी किस होठों पर की। फिर बाई बाई करते हुए कहा, "तुम्हे याद तो है ना? आज तुम्हें एक बार तरुण को थोड़ा उकसा कर उसका टेस्ट करना है। बोलो करोगी ना?"

मुझे जल्दी घर से ऑफिस को रवाना करने के लिए मेरी पत्नी दीपा मुझे खींचती हुई बाहर आँगन तक ले आयी और बोली, "ठीक है बाबा, याद है। मैं सोचूंगी। अब ऑफिस भी जाओगे या तुम्हारे दोस्त को उकसाने के बारे में ही बातें करते रहोगे?

बाहर आँगन पहुँचते ही मैं फिर पलटा और उसको बाँहों में जकड कर मेरी बीबी के होँठों पर अपने होँठ रखते हुए बोला, "सोचना नहीं, करना है। बोलो करोगी ना? वादा करो।"

मुझे बाहर आँगन में सारे रास्ते पर आते जाते हुए राहदारियों और पड़ोसियों के देखते हुए मस्ती करते हुए देख कर दीपा हड़बड़ा गयी और बोली, "तुम कैसे पागल हो। क्या कर रहे हो? आसपास सब लोग देख रहे हैं। ठीक है बाबा मैं करुँगी। वादा करती हूँ। अब तुम जाओ भी।"

मैं हँसते हुए चल पड़ा। मुझे पता था की दीपा मेरे जाने के करीब डेढ़ घंटे के बाद ठीक १० बज कर ३० मिनट पर नहाने जाती थी।

उस दिन १० बजे मैंने तरुण से फ़ोन पर पूछा, "दीपा ने मुझे मैगी के दो पैकेट लाने के लिए कहा था, पर मुझे अभी काम है। मैं जा नहीं पाउँगा। क्या तुम अभी मैगी के दो पैकेट दीपा को घर दे आओगे? मैं तुम्हारा एहसानमंद रहूँगा।"

मैं जानता था की तरुण को तो मेरे घर जाने का बहाना चाहिए था। उसे इससे बढ़िया बहाना और क्या मिल सकता था? उसने तुरंत कहा की वह मेरे घर के पास से ही गुजर रहा था। वह जरूर मैगी के पैकेट पहुंचा देगा। मैंने तुरंत दीपा को फ़ोन किया और बोला, "दीपा डार्लिंग, तरुण थोड़ी देर में मैगी के पैकेट ले कर हमारे घर आएगा। क्या उसका स्वागत करने के लिए तैयार रहोगी?"

दीपा ने झुंझलाते हुए कहा, " तुम्हें ऑफिस में कुछ काम धंधा है की नहीं? की तुम हमेशा ऐसी ही चीज़ों के बारेमें सोचते रहते हो? तुम क्या अभी तक उस बात को भूले नहीं हो? तुम तरुण की परीक्षा कर रहे हो या मेरी? आखिर तुम चाहते क्या हो?"

मैंने कहा,"तुम मुझे यह बताओ, तुम करोगी या नहीं?"

तब दीपा ने असहायता दिखाते हुए कहा, "मैं क्या करूँ? ठीक है बाबा, अभी तो मैं नहाने जा रही हूँ। फिर मैं कुछ सोचती हूँ।"

मैंने कहा, "देखो, तुमने मुझसे वादा किया था की तुम उसे उकसाओगी।"

दीपा ने कहा, "नहीं बाबा नहीं, मैं तुम्हारे दोस्त को बिलकुल उकसाऊँगी नहीं। मरना है मुझे किसी गैर मर्द को उकसा कर? और वह भी जब तुम नहीं हो। ना यह मुझसे नहीं होगा।"

मैं जानता था की मेरी बीबी ऐसा ही कुछ कहेगी। मैं तैयार था। मैंने कहा, "अच्छा, एक काम तो तुम कर सकती हो ना? तुम नहाने तो जा ही रही हो ना? तो जब तरुण आये तो तुम तौलिये में घर के अंदर रह कर एक बार उसे दरवाजे के बाहर खड़ा रख कर दरवाजा थोडा सा खोल करअपने दर्शन दे देना। बस? फिर फ़ौरन बाद में चाहे दरवाजा बंद कर देना। उसके बाद देखना क्या वह तुम्हें दरवाजा खोलने के लिए जिद करता है की नहीं? अगर वह तुम्हें दरवाजा खोलने के लिए बार बार मिन्नतें करे तो समझो की वह लम्पट है। अगर वह चुचाप दरवाजे के बाहर खड़ा रहता है ताकि तुम कपडे पहन लो या चला जाता है तो समझो की वह सज्जन है। बस इतना तो तुम कर सकती हो ना? प्लीज मेरी इतनी सी बात तो तुम मान लो?"

दीपा मेरी बात सुनकर कुछ देर चुप सोचती रही, फिर झल्ला कर बोली, "कैसे पति हो तुम? अपनी बीबी के बदन का ही प्रदर्शन करवाने पर तुले हो? देखो तुम यह ठीक नहीं कर रहे हो। मैंने भूल की की तुम्हें इस बात में हाँ कर दी।"

मैंने फ़ोन में ही मेरी बीबी को हाथ जोड़ते हुए कहा, "देखो मैं फ़ोन पर हाथ जोड़ कर कहता हूँ की एक बार तो हम देखें की तरुण कितने पानी में है? अगर तुम्हारे दरवाजे ना खोलने पर वह तुमसे दरवाजा खोलने के लिए जबरदस्ती करे तो तुम दरवाजा मत खोलना। तुम चीखना चिल्लाना या जो चाहे करना। ठीक है?"

आखिर में दीपा ने हथियार डालते हुए झल्ला कर कहा, "ठीक है। तुम मुझे बहुत परेशान कर रहे हो। बस इस बार पहली और आखिरी बार मैं मान रही हूँ। आगे से ऐसे बेतुका काम करने के लिए मुझे मत कहना वरना हमारी लड़ाई हो जायेगी। मैं दरवाजा बंद करके नहाने जा रही हूँ। अगर तुम्हारा दोस्त आ गया तो मैं तौलिये में लिपट कर थोड़ा सा दरवाजा खोलूंगी और उसे थोड़ी देर के लिए अंदर झाँकने दूंगी, पर दरवाजा पूरा नहीं खोलूंगी। उसके बाद फ़ौरन मैगी के पैकेट ले कर तुरंत ही दरवाजा बंद कर दूंगी। बस? मैं उसका इंतजार नहीं करुँगी, और अगर वह उस समय नहीं आया तो मैं चेंज कर लुंगी। फिर तो मैं उसे पुरे कपड़ों में ही मिलूंगी। ओके? लगता है तुम मुझसे कुछ न कुछ उल्टापुल्टा करवाके ही रहोगे पर अगर कुछ गड़बड़ हो गई, तो मुझे दोष मत देना।"

मैं मन ही मन हंस पड़ा। मुझे पता था की मेरी श्रीमती ऐसा ही कुछ कहेगी। इसी लिए मैंने सुबह ही दरवाजे की चिटकनी का ऊपर का हिस्सा पहले से ही निकाल दिया था ताकि चिटकनी लगाने पर भी दरवाजा बंद ना हो।

मैंने कहा, "तुम मेरी डार्लिंग हो मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ और करता रहूंगा। यह करने के लिए मैं तुम्हे जान बुझ कर कह रहा हूँ। यह तो सिर्फ एक मस्ती है। जब वह अपनी शराफत की डिंग मारेगा तब बाद में मैं उसे बहुत चिढ़ाऊंगा। कुछ नहीं होगा। तरुण में उतना दम ही नहीं है की तुम्हें कुछ कर पाए। कुछ होगा तो वह मेरी गलती है, ना की तुम्हारी। मैं तुम्हें कभी भी दोष नहीं दूंगा।"

हमारी बात चित के आधे घंटे में ही तरुण घर पहुंचा और उसने बेल बजाई पर किसीने दरवाजा नहीं खोला। एक दो बार घंटी बजाने के बाद अंदर से दीपा की जोर से आवाज आयी, "कौन है? थोड़ी देर रुको। मैं नहा रही हूँ। आती हूँ।" तरुण दरवाजे के बाहर खड़ा रहा।

कुछ देर हुई तब तरुण ने दरवाजे को धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया। दीपा ने तो अपनी तरफ से चिटकनी लगाई थी, पर मैंने उसका ऊपर का हिस्सा हटा दिया था जिससे चिटकनी लगाने पर भी वह अंदर से बंद ना हो। जब तरुण अंदर आया तो घर में कोई नहीं था। उसने बाथरूम में नहाने की आवाज सुनी। तरुण समझ गया की दीपा बाथरूम में नहा रही थी। तरुण ड्राइंग रूम में बैठ कर इंतेजार करने लगा।

थोड़ी ही देर में दीपा बाथरूम से बाहर आयी। वह तौलिये में लिपटी हुई थी। दरवाजा खोलने के लिए जब वह ड्राइंग रूम में आयी तब उसने तरुण को देखा। तरुण को ड्राइंग रूम में बैठे हुए देख कर मेरी बीबी के तो होश उड़ गए। उसकी समझ में नहीं आया की तरुण अंदर कैसे आ गया। उसने तो दरवाजा अंदर से बंद किया हुआ था। उधर तरुण ने दीपा को तौलिये में लिपटे हुए देखा तो उसकी तो सिटी पट्टी गुम हो गयी। मेरी बीबी का तौलिया कोई ख़ास बड़ी साइज का तो था नहीं। दीपा को देख कर वह सोफे से उठ खड़ा हो गया। दीपा का आधे से ज्यादा बदन खुला हुआ था। उसके उन्नत स्तनोँ का मस्त उभार दिख रहा था। तौलिया दीपा की जांघों तक दीपा की चूत को ही ढके हुए था। दीपा की सुडौल जांघे तरुण को पागल बना रही थी। दीपा के भीगे हुए बाल उसके मुंह और पुरे बदन पर बिखरे हुए थे। भीगी हुयी दीपा उसे सेक्स की मूर्ति लग रही थी।

जब दीपा ने तरुण को देखा तो वह एकदम चिल्लाने लगी। फिर यह सोच कर एकदम चुप हो गयी की कहीं पड़ौसी उसकी चीख सुनकर भागते हुए आ न जाएँ। वह थोडी सहम कर बोली, "अरे तरुण, तुम? यहाँ, इस वक्त? तुम अंदर कैसे आ गये?"

तरुण की जबान पर तो जैसे ताला लग गया था। बड़ी मुश्किल से बोला, "दीपा मुझे माफ़ कर दो। मुझे पता नहीं था की तुम नहा रही हो। मैंने घंटी तो बजायी पर दरवाजे पर कोई न आया। मैंने धक्का मारा तो दरवाजा खुला पाया। दीपक ने फ़ोन किया था की तुम्हे मैगी के दो पैकेट चाहिए। वह देर से आयेगा इस लिए उसने यह पैकेट मुझे लाकर तुम्हे देने के लिए बोला।"

जब दीपा मैगी लेने करीब आयी तो तरुण ने दीपा को मैगी के दो पैकेट हाथ में थमाये। पर उसकी नजर तो दीपा के मम्मो पर अटकी हुयी थी। तरुण अपनी नजरें तौलिया और मेरी बीबी के आधे नंगे बदन के बिच में से हटा ही नहीं पा रहा था। हालाँकि दीपा ने तौलिया एकदम ताकत से पकड़ रखा था, दीपा के स्तन तौलिये में समा नहीं रहे थे और बाहर से ही उनके काफी बड़े हिस्से दिखायी दे रहे थे। दीपा की जांघे घुटने से काफी ऊपर तक नंगी थीं। अगर तरुण निचे झुकता और देखता तो उसे मेरी बीबी की रसीली चूत उसकी नज़रों के सामने साफ़ साफ़ दिख जाती। उस समय तरुण का मन किया की वह दीपा को अपने आहोश में कस कर जकड़ ले, उसके तौलिये को एक हाथ से खिंच कर खोल कर फेंक दे, दीपा को नंगी कर दे और वहीँ दीपा को सोफे पर सुला कर उस पर चढ़ जाय और चोद डाले। तरुण का तगड़ा लण्ड उसकी पतलून में खड़ा हो गया।

जब दीपा की नजर तरुण की टांगों के बिच गयी तो उसके होश उड़ गए। तरुण का लण्ड उसकी पतलून में बहोत बड़ा तम्बू बनाये हुए लोहे के हथोड़े की तरह खड़ा साफ़ साफ़ दिख रहा था। मैंने मेरी बीबी को तरुण के लम्बे लण्ड का जो विवरण दिया था वह याद कर मेरी बीबी के तो होश उड़ गए। दीपा को यह एक खतरे की घंटी से कम नहीं लग रहा था। अगर तरुण का दिमाग छटक गया तो यह तय था की तरुण एक झटके में दीपा के तौलिये को खिंच कर फेंक देगा और दीपा को नंगी कर अपना पतलून खोल कर अपना लण्ड बाहर निकालेगा। वह लण्ड एक तगड़ा हथियार बन दीपा की चूत में घुस कर दीपा की चूत को फाड़ के रख देगा। दीपा की जान यह सोच कर उसकी हथेली में आ गयी की अगर ऐसा हुआ तो दीपा की तो ऐसी की तैसी हो जायेगी।

तरुण दीपा के अधनंगे बदन को देख कर अपना नियंत्रण रख नहीं पाया। उसने आगे बढ़ कर दीपा को अपनी बाँहों में ले लिया। दीपा ने तो पहले से ही तरुण के मन के भाव भाँप लिए थे। उसने आपना तौलिया और ताकत से पकड़ा। दीपा की अपनी समस्या थी। वह एक हाथ में तौलिया पकडे थी और दूसरे हाथ में मैगी। वह तरुण का विरोध करने में असमर्थ थी। उसने अपने बदन को हिला हिला कर तरुण के बाहुपाश से छूटने की बड़ी कोशिश की, पर तरुण की ताकत के सामने उसकी एक न चली। दीपा ने देखा की तरुण का लण्ड फूल कर उसकी पतलून में बड़ा टेंट बना रहा था।

तरुण ने उसे अपनी बाहोँ में लपेट कर अपने होठ दीपा के होठ पर रखना चाहा। जब वह दूसरे हाथ से दीपा के तौलिये का एक छोर पकड़कर दीपा का तौलिया खोलने की कोशिश करने लगा तब दीपा ने एक हाथ में पकड़ा मैगी का पैकेट फेंक दिया और उस हाथ से तरुण को धक्का देकर दूर हटाया और भागती हुयी बैडरूम में चली गयी। अचानक उसे ध्यान आया की उसने अपने पीछे बैडरूम का दरवाजा तो बंद नहीं किया था। वह डर के मारे कांप रही थी की कहीं तरुण पीछे पीछे बैडरूम में न आ जाए। पर जब दीपा ने पीछे मुड़कर देखा तो तरुण भौंचक्का सा ड्राइंग रूम में बुत की तरह खड़ा उसे देख रहा था।

तब मेरी बीबी कुछ शांत हुई और उसने बैडरूम का दरवाजा बंद किया और थोड़ी देर में जल्दी से नाईट गाउन पहन कर बाहर आयी। तरुण ड्राइंग रूम में ही था। बरबस ही दीपा की नजर तरुण की टाँगों के बिच गयी। तरुण का तगड़ा लण्ड उस वक्त भी वैसे ही खड़ा का खड़ा था। दीपा ने अपने केश बाँधे नहीं थे। खुले बालों में वो फिर भी उतनी ही सेक्सी लग रही थी। तरुण ने देखा की गाउन के नीचे शायद दीपा ने कुछ और पहना नहीं था। क्योंकि उसके बदन के सारे उभार उसके गाउन में से साफ़ नजर आ रहे थे। उस वक्त तरुण की शक्ल रोनी सी हो गयी।

तरुण ने नीचे झुक कर दीपा से कहा, "भाभी मुझे माफ़ कर दीजिये। आप को उस हालत में देख कर मैं अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पाया। मैंने बड़ी भारी गलती कर दी। जब तक आप मुझे माफ़ नहीं करेंगे तब तक मैं यहां से नहीं जाऊँगा। और दीपक को इस बारेमें मत बताइयेगा। कहीं वह मुझसे बोलना बंद न कर दे।"

दीपा तो जानती थी की उस ने ही तरुण को उकसाया था। उसे तो पता था की अगर तरुण ने उसे ऐसी हालत में देखा तो क्या होगा। वह शुक्र मना रही थी की तरुण उसके पीछे बैडरूम में नहीं आया। अगर वह आया होता तो दीपा उसे रोक नहीं पाती। दीपा की समझ में यह नहीं आया की दरवाजा तो उसने बंद किया था फिर वह खुल कैसे गया? दीपा ने देखा तो चिटकनी तो ऊपर तक चढ़ी हुई थी।

खैर भगवान का लाख लाख शुक्र की कुछ हुआ नहीं। दीपा ने राहत की साँस ली और थोड़ा सा मुस्करा कर बोली, "तरुण तुम कोई चिंता मत करो। जो हुआ इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मुझे भी उस हालात में ड्राइंग रूम में नहीं आना चाहिए था। तुम्हारी जगह कोई और भी तो हो सकता था। तब तो और भी मुसीबत हो जाती। मैं दीपक को कुछ नहीं बताऊंगी। मैं चिल्लाने के लिए शर्मिंदा हूँ। तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ।" यह कह कर दीपा रसोई में से चाय बना कर ले आयी।

तरुण को चाय देते हुए दीपा ने तरुण से कहा, "माफ़ी तो मुझे भी तुमसे मांगनी है। मैंने तुम्हारी गिफ्ट को नकार दिया था उसके लिए प्लीज मुझे माफ़ कर देना। मैं तुम्हें गलत समझ रही थी। दीपक ने मुझे बताया की तुम वह गिफ्ट उसे पूछ कर ही मुझे दे रहे थे।"

फिर दीपा ने उसे शरारत भरे लहजे में कहा, "तरुण मुझे गिफ्ट देकर तुम ने घाटे का सौदा कर लिया है। अब मुझे वह गिफ्ट चाहिए। और वह ही नहीं और भी गिफ्ट लाते रहना।" ऐसा बोल कर दीपा हँस पड़ी।

तरुण ने भी उसी लहजे में कहा, "भाभी, आपके लिए गिफ्ट तो क्या, मेरी जान भी हाजिर है।"

दीपा ने भी उसी अंदाज में हँसते हुए कहा, "जान तो आप टीना के लिए ही रखना। मुझे तो सिर्फ गिफ्ट ही चाहिए।"

उस दिन जब मैं शाम को घर लौटा तो मैंने देखा की दीपा मुझसे कोई बात नहीं कर रही थी। खाना लगा दिया था तो उसने इशारे से ही बता दिया। काफी गुस्से में लग रही थी। मेरी आँखों से आँखें मिलाने से कतरा रही थी। मैं फ़ौरन समझ गया उस दिन कुछ ना कुछ तो हुआ था। मैं तरुण को तो जानता ही था। अगर मौक़ा मिला तो तरुण दीपा को छोड़ेगा नहीं। खैर जब दीपा का ध्यान नहीं था तब मैंने चिटकनी का ऊपर का हिस्सा फिर लगा दिया।

मैंने सोचा, हो भी सकता है की तरुण ने मेरी बीबी को तौलिये में देखकर कहीं उसे पकड़ कर चोद ही ना दिया हो। मैं चुप रहा। मैंने रात को सोते समय भी पूछने की बड़ी कोशिश की पर वह कुछ ना बोली, उलटा बेटे को हमारे बिच में सुलाकर खुद सो गयी। मैंने एक बार बच्चे के बदन के ऊपर से जब दीपा का हाथ पकड़ा तो दीपा ने मेरा हाथ जोर से झटका मार कर उसे हटा दिया।

मैं चुप रहा। मुझे नींद नहीं आ रही थी। जैसे तैसे मैं कुछ देर सोया पर मुझसे रहा नहीं गया। आखिर में रात को करीब दो बजे मैं उठा और दीपा के पास जा कर सो गया। दीपा को अपनी बाँहों में लेकर मैंने उसे पूछ ही डाला, "डार्लिंग बताओ ना क्या तरुण आया था? क्या हुआ?"

दीपा थकी हुई थी। वह बात करने के मूड में नहीं थी। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। मैंने उसके गाउन में हाथ डाल कर उसकी चूँचियों को मसलते हुए उसे फिरसे पूछा, "डार्लिंग बताओ ना क्या हुआ?"

दीपा अपनी आँखें मसलते हुए बोली, "क्या होना था? जो तुम सोच रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अब सो जाओ।"

मैंने जिद करते हुए पूछा, "नहीं डार्लिंग बताओ ना, क्या हुआ?"

जब दीपा को लगा की मैं उसे छोडूंगा नहीं, तब वह मेरी बात सुनकर थोडी सी गंभीर हो गयी और बोली, "तुम उस दिन तरुण के बारे में मुझे खरी खोटी सूना रहे थे न? तो सुनो, तरुण निहायत ही शरीफ इंसान है। तुम्हारे कहने पर मैं जब तरुण के सामने तौलिया पहन के आयी तो पता है क्या हुआ? पहले तो मैं हैरान रह गयी जब मैंने पाया की तरुण घर के अंदर है। मेरी समझ में यह नहीं आया की मैंने तो दरवाजा बंद किया था, पर पता नहीं वह खुल कैसे गया?

मैंने तो चिटकनी लगाई थी। शायद मेरी गलती हुई की आननफानन में मैंने दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया होगा। जब मैं तौलिया पहन के बाहर निकली तो तरुण तो ड्राइंग रूम में ही बैठा था। उसे वहाँ बैठे हुए देख कर मेरी तो हालत ही खराब हो गयी। मुझे समझ में नहीं आया की मैं क्या करूँ? तरुण भी मुझे तौलिये में आधी नंगी देख कर बौखला सा गया। उसका चेहरा तो देखते ही बनता था। मुझे उस हालत में देखकर उसका क्या हाल हुआ, यह मैं बयान नहीं कर सकती। पर तरुण ने मुझे उस हालत में देख कर भी अपने आप पर बड़ा ही संयम रखा। वह चाहता तो सब कुछ कर सकता था। मैं भी उसे शायद रोक नहीं पाती। हम एक दूसरे के इतने करीब खड़े थे। तब भी उसने कुछ नहीं किया।"

इतना कह कर मेरी प्यारी दीपा कुछ सहम सी गयी। आगे कुछ कहना चाहती थी पर समझ नहीं पा रही थी की कैसे कहे। फिर कुछ देर थम कर उसने धीरे से कहा, "अब मैं क्या कहूं? तुमने तो मुझे मरवा ही देना था। तौलिये में से मेरे बूब्स आधे तो बाहर निकले थे। तौलिया मेरी जाँघों को भी कवर नहीं कर पा रहा था। आज तरुण की जगह कोई और होता तो मुझे चोद ही देता। जब मैं तरुण के सामने आधी नंगी गयी तो क्या होना था? इतना संयम रखते हुए भी, आखिर तो वह भी एक जवाँमर्द तो है ही ना? तुम ही कहते हो की वह वैसे ही मुझे पर कुछ ज्यादा ही फ़िदा है। मुझे सिर्फ तौलिये में आधी से ज्यादा नंगी देखकर कुछ तो होना ही था। वह थोड़ा सा डगमगा जरूर गया। मुझे तौलिये में लिपटी देखकर वह थोड़ा उत्तेजित हो गया और उसने मुझे खिंच कर बाहों में भी ले लिया। पर अपना तौलिया कस के पकड़ कर मैंने उसे जोर से धक्का दिया और मैं फिर बैडरूम की और भाग निकली। तरुण लड़खड़ा गया और घबरा कर मुझे चुपचाप खड़ा देखता ही रहा। हफडाताफड़ी में मैं पीछे बैडरूम का दरवाजा बंद करना भी भूल गयी।


पर देखो, वह मेरे पीछे भाग कर आ सकता था। पर नहीं आया। मानलो की अगर उसने मुझे अपनी बाहों में से छोड़ा नहीं होता, मुझे अगर पकड़ कर के ही रखा होता, और एक झटके में मेरा तौलिया उतार देता तो मैं क्या करती? मैं तो अंदर से बिलकुल नंगी थी। अगर वह चाहता तो उस दिन मेरे साथ सब कुछ कर सकता था। भला उसकी ताकत के सामने मैं कहाँ टिक पाती? पर उसने कुछ नहीं किया।"

यह कहते हुए दीपा की आँखों में आँसूं आ गए। दीपा प्यार भरे गुस्सेसे मेरी छाती पर अपने हाथों से मुझे हलके से पीटते रोते हुए बोलने लगी, "मैंने आज तय किया था की मैं तुमसे बिलकुल बात नहीं करुँगी। अगर तरुण मेरे साथ जबर्दस्ती करता और जबरदस्ती मेरा तौलिया खोल कर फेंक कर एक ही झटके में मुझे नंगी कर देता तो फिर तो हो जाता ना मेरा कल्याण? अगर मैं थोड़ी सी भी असावध रहती तो वह मुझे छोड़ता नहीं। हम अकेले ही थे। शायद मुझे वहीँ पकड़ कर नंगी ही उठाकर बैडरूम में ले जाता और मुझे पलंग पर पटक कर वहाँ मेरे साथ सब कुछ कर डालता।"

मैंने पूछा, "तुम इतनी बहादुर हो कर इतनी डर क्यों रही हो? आखिर क्या कर डालता तरुण?"

दीपा ने मेरी और गुस्से से देखा और बोली, "तुम पूछ रहे हो तरुण मेरे साथ क्या करता? क्या तुम तुम्हारे दोस्त को जानते नहीं? आखिर वह भी तो एक मर्द है। और तुम तो उसे बहोत अच्छी तरह जानते हो। बड़ा वीर्य वाला मर्द है। उस समय उसका लण्ड उसकी पतलून में फुंफकार रहा था। मैंने देखा की उसकी टांगों के बिच उसका लण्ड तो बड़ा तम्बू बना कर खड़ा हो गया था। अरे मौक़ा मिलते ही वह सब कुछ कर डालता। कुछ भी बाकी नहीं छोड़ता। वह तो मुझे किस करने के लिए बेताब था। वह किस करता, मेरे बूब्स मसलता, मेरी गाँड़ सहलाता, पता नहीं और क्या क्या करता? उस नंगी हालत में मुझको देख कर क्या वह मुझे चोदे बगैर छोड़ता क्या? यार उस हालत में तुम भी किसी औरत के साथ होते तो तुम क्या करते? सच बताओ. और तब मैं क्या करती?"

मेरी बीबी ने एकदम गुस्से में मुझे झकझोरते हुए पूछा, "बोलो? मैं क्या करती? मैं चिल्ला भी तो नहीं सकती थी, वरना आसपास वाले सब इकट्ठे हो जाते और बदनामी तो मेरी ही होती न? मैं नंगी, अकेली उसकी ताकत के सामने क्या कर पाती? अगर आज वह मुझे पलंग पर लिटा कर ऊपर चढ़कर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ देता तो फिर क्या मैं उसे रोक पाती? आज मुझे तरुण चोद ही देता, क्यूंकि तुम तो जानते हो की वह हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ा हुआ है। आज उसे मौक़ा मिला था। वह मुझे चोदे बगैर छोड़ता ही नहीं, तब मैं क्या करती? और कोई भी मर्द उसकी जगह होता तो वह मुझे चोदे बगैर छोड़ता क्या?"

दीपा ने मेरी और ताकते हुए पूछा, "बताओ, मैं ठीक कह रही हूँ की नहीं?"

जिस तरह से मेरी बीबी ने मुझे तरुण क्या क्या कर सकता था यह इतने विस्तार से बताया तब मुझे शक हुआ की कहीं उसको अफ़सोस तो नहीं हुआ की तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं की मेरी गैर हाजरी में सब कुछ हो चुका था, और मेरी बीबी उसे छुपा रही थी?

जब मैं चुप रहा तो दीपा बोली, "पर देखो यह सच है की तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह मेरे पीछे पीछे बैडरूम में नहीं आया। मैं जब चेंज कर फिर वापस बाहर आयी तो तुरंत उसने मुझसे माफ़ी भी मांगी। तब उसने मुझे छुआ तक नहीं। यह सब जो हुआ इसके लिए मैं तुम्हें जिम्मेवार मानती हूँ। तुम मुझसे ऐसे गलत सलत काम क्यों करवा रहे हो? देखो इसका अंजाम ठीक नहीं होगा। अगर आज मैं थोड़ी सी भी कमजोरी या असहायता दिखा देती तो बापरे तरुण ने मुझसे सब कुछ कर लिया होता और मैं तुम्हें मुंह दिखाने के लायक भी नहीं रहती। पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया और मुझे एक बड़ी शर्मिंदगी से बचा लिया।"

एक तरफ मेरी बीबी यह कह रही थी की तरुण ने उसे छुआ भी नहीं पर साथ ही साथ मैं उसने यह भी कह दिया की तरुण ने उसे अपनी बाहों में ले लिया था और मौक़ा मिलता तो तरुण उसे चोद भी डालता। मैं समझ गया की दीपा की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या कहे? मुझे समझ में नहीं आया की मेरी बीबी तरुण की तारीफ़ कर रही थी या शिकायत? जब तरुण ने मेरी बीबी को खिंच कर अपनी बाँहों में ले लिया तो क्या उसे डर था की तरुण उसे कहीं चोद ना डाले? या क्या उसे उम्मीद थी की तरुण उस पर जबरदस्ती कर उसे चोद ही डाले?

दीपा मेरे पास आयी और मुझे अपने हाथों से मेरी छाती पर पिटनेका नाटक करती हुई बोली, "यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है । न तुम मुझे तरुण को उकसाने के लिए कहते और न यह सब होता। मुझे आज इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही है। तरुण ने कुछ नहीं किया पर आज उसने मुझे आधी नंगी तो देख ही लिया। और कहीं न कहीं उसके मन में तुमने मुझे चोदने का आईडिया तो आज डाल ही दिया। यह तुमने अच्छा नहीं किया डार्लिंग।" यह बोलते हुए भी मेरी बीबी का मुंह शर्म से जैसे लाल हो गया।

तब मैंने अपनी बीबी के गाल चूमकर कहा, "जानू, देखो, तुम इतनी परेशान न हो। तरुण ने आज तुम्हें सिर्फ आधा नंगा ही देखा ना? उसने तुम्हें पूरा नंगा तो नहीं देखा ना? स्विमिंग पूल बगैरह में आजकल महिलायें आधी नंगीं क्या, लगभग नंगी ही सबके सामने नहाती भी हैं और घूमती भी हैं। वह ऐसा पहनावा पहनतीं हैं की उनकी चूत की झाँट साफ़ ना हो तो उनके बाल भी दीखते है। और इंटरनेट पर तो पूरी नंगी लडकियां दिखती हैं। कोई रोकटोक नहीं। उनको तो कोई कुछ नहीं कहता? तुमने तो फिर भी तौलिया पहन रखा था।

और जहां तक तुम्हें चोदने के आईडिया की बात है तो क्या तुम यह समझती हो की इसके पहले तरुण के मन में ऐसा आईडिया नहीं आया होगा? तुम्हारे जैसी खूबसूरत बदन वाली सेक्सी औरत को देख कर जिस आदमी का लण्ड इस तरह खड़ा हो जाता हो, क्या उसके मन में तुम्हें चोदने का आईडिया नहीं आया होगा? क्या बच्चों वाली बातें करती हो? अरे! वह तो तुम्हें मन ही मन में कई बार पहले ही चोद चुका होगा और तुम्हें याद करके कई बार मुठ मार कर अपना माल निकाल चुका होगा। यह भी समझलो की तुम्हें याद करते हुए वह अपनी बीबी को भी दीपा समझ कर ही चोदता होगा।"

मेरी बात सुन कर मेरी बीबी हैरानगी से बिना कुछ बोले मुझे काफी देर तक देखती रही। उसके दिमाग में उस समय क्या चल रहा होगा वह समझना मेरे लिए नामुमकिन था। पर मेरी दलील सटीक थी और मेरी बीबी भी समझ रही थी की मैं सही कह रहा था। दीपा समझ चुकी थी की वाकई में ही अगर तरुण को सही मौक़ा मिला और दीपा ने उसका विरोध नहीं किया तो तरुण दीपा को चोदे बगैर छोड़ेगा नहीं। मैंने यह महसूस किया की मेरी बात सुनकर वह गरम जरूर हो गयी। उसने अपनी पोजीशन बदली और मेरे पास आ कर मेरे मुंह से अपना मुंह मिला कर मेरे होंठों को बड़े प्यार से चाटने लगी। फिर धीरे से वह मेरे होँठों को मुंह में चूस कर उसकी जीभ अंदर बाहर करने लगी। जैसे अपनी जीभ से मुझे चोद रही हो। मैं बहुत उत्तेजित हो गया था। मेरे लण्ड में गरम खून दौड़ रहा था। उत्तेजना के मारे मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था।

दीपा ने मेरी जीभ चूसते हुए अपनी आँखें नचाते हुए मेरी और देख कर पूछा, "मियाँ, अगर आपको लगता है ऐसा है, तो फिर ऐसे जोखिम नहीं लिया करते। अगर आज तुम्हारे दोस्त ने मुझे पकड़ कर मेरा तौलिया निकाल कर मुझे चोद दिया होता, तो तुम क्या करते?"

मैंने उसका जवाब देते हुए कहा, "डार्लिंग, तुम कमाल हो! अगर तरुण ने आज तुम्हें चोद दिया होता तो तुम जरूर कुछ देर तक उसका विरोध करती पर जब और कोई चारा नहीं होता तो आखिर में तुमने उससे प्यार से चुदवा ही लिया होता। अगर तरुण ने तुम्हें चोद दिया होता तो क्या हो जाता? कुछ भी नहीं होता। मैंने तुम्हें पहले ही फ़ोन पर क्या कहा था? मैंने कहा था ना की अगर कुछ ऊपर निचे हो गया तो मैं तुम्हें दोषी नहीं मानूंगा। डार्लिंग, मैंने तो मान लिया था और अभी भी मानता हूँ की तरुण ने तुन्हें चोद ही दिया था। क्या तुमको मेरे चेहरे पर कोई शिकन नजर आयी? अगर तरुण ने तुम्हें चोद दिया है अथवा चोद दिया होता तो भी मैं तुम्हें उतना ही प्यार कर रहा हूँ और उतना ही प्यार करता रहूंगा जितना पहले कर रहा था। जब मैं शाम को घर आया तो मैंने तुम्हें जान बुझ कर कुछ भी नहीं पूछा। और ना ही तुमने मुझे कुछ बताया। जब ऐसा हुआ तो मैं यह समझ ने लगा था की तरुण ने तुम्हें चोद ही दिया होगा। सच बताओ डार्लिंग की यह शक मेरे मन में होते हुए भी की तुम तरुण से चुदवा चुकी हो, क्या तुम्हें मेरे वर्ताव में कोई फर्क नजर आया?"

दीपा ने प्यार से मेरी और देखा और शरारत भरी मुस्कान देते हुए सर हिलाकर "ना" का इशारा किया। फिर मेरी बाँहों में सिमट कर बोली, "डार्लिंग मैं सच कहती हूँ, ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम दुनिया के सबसे अच्छे पति हो। पर मुझे परेशान भी बहुत करते हो।"

मैंने मेरी बीबी की चूँचियों को मसलते हुए कहा, "बीबीजी, मैं जानता हूँ की ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं तुम्हें बहोत अच्छी तरह से जानता हूँ। अगर ऐसा हुआ होता तो मुझे तुम्हारी आँखों से ही पता चल जाता। तुम अपनी नजरें ऊपर ही नहीं उठा पाती। यह मेरा तरिका है अपने आपको और तुम्हें गरम करने का, और जिंदगी को उत्तेजित और रोमांचक बनाने का, जिससे जिंदगी में मजा बना रहे। अगर तुम्हें तरुण ने चोद भी दिया है या चोद दिया होता तो क्या फर्क पड़ना था? मैं भी तो तुम्हें चोदता रहता हूँ? इससे क्या फर्क पड़ता है?"

मेरी बीबी मुझे हैरानगी से देखती रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की उसका पति किस मिटटी का बना हुआ है। मुझे एक गहरी किस कर मेरे कान में फुसफुसाई, "डार्लिंग, तुम वाकई दुनिया के बेस्ट हस्बैंड हो। आई लव यू।" और यह कह कर दुबारा मेरे होंठों को चूमकर, "अब सोने दो। कल सुबह मुन्नू को स्कूल जाना है। गुड नाईट" कह कर पलट कर सो गयी।

;)
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#7
Wink 
मैंने देखा की उस दिन के बाद तो जैसे तरुण की चांदी हो गयी। पहले दीपा जैसे तरुण से डर रही थी और शङ्का कुशङ्का की नजर से उसे देख रही थी वह डर ख़त्म हो गया। शायद अब मेरी बीबी यह समझ गयी की मौक़ा आने पर वह तरुण को कण्ट्रोल कर सकती थी। इसके बाद दीपा तरुण से कोई औपचारिकता नहीं रखती थी। जब भी तरुण आता तो दीपा ख़ास उसे बात करने ड्राइंग रूम में उसके पास आती और उसके साथ भी बैठ जाती थी। कई बार दीपा तरुण को रसोई में भी बुला लेती और दोनों इधर उधर की बातें करते। मेरे सामने भी दीपा अब तरुण से शर्माती नहीं थी। कई बार मैंने देखा तो वह तरुण के कोई जोक पर तरुण का हाथ पकड़ कर हंसती थी।


परंतु कई बार चोरी छुपी से देखने के बाद भी मुझे यह देख कर निराशा हुई की उन के बिच ऐसी कोई ख़ास जातीयता वाली सेक्स वाली बात नहीं दिख रही थी। हाँ एक बार जरूर मैंने छुप कर देखा की जब तरुण ने दीपा को अपनी बाँहों में जकड़ लिया था तो दीपा हंसती हुई उसे धक्का मार कर वहाँ से भाग निकली थी। अब जब तरुण घर आता तो उसकी आवभगत होने लगी। वह मुन्नू के साथ खेलता और उसको कभी चॉकलेट तो कभी आइसक्रीम ला कर उसने मुन्नू का मन जीत लीया। दीपा के साथ भी उसने काफी दोस्ती बनाली थी।

मैं जब नहीं रहता था तब भी तरुण आता जाता रहता था। जब भी तरुण मेरी अनुपस्थिति में आता तब मुझे तरुण और दीपा दोनों बता देते थे। दीपा तरुण को छोटे मोटे काम भी बताने लग गयी थी। तरुण कभी मेरी अनुपस्थिति में सब्जी लाता तो कभी ग्रोसरी। मैंने महसूस किया की धीरे धीरे तरुण और मेरी पत्नी दीपा के बिच कुछ कुछ बात बन रही थी। दीपा के मनमें तरुण के प्रति अब पहले जितना शक और डर नहीं रहा था।

इसका फायदा मुझे भी तो होना ही था। अब तरुण मुझ पर और भी मेहरबान होने लगा। एकदिन अचानक ही वह घर आया। दीपा रसोई में व्यस्त थी। मैंने उसे हालचाल पूछा। हम दोनों खड़े थे की अचानक उसके हाथमे से एक लिफाफा निचे गिरकर मेरे पांव पर पड़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे तरुणने लिफाफा जान बुझ कर गिराया था। मैंने झुक कर जैसे उसे उठाया तो उसमे से एक तस्वीर फिसल कर बहार निकल पड़ी। वह तस्वीर उसकी पत्नी टीना की थी।

वह समंदर के किनारे बिकिनी पहने खड़ी थी। उसकी नशीली आँखें जैसे सामने से खुली चुनौती दे रही थी। उसके मद मस्त उरोज जैसे उस बिकिनी में समा नहीं रहे थे। छोटी सी लंगोटी की तरह की एक पट्टी उसकी भरी हुई चूत को मुश्किल से छुपा पा रही थी। उसके गठीले कूल्हे जैसे चुदवाने का आवाहन कर रहे थे। उसे देख कर मैं थोड़े समय तो बोल ही नहीं पाया। मैं एकदम हक्का बक्का सा रह गया।

अचानक मुझे ध्यान आया की तरुण मुझे घूर कर देख रहा है। मैं खिसिया गया और हड़बड़ा कर बोला, "यार, सॉरी। मुझे यह देखना नहीं चाइये था।"

तरुण एकदम हंस पड़ा और बोला, "तुम क्यों नहीं देख सकते? उस दिन उस बीच पर पता नहीं कितने लोगों ने टीना को इस बिकिनी में आधा नंगा देखा था। तुम तो फिर भी अपने हो। अगर तुम होते तो तुम भी जरूर देखते। अगर तुम्हारे पास दीपा की ऐसी तस्वीर होती तो क्या तुम मुझे नहीं दिखाते? बल्कि मैं तो कहता हूँ को चलो ना एक बार स्विमिंग पूल में अपनी बीबियों को लेकर स्विमिंग करने चलते हैं। फिर तो हम दोनों ही एक दूसरे की बीबियों को बिकिनी में आधी नंगी देख सकते हैं। उन्हें छेड़ भी सकते हैं। क्या कहते हो?"

उसके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने अपनी मुंडी हिलाते हुए कहा, " बात तो ठीक है। पर पता नहीं, दीपा तैयार होगी या नहीं। वह शायद मना कर देगी। और जहां तक दीपा की आधी नंगी तस्वीर का सवाल है, मैं भी तो तुम्हे जरूर दिखाता। पर मेरे पास दीपा की ऐसी तस्वीर है नहीं।" मेरे मन में आया की मैं तरुण को बताऊँ की उसने तो मेरी बीबी को आधी नंगी उस दिन देख ही लिया था। पर मैं चुप रहा।

तरुण ने हँसते हुए पूरा लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया और बोला, "इस लिफाफे में हमारे हनीमून की सारी तस्वीरें हैं। इसमें टीना के, मेरे और हमारे दोनों के साथ साथ बड़े सेक्सी पोज़ हैं। तुम इन्हें जी भर के देख सकते हो। मैं तुमसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहता। तुम चाहो तो इसे दीपा के साथ भी शेयर कर सकते हो। भाई , मैं तुम दोनों में और हम दोनों में कोई फर्क नहीं समझता। मेरे लिए टीना और दीपा भाभी में कोई फर्क नहीं है, वैसे ही तुम भी दीपा भाभी और टीना में कोई फर्क मत समझना।"

उसकी बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आई, पर उसके चले जाने के बाद जब में उसकी बात पर विचार कर रहा था तब मैं धीरे धीरे उसका इशारा समझने लगा। जैसे जैसे मैं सोचता गया तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उसकी बात के मायने बड़े गहरे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे वह यह संकेत दे रहा था की उसकी बीबी और मेरी बीबी में कोई अंतर नहीं है। उसका मतलब यह था की मेरी बीबी उसकी बीबी और उसकी बीबी मेरी बीबी भी हो सकती है। साफ़ शब्दों में कहें तो वह बीबियों की अदलाबदली मतलब एक दूसरे की बीबी की चुदाई की तरफ इशारा कर रहा था। तरुण ने जैसे बात बात में अपने मन की बात कह डाली।

जैसे जैसे मैं सोचता गया मुझे उसका सारा प्लान समझ में आने लगा। मैं भी तो वही चाहता था जो वह चाहता था। फिर ज्यादा सोचना कैसा?

फिर मेरे मनमे एक कुशंका आई। कहीं मैं अपनी प्रिय पत्नी को खो तो नहीं दूंगा? कहीं वह तरुण की आशिक तो नहीं बन जायेगी? पर यह तो हो ही नहीं सकता था क्यूंकि तरुण भी तो उसकी बीबी को बहुत चाहता था। उसकी एक बच्ची भी तो थी। हमारा भी तो मुन्नू था। शंका का तो तुरंत समाधान हो गया। हाँ एक बात जरूर थी। एक बार शर्म का पर्दा हट जानेसे, यह हो सकता है की तरुण दीपा को बार बार चोदना चाहे, या दीपा बार बार तरुण से चुदवाना चाहे। तब मैंने यह सोचकर मन को मनाया की आखिर तरुण और दीपा समझदार हैं। वह अगर चोदना चाहे भी तो मुझसे बिना पूछे कुछ नहीं करेंगे। यदि मेरी मर्जी से ही यह होता है तो भला, मुझे तरुण और दीपा की चुदाई में कोई आपत्ति नहीं लगी।

दूसरे दीपा समझदार थी। वह मुझे पूछे बिना कुछ भी ऐसा नहीं करेगी जिससे हमारा घर संसार आहत हो। यदि मान लिया जाये की तरुण बहक जाता है, तो दीपा फिर तरुण को कंट्रोल कर सकती है। मैं जानता था की दीपा एक शेरनी की तरह है। वह यदि चाहे तो तरुण को घरमें घुसने भी न दे। उसने पहले कई बार तरुण को हड़का दिया था। तरुण अपनी बीबी से भी तो डरता था। किसी एक को बहकने से रोकने के लिए तीन लोग खड़े थे, बच्चों को इस गिनती में शामिल न किया जाय तो। मेरी इस शंका का भी भलीभांति समाधान हो गया। सबसे बड़ी बात यह थी की दीपा मुझे बहुत चाहती थी और मैं जानता था की सेक्स और प्रेम का अंतर वह जानती थी। शंका का तो तुरंत समाधान हो गया।

मैंने सोचा की शंका कुशंका करते रहेंगे तो आगे बढ़ नहीं सकते। आखिर कुछ पाने के किये कुछ समझौता तो करना पड़ता ही है। और फिर हम सब कहाँ एकसाथ सारी ज़िन्दगी रहने वाले थे। अब बात थी पत्नियों को पटाने की। यह एक बड़ी चुनौती थी।

फिर मेरे मनमें एक बात आई। दो औरतों को एकसाथ चुदवाने के लिए राज़ी करना मुझे कठिन लगा। वैसे ही औरतें बड़ी ईर्षालु होती है। वह अपने पति को दुसरी औरत को चोदते हुए देख सके यह मुझे मुश्किल सा लग रहा था। ऐसा करने की बात करने से पहले मैंने सोचा क्यों न पहले हम दो मर्द मिलकर कोई भी एक बीबी को तैयार करते हैं।

एक बीबी को अगर हमने फाँस लिया तो दूसरी आराम से फँस जायेगी। एक फँस गयी तो फिर वह दुसरी को जरूर चुदवाने के लिए तैयार करेगी। तब तक मैं टीना के करीब जा नहीं पाया था। तरुण ने तो कुछ हद तक मेरी बीबी पर अपना चक्कर चलाना शुरू कर ही दिया था। मैं भी तो पहले दीपा को चुदवाने का मजा लेना चाहता था। मेरे मनमे मेरी बीबी दीपा को तरुण से चुदवाने का एक तरह का पागलपन सवार हो गया था।

वैसे मेरे मन में बड़ी प्रखर इच्छा थी की मेरी बीबी भी एक बार गैर मर्द का टेस्ट करे। मैं देखना चाहता था की मेरे सामने दूसरा मर्द कैसे मेरी बीबी को चोदता है, मेरी बीबी कैसे उससे चुदवाती है और मैं भी दूसरे मर्द के साथ मिलकर कैसे मेरी बीबी को चोदता हूँ।

कई बार मैंने देखा था की मैं तो झड़ गया था पर मेरी बीबी नहीं झड़ पाई और अपना मन मसोस कर रह गयी। अगर दीपा को दो मर्द चोदते हैं तो साफ़ बात है की वह भी ओर्गाज़म का ज्यादा से ज्यादा मजा ले सकती है। उसको बार बार झड़ने से वह बहुत एन्जॉय करेगी। यही बात को सोच कर मैं जोश में आ गया। तरुण और दीपा की केमिस्ट्री देख कर में पागल सा हो रहा था। मैं दीपा को तरुण से चुदवाने के बारें में गम्भीरता से सोचने लगा।

तरुण का मेरी पत्नी की और आकर्षण (आकर्षण से ज्यादा उपयुक्त शब्द था पागलपन) को मैं भली भांति जानता था। तरुण को दीपा की और से थोड़ा सा भी सकारात्मक रवैया दिखाई दिया तब तो तरुण दीपा का पीछा नहीं छोड़ेगा। यह बात तो मेरी बीबी ने खुद मुझसे कही थी की अगर उस दिन मौक़ा मिला होता और अगर मेरी बीबी ने थोड़ी सी भी असहायता, असावधता या निष्क्रियता दिखाई होती तो तरुण उसे चोद ही देता।

उस दिन एक बार गलती से दीपा को दीपा की मर्जी के बगैर आधी नंगी देख लेने से ही तरुण दीपा को चोदने के लिए इतना उतावला हो गया था की अगर उस समय थोड़ा सा भी चांस मिलता तो दीपा ने भी कुबूल किया था की तरुण दीपा को नंगी कर देता और तब दीपा तरुण को उसे चोदने से रोक नहीं पाती। तो कहीं दुबारा ऐसा कुछ हुआ और तरुण ने दीपा को थोड़ा सा भी पिघलते देखा और उसे दीपा को फाँसने का मौक़ा मिला तो फिर तो मुझे पता था की वह किसी ना किसी तरह दीपा को चुदवाने के लिए मजबूर कर ही देगा और तब तरुण दीपा को चोदे बगैर छोड़ेगा नहीं। अगर उसे मेरी बीबी को चोदने का मौक़ा मिला तो फिर तो तरुण ख़ुशी ख़ुशी टीना को मुझसे चुदवाने के लिए तैयार करने की भरसक कोशिश करेगा इस बातका मुझे पूरा यकीन था।

दूसरे, तब दीपा भी टीना को राजी कर लेगी। मैं जानता था की यदि दीपा चाहेगी तो टीना को जरूर तैयार कर सकती है। पर इसके लिए पहले दीपा के अवरोध का बाँध तोड़ना जरुरी था।

दीपा को गरम करने के लिए मैं अनायास ही तरुण की बात छेड़ देता था। बातों बातों में मैं कुछ न कुछ ऐसे विषय ला देता था की दीपा गरम हो जाए। मैंने एक रात जब दीपा थकी हुयी थी और सोने जा रही थी, तब उसको गर्म करने के इरादे से तरुण के बारेमें बात छेड़ी। मैंने वह लीफाफा निकाला जिसमें टीना और तरुण के सेक्सी पोसेस वाली तस्वीरें थी। दीपा एक के बाद एक तस्वीरें देखने लगी। मैंने टेढ़ी नजर से देखा की दीपा टीना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही थी, पर तरुण की छोटे से जांघिये में उस के उठे हुए लण्ड वाली तस्वीरों को वह थोड़े ज्यादा ही ध्यान से देख रही थी।

एक फोटो में तो तरुण के जांघिये में से तरुण के लण्ड की शायद उसकी बीबी टीना ने एक ऐसी फोटो ली थी जिसमें ऐसे दिख रहा था जैसे एक बड़ा अजगर बड़ी मुश्किल से तरुण की टाँगों के बिच में छुप कर उतनी छोटी सी जगह में समा नहीं पा रहने के कारण तरुण का जांघिया फाड़ कर जैसे बाहर निकलने वाला ही था।

उस फोटो से साफ़ जाहिर हो रहा था की तरुण का लण्ड कम से कम १० इंच से भी शायद ज्यादा लंबा और काफी मोटा होगा। क्यूंकि वह निकर में इतना बड़ा तम्बू बनाकर खड़ा हुआ दिख रहा था। तरुण के जांघिये में टांगों के बिच इतना बड़ा तम्बू जैसा दिख रहा था की यह देख कर दीपा के मुंह से अनजाने में सिटी निकल गयी और वह बोल पड़ी, "बाप रे बाप! कितना बड़ा है?"

मैं समझ तो गया था की वह तरुण के लण्ड के बारे में ही बात कर रही थी फिर भी मैंने अनजान बनते हुए पूछा "डार्लिंग, क्या बात है, क्या बड़ा है?" तब मेरी बीबी ने झूठ बोला की वह तो इतने बड़े समंदर के बीच के बारेमें कह रही थी।

उनमें कुछ ऐसी भी तस्वीरें थीं जिसमें उनके बैडरूम में टीना के ऊपर तरुण चढ़ा हुआ था। हालांकि दोनों ने कपडे पहने हुए थे फिर भी यह साफ़ था की वह चुदाई की अदाएं दिखा रहे थे। कुछ तस्वीरों में तरुण और टीना लगभग नंगे चुदाई करते हुए दिख रहे थे। तरुण ने जाँघिया तो पहन रखा था, पर यह साफ़ था की वह अपना लण्ड जांघिये में से बाहर निकाल कर अपनी बीबी को चोद रहा था। घने बालों से भरी हुईं तरुण की नंगी जाँघें टीना की साफ़ सुथरी गोरी नंगी जाँघों के बिच में दिखाई दे रहीं थीं। टीना ने कोई कपडे नहीं पहने थे बस चद्दर से अपना बदन ढकने की नाकाम कोशिश करती दिख रही थी। हालांकि तरुण का लण्ड और टीना की चूत और बॉल दोनों के बदन के बिच में ढके हुए थे।

ऐसी तस्वीरों को देख कर दीपा कुछ खिसिया गयी। मेरी बीबी ने मेरी और टेढ़ी नजर से देखा। पर पहले ही मैंने अपनी आँखें वहां से हटा ली थीं। थोड़ी सेहमी सी दीपा बोली, "यह लोग बड़े बेशर्म हैं। कैसी तस्वीरें खिंचवाते हैं? ऐसी तस्वीरें किस से खिंचवाईं होंगीं? क्या किसी के सामने कोई भला ऐसे करता है?"

मैंने मेरी बीबी के गुलाबी गालों को हलकी सी चूंटी भरते हुए कहा, "डार्लिंग यह तस्वीरें किसी ने नहीं खींची। यह ऑटो मोड में ही खींचीं जातीं हैं। आप कैमरा को टाइमर से सेट कर दो और फिर पोज़ दो। कैमरा अपने आप ही तस्वीर खींच लेगा।"

मैंने फिर मेरी बीबी को चिढ़ाने के लिए कहा, "और फिर इसमें बेशर्मी की क्या बात है? पति पत्नी हनीमून में अगर चुदाई नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? वैसे दीपा, एक बात तो तुम भी मानोगी, की टीना ना सिर्फ सुन्दर है बल्कि गजब की सेक्सी भी है।"

दीपा ने फ़ौरन मेरी तरफ टेढ़ी नजर करके कहा, "बेशक टीना बहुत सुन्दर है और इन तस्वीरों में तो बड़ी सेक्सी भी लग रही है। पर क्या तुम्हें टीना मुझसे भी ज्यादा सुन्दर और सेक्सी लग रही है?"

मैंने मेरी बीबी की बातों का क्या जवाब देता? मैंने कहा, "खैर यह तो उनके हनीमून की तस्वीरें हैं। पर मौक़ा मिला तो मैं भी किसी दिन तरुण को दिखा दूंगा की मेरी बीबी दीपा भी टीना से कम सुन्दर या कम सेक्सी नहीं है। यह तो मेरी बीबी का बड़प्पन है की सेक्सी ड्रेस पहनती नहीं है, वरना मेरी बीबी का मुकाबला कोई भी औरत नहीं कर सकती।"

मेरी बात सुनकर मेरी सीधीसादी बीबी गरम हो गयी और दीपा का चेहरा ख़ुशी और गौरव से खिल उठा। वह मेरी बाँहों में आकर मुझे चूमने लगी। मेरी बीबी ने कहा, "दीपक, क्या तुम सच कह रहे हो? डार्लिंग, शादी के इतने सालों के बाद भी तुम मुझे इतना चाहते हो, मुझे इतनी सेक्सी और सुन्दर मानते हो यह मुझे बहोत अच्छा लगता है।"

मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "जब तरुण ने मुझे टीना की ऐसी आधी नंगी सेक्सी तस्वीरें देखते हुए पकड़ लिया तो मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुयी। मैंने तरुण से माफ़ी मांगी। तब तरुण ने क्या कहा मालुम है?"

दीपा ने मेरी तरफ सवालिया नजर से देखते हुए अपनी उत्सुकता को दबाने का प्रयास करते हुए पूछा "क्या कहा तरुण ने?"


मैंने कहा, "तरुण ने कहा, टीना की ऐसी आधी नंगी तस्वीर यदि मैंने देख ली तो क्या हुआ? उसे तो उस समय बीच पर सैकड़ों लोगो ने आधी नंगी बिकिनी में देखा था। उसने कहा हम दोनों कपल में क्या अंतर है? टीना और दीपा या दीपक और तरुण सब एक ही तो हैं? हम को हमारे बिच ऐसा कोई अंतर नहीं रखना चाहिए।" मैंने फिर दीपा से पूछा, "कुछ समझी?"

दीपा बोली, "हाँ, सही तो है। हम दोनों कपल अब इतने करीब हैं की हम में एक तरहकी आत्मीयता है। तरुण हो या तुम हो दोनों अपने ही हैं। हमें कोई फर्क नहीं समझना चाहिए। उसने ठीक ही कहा। उसमें सोचने की क्या बात है?"

तब मैंने दीपा के गाल पर चूंटी भरते हुए कहा, "हाय मेरी बुद्धू बीबी। तू इसका मतलब नहीं समझी। तरुण का कहने का मतलब ये था की चाहे तरुण हो या मैं, तुम्हारे लिए दोनों बराबर होने चाहिए। और चाहे तरुण हो या मैं, टीना के लिए भी दोनों बराबर होने चाहिए। इसका मतलब समझी?"

दीपा फिर भी भोलेपन से मुझे ताकती रही तब मैंने कहा, "हे भगवान्, मेरी बीबी कितनी बुद्धू है। अरे तरुण यह इशारा कर रहा था की चाहे तुम हो चाहे टीना हो तरुण के लिए दोनों पत्नीयां जैसी ही हैं। वैसे ही तुम्हारे लिए और टीना के लिए भी मैं और तरुण दोनों उसके पति जैसे ही हैं। इसका मतलब है तरुण तुम्हारा पति जैसा है और टीना मेरी पत्नी जैसी है। इसका मतलब साफ़ है की हम एक दूसरे की पत्नियों की अदलाबदली कर सकते हैं। मतलब हम एक दूसरे की पत्नियों को चोद सकते हैं।"

यह सुनकर दीपा एकदम अकड़ गयी और बोली, "यह क्या बात हुई। भाई एक दूसरे की बीबियों के साथ थोड़ा मिलना जुलना, थोड़ी शरारत अथवा थोड़ी सी छेड़खानी ठीक है, पर अदलाबदली की बात कहाँ से आई? बड़ी गलत बात कही तरुण ने अगर उसका यह मतलब समझता है वह तो। पर मुझे लगता है शायद उसका कहनेका वह मतलब नहीं था। यह सब बातें तुमने ही बनायी लगती है। तुम्हारे दिमाग में तो हमेशा सेक्स छाया रहता है। शायद तुम्हारी समझने में भूल हुई है। तरुण ऐसा बोल नहीं सकता। मेरे ख़याल से तो वह बंदा सीधा सादा है।" मैं अपने ही मन में मेरी सरल पत्नी की यह बात सुन कर हंस रहा था। तरुण और सीधा सादा?"

मैंने तीर निशाने पर लगाने के लिए कहा, "तरुण ने और क्या कहा सुनोगी?" दीपा ने अपनी मुंडी हिला कर हाँ कहा।

मैंने कहा, 'तब तरुण ने मुझसे पूछा, अगर तुम्हारी ऐसी आधी नंगी तस्वीरें हों तो मैं उनको तरुण के साथ शेयर नहीं करूँगा क्या? मैं क्या बोलता? मैंने कहा हाँ जरूर करूँगा। तब तरुण ने मुझे एक और बात कही। उसने कहा क्यों ना हम चारों यहीं पर जो पांच सितारा होटल है उसके स्विमिंग पूल मेँ एक बार स्विमिंग करने जाएँ? तब तो तुम और टीना दोनों ही बिकिनी में आधे नंगे दिखोगे?"

दीपा यह सुनते ही एकदम सहम गई। वह मुझ से नजर भी मिला नहीं पा रही थी। शर्म से उसका मुंह लाल होगया था। दीपा सोचमें पड़ गयी और बोली, "यदि मेरी ऐसी तस्वीर तुम्हारे पास होती तो क्या तुम तरुण को दिखाते? यह बात तो ठीक नहीं। पर खैर मेरी ऐसी तस्वीरें कहाँ है, जो तुम तरुण को दिखाओगे? हम तो हनीमून पर कहीं गए ही नहीं। और जहां तक स्विमिंग पूल में बिकिनी पहन कर जाने का सवाल है तो मेरे पास तो कोई बिकिनी है ही नहीं। तो हम तो जा नहीं सकते। भले ही वह दोनों चले जाएँ।" दीपा के चेहरे पर निराशा सी छा गयी।

मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा, " अरे मैं बिकिनी भी ले आऊंगा और मैं भी तरुण को दिखा दूंगा की मेरी बीबी टीना से कम सेक्सी नहीं है। अब तो तुम्हें और मुझे ऐसे तस्वीरें खिंचवानी पड़ेंगी।"

दीपा से पट से बोली, "ताकि तुम मेरी आधी नंगी तस्वीरों को तरुण को दिखा सको?"

मैंने सीधे ही पूछा, "हाँ, वो तो मुझे दिखानी ही पड़ेंगी। मैंने वचन जो दे दिया है तरुण को। भाई तुम्हें तो ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। क्यों की वैसे भी तरुण ने तो तुमको आधी नंगी उस दिन देख ही लिया था न, जिस दिन तुम तौलिया में लिपटी हुई तरुण के सामने आयी थी?"

दीपा ने मुझे नकली घूंसा मारते हुए कहा, "चलो हटो, वह तो तुम्हारी ही शरारत थी। तुम क्यूँ चाहते थे की मैं तरुण को उकसाऊँ? मुझे लगता है की तुमने ही वह चाल चली थी, मुझे फँसाने के लिए। तुम क्या चाहते थे? तुम्हारा आईडिया मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। देखो दीपक, तुम मेहरबानी कर के मुझे गलत सलत चक्कर में मत फाँसो। मेरे जज्बात से प्लीज मत खेलो। आखिर मैं भी एक इंसान हूँ। मेरी भी कमजोरियाँ हैं।"

जब दीपा ने मुझे कहा की उसकी भी कमजोरियाँ हैं, तो मैं समझ गया की दीपा काफी पिघल चुकी है। तरुम की करतूतों का उस पर भी असर हुआ है। दीपा मुझ से एकदम सट रही थी और गरम हो गई थी। उस रात भी हमने खूब जोर शोर से सेक्स किया। अब तो मुझे दीपा को गरम करने की चाभी सी जैसे मिल गयी थी। जब भी दीपा थकान का बहाना करके सोने के लिए जाती और अगर मेरा मूड उसे चोदने का होता तो मैं तरुण की कोई न कोई रसीली बात छेड़ देता। कई बार तो मुझे बाते बनानी पड़ती थी। परन्तु मेरी बुद्धू बीबी यह समझ नहीं पाती थी की मैं उसे चोदने के लिए तैयार करने के लिए यह सब सुना रहा था। या फिर पता नहीं, शायद वह समझ गयी थी की मैं क्या चाहता था पर दिखावा कर रही थी जैसे वह समझ नहीं पा रही थी की मैं क्या चाहता था। खैर हर हालात में अब मुझे इसी बात को आगे बढ़ाने के लिए अग्रसर होना था।

happy
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#8
banana

पर मुझे कुछ ज्यादा करने की जरुरत नहीं पड़ी। बात अपने आप ही बनने लग रही थी। 

एक दिन तरुण घूमते घूमते मुझे मिलने आया। मैं उस दिन टीवी पर मेरा मन पसंद एक खास मैच देख रहा था। तब दीपा ने रसोई में से मुझे आवाज़ दी। वह मुझे ऊपर के शेल्फ से एक डिब्बा उतारने के लिए कह रही थी। मैंने तरुण से कहा की जाओ और दीपा की मदद करो, मैं टीवी देखने में व्यस्त था। यह सुनकर तरुण एकदम रसोई में पहुंचा तो देखा की दीपा को ऊपर के शेल्फ से एक आटे का भरा हुआ डिब्बा उतारना था।


तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी आप हट जाओ। मैं दो मिनट में डिब्बा उतार दूंगा।"


दीपा ने जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "क्यों? तुम क्यों उतारोगे? तुम्हारे भाई नहीं आ सकते क्या? यह उनका काम है।"


उसके बुलाने पर भी मैं रसोई में नहीं गया उस बात से दीपा चिढ़ी हुयी थी। उसके सर पर एक तरह का जूनून सवार था की या तो मैं जा कर उस डिब्बे को उतारूंगा या तो फिर वह स्वयं वह उतारेगी। किसी और (मतलब तरुण) की मदद नहीं लेगी। जब मैं नहीं पहुंचा तो तरुण ने देखा की दीपा खुद रसोई के प्लेटफार्म के ऊपर चढने की कोशिश करने लगी। प्लेटफार्म की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण वह ऊपर चढ़ नहीं पा रही थी। दीपा ने अपना एक पॉंव ऊपर उठाया और प्लेटफार्म पर रखा तो उसकी साड़ी सरक कर कमर पर आ गयी और उसकी जांघें तरुण के सामने ही नंगी हो गईं।


तरुण की शक्ल उस समय देखने वाली थी। वह दीपा की खूबसूरत जाँघें देख भौंचक्का सा रह गया। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। जब दीपा ने तरुण के चेहरे के भाव देखे तो वह कुछ सकपका कर खड़ी हो गयी। उसने अपनी साडी ठीक की। तरुण ने अपने आप को सम्हाला और दुबारा दीपा को कहा, "भाभी, मुझे उतारने दो। मैं लम्बा हूँ और यह डिब्बा आसानी से उतार लूंगा।"


दीपा ने उसके जवाब में कहा, "देखो यह काम तुम्हारे भैया का है। या तो वही आकर उतारेंगे, या तो मैं खुद ऊपर चढ़ कर उसे उतारूंगी।"


तरुण ने कहा, "तो ठीक है भाभी आप ही डिब्बे को उतारिये। चलिए आप चढ़ जाइये प्लेटफार्म के ऊपर। मैं आपकी मदद करता हूँ।"


यह कह कर अचानक तरुण ने मौक़ा देख कर दीपा के जवाब का इंतजार किये बगैर दीपा के कन्धों को पकड़ कर दीपा को घुमा कर रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ा किया, और खुद दीपा के पीछे हो गया। दीपा को उठाने के लिए तरुण ने काफी निचे झुक दीपा की साड़ी और घाघरा काफी ऊपर उठा कर दीपा की टाँगों के बिच अपने दोनों हाथ डाल दिए। मुझे पक्का यकीन था की उस समय दीपा की चूत को तरुण की बांहों ने जरूर छुआ होगा और रगड़ा भी होगा। फिर तरुण ने दीपा के कूल्हे में पीछे से अपना सर लगाया और दीपा को पीछे से बड़ी ताकत लगाकर ऊपर उठाया।


बाप रे, मुझे जब बाद में पता लगा तो मेरे लण्ड से जैसे पानी झरने लगा। पीछे जाते समय थोड़ी देर के लिए ही सही, पर उसने अपना लण्ड दीपा के कूल्हे में घुसेड़ कर उसे एकाध धक्का जरूर मारा होगा। एक बार अपना हाथ आगे कर दीपा के बूब्स उसने जरूर दबाये होंगे! दीपा की जाँघों को जकड़ कर अपने हाथ की उंगलियां जरूर दीपा की पैंटी के ऊपर से उसकी चूत में डाली होंगी। यह सब तरुण के लिए कितना रोमांचक होगा! उस समय तरुण का क्या हाल हुआ होगा यह समझना मुश्किल नहीं था। जरूर उसने काफी कुछ शरारत की होगी।


मैं आज भी उस दृश्य की कल्पना करता हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरी बीबी के पीछे उससे सटकर कैसे तरुण खड़ा होगा और उस समय उसका लण्ड कितना सख्त होगा और मेरी बीबी की खूबसूरत गाँड़ और चूत के नीचे कैसे उसने अपने दोनों हाथ डालें होंगें, पिछेसे कैसे धक्का दे रहा होगा यह तो मेरे लिए बड़ा उत्तेजना भरा सोचने का विषय था। वैसे भी इस बहाने उसने दीपा के स्तनों को तो जरूर दबाया होगा। तरुण दीपा के स्तनों पर फ़िदा था और जब भी उसे देखो तो उसकी नजर वहीं टिकी रहती थी।


दीपा तरुण की इस हरकत से भौंचक्की सी रह गयी और कुछ बोल नहीं पायी। वह प्लेटफार्म पर तो चढ़ गयी पर लड़खड़ाने लगी। डिब्बा भारी था। तरुण ने कस कर दीपा के पाँव पकडे और कहा, "दीपा भाभी संभल कर। गिरना मत।"


परन्तु दीपा डिब्बा निचे उतारते लड़खड़ाई और सीधी तरुण पर जा गिरी। तरुण और दीपा दोनों धड़ाम से निचे गिरे। निचे तरुण और उसके ऊपर दीपा। जब मैंने धमाके की आवाज़ सुनी तो भागता हुआ रसोई में गया और देखा की बड़ा रोमांटिक सीन चल रहा था। दीपा तरुण के उपर लेटी हुयी थी और तरुण दीपा को अपनी बाहों में लिए हुए दीपा के निचे दबा था।


आटे के डिब्बे का ढक्कन खुल गया था और दीपा और तरुण के पुरे बदन पर गेहूं का आटा फ़ैल गया था। डिब्बे के ढक्कन का एक कोना तरुण के कपाल पर लगा था और उसमें से खून रिस रहा था। दीपा के बदन को तरुण ने अपनी एक बाँह में घेर रखा था। दीपा की साडी और घाघरा दीपा की जाँघों के काफी ऊपर तक चढ़ा हुआ था और जाँघों को बिलकुल नंगी किये हुए था। ऐसा लग रहा था जैसे तरुण का लण्ड बिलकुल दीपा की चूत में घुसा हुआ था। तरुण दूसरे हाथ से मेरी बीबी के दोनों स्तनों को जकड़े हुए था और वह उन्हें धड़ल्ले से दबा रहा था। मैंने देखा की दीपा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी और तरुण को डर और हैरानगी से देख रही थी। दोनों के होठ एक दूसरे के इतने करीब थे की जैसे वह चुम्बन करने वाले थे। तरुण की आँख आटे से भरी हुई थी।


मेरी बीबी की प्यारी सुआकार गाँड़ तरुण के बिलकुल आधी नंगी दिख रही थी। दीपा की साड़ी और उस का घाघरा इतना उठा हुआ था की दीपा की सुडौल जाँघें यहां तक की उसकी पैंटी भी साफ़ साफ़ नजर आ रही थीं। तरुण के पुरे बदन पर आटा फैला हुआ था। दीपा भी आटे से पूरी तरह ढक चुकी थी।


न चाहते हुए भी मैं हंस पड़ा और ताली बजाते हुए बोला, "भाई वाह, क्या रोमांटिक सिन चल रहा है।"


तरुण और दीपा एकदम हड़बड़ाते हुए उठ खड़े हुए। दीपा ने अपनी साड़ी ठीक की और बोली, "मैंने तो तुम्हे बुलाया था। तुम्हे तुम्हारी मैच से फुर्सत कहाँ? तुमने अपने इस मित्र को भेज दिया और देखो क्या हुआ। देखो तुम्हारे दोस्त ने क्या किया? मेरी फजीहत हो गयी ना? और तुम हो की तालियां बजा रहे हो। मैं क्या करती?" दीपा के गाल शर्म के मारे लाल हो रहे थे। वह आगे कुछ बोल नहीं पायी।


तरुण अपनी आँखें मलते हुए बोला, "भाई, मुझे माफ़ कर दो। यह अचानक ही हो गया। मैंने दीपा भाभी को कहा की मैं डिब्बा उतार दूंगा। खैर मैं तो दीपा भाभी को बचाने की कोशिश कर रहा था। यह सब जान बुझ कर नहीं हुआ।"


मैंने मेरी बीबी का तरुण के प्रति कुछ और सहानुभूति बने इस इरादे से मैंने मेरी बीबी दीपा की और घूम कर उसे सख्त नज़रों से देख कर पूछा, "कमाल है! गलती तुम्हारी हुई और तुम दोष तरुण को दे रही हो? क्या यह सब उसने किया? क्या तरुण ने तुम्हें नहीं कहा की तुम ऊपर मत चढ़ो? क्या उसने वह डिब्बा खुद उतार देगा ऐसा तुम्हें नहीं कहा था?"


मेरी बेचारी बीबी मुझे दोषी सी खड़ी चुपचाप लाचार नज़रों से देखती रही। उसे शायद अपने कराये पर पछतावा हो रहा था। मैंने उसे और डाँटते हुए कहा, "तरुण ने बेचारे ने तो तुम्हें गिरने से बचाया। अगर तरुण तुम्हारे निचे ना होता तो तुम फर्श पर गिरती और तुम्हारी हड्डी भी टूट सकती थी। आज अगर तरुण ना होता तो मुझे अभी तुम को लेकर शायद हॉस्पिटल की और भागना पड़ता। देखो बेचारे को कितनी चोट आयी है? उसके सर से कितना खून बह रहा है? ऊपर से उसका सारा ड्रेस तुमने खराब कर दिया। अहसान मानने के बजाय तुम तरुण को दोषी करार दे रही हो?"


मुझे पता नहीं की मेरी बात सुनकर या वाकई में दर्द के कारण; अचानक तरुण ने एकदम कराहना चालू किया। मैंने देखा की तरुण का दाँया हाथ कोहनी के निचे से टेढ़ा हुआ दिख रहा था। तरुण उस हाथ को बाएं हाथ से पकड़ कर कराहने लगा। जब दीपा ने यह देखा तो एकदम डर गयी और तरुण के पास जाकर बोली, "तरुण क्या हुआ? तुम्हें ज्यादा चोट आयी है क्या? तुम ठीक तो हो?"


तरुण ने अपनी आटे से भरी हुई आँखों को मूंदे हुए रखते हुए अपना दायां हाथ आगे करते हुए कहा, "देखो ना दीपा, यह हाथ मूड़ गया है। मुझे वहाँ दर्द हो रहा है।"


दीपा ने जब तरुण का मुडा हुआ हाथ देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। दीपा ने हड़बड़ाहट में मेरी और देख कर कहा, "दीपक चलो तरुण को कोई डॉक्टर के पास ले चलते हैं।"


डॉक्टर का नाम सुनकर तरुण एकदम चौकन्ना हो गया और बोला, "नहीं मैं ठीक हो जाऊँगा। थोड़ी चोट आयी है। बस दिक्कत यही है की मैं अपने हाथ अभी यूज़ नहीं कर पा रहा हूँ, इस लिए मैं खुद अपने कपडे और आँखें साफ़ नहीं कर सकता।"


मैंने देखा की मेरी बीबी की शकल रोने जैसी हो गयी। उसकी आँखें भर आयीं। मैंने फिर भी दीपा को अपना नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ऐसा तुमने क्यों किया? सिर्फ इस लिए क्यूंकि मैं आ नहीं सका और मैंने मेरे बदले में तरुण को भेज दिया? अपनी गलती का ठीकरा किसी और के सर पर फोड़ना ठीक नहीं।"


मेरी प्यारी बीबी की आँखों में आँसूं भर आये। वह रोनी सी सूरत में बोली, "दीपक तुम ठीक कह रहे हो। यह मेरी ही जिद थी। मेरी जिद के कारण तरुण को चोट भी आयी और उसका ड्रेस भी खराब हो गया।"


फिर दीपा तरुण की और घूम कर बोली, "तरुण आई ऍम सॉरी। लाओ मैं तुम्हे साफ कर देती हूँ।" यह कह कर दीपा ने अपनी साडी का एक छोर ऊपर उठाया और तरुण के चेहरे पर लगा आटा साफ़ करने को तैयार हुई।


मैं मेरे मन के अंदर हँस पड़ा। अचानक मेरे मन में एक बात आयी। मैंने सोचा की अगर मैं चाहूँ तो तरुण को मेरी बीबी को छेड़ने का एक बढ़िया मौक़ा मिल सकता है। मैंने तरुण और दीपा को करीब लाने का एक सुनहरा अवसर देखा। मैंने दीपा को रोका और कहा, "तुम तरुण के कपड़ों को साफ़ करो, पर यहां नहीं। देखो तुमने तरुण के कपड़ों का क्या हाल किया है? वह ऑफिस जाने के लिए आया था। उसकी आँखें और मुंह आटे से ढका हुआ है। यहां तुम उसे साफ़ करोगी तो सारा आटा यहीं फ़ैल जाएगा। वह कुछ भी देख नहीं सकता है। तरुण का हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम में ले जाओ और और वहाँ उसकी आँखें और कपडे साफ़ कर दो। उसके बाद उसके कपडे और आटे फैले हुए बाथरूम को धो देना। अब जो हो गया सो हो गया। तुम यह समझो की यही तुम्हारी सजा है। अब अगर तुम लोग मुझे इजाजत दो तो मैं वापस जा कर टीवी पर मैच देखूं। कितना बढ़िया मैच चल रहा था। तुम्हारे आटे के डिब्बे ने मेरे मैच की ऐसी की तैसी कर दी।"


सजा का नाम सुनते ही मेरी प्यारी बीबी ने अपना सर झुकाया और लाचार हो कर चुपचाप तरुण का हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम की और ले जाने लगी। मैं ड्राइंग रूम की और चल पड़ा। पर उनके वहाँ से हटते ही मैं दरवाजे के पीछे छुप कर छुपता छुपाता उनके पीछे बाथरूम की और चला। तरुण अपना किरदार बखूबी निभा रहा था। शायद तरुण मेरी चाल भाँप गया था। जैसे उसे कुछ दिख ही नहीं रहा था ऐसे वह मेरी बीबी के हाथ को टटोल रहा था।


चलते हुए तरुण ने लड़खड़ाते हुए पीछे से मेरी बीबी की कमर पर अपने हाथ डाले और उसे पीछेसे खींच कर उसकी गाँड़ को अपने लण्ड से सटाते हुए बोला, "अरे भाभीजी, धीरे चलो ना। मुझे कुछ भी दिख नहीं रहा है।"


दीपा ने थम कर पीछे मुड़कर तरुण की और कुछ सख्ती से देखा। पर तरुण तो आँखें बंद कर जैसे कुछ देख ही नहीं पा रहा था वैसे खड़ा रहा।


दीपा ने असहायता दिखाते हुए अपने कंधे हिलाये और फिर चुपचाप तरुण का हाथ अपनी कमर पर ही रखे रहने देते हुए बाथरूम का दरवाजा खोल कर अंदर तरुण के साथ दाखिल हुई।


मैं फुर्ती से बढ़ा और थोड़े से खुले हुए दरवाजे के दो पल्ले के बिच की तिराड़ में से अंदर का सिन देखने लगा। बाथरूम की लाइट दीपा ने जला दी थी जिस कारण मैं उनको देख सकता था। बाथरूम के बाहर जहां मैं खड़ा था वहाँ ज्यादा प्रकाश नहीं था। दीपा हाथ में एक तौलिया लिए हुए बाथरूम के एक कोने में खड़ी हुई थी। छोटे से बाथरूम में खुद को तरुण के साथ खड़े हुए वह अपने आपको कम जगह में सम्हालने की कोशिश कर रही थी। दीपा की सुडौल गाँड़ साड़ी में छिपे हुए मेरी और थी। मैं उनको अच्छी तरह देख पा रहा था और क्यों की मैं अँधेरे में खड़ा था और वह दोनों एक दूसरे में इतने उलझे हुए थे की वह मुझे देख नहीं पा रहे थे।


तरुण मेरी बीबी दीपा के सामने सीधा खड़ा था। उसने अपनी आटे से भरी हुई आँखें बंद कर रखी थीं। उसने दीपा की कमर पर अपने हाथ रखे हुए थे जैसे की वह छोटी सी जगह में लड़खड़ाकर निचे गिरने से डर रहा हो। दोनों के बदन एक दूसरे से काफी सटे हुए थे।


चंद ही मिनटों पहले जब तरुण और दीपा फर्श पर गिर पड़े थे तब तरुण ने साडी के ऊपर से मेरी बीबी की चूत पर अपना लण्ड सटाया हुआ था और वह मेरी बीबी की चूँचियों से उच्छृंखलता ब्लाउज के ऊपर से उन्हें दबा कर मसल कर उनसे खेल रहा था। इस उत्तेजना के कारण उसके पतलून में उसका मोटा और लंबा लण्ड खड़ा हो कर फुंफकार रहा था।


मैंने बाथरूम के बाहर से ही तरुण के पतलून में उसका खड़ा लण्ड देखा जिसको वह मेरी बीबी की दो टांगों के बिच में घुसाने की कोशिश में जैसे लगा हुआ था। शायद मेरी बीबी ने भी उसे महसूस किया होगा। पर उस समय दीपा इतनी घबराई और बौखलाई हुई थी की शायद उसने उस पर ध्यान नहीं दिया।


तरुण के कपाल से थोड़ा खून निकल रहा था। दीपा ने तरुण से कहा, "आओ पहले मैं तुम्हारे वह घाव पर एन्टी सेप्टिक लगा देती हूँ।"


दीपा ने बाथरूम में रखे प्राथमिक दवाई के डिब्बे में से थोड़ी रुई निकाली और खुद चप्पल निकाल कर नहाने के लिए रखे छोटे से स्टूल पर चढ़ गयी ताकि तरुण के सर में लगे घाव को ठीक तरह से देख कर साफ़ कर उस पर दवाई लगा सके। दीपा रुई में एंटी सेप्टिक डालकर तरुण के सर पर लगाने लगी।


दीपा के स्टूल पर खड़े रह कर ऊपर उठने से और तरुण के थोड़े झुकने से दीपा के ब्लाउज में दो टीलों से मदमस्त स्तन बिलकुल तरुण के मुंह के सामने प्रस्तुत हो गए। दीपा के अल्लड स्तनों को उसके ब्लाउज में निकले हुए देख कर तरुण के लिए अपने आप पर नियत्रण रखना काफी कठिन साबित हो रहा होगा। हालांकि तरुण कुछ कुछ देख सकता था पर ऐसे ढोंग कर रहा था जैसे उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता हो। दीपा जब तरुण के कपाल पर दवाई लगा रही थी तब तरुण दीपा की मस्त चूँचियाँ जो उसके मुंह के सामने थी उन्हें बड़ी लालच से घूर रहा था।


मौक़ा मिलते ही जैसे वह लड़खड़ा गया हो वैसे तरुण अचानक आगे झुका और निचे की और गिरने का बहाना कर वह दीपा की छाती पर अल्लड खड़े हुए स्तनों पर उसने अपने मुंह चिपका दिया। छोटे से स्टूल पर खड़ी दीपा तरुणके धक्के से लड़खड़ा गयी। दीपा सम्हले और कुछ विरोध करे उसके पहले उसने चूँचि को अपने मुंह में ले कर उसे चूसना शुरू किया। दीपा ने दीवार का सहारा लिया और उसके सपोर्ट से खड़ी रही। तरुण का मुंह दीपा की छाती पर चिपका हुआ था और तरुण दीपा की चूँचियों को ब्रा और ब्लाउज के ऊपर से बड़े प्यार और इत्मीनान के साथ चूस रहा था। तरुण के मुंह की लार दीपा के ब्लाउज को गीला कर रही थी।


कुछ पलों के लिए असावध दीपा भौंचक्की सी रह गयी। तरुण को दीपा की असावधानी और भौंचक्का रहने के कारण कुछ वक्त मिल गया उसमें उसने दीपा की एक चूँचि को ब्लाउज के ऊपर से अपने मुंह में लिया हुआ था जिसे वह प्यार से चबा रहा था।


दीपा जब तक अपने आपको सम्हाल पाए और यह समझ पाए की तरुण क्या कर रहा था तब तक तरुण मजे से दीपा की चूँचियों को चूसता रहा। जब दीपा सम्हली तो दीपा ने तरुण को धक्का मार कर पीछे हटाया और कहा, "तरुण, तुम क्या कर रहे हो? तुम पागल हो गए हो क्या?"


तरुण ने जैसे तैसे अपने आपको सम्हाला और जैसे उसे कुछ समझ ही ना आया हो वैसे बड़ा भोला भाला अनजान बनता हुआ बोला, "माफ़ करना भाभी, मैं ज़रा लड़खड़ा गया। अचानक मेरे मुंह में कुछ नरम नरम सा महसूस हुआ। शायद तुम्हारी साड़ी का एक छोर मेरे मुंह में चला गया। क्या हुआ?"


तरुण ने इतने भोले और सीधे सादे अंदाज में दीपा से यह कहा की मेरी बुद्धू बीबी दीपा ने राहत की साँस ली और सोचा की तरुण को यह पता नहीं चला की जो नरम नरम कपड़ा तरुण के मुंह में था वह दीपा का स्तन था। तरुण को पीछे धक्का मार कर दीपा ने कहा, "नहीं कुछ नहीं। चलो हटो और सीधे खड़े रहो।"


तरुण ने कहा, "सॉरी भाभी।"


दीपा ने तरुण की आँखों से गीले कपडे से आटा पोंछा और पूछा, "खैर कोई बात नहीं। तरुण, क्या अब तुम्हें दिख रहा है?"


तरुण ने अपनी आँखों को पोछते हुए बड़े ही भोले बनते हुए कहा, "मेरी आँखों में काफी आटा चला गया है और आँखें जल रहीं हैं। शायद देखने में थोड़ा वक्त लग सकता है। भाभी आप क्यों तकलीफ कर रहे हो? हालांकि मैं देख नहीं सकता पर फिर भी कोशिश करता हूँ की अपनी कमीज और पतलून को झुक कर साफ़ कर देता हूँ।"


ऐसा कह कर तरुण आगे झुकने का ढोंग करने लगा। दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कहा, "कैसे करोगे? तुम्हारा हाथ भी तो मुड़ गया है। मैं साफ़ कर देती हूँ।" यह कह कर दीपा ने अपने हाथ ऊपर उठा कर तरुण के कॉलर, गले और कमीज पर लगा आटा साफ़ किया। जब यह हो गया तो दीपा ने तरुण को कमीज उतारने को कहा। तरुण ने फ़ौरन अपनी आँखें बंद रखते हुए अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी और बनियान में हाथ ऊपर उठाये वह खड़ा हुआ था।


तरुण का चौड़ा सीना और उसके बाजुओं के शशक्त स्नायु दीपा को दिख रहे थे। दीपा ने तरुण की बाँहों में से आटा साफ़ किया। दीपा उस वक्त पहले से काफी रिलैक्स्ड लग रही थी। जाने अनजाने में ही दीपा ने तरुण के बाजुओं के शशक्त स्नायु पर हाथ फिरा कर उन्हें महसूस किया। तरुण के कसरती फुले हुए बाइसेप्स महसूस कर मेरी बीबी के चेहरे पर प्रशंसात्मक भाव को मैंने छुपकर देखा।


दीपा ने मुस्कराते हुए तरुण के बाजुओं के मसल्स को दबाते हुए कहा, "तरुण, लगता है तुम जिम जाकर अच्छी खासी कसरत करते हो। तुम्हारे बाजू काफी सख्त और फुले हुए हैं।"


तरुण ने मौक़ा देखते ही बोला, "हाँ भाभी कसरत तो करता हूँ। भाभी, एक प्राइवेट बात कहता हूँ। सिर्फ मेरी बाजू ही नहीं, मेरा और भी सब कुछ सख्त, फौलादी, लंबा और फुला हुआ मोटा है।"


दीपा तरुण की बात सुनकर बौखला गयी। वह समझ गयी की तरुण क्या कहना चाहता था। दीपा ने तरुण के बदन से हाथ हटा लिया तब तरुण ने सोचा कहीं दीपा नाराज हो कर वहाँ से चली ना जाए। उसने कहा, "भाभी, मेरा मतलब है, मेरी छाती, पेट, जांघें, सब सख्त और करारे हैं भाभीजी। मेरा कोई और मतलब नहीं था।"


दीपा समझ तो गयी थी की तरुण उसका लण्ड कितना बड़ा है यह दीपा को कहना चाहता था। पर शायद उस समय दिपा ज्यादा खिचखिच करने के मूड में नहीं थी सो उसने सेहमी आवाज में कहा, "ठीक है, अब ज्यादा बक बक मत करो और चुपचाप खड़े रहो।"


तरुण ने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा, "सॉरी भाभी"


कंधा, बाजू और सीना साफ़ करने के बाद दीपा ने तरुण के बनियान को थोड़ा सा उठा कर उसकी कमर को तौलिये से साफ़ किया। मेरे मन में यह सोच कर कुछ अजीब से रोमांच के भाव उठे की उस समय दीपा के मन में क्या चल रहा होगा। जब तरुण ने महसूस किया की दीपा ने उसके बनियान के ऊपर से सफाई कर चुकी थी तब उसने फुर्ती से अपनी बाजुओं को उठा कर एक झटके में दीपा कुछ समझ पाए उसके पहले अपनी बनियान निकाल कर बाथरूम के एक कोने में फेंक दी।



तरुण उस समय ऊपर से नंगा हो चुका था। उसका चौड़ा सीना शायद वह दीपा को दिखाना चाहता था। तरुण की यह हरकत से दीपा थोड़ी चौंक गयी फिर अपने आपको सम्हालते हुए तरुण के चौड़े और घने काले बालों से भरे हुए सीने को देखने लगी। तरुण के सीने पर भी आटा चिपका हुआ था। दीपा ने तौलिया उठा कर तरुण का सीना साफ़ किया। जब दीपा तरुण के सीने पर उसकी निप्पलोँ के ऊपर पोंछ रही थी तब तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ा।


जब तरुण ने उसका हाथ पकड़ा तो दीपा ने घबराहट में नजरें उठा कर तरुण की और देखा। तरुण अपनी आँखें बंद किये मंद मंद मुस्करा रहा था। दीपा को समझ नहीं आया की वह क्या करे। दीपा ने अपना हाथ पीछे खींचते हुए कुछ गभराहट वाले स्वर में धीमी आवाज में पूछा, "तरुण तुम क्या कर रहे हो?"


तरुण ने दीपा का हाथ और सख्ती से पकड़ कर दीपा को अपना हाथ वहाँ से हटा ने नहीं दिया और अपने सीने में अपनी छाती की निप्पलोँ पर दबाये हुए रखते हुए उतने ही धीमे स्वर में कहा, "भाभी मैं आपके कोमल हाथों को मेरे सीने पर महसूस करना चाहता हूँ। प्लीज उन्हें थोड़ी देर के लिए यहां रहने दो ना? मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"


तरुण की हरकत से दीपा झल्ला उठी और हलके स्वर में बोली, "तुम्हें तो बहुत कुछ अच्छा लगता है।" फिर बिना अपना हाथ हटाए जैसे तरुण ने कहा था वैसे और कुछ नहीं बोलते हुए वहाँ बूत की तरह तरुण ने के नंगे सीने पर अपना हाथ रखते हुए वहीं खड़ी रही। कुछ देर ऐसे ही खड़े रहते हुए मुझे ऐसा लगा की बरबस ही दीपा की उंगलियां तरुण की छाती की निप्पलोँ को सहलाने लगीं। अचानक तरुण ने लपक कर दीपा की कमर में हाथ डाला और उसे एक झटके में अपनी और खींचा। तरुण ने झुक कर अपना पेंडू आगे धकेला और दीपा की कमर के निचे दीपा की दो टाँगों के बिच उसकी चूत के ऊपर अपना पतलून के अंदर खड़ा हुआ लण्ड घुसाने लगा।


तरुण की उस नयी हरकत से दीपा और परेशान हो गयी। वह तरुण को दूर धक्का मार कर उससे अलग होने की कोशिश करने लगी। साथ में धीमी आवाज में तरुण से कहने लगी, "बस करो, तरुण यह तुम क्या कर रहे हो?"


तरुण ने फिर ढोंग करते हुए कहा, "माफ़ करना भाभी, मैं फिसल रहा था। आप ने मुझे बचा लिया। आई ऍम रियली सॉरी भाभी।"


दीपा ने कहा, "हर बार कुछ ना कुछ हरकत करते हो और कह देते हो सॉरी। चलो, ठीक है तरुण, अब सीधे खड़े हो जाओ, मैं तुम्हारी पतलून पोंछ देती हूँ।"


तरुण ने पूछा, "पतलून पर भी आटा लगा हुआ है? कहाँ लगा है?"


दीपा ने हिचकिचाते हुए कहा, "हाँ, है थोड़ा आटा लगा हुआ है। वह.... क्या कहते हैं..... उन्ह..... यह.... तुम्हारे...... ओह..... टाँगों के...... बिच में.... "


तरुण ने आँखें बंद रखे हुए मुस्करा कर कहा, "अच्छा! ओह..... मेरे लण्ड के ऊपर?" फिर एकदम झुक कर, अपनी जीभ बाहर निकाल कर, अपने कान पकड़ कर और अपनेही गाल पर एक हलकी सी थप्पड़ मारते हुए दीपा को दो हाथ जोड़कर बोला, "सॉरी भाभी। गलत शब्द मुंह से निकल गए। मुझे माफ़ कर दीजिये। मेरा मतलब है मेरी दो टांगों के बिच में ना?"


दीपा झुंझलाती हुई बोली, "तरुण अब बस करो। तुम बहुत बक बक कर रहे हो। ठीक है, रुको मैं उसे भी पोंछ कर साफ़ कर देती हूँ।"


मैंने देखा की दीपा की झुंझलाहट देख तरुण मंद मंद मुस्कुरा रहा था। दीपा अपने काम में लगी हुई थी। मेरी बीबी तरुण से थोड़ा पीछे हटी और अपनी साड़ी और घाघरा को अपने घुटनोँ के ऊपर तक उठा कर अपनी दोनों टांगों को फैला कर दीपा वह छोटे स्टूल पर अपने सुडौल कूल्हे टिकाकर बैठ गयी। जाहिर था की तरुण का मोटा और लंबा लण्ड जो दीपा के इतने करीब आने से छड़ की तरह खड़ा हो गया था वह तरुण के पतलून में एक तम्बू की तरह बाहर की और निकला हुआ मुझे साफ़ दिखाई देता था तो दीपा को तो अपने बिलकुल करीब दिखाई पड़ना ही था। तरुण के छड़ की तरह खड़े हुए लण्ड को तरुण के पतलून में तम्बू बनाते हुए देख कर दीपा भौंचक्की सी देखती ही रही।


दीपा के बैठ जाने पर तरुण ने अपने पतलून का बेल्ट खोल दिया जिससे दीपा ऊपर के हिस्से की ठीक सफाई कर सके। दीपा ने एक हाथ से तरुण के पिछवाड़ा वाला हिस्सा तो जैसे तैसे साफ कर दिया।


दीपा का मुंह तरुण के पतलून में खड़े लण्ड के तम्बू के बिलकुल सामने था। तरुण की कमर के निचे से तौलिये से पोंछते हुए जब दीपा के हाथ की उंगलियां तरुण के खड़े हुए लण्ड के पास पहुंचीं तो दीपा रुक गयी। तरुण के खड़े हुए लंड के तम्बू के ऊपर भी काफी आटा लगा हुआ था। उसे दीपा को साफ़ करना था। मैं समझ सकता था की मेरी असमंजस में पड़ी हुई बीबी के जहन में कितना उथलपुथल चल रहा होगा। वह तरुण के खड़े हुए लण्ड से बने हुए तम्बू के ऊपर से अपनी उँगलियों से छुए बगैर उस को कैसे साफ़ करे।


तरुण के खड़े लंड से बने हुए तम्बू देख कर यह भली भाँती अंदाजा लगाया जा सकता था की तरुण का लण्ड काफी लंबा और मोटा होगा। दीपा कुछ देर तक भौंचक्की सी तरुण के पतलून में लम्बे लण्ड से बने हुए तम्बू को देखती रही। मैं अपनी साँसे रोक कर यह इंतजार करता रहा की मेरी भोली बीबी क्या करती है। दीपा तरुण के लण्ड को छूती है या नहीं?


कुछ देर सोचने के बाद दीपा ने शायद यह फैसला किया की जो काम उसे दिया गया है उसे पूरा तो करना ही पडेगा। मेरी बीबी ने कुछ सहमे हुए कुछ झिझकते हुए जहां तरुण के मोटे और लम्बे लण्ड ने तम्बू बनाया हुआ था वहाँ अपनी उंगलियां रखीं और काफी झिझक के साथ घबड़ाते हुए, दीपा ने तरुण के मोटे, लम्बे और छड़ के समान खड़े हुए लण्ड को सफाई का कपड़ा बिच में रखते हुए उसे अपनी हथेली में पकड़ा।


दीपा की उँगलियों को जैसे ही तरुण ने अपने लण्ड पर महसूस किया की एकदम तरुण के पुरे बदन में एक तेज सिहरन फ़ैल गयी और वह खड़े खड़े मचलने लगा। मैं यह देख कर हैरान रह गया की दीपा कुछ देर तक स्तब्ध सी बैठी हुए अपने हाथोंमें तरुण का तगड़ा लण्ड पकड़ कर खोयी सी कुछ सोचते हुए उसे अपनी हथेली में सहलाती रही। फिर जब अचानक उसे यह समझ आया की उसे तरुण का लण्ड पकडे हुए सहलाते हुए कुछ देर हो चुकी थी तब चौंक कर दीपा ने ऊपर देखा तो पाया की तरुण आँखें मूंदे खड़ा था। धीरे से दीपा ने तरुण के लण्ड को पकड़ रख कर उस के कारण बने हुए तम्बू के आसपास कपडे से सफाई की।

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#9
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सफाई खतम हुई की अचानक दीपा चौंक गयी जब तरुण ने एक झटके में अपनी पतलून की ज़िप खोल दी और अपना पतलून अपनी टांगों के निचे उतार दिया। तरुण ने पतलून के निचे सफ़ेद सूती की पतले कपडे वाली छोटी निक्कर पहन रखी थी। तरुण की निक्कर में तरुण का लण्ड एकदम खड़ा छड़ की तरह जैसे झंडा फहराता हो ऐसे खम्भे के समान खड़ा साफ़ साफ़ दिख रहा था। जहां तरुण के लण्ड ने तम्बू बना रखा था वहाँ काफी गीलापन था और तरुण के लण्ड से निकली हुई चिकनाहट साफ़ साफ़ दिख रही थी। तरुण का लण्ड काफी लंबा और मोटा और तगड़ा होना चाहिए क्यों की निक्कर के अंदर से वह कम से कम सात आठ इंच बाहर निकला हुआ था। दीपा को तरुण का लण्ड उसकी पतली गीली निक्कर के अंदर चिकनाहट में लोथपोथ होने के कारण साफ़ दिखाई दे रहा था।


तरुण का खड़ा इतना लंबा तगड़ा मोटा लण्ड अपने सामने पाकर मेरी बीबी का मुंह आश्चर्य और विस्मय से अनायास ही खुला का खुला रह गया। मैं मेरी बीबी के भाव देख कर दंग रह गया। तगड़ा मोटा लंबा खड़ा लण्ड जो की एक कमजोर पतली निक्कर में ढका हुआ था, उसे अपने मुंह के बराबर सामने देखकर मेरी सीधीसादी बीबी भौंचक्की सी अपने जबड़ों को खुला रखती हुई उसे देखने लगी। मैं पक्का तो नहीं कह सकता पर शायद दीपा का खुल्ला मुंह देख कर एकदम अचानक तरुण ने लड़खड़ाने का नाटक किया और अपने पेंडू को आगे की और एक धक्का दिया और मेरी बीबी के खुले हुए मुंह में अपना खड़े लण्ड वाला तम्बू घुसा दिया।

तरुण का खड़ा मोटा लण्ड जो की निक्कर में छिपा हुआ था वह सीधा अपने मुंह में पाकर दीपा काफी घबड़ायी। निक्कर में फैला हुआ तरुण का इतना मोटा लण्ड अपने थोड़े से खुले हुए मुंह में दीपा कैसे ले पाती? उसका गला रुंध गया और वह चाहते हुए भी खांस ना सकी। दीपा की आँखें यह अचानक हुई घटना से चौक गयीं। वह तरुण के लण्ड के मुंह में घुसने के कारण बोल नहीं पा रही थी। दीपा पर ऐसे धक्का लगने से पीछे की दिवार से सट गयी और पूरी तरह आवाज ना निकलने के कारण चौंकी बौखलाई हुई बड़ी बड़ी आँखों से तरुण को देखने लगी।

तरुण बार बार अपना पेंडू आगे पीछे करता हुआ जैसे मेरी बीबी के खुले मुंह को चोद रहा हो ऐसे करने लगा। दीपा तरुण की चाल समझ चुकी थी। उसने ने जोर लगाकर तरुण को एक धक्का मारा। तरुण पीछे खिसका और उस का लण्ड मुंह में से निकलते हुए ही दीपा हट कर खड़ी हो गयी और तरुण को डांटते हुए खांसते हुए पर बड़े धीमे आवाज में बोली (ताकि उसकी आवाज बाहर ना जा सके), "तरुण, तुमने तो हद करदी। यह क्या तमाशा है? सीधे खड़े रहो।"

तरुण ने एक बार फिर दिखाई ना देने का बहाना करते हुए कहा, "भाभी, सॉरी, मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूँ और अचानक अपना संतुलन खो बैठा।" बाहर खड़ा हुआ मैं जानता था की कमीना तरुण अपना शारीरिक नहीं पर मानसिक संतुलन खो बैठा था और दीपा के करीब होने का पूरा फायदा उठा रहा था।

दीपा ने जब यह सूना तो एकदम बगैर कुछ सोचे समझे अनायास ही उसका हाथ तरुण के जांघिये के बेल्ट के ऊपर चला गया। एक पल के लिए मुझे लगा की कहीं मेरी बीबी तरुण के जांघिये के बेल्ट को खिंच कर जांघिए में देखने तो नहीं जा रही? फिर दीपा की समझ में तरुण की चाल आयी। दीपा ने अपना हाथ हटा दिया औरपीछे हट कर खड़ी हो गयी और बोली, "तरुण ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो। अब मेरा काम हो गया है। अब मैं चलती हूँ।"

तरुणने ऐसे नाटक किया जैसे उसके हाथ अब ठीक हो गए थे। अपने हाथ ऊपर उठाकर तरुण ने कहा, "भाभी, अब मेरे हाथ ठीक लग रहे हैं। अब मैं अपनी आँखें साफ़ कर देता हूँ।" यह कह कर तरुण वाश बेसिन की और मुड़ गया और पानी छिड़क कर उसने अपनी आँखें साफ़ की। बड़ी मुश्किल से खांसती हुई मेरी परेशान बीबी अपने आप को सम्हालते हुए ठीक सीधी खड़ी हुई।

तरुण ने आँखें खोल कर देखा की उसका मोटा लण्ड निक्कर के साथ अपने मुंह में लेनेके कारण दीपा का मुंह शर्म से लाल हो रहा था। दीपा समझ गयी की तरुण यह जान गया था की दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथों में पकड़ा था, उसे सहलाया था और अपने मुंह में भी डाला था भले ही वह चंद पलों के लिए ही क्यों ना हो।

तरुण ने देखा की दीपा के चेहरे पर और उसकी साडी पर आटा बिखरा हुआ था। बिना कुछ पूर्व सूचना देते हुए, तरुण ने एकदम दीपा के हाथ में से कपड़ा छीन लिया और बोला, "भाभी आपके चेहरे ऊपर और आपकी साडी के ऊपर भी काफी आटा बिखरा हुआ है। अब आप मुझे भी सेवा का मौक़ा दीजिये।" यह कह कर तरुण उस कपडे से दीपा के चेहरे को साफ़ करने लग गया।

दीपा कुछ विरोध करे उसके पहले ही तरुण एक हाथ से तौलिया मेरी बीबी के चेहरे पर, गालों पर, गले पर और धीरे से ब्लाउज में उसके फुले हुए स्तनों पर रगड़ ने लगा और अपना दुसरा हाथ मेरी बीबी के स्तनों पर रख कर वह एक के बाद एक दीपा के फुले हुए अल्लड़ स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा। तरुण के उस उद्दंड और उच्छृंखल व्यवहार से दीपा कुछ देर तक बूत की तरह बिना हिले डुले भौंचक्की सी खड़ी रही और तरुण ने उन उद्दंड कारनामों को आश्चर्य से देखती ही रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह इस आदमी का कैसे विरोध करे।

दीपा को आगे से साफ़ करने के बाद तरुण ने अचानक वह तौलिया एक तरफ फेंक दिया और दीपा को घुमा कर दीपा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने आगे कर लिया और खुद मेरी बीबी के पीछे खड़े हो कर अपने फौलादी छड़ से खड़े हुए लण्ड के ऊपर मेरी बीबी दीपा की साड़ी में छिपी करारी गाँड़ को टिका दिया और पीछे से अपने पेंडू से अपने लण्ड को दीपा की गाँड़ में धकेलने लगा। हालांकि मेरी बीबी के स्तन बिलकुल साफ़ थे, तरुण दोनों हाथों को उसने दीपा के ब्लाउज और ब्रा के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूँचियों को साफ़ करने का ढोंग करते हुए उद्दण्डता पूर्वक उन्हें दबाने और मसलते हुए बोलने लगा, "भाभी अब मुझे मौक़ा दो आपकी सफाई करने का।"

तरुण के ऐसे आवेग पूर्ण रवैये से दीपा की साँसें फूलने लगीं। दीपा की उभरी हुई छाती जोर से ऊपर निचे होने लगी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था की तरुण उस हद तक जा सकता था। तरुण के ब्रा में हाथ डाल कर मसलने के कारण दीपा के उरोज ऊपर निचे हो रहे थे। पूरा दृश्य मेरे लण्ड को खड़ा कर देने वाला था। मेरी बीबी भयंकर असमंजस में थी। वह सोच रही थी की क्या वह चिल्लाये? क्या वह तरुण को एक जोरदार थप्पड़ मार कर उसकी उद्दण्डता का उसे एहसास दिलाये? वह चिल्लाना नहीं चाहती थी। कुछ ही समय पहले मैंने दीपा और तरुण को एकदूसरे पर चढ़ते हुए देख कर शरारत भरी टिपण्णी की थी। अगर वह चिल्लाई तो मैं भाग कर आऊंगा और फिर उन दोनों की हरकत को पकडूँगा। फिर क्या होगा यह वह सोच कर शायद दीपा घबड़ायी हुई थी।

दीपा तरुण की हरकतों से इतनी घबरा गयी थी की उसकी शक्ल रोने जैसी हो गयी। दीपा की समझ से बाहर था की वह तरुण को रोके तो रोके कैसे? अपनी शेरनी का रूप अगर वह दिखाए तो उसे दहाड़ना पडेगा। और वह चिल्लाई तो मैं वहाँ पहुंचूंगा और फिर दुबारा उन दोनों को उस हाल में देखा तो फिर तो मैं यह मान ही लूंगा की दीपा के उकसाने से ही तरुण ऐसी हरकतें कर रहा था, क्यूंकि दीपा ने तो तरुण को पहले से ही अच्छा कैरेक्टर सर्टिफिकेट दे दिया था। दीपा नहीं चाहती थी की मैं दुबारा उसको तरुण के साथ उस हाल में देखूं। वह मेरे मजाक का विषय नहीं बनना चाहती थी। वह शायद तरुण की ऐसी हरकतों के कारण हमारी दोस्ती को भी तुड़वाना नहीं चाहती थी।

दीपा को धीरे धीरे यह यकीन हो चुका था की उसके चिल्लाने से या दहाड़ने से तरुण उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं था।

दीपा के दिमाग में इतनी उलझनें थी की जब दीपा को कुछ और रास्ता ना सुझा तो तंग आकार आखिर में स्त्रियों का एक कारगर ब्रह्मास्त्र जो उसके पास बचा था उसको मेरी प्यारी बीबी ने इस्तेमाल किया। दीपा रोने लग गयी। उसने अपने हाथ जोड़ कर तरुण से कहा, "तरुण, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ। तुम मुझे इतना तंग क्यों कर रहे हो? प्लीज तुम मुझे जाने दो। प्लीज अभी मुझे और परेशान मत करो। अगर दीपक ने हमें ऐसे देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे पर मेरी तो वह ऐसी की तैसी कर देंगे। वैसे ही मेरी बहुत बदनामी हो चुकी है।"

मेरी बीबी की आँखों से अश्रुधार बहने लगी, जिसे देख कर तरुण स्तब्ध सा हो गया। उसका हाथ जो दीपा की चूँचियों को सेहला रहा था और मेरी बीबी की निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचका रहा था, दीपा की ब्रा में ही स्थिर हो गया। उसे पता नहीं था की उसकी हरकतों से दीपा इतनी ज्यादा परेशान हो जायेगी। जब कुछ समय तक ऐसे ही अपने हाथ दीपा की ब्रा में ही रखे दीपा के बॉल को अपनी उँगलियों में जकड़े हुए तरुण खड़ा रहा तब मेरी बीबी ने सोचा की उसे तरुण को कुछ रियायत देनी पड़ेगी जिससे वह उसे जाने दे।

उस समय मेरी प्यारी पत्नी ने एक ऐसी गलती की जो उसे उस एक तरफी रास्ते पर ले गयी, जहां से शायद वापस आना उसके लिए बहुत मुश्किल था। दीपा ने कहा, "तरुण आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? देखो, मैं अभी बहुत परेशान हूँ। अभी मुझे प्लीज जाने दो। बाद में तुम जो कहोगे मैं करुँगी, पर अभी मुझे और परेशान मत करो प्लीज!"

तरुण दीपा की बात सुनकर एकदम गंभीर हो गया। उसने दीपा के ब्लाउज में से अपने हाथ निकाल दिए। और दीपा की और देख कर बोला, "भाभी, क्या आप इतनी नासमझ हैं की आप नहीं जानती की मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं जो मागूंगा वह आप मुझे दोगी? आपने मुझे वचन दे दिया है भाभी। अब मुकरना मत।"

दीपा तरुण की और देखती ही रही। उसे समझ में नहीं आया की कैसे उसके मुंह से वह शब्द निकल गए और कैसे उसने तरुण को वचन दे दिया की बाद में वह जो तरुण चाहेगा वो करेगी? ऐसा करने से तो वह तरुण के चालाकी से बुनी हुई जाल में फँस गयी। अब वह क्या करे? दीपा परेशानी भरी नज़रों से तरुण को बिना कुछ बोले देखती ही रही। उसकी आँखों में एक असहायता का भाव था।

तरुण ने फिर एक और चाल चली और दीपा को रिलैक्स करने के लिए कहा, "अरे मेरी भोली भाभी! आप चिता मत करिये। अभी तो मैं आपसे सिर्फ दिल्लगी कर रहा था। मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। आप जब मेरे पास होती है ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मेरा आपको दुःख पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। आप हाथ मत जोड़िये। चाहो मुझे एक थप्पड़ मार लो पर रोओ मत। आप चाहो तो अभी जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर भाभी, जब कभी मौक़ा मिला और मैंने आपसे माँगा तो फिर आप अपने वचन से मुकर तो नहीं जाओगे ना?"

दीपा ने जब तरुण से यह सूना की तरुण अब दीपा को परेशान नहीं करेगा, तो दीपा की जान में जान आयी। दीपा ने अपना सर उठा कर कहा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ।"

तरुण ने कहा, "तो बस भाभी, आप जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर जाते जाते बस मेरी इस वक्त एक छोटी सी रिक्वेस्ट है।"

मेरी बीबी का दिमाग फिर घूमने लगा। दीपा ने पूछा, "तुम्हें वचन तो दे दिया अब और क्या रिक्वेस्ट है भाई?"

तरुण ने कहा, "भाभी मेरी एक छोटी सी इच्छा है। ऐसी कोई बड़ी या घबराने वाली बात नहीं है, बस एक छोटी सी इच्छा है। क्या आप पूरी करोगी?"

दीपा अकुलाते हुए सावधानी से बोली, "क्या बात है? और क्या चाहिए तुम्हें?"

तरुण ने कहा, "भाभी जी, गभराइये मत। मुझे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। पर जब भी मैं आपके रसीले होँठ देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है? मैंने कई बार आपके सर को और आपके गालों को चूमा है। पर कभी आपके रसीले होंठो को नहीं चूमा। क्या मैं एक सेकंड के लिए ही बस एक ही बार आपके होँठों को चुम सकता हूँ? बस एक सेकंड के लिए ही? प्लीज? मैं फिर कभी दुबारा आपसे ऐसी मांग नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस।" यह कह कर तरुण अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों की उँगलियों से पकड़ कर बड़ी ही भोली सूरत बना कर खड़ा हो गया।

तरुण का ड्रामा देख कर दीपा बरबस ही हँस पड़ी। कहते हैं ना की हँसी तो फँसी। दीपा ने एक गहरी राहत भरी साँस ली। क्यूंकि दीपा ने तरुण को प्रॉमिस किया था की वह जो तरुण चाहेगा वह करेगी तो मेरी प्यारी दीपा को डर था की कहीं तरुण उसे यह ना कह दे की वह दीपा को चोदना चाहता है। तो चलो एक चुम्मा ही तो देना है, और वह भी कुछ सेकंड के लिए।

तरुण की बात सुनकर दीपा ने कहा, "तरुण बहुत हो गया। मुझे डर है की कहीं दीपक आ गये और हमें देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे, पर मेरी फजीहत हो जायेगी। अच्छा, ठीक है। सिर्फ एक सेकंड के लिए ही। ओ के? कोई जबरदस्ती नहीं। चलो जो करना है जल्दी करो और मेरा पीछा छोडो प्लीज!"

तरुण मुस्कराया। मैं वहा खड़ा सब सुन रहा था। बात सुनकर मेरा लण्ड पूर्व रस से रिसने लगा। मैं समझ गया की अगर उसने दीपा को होँठों पर चुम लिया तो समझो उसने बाजी मार ली। दीपा होँठों पर क़िस की मास्टर थी। किस मात्र से वह एकदम उत्तेजित हो जाती थी।

तरुण ने दीपा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी और घुमा लिया जिससे मेरी बीबी का चेहरा उसके चेहरे के सामने हो गया और दोनों के होँठ एक दूसरे के आपने सामने हो गए। तरुण ने दीपा को अपने इतने करीब खींचा की तरुण और दीपा के बदन एकदम सट गए। मैं समझ गया की उस समय तरुण की पतली सी निकर में से बाहर निकला हुआ तरुण का मोटा, लंबा और फौलाद की तरह खड़ा लण्ड दीपा की चूत को सारे कपड़ों के होने के बावजूद भी तगड़ी टक्कर मार रहा होगा। मेरी बीबी अब अपने ही जाल में फँस चुकी थी। अब उसे तरुण को किस करने देना ही पड़ेगा।

तरुण दीपा की कमर के निचे दीपा के कूल्हों पर एक हाथ ले जा कर उनको दबाने लगा। इसके पहले की दीपा कुछ बोल पाती, तरुण ने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ कस कर भींच दिए। दीपा बौखलाई हुई थी। एक तरफ तरुण दीपा के कूल्हे के गाल दबा रहा था। तो दूसरी और तरुण का लण्ड दीपा की चूत को ताकत से कोंच रहा था। तरुण साड़ी के ऊपर से ही दीपा की गाँड़ के गालोँ बिच की दरार में अपनी उंगलियां घुसेड़कर उन्हें ऊपर निचे कर रहा था।

दीपा बोलने की स्थिति में तो थी नहीं। दीपा के होंठों का तो तरुण के होँठों ने कब्जा कर लिया था। दीपा तरुण की बाँहों में पूरी तरह उलटे खींचे हुए धनुष्य की तरह टेढ़ी खड़ी हुई थी। तरुण का पेंडू दीपा के पेंडू से कस के जुड़ा हुआ था। दीपा की चूत वाला हिस्सा तरुण के लण्ड से कस के भींचा हुआ था। तरुण ने अपने होँठों से दीपा के होँठ खोल दिए। फिर तरुण ने अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ दी। दीपा की छाती के मस्त दो गुम्बज तरुण की छाती में जुड़े हुए थे।

दीपा ने तरुण को चुम्बन करने की इजाजत तो दे ही दी थी ना? अब वह विरोध कैसे करती? अब उसे तरुण के साथ चुम्बन में तो हिस्सा लेना ही पडेगा। तरुण की जीभ को अपने मुंह में घुस ने की कोशिश करते हुए महसूस करते ही दीपा ने अनायास ही अपने होँठ खोल दिए और अपनी जीभ से उसे सहलाना शुरू किया।

तरुण के मुंह की लार दीपा के मुंह में बहने लगी। दीपा ने पहली बार किसी गैर मर्द को ऐसा चुम्बन किया था। दीपा चुम्बन करने में माहिर थी। उसे मुझसे चुम्बन करने में बड़ा ही आनंद आता था।

उसी दक्षता से दीपा तरुण के साथ चुम्बन में जुड़ गयी। तरुण के चुम्बन की उत्तेजना से दीपा का पूरा बदन रोमांच से भर गया। मैंने देखा की दीपा का अवरोध तरुण के होँठों से होँठों के मिलन से धीरे धीरे टूटने लगा। दीपा का पूरा ध्यान तरुण की जीभ में से बहते हुए रस पर केंद्रित था। दीपा तरुण की जीभ को चूसने लगी। तरुण भी दीपा के सकारात्मक रवैये से एकदम उत्तेजित हो गया। दीपा और तरुण काफी समय तक एक दूसरे के होँठ चूसते रहे और एक दूसरे की जीभ का रसास्वादन करते रहे।

दीपा तरुण के चुम्बन में इतनी खो गयी की उसे चुम्बन करते हुए समय का ध्यान ही नहीं रहा। तरुण ने अपनी जीभ से दीपा के मुंह को चोदना शुरू किया। बार बार अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ता और फिर बाहर निकालता। यह एक तरह से दीपा को चोदने का संकेत ही था। दीपा का अवरोध पता नहीं कहाँ गायब हो गया। दीपा के मुंह से हलकी सी कामुकता भरी सिसकियाँ और "उँह.... ममम..." की आवाजें निकलने लगी। अपनी मस्ती में शायद वह भूल गयी की उसको किस करने वाला मैं उसका पति नहीं, बल्कि तरुण था। वह तो तरुण को दीपक समझ कर अपना मुंह तरुण की जीभ से चुदवाती रही।

तरुण ने दीपा की गाँड़ को अपने हाथ से जोर से दबाया और दीपा के दोनों टांगों के बिच की चूत को अपने लण्ड की और कस के खींचा और जैसे दीपा को साड़ी पहने हुए ही चोद रहा हो ऐसी हरकत करने लगा। दीपा तरुण के बाहुपाश में और तरुण के होठों के रसास्वादन में ऐसी खोयी हुई थी की उसे समय का और तरुण के उसकी चूत को साडी को बिच में रखते चोदने की एक्टिंग कर रहा था उस का ध्यान ही नहीं था।

तब तरुण ने एक ऐसी हरकत की जिसकी वजह से दीपा एकदम जमीन पर वापस लौट आयी। तरुण ने उत्तेजना में दीपा के ब्लाउज में फिर से अपना एक हाथ डाल दिया और दीपा के उन्नत उरोजों को दबाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ अपने ब्लाउज में डालने से ही मेरी बीबी भड़की और उसने तरुण को एक जोरदार धक्का देकर उसे अलग किया। दीपा का मुंह तरुण के चुम्बन से शर्म और उत्तेजना के मारे लाल हुआ था।

दीपा ने अपने आपको सम्हाला और एकदम झपट कर बाथरूम के दरवाजे की और मुडी और दरवाजा खोला। पीछे मुड़ कर दीपा ने तरुण की और देखा और बोली, "मैं तुम्हें दूसरे मर्दों से अलग समझती थी। आई थॉट यू आर नॉट लाइक अधर मैन। पर तुमने मेरी कमजोरी का फायदा उठाया। यह ठीक नहीं है। डु यू थिंक आई ऍम ए ब्लडी स्लट? क्या तुम मुझे कोई छिनाल या वेश्या समझ रहे हो? मैं तुम्हें एक शरीफ आदमी समझती थी जो कभी कभी उत्तेजना में बह कर जुछ अजीब सी हरकतें कर बैठता है। आई डोन्ट लाइक इट। नाउ गेट आउट। आई डोन्ट वोन्ट टू सी यू अगेन। मैं तुम्हें दुबारा मिलना नहीं चाहती।"

;)
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#10
Wink 
दीपा बचपन से मिशनरी स्कूल में पढ़ी थी। वह घरमें हिंदी ही बोलती थी। पर जब उसका पारा सातवे आसमान पर चढ़ जाता था तब वह एकदम इंग्लिश पर आ जाती थी। मैंने मेरी बीबी का महाकाली रूप बहुत कम बार देखा था। उस सुबह मुझे वह देखने को मिला। तरुण ने बेचारे ने तो सोचा भी नहीं होगा की उसे ऐसी फटकार पड़ेगी।


यह कह कर दीपा तरुण को भौंचक्का सा खड़ा हुआ छोड़कर बाथरूम से बाहर निकली। वह बाहर निकले उससे पहले ही मैं वहाँ से हट चुका था और वापस भाग कर टीवी के सामने अपनी जगह आकर क्रिकेट का मैच देखने लगा था।

कुछ ही देर में मेरी बीबी दीपा, हिचकिचाती हुई झिझकती, थकी, हारी; धीरे धीरे चलती हुई मेरे पास आकर खड़ी हुई। मैंने देखा की वह काफी कुछ परेशान सी लग रही थी। मैंने अपनी बीबी से पूछा, "डार्लिंग, क्या हुआ? तुम इतनी परेशान क्यों हो?"

मेरी बीबी की उभरी हुई छाती गजब की खूबसूरत लग रही थी। मैं जानता था की वह तरुण के चुम्बन करनेसे और कपड़ों के ऊपर से जाँघों से जाँघों के रगड़ने से बड़ी उत्तेजित और घबड़ायी हुई थी। और साथ साथ उसे खुद अपराधी होने की फीलिंग परेशान कर रही थी। दीपा मेरे सामने आकर थोड़ी देर मरे सवाल का जवाब दिए बिना खड़ी रही। दीपा की आँखें लाल हुई थीं और उनमें पानी भरा हुआ था।"

मैं दीपा की और ध्यान ना देते हुए टीवी को देखने का बहाना कर रहा था, पर मेरा ध्यान दीपा के चेहरे के भाव परखने में था। दीपा उस समय बड़ी प्यारी लग रही थी। मेरा मन किया की मैं अपनी बीबी को अपनी बाँहों में लेकर उसे चूम लूँ और खूब प्यार करूँ। पर उस समय उसकी हालत ठीक नहीं थी। तरुण की कुछ ज्यादा ही हद पार हरकतों से वह दुखी थी, क्षोभित थी। अगर मैं उस समय उसे गले लगा कर प्यार करता तो यातो खूब रोती, या फिर यह सब शायद मेरी ही करतूत होगी यह सोच कर मुझ पर गरज पड़ती। शायद वह तरुण से भी नफरत करने लगती। वह समय नाजुक था।

मैंने यही बेहतर समझा की उस नाजुक घडी में मेरी बीबी को कुछ देर के लिए अकेले छोड़ दिया जाये। कुछ देर बाद वह सम्हल जायेगी तब फिर मैं उसे प्यार कर के ढाढस दिलाऊंगा।

मैंने पूछा, "बोलो, कुछ हुआ क्या? क्या तुमने तरुण के कपडे साफ़ कर दिए?"

जिंदगी में शायद पहली बार मेरी बीबी ने मुझसे झूठ बोला। दीपा ने कहा, "नहीं कुछ नहीं हुआ। मैंने तरुण के सर पर घाव लगा था, वहाँ दवाई लगा दी। फिर तरुण को तौलिये से साफ़ कर दिया और उसका मुंह बगैरा धो दिया। उसका हाथ अब सीधा हो गया है और उसका खून भी रुक गया है। तुम जल्दी जाकर उसे तुम्हारे कपडे पहनने के लिए दे आओ। बाद में मैं तरुण के कपडे धो दूंगी।"

इतना बोल कर दीपा आननफानन में बैडरूम में चली गयी। उस समय उसकी आँखों से आंसूं बहे जा रहे थे। मुझे लगा की वह बैडरूम में जा कर रो रही थी।

मैंने बाथरूम में नहा रहे तरुण को दरवाजे के बाहर से ही मेरे कपडे दे दिए। कुछ ही देर में तरुण मेरे कपडे पहन कर बाहर आया और उसने मुझसे इजाजत मांगी। तरुण का चेहरा भी लाल था। वह मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। वह जल्दी जल्दी आया और मुझसे बोला, "दीपक, सॉरी यार, आज का दिन ही कुछ गड़बड़ है। चल मैं चलता हूँ। मुझे घर जाकर कपडे चेंज कर फिर ऑफिस जाना है। आज देर हो जायेगी।"

मैंने उसे "बाई" किया उससे पहले ही वह चलता बना। मैं मैच देखने लगा। पर मुझे मैच में कोई रस नहीं आ रहा था। उस मैच से कई गुना बेहतर मैच मैंने उस दिन तरुण और दीपा के बिच बाथरूम में देखा था।

"मेन ऑफ़ ध मैच" तो चला गया। अब मुझे "वुमन ऑफ़ ध मैच" से बात करनी थी। मैं चुपचाप बैडरूम में गया तो मेरी बीबी दीपा पलंग पर पड़ी रो रही थी। मैंने दीपा को उस समय छेड़ना ठीक नहीं समझा पर मुझे दुःख हुआ की मेरी बीबी ने मुझसे झूठ बोला।


उस सुबह मेरी दीपा से औपचारिक बातों को छोड़ कोई बात नहीं हुई। दीपा काफी अपसेट थी। मैं भी उसे कुछ पूछ कर परेशान नहीं करना चाहता था। मैं ऑफिस चला गया और दीपा घर के कामों में लगी रही।

रात को जब मेरे लेटने के बाद दीपा कपडे बदल कर बैडरूम में पलंग पर आयी तो मैंने देखा की उसका चेहरा ग्लानि से फीका पड़ा हुआ था। मैं उसे सालों से जानता हूँ। मैं समझ गया की वह कुछ जरुरी बात मुझसे करना चाहती थी।

मैंने उसे अपनी बाहों में लिया और प्यार जताते हुए पूछा, "मुझे लगता है की तुम कुछ कहना चाहती हो। कहो क्या बात है?"

मेरी बात सुनते ही दीपा की आँखोने में से आंसुओं की धार बहने लगी। वह मेरी छाती पर अपना सर रख कर फफक फफक कर रोने लगी। मैंने कुछ समय उसे रोने दिया। मैं उसके सर को सहलाता रहा। जब वह कुछ शांत हुई तब मैंने कहा, "अब बताओ, क्या बात है। "

दीपा ने कहा, "मैंने सुबह जब आपको यह कहा की सुबह कुछ नहीं हुआ, तो मैंने आपसे झूठ बोला था। असल में सुबह बाथरूम में बहुत कुछ हुआ था।"

मैंने कहा, "क्या हुआ? क्या तरुण ने कुछ किया क्या?"

दीपा ने अपनी नजरें नीच कर अपनी मुण्डी हिला कर कहा, "हाँ। "

मैंने दीपा की और नजरें उठाकर देखा और हँसते हुए पूछा, "क्या उसने तुम्हारे साथ सब कुछ कर लिया क्या? कहीं उसने तुम्हारे कपडे उतार कर वह तुम पर चढ़ तो नहीं गया? तुम तो ऐसा कर रही हो जैसे तरुण ने तुम्हें चोद ही दिया हो। उस छोटे से बाथरूम में तरुण तुम्हें चोद तो नहीं सकता था। क्या उसने तुम्हें चोदा है?"

दीपा मेरी बात सुनकर एकदम गुस्सा हो गयी और बोली, "अपनी बीबी के साथ ऐसी बातें करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती? तुम मर्द लोग समझ ते क्या हो अपने आप को? क्या इस दुनिया में चोदने चुदवाने के अलावा और कुछ नहीं है क्या? सुबह चोदने की बात, शामको चोदने की बात?"

मैंने पूछा, "तो बोलो ना फिर क्या हुआ? बोलो भी? अगर उसने तुम्हें चोदा नहीं तो फिर क्या किया? क्या तरुण ने तुम्हारे बूब्स को मसला?

दीपा के गाल शर्म के मारे लाल हो गए। उसने नजरें नीची कर कहा, "हाँ, उसने मेरे ब्लाउज में हाथ डाला। उसने मुझे होठोँ पर किस भी की। उसने मेरे साथ बड़ी बदतमीजी की।"

उस समय मुझे मेरी बीबी पर वाकई बड़ा गर्व हुआ। उसने मुझसे सच छुपाया नहीं। मैंने पूछा, "क्या? उसकी ये हिम्मत? वह तो चला गया। तुमने मुझे पहले बताया क्यों नहीं? मैं उसकी खबर ले लेता। अगर उसने तुम पर जबरदस्ती की है, तो मैं उससे अभी ही सारे सम्बन्ध तोड़ दूंगा। यह गलत है और तुम्हें मुझे उसी समय बता देना चाहिए था।"

दीपा मेरी बात सुनकर एकदम सकते में आगयी और बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है। नहीं तुम उसे कुछ मत कहना। कहीं आप दोनों में बड़ा झगड़ा ना हो जाए। मैंने ही उसको इतना झाड़ दिया है की वह शायद अब हमारे घर नहीं आएगा। मैंने उसे कह दिया की मैं उसकी शकल तक देखना नहीं चाहती। मैंने उसको गेट आउट भी कह दिया। पर अब मुझे अफ़सोस हो रहा है। वैसे तो हम उसे इतने सालों से जानते हैं। वह ऐसी ओछी हरकत कभी नहीं करता। शायद उसे दिखाई नहीं दे रहा था तो वह लड़खड़ा गया और अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने मुझे पकड़ना चाहा और इसी चक्कर में उसका हाथ मरे ब्लाउज के अंदर चला गया। पता नहीं आज उसे क्या हो गया था।"

दीपा ने फिर रोते हुए मुझे सब कुछ बता दिया जो बाथरूम में हुआ था। बस तरुण का लण्ड मुंह में लेने वाली और दिए हुए वचन की बात नहीं बतायी। मैं जानता था की ऐसी बात दीपा कैसे बताये? उसे शायद अपने आप पर ही घिन आ रही थी।

मैंने दीपा की बातें ध्यान से सुनी और उस पुरे वाकये को सुनते हुए मैं दीपा को अपनी गोद में बिठा कर कभी उसके कंधे को तो कभी बालों को प्यार से सहलाता रहा। मैं चाहता था की उसके अंदर का उफान बाहर निकल जाए।

जब वह कुछ शांत हुई तब मैंने दीपा के ब्लाउज में हाथ डालकर कहा, "जानूं, एक बात कहूं? तुम बुरा तो नहीं मानोगी?"

दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। उसके चेहरे पर शांत सौम्य भाव था। मैंने कहा, "देखो, तुम एक स्त्री हो। जाहिर है तुम स्त्री की तरह ही सोचोगी। पर मैं एक पुरुष हूँ। अब जब मैं सोचता हूँ तो मुझे यह समझ में आ रहा है की यह सब तरुण की या तुम्हारी गलती नहीं थी। यह सब मेरी गलती के कारण हुआ है।"

मेरी बात मेरी पत्नी की समझ में नहीं आयी। उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे। मैंने कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ की कैसे। जब मैंने तुम्हें कहा की तुम तरुण को लेकर बाथरूम में जाओ, वह मेरी गलती थी। देखो और समझो। तरुण के जैसा शशक्त और वीर्यवान पुरुष जब तुम जैसी ना सिर्फ खूबसूरत परन्तु निहायत ही सेक्सी औरत के साथ एकदम एकांत में बाथरूम में जाए और उस पर भी अगर तुम उसके बदन पर हाथ फिराकर उसे साफ़ करो तो मैं तरुण का दोष नहीं मानूंगा की उसने तुम्हारे साथ ऐसी बदतमीजी की। उसकी जगह कोई भी मर्द होता तो यही करता। हाँ अगर कोई नपुंशक होता तो वह ऐसा ना करता।

तुम मर्दों को कोसती हो। तुम अपनी जगह सही हो। पर भगवान ने हम मर्दों को बनाया ही ऐसा है। हम मर्द कुत्ते की तरह हैं। जैसे ही कोई खूबसूरत या सेक्सी औरत देखि की हमारी जीभ लटपटाने लगती है। यह सही है हम मर्दों के दिमाग में सेक्स काफी छाया हुआ रहता है। गलती तरुण की नहीं है। गलती मेरी है। मुझे यह सब पहले से ही सोचना चाहिए था। यह सब मेरे कारण हुआ है। तुम मुझे माफ़ कर दो प्लीज?" मैं मेरी बीबी को कैसे बताता की वह तो मेरा ही प्लान था?

मेरी बात सुनकर दीपा बरबस हँस पड़ी। उसने कहा, "क्यों अपने दोस्त का इल्जाम अपने सर पर लेते हो? यह क्यों नहीं कहते की तुम तुम्हारे दोस्त को बहुत प्यार करते हो और उसकी गलतियों को नजर अंदाज कर रहे हो? वैसे मुझे तुम्हारी और तरुण की दोस्ती से कोई शिकायत नहीं है। ना ही मैं चाहती हूँ की यह दोस्ती कोई छोटीमोटी गलतियों के कारण आहत हो। एक गहरा अंतरंग करीबी दोस्त होना अच्छी बात है।"

मेरा मन मेरी प्यारी बीबी की हँसी को देख खिल उठा। उसने तरुण की गलती को छोटीमोटी गलती कह कर उसे ज्यादा तूल नहीं दिया यह मुझे अच्छा लगा। मैंने कहा, "बेचारे तरुण को माफ़ कर दो यार।"

दीपा ने मुझे नकली घूंसा मार कर कहा, "भाई, जब मेरा खुदका पति मुझे कहता है की किसी गैर मर्द, जिस ने मेरे साथ छेड़खानी की है, उसे माफ़ कर दूँ, तो मैं बेचारी बीबी क्या कर सकती हूँ?" दीपा ने फिर मुस्कराते हुए अपने गाल फुलाकर जैसे कोई राजा महाराजा बोलता है ऐसी एक्टिंग करते हुए कहा, "जाओ, माफ़ किया तुम्हारे दोस्त को। तुम भी क्या याद करोगे की किसी जानदार बीबी के साथ पाला पड़ा था। पर उसे यह जरूर कह देना की अब ज़रा वह समझदारी से मेरे साथ सलूक करे। जो उसने किया वह गलत था।"

मैं ख़ुशी से और बेतहाशा प्यार से मेरी बीबी को देखता ही रहा। तब मुझे झकझोरते हुए दीपा ने मुझे कहा, "पर जानूं, एक बात ध्यान रहे। मुझे लगता है, तुम तुम्हारे दोस्त को और अपनी बीबी को कुछ ज्यादा ही लिफ्ट दे रहे हो। देखो कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए और फिर बाद में तुम्हें इर्षा से जलन हो और मेरे और तुम्हारे हम दोनों के वैवाहिक जीवन में दरार ना पड़ जाए। जिस रास्ते पर तुम जा रहे हो वह निहायत ही खतरनाक रास्ता है।"

मेरी बीबी मेरी बाँहों में लिपट कर मेरे होँठों पर चूमती हुई बोली, "मैं अपने पति को कोई भी हालत में दुखी नहीं देख सकती। मेरे लिए मेरे पति के अलावा इस दुनिया में कुछ और मायने नहीं रखता।"

मैंने कहा, "देखो डार्लिंग मैं जानता हूँ की तुम किस और इशारा कर रही हो। मैं अपनी बीबी को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ। डार्लिंग तुम यह कहना चाहती हो ना की अगर कभी कहीं तरुण तुम्हारे साथ में अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रख पाया और ऐसी नौबत आ गयी की उसने हद पार कर दी और तुम दोनों एक उत्तेजना में बह कर चुदाई कर बैठे तब मैं क्या आहात हो जाऊंगा या जलन से या गुस्सेसे पागल हो जाऊँगा? तो दीपा डार्लिंग यह समझ लो की अगर तुम मुझसे छुपाये बिना कुछ भी करते हो तो मुझे कतई भी जलन नहीं होगी क्यूंकि मुझे पता है की कुछ भी हो जाए, तुम मेरी ही रहोगी।"

मेरी बात सुनकर दीपा इतनी गरम हो गयी की उस रात मैंने दीपा को नहीं चोदा। उस पूरी रात भर दीपा ने मुझे चोदा और पूरी रात उसने मुझ से सारी पोजीशन में चुदवाया। उस रात को मुझे दीपा को तैयार नहीं करना पड़ा। वह शेरनी की तरह सारे कपडे निकाल कर मुझे चोदती रही और मुझसे चुदवाती रही। उस रात पता नहीं वह कितनी बार झड़ गयी।

मैं खुद मेरी बीबी की रसीली चूत में दो बार अपना माल छोड़ चुका था। 

सुबह मैं कुछ और करने के लायक नहीं था क्यूंकि मेरा लण्ड सारी रात की भरसक चुदाई के कारण सूझ गया था। शायद दीपा की चूत का भी यही हाल था। हमारी सुहाग रात में भी हमने ऐसी चुदाई नहीं की थी। मैं वाकई में अब तरुण का ऋणी हो चुका था।

पर उधर तरुण का बुरा हाल था। दीपा ने उसे गेट आउट कह दिया और उसे कह दिया की वह उससे मिलना नहीं चाहती थी। तबसे तरुण मन ही मन जल रहा था। एक तरफ उसे दीपसे मिले बगैर चैन नहीं पड़ रहा था तो दूसरी और उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी की वह मुझे या दीपा को फ़ोन करे या मिले। मैंने भी महसूस किया की दीपा भी कुछ बेचैन सा महसूस कर रही थी, क्यूंकि वह हमेशा कुछ ना कुछ सोचती ही रहती थी। उस दिन के बाद वह काफी गुमशुम सी रहती थी। शायद उसे अफ़सोस हो रहा था की उसने तरुण को कुछ ज्यादा ही झाड़ दिया था।

तरुण को यह डर था की दीपा उसकी शिकायत मुझसे करेगी। इस लिए डर के मारे तरुण ने अगले कुछ दिनों तक मुझे फ़ोन नहीं किया। मैं भी कुछ अपने कामों में व्यस्तता के कारण तरुण से बात नहीं कर पाया।

Shy
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#11
happy

कुछ दिनों के बाद मैंने तरुण को फ़ोन किया और पूछा की क्या बात थी, वह फ़ोन क्यों नहीं कर रहा?


तब तरुण ने मुझसे माफ़ी माँगते हुए कहा, की वह उस दिन की उसकी करतूतों से बड़ा ही शर्मिन्दा है। उसने तुरंत मुझसे माफ़ी मांगी और कहा, "भाई, मैंने सोचा आप और ख़ास तौर पर दीपा भाभी मुझ पर नाराज होंगे। इस लिए मैं आपसे फ़ोन से बात करने में घबरा रहा था।"

मैं हंस पड़ा और मैंने उसको ढाढस देते हुए कहा, "रात गयी और बात गयी। दीपा ने मुझे सब कुछ बता दिया है। हमारी बात हो चुकी है। मेरे कहने पर दीपा ने तुम्हें माफ़ कर दिया है। अब तुम दीपा से बेझिझक मिल सकते हो। वह तुम्हें कुछ नहीं कहेगी। अरे यार ऐसी छोटी मोटी चीजें दोस्तों में तो हुआ करती हैं। मैं जानता हूँ। यह सब अचानक ही हुआ था। और यह कौन सी बड़ी बात है? ठीक है यार, वैसे भी तो कई बार हम एक दूसरे की पत्नियोंसे गले मिलते ही हैं न? यह छोटी मोटी छेड़छाड़ तो चलती रहती है। चिंता मत कर।" यह कह कर जैसे मैंने उसको आगे बढ़नेकी हरी झंडी दे दी।

अब तो तरुण मेरा ऋणी हो गया। वह मुझको अपनी पत्नी से मिलवाने के लिए उतावला हो रहा था। एकदिन जब उसका फ़ोन आया उस समय मैं अपने घर में वाशिंग मशीन में कुछ छोटी मोटी खराबी थी उसे ठीक कर रहा था। मैंने तरुण को कहा , "मैं घर के सारे मशीनों, जैसे वाशिंग मशीन, टीवी, हीटर इत्यादि का छोटामोटा काम घर में ही कर लेता हूँ। सारा बिजली का काम भी मैं ही कर लेता हूँ। तुम्हें या टीना को यदि कोई दिक्कत हो तो मुझे बेझिझक बुला लेना।"

यह सुन तरुण जैसे उछल पड़ा। वह कहने लगा की उसकी पत्नी टीना घर में कोई भी उपकरण काम नहीं करते तो बड़ी गुस्सा हो जाती है और तरुण की जान को मुसीबत खड़ी कर देती है। मेरे प्रस्ताव से वह बहुत खुश हुआ और उसने कहा की वह जरूर मुझे बुलाएगा।

उसी दिन देर शाम को उसने मुझे फ़ोन किया और घर आने को कहा। उसने कहा की उसका टीवी नहीं चल रहा था। मैं तरुण के घर गया। मैंने तुरंत ही उसके टीवी को देखा तो बिजली के प्लग का तार निकला हुआ था। मैंने तार लगाया और टीवी चालू कर दिया। मुझे ऐसा लगा जैसे शायद तरुण ने ही वह तार जान बुझ कर निकाल दिया था ताकि वह उस बहाने मुझे बुला सके।

टीना बहुत खुश थी। उसकी मन पसंद सीरियल तब आने वाली थी। टीना इतनी खुश हो गयी की मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर मेरा धन्यवाद करने लगी। उसने कहा, "दीपक, तरुण इन मामलों में बिलकुल निकम्मा है। वह छोटा सा काम भी कर नहीं पाता।"

मैंने बड़ी नम्रता से कहा, "भाभी, आप निश्चिंत रहिये, यदि कोई भी ऐसी परेशानी हो तो कभीभी, ऑफिस समय छोड़ कर चाहे दिन हो या आधी रात हो, मुझे बुला लीजिए। ज़रा सा भी मत हिचकिचाइए। मैं हाजिर हो जाऊँगा।" यह सुन टीना बहुत खुश हुई और चाय बनाने के लिए जाने लगी।

तरुण ने उसे रोककर कहा, "देखो टीना, दीपक मेरा ख़ास दोस्त है। अगर मैं न भी होऊं और तुम्हें यदि कोई भी दिक्कत हो तो दिन हो या आधी रात, उसे बुलाने में कोईभी झिझक न करना।"

बस अब तो मेरा रास्ता भी खुलता दीख रहा था। टीना ने तरुण के रहते हुए मुझे एक दो बार बुलाया। तरुण ने तब फिर टीना को जोर देते हुए कहा की उस की गैर मौजूदगी में भी वह मुझे बुलाने में झिझके नहीं। तरुण काफी समय टूर पर जाता रहता था।

टीना ने एकबार मुझे रात के दस बजे फ़ोन किया की उसके बाथरूम का नलका ज्यादा पानी लीक कर रहा था। यदि उसको तुरंत ठीक नहीं किया तो उसकी पानी की टंकी खाली हो सकती थी। तरुण उस समय टूर पर था।

जब टीना का फ़ोन आया तब मैंने अपने पास पड़े हुए सामानमें से कुछ वॉशर, प्लास इत्यादि निकाला। जब दीपा ने पूछा तो मैंने सारी बात बतायी। दीपा मेरी और थोड़ी टेढ़ी नजर करके देखा, पर कुछ ना बोली। मैंने उससे पूछा, "तुम चलोगी क्या? तब वह बोली, "बुलाया तो तुमको है। मैं क्यूँ बनूँ कबाब मैं हड्डी?"

जब मैं खिसिया सा गया तो हंस कर बोली, "अरे मियां, तुम जाओ, मैं तो मजाक कर रही थी। मैं बहुत मजेदार सीरियल देख रही हूँ। जाओ अपना काम करके आ जाना।"

फिर थोड़े धीरे शरारत भरे ढंग से बोली, "अगर कुछ बताने लायक हो तो बताना। छुपाना मत। मैं बुरा नहीं मानूंगी।"

मैं भी उसे कहाँ छोड़ने वाला था? मैंने कहा, "हाँ, जरूर बताऊंगा। पर निश्चिंत रहना, मैं टीना को रसोई के प्लेटफार्म पर चढ़ा कर निचे नहीं गिराऊंगा।"

मेरे मजाक से मेरी भोली बीबी झेंप सी गयी। तब मैंने उसके होंठ पर किस करते हुए हंस कर कहा, "जानेमन, मैं मजाक कर रहा था।"

मैं टीना के घर गया उस समय वह नाईटी पहने हुए थी। उसने अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। मुझे देखकर उसने अपने कंधे पर एक चुन्नी सी डाल दी और बोली, "देखो ना, मैं आपको इतनी देर रात को परेशान कर रही हूँ। पर क्या करूँ? तरुण नहीं है। खैर, वह होता तो भी क्या करता? वह तो दूसरे दिन प्लम्बर को बुलाऊंगा यह कह कर सो जाता। तुमने कहा था की मैं तुम्हे आधी रात को भी बुला सकती हूँ। तब फिर मैंने हिम्मत करके तुम्हे बुलाया। अगर यह अभी ठीक नहीं हुआ तो पूरी रात पानी जाता रहेगा और कल सुबह टंकी खाली हो जाएगी। फिर घर का सारा काम ठप्प हो जायगा।" टीना बेचारी बड़ी परेशान लग रही थी।

मैंने बाथरूम में जाकर देखा की नलके का वॉशर खराब था। मैं जब बाथरूम में घुसा तो टीना भी मेरे साथ बाथरूम में घुसी। मैं एक स्टूल सा लेकर बैठ गया। टीना आकर ठीक मेरे बगल में खड़ी हो गयी। मैं उसकी गरम साँसों को अपने गालों पर महसूस कर रहा था। एक दो बार मैंने अपनी कोहनी हटाई तो उसके बूब्स से टकराई। मेरे शरीर में जैसे एक झनझनाहट सी दौड़ गयी। मेरी धड़कनें तेज हो गयी। मेरा मेरा ध्यान काम पर कहाँ लगना था? वह इतनी करीब खड़ी थी की मेरी कोहनी उसके भरे हुए स्तन को छू रही थी। मेरी तो हालत ख़राब थी, पर टीना को तो जैसे कोई फरक नहीं पड़ता था। मैंने अपने पास से एक वॉशर निकाला और झटसे बदल दिया।

बस नलका टपकना बंद हो गया। टीना ऐसी खुश हुयी जैसे उसकी लाटरी लग गयी हो। जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर निकला तो वह मुझसे लिपट गयी। मैं क्या बताऊँ मेरी हालत कैसी थी। मेरा लण्ड मेरी पतलून में ऐसे खड़ा हो गया था जैसे सैनिक परेड में खड़ा हो। टीना जब मुझसे लिपट गयी तब शायद उसने भी मेरे कड़क लण्ड को महसूस किया होगा। वह थोड़ी झेंप कर अलग हो गयी और बोली, "दीपक, मैं आज तुम्हे बता नहीं सकती की मैं कितनी खुश हूँ। आज शाम से मैं परेशान थी की मैं क्या करूँ। तुम्हें डिस्टर्ब करने के लिए मुझे माफ़ तो करोगे न? पता नहीं मैं तुम्हारा यह अहसान कैसे चुकाऊंगी।" टीना ने फिर मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और उसे सहलाते अपना आभार जताया।

मैंने यह बोलना चाहा की, "बस एकबार मुझसे चुदवालो, हिसाब बराबर हो जाएगा। " पर मैं कुछ बोल नहीं पाया।

मैंने टीना के कन्धों पर अपना हाथ रखा और बोला, "टीना, तरुण ने एक बार मुझसे कहा था की मैं दीपा में और तुम में फर्क न समझूँ, और तुम और दीपा, तरुण और मुझ में फर्क मत समझना। क्या तुम भी तरुण से सहमत हो?"

टीना ने अपनी मुंडी हिलायी और बिना बोले अपनी सहमति जतायी।

मैंने कहा, "तो फिर एहसान कैसा? अगर यही समस्या दीपा की होती तो क्या मैं उसके लिए इतना काम न करता?" मेरी यह बात सुनकर टीना थोड़ी सी इमोशनल हो गयी। वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बाहर तक छोड़ने आयी। बाहर जाते जाते एक दो बार टीना के भरे हुए बड़े बडे मम्मे मेरी बाँहों पर टकराये। मैं समझ नहीं पाया की क्या यह टीना जान बुझ कर कर रही थी और मुझे कोई इशारा कर रही थी या चलते चलते चलते हिलते हुए वह अनायास ही मेरी बाहों से टकरा गए थे।

मैंने भी टीना को यह सन्देश दे डाला की वह मुझमें और तरुण में फर्क ना समझे। मैं बाहर जाकर अपनी बाइक पर बैठ कर वापस चला आया।

उसदिन के बाद कुछ दिनों तक कई बार मुझे अफ़सोस होता रहा की यदि उसदिन मैं चाहता तो शायद टीना को अपनी बाँहों में लेकर उसको किस करता उस के गोरे बदन को नंगा कर और शायद चोद भी पाता। परंतु मैं जल्द बाज़ी में हमारे संबंधों को बिगाड़ना नहीं चाहता था।

मैं जब वापस आया तब दीपा बिस्तरमें मेरा इंतजार कर रही थी। मैं जानता था की वह मुझसे वहाँ क्या हुआ यह सुनने के लिए बेताब थी। मैंने भी हाथ मुंह धोया और बिस्तर में उसके पास जाके अपने कपडे निकाल के लेट गया। उसने जब महसूस किया की मैं तो बिल्कुल नंगा बिस्तर में घुसा हुआ हूँ तो बोली, "लगता है आज कुछ तीर मार के आये हो तुम। बोलो, चिड़िया जाल में फँसी या नहीं।"

मैने दीपा को अपनी बाँहों में घेर लिया। मैं उसके नाइट गाउन को उतारने में लग गया। उसके नाइट गाउन को खोल कर उसे बाजू में रख कर फिर मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसके मुंह पर मुंह लगा कर उसके रसीले होंठ चूसने लगा। मेरा खड़ा लण्ड उसकी चूत को टक्कर मार रहा था। वह कुछ बोलना चाहती थी, पर चूँकि मैंने उसके होठ होंठ कस कर दबाये हुए थे इसलिए वह कुछ बोल नहीं पायी।

मैंने धीरे से अपने होंठ हटाये और बोला, "चिड़िया जाल में तो फंस सकती थी, पर मैंने उसे नहीं फंसाया। मैं उसे आसानी से फंसा लूंगा अगर तुम सपोर्ट करो तो।"

"तुम्हे मुझसे, अपनी बीबी से सपोर्ट चाहिए, एक दूसरी औरत को फंसाने के लिए?" बड़े आश्चर्य से उसने पूछा।

मैंने उसे सहलाते हुए कहा, "हाँ। मुझे तुम्हारा सपोर्ट ऐसे चाहिए की हम कुछ ऐसा करें की जिससे ऐसा ना लगे की तरुण पर या तुम पर पर कोई ज्यादती हो रही है।"

दीपा बड़ी उत्सुकता से मेरी बात सुन रही थी। मैंने कहा, "अगर में आज टीना के साथ कुछ करता और अगर तुम्हे या तरुण को वह मालूम पड़ता, तो क्या तुम्हें मनमें एक तरह की रंजिश न होती? क्या तरुण इससे आहत न होता?" दीपा मेरी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसने अपना सर हिलाके हामी भरी।

मैंने फिर मेरी पत्नी को सारा किस्सा सुनाया। मैंने उससे कुछ भी नहीं छुपाया। मैंने कहा, "शायद यदि मैं चाहता तो टीना को अपनी बाँहों में आज जक़ड सकता था, चुम भी सकता था, और शायद चोद भी सकता था। पर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। मैं तुम्हे बताये बिना कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जिससे तुम्हे चोट पहुंचे। "

मेरी प्यारी बीबी दीपा मुझे कुछ देर तक प्यार भरी नज़रों से एकटक देखती ही रही। उस ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर थोड़ा सा मुस्करा कर वह अपने घुटनों पर ऊपर उठी और मेरी टांगों के बिच अपना मुंह ले जाकर जो मेरी प्यारी पत्नी ने हमारी शादी के इतने सालों से नहीं किया था, वह आसानी से मुझे खुश करने के लिए करने लगी।

उस रात तक उसने मेरे कई बार कहने पर भी मेरा लण्ड कभी भी अपने मुंह में नहीं डाला था। मेरे आग्रह किये बिना ही मुझे खुश करने के लिए वह मरे लण्ड को न सिर्फ मुंह में लिया। दीपा उसे बड़े प्यार से चूस ने भी लगी। उसे पता था की ऐसे करने से मैं बहुत उत्तेजित हो जाता हूँ। मेरी प्यारी पत्नी के साथ मैं अब वैवाहिक जीवन का वह आनंद उठा रहा था जो मुझे शादी के सात सालों में भी नसीब नहीं हुआथा। कहीं ना कहीं इसमें तरुण का भी योगदान था इसमें कोई शक नहीं था।

मैंने उसे मेरी टांगो के बिच से उठाकर अपने सीने से लगाया और बोला, "डार्लिंग, मैं तुम्हे इतना चाहता हूँ की जिसकी कोई सीमा नहीं। मैं तुम्हें जीवन के सब सुख अनुभव करवाना चाहता हूँ। एक मर्द जीवन में कई औरतों से सेक्स का अनुभव करता है। मैंने भी तुम्हारे अलावा कुछ लड़कियों को और औरतों को शादी से पहले सेक्स का अनुभव कीया है। अगर तुम मुझसे इतना प्यार नहीं करती तो मैंने शादी के बाद भी किसी न किसी औरत से सेक्स कीया होता या करता होता। मैं यह जानता हूँ की तुमने आज तक किसी और मर्द से सेक्स नहीं किया। तुमने सिर्फ मुझ से ही सेक्स किया है। मैं तुम्हें भी ऐसे आनंद का अनुभव करवाना चाहता हूँ पर चोरी से या छुपके नहीं। अपने पति के सामने, उसके साथ, उसकी इच्छा अनुसार। अपनी पत्नी या अपने पति के अलावा और किसीको चोदने में या और किसीसे चुदवाने में कुछ अनोखी ही उत्तेजना होती है। यह मैं जानता हूँ। वही आनंद मैं चाहता हूँ की तुम अनुभव करो।"

मेरी बात सुनकर दीपा कुछ रिसिया गयी। वह मेरा हाथ छुड़ा कर बोली, "जानू, मैं सच बोलती हूँ। मुझे मात्र तुमसे ही सेक्स का आनंद लेना है। मैं तुम से बहुत ही खुश हूँ। पर लगता है तुम मुझ से खुश नहीं हो इसी लिए ऐसा सोचते हो। मैंने तुम्हें पूरी छूट दे रखी है। जहां चाहे जाओ, जिस किसीको चोदना है चोदो। मैं तुम्हे नहीं रोकूंगी। अगर तुम्हें टीना पसंद है और अगर टीना को इसमें कोई एतराज नहीं है, तो तुम बेशक उसके पास जाओ और उसके साथ खूब मजे करो। पर मैं कतई भी किसी गैर मर्द से सेक्स का आनंद नहीं लेना चाहती।"

फिर मैंने दीपा की चिबुक पकड़ कर कहा, "मेरी प्यारी डार्लिंग मेरी कसम है यदि तुम ज़रा सा भी झूठ बोली तो। सच सच बताना, तरुण ने जब तुम्हे बाँहों में लेकर बदन से बदन रगड़ कर डांस किया था और जब तुम रसोई में तरुण के ऊपर धड़ाम से गिरी और उस समय बाथरूम में जब तरुण ने तुम्हे बाहों में लिया और तुम्हारे बूब्स दबाये और तुम्हें होँठों पर गहरी किस की तो क्या तुम उत्तेजित नहीं हुयी थी? आज सिर्फ सच बोलना।"

दीपा जैसे सहम गयी। उसने कभी सोचा भी नहीं था की इस तरह कभी उसे भी कटहरे में खड़ा होना पड़ेगा। उसके गाल शर्म के मारे लाल हो गये। थोड़ी देर सोच कर वह बोली, "देखो दीपक, मुझे गलत मत समझो। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरे साथ डांस करते हुए तरुण का लण्ड जरूर खड़ा हो गया था और मेरी टांगों के बिच में टकरा भी रहा था। उसे महसूस कर के मैं उत्तेजित नहीं हुई थी यह तो मैं नहीं कहूँगी। हाँ उस दिन बाथरूम में भी मैं कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गयी थी। पर देखो मैं भी इंसान हूँ। कभी कभी मुझ से भी उत्तेजना में कुछ गलत हो सकता है। पर मैंने कभी भी उसके या किसी और के साथ सेक्स करने के बारे में कतई भी नहीं सोचा।"

मेरी बीबी की बात सुनकर मैं निराश नहीं हुआ। मुझे तो बात को आगे बढ़ाना ही था। मैंने कहा, "अगर नहीं सोचा डार्लिंग तो अब सोचो ना?"

दीपा मुझे अजीब ढंग से कुछ देर देखती रही और फिर बोली, "कमाल है! मेरा पति मुझसे कह रहा की मैं किसी गैर मर्द से चुदवाऊं? अरे तुम एक बात क्यों नहीं समझते? शादी का बंधन एक नाजुक धागे से बंधा हुआ है। कभी कभी उसे ज्यादा खींचने से वह धागा टूट सकता है। ऐसे पर पुरुष सम्बन्ध का मतलब उस धागे को ज्यादा खींचना। एक बात और। अपनी पत्नी को पर पुरुष से जातीय सम्बन्ध के लिए उकसाना खतरनाक भी हो सकता है। हो सकता है मुझे दुसरे से चुदवाने में मझा आने लगे और मैं बार बार दूसरे मर्द से चुदवाना चाहुँ तो?"

बातों बातों में मेरी सीधी सादी पत्नी ने मुझे वैवाहिक सम्बन्ध की वह बात कह डाली जो एक सटीक खतरे की और इंगित करती थी। मेरी बीबी ने मुझसे तरुण का नाम लिए बगैर यह भी कह दिया की एक बार चुदने के बाद हो सकता है वह तरुण से बार बार चुदवाना चाहे। तब फिर मुझे इसकी इजाज़त देनी होगी। पर मैंने इस बारे में काफी सोच रखा था और मेरी पत्नी के लिए मेरे पास भी सटीक जवाब था। हालांकि मेरी पत्नी की बातों से मुझे एक बात साफ़ नजर आयी की पिछले कुछ दिनों में दीपा और तरुण के थोड़े करीब आने से मेरी पत्नी का तरुण के प्रति जो डर था, वह नहीं रहा था, और वह तरुण की छेड़खानी वाली सेक्सुअल हरकतों को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही थी। एक बात और थी, अब वह तरुण से चुदवाने की बात सुनकर पहले की तरह भड़क नहीं जाती थी। मतलब वह तरुण से चुदवाने के लिए तैयार भले ही ना हो पर तरुण से चुदवाने के बारे में बात कर रही थी। मुझे अब हमारा रास्ता साफ़ नजर आ रहा था।


तब मैंने कहा, " डार्लिंग, मुझे एक बात बताओ, मानलो जिस दिन तुम तरुण के सामने तौलिये में खड़ी थी तरुण ने तुम्हे यदि चोद दिया होता, तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? या क्या मैं तुम्हें छोड़ देता? मैंने जब तुम बड़ी छानबीन कर रही थी और मुझे पूछ रही थी ना, की चिड़िया जाल में फँसी की नहीं? अगर उस दिन मैंने टीना को वाकई में चोदा होता तो क्या तुम मुझे छोड़ कर चली जाती? मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूँ की सेक्स और प्रेम में बहुत अन्तर है। आज हम पति पत्नी मात्र इस लिए नहीं हैं क्योंकि हम एक दूसरे से सेक्स करते हैं। बल्कि हम पति पत्नी इस लिए भी हैं क्योंकि हम न सिर्फ एक दूसरे से प्यार एवं सेक्स करते हैं पर एक दूसरे की जिम्मेदारियां, खूबियाँ और कमियां हम मिलकर शेयर करते हैं और उसका फायदा या नुक्सान हम क़बूल करते हैं। यदि हम अपने इस बंधन से वाकिफ हैं तो ऐसी कोई बात नहीं जो हमें जुदा कर सके। मैं तो एक सेक्स काअनुभव करने मात्र के लिए ही कह रहा हूँ।"

दीपा कुछ न बोली और चुपचाप मुझे टेढ़ी नज़रों से देखने लगी। पर उसने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया।

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#12
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उस रात को दीपा बहुत खिली हुई लग रही थी। मैंने मेरी पत्नीको इतनी बार झड़ते हुए कभी नहीं देखा। शायद वह हमारी बातों को याद करके अपने ही तरंगों में खोयी हुई थी। एक बार तो मैंने पूछा भी की बात क्या है की मेरी बीबी मुझे सेक्स का वह आनंद दे रही है जो मुझे शादी के कई सालों के बाद मिल रहा है। तब दीपा ने मुझे एक बहुत बड़ी बात कही।


दीपा ने कहा, "दीपक, मुझे तुम्हारी बीबी होने का गर्व है। तुमने हम दोनों के बिच जो अंडरस्टैंडिंग की बात कही और तुमने यहां तक कह दिया की अगर उस दिन तरुण और मैं आवेश में आकर सेक्स कर बैठते और तरुण मुझ पर थोड़ी ताकत लगा कर मुझे चोद देता और मैं उसका साथ दे देती तो भी तुम मुझसे वही बर्ताव करते जो पहले से करते आ रहे थे, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। शायद इस मामले में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैंने तुम्हें कहा तो है की तुम किसी भी औरत से सेक्स कर सकते हो पर हो सकता है की अगर तुम किसी औरत से वाकई में शारीरिक सम्भोग करो और अगर मुझे पता चले तो शायद मैं तुम्हें माफ़ ना कर पाऊं।"

तब मैंने मेरी बीबी का नाक पकड़ कर उसे थोड़ा सा झकझोर कर कहा, "मैं उतना भी उदार नहीं हूँ। अगर तुम मुझे बिना बताये किसीसे चुदवाती हो और तो मुझे भी दुःख होगा। पर अगर यह सब हमारी आपसी मर्जी से होता है, तो मैं तुम्हें उतना ही या शायद उससे भी कहीं ज्यादा प्यार और सम्मान दूंगा जितना पहले से देता आरहा हूँ।"

दीपा ने कहा, "दीपक गलती करके भी मुझसे किसी गैर मर्द से चुदवाने की उम्मीद मत रखना। पर वाकई में एक पति का ऐसा कहना यह एक पत्नी के लिए बहुत बड़ी बात है।"

हालांकि ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मेरे लिए उसको तरुण से चुदवाने की उम्मीद का दरवाजा बंद करने की भरसक कोशिश की, पर मैं जानता था की भारतीय नारी कभी भी ऐसे मामलों में "हाँ" तो कभी कहती ही नहीं है। अगर उसे "हाँ" कहना हो तो वह कहेगी, "ठीक है, मैं सोचूंगी" और अगर वह "ना" कहे तो शायद कुछ उम्मीद है। अगर दीपा को तरुण से चुदवाने में कोई गंभीर आपत्ति होती तो तरुण से चुदवाने की मेरी बात सुनते ही वह ऐसा बवाल मचा देती और मेरा ऐसा बैंड बजा देती की आगे से मैं ऐसी बात करने की हिम्मत ही ना करूँ।

मेरी ज़िन्दगी में बहार सी आ गयीथी। अब मैं पहले से कई गुना खुश था। दूसरी और तरुण भी अपने सपनों में था। उस दिन जब रसोई में और बाद में बाथरूम में वह दीपा के इतने करीब आ पाया था, यह सोचने से ही उत्तेजित हो रहा था। वह इस बात से बड़ा प्रोत्साहित हुआ की बाथरूम में दीपा को इतना छेड़ने के बावजूद और दीपा ने उसे इतने गुस्से में "गेट आउट" और "मैं तुम्हारी शकल भी देखना नहीं चाहती" कहने के बाद भी माफ़ कर दिया था। कहीं ना कहीं तरुण के मन में यह बात घर कर गयी की शायद दीपा भी तरुण के साथ लुकाछुप्पी का खेल खेल रही थी, और इसी लिए शायद सम्बन्ध तोड़ने के बजाय वह पहले की ही तरह फिर से तरुण से बात करने के लिए तैयार थी। शायद दीपा भी चाहती थी की तरुण उसे छेड़े और यह कहानी आगे बढे।

तरुण से अब रहा नहीं जा रहा था। पहले उसने जब दीपा को देखा था तो वह उसे एक मात्र सपनों में आनेवाली नायिका के सामान लग रही थी। वह नायिका जो मात्र सपनों में आती है और जिसके छूने कि कल्पना मात्र करने से पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। वह वास्तव में भी कभी इतने करीब आएगी यह सोचने से ही उसके बदन में एक आग सी फ़ैली जा रही थी। अब वह दीपा को चोदने के सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह कटिबद्ध था।

एकदिन शाम को हम दोनों दोस्त एक क्लब में जा बैठे। तरुण उसी दिन अपने टूर से वापस आया था। मैं वास्तव में बहुत खुश था। पिछली रात को दीपा ने मुझे गले लगा कर इतना प्यार कियाथा की मैं उसके नशे में तब तक झूम रहा था। तरुण ने मुझे इतने खुश होने का कारण पूछा।

मैंने उसे कहा "यार इसका कारण तुम खुद ही हो।"

तरुण एकदम अचम्भे में पड़ गया। उस ने पूछा, "वह कैसे?"

मैंने कहा, "तुम जब दीपा को छेड़ते हो ना, तब तो वह तुम पर और कभी कभी मुझ पर भी गुस्से हो जाती है, पर पता नहीं उसके बाद रात को वह इतनी गरम हो जाती है और मुझे इतनी खुश कर देती है की बस क्या कहूं?"

तरुण ने तब कहा, "यह तो बड़ी ही ख़ुशी की खबर है। मुझे लगता है, जल्द ही हमारा मकसद कामयाब हो जाएगा। खैर, मुझे यह बताओ की मेरे घरमें तुम्हारी विजिट कैसी रही? टीना ने मुझे कहा की उसने एक बार तुम्हे रात को घर बुलाया था।"

मैंने फिर वही सारी कहानी पूरी सच्ची तरुण को सुनाई। जब तरुण ने सुना की टीना मुझसे लिपट गयी थी तो वह जोर से हंस पड़ा और बोला, "देखा, मेरी बीबी ने भी यह बात मुझसे छुपाई थी। पर तुमने मुझसे नहीं छुपाई। अरे यार, तुम तो बड़े सच्चे और कच्चे निकले। तुम्हारी जगह अगर मैं होता न तो मैं तो टीना की बजा ही देता।"

मैंने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, "यार, मैं कोई साधू नहीं। पर तू मेरा पक्का दोस्त है। देख मैंने भी बड़ी मुस्श्किल से संयम रखा था। मन तो मेरा भी उछल रहा था। पर मैं तुम्हें आहत करना नहीं चाहता था।"

तरुण ने तब मुझे एक बात कही। उसने कहा, "यार, तू क्या समझता है? मैं क्या अपनी बीबी को तेरे बारे में बताता नहीं हूँ? मैं टीना को दिन रात तेरे बारे में बताता हूँ। मैंने तो मेरी बीबी से यहां तक कह दिया है, की यदि दीपक तुमसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी करे तो बुरा मत मानना। वैसे सच बताओ यार, तुम्हे मेरी बीबी कैसी लगी?"

मैं यह सुनकर हक्काबक्का सा रह गया। तब फिर मेरी झिझक थोड़ी कम हुई। मैंने तरुण से पास जाते हुए कहां, "तरुण, सच कहूं। जब टीना भाभी मेरे इतनी करीब बैठी ना तो मेरे तो छक्के छूट गए। मैं तो पसीना पसीना हो गया। बाई गॉड यार, भाभी तो कमाल है।"

तरुण ने मुझे एक धक्का मारते हुए कहा, "यह क्यों नहीं कहते की वह माल है। यार वह है ही ऐसी। कॉलेज मैं हम सब उस पे मरते थे। सब लड़के उसे देख कर सिटी बजाते थे। पर आखिर में बाजी तो मैंने ही मार ली। बेटा तू आगे बढ़ मैं तेरे साथ हूँ।"

मैंने भी अपनी झिझक को बाहर निकाल फेंका और बोला, "एक बात कहूं? मैं और दीपा भी तुम्हारे बारेमें बहुत बातें करते हैं। मैं उसे तेरे करीब लाने की कोशिश करता हूँ। वह भी तुझे अच्छा मानती तो है, पर उससे आगे कुछ भी बात नहीं करना चाहती।"

तरुण ने तब मेरा कन्धा थपथपाते हुए कहा, "दोस्त, अब हम एक दूसरे के सामने जूठा ढ़ोंग ना करें। सच बात तो यह है की हम दोनों एक दूसरे की बीवी से सेक्स करना चाहते हैं। शायद बीबियों को भी हम पसंद है। पर वह अपनी कामना जाहिर नहीं कर सकती और चुप रह जाती है। हमारी बीबियाँ एक असमंजस मैं है। तूने जो अब तक किया वही बहुत है। अब इसके आगे मुझे कुछ करने दे। बस मुझे तेरी इजाजत और सपोर्ट चाहिए।"

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "मैं तेरे साथ हूँ। अब तो आगे बढ़ना ही है। "

पर इस बातचित के बाद काफी समय तक हम एक दूसरे से मिल नहीं पाए, हालांकि हमारी फ़ोन पर बात होती रहती थी। तरुण और मैं अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गए और एक दूसरे के घर आना जाना हुआ नहीं। कई बार दीपा तरुण के बारेमें पूछ लेती थी, तब मैं मेरी तरुण से हुयी टेलीफोन पर बातचीत का ब्यौरा दे देता था। शायद दीपा के मन में यह पश्चाताप उसे खाये जा रहा था की उस सुबह दीपा ने तरुण को बहुत ही ज्यादा फटकार दिया था। तरुण हमेशा दीपा के बारे में पूछता रहता था। तरुण को भी दुःख हो रहा था की उसने दीपा का दिल दुखा दिया था।

एक दिन जब तरुण का फ़ोन आया और वह मुझे पूछने लगा की कैसा चल रहा है?

मैंने कहा, "यार सब कुछ ठीक है। पर यह बता तुझे तेरी गर्ल फ्रेंड (मतलब मेरी बीबी दीपा) को छेड़ने का मन नहीं हो रहा क्या?"

तरुण ने कहा, "भाई, मैं जान बुझ कर कुछ दिनों की गैप दे रहा हूँ ताकि भाभी भी सोचती रहे की मैं क्यों नहीं आ रहा। आप यह कहना की उस दिन बाथरूम में मैंने जो हरकत की उससे मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ और भाभी के सामने आने से डर रहा हूँ।"

उसी रात को मैंने दीपा से कहा, "आज मैंने तरुण को फ़ोन किया था।"

दीपा एकदम सतर्क हो गयी और उसने बड़ी ही सहजता दिखाते हुए पूछा, "अच्छा? क्या बात हुई?"

मैंने कहा, "मैंने तरुण से पूछा की इतने दिनसे क्यों आ नहीं रहे हो? तो उसने कहा, वह तुमसे डर रहा है। उस दिन बाथरूम में उसकी हरकत के कारण वह शर्मिन्दा है और आने से झिझकता है। उस दिन तुमने उसे झाड़ जो दिया था।"

दीपा ने कहा, "ओह! अच्छा? मैं तो उस बात को भूल ही गयी थी। मैंने तुम्हें कह तो दिया था की मैंने उसे माफ़ कर दिया है। वह आ जाये, मैं उसे कुछ नहीं कहूँगी। मेरे बर्ताव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तरुण ने मेरी बात को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया लगता है। तुम उसको कहना की जो हुआ सो हुआ। अब उसके बारे में ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं। उस उल्लू को कहना की माफ़ी अगर मांगनी है तो खुद यहां आकर मुझसे माफ़ी मांगे। हो सकता है मैं उसे माफ़ कर दूँ।"

मैंने तरुण से मेरी बीबी के साथ मेरी बात हुई वह बतायी तो वह काफी खुश हुआ और बोला, "भाई आप एक काम कर सकते हो? आप दीपा को यह बताओ की मेरे और टीना के बिच कुछ अनबन सी हो गयी है। और टीना मुझसे झगड़ा कर मायके चली गयी है, और मैं इस कारण काफी मायूस हूँ। यह भी कहना की टीना को मेरे और मेरी एक पुरानी महिला दोस्त के बारे में कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी है। बस इतना ही बताना।" मैंने कहा वह मैं बता दूंगा।

उस रात को मैंने दीपा से कहा, "मैंने तरुण को फ़ोन किया था। मैंने तुम्हारा मैसेज दे दिया उसको। पर बेचारा काफी मायूस लग रहा था।"

मेरी बीबी ने मेरी और सवालिया नजर से देखा तो मैंने कहा, "कोई बात को लेकर उसके और टीना बिच कुछ खटपट हो गयी है। शायद तरुण की कोई पुरानी गर्ल फ्रेंड को लेकर टीना को कोई ग़लतफ़हमी हो गयी है। गुस्से में टीना कुछ दिनों के लिए मायके चली गयी है।"

दीपा ने पूछा, "क्या तरुण किसी और औरत के साथ भी चक्कर चला रहा है?" ना कहते हुए भी दीपा ने अनजाने में "किसी और औरत के साथ" शब्द इस्तेमाल कर यह कबुल कर लिया की तरुण दीपा के साथ चक्कर चला रहा था।

मैंने कहा, "नहीं यह बात नहीं है। बात कुछ ज्यादा ही गंभीर है। दर असल तरुण की एक पुरानी फ्रेंड उसे कहीं मार्केट में मिली थी। पहले तरुण का उसके साथ कुछ चक्कर था। पर अब तो उसकी शादी भी होगयी है और बच्चे भी हैं। जब तरुण ने टीना को यह बात कही तो टीना ने समझ लिया की तरुण फिर से उसके चक्कर में पड़ गया है। फिर इस को लेकर तरुण और टीना के बिच कुछ बातचीत हुई और टीना अपने मायके चली गयी। पता नहीं पर तरुण और टीना के बिच कुछ और भी झंझट है। तरुण एक बार मनाने गया पर वह नहीं आयी। शायद होली के बाद आ जाये।"

दीपा ने कुछ सोचने के बाद कहा, "तरुण को कहना, की अगर जरुरत पड़ी तो मैं टीना को मना लुंगी। पर एक बार तरुण को हमारे घर आ कर सारी बातें मुझे विस्तार से कहने के लिए कहो।"

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#13
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दूसरे दिन मैंने जब तरुण को मेरी बीबी के साथ हुई बातचीत कह सुनाई तरुण मेरी बात सुनकर खुश हुआ। तरुण ने कहा, "भाभी को कहना की मेरा स्वभाव एक बन्दर जैसा है। भाभी को देख कर मैं एकदम अचानक ही चंचल हो जाता हूँ। मैं आया और मुझसे कहीं ऐसी वैसी हरकत हो गयी तो भाभी फिर मुझसे लड़ पड़ेगी और नाराज हो जायेगी। एक बात भाभी को आप बता देना की मैं मेरी भाभी को दुखी नहीं देख सकता।"


जब मैंने दीपा से यह कहा तो दीपा ने कहा, "तरुण से कहना, मुझे बन्दर पसंद है। अगर मुझे उसकी कोई हरकत पसंद नहीं आयी तो मैं उसे एक थप्पड़ भी रसीद कर सकती हूँ। पर इसका मतलब यह नहीं की वह आनाजाना बंद कर दे। और मैं उसकी हरकत से दुखी नहीं होउंगी बस?"

जब मैंने तरुण से यह कहा तो वह उछल पड़ा। तरुण ने कहा, "भाई, अब समझो हमारा काम हो गया। अब समझो की दीपा भाभी फिसल गयी।"

मैंने पूछा, "कैसे?"

तरुण ने कहा, "भाई देखते जाओ।"

मैंने कहा, "अरे परसों ही तो होली है। देख साले होली में तू कोई ऐसी वैसी हरकत मत करना।"

तरुण ने कहा, "भाई अब तो जब आपने मुझे चुनौती दे दी है तो होली में ही कुछ करते हैं। मैं होली के दिन ही आऊंगा। बोलिये आप तैयार हो?"

मैंने कहा, "क्या मैंने कभी तुम्हारे काम में रुकावट डाली है?"

हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। उसका घर काफी बड़ा था और उसमें कई रूम और बरामदा बगैरह था जहां बैठकर हम मौज मस्ती करते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।

माहौल एकदम मस्ती का हुआ करता था। थोड़ी बहुत शराब भी चलती थी। दीपा और मैं करीब सुबह ग्यारह बजे उस दोस्त के घर पहुंचे तो देखा की तरुण भी वहां था। हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ महिलाएं होली खेलने के लिए दीपा को पकड़ कर घर में ले गयीं। तरुण और बाकी हम सबने एक दूसरे को अच्छी तरह से रंगा और फिर तरुण और मैं लॉन में बैठ कर गाने बजाने और कुछ पिने पाने के कार्यक्रम में जुड़ गए।

तब मैंने देखा की तरुण बिच में से ही उठकर घर में चला गया। मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही गाने बजाने में आधा घंटा बीत गया था। तब तरुण वापस आ गया। वह खुश नजर आरहा था। वह निकलने की जल्दी में था। उसने मुझे बाई बाई की और चल पड़ा। थोड़ी ही देर में दीपा और दूसरी औरतें आ गयीं। पहले तो मैं दीपा को पहचान ही नहीं सका। दूसरी औरतों के मुकाबले वह पूरी रंग से भरी हुई थी। खास तौर से छाती और मुंह पर इतना रंग मला हुआ था की वह एक भूतनी जैसी लग रही थी। उसके कपडे भी बेहाल थे।

औरतों के आने के बाद हम सब एक दूसरे की बीबियों के साथ फिरसे होली खेलने में जुट गए। पर दीपा कुछ अतड़ी अतड़ी सी नजर आ रही थी। मेरे मन में विचार भी आया की क्या हुआ की तरुण अचानक ही गायब हो गया। वैसे तो हर साल वह दीपा को रंगने के लिए बड़ा बेताब रहता था।

मैं जब दीपा को रंग लगाने के लिए गया तो उसे देख कर हंस पड़ा। मैंने पूछा, "लगता है मेरी खूबसूरत बीबी को सब लोगों ने इकठ्ठा होकर खूब रंगा है।"

तब दीपा ने झुंझलाहट भरी आवाज में पूछा, "टीना को नहीं देखा मैने। वह आयी नहीं थी क्या?"

मैंने कहा, "मैंने कहा नहीं था, वह मायके चली गयी है?"

तब दीपा एकदम धीरे से बड़बड़ाई, "हाँ सही बात है। तुम ने बताया था। तभी में सोचूं, की जनाब इतने फड़फड़ा क्यों रहे थे। "

मैंने पूछा, "किसके बारेमे कह रही हो?" मेरी पत्नी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ और देर में हम सब घर जाने के लिए तैयार हुए। मैं और दीपा मेरी बाइक पर सवार हो कर चल दिए।

घर पहुँच कर मैंने देखा तो दीपा कुछ हड़बड़ाई सी लग रही थी। मैंने जब पूछा तो मुझे लगा की दीपा अपने शब्दों को कुछ ज्यादा ही सावधानी से नापतोल कर बोली, "मुझे एक बात समझ नहीं आती। यह तुम्हारा दोस्त कैसा इंसान है? देखिये, ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। आप उस को कुछ कहियेगा नहीं। पर आपके दोस्त तरुण ने मरे साथ क्या किया मालुम है? तुम्हारे दोस्त के घर में तरुण मुझे कुछ बहाना बना कर पीछे के कमरे में ले गया। पहले तो उसने झुक कर मेरे पॉंव पकडे और खुले दिलसे माफ़ी मांगी। जब तक मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठाया नहीं, तब तक वह मेरे पाँव में लेटा रहा। मैंने उसे कहा, "उठो यार। भूल जाओ वह सब पुरानी बातें। मैंने माफ़ कर दिया। अब क्या है? चलो होली खेलते हैं।

बस मेरा इतना कहना था की उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड कर ऊपर उठा लिया। पहले तो उसने मुझ पर ऐसा रंग रगड़ा ऐसा रंग रगडा की मेरी साड़ी ब्लाउज यहां तक की ब्रा के अंदर भी रंग ही रंग कर दिया। होली के बहाने उसने मुझसे बड़ी बदतमीज़ी की। मैं आप को क्या बताऊँ उसने मेरे साथ क्या क्या किया। उसने मेरी ब्रैस्ट दबाई और उन पर रंग रगड़ता रहा।

मैंने उसे रोकना चाहा पर मेरी एक ना चली। दीपक, मैं चिल्लाती तो सब लोग इकठ्ठा हो जाते और तरुण की बदनामी होती। मैं धीरे से ही पर चिल्लाती रही पर वह कहाँ सुनने वाला था? मैंने उसे कहा तरुण ये क्या कर रहे हो? पर उसने मेरी एक न सुनी। फिर जब उसने मेरे ब्लाउज के निचे, मेरे पेट पर रंग लगाना शुरू किया और फिर वह झुक मेरे पैर पर रंग रगड़ता हुआ मेरे घाघरे को ऊपर कर मेरी जाँघों पर रंग रगड़ने लगा। जब मैंने उसे झटका दिया तो सॉरी सॉरी कहता हुआ खड़ा हुआ और वह मेरी नाभि और मेरे पिछवाड़े को रगड़ कर रंग लगा ने लगा। जब मैंने उसे रोकना चाहा तो रुकने के बजाय उसने मेरे घाघरे के नाड़े के अंदर हाथ डालना चाहा। तब मेरा दिमाग छटक गया और मैंने उसे ऐसा करारा झटका दिया की वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर वह वहाँ से चला गया। पता नहीं यह बन्दा कभी सुधरेगा की नहीं? आप उसे बताइये की यह उसने अच्छा नहीं किया। वह ऐसी हरकत करता रहेगा तो मुझे कुछ ना कुछ करना पडेगा।"

मैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, "अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो एक के बाद एक गोल गोल दागना शुरू कर दिया।"

दीपा को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। तुमको मेरे और दोस्तों ने भी तो रंग लगाया था। मैंने भी तुम्हारी कई सहेलियों को रंग लगाया है। और ख़ास कर तुम्हारी वह सखी मोहिनी को तो मैंने अच्छी खासी तरह से रंगा था। हाँ, मैंने उसके ब्रा के अंदर हाथ नहीं ड़ाला पर बाकी काफी कुछ रंग दिया था। तुम भी तो वहीँ ही थी। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी लिए तो कहते हैं की "बुरा ना मानो होली है।

पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। आज तरुण ने कुछ ज्यादा ही कर दिया। यह बिलकुल ठीक नहीं है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। मैं उसको अभी फ़ोन कर डाँटता हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। जब मैं उसे मिला तब पता नहीं तरुण कुछ उखड़ा उखड़ा दुखी सा लग रहा था। मूड में नहीं लग रहा था। क्यूंकि शायद वह कुछ दिनों से घर में अकेला ही है। अनीता उसे छोड़ मायके चली गयी है।"

दीपा मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गयी। उसने कहा, "ओह! हाँ तुमने बताया तो था। तो यह बात है! मियाँ अकेले हैं तो सोचा चलो टीना नहीं तो भाभी ही सही। भाभी पर ही हाथ साफ़ कर लेते हैं! पर तुमने यह तो बताया ही नहीं की अगर टीना नहीं है तो वह खाना कहाँ खाता है?"

मैंने कहा, "पता नहीं, मैंने नहीं पूछा।"

दीपा: "कमाल के दोस्त हो तुम! वह अकेला है तो बाहर होटल में ही खाना खाता होगा। तुम्हें हुआ नहीं की चलो उसे हमारे घर खाना खाने के लिए बुलाते हैं? और वह उल्लू का पट्ठा भी कह सकता था की भाभी मैं आपके यहां खाना खाऊंगा?"

दीपा की बात सुन कर मैं हैरान रह गया! अभी तो तरुण को डाँटने की बात थी और अचानक ही उसे खाना खिलाने की बात आ गयी!

मैंने कहा, "उसे छोडो और यह बताओ की मैं क्या करूँ? उसे डाँटू या फिर शाम को साथ में आने के लिए कहूं?" मैंने दीपा से ही उसके मन की बात जाननी चाही।

मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, तरुण शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी। हाय दैया, मैं अकेली क्या करुँगी?"

फिर दीपा एकदम चुप हो गयी। दीपा की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "अब मैं आपको क्या बताऊँ की उसको बुलाना चाहिए या नहीं? देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। मुझे आप दोनों की दोस्ती के बिच में मत डालिये। पर जहां तक मैं समझती हूँ, इस बात का बतंगड़ बनाने का कोई फायदा नहीं। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। बेहतर यही रहेगा की आप तरुण को कुछ भी मत कहिये। उसे डाँटना मत।"

मैं चुपचाप मेरी बीबी की बात सुन रहा था। वह फिर बोलने लगी, "एक तो होली के त्यौहार का जोश, ऊपर से मुझे लगता है की तरुण ने शराब कुछ ज्यादा ही पी ली थी शायद। उसके मुंह से शराब की बू भी आ रही थी। तो बहक गया होगा नशेमें। एक तो बन्दर और ऊपर से नीम चढ़ा। और फिर टीना भी तो नहीं है, उसको कण्ट्रोल करने के लिए। तो यह सब हुआ। मैंने कहीं पढ़ा था की कई वीर्यवान मर्द सेक्सुअली बहुत ज्यादा चंचल होते हैं। ऐसे मर्दों के अंडकोषमें हमेशा उनका वीर्य कूदता रहता है। सेक्सी औरत को देखकर वह सेक्स के मारे उत्तेजित हो जाते हैं और वह बड़े ही तिलमिलाने लगते हैं। मुझे लगता है शायद तरुण का किस्सा भी ऐसा ही है। तुम्ही ने तो कहा था ना की मुझे देखकर पता नहीं उसे क्या हो जाता है की वह मुझे छेड़े बगैर रह नहीं सकता?"

मैंने कहाँ, "हाँ वह तो हकीकत है। तरुण ने खुद मुझसे यह बात कई बार कबुली थी। उसने कहा था की उसे तुम्हें देख कर कुछ हो जाता है और वह तुम्हें छेड़ देता है अपने आप को रोक नहीं पाता। पर फिर बाद में वह बहुत पछताता भी है। तुम्ही तो कह रही थी की उसने तुमसे कई बार माफ़ी भी मांगी है।"

दीपा ने मेरी बात को सुनकर अपनी उंगली से चुटकी बजाते हुए बोली, "हाँ बिल्कुल। बस यही बात है।"

दीपा फिर एक गहरी साँस ले कर बोली, " शायद मेरी तक़दीर में तुम्हारे दोस्त को झेलना ही लिखा है। अब क्या करें? तरुण तो सुधरने से रहा। अगर आप उसे बुलाना चाहते हो तो जरूर बुलाओ। बस आप मेरे साथ रहना, ताकि वक्त आने पर हम उसे कण्ट्रोल कर सकें। जो हो गया सो हो गया। अब आगे ध्यान रखेंगे।"

फिर अचानक दीपा को कुछ याद आया तो मेरी बाँह पकड़ कर दीपा ने कहा, "और हाँ, एक बात और। इस बार मुझे भी तरुण में कुछ फर्क नजर आया। हालांकि उसने मुझे रंग बगैरह तो लगाया और जो करना था वह तो किया पर मुझे लगा की वह कुछ कुछ बुझा बुझा सा मायूस लग रहा था। वो कह रहा था की वह बहुत दुखी है पर जब वह मेरे साथ होता है तो वह दर्द भूल जाता है। मुझे लग रहा है वह टीना को लेकर कुछ अपसेट है। बात करने का मौक़ा नहीं था वरना मैं पूछ लेती। शाम को जब वह आये तो हम उसे उसके बारेमें जरूर पूछेंगे। शायद हम से बात करके उसका मन हल्का हो जाए। शायद हम उसकी कुछ मदद कर सकें।"

मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। एक तरफ वह तरुण की शिकायत कर रही थी, उस का सामना करने से डर रही थी तो दूसरी और उसकी हरकतों के लिए कारण ढूंढ रही थी, उसे बुलाने के लिए कह रही थी। यही तो प्यार और गुस्से का अद्भुत संयोग था।

मैं मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं तरुण को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम तरुण को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। तुमने ही तो अभी कहा की वह बन्दर के जैसा है। वह तुम्हारे जैसी खूबसूरत बंदरिया को देखते ही शायद उसका लण्ड खड़ा हो जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। तो वह तुम्हें छेड़े बगैर तो रहेगा नहीं। जहां तक मेरी बात है, तो तुम तो जानती हो, आज होली है और मैं तुम्हें प्यार किये बगैर रह नहीं सकता। चूँकि उसके छेड़ने से तुम गुस्सा हो जाती हो इसलिए शायद बेहतर यही है की मैं उसको ना बुलाऊँ। इसका एक फायदा यह भी होगा की जब मेरा मन करेगा तो मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा और तुम मुझे यह कह कर रोकोगी नहीं की तरुण साथ में बैठा है। यार होली में तो मस्ती होनी चाहिए। ओके? अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है तो मुझे अभी बता दो, तब फिर मैं तरुण को मना कर दूंगा और हम दोनों ही चलेंगे। मैं तुम्हें होली के मौके पर प्यार किये बिना नहीं रह सकता। तरुण आये तो भी ना ए तो भी। बोलो क्या मैं उसे बुलाऊँ?"


दीपा ने मेरी बात सुनकर बड़े ही असमंजस में कहा, "मैंने कहाँ तरुण को बुलाने से मना किया है? यह सारी बातें तो तुमने कहीं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। तुम बोलो ना क्या तुम तरुण को बुलाना चाहते हो या नहीं? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तरुण हो या ना हो।"

मैं कहा, "क्या तरुण होगा तो भी तुम मुझे प्यार करने दोगी की नहीं?"

दीपा ने शर्माते हुए कहा, "अगर मैं मना करुँगी तो क्या तुम मुझे प्यार किये बिना रुकोगे?"

मैंने कहा, "और अगर तुम्हें तरुण छेड़ेगा तो?"

दीपा ने कहा, 'यह क्या पहली बार है की तरुण मुझे छेड़ेगा? पता नहीं मैं तो गिनती भी भूल गयी हूँ जब तरुणे ने मुझे छेड़ा था। अब तो मुझे तरुण से छिड़ने की शायद आदत सी ही हो गयी है। अगर वह मुझे नहीं छेड़ेगा तो मैं कहीं सोचने ना लागूं की उस बंदर को हो क्या गया है?"

"तो फिर मैं तरुण को बुलाता हूँ। ओके?"

दीपा ने कहा, "तुम्हारा दोस्त है, भाई है। मुझे क्यों पूछ रहे हो? बुलाना है तो बुलाओ उसे। वह तो जो करना है वह करेगा ही। मेरे कहने से थोड़े ही रुकजाएगा वह?"

मैंने फिर पूछा, "तो उसके होते हुए भी तुम मुझे प्यार करने दोगी ना?"

दीपा ने मेरी और गुस्से से देखा और बोली, "ठीक है, तुमने एक बार बता दिया और मैंने सुन भी लिया ना? ठीक है बाबा मैं जानती हूँ, तुम मुझे प्यार किये बिना नहीं रह सकते, ख़ास कर होली के अवसर पर। मैं जानती नहीं हूँ क्या? ओके, बाबा प्यार करना तुम मुझे, मैं तुम्हें नहीं टोकूँगी बस? एक ही बात बार बार क्यों कह रहे हो?"

मैंने कहा, "ठीक है, सॉरी। पर एक बात और सुन लो। अगर तरुण आया तो तुम तो जानती ही हो, की वह बन्दर है। वह बाज नहीं आएगा। वह तो तुम्हें छेड़े बगैर रह नहीं सकता। तो देख लो। चिल्ला कर मूड मत खराब करना। और हाँ हम ने थोड़ा शराब का भी प्रोग्राम रखा है। तो प्लीज बुरा मत मानना और हंगामा मत करना। मैं चाहता हूँ की हम सब मिल कर खूब मौज करें और होली मनाएं। ठीक है ना? तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?"

जब दीपा ने भांप लिया की मैं सुबह वाली बात को लेकर तरुण से ऐसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करूँगा तो उसकी जान में जान आयी। तब वह होली के मूड में आ गयी। दीपा ने आँख नचाते हुए कहा, " एक ही बात कितनी बार कहोगे? मैंने कह दिया ना, की नहीं करुँगी तुम लोगों का मूड खराब। बस? मैं इतना गुस्सा करती हूँ पर क्या तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे दोस्त के ऊपर कोई फर्क पड़ा है आज तक? मैंने गुस्सा किया भी तो तुम मेरी सुनोगे थोड़े ही? खैर चलो मैं तुम्हें वचन देती हूँ की मैं गुस्सा नहीं करुँगी बस?"

"और हर होली की तरह बादमें देर रात को फिर तुम मौज करवाओगी ना?" मैंने दीपा को आँख मारते हुए पूछा।

दीपा ने हंसकर आँख मटक कर कहा, "जरूर करवाउंगी। निश्चिंत रहो। अगर नहीं करवाई तो तुम मुझे छोड़ोगे क्या?" मुझे ऐसा लगा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी को भी तब होली का थोड़ा रंग चढ़ चूका था। पर उसे क्या पता था की मैं किस मौज की बात कर रहा था और उस रात के लिए हमारे शातिर दिमाग में क्या प्लान पक रहा था?

जैसे की आप में से कई लोगों को पता होगा, जयपुर एक सांस्कृतिक शहर है और उसमे कई अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। होली के समय रामनिवास बाग़ में एक कार्यक्रम होता था जिसका नाम था "महां मुर्ख सम्मेलन" यह कार्यक्रम रात दस बजे शुरू होता था एवं पूरी रात चलता था और उसमे बड़े बड़े हास्य कवी पुरे हिंदुस्तान से आते थे। वह अपनी व्यंग भरी हास्य रस की कविताएं सुनाते थे और लोगों का खूब मनोरंजन करते थे। कार्यक्रम खुले मैदान में होता था और चारों तरफ बड़े बड़े लाउड स्पीकर होते थे। पूरा मैदान लोगों से भर जाता था।

मैं और मेरी पत्नी हर साल इस कार्यक्रम में जाते थे और करीब करीब पूरी रात हास्य कविताओं का आनंद उठाते थे। मेरी पत्नी दीपा बड़े चाव से यह कार्यक्रम सुनती और बहुत खुश होती थी। इस कार्यक्रम सुनने के बाद मुझे खास वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती और उस रात हम खूब चुदाई करते।

दीपा की अनुमति मिलने पर मैंने तरुण को फ़ोन करके पूछा, "क्या तुम रात को दस बजे हमारे साथ महा मूर्ख सम्मलेन में चलोगे? पूरी रात का कार्यक्रम है।"

तरुण ने कहा, "यार नेकी और पूछ पूछ? मैं तो तुम्हारे इनविटेशन का इंतजार ही कर रहा था। मैं घर में अकेला हूँ। मैं अपनी एम्बेसडर कार लेकर जरूर आऊंगा। हम उसी मैं चलेंगे। पर क्या दीपा भाभी को पता है की तुम मुझे बुलाने वाले हो? क्या उन्हें पता है की आज मैं अकेला हूँ?" मैं समझ गया की दुपहर की शरारत का दीपा पर कैसा असर हुआ है वह जानने के लिए तरुण लालायित था।

मैंने कहा, "हाँ भाई। मैंने दीपा को बताया, और उसकी सम्मति से ही मैं तुमको आमंत्रित कर रहा हूँ।" मैं कल्पना कर रहा था की फ़ोन लाइन की दूसरे छौर पर यह सुनकर तरुण कितनी राहत का अनुभव कर रहा होगा।

मैंने तरुण को एक गहरी साँस लेते हुए सुना। फिर तरुण ने धीमी आवाज में बोला, "यार एक बात बुरा न मानो तो कहूँ। क्या आज रात हम दीपा भाभी के साथ कुछ हरकत कर सकते हैं? आज रात को थोड़ी सेक्स की बातें करके भाभी को गरम करने की कोशिश करते हैं।"

तब मैंने तरुण को कहा, "तुम कमाल हो यार। दुपहर को तुमने जब मेरी बीबी को इतना छेड़ा था तो क्या मुझसे पूछा था? और क्या मैंने तुम्हें कभी रोका है? आज होली है। आज तो तुम्हारे पास छेड़नेका, गरम करनेका पूरा लाइसेंस है। तुम दीपा को छेड़ो, गरम करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैं भी आज तुम्हारे साथ उसको जरूर छेडूंगा, गरम करूँगा और जीतनी हो सके उतनी तुम्हारी सहायता भी करूँगा। मैं भी देखना चाहता हूँ की तुम तुम्हारी बर्फीली भाभी को कितना गरम कर सकते हो?"

तरुण ने कहा, "भाई अगर आप कहो तो आज मैं भाभी को सिर्फ गरम ही नहीं करूंगा, आग ही लगा दूंगा। आप देखते जाओ। अब जब आपने मुझे चुनौतो दे ही दी है तो फिर देखो मेरा कमाल। आज ही भाभी को बिलकुल सेट करने की कोशिश करते हैं। वैसे भाई, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं। मैं वाकई में उनका मुरीद हूँ।"

मैंने कहा, "वह तो तुम हो ही और वह मुझसे और अच्छी तरह से कौन जानता है? पर तुम्हारी भाभी आज तुम्हारी दोपहर की हरकत से नाराज थी। खैर, मैंने उसे समझाया की होली में सब लोग एक दूसरे की बीबियोँ से थोड़ी सेक्सुअल छेड़छाड़ करते ही हैं। ऐसा करके वह अपने मन की छुपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन करके कुछ संतुष्टि लेते हैं।, ऐसा मौक़ा उन्हें कोई और दिन नहीं मिलता। पर अगर तुम्हारी छेड़छाड़ की वजह से उसका हैंडल छटक गया तो फिर उसको मैं कण्ट्रोल नहीं कर पाउँगा। वह फिर तुम सम्हालना। माहौल बनाने का काम तुम्हारा है।"

तरुण ने कहा, "वह तुम मेरे पर छोड़ दो। बस तुम मुझे सपोर्ट करते रहना बाकी मैं देख लूंगा।"

मैंने फ़ोन रखा और दीपा से कहा, "मैंने तरुण को आने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। वह टीना के मायके जाने से काफी मायूस है। तरुण अकेला है और कुछ दुखी भी है। पर मैंने जब बहुत फ़ोर्स किया तो आखिर में उसने आने के लिए हाँ कह दिया। मैंने उसे अपनी कार ले कर आने के लिए कहा है। हम तीनों साथ में चलेंगे। वह अपनी गाडी में रात दस बजे आएगा और हम उसकी गाडी में ही चलेंगे। हम फिर सुबह ही वापस आएंगे। और हाँ, मैं तरुण का मूड ठीक करने के लिए उस को कुछ सेक्सी बातें करने के लिए उकसाऊँगा। तुम उसे मत रोकना और उससे टीना के बारेमें मत पूछ बैठना। उसका मूड जब ठीक होगा तो आखिर में हम उस बारेमें बात करेंगे। ओके?"

दीपा मुंह बना कर बोली, "कमाल है, तुम मर्दों का मूड बस सेक्स की बातें करने से ही ठीक होता है क्या? ....क्या करें? यह तो साँप और छछूंदर वाली बात हो गयी। ना निगलते बनता है ना उगलते बनता है। मर्दों को झेलना भी मुश्किल है और उनके बिना जीना भी मुश्किल है। फिर गहरी साँस ले कर दीपा बोली, "चलो, यह भी झेल लेंगे।" दीपा ने अपने कंधे हिला कर सहमति दे दी।

मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग आज आप मेरे लिए कुछ ऐसे भड़कीले सेक्सी कपडे पहनो की होली का मझा आ जाए। सारे लोग देखते रह जाए की मेरी बीबी लाखों में एक है।"

मेरी बीबी ने पूछा, "क्यों, क्या बात है? सब लोगोंके सामने तुम मेरे बदन की नुमाईश करवाना चाहते हो क्या? या फिर अब तक तुमने तरुण के सामने मेरा अंग प्रदर्शन जितना करवाया है उससे खुश नहीं हो की और करवाना चाहते हो? क्या तुम तरुण ने मुझे जितना छेड़ा है उससे संतुष्ट नहीं हो की उस को मुझे और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हो?"

मैंने तपाक से जवाब देते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच है। मैं सब लोगों के बिच में मेरी बीबी की नुमाइश करना चाहता हूँ। मैं सब को दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी उन सब की बीबीयों से ना सिर्फ ज्यादा सुन्दर है, बल्कि उनकी बीबियों से कई गुना सेक्सी भी है। उतना ही नहीं, आज होली की शाम को मैं चाहता हूँ की मेरी बीबी ऐसी सेक्सी बन कर सजे की उस को देख कर बूढ़ों का भी लण्ड खड़ा हो जाये।

अब बात रही तरुण के छेड़ने की, तो तुम्हें उसके बारेमें तो चिंता ही नहीं करनी चाहिए। वह तुम्हारे मम्मों को पहले भी दो तीन बार तो सेहला ही चूका है। उसको तुम्हें जितना छेड़ना था उसने छेड़ लिया है। वह तुमको और क्या छेड़ेगा? उसने जो देखना था वह देख लिया है, जो कुछ करना था वह तो कर लिया है। उससे ज्यादा और वह क्या देख सकता है और क्या कर सकता है भला? वह क्या देख लेगा जो उसने पहले नहीं देखा? और हाँ। मैं तरुण को भी दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी दीपा भी उसकी बीबी टीना से कम सुन्दर अथवा कम सेक्सी नहीं है। आज तो आरपार की लड़ाई है। वह क्या समझता है, मेरी बीबी उसकी बीबी से कम सेक्सी है?"

मैंने जब अपना पॉइंट बड़े ही भार पूर्वक रक्खा तो दीपा आश्चर्य से मेरी और देखने लगी। मैंने कहा, "तरुण उस दिन अपनी बीबी की स्विम सूट वाली आधी नंगी फोटो दिखा कर मुझे यह जता ने की कोशिश कर रहा था की उसकी बीबी टीना कितनी सेक्सी है? मैं तरुण को दिखाना चाहता हूँ यह तो मेरी बीबी दीपा की शालीनता है की वह कभी भड़कीले वेश नहीं पहनती वरना वह टीना से भी कहीं ज्यादा सेक्सी है और वह चाहे तो अच्छे अच्छों के बारह बजादे। डार्लिंग, बाकी सबकी बात छोडो। मैं तो तुम्हें अपने लिए तैयार होने को कह रहा हूँ। जानेमन आज ऐसी तैयार हो की मेरी आँखें तुम्हे ही देखते रहें। तुम्हारे अलावा किसी और औरत को ना देखें। मैं तुम्हें आज एकदम सेक्सी ड्रेस में देखना चाहता हूँ।"

इतना कहना ही मेरी पत्नी के लिए काफी था। मेरी बात सुनकर मेरी बीबी को कुछ संतुष्टि हुई। मेरी बात भी सही थी। मैं भी मेरी पत्नी के मन की बात को भली भाँती भांप ने लगा था। तरुण से हुई इतनी मुठभेड़ों के बाद उसे अब तरुण से ऐसा कोई भय नहीं लग रहा था। तरुण को दीपा भली भाँती जान गयी थी। पता नहीं, शायद वह सोच रही होगी की आखिर ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा तरुण? ज्यादा से ज्यादा वह चोदने की कोशिश ही करेगा ना? अब वही तो बाकी रह गया था? और क्या करेगा?

पर अगर तरुण ने थोड़ी सी भी जबरदस्ती की तो दीपा ने तय किया था वह उसे नहीं छोड़ेगी। तरुण को यह तो मालुम ही था की दीपा इतनी आसानी से तो फँसने वाली नहीं है। फिर मैं दीपा के साथ ही था तो दीपा अकेली तो थी नहीं, की तरुण कोई जबरदस्ती कर सके।

यह सब सोच कर दीपा ने मेरी बात मान ली। शायद कुछ हद तक दीपा को भी अपनी सेक्सी फिगर तरुण को दिखाने का मन तो था ही। टीना और तरुण के हनीमून की सेक्सी फोटोएं देखने के बाद कहीं ना कहीं दीपा के मन में भी था की वह तरुण को एक बार तो दिखा ही दे की वह भी अगर भड़कीले कपडे पहने तो उस उम्र में भी मर्दों के लण्ड में आग लगा सकती है। दीपा यह भी दिखा देना चाहती थी की वह टीना से कम सुन्दर और कम सेक्सी नहीं थी।

banana
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#14
Heart 
उस रात वह ऐसे सेक्स की रानी की तरह सज कर तैयार हुई जैसे मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा। कई सालों के बाद पहली बार मेरी बीबी को उस ब्लाउज में देखा जो वह शर्म के मारे कभी न पहनती थी। वह डीप कट ब्लाउज था जिसमें मेरी रूढ़िवादी पत्नी के भरे और तने हुए मम्मों (स्तनों) का उभार काफी ज्यादा नजर आता था।


उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। उसका ब्लाउज चौड़ाई में छोटा था और जैसे वह उसके उरोज को बस ढके हुए था। दीपा के स्तन ब्लाउज में बड़ी कठिनाई से समाये हुए थे। उसने आपनी साड़ी भी अपनी कमर से काफी निचे तक बाँधी थी। ऐसा लगता था की कहीं वह पूरी निचे उतर न जाय और उसे नंगी न करदे। और साड़ी भी उसने ऐसी पहनी की थी की हाथ में पकड़ो तो फिसल जाए। एकदम हलकी पतली और पारदर्शी।

दीपा का ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था। सिर्फ दो पतली डोर उसके ब्लाउज को पकड़ रखे हुए थे। दीपा की पीठ एकदम खुली थी और ब्रा की पट्टी उसमें दिख रही थी। ब्रा भी तो उसने जाली वाली पहनी थी। ब्लाउज खुलने पर उसके स्तन आधे तो वैसे ही दिखने लगेंगे यह मैं जानता था। दीपा की कमर में उसकी नाभि खूब सुन्दर लग रही थी।

रात दस बजे तरुण अपनी पुरानी अम्बेसडर कार में हमें लेने पहुंचा। जैसे उसने हॉर्न बजाया, दीपा सबसे पहले बाहर आयी। दीपा के घर से बाहर आने के बाद हमारे घर के आँगन में जो हुआ वह मुझे दीपा ने कुछ दिनों बाद सविस्तार बताया था। वह मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ।

तरुण तो दीपा को देखते ही रह गया। दीपा की साडी का पल्लू उसके उरोजों को नहीं ढक पा रहा था । उसके रसीले होँठ लिपस्टिक से चमक रहे थे। उसके भरे भरे से गाल जैसे शाम के क्षितिज में चमकते गुलाबी रंग की तरह लालिमा बिखेर रहे थे। सबसे सुन्दर दीपा की आँखे थीँ। आँखों में दीपा ने काजल लगाया था वह एक कटार की तरह कोई भी मर्द के दिल को कई टुकड़ों में काट सकती थीँ। आँखे ऐसी नशीली की देखने वाला लड़खड़ा जाए। उसके बाल उसके कन्धों से टकराकर आगे उन्नत स्तनों पर होकर पीछे की तरफ लहरा रहे थे।

सबसे ज्यादा आकर्षक दीपा की गाँड़ का हिस्सा था जो की साडी के पल्लू में छिपा हुआ था, पर उसकी सुडौल गाँड़ के घुमाव को छिपाने में असमर्थ था। साडी में दीपा के कूल्हे इतने आकर्षक लग रहे थे की क्या बात!!!!

दीपा ने जैसे ही तरुण को देखा तो थोड़ी सहम गयी। उसे दोपहर की तरुण की शरारत याद आयी। तरुण के अलावा किसीने भी ऐसी हिमत नहीं दिखाई थी की दीपा की मर्जी के बगैर इसको छू भी सके। पर तरुण ने सहज में ही न सिर्फ कोने में दीवार से सटा कर उसे रंग लगाया, बल्कि उसने दीपा के ब्लाउज के ऊपर से अंदर हाथ डाल कर उसकी ब्रा के हूको को अपनी ताकत से तोड दिए और स्तनों को रंगों से भर दिए। और भी बहुत कुछ किया।

दीपा को देख कर तरुण तुरंत कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा और फुर्ती से दीपा के पास आया। उस समय आँगन में सिर्फ वही दोनों थे। तरुण दीपा के सामने झुक और अपने गालों को आगे कर के बोला, "दीपा भाभी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। आज मैंने बहुत घटिया हरकत की है। आप मुझे मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारिये। मैं उसीके लायक हूँ। दीपा एकदम सहमा गयी और एक कदम पीछे हटी और बोली, "तरुण ये तुम क्या कर रहे हो?"

तरुण ने झुक कर अपने हाथ अपनी टांगों के अंदर से निकाल कर अपने कान पकडे और दीपा से कहा, "दीपा आप जबतक मुझे माफ़ नहीं करेंगे मैं यहां खुले आंगन में मुर्गा बना ही रहूँगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।"

दीपा यह सुनकर खुलकर हंस पड़ी और बोली, "अरे भाई, माफ़ कर दिया, पर यह मुरगापन से बाहर निकलो और गाडी में बैठो और ड्राइवर की ड्यूटी निभाओ।"

तरुण ने तब सीधे खड़े होकर दीपा को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "दीपा भाभी, आप तो आज कातिलाना लग रही हैं। पता नहीं किसके ऊपर यह बिजली गिरेगी।"

दीपा हंस पड़ी और बोली, "तरुण कहीं आज तुम ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे हो क्या? ख़ास कर के जब आज टीना भी नहीं हैं।"

तरुण तुरंत लपक कर बोला, "तो क्या हुआ? आप तो है न?"

तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ सहम सी गयी। उसने तरुण की बात अनसुनी करते हुए कहा, "देखो तरुण, तुम है मुझे ज्यादा परेशान मत किया करो यार। मैंने तुम्हें माफ़ तो कर दिया पर वाकई में आज तो तुमने सारी हदें पर ही कर दी थीं। मैं अगर हमारे संबंधों का लिहाज ना करती और तुम्हारे भैया से सब कह देती ना तो आज पता नहीं क्या हो जाता। तुम्हारे भैया तुमसे लड़ ही पड़ते और...... ।"

तरुण ने अपने चेहरे पर एकदम दीपा की बात सुन कर डर गया हो ऐसे भाव ला कर फिर तरुण ने एक बार फिर झुक कर दीपा के पाँव पकडे और दीपा के पाँव को साडी के ऊपर से ही दबाने लगा। दीपा तरुण के इस वर्ताव से भड़क गयी और कुछ कदम पीछे हट कर बोली, "तरुण यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा ना की तुम्हें माफ़ कर दिया? फिर यह क्या है?"

तरुण ने कहा, "आपने जो गलतियां मैंने की उसे माफ़ किया। पर भाभी आज होली की रात है। आज होली की मस्ती सबके दिमाग पर छायी हुई है। भाई भी आज मस्ती में हैं। आज आप ऐसी सूफ़ियानी बातें क्यों करते हो? साल में एक दिन तो दिल खोल कर मस्ती करो और करने दो ना भाभी? यह उम्मीद क्यों रखते हो की आज की रात और हरकतें नहीं होंगी? मैं अब आप से जो गलतियां आगे चलके कर सकता हूँ या करूंगा उसकी भी अभी माफ़ी मांग रहा हूँ। प्लीज गुस्सा मत करना। प्लीज आज की रात मस्ती मनाइये और मनाने दीजिये। प्लीज?"

दीपा पीछे हट कर बोली, "ठीक है भाई। माफ़ कर दिया,माफ़ कर दिया, माफ़ कर दिया। अब तो तीन बार बोल चुकी हूँ। बस?"

तरुण अचानक सीरियस हो कर बोला, "भाभी, यह सच है की मैं आपको देखता हूँ तो मेरे सारे गम, मेरे सारे दर्द भाग जाते हैं और मैं रोमांटिक महसूस करने लगता हूँ। भाभी आपको नहीं पता मैं अंदर से कितना दुखी हूँ। इसलिए प्लीज इस होली के त्यौहार में मैं कुछ ज्यादती करूँ तो मुझे माफ़ करना और मुझे फटकारना मत प्लीज? मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आपको देवी माँ सा समझता हूँ। मैं आपको दुखी नहीं देख सकता। मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ।"

यह सुन कर दीपा बरबस खिलखिला कर हँस पड़ी। उसने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा किया और उसके करीब जाकर बोली, "तरुण यार तुम बड़े चालु हो। एक तरफ तुम मुझे देवी माँ का दर्जा देते हो और दूसरी तरफ मुझसे छेड़खानी करते रहते हो? स्त्रियों का दिल कैसे जितना यह तुम बखूबी तरह जानते हो। देखो आज तक मैंने अच्छे अच्छों को अपने करीब नहीं आने दिया। बहोत मर्दों ने मेरे करीब आने की कोशिश की। पर मैंने उन्हें ऐसे फटकार लगाई की वह मेरी तरफ का रास्ता ही भूल गए।

तुम्हें भी मैंने खूब हड़काया, फटकारा और लताड़ा। पर तुम तो बड़े ही ढीट निकले। तुम पर तो कोई भी असर ही नहीं होता। तुम तो बन्दर ही हो । इन्सान को कण्ट्रोल किया जा सकता है, पर बन्दर को कण्ट्रोल करना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए भगवान ने भी बंदरों को ही सैनिक के रूप में पसंद किया था। पर तुम्हारी एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह की तुमने मुझे कभी भी हलकी नजरों से नहीं देखा। मेरे साथ हर तरह की छेड़खानी करते हुए भी तुमने मुझे हमेशा सम्मान भरी नज़रों से देखा। तुमने मुझे हमेशा इज्जत बख्शी। तुमने मेरे पति से छुपाकर कोई हरकत नहीं की। मैं इसी लिए तुम्हारी इज्जत करती हूँ।"

दीपा ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "तरुण, देखो मैं मर्द नहीं हूँ इसलिए हो सकता है, तुम्हारे दिलोदिमाग के सारे भावों को मैं समझ ना सकूँ। पर तुम्हारे भाई मुझे बार बार मर्दों की कमजोरियां बगैरह के बारे में बताते रहते हैं। वैसे ही देखो मैं भी एक औरत हूँ। मेरी अपनी भी कुछ कमियां और मजबूरियां हैं। तुम्हें भी उन्हें समझना पडेगा। आज तुम और तुम्हारे भाई पर होली का जूनून सवार है। आज छेड़ने के लिए तुम दोनों के बिच में मैं एक अकेली ही औरत हूँ। चलो ठीक है, आज की रात तुम्हारे सारे होने वाले गुनाह माफ़ बस? आज मैं तुम्हें नहीं फटकारूंगी, ना बुरा मानूंगी। अब तो खुश?"

मेरे घर के आंगन में हल्का सा अन्धेरा सा था। राहदारियों की कोई ख़ास आवाजाह नहीं थी। तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथोँ में रखते हुए दीपा के हाथों की हथेली दबाकर कहा, "भाभी, नहीं भाभी, मैं इतने से खुश नहीं हूँ। मुझे कुछ और भी कहना है। मैं आपसे एक गंभीर बात करना चाहता हूँ। आज ज्यादा समय नहीं है। पर फिर भी सुन लो। भाभी, मैं आज आपके सामने एक इकरार करना चाहता हूँ। अभी भैया नहीं है इसलिए मेरी हिम्मत हुई है। मैं उनके सामने बोल नहीं सकता। मैं मानता हूँ की जिसको दिलोजान से चाहते हैं उससे झूठ नहीं बोलते। इसीलिए मैंने तय किया था की मैं आज आपसे सच सच बोलूंगा चाहे आप मुझे इसके लिए बेशक थप्पड़ मारें या नफरत करने लगें।"

तरुण की बात सुनकर दीपा से रहा ना गया। उसने कहा, "तरुण, यूँ घुमा फिरा के मत बोलो। जो कहना है वह साफ़ साफ़ कहो।"

तरुण ने कहा, "बिलकुल भाभी जी। तो सच बात सुनिए। मुझे सब रोमियो के नाम से जानते हैं। बात भी सही है। मैंने अपने जीवन में कई शादीशुदा या कँवारी स्त्रियों को पटाया है और उनके साथ सेक्स किया है। मैंने भी एन्जॉय किया है और उनको भी एन्जॉय कराया है। भाभी गुस्सा होइए, चाहे मुझे डाँट दीजिये; पर यह सही है की आपके साथ भी शुरू शुरू में मेरे मन में सेक्स की ही बात थी। मैं आपके बदन को पाना चाहता था। मैं आपसे सेक्स करना चाहता था। आपके साथ सोना चाहता था।"

तरुण के मुंह से यह शब्द सुनकर दीपा चक्कर खा गयी। उसे यह सुन कर कुछ राहत हुई जब तरुण ने यह कहा की "मैं आपसे सेक्स करना चाहता था।" इसका मतलब तो यह हुआ की अब तरुण सेक्स करना चाहता नहीं है।

दीपा कुछ बोलना चाहती थी पर तरुण ने उसके होँठों पर अपनी उंगली रख दी और कहा, "भाभी, अभी कुछ भी मत बोलिये। मुझे बोलने दीजिये। पहले मेरी बात सुन लीजिये। मेरी और आपकी बात शुरू हुई थी दिल्लगी से। पर भाभीजी अब तो यह बात दिल्लगी नहीं रही। यह तो साली दिल की लगी बन गयी है। भाभी, मैं आपको चाहने लगा हूँ। मुझे गलत मत समझें। मैं आपको भाई से छीनना नहीं चाहता। मैं भाई को भी बहुत चाहता हूँ। पर आपकी सादगी, आपका भोलापन, आपकी मधुरता और आपका दिलसे प्यार मेरे जहन को छू गया है। मैं आपसे दिल्लगी नहीं करना चाहता हूँ। भाभी मैं आपको दिल से प्यार करना चाहता हूँ। मैं आप के साथ सिर्फ सेक्स करना ही नहीं चाहता हूँ, मैं सिर्फ आपके बदनको ही नहीं, आपके दिल को भी पाना चाहता हूँ।"

तरुण की बात सुन कर दीपा भौंचक्की सी रह गयी और तरुण को आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी।

तरुण ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "भाभीजी, उस दिन सुबह जब मैं मैगी लेकर आया था, तब जब आप तौलिया पहने आधी नंगी बाहर आयी थीं और मैंने जब आपको मेरी बाहों में लिया था तब क्या हुआ था? अगर मैं चाहता तो आपका तौलिया एक ही पल में खिंच डालता और आपको नंगी कर देता। अगर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं क्या मैं अपने आपको रोक पाता? क्या मैं आपको ऐसे ही, कुछ भी किये बगैर छोड़ पाता? भाभी, आप ने ही कहा है ना की साफ़ साफ़ बोलो? तो प्लीज बुरा मत मानिये, पर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं कितनी कोशिश करने पर भी अपने आपको रोक नहीं पाता, और आपसे सेक्स किये बगैर आपको छोड़ता नहीं।

भाभी, मैं जानता हूँ की अगर आप नंगी हो जातीं और मैं अपने कपडे निकाल देता तो फिर मैं कैसे भी करके आपको वश में कर लेता। भाभी, औरतों के नंगे बदन को कहाँ छू कर उनको कैसे उकसाना और सेक्स के लिए कैसे तैयार करना वह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। भाभी मैं आपके मन को भी अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे कुछ जद्दो जहद जरूर करनी पड़ती पर मैं जानता हूँ की अगर मैं उस समय चाहता तो मैं आपको सेक्स के लिए तैयार कर ही लेता। आप तैयार हो जातीं और मेरी आपसे सेक्स करने की इच्छा पूरी हो ही जाती।

मैं आपका तौलिया खिंच कर आपको नंगी करने वाला ही था। पर उसी समय अचानक मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ। मेरे दिमाग ने कहा, 'जिसको प्यार करते हैं उस पर जबरदस्ती नहीं करते'। जब मैंने देखा की आप शायद तब तक पुरे मन से मेरे साथ सेक्स करने के लिए तैयार नहीं थे तो मैं आपको जबरदस्ती सेक्स करने के लिए तैयार कर नहीं करना चाहता था। उस दिमागी धमाके से मैं लड़खड़ा गया। मैं आपके धक्के से नहीं लड़खड़ाया। आप का धक्का तो मेरे लिए हवा के भरे गुब्बारे के जैसा था। मैं मेरे दिमाग में जो धमाका हुआ था इसके कारण लड़खड़ाया था।"

दीपा के लिए तरुण की बात वैसे कोई नयी बात नहीं थी। दीपा अपने दिमाग में अच्छी तरह जानती थी की तरुण उसे शुरुआत से ही चोदना चाहता था। इसी लिए वह दीपा के पीछे हाथ धो के पड़ा हुआ था। उसमें मेरा भी हाथ था वह भी दीपा जानती थी। उस दिन तक किसी की दीपा को छेड़ने तक की हिम्मत नहीं हुई थी। पर तरुण ने दीपा को धड़ल्ले से यहां तक कह दिया की वह दीपा को चोदना चाहता था। दीपा बिना कुछ बोले हैरानगी से तरुण को बड़ी बड़ी खुली आँखों से देखती ही रही। पर तरुण अपनी बात को पूरी करना चाहता था।


तरुण ने दीपा का हाथ थामा और बोला, "भाभी जी मैं आप से सेक्स करना चाहता हूँ पर जबरदस्ती नहीं। मैं आपके मन को जित कर सेक्स करना चाहता हूँ। मैं आपको सेक्स करना नहीं, मैं आपको मुझसे सेक्स करवाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप खुद मुझसे सेक्स करवायें। भाभी जी आप ने जब बार बार पूछा की मेरे मन की बात क्या है? तो मैंने आप को बता दिया। क्या आपको मेरी बात का बुरा लगा? मैंने आपसे पहले ही माफ़ी मांग ली है। भाभी साफ़ साफ़ बताइये। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं है। आप मुझे दुत्कार देंगे और मेरी शक्ल देखना नहीं चाहेंगे तो मैं आपको कभी नजर भी नहीं आऊंगा। मैं फिर जिऊँ या मरुँ उसकी चिंता आप को करने की जरुरत नहीं है। पर आपसे दूर रहकर भी मैं आपकी दिलो जान से पूजा करूंगा। मैं आपकी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ और हमेशा करता रहूंगा, चाहे आप मुझे अपनाओ या दुत्कारो। बोलिये भाभी जी प्लीज।"

तरुण ने दीपा को साफ़ साफ़ बता दिया की तरुण दीपा को सिर्फ चोदना ही नहीं चाहता था, वह दीपा को अपनी बना कर चोदना चाहता था। वह दीपा का मन जित कर चोदना चाहता था। मतलब तरुण चाहता था की दीपा उससे प्रेम से चुदवाये।

तरुण की बातें सुन कर दीपा का दिमाग चक्कर खा रहा था। दीपा को समझ नहीं आया की वह तरुण की ऐसी बकवास सुन क्यों रही थी? क्या वह तरुण को एक मिनट में ही "शट अप" नहीं कर सकती थी? दीपा यह सोचने के लिए मजबूर हो गयी की कहीं ऐसा तो नहीं की उसके पति के (मेरे) बार बार कहने से दीपा के मन में ही शायद तरुण से चुदवाने की चाहत जाग उठी थी? कहीं वह खुद ही तो तरुण से चुदवाना नहीं चाह रही थी? तभी तो वह तरुण को इतनी छूट दे रही थी? वरना तरुण की क्या हिम्मत की वह दीपा से इस तरह बात कर सके?

दीपा अपने ही इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पायी। तरुण ने अब दीपा को साफ़ साफ़ कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था। अब इससे आगे क्या कहने की जरुरत थी? पर दीपाको तरुण को जवाब देना था। दीपा तरुण की बात सुनकर चुप तो नहीं रह सकती थी।

दीपा के पास तीन विकल्प थे। पहला यह की वह तरुण को एक जबरदस्त झटका देकर उसकी बात को एकदम खारिज कर उसकी ग़लतफ़हमी को दूर कर दे। दुसरा यह की वह तरुण की बात का समर्थन करे और उससे चुदवाने के लिए राजी हो जाए। और तीसरा यह की वह उसकी बात का कोई जवाब ना दे, तरुण की गलतफहमी को दूर भी ना करे और उसके सामने घुटने भी ना टेके। मतलब वह तरुण की बात को टाल दे। सब से आसान तरिका तो आखरी वाला ही था। कुछ सोचने के बाद दीपा ने यही बेहतर समझा की फिलहाल तरुण की बात को ज्यादा तूल ना दिया जाए और फिलहाल उसे गोल गोल जवाब दे कर टाल दिया जाए। पर अब लुकाछिपी का भी क्या फायदा जब तरुण ने ही कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था?

दीपा ने भी तरुण की हथेली अपने हाथोँ से दबाते हुए कहा, "तरुण, यह क्या दिल्लगी और दिल की लगी की बाल की खाल निकाल रहे हो? ठीक है बाबा तुम क्या चाहते हो यह तुमने कह दिया वह मैंने सूना भी और मैं समझ भी गयी। तुम भी ना सीरियस बातें छोडो यार। आज होली है। तुम ही कह रहे थे ना, की बुरा ना मानो होली है? तुम्हारे भाई मुझे कह रहे थे की आज की रात चलो एन्जॉय करें। तुम्हारे भाई कह रहे थे की वह और तुम आज सेक्स की बातें करना चाहते हो, और वह चाहते हैं की मैं उसमें रोड़ा ना अटकाऊँ। आप मर्दों को तो सेक्स की बातें किये बिना मजा ही नहीं आता। तो ठीक है भाई, चलो, आज की रात तुम दोनों भाई खूब करो सेक्स की बातें। मैं बुरा नहीं मानूंगी। मैं झेल लुंगी। मैं तुम लोगों को नहीं रोकूंगी। खुश? आज की रात कोई सीरियस बात नहीं। ओके?"

जब तरुण ने देखा की दीपा को तरुण की बात सुन कर भी कोई तगड़ा झटका नहीं लगा और उस बात को दीपा ने सुनी अनसुनी कर दी, तो उसका हौसला काफी बढ़ गया।

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#15
Heart 
तरुण ने कहा, "भाभी, आप हमें रोकोगे नहीं ऐसा कहने से काम नहीं चलेगा। आप हमारा साथ भी दोगे ना? भाभी यह मत कहो की आप हमें झेल लोगे? बोलो आप हमारे साथ एन्जॉय भी करोगे ना? प्लीज?"


दीपा ने तरुण से आँखें मिलाकर हिचकिचाते हुए कहा, "भाई यह मुश्किल है। आप दोनों मर्दों का कोई भरोसा नहीं; मौक़ा मिलते ही कहाँ से कहाँ पहुँच जाओ। पर चलो देखेंगे। मैं साथ देने की कोशिश करुँगी। आगे आगे देखिये होता है क्या?" फिर घर की और देख कर दीपा बोली, "तुम्हारे भाई फ़ोन पर लग गए हैं। मैंने उनको उनकी बहन के साथ बात करते हुए सूना। फिर तो उन को काफी कुछ समय लगेगा। चलो कार में बैठ कर बात करते हैं।" ऐसा कह कर अपनी लहराती हुई साड़ी का एक छोर जमीन ना छुए इसलिए अपनी एक बाँह में उठाकर दूसरे हाथ से तरुण का हाथ पकड़ कर कार की और चल पड़ी। दीपा के चेहरे के भाव देख कर तरुण को काफी उम्मीद जगी की भाभी कबुल करे या ना करे पर कहीं ना कहीं तरुण ने दीपा भाभी के मन में सेक्स करने लिए उत्तेजना पैदा कर दी थी। तरुण की चाल काम कर रही थी। मछली जाल में फँसने वाली थी।

तरुण ने कार घर के सामने रास्ते के दुसरी और खड़ी की थी। उस तरफ एक बंजर सा सूना पार्क था। तरुण ने दीपा का दिया हुआ हाथ कस कर थामा और कार के दुसरी और इशारा करते हुए कहा, "भाभी, जब भाई को अभी कुछ समय लगना ही है तो मैं आप से एक और जरुरी बात करना चाहता हूँ। आइये ना उधर चलते हैं। कार के बाहर खुली हवा में कुछ देर बात करते हैं।"

यह कहते हुए की तरुण दीपा को कार की दूसरी और ले गया। शायद वह नहीं चाहता था की मैं जब घर से निकलूं तो एकदम उनको देख पाऊं। दीपा थोड़ी देर के लिए तो असमंजस में रही पर तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ उसे हलके से खींचते हुए ले चला तो वह भी चल दी।

कार के दूसरी और जा कर तरुण ने दीपा से कहा, "भाभीजी, मैं बिलकुल सच कहता हूँ की आज आपको इस परिवेश में देख कर पता नहीं मेरे अंदर क्या उथलपुथल हो रही है। भाभी, आप साक्षात कामदेव की पत्नी रति या ऋषि मुनियों का दिल चुराने वाली मेनका लग रही हो। मैं यदि यह कहूं की आप सेक्सी हो तो यह सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। भाभी अंदर से मैं बहुत दुखी हूँ और पता नहीं आप ना मिली होती तो मैं शायद ख़ुदकुशी तक की बात सोचता रहता था। मुझे आपको अपनी दुःख भरी दास्ताँ सुनाकर आज के इस होली के रोमांटिक रूमानी माहौल को खराब नहीं करना।" आखरी शब्द बोलते हुए तरुण कुछ गंभीर हो गया। दीपा को तरुण के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था।

दीपा यह सोच कर परेशान हो रही थी की तरुण बार बार यह क्या अपनी दुःख भरी दास्तान के बारे में कह रहा था? जरूर कोई सीरियस बात थी, क्यूंकि तरुण ने यहां तक कह दिया था की वह खदकुशी करने तक की बात सोच रहा था। दीपा का मन किया की वह तरुण को पूछे।

पर तरुण था की अपनी बात पूरी करने पर तुला हुआ था। तरुण ने दीपा की और देख कर कुछ भावावेश में आकर कहा, " मुझे आज के इस होली के रोमांटिक रूमानी माहौल को मेरी परेशानी के चलते हुए खराब नहीं करना था। शायद इसी लिए उपरवाले के आशीर्वाद सामान आप आज की रात मेरे सामने कामिनी, रम्भा और मेनका जैसे इस तरह सेक्सी रूप सजधज कर आयी हो। आपको देख कर मैं अपने वह गहरे दुःख को भूल जाता हूँ। मुझे आप पर इतना प्यार उमड़ रहा है जिसको में बयाँ नहीं कर सकता। भाभी, भाई तो आपको रोज प्यार करते हैं। मुझे पता है आज रात को भी वह आपको ऐसे देख कर अपने आपको रोक नहीं पाएंगे कर मेरे देखते हुए भी आपको प्यार करेंगे, और मैं अपना मन मसोसता रह जाऊंगा। पर इस वक्त जब वह व्यस्त हैं तो बस पांच मिनट आपको प्यार करना चाहता हूँ। प्लीज थोड़ा मुझे भी प्यार करने दो ना? भाई के आने के बाद तो मुझे पता है आप मुझे हाथ भी नहीं लगाने दोगे। यही समझ लो की मैंने आपको थोड़ा और छेड़ दिया।"

तरुण की बात सुनकर दीपा हँस पड़ी और बोली, "यार तरुण तुम भी कमाल हो! तुमने आज दिन में मुझे इतना छेड़ा है, मेरे साथ इतना सब कुछ किया है फिर भी तुम्हारा पैट नहीं भरा? तुम्हारे भाई ने मुझे पहले से ही आगाह कर दिया है की आज की रात तुम लोग मुझे छेड़ोगे और मुझे उसे झेलना पडेगा। तुम्हें मुझे छेड़ने के लिए पूरी रात पड़ी है। यार तुम तो खुद ही अपने आप को बन्दर कहते हो। इतना कुछ करते ही रहते हो और माफ़ी भी मांगते रहते हो? बार बार कहते हो की मैं माफ़ कर दूँ? अगर मैं तुम्हें हाथ नहीं लगाने दूंगी तो तुम रुकोगे क्या? तुमने हर जगह तो हाथ लगा दिया है। अब मुझे और कैसे छेड़ना चाहते हो? कमाल है! अब मुझे छेड़ने के लिए बचा क्या है?"

तरुण ने दीपा के कान के पास अपना मुंह ला कर एकदम धीमे से कहा, "भाभी अभी बहुत कुछ बचा है।"

दीपा ने तरुण की बात सुन कर पलट कर कुछ नकली गुस्सा दिखाते हुए पूछा, "क्या कहा तरुण तुमने?"

तब तरुण ने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, "कुछ नहीं भाभी मैं वैसे ही कुछ बड़बड़ा रहा था। भाभी आओ ना? बस पांच मिनट?" यह कह कर तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ उसको लगभग खींचते हुए कार के दूसरी तरफ ड्राइवर सीट के दरवाजे के साथ सटा कर खड़ा किया और कहा, "भाभी पहले आप आराम से यहाँ खड़े रहो और मेरी बात सुनो।"

दीपा को तरुण क्या कहना चाहता था और क्या कर रहा था यह समझ नहीं आया। पर वह इतना जानती थी की तरुण कुछ ना कुछ नयी ही खुर्राफत या शरारत जरूर करेगा। वह क्या कहेगा और क्या करेगा वह जानने की जिज्ञासा मेरी कामुक पत्नी रोक नहीं पायी और तरुण ने जैसे खड़ा किया वैसे ही दीपा अपने कूल्हे और पीठ कार के दरवाजे से टिका कर अपने बदन को बैलेंस करने के लिए अपने दोनों पाँव थोड़े से टेढ़े कर और फैला कर कार से थोड़े से दूर रख कर कार के दरवाजे के सहारे खड़ी हो गयी।

जैसे ही दीपा उस कामुक पोज़ में खड़ी हुई की फ़ौरन तरुण ने फुर्ती से दीपा को कोई मौक़ा ना देते हुए अपनी दोनों टाँगों को दीपा के सामने दीपा की साडी को थोड़ा सा घुटनों तक ऊपर उठाकर फैली हुई टाँगों के बिच में घुसा दिया और अपने बदन को दीपा के बदन से एकदम सटा दिया। तरुण ने दीपा के बदन को अपने बदन से कार के दरवाजे पर दबा दिया और अपने पेंडू से दीपा के टाँगों के बिच में जैसे दीपा को खड़े हुए चोद रहा हो ऐसे धक्के मारने लगा। रास्ते पर किसी भी आने जाने वाले को उस अँधेरे में कपडे तो साफ़ दिखेंगे नहीं। शायद दीपा की साडी उसकी टाँगों के थोड़ी सी ऊपर चढ़ी हुई जरूर दिखेगी। उस वक्त तरुण की हरकत देख कर कोई भी आदमी यह सोच सकता था की तरुण जैसे दीपा को खड़े हुए ही चोद रहा हो।

दीपा तरुण की यह हरकत हैरानगी से देखती ही रह गयी। दीपा ने पूछा, "तरुण तुम यह क्या कर रहे हो?"

पर दीपा यह ठीक से बोल पाए उसके पहले तरुण ने दीपा के बदन से अपना बदन कस कर दीपा को कार के दरवाजे पर दबा दिया। तरुण ने दीपा के सर को अपने दोनों हाँथों में पकड़ कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ दबा दिए और अपनी जीभ से दीपा के होँठ चूमने और चूसने लगा।

फिर तरुण धीरे से बोला, "भाभीजी, पता नहीं मैं आज होली की इस रात को आप के साथ जो करना चाहता हूँ वह आप मुझे करने देंगे की नहीं। पर कम से कम उस का दिखावा तो करने दो ना, प्लीज?"

यह कह कर तरुण ने अपने दोनों हाथ फैला कर दीपा के कूल्हों को जकड़ा और उन्हें अपनी और दबा कर खींचते हुए दीपा की कोख से अपना पेंडू भिड़ा कर ऐसे करने लगा जैसे वह अपना लण्ड दीपा की चूत में घुसेड़ने की कोशिश कर रहा हो।

दीपा तरुण के ऐसा करने से हड़बड़ाती हुई बोली, "तरुण, तुम्हें कुछ समझ है या नहीं? यार कुछ करने के लिए तुम सही जगह या समय तो देखो। यह कोई जगह है ऐसा कुछ करने की? ऐसे खुले में यह तुम क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा यार?"

तरुण को तब पूरा यकीन हो गया की दीपा भाभी उससे चुदवाने के लिए अब लगभग मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर रही थी। इसी लिए तो उसने तरुण को डाँटा नहीं और ना ही कोई जबरदस्त गुस्सा किया। बल्कि वह तरुण को यह समझाने लगी की ऐसा करने के लिए वह जगह ठीक नहीं थी। मतलब अगर कोई सही जगह होती तो तरुण जो कर रहा था वह ठीक था।

पर तरुण कहा रुकने वाला था? उसने कहा, "भाभी, तुम्हारी बात सही है। ऐसा करने के लिए यह जगह ठीक नहीं है। भाभी मैं ऐसा काम करने के लिए आपको सही जगह पर जरूर ले जाऊंगा। पर अभी ऊपर ऊपर से तो कर लेने दो ना?

दीपा हैरानगी से तरुण के इस उद्दंड कार्यकलाप देखती रही। तरुण ने अपने होँठ से दीपा को उसके होँठ खोलने को मजबूर किया और फिर दीपा के कभी ऊपर के तो कभी निचे के होँठ चूसने लगा। तरुण के इस अचानक आक्रमण या हरकत से दीपा स्तंभित सी रह गयी। उसने आँखें घुमा कर जब घर की और देखने की कोशिश की। यह कोशिश क्या दीपा ने इस उम्मीद में की थी की काश मैं वहाँ जल्द ही पहुंचूं और दीपा को उस त्रास से बचाऊं, या फिर इस डर से की कहीं मैं घर से बाहर निकल कर उन दोनों की उस हरकत को देख ना लूँ? यह दीपा भी समझ नहीं पायी।

पर तरुण ने एक पल के लिए अपने होँठ हटा कर दीपा से कहा, "भाभी, चिंता मत करो। मैं देख रहा हूँ। भाई अभी भी फ़ोन पर ही लगे हुए हैं। अभी उनको निकलने में पंद्रह मिनट से भी ज्यादा लगेंगे। भाभी अभी जब तक भाई आ नहीं जाते तब तक आप मुझे मत रोकिये। प्लीज मुझे आपसे प्यार करने दीजिये। देखिये प्लीज रिलैक्स हो जाइये। कुछ ही मिनटों के लिए। बादमें पता नहीं मुझे आपको प्यार करने का मौका मिलेगा या नहीं?"

ऐसा कह कर तरुण ने फिर अपने होँठ दीपा के होंठों पर कस कर भींच दिए और पुरे जोश से उसे चूमने और चूसने लगा और साथ ही साथ दीपा को चोदने का छद्म प्रयास भी करता रहा। वह अपने लण्ड को कपड़ों के माध्यम से दीपा की चूत में घुसा कर दीपा को चोदने का प्रयास जैसे कर रहा था। दीपा और तो कुछ कर नहीं सकती थी, जब सर ओखल में रख ही दिया है तो मुसल से क्या डरना? पांच दस मिनट का तो सवाल था।

दीपा यह जानती थी की अगर तरुण अपनी जात पर उतर आये तो जबरदस्ती दीपा की साडी पूरी ऊपर उठा कर, उसकी पैंटी नीची कर और अपनी ज़िप खोल कर अपना लण्ड बाहर निकाल कर दीपा की गीली हुई चूत में अपना लण्ड घुसा कर दीपा को खड़े खड़े चोद भी सकता था। दीपा उसका कुछ भी नहीं कर पाती। दीपा को वहीँ खड़े खड़े उससे कुछ मिनटों के लिए ही सही, पर तरुण से चुदवाना ही पड़ता। दीपा उस वक्त बाहर रास्ते में खड़ी चिल्ला भी तो नहीं सकती थी। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया यह दीपा के लिए एक राहत की बात थी। तरुण का चूमना कोई नयी बात तो थी नहीं तो दीपा ने भी मजबूरी में अपना मुंह खोल कर तरुण को चूमने देना ही ठीक समझा। दीपा को यह भी महसूस हुआ की तरुण की बीबी टीना के पिछले काफी दिन से तरुण के साथ न होने के कारण तरुण का हाल बुरा था। वह सेक्स के लिए तड़प रहा था।

दीपा को तरुण के हाल पर तरस आ गया। अगर वह कुछ मिनटों के लिए दीपा के बदन को कस कर दबा कर और अगर कपड़ों के ऊपर से धक्के मार कर अपनी सेक्स की भूख कुछ हद तक शांत कर सकता है तो दीपा ने सोचा की तरुण को रोकना ठीक नहीं। साथ साथ में जिस तरह तरुण दीपा को चुम रहा था और दीपा के होँठों को चाट रहा था और बार बार दीपा की जीभ को चूस रहा था, दीपा से रहा नहीं गया और बरबस ही उसने भी अपनी जीभ तरुण के मुंह में डाली और आवेश में दीपा भी तरुण का सर पकड़ कर उसे चूमने लगी।

मेरी बीबी की इस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रया देख कर तरुण की आग और भड़क उठी। तरुण ने दीपा से थोड़ा हट कर पूछा, "भाभी क्या आप को याद है आपने कभी मुझे एक वचन दिया था?"

तरुण की बात सुन कर दीपा की जान हथेली में आ गयी। दीपा ने कुछ झिझकते हुए कहा, "हाँ याद है। उस सुबह बाथरूम में जब तुम मुझे बहोत परेशान कर रहे थे तब मैंने मजबूरी में तुम्हें वचन दिया था।"

तरुण ने कहा, "भाभी यह गलत बात है। उस टाइम पर तो आपने वचन दे दिया और अब आप कह रहे हो की वह आपने मज़बूरी में दिया था। आपने वचन तो दिया था ना, की मैं जो चाहूँगा या कहूंगा वह आप करोगे?"

दीपा ने घबड़ाते हुए पूछा, "हाँ कहा था। तो तुम्हें क्या चाहिए? तुम क्या करना चाहते हो?"

तरुण ने कहा, "पर भाभी, पहले यह बताओ की क्या आप अपना दिया हुआ वचन पूरा तो करोगे ना?"

दीपा ने कुछ संरक्षात्मक आवाज से पूछा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ। पर पहले यह तो बाताओ ना की तुम्हें क्या चाहिए?"

तरुण ने पट से जवाब देते हुए कहा, "भाभी, क्या आप समझ नहीं गए की मुझे क्या चाहिए? भाभी आज की रात हमारी रात है। आज की रात मैं आपको पूरी तरह से पाना चाहता हूँ। आज की रात मैं आपका तन और मन अपना बनाना चाहता हूँ। आज की रात आप मुझे मेरे मन की आस पूरी करने दीजियेगा, मुझे रोकियेगा नहीं। मैं चाहता हूँ की आज की रात आप प्लीज अपनी मर्जी से ख़ुशी से भाई के साथ साथ मुझ से भी चुदवाइये। भाभी आज अपना वचन पूरा कीजिये की आप मुझे कुछ भी करने से रोकोगे नहीं। बोलिये आप अपना वचन पूरा करोगे या नहीं? या यह कह कर मुकर जाओगे की वह वचन मज़बूरी में दिया था।"

तरुण को पता था की दीपा की यह कमजोरी थी की वह बार बार कहती थी की वह कभी अपने दिए हुए वचन से मुकरती नहीं थी। दीपा ने तरुण की और असहाय नजरों से देखते हुए पूछा, "तरुण, मैंने यह तो नहीं कहा की मैं दिए हुए वचन से मुकर जाउंगी? मैं जानती हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो। पर यह मेरे लिए बहोत ही मुश्किल है। बात सिर्फ मेरी होती तो शायद मैं मान भी जाती। पर देखो यहां बात सिर्फ मेरी नहीं है। मैं शादीशुदा हूँ। मेरे साथ मेरे पति भी हैं। उनके पीछे मैं उनको धोखा नहीं दे सकती। मैं अगर वचन निभाऊंगी तो उनका क्या?"

तरुण समझ गया की अब दीपा उसके चंगुल में फँस चुकी है। उसने कहा, "भाभी आप की बात सौ फीसदी सही है। मैं भी नहीं चाहता की आप भाई को धोखा दो। पर अगर भाई को भी कोई आपत्ति ना हो तो? अगर भाई खुद ही आपको इजाजत दें तो? फिर तो आप मान जाएंगे ना? आप ने ही तो अभी अभी कहा, की बात अगर आप पर आये तो आप मान जाओगे। बोलो भाभी, जवाब दो ना? भाभी आज की रात हम सब भाई के भी साथ मिल कर एम. एम. एफ़. थ्रीसम का आनंद लेते हैं।"

दीपा ने तरुण की और देख कर पूछा, "तरुण, यह क्या नया तुक्का तुमने निकाला है, यह थ्रीसम और एम.एम.ऍफ़ का? यह क्या है भाई?"

तरुण ने कहा, "भाभी मैं प्रॉमिस करता हूँ की यह सब मैं आपको और भाई को थोड़ी देर में ही कार में जरूर बताऊंगा। अभी तो आप बस मुझे थोड़ा आपको छेड़ने दीजिये। प्लीज?"

अब दीपा के पास तरुण की बात का कोई जवाब नहीं था। दीपा समझ गयी की वह फँस चुकी थी। वह चुपचाप खड़ी तरुण की और मायूस सी देखती रही। दीपा की शक्ल और हालात देख कर ऐसा लगता था जैसे एक बकरी अपनी कतल होने वाली ही है यह जानते हुए अपने कातिल के सामने लाचार खड़ी हो।

तरुण ने कहा, "भाभीजी, बोलिये आप चुप क्यों हैं? क्या आप अपना वचन निभाएंगीं, या मुकर जायेंगीं?"

दीपा एकदम सिमटी हुई दयनीय भाव से तरुण की और देख कर बोली, "तरुण तुमने यह ठीक नहीं किया। तुमने मुझे फाँस दिया। मैं क्या करूँ? यह बात तो सही है की मैंने वचन तो मज़बूरी में ही दिया था। पर मैं मुकर तो सकती नहीं, वचन दिया है तो निभाना तो पडेगा ही। अगर तुम्हारे भाई को कोई प्रॉब्लम नहीं हो तो फिर मैं तो फँस ही गयी ना?"

तरुण ने कहा, "भाभी, मैं आपको और कटघरे में खड़ा कर परेशान नहीं करूंगा। भाई को कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं जो भी करता हूँ भाई को पूछ कर करता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप अभी बस थोड़ी देर के लिए चुपचाप खड़े रहिये प्लीज? भाभी, आप घबड़ाइये नहीं। देखिये, आप भी जानती हैं की अगर मैं चाहता तो आप को सिर्फ यहां ही नहीं, कई जगह चोद सकता था। आप कुछ नहीं कर पाते। पर मैं आपको आपकी मर्जी के बगैर चोदना नहीं चाहता था और ना कभी आप की मर्जी के बगैर चोदुँगा। अभी तो मैं बस आपके साथ सिर्फ थोड़ी छेड़खानी, थोड़ी शरारत करना चाहता हूँ। आपने ही आज रात मुझे शरारत करने के लिए इजाजत दे दी है तो कुछ देर मुझे भी तो आपके बदन से मेरा बदन रगड़ लेने दीजिये ना? भाई के आने के बाद तो आप बस उनका ही ध्यान रखेंगी ना? फिर तो आप दोनों ही एक दूसरे के साथ चालू हो जाओगे। आप फिर मुझे कहाँ पूछेंगी?"

अपने ही वचन में पूरी तरह फँसी हुई दीपा बेचारी चुपचाप खड़ी रही और इंतजार कर रही थी की अब आगे तरुण क्या गुल खिलाता है? तरुण ने दीपा को कस कर पकड़ा और उसे चूमने लग गया। दीपा को समझ नहीं आया की वह क्या करे? तरुण ने उसे बड़ी ही चालाकी से अपने चंगुल में फाँस लिया था। वह ना तो हिल सकती थी ना तो चिल्ला सकती थी क्यूंकि चिल्लाने से उसकी चीख सुन कर कोई घर से बाहर निकल कर उनकी यह हरकत देख सकता था। और बदनामी होगी तो सबकी होगी।

दीपा में उतनी ताकत थी नहीं की तरुण को वह धक्का मार कर हटा सके। दूसरे तरुण ने दीपा को स्पष्ट रूप से कह दिया था की वह दीपा को चोदेगा और दीपा ने भी "वचन तो निभाना ही पडेगा" यह कह कर तरुण को साफ़ साफ़ इशारा कर दिया था की वह तरुण से चुदवायेगी। तो अब तरुण जो करेगा उसे झेलना ही पडेगा यह सोच कर लाचारी में दीपा वहीँ खड़ी रही और आगे तरुण क्या करेगा उसका डर के मारे इंतजार करने लगी। दीपा ने यह भी महसूस किया की तरुण का लण्ड उस की पतलून में एकदम खड़ा हो गया था और तरुण उस खड़े लण्ड से दीपा की टाँगों के बिच में जैसे दीपा की चूत को चोद रहा हो ऐसे धक्के मार रहा था।

दीपा यह सोच कर परेशान हो रही थी की तरुण का लण्ड उसकी पतलून और उसके अंडरवियर में बंद था। दीपा ने भी साडी, पेटीकोट और पैंटी पहनी थी। फिर भी दीपा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे तरुण और दीपा ने कोई भी कपडे नहीं पहने हों और तरुण दीपा की चूत में उसका लण्ड डाल रहा हो। क्या तरुण का लण्ड इतना लंबा और फौलादी सा था की इतने सारे कपड़ों के बिच में होते हुए भी दीपा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे की तरुण का लण्ड उसकी की चूत में घुस रहा था?

तरुण के चुम्बन करने से और चुदाई वाली एक्टिंग से दीपा की उत्तेजना भी बढ़ गयी थी। दीपा की चूत गीली हो रही थी। दीपा तरुण के बदन के दबाव के कारण हिल भी नहीं पा रही थी। उनकी बातों से यह तय हो ही चुका था की मौक़ा मिलने पर तरुण दीपा को उसी रात चोदना चाहता था और दीपा उसे रोक नहीं पाएगी। दीपा को तरुण से चुदवाना ही पडेगा।

दीपा ने सोचा की उसने जब तरुण को यह इशारा कर ही दिया था की वह तरुण से चुदवायेगी, तब फिर अगर तरुण उसे कपडे पहने हुए ऊपर से चोदने की एक्टिंग कर रहा था तो अगर ऐसा करने से उसकी सेक्स की भूख कुछ कम होती है तो फिर उसे रोकने से क्या फ़ायदा?

तरुण ने कुछ पल के लिए अपने होँठ दीपा के होँठों से अलग किये और बोला, "भाभीजी, मुझे माफ़ कर देना पर आज आप इतनी कातिलाना लग रही को मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ। मैं कभी से आपके होंठों के रस को चूसने के लिए तड़प रहा था। भाई के आने के बाद मुझे यह मौक़ा कहाँ मिलेगा? फिर तो आप दोनों ही आपस में चिपक जाओगे, मैं तो सिर्फ देखता ही रह जाऊंगा? बस दो मिनट के लिए तो मुझे चूमने दीजिये और कुछ देर अपनी मन मानी करने दीजिये ना प्लीज?"

दीपा और कर भी क्या सकती थी? दीपा ने अपने होँठ खोल दिए और तरुण को उसके होँठ चूसने और चूमने का मौक़ा दे दिया। दीपा असहाय हो कर वहाँ खड़ी तरुण को चूमने लगी और तरुण से कपडे पहने हुए ही कपड़ों के उपर से ही जैसे तरुण उसे चोद रहा हो ऐसे धक्के खाती रही और धक्कों से हिलती भी रही। तरुण भी मौके का फायदा उठा कर दीपा को कपड़ों के ऊपर से ही चोदने में लगा था। दीपा ने तरुण को रोकना चाहा पर जैसे वह तरुण के साथ चूमने में शामिल हुई वैसे धीरे धीरे उसका अवरोध कम होने लगा। फिर दीपा भी यह सोच कर तरुण के बदन से चिपक कर लिपट गयी और तरुण की कमर पर अपने दोनों हाथ लपेट कर तरुण के पेंडू से मारते हुए धक्कों को बिना अवरोध किये हुए जैसे दीपा खुद चुदवा रही हो ऐसे दिखावा करने लगी की अगर चंद मिनटों के लिए तरुण को ऐसे करने से ही सकून मिलता है तो उसे एन्जॉय कर लेने दो।

दीपा ने तरुण के कानों में कहा, "तरुण देखो तुम कहते हो तो सिर्फ पांच मिनट के लिए ठीक है, चलो जो करना है कर लो। मैं तुम्हारा साथ दे देती हूँ। पर देखो प्लीज, कपड़ों को मत खोलना। कपड़े उतरने के बाद में उनको खुले में पहनना बहुत मुश्किल है। प्लीज तुम्हारे भाई आ जायें उससे पहले यह सब ड्रामा बंद करोगे। ओके?" और चुपचाप उसे चूमने लगी।

तरुण कहाँ रुकने वाला था? जब उसे लगा की अभी मुझे निकलने में थोड़ी देर लग सकती है तो तरुण ने दीपा की छाती पर हाथ फिरा कर दीपा के मस्त स्तनोँ को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलने लगा। ऐसा करने के लिए उसे दीपा से थोड़ा अलग होना पड़ा। दीपा का ब्लाउज भी तो ऐसा था की दीपा के भरे हुए अनार जैसे स्तनों को उस छोटी सी पट्टी में बांधे रखना नामुमकिन था। तरुण के अंदर हाथ डाल कर ब्लाउज को ऊपर सरका ने से दीपा की गुम्बज तरुण के हाथों में आ गए। तरुण ने उन्हें बेरहमी से मसलना शुरू किया। दीपा की चूत ना सिर्फ गीली हुई थी। तरुण के लण्ड के बार बार दीपा की चूत को कपड़ों के ऊपर से ही ठोकने के कारण वह मचल रही थी।


दीपा इतनी गरम हो रही थी की उसके मुंह से बरबस एकदम धीमी आवाज में कामुकता भरी कराहटें "आह........ ओह........ उफ़....... हाय.... अरे तरुण, क्या कर रहे हो? रुक जाओ ना, प्लीज? कोई देख लेगा" निकल ने लगीं। तरुण की हरकतों से वह इतनी गर्म हो चुकी थी की दीपा को डर लगा की अगर जल्दी ही तरुण रुका नहीं तो दीपा कहीं खुद ही अपना घाघरा ऊपर कर तरुण से चुदवाने के लिए कहने को मजबूर ना हो जाए।

ऐसे ही कुछ देर तक तरुण दीपा के बूब्स को कभी ब्लाउज के ऊपर से तो कभी ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मसलता रहा और दीपा की निप्पलोँ को उँगलियों में पिचकता रहा। साथ साथ में दीपा को कपड़ों के ऊपर से चोदता रहा। दीपा अपने आप को रोक नहीं पा रही थी। दीपा भी काम वासना की ज्वाला में जल रही थी। दीपा भी खुद तरुण की कमर पकड़ कर जैसे उससे चुदवा रही हो ऐसे कर रही थी और उसके कारण उसका मन भी शायद तरुण का लण्ड लेने के लिए व्याकुल हो रहा था। एक तरफ वह तरुण को रोकना चाहती थी तो दूसरी और उसके मुंह से बरबस ही दबी हुई आवाज में कामुकता से उत्तेजित आहटें निकल रहीं थीं जो तरुण को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं।

कुछ ही देर में जब दीपा ने देखा की उसे तरुण को रोकना ही होगा, वरना गजब हो जाएगा तब मौक़ा देख कर दीपा तरुण से अलग खड़ी हो गयी और तरुण को लाल आँखें दिखा कर बोली, "यह क्या है तरुण? तुम्हें तो ज़रा भी ढील नहीं देनी चाहिए। तुम तो उंगली देती हूँ तो बाँह ही पकड़ लेते हो। कुछ हँसी मजाक छेड़खानी ठीक है, पर तुम तो दानापानी लेकर चालु ही हो जाते हो? अभी तो रात शुरू भी नहीं हुई की तुम तो चालु हो गए?"

तरुण ने कहा, "ठीक है भाभी माफ़ कर देना। अगर आप कहते हो तो ठीक है। शुरुआत के लिए अभी इतना ही काफी है। ओके? भाभी क्या करूँ? आपको देख कर मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा। सॉरी भाभी।"

फिर तरुण ने दीपा के गालों पर हलके से उंगलिया फेरते हुए कहा, "भाभी आप नाराज तो नहीं हो ना? देखो भाभी आज की रात मेरी हरकतों का बुरा मत मानना। प्लीज?"

दीपा ने तरुण का हाथ अपने गालों से हटाते हुए कुछ मज़बूरी में मुस्काते हुए कहा, "चलो ठीक है। तुम्हारे भाई आने वाले हैं। अब चुपचाप चलो और कोई शरारत मत करना। ओके?"

तरुण ने कहा, "भाभी इतने से ही तंग आ गए? यह तो शुरुआत है। शरारत तो अभी बाकी है। आज की रात तो मजे करने के लिए ही है ना?"

दीपा ने चेहरे पर खिसिआनि मुस्कान लाते हुए कहा, "पता नहीं, बाबा और कितनी शरारत करोगे तुम? ठीक है बाबा, रात तो अभी बाकी है ना और शरारत करने के लिए? अभी तो चलो यार।"

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#16
Heart 
तरुण ने बड़े ही नाटकीय ढंग से दीपा के पाँव छुए जैसे वह दीपा को प्रणाम कर रहा हो। दीपा यह देख कर भागी और कुछ बोले बिना तरुण की कार मैं जा बैठी। मैं मेरे पिता और माताजी को प्रणाम कर और मुन्ना को प्यार करके बाहर आया और आगे की सीट में कार की खिड़की की तरफ दीपा के पास बैठ गया। तरुण अपनी पुरानी एम्बेसडर में आया था। उस कार में आगे लम्बी सीट थी जिसमें तिन लोग बैठ सकते थे। तरुण कार के बाहर खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था। जैसे ही मैं गाडी मैं बैठा, तरुण भी भागता हुआ आया और ड्राइवर सीट पर बैठ गया। दीपा की एक तरफ मैं बैठा था और दूसरी तरफ तरुण ड्राइवर सीट में बैठा था और दीपा बिच में।


मैंने दीपा को देखा की मेरी पत्नी हररोज की तरह चुलबुली नहीं लग रही थी। वह सहमी हुई थी और उसके गाल लाल नजर आ रहे थे। शायद उसके कपडे भी थोड़े इधर उधर हुए मुझे लगे। मुझे शक हुआ की कहीं मेरी गैर हाजरी में तरुण ने दीपा से कोई और शरारत भरी हरकत तो नहीं की? उस समय मुझे तरुण और दीपा के बिच घर के बाहर रास्ते पर पार्क के पास कार के सहारे हुए कार्यकलाप के बारे में कुछ भी पता नहीं था। वह सारी बात मेरी बीबी ने मुझे काफी समय के बाद बतायी थी। खैर, जैसे ही तरुण ने कार स्टार्ट की, उसके फ़ोन की घंटी बजी। तरुण ने गाडी रोड के साइड में रोकी और थोड़े समय बात करता रहा। जब बात ख़त्म हुई तो दीपा ने पूछा, "किस से बात कर रहे थे तरुण?"

तरुण ने दीपा की तरफ देखा और थोड़ा सहम कर बोला, "यह रमेश का फ़ोन था। बात थोड़ी ऐसी है की आपको शायद पसंद ना आये। थोड़ी सेक्सुअल सम्बन्ध वाली बात है।"

तब मैंने दीपा के ऊपर से तरुण के कंधे पर हाथ रखा और बोला, "देखो तरुण, हम सब वयस्क हैं. दीपा कोई छोटी बच्ची नहीं। वह एक बच्चे की माँ है। आज होली का दिन है, थोड़ी बहुत सेक्सुअल बातें तो वह भी सुन सकती है। जब दीपा ने पूछ ही लिया है तो बता दो। ठीक है ना दीपा?" मैंने दीपा के सर पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा।

दीपा ने तरुण की तरफ देखा और सर हिलाते हुए हाँ का इशारा किया।

तरुण ने कहा, "रमेश मेरा पुराना दोस्त है। उसकी पोस्टिंग जब जोधपुर में हुई थी तब उसका एक पुराना कॉलेज समय का मित्र भी वहाँ ही रहता था। वह मित्रकी पत्नी भी कॉलेज के समय में रमेश की दोस्त थी। उस समय रमेश और उसकी होनी वाली पत्नी के बिच में प्रेम संदेशों का आदान प्रदान भी रमेश करता था। यूँ कहिये की उनकी शादी ही रमेश के कारण हो पायी थी। रमेश के दोस्त की पत्नी को रमेश के प्रति थोड़ा आकर्षण तो था पर आखिर में उसने रमेश के मित्र के साथ ही शादी करनेका फैसला लिया।"

मैंने देखा की तरुण अपनी कार को मुख्य मार्ग से हटाकर शहर के बाहरी वाले रास्ते से ले जा रहा था। रास्ते में पूरा अँधेरा था। वह कार को एकदम धीरे धीरे और घुमा फिरा कर चला रह था। मैंने तरुण से पूछा क्या बात है। तरुण ने कहा उसने रात का खाना नहीं खाया था, और वह कहीं न कहीं खाने के लिए कोई ढ़ाबे पर रुकना चाहता था।

यह तो मैं बता ही चूका हूँ की मेरी सुन्दर पत्नी दीपा तरुण और मेरे बिच में सटके बैठी हुयी थी। तरुण की कहानी सुनने के लिए मैं काफी उत्सुक हो गया था। एक तो पुरानी गाडी की धड़ धड़ आवाज और ऊपर से तरुण की धीमी और नरम आवाज को सुननेमें मुझे थोड़ी कठिनाई हो रही थी। मैंने इस कारण दीपा को तरुण की तरफ थोड़ा धक्का दे कर खिसकाया। मेरी बीबी बेचारी मेरे और तरुण के बिच में पिचकी हुयी थी। तरुण ने अपना गला साफ़ किया और आगे कहने लगा।

"शादी के करीब पांच साल के बाद रमेश का मित्र बिज़नस बगैरह के झंझट में व्यस्त था और पत्नी घरबार और बच्चों में। उनके दो बच्चे थे। रमेश का मित्र और उसकी पत्नी में कुछ मनमुटाव सा आ गया था। रमेश का मित्र अपनी पत्नी को समय नहीं दे पाता था। उसकी पत्नी सेक्स के लिए व्याकुल होती थी तो रमेश का मित्र थका हुआ लेट जाता था। जब रमेश का मित्र गरम होता था तब उसकी पत्नी थकी होने बहाना करके लेट जाती थी। सेक्स में अब उनको वह आनंद नहीं मिल रहा था जो शादी के पहले चार पांच सालों तक था।" तरुण ने बड़ी ही संतुलित भाषा में रमेश के दोस्त और दोस्त की बीबी के बिच में सेक्स को लेकर जो तनाव था उसका बखूबी वर्णन किया।

अब तरुण की कहानी सेक्स के गलियारों में प्रवेश कर चुकी थी। मैं थोड़ा उत्तेजित हो गया और दीपा का एक हाथ मेरे हाथ में लेकर उसे दबाने लगा। तब मैंने थोड़ा सा ध्यान से देखा की तरुण भी गाडी चलाते चलाते और गियर बदलते अपनी कोहनी दीपा के स्तनों पर टकरा रहा था। थोड़ी देर तक तो ऐसा चलता रहा। दीपा ने शायद इस बात पर ध्यान नहीं दिया, पर फिर एक बार उसने अपनी कोहनी को दीपा के स्तन के उपर दबा ही दिया। अंदर काफी अँधेरा था और मुझे साफ़ दिखने में भी कठिनाई होती थी। मैंने दीपा के मुंह से एक टीस सी सुनी। साथ में ही दीपा ने भी मेरी हथेली जोर से दबायी। उसने अपने स्तन पर तरुण की कोहनी के दबाव को जरूर महसूस किया था। पर वह कुछ बोली नहीं।

तरुण ने अपनी कहानी को चालु रखते हुए कहा, "जब रमेश उनसे मिला तो भांप गया की उन पति पत्नी के बिच में कुछ ठीक नहीं है। रमेश और उसका दोस्त काफी करीबी थे और सारे विषय पर खुली चर्चा करते थे, जिसमें सेक्स भी शामिल था। जब रमेश ने ज्यादा गहराई से पूछताछ की तो दोनों ही उससे शिकायत करने लगे। अपनी फीकी शादीशुदा जिंदगी के लिए एक दूसरे पर दोष का टोकरा डालना चाहा। रमेश ने तब दोनों को एकसाथ बिठाया और बताया की उनके वैवाहिक जीवन का वह दौर आया है जहां जातीय नवीनता ख़त्म हो गयी है और नीरसता आ गयी है। उसने उनको कहा की उनको चाहिए की सेक्सुअल लाइफ में कुछ नवीनीकरण लाये।"

तरुण ने तब कार को एक जगह रोका जहाँ थोडा सा प्रकाश था। उसने अपनी कहानी का क्या असर हो रहा है यह देखने के लिए हमारी और देखा। उसने देखा की मैंने दीपा का हाथ अपनी गोद में ले रखा था। तरुण की कहानी मुझे गरम कर रही थी। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें दबी हुई बैठी थी। वह कुछ बोल नहीं रही थी। तरुण मुस्कराया और उसने कार को आगे बढ़ाते हुए कहानी चालु रखी।

"जब उन पति पत्नी ने रमेश से पूछा की वह सेक्सुअल लाइफ में नवीनीकरण कैसे लाएं, तब रमेश ने कहा की कई अलग अलग तरीके होते हैं। पहले तो पति पत्नी अलग अलग पोजीशन में सेक्स कर काफी कुछ विविधता (वेरिएशन) लाते हैं। उसके बाद कुछ समय के बाद वह भी सामान्य हो जाता है और वह बोर हो जाते हैं तो "रोल प्ले" करते हैं, मतलब सेक्स करते समय पति पत्नी को किसी खूबसूरत जानी पहचानी औरत के नाम से बुलाता है और पत्नी पति को उसके पसंदीदा हीरो या किसी गैर मर्द के नाम से बुलाती है और फिर दोनों यह सोच कर सेक्स करते हैं की वह दूसरे आदमी या औरत से सेक्स कर रहे हैं।

कुछ दिनों बाद जब यह अनुभव भी पुराना हो जाता है तब सबसे कारगर पर थोड़ा हिम्मत वाला या कुछ हद तक खतरनाक तरिका है पति पत्नी सामूहिक सेक्स, थ्रीसम, पत्नी की अदलाबदली बगैरह। पति और पत्नी अपने जान पहचान वालों में से ही कोई ना कोई एक कपल को एक साथ एक ही पलंग पर सेक्स करने के लिए पटाने की कोशिश करते हैं। पर यह थोड़ा मुश्किल है। क्यूंकि जब दुसरा पति राजी होता है तो पत्नी तैयार नहीं होती और अगर दूसरी पत्नी राजी होती है तो पति तैयार नहीं होता।

दुसरा तरिका है थ्रीसम। अगर पति पत्नी मिल कर तय करें की वह किसी गैर मर्द या औरत के साथ मिल कर सेक्स करें तो वह किसी गैर मर्द या औरत को पसंद करते हैं और उसके सामने अथवा उसके साथ भी सेक्स करते हैं। इसमें पति और एक गैर मर्द मिल कर बीबी के साथ सेक्स करते हैं। इसको एम् एम् एफ (मेल, मेल, फीमेल), यानी दो मर्द और एक औरत वाला सेक्स कहते हैं। अगर वह कोई औरत को सेक्स करने के लिए चुनते हैं तो उसे एफ एफ एम् (फीमेल, फीमेल, मेल) यानी दो औरत और एक मर्द वाला सेक्स कहते हैं।

अगर पति पत्नी तैयार हो तो दो मर्द एक औरत वाला सेक्स थोड़ा सा आसान होता है क्यूंकि बाहर का मर्द सेक्स करने के लिए तैयार हो जाता है। पर बाहर की औरत को ऐसे सेक्स के लिए पटाना थोड़ा मुश्किल होता है। यानी वह कपल किसी एक मर्द को सेक्स करने के लिए चुनते हैं और उसके साथ मिल कर सेक्स करते हैं।

एक साथ एक ही पलंग पर दो कपल मिल कर अपनी अपनी पत्नियों से सेक्स भी करते हैं। इसे सॉफ्ट स्वैप कहते हैं। इसमें एक दूसरे की पत्नी से थोड़ी छेड़ छाड़ तो करते हैं पर सेक्स सिर्फ अपनी पत्नी से ही करते हैं। और दुसरा है हार्ड स्वैप। मतलब बीबियों की सेक्स के लिए अदला बदली। इसमें एक ही पलंग पर कभी अपनी बीबी से तो कभी दूसरे की बीबी से सेक्स करते हैं। ऐसे पत्नियों की अदलाबदली द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में नवीनता और उत्तेजना लाते हैं। जैसा समय अथवा संजोग वैसे ही इसको व्यावहारिक रूप में अपनाया जा सकता है। परंतु इसमें सारे पति पत्नीयोँ की सहमति और एकदूसरे में पूरा विश्वास आवश्यक है।"

तरुण की यह कहानी सुनते ही मुझे अहसास हुआ की दीपा ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और उसे जोर से दबाने लगी थी। मैं असमंजस में था। दीपा ऐसा क्यों कर रही थी? क्या तरुण साथ कोई और शरारत तो नहीं कर रहा था? या फिर दीपा भी तरुण की बात सुनकर गरम हो गयी थी? मैंने अनायास ही मेरा हाथ थोड़ा ऊपर किया और मेरी पत्नी के कन्धों के उपरसे हो कर उस के स्तनों पर रखा और उसके स्तनों को मेरी हथेली में दबाने और सहलाने लगा।

मैंने महसूस किया की दीपा के दिल की धड़कन बहोत ज्यादा तेज हो रही थी। अचानक मुझे ना जाने ऐसा लगा की

मेरा हाथ मैंने मेरी बीबी के स्तनों पर रखा था वह तरुण के हाथसे टकराया और मेरे हाथ के छूते ही तरुण ने अपना हाथ वापस ले लिया। कहानी सुनाते सुनाते क्या वह भी दीपा के स्तनों को छूने की कोशिश कर रहा था? या मेरे से भी पहले से वह दीपा के स्तनों को सहलाए जा रहा था और मेरी बीबी कुछ भी नहीं बोल रही थी? मैं इस बात को पक्की तरह से नहीं कह सकता। मैं चुप रहा और आगे क्या होता है उसका इंतजार करने लगा।

तरुण बोल रहा था, "रमेश उस समय उन्हीं के घर में रुका हुआ था। उस रात को रमेश के दोस्त ने उसे अपने बैडरूम में ड्रिंक्स के लिए बुलाया। जब रमेश उनके बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की उसका दोस्त अपनी पत्नी को अपनी गोंद में बिठाकर उसके स्तनों से खेल रहा था। उसकी पत्नी के ब्लाउज के बटन खुले थे और वह अपने पति के प्यार को एन्जॉय कर रही थी। रमेश स्तब्ध सा रह गया और क्षमा मांगते हुए वापस जाने लगा।

तब रमेश के दोस्तने उसे अपने पास बुलाया और अपने पास बिठाया। रमेश की पत्नी ने रमेश के सर से अपना सर मिलाया और रमेश का दोस्त और दोस्त की पत्नी एक दूसरे से करीब आकर एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे और बाद में रमेश की पत्नी ने रमेश का हाथ थाम कर अपने एक स्तन पर रखा। दूसरे स्तन को रमेश का दोस्त सेहला रहा था। पत्नी ने फिर रमेश को अपने स्तनों को दबाकर उन्हें चूसने को कहा। ऐसा लग रहा था की रमेश की बात उन लोगों को जँच गयी थी रमेश को भी दोस्त की पत्नी के प्रति आकर्षण तो था ही। वह उससे सेक्स करने के लिए तैयार हो गया। उस रात रमेश और उसके दोस्त दोनों ने मिलकर दोस्त की पत्नी के साथ जमकर सेक्स किया।"

फिर तरुण थोड़ा रुक गया और दीपा की कर बोला, "भाभी, क्या मैं आपको एक बात बताऊँ? जो रमेश, उसका दोस्त और दोस्त की पत्नी ने मिल कर किया उसे क्या कहते हैं?"

दीपा ने एक अजीब निगाह से तरुण की और देखा। वह कुछ नहीं बोली। तब मैंने तरुण से पूछा, "बोलो ना तरुण, क्या कहते हैं उसे?"

तरुण ने भाई को टोकते हुए कहा, "भाई, भाभी को जवाब देने दो ना? भाभी आप बोलो क्या मैं बताऊँ?"

दीपा ने कहा, "बताओ ना। मैंने कहाँ रोका है।"

तरुण ने कहा, भाभी, उन तीनों ने मतलब रमेश, उसका दोस्त और पत्नी ने मिलकर थ्रीसम सेक्स एम. एम. एफ (मेल, मेल, फीमेल), यानी दो मर्द एक औरत जब सेक्स करते हैं तब उसे एम. एम. एफ (मेल, मेल, फीमेल) थ्रीसम सेक्स कहते हैं। उस कपल ने मेरे दोस्त रमेश को थ्रीसम सेक्स करने के लिए चुना था। भाभी यह थ्रीसम सेक्स ऐसे होता है।"

यह कह कर तरुण कुछ देर चुप रह कर दीपा की और एकटक देखने लगा जैसे वह दीपा से कुछ जवाब चाहता था। दीपा ने जब देखा की तरुण उसकी और एकटक देख रहा था तो दीपा ने शर्माते हुए तरुण से पूछा, "तरुण तुम ऐसे क्यों मेरी तरफ देख रहे हो?"

तरुण ने कहा, "कुछ नहीं भाभी, मैं यह जानना चाहता था की आप थ्रीसम का मतलब समझे की नहीं।"

दीपा ने उखड़े हुए अंदाज में कहा, "भाई मुझे क्यों इसका मतलब समझाते हो? किया तुम्हारे दोस्त ने उसके दोस्त और उस दोस्त की बीबी के साथ और मतलब मुझे समझाते हो?"

तरुण ने थोड़ा सा खिसियानी शकल बनाते हुए कहा, "नहीं भाभी बस मैं तो वैसे ही पूछ रहा था।"

तरुण की कहानी उसकी पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी। मैं तो काफी गरम हो ही रहा था, पर दीपा भी काफी उत्तेजित लग रही थी। दीपा पर तरुण की कहानी का गहरा असर मैं अनुभव कर रहा था, क्यूंकि वह अपनी सिट पर अपने कूल्हों को इधर उधर सरका रही थी। अँधेरे में यह कहना मुश्किल था की क्या वही कारण था या फिर तरुण की कोई और शरारत? जरूर तरुण स्वयं भी काफी गरम लग रहा था। उसकी आवाज में मैं कम्पन सा महसूस कर रहा था।

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#17
Wink 
banana

तब हम शहर के प्रकाशित क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे। 

दीपा का एक हाथ मेरे हाथ में था और तब मेरे देखते हुए तरुण ने भी दीपा का एक हाथ पकड़ा और अपने हाथ के नीचे अपनी एक जांघ पर रखा। दूसरे हाथ से वह ड्राइविंग कर रहा था। दीपा ने मेरी तरफ देखा। मैं मुस्काया और उसे शांत रहने के लिए इशारा किया। लाचार दीपा वापस अपनी सीट पर पीठ लगाकर बैठ कर तरुण से आगेकी कहानी सुनने लगी। दीपा ने अपना हाथ जो तरुण की जाँघ पर था उसे वहीँ रहने दिया।

तरुण ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, "रमेश की पत्नी अपने पति के प्रति बड़ी आभारी थी क्यूंकि उसके पति ने अपनी पत्नीको उसके मित्रके साथ सेक्स करनेको कहा। तब से उन पति पत्नी में खूब जमती है और वह कई बार रमेश के साथ थ्रीसम का आनंद ले चुके हैं। वैसे भी अब उन पति पत्नी को एक दूसरे के साथ सेक्स करने में भी बड़ा आनंद मिलता है, क्यूंकि उस समय वह अपने थ्रीसम के आनंद के बारेमें खुल कर बात करते हैं।" तरुण ने अपनी कहानी का समापन करते हुए एक जगह गाडी रोकी।

तरुण की कहानी सुनते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं खासा उत्तेजित हो रहा था। मैंने दीपा के हाथ में हाथ डाला तो उसने भी मेरा हाथ जोरों से दबाया। मुझे लगा की वह भी काफी उत्तेजित होगयी है। कार में भी अँधेरा था। मैंने उसका हाथ मेरी टांगों के बिच रख दिया। दीपा धीरे धीरे मेरे टांगों के बिच से मेरी पतलून की ज़िप पर हाथ फ़ैलाने लगी। मैंने भी दीपा की टांगो के बिच अपना हाथ डाल दिया। दीपा ने अपनी टाँगे कसके दबायी और मेरे हाथ को टांगो के बिच दबा दिया।

मेरी पतलून में मेरा लण्ड तरुण की बात सुनकर खड़ा हो गया था। दीपा के मेरी टाँगों के बिच में हाथ रखने पर मैंने मेरे लण्ड ऊपर दीपा का हाथ रख दिया। दीपा उत्तेजित स्थिति में मेरे लण्ड को मेरी जिप के ऊपर से ही सहलाती रही। मैंने भी महसूस किया की जब मैंने दीपा की टांगों के बिच में मेरा हाथ रखा तो दीपा ने उसे अपनी टाँगों के बिच में दबाया। मुझे लगा की मेरी बीबी की चूत तरुण की नशीली बातें सुनकर काफी गीली हो चुकी थी।

मैंने देखा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी भी तरुण की सेक्स से भरी कहानी सुनकर उत्तेजित हो गयी थी। तब तरुण ने पूछा, "दीपक, बताओ, क्या रमेश और उसके मित्र पति पत्नी ने जो किया वह सही था?"

मैंने कहा, "मैं क्या बताऊँ? भाई ऐसे मसले में पत्नी की राय सबसे ज्यादा आवश्यक है। दीपा से पूछो।"

तरुण ने दीपा की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए मुझे कहा, "मैं क्या कहूं? तुम दोनों के बिच में मुझे क्यों फँसाते हो?"

मैंने कहा, "आज तुम हम दोनों के बिच में फँसी हुई हो इसमें क्या तुम्हें कोई शक है?"

दीपा ने अपनी असहायता दिखाते हुए जो कहा वह तो मैंने सोचा भी नहीं था। दीपा ने कहा, "ठीक है भाई अगर तुम ज़िद कर रहे हो तो कहती हूँ की तरुण के दोस्त कपल ने सही किया या गलत, ये कहने वाले हम कौन होते हैं? अरे वह पति पत्नी ने अपने बारें में सब तरह सोच कर यदि ये फैसला लिया तो सही किया। अगर रमेश के दोस्त ने अपनी मर्जी से रमेश को अपनी बीबी के साथ सेक्स करने के लिए कहा और रमेश की बीबी अगर रमेश से सेक्स करने के लिए राजी थी और उसके साथ सेक्स किया तो उसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। वह थ्रीसम मतलब अगर दोनों मर्द मिलकर रमेश की बीबी के साथ सेक्स करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है? मर्द और औरत का सम्भोग यह भगवान की देन है। सेक्स करने में शर्म की कोई बात नहीं है।"

इतना कह कर दीपा रुक गयी और मेरी और देखने लगी। मेरी पत्नी की इतनी सरसरी बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने पूछा, "क्या इसका मतलब यह है की पति अथवा पत्नी जिस किसी के साथ भी चाहें सेक्स कर सकते हैं?"

दीपा ने कहा, "बिलकुल नहीं। हमारे समाज ने सोच समझ कर उसमें कुछ रोक लगाई है और कुछ मर्यादाएं स्थापित की हैं। वह पति और पत्नी दोनों के पालन के लिए हैं। जब पति पत्नी एक साथ हो तो जो उन दोनों को मंजूर हो वह ठीक है और बात तो गलत नहीं है। शादी के कुछ सालों बाद हम सब पति पत्नी में एक दूसरे से सेक्स करने की उत्सुकता, रस और उत्तेजना जो पहले थी वह नहीं रहती । इसका कारण यह है की सेक्स में जो नवीनता पहले थी वह नहीं रही। एक ही खाना, भले ही वह कितना ही स्वादिष्ट क्यों ना हो; रोज खा खा कर हम बोर नहीं जाते क्या? अगर कुछ और तरह से खाना बनाया जाए या कभी कबार बाहर खाना खाया जाए तो अच्छा तो लगेगा ही। इन हालात में रमेश के मित्र और उसकी पत्नी ने जो किया वह उनके लिए सही साबित हुआ, तो सही है। और फिर उसका फायदा भी तो मिला उनको। उनका वैवाहिक जीवन सुधर जो गया।"

क्यों दीपक, मैंने गलत तो नहीं कहा?" दीपा ने मेरी और देखा और कुछ मुस्करा कर मेरा हाथ थामा। मेरा क्या मत है यह जानने के लिए शायद दीपा उत्सुक थी। वह चिंतित थी की कहीं मैं उसकी बात का गलत मतलब तो नहीं निकालूंगा।

मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।

तरुण ने दोनों हाथों से तालियां बजायी और बोला, "माय गॉड दीपा भाभी, आप ने कितना सटीक और सही जवाब दिया। मैं आप के इस जवाब के लिए सलूट मारता हूँ।" तरुण की प्रशंषा सुनकर दीपा मुस्करायी और गर्व से मेरी और देखा, जैसे वह मुझे दिखाना चाहती थी की उसने कितनी समझदारी और अक्लमंदी से जवाब दिया।

तब हम कार्यक्रम वाले स्थान के करीब पहुँच चुके थे। तरुण ने एक ऐसी जगह कार रोकी जहां प्रकाश था। उसने पीछे मुड़कर कार की सीट पर चढ़कर पीछे की सीट पर रखा एक बक्शा खोला। मैंने देखा की उसमें उसने तीन बोतलें और कुछ गिलास रखे हुए थे। उसने तीन गिलास निकाले और उसमें एक बोतल में से व्हिस्की और सोडा डालना शुरू किया। दीपा ने एकदम विरोध करते हुए कहा की वह नहीं पीयेगी।

मैं भी जानता था की दीपा शराब नहीं पीती थी। सबके साथ वह कभी कभी जीन का एकाध घूंट जरूर ले लेती थी। शायद तरुण को भी यह पता था। उसने दीपा से कहा, "दीपा भाभी, आप निश्चिन्त रहो। मैं आपको व्हिस्की नहीं दूंगा। प्लीज आज हमें साथ देने के लिए थोडीसी जीन तो जरूर पीजिए। मैं बहुत थोड़ी ही डालूंगा। देखिये होली है। दीपा ने घबड़ाते हुए मेरी और देखा।

मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा, "अरे इसमें इतना घबड़ाने की क्या बात है? भई जीन तो वैसे ही हल्की है और तुम जीन तो कभी कभी पी लेती हो। अब शर्म मत करो, थोड़ी सी पी लो यार। तरुण इतने प्यार से जो कह रहा है।" मैंने फिर तरुण की और देखते हुए कहा, "देखो तरुण, बस एकदम थोड़ी ही डालना।"

तरुण ने मुस्काते हुए सीट पर पीछे मुड़कर सीट पर चढ़कर लंबा होकर दीपा के लिए जीन से गिलास को खासा भरा और फिर दिखावे के लिए उसमें थोड़ा सोडा डाल कर एक कटा हुआ निम्बू लाया था वह गिलास में निचोड़ कर गिलास दीपा के हाथ में पकड़ा दिया। जीन वैसे ही पानी की तरह पारदर्शक होती है। देखने से यह पता नहीं लग पाता की गिलास में जीन ज्यादा है या सोडा। तरुण ने दिखाया की उसमें सिर्फ सोडा ही था। जीन तो नाम मात्र ही थी। पर था उलटा।

मेरी भोली बीबी दीपा उसे पीने लग गयी। जीन का टेस्ट मीठा होता है। दीपा को अच्छा लगा। वह उसे देखते ही देखते पी गयी। जब हम सबने अपने ड्रिंक्स ख़तम किये तब तरुण कार को कार्यक्रम के स्थान पर ले आया। मैं जानता था की जीन भी तगड़ी किक मारती है।

जीन पीने के पश्चात दीपा काफी तनाव मुक्त लग रही थी। जो तनाव शुरू में तरुण की हरकतों की वजह से वह महसूस कर रही थी वह नहीं दिख रहा था। तरुण ने शुरू में जब यह कहा था की वह कुछ सेक्सुअल विषय के बारे में बताने जा रहा था, तो दीपा शायद डर रही थी की कहीं वह खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्द जैसे लण्ड, चूत, चोदना इत्यादि शब्दों का प्रयोग तो नहीं करेगा।

परन्तु तरुण का बड़े मर्यादित रूप में सारी सेक्सुअल बातों को बताना तथा खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना दीपा को अच्छा लगा। दीपा को लगा की हालाँकि तरुण उसे बार बार छेड़ता था पर साथ साथ वह उसकी बड़ी इज्जत भी करता था और ख्याल रखता था की दीपा की संवेदनशीलता किसी भी तरह से आहत ना हो। धीरे धीरे दीपा ने यह स्वीकार कर लिया था की तरुण का दीपा को बार बार छेड़ने का कारण तरुण का दीपा के प्रति एक तरह का अपनापन और साथ में बहुत जबरदस्त शारीरिक आकर्षण था जिस पर तरुण खुद भी कण्ट्रोल नहीं कर पाता, जब दीपा उसके पास होती थी। तरुण एक हट्टाकट्टा वीर्यवान मर्द था और दीपा की छेड़खानी करना शायद उसकी मर्दानगी की मज़बूरी थी। उसके उपरांत दीपा ने तरुण को वचन दिया था की उस होली की रात को वह तरुण के सौ गुनाहों को भी माफ़ कर देगी। शायद इसी कारणवश जब तरुण ने दीपा का हाथ थामा और अपनी जांघ पर रखा तो वह कुछ न बोली।

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#18
कार्यक्रम शुरू हो चुका था। मैदान लोगों से खचाखच भरा था। एक के बाद एक शायर, कभी लोगों पर, कभी राज नेताओं पर, कभी अमीरों पर यातो कभी मंच पर बैठे दूसरे कविओं पर जम कर तंज कसते हुए हास्य कविताएं एवं शायरी सुना रहे थे। लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे। तरुण ने कार को मंच से काफी दूर एक कोने में एक पेड़ के पीछे दीवार के पास खड़ी की। हम उसी तरह कार में ही बैठे रहे। बड़े लाउड स्पीकरो के कारण हमें दूर भी साफ़ सुनाई दे रहा था। बल्कि इतनी तेज आवाज थी की हम बात भी नहीं कर पा रहे थे। जहां हम रुके थे वहां काफी अँधेरा था। आते जाते कोई भी हमें बाहर से देख नहीं पाता था। कार के अंदर भी अँधेरा था। तरुण अब एक तरह से ̣दीपा का हाथ हमेशा के लिए अपनी जांघों पर रखे हुए था और अपना हाथ उसने दीपा के हाथ के ऊपर रखा हुआ था।


तब एक शायर ने महिलाओं की अक्ल, त्याग, हिम्मत, ताकत और काबिलियत के बखान करते हुए एक कविता सुनाई। यह सुन कर दीपा मेरी और मुड़ी और बोली, "देखा, मिस्टर दीपक, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बराबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।" मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।

मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, "कविताओं में कहना एक और बात है पर हकीकत यह है की महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?" मैंने एक तीर मारा और दीपा के जवाब का इन्तेजार करने लगा।

दीपा ने तुरंत पलट कर कहा, "तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक कर भन्कस और हंगामा करना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपने आपको? क्या हम कमजोर हैं और तुम सुपरमैन हो?" दीपा ने तब तरुण की और देखा।

तरुण ने तुरंत कहा, "दीपक, दीपा भाभी बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।"

मैंने कहा, "चलो एक पल के लिए मान भी लिया जाए की दीपा या कोई भी महिला व्हिस्की भी पी सकती है। पर क्या दीपा या कोई भी भारतीय नारी पुरुषों की तरह खुल्लम खुल्ला सेक्स के बारे में बातचीत कर सकती है? अरे खुद बात भले ही ना करे पर, सुन तो सकती है की नहीं?"

दीपा ने मेरी बात का एकटुक जवाब देते हुए कहा, "क्यों नहीं सुन सकती? जब महिला पुरुष के साथ सेक्स कर सकती है तो फिर सेक्स के बारेमें सुन क्यों नहीं सकती? क्या मैंने अभी अभी सेक्स वाली बातें नहीं सुनीं? दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में तरुण से कहा, "यार तरुण, यह तुम्हारे भाई या दोस्त व्हाटएवर, मेरे जो हस्बैंड है ना, बड़े ही इर्रिटेटिंग है। बड़े बोर करते हैं। बेकार दाना पानी लेकर मेरे पीछे ही पड़ जाते हैं। तुम एक हो जो मुझे कुछ समझते हो।"

मैंने देखा की तरुण के सपोर्ट करने से दीपा खिल सी गयी थी। वह मुझ से थोड़ी उखड़ी हुई थी और तरुण की सहानुभूति से काफी प्रभावित भी हुई लग रही थी। दीपा की हिम्मत या यूँ कहिये की उच्छृंखलता शराब के नशे के कारण और मेरी स्त्री जाती को चुनौती देने के कारण बढ़ती ही जा रही थी। शायद अपनी हिम्मत मुझे दिखाने के लिए दीपाने मेरे देखते ही तरुण का हाथ पकड़ा और धड़ल्ले से उसे अपनी जांघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी प्यारी बीबी पूरा गिलास भरी शराब (जिन) की असर के कारण महिला की पुरुष के साथ बराबरी दिखाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि उतावली थी। तरुण को और क्या चाहिए था?

वैसे ही दीपा की साड़ी इतनी हलके वजन की और महिम थी की हल्का सा खींचने पर भी वह फिसल जाती थी। तरुण भी दीपा की बढ़ी हुई हिम्मत का फायदा उठाते हुए दीपा की साड़ी के ऊपर अपने हाथ फैला कर मेरे देखते हुए ही वह दीपा की जांघ को ऊपर से धीरे धीरे सहलाने लगा और मेरी और देख कर बोला, "भाई, भाभी की एहमियत आप को नहीं पता, क्यूंकि वह आपकी पत्नी हैं। मैं उनकी एहमियत समझता हूँ, क्यूंकि उनकी कंपनी मुझे भी कभी कभी मिलती है।"

मैंने अपना बचाव करते हुए कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं है। मैं भी जानता हूँ मेरी पत्नी किसी से कम नहीं।"

ऐसा कह कर जैसे ही मैंने मेरी बीबी का हाथ थामने की कोशिश की तो दीपा ने मेरा हाथ दूसरी और खिसका दिया और बोली, "अरे छोडो जी। झूठ मत बोलो। अब तक तो आप मुझे कमजोर, अबला, नाजुक कह रहे थे। अब जब तुम्हारे ही दोस्त ने मेरी कदर की तब समझ आयी अपनी बीबी की एहमियत की? देखो, मैं जैसा तुम समझ रहे हो ना, वैसी कमजोर और नाजुक नहीं हूँ। मैं भी तुम दोनों मर्दों से किसी भी मामले में मुकाबला कर सकती हूँ।"

तरुण दीपा की बात सुनते ही फ़ौरन मेरी बीबी की जाँघों को साडी के ऊपर से फुर्ती से सेहलाने और दबाने लगा। दीपा उसे महसूस कर रही थी, पर कुछ ना बोली; क्यूंकि अब उसे अपनी हिम्मत जो दिखानी थी। बल्कि खुद जैसे उसे प्रोत्साहन देती हो ऐसे तरुण के हाथ के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी।

वैसे भी अब दीपा को तरुण का शुशीलता और सभ्यता भरा रवैया अच्छा लग रहा था। और मैं चूँकि मेरी बीबी को चुनौती दे रहा था इस लिए वह मुझे दिखाना चाहती थी की वह एक हिम्मत वाली औरत है और किसी गैर मर्द (तरुण) की छेड़खानी से डरने वाली नहीं है।

मेरे रवैये से कुछ उखड़ी हुई मुझे चुनौती देते हुए वह बोली, "दीपक, तुम मुझे कम इस लिए समझ रहे हो क्यूंकि मैं तुम्हारी बीबी हूँ। पर दुनिया बहुत बड़ी है। तुम्हारा ये दोस्त तरुण को ही देखो। अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य, संस्कारी, शालीन और शुशील है? वह हम महिलाओं का सम्मान करना जानता है और हमारी महत्ता और महत्वकांक्षाओं को समझता है। उसे पूरी तरह ज्ञात है की स्त्रियों का पुरुष के जीवन में कितना महत्त्व पूर्ण और उच्चतम योगदान है।" बातें करते हुए दीपा की जीभ थरथरा रही थी और वह एकदम संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगी थी। दीपा गुस्से में अंग्रेजी और जब प्रशंषा अथवा तारीफ़ करनी हो तो संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगती थी।

मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।

मुझे शक हुआ के कहीं तरुण ने दीपा का हाथ अपनी टांगों के बिच लण्ड के ऊपर तो नहीं रख दिया था? पर अँधेरे के कारण मैं ठीक से देख नहीं पा रहा था। मेरी प्यारी पत्नी इतना कुछ होते हुए भी जैसे कविताएं सुनने में व्यस्त लग रही थी, या फिर तरुण की शरारत महसूस करते हुए भी ध्यान नहीं दे रही थी। उस रात तरुण या मैं अगर उसको छेड़ें तो विरोध नहीं करने का आखिर वादा भी तो किया था उसने?

मुझे उस समय यह नहीं पता था की मेरी बीबी ने उससे भी कहीं बड़ा वादा (तरुण से चुदवाने का) तरुण को कार मैं बैठने से पहले ही कर दिया था। दीपा की एक कमजोरी कहो अथवा अच्छी बात कहो वह यह थी की अगर उसने एक बार वादा किया अथवा वचन दे दिया तो वह वह कभी मुकरती नहीं थी।

हम और थोड़ी देर तक उसी जगह कार को खड़ी रख कविताएं सुनते रहे। आखिर जब बोरियत होने लगी, तब मैंने तरुण से कहा, "अरे तरुण, यार इस कार्यक्रम से तो तुम्हारी कहानी बेहतर थी। चलो कार को कहीं और ले लो। यहां बहुत शोर है।"

तरुण ने कार को मोड़ा और वहाँ से दूर मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर कार को एक जगह खड़ा किया। बाहर दूर दूर कहीं रौशनी दिखती थी, पर कार में तो अँधेरा ही था। आँखों पर जोर देनेसे थोड़ा बहुत दिखता था।

कार रुकने पर मैंने तरुण से कहा, "तरुण तुम्हारी कहानी सटीक तो थी, पर एक बात कहूँ? तुमने तो यार कहानी को बिलकुल फीका ही कर दिया। सारा मझा ही किरकिरा कर दिया। ना तो तुमने सेक्स कैसे हुआ यह बताया, ना तो सारी बातें स्पष्ट रूप से खुली की। रमेश का दोस्त और उसकी बीबी सेक्स करते थे, इसके बजाय चोदते थे ऐसा क्यों नहीं बोलते? रमेश की बीबी ने अपने पति के अंग को सहलाया, उसके बजाये यह क्यों नहीं कहा की लण्ड को सहलाया?"

मेरी बात सुनकर दीपा एकदम भड़क उठी। उसने मेरी तरफ देखा और बोली, "यह क्या है? तुम ऐसे गंदे शब्द क्यों बोल रहे हो?"

मैंने तुरंत तालियां बजाते हुए कहा, "देखा तरुण? मैं क्या कह रहा था? यह औरत कैसे भड़क गयी? क्यों? अब तुम मर्दों की बराबरी क्यों नहीं कर सकती? क्यों चूत लण्ड ऐसे शब्द नहीं सुन सकती? यह शब्द गंदे कैसे हो गए? सेक्स अथवा फक करना अच्छा शब्द है, पर चोदना गंदा शब्द है? पुरुष का लिंग अच्छा शब्द है, पर लण्ड गंदा शब्द है? देखा तरुण? मुझे पता है की मेरी पत्नी में इतनी हिम्मत नहीं है की वह भी हम पुरुषों के साथ बैठ के खुल्लम खुली सेक्सुअल बातें पुरुषों की तरह सुन सकती है। इसी लिए तो मैं कहता हूँ की औरत मर्द का मुकाबला नहीं कर सकती। क्यों डार्लिंग? क्या कहती हो अब?"

तब तरुण ने बड़ी सम्यता से कहा, "नहीं दीपक, हमें महिलाओं के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। मैं दीपा भाभी की बहुत इज्जत करता हूँ। मैं नहीं चाहता की दीपा भाभी के मन को मेरी बातों से कोई ठेस पहुंचे। मैंने उन्हें वैसे ही काफी दुःख पहुंचाए हैं। मैं उन्हें और कोई दुःख नहीं पहुंचाना चाहता।"

तरुण की इतनी सम्मान पूर्ण शालीन बात सुनकर दीपा भावुक हो गयी उसकी आँखें नम हो गयीं। दीपा तरुण को बड़े सम्मान और प्रेम भरी नजर से देख रही थी। दीपा ने तरुण के दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और उन्हें प्रेम से सहलाने और दबाने लगी। पर वह मेरे ताने को भूली नहीं थी।

दीपा ने मुझसे 'नाजुक' शब्द सूना था तो उसे तो जवाब देना ही था। मेरी बात सुनकर, दीपा आगबबूला हो गयी। वह कार में ही खड़ी होने की कोशिश करने लगी। फिर खड़ा ना हो पाने के कारण बैठ तो गयी पर मुझ पर बरस पड़ी। दीपा तरुण का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघों के बिच के हिस्से पर दबाते हुए जोश में आ कर और बोली, "नहीं तरुण, तुम जरूर वह कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला बेझिझक सुनाओ। हरेक स्त्री ऐसी छुईमुई नाजुक नहीं होती। मैं तो बिलकुल नहीं हूँ। मैं क्यों भला हिच किचाउंगी? क्या स्त्री पुरुष के साथ सेक्स नहीं करती? आखिर सेक्स भी तो हमारी ज़िंदगी का एक स्वाभाविक ऐसा हिस्सा है जिसको हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। तरुण तुम बेझिझक कहो। मेरी वजह से मत हिचकिचाओ। अगर पुरुष लोग सेक्स की बातें करते हैं और सुनते हैं तो भला स्त्रियां क्यों नहीं सुन सकती? मेरे पति को अगर उसे सुनना है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। उन के दिमाग पर तो हमेशा सेक्स ही छाया रहता है।" दीपा ने मुझ पर अपने गुस्से की झड़ी बरसा दी।

पर मैं कहाँ रुकने वाला था? मैंने दीपा को कहा, "देखा? पुरुष और स्त्री का अंतर तो तुम ने खुद ही साबित कर दिया। तुम सेक्स शब्द तो बोल सकती हो, पर यह नहीं बोल सकती की पुरुष और स्त्री की चुदाई की बात हो तो उसे तुम्हें आपत्ति नहीं होगी। अंग्रेजी में बोलो तो सभ्य, और हिंदी में बोलो तो गंवार?"

मेरी प्यारी बीबी का गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच रहा था। उसे अपनी हार कतई मंजूर नहीं थी। वह मुझ पर एकदम बरस ही पड़ी। अपने स्त्री सुलभ अहंकार को आहत होना उसे कतई मंजूर नहीं था। किसी भी तरह के शिष्टाचार की परवाह ना करते हुए मेरी बात से झुंझला कर गुस्से से तिलमिलाती हुई दीपा बोली," यु आर ए लिमिट यार। व्हाट डु यु थिंक ऑफ़ योर सेल्फ? डोंट हेसल मि। तुम तो यार पीछे ही पड़ गए? क्या तुम और मैं सेक्स करते समय, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते? तुम तरुण के सामने झूठ क्यों बोल रहे हो? क्या मैं सेक्स, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई में तुम्हारा पूरा साथ नहीं देती?"

मैं मेरी बीबी को हक्काबक्का हो कर देखता ही रहा। तरुण भी कुछ पलों के लिए स्तब्ध सा मेरी पत्नी को देखता ही रहा। दीपा क्या बोल रही थी? मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी बीबी इतनी खुल्लम खुल्ला किसी गैर मर्द के सामने इस तरह बात कर सकती है।

दीपा ने फिर मुड कर तरुण की और देखा और बोली, "तरुण आज मेरे पति ने तुम्हारे सामने मुझे नंगी ही कर दिया, मेरा मतलब है, आज मेरे पति ने मुझे तुम्हारे सामने जो शब्द नहीं बोलने चाहिए वह भी मुझसे बुलवा लिए। तुम अब बेझिझक मेरे पति जो सुनना चाहते हैं वह खुल्ले शब्दों से भरी तुम्हारे दोस्त की चुदाई की कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला सुनाओ। आज मैं मेरे पति को दिखा देना चाहती हूँ की वह मेरी स्त्री सुलभ सभ्यता को मेरी कमजोरी ना समझें। आई एम् ए स्ट्रॉन्ग वुमन नॉट ए ब्लडी डेलिकेट वुमन।"

तरुण तो जैसे दीपा की बात सुनकर उछल ही पड़ा। उसने सोचा नहीं था की एक तगड़े जिन के डोझ से ही भाभी इतनी जल्दी चौपट हो जायेगी। तरुण ने फ़ौरन दीपा का हाथ अपनी जांघों के बिच में रखकर दीपा की जाँघों को और फुर्ती से कामुक अंदाज से सेहलाते और अपने लण्ड पर दीपा का हाथ दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "दीपा भाभी, मुझे आपके सामने ऐसे खुल्लमखुल्ला बात करने में शर्म आती है और आपके गुस्से का डर भी लगता है। पर आज मुझे मेरी भाभी पर गर्व भी है की वह इतनी, शुशील और सभ्य महिला होते हुए भी मर्दों के साथ धड़ल्ले से सेक्स के बारे में खुल्लमखुल्ला बात करती है और इतनी तो छुईमुई नहीं है की मर्दों की छोटीमोटी हरकतों से पीछे हट जाए। भाई तुम तक़दीर वाले हो। ऐसी पत्नी तक़दीर वालों को ही मिलती है। भाभी क्या आप वास्तव में ऐसी स्पष्ट भाषा सुन सकोगी?"

दीपा अपने जिद भरे गुस्से में थी पर तरुण के सभ्यता भरे सवाल से कुछ गुस्से से और कुछ प्यार से बोली, " यार तरुण डोन्ट फील बेड। टुडे इट इस ए क्वेश्चन ऑफ़ थ्रु एंड थ्रु। तरुण, तुमको मैं किस भाषा में समझाऊं की आज आरपार की बात है? मेरे पति मुझे कमजोर, नाहिम्मत अबला समझते हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने मुझे इसी तरह कोमल, नाजुक, नरम आदि कह कर मुझे कमजोर समझा। वह सोचते हैं की मैं साफ़ साफ़ सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई की बातें नहीं सुन सकती। हाँ ऐसी बातें कहने और सुनने में मेरे पति की तरह मेरी जीभ 'लपलप' नहीं होती। पर मैं सुन जरूर सकती हूँ और बात भी जरूर कर सकती हूँ। तुम आगे बढ़ो और आज तो ज़रा भी घुमा फिरा के बात मत करो। आज तो होली है आज तो बस खुल्लमखुला ही चुदाई की बात करो। मैं मेरे पति को आज दिखा देना चाहती हूँ की मैं कोई छुईमुई नहीं हूँ की चूत, चुदाई, लण्ड ऐसे शब्दों से डर जाऊं। मेरे पति खुद मुझे आज तुम्हारे सामने नंगी करना चाहते हैं तो ठीक है। मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। अब मर्यादा की ऐसी की तैसी। देखते हैं कौन पीछे हटता है। सुनाओ यार, बिलकुल बेझिझक हो कर तुम भी खुल्लमखुल्ला बोलो!"
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#19
Heart 
तरुण को और क्या चाहिए था? उसने वही कहानी अब खुल्लमखुल्ला भाषा में कहना शुरू किया।


तरुण ने कहा, "ठीक है, देखो भाई, मैं तो बस भाभी का लिहाज कर रहा था। अगर दीपा भाभी को एतराज नहीं है और तुम सुनना चाहते हो तो उनकी सारी आपबीती मैं अब खुल्लम्खुल्ले शब्दों में सुनाता हूँ।"

ऐसा कह कर तरुण ने वह कहानी का सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई वाला हिस्सा दुबारा खोल कर सुनाया। तरुण ने कहा, "दीपक, जब रमेश उस कपल के बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की बीबी अपने पति की गोद में बैठी पति के होँठों से अपने होँठ मिलाकर उनके होंठ चूस रही थी। दोनों पति पत्नी प्यार में इतने मशगूल थे की उन्हें ध्यान भी नहीं था की उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था। या हो सकता है उन्होंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ रखा हो।

सच तो यह था की रमेश का दोस्त, रमेश की बात सुनकर इतना प्रभावित हो गया था की अपनी बीबी को रमेश से चुदवाते हुए देखना चाहता था और वह भी रमेश के साथ मिलकर अपनी बीबी को चोदना चाहता था। शायद उसकी बीबी भी अपने पुराने दोस्त से बहोत आकर्षित थी और रमेश से वह कॉलेज में पढ़ते हुए चुदाई ना करवा सकी, शायद उसके मन में यह कसक कहीं ना कहीं रह गयी थी। तो तब वह शादी के इतने सालों के बाद रमेश से चुदाई करवाने के लिए तैयार हुई।

रमेश के कमरे में आते ही रमेश ने देखा की दोस्त की बीबी के ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और ब्रा भी खुली हुई थी। दोस्त की बीबी के आकर्षक और सेक्सी बॉल रमेश की नज़रों को उकसाने के लिये काफी थे। बीबी के स्तनों की निप्पलेँ उसकी उत्तेजना के कारण ऐसी फूली हुई और कड़क थीं की जैसी एक औरत की प्यार भरी चुदाई से हो जातीं हैं।"

जब दीपा ने यह सूना तो मैंने महसूस किया की दीपा के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उस शाम तक दीपा ने पहले कभी किसी गैर मर्द से ऐसी खुली सेक्सी भाषा नहीं सुनी थी। तरुण के मुंह से ऐसी बातें सुनकर उसने अपना एक हाथ अपनी चूँचियों पर रखा और दूसरे हाथ से मेरी जांघ को दबाया। जैसे वह चेक कर रही थी की कहीं उसकी अपनीं निप्पलेँ भी तो सख्त नहीं हो गयीं।

शायद तरुण ने भी यह देखा। वह मन ही मन मुस्कराता हुआ बोला, "रमेश के दोस्त के हाथ अपनी बीबी के बब्ले दबाने में और उनको मसलने में व्यस्त थे। शायद मैंने नहीं देखा... मेरा मतलब है, रमेश ने नहीं देखा पर उस समय मेरे दोस्त का... मेरा मतलब है रमेश के दोस्त का लण्ड भी उसकी धोती में खड़ा हो गया होगा और बीबी की सुडौल गाँड़ को निचे से टॉच रहा होगा।"

जब तरुण गलती से यह बोल पड़ा तो इसका मतलब मुझे साफ़ दिखा। मैंने तरुण को बीचमें टोकते हुए कहा, "तरुण, झूठ मत बोलना। कहीं तुम अपनी ही सच्ची कहानी अपना नाम छुपाकर तुम्हारे दोस्त रमेश का नाम लेकर तो नहीं सूना रहे हो? कहीं वह रमेश तुम ही तो नहीं हो?"

मेरी बात सुनकर तरुण खिसियाना सा कुछ देर तक सुन्न सा मेरी और देखता रहा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर अपनी कहानी जारी रखते हुए कहा, "पहले पूरी बात सुनलो।"

उसके बाद तरुण स्पष्ट रूप से रमेश के मित्र और उसकी पर्त्नी की चुदाई के बारे में विस्तार से बताने लगा। सबसे पहले रमेश ने उसके दोस्त की पत्नी के बूब्स को खोल कर पुरे आवेश के साथ चूसा। रमेश के चूसने से रमेश के दोस्त की पत्नी मचल उठी। उसकी निप्प्लें एकदम सख्त हो गयी। रमेश ने तरुण को बताया की उसने कैसे उसके मित्र की पत्नी की चूत को चाटा और कैसे उसकी चूत के झरते हुए पानी को चूसने लगा।

रमेश के मित्र की पत्नी ने अपने पति और रमेश दोनों के लण्ड अपने दोनों हाथोंमे लिए और उन्हें धीरे धीरे सहलाने और मालिश करने लगी। जैसे जैसे उसने दोनों मर्दों के लण्ड को थोड़ी देर हिलाया तो तरुण के दोस्त रमेश और उसके दोस्त के लण्ड लोहे की छड़ की तरह खड़े हो गए।"

जब तरुण थड़ी साँस लेने के लिए रुका तो मैंने तरुण से कहा, "यार तुझे तो कोई लेखक होना चाहिए था। तू सारी बातें इतनी बारीकी से बता रहा है, जैसे तू खुद ही वहाँ था। मुझे लग रहा है कही तू ही तो वह रमेश की जगह नहीं था? अगर ऐसा है तो तू साफ़ साफ़ क्यों नहीं बता रहा की तू ही वह रमेश है?, क्यों दीपा मैंने कुछ गलत कहा?"

दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए, कुछ शर्मा कर कहा, "हाँ, दीपक मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।" फिर तरुण की और मुड़कर दीपा ने कहा, "देखो तरुण, अगर तुम्ही थे जिसका नाम तुम रमेश बता रहे हो तो उसमें मुझे या मेरे पति दीपक को कोई आपत्ति नहीं है। मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? जब तुम्हारा दोस्त और उसकी बीबी को ही कोईआपत्ति नहीं है तो हमें क्या लेनादेना? पर जब हम खुल्लमखुल्ला बात कर रहे हैं तब तुम हम से छुपाछुप्पी मत खेलो। पर खैर छोडो इस बातको। हम तुम्हें कटघरे में खड़े करना नहीं चाहते।"

मैंने भी दीपा की बात में सहमति जताते हुए अपना सर हिला दिया। तरुण की खुल्लम खुली कहानी जिसमें तरुण के दोस्त की बीबी ने बारी बारी से दोनों मर्दों के लण्ड को चूसा यह सुन कर मैं तो उत्तेजित हो ही गया पर मैंने अनुभव किया की दीपा भी काफी गरम हो रही थी। मैं उसके हांथों में हो रहे कम्पन महसूस कर रहा था। तरुण की आवाज में भी रोमांच की थरथराहट महसूस हो रही थी। हम तीनों ही उत्तेजित हो उठे थे।

दीपा ने तरुण की और देख कर कहा, "तरुण, यार तुम बड़े ही चालु निकले। इधर किसी से प्यार तो उधर किसी और से? तुम एक साथ कितने चक्कर चलाते हो यार? मैं जानती हूँ की वह रमेश कोई और नहीं, वह तुम्ही थे और तुमने ही वह, क्या कहते हैं? हाँ एम.एम.एफ़. थ्रीसम बगैरह भी तुम्हारे दोस्त और उसकी बीबी के साथ किया। एक साथ इतने चक्कर चलाना, यह ठीक बात नहीं।" बात करते करते बिच बिच में दीपा की जबान थोड़ी सी लहरा जाती थी लड़खड़ा जाती थी।

जब तरुण ने यह सूना तो उसकी बोलती बंद हो गयी। उसने दीपा का हाथ पकड़ा और बोला, "भाभी, मैं आपकी कसम खा कर कहता हूँ की जो हो गया वह हो गया। अब मैं वह नहीं हूँ जो कभी हुआ करता था। मेरा यकीन करो। हाँ, आपको जब भी देखता हूँ तब मेरा मन मचल जाता है यह सच बात है। आज मैं भाई के सामने यह बात कह रहा हूँ की आप इतनी सभ्य, सुशिल, संस्कारी होते हुए भी आज आप इस ड्रेस में तो रम्भा, रति या मेनका से भी ज्यादा सेक्सी लग रही हो। आपको जब देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। वरना भाभी मानिये की मैं अब किसी और औरत की तरफ गलत नजर से देखता नहीं हूँ। भाई बहोत बहोत तकदीर वाले हैं की उन्हें आप जैसी बीबी मिली जो हमेशा उनकी मन की इच्छा पूरी करती है।"

दीपा तरुण की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "अच्छा? तो क्या? तुम चाहते हो की मैं तुम्हारे मन की भी इच्छा पूरी करूँ? क्या बात करते हो? तुम भी ना तुम्हारे भाई की तरह कभी कभी बहकी बहकी बातें करते हो। तुम कहते हो तुमने किसी और औरत को गलत नज़रों से नहीं देखा। मतलब क्या है? इसका मतलब तुमने मुझे गलत नज़रों से देखा है। है की नहीं? बोलो?"

मेरी बीबी की साफ़ साफ़ बात सुन कर मैं भी हैरान रह गया। मैंने भी तरुण से पूछा, "बोलो तरुण, दीपा की बात का जवाब दो?"

तरुण ने अपनी नजरें झुका कर कहा, "भाई और भाभी, आप ने जब मुझे साफ़ साफ़ पूछा है तो मैं झूठ नहीं बोलूंगा। आज मैं आप दोनों के सामने कबुल करता हूँ की मैंने भाभी को गलत नजर मतलब सेक्स की नजर से देखा है, यह हकीकत है। ना सिर्फ गलत नजर से देखा है बल्कि मैंने मेरी भाभी को हर जगह छुआ भी है और उनका बदन पाने की लालसा भी रखी है। भाई, मैंने यह बात आपसे छुपा कर नहीं रक्खी। मैंआपको बताता रहा हूँ की भाभी ऐसी सेक्सी हैं की मैं जब उन्हें देखता हूँ तो अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ। भाभी आप इसकी मुझे जो चाहो सजा दो वह मुझे मंजूर है। आप कहोगे तो मैं अभी इसी वक्त यहां से चला जाऊंगा। पर भाभी मैं आपसे और एक बात जरूर कहूंगा की मैं जब से आप के करीब आया हूँ तब से मैंने आप और टीना के अलावा किसी और औरत की तरफ गलत नज़रों से नहीं देखा।"

दीपा तरुण की बात सुनकर ठिठक गयी। मेरी और देख कर बोली, "अरे सूना तुमने? तुम क्या कहते हो? तरुण कह रहा है वह मुझे गलत नजर से देखता है। मैं तो तुम्हें पहले से कहती थी। पर तुम मेरी बात मानते ही नहीं थे।"

मैंने कहा, "दीपा यह तो कमाल है? मैं तुम्हें कहता था की तरुण तुम्हें लाइन मार रहा है तो तुम कहती थी ऐसा नहीं है तरुण शरीफ लगता है?"

तरुण ने देखा की हम मियाँ बीबी एक दूसरे से लड़ने लगे तब तरुण ने कहा, "भाई, हम यहां मजे करने के लिए आये हैं, लड़ने के लिए नहीं। अगर आप दोनों को लगता है की मेरा भाभी की और गलत नजर से देखना सही नहीं है तो मैं अभी आप दोनों को आपके घर पर छोड़ कर चला जाता हूँ। आगे से मैं आपको ना ही मिलूंगा नाही फ़ोन करूंगा। मैंने जो बोला वह सच बोला और आप से भी छुपाया नहीं। बोलो, भाई और भाभी, आप का क्या निर्णय है? क्या आप मुझ से सम्बन्ध रखेंगे या नहीं?"

तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ हड़बड़ाई सी हो गयी और मेरी और देखने लगी। मैंने देखा की उसकी आँखें कह रहीं थीं की तरुण को जाने ना दूँ, उसको रोकूं।

मैंने तरुण से कहा, "मैं भी आज तुम्हारे सामने एक सच बोलता हूँ और मैं कबुल करता हूँ की मैंने भी तुम्हारी बीबी टीना को गलत नज़रों से देखा है। देखो अभी अभी दीपा ने खुद ही कहा की अगर पति और पत्नी दोनों ही किसी बात पर सहमत हों तो उसमें कोई भी बात गलत नहीं होती। तुम मेरी बीबी को सेक्स की नजर से देखते हो या छेड़ते हो या मुझे संज्ञान में रखते हुए उससे और भी आगे बढ़ते हुए सेक्स भी करते हो तो उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बाकी दीपा क्या चाहती है वह दीपा जाने।" यह कह कर मैंने सारा ठीकरा दीपा के सर पर ही फोड़ दिया।

तरुण ने फ़ौरन दीपा की और देखा और दोनों हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कहा, "तरुण, आज तो कमाल हो गया। मेरा पति तुम्हारी पत्नी को लाइन मार रहा है और तुम तुम्हारे दोस्त की बीबी मतलब मुझ पर लाइन मार रहे हो। तुम दोनों ने मिलकर तो सारा हिसाब बराबर ही कर दिया। अब और क्या कहना बाकी रह गया है?"

दीपा की बात सुन कर तरुण चुपचाप एक गुनहगार की तरह दीपा की और देखता रहा। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था। हमें ऐसे हाल में देख कर दीपा की हंसी फुट पड़ी। वह तरुण के हाथ थाम कर बोली, "तुम्हें कहीं नहीं जाना। चलो तुमने यह सच तो बोला और कबुल किया की तुम मुझ पर लाइन मार रहे थे यह ही बड़ी बात है। मैं कोई इतनी ज्यादा रूढ़िवादी नहीं हूँ जितना मेरे पति मुझे मानते हैं। सच तो यह है की तुम अकेले ही नहीं हो जो मुझ पर लाइन मार रहे हो। मुझ पर लाइन मारने वाले पता नहीं कितने हैं। यह तो अच्छा हुआ की हम उस महामूर्ख सम्मलेन में कार से बाहर नहीं निकले, वरना इस ड्रेस में मुझे देख कर आज वहाँ लाइन लगाने वालों की लाइन लग जाती।

मेरे पति और मैं हम दोनों तुम्हें पसंद करते हैं। तुम में सच्चाई है यह तुम्हारी खूबी है। मुझे तो आईडिया हो ही गया था की तुम मुझ पर लाइन मार रहे हो और हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो। देखो उस दिन पार्क में टीना भी थी, फिर भी तुमने मुझे छेड़ दिया और मुझे इधर उधर छू लिया था। और फिर उस सुबह जब तुम मेरी मदद करने रसोई में आये थे तब तुमने मुझे बाथरूम में सब जगह छू ही नहीं लिया था और भी बहुत कुछ किया था। आज होली के दिन भी तुमने मेरे साथ क्या क्या नहीं किया? ... "

ऐसा कह कर दीपा तरुण को उसकी हरकतों के बारे में बोलती गयी और विस्तार से बताने लगी। मैं तो जानता ही था की दीपा एक बार शुरू हो गयी तो उसे रोकना मुश्किल था। मेरी बीबी वैसे ही बातूनी है और शराब का तड़का जब लगा तो वह कहाँ रुकने वाली थी? धीरे धीरे सारी बातें साफ़ हो रहीं थीं और सब के मन की बात बाहर आने लगी थीं।

दीपा तरुण से बातें करने में और तरुण की बातें सुनने में इतनी मग्न थी तब मैंने देखा की तरुण ने अपना बाँया हाथ धीरे से दीपा के बदन के पीछे दीपा की पीठ और कार की सीट की बैक के बिच में घुसेड़ दिया। पीछे मेरी बीबी का ब्लाउज सिर्फ दो डोर के सहारे टिका हुआ था। तरुण ने हलके से बड़ी चतुराई से दीपा को अपनी बातों में उलझाए रखते हुए पता नहीं कब वह दोनों डोर एक के बाद एक करके खोल दिए। मुझे भी पता नहीं चलता पर मैंने देखा की दीपा का ब्लाउज ढीला सा आगे की तरफ झुका हुआ था। दीपा को पता नहीं चला की कब उसके ब्लाउज को तरुण ने खोल दिया।

उसी दरम्यान जब मैंने दीपा को अपने कूल्हे बार बार सीट पर खिसकाते हुए देखा तो मैंने दीपा की पीठ पीछे देखा तो पाया की तरुण अपना हाथ दीपा के कूल्हे के निचे तक ले जाकर शायद दीपा की गाँड़ में साडी के तले से उंगली कर रहा था। पता नहीं क्यों मेरी बुद्धू बीबी अपने कूल्हे इधर उधर खिसका ने के अलावा इस का कोई प्रत्युत्तर नहीं दे रही थी। क्या उस को तरुण क्या कर रहा था यह समझ नहीं आ रहा था या फिर वह तरुण की शरारत को जानबूझ कर झेल रही थी, या क्या वह तरुण की शरारत को एन्जॉय कर रही थी?

दीपा की पतली महिम ब्रा ब्लाउज के खुल जाने से साफ़ दिख रही थी। वह ब्रा भी जाली वाली पार दर्शक सी ही थी। उस ब्रा के अंदर से मेरी बीबी की दूधिया सफ़ेद चूँचियों के बिच में कामुकता भरा चक्कर बनाये हुए चॉकलेटी एरोला के शिखर पर अपना सर खड़ा रखती हुई दीपा के स्तनोँ की निप्पलेँ अल्लड खड़ी हुई नजर आ रही थी। शायद तरुण की आँखें भी उस नज़ारे का रसास्वादन कर रही थीं।

उस समय तरुण रमेश और उसका दोस्त उस दोस्त की पत्नी की टांगें खोल कर उसका घाघरा चोली निकाल कर बीबी की चूत को बारी बारी से कैसे चाटने लगे थे उसका विवरण कर रहा था। हालांकि दीपा तरुण की कहानी पुरे ध्यान से सुन रही थी, पर ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे वह कार के बाहर कही दूर अँधेरे में कुछ देख रही हो और जैसे उसे कहानी में कोई ज्यादा दिलचस्पी ही ना हो।

दीपा को तरुण की हरकतों के बारे में शायद आइडिया हो की तरुण कुछ शरारत कर रहा था पर उसे टोक नहीं रही थी क्यूंकि एक तो वह थोड़ी उन्माद की स्थिति में थी और शायद वह दिखाना चाहती थी की वह तरुण की ऐसी वैसी हरकतों से पीछे हटने वाली नहीं थी। या फिर गुस्सा करके वह माहौल बिगाड़ना नहीं चाहती थी। मैं अपने मन में मेरी बीबी के मन में क्या चल रहा होगा उसकी कल्पना मात्र ही कर सकता था।

तरुण की उत्तेजना भरी कहानी सुनकर मैं तो पागल सा हो रहा था। शायद दीपा का भी वही हाल था। तब मैंने साफ़ देखा की तरुण ने मेरी बीबी के पीछे ब्रा के पट्टे का एक ही हल्का सा हुक था उसे खोल दिया। दीपा की ब्रा की पट्टी पीछे से खुल गयी। दीपा की ब्रा दीपा के कंधे पर लटक गयी और उसके अल्लड और उन्मत्त खड़े दोनों स्तन आधे खुले हुए दिखने लगे।

तरुण ने जैसे ही दीपा के स्तनों को आधे अधूरे खुले हुए देखा तो उसकी आँखें फटीं की फटीं रह गयीं। उस समय वह रमेश के दोस्त की बीबी रमेश और उसके दोस्त के लण्ड बारी बारी से हाथ में पकड़ कर कैसे चूस रही थी उसका वर्णन कर रहा था। पर तरुण ने जब दीपा के उद्दंड स्तनोँ को अधखुली दशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उसके मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गयी।

दीपा ने जब तरुण की और देखा और तरुण को अपने स्तनोँ की और एकटक देखते हुए पाया तो उसे समझ आया की उसके ब्लाउज के डोरे और ब्रा की पट्टी खुली हुई थीं। तब मैंने महसूस किया की दीपा के गुस्से का पारा चढ़ रहा था और जल्दी ही कुछ ना किया गया तो वह एक़दम सातवें आसमान को छू सकता था और वह तरुण की ऐसी की तैसी कर सकती थी। अगर ऐसा हुआ तो सारी शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा और दीपा एकदम वापस घर जाने की जिद पर उतर आएगी तो हमें मजबूरी में यह सारा प्रोग्राम कैंसिल करना पडेगा।

यह सोच कर मैं मेरी बीबी की और घूम गया। मैंने मेरी बीबी दीपा को ऊपर उठाया, अपनी और खींचा, सीट पर अपनी टाँगे लम्बीं कीं, और उसे अपनी बाहों में समेट मैंने दीपा की टांगें फैला कर उसको उठा कर मेरी गोद में ले लिया। उसे मेरी तरफ घुमा कर मेरी टांगों के ऊपर मेरी गोद में बैठना पड़ा।

मैं पीछे सरक कर कार के दरवाजे से अपनी पीठ टिका कर बैठ गया, जिससे मेरे पाँव सीट पर लम्बे हो सकें। पर ऐसा करने से दीपा के पाँव लम्बे नहीं हो सकते थे। दीपा को एक पाँव सीट के निचे लटकाना पड़ा और चूँकि मैं कार के दरवाजे से पीठ सटा कर बैठा हुआ था , दीपा का दुसरा पाँव घुटनों से मोड़ कर दीपा मेरी गोद में बैठी हुई थी। दीपा का घाघरा दीपा के घुटनों से भी ऊपर करीब करीब उसकी पैंटी के छोर तक चढ़ गया था। दीपा की करारी जाँघें लगभग नंगी हो चुकी थीं। हालांकि दीपा की पैंटी तरुण दीपा के पीछे होने से, और दीपा की चूत मेरे लण्ड से सटी होने के कारण तरुण को नहीं दिखाई पड़ती थी।

मेरी टांगें तरुण की जाँघों को छू रही थीं। दीपा की पीठ तरुण की तरफ थी। आगे की सीट की थोड़ी सी जगह में यह सब थोड़ा मुश्किल था। दीपा को मजबूरन अपना घाघरा फैलाकर मेरी कमर के दोनों तरफ अपनी दोनों टाँगों को करना पड़ा। दीपा का घाघरा (पेटीकोट) उसकी जाँघों के ऊपर तक चढ़ गया था। मैंने तरुण के हाथ दीपा के पीछे से हटा दिए और मैं ऐसे नाटक करने लगा जैसे मैंने ही उसके ब्लाउज की डोरी और ब्रा की पट्टी खोली हो। मेरी बीबी की गाँड़ तक अपने हाथ ले जा कर मैं उसकी गाँड़ के गालों को दबाने लगा।

बड़ी मुश्किल से मेरी पत्नी बोल पायी की "दीपक यह क्या कर रहे हो? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?"

मैंने कहा, "मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ तो तुम्हें परेशानी लगती है?" मैं यह कह कर मैं फिर से मेरी बीबी को मेरे बदन से दबा कर उसे चूमने और उसकी पीठ को प्यार से सहलाने लगा। मेरी बात सुनकर दीपा चुपचाप मुझसे अपने होँठ और जीभ चुस्वाति रही।

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बाहर से देखने वाले को तो शायद ऐसा ही लगता जैसे दीपा मेरी गोद में बैठ कर मुझे चोद रही थी। मैंने दीपा को उसकी बाँहें मेरे गले में डालकर मुझे चुम्बन करने के लिए बाध्य किया। दीपा भी उकसाई हुई थी। वह भी अपनी बाँहों में मुझे लपेट कर मेरे होँठों से अपने होँठ भींच कर मुझे गहरा चुम्बन करने में जुट गयी।


ऐसा करते हुए मैंने तरुण की और देख कर एक आँख मटक कर कहा, "यार तरुण, तुम्हारी कहानी तो अच्छे अच्छों का लण्ड खड़ा कर देने वाली है। मेरा लण्ड भी कितना गरम हो कर खड़ा हो गया और फुंफकार रहा है।" मैंने फिर दीपा की और घूम कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक पागल की तरह मैं उन्हें चूमने और चूसने लगा।

दीपा भी तो उत्तेजित हो गयी थी। वह भी काफी गरम थी। वह अपनी खुली हुई चूँचियों भूल ही गयी। उसके गुस्से पर मैंने जैसे पानी फेर दिया। जब मैं दीपा को चुम रहा था तो दीपा मुझे रोक कर कुछ खिसियानी सी आवाज में बोल पड़ी, "अरे रुको। यह क्या कर रहे हो? कुछ शर्म है की नहीं? तरुण यहाँ बैठा हुआ है और सब देख रहा है।"

मैंने दीपा को कहा, "देखा? यही तो मैं कह रहा था की आज की रात जब मैं तुम्हें प्यार करूंगा तो तुम मुझे यह कह कर रोकेगी की तरुण है। तुमने मुझे वचन दिया था की तुम ऐसा नहीं कहोगी और मुझे प्यार करने दोगी। अब तुम वापस मुकर गयी ना? अरे तरुण की ऐसी की तैसी। मुझे प्यार करने दो ना यार!"

मैंने उसे पहले से हिदायत दी थी की तरुण आये या ना आये, मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा ही। तो दीपा मुझे मना नहीं कर सकती थी। उसने तो मुझे वचन जो दिया था। वैसे भी उसके लिए यह मुमकिन नहीं था की मेरे बाहुपाश से छूटकर अपनी चूँचियों को वह सम्हाल सके।

अपने वचन से बंधी हुई दीपा लाचारी में मुझे चूमने से रोक नहीं पायी और खुद भी इतनी गरम हो गयी थी की बिना तरुण की परवाह किये वह मेरे होंठों को चूसने लगी।

मैंने तरुण से कहा, "तरुण, सॉरी यार। मैं तुम्हारी गरमागरम कहानी सुनकर मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता। दीपा डार्लिंग, आज तुम्हें हमारे साथ बैठ कर खुल कर बातें करते हुए देख कर मुझे बहोत बहोत बहोत अच्छा लगा है। मजाक अलग है पर आज मुझे तुम पर वाकई में नाज है। आज मुझे ऐसा लगा है जैसे हम लोग हनीमून मना रहे हों।"

दीपा ने मेरी और मुस्करा कर देखा और कुछ दबी सी आवाज में मेरे कानों में बोली जिससे तरुण ना सुन सके, "अच्छा? हम क्या तरुण के साथ हनीमून मना रहे है?"

मैंने कहा, "तो क्या हुआ? तरुण अपना ही है, कोई पराया थोड़े ही है? पर फिलहाल तो तरुण की ऐसी की तैसी"

हम कभी हनीमून पर तो गए नहीं थे। पर मेरी हनीमून वाली बात सुनकर वह काफी खुश थी। उसका गुस्सा पिघल चुका था। मेरी बात सुनते ही बिना बोले दीपा मेरे साथ चुम्बन में जुट गयी। किस करते करते मैंने दीपा की साडी को उसकी जांघों से ऊपर खींचते हुए तरुण की और मुड़कर देखा और कहा, "तरुण, तुम्हारी कहानी ने मुझे इतना उत्तेजित कर दिया है की मैं अपने आप को कंट्रोल में रख नहीं पा रहा हूँ।"

दीपा भी उतनी उत्तेजित हो गयी थी की वह मुझसे लिपट कर जोश से चुम्बन करने लगी और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझसे अपनी जीभ चुसवाती रही। दीपा ने पीछे मुड़ कर हमारी और हैरानगी से देख रहे तरुण को देखा। फिर उसे हलकी सी मुस्कराहट देकर फिर वह मुझे किस करने लग गयी। दीपा के मेरी गोद में आ जाने से मैं उसकी और घूम गया था और उसे मेरी और घूमना पड़ा था, जिसके कारण उसकी नंगी पीठ तरुण की तरफ हो गयी थी। दीपा की ब्रा की पट्टी का हुक तो तरुण ने पहले से ही खोल दिया था।

दीपा की साडी की गाँठ भी दीपा के अपनी सीट पर बार बार सरकने से खुल गयी थी। मतलब के दीपा की पीठ उसकी गाँड़ तक नंगी थी। तरुण को उस समय दीपा की गाँड़ का कट भी नजर आ रहा था। हालांकि दीपा का घाघरा जरूर था, पर वह भी दीपा ने काफी निचे पहना हुआ था जिसके कारण तरुण को दीपा की गाँड़ का कट अपनी नज़रों के सामने दिख रहा था। मैं तरुण की नजर देख रहा था जो दीपा की गाँड़ पर टिकी हुई थी।

दीपा को उठा कर मेरी गोद में बिठाते हुए मैंने पाया की दीपा की साडी की गाँठ खुलने के कारण दीपा की साडी एक कपडे का ढेर बनकर दीपा की कमर के इर्दगिर्द लिपटी हुई थी। दीपा ने भी यह महसूस किया। दीपा की साडी की गाँठ अपने आप खुल गयी थी या तरुण का भी उसमें कोई योगदान था मुझे नहीं पता।

दीपा ने तरुण ना सुने इतनी धीमी आवाज में मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, "मैंने तुम्हें बोला था ना की यह साडी वजन में एकदम हलकी और फिसलन वाली है? देखो अब इसकी गाँठ खुल गयी। तुम तो मुझे सेक्सी कपडे पहनने के लिए कह रहे थे पर यहां तो मैं नंगी ही हो गयी ना? तुमने मेरी इज्जत का तो फालूदा करवा ही दिया ना?"

दीपा की बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने तो दीपा से यह साडी पहनने के लिए नहीं कहा था। पर खैर, मैंने उसे समझाते हुए कहा, "कोई बात नहीं। तरुण ने तुमको पहले आधी नंगी नहीं देखा क्या? तुम्हारी जाँघों को नहीं देखा क्या? तुम कार में ऐसे ही बैठी रहो। तुम चिंता मत करो। मैं तरुण को कार से बाहर जाने ले लिए कहूंगा। तब तुम साडी दोबारा पहन लेना। पर अभी तो मुझे तुम्हारे रसीले होंठों का रस पान करने दो ना?"

दीपा के होँठों से रस टपक रहा था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डाली तो दीपा उसे चाटने लग गयी। मैं और मेरी बीबी दीपा एक उत्कट आलिंगन में जकड़े हुए थे तब तरुण ने मेरी एक बाँह पकड़ी और बोला, "भाई कमाल है। आप दोनों तो गरम हो कर एक दूसरे से लिपट कर अपने बदन की आग बुझा सकते ही पर मेरा क्या? तुम मियाँ बीबी मुझ पर बड़ा जुल्म ढा रहे हो। मेरा कसूर यही है ना की मेरी बीबी मेरे साथ नहीं है?"

मैंने देखा की तरुण मेरी बीबी की नंगी करारी जाँघों को दीपा के कंधे से ऊपर सर उठा कर देखने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया तब उसने अपनी नजरें घुमा दीं।

तब मैंने तरुण को तपाक से जवाब देते हुए कहा, "यह सच है की तेरी बीबी इस वक्त नहीं है। पर दीपा और टीना एक दूसरे को बहन मानते हैं। तो दीपा तेरी साली तो है ना? साली तो आधी घरवाली ही होती है ना? क्यों दीपा, बोलती क्यों नहीं?"

दीपा ने आँख टेढ़ी करके मेरी और देखा और कटाक्ष में बोल पड़ी, "क्यों नहीं? भड़काओ अपने दोस्त को। और दोनों मिल कर मेरी बैंड बजा दो। क्यों भाई? क्या मैं तरुण की साली हूँ? तरुण तो मुझे भाभी कह रहा है, तो तरुण मेरा देवर हुआ की नहीं? अब यह मत कहिये की देवर आधा घरवाला होता है, या भाभी भी आधी घरवाली होती है।"

तरुण और मैं दीपा की बात सुनकर हंस पड़े। तरुण ने कहा, "भाभी, मैं ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ। बस मैं तो अपनी तक़दीर को कोस रहा था और भाई की तक़दीर की तारीफ़ कर रहा था की उन्हें आप जैसी कंधे से कंधा मिला कर पूरा साथ देने वाली अक्लमंद, हिम्मतवाली, खूबसूरत और सेक्सी साथीदार पत्नी के रूप में मिली है।"


दीपा मेरी गोद मैं मेरी टाँगों के ऊपर बैठी हुई थी। उसका मुंह मेरी और था और पीठ तरुण की और। दीपा थोड़ी घूमी और उसने अपना एक हाथ तरुण की और लम्बाया और बोली, "अरे तुम मेरे दीपक पर क्यों जल रहे हो? अगर मैं दीपक की साथीदार हूँ तो क्या मैं तुम्हारी साथीदार नहीं हूँ? अगर टीना नहीं है तो दुखी मत होना। मैं तो हूँ ना?" ऐसा कह कर दीपा ने तरुण को अपनी दाँहिनी बाँह में लिया। कुछ पलों के लिए दीपा को ध्यान नहीं रहा की उसका ब्लाउज और ब्रा खुले हुए थे। अगर तरुण उसकी बाँहों में आया तो तरुण का हाथ और अगर वह झुक गया तो उसका मुंह दीपा की चूँचियों को जरूर छुएगा।

तरुण ने मौक़ा पाकर दीपा के एक बॉल को एक हाथ में पकड़ा और उसे सहलाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ उसके स्तन को छूते ही दीपा मचल उठी।दीपा के पुरे बदन में एक झनझनाहट फ़ैल गयी जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो। वह एकदम भड़क गयी जब उसे ध्यान आया की उसकी चोली और ब्रा खुले हुए थे। दीपा सावधान हो गयी। दीपा ने तरुण को एक हाथ से धक्का मारकर हटाया और अपनी ब्रा और ब्लाउज ठीक करने में जुट गयी।

दीपा ने तरुण पर दहाड़ते हुए कहा, "तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे। मैं आप लोगों के साथ इतना कोआपरेट कर रही हूँ फिर भी तुम मुझे सताने पर क्यों तुले हुए हो?"

दीपा की जब तगड़ी डाँट पड़ी तब घबड़ा कर तरुण फ़ौरन दरवाजा खोल कर कार से बाहर निकला। वह घूम कर मैं जिस तरफ बैठा था उस दरवाजे के पास आ गया। कार का मेरी तरफ वाला दरवाजा खोलते ही मैं तरुण की सीट (ड्राइवर सीट की ) और थोड़ा सरक गया। दीपा ने तब कुछ राहत अनुभव करते हुए अपनी टांगें सीट पर लम्बी कर दीं। दीपा की टाँगें दरवाजे के बाहर निकल पड़ीं। उस समय दीपा मेरी गोद में मेरी पतलून में छिपे हुए मेरे लण्ड से उसकी साडी, घाघरा और पैंटी में छिपी हुई अपनी चूत सटाकर मेरी जाँघों पर अपने कूल्हों को टिका कर बैठी थी। मेरी कमर की दोनों और उसकी टाँगें फैली हुई थीं। मैं दीपा की और घुमा हुआ था। दीपा का घाघरा उसकी जाँघों को नंगा करता हुआ काफी ऊपर लगभग दीपा की पैंटी तक चढ़ा हुआ था।

कार के दरवाजे को खोलते ही जब तरुण की आँखो को मेरी बीबी की नंगीं जाँघों के दर्शन हुए तो वह पागल सा होगया। वह झुक कर दीपा के पाँव के तलेटी के सोल को चूमने और चाटने लगा। तरुण दीपा के पाँव पकड़ कर बोला, "भाभीजी मुझे माफ़ कीजिये। मैंने कहा नहीं, की मैं एक बन्दर हूँ। भाभी सच मानिये मैं आपकी बहोत रीस्पेक्ट करता हूँ। पर मैं जब आपका सेक्सी बदन देखता हूँ ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मैं अपने आपको कण्ट्रोल ही नहीं कर पाता हूँ। आप तो जानते ही हो।" फिर अपने दोनों अंगूठों को दोनों कान पर रख कर तरुण उठक बैठक करने लगा।

मैंने प्यार से दीपा का हाथ थामा और धीरे से दबाया और दीपा के कानों के पास मेरे होँठ ले जाकर उसके कानों में प्यार भरी आवाज में धीरे से बोला, "यार डार्लिंग, गुस्सा क्यों करती हो? तुम्ही ने कहा था की आज तुम गुस्सा नहीं करोगी और हमारा साथ दोगी। फिर गुस्सा क्यों? तुम्हारे इतने खूबसूरत बूब्स खुले देख कर तरुण से रहा नहीं गया और उसने उन्हें मसल दिए, तो कौनसा आसमान टूट पड़ा यार? तुम ही सोचो अगर तुम उसकी जगह होती तो क्या तुम्हारा मन नहीं करता? उसने तुम्हारे बूब्स ही दबाये है ना? तो क्या हुआ? पहले नहीं दबाये क्या? डार्लिंग गुस्सा मत करो। मैंने कहा ना था की वह तुम्हें छेड़ेगा? बेचारा क्या करे? वह टीना के बगैर तड़प रहा है। जब से तुम उसके पास बैठी हो ना, तबसे उसका लण्ड उसकी पतलून में बड़ा टेंट बना रहा है। तुमने देखा नहीं? मुझे तो डर था की कहीं अँधेरे में उसने अपना लण्ड तुम्हारे हाथ में पकड़ा कर अपना माल निकलवाने के लिए उसने तुम्हें मजबूर ना किया हो। क्यूंकि तुम्ही देखो ना अभी भी वह अपना लण्ड कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा है। जानेमन तुम समझो। प्लीज अब तुम शांत हो जाओ और एन्जॉय करो। प्लीज?"

मेरे इतना कहने पर दीपा मेरी और बड़ी तिरस्कार भरी आँखों से देखने लगी और चुप हो गयी। फिर कुछ देर बाद कुछ सहम कर थोड़ी शर्माती हुई अपने आप पर कुछ नियंत्रण रखते हुए मेरे कानों में फुसफुसाती हुई बोली, " क्या तुमने देख लिया था? दीपक मुझे माफ़ करना। मैं कबुल करती हूँ की उसने कार में जब हम कवितायें सुन रहे थे तब मेरा हाथ उसकी टाँगों के बिच में उसके पतलून की जीप पर रख दिया था और ऊपर से मेरे हाथ को दबा रहा था। तुम सही कह रहे थे। बापरे! उसका लण्ड उसकी पतलून में लोहे की तरह खड़ा होगया था। हालांकि उसका लण्ड उसकी पतलून में ही था, मुझे ऐसा फील हुआ जैसे उसका लण्ड उसकी पतलून फाड़ कर बाहर आ जाएगा। पतलून के ऊपर से ही मुझे लग रहा था जैसे वह बड़ा मोटा और लंबा है। तरुण वाकई चाहता था की मैं उसकी जीप खोल कर उसके लण्ड को पकड़ कर सेहलाऊं। उसने मेरा हाथ भी उसकी जीप पर दबा कर रख दिया था। पर मैंने उसकी जीप नहीं खोली और कुछ देर बाद मेरा हाथ वहाँ से हटा दिया। मैंने उसका माल वाल नहीं निकाला।" मेरी बीबी के यह स्वीकार करने से मेरा लण्ड भी मेरी पतलून में खड़ा हो कर फुंफकारने लगा।

दीपा फिर तरुण की और पीछे मुड़ कर तरुण को थोड़ी दूर उठक बैठक करते हुए देख कर हंस कर मेरे कानों में फुसफुसाती हुई मुझसे बोली, "करने दो उसको कुछ देर कसरत। उसकी सेहत के लिए अच्छा है। साले का लण्ड मुझे देखता है तब खड़ा हो जाता है और कुदने लगता है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग तो कभी कबार बेचारे पर दया खा कर उसे शांत कर दिया करो ना?"

फिर वापस मेरी और मुड़कर थोड़ी झल्ला कर बोली, "दीपक, यार तुम भी ना कभी कभी बड़ी ऊलजलूल बात करते हो। तुम्हारा दोस्त तरुण सिर्फ बन्दर ही नहीं, बहुत बड़ा लम्पट बन्दर है। पता नहीं मुझे देख कर ही इसकी जीभ लपलपाने लगती है। यह मुझे बहोत ज्यादा फ़्लर्ट करता और छेड़ता रहता है और मैं सच बताती हूँ की जब वह मुझे छेड़ता है तो मुझे अंदर से पता नहीं क्या हो जाता है? मैं भी पागल सी हो जाती हूँ। यह तो सुधरेगा नहीं। अब तो मैं वाकई तंग आ गयी हूँ। तुम भी हमेशा उसको ही सपोर्ट करते रहते हो। बोलो ना, आखिर तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? बोलो तो सही। मुझसे क्या हिचकिचाना? मैं तुम्हारी बीबी हूँ। क्या आज तक मैंने कभी तुम्हारी कोई बात नकारी है? एक बार बोलो तो सही तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? यार बर्दाश्त की भी कोई हद होती है। इतना घुट घुट के बार बार मरने से तो एक बार मर जाना ही अच्छा है।"

तरुण उस समय कार के बाहर निकल कर कुछ दूर धीरे धीरे दीपा को दिखाने के लिए दण्डबैठक लगाने का ढोंग कर रहा था। वह हमारी बात नहीं सुन सकता था। मैंने दीपा के कान में अपने होंठ रखे और उसे एकदम धीरे से फुसफुसाते हुए पूछा, "डार्लिंग एक बात बताओ। हम तरुण को कह रहे हैं की उसी ने उस पति पत्नी के साथ मिल कर थ्रीसम एम.एम.एफ. किया था। शायद ऐसा ही हुआ भी होगा।

इसका मतलब तो तरुण को थ्रीसम का अच्छा खासा अनुभव है। तो फिर क्यों ना हम भी उसके अनुभव का फायदा उठायें, और उससे एम.एम.एफ. थ्रीसम करें? तुमने खुद कहा की अगर सेक्स में नीरसता आगयी हो और अगर सब की मर्जी से होता है तो एम्.एम्.एफ. थ्रीसम कोई बुरी बात नहीं है। तुम्हें नहीं लगता की वह हम पर भी लागू होता है? हमारी शादी को भी कई साल हो गए हैं? क्या तुम मानती हो की नहीं की हमारी सेक्स लाइफ में भी कुछ हद तक नीरसता आ गयी है?"

यह बात कह कर मैंने मेरी बीबी को घुमा फिरा कर यह इशारा कर ही दिया की मैं चाहता था की मेरी बीबी उस रात मुझसे और तरुण से चुदवाये। दीपा ने मेरी और टेढ़ी नजर कर के मेरे कान में पूछा, "क्या तुम मुझसे ऊब गए हो?"

मैंने कहा, "नहीं ऊबने वाली बात नहीं है। मैं तो तुमसे नहीं उबा हूँ पर शायद कुछ हद तक तुम मुझसे ऊब गयी हो। चलो, इस तूतू मैंमैं की बहस को छोड़ दो पर अगर हम हमारे जीवन में कुछ नयापन लाना चाहें तो क्या बुरी बात है?"

दीपा ने अपने कन्धों को उठा कर कहा, "क्या पता भाई। जब से तरुण ने हमारी जिंदगी में कदम रखा है तब से मुझे तो नयेपन की कोई कमी नहीं खल रही। रोज ही तुम्हारा यह बन्दर नयापन ला रहा है। कभी वह पिकनिक में मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे बूब्स दबाता है, कभी वह मुझे बाथरूम में दबाकर किस करता है, कभी वह होली में मुझे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मेरे बूब्स को भी रंगता और बिंदास मेरी चूँचियों को दबाता और मसलता है, कभी मेरा घाघरा उठा कर मेरी जाँघों को सेहलता है, कभी घर आ कर तुम्हें अपनी बीबी की आधी नंगी तस्वीरें दिखाता है। कभी वह पतलून में छिपे हुए उसके खड़े मोटे और लम्बे लण्ड को मेरे हाथ में पकड़ाने की कोशिश करता है, कभी वह अँधेरे का फायदा उठा कर मुझे खुले में कार के पीछे खड़ी कर अपनी बाँहों में जकड कर कपडे पहने हुए ही चोदने की कोशिश करता है, और मेरे पति उसमें उसका साथ देते हैं। जब मेरे पति ही चाहते हैं की तरुण मुझे और छेड़े तो मैं लाचार हो जाती हूँ क्यूंकि मैं मानती हूँ की पति पत्नी के बिच में विचार मतभेद हो सकते हैं, पर उन को हमेशा साथमें चलना चाहिए। हो सकता है मैं आपसे सहमत न होऊं, पर अगर आपकी प्रखर इच्छा हो या ज़िद हो तो मुझे भी उसके आगे झुकना पडेगा। तभी तो हम साथ साथ चल सकते हैं। पति को पत्नी पर पूरा भरोसा होना चाहिए और पत्नी को पति की बात माननी चाहिए। मैं कभी आपसे असहमत हो सकती हूँ पर कभी ऐसा नहीं होगा की मैं आपके विरुद्ध जाउंगी। मैं हमारे बिच में कभी भी कोई घर्षण नहीं होने दूंगी। और जहां तक नयेपन का सवाल है तो आजकल तरुण के कारण मेरी जिंदगी में नयापन ही नयापन है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग क्यों ना आज रात हम सब मिल कर इस नयेपन को पूरी तरह एन्जॉय करें?"

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