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Adultery ऑफिस में सीमा और बॉस के संग का रंग
#1
Heart 
मेरा नाम तृप्ति है मैं एक सरकारी दफ्तर में काम करती हूँ. मेरी उम्र अभी 34 है शादी को लगभग 5 साल हो गए है शादी के एक साल बाद ही मुझे बच्चा हो गया है । ये कहानी मेरी ऑफिस में पहली ग़ैर मर्द /बॉस से चुदाई का है ।
 
अब कहानी पे आते है....
 
मेरा तबादला आयकर ऑफिस में 2023 में हुआ और वहाँ पहले से मेरे बैच के कुछ लोग काम कर रहे थे जिनमे सीमा मेरी अच्छी दोस्त थी और जिसके कारण ऑफिस में मन जल्दी लग गया । मैं और सीमा लंच और चाय हमेशा साथ में किया करते थे और ऑफिस के लगभग सबकी चुग़ली भी । सीमा की शादी को तीन साल हो गए और उसको बच्चा भी नहीं हुआ है वो सेक्स को लेके शुरू से बहुत एक्साइटेड रहती थी लेकिन उसके पति की नौकरी सिक्युरिटी में होने के कारण वो अक्सर दूर रहा करते थे । सेक्स को लेके सीमा परेशान रहती थी बाक़ी मेरी सेक्सुअल लाइफ अच्छी थी क्योंकि मेरे पति साथ में ही रहते थे।
 
मेरे ऑफिस जॉइन करने के छह महीने बाद हमारे ऑफिस में नए बॉस ट्रांसफर होकर आए, उनका नाम अविनाश मीणा था । सर दिखने में बहुत हैंडसम और फिट थे उनकी उम्र लगभग 40 की थी । सर ऑफिस जॉइन किया और सीमा उनके पी ए के तौर पर काम करने लगी । अब हम जब भी लंच या चाय पीते सीमा सर का ही तारीफ़ करती।
 
सीमा : यार सर इतने बिजी होकर भी सुबह जिम के लिए टाइम निकल लेते है, इसीलिए उनकी फिटनेस बहुत सही है इस उम्र में भी लड़के लगते है ।
 
मैं : तेरा ध्यान काम में कम और उनके फिटनेस में ज़्यादा लगता है ।
 
सीमा हस्ते हुए : ऑफिस के सब औरतों के क्रश बन गए है सर, मेरे भी ।.
 
मैं : यार मैंने तो कभी किसी पे ध्यान नहीं दिया लेकिन सर है सच में क्रश बनने के लायक सबके,
 
सीमा : तुम तो रहने ही दो क्रश होंगे तो भी तुम नहीं बताने वाली।
 
मैं : ऐसा कुछ नहीं है यार तेरे को नहीं बताऊँगी तो किसको बताऊँगी। तू और कुछ नया बता सर के बारे में, इनकी वाइफ क्या करती है?
 
सीमा : वो दूसरे सिटी में जॉब करती है सर हर सेकंड संडे जाते है मिलने उनसे.
 
मैं : और बच्चे?
 
सीमा : बाहर पढ़ाई करते है बोर्डिंग कॉलेज में.
 
मैं : ये यहाँ किसके साथ रहते है? पैरेंट्स?
 
सीमा : नहीं अकेले ही रहते है।
 
मैं: इतनी सटीक इनफार्मेशन लगता है तू सर के ऊपर सवार होके ही मानेगी.
 
सीमा और मैं ठहाके लगा कि हसने लग जाते है और वापस अपने काम पे लगते है. हमारी बात तो हालाकि मज़ाक़ में चल रही थी लेकिन पहली बार मुझे भी कोई मर्द ऐसा दिखा था जिससे बात करके या सामने जाने से चूत पानी छोड़ देती थी । दिन ऐसी बीतते गए और सीमा अक्सर सर की नई बात बताती जिसको सुनके मेरी चुत गीली होती और कई बार घर जाकर मैंने सर के नाम से उँगली भी किया और पति के साथ सेक्स के टाइम भी सर को ही याद करती लेकिन ये बात मैंने सीमा या किसी और को नहीं बतायी थी ।
 
एक शाम को शुक्रवार के दिन लंच के बाद लगभग सारा ऑफिस खाली हो गया था क्योंकि शनिवार और संडे के छुट्टी में सबको कहीं ना कहीं जाना था मैंने भी अपना सामान चार बजे के करीब समेट लिया और एक फाइल में सर का साइन के लिए उनके केबिन की तरफ़ गई मुझे कुछ बात चीत की आवाज़ आई तो थोड़ी देर बाहर वेट की, कुछ देर बाद आवाज़ आना बंद हुआ तो मुझे लगा शायद फ़ोन पे होंगे तो मैंने केबिन को नॉक किया.
 
सर : कौन?
 
मैं : सर मैं तृप्ति, एक फाइल में साइन चाहिए ।
 
सर : आप अकेले हो?
 
मैं : जी सर
 
सर : आ जाइए
 
मैं अंदर जाके देखी तो सर अपनी कुर्सी में कुछ आगे की ओर होके बैठे है मैंने फाइल आगे दिया और सर ने साइन करके फाइल मुझे लौटा दिया, मैं वापस अपने जगह पर आई फाइल पे बचा हुआ काम किया फिर लगभग आधे घंटे बाद अपना सामान समेट के निकलने लगी तभी मैंने सीमा को सर के केबिन से बाहर आते देखा. सीमा मुझे देख के एक मिनट के लिए रुकी और फिर बोली अरे आप गए नहीं अभी तक?
 
मैं : बाद निकल रही हूँ, मुझे नहीं पता था की तुम ऑफिस में हो लगा था की लंच करके चली गई होगी?
 
सीमा : हाँ जाने वाली थी सर ने अचानक बुलाया था तो रुक गई ।
 
मैं : अभी तो मैं उनके केबिन से आई लेकिन तुम वहाँ नहीं थी?
 
सीमा : अभी तो अंदर गई, आपका ध्यान कहीं और होगा, खैर चल निकलते है अब लेट हो रहा है ।
 
हम दोनों निकल गए लेकिन मेरे दिमाग में लगातार ये चल रहा था की ना तो मैंने इसको अंदर जाते देखा और ना ही लंच के बाद कही बाहर देखा है । अब दाल में काला की आशंका लगी और मैंने सोचा की बाद में इससे पूछती हूँ ।
 
अगले दिन सीमा मुझे लंच में मिली
 
मैं : क्या हुआ सीमा आजकल तू सर के बारे में ज़्यादा नहीं बताती, क्या बात है क्रश ख़त्म हो गया क्या तुम्हारा?
 
सीमा : नहीं यार ऐसी बात नहीं है बस घर में और ऑफिस के काम में बिजी चल रही हूँ ।
 
मैं: अच्छा तो कुछ नया बता सर आजकल ज़्यादा हैंडसम बन के आ रहे ऑफिस में, क्या बात है? कुछ नया है तो बता
 
सीमा : क्या नया रहेगा सब कुछ तो बता ही चुकी हूँ तुमको ।
 
मैं : सब कुछ तो नहीं बताई है ।
 
और सीमा को आँख मारी, सीमा भी हसने लगी और बोली क्या तुम भी यार मैं क्या छुपाऊँगी तुमसे ।
 
मैं: यही की जब मैं केबिन के अंदर थी तो तुम भी वहाँ थी?
 
सीमा : मैं अंदर होती तो आपको कैसे पता नहीं चलता
 
मैं : अब तू ज़्यादा बन मत सीमा मैं तेरी फ्रेंड हूँ और जान गई हूँ की कल तू अंदर ही थी मेरे से क्यों छुपा रही है ।
 
मैंने ये तुक्का मारा था की सीमा सच बोल दे ।
 
सीमा : यार अब क्या बड़े तुम किसी से कहना नहीं लेकिन तुमको तो पता ही है की सर मेरा क्रश थे और वो अकेले भी थोड़ा दाना डाली तो सर भी पट गए ।
 
मैं चौकते हुए : कब से?
 
सीमा : 2 महीने हो गए है
 
मैं : सेक्स?
 
सीमा : ऑब्वियस्ली (आँख बड़ा करते हुए)
 
मैं : कब से?
 
सीमा : बताया तो 2 महीने से
 
मेरी तो चूत ने तुरंत पानी छोड़ दिया । अक्सर हम लोग पति के साथ सेक्स की बात करते थे पर एक पड़ते मर्द के साथ किसी मैरिड औरत का संभोग सुनके अजीब सी सिहरन होती है, जो कहानियों में पढ़ते थे आज मेरी सहेली ने वो किया ... सोच सोच के मैं बहुत गीली हुए जा रही थी ।
 
मेरे दिमाग़ में सौ टाइप के सवाल चल रहे थे जैसे कान चालू हुआ, कैसे हुआ, कहा किया लेकिन ये सब ऑफिस के कैंटीन में पूछना सही नहीं था इसीलिए टाइम होते ही मैं और सीमा वापस ऑफिस आ गए । शाम में घर पहुंचते ही अपना सामान फेका और वाशरूम जाके पहले मन भर के उनकी से चूत की गर्मी शांत की । सच में आज पहली बार सीमा से जलन हो रही थी साली इतना हिम्मत दिखाते हुए मज़े ले रही है ।
 
अब मैं सीमा और सर के हरकतों पर ज़्यादा ध्यान देने लगी, सर सीमा से कभी भी बाहर या किसी के सामने बात ही नहीं करते थे ऑफिस में भी ये बात मुझे और सीमा को छोड़कर किसी को भी पता नहीं था मतलब एक बात तो साफ़ थी की सर सीमा अच्छे से अपने कांड को छुपा चुके थे । सीमा के साथ चाय पर फिर मैंने बात छेड़ी
 
मैं : कुछ नया बता यार सीमा तेरे और सर के बारे में.
 
सीमा : सर अब खुल गए है अब ज़्यादा मजा देते है, सच में अब ऐसा लगता है की कब सर से मुलाक़ात हो और घपा घप चुदाई करे । ( सीमा आँख मारती )
 
सीमा की ख़ुशी देख के पता नहीं क्यों पर मुझे जलन हुई हालाकि मेरी सेक्स लाइफ अच्छी थी पर फिर भी सर जैसे मर्द के साथ सीमा को खुस देख के ऐसा लगा की शायद कुछ कमी मेरे सेक्स लाइफ में भी है । खैर मैं अपनी भावनाओं को दबाते हुए बोली
 
आख़िर बार कब किए थे?
 
सीमा : परसों ही
 
मैं : लेकिन परसों तो तुम दिन भर मेरे साथ थी और साथ में वापस घर गए थे
 
सीमा : सुबह सुबह सर अपने क्वार्टर में बुलाते थे । वहाँ ज़्यादा आराम से कर पाए । सर जिमिंग छोड़ के दो घंटे तक मेरे ऊपर ही सारा जिमिंग निकल दिए (सीमा हस्ते हुए बोलती है ।
 
मैं : तेरे पति को शक नहीं होता?
 
सीमा : उनको काम से फुर्सत नहीं और सर भी केवल सेक्स का रिलेशन चाहते है वो कभी कॉल मेसेज या कांटेक्ट नहीं रखते तो उनको कहा से शक होगा.
 
सीमा के मज़े देख के जलन अब उदासी के रूप में बाहर आ ही गया और मैं बोली : सही है यार तेरा ही.
 
सीमा : तो आप का भी सही कर दू क्या? बोलो तो सर से बात चलाती हूँ आप भी आ जाओ हमारी मस्ती में?
 
सीमा की बात सुनके चूत ने फिर पानी छोड़ दिया और मैं मना करने की जगह केवल इतना बोल पायी: पागल है क्या?
 
सीमा :मैंने सर को बताया की उस दिन की केबिन वाली बात आपको पता है ।
 
ये बात सुनके मेरी गीली चूत वापस से सूख गई और मैं डरते हुए बोली: क्यों बताया उनको वो क्या सोचेंगे तू भी ऐसे क्यों किया.
 
सीमा : यार सर भी थोड़े देर के लिए टेंशन में आए लेकिन मैंने अपनी बांडिंग बताई तो रिलैक्स हो गए, तू भी टेंशन मत ले सर बात लीक नहीं करते है । मैंने तेरी तारीफ़ भी की तो सर भी तारीफ़ करने लगे की आप सुंदर हो भरी पूरी हो और सीधी सादी हो ।
 
मैं : भरी पूरी?
 
सीमा : सर को ना आप जैसे गदराई औरते बहुत पसंद है, वो बालते है की गदराई माल चोदने का मजा कुछ और ही है ।
 
मैं : चोदने, सर तेरे से ऐसा बात भी करते?
 
सीमा : तू एक बच्चे माँ है और ये तेरे को इतना बड़ी बात लग रही, पागल और कैसे बात करेंगे ।
 
मैं : मेरे को तो डर लगता है यार मैं दूर ही रहूँगी ।
 
सीमा : अच्छा ठीक है तेरी मर्जी ।
 
सर के राडार में मैं भी हूँ ये सोच के तो मेरे से रहा नहीं जा रहा था चाय ख़त्म कर के सीधे बाथरूम हुई और चूत में उँगली करके पहले उसकी गर्मी निकाली तब जाके दूसरे काम में ध्यान लगा ।
 
इसके दूसरे शाम ही शुक्रवार का दिन था ऑफिस फिर से लंच के बाद खाली हुआ और शाम में मैंने सीमा को सर के केबिन के अंदर जाते देखा मैं समझ गई की आज भी ये मौके का फ़ायदा उठा के ममज़े लेने वाले है । मेरे अंदर का शैतान बोला की आज भी फाइल के बहाने अंदर जाके इनको डिस्टर्ब किया जाए बाद में सीमा को छेड़ूँगी, लेकिन मेरे ध्यान से ये हट गया की सर को भी ये बात बता है की उन दोनों के बारे में मुझे पता है । मैं एक फाइल लेके केबिन के बाहर गई और नॉक किया, अंदर से सर की आवाज़ आई :कोन?
 
मैं : सर फाइल में आपके साइन बचा है
 
सर : आ जाओ
 
मैं केबिन का दरवाज़ा खोल के अंदर घुसी
 
देखा तो सीमा अपनी सलवार अलग करके कुतिया बन के टेबल पर झुकी है और सर भी पैंट नीचे करके लंड बाहर हाथ में लेके खड़े है । देख के तो मेरे पैर के नीचे के ज़मीन खिसक गई, मुझे लगा उस दिन जैसे ही छुप के कर रहे होंगे और मैं साइन लेके वापस आ जाऊँगी । उन दोनों को देख के पहले तो कुछ समझ नहीं आया क्या करूँ फिर मैं सर को सॉरी सर बोल के वापस मुड़ने लगी तभी सर बोले : अरे आप तो साइन लेने आए थे ना? ( लंड को एक हाथ से आगे पीछे करते हुए बोले )
 
मैं : बाद में ले लूंगी सर ।
 
सीमा : अब आप से क्या छुपाना आपको तो सब पता ही है ना.
 
ये बोलते हुए वो उठ कर मेरे पास आ गई और मेरा हाथ पकड़ के आगे खींचते हुए बोली आओ आपको एक जादू की छड़ी दिखाती हूँ और खींचते हुए टेबल के पास ले गई, सर तब तक अपनी जगह में ही अपना लंड हिलाते खड़े थे, (मुझे कुछ समझ नहीं आया क्या बोलू हाँ बोलती तो शरम मारे मैं मर जाती और सर के सामने ना बोलके भागने की हिम्मत भी नहीं थी, मैंने चुप चाप सीमा को फॉलो करने का सोचा)
 
सीमा ने मेरा हाथ पकड़ कर सर के लंड में रख दिया मैंने ज़ोर से अपना हाथ खींचा और उतने में ही सर ने मुझे अपनी ओर खींचा, सीमा मुझे थोड़ा आगे करते हुए ख़ुद मेरे पीछे आ गई, अब मेरा बाया हाथ सीमा पकड़े हुए थी और सर मुझे पूरी तरह से जकड़े हुए थे ।सर का मर्दाना खुशबू बेबाक तरीके से मुझे पकड़ना और उनका जकड़न की ताक़त तीनो ने मुझे जैसे मदहोश ही कर दिया था, सर धीरे से किस के लिए अपना सिर आगे लाए मैं थोड़ा पीछे हुई तो उन्होंने अपना हाथ मेरे कमर से हटा के मेरे गले में ले आए इतने ताक़त से गले को पकड़ा था जैसे कोई कसाई मुर्गी के गले को पकड़ता है, मैं हिल भी नहीं पायी और सर ने अपने होठ मेरे होठों से मिला दिया । एक बेहद गर्म और नया एहसास ने जैसे मेरे होठों को छुआ था मैं साथ देने लग गई । चुम्बन को थोड़ने की कोसिस ना सर ने की और ना मैंने ऐसा लग रहा था की घंटों तक इसी अवस्था में रह सकती हूँ । इसी बीच सीमा ने मेरे बाए हाथ को पकड़ कर सर के लंड की तरफ़ किया जो मेरे और सर के बीच में अब दबा हुआ था, सर ने किस ना तोड़ते हुए अपना कमर पीछे करके सीमा को थोड़ी जगह दी, सीमा ने मेरा हाथ सर के लंड पर रख दिया । जैसे ही उनका लंड मेरे हाथ में आया, आप से ही मेरा हाथ उनके लंड को आगे पीछे करने लगा, उनका लंड गीला था लगा सीमा ने मेरे आने से पहले ही चुसना सुरु कर दिया था, सीमा नीचे घुटनों पर बैठ गई और मेरी साड़ी के अंदर हाथ डाल के मेरी पैंटी नीचे खींच दी और पैंटी सर के हाथो में पास कर दी, सर ने किस तोड़ कर मुझे घूरते हुए पैंटी को सूंघने लगे और उसकी चूत के पास की गीली हिस्से को आगे कर के पैंटी मेरे मुंह में डाल दिया, सर ने मुझे पीछे करके टेबल पे घोड़ी बना के लेटा, थोड़े देर पहले जिस जगह सीमा घोड़ी बनी थी उसी जगह मैं घोड़ी बन के लेटी हुई थी, सीमा टेबल के नीचे आ हुई सर ने मेरा कमर पकड़ काट मुझे टेबल पर चढ़ा दिया । मैं घोड़ी बनके टेबल पर चढ़ी थी सर ने अपने दोनों हाथों से मेरे भारी चूतड़ अलग किए और अपना सिर मेरे कूल्हे पे घुसा कर चुत गांड सब चाटने लगे सीमा सर के लंड को मग में लेके चूसने लगी, मेरे लिए ये सरप्राइज सेक्स था तो मैं ना तो चुत के बाल साफ़ की थी और ना ही ज़्यादा हाइजीन मेंटेन की थी लेकिन फिर भी मेरे ऑफिसर को मदहोश होके चूत खाते देख मेरे चरम सूख की सीमा नहीं रही थी, थोड़े देर में ही डर ने पूरे मेरे चूत के चिथड़े उड़ा दिए और मुझे कमर से पकड़ के टेबल के नीचे उतार दिए, सीमा टेबल के अंदर ही थी, सर अपना लंड मेरी चुत में रखे और लंड ऐसे अंदर गया कैसे मोम के ऊपर गर्म लोहा चलता है। इतने जंगली सेक्स का ये मेरा पहले अनुभव था, पैंटी के छोड़ के एक भी कपड़ा उतरा नहीं था पैंटी भी मग में ठूसी हुई थी सर का लंड छूत में ठूसा हुआ था और मेरी सहेली टेबल के नीचे से चुत और जांघो में हाथ घुमा रही थी, सर का धक्का किसी ओखली में मूसल चलने जैसे के ही स्पीड से चल रहा था,मैं सातवे आसमान में थी और लगभग चार मिनट में मैंने अपनी गढ़ी रबड़ी सर के लंड में ही छोड़ दिया, सर के हाथ पाओ भी जकड़ने लगे मैं समझ गई की ये झाड़ने वाले है मैं नहीं चाहती थी की माल मेरे अंदर गिराये पर उनको रोकने का हिम्मत भी नहीं था लेकिन सर ने दो मिनट बाद ही झटके पूरी ताक़त से लगाये और लंड बाहर करके मेरे कमर को पकड़ कर मुझे पूरा उठा लिया मैं समझ भी नहीं पायी की क्या हुआ लेकिन सर ने अपना लंड सीमा के मुंह में दे दिया और सीमा के मुंह में ही अपना माल गिराया । सीमा का हाल किसी कुतिया की तरह हो गया था वो सर का माल और मेरी रबड़ी जो सर के लंड में लगी थी सारा चाट गई । सर भी जागते हुए मुझे नीचे उतार के अपनी चेयर में भैया गए, मैं टेबल पर और सीमा ज़मीन पर निढाल हो गई । सर अपना पैंट ऊपर किए मेरी पेंटी जो टेबल पर गिरी थी उसको अपने जेब में रखते हुए बोले ये आज के मीठी याद की निशानी है और सीमा को बोले की इसको सब समझा देना, अपना कपड़ा ठीक कर वो निकल गए । मैं और सीमा भी जल्दी से अपना कपड़ा ठीक कर निकले । रास्ते में सीमा से पूछा सर क्या समझाने की बात कर रहे थे?
 
सीमा : अब से आप ऑफिस में पेंटी पहन के मत आना। और ना ही सर से बात करेंगे, आपको अपने ह्वाट्सऐप ग्रुप में जोड़ रही वहाँ आपको सारी जानकारी कोडेड फॉर्म में मिल जाएँगे ।
 
सीमा की बात सुन मेरे को एक डर भी लगा की मैं किस जंजाल में दस गई, अचानक घर परिवार सब दिमाग में चलने लगा लेकिन सीमा को देख के ये यकीन भी था की बात यहाँ से निकलना मुश्किल है क्योंकि हम तीनो का ही बराबर नुक़सान होगा ये राज खुलने से ।
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#2
Nice update and waiting for next update
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#3
शुक्रवार फिर आ गया।
जैसे कोई भारी पत्थर कैलेंडर पर लुढ़कता हुआ त्रिप्ति के सीने पर आकर रुका। सीमा ने ऑफिस में बता दिया था की इस वीक कहा पर और कब मिलना है । सीमा पूछने का भी जहमत नहीं उठा रही थी उसको पता था की तृप्ति अब सर के चक्कर में फसी हुई है वो आएगी ही और सीमा अपनी ज़िंदगी की सारी फैंटेसी सर और तृप्ति के साथ पुत्र कर लेना चाहती थी । तृप्ति गिल्ट में भी थी लेकिन वो आगे भी जाना चाह रही थी क्योंकि आख़िर बार जैसा मजा उसने लाइफ में नहीं लिया और वो ये भी जान रही थी की सर से जायदा कोई इस अफेयर को छुपा के नहीं रखना चाहेगा इसीलिए बात बाहर आने की संभावना ही नहीं थी।लेकिन वो गिल्ट को खत्म कैसे करे ये समझ नहीं पा रही थी । अपने मन में चल रहे उफान को दबा कर वो अपना काम करती रही ।
सुबह से ही उसका शरीर अलग-थलग सा चल रहा था।
हाथ अपने आप रेड लिपस्टिक की तरफ़ बढ़ गए, जिसे उसने पिछले दो साल से नहीं छुआ था।
आईने में देखा तो लगा कोई दूसरी औरत उसकी जगह खड़ी है, आँखें चमकती हुईं, होंठ लाल, मंगलसूत्र के बीच में एक छोटा-सा लाल बिंदी सा टीका, जैसे सुहागरात की दुल्हन और रंडी एक साथ।
रोहन (त्रिप्ति का पति )ने ऑफिस जाते वक़्त पूछा, “आज कुछ ख़ास है क्या? इतना तैयार हो रही हो?”
उसने हँसकर टाल दिया, “सीमा का बर्थडे है ना, सरप्राइज़ प्लान है। रात में लेट हो जाऊँगी।”
रोहन ने माथे पर हल्का-सा किस किया, “मज़े करना, जान।”
उसके जाते ही त्रिप्ति बाथरूम में घुसकर उल्टी कर आई। अपराधबोध और उत्तेजना दोनों एक साथ गले में अटक गए थे।
शाम सात बजे गेस्ट हाउस।
लाल बनारसी साड़ी, लाल ब्लाउज़ जिसके हुक पीछे से सिर्फ़ दो थे, आसानी से खुल जाएँ। अंदर कुछ नहीं और सर के हुक्म के मुताबिक़ उसने पेंटी भी नहीं पहनी थी ।
सीमा ने दरवाज़ा खोला तो उसकी आँखें चमक उठीं।
“वाह रंडी, आज तो पूरी दुल्हन बनी है।” तृप्ति चौकी लेकिन वो सीमा को जानती थी की अब वो रुकने वाली नहीं है रास्ते में ही उसने सोच लिया था की आज सारी हदे पर करके मजा लेना है ।
पहला चुम्मा सीमा का था, इतना गहरा कि त्रिप्ति की साँस रुक गई। तृप्ति को सीमा के छूने से परहेज नहीं था हालाकि उसको सर का छूना ज़्यादा पसंद था लेकिन औरत के शरीर का मुलायम टच भी उसको अलग अनुभूति देता था ।
अविनाश सर कमरे के बीच में खडे था, शर्ट की बटन खुली हुईं, आँखों में वो भूख जो पिछले हफ़्ते से बढ़ती ही जा रही थी।
उसने एक शब्द नहीं बोला। बस उँगली से इशारा किया, घुटनों पर।
त्रिप्ति घुटनों पर बैठी।
साड़ी का पल्लू नीचे सरका। मंगलसूत्र लहराता हुआ उसके स्तनों के बीच लटक रहा था।
अविनाश सर ने ज़िप खोली। उसका लंड पहले से ही पूरा तना हुआ था, नसें फूली हुईं।
सीमा पीछे से उसके बाल पकड़कर सिर आगे धकेली।
“पति को गुड नाइट किस किया था ना ? अब असली मर्द को गुड इवनिंग दे।”
पहला धक्का गले में इतना गहरा गया कि त्रिप्ति की आँखों से पानी निकल आया।
फिर भी उसने मना नहीं किया।
वह चूसती रही, आँसुओं के साथ लार, दोनों मिलकर उसके मंगलसूत्र को भिगो रहे थे। उसको लग रहा था की आख़िर बार से लंड और मोटा हो चुका है , वो साथ देती रही पसीने मूत्र और सेक्स की ख़ुश्बू तृप्ति को उत्तेजित कर रही थी , सर आज रहम के मूड में नहीं थे , पिछला सेक्स अचानक हुआ था लेकिन इस बार इंतज़ार के कारण सर की भूख भी बढ़ गई थी । शादी शुदा ग़द्दारी औरत को रगड़ने का सुख कोन मर्द नहीं चाहता होगा । जमकर सर ने तृप्ति के मुंह में अपनी मलाई रगड़ी फिर वे लोग उसे बिस्तर पर ले गए।
साड़ी नहीं उतारी। पिछले बार की तरह बस कमर तक ऊपर उठा दी।
सीमा ने उसकी टाँगें चौड़ी कीं और सर के सामने उसकी गांड पर थप्पड़ मारा।
“याद है ना पिछले हफ़्ते की ट्रेनिंग? आज ग्रेजुएशन है, रंडी।”
ल्यूब ठंडा था। उँगलियाँ तीन पहले से ही आसानी से चली गईं।
त्रिप्ति सिसकियाँ ले रही थी, तकिए में मुँह दबाए।
सीमा उसके कान में फुसफुसाई, “आज दो-दो लंड लेंगे तेरी गांड में। एक असली, एक मेरे स्ट्रैप-ऑन वाला। तैयार है?”
त्रिप्ति ने सहमति में सिर हिलाया।
उसे लगा उसका शरीर अब उसका नहीं रहा। वह बस एक छेद बन चुकी थी, जिसे भरने के लिए दो शैतान बेकरार थे।
सर पहले घुसे
धीरे-धीरे, पर इस बार बिना रुके। पूरा लंड एक ही बार में जड़ तक।
त्रिप्ति की चीख़ कमरे में गूँजी, फिर सीमा ने अपना स्ट्रैप-ऑन (मोटा, काला, चमकता हुआ) उसके मुँह में ठूँस दिया।
दोनों तरफ़ से एक साथ।
वह बीच में फँसी हुई थी, जैसे कोई मांस का टुकड़ा दो भूखे जानवरों के बीच।
कमरे में सिर्फ़ तीन आवाज़ें थीं,
अविनाश की भारी साँसें,
सीमा की गंदी-गंदी गालियाँ,
और त्रिप्ति की टूटी-फूटी सिसकियाँ, “हाँ… और… फाड़ दो… मैं तुम्हारी रंडी हूँ…”
जब अविनाश मीना झड़ा, उसने बाहर नहीं निकाला।
गर्म वीर्य उसकी आँतरी दीवारों पर फैलता हुआ अंदर ही छोड़ दिया।
सीमा ने स्ट्रैप-ऑन निकालकर उसकी जगह लिया। प्लास्टिक था, पर इतना मोटा कि त्रिप्ति फिर चीख़ी।
दूसरे राउंड में उसकी चूत और गांड दोनों एक साथ भरी गईं, अविनाश की उँगलियाँ और सीमा का खिलौना।
रात के तीन बजे त्रिप्ति बाथरूम में खड़ी थी।
लाल साड़ी फटी हुई, बदन पर लाल-नीले निशान, मंगलसूत्र टूटकर बेसिन में पड़ा था।
वह रो रही थी, पर समझ नहीं आ रहा था कि दर्द से या सुख से।
सीमा अंदर आई, पीछे से गले लगाया।
“घर जाना है कि यहीं रह जाएगी आज?”
त्रिप्ति ने आईने में अपनी सूरत देखी।
लाल लिपस्टिक पूरे चेहरे पर फैली हुई, आँखों में एक ख़ालीपन जो पहले कभी नहीं था।
उसने फुसफुसाया, “मुझे घर जाना है… पर मुझे नहीं पता अब वहाँ मेरा कौन-सा चेहरा जाएगा।”
सीमा ने उसके गाल पर किस किया।
“जो चेहरा घर जाता है, उसे सुबह तक वापस मार डालना। यह वाला चेहरा अब हमारा है।”
त्रिप्ति ने टूटा मंगलसूत्र उठाया।
सोने की चेन दो टुकड़ों में।
वह उसे जेब में रख लिया।
जैसे कोई ताबीज़।
जैसे कोई लानत।
सुबह पाँच बजे वह घर पहुँची।
रोहन अभी सो रहा था।
वह उसके बग़ल में लेटी, उसकी पीठ से सटकर।
उसके शरीर से अभी भी अविनाश और सीमा की महक आ रही थी।
वह धीरे से फुसफुसाई,
“सॉरी रोहन… मैं अब वो त्रिप्ति नहीं हूँ जिससे तुमने शादी की थी।”
रोहन ने नींद में करवट बदली और उसकी कमर में बाँह डाल ली।
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
त्रिप्ति की आँखें बंद नहीं हुईं।
वह बस छत को देखती रही।
और सोचती रही कि अगले शुक्रवार को वह कौन-सी साड़ी पहनेगी।
और कब तक यह दोहरी ज़िंदगी चल पाएगी।
या शायद यह सवाल अब बेमानी हो चुका था।
क्योंकि एक त्रिप्ति पहले ही मर चुकी थी।
और दूसरी अभी-अभी जन्मी थी, लाल साड़ी में लिपटी, टूटे मंगलसूत्र के साथ।
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#4
Lovely updates... Waiting for more
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#5
सीमा का मैसेज आया था बुधवार रात को:
“मम्मी की तबीयत खराब है, गाँव जा रही हूँ दस-बारह दिन के लिए। तुम दोनों अकेले मज़े करना, रंडी। मुझे फोटो-वीडियो भेजना मत भूलना।”
त्रिप्ति ने रिप्लाई में सिर्फ़ एक लाल दिल भेजा था।
दिल के अंदर उसकी चूत में आग लगी हुई थी।
शुक्रवार शाम 6:45।
अविनाश का मैसेज:
“काले रंग की साड़ी। अंदर कुछ नहीं। 7:30 बजे, सिविल लाइंस वाले फ्लाईओवर के नीचे। कार मैं भेज रहा हूँ। ड्राइवर को बोलने की ज़रूरत नहीं, वो मेरा पुराना वाला है।”
त्रिप्ति ने काँपते हाथों से काली जॉर्जेट की साड़ी निकाली। पतली, पारदर्शी। ब्लाउज़ सिर्फ़ धागों वाला, पीठ पूरी नंगी। मंगलसूत्र उसने जानबूझकर नहीं पहना। अब वो टूटा हुआ उसकी ड्राइंग-रूम की दराज में पड़ा था, जैसे कोई मरा साँप।
सात बजकर अट्ठाईस मिनट पर काली मर्सिडीज़ रुकी।
पीछे की सीट पर अविनाश अकेला बैठा था। सफेद शर्ट, आस्तीनें मुड़ी हुईं, आँखों में वो भूख जो अब त्रिप्ति पहचानने लगी थी।
ड्राइवर ने शीशा चढ़ाया, आईने में एक बार देखा, फिर गाड़ी स्टार्ट कर दी।
अविनाश ने दरवाज़ा खोला भी नहीं, सिर्फ़ आँखों से इशारा किया।
त्रिप्ति अंदर घुसी। दरवाज़ा बंद होते ही अविनाश ने उसकी कमर पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया।
“दो हफ़्ते से तेरी गांड की याद में मुठ मार रहा हूँ, रंड,” उसने उसके कान में फुसफुसाया। “आज तेरी चूत और गांड दोनों फाड़ दूँगा।”
गाड़ी फ्लाईओवर के नीचे से निकलकर रिंग रोड पर थी।
जयपुर की लाइटें बाहर धुंधली पड़ रही थीं। अंदर अंधेरा, सिर्फ़ डैशबोर्ड की हल्की नीली रोशनी।
अविनाश ने उसका पल्लू एक झटके में नीचे खींच दिया।
काले ब्लाउज़ में उसके मम्मे उछलकर बाहर आए। निप्पल पहले से ही पत्थर जैसे कड़े।
उसने एक मम्मा मुँह में लिया, इतना ज़ोर से चूसा कि त्रिप्ति की चीख़ निकल गई।
“आह… सर… धीरे…”
“धीरे? तेरी तरह की रंडियों को धीरे नहीं, लंड से ठोका जाता है।”
उसने उसकी साड़ी कमर तक ऊपर उठा दी।
पैंटी नहीं थी। चूत पहले से ही रस से लबालब।
अविनाश ने दो उँगलियाँ एक साथ अंदर ठूँस दीं।
“हरामज़ादी, कितना पानी छोड़ रही है। सीमा के बिना भी तैयार बैठी है मेरे लंड के लिए?”
त्रिप्ति ने सिसकारी भरी, उसकी गोद में पीसते हुए, “हाँ सर… आपका लंड चाहिए… रोज़ सोचती हूँ… घर में पति के साथ लेटती हूँ तो भी आपकी याद आती है…”
अविनाश ने ज़िप खोली। उसका लंड बाहर आया, मोटा, नसें फूली हुईं, सुपारा लाल और चमकदार।
उसने त्रिप्ति का सिर नीचे दबाया।
“चूस, कुतिया। पूरा गले तक ले।”
गाड़ी मालवीय नगर की तरफ़ बढ़ रही थी। बाहर ट्रैफिक, हॉर्न, लोग।
अंदर त्रिप्ति का सिर अविनाश की गोद में ऊपर-नीचे हो रहा था। लार की लंबी डोरियाँ उसके होंठों से लटक रही थीं।
हर बार जब वो पूरा लंड गले में लेती, उसकी नाक अविनाश के प्यूबिक बालों से टकराती।
अविनाश उसके बाल पकड़कर और ज़ोर से धक्का देता, “गले में घुसा पूरा, रंड। आज तुझे साँस भी मेरी मर्ज़ी से लेनी है।”
दस मिनट बाद उसने सिर ऊपर खींचा। त्रिप्ति की आँखें लाल, होंठ सूजे हुए, मुँह से लार टपक रही थी।
अविनाश ने उसे अपनी गोद में उल्टा बिठा लिया, पीठ उसकी छाती से सटी हुई।
साड़ी पूरी कमर तक चढ़ी हुई। उसकी गांड नंगी, दो गोल मोटे चूतड़।
उसने थप्पड़ मारा, इतना ज़ोर से कि आवाज़ गाड़ी में गूँजी।
“तेरी गांड देखकर मेरा लंड पागल हो जाता है, साली।”
उसने ल्यूब की छोटी बोतल निकाली, सुपारे पर लगाया, बाकी त्रिप्ति की गांड के छेद पर डाला।
फिर एक ही झटके में पूरा लंड जड़ तक घुसा दिया।
त्रिप्ति की चीख़ गाड़ी में घूम गई, “आआआह्ह… मर गई… सर… फट गई मेरी गांड…”
अविनाश ने उसकी कमर पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।
हर धक्के में उसका लंड जड़ तक जाता और बाहर आता तो सुपारा चमकता हुआ।
गाड़ी की सीटें हिल रही थीं। बाहर वैशाली नगर की लाइटें धुंधली पड़ रही थीं।
ड्राइवर ने आईना ऊपर कर लिया था, पर त्रिप्ति को लगा वो सब देख-सुन रहा है।
उसने शर्म से मुँह बंद कर लिया, पर अविनाश ने उसका सिर पीछे खींचा।
“चीख़, रंडी। सबको पता चलना चाहिए कि सर अपनी सेक्रेटरी की गांड मार रहा है।”
गाड़ी अब सी-स्कीम की तरफ़ जा रही थी।
अविनाश ने उसकी गांड मारते-मारते उसकी चूत में चार उँगलियाँ ठूँस दीं।
दोनों छेद एक साथ। त्रिप्ति का दिमाग़ सुन्न पड़ गया।
“हाँ… फाड़ दो… दोनों छेद फाड़ दो… मैं आपकी रंड हूँ सर… रोज़ आपका लंड खाऊँगी…”
उसकी चूत से रस की फुहारें छूटने लगीं।
हर धक्के में पिच-पिच की आवाज़। गाड़ी में सेक्स की तेज़ महक।
अविनाश ने अचानक लंड बाहर निकाला।
“मुँह खोल।”
त्रिप्ति ने घुटनों के बल मुड़ी, मुँह खोला।
अविनाश ने अपना लंड, जो अभी उसकी गांड से निकला था, उसके मुँह में ठूँस दिया।
“चख अपना गांड का स्वाद, कुतिया।”
त्रिप्ति ने आँखें बंद करके चूसा। स्वाद गंदा था, पर उसका शरीर और गर्म हो गया।
फिर अविनाश ने उसे फिर उल्टा बिठाया, इस बार चूत में लंड घुसाया।
धीरे-धीरे नहीं, एक ही झटके में।
“आज तेरी चूत में भी पूरा माल छोड़ूँगा। घर जाकर पति के सामने बैठना, उसका बच्चा मेरे वीर्य से पलेगा।”
ये सुनते ही त्रिप्ति झड़ गई।
उसकी चूत ने लंड को इतना कस लिया कि अविनाश भी सिसकियाँ लेने लगा।
“हरामज़ादी… कितना कसती है… ले… पूरा माल ले अपनी बच्चेदानी में…”
और उसने झड़ना शुरू कर दिया।
गर्म वीर्य की धारें त्रिप्ति की चूत के अंदर, बाहर तक बहने लगीं।
गाड़ी राजापार्क के ट्रैफिक में रुकी थी। बाहर लोग, रिक्शे, गाड़ियाँ।
अंदर त्रिप्ति अविनाश की गोद में पड़ी थी, चूत से वीर्य टपक रहा था, साड़ी गीली, बाल बिखरे हुए।
अविनाश ने उसका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया, होंठ चूमा।
“अब हर शुक्रवार नहीं। अब जब मर्ज़ी मन किया, मैं बुलाऊँगा। तू आएगी। समझी?”
त्रिप्ति ने सहमति में सिर हिलाया, आँखें नम।
“जी सर… मैं आपकी रंड हूँ… जब चाहें बुला लीजिए… मेरी चूत और गांड दोनों आपकी हैं।”
गाड़ी अब उसके घर के मोहल्ले की तरफ़ मुड़ गई।
अविनाश ने उसकी साड़ी ठीक की, पल्लू डाला, होंठ पोछे।
पर चूत से वीर्य अभी भी बह रहा था।
उसने टिश्यू से पोछने की कोशिश की, पर अविनाश ने रोका।
“नहीं। ऐसे ही घर जाना। पति के सामने बैठना, उसका वीर्य तेरी चूत में रहेगा।”
गाड़ी घर के बाहर रुकी।
ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला।
त्रिप्ति उतरी, पैर काँप रहे थे। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था।
वह चलकर अंदर गई।
रोहन सोफे पर बैठा था, टीवी देख रहा था।
“इतनी लेट? सब ठीक?”
उसने मुस्कुराने की कोशिश की।
“हाँ… बहुत ट्रैफिक था।”
वह उसके पास बैठी।
चूत से अभी भी गर्म वीर्य रिस रहा था, उसकी जाँघों पर बहता हुआ।
रोहन ने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया, गले लगाने।
वह उससे लिपट गई, उसकी छाती पर सिर रखा।
और आँखें बंद करके सोचा,
“सीमा जब वापस आएगी, तब हम तीनों मिलकर क्या-क्या करेंगे…”
उस रात वह रोहन के साथ सोई, पर सपने में सिर्फ़ अविनाश का लंड था।
और उसकी चूत सुबह तक गीली रही।
जैसे अब उसका शरीर भी जान गया हो कि अब उसका मालिक कोई और है।
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#6
(29-11-2025, 07:41 AM)Gomzey Wrote:
“अब हर शुक्रवार नहीं। अब जब मर्ज़ी मन किया, मैं बुलाऊँगा। तू आएगी। समझी?”


chunki Tripti ko BOSS se chudne ki laat lag chuki hai...
dekhna raha woh apne pati ko kya excuse degi...agar BOSS use adhi raat ko bulata hai
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#7
अरे, एक दम फाड़ू अपडेट।।।
बड़ी ख्वाहिश है ((शादी की सालगिरह या बर्थडे के उत्सव हो)) त्रिप्ति अपने ही घर में अविनाश से चुदे पार्टी के बाद। 
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#8
शादी की नौवीं सालगिरह से ठीक पाँच दिन पहले।
रात के ग्यारह बज रहे थे। रोहन बेडरूम में लैपटॉप पर कुछ देख रहा था, तृप्ति बाथरूम से निकलकर आई। उसने सिर्फ़ एक पतली साटन की स्लीपिंग शर्ट पहनी थी, जो उसकी जाँघों तक भी नहीं पहुँचती थी। गले में मंगलसूत्र नहीं था। पिछले एक महीने से नहीं पहनती थी।
रोहन की नज़र उसकी जाँघों पर गई, जहाँ हल्के नीले-बैंगनी निशान अभी भी बाकी थे।
“ये क्या है, तृप्ति?” उसने धीरे से पूछा।
त्रिप्ति एक पल को सहम गई, फिर हँस दी।
“कुछ नहीं,  मे पहले से लगा होगा शायद “
रोहन चुप रहा।
उसके दिमाग़ में पिछले दो महीनों की सारी बातें घूम रही थीं।
•  तृप्ति का रात को देर से घर आना
•  फ़ोन को हमेशा उल्टा रखना
•  सेक्स के दौरान अचानक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना, गंदी गालियाँ देना
•  और सबसे ज़्यादा, जब भी वो उसमें घुसता, तृप्ति की चूत पहले से ही ढीली और गीली मिलती, जैसे अभी-अभी कोई और उसमें झड़कर गया हो।
रोहन को शक था।
लेकिन साथ ही, उसका लंड भी खड़ा हो जाता था जब वो ये सब सोचता।
उसे याद आता कि कॉलेज के दिनों में वो चुपके से ककोल्ड पोर्न देखा करता था।
फिर भी वो मानने को तैयार नहीं था कि वो ककोल्ड है।
“मैं तो बस… अपनी बीवी को खुश देखना चाहता हूँ,” वो खुद से झूठ बोलता।
अगले दिन तृप्ति ने सालगिरह पार्टी का प्लान बताया।
“बस घर पर ही छोटी-सी पार्टी, बीस-पच्चीस लोग।”
रोहन ने हामी भरी।
फिर तृप्ति ने शर्माते हुए कहा, “सीमा और सर को भी बुलाऊँ? सर ने बहुत हेल्प की है प्रमोशन में…”
रोहन का दिल ज़ोर से धड़का।
उसने देखा था कैसे अविनाश सर ऑफिस पार्टी में तृप्ति की कमर पर हाथ रखते हैं, और तृप्ति शर्मा कर भी मुस्कुरा देती है।
“ठीक है, बुला लो,” उसने कहा, पर उसकी आवाज़ काँप गई।
पार्टी की रात।
घर सजा हुआ था। लाइट्स डिम। सॉफ्ट म्यूज़िक।
अविनाश और सीमा सबसे आखिर में आए।
अविनाश ने काला सूट पहना था, सीमा ने लाल बैकलेस गाउन, जिसमें उसकी गांड की शेप साफ़ दिख रही थी।
रोहन ने ड्रिंक्स सर्व किए।
सीमा ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “भाभी बहुत लकी हैं आपको पाकर। इतना केयरिंग हस्बैंड…”
उसका हाथ रोहन की जाँघ पर सरक गया।
रोहन शर्मा गया, पर हटा नहीं।
दूसरी तरफ़ अविनाश ने तृप्ति को किचन में पकड़ लिया।
सब लोग लिविंग रूम में थे।
उसने तृप्ति को दीवार से सटा दिया, एक हाथ से उसकी साड़ी का पल्लू नीचे खींचा।
“तेरे बेडरूम में आज तुझे तेरे पति के बिस्तर पर चोदूँगा, रंडी,” उसने कान में फुसफुसाया।
त्रिप्ति की साँसें तेज़ हो गईं। “सर… कोई देख लेगा…”
“देखने दे। आज तेरा मंगलसूत्र मेरे लंड पर लटकेगा।”
सीमा ने प्लान बिल्कुल सही चलाया।
वो रोहन को बार-बार ड्रिंक पिलाती रही।
फिर बोली, “चलो ना, एक डांस कर लें।”
रोहन नशे में था, मना नहीं कर पाया।
सीमा ने उसे गले लगाकर डांस करवाया, उसकी गांड रोहन के लंड पर रगड़ते हुए।
फिर धीरे से बोली, “तुम्हें पता है ना, तृप्ति मुझसे और सर से बहुत खुश रहती है?”
रोहन का लंड पत्थर हो गया।
सीमा ने उसका हाथ अपने मम्मों पर रख दिया।
“चलो गेस्ट रूम में… कोई नहीं आएगा।”
गेस्ट रूम में सीमा ने दरवाज़ा लॉक किया।
उसने अपना फ़ोन ट्राइपॉड पर लगाया, रिकॉर्डिंग ऑन की।
फिर घुटनों पर बैठकर रोहन की पैंट खोली।
“भाभी को तो सर चोद रहे होंगे अभी… तुम मुझे चोदो ना…”
रोहन ने विरोध नहीं किया।
सीमा ने उसका लंड मुँह में लिया, पूरा गले तक।
रोहन की आँखें बंद हो गईं।
सीमा ने उसे बेड पर धकेला, गाउन ऊपर किया, पैंटी साइड की, और रोहन के लंड पर बैठ गई।
“आह्ह… भाभी की चूत से छोटा है तुम्हारा… लेकिन चल जाएगा…”
रोहन बस सिसकियाँ लेता रहा। दस मिनट में झड़ गया।
सीमा ने सब रिकॉर्ड कर लिया।
उधर मास्टर बेडरूम में।
अविनाश ने तृप्ति को वैवाहिक बिस्तर पर लिटाया।
जहाँ उसकी शादी की पहली रात बीती थी।
साड़ी फाड़ दी। ब्लाउज़ के हुक तोड़ दिए।
“तेरे पति की चादर पर आज मैं तुझे कुत्ता बनाकर चोदूँगा।”
त्रिप्ति रोने लगी, “सर… कोई आ जाएगा…”
“तो आने दे। सब देखें कि तृप्ति  असल में अविनाश मीना की रंडी है।”
उसने तृप्ति को घोड़ी बनाया।
लंड एक झटके में गांड में घुसाया।
“ले साली… अपने सुहाग वाले बिस्तर पर गांड मरवा।”
हर धक्के में बेड की चीपें चिल्ला रही थीं।
त्रिप्ति की चीखें दबी हुईं, तकिए में मुँह घुसाकर।
अविनाश ने उसके बाल खींचे, “बोल… मैं किसकी रंड हूँ?”
“आपकी… सर… आपकी रंड हूँ… मेरी गांड फाड़ दो… मेरे पति के बिस्तर पर मुझे रंडी बना दो…”
अविनाश ने उसकी गांड में झड़ दिया।
फिर पलटा, चूत में घुसाया, दूसरा राउंड।
तीसरा राउंड मुँह में।
पूरी चादर वीर्य और चूत के रस से लथपथ।
पार्टी खत्म होने के बाद।
सब चले गए।
रोहन सोफे पर सो गया था, नशे में।
त्रिप्ति बेडरूम में गई। चादर देखकर उसका दिल धड़का।
सीमा ने उसका हाथ पकड़ा, फ़ोन आगे किया।
वीडियो चलाया।
रोहन का लंड सीमा की चूत में। सीमा की आवाज़, “भाभी को सर चोद रहे हैं, तुम मुझे चोदो…”
त्रिप्ति की आँखों में आँसू आ गए।
सीमा ने उसका गाल थपथपाया, “रो मत रंडी। अब तू विक्टिम है। जा, रोकर अविनाश सर से चुदाई माँग। वो तुझे फिर चोदेंगे। और मैं भी।”
त्रिप्ति रोते हुए अविनाश के पास गई, जो बालकनी में सिगरेट पी रहा था।
उसने उसके पैरों में गिरकर रोना शुरू किया, “सर… सीमा ने रोहन के साथ… मैंने देख लिया…”
अविनाश ने उसका चेहरा ऊपर उठाया, मुस्कुराया।
“अच्छा हुआ। अब तू पूरी तरह मेरी है।”
उसने तृप्ति को गोद में उठाया, फिर से बेडरूम में ले गया।
चादर अभी भी गीली थी।
उसने तृप्ति को उसी पर लिटाया और चौथा राउंड शुरू किया।
इस बार तृप्ति नहीं रोई।
उसने अविनाश की पीठ पर नाखून गड़ाए और चिल्लाई,
“हाँ सर… मुझे अपनी रंडी बनाओ… मेरे पति को ककोल्ड बनाओ… मैं हमेशा आपकी रहूँगी…”
बाहर सोफे पर रोहन करवट बदल रहा था।
उसके सपने में उसकी बीवी किसी और के लंड पर उछल रही थी।
और उसका लंड फिर से खड़ा हो गया था।
शायद कहीं गहरे में वो भी यही चाहता था।
बस मानने की हिम्मत नहीं थी।
अभी तक।
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#9
पार्टी के दूसरे दिन रोहन को कल का कुछ भी याद नहीं था उसके मन में शक का कीड़ा अभी भी घर किए हुए था लेकिन सीमा के साथ की मस्ती का गिल्ट भी उसको अंदर से परेशान किए हुए था इतने में रोहन को उसके गांव से पापा का फ़ोन आता है की वो और उसकी माँ रोहन लोगो से मिलने शहर आने वाले है । घर वालो के आने पर रोहन खुश था लेकिन तृप्ति को उनके एंड की टेंशन थी । दो दिनों बाद ट्रेन से रोहन के माँ बाप जयपुर आ गए । 
रोहन के माँ-बाप का आना घर में एक तूफान की तरह था। गांव से ट्रेन पकड़कर आए थे, सामान में पुराने सूटकेस और कुछ देसी मसाले। रोहन ने स्टेशन से उन्हें पिक किया, घर लाया। तृप्ति किचन में खड़ी थी, साड़ी ठीक से लपेटी हुई, चेहरे पर वो बनावटी मुस्कान जो पिछले महीनों में उसकी आदत बन चुकी थी।
“बहू, जय राम जी की,” रोहन की माँ ने कहा, तृप्ति पैर छूने के लिए झुकी। तृप्ति ने झुककर आशीर्वाद लिया, लेकिन अंदर से उसका मन उचट रहा था। रोहन के पापा चुपचाप सोफे पर बैठ गए, थकान से आंखें बंद। रोहन खुश था, “मां, पापा, अब एक हफ्ता यहां रहो। तृप्ति सब संभाल लेगी।”
रात को बेडरूम में रोहन ने तृप्ति से कहा, “जान, मां-पापा को अच्छे से देखना। सुबह चाय, नाश्ता, दवाईयां… वो गांव से आए हैं, थोड़ी सेवा कर लो।” तृप्ति ने हंसकर हामी भरी, “हां, क्यों नहीं। मैं सब कर लूंगी।” लेकिन जैसे ही रोहन सो गया, तृप्ति की आंखों में आंसू आ गए। वो नहीं चाहती थी ये सब। पिछले महीनों में उसकी जिंदगी बदल चुकी थी। अविनाश सर और सीमा के साथ वो एक अलग दुनिया में जी रही थी। एक दुनिया जहां वो रंडी थी, जहां दर्द और सुख मिलकर उसे आजाद करते थे। ऑफिस का काम और अब ये घरेलू ड्यूटी? मां पापा की सेवा? वो भागना चाहती थी।
अगले दिन सुबह तृप्ति ने चाय बनाई, पर मन नहीं लग रहा था। मां जी ने कहा, “बहू, रोटी थोड़ी पतली बनाना।” तृप्ति ने मन में सोचा, ‘क्यों नहीं खुद बना लेंती ?’ लेकिन मुस्कुरा दी। रोहन ऑफिस चला गया, उसे किस करके। तृप्ति अकेली थी घर में, बुजुर्गों के साथ। शाम को वो थक गई। फ़ोन उठाया, अविनाश सर को मैसेज किया: “सर, एक हफ्ते की ट्रिप पर चलें? कहीं बाहर, सिर्फ हम तीनों।”
अविनाश का रिप्लाई आया: “नहीं, घर में काम है। वाइफ के रिश्तेदार आ रहे हैं।” तृप्ति का दिल टूट गया। वो रोहन की तरफ देखती, जो शाम को लौटा था, मां पापा से बातें कर रहा था। रोहन खुश था, लेकिन तृप्ति का मन उदास। वो सोचती, ‘ये जिंदगी क्यों? मैं क्यों फंसी हूं यहां?’ रात को बिस्तर पर रोहन ने उसे गले लगाया, लेकिन तृप्ति ने बहाना बनाया, “सिर दर्द है।” रोहन ने चुपचाप करवट बदल ली। उसका शक अब और गहरा हो रहा था, लेकिन वो कुछ कहता नहीं। अंदर से वो सोचता, ‘शायद कोई और है… लेकिन अगर वो खुश है, तो…’ उसकी पुरानी ककोल्ड फैंटसी उसे इस बात को लेकर तमाशा बनाने से रोक रही थी , लेकिन वो खुद से लड़ रहा था।
अगले दिन तृप्ति ने सीमा को फोन किया। “यार , सर को मनाओ ना। एक हफ्ते गोवा चलें। मैं यहां फंस गई हूं।” सीमा हंसी, “अरे रंडी, मैं ट्राई करती हूं।” सीमा ने अविनाश को कॉल किया, “सर, तृप्ति परेशान है। गोवा चलते हैं, तीनों मिलकर मजे करेंगे।” अविनाश ने मना कर दिया, “नहीं सीमा, घर का काम।” सीमा ने तृप्ति को बताया। तृप्ति उदास हो गई। रोहन घर में था, मां पापा की सेवा करवा रहा था। तृप्ति शाम को किचन में खड़ी रो रही थी। ‘मैं क्यों सह रही हूं ये सब? मैं तो अविनाश सर की हूं अब।’
फिर तृप्ति और सीमा ने प्लान बनाया। रात को ग्रुप चैट में तृप्ति ने लिखा: “सर, अगर हम कुछ नया ट्राई करें? ऐसा जो आपने कभी नहीं किया।” सीमा ने जोड़ा, “हां सर, हम दोनों मिलकर आपको ऐसा सरप्राइज देंगी कि आप मना नहीं कर पाएंगे।” अविनाश की उत्सुकता जागी। “क्या नया?” तृप्ति ने शर्माते हुए लिखा, “ट्रिप पर बताएंगे। लेकिन पहले हां कहो। गोवा, एक हफ्ता।” अविनाश सोचा, घर का काम था, लेकिन नया एक्साइटमेंट… “ठीक है, चलते हैं।”
ट्रिप फिक्स हो गई। तृप्ति ने रोहन से कहा, “ऑफिस की ट्रेनिंग है, एक हफ्ते गोवा जाना है।” रोहन का दिल बैठ गया। “मां पापा यहां हैं, तुम्हें जाना जरूरी है?” तृप्ति ने आंसू बहाए, “हां, प्रमोशन के लिए।” रोहन ने हामी भरी, लेकिन अंदर से जल रहा था। वो सोचता, ‘शायद सर के साथ… लेकिन अगर वो खुश है…’ उस रात वो तृप्ति को छूना चाहता था, लेकिन तृप्ति ने बहाना बनाया। रोहन अकेला सोया, लंड खड़ा, लेकिन दिल टूटा।
गोवा पहुंचे। अविनाश, सीमा और तृप्ति। बीच पर होटल। पहले दिन अविनाश ने तृप्ति को रूम में घुसते ही दीवार से सटा दिया। “अब बता, क्या नया ऑफर है?” तृप्ति , “सर… कुछ नया ट्राई करेंगे।” सीमा हंसी, “पहले मजे लो।” रात को तीनों ने सेक्स किया, लेकिन तृप्ति का मन कहीं और था।जिस होटल में रुके थे उसके बगल रूम में  एक रवांडा के कपल रुके थे । नाम थे जॉन और एमिली। जॉन लंबा, काला, मस्कुलर। एमिली गोरी, सेक्सी। तृप्ति की नजर जॉन पर अटक गई। उसकी दबी ख्वाहिश थी ब्लैक मैन के साथ सेक्स। वो सोचती थी, ‘कितना बड़ा होगा… कितना रफ…’ मौक़ा पके तृप्ति ने  जॉन ने मुस्कुराकर बात की, “रवांडा से हैं हम, हनीमून पर।” थोड़ा नार्मल बात करके कपल घूमने चले गए। तृप्ति ने सीमा को अपने इस कपल के साथ ग्रुपर सेक्स करने का प्लान बताया , सीमा भी तुरंत राज़ी हो गई ।
शाम को भी बार में सब मिले। तृप्ति ने जॉन से फ्लर्ट किया, “तुम्हारा देश कैसा है? अफ्रीका… वाइल्ड?” जॉन हंसा, “हां, और हम भी।” सीमा ने आंख मारी। जॉन और एमिली भी उनकी फ्लर्टिंग का सपर के रहे थे उनके ग्रीन सिग्नल पाने के बाद रात को सीमा  ने अविनाश से कहा, “सर, वो नया… ग्रुप सेक्स। उन दोनों के साथ।” अविनाश की आंखें चमक उठीं। “सच? रंडी, तू कितनी हॉट है।” तृप्ति ने प्लान बनाया। अगले दिन सीमा ने कपल को इनवाइट किया। जॉन और एमिली राजी हो गए। “क्यों नहीं, एडवेंचर ट्राई करेंगे।”
रिसोर्ट में बड़ा सुइट बुक किया। दो रातें। पहली रात। कमरा बड़ा, किंग साइज बेड, सोफा, जकूजी। सब नंगे हो गए। तृप्ति की नजर जॉन पर। जॉन का लंड—मोटा, लंबा, काला। तृप्ति की चूत गीली हो गई। “ओह गॉड…” वो फुसफुसाई। अविनाश ने तृप्ति को घुटनों पर बिठाया, “चूस, रंडी। पहले जॉन का।” तृप्ति ने जॉन का लंड मुँह में लिया। इतना बड़ा कि गला फटने लगा। जॉन ने उसके सिर पकड़कर धक्का दिया, “सक इट, बिच।” तृप्ति की आंसू निकल आए, लेकिन सुख से। सीमा एमिली के साथ थी, दोनों एक-दूसरे की चूत चाट रही थीं। अविनाश जॉन के साथ तृप्ति को देख रहा था। जॉन ने तृप्ति के मोटे चूतड़ों को अपने मुंह में डाल के चूत और गांड़ का खूब रस पिया , अविनाश सर का ध्यान एमिली पर गया , “ आह गोरी माल पहली बार मिलेगी “ अविनाश सोचते हुए नंगी एमिली पर चढ़ गया , सीमा पालतू कुतिया की तरह अपने मालिक को पहले मौक़ा देने के लिए पीछे हो गई और एमिली की चूत छोड़ कर बूब्स पर चूमा छाती करने लग गई । रूम का माहौल एकदम गर्म हो गया , रिसोर्ट में बाहर तक उह आह की आवाज़ आने लगी । पर इन सबको इसकी कोई परवाह नहीं थी । 
चुदाई खा खेल चालू हुआ , जॉन ने तृप्ति के चूत में अपना काला मूसल डाला , तृप्ति ने पोर्न देख देख के जगी अपने काले लंड की इच्छा आज पूरी कर ली, जॉन का लंड अविनाश के लंड से मोटा और लंबा था , सख़्ती कम पर भरा हुआ , तृप्ति आँख बंद कर के चुदाई का आनंद लेने लगी। इधर अविनाश सर भी एमिली की चूत मारते मारते तृप्ति और जॉन की चुदाई देख रहे थे , सीमा ने अपना डिलडो निकाल के रख लिया , उसे चुदने से जायदा चोदना पसंद था और एक गोरी ममेम को वो बिना चोदे नहीं जाने दे सकती थी । 
फिर हार्डकोर शुरू। अविनाश एमिली को सीमा को सौप के तृप्ति को खींचकर बेड पर लिटाया, चूत में लंड घुसाया। जॉन ने उसके मुँह में। डबल पेनेट्रेशन का पहला टेस्ट। तृप्ति चिल्लाई, “आह्ह… फाड़ दो…” सीमा ने स्ट्रैप-ऑन एमिली की गांड में घुसाया। कमरा चीखों से भर गया। फिर स्विच। जॉन ने तृप्ति की गांड ली। “टेक माय ब्लैक कॉक, स्लट।” तृप्ति की गांड फट रही थी, लेकिन वो पीछे धकेल रही थी। अविनाश ने उसकी चूत में घुसाया—डबल पेनेट्रेशन। दोनों लंड एक साथ, तृप्ति का शरीर कांप रहा था। “ओह फक… आई एम कमिंग…” वो झड़ गई, रस की फुहार। अविनाश खुश था, “रंडी, तूने कमाल कर दिया।”
रात फिर और वाइल्ड होते गई । जकूजी में शुरू। सब मिलकर। जॉन तृप्ति को गोद में उठाया, पानी में चूत में घुसाया। तृप्ति की ख्वाहिश पूरी हो रही थी। “जॉन… हार्डर… ब्लैक कॉक… ले लो मुझे…” अविनाश ने पीछे से गांड में घुसाया। डबल फिर। एमिली और सीमा एक-दूसरे को स्ट्रैप-ऑन से चोद रही थीं। फिर बेड पर। जॉन ने तृप्ति को उल्टा किया, गांड में लंड, अविनाश मुँह में। सीमा ने स्ट्रैप-ऑन से एमिली की। सब एक साथ झड़े। अविनाश ने कहा, “बेस्ट ट्रिप एवर।” 
अगले दिन जॉन और एमिली अपने देश वापस चले गए । और 2 दिन गोवा घूमने और अविनाश सीमा के साथ रेगुलर सेक्स के बाद ट्रिप खत्म। तृप्ति घर लौटी। रोहन इंतजार कर रहा था। “कैसी रही ट्रिप?” तृप्ति ने हंसकर कहा, “अच्छी।” लेकिन अंदर से वो बदल चुकी थी। रोहन ने गले लगाया, लेकिन तृप्ति का मन जॉन के लंड पर था। रोहन का शक अब यकीन बन रहा था, लेकिन वो चुप था। उसकी फैंटसी जाग रही थी। तृप्ति सोचती, ‘मैं अब रुक नहीं सकती।’
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