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Misc. Erotica सेक्स, उत्तेजना और कामुकता -
#81
Tongue 
दीपा ने उससे कहा- दरवाजा लॉक कर लो।


मनोज बोला- आज दरवाजा खोल कर सेक्स करेंगे। मैंने सुनील से कह दिया है कि मन करे तो वो भी आ जाए।

दीपा बोली- जाओ पहले दरवाजा लॉक करो, फिर इधर आना।

मनोज ने दरवाजा लॉक किया और कपड़े उतार कर आ गया बेड पर। जैसे ही उसने चादर हटाई तो देखा दीपा बिल्कुल नंगी लेटी थी, यानि पूरे मूड में थी। मनोज तुरंत नीचे होकर उसकी चूत चाटने लगा। दीपा ने मेहनत तो की ही थी अपनी चूत से आज, और इसका अहसास मनोज को हो रहा था। चूत आज ज्यादा चिकनी और खुशबूदार लग रही थी। असल में दीपा कहे कुछ भी ... पर उसने सुनील के लिए तैयारी पूरी कर ली थी। आज दीपा ने अपनी चूत को गुलाबजल से नहलाया था और अपने पूरे शरीर पर गुलाब का स्प्रे किया था। मनोज ने भी अपनी पूरी जीभ घुसा दी थी। और दीपा भी अब अपने कूल्हे उठवा कर चूत चुसाई का पूरा मजा ले रही थी।

अब मनोज 69 पोजीशन पर आ गया और दीपा ने उसका लंड पूरा मुंह में ले लिया था।

अरे ये क्या ... मनोज ने भी लंड चिकना कर लिया था। दीपा को ध्यान आया कि आज सुबह मनोज अकेले नहाया था और उसे वाशरूम में समय भी ज्यादा लगा था। तो महाशय सुनील से चुसवाने के लिए अपना लंड चिकना कर के आये थे।

दीपा ने उसका लंड मुंह से निकाल कर कहा- अपने यार से चुसवाने को बड़ा चिकना किया है तो उसी के पास चले जाओ और चुसवा आओ।

मनोज बोला- तू कहे तो उसे यहीं बुला लूं, मैं भी चुसवा लूँगा तुम भी चटवा लेना।

यह सुन कर दीपा को भी जोश चढ़ गया, वो मनोज के ऊपर चढ़ गयी और अपने हाथ से उसका लंड अपनी चूत पर सेट किया,

दीपा बोली- आज तो तुम मजे दो, कल चुदवायेंगे।

यह सुन कर मनोज को भी जोश चढ़ गया और उसने एक ही धक्के में अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ दिया और लगा उछलने।

वो बोल रहा था- जानू कल मना मत कर देना। तुमने देखा नहीं सुनील का लंड कितना खड़ा हो गया था तुम्हें नाईट ड्रेस में देखकर।

अब उसने दीपा को नीचे किया और उसकी टाँगें चौड़ा कर घमासान चुदाई शुरू की। दोनों ये भूल ही गए की बगल के कमरे में सुनील उनकी आवाज सुनकर अपना लंड की मुठ मारने की तैयारी कर रहा है। इधर मनोज ने अपना सारा माल निकाल कर दीपा चूत भर दी तो उधर सुनील ने अपना सारा माल पेपर टिश्यू पर निकाल दिया।

सुबह दीपा मनोज 8 बजे सोकर उठे. मनोज को आज ऑफिस तो जाना नहीं था. मनोज ने दीपा से चाय बनाने के लिए कहा और खुद सुनील के रूम में जाने लगा.

दीपा ने मनोज से कहा- रुको, पहले मैं कपड़े ठीक से पहन लूं, रात की बात और थी।

पर मनोज ने कहा- सुनील से कोई तकल्लुफ नहीं है, तुम यही नाईट ड्रेस डाल लो।

दीपा ने फिर बिना ब्रा के ही ड्रेस डाल ली। हालांकि उसके मम्मों की नुकीली नोक उठ कर आ रही थी तो,

दीपाने मनोज से कहा- मैं ब्रा पहन लेती हूँ।

मनोज बोला- रहने दो, देखना अभी उसका फिर खड़ा हो जाएगा।

अब दीपा की बला से ... जब उसके आदमी को ही फर्क नहीं है तो उसे किसी की परवाह नहीं।

दीपा वाशरूम से फ्रेश होकर रसोई में गयी तो पीछे से हँसता हुआ मनोज आया और दीपा को इशारे से बाहर बुलाया और होंठों पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया। वो उसे लेकर सुनील के कमरे में गया। सुनील बेसुध सोया पड़ा था पर बिल्कुल नंगा, उसका लंड देख कर दीपा को मजा आ गया। लम्बा और मोटा और इस समय भी खड़ा हुआ। नीचे वो ही टिश्यू पड़ा था जिस पर रात की कहानी लिखी थी सुनील ने। दीपा ने चुपके से वो टिश्यू उठा लिया और मुस्कुराते हुए बाहर आ गए दोनों। मनोज ने किवाड़ बंद कर दिया और बाहर आकर सुनील को जोर से दो आवाज दी। सुनील जग गया और फिर दस मिनट बाद फ्रेश होकर कपड़े पहन कर बाहर आया। बाहर चाय रखी थी और दीपा पूरे मूड में मुस्कुराती हुई बैठी थी।

सुनील ने एक ही नजर में दीपा के मम्मों के नुकीले उभार देख लिए। उसका बस चलता तो अभी दबोच लेता। चाय पीकर सुनील और मनोज बाहर घूमने चले गए। उन्होंने दीपा से भी कहा तो

दीपा बोली- नहीं मेड आती होगी, मैं नाश्ता बनाती हूँ, तुम दोनों घूम आओ।

दीपा ने ड्रेस चेंज कर ली। उसने डीप नैक की काफ्तान पहनी और बोटम कुछ नहीं। लाल फूलों के प्रिंट की काफ्तान, खुले बाल, उसका अंदाज कातिलाना था। मेड से काम करवा कर और नाश्ता बना कर दीपा फ्रेश हो गयी।

सुनील और मनोज लौट आये। दीपा ने नाश्ता लगा दिया और उनसे कहा कि आ जाएँ।

मनोज को एक बार फिर फ्रेश होने जाना था। सुनील हाथ धोकर टेबल पर आ गया। सुनील की प्लेट एक छोटी प्लेट से ढकी थी। दीपा कुछ सामान लेने का बहाना कर के रसोई में गयी। सुनील ने जैसे ही अपनी प्लेट हटाई तो उसमें रात वाला टिश्यू रखा था और उस पर दीपा के होंठों के लाल लिपिस्टिक के निशाँ बने थे। सुनील सकुचा गया! इसका मतलब दीपा का मालूम पड़ गया कि उसने रात मुठ मारी है।

और क्या पता दीपा सुबह कमरे में आई हो? तभी दीपा के आने की आहट हुई तो उसने टिश्यू छिपा लिया और अपनी प्लेट में नाश्ता परोसने लगा।

मनोज भी आ गया था।

दीपा ने एक टेढ़ी निगाह सुनील की ओर देखा और आँख मार दी।

सुनील मुस्कुरा दिया।

नाश्ते में मनोज और सुनील बैठे, दीपा गर्म गर्म कटलेट सेक रही थी तो वो नहीं बैठी। मनोज ने जिद की कि सेक लो, फिर एक साथ नाश्ता करेंगे। दीपा फटाफट कटलेट सेक लायी और अब सोच रही थी कि चार लोगों वाली टेबल पर कहाँ बैठूं। जाहिर है मनोज के साथ ही बैठती, पर अभी एक मिनट पहले मनोज रसोई में आकर उससे कह गया था कि वो सुनील के साथ बैठे। दीपा सुनील की साथ ही बैठी।

सुनील ने उसकी प्लेट में नाश्ता सर्व किया। अब मनोज नीचे से दीपा के पैर अपने पैर से सहलाने लगा और सुनील की ओर करने लगा।

दीपा समझ गयी कि मनोज उसकी सुनील से नजदीकी चाहता है। उसने किसी बहाने से अपनी कुर्सी सुनील की कुर्सी से सटा ली। अब दीपा की बांहें सुनील की बांहों से टकरा रही थीं।

सुनील ने हलवे की एक चम्मच मुंह में डाल कर कहा- दीपा तुम चीनी डालना तो भूल गयीं।

दीपा चौंकी, बोली- चीनी तो मैंने डाली है।

सुनील ने अपनी चम्मच से हलवा दीपा को खिलाया तो

दीपा बोली- है तो मीठा।

अब सुनील ने उसी चम्मच से फिर खाया और बोला- हाँ अब तुम्हारी झूठी चम्मच से खाने से मीठा हो गया।

दीपा उसकी बदमाशी समझ गयी, उसने एक धौल लगा दिया सुनील को, तभी मनोज का फोन बजा और वो फोन सुनने के लिए बालकनी में गया। नजर बचा कर सुनील ने दीपा को किस कर लिया। अब सुनील के पैर दीपा के पैरों को सहला रहे थे और सुनील बार बार अपनी चम्मच से दीपा को कुछ न कुछ खिला रहा था। उधर से आते समय मनोज ने उनकी हरकत देख ली थीं और उसने दीपा को एक फ़्लाइंग किस भी दे दिया यानि 'लगे रहो मुन्ना भाई।' नाश्ता करके सुनील ने सिगरेट लगाई तो पैकेट मनोज को भी ऑफर किया। दीपा ने लाइटर से पहले सुनील की फिर मनोज की सिगरेट जलाई। उसने अपनी अलग से सिगरेट नहीं ली। वो कभी एक सुट्टा सुनील की सिगरेट से, कभी मनोज की सिगरेट से लगा लेती। मनोज सुनील से दीपा ने जल्दी से नहाने को कहा ताकि घूमने चला जाए।

दीपा मनोज से बोली- तुम दोनों एक साथ नहा लो, अपनी पुरानी यादें ताजा कर लो, मैं रसोई संभाल कर अपने वाशरूम में तैयार होती हूँ।

सुनील भी हंस कर बोला- चल मनोज, अपन दोनों साथ नहायेंगे।

वो मनोज को खींच ले गया।

मनोज जाते जाते बोला- मेरा टॉवल तो दे दो।

दीपा बोली- तुम नहाओ, मैं देती हूँ।

सुनील मनोज दोनों बाथरूम में घुस गए।

दीपा हंसती हुई रसोई में समेटने लगी। वो टॉवल लेकर गयी तो उसने मनोज को आवाज देकर कह दिया कि टॉवल बाहर दरवाजा हैंडल पर टंगा है।

तभी अंदर से मनोज की आवाज आई- एक मिनट सुनो।

दीपा रुकी तो अंदर से मनोज ने झाँका और बोला- हमारी पीठ पर साबुन लगा दो।

दीपा बोली- मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाली, चुपचाप नहा लो।

अब मनोज बाहर आ गया। उसने अंडरवियर पहना हुआ था और पूरा भीगा था,

मनोज बोला- प्रॉमिस कोई बदमाशी नहीं करेंगे, बस तुम साथ आ जाओ।

दीपा नहीं मानी तो मनोजने दीपा को आलिंगन करके दीपा किस दिया और


मनोजने कहा- प्लीज।

दीपाने सोचा कि दोनों अंडरवियर पहने हैं। ऐसे भी तो बाहर बरमुडा में ही थे।

दीपा बोली- ठीक है, मैं साबुन लगा देती हूँ, पर मुझे नहीं भिगोना! और पहले लाईट बंद करो।

सुनील ने अंदर से लाईट बंद कर दी। अंदर अँधेरा हो गया।

अब तीनों अंदर थे। एक बार शावर चलाकर सुनील और मनोज ने पानी डाला और दीपा ने उनको शावर जेल से स्पोंज करना शुरू कर दिया। माहौल गर्म हो चला था, सुनील और मनोज की गर्म साँसे दीपा से टकरा रही थी और खुद दीपा भी अब शायद मन तैयार कर चुकी थी मस्ती करने का।

सुनील ने दीपा से कहा कि वो उसकी छाती पर जेल लगा दे तो दीपा उसकी ओर मुड़ी तो पीछे से मनोज ने उसे सुनील की ओर धक्का दे दिया। दीपा सुनील की बाँहों में आ गयी और चिपट गयी।

'अब जो होगा देखा जाएगा' सोच कर दीपा ने अपने होंठ सुनील के होंठों से मिला दिया। सुनील ने शावर खोल दिया। ऊपर से पानी, नीचे जलते बदन, बीच में कपड़ों का क्या काम? सुनील और मनोज ने अपने अपने अंडरवियर उतार दिये और मनोज ने दीपा की ड्रेस भी।

अब तीन नंगे जिस्म पानी में अठखेलियाँ कर रहे थे। सुनील दीपा के मम्मे चूस रहा था और मनोज नीचे झुक कर उसकी चूत चाट रहा था। दीपा के हाथ भी सुनील का लंड मरोड़ रहे थे। सुनील ने चाहां कि वो अपना लंड दीपा की चूत में कर दे पर अचानक दीपा को जाने क्या हुआ? वो तेजी से बाहर आ गयी और अपने वाश रूम में जाकर दरवाजा लॉक कर लिया।

सुनील चिंतित हो गया कि पता नहीं क्या हुआ?

पर

मनोज हँसते हुए बोला- कोई बात नहीं, मैं दीपा को जनता हूँ, वो अभी नार्मल मिलेगी। बस अब हम लोग दिन में इस बारे में कोई बात नहीं करेंगे।

और यही हुआ, आधे घंटे बाद जब सब तैयार होकर निकले तो दीपा को देख कर लग ही नहीं रहा था कि अभी कोई ऎसी बात हुई है। तीनों ने ही जींस और टी शर्ट पहनी थीं। हाँ दीपा का ओरेंज टॉप ढीला और शोर्ट था। खुले बाल, सनग्लास और ओरेंज कलर के नेल पेंट, लिपस्टिक और मैचिंग बेली। ऐसा लगता था कि कोई कॉलेज स्टूडेंट अपनी डेट पर जा रही है। तीनों घूमने निकल गए।

मनोज ने खुद ड्राइविंग न करके कैब बुक करी क्योंकि पार्किंग की बहुत समस्या होती है। दूसरे वो चाहता था कि दीपा और सुनील की नजदीकी बढ़े। दीपा भी मस्ती में सुनील का हाथ पकड़े दिन भर घूमती रही। गाड़ी में बियर, स्नैक्स खूब थे। आज जितनी फोटो खींची, उनमें अधिकतर में दीपा सुनील से चिपट कर खड़ी थी। देर शाम तक सब लोग लौटे।

दिन भर की थकान थी, दीपा ने डिनर का आर्डर कर दिया था, जिसकी डिलीवरी रात को होनी थी। घर आकर कपड़े बदलकर चाय नाश्ते का प्रोग्राम चला। सुनील और मनोज तो केवल शॉर्ट्स पहने रहे। दीपा ने भी शॉर्ट्स और टॉप डाला, पर बिना अंडरगार्मेंट्स के!

अब सबसे पहले सिगरेट दीपा ने जलाई और दो चार सुट्टे मारकर मनोज को दे दी। सुनील ने अलग जला ली, दीपा मनोज की गोदी में सर रख के लेट गयी और सिगरेट के छल्ले बनाने लगी। दीपा ने अपने पैर सुनील की गोदी पर टिका दिए कि जरा दबा दो। सुनील आज्ञाकारी बच्चे की तरह दीपा की गोरी गोरी नाजुक उंगलियाँ दबाने लगा। जितना मजा दीपा को दबवाने में आ रहा था, शायद उससे ज्यादा मजा सुनील को दबाने में आ रहा था। दीपा ने अभी दो दिन पहले ही वेक्सिंग और पेडीक्योर कराया था तो सब कुछ शेप में था। उसकी स्किन ग्लो कर रही थी। मनोज ने धीरे से उठकर लाईट बहुत धीमी कर दी। उसने दोबारा दीपा का सर अपनी गोदी में रख लिया और धीरे धीरे उसकी गर्दन की और कन्धों की मालिश करने लगा। अब सुनील का हाथ उसके पंजे से उसके पैरों पर और धीरे धीरे घुटनों तक आ और जा रहा था। दीपा ने आँखें बंद कर लीं थीं। उधर मनोज ने आँखों आँखों में सुनील को कुछ इशारा किया तो सुनील का हाथ कुछ ऊपर उठने की कोशिश करने लगा पर दीपा ने उसका हाथ रोक दिया और नीचे कर दिया। बेचारा अब वापिस घुटने के नीचे ही मालिश करने लगा।

अब मनोज ने अपने हाथ उसके कन्धों से हटाकर उसकी गर्दन और धीरे धीरे गले को सहलाते हुए गले से नीचे छाती की ओर जाने लगे।

दीपा ने एक आँख खोल कर मनोज से कहा- ज्यादा बदमाशी नहीं।

पर मनोज ने अपना हाथ उसके टॉप के अंदर कर दिया और अब वो उसके निप्पल तक पहुँच गया था। उसने निप्पल के चारों ओर घेरा बनाकर उसने दीपा को निप्पल मसाज देनी शुरू कर दी। दो मिनट में ही दीपा कसमसाने लगी। मौका देख कर सुनील ने भी दीपा के पैर अपनी गोदी से हटाये और खुद सरककर आगे हो गया और अब सीधे अपने हाथ दीपा कि नंगी जाँघों पर फिराते फिराते उसकी शॉर्ट्स के मुहाने तक पहुँच गया। सुनील की हिम्मत नहीं पड़ रही थी दीपा की शॉर्ट्स के अंदर पहुँचने की, दीपा भी अब कामोत्तेजना से कांपने लगी थी। मनोज ने आगे झुक कर उसके होंठों से अपने होंठ लगा दिए।

अब सुनील को मौका साफ़ लगा तो उसने अपना हाथ दीपा की चूत तक पहुंचा दिया। वहां तो नदी बह रही थी। दीपा की चूत ने पानी छोड़ दिया था। सुनील ने अपनी उंगली दीपा की चूत में घुसा दी और मालिश करने लगा। अब दीपा कसमसा उठी, उसने मनोज से छूटकर सुनील को अपनी ओर खीन्चा और होंठ से होंठ मिला दिये। अब सभी की साँसे गर्म हो चुकी थीं और कमरा का माहोल पूरा वासनामय हो चुका था। सुनील और दीपा गुत्थम-गुत्था होकर चूमा चाटी कर रहे थे और मनोज अपनी प्लानिंग को साकार होता देख रहा था। सुनील ने अब दीपा को छोड़ा और नीचे होकर उसकी शॉर्ट्स उतार दी और उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी।

उधर मनोज ने भी अपना लंड दीपा के मुंह में दे दिया। दीपा पागलों की तरह मनोज का लंड चूस रही थी क्योंकि नीचे सुनील ने उसकी चूत में अपनी जीभ से आग लगा दी थी।

पर हाय री किस्मत ... तभी घंटी बजी ...

दीपा बोली- डिनर आ गया।

मनोज सुनील को दीपा के पास अकेला छोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि वो जानता था कि उसके हटते ही सुनील दीपा की चूत में घुस जाएगा और मनोज वह पल देखने से चूक जाएगा, जिसकी उसे इतने दिनों से प्रतीक्षा थी।

तो मनोजने दीपा से कहा- चलो कपड़े डाल लो।

अब दीपा क्या कहती? उसकी चूत तो चुदने के लिए बेताब थी पर दीपा मनोज से ये नहीं कह सकती थी कि तुम जाओ मैं तो पहले चुदुंगी। मन मारकर दीपा उठी।

घंटी दोबारा बजी ...

दीपा बोली- रुको, आ रही हूँ।

दीपा ने बाथरूम से गाउन डाला और पर्स लेकर आई। सुनील और मनोज भी उठकर अपने अपने रूम में चले गए। अब एक बार रंग में भंग हुआ तो महफ़िल बर्खास्त। मनोज ने पेग बना लिए।

जब तक दीपा डिनर लगाती, सुनील और मनोज ने एक एक पेग मार लिया। बीच बीच में दीपा ने आकर दो-चार सिप मार लिए।

डिनर लेते समय अचानक

सुनील बोला- ये सतपुड़ा हिल्स कितनी दूर हैं?

मनोज - 5-6 घंटे का रास्ता है।

सुनील का मन था वहां जाने का। दीपा भी झट तैयार हो गयी क्योंकि सतपुड़ा हिल्स में अपनी चूत फड़वाने का अलग ही मजा आएगा।

तो ये तय हुआ कि चूंकि कल सन्डे है तो मनोज सोमवार की छुट्टी लेगा। कल सुबह 5-6 बजे निकल चलते हैं और सोमवार को शाम तक वापिस आ जायेंगे क्योंकि रात की सुनील की फ्लाइट है। डिनर से फ्री होते होते रात के 10 बज गए। सामान भी लगाना था, सुबह जल्दी निकलना था। दीपा को टेंशन हो रही थी।

दीपा ने सुनील और मनोज को कहा- आप सुनील के रूम में जाकर गप्पें मारो, तब तक में तैयारी कर लूं।

दीपा ने जल्दी से ढेर सारे स्नैक्स, बियर, व्हिस्की, सिगरेट और जो कुछ भी हाथ लगा पैक कर लिया। अब बारी आई कपड़ों की ... तो उसने अपनी नयी ड्रेस्सेस, शॉर्ट्स, टॉप वगेरा रखे और मनोज के भी कपड़े रखे। 11 बजते बजते दीपा ने सारे काम निबटा लिए। ड्राइंग रूम में झाँक के देखा तो सुनील और मनोज सोफे पर ही सो गए थे। दीपा चुपके से जाकर लाईट बंद कर आई और अपने रूम में आकर सो गयी। सुबह का 4 बजे का अलार्म लगा लिया था उसने।

रात को 2 बजे करीब मनोज ने आकर उसे दबोच लिया, वो सेक्स के मूड में था पर दीपा ने उस से कहा कि कल सतपुड़ा में जम कर सेक्स करेंगे, अभी सो जाओ, तुम्हें ड्राइव भी करना है। मनोज चूमा चाटी करके मन गया।

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#82
अगले दिन निकलते निकलते 6 बज गए। दीपा ने माइक्रो शॉर्ट्स पहनी थी यानि जरा सी ऊपर सरकाओ तो सीधे चूत के मुंहाने पर। मनोज और सुनील शॉर्ट्स और टी शर्ट में थे। दीपा ने सुबह जल्दी उठकर पूड़ी सब्जी बना ली थी क्योंकि मनोज को बाहर निकलते ही पूड़ी आलू याद आते हैं। सुबह सब ने कॉफ़ी ली और सिगरेट के गुबार उड़ाते वड़ोदरा से निकले। रास्ते भर नॉन वेज जोक्स चलते रहे। दीपा के होंठ और गाल तो दो दो मर्दों के चूमते चाटते थक गए। वो तो भला हो कि रास्ते में उसके मम्में सिर्फ दबे, टॉप उतरी नहीं! वर्ना उनके लंड तो रास्ते में ही खाली होने को तैयार थे। और उनके लंड ही क्या खुद दीपा की चूत रात से नाराज थी, गर्म चूत पर जैसे बर्फ का पानी पड़ गया था। अब दीपा का मन भी कर रहा था कि सुनील उसे कस के पकड़ ले और चोद दे।


उसने तो एक बार हंस कर कह भी दिया- मैं तो रात भर तुम्हारा इंतज़ार करती रही।

2 बजे तक ये लोग सतपुड़ा हिल्स पहुंचे। क्या खूबसूरत समां था। सीधे हनीमून पॉइंट गए, वहां तो जिसको देखो चिपटाए खड़ा था, खुले आम चूमा चाटी हो रही थी।

अब दीपा की आफत, कभी सुनील चिपटाए कभी मनोज!

पब्लिक प्लेस पर तो वो ये भी नहीं कह सकती कि चलो दोनों आ जाओ। चारों ओर जवां जोड़े अपने प्यार का इजहार कर रहे थे। दीपा जब हॉस्टल में थी तो उसने एक पोर्न फिल्म देखी थी जिसमें दोस्तों का एक ग्रुप घूमने गया था और वहां सभी ने ग्रुप सेक्स किया। तभी से उसके मन में एक ललक थी कि एक साथ दो लंडों का मजा कैसा होता होगा। चलो शायद ये सपना भी आज पूरा होगा।

देर शाम तक वे लोग अपने पहले से बुक होटल में आ गए। मनोज ने दो कमरे ऐसे बुक कराये थे जो अंदर से आपस में खुलते थे। होटल में पहुँच कर दीपा मनोज अपने रूम में चले गए, सुनील अपने रूम में। ये तय हुआ कि एक घंटे सोया जाए, फिर फ्रेश होकर फिर घूमने चलेंगे। रात को हिल स्टेशन पर घूमने का आनंद ही कुछ और होता है,

मौसम ठंडा ... सर्द हवा ... साथ में गर्म जिस्म ... चिपकने में मजा आ जाता है। कहीं कहीं बेन्च पड़ी थीं ... जवान जोड़े चूमा चाटी में लगे थे।

दीपा की बड़ी आफत ...

पहले तो मनोज ने चूम चूम कर उसकी लिपस्टिक खराब कर दी, फिर वो सिगरेट लेने के लिए इधर उधर हुआ तो सुनील ने होंठ जड़ दिए। घूम फिर के वे लोग थक गए तो एक रेस्तरां में डिनर लिया और होटल वापिस, 9 बज गए थे। रात पूरी जवां थी, अरमान उफान पर थे। अधूरी कहानी पूरी करनी थी।

दीपा मनोज अपने कमरे में गए और सुनील को बोल दिया- ड्रिंक करेंगे, तुम भी रूम में आ जाना कपड़े बदलकर!

मनोज ने रूम में पहुंचकर दीपा पर चुम्बनों की बरसात कर दी।

दीपा बोली- यार, मुझे कपड़े तो बदलने दो!

पर मनोज ने तो उसे नंगी कर बेड पर पटक दिया और उसकी चूत में जीभ घुसा दी। दीपा को भी आग लग गयी पर

दीपा बोली- मुझे 5 मिनट दो, मैं नयी वाली नाईट ड्रेस पहनती हूँ, फिर रात भर सेक्स करेंगे।

मनोज ने दीपा को छोड़ दिया और दोनों वाशरूम में घुस गए।

शावर लेकर बाहर आये।

मनोज को तो क्या तैयार होना था? उसने बरमूडा और टी शर्ट डाली, पर दीपा को तो सुहागरात के लिए तैयार होना था। वो नाईट ड्रेस और मेकअप किट लेकर वाशरूम में घुस गयी।

जाते जाते दीपाने मनोज से कहा- डार्लिंग, एक सुट्टा तो लगवा दो।

मनोज ने सिगरेट जला कर उसे वाशरूम में ही दी क्योंकि सुनील आने वाला था। दीपा ने दो चार सुट्टे मार कर सिगरेट मनोज को लौटा दी और वाशरूम का दरवाजा लॉक कर लिया।

बाहर सुनील आ गया, मनोज ने पेग बनाये और सुनील को दिए। सुनील ने इशारे से दीपा के लिए पूछा तो

मनोज बोला- तैयार हो रही है।

दोनों दोस्त गप्पें मारते हुए ड्रिंक्स का मजा ले रहे थे।

तभी दीपा बाहर आई, क्या परी सी लग रही थी। ड्रेस तो इतनी सेक्सी थी कि सुनील कि क्या औकात, मनोज भी लट्टू हो गया। दीपा ने अपने नेल पेंट से लेकर हेयर बेंड सब लाल रंग के कर रखे थे।

दीपाने आते ही मनोज को और सुनील को एक लाईट किस दिया और अपना पेग लेकर बेड पर बैठ गयी क्योंकि रूम में दो ही कुर्सी थीं। मनोज बोला भी कि मेरी गोद में बैठ जाओ।

दीपा बोली- तुम मर्दों की गोद में आराम नहीं मिलता। एक मिनट में ही नीचे से हमला शुरू हो जाता है।

मनोज ने कुछ हैवी स्नैक्स आर्डर कर दिए थे, ताकि डिनर की जरूरत ख़त्म हो जाये। वेटर सामान ले आया। तीनों नीचे बैठ गए। जाम के साथ नमकीन काजू, कटलेट्स, हनी चिल्ली पोटैटो, यानि कुल मिला कर पेट भरने का पूरा इंतजाम। मनोज ने टीवी पर अपनी पेन ड्राइव से एक पोर्न मूवी चला दी।

दीपा झल्लाई- ये क्यों लगा दी?

पर मनोज नहीं माना,

सुनील भी बोला- चलो पांच दस मिनट देख लेते हैं, फिर बंद कर देंगे।

दीपा को सुनील के सामने देखना अच्छा नहीं लग रहा था, वो उठ कर बेड पर लेट गयी। अब मनोज ने भी सोचा कि कहीं बात ना बिगड़ जाए तो उसने टीवी बंद कर दिया और दीपा को मना कर उठाने की कोशिश की।

दीपा बोली- मैं थक गयी हूँ अब सोऊँगी।

मनोज ने सुनील की ओर देखा कि ये तो मामला खराब है। पर मनोज को मालूम था कि दीपा कैसे ठीक होगी।

मनोज दीपा के एक ओर लेट गया और दीपा के मुंह से मुंह लगा कर सॉरी बोला और कहा- मूड मत खराब करो।

सुनील ने 'जरा जरा बहकता है मेरा मन ...' गाना अपने मोबाईल पर चला दिया और कमरे की लाईट बहुत धीमी कर दी। मनोज के कहने पर वो भी बेड पर दीपा के दूसरी ओर लेट गया। कमरे का माहौल धीरे धीरे रूमानी होता जा रहा था। सुनील ने दीपा के पेट पर हाथ रखा, उसने कुछ नहीं कहा। फिर सुनील ने अपना हाथ उसके मम्मों की ओर बढ़ाना चाहा तो दीपा ने हाथ पकड़ लिया पर पेट से हटाया नहीं। मनोज ने धीरे से उसके कान पर से बाल हटाये और कान को जीभ से चाटा और दांत से दबाने की कोशिश की।

दीपा हंसती हुई उठी, और बोली- मुझे तंग मत करो।

यह तो तय था कि वो अब नार्मल हो गयी थी।

मनोज ने उसे वापिस लिटा लिया और बोला- चलो, कुछ नहीं कहेंगे।

दीपा को मालूम था कि क्या कुछ नहीं कहेंगे, बस अभी थोड़ी देर में ही सब कुछ कहेंगे और करेंगे।

दीपा बोली- लाईट बंद कर दो और सो जाओ।

सुनील उठा और लाईट बंद कर दी।

कमरे में घुप्प अँधेरा हो गया तो

दीपा बोली- वाशरूम का दरवाजा हल्का सा खोल दो, थोड़ी रोशनी आ जाएगी।

सुनील ने दरवाजा हल्का सा खोला, उससे इतनी रोशनी हो गयी कि बस अहसास हो जाए उठने बैठने का।

अब सुनील भी बेड पर आ गया और सीधा अपने होंठ दीपा के होंठ से मिला दिये। पीछे से मनोज ने भी उसके गाउन के अंदर हाथ डाला और पहले तो मम्मे दबाये फिर एक हाथ से उसकी जांघ सहलाने लगा। सुनील ने दीपा के गाउन के अंदर हाथ डाला तो दीपा ने उसका हाथ पकड़कर बाहर कर दिया और उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गयी और होंठों से होंठ मिला कर चूसने लगी। मनोज उठा और उसने दीपा का गाउन उसके शरीर से अलग कर दिया। दीपा सुनील को छोड़ अब मनोज से चिपट गयी। उसने एक हाथ पीछे किया और सुनील को भी चिपटने का इशारा किया, पीछे से सुनील भी उससे चिपटा तो दीपा ने अपना एक हाथ पीछे करके सुनील का लंड पकड़ लिया। मनोज ने दीपा की ब्रा ऊपर करके उसके मम्मे निकाल दिए और उन्हें चूसने लगा। सुनील ने भी मौका देख कर दीपा की पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और उसकी चूत जो पानी छोड़ रही थी, में उंगली कर दी और जोर जोर से मालिश करने लगा। अब दीपा मस्त हो चुकी थी,

दीपा बोली- सुनील और तेज करो ना!

मनोज उठा और अपने सारे कपड़े उतार कर अपना लंड उसने दीपा के मुंह में दे दिया। अब दीपा मुंह से उसका लंड चूस रही थी और सुनील नीचे उसकी चूत चूस रहा था। सुनील ने उसकी टांगें चौड़ा रखी थीं और जीभ पूरी उसकी चूत में थी। जैसे जैसे सुनील स्पीड बढ़ता वैसे वैसे ही दीपा मनोज का लंड लप लप करती। सुनील आगे हाथ बढ़ा कर उसके मम्मे मसल रहा था। अब दीपा को ध्यान आया कि मनोज कहता है सुनील का लंड बड़ा और मोटा है तो क्यों न चूसा जाए। तो दीपा ने मनोज का लंड बाहर निकाला और बैठने की कोशिश की।

अब मनोज नीचे लेट गया। दीपा ने अपनी चूत तो उसके मुंह पर रख दी और सुनील का अपनी ओर खींच कर उसका बरमूडा नीचे खींचा और लंड को आज़ाद किया। हालांकि अभी थोड़ी देर पहले ही दीपा ने सुनील का लंड हाथ से मसला था। पर अब वो मूसल सा लंड उसके हाथ में था और उसने उसका सुपारा चाटना शुरू किया। फिर धीरे धीरे उसका टोपा खोला और पूरा लंड मुंह में ले लिया। सुनील का लंड निश्चित ही मनोज के लंड से बड़ा और मोटा था। दीपा के हलक तक जा रहा था और दीपा को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी, पर लंड की चाहत एसी होती है कि चाहे सांस बंद हो जाए जब तक वो चूत चोद नहीं लेता, दोनों में से कोई रुकता नहीं।

जल्दी किसी को कोई थी नहीं ...

दीपा ने मनोज को भी आगे खड़ा किया और अपने दोनों हाथों से एक एक लंड पकड़ लिया। कभी एक लंड कभी दूसरा, वो लोलीपॉप की तरह उन्हें चूसती रही। सुनील और मनोज भी उसके मम्मे मसलते रहे। अपने मम्मों के बीच में सुनील का लंड रखकर दीपा ने उसकी मालिश करी तो सुनील को तो लगा कि वो छूट ही जाएगा। अब दीपा भी खड़ी हो गयी। तीन नंगे जिस्म गुत्थम गुत्था को तैयार थे। सुनील और मनोज ने खड़े खड़े ही दीपा को अपने बीच में सैंडविच बना रखा था। दीपा कभी सुनील के होंठ चूमती, कभी मनोज के। अब सब बेड पर आ गए और पहले मनोज ने दीपा की टाँगें चौड़ी की और अपना लंड पेल दिया। आज मनोज को भी जोश पूरा था। थोड़ी देर की धकापेल के बाद वो अलग हुआ तो सुनील ने धावा बोल दिया। हालांकि दीपा की चूत पूरी चिकनी पड़ी थी पर सुनील का धक्का इतना जोर का था कि दीपा ने आँखें बंद कर ली और चीख पड़ी। सुनील ने लंड निकालना चाहा पर दीपा ने अपने नाखून उसकी पीठ पर गड़ा दिये और अब सुनील की तूफ़ान मेल शुरू हो गयी।

दीपा की 'उहं ... आह ... मजा आ गया ... और जोर से करो सुनील ...' ऐसी वासनामय सिसकारियों से पूरा कमरा भर गया। सुनील ने 5-7 मिनट की रेलमपेल क बाद अपना माल दीपा की चूत में ही निकाल दिया और थक कर एक ओर लेट गया।

मनोज का लंड अभी तना खड़ा था, थक तो दीपा भी गयी थी पर मनोज का निकालना भी जरूरी था।

अब मनोज ने दीपा की टाँगें चौड़ी की, दीपा ने तौलिये से अपनी चूत साफ़ करी। पर सुनील ने माल इतना निकाला था कि उसकी चूत से लावा जैसा निकल रहा था।

दीपा मनोज से बोली- रुको, मैं धोकर आती हूँ।

वह वाशरूम में गयी और क्लीन करके और पौंछ कर आई।

मनोज बोला- आज तो मुंह से ही निकाल दो।

दीपा मुस्कुराई, उसे मालूम था कि मनोज को चुसवाना बहुत पसंद है और दूसरे मर्द के वीर्य के ऊपर उसका पति नहीं निकालना चाहता।

दीपा ने पूरे मन से मनोज का लंड चूसना शुरू किया और वो मनोज को जल्दी ही इस स्थिति में ले आई कि मनोज चीखने लगा- मेरा निकलने वाला है।

उसका लंड दीपा ने मुंह से निकाला और अपने मम्मों पर सारा माल गिरवा दिया। और फिर लंड को चाट कर साफ़ कर दिया।

तीनों संतुष्ट हो गए थे और ऐसे ही नंगे बेड पर पड़े रहे।

दीपा ने सिगरेट जला ली और एक ही सिगरेट से तीनों ने सुट्टे मारे।

रात अभी बाकी थी, अभी तो तीनों थक कर ऐसे ही सो गए।

रात को दीपा की आँख खुली, वो वाशरूम गयी, आई तो देखा सुनील भी आँख मिचमिचा रहा है।

दीपा ने उसका तना हुआ लंड फिर मुंह में ले लिया। मनोज सो रहा था।

सुनील के भी मन में दीपा के साथ अकेले सेक्स करने का मन था। उसने दीपा को खींच कर सोफे पर लिटाया और उसकी टाँगें फैला कर अपना लंड घुसा दिया दीपाकी चूत में। सुनील का मोटा लंड धमाल मचा रहा था। दीपा को उसने हर एंगल से चोदा और इतना चोदा कि दीपा की सिसकारियों से मनोज की आँख खुल गयी।

मनोज बोला- अरे अकेले ही शुरू हो गए? मुझे उठा लेते!

मनोज भी आ गया, उसका लंड भी तैयार था। उसने दीपा को घोड़ी बनाया और अब पीछे से उसकी चूत में मनोज ने अपना लंड घुसा दिया। दीपा के मुंह में अब सुनील का लंड था। मनोज के हर धक्के का हिसाब दीपा की जीभ सुनील के लंड से लेती।

थोड़ी देर में ही सुनील ने अपना फव्वारा दीपा के मुंह में ही छोड़ दिया और उधर मनोज ने भी अपना माल दीपा की चूत में गिरा दिया।

दीपा चीखी- अरे होटल वाले नाराज होंगे!

क्योंकि उसके मुंह और चूत से सुनील और मनोज का माल मीचे फर्श पर टपक रहा था।

दीपा वाशरूम में भागी।

दीपा फ्रेश होकर आई और बोली- अब मुझे सोने दो ...

कल मैं कहीं नहीं जाने वाली। सुबह देर तक सोयेंगे और फिर सीधा वापिस वड़ोदरा चलेंगे।

सुनील ने उनसे यह वायदा लिया कि वो दोनों जल्दी ही दुबई आयेंगे और वहां सुनील की वाइफ को भी इसमें जोड़ेंगे और चारों मस्ती करेंगे।


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नये पड़ोसी

मैं राज और मेरी पत्नी प्रीती मुम्बई शहर के सब-अर्ब मलाड में रहते हैं। ये कहानी करीब आज से छः महीने पहले शुरू हुई जब हमारे बगल के फ्लैट में नये पड़ोसी रहने के लिये आये।

हमारे नये पड़ोसी मिस्टर प्रशाँत एक कंसल्टेंट हैं, और उनकी पत्नी बबीता एक घरेलू महिला थी। वैसे तो मुम्बई इतना व्यस्त शहर है कि यहाँ किसी को किसी के लिये फुर्सत ही नहीं है। नये पड़ोसी होने के नाते हमारी जान पहचान बढ़ी और हम दो परिवार काफी घुल मिल गये थे।

मैं और मेरी पत्नी प्रीती के विचार एक समान थे। हम दोनों खुले सैक्स में विश्वास रखते थे। शादी के पहले ही हम दोनों सैक्स का मज़ा ले चुके थे। हम दोनों अपनी पूरानी सैक्स घटनाओं के बारे में अक्सर एक दूसरे को बताते रहते थे। चुदाई के किस्से सुनाते या सुनते वक्त प्रीती इतनी उत्तेजित हो जाती की उसकी चूत की प्यास मिटाना कभी मुश्किल हो जाता था।

मैंने और प्रीती ने इस शनिवार को प्रशाँत और बबीता को अपने यहाँ खाने की दावत दी। दोनों राज़ी हो गये। प्रशाँत एक शानदार व्यक्तित्व का मालिक था, ६’२ ऊँचाई और कसरती बदन। बबीता भी काफी सुंदर थी, गोल चेहरा, लंबी टाँगें और खास तौर पर उसकी नीली आँखें। पता नहीं उसकी आँखों में क्या आकर्षण था कि जी करता हर वक्त उसकी आँखों में इंसान झाँकता रहे।

शनिवार की शाम ठीक सात बजे प्रशाँत और बबीता हमारे घर पहुँचे। प्रशाँत ने शॉट्‌र्स और टी-शर्ट पहन रखी थी, जिससे उसका कसरती बदन साफ़ झलक रहा था। बबीता ने कॉटन का टॉप और जींस पहन रखी थी। उसके कॉटन के टॉप से झलकते उसके निप्पल साफ़ बता रहे थे की उसने ब्रा नहीं पहन रखी है। उसकी काली जींस भी इतनी टाईट थी की उसके चूत्तड़ों की गोलाइयाँ किसी को भी दीवाना कर सकती थी। उसके काले रंग के ऊँची हील के सैंडल उसकी लंबी टाँगों को और भी सैक्सी बना रहे थे। उसे इस सैक्सी पोज़ में देख मेरे लंड में सरसराहट होने लग गयी थी।

मैंने देखा की प्रीती प्रशाँत की और आकर्षित हो रही है। वो अपने अधखुले ब्लाऊज़ से प्रशाँत को अपनी चूचियों के दर्शन करा रही थी। आज प्रीती अपनी टाईट जींस और लो-कुट टॉप में कुछ ज्यादा ही सुंदर दिख रही थी। वहीं बबीता भी मेरे साथ ऐसे बरताव कर रही थी जैसे हम कई बरसों पुराने दोस्त हों।

हम चारों आपस में ऐसे बात कर रहे थे कि कोई देख के कह नहीं सकता था कि हमारी जान पहचान चंद दिनों पूरानी है। पहले शराब का दौर चला और फिर खाना खाने के बाद हम सब ड्राईंग रूम में बैठे थे।

मैंने स्टीरियो पर एक री-मिक्स की कैसेट लगा दी। बबीता ने खड़ी हो कर प्रशाँत को डाँस करने के लिये कहा, किंतु उसने उसे मना कर दिया। शायद उसे नशा हो गया था, मगर उसने बबीता को मेरे साथ डाँस करने को कहा। बबीता ने मुझे खींच कर खड़ा कर दिया।

हम दोनों गाने की धुन पर एक दूसरे के साथ नाच रहे थे। बबीता ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन पर रख हुए थे और मुझसे सटते हुए नाच रही थी। उसके बदन की गर्मी मुझे मदहोश कर रही थी। मैंने भी अपने दोनों हाथ उसकी कमर पे रख उसे अपने और करीब खींच लिया।

उसके बदन की गर्माहट और बदन से उठती खुशबू ने मुझे मजबूर कर दिया और मैंने कसके उसे अपनी छाती से चिपका लिया। मेरा लंड उसकी चूत पे ठोकर मार रहा था। तभी मुझे खयाल आया कि मेरी बीवी और उसका पति भी इसी कमरे में हैं। मैंने गर्दन घुमा के देखा तो पाया की प्रीती प्रशाँत को खींच कर डाँस के लिये खड़ा कर चुकी है।

शायद मेरी बीवी की सुंदरता और खुलेपन ने प्रशाँत को डाँस करने पे मजबूर कर दिया था, इसलिए वो प्रीती को मना नहीं कर पाया। दोनों एक दूसरे को बांहों में ले हमारे पास ही डाँस कर रहे थे। नाचते-नाचते प्रीती ने लाईट धीमी कर दी। कमरे में बहुत ही हल्की रोशनी थी। हम चारों कामुक्ता की आग में जल रहे थे।

बबीता मुझसे और चिपकती हुई मेरे कान में बोली, “अच्छा है थोड़ा अंधेरा हो गया।”

मैंने उसे और कस के अपनी बांहों में ले अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिए। उसने भी सहयोग देते हुए अपना मुँह खोल दिया और जीभ मेरे मुँह में डाल दी। हम दोनों एक दूसरे की जीभ चुभलाने लगे।

मेरे दोनों हाथ अब उसके चूत्तड़ों को सहला रहे थे। बबीता के हाथ मेरी पीठ पर थे और वो कामुक हो मेरी पीठ को कस के भींच लेती थी। मेरा लंड पूरा तन कर उसकी चूत को जींस के ऊपर से ही रगड़ रहा था। अच्छा था कि वो हाई हील की सैंडल पहनी हुई थी जिससे की उसकी चूत बिल्कुल मेरे लंड के स्तर तक आ रही थी। बबीता ने अपने आप को मुझे सोंप दिया था। मैंने पीछे से अपने दोनों हाथ उसकी जींस में डाल दिए और पाया की उसने पैंटी नहीं पहनी हुई है। मेरे हाथ अब उसके मुलायम चूत्तड़ों को जोर से भींच रहे थे, वो भी उत्तेजित हो अपनी चूत मेरे लंड पे रगड़ रही थी।

मेरी बीवी प्रीती का खयाल आते ही मैंने गर्दन घुमा के देखा तो चौंक पड़ा। दोनों एक दूसरे से चिपके हुए गाने की धुन पर डाँस कर रहे थे। प्रशाँत के हाथ प्रीती के शरीर पर रेंग रहे थे। प्रीती भी उसे अपने बांहों में भर उसके होंठों को चूस रही थी।

मैं बबीता को बांहों में ले इस पोज़िशन में डाँस करने लगा कि मुझे प्रीती और प्रशाँत साफ़ दिखायी पड़ें। चार साढ़े-चार इंच की हाई हील की सैंडल पहने होने के बावजूद प्रीती प्रशाँत के कंधे तक मुश्किल से ही पहुँच पा रही थी। प्रशाँत का एक हाथ प्रीती की चूचियों को सहला रहा था और दूसरा हाथ दूसरी चूँची को सहलाते हुए नीचे की और बढ़ रहा था, और नीचे जाते हुए अब वो उसकी चूत को उसकी टाईट जींस के ऊपर से सहला रहा था।

मुझे हैरानी इस बात की थी कि उसे रोकने कि बजाय प्रीती प्रशाँत को सहयोग दे रही थी। उसने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दी जिससे प्रशाँत के हाथों को और आसानी हो। पर मैं कौन होता हूँ शिकायत करने वाला। मैं खुद उसकी बीवी को बांहों में भरे हुए उसे चोदने के मूड में था।

मेरे भी हाथ बबीता के चूत्तड़ों को सहला रहे थे। बबीता उत्तेजना में मुझे चूमे जा रही थी। तभी मैंने देखा कि प्रशाँत ने अपना एक हाथ प्रीती के टॉप में डाल कर उसके मम्मों पे रख दिया था। जब उसने प्रीती की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं देखी तो उसने हाथ पीठ की और ले जाकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए। मुझे उस पारदर्शी टॉप से साफ दिखायी दे रहा था कि प्रशाँत के हाथ अब प्रीती के मम्मों को सहला रहे थे।

माहोल में जब चुदाई का आलम फ़ैलता है तो सब पीछे रह जाता है। मैंने भी आगे बढ़ कर बबीता के चूत्तड़ से हाथ निकाल उसकी जींस के बटन खोल जींस उतार दी। पैंटी तो उसने पहनी ही नहीं थी।

“मैं सोच रही थी कि तुम्हें इतनी देर क्यों लग रही है।” बबीता अपने सैंडल युक्त पैरों से अपनी जींस को अलग करती हुए बोली। “प्लीज़ मुझे प्यार करो ना!”

मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसकी चूत पे रख दिया। हाथ रखते ही मैंने पाया कि उसकी चूत एक दम सफ़ाचट थी। उसने अपनी चूत के बाल एक दम शेव किए हुए थे। बिना झाँटों की एक दम नयी चूत मेरे सामने थी। मैंने अपने हाथ का दबाव बढ़ा दिया और उसकी चूत को जोर से रगड़ने लगा। मैंने अपनी एक अँगुली उसकी चूत के मुहाने पर घुमायी तो पाया कि उसकी चूत गीली हो चुकी थी।

“तुम अपनी अँगुली मेरी चूत में क्यों नहीं डालते, जिस तरह मेरे पति ने अपनी अँगुली तुम्हारी बीवी की चूत में डाली हुई है।” उसने कहा तो मैंने घूम कर देखा और पाया कि प्रशाँत का एक हाथ मेरी बीवी की चूचियों को मसल रहा है और दूसरा हाथ उसकी खुली जींस से उसकी चूत पे था। उसके हाथ वहाँ क्या कर रहे थे मुझे समझते देर नहीं लगी।

अचानक मेरी बीवी प्रीती ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ़ देखा। वो एक अनजान आदमी के हाथों को अपनी चूत पे महसूस कर रही थी और मैं एक परायी औरत की चूत में अँगुली कर रहा था। वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरायी और मैं समझ गया कि आज की रात हम दोनों के ख्वाब पूरे होने वाले हैं। प्रीती मुस्कुराते हुए अपनी जींस और पैंटी पूरी उतार कर नंगी हो गयी।

जैसे ही उसने अपनी जींस और पैंटी उतारी, उसने प्रशाँत के कान में कुछ कहा। प्रशाँत ने उसकी ब्रा और टॉप भी उतार दिए। अब वो एक दम नंगी उसकी बांहों में थी। प्रशाँत के हाथ अब उसके नंगे बदन पर रेंग रहे थे।

“लगता है हम उनसे पीछे रह गये।” कहकर बबीता ने मुझसे अलग होते हुए अपना टॉप उतार दिया। जैसे हम किसी प्रतिस्पर्धा में हों। बबीता अब बिल्कुल नंगी हो गयी, उसने सिर्फ पैरों में हाई-हील के सैंडल पहने हुए थे।

“लगता है कि हमें उनसे आगे बढ़ना चाहिए,” कहकर बबीता ने मेरी जींस के बटन खोल मेरे लंड को अपने हाथों में ले लिया। बबीता मेरे लंड को सहला रही थी और मेरा लंड उसके हाथों की गर्माहट से तनता जा रहा था। बबीता एक अनुभवी चुदक्कड़ औरत की तरह मेरे लंड से खेल रही थी।

मैं भी अपनी जींस और अंडरवियर से बाहर निकल नंगा बबीता के सामने खड़ा था। बबीता ने मेरे लंड को अपने हाथों में लिया, जो तन कर सढ़े आठ इंच का हो गया था। “बहुत मोटा और लंबा है” कहकर बबीता लंड को दबाने लगी।

मैंने घूम कर देखा तो पाया कि मेरी बीवी मुझसे आगे ही थी। प्रीती प्रशाँत के सामने घुटनों के बल बैठी उसके लंड को हाथों में पकड़े हुए थी। प्रशाँत का लंड लंबाई में मेरे ही साईज़ का था पर कुछ मुझसे ज्यादा मोटा था। प्रीती उसके लंड की पूरी लंबाई को सहलाते हुए उसके सुपाड़े को चाट रही थी।

मुझे पता था कि प्रीती की इस हर्कत का असर प्रशाँत पर बुरा पड़ने वाला है। प्रीती लंड चूसने में इतनी माहिर थी कि उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था। उसका लंड चूसने का अंदाज़ ही अलग था। वो पहले लंड के सुपाड़े को अपने होठों में ले कर चूसती और फिर धीरे-धीरे लंड को अपने मुँह में भींचती हुई नीचे की और बढ़ती जिससे लंड उसके गले तक चला जाता। फिर अपनी जीभ से चाटते हुए लंड ऊपर की और उठाती। यही हर्कत जब वो तेजी से करती तो सामने वाले की हालत खराब हो जाती थी।

इसी तरह से वो प्रशाँत के लंड को चूसे जा रही थी। जब वो उसके सुपाड़े को चूसती तो अपने थूक से सने हाथों से जोर-जोर से लंड को रगड़ती। मैं जानता था कि प्रशाँत अपने आपको ज्यादा देर तक नहीं रोक पायेगा।

करीब दस मिनट तक प्रीती प्रशाँत के लंड की चूसाई करती रही। मैं और बबीता भी दिलचस्पी से ये नज़ारा देख रहे थे। प्रशाँत ने अपने लंड को प्रीती के मुँह से बाहर निकाला और मेरे और बबीता के पास आ खड़ा हो गया। बबीता मेरे लंड को सहला रही थी और प्रशाँत अपने होंठ बबीता के होंठों पे रख उन्हें चूमने लगा। बबीता उससे अलग होते हुए बोली, “प्रशाँत! राज को बताओ न कि मुझे किस तरह की चुदाई पसंद है।”

फिर कामुक्ता का एक नया दौर शुरू हुआ। प्रशाँत अपनी बीवी बबीता के पीछे आकर खड़ा हो गया और मुझे उसके सामने खड़ा कर दिया। फिर बबीता के माथे पे आये बालों को हटाते हुए मुझसे बोला, “राज इसके होंठों को चूसो।”

मैंने एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह आगे बढ़ कर अपने होंठ बबीता के होठों पर रख दिए। बबीता ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। हम दोनों एक दूसरे की जीभ को चूस रहे थे। “अब इसकी चूचियों को चूसो,” प्रशाँत ने कहा।

मैं नीचे झुक कर बबीता की चूँची को हाथों में पकड़ कर उसका निप्पल अपने मुँह में ले चूसने लगा। उसकी चूचियाँ बहुत बड़ी और कसी हुई थी। गोल चूंची और काले सख्त निप्पल काफी मज़ा दे रहे थे।

“दूसरी को नज़र अंदाज़ मत करो” कहकर उसने बबीता की दूसरी चूँची पकड़ मेरे मुँह के आगे कर दी। मैं अपने होंठ बढ़ा कर उसके दूसरे निप्पल को अपने मुँह मे ले चूसने लगा।

करीब पाँच मिनट तक मैं उसकी चूचियों को चूसता रहा, और मैंने पाया कि प्रशाँत के हाथ मेरे कंधों पे थे और मुझे नीचे की और दबा रहा था। मुझे इशारा मिल गया। कैसे एक पति दूसरे मर्द को अपनी बीवी से प्यार करना सिखा रहा था। मैंने नीचे बैठते हुए पहले उसकी नाभी को चूमा और फिर उसकी कमर को चूमते हुए अपने होंठ ठीक उसकी चूत के मुख पे रख दिए।

जब मैं उसकी चूत पे पहुँचा तो मैं दंग रह गया। प्रशाँत ने बबीता के पीछे से अपने दोनों हाथों से उसकी चूत की पंखुड़ियाँ पकड़ के इस कदर फैला दी थीं, जिससे मुझे उसकी चूत को चाटने में आसानी हो। जैसे ही मैंने अपने जीभ उसकी चूत पे फ़िरायी, मैंने पाया कि मेरी बीवी प्रीती ठीक मेरे बगल में बैठी थी और उसकी निगाहें बबीता की चूत पे टिकी हुई थी।

प्रशाँत को अच्छी तरह पता थी कि मर्द की कौन सी हर्कत उसकी बीवी की चूत में आग लगा सकती थी, “अब अपनी जीभ से इसकी चूत के चारों और चाटो”, उसने कहा।

आज मैं कई सालों के बाद किसी दूसरी औरत की चूत को चाट रहा था, वो भी जब कि मेरी बीवी छः इंच की दूरी पे बैठी मुझे निहार रही थी। मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर प्रीती की चूत पे रखा तो पाया कि उत्तेजना में उसकी चूत भी गीली हो चुकी थी। मैं अपनी दो अँगुलियाँ उसकी चूत में घुसा कर अंदर बाहर करने लगा। मैं बबीता की चूत को चाटे जा रहा था और प्रीती मेरे लंड को पकड़ कर सहलाने लगी।

“अब इसकी चूत को नीचे से ऊपर तक चाटो और करते जाओ?” प्रशाँत ने बबीता की चूत और फ़ैलाते हुए कहा। मैंने वैसे ही किया जैसा उसने करने को कहा। बबीता की चूत से उठी मादक खुशबू मुझे और पागल किये जा रही थी।

“अब अपनी पूरी जीभ बबीता की चूत में डाल दो?” प्रशाँत ने कहा। बबीता ने भी अपनी टाँगें और फैला दी जिससे मुझे और आसानी हो सके। मैं अपनी जीभ उसकी चूत में घुसा कर उसे जोर से चोद रहा था। बबीता की सिस्करियाँ शुरू हो चुकी थी, “हाँ राज... चूसो मेरी चूत को... निचोड़ लो मेरी चूत का सारा पानी, ओहहहहह हँआआआआआआँ!” प्रशाँत बबीता के चूत को फ़ैलाये उसके पीछे खड़ा था। मैं और तेजी से उसकी चूत को चूसने लगा। इतने में बबीता का शरीर अकड़ा और जैसे कोई नदी का बाँध खोल दिया गया हो, उस तरह से उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मेरा पूरा मुँह उसके रस से भर गया। बबीता जमीन पे बैठ कर अपनी उखड़ी साँसों को संभालने लगी।

थोड़ी देर सुस्ताने के बाद उसने मेरे चेहरे को अपने नज़दीक कर मुझे चूम लिया, “राज अब मैं चुदवाने के लिये तैयार हूँ!” इतना कहकर बबीता मेरा हाथ पकड़ मुझे सोफ़े के पास ले गयी।

बबीता सोफ़े पे झुक कर घोड़ी बन गयी, और थोड़ा नीचे झुकते हुए उसने अपने गोरे चूत्तड़ ऊपर उठा दिए। उसकी गुलाबी और गीली चूत और उठ गयी थी। मैं अपने हाथ से उसके चूत्तड़ सहलाने लगा। फिर मैं अपना लंड उसकी चूत पर रख कर घिसने लगा। मैंने गर्दन घुमा कर देखा तो प्रशाँत और प्रीती मेरे बगल में खड़े एक दूसरे के नंगे बदन को सहला रहे थे, मगर उनकी आँखें मेरे लंड पे टिकी हुई थी। मैंने अपने लंड को धीरे से बबीता की चूत में घुसा दिया।

बबीता की चूत काफी गीली थी और एक बार वो झड़ भी चुकी थी, फिर भी मुझे उसकी चूत में लंड घुसाने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा था। इतनी कसी चूत थी उसकी। मैंने एक जोर का धक्का मार अपना लंड उसकी चूत की जड़ तक डाल दिया और उसे चोदने लगा।

मैंने देखा कि प्रशाँत और प्रीती हमारे पास आ गये हैं। प्रीती ने ठीक बबीता के बगल में सोफ़े पर लेट कर अपनी टाँगें फैला दी। उसकी चूत का मुँह और खुल गया था। उसकी गुलाबी चूत इतनी प्यारी थी और जैसे कह रही हो कि आओ मुझे चोदो। प्रशाँत उसकी टाँगों के बीच आकर अपना खड़ा लंड उसकी चूत पे घिसने लगा।

मैं बबीता की चूत को पीछे से चोद रहा था इसलिए मुझे साफ और अच्छी तरह दिखायी दे रहा था कि प्रशाँत किस तरह अपना लंड प्रीती की चूत पे रगड़ रहा था। बबीता ने अपना एक हाथ बढ़ा कर प्रशाँत के लंड को अपने हाथों में ले लिया और उसे प्रीती की चूत के मुँह पे रख दबाने लगी।

क्या नज़ारा था, एक औरत दूसरे मर्द से चुदवा रही थी और अपने पति का लंड उस मर्द की बीवी की चूत पे रगड़ उसे चोदने को कह रही थी। मैं उत्तेजना के मारे बबीता के चूत्तड़ पकड़ कर कस-कस के धक्के लगा रहा था। बबीता ने प्रीती की चूत अपने हाथों से और फैला दी और प्रशाँत के लंड को ठीक वहीं पे रख दिया। प्रशाँत ने इशारा समझ कर एक ही धक्के में अपना लंड पूरा पेल दिया।

प्रशाँत मेरी बीवी प्रीती को जोर के धक्कों के साथ चोद रहा था और मैं उसकी बीवी बबीता की चूत मे अपना लंड पेल रहा था। मैंने अपने धक्कों की स्पीड बढ़ायी तो बबीता पीछे की और घूम कर बोली, “राज थोड़ा धीरे-धीरे चोदो और अपनी बीवी को देखो।”

मैंने देखा कि प्रीती की टाँग मुड़ कर उसकी चूचियों पे थी और प्रशाँत धीमे धक्कों के साथ उसे चोद रहा था। उसका मोटा लंड वीर्य रस से लसा हुआ लाईट में चमक रहा था। इतने में बबीता अपनी एक अँगुली प्रीती की चूत में डाल अंदर बाहर करने लगी। बबीता की अँगुली और प्रशाँत का लंड एक साथ प्रीती की चूत में आ जा रहे थे। प्रीती भी पूरी उत्तेजना में अपने चूत्तड़ उछाल कर प्रशाँत के धक्कों का साथ दे रही थी।

इतनी जोरदार चुदाई देख मैंने भी अपने धक्कों में तेजी ला दी। बबीता भी अपने चूत्तड़ पीछे की और धकेल कर ताल से ताल मिला रही थी। मैंने अपनी एक अँगुली बबीता की चूत में डाल कर गीली की और फिर उसकी गाँड के छेद पे घुमा कर धीरे से अंदर डाल दी। बबीता सिसक पड़ी, “ओहहहहह राज क्याआआआआ कर रहे हो?” मैंने उसकी बात पे ध्यान नहीं दिया और उसे जोर से चोदते हुए अपनी अँगुली उसकी गाँड के अंदर बाहर करने लगा। अब उसे भी मज़ा आने लगा था। वहीं पर प्रशाँत भी जम कर प्रीती की चुदाई कर रहा था। मैंने बबीता के शरीर को अकड़ता पाया, और उसने मेरे लंड को अपनी चूत की गिरफ़्त में ले लिया।

मैं जोर-जोर के धक्के लगा रहा था, मेरा भी पानी छूटने वाला था। मैंने दो चार धक्के मारे और मेरे लंड ने बबीता की चूत में बौंछार कर दी, साथ ही बबीता की चूत ने भी अपना पानी छोड़ दिया।

मैं फिर भी धक्के मारे जा रहा था और अपनी बीवी प्रीती को देख रहा था। उसकी साँसें तेज थी और वो सिसक रही थी, “ओहहहहहह आआहहहहह प्रशाँत... चोदो मुझे... और जोर से.... हाँआआआ ऐसे ही चोदो.... और जोर से....!”

मैं समझ गया कि प्रीती का समय नज़दीक आ गया है। उसने जोर से अपने चूत्तड़ ऊपर उठा कर प्रशाँत के लंड को अपनी गिरफ़्त मे ले अपना पानी छोड़ दिया। प्रशाँत का भी काम होने वाला था। वोह अपना लंड प्रीती की चूत से बाहर निकाल कर हिलाने लगा और फिर उसके पेट और छाती पर अपने वीर्य की बरसात कर दी।

प्रशाँत अपना लंड फिर उसकी चूत में घुसा कर धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला तो वो प्रीती की चूत के पानी और खुद के सफ़ेद वीर्य से लिसड़ा हुआ था। प्रशाँत ने थोड़ा साईड में हो कर अपना लंड प्रीती के मुँह में दे दिया। और बबीता अपने आप को एडजस्ट कर अपना मुँह प्रीती की चूत पर रख के उसे चाटने लगी।

मेरा लंड फिर तनाव में आ गया था और मैं जोर के धक्कों के साथ बबीता को चोद रहा था। बबीता मेरी बीवी की चूत को चूस रही थी और प्रीती प्रशाँत के लंड को। माहौल में काम की आग दहक रही थी और हम चारों उत्तेजना से भरे पड़े थे।

दो चार कस के धक्के मार कर मैंने एक बार फिर अपना पानी बबीता की चूत में छोड़ दिया। प्रीती की चूत ने भी बबीता के मुँह में अपना पानी छोड़ दिया और वहीं प्रीती भी प्रशाँत के लंड से छूटे पानी को पी रही थी।

हम चारों पसीने में लथ-पथ थे और साँसें तेज हो गयी थी। ऐसी जमकर चुदाई शायद सभी ने पहली बार की थी। हम सब लेट कर सुस्ताने लगे। बबीता ने मुझे बांहों में भर कर चूमते हुए कहा, “राज ऐसी चुदाई मैंने आज पहली बार की है, तुम्हारे चोदने का अंदाज़ सही में निराला है।”

“बबीता... ये तो मुझे प्रशाँत ने सिखाया कि तुम्हें किस तरह की चुदाई पसंद है,” मैंने उसे चूमते हुए जवाब दिया।

रात के बारह बज चुके थे और दूसरे दिन काम पर भी जाना था। प्रशाँत और बबीता खड़े हो कर अपने कपड़े पहनने लगे। कपड़े पहन कर दोनों ने हमसे विदा ली और अपने घर चले गये। मैं और प्रीती भी एक दूसरे को बांहों में ले सो गये।

अगले कुछ दिनों तक हमारी मुलाकात प्रशाँत और बबीता से नहीं हो पायी। उस रात की चुदाई ने हमारी सैक्स लाईफ को एक नया मोड़ दिया था। अक्सर रात को बिस्तर में हम उस रात की चर्चा करते और जमकर चुदाई करते। हम दोनों की इच्छा थी कि प्रशाँत और बबीता के साथ एक रात और गुज़ारी जाये।

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#84
एक दिन शाम के छः बजे प्रशाँत हमारे घर आया। उसने बताया कि वो ऑफिस के काम में काफी मशगूल था, इसलिए हम लोगों से नहीं मिल पाया। बातचीत के दौरान मैंने प्रशाँत को बताया कि अगले वीक-एंड पर मैं और प्रीती गोआ घूमने जा रहे हैं। मैंने प्रशाँत से कहा, “प्रशाँत तुम और बबीता क्यों नहीं साथ चलते हो?”


प्रशाँत कुछ देर सोचते हुए बोला, “मैं तैयार हूँ... पर हम लोग आपस में एक शर्त लगाते हैं। जो शर्त हार जायेगा उसे घूमने का सारा खर्च उठाना पड़ेगा... बोलो मंजूर है?”

“पर शर्त क्या होगी?” मैंने प्रशाँत से पूछा।

“शर्त ये होगी कि अगले दस दिन तक हम सफ़र की तैयारी करेंगे। इन दस दिनों में हम चारों चुदाई के गुलाम होंगे। हम एक दूसरे से कुछ भी करने को कह सकते हैं, जो पहले काम के लिए मना करेगा वो शर्त हार जायेगा,” उसने कहा।

प्रीती ये बात सुनते ही उछल पड़ी “मुझे मंजूर है।” जब प्रीती हाँ बोल चुकी थी तो मैं कौन होता था ना करने वाला, बल्कि मैं तो तुरंत बबीता के ख्यालों में खो गया कि मैं उसके साथ क्या-क्या कर सकता हूँ, और अगर उसने इनकार किया तो छुट्टियाँ फ़्री में हो जायेंगी, पर मुझे क्या मालुम था कि आगे क्या होने वाला है।

“ठीक है प्रशाँत हमें मंजूर है,” मैंने कहा।

“तो ठीक है हमारी शर्त कल सुबह से शुरू होगी,” कहकर प्रशाँत चला गया।

मुझमें और प्रशाँत में शर्त लग चुकी थी। अब हम अपनी ख्वाहिशें आजमाने का इंतज़ार करने लगे। दूसरे दिन प्रशाँत शाम को हमारे घर आया और शर्त को शुरू कर दिया। उसने प्रीती को अपने पास बुलाया, “प्रीती तुम अपने कपड़े उतार कर नंगी हो जाओ।”

प्रीती ने अपने पूरे कपड़े उतारे और नंगी हो गयी। प्रशाँत ने उसकी चूत पे हाथ फिराते हुए कहा, “प्रीती पहले तुम अपनी झाँटें साफ़ करो, मुझे चूत पे बाल बिल्कुल भी पसंद नहीं है और उस दिन जैसे ही कोई सैक्सी से हाई हील के सैंडल अपने पैरों में पहन लो।”

प्रीती वहाँ से उठ कर बाथरूम में चली गयी। थोड़ी देर बाद प्रीती बाथरूम से बाहर निकल कर आयी। मैंने देखा कि उसकी चूत एक दम चिकनी और साफ लग रही थी। बालों का नामो निशान नहीं था। प्रीती ने लाल रंग के हाई हील के सैंडल भी पहन लिये थे। प्रशाँत ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसे चूमते हुए उसकी चूत में अपनी अँगुली डाल दी।

“वाह क्या चूत है तुम्हारी,” कहकर प्रशाँत अपनी दूसरी अँगुली उसकी चूत में डाल अंदर बाहर करने लगा।

प्रशाँत ने प्रीती को खड़ा किया और खुद खड़ा हो अपने कपड़े उतारने लगा। उसका खड़ा लंड शॉट्‌र्स के बाहर निकल कर फुँकार रहा था। प्रीती आगे बढ़ कर उसके लंड को अपने हाथों में ले सहलाने लगी।

दोनों एक दूसरे के अँगों को सहला रहे थे, भींच रहे थे। कमरे में मेरी मौजूदगी का जैसे किसी को एहसास नहीं था। “आज मैं तुम्हें ऐसे चोदूँगी कि तुम ज़िंदगी भर याद करोगे?” इतना कहकर प्रीती प्रशाँत को खींच कर बिस्तर पे ले गयी।

प्रीती ने प्रशाँत को बिस्तर पर लिटा दिया। उसका लंड पूरा तन कर एक दम तंबू के डंडे की तरह खड़ा था। प्रीती उसकी टाँगों को फैला कर बीच में आ गयी और उसके लंड को चूमने लगी। मैं पीछे खड़ा ये नज़ारा देख रहा था। प्रीती के झुकते ही उसकी गोरे चूत्तड़ ऊपर उठ गये थे और उसकी गुलाबी चूत साफ दिखायी दे रही थी।

मैं देख रहा था की प्रीती प्रशाँत के लंड को अपने हाथों से पकड़ कर उसके सुपाड़े को चाट रही थी। फिर उसने अपना पूरा मुँह खोल कर उसके लंड को अपने गले तक ले लिया।

इतना कामुक और उत्तेजित नज़ारा देख कर मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में पूरा तन गया था। मैं भी अपने कपड़े उतार कर अपने लंड को सहलाने लगा। प्रीती एक कामुक औरत की तरह प्रशाँत के लंड की चूसाई कर रही थी। प्रशाँत ने जब मुझे अपने लंड से खेलते देखा तो कहा, “राज ऐसा करो, तुम अपनी बीवी को थोड़ी देर चोद कर उसकी चूत को मेरे लंड के लिये तैयार करो।”

मुझे एक बार तो बहुत बुरा लगा कि एक दूसरा मर्द मुझे ही मेरी बीवी को चोदने के लिये आज्ञा दे रहा है पर लंड की अपनी भूख होती है और ऊपर से हमारी शर्त। मैं झट से प्रीती के पास पहुँचा और उसके चूत्तड़ पकड़ कर एक ही झटके में अपना पूरा लंड उसकी बिना बालों की चूत में पेल दिया।


मेरे लंड के अंदर घुसते ही प्रीती ने अपने चूत्तड़ और पीछे की और करते हुए मेरे लंड को और अंदर तक ले लिया। मैं जोर के धक्के लगा कर प्रीती को चोद रहा था और वो हर धक्के के साथ उतनी ही तेजी से प्रशाँत के लंड को चूस रही थी।

“राज लगता है अब प्रीती तैयार हो गयी है।” प्रशाँत ने प्रीती की चूचियों को मसलते हुए मुझे हटने का इशारा किया। प्रीती ने अभी आखिरी बार उसके लंड को चूमा और उठ कर घूम कर बैठ गयी। प्रीती अपने दोनों पाँव प्रशाँत के शरीर के अगल बगल रख कर बैठ गयी। उसकी पीठ प्रशाँत की और थी और उसका चेहरा मेरे सामने था। प्रीती मुझे आँख मार कर थोड़ा सा उठी और प्रशाँत का लंड अपने हाथों में ले कर उसे अपनी चूत पे रगड़ने लगी। थोड़ी देर लंड को अपनी चूत पे रगड़ने के बाद वो एक हाथ से अपनी चूत का मुँह फ़ैलाते हुए नीचे की और बैठने लगी। प्रशाँत का पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में समा चुका था।

अब प्रीती अपनी दोनों चूचियों को पकड़ कर एक ब्लू फ़िल्म की अदाकारा की तरह उछल-उछल कर प्रशाँत को चोद रही थी। जैसे ही वो ऊपर की और उठती तो उसकी चूत थोड़ा सुकड़ जाती और जब वो जोर से उसके लंड पे बैठती तो चूत खुल कर लंड को अपने में समेट लेती। दोनों उत्तेजना में भर चुके थे, प्रशाँत के हाथ उसकी कमर पर थे और धक्के लगाने में सहायता कर रहे थे।

उनके शरीर की अकड़न देख कर मैं समझ गया कि दोनों का पानी छूटने वाला है। इतने में प्रशाँत ने प्रीती को रुकने के लिये कहा। प्रीती रुक गयी। प्रशाँत ने उसे खींच कर अपनी छाती पे लिटा लिया। प्रीती अब प्रशाँत की छाती पर पीठ के बल लेती थी। प्रशाँत ने प्रीती की टाँगों को सीधा कर के फैला दिया जिससे उसका लंड चूत में घुसा हुआ साफ दिखायी दे रहा था।

“राज आकर अपनी बीवी की चूत को चूसकर उसका पानी क्यों नहीं छुड़ा देते?” कहकर प्रशाँत ने प्रीती की चूत को अपने हाथों से और फैला दिया। मैं अपने आपको रोक ना सका और उछल कर उन दोनों की टाँगों के बीच आ अपना मुँह प्रीती की चूत पे रख दिया। मैं जोर-जोर से उसकी चूत को चूस रहा था और चाट रहा था। मेरी जीभ की घर्षण ने दोनों के बदन में आग लगा दी।

थोड़ी देर में प्रशाँत ने अपने चूत्तड़ ऊपर की और उठाये जैसे कि अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक समाना चाहता हो। मैं समझ गया कि उसका पानी छूटने वाला है। प्रीती ने भी अपनी चूत का दबाव प्रशाँत के लंड पर बढ़ा कर अपना पानी छोड़ दिया। प्रशाँत ने भी प्रीती की कमर को जोर से पकड़ अपने वीर्य को उसकी चूत में उड़ेल दिया।

मैं प्रीती की चूत जोर से चूसे जा रहा था और साथ ही साथ अपने लंड को रगड़ रहा था। जब प्रशाँत के लंड ने अपना सारा पानी प्रीती की चूत में छोड़ दिया तो प्रशाँत ने प्रीती को अपने से नीचे उतार दिया और मेरी तरफ़ देखते हुए कहा, “राज अब तुम प्रीती को चोदो।”

प्रीती मेरे सामने अपनी टाँगें फ़ैलाये लेटी थी। उसकी गुलाबी चूत मेरे सामने थी और साथ ही मुझे उसकी चूत से टपकता प्रशाँत का वीर्य साफ दिखायी दे रहा था। दूसरे के वीर्य से भीगी अपनी बीवी की चूत में लंड डालने का मेरा कोई इरादा नहीं था। जब प्रशाँत ने मुझे हिचकिचाते हुए देखा तो इशारे से मुझे शर्त याद दिलायी।

मेरे पास कोई चारा नहीं था, इसलिए मैं प्रीती की टाँगों के बीच आ गया और एक ही धक्के में अपने खड़े लंड को उसकी चूत में जड़ तक समा दिया। मैंने देखा कि मेरा लंड प्रशाँत के वीर्य से लिथड़ा हुआ प्रीती की चूत के अंदर बाहर हो रहा था।

प्रीती ने अपनी उखड़ी साँसों को संभाल कर अपनी आँखें खोलीं और मुझे देख कर मुस्कुरा दी। फिर उसने पलट कर प्रशाँत की और देखा। प्रशाँत उसकी और बढ़ कर उसके होंठों को चूसने लगा। मैं अपनी बीवी को कस के चोदे जा रहा था और वो दूसरे मर्द के होंठों का रसपान कर रही थी। प्रशाँत अब नीचे की और बढ़ कर उसकी एक चूँची को मुँह मे ले चूस रहा था।

इतने में प्रशाँत झटके से उठा, “तुम दोनों मज़ा करो,” कहकर वो अपने कपड़े पहन वहाँ से चला गया। मैंने प्रीती की और देखा तो उसने अपनी टाँगें मोड़ कर अपनी छाती पर रख लीं और अपनी अँगुली मुँह में गीली कर के अपनी चूत में घुसा दी।

मैं और तेजी से उसे चोदने लगा और वो अपनी अँगुली से खुद को चोद रही थी। मुझे पता था कि थोड़ी ही देर में उसकी चूत फिर पानी छोड़ देगी और मेरा लंड उसकी चूत में पानी छोड़ देगा। थोड़ी ही देर में हम दोनों का शरीर अकड़ने लगा और प्रीती ने अपनी नसों के खींचाव से मेरे लंड को पूरा भींच लिया। उसकी चूत ने इतनी जोरों का पानी छोड़ा कि मुझे ऐसा लगा कि मेरे लंड पर कोई बाँध खुल गया है। मैंने भी उसे जोरों से भींचते हुए अपना वीर्य उगल दिया।

हम दोनों आपस में शर्त तो लगा चुके थे, पर इस शर्त की हद कहाँ तक हमें ले जायेगी, ये मुझे कुछ दिनों के बाद पता चला। मैंने और प्रीती ने प्रशाँत और बबीता का अपने दोस्तों से परिचय कराने के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी।

मैंने सोच लिया था कि मैं बबीता को वो सब करने को कहुँगा जो वो नहीं करना चाहती। अगर उसने ना कहा तो मैं शर्त जीत जाऊँगा। पार्टी के दिन मैं ऑफिस में यही सोचता रहा और शाम तक मैंने सब कुछ सोच लिया था कि मुझे क्या करना है।

बबीता के खयालों में खोया हुआ जब मैं शाम को घर पहुँचा तो मेरा लंड पूरा खंबे के जैसे तना हुआ था। प्रीती ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला और मुझे बांहों मे भर कर चूम लिया। मेरा लंड उसकी चूत पे ठोकर मार रहा था। प्रीती ने दरवाज़ा बंद किया और घुटनों के बल बैठते हुए मेरी पैंट के बटन खोलने लगी।

मैं दीवार का सहारा ले कर खड़ा हो गया और प्रीती मेरे लंड को बाहर निकल चूसने लगी। वो मुझे जोर-जोर से चूस रही थी और मैं उसके बालों को पकड़ अपने लंड पर उसके मुँह को दबा रहा था। थोड़ी देर में मेरे लंड ने उसके मुँह में वीर्य छोड़ दिया जिसे वो सारा गटक गयी।

अपने होंठों पे लगे मेरे वीर्य को अपनी जीभ से साफ करते हुए वो बोली, “राज जानते हो आज मैं बाज़ार से क्या लेकर आयी हूँ?” इतना कह वो मुझे घसीट कर बेडरूम मे ले गयी। बेडरूम मे पहुँच कर मैंने देखा कि बिस्तर पर एक बहुत ही काले रंग का नौ इंच लंबा और तीन इंच मोटा डिल्डो पड़ा था।

प्रीती ने बताया कि वो ये डिल्डो बबीता के साथ बाज़ार से लायी है। ये बेटरी से चलता है। प्रीती इसे आजमाना चाहती थी। मैंने दराज से बेटरी निकाल कर उसमें लगा दी। प्रीती बिस्तर पर लेट गयी और अपने गाऊन को कमर तक उठा दिया और अपनी चूत को फैला दिया।

मैंने देखा की कई दिनों से प्रीती ने पैंटी पहनना छोड़ दिया था। “मैं चाहती हूँ कि तुम इसे मेरी चूत में डालकर मुझे इससे चोदो,” कहकर प्रीती ने डिल्डो मेरे हाथों में पकड़ा दिया। मैंने पहले उसकी सफ़ाचट चूत को चूमा और फिर डिल्डो को उसकी चूत के मुहाने पे रख दिया। डिल्डो मेरे लंड से भी मोटा था और मैं सोच रहा था कि वो प्रीती की चूत में कहाँ तक जायेगा।

मैंने डिल्डो उसकी चूत पे रखा और अंदर घुसाने लगा। प्रीती अपनी टाँगें हवा में उठाय हुए थी। थोड़ी देर में ही पूरा डिल्डो उसकी चूत में घुस गया और मैंने उसका का स्विच ऑन कर दिया। अब वो प्रीती को मज़े दे रहा था और उसके मुँह से सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहहहहह आआआआआहहहहहह।”

इतने में ही फोन की घंटी बजी। प्रीती झट से बिस्तर पर से उठ कर फोन सुनने लगी। फोन पर उसकी फ्रेंड थी जो थोड़ी देर में हमारे घर आ रही थी। प्रीती ने अपने कपड़े दुरुस्त किए और डिल्डो को बेड के साईड ड्रावर (दराज) में रख दिया। दरवाज़े की घंटी बजी और प्रीती अपनी फ्रेंड को रिसीव करने चली गयी।

मैंने भी रात के कार्यक्रम को अंजाम देने की लिए बबीता का फोन मिलाया। उसने पहली घंटी पर ही फोन उठाया और हँसते हुए पूछा, “प्रीती को अपना नया खिलोना कैसा लगा?” मैंने उसकी बातों को नज़र-अंदाज़ कर दिया। मैंने उसे बताया कि उसे रात की पार्टी में टाईट काले रंग की ड्रेस पहन कर आनी थी और उसे नीचे कुछ भी नहीं पहनना था। ना ही किसी तरह की ब्रा और न ही पैंटी। और साथ ही सैंडल भी एक दम हाई हील की होनी चाहिए। उसने बताया कि ऐसी ही एक ड्रेस उसके पास है। बबीता ने पूछा कि उनके कुछ दोस्त उनके साथ रहने के लिये आ रहे हैं तो क्या वो उन्हें साथ में पार्टी में ल सकती है। मैंने उसे हाँ कर दी।

सबसे पहले पहुँचने वालों में प्रशाँत और बबीता ही थे। वे करीब सात बजे पहुँच गये थे। उनके साथ उनके दोस्त अविनाश और मिनी थे। दोनों की जोड़ी खूब जंच रही थी। अविनाश जिसे सब प्यार से अवी कहते थे, थ्री पीस सूट में काफी हेंडसम लग रहा था। और मिनी का तो कहना ही क्या; उसने काले रंग की डीप-कट ड्रेस पहन रखी थी जो उसके घुटनों तक आ रही थी। गोरा रंग, पतली कमर, सुडौल टाँगें और पैरों में चमचमाते हुए काले रंग के स्ट्रैपी हाई हील के सैंडल। मिनी काफी सुंदर दिखायी दे रहे।

पर बबीता को देख कर तो मेरी साँसें ऊपर की ऊपर रह गयी। जैसे मैंने कहा था उसने लो-कट की काले कलर की टाईट ड्रेस पहन रखी थी। और वो मिनी की ड्रेस से भी छोटी थी। उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर की और तक। ड्रेस इतनी छोटी थी कि बिना ड्रेस को ऊपर किये उसकी साफ और चिकनी चूत दिखायी दे सकती थी। पता नहीं बबीता ने कैसे हिम्मत की होगी बिना ब्रा और पैंटी के ये ड्रेस पहनने की।

प्रीती भी अपनी लाल ड्रेस ओर मैचिंग लाल सैंडलों में थी जो उसने इसी पार्टी के लिये नयी खरीदी थी। सबका परिचय कराने के बद मैं अपने काम में जुट गया। मैं बबीता को इशारा कर के बार काऊँटर की और बढ़ गया, और ड्रिंक्स बनाने लगा। जब मैं ड्रिंक्स बना रहा था तब बबीता ने मेरे पीछे आ कर मेरे कान में कहा कि उसने वैसे ही किया जैसा मैंने उसे करने को कहा था।

वो मेरे सामने आकर अपनी टाँगें थोड़ी फैला कर खड़ी हो गयी, जैसे बताना चाहती हो कि वो सही कह रही है। मैंने जान बूझ कर अपने हाथ में पकड़ा बॉटल ओपनर नीचे जमीन पर गिरा दिया। जैसे ही मैं वो ओपनर उठाने को नीचे झुका तो बबीता ने अपनी ड्रेस उठा कर अपनी बालों रहित चूत को मेरे मुँह के आगे कर दिया। उसके इस अंदाज़ ने मेरे लंड को तन्ना दिया। मैंने थोड़ा सा आगे बढ़ कर हल्के से उसकी चूत को चूमा और खड़ा हो गया। अच्छा हुआ मेरी इस हर्कत को कमरे में बैठे लोगों ने नहीं देखा।

धीरे-धीरे लोग इकट्ठे होते जा रहे थे। बबीता मेरे साथ मेरे पीछे खड़ी मुझे ड्रिंक्स बनाने में सहायता कर रही थी। बार की आड़ लेकर मुझे जब भी मौका मिलता मैं उसके चूत्तड़ और उसकी गाँड पे हाथ फिरा देता। एक बार जब हमारी तरफ़ कोई नहीं देख रहा था तो उसने मेरा हाथ पकड़ अपनी चूत पे रख दिया और कहा, “राज मेरी चूत को अपनी अँगुली से चोदो ना।”

मेरा लंड मेरी पैंट में एक दम तन चुका था। अब मैं उसकी गर्मी शाँत करना चाहता था। पहले प्रीती को उसके नये डिल्डो के साथ और अब पिछले तीस मिनट बबीता के साथ खेलते हुए मेरा लंड पूरी तरह से तैयार था।

मैंने प्रीती के तरफ़ देखा। वो अविनाश और मिनी के साथ बातों मे मशगूल थी। प्रशाँत भी प्रीती के खयालों में खोया हुआ था। ये उप्युक्त समय था बबीता को गेस्ट रूम में ले जाकर चोदने का। मैंने बबीता से कहा, “तुम गेस्ट रूम मे चलो... मैं तुम्हारे पीछे आता हूँ।”

बबीता बिना कुछ कहे गेस्ट रूम की और बढ़ गयी। मगर मेरा इरादा केवल बबीता को चोदने का नहीं था बल्कि मैं चाहता था कि उसकी चुदाई प्रशाँत अपनी आँखों से देखे। मैं उसके पास गया और उसे साईड मे ले जाकर उससे कहा, “प्रशाँत आज मैं तुम्हारी बीवी की गाँड मारूँगा और मैं चाहता हूँ कि तुम ये सब अपनी आँखों से देखो। ऐसा करना तुम खिड़की के पीछे छिप कर सब देखो, मैंने खिड़की के पट थोड़े खुले छोड़ दिए हैं।” इतना कहकर मैं गेस्ट रूम की तरफ़ बढ़ गया।

मैं कमरे मे पहुँचा तो बबीता मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उसे बांहों मे भर कर उसके होंठों को चूमने लगा। मैंने उसके बदन को सहलाते हुए उसकी पीठ पर लगी ज़िप खोल दी, “बबीता अपनी ड्रेस उतार दो।”

बबीता ने अपनी ड्रेस उतार दी। उसने नीचे कुछ नहीं पहना था। अब वो सिर्फ काले रंग के हाई हील के सैंडल पहने नंगी खड़ी मेरी और देख रही थी। बबीता उन सैंडलों में नंगी इतनी सुंदर लग रही थी कि किसी भी मर्द को मदहोश कर सकती थी।

मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ पकड़ कर उसे अपने नज़दीक खींच लिया, और उसके कान में फुसफुसाया, “बबीता आज मैं तुम्हारी गाँड मारना चाहता हूँ।”

मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी और बोली, “राज मैं पूरी तरह से तुम्हारी हूँ। तुम्हारा जो जी चाहे तुम कर सकते हो।”

बबीता अब घुटनों के बल बैठ कर मेरी पैंट के बटन खोलने लगी। बटन खुलते ही मेरा लंड फुँकार मार कर बाहर निकल आया। बबीता बड़े प्यार से उसे अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। वो इतने प्यार से चूस रही थी जैसे वो मेरे लंड को अपनी गाँड के लिये तैयार कर रही हो।

मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी औरत की गाँड नहीं मारी थी। मैंने कई बार प्रीती को इसके लिए कहा पर हर बार उसने साफ़ मना कर दिया। एक बार मेरी काफी जिद करने पर वो तैयार हो गयी। पर मेरी किस्मत, जैसे ही मैंने अपना लंड उसकी गाँड में घुसाया, वो दर्द के मारे इतनी जोर की चींखी, कि घबरा कर मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया। उसके बाद मैंने दोबारा कभी इस बात की हिम्मत नहीं की।

मगर आज लग रहा था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है। मैंने बिना समय बिताय अपने कपड़े उतार दिए और नंगा हो गया और बबीता से कहा, “बबिता अब तुम मेरे लंड को अपनी गाँड के लिए तैयार करो?”

वो खड़ी हो गयी और मेरे लंड को पकड़ कर मुझे बाथरूम की तरफ़ घसीटने लगी, “राज तुम्हारे पास कोई क्रीम है?”

बाथरूम में पहुँच कर मैंने स्टैंड पर से वेसलीन की शीशी उठा कर उसे दे दी। मैंने सब तैयारी कल शाम को ही कर ली थी। बबीता मुस्कुराते हुए शीशी में से थोड़ी क्रीम ले कर मेरे लंड पर मसलने लगी। मेरे लंड को मसलते हुए वो मेरे सामने खड़ी बड़ी कामुक मुस्कान के साथ मुझे देखे जा रही थी।

बबीता शायद समझ चुकी थी कि मैंने अपनी ज़िंदगी मे कभी किसी की गाँड नहीं मारी है। उसने हँसते हुए मुझे बताया कि गाँड मरवाने में उसे बहुत मज़ा आता है। उसने बताया कि प्रशाँत भी अक्सर उसकी गाँड मारता रहता है।

जब मेरा लंड क्रीम से पूरा चिकना हो चुका था तो वो क्रीम की शीशी मुझे पकड़ा कर घूम कर खड़ी हो गयी। शीशे के नीचे लगे शेल्फ को पकड़ वो नीचे झुक गयी और अपनी गाँड मेरे सामने कर दी।

बबीता ने शीशे में से मेरी और देखते हुए अपने टाँगों को थोड़ा फैला दिया जिससे उसकी गाँड और खुल गयी। बबीता मेरी और देखते हुए बोली, “राज अब इस क्रीम को मेरी गाँड पर अच्छी तरह चुपड़ कर मेरी गाँड को भी चिकना कर दो?”

मैंने थोड़ी सी क्रीम अपनी अँगुलियों पे ली और उसकी गाँड पे मलने लगा। जैसे ही मेरी अँगुलियों ने उसकी गाँड को छुआ, उसने एक मादक सिस्करी लेते हुए अपने सर को अपने हाथों पे रख दिया, “राज अब तुम अपनी एक अँगुली मेरी गाँड मे डाल दो और उसे गोल-गोल घुमाओ।”

मैंने अपनी एक अँगुली उसकी गाँड मे डाल दी और गोल-गोल घुमाने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “अब तुम थोड़ी और क्रीम अपनी अँगुली पे ले कर अपनी दो अँगुलियाँ मेरी गाँड में डाल कर अंदर बाहर करने लगो।”

उसने जैसा कहा, मैंने वैस ही किया। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, एक तो किसी की बीवी की गाँड मारने का मौका और ऊपर से वो ही मुझे सिखा रही थी कि गाँड कैसे मारी जाती है। काश प्रशाँत ये सब देख पता कि कैसे मेरी दो अँगुलियाँ उसकी बीवी की गाँड में अंदर बाहर हो रही थी।

थोड़ी देर बाद जब उसकी गाँड पूरी तरह से चिकनी हो गयी तो वो बोली, “राज अब तुम मेरी गाँड मार सकते हो, ये तुम्हारे लौड़े के लिए पूरी तरह से तैयार है।”

मैंने उसे सीधा किया और अपनी गोद मे उठा कर उसे बिस्तर पे ले आया। मैंने कनखियों से खिड़की की तरफ़ देखा तो मुझे प्रशाँत की परछाईं दिखायी दी। मैंने बबीता को इस अंदाज़ में घुटनों के बल बिस्तर पर लिटाया कि उसकी गाँड खिड़की की तरफ़ हो और प्रशाँत को सब कुछ साफ नज़र आये।

बबीता बिस्तर पर पूरी तरह अपनी छातियों के बल लेट गयी जिससे उसकी गाँड और ऊपर को उठ गयी थी। मैं उसकी टाँगों के बीच आ गया और अपना खड़ा लंड उसकी गाँड के गुलाबी छेद पे रख थोड़ा सा अंदर घुसा दिया।

जैसे ही मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी गाँड के छेद में घुसा, उसके मुँह से सिस्करी निकल पड़ी, “ऊऊऊऊऊईईईईईईई मर गयीईईईईई”

बबीता ने अपने दोनों हाथ पीछे कर के अपने चूत्तड़ पकड़ कर अपनी गाँड को और फैला लिया। उसकी गाँड और मेरा लंड पूरी तरह से क्रीम से लथे हुए थे। मैंने उसके चूत्तड़ को पकड़ कर अपने लंड को और अंदर घुसाया, पर उसकी गाँड इतनी कसी हुई थी कि मुझे अंदर घुसाने में तकलीफ़ हो रही थी।

बबीता ने अपने चूत्तड़ और फैला दिए, “राज थोड़ा धीरे और प्यार से घुसाओ।”

मैंने अपने लंड को बड़े धीरे से उसकी गाँड में घुसाया तो मुझे लगा कि उसकी गाँड के दीवारें और खुल रही हैं और मेरे लंड के लिए जगह बन रही है। मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं उसकी गाँड मे लंड नहीं डाल रहा हूँ बल्कि उसकी गाँड मेरे लंड को निगल रही है। थोड़ी ही देर में मेरा पूरा लंड उसकी गाँड मे समाया हुआ था।

अब मैं अपने लंड को उसकी गाँड में धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रहा था। मैं अपने लंड को बाहर खींचता और जब सिर्फ़ सुपाड़ा अंदर रहता तो एक ही धक्के में अपना लंड उसकी गाँड मे पेल देता।

बबीता भी अपने चूत्तड़ों को पीछे की और धकेल कर मज़ा ले रही थी, “हाँआआआ राज डाल दो अपने लंड को मेरी गाँड में.... फाड़ दो इसे... लगाओ जोर के धक्के...।”

मुझे भी जोश आता जा रहा था। मैंने बबीता के कंधों को पकड़ कर उसे अपने से और चिपटा लिया। अब मेरा लंड और भी गहराइयों तक उसकी गाँड में जा रहा था। मैं जैसे ही अपना लंड और घुसाता, वो अपने को और मेरी बदन से चिपका लेती। मैं इसी अवस्था में अपने लंड को उसकी गाँड के अंदर बाहर कर रहा था कि मैंने उसके हाथों को अपने आँडकोश पे महसूस किया। वो धीरे-धीरे मेरे गोलों को सहला रही थी। उसके हाथों की गर्मी मुझमें और उत्तेजना भर रही थी।

मेरा लंड अब तेजी से उसकी गाँड के अंदर बाहर हो रहा था। मुझे मालूम था कि मेरा छूटने का समय नज़दीक आता जा रहा है। पर शायद उसका पानी नहीं छूटने वाला था, वो अपना हाथ मेरे अँडों पे से हटा कर अपनी चूत को रगड़ने लगी। मैं और जोर से धक्के मार रहा था।

जब उसका छूटने का समय नज़दीक आया तो वो अपनी दो अँगुलियाँ अपनी चूत मे डाल कर अंदर बाहर करने लगी और चींखने लगी, “हाँ मारो मेरी गाँड को... और जोर से... राज छोड़ दो अपना पूरा पानी मेरी गाँड में...।”

मैं जोर से उसकी गाँड मे अपना लंड पेले जा रहा था। बहुत ही दिलकश नज़ारा था। जब मेरा लंड उसकी गाँड से निकलता तो उसका छेद सिकुड़ जाता और जब मैं अंदर पेलता तो और खुल जाता। मैं जोर के धक्के लगा रहा था।

मैंने महसूस किया कि उसका शरीर अकड़ रहा था और उसकी गाँड ने मेरे लंड को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया था। मैं समझ गया कि उसका पानी छूट रहा है। मैंने जोर का धक्का लगाया और मेरे लंड ने भी अपने वीर्य की पिचकारी उसकी गाँड मे छोड़ दी। जैसे ही मेरा लंड वीर्य उगलता, मैं अपने लंड को और जड़ तक उसकी गाँड में समा देता।

मुझे आज पहली बार एहसास हुआ कि गाँड मारने में कितना मज़ा आता है। मैं बबीता की गाँड में अभी भी अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था। उसकी गाँड क्रीम और मेरे वीर्य से इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे अपना लंड जड़ तक घुसाने में कोई तकलीफ़ नहीं हो रही थी।

पर हमें नीचे पार्टी में भी शामिल होना था, इसलिए मैंने अपना लंड धीरे-धीरे उसकी गाँड से निकालना शुरू किया। जब मेरा लंड उसकी गाँड से बाहर निकल आया तो बबीता ने घूम कर मुझे चूम लिया, “मैं जानती हूँ तुमने आज पहली बार किसी की गाँड मारी है और तुम्हें खूब मज़ा आया है। मुझे भी मज़ा आया है, आज के बद तुम जब चाहो मेरी गाँड मार सकते हो।”

बबीता के इन शब्दों ने जैसे मेरे मुर्झाये लंड में जान फूँक दी। मेरा लंड फ़िर से तन कर खड़ा हो गया। मैं समझ गया कि मुझे बबीता की गाँड मारने का और मौका भविष्य में मिलेगा।

मैंने और बबीता ने अपने आप को टॉवल से साफ़ किया और अपने कपड़े पहन लिए। मैं बबीता से पहले पार्टी में पहुँचा तो मेरा सामना प्रशाँत से हो गया, “लगता है तुम्हारे और बबीता में अच्छी खासी जमने लगी है। अब मेरा समय है कि मैं प्रीती के सैक्स ज्ञान को और आगे बढ़ाऊँ।”

प्रशाँत अब प्रीती को खोज रहा था। प्रीती कमरे के एक कोने में खड़ी अविनाश और मिनी से बातें कर रही थी। हकीकत में अविनाश बार स्टूल पे बैठा था और प्रीती उसके पास एक दम सट कर खड़ी थी। अविनाश के दोनों हाथ उसकी कमर पर थे।

मैंने देखा कि प्रशाँत प्रीती के पास गया और उसके कान में कुछ कहा। प्रीती उसकी बात सुनकर अविनाश से बोली, “सॉरी, मैं अभी आती हूँ।” यह कहकर वो गेस्ट रूम की और बढ़ गयी।

प्रशाँत मेरी तरफ़ आया और बोला, “अब तुम्हारी बारी है देखने की।” यह कहकर वो भी गेस्ट रूम की और बढ़ गया। एक बार तो मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूँ, फिर मैं भी उसके पीछे बढ़ गया। मैं भी देखना चाहता था कि वो मेरी बीवी के साथ क्या करता है।

प्रशाँत के जाते ही मैं भी उसके पीछे जा खिड़की के पीछे वहीं छिप गया जहाँ थोड़ी देर पहले प्रशाँत खड़ा था। प्रशाँत और प्रीती कमरे में पहुँच चुके थे, और प्रीती उसे अविनाश और मिनी के बारे में बता रही थी। प्रीती बता रही थी अविनाश कितना हँसमुख इन्सान था और वो उसे किस तरह के जोक्स सुना कर हँसा रहा था।

प्रशाँत ने प्रीती से पूछा, “क्या तुम्हें अविनाश अच्छा लगता है?”

“हाँ अविनाश एक अच्छा इंसान है और मिनी भी। दोनों काफी अच्छे हैं।” प्रीती ने जवाब दिया।

“नहीं सच बताओ क्या तुम अविनाश से चुदवाना चाहती हो, मुझे और बबीता को मालूम होना चाहिए। हम लोग पिछले साल भर से दोस्त हैं और तुम्हें नहीं मालूम कि अविनाश कितनी अच्छी चुदाई करता है,” प्रशाँत ने कहा।

प्रीती ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया पर वो इतना जरूर समझ गयी कि प्रशाँत और बबीता आपस में अविनाश और मिनी के साथ चुदाई करते हैं।

प्रीती ने प्रशाँत को बांहों में भर लिया और उसके होंठों को चूमने लगी। प्रशाँत ने भी उसे बांहों भर कर अपना एक हाथ उसकी ड्रेस के अंदर डाल दिया। “तो आज तुमने भी पैंटी नहीं पहन रखी है,” कहकर वो उसके चूत्तड़ सहलाने लगा।

हे भगवान! मैं बबीता में इतना खोया हुआ था कि मुझे इस बात का पता ही नहीं चला कि मेरी बीवी बिना पैंटी के इतनी देर से पार्टी में घूम रही है।

“तो तुम्हें तुम्हारा नया खिलोना कैसा लगा। बबीता के पास भी वैसा ही खिलोना है, और उसे बहुत पसंद है। क्या तुम उसे ट्राई कर चुकी हो?” प्रशाँत ने उसके कुल्हों को भींचते हुए कहा।

“कुछ खास अच्छी तरह से नहीं।” प्रीती ने जवाब दिया। प्रशाँत ने उसे अपना नया डिल्डो लाने को कहा। प्रीती ने अपने बेडरूम से डिल्डो लाकर प्रशाँत को पकड़ा दिया।

प्रशाँत ने प्रीती को कमरे में रखी एक अराम कुर्सी पर बिठा दिया। प्रशाँत अब जोरों से उसे चूमने लगा। मैंने देखा कि उसका एक हाथ बबीता की टाँगों को सहलाते हुए अब उसकी जाँघों पर रेंग रहा था। फिर उसने उसकी दोनों टाँगों को थोड़ा फैला दिया जिससे उसकी चूत पूरी तरह खुल कर नज़र आने लगी।

मेरी बीवी कुर्सी पर और पसर गयी और अपने टाँगें और फैला दीं जिससे प्रशाँत को आसानी हो सके। प्रशाँत ने उसकी टाँगों को ऊपर उठा कर कुर्सी के हथे पे रख दिया। जैसे ही प्रशाँत ने अपना मुँह उसकी चूत का स्वाद लेने के लिए बढ़ाया, प्रीती उसकी और कामुक नज़रों से देखने लगी।

कुर्सी ठीक खिड़की के बगल में थी। इसलिए मुझे अंदर का नज़ारा साफ दिखायी पड़ रहा था कि, किस तरह प्रशाँत मेरी बीवी की चूत को चाट रहा था। प्रशाँत चूत चाटने में माहिर था और थोड़ी ही देर में प्रीती के मुँह से सिस्करी गूँजने लगी।

प्रशाँत ने अब अपनी दो अँगुलियाँ अपनी जीभ के साथ प्रीती की चूत मे डाल दी, और अंदर बाहर करने लगा। करीब पंद्रह मिनट तक उसकी चूत को चाटने के बाद प्रशाँत उठा और डिल्डो को ले आया और उसका बटन ऑन करके उसे चालू कर दिया।

मेरी बीवी कुर्सी पर पसरी हुई कामुक नज़रों से प्रशाँत को देख रही थी। वो जानती थी कि एक दूसरा मर्द अब उसकी चूत में एक खिलौने को डालने वाला है। प्रशाँत घुटनों के बल बैठ कर प्रीती की टाँगों के बीच आ गया और उसकी गीली हो चुकी चूत में डिल्डो को डालने लगा। उसने धीरे-धीरे डिल्डो अंदर घुसाया और अब वो प्लास्टिक का खिलौना प्रीती की चूत में पूरा घुस चुका था।
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#85
डिल्डो की हर्कत का असर मेरी बीवी के चेहरे पे साफ दिखायी दे रहा था, वो अपनी टाँगों को पूरा भींच कर डिल्डो का मज़ा लेने लगी। मेरा लंड भी ये सब देख एक बार फ़िर तन चुका था, जबकि बीस मिनट पहले ही मैं बबीता की गाँड में झड़ कर अलग हुआ था।


प्रशाँत अब खड़ा होकर अपनी पैंट के बटन खोलने लगा। उसने प्रीती के चेहरे के पास आकर अपना एक घुटना कुर्सी के हथे पे रख दिया। उसका लंड प्रीती के चेहरे पे झटके मार रहा था। प्रीती ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ़ देखा और अपना मुँह खोल कर उसके लंड को अंदर ले लिया।

“प्रीती मैं चाहता हूँ कि तुम मेरा लंड ठीक उसी तरह चूसो जैसे तुमने पहली बार चूसा था। एक हाथ से मेरे लंड को चूसो और दूसरे हाथ से मेरी गोलाइयों को सहलाओ। सच में बहुत मज़ा आया था जब तुमने ऐसा किया था!” प्रीती वैसे ही उसके लंड को जोरों से चूस रही थी। दोनों की गहरी होती साँसें और बदन की हर्कत बता रही थी कि दोनों ही छूटने के करीब हैं।

एक तो प्रीती की चूत में डिल्डो की हर्कत, ऊपर से प्रशाँत का लंड। प्रीती उत्तेजित हो कर प्रशाँत के लंड को अपने गले में ले कर चूस रही थी। प्रशाँत भी उसके मुँह में लंड पूरा अंदर डाल कर चोद रहा था। अचानक बिना बताये प्रशाँत ने अपना लंड उसके मुँह से निकाला और अपना पानी प्रीती की चूचियों पर और चेहरे पे छोड़ दिया।

मैं तीन फ़ुट की दूरी पर खड़ा देख रहा था कि आपत्ति जताने की बजाये प्रीती उसके पानी को अपने पूरे चेहरे पे रगड़ने लगी। फिर उसके रस से भरी अपनी अँगुलियों को चाटने लगी। उसकी हर्कत ने मेरे लंड में जोश भर दिया और मैं अपने लंड को पैंट के ऊपर से रगड़ने लगा।

जब प्रशाँत का पूरा वीर्य झड़ गया तो वो उठ कर खड़ा हो गया। प्रीती अब भी कुर्सी पर लेटी हुई डिल्डो का मज़ा ले रही थी। प्रशाँत ने प्रीती का हाथ पकड़ कर उसे उठाया और बाथरूम मे ले गया। मैंने देखा कि वो एक दूसरे को साफ कर रहे थे। बाथरूम से बाहर आकर प्रशाँत ने अपने कपड़े ठीक किए पर जब प्रीती अपनी ड्रेस देखने लगी तो पाया कि प्रशाँत के वीर्य के धब्बे उसकी ड्रेस पर भी गिर पड़े थे।

प्रीती को उदास देख प्रशाँत ने कहा, “डीयर उदास नहीं होते, ऐसा करो जो उस रात तुमने ड्रेस पहनी थी वही पहन लो, तुम पर वो ड्रेस खूब जँच रही थी।”

प्रीती बेडरूम में गयी और अपनी टाईट जींस और टॉप लेकर आ गयी। प्रशाँत ने उसे बांहों में भर लिया और फिर प्रीती को ले जाकर उसी कुर्सी के पास खड़ा कर दिया।

प्रशाँत कुर्सी पर बैठ गया और मेरी बीवी उसके सामने नंगी खड़ी थी। उसकी चूत एक दम फुली हुई लग रही थी क्योंकि वो डिल्डो अभी भी उसकी चूत में घुसा हुआ था। जैसे ही प्रीती ने वो डिल्डो बाहर निकालने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो प्रशाँत बोला, “तुम्हें इसे बाहर निकालने की इजाजत किसने दी?” अब ये साफ हो गया था प्रशाँत चाहता था कि वो डिल्डो उसकी चूत मे ही घुसा रहे।

प्रशाँत ने अब उसकी जींस अपने हाथों मे ले ली। उसके बदन को सहलाते हुए वो उसे जींस पहनाने लगा। प्रीती ने भी अदा से पहले अपनी एक टाँग उसमें डाली और फिर दूसरी। इसी दौरान एक बार डिल्डो उसकी चूत से फिसलने लगा तो प्रशाँत ने वापस उसे पूरा अंदर घुसा दिया।

प्रीती ने अपनी टाईट जींस का ज़िपर खींचा और उसके बाद बटन बंद करने लगी। पर उसको काफी तकलीफ हुई क्योंकि डिल्डो जो उसकी चूत मे घुसा हुआ था। उसने अपना लाल टॉप भी पहन लिया। इतनी टाईट जींस में वो बहुत सैक्सी लग रही थी। फिर प्रीती ने अपने लाल सैंडल उतार कर दूसरे काले रंग के हाई हील के सैंडल पहन लिए। प्रशाँत और प्रीती पार्टी में जाने को तैयार हो गये।

मैं भी खिड़की से हटा और हाल में आ गया। शराब और शबाब जोरों से चल रही थी। किसी ने ध्यान नहीं दिया कि तीन लोग इतनी देर पार्टी से गायब थे। मैं बबीता के पास आ गया जो अविनाश और मिनी के साथ बातें कर रही थी। जैसे ही प्रशाँत और प्रीती हाल में आये, मैं अपने आपको प्रीती की चूत की तरफ़ देखने से नहीं रोक पाया। सिर्फ़ मैं जानता था कि उसकी चूत में एक डिल्डो घुसा हुआ है। उसकी जींस उस जगह से थोड़ी उठी हुई थी, ये मुझे साफ दिखायी पड़ रहा था। पता नहीं आगे और किस किस का ध्यान इस बात की और जाता है।

प्रीती मेरे पास आयी और गले में बांहें डाल कर मेरे होंठों को चूम लिया। ऐसा वो सबके सामने करती नहीं थी पर शायद एक तो चूत में डिल्डो और दूसरा उसकी चूत ने अभी तक पानी नहीं छोड़ा था इसलिए उसके शरीर में उत्तेजना भरी हुई थी। फिर उसने प्रशाँत के साथ गेस्ट रूम में जाने से पहले शराब भी पी थी जिसके सुरूर उसकी मदहोश आँखों में साफ-साफ दिख रहा था। मैंने अंजान बनते हुए प्रीती से पूछा, “तुमने कपड़े क्यों बदल लिए?”

“बस कपड़ों पर कुछ गिर गया था।” प्रीती ने जवाब दिया। कम से कम वो झूठ तो नहीं बोल रही थी। इतने में प्रशाँत ने मेरी तरफ़ मुस्कुरा के देखा। उसकी आँखों मे एक शैतानी चमक थी। मैं समझ गया कि आज रात बहुत कुछ होने वाला है।

करीब एक घंटे तक प्रीती इस तरह पार्टी में चारों तरफ़ घूमती रही जैसे कुछ हुआ ही ना हो। चूत मे डिल्डो लिए एक अच्छे मेहमान नवाज़ की तरह सब से मिल रही थी। सबको ड्रिंक, स्नैक्स सर्व कर रही थी। मुझे पता थी कि उसकी चूत में आग लगी हुई है और वो कभी भी पानी छोड़ सकती है।

इतने में बबीता मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ डाँस करने के लिए ले आयी। हम हाल के एक कोने में डाँस कर रहे थे जहाँ ज्यादा लोग हमारे पास नहीं थे। मैंने मौके का फ़ायदा उठा कर अपना हाथ उसकी ड्रेस में डाल दिया और उसकी चूत से खेलने लगा। बबीता ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, “राज मैं जानती हूँ कि प्रशाँत ने प्रीती के साथ क्या किया है। ये उसका पुराना खेल है। वो प्रीती की ऐसी हालत कर देगा कि वो अपनी चूत का पानी छुड़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जायेगी। पता नहीं प्रशाँत के दिमाग में क्या शरारत भरी हुई है।

इतने में अविनाश ने मेरी बीवी से डाँस करने के लिए कहा। प्रीती ने प्रशाँत की और देखा और प्रशाँत ने आँख से इशारा करते हुए उसे जाने को कहा। मैंने देखा कि प्रीती का बदन मारे उत्तेजना के काँप रहा था। वो बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोक रही थी।

इतने में मिनी ने भी मुझे डाँस करने के लिए कहा। मैं समझ गया कि ये इशारा प्रशाँत ने उसे किया है। अब हम चारों अविनाश के पास आकर डाँस करने लगे। मैं समझ गया कि प्रशाँत के मन में सामुहिक चुदाई का प्रोग्राम है। मिनी इतनी सैक्सी और गरम थी कि मैंने उसे चोदने का पक्का मन बना लिया था, पर मुझे प्रीती का नहीं पता था कि वो अविनाश से चुदवायेगी कि नहीं।

पर मुझे इसकी चिंता नहीं थी। मुझे पता था कि प्रीती की चूत में इतनी देर से डिल्डो होने की वजह से उसकी चूत की हालत खराब हो चुकी होगी। प्रीती अपनी चूत का पानी छोड़ने के लिए अब किसी घोड़े से भी चुदवा सकती है।

मिनी ने मेरी तरफ़ कामुक निगाह से देखा और कहा, “राज आज तक मैं प्रशाँत जैसे मर्द से नहीं मिली। वो चुदाई की कलाओं में इतना माहिर है कि वो किसी औरत को किसी भी मर्द से चुदवाने को उक्सा सकता है।” मैं समझ गया कि वो प्रीती की बात कर रही है।

हम चार जने ही फ़्लोर पर डाँस कर रहे थे। मिनी ने धीरे से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पे रख दिया। जैसे ही मेरा हाथ उसकी चूत को छुआ, मैं चौंक कर उछाल पड़ा। उसकी भी चूत में एक डिल्डो घुसा हुआ था।

“ये ठीक वैसा ही है जैसा तुम्हारी बीवी की चूत में घुसा हुआ है।” उसने मेरे हाथों का दबाव अपनी चूत पे बढ़ाते हुए कहा। मैं समझ गया कि ये सब प्रशाँत का काम है। उसने दो औरतों को इतना उत्तेजित कर दिया था कि वो चुदाने के लिए कुछ भी कर सकती थीं।

नाचते हुए मैंने प्रीती और अविनाश की और देखा। अविनाश का एक हाथ मेरी बीवी की चूत पर था और वो उस डिल्डो को और अंदर तक उसकी चूत में घुसा रहा था। फिर मैंने देखा कि प्रीती उसका हाथ पकड़ कर उसे हाल के बाहर ले जा रही है। मैं सोच रहा था कि पता नहीं अब आगे क्या होने वाला है? मैं भी मिनी को अपने साथ ले उनके पीछे चल दिया।

प्रीती और अविनाश कमरे में पहुँचे और उनके पीछे-पीछे प्रशाँत और बबीता और फिर मैं और मिनी भी कमरे में आ गये। अब ये बात सब पे खुलासा हो चुकी थी कि आज सब एक दूसरे की चुदाई करेंगे।

मिनी मेरे पास आकर मुझसे सट कर खड़ी हो गयी। उसकी आँखों में भी उत्तेजना के भाव थे। लगता था कि प्रशाँत ने उसे भी डिल्डो को छूने की मनाई की हुई थी। बेटरी पे चलता डिल्डो उसकी चूत में आग लगाये हुए था। पता नहीं प्रशाँत ने क्या जादू इन दोनों पे किया हुआ था।

प्रशाँत ने भी शायद उनकी आँखों में छिपी वेदना को पढ़ लिया था, “तुम दोनों चिंता मत करो, आज तुम दोनों की चूत से पानी की ऐसे बौछार छुटेगी जैसे इस कमरे में बाढ़ आ गयी हो। आज तुम को चुदाई का वो आनंद आयेगा कि तुम दोनों जीवन भर याद करोगी।”

“लेकिन प्रीती की पहली बारी है, क्योंकि आज की दावत उसकी तरफ़ से थी। लेकिन ये बाद में... पहले मैं चाहता हूँ कि प्रीती अपने काबिल-ए-तारीफ़ मुँह से अविनाश के लंड से एक एक बूँद पानी निचोड़ ले। लेकिन वो अपनी जींस नहीं उतारेगी और ना ही अपनी चूत पर हाथ रख सकेगी। अगर अविनाश ने इसके काम की तारीफ़ की तो मैं इस विषय पर सोचूँगा। राज और मिनी खड़े होकर इनहें देख सकते हैं लेकिन यही बात मिनी पर भी लागू होती है। तब तक मैं और बबीता मेहमानों का खयाल रखेंगे। जब अविनाश का काम हो जाये तो राज मेरे पास आकर, आगे क्या करना है, पूछ सकता है।” इतना कहकर प्रशाँत और बबीता वापस हाल में चले गये।

प्रीती अविनाश का हाथ पकड़ कर उसे गेस्ट बेडरूम मे ले गयी। मुझे विश्वास नहीं आ रहा था कि थोड़े दिन पहले तक जिस औरत ने शादी के बाद सिवाय मेरे किसी से नहीं चुदवाया था... आज वो फिर एक गैर मर्द का लंड चूसने जा रही है।

मैंने मुड़ कर मिनी की तरफ़ देखा। उसकी भी हालत खराब थी। मिनी भी रूम की तरफ़ बढ़ी तो मैं उसके चूत्तड़ को देखने लगा। कितने गोल और भरे हुए थे। मैं जानता था कि उसकी चूत में डिल्डो होने की वजह से वो अपनी टाँगें सिकोड़ कर चल रही थी।

जैसे ही हम रूम में पहुँचे मैंने दरवाज़ा लॉक कर दिया। प्रीती उत्तेजना में इतनी पागल थी कि बिना समय बिताये वो घुटनों के बल बैठ कर अविनाश की जींस के बटन खोलने लगी। वो जानती थी कि जितनी जल्दी वो अविनाश का लंड चूस कर उसका पानी छुड़ायेगी, उतनी जल्दी ही उसकी चूत को पानी छोड़ने का मौका मिलेगा।

प्रीती ने जल्दी-जल्दी अविनाश की जींस के बटन खोले और उसकी जींस और अंडरवियर को नीचे खिसका दिया। जैसे कोई साँप बिल के बाहर आ गया हो, उस तरह उसका दस इंची लंड जो कि तीन इंच मोटा होगा, फुँकार कर खड़ा हो गया। प्रीती उस विशालकाय लंड को अपने हाथों में ले कर सहलाने लगी।

पर देखने लायक तो उसके लंड की दो गोलाइयाँ थीं जो टेनिस बॉल की तरह नीचे लटकी हुई थी। इतनी बड़ी और भरी हुई थी कि शायद पता नहीं कितना पानी उनमें भरा हुआ है। प्रीती अब उसके लंड को जोर से रगड़ रही थी। उसे पता था कि उसका पति और अविनाश की बीवी उसे देख रहे हैं।

मैं जानता था कि प्रीती के घुटनों के बल बैठते ही डिल्डो और अंदर तक उसकी चूत में घुस गया था। प्रीती ने अपनी जुबान बाहर निकाली और उसके लंड के सुपाड़े पे घुमाने लगी। मेरे और मिनी के शरीर में गर्मी बढ़ती जा रही थी। मिनी मेरे गले में बाहें डाल कर मेरे होंठों को चूसने लगी। उसके जिस्म में फ़ैली आग और बदन से उठती खुशबू मुझे पागल कर रही थी। मैं भी उसे सहयोग देते हुए अपनी जीभ उसके मुँह में डाल कर घुमाने लगा।

मैं उसके होंठों और जीभ को चूस रहा था तो वो अपनी टाँगें फैला मुझसे बोली, “राज मेरे बदन को सहलाओ ना प्लीज़।” मैंने उसकी ड्रेस के सामने की ज़िप को नीचे कर दिया और उसकी चूचियों को बाहर निकाल लिया। उसके निप्पल इतने काले थे कि क्या बताऊँ। मैं उसकी एक चूँची को अपने हाथों मे पकड़ कर रगड़ने लगा और चूसने लगा। उसके शरीर की कंपन बता रही थी कि उसने अपने आप को मुझे सौंप दिया था लेकिन मैं उसकी चूत से नहीं खेल सकता था।

मैं उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाने लगा और अपने हाथ के दबाव से डिल्डो को और अंदर की तरफ़ धकेल दिया। मैं उसकी पैंटी को उतार कर उसकी चूत को चूमना चाहता था पर उसने मुझे रोक दिया, “राज नहीं शर्त का उसूल है कि तुम उसकी बात को टालोगे नहीं।”

मैंने घूम कर प्रीती की तरफ़ देखा कि वो क्या कर रही है। मैंने देखा कि प्रीती अपना मुँह खोले अविनाश के लंड को चूस रही है और एक हाथ से उसकी गोलियों को सहला रही है। इतने में ही प्रीती ने अपने मुँह को पूरा खोला और अविनाश के दस इंची लंड को पूरा अपने गले तक ले लिया। अब उसके होंठ अविनाश की झाँटों को छू रहे थे। प्रीती धीरे से अपने मुँह को पीछे की और करके उसके लंड को बाहर निकालती और फिर गप से पूरा लंड ले लेती।

प्रीती के दोनों छेदों में लंड घुसा हुआ था। असली दस इंची लंड उसके मुँह में और नकली प्लास्टिक का ग्यारह इंची उसकी चूत में।

प्रीती अब जोरों से अविनाश के लंड को चूस रही थी। मेरी और मिनी की आँखें इस दृश्य से हटाये नहीं हट रही थीं। इतने में मिनी भी घुटनों के बल बैठ कर मेरी जींस के बटन खोलने लगी। उसके घुटनों को बल बैठते ही डिल्डो उसकी चूत के अंदर तक समा गया और उसके मुँह से सिस्करी निकल पड़ी, “आआआआआआआआआहहहहहह”

मिनी ने मुझे घुमा कर इस अंदाज़ में खड़ा कर दिया कि मैं उसके पति के सामने खड़ा था। अब वो मेरा लंड अपने मुँह मे ले जोरों से चूस रही थी। दोनों औरतें अपनी चूत में डिल्डो फ़ँसाय किसी दूसरे मर्द का लंड चूस रही थीं। आज की शाम प्रीती के लिए अविनाश दूसरा मर्द था जिसक लंड वो चूस रही थी और मेरे लिए मिनी दूसरी औरत। एक की मैंने गाँड मारी थी और दूसरी अब मेरा लंड चूस रही थी।

मैंने देखा कि वो औरत मेरे लंड को चूस रही थी जिससे मैं चंद घंटे पहले ही मिला था, और मेरी बीवी उसके पति के लंड को चूस रही थी। दोनों औरतें एक दूसरे के पति के लंड को चूसे जा रही थी। धीरे-धीरे उनके चूसने की रफ़्तार बढ़ने लगी और इतने में अविनाश के मुँह से एक सिस्करी निकली, “हाँ..... ऐसे ही चूसो... चूसती जाओ...।”

मिनी ने अपने पति की सिस्करियाँ सुनीं तो अपने मुँह से मेरे लंड को निकाल कर अपने पति को देखने लगी। जैसे-जैसे प्रीती की चूसने की रफ़्तार बढ़ रही थी वैसे ही अविनाश के शरीर की अकड़न बढ़ रही थी। उसका शरीर अकड़ा और उसके लंड ने अपने वीर्य की बौंछार प्रीती के मुँह में कर दी। मैंने देखा कि बिना एक बूँद भी बाहर गिराये प्रीती उसके सारे पानी को पी गयी।

प्रीती की हरकत देख मिनी भी जोश में भर गयी और मेरे लंड को जोर से चूसने लगी। मुझसे अब रुका नहीं जा रहा था। मैंने मिनी के सर को पकड़ा और पूरी तरह अपने लौड़े पे दबा दिया। मेरा लंड उसके गले तक घुस गया और तभी लंड ने जोरों की पिचकारी उसके मुँह में छोड़ दी।

हम चारों को अपनी साँसें संभालने में थोड़ा वक्त लगा। हम चारों ने कपड़े पहने और वापस पार्टी में आ गये जो करीब-करीब समाप्त होने के कगार पर थी। हम दोनों मर्दों के चेहरे पे तृप्ति के भाव थे पर दोनों औरतें अभी भी प्यासी थीं। एक तो उनकी चूत ने पानी नहीं छोड़ा था और दूसरा उनके मुँह में हम दोनों के लंड का पानी था। वो बार-बार अपनी जीभ से होंठों पे हमारे लंड के पानी को पोंछ रही थीं। वो दोनों जाकर प्रशाँत के पास खड़ी हो गयी जो पार्टी में आयी किसी महिला से बातों में व्यस्त था।

हम दोनों भी प्रशाँत के पास पहुँच गये। शायद दोनों औरतों की तड़प उससे देखी नहीं गयी। वो भी जानता थी कि प्रीती और मिनी पिछले तीन घंटे से डिल्डो अपनी चूत में लिए घूम रही हैं और अब उनकी चूत भी पानी छोड़ना चाहती होगी। “चलो सब मेहमानों को अलविदा कहते हैं और हम अपनी खुद की पार्टी शुरू करते हैं”, प्रशाँत ने कहा, “मेरा विश्वास करो प्रीती... आज की रात बहुत ही स्पेशल होगी। जो मज़ा तुम्हें आज मिलेगा उस मज़े की कभी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी!”

मैं सोच रहा था पता नहीं प्रशाँत के दिमाग में अभी और क्या है। प्रीती हाल में सभी मेहमानों का ख्याल रखने लगी। थोड़ी ही देर में सब मेहमान एक के बाद एक, जाने लगे।

प्रीती जैसे ही किसी काम से नीचे को झुकती तो उसकी गाँड थोड़ा सा ऊपर को उठ जाती। प्रशाँत उसे ही घूर रहा था, “राज अब मैं तुम्हारी बीवी की गाँड मारूँगा जैसे तुमने मेरी बीवी की मारी थी।”

मैं यह सुन कर दंग रह गया। प्रशाँत मेरी बीवी की कुँवारी गाँड मारेगा जैसे मैंने उसकी बीवी की मारी थी। फर्क सिर्फ़ इतना था कि उसकी बीवी की गाँड कुँवारी नहीं थी, वो इतनी खुली थी कि गाँड मरवाने में उसे कोई तकलीफ़ नहीं हुई थी। पर क्या प्रीती सह पायेगी? यह सोच कर ही मेरे बदन में एक सर्द लहर दौड़ गयी।

पंद्रह मिनट में सभी मेहमान चले गये। “चलो अब सब मिलकर इन औरतों का खयाल रखते हैं, लेकिन सबको जैसा मैं कहुँगा वैसा ही करना होगा।” हम सब ने हाँ में गर्दन हिलायी और सब वापस गेस्ट बेडरूम में आ गये।

रूम में आते ही प्रशाँत बिस्तर पर बैठ गया। उसने प्रीती और मिनी को अपने सामने खड़े होने को कहा। फिर वो अपने हाथ दोनों की चूत पर रखकर डिल्डो को अंदर घुसाने लगा। प्रीती की जींस के ऊपर से और मिनी की पैंटी के ऊपर से।

“बबीता अब तुम अविनाश का लंड आज की शानदार चुदाई के लिए तैयार करो, पर ध्यान रखना कि इसका पानी नहीं छूटना चाहिए।” प्रशाँत की बात सुनकर बबीता अविनाश को उसकी कुर्सी के पास ले गयी जहाँ थोड़ी देर पहले प्रशाँत बैठा था। थोड़ी ही देर में बबीता ने अविनाश का लंड बाहर निकाल लिया था और उसे अपने मुँह में ले कर चूस रही थी।

अब सिर्फ़ मैं ही बचा था कि जो कुछ भी नहीं कर रहा था। फिर मैंने सुना कि प्रशाँत प्रीती को मिनी के कपड़े उतारने को कह रहा था। प्रीती ने अपना हाथ बढ़ा कर मिनी के टॉप की ज़िप खोल दी जो थोड़ी देर पहले इसी तरह मैंने खोली थी। पर प्रीती ने टॉप उसके कंधे से उठा कर उतार दिया और मिनी की चूचियाँ फिर एक बार नंगी हो गयी। अजीब कामुक दृश्य था, मेरी बीवी किसी और औरत के कपड़े उतार रही थी।

प्रशाँत खड़ा हुआ और दोनों औरतों के पास आ गया। उसने मेरी बीवी का बाँया हाथ पकड़ा और मिनी की दाँयी चूंची पे रख दिया। फिर उसने प्रीती का दाँया हाथ पकड़ कर मिनी की चूत पे रख दिया। मेरी बीवी की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रशाँत क्या चाहता है। दोनों औरतों ने आज तक किसी औरत के साथ सैक्स नहीं किया था।

प्रशाँत ने प्रीती की तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम मिनी की चूत चूस कर उसका पानी छुड़ा दो... फ़िर हम सब मिलकर तुम्हारी चूत पर ध्यान देंगे।” यह कहकर प्रशाँत ने प्रीती को मिनी के सामने घुटनों के बल बिठा दिया और उसके चेहरे को मिनी की गीली हो चुकी पैंटी पे धकेल दिया।

एक बार तो बबीता और अविनाश भी रुक से गये और मैं भी हैरत में खड़ा सोच रहा था कि क्या सचमुच मेरी बीवी इस औरत की चूत चूसेगी। पर प्रीती जो पिछले चार घंटे से अपनी चूत में डिल्डो लिए घूम रही थी और उसकी चूत पानी छोड़ने को बेताब थी, प्रीती ने अपने हाथ मिनी की पैंटी के इलास्टिक में फँसाये और उसे नीचे उतार दिया। जैसे ही मिनी की पैंटी नीचे सरकी तो सबने देखा कि उसकी चूत भी साफ़ की हुई थी। बाल का तो नामो निशान नहीं था चूत पर।

प्रीती ने उसकी पैंटी को और नीचे खिसकाते हुए उसके सैंडल युक्त पैरों के बाहर निकाल दिया। अब मिनी सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने, पूरी तरह से नंगी खड़ी थी। प्रीती ने अपने हाथ उसके कुल्हों पे रख कर उसे अपने पास खींचा और अपना मुँह उसकी चूत पे रख दिया। वो अब अपनी अँगुली से उसकी चूत का मुँह खोल कर अपनी जीभ डिल्डो के साथ अंदर घुमाने लगी।

प्रीती अब जोरों से मिनी की चूत को चाट और चूस रही थी और साथ ही उसकी चूत में फँसे डिल्डो को जोरों से अंदर-बाहर कर रही थी। “ओहहहहहह आहहआआआआआआ और जोर से...... हँआआआआआआ चूसो मेरी चूत को.... छुड़ाआआआ दो मेरा पानी।” मिनी सिसक रही थी। मिनी की साँसें तेज हो रही थी और साथ ही उसकी चूचियाँ उसकी छाती पर फुदक रही थीं।

प्रीती अपनी जीभ और डिल्डो की रफ़्तार बढ़ाती जा रही थी, और साथ ही मिनी की चूत पानी छोड़ने के कगार पर आ रही थी। मिनी ने अपने दोनों हाथ प्रीती के सर पर रख दिए और उसे जोर से अपनी चूत पे दबा दिया। उसकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। फच-फच की आवाज़ के साथ उसकी चूत पानी छोड़ रही थी। प्रीती का पूरा चेहरा मिनी की चूत से छुटे पानी से भर गया था। प्रीती और जोरों से चूसते हुए उसकी चूत के सारे पानी को पी रही थी। आखिर में थक कर मिनी बिस्तर पर निढाल पड़ गयी और गहरी साँसें लेने लगी।

प्रीती उठ कर खड़ी हो गयी। उसने अभी भी कपड़े पहने हुए थे। आज उसने पूरे दिन में पहले प्रशाँत के लंड को चूसा था और बाद में अविनाश के लंड को। और अब वो हम सब के सामने मिनी की चूत का पानी पीकर खड़ी हुई थी। उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे पर उसके जिस्म की प्यास अभी बाकी थी। मैं आगे बढ़ा और अपनी बीवी को बांहों भर लिया। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे तो मुझे मिनी की चूत के पानी की महक और स्वाद आया। मैं उसके होंठों को चूसने लगा।

मैंने अपना हाथ प्रीती की जींस के ऊपर से उसकी चूत पर रखा तो पाया कि वो पहले से ज्यादा गीली हो चुकी थी। जैसे ही मैंने उसकी चूत को सहलाया वो सिसक पड़ी, “ओहहहहहह आआआहहहहआआआआ हुम्म्म्म्म।”

प्रशाँत ने हम दोनों को अलग किया और मेरी बीवी को चूमते हुए उसे बिस्तर के पास ले गया। फिर उसने प्रीती से पूछा, “क्या तुम मुझसे गाँड मरवाना पसंद करोगी?” प्रीती ने पहले तो उसकी तरफ़ देखा और फिर मेरी तरफ़। उसके पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि अगर वो ना कहती तो हम शर्त हार जाते। मैं भी थोड़ी देर पहले उसकी बीवी की गाँड मार चुका था, इसलिए मेरे पास भी ना करने की कोई वजह नहीं थी। मैं सिर्फ़ वहाँ पर खड़ा अपनी बीवी की गाँड मरते देख सकता था।

प्रशाँत ने प्रीती के होंठों को चूसते हुए उसके लाल टॉप के बटन खोल कर उसके टॉप को उतार दिया। अब वो अपने एक हाथ से उसकी चूँची को दबा रहा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पलों को भींच रहा था। प्रीती के मुँह से सिस्करी फूट रही थी, “हाँ दबाओ न.... पर धीरे.... हाँ ऐसे ही... ओओहहहहहह आआआहहहह”

प्रीती की चूचियों को मसलते हुए प्रशाँत अपने हाथ उसकी जींस पे ले जाकर बटन खोलने लगा। बबीता आगे बढ़ कर उनके पास नीचे बैठ गयी और प्रीती की जींस को नीचे उतारने लगी। दोनों ने मिलकर मेरी बीवी को पूरा नंगा कर दिया।

प्रीती भी अब मिनी की तरह सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने पूरी तरह नंगी खड़ी थी। उसकी चूत में घुसा डिल्डो साफ नज़र आ रहा था। प्रशाँत और बबीता ने मिलकर उसे बेड के किनारे पर झुका दिया। बबीता अब उसके सामने आकर बिस्तर पर बैठ गयी और प्रीती की चूचियों को चूसने लगी। थोड़ी देर चूसने के बाद वो बिस्तर पर इस तरह से लेट गयी कि प्रीती का मुँह ठीक उसकी चूत पे था। बबीता ने प्रीती के सिर को पकड़ कर उसे अपनी चूत पे दबा दिया।

प्रीती अब बिस्तर के किनारे पर झुकी बबीता की चूत चूस रही थी। इस तरह झुकने से उसकी गाँड हवा में और ऊपर को उठ गयी थी। पीछे से उसकी चूत में फँसा डिल्डो तो दिख ही रहा था साथ ही उसकी गाँड का छेद भी दिखायी दे रहा था। हम सब जानते थे कि अब प्रशाँत अपना लंड उसकी गाँड मे घुसायेगा, पर उसके मन में तो कुछ और ही था।

प्रशाँत मेरी तरफ़ मुस्कुरा के देख रहा था, “राज आज शाम को मेरी बीवी ने तुम्हें सिखा ही दिया होगा कि एक अच्छी गाँड को चुदाई के लिए कैसे तैयार किया जाता है। बाथरूम मे जाओ और क्रीम ले आओ और बताओ कि तुमने क्या सीखा।” फिर उसने मिनी की तरफ़ देखकर कहा, “तुम मेरे लंड को तैयार करोगी?”

बिना कुछ कहे मैं बाथरूम में जाकर वही क्रीम ले आया जो मैंने बबीता पे इस्तमाल की थी। मिनी मेरे पास आयी और मुझे थोड़ी क्रीम उसके हाथों पे देने को कहा। कैसी शर्त थी कि मैं अपने हाथों से अपनी बीवी की गाँड को किसी दूसरे मर्द के लंड के लिए तैयार करूँ। पर मैं शर्त हारना नहीं चाहता था इसलिए मैं क्रीम लिए प्रीती के पास आ गया।

मैंने खूब सारी क्रीम अपनी अँगुलियों में ली और उसे प्रीती की गाँड के चारों और मलने लगा। फिर मैंने अपनी एक अँगुली उसकी गाँड में डाल दी, “ओहहहहह मर गयीईई,” प्रीती के मुँह से हल्की सी चींख निकल गयी। प्रीती अब भी बबीता की चूत को चाटे जा रही थी।
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#86
Tongue 
मैंने थोड़ी और क्रीम अपनी अँगुली में ली और दो अँगुलियाँ उसकी गाँड में डाल दीं। अब मैं अपनी अँगुलियों को उसकी गाँड में चारों तरफ़ गोल गोल घुमा रहा था। प्रशाँत मेरे पास खड़ा मेरी सभी हर्कतों को देख रहा था और उसके पैरों में बैठी मिनी उसके लंड को क्रीम से चिकना कर रही थी।

अब मेरी अँगुलियाँ आसानी से प्रीती की गाँड में अंदर तक जा रही थीं। जब मैं अँगुलियाँ घुमाता तो उसकी चूत में फँसे डिल्डो का एहसास होता मुझे। मैं और अंदर तक क्रीम को मलने लगा। प्रीती को भी शायद मज़ा आने लगा था। उसने जोरों से बबीता की चूत चूसते हुए अपने टाँगें और फैला दीं जिससे मैं और आसानी से उसकी गाँड में अँगुली कर सकूँ।

मिनी भी अब तक अच्छी तरह से प्रशाँत के लंड को क्रीम से चिकना कर चुकी थी। प्रशाँत अपनी जगह से हिला और मुझे साईड में कर दिया। अब उसका लंड क्रीम से चिकना था। उसका तना हुआ लंड एक हथियार की तरह चमक रहा था। जैसे ही प्रशाँत ने अपना लंड प्रीती की गाँड पे रखा वो सिसक कर और जोरों से बबीता की चूत को चूसने लगी। वो उसकी चूत को ऐसे चूस रही थी कि जैसे वो इस कला में बरसों से माहिर हो।

मिनी और अविनाश भी पास में आकर खड़े हो गये। वो भी किसी कुँवारी गाँड की चुदाई देखना चाहते थे। मुझे अंदर से शरम आ रही थी कि अपनी बीवी की गाँड मैं सबसे पहले मारूँ, उसके बजाय मैंने ही अपनी बीवी की गाँड को दूसरे मर्द के लंड के लिए तैयार किया था।

प्रशाँत ने प्रीती के कुल्हों को पकड़ कर उसकी गाँड के छेद को और फैला दिया। प्रशाँत के दोनों हाथ प्रीती के कुल्हों को पकड़े हुए थे। मिनी ने आगे बढ़ कर प्रशाँत के लंड को ठीक प्रीती की गाँड के छेद पर रख दिया और प्रशाँत अब अपने लंड को अंदर घुसाने लगा। मिनी अभी भी उसके लंड को पकड़े हुए थी। इतनी सारी क्रीम लगने से उसका लंड और प्रीती की गाँड पूरी तरह चिकनी हो गयी थी जिससे प्रशाँत के लंड का सुपाड़ा उसकी गाँड में आसानी से घुस गया।

मिनी ने अपना हाथ उसके लंड पर से हटा लिया। अब जबकि सुपाड़ा घुस चुका था, प्रशाँत धीरे-धीरे अपने लंड को और अंदर तक घुसाने लगा। उसके हर धक्के के साथ प्रीती की सिस्कार गूँजती, “ओहहहहहह..... आआआहहहहहहह.... थोड़ा धीरे.... दर्द हो रहाआआआआ है।” थोड़ी देर में उसका पूरा लंड प्रीती की गाँड में घुस चुका था। अब उसकी गाँड कुँवारी नहीं रही थी।

प्रीती अब भी बबीता की चूत चूसे जा रही थी। जब प्रशाँत का पूरा लंड उसकी गाँड मे घुस गया तो जोर की सिस्करी निकली, “ओहहहहह हँआँआँआँ।” प्रशाँत का लंड प्रीती की गाँड की दीवारों को रौंदता हुआ जड़ तक समा गया था।

प्रशाँत ने मिनी और मेरा धन्यवाद दिया कि हम दोनों ने प्रीती की गाँड मारने में उसकी सहायता की और कैसे उसका लंड प्रीती की गाँड में अंदर तक घुसा हुआ है और कैसे प्रीती की गाँड उसके लंड को भींचे हुए है। उसने बताया कि उसे प्रीती की चूत में फँसे डिल्डो का भी एहसास हो रहा है और ये उत्तेजना उसके लंड से लेकर उसकी गोलियों तक जा रही थी। प्रशाँत जान बूझ कर ये सब बातें बता कर मुझे चिढ़ा रहा था। “हरामी साला” मेरे मुँह से गाली निकली।

लेकिन अब तक मैं अपना लंड अपनी पैंट में से निकाल कर सहला रहा था। सब जानते थे कि मेरी बीवी की गाँड की चुदाई ने मुझे भी उत्तेजित कर दिया था। पर जो होने वाला था उसके आगे ये कुछ भी नहीं था। मिनी अब उनसे दूर जा कर खड़ी हो गयी। प्रशाँत का लंड प्रीती की गाँड में अंदर बाहर हो रहा था। प्रशाँत अपने लंड को करीब तीन इंच बाहर खींचता और अपने आठ इंच के लंड को पूरा जड़ तक पेल देता।

प्रशाँत जानबूझ कर धीरे-धीरे धक्के लगा रहा था। पर समय के साथ उसकी रफ़्तार तेज हो रही थी। अब वो पाँच इंच लंड को बाहर निकालता और पूरा पेल देता। थोड़ी देर में वो अपने लंड का सुपाड़ा सिर्फ़ अंदर रहने देता और एक झटके में पूरा लंड प्रीती की गाँड में डाल देता। प्रीती की गाँड पूरी तरह खुल गयी थी और हर झटके को वो अपने कुल्हों को पीछे कर के ले रही थी, “हाँ डाल दो पूरा लंड मेरी गाँड में.... ओहहहहहह हँआँआँ और जोर से.... हँआँआँ चोदो.... फाड़ दो मेरी गाँड को।”

प्रीती उन मिंया-बीवी के बीच सैंडविच बनी हुई थी। नीचे से बबीता अपनी चूत को ऊपर उठा कर उसके मुँह में भर देती और पीछे से प्रशाँत उसके कुल्हों को पकड़ कर जोर से लंड पेल देता। जैसे ही उसका लंड अंदर तक जाता, प्रीती का मुँह बबीता की चूत पे और जोर से दब जाता। प्रशाँत उसकी गाँड भी मार रहा था और उसकी चूत में फँसे डिल्डो को और अंदर की और घुसा देता।

अब अविनाश भी इस खेल में शामिल होना चाहता था। उसने भी अपने कपड़े उतार दिए और अपने लंड को सहलाने लगा। अपने लंड को सहलाते हुए वो बबीता के चेहरे के पास आ गया। अविनाश अपने लंड को उसके मुँह के पास कर के उसके होंठों पर रगड़ने लगा। बबीता ने अपने हाथ से उसका लंड पकड़ कर अपने मुँह में ले लिया और वो जोरों से अविनाश के लंड को चूसने लगी।

अब मैं और मिनी ही बचे थे। मिनी तो पहले ही नंगी थी। मैं भी कपड़े उतार कर पूरा नंगा हो कर अपने लंड को सहला रहा था। मिनी मेरे पास आ कर मेरे नंगे बदन से सट गयी और सहलाने लगी। हम भूखे कुत्तों की तरह एक दूसरे के बदन को नोच रहे थे और मसल रहे थे, पर हम अपनी नज़रें बिस्तर से नहीं हटा पा रहे थे जहाँ एक का पति दूसरे की पत्नी से अपना लंड चूसवा रहा था और मेरी बीवी दूसरे की बीवी की चूत चूस रही थी और उसके पति से अपनी गाँड मरवा रही थी।

अचानक प्रीती ने अपना मुँह बबीता की चूत से ऊपर उठाया और जोर से चींख पड़ी, “ओहहहह ये नहीं हो सकता।” मैं सोच में पड़ गया कि अचानक उसे क्या हुआ, क्या उसका पानी छूटने वाला है या उसकी गाँड दर्द कर रही है। “हे भगवान.... प्लीज़ ऐसा मत करो।” वो फिर बोली और उसकी आँखों मे आँसू आ गये।

तब प्रशाँत ने उसके चींखने की वजह बतायी, “राज डरो मत यार... इसके डिल्डो की बेटरी खतम हो गयी है... बेचारी।” अब मेरी समझ में आया कि जब उसका पानी छूटने वाला था तभी डिल्डो की बेटरी खतम हो गयी। और कितना चलती... पाँच घंटे सो तो वो उसे अपनी चूत में डाले घूम रही थी।

प्रीती फिर अपनी उत्तेजना के अंतिम कगार से वंचित रह गयी। प्रशाँत उसकी गाँड में जोर के धक्के मारते हुए बोला, “प्रीती डार्लिंग... चिंता मत करो, मैं वादा करता हूँ कि आज तुम्हें चुदाई का वो आनंद आयेगा कि तुम्हारी चूत खुले बाँध की तरह पानी फ़ेंकेगी।” प्रीती ने अपना चेहरा उठा कर प्रशाँत की और देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि और क्या उसके दिमाग में है।

हमने देखा कि अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिए प्रीती खुद अपने बंद हुए डिल्डो को पकड़ कर अंदर बाहर करने लगी, पर प्रशाँत ने उसका हाथ हटा दिया। अब प्रशाँत ने प्रीती को उसकी छातियों से पकड़ा और पीछे की और हो गया। थोड़ी देर इस तरह होने के बाद उसने अपनी टाँगें सीधी की और पीठ के बल लेट गया। अब वो जमीन पर लेटा था और प्रीती उसके ऊपर उसका लंड अपनी गाँड मे लिए आधी लेटी थी। प्रीती ने अब अपनी टाँगें फैला दी जिससे प्रशाँत का लंड उसकी गाँड में घुसा हुआ दिख रहा था और साथ ही चूत में फँसा डिल्डो भी।

बबीता अब अविनाश के लंड को अपने मुँह से बाहर निकाल कर अपने हाथों से उसे मसल रही थी। पर वो खुद छूटने की कगार पर थी, इसलिए वो खड़ी हो गयी और अपनी दोनों टाँगें चौड़ी कर के अपनी चूत प्रीती के मुँह पर रख दी, “जो तुमने शुरू किया है उसे तुम्हें ही खतम करना पड़ेगा। मेरी चूत जोरों से चूसो और मेरा पानी छुड़ा दो।”

प्रीती अपनी जीभ का तिकोण बना कर उसे चोद रही थी। बबीता और थोड़ा झुकते हुए अपनी चूत को और दबा देती। उसका चेहरा पीछे की और था और उसके बाल प्रशाँत के पेट को छू रहे थे। “हँआँआँआँ चू..ऊऊऊऊऊस ओहहहहहह आहहहहहह “हाँआँआँ जोर से... हूँऊऊऊऊ....,” कहकर बबीता की चूत ने प्रीती के मुँह में पानी छोड़ दिया। प्रीती गटक-गटक कर उसका पानी पी रही थी। जब एक-एक बूँद बबीता की चूत से छूट चुका था तो वो निढाल हो बिस्तर पर गिर गयी।

प्रशाँत अभी तक उसी तरह अपना लंड प्रीती की गाँड में घुसाये लेटा था। फिर उसने अपनी आखिरी चाल चली, “अविनाश मेरा तो पानी अब छूटने वाला है, ऐसा दृश्य देख कर... क्यों नहीं तुम अपना लंड इसकी चूत में डाल देते हो।”

अब मेरे और अविनाश की समझ मे आया की प्रशाँत क्या चाहता था। अविनाश उछल कर प्रीती की टाँगों के बीच आ गया। उसने अपना हाथ प्रीती की चूत में फँसे डिल्डो पर रखा। पर उसे बाहर निकालने की बजाय वो उसे अंदर-बाहर करने लगा।

थोड़ी देर बाद अविनाश अपने लंड को प्रीती की चूत के मुँह पे लगा कर धीरे-धीरे अंदर करने लगा और साथ ही डिल्डो को बाहर खींचने लगा। जितना उसका लंड अंदर जाता उतना ही वो डिल्डो को बाहर खींच लेता। मैंने देखा कि डिल्डो पूरी तरह से प्रीती की चूत के पानी से लसा हुआ था और चमक रहा था। जब अविनाश का पूरा लंड उसकी चूत में घुस गया तो उसने डिल्डो बाहर निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो डिल्डो मेरी बीवी की चूत में पिछले पाँच घंटे से घुसा हुआ था, वही अब उसके पानी से लसा हुआ मेरे हाथ में है। मैंने बिना हिचकिचाते हुए उसे अपने मुँह में ले चाटने लगा। मुझे उसकी चूत के पानी का स्वाद सही में अच्छा लग रहा था। जब मैंने उसे चाट कर साफ कर दिया तो उसे बिस्तर पर रख दिया।

मिनी अब तक मेरे लंड को पकड़े हुए थी। उसने मेरी तरफ देखा और घुटनों के बल बैठ कर मेरे लंड को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। वो एक हाथ से मेरा लंड पकड़ कर चूस रही थी और दूसरे हाथ की अँगुलियों से अपनी चूत को चोद रही थी। पर उसकी नज़रें वहीं गड़ी थीं जहाँ मेरी बीवी की दोहरी चुदाई हो रही थी।

मैंने अपना ध्यान मिनी से हटाया और फिर प्रीती पर केंद्रित कर दिया। मैंने देखा कि अविनाश आधा खड़ा हो अपने लंड को प्रीती के मुँह में दे कर धक्के मर रहा था। प्रीती भी पूरे जोर से उसे चूस रही थी। जब उसका लंड पूरी तरह से तन गया तो वो प्रीती के थूक से लसे अपने लंड को ले कर प्रीती की टाँगों के बीच आ गया।

प्रीती अपनी टाँगें थोड़ी और चौड़ी कर के पीछे को पसर गयी। अविनाश एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर प्रीती की चूत पे रगड़ने लगा। अब मेरी बीवी की दो लंड से चुदाई होने वाली थी। एक उसकी गाँड में और दूसरा उसकी चूत में।

अविनाश ने प्रीती की एक टाँग को जाँघों से पकड़ा और अपनी कोहनी पे रख दी। इससे प्रीती की चूत और खुल गयी। थोड़ी देर अपने लंड को रगड़ने के बाद उसने एक ही धक्के में अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया। अब वो धक्के लगा कर उसकी चूत को चोद रहा था।

प्रीती प्रशाँत की छाती पर लेटी अपनी ज़िंदगी की सबसे भयंकर चुदाई का आनंद ले रही थी। उसका चेहरा इधर-उधर हो रहा था और साथ ही उसके मुँह से सिस्करियाँ फूट रही थी।

मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि जब एक लंड चूत की जड़ों तक पहुँचता है और दूसरी तरफ़ दूसरा लंड गाँड की जड़ों तक पहुँचता है तो शरीर में दोनों लंड के संगम का आनंद कैसा रहता होगा। प्रीती इसी संगम का आनंद उठा रही थी, “मैं तुम दोनों के लंड को अपने में महसूस कर रही हूँ, अभी जोर से चोदो मुझे... हाँ और जोर से... रुको मत बस चोदते जाओ।”

प्रशाँत ने एक जोर की हुँकार भरी और अपने कुल्हे ऊपर को उठा दिए। अविनाश ने भी प्रीती के कुल्हों को पकड़ कर अपने लंड को अंदर तक पेल दिया। मैं समझ गया कि दोनों छूटने की कगार पर हैं। प्रीती का भी समय नज़दीक आता जा रहा था, “हँआआआआआआ और जोर से... ओओहहहहह ऊईईईईईईईईईईईई।”

मुझे खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था। मिनी इतनी जोर से मेरे लंड को चूस रही थी और साथ ही अपने दाँतों का भी इस्तमाल कर रही थी। पर मिनी की आँखें अपने पति के लंड पे जमी थीं जो मेरी बीवी की चूत में एक पिस्टन की तरह अंदर बाहर हो रहा था।

और फिर वो हुआ जिसका सबको इंतज़ार था, प्रीती जोर से चींखी “ओहहहहहहहह हाँआआआआआआआआ ओहहहहहहहहह हाय आआआआआआआआआ,” और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसका शरीर इस तरह अकड़ रहा था कि क्या बताऊँ। इतने में प्रशाँत के लंड ने भी उसकी गाँड में अपना वीर्य उगल दिया।

अविनाश ने प्रीती की दोनों चूचियों को जोर से मसला और उसके लंड ने उसकी चूत में बौंछार कर दी। मैं कल्पना कर रहा था कि प्रीती की चूत और गाँड, वीर्य से भरी कैसी होगी कि तभी मेरा भी शरीर अकड़ा और मैंने अपना वीर्य मिनी के मुँह में उगल दिया।

मिनी ने मेरे लंड को अपने मुँह से निकाला और बेड पर से डिल्डो को उठा कर अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी। थोड़ी देर में उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया। कसम से ऐसी सामुहिक चुदाई की कल्पना नहीं की थी मैंने।

मुझे इस बात की खुशी थी कि हम शर्त जीत ना सके तो क्या पर हारे भी नहीं थे। अब देखते हैं कि छुट्टियों में क्या गुल खिलते हैं।

!!! समाप्त !!!

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#87
Heart 
Heart

"जब यार मेरा हो पास मेरे, मैं क्यों न हद से गुजर जाऊं,


जिस्म बना लूं उसे मैं अपना, या रूह मैं उसकीं बन जाऊं.

लबों से छु लूं जिस्म तेरा, साँसों में साँस जगा जाऊ,

तू कहे अगर इक बार मुझें, मैं खुद ही तुझ में समां जाऊं!"
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#88
Tongue 
banana

तन्वी

Hi! मैं तन्वी(३५), मैं मुंबई के अंधेरी में मेरे बेटे नकुल(१८) के साथ एक फ्लैट में रहती हूं. मेरे पति सिंगापूर एयरलाइन्स में पायलट थे. जिनका २००२ में कार एक्सीडेंट से देहांत हो गया. हमनें लव मैंरिज किया था. और नकुल मेरे उस प्यार की निशानी है. जिसे मैं जान से भी ज्यादा चाहती हूँ. मैं उसे प्यार से स्वीटू बुलाती हूँ. उसकी फेवरिट एक्ट्रेस कटरीना कैफ है और हर बेटें की तरह उसे मैं कटरीना कैफ जैसी लगती हु! (हाहा)


नाम: तन्वी

उम्र: ३५ रंग: गोरा हाईट: ५'७" ; ३५"B २८" ३६"

बाल: ब्लैक (कंधो के थोड़े नीचें तक) आँखें: ब्राऊन

फिलहाल पेशे से मैं एक फिल्म प्रोड्युसर की पर्सनल सेक्रेटरी हूं. मुझे सजना-सवरना, घुमना, बातें करना, लोगोंकी मदद करना, नाचना, फिल्मेंदेखना, गाने सुनना, खुश रहना, कविता बनाना बहुत पसंद है. 

२०१५ मई का आखरी हप्ता था, मुंबई में जबरदस्त गर्मी थी. मेरी बचपन की दोस्त लतिका की कुछ दिनों पहले शादी हुईं थी, उस समय मैं न्यूयार्क के 'फैशन वीक' में होने के कारण शादी में नहीं जा पाई. उसका पति झारखंड में काम करता है तो उन्होंने वहीं --पिठौरिया(पतरातू) के एक फार्महाऊस पर रिसेप्शन रखा था शादी में न जाने के कारण मुझे रिसेप्शन में तो जाना ही था. मैं मेरे बेटे नकुल के साथ जा रही थी. रात १२ बजे की ट्रेन थी. हम १० बजे हम दादर जंक्शन पहुँच गए. ट्रेन खड़ीं थी, हम हमारें एसी फर्स्ट क्लास कूपे कोच में बैठ गए. ११ बजे तक नकुल सो गया. थोड़ी देर बाद मैंने भी ड्रेस चेंज कर ली और मेरे बर्थ पर लेट गई.

मुझे सोते समय किताब पढनें की आदत है.

रात के ११:३० बजे होंगें.

मुझे २-३ बार लगा कि कोई हमारे कम्पार्टमेंट के बाहर खड़ा है. थोड़ी देर बाद मैंने दरवाजा खोला तो वहां एक ४०-४५ साल का एक आदमी खड़ा था. मैं उन्हें पहचानती थी.

"Excuse me...आप..? आपको मैं शायद जानती हूँ..? लेकिन आप यहाँ क्या कर रहे हों?"

"मेमसाब नमस्ते. मैं भोलानाथ. आपके अपार्टमेन्ट के सामने मेरा सब्जी का स्टाल है, आप हमेशा मेरी स्टाल पर सब्जी लेने आती हों." भोलानाथ हमारे घर के नजदीक सब्जी बेचनेवाला था.

"हां...याद आया!"

"माफ़ कीजिएगा मेमसाब अगर मेरी वजह से आपको कुछ परेशानी हुईं हो तो."

मैं: "अरे नहीँ, भोलानाथ. लेकिन आप यहाँ क्या कर रहें हों?"

भोलानाथ: "बरसात का मौसम शुरू होनेवाला हैं इसीलिए वापिस गाँव जा रहा हूँ. लेकिन मेरा पर्स चोरी हो गया जिसमें मेरा टिकट था अब मेरे पास टिकट नहीं है और टीटीई बाहर घूम रहा है इसीलिए मैं यहाँ चला आया, मेमसाब"

मैं: "इसका मतलब आप हमेशा के लिए मुंबई से जा रहें हैं? यानीं ये हमारी आखरी मुलाकात है..?"

"जी, मेमसाब"

"ओह..हमें आपकी याद आएगीं, भोलानाथ" J

तभी टीटीई और अटेंडेंट वहां आए. टीटीई ने भोलानाथ को अगले स्टेशन पर उतरने को कहा. वो भोलानाथ की बात बिल्कुल भी नहीं मान रहा थे. मुझें भोलानाथ पर तरस आ गया. वे एक शालीन और अच्छे इन्सान लगे. मैंने हमारें कम्पार्टमेंट में भोलानाथ को जगह देने की सोची. फिर मैंने टीटीई से बात की. मैं भोलानाथ जी के टिकट के पैसे दे रहीं थी. टीटीई ने मेरी बात मान ली.

टीटीई: "अगर आपकों कोई ऐतराज नहीँ है तो आप उन्हें अपनें कम्पार्टमेंट में जगह दे सकते है."

भोलानाथ: "बहोत, बहोत शुक्रिया मेमसाब..."

"अरे नहीँ शुक्रिया किस बात का. अब आप पतरातू तक हमारें साथ ही रहिए J."

रातभर मैं और नकुल अपनेअपने बर्थ पर और भोलानाथ नीचें चद्दर डालकर सो गए.

दुसरे दिन:

शाम ४ बजे: ट्रेन रांची से आगे निकल चुकीं थी. २-३ घंटो में पतरातू स्टेशन भी आनेवाला था तो मैं नहाने चली गई. जब वापिस कम्पार्टमेंट में आई तो वहां कोई नहीँ था. नकुल और भोलानाथ दोनों कम्पार्टमेंट के बाहर फ्रेश होने गए थे. तो मैं अपनें कपडें बदलने लगीं.

मैंने मेरी नाईटी उतारी ही थी कि भोलानाथने दरवाजा खोल दिया! मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी!

उन्होंने ५-७ सेकंड्स मेरी पैंटी की तरफ देखा. मुझें इस अवस्था में देखकर हम दोनों थोडा वो हडबडा गए थे. तभी नकुल भी आ गया.

भोलानाथ: "माफ़ कीजिए, मेमसाब" भोलानाथने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और नकुल को भी बाहर रुकने के लिए कहा. १-२ मिनट बाद मैंने नकुल को अंदर बुलाया.

"स्वीटू, २ मिनट अंदर आओगे?"

बाहर से भोलानाथ की आवाज आयी, "मेमसाब, वो अटेंडेंट के पास गया है"

मैंने लाल रंग की 'ऑफ़ शोल्डर एम्ब्रोयडेड ड्राप्ड' साड़ी और उसके साथ 'रैप अराउंड टाई' ब्रा पहननी थी लेकिन उसे पीछें से मुझें बांधना नहीं आ रहा था.

"ओह..अच्छा...भोलानाथ जी आप मेरी छोटी सी मदद करोगे, प्लीज?"

"जी बिल्कुल करेंगें"

"आप अंदर आ जाओ ना, प्लीज़. ये मेरी लेस बांध दो ना. मैं नकुल को बुला रहीं थी लेकिन वो यहाँ नहीँ है. आपको कोई दिक्कत तो नहीँ?"

"अरे, नहीं दिक्कत किस बात की? आप तो हमारी बेटी जैसी हों" उन्होंने मेरे सिर पर प्यार से हाथ रखकर कहा.

"ओ.. थैंक यु भोलानाथ जी..J")

"कोई बात नहीँ" उन्होंने मेरी ब्रा बांध दी. तभी बाहर नकुल आ गया. भोलानाथ जी वापिस बाहर चले गए.

नकुल: "मॉम, जल्दी करो! मुझे भी तैयार होना है."

अब हम रिसेप्शन में जाने के लिए तैयार थे. मैंने लाल रंग की 'ऑफ़ शोल्डर एम्ब्रोयडेड ड्राप्ड' साड़ी, 'रैप अराउंड टाई' ब्रा, लाल बैंगल्स, कानों में झुमके, पाव में पायल पहनीं हुईं थी. मैंट रेड लिपस्टिक, ब्लैक नेलपॉलिश और शनेल का चोकलेट फ्लेवर्ड सेंट लगाया था.

शाम ५:३० बजे हम पतरातू स्टेशन पर उतरे. यहाँ से भोलानाथ और हम अलग होनेवाले थे. मुझें थोडा बुरा लग रहा था.

"चलिए भोलानाथ जी, हमारा सफर यहीं खत्म होता है. थैंक यु पुरे सफर में हमारें साथ रहने के लिए. अगली बार मुंबई आओगे तो हमारें घर जरुर आना. J"

मुझें लोगोंसे जल्द लगाव हो जाता है. भोलानाथ भी शायद वैसे ही थे. वे हमें अपने घर ले जाने की जिद करने लगे.

भोलानाथ: "मेमसाब, आप फिर कब आओगी पतरातू? आज मौका है मैंने गाड़ी का भी इंतजाम कर रखा है. कृपया थोड़ी देर मेरे घर चलिए. बाद में मैं आपको पिठौरीयावाले फार्महाउस पर छोड़ दूंगा." हम मान गए.

प्लेटफार्मपर से हम गाड़ी की तरफ चल रहे थे. सभी लोग मेरी खूबसूरती को निहार रहे थे. हवा के झोंकेंसे कभी मेरी साड़ी से मेरी जांघे खुलीं हो रहीं थी. जिसे वहांके लोग घूरघुर कर देख रहें थे. लेकिन भोलानाथ की वजह से मुझे एकदम सेफ फील हो रहा था.

थोड़ी देर बाद एक विंगर आयी. उसमें पहले ही कुछ पसेंजर बैठे हुए थे. हम उसमें बैठकर निकल पड़े. वहांसे फार्महाउस तकरीबन २४ किमी दूर था.

शाम: ७ बजे: पतरातू शहर से दूर गाड़ी पिठौरिया घाटीमें थी तभी गाडी ब्रेकडाउन हुईं.

मैं: "क्या हुआ, ड्राइवर?"

ड्राइवर (अशोक): "मेमसाब, इसका चार्जिंग बेल्ट टूट गया शायद. आप घबराईये नहीं पीछें एक गैरेज है हम जाकर इसका बेल्ट ले आतें हैं. तबतक आप भोलानाथ जी के घर रूकिए"

भोलानाथ: "ठीक है. लेकिन जल्दी करो और गाड़ी सीधा मेरे घर ले आना" भोलानाथ का घर वहां से नजदीक था.

ड्राइवर (अशोक): "ठीक है भाईसाहब"

ड्राइवर (अशोक) नकुल को भी अपनें साथ ले गया.

साढ़े सात बज रहें थे, अंधेरा हो गया था इसीलिए मुझें थोड़ी चिंता हो रहीं थी.

भोलानाथ: "मेमसाब, आप चिंता मत कीजिए. मै आपको सहीसलामत और वक्त पर फार्महाउस पर पहुँचा दूंगा." भोलानाथ मुझे दिलासा देते हुए बोले.

भोलानाथ का घर मुख्य रास्तें से करीब २५० मीटर अंदर जंगल में था. वहां आसपास और कोई घर या पक्का रास्ता नहीं था और दोपहर की बारिश की वजह से कीचड़ जम भी गया था. इसीलिए भोलानाथ बोले "आप मेरा हाथ पकड़ लीजिए, आपका पैर गलत जगह पडकर कहीं आपकों मोच ना आ जाए."

मैंने अपना हाथ उनकें हाथ में थमा दिया.

भोलानाथ: "आपका हाथ बहुत ही कोमल है" हंसकर बोले. मैं शर्माकर नीचें देखतें हुए चल रहीं थी.

मैं: "आप का घर इतनी सुनसान जगह पर क्यों है?

भोलानाथ: "दरअसल, ये जमीन मुझें विरासत में मिली है."

हम उनकी हवेलीपर पहुंच गए. जैसे ही मैं अंदर गई भोलानाथ ने पीछें से मेरी ब्रा की गांठ खोल दी.

मैं चौक कर अपनी ब्रा सँभालने लगीं. "ये क्या कर रहें है आप?"

"देखो हमारे पास समय कम है जल्दी कपडें उतारों!" (मुझे लगा ट्रेन में मैंने इन्हें ब्रा की गांठ लगाने को कहा था, शायद वो इसे गलत समझ बैठें होंगें)

"क्या? देखो भोलानाथ तुम्हारीं कोई गलतफहमी हुईं है."

"गलतफहमी? अच्छा समझ गया, शर्मा रहीं हों."

भोलानाथने मुझे सामने से जकड़कर अपना लंड मेरी चूत से रगड़ने लगा. मैंने उसे दूर धकेल दिया.

मैं: "दूर हटो मुझसे!!! तुम जैसों को मैं मुंह क्या मेरी जूती भी न लगाऊ! अब जाने दो मुझे! ब्लडी इडियट!"

तभी वहां ड्राइवर (अशोक) और बाकी पसेंजर (जो कि असल में भोलानाथ के दोस्त थे!) भी आ गए. उन्होंने नकुल को सिर पर बंदुक रख दी और कहने लगे

ड्राइवर (अशोक): "जानेमन, उतार कपडें!"

मैं: "क्या? छोड़ो हमें, जाने दो.." अब मैं समझ गई थी कि हम इनकें जाल में फंस गए है.

भोलानाथ: "ये डायलोगबाजी बंद करो मेमसाब और काम पर लग जाओ जो आप मुंबई में करतीं हों." बाकि लोग: (हाहाहा)

मैं: "झूटे, मक्कार...शर्म नहीं आती तुम्हेँ ऐसी हरकतें करते समय? मुझें बेटी कहा था ना तुमनें?"

ड्राइवर (अशोक): "हां तो अपनें बाप की मान और अपनीं चूत चटवा दे बस्स!"

भोलानाथ: "एक बात याद रखना इसकी चूत में कोई नहीं झड़ेगा."

सभी एक स्वर में : "समझ गए"

ड्राइवर (अशोक)ने मेरे पैरों को खींचा और मुझे नीचें फर्श पर सुला दिया. एक आदमीने ने मेरे दोनों हाथ दबा दिए और बाकि दोनोँने मेरे पैर फैला दिए. फिर उसने मेरे कोमल चेहरे को अपनें सख्त हथेलीमें पकडकर कहा कि, "सुन विरोध करने से कुछ नहीं होगा, तेरी आवाज यहाँ किसीको सुनाई नहीँ देगी. इससे अच्छा मज़े कर और निकल लें! और अगर ज्यादा नाटक करेंगी तो तेरे साथ तेरे बेटे का काम यहीं तमाम!"

मैंने अपनी छटपटाहट कम कर दी. तभी भोलानाथ ने मेरी साड़ीनुमा ड्रेस जांघों तक ऊपर सरका कर हाथ फिराते हुए बोला- "वाह भोले, तेरी आज तो हमारी किस्मत चमक गई, कई बार तुम अपने बाथरुमसे बेडरुममें अधनंगी-टावल लपेटकर आती तो मैं नीचें से खुलीं खिड़की से वो सब देखता था. जब भी तुम लेग्गिंज, योगा पैंट, स्टोकिंग्ज पहनकर सब्जी लेने आती तब तेरी चूत मसलने की बहुत तमन्ना होतीं थी."

भोलानाथ ने मेरी पैंटी उतार फेकी. मेरी चिकनी चूत देखकर सभी के मुँहमें पानी आ गया.

ड्राइवर (अशोक): "वाह क्या कोमल और गुलाबी चूत है!"

भोलानाथ: "हां, लेकिन उसे बस मैं ही हाथ लगाऊंगा तुम में से कोई नहीं."

भोलानाथ का दोस्त (१): "वाह भैयाजी ये रांड तो दूध जैसी सफ़ेद है, एक बाल भी नहीं है मानो २०-२२ साल की बच्ची हों!"

भोलानाथ का दोस्त (२): मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए "हा रे.. और गांड भी तो देख कितनी मुलायम और बड़ी है! शहर में टाईट चड्डीयां पहनकर लोगों को गांड दिखाकर तरसाती होंगीं. लगता है बहुत ऊँचे खानदान से है!"

भोलानाथ: "हां बहुत सुना था इसके बारे में वहां के बनियोंसे से! वाकई में तू बहुत खूबसूरत औरत है, एकड़म अप्सरा!" तुम लोग क्या देख रहे हों, जल्दी करों!"

दो मिनट में वो सब भी नंगे हो गए. मैं तो उन्हें असहायता देख रहीं थी. अशोकने मेरे बेटे नकुल को गन पॉइंट पे बिठा रखा था.

"सॉरी, माँ.." नकुल रोने लगा. उसे लगा कि वो मेरे बचावमें कुछ भी नहीं कर पा रहा है. उसने अपनी आंखें बंद करके गर्दन घुमा ली. बंदूक पकड़ें अशोकने उसे कहा कि, "ऐसी मेरी मां होती तो मैं हर दिन उसे चोदता! साले, आंखें खोलकर देख नहीं तो तेरी मम्मी गई समझले!" मैं कुछ नहीं कह पाई. मेरी आँखों में आँसू थे। नकुल देख पा रहा था कि उसकीं मम्मी ५ लोगोंमें अधनंगी लेटी हुईं है, उसकी चूत मस्त गुलाब की तरह खिली हुईं है जिसकें उपर टैटू बना हुआ है, नीचें एक भी बाल नहीं है,. उसके बारे में सोचकर मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी.

भोलानाथ का दोस्त (१) मेरी जांघों के बीच हाथ फेर रहा था. मेरी मक्खन सी मुलायम त्वचा से वो बावला सा हो गया और बोला- "वाह मेरी रानी, क्या माल छुपा रखा है. हरदिन चूत के बाल साफ करती है क्या? आज तो तेरी चूत फाड़ डालेंगे!"

वो मेरी जांघे सहला रहा था, चाट रहा था. एक ने मेरी ब्रा उतार दी, फिर अशोक ने मेरा साडीनुमा ड्रेस टी शर्ट की तरह उतारकर फेंक दी. अब मैं ५ अनजान आदमियोंके बीच 'पूरी तरह से नंगी' हो चुकी थी!

उनके लन्ड देख कर मैं हैरान हो गयी क्योंकि इतने सारे लन्ड हकीकत में मैंने पहली बार एकसाथ देखें थे, उन्होंने अपनी झांटे भी साफ नहीं करवाए थें.

तभी भोलानाथ ने मुझे कहा, "चल कुतिया बन!"

मैंने रीएक्ट नहीँ किया.

मेरे बाल खींचकर "अरे मेरी रांड अब इसे देखती ही रहेगी क्या? बैठ जल्दी!" मैं घुटनों पर बैठकर कुतिया बन गई. "देख बेटा, तेरी 'मम्मा' को पता है कि कुतिया कैसे बनते है" (हाहाहा)

भोलानाथ: "अपने घुटनों पर बैठ. और इसे अपने मुँह में डाल और अच्छी तरह से चूस इसको!"

भोलानाथने मेरे बाल पकडकर मेरा मासुम चेहरा अपनीं दोनों जांघो के बीच फंसाया अपनीं गांड और लंड के बीच के बालों के जंगल में मेरा चेहरा रगड़ने लगा. "इसे सूंघ और चाट."

अब मैंने भोलानाथ के झांटो से भरे अकरोड़ और लन्ड चूसना चालू कर दिया।

भोलानाथ: "कैसी है मेरी गंध?"

मै: "ठीक है." मै गर्दन झुकाकर बोली.

भोलानाथ: "ठीक है? देख नकुल तेरी मम्मा क्या बोल रहीं है!) (हाहाहा)

"मेरी आँखों में देख"
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मैंने उनकीं आंखों में देखतें हुए थोड़ी देर तक उन पांचों लन्ड चूस लिए. वे एक के बाद एक वीर्य की पिचकारीयां मेरे मुंह पर उड़ा रहे थे और मैं आज्ञाकारी गुलाम कुतिया की तरह उपर उनकीं आंखों में देख रहीं थी.


बाद में उन्होंने मुझे एक बड़े से पूल टेबल पर लिटा दिया. कोई मेरे बूब्स दबा रहा था, कोई मेरी पैंटी सूंघ रहा था, कोई मेरे तलवे चाट रहा था, तो कोई मेरी चूत में उँगली कर रहा था. लगा. भोलानाथ छोड़ सभी ने शराब पी रखी थी. उनमें से एकने मेरे गोरे नंगे जिस्म पर शराब गिरा दी और मुझे चाटने लगा. बहुत ज्यादा शरम आ रही थी।

फिर अशोक ने मेरी पर्स से वैसलिन निकाला और मेरी गांड, चूत और उनकें लंड को लगा दिया. फिर मेरे पैर फैलाकर अपनें कंधो पर रखकर एक के बाद एक सभी ने चोदा. उस हॉलमें अगले ३० मिनिट मेरी चींखे, उनकीं गालियां, स्वीटू गिडगिडाना कि, "प्लीज़ मेरी मॉम को छोड़ दो" और उनकीं गोटियाँ जोर से मेरे जिस्म से टकराकर [टाप टाप टाप] की भयावह आवाज़ कर रहीं थी. झड़ने के बाद हर एक ने अपना वीर्य मेरे मुझें पीनेपर मजबूर कर दिया.

उनके बाद भोलानाथ मुझपर चढ़ गया. भोलानाथ ५'७" का होगा लेकिन उसका लंड सबसे बड़ा था. हम दोनोँ बिल्कुल नंगे थे. "देखो मै तुम्हेँ कुछ नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा बस मेरा सहयोग करो."

भोलानाथ मेरे टाइट बूब्स को मसल रहा था. मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकतीं थी. उन्होंने नकुल को गनपॉइंट पर हाथ बांधकर बिठा रखा था और वो असहायतासे चुपचाप ये सब देख रहा था. अब भोलानाथ मेरे पैरों को फैलाकर अपनें हाथ से मेरी चूत को सहलाने लगा, उसने उसका लंड मेरी कोमल चूत के छेद पर रखा और झटका देकर अपना लोहे जैसा लंड मेरी चूत में घुसा दिया. मैं छटपटाईं, उसका लंड जड़ तक चूत की गहराई में खो गया.

वो धीरे धीरे अंदर-बाहर कर रहा था.

वो लगभग ३-४ मिनट तक मुझे चूमता रहा किया.

"तुमने कहा था ना कि तेरे जैसे को मुंह क्या जूती भी न लगाऊ!" वो हंसने लगा और फिर उसने मेरे ओठों का रस चूसा. बाद में उसने कहा "मेरी बगल चाटों" उससे एक मर्दोंवाली खुशबू आ रही थी. मैंने उसके अंडरआर्म्स चाटे जो पसीने से गीले थे. फिर उसने अपनी रफ्तार बढाई. उसके चौड़े शरीर का पूरा भार मुझपर पड़ रहा था. उसकी बालों वाली भरी हुईं मर्द की छाती मेरे कामुक मुहं से रगड खा रही थी. भोलानाथ: "मेरी छाती चूम" मैं उसकीं छाती चूमने लगीं. हम दोनोँ का पूरा बदन एकदूसरे से घर्षण कर रहा था. वो मेरे चिकने और नाजुक बदन पर अपना देसी घी वाला, बालों वाला शरीर मुझसे रगड रहा था. करीब 10 मिनट्स बाद उसने मेरे मुंह पर वीर्य की जोरदार पिचकारी छोड़ दी.

मैं अब रोते हुए बोली, "अब तो हमें छोड़ दो प्लीज़...मैंने तुम लोगों का हर बात मानी...प्लीज़ अब मुझे और मेरे बेटे को छोड़ दो."

भोलानाथ: "छोड़ेंगे रानी, छोड़ेंगे. ओये १७ यिर्स ओल्ड बॉय, अपने कपड़े उतार."

मैं: "उसे कुछ मत करना! प्लीज़....मैं आय बेग यु"

नकुल: "नहीं, ये गलत है"

मैंने देखा नकुल ने तबतक कपडें उतार दिए थे. उसका सफ़ेद और चिकना लंड उत्तेजना से लाल और स्टील के रॉड जैसा सख्त हो चूका था! "चोद अपनी मॉम को."

अशोक: "साले, जिंदा घर जाना है या नहीं?" उसने बंदूक तानकर पूछा.

मैं: "नकुल, आ जाओ" मैं असहायता से बोली.

भोलानाथ: "अपनी मम्मी की चूत चाटो." शायद नकुल ने पहली बार ही चूत देखी थी. "दूध पियो", "अब मम्मी की चूत में लंड डाल और शुरू हो जा. और एक बात याद रखना, अपने फव्वारा मम्मी की चूत के अंदर छोड़ना"

स्वीटू सिर्फ ५ मिनट्स में झड़ गया. वो कांप रहा था. क्योंकि उसने शायद पहली बार ही सेक्स किया था.

थोड़ी देर वो उसी स्थिति में रहा. हम दोनोँ अब पसीनेसे पूरी तरह गिले हो चुके थे. मेरा पूरा चेहरा और जिस्म दारू, उन मर्दों के पसीने और वीर्य से भर गया था। मुझें लगा अब वे सभी झड़ गए है और सेक्स नहीं कर सकतें. इसीलिए मैं उठकर अपनें कपडें उठाकर पहनने लगीं.

भोलानाथ का दोस्त (१) "ये रुक."

मैंने उसकीं तरफ ध्यान नहीँ दिया और अपनीं पैंटी पहन ली.

ड्राइवर (अशोक): "वाह! रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया!"

ड्राइवर (अशोक)ने मुझें मेरे बालों से घसीटकर मुझें घुटनों पर बिठाया. और फर्श पर थुक दिया. "चाट इसे!"

मैंने इंकार किया तो उसनें मेरे बाल पकडकर मेरा मुंह फर्श पर लगा दिया और मुझें थुक चाटने पर मजबूर किया. "ये है तेरी औकात! समझीं साली रांड!"

भोलानाथ का दोस्त (१): "जानेमन, पैर चाट." मैंने उसका बालों से भरा हुआ पैर तलवों से लेकर उसकी जांघो तक चाटा. तभी उसने मुझ पर मूतना शुरू कर दिया.

अशोक (ड्राइवर) ('भोलानाथ का दोस्त (१)'को रोकते हुए): "अबे रुक रुक रुक!", "रानी, बस आखरी मेहेरबानी..." और हल्के से हंसने लगा. "मूत पी!"

फिर 'भोलानाथ का दोस्त (१)'ने मेरा चेहरा पकडकर अपना लंड मेरे मुंह में घुसाकर मूतना शुरू कर दिया. मैंने मुह से उसे बाहर फेंक दिया तो अशोकने स्वीटू पर बंदूक तान दी. "पी जा वरना तेरा बेटा तो यहीं है."

मैंने उन पाचों की मूत पी और उन्होंने मेरे पुरे शरीर को अपनी मूत से भिगो दिया.

भोलानाथ: "अब अशोक (ड्राइवर) को छोडकर बाकी सभी कपडें पहनो और निकलों हम आतें हैं"

भोलानाथ (मेरा चेहरा पकडकर): "सुनिए मेमसाब, रात गई बात गई. अगर किसको कानोंकान खबर मिली तो आपके बेटें के लिए अच्छा नहीं होगा!" मैंने कुछ नहीं कहा.

भोलानाथ: "अब नहा ले. तुझे रिसेप्शन भी छोड़ना है."

मैं मेरे कपड़े उठाकर बाथरुम में गई. मैंने जैसे तैसे हाथ मुंह धो लिया, (और 10 मिनिट्स में) कपड़े पहनकर चलने लगी. (मेरी पैंटी और पर्स वो लोग लेकर भाग गए थे.) अब यहाँ पर १. भोलानाथ २. अशोक (ड्राइवर) ३. स्वीटू और मैं थी.

भोलानाथ: "रुक."

मैं: "अब क्या?"

भोलानाथ: मेरी आँखों में देखतें हुए. "मैं अब यही रहनेवाला हूँ. तुझ जैसा कडक माल फिर जिन्दगी में कब मिलेगा? फिर उसने खड़े खड़े मुझें अपनीं बाहोंमे उठा लिया और मेरी साड़ीनुमा ड्रेस मेरी नाभी तक उपर उठाकर और मुझे अपनें लंड पर बिठाकर उपर-नीचें करना चालू दिया...इस बार मेरी आवाज बहुत तेज हो गई थी. मैं थकान की वजह से "आह्ह...हाहाह... हाहाह" कर रही थी. उसने मुझे छोटी बच्ची जैसे उठाया था. उसनें अपना पूरा वीर्य मेरी गांड के छेद पर उड़ा दिया.

मैं फिर वापिस नहाने गईं. मेरे पर्स में लिप्स्टिक वगैरह मेकअप किट था तो मैंने हल्का सा मेक-अप भी कर लिया और तैयार होकर आई.

थोड़ी देर बाद हम फार्महाउस पहुँच गए. उसने कार फार्महाउस से थोड़ी दूर एक अंधेरे कोने में पार्क की, मैं जैसे ही गाडी से नीचे उतरी भोलानाथने मुझे गाडीसे सटा दिया और अपनें एक घुटनेंपर बैठकर मेरी साड़ीनुमा ड्रेस उपर उठाई और मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी. अब नकुल वही खड़ा था. ये सब उसके सामने हो रहा था. मैं गाडीके सहारे खड़ी थी और भोलानाथ तकरीबन ४-५ मिनट तक मेरी कोमल चूत चूसता रहा. थोड़ी ही देर बाद ही मेरा जिस्म एकदमसे ऐंठ गया और मैं जोर से चींखते हुए भरभरा कर झड़ गयी। मेरा जिस्म में मानों बिजली दौड़ पड़ीं थी. थोड़ी देर के लिए मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था. फिर वो उठा और "जब भी टीवी पर किसी हीरोइनको देखूंगा तो आपकी बहुत याद आएगीं, मेमसाब" कहकर, कसकर गले लगाकर वो अपनीं गाडी में अपने अशोक के साथ फरार हो गया. ये मेरे लिए बहुत ही अपमानजनक था क्योंकि ये सब मेरे बच्चे के सामने हो रहा था.

हम रिसेप्शन में पहुंचे. लतिका से, उसके पति से, अपनें दोस्तों से मिली. हमारे साथ जो हुआ इसकी हमनें किसीको भनक तक नहीँ लगने दी. मैं पुरे रिसेप्शन बगैर पैंटी के घुमती रहीं. नकुल खाना खाकर अपनी रूम में सोने चला गया. मैं भी रात के लगभग २ बजे सोने गई. लम्बें सफर और चुदाई से मैं भी थक चुकीं थी. पुरे शरीर को बॉडीलोशन लगाकर मैं सो गई. फिर अगले दिन सीधा १० बजे ही हम उठे. खाना वगैरह खाया, दोस्तों से बातें की और शाम को उनकीं ही की गाडीसे हम रांची-मेरे मायके आ गए. उस दिन मैं मेरे परिवार के हर सदस्य से मिली. हम दोनों कल रात की घटना को भुलाने की कोशिश कर रहें थे. हम मेरे परिवारके में घुलमिल गए, हंसे, मुस्कुराएँ, मस्ती की, बातें की. शाम को खाना खाकर हम ८ बजे स्टेशन पहुँच गए. हमें कुछ तकलीफ ना हों इसीलिए मेरे पापा ने पूरा कोच ही बुक कर दिया था! ९ बजे ट्रेन वहां से निकली हम दरवाजें से घरवालों अलविदा कर रहें थे. मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि मैं सबको छोड़कर वापिस एक असुरक्षित दुनिया में जा रहीं थी. मैं दरवाजें में ही खड़ीं थी. नकुल मेरी हालत समझ सकता था. मैं अचानक एक अकेलापन मह्सूस करने लगी थी. बचपनसे लेकर जवानी तक की सभी यादें ताजा हो गई थी. इसी स्टेशनपर नकुल के पापा की और मेरी मुलकात हुईं थी...

पुरे कोच में अब सिर्फ हम दो और एक अटेंडेंट थी. लेकिन मैं नकुल से ज्यादा बातें नहीं कर पा रहीं थी.

नकुल: "मॉम, आप अंदर बैठों मैं ५ मिनिट्स में वापिस आता हु."

मैं: "कहाँ जा रहे हों?"

नकुल: "यहीं हूँ. बस १ मिनिट. आप अंदर आराम कीजिए."

मैं: "ठीक है लेकिन जल्दी आना!" वो अटेंडेंट की रूमकी तरफ चला गया और एक थैली लेकर मेरे सामने आ गया!

नकुल: "मेरी तरफ से आपके लिए गिफ्ट है!!"

मैं: "क्या है इसमें???"

नकुल: "खुद ही देख लों और इसे प्लीज़ पहन भी लो. मैं आया"

मैं: "अभी?"

नकुल: "हां, अभी प्लीज़ मॉम.. मैं बाहर जा रहा हूँ तब तक चेंज कर लेना"

नकुल को मुझे हमेशा मुझे सरप्राइज करने की आदत है और उसके सरप्राइजेस मुझे बहोत अच्छे भी लगते है. शायद वो हम दोनों को नॉर्मलाइज करने की कोशिश कर रहा था.

मैं: "लेकिन क्यों?"

नकुल: "मॉम..प्लीज़ ना.."

मैंने बॉक्स खोला, उसमें मरून रंग की एक 'रफल पॉली जोर्जेट' साड़ी थी! और साथ में स्लीवलेस ब्लाउज भी था.

नकुल (दुसरे कम्पार्टमेंट से): "मॉम, अच्छा लगा?"

मैं: "हां, स्वीटू."

नकुल: "अब उसे पहन भी लीजिए"

मैं: "अभी?"

नकुल: "हां, बाबा हां! अभी!"

मैं: "मैंने साड़ी पहन ली है, अब आ जाओ"

"सरप्राइज! हैप्पी बर्थडे टू यु...हैप्पी बर्थडे टू यु...डियर मॉम... हैप्पी बर्थडे टू यु..." वो छोटा सा कप केक ले आया.

पतरातू में हुई घटना की वजह से मैं भूल गई थी कि आज मेरा और नकुल का भी बर्थडे है! "हैप्पी बर्थडे, स्वीटू! एंड आय ऍम सॉरी कि मैं तुम्हारा जनमदिन भूल गई"

"अरे कोई बात नहीँ, मॉम! आज तो आपका भी बर्थडे है! उसनें मुझे हल्का सा हग और माथे पर किस किया.

मेरी आंखों में आंसू आ गए. "ओह.. थैंक यु बेटा..."

मैंने हमारे कम्पार्टमेंट का दरवाजा लॉक कर दिया.

"अब यहाँ से बाहर मत निकलना!!! और मुसीबतें नहीं चाहिए!"

"ठीक है, नहीँ निकलूंगा!" उसनें कपकेक मेरे मुंह में डाल दिया.

ट्रेन अभी राउरकेला के पीछें थी जहां से अब घाट शुरू होनेवाला था. टीटीई हमारी चेकिंग पहलें ही कर चूका था. यानीं अब हमें डिस्टर्ब करनेवाला कोई नहीँ था. हम दोनोँ में ज्यादा बातें नहीं हो रहीं थी. हम दोनोँ एक दूसरे के प्रति गिल्टी फिल कर रहे थे. मैंने नकुल को कसकर गले लगाकर रोने लग गई. २-३ मिनिट्स तक वो कुछ नहीं बोला.

"मॉम मैं आपकी हालत समझ सकता हूँ."

"अब तुम बडें हो गए हों. पुरे १८ साल के! तुम्हेँ मजबूत होना पडेगा, मेरी रक्षा करनी होंगी." मैं उसका चेहरा दोनों हथेली में पकडकर बोली.

"सॉरी मॉम...मैं उस वक्त कुछ नहीं कर पाया." वो नीचें देखतें हुए बोला.

"इसमें तुम्हारीं कुछ भी गलती नहीं है उल्टा तुमने हम दोनों की जान बचाई है" मैं उसे गले लगाकर बोली.

"मैं क्या करता, मॉम? उसनें तुम्हेँ मारने की धमकी दी थी. और आपको तो पता है मैं आपके सिवा नहीं रह सकता" वो मुझसे हतबलता से बोला.

"स्वीटू..भूल जाओ उस बात को..मैं हु ना तुम्हारें साथ."

"पक्का?"

"हां मेरे राजकुमार पक्का! बस जब मैं बूढी हो जाउंगी तो मुझें वृद्धाश्रम नहीं भेजना" हाहाहा

"कभी भी नहीं, मॉम! आय लव यु!" वो बड़ी भावुकता से, मेरी आँखों में देखकर बोला. वो मुझें जैसे गले मीलना चाहता था...जैसे वो आमतौर मुझसे मिलता था लेकिन कल की घटना के बाद वो थोडा सहमसा गया था. मै उसकी अवस्था को समझ सकती थी. फिर मैंने दाए हाथ से चोकलेट कैडबरी उठाई और... मैं: "अरे मैंने तो तुम्हेँ कुछ बर्थडे गिफ्ट दिया ही नहीँ! ये लो हम दोनों को हैप्पी बर्थडे!"

मैंने मेरे दातों में पकडकर कैडबरी चोकलेट का टुकड़ा उठाया और उसका आधा हिस्सा नकुल की तरफ बढ़ाया.

नकुल ने भी उस चोकलेट कैडबरी के टुकड़े को अपनें दातों से पकड़ लिया. हम दोनों एकदूसरेकी आंखों में देखकर कैडबरी चोकलेट खाने लगे. देखते ही देखतें हम इतनें पास आ गए कि हमारें ओठ एकदूसरे को छूने लगे. हम दोनोंमें से कोई भी पीछें नहीं हटा. देखतें ही देखतें हम एकदूसरे के ओठोंपर लगी चोकलेट चूसने लगे. ट्रेन के ए.सी. में भी नकुल (हाईट: ५'७" ; ५८किलो रंग: गोरा) का शरीर गर्म हो गया, वो कांप रहा था. और पागलों की तरह ३-४ मिनिट्स तक मुझे स्मूच करते रहा. उसने मेरे बाल खोल दिए, पल्लू गिरा दिया. मैंने उसका टी शर्ट निकाल दिया और उसकी ट्रैकपैंट भी अंडरवियर के साथ उतार दी.

मेरे सेंट की खुशबू से कम्पार्टमेंट गुलाब सा महक रहा था. नकुलने मुझे उठाकर बर्थ पर लिटा दिया. और मुझपर चढ़ गया. नकुल की साँसें बहुत तेज चल रही थी. मैं उसकी गर्म साँसों को महसूस कर पा रहीं थी. अब मेरी आंखें बंद हो चुकी थी, हमारे होंठ आपस में मिल चुके थे, वो धीरे धीरे मेरे चूस रहा था. हम दोनों का सलाइवा एक्सचेंज हो रहा था. वो पागलों तरह मेरी गर्दन पर, मेरे पेट पर किस कर रहा था. फिर मेरा ब्रा निकालाकर मेरे बूब्स को जोर जोर से मसलने लगा. वो मुझे किस करतें करतें नीचें तक पहुँच गया. पेटीकोट निकाल दिया. मैं अब केवल पैंटी में थी. नकुल ने मेरी टोंन्ड जांघों को चाटना और चूमना शुरू किया, मैंने लाल रंग की कॉटन पैंटी पहन रखी थी, जिसका जो हल्की सी गीली हो चुकीं थी. अब उसने पसीने से गीली हो चुकी मेरी पैंटी उतारी जो थी. नकुल ने उसे सुंघा. "ये वही है जिसपर मैं हररोज मैं अपना वीर्य गिराया करता था."

रात के ११ बज गए थे. बाहर जोरदार बारिश शुरू हो चुकीं थी. ट्रेन तेजीसे दौड़ रही थी. अंदर हम माँ-बेटे दोनोँ पूरी तरह से नंगे थे. नकुल ने मेल्टेड चोकलेट लिया और मेरे सीने लेकर मेरी चूत तक गिरा दिया. और वो उसे चाटने लगा. चाटते चाटते वो मेरी चूत तक पहुंच गया.

"मॉम, आप बहुत खूबसूरत हो."

"हम्म..." J

उसने अपने हाथ से मेरी कोमल चूत की दोनों पत्तियों को अलग किया. अजीब सा एहसास हुआ. मेरी चूत का छेद बहुत छोटा है. नकुलने दोनों फांकों के बीच अपनी जीभ रख दी.

"मॉम, आपनें यहाँ पर भी सेंट लगाया है?"

"नहीँ, बुद्धुराम! ये..." मैं शर्म से लाल हो गई. वो समझ गया मुझे क्या कहना था. इससे वो और उत्तेजित हो गया

"आपके चूत की खुशबू इतनी मस्त है कि दुनिया की सब सुगंध उसके आगे फेल हैं"

वो मेरी चूत को अपनी जीभ चाटने लगा, मेरी तड़प बढ़ गई.

"नकुल, अब और इंतजार मत करवाओ..."

नकुल फिर मेरे उपर लेट गया.

मैंने देर न करते हुए अपने दोनों पैरों को फैलाकर चौड़ा कर दिया. नकुलने मेरी दोनों हथेलियां एकदूसरे में इंटरलॉक कर फैला दी. वो मेरी क्लीन शेव्ड, मोईस्ट बगलों में चोकलेट डाल कर चाटने लगा. "मॉम, आपका अरोमा लाजवाब है...कोई दोष नहीं उनका जो आपकों चाहतें है."

अब हल्के हल्के उसका लन्ड को मेरी चूत में दबाने लगा. चुत इतनी टाइट थी कि लन्ड को आगे पीछे करने में भी मशक्कत करनी पड़ रही थी. उसमें नकुल ने वही कल वाला वैसलिन लगाया और अंदर बाहर करने लगा. उधर ट्रेन जोर से दौड़ रही थी. मैंने नकुल कि पीठ को कसकर पकड़ रखा था.

नकुल धीरे धीरे मैं स्पीड बढ़ाने लगा उतने में हम बर्थ से नीचें गिर पड़े. मैंने नकुल को किसी बंदर के बच्चे जैसे बांहों में कसकर पकड़ रखा था. मैं उसे हर जगह से चूमने लगी। फिर थोड़ी देर बाद मेरे मुह से "आह..आह...आह..." आह की आवाजें निकलने लगी। उसने मेरे होंठ अपने होंठों के बीच दबा लिए और उत्तेजनामें उसने मेरा ओठ अपनें दातों से काट लिया. मैं चीख पड़ीं "आह!!! नकुल!" मेरे ओठों से खून निकलने लगा. "सॉरी मॉम सॉरी" फिर उसने मेरे उसी ओंठ चुसना शुरू किया.

अब नकुल के धक्कों की स्पीड बहुत तेज हो गई थी. नकुल इतना उत्तेजित था या शायद पहली बार मर्जी से सेक्स कर रहा था इस वजह से लेकिन वो बहुत जोर जोर से झटके दे रहा था. उसका लंड मेरी चूत की गहराईयों तक जा रहा था. मेरी चींखे निकल रहीं थी. "आआह्हह्हह..ओह.. नकुल... दो दिन पहलें ही मुझे पीरियड आया था. है, प्लीज अंदर मत करना..." तभी नकुल के लंड ने अपना लावारस मेरी चूत में गहराईयों तक भर दिया।

१०-१५ मिनिट्स हम दोनों वैसे ही पड़े रहें.

मैं: "स्वीटू, तुमने ये क्या किया?"

नकुलः "क्या हुआ मॉम?"

मैं: "स्वीटू, दो दिन पहलें ही मेरा पीरियड्स आए है. इससे मैं फिर माँ बन जाउंगी."

नकुलः "क्या? मतलब हम दोनों का बच्चा? यानीं मैं आपका पति और आप मेरी वाईफ?"

मैंने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी.

नकुलः "मुझें यकीन नही हो रहा जो हमने थोड़ी देर पहले किया."

मैं: "मुझे भी"

नकुलः (मेरे बदनपर रिलेक्स करतें हुए, मेरे पसीने से लतपत अंडरआर्म्स में अपना मुंह रखकर उन्हें को सूंघ और चूम रहा था.): "मॉम, लोग आपके साथ २ मिनट बात करने के लिए तरसते है. और यहाँ आप मेरी बाहों में हो"

मैं: "स्वीटू, एक शेर है तुम्हारें लिए.

'देखूँ तुझें तो प्यास बढ़े,

तू रोज़ बरोज़ दो घूँट चढ़े,

तू मुझसे मैं तुझसे कभी न बिछड़े,

मैंने ख़ुद को तुझपे लूटा दिया, तेरी होके खुदको मिटा दिया' कुछ समझें?"

और उसे हग किया. हम दोनों के जिस्म की खुशबू एक हो गई थी.

थोड़ी देर बाद फिर से नकुल का लन्ड ने फिर सर उठाने लगा.

"मॉम, ये मेरी फैंटेसी थी की आप मेरा लंड चूस रहीं हों..."

मैं अपने घुटनों पर बैठकर उसका लंड हिलाने लगीं. उसके लंड पर हल्के बाल थे. फिर लंड मुह में लेकर उसकीं आंखों में देखकर चूसती रहीं. थोड़ी देर बाद उसने मेरे गले के अंदर अपना वीर्य गिरा दिया जिसे मै पी गई. उस रात हमने लगभग रात के १:३० बजे तक चुदाई की.

रात के १:३० बजे थे. (नकुल तो सो गया था. ट्रेन और बारिश दोनोँ जोर से चल रही थे. हम दोनों नंगे एकदूसरे की बाहों में पड़े हुए थे. लेकिन अब मेरे मन में एक अलग ही विचार आ रहा था. 

क्या?
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हमारा छोटा सा परिवार

दोस्तो ये कहानी आप लोगो के लिए इस फोरम पर पोस्ट कर रहा हू 
हमारा छोटा सा परिवार नानाजी के शिलमा वाले घर जाने के लिए तैयार हो रहा था. मेरे परिवार में मेरे पिताजी, माँ और मैं, नेहा, इकलौती बेटी थे.

मेरे मामाजी के छोटे बेटे मनू (मनू प्रताप सिंह) की शादी के बाद नानाजी की इच्छा के अनुसार सारा परिवार एक निजी पार्टी के लिए इकठ्ठा हो रहा था. मनु भैया सिर्फ बीस साल के थे पर वो इस साल उच्च पढ़ाई के लिय़े अमरीका जा रहे थे. उनका अपनी प्रेमिका नीलम से प्यार इतना प्रबल था की वो नीलम के बिना अमरीका नहीं जाना चाहते थे. नीलम का परिवार काफी*दकियानुसी था. नीलम के पिता बिना शादी हुए अपनी बेटी को किसी प्रेमी के साथ देश से बाहर भेजने के लिए तैयार नहीं थे. मामाजी और मेरे पापा ने काफी सोचने के बाद मनू और नीलम को शादी करने की सलाह दी. दोनों बहुत खुशी से तैयार हो गए. दोनों ही नीलम के पिताजी की इज्ज़त की फ़िक्र से वाकिफ थे.


दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हुई. हमारा परिवार बहुत अमीर था. नीलम का घर भी खानदानी पैसे से समृद्ध था. नानाजी के योजना के अनुसार अगले ७ दिनों तक सिर्फ नज़दीक का परिवार मिलजुल कर उत्सव मनायेगा. नानाजी की उम्र भी अब ७० साल के नज़दीक पहुचने वाली थी. उनकी शायद सारे परिवार को एक छत के नीचे देखने इच्छा ज़्यादा प्रबल होने लगी थी.


मुझे नानाजी के घर जाना हमेशा बहुत अच्छा लगता था. नानजी मुझे हमेशा से बहुत प्यार करते थे.हमारी रेंज-रोवर तैयार थी. मैं जल्दी से बाथरूम में मूत्रत्याग कर के बाहर आ रही थी कि पापा मुझे खोजते हुए मेरे कमरे में आ गए. मुझे तैयार हुआ देख कर वो मुस्कराए, "नेहू, मेरी बेटी शायद अकेली तरुणा[टीनएजर] होगी इस शहर में जो इतनी जल्दी तैयार हो जाती है."

मेरे पिताजी, अक्षय प्रताप सिंह, ६'४" फुट ऊंचे थे. पापा का शरीर बहुत चौड़ा,विशाल और मस्कुलर था.

मैं अपने पापा की खुली बाज़ुओ में समा गयी,"पापा क्या आप यह तो नहीं कह रहे*कि आपकी बेटी और लड़कियों जैसी सुंदर नहीं है?"


उसी वक़्त मेरी मम्मी भी मेरे कमरे की तरफ आ रहीं थीं, "देखा अक्शु, आपकी बेटी आपकी तरह ही होशियार हो गयी है."

मेरी मम्मी ने मुझे प्यार से चूमा. मेरी मम्मी, सुनीता सिंह, मेरे हिसाब से दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत औरत थीं. मम्मी अगले साल ३७ साल की हो जायेंगी.पापा उनसे एक साल बड़े थे. मेरी मुम्मू ५'५" फुट लम्बी थीं. मेरी मम्मी का मांसल बदन किसी भी कपड़े में बहुत आकर्षक लगता था. पर हलके नीले और हलके पीले रंग की साड़ी में उनका रूप और भी उभर पड़ता था. मेरी मम्मी का सीना उनकी सुंदरता की तरह सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लेता था. मेरी मम्मी के वक्षस्थल का उभार किसी हिमालय की ऊंची चोटी की तरह था. मम्मी की कमर गोल और भरी-पूरी थी. उनके भरी हुई कमर के नीचे उनके कूल्हों का आकार उनकी साड़ी को बिलकुल भर देता था. उनके लम्बे घुंघराले बाल उनके भरे कूल्हों के नीचे तक पहुँचते थे. मैं अपनी मम्मी की आधी सुंदरता से भी अपने को बहुत सुंदर समझती.

पापा ज़ोर से हँसे,"सुनी, मै तो दो बेहत सुंदर और बुद्धिमान महिलाओं के साथ रहने की खुशनसीबी के लिए बहुत शुक्रगुज़ार हूँ." पापा ने मेरे बालों के ऊपर मुझे चूमा, "मेरी चतुर और अत्यंत सुंदर पत्नी के सद्रश इस संसार में सिर्फ एक और नवयुवती है और वो मेरी बेटी है."

मैं और मेरी मम्मी दोनों बहुत ज़ोरों से हंस दिए. पापा हमेशा हम दोनों को अपने चतुर जवाबों और मज़ाकों से हंसाते रहते थे. मैं अपने पापा के सामने किसी और को उनके बराबर का नहीं समझती थी.

मम्मी और पापा एक साथ कॉलेज में थे. हमारे परिवार पहले से ही मिल चुके थे. पापा की बड़ी बहन की शादी छोटे मामाजी, विक्रम प्रताप सिंह,के साथ हो चुकी थी. दोनों का प्यार बहुत जल्दी परवान चढ़ गया. मम्मी का इरादा हमेशा से अपने घर और परिवार की देखबाल करने था. उनकी राय में दोनों, संव्यावसायिक (प्रोफेशनल) होना और घर में माँ पत्नी होना,काफी मुश्किल था. पापा मेरी मम्मी की, इस बात के लिए, और भी ज़्यादा इज्ज़त करते थे. मेरे नानाजी का बहुत बड़ा 'बिज़नस एम्पायर' था. मम्मी ने पापा की तरह बिज़नस डिग्री की थी. पापा उसके बाद हार्वर्ड गए. उन्होंने पापा के साथ शादी करने के इरादे के बाद कोई इंतज़ार करने की ज़रुरत नहीं समझी. मम्मी मेरे पापा की*पढ़ाई के दौरान उनकी देखबाल करना चाहतीं थीं. मम्मी के बीसवें जन्मदिन के एक महीने के बाद उनकी शादी पापा से हो गयी. पापा दो साल के लिए हार्वर्ड गए. दो साल के बाद मेरा जन्म हुआ.





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#92
*****************


हम दोपहर तक शिमला पहुँच गए. बाहर एक बहुत बड़ा शामियाना लगा हुआ था. नानाजी ने*शहर के गरीब और मजलूमों के लिए खुला पूरे दिन खाने का इन्तिज़ाम किया था. उन लोगों का खाना खत्म हो जाने के बाद*सारी सफाई हो चुकी थी.

मेरे बड़े मामाजी बाहर ही थे. मैंने चिल्ला पड़ी, "बड़े मामा," मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और प्यार से कई बार दोनों गालों पर चुम्बन दिए. मुझे मुक्त कर के मम्मी को ज़ोर से आलिंगन में भर लिया. मम्मी दोनों भाइयों से छोटीं थी और दोनों भाई उनपर अपनी जान छिड़कते थे.

मामाजी और पापा गले मिले. मामाजी पापा जितने ही लम्बे थे पर उनका गए सालों में**थोड़ा वज़न बड़*गया था. बड़े मामा ने सफ़ेद कुरता-पजामा पहना हुआ था जिसमे उनकी छोटी* सी तोंद का उभार दिख रहा था, बड़े मामा बहुत हैण्डसम लग रहे थे. उनकी घनी मूंछें उन्हें और भी आकर्षित बनाती थी. मेरे बड़े मामा विधुर थे. मेरी बड़ी मामीजी का देहांत अचानक स्तन के कैंसर से बारह साल पहले हो गया था. तभी से बड़े मामा ने अपने दोनों लड़कों की देखभाग में अपनी ज़िन्दगी लगा दी.

मम्मी बोलीं,"रवि भैया, कोई काम तो नहीं बचा करने को?"

पापा ने भी सर हिलाया.

"नहीं सुनी, डैडी ने सब पहले से ही इंतज़ाम कर रखा था.तुम्हे तो पता है उनकी आयोजन करने की आदत का." बड़े मामा ने मेरे कन्धों के उपर अपना बाज़ू डालकर हमसब को अंदर ले गए.


**************


शिमला का घर विशाल था. वो करीब १०० एकड़ ज़मीन पर बना था. इस विशाल घर में शायद १५ कमरे थे. उसके अलावा १० बंगले भी इर्द गिर्द बने हुए थे. उन में से एक बंगला मनु और नीलम की सुहागरात के लिए सजाया गया था. जायदाद की परिधि के नज़दीक २५ घर में काम करने वालों के लिए थे.


नानाजी ने इस घर को सारे परिवार के लिए बनाया था. उनकी इच्छा थी की जब वो इस संसार से चले जाएँ तो सब परिवार के सदस्य इस घर में, कम से कम साल में एक बार इकट्ठे हों.


घर में घुसते ही नरेश भैया ने मुझे आलिंगन में भर लिया. नरेश भैया करीब ६'३" लम्बे और पापा की तरह बड़ी बड़ी मांस पेशियों से विपुल भारी भरकम*शरीर के मालिक थे. नरेश भैया ने मुझे हमेशा के जैसे बच्ची की तरह प्यार दर्शाया. मम्मी और डैड ने नरेश को बेटे की तरह गले से लगाया.

नरेश की पत्नी अंजनी, जिसको सब अंजू कह कर पुकारते थे, दौड़ी दौड़ी आयी और हम सबसे गले मिली. अंजू बेहद सुंदर स्त्री थी. उसका गदराया हुआ शरीर किसी देवता को भी आकर्षित कर सकता था.
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#93
अंजू और नरेश भैया ने हम को हमारे कमरे दिखा दिए. ड्राईवर ने हम सबका सामान कमरों में रख दिया.

पापा और मम्मी नानाजी को ढूँढने चले गए. मैं अंजू भाभी के साथ मनू भैया और नीलम से मिलने के लिए साथ हो ली.

नीलम सीधी सादी मैक्सी में अत्यंत सुंदर लग रही थी. उसके बड़े बड़े स्तन ढीली ढाली मैक्सी में भी छुप नहीं पा रहे थे. अंजू ने नीलम से मज़ाक करना शुरू कर दिया, "नीलू आज मनू आपकी हालत खराब करने के लिए बेताब है."


नीलम शर्मा गयी और उसका चेहरा लाला हो गया. अंजू के मज़ाक और भी गंदे और स्त्री-पुरुष के सम्भोग के इर्दगिर्द ही स्थिर हो गए.

मैं भी अंजू के मज़ाकों से कुछ बेचैन हो गयी. मुझे स्त्री-पुरुष के सम्भोग के बारे में सिवाए किताबी बातों के कुछ और नहीं पता था. मैंने अंजू और नीलम से विदा लेकर मनु भैया को ढूँढने के लिए चल दी.


मनू भैया और छोटे मामा, विक्रम प्रताप सिंह, दोंनो एक बंगले के सामने कुर्सियों पर बैठे हुए स्कॉच के गिलास थामें हुए थे.

छोड़े मामा मनू भैया की तरह ६'४" लम्बे थे. मनू भैया काफी छरहरे बदन पर मज़बूत जिस्मानी ताक़त के मालिक थे. छोड़े मामा बड़े मामा की तरह थोड़े मोटापे की तरफ धीरे-धीरे बड़ रहे थे. दोनों ने मुझे बारी बारे से गले लगाया और प्यार से चूमा. मैंने काफी देर दोनों से बात की.

मनु भैया ने मुझे याद दिलाया की नानाजी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे, "नेहा, दादाजी अपनी प्यारी इकलौती धेवती को देखने के लिए बेसब्र हो रहे होंगे."


मैं नानाजी को ढूँढने के लिए सब तरफ गयी. रसोई घर में छोटी मामी सुशीला [शीलू] पूरे*नियंत्रण में थीं. शीलू मामी मेरे पापा की बड़ी बहन थीं, अतः मेरी बुआ भी लगती थीं. शुरू से ही मुझे उनको बुआ कहने की आदत पड़ गयी थी. सो मैंने उनको हमेशा बुआ कह कर ही पुकारा.


आखिर में मुझे नानाजी सबसे दूर वाले दीवान खाने में मिले. वहां दादा और दादीजी भी उनके पास बैठें थें.

नाना, रूद्र प्रताप सिंह, ७० साल के होने वाले थे. वो हमारे और पुरुषों की तरह ६'२" लम्बे और बड़े भरी भरकम शरीर के मालिक थे. दादा जी, अंकित राज सिंह, नाना जी से चार साल छोटे थे, वो ६६ साल के थे. दादाजे करीब ६ फुट लम्बे थे पर उनका महाकाय दानवाकार शरीर किसी पहलवान की तरह का था. दोनों नाना और दादा जी विशाल शरीर और सारे परिवार की तरह बहुत सुंदर नाक-नुक्श के मालिक थे. दादी जी, निर्मला सिंह, ६६ साल के उम्र में भी निहायत सुंदर थीं. उनका शरीर उम्र के साथ थोडा ढीला और मांसल और गुदगुदा हो चला था. उनका सुंदर चेहरा अभी भी किसी भी मर्द की निगाह खींचने के काबिल था.तीनो ने मुझे बहुत प्यार से गले लगाया और मेरे मूंह हज़ारों चुम्बनों से गीला कर दिया.




नाना, दादा और दादी जी को सारे परिवार को एक जगह इकट्ठा देख कर बहुत सुख मिला. तीनो बहुत खुश और संतुष्ट लग रहे थे. सारी शाम बहुत हसीं-मजाक चलता रहा.


बेचारी नीलम भाभी की तो हालत खराब हो गयी. अंजू भाभी के मज़ाक से दादा, नाना और दादी जी भी हसीं रोक नहीं पाए.

अंजू भाभी, मैं और नीलम भाभी खाने के बाद नीलम भाभी के बंगले में चले गए. अंजू भाभी ने बंगला बहुत ही अच्छे से सजा रखा था. सब तरफ फूलों की मालाएं और गुलदस्ते बिखरे हुए थे. अंजू भाभी का काम में नीलम को सुहाग रात के लिए तैयार करना भी था. अंजू भाभी ने नीलम के कपड़े उतारने शुरू कर दिए. अंजू भाभी *के*अश्लील मज़ाक मुझे भी कसमसा रहे थे. नीलम भाभी का सुंदर मूंह शर्म से लाल हो गया था.

नीलम भाभी अब बिलकुल नग्न थीं. मेरे सांस मुश्किल से काबू में थी. नीलम भाभी का सुंदर गुदाज़ शरीर मुझे भी*प्रभावित कर रहा था. उनके बड़े-बड़े भारी स्तन अपने वज़न से थोड़े ढलक रहे थे. उनकी सुंदरता की एक अच्छे मूर्तिकार की किसी देवी की मूर्ती से ही तुलना की जा सकती थी. नीलम भाभी की सुडौल भरी कमर के नीचे मुलायम काले घुंघराले बालों से ढकी हुई योनी ने मुझे भी प्रभावित कर दिया. नीलम भाभी की मांसल टाँगे उनके भारी गोल नितिम्बों के उठान को और भी खूबसूरत बना रहीं थीं.


अंजू भाभी ने बिना किसी शर्म के नीलम भाभी के दोनों उरोजों को दोनों हाथों से मसल दिया, "नीलू, कल सुबह, इन दोनों सुंदर चूचियों नीले दागों से भरी होंगी. मनू भैया इन सुंदर चूचियों को खा जायेंगें."


नीलम भाभी शर्मा कर हंस दी. अंजू भाभी ने नीलू भाभी को एक झीने सिल्क का साया पहना दिया. अंजू भाभी ने नीलम भाभी को खूब सता कर बिस्तर में लिटा कर विदा ली.

वापसी में मुझसे रहा नहीं गया, "अंजू भाभी सुहागरात में मनू भैया क्या-क्या करेंगे नीलम भाभी के साथ."

अंजू भाभी पहले थोड़ा हंसी, "नेहा, मनू नीलम की आज रात पहली बार चूत मारेगा. नीलम को पता नहीं है की मनू का लंड कितना बड़ा है."

मेरी जांघों के बीच में गीलापन भर गया, "भाभी आपको कैसे पता की मनू भैया का ल ..ल ....लंड कितना बड़ा है?"


“नेहा, मैंने मनू को पेशाब करते हुए देखा है. वास्तव में मैंने मनू को बावर्ची की बेटी को चोदते हुए देखा है. मनू की चूदाई कोई लड़की नहीं भूल सकती."


"अंजू भाभी क्या नरेश भैया का लंड भी उतना बड़ा है?"


बातें करते हुए हम मेरे कमरे तक पहुँच गए थे, "नेहा, इस घर के सारे मर्दों के लंड दानवीय माप पर बने हैं. तुम्हारे नरेश भैया का लंड भी महाकाय है. जब उन्होंने पहली दफा मेरी चूत मारी तो मैं सारी चुदाई में रोती ही रही दर्द के मारे. पर अब मुझे उनके लंड से अपनी चूत मरवाए बिना चैन नहीं पड़ता. जब तुम्हारे भैया ने पहली बार मेरी गांड मारी तो मैं तीन दिन तक पाखाने नहीं जा पाई."


अंजू भाभी ने मेरे होठों पर प्यार से चुम्बन दिया फिर फुसफुसा के मेरे कानो में कहा, " नेहा, यदी रात में मेरी बातों से चूत गीली और खुजली से परेशान कर रही हो तो हमारे कमरे में आ जाना. तुम्हारे नरेश भैया को मैं तुम्हारी चूत के मालिश करने को मना लूंगी."

मैं बहुत शर्मा गयी. मेरा मूंह बिलकुल गुलाब की तरह लाल हो गया. नीलम भाभी का मेरे भाई से मेरी चूत मरवाने के ख्याल से ही मेरी हालत बुरी हो गयी.

अंजू भाभी मेरी स्तिथी को भांप गयी थी, "नेहा, अच्छे से सोना. प्यार सबसे बड़ा *आशीर्वाद होता है. समाज के प्रतिबन्ध तो कम अक्ल के लोगों के लिए होतें हैं." अंजू भाभी की गम्भीर और गहरी बात की महत्वता अगले कुछ दिनों में सत्य हो जायेगी.


मैंने अपने कपड़े बदल लिए. बाथरूम में पेशाब करते हुए मुझे अपनी चूत में से सुगन्धित पानी निकलता मिला. मैंने हमेशा की तरह ढीली-ढाली टीशर्ट पहन ली. मै रात में कोई ब्रा और जाँघिया नहीं पहनती थी. मेरे दीमाग में मनू भैया का लंड नीलम भाभी की चूत के अंदर घुसने की*छवि समा गयी थी. मैं बिलकुल सो नहीं पाई. आखिर में मैंने हार मान ली. मेरे वासना से गरम मस्तिष्क ने हर किस्म का ख़तरा उठाने का इरादा कर लिया.

मैंने गरम पश्मीना शौल ओड़ कर कमरे से निकल पड़ी. जिस बंगले में मनू भैया और नीलम भाभी की सुहागरात का इंतज़ाम किया गया था उसके बाहर एक खिड़की थी जो एक संकरे गलियारे की वजह से दूर से नहीं दिखती थी.
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#94
मैंने धीरे से गलियारे में पहुँच कर धीरे से खुली हुई खिड़की को धक्का दिया. फूलों की माला से खिड़की बंद ही नहीं हुई थी. बाहर अन्धेरा था. अंदर मंद बिजली थी.


मैंने अपनी शॉल कस कर अपने शरीर पर लपेट ली,वायू में थोड़ी सी ठण्ड का अहसास होने लगा था. यदी कोई भी मुझे भैया-भाभी के कमरे में झांगते हुए देख लेता तो मेरी सारी ज़िन्दगी शर्मिन्दिगी से भर जाती. पर मेरी कामवासना और उत्सुकता ने मेरे डर को काबू कर लिया.


कमरे में नीलम भाभी बिलकुल वस्त्रहीन थीं. उनके बड़े मुलायम उरोज़ मनू भैया के हाथों में थे. मेरा जिस्म बिलकुल गरम हो गया. मनू भैया ने अपने मूंह में नीलम भाभी का बायां निप्पल ले लिया. मनू भैया, लगता था कि वो ज़ोर से भाभी का चूचुक चूस रहे थे. नीलम भाभी के मूंह से सिसकारी निकल पडी. नीलम भाभी का चेहरा बिलकुल साफ़ साफ़ तो नहीं दिख रहा था पर फिर भी उनकी आधी बंद सुंदर आँखें और आधा खुला ख़ूबसूरत मूंह उनकी काम-वासना और आनंद को दर्शा रहे था. मैंने हिम्मत करके खिड़की थोड़ी और खोल दी.


मनू भैया ने नीलम भाभी का सारा शरीर चुम्बनों से भर दिया. दोनों ने फिर से अपने खुले मूंह ज़ोर से एक दुसरे के मूंह से चिपका दिए. भैया के दोनों हाथ भाभी के दोनों चूचियों से खेल रहे थे. भाभी का हाथ भैया के पजामे के ऊपर पहुँच गया और भैया के लंड को सहलाने लगा.

मेरी छाती हिमालय की चोटी के सामान शॉल में से उभर रही थी. मेरी सांस तेज़-तेज़ चलने लगी. मुझे अपनी जांघों के बीच में गीलापन का अहसास होने लगा. मेरा दायाँ हाथ अपने आप मेरी बाये उरोंज़ को सहलाने लगा. मेरा निप्प्ल बहुत जल्दी लंबा और सख्त हो गया. मेरा चूचुक [निप्पल] बहुत संवेदनशील था और मेरा हाथ के रगड़ से मेरे बदन में बिजली की लहर दौड़ गयी. मैंने बड़ी मुश्किल से अपने मूंह से उबलती सिसकारी को दबा पाई.


अंदर कमरे में भाभी ने भैया का पजामा खोल कर नीचे कर दिया था. भाभी अपने घुटनों पर बैठीं थी और उनका मूंह भैया की जाँघों के सामने था. भैया के शक्तिशाली मज़बूत नितम्ब आगे पीछे होने लगे. मेरा दिल अपने भैया का नंगा बदन खाली पीछे से देख कर ही धक्-धक् करने लगा. नीलम भाभी के मूंह से उबकाई जैसी आवाज़ सुन कर मुझे लगi क भाभी भैया का लंड चूस रही थी. काश मैं भाभी का मूंह भैया का लंड चूसते हुए देख पाती.


नीलम भाभी ने मनू भैया का लंड काफी देर तक चूसा. भैया कभी-कभी ज़ोर से अपने ताकतवर नितम्बों से अपना लंड भाभी के मूंह में ज़ोर से धकेल देते थे. भाभी के मूंह से ज़ोर की उबकाई जैसी आवाज़ निकल पड़ती थी पर भाभी ने एक बार भी अपना मूंह भैया के लंड से नहीं हटाया.

मेरा हाथ अब मेरे उरोज़ को ज़ोर से मसल रहा था. मैंने अपना निचला होंठ, अपनी सिस्कारियों को दबाने के लिए अपने दातों में भींच लिया.

मनू भैया ने नीलम भाभी को अपने मान्स्ली मज़बूत बाज़ूओं में उठा लिया और प्यार से उनको बिस्तर पर लिटा दिया.

नीलम भाभी ने अपने दोनों टाँगे खोल कर अपने बाहें फैला दीं, "मनू अब मेरी चूत में अपना घोड़े जैसा लंड दाल दो. मेरे पिताजी ने कितने महीनो मुझे इस दिन का इंतज़ार करवाया है. अब तुम अपने लंड से मेरी चूत को खोल दो."




नीलम भाभी की वासना भरी आवाज़ ने मेरे मस्तिष्क को कामंगना से भर दिया. मेरा पूरा शरीर में एक अजीब किस्म की एंठन होने लगी. मेरी सांस मानो रुक गयी. में भैया के लंड को भाभी की चूत के अंदर जाते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकती थी.


मेरा सारा ध्यान अंदर के दृश्य पर था. मुझे पता भी नहीं चला कि एक बहुत लम्बा चौड़ा पुरुष मेरे पीछे काफी देर से खड़ा था. अचानक उसने मुझे अपनी मज़बूत बाज़ू में जकड़ लिया और दुसरे हाथ से मेरा मूंह बंद कर दिया. मेरा सर उसके सीने तक भी मुश्किल से पहुच रहा था.

"श..श..श...चुप रहो," उसकी धीमे भरी आवाज़ मुझे बिलकुल भी पहचान नहीं आई.

मैं काफी डर गयी. पर नानाजी के घर के किसी भी नौकर की घर की स्त्रियों के साथ इस तरह व्यवहार करने की हिम्मत नहीं थी. उसने मुझे या तो कोई नौकरानी अन्यथा किसी नौकर की बेटी या बहिन समझा होगा.


उस अजनबी पुरुष का एक हाथ मेरे दोनों उरोज़ों पर था. उसके हाथ के दवाब ने मेरे चूचियों को और भी संवेदनशील बना दिया. मेरा बदन अब बुरी तरह से कामान्गनी में जल रहा था. मेरी उत्तेजना और भी बड़ गयी और मेरी वासना ने मेरे डर और दिमाग पर काबू पा लिया. मेरा सिर अपने आप उस वृहत्काय आदमी की मज़बूत सीने से लग गया. मेरे शरीर की प्रतिक्रिया ने उस आदमी की, यदि कोई भी झिझक बची हुई थी तो वो भी दूर कर दी.


उसने मेरे मूंह से अपना हाथ हटा लिया. उसने दोनों हाथों से मेरे दोनों उरोज़ों कमीज़ के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया. मेरी सांसों में तूफ़ान आ गया. मेरी गले में सिसकारियां भर गयीं जो मैंने बड़ी मुश्किल से दबा दीं. उसके हाथों ने मेरे निप्पल को बहुत संवेदनशील और सख्त बना दिया. मैं और पीछे होकर अपने शरीर को उसके विशाल काया से चिपका दिया. हम दोनों की निगाहें अंदर कमरे में भैया-भाभी के बीच हो रहे सहवास पर एकटक लगी हुईं थीं.


मेरे भैया ने अपनी मज़बूत बाँहों में नीलम भाभी को ऊठा कर बड़े प्यार से बिस्तर पर लिटा दिया था. नीलम भाभी ने अपने दोनों गुदाज़ मांसल जांघें मोड़ कर पूरी चौड़ा दीं. उनकी रेशमी घने घुंगराले काले बालों से ढकी गीली चूत मेरे भैया को मानों अमिन्त्रित कर रही थी,"मनू, अब मुझसे और नहीं बर्दाश्त होता. मेरे पिताजी के िज़द की वजह से मेरा कौमार्य तुम्हरे लंड से इतने अरसे से दूर रहा.अब तुम अपने घोड़े जैसे लंड से मारी चूत का कुंवारापन मिटा दो."


भैया जल्दी से मेरी भाभी की खुली टांगों के बीच में बैठ गए. भाभी के गले से एक हल्की चीख निकल गयी. भैया ने अपना लंड भाभी के चूत में डालना शुरू कर दिया था. भैया ने अपना विशाल महाकाय शरीर से भाभी की मांसल कोमल काया को ढक दिया. भैया के बलवान हृष्ट-पुष्ट नितम्ब ने मेरी किशोरी वासना को और भी उत्तेजित कर दिया.


भैया के नितम्बो की मांसपेशिया थोड़ी संकुचित होई और भैया ने बड़े ज़ोर से अपने कूल्हों को नीचे धक्का दिया. कमरे की दीवारें नीलम भाभी की दर्द भरी चीख से गूँज ऊंथी. मेरी सांस रुक गयी. मेरी चूत अपने आप संकुचित हो गयी. भाभी की चीख ने मुझे उनकी चूत पर भैया के लंड के प्रभाव का अन्दाज़ा दे दिया था.


अजनबी आदमी ने मेरा एक बड़ा कोमल स्तन अपने बड़े हाथ में जितना भर सकता था भर कर दुसरे हाथ की उँगलियों से मेरी भगशिश्निका [क्लाइटॉरिस] को सहलाने लगा. यदि मेरे सामने भैया-भाभी की चुदाई नहीं होती तो मेरे आँखें उन्मत्तता की मदहोशी से बंद हो गयीं होतीं.


भैया ने, मुझे लगा, बड़ी बेदर्दी से नीलम भाभी के चीखों को नज़रअंदाज़ कर के अपने ताकतवर नितम्बों की मदद से अपना लंड भाभी की चूत में घुसाते रहे. अब भाभी के रोने की आवाज़ भी उनकी चीखों के साथ मिल गयी,"आँ.. आँ ..आह..मनू..ऊ...ऊ...मेरी चूत फट गयी. अपना लंड बहर निकाल लो प्लीज़," नीलम भाभी सिस्कारियां मेरे दिल में सुइओं की तरह चुभ रहीं थीं. मेरा मन अंदर जा कर नीलम भाभी को सान्तवना देने के लए उत्सुक हो रहा था. उसी वक़्त मेरे भग-शिश्न पर उस आदमी की उँगलियों ने मेरी मादकता को और परवान चड़ा दिया.

मनू भैया ने या तो भाभी का रोना और चीखें नहीं सुनी अथवा उनकी बिलकुल उपेक्षा कर दी.


भैया के गले से एक गुरगुराहट के आवाज़ निकली और उनकी कमर की मांसपेशियां और भी स्पष्ट हो गयी कि वो अपनी विशाल शरीर की ताकत से भाभी की चूत में अपना लंड डालने का प्रयास कर रहे थे.


भैया ने अपना लंड थोडा बहर निकला और कुछ देर रुक कर, बिलखती हुई नीलम भाभी की चूत में निर्दर्दी के साथ अपना लंड पूरा जड़ तक धकेल दिया. नीलम भाभी की चीख से लगा जैसे भैया के लंड ने उनकी चूत फाड़ दी हो.


"आं...आँ...आँ...मई मर गयी....ई..ई...ई. मेरी चूत फट गयी मनू..ऊ..ऊ.बहुत दर्द कर रहे हो.मेरी चूत तुम्हारा लंड नहीं ले सकती. प्लीज़ निकल लो बाहर. हाय माँ मुझे बचा लो." नीलम भाभी की दिल से निकली दर्दभरी पुकार सुन कर भी मेरी काम-वासना में कोई कमी नहीं आई. मेरी चूत में अब आग लगी होई थी. उस वक़्त यदी मुझे कोई मौका देता तो मैं एक क्षण में नीलू भाभी से स्थान बदल लेती.


मेरे अजनबी प्रेमी ने मेरे भगांकुर [क्लित] को तेज़ी से रगड़ना शुरू कर दिया. मेरी सांस अब अनियमित हो गयी थी. उसका हाथ मेरी बड़े कोमल उरोंज़ को मसल रहा था और उसकी उंगलियाँ मेरे चूचुक को मरोड़ रही थीं. मुझे अब लगाने लगा कि, किसी दुसरे के स्पर्श से, मेरा पहला रति-निष्पत् होने वाला था.


मैं धीरे से फुफुसाई,"आह..आह..और मैं आने वाली हूँ. प्लीज़ मुझे झाड़ दो."


उस आदमी ने मेरे सिर पर चुम्बन किया और उसकी उँगलियों ने मेरे भंगाकुर को तेज़ी से सहलाना शुरू कर दिया. मेरी चूत और चूची, दोनों में एक अजीब सी जलन हो रही थी. उस जलन को बुझाने की दवा उस आदमी के हाथों में थी. कुछ क्षणों में ही मेरा शरीर अकड़ गया. मेरी सांस मुश्किल से चल रही थी. मेरे चूत के बहुत अंदर एक विचित्र सा दर्द जल्दी ही बहुत तीव्र हो गया. मेरे अजनबी प्रेमी ने मुझे अपने शरीर से भींच लिया. मेरी चूत झड़ने लगी और मेरे बदन में बिजली सी दौड़ गयी. मुझे काफी देर तक कोई होश नहीं रहा. मुझे काफी देर में अपनी अवस्था का अहसास हुआ. मैंने अपना शरीर पूरा ढीला अपने अपरिचित प्रेमी के शरीर पर छोड़ दिया.


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#95
अब मेरा ध्यान अंदर कमरे में हो रही भैया-भाभी कि चुदाई पर फिर से लग गया. भाभी का रोना अब बहुत कम हो गया था.

"नीलू,बस अब पूरा लंड अंदर है. मैं धीरे-धीरे तुम्हारी चूत मरना शुरू करूंगा." भैया की आवाज़ में बहुत सा प्यार छुपा हुआ था.

नीलम भाभी सिर्फ सिसकती रहीं पर भैया के मज़बूत चौड़े हृष्ट-पुष्ट नितम्ब ऊपर-नीचे होने लगें. मुझे बीच-बीच में भैया का थोडा सा लंड दिखाई पडा. उनके लंड की मोटाई देख कर मेरे दिल की धड़कन मानो कुछ क्षणों के लिए रुक गयी.


मनू भैया ने अपने अविश्वसनीय मोटे लंड से नीलम भाभी की चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी. भैया के मज़बूत चौड़े नितम्ब धीमें-धीमें ऊपर नीचे होने लगे. भैया ने अपने शक्तीशाली कमर और कूल्हों की मसल्स की मदद से अपना महाकाय लंड नीलम भाभी की चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया.


नीलम भाभी अब बिलकुल नहीं रो रहीं थीं पर उनकी सिसकियाँ रुक-रुक कर उनकी कामुकता की हालत बता रहीं थीं.

मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी भगांकुर को फिर से मीठी यातना देनी शुरू कर दी. उसकी दोनों हाथ मेरे उरोज़ों को और मेरी चूत को बिना रुके उत्तेजित करते रहे.

मनू भैया अब भाभी को और भी ज़ोर से चोद रहे थे. उनका लंड भाभी की चूत में बढ़ती हुई तेज़ी के साथ रेल के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर जा रहा था. नीलम भाभी की सिस्कारियां उनकी काम-वासना की तरह ऊंची होती जा रहीं थीं, "आह..ऊई..मनू-अब बहुत अच्छा लग रहा है.मेरी चूत में तुम्हारा मोटा लंड अब बहुत कम दर्द कर रहा है. मुझे चोदो प्लीज़....मेरी चूत मारो...आँ..आँ. ...अम्म..मनू..ऊ.आह."

मनू भैया के चूतड़, इंजन के तरह, अब और भी तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रहे थे.


मेरी चूत की हालत भी बहुत खराब थी. मैं दूसरी बार झरने वाली थी. मेरे शरीर की एंथन आने वाले कामोन्माद से मुझे और भी परेशान करने लगी.

अचानक भाभी की सिसकारी चीख में बदल गयी पर इस चीख में दर्द की कोई भावना नहीं थी.

"मैं झड़ने वाली हूँ, मनू.मेरी चूत को फाड़ दो.मुझे चोदो. आँ..आँ..अ..आ..मैं आ गयी.ई...ई..ई..ई," नीलम की लम्बी चीख उनके कौमार्य-भंग के पहले कामोन्माद [ओर्गाज़म] की घोषणा कर रही थी.


मेरा चरम-आनन्द भी भाभी के साथ मेरे शरीर को यंत्रणा दे रहा था पर बेचारी भाभी की तरह मैं चीखना चाहती थी पर मैंने अपने होंठ दातों से दबा लिए.


अगले एक घंटे कमरे में भैया ने नीलम भाभी की चूत का,अपने वृहत्काय मोटे लंड से, बेदर्दी से लतमर्दन किया. भाभी कम से कम पांच बार झड़ चुकीं थीं.

बाहर मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी चूत, भागान्कुर और चूचियों को मीठी यातना दे-दे कर मुझे सात बार झाड़ दिया था .


भैया का लंड अब भाभी की चूत, जो अब उनके स्खलित रति-जल से लबालब भर गयी थी, चपक-चपक की आवाज़ के साथ बिजली की तेज़ी से भाभी की चूत का मर्दन कर रहा था. भाभी की चुदाई अब इतनी भयंकर हो चली थी कि एसा लगता था कि भैया एक हिंसक मनुष्य बन गए थे और भाभी की चूत का विनाश ही उनका उद्देश्य था. पर भाभी सिस्कारियों के बीच में उनको और ज़ोर से उनकी चूत 'फाड़ने' का प्रोत्साहन दे रहीं थीं.


जब भाभी अंदर कमरे में भैया के मूसल लंड से चुदवा कर छठवीं बार झड़ीं, मैं बाहर अपने अनजान प्रेमी से अपने चूत मसलवा कर आठवीं बार झड़ रही थी.


भैया ने अपने लंड को भीषण शक्ति से भाभी की चूत में अंदर बाहर डाल कर एक जंगली जानवर कि तरह गुर्रा कर अपने लंड को भाभी की प्यासी चूत में खोल दिया. भैया का लंड भाभी कि चूत में स्खलित हो रहा था और मैं बाहर अनजान पुरुष की उँगलियों पर मचल-मचल कर झड़ रही थी.


भैया भाभी के ऊपर निढाल हो कर परस गए. भाभी ने भैया अपनी दोनों बाँहों में और भी ज़ोर से जक्कड़ लिया. भाभी मातृक-प्रेम के साथ भैया की पीठ और सिर प्यार से सहला रही थीं. कामलिप्सा की संतुष्टी के बाद दोनों एक दुसरे को अनुराग भरे चुम्बन दे रहें थे.


मैं अब बिलकुल थकान से निढाल हो चली थी.मेरे बहुतबार झड़ने की थकान मेरे अजनबी प्रेमी को भी महसूस हुई. मुझे उसकी पकड़ ढीली महसूस हुई और मैंने अपने आपको उसकी बाँहों से मुक्त कर लिया. मैं जैसे ही दूर जाने के लिए चली उस आदमी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर उसके हाथ में सिर्फ मेरी शॉल ही आ पाई.


मैंने पीछे बिना देखे भाग कर बाहर खुले लॉन में चली गयी. मैंने वहां रुक कर पीछे मुड़कर देखा. वो विशाल शरीर का आदमी अभी भी अँधेरे में खड़ा था. उसने मेरी शॉल प्यार से दीवार पर तह मार कर डाल दी.


मैं भरी साँसों से भरी अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी. कमरे में पहुँच आकर मैं बिस्तर में निढाल हो कर लेट गयी. मुझे करीब आधा घंटा लगा अपनी सांस काबू में लाने के लिए.






मेरी तरुण उम्र में कभी भी मुझे इस तरह स्थिति के होने का कोई पूर्वानुमान या सँभालने का अनुभव नहीं था. मैंने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसे मुझे अपने मम्मी-पापा से छुपाना पड़े. ऊपर से मेरे दिल में अब डर बैठ गया था कि क्या पता यह आदमी मुझे ब्लैक्मेल करने की कोशिश करे.


पर मेरी अपेक्षा के खिलाफ उससे भी बड़े डर ने मेरे मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लिया, जिससे मेरा दिल बिलकुल बेचैन हो गया, कि वो मुझे कभी भी दुबारा न मिले. मैंने उसकी शक्ल भी नहीं देखी.


मैंने हिम्मत कर के फिर से बंगले की तरफ चल पड़ी. मेरा दिल हथोड़े की तरह मेरे छाती में धड़क रहा था. मैं धीरे-धीरे फिर से संकरे गलियारे में प्रविष्ट हो गयी. मेरी शॉल अभ्हे भी दीवार पर लटक रही थी. वो आदमी मुझे नहीं नज़र आया. मेरी सांस ज़ोर-ज़ोर से चल रही थी. मैंने खिड़की से कमरे के अंदर देखा. मनू भैया नीलम भाभी कि पीछे से चुदाई कर रहे थे. मुझे मालूम था इसे 'डॉगी' या 'घोड़ी' की रीति में चुदाई करना कहते हैं.


मेरा मन भैया-भाभी की चुदाई देखने के लिए तड़प रहा था पर मेरा डर मेरी मनोकामना से ज्यादा बलवान निकला.

मैं अपनी शॉल लेकर चुपचाप धीरे से बाहर आ गयी.


जैसे ही मैं गलियारे से बाहर आकर लॉन में जाने के लिए मुड़ी, मैं अँधेरे में खड़े लम्बे-चौड़े आदमी को देख कर डर के मारे स्तंभित हो कर बिलकुल स्थिर घड़ी हो गयी.


मेरी सांस रुक कर गले में अटक गयी. मेरे दीमाग ने काम करना बंद कर दिया. अब मुझे पता चला के शिकार का जानवर कैसे महसूस करता है जब शिकारी उसके बचने सब रस्ते बंद कर देता है.


मैं डरी हुई पर शांती से खड़ी रही. वो विशालकाय मर्द धीरे-धीरे मेरी तरफ आया. जब उसका चेहरा थोड़ी* सी रोशनी में आया तो मेरी जान ही निकल गयी. उस आदमी की शक्ल देख कर मेरा दीमाग चकरा गया. मुझे ज़ोर से चक्कर आने लगे. मैं घास पर गिरने ही वाले थी कि उस आदमी ने मुझे अपनी बाँहों में संभाल लिया.


मुझे थोड़ी देर बाद होश आया,और मेरी चीख निकलने वाले थी पर उस महाकाय विशाल शरीर के मालिक व्यक्ती ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं थोड़ी देर कुनमुनायी पर मेरा मूंह स्वाभिक रूप में अपने आप ही से खुल गया और उस मेरे बड़े मामा की जीभ मेरे मूंह में प्रविष्ट हो गयी. मैंने अपनी दोनों बाहें बड़े मामा के गले के इर्द-गिर्द डाल दीं. उन्होंने ने अपने जीभ से अंदर से मेरा सारा मूंह का अन्वेषण कर लिया. मेरी सांस फिरसे तेज़ हो गयी.

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#96
बड़े मामा ने मुझे घास पर खड़ा कर दिया. मैं गुस्से से बोली, "बड़े मामा, आप को पता था कि वो लड़की मैं थी."

बड़े मामा ने मुस्करा कर सिर हिलाया, "नेहा बेटी, तुम्हारी सुंदरता और प्यार ने मुझे बिलकुल निस्सहाय कर दिया. मनू की खिड़की के पास तुम्हे देख कर मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ."


मेरा दीमाग गुस्से से और इस नयी स्थिती से ठीक से सोच नहीं पा रहा था. मैं बड़े मामा की तरफ कमर कर खड़ी हो गयी. इस से पहले मैं कुछ बोल पाऊँ,बड़े मामा ने मुझे फिर से अपनी बाँहों में जकड़. उनके दोनों हाथों ने मेरे दोनों बड़े-बड़े उरोजों को ढक लिया. बड़े मामा ने धीरे-धीरे मेरे उरोजों को सहलाना शुरू कर दिया.


मेरी चूत में पानी भर गया. मेरा दिमाग ने बड़े मामा के हाथों के जादू के प्रभाव में नियंत्रण खो दिया. मेरी सोच-समझने की क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो गयी. रही सही कसर बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोज़ों को अपने बड़े-बड़े हाथों में दबा कर मुझे अपनी विशाल शरीर से भींच कर पूरी कर दी. मेरी साँसों में तूफान आ गया. बड़े मामा अपनी भरी पर प्यार भरी आवाज़ में बोले, "नेहा बेटा, यदि तुम्हें मनू की खिड़की के सामने पता होता कि वो आदमी मैं था तो फिर सब ठीक था? फिर तुम्हे यह सब स्वीकार होता?"


बड़े मामा के तर्क ने मुझे लाजवाब कर दिया और मैं अवाक रह गयी. बड़े मामा ने मुझे बचपन से अब की तरुणावस्था तक हमेशा अपनी बच्ची की तरह से प्यार किया था.


मैंने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को अभिव्यक्त कर पाई, "बड़े मामा, मैं तो आपकी बेटी की तरह… आपकी अकेली बहन की बेटी,….भांजी हूँ."

बड़े मामा ने मेरे बालों पर प्यार से चुम्बन दिया, उनके हाथ मेरे चूचियों पर और भी कस गए,"नेहा बेटा, मैं तुम्हारे अप्सरा जैसे स्वरुप से मुग्ध सम्पूर्ण रूप से विमोह में हूँ. यदि तुम चाहो तो इसे बुद्धिलोप कह सकती हो. अब मैं तुम्हरी चूत का ख्याल अपने दिमाग से नहीं निकाल सकता. मुझे तुम्हे चोदे बिना चैन नहीं पडेगा."


मेरी सांस रुक-रुक आ रही थी. मेरे मस्तिष्क में विपरीत विचार मुझे दोनो तरफ खींच रहे थे.

"बड़े मामा, प्लीज़, मुझे थोडा समय दीजिये.मैं अभी बहुत उलझन में हूँ." मेरी आवाज़ से स्पष्ट था कि मैं रोने वाली थी.


बड़े मामा का, जो हमेशा से मेरे*पिता तुल्य थे,पितृवत् प्यार उनकी मेरे ऊपर कामलिप्सा से बहुत बलवान था. उन्होंने मुझे अपने बाँहों में उठा कर अपने गले से लगा लिया.मैं उनके गले को अपनी बाँहों से ज़क्कड़ किया और जोर से रोने लगी. मैं सुबक-सुबक कर रो रही थी. बड़े मामा ने मुझे अपने से िचपका कर मेरे कमरे की तरफ चल पड़े.


कमरे में उन्होंने मुझे धीरे और प्यार से बिस्तर पर लिटा दिया. मैं अभी भी ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी. बड़े मामा भी बिस्तर में मेरे साथ लेट गए. मैंने उनकी तरफ पलट कर उन्हें अपनी बाँहों में भर उनसे लिपट गयी.


मैं बहुत देर तक रोती रही. बड़े मामा प्यार से मेरे बालों को सहलाते रहे. आखिर कर मैंने रोना बंद किया.

बड़े मामा ने मुझे सीधा लिटा कर अपना सिर अपने हाथ पर टिका कर प्यार से एकटक मेरे आंसू से मलिन चेहरे को देख रहे थे.

उनकी प्यार भरी आँखों में अपनी आँखे डालने के बाद मेरे चेहरे पर मुस्कराहट अपने आप आ गयी. मुझे अब पता चला कि मेरे बेतहाँ रोने से मेरी नाक भी बह रही थी.


बड़े मामा ने मेरी सूजी हुई आँखों को प्यार से चूमा. फिर उन्होंने मेरे पूरे मलिन चेहरे को अपने होठों और जीभ से बड़े प्यार से साफ़ कर दिया.

बड़े मामा ने अपनी जीभ से मेरी सुंदर नाक चूम और चाट कर साफ़ की. फिर उन्होंने अपनी झीभ की नोंक मेरी दोनों नथुनों के अंदर बारी-बारी से डाल कर मेरे नथुनों को साफ़ कर दिया. मैं अब खिलखिला कर हंस रही थी.


बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर धीरे-धीरे मेरे बालों को सहला कर सुला दिया. मुझे तो बहुत बाद में पता चला. बड़े मामा, जब मैं सो गयी, तो काफी देर तक मुझे सोते हुए देखते रहे. उनको मेरी गहरी नींद में मेरी ज़ोर की साँसें और मृदु खर्राटें सुन कर आत्मिक प्रसन्नता मिली.


मैं सुबह देर से ऊठी. मेरा मन बिस्तर से निकलने का नहीं हुआ. मैं जगी हुई बिस्तर में लेटी रही. करीब नौ बजे होंगे जब अंजू भाभी मेरे कमरे में मुस्कुराती हुईं दाखिल हुईं. वो अभी भी रात के गाउन में थीं. उन्हें देख कर मेरा चेहरा खिल ऊठा.


"नेहा, अभी तक बिस्तर में हो? क्या मुझे निमंत्रण दे रही हो? यदी चाहो तो मैं तुम्हारे जैसे प्यारी सुंदर नन्द को बहुत प्यार कर सकती हूँ. पर मेरा विचार है कि तुम्हे एक औरत की चूत नहीं एक बड़े मर्द का विशाल लंड चाहियें," अंजू भाभी ने हमेशा कि तरह अश्लील भाषा में मज़ाक करने शुरू कर दिए.


अंजू भाभी जल्दी से मेरे साथ बिस्तर में घुस गयीं. उन्होंने गाऊन के नीचे कोई ब्रा और जांघिया नहीं पहन रखा था.

अंजू भाभी ने मुझे अपने बाँहों में भर लिया. उन्होंने फिर बहुत प्यार से मेरे मूंह का चुम्बन लिया. अंजू भाभी भी अभी-अभी बिस्तर से निकली थीं और उन्होंने सुबह-सवेरे की कोई सफाई नहीं की थी. उनके मूंह में, मेरे मूंह के जैसे, रात के सोने बाद का मीठी सुगंध और मीठा स्वाद था.


"नेहा, क्या तुमने मनू को नीलम कि चुदाई करते हुई देखा?" अंजू भाभी सर्वज्ञ मालूम होतीं थीं.

मैंने शर्म से भरे लाल चेहरे से मनू भैया और नीलम भाभी के पहली चुदाई का विस्तृत रूप से वर्णन दिया. मैंने बड़े मामा से मिलने का कोई संकेत नहीं दिया. अंजू भाभी ने मुझे न जाने कितनी बार मुझे होठों पर चुम्बन दिया.


"नेहा, क्या तुम्हारा दिल नहीं करता, एक मूसल जैसे बड़े लंड से चुदवाने का?" अंजू भाभी हमेशा से मेरे साथ अश्लील, सम्भोग की बातें करती थीं.


मेरे चेहरे पर रात की बात याद आते ही शायद थोड़ी सी उदासी छा गयी थी. मैंने धीरे से सिर हिला कर हांमी भर दी.

"नेहा, जब तुम चाहो मुझे बता देना. मैं तुम्हारे नरेश भैया से तुम्हारी चुदाई का इंतज़ाम करवा दूंगीं."

नेहा के आखें बहर निकल पड़ीं, "भाभी, क्या कह रही हो? भैया और मैं एक दुसरे को चोदेंगें*?"


अंजू भाभी ने प्यार से मेरी नाक के ऊपर चुम्बन दिया,"बहन-भाई, यह सब बकवास है. यह पिछड़े हुए दकियानूसी रुकावटें है प्यार के रास्ते मैं. यदि मैं अपने सिर्फ अपने भाई से ही शादी करना चाहती तो यह समाज मुझे रोक सकता था? नहीं. मैं और मेरे भैया दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेते. जैसे मैंने पहले बोला, नेहा, समाज के प्रतिबन्ध केवल बेवकूफ लोगों के लिये होतें हैं."


अंजू भाभी ने मेरी पूरे नाक अपने मूंह में लेकर बड़े प्यार से उसे चूसा. फिर अपनी जीभ मेरे दोनों नथुनों में डाल कर अपने थूक से मेरी नाक भर दी. मैं खिलखिला कर हंस रही थी.


"नेहा, सच में. जब तुम तैयार हो मुझे बता देना. तुम्हारे नरेश भैया अपने को खुशकिस्मत समझेंगें यदि तुम उनसे अपनी चूत मरवाने का निर्णय करोगी." अंजू भाभी ने मुझे प्यार से चूमा और नाश्ते के लिए तैयार होने के लिये कह कर खुद तैयार होने के लिए अपने बंगले की तरफ चल दीं.



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#97
मैं नहा-धो कर तैयार हो गयी. मैंने एक हलके नीले रंग का कुरता और सफ़ेद सलवार पहनी. मैंने कुरते के नीचे ब्रा नहीं पहनी क्योंकी मेरी चूचियां बड़े मामा से कल रात मसलवाने के बाद अभी भी दर्द कर रहीं थीं. मैंने चुन्नी लेने की की ज़रुरत भी नहीं समझी. नाश्ते के लिए जाते वक़्त जब मैं लम्बे गलियारे में थी तो किसीने मुझे पीछे से पकड़ कर नज़दीक के कमरे में खींच लिया. अब मुझे समझने मे कुछ ही क्षण लगे की ऐसा तो सिर्फ एक व्यक्ती ही कर सकते थे. और वास्तव में मेरे बड़े मामा ही ने मुझे खींच कर खाली कमरे मे अंदर ले गये. मेरी साँसे तेज़-तेज़ चलने लगी. मामाजी ने मेरी दोनों उरोज़ों को अपने बड़े-बड़े हाथों से ढक लिया.


मैंने अपने शरीर को उनके बदन पर ढीला छोड़ दिया. मेरे पितातुल्य बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोज़ों को पहले धीरे-धीरे सहला कर फिर काफी जोर से मसलना शुरू कर दिया. हम दोनों ने अब तक एक भी शब्द नहीं बोला था. मेरी तरुण अवयस्क शरीर मे वासना की आग फिर से भड़क उठी. मेरी आँखें कामंगना के उद्वेग से अपने आप बंद हो गयीं. मेरी सांस अब बहुत ज़ोर से चल रही थी. बड़े मामा ने कुरते के ऊपर से ही मेरे दोनों उरोज़ों की घुन्दीयाँ अपने अंगूठे और पहली उंगली के बीच मे दबा कर उनको उमेठने लगे. मेरे मूंह से अविराम सिस्कारियां निकालने लगीं.


बड़े मामा का एक हाथ मेरी चूची को अविराम मसलता रहा. उनका दूसरा हाथ मेरे कुरते को ऊपर खींचने लगा. उन्होंने मेरे कुरते को पेट तक उठा कर मेरे मुलायम गुदाज़ उभरे हुए पेट की कोमल खाल पर अपने हाथ फिराने लगे. उनका हाथ धीरे-धीरे मेरी सलवार के नाड़े तक पहुच गया. मेरा हृदय अब रेल के इंजन की तरह धक-धक रहा था. मैं वासना के ज्वार मे भी डर रही थी की कोई हम दोनो को इस अवस्था मे पकड़ ना ले. मेरे मुंह से बड़े मामा को रोकने के लिए शब्द निकल कर ही नहीं दिये.


बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार एक लहर मे मेरी टखनों के इर्द-गिर्द इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे सफ़ेद झान्घिये के अंदर अपना हाथ डाल दिया. मैं शरीर मे एक बिजले सी कौंध गयी. मामाजी की उँगलियों ने मेरे घुंघराले झांटों से खेलने लगीं. मेरी दिल की धड़कन अब मेरे छाती को फाड़ने लगी. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी. मामाजी ने अपनी उँगलियों से मेरी चूत के भगोष्ठ को भाग कर मेरी चूत के मूंह पर अपनी उंगली रख दी.


उनकी उंगली ने धीरे से मेरे बिलकुल गीली चूत के अंदर जाने का प्रयास किया.मैं दर्द और घबराहट से छटपटा उट्ठी.मामाजी ने अपनी उंगली को हटा कर मेरे भागान्कुर को सहलाने लगे. मेरा शरीर फिर से ढीला होकर मामाजी के शरीर पर ढलक गया. मामाजी ने कल रात की तरह मेरे चूत की घुंडी को अपनी उंगली से सहलाना शुरू कर दिया. मेरी चूत मे से लबालब रतिरस बहने लगा. मामाजी ने एक हाथ से मेरी चूची को मसला और दुसरे हाथ से मेरी भग-शिश्न को कस कर मसलना शुरू कर दिया. मेरे तरुणावस्था की नासमझ उम्र मे मेरी वासना की कोई सीमा नहीं थी.


मैं अपने चरम-आनन्द की प्रतीक्षा और कामना से और भी उत्तेजित हो गयी. बड़े मामा के अनुभवी हाथों और उँगलियों ने मुझे कुछ ही देर मे पूर्ण यौन-आनन्द के द्वार पर पहुंचा दिया. मेरी चूत का पानी मेरी झंगों पर दौड़ रहा था. मेरी कामुकता अब चरम सीमा तक पहुँच चुकी थी. मेरे कुल्हे अब अबने-आप आगे-पीछे होने लगे. मेरी हलक से एक छोटी सी चीख निकल पडी. मेरे बड़े मामा ने मेरी चूत को अपने हाथों के जादू से मेरे आनन्द की पराकाष्ठा को मेरे शरीर मे एक तूफ़ान की तरह समाविष्ट कर दिया. मेरी चूत मे से एक तीखा दर्द उट्ठा और मेरी दोनों उरोज़ों मे समा गया. मुझे लगा जैसे मेरी पेट मे कोई तेज़ ऐंठन है जो बाहर निकलना चाह रही है.


अचानक मेरा शरीर बिलकुल ढीला पड़ गया. मेरे घुटने मेरा वज़न उठाने के लिए अयोग्य हो गये. मेरे कामोन्माद के स्खलन ने मुझे बहुत क्षीण सा बना दिया. मामजी ने मुझे अपनी बाँहों मे लपेटे रखा. जब मुझे थोडा सा होश आया तो उन्होंने बिना कुछ बोले मुझे अपनी बाँहों से मुक्त कर कमरे से बाहर चले गये.


मैं बहुत देर तक अपनी उलझन भरी अवस्था मे अर्धनग्न खाली कमरे मे खड़ी रही. फिर मैंने धीरे-धीरे थके ढंग से अपनी सलवार ऊपर खींच कर नाड़ा बांधा. मैं थोड़ी देर चुपचाप अकेले खड़ी रही. फिर मैं तेज़-तेज़ क़दमों से डाइनिंग-रूम की तरफ चल पडी.

डाइनिंग-रूम मे सब बैठ चुके थे. मैं नानाजी के पास खाली कुर्सी पर बैठ गयी. थोड़ी देर मे मेरे नानाजी ने अपने प्यार भरी बातों से मुझे हंसा-हंसा कर मेरे टेट मे दर्द कर दिया. नानाजी ने मुझे मेरे हाथ से अपनी तरफ खींच कर अपनी गोद मे बैठा लिया. मैं छुटपन से खाने के वक़्त ज़िद कर के नानाजी और दादाजी की गोद मे बैठती थी.


मेरी नयी उलझन भरी अवस्था मे नानाजी के विशाल शरीर की शरण में मुझे बहुत शांती का आभास हुआ. मैंने अपने नानाजी की गर्दन पे अपनी बाहें डाल दीं. मैं अपने हाल ही के यौन चरमोत्कर्ष की थकान और नानाजी की गोद के आश्वासनपूर्ण आश्रय के प्रभाव से बोझल हो गयी और मेरी दोनों आँखें नींद से भर गयी. मुझे तो पता नहीं चला पर मेरा बहुत मज़ाक बनाया गया पर मेरे नानाजी ने सबको चुप कर मुझे अपने बाँहों मे भर कर सोने दिया.


मेरी आँख जब खुली तो मैं फिर से अपने बिस्तर मे थी. मैं शर्म से लाल हो गयी. ज़ाहिर था की नानाजी ने मुझे बाँहों मे उट्ठा कर मुझे मेरे बिस्तर में लिटा कर सोने के लिए छोड़ गये थे.


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मैं उठ कर मुंह धो कर परिवार की बड़ी बैठक में चली गयी. मनू भैया और नीलम भाभी अपने मधुमास [हनीमून] के लए विदा होने वाले थे. दोनों दो महीनों का पूरे संसार का चक्कर लगाने के लए रवाना हो रहे थे. भैया और भाभी ने मुझे गले लगा कर प्यार से चूमा.


सारे परिवार के लोग कई कारों में भरकर दोनों नवविवाहित जोड़े को विमानघर छोड़ने के लिए चल पड़े.


वापसी में मैं बड़े मामा की कार में थी. हम दोनों पीछे की सीट पर थे. ड्राईवर ने बीच का अपारदर्शी शीशा चड़ा रखा था.

मैं शर्म के मारे लाल हो गयी. बड़े मामा ने मुस्करा के मेरी तरफ देखा, "नेहा बेटा, क्या आप मेरी गोद में नहीं बैठेंगी?" बड़े मामा मुझे चिड़ा रहे थे.


"मामाजी, आप बहुत गंदे हैं," मैं कृत्रिम उपहास भरे क्रोध से बोली, "आप मुझे कितना सता रहें हैं."

बड़े मामा पहले हँसे फिर धीरे से बोले, "नेहा बिटिया, जितना भी आपको लगता है कि मैं सता रहां हूँ, मैं उससे ज्यादा यातना सह रहा हूँ. आपको देख कर मेरी इच्छा होती है कि आपके सारे कपडे फाड़ कर आपको बिस्तर पर पटक कर आपकी चूत में अपना खड़ा लंड घुसेड़ कर सारा दिन और सारी रात आपकी चूत और गांड मारूं."


मेरी साँसे मानो मेरे नियंत्रण से बाहर हो गयीं. बड़े मामा के अश्लील सहवास के वर्णन से मेरी कामाग्नी फिर से जागृत हो गयी. मैं शर्म से लाल हो गयी और सिर नीचे झुका लिया. सदियों से स्त्री की इस अवस्था का आशय पुरुष की वासना के सामने आत्मसमर्पण करने के लए तैयार होने का था. बड़े मामा ने मेरी लाज भरी अवस्था का अर्थ भी मेरे सम्पर्पण के निर्णय से संलग्न कर लिया.


बड़े मामा ने मुझे अपनी शक्तिशाली बाँहों में उट्ठा कर अपनी गोद में बिठा लिया. कुछ ही क्षणों में उनका खुला मुंह मेरे खुले मूंह पर कस कर चपक गया. बड़े मामा की झीभ मेरे मूंह में सब तरफ हलचल मचा रही थी. मेरे मामा का थूक मेरे मुंह ने बह रहा था. मुझे अपने बड़े मामा का थूक सटकने में बहुत आनंद आया. उनके हाथ मेरे दोनों उरोज़ों को सताने में व्यस्त हो गये. मेरे गुदाज़*चूतड़ उनकी गोद में मचलने लगे.


'बड़े मामा,आप कब तक मुझे ऐसे तरसाते रहेंगें?" मेरी कमज़ोर सी धीमी आवाज़ मेरे मुंह से मीठी सी शिकायत के साथ निकली.


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#98
"नेहा बेटा, जब आप हमें अपनी इच्छा के बारे में विश्वास दिला देंगें." बड़े मामा ने ज़ोर से दोनों उरोज़ों को दबा कर मेरे नाक का चुम्बन ले लिया,"तब हम दोनों की यातना का समाधान हमारे पास है."


"किस इच्छा का विश्वास चाहिए आपको?" मैं थोड़ा इठला के बोली. मैं अब बड़े मामा की वासना की शिकार हो चुकी थी. मैंने अब अपने आपको बड़े मामा के आगे सम्पर्पण करने का निर्णय ले लिया था.


"आप हमें बतायें, बेटा, हम किस इच्छा की बात कर रहें है?" बड़े मामा मेरे मुंह से खुले रूप से हम दोनों की कामवासना का विवरण सुनना चाहते थे.


मेरी शर्म के मारे आवाज़ ही नहीं निकली. बड़े मामा ने मेरे दोनों चूचियों को बहुत ज़ोर से मरोड़ दिया. मेरी हल्की सी चीख निकल गयी.


"नेहा बेटी, जब तक आप हमें नहीं बतायेंगें कि हम दोनों की इच्छा क्या हैं तब तक हम दोनों की यातना का कोई हल नहीं निकलेगा." बड़े मामा ने मुझे बिलकुल निरस्त कर दिया.


मैं मारी आवाज़ में धीरे से बोली, "बड़े मामा आप हमें चोदना चाहतें हैं. आप हमारी चूत में अपना लंड डालना चाहतें हैं."

बड़े मामा हल्के से हँसे, "नेहा बेटा, क्या आप यह सब नहीं करना चाहते?"


मेरे मस्तिष्क में तूफ़ान सा उठ चला, "बड़े मामा, हम भी आप से अपनी चूत मरवाना चाहते हैं. मुझे भी आपका लंड देखना है. मैं भी आपके लंड से अपनी चूत मरवाऊंगी."


बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में भींच कर कार की सीट पर लिटा कर अपने नीचे दबा लिया. पूरे रास्ते बड़े मामा ने मुझे चूमा और मेरे दोनों उरोज़ों का बेदर्दी से मंथन किया.


"पर मामाजी हमें इस को करने का अ..अ… चोदने का मौका कैसे मिलेगा?" आखिर में मेरी वासना ने अगम्यागमन की सामाजिक-वर्जना के डर के ऊपर विजय पाली.


"नेहा बेटा, वो आप मुझ पर छोड़ दो. जब मैं आपको इशारा करूँ आप मेरी योजना को अपनी सहमती दे देना." बड़े मामा ने मेरे उरोज़ों को मसलते और मेरे होठों को चूमते हुए मुझे विश्वाश दिया.


घर के नज़दीक पहुँच कर ही मामाजी ने मुझे अपनी सलवार-कुरता सँवारने दिया.


यदि कोई मेरी तरफ ध्यान दे रहा होता तो, कार में बड़े मामा ने मेरे साथ क्या किया, मेरा शर्म से लाल चेहरा उसकी सारी दास्तान बता रहा था.


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#99
उस सारा दिन मेरी हालत कामुकता से अभिभूत और व्याकुल रही. बड़े मामा ने मेरी हालत और खराब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा. उन्हें जब भी मुझे अकेले पाने का मौका मिलता वो मुझे अपनी शक्तिशाली बाँहों में जकड़ कर चुमते, मेरे दोनों चूतड़ों और उरोजों अपने मज़बूत बड़े-बड़े हाथों से दबा कर ज़ोरों से मसल देते थे.


अब मैं सारा दिन उनसे मिलने से घबराती थी और बेसब्री से उनसे मिलने की इच्छा से व्याकुल भी रहती थी.

शाम को खाने के ठीक बाद अंजू भाभी और नरेश भैया ने अपने शहर वापस जाने की तय्यारी की वजह से जल्दी खाने की मेज़ छोड़ने की क्षमा-प्रार्थना के बाद सुबह-सवेरे जल्दी प्रस्थान की योजना के लिए अपने कमरे की तरफ चल दिए.


बड़े मामा ने सारे परिवार को गोल्फ खेलने के लिए उत्साहित किया. नानाजी ने अपनी विशाल जागीर पर एक '१८ होल' का 'गोल्फ कोर्स' के अलावा ४ तरण ताल, ३ टेनिस, ४ बैडमिंटन कोर्ट्स भी बनवाये थे.


सब लोगों को गोल्फ का विचार बहुत अच्छा लगा. सारे दो खिलाड़ियों की टीम बनाने में व्यस्त हो गए. मेरे पापा ने मेरी दादीजी के साथ जोड़ा बनाया. छोटे मामा ने मेरी मम्मी, अपनी छोटी बहन, के साथ टीम बनाई. मेरी बुआ, पापा की बड़ी बहन, अपने डैडी, मेरे दादाजी, के साथ जुड़ गयीं.


बड़े मामा जल्दी से मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए और प्यार से मेरे कन्धों पर अपने भारी विशाल हाथ रख कर हम दोनों की जोड़ी की घोषणा कर दी. मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा. गोल्फ के खेल के लिए जोड़े बनाने की गहमा-गहमी के बाद बड़े मामा मेरे पास की कुर्सी पर बैठ गए.


थोड़ी देर में जब सब मीठा और चाय या कॉफ़ी का आनंद उठा रहें थे, नौकर ने आ कर बड़े मामा को उनके करीबी दोस्त शर्माजी के टेलीफ़ोन काल की सूचना दी. बड़े मामा ने मेरी दायीं जांघ को जोर से दबाया और मेरी तरफ प्यार से मुस्करा कर फ़ोन-कॉल लेने के लिए बाहर चल गए.


थोड़ी देर में बड़े मामा वापस आ कर मेरे पास कुर्सी पर बैठ गए. उनका हाथ मेजपोश के नीचे फिर से मेरी जांघ पर पहुँच गया.

"भई, मुझे आप सब से माफी मंगनी पड़ेगी. सुरेश [सुरेश शर्मा, बड़े मामा के बहुत करीबे दोस्त थे] के साथ मैंने मछ्ली पकड़ने का वादा किया था कुछ महीनों पहले जो मैं बिलकुल भूल गया. वो बेचारा सुबह झील के बंगले पर पहुँचाने वाला है. नम्रता भाभी [सुरेश अंकल की पत्नी] भी आ रहीं हैं."


मेज़ से 'आह नहीं' , 'सो सैड' 'नहीं आपको अपना वादा निभाना चाहिये' की आवाजें उठीं.

बड़े मामा ने मेरी जांघ दबाई और बोले, "मेरी जोड़ी का खिलाड़ी तो बेचारी अकेली रह जायेगी," फिर मामाजी ने मेरी तरफ मुड़ कर कहा, "नेहा बेटा, नम्रता भाभी आपकी काफी याद कर रहीं थीं. आप चाहो तो मेरे साथ झील की तरफ चल सकते हैं."


मुझे अब सब समझ आ गया. मेरे चेहरा एक आनंद भरी मुस्कान से चमक गया," हाँ! हाँ!, बिलकुल बड़े मामा. मुझे झील पर जाना बहुत अच्छा लगता है. मैं सुरेश अंकल और नम्रता आंटी से बड़ी दिनों से नहीं मिली हूँ. मम्मी क्या मैं कल बड़े मामा के साथ चली जाऊं?"


मैं भी बड़े मामा की योजना में पूरे उत्साह से सहयोग देने लगी.

मम्मी ने हंस कर कहा,"नेहा तुम और तुम्हारे बड़े मामा के बीच में पड़ने वाली मैं कौन होतीं हूँ ? "


बड़े मामा ने मेरे बालों को प्यार से चूमा, "नेहा बेटा, हम लोग सुबह जल्दी निकलेंगे. वापसी या तो परसों अन्यथा उसके एक दिन बाद होगी. इस बात का सुरेश की बिज़नस एमरजेंसी पर निर्भर करता है. आप कम से कम तीन दिनों के कपड़े रख लो."

मेरा गला रोमांच और उत्तेजना से बिलकुल सूख गया. मेरे आवाज़ नहीं निकल पा रही थी. मैंने चुपचाप मुस्करा के हामी में सिर हिला दिया.

बड़े मामाजी के साथ तीन दिन और दो रातों के ख़याल से मेरा सारा शरीर रोमांचित हो गया.


सब लोग शीघ्र ही फिर से वार्तालाप में व्यस्त हो गए। मामा का बड़ा भारी मर्दाना हाथ अभी भी मेरी मोटी गुदाज़ जांघ पर रखा हुआ था। उन्होंने मेरी जांघ को धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया। मेरी साँस मानो गले में अटक गयी। मैंने घबरा के अपने परिवार ले सदस्यों के चेहरों की तरफ देखा। सब मामा और मेरे बीच होती रास-लीला से अनभिज्ञ थे।


मामा के जादू भरे हाथ ने मेरी छूट को रस से भर दिया। मुझे लगा की मेरा पेशाब निकलने वाला है। मैं शौचालय की तरफ के तरफ जाने के लए उठने लगी।

मामा जी ने धीरे से पूछा, "क्या हुआ बेटा?"


"मामाजी मुझे सू-सू करने जाना है।" मैंने पेशाब के लिए बचपन के नाम का उपयोग किया।
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बड़े मामा ने ने मेरे गाल पर चुम्मी दे कर मेरी कुर्सी को पीछे खींच कर मुझे जाने की जगह दे दी। मेरे परिवार में सब लोग मुझे प्यार से कभी भी चूम लेते थे। पर अब मेरे दिल में बड़े मामा से चुदवाने की वासना का चोर बैठ गया था। मेरा मुंह शर्म से लाल हो गया। मई जल्दी से अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।

मैंने अपने कुर्ते को अपनी कमर के इर्द-गिर्द खींच लिया। मैं मुश्किल से अपनी सलवार के नाड़े को खोल कर कमोड के अपर बैठने वाली थी की बड़े मामा ने स्नानगृह में प्रविष्ट हो कर मेरे गले से आश्चर्य की घुट्टी घुट्टी चीख निकाल दी, "बड़े मामा आप यहाँ**क्या कर रहें है। किसी* को पता चल गया तो?"

मैं बड़े मामा के अनपेक्षित आगमन के प्रभाव से भूल गयी थी की मेरी सलवार खुली हुई थी।


"हम अपनी नेहा बेटी को पेशाब करते देखने के लिए आयें हैं," बड़े मामा के चेहरे पर मासूमियत भरी मुस्कान थी।


"बड़े मामा आप भी कैसे ...मुझे कितनी घबराहट हो रही है," मेरा पेशाब करने की तीव्र इच्छा गायब हो गयी।


"बेटा, पेशाब करने में क्या घबराहट?" बड़े मामा ने मेरी उलझन को नाज़रंदाज़ कर दिया।


मैं भी उनकी शरारत भरे व्यवहार से मचल उठी, "आप कितने शैतान हैं, बड़े मामा?"


बड़े मामा अब तक फर्श पर बैठ गए थे। उन्होंने धीरे से मेरी सलवार मेरे हाथों से ले कर मेरी भरी-भरी टांगों को निवस्त्र कर दिया।


उन्होंने मेरी सलवार के अगले भाग को बड़े प्यार से सूंघा। मैं खिलखिला के हंस पड़ी।


"बड़े मामा हमें आपके सामने सू-सू करते हुए शर्म आएगी," मेरा मुंह शर्म से लाल होने लगा।


"नेहा बेटी, यदि मेरे सामने में पेशाब करने से इतनी उलझन होती है तो मुझसे अपनी चूत कैसे चुदवाओगी?" बड़े मामा अब अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर मेरी वासना को भड़काने के विशेषज्ञ हो गए थे।


मेरी साँसे तेज़-तेज चलने लगीं। मेरे हृदय की धड़कन पूरे स्नानघर में गूंजने लगीं। बड़े मामा ने मेरी कच्छी के सामने गीले दाग को घूर कर देखा। उनकी उंगलियाँ मेरी कच्छी के कमरबंद में फँस गयीं। मैं अब अपने आप को निसहाय महसूस करने लगी। मुझे बचपन से बड़ों के ऊपर अपनी जिम्मेदारी छोड़ने की आदत की वजह से मुझे बड़े मामा की हर इच्छा स्वीकार थी।


बड़े मामा ने मेरी कच्छी उतार कर उसके गीली भाग को अपने मुंह पर रख कर एक गहरी सांस ले कर प्यार से सूंघा। मैं ना चाहते हुए भी मुस्करा उठी और मेरी चूत फिर से रस से भर गयी।


"बड़े मामा, आप कितने गंदे हैं। मेरी गंदी कच्छी को क्यों सूंघ रहे हैं?" मैंने इठला कर बड़े मामा की ओर प्यार से देखा। उनके मेरी कच्छी को सूंघने से मेरी योनि में एक तूफ़ान सा भर उठा।


"बेटा, बहुत ही कम सौभाग्यशाली पिता को अपनी कुंवारी बेटी के चूतरस को सूंघने और चखने का सौभाग्य मिलता है। आप मेरी बेटी की तरह हो। मैं इस अवसर हाथ से जाने थोड़े ही दूंगा!" बड़े मामा ने मेरी कच्छी के गीले भाग को अपनी जीभ से चाट कर मुंह में भर लिया।


मैं वासना के ज्वार से कांप उठी।


बड़े मामा ने मेरी कच्छी को अपने कुर्ते की जेब में रख लिया।


"नेहा बेटा, मैं आपको पेशाब करते हुए देखने के लए बहुत ही उत्सुक हूँ।" बड़े मामा का मुंह मेरी गीली, रस से भरी चूत से थोड़ी ही दूर था।


मैं शर्म से लाल हो गयी। मुझे अपने बड़े मामा के सामने मूतने में बड़ी शर्म आ रही थी। बड़े मामा ने मेरे चूत को धीरे धीरे अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया। उनकी उंगली जैसे ही मेरे मूत्र-छिद्र पर पहुँची मेरा पेशाब करने की इच्छा फिर से तीव्र हो गयी।


"बड़े मामा, मेरा पेशाब लिकने वाला है," मैं बिना जाने पहली बार सू-सू के जगह पेशाब शब्द का इस्तेमाल किया।


बड़े मामा ने फुसफुसा कर कहा, "बेटा, मैं आपके पेशाब की मीथी सुंगंधित धार का इंतज़ार कर रहा हूँ।"


मेरा मूत्राशय पूरा भरा हुआ था और अब मैं उसे बिलकुल भी रोक नहीं सकती थी।


मैंने अपने मूत्राशय को खोल दिया और मेरे छोटे से मुत्रछिद्र से एक झर्झर करती पेशाब की निकल पड़ी। मेरे सुनहरे गर्म पेशाब की गंध सस्नानगृह में फ़ैल गयी।


बड़े मामा का हाथ मेरे मूत्र की धार में था और पूरा मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा मेरी जांघें फैला कर मेरी मूतती हुई चूत को एकटक निहारने लगे। बड़े मामा ने अपना मेरे पेशाब से भीगे हाथ को प्यार से चाटा। मैं अब इतनी वासना की आंधी में उलझ गयी थी की मुझे बड़े मामा का मेरा पेशाब चाटना बुरा नहीं लगा। बड़े मामा ने अपना हाथ कई बार मेरे पेशाब में भिगो कर अपने मुंह से चाटा।


अंततः मेरे पेशाब की धार हल्की होने लगी। बड़े मामा ने गहरी सांस ले कर मेरे पेशाब की गंध को सूंघा। मैं हमेशा अपने पेट को कस कर जितना भी मूत्राशय में सू-सू बचा होता है उसे निकाल लेती हूँ। उस दिन मैंने जब अपने मूत्राशय को दबाया तो मेरी बचे हुए पेशाब की धार बड़ी ऊंची हो गयी और बड़े मामा के मुंह पर गिर पड़ी। बड़े मामा का मुंह मेरे पेशाब से भीग गया। बड़े मामा को बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। आखिरकार मेरा मूत्राशय खाली हो गया। बड़े मामा ने बड़े प्यार से मेरी पेशाब से गीली चूत को चूम लिया।


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