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 29-10-2025, 02:37 PM 
(This post was last modified: 30-10-2025, 01:31 PM by AzaxPost. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.) 
		BABA KALICHARAN  
बाबा कालिचरण, 49 वर्षीय, अपनी शादीशुदा भक्त आरती को, जो 31 साल की मां है एक बेटे की, उसके बेडरूम में जोरदार तरीके से चोद रहे थे। आरती का घर बाबा का भक्त परिवार था। दीवारों पर हर जगह बाबा की फोटो लगी हुई थीं, जो उनकी भक्ति को दर्शाती थीं। बाबा हमेशा पीछे के दरवाजे से आते थे, जब आरती की सास गायत्री घर पर नहीं होती। आज भी वही हुआ था। गायत्री मंदिर गई हुई थी, और बाबा चुपके से अंदर घुस आए थे।
 
आरती नंगी लेटी हुई थी, उसके शरीर पर तेल मला हुआ था, जो चमक रहा था। बाबा का मोटा लंड उसकी चूत में तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था। आरती की आंखें बंद थीं, मुंह से सिसकारियां निकल रही थीं। वह पूरी तरह से मजा ले रही थी और बाबा को उकसा रही थी।
 
"ओह बाबा... हां... और जोर से चोदो मुझे... आपका लंड तो कमाल का है... मेरी चूत को फाड़ दो..." आरती की आवाज कांप रही थी, उसके हाथ बाबा की पीठ पर नाखून चला रहे थे।
 
बाबा कालिचरण मुस्कुराते हुए उसके कानों में फुसफुसा रहे थे, उनकी आवाज गहरी और कामुक थी। "आरती रानी, तेरी चूत कितनी गर्म और गीली है... मैं तुझे रोज चोदूंगा... तू मेरी भक्त है, लेकिन बेड पर मेरी रंडी... ले, ले मेरा लंड पूरा अंदर..." वह और तेजी से धक्के मारने लगे, उनके पसीने से तरबतर शरीर आरती के तेल वाले बदन से रगड़ खा रहे थे। बाबा के हाथ आरती के स्तनों को मसल रहे थे, निप्पल्स को चुटकी काट रहे थे।
 
आरती के पैर बाबा की कमर पर लिपटे हुए थे, वह अपने कूल्हों को ऊपर उठा रही थी ताकि बाबा का लंड और गहराई तक जाए। "बाबा जी... मैं... मैं आने वाली हूं... आपकी भक्ति ने मुझे पागल बना दिया... चोदो... हां..." उसकी सांसें तेज हो गईं, चूत में सिकुड़न महसूस हो रही थी। वह चरम पर पहुंचने वाली थी, उसका शरीर कांप रहा था।
 
बाबा भी उत्तेजित थे, उनका लंड और सख्त हो गया था। "हां मेरी जान, झड़ जा... तेरी चूत का रस मेरे लंड पर बहा दे... मैं तुझे भर दूंगा अपने वीर्य से..." वे आरती के होंठों पर किस करते हुए कह रहे थे, जीभ अंदर डालकर चूस रहे थे। कमरे में केवल उनकी सिसकारियां और लंड-चूत की चाप-चाप की आवाज गूंज रही थी। बाबा की फोटो वाली दीवारें चुपचाप देख रही थीं इस पवित्र भक्ति के इस गुप्त रूप को।
 
अचानक, डोरबेल की आवाज बजी। डिंग-डॉंग! आरती की आंखें खुलीं, उसका दिल धक् से रह गया। वह घबराकर बाबा को धक्का दिया। "बाबा... रुको... कोई आया..." वह जल्दी से बिस्तर से उतरी, नंगी ही खिड़की की ओर दौड़ी। बाहर झांका तो देखा—उसकी सास गायत्री आ गई थीं। गायत्री, जो बाबा कालिचरण की बड़ी भक्त थीं, मंदिर से लौट रही थीं। उनके हाथ में पूजा का थैला था।
 
आरती का चेहरा सफेद पड़ गया। वह पैनिक में बाबा की ओर मुड़ी, जो अभी भी लंड बाहर निकालकर खड़े थे। "बाबा जी... मेरी सास आ गईं... छुप जाओ... जल्दी... मेरे कमरे में ही रहो... कहीं बाहर मत जाना..." उसकी आवाज फुसफुस में थी, हाथ कांप रहे थे। वह जल्दी से एक शॉल लपेट ली, तेल वाला शरीर अभी भी चिपचिपा था। बाबा ने जल्दी से अलमारी के पीछे छुपने की कोशिश की, लेकिन आरती ने उन्हें बिस्तर के नीचे इशारा किया। "यहां... छुपो... मैं संभाल लूंगी..."
	 
	
	
	
		
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		आरती ने जल्दी से अपनी मैक्सी ठीक की, लेकिन बिंदी और लिपस्टिक लगाना भूल गई। उसका चेहरा अभी भी लाल था, शरीर पर तेल की चमक और पसीना साफ दिख रहा था। अंदर से वह खुद को कोस रही थी—'क्या बेवकूफ हूं मैं, इतना सब कुछ भूल गई!' लेकिन बाहर से उसने एक नकली मीठी मुस्कान चिपका ली। डोरबेल फिर बजी, और वह दरवाजे की ओर बढ़ी। दिल की धड़कन तेज थी, लेकिन उसने दरवाजा खोला।
 गायत्री अंदर आईं, उनके चेहरे पर भी एक सौम्य मुस्कान थी। पूजा का थैला हाथ में लिए, वे बोलीं, 'आरती बेटी, मैं आ गई। मंदिर में इतना समय लग गया।' लेकिन जैसे ही उन्होंने आरती को गौर से देखा, उनकी भौंहें सिकुड़ गईं। 'अरे, तेरी बिंदी-लिपस्टिक कहां है? और ये मैक्सी क्या पहने हो? साड़ी क्यों नहीं पहनी? तू तो हमेशा घर में साड़ी ही पहनती है, संस्कारी बहू की तरह।'
 
 आरती का दिल बैठ गया। वह घबरा गई, हाथ-पैर फूल गए। 'म... मां जी, वो... मैं... बस, थोड़ा काम था... उफ्फ!' वह बहाना बनाने लगी, लेकिन दिमाग खाली हो गया। तभी, दरवाजे पर दस्तक हुई। आरती की पड़ोसन सुभद्रा अंदर आ गई—वह सेक्सी और करीबी दोस्त थी, हमेशा हंसमुख और चुलबुली। सुभद्रा ने सफेद साड़ी में एंट्री मारी, उसके कर्व्स साफ झलक रहे थे, और मुस्कुराते हुए बोली, 'अरे गायत्री जी, नमस्ते! मैं तो बस चाय पीने आ गई। आरती, तेरी चाय का इंतजार हो रहा है!' उसने विषय बदल दिया, जैसे जानबूझकर।
 
 आरती ने राहत की सांस ली और मन ही मन सुभद्रा को थैंक्यू कहा। 'हां सुभद्रा, तू बिठा ले मां जी को। मैं चाय बना रही हूं।' वह जल्दी से किचन की ओर भागी, लेकिन रुककर सुभद्रा को धीरे से बोली, 'थैंक्यू यार, तूने बचा लिया।'
 
 सुभद्रा ने गायत्री को सोफे पर बिठाते हुए, व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण अंदाज में आरती की तारीफ की। 'वाह गायत्री जी, क्या बहू है आपकी! इतनी संस्कारी, घर संभालती है, चाय बनाती है... बस, कभी-कभी थोड़ा रिलैक्स हो जाती है।' वह आंख मारते हुए मुस्कुराई, लेकिन गायत्री ने नोटिस नहीं किया। सुभद्रा की आवाज में एक छिपी हुई शरारत थी, जैसे वह आरती के राज को जानती हो।
 
 गायत्री ने फिर आरती की ओर देखा, जो किचन से चाय का सामान निकाल रही थी। 'आरती, तू क्या कर रही थी? इतनी घबराई हुई क्यों लग रही है?' उनकी नजर आरती के पसीने से तरबतर चेहरे और मैक्सी पर पड़ी, जो थोड़ी गीली लग रही थी।
 
 आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, 'मां जी, बस किचन में काम कर रही थी... फिर नहा ली। थोड़ा गर्मी लग रही है ना।' वह चाय उबालते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंदर से बाबा के बारे में सोच रही थी, जो अभी भी उसके कमरे में छुपे हुए थे। उसकी चूत अभी भी गीली थी, बाबा के लंड की याद से सिहरन हो रही थी।
 
 गायत्री हैरान हुईं। 'नहाई? लेकिन तू तो नहाने के बाद साड़ी पहनती है। और ये पसीना... लगता है तूने अभी काम किया है।' वे थोड़ा संदेह से देख रही थीं, लेकिन फिर अनदेखा कर दिया। 'चल, कोई बात नहीं। मैं थक गई हूं, नींद आ रही है।'
 
 गायत्री उठीं और अपने कमरे की ओर चली गईं। रास्ते में सुभद्रा को पुकारा, 'सुभद्रा बेटी, आ जा। गीता पढ़ दे मुझे, सोने से पहले। तू तो अच्छे से पढ़ती है।' सुभद्रा ने आरती की ओर एक रहस्यमयी मुस्कान दी, जैसे कह रही हो—'मैं सब जानती हूं'—और फिर स्मirk के साथ गायत्री के कमरे में चली गई। 'हां जी, आ रही हूं। गीता की चौपाइयां सुनाते हैं।' लेकिन अंदर से वह सोच रही थी, आरती के इस गुप्त खेल को।
 
 आरती किचन में खड़ी रही, सांस लेते हुए। बाबा अभी भी छुपे थे, और उसका शरीर अभी भी उत्तेजना से भरा था। चाय बनाते हुए वह सोच रही थी, कैसे सब संभालेगी।
 
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		सुभद्रा ने गायत्री के कमरे में प्रवेश किया, जहां गायत्री बिस्तर पर लेटी हुई थीं। कमरे में भगवान की तस्वीरें लगी थीं, और हवा में अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी। सुभद्रा ने गीता की किताब खोली और धीमी, मधुर आवाज में पढ़ना शुरू किया। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय एक... धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे...'
 लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक शरारती लय आ गई। कुछ पंक्तियों के बाद, वह रुक गई और मुस्कुराते हुए बोली, 'गायत्री जी, ये गीता तो सबको सिखाती है कि कर्तव्य निभाओ, लेकिन कभी-कभी तो आरती जैसी बहू को भी थोड़ा आराम मिलना चाहिए ना? इतनी संस्कारी है, घर संभालती है, लेकिन आज तो मैक्सी में घूम रही थी, बिंदी-लिपस्टिक भी नहीं लगाई। लगता है, कोई राज है!' सुभद्रा की आंखों में चमक थी, व्यंग्य से भरी हुई, जैसे वह जानती हो कि आरती का राज क्या है।
 
 गायत्री चौंक गईं, किताब से नजर हटाकर सुभद्रा को देखा। 'अरे सुभद्रा बेटी, तू क्या कह रही है? आरती तो हमारी लाड़ली बहू है, बाबा कालिचरण की इतनी भक्त है। लेकिन हां... आज कुछ अजीब लग रही थी। पसीना, मैक्सी... शायद गर्मी होगी।' वे थोड़ा हिचकिचाईं, लेकिन सुभद्रा के शब्दों से उनके मन में संदेह जागा। फिर भी, वे आंशिक रूप से सहमत हो गईं, 'हालांकि, तू सही कह रही है। कभी-कभी ये नई पीढ़ी थोड़ा आजाद हो जाती है। लेकिन हम तो परंपरा निभाते हैं।'
 
 सुभद्रा ने हंसते हुए किताब बंद की, 'जी हां, लेकिन आरती तो परफेक्ट है ना? किचन में काम, नहाना... और शायद कुछ और भी। कल्पना करो, अगर कोई गुप्त मिलन हो रहा हो!' वह फिर आंख मारी, लेकिन गायत्री ने हंस दिया, 'बस कर बेटी, गीता पढ़। लेकिन तूने सही कहा, थोड़ा रिलैक्स होना चाहिए।' कमरे में हल्की हंसी की लहर दौड़ी, लेकिन सुभद्रा के मन में आरती के राज की उत्सुकता बढ़ रही थी।
 
 दूसरी ओर, आरती चाय बनाकर रख चुकी थी। वह चुपके से अपने अंधेरे बेडरूम में दाखिल हुई। कमरा धुंधला था, पर्दे बंद, सिर्फ बाहर की रोशनी की हल्की झलक। उसका दिल अभी भी धड़क रहा था, बाबा की याद से चूत में सिहरन हो रही थी। 'बाबा, कहां हो तुम? सब संभल गया...' वह फुसफुसाई, लेकिन तभी दरवाजा पीछे से बंद हो गया। कोई हाथ ने उसकी आंखें ढक लीं—नरम लेकिन मजबूत। फिर, एक उंगली उसके नाभि पर दब गई, धीरे-धीरे घूमने लगी, तेल की चिकनाहट से फिसलते हुए।
 
 आरती चौंक गई, लेकिन उत्तेजना से सांस तेज हो गई। कान के पास गर्म सांस महसूस हुई, और फिर होंठ उसके कान की लौ पर चूमने लगे—हल्के, गुदगुदाते काट। 'श्श्श... चुप रहो मेरी भक्तिन,' एक गहरी, मर्दाना आवाज फुसफुसाई, जो बाबा की थी। 'तुम्हारी चूत अभी भी मेरे लंड की चाहत में गीली है ना? देखो, कैसे कांप रही हो।'
 
 आरती की सांसें उखड़ने लगीं। नाभि पर उंगली दबाव बढ़ा रही थी, नीचे की ओर सरकते हुए। 'ब... बाबा जी... आप... यहां से निकले कैसे? मां जी तो... उफ्फ!' वह कराह उठी जब होंठ ने कान में काटा, जीभ से चाटा। बाबा का शरीर उसके पीछे चिपक गया, उनका सख्त लंड उसकी गांड से सटकर रगड़ रहा था। 'चिंता मत करो, मेरी रंडी। मैंने इंतजार किया, अब तुम्हारी बारी। अपनी मैक्सी ऊपर करो, मैं तुम्हारी नाभि चाटूंगा... फिर नीचे जाऊंगा।' उनकी उंगली अब पेट पर घूम रही थी, धीरे-धीरे चूत की ओर बढ़ते हुए।
 
 आरती का शरीर पिघल रहा था, लेकिन बाहर से सुभद्रा और गायत्री की आवाजें आ रही थीं। क्या होगा अगर वे आ जाएं? उत्तेजना और डर से वह सिहर उठी, बाबा के स्पर्श में खोते हुए... लेकिन तभी, बाहर से कदमों की आहट सुनाई दी।
 
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		शाम का समय था, और बाबा कालिचरण आरती के कमरे से चुपके से बाहर निकले। उनके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान थी, क्योंकि उन्होंने अपनी भक्तिन आरती को घंटों तक चोदा था। आरती अब बेड पर नंगी लेटी हुई थी, सिर्फ एक पतली चादर से ढकी हुई। उसकी चूत अभी भी गीली थी, बाबा के वीर्य से भरी हुई, और उसके होंठों पर थकान की लाली बाकी थी। वह गहरी नींद में सो रही थी, उसके स्तनों की हल्की-हल्की सांसें चादर को ऊपर-नीचे कर रही थीं। बाबा ने दरवाजा धीरे से बंद किया और घर के पिछवाड़े की ओर बढ़े, जहां से वे गुप्त रूप से आते-जाते थे।
 बाहर, घर के पिछवाड़े में नौकरानी चंदनी झाड़ू लगा रही थी। वह एक 25 साल की जवान औरत थी, जिसके शरीर में कामुकता झलकती थी—उसकी साड़ी की ब्लाउज उसके उभरे हुए स्तनों को कसकर जकड़े हुए था, और कमर पर बंधी पेटीकोट उसके कूल्हों की गोलाई को उभार रही थी। चंदनी ने बाबा को आते देखा, जब वे पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे। उनके कपड़ों पर आरती के पसीने और रस की महक आ रही थी, और उनके लंड का आकार अभी भी पैंट में उभरा हुआ था। चंदनी की नजरें बाबा के चेहरे पर ठहर गईं, फिर नीचे सरक गईं। वह जानती थी कि बाबा अंदर क्या कर रहे थे—आरती की सिसकारियां उसे कभी-कभी सुनाई दे जातीं।
 
 चंदनी ने रहस्यमयी मुस्कान बिखेरी, उसके होंठों पर एक शरारती हल्की हंसी उभरी। 'बाबा जी, भक्ति का फल मिल गया?' उसने मन ही मन सोचा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह जानबूझकर नजरें फेर लीं और फिर से झाड़ू लगाने लगी, लेकिन उसकी आंखों में चमक थी। शायद वह भी बाबा की इस 'पूजा' में शामिल होना चाहती थी। बाबा ने उसे देखा, लेकिन बिना रुके बाहर चले गए, जबकि चंदनी का मन आरती के कमरे की ओर भटकने लगा। घर में शाम की शांति थी, लेकिन हवा में यौन उत्तेजना की गंध घुली हुई थी।
 
	
	
	
		
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		आरती की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। शाम की धुंधली रोशनी कमरे में फैली हुई थी, और वह बेड पर नंगी लेटी हुई महसूस कर रही थी। चादर उसके शरीर पर ढीली-ढाली पड़ी थी, उसके स्तन बाहर झांक रहे थे, और उसके निप्पल्स अभी भी बाबा के चूसने से सख्त होकर खड़े थे। नीचे, उसकी चूत में बाबा का गाढ़ा वीर्य अभी भी चिपचिपा महसूस हो रहा था, जो बाहर रिसकर उसकी जांघों पर सूख गया था। आरती ने मुस्कुराते हुए हाथ नीचे किया, अपनी उंगलियां चूत पर फेरकर बाबा के बीज को छुआ। 'अरे वाह, बाबा जी ने तो भरपूर पूजा कर दी,' उसने मन ही मन कहा, और एक शरारती हंसी छोड़ते हुए बेड से उठी। उसका शरीर चिपचिपा था—पसीने, लार और वीर्य की मिश्रित गंध कमरे में फैली हुई थी। वह नंगी ही बाथरूम की ओर बढ़ी, जहां ठंडे पानी की धार उसके शरीर पर गिरने लगी।
 आरती ने साबुन से अपने स्तनों को मला, निप्पल्स को उंगलियों से दबाते हुए, और नीचे चूत को अच्छे से धोया। पानी उसके बालों से बहता हुआ, उसके कूल्हों पर रुका, और वह खुद को तरोताजा महसूस करने लगी। 'अब ये राज़ और गहरा हो गया,' उसने आईने में अपनी मुस्कान देखी, जहां उसके गालों पर हल्की लाली बाकी थी। बाथरूम से बाहर निकलते हुए, उसने मैक्सी पहन ली—वही ढीली वाली, जो उसके शरीर की गोलाइयों को छुपा लेती थी। बाल गीले थे, और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं। वह किचन की ओर बढ़ी, कॉफी बनाने के लिए, लेकिन जैसे ही वह बाहर आई, गायत्री ने उसे रोक लिया।
 
 गायत्री सोफे पर बैठी हुई थी, हाथ में गीता की किताब लिए, लेकिन उसकी नजरें आरती पर टिक गईं। 'अरे बहू, तू नहा क्यों आई? अभी तो शाम हुई है, और तू बेड से उठी ही तो लग रही है। क्या हुआ, कोई बीमारी तो नहीं?' गायत्री की आवाज में संदेह था, उसके भौंहें सिकुड़ी हुईं। आरती का दिल धक् से रह गया। वह घबरा गई, उसके चेहरे पर पसीना छूटने लगा। 'मां जी, वो... वो तो बस... गर्मी लग गई थी। थोड़ा सिर दर्द हो रहा था, सोचा नहा लूं तो ठीक हो जाए,' आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, अपनी आंखें नीचे झुकाकर। उसके दिमाग में तेजी से बहाने घूम रहे थे—उसकी शरारती बुद्धि काम कर रही थी। 'और हां, बाल धोए थे, इसलिए देर हो गई।'
 
 गायत्री ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर सिर हिलाते हुए कहा, 'ठीक है, लेकिन इतनी जल्दी नहाना अच्छा नहीं। चल, कॉफी बना दे मेरी भी। और चंदनी को बुला, आज डिनर जल्दी बनाना है।' आरती ने राहत की सांस ली और किचन में चली गई। कॉफी मशीन चालू करते हुए, वह मन ही मन सोच रही थी कि कैसे बाबा का राज़ छुपाना है। तभी पीछे से चंदनी आ गई, उसके कदमों की आहट हल्की थी। चंदनी ने आरती के कंधे पर हाथ रखा और कान के पास फुसफुसाई, 'बहू जी, बाबा जी की पूजा तो अच्छी चली न? मैंने देखा, वे बाहर जाते हुए कितने खुश लग रहे थे। लगता है आपकी चूत ने उन्हें अच्छे से संतुष्ट कर दिया।' चंदनी की बात इतनी दोहरी अर्थ वाली थी कि आरती चौंक गई, उसका चेहरा लाल हो गया। वह मुड़ी, लेकिन चंदनी ने आंख मार दी—एक शरारती, जानबूझकर वाली। 'चुप रहो, चंदनी! क्या बकवास कर रही हो?' आरती ने धीमी आवाज में कहा, लेकिन उसके होंठों पर भी मुस्कान आ गई। चंदनी हंस पड़ी, 'अरे, बस मजाक था। लेकिन सच तो है न?' फिर वह डिनर बनाने के लिए चली गई, किचन में सब्जियां काटने लगी।
 
 रात हो चुकी थी। घर में लाइटें जली हुईं, और गायत्री अपने कमरे में सो चुकी थी। आरती ने डिनर किया, लेकिन मन कहीं और था—बाबा के स्पर्श की यादें ताजा हो रही थीं। तभी दरवाजे की घंटी बजी। अंकुर, आरती का पति, ऑफिस से लौटा था। वह थका-हारा लग रहा था—सूट पर पसीने के धब्बे, बाल बिखरे हुए, और चेहरे पर थकान की लकीरें। 'हाय अल्लाह, आज मीटिंग्स ने मार डाला,' अंकुर ने दरवाजा बंद करते हुए कहा। आरती ने उसे देखा, लेकिन उसके मन में बाबा की छवि घूम रही थी। अंकुर ने जूते उतारे और सीधे बेडरूम में चला गया, बिना ज्यादा बात किए। 'आरती, पानी दे दे,' उसने बेड पर लेटते हुए कहा। आरती ने गिलास भरा और ले आई, लेकिन अंकुर की आंखें बंद हो चुकी थीं। वह सो गया, बिना आरती को छुए। आरती ने उसे देखा, फिर खुद बेड पर लेट गई। रात की शांति में, उसके शरीर में फिर से उत्तेजना जागने लगी—बाबा के लंड की यादें, चंदनी की शरारत, और आने वाले दिनों के राज़। घर सो रहा था, लेकिन हवा में वासना की गंध अभी भी बाकी थी।
 
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		 (30-10-2025, 01:12 PM)AzaxPost Wrote:  Should I include more characters or limited arround aarti , Subhadra and Chandni? 
इन तीन किरदारों पर काम करना बेहतर है।
	 
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		 (30-10-2025, 01:12 PM)AzaxPost Wrote:  Should I include more characters or limited arround aarti , Subhadra and Chandni? 
More characters will create chaos . better to stick with current characters .
	 
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		बाबा कालिचरण का आश्रम शहर के धनी और धार्मिक इलाके में स्थित था, जहां ऊंची-ऊंची हवेलियां और मंदिरों की चमकदार मूर्तियां सड़कों पर बिखरी हुईं। यह इलाका ऐसा था जहां हर तरफ भक्ति की धुन गूंजती, लेकिन उसके पीछे छिपी रहस्यमयी दुनिया किसी को नहीं पता। आश्रम का मुख्य द्वार भव्य था—सोने-चांदी की जड़ाई वाली तोरणें, जिन पर देवी पार्वती की मूर्ति उकेरी गई थी, और हर शाम आरती के समय घंटियां बजतीं। लेकिन अंदर का माहौल कुछ और ही था। बाबा कालिचरण के बारे में कोई साफ-साफ नहीं जानता था कि वे कहां से आए। वे खुद कहते, 'मैं देवी पार्वती का भक्त हूं, उनकी कृपा से यहां पहुंचा।' उनकी उम्र कोई 49 के आसपास बताई जाती, लेकिन चेहरा हमेशा रहस्यमयी मुस्कान से ढका रहता—लंबी दाढ़ी, कमल के फूल जैसी आंखें, और सफेद धोती-कुर्ता जो हमेशा बेदाग लगता। कोई नहीं जानता था उनका असली नाम क्या था या बचपन कहां बीता। कुछ कहते वे हिमालय से उतरे संत हैं, तो कुछ फुसफुसाते कि वे किसी पुराने अपराधी गिरोह से जुड़े थे। लेकिन बाबा चुप रहते, सिर्फ भजन गाते और भक्तों को आशीर्वाद देते।
 आश्रम का क्षेत्रफल बड़ा था—करीब 10 एकड़ में फैला, जहां आगे भव्य सत्संग हॉल था, बीच में बाबा का कक्ष, और पीछे बगीचा जहां रातें गुप्त बैठकों के लिए इस्तेमाल होता। सत्संग हॉल में हर शनिवार को भजन-कीर्तन होता, जहां अमीर घरों की महिलाएं जैसे आरती और सुभद्रा आतीं। वे साड़ियां पहनकर, मंगलसूत्र लटकाए, बाबा के चरणों में बैठतीं। आरती और सुभद्रा का घर इसी इलाके में था—धनी वर्ग का, जहां पिता-पति व्यापारी थे। वे नियमित रूप से आश्रम जातीं, न सिर्फ भक्ति के लिए बल्कि सामाजिक दिखावे के लिए भी। हर महीने वे दान देतीं—पैसे के लिफाफे, सोने की चूड़ियां, अनाज के ट्रक, और कभी-कभी बाबा के लिए विशेष उपहार जैसे रेशमी वस्त्र। आरती कहती, 'बाबा जी की कृपा से घर में सुख-शांति है,' लेकिन अंदर ही अंदर उसके मन में बाबा के स्पर्श की उत्तेजना छिपी रहती। सुभद्रा, जो शरारती स्वभाव की थी, हंसते हुए कहती, 'दान तो बस बहाना है, असली आशीर्वाद तो बाबा के करीब होने में है।'
 
 लेकिन आश्रम की रहस्यमयता यहीं खत्म नहीं होती। बाहर से तो सब कुछ पवित्र लगता—देवी पार्वती का मंदिर, जहां रात को विशेष पूजा होती, और भक्तों को प्रसाद बांटा जाता। लेकिन रात के अंधेरे में आश्रम की पीछे की दीवारों के पार गाड़ियां आतीं—काली मर्सिडीज, जिनमें  सिक्युरिटी वाले, राजनेता, व्यापारी सवार होते। एक बड़ा राजनेता, जो शहर का मेयर था, हर हफ्ते आता, बाबा से बंद कमरे में बात करता। व्यापारी लोग करोड़ों के चेक देते, कहते 'बाबा जी, ये देवी मां को।' लेकिन फुसफुसाहटें थीं कि ये दान सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिए हैं। आश्रम के आसपास की दुकानें बाबा के नाम पर चलतीं—जिनकी मालिकियां कभी सवाल नहीं उठातीं।
 
 विवादास्पद बातें और भी थीं। कुछ लोग कहते, बाबा का आश्रम माफिया और डॉन का अड्डा है। शहर के कुख्यात डॉन, जिनका नाम 'रावण सिंह' था, की बहन आश्रम की ट्रस्ट में नामांकित थी। रात को, जब सत्संग खत्म हो जाता, तो आश्रम के बगीचे में गुप्त मीटिंगें होतीं। एक बार तो  सिक्युरिटी का एक इंस्पेक्टर आया, जो बाबा को सलाम ठोकता हुआ अंदर गया और घंटों रुका। बाहर आकर बोला, 'बाबा जी ने आशीर्वाद दिया, अब सब ठीक हो जाएगा।' लेकिन शहर में अफवाहें फैलीं कि आश्रम में महिलाओं के साथ अनैतिकता होती है। एक पत्रकार ने लिखा कि बाबा भक्त महिलाओं को 'विशेष पूजा' के बहाने बुलाते हैं, जहां यौन शोषण का आरोप लगा। लेकिन अगले ही दिन वो पत्रकार गायब हो गया, और आश्रम के वकीलों ने केस दबा दिया। राजनेताओं का समर्थन था—वे कहते, 'ये सब झूठी अफवाहें हैं, बाबा संत हैं।'
 
 आरती और सुभद्रा को इन बातों की भनक थी, लेकिन वे अनदेखी करतीं। आरती के लिए आश्रम अब सिर्फ भक्ति का स्थान नहीं, बल्कि बाबा के गुप्त स्पर्श का अड्डा बन चुका था। एक बार सत्संग के बाद, बाबा ने उसे अलग बुलाया, उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाया, 'देवी मां की कृपा तुम पर है, बहू।' उस स्पर्श से आरती की चूत गीली हो गई। सुभद्रा हंसती, 'आरती, तू तो बाबा की फेवरेट लगती है। सावधान, ये आश्रम के राज़ गहरे हैं।' लेकिन विवादों के बावजूद आश्रम फलता-फूलता रहा। डॉन्स पैसे देते, क्योंकि बाबा उनके 'कर्मों' को शुद्ध करने का दावा करते। एक व्यापारी ने बताया कि उसके दुश्मन का एक्सीडेंट आश्रम के 'प्रार्थना' के बाद हुआ।  सिक्युरिटी वाले आते, क्योंकि बाबा उनके प्रमोशन की भविष्यवाणी करते।
 
 आश्रम का सबसे रहस्यमयी हिस्सा बाबा का निजी कक्ष था—जहां दीवारों पर पार्वती की तस्वीरें, लेकिन फर्श पर गद्दे बिछे होते, जो रात की 'पूजाओं' के लिए इस्तेमाल होते। कभी-कभी रात को चीखें सुनाई देतीं, जो भजन समझ ली जातीं। एक विवाद तब हुआ जब एक अमीर महिला ने आरोप लगाया कि बाबा ने उसे 'आशीर्वाद' के नाम पर नंगा किया और चोदा। लेकिन बाबा के वकीलों ने साबित कर दिया कि वो पागल थी। फिर भी, भक्तों की संख्या बढ़ती गई। आरती सोचती, 'ये आश्रम वासना और भक्ति का मिश्रण है,' और सुभद्रा मजाक करती, 'हां, और हम दोनों इसके चट्टे में रानी मक्खियां।' इस तरह, आश्रम की रहस्यमयता और विवाद शहर की हवा में घुल गए, लेकिन बाबा का राज़ अभी भी सुरक्षित था।
 
	
	
	
		
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		10 hours ago 
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		The characters and their story is totally fictional which has no intention to hurt any person's belief. If you are sensitive to read about religion, god , religious leader and age of a character then please don't read it. This story's intention is just to  give a sexual experience through reading. I beleive in sex story you should not start reading if you are so sensitive. Instead of reporting or abusing, avoid it . From next part this story will be touch more  sensitive topics. 
 If you have any suggestions for the story, please mention it.
 
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		 (10 hours ago)AzaxPost Wrote:  The characters and their story is totally fictional which has no intention to hurt any person's belief. If you are sensitive to read about religion, god , religious leader and age of a character then please don't read it. This story's intention is just to  give a sexual experience through reading. I beleive in sex story you should not start reading if you are so sensitive. Instead of reporting or abusing, avoid it . From next part this story will be touch more  sensitive topics. 
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 just remove Devi P* ka photo with devi ka photo aur devi ka aashirvaad to avoid unnecessary issues.   
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		35 minutes ago 
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		अगले दिन नवरात्रि का पहला दिन था। सुबह की धूप अभी पूरी तरह से फैल भी नहीं पाई थी, लेकिन आरती की आंखें देर से खुलीं। रात की थकान अभी भी उसके शरीर में बसी हुई थी, बाबा कालिचरण के गुप्त स्पर्श की यादें उसके मन में घूम रही थीं। अंकुर, उसका पति, पहले ही ऑफिस चला गया था—बिना कुछ कहे, बस एक चाय का कप छोड़कर। आरती बिस्तर से उठी, उसकी नंगी चूत अभी भी हल्की नमी से भरी हुई थी, जैसे बाबा का लंड उसके अंदर घुसा हुआ हो। वह फ्रेश होने लगी, दांत साफ किए, मुंह धोया, और फिर बाथरूम की ओर बढ़ी। ठंडा पानी बहने लगा, जो उसके नंगे शरीर पर गिरते ही एक झुरझुरी सी पैदा कर दी। आश्रम से मिला विशेष शैंपू उसके हाथ में था—वो जो बाबा ने खुद दिया था, कहते हुए कि ये देवी मां की कृपा वाला है। आरती ने शैंपू अपने बालों में लगाया, फिर उसे झाग बनाते हुए अपने स्तनों पर फैलाया। ठंडे पानी की धार उसके काले निप्पलों पर गिर रही थी, जो तुरंत सख्त हो गए, जैसे कोई पुरुष उन्हें चूस रहा हो। वह अपनी चूत पर हाथ फेरा, शैंपू की सुगंध उसके गुप्त अंगों में घुस गई, और अचानक एक उत्तेजना सी महसूस हुई। बाबा की याद आई, कैसे उन्होंने रात को उसके शरीर को तेल से मला था, और अब ये शैंपू वैसा ही जादू चला रहा था। आरती ने अपनी उंगलियां अपनी चूत के होंठों पर रगड़ीं, हल्का सा सिहरन महसूस की, लेकिन रुक गई—समय कम था। वह नहा ली, ठंडे पानी से अपना शरीर साफ किया, और बाहर निकली, सिर्फ एक पतला सा तौलिया लपेटे हुए। उसके गीले बाल कंधों पर लटक रहे थे, और तौलिया उसके स्तनों को मुश्किल से ढक रहा था, नीचे से उसकी गांड की गोलाई साफ दिख रही थी।
 बाथरूम से निकलते ही आरती सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ी, लेकिन रसोई से चंदनी की नजर उस पर पड़ गई। चंदनी, वो शरारती नौकरानी, जो घर के हर राज को जानती थी, किचन में बर्तन धो रही थी। उसकी आंखें चमक उठीं जब उसने आरती को तौलिये में देखा—नंगे पैर, गीली त्वचा चमक रही थी। 'अरे वाह, दीदी जी! सुबह-सुबह तो आप किसी देवी से कम नहीं लग रहीं। ये तौलिया तो बस नाम का है, पूरा बदन तो चमक रहा है जैसे कोई लंड ने चोदा हो।' चंदनी ने हंसते हुए कहा, अपनी आवाज में वो डबल मीनिंग वाली शरारत डालते हुए। आरती का चेहरा लाल हो गया, वह शरम से झुक गई, लेकिन चंदनी रुकी नहीं। 'नवरात्रि का पहला दिन है, दीदी। देवी मां की पूजा तो ठीक, लेकिन आपकी ये चमक तो बाबा जी की पूजा की तरह लग रही। कल रात तो घर में घंटियां बज रही थीं, या वो आपकी चीखें थीं? आज नौ दिन तक व्रत रखेंगी, लेकिन रात को तो भूख मिटानी पड़ेगी ना, कोई बाबा जी जैसा आशीर्वाद देने वाला।' चंदनी की बातों में वो छिपी हुई कामुकता थी, जो आरती को और उत्तेजित कर रही थी। आरती ने तौलिया कसकर पकड़ा, उसके स्तन ऊपर उठ गए, और वह बोली, 'चुप करो चंदनी, बस काम करो अपना।' लेकिन उसकी आंखों में शरम के साथ-साथ एक चिंगारी थी। चंदनी ने फिर मुस्कुराया, 'हां-हां, दीदी, लेकिन याद रखना, नवरात्रि में गरबा करते वक्त साड़ी न सरक जाए, वरना सबको आपका वो स्कॉर्पियन टैटू दिख जाएगा, जो बाबा जी ने देखा तो आशीर्वाद दिया।' आरती और लज्जा से भर गई, जल्दी से कमरे में घुस गई, लेकिन चंदनी की हंसी पीछे गूंज रही थी।
 
 कमरे में पहुंचते ही आरती ने तौलिया उतार दिया। उसका नंगा शरीर आईने में चमक रहा था—स्तन भरे हुए, कमर पतली, और चूत के ऊपर वो स्कॉर्पियन टैटू, जो बाबा की नजरों में आग लगा देता था। नवरात्रि का पहला दिन था, तो उसने विशेष रूप से सजने का फैसला किया। पहले लाल बिंदी लगाई, जो उसके माथे पर चमक उठी, फिर मंगलसूत्र पहना, जो उसके गले में लटक गया। अब कपड़ों की बारी—उसने वो सेक्सी रेड साड़ी चुनी, जो आश्रम से ही लाई थी, बाबा के आशीर्वाद वाली। साड़ी इतनी पतली और चमकदार थी कि उसके शरीर की हर लकीर दिख रही थी। ब्लाउज काला, लो-कट, जो उसके स्तनों की गहराई को आधा दिखा रहा था—क्लिवेज साफ झांक रहा था, जैसे कोई पुरुष उसे चूमना चाहे। साड़ी को कमर पर लपेटा, लेकिन जानबूझकर ऊपर रखा—चूत के ठीक एक इंच ऊपर, ताकि वो स्कॉर्पियन टैटू आधा दिखे, अगर हवा चले या झुक जाए। साड़ी का पल्लू हल्का सा ढीला रखा, ताकि चाल में लहराए। अब आखिर में आश्रम का विशेष परफ्यूम—वो जो बाबा ने दिया था, देवी पार्वती की सुगंध वाला, लेकिन इसमें एक कामुक मादकता थी। आरती ने इसे अपने गले पर, स्तनों के बीच, और चूत के पास छिड़का। सुगंध फैल गई, जो उसके शरीर को और उत्तेजित कर रही थी—जैसे बाबा का स्पर्श हो। आईने में खुद को देखा, वह मुस्कुराई—ये रूप किसी को भी मदहोश कर देगा। गायत्री तो मंदिर गई हुई थीं, चंदनी किचन में, तो आरती कमरे से बाहर निकली, साड़ी की सरसराहट के साथ, तैयार होकर आश्रम की ओर जाने को। उसके मन में बाबा की याद थी, और नवरात्रि की ये पूजा अब उसके लिए एक नई वासना का त्योहार बनने वाली थी।
 
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