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Fantasy राजू की दुनिया
#1
१) नाश्ता

सुबह सूरज की पहली किरण चेहरे पर पड़ते ही राजू उठ बैठा. वैसे तो हर दिन इतनी जल्दी उठने की उसे कोई आदत नहीं रही है कभी; लेकिन आज का दिन ही कुछ ऐसा था.. आज राजू के मम्मी और पापा, दोनों उसके नानीजी को देखने गए हैं. एक दिन पहले ही मामा जी का फ़ोन आया था कि नानी की तबियत बहुत ख़राब है.. आ कर एक बार देख लें.
 
मम्मी अकेली जाएगी नहीं... इसलिए पापा को भी साथ जाना पड़ा... जाने का इरादा तो राजू का भी था लेकिन इंटरनल परीक्षा शुरू होने के कारण जा न सका.
 
घर में थे अब राजू के अलावा सिर्फ़ चाचा, चाची... और उनकी एक छोटी बेटी भी.
 
जम्हाई लेता हुआ राजू दरवाज़ा खोल कर जैसे ही कमरे से बाहर आया, सामने सीढ़ी पर चाची दिख गई..
 
उसे देखते ही बोली,
 
“उठ गया तू? राजू तो लगा आज भी देर से ही उठेगा...चल, जल्दी ब्रश कर के चाय पी ले.”
 
“अभी ब्रश करूँ?”
 
“हाँ.. और नहीं तो क्या?”
 
“पर इसका क्या होगा?” राजू ने अंदर कमरे में ऊँगली से इशारा करते हुए कहा.
 
“किसका क्या होगा?”
 
सशंकित लहजे में पूछती हुई चाची फटाक से ऊपर आई और कमरे में घुसी.
 
“कहाँ... किसके बारे में क्या होगा?”
 
राजू हँस पड़ा.. सुबह सुबह ऐसे ही चाची को छकाना राजू को हमेशा से बहुत अच्छा लगता आया है.
 
कमरे में किसी को न पा कर चाची मुड़ कर राजू की ओर देखी और देखते ही सारा माजरा समझ गई.
 
थोड़ा गुस्सा करते हुए बोली,
 
“तू फ़िर शुरू हो गया..?! आज तो तेरे मम्मी पापा भी नहीं है घर में.. पता नहीं दिन भर तू कितना तंग करेगा.. हे भगवान, पता नहीं इस लड़के का क्या होगा?”
 

चाची रेखा के ऐसा कहते ही राजू के चेहरे पर एक शैतानी वाली मुस्कराहट उभर आई.. क्योंकि ये साफ़ इशारा था चाची की ओर से कि फ़िलहाल कुछ देर के लिए मैदान साफ़ है; चौका लगाने में कोई हर्ज़ नहीं.
 
राजू धीरे से आगे बढ़ा;
 
और बड़े प्यार से साड़ी को सीने पर से हटाकर उनकी लो कट ब्लाउज से बाहर झाँकती ४ इंच लंबे क्लीवेज पर बहुत प्यार से एक किस करते हुए बोला,
 
“क्या होगा चाची... आप हो ना मेरा ध्यान रखने के लिए.”
 
क्लीवेज पर होंठ लगते ही रेखा सिहर उठी.. शर्मा कर जल्दी से अपने सीने को ढकते हुए बोली,
 
“धत्त.. हमेशा बदमाशी.. चल.. जल्दी कर.. जल्दी से ब्रश कर के नीचे आ जा..”
 
इतना बोलकर रेखा जाने लगी.
 

अभी तक हाफ पैंट के अंदर जाग चुके छोटे भाई को शांत करने के लिए राजू छटपटाने लगा... और उसकी ये छटपटाहट सिवाय रेखा चाची के कोई और दूर नहीं कर सकता. इसलिए जैसे ही रेखा पलट कर दो कदम चली ही थी कि राजू ने तुरंत उनका दायाँ हाथ पकड़ कर उनको रोक लिया ---
 
आवाज़ में प्यार और ढेर सारा अपनापन लिए पूछा,
 
“कहाँ जा रही हो चाची?”
 
“नाश्ता तैयार करने.. तेरे चाचा नहा रहे हैं और छुटकी सो रही है... पहले से नाश्ता तैयार रहेगा तो अच्छा होगा न?” दरवाज़े से बाहर देखते हुए रेखा बोली. एक बार के लिए भी राजू की ओर नहीं देखी.
 
“और मेरा नाश्ता?”
 
“अरे वही तो कह रही हूँ.. जल्दी ब्रश करके आ जा... गर्मागर्म नाश्ता मिलेगा... साथ में चाय भी.”  इस बार शर्म में थोड़ा और गहरापन आ गया.
 
एक के बाद एक इतने संकेत मिलने से राजू बावला सा हो उठा.  तड़प उठा,
 
“नहीं चाची... नाश्ता तो राजू अभी चाहिए!”
 
“अभी??!!”
 
“हाँ.. अभी!”
 
अब बड़ी मासूमियत से चाची पूछी,
 
“पर बेटा, नाश्ता तो....”
 
उनकी बात पूरी होने से पहले ही राजू उनकी होंठों पर ऊँगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया.. होशियार चाची तुरंत मान भी गई... चुप हो कर राजू को जिज्ञासु नेत्रों से देखने लगी..
 
राजू ने आगे बगैर कुछ कहे ही जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और चाची के पास आ कर एक क्षण उनकी आँखों में आँखें डाल कर देखा और फिर उनके सीने पर से साड़ी हटा कर उनके क्लीवेज के अंदर फँसे चेन पर किस करने लगा. किस करते करते ही जरा सा जीभ निकाल कर क्लीवेज के ऊपरी भाग को चाट लिया.
 

रेखा एक हल्की सिसकारी ले पड़ी. राजू को उसके दोनों कन्धों से पकड़ कर परे ढकेलने का प्रयास करते हुए बोली,
 
“अरे राजू.. क्या कर रहा है... अभी....”
 
चाची को एकबार फिर बीच में ही टोकते हुए राजू ने धीरे से “चुप रहो न” कहा और दोबारा उनके मीठे क्लीवेज और ब्लाउज कप्स से ऊपर झाँकती स्तनों की गोल गोलाईयों को चूमने लगा. चाची आगे कुछ नहीं बोली.. चुपचाप राजू के सिर के बालों पर अपनी अँगुलियाँ फेरने लगी.
 
समय तो अधिक था नहीं उन दोनों के पास, ये सोचकर ही राजू ने चाची के दोनों रसीले आमों को नीचे से ब्लाउज कप्स के साथ ऊपर की ओर कर दिया.. इससे उनके दोनों चूचियों के अधिकतर हिस्से उस लो कट ब्लाउज से ऊपर की ओर निकल आए और फिर राजू और भी अधिक अच्छे से, पूरे आनंद के साथ उन्हें चूमने और चाटने लगा.. इसी बीच उस बदमाश राजू ने एक बार अपना जीभ निकाल कर रेखा की मस्त उभर आई क्लीवेज के अंदर घुसा कर कुछ क्षणों के लिए अंदर - बाहर किया.. ऐसा जितनी बार हुआ, उतनी ही बार रेखा ने तेज़ सिसकारी ली...
 
रेखा की ओर मुँह उठा कर देखा...
 

उनकी आँखें बंद हो आईं थी.
 
होंठ काँप रहे थे...
 
राजू के सिर के बालों को थोड़ा सख्ती से पकड़ लिया उन्होंने और उसके चेहरे का दबाव अपने चूचियों पर बढ़ाने लगी --- वो भी कहाँ रुकने वाला था --- अपने दोनों हाथों से उनकी चूचियों पर दबाव और बढ़ाया और मुँह को एकदम से क्लीवेज में घुसा कर पागलों की भांति चूमने लगा.
 

चाची भी कामातुर होने लगी; साड़ी में ही अपनी जांघ को राजू के जांघ से रगड़ने लगी. उसके बालों को पकड़ कर कुछ इस तरह से अपनी चूचियों पर दबाने लगी मानो उसके मुँह को भी अपने ब्लाउज में भर लेना चाहती हो!
 
छोड़ने के मूड में तो दोनों ही कतई नहीं थे पर मजबूरन छोड़ना पड़ा क्योंकि अचानक नीचे से चाचा का आवाज़ आने लगा,
 
“रेखा.. ओ रेखा... कहाँ हो..?!”
 
राजू को एक हल्का धक्का देते हुए रेखा कुछ बोलने वाली थी कि तभी उसकी अधखुली आँखें दरवाज़े की ओर गई और इसी के साथ ‘अईईईई’ से धीमे पर एक तेज़ आवाज़ से चीख उठी!
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#2
२) भरोसा और तृष्णा
 
राजू को चाची का ये व्यवहार कुछ समझ में नहीं आया.. अभी तो तेज़ सिसकारी ले कर राजू के साथ यौन क्रीड़ा में लिप्त हो रही थी और अभी अचानक एकदम से उसे एक ओर परे धकेल कर तेज़ कदमों से --- लगभग दौड़ते हुए बाहर क्यों निकल गई?! क्या उसी से कुछ गलती हो गई.... अगर ऐसा कुछ हुआ तो चाची उसे बताई क्यों नहीं? उनका बीच ये काम तो पिछले कई समय से ऐसे ही चल रहा है... पहले लाइन मारा करता था... काफ़ी समय तक लाइनबाजी करने के बाद द्विअर्थी बातें करने लगा... चाची को भी द्विअर्थी बातें बहुत पसंद है और इसमें वो बहुत माहिर भी है. कुछ समय बाद किसी न किसी बहाने से चाची के संवेदनशील अंगों को छूने का भी प्रयास करने लगा... और  छूते ही ऐसे करने लगता मानो गलती से हुआ हो और इस ओर राजू का ध्यान गया ही नहीं.
 
लेकिन आखिर चाची भी तो एक विवाहिता, खेली खिलाई औरत है. बहुत कम समय में ही उनको राजू के असल उद्देश्य का पता चल गया.... एक दिन जैसे ही राजू उनके बगल से गुजरते समय उनके गांड पर हाथ फेरा, वो तुरंत पलट कर राजू का हाथ पकड़ ली और लगभग खींचते हुए एक कमरे में ले गई और गुस्से से पूछी,
 
“क्या रे.. बहुत समय से देख रही हूँ.. तू जब तब किसी न किसी बहाने से मुझे छूता है.. वो भी अलग अलग अंगों पर.. आखिर बात क्या है? तुझे कुछ कहना है क्या? कुछ चाहिए?”
 
चाची का गुस्सा देख कर तो राजू का होश ही उड़ गया. हमेशा से ही राजू ने चाची को हँसते, खुश रहते, मजाक करते देखा है.. पर गुस्से वाला ऐसा रूप आज पहली बार देख था!
 
राजू को कुछ कहता न देख कर चाची पहले तो झुँझलाई --- फ़िर, थोड़ा शांत हुई.. राजू का दायाँ हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से बोली,
 
“एक बात बता... तेरे को बहुत पसंद हूँ क्या?”
 
चाची का गुस्से वाला रूप देख कर तो राजू को तो अब कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बोले क्या नहीं.. दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.
 
“बोल न.. तेरे को पसंद हूँ मैं?”   चाची फ़िर पूछी.
 
डर से तो राजू का हालत पहले ही ख़राब था.. फिर भी उसने रिस्क लेने का सोचा और डरते हुए ही हाँ में सिर हिलाया.
 
इस पर रेखा चाची मुस्करा दी..
 
प्यार से राजू के गाल पर हाथ रखते हुए बोली,
 
“तो फिर पहले क्यों नहीं बताया..?”
 
अब अचानक से गुस्से के जगह उनका प्यार देख कर राजू आश्चर्य में पड़ गया. सोचने लगा कि ये चक्कर है.. अभी गुस्सा अभी प्यार!
 
उससे कुछ बोला नहीं गया, बस एक फीका सा स्माइल दिया.
 
इस पर चाची हँसते हुए राजू को बाँहों में भर ली थी और राजू के माथे को चूमते हुए बोली थी,
 
“मेरा प्यारा शोना, घबरा मत, आज से चोरी छिपे ही सही पर तुझे जब मन करे, जहाँ छूने को मन करे; शौक से छूना.. मैं मना नहीं करुँगी और न ही बुरा मानूँगी.. बस ध्यान रहे कि हमें कोई देख न ले... नहीं तो फिर मैं कुछ नहीं करुँगी.. बचाऊँगी तो बिल्कुल नहीं.”
 
उस दिन उनके नर्म बाँहों में राजू को एक अलग ही सुकून मिला था.. चूचियों की नरमाहट का आनंद अलग से... उस रात हर आधे घंटे के बाद राजू ने पाँच बार हिलाया था.
 
खैर, राजू ने चुपचाप मुँह धोया.. नाश्ता किया और फिर कई तरह के कामों में व्यस्त रहा.
 
दोपहर को घर लौटा --- दरवाज़ा चाची ने ही खोला... देख कर केवल ज़रा सी मुस्कराई और अंदर चली गई.. राजू कुछ बोला नहीं.. चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गया और हाथ – मुँह धो कर बिस्तर पर लेट गया.
 
चाची की इस चुप्पी और ऐसे बर्ताव ने राजू के दिल को कहीं थोड़ी सी चोट ज़रूर पहुंचाई है.. चाची के बिना मन भी नहीं लग रहा था उसका घर में. बाहर तो यार दोस्तों के साथ समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता लेकिन घर में एक जवान भरी पूरी औरत हो और कम से कम उसके चूचियों का भी मज़ा नहीं मिले तो राजू जैसे लौंडे को बुरा तो लगता ही है.
 
मन ही मन निश्चय किया कि अगर वो किसी बात का बुरा मानी है तो उन को हर हाल में मनाना ही पड़ेगा.
 
उठ कर चाची के कमरे के पास पहुँचा.
 
देखा दरवाज़ा हल्का सा लगा हुआ है... हाथ लगा कर दरवाज़े को थोड़ा सा और खोल कर देखा की अंदर बिस्तर में चाची गुमसुम सी लेटी हुई है और किसी गहरे सोच में डूबी हुई सामने खुली खिड़की से दूर बाहर कहीं देख रही है.
 
पेट के बल लेटी होने के कारण आंचल कंधे पर से सरका हुआ है पर पीछे खड़े होने के कारण राजू को डीप बैक ब्लाउज में उनका गदराया माँसल पीठ ही केवल दिखा. साथ ही अभी एक और बात पे ध्यान गया कि चाची का पिछवाड़ा भी मस्त ऊपर की ओर उठा हुआ है.. मानो खुला निमन्त्रण दे रहा हो की ‘आ और मसल दे’.
 
 
खुद पर कण्ट्रोल रखते हुए राजू ने बाहर से चाची को आवाज़ दिया,
 
“चाची..? ओ चाची?!”
 
अंदर बिस्तर में एकाएक चौंक कर उठ बैठने वाली हरकत हुई...
 
“अ.. हाँ राजू.. क्या हुआ?”
 
“चाची.. क्या आप सो रही हैं?”
 
“नहीं बेटा... आ जाओ.”
 
पहले तो राजू ने सोचा की उन्हें ही बाहर बुला ले... फिर दिमाग में आया कि अंदर बिस्तर पर बैठ कर बात कर लेना ज़्यादा ठीक होगा. यही सोच कर वो अंदर घुस गया.
 
सिरहाने बने लकड़ी की बनी ऊँची बैकरेस्ट पर अपना पीठ टिका कर बैठ गई रेखा. अपने सामने के जगह को थोड़ा झाड़ कर बोली,
 
“आओ राजू, इधर बैठो.”
 
राजू जा कर उनके पैरों के पास बैठा.
 
आँचल उन्होंने ठीक से लिया नहीं इसलिए उनका ब्लाउज कप से ऊपर की ओर निकला दायाँ स्तन का ऊपरी हिस्सा और एक लंबी क्लीवेज राजू को साफ़ दिखने लगा. मन को समझाने का प्रयास किया की यार अभी मत देख.. पर जिस लड़के के दिमाग में सुबह शाम सिर्फ़ और सिर्फ़ चुदाई भरी रहती हो; उसका मन भला एक बार में कभी मानता है?
 
राजू का नज़र और ध्यान दोनों उसी जगह टिक गए. मुँह में पानी भर आया... जीभ अंदर ही लपलपा उठा.
 

रेखा राजू के आँखों को देखते ही समझ गई कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है... उसने तुरंत आंचल को ठीक करते हुए अपने सीने को अच्छे से छुपा ली. अब उसकी इस हरकत से भी राजू का दिमाग चक्कर खा गया. मन में अपने आप ही ये सवाल उठा की यार चाची को ये हो क्या गया है.. ऐसा व्यवहार क्यों?
 
अपनी उत्सुकता पर नियंत्रण न रख पाने के कारण बरबस ही बोल पड़ा,
 
“चाची... क्या हुआ है आपको..?”
 
“मुझे.. मुझे तो कुछ नहीं हुआ है.”
 
“तो फिर ऐसा क्यों कर रही हो?”
 
“क्या कैसा कर रही हूँ?”  बहुत भोली बनती हुई बोली रेखा.
 
“ऐसा बर्ताव क्यों कर रही हो?”
 
“मैं समझ नहीं रही बेटा... क्या कहना चाह रहे हो?”
 
लेकिन राजू समझ गया....
 
रेखा समझ तो सब रही है लेकिन राजू के मुँह से साफ़ साफ़ सुनना चाहती है. ज़रूर कोई दुविधा है जो ये घूमा फिरा कर उसके साथ शेयर करना चाहती है.
 
राजू अपनी आवाज़ में मायूसी और नम्रता ले कर बोला,
 
“आपने आज सुबह मुझे इस तरह अपने से अलग क्यों कर दिया? और जब तक घर में रहा तब तक आपने मुझसे ठीक से बात भी नहीं किया?”
 
“वो बस ऐसे ही.”
 
रेखा मुस्करा कर बोली... पर उनका कहने के ढंग से ये साफ़ था कि ये कोई बात छुपा रही है इसलिए राजू ने भी बात को ज़्यादा न घूमाकर मुद्दे पर आना चाहा.
 
“आपके अंदर कोई परिवर्तन आ रहा है क्या?”
 
“परिवर्तन?”
 
“हाँ..”
 
“नहीं तो.”
 
“कोई विचार?”
 
“नहीं.”
 
“तो फिर??”
 
इस बार सवाल करने के साथ साथ रेखा चाची की आँखों में ऐसे देखा मानो अब तो राजू को जवाब चाहिए ही चाहिए.. चाची भी शायद अब बात को टालना नहीं चाही इसलिए एक गहरी साँस लेते हुए बोली,
 
“पता नहीं राजू.. सुबह जब तेरे साथ कमरे में थी और चाचा ने बाहर से आवाज़ लगाया तब एकदम अचानक से मन में अपराधबोध सा आ गया. अपने आप ही सोचने लगी की ये मैं दिन ब दिन क्या कर रही हूँ. तू भतीजा है मेरा.. और मैं तेरी चाची.. मेरे लिए तू एक बेटे जैसा है... और इसलिए हमारा आपस का सम्बन्ध भी वैसा ही होना चाहिए. लेकिन... लेकिन... हम दोनों एक दूसरे के करीब ऐसे आते हैं जैसे हम चाची भतीजा न हुए, पति पत्नी हो गए. हम दोनों का एक दूसरे पर अधिकार है प... प.. पर... ऐसा.. इस तरह का अधिकार..?!  बस, इसी तरह के न जाने कैसे कैसे विचार आ रहे हैं सुबह से. अभी यही सोच रही थी कि क्या एक विवाहिता को ये सब करना शोभा देता है? क्या मैं एक विवाहित नारी की मर्यादाओं का ध्वंस नहीं कर रही...? और तो और... आज सुबह जब हम साथ थे उस समय छोटी भी आ गई थी...”
 
कहते कहते चाची रुआंसी सी हो गई.
 
अब राजू को सुबह वाली बात स्पष्ट समझ में आया की चाची क्यों उस तरह अचानक से चीख कर उसे यूँ धक्का दे कर चली गई थी.. अब तो राजू को भी बुरा लगा... अपनी चाची --- अपनी रेखा के लिए वाकई बुरा लगा.. पर तुरंत ही उसका चोदक्कड़ मन उसे दुत्कारने लगा,
 
“अबे चोदू.. ये सब क्या हो रहा है.. अरे भाई.. जल्दी बात को सम्भाल नहीं तो ये वाली पक्का आज और हमेशा के लिए तेरे हाथ से निकल जाएगी!! कुछ कर!”
 
तुरंत गला साफ़ करते हुए बोला,
 
“हम्म.. अच्छा एक बात बताओ चाची.. जब पहली बार हम दोनों के बीच ये सब शुरू हुआ था.. तब क्या ऐसे कोई विचार आए थे आपके मन में?”
 
“नहीं.”
 
“क्या एक बार के लिए भी आपको ऐसा लगा था कि आप जो कर रही हैं वो सब गलत है?”
 
“पता नहीं --- शायद नहीं!”
 
“शायद जैसे शब्द मत कहिए. सिर्फ़ हाँ या नहीं.”

“नहीं. नहीं लगा था.”
 
“क्या आपको वो सब अच्छा लगता था..? जब दोनों ही ऐसे काम में मगन रहते थे?”
 
“हाँ.”   रेखा तनिक शर्माते हुए बोली.
 
“जिन विचारों की आप बात कर रही हैं.. क्या ये सब आज ही आए? पहली बार?”
 
“हाँ!”
 
“हम्म.. तो देखा आपने?!...स्वयं ही विचार कीजिए --- कहीं कुछ गलत नहीं है --- सिर्फ़ और सिर्फ़ गलतफ़हमी हो गई थी आपको.”    राजू चहकते हुए बोला.
 
“मतलब?!!”  रेखा भौचक्की सी, असमंजस से राजू देखते हुए पूछी.
 
ओह्हो चाची.. देखो.. अगर ये सच में कोई बुरा काम होता तो आपको पहले दिन ही बुरा लग जाना चाहिए था.. या फिर मन में ही बार बार एक हुक सी लगनी चाहिए थी कि आप जो कर रही हैं वो कितना गलत या सही है. या, सबसे बड़ी बात --- आप की ओर से ऐसा कोई पहल होता ही नहीं. आप विवाहिता हैं और भारतीय नारी वाले संस्कार भी आप के अंदर हैं; और अगर आपको पहले ही मेरे साथ करने में बुरा नहीं लगा... तो इसका एक ही मतलब हुआ कि इसमें कुछ बुरा नहीं है... कुछ गलत नहीं है.”
 
“लेकिन बेटा...”
 
“देखो चाची.. ये जो आप अपने मन में ऐसे विचार आने दे रही हो न.. ये आपको चैन से जीने नहीं देगी. जीवन के हर पल, हर मोड़ पर कहीं न कहीं आपको हमेशा एक न एक ‘किन्तु परन्तु’ मिलेगा ही... तो क्या आप उस किन्तु परन्तु के चक्कर में जीना छोड़ दोगी?”
 
“नहीं.. बिल्कुल नहीं!”    रेखा पूरी दृढ़ता से बोली.
 
“तो फिर क्यों आप इतना सोचती हो... एक ही तो जीवन है चाची.. जी भर कर जी लो. अगला कोई जनम होगा की नहीं, पता नहीं.. अगर हुआ, तो कैसा जीवन मिलेगा क्या पता?? और हम जो कर रहे हैं.. आप बताइए.. हमेशा छुप कर और लिमिट में ही करते हैं की नहीं?? चाची, इस लाइफ में कुछ अलग करो. कोई बुराई नहीं है इसमें. दूसरों की तरह लूजर्स मत बनो. अरे भई, ख़ुद ही सोचो न, आप को जो अच्छा लग रहा है --- जो पसंद है --- वही तो आप कर रही हैं.. और वो भी घर में.. मतलब, घर की बात घर में ही रहेगी. ना आप बाहर किसी को बताएँगी, ना ही मैं किसी को बताने वाला हूँ. इस तरह से देखा जाए तो हम दोनों ही पूरी तरह से सेफ़ हैं. है न?”
 
राजू के इस बात ने रेखा को सोच में डाल दिया. करीब तीन मिनट तक कुछ नहीं बोली वो. बस कुछ सोचती रही. फिर एकाएक नज़रें राजू की ओर करके के प्यार से मुस्करा दी. राजू समझ गया ---  मिशन पूरा हुआ! चाची के मन से, दिलोदिमाग से उल्टी सीधी बातें निकल गई हैं. अब ये फिर से पूरी तरह से उसकी होने के लिए तैयार है.
 
राजू भी प्यार से मुस्कराया.. और आगे बढ़ कर उन्हें बाँहों में भर लिया.
 
क्षण भर रुक कर उन्होंने भी राजू बाँहों में भर लिया. ऐसे कस कर गले से लगाई मानो राजू अभी के अभी अपने अंदर समा लेना चाह रही हो.
 
धीरे से बोली,
 
“लेकिन, छुटकी ने आज.....”
 
रेखा की बात को बीच में काटते हुए राजू बोल पड़ा,
 
“वह तो छोटी बच्ची है --- बहुत छोटी. आप उसे आराम से संभाल सकती हो --- चाहे डर से .... या प्यार से.”
 
इतना कह कर उसने रेखा के गर्दन के किनारे हल्के से किस किया.
 
रेखा के देह से आती मदमस्त सुगंध ने उसे पागल बना रही थी... और उसने वैसा बनने में देरी भी नहीं किया. पागलों की तरह रेखा के गर्दन और दायीं कंधे को चूमने लगा --- बालों को सहलाने लगा --- रेखा भी धीरे धीरे मस्त होने लगी. राजू के चेहरे और गर्दन को चूमने लगी. कान के निचले हिस्से को अपने होंठों से दबाते हुए जीभ को हल्के से लगाने लगी.
 
वैसे लंड तो राजू का हमेशा मस्ती के ही मूड में रहता रहा है... रेखा को आलिंगन करते ही और भी टाइट हो गया था. राजू रेखा को चूमते हुए धीरे से कंधे पर से आंचल को अलग कर दिया.
 

आंचल के हटते ही रेखा राजू को और अधिक कस कर अपने बाँहों में जकड़ ली.. पर राजू का मन अब सिर्फ़ बाँहों में रहने का नहीं था.. वो तो सुबह से ही दूदू पीने के लिए लालायित था... इसलिए दो क्षण बाद ही रेखा को अपने से अलग कर के लिप किस करते हुए उसके भरे हुए नर्म कोमल चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलने लगा.
 
चूचियाँ हमेशा से ही राजू की कमज़ोरी रही है.
 
राजू का हाथ लगते ही रेखा ‘आह’ और ‘उन्न्ह्ह’ से कराहने लगी. उसकी उन्नत चूचियाँ राजू के स्पर्श से और भी अधिक मानो फूल रही थी.
 
लेकिन यहाँ राजू को मज़ा मिल भी रहा था और नहीं भी....
 
मज़ा इसलिए क्योंकि एक ब्याहता महिला की चूचियाँ हैं... मज़ा तो आएगा ही... और ज़्यादा मज़ा इसलिए नहीं आ रहा था क्योंकि खज़ाना एक के बाद एक; दो कपड़ों के नीचे हैं... ऊपर ब्लाउज, नीचे ब्रा !
 
चूचियों के नरमाहट ने राजू को लिप किस में अधिक देर तक रमने नहीं दिया....
 
होंठों को छोड़ राजू ने तुरंत ब्लाउज के पहले दो बटन खोला --- और ---  ऐसा करते ही दो इंच और ज्यादा निकल आए क्लीवेज में अपना मुँह घुसा दिया. ऐसा करते ही रेखा भी आनंद से दोहरी हो गई और उस के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने क्लीवेज में दबाने लगी ....  राजू की साँसें रुकने लगीं लेकिन मन में दृढ़ निश्चय था कि चाहे जो हो; अभी छोड़ने वाला नहीं... इसलिए अपने दोनों हाथों से रेखा की भरी चूचियों को दोनों ओर से दबाते हुए क्लीवेज में घुसे अपने मुँह पर दबाव बढ़ाने लगा.
 
 
इधर रेखा की भी हालत इतने में खराब होने लगी...  अनवरत मुँह ‘आह... आह...’ निकलना शुरू हो गई. वो अच्छे से समझ गई की अब अधिक देर तक ऐसे नहीं रह पाएगी --- इसलिए देर न करते हुए राजू को अच्छे से पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दी और खुद उस के ऊपर चढ़ गई... फिर पूरे चेहरे को किस करते हुए अपने चूचियों को राजू के मुँह पर रख दी और उसपर दबाव बढ़ाने लगी. राजू को भी अधिक समय लेना गवारा नहीं था इसलिए तुरंत ही दोनों हाथों से उनके दोनों पैरों के ऊपर से साड़ी को ऊपर उठाते हुए जांघ तक ले गया.
 
राजू का लंड बाबा अब तक पूरी सख्ती से खड़ा हो गया था और अपने गांड पे होती चुभन से रेखा को भी राजू के छोटे भाई के हालत का अंदाज़ा हो गया; तभी तो अपने गदराए पिछवाड़े को बरमूडा के अंदर तन कर खड़े उस के लंड पर दबा दबा के घूमाने लगी.. स्लो मोशन में....
 
अभी उन दोनों इससे आगे बढ़ते कि तभी दरवाज़े पर ज़ोरों से दस्तक हुई, साथ ही मीठी सी आवाज़ आई,
 
“मम्मी... मम्मी...”

 
छुटकी आ गई है..!
 
घर से थोड़ी ही दूर पर एक छोटे से घर में कई सारे छोटे बच्चों की नर्सरी की क्लास होती है. एक आंटी आती है इसे घर छोड़ने. अब ये आई तो आंटी भी ज़रूर आई ही होगी..
 
दस्तक सुनकर दोनों होश में आए --- राजू का तो मूड ऑफ हो गया और रेखा की शक्ल देख कर समझ गया की उनका भी वही हाल है.
 
दोनों बेहद अफ़सोस से एक दूजे को देखा और अलग हो कर अपने अपने कपड़े ठीक कर कमरे से निकल गए.... मन में असीम तृष्णा लिए --- आने वाले दिनों में आपस में और अधिक अन्तरंग होने का---!
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#3
(10-04-2021, 10:26 PM)Dark Soul Wrote: २) भरोसा और तृष्णा
 
राजू को चाची का ये व्यवहार कुछ समझ में नहीं आया.. अभी तो तेज़ सिसकारी ले कर राजू के साथ यौन क्रीड़ा में लिप्त हो रही थी और अभी अचानक एकदम से उसे एक ओर परे धकेल कर तेज़ कदमों से --- लगभग दौड़ते हुए बाहर क्यों निकल गई?! क्या उसी से कुछ गलती हो गई.... अगर ऐसा कुछ हुआ तो चाची उसे बताई क्यों नहीं? उनका बीच ये काम तो पिछले कई समय से ऐसे ही चल रहा है... पहले लाइन मारा करता था... काफ़ी समय तक लाइनबाजी करने के बाद द्विअर्थी बातें करने लगा... चाची को भी द्विअर्थी बातें बहुत पसंद है और इसमें वो बहुत माहिर भी है. कुछ समय बाद किसी न किसी बहाने से चाची के संवेदनशील अंगों को छूने का भी प्रयास करने लगा... और  छूते ही ऐसे करने लगता मानो गलती से हुआ हो और इस ओर राजू का ध्यान गया ही नहीं.
 
लेकिन आखिर चाची भी तो एक विवाहिता, खेली खिलाई औरत है. बहुत कम समय में ही उनको राजू के असल उद्देश्य का पता चल गया.... एक दिन जैसे ही राजू उनके बगल से गुजरते समय उनके गांड पर हाथ फेरा, वो तुरंत पलट कर राजू का हाथ पकड़ ली और लगभग खींचते हुए एक कमरे में ले गई और गुस्से से पूछी,
 
“क्या रे.. बहुत समय से देख रही हूँ.. तू जब तब किसी न किसी बहाने से मुझे छूता है.. वो भी अलग अलग अंगों पर.. आखिर बात क्या है? तुझे कुछ कहना है क्या? कुछ चाहिए?”
 
चाची का गुस्सा देख कर तो राजू का होश ही उड़ गया. हमेशा से ही राजू ने चाची को हँसते, खुश रहते, मजाक करते देखा है.. पर गुस्से वाला ऐसा रूप आज पहली बार देख था!
 
राजू को कुछ कहता न देख कर चाची पहले तो झुँझलाई --- फ़िर, थोड़ा शांत हुई.. राजू का दायाँ हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से बोली,
 
“एक बात बता... तेरे को बहुत पसंद हूँ क्या?”
 
चाची का गुस्से वाला रूप देख कर तो राजू को तो अब कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बोले क्या नहीं.. दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.
 
“बोल न.. तेरे को पसंद हूँ मैं?”   चाची फ़िर पूछी.
 
डर से तो राजू का हालत पहले ही ख़राब था.. फिर भी उसने रिस्क लेने का सोचा और डरते हुए ही हाँ में सिर हिलाया.
 
इस पर रेखा चाची मुस्करा दी..
 
प्यार से राजू के गाल पर हाथ रखते हुए बोली,
 
“तो फिर पहले क्यों नहीं बताया..?”
 
अब अचानक से गुस्से के जगह उनका प्यार देख कर राजू आश्चर्य में पड़ गया. सोचने लगा कि ये चक्कर है.. अभी गुस्सा अभी प्यार!
 
उससे कुछ बोला नहीं गया, बस एक फीका सा स्माइल दिया.
 
इस पर चाची हँसते हुए राजू को बाँहों में भर ली थी और राजू के माथे को चूमते हुए बोली थी,
 
“मेरा प्यारा शोना, घबरा मत, आज से चोरी छिपे ही सही पर तुझे जब मन करे, जहाँ छूने को मन करे; शौक से छूना.. मैं मना नहीं करुँगी और न ही बुरा मानूँगी.. बस ध्यान रहे कि हमें कोई देख न ले... नहीं तो फिर मैं कुछ नहीं करुँगी.. बचाऊँगी तो बिल्कुल नहीं.”
 
उस दिन उनके नर्म बाँहों में राजू को एक अलग ही सुकून मिला था.. चूचियों की नरमाहट का आनंद अलग से... उस रात हर आधे घंटे के बाद राजू ने पाँच बार हिलाया था.
 
खैर, राजू ने चुपचाप मुँह धोया.. नाश्ता किया और फिर कई तरह के कामों में व्यस्त रहा.
 
दोपहर को घर लौटा --- दरवाज़ा चाची ने ही खोला... देख कर केवल ज़रा सी मुस्कराई और अंदर चली गई.. राजू कुछ बोला नहीं.. चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गया और हाथ – मुँह धो कर बिस्तर पर लेट गया.
 
चाची की इस चुप्पी और ऐसे बर्ताव ने राजू के दिल को कहीं थोड़ी सी चोट ज़रूर पहुंचाई है.. चाची के बिना मन भी नहीं लग रहा था उसका घर में. बाहर तो यार दोस्तों के साथ समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता लेकिन घर में एक जवान भरी पूरी औरत हो और कम से कम उसके चूचियों का भी मज़ा नहीं मिले तो राजू जैसे लौंडे को बुरा तो लगता ही है.
 
मन ही मन निश्चय किया कि अगर वो किसी बात का बुरा मानी है तो उन को हर हाल में मनाना ही पड़ेगा.
 
उठ कर चाची के कमरे के पास पहुँचा.
 
देखा दरवाज़ा हल्का सा लगा हुआ है... हाथ लगा कर दरवाज़े को थोड़ा सा और खोल कर देखा की अंदर बिस्तर में चाची गुमसुम सी लेटी हुई है और किसी गहरे सोच में डूबी हुई सामने खुली खिड़की से दूर बाहर कहीं देख रही है.
 
पेट के बल लेटी होने के कारण आंचल कंधे पर से सरका हुआ है पर पीछे खड़े होने के कारण राजू को डीप बैक ब्लाउज में उनका गदराया माँसल पीठ ही केवल दिखा. साथ ही अभी एक और बात पे ध्यान गया कि चाची का पिछवाड़ा भी मस्त ऊपर की ओर उठा हुआ है.. मानो खुला निमन्त्रण दे रहा हो की ‘आ और मसल दे’.
 
 
खुद पर कण्ट्रोल रखते हुए राजू ने बाहर से चाची को आवाज़ दिया,
 
“चाची..? ओ चाची?!”
 
अंदर बिस्तर में एकाएक चौंक कर उठ बैठने वाली हरकत हुई...
 
“अ.. हाँ राजू.. क्या हुआ?”
 
“चाची.. क्या आप सो रही हैं?”
 
“नहीं बेटा... आ जाओ.”
 
पहले तो राजू ने सोचा की उन्हें ही बाहर बुला ले... फिर दिमाग में आया कि अंदर बिस्तर पर बैठ कर बात कर लेना ज़्यादा ठीक होगा. यही सोच कर वो अंदर घुस गया.
 
सिरहाने बने लकड़ी की बनी ऊँची बैकरेस्ट पर अपना पीठ टिका कर बैठ गई रेखा. अपने सामने के जगह को थोड़ा झाड़ कर बोली,
 
“आओ राजू, इधर बैठो.”
 
राजू जा कर उनके पैरों के पास बैठा.
 
आँचल उन्होंने ठीक से लिया नहीं इसलिए उनका ब्लाउज कप से ऊपर की ओर निकला दायाँ स्तन का ऊपरी हिस्सा और एक लंबी क्लीवेज राजू को साफ़ दिखने लगा. मन को समझाने का प्रयास किया की यार अभी मत देख.. पर जिस लड़के के दिमाग में सुबह शाम सिर्फ़ और सिर्फ़ चुदाई भरी रहती हो; उसका मन भला एक बार में कभी मानता है?
 
राजू का नज़र और ध्यान दोनों उसी जगह टिक गए. मुँह में पानी भर आया... जीभ अंदर ही लपलपा उठा.
 

रेखा राजू के आँखों को देखते ही समझ गई कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है... उसने तुरंत आंचल को ठीक करते हुए अपने सीने को अच्छे से छुपा ली. अब उसकी इस हरकत से भी राजू का दिमाग चक्कर खा गया. मन में अपने आप ही ये सवाल उठा की यार चाची को ये हो क्या गया है.. ऐसा व्यवहार क्यों?
 
अपनी उत्सुकता पर नियंत्रण न रख पाने के कारण बरबस ही बोल पड़ा,
 
“चाची... क्या हुआ है आपको..?”
 
“मुझे.. मुझे तो कुछ नहीं हुआ है.”
 
“तो फिर ऐसा क्यों कर रही हो?”
 
“क्या कैसा कर रही हूँ?”  बहुत भोली बनती हुई बोली रेखा.
 
“ऐसा बर्ताव क्यों कर रही हो?”
 
“मैं समझ नहीं रही बेटा... क्या कहना चाह रहे हो?”
 
लेकिन राजू समझ गया....
 
रेखा समझ तो सब रही है लेकिन राजू के मुँह से साफ़ साफ़ सुनना चाहती है. ज़रूर कोई दुविधा है जो ये घूमा फिरा कर उसके साथ शेयर करना चाहती है.
 
राजू अपनी आवाज़ में मायूसी और नम्रता ले कर बोला,
 
“आपने आज सुबह मुझे इस तरह अपने से अलग क्यों कर दिया? और जब तक घर में रहा तब तक आपने मुझसे ठीक से बात भी नहीं किया?”
 
“वो बस ऐसे ही.”
 
रेखा मुस्करा कर बोली... पर उनका कहने के ढंग से ये साफ़ था कि ये कोई बात छुपा रही है इसलिए राजू ने भी बात को ज़्यादा न घूमाकर मुद्दे पर आना चाहा.
 
“आपके अंदर कोई परिवर्तन आ रहा है क्या?”
 
“परिवर्तन?”
 
“हाँ..”
 
“नहीं तो.”
 
“कोई विचार?”
 
“नहीं.”
 
“तो फिर??”
 
इस बार सवाल करने के साथ साथ रेखा चाची की आँखों में ऐसे देखा मानो अब तो राजू को जवाब चाहिए ही चाहिए.. चाची भी शायद अब बात को टालना नहीं चाही इसलिए एक गहरी साँस लेते हुए बोली,
 
“पता नहीं राजू.. सुबह जब तेरे साथ कमरे में थी और चाचा ने बाहर से आवाज़ लगाया तब एकदम अचानक से मन में अपराधबोध सा आ गया. अपने आप ही सोचने लगी की ये मैं दिन ब दिन क्या कर रही हूँ. तू भतीजा है मेरा.. और मैं तेरी चाची.. मेरे लिए तू एक बेटे जैसा है... और इसलिए हमारा आपस का सम्बन्ध भी वैसा ही होना चाहिए. लेकिन... लेकिन... हम दोनों एक दूसरे के करीब ऐसे आते हैं जैसे हम चाची भतीजा न हुए, पति पत्नी हो गए. हम दोनों का एक दूसरे पर अधिकार है प... प.. पर... ऐसा.. इस तरह का अधिकार..?!  बस, इसी तरह के न जाने कैसे कैसे विचार आ रहे हैं सुबह से. अभी यही सोच रही थी कि क्या एक विवाहिता को ये सब करना शोभा देता है? क्या मैं एक विवाहित नारी की मर्यादाओं का ध्वंस नहीं कर रही...? और तो और... आज सुबह जब हम साथ थे उस समय छोटी भी आ गई थी...”
 
कहते कहते चाची रुआंसी सी हो गई.
 
अब राजू को सुबह वाली बात स्पष्ट समझ में आया की चाची क्यों उस तरह अचानक से चीख कर उसे यूँ धक्का दे कर चली गई थी.. अब तो राजू को भी बुरा लगा... अपनी चाची --- अपनी रेखा के लिए वाकई बुरा लगा.. पर तुरंत ही उसका चोदक्कड़ मन उसे दुत्कारने लगा,
 
“अबे चोदू.. ये सब क्या हो रहा है.. अरे भाई.. जल्दी बात को सम्भाल नहीं तो ये वाली पक्का आज और हमेशा के लिए तेरे हाथ से निकल जाएगी!! कुछ कर!”
 
तुरंत गला साफ़ करते हुए बोला,
 
“हम्म.. अच्छा एक बात बताओ चाची.. जब पहली बार हम दोनों के बीच ये सब शुरू हुआ था.. तब क्या ऐसे कोई विचार आए थे आपके मन में?”
 
“नहीं.”
 
“क्या एक बार के लिए भी आपको ऐसा लगा था कि आप जो कर रही हैं वो सब गलत है?”
 
“पता नहीं --- शायद नहीं!”
 
“शायद जैसे शब्द मत कहिए. सिर्फ़ हाँ या नहीं.”

“नहीं. नहीं लगा था.”
 
“क्या आपको वो सब अच्छा लगता था..? जब दोनों ही ऐसे काम में मगन रहते थे?”
 
“हाँ.”   रेखा तनिक शर्माते हुए बोली.
 
“जिन विचारों की आप बात कर रही हैं.. क्या ये सब आज ही आए? पहली बार?”
 
“हाँ!”
 
“हम्म.. तो देखा आपने?!...स्वयं ही विचार कीजिए --- कहीं कुछ गलत नहीं है --- सिर्फ़ और सिर्फ़ गलतफ़हमी हो गई थी आपको.”    राजू चहकते हुए बोला.
 
“मतलब?!!”  रेखा भौचक्की सी, असमंजस से राजू देखते हुए पूछी.
 
ओह्हो चाची.. देखो.. अगर ये सच में कोई बुरा काम होता तो आपको पहले दिन ही बुरा लग जाना चाहिए था.. या फिर मन में ही बार बार एक हुक सी लगनी चाहिए थी कि आप जो कर रही हैं वो कितना गलत या सही है. या, सबसे बड़ी बात --- आप की ओर से ऐसा कोई पहल होता ही नहीं. आप विवाहिता हैं और भारतीय नारी वाले संस्कार भी आप के अंदर हैं; और अगर आपको पहले ही मेरे साथ करने में बुरा नहीं लगा... तो इसका एक ही मतलब हुआ कि इसमें कुछ बुरा नहीं है... कुछ गलत नहीं है.”
 
“लेकिन बेटा...”
 
“देखो चाची.. ये जो आप अपने मन में ऐसे विचार आने दे रही हो न.. ये आपको चैन से जीने नहीं देगी. जीवन के हर पल, हर मोड़ पर कहीं न कहीं आपको हमेशा एक न एक ‘किन्तु परन्तु’ मिलेगा ही... तो क्या आप उस किन्तु परन्तु के चक्कर में जीना छोड़ दोगी?”
 
“नहीं.. बिल्कुल नहीं!”    रेखा पूरी दृढ़ता से बोली.
 
“तो फिर क्यों आप इतना सोचती हो... एक ही तो जीवन है चाची.. जी भर कर जी लो. अगला कोई जनम होगा की नहीं, पता नहीं.. अगर हुआ, तो कैसा जीवन मिलेगा क्या पता?? और हम जो कर रहे हैं.. आप बताइए.. हमेशा छुप कर और लिमिट में ही करते हैं की नहीं?? चाची, इस लाइफ में कुछ अलग करो. कोई बुराई नहीं है इसमें. दूसरों की तरह लूजर्स मत बनो. अरे भई, ख़ुद ही सोचो न, आप को जो अच्छा लग रहा है --- जो पसंद है --- वही तो आप कर रही हैं.. और वो भी घर में.. मतलब, घर की बात घर में ही रहेगी. ना आप बाहर किसी को बताएँगी, ना ही मैं किसी को बताने वाला हूँ. इस तरह से देखा जाए तो हम दोनों ही पूरी तरह से सेफ़ हैं. है न?”
 
राजू के इस बात ने रेखा को सोच में डाल दिया. करीब तीन मिनट तक कुछ नहीं बोली वो. बस कुछ सोचती रही. फिर एकाएक नज़रें राजू की ओर करके के प्यार से मुस्करा दी. राजू समझ गया ---  मिशन पूरा हुआ! चाची के मन से, दिलोदिमाग से उल्टी सीधी बातें निकल गई हैं. अब ये फिर से पूरी तरह से उसकी होने के लिए तैयार है.
 
राजू भी प्यार से मुस्कराया.. और आगे बढ़ कर उन्हें बाँहों में भर लिया.
 
क्षण भर रुक कर उन्होंने भी राजू बाँहों में भर लिया. ऐसे कस कर गले से लगाई मानो राजू अभी के अभी अपने अंदर समा लेना चाह रही हो.
 
धीरे से बोली,
 
“लेकिन, छुटकी ने आज.....”
 
रेखा की बात को बीच में काटते हुए राजू बोल पड़ा,
 
“वह तो छोटी बच्ची है --- बहुत छोटी. आप उसे आराम से संभाल सकती हो --- चाहे डर से .... या प्यार से.”
 
इतना कह कर उसने रेखा के गर्दन के किनारे हल्के से किस किया.
 
रेखा के देह से आती मदमस्त सुगंध ने उसे पागल बना रही थी... और उसने वैसा बनने में देरी भी नहीं किया. पागलों की तरह रेखा के गर्दन और दायीं कंधे को चूमने लगा --- बालों को सहलाने लगा --- रेखा भी धीरे धीरे मस्त होने लगी. राजू के चेहरे और गर्दन को चूमने लगी. कान के निचले हिस्से को अपने होंठों से दबाते हुए जीभ को हल्के से लगाने लगी.
 
वैसे लंड तो राजू का हमेशा मस्ती के ही मूड में रहता रहा है... रेखा को आलिंगन करते ही और भी टाइट हो गया था. राजू रेखा को चूमते हुए धीरे से कंधे पर से आंचल को अलग कर दिया.
 

आंचल के हटते ही रेखा राजू को और अधिक कस कर अपने बाँहों में जकड़ ली.. पर राजू का मन अब सिर्फ़ बाँहों में रहने का नहीं था.. वो तो सुबह से ही दूदू पीने के लिए लालायित था... इसलिए दो क्षण बाद ही रेखा को अपने से अलग कर के लिप किस करते हुए उसके भरे हुए नर्म कोमल चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलने लगा.
 
चूचियाँ हमेशा से ही राजू की कमज़ोरी रही है.
 
राजू का हाथ लगते ही रेखा ‘आह’ और ‘उन्न्ह्ह’ से कराहने लगी. उसकी उन्नत चूचियाँ राजू के स्पर्श से और भी अधिक मानो फूल रही थी.
 
लेकिन यहाँ राजू को मज़ा मिल भी रहा था और नहीं भी....
 
मज़ा इसलिए क्योंकि एक ब्याहता महिला की चूचियाँ हैं... मज़ा तो आएगा ही... और ज़्यादा मज़ा इसलिए नहीं आ रहा था क्योंकि खज़ाना एक के बाद एक; दो कपड़ों के नीचे हैं... ऊपर ब्लाउज, नीचे ब्रा !
 
चूचियों के नरमाहट ने राजू को लिप किस में अधिक देर तक रमने नहीं दिया....
 
होंठों को छोड़ राजू ने तुरंत ब्लाउज के पहले दो बटन खोला --- और ---  ऐसा करते ही दो इंच और ज्यादा निकल आए क्लीवेज में अपना मुँह घुसा दिया. ऐसा करते ही रेखा भी आनंद से दोहरी हो गई और उस के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने क्लीवेज में दबाने लगी ....  राजू की साँसें रुकने लगीं लेकिन मन में दृढ़ निश्चय था कि चाहे जो हो; अभी छोड़ने वाला नहीं... इसलिए अपने दोनों हाथों से रेखा की भरी चूचियों को दोनों ओर से दबाते हुए क्लीवेज में घुसे अपने मुँह पर दबाव बढ़ाने लगा.
 
 
इधर रेखा की भी हालत इतने में खराब होने लगी...  अनवरत मुँह ‘आह... आह...’ निकलना शुरू हो गई. वो अच्छे से समझ गई की अब अधिक देर तक ऐसे नहीं रह पाएगी --- इसलिए देर न करते हुए राजू को अच्छे से पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दी और खुद उस के ऊपर चढ़ गई... फिर पूरे चेहरे को किस करते हुए अपने चूचियों को राजू के मुँह पर रख दी और उसपर दबाव बढ़ाने लगी. राजू को भी अधिक समय लेना गवारा नहीं था इसलिए तुरंत ही दोनों हाथों से उनके दोनों पैरों के ऊपर से साड़ी को ऊपर उठाते हुए जांघ तक ले गया.
 
राजू का लंड बाबा अब तक पूरी सख्ती से खड़ा हो गया था और अपने गांड पे होती चुभन से रेखा को भी राजू के छोटे भाई के हालत का अंदाज़ा हो गया; तभी तो अपने गदराए पिछवाड़े को बरमूडा के अंदर तन कर खड़े उस के लंड पर दबा दबा के घूमाने लगी.. स्लो मोशन में....
 
अभी उन दोनों इससे आगे बढ़ते कि तभी दरवाज़े पर ज़ोरों से दस्तक हुई, साथ ही मीठी सी आवाज़ आई,
 
“मम्मी... मम्मी...”

 
छुटकी आ गई है..!
 
घर से थोड़ी ही दूर पर एक छोटे से घर में कई सारे छोटे बच्चों की नर्सरी की क्लास होती है. एक आंटी आती है इसे घर छोड़ने. अब ये आई तो आंटी भी ज़रूर आई ही होगी..
 
दस्तक सुनकर दोनों होश में आए --- राजू का तो मूड ऑफ हो गया और रेखा की शक्ल देख कर समझ गया की उनका भी वही हाल है.
 
दोनों बेहद अफ़सोस से एक दूजे को देखा और अलग हो कर अपने अपने कपड़े ठीक कर कमरे से निकल गए.... मन में असीम तृष्णा लिए --- आने वाले दिनों में आपस में और अधिक अन्तरंग होने का---!

GOOD
नशीली आँखें
वो प्यार क्या जो लफ्ज़ो में बयाँ हो 
प्यार वो है जो आँखों में नज़र आए!!
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#4
बहुत गर्म अपडेट अगर मां बेटे की हो तो वो भी डालना
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#5
mom son incest dalo
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