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कंचन
#1
कंचन 
































Heart Heart Heart Heart Heart Heart Heart Heart Heart Heart
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
बचपन से ही बहुत सुंदर थी. मेरा एक छोटा भाई है, विकी. विकी मुझ से दो साल छोटा है. विकी भी लंबा तगड़ा जवान है. मेरी छातियाँ भर आई थी. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. 18 साल तक पहुँचते पहुँचते तो मैं मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली में और बाज़ार में लड़के आवाज़ें कसने लगे थे. ब्रा की ज़रूरत तो पहले से ही पद गयी थी. 18साल में साइज़ 34 इंच हो गया था. अब तो टाँगों के बीच में बाल बहुत ही घने और लंबे हो गये थे. हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन मेरे नितंब काफ़ी भारी और चौड़े हो गये थे. मुझे अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को मेरी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – मेरे नितंब और मेरी उभरी हुई छातियाँ. स्कूल में मेरी बहुत सी सहेलियों के चक्कर थे, लेकिन मैं कभी इस लाफदे में नहीं पड़ी. स्कूल से ही मेरे पीछे बहुत से लड़के दीवाने थे. लड़कों को और भी ज़्यादा तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. स्कूल में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही अलोड थी. क्लास में बैठ कर मैं अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती थी और लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन कराती. केयी लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने मेरी टाँगों के बीच में झाँक कर मेरी पॅंटी की झलक पाने की नाकामयाब कोशिश करते.

19 साल की उम्र में तो मेरा बदन पूरी तरह से भर गया था. अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना मुश्किल होता जा रहा था. छातियों का साइज़ 36 इंच हो गया था.मेरे नितुंबों को संभालना मेरी पॅंटी के बस में नहीं रहा. और तो और टाँगों के बीच में बाल इतने घने और लंबे हो गये कि दोनो तरफ से पॅंटी के बाहर निकलने लगे थे. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी. मेरा छोटा भाई विकी भी जवान हो रहा था, लेकिन आप जानते हैं लड़कियाँ जल्दी जवान हो जाती हैं. हम दोनो एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम दोनो भाई बेहन में बहुत प्यार था. कभी कभी मुझे महसूस होता कि विकी भी मुझे अक्सर और लड़कों की तरह देखता है.

लेकिन मैं यह विचार मन से निकाल देती. लड़कों की ओर मेरा भी आकर्षण बढ़ता जा रहा था, लेकिन मैं लड़कों को तडपा कर ही खुश हो जाती थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
जब से विकी के पॅंट का उभार देखा तब से मेरे दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए. मुझे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. मेरे दिमाग़ में एक प्लान आया. मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस में जाती कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और मैं उसके लंड के दर्शन कर सकूँ. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन मैने भी हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन मैं कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब मैं विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी पीठ पे लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो मैं बेहोश होते होते बची. मैने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! जैसा की मैने बताया विकी पीठ के बल लेटा हुआ था, लेकिन उसके लंड का सुपरा बिस्तेर पे टीका हुआ था! बाप रे बाप! मैने अपने आप को नोचा, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी. अब तक तो मैं लंड एक्सपर्ट हो चुकी थी. नीलम और मैने अब तक ना जाने कितने छ्होटे छ्होटे पेशाब करते भद्दे से लंड देखे थे. मैं मन ही मन सोचने लगी कि घर में इतना लंबा मोटा लंड मोज़ूद है और मैं बेकार में ही दूसरों का लंड देखने में अपना समय बर्बाद कर रही थी. मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था. अचानक विकी ने हरकत की, और मैं जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से तो मेरी नींद हराम हो गयी. रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. मैने सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.

मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी. मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंड रहे थे. एक बार हम सब कानपुर से एक लड़के को देख कर वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सिर्फ़ दो ही सीट मिली. वो भी अलग अलग कॉमपार्टमेंट में. पापा मम्मी एक कॉमपार्टमेंट में चले गये और मैं और विकी दूसरे में. मैने सोचा इससे अच्छा मोका कभी नहीं मिलेगा. रात को तो हम दोनो को एक ही सीट पर सोना पड़ेगा. मैं प्लान बनाने लगी की किस प्रकार इस सुनेहरे मोके का पूरा फ़ायदा उठाया जाए. एसी 2 टीएर में साइड वाली सीट थी. विकी मेरी सामने वाली सीट पर बैठा था. मैने लहंगा पहना हुआ था. आज तक काई बार विकी को पॅंटी के दर्शन करा चुकी थी और एक बार तो उसके मुँह पे भी पॅंटी से धकि अपनी चूत रगड़ चुकी थी. क्यों ना इस बार अपनी नंगी चूत के भी दर्शन करा दूं. विकी को इस प्रकार तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मुझे मालूम था विकी मुझे चोदने के ख्वाब देखता है. मैने जब से उसका लंड देखा था तभी से ठान लिया था कि शादी के बाद विकी से ज़रूर चुदवाउन्गि. शादी से पहले मैं अपना कुँवारापन नहीं खोना चाहती थी. इसके इलावा किसी भी कुँवारी चूत के लिए विकी का मूसल बहुत ख़तरनाक था. मेरी कुँवारी चूत बुरी तरह से फॅट सकती थी, और अगर नहीं भी फटती तो इतनी चौरी हो जाती की मेरे होने वाले पति को पता लग जाता की मैं कुँवारी नहीं हूँ. पापा के मोटे लॉड ने मम्मी की चूत का क्या हाल कर रखा था वो तो मैं खुद ही देख चुकी थी. मैं पेशाब करने के बहाने बाथरूम गयी और अपनी पॅंटी उतार ली. अब मेरी चूत लहँगे के नीचे बिल्कुल नंगी थी. सामने की सीट पर विकी बैठा हुआ था. मैं अपनी सीट पर उसके सामने आ कर बैठ गयी, टाँगें विकी की सीट पर रख लीं, और अपनी सीट का परदा खींच लिया ताकि बाकी लोग मेरी हरकतें ना देख सकें. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नॉवेल पढ़ने का बहाना करने लगी. विकी पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था. उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की विकी को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे विकी को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा था कि रात को सोने से पहले ही उसे अपनी चूत के दर्शन कारवँगी, क्योंकि सोना तो हमने एक ही सीट पर था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
की का उतावलापन साफ नज़र आ रहा था. मुझ से ना रहा गया. बेचारे पे बहुत तरस आ रहा था. मैने विकी की सीट से टाँगें उठा कर अपनी सीट पर कर लीं. टाँगें इस प्रकार से चौड़ी करते हुए उठाई की गोरी जांघों के बीच में विकी को मेरी झांतों से भरी हुई चूत के एक सेकेंड के लिए दर्शन हो गये. पॅंट का उभार बता रहा था मेरी चूत का असर. अब तो विकी की हालत और भी खराब थी. बेचारा मेरी आँख बचा कर अपने लंड को पॅंट के ऊपर से ही रगड़ रहा था. कुच्छ देर के बाद मैं टाँगें मोड़ के उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपना सिर घुटनों पर टीका के सोने का बहाना करने लगी. लहँगे के नीचे के हिस्से को मैने अपनी मूडी हुई टाँगों में फसाया हुआ था और सामने के हिस्से को घुटनों तक ऊपर खींच रखा था. अब अगर ल़हेंगे का नीचे का या पिच्छला हिस्सा मेरी मूडी हुई टाँगों से निकल कर नीचे गिर जाता तो ल़हेंगे के अंडर से मूडी हुई टाँगों के बीच से मेरी नंगी चूत विकी को बड़ी आसानी से नज़र आ जाती. एक सेकेंड की झलक पा कर ही विकी बहाल था. काफ़ी देर इंतज़ार कराने के बाद मैने अपने घुटनों पे सिर रख कर सोने का बहाना करते हुए टाँगों के बीच फँसा हुआ लहँगे का निचला हिस्सा नीचे गिरने दिया. अब तो मेरी नंगी चूत विकी की आँखों के सामने थी. विकी ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देख रहा था. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में लंबी काली झांतों के अंडर से झँकती हुई मेरी डबल रोटी के समान फूली चूत को देख कर अच्छों अच्छों का ईमान डोल सकता था. विकी तो फिर बच्चा ही था. इस मुद्रा में मेरी चूत के उभरे हुए होंठ घनी झांतों के बीच से झाँक रहे थे. उभरे हुए तो बहुत थे लेकिन उतने चौड़े और खुले हुए नहीं जितने मम्मी की चूत के थे. मम्मी की चूत को पापा का मोटा लॉडा बीस साल से जो चोद रहा था. करीब 5 मिनिट तक मैने जी भर के विकी को अपनी चूत के दर्शन कराए.विकी की तो जैसे आँखे बाहर गिरने वाली थी. अचानक मैने सिर घुटनों से ऊपर उठाया और पूछा,

“ विकी कौन सा स्टेशन आने वाला है.?”

विकी एकदम हरबदा गया और बोला,

“ पता नहीं दीदी. मैं तो सो रहा था.”

“ अरे तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है ? तू ठीक तो है?” मैने विकी के माथे पर हाथ रखते हुए पूछा. पसीना आने का कारण तो मुझे अच्छी तरह मालूम था. ऐसा ही पसीना मुझे भी उस दिन आया था जिस दिन मैने विकी का मोटा लॉडा देखा था. विकी के पॅंट का उभार भी च्छूप नहीं रहा था.

“ अच्छा चल खाना खा लेते हैं.” हम दोनो ने खाना खाया और फिर सोने की तैयारी करने लगे.

“ विकी जा कपड़े बदल ले. सीट तो एक ही है मेरे साथ ही लेट जाना.”

“ दीदी आपके साथ कैसे लेटुँगा?”

“ क्यों मैं इतनी मोटी हूँ जो तू मेरे साथ नहीं लेट सकता.?”

“ नहीं नहीं दीदी एक बार आपको मोटी कह कर भुगत चुक्का हूँ फिर कह दिया तो ना जाने क्या हो जाएगा. अब आप जवान हो गयी हो. आपके साथ सोने में शरम आती है.”

“ ओ ! तो तुझे मेरे साथ सोने में शर्म आ रही है. ठीक है सारी रात खड़ा रह मैं तो चली सोने.” ये कह कर मैं सीट पर लेट गयी. बेचारा काफ़ी देर तक बैठा रहा फिर उठ के बाथरूम गया. जब वापस आया तो उसने लूँगी पहनी हुई थी. मैं मन ही मन मनाने लगी कि काश विकी ने अंडरवेर भी उतारा हुआ हो. विकी फिर आ कर बैठ गया. थोरी देर बाद मैने कहा,

“ जब तेरा शरमाना ख़त्म हो जाए तो लेट जाना. लाइट बंद कर्दे और मुझे सोने दे.”

विकी ने लाइट बंद करदी. मैं विकी की तरफ पीठ करके लेटी थी. उसके लेटने की जगह छोड़ रखी थी. ट्रेन में हल्की हल्की लाइट थी. सोने का बहाना करते हुए मैने लहंगा घुटनों से ऊपर खींच लिया था. ट्रेन की हल्की हल्की लाइट में मेरी गोरी गोरी जंघें चमक रही थी. करीब एक घंटे तक विकी ऐसे ही बैठा रहा. शायद मेरी टाँगों को घूर रहा था. थोरी देर में मुझे धीरे से हिला के फुसफुसाया,

“ दीदी ! दीदी!. सो गयी क्या?

मैं गहरी नींद में सोने का बहाना करती रही.

“ दीदी ! दीदी !” इस बार थोड़ा और ज़ोर से हिलाता हुआ बोला. लेकिन मैने कोई जबाब नहीं दिया. अब उसे विश्वास हो गया था कि मैं गहरी नींद में हूँ. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे कोई मेरा लहंगा ऊपर की ओर सरका रहा हो. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा. मैं विकी का इरादा अच्छी तरह समझ रही थी. बहुत ही धीरे से विकी ने मेरा लहंगा इतना ऊपर सरका दिया की मेरी पूरी टाँगें नंगी हो गयी; सिर्फ़ नितंब ही ढके हुए थे. बाप रे ! थोरी ही देर में ये तो लहंगा मेरे नितंबों के ऊपर सरका देगा. मैने विकी से इस बात की आशा नहीं की थी. मैने तो पॅंटी भी नहीं पहनी थी. विकी भी इस बात को जानता था.

“ दीदी ! दीदी!” विकी एक बार फिर फुसफुसाया. मैं सोने का बहाना किए पड़ी रही. समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ. इतने में विकी ने लहंगा बहुत ही धीरे से मेरे नितंबों के ऊपर सरका दिया. हे भगवान ! अब तो मेरे विशाल नितंब बिल्कुल नंगे थे. शरम के मारे मेरा बुरा हाल था, लेकिन क्या करती. जिन नितंबों ने पूरे शहर के लड़कों पर कयामत ढा रखी थी वो आज विकी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे थे. काफ़ी देर तक मेरे नितंबों को निहारने के बाद विकी धीरे से मेरे पीछे लेट गया. थोरी देर दूर ही लेटा रहा फिर आहिस्ता से सरक के मेरे साथ चिपक गया. मेरे बदन में तो मानो बिजली का करेंट लग गया हो. विकी का तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से चिपक गया. मुझे उसके लौदे की गर्मी महसूस होने लगी. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ विकी का लॉडा मेरे चूतरो से रगड़ रहा था. लेकिन उसकी लूँगी मेरे नंगे चूतरो और लॉड के बीच में थी. मेरी चूत तो बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे की विकी के लॉड की गर्मी बढ़ गयी हो. हाई राम ! विकी ने लॉडा लूँगी से बाहर निकाल लिया था ! अब उसने अपने आप को मेरे पीछे इस प्रकार अड्जस्ट किया की उसका लॉडा मेरे चूतरो की दरार में रगड़ने लगा. वो बिना हीले दुले लेटा हुआ था. ट्रेन के हिचकॉलों के कारण लॉडा मेरे चूतरो की दरार में आगे पीछे हो रहा था. कभी हल्के से मेरी गांद के छेद से रगड़ जाता तो कभी मेरी चूत के छेद तक पहुँच जाता. मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैं सोचने लगी की अगर लॉडा गांद के छेद से रगड़ खा कर भी इतना मज़ा दे सकता है तो गांद में घुस कर तो बहुत ही मज़ा देगा. लेकिन विकी के लॉड के साइज़ को याद करके मैं सिहर उठी. जो लॉडा चूत को फाड़ सकता है वो गांद का क्या हाल करेगा? अब तो मेरी चूत का रस निकल कर मेरी झांतों को गीला कर रहा था. इतने में ट्रेन ने ज़ोर से ब्रेक लगाया और विकी का लॉडा मेरी चूत के छेद से जा टकराया. ऊवई मा कितना अच्छा लग रहा था! मन कर रहा था की चूतरो को थोड़ा पीछे की ओर उचका कर लंड को चूत में घुसा लूँ. अचानक विकी ने मुझे गहरी नींद में समझ कर थोडा ज़ोर से धक्का लगा दिया और उसका लॉडा मेरी बुरी तरह गीली चूत में घुसते घुसते बचा. मैं घबरा गयी. अभी मैं विकी के लंड के लिए तैयार नहीं थी. अंडर घुस गया तो अनर्थ हो जाएगा. मैने नींद टूट जाने का बहाना करते हुए एक अंगड़ाई ली . विकी ने झट से अपना लॉडा हटा लिया और लहंगा मेरे चूतरो पर डाल दिया. मैं उठाते हुए बोली,“ विकी हट बाथरूम जाने दे.”

“ दीदी, बहुत गहरी नींद में थी. ठीक से सोई कि नहीं. मैं बैठ जाता हूँ. दोनो एक सीट पे सो नहीं पाएँगे.”

“ मैं तो बहुत गहरी नींद में थी. थक गयी थी ना. तू तो लगता है सोया ही नहीं.” ये कह के मैं बाथरूम चली गयी. इतनी देर तक उत्तेजना के कारण प्रेशर बहुत ज़्यादा हो गया था. पेशाब करके राहत मिली. छूटरो पर और चूतरो के बीच में हाथ लगाया तो कुच्छ चिपचिपा सा लगा. शायद विकी का वीर्य था. वापस सीट पर आई तो विकी बोला “ दीदी आप सो जाओ मैं किसी दूसरी सीट पे चला जाता हूँ.”

“ नहीं मैं तो सो चुकी हूँ तू लेट जा. मुझे लेटना होगा तो मैं तेरे पीछे लेट जाउन्गि.”

“ ठीक है दीदी. मैं तो लेट रहा हूँ.” विकी लेट गया. पीठ मेरी ओर थी. मैं काफ़ी देर तक बैठी रही और फिर विकी के पीछे सत के लेट गयी. पता नहीं कब आँख लग गयी. जब आँख खुली तो सवेरा हो चुका था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
झे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.

“ बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?”

“ हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने.”

“ दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें.”

“तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी.”

“ वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?”

“ चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया.”

“ पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?”

“ हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता.”

“ यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का.”“ छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी.”

“ वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था.”

“ यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए.”

“ विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. ”

मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी.

इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई,

“ तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया.” इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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