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10-09-2025, 03:29 PM
(This post was last modified: 11-09-2025, 06:12 PM by Fuckuguy. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
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पड़ोसी की छुपी हुई इच्छाएँ
दिल्ली के करोल बाग की उस व्यस्त लेकिन आपस में बंधी हुई कॉलोनी में, जहां संकरी गलियां मसालों की तीखी महक से लबालब दुकानों, इलेक्ट्रॉनिक्स के चमचमाते शोरगुल वाले बाजारों और सड़क किनारे समोसे तलते चाट वेंडर्स की तली हुई खुशबू और चटर से हमेशा गूंजती रहती थीं, वहां रहता था एक युवा लड़का नाम रोहित। 25 साल का रोहित एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, गुड़गांव की एक बड़ी टेक फर्म में काम करता था, रोजाना मेट्रो से लंबा सफर करता। वह हैंडसम था उस तरह से जैसे पड़ोस का साधारण लेकिन आकर्षक लड़का होता है – 6 फीट लंबा कद, पतला लेकिन एथलेटिक बदन जो वीकेंड क्रिकेट मैचों से तराशा हुआ था, छोटे काले बाल जो हवा में थोड़े बिखरे रहते, और एक चार्मिंग स्माइल जो उसके शर्मीले स्वभाव को छिपाती थी। उसकी गेहुंआ रंगत वाली स्किन, गहरी भूरी आंखें जो कभी-कभी रहस्यमयी लगतीं, और सबसे खास उसका लंड जो इरेक्ट होने पर 8 इंच लंबा और मोटा हो जाता, नसों से भरा हुआ, हल्का कर्व वाला जो चुदाई के दौरान सही जगहों को हिट करता था, उसे और भी खास बनाता। रोहित एक छोटे से रेंटेड अपार्टमेंट में अपने रूममेट के साथ रहता था, लेकिन उसका असली घर उसके माता-पिता का था कॉलोनी में ही, जहां वह हर वीकेंड आता, घर का खाना खाता और परिवार के साथ समय बिताता। वह सिंगल था, कॉलेज की गर्लफ्रेंड से एक साल पहले ब्रेकअप के बाद, और उसकी रातें अक्सर अकेले गुजरतीं – लैपटॉप पर पॉर्न देखते हुए, अपना लंड सहलाते हुए। उसकी फैंटसीज मैच्योर महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमतीं – आंटियां, टीचर्स, पड़ोसन – उनके अनुभवी बदन, कॉन्फिडेंट सिडक्शन और गर्म चूत की कल्पना उसे उसके उम्र की लड़कियों से ज्यादा उत्तेजित करती। वह बिस्तर पर लेटकर सोचता, कैसे एक बड़ी उम्र की औरत की मुलायम स्किन को छूना होगा, उसके भरे हुए स्तनों को दबाना और चूसना, निप्पल्स को काटना जब तक वह कराह न उठे, और फिर उसकी गीली चूत में अपना मोटा लंड धीरे-धीरे डालकर जोर-जोर से धक्के मारना, उसकी कराहें सुनकर खुद को कंट्रोल न कर पाना, आखिरकार उसके अंदर झड़ जाना। ये कल्पनाएं उसे इतना उत्तेजित कर देतीं कि उसका लंड पैंट में ही सख्त हो जाता, प्रीकम लीक करता, और वह जोर से सहलाता, तेजी से ऊपर-नीचे करता, आखिरकार गर्म वीर्य के फव्वारे छोड़कर झड़ जाता, लेकिन संतुष्टि कभी पूरी नहीं होती, हमेशा एक खालीपन रह जाता।
पड़ोसी इन क्वेश्चन थी शालिनी, 38 की, एक डिवोर्स्ड मां जो दो बच्चों की मां थी और नेक्स्ट डोर ही रहती थी अपने टीनएज बेटे और बेटी के साथ। शालिनी एक कॉलेज टीचर थी, कॉलोनी में उसके स्ट्रिक्ट लेकिन दयालु स्वभाव के लिए जानी जाती। उसका बदन मैच्योर ब्यूटी की परफेक्ट मिसाल था – गोरी स्किन जो डेली योग से चमकती रहती, 36D स्तन जो उसके कुर्तों के खिलाफ तनकर बाहर आने को बेताब लगते, हल्का मोटा कमर जो उसके आकर्षण को और बढ़ाता जैसे कोई कुशन, चौड़ी कूल्हें जो मार्केट जाते वक्त ऐसे स्वे करतीं जैसे किसी को ललचा रही हों, और फुल, राउंड गांड जो हर कदम पर एंटाइसिंगली जिगल करती, देखने वाले की आंखें फिसलने पर मजबूर कर देती। उसके लंबे ब्राउन बाल अक्सर लूज छोड़े रहते, हाई चीकबोन्स वाले चेहरे को फ्रेमिंग, फुल लिप्स पिंक पेंटेड जो चूमने की दावत देते जैसे कोई रसीली फल, और आंखें हिडन मिस्चीफ से चमकतीं जो बतातीं कि उसके अंदर एक आग दबी हुई है जो कभी भी भड़क सकती है। पांच साल पहले एब्यूसिव पति से डिवोर्स्ड, शालिनी ने बच्चों को अकेले पाला था, समाज की नजरों और रेस्पेक्टेबिलिटी के डर से अपनी इच्छाओं को दबाया था। लेकिन रातों में, जब बच्चे सो जाते और फैन की घुरघुराहट कमरे में गूंजती, वह खुद को छूती – उंगलियां उसके शेव्ड पुसी को सर्कलिंग करतीं, धीरे-धीरे क्लिट को रब करतीं जब तक वह सख्त न हो जाता, डार्क निप्पल्स को पिंच करतीं जब तक वे दर्द से सुख मिलने लगे, एक युवा, वाइरिल मैन की इमेजिनिंग जो उसे रफली ले, उसके स्तनों को मसलता जैसे आटा गूंथ रहा हो, निप्पल्स को काटता जब तक खून न निकले, उसकी चूत में उंगलियां डालकर उसे तड़पाता, जूसेज को बाहर निकालता, और फिर अपना मोटा लंड अंदर घुसाकर जोर-जोर से चोदता, उसके धक्कों से उसका बदन हिलता, स्तन उछलते, और वह चीखती "आह... और तेज... चोदो मुझे!" ये कल्पनाएं उसे इतना गीला कर देतीं कि उसकी उंगलियां आसानी से अंदर-बाहर स्लाइड करतीं, पुसी की दीवारें सिकुड़तीं, और वह कराहती, "आह... हां... चोदो मुझे... भर दो मुझे," तेजी से उंगलियां चलाती, आखिरकार एक जोरदार ऑर्गैज्म के साथ झड़ जाती, जूसेज बेडशीट पर फैलते, लेकिन उसके बाद खालीपन रह जाता, एक लालसा जो कभी मिटती नहीं।
रोहित का ऑब्सेशन इनोसेंटली शुरू हुआ। एक गर्मी की दोपहर, पावर कट के दौरान जो कॉलोनी को उबलते हुए छोड़ देता, रोहित अपने बालकनी पर था, शर्टलेस और पसीने से तर, छाती पर पसीने की बूंदें चमक रही, जब उसने शालिनी के घर की ओर ग्लांस किया। उसके बेडरूम की ओपन विंडो से, वह उसे देखा – फ्रेश फ्रॉम बाथ, टॉवल उसके बदन के चारों ओर रैप्ड, पानी की बूंदें उसकी स्किन पर ग्लिस्टनिंग जैसे छोटे-छोटे मोती लुढ़क रहे हों। टॉवल स्लिप स्लाइटली, उसके ब्रेस्ट की स्वेल रिवीलिंग, एक डार्क निप्पल पीकिंग आउट जो सख्त और आमंत्रित लगता, जैसे कोई गुलाबी बटन। रोहित का लंड उसके शॉर्ट्स में ट्विच्ड, एकदम सख्त हो गया, प्रीकम लीक करना शुरू कर दिया। वह वॉच्ड, रेलिंग से हिडन, जैसे वह टॉवल कम्प्लीटली ड्रॉप की, उसका नेकेड बदन डिस्प्ले पर – ब्रेस्ट्स हेवी और फर्म, गुरुत्वाकर्षण को चैलेंज करते, निप्पल्स डार्क और इरेक्ट, हवा में थरथराते, पुसी नीट लैंडिंग स्ट्रिप ऑफ हेयर वाली जो हल्की गीली लगती, लेबिया हल्के फैले हुए, और गांड चीक्स पार्टिंग जैसे वह बेंट टू पिक अप लोशन, उसके बीच का गुलाबी छेद एक सेकंड के लिए फ्लैश करता, टाइट और आमंत्रित। वह लोशन को स्किन में मसाज्ड, हाथ ब्रेस्ट्स पर लिंगरिंग, उन्हें squeeजिंग जैसे दूध निकाल रही हो, निप्पल्स को ट्विस्टिंग जब तक वे और सख्त न हो जाएं और दर्द से सुख मिलने लगे, फिर थाइज पर डाउन, एक उंगली उसके लेग्स के बीच डिपिंग, उसके क्लिट को रबिंग, धीरे-धीरे सर्कल्स बनाते, उसकी आंखें बंद जैसे वह कल्पना में खोई हो, सांसें तेज होतीं। "आह... एक मैन की जरूरत है," वह मटर्ड, अनवेयर ऑफ हर ऑडियंस, उसकी उंगलियां अब तेजी से मूविंग, पुसी से जूसेज लीकिंग, चीक्स पर फैलते, उसके बदन को चमकदार बनाते। रोहित ने खुद को उसके शॉर्ट्स से स्ट्रोक्ड, उसका लंड हार्ड और पल्सिंग, प्रीकम लीकिंग, और वह जोर से सहलाया, तेजी से ऊपर-नीचे करता, आखिरकार गर्म वीर्य के फव्वारे छोड़कर झड़ गया, उसके हाथ पर चिपचिपा लोड, गिल्ट एक्साइटमेंट से मिक्सिंग जैसे वह छिपकर देखता रहा। उसका दिल जोर से धड़क रहा था, सांसें तेज, और वह सोचता रहा कि शालिनी का बदन कितना परफेक्ट था – उसके स्तनों की भारीपन जो छूने को बुला रही थी, उसकी पुसी की गुलाबी चमक जो गीली लग रही थी, और उसकी गांड की राउंडनेस जो उसे चोदने की चाहत जगाती।
उस दिन से, रोहित एक वॉयर बन गया। वह बालकनी पर पोजिशन लेता उन टाइम्स पर जब वह जानता कि शालिनी होम अलोन होती – कॉलेज के बाद, जब उसके बच्चे ट्यूशन पर जाते। वह उसे चेंज होते देखता, उसके ब्रा और पैंटीज को उतारते, उसके नंगे बदन को आईने में एडमायर करते, उंगलियां उसके निप्पल्स पर रबिंग, उन्हें सर्कल्स में घुमाते जब तक वे सख्त न हो जाते, फिर नीचे उसकी पुसी पर, धीरे-धीरे मास्टरबेटिंग, उसके मुंह से सॉफ्ट मोअन्स निकलते जैसे वह उंगलियां अंदर डालती, दो उंगलियां पुसी की दीवारों को फैलातीं, जूसेज को बाहर निकालतीं, उसके थाइज पर चिपचिपा ट्रेल छोड़तीं। एक बार तो वह वाइब्रेटर यूज करती, सॉफ्टली मोअनिंग जैसे वह इसे इन एंड आउट थ्रस्ट करती उसके वेट पुसी में, वाइब्रेशन की आवाज हल्की गूंजती, उसके जूसेज ड्रिपिंग, बेडशीट पर गीले स्पॉट बनाते, उसकी गांड टाइट होकर रिलैक्स होती जैसे वह क्लाइमैक्स की ओर बढ़ती, "आह... हां... चोदो मुझे... और गहरा," फुसफुसाती, उसके बदन में कंपन, स्तन उछलते। रोहित के लिए भावनाएं एक तूफान थीं – लस्ट डोमिनेटिंग, उसका लंड हर बार सख्त हो जाता, वह सहलाता, तेजी से मुठ्ठी ऊपर-नीचे करता, लेकिन एक स्ट्रेंज अफेक्शन भी, उसे संतुष्ट करने वाला बनना चाहता, उसकी कराहें सुनकर खुद को उसके अंदर इमेजिन करना, उसके स्तनों को चूसते हुए। शालिनी, आंखें फील करती लेकिन कौन नहीं जानती, एक थ्रिल फील करती – एग्जीबिशनिज्म कुछ डॉर्मेंट जगा रहा, उसे ज्यादा गीला बनाता जैसे वह जानती कि कोई देख रहा है, उसकी उंगलियां तेज चलातीं, पुसी से चूचू की आवाज आती।
पहला एनकाउंटर दिवाली की तैयारी के दौरान हुआ। शालिनी को उसके बालकनी पर लाइट्स हैंग करने में हेल्प चाहिए थी, और रोहित वॉलंटियर किया, उसका दिल जोर से धड़क रहा जैसे वह उसके घर गया, दरवाजा खुलते ही उसकी खुशबू महसूस हुई। अप क्लोज, उसकी सेंट – रोज की मीठी महक और मस्क की गर्माहट – उसे इंटॉक्सिकेट किया, उसका लंड उसके पैंट में स्टिरिंग, प्रीकम लीक करना शुरू। जैसे वह हाई रीच किया, उसका बदन उसके खिलाफ एक्सीडेंटली प्रेस्ड, उसका हार्ड लंड उसके गांड को ब्रशिंग, मुलायम लेकिन फर्म फीलिंग जैसे वह उसके चीक्स के बीच रब हुआ, उसकी गांड की गर्मी उसके लंड को और सख्त कर देती। शालिनी गैस्प्ड, इसे फील करके, उसकी पुसी में एक टिंगल, हल्की गीलापन महसूस हुआ। "रोहित... वह क्या है?" वह टर्न्ड, उसकी आंखें उसके से मिलीं, एक स्पार्क इग्नाइटिंग, उसकी सांसें तेज। पुल अवे की बजाय, वह बैक प्रेस्ड, उसका गांड उसके लंड पर ग्राइंडिंग स्लाइटली, उसके चीक्स उसके शाफ्ट को फील करते, "तुम मुझे देखते रहे हो, है ना? मेरे नंगे बदन को, मेरी चूत को?" रोहित ब्लश्ड, उसका चेहरा रेड, लेकिन वह नोड किया, "आंटी... मैं हेल्प नहीं कर सका। आप इतनी ब्यूटीफुल हैं, आपका बदन... मैं रोज सोचता हूं, आपके स्तनों को छूने को, आपकी गांड को दबाने को।" शालिनी का दिल रेस्ड – लोनली लाइफ पर रिवेंज, युवा स्टड पर एक्साइटमेंट, उसकी पुसी गीली हो गई, पैंटी में चिपचिपी महसूस हुई। "अंदर आओ," वह फुसफुसाई, उसका हाथ उसके आर्म को ग्रैबिंग, उसे पुलिंग, दरवाजा बंद करते हुए।
उसके लिविंग रूम में, कर्टेंस ड्रॉन, हवा में उसकी खुशबू फैली, वह उसे सोफा पर पुश की, उसकी आंखें हंगर से भरी, होंठ काटते हुए। "मुझे दिखाओ क्या तुम स्ट्रोक कर रहे थे, रोहित। मुझे देखकर क्या तुम्हारा लंड सख्त होता है, प्रीकम लीक करता है?" रोहित ने अनजिप्ड, उसका 8-इंच लंड स्प्रिंग फ्री, मोटा और हार्ड, हेड पर प्रीकम शाइनिंग जैसे कोई मोती। शालिनी की आंखें चौड़ी, "इतना बड़ा... मेरे एक्स से बड़ा, और इतना मोटा जैसे मेरी मुट्ठी, नसें उभरी हुईं जैसे रास्ते।" वह घुटनों पर गिरी, इसे हाथ में लिया, धीरे स्ट्रोकिंग, उसकी उंगलियां उसके नसों पर फिसलतीं, हेड को थंब से रबिंग, प्रीकम को फैलातीं, फिर हेड लिकिंग, प्रीकम टेस्टिंग जैसे कोई स्वादिष्ट चीज, जीभ से सर्कल बनाते। "म्म... सॉल्टी और मीठा, जैसे कोई नशा।" वह डीपली चूसी, उसका मुंह वार्म और वेट, जीभ स्वर्लिंग उसके हेड पर, गैगिंग जैसे वह डीप-थ्रोटेड, उसका थ्रोट उसके लंड को मसाज करता, सलाइवा उसके शाफ्ट से ड्रिपिंग। रोहित मोअन्ड, "आंटी... आह, आपका मुंह हेवन है, इतना गर्म और टाइट, जैसे कोई चूत।" भावनाएं: शालिनी के लिए, सालों की नेग्लेक्ट के बाद एम्पावरमेंट, उसका मुंह उसके लंड से भरा महसूस करना, स्वाद लेना; रोहित के लिए, ड्रीम कम ट्रू, उसकी आंटी का मुंह उसके लंड पर, उसके होंठों की नरमी। वह स्टूड, अपनी साड़ी स्ट्रिपिंग, लेस ब्रा और पैंटीज रिवीलिंग जो उसके गीले स्पॉट दिखाती, जूसेज लीकिंग। "चोदो मुझे, रोहित। आंटी को झड़ाओ, मेरी चूत को अपना लंड से फाड़ दो।" वह उसे सोफा पर बेंड ओवर, उसके पुसी में पीछे से एंटरिंग। वह टाइट, वेट, उसे ग्रिपिंग जैसे वेल्वेट ग्लव, उसके जूसेज उसके लंड को स्लिपरी बनाते। "इतनी टाइट... आह!" वह हार्ड थ्रस्ट किया, उसके गांड रिपलिंग, ब्रेस्ट्स स्विंगिंग जैसे वह बैलेंस के लिए सोफा पकड़ती, उसके निप्पल्स रगड़ते। शालिनी स्क्रीम्ड, "हार्डर... भर दो मुझे, रोहित... मेरी चूत को अपने गर्म वीर्य से गीला कर दो, मुझे प्रेग्नेंट कर दो!" वह कम्ड, स्क्वर्टिंग उसके लंड पर, उसका जूस उसके थाइज पर फैलता, पुसी की दीवारें सिकुड़तीं, वह फॉलोइंग, इनसाइड कमिंग, गर्म रोप्स उसे फ्लडिंग, उसके पुसी से ओवरफ्लोइंग, उसके लेग्स पर टपकते।
उनका अफेयर खिल उठा। सीक्रेट मीटिंग्स: उसके किचन में, क्विक ब्लोजॉब्स जबकि बच्चे बाहर खेलते, वह उसके लंड को मुंह में लेती, तेजी से चूसती, सलाइवा ड्रिपिंग, "तेज चूसो, आंटी... झड़ जाओगे," वह कहता; उसकी कार में, वह बैक सीट में उसे राइडिंग, ब्रेस्ट्स उसके फेस में बाउंसिंग, उसके निप्पल्स को चूसते हुए, उसके लंड को पुसी में घुमाती। एक रात, उसके बेडरूम में, वह एनल इंट्रोड्यूस्ड। "मेरा गांड लो, बेटा, मुझे पूरा भर दो, मेरी टाइट गांड को फाड़ दो।" ल्यूब्ड, वह धीरे एंटर्ड, टाइटनेस उसे ग्रोन कराती जैसे वह उसके चीक्स को स्प्रेड करता, हेड अंदर पॉपिंग। "इतना फुल... आंटी के गांड को चोदो, जोर से धक्के मारो!" वह पाउंड किया, उसे स्पैंकिंग, उसके मोअन्स पिलो में मफल्ड, उसकी गांड उसके लंड को मिल्किंग, उसके जूसेज उसके बॉल्स पर टपकते। भावनाएं गहराई – शालिनी फील करती युवा फिर से, उसकी टाइट होल को स्ट्रेच होने का दर्द प्लेजर में बदलता, उसके अंदर की दीवारें फील होतीं; रोहित एडिक्टेड उसके एक्सपीरियंस से, उसके गांड की गर्मी को फील करना, उसके चीक्स को दबाना।
लेकिन ट्विस्ट्स आए। रोहित का बेस्ट फ्रेंड, विक्रम, 26 का, मस्कुलर 9-इंच लंड वाला, अफेयर डिस्कवर किया। जजमेंट की बजाय, वह जॉइन किया। एक शाम, विक्रम विजिट किया, उन्हें कैचिंग। "जॉइन अस," शालिनी बोल्डली बोली, उसकी आंखें लस्ट से भरी। वे उसे डबल-टीम्ड – रोहित उसके पुसी में, विक्रम उसके मुंह में, उसका लंड उसके थ्रोट को स्ट्रेचिंग। "आह... दो युवा लंड... हेवन, मेरी चूत और मुंह दोनों भरे, चूसो मुझे!" वह मल्टीपल टाइम्स कम्ड, भावनाएं स्लट्टी फ्रीडम की ओवरवेल्मिंग, उसकी पुसी स्क्वर्टिंग, जूसेज हर जगह। फिर, उसकी बेटी रिया, 18 की, क्यूरियस और हॉर्नी, उन्हें स्पाई किया, उसके कमरे से छिपकर देखती जैसे उसकी मॉम दो लंड लेती। "मॉम... मुझे भी चाहती हूं, मुझे सिखाओ कैसे चूसना है।" शालिनी, शॉक्ड लेकिन आराउज्ड, उसे इनक्लूड की – रिया को रोहित का लंड चूसना सिखाती जबकि विक्रम शालिनी को चोदता, उसके लंड को उसके मुंह में गाइडिंग। "ऐसे, बेटा... गहरा ले, जीभ घुमाओ, प्रीकम चखो," वह बोली, रिया गैगिंग लेकिन ट्राइंग, उसके छोटे मुंह में लंड स्लिपिंग, सलाइवा ड्रिपिंग। फैमिली लाइन्स ब्लर्ड, ऑर्जीज एनसुइंग, शालिनी अपनी बेटी की पुसी को लिकिंग जबकि रोहित उसे चोदता, विक्रम रिया के मुंह में। "मॉम... इतना अच्छा लगता, आपका जीभ... आह!" रिया कराही, उसकी युवा बॉडी शेकिंग ऑर्गैज्म से, उसके जूसेज शालिनी के मुंह में।
रोहित फील करता किंग, उसका लंड हर छेद में, लेकिन गिल्ट क्रेप्ट इन, टैबू की वजह से। शालिनी ने अपनी इच्छाओं को अपनाया, अब लोनली आंटी नहीं, उसकी पुसी हमेशा तैयार। कॉलोनी व्हिस्पर्ड, लेकिन उनका सीक्रेट वर्ल्ड थ्राइव्ड, पैशन में एंडलेस, हर रात नई पोजिशंस, नई कराहें, नई कमिंग, उनके बदन पसीने और वीर्य से तर।
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(10-09-2025, 06:44 PM)ratipremi Wrote: What a language, Hindi-cum-English.
Thanks brother
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11-09-2025, 04:00 PM
[img=539x1918] ![[Image: Airbrush-Image-Enhancer-1757586329645.jpg]](https://i.ibb.co/DDskRx0P/Airbrush-Image-Enhancer-1757586329645.jpg) [/img]
दूधवाले की लालच
लखनऊ के एक शांत मोहल्ले में, जहां सुबह की पहली किरणें पुराने पेड़ों की डालियों से छनकर आतीं और हवा में दूध की ताजगी और फूलों की महक घुली रहती, वहां रहती थी रानी। रानी, 28 साल की, एक साधारण गृहिणी थी, जिसका पति विजय एक छोटी सी दुकान चलाता था। रानी का बदन ऐसा था कि देखने वाले की आंखें ठहर जाएं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 36D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर आने को बेताब लगते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई सपना हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे। लेकिन रानी का जीवन सादा था – सुबह उठकर घर संभालना, पति के लिए चाय बनाना, और शाम को थककर सो जाना। विजय अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – महीने में दो-चार बार, लाइट बंद करके, ऊपर-नीचे होकर खत्म। रानी की इच्छाएं दबी हुई थीं, रातों में अकेले लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं।
मोहल्ले में दूधवाला था गोविंद, 30 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काला रंग लेकिन आंखों में चमक। गोविंद का बदन मेहनत से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मजबूत बाजू, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई छोटा नहीं। वह रोज सुबह दूध बांटता, लेकिन रानी के घर आकर थोड़ा रुकता, उसकी साड़ी की चमक को निहारता। रानी भी नोटिस करती, लेकिन शरम से नजरें झुका लेती। एक सुबह, जब विजय दुकान गया, गोविंद दूध देते समय रानी के हाथ पर उंगलियां फेर दी। "भाभी, आज दूध ताजा है, लेकिन आपकी तरह नहीं," वह मुस्कुराया। रानी शरमा गई, लेकिन उसके मन में एक गुदगुदी हुई। "गोविंद भैया, ऐसे मत बोलो," वह बोली, लेकिन उसकी आंखें उसके उभार पर ठहर गईं।
अगले दिन, रानी ने जानबूझकर साड़ी थोड़ी ढीली बांधी। गोविंद आया, दूध देते समय उसके स्तनों पर नजर पड़ी, जहां ब्लाउज से उभार झांक रहे थे। "भाभी, आपका ब्लाउज..." वह बोला। रानी ने शरमाते हुए कहा, "बटन खुल गया लगता है।" गोविंद ने हाथ बढ़ाया, बटन ठीक करते हुए उसके स्तन को छुआ। रानी की सांस रुक गई, उसके निप्पल सख्त हो गए। "गोविंद... ये क्या कर रहे हो?" लेकिन वह रुकी नहीं। गोविंद ने हिम्मत की, "भाभी, आप बहुत खूबसूरत हो, विजय भैया को तो मैं देखता हूं, लेकिन आप अकेली लगती हो।" रानी का दिल धड़का, "तुम्हें क्या पता?" गोविंद ने दूध का गिलास रखा, और उसे दीवार से सटा लिया। "मुझे सब पता है, भाभी। रातों में आप खुद को छूतियां, मैंने देखा है खिड़की से।" रानी शॉक्ड हुई, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। गोविंद ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जीभ अंदर डाल दी। रानी ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, उसके हाथ गोविंद की कमर पर चले गए।
गोविंद ने रानी की साड़ी खींची, ब्लाउज के बटन खोले, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "भाभी, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता। रानी कराह उठी, "आह... गोविंद... मत करो..." लेकिन उसके हाथ गोविंद के पैंट पर चले गए, उभार को दबाया। गोविंद ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 9 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "भाभी, देखो मेरा लंड, आपके लिए ही है।" रानी ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... विजय का तो आधा भी नहीं।" गोविंद ने रानी की साड़ी पूरी उतार दी, उसकी पैंटी गीली थी। "भाभी, आपकी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। रानी चीख उठी, "आह... हां... और गहरा..." गोविंद ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया। रानी का पानी निकलने लगा, "गोविंद... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज गोविंद के हाथ पर।
गोविंद ने रानी को किचन टेबल पर लिटाया, उसके पैर फैलाए। "भाभी, अब मेरा लंड लो।" वह अपना लंड रानी की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। रानी चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा..." गोविंद ने धक्का मारा, पूरा अंदर। रानी की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। गोविंद ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, रानी के स्तन उछल रहे थे। "भाभी, क्या टाइट चूत है... विजय भैया को तो पता ही नहीं," वह बोला। रानी कराह रही थी, "हां... चोदो मुझे... और तेज..." गोविंद ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे। रानी फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, गोविंद का लंड दब गया। गोविंद ने बाहर निकाला, रानी के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। दोनों थककर लेट गए। "भाभी, ये हमारा राज रहेगा," गोविंद बोला। रानी मुस्कुराई, "हां, लेकिन रोज आना।"
अगले दिनों, गोविंद रोज आता। कभी किचन में, कभी बाथरूम में। एक दिन, बाथरूम में नहाते वक्त गोविंद आया। रानी नंगा थी, पानी उसके बदन पर बह रहा। गोविंद ने कपड़े उतारे, अंदर आ गया। "भाभी, साथ नहाएं।" वह रानी को दीवार से सटाया, उसके स्तनों को साबुन से मला, निप्पल्स को रब किया। रानी का हाथ गोविंद के लंड पर गया, सहलाया। गोविंद ने रानी के पैर फैलाए, पीछे से लंड डाला। पानी के बीच धक्के, रानी की कराहें गूंज रही थीं। "आह... गोविंद... गहरा..." गोविंद ने उसके बाल पकड़े, जोर से चोदा। रानी का पानी निकला, गोविंद ने उसके गांड में झाड़ दिया।
फिर एक दिन, रानी ने गोविंद को बेडरूम में बुलाया। वह लिंगरी पहने थी, रेड ब्रा और पैंटी। "गोविंद, आज कुछ नया करो।" गोविंद ने रानी को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "भाभी, आज तुम मेरी हो।" वह रानी के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर, निप्पल्स को काटा, पेट पर, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा। रानी तड़प उठी, "आह... छोड़ो मुझे... चोदो!" गोविंद ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। रानी झड़ गई कई बार। आखिर में, गोविंद ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। रानी चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको।" गोविंद ने धक्के मारे, रानी को मजा आने लगा। "हां... चोदो गांड... आह!" गोविंद झड़ गया, रानी के अंदर।
समय बीतता गया, रानी की इच्छाएं बढ़ीं। वह गोविंद से कहती, "आज कुछ और करो।" गोविंद ने दोस्त बुलाया, लेकिन रानी ने मना कर दिया। "सिर्फ तुम।" लेकिन एक दिन, रानी की सहेली ने देख लिया। फिर अफवाहें फैलीं। विजय को शक हुआ। लेकिन रानी खुश थी, गोविंद के लंड की लालच में। उनकी चुदाई जारी रही, कभी खेत में, कभी गाड़ी में। रानी अब संस्कारी नहीं, एक कामुक औरत थी।
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बहू की भूख
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे चमकतीं, वहां रहता था एक जमींदार परिवार। परिवार का मुखिया था रामलाल, 55 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काले बालों में सफेदी घुली हुई, लेकिन आंखों में वही पुरानी चमक जो सालों की मेहनत से बनी थी। रामलाल का बदन अभी भी ताकतवर था – चौड़े कंधे, मोटी छाती, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं। वह विधुर था, पत्नी की मौत के बाद बहू को ही अपना सहारा बना लिया था। बहू का नाम था सीता, 26 साल की, रामलाल के बेटे श्याम की पत्नी। श्याम, 28 साल का, शहर में नौकरी करता था, महीने में एक-दो बार आता, लेकिन सीता गांव में अकेली रहती। सीता का बदन ऐसा था कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 38D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर झांकते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई देवी हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा साफ-सुथरी, लेकिन इच्छाओं से भरी। श्याम अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – शहर से आता तो थकान का बहाना, दो-चार धक्के मारकर सो जाता। सीता की रातें अकेली गुजरतीं, बिस्तर पर लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं। रामलाल सब देखता, लेकिन चुप रहता – बहू की सुंदरता पर उसका मन ललचाता, लेकिन संस्कार रोकते।
एक सुबह, श्याम शहर चला गया। सीता अकेली थी, घर संभाल रही। रामलाल खेत से लौटा, पसीने से तर, कमीज उतारकर नहाने लगा आंगन में। सीता ने पानी डाला, लेकिन नजर रामलाल के बदन पर पड़ी – उसकी मोटी छाती, मजबूत बाजू, और पैंट का उभार। सीता की सांस रुक गई, उसकी चूत में एक गुदगुदी हुई। "बाबूजी, पानी ठंडा है?" वह बोली, लेकिन आंखें नीचे। रामलाल मुस्कुराया, "ठीक है बहू, लेकिन तेरी नजरें गर्म हैं।" सीता शरमा गई, लेकिन रुकी नहीं। शाम को, रामलाल ने कहा, "सीता, आज रात साथ सो। श्याम नहीं है, अकेली मत रह।" सीता का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रात को, बिस्तर पर लेटे, रामलाल ने सीता का हाथ पकड़ा। "बहू, तू बहुत सुंदर है। श्याम को तो पता ही नहीं तेरी कीमत का।" सीता की सांस तेज हो गई, "बाबूजी... ये क्या कह रहे हो?" रामलाल ने उसे करीब खींचा, उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सीता ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, जीभ मिलाई। रामलाल का हाथ सीता के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। "आह... बाबूजी..." सीता कराही। रामलाल ने ब्लाउज खोला, ब्रा उतारी, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "क्या माल है बहू," रामलाल बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता, काटा हल्का। सीता तड़प उठी, "आह... बाबूजी... मत करो... लेकिन अच्छा लग रहा है।"
रामलाल ने सीता की साड़ी खींची, पेटीकोट उतारा, पैंटी गीली थी। "बहू, तेरी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। सीता चीख उठी, "आह... हां... और गहरा बाबूजी..." रामलाल ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया, सीता का पानी निकलने लगा। "बाबूजी... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज रामलाल के हाथ पर, बिस्तर गीला। रामलाल ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "बहू, देख मेरा लंड, तेरे लिए ही है।" सीता ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... श्याम का तो आधा भी नहीं।" रामलाल ने सीता को लिटाया, उसके पैर फैलाए। "अब लंड लो बहू।" वह अपना लंड सीता की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। सीता चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा... पूरा अंदर करो।" रामलाल ने धक्का मारा, पूरा अंदर। सीता की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। रामलाल ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, सीता के स्तन उछल रहे थे। "बहू, क्या टाइट चूत है... श्याम को तो पता ही नहीं," वह बोला। सीता कराह रही थी, "हां बाबूजी... चोदो मुझे... और तेज... आपका लंड कितना गर्म है।" रामलाल ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, सीता फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, रामलाल का लंड दब गया। रामलाल ने बाहर निकाला, सीता के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स, उसके नाभि तक फैल गए। दोनों थककर लेट गए, रामलाल ने सीता को गले लगाया। "बहू, ये हमारा राज रहेगा।" सीता मुस्कुराई, "हां बाबूजी, लेकिन रोज करो।"
अगले दिनों, रामलाल और सीता की चुदाई जारी रही। सुबह खेत में जाते वक्त, रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके पीछे से चोदता। "बहू, तेरी गांड देखकर मेरा लंड सख्त हो जाता है," वह बोला, सीता को झुकाकर लंड डाला। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको... चोदो जोर से।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता का पानी खेत में गिरा। शाम को, घर में, रामलाल सीता को बाथरूम में ले जाता। पानी के नीचे, सीता का बदन चमकता, रामलाल उसके स्तनों को साबुन से मलता, निप्पल्स को रब करता। सीता का हाथ रामलाल के लंड पर जाता, सहलाती। रामलाल सीता के पैर फैलाता, पीछे से लंड डालता। पानी के बीच धक्के, सीता की कराहें गूंजतीं। "आह... बाबूजी... गहरा... आपका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा है।" रामलाल उसके बाल पकड़ता, जोर से चोदता, सीता का पानी निकलता, रामलाल उसके गांड में झड़ जाता, गर्म वीर्य बहता पानी में।
एक दिन, सीता ने रामलाल से कहा, "बाबूजी, आज कुछ नया करो।" रामलाल ने सीता को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "बहू, आज तू मेरी है पूरी तरह।" वह सीता के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर जीभ फेरता, निप्पल्स को चाटता, काटता हल्का, सीता तड़प उठी। फिर पेट पर, नाभि में जीभ डाली, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा, सीता चीखी, "आह... बाबूजी... छोड़ो मुझे... चोदो!" रामलाल ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। सीता झड़ गई कई बार, पानी बहता रहा। आखिर में, रामलाल ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। सीता चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको... पूरा अंदर।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता को मजा आने लगा। "हां बाबूजी... चोदो गांड... आह... कितना अच्छा लग रहा!" रामलाल झड़ गया, सीता के अंदर, गर्म वीर्य बहता।
समय बीतता गया, सीता की भूख बढ़ी। वह रामलाल से कहती, "बाबूजी, आज खेत में ले चलो।" रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके चोदता, कभी मुंह में लंड डलवाता। सीता चूसती, "बाबूजी, आपका लंड कितना स्वादिष्ट।" लेकिन एक दिन, श्याम आया। सीता खुश थी, लेकिन रात को श्याम के साथ बोर हो गई। श्याम सो गया, सीता रामलाल के कमरे में चली गई। "बाबूजी, श्याम सो गया, अब चोदो मुझे।" रामलाल ने सीता को लिटाया, लंड डाला, जोर से चोदा। सीता कराही, "बाबूजी... श्याम का तो कुछ नहीं, आपका लंड ही असली है।" रामलाल ने उसके स्तनों को चूसा, चूत में धक्के मारे। सीता झड़ गई, रामलाल ने अंदर झाड़ दिया।
फिर एक दिन, गांव में मेला लगा। रामलाल और सीता मेले गए, भीड़ में छिपकर रामलाल ने सीता की साड़ी ऊपर की, उंगलियां चूत में डालीं। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको।" रामलाल ने उसे एक कोने में ले जाकर चोदा, लंड डाला, धक्के मारे। सीता का पानी बहा, रामलाल झड़ गया। घर लौटकर, दोनों थककर लेट गए। सीता अब पूरी तरह रामलाल की हो गई थी, श्याम को भूलकर। उनकी चुदाई जारी रही, कभी नदी किनारे, कभी जंगल में। सीता की भूख कभी न मिटती, रामलाल का लंड हमेशा तैयार। गांव की बहू अब एक कामुक रानी थी, बाबूजी के लंड की भूखी।
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देवर की प्यास
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, जहां गंगा की शांत लहरें किनारे पर धीरे-धीरे ठहरतीं और सुबह की ठंडी हवा में खेतों की हरीतिमा और मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली रहती, वहां रहता था एक साधारण लेकिन खुशहाल परिवार। परिवार का बड़ा बेटा था अजय, 30 साल का, जो शहर में एक छोटी सी कंपनी में नौकरी करता था और महीने में एक-दो बार ही गांव लौटता। छोटा भाई था संजय, 28 साल का, जो गांव में ही खेती-बाड़ी संभालता था, घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी। सास थी कमला, 50 साल की, विधवा, जो घर संभालती और बहू की देखभाल करती। कमला का बदन उम्र के साथ थोड़ा भारी हो गया था, लेकिन अभी भी आकर्षक – गोरी स्किन जो सालों की मेहनत से थोड़ी रूखी हो गई थी लेकिन चमकदार, छोटे बाल जो कान तक आते, 38D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से उभरते, कमर थोड़ी मोटी लेकिन कूल्हे चौड़े जो चलते वक्त लहराते, और गांड भरी हुई, मुलायम, जो साड़ी में छिपी रहती लेकिन छूने की चाहत जगाती। कमला की चूत बालों वाली, लेकिन इच्छाओं से सुलगती – पति की मौत के बाद सालों से किसी लंड की प्यासी, रातों में खुद को छूती, उंगलियां डालकर कल्पना करती किसी युवा मर्द के धक्कों की, लेकिन सास का रोल निभाती चुप रहती। बहू थी पूजा, 26 साल की, अजय की पत्नी, शहर से आई लेकिन अब गांव में सास के साथ रहती। पूजा का बदन जवानी की ताजगी से भरा – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह चमकती, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 36C के सख्त स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से उभार दिखाते, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं तो लगता जैसे कोई अप्सरा हो। उसकी गांड गोल और उभरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा साफ, गुलाबी लेबिया वाली, लेकिन पति की कमी में सुलगती। पूजा की रातें अकेली गुजरतीं, बिस्तर पर लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, निप्पल्स को पिंच करती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, उसके धक्कों से बेड हिलने की, लेकिन सास के डर से चुप रहती। संजय, देवर, मजबूत कद-काठी वाला, काला रंग लेकिन आंखों में चमक, उसका बदन खेती की मेहनत से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मोटी छाती, मजबूत बाजू, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं, 9 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो पूजा को देखकर सख्त हो जाता। संजय पूजा को देखता, लेकिन भाभी कहकर मन मारता, लेकिन कमला को भी निहारता, सास की भरी हुई गांड पर नजरें ठहरातीं।
कहानी की शुरुआत उस सर्दी की शाम से हुई, जब अजय शहर लौट गया था। गांव में ठंड बढ़ रही थी, घर में अंगीठी जल रही थी। पूजा रसोई में खाना बना रही थी, साड़ी गीली हो गई थी पानी से, ब्लाउज चिपक गया था, स्तन के उभार साफ दिख रहे थे। संजय पानी लेने आया, पूजा को देखकर ठहर गया। "भाभी, आपका ब्लाउज..." वह बोला। पूजा शरमा गई, "देवर जी, आप..." लेकिन संजय करीब आया, "भाभी, आप बहुत सुंदर हो। भैया शहर में रहते हैं, आप अकेली..." पूजा का दिल धड़का, "संजय, सासु मां हैं..." लेकिन कमला बाहर थी। संजय ने पूजा का हाथ पकड़ा, "भाभी, मैं देखता हूं, आप रातों में तड़पती हो। मैं आपकी प्यास बुझा सकता हूं।" पूजा की सांस तेज हो गई, "संजय... ये गलत है..." लेकिन संजय ने उसे दीवार से सटा लिया, होंठों पर होंठ रख दिए। पूजा ने पहले विरोध किया, लेकिन संजय की जीभ ने उसके मुंह में घुसकर खेलना शुरू किया, पूजा की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी। संजय का हाथ पूजा के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। "आह... संजय..." पूजा कराही। संजय ने ब्लाउज के हुक खोले, ब्रा उतारी, उसके सख्त स्तन बाहर आ गए – गोल, गुलाबी निप्पल्स सख्त। "भाभी, क्या माल है," संजय बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता, हल्का काटता। पूजा तड़प उठी, "आह... देवर जी... मत करो... लेकिन रुको मत..." संजय की उंगलियां पूजा की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, चूत पर रब की। पूजा की पैंटी गीली थी। "भाभी, आपकी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। पूजा चीखी, "आह... हां... और गहरा..." संजय ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया। पूजा का पानी निकलने लगा, "संजय... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज संजय के हाथ पर।
संजय ने पूजा को उठाया, बेड पर लिटाया। "भाभी, अब मेरा लंड लो।" वह अपना पैंट उतारा, लंड बाहर आया – 9 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। पूजा ने देखा, "इतना बड़ा... अजय का तो आधा।" वह हाथ में लिया, सहलाया। संजय कराहा, "भाभी, चूसो इसे।" पूजा ने मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से हेड चाटती, गहरा चूसती, गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग। संजय के मुंह से सिसकारियां निकलीं, "भाभी... आह... आपकी जीभ... कितनी गर्म..." पूजा ने चूसा, संजय ने उसके बाल पकड़े, मुंह में धक्के मारे। "भाभी, आपकी मुंह की गर्मी... आह..." पूजा की चूत फिर गीली हो गई, वह खुद को छू रही थी। संजय ने पूजा के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "भाभी, डालूं?" पूजा बोली, "हां... धीरे से... तेरा बहुत बड़ा।" संजय ने धक्का मारा, आधा अंदर। पूजा चीखी, "आह... दर्द... लेकिन अच्छा... पूरा अंदर कर..." पूरा अंदर, पूजा की चूत फैली। संजय ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, पूजा के स्तन उछल रहे थे। "भाभी, क्या टाइट चूत... भैया को तो पता नहीं।" पूजा कराही, "हां... चोद मुझे... और तेज... तेरा लंड कितना गर्म, मेरी चूत को भर रहा है।" संजय ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, पूजा फिर झड़ गई। संजय ने बाहर निकाला, पूजा के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। दोनों थककर लेट गए। "संजय, ये राज रहेगा," पूजा बोली। संजय मुस्कुराया, "हां भाभी, लेकिन रोज चोदूंगा।"
लेकिन कहानी यहां नहीं रुकी। कमला, सास, सब देख रही थी। वह रातों में पूजा की कराहें सुनती, लेकिन चुप रहती। एक दिन, कमला ने संजय को पकड़ा। "संजय, तू पूजा को चोद रहा है?" संजय डर गया, "मां... माफ करो..." लेकिन कमला मुस्कुराई, "डर मत, मैं भी प्यासी हूं। तू मुझे भी चोद।" संजय का दिल धड़का, "मां...?" कमला ने अपना ब्लाउज खोला, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए। "हां बेटा, तेरी सास की चूत भी लंड मांग रही है।" संजय ने कमला को बांहों में लिया, चूमने लगा। कमला की चूत गीली हो गई। संजय ने कमला की साड़ी उतारी, चूत चाटी। "मां, आपकी चूत कितनी स्वादिष्ट।" कमला कराही, "आह... बेटा... चाट... रातों से प्यासी हूं।" संजय ने लंड डाला, कमला चीखी, "आह... कितना बड़ा... चोद मुझे..." संजय ने धक्के मारे, कमला झड़ी। फिर पूजा आई, देखकर शॉक्ड, लेकिन शामिल हो गई। "सासु मां, मैं भी..." तीनों साथ, संजय पूजा को चोदता, कमला पूजा की चूत चाटती। "बहू, तेरी चूत मीठी।" पूजा कराही, "सासु मां... आह..." संजय कमला को चोदता, पूजा संजय का लंड चूसती। तीनों झड़े, कमरा उनकी खुशबू से भर गया।
अगले दिनों, संजय पूजा और कमला दोनों को चोदता। सुबह, खेत में, पूजा और कमला साथ, संजय दोनों की चूत चाटता। शाम को, घर में, कमला पूजा को चाटती, संजय कमला को चोदता। पूजा की भूख बढ़ी, कमला की आग सुलगी। अजय आया, लेकिन रात को पूजा संजय के पास जाती। "अजय सो गया, चोद मुझे।" संजय चोदता, पूजा झड़ती। "भाभी, अजय भैया का लंड छोटा, मेरा बेहतर।" पूजा मुस्कुराती, "हां, तेरा लंड ही असली।" कमला भी शामिल होती, तीनों की मस्ती। गांव की बहू और सास अब देवर की प्यास में डूबी हुई थीं, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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गांव की सामूहिक आग
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे चमकतीं, जहां हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और दूर किसी मंदिर की घंटियां घुली रहतीं, वहां रहती थी एक जवान विधवा नाम मीना। मीना, 28 साल की, गांव की सबसे सुंदर औरत थी, जिसका पति दो साल पहले दुर्घटना में गुजर गया था। मीना का बदन ऐसा था कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह चमकती, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते और हवा में उड़ते, 38DD के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर आने को बेताब लगते, उनके बीच की गहरी खाई जो देखने वाले को मदहोश कर देती, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती लेकिन नीचे चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं तो लगता जैसे कोई बादल तैर रहा हो। उसकी गांड गोल, भरी हुई और इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, जैसे कोई तकिया, और चूत हमेशा साफ शेव्ड, गुलाबी लेबिया वाली जो उत्तेजना में फूल जाती, अंदर से गर्म और गीली। मीना का जीवन अब सास-ससुर के साथ गुजरता था, लेकिन पति की मौत के बाद उसकी इच्छाएं सुलगती रहतीं। रातों में अकेली लेटकर वह खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, क्लिट को रब करती, निप्पल्स को पिंच करती, "आह... कोई तो चोदो मुझे... लंड की प्यास मिटाओ," वह फुसफुसाती, लेकिन गांव की मर्यादा और विधवा का दाग उसे रोकता। सास कमला, 50 की, घर संभालती, लेकिन मीना को देखकर जलती, क्योंकि मीना की जवानी उसे अपनी उम्र का अहसास कराती। ससुर हरि, 55 का, खेतों में काम करता, लेकिन मीना की गांड देखकर मन ललचाता। गांव में मजदूर थे – रामू, 30 का, मजबूत बदन वाला, काला रंग, 8 इंच लंड; शंकर, 32 का, लंबा, 9 मोटा लंड; और गोपाल, 28 का, जवान, 7 इंच लेकिन तेज। ये तीनों मीना के घर काम करते, उसकी सुंदरता पर फिदा, रातों में मीना की कल्पना करके मुठ मारते। मीना भी नोटिस करती, लेकिन शरमाती।
कहानी की शुरुआत उस गर्मी की दोपहर से हुई, जब सास कमला बाजार गई थी और ससुर हरि खेत में। मीना घर में अकेली थी, गर्मी से परेशान, साड़ी ढीली करके लेटी थी। वह खुद को छू रही थी, ब्लाउज के बटन खोले, स्तन बाहर, निप्पल्स सख्त, उंगलियां चूत में, "आह... लंड चाहिए... कोई तो भर दे मेरी चूत..." वह कराह रही थी। बाहर रामू, शंकर और गोपाल काम कर रहे थे, पानी मांगने आए। दरवाजा खुला था, वे अंदर झांककर देखा – मीना बिस्तर पर, साड़ी ऊपर, उंगलियां चूत में, कराह रही। तीनों का लंड सख्त हो गया। रामू बोला, "भाभी... पानी..." मीना चौंक गई, साड़ी ठीक की, लेकिन तीनों ने देख लिया। "रामू... तुम..." मीना शरमा गई, लेकिन उसकी चूत और गीली हो गई। रामू मुस्कुराया, "भाभी, आप तड़प रही हो, हम मदद कर सकते हैं।" मीना का दिल धड़का, "नहीं... जाओ..." लेकिन शंकर करीब आया, "भाभी, हमारा लंड देखो, आपके लिए ही सख्त है।" तीनों ने पैंट उतारी, उनके लंड बाहर – रामू का 8 इंच मोटा, शंकर का 9 इंच लंबा, गोपाल का 7 इंच तेज। मीना की आंखें चौड़ी, "इतने बड़े... लेकिन ये गलत है..." लेकिन उसका बदन गर्म हो गया। गोपाल ने मीना का हाथ पकड़ा, अपने लंड पर रखा, "छुओ भाभी..." मीना ने सहलाया, "आह... कितना गर्म..." रामू ने मीना की साड़ी खींची, ब्लाउज खोला, स्तन बाहर। "भाभी, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा। मीना कराही, "आह... रामू..." शंकर दूसरे स्तन पर, काटने लगा। गोपाल नीचे, मीना की चूत पर जीभ फेरी। "भाभी, तेरी चूत कितनी गीली," वह बोला, जीभ अंदर डाली, चाटने लगा। मीना तड़प उठी, "आह... तीनों... मत करो... लेकिन रुको मत..." तीनों ने मीना को बेड पर लिटाया, रामू ने लंड मीना के मुंह में डाला, "चूस भाभी..." मीना चूसने लगी, गैगिंग। शंकर ने चूत में लंड रगड़ा, धीरे डाला। "आह... शंकर... दर्द..." लेकिन मजा आया। गोपाल मीना के स्तनों को दबाता, निप्पल्स चूसता। शंकर ने धक्के मारे, मीना की चूत सिकुड़ी, वह झड़ गई। रामू ने मुंह में झाड़ दिया, मीना ने वीर्य निगला। फिर बदलाव – गोपाल ने चूत में लंड डाला, रामू मुंह में, शंकर स्तनों पर। मीना की कराहें गूंज रही थीं, "आह... चोदो... और तेज..." तीनों ने बारी-बारी चोदा, मीना झड़ी कई बार। आखिर में, तीनों ने मीना के बदन पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। मीना थककर लेट गई, "ये राज रहेगा।" तीनों मुस्कुराए, "हां भाभी, लेकिन रोज आएंगे।"
अगले दिनों, गैंगबैंग जारी रहा। सुबह, खेत में, मीना तीनों से चुदवाती। रामू पीछे से, शंकर मुंह में, गोपाल स्तनों पर। मीना कराही, "आह... तीन लंड... मजा आ रहा..." शाम को, घर में, तीनों मीना को बांधते, आंखों पर पट्टी। "भाभी, आज गुलाम हो।" रामू चूत चाटता, शंकर लंड मुंह में, गोपाल गांड में उंगली। मीना तड़पती, "चोदो... भर दो मुझे..." फिर तीनों एक साथ – रामू चूत में, शंकर गांड में, गोपाल मुंह में। मीना चीखी, "आह... दर्द... लेकिन मजा..." तीनों धक्के मारते, मीना झड़ती। तीनों झड़ते, मीना के बदन पर। मीना की प्यास बढ़ी, वह कहती, "और लाओ..." तीनों ने दोस्त बुलाए – दो और मजदूर। अब पांच, मीना को घेरते, बारी-बारी चोदते। मीना खुश, "आह... पांच लंड... चोदो मुझे..." गांव की विधवा अब सामूहिक आग में जल रही थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
मीना की भूख अब गांव की बात हो गई थी, लेकिन राज राज रहा। एक रात, मीना ने कहा, "आज कुछ बड़ा करो।" रामू, शंकर, गोपाल और दो दोस्त – कुल पांच – मीना को जंगल में ले गए। जंगल में, चांदनी रात, मीना नंगा लेटी। "भाभी, आज पांच लंड तेरे लिए," रामू बोला। मीना मुस्कुराई, "हां... चोदो सब मिलकर..." रामू ने चूत में लंड डाला, शंकर मुंह में, गोपाल स्तनों पर, बाकी दो सहला रहे। मीना कराही, "आह... और तेज..." बदलाव – शंकर चूत में, रामू गांड में, गोपाल मुंह में। मीना चीखी, "दो लंड एक साथ... आह... फाड़ दो..." वे धक्के मारते, मीना झड़ती कई बार, पानी बहता। आखिर में, पांचों ने मीना पर वीर्य छोड़ा, बदन गीला। मीना थककर लेटी, "मजा आया... फिर करो।" गैंगबैंग जारी रहा, मीना की आग कभी न बुझती, पांचों का लंड हमेशा तैयार। गांव की विधवा अब सामूहिक चुदाई की रानी थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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11-09-2025, 05:46 PM
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भोली लड़की की जागृति
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे पर चमकतीं, जहां हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और दूर किसी मंदिर की घंटियों की आवाज घुली रहती, वहां रहती थी एक भोली-भाली लड़की नाम रिया। रिया, 20 साल की, गांव की सबसे सादी और मासूम लड़की थी। उसका बदन अभी-अभी जवानी में कदम रखा था – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह मुलायम और चमकदार, लंबे काले बाल जो घने और चिकने, कमर तक लहराते हुए, लेकिन वह हमेशा उन्हें चोटी में बांधकर रखती। उसके स्तन 34C के, गोल और सख्त, लेकिन वह इतनी भोली थी कि ब्रा पहनना भी भूल जाती, साड़ी या सलवार में उसके उभार हल्के से दिखते, लेकिन वह ध्यान नहीं देती। पतली कमर, छोटी सी नाभि जो पेटीकोट से झांकती, और कूल्हे जो अभी विकसित हो रहे थे, लेकिन चलते वक्त हल्का लहराते। उसकी गांड गोल और नरम, लेकिन वह कभी आईने में देखकर नहीं सोचती थी। रिया की चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, बालों से हल्की कवर, लेकिन उसे सेक्स के बारे में कुछ नहीं पता था। वह सोचती भी नहीं थी, बस किताबें पढ़ती, घर का काम करती, और गांव की लड़कियों से बातें करती। उसके पिता किसान थे, मां घर संभालती, और रिया कॉलेज में पढ़ती, लेकिन गांव का कॉलेज था जहां लड़के-लड़कियां अलग बैठते। रिया को लड़कों से बात करने की आदत नहीं, वह शरमाती, नजरें झुका लेती। लेकिन उसके मन में एक अजीब सी उत्सुकता थी – रातों में कभी-कभी बदन में एक गुदगुदी होती, चूत में हल्का दर्द, लेकिन वह समझ नहीं पाती, बस सो जाती।
गांव में एक लड़का था नाम राहुल, 22 साल का, कॉलेज में रिया का सीनियर। राहुल हैंडसम था – लंबा कद, गोरा रंग, मजबूत बॉडी खेतों में काम से बनी, छोटे बाल, और मुस्कान जो लड़कियों को लुभाती। उसका लंड 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो रिया को देखकर सख्त हो जाता। राहुल गांव का बदमाश था, लड़कियों से बातें करता, लेकिन रिया जैसी भोली लड़की पर उसकी नजर थी। वह जानता था रिया सेक्स के बारे में कुछ नहीं जानती, और वह उसे फंसाना चाहता था। राहुल की योजना थी – पहले दोस्ती, फिर बातें, फिर छूना, और आखिर में चोदना। वह रिया को कॉलेज में देखता, उसके भोले चेहरे पर मुस्कुराता, लेकिन रिया नजरें झुका लेती। एक दिन, कॉलेज में, राहुल ने रिया से किताब मांगी। "रिया, तेरी नोट्स दे ना, मेरा कॉपी खो गया।" रिया शरमाते हुए बोली, "हां... ले लो।" राहुल ने किताब लेते समय उसके हाथ को छुआ, रिया की सांस रुक गई, "राहुल... क्या कर रहे हो?" राहुल मुस्कुराया, "कुछ नहीं, तेरा हाथ कितना मुलायम है।" रिया शरमा गई, लेकिन मन में एक अजीब सी खुशी हुई। अगले दिन, राहुल ने रिया को रास्ते में रोका। "रिया, साथ चलें? अकेली मत जा।" रिया ने हां कहा, रास्ते में बातें हुईं – कॉलेज की, गांव की। राहुल ने कहा, "रिया, तू बहुत भोली है, दुनिया की बातें नहीं जानती।" रिया बोली, "क्या बातें?" राहुल मुस्कुराया, "बड़ी हो गई है, लेकिन लड़कों से बात नहीं करती।" रिया शरमाई, "मुझे क्या पता..." राहुल ने धीरे-धीरे बातें बढ़ाई।
एक हफ्ते बाद, राहुल ने रिया को नदी किनारे बुलाया। "रिया, वहां चलें, ठंडी हवा लगेगी।" रिया गई, नदी का पानी चमक रहा था, हवा ठंडी। राहुल ने रिया का हाथ पकड़ा, "रिया, तू मुझे अच्छी लगती है।" रिया का दिल धड़का, "राहुल... ये क्या?" राहुल ने कहा, "रिया, लड़का-लड़की में दोस्ती होती है, स्पर्श होता है।" वह रिया के गाल पर हाथ फेरा, रिया की सांस तेज हो गई। "राहुल... ये गलत है..." लेकिन वह रुकी नहीं। राहुल ने रिया को चूमा, होंठों पर होंठ रख दिए। रिया की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी। राहुल की जीभ रिया के मुंह में गई, खेलने लगी। रिया की चूत गीली हो गई, "आह... राहुल... ये क्या है?" राहुल बोला, "ये प्यार है, रिया।" राहुल का हाथ रिया के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। रिया कराही, "आह... मत करो... लेकिन अच्छा लग रहा है।" राहुल ने ब्लाउज का हुक खोला, ब्रा उतारी, रिया के स्तन बाहर आ गए – गोल, गुलाबी निप्पल्स सख्त। "रिया, क्या माल है," राहुल बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता। रिया तड़प उठी, "आह... राहुल... ये क्या कर रहे हो... मेरी चूत में गुदगुदी हो रही है।" राहुल ने कहा, "रिया, ये सेक्स है, मजा आता है।" राहुल की उंगलियां रिया की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, चूत पर रब की। रिया चीखी, "आह... वहां मत छुओ... लेकिन रुको मत..." राहुल ने उंगलियां अंदर डालीं, रिया की चूत टाइट थी, लेकिन गीली। "रिया, तेरी चूत कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। रिया का पानी निकलने लगा, "राहुल... मैं... आह..." वह झड़ गई, पहली बार। "ये क्या हुआ?" रिया बोली। राहुल मुस्कुराया, "ये ऑर्गैज्म है, मजा आया न?" रिया शरमाई, "हां... लेकिन और करो।"
राहुल ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार। रिया की आंखें चौड़ी, "ये क्या है?" राहुल बोला, "ये लंड है, इससे चुदाई होती है। छू।" रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, "आह... कितना गर्म, सख्त।" राहुल ने कहा, "चूस रिया।" रिया ने मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से चाटती। राहुल कराहा, "आह... रिया... अच्छा चूस रही है।" रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा। राहुल ने पूजा को लिटाया, पैर फैलाए। "रिया, अब लंड लो चूत में।" रिया डरी, "दर्द होगा?" राहुल ने रगड़ा, धीरे डाला। रिया चीखी, "आह... दर्द... निकालो..." लेकिन राहुल ने धीरे धक्के मारे, दर्द मजा में बदला। "रिया, मजा आ रहा?" रिया कराही, "हां... चोदो... और तेज..." राहुल ने स्पीड बढ़ाई, रिया के स्तन उछलते, वह झड़ गई। राहुल ने बाहर निकाला, रिया के मुंह में झाड़ दिया। रिया ने वीर्य निगला, "ये क्या है?" राहुल बोला, "वीर्य, प्यार का रस।"
फिर दोनों की मस्ती जारी रही। राहुल ने रिया को सब सिखाया – ओरल, एनल, पोजिशंस। रिया अब भोली नहीं, एक कामुक लड़की थी। लेकिन गांव में राज खुला, लेकिन रिया खुश, राहुल के लंड की प्यासी। उनकी चुदाई जारी रही, कभी नदी में, कभी जंगल में। रिया की जागृति पूरी हो गई थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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भोली लड़की की जागृति : भाग 2
रिया की जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी थी। राहुल के साथ हुए उन पहले अनुभवों ने उसके मन में एक नई दुनिया खोल दी थी, जहां पहले सिर्फ मासूम सपने और किताबों की कहानियां थीं, अब वहां इच्छाओं की आग सुलग रही थी। लेकिन रिया अभी भी भोली थी – वह सेक्स को समझती थी, लेकिन उसके गहराई में नहीं उतरी थी। राहुल से मिलने के बाद, वह रातों में और ज्यादा तड़पती, बिस्तर पर लेटकर अपनी चूत को सहलाती, उंगलियां अंदर डालकर सोचती राहुल के लंड की, लेकिन कभी-कभी मन में घर की बातें आतीं, दादा जी की। दादा जी, नाम हरिशंकर, 65 साल के, गांव के बुजुर्ग, रिटायर्ड अध्यापक, जो घर में रहते, किताबें पढ़ते, और रिया को हमेशा प्यार से देखते। दादा जी का बदन उम्र के साथ थोड़ा ढीला हो गया था, लेकिन अभी भी मजबूत – सफेद बाल, दाढ़ी, चौड़ी छाती, और पजामा के नीचे उभार जो कभी-कभी दिखता, लेकिन रिया कभी ध्यान नहीं देती थी। दादा जी विधुर थे, दादी की मौत के बाद अकेले, लेकिन रिया को देखकर मन में एक पिता जैसा प्यार था, लेकिन कहीं गहराई में कुछ और भी। रिया को सेक्स की जानकारी मिलने के बाद, वह दादा जी को अलग नजर से देखने लगी – उनके मजबूत हाथ, उनकी आवाज, और कभी-कभी जब वह नहाकर आते, उनके पजामा में उभार। रिया सोचती, "दादा जी का भी वैसा ही होगा जैसा राहुल का?" लेकिन शरम से सोच दबा देती। दादा जी भी नोटिस करते, रिया की बदलती चाल, उसके बदन की नई चमक, लेकिन चुप रहते, मन में एक पुरानी आग सुलगती।
एक शाम, राहुल से मिलकर लौटते हुए रिया घर आई। राहुल ने उस दिन रिया को फिर चोदा था – जंगल में, पेड़ से सटाकर, लंड धीरे-धीरे डालकर, धक्के मारे थे, रिया झड़ी थी कई बार, उसके जूसेज जमीन पर गिरे थे, लेकिन घर लौटकर वह थकी हुई थी, बदन में एक मीठा दर्द। घर में दादा जी अकेले थे, मां-बाप खेत में काम पर। "बेटी, कहां थी इतनी देर?" दादा जी ने पूछा, उनकी आंखें रिया के चेहरे पर, जहां चुदाई की लाली अभी भी बाकी थी, उसके होंठ सूजे हुए, बाल बिखरे। रिया शरमा गई, नजरें झुका लीं, "दादा जी, सहेली के घर गई थी, बातें कर रही थी।" दादा जी मुस्कुराए, लेकिन उनकी नजर रिया के ब्लाउज पर ठहरी, जहां उसके स्तन की आउटलाइन दिख रही थी, निप्पल्स हल्के सख्त। "बेटी, तू बड़ी हो गई है, लेकिन अभी भी भोली लगती है। आ, बैठ मेरे पास, कुछ बातें करें।" रिया का दिल धड़का, लेकिन वह दादा जी के बगल में बैठ गई, उनके कंधे से सटकर। दादा जी ने रिया का हाथ पकड़ा, उसकी हथेली को सहलाया, "बेटी, जीवन में बहुत कुछ है जो किताबों में नहीं लिखा। तू कॉलेज जाती है, लेकिन दुनिया की असली बातें नहीं जानती।" रिया की सांस तेज हो गई, "क्या बातें दादा जी? आप बताओ न..." दादा जी ने कहा, "प्यार की बातें, स्पर्श की बातें, वो सब जो लड़का-लड़की में होता है। तुझे कोई लड़का पसंद है?" रिया शरमाई, उसके गाल लाल हो गए, "नहीं दादा जी... मुझे क्या पता ऐसे..." लेकिन दादा जी ने हाथ रिया की जांघ पर रखा, धीरे से सहलाया, "बेटी, डर मत, दादा जी सिखाएंगे। स्पर्श का मजा जानती है? जैसे कोई तेरे बदन को छूए, तेरे दिल में गुदगुदी हो।" रिया की सांस रुक गई, उसकी चूत में हल्की गीलापन महसूस हुआ, "दादा जी... ये क्या कर रहे हो... ये गलत है..." लेकिन वह हटी नहीं, उसके बदन में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी। दादा जी ने रिया को गले लगाया, उसके स्तनों को अपने सीने से दबाया, "बेटी, ये प्यार है, डर मत।"
रिया की आंखें बंद हो गईं, वह दादा जी के गले से लगी रही। दादा जी ने धीरे से रिया के गाल पर किस किया, फिर होंठों पर। रिया की सांस तेज हो गई, "दादा जी... ये..." लेकिन दादा जी की जीभ रिया के मुंह में घुस गई, खेलने लगी, रिया की जीभ से मिली। रिया का बदन गर्म हो गया, चूत गीली, वह जवाब देने लगी। दादा जी का हाथ रिया के ब्लाउज पर गया, धीरे से बटन खोले, ब्रा के ऊपर से स्तनों को दबाया। "आह... दादा जी..." रिया कराही, उसके निप्पल्स सख्त हो गए। दादा जी ने ब्रा उतारी, रिया के गोल स्तन बाहर आ गए – सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "बेटी, क्या सुंदर है तेरे स्तन, जैसे कोई फल," दादा जी बोले, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता, दांतों से खींचता। रिया तड़प उठी, "आह... दादा जी... मत करो... लेकिन रुको मत... अच्छा लग रहा है... मेरी चूत में कुछ हो रहा है।" दादा जी मुस्कुराए, "बेटी, वो इच्छा है, तेरी चूत गीली हो रही है।" दादा जी की उंगलियां रिया की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, पैंटी पर रब की। रिया चीखी, "आह... दादा जी... वहां मत छुओ... लेकिन छुओ..." दादा जी ने पैंटी उतारकर उंगलियां चूत पर फेरी, क्लिट को रब किया, "बेटी, कितनी गीली है तेरी चूत, जैसे नदी।" रिया कराही, "आह... हां... और..." दादा जी ने एक उंगली अंदर डाली, धीरे अंदर-बाहर किया। रिया की चूत टाइट थी, लेकिन गीली, "दादा जी... दर्द... लेकिन मजा..." दादा जी ने दो उंगलियां डालीं, स्पीड बढ़ाई, क्लिट को थंब से रब किया। रिया का पानी निकलने लगा, "दादा जी... मैं... आह... कुछ हो रहा है..." वह झड़ गई, पहली बार दादा जी के हाथ पर, जूसेज बहते। "ये क्या हुआ दादा जी?" रिया हांफते हुए बोली। दादा जी मुस्कुराए, "ये ऑर्गैज्म है बेटी, मजा आया न? अब दादा जी का देख।"
दादा जी ने अपना पजामा उतारा, लंड बाहर – 7 इंच लंबा, मोटा, उम्र के साथ थोड़ा ढीला लेकिन सख्त, नसदार, हेड पर प्रीकम। रिया की आंखें चौड़ी, "दादा जी, ये क्या है? इतना बड़ा और गर्म?" दादा जी बोले, "ये लंड है बेटी, इससे मजा मिलता है। छू।" रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, उंगलियां उसके नसों पर फिसलीं, "आह... कितना सख्त, जैसे लोहे का।" दादा जी ने कहा, "चूस बेटी, मुंह में ले।" रिया ने झिझकते हुए मुंह में लिया, जीभ से हेड चाटी, धीरे चूसने लगी। दादा जी कराहे, "आह... बेटी... अच्छा चूस रही है, जीभ घुमा..." रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग, दादा जी के लंड को गीला करती। दादा जी ने रिया के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "बेटी, अब लंड लो चूत में। डर मत, दादा जी धीरे करेंगे।" रिया बोली, "हां दादा जी... डालो... लेकिन धीरे..." दादा जी ने धक्का मारा, हेड अंदर, रिया चीखी, "आह... दर्द... निकालो..." लेकिन दादा जी ने धीरे आगे बढ़ाया, आधा अंदर। रिया की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "दादा जी... अब अच्छा लग रहा... पूरा डालो..." दादा जी ने पूरा डाला, धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई। रिया के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... दादा जी... चोदो... और तेज... आपका लंड कितना अच्छा..." दादा जी ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, रिया झड़ गई, चूत सिकुड़ी। दादा जी ने बाहर निकाला, रिया के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। रिया ने निगला, "दादा जी, ये क्या है? मीठा-मीठा।" दादा जी बोले, "वीर्य बेटी, प्यार का रस।"
अगले दिनों, दादा जी रिया को सिखाते। सुबह, जब मां-बाप बाहर, दादा जी रिया की चूत चाटते, जीभ अंदर डालते, क्लिट चूसते। "बेटी, तेरी चूत मीठी जैसे शहद।" रिया कराही, "दादा जी... आह... और चाटो..." शाम को, खेत में, दादा जी रिया को चोदते, पीछे से लंड डालते, धक्के मारते। रिया की प्यास बढ़ी, वह दादा जी से कहती, "दादा जी, आज गांड में डालो..." दादा जी ल्यूब लगाते, धीरे डालते। रिया चीखी, "दर्द... लेकिन मजा..." दादा जी धक्के मारते, रिया झड़ती। रिया अब भोली नहीं, दादा जी की आग में जल रही थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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[img=539x1972] ![[Image: 20250910-170120.jpg]](https://i.ibb.co/GgWM1GC/20250910-170120.jpg) [/img]
पंजाबी परिवार की आग
पंजाब के एक छोटे से शहर जालंधर में, जहां सरसों के खेतों की हरीतिमा दूर तक फैली रहती और हवा में मिट्टी की खुशबू और दूर किसी गुरुद्वारे की कीर्तन की आवाज घुली रहती, वहां रहता था एक साधारण लेकिन खुशहाल पंजाबी परिवार। परिवार का मुखिया था हरजीत सिंह, 45 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, सरदार, पगड़ी बांधे, मूंछें घनी और आंखों में हमेशा एक चमक। हरजीत एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था, ट्रक चलवाता था, और घर पर अपनी बीवी डॉली और बेटी पॉली के साथ खुश रहता। लेकिन हरजीत का मन थोड़ा कमजोर था – वह अपनी बीवी को कम सुनता था, हमेशा अपनी ही चलाता। डॉली, 42 साल की, घर की मालकिन, संस्कारी लेकिन अंदर से आग वाली – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो दुपट्टे में छिपे रहते, 38DD के भरे हुए स्तन जो सलवार कमीज में से उभरते, पतली कमर जो उम्र के साथ थोड़ी मोटी हो गई थी लेकिन आकर्षक, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं। डॉली की गांड भरी हुई, मुलायम, और चूत बालों वाली लेकिन गर्म, पति के लंड की प्यासी। लेकिन हरजीत रात को थककर सो जाता, महीने में दो-चार बार चोदता, वो भी जल्दबाजी में। डॉली चुप रहती, लेकिन मन में इच्छाएं सुलगती। उनकी बेटी थी पॉली, असली नाम पॉलवी, 19 साल की, कॉलेज में पढ़ती, भोली-भाली लेकिन जवानी की उमंग से भरी – गोरी स्किन, छोटे बाल जो कंधों तक, 34C के सख्त स्तन, पतली कमर और गोल गांड। पॉली की चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, लेकिन बदन की गुदगुदी से परेशान। पॉली मां की तरह संस्कारी, लेकिन पिता की बात मानती।
एक सैटरडे की सुबह, हरजीत तैयार हो रहा था काम पर जाने को। डॉली चाय बना रही थी, हरजीत ने डॉली को करीब खींचा, कान में फुसफुसाया, "डॉली, आज रात गांड में तेल लगाकर झुक के लेटी रहना, मैं आऊंगा और चोदूंगा तुझे अच्छे से, तेरी गांड मारूंगा।" डॉली की सांस रुक गई, "जी, ठीक है..." लेकिन हरजीत की आवाज तेज थी, और डॉली को सुनाई दिया "पॉली को गांड में तेल लगाकर उनके बेड पर झुक के लिटाना है"। डॉली चौंक गई, लेकिन सोचा पति ने बेटी के लिए कहा होगा, शायद कोई मजाक या गलती। लेकिन हरजीत की बात मानने की आदत से वह चुप रही। हरजीत चला गया, डॉली सोचती रही। शाम को, डॉली ने पॉली को बुलाया। "पॉली, आज रात तेरे पापा ने कहा है, गांड में तेल लगाकर उनके बेड पर झुक के लेटना है।" पॉली चौंकी, "मम्मी, ये क्या? क्यों?" डॉली बोली, "ज्यादा सवाल न पूछ, तेरे पापा ने ही बोला है। शायद कोई खेल या मजाक।" पॉली भोली थी, मां की बात मानी, लेकिन मन में उत्सुकता। रात को, डॉली ने पॉली को तेल लगाया, गांड के छेद पर मालिश की, "ये लगा, अब झुक के लेट।" पॉली शरमाई, "मम्मी, ये क्यों?" डॉली बोली, "पापा आएंगे, वो बताएंगे।" पॉली झुक के लेट गई, गांड ऊपर, चूत भी हल्की दिख रही। डॉली चली गई, कमरे की लाइट डिम कर दी, अंधेरा छा गया, सिर्फ हल्की रौशनी।
रात को हरजीत लौटा, थका हुआ लेकिन उत्तेजित। वह कमरे में आया, लाइट डिम देखी, सोचा डॉली तैयार है। वह नंगा हुआ, उसका लंड सख्त, 7 इंच मोटा, नसदार। बेड पर जाकर पीछे से लंड रगड़ा, सोचा डॉली की गांड है, लेकिन गलती से चूत में घुस गया। पॉली चीखी, "आह... दर्द..." हरजीत ने धक्का मारा, पूरा अंदर, "आह... डॉली... कितनी टाइट है आज..." पॉली चिल्लाई, "पापा... मैं पॉली..." हरजीत चौंका, लेकिन लंड अंदर था, "तो पहले क्यों नहीं बोली? अब जान दे होली होली..." वह नहीं रुका, जोर से धक्के मारे, पॉली की चूत फैली, दर्द से चीखती, "पापा... निकालो... दर्द... आह..." लेकिन हरजीत उत्तेजित, "चुप... मजा आएगा..." वह धक्के मारता रहा, पॉली की गांड थपथपाती, स्तन उछलते। पॉली चिल्लाती, "पापा... मत... आह... लेकिन... अच्छा लग रहा..." दर्द मजा में बदला, पॉली की चूत गीली, वह साथ हिलने लगी। हरजीत ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स पिंच किए, "पॉली... तेरी चूत कितनी टाइट..." पॉली कराही, "पापा... चोदो... और तेज..." हरजीत ने स्पीड बढ़ाई, पॉली झड़ी कई बार, पानी बहा। हरजीत ने अंदर झाड़ दिया, गर्म वीर्य। पॉली थककर लेटी, मजा लेते हुए। पूरी रात हरजीत ने पॉली को चोदा – डॉगी में, मिशनरी में, उसके मुंह में लंड डाला, "चूस बेटी..." पॉली चूसती, फिर चोदता। पॉली पहले चिल्लाती, फिर मजा लेती, "पापा... आपका लंड... आह..." सुबह तक, पॉली मजा लेने लगी, दर्द भूल गई। हरजीत ने कहा, "ये राज रहेगा।" पॉली मुस्कुराई, "हां पापा, लेकिन फिर करो।" पॉली अब पापा की प्यासी हो गई थी, इच्छाओं में खोई
हरजीत की रात अभी खत्म नहीं हुई थी। कमरे में डिम लाइट की हल्की रौशनी फैली हुई थी, जो पॉली के युवा बदन पर चमक रही थी, उसके गोरे चेहरे पर चुदाई की लाली अब भी बाकी थी, उसके होंठ सूजे हुए, और उसके स्तन उछलते हुए सांसों से ऊपर-नीचे हो रहे थे। हरजीत लेटा हुआ था, उसका मजबूत सरदार बदन पसीने से तर, उसका 7 इंच का लंड अभी भी सख्त, पॉली की चूत के जूसेज से गीला चमक रहा था। पॉली उसके बगल में लेटी थी, उसकी आंखें आधे बंद, बदन में एक मीठा दर्द लेकिन मजा की लहरें, वह सोच रही थी – "पापा का लंड कितना मजबूत, मेरी चूत को भर दिया, लेकिन अब क्या?" हरजीत ने पॉली को अपनी मजबूत बाहों में खींचा, उसके गाल पर किस किया, "पॉली... मेरी बेटी... तू कितनी सुंदर है, तेरी चूत ने मुझे पागल कर दिया।" पॉली शरमाई, लेकिन उसके मन में एक रोमांटिक भावना जाग रही थी, पापा का प्यार, उसकी मजबूत छाती पर सिर रखकर वह बोली, "पापा... आपने मुझे इतना मजा दिया, लेकिन ये गलत है न?" हरजीत ने उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, "गलत नहीं बेटी, ये प्यार है, बाप-बेटी का गहरा प्यार। मैं तुझे हमेशा खुश रखूंगा।" वह पॉली के होंठों पर धीरे से किस किया, जीभ मिलाई, पॉली की सांस तेज हो गई, वह जवाब देने लगी, उनके होंठ एक-दूसरे से चिपक गए, जैसे कोई रोमांटिक फिल्म का सीन। हरजीत का हाथ पॉली के स्तनों पर गया, धीरे से दबाया, निप्पल्स को उंगलियों से सहलाया, "पॉली... तेरे स्तन कितने कोमल, जैसे कोई फूल।" पॉली कराही, "पापा... आह... प्यार से करो..." हरजीत ने एक निप्पल मुंह में लिया, धीरे चूसने लगा, जीभ से चाटता, हल्का काटता, पॉली का बदन थरथरा उठा, "पापा... अच्छा लग रहा... और चूसो..."
हरजीत ने पॉली को पलटा, उसके पीछे लेट गया, उसकी गांड पर हाथ फेरा, "पॉली, तेरी गांड कितनी गोल, मुलायम... मैं इसे भी प्यार करूंगा।" पॉली शरमाई, "पापा... वहां?" हरजीत ने कहा, "हां बेटी, प्यार हर जगह होता है। डर मत, मैं धीरे करूंगा।" वह पॉली की गांड पर किस किया, जीभ से चाटा, छेद पर जीभ फेरी। पॉली तड़प उठी, "पापा... आह... गुदगुदी... लेकिन अच्छा..." हरजीत ने तेल लिया, पॉली की गांड पर मालिश की, उंगली से छेद पर रब किया, धीरे उंगली अंदर डाली। पॉली चीखी, "आह... दर्द... निकालो पापा..." लेकिन हरजीत ने धीरे अंदर-बाहर किया, "शांत बेटी, मजा आएगा..." दर्द मजा में बदला, पॉली कराही, "पापा... हां... और..." हरजीत ने अपना लंड तेल से चिकना किया, पॉली की गांड पर रगड़ा, "बेटी, अब लंड लो..." पॉली डरी, "धीरे पापा..." हरजीत ने धक्का मारा, हेड अंदर, पॉली चीखी, "आह... फट गई... निकालो..." लेकिन हरजीत ने धीरे आगे बढ़ाया, आधा अंदर, पॉली की आंसू निकले, "पापा... दर्द बहुत..." हरजीत ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स पिंच किए, "प्यार से सहन कर बेटी..." वह धीरे धक्के मारे, पॉली की गांड फैली, दर्द मजा में बदला, "पापा... अब अच्छा... और तेज..." हरजीत ने स्पीड बढ़ाई, पॉली की गांड थपथपाती, वह कराही, "आह... पापा... चोदो... तेरे लंड ने फाड़ दिया... लेकिन मजा..." हरजीत ने जोर से धक्के मारे, पॉली के बाल पकड़े, "बेटी... तेरी गांड कितनी टाइट..." पॉली झड़ी, गांड सिकुड़ी। हरजीत ने बाहर निकाला, पॉली के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। पॉली ने निगला, "पापा... प्यार है ये?" हरजीत ने गले लगाया, "हां बेटी, हमारा प्यार।" पूरी रात हरजीत ने पॉली की गांड मारी, रोमांटिक किस से शुरू, वाइल्ड धक्कों तक, पॉली चिल्लाती लेकिन मजा लेती। सुबह, पॉली थककर सोई, हरजीत मुस्कुराया। पॉली अब पापा की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई
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प्रेम की आग
महाराष्ट्र के एक छोटे से तटीय गांव में, जहां समुद्र की लहरें किनारे पर धीरे-धीरे ठहरतीं और हवा में नमकीन खुशबू और नारियल के पेड़ों की सरसराहट घुली रहती, वहां रहती थी एक युवा लड़की नाम प्रिया। प्रिया, 24 साल की, गांव की सबसे कोमल और रोमांटिक लड़की थी, जिसका बदन जैसे किसी कविता से निकला हो – गोरी स्किन जो चांदनी रात में चमकती, लंबे काले बाल जो हवा में लहराते और कमर तक पहुंचते, 34C के कोमल स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में हल्के से उभरते, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती लेकिन स्पर्श करने पर गर्माहट देती, और कूल्हे जो चलते वक्त धीरे-धीरे हिलते जैसे कोई लय हो। उसकी गांड मुलायम और गोल, छूने पर जैसे मखमल, और चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, लेकिन इच्छाओं से भरी, जो रातों में हल्की गीली हो जाती। प्रिया का जीवन सादा था – दिन में घर का काम, शाम को समुद्र किनारे टहलना, और रातों में सपने देखना किसी राजकुमार के। वह रोमांटिक किताबें पढ़ती, प्यार की कल्पना करती, लेकिन कभी किसी लड़के से बात नहीं की, शरमाती। गांव में एक लड़का था नाम विक्रम, 26 साल का, मछुआरा, मजबूत बदन वाला, गोरा रंग, लंबे बाल जो हवा में उड़ते, और मुस्कान जो दिल जीत लेती। उसका लंड 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो प्रिया को देखकर सख्त हो जाता। विक्रम प्रिया को पसंद करता, लेकिन उसकी भोलीपन से डरता, धीरे-धीरे उसे फंसाना चाहता था।
कहानी की शुरुआत उस शाम से हुई, जब प्रिया समुद्र किनारे टहल रही थी। सूरज डूब रहा था, लाल रंग की किरणें पानी पर चमक रही थीं। प्रिया की साड़ी हवा में लहरा रही थी, बाल उड़ रहे थे। विक्रम मछली पकड़कर लौट रहा था, प्रिया को देखा। "प्रिया, शाम को अकेली टहल रही हो?" वह बोला, मुस्कुराते हुए। प्रिया शरमा गई, "विक्रम... हां, बस ऐसे ही।" विक्रम करीब आया, "साथ चलूं? अंधेरा हो रहा है।" प्रिया का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रास्ते में बातें हुईं – समुद्र की, गांव की, सपनों की। विक्रम ने कहा, "प्रिया, तू बहुत सुंदर है, जैसे कोई परी।" प्रिया शरमाई, "मत बोलो ऐसे..." लेकिन मन में एक मीठी गुदगुदी हुई। अगले दिन, विक्रम ने प्रिया को फिर बुलाया, "आज शाम समुद्र किनारे चलें, मैं कुछ दिखाऊंगा।" प्रिया गई, विक्रम ने उसे एक शेल दिया, "ये तेरे लिए, तेरी आंखों जैसा सुंदर।" प्रिया मुस्कुराई, "थैंक यू विक्रम..." विक्रम ने हाथ पकड़ा, "प्रिया, मुझे तू पसंद है।" प्रिया का चेहरा लाल हो गया, "विक्रम... मैं... नहीं जानती..." विक्रम ने धीरे से उसके गाल पर हाथ रखा, "डर मत, मैं सिखाऊंगा।" वह प्रिया को चूमने लगा, होंठों पर होंठ, धीरे-धीरे, जीभ मिलाई। प्रिया की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी, उसकी सांस तेज हो गई। विक्रम का हाथ प्रिया के कमर पर गया, उसे करीब खींचा। "प्रिया... तेरा बदन कितना गर्म," वह फुसफुसाया। प्रिया कराही, "विक्रम... ये क्या... अच्छा लग रहा है..." विक्रम ने प्रिया के ब्लाउज पर हाथ फेरा, हल्के से स्तनों को छुआ। प्रिया तड़प उठी, "आह... मत करो..." लेकिन वह रुकी नहीं। विक्रम ने कहा, "प्रिया, चल घर चलें, वहां बताऊंगा।"
घर पहुंचकर, विक्रम प्रिया को अपने कमरे में ले गया, जहां सिर्फ एक बिस्तर और लैंप था। "प्रिया, लेट," वह बोला। प्रिया लेटी, विक्रम उसके बगल में। वह प्रिया को चूमने लगा, गले पर, कान पर, "प्रिया, तू मेरी है।" प्रिया की सांस तेज, "विक्रम... मैं डर रही हूं..." विक्रम ने प्रिया की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन खोले, ब्रा उतारी। प्रिया के स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "प्रिया, क्या सुंदर स्तन," विक्रम बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, धीरे चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता। प्रिया कराही, "आह... विक्रम... ये क्या... बदन में आग लग रही..." विक्रम का हाथ प्रिया की चूत पर गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। "प्रिया, तेरी चूत गीली है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां फेरी। प्रिया चीखी, "आह... वहां... मत छुओ... लेकिन रुको मत..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, धीरे अंदर-बाहर किया। प्रिया तड़पती, "आह... विक्रम... और..." विक्रम ने दो उंगलियां डालीं, स्पीड बढ़ाई, क्लिट रब किया। प्रिया का पानी निकला, "विक्रम... मैं... आह..." वह झड़ गई। "ये क्या हुआ?" प्रिया हांफते हुए बोली। विक्रम मुस्कुराया, "ये मजा है प्रिया, प्यार का।"
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार। प्रिया की आंखें चौड़ी, "ये क्या विक्रम? इतना बड़ा..." विक्रम बोला, "ये लंड है, इससे प्यार होता है। छू।" प्रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, "आह... कितना गर्म..." विक्रम ने कहा, "चूस प्रिया।" प्रिया ने मुंह में लिया, धीरे चूसने लगी, जीभ से चाटती। विक्रम कराहा, "आह... प्रिया... अच्छा..." प्रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा। विक्रम ने प्रिया के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "प्रिया, डालूं?" प्रिया बोली, "हां... लेकिन धीरे..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, प्रिया चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। प्रिया की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "विक्रम... अब अच्छा... चोदो..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, प्रिया के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरी जीभ..." विक्रम ने उसके स्तनों को चूसा, निप्पल्स काटे, प्रिया झड़ गई। विक्रम ने बाहर निकाला, प्रिया के मुंह में झाड़ दिया। प्रिया ने निगला, "विक्रम, प्यार है ये?"
अगले दिनों, विक्रम प्रिया को सिखाता। सुबह, नदी किनारे, विक्रम प्रिया की चूत चाटता, "प्रिया, तेरी चूत मीठी।" प्रिया कराही, "आह... विक्रम..." शाम को, जंगल में, विक्रम प्रिया को चोदता, पीछे से। प्रिया की प्यास बढ़ी, वह विक्रम से कहती, "आज गांड में..." विक्रम ल्यूब लगाता, धीरे डालता। प्रिया चीखी, "दर्द... लेकिन मजा..." विक्रम धक्के मारते, प्रिया झड़ती। प्रिया अब भोली नहीं, विक्रम के प्यार में खोई हुई थी, इच्छाओं की दुनिया में डूबी।
विक्रम की जिंदगी अब प्रिया के इर्द-गिर्द घूम रही थी। उस शाम के बाद, जब उन्होंने पहली बार एक-दूसरे के बदन को छुआ था, विक्रम की रातें बेचैन हो गई थीं। वह समुद्र किनारे की उस मुलाकात को बार-बार याद करता, प्रिया के कोमल होंठों का स्वाद जो अभी भी उसके मुंह में महसूस होता, उसके स्तनों की नरमी जो उसके हाथों में जैसे घुल गई थी, और उसकी चूत की गर्माहट जो उसकी उंगलियों पर अभी भी चिपकी हुई लगती। प्रिया की भोली आंखें जो उत्तेजना में चमकती थीं, उसकी शरमाती मुस्कान जो धीरे-धीरे कराह में बदल गई थी, और उसका मासूम बदन जो विक्रम के स्पर्श से थरथराता था – सब कुछ विक्रम को पागल कर रहा था। वह दिन-रात सोचता, कैसे प्रिया को फिर मिले, कैसे उसे और करीब लाए, उसके होंठ चूमे, उसके स्तनों को दबाए, उसके निप्पल्स को काटे, उसकी चूत में उंगलियां डालकर उसे तड़पाए, और आखिरकार अपना लंड उसकी टाइट चूत में घुसाकर जोर-जोर से धक्के मारे, उसकी चीखें सुनकर खुद को कंट्रोल न कर पाए। लेकिन प्रिया गांव की लड़की थी, घर की मर्यादा में बंधी, पिता की सख्ती और मां की नजरें – मिलना आसान नहीं था। विक्रम मछली पकड़ते वक्त, नाव पर बैठे, प्रिया की याद में खो जाता, उसका लंड पैंट में सख्त हो जाता, वह सहलाता, ऊपर-नीचे करता, प्रीकम लीक करता, लेकिन मजा नहीं आता, क्योंकि वह प्रिया की गर्म चूत की कल्पना करता, उसके जूसेज का स्वाद, उसकी कराहें "विक्रम... आह... और गहरा..."। "प्रिया... तू मेरी है, तेरी चूत सिर्फ मेरी," वह फुसफुसाता, और फैसला करता कि आज मिलना है, चाहे कुछ भी हो।
अगली शाम, विक्रम तैयार हुआ। वह पहले से ज्यादा उत्साहित था, क्योंकि पिछली मुलाकात में प्रिया ने वादा किया था कि वह मिलेगी। वह नहाया, ठंडे पानी से बदन को साफ किया, अपने लंड को सहलाया जैसे वह प्रिया की चूत की कल्पना कर रहा हो, फिर साफ कपड़े पहने – सफेद शर्ट जो उसके चौड़े कंधों पर फिट बैठती, और जींस जो उसके मजबूत थाइज को हाइलाइट करती, उसके उभार को हल्का दिखाती। बालों में कंघी की, थोड़ा परफ्यूम लगाया जो मस्की और मर्दाना था, और प्रिया के घर की ओर चल पड़ा। गांव की गलियां संकरी और घुमावदार थीं, शाम का धुंधलका छा रहा था, घरों से चूल्हों का धुंआ निकल रहा था, बच्चे खेल रहे थे, और कुत्ते भौंक रहे थे। विक्रम का दिल जोर से धड़क रहा था, सांसें तेज, वह सोच रहा था – प्रिया से क्या कहेगा, कैसे उसे छुएगा, उसके होंठ चूमेगा, उसके स्तनों को दबाएगा, उसके निप्पल्स को चूसेगा, उसकी चूत को चाटेगा जब तक वह तड़प न उठे, और फिर अपना लंड उसकी टाइट चूत में धीरे-धीरे घुसाएगा, उसके दर्द भरी कराहें सुनेगा "विक्रम... दर्द हो रहा... लेकिन रुको मत..."। प्रिया का घर गांव के बीच में था, छोटा सा लेकिन साफ-सुथरा, सामने छोटा सा आंगन जहां फूल लगे थे, और पीछे छोटा सा बगीचा। विक्रम पहुंचा, हाथ कांपते हुए दरवाजा खटखटाया। दिल की धड़कन इतनी तेज कि लगता जैसे बाहर सुनाई दे रही हो। वह इंतजार करता रहा, सेकंड जैसे घंटे लग रहे थे। दरवाजा खुला, लेकिन प्रिया नहीं थी – उसकी मां शांता खड़ी थी। शांता, 45 साल की, एक साधारण लेकिन अभी भी आकर्षक गृहिणी, जिसका बदन उम्र के साथ थोड़ा भरा हो गया था लेकिन गर्माहट से भरा – गोरी स्किन जो शाम की रोशनी में चमकती, छोटे बाल कान तक, 36D के स्तन जो साड़ी में छिपे लेकिन उभरे हुए, कमर थोड़ी मोटी लेकिन कूल्हे चौड़े जो चलते वक्त हिलते, और गांड भरी हुई जो साड़ी में लहराती। शांता के पति मछुआरे थे, शाम को देर से लौटते, और वह घर संभालती। "कौन है बेटा?" शांता ने पूछा, उनकी आवाज नरम लेकिन थकी हुई। विक्रम हड़बड़ाया, उसका प्लान बिगड़ गया, "आंटी... प्रिया घर है?" शांता ने विक्रम को ऊपर से नीचे देखा, उसकी मजबूत बॉडी, चेहरे की मासूमियत लेकिन आंखों की आग, और मुस्कुराई, "नहीं बेटा, वह सहेली के घर गई है, रात देर से आएगी। तू बैठ, चाय पी ले, बाहर अंधेरा हो रहा है।" विक्रम का मन निराश हुआ, लेकिन शांता को देखकर एक नई उत्तेजना जागी – शांता की साड़ी गीली लग रही थी, शायद नहाकर आई थी, ब्लाउज चिपका हुआ था, उसके स्तनों के उभार साफ दिख रहे थे, निप्पल्स की आउटलाइन जो हल्के सख्त लगते, और उसकी कमर से नीचे साड़ी उसके कूल्हों से चिपकी हुई, गांड की शेप दिखा रही थी। विक्रम का लंड हल्का सख्त हो गया, वह सोचा – प्रिया नहीं है, लेकिन आंटी अकेली है, क्या करूं? शांता चाय बनाने किचन गई, उसकी गांड लहराती हुई, विक्रम की नजरें ठहर गईं, उसका लंड पूरी तरह सख्त।
शांता चाय लेकर आई, झुककर ट्रे रखी, उसके स्तन झांक रहे थे, गहरी क्लिवेज दिख रही थी, निप्पल्स की डार्क आउटलाइन, विक्रम की आंखें वहां अटक गईं। "बेटा, चाय पी, गर्म है," शांता बोली, लेकिन विक्रम का दिमाग कुछ और सोच रहा था। वह बोला, "आंटी, आप अकेली रहती हो दिन भर? पति जी शाम को आते हैं?" शांता बैठ गई, चाय का कप हाथ में, "हां बेटा, दिन भर घर का काम, बच्चे कॉलेज, शाम को पति आते हैं। लेकिन तू प्रिया से मिलने आया था?" विक्रम ने हिम्मत की, शांता का हाथ पकड़ा, "आंटी, प्रिया अच्छी है, लेकिन आप भी बहुत सुंदर हो। आपकी आंखों में एक उदासी है, जैसे कोई प्यास हो।" शांता चौंकी, उसका हाथ छुड़ाया, "ये क्या कह रहा है बेटा? मैं तेरी मां जैसी हूं, गलत है ये।" लेकिन शांता की आंखों में एक चमक थी, सालों की अकेली रातें याद आईं, उसके पति का ठंडा व्यवहार, और विक्रम की युवा बॉडी उसे उत्तेजित कर रही थी। विक्रम नहीं रुका, वह करीब आया, शांता के गाल पर हाथ रखा, "आंटी, मैं आपको खुश कर सकता हूं, जैसे कोई औरत की प्यास बुझाता है।" शांता चिल्लाई, "रुक जा विक्रम... ये क्या कर रहा है? मैं प्रिया की मां हूं, तू उसका दोस्त है, जाओ यहां से!" वह उठने लगी, लेकिन विक्रम मजबूत था, उसने शांता को पकड़ा, सोफा पर गिरा दिया, उसके ऊपर चढ़ गया। "आंटी, शांत हो जाओ, मैं आपको मजा दूंगा, चिल्लाओ मत, कोई सुन लेगा।" शांता ने विरोध किया, हाथ-पैर मारे, "छोड़ मुझे... बदतमीज... मैं तेरी मां हूं... निकल जा!" लेकिन विक्रम ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जोर से चूमा, जीभ अंदर डाल दी, शांता की सांस रुक गई, वह विरोध करती रही लेकिन विक्रम का बदन उसके बदन से दबा था, उसका सख्त लंड शांता की जांघ पर रगड़ रहा था। शांता की चूत में एक गर्माहट फैलने लगी, सालों की प्यास जाग रही थी, "उम्म... मत कर... विक्रम... आह..." वह चिल्लाई लेकिन आवाज कमजोर हो गई।
विक्रम ने शांता की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन जोर से खोले, ब्रा फाड़कर उतार दी। शांता के भरे हुए स्तन बाहर आ गए – 36D के, थोड़े ढीले लेकिन निप्पल्स डार्क और सख्त, उत्तेजना से फूल गए। विक्रम ने एक स्तन मुंह में ले लिया, जोर से चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, दांतों से काटता, "आंटी... क्या माल है तेरे टिट्स, इतने भरे... चूसूंगा सारा दूध निकालकर。" शांता चिल्लाई, "आह... मत काट... दर्द हो रहा... छोड़ मुझे..." लेकिन उसके बदन में मजा आने लगा, निप्पल्स से电流 जैसा दौड़ रहा, चूत गीली हो गई। वह विरोध करती रही, हाथ से विक्रम को धक्का देती, लेकिन विक्रम मजबूत था, वह उसके दूसरे स्तन को दबाता, पिंच करता, "चिल्ला आंटी, लेकिन मजा ले... तेरी चूत गीली हो रही है, मैं जानता हूं।" शांता की पैंटी गीली हो गई थी, वह कराही, "नहीं... मत कर... लेकिन आह... हां... और चूस..." उसकी आवाज बदल गई, विरोध मजा में बदल रहा था। विक्रम ने शांता की साड़ी पूरी उतार दी, पेटीकोट फाड़ा, पैंटी गीली थी, जूसेज से चिपचिपी। "आंटी, देख तेरी चूत कितनी गीली, मेरे लिए बह रही है," वह बोला, पैंटी फाड़कर उतार दी, उंगलियां चूत पर रब की। शांता चिल्लाई, "आह... मत छुओ वहां... निकाल... लेकिन रुको मत... और रब..." विक्रम ने दो उंगलियां अंदर डालीं, जोर से अंदर-बाहर किया, क्लिट को थंब से मसला। शांता तड़प उठी, "आह... विक्रम... दर्द... लेकिन मजा... और तेज..." वह झड़ गई, पानी विक्रम के हाथ पर, बिस्तर गीला। "ये क्या... आह... अच्छा लगा," शांता हांफते हुए बोली, अब मजा लेने लगी, विरोध भूल गई।
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड लाल और चमकता। शांता की आंखें चौड़ी, "इतना बड़ा... मत डाल... फट जाएगी..." लेकिन विक्रम ने कहा, "आंटी, मजा आएगा, ले ले।" वह शांता के मुंह में लंड डाला, "चूस आंटी, जैसे लॉलीपॉप।" शांता पहले हिचकिचाई, "नहीं... गंदा है..." लेकिन फिर मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से चाटती, गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग। विक्रम कराहा, "आह... आंटी... तेरे मुंह की गर्मी... चूस जोर से..." शांता अब मजा ले रही थी, "उम्म... तेरे लंड का स्वाद... मीठा..." विक्रम ने शांता को लिटाया, पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "आंटी, डाल रहा हूं।" शांता चिल्लाई, "धीरे... दर्द होगा..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, शांता चीखी, "आह... निकाल... फट गई..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। शांता की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "आह... हां... अब अच्छा... चोद..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, शांता के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरा लंड... मेरी चूत को फाड़ रहा... लेकिन मजा... आह..." विक्रम ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, शांता झड़ गई, चूत सिकुड़ी। विक्रम ने जोर से धक्के मारे, शांता चीखती रही, "हां... चोद... फाड़ दे... आह..." विक्रम ने बाहर निकाला, शांता के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। शांता ने निगला, "ये... अच्छा लगा... लेकिन प्रिया को मत बताना।" विक्रम बोला, "आंटी, राज रहेगा, लेकिन फिर आऊंगा।" शांता मुस्कुराई, "हां... आना... तेरे लंड की प्यास लग गई।" प्रिया घर आई, लेकिन कुछ पता नहीं चला। शांता अब विक्रम की प्यासी हो गई थी, इच्छाओं में खोई।
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साली की साजिश
राजस्थान के उदयपुर शहर में, जहां पलास झील की शांत लहरें पहाड़ों से बातें करतीं और हवा में राजसी महलों की पुरानी खुशबू, बाजारों की मसालेदार महक और दूर किसी मंदिर की घंटियों की आवाज घुली रहती, वहां रहता था एक व्यापारी परिवार। परिवार का मुखिया था विक्रम, 32 साल का, शहर में कपड़ों की बड़ी दुकान चलाता, मजबूत कद-काठी वाला, गोरा रंग, मूंछें घनी और आंखों में व्यापार की चालाकी लेकिन दिल में एक नरमी। विक्रम का बदन जिम से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मोटी छाती जो शर्ट से उभरती, मजबूत बाजू जो मेहनत से बने, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं, 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो उत्तेजना में और सख्त हो जाता, प्रीकम लीक करता। विक्रम की बीवी थी राधा, 30 साल की, घर की मालकिन, संस्कारी लेकिन अंदर से आग वाली – गोरी स्किन, लंबे काले बाल जो दुपट्टे में छिपे रहते, 38D के भरे हुए स्तन जो सलवार कमीज में से उभरते, पतली कमर जो उम्र के साथ थोड़ी मोटी हो गई लेकिन आकर्षक, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं। राधा की गांड भरी हुई, मुलायम, और चूत बालों वाली लेकिन गर्म, पति के लंड की प्यासी, लेकिन विक्रम व्यस्त रहता, रात को थककर सो जाता, महीने में दो-चार बार चोदता, वो भी जल्दबाजी में, राधा को अधूरा छोड़कर। राधा चुप रहती, लेकिन मन में इच्छाएं सुलगती, रातों में खुद को छूती, उंगलियां चूत में डालकर कल्पना करती विक्रम के लंड की, उसके धक्कों की। लेकिन परिवार की साली नेहा, राधा की बहन, 25 साल की, जो शहर में पढ़ाई करती और छुट्टियों में आती, वह विक्रम पर फिदा थी। नेहा का बदन जवानी की आग से सुलगता – गोरी स्किन जो चांदनी में चमकती, लंबे भूरे बाल जो कंधों तक लहराते और हवा में उड़ते, 36C के सख्त स्तन जो टाइट कुर्ती में से उभरते लेकिन छूने पर गर्माहट देते, पतली कमर जो जींस में लिपटी रहती लेकिन स्पर्श पर थरथराती, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं जैसे कोई हसीना हो। उसकी गांड गोल और उभरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा क्लीन शेव्ड, गुलाबी और टाइट, जो रातों में गीली हो जाती लेकिन वह समझ नहीं पाती। नेहा विक्रम पर फिदा थी, लेकिन जीजा होने के कारण मन मारती, लेकिन मन में साजिश रचती कि कैसे विक्रम को फंसाए, उसके लंड को महसूस करे, उसके धक्कों से तड़पे। राधा अच्छी थी, लेकिन नेहा की जलन से अनजान, वह सोचती नेहा उसकी बहन है, घर की।
कहानी की शुरुआत उन गर्मियों की छुट्टियों से हुई, जब नेहा कॉलेज से घर आई। नेहा तैयार थी अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए – वह जानती थी विक्रम उसे देखता है, लेकिन राधा के कारण रुकता है। नेहा ने सोचा, धीरे-धीरे विक्रम को ललचाऊंगी, उसकी इच्छाएं जगाऊंगी, उसके लंड को सख्त करूंगी, और फिर उसे अपना बनाऊंगी। पहली शाम, नेहा घर पहुंची, विक्रम दुकान से लौटा था। नेहा ने कहा, "जीजू, मैं आ गई, छुट्टियां मनाने।" विक्रम मुस्कुराया, "आओ साली जी, घर रोशन हो गया।" नेहा ने हग किया, उसके स्तन विक्रम की छाती से दबे, विक्रम ने महसूस किया, उसका लंड हल्का सख्त। नेहा बोली, "जीजू, आप कितने मजबूत हो, आपकी बाहें..." विक्रम शरमाया, "नेहा, तू भी बड़ी हो गई है।" राधा खुश, "बहन, आ, खाना खा।" लेकिन नेहा की आंखें विक्रम पर ठहरीं। रात को, नेहा तैयार हुई – छोटी नाइटी पहनी, जो उसके स्तनों की आउटलाइन दिखाती, निप्पल्स हल्के उभरे, और नीचे शॉर्ट्स जो उसकी गांड को उभारती। वह पानी पीने किचन गई, विक्रम वहां था, चाय बना रहा। "जीजू, पानी दो न," नेहा बोली, झुककर फ्रिज से बोतल निकाली, उसके स्तन झांक रहे थे। विक्रम की नजर ठहर गई, उसका लंड सख्त हो गया। "नेहा... तू... ये क्या पहना है?" नेहा मुस्कुराई, "जीजू, गर्मी है, आप को बुरा लगा?" विक्रम की सांस तेज, "नहीं... लेकिन... राधा देख लेगी।" नेहा करीब आई, "जीजू, राधा दीदी सो गई है, आप मुझे देख रहे हो?" विक्रम का हाथ नेहा की कमर पर गया, "नेहा... तू बहुत सुंदर है..." नेहा कराही, "जीजू... छुओ न..." विक्रम ने नेहा को काउंटर से सटा लिया, चूमने लगा, होंठों पर होंठ, जीभ मिलाई। नेहा की सांस तेज, "जीजू... आह... प्यार से..." विक्रम का हाथ नेहा के स्तनों पर गया, नाइटी के ऊपर से दबाया, "नेहा... क्या सख्त स्तन..." नेहा कराही, "जीजू... दबाओ... चूसो..." विक्रम ने नाइटी उतारी, ब्रा खोला, नेहा के स्तन बाहर – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "नेहा, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से चाटता, काटता। नेहा तड़प उठी, "आह... जीजू... काटो... चूसो..." विक्रम का हाथ नेहा की चूत पर गया, शॉर्ट्स में, पैंटी गीली। "नेहा, तेरी चूत गीली है," वह बोला, शॉर्ट्स उतारकर उंगलियां फेरी। नेहा चीखी, "आह... जीजू... वहां... और..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, नेहा की चूत टाइट, लेकिन गीली। "नेहा, कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। नेहा का पानी निकला, "जीजू... मैं... आह..." वह झड़ गई। विक्रम ने अपना लंड निकाला, नेहा ने देखा, "इतना बड़ा..." विक्रम ने नेहा के मुंह में डाला, "चूस नेहा।" नेहा चूसने लगी, विक्रम कराहा, "आह... नेहा..." विक्रम ने नेहा के पैर फैलाए, लंड चूत में डाला। नेहा चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे धक्के मारे, नेहा कराही, "जीजू... चोदो... मजा आ रहा..." विक्रम ने स्पीड बढ़ाई, नेहा झड़ी, विक्रम ने अंदर झाड़ दिया। नेहा अब देवर की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई नेहा की साजिश कामयाब हो रही थी। विक्रम अब नेहा की याद में खोया रहता, राधा से कम बात करता। नेहा ने अगला कदम उठाया – रात को, जब राधा सो गई, नेहा विक्रम के कमरे में चली गई। "जीजू, मैं डर गई हूं, सो नहीं पा रही," वह बोली, नाइटी में, स्तन उभरे। विक्रम का दिल धड़का, "नेहा... राधा जाग जाएगी..." लेकिन नेहा बेड पर लेट गई, "जीजू, पकड़ो मुझे।" विक्रम ने नेहा को गले लगाया, चूमने लगा, नेहा की सांस तेज, "जीजू... आह... प्यार से..." विक्रम का हाथ नेहा के स्तनों पर गया, नाइटी के ऊपर से दबाया, "नेहा... क्या सख्त..." नेहा कराही, "जीजू... दबाओ... चूसो..." विक्रम ने नाइटी उतारी, ब्रा खोला, नेहा के स्तन बाहर – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "नेहा, क्या सुंदर," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से चाटता, काटता। नेहा तड़प उठी, "आह... जीजू... काटो... चूसो..." विक्रम का हाथ नेहा की चूत पर गया, पैंटी गीली। "नेहा, तेरी चूत गीली है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां फेरी। नेहा चीखी, "आह... जीजू... वहां... और..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, नेहा की चूत टाइट, लेकिन गीली। "नेहा, कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। नेहा का पानी निकला, "जीजू... मैं... आह..." वह झड़ गई। विक्रम ने अपना लंड निकाला, नेहा ने देखा, "इतना बड़ा..." विक्रम ने नेहा के मुंह में डाला, "चूस नेहा।" नेहा चूसने लगी, विक्रम कराहा, "आह... नेहा..." विक्रम ने नेहा के पैर फैलाए, लंड चूत में डाला। नेहा चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे धक्के मारे, नेहा कराही, "जीजू... चोदो... मजा आ रहा..." विक्रम ने स्पीड बढ़ाई, नेहा झड़ी, विक्रम ने अंदर झाड़ दिया। नेहा अब देवर की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई।
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गाँव की नई बहू
गर्मियों की वो शाम थी जब सूरज डूबते-डूबते आसमान को लाल रंग से रंग दे रहा था। गाँव का नाम था हरिपुरा, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव जीवन को सरलता देता था। लेकिन इस सरलता के पीछे छिपी थीं वो अनकही कामुकताएँ जो गाँव के युवाओं के मन में उथल-पुथल मचा देती थीं। राजू, उम्र के बीसवें पायदान पर खड़ा एक सुदृढ़ काया वाला लड़का, अपने पिता के खेतों में काम करता था। उसके पिता, रामलाल, एक सख्त स्वभाव के किसान थे, जो दिन-रात खेतों में लगे रहते। राजू का बड़ा भाई, श्याम, शहर में नौकरी करता था और हाल ही में उसकी शादी हुई थी। नई बहू का नाम था राधा।
राधा की आमदनी ने पूरे गाँव में हलचल मचा दी थी। वो शहर से आई थी, लेकिन उसकी सादगी और सुंदरता गाँव की मिट्टी से कहीं ज्यादा मोहक लगती थी। लंबे काले बाल, जो कमर तक लहराते, गोरा रंग जो सूरज की किरणों में चमकता, और वो आँखें जो किसी को भी अपनी गहराई में खींच लेतीं। उसकी उम्र महज इक्कीस साल की थी, लेकिन उसके बदन में वो नरमी थी जो किसी को भी पागल कर दे। शादी के बाद श्याम उसे गाँव ले आया था, लेकिन शहर की नौकरी के कारण वो जल्द ही वापस चला गया, छोड़कर राधा को अकेली। रामलाल ने उसे अपना बेटा-बहू समझा और राजू को हिदायत दी कि बहू का ख्याल रखना।
राजू को राधा पहली नजर में ही भा गई। वो सुबह-सुबह खेत जाते वक्त राधा को झरोक से पानी डालते देखता, उसके हाथों की चूड़ियाँ खनकतीं, साड़ी का पल्लू हवा में लहराता। लेकिन राजू जानता था कि ये सब सोचना पाप है। फिर भी, रात को सोते वक्त उसके मन में राधा की तस्वीर घूम जाती। उसका बदन गर्म हो जाता, हाथ नीचे की ओर चला जाता, और वो कल्पना करता कि राधा उसके पास है।
एक दिन, दोपहर का वक्त था। सूरज इतना तेज था कि खेतों में काम करना मुश्किल हो गया। राजू घर लौटा तो देखा कि माँ रसोई में व्यस्त है और राधा आँगन में कपड़े धो रही है। उसकी साड़ी गीली हो गई थी, जिससे उसके स्तन साफ दिख रहे थे। वो हल्की सी नारंगी साड़ी पहने थी, जो उसके गोरे बदन पर चिपक गई थी। राजू की नजरें ठहर गईं। राधा ने महसूस किया और मुस्कुराई, "भैया, आप आ गए? पानी पियो ना, गर्मी बहुत है।"
राजू ने हिचकिचाते हुए पानी पिया। उसके हाथ काँप रहे थे। राधा ने तौलिया दिया, जो उसके कंधे पर रखा था। जैसे ही राजू ने तौलिया लिया, उनके हाथ छू गए। वो स्पर्श बिजली की तरह था। राजू का दिल धक-धक करने लगा। राधा की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, शायद शहर की पढ़ाई ने उसे खुला सोचने वाला बना दिया था। "भैया, आप थक गए होंगे। अंदर आइये, मैं पैर दबा दूँ?" राधा ने हँसते हुए कहा।
राजू का मुँह सूख गया। "नहीं भाभी, मैं ठीक हूँ।" लेकिन राधा ने उसका हाथ पकड़ लिया और अंदर ले गई। कमरे में कूलर चल रहा था, हल्की ठंडक। राधा ने राजू को चारपाई पर बिठाया और उसके पैरों पर हाथ फेरने लगी। उसके हाथ नरम थे, जैसे रेशम। राजू की साँसें तेज हो गईं। वो नीचे देख रहा था, राधा की साड़ी का ब्लाउज से उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। हर मालिश के साथ, राधा का स्पर्श ऊपर की ओर बढ़ रहा था। "भैया, आपके पैर कितने मजबूत हैं। खेत का काम तो कठिन होता है।" राधा की आवाज में एक मिठास थी।
राजू कुछ बोल न पाया। उसका लिंग सख्त हो गया, पैंट में तनाव महसूस हो रहा था। राधा ने महसूस किया, उसकी नजर नीचे गई और वो मुस्कुराई। "भैया, आपको आराम मिल रहा है?" राजू ने सिर हिलाया। तभी माँ की आवाज आई, "राधा, खाना तैयार?" राधा उठी, लेकिन जाते-जाते राजू के कंधे पर हाथ रखा, "बाद में फिर आना।"
रात को खाना खाने के बाद, राजू बाहर घूम रहा था। चाँदनी रात थी, गाँव शांत। वो सोच रहा था राधा के बारे में। तभी राधा आँगन में आई, साड़ी में लिपटी, बाल खुले। "भैया, नींद नहीं आ रही?" राजू चौंका। "हाँ भाभी, गर्मी है।" राधा पास आई, "चलो, नदी किनारे चलें। वहाँ ठंडक मिलेगी।"
राजू का दिल जोर से धड़का। दोनों नदी की ओर चले। रास्ते में बातें हुईं – शहर की, गाँव की। राधा ने बताया कि श्याम भैया कितने व्यस्त रहते हैं, कभी समय नहीं देते। राजू ने सुना, लेकिन मन में कुछ और चल रहा था। नदी किनारे पहुँचकर दोनों बैठ गए। पानी की कलकल ध्वनि, हवा का स्पर्श। राधा ने साड़ी का पल्लू ठीक किया, लेकिन हवा ने उसे उड़ा दिया। उसके स्तन आधे नंगे हो गए। राजू की नजरें चिपक गईं। राधा ने नोटिस किया, लेकिन ढका नहीं। बल्कि, हल्के से हँसी, "भैया, यहाँ कोई नहीं है। शर्माने की क्या बात।"
राजू का चेहरा लाल हो गया। "भाभी, मैं..." राधा ने उसका हाथ पकड़ा, "राजू, तुम्हें अच्छी लगती हूँ ना?" राजू ने सिर हिलाया। राधा करीब आई, उसके होंठ राजू के कानों से सट गए, "मुझे भी तुम्हारी नजरें अच्छी लगती हैं। श्याम भैया तो दूर हैं, यहाँ अकेलापन सताता है।"
राजू का बदन सुलग उठा। उसने राधा को गले लगा लिया। राधा की साँसें तेज थीं। उनके होंठ मिले, पहली बार। वो चुंबन गहरा होता गया। राजू के हाथ राधा की पीठ पर फेरने लगे, साड़ी की गांठ खुलने लगी। राधा ने धीरे से राजू का हाथ नीचे ले जाकर दबाया। "धीरे भैया, सब कुछ धीरे-धीरे।"
वो रात भर नदी किनारे रहे। चुंबन के बाद, राजू ने राधा के स्तनों को छुआ। वो नरम, गोल थे। राधा की सिसकियाँ निकलीं, "आह राजू... हल्के से..." राजू ने ब्लाउज खोला, ब्रा हटाई। उसके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। वो चूसने लगा, राधा के हाथ उसके बालों में उलझ गए। नीचे हाथ गया, राधा की साड़ी ऊपर सरका दी। उसकी चूत गीली थी, पैंटी से रस टपक रहा। राजू ने उंगली डाली, राधा चीखी, "ओह... राजू... बस..."
लेकिन वो रुके नहीं। राधा ने राजू का पैंट खोला। उसका लंड बाहर आया, मोटा, लंबा। राधा ने उसे पकड़ा, सहलाया। "कितना बड़ा है... श्याम का तो आधा भी नहीं।" वो मुस्कुराई। धीरे-धीरे, राधा ने मुँह में लिया। राजू की जान निकलने लगी। जीभ घुमाती, चूसती। राजू के हाथ राधा के सिर पर, धीरे दबाव।
फिर, राधा लेट गई। "आ जा राजू... मुझे अपना बना ले।" राजू ऊपर चढ़ा। लंड चूत पर रगड़ा। राधा तड़पी, "अंदर... डाल दे..." एक धक्के में अंदर। राधा चीखी, "आह्ह्ह... दर्द... लेकिन अच्छा दर्द..." राजू धीरे-धीरे 움직ा। धप-धप की आवाज नदी की कलकल में घुल गई। हर धक्के के साथ राधा की सिसकियाँ बढ़ीं। "हाँ राजू... तेज... और तेज..."
वे घंटों चले। राजू ने राधा के अंदर झड़ दिया। दोनों पसीने से तर, गले लगे लेटे रहे। "यह राज़ रहेगा हमारा," राधा ने फुसफुसाया। राजू ने हामी भरी। लेकिन ये तो शुरुआत थी। गाँव में और रातें बाकी थीं।
भाग २: खेतों की छिपी मुलाकात
अगले दिन सुबह, राजू खेत गया। मन में राधा का चित्र घूम रहा था। हर पौधे को देखते हुए वो कल्पना करता कि राधा के बदन की तरह नरम। दोपहर को, जब सूरज चढ़ा, राजू ने देखा कि राधा खेत की ओर आ रही है। टोकरी में खाना। "भैया, माँ ने भेजा है।" लेकिन उसकी आँखों में शरारत थी।
खेत के बीच में, भूसे की आड़ में, राधा ने टोकरी रखी। "खाना खाओ, फिर..." राजू ने खाना निगला भी नहीं, राधा को खींच लिया। इस बार तेजी से। साड़ी उतारी, नंगी राधा। उसके स्तन हवा में लहराए। राजू ने चूसे, काटा। राधा की चीखें खेतों में गूँजीं, लेकिन कोई सुनने वाला न था। "राजू... यहाँ? कोई देख लेगा..." लेकिन वो खुद ही राजू के लंड पर हाथ फेर रही थी।
राजू ने राधा को भूसे पर लिटाया। पैर फैलाए, चूत पर जीभ लगाई। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... कभी ऐसा नहीं हुआ... श्याम तो..." राजू ने चाटा, रस चूसा। राधा का बदन काँप उठा। फिर, लंड अंदर। इस बार कुत्ते की तरह। राधा आगे झुकी, गांड ऊपर। राजू पीछे से धक्के मारता। धप्प... धप्प... फच... फच... आवाजें। राधा के बाल पकड़े, खींचे। "हाँ भैया... जोर से... चोदो मुझे..."
वे पसीने से भीग गए। राजू ने गांड में उंगली डाली, राधा चिल्लाई, "नहीं... वहाँ दर्द..." लेकिन राजू नहीं रुका। धीरे-धीरे, गांड में लंड रगड़ा। राधा रोई, लेकिन मजा आया। पहली बार गांड मारी। झड़ते वक्त दोनों चीखे।
शाम को घर लौटे। माँ ने कुछ शक नहीं किया। लेकिन राधा की चाल में लचक थी, राजू की आँखों में चमक। रात को, जब सब सोए, राधा राजू के कमरे में आई। "भैया, आज और..." दरवाजा बंद किया। अंधेरे में, धीरे-धीरे कपड़े उतारे। राजू ने राधा को गोद में उठाया, दीवार से सटाया। खड़े-खड़े चोदा। राधा के पैर कमर पर लपेटे। धक्के ऊपर-नीचे। "आह्ह्ह... राजू... मार डालोगे..."
सारी रात यही चला। सुबह तक थकान। लेकिन ये भूख बढ़ रही थी। गाँव के तालाब पर, जंगल में, हर जगह उनकी मिलन की कहानियाँ बन रही थीं।
भाग ३: खतरे की छाया
कुछ दिन बाद, श्याम शहर से लौटा। राधा घबरा गई। लेकिन श्याम व्यस्त था, राधा को समय ही न दिया। एक रात, श्याम सो गया, राधा चुपके राजू के पास। "भैया, सह लो ना... बिना तुम्हारे..." लेकिन श्याम जाग गया। शक हुआ। "राधा, कहाँ जाती हो रात को?" राधा ने बहाना बनाया।
अगले दिन, श्याम खेत गया। राजू से बात की। लेकिन मन में शक। शाम को, वो छिपकर देखने लगा। राधा और राजू तालाब पर मिले। श्याम ने देखा सब। गुस्सा आया, लेकिन वो चुप रहा। रात को, श्याम ने राधा को पकड़ा। "कौन है वो?" राधा रोई, सच बता दिया। श्याम गुस्से में, लेकिन शहर जाकर सोचा।
श्याम चला गया। अब राजू-राधा खुले। घर में ही। माँ को बहाना बनाकर। एक दिन, माँ गई पड़ोस। राजू ने राधा को रसोई में खींचा। चूल्हे पर सटाकर चोदा। राधा की साड़ी ऊपर, गांड पर धक्के। "आह्ह्ह... जल जाएगी... चूल्हा..." लेकिन मजा दोगुना। फिर, बेडरूम में। ६९ पोजीशन। राजू चूत चाटे, राधा लंड चूसे। फच... चूस... चाट... आवाजें।
झड़ने के बाद, लेटे रहे। "भाभी, हमेशा साथ रहोगी?" राधा मुस्कुराई, "हाँ राजू... तुम्हारा लंड मेरा है।"
लेकिन गाँव में अफवाहें फैलीं। एक दिन, पंडित जी ने देख लिया। लेकिन राजू ने डराया।
दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन राजू और राधा की प्यास कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। श्याम शहर वापस चला गया था, और घर में अब सिर्फ रामलाल, माँ, राजू और राधा थे। रामलाल सुबह से शाम तक खेतों में व्यस्त रहते, माँ घर के कामों में। ये मौका राजू और राधा के लिए स्वर्ग जैसा था। लेकिन अब वे सावधान हो गए थे, क्योंकि गाँव में अफवाहें फैलने लगी थीं। पड़ोसी की बेटी ने एक बार उन्हें जंगल में देख लिया था, लेकिन राधा ने उसे चुप करा दिया। फिर भी, खतरा था। इसलिए उन्होंने घर के अंदर ही अपनी दुनिया बसानी शुरू कर दी।
एक शाम की बात है। सूरज डूब चुका था, लेकिन गर्मी अभी भी हवा में तैर रही थी। राजू छत पर लेटा था, तारों को देखते हुए। उसके मन में राधा की यादें घूम रही थीं – उसकी नरम त्वचा, वो सिसकियाँ, वो स्पर्श जो उसे पागल बना देता। तभी सीढ़ियों से चूड़ियों की खनक सुनाई दी। राजू ने देखा, राधा ऊपर आ रही है। वो हल्की सी नीली साड़ी पहने थी, जो उसके बदन पर ऐसे चिपकी थी जैसे दूसरी त्वचा। बाल खुले, कंधों पर लहराते। "भैया, नींद नहीं आ रही? मैं भी ऊपर आ गई, ठंडी हवा लेने।" राधा ने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखों में वो शरारत थी जो राजू अच्छे से पहचानता था।
राजू उठा, राधा के पास आया। छत पर कोई नहीं था, गाँव सो चुका था। सिर्फ चाँद की रोशनी और दूर से कुत्तों की भौंकने की आवाज। राजू ने राधा का हाथ पकड़ा, "भाभी, आज यहाँ? अगर कोई देख लेगा..." राधा ने उंगली उसके होंठों पर रखी, "शश्श... कोई नहीं आएगा। माँ-पापा सो गए हैं। और मुझे आज कुछ नया चाहिए।" वो राजू को छत के कोने में ले गई, जहाँ पुरानी चारपाई पड़ी थी। राधा ने साड़ी का पल्लू गिरा दिया, उसके स्तन ब्लाउज में कैद, लेकिन निप्पल सख्त होकर उभरे हुए थे। राजू की साँसें तेज हो गईं।
धीरे से, राजू ने राधा को चारपाई पर बिठाया। उसके घुटनों पर बैठकर, ब्लाउज के हुक खोले। एक-एक करके, हुक खुलते गए। पहला हुक – राधा की साँस रुकी। दूसरा – उसके स्तन थोड़े बाहर झाँके। तीसरा – पूरी तरह खुल गया। ब्रा नहीं थी अंदर, सीधे नंगे स्तन। गोल, भरे हुए, गुलाबी निप्पल चाँदनी में चमक रहे थे। राजू ने हाथ से सहलाया, नरमी महसूस की। "भाभी, कितने मुलायम... जैसे रसभरी।" राधा हँसी, "चखो तो सही, भैया।" राजू ने मुँह लगाया, एक निप्पल को चूसा। जीभ घुमाई, हल्के से काटा। राधा की सिसकी निकली, "आह्ह्ह... राजू... धीरे... लेकिन मत रुकना।"
राधा के हाथ राजू के सिर पर, बालों को खींचते हुए। राजू ने दूसरा स्तन पकड़ा, दबाया। दूध की तरह नरम, लेकिन गर्म। वो चूसता रहा, चाटता रहा। राधा का बदन काँपने लगा। नीचे हाथ सरकाया, साड़ी की सिलवटों में। पेटीकोट ऊपर किया, पैंटी गीली हो चुकी थी। राजू ने उंगली से छुआ, रस टपका। "भाभी, इतनी गीली... मेरे लिए?" राधा ने सिर हिलाया, "हाँ राजू... सिर्फ तुम्हारे लिए। अब और मत तड़पाओ।"
राजू ने राधा को लिटाया। साड़ी पूरी उतार दी। अब राधा नंगी, चाँदनी में चमकती। उसके पैर फैलाए, चूत पर बालों की हल्की लकीर। राजू ने जीभ लगाई, चाटा। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... राजू... वहाँ... जीभ... अंदर..." राजू ने जीभ अंदर डाली, रस चूसा। राधा के कूल्हे ऊपर उठे, सिसकियाँ तेज। "हाँ... चाटो... सारा रस पी लो..." राजू ने उंगली भी डाली, दो उंगलियाँ। अंदर-बाहर। फच... फच... की आवाज छत पर गूँजी। राधा का बदन ऐंठा, वो झड़ गई। रस राजू के मुँह पर।
अब बारी राजू की। राधा उठी, राजू का पैंट खोला। लंड बाहर आया, सख्त, नसें फूली हुईं। राधा ने पकड़ा, सहलाया। "कितना मोटा... राजू, आज मुझे ऊपर रहना है।" राजू लेटा, राधा ऊपर चढ़ी। लंड चूत पर रगड़ा, धीरे से अंदर लिया। "आह्ह्ह... कितना गहरा... भर गया..." राधा ऊपर-नीचे होने लगी। धीरे पहले, फिर तेज। उसके स्तन उछलते, राजू ने पकड़े, दबाए। "हाँ भाभी... राइड करो... जोर से..." राधा की कमर घुमती, धक्के लगाती। फच... धप... की आवाजें। चाँद देख रहा था उनकी रासलीला।
राधा थकी नहीं, पोजीशन बदली। अब पीछे मुड़ी, गांड राजू की ओर। रिवर्स काउगर्ल। लंड फिर अंदर। राधा उछलती, गांड हिलाती। राजू ने गांड पर थप्पड़ मारा, "हाँ भाभी... हिलाओ... कितनी सेक्सी गांड..." राधा चीखी, "मारो राजू... थप्पड़... और..." थप... थप... की आवाज। राजू ने उंगली गांड में डाली, राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... वहाँ... हाँ... अब लंड डालो वहाँ..."
राजू उठा, राधा को घोड़ी बनाया। पहले चूत में धक्के, फिर लंड बाहर निकाला, गांड पर रगड़ा। राधा का रस चिकना कर रहा था। धीरे से दबाव, टिप अंदर। राधा रोई, "दर्द... लेकिन मत रुकना..." आधा अंदर, फिर पूरा। राजू धीरे-धीरे चोदने लगा। राधा की सिसकियाँ मिली चीखों में। "आह्ह्ह... राजू... फाड़ दो... गांड..." तेज धक्के। धप्प... धप्प... राजू के अंडे टकराते। दोनों पसीने से तर। आखिर राजू झड़ गया, गांड में। राधा भी साथ झड़ी।
वे लेटे रहे, साँसें सामान्य हुईं। राधा राजू के सीने पर सिर रखकर, "राजू, ये प्यार कभी खत्म न हो।" राजू ने गले लगाया, "नहीं होगा भाभी।" लेकिन अगले दिन, एक नया ट्विस्ट इंतजार कर रहा था। श्याम का दोस्त गाँव आया, और शक की छाया फिर घनी हो गई।
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गर्मियों की वो शाम
हैलो दोस्तों, मेरा नाम राजू है। उम्र अभी बीस साल की है, और मैं एक छोटे से गाँव में रहता हूँ, जहाँ हवा में हमेशा मिट्टी की खुशबू घुली रहती है। हमारा गाँव मध्य प्रदेश के एक कोने में बसा है, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव ही जीवन का आधार है। पापा किसान हैं, माँ घर संभालती हैं, और बड़ा भाई शादी के बाद शहर चला गया है नौकरी करने। लेकिन भाभी... अरे भाभी का नाम सुनते ही दिल में एक अजीब सी हलचल सी हो जाती है। उनका नाम है सीमा, उम्र करीब छब्बीस साल की, और वो जब गाँव आई थीं, तो पूरे मोहल्ले के लड़कों की नींद उड़ा दी थी।
वो शाम थी जून की, जब गर्मी इतनी तेज़ हो जाती है कि पेड़ों की छाँव भी गर्म लगने लगती है। मैं खेत से लौट रहा था, कंधे पर हँसिया लटका हुआ, और पसीने से पूरा बदन भीगा हुआ। सूरज डूबने को था, लेकिन वो लालिमा अभी भी आसमान को रंग रही थी। रास्ते में एक छोटा सा तालाब पड़ता है, जहाँ गाँव की औरतें स्नान करने जाती हैं। मैंने सोचा, थोड़ा ठंडा हो लूँ, तो तालाब की ओर मुड़ गया। लेकिन जैसे ही करीब पहुँचा, मुझे आवाज़ें सुनाई दीं – हल्की हँसी और पानी के छींटों की आवाज़।
मैंने झाड़ियों के पीछे छिपकर झाँका। वहाँ भाभी थीं। अकेली। उनकी साड़ी उतरकर किनारे पर रखी हुई थी, और वो सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में पानी में उतर रही थीं। भाभी का शरीर... उफ़, क्या कहूँ? गोरा-चिटा, जैसे दूध में डूबा हुआ। उनकी कमर पतली थी, लेकिन कूल्हे इतने चौड़े कि देखते ही मन में एक उत्तेजना सी दौड़ जाती। ब्लाउज़ उनके भरे हुए स्तनों को मुश्किल से समेटे हुए था, और जब वो पानी में झुकीं, तो वो गोलाई बाहर झाँकने लगी। पानी उनके लंबे काले बालों को भीगो रहा था, जो पीठ पर लहरा रहे थे।
मैं वहीं खड़ा हो गया, साँसें थम सी गईं। भाभी ने पानी में डुबकी लगाई, और ऊपर आते ही उनके होंठों पर पानी की बूँदें चमक रही थीं। उन्होंने आँखें बंद करके सिर पीछे किया, जैसे थकान मिटा रही हों। उनकी गर्दन लंबी और सुंदर, जैसे किसी राजकुमारी की। मैंने महसूस किया कि मेरा लंड कड़क हो रहा है, पैंट में दबाव सा महसूस हो रहा। मैंने हाथ से दबाने की कोशिश की, लेकिन नज़रें भाभी से हट ही नहीं रही थीं। वो पानी से बाहर निकलीं, और पेटीकोट से पानी टपक रहा था, जो उनकी जाँघों पर चमक रहा था। जाँघें मोटी, लेकिन नरम लग रही थीं, जैसे रुई की।
अचानक भाभी ने सिर घुमाया। मैंने झटके से पीछे हटना चाहा, लेकिन पैर फिसल गया। एक शाखा टूटने की आवाज़ हुई। भाभी चौंक गईं। "कौन है वहाँ?" उनकी आवाज़ मीठी, लेकिन डर भरी। मैं चुप रहा, लेकिन दिल धक-धक कर रहा था। वो साड़ी उठाकर लपेटने लगीं, जल्दी-जल्दी। लेकिन फिर मुस्कुराईं। "राजू? तू है ना?"
मैं बाहर आ गया, सिर झुकाए। "हाँ भाभी... मैं... बस ठंडा होने आया था।"
वो हँसीं, लेकिन आँखों में शरारत थी। "ठीक है, लेकिन अगली बार चोरी-चोरी मत देखना। आ जा, साथ में नहा लें। गर्मी बहुत है।"
मेरा मुंह सूख गया। भाभी ने ब्लाउज़ उतार दिया? नहीं, वो अभी भी पहने हुए थीं, लेकिन साड़ी ठीक से लिपटी नहीं थी। उनकी नाभि दिख रही थी, गोल और गहरी। मैं पानी में उतर गया, लेकिन नज़रें नीची। भाभी ने पानी उछाला मेरी ओर। "क्या शरमाता है? तू तो बड़ा हो गया अब।"
हम हँसे, लेकिन मेरी हँसी में घबराहट थी। पानी में खेलते हुए, भाभी का हाथ मेरी पीठ पर लगा। वो नरम स्पर्श... जैसे बिजली का झटका। "तेरा बदन कितना मज़बूत हो गया है, राजू। खेतों का कमाल है।" उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर घूमीं, हल्के से। मैंने कुछ न कहा, बस महसूस किया कि लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया है। पानी के नीचे छिपा हुआ, लेकिन दर्द सा हो रहा था।
शाम ढल गई। हम बाहर निकले। भाभी ने साड़ी पहनी, लेकिन उनके बाल अभी भी गीले थे, जो कंधों पर लहरा रहे थे। "चल, घर चलें। आज रात तेरे भाई का फोन आया था, वो कल आ रहे हैं। लेकिन तू आज रात मेरे साथ सोना। अकेले डर लगता है।"
मेरा दिल जोर से धड़का। भाई कल आ रहे हैं? लेकिन रात भाभी के साथ? घर पहुँचते-पहुँचते अंधेरा हो चुका था। माँ ने खाना परोसा, लेकिन मैं कुछ खा न सका। भाभी की नज़रें मुझ पर पड़ रही थीं, जैसे कुछ कह रही हों। रात के दस बजे, माँ-पापा सो गए। भाभी ने मुझे बुलाया, "राजू, आ जा ऊपर।"
उनका कमरा छत पर था, एक छोटा सा मचान। गर्मी से खिड़की खुली थी, चाँदनी फैली हुई। भाभी बिस्तर पर लेटी हुई थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी हुई, जाँघें दिख रही थीं। "गर्मी है ना? तू भी लेट जा।" मैं बिस्तर के किनारे लेटा। लेकिन नींद कहाँ आ रही थी? भाभी करवट ले रही थीं, उनका शरीर मेरे करीब सरक रहा था। उनकी साँसें मेरी गर्दन पर लग रही थीं, गर्म और तेज़।
"राजू, तू सोया नहीं?" उनकी आवाज़ फुसफुसाहट में।
"नहीं भाभी... गर्मी।"
"मैं भी नहीं। आ, मालिश कर दूँ तुझे।" वो उठीं, और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगीं। उनके हाथ नरम, तेल लगे हुए जैसे। धीरे-धीरे हाथ नीचे सरकने लगे, कमर पर। मैं सिहर उठा। "भाभी..."
"शशश... चुप। आराम दे।" उनका हाथ मेरी जाँघ पर पहुँचा। मैंने साँस रोकी। लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। भाभी ने महसूस किया, मुस्कुराईं। "क्या है ये? तू तो पुरुष हो गया लगता है।"
मैं शरम से लाल हो गया। लेकिन भाभी ने हाथ नहीं हटाया। धीरे से दबाया। "दर्द हो रहा है ना? मैं ठीक कर दूँ।"
भाग २: रात की उत्तेजना
रात के बारह बज चुके थे। चाँदनी कमरे को रोशन कर रही थी, और बाहर मेंढकों की आवाज़ें गूँज रही थीं। भाभी का हाथ अभी भी मेरी जाँघ पर था, हल्का दबाव डालते हुए। मैंने कुछ बोलना चाहा, लेकिन गला सूखा हुआ था। "भाभी, ये... ये ठीक नहीं। भैया..."
"भैया कल आएँगे। आज रात सिर्फ़ हम हैं।" उनकी आँखें चमक रही थीं, जैसे भूखी शेरनी की। वो करीब सरकीं, उनका स्तन मेरी बाँह से सटा। वो नरमी... उफ़, जैसे बादाम का हलवा। ब्लाउज़ के अंदर से गर्माहट महसूस हो रही थी। भाभी ने मेरी शर्ट उतार दी, धीरे से। "देख, कितना पसीना आ गया।"
मैं नंगा ऊपरी बदन हो गया। भाभी की उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगीं, निप्पल्स पर। एक अजीब सी सनसनी हुई, जैसे करंट दौड़ गया। "भाभी... अह्ह..." मैं सिसकारी भर आया। वो हँसीं, मीठे स्वर में। "पसंद आया? और भी मज़ा आएगा।"
उन्होंने मेरी पैंट की नाड़ा खींची। मैंने रोकना चाहा, लेकिन हाथ काँप रहे थे। पैंट नीचे सरक गई, और मेरा लंड बाहर उछल पड़ा। कड़क, लाल, नसें फूली हुईं। भाभी ने देखा, आँखें फैल गईं। "वाह राजू... कितना बड़ा है। तेरे भाई से भी ज्यादा।" उन्होंने हाथ में लिया, धीरे से सहलाया। ऊपर-नीचे। मैंने आँखें बंद कर लीं, सुख की लहर दौड़ गई।
"भाभी... ये पाप है।"
"प्यार पाप नहीं होता।" वो झुकीं, और होंठ लंड के सिरे पर रख दिए। गर्म, नम। जीभ बाहर निकली, चाटने लगी। मैं चिल्ला पड़ा, लेकिन दबा लिया। "अह्ह... भाभी... कितना अच्छा लग रहा है।" वो मुस्कुराईं, और मुंह में ले लिया। आधी लंबाई। चूसने लगीं, धीरे-धीरे। लार टपक रही थी, चटक-चटक की आवाज़। मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था, कसकर पकड़ लिया।
दस मिनट तक चूसती रहीं, कभी तेज़, कभी धीमे। मेरा वीर्य बाहर आने को था, लेकिन वो रुक गईं। "अभी नहीं। पहले तू मुझे खुश कर।" उन्होंने साड़ी उतार दी। ब्लाउज़ खोला। स्तन बाहर आ गए – बड़े, गोल, भूरे निप्पल्स तने हुए। मैंने छुआ, नरम लेकिन भरे हुए। दबाया, दूध निकलने लगा लगे। भाभी सिसकारीं, "चूस राजू... चूस अपनी भाभी के चुचे।"
मैं झुका, मुंह में लिया। चूसने लगा, जीभ से घुमाया। भाभी कराहने लगीं, "हाँ... ऐसे ही... अंदरूनी आग बुझा दे।" उनका हाथ मेरे सिर पर दबा रहा। दूसरा स्तन भी चूसा, काटा हल्के से। दांतों से। भाभी का बदन काँप रहा था।
फिर पेटीकोट उतारा। भाभी नंगी हो गईं। उनकी चूत... साफ़ शेव्ड, गुलाबी, नम चमक रही। "छू राजू... देख कितनी गीली हो गई तेरे लिए।" मैंने उँगली डाली, अंदर गर्माहट। भाभी ने कमर उभारी, "अंदर-बाहर कर... तेज़।" मैंने दो उँगलियाँ डाल दीं, चोदने लगा। पानी बहने लगा, बिस्तर गीला। भाभी की कराहें तेज़, "हाँ... चोद... अपनी भाभी की भोसड़ी चोद।"
मैं सहन न सका। ऊपर चढ़ गया। लंड चूत पर रगड़ा। भाभी ने हाथ से पकड़कर अंदर किया। "डाल राजू... भर दे मुझे।" मैंने धक्का मारा। अंदर सरक गया, गर्म, तंग। भाभी चीखी, "आह्ह... कितना मोटा है।" मैं रुका, फिर धीरे-धीरे हिलने लगा। हर धक्के में भाभी की चीखें, "हाँ... गहरा... फाड़ दे।"
रात भर चोदा। कभी मिशनरी, कभी डॉगी। भाभी ऊपर आकर नाचीं, स्तन उछल रहे। सुबह तक थक गए। लेकिन भाई आने वाले थे...
सुबह की पहली किरण कमरे में घुसी, चिड़ियों की चहचहाहट से नींद टूटी। मैंने आँखें खोलीं, तो देखा भाभी मेरी बाँहों में सिमटी हुई थीं, नंगी, उनकी साँसें मेरी छाती पर गर्म हवा की तरह लग रही थीं। रात की याद आई – वो कराहें, वो धक्के, वो चूमाचाटी। मेरा लंड फिर से हलचल करने लगा, लेकिन मैंने खुद को रोका। भाई आज आने वाले थे, और घर में माँ-पापा नीचे थे। भाभी की चूत अभी भी गीली लग रही थी, रात के रस से चिपचिपी। मैंने धीरे से उँगली फेरकर देखा, भाभी सिहर उठीं, लेकिन सोई रही।
मैं उठा, कपड़े पहने। भाभी की नंगी पीठ पर चादर डाली, उनके कूल्हों की गोलाई अभी भी दिख रही थी, जैसे आम के फल। नीचे उतरा, तो माँ चाय बना रही थीं। "बेटा, रात ठीक से सोया?" मैंने हाँ कहा, लेकिन दिल में घबराहट थी। क्या माँ को कुछ पता चला? लेकिन नहीं, वो मुस्कुरा रही थीं। पापा खेत जाने की तैयारी कर रहे थे। "राजू, आज तू भाभी को मदद कर देना घर के काम में। भैया आएंगे तो शाम का खाना अच्छा बनाना।"
दिन चढ़ा। भाभी नीचे आईं, साड़ी ठीक से लिपटी, लेकिन आँखों में वो शरारत। बाल बंधे हुए, लेकिन एक लट माथे पर लहरा रही। वो रसोई में गईं, मैं पीछे-पीछे। "भाभी, रात कैसी रही?" मैंने फुसफुसाकर पूछा। वो मुस्कुराईं, "बहुत अच्छी, लेकिन अभी थकान है। तूने तो मुझे थका दिया।" उनका हाथ मेरी कमर पर लगा, हल्के से दबाया। मैंने देखा, कोई नहीं था आसपास। मैंने भाभी को दीवार से सटाया, होंठ उनके होंठों पर रख दिए। चूमा, जीभ अंदर डाली। भाभी ने आँखें बंद कर लीं, सिसकारी भरी। "राजू... माँ आ जाएगी।"
लेकिन मैं रुका नहीं। हाथ साड़ी के अंदर डाला, जाँघों पर फेरा। भाभी की चूत फिर गीली हो रही थी। उँगली डाली, अंदर-बाहर। भाभी काँपने लगीं, "अह्ह... मत कर... लेकिन रुक मत।" पाँच मिनट तक ऐसे ही, फिर माँ की आवाज़ आई। हम अलग हुए। भाभी का चेहरा लाल, साँसें तेज़।
दोपहर हुई। भाभी खेत में घास काटने गईं। मैं भी साथ चला गया। खेत सुनसान, चारों तरफ हरी फसलें लहरा रही थीं। सूरज ऊपर, लेकिन हवा ठंडी। भाभी झुकी हुई घास काट रही थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी, जाँघें दिख रही। मैं पीछे से देख रहा था, उनकी गांड की गोलाई, जैसे दो तकिए। मैं करीब गया, कमर पकड़ी। "भाभी, मदद करूँ?" वो मुड़ीं, "हाँ, लेकिन किस काम की?" आँखों में इशारा।
मैंने भाभी को घास पर लिटा दिया। साड़ी ऊपर की, पेटीकोट खोला। चूत नंगी, गुलाबी, चमक रही। मैंने जीभ लगाई, चाटने लगा। भाभी की कराह, "आह्ह... राजू... क्या कर रहा है... खेत में?" लेकिन पैर फैला दिए। मैंने जीभ अंदर डाली, चूसा। भाभी के हाथ मेरे बालों में, दबा रही। दस मिनट तक चाटा, भाभी झड़ गईं, रस बहा। "अब तू... अपना डाल।"
मैंने पैंट खोली, लंड बाहर। भाभी ने मुंह में लिया, चूसा। गर्म, नम। फिर मैंने चूत में डाला, धक्के मारे। खेत में धमाकेदार चुदाई। भाभी की चीखें, लेकिन दूर तक कोई नहीं। "फाड़ दे... अपनी भाभी को... हाँ... गहरा।" मैंने तेज़ किया, वीर्य अंदर छोड़ा। हम थककर लेट गए, आसमान देखते हुए।
शाम हुई। भाई आए। ट्रेन से, थके हुए। "राजू, कैसा है?" मैंने गले लगाया, लेकिन मन में डर। भाभी ने खाना परोसा, लेकिन नज़रें मुझसे मिला रही थीं। रात हुई। भाई भाभी के कमरे में गए। मैं नीचे सोया, लेकिन नींद नहीं। ऊपर से आवाज़ें – भाई की खर्राटे। भाभी नीचे आईं, पानी पीने के बहाने। "राजू... भैया सो गए। आ जा ऊपर।"
मैं चुपके से ऊपर गया। भाई सोए हुए। भाभी ने मुझे बिस्तर पर खींचा। "जल्दी कर... लेकिन धीरे।" मैंने साड़ी उतारी, स्तन चूसे। भाभी सिसकारीं, लेकिन दबाकर। लंड चूत में डाला, धीमे धक्के। भाई बगल में सोए, हम चोद रहे। उत्तेजना दोगुनी। भाभी झड़ीं, मैं भी। फिर नीचे आ गया।
लेकिन अगली सुबह, भाई ने कुछ अजीब देखा। क्या पता चलेगा?
भाग ४: रहस्य का खुलना और नई शुरुआत
अगली सुबह, सूरज निकला। मैं उठा, तो देखा भाई बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे। चेहरा गंभीर। "राजू, आ जा बैठ।" मैं गया, दिल धक-धक। भाभी रसोई में, लेकिन कान लगाए। भाई बोले, "रात मैं जागा था। सब देखा।" मेरा चेहरा सफेद पड़ गया। "भैया... वो..."
भाई हँसे। "डर मत। मैं जानता हूँ। भाभी खुश नहीं थी मेरे साथ। मैं बाहर जाता हूँ, दारू पीता हूँ। लेकिन तूने उसे खुशी दी।" मैं हैरान। भाई ने कहा, "गाँव में ऐसे चलता है। लेकिन सावधान रहना। अब हम तीनों मिलकर मज़ा करेंगे।" भाभी बाहर आईं, शरमाती हुई। भाई ने भाभी को गोद में उठाया, चूमा। "आज रात तीनों साथ।"
दिन बीता। रात हुई। कमरा बंद। भाई ने भाभी की साड़ी उतारी, मैं देखता रहा। भाई का लंड छोटा था, लेकिन कड़क। भाभी ने दोनों को मुंह में लिया, बारी-बारी। "दो-दो लंड... उफ़।" भाई ने चूत में डाला, मैं गांड में। भाभी चीखी, "आह्ह... फट गई... लेकिन मज़ा आ रहा।" रात भर थ्रीसम। कभी भाई ऊपर, कभी मैं। भाभी थक गईं, लेकिन खुश।
अब हर रात ऐसी। गाँव की जिंदगी बदल गई।
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15-09-2025, 12:05 PM
(This post was last modified: 15-09-2025, 01:25 PM by Fuckuguy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
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चाची की प्यासी चूत
दोस्तों, मेरा नाम राजू है। मैं एक छोटे से शहर से हूँ, जहाँ गलियाँ तंग हैं और घरों की दीवारें एक-दूसरे से सटी हुईं। उम्र मेरी अभी बीस के आसपास होगी, लेकिन दिल में वो उमंग जो किसी जवान मर्द की होती है, वो तो बचपन से ही जाग चुकी थी। पढ़ाई के चक्कर में मैं अपने चाचा-चाची के पास दिल्ली चला आया था। चाचा एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे, सुबह आठ बजे निकल जाते और रात के नौ-दस बजे तक लौटते। चाची, अरे वाह! चाची का नाम था कमला, लेकिन सब उन्हें कमली चाची कहते थे। उम्र तैंतीस-चौंतीस की, लेकिन बदन ऐसा कि कोई भी जवान लड़का देखकर लंड खड़ा कर दे।
चाची का रंग गोरा था, जैसे दूध में डूबा हुआ। चेहरा गोल-गोल, आँखें बड़ी-बड़ी काली, होंठ गुलाबी और मोटे, जैसे चूमने को बुला रहे हों। बाल लंबे, काले, जो पीठ तक लहराते। लेकिन असली कमाल तो उनका बदन था। छाती पर दो बड़े-बड़े चुचे, कम से कम 36 का साइज होगा, जो ब्लाउज में कैद होने को तैयार न हों। कमर पतली, लेकिन कूल्हे चौड़े और भारी, जैसे साड़ी में लहराते हुए कह रहे हों – आओ ना, पकड़ लो। पैर लंबे, टांगें मोटी लेकिन सुडौल, चप्पलों में भी सेक्सी लगतीं। और वो चाल, अरे बाबा! कमर मटक-मटक कर चलतीं, मानो हर कदम में चूत की आग झलक रही हो।
मैं जब पहली बार उनके घर पहुँचा, तो चाची ने दरवाजा खोला। साड़ी पहने हुए थीं, हल्की सी सलवार जैसी, लेकिन साड़ी ही। पसीना आ गया था चेहरे पर, वो पोंछ रही थीं। "आओ राजू बेटा, आ जाओ। चाचा ने बताया था तुम आ रहे हो।" उनकी आवाज़ मीठी थी, जैसे शहद घुला हुआ। मैंने सामान रखा और अंदर आ गया। घर छोटा सा था, दो कमरे, एक किचन, एक बाथरूम। मेरा बिस्तर चाची-चाचा के कमरे में ही लगाया गया था, क्योंकि गेस्ट रूम नहीं था। सोचो, एक ही कमरे में तीन लोग! चाचा के आने पर तो ठीक, लेकिन चाचा जब बाहर होते, तो मैं और चाची अकेले।
पहले कुछ दिन तो सब सामान्य रहा। सुबह उठता, चाय पीता, चाची किचन में काम करतीं। मैं चुपके से देखता, उनकी साड़ी की प्लेट्स कैसे लहरातीं, कमर कैसे झुकती। कभी-कभी झुकते हुए चुचे झलक जाते, ब्लाउज से बाहर आने को बेताब। मेरा लंड खड़ा हो जाता, लेकिन मैं कंट्रोल करता। रात को चाची बिस्तर पर लेटतीं, साड़ी उतारकर नाइटी पहन लेतीं। नाइटी पारदर्शी सी, अंदर ब्रा-पैंटी न पहनें तो सब झलक जाए। मैं दीवार की तरफ मुँह करके लेटता, लेकिन आँखें बंद करके कल्पना करता – चाची का बदन, उनकी चूत कैसी होगी? गीली, गर्म, बालों से भरी या साफ?
एक दिन चाचा का फोन आया। "कमला, कल से एक हफ्ते के लिए बॉम्बे जाना पड़ेगा। मीटिंग है।" चाची उदास हो गईं। "अरे राम राम, फिर अकेले रहूँगी। राजू तो है ना, लेकिन वो तो बच्चा है।" बच्चा! मैंने मन ही मन हँस लिया। बच्चा जो रात को उनके बदन की कल्पना में लंड हिलाता है। चाचा चले गए। अब घर में बस मैं और चाची। शाम को चाची ने कहा, "राजू, आज रात को अच्छा खाना बनाऊँगी। तुम्हें पसंद है मटन?" मैंने हाँ कहा। किचन में चाची काम करने लगीं। मैं भी मदद के बहाने चला गया। चाची की साड़ी पीछे से चिपक गई थी पसीने से, गांड की शक्ल साफ दिख रही। गोल, मोटी, जैसे दबाने को कह रही। मेरा लंड टाइट हो गया। मैंने पानी का गिलास माँगा, चाची ने मुड़कर दिया। उनकी आँखों में कुछ था, शायद थकान, शायद कुछ और।
रात को खाना खाया। चाची ने शराब का बोतल निकाला। "चाचा की है, कभी-कभी पी लेती हूँ। तनाव कम होता है।" मैंने भी हामी भरी। दो-तीन पैग हो गए। चाची की आँखें लाल हो गईं, गाल गुलाबी। बातें करने लगे। "राजू, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?" मैंने शरमाया। "नहीं चाची।" वो हँसीं, "अरे, इतना हैंडसम हो, लड़कियाँ मरेंगी तुम पर।" उनका हाथ मेरे कंधे पर रखा। गर्म था। मेरा दिल धड़कने लगा। बिस्तर पर लेटे। चाची नाइटी में थी, मैंने देखा अंदर कुछ नहीं। चुचे की शक्ल साफ। मैंने लाइट बंद की, लेकिन नींद न आई। चाची करवट बदल रही थीं। "राजू, सो नहीं रहे?" "नहीं चाची।" "मुझे भी नींद न आ रही। चाचा चले गए, घर सूना लगता है।" मैंने हिम्मत की, "चाची, मैं हूँ ना।" वो मुड़ीं, करीब आ गईं। उनका बदन मेरे बदन से सटा। चुचे मेरी छाती से दबे। "हाँ बेटा, लेकिन तू तो भतीजा है।" उनकी साँस गर्म मेरे कान में।
धीरे-धीरे उनका हाथ मेरी कमर पर आया। मैं सिहर गया। मेरा लंड पैंट में खड़ा हो चुका था। चाची ने महसूस किया। "राजू, ये क्या?" शरम से मैं चुप। वो हँसीं धीरे से। "जवान हो गया तू।" उनका हाथ नीचे सरका। पैंट के ऊपर से लंड पकड़ा। "ओह, कितना बड़ा है। चाचा से भी ज्यादा।" मैं चौंक गया। चाची ने पैंट का नाड़ा खींचा। लंड बाहर आ गया, हवा में लहराता। चाची ने पकड़ा, हिलाने लगीं। "मस्त है राजू। कितना सख्त।" उनकी उँगलियाँ गर्म, नरम। मैंने साँस रोकी। "चाची..." वो बोलीं, "चुप। आज रात तेरी चाची तेरी रंडी बनेगी। चाचा को तो पता नहीं चलेगा।"
चाची ने नाइटी ऊपर की। उनके चुचे बाहर। बड़े, गोल, निप्पल ब्राउन। मैंने हाथ बढ़ाया, पकड़ा। नरम, लेकिन भारी। दबाया तो चाची सिसकारी। "आह राजू... दबा दे जोर से।" मैंने मसला, चूसा। निप्पल मुँह में लिया, जीभ से चाटा। चाची का हाथ तेजी से लंड पर। "उफ्फ... तेरी चाची की चुचियाँ चूस।" उनका बदन गर्म हो गया। साँसें तेज। मैंने दूसरा चुचा पकड़ा, दाँत से काटा हल्का। चाची चीखी, "आह्ह... मर गई मैं।"
अब चाची नीचे हाथ ले गईं। मेरी शर्ट उतारी, छाती चाटने लगीं। जीभ नाभि तक। मैं बर्दाश्त न कर सका। चाची को दबोचा। नाइटी पूरी ऊपर। उनकी चूत दिखी। बाल काले, घने, लेकिन चूत के होंठ गुलाबी, गीले। पसीना और रस मिला हुआ। "चाची, कितनी सुंदर है।" मैंने उँगली लगाई। चूत गर्म, चिपचिपी। चाची ने पैर फैलाए। "छू राजू... अंदर डाल।" उँगली अंदर। तंग, गीली। चाची सिसकी, "ओह्ह... हाँ... और अंदर।" मैंने दो उँगलियाँ डालीं। अंदर-बाहर। चूत का रस बहने लगा। चाची की कमर उठ रही। "आह्ह... राजू... तेरी चाची की चूत तेरे लिए ही बनी है।"
मैंने जीभ लगाई। चूत चाटी। स्वाद नमकीन, मीठा। चाची पागल। "उउउ... जीभ अंदर... चाट बेटा... चाची की चूत चाट।" मैंने क्लिटोरिस पकड़ा, चूसा। चाची काँपने लगी। "मर जाऊँगी... आह्ह... बस... अब लंड दे।" मैं ऊपर आया। लंड चूत पर रगड़ा। चाची ने पकड़ा, गाइड किया। सिर घुसा। तंग! चाची चीखी, "आह्ह... धीरे... बड़ा है।" मैं धीरे-धीरे अंदर। आधा गया। चाची की चूत लंड को निचोड़ रही। "पूरा डाल राजू... चोद अपनी चाची को।" पूरा धक्का। चूत फाड़ दी। चाची "आआआ... माँ... दर्द... लेकिन मजा।"
अब धक्के शुरू। धीरे-धीरे। हर धक्के में चूत का रस बाहर। चाची की कमर मिला रही। "हाँ राजू... जोर से... चोद... चाची की चूत फाड़ दे।" मैंने स्पीड बढ़ाई। गच्च-गच्च आवाज। चुचे लहरा रहे। मैंने चुचे पकड़े, दबाए। चाची के नाखून मेरी पीठ पर। "ओह्ह... हाँ... तेरी चाची तेरी हो गई... रोज चोदना।" पसीना दोनों पर। कमरा गर्म। चाची की साँसें मेरे कान में। "राजू... चाची का रस निकल रहा... आह्ह..."
पंद्रह मिनट चला। चाची झड़ी। चूत सिकुड़ गई, लंड निचोड़ा। मैं भी बस। "चाची... मैं..." "अंदर ही डाल बेटा... चाची की कोख में।" झड़ गया। गर्म वीर्य चूत में। चाची काँपी। हम लिपटे रहे। लंड अभी भी अंदर। चाची बोलीं, "कल फिर... चाची की प्यास बुझा।"
दोस्तों, पिछली रात की वो चुदाई अभी भी मेरे दिमाग में घूम रही थी। चाची की चूत का स्वाद, उनका बदन का गर्माहट, वो सिसकारियाँ – सब कुछ जैसे सपना सा लग रहा था। सुबह उठा तो चाची पहले ही किचन में थीं। साड़ी पहने, लेकिन ब्लाउज का हुक खुला सा, पीठ नंगी दिख रही। मैंने पीछे से जाकर कमर पकड़ी। "चाची, गुड मॉर्निंग।" वो मुड़ीं, मुस्कुराईं। "शैतान, रात को तो सोया नहीं, अब सुबह-सुबह?" लेकिन उनकी आँखों में वो ही आग थी। हाथ मेरे लंड पर रख दिया। "ये तो अभी भी खड़ा है।" मैंने हँस दिया। "चाची की याद में।"
नाश्ता किया। चाची ने कहा, "राजू, आज गर्मी बहुत है। नहा लें साथ में?" दिल धड़क गया। साथ नहाना! बाथरूम छोटा सा, लेकिन मजा दोगुना। मैंने हाँ कहा। चाची ने दरवाजा बंद किया। साड़ी उतारने लगीं। पहले पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे हुए। फिर ब्लाउज के हुक खोले, एक-एक करके। पहला हुक, चुचे थोड़े ढीले। दूसरा, निप्पल झलकने लगे। तीसरा, पूरा ब्लाउज खुला। चुचे बाहर, लटकते हुए, लेकिन सख्त। चाची ने ब्रा नहीं पहनी थी। "देख राजू, तेरी चाची के दूध।" मैंने पकड़े, दबाए। नरम गोले, हाथ में भर न आए। चाची सिसकी, "आह... धीरे बेटा।"
फिर साड़ी का नाड़ा खींचा। साड़ी नीचे गिरी। पेटीकोट में चाची, कूल्हे चौड़े। पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया, वो भी गिरा। अब चाची पूरी नंगी। बदन गोरा, चूत पर काले बाल, थोड़े गीले से। टांगें सुडौल, जांघें मोटी। चाची ने मुड़कर शावर ऑन किया। पानी बहने लगा। "आ राजू, तू भी उतार।" मैंने शर्ट उतारी, पैंट। लंड खड़ा, सलामी देता। चाची ने देखा, "वाह, कितना मोटा।" पानी के नीचे खड़े हो गए। चाची का बदन भीग गया। बाल गीले, चेहरे पर पानी। चुचे चमक रहे, पानी की बूँदें निप्पल से टपकतीं।
मैंने साबुन लिया, चाची की पीठ पर लगाया। हाथ फिसलते, नरम त्वचा। कमर तक, फिर गांड पर। गोल गांड, साबुन से फिसलन। उँगली गांड की दरार में डाली। चाची सिहरी, "उफ्फ... शैतान... वहाँ क्या?" मैंने हँसा, "चाची की गांड भी तो साफ करनी है।" वो मुड़ीं, मेरे सीने पर साबुन लगाने लगीं। हाथ नीचे, लंड पर। साबुन से झाग बना, हिलाने लगीं। "तेरा लंड कितना गर्म है।" पानी बहता रहा, हम लिपटे। चाची के चुचे मेरी छाती से दबे। मैंने चाची को दीवार से सटाया। जीभ उनके होंठों पर। किस किया, गहरा। जीभ अंदर, चाची की जीभ चूसी।
अब नीचे हाथ। चाची की चूत पर साबुन। बालों में झाग। उँगली अंदर। चूत गीली, पानी और रस से। चाची की साँस तेज। "राजू... उँगली मत डाल... लंड दे।" लेकिन मैंने जारी रखा। दो उँगलियाँ, अंदर-बाहर। चाची की कमर हिलने लगी। "आह्ह... बस... नहाते हुए चोद।" मैंने लंड पकड़ा, चूत पर रगड़ा। पानी बहता, फिसलन। सिर घुसा। चाची चीखी, "ओह्ह... हाँ..." धक्का दिया, पूरा अंदर। चूत तंग, गर्म। पानी के नीचे चुदाई। हर धक्के में पानी छलकता। चाची के चुचे उछलते। "जोर से राजू... चाची की चूत में जोर से।" मैंने स्पीड बढ़ाई। गांड पकड़ी, उठाया। चाची की टांगें मेरी कमर पर। दीवार से सटाकर चोदा। "उफ्फ... मर गई... तेरी चाची तेरी रखैल है।"
दस मिनट चला। चाची झड़ी, चूत ने लंड निचोड़ा। "आह्ह... रस निकल रहा..." मैं भी झड़ा, अंदर। पानी से सब धुल गया। हम हाँफते रहे। चाची बोलीं, "मजा आया बेटा। अब रोज नहाएँगे साथ।"
शाम हुई। चाचा कल आने वाले थे। चाची उदास। "राजू, आज आखिरी रात। चाचा आ जाएँगे तो मुश्किल।" मैंने कहा, "चाची, आज पूरी रात चोदूँगा।" रात को खाना खाया। चाची ने फिर शराब निकाली। पैग लगाए। चाची नशे में। "राजू, आज कुछ नया कर।" मैंने पूछा, "क्या?" वो शरमाईं, "पीछे से... गांड में।" मैं चौंक गया। "चाची, दर्द होगा।" "होगा तो सही, लेकिन मजा भी। चाचा कभी नहीं करते।"
बिस्तर पर। चाची नाइटी उतारी। नंगी लेटीं, गांड ऊपर। गोल, मोटी गांड। मैंने तेल लिया, गांड की छेद पर लगाया। उँगली डाली। तंग! चाची सिसकी, "धीरे..." दो उँगलियाँ। चाची दर्द से, लेकिन मजा ले रही। "हाँ... अब लंड।" लंड पर तेल लगाया। सिर छेद पर। दबाया। नहीं घुसा। चाची बोली, "जोर से।" धक्का। सिर घुसा। चाची चीखी, "आआआ... माँ... फट गई।" लेकिन रुकी नहीं। "और अंदर।" धीरे-धीरे पूरा। गांड गर्म, तंग। मैंने धक्के शुरू। चाची की चूत में उँगली डाली साथ। "ओह्ह... हाँ... गांड मार... चाची की गांड फाड़।" स्पीड बढ़ी। चाची पागल। "उफ्फ... मजा आ रहा... झड़ रही हूँ।" झड़ी। मैं भी गांड में झड़ा।
रात भर चुदाई। कभी मिशनरी, कभी डॉगी। सुबह तक थक गए। चाची बोलीं, "राजू, चाचा आए तो सावधान। लेकिन मौका मिला तो फिर।"
दोस्तों, चाचा आ गए थे। घर फिर से सामान्य लगने लगा, लेकिन मेरे और चाची के बीच वो आग अभी भी सुलग रही थी। चाचा सुबह काम पर जाते, शाम को लौटते। मैं कॉलेज जाता, लेकिन दिमाग चाची पर अटका रहता। उनकी वो मटकती कमर, गीली चूत की याद – लंड दिन भर खड़ा रहता। चाची भी मौका देखतीं। कभी किचन में, कभी बाथरूम के पास। एक नजर, एक मुस्कान, और दिल धड़क जाता। लेकिन चाचा घर में होते, तो सावधानी बरतनी पड़ती।
एक दिन सुबह। चाचा तैयार हो रहे थे। चाची चाय बना रही थीं। मैं टेबल पर बैठा। चाची ने चाय दी, और झुककर। ब्लाउज का गला खुला, चुचे झलक गए। निप्पल सख्त। मैंने देखा, लंड हिला। चाची मुस्कुराईं, धीरे से बोलीं, "राजू, शाम को चाचा देर से आएँगे।" दिल खुश हो गया। चाचा चले गए। मैं कॉलेज जाने को तैयार। लेकिन चाची ने रोका। "राजू, आज कॉलेज मत जा। बीमार का बहाना बना ले।" मैंने हाँ कहा। घर में अकेले।
चाची ने दरवाजा बंद किया। साड़ी में थीं, लेकिन जल्दी उतारने लगीं। पल्लू गिराया। ब्लाउज टाइट, चुचे दबे हुए। "राजू, आ जा। चाची की बाहों में।" मैंने पकड़ा। किस किया। होंठ गर्म, जीभ मिली। चाची की साँस तेज। हाथ मेरी पीठ पर, नाखून गड़ाए। मैंने ब्लाउज के हुक खोले। एक, दो, तीन। चुचे बाहर। बड़े, गोरे, निप्पल ब्राउन। पकड़े, दबाए। चाची सिसकी, "आह... जोर से दबा... चाची के दूध मसल।" मैंने मुँह लगाया। एक चुचा चूसा, दूसरे को दबाया। जीभ निप्पल पर घुमाई। चाची का हाथ मेरी पैंट पर। नाड़ा खींचा, लंड बाहर। "ओह राजू, कितना तना हुआ।"
चाची घुटनों पर बैठीं। लंड मुँह में लिया। गर्म मुँह, जीभ लंड के सिर पर। चूसने लगीं। धीरे-धीरे, पूरा अंदर। मैंने बाल पकड़े, मुँह चोदा। "चाची... उफ्फ... चूसो... तेरी जीभ कमाल है।" चाची तेज चूसतीं, लंड गीला हो गया। थूक से चमकता। मैं बर्दाश्त न कर सका। चाची को उठाया, सोफे पर लिटाया। साड़ी ऊपर की। पैंटी नहीं। चूत नंगी, बाल गीले। "चाची, तैयार हो?" वो बोलीं, "हाँ बेटा... चोद... लेकिन धीरे, आवाज न हो।" मैंने लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। चूत गर्म, चिपचिपी। धक्का दिया, आधा अंदर। चाची ने मुँह दबाया, "आह्ह... दर्द... लेकिन मजा।"
पूरा अंदर। अब धक्के। सोफा हिलता, लेकिन धीरे। हर धक्के में चूत का रस बहता। चाची की कमर मिलाती। "हाँ राजू... गहरा... चाची की चूत में गहरा।" मैंने चुचे पकड़े, दबाते हुए चोदा। चाची की आँखें बंद, सिसकारियाँ। "उफ्फ... तेरी चाची पागल हो रही... जोर से।" स्पीड बढ़ाई। गच्च-गच्च आवाज। चाची झड़ने लगी। "आह्ह... रस... निकल रहा..." चूत सिकुड़ी, लंड निचोड़ा। मैं भी झड़ा, अंदर। गर्म वीर्य। हम हाँफते रहे। सोफे पर पड़े। चाची बोलीं, "राजू, चाचा घर में हैं तो ऐसे ही चोरी-छिपे।"
शाम हुई। चाचा देर से आए। रात को डिनर। चाचा थके हुए, जल्दी सो गए। मैं और चाची बिस्तर पर। चाचा बीच में। लेकिन चाची ने इशारा किया। आधी रात। चाचा सो रहे। चाची उठीं, किचन की तरफ। मैं भी पीछे। किचन में अंधेरा। चाची ने मुझे दबोचा। "राजू, जल्दी... चाचा जग न जाएँ।" साड़ी ऊपर की। गांड पीछे की। "पीछे से डाल।" मैंने पैंट नीचे की। लंड चूत पर। धक्का। अंदर। चाची झुकी हुई, सिंक पकड़े। मैंने कमर पकड़ी, चोदा। धीरे-धीरे। चाची मुँह दबाए। "आह... हाँ... गांड हिला... चोद।" हर धक्के में गांड थप-थप। मजा दोगुना। चाची की चूत रस बहाती। "राजू... तेज... लेकिन चुप।" मैंने स्पीड बढ़ाई। चुचे पीछे से पकड़े, दबाए। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी साफ किया, वापस बिस्तर पर।
कुछ दिन ऐसे ही चले। लेकिन एक दिन डर लग गया। चाचा अचानक बीमार। घर पर रहने लगे। चाची उदास। मैं भी। मौका न मिलता। चाची ने कहा, "राजू, अब क्या?" मैंने सोचा। "चाची, छत पर?" शाम को छत पर गए। बहाना सैर का। छत अंधेरी। चाची ने साड़ी ऊपर की। दीवार से सटकर। "जल्दी राजू।" लंड अंदर। चोदा। हवा में, खुले में। मजा अलग। चाची सिसकी, "उफ्फ... बाहर चुदाई... नया मजा।" लेकिन नीचे से आवाज आई। चाचा पुकार रहे। "कमला, कहाँ हो?" हम रुक गए। लंड बाहर। साड़ी ठीक की। नीचे आए। चाचा ने पूछा, "ऊपर क्या कर रहे?" चाची बोलीं, "हवा खा रहे।" लेकिन दिल धड़क रहा था। पकड़े जाने का डर
दोस्तों, अब घर में टेंशन बढ़ने लगी थी। चाचा को शक होने लगा था। वो कभी अचानक कमरे में आ जाते, कभी रात को जागते रहते। मैं और चाची डरते-डरते मिलते। लेकिन वो आग तो बुझने वाली नहीं थी। चाची की चूत की प्यास, मेरे लंड की भूख – दोनों मिलकर हमें पागल कर रहे थे। एक शाम चाचा ऑफिस से जल्दी आ गए। हम किचन में थे। चाची सब्जी काट रही थीं, मैं पानी पी रहा था। चाची ने झुककर कुछ उठाया, साड़ी ऊपर सरकी, जांघें दिखीं। मैंने देखा, लंड हिला। चाची ने आँख मारी। लेकिन चाचा अंदर आ गए। "क्या कर रहे हो दोनों?" चाची घबराईं, "कुछ नहीं, राजू पानी माँग रहा था।" चाचा ने संदेह से देखा, लेकिन कुछ न कहा।
रात हुई। बिस्तर पर तीनों। चाचा बीच में। मैं किनारे। चाची का हाथ धीरे से मेरी तरफ आया। अंधेरे में। उँगलियाँ मेरी कमर पर। मैं सिहर गया। चाचा की साँसें नियमित, सोए हुए। चाची का हाथ नीचे, पैंट पर। लंड पकड़ा। हिलाने लगीं। धीरे-धीरे। मैंने मुँह दबाया, आवाज न निकले। लंड सख्त हो गया। चाची ने पैंट का नाड़ा ढीला किया, लंड बाहर निकाला। उँगलियाँ गर्म, नरम। ऊपर-नीचे। मैंने चाची की तरफ हाथ बढ़ाया। उनकी साड़ी ऊपर की। चूत छुई। गीली! बाल चिपचिपे। उँगली अंदर डाली। चाची सिसकी हल्की, लेकिन दबाई। हम दोनों ऐसे ही, चाचा के बगल में। लंड हिलाती चाची, चूत में उँगली मैं। मजा अलग, लेकिन डर भी।
अचानक चाचा करवट बदले। हम रुक गए। हाथ हटाए। दिल धड़क रहा। चाचा फिर सो गए। चाची ने इशारा किया, उठीं। मैं भी। हम बाथरूम में घुसे। दरवाजा बंद। अंधेरा। चाची ने मुझे दबोचा। "राजू, जल्दी... चाचा जग न जाएँ।" साड़ी ऊपर की। दीवार से सटकर। पैर फैलाए। मैंने लंड बाहर निकाला। चूत पर रगड़ा। गीली, गर्म। सिर घुसा। चाची ने मुँह पर हाथ रखा। "आह... धीरे।" धक्का दिया, पूरा अंदर। बाथरूम छोटा, हम सटे हुए। धक्के शुरू। धीरे-धीरे। हर धक्के में चूत का रस टपकता। चाची की साँसें तेज, लेकिन दबी हुई। "हाँ राजू... चोद... चाची की चूत में।" मैंने कमर पकड़ी, स्पीड बढ़ाई। चुचे ब्लाउज से दबाए। निप्पल सख्त। चाची काँपी, "उफ्फ... झड़ रही हूँ।" चूत सिकुड़ी। मैं भी झड़ा। जल्दी साफ किया। बाहर आए। चाचा अभी सो रहे।
अगले दिन चाचा ने कहा, "कमला, आज डॉक्टर के पास जाना है। राजू, तुम साथ चलो।" हम गए। लेकिन रास्ते में चाची ने मेरी जांघ पर हाथ रखा। चाचा आगे ड्राइव कर रहे। मैंने चाची की साड़ी में हाथ डाला। चूत छुई। गीली। उँगली डाली। चाची ने आँखें बंद कीं, लेकिन चुप। मजा आ रहा। डॉक्टर के पास पहुँचे। चाचा अंदर गए। हम बाहर वेटिंग में। चाची बोलीं, "राजू, यहाँ कोई नहीं।" मैंने देखा, कोना खाली। चाची को वहाँ ले गया। साड़ी ऊपर। लंड बाहर। चूत में डाला। खड़े-खड़े चोदा। दो मिनट में। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी ठीक किए। चाचा आए, कुछ न पता।
लेकिन शाम को हादसा हो गया। चाचा घर पर थे। मैं कमरे में पढ़ रहा। चाची आईं, "राजू, मदद कर।" किचन में। चाची झुकीं, अलमारी से सामान निकाल रही। गांड पीछे। मैंने पकड़ी। साड़ी ऊपर की। चूत में उँगली। चाची सिसकी, "राजू... चाचा घर में।" लेकिन रुकी नहीं। मैंने लंड बाहर निकाला। गांड पर रगड़ा। अंदर डालने ही वाला था कि चाचा की आवाज। "कमला!" हम चौंक गए। मैंने लंड अंदर किया, चाची साड़ी नीचे। चाचा किचन में आए। "क्या कर रहे हो?" चाची घबराईं, "सामान निकाल रहे।" लेकिन चाचा का चेहरा संदेह से भरा। "राजू, तुम बाहर जाओ।" मैं चला गया। दिल धड़क रहा। पकड़े गए क्या?
रात को चाचा ने चाची से झगड़ा किया। "मुझे शक है। राजू और तुम... कुछ तो है।" चाची रोईं, "नहीं, तुम पागल हो।" लेकिन चाचा न माने। "कल राजू को हॉस्टल भेज दूँगा।" मैं सुन रहा था। रात भर नींद न आई। चाची चुपके से आईं। "राजू, डर मत। मैं मना लूँगी। लेकिन आज आखिरी बार।" बिस्तर पर, चाचा सोए। चाची मेरे ऊपर आईं। नाइटी ऊपर। चूत लंड पर। धीरे से बैठीं। लंड अंदर। ऊपर-नीचे। मैंने चुचे पकड़े। चाची की कमर हिलती। "आह... राजू... चाची तेरी है।" धीरे चुदाई। लेकिन मजा। चाची झड़ी। मैं भी। सुबह चाचा ने कहा, "राजू, हॉस्टल जाओ।" लेकिन चाची ने मना लिया। "वो बच्चा है।" चाचा मान गए, लेकिन शक बाकी।
दोस्तों, चाचा का शक अब हर वक्त हमारे सिर पर मंडरा रहा था। वो पहले जैसे नहीं रहे। कभी अचानक किचन में आ जाते, कभी रात को बाथरूम जाते हुए कमरे की लाइट जला देते। मैं और चाची अब बहुत सावधान रहते, लेकिन वो प्यास तो थी ही। चाची की आँखों में वो ही भूख, मेरे लंड में वो ही तड़प। एक दिन सुबह चाचा काम पर गए। चाची ने मुझे कमरे में बुलाया। "राजू, आज मौका है। चाचा देर से आएँगे।" मैंने दरवाजा बंद किया। चाची साड़ी में थीं, लेकिन ब्लाउज का गला खुला। चुचे उभरे हुए, जैसे बाहर आने को बेताब। मैंने पकड़ा, दबाया। चाची सिसकी, "आह... राजू... धीरे... दर्द होता है लेकिन मजा आता है।"
चाची ने मेरी शर्ट उतारी। छाती पर किस किया। जीभ निप्पल पर घुमाई। मैं सिहर गया। उनका हाथ पैंट पर। नाड़ा खींचा, लंड बाहर। खड़ा, सख्त। चाची ने पकड़ा, हिलाया। "वाह बेटा, कितना गर्म है। चाची की चूत में डाल।" मैंने चाची को बिस्तर पर लिटाया। साड़ी ऊपर की। पैंटी गीली। उतारी। चूत दिखी, बाल काले, होंठ गुलाबी, रस से चमकते। मैंने जीभ लगाई। चाटा। स्वाद मीठा, नमकीन। चाची की कमर उठी। "ओह्ह... राजू... जीभ अंदर... चाची की चूत चूस।" मैंने क्लिटोरिस पकड़ा, चूसा। चाची पागल, बाल खींच रही। "उफ्फ... बस... अब लंड दे।"
मैं ऊपर आया। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। चूत तंग, गर्म। धीरे-धीरे पूरा अंदर। चाची चीखी हल्की, "आह्ह... पूरा... हाँ..." धक्के शुरू। धीरे-धीरे, हर धक्के में चूत का रस बहता। चाची की टांगें मेरी कमर पर। "जोर से राजू... चोद... चाची की चूत फाड़ दे।" मैंने स्पीड बढ़ाई। चुचे उछलते, मैंने पकड़े, दबाए। निप्पल काटा। चाची के नाखून मेरी पीठ पर। "ओह्ह... हाँ... तेरी चाची तेरी रंडी है... रोज चोद।" पसीना बह रहा, कमरा गर्म। चाची झड़ने लगी। "आह्ह... रस निकल रहा... उफ्फ..." चूत ने लंड निचोड़ा। मैं भी बस। "चाची... मैं..." "अंदर डाल बेटा... चाची की कोख भर।" झड़ गया। गर्म वीर्य अंदर। हम लिपटे रहे, साँसें मिलीं।
शाम हुई। चाचा आने वाले थे। हम ठीक हो गए। लेकिन चाचा जल्दी आ गए। दरवाजा खोला, हम कमरे में थे। चाची के बाल बिखरे, मैं शर्ट ठीक कर रहा। चाचा ने देखा। "ये क्या? कमरे में क्या कर रहे थे?" चाची घबराईं, "कुछ नहीं, राजू की किताब ढूँढ रही थी।" लेकिन चाचा का चेहरा लाल। "झूठ! मुझे शक था।" वो अंदर आए, बिस्तर देखा। चादर गीली, रस के निशान। "ये क्या है? कमला, तू... राजू के साथ?" चाची रोने लगीं। "नहीं... वो..." चाचा गुस्से में। "शर्म आनी चाहिए। भतीजा और चाची!" मैं चुप खड़ा। चाचा ने मुझे थप्पड़ मारा। "निकाल बाहर! कल सुबह हॉस्टल जा।"
रात बड़ी मुश्किल से कटी। चाचा सोफे पर सोए। मैं और चाची कमरे में, लेकिन अलग। चाची रो रही थीं। मैंने धीरे से हाथ पकड़ा। "चाची, डर मत।" वो बोलीं, "राजू, अब क्या होगा?" सुबह चाचा ने कहा, "राजू, सामान बाँध।" लेकिन चाची ने रोकर माफी माँगी। "एक बार माफ कर दो। गलती हो गई।" चाचा सोचे, "ठीक है, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं। राजू, तू अलग कमरे में सो।" हम बच गए, लेकिन शक बाकी। अब चुदाई और मुश्किल हो गई। लेकिन चाची की आँखों में वो ही आग।
दोस्तों, पकड़े जाने के बाद घर का माहौल और बिगड़ गया। चाचा अब मुझसे बात भी नहीं करते थे। सिर्फ घूरते रहते, जैसे आँखों से कह रहे हों – तूने मेरी बीवी को छुआ, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा। चाची डरी हुईं, लेकिन उनकी आँखों में वो ही चाहत। रात को चाचा सोफे पर सोते, मैं और चाची कमरे में, लेकिन कुछ करने की हिम्मत न होती। एक दिन चाचा ने फोन उठाया। "हैलो, भाभी? हाँ, राजू की माँ। सुनो, कुछ जरूरी बात है।" मैं सुन रहा था। चाचा ने सब बता दिया। "तुम्हारा बेटा... मेरी कमला के साथ... हाँ, पकड़ा मैंने। अब मैं पूरे गाँव में बताऊँगा। राजू की इज्जत मिट्टी में मिला दूँगा।" उधर से माँ की आवाज आई, रोने वाली। "भाई साहब, ऐसा मत करना। राजू बच्चा है, गलती हो गई। माफ कर दो।"
चाचा गुस्से में। "माफ? कैसे माफ करूँ? तुम्हारा बेटा मेरी बीवी की चूत में लंड डालता रहा, और मैं चुप रहूँ? नहीं भाभी, अब तो मैं सबको बताऊँगा। गाँव में राजू का नाम बदनाम कर दूँगा। लड़कियाँ थूकेंगी उस पर।" माँ रो रही थीं। "प्लीज, माफ कर दो। मैं माफी माँगती हूँ। जो कहो वो करूँगी। लेकिन मेरे बेटे की इज्जत मत उछालो।" चाचा चुप रहे थोड़ी देर। फिर बोले, "ठीक है भाभी। एक शर्त पर। राजू ने मेरी बीवी चोदी है, तो मैं तुम्हें चोदूँगा। तुम्हारी चूत में अपना लंड डालूँगा। तभी मेरे मन को शांति मिलेगी। बदला पूरा होगा।" उधर माँ चौंक गईं। "क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारी भाभी हूँ। ऐसा कैसे?" चाचा हँसे। "भाभी, राजू ने मेरी चाची को रंडी बनाया, तो मैं क्यों पीछे रहूँ? सोच लो। नहीं तो कल गाँव में ढिंढोरा पीट दूँगा।"
माँ ने फोन रख दिया। लेकिन रात भर सोचीं। अगले दिन फिर फोन आया। "भाई साहब, ठीक है। मैं मान गई। लेकिन किसी को पता न चले। मैं कल दिल्ली आ रही हूँ।" चाचा खुश। "आ जाओ भाभी। मैं स्टेशन पर लेने आऊँगा।" मैं सुनकर स्तब्ध। मेरी माँ! उम्र चालीस के आसपास, लेकिन बदन अभी भी जवान। रंग साँवला, लेकिन चेहरा सुंदर। चुचे 38 के, बड़े और भारी। कमर मोटी, लेकिन कूल्हे चौड़े। गाँव में सब मर्द घूरते। लेकिन अब चाचा... मेरी माँ को चोदेंगे? दिल जल रहा था, लेकिन कुछ कर न सका। चाची ने सुना, उदास हो गईं। "राजू, तेरी माँ... लेकिन क्या करें।"
अगले दिन माँ आईं। स्टेशन से चाचा ले आए। घर में घुसीं। साड़ी में थीं, लाल रंग की। चेहरा शर्म से लाल। "राजू..." मुझसे गले मिलीं। लेकिन आँखें नीची। चाचा ने दरवाजा बंद किया। "भाभी, अब शर्त याद है न?" माँ ने सिर हिलाया। "हाँ। लेकिन राजू और कमला बाहर चले जाएँ।" चाचा ने मना किया। "नहीं, वो दोनों देखें। ताकि सबक मिले।" माँ चौंकी। "नहीं, ऐसा मत।" लेकिन चाचा अड़े। "मानो या गाँव में बताऊँ?" माँ चुप हो गईं। चाची और मैं किनारे खड़े।
चाचा ने माँ की कमर पकड़ी। "भाभी, कितना नरम बदन है।" माँ सिहरी। चाचा ने पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे। बड़े, गोल। हुक खोले। ब्रा में कैद। चाचा ने ब्रा उतारी। चुचे बाहर। निप्पल काले, सख्त। चाचा ने पकड़े, दबाए। "वाह भाभी, कितने बड़े दूध।" माँ की आँखें बंद। "आह... धीरे।" चाचा ने चूसा। जीभ निप्पल पर। माँ सिसकी। "उफ्फ... नहीं..." लेकिन बदन गर्म हो रहा। चाचा ने साड़ी उतारी। पेटीकोट गिराया। माँ नंगी। चूत पर घने बाल, काले। जांघें मोटी, सुडौल।
चाचा ने पैंट उतारी। लंड बाहर। मोटा, लंबा। "भाभी, देखो। तुम्हारी चूत के लिए।" माँ ने देखा, शरमाई। चाचा ने बिस्तर पर लिटाया। पैर फैलाए। चूत छुई। "गीली हो गई भाभी।" उँगली अंदर। माँ चीखी, "आह्ह... दर्द..." चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ की कमर उठी। "ओह्ह... क्या कर रहे... उफ्फ..." चाचा चूसते रहे। माँ पागल। "बस... अब डालो।" चाचा ऊपर आए। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है..." पूरा धक्का। अंदर। माँ की चूत फाड़ दी। "माँ... दर्द... लेकिन..." चाचा धक्के मारने लगे। जोर-जोर से। माँ की चुचे उछलते। "हाँ भाभी... चोद रहा हूँ... तुम्हारी चूत मस्त है।" माँ अब मजा ले रही। कमर मिलाती। "आह्ह... जोर से... चोदो..." चाची और मैं देख रहे। मेरा लंड खड़ा। चाची का हाथ मेरे लंड पर।
बीस मिनट चला। माँ झड़ी। "उफ्फ... रस निकल रहा..." चाचा भी झड़े, अंदर। माँ हाँफती रही। "अब शांति मिली?" चाचा हँसे। "हाँ भाभी। लेकिन अब तुम यहाँ रुको। रोज चोदूँगा।" माँ मान गई। अब घर में नया खेल शुरू।
दोस्तों, अब घर में जैसे नया दौर शुरू हो गया था। माँ दिल्ली आ गईं थीं, और चाचा का बदला पूरा होने का सिलसिला चल पड़ा। माँ उदास थीं, लेकिन क्या करतीं। गाँव की इज्जत जो दाँव पर लगी थी। मैं और चाची चुपचाप देखते रहते। चाचा अब माँ को अपनी रखैल की तरह ट्रीट करते। सुबह उठते ही माँ की तरफ देखते, मुस्कुराते। "भाभी, चाय बना दो।" लेकिन आँखों में वो ही लालच। माँ साड़ी में काम करतीं, चाचा पीछे से कमर पकड़ लेते। "भाभी, कितनी सेक्सी हो।" माँ शरमातीं, "छोड़ो ना, राजू देख लेगा।" लेकिन चाचा कहाँ मानने वाले।
एक शाम की बात। चाचा घर आए। थके हुए, लेकिन आँखों में चमक। "भाभी, आज फिर वही।" माँ ने देखा, मैं और चाची किचन में थे। "बाद में।" लेकिन चाचा ने मना किया। "नहीं, अबhi। कमरे में चलो।" माँ को खींचकर ले गए। दरवाजा बंद। लेकिन मैं और चाची बाहर से सुन रहे। अंदर से आवाजें आने लगीं। चाचा की साँसें तेज। "भाभी, साड़ी उतारो।" माँ की धीमी आवाज, "धीरे... शर्म आती है।" साड़ी गिरने की आवाज। ब्लाउज के हुक खुलने की। चाचा बोले, "वाह भाभी, तेरे चुचे कितने बड़े। दबाने दो।" माँ सिसकी, "आह... जोर से मत... दर्द होता है।" लेकिन मजा भी आ रहा होगा। चाचा ने चूसा। जीभ की चटकने की आवाज। "उफ्फ... भाभी, निप्पल कितने सख्त।" माँ की सिसकारियाँ, "ओह्ह... मत चूसो ऐसे... पागल कर देते हो।"
फिर साड़ी पूरी उतरी। माँ नंगी। चाचा ने पैंट उतारी। "भाभी, मेरा लंड देखो। तेरी चूत के लिए खड़ा है।" माँ ने पकड़ा शायद। "कितना मोटा... चाचा जी।" चाचा हँसे। "चूसो भाभी।" माँ घुटनों पर। लंड मुँह में। चूसने की आवाज। गीली, चट-चट। चाचा कराहे, "हाँ भाभी... जीभ घुमाओ... पूरा अंदर।" माँ चूसती रहीं। लंड गीला हो गया। चाचा ने उठाया। बिस्तर पर लिटाया। पैर फैलाए। "भाभी, तेरी चूत कितनी गीली। उँगली डालूँ?" माँ "हाँ... डालो।" उँगली अंदर। माँ चीखी, "आह्ह... दो डालो... और अंदर।" चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ पागल, "उफ्फ... चाटो... मेरी चूत चूसो... ओह्ह माँ..." कमर हिलाने लगीं।
अब चाचा ऊपर। लंड चूत पर रगड़ा। "भाभी, तैयार?" "हाँ... डालो।" सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है... धीरे।" लेकिन चाचा ने जोर का धक्का। पूरा अंदर। माँ की चूत में लंड समा गया। "ओह्ह... फाड़ दी... लेकिन मजा।" धक्के शुरू। जोर-जोर से। बिस्तर की चरमराहट। माँ की सिसकारियाँ, "हाँ चाचा जी... जोर से... चोदो अपनी भाभी को... उफ्फ..." चुचे उछलते। चाचा ने पकड़े, दबाए। निप्पल काटा। माँ के नाखून चाचा की पीठ पर। "आह्ह... तेज... मेरी चूत तेरी है... रोज चोदना।" पसीना बह रहा। कमरा गर्म। माँ झड़ने लगीं। "ओह्ह... रस निकल रहा... आह्ह..." चूत सिकुड़ी। चाचा भी झड़े, "भाभी... अंदर डाल रहा..." गर्म वीर्य। दोनों हाँफते रहे।
बाहर मैं और चाची सुन रहे। मेरा लंड खड़ा। चाची का हाथ मेरे लंड पर। "राजू... देख, तेरी माँ कितना मजा ले रही।" मैंने चाची को पकड़ा। किचन में ही। साड़ी ऊपर की। चूत गीली। "चाची... अब तेरी बारी।" लंड बाहर निकाला। चूत में डाला। धीरे चोदा। चाची मुँह दबाए। "आह... राजू... लेकिन चाचा सुन लेंगे।" लेकिन रुके नहीं। धक्के मारे। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी ठीक किए। कमरे से चाचा और माँ बाहर आए। माँ के गाल लाल, बाल बिखरे। चाचा मुस्कुराए। "भाभी, मजा आया?" माँ शरमाईं। "हाँ।"
अब रोज ऐसा। चाचा माँ को चोदते, मैं चाची को। लेकिन चुपके। एक रात चाचा माँ के साथ सोए। मैं और चाची अकेले। चाची ने कहा, "राजू, आज पूरी रात।" हमने चुदाई की। हर पोज में। मजा दोगुना।
Fuckuguy
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15-09-2025, 12:14 PM
(This post was last modified: 15-09-2025, 01:47 PM by Fuckuguy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
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चाची की प्यासी चूत भाग 2
दोस्तों, अब घर में जैसे चारों तरफ आग लगी हुई थी। चाचा माँ को चोदते, मैं चाची को, लेकिन सब चुपके-चुपके। लेकिन चाचा का दिमाग और आगे चल रहा था। एक शाम चाचा ने सबको बुलाया। "सुनो, अब ये सब छिपाने का क्या फायदा? हम सब मिलकर मजा लें।" माँ चौंकीं। "क्या मतलब?" चाचा मुस्कुराए। "मतलब, आज रात सब साथ। भाभी, कमला, राजू – चारों।" चाची शरमाईं, "अरे, ऐसा कैसे?" लेकिन चाचा अड़े। "क्यों नहीं? राजू ने कमला को चोदा, मैंने भाभी को। अब सब शेयर करें।" माँ ने देखा, मैंने सिर हिलाया। ठीक है। रात हुई। शराब की बोतल निकली। पैग लगाए। सब नशे में।
कमरे में लाइट धीमी। चाचा ने माँ की साड़ी पकड़ी। "भाभी, आओ।" माँ शरमाती हुई आईं। चाचा ने पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे, बड़े और भारी। हुक खोले, एक-एक करके। पहला हुक, चुचे थोड़े ढीले। दूसरा, निप्पल झलकने लगे। तीसरा, पूरा बाहर। गोरे नहीं, साँवले लेकिन मस्त। निप्पल काले, बड़े। चाचा ने पकड़े, दबाए। "उफ्फ भाभी, कितने नरम।" माँ सिसकी, "आह... धीरे चाचा जी।" चाचा ने चूसा। जीभ निप्पल पर घुमाई, चाटा। माँ की आँखें बंद, साँसें तेज। "ओह्ह... मत... सब देख रहे।" लेकिन बदन गर्म हो गया।
चाची मेरे पास आईं। "राजू, तू मुझे देख।" साड़ी उतारी। नाइटी में थीं, अंदर कुछ नहीं। नाइटी ऊपर की। चुचे बाहर, गोरे और गोल। मैंने पकड़े, मसले। चाची सिसकी, "आह... जोर से दबा बेटा।" मैंने निप्पल चूसा। जीभ से खेला। चाची का हाथ मेरे लंड पर। पैंट खोली, लंड बाहर। हिलाने लगीं। "राजू, कितना सख्त।" उधर चाचा माँ को नंगी कर रहे। साड़ी गिरी, पेटीकोट उतारा। माँ की चूत दिखी, घने बाल, गीली। चाचा ने उँगली लगाई। "भाभी, रस बह रहा।" माँ काँपी, "उफ्फ... छुओ मत ऐसे।" लेकिन पैर फैला दिए। चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ चीखी, "आह्ह... चाचा जी... जीभ अंदर... ओह्ह माँ..."
मैंने चाची को बिस्तर पर लिटाया। चूत पर हाथ। गीली, गर्म। उँगली डाली। दो, तीन। चाची की कमर हिली। "राजू... उँगली से चोद... हाँ..." मैंने जीभ लगाई। चूत चूसी। क्लिटोरिस काटा हल्का। चाची पागल, "उफ्फ... बस... लंड दे।" मैं ऊपर आया। लंड चूत में। धक्का। पूरा अंदर। चाची "आआआ... हाँ... चोद।" धक्के मारे। जोर-जोर से। उधर चाचा माँ को चोद रहे। लंड माँ की चूत में। धक्के। माँ "हाँ... जोर से... चोदो भाभी को।" कमरा सिसकारियों से भरा। चुचे उछलते, गांड थप-थप।
चाचा ने कहा, "अब चेंज। राजू, तू भाभी को चोद। मैं कमला को।" मैं चौंक गया। अपनी माँ को? लेकिन नशा था। माँ ने देखा, शरमाईं लेकिन पैर फैलाए। "आ जा बेटा... लेकिन धीरे।" मैं माँ के ऊपर। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। माँ "आह्ह... बड़ा है राजू..." पूरा अंदर। माँ की चूत तंग, गर्म। धक्के शुरू। माँ सिसकी, "ओह्ह... बेटा... चोद अपनी माँ को... उफ्फ..." चुचे दबाए। निप्पल चूसा। माँ की कमर मिलाती। "हाँ... जोर से... माँ की चूत तेरी है।" उधर चाचा चाची को चोद रहे। "कमला, तेरी चूत मस्त।" चाची "हाँ... चोदो... राजू से बेहतर।"
फिर सब साथ। माँ और चाची दोनों घुटनों पर। लंड चूसने लगीं। माँ मेरा लंड, चाची चाचा का। जीभ घुमातीं, चूसतीं। फिर चेंज। दोनों लंड एक साथ। मजा दोगुना। चाचा ने कहा, "अब पीछे से।" माँ और चाची डॉगी स्टाइल। गांड ऊपर। चाचा माँ की गांड में उँगली। "भाभी, गांड मारूँ?" माँ "हाँ... लेकिन तेल लगा।" तेल लगाया। लंड गांड पर। धक्का। सिर घुसा। माँ चीखी, "आआआ... फट गई..." लेकिन रुकी नहीं। चाचा धक्के मारे। मैं चाची की चूत में। सब मिलकर। रात भर चुदाई। झड़ना, फिर शुरू। सुबह तक थक गए। चाचा बोले, "अब रोज ऐसा।"
दोस्तों, अब घर में जैसे स्वर्ग उतर आया था। चारों मिलकर चुदाई का खेल खेलते, कोई शर्म नहीं, कोई डर नहीं। चाचा का प्लान काम कर गया था। सुबह उठते ही चाचा माँ को देखते, "भाभी, आज क्या प्लान?" माँ शरमातीं लेकिन मुस्कुरातीं। "जो तुम कहो।" चाची और मैं भी शामिल। एक दिन दोपहर की बात। सब घर पर थे। चाचा ने कहा, "आज कुछ नया ट्राई करें। भाभी और कमला, दोनों साथ लेस्बियन बनो। हम देखेंगे।" माँ चौंकीं, "अरे, वो क्या?" लेकिन चाची ने हाथ पकड़ा। "आओ भाभी, मजा आएगा।"
माँ और चाची बिस्तर पर। दोनों साड़ी में। चाची ने माँ का पल्लू गिराया। ब्लाउज दिखा, चुचे उभरे। चाची ने हुक खोले, धीरे-धीरे। पहला हुक, चुचे थोड़े बाहर। दूसरा, निप्पल झलक। तीसरा, पूरा नंगा। माँ के चुचे बड़े, साँवले लेकिन मस्त। निप्पल काले। चाची ने पकड़े, दबाए। "भाभी, कितने भारी।" माँ सिहरी, "आह... कमला... क्या कर रही?" लेकिन रुकी नहीं। चाची ने निप्पल चूसा। जीभ घुमाई, चाटा। माँ की साँस तेज। "उफ्फ... मत... लेकिन अच्छा लग रहा।" हाथ माँ की कमर पर। साड़ी का नाड़ा खींचा। साड़ी गिरी। माँ नंगी। चूत पर बाल घने। चाची ने छुआ। "भाभी, गीली हो गई।"
चाची खुद नंगी हुई। चुचे गोरे, निप्पल ब्राउन। माँ ने देखा, हाथ बढ़ाया। चाची के चुचे पकड़े। "कमला, तेरे भी मस्त।" दबाया। चाची सिसकी, "हाँ भाभी... दबाओ... चूसो।" माँ ने मुँह लगाया। पहली बार। जीभ निप्पल पर। चाची कराही, "ओह्ह... भाभी... जीभ से खेलो।" दोनों लिपट गईं। चुचे आपस में दबे। किस किया। जीभ मिली। गहरा किस। माँ का हाथ चाची की चूत पर। उँगली डाली। चाची की कमर हिली। "आह... भाभी... अंदर... दो उँगलियाँ।" चाची ने भी माँ की चूत में उँगली। दोनों उँगलियाँ अंदर-बाहर। सिसकारियाँ। "उफ्फ... कमला... मजा आ रहा... तेरी उँगली गर्म।" चाची "भाभी... तेरी चूत रस बहा रही।"
हम देख रहे। चाचा और मेरा लंड खड़ा। चाचा ने कहा, "राजू, अब हम जॉइन करें।" चाचा माँ के पास। लंड माँ के मुँह में। "भाभी, चूसो।" माँ चूसने लगीं। गीला, पूरा अंदर। मैं चाची के पास। चूत में लंड रगड़ा। धक्का दिया। अंदर। चाची "आह्ह... राजू... चोद।" अब चारों जुड़े। मैं चाची को चोदता, चाचा माँ को मुँह चोदते। फिर चेंज। चाचा चाची की चूत में। "कमला, तेरी चूत तंग।" धक्के। चाची "हाँ... जोर से... चाचा जी।" मैं माँ की चूत में। "माँ... तैयार?" माँ "हाँ बेटा... डाल।" लंड अंदर। माँ "ओह्ह... बड़ा है... लेकिन गहरा।" धक्के मारे। माँ की कमर मिलाती। "आह्ह... चोद बेटा... माँ की चूत फाड़।"
फिर नया पोज। माँ चाची के ऊपर। 69 पोजिशन। माँ चाची की चूत चाटती, चाची माँ की। जीभ अंदर, क्लिटोरिस चूस। दोनों सिसकतीं। "उफ्फ... कमला... तेरी चूत का स्वाद... मीठा।" चाची "भाभी... तेरी भी... रस बहा।" चाचा मेरे साथ। चाचा माँ की गांड में लंड। मैं चाची की गांड में। तेल लगाया। सिर घुसा। दोनों चीखीं। "आआआ... दर्द... लेकिन मत रुको।" धक्के मारे। गांड तंग, गर्म। हर धक्के में थप-थप। चुचे लहराते। पसीना बहता। कमरा सिसकारियों से गूँजता। "हाँ... गांड मारो... हमारी गांड फाड़ो।"
घंटों चला। सब झड़े। रस everywhere। माँ और चाची थक गईं। लेकिन चाचा ने कहा, "अब नया ट्विस्ट। कल हम बाहर जाएँगे। होटल में। और वहाँ..." सब उत्सुक।
दोस्तों, घर में अब रोज चुदाई का दौर चलता, लेकिन चाचा का दिमाग और शरारती हो गया था। एक दिन शाम को चाचा ने कहा, "सुनो सब, अब घर में मजा कम हो रहा। कल हम सब होटल जाएँगे। वहाँ कुछ नया ट्राई करेंगे।" माँ शरमाईं, "होटल? वहाँ क्या?" चाचा हँसे, "वहाँ वेटर हैं ना। हम भाभी और कमला को किसी वेटर से चुदवाएँगे। देखें, कितना मजा आता है।" चाची चौंकीं, "अरे, अजनबी से? शर्म आएगी।" लेकिन माँ ने देखा, आँखों में चमक। "ठीक है, अगर सब मानें तो।" मैं और चाचा हँस दिए। अगले दिन पैकिंग की। एक अच्छा होटल बुक किया, शहर के बाहर। रूम बड़ा सा, दो बेडरूम वाला सुइट। हम पहुँचे। शाम हुई। डिनर ऑर्डर किया।
रूम सर्विस का वेटर आया। नाम था विक्रम। जवान, उम्र पच्चीस के आसपास। बॉडी बिल्डर टाइप। मसल्स उभरे हुए, छाती चौड़ी, बाजू मोटे। चेहरा हैंडसम, लेकिन आँखें शरारती। वो ट्रे रख रहा था। चाचा ने इशारा किया। "भाभी, कमला, इसे देखो। मस्त है ना?" माँ ने देखा, मुस्कुराईं। "हाँ, मजबूत लगता है।" विक्रम जा रहा था, लेकिन माँ ने रोका। "भाई, जरा रुकना। थोड़ी बात करें?" विक्रम रुका, चौंककर। "जी मैम?" माँ ने अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा सरकाया। ब्लाउज में चुचे झलक गए। "तुम्हारी बॉडी कितनी अच्छी है। जिम जाते हो?" विक्रम की आँखें चमकीं। "हाँ मैम, रोज।" माँ करीब आईं, हाथ उसकी बाजू पर रखा। "वाह, कितनी सख्त। छूने दो।" विक्रम शरमाया, लेकिन रुका। माँ ने बाजू दबाई, फिर छाती पर हाथ फेरा। "उफ्फ, कितना मजबूत। हमारी तरह की औरतों को ऐसे मर्द पसंद आते हैं।"
चाची भी शामिल हुई। "हाँ भाई, तुम्हारी ताकत देखनी है।" विक्रम समझ गया। "मैम, क्या मतलब?" चाचा ने कहा, "बेटा, ये दोनों तेरे साथ मजा करना चाहती हैं। चोदेगा इन्हें? हम देखेंगे।" विक्रम चौंक गया, लेकिन लंड हिला शायद। "जी... अगर आप कहें।" माँ ने उसका हाथ पकड़ा, बिस्तर की तरफ ले गई। "आ जा। हम तेरी रंडियाँ बनेंगी।" चाची ने दरवाजा बंद किया। मैं और चाचा बाथरूम में छिप गए। दरवाजा थोड़ा खुला रखा, चुपके देखने को। विक्रम अंदर। माँ ने उसकी शर्ट उतारी। छाती नंगी, मसल्स चमकते। माँ ने छुआ, चाटा। "उफ्फ, कितना गर्म बदन।" विक्रम ने माँ की साड़ी पकड़ी। पल्लू गिराया। ब्लाउज खोला। चुचे बाहर, बड़े साँवले। विक्रम ने पकड़े, जोर से दबाए। "मैम, कितने बड़े दूध।" माँ सिसकी, "आह... जोर से दबा... मसल दे।"
चाची भी नंगी होने लगी। साड़ी उतारी, ब्लाउज गिराया। चुचे गोरे। विक्रम की आँखें चमकीं। "दोनों मैम... वाह।" वो चाची के चुचे पकड़ा, दबाया। चाची "उफ्फ... हाँ... तेरी ताकत लगती है।" विक्रम ने दोनों को बिस्तर पर धकेला। माँ की साड़ी पूरी उतारी। चूत नंगी। विक्रम ने उँगली लगाई। "गीली हो गई मैम।" माँ पैर फैलाए। "हाँ... अब जीभ लगा।" विक्रम नीचे झुका। चूत चाटी। जीभ अंदर। माँ चीखी, "ओह्ह... चाट... मेरी चूत चूस।" चाची विक्रम का लंड पकड़ी। पैंट उतारी। लंड बाहर, मोटा, लंबा, काला। "वाह, कितना बड़ा।" चाची ने मुँह में लिया। चूसा। विक्रम कराहा, "आह... मैम... चूसो।" माँ विक्रम के बाल खींच रही। "हाँ... जीभ से चोद।"
विक्रम उठा। माँ को घुटनों पर। लंड माँ के मुँह में। "चूस रंडी।" माँ चूसने लगीं। गहरा, थूक से गीला। चाची पीछे से विक्रम की गांड चाटी। विक्रम पागल। "उफ्फ... दोनों रंडियाँ... चूसो।" फिर विक्रम ने माँ को लिटाया। पैर फैलाए। लंड चूत पर रगड़ा। "तैयार रंडी?" माँ "हाँ... डाल... फाड़ दे।" धक्का। सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है... दर्द।" लेकिन कमर हिलाई। पूरा अंदर। विक्रम धक्के मारे। जोर-जोर से। माँ के चुचे उछलते। "हाँ... चोद... रंडी की तरह चोद।" विक्रम ने चाची को बुलाया। चाची माँ के ऊपर। विक्रम चूत से लंड निकाला, चाची की चूत में। "अब तेरी बारी रंडी।" चाची "ओह्ह... हाँ... तेरी ताकत... जोर से।" विक्रम दोनों को बारी-बारी चोदता। माँ की चूत, फिर चाची की। दोनों सिसकतीं। "उफ्फ... मर गई... तेरा लंड... फाड़ रहा।"
बाथरूम से मैं और चाचा देख रहे। लंड खड़े। चाचा ने कहा, "देख राजू, वो दोनों रंडियाँ बन गईं।" विक्रम ने माँ को डॉगी बनाया। गांड ऊपर। लंड चूत में। धक्के। थप-थप। माँ "आह्ह... पीछे से... जोर से।" चाची विक्रम के नीचे, लंड चूसती। फिर विक्रम ने चाची की गांड में उँगली डाली। "गांड मारूँ?" चाची "हाँ... फाड़ दे।" तेल लगाया। लंड गांड में। चाची चीखी, "आआआ... माँ... फट गई।" लेकिन मजा ले रही। विक्रम धक्के मारे। माँ विक्रम की गेंदें चाटती। रात भर चला। विक्रम दोनों को रंडियों की तरह चोदा। झड़ाया। रस चूत में, मुँह में। सुबह वो चला गया। हम बाहर आए। माँ और चाची थकी हुईं, लेकिन खुश। "मजा आया।"
दोस्तों, होटल की वो रात जैसे जिंदगी का सबसे बड़ा तूफान थी। विक्रम ने माँ और चाची को रंडियों की तरह चोदा, और हम चाचा-भतीजे बाथरूम से सब देखते रहे। लेकिन मजा इतना कि दिल नहीं भर रहा था। सुबह विक्रम चला गया, लेकिन उसने जाते-जाते कहा, "मैम, अगर फिर बुलाओ तो आ जाऊँगा। और अपने दोस्तों को भी ला सकता हूँ।" माँ और चाची ने एक-दूसरे को देखा, आँखों में चमक। "हाँ, क्यों नहीं।" चाचा हँसे, "अच्छा आइडिया। कल फिर प्लान करेंगे। ज्यादा लोग, ज्यादा मजा।" मैंने सोचा, अब ये कहाँ तक जाएगा?
शाम हुई। हम रूम में वापस। माँ और चाची थकी हुईं, लेकिन अभी भी गर्म। चाचा ने शराब निकाली। पैग लगाए। बातें होने लगीं। "भाभी, कमला, कल दस वेटर बुलाएँ? गैंगबैंग?" माँ शरमाईं, "अरे, इतने? लेकिन... ट्राई कर सकते हैं।" चाची "हाँ, मजा आएगा। राजू, तू भी जॉइन कर।" मैं हँस दिया। लेकिन अचानक दरवाजे पर दस्तक। "रूम सर्विस!" हम चौंके। चाचा ने खोला। बाहर विक्रम, लेकिन अकेला नहीं। उसके साथ चार-पाँच मर्द, सब बॉडीबिल्डर टाइप, आँखों में भूख। "मैम, आपने बुलाया नहीं, लेकिन हम आ गए। अब खेल शुरू होगा।" माँ और चाची की साँस रुक गई। विक्रम ने दरवाजा बंद किया, और...
(कहानी यहीं रुकती है... क्या होगा आगे? क्या माँ और चाची संभाल पाएँगी इतने मर्दों को, या कुछ अनहोनी हो जाएगी?
मैं इस कहानी को यहीं रोक रहा हूँ। अगर आपको इस कहानी के अगले हिस्से चाहिए, तो कृपया मुझे कमेंट में बता दें, नहीं तो मैं अगली कहानी शुरू कर दूँगा। ठीक है, धन्यवाद सबको। कृपया समर्थन करें और ऊपर जाकर कहानी को रेटिंग देना न भूलें।
नमस्ते,
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बेटे की परेशानी
दोस्तों, मेरा नाम सरिता है। मैं एक सामान्य गृहिणी हूँ, उम्र कोई ३५ साल की होगी। शादी को १५ साल हो चुके हैं, और मेरा एक बेटा है – रोहन, जो अब कॉलेज में पढ़ता है। हमारा घर शहर के एक शांत इलाके में है, जहाँ पड़ोसी एक-दूसरे को जानते हैं, लेकिन ज़िंदगी की भागदौड़ में सब व्यस्त रहते हैं। मेरा पति एक सरकारी नौकरी करता है, सुबह जाता है शाम को लौटता है। मैं घर संभालती हूँ – सुबह उठकर चाय बनाती, रोहन को कॉलेज भेजती, फिर घर के काम। लेकिन पिछले कुछ दिनों से रोहन उदास लग रहा था। शाम को घर आता, तो चुपचाप कमरे में बंद हो जाता। मैंने कई बार पूछा, लेकिन वह टाल जाता।
एक शाम मैंने फैसला किया कि अब पूछ ही लूँ। रोहन कमरे में लेटा था, किताब खोलकर लेकिन पढ़ नहीं रहा। मैं उसके पास बैठी, उसके सिर पर हाथ फेरा। "बेटा, क्या बात है? तू इतना उदास क्यों रहता है इन दिनों? कॉलेज में कुछ हुआ है?"
रोहन पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर रो पड़ा। "माँ, कॉलेज में एक लड़का है – विक्रम। वह मुझे रोज़ तंग करता है। मेरी किताबें छुपाता है, मेरे साथ मारपीट करता है, और सबके सामने मज़ाक उड़ाता है। मैं क्या करूँ? वह मुझसे बड़ा और ताकतवर है।"
मेरा दिल टूट गया। मेरा बेटा, जो इतना सीधा-सादा है, उसे कोई तंग कर रहा है? मैंने उसे गले लगाया। "चिंता मत कर बेटा। कल मैं खुद कॉलेज जाकर उससे बात करूँगी। तू बस आराम कर।"
अगले दिन सुबह मैं तैयार हो गई। साड़ी पहनी – लाल रंग की, जो मेरे गोरे रंग पर खूब जचती है। मेरी कमर अभी भी पतली है, चूचियाँ भरी हुईं, और नितंब गोल-मटोल। पति ने कहा, "कहाँ जा रही हो?" मैंने बताया, तो वह बोला, "अरे, लड़कों की बात है, छोड़ो।" लेकिन मैं न मानी। कॉलेज पहुँची, प्रिंसिपल से मिली, लेकिन वे बोले, "बात करके देखो।"
फिर मैंने विक्रम को ढूँढा। वह कैंटीन में अपने दोस्तों के साथ बैठा था – लंबा, कसरती बदन, उम्र कोई २० साल की। मैं उसके पास गई। "विक्रम, मैं रोहन की माँ हूँ। सुना है तू मेरे बेटे को तंग करता है। क्यों? बंद कर ये सब।"
विक्रम हँसा, उसके दोस्त भी। "अरे आंटी, रोहन तो चूतिया है। तंग क्या, बस मज़ाक करता हूँ। तू जा, घर संभाल।" और फिर उसने गाली दी – "साली, तेरे जैसे औरतों को तो..."
मेरा खून खौल गया। लेकिन वहाँ झगड़ा न करके मैं चली गई। शाम को फैसला किया – उसके घर जाकर उसके माँ-बाप से बात करूँगी। पता किया, उसका घर पास ही था। शाम को मैं पहुँची। दरवाज़ा खटखटाया। विक्रम ने खोला। "तू फिर? क्या चाहती है?"
"तेरे माँ-बाप कहाँ हैं? उनसे बात करनी है।"
"वे बाहर गए हैं, शहर से। कल लौटेंगे। अब तू जा।"
लेकिन मैं अंदर घुस गई। "नहीं, तुझे ही समझाती हूँ। मेरे बेटे को तंग मत कर।" गुस्से में मैंने उसे चाँटा मारा। जोरदार। उसका गाल लाल हो गया।
विक्रम का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। "साली रंडी, तूने मुझे मारा?" और उसने मुझे चाँटा मारा। दर्द हुआ, लेकिन मैं न रुकी। दूसरा चाँटा मारने को हाथ उठाया, लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं हिल न सकी। "अब देख, क्या करता हूँ।"
उसने मुझे दीवार से सटा दिया। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। मैं चिल्लाई, "छोड़ मुझे!" लेकिन उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। जोरदार किस। मैंने छटपटाई, हाथ-पैर मारे, लेकिन वह न हटा। उसकी जीभ मेरे मुँह में घुस गई। गंध – मर्दाना, पसीने की। पहले तो मैंने विरोध किया, काटने की कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे... कुछ हुआ। उसकी ताकत, उसकी गर्माहट। मेरी साँसें तेज़ हो गईं। मैंने भी जवाब देना शुरू किया। जीभ से जीभ मिलाई। पैशनेट किस। लंबा, गीला।
उसने मुझे छोड़ा, हाँफते हुए। "देखा? तू भी चाहती है।" मैं कुछ न बोली, बस उसकी आँखों में देखा। फिर से किस शुरू। अब मैंने उसके बाल पकड़े, उसे करीब खींचा। उसका हाथ मेरी साड़ी पर गया, ब्लाउज़ पर। चूचियाँ दबाईं। मैं सिहर गई। "आह... विक्रम..."
(जारी... भाग २ में हार्डकोर सेक्स सीन।)
भाग २: आग की लपटें (हार्डकोर सेक्स सीन)
विक्रम ने मुझे गोद में उठाया, जैसे कोई गुड़िया हो। उसका बदन पत्थर जैसा सख्त। वह मुझे अपने कमरे में ले गया। बिस्तर पर पटक दिया। मैं हाँफ रही थी, साड़ी उलझी हुई। "विक्रम... ये गलत है... मैं शादीशुदा हूँ।"
"चुप साली... अब तू मेरी है।" उसने अपनी शर्ट उतारी। छाती चौड़ी, मसल्स उभरे हुए। पैंट उतारी, अंडरवियर में उसका लंड तना हुआ – बड़ा, मोटा, जैसे कोई हथियार। मैंने नज़रें फेर लीं, लेकिन मन में आग लग गई। कितने सालों से पति के साथ रूटीन सेक्स – धीमा, बोरिंग। ये लड़का... जवान, जंगली।
उसने मेरी साड़ी खींची। फट गई थोड़ी-सी। ब्लाउज़ के बटन तोड़े। ब्रा दिख गई – काली, लेस वाली। उसने ब्रा ऊपर सरकाई, चूचियाँ बाहर। गुलाबी निप्पल्स सख्त। "वाह आंटी... क्या माल है।" उसने मुँह लगाया, एक चूची चूसी, दूसरी दबाई। जोर से। दर्द हुआ, लेकिन मज़ा भी। "आह्ह्ह... विक्रम... धीरे... दर्द हो रहा है।"
"धीरे? साली, तूने मुझे मारा था। अब सज़ा मिलेगी।" उसने काटा निप्पल पर। मैं चीखी। फिर जीभ घुमाई, चाटा। मैं तड़प रही थी। मेरी चूत गीली हो गई। उसने साड़ी पूरी उतार दी। पेटीकोट खींचा। पैंटी – गीली, चिपकी हुई। उसने सूँघा। "क्या खुशबू... रंडी की चूत।"
उसने पैंटी फाड़ दी। मेरी चूत नंगी। बाल साफ़ किए हुए, गुलाबी फांकें। वह नीचे झुका, जीभ से छुआ। "ओह्ह्ह... विक्रम... क्या कर रहा है?" मैंने टाँगें बंद करने की कोशिश की, लेकिन उसने फैला दीं। जीभ अंदर घुसाई। चाटना शुरू। क्लिटोरिस पर दाँत लगाए। "आआह्ह्ह... मार डालेगा क्या? हाँ... चाट... जोर से।"
मैं उसके सिर को दबा रही थी। वह जीभ से चोद रहा था – तेज़, गहरा। मेरा शरीर काँपने लगा। "विक्रम... आ रहा है... ओह्ह्ह!" मैं झड़ गई। रस बहा, वह सब पी गया। "मीठा है तेरी चूत का पानी।"
अब उसकी बारी। वह खड़ा हुआ, लंड मेरे मुँह के पास। "चूस साली।" मैंने मना किया, लेकिन उसने बाल पकड़े, मुँह में ठूँस दिया। गला तक गया। मैं घुट रही थी। "हाँ... ऐसे... गहरा ले।" वह धक्के मारने लगा। मुँह चोद रहा था। आँसू आ गए मेरे, लेकिन मज़ा आ रहा था। थूक बह रहा था। दस मिनट तक। फिर निकाला। "अब चूत फाड़ूँगा।"
उसने मुझे उलटा किया। घुटनों पर। पीछे से लंड सटाया। "तैयार?" बिना रुके धक्का। अंदर गया – पूरा, मोटा। दर्द हुआ, जैसे फट जाए। "आआह्ह्ह... निकाल... बहुत बड़ा है।" लेकिन वह न रुका। धक्के मारने लगा – जोरदार, तेज़। कमरे में थप-थप की आवाज़। मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। "हाँ साली... ले... चुद... मेरी रंडी।"
मैं चीख रही थी। "विक्रम... जोर से... फाड़ दे... हाँ... चोद मुझे।" वह बाल खींच रहा था, जैसे घोड़ी सवार। फिर पलटा, मिशनरी पोज़। टाँगें कंधों पर। गहरा धक्का। मैं नाखून उसके पीठ पर गड़ा रही थी। "ओह्ह्ह... मैं फिर झड़ रही हूँ... आआह्ह्ह!" दूसरी बार झड़ी। लेकिन वह न रुका। पसीना बह रहा था दोनों का।
फिर डॉगी स्टाइल। पीछे से चूत में, साथ में उंगली गांड में। "नहीं... वहाँ नहीं।" लेकिन उसने डाली। दर्द और मज़ा। "साली, तेरी गांड भी फाड़ूँगा आज।" लंड निकाला, गांड पर रगड़ा। धीरे धक्का। अंदर गया। मैं रो पड़ी। "आआह्ह्ह... दर्द... निकाल।" लेकिन वह धीरे-धीरे चोदने लगा। अब मज़ा आने लगा। "हाँ... गांड मार... जोर से।"
घंटा भर चला। पोज़ बदलते रहे – काउगर्ल, जहां मैं ऊपर थी, उछल रही थी। उसकी चूचियाँ दबा रही। फिर ६९, जहां मैं उसका लंड चूस रही, वह मेरी चूत। आखिर में वह झड़ने वाला था। "कहाँ?" "अंदर... भर दे।" उसने धक्के तेज़ किए। "आ रहा है... ले साली!" गर्म वीर्य अंदर। मैं भी तीसरी बार झड़ी।
हम हाँफते हुए लेट गए। पसीने से तर।
सेक्स के बाद मैंने कपड़े ठीक किए। विक्रम मुस्कुरा रहा था। मैंने कहा, "अब तो मेरे बेटे को तंग नहीं करोगे न?"
वह हँसा। "जब तक तू मुझसे चुदती रहेगी, तब तक नहीं। हर हफ्ते आना, वरना..."
मैं शरमाई, लेकिन मन ही मन राज़ी। "ठीक है।"
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23-09-2025, 10:09 AM
(This post was last modified: 23-09-2025, 10:13 AM by Fuckuguy. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
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मटके वाली सविता
मैं सविता हूँ, एक छोटे से गाँव की रहने वाली। मेरा घर गाँव के बाहर की तरफ है, जहाँ खेतों के बीच में एक छोटी सी झोपड़ी है। मेरी उम्र 22 साल की है, लेकिन गाँव की जिंदगी ने मुझे जल्दी ही जवान बना दिया। मेरी माँ बचपन में ही गुजर गईं, और पापा मजदूरी करके घर चलाते हैं। मैं रोज सुबह उठती हूँ, नदी से पानी लाती हूँ, फिर मिट्टी के मटके बनाती हूँ और उन्हें बाजार में बेचने जाती हूँ। मटके बेचना मेरा काम है, और इसी से घर का कुछ गुजारा होता है।
मेरा बदन गाँव की लड़कियों से थोड़ा अलग है। मेरी कमर पतली है, लेकिन कूल्हे चौड़े और भरे हुए। मेरी छातियाँ इतनी बड़ी हैं कि ब्लाउज में मुश्किल से समाती हैं, और जब मैं मटके सर पर रखकर चलती हूँ, तो वो हिलती-डुलती हैं, जिससे गाँव के मर्दों की नजरें मेरे ऊपर टिक जाती हैं। मेरी त्वचा गोरी है, बाल लंबे काले, और आँखें बड़ी-बड़ी। मैं साड़ी पहनती हूँ, लेकिन ब्लाउज का गला थोड़ा गहरा होता है, क्योंकि गर्मी में पसीना बहुत आता है। गाँव के लड़के और आदमी मुझे घूरते हैं, लेकिन मैं अनदेखा कर देती हूँ। पर अंदर से मुझे पता है कि वो मेरे बदन की प्यास बुझाना चाहते हैं।
एक दिन की बात है, गर्मी का मौसम था। सुबह-सुबह मैंने पाँच मटके बनाए, उन्हें सर पर रखा और बाजार की तरफ चल पड़ी। रास्ता खेतों से होकर जाता है, जहाँ हवा चलती है और मेरी साड़ी का पल्लू कभी-कभी सरक जाता है। मैं चलते-चलते थक जाती हूँ, लेकिन मटके बेचने हैं। बाजार पहुँचकर मैं अपनी जगह पर बैठ गई। वहाँ दूसरे दुकानदार भी थे, लेकिन मेरे मटके अच्छे थे, चिकने और मजबूत।
थोड़ी देर बाद रामलाल आया, गाँव का जमींदार का बेटा, उम्र करीब 30 साल की। वो लंबा, गोरा, और मजबूत बदन वाला था। उसने मुझे देखा और मुस्कुराया। "बहन, कितने का है ये मटका?" उसने पूछा, लेकिन उसकी नजरें मेरे ब्लाउज पर थीं, जहाँ से मेरी छातियाँ उभरी हुई दिख रही थीं। मैंने कहा, "बीस रुपये का एक, भैया। अच्छी मिट्टी का है, टूटेगा नहीं।" वो हँसा और बोला, "अच्छा, ले लूँगा दो। लेकिन पहले पानी पिला दे, गला सूख रहा है।"
मैंने एक मटके से पानी निकाला और उसे दिया। वो पीते हुए मुझे घूर रहा था। उसके होंठ पानी से गीले हो गए, और वो मुझे देखकर बोला, "तुम्हारा नाम क्या है? रोज आती हो बाजार?" मैंने कहा, "सविता, हाँ भैया, रोज आती हूँ।" वो बोला, "अच्छा, आज मेरे घर चलो। वहाँ और मटके चाहिए, और पैसा भी ज्यादा दूँगा। मेरा घर पास ही है।" मैं थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन पैसे की जरूरत थी, तो मैं मान गई।
हम चल पड़े। रास्ते में वो बातें करता रहा। "तुम अकेली हो? कोई घरवाला?" मैंने कहा, "नहीं भैया, अभी शादी नहीं हुई।" वो मुस्कुराया और बोला, "अच्छा, इतनी सुंदर लड़की की शादी नहीं हुई? गाँव के लड़के अंधे हैं क्या?" मैं शरमा गई, लेकिन अंदर से एक सिहरन सी हुई। उसका घर बड़ा था, हवेली जैसा। हम अंदर गए, वो बोला, "बैठो, पानी पी लो। गर्मी है।" मैं बैठ गई, मटके नीचे रखे। वो मेरे लिए पानी लाया, और बैठकर बात करने लगा।
धीरे-धीरे उसकी बातें बदलने लगीं। "सविता, तुम्हारा बदन कितना सुंदर है। मटके बेचते हुए कितनी मेहनत करती हो।" उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जैसे सहारा दे रहा हो। मैं चौंक गई, लेकिन हटी नहीं। उसकी उँगलियाँ मेरे ब्लाउज के पास सरक गईं। "क्या कर रहे हो भैया?" मैंने धीरे से कहा। वो बोला, "कुछ नहीं, बस देख रहा हूँ। तुम्हारी छातियाँ कितनी भरी हुई हैं।" मैं शरमा गई, लेकिन मेरे बदन में आग लगने लगी। गाँव में कभी किसी ने ऐसे छुआ नहीं था।
वो करीब आया, उसके होंठ मेरे गाल पर लगे। "सविता, मुझे तुम पसंद हो। आज मुझे खुश कर दो।" मैंने विरोध किया, "नहीं भैया, ये गलत है।" लेकिन वो नहीं माना। उसने मुझे बाँहों में भर लिया, मेरी छातियाँ उसके सीने से दब गईं। उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर सरक गया, मेरी जांघों को सहलाने लगा। मैं सिहर उठी। "अह्ह... भैया..." मैंने सिसकारी ली। वो बोला, "चुप, मजा आएगा।"
उसने मेरी साड़ी ऊपर की, मेरी चूत पर हाथ फेरा। मैं गीली हो चुकी थी। "देखो, तुम भी चाहती हो।" उसने कहा। मैं कुछ नहीं बोली, बस आँखें बंद कर लीं। उसने अपना पजामा उतारा, उसका लंड बाहर आया – मोटा, लंबा, काला। मैंने देखा और डर गई, लेकिन उत्सुक भी हुई। "ये... इतना बड़ा?" मैंने पूछा। वो हँसा, "हाँ, अब इसे चूसो।"
मैं घुटनों पर बैठ गई, उसके लंड को हाथ में लिया। वो गर्म था, धड़क रहा था। मैंने जीभ से छुआ, फिर मुँह में लिया। धीरे-धीरे चूसने लगी। वो सिसकारियाँ भरने लगा, "अह्ह... सविता... अच्छा कर रही हो।" मैंने जोर से चूसा, उसका रस निकलने लगा। फिर वो मुझे उठाया, दीवार से सटा दिया। मेरी साड़ी पूरी उतार दी, ब्लाउज खोला। मेरी छातियाँ बाहर आ गईं, गुलाबी निप्पल सख्त हो गए। वो उन्हें चूसने लगा, एक हाथ से दबाता, दूसरे से मेरी चूत में उंगली डालता। "उफ्फ... भैया... दर्द हो रहा है..." मैं बोली, लेकिन मजा आ रहा था।
फिर वो मुझे जमीन पर लिटा दिया, मेरी टांगें फैलाईं। उसका लंड मेरी चूत पर रगड़ा। "अब डालूँ?" उसने पूछा। मैंने हाँ में सिर हिलाया। धीरे से घुसाया, दर्द हुआ। "आह्ह... मर गई..." मैं चीखी। वो रुका, फिर धक्का दिया। पूरा अंदर चला गया। वो धीरे-धीरे चोदने लगा, हर धक्के में मेरी चूत फटती सी लगी। लेकिन धीरे-धीरे मजा आने लगा। मैं भी कमर हिलाने लगी। "जोर से... भैया... जोर से..." मैं बोली। वो तेज हुआ, मेरी छातियाँ हिल रही थीं।
करीब 10 मिनट चुदाई चली, फिर उसका रस मेरी चूत में गिरा। मैं भी झड़ गई। हम दोनों पसीने से तर थे। वो बोला, "मजा आया?" मैं शरमाकर हाँ बोली।
उस दिन के बाद रामलाल से मेरी मुलाकातें बढ़ गईं। वो रोज मटके खरीदने के बहाने मुझे बुलाता। एक दिन शाम को मैं उसके घर गई। वो अकेला था। "आज कुछ नया ट्राई करेंगे।" वो बोला। मैं उत्सुक हो गई। उसने मुझे नंगा किया, फिर अपनी जीभ से मेरी चूत चाटने लगा। "अह्ह... क्या कर रहे हो..." मैं सिहर उठी। उसकी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, मैं पागल हो गई। फिर मैंने उसका लंड चूसा, पूरा गले तक लिया।
फिर वो मुझे घोड़ी बनाया, पीछे से चोदा। उसका लंड मेरी गांड पर रगड़ता, फिर चूत में घुसता। दर्द और मजा दोनों। "उफ्फ... रामलाल... मार डालोगे..." मैं बोली। वो हँसा, जोर-जोर से धक्के मारता रहा। मेरी चूत गीली हो गई, आवाजें आने लगीं – फच फच। आखिर में वो मेरी गांड में उंगली डालकर चोदा, मैं चीख उठी। रस निकला, हम थककर लेट गए।
इस तरह रामलाल ने मुझे कई बार चोदा, हर बार नया मजा।
रामलाल के साथ मेरी चुदाई की आदत पड़ गई थी, लेकिन एक दिन कुछ और हुआ। मैं बाजार जा रही थी, सर पर मटके रखे, रास्ता खेतों से गुजरता था। दोपहर का समय था, सूरज चढ़ा हुआ, हवा में गर्मी। मेरी साड़ी पसीने से चिपक गई थी, ब्लाउज से छातियाँ झांक रही थीं। अचानक एक लड़का खेत से निकला, उम्र 20-22 की होगी, नाम श्याम, गाँव का मजदूर। वो काला, मजबूत, शर्ट खुली हुई, पसीने से तर।
उसने मुझे रोका, "अरे सविता, इधर आ। पानी पिला दे।" मैं रुक गई, मटका नीचे रखा। वो करीब आया, पानी पीने लगा, लेकिन नजरें मेरे बदन पर। "तुम्हारा बदन कितना मस्त है। रोज देखता हूँ तुम्हें।" वो बोला। मैं शरमा गई, "चलो भैया, मुझे बाजार जाना है।" लेकिन वो नहीं माना। उसने मेरा हाथ पकड़ा, मुझे खेत की झाड़ियों में खींच लिया। "क्या कर रहे हो? छोड़ो!" मैंने कहा, लेकिन वो मजबूत था।
वो मुझे जमीन पर गिरा दिया, मेरी साड़ी ऊपर कर दी। "चुप रह, मजा देगी तो छोड़ दूँगा।" उसका हाथ मेरी जांघों पर फिरा, फिर चूत पर। मैं विरोध करती रही, लेकिन बदन गर्म हो रहा था। उसने अपना लुंगी उतारा, लंड बाहर – मोटा, लेकिन छोटा सा। वो मेरे ऊपर चढ़ गया, मेरी छातियाँ दबाने लगा। "अह्ह... मत करो..." मैं बोली, लेकिन वो चूसने लगा निप्पल। दर्द हुआ, लेकिन सुख भी।
फिर उसने लंड मेरी चूत में घुसाया, बिना रुके। "उफ्फ... दर्द हो रहा है..." मैं सिसकी। वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा, खेत में हवा चल रही थी, मेरे बाल उड़ रहे थे। मैंने भी कमर हिलाई, मजा आने लगा। "जोर से... हाँ..." मैं बोली। वो पागल हो गया, 5 मिनट में झड़ गया, रस मेरे अंदर। फिर भाग गया। मैं उठी, कपड़े ठीक किए, और बाजार चली गई। लेकिन वो दर्द और मजा याद रहा। श्याम ने मुझे कई बार खेत में पकड़ा, हर बार जंगली चुदाई की।
रामलाल का पिता हरिसिंह, जमींदार साहब, उम्र 50 के करीब, लेकिन तगड़ा आदमी था। उनका बदन अभी भी मजबूत था, बाल सफेद हो चुके थे, लेकिन आँखों में वही जवानी की चमक थी। वो गाँव के सबके मालिक थे, हवेली में रहते, और औरतों की कमी नहीं थी, लेकिन मुझे देखकर उनकी आँखें चमक उठीं। एक दिन रामलाल ने मुझे उसके घर बुलाया, लेकिन वो बाहर गया हुआ था। हवेली के बड़े कमरे में हरिसिंह साहब अकेले बैठे थे, चारपाई पर, हुक्का पीते हुए। "आ जा बेटी, रामलाल अभी आएगा। बैठ, थक गई होगी मटके लेकर।" वो बोले, लेकिन उनकी नजरें मेरे ब्लाउज पर टिकीं, जहाँ से मेरी छातियाँ हिल रही थीं। मैं शरमाकर बैठ गई, साड़ी का पल्लू ठीक किया।
वो उठे, मेरे पास आए, और मेरे लिए पानी का गिलास लाए। "पी ले, गर्मी है।" देते हुए उनका हाथ मेरे हाथ से छुआ, और वो रुक गए। "तुम रामलाल की दोस्त हो न? वो बताता है तुम्हारे बारे में। कहता है, बड़ी मेहनती लड़की है।" मैं शरमा गई, सिर झुका लिया। लेकिन वो और करीब आए, उनका हाथ मेरे कंधे पर रखा। "तुम्हारा बदन कितना रसीला है, बेटी। जैसे दूध की मलाई।" उनका हाथ धीरे-धीरे नीचे सरका, मेरे ब्लाउज के ऊपर से छातियाँ छूने लगा। मैं सिहर उठी, "साहब, ये क्या कर रहे हो? रामलाल आएगा..." मैंने धीरे से कहा, लेकिन मेरे बदन में एक आग सी लग गई। वो हँसे, "चुप, रामलाल को पता है। वो खुद लाया है तुम्हें।"
उन्होंने मुझे खड़ा किया, मेरी कमर पकड़ी, और अपनी ओर खींचा। उनका सीना चौड़ा था, मैं उनके खिलाफ दब गई। "देखो, कितनी नरम हो तुम।" उनका हाथ मेरी साड़ी के अंदर सरक गया, जांघों को सहलाने लगा। मैं विरोध करती रही, "साहब, गलत है ये..." लेकिन वो नहीं रुके। उन्होंने मुझे सोफे पर धकेला, जो हवेली के कोने में था। धीरे-धीरे मेरी साड़ी उतार दी, ब्लाउज खोला। मेरी छातियाँ बाहर आ गईं, वो उन्हें देखकर बोले, "वाह, कितनी बड़ी और गोल। जैसे आम।" वो एक को मुँह में लिया, चूसने लगे, जीभ से निप्पल को घुमाते। दर्द और मजा मिला, मैं सिसकारी भर उठी, "अह्ह... साहब... धीरे..." दूसरी छाती को हाथ से दबाते, मसलते।
फिर उन्होंने अपना कुरता उतारा, पजामा नीचे किया। उनका लंड बाहर निकला – पुराना लेकिन मोटा, नसों से भरा, सख्त हो चुका। "चूसो इसे, बेटी। जैसे रामलाल को चूसती हो।" मैं घुटनों पर बैठ गई, हाथ में लिया। वो गर्म था, मैंने जीभ से चाटा, ऊपर से नीचे तक। फिर मुँह में लिया, धीरे-धीरे चूसने लगी। वो सिसकारियाँ भरते, मेरे बाल पकड़कर आगे-पीछे करते। "अह्ह... अच्छी लड़की... जोर से..." मैंने गले तक लिया, चूसा। उनका रस थोड़ा निकला, नमकीन। फिर वो मुझे उठाए, सोफे पर लिटाया। मेरी टांगें फैलाईं, और अपनी जीभ से मेरी चूत चाटने लगे। उनकी दाढ़ी मेरी जांघों पर गड़ रही थी, जीभ अंदर घुस रही, मैं पागल हो गई। "उफ्फ... साहब... क्या कर रहे हो... अह्ह..." मैं कमर हिलाने लगी, उनके मुँह पर दबाने लगी।
करीब 10 मिनट चाटते रहे, मैं दो बार झड़ गई। फिर वो ऊपर आए, लंड मेरी चूत पर रगड़ा। "अब डालूँ?" पूछा। मैंने हाँ में सिर हिलाया। धीरे से घुसाया, उनका मोटा लंड मेरी चूत को फैलाता चला गया। दर्द हुआ, लेकिन अनुभव से वो रुकते-रुकते घुसाते। पूरा अंदर, फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगे। हर धक्का गहरा, जैसे मेरे अंदर तक पहुँच रहा। मैं सिसकियाँ भरती, "जोर से... साहब... मारो... उफ्फ..." वो मेरी छातियाँ दबाते, चूसते, धक्के मारते। 15 मिनट चली चुदाई, पसीना बह रहा था, हवेली में सिसकारियाँ गूँज रही थीं। आखिर में उनका गर्म रस मेरी चूत में गिरा, मैं भी झड़ गई। वो मेरे ऊपर लेटे रहे, साँस लेते। "अच्छी लड़की हो, बेटी। फिर आना।" वो बोले। मैं थक गई, लेकिन संतुष्ट। उसके बाद हरिसिंह साहब मुझे हवेली में बुलाते, लंबी चुदाई करते, हर बार नई ट्रिक्स सिखाते – कभी गांड में उंगली, कभी अलग पोज। उनका अनुभव मुझे पागल कर देता।
ये सबसे मुश्किल और गहरा था। मेरे पापा रामदास, उम्र 45, मजदूर थे, दिन भर खेतों में काम करते, शाम को थके-मांदे घर आते। माँ के जाने के बाद वो उदास रहते, रातें अकेले गुजारते। उनका बदन मजबूत था, लेकिन चेहरे पर थकान की लकीरें। एक रात, बारिश जोरों से हो रही थी, बाहर ठंडी हवा चल रही, घर की छत टपक रही थी। मैं अपनी चारपाई पर सो रही थी, साड़ी थोड़ी सरक गई थी, ब्लाउज से छातियाँ आधी बाहर। पापा आए, मेरे पास लेटे। "बेटी, ठंड लग रही है। पास आ जाऊँ?" वो बोले, उनकी आवाज काँप रही थी। मैं जाग गई, लेकिन चुप रही, सिर हिलाया। वो मेरे करीब सरक आए, उनका हाथ मेरे कमर पर रखा। धीरे-धीरे सहलाने लगे, जैसे सुला रहे हों। लेकिन हाथ ऊपर सरका, मेरी छातियों पर। मैं चौंकी, "पापा, क्या कर रहे हो?" मैंने धीरे से कहा, लेकिन बदन में एक अजीब सी सनसनी थी।
वो चुप रहे, लेकिन हाथ नहीं हटाया। "बेटी, माँ के जाने के बाद... मुझे जरूरत है। तू समझ।" उनका हाथ ब्लाउज के अंदर घुसा, निप्पल को छुआ। दर्द हुआ, लेकिन अंदर प्यास जागी। मैं विरोध नहीं कर पाई, बस आँखें बंद कर लीं। वो मेरे ऊपर झुके, मेरी गर्दन पर चूमने लगे, होंठ गर्म थे। धीरे-धीरे ब्लाउज खोला, छातियाँ चूसने लगे। "अह्ह... पापा... धीरे..." मैं सिसकी, लेकिन कमर हिलाने लगी। उनका हाथ साड़ी के अंदर, मेरी जांघों पर फिरा, फिर चूत पर। मैं गीली हो चुकी थी। "देखो, तू भी चाहती है।" वो बोले, उंगली अंदर डाली, घुमाई। मैं पिघल गई, "उफ्फ... पापा..."
फिर उन्होंने अपना धोती उतारा, लंड बाहर – मोटा, काला, सख्त। मैंने हाथ में लिया, सहलाया। वो सिसकारियाँ भरते, "चूस ले, बेटी।" मैं नीचे सरकी, मुँह में लिया। धीरे-धीरे चूसा, जैसे रामलाल को चूसती थी। उनका रस निकला थोड़ा, मैं निगल गई। फिर वो मुझे लिटाया, टांगें फैलाईं। लंड मेरी चूत पर रगड़ा, धीरे से घुसाया। दर्द हुआ, लेकिन प्यार भरा। "धीरे... पापा... उफ्फ..." मैं बोली। वो धीरे-धीरे चोदने लगे, हर धक्का जैसे मेरे दिल तक पहुँचता। मैं उनकी पीठ सहलाती, कमर हिलाती। "जोर से... पापा... मुझे चोदो..." मैं बोली। वो तेज हुए, लेकिन सावधानी से, जैसे बेटी को नुकसान न पहुँचे। बारिश की आवाज में हमारी सिसकारियाँ मिल गईं। 10 मिनट बाद उनका रस मेरे अंदर गिरा, गर्म, भरपूर। मैं भी झड़ गई, उनके सीने से चिपक गई।
सुबह हम चुप रहे, आँखें नहीं मिलाईं। लेकिन वो रात दोहराई गई। कभी रात में, कभी दिन में जब घर खाली होता। पापा मुझे घर में कई बार चोदते, हर बार धीरे-धीरे, प्यार से। कभी जीभ से चाटते, कभी मेरी गांड सहलाते। वो कहते, "तू मेरी माँ जैसी है, बेटी।" मैं शरमाती, लेकिन मजा लेती। ये रिश्ता गलत था, लेकिन गाँव की जिंदगी में ये मेरी प्यास बुझाता।
Fuckuguy
albertprince547;
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