19-01-2019, 04:46 PM
अध्याय ७
हम सब खाना खा चुके थे| मुझे पूरी तरह से नशा चढ़ गया था... बहुत हल्का हल्का महसूस हो रहा था मुझे... मेरे पेट के निचले हिस्से में मुझे हल्की हल्की गुदगुदी सी महसूस भी हो रही थी, मानो सैकड़ों तितलियाँ उड़ती फिर रही हों… दोनों टांगों के बीच का हिस्सा गीला- गीला सा महसूस हो रहा था.... मैं बीच-बीच में बिना किसी बात के खिलखिलाकर हंस भी दे रही थी...
शायद यह माँठाकुराइन को और यहां तक की छाया मौसी को भी अच्छा लग रहा था|
मैं अपनी सारी लाज शर्म हया में बिल्कुल भूल चुकी थी... इतने में माँठाकुराइन ने मुझे फिर से लिटा कर मेरी दोनों टांगो को फैला कर बड़ी सावधानी से मेरे झाँटों (जघन के बालों) की सफाई कर दी थी... वह चाहती थीं कि मेरा भग (योनांग) कोरा- गंजा रहे -एकदम सॉफ सुथरा और अछूता- बिल्कुल मेरी कौमार्य की तरह| उन्होंने अपनी साड़ी के आंचल से मेरे दोनों टांगों के बीच का हिस्सा साफ किया फिर अपने हाथों से जमीन पर बिखरे हुए झांटो को इकट्ठा करके एक कपडे की पुड़िया में धागे से बांधा और उसे चूम कर अपने झोले में रख लिया|
छाया मौसी भी माँठाकुराइन के साथ बैठ के शराब पी रही थी, उनको भी नशा चढ़ गया था| लेकिन आखिरकार उन्होंने माँठाकुराइन से पूछ ही लिया, “माँठाकुराइन, यह आप क्या कर रही हैं?”
माँठाकुराइन बोली, “कुछ नहीं है बस इसकी झांटे संभाल के रख रही हूं| पहले इसको कुछ देर के लिए अपने वश में करने के लिए मैंने उसके माथे पर भस्मी का तिलक लगाया था लेकिन उसका असर ज्यादा देर तक नहीं रहता और अब, जब तक इसकी झांटे मेरे पास रहेंगी यह पूरी तरह मेरे वश में रहेगी और तेरी दासी- तेरी बाँदी- तेरी रखैल बन कर रहेगी... तू जो चाहे उसके साथ कर सकेगी”
छाया मौसी को जोड़ों के दर्द की शिकायत काफी सालों से है और उस दौरान से ही मैं घर के सारे काम करती थी… उनका पूरा पूरा ख्याल रखती थी| शायद अब छाया मौसी को इसकी आदत पड़ गई थी इसलिए… शायद इसलिए… माँठाकुराइन की बातें सुनकर छाया मौसी मुक्सुराई- आखिरकार माँठकुराइन ने उनके लिए मुझ जैसी एक रखैल का इंतज़ाम जो कर दिया था |
माँठाकुराइन ने मुझसे कहा, “चल छोरी! बहुत हो गया लाड़-प्यार अब उठ जा एक चटाई लाकर के कमरे में बिछा दे| फिर मैं तुझे बताती हूं कि मेरे हुए मेरे जादू टोने और मंत्र फूँके हुए तेल से तेरी मौसी का कैसे मालिश करनी है...”
फिर माँठाकुराइन ने अपना मिट्टी का लोटा लाकर मेरे सामने रख दिया और उसमें जो बचा हुआ पानी रखा हुआ था, उसको मुझे पीला दिया। फिर अपनी झोली में से एक तेल की शीशी निकाल कर बोलीं, “चल री लड़की... यह तेल दोनों हाथों में मलले और धीरे-धीरे मौसी के जोड़ों की मालिश करती रह...”
माँठाकुराइन जैसे जैसे बोलती गई, वैसा वैसा मैं करती गई- कलाई... कंधा.. गर्दन... छाती- दुद्दु (स्तन)... कमर...
मेरे खुले हुए बालों का कुछ हिस्सा मेरे सामने से लटक रहा था और बार बार मौसी के बदन को सहला रहा था|
पता नहीं क्यों मौसी को मेरी बालो की छुअन मौसी बहुत अच्छा लग रहा था|
वह एक टक मेरी तरफ से देखे जा रही थी मेरे झूलते हुए खुले बाल.... मेरे डोलते हुए स्तन.. मेरा नंगे बदन का स्पर्श... न जाने क्यों उन्हें बहुत अच्छा लग रहा… यह बात उनकी अधखुली नशीली आंखों की चमक और होठों पर एक अजीब सी हलकी मुस्कुराहट से साफ जाहिर थी और सच मानो तो इस हालत में मुझे भी एक अजीब सा सुकून सा महसूस हो रहा था… ख़ास कर तब, जब वह मुझे देख- देख कर हल्का- हल्का मुस्कुरा रही थी और बीच- बीच में मेरे बालों को... गालों को... यहाँ तक के मेरे स्तनों को सहला- सहला कर मुझे प्यार भी कर रहीं थी...
ऐसी बात नहीं है कि से पहले मैंने छाया मौसी को छुआ ना हो लेकिन तब हालात कुछ और ही थे| मैं उनके बालों मे तेल लगा दिया करती थी... नहाने के बाद उनके के बालों में कंघी कर दिया करती थी चोटी या फिर जुडा बना दिया करती थी और अभी कुछ महीनों से तो जोड़ों के दर्द की वजह से छाया मुझसे ठीक तरह से अपने हाथ पैर नहीं हिला पाती थी इसलिए मैं उन्हें कपड़े बदलने में भी मदद किया करती थी... तब मैंने उनका नंगा सीना देखा था| मुझे याद है जब मैं बहुत छोटी थी तब एक बार मैंने छाया मौसी से पूछा था मौसी आपके कितने बड़े बड़े दूध है मेरे कब होंगे? तब उन्होंने कहा था जब तू बड़ी हो जाएगी तो तेरी भी होंगे...
अब मैं बड़ी हो गई थी... मेरे स्तनों का विकास भी अच्छी तरह से हुआ था... चलते वक्त हर कदम पर मेरा स्तनों का जोड़ा थिरकता था... बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं अब तो मेरे… बिल्कुल तने-तने से... जैसा की माँठाकुराइन ने कहा था… मेरे पेट के निचले हिस्से में गुदगुदी बढ़ती ही जा रही थी…
मेरा चेहरा गरम हो रहा था.... हल्का हल्का पसीना आ रहा था... मेरी सांसे लंबी और गहरी होती जा रही थी मेरे स्तनों की चूचियां खड़ी होकर एकदम सख़्त हो चुकी थी और न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी यौनांग के आस-पास का हिस्सा गीला व थोड़ा चिपचिपा सा लग रहा है…
मुझे शायद अपनी जिंदगी में पहली बार अपने अंदर यौन उत्तेजना का ऐसा ज्वार आता हुआ महसूस हो रहा था…
मैं इतनी बड़ी और समझदार तो हो चुकी थी कि यह समझ सकूँ कि आते जाते लोग मुझे घूर घूर कर क्यों देखते हैं… क्यों बैध जी मेरे बालों को छूते हैं और उसके बाद ही मेरी नज़रें बचा कर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहलाते हैं... क्यों लोगों की नजरें पहले मेरे चेहरे पर और उसके बाद मेरी छाती पर जाकर टिकती है... मैं तो यहां तक जान चुकी थी कि बंद कमरे के अंदर पति पत्नी आपस में क्या करते हैं... और हां, मैं यह जान गई थी कि कि सहवास किसे कहते हैं... बच्चे कैसे पैदा होते हैं... मेरी कुछ सहेलियां शादीशुदा थी, वह भी कुछ इस तरह की बातें किया करती थी, उन्हें सुन सुन कर मुझे बड़ा मजा आता था|
तब भी मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन से पैदा होती थी और पेट के निचले हिस्से में ऐसी ही थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी सी महसूस होती थी|
लेकिन आज यह एहसास शायद कुछ ज्यादा ही मेरे उपर हावी हो रहा था...
लेकिन मेरी तो अभी शादी नहीं हुई और यहां?... यहां तो सिर्फ माँठाकुराइन, मेरी छाया मौसी और मैं ही हूं… और हम तीनो के तीनों औरतें ही हैं… अब मेरा क्या होगा? मेरे बदन में आग सी लग रही है… अगर इस पर सुकून की बरसात नहीं हुई, तो शायद मैं इसी आग में जल कर आज मर ही जाऊंगी…
मेरी आंखों के आगे बाजार में देखे हुए दो चार आदमियों के याद रहने वाले चेहरे... वैधजी... दुकान के वह लड़के... इन सब की तस्वीरें घूमने लगी... मैं जानती थी कि लोगों की नज़रें मुझ पर हैं…
मेरी जवानी का फल पक चुका है... मैं सुंदर हूं... और इस वक्त इस बरसात की इस रात में, मैं बिल्कुल नंगी हूं… मेरे अंदर एक प्यास भड़क रही है....
काश माँठाकुराइन एक औरत ना होकर एक आदमी होती…
क्रमश:
हम सब खाना खा चुके थे| मुझे पूरी तरह से नशा चढ़ गया था... बहुत हल्का हल्का महसूस हो रहा था मुझे... मेरे पेट के निचले हिस्से में मुझे हल्की हल्की गुदगुदी सी महसूस भी हो रही थी, मानो सैकड़ों तितलियाँ उड़ती फिर रही हों… दोनों टांगों के बीच का हिस्सा गीला- गीला सा महसूस हो रहा था.... मैं बीच-बीच में बिना किसी बात के खिलखिलाकर हंस भी दे रही थी...
शायद यह माँठाकुराइन को और यहां तक की छाया मौसी को भी अच्छा लग रहा था|
मैं अपनी सारी लाज शर्म हया में बिल्कुल भूल चुकी थी... इतने में माँठाकुराइन ने मुझे फिर से लिटा कर मेरी दोनों टांगो को फैला कर बड़ी सावधानी से मेरे झाँटों (जघन के बालों) की सफाई कर दी थी... वह चाहती थीं कि मेरा भग (योनांग) कोरा- गंजा रहे -एकदम सॉफ सुथरा और अछूता- बिल्कुल मेरी कौमार्य की तरह| उन्होंने अपनी साड़ी के आंचल से मेरे दोनों टांगों के बीच का हिस्सा साफ किया फिर अपने हाथों से जमीन पर बिखरे हुए झांटो को इकट्ठा करके एक कपडे की पुड़िया में धागे से बांधा और उसे चूम कर अपने झोले में रख लिया|
छाया मौसी भी माँठाकुराइन के साथ बैठ के शराब पी रही थी, उनको भी नशा चढ़ गया था| लेकिन आखिरकार उन्होंने माँठाकुराइन से पूछ ही लिया, “माँठाकुराइन, यह आप क्या कर रही हैं?”
माँठाकुराइन बोली, “कुछ नहीं है बस इसकी झांटे संभाल के रख रही हूं| पहले इसको कुछ देर के लिए अपने वश में करने के लिए मैंने उसके माथे पर भस्मी का तिलक लगाया था लेकिन उसका असर ज्यादा देर तक नहीं रहता और अब, जब तक इसकी झांटे मेरे पास रहेंगी यह पूरी तरह मेरे वश में रहेगी और तेरी दासी- तेरी बाँदी- तेरी रखैल बन कर रहेगी... तू जो चाहे उसके साथ कर सकेगी”
छाया मौसी को जोड़ों के दर्द की शिकायत काफी सालों से है और उस दौरान से ही मैं घर के सारे काम करती थी… उनका पूरा पूरा ख्याल रखती थी| शायद अब छाया मौसी को इसकी आदत पड़ गई थी इसलिए… शायद इसलिए… माँठाकुराइन की बातें सुनकर छाया मौसी मुक्सुराई- आखिरकार माँठकुराइन ने उनके लिए मुझ जैसी एक रखैल का इंतज़ाम जो कर दिया था |
माँठाकुराइन ने मुझसे कहा, “चल छोरी! बहुत हो गया लाड़-प्यार अब उठ जा एक चटाई लाकर के कमरे में बिछा दे| फिर मैं तुझे बताती हूं कि मेरे हुए मेरे जादू टोने और मंत्र फूँके हुए तेल से तेरी मौसी का कैसे मालिश करनी है...”
फिर माँठाकुराइन ने अपना मिट्टी का लोटा लाकर मेरे सामने रख दिया और उसमें जो बचा हुआ पानी रखा हुआ था, उसको मुझे पीला दिया। फिर अपनी झोली में से एक तेल की शीशी निकाल कर बोलीं, “चल री लड़की... यह तेल दोनों हाथों में मलले और धीरे-धीरे मौसी के जोड़ों की मालिश करती रह...”
माँठाकुराइन जैसे जैसे बोलती गई, वैसा वैसा मैं करती गई- कलाई... कंधा.. गर्दन... छाती- दुद्दु (स्तन)... कमर...
मेरे खुले हुए बालों का कुछ हिस्सा मेरे सामने से लटक रहा था और बार बार मौसी के बदन को सहला रहा था|
पता नहीं क्यों मौसी को मेरी बालो की छुअन मौसी बहुत अच्छा लग रहा था|
वह एक टक मेरी तरफ से देखे जा रही थी मेरे झूलते हुए खुले बाल.... मेरे डोलते हुए स्तन.. मेरा नंगे बदन का स्पर्श... न जाने क्यों उन्हें बहुत अच्छा लग रहा… यह बात उनकी अधखुली नशीली आंखों की चमक और होठों पर एक अजीब सी हलकी मुस्कुराहट से साफ जाहिर थी और सच मानो तो इस हालत में मुझे भी एक अजीब सा सुकून सा महसूस हो रहा था… ख़ास कर तब, जब वह मुझे देख- देख कर हल्का- हल्का मुस्कुरा रही थी और बीच- बीच में मेरे बालों को... गालों को... यहाँ तक के मेरे स्तनों को सहला- सहला कर मुझे प्यार भी कर रहीं थी...
ऐसी बात नहीं है कि से पहले मैंने छाया मौसी को छुआ ना हो लेकिन तब हालात कुछ और ही थे| मैं उनके बालों मे तेल लगा दिया करती थी... नहाने के बाद उनके के बालों में कंघी कर दिया करती थी चोटी या फिर जुडा बना दिया करती थी और अभी कुछ महीनों से तो जोड़ों के दर्द की वजह से छाया मुझसे ठीक तरह से अपने हाथ पैर नहीं हिला पाती थी इसलिए मैं उन्हें कपड़े बदलने में भी मदद किया करती थी... तब मैंने उनका नंगा सीना देखा था| मुझे याद है जब मैं बहुत छोटी थी तब एक बार मैंने छाया मौसी से पूछा था मौसी आपके कितने बड़े बड़े दूध है मेरे कब होंगे? तब उन्होंने कहा था जब तू बड़ी हो जाएगी तो तेरी भी होंगे...
अब मैं बड़ी हो गई थी... मेरे स्तनों का विकास भी अच्छी तरह से हुआ था... चलते वक्त हर कदम पर मेरा स्तनों का जोड़ा थिरकता था... बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं अब तो मेरे… बिल्कुल तने-तने से... जैसा की माँठाकुराइन ने कहा था… मेरे पेट के निचले हिस्से में गुदगुदी बढ़ती ही जा रही थी…
मेरा चेहरा गरम हो रहा था.... हल्का हल्का पसीना आ रहा था... मेरी सांसे लंबी और गहरी होती जा रही थी मेरे स्तनों की चूचियां खड़ी होकर एकदम सख़्त हो चुकी थी और न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी यौनांग के आस-पास का हिस्सा गीला व थोड़ा चिपचिपा सा लग रहा है…
मुझे शायद अपनी जिंदगी में पहली बार अपने अंदर यौन उत्तेजना का ऐसा ज्वार आता हुआ महसूस हो रहा था…
मैं इतनी बड़ी और समझदार तो हो चुकी थी कि यह समझ सकूँ कि आते जाते लोग मुझे घूर घूर कर क्यों देखते हैं… क्यों बैध जी मेरे बालों को छूते हैं और उसके बाद ही मेरी नज़रें बचा कर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहलाते हैं... क्यों लोगों की नजरें पहले मेरे चेहरे पर और उसके बाद मेरी छाती पर जाकर टिकती है... मैं तो यहां तक जान चुकी थी कि बंद कमरे के अंदर पति पत्नी आपस में क्या करते हैं... और हां, मैं यह जान गई थी कि कि सहवास किसे कहते हैं... बच्चे कैसे पैदा होते हैं... मेरी कुछ सहेलियां शादीशुदा थी, वह भी कुछ इस तरह की बातें किया करती थी, उन्हें सुन सुन कर मुझे बड़ा मजा आता था|
तब भी मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन से पैदा होती थी और पेट के निचले हिस्से में ऐसी ही थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी सी महसूस होती थी|
लेकिन आज यह एहसास शायद कुछ ज्यादा ही मेरे उपर हावी हो रहा था...
लेकिन मेरी तो अभी शादी नहीं हुई और यहां?... यहां तो सिर्फ माँठाकुराइन, मेरी छाया मौसी और मैं ही हूं… और हम तीनो के तीनों औरतें ही हैं… अब मेरा क्या होगा? मेरे बदन में आग सी लग रही है… अगर इस पर सुकून की बरसात नहीं हुई, तो शायद मैं इसी आग में जल कर आज मर ही जाऊंगी…
मेरी आंखों के आगे बाजार में देखे हुए दो चार आदमियों के याद रहने वाले चेहरे... वैधजी... दुकान के वह लड़के... इन सब की तस्वीरें घूमने लगी... मैं जानती थी कि लोगों की नज़रें मुझ पर हैं…
मेरी जवानी का फल पक चुका है... मैं सुंदर हूं... और इस वक्त इस बरसात की इस रात में, मैं बिल्कुल नंगी हूं… मेरे अंदर एक प्यास भड़क रही है....
काश माँठाकुराइन एक औरत ना होकर एक आदमी होती…
क्रमश:
*Stories-Index* New Story: উওমণ্ডলীর লৌন্ডিয়া