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Adultery बदलाव, मजबूरी, सेक्स या जिंदगी.....
#1
Question 
यह कहानी है एक परिवार और एक अंजान से आदमी की, और बदलाव की, पात्रों का परिचय आगे मिलता रहेगा... आगे कहानी का प्लॉट अगर रोचक लगेगा तो कमेंट जरूर करें।

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“राहुल से फिर से उधार मांगना कितना ठीक रहेगा?” आरोही ने अपनी सास और जेठानी परिधि से पूछा। “पहले ही उसके 5 लाख हो चुके हैं, यह तो तब है जब उसने दवा से लेकर दूसरी चीजों के पैसों को लेकर कुछ नहीं कहा है।” आरोही ने आगे कहा।


“हाँ तुम्हारी बात तो ठीक है, लेकिन इस अचानक आई आफत के समय क्या कर सकते थे। किसी और से उधार मागकर देखा तो था सबने मजबूरी का फायदा उठाना चाहा। गहने जेवर तो भी तो इतने नहीं हैं कि बेच दें तो कुछ दिन चलें।” परिधि ने कहा।

“लेकिन बेटा राहुल के ही भरोसे रहना नहीं ठीक है। कुछ करना पड़ेगा। एक बेटा तो खो चुकी हूँ। दूसरा लाचार हो चुका है। अब कैसे घर चलेगा यह समझना मुश्किल है।” उन दोनों की सास इंद्रावती ने कहा।

यहाँ राहुल और इस परिवार परिचय जान लेना आवश्यक है कि राहुल इन लोगों का किराएदार था। जो इसी बिल्डिंग के इनके सामने के दूसरे फ्लैट में रहता था। राहुल पिछले एक साल से यहाँ रह रहा था। और उसका अपना शेयर और कल्सल्टेंसी का काम था, या पता नहीं क्या था कोई नहीं जानता था। जिसे वह वहीं रहते हुए करता था।

यह दोनों फ्लैट अमित और सुमित नाम के दो भाईयों के थे। आरोही और परिधि इनकी बीबीयाँ थीं। सुमित बड़ा था और उसकी बीबी का नाम परिधि था और अमित छोटा था उसकी बीबी का नाम आरोही था।

दोनों ही कमाल की खूबसूरत थीं। मध्य आकार के चूतड़ बिल्कुल आपसे में चिपके हुए और उनके ओंठ बिल्कुल रसीले की चूसते-चूसते किसी का जी ना भरे। उन दोनों की ही चूँचियाँ एकदम साइज की थीं। दोनों ही को देखकर कई लोग इन्हें भोगना चाहते थे।

परिधि को हाल ही में एक बच्चा हुआ था वह करीब 3 महीने का था। लेकिन मोटापा या चूचियों का ढलक जाना बिल्कुल नहीं हुआ। दोनों बिल्कुल टीवी एक्ट्रेस की तरह दिखती थीं। दोनों ही चूड़ीदार पहनने पर गजब ही ढा देतीं थीं। गाँड़ देखने के लिए राह चलते लोग जुगाड़ लगाते।


दोनों की ही अरेंज मैरिज हुई थी। इनकी सेक्स लाइफ सामान्य थी। मतलब पति आते इनकी टांगों को कंधे पर रखते और अपनी लिंग खाली करके सो जाते।

इनको भी सेक्स के प्रति आकर्षण भी सामान्य मध्य-वर्गीय औरतों के जैसा हो गया था इनके लिए यही सेक्स था कि टांग पसारो और धक्के खा लो। लेकिन शायद इनके जीवन में एक तूफान बाकी था।

यह एक सामान्य परिवार था निम्न से थोड़ा ऊपर मध्य-वर्ग का कहा जा सकता है। दोनों भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए थे, लेकिन जैसा थोक के भाव में इंजीनियर पैदा होने से आया है। यह दोनों सामान्य सी नौकरियाँ करते।

यह पूरा इलाका महानगर से सटा एक गांव हुआ करता था। धीरे-धीरे शहर यहाँ तक आ गया और जिस कंपाउंड में यह बिल्डिंग थी। यह अमित-सुमित का पुश्तैनी घर हुआ करता था। जिसमें बंटवारे और बिल्डर के साथ कांट्रैक्ट के बाद इनके हाथ चार फ्लैट लगे थे।

तो जैसा हमारे समाज में अचानक से आए पैसों के साथ होता है। वैसे ही चार फ्लैट मिल जाने के बाद इन दोनों भाईयों ने अपनी बीपीओ कंपनी खोली और कुछ घोटाले या स्कैम में ऐसे फंसे की इनके दो फ्लैट हाथ से जाते रहे। और इन्हें फिर से नौकरी करनी पड़ी।

इन दोनों की शादी भी हो चुकी थी। इनके पिता जी भी गुजर चुके थे। ऐसे में घर को सहारा देने के लिए इन्होंने एक फ्लैट को किराए उठा दिया। और चूँकि जिस कंपनी में दोनों काम करते थे उस कंपनी का मालिक राहुल के पहचान वाला, पहचान क्या राहुल से दबता था। तो उनके मालिक अग्रवाल जिसकी हर गारंटी लेते हों, उसे फ्लैट देने में क्या समस्या। तो इसीलिए जैसे इन्होंने पता चला राहुल को फ्लैट दे दिया।

राहुल इस शहर में अकेला रहता था। और अपनी व्यवहार कुशलता और पैसों से लोगों की मदद के लिए इनकी पूरी बिल्डिंग और कंपाउंड ही क्या आस-पास तक जाना पहचाना था। इन लोगों को किराए और अन्य चीजों को लेकर कुछ कहना ही नहीं पड़ा। राहुल ने मुँहमांगी चीजें दीं और फ्लैट की हर मरम्मत अपने अनुसार करा ली।

वैसे राहुल की पहुँच और पैसे से यह परिवार तो दबता ही था। लेकिन आस-पास भी राहुल की बहुत इज्जत और पकड़ थी। राहुल की धाक तीन घटनाओं से जमी थी।

 
एक बार कॉलोनी के अखबार बांटने वाले हॉकर रमेश को एक बार गाड़ी ने टक्कर मार दी थी। तो राहुल ने ना केवल उसकी पूरी दवा और प्लास्टर करवाया बल्कि तीन महीने तक उसके घर राशन भी पहुँचवाया था। रमेश छोटे-मोटे काम करके अपना पेट पालता था, ऐसे में राहुल उसके लिए किसी देवता से कम नहीं था।
 
इसी तरह बिल्डिंग में नीचे रहने वाले तौहीद के पिता को लकवा मार गया था। इसी बीच उसकी बहन की शादी भी तय थी। ऐसे में पैसे और सारे काम-धाम का जिम्मा राहुल ने आगे बढ़कर खुद संभाल लिया था। जबकि राहुल से तौहीद से कभी नहीं बनती थी।


जब राहुल बिल्डिंग में आया था तभी एक बार अपनी बहन से कुछ पूछता देखकर गलतफहमी के कारण तौहीद राहुल से लड़ पड़ा था। और अक्सर मौका देखकर उससे झगड़ता उसे गालियाँ देता। तौहीद को अपने ऊपर बहुत घमंड उसके बहुत सारे दोस्त हैं। और बाप के पास पेंशन है।
 
तौहीद को असलियत तब पता चली जब उसे वाकई जरूरत थी। ऐसे समय अपने किराए के फ्लैट में ही मस्त रहने वाला राहुल अचानक से वहाँ पहुँचा और उसने सारी जिम्मेदारी तौहीद के भाई के जैसे उठा ली। उसके घर वालों को तो पता ही नहीं चला कि उनके साथ कोई हादसा हुआ है। सिवाए इसके कि पिता को लकवा मारा था।

राहुल ने पैसों के साथ ही साथ अपनी अद्भुत मैनेजमेंट क्षमता से हॉस्पिटल घर और लड़के वालों तक को संभाल लिया था। चूँकि तौहीद के पिता उस समय पैसे से भी कमजोर थे। तो पैसों और घबराहट को संभालने में राहुल ने कमाल दिखा दिया।

यही चमत्कार तो था कल तक जिस राहुल से तौहीद चिढ़ता था। उसी राहुल की तौहीद अपने पिता के समान इज्जत करता था। और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार था। यहाँ तक कि अब अगर उसकी बहन राहुल के फ्लैट में मिलने या बुलाने चली जाए, तो तौहीद को बुरा क्या, सब अपने परिवार जैसा लगता था।


आस-पास के मजदूर काम वाले तो राहुल के किसी भी काम को करने के लिए दौड़े आते थे क्योंकि एक तो पैसे देने में कभी कोई मोल-तोल नहीं करता। दूसरा वह किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचने देता क्योंकि उसे पैसों की परवाह नहीं थी।

हाँ लेकिन राहुल की एक और विशेषता थी। वह किसी से भी डरता नहीं था और सीधी कुछ हद तक रूखी बात करता था। साथ ही वह अपनी निजता और गोपनीयता में किसी को घुसने नहीं देता था। ना वह किसी के घर जाता और ना ही किसी को अपने घर बुलाता। केवल परेशानी में ही किसी के साथ दिखता था। और जैसे ही उसकी परेशानी दूर राहुल ऐसा दूर हो जाता जैसे उसने कुछ किया ही नहीं।

लेकिन अभी तीसरी घटना बाकी थी।
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#2
De rani jethani ki chudai hogi
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#3
Zabardast waiting for next
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#4
Big congrats on your very first story!
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#5
इस इलाके में राहुल की तीसरी घटना करीब दस महीने तब हुई जब वहाँ उस इलाके में एक पान की दुकान हुआ करती थी। जिसका दुकानदार पांडे, पान की आड़ में नशे का कारोबार किया करता था। उसकी पहुँच और पकड़ यह थी कि सब उससे डरते थे। लोग उधर से निकलते नहीं थे।

एक दिन आरोही शाम को कुछ सामान लेने गई थी।


तो वहाँ कुछ गुंडे टाइप के लड़के नशा करने के लिए खड़े रहते थे। वैसे तो सब लोग इस रास्ते से ना जाकर बगल के रास्ते से जाते थे। लेकिन आरोही फोन पर बात करते हुए गलती से इधर आ गई।

अब 23 साल की जवान खूबसूरत आरोही का जानलेवा फीगर वैसे ही बुड्ढों की वासना जगा दे। ऐसे में नशेड़ी आवारा लड़कों के लिए तो अकेली जवान औरत का मिल जाना तो शेर के मुँह में शिकार जैसा होता है।

तो अपनी धुन में चली जा रही आरोही के चूतड़ पर तड़ाक से जोरदार थप्पड़ पड़ा। थप्पड़ इतना तेज था की आरोही किसी तरह से गिरते-गिरते बचती है और फिर भी एक थैला और फोन गिर जाता है।

“क्या बद्तमीजी है” कहते हुए आरोही पलटती है।

“अरे मैडम आपकी गांड पर मच्छर बैठा था, काट लेता तो सूज जाती,” एक लड़का बोला जिसने थप्पड़ मारा था।

दूसरे ने कहा, “अबे साले इतनी जोर से थोड़े मारते हैं। मैडम की लाल हो गई होगी। लाइए मैं सहला देता हूँ।”

उसके ऐसा कहते ही आरोही डर गई और बोली, “ऐ दूर रहो, क्या बदतमीजी कर रहे हो।”

“अब इसमें क्या बदतमीजी है, इसकी गलती है तो भरपाई तो करनी पड़ेगी है। आइए इधर थूक लगाकर सहला देते हैं,” वह लड़का और उसका साथी हंसते हुए आगे बढ़ने लगा।

आरोही की तो मानो डर के मारे जान ही सूख गई। क्योंकि वहाँ चार-पांच लड़के भूखे भेड़िए की तरह उसे ही देखकर अपने ओंठों पर जुबान फेर रहे थे।

“अरे, क्यों मैडम को परेशान कर रहे हो?” पांडे पानवाले की आवाज आई।

“अरे चाचा, परेशान कौन कर रहा है। हम तो बस अपनी गलती की माफी चाहते हैं।” लड़कों ने हंसते हुए जवाब दिया और आरोही की ओर बढ़ने लगे।

आरोही तो डर के मारे बुत बन चुकी थी। उसे होश तो तब आया जब एक लड़का उसके बहुत करीब आकर उसकी गांड़ के एक हिस्से पर हाथ रख दिया। उसके ऐसा करते ही आरोही फौरन ही जैसे होश में आ गई। और सारी शक्ति बटोरकर उस लड़के को ढकेलकर वहाँ से दौड़ पड़ी।

उसके हाथ से सारा सामान वहीं गिरा रह गया। उसने भागते हुए आवाज सुनी, “अरे मैडम सूजी गांड़ लेकर इतना दौड़ोगी तो और दर्द होगा। आपके चूचियाँ भी उछल रही होंगी वह भी लाल हो गईं होंगी। आइए हम लोग अच्छे से चूसकर और चाटकर ठीक कर देंगे।” और इसी के साथ ठहाका गूंजा।

दशहत के साथ भागती हुई आरोही किसी तरह से कपाउंड तक पहुँची और गिर पड़ी, फिर उठी और दौड़कर घर की बिल्डिंग तक पहुँची। उसकी हालत उस कंपाउंड में कई लोगों ने देखा तो कुछ वहाँ खड़ी लड़कियों और महिलाओं ने दौड़कर उसे उठाया है। और उसे घर ले गईं।

घर में अमित और सुमित दोनों ही थे। घटना के समय आरोही, फोन पर अमित से ही बात कर रही थी। इसीलिए अमित को अंदाजा था कि कुछ तो बुरा हुआ है। बिल्डिंग की महिलाओं और अपनी सास और जेठानी के सामने, आरोही ने हकलाते हुए, घबराहट में और रोते हुए अपनी बात बताई।

सुमित और अमित को गुस्सा आ गया। जाहिर सी बात है आना ही है। दोनों ही सोसाइटी के लोगों के साथ वहाँ चल पड़े।
पान की दुकान पर वह सभी वैसे ही खड़े थे। और सब आरोही की ही चर्चा कर रहे थे। तैसे वहाँ सुमित आया और गुस्से से बोला, “किसने मेरी बीबी के साथ बेहूदगी की है।”

“तुम लोग खुद को समझते क्या हो, शरीफ लोगों का जीना हराम कर दिया है।”

सुमित की बात सुनकर एक लड़का बोला, “अच्छा तू ही है उस पटाखे का मालिक। सही है यार क्या किस्मत है तेरी।” बाकी सब हंसने लगे।

यह सारे नशे में थे और पूरी बेशर्मी से उल्टे सुमित का मजा लेने लगे। एक ने बोला, “देख यार, इतनी अच्छा रसगुल्ला तू तो रोज खाता है, थोड़ा रस हम भी ले लिए।”

सुमित एकदम गुस्से में आ गया, और उसने उस लड़के का कॉलर पकड़कर एक तमाचा मार दिया। और पान वाले पांडे से बोला, “आप यहाँ दुकान कर रहे हो, और इन लफंगों को जमा किए हो।”

तमाचा पड़ते ही बाकी सारे लड़के एकदम से सावधान हो गए, और उनकी आँखों में गुस्सा दिखने लगा। सब नशे में तो पहले से ही थे। एक ने आगे बढ़कर सुमित को पकड़ा और गुर्राकर बोला, “तूने मारा कैसे, बे?”

अमित और बाकी लोग आगे बढ़े और चिल्लाए, “एक तो गुंडई करते हो और फिर दादागिरी कर रहे हो?”

उस लड़के ने गन निकाल ली। और बोला, “आओ भोसड़ी वालों, देखता हूँ तुम लोगों की गांड़ में कितना गूदा है।”

फिर सब डर गए, और अमित की भी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। जिसे मार पड़ी थी, उसने तीन-चार झापड़ सुमित को जड़ दिए। और एक ने एक लात अमित को मारी।

और सुमित को पकड़े हुए बोला, “भोसड़ी के, हाँ उसकी गाड़ दबाई थी। अगली बार उसकी गांड़ यहीं नंगी करके मारेंगे।” यह सुनकर सुमित बिल्कुल सकते में आ गया था।

अमित ने पान वाले पांडे से जोर से कहा, जो यह सब देखकर मुस्कुरा रहा था, “आप यहीं दुकान चलाते हैं, और यहाँ यह हो रहा है। सिक्युरिटी बुलाइए।”

तो जिस लड़के ने सुमित को पकड़ रख था, वह बोला, “अबे चूतिए, तुझे क्या लगता है पांडे कोई शरीफ आदमी है। तेरी छमिया की गांड़ देखकर यही सबसे अधिक मचल रहा था। मौका मिलता तो यहीं दुकान में पेल देता, साली को।”

इस पर सब हंसने लगे और पांडे तो सबसे तेजी से हंसा और बोला, “भक्क बे, बदनाम ना करे। उ ऐसा है ना, मैडम इतनी कंटाप माल थी हीं, तो हम का कोई भी पेलने को तैयार हो जाता।”

अमित और सुमित का खून खौलने लगा, लेकिन दोनों और साथ के लोग भी गन देखकर डरे हुए थे। फिर उस लड़के ने जाने क्या सोचकर बोला, “चल बे जाने दे इसे, इतना अच्छी गांड़ रगड़ी है। उसके सदके में इसे जाने देते हैं।”

लड़कों ने उनको छोड़ दिया। और सुमित फिर से भिड़ना चहता था लेकिन बाकियों ने पकड़ा की गुंडों के मुँह ना लगो।

फिर जब वह जाने लगे तो लड़के चिढ़ाते हुए ताना कसा, “अबे इतनी जोर से अपनी बीबी को पेला कर। नहीं तो ऐसे गांडू की तरह रहेगा। तो हम लोगों को पेलना पड़ेगा। वैसे भेजता रहा कर इधर थोड़ा बहुत रगड़कर हम मजा लेते रहेंगे।”

अमित-सुमित खून का घूंट पीकर जाने लगे। और फिर दोनों ने सिक्युरिटी स्टेशन जाने का फैसला किया। वहाँ जाने पर क्या ही होना था। सिक्युरिटी से पहले ही उन लोगों की सेटिंग रहती थी।

सिक्युरिटी गई और पांडे को चेतावनी दे दी। यह अलग बात थी कि पांडे दारोगा को देखकर मुस्कुरा रहा था। और सुमित की ओर इशारा करके जाने क्या कहा कि दोनों हंसने लगे।

सुमित ने जब सिक्युरिटी वाले से कहा कि इनको गिरफ्तार क्यों नहीं किया। तो दारोगा ने कहा कि फिर तो मैडम को गवाही देनी होगी और उनका मेडिकल कराना होगा। यानी उलझन का डर दिखाया।

बदनामी और गंदे सवालों के डर से आरोही और परिधि ने भी मना कर दिया। किसी तरह से अपमान का घूंट पीकर यह परिवार पूरी रात जागता रहा। और आरोही तो रात भर रोती रही।

अब यह बात अगले दिन राहुल को मालूम हुई। तो वह शाम को आरोही के घर पहुँचा और वहाँ आरोही की आंखें सूजी और अपमान से जलती हुई मिलीं। राहुल यह सब देखकर, खड़ा हुआ और कड़ी आवाज में बोला “सुमित और अमित भईया कहाँ हैं।”

इंद्रावती ने बताया कि दोनों आफिस गए हैं। वैसे आरोही नहीं चाहती थी कि पति ऑफिस जाए लेकिन मजबूरी थी। लेकिन सामने कुछ नहीं बोली। अपमान में जल रही थी। राहुल के सामने रोने लगी।

राहुल ने बोला, “भाभी रोइए नहीं। शाम को आप सब तैयार रहिएगा। वहीं चलना है।”

आरोही, परिधि सब शॉक हो गए। इंद्रावती ने पूछा, “बेटा इतना हो जाने के बाद भी?”

“इतना हो जाने के बाद ही तो और जरूरी है,” राहुल बोला।

शाम को जब अमित सुमित आए तो उनको सारी बात मालूम पड़ी। अभी सब सोच ही रहे थे कि राहुल का फोन आया कि आप सब उस दिन के सभी लोगों को लेकर आठ बजे वहीं आइए। सुमित ने कुछ कहना चाहा, लेकिन राहुल ने पूरे दृढ़ विश्वास से कहा वहीं आइए। आगे सुमित कुछ बोल नहीं पाया।

इंद्रावती, परिधि, आरोही, सुमित, अमित और उस दिन के लोग, और आज किसी दुर्घटना से बचाने के लिए राहुल के खातिर तौहीद उसके दोस्त भी साथ चल दिए।

जब वह लोग रास्ते में थे, तो वहाँ राहुल का फोन आया पूछने के लिए कि आप लोग आ रहे हैं। तो सुमित ने कहा आ रहा हूँ।
और फिर सब जब डरते-डरते वहाँ पहुँचे तो नजारा एकदम शॉक्ड करने वाला था।

वह चारों पाँचो लड़के और पांडे बुरी हालत में थे सबके हाथ एक ही रस्सी में बंधे थे। और वहीं पांडे की गुमटी जल रही थी। और दारोगा के साथ सिक्युरिटी भी मौजूद थी। जो आंखे झुकाए सब देख रहा था।

आरोही का परिवार यह देखकर चौंक गया। राहुल ने आरोही से पूछा, “भाभी कौन था वह।” तो आरोही ने डरते हुए पांडे और उस लड़के की ओर इशारा किया।

राहुल ने कहा आप यहाँ आइए। आरोही बहुत डर रही थी। बाकी लोग भी सकते में थे। राहुल आगे आया और उसने आरोही का हाथ पकड़ा। और वहाँ लाया।हाथ पकड़ने पर आरोही को रिएक्ट करने की सोच ही नहीं जगी। क्योंकि उसका ध्यान तो उन गुड़ों पर था। और डर व शॉक बहुत था।

राहुल ने आरोही को डंडा थमाया और बोला, “जितना मार सकती हैं, उतना मारिए। और जिसे जहाँ मन हो वहाँ मारिए। मार डालना चाहें तो मार डालिए।”


वह सभी नशेड़ी और पांडे आरोही के सामने गिड़गिड़ाने और माफी मांगने लगे। आरोही को उनका गिड़गिड़ाना काफी सुकून दे रहा था। जिसको बयान नहीं कर सकती थी।


वैसे तो आरोही की घबराहट के मारे हालत खराब थी। राहुल ने जोर से आरोही को डांटा, “मारिए।” और सुमित को बोला, “आपको किसने गन दिखाई थी।”

सुमित ने उसकी ओर इशारा किया। तो राहुल ने पूछा, “क्यों बे गन कहाँ है?” उसकी तो हालत खराब थी। उसने कहा, “नहीं लाया।”

“क्यों नहीं लाया बे, गाँड़ में डाल ली है क्या” यह पहली बार था जब किसी ने राहुल के मुँह से गाली सुनी थी।

आरोही ने अभी तक नहीं मारा था। तो राहुल ने कहा, “मारिए या आप में इतनी भी हिम्मत नहीं है।”

राहुल के जोर से डांटने से दो दिन से अपमान में जल रही आरोही मानो पागल हो गई और सबको बुरी तरह से मारने लगी इतना मारा की अमित सुमित और परिधि को आकर रोकना पड़ा।

राहुल ने किसी को फोन किया था, तभी एक जीप आकर रूकी और उसमें से एक बड़ा गुंडा टाइप का शख्स उतरा और उसने पहले राहुल को सलाम किया और उसके हाथ में एक गन दी।

और उन सभी की ओर हिकारत से देखते हुए थूका, “और बोला, सालों भाई के नाम पर राहुल भाई से उलझने की हिम्मत कर दिए। अब भाई तुम सबको जिंदा तो नहीं छोड़ेगा।”

और राहुल से बोला, “राहुल भाई, भाई ने बोला है आपको जो करना है कर देना। बाकी लाश ठिकाने लगाने होगी तो हम देख लेंगे, क्यों बे दारोगा?”

दारोगा मिमियाता हुआ सा, “जी जग्गू भाई, जैसा आप और भाई कहें।”

और राहुल ने सुमित के हाथ में गन दी और बोला, “सुमित मार दो गोली।” सुमित की तो हिम्मत ही नहीं हुई गन पकड़ने की। सब शॉक में थे ही।

फिर परिधि अचानक से होश संभालते हुए बोली, “नहीं राहुल जी, इतना काफी है, खून खराबा अच्छा नहीं है। हम लोग इसमें नहीं पड़ेंगे।”

फिर राहुल ने गन वापस कर दी। और जग्गू व दारोगा को बता दिया। फिर सबके साथ वापस चल दिया। आज आरोही का आत्मसम्मान एकदम संतुष्ट था। वह मन ही मन राहुल की फैन हो गई थी। उसका मन एकदम हल्का हो गया था।


तौहीद और उसके दोस्तों ने तो पूरी कॉलोनी में राहुल की छवि किसी मसीहा किसी फरिश्ते सी बना दी। और सब एक तरह से सुरक्षित महसूस करते थे। और आरोही का पूरा परिवार तो अब बहुत दबता था।

अब से सब राहुल से डरते भी थे।

यह थी तीसरी घटना। लेकिन असली भाग्य का खेल तो इसके छह महीने बाद आरंभ हुआ।

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#6
Dono Devyani jetthani ki chut me Rahul ka lund jana chahiye
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#7
Gajab story hai maza aeyga
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#8
इस घटना के छह महीने बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी, और राहुल से भी इन लोगों का खुलापन बढ़ गया। जैसे कभी खाने पर बुला लेना। और बात करना।

अमित और सुमित ने राहुल को एक बिजनेस प्लान बताया और कुछ पैसे डालने के लिए कहे। हालाँकि परिधि और आरोही ने रोका की एक बार बिजनेस डूब चुका है और पैसे मत लो।


और राहुल ने भी समझाया कि विदेश से माल लाकर बेचने में मुनाफा दिखता तो है। लेकिन बड़े रिस्क भी होते हैं। शिपमेंट देर होने पर सप्लायर माल की डिलेवरी कैंसल तक कर देते हैं।


लेकिन वे लोग नहीं माने। राहुल ने पैसे तो दिलवा दिए, और बैंक में और अपने पास दोनों फ्लैट के कागज का एग्रीमेंट करा लिया। यानी एक तरह से उनके दोनों फ्लैट बैंक और राहुल के बंधक थे।

इसी बीच पैसे आने पर इन लोगों ने सारे पैसे कहीं ऐसी जगह माल इंपोर्ट करने में लगा दिए। लेकिन जैसा डर था, वही हुआ। जो माल जिस शिप पर था वह शिप कहीं अटक गई। और इनका पूरा फंड डूब गया।


यानी इन पर लगभग चालीस लाख का कर्ज हो गया। और इसी गम में दोनों ने एक दिन जमकर शराब पी और वापस आते समय एक्सीडेंट हो गया। जिसमें सुमित मौके पर ही मर गया। और अमित की जान तो बच गई लेकिन बेड पर हो गया यानी पैरालाइज हो गया।


इन लोगों के एक्सीडेंट से लेकर सुमित के अंतिम संस्कार तक इंद्रावती और परिधि, आरोही के पास कुछ था तो नहीं। ऐसे में सारा खर्च राहुल ने ही उठाया।

अब जब अमित को घर पर लाया गया। और फिर आगे खर्च चलाने के की बात आई। तो इनको पता चला की घर भी गिरवी है। और जो थोड़े बहुत गहने से थे उससे आगे कैसे काम चलेगा।

इसी बीच सुमित के इलाज का खर्च भी आया था। राशन से लेकर अन्य खर्चे भी थे। बिजली का बिल और इधर उधर दौड़ना और किश्त भी थी।

इसके लिए ही पाँच लाख रूपए चाहिए था। जहाँ से कहानी की शुरुआत हुई थी।

अब यहाँ राहुल के आलावा कोई और रास्ता भी नहीं था।

क्योंकि इसी बीच परिधि ने जो बहुत हिम्मत वाली थी। उसने नौकरी करने की सोची और वह एक सिलाई फर्म में काम करने लगी जो उसके किसी परिचित का था।


उसने पैसे की बात उसके मालिक मिस्टर गुप्ता से की। तो पहले तो उन्होंने अच्छे सा बात की। और बाद में देने को बोला। लेकिन आरोही नोट करने लगी की तब से उनका व्यवहार कुछ बदला था।

वह किसी ना किसी बहाने परिधि को छूने लगे। और उसे ज्यादा से ज्यादा अपने पास ही रखने लगे। एक दिन जब परिधि ने दोबारा पैसों की मांग की तो उन्होंने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचना चाहा। ऐसे में परिधि शॉक हो गई।


और एक तमाचा मारकर केबिन से बाहर चली गई। और जाहिर सी बात है कि उसकी नौकरी चली ही गई। यही हाल आरोही का था, उसने भी कहीं नौकरी करनी चाही। लेकिन सबने फायदा उठाना चाहा।

और वैसे भी बच्चे और पैरालाइज अमित की देखरेख पर टाइम कहाँ मिलना था। तो परिधि और आरोही दोनों ही को पता था कि संसार कितना दुष्ट है।
 
तो उसने और आरोही ने एक बार राहुल से मिलने का फैसला किया। आगे यह वह मोड़ था जहाँ से सबकी जिंदगियाँ पूरी तरह से बदलने वाली थीं।
 
आगे ही पता चलना था कि पर्दा और बिना पर्दा क्या हो सकता है। और क्या किसी की बुराई भी अच्छी हो सकती है। और क्या अच्छा होना दुनियादार होना नहीं होता है। जो भी हो आगे आने वाला हर मोड़ अलग रंग दिखाएगा।
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#9
Nice update and awesome story
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#10
Rahul ka lund in dono ki chut me jyega yahi hona h
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#11
Zabardast
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#12
Update please
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#13
Waiting for
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#14
(11-11-2025, 11:41 PM)Asli lund Wrote: Rahul ka lund in dono ki chut me jyega yahi hona h

असली चीज तो यह है जिसमें क्या-क्या कैसे-कैसे होना है।
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#15
अब आते हैं आगे

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“देखिए भाभी मैंने आपको कुल मिलाकर पाँच लाख उधार दिए हैं। और इनमें वह तीन लाख शामिल नहीं है जो आप लोगों की मदद और दवा व संस्कार में खर्च किए हैं। और बैंक के साथ जो मेरा एग्रीमेंट है उसके चालीस लाख अलग ही हैं।

मैंने मानवता के नाते इलाज और अंतिम संस्कार में मदद की। अब आपको और चार लाख चाहिए।”

“देखिए मदद की जा सकती है लेकिन पेंशन बांधना मेरा सिद्धांत नहीं है।” राहुल ने आरोही की बात सुनकर शांति से जवाब दिया।


“देखो राहुल हमें पता है। लेकिन हमारी मजबूरी समझिए। यह नहीं दिए तो घर की किश्त डिफॉल्ट हो जाएगी। और फिर इस स्थिति कैसे काम चलेगा।” परिधि ने कहा।

“आपकी बात सही है भाभी, लेकिन आप पैसे कैसे लौटा पाएंगी। अगर मैं महीने के पूरे किराए को भी काट लूँ तो भी साल भर लगेंगे और तब भी दस-बीस हजार रह जाएंगे। और फिर आप और चार लाख मांग रही हैं।” राहुल ने साफ लहजे में कहा।

“हम लोग नौकरी ढूँढ रहे हैं। राहुल, आप समझो, हम कोशिश करेंगे इसे जल्दी लौटाने की।” अब आरोही ने कहा।

“देखिए भाभी, प्रैक्टिकल बात करनी चाहिए। जब अमित और सुमित को एक्सपीरिंयस पर चालीस हजार की नौकरी नहीं मिली। तो आप लोग तो रॉ हैंड हैं। कहानियों की बात अलग है। और उनको बिजनेस करने से मैंने और आपने भी रोका था।
 
लेकिन अब अगर आपकी बात करूँ, तो हकीकत में कोई आप लोगों को बीस हजार भी नहीं देगा और शोषण की कोशिश अलग करेगा। साथ ही आपको कम से कम बीस-तीस हजार अमित की दवा के लिए हमेशा चाहिए। और साथ ही देख-भाल भी करनी है” राहुल ने गंभीरता से अपनी बात कही।

परिधि और आरोही दोनों ही रूआँसी हो गईं। और आंसू गिरने लगे। आरोही ने कहा, “राहुल आप ही कोई तरीका बताओ जिससे हमें कोई राह मिले।”

राहुल ने कहा, “देखिए एक तरीका तो है। जिसमें मैं पैसे भी दे दूँगा और आपके कर्ज भी चुक जाएंगे। और खर्च भी चलेगा। लेकिन इस तरीके में आपको कष्ट भी सहने पड़ेंगे और सुनने में अपमानजनक भी लगेगा।”

“कह दो, क्या कहना है,” दोनों ने कहा, “अब तक जो कुछ सहा है उससे अधिक क्या खराब होगा।”

राहुल बोला, “ठीक है, मैं कहता हूँ। लेकिन ध्यान रखिए अगर आपको पसंद नहीं आए तो आप जा सकती हैं और मेरा कोई दबाव आप पर नहीं रहेगा। मैं कोई मौके का फायदा नहीं उठा रहा हूँ। बिजनेस कर रहा हूँ।”

उसने आगे कहा, “देखिए आप लोग बहुत खूबसूरत हैं और मैं भी मर्द हूँ और मेरी चाह भी वासना भरी है। मुझे आप दोनों को भोगना है और अपनी फैंटसी के अनुसार, मनमाने तरीके से। अगर आप की सहमति हो मैं आपको कुछ समय के लिए अपने साथ काम कराना और भोगना चाहता हूँ। इसका एक पूरा मॉडल है मेरे पास।”

राहुल की बात सुनकर दोनों को लकवा सा मार गया, फिर कुछ देर के बाद परिधि चीखती हुई बोलीं, “क्या?? तुमने ऐसा सोचा भी कैसे। कितने गंदे, नीच हो तुम। ऐसे तो तुम बहुत मददगार और दयालु बने फिरते हो और मौका देखकर नोंचने के लिए तैयार हो गए। थू है तुम पर।।।।”

परिधि की बात काटकर गंभीर स्वर में राहुल ने कहा, “चुप हो जाओ परिधि, मैंने पहले ही कहा था कि जबरदस्ती कुछ नहीं करने को कह रहा हूँ। और रही बात नोंचने की अगर वही करना होता तो अब तक आप दोनों मेरे बिस्तर पर होतीं।”

अब वह इनको भाभी नहीं बोल रहा था।

“नहीं मंजूर है, तो कोई बात नहीं आप लोग जा सकते हैं। और अगर आप इस बात को नहीं उछालेंगी। तो मैं तो इस बात को कहूँगा भी नहीं। लेकिन ठंडे दिमाग से सोच लीजिएगा। मेरे साथ आपको कोई जोखिम नहीं होगा।” राहुल ने अपनी बात पूरी की।

“नीच, तू खुद ही जोखिम है, चल आरोही यहाँ से।” परिधि ने आरोही से कहा।

आरोही भी रोते हुए उसके साथ चली गई। और अपने घर में दाखिल होने से पहले परिधि ने कहा, “सुन, अमित को अभी मत बताना।” आरोही ने हाँ में सिर हिलाया।

कुछ देर बाद दोनों अपनी सास के सामने बैठी थीं, और तीनों ही रो रहीं थीं। कुछ देर शांत होने के बाद इंद्रावती ने कहा, “मैं उस कमीने को अभी निकालने के लिए जा रही हूँ। और एक फ्लैट बेचकर उसका पैसा लौटा देंगे।”

“लेकिन माँ, एक ही दिन में यह सब नहीं ना होगा। और फ्लैट बेचने की बात तो पहले भी की गई है। बैंक के पास गिरवी पड़ा होने के कारण कोई भी दलाल इसे आधी कीमत से अधिक नहीं देना चाहता है। और फिर राहुल भी इसमें गारंटर है। उसको भी पैसे देने होंगे।” आरोही कुछ सोचते हुए कहा।

“हाँ, लेकिन कुछ तो सोचना ही पड़ेगा। इज्जत गंवाना ही उपाय नहीं है।” इंद्रावती ने कहा।

“पर पहले इसको भगाती हूँ” यह कहकर इंद्रावती उठने लगी।

पीछे-पीछे आरोही और परिधि भी चल दीं, लेकिन वह थोड़ा फ्लैट के दरवाजे के ही पास रहीं। इंद्रावती के घंटी बजाने पर राहुल ने दरवाजा खोला, और दरवाजा खोलते ही इंद्रावती से राहुल को झापड़ मारा।

और बोलीं, “हरामजादे, जी तो करता है तेरा खून पी जाऊँ। लेकिन, हम वैसे ही बहुत परेशान औरतें तो और परेशानी नहीं चाहती हैं। तू अभी निकल जा कमीने, तेरे बारे में सबको बता दूँगी। तू कितना नीच है। हमारी आबरू से खेलना चाहता है। मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है। अच्छाई के नीचे इतना गंदा चेहरा।”

इंद्रावती राहुल को कोसती रहीं राहुल थोड़ा सा अंदर होकर वैसे ही निश्चल भाव से खड़ा था, मानो कुछ हो ही नहीं है। फिर अंत में इंद्रावती बोली, “तू निकल भाग जा यहाँ से। आज शाम तक घर खाली कर दे।”

इंद्रावती के चुप होते ही, राहुल बोला “चाची सुनिए, मैं घर तो अभी खाली कर दूँगा। घर आपका है, लेकिन आप मेरे पांच लाख जो आप लोगों ने लिखित में लिए हैं उसे वापस करना पड़ेगा। और साथ ही बैंक की गारंटी और अपने हिस्से के पैसे बैंक से निकाल लूँगा।


मैंने जो ऑफर दिया था वह आपको बुरा लगा तो उसके लिए आप सिक्युरिटी में जा सकती हैं या सोसाइटी में से किसी को बुला सकती है। लेकिन यह पांच लाख और वह चालीस लाख जब तक नहीं देंगी यह फ्लैट बंद रहेगा और चाबी थाने में जमा कर दूँगा।”


राहुल आगे बोला, “मैंने कभी झगड़ा नहीं करता हूँ लेकिन झगड़े से पीछे नहीं हटता हूँ। मैंने एक बात कही थी जिसके लिए कोई दबाव नहीं दिया था। और अभी भी कोई दबाव आपकी बहुओं को पाने के लिए नहीं दे रहा हूँ। पैसों से कई वेश्याएँ मिल जाती हैं। और आपकी बहुएँ खूबसूरत तो हैं लेकिन मैं कभी आशिक नहीं बनता हूँ। भोगने के लिए बहुत मिल जाएंगी।”


और सुनिए, “आपके फ्लैट को हथियाने की भी मेरी कोई नियत नहीं है, या तो पैसे दे दीजिएगा या फ्लैट बंद रखने के बाद मैं बैंक से वापस करके खाली कर दूँगा। और हाँ अगर मुझे ब्लैक मेल करके आरोही, परिधि को बिस्तर पर लाना होता ना। तो अभी आपसे ब्याज भी मांग सकता हूँ। आपको मुझे मारने से पहले सोचना चाहिए था। अपनी हालत तो देखिए, यह थप्पड़ महंगा पड़ सकता है।”


राहुल की अंतिम बात के भारीपन और पांडे पान वाले कांड में राहुल की शक्ति को याद करके इंद्रावती और दरवाजे की आड़ में खड़ी आरोही और परिधि सहम सी गईं। इंद्रावती रोने लगी।

और राहुल के पैर पर गिर गई और कहा, “बेटा थप्पड़ के लिए मैं माफी मांगती हूँ। लेकिन तू हमारी इज्जत से तो ना खेल।”


“देखिए चाची, पैर ना पड़िए मैं थप्पड़ को भूल जाता हूँ। और मैं तो व्यापार बता रहा था। और आप जानती ही हैं कि मैं हर गेम सेफ खेलता हूँ। तो इसमें बात हमारे दोनों के बीच ही रह जाती। लेकिन आपको नहीं मंजूर था तो कोई बात नहीं है कोई ब्लैकमेल नहीं कर रहा हूँ। आप जाइए और सोच लीजिए।”


इंद्रावती और उसके पीछे आरोही और परिधि भी अपने घर में चली गईं। लेकिन आरोही के मन में कुछ सवाल उठ रहे थे। “राहुल कह तो सही रहा था। जब सब ठीक था तभी हम कौन सा बहुत सुरक्षित थे। पांडे की दुकान पर लड़कों ने जो किया और परिधि दीदी के साथ जो हुआ उससे तो राहुल ही ठीक है।

कुछ सोचते हुए आरोही बोली, “मैं, एक मिनट में आती हूँ।”

और यह कहकर वह सीधे राहुल के दरवाजे की घंटी बजा दी।

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आरोही को क्या सूझा होगा? वह फ्लैट में गई है, आगे कुछ मोड़ आएगा जरूर।
[+] 2 users Like ramlal_chalu's post
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#16
Superb plz continue
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#17
Waiting for next
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#18
Update please
[+] 1 user Likes Asli lund's post
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#19
Shandaar update and nice story and waiting for update
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#20
Please update
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