30-04-2019, 08:03 AM
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कंचन
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कंचन
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30-04-2019, 08:03 AM
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कंचन
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30-04-2019, 08:04 AM
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बचपन से ही बहुत सुंदर थी. मेरा एक छोटा भाई है, विकी. विकी मुझ से दो साल छोटा है. विकी भी लंबा तगड़ा जवान है. मेरी छातियाँ भर आई थी. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. 18 साल तक पहुँचते पहुँचते तो मैं मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली में और बाज़ार में लड़के आवाज़ें कसने लगे थे. ब्रा की ज़रूरत तो पहले से ही पद गयी थी. 18साल में साइज़ 34 इंच हो गया था. अब तो टाँगों के बीच में बाल बहुत ही घने और लंबे हो गये थे. हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन मेरे नितंब काफ़ी भारी और चौड़े हो गये थे. मुझे अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को मेरी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – मेरे नितंब और मेरी उभरी हुई छातियाँ. कॉलेज में मेरी बहुत सी सहेलियों के चक्कर थे, लेकिन मैं कभी इस लाफदे में नहीं पड़ी. कॉलेज से ही मेरे पीछे बहुत से लड़के दीवाने थे. लड़कों को और भी ज़्यादा तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. कॉलेज में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही अलोड थी. क्लास में बैठ कर मैं अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती थी और लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन कराती. केयी लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने मेरी टाँगों के बीच में झाँक कर मेरी पॅंटी की झलक पाने की नाकामयाब कोशिश करते.
19 साल की उम्र में तो मेरा बदन पूरी तरह से भर गया था. अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना मुश्किल होता जा रहा था. छातियों का साइज़ 36 इंच हो गया था.मेरे नितुंबों को संभालना मेरी पॅंटी के बस में नहीं रहा. और तो और टाँगों के बीच में बाल इतने घने और लंबे हो गये कि दोनो तरफ से पॅंटी के बाहर निकलने लगे थे. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी. मेरा छोटा भाई विकी भी जवान हो रहा था, लेकिन आप जानते हैं लड़कियाँ जल्दी जवान हो जाती हैं. हम दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. हम दोनो भाई बेहन में बहुत प्यार था. कभी कभी मुझे महसूस होता कि विकी भी मुझे अक्सर और लड़कों की तरह देखता है. लेकिन मैं यह विचार मन से निकाल देती. लड़कों की ओर मेरा भी आकर्षण बढ़ता जा रहा था, लेकिन मैं लड़कों को तडपा कर ही खुश हो जाती थी. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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30-04-2019, 08:10 AM
जब से विकी के पॅंट का उभार देखा तब से मेरे दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए. मुझे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. मेरे दिमाग़ में एक प्लान आया. मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस में जाती कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और मैं उसके लंड के दर्शन कर सकूँ. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन मैने भी हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन मैं कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब मैं विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी पीठ पे लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो मैं बेहोश होते होते बची. मैने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! जैसा की मैने बताया विकी पीठ के बल लेटा हुआ था, लेकिन उसके लंड का सुपरा बिस्तेर पे टीका हुआ था! बाप रे बाप! मैने अपने आप को नोचा, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी. अब तक तो मैं लंड एक्सपर्ट हो चुकी थी. नीलम और मैने अब तक ना जाने कितने छ्होटे छ्होटे पेशाब करते भद्दे से लंड देखे थे. मैं मन ही मन सोचने लगी कि घर में इतना लंबा मोटा लंड मोज़ूद है और मैं बेकार में ही दूसरों का लंड देखने में अपना समय बर्बाद कर रही थी. मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था. अचानक विकी ने हरकत की, और मैं जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से तो मेरी नींद हराम हो गयी. रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. मैने सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.
मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी. मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंड रहे थे. एक बार हम सब कानपुर से एक लड़के को देख कर वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सिर्फ़ दो ही सीट मिली. वो भी अलग अलग कॉमपार्टमेंट में. पापा मम्मी एक कॉमपार्टमेंट में चले गये और मैं और विकी दूसरे में. मैने सोचा इससे अच्छा मोका कभी नहीं मिलेगा. रात को तो हम दोनो को एक ही सीट पर सोना पड़ेगा. मैं प्लान बनाने लगी की किस प्रकार इस सुनेहरे मोके का पूरा फ़ायदा उठाया जाए. एसी 2 टीएर में साइड वाली सीट थी. विकी मेरी सामने वाली सीट पर बैठा था. मैने लहंगा पहना हुआ था. आज तक काई बार विकी को पॅंटी के दर्शन करा चुकी थी और एक बार तो उसके मुँह पे भी पॅंटी से धकि अपनी चूत रगड़ चुकी थी. क्यों ना इस बार अपनी नंगी चूत के भी दर्शन करा दूं. विकी को इस प्रकार तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मुझे मालूम था विकी मुझे चोदने के ख्वाब देखता है. मैने जब से उसका लंड देखा था तभी से ठान लिया था कि शादी के बाद विकी से ज़रूर चुदवाउन्गि. शादी से पहले मैं अपना कुँवारापन नहीं खोना चाहती थी. इसके इलावा किसी भी कुँवारी चूत के लिए विकी का मूसल बहुत ख़तरनाक था. मेरी कुँवारी चूत बुरी तरह से फॅट सकती थी, और अगर नहीं भी फटती तो इतनी चौरी हो जाती की मेरे होने वाले पति को पता लग जाता की मैं कुँवारी नहीं हूँ. पापा के मोटे लॉड ने मम्मी की चूत का क्या हाल कर रखा था वो तो मैं खुद ही देख चुकी थी. मैं पेशाब करने के बहाने बाथरूम गयी और अपनी पॅंटी उतार ली. अब मेरी चूत लहँगे के नीचे बिल्कुल नंगी थी. सामने की सीट पर विकी बैठा हुआ था. मैं अपनी सीट पर उसके सामने आ कर बैठ गयी, टाँगें विकी की सीट पर रख लीं, और अपनी सीट का परदा खींच लिया ताकि बाकी लोग मेरी हरकतें ना देख सकें. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नॉवेल पढ़ने का बहाना करने लगी. विकी पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था. उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की विकी को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे विकी को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा था कि रात को सोने से पहले ही उसे अपनी चूत के दर्शन कारवँगी, क्योंकि सोना तो हमने एक ही सीट पर था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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30-04-2019, 08:11 AM
की का उतावलापन साफ नज़र आ रहा था. मुझ से ना रहा गया. बेचारे पे बहुत तरस आ रहा था. मैने विकी की सीट से टाँगें उठा कर अपनी सीट पर कर लीं. टाँगें इस प्रकार से चौड़ी करते हुए उठाई की गोरी जांघों के बीच में विकी को मेरी झांतों से भरी हुई चूत के एक सेकेंड के लिए दर्शन हो गये. पॅंट का उभार बता रहा था मेरी चूत का असर. अब तो विकी की हालत और भी खराब थी. बेचारा मेरी आँख बचा कर अपने लंड को पॅंट के ऊपर से ही रगड़ रहा था. कुच्छ देर के बाद मैं टाँगें मोड़ के उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपना सिर घुटनों पर टीका के सोने का बहाना करने लगी. लहँगे के नीचे के हिस्से को मैने अपनी मूडी हुई टाँगों में फसाया हुआ था और सामने के हिस्से को घुटनों तक ऊपर खींच रखा था. अब अगर ल़हेंगे का नीचे का या पिच्छला हिस्सा मेरी मूडी हुई टाँगों से निकल कर नीचे गिर जाता तो ल़हेंगे के अंडर से मूडी हुई टाँगों के बीच से मेरी नंगी चूत विकी को बड़ी आसानी से नज़र आ जाती. एक सेकेंड की झलक पा कर ही विकी बहाल था. काफ़ी देर इंतज़ार कराने के बाद मैने अपने घुटनों पे सिर रख कर सोने का बहाना करते हुए टाँगों के बीच फँसा हुआ लहँगे का निचला हिस्सा नीचे गिरने दिया. अब तो मेरी नंगी चूत विकी की आँखों के सामने थी. विकी ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देख रहा था. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में लंबी काली झांतों के अंडर से झँकती हुई मेरी डबल रोटी के समान फूली चूत को देख कर अच्छों अच्छों का ईमान डोल सकता था. विकी तो फिर बच्चा ही था. इस मुद्रा में मेरी चूत के उभरे हुए होंठ घनी झांतों के बीच से झाँक रहे थे. उभरे हुए तो बहुत थे लेकिन उतने चौड़े और खुले हुए नहीं जितने मम्मी की चूत के थे. मम्मी की चूत को पापा का मोटा लॉडा बीस साल से जो चोद रहा था. करीब 5 मिनिट तक मैने जी भर के विकी को अपनी चूत के दर्शन कराए.विकी की तो जैसे आँखे बाहर गिरने वाली थी. अचानक मैने सिर घुटनों से ऊपर उठाया और पूछा,
“ विकी कौन सा स्टेशन आने वाला है.?” विकी एकदम हरबदा गया और बोला, “ पता नहीं दीदी. मैं तो सो रहा था.” “ अरे तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है ? तू ठीक तो है?” मैने विकी के माथे पर हाथ रखते हुए पूछा. पसीना आने का कारण तो मुझे अच्छी तरह मालूम था. ऐसा ही पसीना मुझे भी उस दिन आया था जिस दिन मैने विकी का मोटा लॉडा देखा था. विकी के पॅंट का उभार भी च्छूप नहीं रहा था. “ अच्छा चल खाना खा लेते हैं.” हम दोनो ने खाना खाया और फिर सोने की तैयारी करने लगे. “ विकी जा कपड़े बदल ले. सीट तो एक ही है मेरे साथ ही लेट जाना.” “ दीदी आपके साथ कैसे लेटुँगा?” “ क्यों मैं इतनी मोटी हूँ जो तू मेरे साथ नहीं लेट सकता.?” “ नहीं नहीं दीदी एक बार आपको मोटी कह कर भुगत चुक्का हूँ फिर कह दिया तो ना जाने क्या हो जाएगा. अब आप जवान हो गयी हो. आपके साथ सोने में शरम आती है.” “ ओ ! तो तुझे मेरे साथ सोने में शर्म आ रही है. ठीक है सारी रात खड़ा रह मैं तो चली सोने.” ये कह कर मैं सीट पर लेट गयी. बेचारा काफ़ी देर तक बैठा रहा फिर उठ के बाथरूम गया. जब वापस आया तो उसने लूँगी पहनी हुई थी. मैं मन ही मन मनाने लगी कि काश विकी ने अंडरवेर भी उतारा हुआ हो. विकी फिर आ कर बैठ गया. थोरी देर बाद मैने कहा, “ जब तेरा शरमाना ख़त्म हो जाए तो लेट जाना. लाइट बंद कर्दे और मुझे सोने दे.” विकी ने लाइट बंद करदी. मैं विकी की तरफ पीठ करके लेटी थी. उसके लेटने की जगह छोड़ रखी थी. ट्रेन में हल्की हल्की लाइट थी. सोने का बहाना करते हुए मैने लहंगा घुटनों से ऊपर खींच लिया था. ट्रेन की हल्की हल्की लाइट में मेरी गोरी गोरी जंघें चमक रही थी. करीब एक घंटे तक विकी ऐसे ही बैठा रहा. शायद मेरी टाँगों को घूर रहा था. थोरी देर में मुझे धीरे से हिला के फुसफुसाया, “ दीदी ! दीदी!. सो गयी क्या? मैं गहरी नींद में सोने का बहाना करती रही. “ दीदी ! दीदी !” इस बार थोड़ा और ज़ोर से हिलाता हुआ बोला. लेकिन मैने कोई जबाब नहीं दिया. अब उसे विश्वास हो गया था कि मैं गहरी नींद में हूँ. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे कोई मेरा लहंगा ऊपर की ओर सरका रहा हो. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा. मैं विकी का इरादा अच्छी तरह समझ रही थी. बहुत ही धीरे से विकी ने मेरा लहंगा इतना ऊपर सरका दिया की मेरी पूरी टाँगें नंगी हो गयी; सिर्फ़ नितंब ही ढके हुए थे. बाप रे ! थोरी ही देर में ये तो लहंगा मेरे नितंबों के ऊपर सरका देगा. मैने विकी से इस बात की आशा नहीं की थी. मैने तो पॅंटी भी नहीं पहनी थी. विकी भी इस बात को जानता था. “ दीदी ! दीदी!” विकी एक बार फिर फुसफुसाया. मैं सोने का बहाना किए पड़ी रही. समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ. इतने में विकी ने लहंगा बहुत ही धीरे से मेरे नितंबों के ऊपर सरका दिया. हे भगवान ! अब तो मेरे विशाल नितंब बिल्कुल नंगे थे. शरम के मारे मेरा बुरा हाल था, लेकिन क्या करती. जिन नितंबों ने पूरे शहर के लड़कों पर कयामत ढा रखी थी वो आज विकी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे थे. काफ़ी देर तक मेरे नितंबों को निहारने के बाद विकी धीरे से मेरे पीछे लेट गया. थोरी देर दूर ही लेटा रहा फिर आहिस्ता से सरक के मेरे साथ चिपक गया. मेरे बदन में तो मानो बिजली का करेंट लग गया हो. विकी का तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से चिपक गया. मुझे उसके लौदे की गर्मी महसूस होने लगी. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ विकी का लॉडा मेरे चूतरो से रगड़ रहा था. लेकिन उसकी लूँगी मेरे नंगे चूतरो और लॉड के बीच में थी. मेरी चूत तो बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे की विकी के लॉड की गर्मी बढ़ गयी हो. हाई राम ! विकी ने लॉडा लूँगी से बाहर निकाल लिया था ! अब उसने अपने आप को मेरे पीछे इस प्रकार अड्जस्ट किया की उसका लॉडा मेरे चूतरो की दरार में रगड़ने लगा. वो बिना हीले दुले लेटा हुआ था. ट्रेन के हिचकॉलों के कारण लॉडा मेरे चूतरो की दरार में आगे पीछे हो रहा था. कभी हल्के से मेरी गांद के छेद से रगड़ जाता तो कभी मेरी चूत के छेद तक पहुँच जाता. मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैं सोचने लगी की अगर लॉडा गांद के छेद से रगड़ खा कर भी इतना मज़ा दे सकता है तो गांद में घुस कर तो बहुत ही मज़ा देगा. लेकिन विकी के लॉड के साइज़ को याद करके मैं सिहर उठी. जो लॉडा चूत को फाड़ सकता है वो गांद का क्या हाल करेगा? अब तो मेरी चूत का रस निकल कर मेरी झांतों को गीला कर रहा था. इतने में ट्रेन ने ज़ोर से ब्रेक लगाया और विकी का लॉडा मेरी चूत के छेद से जा टकराया. ऊवई मा कितना अच्छा लग रहा था! मन कर रहा था की चूतरो को थोड़ा पीछे की ओर उचका कर लंड को चूत में घुसा लूँ. अचानक विकी ने मुझे गहरी नींद में समझ कर थोडा ज़ोर से धक्का लगा दिया और उसका लॉडा मेरी बुरी तरह गीली चूत में घुसते घुसते बचा. मैं घबरा गयी. अभी मैं विकी के लंड के लिए तैयार नहीं थी. अंडर घुस गया तो अनर्थ हो जाएगा. मैने नींद टूट जाने का बहाना करते हुए एक अंगड़ाई ली . विकी ने झट से अपना लॉडा हटा लिया और लहंगा मेरे चूतरो पर डाल दिया. मैं उठाते हुए बोली,“ विकी हट बाथरूम जाने दे.” “ दीदी, बहुत गहरी नींद में थी. ठीक से सोई कि नहीं. मैं बैठ जाता हूँ. दोनो एक सीट पे सो नहीं पाएँगे.” “ मैं तो बहुत गहरी नींद में थी. थक गयी थी ना. तू तो लगता है सोया ही नहीं.” ये कह के मैं बाथरूम चली गयी. इतनी देर तक उत्तेजना के कारण प्रेशर बहुत ज़्यादा हो गया था. पेशाब करके राहत मिली. छूटरो पर और चूतरो के बीच में हाथ लगाया तो कुच्छ चिपचिपा सा लगा. शायद विकी का वीर्य था. वापस सीट पर आई तो विकी बोला “ दीदी आप सो जाओ मैं किसी दूसरी सीट पे चला जाता हूँ.” “ नहीं मैं तो सो चुकी हूँ तू लेट जा. मुझे लेटना होगा तो मैं तेरे पीछे लेट जाउन्गि.” “ ठीक है दीदी. मैं तो लेट रहा हूँ.” विकी लेट गया. पीठ मेरी ओर थी. मैं काफ़ी देर तक बैठी रही और फिर विकी के पीछे सत के लेट गयी. पता नहीं कब आँख लग गयी. जब आँख खुली तो सवेरा हो चुका था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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30-04-2019, 08:12 AM
झे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.
“ बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?” “ हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने.” “ दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें.” “तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी.” “ वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?” “ चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया.” “ पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?” “ हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता.” “ यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का.”“ छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी.” “ वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था.” “ यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए.” “ विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. ” मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी. इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई, “ तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया.” इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 01:50 PM
गया.
“ हाआआआअ……….. बेशरम ! तूने अंडरवेर भी नहीं पहना.” मेरी आँखों के सामने विकी का मोटा किसी मंदिर के घंटे के माफिक झूलता हुआ लंड था. करीब करीब उसके घुटनों तक पहुँच रहा था. विकी का मारे शरम के बुरा हाल था. अपने हाथों से लंड को च्छुपाने की कोशिश करने लगा. लेकिन आदमी का लंड हो तो च्छूपे, ये तो घोड़े के लंड से भी बड़ा लग रहा था. बेचारा आधे लंड को ही च्छूपा पाया. मेरी चूत पे तो चीतियाँ रेंगने लगीं. हाई राम ! क्या लॉडा है. मुझे भी पसीना आ गया था. अपनी घबराहट च्छूपाते हुए बोली, “ कम से कम अंडरवेर तो पहन लिया कर, नालयक!.” ओर मैने टवल दुबारा उसके ऊपर फेंक दिया. विकी जल्दी से टवल लपट कर भागा. मैं अपने प्लान की कामयाबी पे बहुत खुश थी, लेकिन जी भर के उसका लॉडा अब भी नहीं देख पाई. ये तो तभी मुमकिन था जब विकी सो रहा हो. अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. अगले दिन मैं सवेरे चार बजे उठ कर विकी के कमरे में गयी. विकी गहरी नींद में सो रहा था. उसकी लूँगी जांघों तक ऊपर चढ़ि हुई थी. विकी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी टाँगें फैली हुई थी. मैं दबे पावं विकी के बेड की ओर बढ़ी और बहुत ही धीरे से लूँगी को उसकी कमर के ऊपर सरका दिया. सामने का नज़ारा देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. पहली बार जब उसका लॉडा देखा था तो इतनी घबराई हुई थी कि ठीक से देख भी नहीं पाई थी. दूसरी बार जब टवल खींचा था तब भी बहुत थोरी देर ही देख पाई, लेकिन अब ना तो कोई जल्दी थी ओर ना ही कोई डर. इतनी नज़दीक से देखने को मिल रहा था. सिकुड़ी हुई हालुत में भी इतना लंबा था की पीठ पे लेटे होने के बावजूद भी लंड का सूपड़ा बिस्तेर पर टीका हुआ था. दो बड़े बड़े बॉल्स भी बिस्तेर पर टीके हुए थे. इतना मोटा था कि मेरे एक हाथ में तो नहीं आता. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लंबा मोटा, काला नाग आराम कर रहा हो. मन कर रहा था की सहला दूं और मुँह में डाल के चूस लूँ, लेकिन क्या करती, मजबूर थी. चूत बुरी तरह से रस छ्चोड़ रही थी और पॅंटी पूरी गीली हो गयी थी. अब तो मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि एक दिन इस खूबसूरत लॉड का स्वाद मेरी चूत ज़रूर लेगी. मैं काफ़ी देर उसकी चारपाई के पास बैठी उस काले नाग को निहारती रही. फिर हिम्मत कर के मैने उसके पूरे लॉड को हल्के से चूमा और मोटे सुपरे को जीभ से चाट लिया. मुझे डर था की कहीं विकी की नींद ना खुल जाए. मन मार के मैं अपने कमरे में चली गयी. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 01:52 PM
सुहागरात
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जिस लड़के को देखने हम कानपुर गये थे उसके साथ मेरी शादी पक्की हो गयी. एक महीने के अंडर ही शादी करना चाहते थे. आअख़िर वो दिन भी आ गया जब मेरी डॉली उठने वाली थी. धूम धाम से शादी हुई. आख़िर वो रात भी आ गयी जिसका हर लड़की को इंतज़ार रहता है. सुहाग रात को मैं खूब सजी हुई थी. मेर गोरा बदन चंदन सा महक रहा था. दिल में एक अजीब सा डर था. मैं शादी का जोड़ा पहने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी. तभी दरवाज़ा खुला और मेरे पति अंडर आए. मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी. हाई राम, अब क्या होगा. मुझे तो बहुत शर्म आएगी. बहुत दर्द होगा क्या. क्या मेरा बदन मेरे पति को पसंद आएगा. कहीं पूरे कपड़े तो नहीं उतार देंगे. इस तरह के ख़याल मेरे दिमाग़ में आने लगे. मेरे पति पलंग पर मेरे पास बैठ गये और मेरा घूँघट उठा के बोले,
“ कंचन तुम तो बहुत ही सुन्दर लग रही हो.” मैं सिर नीचे किए बैठी रही. “ कुच्छ बोलो ना मेरी जान. अब तो तुम मेरी बीवी हो. और आज की रात तो तुम्हारा ये खूबसूरत बदन भी मेरा हो जाएगा.” मैं बोलती तो क्या बोलती. उन्होने मेरे मुँह को हाथों में ले कर मेरे होंठों को चूम लिया. “ ऊओफ़! क्या रसीले होंठ हैं. जिस दिन से तुम्हें देखा है उसी दिन से तुम्हें पाने के सपने देख रहा हूँ. मैने तो अपनी मा से कह दिया था कि शादी करूँगा तो सिर्फ़ इसी लड़की से.” “ ऐसा क्या देखा आपने मुझमे?” मैने शरमाते हुए पूछा. “ हाई , क्या नहीं देखा. इतना खूबसूरत मासूम चेहरा. बरी बरी आँखें. लंबे काले बाल. वो कातिलाना मुस्कान. तराशा हुआ बदन. जितनी तारीफ़ करूँ उतनी कम है.” “ आप तो बिकुल शायरों की तरह बोल रहे हैं. सभी लड़कियाँ मेरे जैसी ही होती हैं.” “ नहीं मेरी जान सभी लड़कियाँ तुम्हारे जैसी नहीं होती. क्या सभी के पास इतनी बड़ी चूचियाँ होती हैं?” वो मेरी चूचिओ पर हाथ फिराते हुए बोले. मैं मर्द के स्पर्श से सिहर उठी. “ छ्चोड़िए ना, ये क्या कर रहे हैं.?” “ कुच्छ भी तो नहीं कर रहा. बस देख रहा हूँ कि क्या ये चूचियाँ दूसरी लड़कियो जैसी ही हैं” वो मेरी चूचिओ को दोनो हाथों से मसल रहे थे. फिर उन्होने मेरे ब्लाउस का हुक खोल कर मेरा ब्लाउस उतार दिया. अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी. मुझे बाहों में भर के वो मेरे होंठों को चूसने लगे और मेरी नंगी पीठ सहलाने लगे. अचानक मेरे ब्रा का हुक भी खुल गया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ आज़ाद हो गयी. “ है कंचन क्या ग़ज़ब की चुचियाँ हैं.” काफ़ी देर चूचाईओं से खेलने के बाद उन्होने मेरी सारी को उतरना शुरू कर दिया. मैं घबरा गयी. “ ये, ये क्या कर रहे हैं प्लीज़ सारी मत उतारिये.” वो मुझे चूमते हुए बोले, “ मेरी जान आज तो हमारी सुहाग रात है. आज भी सारी नहीं उतरोगी तो कब उतारोगी? और बिना सारी उतारे हमारा मिलन कैसे होगा? शरमाना कैसा ? अब तो ये खूबसूरत बदन मेरा है. लड़की से औरत नहीं बनना चाहती हो.?” मेरी सारी उतर चुकी थी और मैं सिर्फ़ पेटिकोट में थी. “ लेकिन आप क्या करना चाहते हैं? ऊऊओई मा!” उनका एक हाथ पेटिकोट के ऊपर से मेरी चूत सहलाने लगा. मेरी चूत को मुट्ठी में भरते हुए बोले, “ तुम्हें औरत बनाना चाहता हूँ.” ये कह कर उन्होने मेरे पेटिकोट का नारा खींच दिया. अब तो मेरे बदन पे सिर्फ़ एक पॅंटी बची थी. मुझे अपने बाहों में ले कर मेरे नितंबों को सहलाते हुए मेरी पॅंटी भी उतार दी. अब तो मैं बिल्कुल नंगी थी. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल था. जांघों के बीच में चूत को च्छुपाने की कोशिश कर रही थी. “ बाप रे कंचन, ये झांटें हैं या जंगल.मेरा अंदाज़ा सही था. तुम्हें पहली बार देख के ही समझ गया था कि तुम्हारी टाँगों के बीच में बहुत बाल होंगे. लेकिन इतने लंबे और घने होंगे ये तो कभी सोचा भी नहीं था.” “ लाइट बंद कर दीजिए प्लीज़.” “ क्यों मेरी जान. इस खूबसूरत जवानी को देखने दो ना.” उन्हने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगे हो गये. उनका तना हुआ लंड देख कर मेरी साँस रुक गयी. क्या मोटा और लंबा लंड था. पहली बार मर्द का खड़ा हुआ लंड इतने पास से देखा था. उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रख दिया. “ देखो मेरी जान ये ही तुम्हें औरत बनाएगा. 8 इंच का है. छ्होटा तो नहीं है?” “ जी, ये तो बहुत बड़ा है” मैं घबराते हुए बोली. “ घबराव नहीं , एक कच्ची कली को फूल बनाने के लिए मोटे तगड़े लॉड की ज़रूरत होती है. सब ठीक हो जाएगा. जब ये लंड तुम्हारी इस सेक्सी चूत में जाएगा तो तुम्हे बहुत मज़ा आएगा.” “ छ्ची कैसी गंदी बातें करते हैं?” “ इसमे गंदी बात क्या है? इसको लॉडा ना कहूँ और तुम्हारे टाँगों के बीच के चीज़ को चूत ना कहूँ तो और क्या कहूँ ?. पहली बार चुदवा रही हो. तीन चार बार चुदवाने के बाद तुम्हारी शरम भी दूर हो जाएगी. आओ बिस्तेर पर लेट जाओ” उन्होने मुझे बिस्तेर पे चित लिटा दिया. मेरी टाँगों के बीच में बैठ कर उन्होने मेरी टाँगों को चौड़ा कर दिया. अब तो मेरी चूत बिल्कुल नंगी हो गयी. “ ऊओफ़ कंचन! क्या फूली हुई चूत है तुम्हारी. अब तो तुम्हारे इस जंगल में मंगल होने वाला है.” उन्होने मेरी टाँगें मोड़ के घुटने मेरे सीने से लगा दिए. इस मुद्रा में तो चूत की दोनो फाँकें बिल्कुल खुल गयी थी और दोनो फांकों के बीच में से चूत के गुलाबी होंठ झाँक रहे थे. वो अब मेरी फैली हुई टाँगों के बीच में मेरी चूत को और यहाँ तक की गांद के छेद को भी आसानी से और खूब अच्छी तरह से देख सकते थे. घनी झांतों को चूत पर से हटाते हुए काफ़ी देर तक मेरी जवानी को आँखों से चोदते रहे. शरम के मारे मैं पागल हुई जा रही थी. मैने दोनो हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. किसी अजनबी के सामने इस प्रकार से चूत फैला के लेट्ना तो दूर आज तक नंगी भी नहीं हुई थी. मैं मारे शरम के पानी पानी हुई जा रही थी. इतने में उन्होने अपने तने हुए लंड का सुपरा मेरी चूत के खुले हुए होंठों के बीच छेद पे टीका दिया. मैं सिहर उठी और कस के आँखें बंद कर लीं. उन्होने हल्का सा धक्का लगा के लंड के सुपरे को मेरी चूत के होंठों के बीच फँसाने की कोशिश की. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 01:53 PM
27
“ एयेए….ह. धीरे प्लीज़.” मैं इतना ज़्यादा शर्मा गयी थी कि मेरी चूत भी ठीक से गीली नहीं थी. उन्होने दो तीन बार फिर अपना लंड चूत में घुसेरने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे. लेकिन उन्होने भी पूरी तैयारी कर रखी थी. पास में ही तैल का डब्बा पड़ा हुआ था. उन्होने अपना लॉडा तैल के डब्बे में डूबा दिया. अब अपने टेल में सने हुए लॉड को एक बार फिर मेरी चूत पे रख के ज़ोर का धक्का लगा दिया. “ आआआअ…………….ईईईईईईई. ऊऊऊ….फ़.ह. ऊ..ओह. बहुत दर्द हो रहा है.” उनका लॉडा मेरी चूत के छेद को चौड़ा करता हुआ 2 इंच अंडर घुस चुक्का था. आज ज़िंदगी में पहली बार मेरी चूत का छेद इतना चौड़ा हुआ था. “ बस मेरी रानी, थोड़ा सा और सह लो फिर बहुत मज़ा आएगा.” ये कहते हुए उन्होने लॉडा बाहर खीचा और फिर से एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया. “ ऊऊओिईई माआआआ………..! मर गयी………मैं. ईइसस्स्स्स्स्सस्स…….. आआआआआआ…ऊऊऊऊहह. प्ली…….से, छ्चोड़ दीजिए. और नहीं सहा जा रहा.” उनका मोटा लॉडा इस धक्के के साथ शायद 4 इंच अंडर जा चुक्का था. “ अच्छा ठीक है अब कुच्छ नहीं करूँगा बस!” वो बिना कुच्छ किए मेरे होंठों का रस चूसने लगे और चूचिओ को मसल्ने लगे. जब कुछ राहत मिली और मेरा करहाना बंद हुआ तो उन्होने धीरे से लंड को पूरा बाहर खींचा और मेरी टाँगों को मेरे सीने पे दबाते हुए बिना वॉर्निंग के पूरी ताक़त से ज़ोर का धक्का लगा दिया. “ आआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईई……………आआहह. ऊऊऊऊऊऊऊओह, ऊओफ़…. आआअहगह……….मुम्मय्ययययययययययययी……………मार डालाअ……छ्चोड़ दीजिए एयाया…ह प्लीईआसए….हाथ जोड़ती हूँ. ऊऊओिईईईईईईईईईईई…… माआ…….” इतना भयंकर दर्द ! बाप रे ! मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत के अंडर कुच्छ फॅट गया था. उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा चुक्का था और उनके बॉल्स मेरी गांद पे टिक गये थे. मेरी आँखों में आँसू आ गये थे. दर्द सहा नहीं जा रहा था. उन्होने मेरे होंठ चूमते हुए कहा, “ कंचन, मेरी रानी, बधाई हो. अब तुम कच्ची कली नहीं रही, फूल बुन चुकी हो.” मैं कुच्छ नहीं बोली. उन्होने काफ़ी देर तक लंड को अंडर ही पेले रखा और मेरी चूचिओ और होंठों को चूमते रहे. जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो उन्होने लॉडा पूरा बाहर खींच के पास पड़े तैल के डब्बे में फिर से डूबा दिया. उसके बाद तैल टपकता हुआ लॉडा मेरी चूत के छेद से टीका कर एक और ज़ोर आ धक्का लगा दिया. लॉडा मेरी चूत चीरता हुआ आधे से ज़्यादा धँस गया. “ आआआहा…..ईईईईईईईई. ऊऊओफ़.” “ बस मेरी जान पहली बार तो थोड़ा दर्द होता ही है. इसके बाद पूरी ज़िंदगी मज़े करोगी.” ये कहते हुए उन्होने धक्के लगाने शुरू कर दिए. लंड मेरी चूत में अंडर बाहर हो रहा था. दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. मैं ज़ोर ज़ोर से कराहती जा रही थी लेकिन वो बिना परवाह किए धक्के लगाते जा रहे थे. अब तो उन्होने पूरा लंड बाहर निकाल के एक ही धक्के में जड़ तक पेलना शुरू कर दिया. मेरी चूत तो बिल्कुल चरमरा गयी थी. बहुत दर्द हो रहा था. इतने में उनके धक्के एकदम से तेज़ हो गये और अचानक ही मेरे ऊपर ढेर हो गये. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मेरी चूत में पिचकारी चला रहा हो. वो शायद झाड़ चुके थे. थोरी देर मेरे ऊपर लेटे रहे फिर उठ के बाथरूम चले गये. मेरे अंग अंग में दर्द हो रहा था. मैने उठ के अपनी टाँगों के बीच में देखा तो बेहोश होते होते बची. मेरी चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और उसमे से खून और उनके वीर्य का मिश्रण निकल रहा था. बेड शीट भी खून से लाल हो गयी थी. मेरी चूत के बाल तैल, उनके वीर्य और खून से चिप चिप हो रहे थे. अपनी चूत की ये हालत देख के मैं रो पड़ी. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ. इतने में ये बाथरूम से बाहर निकल आए. उनका लंड सिकुड के लटक रहा था लेकिन अभी भी काफ़ी ख़तरनाक लग रहा था. मुझे रोते देख मेरे पास आ कर बोले,“ क्या बात है कंचन ? बहुत दर्द हो रहा है?” मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत की हालत देख कर मुकुराते हुए बोले, “ पहली, पहली चुदाई में ऐसा ही होता है मेरी जान. मेरा लॉडा भी तुम्हारी कुँवारी चूत को चोद्ते हुए छिल गया है. आओ बाथरूम में चल के सॉफ कर लो.” जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 01:54 PM
उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,
“ अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?” “ मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों.” मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले, “ तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है.” मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी. हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया. पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था. हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी.......... जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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23-01-2025, 01:57 PM
कंचन और देवर रामू
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हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी..........
मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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23-01-2025, 01:58 PM
एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ ना". भाभी आधे में से उठते हुए बोली " रामू बाकी कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुकछ ज़्यादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुकछ ठीक से समझ नही आई. काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ट्यूब लाइट जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नही आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले वाली बात सुन कर कुकछ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी. मैने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुकछ कुकछ ही सॉफ सुनाई दे रहा था.
" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?" " मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नही. इतना ज़ुल्म तो ना किया करो." "चलिए भी,मैने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नही मिलती. रामू का कल एग्ज़ॅम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था." " अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चूत का उद्घाटन करूँ." " हाई राम! कैसी बातें बोलते हो.शरम नही आती" " शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शरम कैसी" " बड़े खराब हो. आह..एयेए..आह है राम….वी माआ……अयाया…… धीरे करो राजा अभी तो सारी रात बाकी है" मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका. पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे. मेरा लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था. मैं जल्दी से अपने बिस्तेर पर लेट गया पर सारी रात भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी ना सो सका.ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ था. सुबह भैया ऑफीस चले गये. मैं भाभी से नज़रें नही मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थी. भाभी किचन में काम कर रही थी. मैं भी किचन में खड़ा हो गया. ज़िंदगी में पहली बार मैने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लंबे घने काले बॉल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आँखें, गोल गोल आम के आकार की चुचियाँ जिनका साइज़ 38 से कम ना होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी नितंब . एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी . इस बार मैने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया. " भाभी, मेरा आज एग्ज़ॅम है और आप को तो कोई चिंता ही नही थी. बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दी" " कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नही करूँगी तो किसकी करूँगी?" " झूट, मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?" " तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था." " भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैने बारे ही भोले स्वर में पूछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली, " धात बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?" " भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो. " चल नालयक भाग यहाँ से और जा कर अपना एग्ज़ॅम दे." जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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23-01-2025, 02:00 PM
मैं एग्ज़ॅम तो क्या देता, सारा दिन भाभी के ही बारे में सोचता रहा. पहली बार भाभी से ऐसी बातें की थी और भाभी बिल्कुल नाराज़ नही हुई. इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी. मैं भाभी का दीवाना होता जा रहा था. भाभी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थी . मुझे महसूस हुआ शायद भैया भाभी को महीने में दो तीन बार ही चोद्ते थे. मैं अक्सर सोचता, अगर भाभी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदु.
दीवाली के लिए भाभी को मायके जाना था. भैया ने उन्हें मायके ले जाने का कम मुझे सोन्पा क्योंकि भैया को च्छुतटी नही मिल सकी. बहुत भीड़ थी. मैं भाभी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था. धक्का मुक्की के कारण आदमी आदमी से सटा जा रहा था. मेरा लंड बार बार भाभी के मोटे मोटे नितंबों से रगड़ रहा था.मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. हालाकी मुझे कोई धक्का भी नही दे रहा था, फिर भी मैं भाभी के पीछे चिपक के खड़ा था. मेरा लंड फंफना कर अंडरवेर से बाहर निकल कर भाभी के चूतरों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था. भाभी ने हल्के से अपने चूतरो को पीछे की तरफ धक्का दिया जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतरों से रगड़ने लगा. लगता है भाभी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गयी थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होनें दूर होने की कोशिश नही की. भीर के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला. ट्रेन में हम दोनो एक ही सीट पर थे. रात को भाभी के कहने पर मैने अपनी टाँगें भाभी के तरफ और उन्होने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनो आसानी से लेट गये. रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट लॅंप की हल्की हल्की रोशनी में मैने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थी और उसकी सारी जांघों तक सरक गयी थी . भाभी की गोरी गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जंघें देख कर मैं अपना कंट्रोल खोने लगा. सारी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी बड़ी चुचियाँ ब्लाउस में से बाहर गिरने को हो रही थी. मैं मन ही मन मनाने लगा की सारी थोड़ी और उपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ. मैने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से सारी को उपर सरकाना शुरू किया. सारी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नही समझ आ रहा था की 2इंच उपर जो कालीमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की कछि थी या भाभी की झटें. मैने सारी को थोड़ा और उपर उठाने की जैसे ही कोशिस की, भाभी ने करवट बदली और सारी को नीचे खींच लिया. मैने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा. n जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:01 PM
मायके में भाभी ने मेरी बहुत खातिरदारी की. दस दिन के बाद हम वापस लॉट आए. वापसी में मुझे भाभी के साथ लेटने का मोका नही लगा. भैया भाभी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात भाभी की चुदाई निश्चित है. उस रात को मैं पहले की तरह भाभी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया.भैया कुच्छ ज़्यादा ही जोश में थे . अंडर से आवाज़े सॉफ सुनाई दे रही थी.
" कंचन मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया. देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है. अब तो इनका मिलन करवा दो." " हाई राम, आज तो यह कुच्छ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है. ओह हो! ठहरिए भी, सारी तो उतारने दीजिए." "ब्रा क्यों नही उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है. तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता." "झूट! ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही …….." " दो तीन बार ही क्या?" " ओह हो, मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं" " बोलो ना मेरी जान, दो तीन बार क्या." " अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो तीन बार ही तो चोद्ते हो. बस!!" " कंचन, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता. थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो. मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है, मेरी जान." " मुझे भी आपका बहुत……. अयाया…..मर गयी….ऊवू….आ…ऊफ़..वी मा, बहुत अच्छा लग रहा है….थोड़ा धीरे…हाँ ठीक है….थोडा ज़ोर से…आ..आह..आह ." अंडर से भाभी के करहाने की आवाज़ के साथ साथ फूच..फूच..फूच जैसी आवाज़ भी आ रही थी जो मैं समझ नहीं सका.बाहर खड़े हुए मैं अपने आप को कंट्रोल नहीं कर सका और मेरा लंड झाड़ गया. मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया. अब तो मैं रात दिन भाभी को चोदने के सपने देखने लगा. मैने आज तक किसी लड़की को नहीं चोदा था लेकिन चुदाई की कला से भली भाँति परिचित था. मैने इंग्लीश की बहुत सी गंदी वीडियो फिल्म्स देख रखी थी और हिन्दी तथा इंग्लीश के काई गंदे नॉवेल भी पढ़े थे. मैं अक्सर कल्पना करने लगा की भाभी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होगी. जितने लंबे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे. भैया भाभी को कॉन कॉन सी मुद्राओं में चोद्ते होंगे. एकदम नंगी भाभी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होगी. यह सूब सोच कर मेरी भाभी के लिए काम वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी. मैं भी लंबा तगड़ा आदमी हूँ. कद करीब 6 फुट है. अपने कॉलेज का बॉडी बिल्डिंग का चॅंपियन हूँ. रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ. लेकिन सुबसे खास चीज़ है मेरा लंड. ढीली अवस्था में भी 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा किसी हथोदे के माफिक लटकता रहता है. यदि मैं अंडरवेर ना पहनूं तो पॅंट के उपर से भी उसका आकर साफ दिखाई देता है. खड़ा हो कर तो उसकी लंबाई करीब 10 इंच और मोटाई 4इंच हो जाती है. एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लंबा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है. मैं अक्सर वरांडे में अपनी लूँगी को घुटनों तक उठा कर बैठ जाता था और न्यूसपेपर पढ़ने का नाटक करता था. जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को लूँगी के अंडर से झँकता हुआ लंड नज़र आ जाए. मैने न्यूसपेपर में छ्होटा सा च्छेद कर रखा था. न्यूसपेपर से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था. लड़कियो को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ. एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो. धीरे धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा क्योंकि उन्हें ही लंबे ,मोटे लंड का महत्व पता था. एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था की भाभी ने आवाज़ लगाई, " रामू, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं उन्हें अंडर ले आओ. बारिश आने वाली है." " अच्छा भाभी!" मैं कापरे लेने बाहर चला गया. घने बादल छाए हुए थे, भाभी भी जल्दी से मेरी हेल्प करने आ गयी. डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैने देखा कि भाभी की ब्रा और कछि भी तन्गि हुई थी. मैने भाभी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 38सी. उसके बाद मैने भाभी की कछि को हाथ में लिया. गुलाबी रंग की वो कछि करीब करीब पारदर्शी थी और इतनी छ्होटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो. भाभी की कच्ची का स्पर्श मुझे बहुत आनंद दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छ्होटी सी कछि भाभी के विशाल नितंबों और चूत को कैसे ढकति होगी. शायद यह कछि भाभी भैया को रिझाने के लिए पहनती होगी. मैने उस छ्होटी सी कछि को सूंघना शुरू कर दिया ताकि भाभी की चूत की कुच्छ खुश्बू पा सकूँ. भाभी ने मुझे करते हुए देख लिया और बोली " क्या सूंघ रहे हो रामू ? तुम्हारे हाथ में क्या है?" मेरी चोरी पकड़ी गयी थी. बहाना बनाते हुए बोला " देखो ना भाभी ये छ्होटी सी कछि पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गयी." भाभी मेरे हाथ में अपनी कछि देख कर झेंप गयी और छीनती हुई बोली " लाओ इधेर दो." "किसकी है भाभी ?" मैने अंजान बनते हुए पूछा. " तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो" भाभी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली. "बता दो ना . अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लोटा दूं. " जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?" "अरे भाभी मैं तो इसको पहनने वाली की खुश्बू सूंघ रहा था. बरी मादक खुश्बू थी. बता दो ना किसकी है?’ भाभी का चेहरा ये सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अंडर भाग गयी. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:01 PM
उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आई तो मैने देखा की उन्होनें एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी. नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी. भाभी जब कुच्छ उठाने के लिए नीचे झुकी तो मुझे सॉफ नज़र आ रहा था की भाभी ने नाइटी के नीचे वोही गुलाबी रंग की कछि पहन रखी थी. झुकने की वजह से कछि की रूप रेखा सॉफ नज़र आ रही थी.मेरा अंदाज़ा सही था. कछि इतनी छ्होटी थी कि भाभी के भारी नितंबों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी. मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी. मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा,
"भाभी अपने तो बताया नहीं लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छ्होटी सी कछि किसकी थी." " तुझे कैसे पता चल गया?" भाभी ने शरमाते हुए पूछा. " क्योंकि वो कछि आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है." " हट बदमाश! तू ये सब देखता रहता है?" " भाभी एक बात पूछु? इतनी छ्होटी सी कछि में आप फिट कैसे होती हैं?" मैने हिम्मत जुटा कर पूच्छ ही लिया. " क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?" " नहीं भाभी, आप तो बहुत ही सुंदर हैं. लेकिन आपका बदन इतना सुडोल और गाथा हुआ है, आपके नितंब इतने भारी और फैले हुए हैं की इस छ्होटी सी कछि में समा ही नहीं सकते. आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को च्छूपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है , इसमे से तो आपका सब कुच्छ दिखता होगा." " चुप नलायक, तू कुच्छ ज़्यादा ही समझदार हो गया है. जब तेरी शादी होगी ना तो सब अपने आप पता लग जाएगा. लगता है तेरी शादी जल्दी ही करनी होगी, शैतान होता जा रहा है." " जिसकी इतनी सुंदर भाभी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?" " ओह हो! अब तुझे कैसे समझाऊ? देख रामू, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है वो भाभी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले." " भाभी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती" मैने बहुत अंजान बनते हुए पूछा. अब तो मेरा लंड फंफनाने लगा था. " मैं सब समझती हूँ चालाक कहीं का! तुझे सूब मालूम है फिर भी अंजान बनता है" भाभी लाजाते हुए बोली. " लगता है तुझे पढ़ना लिखना नहीं है, मैं सोने जा रही हूँ." " लेकिन भैया ने तो आपको नहीं बुलाया" मैने शरारत भरे स्वर में पूछा. भाभी जबाब में सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चल दी. उनकी मस्तानी चाल, मटकते हुए भारी नितंब और दोनो चूतरो के बीच में पिस रही बेचारी कछि को देख कर मेरे लंड का बुरा हाल था. अगले दिन भैया के ऑफीस जाने के बाद भाभी और मैं वरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. इतने में सामने सड़क पर एक गाइ गुज़री. उसके पीछे पीछे एक भारी भरकम सांड़ हुंकार भरता हुआ आ रहा था. सांड़ का लंबा मोटा लंड नीचे झूल रहा था. सांड़ के लंड को देख कर भाभी के माथे पर पसीना छलक आया. वो उसके लंबे तगड़े लंड से नज़रें ना हटा सकी. इतने में सांड़ ने ज़ोर से हुंकार भरी और गाइ पर चढ़ कर उसकी योनि में पूरा का पूरा लंड उतार दिया. यह देख कर भाभी के मुँह से सिसकारी निकल गयी. वो सांड़ की रास लीला और ना देख सकी और शर्म के मारे अंडर भाग गयी. मैं भी पीछे पीछे अंडर गया. भाभी किचन में थी. मैने बहुत ही भोले स्वर में पूछा " भाभी वो सांड़ क्या कर रहा था?" " तुझे नहीं मालूम?" भाभी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा. " तुम्हारी कसम भाभी मुझे कैसे मालूम होगा ? बताइए ना." हालाँकि की भाभी को अच्छी तरह पता था कि मैं जान कर अंजान बन रहा हूँ लेकिन अब उसे भी मेरे साथ ऐसी बातें करने में मज़ा आने लगा था. वो मुझे समझाते हुए बोली " देख रामू, सांड़ वोही काम कर रहा था जो एक मर्द अपनी बीवी के साथ शादी के बाद करता है." " आपका मतलब है कि मर्द भी अपनी बीवी पर ऐसे ही चढ़ता है?" " हाई राम! कैसे कैसे सवाल पूछता है. हां और क्या ऐसे ही चढ़ता है." " ओह! अब समझा, भैया आपको रात में क्यों बुलाते हैं." " चुप नालयक, ऐसा तो सभी शादीशुदा लोग करते हैं." " जिनकी शादी नहीं हुई वो नहीं कर सकते?" " क्यों नहीं कर सकते? वो भी कर सकते हैं, लेकिन….." मैं तपाक से बीच में ही बोल पड़ा " वाह भाभी तब तो मैं भी आप पर चढ़…….." भाभी एकदम मेरे मुँह पर हाथ रख कर बोली " चुप, जा यहाँ से और मुझे काम करने दे." और यह कह कर उन्होनें मुझे किचन से बाहर धकेल दिया. इस घटना के दो दिन के बाद की बात आयी. मैं छत पर पढ़ने जा रहा था. भाभी के कमरे के सामने से गुज़रते समय मैने उनके कमरे में झाँका. भाभी अपने बिस्तर पर लेटी हुई कोई नॉवेल पढ़ रही थी. उसकी नाइटी घुटनों तक उपर चढ़ि हुई थी. नाइटी इस प्रकार से उठी हुई थी कि भाभी की गोरी गोरी टाँगें, मोटी मांसल जंघें और जांघों के बीच में सफेद रंग की कछि सॉफ नज़र आ रही थी.मेरे कदम एकदम रुक गये और इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए मैं छुप कर खिरकी से झाँकेने लगा.यह कछि भी उतनी ही छ्होटी थी और बड़ी मुश्किल से भाभी की चूत को धक रही थी. भाभी की घनी काली झांटें दोनो तरफ से कछि के बाहर निकल रही थी. वो बेचारी छ्होटी सी कछि भाभी की फूली हुई चूत के उभार से बस किसी तरह चिपकी हुई थी. चूत की दोनो फांकों के बीच में दबी हुई कछि ऐसे लग रही थी जैसे हंसते वक़्त भाभी के गालों में डिंपल पड़ जातें हैं. अचानक भाभी की नज़र मुझ पर पढ़ गयी . उन्होनें झट से टाँगें नीचे करते हुए पूछा " क्या देख रहा है रामू" जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:03 PM
आगे ......
चोरी पकड़ी जाने के कारण मैं सकपका गया और " कुच्छ नहीं भाभी" कहता हुआ छत पर भाग गया. अब तो रात दिन भाभी की सफेद कछि में छिपी हुई चूत की याद सताने लगी. मेरे दिल में विचार आया, क्यों ना भाभी को अपने विशाल लंड के दर्शन कराऊ. भाभी रोज़ सवेरे मुझे दूध का ग्लास देने मेरे कमरे में आती थी. एक दिन सवेरे मैं अपनी लूँगी को घुटनों तक उठा कर न्यूसपेपर पढ़ने का नाटक करते हुए इस प्रकार बैठ गया की सामने से आती हुई भाभी को मेरा लटकता हुआ लंड नज़र आ जाए. जैसे ही मुझे भाभी के आने की आहट सुनाई दी,मैने न्यूसपेपर अपने चेहरे के सामने कर लिया, टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया ताकि भाभी को पूरे लंड के आसानी से दर्शन हो सकें और न्यूसपेपर के बीच के छेद से भाभी की प्रतिक्रिया देखने के लिए रेडी हो गया. जैसे ही भाभी दूध का ग्लास लेकर मेरे कमरे में दाखिल हुई, उनकी नज़र लूँगी के नीचे से झाँकती मेरे 8 इंच लंबे मोटे हाथोरे के माफिक लटकते हुए लंड पे पर गयी. वो सकपका कर रुक गयी, आँखें आश्चर्या से बड़ी हो गयी और उन्होनें अपना नीचला होंठ दाँतों से दबा दिया. एक मिनिट बाद उन्होनें होश संभाला और जल्दी से ग्लास रख कर भाग गयी. करीब 5 मिनिट के बाद फिर भाभी के कदमों की आहट सुनाई दी. मैने झट से पहले वाला पोज़ धारण कर लिया और सोचने लगा, भाभी अब क्या करने आ रही है. न्यूसपेपर के छेद में से मैने देखा भाभी हाथ में पोचे का कपड़ा ले कर अंडर आई और मुझसे करीब 5 फुट दूर ज़मीन पर बैठ कर कुच्छ सॉफ करने का नाटक करने लगी. वो नीचे बैठ कर लूँगी के नीचे लटकता हुआ लंड ठीक से देखना चाहती थी. मैने भी अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर दिया जिससे भाभी को मेरे विशाल लंड के साथ मेरी बॉल्स के भी दर्शन अच्छी प्रकार से हो जाएँ. भाभी की आँखें एकटक मेरे लंड पर लगी हुई थी, उन्होनें अपने होंठ दाँतों से इतनी ज़ोर से काट लिए कि उनमे थोड़ा सा खून निकल आया. माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई. भाभी की यह हालत देख कर मेरे लंड ने फिर से हरकत शुरू कर दी. मैने बिना न्यूसपेपर चेहरे से हटाए भाभी से पूछा " क्या बात है भाभी क्या कर रही हो?" भाभी हड़बड़ा कर बोली " कुच्छ नहीं, थोड़ा दूध गिर गया था उसे सॉफ कर रही हूँ." यह कह कर वो जल्दी से उठ कर चली गयी. मैं मन ही मन मुस्काया. अब तो जैसे मुझे भाभी की चूत के सपने आते हैं वैसे ही भाभी को भी मेरे विशाल लंड के सपने आएँगे. लेकिन अब भाभी एक कदम आगे थी. उसने तो मेरे लंड के दर्शन कर लिए थे पर मैने अभी तक उनकी चूत को नहीं देखा था. मुझे मालूम था कि भाभी रोज़ हमारे जाने के बाद घर का सारा काम निपटा कर नहाने जाती थी. मैने भाभी की चूत देखने का प्लान बनाया. एक दिन मैं कॉलेज जाते समय अपने कमरे की खुली छोड़ गया. उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया. घर का दरवाज़ा अंडर से बंद था. मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया. भाभी किचन में काम कर रही थी. काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई. भाभी अपने कमरे में आई. वो मस्ती में कुच्छ गुनगुना रही थी. देखते ही देखते उसने अपनी नाइटी उतार दी. अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और कछि में थी. मेरा लंड हुंकार भरने लगा. क्या बला की सुंदर थी. गोरा बदन, पतली कमर,उसके नीचे फैलते हुए भारी नितंब और मोटी जंघें किसी नमार्द का भी लंड खड़ा कर दें. भाभी की बड़ी बड़ी चुचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थी. ओर फिर वही छ्होटी सी कछि, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी. भाभी के भारी चूतर उनकी कछि से बाहर गिर रहे थे. दोनो चूतरो का एक चौथाई से भी कम भाग कछि में था. बेचारी कछि भाभी के चूतरो के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी. उनकी जांघों के बीच में कछि से धकि फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल ओ दिमाग़ को पागल बना रहा था. मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब भाभी कछि उतारे और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ. भाभी शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने को निहार रही थी. उनकी पीठ मेरी तरफ थी. अचानक भाभी ने अपनी ब्रा और फिर कछि उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी. अब तो उनके नंगे चौड़े चूतर देख कर मेरा लंड बिल्कुल झरने वाला हो गया. मेरे मन में विचार आया कि भैया ज़रूर भाभी की चूत पीछे से भी लेटे होंगे ओर क्या कभी भैया ने भाभी की गांद मारी होगी. मुझे ऐसी लाजबाब औरत की गांद मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इनकार कर दूं. लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया जब भाभी बिना मेरी तरफ़ घूमे बाथरूम में नहाने चली गयी. उनकी ब्रा और कछि वहीं ज़मीन पर पड़ी थी. मैं जल्दी से भाभी के कमरे में गया और उनकी कछि उठा लाया. मैने उनकी कछि को सूँघा. भाभी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झाड़ गया. मैने उस कछि को अपने पास ही रख लिया और भाभी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा. सोचा जब भाभी नहा कर नंगी बाहर निकलेगी तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे. लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया. भाभी जब नहा के बाहर निकली तो उन्होने काले रंग की कछि और ब्रा पहन रखी थी. कमरे में अपनी कछि गायब पा कर सोच में पड़ गयी. अचानक उन्होनें जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आई. शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे इलावा और कोई नहीं कर सकता. मैं झट से अपने बिस्तेर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ. भाभी मुझे कमरे में देखकर सकपका गयी. मुझे हिलाते हुए बोली " रामू उठ. तू अंडर कैसे आया?" मैने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा " क्या करूँ भाभी आज कॉलेज जल्दी बंद हो गया. घर का दरवाज़ा बंद था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिरकी के रास्ते अंडर आ गया." " तू कितनी देर से अंडर है?" " यही कोई एक घंटे से." अब तो भाभी को शक हो गया कि शायद मैने उन्हें नंगी देख लिया था. और फिर उनकी कछि भी तो गायब थी. भाभी ने शरमाते हुए पूछा " कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?’ " अरे हाँ भाभी! जब मैं आया तो मैने देखा कि कुच्छ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं. मैने उन्हें उठा लिया." भाभी का चेहरा सुर्ख हो गया. हिचकिचाते हुए बोली " वापस कर मेरे कपड़े." मैं तकिये के नीचे से भाभी की कछि निकालते हुए बोला " भाभी ये तो अब मैं वापस नहीं दूँगा." "क्यों अब तू औरतों की कछि पहनना चाहता है?" " नहीं भाभी" मैं कछि को सूँघता हुआ बोला " इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है." " अरे पागला है? यह तो मैने कल से पहनी हुई थी. धोने तो दे." " नहीं भाभी धोने से तो इसमे से आपकी महक निकल जाएगी. मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ." " धात पागल! अच्छा तू कब्से घर में है?" भाभी शायद जानना चाहती थी कि कहीं मैने उसे नंगी तो नहीं देख लिया. मैने कहा जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:04 PM
भाभी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं. मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थी. लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका. सच कहूँ भाभी आप बिल्कुल नंगी हो कर बहुत ही सुन्दर लग रही थी. पतली कमर, भारी नितंब और गदराई हुई जंघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रहंचारी की नियत भी खराब हो जाए."
भाभी शर्म से लाल हो उठी. " हाई राम तुझे शर्म नहीं आती. कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गयी है?" " आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?" " हे भगवान, आज तेरे भैया से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी" इससे पहले मैं कुकछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गयी. भैया को कल 6 महीने के लिए किसी ट्रैनिंग के लिए मुंबई जाना था. आज उनका आखरी दिन था. आज रात को तो भाभी की चुदाई निश्चित ही थी. रात को भाभी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गयी. उसके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गयी. मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं. मैं एक बार फिर चुपके से भाभी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से मुझे भैया भाभी की बातें सॉफ सुनाई दे रही थी. भैया कह रहे थे, "कंचन, 6 महीने का समय तो बहुत होता है. इतने दिन मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूँगा. ज़रा सोचो 6 महीने तक तुम्हें नहीं चोद सकूँगा." " आप तो ऐसे बोल रहें हैं जैसे यहाँ रोज़ …." " क्या मेरी जान बोलो ना. शरमाती क्यों हो? कल तो मैं जा रहा हूँ. आज रात तो खुल के बात करो. तुम्हारे मुँह से ऐसी बातें सुन कर दिल खुश हो जाता है." " मैं तो आपको खुश देखने के लिए कुकछ भी कर सकती हूँ. मैं तो ये कह रही थी, यहाँ आप कोन सा मुझे रोज़ चोद्ते हैं." भाभी के मुँह से चुदाई की बात सुन मेरा लंड फंफनाने लगा. " कंचन यहाँ तो बहुत काम रहता है इसलिए थक जाता था. वापस आने के बाद मेरा प्रमोशन हो जाएगा और उतना काम नहीं होगा. फिर तो मैं तुम्हें रोज़ चोदुन्गा. बोलो मेरी जान रोज़ चुद्वओगि ना." " मेरे राजा, सच बताउ मेरा दिल तो रोज़ ही चुदवाने को करता है पर आपको तो चोदने की फ़ुर्सत ही नहीं. कोई अपनी जवान बीवी को महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोद पाता है?" " तो तुम मुझसे कह नहीं सकती थी? " कैसी बातें करतें हैं? औरत ज़ात हूँ. चोदने में पहल करना तो मर्द का काम होता है. मैं आपसे क्या कहती? चोदो मुझे? रोज़ रात को आपके लंड के लिए तरसती रहती हूँ." " कंचन तुम जानती हो मैं ऐसा नहीं हूँ. याद है अपना हनिमून, जब दस दिन तक लगातार दिन में तीन चार बार तुम्हें चोद्ता था? बल्कि उस वक़्त तो तुम मेरे लंड से घबरा कर भागती फिरती थी." " याद है मेरे राजा. लेकिन उस वक़्त तक सुहाग रात की चुदाई के कारण मेरी चूत का दर्द दूर नही हुआ था. आपने भी तो सुहाग रात को मुझे बरी बेरहमी से चोदा था." " उस वक़्त मैं अनाड़ी था मेरी जान" " अनाड़ी की क्या बात थी? किसी लड़की की कुँवारी चूत को इतने मोटे, लंबे लंड से इतनी ज़ोर से चोदा जाता है क्या? कितना खून निकाल दिया था आपने मेरी चूत में से, पूरी चादर खराब हो गयी थी. अब जब मेरी चूत आपके लंड को झेलने के लायक हो गयी है तो आपने चोदना ही काम कर दिया है." " अब चोदने भी दोगि या सारी रात बातों में ही गुज़ार दोगि." यह कह कर भैया भाभी के कपड़े उतारने लगे. "कंचन, मैं तुम्हारी ये कछि साथ ले जाउन्गा." " क्यों? आप इसका क्या करेंगे?" " जब भी चोदने का दिल करेगा तो इसे अपने लंड से लगा लूँगा." कछि उतार कर शायद भैया ने लंड भाभी की चूत में पेल दिया, क्योंकि भाभी के मुँह से आवाज़ें आने लगीं " अया….ऊवू…अघ..आह..आह..आह..आह" " कंचन आज तो सारी रात लूँगा तुम्हारी" " लीजिए ना आआहह….कों…. आ रोक रहा है? आपकी चीज़ है. जी भर के चोदिये….उई माआ…..." “थोड़ी टाँगें और चौड़ी करो. हन अब ठीक है. आह पूरा लंड जड़ तक घुस गया है.” “आआआ…ह, ऊवू.” “ कंचन मज़ा आ रहा है मेरी जान?” “ हूँ. आआआ..ह.” “ कंचन.” “जी.” “ अब छे महीने तक इस खूबसूरत चूत की प्यास कैसे बुझओगि?” “ आपके इस मोटे लंड के सपने ले कर ही रातें गुज़ारुँगी.” “मेरी जान तुम्हें चुदवाने में सच मच बहुत मज़ा आता है?” “ हां मेरे राजा बहुत मज़ा आता है क्योंकि आपका ये मोटा लंबा लंड मेरी चूत को तृप्त कर देता है.” “कंचन मैं वादा करता हूँ, वापस आ कर तुम्हारी इस टाइट चूत को चोद चोद कर फाड़ डालूँगा.” “फाड़ डालिए ना,एयेए…ह मैं भी तो यही चाहती हूँ .” “ सच ! अगर फॅट गयी तो फिर क्या चुद्वओगि?” “हटिए भी आप तो ! आपको सच मुच ये इतनी अच्छी लगती है?” “ तुम्हारी कसम मेरी जान. इतनी फूली हुई चूत को चोद कर तो मैं धन्य हो गया हूँ. और फिर इसकी मालकिन चुदवाती भी तो कितने प्यार से है” “ जब चोदने वाले का लंड इतना मोटा तगड़ा हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदेगि ही. मैं तो आपके लंड के लिए एयेए…ह.. ऊवू बहुत तरपुंगी. आख़िर मेरी प्यास तो ….आआ…. यही बुझाता है.” भैया ने सारी रात जम कर भाभी की चुदाई की. सवेरे भाभी की आँखें सारी रात ना सोने के कारण लाल थी. भैया सुबह 6 महीने के लिए मुंबई चले गये. मैं बहुत खुश था. मुझे पूरा विषवास था की इन 6 महीनों में तो भाभी को अवश्य चोद पाउन्गा. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:07 PM
(This post was last modified: 24-01-2025, 10:07 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
![]() F ![]() " रामू ये तू कैसी गंदी गंदी फ़िल्मे देखता है?" " अरे भाभी आपने वो पिक्चर देख ली? वो आपके देखने की नहीं थी." " तू उल्टा बोल रहा है. वो मेरे ही देखने की थी. शादीशुदा लोगों को तो ऐसी पिक्चर देखनी चाहिए. हाई राम ! क्या क्या कर रहा था वो लंबा तगड़ा कालू उस छ्होटी सी लड़की के साथ. बाप रे !" " क्यों भाभी भैया आपके साथ ये सब नहीं करते हैं?" " तुझे क्या मतलब? और तुझे शादी से पहले ऐसी फ़िल्मे नहीं देखनी चाहिए." " लेकिन भाभी अगर शादी से पहले नहीं देखूँगा तो अनाड़ी रह जाउन्गा. पता कैसे लगेगा की शादी के बाद क्या किया जाता है." " तेरी बात तो सही है. बिल्कुल अनाड़ी होना भी ठीक नहीं वरना सुहागरात को लड़की को बहुत तकलीफ़ होती है. तेरे भैया तो बिल्कुल अनाड़ी थे." " भाभी, भैया अनाड़ी थे क्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं था. मुझे तो आप समझा सकती हैं लेकिन आपके रहते हुए भी मैं अनाड़ी हूँ. तभी तो ऐसी फिल्म देखनी पड़ती है और उसके बाद भी बहुत सी बातें समझ नहीं आतीं. आपको मेरी फिकर क्यों होने लगी?" " रामू, मैं जितनी तेरी फिकर करती हूँ उतनी शायद ही कोई करता हो. आगे से तुझे शिकायत का मोका नहीं दूँगी. तुझे कुच्छ भी पूछना हो, बे झिझक पूछ लिया कर. मैं बुरा नहीं मानूँगी. चल अब खाना खा ले." ![]() " तुम कितनी अच्छी हो भाभी." मैने खुश हो कर कहा. अब तो भाभी ने खुली छ्छूट दे डी थी. मैं किसी तरह की भी बात भाभी से कर सकता था. लेकिन कुच्छ कर पाने की अब भी हिम्मत नहीं थी. मैं भाभी के दिल में अपने लिए चुदाई की भावना जाग्रत करना चाहता था. भैया को गये अब करीब दो महीने हो चले थे. भाभी के चेहरे पर लंड की प्यास सॉफ ज़ाहिर होती थी. एक बार ऐतवार को मैं घर पर था. भाभी कपड़े धो रही थी. मुझे पता था की भाभी छत पर कपड़े सुखाने जाएगी. मैने सोचा क्यों ना आज फिर भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए जाएँ. पिछले दर्शन 3 महीने पहले हुए थे. मैं छत पर कुर्सी डाल कर उसी प्रकार लूँगी घुटनों तक उठा कर बैठ गया. जैसे ही भाभी के छत पर आने की आहट सुनाई दी, मैने अपनी टाँगें फैला दी और अख़बार चेहरे के सामने कर लिया. अख़बार के छेद में से मैने देखा की छत पर आते ही भाभी की नज़र मेरे मोटे, लंबे साँप के माफिक लटकते हुए लंड पे गयी. भाभी की साँस तो गले में ही अटक गयी. उनको तो जैसे साँप सूंघ गया. एक मिनिट तो वो अपनी जगह से हिल नहीं सकी, फिर जल्दी कपड़े सूखाने डाल कर नीचे चल दी. " भाभी कहाँ जा रही हो, आओ थोड़ी देर बैठो." मैने कुर्सी से उठाते हुए कहा. भाभी बोली " अच्छा आती हूँ. तुम बैठो मैं तो नीचे चटाई डाल कर बैठ जाउन्गि." अब तो मैं समझ गया कि भाभी मेरे लंड के दर्शन जी भर के करना चाहती है. मैं फिर कुर्सी पर उसी मुद्रा में बैठ गया. थोरी देर में भाभी छत पर आई और ऐसी जगह चटाई बिच्छाई जहाँ से लूँगी के अंडर से पूरा लंड सॉफ दिखाई दे. हाथ में एक नॉवेल था जिसे पढ़ने का बहाना करने लगी लेकिन नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुई थी. 8 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड और उसके पीछे अमरूद के आकर के बॉल्स लटकते देख उनका तो पसीना ही छ्छूट गया. अनायास ही उनका हाथ अपनी चूत पर गया और वो उसे अपनी सलवार के उपर से रगड़ने लगी. जी भर के मैने भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए. जब मैं कुर्सी से उठा तो भाभी ने जल्दी से नॉवेल अपने चेहरे के आगे कर लिया, जैसे वो नॉवेल पढ़ने में बड़ी मग्न हो. मैने कई दिन से भाभी की गुलाबी कछि नहीं देखी थी. आज भी वो नहीं सूख रही थी. मैने भाभी से पूछा " भाभी बहुत दिनों से अपने गुलाबी कछि नहीं पहनी?" " तुझे क्या?" " मुझे वो बहुत अछि लगती है. उसे पहना करिए ना." " मैं कोन सा तेरे सामने पहनती हूँ?" " बताइए ना भाभी कहाँ गयी, कभी सूख्ती हुई भी नहीं नज़र आती." " तेरे भैया ले गये. कहते थे कि वो उन्हें मेरी याद दिलाएगी." भाभी ने शरमाते हुए कहा. " आपकी याद दिलाएगी या आपके टाँगों के बीच में जो चीज़ है उसकी?" " हट मक्कार ! तूने भी तो मेरी एक कछि मार रखी है. उसे पहनता है क्या? पहनना नहीं, कहीं फॅट ना जाए." भाभी मुझे चिढ़ाती हुई बोली. " फटेगी क्यों? मेरे नितंब आपके जीतने भारी और चौड़े तो नहीं हैं". " अरे बुधहू, नितंब तो बड़े नहीं हैं, लेकिन सामने से तो फॅट सकती है. तुझे तो वो सामने से फिट भी नहीं होगी." " फिट क्यों नहीं होगी भाभी?" मैने अंजान बनते हुए कहा. " अरे बाबा, मर्दों की टाँगों के बीच में जो वो होता है ना, वो उस छ्होटी सी कछि में कैसे समा सकता है, और वो तगड़ा भी तो होता है कछि के महीन कपड़े को फाड़ सकता है." " वो क्या भाभी?" मैने शरारत भरे अंदाज़ में पूछा. भाभी जान गयी कि मैं उनके मुँह से क्या कहलवाना चाहता हूँ. " मेरे मुँह से कहलवाने में मज़ा आता है?" " एक तरफ तो आप कहती हैं कि आप मुझे सूब कुच्छ बताएँगी,और फिर सॉफ सॉफ बात भी नहीं करती. आप मुझसे और मैं आपसे शरमाता रहूँगा तो मुझे कभी कुच्छ नहीं पता लगेगा और मैं भी भैया की तरह अनाड़ी रह जाउन्गा. बताइए ना !" " तू और तेरे भैया दोनो एक से हैं.मेरे मुँह से सब कुच्छ सुन कर तुझे खुशी मिलेगी?" " हाँ भाभी बहुत खुशी मिलेगी. और फिर मैं कोई पराया हूँ." " ऐसा मत बोल रामू. तेरी खुशी के लिए मैं वही करूँगी जो तू कहेगा." " तो फिर सॉफ सॉफ बताइए आपका क्या मतलब था." " मेरे बुद्धू देवर जी, मेरा मतलब ये था कि मर्द का वो बहुत तगड़ा होता है, औरत की नाज़ुक कछि उसे कैसे झेल पाएगी ? और अगर वो खड़ा हो गया तब तो फॅट ही जाएगी ना." " भाभी आपने वो वो लगा रखी है, मुझे तो कुच्छ नहीं समझ आ रहा." " अच्छा अगर तू बता दे उसे क्या कहते हैं तो मैं भी बोल दूँगी." भाभी ने लाजते हुए कहा. " भाभी मर्द के उसको लंड कहते हैं." " हाया…..!, मेरा भी मतलब यही था.” “क्या मतलब था आपका?” “ कि तेरा लंड मेरी कछि को फाड़ देगा. अब तो तू खुश है ना.?" " हाँ भाभी बहुत खुश हूँ. अब यह भी बता दीजिए कि आपकी टाँगों के बीच में जो है उसे क्या कहते हैं" "उसे? मुझे तो नहीं पता. ऐसी चीज़ तो तुझे ही पता होती हैं. तू ही बता दे.” “भाभी उसे चूत कहते हैं.” “हाया! तुझे तो शरम भी नहीं आती. वही कहते होंगे.” “ वही क्या भाभी?” “ ओह हो बाबा, चूत और क्या.” भाभी के मुँह से लंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लंड फंफनाने लगा. अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. मैने भाभी से कहा. " भाभी इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है.” “ अच्छा जी तो देवेर्जी भी इसके दीवाने हैं.” “ हां मेरी प्यारी भाभी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ़ आपकी चूत का दीवाना हूँ.” ![]() “तुझे तो बिल्कुल भी शरम नहीं है. मैं तेरी भाभी हूँ.” भाभी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली. “अगर मैं आपको एक बात बताउ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी?" " नहीं रामू. देवर भाभी के बीच तो कोई झिझक नहीं होनी चाहिए. और अब तो तूने मेरे मुँह से सब कुच्छ कहलवा दिया है.लेकिन मेरी कछि तो वापस कर दे." जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:08 PM
(This post was last modified: 24-01-2025, 10:12 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सच कहूँ भाभी, रोज़ रात को उसे सूँघता हूँ तो आपकी चूत की महक मुझे मदहोश कर डालती है. जब मैं अपना लंड आपकी कछि से रगड़ता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे लंड आपकी चूत से रगड़ रहा हो "
" ओह ! अब समझी देवर्जी मेरी कछि के पीछे क्यों पागल हैं. इसीलिए तो कहती हूँ तुझे एक सुन्दर सी बीवी की ज़रूरत है" " लेकिन मैं तो अनाड़ी हूँ. आपने तो प्रॉमिस कर के भी कुच्छ नहीं बताया. उस दिन आप कह रही थी कि मर्द अनाड़ी हो तो लड़की को सुहाग रात में बहुत तकलीफ़ होती है. आपका क्या मतलब था? आपको भी तकलीफ़ हुई थी?" ![]() " हां रामू, तेरे भैया अनाड़ी थे. सुहागरात को मेरी सारी उठा कर बिना मुझे गरम किए चोदना शुरू कर दिया. अपने 8 इंच लंबे और 3इंच मोटे लंड से मेरी कुँवारी चूत को बहुत ही बेरहमी से चोदा. बहुत खून निकला मेरी चूत से. अगले एक महीने तक दर्द होता रहा." मेरा लंड देखने के बाद से भाभी काफ़ी उत्तेजित हो गयी थी और बिल्कुल ही शरमाना छोड़ दिया था. " लड़की को गरम कैसे करते हैं भाभी?" " पहले प्यार से उससे बातें करते हैं. फिर धीरे धीरे उस के कपड़े उतारते हैं. उसके बदन को सहलाते हैं. उसकी होंठो को और चुचिओ को चूमते हैं. फिर प्यार से उसकी चुचिओ और चूत को मसल्ते हैं. फिर हल्के से एक उंगली उसकी चूत में सरका कर देखते हैं कि लड़की की चूत पूरी तरह गीली है. अगर चूत गीली है, इसका मतलब लड़की चुदवाने के लिए तैयार है.इसके बाद प्यार से उसकी टाँगें उठा कर धीरे धीरे लंड अंडर डाल देते हैं. पहली रात ज़ोर ज़ोर से धक्के नहीं मारते." " भाभी उस फिल्म में तो वो कालू उस लड़की की चूत चाटता है, लड़की भी लंड चूस्ति है. कालू उस लड़की को कयि तरह से चोद्ता है. यहाँ तक की उसकी गांद भी मारता है" " अरे बुद्धू ये सब पहली रात को नहीं किया जाता, धीरे धीरे किया जाता है." " भाभी, भैया भी वो सब आपके साथ करते हैं?" " नहीं रे ! तेरे भैया अनाड़ी थे और अब भी अनाड़ी हैं. उनको तो सिर्फ़ टाँगें उठा कर पेलना आता है. अक्सर तो पूरी तरह नंगी किए बिना ही चोद्ते हैं. औरत को मज़ा तो पूरी तरह नंगी हो कर ही चुदवाने में आता है." " भाभी आपको नंगी हो कर चुदवाने में बहुत मज़ा आता है?" " क्यों में औरत नहीं हूँ ? अगर मोटा तगड़ा लंड हो और चोदने वाला नंगी करके प्यार से चोदे तो बहुत ही मज़ा आता है." " लेकिन भैया का लंड तो मोटा तगड़ा होगा. हां मेरे लंड की बराबरी नहीं कर सकता है" " तुझे कैसे पता ? " ![]() " मुझे तो नहीं पता लेकिन आप तो बता सकती हैं" " में कैसे बता सकती हूँ? मैने तेरा लंड तो नहीं देखा है" भाभी ने बनते हुए कहा. में मन ही मन मुस्कुराया और बोला, " तो क्या हुआ भाभी. कहो तो अभी आपको अपने लंड के दर्शन करा देता हूँ, आप नाप लो किसका बड़ा है." " हट बदमाश!" " अगर आप नहीं दर्शन करना चाहती तो कम से कम मुझे तो अपनी चूत के दर्शन एक बार करवा दीजिए. सच भाभी मैने आज तक किसी की चूत नहीं देखी." " चल नालयक! तेरी शादी जल्दी करवा दें? इतना उतावला क्यों हो रहा है?" " उतावला क्यों ना हूँ? मेरी प्यारी भाभी को भैया सारी सारी रात खूब जम कर चोदे और मेरी किस्मत में उनकी चूत के दर्शन तक ना हों. इतनी खूबसूरत भाभी की चूत तो और भी लाजबाब होगी. एक बार दिखा दोगि तो घिस तो नहीं जाओगी. अच्छा, इतना तो बता दो की आपकी चूत भी उतनी ही चिकनी है जितनी फिल्म में उस लड़की की थी?" " नहीं रे, जैसे मर्दों के लंड के चारों तरफ बाल होते हैं वैसे ही औरतों की चूत पर भी बाल होते हैं. उस लड़की ने तो अपने बाल शेव कर रखे थे." " भाभी तब तो जितने घने और सुन्दर बाल आपके सिर पर हैं उतने ही घने बाल आपकी चूत पर भी होंगे? आप अपनी चूत के बाल शेव नहीं करतीं?" " तेरे भैया को मेरी झाँटे बहुत पसंद हैं इसलिए शेव नहीं करती." " हाई भाभी आपकी चूत की एक झलक पाने के लिए कब से पागल हो रहा हूँ, और कितना तदपाओगि ?" ![]() " सबर कर, सबर कर ! सबर का फल हमेशा मीठा होता है." यह कहा कर बड़े ही कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराती हुई नीचे चली गयी. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:09 PM
(This post was last modified: 24-01-2025, 11:06 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मेरे लंड के दुबारा दर्शन करने के बाद से तो भाभी का काफ़ी बुरा हाल था. एक दिन मैने उनके कमरे में मोटा सा खीरा देखा. मैने उसे सूंघ कर देखा तो खीरे में से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसी भाभी की कछि में से आती थी. लगता था भाभी खीरे से ही लंड की भूख मिटाने की कोशिश कर रही थी. मुझे मालूम था कि गंदी पिक्चर भी वो कयि बार देख चुकी थी. भैया को जा कर तीन महीने बीत गये. घर में मोटा ताज़ा लंड मौज़ूद होने के बावज़ूद भी भाभी लंड की प्यास में तडप रही थी.
मैने एक और प्लान बनाया. बाज़ार से एक हिन्दी का बहुत ही गंदा नॉवेल लाया जिसमे देवर भाभी की चुदाई के किस्से थे. उस नॉवेल में भाभी अपने देवर को रिझाती है. वो जान कर कपड़े धोने इस प्रकार बैठती है की उसके पेटिकोट के नीचे से देवर को उसकी चूत के दर्शन हो जाते हैं. ये नॉवेल मैने ऐसी जगह रखा जहाँ भाभी के हाथ लग जाए. एक दिन जब मैं कॉलेज से वापस आया तो मैने पाया कि वो नॉवेल अपनी जगह पर नहीं था. मैं जान गया की भाभी वो नॉवेल पढ़ चुकी है. अगले इतवार को मैने देखा की भाभी कपड़े बाथरूम में धोने के बजाय वरामदे के नलके पर धो रही थी. उसने सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट पहन रखा था. मुझे देख कर बोली, " आ रामू बैठ. तेरे कोई कपड़े धोने हैं तो देदे." मैने कहा मेरे कोई कपड़े नहीं धोने हैं और मैं भाभी के सामने बैठ गया. भाभी इधेर उधेर की गप्पें मारती रही . अचानक भाभी के पेटिकोट का पिछला हिस्सा नीचे गिर गया. सामने का नज़ारा देख कर तो मेरे दिल की धरकन बढ़ गयी. भाभी की गोरी गोरी मांसल झंगों के बीच में से सफेद रंग की कछि झाँक रही थी. भाभी जिस अंदाज़ में बैठी हुई थी उसके कारण कछि भाभी की चूत पर बुरी तरह कसी हुई थी. फूली हुई चूत का उभार मानो कछि को फाड़ कर आज़ाद होने की कोशिश कर रहा हो. कच्ची चूत के कटाव में धँसी हुई थी. कछि के दोनो तरफ से काली काली झांटें बाहर निकली हुई थी. मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी. भाभी मानो बेख़बर हो कर कपड़े धोती जा रही थी और मुझसे गप्पें मार रही थी. अभी मैं भाभी की टाँगों के बीच के नज़रे का मज़ा ले ही रहा था कि वो अचानक उठ कर अंडर जाने लगी. मैने उदास हो कर पूछा “ भाभी कहाँ जा रही हो ?” “ एक मिनिट में आई.” थोड़ी देर में वो बाहर आई. उनके हाथ में वोही सफेद कछि थी जो उन्होने अभी अभी पहनी हुई थी. भाभी फिर से वैसे ही बैठ कर अपनी कछि धोने लगी. लेकिन बैठते समय उन्होने पेटिकोट ठीक से टाँगों के बीच दबा लिया. यह सोच के कि पेटिकोट के नीचे अब भाभी की चूत बिल्कुल नंगी होगी मेरा मन डोलने लगा. मैं मन ही मन दुआ करने लगा कि भाभी का पेटिकोट फिर से नीचे गिर जाए. शायद ऊपर वाले ने मेरी दुआ जल्दी ही सुन ली. भाभी का पेटिकोट का पिछला हिस्सा फिर से नीचे गिर गया. अब तो मेरे हो ही उड़ गये. उनकी गोरी गोरी मांसल टाँगें सॉफ नज़र आने लगी. तभी भाभी ने अपनी टाँगों को फैला दिया और अब तो मेरा कलेजा ही मुँह को आ गया. भाभी की चूत बिल्कुल नंगी थी. गोरी गोरी सुडोल जांघों के बीच में उनकी चूत सॉफ नज़र आ रही थी. पूरी चूत घने काले बालों से धकि हुई थी, लेकिन चूत की दोनो फाँकें और बीच का कटाव घनी झांतों के पीछे से नज़र आ रहा था. चूत इतनी फूली हुई थी और उसका मुँह इस प्रकार से खुला हुआ था, मानो अभी अभी किसी मोटे लंड से चुदी हो. भाभी कपड़े धोने में ऐसे लगी हुई थी मानो उसे कुच्छ पता ना हो. मेरे चेहरे की ओर देख कर बोली " क्या बात है रामू, तेरा चेहरा तो ऐसे लग रहा है जैसे तूने साँप देख लिया हो?" मैं बोला " भाभी साँप तो नहीं लेकिन साआंप जिस बिल मे रहता है उसे ज़रूर देख लिया." " क्या मतलब ? कौन से बिल की बात कर रहा है?" मेरी आँखें भाभी की चूत पर ही जमी हुई थी. " भाभी आपकी टाँगों के बीच में जो साँप का बिल है ना मैं उसी की बात कर रहा हूँ." " हाअ..एयेए !!! बदमाश !! इतनी देर से तू यह देख रहा था ? तुझे शरम नहीं आई अपनी भाभी की टाँगों के बीच में झँकते हुए?’ यह कह कर भाभी ने झट से टाँगें नीचे कर लीं. " आपकी कसम भाभी इतनी लाजबाब चूत तो मैने किसी फिल्म में भी नहीं देखी. भैया कितनी किस्मत वाले हैं. लेकिन भाभी इस बिल को तो एक लंबे मोटे साँप की ज़रूरत है." भाभी मुस्कुराते हुए बोली, " कहाँ से लाउ उस लंबे मोटे साँप को.?" " मेरे पास है ना एक लंबा मोटा साँप. एक इशारा करो, सदा ही आपके बिल में रहेगा." " हट नालयक." यह कहा कर भाभी कपड़े सुखाने छत पे चली गयी.. ज़ाहिर था कि ये करने का विचार भाभी के मन में नॉवेल पढ़ने के बाद ही आया था. अब तो मुझे पूरा विश्वास हो गया कि भाभी मुझसे चुदवाना चाहती है. मैं मोके की तलाश में था जो जल्दी ही हाथ आ गया. तीन दिन बाद कॉलेज में बॉडी बिल्डिंग कॉंपिटेशन था. मैने खूब कसरत और मालिश करनी शुरू कर दी थी. भाभी भी मुझे अच्छी खुराक खिला रही थी. एक दिन भाभी नहा रही थी और मैं अपने कमरे में मालिश कर रहा था. मैने सिर्फ़ अंडरवेर पहन रखा था. इतने में भाभी नहा कर कमरे में आ गयी. वो पेटिकोट और ब्लाउस में थी. मैने भाभी से कहा" भाभी ज़रा पीठ की मालिश कर दोगि?" भाभी बोली " हाँ हाँ क्यों नहीं चल लाइट जा" मैं चटाई पर पैट के बाल लेट गया. भाभी ने हाथ में तैल ले कर मेरी पीठ पर लगाना शुरू कर दिया. भाभी के मुलायम हाथों का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था. पीठ पर मालिश करने के बाद चलने को हुई तो मैं बोला, " कर ही रही हो तो पूरे बदन की मालिश कर दो ना. आपके हाथ की मालिश होने पर मैं ज़रूर बॉडी बिल्डिंग कॉंपिटेशन में जीत जाउन्गा." B V
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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23-01-2025, 02:10 PM
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" ठीक है कर देती हूँ, चल उल्टा हो कर लेट जा." मैं पीठ के बाल लेट गया. भाभी ने पहले मेरे हाथों की मालिश की और फिर टाँगों की शुरू कर दी. जैसे जैसे मेरी जांघों के पास पहुँची मेरी दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. मेरा लंड धीरे धीरे हरकत करने लगा. अब भाभी पैट पर और लंड के चारों तरफ जांघों पर मालिश करने लगी. मेरा लंड बुरी तरह से फंफनाने लगा. ढीले लंड से भी अंडरवेर का ख़ासा उभार होता था. अब तो ये उभार फूल कर दुगना हो गया. भाभी से ये छुपा नहीं था और उनका चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था. खन्खिओ से उभार को देखते हुए बोली " रामू, लगता है तेरा अंडरवेर फॅट जाएगा. क्यों क़ैद कर रखा है बेचारे पन्छि को. आज़ाद कर दे." और यह कह कर खिलखिला कर हंस पारी. " आप ही आज़ाद कर दो ना भाभी इस पन्छि को. आपको दुआएँ देगा." " ठीक है मैं इसे आज़ादी देती हूँ" ये कहते हुए भाभी ने मेरा अंडरवेर नीचे खैंच दिया. अंडरवेर से आज़ाद होते ही मेरा 10 इंच लंबा और 5 इंच मोटा लंड किसी काले कोब्रा की तरह फंफना कर खड़ा हो गया. भाभी के तो होश ही उड़ गये. चेहरे की हँसी एकदम गायब हो गयी. उनकी आँखें फटी की फटी रह गयी. मैने पूछा, " क्या हुआ भाभी? घबराई हुई सी लगती हो." " बाप रे… ! ये लंड है या मूसल ! किसी घोड़े का लंड तो नहीं लगा लिया? और ये अमरूद? उस सांड़ के भी इतने बड़े नहीं थे." " भाभी इसकी भी मालिश कर दो ना." भाभी ने ढेर सा तैल हाथ में लेकर खड़े हुए लंड पे लगाना शुरू कर दिया. बड़े ही प्यार से लंड की मालिश करने लगी. " रामू तेरा लंड तो तेरे भैया से कहीं ज़्यादा बड़ा है. सच तेरी बीवी बहुत ही किस्मत वाली होगी.एक लंबा मोटा लंड औरत को तृप्त कर देता है. तेरा तो…." " भाभी आप किस बीवी की बात कर रहीं हैं? इस लंड पे सबसे पहला अधिकार आपका है." " सच ! देख रामू, मोटे तगड़े लंड की कीमत एक औरत ही जानती है. इसको मोटा तगड़ा बनाए रखना. जब तक तेरी शादी नहीं होती मैं इसकी रोज़ मालिश कर दूँगी." " आप कितनी अच्छी हैं भाभी. वैसे भाभी इतने बारे लंड को लॅव्डा कहते हैं." " अच्छा बाबा, लॅव्डा. सुहागरात को बहुत ध्यान रखना. तेरी बीवी की कुँवारी चूत का पता नहीं क्या हाल हो जाएगा. इतना मोटा और लंबा लॉडा तो मेरे जैसों की चूत भी फाड़ देगा. " “यह आप कैसे कह सकती हैं? एक बार इसे अपनी चूत में डलवा के तो देखिए.” “हट नालयक.” भाभी बड़े प्यार से बहुत देर तक लंड की मालिश करती रही. जब मुझसे ना रहा गया तो बोला " भाभी आओ मैं भी आपकी मालिश कर दूं." " मैं तो नहा चुकी हूँ." " तो क्या हुआ भाभी मालिश कर दूँगा तो सारी थकावट दूर हो जाएगी. चलिए लेट जाइए." भाभी को मर्द का स्पर्श हुए तीन महीने हो चुके थे. वो थोड़े नखरे कर के मान गयी और पैट के बल चटाई पर लेट गयी. " भाभी ब्लाउस तो उतार दो तैल लगाने की जगह कहाँ है. अब शरमाओ मत. याद है ना मैं आपको नंगी भी देख चुका हूँ." भाभी ने अपना ब्लाउस उतार दिया. अब वो काले रंग के ब्रा और पेटिकोट में थी. मैं भाभी की टाँगों के बीच में बैठ कर उनकी पीठ पर तैल लगाने लगा. चुचियो के आस पास मालिश करने से वो उत्तेजित हो जाती. फिर मैने ब्रा का हुक खोल दिया और बड़ी बड़ी चुचिओ को मसल्ने लगा. भाभी के मुँह से सिसकारी निकलने लगी. वो आँखें मूंद कर लेटी रही. खूब अच्छी तरह चुचिओ को मसल्ने के बाद मैने उनकी टाँगों पर तैल लगाना शुरू कर दिया. जैसे जैसे तैल लगाता जा रहा था, पेटिकोट को उपर की ओर खिसकाता जा रहा था. मेरा अंडरवेर मेरी टाँगों में फसा हुआ था, मैने उसे उतार फेंका. भाभी की गोरी गोरी मोटी जांघों के पीछे बैठ कर बड़े प्यार से मालिश की. धीरे धीरे मैने पेटिकोट भाभी के नितंबों के उपर सरका दिया. अब मेरे सामने भाभी के विशाल चूतर थे. भाभी ने छ्होटी सी जालीदार नाइलॉन की पारदर्शी काली कछि पहन रखी थी जो कुच्छ भी छुपा पाने में असमर्थ थी. उपर से भाभी के चूतरो की आधी दरार कछि के बाहर थी. फैले हुए मोटे चूतर करीब पूरे ही बाहर थे. चूतरो के बीच में कछि के दोनो तरफ से बाहर निकली हुई भाभी की लंबी काली झटें दिखाई दे रही थी. भाभी की फूली हुई चूत के उभार को बड़ी मुश्किल से कछि में क़ैद कर रखा था. मैने उन मोटे मोटे चूतरो की जी भर के मालिश की जिससे कछि छूटरो से सिमट कर बीच की दरार में फँस गयी. अब तो पूरे चूतर ही नंगे थे. मालिश करते करते मैं उनकी चूत के आस पास हाथ फेरने लगा और फिर फूली हुई चूत को मुट्ठी में भर लिया. भाभी की कछि बिल्कुल गीली हो गयी थी. " इसस्स…. आआ…. क्या कर रहा है. छोड़ दे उसे, मैं मर जाउन्गि. तू पीठ पर ही मालिश कर नहीं तो मैं चली जाउन्गि." V
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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