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ये एक लंबी कहानी है और कई भागों में आएगी, यह कहानी काल्पनिक है और एक ऐसे लड़की की है जो अपने ससुराल वालो से परेशान होकर तंत्र की दुनिया में कदम रखती है और उसके बाद अपने सारे ससुराल वालों को वश में करती है ।
अध्याय १ : पृष्ठभूमि
यदु परिवार, जिसमें 6 सदस्य है एक सामान्य परिवार है जिनकी आर्थिक स्थिति वर्तमान में उनके बड़े बेटे के बिज़नेस अच्छा चलने से सुधरी है। पहले गाँव में रहते थे और किसानी का काम करते थे पर लड़के के शादी में दिक्कत होने के कारण सब सभी शहर में शिफ्ट हो गए थे फिर शादी के बाद अपना मकान बना कर शहर में रहने लगे ।
पात्र परिचय इस प्रकार है :
प्राची : इस कहानी की मुख्य किरदार है व यदु परिवार की बड़ी बहू है , इनकी उम्र अभी 34 की है और एक बच्चे की मां हैं । रंग हल्का सांवला और तीखी नैन नक्श की हैं इनका शरीर भी कसा हुआ है।
आशीष : प्राची का पति , सामान्य कद काठी का लड़का उम्र 36 साल । ये भी हल्का सांवला और कसे बदन का है । ख़ुद का व्यवसाय चलता है और अच्छा पैसा भी कमाता है ।
मंजु : प्राची की सास है उम्र लगभग 53 साल और ढीले बदन की गोरी महिला हैं , ये आदत में काफ़ी स्ट्रिक्ट और अपनी बात मनवाने वाली औरत है ।
खेमू : प्राची का ससुर है , लंबा चौड़ा और हट्टा कट्टा आदमी है उम्र 56 साल और ये किसानी का काम करने अपना ज़िंदगी चलाये है ।
सत्यम : प्राची का देवर है किसी फर्म के लिए ऑनलाइन कम करता है । दिखने में आशीष के समान ही कद काठी का है बस आशीष से पतला दुबला है ।
साल 2023 में यदु परिवार अपने बड़े लड़के के लिए रिश्ते खोज रहे थे लेकिन जैसी लड़की इनको चाहिए थी वैसे लड़की मिलने में बहुत समस्या हो रही थी खासकर मंजू देवी के कारण जिसको अपनी बहु बहुत सुंदर और पैसे वाले खानदान से चाहिए थी इसीलिए पसंद की लड़की मिलने में मुश्किल हो रही थी बहुत समय बीतने के बाद आशीष ने ऑनलाइन प्राची को ढूंढा जो दिखने में सामान्य थी और बहुत पैसे वाली भी नहीं थी लेकिन वो बीटेक की हुई थी और आशीष ख़ुद जो काम के चक्कर में कॉलेज नहीं जा पाया था वो चाहता था की उसकी बीवी पढ़ेलिखी हो ताकि अपने पैसेवाले और पढ़े लिखे दोस्तों के बीच उसका भी रौब बन सके । प्राची के पिता एक चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी थे और तीन बेटियों के बाप थे जिसने प्राची दूसरे नंबर की बेटी थी । प्राची के घर की मुखिया उसकी माँ शीला थी उनके घर में उसकी माँ का ही चलता था । शीला चाहती थी की उनकी तीनो बेटियों की शादी बेटियों के पसंद से ही हो । प्राची भी आशीष से बात करके उसको पसंद कर ली हालाकि उसको ये बात चुभती थी की लड़का पढ़ा लिखा कम है लेकिन उसके पैसे देख के उसके आशीष को हाँ कर दिया ।
इधर आशीष ने भी अपनी माँ मंजू को समझाने की कोसिस की, मंजू देवी को लड़की और उसका परिवार पसंद नहीं आ रहा था उसको पता था की लड़की केवल पैसे के लिए ही इससे शादी कर रही है, लेकिन बेटे के ज़िद के आगे वो झुक गई और उसने भी अपनी हामी भर दी ।
आशीष अच्छा पैसा कमाता था और शादी के लिए उतावला भी था इसलिए शीला ने इसका खूब फ़ायदा उठाया , सारा खर्च आशीष को ही करवाया और ऊपर से दहेज के नाम पर केवल अपनी बेटी को सोना ही दे दिया , ये बात मंजू अच्छे से समझ गई और इस बात से प्राची और उसके परिवार के लिए मंजू के दिल में चिढ़ सा बैठ गया ।
शादी के एक साल बाद प्राची को बच्चा भी हो गया और उसके बाद काम और जिम्मेदारी बढ़ने से घर में खट पट भी बढ़ती गई । मंजू आय दिन प्राची को कुछ ना कुछ बहाने निकाल के ताने मारती और प्राची भी समय समय पर उनका जवाब देने लग गई थी। लड़ाई का सिलसिला अब आशीष तक पहुँच गया और प्राची और आशीष भी घरेलू लड़ाई के कारण अपना रिश्ता कड़वा कर रहे थे । सास के लड़ाई तो प्राची को उतना परेशान नहीं करती लेकिन आशीष के साथ हुई लड़ाई उसे अंदर से डर से भर देती । एक साल लगभग वैसे ही कटा प्राची लड़ाइयों को अपनी माँ या बहन को नहीं बताती थी क्योंकि प्राची की बड़ी बहन के ससुराल में भी लड़ाई हुई थी तो उसकी माँ शीला के अड़ंगे डालने से लड़ाई और बढ़ गई और उसकी बहन छह महीने तक मायके में थी , प्राची आशीष से अलग नहीं रहना चाहती थी इसीलिए चुपचाप लड़ाई को सहती हुई चली आ रही थी । पर लड़ाइयों का सिलसिला थम ही नहीं रहा था , मंजू का साथ आशीष के साथ खेमू और देवर भी देने लगे थे और प्राची का सब्र का बांध तो तब टूटा जब बात मार पीट पर आ गई , आशीष की सहन शक्ति खत्म होते जा रही थी और प्राची के चुप चाप रहने के कारण भी आशीष और मंजू की हिम्मत बढ़ते गई और मार पीट रोज़ाना की बात बनते चले गई और एक दिन प्राची लड़ के मायके चली आई । मायके में शीला को जाके सारी आप बीती सुनाई । शीला को अंदाज़ा ही नहीं था कि बात इतनी ख़राब हो चुकी है । प्राची को शीला ढाँढस बंधा कर कुछ दिन शांति से रहने दिया फिर शीला प्राची से पूछती है : आगे क्या सोचा है बेटा , उन लोगो के साथ रहना है या तू अलग होके रहेगी ?
प्राची: मैं अकेले होती तो कब का छोड़ दी होती लेकिन अपने बच्चे के कारण मुझे उन लोगो को छोडने का मन नहीं है ।
शीला : लेकिन ऐसे मार खा के भी तो नहीं रह सकती । आशीष का कहीं बाहर चक्कर तो नहीं है ?
प्राची : मुझे नहीं पता वो अब कुछ बात ही नहीं करता मेरे से , मेरी सास ने उसके कान भर के रखे है ।
शीला : लेकिन पहले तो वो तुमसे प्यार करता था ना ?
प्राची : हाँ करता था लेकिन मुझे भी नहीं पता अब क्या हुआ है ?
शीला : तो तू क्या चाहती है ?
प्राची : मैं चाहती हूँ कि सब ठीक हो जाए और मेरा बच्चा अपने बाप के साथ रहे ।
शीला : मैं और तेरे पापा तेरी समस्या लेके गोसाईं जी के पास जाने का सोच रहे है , उनसे बात करके कुछ ना कुछ हल जरूर निकलेगा ।
प्राची : नाना के गाँव वाले बाबा ?
शीला : हाँ , आख़िर बार जब तेरी बहन के शादी में दिक्कत आई थी तो बाबा ने ही निराकरण दिया था और अब तेरी बहन ख़ुश है ।
प्राची : मुझे इन सब पर विश्वास नहीं होता है लेकिन आप लोग जाना चाहो तो चले जाओं ।
प्राची को ये मालूम था कि हर साल दिवाली के बाद इनके माँ और पिता जी दोनों बाबा के पास जाते थे लेकिन वो या उसकी कोई भी बहन आज तक बाबा के पास नहीं गए थे । प्राची का नाना गाँव में भी जाना कम ही हुआ था क्योंकि बचपन में ही नाना और नानी दोनों गुज़र गए थे और इनका कोई मामा था नहीं, इनकी माँ शीला की एक छोटी बहन है जो अब शहर में रहती है । शीला बाबा को गोसाईं जी कहके पुकारती थी और बहुत मानती थी हालाकि उनके घर में बहुत ज़्यादा पूजा पाठ का माहौल नहीं था लेकिन बाबा को शीला हर मुसीबत में याद करती ही थी । प्राची के नाना गाँव शहर से लगभग दो सौ किलोमीटर अंदर जंगल के गाँव में था , मुश्किल से वहाँ बीस घर हुआ करते थे और लगभग सौ लोगो का ही गाँव था ।
अगले रविवार को सुबह सुबह शीला अपने पति के साथ गाँव के लिए रवाना होती है, प्राची को पता था की इनलोगों को कम से कम दो दिन लगेंगे वापस आने में क्योंकि बाबा हर दिन नहीं मिलते थे कई बार उनसे मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था।
मंगलवॉर को शीला वापस घर आई , प्राची को ये सब में यकीन तो नहीं था लेकिन वो भी अंदर से चाहती थी किसी भी तरह उसकी ज़िंदगी वापस पटरी पर आ जाए ।
प्राची शीला के पास जाके पूछती है : क्या हुआ ? बाबा मिले ?
शीला : हाँ उनसे मुलाक़ात हुई
प्राची : तो कुछ हल बताए ?
शीला परेशान होते हुए : नहीं ,उनका कहना है कि तुम्हारी लड़ाई पूरे परिवार से है और चार पाँच लोगो को एक साथ अपने वश में इतने दूर से नहीं किया जा सकता है ।
प्राची : मुझे पता ही था ये सब से कुछ नहीं होता ।
शीला : गोसाईं जो को तू हल्के में मत ले अगर कौन डोंगी रहते तो हमारे परेशानी में हमे लूटने की कोसिस करते लेकिन इन्होंने साफ़ साफ़ बोल दिया की नहीं हो पाएगा ।
प्राची : तो अब मैं क्या करूँ ? आज मुझे आये हुए दो हफ़्ते हो गया लेकिन आशीष को तो जैसे कोई मतलब ही नहीं है । अब मैं हमेशा यहाँ तो नहीं रह सकती ।
शीला : एक काम करते है , उनके परिवार के साथ मीटिंग करते है और सामने सामने साफ़ साफ़ बात करेंगे ।
प्राची : हाँ ये करके देख लो लेकिन वो शायद ही मानेंगे ।
शीला ने अपने पति को बोलके उनके परिवार से मीटिंग तय किया , आशीष के पापा भी नहीं चाहते थे की आशीष अपनी बीवी बच्चो से दूर रहे इसीलिए उन्होंने मीटिंग के लिए हाँ कर दी । मंजू देवी , खेमू और आशीष तीनो मीटिंग करने प्राची के घर आए । मंजू देवी ने अपनी परेशानी सबके सामने बताई और शीला ने प्राची का पक्ष रखा , आशीष ने भी अपनी समस्या बताई , बातों बातों में सब एक दूसरे के गहरे झख़म को खुरचने लगे और बात शांत होने के जगह ज़्यादा बढ़ गई । प्राची और आशीष दोनों अपने में अड़े रहे , शीला और मंजू भी एक दूसरे की बात समझने की कोसिस ही नहीं कर रहे थे अंत में आशीष अपना परिवार को लेके वापस चला जाता है और जो मीटिंग झगड़ा खत्म करने के लिए रखी गई थी वो झगड़ा और बढ़ा देती है । अगले दो दिन बाद आशीष प्राची को डाइवोर्स का नोटिस भेज देता है जिसको देख के प्राची और शीला दोनों के पाओं तले ज़मीन खिसक जाती है । प्राची का रो रो के बुरा हाल था , शीला अपने बेटी की ये हालत देख के समझ जाती है कि ये आशीष से अलग नहीं रह सकती और तय करती है की अब समय आ गया है की प्राची को तंत्र की दुनिया से रूबरू कराया जाए जो इतने सालों तक शीला अपने बच्चों से छुपा के रखी थी ।
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Zabardast plz continue,thank u so much
Keep regularly updating it
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अध्याय २ गोसाई जी
रात में खाने के बाद शीला प्राची के कमरे में जाती है
शीला : आज मैं यही सो रही हूँ ।
प्राची : नहीं आप अपने कमरे में ही सोइए मैं ठीक हूँ ।
शीला : नहीं बेटा आज मैं तुम्हारे साथ ही सोने वाली हूँ ।
प्राची बच्चे को सुला के और सब काम करके बिस्तर पर आती है । उसे शीला का वहाँ होना अच्छा भी लग रहा था क्योंकि वो अकेले और निसहाय महसूस कर रही थी ।
शीला : बेटा तेरा जीवन को पटरी पर लाने का एक तरीका है मेरे पास ।
प्राची : अब इतना लड़ाई होने के बाद मुझे लगता नहीं की कुछ ठीक होगा ।
शीला : देख लोग दो तरह के होते है एक तो दबने वाले और दूसरे दबाने वाले, तू अभी तक इनसे दब के चल रही थी और तेरी ज़िंदगी सही नहीं चल रही थी लेकिन अब तू इनको दबा के चलेगी फिर देखना कैसे सब ठीक होता है ।
प्राची : मैं कुछ समझी नहीं अब ये लोग क्यों मेरे से दबने लगे ?
शीला : लगेंगे और देखना सब तेरे इशारों पर नाचेंगे भी ।
प्राची : कैसे ?
शीला : तंत्र से ।
प्राची : लेकिन बाबा तो पहले ही हाथ खड़ा कर चुके है ?
शीला : हाँ लेकिन गोसाईं जी ख़ुद नहीं करेंगे लेकिन तेरे को सिखायेंगे और एक एक करके तू सबको अपने वश में कर सकती है ।
प्राची : मुझे इन बातों में यकीन नहीं माँ, पता नहीं क्यों आपलोग इन चक्करों पड़े रहते हो ।
शीला : बेटा बहुत साल पहले जब तेरे नाना की तबीयत ख़राब थी उसी समय तेरी नानी ने तंत्र सीखा था उसके कुछ साल बाद मैंने भी गोसाईं जी से दीक्षा ली और तब से हमारे जीवन हमारे कंट्रोल में चल रहा है ।
प्राची चौकते हुए पूछती है : क्या आप भी ? तंत्र मंत्रा जानते हो ?
शीला : हाँ .
प्राची : मुझे तो एहसास भी नहीं था की ये सब चीज़ें आपको आती होंगी ?
शीला : इसीलिए मैं एक अच्छी तांत्रिक हूँ जिसको अपनी विद्या छुपानी आती है ।
प्राची : तो आप ही मुझे सीखा दो ?
शीला : गोसाईं जी के बहुत से शिष्य और शिष्या है तुम भी उन्ही से दीक्षा लो । यही सबसे अच्छा रहेगा ।
प्राची : करना क्या होगा ?
शीला :अपने आप को बदलना होगा । समर्पण करना होगा और गोसाईं जी के आदेशों को मानना होगा ?
प्राची : कैसा समर्पण ?
शीला : सब कुछ । तुम्हारे प्यार और नफ़रत दोनों को गोसाईं जी मिटा देंगे और तुमको एक नया इंसान बनायेंगे जिसके कारण तुम आसानी से दूसरों पर नियंत्रण रख पाओगी ?
प्राची : मतलब मेरे ससुराल वालो पर ?
शीला : उनपर भी और जिसपर भी तुम चाहो ।
प्राची थोड़ा खुश होती है क्योंकि उसके मन में एक आशा की किरण शीला ने जगा दी थी लेकिन उसके मन में बहुत से सवाल होते है जो वो क्लियर करना चाहती थी ।
प्राची : कितने दिनों तक गोसाईं जी सिखाते है ?
शीला : लगभग इक्कीस दिनों तक ।
प्राची : उसके बाद में मैं सब तंत्र सीख जाऊँगी ?
शीला : वो अथाह सागर है जो तुम उम्र भर सीखती रहोगी । गोसाईं जी केवल तुमको मूलभूत चीज़ें सिखायेंगे ।
प्राची : क्या ये सही में काम करेगा माँ ?
शील : हाँ बेटा लेकिन इसको अपनी सारी ताक़त लगा के सीखना ये तुम्हारी आख़िरी रास्ता है और एक बार तंत्र की दुनिया में गए तो वापस भी नहीं आ पाओगी । इसमें पागलपन से मौत तक सब कुछ संभव रहता है , सम्भाल के सीखना, गुप्त रखना और जरूरत होने पर ही इस्तेमाल करना बस यही इसमें सुरक्षित चलने का मंत्र है ।
प्राची : हम कब से शुरू करे ?
शीला : इस इतवार हम लोग गोसाईं जी के पास जाते है ।
प्राची अब शांत होके सोचती है कि कितना अच्छा होगा जब आशीष और उसकि माँ प्राची की बात मानेंगे और वो यही सब सोचते सोचते सो जाती है । प्राची को ये एहसास ही नहीं था की वो क्या बनने वाली है और ये तंत्र की दुनिया कितनी खतरनाक है ।
रविवार
सुबह चार बजे शीला , प्राची और उसके पिता जी गाँव के लिए निकलने है । कार में प्राची सोचती है कि आज लगभग पंद्रह साल बाद वो अपने नानी के गाँव में जा रही है वहाँ अब सब कुछ बदल चुका होगा । कार लगभग साड़े आठ बजे गाँव में पहुँचती है प्राची देख के हैरान थी की यहाँ कुछ भी नहीं बदला, उतने ही घर वही जंगल और एकदम ख़ाली गाँव। कुछ झोपड़ियों को पार करके वो एक कच्चे मकान में रुकते है जो उसकी नानी का घर था । घर में अब कोई नहीं रहता था लेकिन घर साफ़ सुथरा था क्योंकि शीला गाँव के एक आदमी को कुछ पैसे दे कर उसको साफ़ सुथरा रखवातीं थी । घर के अंदर दो रूम और किचन था । एक रूम में जाके पिता जी लेट गए और प्राची और शीला घर से लगे बाडी में पीछे चले गए ।
शीला : बेटा आज से तेरी नई जिंदगी शुरू होगी । तू अब अपने आप को ढालने के लिए त्यार रह ।
प्राची : मैं क्या करूँ ?
शीला : शर्माना छोड़ दे ।
शीला ये बोलते हुए अपनी साड़ी ऊपर करती है प्राची के सामने ही बैठ के पेशाब की तेज़ धार छोड़ते हुए बोलती है : हम इंसान अपने आप को बहुत नियमों से बांधे हुए है लेकिन हम है तो जानवर की तरह ही । तंत्र विद्या हमको अपने मूल स्वभाव में रहना सिखाती है ।
इतना बोलने के बाद मूत्र की धार बंद होती है और शीला उठ के सादी बीच करके खड़ी हो जाती है । प्राची का ध्यान शीला के बातों में कम और उसकी शरीर में जायदा था पहली बार उसने अपनी माँ के चूत को देखा , एकदम चिकना , बिना बाल के और पचास के उम्र में भी तीस साल थी औरतों जैंसा शरीर था । खैर प्राची ने ये तो सुन रखा था कि तंत्र मंत्र वाले लोग शर्म हया छोड़ देते है लेकिन उसको लगा की साफ़ सुथरा रहते होंगे इसीलिए अपनी माँ को प्राची ताकते हुए बोली : आप बिना धोए कैसे खड़े हो गए ।
शीला : यही तो तुमको सीखा रही की अब जानवरो जैसा व्यवहार सीखो । अपने मन की सुनो और अपनी इच्छा पर ज़्यादा ध्यान दो ना की समाज ने तुमको जो सिखाया है उस पर। तुम्हारा शरीर तुमको ख़ुद बताएगा की कब क्या करना है । चलो तुम भी। चार घंटे से कार में हो पेशाब कर लो ।
प्राची : अपना साड़ी ऊपर और पैंटी नीचे करती है और नीचे बैठ कर पेशाब की धार छोड़ना चालू करती है ।
शील लगातार प्राची के चूत को घूरते रहती है जिसके कारण प्राची शर्मा भी जाती है लेकिन वो दिखाती नहीं क्योंकि उसको पता था कि शीला उसे क्या सिखाना चाह रही है । प्राची पेशाब करके जैसे ही उठ रही होती तो शीला उसको उसकी पेंटी माँगती है ।
प्राची चुप चाप पेंटी शीला को दे देती है और शीला अंदर कमरे में आके पेंटी उसके पापा को दे देते है जो बिना कुछ बोले उसको बैग में रखते है । प्राची शर्म में तार तार हो जाती है लेकिन कुछ नहीं कहती । रास्ते से आते समय ही खाने का कुछ सामन रख लिया था उसी को खा के लगभग ग्यारह बजे शीला और प्राची दोनों गोसाईं जी के घर के लिए निकलते है , पिताजी अपने रूम में ही आराम कर रहे होते है ।
प्राची रास्ते में शीला से पूछती है : पापा को पता है आपके तांत्रिक होने की बात ?
शीला : हाँ उनको सब पता है ।
प्राची : उनको आपत्ति नहीं है ?
शीला : कैसे हो सकती है , तुम भी सीखो देखो फिर आशीष को तुम्हारे किसी चीज़ में आपत्ति ही नहीं होगी ।
शीला आगे आगे और प्राची उसके पीछे जंगल में अंदर पगडंडी में चले जा रहे कुछ देर चलने के बाद उनको एक झोपड़ी दिखाई दी जहाँ बाहर एक औरत अनाज साफ़ कर रही थी वो शीला को देख के खड़े हुई और पास एक पैर छू कर शीला से आशीर्वाद लिया । प्राची को अब ये ज़्यादा हैरानी की बात नहीं लग रही थी उससे एहसास था कि उसकी माँ इस गाँव की पुरानी रहने वाली है तो सब उसे जानते ही होंगे । शीला ने प्राची को उससे मिलवाया उसका नाम नैनी था, वो गोसाईं जी के शिष्या थी । नैनी ने बताया कि गोसाईं जी अंदर है , शीला प्राची को चलने का इशारा किया और दोनों अंदर झोपड़ी में घुस गए । अंदर एक सफेद दाढ़ी में धोती पहने, पतले लेकिन लगभग छह फीट ऊंचे गोसाईं जी समाधि लगा के बैठे थे । शीला दण्डवत होके उनको प्रणाम किया और प्राची ने भी वैसे ही किया । गोसाईं जी ने आँख खोली और शांत स्वर में कहा : शीला ? तू आ गई फिर ?
शीला : प्रणाम। मेरी बेटी आपसे दीक्षा लेना चाहती है , इसकी तकलीफ़ भी दूर कर दीजिए ।
गोसाईं जी का नज़र शीला पर टिका रहता है और कहते है : आज कल के लड़कियां अब इस दीक्षा को नहीं सीख पाएगी, उतना सब्र और समर्पण नहीं है ।
इतने में प्राची शीला को काटते हुए कहती है : मैं सीखना चाहती हूँ गोसाई जी मैं वो सब करूँगी जो आप कहोगे । मैं सब्र और समर्पण पूरा दिखाऊँगी ।
गोसाई जी: अच्छा है जिसको करना है वो ही बात करे ? सीख के क्या करोगी ?
प्राची: मुझे अपना जीवन सही करना है ।
गोसाईं जी: किसी से बदला लेना है?
प्राची : नहीं गोसाईं जी । मैं चाहती हूँ कि मेरा बच्चा अपने बाप के साथ अच्छे से रहे ।
गोसाईं जी : जब सीखने आओगी तो बच्चा कहाँ रहेगा ?
शीला: मेरे पास ।
गोसाईं जी: महीना कब आया था आख़िर ?
प्राची इन सवालों के लिए तैयार थी क्योंकि शीला के बात उसको समझ आ गई थी कि शरम हया छोड़ना होगा ।
प्राची: तीन हफ़्ते हो गए ।
गोसाईं जी: तुम लोग अभी गुफा में चलो ।
गोसाईं जी अपना आँख बंद कर लेते है । शीला प्राची को उठने का इशारा करती है और बिना कुछ कहे झोपड़ी से बाहर निकल कर जंगल में अंदर चलने लगती है प्राची बिना कोई सवाल के शीला के पीछे चलती है पास में ही एक गुफा के बाहर जाकर शीला अपना साड़ी और ब्लाउज़ उतार के एक पेड़ पर रखती है और प्राची को भी वैसे करना का इशारा करती है । प्राची के नंगी होने के बाद शीला प्राची को आगे जाने के लिए कहती है गुफा में एक बार में एक ही आदमी घुस सकते थे और प्राची के पीछे पीछे शीला भी घुसती है । गुफा के अंदर एक कमरे का जगह था मशाल जल रही थी , गुफा ठंडी और एकदम शांत थी , नीचे ज़मीन में नर्म मिट्टी और आगे एक पत्थर में चीते का खाल था जिसमे गोसाईं जी बैठते थे । शीला और प्राची दोनों मिट्टी पर बैठ गए । दोनों का बदन साँवला और आग की रोशनी में सोने सा चमक रहा था । प्राची का कसा हुआ और शीला का गदराया बदन का चमक अलग अलग थी लेकिन जहाँ शीला का बदल बिना बाल के था प्राची पे चूत और गांड में जंगल बना हुआ था । प्राची अपनी माँ की खूबसुरती देख के दंग थी और साथ ही उसे अपने बाल बढ़े होने के कारण शरम भी आ रही थी ।
थोड़े देर में ही गोसाईं जी गुफा के अंदर आये, वो केवल धोती में थे उनका शरीर पूरा काला था और उम्र लगभग 65 की थी बदन चुस्त और कसा हुआ था , गोसाईं जी का शरीर पतला और ऊँचाई 6 फीट से ज़्यादा की थी । गोसाईं जी का व्यक्तित्व आकर्षक था प्राची जैसे जवान औरत को भी उनका डील डौल देख के उनके प्रति सम्मोहन सा हो गया ।
गोसाईं जी सामने पत्थर की आट पर जा के विराजे और बोले : जब तुम्हारा महीना ख़त्म होगा तब तुम वापस आना 21 दिन की पूजा होगी , पूरे मन से करना होगा , बिना सवाल किए और आज से तुम केवल दो वक्त का खाना खाओगी पूजा तक जिसमे हरे पत्ते की सब्जी और सलाद होगी, हल्दी का प्रयोग नहीं करना है , किसी भी प्रकार की दवाई नहीं लोगो और ना ही किसी प्रकार का नशीला सामान । संभोग भी नहीं लेना है और ना ही हस्तमैथुन । महीना चालू होते ही बच्चे को अपना दूध पिलाना बंद कर देना ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
गोसाई जी प्राची को देख कर : तुम अपना सारा ध्यान अब दीक्षा लेने में लगाओं जो भी पारिवारिक समस्या है वो सब भूल जाओ ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
गोसाईं जी : अब आशीर्वाद लेके तुम लोग चले जाओ ।
इतना बोलके गोसाईं जी अपने आट पर किसी कुर्सी में बैठने वाले अवस्था में बैठ के आँख मूँद लेते है , शीला घुटनों में चल कर गोसाईं जी के पास जाते है और बैठे बैठे ही उनके धोती में हाथ डाल कर उनके लिंग को सहलाते है , प्राची देखती है कि गोसाईं जी के मुंह का भाव वही बना रहता है और शीला लिंग में हाथ फेरते हुए धोती को हटा देते है प्राची के सामने गोसाईं जी का लटकता हुआ लिंग होता है, काला और चमकता हुआ जैसे रोज़ उसने तेल की मालिश होती हो , प्राची ने आजतक केवल आशीष का लिंग ही सामने से देखी होती है और उसके मुक़ाबले में ये लटका हुआ लिंग आशीष के उत्तेजित लंड से ज़्यादा बड़ा और मोटा था , अंडे आशीष के दो के बराबर इनका एक था और ज़लटका हुआ था । अंडे की चमक ऐसी थी कि प्राची का मन उसको गुलाब जामुन की तरह मुंह में लेके चूसने को कर गया । शीला के बार बार हाथ फेरने पर भी गोसाईं जी का लिंग उत्तेजित अवस्था में नहीं आया और शीला ने लिंग माथे में लगा के प्राची को भी ऐसे ही आशीर्वाद लेने को कहा । प्राची उठी और लिंग को अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी , प्राची को लगा कि वो जैसे किसी मलमल के थैले पर लगा रही है , प्राची का हाथ पड़ते ही गोसाईं जी को भाँओ में थोड़ा सिकुड़न हुआ शायद किसी नए हाथ के चयन के कारण और प्राची ने लिंग को माथे से लगा कर छोड़ दिया । प्राची उठ कर जाने लगी और शीला उसके पीछे मुड़ी तभी गोसाईं जी खड़े होकर शीला को पीछे से पकड़ लिया और झुका दिया शीला ने अपनी गांड और चूत ऊपर उठाकर झुक के खड़े हो गई । प्राची ने हलचल महसूस करके पीछे देखा , अपनी माँ को झुके हुए और गोसाईं जी पीछे से अपना कमर उसकी माँ के कमर से मिला दिया था , आँखे बंद थी लेकिन दोनों में से कोई भी हिल डुल नहीं रहे थे । वैसे ही लगभग 10 मिनट रहने के बाद गोसाईं जी के हाथ पैर अकड़ गए जानो वो अपने लिंग को और अंदर धकेल रहे हो और शीला की चीख निकल गई । गोसाईं जी अलग होके वापस अपनी जगह पर बैठ गए और शीला अपने जगह पर नंगी खड़ी पैर काँप रहे थे और कंघी में चूत का पानी बह रहा था। शीला ने प्राची को चलने का इशारा किया दोनों बाहर आकर अपना कपड़ा पहने । प्राची के मन में बहुत सवाल था लेकिन वो शीला से इस वक्त पूछना उचित नहीं समझी । वापस घर एट तक शाम हो गई , उनके पापा उसी रूम में ही आराम के रहे थे । इनके अति ही सारा सामान कार में डाल के वापस शहर के लिए निकल गए । शीला कार में भाईचारे ही सो गई और प्राची अभी भी ये समझने की कोसिस में थी की वो सही कर रही है या नहीं ।
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अध्याय ३ प्राची की गुफा में पहली रात
प्राची को उसके माँ बाप तय समय में वापस गाँव ले आते है । प्राची ने अपनी माँ को चुदते हुए देख के समझ लिया था की उसका हाल भी वही होने जा रहा है । वो वापसी में डरी हुई भी थी लेकिन उसने गोसाईं जी के लंड को हाथ में जब से लिया था तब से उनसे संभोग के लिए तरस रही थी । डर के ऊपर हवस हावी था । प्राची अब पूरा मन बना के आई थी कि अब जो भी हो वो उसने पूरा साथ देगी ।
गाँव पहुँचने के बाद फिर से शीला प्राची को गोसाईं जी के झोपड़ी में ले गई वहाँ नैनी बाहर ही मिली और प्राची और शीला को अंदर लेके गोसाईं जी के पास ले गई ।
गोसाईं जी : शीला कल से प्राची की दीक्षा चालू हो जाएगी । तुम अब 21 दिन बाद इसे लेने आना ।
शीला : जी गोसाईं जी ।
शीला प्राची को अंदर छोड़ के अपने घर वापस चली जाती है । झोपड़ी के अंदर गोसाईं जी नैनी से सब तैयारी के बारे में पूछते है । नैनी ने सब कुछ रेडी करके प्राची को अपने साथ बाहर ले जाती है ।
प्राची आज साड़ी और ब्लाउज पहन के आई है और अंदर कुछ नहीं जैसा की शीला ने उसे समझाया था, उसके पास इन कपड़ो के अलावा कोई सामान नहीं होता और शीला के कहे अनुसार उसने अपने अंदर के सब बाल भी साफ़ करवा लिए थे ।
नैनी बाहर प्राची को पीछे चलने कहती और पूछती है : तुमने खाने पीने में परहेज रखा था ना ?
प्राची: जी गोसाईं जी ने जैसे बोला था वैसे ही मैंने किया है ।
नैनी: बहुत अच्छा । और अपना शरीर साफ़ कर लिए हो या नहीं ?
प्राची: जी मैंने सारे बाल साफ़ करके अच्छे से अपना बदन साफ़ करके आई हूँ ।
नैनी : आज रात से दीक्षा चालू होगी । तुमको पूरा 21 दिन गुफा से निकालना नहीं है । गोसाईं जी आते जाते रहेंगे और तुमको उनकी हर एक बात पत्थर की लकीर मानके माननी पड़ेगी तभी दीक्षा सफल होगी । और तुमको कुछ पूछना है ?
प्राची सोचने लग जाती है और उसके मन में सवाल तो बहुत थे लेकिन वो जानती थी की पूछने से कोई मतलब नहीं उल्टा उसका डेयर बढ़ेगा । इसीलिए वो नैनी से बोलती है : आप की तरफ़ से कोई सलाह दे दीजिए ।
नैनी: बस जैसा बोलते है बिना सवाल करे उनको मानो , और कुछ नहीं ।
दोनों चलते चलते गुफा के बाहर आ जाते हैं । नैनी प्राची को कपड़े उतारने को कहती है । प्राची अपने सारे कपड़े उतार के नैनी को दे देती है ।
नानी: अब तुम अंदर जाके आराम करो । मैं शाम में आऊँगी ।
प्राची अंदर घुसती है, गुफा में इस बार पहले से कुछ सामान ज़्यादा होते है : एक सूती की साड़ी होती है और कुछ फल भी आट में रखे होते है । चटाई और एक घड़े में पानी और मिट्टी के ही कुल्हड़ रखे होते है । प्राची पानी पी के साड़ी लपेटती है और चटाई नीचे बिछा के उसके लेटती है । गुफा के अंदर माहौल एकदम शांत और ठंडा होता है , प्राची वैसे तो अकेले डरती है लेकिन गुफा में वो निश्चिंत होके नीचे सो जाती है। शाम होने पे नैनी ने प्राची को जगाया उसके लिए खाने के लिए हरी सब्जी और अंडा देती है । प्राची दोपहर से अब लगभग चार घंटे की नींद पूरी कर चुकी है और अब एकदम फ्रेश फील कर रही है , नैनी प्राची को समझाती है कि रात में गोसाईं जी आयेंगे और अब तुमको इस गुफा से बाहर नहीं निकलना है और इतना कह के वो वापस चली जाती है । प्राची के पास अब इंतज़ार करने के अलावा कुछ काम नहीं होता है । वो उस जगह पर गोसाईं जी और उसकी माँ की चुदाई के बारे में याद करती है, वो सोचाती है कि इस जगह कितने लोगो की चुदायी गोसाईं जी में किया होगा , और आज उसकी बारी है । वो जल्द से जल्द गोसाईं जी के नीचे आना चाहती है और आज रात में उसकी ख्वाहिश पूरी होना है ये जानती है । गुफा के अंदर समय का पता नहीं चलता , प्राची इंतज़ार करती है और इंतज़ार करते करते उसकी आँख लग जाती है । थोड़ी आहट से प्राची को नींद खुलती है वो अपने को संभालते हुए उठती है , गोसाईं जी धोती में उसके सामने होते है । प्राची उनको दंडवत प्रणाम करती है । गोसाईं जी प्राची को उठाते हुए बोलते है : अब तुमको 21 दिन तक मुझे प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं है ।
और गोसाईं जी जाके अपने आट पर बैठ जाते है । प्राची भी सामने बैठती है । गोसाईं जी: क्या तुमने मेरी बातों का पालन किया है ?
प्राची: जी ।
गोसाईं जी: बहुत अच्छा : अपने वस्त्र निकाल दो ।
प्राची सूती कपड़े को निकाल के रख देती है और पूरी नंगी गोसाईं जी के सामने खड़ी होती है ।
गोसाईं जी: आज रात से तुम्हारी दीक्षा खत्म होने तक तुम मुझसे बँधी रहोगी हर समय , हर काम तुम मुझसे पूछ के करोगी मूत्र और शौच भी । जब भी मुझे गुफा से बाहर जाना होगा तुमको बांध के जाऊँगा मेरे आने तक तुम उस बंधन को खोल नहीं सकती । नैनी जो खाना लाएगी उतना ही खाओगी , हाँ पानी जितना चाहो पी सकती हो । समय समय पर मैं तुमको नियम बताते रहूँगा तुम ध्यान से सुनना और समझना ।तुम्हारा काम अपने आप को बदलना है । तुम अपने मन को दृढ़ बना के रखो ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
इतने में गोसाईं जी एक मजबूत कपड़े की बनी रस्सी से अपना पैर और प्राची का पैर बाँध देते है । रस्सी लंबा था और दोनों आराम से उसमे चल सकते थे, गोसाईं जी प्राची से उनका धोती खोलने को कहते है । प्राची सुनके मन ही मन खुस होती है की फिर से गोसाईं जी के लिंग के दर्शन आज होंगे । वो जल्दी से धोती खोलती है और उसकी नज़र मशाल के रोशनी में चमकते लिंग पर अड़ जाती है । गोसाईं जी आट के बगल से एक बोतल नुमा बर्तन उठाते है और प्राची को कहते है कि ये एक जड़ी बूटी का रस है इसी पियों । प्राची दो तीन घुट पीती है स्वाद में नमकीन सा होता है और पीने के बाद प्राची को शरीर हल्का लगने लगता है और मन एकदम शांत ।
गोसाईं जी बर्तन को वापस उसकी जगह पर रखते है और प्राची के स्तनों को अपने हाथ में लेते है । प्राची बिना शरमाए अपने जगह पे खड़ी होती है गोसाईं जी प्राची को खींचते हुए अपने आसन में आट में बैठ जाते है और प्राची को अपनी गाड़ी में बैठा के स्तनों को सहलाने लगते है, प्राची के स्तन दूध से भरे होने के कारण एकदम सख़्त हो गए और गोसाईं जी के छुअन के कारण प्राची की चूत पानी छोडने लगती है। गोसाईं जी प्राची के स्तन में अपना मुँह रख के एक एक करके चूसना चालू करते है । प्राची कभी भी आशीष को दूध नहीं पिलाई थी इसीलिए उसको किसी मर्द के चूसने की आदत नहीं थी और यहाँ तो गोसाई जी अपना पूरा ताक़त लगा के चूस रहे थे । प्राची का दूध गोसाईं जी किसी बच्चे के तरह पीने लगे और पीते पीते उनके लिंग में सख्ती आने लगी जो प्राची पाने जांघो के पास महसूस कर रही थी । प्राची को लग रहा की अगर दूध खत्म हो जाए और ये चूसते रहे तो खून निकल जाएगा । दरअसल प्राची ने जो रस पिया था उसने ऐसी जड़ी बूटिया थी जो दर्द को कम कर देती है इसीलिए उसे बहुत ज़्यादा दर्द का एहसास नहीं हो रहा था । गोसाईं जी ने एक एक करके दोनों सस्तनों को ख़ाली कर दिया , और उनका हाथ नीचे प्राची की चूत को ओर जाने लगी प्राची उनके गोद में ही बैठे बैठे अपना पैसा खोलके गोसाईं जी को अपनी चूत सौप देती है । गोसाईं जी की उँगलिया चूत को रगड़ने लगती है इतनी सख़्त प्राची को लगता है जैसे किसी पत्थर पे अपनी चूत घिस रही हो । प्राची की चूत अब इतना पानी छोड़ रही थी कि उसके रस से गोसाईं जी का लिंग भीगने लग गया। गोसाईं जी ने प्राची को उठा कर अपना लिंक उसकी चूत में रख कर उसको बैठा देते है । गोसाईं जी का लंड अब पूरा तना था और आशीष की तुलना में लगभग दुगना लंबा और मोटा था । प्राची धीरे धीरे लिंड पे बैठती और दर्द के साथ उसके अंदर लेते रहती है जब पूरा लंड प्राची अंदर ले लेती है तो उसमे उछल उछल के मज़े लेती है । उसका पहला पराया लंड जो वो अपने नानी के गाँव मे आके ले रही है प्राची ने ऐसा कभी सोंचा भी नहीं था । प्राची पसीने से पूरी तरह से तर हो गई और गोसाईं जी को का के पकड़ के उनके लिंग पर ही झड़ जाती है । गोसाईं जी अपना लिंग अंदर रखे हुए ही प्राची को उठा के नीचे चटाई पे लेटा देते है और प्राची के अपर आके धीमे धीमे धक्का मारते है हर धक्के में लिंग की जड़ तक अंदर घुसते है और बाहर निकलती समय टोपा तक बाहर निकाल कर वापस लिंग धीरे से पूरा अंदर । लिंग जैसे पूरी लंबाई में अंदर होता प्राची को लगता की उसकी सांस अटक गई है । गोसाईं जी का धक्को की रफ़्तार और गहराई हर बार एक समान थी प्राची को जल्द ही दूसरे बार झाड़ गई । गोसाईं जी के धक्के उसी रफ़्तार से जारी रहे प्राची गोसाईं जी के पसीनों से पूरी तरह नहा चुकी थी और अब पसीने के कारण दोनों के शरीर का रगड़न भी अलग सुख दे रहा था । प्राची तीसरे बार झड़ती है और उसे लगता है अब गोसाईं जी रुकेंगे लेकिन गोसाईं जी अपने धक्के उसी रफ़्तार से जारी रखते है , प्राची को अब चूत में जलन होने लगती है और अब चूत की पानी भी तीन भर झाड़ने के कारण सूख रही होती है प्राची चाहती है की गोसाईं जी अब रुके वो हाथ से रोककर विरोध भी दिखाती है लेकिन गोसाईं जी को सीधे बोलने की हिम्मत नहीं करती , गोसाईं जी अपना धक्के जारी रखते है और प्राची जलन बढ़ता है और पेट में गोसाईं जी का वजन होने के कारण उसको लगता है की उसका मूत निकल जाएगा। प्राची दर्द से चिल्ला कर कहती है रुक जाइए गोसाईं जी मेरा मूत निकल जाएगा , गोसाईं जी धक्का तेज के देते है और रफ़्तार बढ़ा कर चोदने लग जाते है , प्राची अपना आँख बंद कर देती है और गोसाईं जी भी अपना आँख बंद करके अब पूरे रफ़्तार में छुड़ाई करते रहते है , प्राची को अब बरसात से बाहर हो जाता है और उसकी चूत से मूत की धार गोसाईं जी के लिंग के ऊपर ही छुट जाती है । गोसाईं जी नीचे में मूत्र की धार से अपना लिंग धोने के बाद उसे बाहर निकालते है प्राची निढाल होके ज़मीन पर ही पड़ी रहती है , गोसाईं जी बगल में लेट जाते है ।
प्राची थोड़े देर में होश में आके देखती है की गोसाईं जी वही सो गए है उनका लिंग और जांघ अभी भी गीला था और प्राची का भी । प्राची अचंभे में थी की कोई इतना कैसे चोद सकता है और गोसाईं जी तो झड़े भी नहीं। छुड़ाई से उसका बदन पूरा थका और दर्द से भरा हुआ था इसीलिए वो भी वही ज़मीन पर पड़े पड़े सो गई ।
सुबह सुबह गोसाईं जी ने प्राची को जगाया, प्राची की कंघे और पेट मूत्र के कारण चिप चिप कर रहा था और गोसाईं जी का भी वही हाल था ।
प्राची को उठा के वो बाहर ले चलते है , प्राची उनसे बँधी हुई गुफा के बाहर आती है । गोसाईं जी उसे थोड़ी दूर ले जाके अपने साथ शौच के लिए बैठते है प्राची दूसरे तरफ़ मुँह करके खड़ी हो जाती , गोसाईं जी उनसे कहते है तुम भी अभी कर लो फिर मैं बाहर नहीं लाऊँगा तुमको और एक चिकना पत्थर दे कर कहते है कि इससे साफ़ करना । प्राची शरम के मारे तार तार हो जाती है लेकिन जानती है कि वो सही में वापस नहीं ला सकते उनको इसीलिए उनका कहा मानती है ।
शौच करके दोनों गुफा वापस आते है और गोसाईं जी उसको बाँध के कहते है कि तुम अब ध्यान लगाओ और गुफा से बाहर चले जाते है ।
आगे और…..
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अध्याय ४ अगले दिन
प्राची ध्यान लगाने की कोसिस करती है लेकिन छुड़ाई के कारण अंग अंग में दर्द होता है ऐसा पहली बार हुआ था की प्राची एक रात में ही कई बार झड़ी हो । उसका थकान बहुत था वो थोड़े देर ध्यान लगाने की कोसिस करते करते सो जाती है ,
नैनी आके प्राची को उठाती है ।उसको पीने के लिए एक मिटी के बर्तन में काढ़ा देती है , प्राची थकान के कारण पूछती भी नहीं की क्या है और चुप चाप काढ़ा पी जाती है । काढ़ा पीने के बाद प्राची को थोड़ा आराम लगा । नैनी उसको ध्यान करना सिखाती है और कहती है कि “अभी एक हफ़्ते तक तुमको ध्यान ही लगाना सीखना होगा, मन को एकाग्र करना सीखो और गोसाई जी जो भी मंत्र देते है उनका पाठ करो बस और क्या । “
“ठीक है “ प्राची ने हामी भरा । प्राची अभी भी नंगी थी और नैनी उसके कसे बदन में कल रात की चुदाई के बाद आए सुजान को देख रही थी । उसके स्तन अब हल्के लग रहे थे और चूत फूल के पाओ रोटी के समान हो चुकी थी । नैनी गोसाईं जी के ताक़त से परिचित थी उसको पता था कि गोसाईं जी किसी नई नवेली लड़की का चोद चोद के जान भी ले सकते है , लेकिन प्राची का हाल देख के नैनी समझ गई की गोसाईं जी ने काफ़ी सम्भाल के चुदाई की है इसकी। प्राची को अब अपने नग्नता का ख्याल नहीं रहा ना ही नैनी से शरम उसे बस चूत की हल्की जलन परेशान कर रही थी । उसने नैनी से पूछा कि जलन की कोई दवा मिलेगी ? नैनी ने प्राची के चूत पे अपना ठंडा हाथ रखा और बोली की एक हफ़्ते में सब ठीक हो जाएगा मैं ज़रूरत के हिसाब से तुमको काढ़ा देते रहूँगी , अब तुम ध्यान करो और गोसाईं जी दोपहर में आयेंगे ।
दोपहर में गोसाईं जी ने आके पहले प्राची के रस्सी को खोलके अपने पैरों से बाँधा, प्राची उठ के खड़े हो गई , गोसाईं जी प्राची को चटाई में बैठने कहा और धोती खोल के आट में आसन मुद्रा में बैठे , प्राची को ध्यान लगाने की मूल बातें गोसाईं जी बताते रहे प्राची ध्यान से सुनने की कोसिस कर रही थी लेकिन बार बार उसकी नज़र गोसाईं जी के लिंग पर टिक जाती थी । लगभग घंटा भर गोसाईं जी ने प्राची को ध्यान सिखाया फिर उसको बाहर चलने बोला । दोनों वापस सुबह वाली जगह पर आते है प्राची सीधे बैठ के मूत की धार छोड़ देती है और गोसाईं जी खड़े खड़े मूत की मोटी धार लिंग से छोड़ते है , गोसाईं के लिंग किसी मोटरपंप की तरह मूत तेज़ी से बाहर छोड़ रही थी प्राची हैरान थी कि उसे अब क्या क्या नया देखना पड़ेगा और एक गोसाईं जी के ताक़त से पूरी तरह वशीभूत हो गई थी।
गोसाईं जी वापस प्राची को गुफा में छोड़ के चले जाते है । शाम में नैनी कुछ खाने का और काढ़ा ला के प्राची को देती है । खाना खा के प्राची की स्फूर्ति वापस लौट आती है वो आज फिर से चुदाई के लिए अपने आप को रेडी कर लेती है , प्राची का ध्यान अब शिर्फ गोसाईं जी के आगमन पर होती है वो गोसाईं जी का इंतज़ार लेने लग जाती है जैसे कोई पत्नी अपने पति का ।
रात में गोसाईं जी आते है , अपना धोती खोल के अलग रखते
है और प्राची के रस्सी से अपने को बांध लेते है । प्राची चुदासी हो चुकी है और अब वो जल्दी से कल जैसा चुदाई चाह रही थी।लेकिन गोसाईंजी पहले प्राची को कुछ मंत्रा देते है और उन्हें याद लेने को कहते है , प्राची मंत्र याद करती है गोसाईं जी ध्यान लगा के बैठ जाते है । लगभग आधे घंटे बाद प्राची मंत्र याद करके गोसाईं जी को बताती है । गोसाईं जी अपने ध्यान से उठते है और प्राची को अपनी गोद में बिठा लेते है , प्राची उछल के उनके ऊपर बैठ जाती और प्राची का हाथ गोसाईं जी के लिंग को सहलाने लगता है , गोसाईं जी प्राची से पूछते है कि क्या कभी उसने पीछे से चुदाई की है ? आशीष ने कोसिस की थी लेकिन दर्द के मारे मैंने माना किया और उसने कभी फिर छुआ नहीं मुझे वहाँ ।
गोसाईं जी की एक उंगली प्राची के चूत जो अब गीली थी उसके अंदर थी , प्राची को गोसाईं जी की उँगलियाँ भी लंड का एहसास देती थी । प्राची अपना मुँह गोसाईं जी से सटाती है , प्राची को किस करने की इच्छा थी लेकिन गोसाईं जी ने प्राची के मुँह को थोड़ा दूर करते हुए उसे अपनी गोद में उठाते है और हवा में ही पलट के प्राची को उल्टा करके69 पोजीशन में आ जाते है । अचानक हुए इस प्रहार से प्राची चकित रहती है लेकिन गोसाईंजी का लिंग मुंह के सामने पाके वो लपक के मुँह में ले लेती है गोसाईं जी प्राची के दोनों टांगो को अपने कंधे पे रख कर उसकी चूत का भोग लगाते है । गोसाईं जी पूरे ताक़त से चूत को खाने लग जाते है प्राची को लगता है की उसकी अंतड़ीयाँ चूत से बाहर आ जायेंगी , मुँह में लिंग को भरे हुए प्राची उसके धक्को को भी सह रही थी । कुछ देर बाद गोसाईं जी प्राची को सीधे करके खड़े कराते है और ख़ुद आट में जाके बैठ जाते है प्राची को अपनी ओर बुला के घुटनों पर बैठा कर अपना दोनों पैर प्राची के कंधों पे रखे देते है , प्राची गोसाईं जी के अंडों को अपने मग में भर के चूसती है , भरे हुए अंडे प्राची ज़ोर ज़ोर से चूसती है , थोड़ी चुसाई के बाद गोस्वामी जी प्राची के कंधे पैर से दबा के उसे नीचे जाने कहती है । प्राची ने आजतक गांड की चटाई नहीं की थी उसे ये पसंद भी नहीं था लेकिन गोसाईं जे के ताक़त के आगे वो बेसहाय थी , प्राची थोड़ा नीचे आती है और गोसाईं जी के गांड की महक उसके नथुने से होकर पूरे फेफड़े में भर जाती है , गंध तीक्ष्ण थी क्योंकि प्राची और गोसाईं जी दोनों ही साथ में सुबह अपनी गांड पत्थर से ही साफ़ किए थे , प्राची को इस बात पे घिन भी आ रही थी लेकिन उसके सामने और कोई चारा भी नहीं था , प्राची ने जीभ निकाल के पहली बार गोसाईं जी का गांड चाटा , खट्टा और कड़वा तीक्ष्ण गंध के साथ प्राची के मुंह पूरा पहली स्वाद से ही गंध से भर गया , प्राची चाटना जारी रखी थोड़ी देर में वो इस गंध की आदि हुई और अपना जीभ गोसाईं जी के गांड़ के सभी हिसो में फिरा फिरा के उनकी गांड साफ़ कर दिया । प्राची की समर्पण और अपने मन को अपने वश में रख के काम करने की लगन देख के गोसाईं जी भी ख़ुश हुए और प्राची को उठा के अपने जगह पर बैठ दिया और ख़ुद प्राची की जगह पर आ गए । गोसाईं जी ने प्राची के गांड में नाक लगा के पहले उसको महक का आनंद लिया फिर किसी भूखे भेड़िए की तरह उसके गांड पर टूट गए उन्होंने भी प्राची की गांड को जीभ से साफ़ किया । साथ साथ प्राची की छूत में उँगली करके उसको चरम सुख में पहुँचा दिया । फिर दोनों चटाई में चिपक के लेट गए । गोसाईं जी ने प्राची को समझाया कि कैसे अपने मन पे कंट्रोल करके किसी ना पसंद काम को भी किया जाए तो इससे हमारी आंतरिक शक्तियां बढ़ती है । प्राची समझ चुकी थी कि इन सब गंदे कामों का एक मात्र लक्ष्य अपने मन में पूरा । गोसाईं जी ने प्राची को कहा कि अगले दस दिन यही दिन चर्या होगी और उसके बाद मैं तुम्हारे मन में जो भी सवाल होंगे उनके जवाब दूँगा और आगे की क्रिया सीखेंगे ।
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Kya prachi dhokha nahi de rahi apne pati ko kya tantr kar ke vo apne ap ko sahi or apne pati ko vo respect depaygi kya itna hardcpre sex karne ke baad kabhi apne pati ke santust ho paygi kya prachi apne pati ko namard bana kar usko apna banana chati hai
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Behad behad behad kamuk story. Maza aa gya
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(Yesterday, 11:42 AM)Ayush01111 Wrote: Kya prachi dhokha nahi de rahi apne pati ko kya tantr kar ke vo apne ap ko sahi or apne pati ko vo respect depaygi kya itna hardcpre sex karne ke baad kabhi apne pati ke santust ho paygi kya prachi apne pati ko namard bana kar usko apna banana chati hai
Prachi ko ab apne pati se farak nahi padne wala , kahani ke shuru me bataya ki prachi bas apne bacche ke karan us pariwar me wapas jana chahti hai taki baccha khus rahe . Is contex me jyada detail dene se kahani aur bada hoga isiliye usko short me hi kaha gaya hai
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