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02-11-2025, 04:30 PM
(This post was last modified: 03-11-2025, 04:09 PM by AzaxPost. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
BHOOT BANGLA
रात के करीब दो बजे का समय था। राजेश और सौम्या एक पार्टी से लौट रहे थे। उनकी कार शहर की सुनसान सड़कों पर तेज़ी से दौड़ रही थी। राजेश, 40 साल का बैंक मैनेजर, ड्राइविंग सीट पर बैठा था। उसकी आँखें सड़क पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कहीं और भटक रहा था। उसके बगल में सौम्या बैठी थी, 29 साल की ख़ूबसूरत और आकर्षक औरत। उसका शरीर घुमावदार था, लंबे रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें चाँदनी में चमक रही थीं, और छोटे-छोटे रसीले होंठ हल्के से मुस्कुरा रहे थे। पार्टी की रौनक अभी भी उनके मन में बसी हुई थी, लेकिन घर पहुँचने की जल्दी थी।
राजेश और सौम्या की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी में एक बड़ा दर्द छिपा था – बच्चा न होना। वे दोनों एक बच्चे की चाहत रखते थे, लेकिन सौम्या गर्भवती नहीं हो पा रही थी। डॉक्टरों ने जाँच के बाद पता लगाया कि समस्या राजेश में थी। लेकिन सौम्या के ससुराल वाले, ख़ासकर उसके सास और ननद, सब कुछ सौम्या पर ही थोप देते थे। वे उसे बांझा कहकर ताने मारते, रोज़-रोज़ अपमानित करते। सौम्या का दिल टूट जाता, लेकिन वह चुप रहती। वह राजेश से हमेशा सम्मान के साथ बात करती, कभी ऊँचा स्वर न उठाती।
एक शाम, डिनर के बाद, सौम्या ने राजेश से फिर बात की। 'राजेश जी, हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। बच्चे के लिए इलाज करवाना ज़रूरी है।' उसकी आवाज़ में विनम्रता थी, लेकिन चिंता साफ़ झलक रही थी। राजेश ने सिर झटक दिया। 'मैं ठीक हूँ, सौम्या। समस्या तुममें है। तुम्हें ही चेकअप करवाना चाहिए।' उसके शब्दों ने सौम्या को चोट पहुँचाई। वह जानती थी कि डॉक्टरों ने क्या कहा था, लेकिन राजेश अपनी ग़लती मानने को तैयार न था। इससे उनके बीच झगड़े बढ़ने लगे। छोटी-छोटी बातों पर बहस हो जाती। सास और ननद के ताने तो रोज़ ही सुनने पड़ते – 'तू ही नाकारा है, घर में वारिस नहीं ला पा रही।' सौम्या रो लेती, लेकिन राजेश को दोष न देती।
झगड़े दिन-ब-दिन बढ़ते गए। घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। सौम्या थक चुकी थी इन अपमानों से। एक रात, जब सास ने फिर से ताना मारा, सौम्या फूट-फूटकर रो पड़ी। राजेश ने देखा तो मन भर आया। 'बस, बहुत हो गया,' उसने कहा। 'हम अलग हो जाते हैं। अपने माता-पिता के घर से निकलकर कहीं और चले जाते हैं। अकेले रहेंगे, शांति से।' सौम्या ने हामी भर ली। दोनों ने फैसला किया कि वे शहर के बाहरी इलाके में एक छोटा-सा फ्लैट लेकर रहेंगे। नौकरी और कमाई से गुज़ारा चलेगा।
अब वे कार में बैठे थे, पार्टी से लौटते हुए। पार्टी में दोस्तों ने उन्हें अलग-अलग घर में रहने का फैसला बताया था। सब हैरान थे, लेकिन सौम्या के चेहरे पर राहत थी। 'राजेश जी, कल से हम नई शुरुआत करेंगे,' उसने कहा। राजेश ने मुस्कुराते हुए हाथ थाम लिया। कार की लाइटें अंधेरी सड़क को चीरती चली जा रही थीं, जैसे उनकी ज़िंदगी में नई उम्मीद की किरण। लेकिन मन के किसी कोने में अभी भी बच्चे की चाहत का दर्द बाक़ी था। फिर भी, अकेले रहने से शायद उनके रिश्ते मज़बूत हों, और इलाज का रास्ता भी निकले। रात गहरी हो रही थी, लेकिन उनका सफ़र अभी शुरू ही हुआ था।
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कार तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी, लेकिन अचानक आसमान पर काले बादल घिर आए। हल्की-हल्की बूँदें गिरने लगीं, जो धीरे-धीरे तेज़ हो गईं। बारिश अब जोरों पर थी – मूसलाधार। हवा के साथ पानी की बौछारें कार की खिड़कियों पर टकरा रही थीं, और सड़क पर पानी की चादर बिछ गई। राजेश ने वाइपर चालू किए, लेकिन दृश्यता कम हो रही थी। सौम्या ने चिंतित होकर कहा, 'राजेश जी, बारिश बहुत तेज़ हो गई है। सावधानी से चलाइए।'
राजेश ने हामी भरी, लेकिन तभी कार ने अजीब सी आवाज़ की और रुक गई। इंजन ख़ामोश हो गया। सड़क सुनसान थी – न कोई वाहन, न कोई रोशनी। रात के ग्यारह बज चुके थे, और चारों तरफ़ घना अंधेरा। राजेश ने स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन कार ने साथ न दिया। 'क्या हुआ?' सौम्या ने पूछा, उसकी आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी।
'मैं देखता हूँ,' राजेश ने कहा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर, बालों पर गिर रही थीं। वह कार के पीछे गया और टायर चेक किया। पिछला टायर पंक्चर हो चुका था – एक कील चुभ गई थी शायद। पानी उसके कपड़ों को भिगो रहा था, शर्ट चिपक गई थी शरीर से। वह भीगते हुए वापस आया और सौम्या को बताया, 'टायर पंक्चर हो गया है, सौम्या। कार नहीं चलेगी।'
सौम्या की आँखें फैल गईं। 'अब क्या करेंगे? यहाँ तो कोई मदद मिलेगी नहीं।' वह खिड़की से झाँक रही थी, लेकिन बारिश की वजह से कुछ दिखाई न दे रहा था। राजेश भी पूरी तरह भीग चुका था – उसके बाल चिपचिपे हो गए थे, और पानी टपक रहा था। 'रात का समय है, कोई मैकेनिक या मदद नहीं मिलेगी। हमें कहीं आश्रय लेना होगा,' उसने कहा। 'तुम कार में ही रहो, मैं देखता हूँ आसपास।'
वह फिर बाहर निकला, टॉर्च जलाकर चारों तरफ़ देखा। सड़क खाली थी – न कोई घर, न होटल, न कोई दुकान। अंधेरे में सिर्फ़ बारिश की आवाज़ और हवा की सनसनाहट। लेकिन दूर, शायद आधा किलोमीटर आगे, एक धुंधली सी रोशनी दिखाई दी। एक पुराना बंगला था वह – जंगल के किनारे पर खड़ा, अकेला। उसकी दीवारें पुरानी लग रही थीं, लेकिन खिड़कियों से हल्की पीली रोशनी आ रही थी। शायद कोई रहता हो वहाँ। राजेश ने सौम्या को बुलाया, 'सौम्या, आओ। दूर एक बंगला दिख रहा है। वहाँ शरण लेते हैं। रात कट जाएगी, सुबह मदद मिल जाएगी।'
सौम्या ने हिचकिचाते हुए दरवाज़ा खोला। बारिश उसके लंबे रेशमी बालों को भीगो रही थी, जो चेहरे पर चिपक गए। उसकी साड़ी गीली हो रही थी, शरीर की घुमावदार आकृति और साफ़ झलक रही थी। 'लेकिन राजेश जी, इतनी दूर... और रात में अजनबी जगह?' उसने विनम्रता से कहा। राजेश ने उसका हाथ थामा, 'चलो, कोई चारा नहीं। कार में रहना ख़तरनाक है।' दोनों ने कार लॉक की और बारिश में चल पड़े। पानी उनके पैरों तले कीचड़ बना रहा था, और बंगला की ओर बढ़ते हुए मन में अनजानी घबराहट थी। लेकिन उम्मीद थी कि वहाँ सूखा आश्रय और शायद कोई मदद मिल जाएगी। रात अभी और गहरी हो रही थी, और उनका सफ़र अनिश्चितता से भरा।
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बारिश की बौछारें और तेज़ हो गई थीं, और राजेश-सौम्या दोनों भीगते हुए उस बंगले तक पहुँच गए। बंगला बहुत बड़ा था – पुरानी ईंटों की दीवारें ऊँची-ऊँची खड़ी थीं, लेकिन उम्र के साथ यह डरावना लग रहा था। जंग लगी हुई खिड़कियाँ टूटी-फूटी, दरवाज़े पर जाले चढ़े हुए, और चारों तरफ़ घना अंधेरा। बंगले में कहीं कोई रोशनी नहीं थी – सिर्फ़ अंदर से हल्की-सी सनसनाहट आ रही थी, जैसे हवा पुरानी दीवारों से गुज़र रही हो। सौम्या ने राजेश का हाथ कसकर पकड़ लिया, 'राजेश जी, यह जगह तो बहुत डरावनी लग रही है। क्या हम यहाँ रुकें?' उसकी आवाज़ काँप रही थी।
राजेश ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। बाहर तो कुछ नहीं दिख रहा था, लेकिन मुख्य दरवाज़े के अंदर एक छोटा-सा कमरा नज़र आया – शायद कोई पोर्च या एंट्री रूम। वहाँ हल्की-सी छाया थी। 'चलो, पहले अंदर देखते हैं। कोई चारा नहीं,' राजेश ने कहा और दरवाज़े की ओर बढ़ा। सौम्या उसके पीछे-पीछे चली, बारिश उसके साड़ी को पूरी तरह भिगो चुकी थी, जो उसके शरीर से चिपक गई थी।
राजेश ने दरवाज़े पर जोर से दस्तक दी। 'कोई है क्या?' उसकी आवाज़ बारिश की आवाज़ में दब गई लग रही थी। कुछ पल की ख़ामोशी के बाद, अंदर से एक बुरी सी खरखराती आवाज़ आई – जैसे कोई बूढ़ा आदमी बोल रहा हो। 'कौन है बाहर?'
फिर दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। एक बूढ़ा आदमी बाहर आया, उसके हाथ में एक पुराना छाता था, जो बारिश से बचाने के लिए थोड़ा-सा तना हुआ था। वह लगभग ६५ साल का था – चेहरा भयानक और बदसूरत, झुर्रियों से भरा, आँखें गहरी धंसी हुईं, दाँत पीले और टूटे हुए। उसके होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी, जो देखने वालों को असहज कर दे। सौम्या ने उसे देखते ही पीछे हट गई, उसका चेहरा पीला पड़ गया। 'राजेश जी...' वह फुसफुसाई, डर से काँपते हुए।
बूढ़े ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, खासकर सौम्या पर उसकी नज़र ठहर गई। फिर वह रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोला, 'क्या हुआ साहब, यहाँ क्या करने आ गये हो? रात के इस पहर में?'
राजेश ने आगे बढ़कर कहा, 'साहब, हमारी कार खराब हो गई है। टायर पंक्चर हो गया रास्ते में, और बारिश इतनी तेज़ है कि कुछ कर नहीं पा रहे। कृपया, रात के लिए थोड़ा आश्रय दे दीजिए। सुबह ही चले जाएँगे।'
बूढ़े ने फिर सौम्या की ओर देखा, इस बार उसकी मुस्कान में एक बुरी चमक थी – जैसे कोई शिकारी शिकार को देख रहा हो। 'अरे साहब, आइए ना। इतनी तेज़ बारिश में बहुत अच्छा किया जो यहाँ आ गये। अंदर आ जाइए, मैं ही तो यहाँ अकेला रहता हूँ। कोई बात नहीं, रुक जाइए।' उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी मिठास थी, लेकिन आँखों में कुछ और ही छिपा था। राजेश ने सौम्या को इशारा किया, और दोनों अनिच्छा से उसके पीछे-पीछे अंदर दाखिल हो गए। बंगला का अंदर का माहौल और भी रहस्यमयी था – ठंडी हवा, पुरानी महक, और कहीं से हल्की-सी चरमराहट। रात अब और भी अनिश्चित लग रही थी।
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बूढ़ा आदमी ने दरवाज़ा पूरी तरह खोल दिया और उन्हें अंदर आने का इशारा किया। 'आइए, आइए साहब। मेरा नाम मनोहर है। मैं ही यहाँ का चौकीदार हूँ। चलिए, अंदर चलें, बारिश से बचिए।' उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी मिठास थी, लेकिन आँखें सौम्या पर टिकी हुई थीं। राजेश ने सौम्या का हाथ थामा और मनोहर के पीछे-पीछे अंदर दाखिल हो गए। सौम्या अभी भी डरी हुई लग रही थी, लेकिन बारिश की ठंडक में अंदर का सूखा स्थान कुछ राहत दे रहा था।
मनोहर ने उन्हें एक पुराने हॉल में ले जाया, जहाँ दीवारें ऊँची-ऊँची थीं और पुरानी पेंटिंग्स लटकी हुई थीं। अंदर अंधेरा था, लेकिन कुछ मोमबत्तियाँ जल रही थीं – उनकी लौ हल्की-हल्की काँप रही थी, जो छत पर लगे पुराने झूमरों को रोशन कर रही थीं। सौम्या ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। बंगले का इंटीरियर बहुत खूबसूरत था – नक्काशीदार लकड़ी के फर्नीचर, मखमली पर्दे जो धूल से ढके थे, और फर्श पर पुरानी टाइलें जो चमक रही थीं। अंधेरे में भी यह जगह राजसी लग रही थी, जैसे कोई पुराना महल हो। 'वाह, यह जगह तो कितनी सुंदर है,' सौम्या ने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अभी भी हल्की घबराहट थी।
मनोहर ने उन्हें एक पुराने सोफे पर बिठाया और पास में खड़े हो गया। वह राजेश और सौम्या को देखकर मुस्कुरा रहा था। 'अरे वाह, क्या जोड़ी है आप दोनों की! साहब, आपकी पत्नी तो बहुत सुंदर हैं। इतने सालों बाद ऐसी जोड़ी देखी।' उसकी नज़रें सौम्या पर ठहर गईं। सौम्या पूरी तरह भीगी हुई थी – उसकी साड़ी शरीर से चिपक गई थी, जिससे उसकी पतली कमर और नाभि साफ़ दिख रही थी। उसके छोटे-छोटे होंठ चमकदार और रसीले लग रहे थे, जैसे कोई मीठा फल। लंबे रेशमी बाल गालों और गर्दन पर चिपक गए थे, जो उसे और भी आकर्षक बना रहे थे। मनोहर की आँखें चमक रही थीं – एक भूखी चमक, लेकिन राजेश को इसका कुछ पता नहीं चला। वह थकान से सोफे पर लेटा हुआ था।
राजेश ने मनोहर की ओर देखा और पूछा, 'मनोहर जी, यह बंगला कितना पुराना लगता है। आप यहाँ कैसे रहते हैं?'
मनोहर ने हँसते हुए कहा, 'हाँ साहब, यह बंगला बहुत पुराना है। ब्रिटिश ज़माने का। मैं यहाँ का चौकीदार हूँ। पंद्रह साल से बंद पड़ा है – मालिक कहीं चले गये, कोई नहीं आता। बस मैं ही अकेला रहता हूँ। रातें तो कट जाती हैं, लेकिन आज आप लोगों के आने से अच्छा लगा। चाय पिलाऊँ? या कुछ और चाहिए?' उसकी नज़र फिर सौम्या पर गई, लेकिन राजेश ने कुछ नोटिस नहीं किया। सौम्या ने शर्म से नज़रें झुका लीं, मन में एक अजीब-सी बेचैनी फैल रही थी। बंगले का माहौल अब और भी रहस्यमयी हो गया था, मोमबत्तियों की लौ में छायाएँ नाच रही थीं।
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सौम्या राजेश के पीछे-पीछे चल रही थी, लेकिन अचानक उसे लगा जैसे कोई उसे पुकार रहा हो। 'सौम्या...' एक धीमी, फुसफुसाती आवाज़ उसके कान में गूँजी। वह चौंककर पीछे मुड़ी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। सिर्फ़ अंधेरी गलियारा था, जहाँ मोमबत्तियों की लौ से छायाएँ दीवारों पर नाच रही थीं। सौम्या का दिल धड़कने लगा। वह भ्रमित हो गई, चारों ओर देखा – न राजेश दिखा, न मनोहर। सामने भी खालीपन था, जैसे समय रुक गया हो। बंगले की पुरानी दीवारें साँस ले रही लगीं, हवा में एक ठंडी सिहरन दौड़ गई।
तभी, उसके कंधे पर एक हल्का स्पर्श महसूस हुआ। सौम्या का शरीर सिहर उठा। वह तेज़ी से घूमी, और सामने राजेश खड़ा था, मनोहर उसके बगल में। राजेश ने चिंतित स्वर में पूछा, 'सौम्या, तुम यहाँ क्यों रुक गईं? सब ठीक तो हो ना?' मनोहर की आँखें फिर से चमक रही थीं, लेकिन उसकी मुस्कान रहस्यमयी बनी हुई थी।
सौम्या ने कुछ नहीं कहा। उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी। वास्तव में, उसे रास्ता भूल गया था – वह समझ ही नहीं पा रही थी कि वह कहाँ पहुँच गई है। बंगले के ये गलियारे जैसे भूलभुलैया बन गए थे, और वह सोच रही थी कि क्या वह यहीं से शुरू हुई थी? वह राजेश से पूछना चाहती थी, 'मैं कहाँ खो गई? यह जगह इतनी अजीब क्यों लग रही है?' लेकिन शब्द गले में अटक गए। वह चुप रही, सिर्फ़ हल्के से सिर हिला दिया। मनोहर ने कुछ नोटिस किया, लेकिन कुछ कहा नहीं – बस आगे बढ़ गया।
मनोहर ने एक भारी, पुराना दरवाज़ा खोला, जो बंगले के सबसे अंदरूनी हिस्से में था। दरवाज़ा खुलते ही एक ठंडी हवा का झोंका आया, जैसे कोई पुरानी साँस बाहर निकली हो। कमरा पूरी तरह अंधेरा था – सिर्फ़ धूल भरी हवा में तैरती हुई सन्नाटा। मनोहर ने हाथ में मोमबत्ती का दीया लिया और अंदर कदम रखा। 'आइए साहब, यहाँ रुकिए। मैं रोशनी जलाता हूँ। यह कमरा पुराना है, लेकिन सुरक्षित।' उसकी आवाज़ गूँज रही थी, जैसे दीवारें उसे दोहरा रही हों।
राजेश ने सौम्या का हाथ पकड़ा और मनोहर के पीछे कमरे में दाखिल हो गए। सौम्या को कुछ अजीब सा लग रहा था – जैसे कोई अदृश्य नज़रें उसे घूर रही हों, या कमरे की हवा में कोई रहस्य छिपा हो। मोमबत्तियाँ जलने लगीं, और कमरे का माहौल उजागर हुआ: पुराने फर्नीचर, टूटी तस्वीरें, और एक अजीब-सी शांति। सौम्या ने कुछ कहना चाहा, लेकिन फिर चुप हो गई। बंगला अब और भी रहस्यमयी लग रहा था, जहाँ हर कोना कोई अनकही कहानी छिपाए हुए था।
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03-11-2025, 04:50 PM
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वाह!क्या शानदार शुरुआत है। यह तो वक्त ही बताएगा इश (भूत) बंगला ने कौन से, कौन से राज अपने अंदर छुपा के रखा है।
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सौम्या ने कमरे को गौर से देखा। यह कमरा बहुत विशाल था, जैसे किसी राजसी महल का हिस्सा हो। बीच में एक भव्य राजसी बिस्तर खड़ा था, जिसके चारों ओर टूटे-फूटे फर्नीचर बिखरे पड़े थे – पुरानी लकड़ी की अलमारियां, जिनकी पेंटिंगें उखड़ चुकी थीं, और कुर्सियां जो समय की मार से झुक गईं लग रही थीं। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी हुईं, काली-सफेद फोटो जो धुंधली हो चुकी थीं, उनमें अज्ञात चेहरे मुस्कुरा रहे थे, लेकिन उनकी आंखें जैसे आज भी जीवित थीं, कमरे को घूर रही हों। कमरे का इंटीरियर खूबसूरत था, नक्काशीदार दीवारें जो कभी चमकती होंगी, अब धूल और नमी से ढकी हुईं। एक बड़ा सा आईना कोने में खड़ा था, जिसका फ्रेम सोने का लगता था, लेकिन किनारों पर जंग लगी हुई। आईने की सतह पर धुंध की परत थी, जैसे कोई छाया उसमें कैद हो।
कमरा इतना शांत था कि उनकी सांसों की आवाज भी पूरे कमरे में गूंज रही थी – हल्की, लयबद्ध, लेकिन डरावनी। हर सांस जैसे दीवारों से टकराकर वापस लौट आती, और सौम्या को लगता था कि कोई और भी सांस ले रहा है, छिपकर। हवा में नमी की गंध फैली हुई थी, सड़ती लकड़ी और पुरानी किताबों जैसी, जो सौम्या के नथुनों को चुभ रही थी। खिड़कियां लकड़ी और कांच की बनीं, मोटी परदों से ढकी हुईं, जो बारिश की बूंदों को बाहर रख रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक को बढ़ा रही थीं। परदे हल्के से हिल रहे थे, जैसे कोई हवा का झोंका आ रहा हो, लेकिन दरवाजा बंद था।
सौम्या को एक अजीब, अनजान गंध महसूस हो रही थी – न मिट्टी जैसी, न फूलों जैसी, बल्कि कुछ पुराना, मादक, जो उसके शरीर में घुल रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या है, लेकिन यह उसके मन को भटका रहा था, एक अजीब सी उत्तेजना पैदा कर रहा था। उसके गीले कपड़ों से चिपके शरीर पर ठंड लग रही थी, लेकिन अंदर से गर्मी फैल रही थी। वह राजेश के पास खड़ी रही, लेकिन उसकी नजरें कमरे की हर चीज पर ठहर रही थीं, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।
राजेश, जो थकान भूल चुका था, कमरे की खूबसूरती की तारीफ करने लगा। 'वाह, मनोहर जी, यह बंगला तो कमाल का है! देखो, यह बिस्तर कितना राजसी है, और ये तस्वीरें... लगता है कोई पुरानी हवेली है। इंटीरियर इतना सुंदर, जैसे समय रुक गया हो।' उसकी आवाज उत्साहित थी, लेकिन सौम्या को लग रहा था कि उसकी तारीफें खोखली हैं, कमरे की सच्चाई को छिपा रही हैं।
मनोहर, वह बूढ़ा वॉचमैन, राजेश की बातों का जवाब दे रहा था, लेकिन उसकी आंखें सौम्या पर टिकी हुईं। 'हां, साहब, यह बंगला पुराना है, लेकिन इसकी खूबसूरती कभी कम नहीं हुई। ये दीवारें कहानियां सुनाती हैं, रातों की... गुप्त रातों की।' उसकी आवाज गहरी थी, रहस्यमयी, जैसे शब्दों के पीछे कोई छिपा संकेत हो। लेकिन जब वह बोलता, तो चुपके से सौम्या के शरीर को देखता – उसके गीले ब्लाउज से उभरे स्तनों को, साड़ी के नीचे लहराते कूल्हों को, और उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान तैर जाती। वह मुस्कान ठंडी थी, भूखी, जैसे वह सौम्या को निगल जाना चाहता हो। सौम्या ने महसूस किया, उसके गाल लाल हो गए, लेकिन वह नजरें नहीं हटा पाई। मनोहर की नजरें उसके शरीर पर घूम रही थीं, जैसे कपड़ों को भेद रही हों, उसके नंगे शरीर को तलाश रही हों।
कमरे की शांति में, सौम्या को फिर वही आवाज सुनाई दी – हल्की, फुसफुसाहट जैसी, 'सौम्या... आओ... यह गंध... तुम्हारी है...' वह ठिठकी, चारों ओर देखा। राजेश और मनोहर बातों में मग्न थे, लेकिन मनोहर की मुस्कान चौड़ी हो गई, जैसे वह जानता हो। सौम्या का दिल तेज धड़कने लगा, उसकी चूत में एक हल्की सी गुदगुदी महसूस हुई, अनजान गंध के साथ। कमरा अब और रहस्यमयी लग रहा था, जैसे दीवारें सांस ले रही हों, और आईने में कोई परछाईं हिल रही हो। मनोहर ने कहा, 'आराम करो, रात लंबी है। यहां की रातें... बदल देती हैं।' उसकी आंखें सौम्या से नहीं हटीं, और वह शैतानी मुस्कान उसके होंठों पर ठहर गई।
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Bhoot bangle m chudai… Bahut sahi!!!
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Ishe finish kroge na ? Pehle isko nipta lo with reg updates
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मनोहर ने राजेश की ओर देखा, उसकी आंखों में एक चमक थी जो मोमबत्ती की लौ से और गहरी लग रही थी। 'साहब, ये गीले कपड़े बदल लो,' उसने गहरी, खरखराती आवाज में कहा, जैसे शब्द हवा में लटक जाएं। 'बारिश ने तो भिगो ही दिया है, बीमारी न हो जाए।' कमरे की नमी भरी हवा में उसकी बात गूंजी, और सौम्या को लगा जैसे दीवारें सुन रही हों, इंतजार कर रही हों अगले पल का।
राजेश ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, 'नहीं मनोहर जी, हमारे पास कोई सूखे कपड़े नहीं हैं। हम तो बस रास्ते में रुक गए थे, कुछ सोचा भी नहीं था।' उसकी आवाज थकी हुई थी, लेकिन कृतज्ञता से भरी। वह सौम्या की ओर देखा, जो खिड़की के पास खड़ी थी, परदे को हल्के से छू रही थी, जैसे बाहर की बारिश को महसूस कर रही हो।
मनोहर की होंठों पर मुस्कान फैल गई – ठंडी, रहस्यमयी, जैसे कोई पुराना राज खुलने वाला हो। 'चिंता मत करो साहब,' उसने कहा, और उसकी आंखें सौम्या पर ठहर गईं, उसके गीले साड़ी से चिपके शरीर को स्कैन करती हुईं। 'मेरे पास बहुत सारे कपड़े हैं। पुराने मालिकों के, अच्छे-अच्छे। मैं अभी लाता हूं।' वह हंस पड़ा, लेकिन हंसी में कोई खुशी नहीं थी, बल्कि एक गहरा, दबी हुई ध्वनि जो कमरे की शांति को चीर गई। सौम्या को लगा जैसे वह हंसी उसके कानों में घुस रही हो, उसके मन को छू रही हो।
राजेश ने राहत की सांस ली। 'धन्यवाद मनोहर जी, आपने बहुत उपकार किया।' वह जेब से दो हजार रुपये निकालकर मनोहर की ओर बढ़ाया, नोटों की सरसराहट कमरे में फैल गई। लेकिन मनोहर ने हाथ पीछे खींच लिया, उसकी उंगलियां कांप रही थीं – उत्तेजना से या ठंड से, सौम्या समझ नहीं पाई। 'नहीं साहब, पैसे नहीं लूंगा,' उसने दृढ़ता से कहा, लेकिन आंखें सौम्या पर टिके हुए। 'तुम मेहमान हो। और...' वह रुका, सौम्या को घूरते हुए, '...इसे देखकर तो मेरा फर्ज है कि मैं स्वागत करूं, और संतुष्ट करूं। पूरी तरह।' शब्दों में एक छिपी धमकी थी, एक वादा जो हवा में तैर गया। फिर वह जोर से हंस पड़ा, उसके पीले दांत चमक उठे – सड़े हुए, लेकिन भूखे लगने वाले, जैसे कोई जानवर दहा रहा हो। हंसी दीवारों से टकराई, वापस लौटी, और सौम्या के शरीर में कंपकंपी दौड़ा दी।
सौम्या को अजीब लगा, उसके गाल गर्म हो गए। मनोहर की नजरें उसके स्तनों पर ठहर गईं, जहां ब्लाउज गीला होकर चिपक गया था, निप्पल्स की रूपरेखा साफ दिख रही थी। वह असहज होकर नजरें हटा लीं, ध्यान परदे की ओर मोड़ लिया। बाहर बारिश की बूंदें तेज हो रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक उसके शरीर को जकड़ रही थी। वह सोच रही थी, यह जगह क्यों इतनी अजीब लग रही है? मनोहर की हंसी अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, और कमरे की नमी भरी गंध अब और तीखी हो गई लग रही थी – जैसे कोई पुराना इत्र, मादक, जो उसके मन को भटका रहा हो। राजेश कुछ कहने लगा, लेकिन सौम्या की नजर आईने पर चली गई, जहां एक धुंधली परछाईं हिल रही थी। क्या वह उसकी अपनी? या कुछ और? मनोहर दरवाजे की ओर बढ़ा, लेकिन जाते-जाते फिर सौम्या को देखा, मुस्कान उसके चेहरे पर ठहर गई। रात अभी शुरू हुई थी, और रहस्य गहरा हो रहा था।
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मनोहर के जाने के बाद कमरा मोमबत्तियों की लौ और चरमराती आग की रोशनी से भर गया था। दीवारों पर नाचती परछाइयां जैसे जीवित हो उठीं, हर कोने से एक रहस्यमयी छाया उभर रही थी। सौम्या ने राजेश की ओर मुड़कर कहा, उसकी आवाज कांप रही थी, 'राजेश, क्या तुम्हें नहीं लगता ये जगह भूतिया vibes दे रही है? सब कुछ इतना भयानक लग रहा है... और ये मनोहर, कितना डरावना है। शायद कोई खतरनाक कातिल हो, जो अकेला इसी भूत बंगले में रहता हो?' उसके शब्द हवा में लटक गए, और मोमबत्ती की लौ ने उसके चेहरे पर एक डरावनी चमक डाल दी। उसके गीले कपड़े अभी भी उसके कर्वी बॉडी से चिपके हुए थे, साड़ी के नीचे उसके भरे-भरे स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे, सांसों की गति से। वह राजेश के करीब आ गई, उसकी आंखों में चिंता और एक अजीब सी उत्तेजना मिश्रित थी।
राजेश जोर से हंस पड़ा, उसकी हंसी कमरे की शांति को चीर गई। 'अरे सौम्या, तुम कितनी नादान हो!' उसने कहा, और उसके हाथ सौम्या के कंधे पर रख दिए, हल्के से मालिश करते हुए। 'हमें तो बस रात काटनी है यहां। मनोहर अच्छा आदमी है, उसने हमें रहने दिया, पैसे भी नहीं लिए। क्या डरने की बात है?' वह मुस्कुराया, लेकिन उसकी आंखों में एक शरारत भरी चमक थी। सौम्या का शरीर उसके स्पर्श से गर्म हो गया, उसके निप्पल्स ब्लाउज के नीचे सख्त हो रहे थे, बारिश की ठंडक और राजेश की गर्मी के बीच फंसे हुए।
सौम्या ने सिर हिला दिया, उसकी आंखें कमरे के कोनों में घूम रही थीं। 'लेकिन राजेश, मुझे यहां आने के बाद बहुत बुरा लग रहा है। ये गंध... ये शांति... सब कुछ गलत लगता है।' उसकी आवाज धीमी हो गई, और वह राजेश के सीने से लग गई, उसके दिल की धड़कन महसूस करते हुए। उसके कूल्हे राजेश के शरीर से रगड़ खा रहे थे, अनजाने में, लेकिन एक मीठी सी सनसनी पैदा कर रहे थे। बाहर बारिश की आवाज तेज हो रही थी, जैसे कोई रहस्य खुलने का इंतजार कर रहा हो।
राजेश ने मुस्कुराते हुए उसे और करीब खींच लिया, उसके होंठ सौम्या के कान के पास आ गए। 'चिंता मत करो मेरी जान,' उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी सांस गर्म और उत्तेजक। 'मैं बेड पर तुम्हारा मूड बना दूंगा। इतना जोर से चिल्लाओगी कि सारे भूत भाग जाएंगे, तुम्हारी कराहों को सुनकर।' उसके शब्दों में एक कामुक लय थी, और उसका हाथ सौम्या की कमर पर सरक गया, हल्के से दबाते हुए। सौम्या के चेहरे पर लाली छा गई, उसके गाल गर्म हो गए, और उसके शरीर में एक मीठी सी कंपकंपी दौड़ गई। वह राजेश की छाती पर हल्का सा मुक्का मारते हुए बोली, 'बदमाश! ऐसे कैसे कह देते हो?' लेकिन उसकी आंखों में शरम के साथ-साथ एक इच्छा भी झलक रही थी, जैसे मनोहर की अनुपस्थिति में यह पल और गहरा हो रहा हो। राजेश ने उसे चूमने की कोशिश की, लेकिन सौम्या हंसते हुए पीछे हट गई, फिर भी उसके शरीर की गर्मी कमरे की ठंडक को भूलाने लगी थी। मोमबत्तियों की लौें नाच रही थीं, जैसे उनकी उत्तेजना को देख रही हों, और बंगले का रहस्य अभी भी हवा में तैर रहा था।
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05-11-2025, 11:40 PM
(This post was last modified: 05-11-2025, 11:40 PM by AzaxPost. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
I HOPE YOU ALL GUYS ARE ENJOYING THIS STORY , COMMENT ME WHAT KIND OF CHANGES OR FUTURE PLOT YOU WANT TO READ. DON'T FORGET TO READ MY OTHER STORIES TOO. #Peace
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(05-11-2025, 11:40 PM)AzaxPost Wrote: I HOPE YOU ALL GUYS ARE ENJOYING THIS STORY , COMMENT ME WHAT KIND OF CHANGES OR FUTURE PLOT YOU WANT TO READ. DON'T FORGET TO READ MY OTHER STORIES TOO. #Peace
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Beautiful update. I liked how u described the atmosphere of this Bhoot Bangla. Yeh raat jitna asani se kat jayegi lagta wesa lag nahi raha…
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Mast story dear.
Pls post more update.
Eagerly waiting.
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राजेश ने सौम्या को कसकर गले लगा लिया, उसके मजबूत बाहुबंध उसके कर्वी शरीर को अपनी ओर खींचते हुए। सौम्या की साड़ी अभी भी गीली थी, जो उसके भरे-भरे स्तनों से चिपकी हुई थी, और राजेश की छाती से सटते ही उसके निप्पल्स सख्त हो गए, एक मीठी सी सनसनी उसके पूरे शरीर में फैल गई। वह भी राजेश को गले लगाए हुए थी, उसके हाथ राजेश की पीठ पर सरक रहे थे, लेकिन अचानक उसे लगा जैसे कोई खिड़की से उसे घूर रहा हो। एक भारी सांस की आवाज़ उसके कानों में गूंजी, गर्म और करीब, जैसे कोई छिपा हुआ प्रहरी उसकी नंगी त्वचा को निगल रहा हो। सौम्या का दिल जोर से धड़का, उसके कूल्हे राजेश के शरीर से रगड़ खाते हुए, लेकिन वह डर से सिहर उठी। उसने झटके से सिर घुमाया, खिड़की की ओर देखा—परदे हल्के से लहरा रहे थे, बारिश की बूंदें कांच पर टपक रही थीं, लेकिन कोई नहीं था। सिर्फ अंधेरा और कोहरा। 'शायद मेरा वहम है,' उसने सोचा, लेकिन उसकी त्वचा पर अब भी वह नजरों का एहसास बना रहा, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके गले की नसों को सहला रहा हो। मोमबत्तियों की लौें नाच रही थीं, परछाइयों को जीवित कर रही थीं, और कमरे की पुरानी गंध अब और गहरी हो गई थी, मादक और उत्तेजक।
वे दोनों अभी भी एक-दूसरे से चिपके हुए थे, राजेश का हाथ सौम्या की कमर पर सरक गया, हल्के से दबाते हुए उसके नरम मांस को महसूस कर रहा था। सौम्या की सांसें तेज हो गईं, उसके होंठ राजेश के कंधे पर रुक गए, एक हल्की सी चुम्बन की कोशिश में, लेकिन तभी बाहर से मनोहर की भारी आवाज़ गूंजी, जैसे कोई पुरानी दीवार से निकल आई हो। 'मैं आपके कपड़े लाया हूं, साहब,' मनोहर ने कहा, दरवाजा खोलते हुए अंदर कदम रखा। उसकी आंखें फिर से सौम्या पर टिक गईं, भूखी और चमकदार, जैसे मोमबत्ती की रोशनी में कोई जंगली जानवर। वह एक पुराने लकड़ी के बॉक्स से निकले कपड़ों का बंडल लिए हुए था, जो राजेश की ओर बढ़ाया।
कपड़े पुराने ज़माने के थे, लेकिन राजसी वैभव से भरे—रेशम के बने, चमकदार और महंगे, जैसे सदियों से बंद पेटियों से निकले हों। उनमें एक पुरानी, मिट्टी भरी गंध थी, जो हवा में फैल गई, सौम्या को फिर से अजीब सी उत्तेजना दे रही थी। राजेश ने बंडल लिया, कपड़ों को छुआ, और आश्चर्य से बोला, 'वाह मनोहर, ये तो कमाल के हैं! इतने सुंदर और राजसी... तुम्हारी पसंद तो गज़ब की है। धन्यवाद!' उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन सौम्या अभी भी खिड़की की ओर देख रही थी, उसके शरीर में राजेश की गर्मी और उस अदृश्य नजर का मिश्रण एक तनावपूर्ण उत्तेजना पैदा कर रहा था।
मनोहर ने पीले दांतों के साथ हंसते हुए कहा, उसकी हंसी कमरे की शांति को चीर गई, जैसे कोई पुराना रहस्य खुल रहा हो। 'ये मेरे कपड़े नहीं हैं, साहब। ये तो इस बंगले के मालिक के हैं... नवाब दानिश अली शाह के।'
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Lovely update but thoda aur bada mil jata toh maja hi aajaye…
bengle ke andar ka jaisa mahol h rahasya s bhara, anadr ki hawa jse madak aur uttejit… mjhe pura yakeen h is bangle k malik bade hi ayyash kisam k admi h
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08-11-2025, 03:21 PM
(This post was last modified: 08-11-2025, 03:21 PM by AzaxPost. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
राजेश के चेहरे पर आश्चर्य की लाली छा गई, उसके होंठ कांपते हुए बोले, 'नवाब? मतलब असली नवाब?' उसकी आंखें कपड़ों पर टिकी रहीं, रेशम की चमक में पुरानी शान झलक रही थी, जैसे कोई खोया हुआ साम्राज्य जाग उठा हो। मनोहर ने सिर हिलाया, उसकी हंसी गूंजी—भारी, गहरी, जैसे कमरे की दीवारों से टकरा रही हो। उसके पीले दांत चमके, और वह बोला, 'हां साहब, सोच रहे हो ना कि मैं झूठ बोल रहा हूं?' राजेश ने झटके से सिर हिलाया, 'नहीं-नहीं, लेकिन यकीन नहीं हो रहा कि ये कपड़े किसी नवाब के होंगे... पर इस बंगले को देखो, इन कपड़ों को... हां, ये तो निश्चित रूप से नवाब के ही लगते हैं।' उसकी उंगलियां रेशम पर सरक रही थीं, नरम और ठंडी, लेकिन सौम्या का मन अब भी खिड़की की उस अदृश्य नजर पर अटका था, उसके शरीर में एक अजीब सी गुदगुदी दौड़ रही थी, जैसे कोई छिपी हुई सांस उसके गले को सहला रही हो।
सौम्या ने गीली साड़ी को समेटा, उसके स्तन अभी भी भारी और नम थे, राजेश की गर्मी से सटे हुए। वह बोली, आवाज़ में हल्का कंपन, 'मुझे शौचालय का रास्ता बताओ, कपड़े बदलने हैं।' मनोहर की नजरें तुरंत उस पर टिक गईं—ऊपर से नीचे तक, उसके कर्वी कूल्हों पर रुकते हुए, उसके होंठों पर एक शैतानी मुस्कान फैल गई। 'आइए, मैं दिखाता हूं आपको,' उसने कहा, आवाज़ में एक मोटी, भूखी लालसा घुली हुई। सौम्या के शरीर में एक झुरझुरी दौड़ी, उसके निप्पल्स साड़ी के नीचे सख्त हो गए, एक मीठी सी सनसनी उसके पेट तक उतर आई, डर और उत्तेजना का मिश्रण। वह पीछे हटी, 'नहीं, रास्ता बता दो, मैं खुद चली जाऊंगी।' लेकिन राजेश ने सिर हिलाया, अपनी शर्ट उतारते हुए, उसके चौड़े सीने पर पानी की बूंदें चमक रही थीं। 'नहीं सौम्या, मनोहर काका रास्ता जानते हैं। बंगला इतना अंधेरा है, उनके साथ चलो।' वह मुस्कुराया, लेकिन सौम्या का दिल धड़क रहा था, उसके जांघों के बीच एक गर्माहट फैल रही थी, अनचाही लेकिन तीव्र।
मनोहर ने फिर मुस्कुराया, उसकी आंखें सौम्या के चेहरे पर रुकीं, जैसे कोई शिकारी शिकार को नाप रहा हो। वह मशाल उठाई—लाल-भरी लौ नाच रही थी, परछाइयों को जीवित कर रही थी—और कमरे से बाहर निकल गया। सौम्या ने राजेश की ओर देखा, लेकिन वह पहले ही कपड़े बदलने में व्यस्त था। डरते-डरते वह मनोहर के पीछे चली, उसके कदम हल्के लेकिन भारी लग रहे थे, साड़ी की फिसलन उसके पैरों को रगड़ रही थी। गलियारा खुला, सुंदर लेकिन अंधेरे में खतरनाक—उच्च छतें, नक्काशीदार दीवारें जो मोमबत्ती की रोशनी में राक्षसी आकृतियां बना रही थीं, पुरानी पेंटिंग्स जो आंखें झपकाती प्रतीत हो रही थीं। हवा में नमी भरी गंध थी, पुरानी और मादक, सौम्या की नाक में घुस रही थी, उसके मन को भटकाती हुई। हर कदम पर लकड़ी की खटखट गूंज रही थी, जैसे कोई पीछा कर रहा हो।
मनोहर ने पीछे मुड़कर देखा, उसकी आवाज़ गलियारे में फैली, 'मेरी पत्नी भी ऐसी ही सेक्सी थी जैसी आप हैं, साहिबा। हम यहां खुशी से प्यार करते थे... रातें भर उसके साथ लिपटे रहते, उसके नरम शरीर को सहलाते।' सौम्या का चेहरा लाल हो गया, उसके शरीर में एक झटका लगा, कल्पना में मनोहर की मोटी उंगलियां उसके कूल्हों पर सरक रही थीं। वह बोली, आवाज़ दबी हुई, 'ओके।' लेकिन मनोहर रुका नहीं, आगे बढ़ता रहा, मशाल की लौ उसके चेहरे को और भयानक बना रही थी। अचानक फिर वही आवाज़—एक रहस्यमय फुसफुसाहट, 'आओ... आओ...' और वह गंध, भारी और उत्तेजक, सौम्या के फेफड़ों में भर गई। वह सिर घुमाई, पीछे देखा—अंधेरा, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, गलियारे के मोड़ जहां से सब कुछ भूल गई थी। 'रास्ता... मैं भूल गई,' उसने सोचा, लेकिन मनोहर अभी भी आगे जा रहा था, उसकी पीठ चौड़ी और मजबूत, जैसे कोई पुराना राक्षस। सौम्या का दिल तेज धड़क रहा था, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे, डर से पसीना बह रहा था जो साड़ी को और चिपका रहा था, उसके शरीर की हर वक्र को उभारते हुए। वह तेज कदमों से उसके पीछे भागी, लेकिन गंध अब और गहरी हो गई थी, जैसे कोई अदृश्य मुंह उसके कान में सांस ले रहा हो।
सौम्या के पैर तेज़ी से दौड़ रहे थे, गलियारे की ठंडी लकड़ी पर खटखट की आवाज़ गूंज रही थी, जैसे कोई भागता हुआ जानवर। मनोहर ने पीछे मुड़कर देखा, उसकी हंसी फूट पड़ी—भारी, गूंजती हुई, दीवारों से टकराकर लौट आई। 'हा हा, फिर भटक गईं ना साहिबा?' उसने कहा, चेहरे पर एक शरारती स्मर्क फैलाते हुए, आंखें चमक रही थीं मशाल की लौ में। सौम्या का चेहरा लाल हो गया, वह रुकी, सांसें तेज़ चल रही थीं, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे गीली साड़ी के नीचे, निप्पल्स सख्त और उभरे हुए। 'नहीं... नहीं भटकी,' उसने झूठ बोला, आवाज़ कांपती हुई, लेकिन उसकी आंखें डर से भरी थीं, और शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना दौड़ रही थी, जैसे मनोहर की नजरें उसके त्वचा को चूम रही हों।
मनोहर ने फिर हंसते हुए आगे बढ़ा, एक भारी लकड़ी का दरवाज़ा खोला—खट् की आवाज़ गूंजी, जैसे कोई पुराना रहस्य खुल रहा हो। अंदर का कमरा था, लेकिन ये कोई साधारण शौचालय नहीं—विशाल, राजसी, जैसे कोई महल का कोना। सौम्या उसके पीछे चली, मशाल की लौ से दीवारें चमक रही थीं, लेकिन अंधेरा इतना गहरा था कि सब कुछ धुंधला सा लग रहा था। फर्श पर सफेद संगमरमर चमक रहा था, लेकिन धूल और नमी से ढका हुआ, दीवारों पर नक्काशीदार फूल-पत्तियां, सोने की जड़ाई वाली टाइल्स जो कभी चमकती होंगी, अब छाया में छिपी हुईं। बीच में एक बड़ा सा कुंड था, पुराने जमाने का, जहां पानी की कलकल की कल्पना हो सकती थी, लेकिन अब सूखा और ठंडा। हवा में एक मीठी, पुरानी खुशबू थी—चंदन और गुलाब की, मिश्रित नमी से, जो सौम्या के नथुनों में घुस रही थी, उसके शरीर को गर्माहट दे रही थी। खिड़कियां ऊंची थीं, बारिश की बूंदें उन पर जोर-जोर से टकरा रही थीं, बाहर का तूफान गरज रहा था, बिजली की कड़क की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी, जैसे कोई देवता क्रोधित हो।
मनोहर ने दरवाज़ा बंद किया, लेकिन पूरी तरह नहीं, और बोला, 'ये बाथरूम नाज़िमा बेगम का निजी था, साहिबा।' उसकी आवाज़ गहरी थी, रहस्य से भरी। सौम्या ने सिर घुमाया, उसके बाल गीले लटक रहे थे, चेहरे पर पानी की बूंदें चमक रही थीं। 'नाज़िमा बेगम कौन?' उसने पूछा, उत्सुकता और डर मिश्रित। मनोहर ने मुस्कुराया, उसके पीले दांत चमके, आंखें सौम्या के चेहरे से नीचे सरक गईं—उसके गले, स्तनों, पेट तक। 'जल्दी पता चल जाएगा आपको,' उसने कहा, आवाज़ में एक शैतानी लालसा। फिर उसने मशाल एक तरफ की दीवार पर टिका दी, लौ नाचने लगी, परछाइयां दीवारों पर नाच रही थीं, जैसे कोई अदृश्य नर्तकी। 'अपने कपड़े बदल लीजिए,' उसने कहा, नजरें फिर सौम्या के शरीर पर टिक गईं—गीली साड़ी उसके कर्व्स को चिपकाए हुए, पेट पर चमकता हुआ पियर्स्ड नाभि, जो मशाल की रोशनी में चमक रहा था, जैसे कोई आमंत्रण। मनोहर ने होंठ चाटे, जीभ बाहर निकली, धीरे-धीरे, भूखे सांप की तरह, और फिर पलटा, बाहर निकलते हुए।
सौम्या का शरीर कांप उठा, उसके नाभि के चारों ओर एक गर्माहट फैल गई, जैसे मनोहर की नजरें वहां छू गई हों। उसके जांघों के बीच नमी बढ़ गई, डर और उत्तेजना का मिश्रण, स्तन भारी हो रहे थे, निप्पल्स साड़ी को रगड़ रहे थे। वह तेज़ी से दरवाज़ा बंद किया, कुंडी लगाई—खट् की आवाज़ में थोड़ी राहत मिली, लेकिन बाहर तूफान और भयानक हो गया था। बारिश की बौछारें खिड़कियों पर प्रहार कर रही थीं, जैसे कोई फौज हमला कर रही हो, बिजली कड़क रही थी—चमक की एक झलक कमरे को रोशन कर देती, फिर अंधेरा घना हो जाता, सौम्या का प्रतिबिंब पुराने आईने में उभरता, डरावना और आकर्षक। हवा में वो मादक गंध और घनी हो गई, सौम्या के फेफड़ों को भर रही, उसके मन को भटकाती, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके शरीर को सहला रहा हो। वह साड़ी खोलने लगी, लेकिन हाथ कांप रहे थे, त्वचा पर ठंडी हवा लग रही थी, लेकिन अंदर आग सुलग रही थी।
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