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खेल ससुर बहु का
चलिए शुरू करते है|
फेमिली का इतिहास, history of the family
पार्ट 1
आज राजपुरा गाओं के राजा यशवीर सिंग का महल दुल्हन की तरह सज़ा हुई है और क्यू ना सजता, आज राजा साहब का बेटा विश्वजीत शादी करने के बाद अपनी नयी-नवेली दुल्हन को लेकर आया था.राजा साहब के घर मे अरसे बाद खुशियों ने कदम रखा था वरना पिछले दो सालों मे तो उन्हे बस दुख ही देखने को मिले थे|
मेहमानों की भीड़ हवेली के बड़े से बाग मे दूल्हा-दुल्हन को बधाई दे रही थी और पार्टी का लुत्फ़ उठा रही थी.राजा साहब ने मेहमानों की खातिरदारी मे कोई कसर नही भी छोड़ी थी.
जब तक राजा साहब मेहमानों की खातिरदारी करते हैं,आइए तब तक हम उनके बारे मे तफ़सील से जान लेते हैं.राजा साहब अपने पिता की एकलौती औलाद थे.उनके पिता पूरे राजपुरा के मलिक थे.उन्होने राजा साहब को विदेश मे तालीम दिलवाई पर हुमेशा से 1 बात उन्होने यशवीर सिंग के दिमाग़ मे डाली कि चाहे कुछ भी हो जाए रहना उन्हे राजपुरा मे अपनी जनता के बीच मे ही रहना होगा.पर फिर रजवाड़ों का चलन ख़तम हो गया तो बाप-बेटे ने बड़ी होशियारी से अपने को बिज़्नेस्मेन मे तब्दील कर लिया.जहा कई राजाओं की हालत आम आदमियो से भी बदतर हो गई वोही राजा साहब और उनके पिता ने अपनी पोज़िशन और भी मज़बूत कर ली.
गाओं मे गन्ने की खेती होती थी तो राजा साहब ने शुगर मिल लगा दी और गाओं वालों को उसमे रोज़गार दे दिया.उनकी ज़मीन पे बड़े जंगल थे तो 1 पेपर मिल भी स्टार्ट कर दी, वहा भी गाओं वाले ही काम करते थे. खेतों मे तो वो पहले से ही लगे हुए थे. इस तरह पिता की मौत के बाद राजा यशवीर राजपुरा के बेताज बादशाह बन गये.लोकल MLA और MP भी उनके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते थे. वक़्त के साथ-साथ राजा साहब करीब 15 मिल्स के मलिक बन गये.
राजा साहब का विवाह एक बड़ी ही धर्म परायण महिला सरिता देवी से हुआ. राजा साहब व्यभिचारी तो नही थे फिर भी आम मर्दों की तरह सेक्स मे काफ़ी दिलचस्पी रखते थे, पर पत्नी के लिए चुदाई बस वंश बढ़ने का ज़रिया था और कुछ नही. इसलिए राजा साहब अपने शौक शहर मे पूरे करते थे. पर उन्होने अपनी पत्नी को कभी इसकी भनक भी नही लगने दी ना ही उन शहरी रांडों से कोई बहुत गहरा संबंध बनाया. वो तो बस उनके कुछ शौक पूरे करती थी जो उनकी पत्नी नही करती थी. अगर रानी साहिबा राजा साहब की इच्छायें पूरी करती तो राजा साहब कभी किसी और औरत के पास नही जाते. राजा साहेब अपने गाओं के किसी औरत को कभी भी गंदी दृष्टि से नही देखते थे.
पर इस अच्छे इंसान को पहला बड़ा झटका उपरवाले ने आज से दो साल पहले दिया. राजा साहब का बड़ा बेटा यूधवीर एक कार आक्सिडेंट मे मारा गया. लोग कहते हैं कि वो आक्सिडेंट नही बलकी मर्डर था-किसी ने यूधवीर की कार के साथ छेड़खानी की थी. खैर इस बारे मे हम कहानी मे आगे बात करेंगे. बेटे की मौत का सदमा रानी सरिता देवी सह नही पाई और उसका नाम ले-ले कर भगवान को प्यारी हो गयी. यह सब एक साल के भीतर दो घटनाए घट गई. उस समय विश्वजीत विदेश से पढ़ाई करके लौटा था और आते ही उसे पिता का सहारा बनना पड़ा.
ऐसा नही है कि राजपुरा मे राजा साहब का एकछत्र राज्य है. जब्बार सिंग नाम का एक ठाकुर बहुत दिनों से उनसे उलझता आ रहा है. लोग तो कहते हैं के यूधवीर की मौत मे उसी का हाथ था. जब्बार राजा साहब के दबाव को ख़तम कर खुद राजपुरा का बेताज बादशाह बनाना चाहता है. पर राजा साहब ने अभी तक उसके मन की होने नही दी है.
चलिए अब वापस चलते हैं महल को.
अरे ये क्या! पार्टी तो ख़तम हो गयी...सारे मेहमान भी चले गये. नौकर-नौकरानी भी महल के कम्पाउंड मे ही बने अपने कमरों मे चले गये हैं. रात के खाने के बाद महल के अंदर केवल राजा साहब और उनके परिवार एवं खास मेहमानों को ही रहने का हुक्म है.
पर मैं आपको महल के अंदर ले चलता हूँ, सीधे विश्वजीत के कमरे क्यू की अब मेनका से मिलने का वक़्त आ गया है.
मेनका-विश्वजीत की दुल्हन, नाम के जैसे ही बला की खूबसूरत...गोरा रंग, खड़ी नाक, बड़ी बड़ी काली आँखें, कद 5'5"...मस्त फिगर की मल्लिका. बड़े लेकिन बिल्कुल टाइट स्तनों और गांड की मालकिन. मेनका एक बहुत कॉन्फिडेंट लड़की है जो कि अपने मन की बात सॉफ साफ़ लेकिन शालीनता से कहने मे बिल्कुल नही हिचकति.
मेनका सुहाग सेज पे सजी-धजी बैठी अपने पति का इंतेज़ार कर रही है.ये लीजिए वो भी आ गया.
मेनका और विश्वजीत शादी के पहले कई बार एक दूसरे से मिले थे सो अजनबी तो नही थे पर अभी इतने करीबी भी नही हुए थे. विश्वा ने 4-5 बार उसके गुलाबी रसीले होठों को चूमा था. या ये कहीऐ की उसका होठो का रसपान किया था. उसके नशीले कसे बदन को अपनी बाहों मे भरा था पर इससे ज़्यादा मेनका कुछ करने नही देती थी. पर आज तो वो सोच कर आया था कि उसे पूरी तरह से अपनी बना के रहेगा.
विश्वा पलंग पे मेनका के पास आकर बैठ गया.
बाकी यह कहानी के एप्रूवल के बाद..............
शुरुआत कैसी है बताइगा जुरूर आपके कोमेंट की प्रतीक्षा रहेगी..........
मैत्री..........
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अब आगे............
"शादी मुबारक हो,दुल्हन",कह के उसने अपनी मेनका का गाल चूम लिया.
"मुबारकबाद देने का ये कौन सा तरीका है?",मेनका बनावटी नाराज़गी से बोली.
"अरे,मेरी जान.ये तो शुरूआत है, पूरी मुबारबादी देने मे तो हम रात निकाल देंगे". कह के उसने मेनका को बाहों मे भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा. गालों पे, माथे पे, उसकी लंबी सुरहिदार गर्दन पे, उसके होठों को चूमते हुए वो उन पर अपनी जीभ फिराने लगा और उसे उसके मुँह मे डालने की कोशिश करने लगा.
मेनका इतनी जल्दी इतने तेज़ हमले से चौंक और घबरा गई और अपने को उससे अलग करने की कोशिश करने लगी.
"क्या हुआ जान? अब कैसी शरम! चलो अब और मत तड़पाओ", विश्वा उसके होठों को आज़ाद लेकिन बाहो की गिरफ्त और मज़बूत करते हुए बोला.
"इतनी जल्दी क्या है?"
"मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता, मेनका प्लीज़!" कहके वो फिर अपनी पत्नी को चूमने लगा. पर इस बार जंगली की तरह नही बल्कि आराम से थोड़ा धीरे धीरे.
थोड़ी ही देर मे मेनका ने अपने होठ खोल दिए और विश्वा ने अपनी जीभ उसके मुँह मे दाखिल करा दी और उसे बिस्तर पे लिटा दिया. उसकी बाहें अभी भी मेनका को कसे हुए थी और उसकी जीभ मेनका की जीभ के साथ खेल रही थी. उसका सीना मेनका की स्तनों को दबा रहा था और दाईं टाँग उसकी टाँगों के उपर थी..
थोड़ी देर ऐसे ही चूमने के बाद वो अपने हाथ आगे ले आया और ब्लाउस के उपर से ही अपनी बीवी की बोबले दबाने लगा, फिर उसने अपने होठ उसके क्लीवेज पर रख दिए, मेनका की साँसें भारी हो गयी, धीरे धीरे वो भी गरम हो रही थी.
पर विश्वजीत बहुत बेसबरा था और उसने जल्दी से मेनका का ब्लाउस खोल दिया और फिर रेड ब्रा मे क़ैद उसकी रसीले बोबले पर टूट पड़ा. मेनका की नही नहीं का उसके उपर कोई असर नही था.
मेनका के लिए ये सब बड़ा जल्दी था. वो एक कॉनवेंट मे पढ़ी लड़की थी. सेक्स के बारे मे सब जानती थी पर कुछ शर्म और कुछ अपने खानदान की मर्यादा का ख़याल करते हुए उसने अबी तक किसी से चुदवाया नही था. विदेश मे कॉलेज मे कभी-कभार किसी लड़के के साथ किसिंग की थी और अपने स्तनों को दब्वाया था बस. विश्वा को भी उसने शादी से पहेले किसिंग से आगे नही बढ़ने दिया था.
सो उसके हमले से वो थोड़ा अनसेटल्ड हो गयी. इसी का फायदा उठा कर विश्वजीत ने उसके साडी और पेटीकोट को भी उसके खूबसूरत बदन से अलग कर दिया. अब वो केवल रेड ब्रा और पॅंटी मे थी. टांगे कस कर भीची हुई, हाथों से अपने सीने को ढकति हुई. शर्म से उसका चेहरा ओर भी ज्यादा गुलाबी हो गया था और आँखें बंद थी. मेनका सचमुच भगवान इन्द्र के दरबार की अप्सरा मेनका जैसी ही लग रही थी.
विश्वा ने एक नज़र भर कर उसे देखा और अपने कपड़े निकाल कर पूरा नंगा हो गया. उसका 4 1/2 इंच का लंड प्रिकम से गीला था. उसने उसी जल्दबाज़ी से मेनका के ब्रा को नोच फेका और उसका मुँह उसकी स्तनों से चिपक गया. वो उसके हल्के गुलाबी रंग के निपल्स को कभी चूसता तो कभी अपनी उंगलियों से मसलता. मेनका उसकी इन हरकतों से और ज्यादा गरम हो रही थी. फिर विश्वा उसकी चूचियो को छोड़ उसके पेट को चूमता हुआ उसकी गहरी नाभि तक पहुचा.
जब उसने जीभ उसकी नाभि मे फिराई तो वो सीत्कार कर उठी,"आ....अहह..".
फिर वो और नीचे पहुचा, पॅंटी के उपर से उसकी चूत पर एक किस ठोकी तो मेनका शर्म मारे कराह उठती हुई उसका सर पकड़ कर अपने से अलग करने लगी पर वो कहा मानने वाला था. उसने उसे फिर लिटाया और एक झटके के साथ उसकी पॅंटी खीच कर फेक दी. मेनका की चूत पे झांट हार्ट शेप मे कटी हुई थी. ये उसकी सहेलियों के कहने पर उसने किया था.
"वाह! मेरी जान", विश्वा के मुँह से निकला, "वेरी ब्यूटिफुल पर प्लीज़ तुम इन बालों को सॉफ कर लेना. मुझे सॉफ और बिना बालों की चूत पसंद है."
ये बात सुनकर मेनका की शर्म और बढ़ गयी. एक तो वो पहली बार किसी के सामने ऐसे नंगी हुई थी उपर से ऐसी बातें!
विश्वा ने एक उंगली उसकी चूत मे डाल दी और दूसरे हाथ से उसके बूब्स मसलने लगा. मेनका पागल हो गयी. तभी वो उंगली हटा कर उसकी टाँगो के बीच आया और उसकी चूत मे जीभ फिराने लगा. अब तो मेनका बिल्कुल ही बेक़ाबू हो गयी. उसे अब बहुत मज़ा आ रहा था. वो चाहती थी की विश्वजीत ऐसे ही देर तक उसकी चूत चाटता रहे, पर उसी वक़्त विश्वा ने अपना मुँह उसकी चूत से हटा लिया.
मेनका ने आँखें खोली तो देखा कि वो अपना लंड उसकी चूत पर रख रहा था.
वो मना करने के लिए नही बोलते हुए उसके पेट पर हाथ रखने लगी पर बेसब्र विश्वा ने एक झटके मे उसकी कुँवारी नाज़ुक चूत मे अपना लंड आधा घुसेड दिया. यूँ तो मेनका की चूत गीली थी पर फिर भी पहली चुदाई के दर्द से उसकी चीख निकल गयी,"उउउइईईईई........माअ.....अनन्न्न्न्न...न्न्न्न...ना...शियीयियी". और अब वो कुवारी लड़की नहीं रही थी बल्कि एक महिला बन गई थी क्यों की विश्वा के लंड ने उसकी चूत की झिल्ली तोड़ दी थी.
विश्वा उसके दर्द से बेपरवाह धक्के मारता रहा और थोड़ी देर मे उसके अंदर झड़ गया. फिर वो उसके सीने पे गिर कर हाँफने लगा.
मेनका ने ऐसी सुहागरात की कल्पना नही की थी, उसने सोचा था कि विश्वा पहले उससे प्यारी-प्यारी बातें करेगा. फिर जब वो थोड़ा कम्फर्टेबल हो जाए तब बड़े प्यार से उसके साथ चुदाई करेगा. पर विश्वा को तो पता नही किस बात की जल्दी थी.
"अरे...तुम्हारी खूबसूरती का रस पीने के चक्कर मे तो मैं ये भूल ही गया!", विश्वा अपने ज़मीन पर पड़े कुर्ते को उठा कर उसकी जेब से कुछ निकालते हुए बोला तो मेनका ने एक चादर खीचकर अपने नंगे पन को ढँकते हुए उसकी तरफ देखा.
"ये लो अपना वेडिंग गिफ्ट.", कहते हुए उसने एक छोटा सा बॉक्स मेनका की तरफ बढ़ा दिया.
मेनका ने उसे खोला तो अंदर एक बहुत खूबसूरत और कीमती डाइमंड ब्रेस्लेट था. ऐसा लगता था जैसे किसी ने मेनका से ही पसंद करवा के खरीदा हो. वो बहुत खुश हो गयी और अपना दर्द भूल गयी. उसे लगा कि अभी बेसब्री मे विश्वजीत ने ऐसा प्यार किया.
"वाउ! इट'स सो ब्यूटिफुल. आपको मेरी पसंद की कैसे पता चली?", उसने ब्रेस्लेट अपने हाथ मे डालते हुए पूछा.
"अरे भाई, मुझे तो तुमहरे गिफ्ट का ख़याल भी नही था", विश्वा ने उसकी बगल मे लेटते हुए जवाब दिया.
"वो तो मेरे कज़िन्स शादी के एक दिन पहले मुझ से पूछने लगे कि मैने उनकी भाभी के लिए क्या गिफ्ट लिया तो मैने कह दिया कि कुछ नही. यार, मुझे लगा कि अब गिफ्ट क्या देना. पर पिताजी ने मेरी बात सुन ली. वो उसी वक़्त शहर गये ओर ये ला कर मुझे दिया. कहा कि बहू को अपनी तरफ से गिफ्ट करना", इतना कह कर वो सोने लगा.
मेनका निराश हो गयी, उसने तो सोचा था कि उसका पति उसके लिए प्यार से तोहफा लाया है पर उसे तो तोहफे का ध्यान भी नही था. मेनका ने भी विश्वा के लिए गोल्ड चैन ली थी जो उसने सोते हुए विश्वा के गले मे डाल दी और खुद भी सो गयी.
उसी वक़्त महल के उसी उपरी मंज़िल जिसमे मेनका और विश्वा का कमरा था, के एक दूसरे हिस्से मे राजा यशवीर अपने पलंग पर लेट सोच रहे थे कि आज कितने दीनो बाद उनके महल मे फिर रौनक हुई. "प्रभु,इसे बनाए रखना.", उन्होने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की.
अब उनका ध्यान अपने बेटे-बहू पर गया.इस वक़्त दोनो एक-दूसरे मे खोए होंगे. उन्हे अपनी सुहागरात याद आ गयी. सरितादेवी के अती धार्मिक होने के कारण उन्हे चुदाई के लिए तैयार करने मे उन्हे काफ़ी मजदूरी करनी पड़ी थी. ज़बरदस्ती उन्हे पसंद नही थी, वरना जो 6'2" लंबा-चौड़ा इंसान आज 52 वर्ष की उम्र ने भी 45 से ज़्यादा का नही लगता था वो जवानी मे किसी औरत को काबू करने मे कितना वक़्त लेता!
अपनी सुहागरात याद करके उनके होठों पे मुस्कान आ गयी ओर अनायास ही वो अपने बेटे-अभू की सुहागरात के बारे मे सोचने लगे. उनका ध्यान मेनका की ओर गया.
"कितनी खूबसूरत है. विश्वा बहुत लकी है बस इस बात को वो खुद भी रीयलाइज़ कर ले.", फिर वो भी सो गये.
***
आइए चलते हैं हम अब राजपुरा के एक दूसरे कोने मे. वहा एक बड़ी कोठी अंधेरे मे डूबी है. लेकिन उपरी मंज़िल के एक कमरे से कुछ आवाज़ें आ रही हैं. देखते हैं कौन है वहा.
उस कमरे के अंदर एक काला, भद्दा और थोड़ा मोटा आदमी नंगा बिस्तर पर बैठा है. उसके सर के काफ़ी बाल उड़ गये हैं और चेहरे पर दाग भी है. मक्कारी और क्रूरता उसकी आँखो मे सॉफ झलकती है. यही है जब्बार जिसका बस एक ही मक़सद है, राजा साहब की बर्बादी.
वो शराब पी रहा है और एक बला की सुंदर नंगी लड़की उसके लंड को अपनी चूचियों के बीच रगड़ रही है. वो लंड रगड़ते- रगड़ते बीच-बिच मे झुक कर उसे अपने पतले गुलाबी होठों से चूस भी लेती है. दूर से देखने से लगता है जैसे कि एक राक्षस और एक परी जिस्मों का खेल खेल रहे हैं.
अचानक जब्बार ने अपना ग्लास बगल की त्रिपोई पर रखा और उस खूबसूरत लड़की को उसके बालों से पकड़ कर खीचा और उसे बिस्तर पर पटक दिया.
"औ..छ्ह", वो कराही पर बिना किसी परवाह के जब्बार ने उसकी टांगे फैलाई और अपना मोटा लंड उसकी चूत मे पेल दिया.
"आ...आहह......हा...ईईईईईई......रा....आमम्म्ममम...",वो चिल्लाई.
जब्बार ने बहुत बेरहमी से उसे चोदना शुरू कर दिया. उस लड़की के चेहरे पर दर्द और मज़े के मिले-जुले भाव थे. उसे भी इस जंगलीपन मे मज़ा आ रहा था, साथ वो नीचे से अपनी कमर हिला कर जब्बार का पूरा साथ दे रही थी. थोड़ी ही देर मे उसने अपनी बाहें जब्बार की पीठ पर और सुडोल टाँगें उसकी कमर के गिर्द लपेट दी और चिल्लाने लगी,"हा.....आई....से....हीईीईई.....ज़ो...र्र.... से...कर....ते...रहो!"
"आ..हह...एयेए...हह!"
जब्बार उसकी धईली को काटने और चूसने लगा और अपने धक्कों की स्पीड और बढ़ा दी. थोड़ी ही देर मे वो लड़की झड गयी, "ऊऊऊओ.....एयेए....हह....!"
और साथ-साथ जब्बार भी.
उसकी चूत मे से लंड निकाल कर जब्बार बिस्तर से उतरा और त्रिपोई पे रखे ग्लास मे शराब डालने लगा. उस लड़की ने अपना बाया हाथ बढ़ा कर जब्बार के सिकुडे हुए लॅंड और बॉल्स को पकड़ किया और मसलने लगी, "ज़ालिम तो तू बहुत है पर आज कुछ ज़्यादा ही हैवानियत दिखा रहा था. वजह?"
ग्लास खाली करके जब्बार ने जवाब दिया, "मुझे उंगली कर रही है ना,मलिका."
" साली,ये ले.", कहते हुए उसने अपना अपने ही वीर्य और मलिका के रस भीगा लंड फिर से मालिका के मुँह मे घुसा दिया. अपने मोटे हाथों से उसे बालों से पकड़ कर उसका सिर उपर किया और उसके मुँह को ही चोदने लगा, "राजा के यहा खुशी मनाई जाए और मैं यहा संत बना रहूं..हैं!"
जवाब मे मलिका ने हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और अपनी दो उंगलियाँ जब्बार की गांड मे घुसा दी. वो चिहुका लेकिन उसने अपनी रखैल का मुँह चोदना नही छोड़ा.
मलिका उसकी रखैल थी. उसके ही जैसी निर्दयी और ज़ालिम. भगवान जितनी खूबसूरती उसे बक्शी थी उतनी ही कम उसके दिल मे दया और प्यार भरा था.
आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे.
तब तक आप यह एपिसोड के बारे में अपनी राय दीजिये.
शुक्रिया
मैत्री.
जय भारत.
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(23-11-2025, 10:26 AM)jackpinkcity Wrote: Old story Menka
याद दिलाने के लिए बहोत बहोत शुक्रिया
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चलिए अब कहानी में आगे बढ़ते है
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अब आगे......
इन ज़ालिमों को इनके जन्गालियत को छोड़ हम आगे बढ़ते हैं आने वाली सुबह की ओर जब विश्वजीत अपनी दुल्हन को लेकर हनिमून के लिए स्विट्ज़र्लॅंड को जाने वाला है।
सुबह सूरज की रोशनी चेहरे पर पड़ने से मेनका की आँख खुली। विश्वजीत कमरे मे नहीं था और वो पलंग पर अकेली नंगी पड़ी थी। वो उठकर बाथरूम मे आ गयी। नौकरानियों ने कल ही उसका सारा समान उसकी ज़रूरत के हिसाब से उसको रूम मे अरेंज कर दिया था।
बाथरूम मे घुसते ही वो चौंक पड़ी, आदम कद शीशे मे अपने अक्स को देख कर।।उसे लगा कि कोई और खड़ा है पर जब रीयलाइज़ किया कि ये तो उसी का अक्स है तो हंस पड़ी। वो शीशे मे अपने नंगे बदन को निहारने लगी। अपना परियो जैसा खूबसूरत चेहरा, कमर तक लहराते घने काले बाल, मांसल बाहें, लंबी सुरहिदार गर्दन, उसके 36 साइज़ के बूब्स बिना ब्रा के भी बिल्कुल टाइट और सीधे तने हुए थे। उसे खुद भी हैरत होती थी कि इतने बड़े साइज़ के होने के बावजूद उसकी चूचिया ऐसी कसी थी ज़रा भी नही झूलती थी। ब्रा की तो जैसे उन्हे ज़रूरत ही नही थी। उसने धीरे से उन्हे सहलाया और अपने हल्के गुलाबी रंग के निपल्स को हल्का सा मसला। उसने अपनी एक निपल को मसलते हुए दूसरा हाथ अब उसके हाथ अपनी सपाट पेट पर गये जिसके बीच मे उसकी गोल गहरी नाभि चमक रही थी। अब उसने अपना बदन घुमा कर अपनी मखमली पीठ का मुआयना किया, नीचे अपनी 26 इंच की कमर को देखा और फिर अपनी मस्त 34 साइज़ की गांड को निहारा जो की उसकी चूचियो की तरह ही बिल्कुल पुष्ट और कसी थी। उसने अपना एक कुल्हे को थोडा चौड़ा कर के उसकी गांड का छेद देखा आर अपनी उस गांड के छेद को देख अपने आप पे गर्वित होते थोड़ी मुस्कुराई और अपने कुल्हो थपथपाया। उसकी मांसल, भारी जांघे और उसके सुडोल टांगे तो ऐसे चमक रही थी जैसे संगमरमर की बनी हो।
उसे अपनी सुंदरता पर थोड़ा गुरूर हो आया पर उसी वक़्त उसकी नज़र उसकी छातियो पर बने विश्वजीत के दांतो के निशान पर पड़ी और उसे कल की रात याद आ गयी और एक परछाई सी उसके चेहरे पर से गुज़र गयी, उसकी छातियो को देख कर ऐसा लगता था जैसे चाँद पे दाग पड़ा हो। फ़र्क बस इतना था कि यहा दो-दो चाँद थे।
वो एक गहरी सांस भर के पानी भरे बाथ-टब मे बैठ गयी। उसके हाथ अपनी जांघों पर से होते हुए उसकी दिल आकार के झांटो भरी चूत से टकराए और उसे रात को विश्वा की कही बात याद आ गयी। उसने हाथ बढ़ा कर बगल के शेल्फ से हेर-रिमूविंग क्रीम निकाली और अपनी झाँटें साफ़ करने लगी। उसने नाम में कहा “जिसके लिए इतनी मेहनत कर के दिल आकार के झांटे सजाये उसको तो पसंद ही नहीं क्या करू!! वैसे मुझे भी तो कहा पसंद थे! ये सब साली उन सहेलियों की वजह से हुआ, क्या पता उनकी चुतो पर ऐसा किया हो या नहीं पर मुज से करवाया गया, वैसे भी ये फेशन भी तो है विदेशो में ऐसा करते है और अपनी चुतो को सजाते है ताकि ऐसा आकार में बने झांटे अपने पार्टनर को आकर्षित करते है, खेर मेरे नसीब में ही ऐसा था की मेरे पति को झांटेवाली चूत पसंद नहीं , अब उनको ये पसंद नहीं तो एकदम क्लीन चूत पेश करुँगी, शायद कल जैसा फिर से ना हो”।
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बेटे-बहू को हनिमून के लिए विदा करके राजा यशवीर अपने ऑफीस पहुचे। उनकी 5 मिल्स तो राजपुरा के अंदर और आसपास के इलाक़े मे फैली थी पर राजपुरा के उत्तरी हिस्से मे एक ओर उनकी सिक्स्थ मिल्स का एक बहुत बड़ा कोम्प्लेक्स था (उनका महल राजपुरा के पूर्वी बोर्डर पे था)। इसी के अंदर उन्होने मिल्स मे काम करने वाले उनके स्टाफ मेम्बर्स के लिए रेसिडेन्षियल कॉंप्लेक्स, हॉस्पिटल और स्टाफ के बच्चों के लिए कॉलेज बनवाया था। साथ ही यहा उनके बिजनेस का सेंट्रल ऑफीस भी था जहा से राजासाहब अपने कारोबार को चलाते थे।
ऑफीस मे अपने चेंबर मे बैठते ही उनके राजकुल मिल्स ग्रूप के CMD सेशाद्री उनके पास सारी रिपोर्ट्स ले कर आ गये। सेशाद्री उनका बहुत वफ़ादार एम्प्लोई था और राजासाहब उसके बिना बिज़नेस चलाना तो सोच भी नही सकते थे।
"नमस्कार, सेशाद्री साहब। आइए बैठिए।"
"कुंवरसाहब और कुँवरनीसाहिबा रवाना हो गये, राजासाहब?”
"जी हां, सेशाद्री जी। उपरवाले की कृपा और आप सबकी शुभकामनाओं से शादी ठीक तरह से निपट गयी"।
"हम तो हुमेशा आपका शुभ ही चाहेंगे सर"। सेशाद्री ने उनकी तरफ लेपटॉप घूमाते हुए कहा।
"वो जर्मन कंपनी जिसे हम अपनी शुगर मिल्स मे पार्ट्नर बनाना चाहते हैं, उनके साथ फोर्थ राउंड की मीटिंग कैसी रही?"
"बहुत बढ़िया सर। पेपर मिल्स के लिए एक अमेरिकन कंपनी से भी बात की है। जैसा आप चाहते हैं हुमारी ग्रूप मे फॉरिन पार्ट्नर्स लेकर हम अपने प्रॉडक्ट्स का एक्सपोर्ट तो आसान कर ही लेंगे, साथ-साथ हुमारे ग्रूप मे भी कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर तैयार हो जाएगा।"
"हा, हम चाहते हैं कि हमारा ग्रूप आगे भी एक वेल-आय्ल्ड मशीन की तरह चले और आपके जैसे क्वालिफाइड लोग ही हमेशा इसकी बागडोर संभाले रहे।"
"पर राजासाहब, आपको डर नही लगता कि आपके परिवार का कंट्रोल ख़तम हो गया तो।।"
" देखो अगर ऐसा होता भी है तो उसका मतलब ये है कि हमारे परिवार मे से किसी को भी ग्रुप चलाने की काबिलियत नही है। ऐसे मे उन्हे पैसों से कॉमपेनसेट किया जाएगा ओर कंपनी को सो कॉल्ड बाहर के लोग सुचारू रूप से चलाते रहेंगे। "राजासाहब ने उनकी बात बीच मे ही काटते हुऐ जवाब दिया।
"सेशाद्रीसाहब, क्या आप आउटसाइडर हैं? आपका हमारा खून का रिश्ता नही है पर आपने तो हमसे भी ज़्यादा इस ग्रूप की सेवा की है।"
"सर, प्लीज़ डोन्ट एंबरस्स मी।"
"सेशाद्रीसाहब, हम तो आपकी तारीफ करते रहेंगे, आप भी तारीफ पर फूलना सीख जाए!" कह कर दोनो हंस पड़े।
"अच्छा, वो अमेरिकन कंपनी भरोसे की तो है?"
यस सर, जबसे जब्बार वाला केस हुआ है मैं इस मामले मे डबल सावधान हो गया हूँ।"
जब तक ये दोनो और बात करते है मैं आपको "जब्बार वाले केस" से रूबरू करवा दू।
क्रमशः बने रहिये[b]। [/b]
आज के लिए बस यही तक।
इस अपडेट के लिए आपके मंतव्यो की प्रतीक्षा रहेगी।
जय भारत।
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चलिए आज कहानी में कुछ नया खोज ने की कोशिश करते है|
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गतान्क से आगे।।।।।।।।।।।।।।।।
जब से राजासाहब ने अपनी कंपनियो का कॉर्पोरेटिसेशन करना प्लान किया उनके पास पार्ट्नर्स बनाने के लिए कई लोग आने लगे। बस यही जब्बार को उनके किले मे सेंध लगाने का मौका मिल गया। उसने कुछ लोगों को बहुत एट्रेक्टिव ऑफर के साथ राजा साहेब के पास भेजा। बड़ी चालाकी से उसने अपना नाम सामने ना आने दिया पर राजकुल ग्रूप की खुशकिस्मती की उसके भेजे प्यादों मे से एक के मुँह से नशे मे कहीं उसका नाम निकल गया और राजासाहब सचेत हो गये।
अब तो जर्मन कंपनी और अमेरिकन कंपनी से बातें ऑलमोस्ट फाइनल हो गयी थी।
आइए वापस चले दोनो के पास।
"जब्बार तो लगता है सबक सीख कर शांत हो गया सर।"
"नही, सेशाद्री साहब दुश्मन को कभी कम नही आँकना चाहिए और खास कर जब वो जब्बार जैसा है। उसकी ये चुप्पी तो हमे तूफान से पहले की खामोशी लग रही है। बहुत सावधान रहना होगा हम सबको।"
यशवीरसिंग ने इससे सही बात शायद कभी कही हो।
रात हो चली है।अब हम राजपुरा की उस बड़ी आलीशान मगर मनहूस लगने वाली कोठी मे चलते हैं।
मलिका बड़े से पलंग पर बिल्कुल नंगी होकर घोड़ी बनी हुई थी और अपनी चौड़ी, मखमली गांड जब्बार की तरफ करके हवा मे घुमा रही थी। उसने गर्दन घुमाई और जब्बार की तरफ देख कर अपनी जीभ अपने गुलाबी होठों पर फिराते हुए एक हाथ से अपनी बड़ी-बड़ी निपल्स को मसलने लगी। जब्बार उसे ऐसे देख रहा था जैसे भेड़िया अपने शिकार को।
वो केवल पायजामे मे था। उसने उसे उतार फेंका और पलंग पर चढ़ कर मलिका के पीछे पोज़िशन ले ली। मलिका अब अपनी गांड उसके लंड से टकराने लगी। जब्बार ने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ी और दूसरे से अपना काला मोटा लंड पकड़ कर उसकी गांड के छेद मे अपना सुपारा घुसा दिया।
"ऊऊ...ययइईई!", मलिका आगे को हो गयी पर जब्बार ने उसकी कमर पर पकड़ और मज़बूत कर दी और अगले झटके मे पूरे का पूरा लंड अंदर पेल दिया।
"आ....आहह....मार....गा....ईए!"
जब्बार अब ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा और बीच-बिच मे मलिका के गोरे चूतडो पर थप्पड़ लगाने लगा। हलाकि मलिका की गांड जबार के लंड की साइज़ की हो गई थी और उसका लंड पूरा अन्दर और बाहर हो रहा था।
"ऊओ....ऊओवववववव!", हर थप्पड़ पर मलिका चीखती थी पर साफ़ ज़ाहिर था कि उसका मज़ा और बढ़ रहा था। वो राक्षस वैसे ही उसकी गांड चोदता रहा और एक हाथ से उसकी निपल मसलने लगा। फिर थप्पड़ मारना बंद करके उसने उसकी चूत के दाने को दूसरे हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया।
मलिका पागल हो गयी,"हा....अन्णन्न्...और ज़ोर ....से..फ...आ...आद्दद्ड....दे...मे...री...गा...आन्न्न्ड्ड...आई..से...ही चूऊऊऊद्द्द्द्द्द्दद्ड,साआआआअ.....ले!"
सुनते ही जब्बार ने स्तन मसलना छोड़ उसके लंबे बालों को घोड़ी की लगाम की तरह पकड़ कर खीच दिया। मलिका का चेहरा उपर को हो गया और उसपे दर्द की रेखाएँ दिखने लगी पर मलिका अब पूरी तरह से गरम हो गयी थी,"चूओत...मे....उन..ग्ली ..कर...नाआ!"
जब्बार ने उसकी चूत मे तीन उंगलिया घुसेड कर बेदर्दी से रगड़ना शुरू कर दिया। वो भी झड़ने के करीब था, धक्कों की स्पीड ओर बढ़ गयी मलिका भी अपनी कमर हिला कर उसकी ताल से ताल मिलाने लगी। चूत मे उंगलियों की रगड़ ने भी रफ़्तार पकड़ ली की तभी.."ऊओ....ईईई मा..आआअन्न्ननणणन्!",कहते हुए मलिका झड़ गयी, उसकी चूत ने चुतरस छोड़ दिया और वो निढाल हो कर आगे गिर गयी। जब्बार ने भी करीब 5-6 धक्कों के बाद अपने पानी से उसकी गांड को भर दिया और मलिका की पीठ पर गिर कर हाँफने लगा।
तभी बगल की त्रिपोई पे रखा उसका मोबाइल जो कि वाइब्रटर मोड पर था, हिलने लगा। जब्बार ने वैसे ही मलिका के उपर पड़े-पड़े उसे उठा कर नंबर देखा और फोन काट दिया। उसके बाद झटके से उसने अपना सिकुडा हुआ लंड मलिका की गांड से निकाला और अपना पायजामा पहन कर भागता हुआ कोठी के पीछे आया और वहा बने लॉन को पार किया और पीछे बने छोटे से दरवाज़े को बस इतना खोला कि बाहर खड़ा काले शॉल मे लिपटा आदमी अंदर आ सके। जैसे ही वो घुसा, जब्बार उसका हाथ पकड़ कर उसे कोठी के अंदर ले आया। कोठी के सारे दरवाज़े बंद और खिड़कियाँ पर्दे से ढकी हैं, उसने ये सुनिश्चित किया और उस आदमी को लेकर हॉल मे आकर बैठ गया।
"तुम्हे यहा आते किसी ने देखा तो नही?", जब्बार ने उसकी तरफ पानी की बॉटल बढ़ाई।
"नही",शॉल उतारते हुए और बॉटल खोलते हुए उसने जवाब दिया।
वो एक 6 फिट से कुछ लंबा गोरा, तगड़ा इंसान था। उसके कंधे तक लंबे बाल और चेहरे पर घनी दाढ़ी थी। जब्बार एक सोफे पर बैठ गया और वो इंसान उसके सामने वाले सोफे पर था।
तभी मलिका हॉल मे आई। उसके बाल वैसे ही अस्त-व्यस्त थे उसने एक ब्लॅक माइक्रो-मिनी स्कर्ट ओर उपर एक बहुत टाइट वाइट गंजी पहनी थी जिसके नीचे ब्रा नही थी और चुदाई के वक़्त से खड़ी हुई उसकी घुंडिया उस गंजी को फाड़ कर बाहर आने को बेताब लग रही थी। गंजी बेपरवाही से पहनी गयी थी और उसमे से उसका पेट और नाभि साफ दिख रहे थे। गॅंजी के गले से उसकी बड़ी चूचियो का काफ़ी हिस्सा दिख रहा था और जब वो चलती थी तो बड़े मादक ढंग से हिलता था। उसकी हालत देखकर कोई भी कह देता कि वो एक रंडी है और अभी चुद कर आ रही है। उसके पिछवाड़े से जब्बार का वीर्य बहार आते हुए स्पष्ट दिख रहा था।
वो आकर जब्बार के सोफे के हटते पर बैठ गयी और उस अजनबी को सर से पैर से तक एक बाज़ारु औरत की तरह देखने लगी। बैठते ही उसकी स्कर्ट पूरी उपर हो गयी और उसकी चूत की तिराड दिखने लगी बस चूत ही धकि रही।
"ये कल्लन है और ये मेरी रखैल मलिका।", जब्बार ने दोनो का परिचय कराया। जवाब मे कल्लन ने सिर्फ़ सिर हिलाया। मलिका उसे वैसे ही चालू निगाहों से देखती रही।
"इसकी रांड़ छाप हरकतों पर मत जाना। इसका दिमाग़ हुमेशा अलर्ट रहता है।", जब्बार ने कल्लन को कहा।
मलिका ने हँसते हुए अपने दाँतों से जब्बार के कान पे काटने लगी।
"हुउँ! बस, अब काम का टाइम आ गया है मेरे लंड की रानी", जब्बार ने उसे रोकते हुए कहा।
फिर जब्बार दोनो को अपना प्लान समजाने लगा।
उसके चुप होते ही मलिका ने उसकी तरफ तारीफ भरी नज़रों से देखा,"हरामीपन मे तेरा जवाब नही! वो मादरचोद इस बार तो राजा गया।"
"हा, पर एक बात हम तीनो अच्छी तरह समझ ले। कल्लन, तुम हुम लोगों से कभी नही मिलोगे और इस गाव मे कभी नज़र नहीं आओगे।", जब्बार उठ कर अंदर गया और दो नये मोबाइल लेकर आया। एक उसने कल्लन को दिया, "इन दोनो मोबाइल्स बस एक दूसरे का नंबर सेव्ड है। जब भी ज़रूरत हो हम इसी पर बात करेंगे। प्लान कामयाब करने के लिए हमारी सावधानी बहुत ज़रूरी है।"
"और हां तू भी सुन ले मलिका, मैं जानता हूँ इस को देख कर तेरी चूत लार टपका रही है पर जब तक हम अपने मक़सद मे कामयाब नही हो जाते तुझे तेरे सभी छेदों कंट्रोल मे रखना होगा", वो उसकी चूत थपथपाते हुए बोला।
कल्लन पे मलिका की जिस्म की नुमाइश का कोई असर नही हुआ या यू कहें कि उसने अपने भाव बड़ी सफाई से छुपा लिए थे, 'क्या गॅरेंटी है जब्बार कि काम ख़तम होने के बाद तुम मुझे दूध से मक्खी की तरह नही निकाल फेंकोगे?"
"इस गुनाह मे हम तीनो बराबर के भागीदार रहेंगे, कल्लन हम तीनो एक दूसरे के राज़दार हैं और यही हम तीनो की सलामती की गॅरेंटी है।"
तब तक मलिका अंदर से विस्की ले आई थी। उसने 3 पेग बनाए, एक खुद लिया और बाकी 2 दोनो मर्दों को दिया," चियर्स to अवर सक्सेस।"
ग्लास खाली करते ही कल्लन ने शॉल वापस लपेटी और उसी रास्ते वापस लौट गया।
दरवाज़ा बंध करके जब्बार अंदर आया तो देखा की मलिका सोफे पर फिर से नंगी पड़ी अपनी चूत मे उंगली कर रही है और अपनी चूचिया दबा रही है।
"साली छिनाल, हमेशा गरम रहती है!", जब्बार मन ही मन बड़बड़ाया और अपना पायजामा उतार कर सोफे की तरफ बढ़ गया। इस बार उसने प्लान बनाया था की उसकी चूत के धज्जिया उदा देगा।
।।।।।।।।।।।।।।
आज के लिए बस यही तक।
कल इसी कहानी को आगे ले जायेंगे तब तक आप इस एपिसोड के बारे में अपनी राय दे दीजिये।
मैत्री की ओर से
जय भारत।
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चलिए अब आगे बढ़ते है कहानी में
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अब आगे............
प्लेन के बिज़नेस क्लास की अपनी सीट को मेनका ने बटन दबा कर फुल्ली रिक्लाइन कर दिया और लेट गयी। एर-होस्टेस्स ने मुस्कुराते हुए उसे कंबल ओढ़ाया और "गुड नाइट" कह कर, लाइट ऑफ की और चली गयी।
मेनका आज स्विट्ज़र्लॅंड से अपना हनिमून मना कर लौट रही थी। पीछे की सीट पर विश्वजीत ऑलरेडी सो चुका था पर मेनका की आँखों से नींद अभी भी दूर थी। उसने खिड़की का फ्लॅप सरकया और बाहर देखा की चाँद की रोशनी बादलों को नहला रही थी। लग रहा था कि प्लेन बर्फ़ीले पहाड़ों के उपर चल रहा है। पहाड़ों के ध्यान से उसे अपने हनिमून का पहला दिन याद आ गया।
विश्वा और वो ज़ुरीच के पास एक अपने शेलेट(कॉटेज मे पहुचे)। मेनका ने एक टॉप और फुल-लेंग्थ फ्लोयिंग स्कर्ट पहना हुआ था। वो शेलेट के अंदर आई जब अपने बेडरूम की खिड़की से परदा हटाया तो कुदरत की खूबसूरती का अद्भुत नज़ारा देख कर उसका मुँह खुला का खुला रह गया। सामने ही आल्प्स रेंज के पहाड़ दिख रहे थे जो कि सूरज की रोशनी मे चमक रहे थे और पहाड़ों के नीचे दूर-दूर तक फैले हरी मखमली घास के मैदान।
तभी पीछे से उसे विश्वा ने अपनी बाहों मे जकड़ लिया और उसकी गर्दन पे किस करने लगा।
"छोडिये ना! देखिए कितनी सुंदर जगह है", मेनका कसमसाते हुए बोली।
"ह्म्म।", जवाब मे विश्वा ने उसकी स्कर्ट उठा दी, उसकी पेंटी एक तरफ खिसकाई और अपना पहले से निकाला लंड उसकी चूत मे घुसाने लगा।
"प्लीज़, अभी नही,विश्वा", मेनका ने अलग होने की कोशिश करते हुए कहा।
पर विश्वा ने अनसुना करते हुए अपना हाथ उसके टॉप मे घुसा दिया और ब्रा के अंदर हाथ डाल कर उसकी बड़ी-बड़े स्तनों मसलने लगा, उसने अपना लंड पूरा का पूरा मेनका की चूत मे घुसा दिया और तेज़ी से धक्के लगाने लगा। मेनका ने सहारे के लिए आगे झुक कर खिड़की के सिल को पकड़ लिया। उसे इस चुदाई मे कोई मज़ा नही आ रहा था बल्कि उसे और उसकी चूत को इस्तेमाल किए जाने का एहसास हो रहा था जैसे की वो एक बाज़ारु औरत हो और विश्वा उसका ग्राहक।
थोड़ी ही देर मे विश्वा उसके अंदर झड़ गया, उस से अलग हुया और बोला, "तैयार हो जाओ।घूमने चलते हैं।।।"
मेनका ने फिर आँखें बंद करके नींद की बाहों मे जाना चाहा पर फिर उसे वो वाक़या याद आया जिसने उसके दिल मे विश्वा के लिए इज़्ज़त ओर भी ज़्यादा कम कर दी। क्या गांड घुमने जाओ”।
वो शेलेट के कार्पेट पे नंगी पड़ी थी। बगल मे फाइरर्प्लेस मे आग जल रही थी पर उसकी बेपर्दा जवानी की भड़कती चमक के आगे आग भी बेनूर लग रही थी। विश्वा भी नंगा था ओर उसकी चूत मे अपनी जीभ डाल कर चाट रहा था। मेनका पागल हो रही थी।।उसे बहुत अच्छा लगता था जब उसका पति उसकी चूत पे अपने मुँह से मेहरबान होता था। वो चाहती थी की वो अपने मुह से ज्यादा से ज्यादा उसकी चूत को चोदे। वो अपने पैरो को ऑर ज्यादा फैला कर उसके मुह को जगह दे रही थी ताकि वो उसकी चूत को आसानी से चाट सके।
पर हर बार की तरह मेनका का मन भरने से पहले ही विश्वा ने अपने होठ उसकी चूत से अलग कर दिया। मेनका का सिर दो कुशन्स पर था, जिसके कारण उसका उपरी बदन थोडा उठा हुआ था। उसने आँखें खोली तो देखा कि विश्वा अपना लंड पकड़ कर हिला रहा है और उसकी तरफ देख रहा है। उसने गहरी साँस ली और उसका इशारा समझते हुए अपनी टांगे ओर फैला दी।
पर वो चौंक गई जब विश्वा अपना लंड उसकी चूत मे घुसाने के बजाय उसे सीने के दोनो ओर पैर करके बैठ गया ओर अपना लंड उसके मुँह के सामने हिलाने लगा,"इसे लो।"
मेनका ने उसके लंड को अपने हाथो मे पकड़ा ओर हिलाने लगी। विश्वा अक्सर उसे अपना लंड पकड़ने को कहता था पर उस वक़्त वो पीठ के बल लेटा होता था। आज की तरह उसने कभी नही किया था।
"हाथ मे नही मुँह मे लो।"
"क्या?!!", मेनका ने अपनी नज़ारे उठाते हुए पूछा।
"हाँ, मुँह मे लो", कहकर उसने अपना लंड उसके हाथों से लिया और उसके बंद होठों पर से छुआने लगा।
"नही,मैं ऐसा नही करूँगी", मेनका ने उसे हल्के से धकेला और करवट लेकर उसके नीचे से निकल गयी।
"क्यू?"
"मुझे पसंद नही बस।"
"अरे, क्या पसंद नही?"
"मुझे घिन आती है। मैं ऐसे नही करूँगी।"
"जब मैं तुम्हारी चूत चाटता हूँ तब तो तुम्हे बड़ा मज़ा आता है और जब मैं वोही तुमसे चाहता हूँ तो तुम्हे घिन आती है!"
"देखिए, मैं आपसे बहस नही करूँगी। आप जो चाहते हैं वो मैं कभी नही कर सकती बस!"
"ठीक है, तो सुन लो आज के बाद मैं भी कभी तुम्हारी चूत नही चाटूँगा।" कह कर विश्वा ने उसे लिटाया और उसके उपर आकर अपना लंड उसकी चूत मे पेल दिया और कुछ ज़्यादा ही तेज़ धक्के लगाने लगा जैसे उसे जानकार तकलीफ़ पहुँचना चाहता हो। मेनका ने उफ तक नही की ओर उसके झड़ने का इंतेज़ार करने लगी।
अभी भी इंडिया पहुँचने मे बहोत वक़्त था पर मेनका अभी तक नही सो पाई थी। उस दिन के बाद विश्वा ने सच मे उसकी चूत पे अपने होठों को नही लगाया।
मेनका अब आगे के बारे मे सोचने लगी। राजपुरा पहुँचने के बाद दो दिन वहा रहना था और फिर उसे मायके जाना था। अपने माता-पिता का ख़याल आते ही उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी और वो उनके लिए खरीदे गये तॉहफ़ों के बारे मे सोचने लगी और थोड़ी ही देर मे सो गयी।
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शुक्रिया दोस्तों.....................
मैत्री की ओर से
जय भारत.
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ओह्ह मुझे लगता है यहाँ रीडर्स काफी कम है या फिर उनके पास टाइम नहीं की लेखक को प्रोत्साहित करे
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खेर कोई बात नहीं चलिए कहानी में आगे बढ़ते है
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अब आगे............
शहर के उस घटिया से होटेल के उस रूम मे वो आदमी पलंग पर नंगा पड़ा था। उसके दोनो हाथ बेडपॉस्ट्स से सिल्क स्कार्व्स से बँधे थे और उसके सामने एक खूबसूरत, सेक्सी लड़की धीरे-धीरे अपने कपड़े उतार रही थी। थोड़ी ही देर मे वो पूरी नंगी हो गयी और उसकी तरफ बोझिल पलकों से देख कर अपने गुलाबी होठों पे जीभ फेरी और दो कदम आगे बढ़ कर अपना एक पैर पलंग पर रख दिया और पैर के अंगूठे के नाख़ून से उस आदमी के तलवे गुदगुदाने लगी, फिर उसने अपनी दाए हाथ की उंगलिया अपने चूत मे डाल दी और बाए हाथ से अपनी भारी छातियो को मसलने लगी।
वो आदमी जोश से पागल हो गया और अपने हाथ छुडाने की कोशिश करने लगा। उसका लंड पूरा तन चुका था। पर उसकी हालत से बेपरवाह वो लड़की अपने बदन से खेलते रही, "ऊऊहह....आआ...ह....हह......बत्रा साहब, ऐसे ही आप मेरी चूचिया दबाना चाहते हैं ना?" उसने अपने बूब्स को बेरहमी से मसलते हुए पूछा।
"हा...हा...मलिका मेरी जान मेरे हाथ तो खोलो।"
"क्यू? बर्दाश्त नही हो रहा?", मलिका वैसे ही अपने जिस्म से खेलती हुई और उसे और तड़पाते हुए बोली।
"नही,,नही!!!!!!!!!!!!प्लीज़ खोलो मलिका।"
पर मलिका ने तो उसे और तड़पाना था। वो उसके बदन के दोनो तरफ घुटने रख कर उसके लंड के ठीक उपर अपनी चूत लहराने लगी। बत्रा अपनी गांड उठा कर अपने लंड को उसमे घुसाने की कोशिश करने लगा। पर मलिका हंसते और उपर उठ गयी और अपने हाथ से उसे फिर वापस बिस्तर पर सुला दिया। फिर अपने हाथ उसके सीने पे रखे और यूँ बैठने लगी जैसे उसके लंड को लेने वाली हो। बत्रा मुस्कुराने लगा।।।मलिका की चूत उसके लंड के सुपारे से सटी।।बत्रा को लगा कि अब उसकी मुराद पूरी हुई और ये कसी चूत अब उसके लंड को निगल लेगि पर उसके सपने को तोड़ते हुए मलिका फिर उठ गयी।
बत्रा रुवासा हो गया, "प्लीज़ मलिका और मत तड़पाओ....प्लीज़....प्लीज़!!"
मलिका फिर बेदर्दी से हँसी और इस बार उसके लंड पे बैठ गयी, जैसे ही पूरा लंड उसकी चूत के अंदर गया बत्रा नीचे से ज़ोर-जोर से गांड हिलाने लगा। मलिका ऩे फीर उसे मज़बूती से अपने बदन से दबा दिया और बहुत ही धीरे-धीरे अपनी गांड हिला कर उसे चोदने लगी।
बत्रा अब बिल्कुल पागल हो गया। जोश के मारे उसका बुरा हाल था और उसने फिर नीचे से अपनी गांड ज़ोर-जोर से हिला कर धक्के मारने लगा। मलिका पागलों की तरह हँसने लगी और थोड़ी ही देर मे बत्रा झड़ गया।
तब मलिका ने वैसे ही उसके उपर बैठे-बैठे उसके हाथ खोले। हाथ खुलते ही बत्रा ने उसे पकड़ कर नीचे गिरा दिया और फिर उसके उपर चढ़ गया। उसका सिकुडा लंड अभी भी मलिका की चूत मे ही था।
"साली, तू बहुत तड़पाती है....बहुत मज़ा आता है ने तुझे इसमे....ये ले....ये ले!", कह के वो अपने सिकुड़े लंड से ही धक्के लगाने लगा। थोड़ी ही देर मे लंड फिर तन गया और बत्रा के धक्कों मे भी ओर तेज़ी आ गयी।
वो बहुत बेदर्दी से धक्के मार रहा था पर मलिका वैसे ही पागलों की तरह हँसती रही। थोड़ी ही देर मे उसके बदन ने झटके खाए और वो झड़ कर मलिका के उपर ही ढेर हो गया।
"अब थोड़ी काम की बातें हो जाए, बत्रा मादरचोद साहब?। मलिका ने उसके कान मे कहा।
बत्रा राजकुल ग्रूप मे मॅनेजर था। सेशाद्री को उस पर बहुत भरोसा था और बत्रा आदमी था भी भरोसे के लायक पर फिर एक दिन उसकी मुलाकात मलिका से हुई और उस दिन से वो राजा साहेब के बिज़नेस के अंदर जब्बार का भेड़िया बन गया।
बत्रा को जैसे सेक्स करना पसंद था, उसकी बीवी को वो बिल्कुल भी अच्छा नही लगता था।बत्रा रफ सेक्स और सेडो-मासकिज़म का शौकीन था। दर्द के साथ सेक्स ही उसे पूरी तरह संतुष्ट कर पाता था। किसी तरह जब्बार को उसकी ये कमज़ोरी पता चल गयी और मलिका के ज़रिए उसने उसे अपना जासूस बना लिया। मज़े की बात ये थी, बत्रा ये समझता था कि वो राजासाहब के बिज़नेस राइवल पॅंट ग्रूप के लिए काम करती थी। इस तरह से जब कभी पोल खुलती भी तो नुकसान केवल बत्रा का था। जब्बार का नाम भी सामने नही आता और मलिका-मलिका को तो किसी चीज़ की परवाह नही थी सिवाय इसके कि उसके डेबिट और क्रेडिट कार्ड हुमेशा काम करते रहें और उसके जिस्म की आग रोज़ बुझती रहे। उसकी गांड की भूख हमेशा खुली ही रहती थी और उसकी गांड में एक लंड हमेशा जाना चाहिए होता था और वो मर्दों के लंड से और कही नहीं मिलने वाला था।
जब्बार टी-शर्ट और शॉर्ट्स मे अपनी कोठी के किचन मे खड़ा फ्रिज से बॉटल निकाल कर पानी पी रहा था जब मलिका हॉल मे दाखिल हुई। उसने अपना हेंड बॅग एक तरफ फेका और जब्बार को हॉल से किचन मे खुलते दरवाज़े से देखते हुए बेडरूम मे घुस गयी। जब्बार बॉटल लेकर हॉल मे आया और बड़े सोफे पर बैठ गया।
"क्या पता चला?"
सुनकर मलिका बेडरूम से हॉल मे खुलने वाले दरवाज़े पे आकर खड़ी हुई, "यही कि बत्रा का लंड तुमसे बड़ा है", हंसकर अपना टॉप उतारते हुए अंदर चली गयी।
"उंगली मत कर भोसड़ी की।"
क्रमश:
आप को कहानी कैसी लग रही है कृपया अपने मंतव्यो को कोमेंट बॉक्स में लिखिए
बाकी बस यहाँ तक फिर एक नए एपिसोड के साथ मिलेंगे तब तक के लिए.
मैत्री की ओर से..............
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अब आगे जहा से हमने छोड़ा था..........
"क्यू ना करू? सिर्फ़ तू ही कर सकता है", वो वापस दरवाज़े पे आई और अपने हाथ पीछे ले जा कर अपने ब्रा के हुक्स खोल कर उसे अपने बदन से अलग कर दिया, उसकी भारी बोबले थरथरती हुई आज़ाद हो गयी।
"राजा की पोज़िशन दिन पर दिन मज़बूत हो रही है और तू बस यहा जासूसी ही करता रह! पता है राजकुल ग्रूप का 49% शेर एक जर्मन कंपनी खरीद रही है। बत्रा कह रहा था कि राजकुल ग्रूप की टोटल वॅल्यू 200 करोड़ है, जर्मन कंपनी। से राजा को 98 करोड़ मिल रहे हैं। अभी ऑडिटिंग वगेरह चल रही है, 2-3 महीने मे डील हो जाएगी।", उसने अपनी स्किन-टाइट जीन्स और पेंटी एक साथ उतारी और अपनी मस्त गांड मटकाते हुए वापस रूम मे चली गयी।
"हा,,,हा,,,हा,,,इसका मतलब है कि राजकुल की असल वॅल्यू है 280 करोड़ रुपये। राजा को 30 करोड़ रुपये और मिले होंगे।", जब्बार हसा।
"क्या?", मलिका एक ओवरसाइज़ सफेद t-शर्ट पहन कर आई, साफ पता चल रहा था कि उसके नीचे उसने कुछ नही पहना था। उसकी बोबले की गोलाई और निपल्स के उभार और चौड़ी गांड के कटाव कपड़े मे से साफ़ झलक रहे था। उसने जब्बार के हाथ से बॉटल ली और उसकी गोद मे पैर रख कर सोफे पे लेट गयी और पानी पीने लगी।
"मलिका, ये बिज़नेसमॅन जितना पैसा कमाते हैं, वो असल रकम कभी नही बताते। ये बॅलेन्स शीट, ऑडिटिंग सब होती है पर कुछ पैसा ये हमेशा अपने सीक्रेट अकाउंट्स मे रखते हैं। ये 200 करोड़ तो दुनिया के लिए है। डील से जो पैसा ग्रूप को मिलेगा, दिखाया जाएगा कि सारे पैसे एम्प्लोयीस के बोनस और मिल्स के अपग्रेडेशन मे लग गये और 98 करोड़ मे से 4-5 करोड़ राजा को मिले। पर ग्रूप की वॅल्यू जान कर कम दिखाई जाएगी ताकि वो 30 करोड़ राजा को बिना किसी परेशानी के मिले जिन्हे वो कही विदेशी बॅंक मे छुपा देगा। और तो और तुझे पता है कि सालाना मुनाफ़ा भी हुमेशा थोड़ा कम दिखाया जाता है और वो छुपाई हुई रकम भी राजा के पेट मे जाती है"।
"ठीक है पर अपने फ़ायदे की बात तो समझा मुझको।", कहते हुए मलिका ने अपने पैर से जब्बार के शॉर्ट्स को नीचे सरका दिया और वैसे लेटे हुए ही अपने पैरों से उसके लंड को रगड़ने लगी। बॉटल को किनारे रखा, अपनी शर्ट उपर की और अपनी उंगलियों से अपने निपल्स रगड़ने लगी।
"राजपरिवार की बर्बादी ही मेरा सबसे बड़ा फ़ायदा है। तुझे लगता है कि मैं हाथ पे हाथ धरे बैठा हूँ", जब्बार ने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत मे घुसाते हुए कहा, "ये मेरा प्लान है, साली। मैं ऐसी चाल चलूँगा कि राजा यशवीर और उसका परिवार अपने हाथों अपनी जान लेगा और अपने बिज़नेस की धज्जियाँ उड़ाएगा।", उसने मलिका के दाने को रगड़ते हुए कहा।
"ऊऊ..ह..ह..पर तुझे तो एक पैसा भी नही मिलेगा इसमे,ए...ये...ए...ययईईए...बस राजा की बर्बादी होगी।"
"कहा ना राजा की बर्बादी ही मेरा सबसे बड़ा फयदा है। तुझे क्या चिंता है मैं जानता हूँ छिनाल! परेशान मत हो तेरी भूख शांत करने लायक पैसे मेरे पास अभी भी हैं और हमेशा रहेंगे। बदले की आग मे खुद को भी राख करू ऐसा चूतिया नही हूँ मैं।," मलिका की चूत पे चिकोटी काटते हुए उसके मुँह से निकल गया।
"ऊउउउउ...कचह,,,हा...हा...बदला! तो ये बात है, क्या हुआ था कुत्ते? राजा ने तेरी मा की गांड मार ली थी क्या हा..हा..हा..एयाया....यययययईईई! मलिका दर्द से चीख पड़ी। जब्बार ने बेरहमी से उसकी चूत नोच ली थी।
"हरामजादी, रंडी! आज के बाद मुझसे कभी मेरे बदले के बारे मे मत पूछना? ओर अगर बाहर किसी से भी कहा तो तुझे ऐसी मौत मारूंगा कि यमराज भी दहल जाएगा।" उसने लेटी हुई मलिका के 2-3 झापट भी रसीद कर दिए।
"ठीक है दरिंदे। ये ले साले।", जवाब मे मलिका ने उसके आंडो को अपने पैरो तले कुचल दिया, "साला नामर्द मुझ पे हाथ उठाता है! मै ऐसी नागीन हु की तेरी गांड का भोसदा बना सकती हु, मै तुम से नहीं डरती पर तुम्हे मुज से डरना पड़ेगा समजा मेरी चूत का पहेरेदार!"
"एयेए...हह....", जब्बार कराहा, उसने मलिका की टाँगों को अपने आंडो से हटाया और उन्हे चौड़ी करके उसके उपर सवार हो गया और अपना लंड उसकी चूत पे रगड़ने लगा, "मुझसे बदतमीज़ी करती है, रांड़! भोसडीकी साली मुझे पता है की तुम्हारी गांड में बहोत खुजली होती है", कह कर पागलों की तरह वो उसके बदन को नोचने लगा।
"मुझे नामर्द कहती है। ये ले!", थोड़ी देर मे लंड खड़ा हो गया और उसने उसे मलिका की चूत मे पेल दिया और ज़ोरदार धक्के मारने लगा। उसने अपने दाँत उसकी बड़ी, गोल धइले मे गढ़ा दिए। मलिका को और क्या चाहिए था!
मलिका पागलों की तरह हँसने लगी और अपनी टांगे उसकी कमर पे लपेट दी और नीचे से अपनी कमर हिलाने लगी और फिर जब्बार के कंधे पे इतनी ज़ोर से काटा की उसके खून निकल आया।
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क्रमश:
आज के लिए बस इतना ही फिर मिलेंगे एक नए एपिसोड के साथ तब तक आप आप अपनी राय दीजिये।
मैत्री की ओर से।
जय भारत।
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कोई कोमेंट ही नहीं है!!!!!!!!!!!!!!!
क्या यह कहानी बेकार है ??????????????????
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(08-12-2025, 01:41 PM)maitripatel Wrote: अब आगे जहा से हमने छोड़ा था..........
"क्यू ना करू? सिर्फ़ तू ही कर सकता है", वो वापस दरवाज़े पे आई और अपने हाथ पीछे ले जा कर अपने ब्रा के हुक्स खोल कर उसे अपने बदन से अलग कर दिया, उसकी भारी बोबले थरथरती हुई आज़ाद हो गयी।
"राजा की पोज़िशन दिन पर दिन मज़बूत हो रही है और तू बस यहा जासूसी ही करता रह! पता है राजकुल ग्रूप का 49% शेर एक जर्मन कंपनी खरीद रही है। बत्रा कह रहा था कि राजकुल ग्रूप की टोटल वॅल्यू 200 करोड़ है, जर्मन कंपनी। से राजा को 98 करोड़ मिल रहे हैं। अभी ऑडिटिंग वगेरह चल रही है, 2-3 महीने मे डील हो जाएगी।", उसने अपनी स्किन-टाइट जीन्स और पेंटी एक साथ उतारी और अपनी मस्त गांड मटकाते हुए वापस रूम मे चली गयी।
"हा,,,हा,,,हा,,,इसका मतलब है कि राजकुल की असल वॅल्यू है 280 करोड़ रुपये। राजा को 30 करोड़ रुपये और मिले होंगे।", जब्बार हसा।
"क्या?", मलिका एक ओवरसाइज़ सफेद t-शर्ट पहन कर आई, साफ पता चल रहा था कि उसके नीचे उसने कुछ नही पहना था। उसकी बोबले की गोलाई और निपल्स के उभार और चौड़ी गांड के कटाव कपड़े मे से साफ़ झलक रहे था। उसने जब्बार के हाथ से बॉटल ली और उसकी गोद मे पैर रख कर सोफे पे लेट गयी और पानी पीने लगी।
"मलिका, ये बिज़नेसमॅन जितना पैसा कमाते हैं, वो असल रकम कभी नही बताते। ये बॅलेन्स शीट, ऑडिटिंग सब होती है पर कुछ पैसा ये हमेशा अपने सीक्रेट अकाउंट्स मे रखते हैं। ये 200 करोड़ तो दुनिया के लिए है। डील से जो पैसा ग्रूप को मिलेगा, दिखाया जाएगा कि सारे पैसे एम्प्लोयीस के बोनस और मिल्स के अपग्रेडेशन मे लग गये और 98 करोड़ मे से 4-5 करोड़ राजा को मिले। पर ग्रूप की वॅल्यू जान कर कम दिखाई जाएगी ताकि वो 30 करोड़ राजा को बिना किसी परेशानी के मिले जिन्हे वो कही विदेशी बॅंक मे छुपा देगा। और तो और तुझे पता है कि सालाना मुनाफ़ा भी हुमेशा थोड़ा कम दिखाया जाता है और वो छुपाई हुई रकम भी राजा के पेट मे जाती है"।
"ठीक है पर अपने फ़ायदे की बात तो समझा मुझको।", कहते हुए मलिका ने अपने पैर से जब्बार के शॉर्ट्स को नीचे सरका दिया और वैसे लेटे हुए ही अपने पैरों से उसके लंड को रगड़ने लगी। बॉटल को किनारे रखा, अपनी शर्ट उपर की और अपनी उंगलियों से अपने निपल्स रगड़ने लगी।
"राजपरिवार की बर्बादी ही मेरा सबसे बड़ा फ़ायदा है। तुझे लगता है कि मैं हाथ पे हाथ धरे बैठा हूँ", जब्बार ने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत मे घुसाते हुए कहा, "ये मेरा प्लान है, साली। मैं ऐसी चाल चलूँगा कि राजा यशवीर और उसका परिवार अपने हाथों अपनी जान लेगा और अपने बिज़नेस की धज्जियाँ उड़ाएगा।", उसने मलिका के दाने को रगड़ते हुए कहा।
"ऊऊ..ह..ह..पर तुझे तो एक पैसा भी नही मिलेगा इसमे,ए...ये...ए...ययईईए...बस राजा की बर्बादी होगी।"
"कहा ना राजा की बर्बादी ही मेरा सबसे बड़ा फयदा है। तुझे क्या चिंता है मैं जानता हूँ छिनाल! परेशान मत हो तेरी भूख शांत करने लायक पैसे मेरे पास अभी भी हैं और हमेशा रहेंगे। बदले की आग मे खुद को भी राख करू ऐसा चूतिया नही हूँ मैं।," मलिका की चूत पे चिकोटी काटते हुए उसके मुँह से निकल गया।
"ऊउउउउ...कचह,,,हा...हा...बदला! तो ये बात है, क्या हुआ था कुत्ते? राजा ने तेरी मा की गांड मार ली थी क्या हा..हा..हा..एयाया....यययययईईई! मलिका दर्द से चीख पड़ी। जब्बार ने बेरहमी से उसकी चूत नोच ली थी।
"हरामजादी, रंडी! आज के बाद मुझसे कभी मेरे बदले के बारे मे मत पूछना? ओर अगर बाहर किसी से भी कहा तो तुझे ऐसी मौत मारूंगा कि यमराज भी दहल जाएगा।" उसने लेटी हुई मलिका के 2-3 झापट भी रसीद कर दिए।
"ठीक है दरिंदे। ये ले साले।", जवाब मे मलिका ने उसके आंडो को अपने पैरो तले कुचल दिया, "साला नामर्द मुझ पे हाथ उठाता है! मै ऐसी नागीन हु की तेरी गांड का भोसदा बना सकती हु, मै तुम से नहीं डरती पर तुम्हे मुज से डरना पड़ेगा समजा मेरी चूत का पहेरेदार!"
"एयेए...हह....", जब्बार कराहा, उसने मलिका की टाँगों को अपने आंडो से हटाया और उन्हे चौड़ी करके उसके उपर सवार हो गया और अपना लंड उसकी चूत पे रगड़ने लगा, "मुझसे बदतमीज़ी करती है, रांड़! भोसडीकी साली मुझे पता है की तुम्हारी गांड में बहोत खुजली होती है", कह कर पागलों की तरह वो उसके बदन को नोचने लगा।
"मुझे नामर्द कहती है। ये ले!", थोड़ी देर मे लंड खड़ा हो गया और उसने उसे मलिका की चूत मे पेल दिया और ज़ोरदार धक्के मारने लगा। उसने अपने दाँत उसकी बड़ी, गोल धइले मे गढ़ा दिए। मलिका को और क्या चाहिए था!
मलिका पागलों की तरह हँसने लगी और अपनी टांगे उसकी कमर पे लपेट दी और नीचे से अपनी कमर हिलाने लगी और फिर जब्बार के कंधे पे इतनी ज़ोर से काटा की उसके खून निकल आया।
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आज के लिए बस इतना ही फिर मिलेंगे एक नए एपिसोड के साथ तब तक आप आप अपनी राय दीजिये।
मैत्री की ओर से।
जय भारत। Awesome
Keep it up ??
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