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Adultery गुलमोहर... एक अल्हड़ सी लड़की
#1
Episode 1: जब वो मिली मुझे पहली बार

रात का पहर था, शहर की चकाचौंध वाली सड़कें अब सन्नाटे में डूब चुकी थीं। 

आर्यन, पच्चीस साल का जवान मर्द, अपनी ब्लैक एसयूवी चला रहा था। 

लंबा कद, चौड़ी छाती, काले लहराते बाल जो हवा में उड़ रहे थे, और आँखें—गहरी, जैसे कोई रहस्य छिपा हो। 

वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, दिन भर कोडिंग की दुनिया में खोया रहता, लेकिन रातें? वे उसके लिए आजादी की साँसें थीं। 

संगीत बज रहा था रेडियो पर—एक पुराना रोमांटिक गाना, जो उसके मन को छू रहा था। 

"कसमें वादे निभाएंगे हम," गाता हुआ, वह सोच रहा था अपनी जिंदगी के बारे में। कोई गर्लफ्रेंड नहीं, बस दोस्ती और सपने। लेकिन आज रात कुछ अलग थी—हवा में एक अजीब सी बेचैनी, जैसे कोई किस्मत का धागा खिंच रहा हो।

आर्यन ने एसी की स्पीड कम की, खिड़की खोली। ठंडी हवा उसके चेहरे को सहला रही थी। 

अचानक, सड़क के मोड़ पर कुछ चमका—एक छाया, तेजी से दौड़ती हुई। उसने ब्रेक मारा, लेकिन देर हो चुकी थी। 

कार रुकी तो सामने एक लड़की पड़ी थी, साँसें फूल रही थीं, पैरों से खून रिस रहा था। 

आर्यन का दिल धड़क उठा। वह झपटकर बाहर निकला। "अरे! तुम्हें चोट लगी है?" उसकी आवाज में घबराहट थी, लेकिन कोमलता भी।

लड़की ने सिर उठाया। 

गुलमोहर—अठारह साल की नाजुक सी परी, लेकिन आँखों में डर का साया। उसके बाल बिखरे हुए, गेहुंए रंग की त्वचा पसीने से चमक रही थी। 

सलवार-कमीज फटी हुई, जो उसके बदन को छुपाने की बजाय उजागर कर रही थी—कमीज का कालर खुला, स्तनों की हल्की उभार झलक रही, सलवार में जांघों की मुलायम लकीरें नजर आ रही। 

वह अल्हड़ सी लग रही थी, लेकिन टूटी हुई।

"स-साहब... बचा लो," वह हकलाती हुई बोली, आँखों में आँसू। "एक आदमी... पीछा कर रहा था। भागी आ रही थी... आपकी कार से टकरा गई" उसके पैरों पर खरोंच से दर्द हो रहा था, लेकिन ज्यादा तो दिल का दर्द था।

आर्यन ने झुककर उसे संभाला, अपनी मजबूत बाहों में उठाया।

पहली बार गुल ने किसी को इतना करीब महसूस किया—आर्यन की साँसें उसके गले पर लग रही थीं, आर्यन के बदन की गर्मी उसके सीने में समा रही।

"शशश... चुप। कुछ नहीं होगा। मैं आर्यन हूँ। तुम?" 

कार के दरवाजे पर उसे बिठाते हुए बोला। 

"गुलमोहर," वह फुसफुसाई, शर्मा गई। 

आर्यन ने उसके पैरों को सहलाया, रूमाल से खून पोंछा। हर स्पर्श में एक करंट-सा दौड़ गया—उसके नाजुक पैरों की त्वचा इतनी मुलायम थी।

"तुम्हें घर छोड़ दूँ?" उसने पूछा, लेकिन गुलमोहर का सिर नकार में हिल गया। "नहीं... घर? वह तो जेल है।"

उसकी आँखें नम हो गईं।

[Image: IMG_20251127_112151_200_m.jpg] 


कार चली, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने इंजन चालू रखा, लेकिन बातें शुरू कर दीं। 

"क्या हुआ? बताओ, अगर मन हो।" 

गुलमोहर ने खिड़की की तरफ देखा, चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। 

फिर, जैसे कोई बाँध टूट गया, वह बह निकली—अपनी दुख भरी दास्तान।

"मेरा बाप... रामलाल... गरीब मजदूर था। लेकिन शराब ने सब हर लिया। रोज पीता, और अब बीमारी—लीवर का कैंसर। बिस्तर पर पड़ा कराहता, 'बेटी, संभाल ले घर,' कहता। लेकिन संभाल कौन रहा था? मेरी सौतेली माँ, कमला। वह... वह राक्षसी है। बचपन से मारती-पिटती। 'तू बोझ है, निकल जा,' चिल्लाती। कभी झाड़ू से पीटती, कभी गर्म लोहे से दागती। देखो ना..." 

वह बोली और अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर सरका दी। कंधे पर निशान—पुराने, कटे हुए, जो उसके नाजुक बदन पर जैसे घाव की कहानी कह रहे थे।

आर्यन का चेहरा सख्त हो गया, हाथ स्टीयरिंग पर कस गया। लेकिन वह चुप रहा, सुनता रहा। 

गुलमोहर की आवाज काँप रही थी, हिचकियाँ ले रही थी। उसके स्तन साँसों से ऊपर-नीचे हो रहे, आँसू गालों पर लकीरें खींच रहे थे।

 "फिर आज... शाम को। कमला ने मुझे बेच दिया। एक बूढ़े ठाकुर हरिया को, पचास हजार में। 'तेरी जिंदगी संवर जाएगी,' कहती रही। 

लेकिन मैं जानती थी—वह तो मेरी जवानी चख लेगा, तोड़ देगा। बाप नशे में सोया था। भाग आई... रात अंधेरी, जंगल से होकर। डर लग रहा था, भूखी निगाहें हर तरफ। और फिर... आपकी कार से।" वह रुक गई, सिर झुका लिया। 

कार में सन्नाटा छा गया। आर्यन की साँसें तेज हो गईं। वह रुका, सड़क किनारे। 

"गुलमोहर... तुम्हारी व्यथा... मेरी हो गई। कोई नहीं छुएगा अब तुम्हें।" उसने उसके हाथ पकड़े, उंगलियाँ उलझा दीं। 

आर्यन की आँखों में आग थी—गुस्से की, लेकिन प्यार की भी। 

गुलमोहर ने सिर उठाया, उनकी नजरें मिलीं। हवा में एक तनाव—रोमांटिक, उत्तेजक। उसके होंठ काँप रहे थे, आर्यन की नजर फिसली—उसके गले की लकीर पर, उसके कमर के वक्र पर। 

लेकिन वह रुका।

"चलो, मेरे अपार्टमेंट। वहाँ सुरक्षित रहोगी। वहां सोचेंगे क्या करना है।"

कार फिर चली। 

शहर के पोश इलाके में आर्यन का फ्लैट था—छोटा सा, लेकिन साफ-सुथरा, दीवारों पर पोस्टर, खिड़की से चाँदनी झाँक रही थी।

अंदर घुसते ही गुलमोहर ने राहत की साँस ली। 

आर्यन ने दरवाजा बंद किया, लाइट जलाई। 

"बैठो," वह बोला, सोफे की तरफ इशारा करते हुए।

गुलमोहर बैठ गई, थकान से काँप रही थी। 

आर्यन ने पानी का गिलास दिया, फिर मरहम-पट्टी का बॉक्स। घुटनों पर बैठा, उसके पैरों को सहलाया।

"दर्द ज्यादा हैं?" उसने पूछा, आँखें उठाकर।

गुलमोहर ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी नजरें आर्यन के चेहरे पर ठहर गईं—उसकी मजबूत जबड़े की लकीर पर, उसके कंधों पर। स्पर्श में एक जादू था—उसके हाथों की गर्मी उसके बदन में समा रही।

आर्यन ने पट्टी बाँध दी, फिर खड़ा हो गया। 

"तुम थकी हुई लग रही हो। नहा लो, तरोताजा हो जाओ। बाथरूम वहीँ है," उसने इशारा किया, दाहिने तरफ के दरवाजे की ओर। गुलमोहर का चेहरा लज्जा से लाल हो गया। 

वह झुककर बोली, "साहब... लेकिन... मेरे पास पहनने को कोई और कपड़े नहीं हैं। ये तो... फटे हुए हैं।"

उसकी उंगलियाँ अपनी सलवार-कमीज की फटी कगारों पर फिर रही थीं, जो उसके बदन को और भी उजागर कर रही थीं। 

आर्यन ने एक पल सोचा, फिर अलमारी की ओर बढ़ा। "रुको," वह मुस्कुराया, एक सफेद टी-शर्ट और ग्रे लोअर निकालते हुए।

टी-शर्ट बड़ी थी, उसके कंधों तक ढुलमुल, लेकिन लोअर लूज। 

"ये ले लो। मेरे हैं, लेकिन साफ हैं। पहन लो, आराम मिलेगा।" 

गुलमोहर ने कपड़े लिए, उसकी उंगलियाँ आर्यन की उंगलियों से छू गईं—एक हल्की सी सिहरन दौड़ गई।

 "शुक्रिया... साहब," वह फुसफुसाई, आँखें नीची करके। फिर, शर्माते हुए बाथरूम की ओर चली गई, दरवाजा बंद किया।

बाथरूम के अंदर, ठंडी टाइलें उसके पैरों को छू रही थीं। गुलमोहर ने आईना देखा—अपना चेहरा, बिखरे बाल, फटी कमीज जो उसके स्तनों की उभार को मुश्किल से ढक रही थी। 

पसीना और धूल से सना बदन, लेकिन नीचे छिपी वो नाजुकता जो कभी किसी ने न छुई। 

उसने साँस ली, और धीरे से कमीज के बटन खोलने लगी। ऊपरी बटन खुला, तो उसके गले की हल्की लकीर नजर आई—गेहुंए रंग की त्वचा, जो चाँदनी की तरह चिकनी। 

फिर अगला बटन... कमीज खुली, कंधे से सरक गई। उसके स्तन आजाद हो गए—किशोरावस्था की मिठास से भरे, गोल, निप्पल गुलाबी और सख्त, जैसे कोई फूल की कली जो छूने को बुला रही हो।

वह मन ही मन आर्यन को याद करने लगी—उसकी मजबूत बाहें, जो उसे कार में उठा रही थीं। 

"काश... वह यहीं होता," सोचा, और एक हल्की सी मुस्कान उसके होंठों पर आ गई।

फिर सलवार की डोरी खींची। वह नीचे सरक गई, उसके पतले कूल्हे उजागर हो गए—मुलायम, लहराते हुए, जैसे कोई नदी का किनारा। 

जांघें लंबी, अंदरूनी तरफ की त्वचा इतनी कोमल कि हवा का स्पर्श भी सिहला दे। 

अंत में चड्ढी उतारी—उसकी चूत, नाजुक पंखुड़ियों वाली, अभी-अभी फूली हुई, जो कभी छुई न गई थी। पूरा बदन नंगा, आईने में खड़ी—कमर पतली, पेट सपाट, नाभि एक छोटी सी गहराई। 

बाल कंधों पर लहराते, पीठ का वक्र कामुक। 

वह आर्यन को फिर याद की—उसकी आँखें, जो उसे ऊपर से नीचे देख रही थीं। "वह... क्या सोचेगा मुझे ऐसे?" दिल की धड़कन तेज हो गई, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे। लेकिन एक अजीब सी उत्तेजना भी—जैसे कोई आग सुलग रही हो।

वह शावर के नीचे चली गई। गर्म पानी उसके बदन पर बहा—स्तनों पर, कूल्हों पर, जांघों के बीच। साबुन लगाया, झाग से रगड़ा—हर स्पर्श में आर्यन का चेहरा घूम गया। 

"उसके हाथ... अगर छूते तो..." सोचते हुए, वह सिहर उठी। आधा घंटा बीत गया, लेकिन लग रहा था जैसे समय रुक गया हो।

आखिरकार, दरवाजा खुला। गुलमोहर निकली—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके कंधों पर ढुलमुल लटक रही थी, लेकिन नीचे से उसके जांघों तक आ रही, स्तनों की उभार हल्के से झलक रहे। 

लोअर लूज था, कमर पर बंधा हुआ, लेकिन उसके पतले कूल्हों पर चिपक रहा। बाल गीले, चेहरे पर पानी की बूंदें, आँखें चमक रही। 

वह शरमा रही थी, हाथों से टी-शर्ट के किनारे खींच रही। 

आर्यन सोफे पर बैठा था, चाय का प्याला थामे। जैसे ही उसने देखा, उसके अंदर हलचल मच गई—दिल की धड़कन तेज, साँसें भारी। 

वो टी-शर्ट उसके बदन पर... जैसे उसके लिए बनी हो, लेकिन इतनी सेक्सी। उसके निप्पल्स की हल्की आउटलाइन।

 "तुम... बहुत अच्छी लग रही हो," वह बोला, आवाज में एक भारीपन। नजरें फिसल गईं—उसके होंठों पर, उसके गीले बालों पर। अंदर आग लग रही थी, लेकिन वह संभला। 

गुलमोहर मुस्कुराई, पास आकर बैठ गई।

रात और गहरी हो रही थी, कमरे में हल्की-सी चाँदनी झाँक रही थी। 

गुलमोहर सोफे पर बैठी थी, आर्यन की टी-शर्ट और लोअर में लिपटी हुई, जो उसके बदन पर जैसे दूसरी खाल बन गई थी। 

आर्यन ने फोन निकाला, एक ऐप खोला। 

"भूख लगी होगी। आज बाहर से खाना मंगवा लेते हैं," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर ने सिर हिलाया।

आर्यन को खाना बनाना आता ही नहीं था—चाय या कॉफी के सिवा। वो अक्सर बाहर से कुछ न कुछ मँगवाता रहता, कभी चाइनीज, कभी पिज्जा।

आज तो खास था—गुलमोहर के लिए। "क्या पसंद है? बिरयानी? या कुछ हल्का?" उसने पूछा। 

गुलमोहर शरमा गई, "जो भी... आपकी पसंद।" 

आधे घंटे बाद डोरबेल बजी। आर्यन ने खाना लिया—गर्मागर्म पनीर टिक्का मसाला, नान, और सलाद। मेज पर सजाया, दोनों ने साथ बैठकर खाया। हँसी-मजाक चला, गुलमोहर की हँसी पहली बार फूटी—आर्यन की बातों पर, जो उसके गाँव की कहानियों को हल्का करने की कोशिश कर रहा था। 

लेकिन हर नजर के मिलाव में एक तनाव था—उसकी नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ मसाला की हल्की चमक थी। 

खाना खत्म हुआ, प्लेटें साफ। 

आर्यन ने उठकर कहा, "अब सो जाओ। बेडरूम में जाओ, आराम से। मैं सोफे पर ठीक हूँ।" 

गुलमोहर ने मना किया, लेकिन आर्यन ने जोर दिया। "तुम मेहमान हो। कल तरोताजा होकर बात करेंगे।" वह बेडरूम में चली गई, दरवाजा बंद किया। 

आर्यन लाइट बुझाकर सोफे पर लेट गया, लेकिन नींद कहाँ से आती?
[Image: IMG_20251127_112157_393_m.jpg] 

बेडरूम में गुलमोहर लेटी थी, साफ चादर पर, लेकिन मन अशांत था। 

आर्यन की टी-शर्ट उसके बदन से चिपकी हुई, उसके स्तनों को हल्के से दबा रही। वह आँखें बंद करके आर्यन को याद करने लगी—उसकी चौड़ी छाती, जो कार में उसे छू रही थी; उसके हाथों की गर्मी, जो पैरों पर लगी थी। 

कभी अतीत घेर लेता—सौतेली माँ की मार, बाप की कराहें, बूढ़े ठाकुर की भूखी नजरें। आँसू आ जाते, लेकिन फिर आर्यन का चेहरा घूम जाता—उसके मजबूत कंधे, लहराते बाल, गहरी आँखें जो उसे देखकर चमक उठी थीं। 

"वह... अगर छू ले तो?" सोचते हुए, उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। उसके हाथ अनजाने में अपनी जांघों पर फिसल गए, लोअर की नरमी पर। 

कशमकश थी—डर और आकर्षण का मिश्रण। 

एक तरफ अतीत का जख्म, दूसरी तरफ आर्यन का वो आकर्षण, जो उसके नाजुक बदन को जगा रहा था।

वह मचल उठी बिस्तर पर, साँसें तेज, लेकिन सीमा पर रुकी। "नहीं... अभी नहीं। वह अच्छा इंसान है।" 

फिर भी, मन में तूफान—आर्यन के होंठों की कल्पना, उसके स्पर्श की। रात भर नींद न आई, बस यादें और कल्पनाएँ घूमती रहीं।

बाहर सोफे पर आर्यन भी करवटें बदल रहा था। उसकी आँखें बंद, लेकिन दिमाग में गुलमोहर का चेहरा। वो बाथरूम से निकली थी—गीले बाल, टी-शर्ट में उसके स्तनों की हल्की उभार, जांघों की चिकनी लकीरें जो लोअर से झाँक रही थीं।

वह कल्पना कर रहा था—उसके नाजुक बदन को छूना, उसके गले की लकीर को चूमना, उसके पतले कूल्हों को सहलाना। उसके स्तन कितने मुलायम होंगे, निप्पल्स गुलाबी और सख्त... जांघों के बीच वो नरमी, जो कभी छुई न गई। साँसें भारी हो गईं, हाथ अनजाने में नीचे सरक गया, लेकिन रुका। 

"नहीं, आर्यन। वह टूटी हुई है। पहले विश्वास, फिर प्यार।" मचल रहा था, लेकिन हद पार न की। 

मन में आग सुलग रही थी—गुलमोहर की वो मासूम मुस्कान, वो शर्माती नजरें। 

दोनों एक-दूसरे को याद करके तड़प रहे थे, लेकिन रात गुजरी बिना सीमा लाँघे। 

सुबह का इंतजार था... नई शुरुआत का।

दूसरी तरफ

गुलमोहर के भागने की खबर कमला को जैसे बिजली की तरह चुभ गई। 

रात के दूसरे पहर में, जब गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूब चुकी थीं, कमला ने ठाकुर हरिया को फोन किया।

 उसकी आवाज काँप रही थी—गुस्से से, लालच से।

 "हरिया जी... वो हरामी बेटी भाग गई! 
अब क्या करें?

फोन पर ठाकुर की साँसें भारी हो गईं। साठ साल का बूढ़ा, लेकिन आग अभी बाकी—पीली दांतों वाली मुस्कान के पीछे वो भूख, जो जवानी की तरह सुलग रही थी। 

"भाग गई? अरे कमला, तूने तो कहा था कि वो नाजुक फूल है, मेरे लिए ही बनी है। अब मैं खाली हाथ? नहीं... मैं खाली नहीं बैठूँगा। ढूँढो उसे। शहर की सड़कों पर, जंगलों में—हर जगह। वो अकेली लड़की, रात में... कोई न कोई भूखा भेड़िया तो मिलेगा ही। लेकिन अगर मैंने पकड़ लिया, तो तेरी सौतेली बेटी को सजा मिलेगी... मेरी गोद में, मेरी आग में जलकर।"

कमला का चेहरा पीला पड़ गया। वह जानती थी ठाकुर की "सजा" क्या होती—उसकी पुरानी हवेली में, जहाँ दीवारें चीखों से गूँजती थीं। 

ठाकुर ने फोन काटा, लेकिन नींद न आई। वह बिस्तर पर लेटा, आँखें बंद, गुलमोहर का चेहरा घूम गया—वो फटी सलवार-कमीज में झलकते स्तन, वो पतली कमर, वो नाजुक जांघें जो भागते वक्त लहरा रही होंगी।

"पचास हजार... वो चूत मेरी होनी थी," वह बुदबुदाया, हाथ नीचे सरक गया। कल्पना में गुलमोहर को नंगा देखा—उसकी चूत को चखते हुए, उसके कराहने की कल्पना। 

लंड सख्त हो गया, बूढ़े बदन में जवानी की आग। 

"ढूँढ लाऊँगा... और जब लाऊँगा, तो पहले तेरी सौतेली माँ को सजा दूँगा—उसके सामने तुझे तोड़ूँगा।"

तभी उसने अपने आदमियों को हवेली पर इकठ्ठा होने को कहा। 
ठाकुर ने सबको इसी वक्त ढूंढने के लिए लगा दिया । किसी भी कीमत पर लड़की ढूँढ लाओ। वरना सब की गांड़ मारूंगा खड़े खड़े। 

कमला ने भी शुरू किया ढूंढने का अभियान —अपने आशिकों को ढूंढने के लिए भेजा,पड़ोसियों से पूछा। लेकिन अंदर से डर था—अगर गुलमोहर न मिली, तो ठाकुर का गुस्सा... उफ्फ, वो तो कमला के बदन को ही निगल लेगा।

गाँव की वो रात अब शिकार की रात बन गई—ठाकुर की भूखी नजरें शहर की ओर।

लेकिन गुलमोहर? वो आर्यन की बाहों में सुरक्षित... अभी के लिए।


कहानी जारी रहेगी
✍️निहाल सिंह 
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#2
Nice update and nice story
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#3
Episode 2: कैसा ये खुमार है?

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँक रही थीं, हल्की-हल्की धूप जो कमरे को सोने की परत चढ़ा रही थी।

आर्यन ने कल रात ही फैसला कर लिया था—आज ऑफिस नहीं जाना। शुक्रवार था, और उसके लिए तो शनिवार-रविवार की छुट्टियाँ बोनस। मतलब, पूरे तीन दिन... गुलमोहर के साथ।

कोई जल्दबाजी नहीं, बस वो और वो—एक नई दुनिया की शुरुआत।
वह सोफे पर लेटा था, चादर आधी कमर तक, ऊपरी बदन नंगा।

पच्चीस साल की जवानी उसके शरीर में उफान ला रही थी—चौड़ी छाती पर हल्के बाल, पेट की मांसपेशियाँ जो साँसों से हल्के से उभर रही थीं। नींद में उसके होंठ हल्के खुले, चेहरा शांत, जैसे कोई बच्चा जो सपनों में खोया हो। क्यूट... इतना क्यूट कि कोई भी पिघल जाए।

बेडरूम का दरवाजा धीरे से खुला।
गुलमोहर बाहर आई—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके नाजुक बदन पर ढीली लेकिन मोहक लग रही थी। नीचे लोअर, जो उसके पतले कूल्हों पर चिपका हुआ था, जांघों की चिकनी त्वचा हल्के से झलक रही। बाल बिखरे, चेहरा तरोताजा—नहाने के बाद की वो चमक अभी बाकी थी।

वह रुकी, सोफे की ओर देखा। आर्यन सो रहा था। "हाय राम..." उसके मन में एक तरंग दौड़ गई। सोते हुए वह इतना मासूम लग रहा था—बाल माथे पर बिखरे, भौहें हल्की सिकुड़ीं, होंठों पर एक हल्की मुस्कान। गुलमोहर का दिल धड़क उठा। "कितना क्यूट... जैसे कोई छोटा बच्चा।"

उसे चूमने का मन हुआ—उन होंठों को, उसकी गर्माहट महसूस करने का। उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई, स्तन ऊपर-नीचे हो गए साँसों से। लेकिन वह रुकी। "नहीं... गुलमोहर, तू पागल हो गई है? अभी तो..." भावनाओं को दबाया, लेकिन नजरें हट न सकीं।

वह खड़ी हो गई, चुपचाप देखती रही—कई मिनट। आर्यन की छाती का उतार-चढ़ाव, उसके कंधों की चौड़ाई, कमर पर बालों की हल्की सी लकीर ,. सब कुछ उसे खींच रहा था। मन में कल्पना घूम रही—उसके स्पर्श की, उसकी बाहों की।
अचानक, उसके हाथ अनजाने में साइड टेबल पर रखे फूलदान को छू गया। "धड़ाम!"—दान नीचे गिरा, मिट्टी बिखर गई, फूल बिखरे।

शोर से आर्यन की चौंककर आँखें खुल गई। लेकिन जैसे ही नजर उठी, वो ठहर गई—गुलमोहर पर। उनकी नजरें मिलीं।

गुलमोहर के चेहरे पर खिड़की से आ रही सुबह की हल्की धूप की किरण पड़ रही थी, उसके गेहुंए रंग को सोने जैसा चमका रही। बालों पर चमक, आँखों में एक मासूम चमक, होंठ हल्के गुलाबी। टी-शर्ट की गर्दन से उसके गले की नाजुक लकीर झलक रही, स्तनों की हल्की उभार धूप में और मोहक।

आर्यन का दिल उछल गया—जैसे कोई तीर सीधा छलनी कर गया।

"वाह... सुबह के उजाले में तो परी लग रही है," मन ही मन बोला। गुलमोहर का रूप निखर गया था—रात की थकान गायब, बस वो अल्हड़ सौंदर्य, जो उसे बाँध ले।

नजरें मिलीं तो समय रुक सा गया—कई पल तक, बिना शब्दों के बातें होती रहीं। आँखों में आँखें, जैसे कोई धागा खिंच रहा हो।

आर्यन की नजरें उसके चेहरे से फिसलीं—होंठों पर, गले पर, फिर नीचे... टी-शर्ट के कर्व पर।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। उसके गाल लाल हो गए, लेकिन नजरें न हटीं।

आर्यन के मन में तूफान—उसके नाजुक बदन की कल्पना, रात की वो सिहरन।
गुलमोहर के मन में भी—उसकी क्यूट मुस्कान, मजबूत बाहें। हवा में तनाव था—रोमांटिक, उत्तेजक।

लेकिन तभी किचन से चाय की हल्की खुशबू आई—गुलमोहर ने पहले ही उबाल रखी थी।

वो खुशबू ने हकीकत बुला ली, और होश लौटा।

आर्यन ने हल्के से खाँसा, सोफे पर उठ बैठा। चादर सरका, उसका ऊपरी बदन और साफ नजर आया—मसल्स की हल्की चमक, पसीने की बूंदें।

"गुड मॉर्निंग... नींद आई अच्छे से?" उसकी आवाज भारी, लेकिन मुस्कान के साथ।

गुलमोहर शर्मा गई, फूलों को समेटने लगी। "हाँ... शुक्रिया। आप?" लेकिन नजरें फिर मिलीं—वो अधूरी बात, जो अभी बाकी थी।

गुलमोहर ने फूल समेटे, फिर मुस्कुराई। "साहब... फ्रेश हो जाओ। मैंने आपके लिए चाय बनाई है।" उसकी आवाज में एक मासूम अपील थी, जैसे घर की मालकिन बन गई हो।

आर्यन का दिल पिघल गया—ये पहली बार था जब किसी और ने उसके लिए चाय बनाई हो।

"ठीक है,। पाँच मिनट में आता हूँ।" वह उठा, बाथरूम की ओर चला गया।
गुलमोहर किचन में लग गई।

आर्यन फ्रेश होकर लौटा—गीले बाल, साफ शर्ट-ट्राउजर में, और भी हैंडसम लग रहा।

दोनों सोफे पर बैठे, चाय के प्याले थामे। सिप लेते हुए नजरें मिलीं—आर्यन की गहरी आँखें गुलमोहर के चेहरे पर ठहर गईं, उसके गालों की लाली पर।

"ये चाय... स्वर्ग जैसी है," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर शर्मा गई,चाय का प्याले को अपने हाथों में छिपा लिया।

हवा में वो तनाव फिर लौट आया—रोमांटिक, हल्की उत्तेजना भरी। चाय खत्म हुई, लेकिन बातें न रुकीं।

आर्यन ने अचानक कहा, "तुम्हें लेकर कहीं जाना है। तैयार हो जाओ।" गुलमोहर चौंकी, "कहाँ?" "सरप्राइज," वह विन्क किया।

दस बजे तक दोनों तैयार।

कार में बैठे, आर्यन ने इंजन स्टार्ट किया। रास्ते में हल्की बातें—गुलमोहर के गाँव की, आर्यन की जॉब की।

लेकिन उसकी नजरें बार-बार उसके जांघों पर फिसल जातीं, जो लोअर से हल्के से नजर आ रही थीं।

मॉल पहुँचे—बड़ा सा, चमचमाता।

अंदर घुसते ही गुलमोहर की आँखें फैल गईं—दुकानों की रौनक, कपड़ों की चमक।

आर्यन ने उस का हाथ पकड़ लिया, "चलो, शॉपिंग का समय।"
वह उसे पहली दुकान में ले गया—महिलाओं के सेक्शन में। "जो पसंद आए, ले लो।"

गुलमोहर हिचकिचाई, लेकिन आर्यन ने जोर दिया।

एक के बाद एक—दस अलग-अलग रंगों के सलवार सूट: लाल सिल्क का, नीला कॉटन का, हरा एम्ब्रॉयडरी वाला, पिंक प्रिंटेड... सब बढ़िया मटेरियल, उसके नाजुक बदन के लिए परफेक्ट।

ट्रायल रूम में जाती, आर्यन बाहर इंतजार करता—कल्पना करता उसके बदन पर उन सूट्स का फिट। हर बार बाहर आती, तो मुस्कुराहट के साथ घूमती।
"कैसा लग रहा?" "परफेक्ट... राजकुमारी लग रही हो," वह फुसफुसाता। गुलमोहर शर्मा जाती, लेकिन खुशी से चमकती आँखें। बैग भर गए—सूट्स, जूते, बैग्स।

फिर लॉन्जरी सेक्शन। गुलमोहर को शर्म आ गई।

"साहब... ये..." लेकिन आर्यन ने कहा, "जरूरी है ना। जाओ, चुन लो। मैं बाहर हूँ।"

वह अंदर चली गई—पैंटी-ब्रा चुनने लगी, नाजुक लेस वाली, उसके स्तनों और कूल्हों के लिए सॉफ्ट।

आर्यन बाहर खड़ा, लेकिन नजरें इधर-उधर। तभी उसकी नजर पड़ी एक साड़ी पर—ब्लैक कलर की, प्लेन सिल्क, इतनी स्मूथ कि स्पर्श करने को मन करे।

"ये... गुलमोहर के लिए परफेक्ट।" उसने खरीदी, लेकिन बैग में छिपा ली। न गुलमोहर को दी, न बताया। मन में सोचा, "समय आएगा... सरप्राइज।"

कल्पना की—वो साड़ी उसके बदन पर लिपटी, कर्व्स उभारती।

दोपहर तक शॉपिंग खत्म।

दोनों थके हुए, लेकिन खुश। कार में लौटे, बैग्स पीछे। घर पहुँचे, आर्यन ने दरवाजा खोला।

"फ्यू... क्या दिन था!" वह सोफे पर धम्म से लेट गया, आँखें बंद।
गुलमोहर ने बैग्स रखे, लेकिन आर्यन की थकान देखी—उसकी छाती ऊपर-नीचे, बाल बिखरे।

"सो रहा है... कितना केयरिंग।" वह मुस्कुराई। किचन में लग गई—फ्रिज में जो था: कुछ सब्जियाँ, चावल, दाल। इम्प्रोवाइज्ड खाना बनाया—सिंपल लेकिन प्यार भरा। मसाले डाले, भाप आने लगी।

एक घंटे बाद तैयार—गर्मागर्म सब्जी, चावल। वह आर्यन के पास गई, हल्के से कंधा झकझोरा। "साहब... उठो। खाना तैयार है।"

आर्यन की आँखें खुलीं, नींद भरी मुस्कान फैल गई। लेकिन जैसे ही 'साहब' शब्द कान में पड़ा, वह हल्का सा चौंका। सोफे पर आधा उठा।

"अरे गुलमोहर... तुम मुझे साहब मत कहा करो। ऐसा लगता है जैसे मैं 50-60 का अंकल हूँ। मैं तो 25 साल का जवान मर्द हूँ!" कहते हुए उसने बाजू मोड़ी, अपने बाइसेप्स दिखाए—मजबूत, उभरे हुए, जो शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँक रहे थे। हल्की मसल्स की चमक, जो और भी आकर्षक लग रही।

गुलमोहर की नजरें आर्यन के बाइसेप्स पर ठहर गईं—वो मजबूत, उभरे हुए मसल्स, शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँकते, हल्की चमक के साथ। एक पल के लिए, उसके मन में एक सिहरन दौड़ गई।

"हाय... कितने मजबूत... कितने आकर्षक... अगर ये हाथ मुझे छू लें, तो क्या होगा?" वह मन ही मन सोची, कल्पना में आर्यन के हाथों का स्पर्श उसके बदन पर फिसलता महसूस हुआ—कंधों पर, कमर पर, नीचे की गीली गहराई की पंखुड़ियां पर ।

इस कल्पना से उसके गाल लाल हो गए, साँसें तेज।

शरम से आँखें नीची, लेकिन मन में वो उत्तेजना—आर्यन का जवान बदन उसे बुला रहा था। "हाँ... जवान ही तो लगते हो... और कितना जवान!"
आर्यन को तुरंत होश आया—उसकी आँखें फैल गईं। "अरे... मैंने क्या बोल दिया?"

वह मन में कसमसाया, चेहरा गर्म हो गया।

आर्यन ने खाँसते हुए अपनी गलती सुधारने की कोशिश की, "म्ह्ह... मतलब... खाना... हाँ, खाना तैयार है ना? चलो, ठंडा न हो जाए।"

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी—वो शब्द उनके बीच बस चुके थे, हवा में एक रोमांटिक, उत्तेजक तनाव छोड़कर। गुलमोहर ने सिर्फ सिर हिलाया, मुस्कुराती हुई टेबल की ओर इशारा किया।

दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठे। गुलमोहर ने चावल पर सब्जी परोसी—हरी मटर वाली आलू की सब्जी, मसालों की हल्की खुशबू।

आर्यन ने एक कौर लिया, आँखें बंद कीं।

"उम्म... ये स्वाद..." आज बहुत दिनों के बाद घर जैसा लगा—माँ की याद आई, वो पुरानी रसोई की गर्माहट।

उसके गले में एक गांठ सी लग गई, आँखें नम हो गईं। "गुलमोहर... तूने तो जादू कर दिया। इतने दिनों बाद... घर का अहसास।" वह बोला, आवाज भारी।
गुलमोहर ने देखा—उसकी आँखों में चमक, लेकिन भावुक। "आर्यन... खुशी हुई।" वह सुधार गई, लेकिन शरम अभी बाकी।

खाना चला—हँसी-मजाक, लेकिन हर नजर में वो अधूरी बात। आर्यन की नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ चावल की बूंद चिपकी थी।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। प्लेटें साफ हो गईं, लेकिन मन भरा नहीं।
खाना खत्म, दोनों सोफे पर बैठे।

आर्यन ने बैग्स की तरफ इशारा किया, मुस्कुराते हुए।

"गुलमोहर, तुमने मेरा आज बहुत खर्चा करवा दिया—दस सूट्स, जूते... लेकिन अभी तक मेरे लोअर और टी-शर्ट पर कब्जा कर रखा है।"

वह हँसा, लेकिन आँखों में शरारत। "जाओ, और आज खरीदे कपड़ों में से कोई पहनकर दिखाओ। देखूँ, राजकुमारी कैसी लगेगी।"

गुलमोहर शरमा गई—गालों पर लाली, उंगलियाँ टी-शर्ट के किनारे पर फिरने लगीं।

"अच्छा... ठीक है।" वह उठी, बैग्स उठाकर बेडरूम में चली गई। दरवाजा बंद किया, लेकिन मन धड़क रहा था।

"वह देखेगा... मुझे ऐसे..." आईने के सामने खड़ी, उसने लोअर-टी-शर्ट उतारी। नंगा बदन—स्तन गोल, निप्पल्स हल्के सख्त, कमर पतली, कूल्हे लहराते।
पहले लॉन्जरी का बैग खोला। मॉल से खरीदी वो नाजुक ब्रा-पैंटी—सफेद लेस वाली, उसके बदन के लिए परफेक्ट।

वह सिहर उठी, आईने में खुद को देखते हुए। ब्रा पहनने लगी—स्ट्रैप्स कंधों पर फिसले, कप उसके स्तनों को सहलाते हुए समेट लिया।

निप्पल्स पर हल्का दबाव, जो एक मीठी सिहरन पैदा कर गया।

"आर्यन... अगर देख ले तो..." मन में उसकी नजरें घूम गईं। फिर पैंटी—पतली स्ट्रिंग्स कूल्हों पर लिपटीं, उसकी चूत को नाजुकता से ढकते हुए।
जांघों के बीच की वो नरमी, जो अब छिपी लेकिन उत्तेजक। पूरा लॉन्जरी सेट उसके बदन पर चिपका—कामुक, लेकिन मासूम।

अब नीले रंग का सलवार सूट चुना—सिल्क का, एम्ब्रॉयडरी वाला।
सलवार पहनी, जो कूल्हों पर लहराई; फिर कमीज, जो ब्रा की उभार को हल्के से उभार दे रही।

बाल संवारे, काजल लगाया—जो मॉल से ही लिया था। शरमाते हुए बाहर आई, कदम धीमे।

आर्यन ने देखा—सोफे से उठा, साँसें रुक गईं।

"गुलमोहर..... वाह।" नीला सूट उसके गेहुंए रंग पर चमक रहा था, कमीज की नेकलाइन से गले की लकीर झलक रही, दुपट्टा कंधों पर लहराता।

उसके कदमों की थिरकन, कमर का हल्का मोड़—सब कुछ उत्तेजक, लेकिन मासूम। आर्यन की नजरें ऊपर से नीचे फिसलीं—जांघों की लकीर पर, एंकल्स पर।

मन में आग लग गई, लेकिन वह मुस्कुराया।
"परफेक्ट...किसी परी से कम नहीं।"
गुलमोहर शर्मा कर खड़ी रही, लेकिन आँखों में चमक—उसकी तारीफ ने दिल छू लिया।

शाम ढल रही थी, लेकिन उनके बीच की शाम?
अभी तो बस शुरू हुई थी...
कहानी जारी रहेगी..
✍️निहाल सिंह 
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#4
मजेदार कहानी लग रही है अब देखना है आगे क्या है ।
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#5
Episode 3: हम आपके हैं कौन 

आर्यन ने गुलमोहर की तारीफ़ करने के बाद अचानक गंभीर हो गया।

“गुलमोहर, मैं तुम्हारे बारे में और जानना चाहता हूँ। कल रात तुम बहुत डरी हुई थीं। क्या तुम अब भी पूरी तरह ठीक नहीं हो?”

गुलमोहर को लगा कि आर्यन वाक़ई उसकी परवाह करता है। उसने आँखें नीचे कीं और धीरे-धीरे अपने गाँव, सौतेली माँ के अत्याचार के निशानों और हरिया ठाकुर के बारे में विस्तार से बताया — वह दर्दनाक अतीत जो आर्यन को सिर्फ़ एक झलक में पता चला था। वह रो पड़ी।

गुलमोहर के रोने से आर्यन का दिल पसीज गया। उसके अंदर का रक्षक जाग उठा।

आर्यन धीरे से उठा और गुलमोहर के पास बैठ गया। उसने उसके सिर पर हाथ रखा। सांत्वना देते हुए उसके आँसू पोंछे।

“बस… बस, अब नहीं। यह सब खत्म हो चुका। सुनो गुलमोहर, तुम यहाँ हो, तुम सुरक्षित हो। मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा। तुम्हें मेरे साथ यहाँ रहने के लिए किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं। अगर वो हरिया ठाकुर या कोई और तुम्हारी तरफ़ आँख उठाकर देखेगा, तो मैं…” उसने गुस्से से मुट्ठी भींच ली।

गुलमोहर को महसूस हुआ कि आर्यन सिर्फ़ आकर्षक नहीं, एक मज़बूत सहारा है। उसका विश्वास आर्यन पर पहाड़-जितना मजबूत हो गया। वह पहली बार सच्चे मन से मुस्कुराई, उसकी आँखें चमक उठीं।

रात होने लगी। आर्यन माहौल हल्का करना चाहता था।
“चलो, अब बहुत हो गईं गंभीर बातें। आज का दिन बहुत लंबा था। हम एक कॉमेडी फिल्म देखते हैं।”

वह सोफे पर नीले सूट में बैठी गुलमोहर के लिए जगह बनाता हुआ खिसका।

फिल्म देखते-देखते थकी हुई गुलमोहर अनजाने में अपना सिर आर्यन के कंधे पर टिका देती है — यह पल विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक था।

आर्यन का शरीर फिर तड़प उठा, मगर वह खुद को संयम में रखता है। उसने अपनी एक बाँह गुलमोहर के कंधों के चारों ओर डाल दी — सिर्फ़ रक्षक की तरह, जैसे वह कोई नन्हा बच्चा हो। धीरे-धीरे वह उसके सूखे और साफ़ बालों को सहलाने लगा।

रात बहुत गहरी हो चुकी थी। सोफे पर आर्यन के कंधे पर सिर टिकाए सोई गुलमोहर की साँसें शांत थीं।

आर्यन का हाथ अब भी उसे थामे था, लेकिन उसके अंदर का तूफ़ान शांत हो चुका था।

अब उसके लिए गुलमोहर सिर्फ़ आकर्षण नहीं, एक पवित्र ज़िम्मेदारी थी।

आर्यन ने धीरे से गुलमोहर को गोद में उठाया। नींद में उसका बदन हल्का और बेजान-सा लग रहा था। वह उसे अपनी मजबूत बाँहों में लेकर बेडरूम की ओर बढ़ा।

गुलमोहर को बिस्तर पर लिटाया, चादर ठीक की और एक पल रुका। उसकी नज़र उसके मासूम चेहरे पर थी — जहाँ अब डर नहीं, सिर्फ़ शांति थी।

आर्यन ने धीरे से उसके माथे पर हाथ फेरा, फिर पैरों के पास फर्श पर बैठ गया। वह चौकीदार की तरह उसे सोता देखता रहा — नीली पोशाक, शांत चेहरा, वह मासूमियत जिसे दुनिया ने तोड़ने की कोशिश की थी।

देखते-देखते आर्यन की आँखें भी भारी हो गईं। रात भर का तनाव और भावनात्मक उथल-पुथल ने उसे थका दिया था। उसने सिर बिस्तर के किनारे पर टिकाया और गुलमोहर के पैरों के पास ही ज़मीन पर सिमटकर सो गया।

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँकने लगीं।
गुलमोहर की आँख खुली। उसकी नज़रें कमरे में घूमीं और पैरों के पास ठिठक गईं।

आर्यन!
पहले पल तो वह डर गई — एक अजनबी मर्द, एक ही कमरे में। दिल जोर से धड़का। फिर उसने देखा — आर्यन कितनी अजीब स्थिति में सो रहा था, पैर बिस्तर पर, सिर ज़मीन पर।

उसने खुद को छुआ — वह पूरी तरह सुरक्षित थी। कपड़े जस के तस।

“हाय राम…” उसके मन में गहरा भाव उमड़ आया।
“अगर कोई और होता तो शायद अब तक मुझे चख चुका होता। पर आर्यन कितना नेकदिल है। उसने मुझे छुआ भी नहीं अभी तक।”

उसका दिल कृतज्ञता और एक नए प्यार से भर गया। यह सिर्फ़ आकर्षण नहीं, विश्वास और सम्मान था।

वह उठी और बिस्तर पर बैठी। आर्यन के चेहरे पर नींद की शांति थी — बाल माथे पर बिखरे, क्यूट मासूमियत।
गुलमोहर ने हिम्मत जुटाई, हाथ बढ़ाया और उसके बालों को सहलाया।

फिर झुककर अपने होंठ उसके होंठों से छुआ — एक हल्की-सी, मासूम पप्पी।

“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ, आर्यन,” उसने फुसफुसाया।

आर्यन अभी गहरी नींद में था। गुलमोहर मुस्कुराई और बाथरूम की ओर चली गई।

आर्यन की नींद गुलमोहर के बाहर निकलने के बाद टूटी। उसे याद आया कि वह गुलमोहर के पैरों के पास सोया था। वह उठा, अंगड़ाई ली और सोफे पर आ गया।

जब गुलमोहर नहाकर निकली तो आज पीले सूट में वह ताज़गी से भरी लग रही थी। गालों पर हल्की लाली — रात के भावुक पलों और सुबह की पप्पी की वजह से।

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग, राजकुमारी।”
गुलमोहर शर्मा कर बोली, “गुड मॉर्निंग, आर्यन।”
दोनों किचन में नाश्ते के लिए खड़े थे — चाय और टोस्ट।

आर्यन टोस्ट पर जैम लगाते हुए गुलमोहर की आँखों में देखता रहा। वह अब और इंतज़ार नहीं कर सका।
उसने टोस्ट साइड में रखा और गुलमोहर के पास आ गया। धीरे से उसका गाल थामा।

“गुलमोहर,” उसकी आवाज़ भारी मगर सच्चाई से भरी थी, “मैं तुम्हारी कहानी जानता हूँ। मैंने देखा है तुम कितनी टूटी हुई हो। लेकिन जब कल रात तुमने मेरे कंधे पर सिर रखा, मुझे लगा मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी हूँ।”

वह उसकी आँखों में देखता रहा।

“मैं तुम्हारे बिना इस घर की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैंने तुम्हें सुरक्षित रखने की कसम खाई है और निभाऊँगा।”

उसने अपना हाथ उसके गाल से नीचे खिसकाया और उसका हाथ थाम लिया।

“मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ, गुल — तुम्हारे दर्द से नहीं, तुम्हारी हिम्मत और मासूमियत से। और मैं तुम्हें हमेशा सम्मान दूँगा।”

गुलमोहर की आँखें भर आईं। वह खुशी के आँसुओं के साथ आर्यन के सीने से लग गई।

इस बार आर्यन का आलिंगन सिर्फ़ सुरक्षा नहीं, प्यार का इकरार था।

आर्यन के प्यार भरे इकरार ने गुलमोहर को निःशब्द कर दिया। वह रो रही थी — खुशी और सुरक्षा के आँसू।
 आर्यन ने उसे कसकर थाम रखा था — उसकी बाँहें अब उसकी ढाल और उसका घर थीं।

कुछ देर बाद गुलमोहर शांत हुई। उसकी आँखें नम मगर चमकती हुईं।

“आर्यन…” बस इतना ही कह पाई।
आर्यन ने उसके गालों के आँसू पोंछे। अब शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। वह धीरे से झुका।

गुलमोहर ने आँखें बंद कर लीं, साँसें तेज़ हो गईं।
आर्यन के होंठ पहली बार गुलमोहर के होंठों से मिले।
चुम्बन शुरू में नरम और मीठा था — जैसे दो प्यासे होंठ एक-दूसरे को पहचान रहे हों।

धीरे-धीरे गहरा होता गया। आर्यन का एक हाथ उसके गाल पर, दूसरा कमर पर — उसे अपने करीब खींच लिया। दोनों के बदन चिपक गए।

गुलमोहर ने बाँहें उठाईं और आर्यन की गर्दन लपेट लीं। उसने भी पूरी शिद्दत से जवाब दिया।

किचन की गर्माहट, चाय की खुशबू — सब मिट गया। सिर्फ़ उनकी तेज़ साँसें बाकी थीं।

आर्यन ने उसे उठाया और दीवार से सटा लिया। होंठ जुड़े ही रहे। गुलमोहर के पैर हवा में, जाँघें आर्यन की कमर से चिपकी हुई थीं। वह आर्यन की जवान मर्दानगी का दबाव साफ़ महसूस कर रही थी।

आख़िरकार साँसें फूलने पर आर्यन पीछे हटा। दोनों के होंठ गीले, आँखें बंद, चेहरे खुशी और कामुकता से दमक रहे थे।

आर्यन ने माथा उसके माथे से टिकाया और फुसफुसाया, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, गुल।”
गुलमोहर ने हँसते हुए, आँखें बंद रखते हुए सिर हिलाया। वह अब पूरी तरह आर्यन की थी।

तभी आर्यन का दायाँ हाथ अनजाने में मेज पर रखे रेडियो को छू गया। 

पावर बटन दब गया। 

एक पल की खामोशी… फिर अचानक वो मधु धुन कमरे में फैल गई…
FM पर हम आपके हैं कौन का गीत बजने लगा।

♪♫ बेचैन है मेरी नज़र… 
है प्यार का कैसा असर… 
ना चुप रहो, इतना कहो… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर की आँखें एक पल को खुलीं, फिर और कसकर बंद हो गईं। 

वो गाना जैसे उसके दिल की बात कह रहा था। 
आर्यन ने होंठ हटाए बिना, मुस्कुराते हुए उसे और करीब खींच लिया। 
 
उसके हाथ अब गुलमोहर की कमर से ऊपर सरक गए—उसकी पीठ पर, उसकी गर्दन पर। 
गुलमोहर ने भी जवाब दिया—उसकी उंगलियाँ आर्यन के बालों में उलझ गईं।

♪♫ खुद को सनम रोका बड़ा… 
आखिर मुझे कहना पड़ा… 
ख्वाबों में तुम आते हो क्यों… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर के होंठों से एक हल्की सी आवाज़ निकली—जैसे वो गा रही हो, या कह रही हो। 
“आर्यन…” 

आर्यन ने चुंबन को और गहरा कर दिया। उसकी जीभ ने हल्के से उसके होंठों को छुआ। 

गुलमोहर का बदन काँप उठा। उसने खुद को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया। 

अब दोनों के बदन एक-दूसरे से ऐसा चिपके थे जैसे अलग होना नामुमकिन हो।

♪♫ बेचैन है मेरी नज़र… है प्यार का कैसा असर… 
हैं होश गुम, पूछो ना तुम… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर के मन में सिर्फ एक ही बात गूँज रही थी— 
मैंने खुद को बहुत रोका था… 
पर अब नहीं रोक पाई… 
तुम मेरे ख्वाबों में नहीं… 
अब मेरी ज़िंदगी में हो… 
मैं तुम्हारी हूँ… 
केवल तुम्हारी 


आर्यन ने आखिरकार होंठ हटाए। दोनों की साँसें फूली हुई थीं। 

उसने अपना माथा गुलमोहर के माथे से टिका दिया। 
गुलमोहर के गाल शर्म से लाल थे—ठीक वैसे ही जैसे गाने में कहा जा रहा था। 
आर्यन ने फुसफुसाया, 
“तेरा चेहरा सब बता रहा है गुल… 
अब कुछ कहने की ज़रूरत नहीं…”

फिर उसने फिर से उसके होंठ अपने होंठों में समेट लिए। 
गाना चलता रहा… 
चुंबन चलता रहा… 
और उस पल गुलमोहर ने बिना एक शब्द बोले, अपने पूरे वजूद से कह दिया—

हम आपके हैे…सिर्फ आपके हैं  ❤️

कहानी जारी रहेगी...
✍️निहाल सिंह 
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#6
Nice update and awesome story
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#7
Episode 4: आज फिर तुम पे प्यार आया हैं...

शाम के धुँधलके में फ्लैट की खिड़की से चाँदनी झाँक रही थी, हवा में एक मीठी उत्तेजना घुली हुई।

कमरे में हल्की-सी पीली रोशनी फैल गई, जिसने उनके माहौल को और भी रोमांटिक बना दिया।

आर्यन मुस्कुराया, उसने गुलमोहर को अपने पास से थोड़ा दूर किया। "रुको, मेरे पास तुम्हारे लिए एक और सरप्राइज है।"
गुलमोहर की आँखें उत्सुकता से चमक उठीं।
"क्या है?"

आर्यन उठकर अलमारी की ओर बढ़ा। उसने वह छिपा हुआ गिफ्ट पैकेट निकाला, जिसे उसने लॉन्जरी सेक्शन के पास खरीदा था।
उसने पैकेट गुलमोहर की ओर बढ़ाया।

"खोलो इसे," आर्यन ने कहा, उसकी आँखों में एक शरारत भरी चमक थी।

गुलमोहर ने धीरे से पैकेट खोला। अंदर देखकर उसकी साँसें थम गईं।

यह ब्लैक कलर की प्लेन सिल्क साड़ी थी—इतनी स्मूथ और चिकनी कि स्पर्श करने से ही कामुक सिहरन दौड़ जाए।
गुलमोहर के गालों पर एकदम से लाली दौड़ गई। वह समझ गई कि यह साड़ी सिर्फ़ कपड़ा नहीं, बल्कि आर्यन की गहरी इच्छा और रोमांटिक कल्पना का प्रतीक है।

आर्यन उसके पास आया और फुसफुसाया, "यह साड़ी... मैंने तुम्हारे लिए खरीदी थी। जब मैंने इसे देखा, तो मैंने सोचा... ये साड़ी तुम पर बहुत अच्छी लगेगी। मेरे प्यार का इज़हार करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता।"

आर्यन ने पैकेट उसके हाथ में रखा।
गुलमोहर ने उत्सुकता से खोला—अंदर काली साड़ी, प्लेन सिल्क की, इतनी चिकनी कि स्पर्श से ही सिहरन दौड़ जाए। काला रंग उसके गेहुंए रंग पर फबेगा, उसके कर्व्स को उभार देगा।

"ये... इतनी खूबसूरत... लेकिन मेरे लिए?" वह फुसफुसाई, उंगलियाँ साड़ी पर फेरते हुए।

आर्यन पास सरका, उसके कान में फुसफुसाया, "हाँ, तुम्हारे लिए। पहन लो... देखूँ, मेरी गुल काली रात की तरह कैसी लगेगी।"
उसकी साँसें गुलमोहर के गले पर लगीं।

गुलमोहर शर्मा गई, लेकिन आँखों में चमक—उसका मन जानता था।
"ठीक है..." आर्यन मुस्कुराया, "जाओ, बेडरूम में। मैं बाहर इंतजार करूँगा।"
गुलमोहर बेडरूम में चली गई, दरवाजा बंद किया।

आईने के सामने खड़ी, पिला सूट उतारा—नंगा बदन फिर उजागर, स्तन निप्पल्स सख्त, चूत दिन की कल्पनाओं से हल्की गीली।
पहले ब्रा-पैंटी पहन ली—ब्लैक लेस, साड़ी के लिए परफेक्ट। पेटीकोट बाँधा
फिर साड़ी... काली सिल्क उसके बदन पर लिपटी।

साड़ी लपेटी—कमर पर चिपक गई, उसके पतले कूल्हों को उभारते हुए। ब्लाउज पहना—गहरा नेक, उसके स्तनों की गहराई दिखाती।
अब श्रृंगार... काजल लगाया, आँखें काली लकीरों से गहरी। लिपस्टिक लगाई—गुलाबी, होंठ चमकदार।
बिंदी चिपकाई—लाल बिंदु माथे पर। बालों में जूड़ा बनाया, गजरा लगाया—मोगरे की खुशबू।
हाथों में चूड़ियाँ पहनी—खनकती, कलाई पर। कान में झुमके लटकाए।
आईने में देखा—काली साड़ी उसके रंग पर चमक रही। स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे।
पूरा श्रृंगार... जैसे कोई दुल्हन सज रही हो। मन धड़का, लेकिन उत्तेजना—डर मिश्रित सुख की आस।
गहरी साँस ली, और फुसफुसाई, "आर्यन... आ जाओ... देख लो।"

आर्यन बाहर इंतज़ार करते-करते लगभग पागल हो रहा था।

उसकी आवाज़ सुनते ही वो धीरे से दरवाज़ा खोलकर अंदर आया और एकदम ठिठक गया।
गुलमोहर काली साड़ी में ऐसी लग रही थी मानो कोई सपनों की परी साकार हो गई हो।

उसकी आँखें उसकी काया पर जम गईं – कमर पर चिपकी सिल्क, नाभि की गहराई, उभरे हुए स्तन, काजल से गहरी आँखें।
उसका लंड पैंट में पहले से ही तना हुआ था, अब तो और ज़ोर से धड़कने लगा।

आर्यन और गुलमोहर नजरें आपस में मिली तो गुलमोहर शरम से लाल हो गई।

आर्यन का होश तो कब का उड़ चुका था।

वो दो कदम चला, फिर रुक गया। कमरे में सिर्फ़ साँसों की आवाज़।
आर्यन ने गहरी साँस ली और फुसफुसाया…

“गुल… मेरी गुल तुम्हें देखकर आज पहली बार लगा कि मैंने पूरी कायनात जीत ली है…
क्योंकि मेरी तो पूरी कायनात अभी मेरे सामने खड़ी है।

ये काली साड़ी, ये काजल, ये शर्माई हुई आँखें…
सब कुछ ऐसा है कि मुझे बस एक ही ख्याल आ रहा है –
मैं तुम्हें अभी इसी वक्त अपने अंदर ले लूँ…
और फिर कभी बाहर न निकलूँ।”

गुलमोहर की साँस रुक गई।

बस इतना ही।
फिर चुप्पी।

फिर एक लंबा, गहरा किस आर्यन ने गुल के होठों पर किया।

किस के बाद आर्यन ने गुल के कानों में फुसफुसाते हुवे कहा,"मुझे तुम्हें चोदने का मन हो रहा है…
पर सिर्फ़ चोदने का नहीं, मेरी जान।

मुझे तुम्हें प्यार करने का मन हो रहा है… इतना प्यार कि तुम्हारे जिस्म के हर रोम में मेरा नाम उतर जाए।
आज रात मुझे तुम्हारे जिस्म पर पूरा हक़ चाहिए।
रात भर तुम्हें चूमने, चाटने, सहलाने और फिर तुम्हारी कोख में खुद को खाली करने का हक़ चाहिए।
मुझे वो आहें चाहिए जो सिर्फ़ मेरे नाम की हों… वो सिसकारियाँ जो सिर्फ़ मेरे धक्कों से निकलें… वो चीख जो तब निकलेगी जब मैं तुम्हें अपने नीचे दबाकर तुम्हारी चूत को अपने लंड से भर दूँगा।
बता दो गुल… क्या आज रात तुम मुझे ये हक़ देती हो?”

गुलमोहर की आँखें नम हो गईं, होंठ काँपे। वो आगे बढ़ी, आर्यन की छाती से माथा टिका दिया और फुसफुसाई…
“हाँ आर्यन… हाँ…
ये रात तुम्हारी है। मैं तुम्हारी हूँ।
मुझे अपना बना लो… पूरी तरह।
मुझे प्यार करो…
मेरे जिस्म पर, मेरी पूरी रात पर… सिर्फ़ तुम्हारा हक़।”

आर्यन ने उसे गले लगा लिया – हग इतना टाइट कि दोनों की धड़कनें एक हो गईं।

फिर उसने उसके माथे को चूमा, कान में कहा, “अब धीरे-धीरे… मैं तुम्हें अपना बनाता हूँ।”
वो उसे आईने के सामने ले गया। पीछे से खड़ा होकर कमर में हाथ डाले।

साड़ी की सिल्क पर उँगलियाँ फिसलने लगीं। चूड़ियाँ खनक उठीं।

उसने उसके कान में जीभ फेरी, “तेरी ये महक… मुझे पागल कर रही है।”

हाथ ऊपर सरके, ब्लाउज के नीचे से स्तनों को सहलाने लगा – निप्पल्स पहले से सख्त।
गुलमोहर सिहर उठी, “आर्यन… आह… छूओ ना ऐसे…”

फिर उसने उसे घुमाया, पल्लू धीरे से सरकाया। स्तनों की घाटी चमकने लगी।
होंठ उसके कंधे पर, जीभ से चाटते हुए नीचे।

एक हाथ नीचे, साड़ी के ऊपर से चूत पर। उँगलियाँ गोल-गोल।

“देख आईने में… कितनी गीली हो रही है मेरे लिए…”

गुलमोहर की टाँगें काँपीं, “आर्यन… उफ्फ… मैं मर जाऊँगी…”

आर्यन ने उसे बिस्तर पर लिटाया। साड़ी-पेटीकोट ऊपर उठाया।

पैंटी गीली थी। उसने पैंटी साइड की और दो उँगलियाँ अंदर डाल दीं – धीरे-धीरे, फिर तेज़।

क्लिट पर अंगूठा। गुलमोहर की कमर ऊपर उठने लगी, “और तेज… आह… मैं आने वाली हूँ…”
"तुम कितनी खूबसूरत हो, गुल... आज रात तुम मेरी हो," आर्यन ने गरम साँसों से कहा।

आर्यन का लंड पहले से ही तन चुका था, पैंट को चीरने को बेताब।

वो जल्दी से अपनी शर्ट और पैंट उतार फेंका, सिर्फ अंडरवियर ही बचा।
अब आर्यन गुल के स्तन चूसने लगा, जैसे कोई भूखा शावक। गुल के हाथ उसके बालों में उलझ गए, और वो खुद को उसके करीब खींचने लगी।
नीचे साड़ी पूरी तरह सरक चुकी थी, और उसके पैंटी में नमी महसूस हो रही थी।
आर्यन का हाथ नीचे सरका, और पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाने लगा। "गीली हो गई हो, मेरी जान... तेरी चूत तो रस टपक रही है," उसने शरारती मुस्कान के साथ कहा।

गुल ने शर्म से आँखें बंद कर लीं, लेकिन उसका शरीर सच बोल रहा था।
आर्यन ने अपनी अंडरवियर भी उतारी, और उसका मोटा, लंबा लंड बाहर कूद पड़ा। गुल ने चुपके से झाँका, और उसकी साँसें तेज हो गईं।
"ये... इतना बड़ा..." वो बुदबुदाई। आर्यन ने हँसते हुए कहा, "चिंता मत करो, धीरे धीरे समा जाएगा वो तुझ में।"
अब दोनों पूरे नंगे एक दूसरे की बाहों में मचलने लगे।

जब आर्यन को लंड का दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो गुल के पैरों को फैलाकर बीच में बैठ गया और अपने लंड के सिरे को उसकी चूत के द्वार पर रगड़ने लगा।

गुल का शरीर काँप रहा था, पहली बार का डर और उत्साह एक साथ। "

तैयार हो?" आर्यन ने पूछा। गुल ने सिर हिलाया, और आर्यन ने धीरे से अंदर धकेला। लेकिन उत्साह में तेज धक्का लग गया – सील टूट गई।
"आह्ह्ह!" गुल चीखी, दर्द से आँखें नम हो गईं।

खून की छोटी से लहर बिस्तर पर बहने लगी, लेकिन आर्यन रुक गया। वो उसे गले लगा लिया, "सॉरी, मेरी जान... चूत में दर्द हो रहा है?"
गुल ने सिसकते हुए कहा, "थोड़ा... लेकिन जारी रखो।"

आर्यन ने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए, हर बार गहराई तक। दर्द धीरे-धीरे सुख में बदल गया। गुल की चीखें अब आहों में बदल चुकी थीं – "हाँ... आर्यन... तेज... चूत को और चोदो!"

कमरा उनकी साँसों और तालों से गूँज उठा।

आर्यन के तेज धक्कों से गुल का बदन उछल रहा था, उसके स्तन लहरा रहे थे। वो उसके होंठ चूसता रहा, और नीचे से अपना लंड पूरी ताकत से चूत के अंदर-बाहर कर रहा था।

गुल के नाखून उसके पीठ पर खरोंच मारने लगे, "मैं... आ रही हूँ..." और एक झटके में वो चरम पर पहुँच गई। उसकी चूत सिकुड़ गई, आर्यन को और कसकर जकड़ लिया।

आर्यन भी अब कंट्रोल खो चुका था।

करीब 20 मिनट की चुदाई करने के बाद , वो गुल की चूत के अंदर ही फूट पड़ा, गरम वीर्य की धारें छोड़ते हुए।
दोनों पसीने से तर, एक-दूसरे से लिपटे लेट गए। गुल ने उसके सीने पर सिर रखा, "पहली रात... यादगार थी।"
आर्यन ने चूमते हुए कहा, "और भी आएँगी, मेरी गुल। तेरी चूत हमेशा मेरी रहेगी।"

इस पहली चुदाई ने प्यार गहरा किया—सील टूटने का दर्द सुख में बदला, अब वो एक थे, खतरे से लड़ने को तैयार।
उधर हरिया के गुंडे  शहर में फैले गुलमोहर को खोज रहे थे। हर जगह तलाश की ।एक ने मॉल के पास लड़की देखी, उसे लगा कि गुल मिल गई लेकिन वो गुल नहीं थी ।

ठाकुर फोन पर चिल्लाया, "ढूँढो! कल सुबह तक। वरना सालों एक एक के मुंह में अपना लौड़ा डाल दूंगा।
हरिया किसी भी कीमत पर गुल को पकड़ना चाहता था। जब तक गुल नहीं मिलेगी , तब तक सौतेली मां कमला की चूत में लन्ड दे रखेगा ।

कहानी जारी रहेगी...
✍️निहाल सिंह 
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#8
Episode 5: दिल ने ये कहा है दिल से 

रात भर बारिश अनवरत बरसती रही। 


बाहर की बारिश धरती को सराबोर कर रही थी, तो कमरे के अंदर आर्यन और गुलमोहर के जिस्म एक-दूसरे में पूरी तरह डूबे हुए थे।

पहली बार जब आर्यन ने गुलमोहर को अपना बनाया था, तो दर्द और सुख का तीव्र मिश्रण था—उसकी कोमल चूत में उसका मोटा लंड धीरे-धीरे समाता गया, गुलमोहर की आँखों में आँसू और होंठों पर कराह। 

दूसरी बार सिर्फ भयंकर भूख थी—अनियंत्रित, जंगली। 

तीसरी बार दोनों एक-दूसरे को इस तरह पी रहे थे मानो कल कभी न आए।

हर बार आर्यन का लंड गुलमोहर की तंग, गीली चूत में और गहराई तक उतरता गया, हर धक्के के साथ उसकी चीखें कमरे की दीवारों से टकराकर लौटतीं—धीरे-धीरे प्यार भरी आहों में बदलकर।

आखिरी बार जब दोनों झड़े, तो थककर नंगे ही लिपट गए।

गुलमोहर का चेहरा आर्यन की छाती पर, एक टांग उसकी कमर पर लपेटे, उसकी सुजी हुई, रस से भरी चूत अभी भी आर्यन के अर्ध-तने लंड से सटी हुई। 
दोनों की साँसें एक हो गईं, और गहरी नींद ने उन्हें ढाँक लिया।

बाहर बारिश की लय बनी रही—टप-टप-टप—जैसे कोई प्रेम गीत गा रहा हो उनकी उन्मत्त रात का।

सुबह बहुत देर से आई। 

पहली किरण से पहले गुलमोहर की आँखें खुलीं। 

बाहर बारिश थम चुकी थी, सिर्फ पत्तों से पानी टपकने की हल्की-सी आवाज़ आ रही थी। 

कमरे में अभी भी रात की उष्मा बाकी थी—पसीने, वीर्य और काम की मिली-जुली मदहोश कर देने वाली खुशबू।

गुलमोहर ने हल्के से हिलकर महसूस किया—आर्यन का लंड नींद में भी कठोर होकर उसकी जाँघों के बीच दबा हुआ था। 

रात की यादें बिजली की तरह कौंधीं—चूत में हल्की-सी सिहरन हुई, गर्म रस का एक कतरा अपने आप बह निकला। 

वह मुस्कुराई, बिना किसी शर्म के। 

धीरे से आर्यन को पीठ के बल लिटाया। उसका चेहरा नींद में भी मासूम था। 

गुलमोहर घुटनों के बल उसके ऊपर चढ़ गई। उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर लंड को पकड़ा—मोटा, गर्म, नसें उभरी हुईं, सिरा चमकदार। 

फिर धीरे से अपनी चूत उसके सिरे पर रखी और एक लंबी साँस लेकर बैठ गई। 

“उस्स… आह…” हल्का-सा दर्द, लेकिन उससे कहीं ज्यादा भरपूर सुख। 

चूत ने लंड को पूरा निगल लिया। गुलमोहर ने आँखें बंद कीं, होंठ काटे, और धीरे-धीरे कमर हिलाने लगी। 

चूड़ियाँ हल्के से खनकीं, उसके भरे हुए स्तन लहराए।

आर्यन की नींद टूटी। 

पहले लगा सपना है। फिर आँखें खोलीं—गुलमोहर ऊपर, साड़ी कमर तक सिमटी हुई, चूत में उसका लंड पूरा समाया, चेहरा कामुक लाली से दमक रहा। 

“गुल… तू…?” उसकी आवाज़ भारी थी, नींद और वासना से लबरेज़। 

गुलमोहर ने सिर्फ मुस्कुराकर जवाब दिया और कमर और तेज़ी से हिलाने लगी।

आर्यन को अब इंतज़ार असहनीय हो गया। 

एक झटके में उसने गुलमोहर को नीचे लिटाया, खुद ऊपर आ गया। 

“सुबह-सुबह आग लगा दी तूने… अब देख, कैसे बुझाता हूँ।” 

लंड फिर से चूत में सरक गया—इस बार एक ही ज़ोरदार झटके में जड़ तक। 

गुलमोहर की चीख निकल गई, लेकिन उसमें सिर्फ उन्माद था। 

“आर्यन… हाँ… और तेज़… सुबह की पहली चुदाई… फाड़ दो मुझे… पूरी तरह!” 

कमरा फिर गूँज उठा। 

चप-चप… गीली आवाज़ें… आहें… कराहें… बिस्तर का चरमराना। 

आर्यन ने गुलमोहर के दोनों हाथ सिरहाने दबा रखे थे, उसके होंठ चूस रहा था, लंड हर झटके में गुलमोहर की चूत की सबसे गहरी दीवार से टकरा रहा था।
 गुलमोहर की टांगें उसकी कमर पर लिपट गईं, नाखून उसकी पीठ पर गहरे निशान बना रहे थे। 

“तेरी चूत… कितनी तंग और रसीली… रात भर चोदने के बाद भी भूखी है…” आर्यन कराहा। 

“हाँ… तेरे लंड की गुलाम है… और दे… और ज़ोर से… आह्ह… आ रही हूँ…!” 

दोनों एक साथ झड़े। 

आर्यन का गर्म वीर्य गुलमोहर की चूत के सबसे अंदर धार बनकर बरसा, गुलमोहर का बदन थरथरा उठा।

कई पल तक दोनों ऐसे ही रहे—लंड चूत में गहराई तक, साँसें एक-दूसरे की गर्दन पर।

फिर आर्यन धीरे से निकला, गुलमोहर को बाँहों में कस लिया। 

बाहर सूरज पूरी तरह निकल चुका था।

कमरे में सुनहरी रोशनी, चादरें गीली और बिखरी हुईं, दोनों के जिस्म पर पसीने और काम की चमक। 

गुलमोहर ने आर्यन की छाती पर उँगली से लिखा— 
“हर सुबह… ऐसी हो।” 

आर्यन ने उसकी उँगली पकड़ी, होंठ उसके माथे पर टिकाए और फुसफुसाया, 
“हर सुबह… हर रात… बस तेरी और मेरी।”

दोनों फिर लिपट गए। 

चुदाई के बाद दोनों बिस्तर पर पड़े रहे—साँसें अभी तेज़, जिस्मों पर पसीने की चमक, चादरें वीर्य और रस से सनी हुईं। 

आर्यन ने गुलमोहर को कसकर लपेट रखा था, एक हाथ उसके बालों में उलझा, दूसरा उसकी कमर पर। गुलमोहर का चेहरा उसकी छाती पर टिका था—हर धड़कन उसके कान में गूँज रही थी।

कुछ देर तक कोई बोला नहीं। 

बस साँसें थीं और बाहर पक्षियों की चहचहाहट।

गुलमोहर ने पहले हल्के से सिर उठाया। उसकी आँखें अभी भी नशे में डूबी थीं—होंठ गीले, गाल लाल। 

“आर्यन… अब तो उठना चाहिए न? चाय बनाऊँ?”

आर्यन ने मुस्कुराकर उसका माथा चूमा। 

“हाँ… लेकिन पाँच मिनट और। तेरे बिना बिस्तर सूना लगता है।”

गुलमोहर की चाँदी-सी हँसी गूँजी। उसने उँगली से आर्यन की छाती पर गोल-गोल घुमाते हुए कहा, 
“रात भर सोये नहीं… सुबह फिर शुरू हो गए। अब तो कमज़ोर पड़ जाओगे।”

आर्यन ने उसकी नाक दबाई। 

“कमज़ोर? अभी तो असली खेल बाकी है।” 

फिर गंभीर होकर, उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, 

“गुल… तुझे कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा। जो भी हो, मैं तेरे साथ हूँ।”

गुलमोहर की आँखें भर आईं। उसने आर्यन की गर्दन में मुँह छिपा लिया। 

“बस यही चाहिए था मुझे… एक अपना साया।”

दोनों फिर चुप। 

फिर गुलमोहर ने खुद को छुड़ाया, चादर लपेटकर उठी। आर्यन ने उसकी कमर पकड़कर खींचा—वो हँसते हुए उसके ऊपर गिर पड़ी। दोनों खूब हँसे। 

“अरे छोड़ो… चाय बनानी है,जाने दो!” 

आर्यन ने आखिरी बार उसे कसकर गले लगाया, होंठ उसके कानों पर फेरते हुए फुसफुसाया, 
“जा… लेकिन चाय के बाद फिर तेरी बारी है।”

गुलमोहर शरमाकर बिस्तर से उतरी, चादर को साड़ी की तरह लपेटे किचन की ओर बढ़ गई। 

पीछे से आर्यन उसे देखता रहा—उसकी कमर की लय, बालों का लहराना, नंगे पैरों की आहट। 
उसका दिल भर आया। 

ये सुबह… ये औरत… अब उसकी पूरी जिंदगी थी।

कुछ देर बाद अदरक वाली चाय की तेज़, मदहोश कर देने वाली खुशबू पूरे कमरे में फैल गई। 
दोनों सोफे पर एक-दूसरे से सटकर बैठे, प्याले हाथ में लिए धीरे-धीरे सिप कर रहे थे। लेकिन आर्यन का चेहरा अचानक गंभीर हो गया।
गुलमोहर ने तुरंत पकड़ लिया। 

“क्या हुआ? रात की यादें इतनी जल्दी भूल गए?” उसने मज़ाक में कहा, पर आँखों में चिंता थी।
आर्यन ने प्याला रखा और उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। 

“पागल, वो यादें तो उम्र भर नहीं भूलेंगी। लेकिन सच ये है कि तू घर से भागी हुई है। कमला और वो बूढ़ा हरिया ठाकुर तुझे ढूँढ रहे होंगे। पचास हजार की कीमत तय हुई थी न? वो इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे। हमें अभी से सावधान रहना है।”
गुलमोहर का चेहरा पीला पड़ गया। 

“आर्यन… डर लग रहा है। अगर वो लोग मुझे वापस ले गए तो…”

आर्यन ने उसे बाँहों में खींच लिया। 

“डर मत। आज हम एक ऐसा कदम उठाएँगे कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरा बचपन का दोस्त रोहित श्रीवास्तव SP है। उससे मिलते हैं। वो सब संभाल लेगा।”

गुलमोहर ने उसकी छाती से चिपकते हुए राहत की साँस ली। 

“ठीक है… मैं तैयार हूँ।”

दोनों ने जल्दी से तैयार होकर निकले। गुलमोहर ने वही काली साड़ी पहनी—सादा, पर उसके गेहुए रंग पर इतनी खूबसूरत लग रही थी कि आर्यन की साँस रुक गई।

हल्का काजल, छोटी-सी बिंदी, होंठों पर गुलाबी चमक। 

आर्यन ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “चल, मेरी जान। आज तेरी जिंदगी की नई शुरुआत है।”

रोहित का बंगला शहर के सबसे पॉश इलाके में था। दरवाजे पर सिपाही सलूट ठोंक रहे थे। 
रोहित ने आर्यन को देखते ही गले लगा लिया। 

“अबे यार! और ये…?” उसकी नज़र गुलमोहर पर ठहर गई।

आर्यन ने गुलमोहर का हाथ थामकर आगे बढ़ाया। 

“रोहित, ये गुलमोहर है। मेरी गुलमोहर। तेरी भाभी। आज हम तेरी मदद माँगने आए हैं।”

रोहित ने भौंहें चढ़ाईं, फिर हँसते हुए अंदर ले गया। 

तीनों सोफे पर बैठे।

आर्यन ने एक साँस में सारी कहानी सुना दी—गाँव, सौतेली माँ का ज़ुल्म, पचास हजार में बेचने की साजिश, हरिया ठाकुर, भागकर शहर आना।
गुलमोहर ने बीच-बीच में हिम्मत जुटाकर अपनी बात जोड़ी। उसकी आँखें नम थीं, पर आवाज़ में अब हिम्मत ज्यादा थी।

रोहित ने पूरी बात ध्यान से सुनी।

फिर गहरी साँस लेकर बोला, 

“ये सीधा ट्रैफिकिंग का केस है। हरिया ठाकुर का नाम मैं जानता हूँ—पैसा और गुंडे दोनों हैं। लेकिन कानून के सामने सब बराबर।”
उसने फोन उठाया, स्टेनो को बुलाया। 

“आज ही FIR। धारा 370, 366A, 34—सब लगा दो। लड़की को तुरंत प्रोटेक्शन। दो महिला कांस्टेबल और एक सादी वर्दी वाला गार्ड फ्लैट पर लगाओ। ठाकुर के खिलाफ तलाशी और गिरफ्तारी का वारंट तैयार करो।”

फिर गुलमोहर की ओर मुड़ा और मुस्कुराया, 
“तू टेंशन मत ले भाभी। जब तक मैं ज़िंदा हूँ, कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता।”
गुलमोहर की आँखों से खुशी के आँसू छलक आए। 

“थैंक यू, भैया… आप भगवान हैं।”

रोहित ने आर्यन की ओर देखा। 

“सुनो, एक काम करो। अभी के अभी मनाली निकल जाओ। मैं वहाँ पाँच सितारा होटल बुक करवा दूँगा—दस दिन का स्टे। जमकर हनीमून मनाओ। घर मत आना। चाबी मुझे दे दो। जो चाहिए, वहाँ भेज दूँगा। फ्लैट पर हमारा आदमी रहेगा—कोई नज़दीक भी आया तो पकड़ लिया जाएगा। जाओ, खुलकर एंजॉय करो भाभी के साथ। मेरी गारंटी है।”

आर्यन ने राहत की साँस ली। 

“धन्यवाद भाई। तूने जान बचा ली।”

रोहित ने गले लगाया, 

“भाई का फर्ज। बस रास्ते में सावधान रहना।”

गुलमोहर ने रोहित को प्रणाम किया, 

“शुक्रिया भैया… आपके जैसे भाई हों तो डर ही नहीं लगता।”

चाबी सौंपी गई। दोनों कार में सवार हुए और मनाली की राह पकड़ ली। 

रास्ते में गुलमोहर ने आर्यन का हाथ कसकर थामा हुआ था।
कार हाइवे पर रफ्तार पकड़ चुकी थी। 

सामने बर्फीले पहाड़ नज़दीक आते जा रहे थे—और उनकी नई ज़िंदगी शुरू होने वाली थी।

कहानी जारी रहेगी....
✍️निहाल सिंह 
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#9
Episode 6: तारे हैं बाराती, चाँदनी है ये बारात


हरिया ठाकुर — नाम सुनते ही गाँव के आस-पास के दस-बारह गाँवों में लोग सहम जाते थे। उम्र साठ के पार, लेकिन कद अभी भी सीधा, आँखें लाल-लाल, मूँछें घनी और सफ़ेद, हाथ में हमेशा चाँदी की मूठ वाली लाठी।


जमीन उसकी थी सैकड़ों बीघा, लेकिन पैसा उससे कहीं ज्यादा। आजादी से पहले उसके बाप-दादा अंग्रेजों के मुखबिर थे। जमीनें हड़पते थे, गरीबों को कर्ज़ देते थे और फिर सूद के जाल में फँसाकर सब छीन लेते थे। हरिया ने वही विरासत संभाली, बस तरीके बदल लिए।

सत्तर-अस्सी के दशक में हरिया ने शराब की अवैध भट्टियाँ लगवाईं। गाँव की औरतों को पहले कर्ज़ दिया, फिर जब वापस न दे पाईं तो उनके मर्दों को मार-मारकर अधमरा कर दिया। कई घर उजड़ गए। नब्बे के दशक में उसने देह-व्यापार का धंधा शुरू किया। गाँव की गरीब, अनाथ या सौतेली माँओं वाली लड़कियों को पहले डराया-धमकाया, फिर बेच दिया। सिक्युरिटी? उसकी जेब में थी। दो थानेदार तो उसके यहाँ नौकरों की तरह रहते थे।

लोग कहते हैं कि उसके घर के पीछे वाले पुराने कुएँ में दस-बारह लाशें दबी हैं — जिन्होंने विरोध किया था। कोई सबूत नहीं, क्योंकि गवाह जीवित नहीं बचते।
शादी नहीं की हरिया ने कभी। कहता था, “औरत तो बस इस्तेमाल की चीज है।” उसके यहाँ दो-तीन रखैलें रहती थीं, जो बाहर नहीं निकलती थीं। गाँव की औरतें आज भी उसके नाम से बच्चों को डराती हैं — “सो जा नहीं तो हरिया ठाकुर आ जाएगा।”

अब बूढ़ा हो चला है, लेकिन हवस नहीं गई। उल्टा और भयानक हो गई है। पचास-साठ हजार में एक जवान लड़की खरीदता है, कुछ महीने रखता है, फिर बेच देता है दिल्ली या दुबई के कोठे पर। गुलमोहर उसकी लिस्ट में सबसे ऊपर थी — गोरा रंग, लंबी, जवान, और सबसे जरूरी — कोई अपना नहीं।

लोग कहते हैं कि हरिया ठाकुर मरने से पहले एक आखिरी बड़ा सौदा करना चाहता है — ताकि उसका नाम हमेशा के लिए काला रहे। और इस बार उसने गलती की — उसने गुलमोहर को चुना, जिसके पास अब आर्यन है… और आर्यन के पास उसकी हिम्मत।

अब हरिया ठाकुर की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।

उधर मनाली हाइवे पर

कार हाईवे पर तेजी से दौड़ रही थी। सूरज ढलने को था, हिमालय की लंबी छायाएँ सड़क पर फैल रही थीं, जैसे कोई काला कालीन बिछाया जा रहा हो। ठंडी हवा खिड़कियों से अंदर झोंके मार रही थी, गुलमोहर के बाल उसकी हवा में लहरा रहे थे, कभी उसके गालों को छूते, कभी होंठों को। आर्यन का एक हाथ स्टीयरिंग पर था, दूसरा गुलमोहर की जांघ पर—गहरी काली साड़ी के ऊपर से, उँगलियाँ धीरे-धीरे कपड़े में दब रही थीं।

तभी फोन बजा। रोहित। 

"भाई, गुंडे अभी दिल्ली-NCR में ही मुँह मार रहे हैं। तुम बेफिक्र रहो। मनाली का हाइडअवे रिजॉर्ट बुक है—प्राइवेट विला।
पहाड़, बर्फ, नदी और तुम दोनों। एंजॉय करो।" 

आर्यन ने होंठ सिकोड़े, मुस्कुराया, "समझ गया। थैंक्स भाई।" 

फोन कटा। गुलमोहर ने उत्सुकता से पूछा, "क्या कहा?" 

आर्यन ने उसकी जांघ पर हाथ और ऊपर सरका दिया, साड़ी का पल्लू हल्का खिसका, "कहा कि अब 10 दिन तक दुनिया हमें ढूँढ भी नहीं पाएगी। सिर्फ तू, मैं और ये पहाड़।" 

गुलमोहर शर्मा कर सिकुड़ गई, किंतु उसकी आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी थी। उसने आर्यन का हाथ हल्के से दबाया, फिर खिड़की की ओर मुँह कर लिया। हवा में देवदार की महक थी, पर उसके मन में कुछ और ही चल रहा था।

आधे घंटे तक कार में सन्नाटा रहा। फिर गुलमोहर ने धीरे से कहा, आवाज काँपती हुई, 
"आर्यन… तुमने रोहित भैया के सामने मुझे बीवी कहा था… पर सच में… क्या तुम मुझसे शादी करना चाहते हो? या बस…" उसने रुक कर साँस ली, "बस 10 दिन की मौज के लिए ले जा रहे हो?" 

आर्यन का चेहरा एकदम सख्त हो गया। उसने ब्रेक नहीं मारा, बस स्पीड थोड़ी कम की। जवाब नहीं दिया। गुलमोहर की आँखें नम हो आईं। 
"मैं एक कमरे में तुम्हारे साथ रहूँगी… बिना मंगलसूत्र, बिना सिंदूर… मुझे अच्छा नहीं लग रहा। लगता है मैं कोई रखैल हूँ… तुम्हारी नहीं।" 

शब्द तीर की तरह लगे। आर्यन की उँगलियाँ स्टीयरिंग पर सफ़ेद पड़ गईं। उसने होंठ भींचे, पर चुप रहा। गुलमोहर खिड़की से बाहर देखती रही—उसके गाल पर एक आंसू लुढ़का, हवा ने उसे उड़ा दिया।

फिर अचानक, मनाली से कोई 15 किलोमीटर पहले, पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर दिखा। ऊँची चोटी पर, देवदार के घने जंगल के बीच, घंटियों की मधुर ध्वनि हवा में तैर रही थी। मंदिर प्रसिद्ध पर बेहद पवित्र स्थान: श्री शिव-पार्वती विवाह मंदिर। कहते हैं यहाँ शिव-पार्वती ने गंधर्व विवाह किया था। 
आर्यन ने अचानक ब्रेक मारा। कार रुकी। धूल उड़ी। 

गुलमोहर चौंकी, "क्या हुआ?" 

आर्यन ने उसका हाथ कस कर पकड़ा, दरवाजा खोला और बाहर खींच लिया। उसका चेहरा पत्थर जैसा था, पर आँखें जल रही थीं। 
"तेरे सारे सवालों का जवाब यहाँ है। चल।" 

सीढ़ियाँ चढ़ते हुए गुलमोहर का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। ठंडी हवा में उसकी काली साड़ी लहरा रही थी, पर मन में डर था—कहीं आर्यन गुस्से में कुछ… 
मंदिर के गर्भगृह में पहुँचे। प्राचीन शिवलिंग, पार्वती की मूर्ति, दीवारों पर उकेरी हुई उनकी प्रेम कहानी। एक बुजुर्ग पंडित जी पूजा कर रहे थे। 
आर्यन ने बिना एक पल गँवाए कहा, 
"पंडित जी, हम आज शादी करना चाहते हैं। अभी। सात फेरे। कोई मेहमान नहीं, कोई रजिस्ट्रेशन नहीं। बस शिव-पार्वती के सामने।" 

गुलमोहर की साँस रुक गई। उसने अपनी काली साड़ी देखी। फिर काँपती आवाज में बोली, 
"पर… ये काली साड़ी… दुल्हन लाल पहनती है… मैं… मैं तैयार नहीं हूँ।" 

पंडित जी मुस्कुराए, "बेटी, सही कह रही हो। काला अशुभ है विवाह में। लाल साड़ी, सिंदूर, चूड़ियाँ, मंगलसूत्र—ये सब सुहागन का श्रृंगार है।" 
आर्यन ने एक पल सोचा, फिर दृढ़ स्वर में कहा, "ठीक है। इंतज़ाम हो जाएगा।" 

पंडित जी बोले, "नीचे पार्किंग में अभी एक नवविवाहित जोड़ा आया है—हनीमून मनाकर लौट रहा है। मैं बात करता हूँ।" 

पार्किंग में एक सफेद इनोवा खड़ी थी। दुल्हन लाल बनारसी में थी, दूल्हा उसके कंधे पर हाथ रखे हँस रहा था।
आर्यन ने हाथ जोड़कर कहा, 
"बहन, हमें आपकी मदद चाहिए। मेरी… मेरी होने वाली बीवी के पास लाल साड़ी नहीं है। अगर आपके पास कोई एक्स्ट्रा साड़ी दे सकें… हम आज यहीं मंदिर में शादी कर रहे हैं।" 

दुल्हन की आँखें चमक उठीं। उसने अपनी सूटकेस खोली, एक नई लाल बंगाली तांत की साड़ी निकाली—सोने की कढ़ाई, भारी बॉर्डर। 
"ये मेरी स्पेयर थी। ले लो। और हाँ… ये मेरी शादी वाली चूड़ियाँ भी ले लो, और मंगलसूत्र भी है मेरे पास एक्स्ट्रा ।आज तुम्हारी शादी है, मेरा आशीर्वाद समझ रख लो।" 

गुलमोहर की आँखें भर आईं। उसने दुल्हन के पैर छुए। 

मंदिर के पीछे एक छोटा-सा कमरा था। गुलमोहर अंदर गई। 

साड़ी बदली। लाल रंग उसके गेहुँए रंग पर ऐसा चमका जैसे कोई अग्नि प्रज्वलित हो गई हो। साड़ी को कमर पर लपेटा—पतली कमर और गहरी नाभि पर बॉर्डर रुका। ब्लाउज़ टाइट था, कढ़ाई वाले कप से उसके उरोज और भी उभरे। पल्लू कंधे पर। उसने दुल्हन से मिली लाल चूड़ियाँ पहनीं, कानों में सोने के झुमके। काजल, बिंदी, लाल लिपस्टिक। 

आईने में देखा—वो कोई और ही थी। दुल्हन। साक्षात् पार्वती। 

बाहर आई तो आर्यन की साँस रुक गई। 

वो उसे देखता रह गया—लाल साड़ी में लिपटी उसकी गुलमोहर, जैसे कोई स्वप्न साकार हो गया हो। 
"गुल… तू… तू देवी लग रही है। मेरी।" 

फिर मंदिर में। 
हवन कुंड जलाया गया। लकड़ियाँ चटक रही थीं, धुआँ ऊपर उठ रहा था। 

पंडित जी ने मंत्र शुरू किए। 
पहला फेरा। 
आर्यन ने गुलमोहर का हाथ थामा, धीरे से कहा, "धर्म के पथ पर… मैं तेरी रक्षा करूँगा, हर जन्म में।" 
गुलमोहर की आँखें नम, पर होंठों पर मुस्कान। 

दूसरा फेरा। 
"अर्थ के लिए… तेरी हर इच्छा पूरी करूँगा। तुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होगी।" 

तीसरा फेरा। 
आर्यन ने उसकी कमर पर हाथ रखा, धीरे से कान में फुसफुसाया, "काम के लिए… तेरी हर रात को स्वर्ग बनाऊँगा।" 
गुलमोहर का चेहरा लाल हो गया, चूड़ियाँ खनकीं। 

चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ। 
फेरे पूरे हुए। 

आर्यन ने मंगलसूत्र उठाया—सोने का, काले-सफेद मोतियों वाला। गुलमोहर ने सिर झुकाया। उसने गले में डाला, हुक बंद किया। फिर सिंदूर की डिब्बी ली। लाल सिंदूर उसकी माँग में भरा—गहराई तक। 

"अब तू मेरी पत्नी है। कानून भले ही बाद में माने, शिव-पार्वती आज गवाह हैं।" 

गुलमोहर ने उसकी छाती पर सिर रख दिया, फफक कर रो पड़ी—खुशी के आँसू। 

"मैं… तेरी बीवी हूँ… सच में।" 

पंडित जी ने अंतिम मंत्र पढ़ा, "ॐ नमः शिवाय… यह जोड़ा सदा सुखी रहे।" 

बाहर निकले। सूरज डूब चुका था, पर आकाश में लालिमा बाकी थी—जैसे गुलमोहर की साड़ी का प्रतिबिंब। नदी की कल-कल, घंटियों की गूँज, और पहाड़ खामोश गवाह बने खड़े थे। 

कार में बैठे। अब गुलमोहर का मंगलसूत्र चमक रहा था, चूड़ियाँ हर हरकत में खनक रही थीं। आर्यन ने उसका हाथ चूमा। 
"श्रीमती आर्यन सिंह… अब हनीमून शुरू।" 

गुलमोहर ने शरमाते हुए उसकी जांघ पर हाथ रखा, धीरे से कहा, 
"जल्दी चलाओ… विला पहुँचो… तुम्हारी बीवी अब इंतज़ार नहीं कर सकती।" 

कार फिर दौड़ी। 
इस बार सन्नाटा नहीं—चूड़ियों की खनक, दो धड़कनों की एक लय, और मनाली की ठंडी रात का स्वागत।

कहानी जारी रहेगी...
✍️निहाल सिंह 
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#10
Superb update and awesome story
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#11
Episode 7 : के तुम मेरी बाहों में हो...


हाइडअवे रिज़ॉर्ट का प्राइवेट विला उस तंग हिमालयी घाटी में एकान्त का आखिरी ठिकाना था। चारों तरफ़ देवदारों की ऊँची दीवारें, नीचे ब्यास का क्रोधी शोर, और ऊपर चाँदनी जो बर्फ को दूधिया चाँदी बना रही थी।

हाइवे से उनकी गाड़ी अब कच्ची सड़क थी और चारों तरफ अंधेरा। कार की हेडलाइट्स ने लोहे का भारी गेट रोशन किया।

गेट पर बूढ़ा गार्ड शेर सिंह लालटेन लटकाए खड़ा था। उसने सलाम ठोका और गेट खोल दिया।

आर्यन की कार अंदर दाखिल हुई।

कार रुकी। आर्यन बाहर निकला, फिर गुलमोहर की तरफ हाथ बढ़ाया। उसने लाल बनारसी का पल्लू ठीक किया, हाथ थामा और कार से उतरी। ठंडी हवा ने झपट्टा मारा तो आर्यन ने अचानक उसकी कमर पकड़कर उसे गोद में उठा लिया।

“अरे… आर्यन…!” गुलमोहर की हल्की चीख निकली और शरमाकर उसने मुँह उसकी छाती में छुपा लिया।

आर्यन की चौड़ी, बालों वाली छाती गुलमोहर की नरम छातियों से रगड़ रही थी। कमीज के खुले बटन के बीच से काले बाल झाँक रहे थे। हर कदम पर मंगलसूत्र उसकी छाती से टकरा-टकरा कर खनक रहा था। गुलमोहर की साँसें तेज़ हो गईं।

“चल, बीवी,” आर्यन ने धीरे कहा, आवाज में हल्की काँप थी।

अन्दर आते ही रसोइया विमल ने हाथ जोड़े। 

“डिनर तैयार है साहब, कुछ भी चाहिए तो घंटी दबाना।” 

आर्यन ने मुस्कुरा कर टाल दिया। विमल साइड दरवाज़े से चला गया।

दो नौजवान नौकर, राजू और मोहन, सामान अन्दर रखकर फायरप्लेस में ताजी लकड़ियाँ डाल गए।

दोनों ने हाथ जोड़े और क्वार्टर्स की ओर बढ़ गए। जाते-जाते पगडंडी पर उनकी फुसफुसाहट शुरू हो गई।

ठंड थी, पर उनकी बातें गर्म।

राजू (फुसफुसाते हुए): अरे मोहन, देखा तूने दुल्हन को? लाल साड़ी में लग रही थी जैसे कोई बॉलीवुड की हिरोइन उतर आई हो पहाड़ पर! मंगलसूत्र तक हिल रहा था जब वो चल रही थी… उफ्फ़!

मोहन (हँसते हुए, कोहनी मारते हुए): चुप बेवकूफ! साहब सुन लेंगे तो दोनों की नौकरी गई। पर सच कहूँ… वो जो पल्लू सरका था ना कार से उतरते वक़्त, एक सेकंड को कमर दिखी… भाई, मैं तो पागल हो गया। सालों तक याद रखूँगा ये हनीमून।

राजू: और साहब भी कोई कम नहीं। गोद में उठाकर ले जा रहे थे दुल्हन को , जैसे हम हैं ही नहीं। आज रात तो बेचारी की चीखें यहाँ तक आएँगी क्या?

मोहन (आँख मारते हुए): नहीं आएँगी , दीवारें पत्थर की हैं, काँच भी डबल ग्लेज्ड है। ऊपर से ब्यास नदी का शोर। चीख ले दुल्हन जितनी जोर से, बाहर एक चूड़ी की खनक भी नहीं जाएगी। शेर सिंह चाचा भी गेट पर सो जाएँगे, उन्हें कान से कम सुनाई देता है।

राजू (सिगरेट सुलगाते हुए): सोच… अभी तो पहली रात है। दस दिन हैं। दस दिन! हम तो बस झाड़ू-पोंछा करेंगे, बाकी ये दोनों… पूरा विला हिला देंगे। सुबह जब जाएँगे सफाई करने, बिस्तर देखकर ही समझ जाएँगे कितनी तूफानी रात गई।

मोहन (हँसते-हँसते लड़खड़ाते हुए): चादरें तो रोज बदलनी पड़ेंगी भाई। और वो काँच की दीवार… कहीं दाग न लग जाएँ। कल सुबह मैं ही साफ करूँगा, तू बाहर रहना। मैं तो करीब से देख लूँगा निशान।

राजू: हरामी कहीं का! चल, आज रात सोने से पहले एक-एक पैग मार लेते हैं। पहाड़ी वाली। आज की रात तो जश्न की है… किसी और की सुहागरात का जश्न!

दोनों हँसते हुए क्वार्टर्स के दरवाजे पर पहुँचे। लालटेन जलाई, देशी शराब की बोतल खोली।

मोहन: चल, दुल्हन और दूल्हे के नाम!

राजू: और उनकी दस रातों के नाम!

गिलास टकराए। ठ ठ ठ की हँसी। बाहर ब्यास गर्जना कर रही थी, पर उनकी हँसी उसमें भी डूब नहीं रही थी। क्योंकि उन्हें पता था… असली गर्जना तो अभी विला के अन्दर शुरू होने वाली थी।

नशा चढ़ा तो बातें और खुलकर बोली जाने लगीं।

राजू (हँसते हुए): अरे साला, साहब का लंड तो पक्का बड़ा होगा! देखा ना कैसे पैंट में उभार बना हुआ था? जब वो दुल्हन उठा रहे थे, पैंट टाइट हो गई थी पीछे से… गांड की लाइन तक साफ दिख रही थी, पर सामने वो टेंट साफ बना हुआ था। दुल्हन की नजर भी बार-बार वहीं जा रही थी। आज रात जब वो पैंट उतारेंगे ना… दुल्हन के मुँह में पानी आ जाएगा।

मोहन (गिलास पटकते हुए): बिल्कुल! साहब की उँगलियाँ कितनी मोटी-मोटी थीं। सोच, वो उँगलियाँ आज दुल्हन की चूत में घुसेंगी, पहले दो, फिर तीन… दुल्हन की चीख निकलेगी। फिर अपना लंड अन्दर ठूँसेंगे… पूरा का पूरा। पहली बार में ही दुल्हन की चूत फट जाएगी।

राजू: और साहब की छाती… कमीज के अन्दर से बाल झाँक रहे थे। जब दुल्हन को गोद में उठाया तो उसकी छाती दुल्हन की छातियों से रगड़ रही थी। आज रात वो बालों वाली छाती दुल्हन के मुँह पर रगड़ेंगे, दुल्हन चाटेगी, चूसेगी। फिर साहब अपना लंड दुल्हन की छातियों के बीच में डालकर टिटजॉब लेंगे… मंगलसूत्र उछलेगा, लार टपकेगी।

मोहन (आँखें चमकाते हुए): और पीछे से जब चोदेंगे ना… साहब की गांड कितनी टाइट और गोल है, हर धक्के में सिकुड़ेगी। दुल्हन घुटनों पर होगी, चूड़ियाँ खनकेंगी, साहब बाल पकड़कर खींचेंगे और लंड पूरा जड़ तक घुसाएँगे। “ले… ले मेरी रंडी… आज से तू मेरी” बोलते हुए झड़ेंगे अन्दर। दुल्हन की चूत से वीर्य लहराएगा सुबह तक।

राजू (हँसते हुए): और साहब की मूंछें… जब दुल्हन की चूत चाटेंगे तो मूंछें गीली हो जाएँगी। दुल्हन पागल होकर साहब का सिर दबाएगी।

मोहन: दस रातें हैं भाई… दस रातें! पहली रात चूत, दूसरी गांड, तीसरी मुँह… हर दिन नया खेल। सुबह जब हम चादरें बदलने जाएँगे तो गंध से ही पता चल जाएगा… वीर्य, रस, पसीना सब मिला हुआ। काँच की दीवार पर दाग, गलीचे पर स्पॉट… हम साफ करेंगे और जलेंगे।

राजू (गिलास ऊँचा करके): चल साला, आखिरी पैग…साहब के मोटे, लम्बे, लंड के नाम!

मोहन: और उसकी गर्म वीर्य की बौछार के नाम जो आज दुल्हन की चूत, मुँह और गांड में भरेगा!

दोनों ने गिलास एक घूँट में खाली किए। ठ ठ ठ की हँसी फिर गूँजी। बोतल खाली। उनकी जलन पूरी। लालटेन बुझाई।


इधर विला के अंदर। 

मुख्य दरवाज़े की कुंडी पड़ी। “क्लिक”। 

फायरप्लेस चटकने लगा। 

लकड़ी की गर्म, नशीली खुशबू फैल गई।

गुलमोहर अभी भी लाल बनारसी में लिपटी खड़ी थी, जैसे कोई जीती-जागती आग। साड़ी उसके जिस्म से इस तरह चिपकी हुई थी कि हर उभार, हर गोलाइ, हर साँस की लय साफ़ दिख रही थी। मंगलसूत्र उसकी गहरी गर्दन से लटक रहा था, दो भरी हुई छातियों के बीच झूलता। लाल चूड़ियाँ पतली कलाइयों में खनक रही थीं।

उसने शरमाते, फिर भी भूखी नजरों से आर्यन को देखा। 

“अब…?” उसकी आवाज़ काँप गई।

आर्यन ने एक कदम बढ़ाया। 

“अब सुहागरात है, मेरी गुल… मेरी बीवी। आज तुझे एक-एक साँस, एक-एक रोम तक अपनी बना लूँगा।”

उसने उसे गोद में उठा लिया। लाल साड़ी का पल्लू फर्श पर लहराता हुआ बिछ गया, जैसे खून की नदी। 


फिर शुरू हुई वो लम्बी, जंगली, अनन्त रात… 

जिसकी गूँज बाहर तक नहीं पहुँची। 

अन्दर लकड़ी की गर्म, नशीली खुशबू थी। दीवारें हिमालयी पत्थर की, फर्श पर मोटे कश्मीरी गलीचे, और सामने पूरी दीवार काँच की—उसके पार चाँदनी में नहाई चोटियाँ जैसे कोई पुराना सपना जाग रहा हो। बीच कमरे में किंग-साइज बेड, मखमली सफेद चादरें, चारों कोनों पर लालटेनों की मद्धम सुनहरी रोशनी। बेड के ठीक सामने फायरप्लेस में लाल-नीली लपटें नाच रही थीं, लकड़ियाँ चटक-चटक कर प्रेम की प्राचीन भाषा बोल रही थीं।

गुलमोहर अभी भी लाल बनारसी में लिपटी खड़ी थी—जैसे कोई जीती-जागती आग। साड़ी उसके जिस्म से इस तरह चिपकी हुई थी कि हर उभार, हर गोलाइ, हर साँस की लय साफ़ दिख रही थी। मंगलसूत्र उसकी गहरी गर्दन से नीचे लटक रहा था, दो भरी हुई छातियों के बीच झूलता, हर साँस पर हल्का उछलता। लाल चूड़ियाँ पतली कलाइयों में खनक रही थीं, मानो कह रही हों—आज रात हम नहीं रुकेंगी।

उसने शरमाते, फिर भी भूखी नजरों से आर्यन को देखा। 

“अब…?” उसकी आवाज़ काँप गई।

आर्यन ने एक कदम बढ़ाया। उसकी आँखें गुलमोहर के होंठों से नीचे, फिर और नीचे उतरती गईं। 

“अब सुहागरात है, मेरी गुल… मेरी बीवी। आज तुझे एक-एक साँस, एक-एक रोम तक अपनी बना लूँगा।”

उसने उसे गोद में उठा लिया। लाल साड़ी का पल्लू फर्श पर लहराता हुआ बिछ गया, जैसे खून की कोई नदी बह निकली हो। बेड पर लिटाते ही आर्यन उसके ऊपर झुक गया। उसकी उँगलियाँ गुलमोहर की कमर पर रेंगती हुईं ब्लाउज़ के नीचे चली गईं। जैसे ही उसने छातियों को छुआ, गुलमोहर की साँस रुक गई, आँखें बंद हो गईं, होंठ काँपे। आर्यन ने ब्लाउज़ के हुक एक-एक कर खोले—हर हुक के साथ गुलमोहर के गले से हल्की सिसकारी निकल रही थी।

जब ब्लाउज़ खुल गया तो उसने उसे धीरे से उतारा। लाल ब्रा के ऊपर से भी उभरी छातियाँ साफ़ दिख रही थीं, निप्पल्स पहले से सख़्त। आर्यन ने ब्रा का हुक पीछे से खोला और उसे भी फेंक दिया। अब गुलमोहर की नंगी छातियाँ उसके सामने थीं—गोरी, भरी हुई, हल्की हिलोर लेती हुईं। उसने एक को मुँह में लिया, जीभ से चूसने लगा, दाँतों से हल्का काटा, फिर गोल-गोल घुमाया। गुलमोहर की पीठ ऊपर को उठ गई, उँगलियाँ आर्यन के बालों में उलझ गईं। 

“आह… आर्यन… उफ़्फ़…”

आर्यन नीचे उतरता गया। पेटीकोट का नाड़ा खींचा। साड़ी और पेटीकोट एक साथ फर्श पर गिर गए। अब गुलमोहर सिर्फ़ लाल रेशमी पैंटी और मंगलसूत्र में थी। पैंटी पहले से ही गीली थी—बीच में गहरा धब्बा। आर्यन ने उँगली से उस गीलेपन को सहलाया। गुलमोहर सिहर उठी। 

उसने पैंटी भी नीचे सरका दी। अब गुलमोहर पूरी तरह नंगी थी। उसकी चिकनी, गीली चूत आर्यन के सामने खुली थी—होंठ थोड़े फैले, अन्दर से गुलाबी चमक। आर्यन ने मुँह नीचे ले गया। जीभ से पहले हल्का छुआ, फिर पूरा अन्दर घुसा दिया। गुलमोहर की तीखी चीख गूँज गई। उसने आर्यन का सिर अपनी जाँघों से दबा लिया। 

“आर्यन… नहीं… वहाँ… आह्ह्ह… मर जाऊँगी…” 

आर्यन ने क्लिट को जीभ से रगड़ा, दो उँगलियाँ अन्दर डालकर तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा। गुलमोहर की कमर बार-बार ऊपर उछल रही थी, चूड़ियाँ पागलों की तरह खनक रही थीं। कुछ ही पलों में वो पहली बार झड़ गई—उसकी चूत से गर्म रस की बौछार निकली, आर्यन ने उसे पूरा पी लिया।

अब आर्यन ने अपने कपड़े उतारे। उसका लंड पूरी तरह तना हुआ था, नसें उभरी हुईं, सिरा गीला चमक रहा था। गुलमोहर ने उसे देखा और डरते-डरते हाथ बढ़ाया। उसने उसे सहलाया, फिर होंठों से छुआ। आर्यन की साँस फट पड़ी। 

“गुल… मुँह में ले…” 

गुलमोहर ने शरमाते हुए उसे मुँह में लिया। पहले सिर्फ़ सिरा, फिर आधा, फिर जितना समाया। आर्यन के हाथ उसके बालों में थे, धीरे-धीरे धक्के मार रहा था। गुलमोहर की लार उसके लंड पर लहरा रही थी, चूड़ियाँ हर झटके में खनक रही थीं।

फिर आर्यन ने उसे बेड पर लिटाया, टांगें चौड़ी कीं। अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ा, गीलेपन में पूरी तरह लथपथ कर लिया। 

“तैयार है, गुल?” 

गुलमोहर ने सिर्फ़ सिर हिलाया, आँखें बंद।

आर्यन ने धीरे से अन्दर घुसाया—पहले सिरा, फिर आधा, फिर पूरा। गुलमोहर की चीख निकल गई, नाखून उसकी पीठ पर गड़ गए। 
“आह्ह… आर्यन… फट रही हूँ… पर… और अन्दर… और ज़ोर से…” 

आर्यन ने रिदम पकड़ा—पहले कोमल, जैसे कोई पुराना राग, फिर तेज़, फिर जंगली। हर धक्के में उसका लंड गुलमोहर की चूत की सबसे गहरी दीवार से टकरा रहा था। मंगलसूत्र उसकी छातियों पर उछल रहा था, चूड़ियाँ बेड से टकरा रही थीं, और चाप-चाप-चाप की गीली आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।

गुलमोहर बार-बार झड़ रही थी—दूसरी, तीसरी, चौथी बार। हर बार उसकी चूत आर्यन के लंड को और कसकर जकड़ लेती। आखिरकार आर्यन भी नहीं रुका—गुलमोहर की चूत के सबसे गर्म, सबसे गहरे कोने में अपनी सारी गर्मी उड़ेलता हुआ झड़ गया। दोनों एक साथ चीखे, एक-दूसरे से लिपट गए, पसीने और रस से पूरी तरह लथपथ।

रात अभी बहुत लम्बी थी। 

आर्यन ने उसे फिर पलटा—इस बार घुटनों के बल। उसकी गांड ऊपर, चूत पीछे से अभी भी वीर्य और रस से चमक रही थी। आर्यन ने फिर घुसाया, इस बार और गहरा, और तेज़। गुलमोहर की चीखें अब दर्द और सुख की मिली-जुली थीं। वो बेड पर, फायरप्लेस के गलीचे पर लोटते हुए, काँच की दीवार से सटाकर, कभी खड़े-खड़े, कभी आर्यन की गोद में—हर जगह, हर मुद्रा में चुदाई करते रहे। कभी उसका लंड उसकी चूत में, कभी मुँह में, कभी छातियों के बीच।

सुबह की पहली सुनहरी किरण जब चोटियों को छूने लगी, तब जाकर दोनों थक कर, चूर-चूर होकर एक-दूसरे से लिपट कर गिरे। गुलमोहर की चूत से आर्यन का वीर्य अभी भी लहरा रहा था, उसकी छातियाँ लाल दाँतों के निशानों से भरी थीं, होंठ सूजे हुए, माँग में सिंदूर पूरी तरह स्मज होकर फैल चुका था, मंगलसूत्र पसीने से उसकी छाती पर चिपका हुआ। आर्यन का हाथ अभी भी उसकी कमर पर कसा हुआ था, जैसे छोड़ना पाप हो।

बाहर ब्यास नदी अब भी गर्जना कर रही थी। 

अन्दर सिर्फ़ दो नवविवाहितों की थकी, गहरी साँसें और चूड़ियों की आखिरी सुस्त खनक थी।

दस दिन अभी बाकी थे।

कहानी जारी रहेगी....
✍️निहाल सिंह 
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#12
Episode 8.... ये शाम मस्तानी 

सुबह दस बज चुके थे, फिर भी सूरज विला के ग्लास वॉल पर धीरे-धीरे ही चढ़ पाया था। कमरे में अब भी फायरप्लेस की राख ठंडी हो रही थी, हवा में लकड़ी की हल्की-सी जलने की खुशबू और उनके जिस्मों की गंध मिली हुई थी।
गुलमोहर सबसे पहले हिली। उसकी आँखें खुलीं तो सबसे पहले मंगलसूत्र उसकी छाती पर चिपका हुआ दिखा। फिर आर्यन का हाथ उसकी कमर पर, उँगलियाँ अभी भी हल्के से दबाए हुए। वो शरमाई, मुस्कुराई, फिर धीरे से उठने की कोशिश की। कमर में हल्की-सी खिंचाव थी, जाँघों में मीठा-सा दर्द। चूड़ियाँ खनकीं, आवाज़ से आर्यन की नींद टूटी।
"उठ गई मेरी बीवी?" उसने आलस भरी आवाज़ में कहा, आँखें अभी भी बंद थीं। 
"हाँ… तुम्हारी बीवी को बहुत भूख लगी है," गुलमोहर ने हँसते हुए कहा, फिर शरमाकर सिर झुका लिया।
आर्यन ने आँखें खोलीं। गुलमोहर को देखते ही उसका चेहरा चमक उठा। वो बिल्कुल नंगी थी, सिर्फ मंगलसूत्र और चूड़ियाँ। बाल बिखरे हुए, होंठ अभी भी सूजे हुए, गले और छाती पर हल्के-हल्के निशान। 
"भूख? पहले मैं खा लूँ," कहते हुए उसने झटके से उसे फिर अपनी ओर खींच लिया।
गुलमोहर चीखी, हँसी, "अरे… नहाए बिना? गंदे हो दोनों!" 
"तेरे साथ गंदे रहना भी अच्छा लग रहा है।" 
फिर भी उसने छोड़ दिया। दोनों हँसते हुए बेड से उतरे।
बाथरूम बड़ा था, बाहर की ओर खुला ग्लास वॉल, जहाँ से ब्यास नदी सीधी दिखती थी। आर्यन ने शावर चालू किया—गर्म पानी की भाप कमरे में भर गई। गुलमोहर शरमाते हुए अंदर आई। आर्यन ने उसका हाथ पकड़कर खींच लिया। दोनों एक-दूसरे पर पानी डालने लगे। साबुन का झाग, चूड़ियों की खनक, हँसी-मजाक। आर्यन ने उसके बालों में शैम्पू लगाया, फिर पीठ पर हाथ फेरते हुए नीचे आया। गुलमोहर ने उसकी छाती पर झाग लगाया, फिर शरमाकर उससे लिपट गई।
पानी के नीचे ही एक और किस शुरू हो गया—इस बार धीमा, प्यार भरा। आर्यन ने उसे दीवार से सटाया, गुलमोहर की एक टाँग उठाई, और फिर… पानी की बौछारों के बीच, नदी की आवाज़ के साथ, एक और बार वो एक हो गए। इस बार कोई जल्दी नहीं थी। बहुत देर तक, जैसे समय रुक गया हो।
नहाकर बाहर आए तो दोनों ने वही सफेद बाथरोब पहने थे जो विला में रखे थे।
आर्यन ने कॉफी,ब्रेड टोस्ट ऑमलेट ऑर्डर किया। दोनों बालकनी में बैठे। सामने बर्फीली चोटियाँ, नीचे नदी का शोर, और ठंडी हवा।
गुलमोहर ने कॉफी का मग हाथ में लिया, आर्यन के कंधे पर सिर रखा। 
"कल रात… सच था न? मैं सच में आपकी बीवी हूँ?" 
आर्यन ने उसका हाथ चूमा। "सच से भी ज्यादा सच। देख…" उसने अपना फोन निकाला, सेल्फी मोड में कैमरा ऑन किया।
स्क्रीन पर दोनों दिख रहे थे—गुलमोहर की माँग में सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ। उसने फोटो ली। 
"ये हमारी शादी की पहली तस्वीर है।"
गुलमोहर की आँखें भर आईं। उसने फोन छीना और उसे किस कर लिया।
खाना खाने के बाद दोनों सोफे पर लेट गए। बाहर हल्की-हल्की बर्फबारी शुरू हो गई थी। आर्यन ने टीवी ऑन किया, लेकिन देखा कुछ नहीं। बस एक-दूसरे को देखते रहे। 
फिर आर्यन ने धीरे से बाथरोब का नाड़ा खींचा। गुलमोहर ने टोका नहीं। बस शरमाकर आँखें बंद कर लीं।
इस बार सोफे पर, फिर फर्श पर गलीचे पर, फिर ग्लास वॉल से सटाकर—जहाँ बाहर बर्फ गिर रही थी और अंदर दो जिस्म पिघल रहे थे। गुलमोहर अब शरमाती कम थी, बोलती ज्यादा थी। 
"यहाँ… कोई देख लेगा…" 
"कोई नहीं देख सकता। सिर्फ पहाड़ और नदी गवाह हैं।"
शाम पाँच बजे तक दोनों थककर चूर थे। बाहर अँधेरा हो चला था। आर्यन ने फायरप्लेस फिर जलाई। गुलमोहर ने लाल रेशमी नाइट गाउन पहना था जो विला में रखा था—पतला, पारदर्शी। उसमें से मंगलसूत्र और चूड़ियाँ साफ दिख रही थीं।
आर्यन ने वाइन की बोतल खोली, दो गिलास भरे। दोनों फायरप्लेस के सामने गलीचे पर बैठ गए। 
"पहला दिन बीता… नौ दिन और हैं," आर्यन ने कहा। 
गुलमोहर ने गिलास उसके गिलास से टकराया। "और नौ रातें…" 
फिर हँसी, फिर लिपट गए।
रात का खाना —साधारण मगर साथ में। म्यूज़िक चल रहा था—पुराने हिंदी गाने। गुलमोहर ने आर्यन की गोद में सिर रखकर लेट गई। 
"आर्यन… मुझे डर लग रहा है।" 
"किस बात का?" 
"कि ये सपना न टूट जाए। दस दिन बाद दुनिया फिर शुरू हो जाएगी।" 
आर्यन ने उसके बालों में उँगलियाँ फिराईं। 
"दुनिया चाहे जो कर ले। तू मेरी बीवी है। ये मंगलसूत्र, ये सिंदूर, ये चूड़ियाँ—कोई नहीं उतार सकता। न दुनिया, न वक्त।"
गुलमोहर ने उसकी छाती पर सिर रख दिया। बाहर बर्फ गिर रही थी, अंदर आग जल रही थी। 
पहला पूरा दिन ऐसे ही बीता—प्यार में डूबा हुआ, बिना किसी जल्दी के, बिना किसी डर के।
रात फिर गहराई। 

तीसरा दिन — बर्फ, नदी और सिर्फ़ हम
सुबह सात बजे, पहाड़ों पर अभी धूप नहीं पहुँची थी। रात भर हल्की बर्फ़बारी होती रही थी। विला के बाहर सब कुछ सफ़ेद हो चुका था। देवदार की पत्तियों पर बर्फ़ जमी थी, ब्यास नदी का शोर अब भी ज़ोर था, पर उसकी सतह पर बर्फ़ की पतली चादर तैर रही थी।
गुलमोहर सबसे पहले जागी। उसने खिड़की खोली तो ठंडी हवा का एक झोंका अंदर आया। वो काँप गई, फिर मुस्कुराई। उसने आर्यन को हल्के से हिलाया। 
"उठो ना… बाहर बर्फ़ गिरी है। पहली बार देख रही हूँ इतनी!"
आर्यन ने आँखें मलीं, फिर उसे अपनी ओर खींच लिया। 
"बर्फ़ बाद में देखेंगे। पहले तुझे गर्म करना है।" 
गुलमोहर हँस पड़ी, "हर सुबह यही बहाना?"
फिर भी वो उठे। दोनों ने मोटे वूलन स्वेटर पहने, गुलमोहर ने लाल ऊनी शॉल ओढ़ी, मंगलसूत्र ऊपर से झलक रहा था। आर्यन ने उसका हाथ थामा और बाहर ले गया।
#### सुबह की बर्फ़ में खेल
विला के लॉन में क़रीब चार इंच बर्फ़ जमी थी। गुलमोहर ने पहली बार बर्फ़ को हाथ लगाया, चीखी, "बहुत ठंडी!" 
आर्यन ने पीछे से उसकी कमर पकड़ी और बर्फ़ में धकेल दिया। गुलमोहर गिर पड़ी, हँसते-हँसते लोट-पोट। फिर उसने बर्फ़ का गोला बनाया और आर्यन पर फेंका। 
पाँच मिनट में दोनों बच्चे बन चुके थे। बर्फ़ के गोले उड़ रहे थे, गुलमोहर की चूड़ियाँ बर्फ़ से टकरा कर अलग आवाज़ कर रही थीं। आख़िर में आर्यन ने उसे गोद में उठा लिया और बर्फ़ में लिटा दिया। 
"अब हार मानो, बीवी।" 
गुलमोहर ने उसका गला पकड़ा और होंठों पर किस कर लिया। 
"हार गई… ले जाओ मुझे अंदर।"
#### गर्म चाय और गर्म किस
अंदर आकर फायरप्लेस जलाया। गुलमोहर ने अदरक वाली चाय बनाई। दोनों कंबल ओढ़कर सोफ़े पर बैठे। गुलमोहर ने आर्यन की गोद में सिर रखा। 
"तीसरा दिन है… लगता है सालों से तेरे साथ हूँ।" 
आर्यन ने उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा, "तेरी माँग में मेरा सिंदूर है, तेरे गले में मेरा नाम… सालों नहीं, जन्मों से मेरा है तू।"
चाय पीते-पीते किस शुरू हो गया। कंबल के अंदर हाथ चलने लगे। गुलमोहर ने शॉल उतारी, स्वेटर ऊपर किया। दस मिनट बाद दोनों फिर नंगे थे, कंबल के अंदर लिपटे हुए। इस बार बहुत धीरे, बहुत प्यार से। जैसे कोई जल्दी ही न हो।
#### दोपहर — नदी किनारे
दोपहर में धूप निकली। बर्फ़ पिघलने लगी थी। आर्यन ने कहा, "चल, नदी तक चलते हैं।" 
विला से नीचे एक गुप्त रास्ता था, सीधे ब्यास के किनारे। वहाँ कोई नहीं आता था।
दोनों हाथ में हाथ डाले उतरे। नदी का पानी बिल्कुल पारदर्शी, नीचे गोल पत्थर चमक रहे थे। किनारे पर एक बड़ा-सा चिकना पत्थर था। आर्यन ने गुलमोहर को वहाँ बिठाया। 
"याद है, तूने कहा था कि पहाड़, नदी, बस हम दोनों?" 
गुलमोहर ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया।
आर्यन ने उसकी शॉल उतारी, फिर स्वेटर। गुलमोहर ने कुछ नहीं कहा। ठंड थी, पर उसकी आँखों में कुछ और था। 
"यहाँ… कोई देख लेगा…" 
"देख ले। आज मैं अपनी बीवी को नदी के सामने प्यार करना चाहता हूँ।"
फिर वही हुआ। नदी की कल-कल के बीच, ठंडी हवा में, गुलमोहर की चूड़ियाँ पानी की आवाज़ में घुल गईं। आर्यन ने उसे पत्थर पर लिटाया, उसकी कमर के नीचे अपना स्वेटर रख दिया। इस बार बहुत देर तक। जब दोनों चरम पर पहुँचे, गुलमोहर की चीख नदी में गूँज गई, जैसे कोई पक्षी उड़ गया हो।
#### शाम — सिर्फ़ खामोशी और आग
शाम को वापस विला। दोनों थके हुए थे। गुलमोहर ने सिर्फ़ आर्यन की शर्ट पहनी थी, नीचे कुछ नहीं। आर्यन ने शॉर्ट्स। फायरप्लेस के सामने बैठे, वाइन पी, कुछ नहीं बोले। बस एक-दूसरे को देखते रहे।
रात के आठ बजे गुलमोहर ने कहा, 
"आज कुछ नहीं बनाना। बस तुझे खाना है।" 
आर्यन हँसा, "मैं भी यही सोच रहा था।"
फिर बेड पर नहीं गए। फायरप्लेस के सामने गलीचे पर ही। इस बार कोई जल्दी नहीं, कोई शब्द नहीं। सिर्फ़ आँखें, साँसें और दो जिस्म। गुलमोहर ने ऊपर रहने को कहा। आर्यन ने हँस कर हाँ कर दी। वो खुद बैठ गई उस पर, धीरे-धीरे हिलने लगी। उसके बाल आग की लपटों में लाल हो रहे थे। मंगलसूत्र उसकी छाती पर झूल रहा था। चूड़ियाँ हर हरकत में खनक रही थीं।
जब दोनों थक कर गिर पड़े, गुलमोहर ने आर्यन की छाती पर सिर रखा। 
"तीसरा दिन… और अभी भी लगता है पहला दिन है।" 
आर्यन ने उसके माथे पर किस किया। 
"हर दिन पहला दिन रहेगा। मैं वादा करता हूँ।"
बाहर बर्फ़ फिर गिरने लगी थी। 
अंदर सिर्फ़ दो दिलों की एक धड़कन थी।
तीसरा दिन ख़त्म हुआ। 
सात दिन अभी बाकी थे। 
और हर दिन पहले से ज़्यादा गहरा, ज़्यादा अपना होता जा रहा था।


### चौथा दिन — बारिश, गरम तेल और एक दूसरे का नाम
सुबह पाँच बजे तेज़ आवाज़ से दोनों की नींद खुली। 
बाहर बादल फट रहे थे। मनाली में अचानक मौसम पलटा था। रात भर हल्की बर्फ थी, अब मूसलाधार बारिश। ब्यास नदी का शोर दोगुना हो गया था, जैसे कोई जंगली जानवर गरज रहा हो। बिजली कड़की, कमरे में एक पल के लिए सब सफ़ेद हो गया।
गुलमोहर डर कर आर्यन से लिपट गई। 
"बहुत तेज़ बारिश है…" 
आर्यन ने उसे और कस कर पकड़ा, "अच्छा है। आज बाहर कहीं नहीं जाना। आज पूरा दिन बस बेड और हम।"
बारिश की लय शुरू हो गई थी। टप-टप-टप… छत पर, पेड़ों पर, ग्लास वॉल पर।
#### सुबह — गरम तेल और धीमी मालिश
आर्यन उठा, किचन से बादाम का तेल गर्म करके लाया। फायरप्लेस जला दी। 
"लेट जा, बीवी। आज मैं तेरी हर मांसपेशी को ढीला कर दूँगा।"
गुलमोहर ने सिर्फ़ एक पतला सा सफ़ेद साटन का गाउन पहना था। आर्यन ने उसे उल्टा लिटाया। गाउन ऊपर सरका दिया। उसकी पीठ, कमर, जाँघें… सब नंगे। उसने गर्म तेल हाथ में लिया और धीरे-धीरे मालिश शुरू की।
गर्दन से शुरू करके कंधे, फिर रीढ़ की हड्डी के साथ-साथ नीचे। जब उँगलियाँ उसकी कमर की गड्ढी पर पहुँचीं, गुलमोहर ने सिसकारी ली। 
"आर्यन… ये मालिश है या…?" 
"दोनों।"
फिर जाँघों की भीतरी तरफ़ तेल लगाया। गुलमोहर की साँसें तेज़ हो गईं। उसने तकिया मुँह में दबा लिया। आर्यन ने हँस कर उसे पलट दिया। अब सामने थी। गाउन पूरी तरह खुला हुआ। उसने तेल छाती पर डाला, फिर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमाया। गुलमोहर की आँखें बंद थीं, होंठ काँप रहे थे।
मालिश कब खत्म हुई और कब प्यार शुरू हुआ, पता ही नहीं चला। 
बारिश की लय के साथ उनका रिदम मिल गया। बहुत धीरे, बहुत गहराई तक। गुलमोहर ने आर्यन का नाम बार-बार लिया, कभी फुसफुसा कर, कभी चीख कर। जब दोनों चोटी पर पहुँचे, बाहर बिजली कड़की और गुलमोहर की चीख उसमें घुल गई।
#### दोपहर — बारिश में भीगना
बारिश थमी नहीं थी। दोपहर ढाई बजे आर्यन ने कहा, "चल, भीगते हैं।" 
गुलमोहर हिचकिचाई, "पागल हो गए हो?" 
"तेरी साड़ी भीग जाएगी तो और सेक्सी लगेगी।"
उसने वही लाल साड़ी पहना दी जो शादी के दिन की थी। कुछ नहीं पहना अंदर। दोनों विला के बाहर निकले। बारिश इतनी तेज़ थी कि दो कदम में ही दोनों तरबतर। लाल साड़ी गुलमोहर के जिस्म से चिपक गई, हर उभार साफ़ दिख रहा था। मंगलसूत्र पानी से चमक रहा था।
आर्यन ने उसे दीवार से सटाया। बारिश की बूँदें उनके चेहरे पर, होंठों पर। किस शुरू हुआ। साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया। आर्यन ने उसे गोद में उठा लिया, दीवार से टिकाया और वहीं… बारिश में, ठंडे पानी के नीचे, गर्म जिस्मों ने एक-दूसरे को जला दिया। 
गुलमोहर की चूड़ियाँ बारिश में अलग ध्वनि कर रही थीं। उसकी चीख बादलों में खो गई।
#### शाम — लकड़ियों की आग और पुराना रेडियो
शाम पाँच बजे तक बारिश हल्की हो गई। दोनों भीगते हुए अंदर आए। कपड़े छोड़ दिए, सिर्फ़ एक मोटा कंबल ओढ़ लिया। फायरप्लेस के सामने लेट गए। आर्यन ने पुराना रेडियो ऑन किया जो विला में रखा था। 70 के दशक के गाने बजने लगे।
किशोर कुमार की आवाज़… “ये शाम मस्तानी…”
गुलमोहर ने आर्यन की छाती पर सिर रखा। 
"ये गाना… मेरे लिए बज रहा है।" 
आर्यन ने उसका हाथ चूमा। "हर गाना अब तेरे लिए है।"
फिर धीरे-धीरे कंबल के अंदर हाथ चलने लगे। इस बार कोई जल्दी नहीं थी। बहुत देर तक सिर्फ़ छूना, चूमना, सहलाना। गुलमोहर ने खुद आर्यन को ऊपर खींचा। बारिश फिर तेज़ हो गई थी। उनकी साँसें और बादलों की गड़गड़ाहट एक हो गईं।
#### रात — सिर्फ़ एक नाम
रात के दस बज चुके थे। बाहर तूफ़ान आया हुआ था। बिजली बार-बार जा रही थी। एक बार अचानक सब अंधेरा हो गया। सिर्फ़ फायरप्लेस की लपटें बाकी थीं।
गुलमोहर डर कर आर्यन से और लिपट गई। 
आर्यन ने उसे बाहों में उठाया और बेड पर ले गया। 
"डर मत। मैं हूँ ना।"
उस रात बिजली नहीं आई। सिर्फ़ आग की लपटें और दो जिस्म। 
गुलमोहर ने आर्यन के कान में फुसफुसाया, 
"मुझे सिर्फ़ तेरा नाम लेना है… बार-बार… आज रात भर।"
और उसने लिया। 
हर बार चोटी पर पहुँचते ही वो चीखती, "आर्यन…!" 
और आर्यन जवाब देता, "गुल… मेरी गुल…"
रात भर बारिश नहीं थमी। 
रात भर उनका नाम भी नहीं थमा।
चौथा दिन खत्म हुआ। 
बाहर तूफ़ान था। 
अंदर सिर्फ़ सुकून और एक-दूसरे का नाम।
छह दिन अभी बाकी थे। 
और हर दिन पहले से ज़्यादा तीव्र, ज़्यादा गहरा, ज़्यादा अपना होता जा रहा था।
✍️निहाल सिंह 
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