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10-09-2025, 03:29 PM
(This post was last modified: 11-09-2025, 06:12 PM by Fuckuguy. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
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पड़ोसी की छुपी हुई इच्छाएँ
दिल्ली के करोल बाग की उस व्यस्त लेकिन आपस में बंधी हुई कॉलोनी में, जहां संकरी गलियां मसालों की तीखी महक से लबालब दुकानों, इलेक्ट्रॉनिक्स के चमचमाते शोरगुल वाले बाजारों और सड़क किनारे समोसे तलते चाट वेंडर्स की तली हुई खुशबू और चटर से हमेशा गूंजती रहती थीं, वहां रहता था एक युवा लड़का नाम रोहित। 25 साल का रोहित एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, गुड़गांव की एक बड़ी टेक फर्म में काम करता था, रोजाना मेट्रो से लंबा सफर करता। वह हैंडसम था उस तरह से जैसे पड़ोस का साधारण लेकिन आकर्षक लड़का होता है – 6 फीट लंबा कद, पतला लेकिन एथलेटिक बदन जो वीकेंड क्रिकेट मैचों से तराशा हुआ था, छोटे काले बाल जो हवा में थोड़े बिखरे रहते, और एक चार्मिंग स्माइल जो उसके शर्मीले स्वभाव को छिपाती थी। उसकी गेहुंआ रंगत वाली स्किन, गहरी भूरी आंखें जो कभी-कभी रहस्यमयी लगतीं, और सबसे खास उसका लंड जो इरेक्ट होने पर 8 इंच लंबा और मोटा हो जाता, नसों से भरा हुआ, हल्का कर्व वाला जो चुदाई के दौरान सही जगहों को हिट करता था, उसे और भी खास बनाता। रोहित एक छोटे से रेंटेड अपार्टमेंट में अपने रूममेट के साथ रहता था, लेकिन उसका असली घर उसके माता-पिता का था कॉलोनी में ही, जहां वह हर वीकेंड आता, घर का खाना खाता और परिवार के साथ समय बिताता। वह सिंगल था, कॉलेज की गर्लफ्रेंड से एक साल पहले ब्रेकअप के बाद, और उसकी रातें अक्सर अकेले गुजरतीं – लैपटॉप पर पॉर्न देखते हुए, अपना लंड सहलाते हुए। उसकी फैंटसीज मैच्योर महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमतीं – आंटियां, टीचर्स, पड़ोसन – उनके अनुभवी बदन, कॉन्फिडेंट सिडक्शन और गर्म चूत की कल्पना उसे उसके उम्र की लड़कियों से ज्यादा उत्तेजित करती। वह बिस्तर पर लेटकर सोचता, कैसे एक बड़ी उम्र की औरत की मुलायम स्किन को छूना होगा, उसके भरे हुए स्तनों को दबाना और चूसना, निप्पल्स को काटना जब तक वह कराह न उठे, और फिर उसकी गीली चूत में अपना मोटा लंड धीरे-धीरे डालकर जोर-जोर से धक्के मारना, उसकी कराहें सुनकर खुद को कंट्रोल न कर पाना, आखिरकार उसके अंदर झड़ जाना। ये कल्पनाएं उसे इतना उत्तेजित कर देतीं कि उसका लंड पैंट में ही सख्त हो जाता, प्रीकम लीक करता, और वह जोर से सहलाता, तेजी से ऊपर-नीचे करता, आखिरकार गर्म वीर्य के फव्वारे छोड़कर झड़ जाता, लेकिन संतुष्टि कभी पूरी नहीं होती, हमेशा एक खालीपन रह जाता।
पड़ोसी इन क्वेश्चन थी शालिनी, 38 की, एक डिवोर्स्ड मां जो दो बच्चों की मां थी और नेक्स्ट डोर ही रहती थी अपने टीनएज बेटे और बेटी के साथ। शालिनी एक कॉलेज टीचर थी, कॉलोनी में उसके स्ट्रिक्ट लेकिन दयालु स्वभाव के लिए जानी जाती। उसका बदन मैच्योर ब्यूटी की परफेक्ट मिसाल था – गोरी स्किन जो डेली योग से चमकती रहती, 36D स्तन जो उसके कुर्तों के खिलाफ तनकर बाहर आने को बेताब लगते, हल्का मोटा कमर जो उसके आकर्षण को और बढ़ाता जैसे कोई कुशन, चौड़ी कूल्हें जो मार्केट जाते वक्त ऐसे स्वे करतीं जैसे किसी को ललचा रही हों, और फुल, राउंड गांड जो हर कदम पर एंटाइसिंगली जिगल करती, देखने वाले की आंखें फिसलने पर मजबूर कर देती। उसके लंबे ब्राउन बाल अक्सर लूज छोड़े रहते, हाई चीकबोन्स वाले चेहरे को फ्रेमिंग, फुल लिप्स पिंक पेंटेड जो चूमने की दावत देते जैसे कोई रसीली फल, और आंखें हिडन मिस्चीफ से चमकतीं जो बतातीं कि उसके अंदर एक आग दबी हुई है जो कभी भी भड़क सकती है। पांच साल पहले एब्यूसिव पति से डिवोर्स्ड, शालिनी ने बच्चों को अकेले पाला था, समाज की नजरों और रेस्पेक्टेबिलिटी के डर से अपनी इच्छाओं को दबाया था। लेकिन रातों में, जब बच्चे सो जाते और फैन की घुरघुराहट कमरे में गूंजती, वह खुद को छूती – उंगलियां उसके शेव्ड पुसी को सर्कलिंग करतीं, धीरे-धीरे क्लिट को रब करतीं जब तक वह सख्त न हो जाता, डार्क निप्पल्स को पिंच करतीं जब तक वे दर्द से सुख मिलने लगे, एक युवा, वाइरिल मैन की इमेजिनिंग जो उसे रफली ले, उसके स्तनों को मसलता जैसे आटा गूंथ रहा हो, निप्पल्स को काटता जब तक खून न निकले, उसकी चूत में उंगलियां डालकर उसे तड़पाता, जूसेज को बाहर निकालता, और फिर अपना मोटा लंड अंदर घुसाकर जोर-जोर से चोदता, उसके धक्कों से उसका बदन हिलता, स्तन उछलते, और वह चीखती "आह... और तेज... चोदो मुझे!" ये कल्पनाएं उसे इतना गीला कर देतीं कि उसकी उंगलियां आसानी से अंदर-बाहर स्लाइड करतीं, पुसी की दीवारें सिकुड़तीं, और वह कराहती, "आह... हां... चोदो मुझे... भर दो मुझे," तेजी से उंगलियां चलाती, आखिरकार एक जोरदार ऑर्गैज्म के साथ झड़ जाती, जूसेज बेडशीट पर फैलते, लेकिन उसके बाद खालीपन रह जाता, एक लालसा जो कभी मिटती नहीं।
रोहित का ऑब्सेशन इनोसेंटली शुरू हुआ। एक गर्मी की दोपहर, पावर कट के दौरान जो कॉलोनी को उबलते हुए छोड़ देता, रोहित अपने बालकनी पर था, शर्टलेस और पसीने से तर, छाती पर पसीने की बूंदें चमक रही, जब उसने शालिनी के घर की ओर ग्लांस किया। उसके बेडरूम की ओपन विंडो से, वह उसे देखा – फ्रेश फ्रॉम बाथ, टॉवल उसके बदन के चारों ओर रैप्ड, पानी की बूंदें उसकी स्किन पर ग्लिस्टनिंग जैसे छोटे-छोटे मोती लुढ़क रहे हों। टॉवल स्लिप स्लाइटली, उसके ब्रेस्ट की स्वेल रिवीलिंग, एक डार्क निप्पल पीकिंग आउट जो सख्त और आमंत्रित लगता, जैसे कोई गुलाबी बटन। रोहित का लंड उसके शॉर्ट्स में ट्विच्ड, एकदम सख्त हो गया, प्रीकम लीक करना शुरू कर दिया। वह वॉच्ड, रेलिंग से हिडन, जैसे वह टॉवल कम्प्लीटली ड्रॉप की, उसका नेकेड बदन डिस्प्ले पर – ब्रेस्ट्स हेवी और फर्म, गुरुत्वाकर्षण को चैलेंज करते, निप्पल्स डार्क और इरेक्ट, हवा में थरथराते, पुसी नीट लैंडिंग स्ट्रिप ऑफ हेयर वाली जो हल्की गीली लगती, लेबिया हल्के फैले हुए, और गांड चीक्स पार्टिंग जैसे वह बेंट टू पिक अप लोशन, उसके बीच का गुलाबी छेद एक सेकंड के लिए फ्लैश करता, टाइट और आमंत्रित। वह लोशन को स्किन में मसाज्ड, हाथ ब्रेस्ट्स पर लिंगरिंग, उन्हें squeeजिंग जैसे दूध निकाल रही हो, निप्पल्स को ट्विस्टिंग जब तक वे और सख्त न हो जाएं और दर्द से सुख मिलने लगे, फिर थाइज पर डाउन, एक उंगली उसके लेग्स के बीच डिपिंग, उसके क्लिट को रबिंग, धीरे-धीरे सर्कल्स बनाते, उसकी आंखें बंद जैसे वह कल्पना में खोई हो, सांसें तेज होतीं। "आह... एक मैन की जरूरत है," वह मटर्ड, अनवेयर ऑफ हर ऑडियंस, उसकी उंगलियां अब तेजी से मूविंग, पुसी से जूसेज लीकिंग, चीक्स पर फैलते, उसके बदन को चमकदार बनाते। रोहित ने खुद को उसके शॉर्ट्स से स्ट्रोक्ड, उसका लंड हार्ड और पल्सिंग, प्रीकम लीकिंग, और वह जोर से सहलाया, तेजी से ऊपर-नीचे करता, आखिरकार गर्म वीर्य के फव्वारे छोड़कर झड़ गया, उसके हाथ पर चिपचिपा लोड, गिल्ट एक्साइटमेंट से मिक्सिंग जैसे वह छिपकर देखता रहा। उसका दिल जोर से धड़क रहा था, सांसें तेज, और वह सोचता रहा कि शालिनी का बदन कितना परफेक्ट था – उसके स्तनों की भारीपन जो छूने को बुला रही थी, उसकी पुसी की गुलाबी चमक जो गीली लग रही थी, और उसकी गांड की राउंडनेस जो उसे चोदने की चाहत जगाती।
उस दिन से, रोहित एक वॉयर बन गया। वह बालकनी पर पोजिशन लेता उन टाइम्स पर जब वह जानता कि शालिनी होम अलोन होती – कॉलेज के बाद, जब उसके बच्चे ट्यूशन पर जाते। वह उसे चेंज होते देखता, उसके ब्रा और पैंटीज को उतारते, उसके नंगे बदन को आईने में एडमायर करते, उंगलियां उसके निप्पल्स पर रबिंग, उन्हें सर्कल्स में घुमाते जब तक वे सख्त न हो जाते, फिर नीचे उसकी पुसी पर, धीरे-धीरे मास्टरबेटिंग, उसके मुंह से सॉफ्ट मोअन्स निकलते जैसे वह उंगलियां अंदर डालती, दो उंगलियां पुसी की दीवारों को फैलातीं, जूसेज को बाहर निकालतीं, उसके थाइज पर चिपचिपा ट्रेल छोड़तीं। एक बार तो वह वाइब्रेटर यूज करती, सॉफ्टली मोअनिंग जैसे वह इसे इन एंड आउट थ्रस्ट करती उसके वेट पुसी में, वाइब्रेशन की आवाज हल्की गूंजती, उसके जूसेज ड्रिपिंग, बेडशीट पर गीले स्पॉट बनाते, उसकी गांड टाइट होकर रिलैक्स होती जैसे वह क्लाइमैक्स की ओर बढ़ती, "आह... हां... चोदो मुझे... और गहरा," फुसफुसाती, उसके बदन में कंपन, स्तन उछलते। रोहित के लिए भावनाएं एक तूफान थीं – लस्ट डोमिनेटिंग, उसका लंड हर बार सख्त हो जाता, वह सहलाता, तेजी से मुठ्ठी ऊपर-नीचे करता, लेकिन एक स्ट्रेंज अफेक्शन भी, उसे संतुष्ट करने वाला बनना चाहता, उसकी कराहें सुनकर खुद को उसके अंदर इमेजिन करना, उसके स्तनों को चूसते हुए। शालिनी, आंखें फील करती लेकिन कौन नहीं जानती, एक थ्रिल फील करती – एग्जीबिशनिज्म कुछ डॉर्मेंट जगा रहा, उसे ज्यादा गीला बनाता जैसे वह जानती कि कोई देख रहा है, उसकी उंगलियां तेज चलातीं, पुसी से चूचू की आवाज आती।
पहला एनकाउंटर दिवाली की तैयारी के दौरान हुआ। शालिनी को उसके बालकनी पर लाइट्स हैंग करने में हेल्प चाहिए थी, और रोहित वॉलंटियर किया, उसका दिल जोर से धड़क रहा जैसे वह उसके घर गया, दरवाजा खुलते ही उसकी खुशबू महसूस हुई। अप क्लोज, उसकी सेंट – रोज की मीठी महक और मस्क की गर्माहट – उसे इंटॉक्सिकेट किया, उसका लंड उसके पैंट में स्टिरिंग, प्रीकम लीक करना शुरू। जैसे वह हाई रीच किया, उसका बदन उसके खिलाफ एक्सीडेंटली प्रेस्ड, उसका हार्ड लंड उसके गांड को ब्रशिंग, मुलायम लेकिन फर्म फीलिंग जैसे वह उसके चीक्स के बीच रब हुआ, उसकी गांड की गर्मी उसके लंड को और सख्त कर देती। शालिनी गैस्प्ड, इसे फील करके, उसकी पुसी में एक टिंगल, हल्की गीलापन महसूस हुआ। "रोहित... वह क्या है?" वह टर्न्ड, उसकी आंखें उसके से मिलीं, एक स्पार्क इग्नाइटिंग, उसकी सांसें तेज। पुल अवे की बजाय, वह बैक प्रेस्ड, उसका गांड उसके लंड पर ग्राइंडिंग स्लाइटली, उसके चीक्स उसके शाफ्ट को फील करते, "तुम मुझे देखते रहे हो, है ना? मेरे नंगे बदन को, मेरी चूत को?" रोहित ब्लश्ड, उसका चेहरा रेड, लेकिन वह नोड किया, "आंटी... मैं हेल्प नहीं कर सका। आप इतनी ब्यूटीफुल हैं, आपका बदन... मैं रोज सोचता हूं, आपके स्तनों को छूने को, आपकी गांड को दबाने को।" शालिनी का दिल रेस्ड – लोनली लाइफ पर रिवेंज, युवा स्टड पर एक्साइटमेंट, उसकी पुसी गीली हो गई, पैंटी में चिपचिपी महसूस हुई। "अंदर आओ," वह फुसफुसाई, उसका हाथ उसके आर्म को ग्रैबिंग, उसे पुलिंग, दरवाजा बंद करते हुए।
उसके लिविंग रूम में, कर्टेंस ड्रॉन, हवा में उसकी खुशबू फैली, वह उसे सोफा पर पुश की, उसकी आंखें हंगर से भरी, होंठ काटते हुए। "मुझे दिखाओ क्या तुम स्ट्रोक कर रहे थे, रोहित। मुझे देखकर क्या तुम्हारा लंड सख्त होता है, प्रीकम लीक करता है?" रोहित ने अनजिप्ड, उसका 8-इंच लंड स्प्रिंग फ्री, मोटा और हार्ड, हेड पर प्रीकम शाइनिंग जैसे कोई मोती। शालिनी की आंखें चौड़ी, "इतना बड़ा... मेरे एक्स से बड़ा, और इतना मोटा जैसे मेरी मुट्ठी, नसें उभरी हुईं जैसे रास्ते।" वह घुटनों पर गिरी, इसे हाथ में लिया, धीरे स्ट्रोकिंग, उसकी उंगलियां उसके नसों पर फिसलतीं, हेड को थंब से रबिंग, प्रीकम को फैलातीं, फिर हेड लिकिंग, प्रीकम टेस्टिंग जैसे कोई स्वादिष्ट चीज, जीभ से सर्कल बनाते। "म्म... सॉल्टी और मीठा, जैसे कोई नशा।" वह डीपली चूसी, उसका मुंह वार्म और वेट, जीभ स्वर्लिंग उसके हेड पर, गैगिंग जैसे वह डीप-थ्रोटेड, उसका थ्रोट उसके लंड को मसाज करता, सलाइवा उसके शाफ्ट से ड्रिपिंग। रोहित मोअन्ड, "आंटी... आह, आपका मुंह हेवन है, इतना गर्म और टाइट, जैसे कोई चूत।" भावनाएं: शालिनी के लिए, सालों की नेग्लेक्ट के बाद एम्पावरमेंट, उसका मुंह उसके लंड से भरा महसूस करना, स्वाद लेना; रोहित के लिए, ड्रीम कम ट्रू, उसकी आंटी का मुंह उसके लंड पर, उसके होंठों की नरमी। वह स्टूड, अपनी साड़ी स्ट्रिपिंग, लेस ब्रा और पैंटीज रिवीलिंग जो उसके गीले स्पॉट दिखाती, जूसेज लीकिंग। "चोदो मुझे, रोहित। आंटी को झड़ाओ, मेरी चूत को अपना लंड से फाड़ दो।" वह उसे सोफा पर बेंड ओवर, उसके पुसी में पीछे से एंटरिंग। वह टाइट, वेट, उसे ग्रिपिंग जैसे वेल्वेट ग्लव, उसके जूसेज उसके लंड को स्लिपरी बनाते। "इतनी टाइट... आह!" वह हार्ड थ्रस्ट किया, उसके गांड रिपलिंग, ब्रेस्ट्स स्विंगिंग जैसे वह बैलेंस के लिए सोफा पकड़ती, उसके निप्पल्स रगड़ते। शालिनी स्क्रीम्ड, "हार्डर... भर दो मुझे, रोहित... मेरी चूत को अपने गर्म वीर्य से गीला कर दो, मुझे प्रेग्नेंट कर दो!" वह कम्ड, स्क्वर्टिंग उसके लंड पर, उसका जूस उसके थाइज पर फैलता, पुसी की दीवारें सिकुड़तीं, वह फॉलोइंग, इनसाइड कमिंग, गर्म रोप्स उसे फ्लडिंग, उसके पुसी से ओवरफ्लोइंग, उसके लेग्स पर टपकते।
उनका अफेयर खिल उठा। सीक्रेट मीटिंग्स: उसके किचन में, क्विक ब्लोजॉब्स जबकि बच्चे बाहर खेलते, वह उसके लंड को मुंह में लेती, तेजी से चूसती, सलाइवा ड्रिपिंग, "तेज चूसो, आंटी... झड़ जाओगे," वह कहता; उसकी कार में, वह बैक सीट में उसे राइडिंग, ब्रेस्ट्स उसके फेस में बाउंसिंग, उसके निप्पल्स को चूसते हुए, उसके लंड को पुसी में घुमाती। एक रात, उसके बेडरूम में, वह एनल इंट्रोड्यूस्ड। "मेरा गांड लो, बेटा, मुझे पूरा भर दो, मेरी टाइट गांड को फाड़ दो।" ल्यूब्ड, वह धीरे एंटर्ड, टाइटनेस उसे ग्रोन कराती जैसे वह उसके चीक्स को स्प्रेड करता, हेड अंदर पॉपिंग। "इतना फुल... आंटी के गांड को चोदो, जोर से धक्के मारो!" वह पाउंड किया, उसे स्पैंकिंग, उसके मोअन्स पिलो में मफल्ड, उसकी गांड उसके लंड को मिल्किंग, उसके जूसेज उसके बॉल्स पर टपकते। भावनाएं गहराई – शालिनी फील करती युवा फिर से, उसकी टाइट होल को स्ट्रेच होने का दर्द प्लेजर में बदलता, उसके अंदर की दीवारें फील होतीं; रोहित एडिक्टेड उसके एक्सपीरियंस से, उसके गांड की गर्मी को फील करना, उसके चीक्स को दबाना।
लेकिन ट्विस्ट्स आए। रोहित का बेस्ट फ्रेंड, विक्रम, 26 का, मस्कुलर 9-इंच लंड वाला, अफेयर डिस्कवर किया। जजमेंट की बजाय, वह जॉइन किया। एक शाम, विक्रम विजिट किया, उन्हें कैचिंग। "जॉइन अस," शालिनी बोल्डली बोली, उसकी आंखें लस्ट से भरी। वे उसे डबल-टीम्ड – रोहित उसके पुसी में, विक्रम उसके मुंह में, उसका लंड उसके थ्रोट को स्ट्रेचिंग। "आह... दो युवा लंड... हेवन, मेरी चूत और मुंह दोनों भरे, चूसो मुझे!" वह मल्टीपल टाइम्स कम्ड, भावनाएं स्लट्टी फ्रीडम की ओवरवेल्मिंग, उसकी पुसी स्क्वर्टिंग, जूसेज हर जगह। फिर, उसकी बेटी रिया, 18 की, क्यूरियस और हॉर्नी, उन्हें स्पाई किया, उसके कमरे से छिपकर देखती जैसे उसकी मॉम दो लंड लेती। "मॉम... मुझे भी चाहती हूं, मुझे सिखाओ कैसे चूसना है।" शालिनी, शॉक्ड लेकिन आराउज्ड, उसे इनक्लूड की – रिया को रोहित का लंड चूसना सिखाती जबकि विक्रम शालिनी को चोदता, उसके लंड को उसके मुंह में गाइडिंग। "ऐसे, बेटा... गहरा ले, जीभ घुमाओ, प्रीकम चखो," वह बोली, रिया गैगिंग लेकिन ट्राइंग, उसके छोटे मुंह में लंड स्लिपिंग, सलाइवा ड्रिपिंग। फैमिली लाइन्स ब्लर्ड, ऑर्जीज एनसुइंग, शालिनी अपनी बेटी की पुसी को लिकिंग जबकि रोहित उसे चोदता, विक्रम रिया के मुंह में। "मॉम... इतना अच्छा लगता, आपका जीभ... आह!" रिया कराही, उसकी युवा बॉडी शेकिंग ऑर्गैज्म से, उसके जूसेज शालिनी के मुंह में।
रोहित फील करता किंग, उसका लंड हर छेद में, लेकिन गिल्ट क्रेप्ट इन, टैबू की वजह से। शालिनी ने अपनी इच्छाओं को अपनाया, अब लोनली आंटी नहीं, उसकी पुसी हमेशा तैयार। कॉलोनी व्हिस्पर्ड, लेकिन उनका सीक्रेट वर्ल्ड थ्राइव्ड, पैशन में एंडलेस, हर रात नई पोजिशंस, नई कराहें, नई कमिंग, उनके बदन पसीने और वीर्य से तर।
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(10-09-2025, 06:44 PM)ratipremi Wrote: What a language, Hindi-cum-English.
Thanks brother
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11-09-2025, 04:00 PM
[img=539x1918] ![[Image: Airbrush-Image-Enhancer-1757586329645.jpg]](https://i.ibb.co/DDskRx0P/Airbrush-Image-Enhancer-1757586329645.jpg) [/img]
दूधवाले की लालच
लखनऊ के एक शांत मोहल्ले में, जहां सुबह की पहली किरणें पुराने पेड़ों की डालियों से छनकर आतीं और हवा में दूध की ताजगी और फूलों की महक घुली रहती, वहां रहती थी रानी। रानी, 28 साल की, एक साधारण गृहिणी थी, जिसका पति विजय एक छोटी सी दुकान चलाता था। रानी का बदन ऐसा था कि देखने वाले की आंखें ठहर जाएं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 36D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर आने को बेताब लगते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई सपना हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे। लेकिन रानी का जीवन सादा था – सुबह उठकर घर संभालना, पति के लिए चाय बनाना, और शाम को थककर सो जाना। विजय अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – महीने में दो-चार बार, लाइट बंद करके, ऊपर-नीचे होकर खत्म। रानी की इच्छाएं दबी हुई थीं, रातों में अकेले लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं।
मोहल्ले में दूधवाला था गोविंद, 30 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काला रंग लेकिन आंखों में चमक। गोविंद का बदन मेहनत से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मजबूत बाजू, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई छोटा नहीं। वह रोज सुबह दूध बांटता, लेकिन रानी के घर आकर थोड़ा रुकता, उसकी साड़ी की चमक को निहारता। रानी भी नोटिस करती, लेकिन शरम से नजरें झुका लेती। एक सुबह, जब विजय दुकान गया, गोविंद दूध देते समय रानी के हाथ पर उंगलियां फेर दी। "भाभी, आज दूध ताजा है, लेकिन आपकी तरह नहीं," वह मुस्कुराया। रानी शरमा गई, लेकिन उसके मन में एक गुदगुदी हुई। "गोविंद भैया, ऐसे मत बोलो," वह बोली, लेकिन उसकी आंखें उसके उभार पर ठहर गईं।
अगले दिन, रानी ने जानबूझकर साड़ी थोड़ी ढीली बांधी। गोविंद आया, दूध देते समय उसके स्तनों पर नजर पड़ी, जहां ब्लाउज से उभार झांक रहे थे। "भाभी, आपका ब्लाउज..." वह बोला। रानी ने शरमाते हुए कहा, "बटन खुल गया लगता है।" गोविंद ने हाथ बढ़ाया, बटन ठीक करते हुए उसके स्तन को छुआ। रानी की सांस रुक गई, उसके निप्पल सख्त हो गए। "गोविंद... ये क्या कर रहे हो?" लेकिन वह रुकी नहीं। गोविंद ने हिम्मत की, "भाभी, आप बहुत खूबसूरत हो, विजय भैया को तो मैं देखता हूं, लेकिन आप अकेली लगती हो।" रानी का दिल धड़का, "तुम्हें क्या पता?" गोविंद ने दूध का गिलास रखा, और उसे दीवार से सटा लिया। "मुझे सब पता है, भाभी। रातों में आप खुद को छूतियां, मैंने देखा है खिड़की से।" रानी शॉक्ड हुई, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। गोविंद ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जीभ अंदर डाल दी। रानी ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, उसके हाथ गोविंद की कमर पर चले गए।
गोविंद ने रानी की साड़ी खींची, ब्लाउज के बटन खोले, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "भाभी, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता। रानी कराह उठी, "आह... गोविंद... मत करो..." लेकिन उसके हाथ गोविंद के पैंट पर चले गए, उभार को दबाया। गोविंद ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 9 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "भाभी, देखो मेरा लंड, आपके लिए ही है।" रानी ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... विजय का तो आधा भी नहीं।" गोविंद ने रानी की साड़ी पूरी उतार दी, उसकी पैंटी गीली थी। "भाभी, आपकी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। रानी चीख उठी, "आह... हां... और गहरा..." गोविंद ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया। रानी का पानी निकलने लगा, "गोविंद... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज गोविंद के हाथ पर।
गोविंद ने रानी को किचन टेबल पर लिटाया, उसके पैर फैलाए। "भाभी, अब मेरा लंड लो।" वह अपना लंड रानी की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। रानी चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा..." गोविंद ने धक्का मारा, पूरा अंदर। रानी की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। गोविंद ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, रानी के स्तन उछल रहे थे। "भाभी, क्या टाइट चूत है... विजय भैया को तो पता ही नहीं," वह बोला। रानी कराह रही थी, "हां... चोदो मुझे... और तेज..." गोविंद ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे। रानी फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, गोविंद का लंड दब गया। गोविंद ने बाहर निकाला, रानी के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। दोनों थककर लेट गए। "भाभी, ये हमारा राज रहेगा," गोविंद बोला। रानी मुस्कुराई, "हां, लेकिन रोज आना।"
अगले दिनों, गोविंद रोज आता। कभी किचन में, कभी बाथरूम में। एक दिन, बाथरूम में नहाते वक्त गोविंद आया। रानी नंगा थी, पानी उसके बदन पर बह रहा। गोविंद ने कपड़े उतारे, अंदर आ गया। "भाभी, साथ नहाएं।" वह रानी को दीवार से सटाया, उसके स्तनों को साबुन से मला, निप्पल्स को रब किया। रानी का हाथ गोविंद के लंड पर गया, सहलाया। गोविंद ने रानी के पैर फैलाए, पीछे से लंड डाला। पानी के बीच धक्के, रानी की कराहें गूंज रही थीं। "आह... गोविंद... गहरा..." गोविंद ने उसके बाल पकड़े, जोर से चोदा। रानी का पानी निकला, गोविंद ने उसके गांड में झाड़ दिया।
फिर एक दिन, रानी ने गोविंद को बेडरूम में बुलाया। वह लिंगरी पहने थी, रेड ब्रा और पैंटी। "गोविंद, आज कुछ नया करो।" गोविंद ने रानी को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "भाभी, आज तुम मेरी हो।" वह रानी के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर, निप्पल्स को काटा, पेट पर, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा। रानी तड़प उठी, "आह... छोड़ो मुझे... चोदो!" गोविंद ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। रानी झड़ गई कई बार। आखिर में, गोविंद ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। रानी चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको।" गोविंद ने धक्के मारे, रानी को मजा आने लगा। "हां... चोदो गांड... आह!" गोविंद झड़ गया, रानी के अंदर।
समय बीतता गया, रानी की इच्छाएं बढ़ीं। वह गोविंद से कहती, "आज कुछ और करो।" गोविंद ने दोस्त बुलाया, लेकिन रानी ने मना कर दिया। "सिर्फ तुम।" लेकिन एक दिन, रानी की सहेली ने देख लिया। फिर अफवाहें फैलीं। विजय को शक हुआ। लेकिन रानी खुश थी, गोविंद के लंड की लालच में। उनकी चुदाई जारी रही, कभी खेत में, कभी गाड़ी में। रानी अब संस्कारी नहीं, एक कामुक औरत थी।
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बहू की भूख
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे चमकतीं, वहां रहता था एक जमींदार परिवार। परिवार का मुखिया था रामलाल, 55 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काले बालों में सफेदी घुली हुई, लेकिन आंखों में वही पुरानी चमक जो सालों की मेहनत से बनी थी। रामलाल का बदन अभी भी ताकतवर था – चौड़े कंधे, मोटी छाती, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं। वह विधुर था, पत्नी की मौत के बाद बहू को ही अपना सहारा बना लिया था। बहू का नाम था सीता, 26 साल की, रामलाल के बेटे श्याम की पत्नी। श्याम, 28 साल का, शहर में नौकरी करता था, महीने में एक-दो बार आता, लेकिन सीता गांव में अकेली रहती। सीता का बदन ऐसा था कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 38D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर झांकते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई देवी हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा साफ-सुथरी, लेकिन इच्छाओं से भरी। श्याम अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – शहर से आता तो थकान का बहाना, दो-चार धक्के मारकर सो जाता। सीता की रातें अकेली गुजरतीं, बिस्तर पर लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं। रामलाल सब देखता, लेकिन चुप रहता – बहू की सुंदरता पर उसका मन ललचाता, लेकिन संस्कार रोकते।
एक सुबह, श्याम शहर चला गया। सीता अकेली थी, घर संभाल रही। रामलाल खेत से लौटा, पसीने से तर, कमीज उतारकर नहाने लगा आंगन में। सीता ने पानी डाला, लेकिन नजर रामलाल के बदन पर पड़ी – उसकी मोटी छाती, मजबूत बाजू, और पैंट का उभार। सीता की सांस रुक गई, उसकी चूत में एक गुदगुदी हुई। "बाबूजी, पानी ठंडा है?" वह बोली, लेकिन आंखें नीचे। रामलाल मुस्कुराया, "ठीक है बहू, लेकिन तेरी नजरें गर्म हैं।" सीता शरमा गई, लेकिन रुकी नहीं। शाम को, रामलाल ने कहा, "सीता, आज रात साथ सो। श्याम नहीं है, अकेली मत रह।" सीता का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रात को, बिस्तर पर लेटे, रामलाल ने सीता का हाथ पकड़ा। "बहू, तू बहुत सुंदर है। श्याम को तो पता ही नहीं तेरी कीमत का।" सीता की सांस तेज हो गई, "बाबूजी... ये क्या कह रहे हो?" रामलाल ने उसे करीब खींचा, उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सीता ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, जीभ मिलाई। रामलाल का हाथ सीता के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। "आह... बाबूजी..." सीता कराही। रामलाल ने ब्लाउज खोला, ब्रा उतारी, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "क्या माल है बहू," रामलाल बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता, काटा हल्का। सीता तड़प उठी, "आह... बाबूजी... मत करो... लेकिन अच्छा लग रहा है।"
रामलाल ने सीता की साड़ी खींची, पेटीकोट उतारा, पैंटी गीली थी। "बहू, तेरी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। सीता चीख उठी, "आह... हां... और गहरा बाबूजी..." रामलाल ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया, सीता का पानी निकलने लगा। "बाबूजी... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज रामलाल के हाथ पर, बिस्तर गीला। रामलाल ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "बहू, देख मेरा लंड, तेरे लिए ही है।" सीता ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... श्याम का तो आधा भी नहीं।" रामलाल ने सीता को लिटाया, उसके पैर फैलाए। "अब लंड लो बहू।" वह अपना लंड सीता की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। सीता चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा... पूरा अंदर करो।" रामलाल ने धक्का मारा, पूरा अंदर। सीता की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। रामलाल ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, सीता के स्तन उछल रहे थे। "बहू, क्या टाइट चूत है... श्याम को तो पता ही नहीं," वह बोला। सीता कराह रही थी, "हां बाबूजी... चोदो मुझे... और तेज... आपका लंड कितना गर्म है।" रामलाल ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, सीता फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, रामलाल का लंड दब गया। रामलाल ने बाहर निकाला, सीता के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स, उसके नाभि तक फैल गए। दोनों थककर लेट गए, रामलाल ने सीता को गले लगाया। "बहू, ये हमारा राज रहेगा।" सीता मुस्कुराई, "हां बाबूजी, लेकिन रोज करो।"
अगले दिनों, रामलाल और सीता की चुदाई जारी रही। सुबह खेत में जाते वक्त, रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके पीछे से चोदता। "बहू, तेरी गांड देखकर मेरा लंड सख्त हो जाता है," वह बोला, सीता को झुकाकर लंड डाला। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको... चोदो जोर से।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता का पानी खेत में गिरा। शाम को, घर में, रामलाल सीता को बाथरूम में ले जाता। पानी के नीचे, सीता का बदन चमकता, रामलाल उसके स्तनों को साबुन से मलता, निप्पल्स को रब करता। सीता का हाथ रामलाल के लंड पर जाता, सहलाती। रामलाल सीता के पैर फैलाता, पीछे से लंड डालता। पानी के बीच धक्के, सीता की कराहें गूंजतीं। "आह... बाबूजी... गहरा... आपका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा है।" रामलाल उसके बाल पकड़ता, जोर से चोदता, सीता का पानी निकलता, रामलाल उसके गांड में झड़ जाता, गर्म वीर्य बहता पानी में।
एक दिन, सीता ने रामलाल से कहा, "बाबूजी, आज कुछ नया करो।" रामलाल ने सीता को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "बहू, आज तू मेरी है पूरी तरह।" वह सीता के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर जीभ फेरता, निप्पल्स को चाटता, काटता हल्का, सीता तड़प उठी। फिर पेट पर, नाभि में जीभ डाली, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा, सीता चीखी, "आह... बाबूजी... छोड़ो मुझे... चोदो!" रामलाल ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। सीता झड़ गई कई बार, पानी बहता रहा। आखिर में, रामलाल ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। सीता चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको... पूरा अंदर।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता को मजा आने लगा। "हां बाबूजी... चोदो गांड... आह... कितना अच्छा लग रहा!" रामलाल झड़ गया, सीता के अंदर, गर्म वीर्य बहता।
समय बीतता गया, सीता की भूख बढ़ी। वह रामलाल से कहती, "बाबूजी, आज खेत में ले चलो।" रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके चोदता, कभी मुंह में लंड डलवाता। सीता चूसती, "बाबूजी, आपका लंड कितना स्वादिष्ट।" लेकिन एक दिन, श्याम आया। सीता खुश थी, लेकिन रात को श्याम के साथ बोर हो गई। श्याम सो गया, सीता रामलाल के कमरे में चली गई। "बाबूजी, श्याम सो गया, अब चोदो मुझे।" रामलाल ने सीता को लिटाया, लंड डाला, जोर से चोदा। सीता कराही, "बाबूजी... श्याम का तो कुछ नहीं, आपका लंड ही असली है।" रामलाल ने उसके स्तनों को चूसा, चूत में धक्के मारे। सीता झड़ गई, रामलाल ने अंदर झाड़ दिया।
फिर एक दिन, गांव में मेला लगा। रामलाल और सीता मेले गए, भीड़ में छिपकर रामलाल ने सीता की साड़ी ऊपर की, उंगलियां चूत में डालीं। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको।" रामलाल ने उसे एक कोने में ले जाकर चोदा, लंड डाला, धक्के मारे। सीता का पानी बहा, रामलाल झड़ गया। घर लौटकर, दोनों थककर लेट गए। सीता अब पूरी तरह रामलाल की हो गई थी, श्याम को भूलकर। उनकी चुदाई जारी रही, कभी नदी किनारे, कभी जंगल में। सीता की भूख कभी न मिटती, रामलाल का लंड हमेशा तैयार। गांव की बहू अब एक कामुक रानी थी, बाबूजी के लंड की भूखी।
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देवर की प्यास
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, जहां गंगा की शांत लहरें किनारे पर धीरे-धीरे ठहरतीं और सुबह की ठंडी हवा में खेतों की हरीतिमा और मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली रहती, वहां रहता था एक साधारण लेकिन खुशहाल परिवार। परिवार का बड़ा बेटा था अजय, 30 साल का, जो शहर में एक छोटी सी कंपनी में नौकरी करता था और महीने में एक-दो बार ही गांव लौटता। छोटा भाई था संजय, 28 साल का, जो गांव में ही खेती-बाड़ी संभालता था, घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी। सास थी कमला, 50 साल की, विधवा, जो घर संभालती और बहू की देखभाल करती। कमला का बदन उम्र के साथ थोड़ा भारी हो गया था, लेकिन अभी भी आकर्षक – गोरी स्किन जो सालों की मेहनत से थोड़ी रूखी हो गई थी लेकिन चमकदार, छोटे बाल जो कान तक आते, 38D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से उभरते, कमर थोड़ी मोटी लेकिन कूल्हे चौड़े जो चलते वक्त लहराते, और गांड भरी हुई, मुलायम, जो साड़ी में छिपी रहती लेकिन छूने की चाहत जगाती। कमला की चूत बालों वाली, लेकिन इच्छाओं से सुलगती – पति की मौत के बाद सालों से किसी लंड की प्यासी, रातों में खुद को छूती, उंगलियां डालकर कल्पना करती किसी युवा मर्द के धक्कों की, लेकिन सास का रोल निभाती चुप रहती। बहू थी पूजा, 26 साल की, अजय की पत्नी, शहर से आई लेकिन अब गांव में सास के साथ रहती। पूजा का बदन जवानी की ताजगी से भरा – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह चमकती, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 36C के सख्त स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से उभार दिखाते, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं तो लगता जैसे कोई अप्सरा हो। उसकी गांड गोल और उभरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा साफ, गुलाबी लेबिया वाली, लेकिन पति की कमी में सुलगती। पूजा की रातें अकेली गुजरतीं, बिस्तर पर लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, निप्पल्स को पिंच करती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, उसके धक्कों से बेड हिलने की, लेकिन सास के डर से चुप रहती। संजय, देवर, मजबूत कद-काठी वाला, काला रंग लेकिन आंखों में चमक, उसका बदन खेती की मेहनत से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मोटी छाती, मजबूत बाजू, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं, 9 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो पूजा को देखकर सख्त हो जाता। संजय पूजा को देखता, लेकिन भाभी कहकर मन मारता, लेकिन कमला को भी निहारता, सास की भरी हुई गांड पर नजरें ठहरातीं।
कहानी की शुरुआत उस सर्दी की शाम से हुई, जब अजय शहर लौट गया था। गांव में ठंड बढ़ रही थी, घर में अंगीठी जल रही थी। पूजा रसोई में खाना बना रही थी, साड़ी गीली हो गई थी पानी से, ब्लाउज चिपक गया था, स्तन के उभार साफ दिख रहे थे। संजय पानी लेने आया, पूजा को देखकर ठहर गया। "भाभी, आपका ब्लाउज..." वह बोला। पूजा शरमा गई, "देवर जी, आप..." लेकिन संजय करीब आया, "भाभी, आप बहुत सुंदर हो। भैया शहर में रहते हैं, आप अकेली..." पूजा का दिल धड़का, "संजय, सासु मां हैं..." लेकिन कमला बाहर थी। संजय ने पूजा का हाथ पकड़ा, "भाभी, मैं देखता हूं, आप रातों में तड़पती हो। मैं आपकी प्यास बुझा सकता हूं।" पूजा की सांस तेज हो गई, "संजय... ये गलत है..." लेकिन संजय ने उसे दीवार से सटा लिया, होंठों पर होंठ रख दिए। पूजा ने पहले विरोध किया, लेकिन संजय की जीभ ने उसके मुंह में घुसकर खेलना शुरू किया, पूजा की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी। संजय का हाथ पूजा के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। "आह... संजय..." पूजा कराही। संजय ने ब्लाउज के हुक खोले, ब्रा उतारी, उसके सख्त स्तन बाहर आ गए – गोल, गुलाबी निप्पल्स सख्त। "भाभी, क्या माल है," संजय बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता, हल्का काटता। पूजा तड़प उठी, "आह... देवर जी... मत करो... लेकिन रुको मत..." संजय की उंगलियां पूजा की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, चूत पर रब की। पूजा की पैंटी गीली थी। "भाभी, आपकी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। पूजा चीखी, "आह... हां... और गहरा..." संजय ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया। पूजा का पानी निकलने लगा, "संजय... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज संजय के हाथ पर।
संजय ने पूजा को उठाया, बेड पर लिटाया। "भाभी, अब मेरा लंड लो।" वह अपना पैंट उतारा, लंड बाहर आया – 9 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। पूजा ने देखा, "इतना बड़ा... अजय का तो आधा।" वह हाथ में लिया, सहलाया। संजय कराहा, "भाभी, चूसो इसे।" पूजा ने मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से हेड चाटती, गहरा चूसती, गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग। संजय के मुंह से सिसकारियां निकलीं, "भाभी... आह... आपकी जीभ... कितनी गर्म..." पूजा ने चूसा, संजय ने उसके बाल पकड़े, मुंह में धक्के मारे। "भाभी, आपकी मुंह की गर्मी... आह..." पूजा की चूत फिर गीली हो गई, वह खुद को छू रही थी। संजय ने पूजा के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "भाभी, डालूं?" पूजा बोली, "हां... धीरे से... तेरा बहुत बड़ा।" संजय ने धक्का मारा, आधा अंदर। पूजा चीखी, "आह... दर्द... लेकिन अच्छा... पूरा अंदर कर..." पूरा अंदर, पूजा की चूत फैली। संजय ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, पूजा के स्तन उछल रहे थे। "भाभी, क्या टाइट चूत... भैया को तो पता नहीं।" पूजा कराही, "हां... चोद मुझे... और तेज... तेरा लंड कितना गर्म, मेरी चूत को भर रहा है।" संजय ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, पूजा फिर झड़ गई। संजय ने बाहर निकाला, पूजा के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। दोनों थककर लेट गए। "संजय, ये राज रहेगा," पूजा बोली। संजय मुस्कुराया, "हां भाभी, लेकिन रोज चोदूंगा।"
लेकिन कहानी यहां नहीं रुकी। कमला, सास, सब देख रही थी। वह रातों में पूजा की कराहें सुनती, लेकिन चुप रहती। एक दिन, कमला ने संजय को पकड़ा। "संजय, तू पूजा को चोद रहा है?" संजय डर गया, "मां... माफ करो..." लेकिन कमला मुस्कुराई, "डर मत, मैं भी प्यासी हूं। तू मुझे भी चोद।" संजय का दिल धड़का, "मां...?" कमला ने अपना ब्लाउज खोला, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए। "हां बेटा, तेरी सास की चूत भी लंड मांग रही है।" संजय ने कमला को बांहों में लिया, चूमने लगा। कमला की चूत गीली हो गई। संजय ने कमला की साड़ी उतारी, चूत चाटी। "मां, आपकी चूत कितनी स्वादिष्ट।" कमला कराही, "आह... बेटा... चाट... रातों से प्यासी हूं।" संजय ने लंड डाला, कमला चीखी, "आह... कितना बड़ा... चोद मुझे..." संजय ने धक्के मारे, कमला झड़ी। फिर पूजा आई, देखकर शॉक्ड, लेकिन शामिल हो गई। "सासु मां, मैं भी..." तीनों साथ, संजय पूजा को चोदता, कमला पूजा की चूत चाटती। "बहू, तेरी चूत मीठी।" पूजा कराही, "सासु मां... आह..." संजय कमला को चोदता, पूजा संजय का लंड चूसती। तीनों झड़े, कमरा उनकी खुशबू से भर गया।
अगले दिनों, संजय पूजा और कमला दोनों को चोदता। सुबह, खेत में, पूजा और कमला साथ, संजय दोनों की चूत चाटता। शाम को, घर में, कमला पूजा को चाटती, संजय कमला को चोदता। पूजा की भूख बढ़ी, कमला की आग सुलगी। अजय आया, लेकिन रात को पूजा संजय के पास जाती। "अजय सो गया, चोद मुझे।" संजय चोदता, पूजा झड़ती। "भाभी, अजय भैया का लंड छोटा, मेरा बेहतर।" पूजा मुस्कुराती, "हां, तेरा लंड ही असली।" कमला भी शामिल होती, तीनों की मस्ती। गांव की बहू और सास अब देवर की प्यास में डूबी हुई थीं, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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गांव की सामूहिक आग
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे चमकतीं, जहां हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और दूर किसी मंदिर की घंटियां घुली रहतीं, वहां रहती थी एक जवान विधवा नाम मीना। मीना, 28 साल की, गांव की सबसे सुंदर औरत थी, जिसका पति दो साल पहले दुर्घटना में गुजर गया था। मीना का बदन ऐसा था कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह चमकती, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते और हवा में उड़ते, 38DD के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर आने को बेताब लगते, उनके बीच की गहरी खाई जो देखने वाले को मदहोश कर देती, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती लेकिन नीचे चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं तो लगता जैसे कोई बादल तैर रहा हो। उसकी गांड गोल, भरी हुई और इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, जैसे कोई तकिया, और चूत हमेशा साफ शेव्ड, गुलाबी लेबिया वाली जो उत्तेजना में फूल जाती, अंदर से गर्म और गीली। मीना का जीवन अब सास-ससुर के साथ गुजरता था, लेकिन पति की मौत के बाद उसकी इच्छाएं सुलगती रहतीं। रातों में अकेली लेटकर वह खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, क्लिट को रब करती, निप्पल्स को पिंच करती, "आह... कोई तो चोदो मुझे... लंड की प्यास मिटाओ," वह फुसफुसाती, लेकिन गांव की मर्यादा और विधवा का दाग उसे रोकता। सास कमला, 50 की, घर संभालती, लेकिन मीना को देखकर जलती, क्योंकि मीना की जवानी उसे अपनी उम्र का अहसास कराती। ससुर हरि, 55 का, खेतों में काम करता, लेकिन मीना की गांड देखकर मन ललचाता। गांव में मजदूर थे – रामू, 30 का, मजबूत बदन वाला, काला रंग, 8 इंच लंड; शंकर, 32 का, लंबा, 9 मोटा लंड; और गोपाल, 28 का, जवान, 7 इंच लेकिन तेज। ये तीनों मीना के घर काम करते, उसकी सुंदरता पर फिदा, रातों में मीना की कल्पना करके मुठ मारते। मीना भी नोटिस करती, लेकिन शरमाती।
कहानी की शुरुआत उस गर्मी की दोपहर से हुई, जब सास कमला बाजार गई थी और ससुर हरि खेत में। मीना घर में अकेली थी, गर्मी से परेशान, साड़ी ढीली करके लेटी थी। वह खुद को छू रही थी, ब्लाउज के बटन खोले, स्तन बाहर, निप्पल्स सख्त, उंगलियां चूत में, "आह... लंड चाहिए... कोई तो भर दे मेरी चूत..." वह कराह रही थी। बाहर रामू, शंकर और गोपाल काम कर रहे थे, पानी मांगने आए। दरवाजा खुला था, वे अंदर झांककर देखा – मीना बिस्तर पर, साड़ी ऊपर, उंगलियां चूत में, कराह रही। तीनों का लंड सख्त हो गया। रामू बोला, "भाभी... पानी..." मीना चौंक गई, साड़ी ठीक की, लेकिन तीनों ने देख लिया। "रामू... तुम..." मीना शरमा गई, लेकिन उसकी चूत और गीली हो गई। रामू मुस्कुराया, "भाभी, आप तड़प रही हो, हम मदद कर सकते हैं।" मीना का दिल धड़का, "नहीं... जाओ..." लेकिन शंकर करीब आया, "भाभी, हमारा लंड देखो, आपके लिए ही सख्त है।" तीनों ने पैंट उतारी, उनके लंड बाहर – रामू का 8 इंच मोटा, शंकर का 9 इंच लंबा, गोपाल का 7 इंच तेज। मीना की आंखें चौड़ी, "इतने बड़े... लेकिन ये गलत है..." लेकिन उसका बदन गर्म हो गया। गोपाल ने मीना का हाथ पकड़ा, अपने लंड पर रखा, "छुओ भाभी..." मीना ने सहलाया, "आह... कितना गर्म..." रामू ने मीना की साड़ी खींची, ब्लाउज खोला, स्तन बाहर। "भाभी, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा। मीना कराही, "आह... रामू..." शंकर दूसरे स्तन पर, काटने लगा। गोपाल नीचे, मीना की चूत पर जीभ फेरी। "भाभी, तेरी चूत कितनी गीली," वह बोला, जीभ अंदर डाली, चाटने लगा। मीना तड़प उठी, "आह... तीनों... मत करो... लेकिन रुको मत..." तीनों ने मीना को बेड पर लिटाया, रामू ने लंड मीना के मुंह में डाला, "चूस भाभी..." मीना चूसने लगी, गैगिंग। शंकर ने चूत में लंड रगड़ा, धीरे डाला। "आह... शंकर... दर्द..." लेकिन मजा आया। गोपाल मीना के स्तनों को दबाता, निप्पल्स चूसता। शंकर ने धक्के मारे, मीना की चूत सिकुड़ी, वह झड़ गई। रामू ने मुंह में झाड़ दिया, मीना ने वीर्य निगला। फिर बदलाव – गोपाल ने चूत में लंड डाला, रामू मुंह में, शंकर स्तनों पर। मीना की कराहें गूंज रही थीं, "आह... चोदो... और तेज..." तीनों ने बारी-बारी चोदा, मीना झड़ी कई बार। आखिर में, तीनों ने मीना के बदन पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। मीना थककर लेट गई, "ये राज रहेगा।" तीनों मुस्कुराए, "हां भाभी, लेकिन रोज आएंगे।"
अगले दिनों, गैंगबैंग जारी रहा। सुबह, खेत में, मीना तीनों से चुदवाती। रामू पीछे से, शंकर मुंह में, गोपाल स्तनों पर। मीना कराही, "आह... तीन लंड... मजा आ रहा..." शाम को, घर में, तीनों मीना को बांधते, आंखों पर पट्टी। "भाभी, आज गुलाम हो।" रामू चूत चाटता, शंकर लंड मुंह में, गोपाल गांड में उंगली। मीना तड़पती, "चोदो... भर दो मुझे..." फिर तीनों एक साथ – रामू चूत में, शंकर गांड में, गोपाल मुंह में। मीना चीखी, "आह... दर्द... लेकिन मजा..." तीनों धक्के मारते, मीना झड़ती। तीनों झड़ते, मीना के बदन पर। मीना की प्यास बढ़ी, वह कहती, "और लाओ..." तीनों ने दोस्त बुलाए – दो और मजदूर। अब पांच, मीना को घेरते, बारी-बारी चोदते। मीना खुश, "आह... पांच लंड... चोदो मुझे..." गांव की विधवा अब सामूहिक आग में जल रही थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
मीना की भूख अब गांव की बात हो गई थी, लेकिन राज राज रहा। एक रात, मीना ने कहा, "आज कुछ बड़ा करो।" रामू, शंकर, गोपाल और दो दोस्त – कुल पांच – मीना को जंगल में ले गए। जंगल में, चांदनी रात, मीना नंगा लेटी। "भाभी, आज पांच लंड तेरे लिए," रामू बोला। मीना मुस्कुराई, "हां... चोदो सब मिलकर..." रामू ने चूत में लंड डाला, शंकर मुंह में, गोपाल स्तनों पर, बाकी दो सहला रहे। मीना कराही, "आह... और तेज..." बदलाव – शंकर चूत में, रामू गांड में, गोपाल मुंह में। मीना चीखी, "दो लंड एक साथ... आह... फाड़ दो..." वे धक्के मारते, मीना झड़ती कई बार, पानी बहता। आखिर में, पांचों ने मीना पर वीर्य छोड़ा, बदन गीला। मीना थककर लेटी, "मजा आया... फिर करो।" गैंगबैंग जारी रहा, मीना की आग कभी न बुझती, पांचों का लंड हमेशा तैयार। गांव की विधवा अब सामूहिक चुदाई की रानी थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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11-09-2025, 05:46 PM
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भोली लड़की की जागृति
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे पर चमकतीं, जहां हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और दूर किसी मंदिर की घंटियों की आवाज घुली रहती, वहां रहती थी एक भोली-भाली लड़की नाम रिया। रिया, 20 साल की, गांव की सबसे सादी और मासूम लड़की थी। उसका बदन अभी-अभी जवानी में कदम रखा था – गोरी चिट्टी स्किन जो दूध की तरह मुलायम और चमकदार, लंबे काले बाल जो घने और चिकने, कमर तक लहराते हुए, लेकिन वह हमेशा उन्हें चोटी में बांधकर रखती। उसके स्तन 34C के, गोल और सख्त, लेकिन वह इतनी भोली थी कि ब्रा पहनना भी भूल जाती, साड़ी या सलवार में उसके उभार हल्के से दिखते, लेकिन वह ध्यान नहीं देती। पतली कमर, छोटी सी नाभि जो पेटीकोट से झांकती, और कूल्हे जो अभी विकसित हो रहे थे, लेकिन चलते वक्त हल्का लहराते। उसकी गांड गोल और नरम, लेकिन वह कभी आईने में देखकर नहीं सोचती थी। रिया की चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, बालों से हल्की कवर, लेकिन उसे सेक्स के बारे में कुछ नहीं पता था। वह सोचती भी नहीं थी, बस किताबें पढ़ती, घर का काम करती, और गांव की लड़कियों से बातें करती। उसके पिता किसान थे, मां घर संभालती, और रिया कॉलेज में पढ़ती, लेकिन गांव का कॉलेज था जहां लड़के-लड़कियां अलग बैठते। रिया को लड़कों से बात करने की आदत नहीं, वह शरमाती, नजरें झुका लेती। लेकिन उसके मन में एक अजीब सी उत्सुकता थी – रातों में कभी-कभी बदन में एक गुदगुदी होती, चूत में हल्का दर्द, लेकिन वह समझ नहीं पाती, बस सो जाती।
गांव में एक लड़का था नाम राहुल, 22 साल का, कॉलेज में रिया का सीनियर। राहुल हैंडसम था – लंबा कद, गोरा रंग, मजबूत बॉडी खेतों में काम से बनी, छोटे बाल, और मुस्कान जो लड़कियों को लुभाती। उसका लंड 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो रिया को देखकर सख्त हो जाता। राहुल गांव का बदमाश था, लड़कियों से बातें करता, लेकिन रिया जैसी भोली लड़की पर उसकी नजर थी। वह जानता था रिया सेक्स के बारे में कुछ नहीं जानती, और वह उसे फंसाना चाहता था। राहुल की योजना थी – पहले दोस्ती, फिर बातें, फिर छूना, और आखिर में चोदना। वह रिया को कॉलेज में देखता, उसके भोले चेहरे पर मुस्कुराता, लेकिन रिया नजरें झुका लेती। एक दिन, कॉलेज में, राहुल ने रिया से किताब मांगी। "रिया, तेरी नोट्स दे ना, मेरा कॉपी खो गया।" रिया शरमाते हुए बोली, "हां... ले लो।" राहुल ने किताब लेते समय उसके हाथ को छुआ, रिया की सांस रुक गई, "राहुल... क्या कर रहे हो?" राहुल मुस्कुराया, "कुछ नहीं, तेरा हाथ कितना मुलायम है।" रिया शरमा गई, लेकिन मन में एक अजीब सी खुशी हुई। अगले दिन, राहुल ने रिया को रास्ते में रोका। "रिया, साथ चलें? अकेली मत जा।" रिया ने हां कहा, रास्ते में बातें हुईं – कॉलेज की, गांव की। राहुल ने कहा, "रिया, तू बहुत भोली है, दुनिया की बातें नहीं जानती।" रिया बोली, "क्या बातें?" राहुल मुस्कुराया, "बड़ी हो गई है, लेकिन लड़कों से बात नहीं करती।" रिया शरमाई, "मुझे क्या पता..." राहुल ने धीरे-धीरे बातें बढ़ाई।
एक हफ्ते बाद, राहुल ने रिया को नदी किनारे बुलाया। "रिया, वहां चलें, ठंडी हवा लगेगी।" रिया गई, नदी का पानी चमक रहा था, हवा ठंडी। राहुल ने रिया का हाथ पकड़ा, "रिया, तू मुझे अच्छी लगती है।" रिया का दिल धड़का, "राहुल... ये क्या?" राहुल ने कहा, "रिया, लड़का-लड़की में दोस्ती होती है, स्पर्श होता है।" वह रिया के गाल पर हाथ फेरा, रिया की सांस तेज हो गई। "राहुल... ये गलत है..." लेकिन वह रुकी नहीं। राहुल ने रिया को चूमा, होंठों पर होंठ रख दिए। रिया की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी। राहुल की जीभ रिया के मुंह में गई, खेलने लगी। रिया की चूत गीली हो गई, "आह... राहुल... ये क्या है?" राहुल बोला, "ये प्यार है, रिया।" राहुल का हाथ रिया के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। रिया कराही, "आह... मत करो... लेकिन अच्छा लग रहा है।" राहुल ने ब्लाउज का हुक खोला, ब्रा उतारी, रिया के स्तन बाहर आ गए – गोल, गुलाबी निप्पल्स सख्त। "रिया, क्या माल है," राहुल बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता। रिया तड़प उठी, "आह... राहुल... ये क्या कर रहे हो... मेरी चूत में गुदगुदी हो रही है।" राहुल ने कहा, "रिया, ये सेक्स है, मजा आता है।" राहुल की उंगलियां रिया की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, चूत पर रब की। रिया चीखी, "आह... वहां मत छुओ... लेकिन रुको मत..." राहुल ने उंगलियां अंदर डालीं, रिया की चूत टाइट थी, लेकिन गीली। "रिया, तेरी चूत कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। रिया का पानी निकलने लगा, "राहुल... मैं... आह..." वह झड़ गई, पहली बार। "ये क्या हुआ?" रिया बोली। राहुल मुस्कुराया, "ये ऑर्गैज्म है, मजा आया न?" रिया शरमाई, "हां... लेकिन और करो।"
राहुल ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार। रिया की आंखें चौड़ी, "ये क्या है?" राहुल बोला, "ये लंड है, इससे चुदाई होती है। छू।" रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, "आह... कितना गर्म, सख्त।" राहुल ने कहा, "चूस रिया।" रिया ने मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से चाटती। राहुल कराहा, "आह... रिया... अच्छा चूस रही है।" रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा। राहुल ने पूजा को लिटाया, पैर फैलाए। "रिया, अब लंड लो चूत में।" रिया डरी, "दर्द होगा?" राहुल ने रगड़ा, धीरे डाला। रिया चीखी, "आह... दर्द... निकालो..." लेकिन राहुल ने धीरे धक्के मारे, दर्द मजा में बदला। "रिया, मजा आ रहा?" रिया कराही, "हां... चोदो... और तेज..." राहुल ने स्पीड बढ़ाई, रिया के स्तन उछलते, वह झड़ गई। राहुल ने बाहर निकाला, रिया के मुंह में झाड़ दिया। रिया ने वीर्य निगला, "ये क्या है?" राहुल बोला, "वीर्य, प्यार का रस।"
फिर दोनों की मस्ती जारी रही। राहुल ने रिया को सब सिखाया – ओरल, एनल, पोजिशंस। रिया अब भोली नहीं, एक कामुक लड़की थी। लेकिन गांव में राज खुला, लेकिन रिया खुश, राहुल के लंड की प्यासी। उनकी चुदाई जारी रही, कभी नदी में, कभी जंगल में। रिया की जागृति पूरी हो गई थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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भोली लड़की की जागृति : भाग 2
रिया की जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी थी। राहुल के साथ हुए उन पहले अनुभवों ने उसके मन में एक नई दुनिया खोल दी थी, जहां पहले सिर्फ मासूम सपने और किताबों की कहानियां थीं, अब वहां इच्छाओं की आग सुलग रही थी। लेकिन रिया अभी भी भोली थी – वह सेक्स को समझती थी, लेकिन उसके गहराई में नहीं उतरी थी। राहुल से मिलने के बाद, वह रातों में और ज्यादा तड़पती, बिस्तर पर लेटकर अपनी चूत को सहलाती, उंगलियां अंदर डालकर सोचती राहुल के लंड की, लेकिन कभी-कभी मन में घर की बातें आतीं, दादा जी की। दादा जी, नाम हरिशंकर, 65 साल के, गांव के बुजुर्ग, रिटायर्ड अध्यापक, जो घर में रहते, किताबें पढ़ते, और रिया को हमेशा प्यार से देखते। दादा जी का बदन उम्र के साथ थोड़ा ढीला हो गया था, लेकिन अभी भी मजबूत – सफेद बाल, दाढ़ी, चौड़ी छाती, और पजामा के नीचे उभार जो कभी-कभी दिखता, लेकिन रिया कभी ध्यान नहीं देती थी। दादा जी विधुर थे, दादी की मौत के बाद अकेले, लेकिन रिया को देखकर मन में एक पिता जैसा प्यार था, लेकिन कहीं गहराई में कुछ और भी। रिया को सेक्स की जानकारी मिलने के बाद, वह दादा जी को अलग नजर से देखने लगी – उनके मजबूत हाथ, उनकी आवाज, और कभी-कभी जब वह नहाकर आते, उनके पजामा में उभार। रिया सोचती, "दादा जी का भी वैसा ही होगा जैसा राहुल का?" लेकिन शरम से सोच दबा देती। दादा जी भी नोटिस करते, रिया की बदलती चाल, उसके बदन की नई चमक, लेकिन चुप रहते, मन में एक पुरानी आग सुलगती।
एक शाम, राहुल से मिलकर लौटते हुए रिया घर आई। राहुल ने उस दिन रिया को फिर चोदा था – जंगल में, पेड़ से सटाकर, लंड धीरे-धीरे डालकर, धक्के मारे थे, रिया झड़ी थी कई बार, उसके जूसेज जमीन पर गिरे थे, लेकिन घर लौटकर वह थकी हुई थी, बदन में एक मीठा दर्द। घर में दादा जी अकेले थे, मां-बाप खेत में काम पर। "बेटी, कहां थी इतनी देर?" दादा जी ने पूछा, उनकी आंखें रिया के चेहरे पर, जहां चुदाई की लाली अभी भी बाकी थी, उसके होंठ सूजे हुए, बाल बिखरे। रिया शरमा गई, नजरें झुका लीं, "दादा जी, सहेली के घर गई थी, बातें कर रही थी।" दादा जी मुस्कुराए, लेकिन उनकी नजर रिया के ब्लाउज पर ठहरी, जहां उसके स्तन की आउटलाइन दिख रही थी, निप्पल्स हल्के सख्त। "बेटी, तू बड़ी हो गई है, लेकिन अभी भी भोली लगती है। आ, बैठ मेरे पास, कुछ बातें करें।" रिया का दिल धड़का, लेकिन वह दादा जी के बगल में बैठ गई, उनके कंधे से सटकर। दादा जी ने रिया का हाथ पकड़ा, उसकी हथेली को सहलाया, "बेटी, जीवन में बहुत कुछ है जो किताबों में नहीं लिखा। तू कॉलेज जाती है, लेकिन दुनिया की असली बातें नहीं जानती।" रिया की सांस तेज हो गई, "क्या बातें दादा जी? आप बताओ न..." दादा जी ने कहा, "प्यार की बातें, स्पर्श की बातें, वो सब जो लड़का-लड़की में होता है। तुझे कोई लड़का पसंद है?" रिया शरमाई, उसके गाल लाल हो गए, "नहीं दादा जी... मुझे क्या पता ऐसे..." लेकिन दादा जी ने हाथ रिया की जांघ पर रखा, धीरे से सहलाया, "बेटी, डर मत, दादा जी सिखाएंगे। स्पर्श का मजा जानती है? जैसे कोई तेरे बदन को छूए, तेरे दिल में गुदगुदी हो।" रिया की सांस रुक गई, उसकी चूत में हल्की गीलापन महसूस हुआ, "दादा जी... ये क्या कर रहे हो... ये गलत है..." लेकिन वह हटी नहीं, उसके बदन में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी। दादा जी ने रिया को गले लगाया, उसके स्तनों को अपने सीने से दबाया, "बेटी, ये प्यार है, डर मत।"
रिया की आंखें बंद हो गईं, वह दादा जी के गले से लगी रही। दादा जी ने धीरे से रिया के गाल पर किस किया, फिर होंठों पर। रिया की सांस तेज हो गई, "दादा जी... ये..." लेकिन दादा जी की जीभ रिया के मुंह में घुस गई, खेलने लगी, रिया की जीभ से मिली। रिया का बदन गर्म हो गया, चूत गीली, वह जवाब देने लगी। दादा जी का हाथ रिया के ब्लाउज पर गया, धीरे से बटन खोले, ब्रा के ऊपर से स्तनों को दबाया। "आह... दादा जी..." रिया कराही, उसके निप्पल्स सख्त हो गए। दादा जी ने ब्रा उतारी, रिया के गोल स्तन बाहर आ गए – सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "बेटी, क्या सुंदर है तेरे स्तन, जैसे कोई फल," दादा जी बोले, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता, दांतों से खींचता। रिया तड़प उठी, "आह... दादा जी... मत करो... लेकिन रुको मत... अच्छा लग रहा है... मेरी चूत में कुछ हो रहा है।" दादा जी मुस्कुराए, "बेटी, वो इच्छा है, तेरी चूत गीली हो रही है।" दादा जी की उंगलियां रिया की साड़ी में गईं, पेटीकोट के अंदर, पैंटी पर रब की। रिया चीखी, "आह... दादा जी... वहां मत छुओ... लेकिन छुओ..." दादा जी ने पैंटी उतारकर उंगलियां चूत पर फेरी, क्लिट को रब किया, "बेटी, कितनी गीली है तेरी चूत, जैसे नदी।" रिया कराही, "आह... हां... और..." दादा जी ने एक उंगली अंदर डाली, धीरे अंदर-बाहर किया। रिया की चूत टाइट थी, लेकिन गीली, "दादा जी... दर्द... लेकिन मजा..." दादा जी ने दो उंगलियां डालीं, स्पीड बढ़ाई, क्लिट को थंब से रब किया। रिया का पानी निकलने लगा, "दादा जी... मैं... आह... कुछ हो रहा है..." वह झड़ गई, पहली बार दादा जी के हाथ पर, जूसेज बहते। "ये क्या हुआ दादा जी?" रिया हांफते हुए बोली। दादा जी मुस्कुराए, "ये ऑर्गैज्म है बेटी, मजा आया न? अब दादा जी का देख।"
दादा जी ने अपना पजामा उतारा, लंड बाहर – 7 इंच लंबा, मोटा, उम्र के साथ थोड़ा ढीला लेकिन सख्त, नसदार, हेड पर प्रीकम। रिया की आंखें चौड़ी, "दादा जी, ये क्या है? इतना बड़ा और गर्म?" दादा जी बोले, "ये लंड है बेटी, इससे मजा मिलता है। छू।" रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, उंगलियां उसके नसों पर फिसलीं, "आह... कितना सख्त, जैसे लोहे का।" दादा जी ने कहा, "चूस बेटी, मुंह में ले।" रिया ने झिझकते हुए मुंह में लिया, जीभ से हेड चाटी, धीरे चूसने लगी। दादा जी कराहे, "आह... बेटी... अच्छा चूस रही है, जीभ घुमा..." रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग, दादा जी के लंड को गीला करती। दादा जी ने रिया के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "बेटी, अब लंड लो चूत में। डर मत, दादा जी धीरे करेंगे।" रिया बोली, "हां दादा जी... डालो... लेकिन धीरे..." दादा जी ने धक्का मारा, हेड अंदर, रिया चीखी, "आह... दर्द... निकालो..." लेकिन दादा जी ने धीरे आगे बढ़ाया, आधा अंदर। रिया की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "दादा जी... अब अच्छा लग रहा... पूरा डालो..." दादा जी ने पूरा डाला, धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई। रिया के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... दादा जी... चोदो... और तेज... आपका लंड कितना अच्छा..." दादा जी ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, रिया झड़ गई, चूत सिकुड़ी। दादा जी ने बाहर निकाला, रिया के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। रिया ने निगला, "दादा जी, ये क्या है? मीठा-मीठा।" दादा जी बोले, "वीर्य बेटी, प्यार का रस।"
अगले दिनों, दादा जी रिया को सिखाते। सुबह, जब मां-बाप बाहर, दादा जी रिया की चूत चाटते, जीभ अंदर डालते, क्लिट चूसते। "बेटी, तेरी चूत मीठी जैसे शहद।" रिया कराही, "दादा जी... आह... और चाटो..." शाम को, खेत में, दादा जी रिया को चोदते, पीछे से लंड डालते, धक्के मारते। रिया की प्यास बढ़ी, वह दादा जी से कहती, "दादा जी, आज गांड में डालो..." दादा जी ल्यूब लगाते, धीरे डालते। रिया चीखी, "दर्द... लेकिन मजा..." दादा जी धक्के मारते, रिया झड़ती। रिया अब भोली नहीं, दादा जी की आग में जल रही थी, इच्छाओं की दुनिया में खोई हुई।
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[img=539x1972] ![[Image: 20250910-170120.jpg]](https://i.ibb.co/GgWM1GC/20250910-170120.jpg) [/img]
पंजाबी परिवार की आग
पंजाब के एक छोटे से शहर जालंधर में, जहां सरसों के खेतों की हरीतिमा दूर तक फैली रहती और हवा में मिट्टी की खुशबू और दूर किसी गुरुद्वारे की कीर्तन की आवाज घुली रहती, वहां रहता था एक साधारण लेकिन खुशहाल पंजाबी परिवार। परिवार का मुखिया था हरजीत सिंह, 45 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, सरदार, पगड़ी बांधे, मूंछें घनी और आंखों में हमेशा एक चमक। हरजीत एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था, ट्रक चलवाता था, और घर पर अपनी बीवी डॉली और बेटी पॉली के साथ खुश रहता। लेकिन हरजीत का मन थोड़ा कमजोर था – वह अपनी बीवी को कम सुनता था, हमेशा अपनी ही चलाता। डॉली, 42 साल की, घर की मालकिन, संस्कारी लेकिन अंदर से आग वाली – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो दुपट्टे में छिपे रहते, 38DD के भरे हुए स्तन जो सलवार कमीज में से उभरते, पतली कमर जो उम्र के साथ थोड़ी मोटी हो गई थी लेकिन आकर्षक, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं। डॉली की गांड भरी हुई, मुलायम, और चूत बालों वाली लेकिन गर्म, पति के लंड की प्यासी। लेकिन हरजीत रात को थककर सो जाता, महीने में दो-चार बार चोदता, वो भी जल्दबाजी में। डॉली चुप रहती, लेकिन मन में इच्छाएं सुलगती। उनकी बेटी थी पॉली, असली नाम पॉलवी, 19 साल की, कॉलेज में पढ़ती, भोली-भाली लेकिन जवानी की उमंग से भरी – गोरी स्किन, छोटे बाल जो कंधों तक, 34C के सख्त स्तन, पतली कमर और गोल गांड। पॉली की चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, लेकिन बदन की गुदगुदी से परेशान। पॉली मां की तरह संस्कारी, लेकिन पिता की बात मानती।
एक सैटरडे की सुबह, हरजीत तैयार हो रहा था काम पर जाने को। डॉली चाय बना रही थी, हरजीत ने डॉली को करीब खींचा, कान में फुसफुसाया, "डॉली, आज रात गांड में तेल लगाकर झुक के लेटी रहना, मैं आऊंगा और चोदूंगा तुझे अच्छे से, तेरी गांड मारूंगा।" डॉली की सांस रुक गई, "जी, ठीक है..." लेकिन हरजीत की आवाज तेज थी, और डॉली को सुनाई दिया "पॉली को गांड में तेल लगाकर उनके बेड पर झुक के लिटाना है"। डॉली चौंक गई, लेकिन सोचा पति ने बेटी के लिए कहा होगा, शायद कोई मजाक या गलती। लेकिन हरजीत की बात मानने की आदत से वह चुप रही। हरजीत चला गया, डॉली सोचती रही। शाम को, डॉली ने पॉली को बुलाया। "पॉली, आज रात तेरे पापा ने कहा है, गांड में तेल लगाकर उनके बेड पर झुक के लेटना है।" पॉली चौंकी, "मम्मी, ये क्या? क्यों?" डॉली बोली, "ज्यादा सवाल न पूछ, तेरे पापा ने ही बोला है। शायद कोई खेल या मजाक।" पॉली भोली थी, मां की बात मानी, लेकिन मन में उत्सुकता। रात को, डॉली ने पॉली को तेल लगाया, गांड के छेद पर मालिश की, "ये लगा, अब झुक के लेट।" पॉली शरमाई, "मम्मी, ये क्यों?" डॉली बोली, "पापा आएंगे, वो बताएंगे।" पॉली झुक के लेट गई, गांड ऊपर, चूत भी हल्की दिख रही। डॉली चली गई, कमरे की लाइट डिम कर दी, अंधेरा छा गया, सिर्फ हल्की रौशनी।
रात को हरजीत लौटा, थका हुआ लेकिन उत्तेजित। वह कमरे में आया, लाइट डिम देखी, सोचा डॉली तैयार है। वह नंगा हुआ, उसका लंड सख्त, 7 इंच मोटा, नसदार। बेड पर जाकर पीछे से लंड रगड़ा, सोचा डॉली की गांड है, लेकिन गलती से चूत में घुस गया। पॉली चीखी, "आह... दर्द..." हरजीत ने धक्का मारा, पूरा अंदर, "आह... डॉली... कितनी टाइट है आज..." पॉली चिल्लाई, "पापा... मैं पॉली..." हरजीत चौंका, लेकिन लंड अंदर था, "तो पहले क्यों नहीं बोली? अब जान दे होली होली..." वह नहीं रुका, जोर से धक्के मारे, पॉली की चूत फैली, दर्द से चीखती, "पापा... निकालो... दर्द... आह..." लेकिन हरजीत उत्तेजित, "चुप... मजा आएगा..." वह धक्के मारता रहा, पॉली की गांड थपथपाती, स्तन उछलते। पॉली चिल्लाती, "पापा... मत... आह... लेकिन... अच्छा लग रहा..." दर्द मजा में बदला, पॉली की चूत गीली, वह साथ हिलने लगी। हरजीत ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स पिंच किए, "पॉली... तेरी चूत कितनी टाइट..." पॉली कराही, "पापा... चोदो... और तेज..." हरजीत ने स्पीड बढ़ाई, पॉली झड़ी कई बार, पानी बहा। हरजीत ने अंदर झाड़ दिया, गर्म वीर्य। पॉली थककर लेटी, मजा लेते हुए। पूरी रात हरजीत ने पॉली को चोदा – डॉगी में, मिशनरी में, उसके मुंह में लंड डाला, "चूस बेटी..." पॉली चूसती, फिर चोदता। पॉली पहले चिल्लाती, फिर मजा लेती, "पापा... आपका लंड... आह..." सुबह तक, पॉली मजा लेने लगी, दर्द भूल गई। हरजीत ने कहा, "ये राज रहेगा।" पॉली मुस्कुराई, "हां पापा, लेकिन फिर करो।" पॉली अब पापा की प्यासी हो गई थी, इच्छाओं में खोई
हरजीत की रात अभी खत्म नहीं हुई थी। कमरे में डिम लाइट की हल्की रौशनी फैली हुई थी, जो पॉली के युवा बदन पर चमक रही थी, उसके गोरे चेहरे पर चुदाई की लाली अब भी बाकी थी, उसके होंठ सूजे हुए, और उसके स्तन उछलते हुए सांसों से ऊपर-नीचे हो रहे थे। हरजीत लेटा हुआ था, उसका मजबूत सरदार बदन पसीने से तर, उसका 7 इंच का लंड अभी भी सख्त, पॉली की चूत के जूसेज से गीला चमक रहा था। पॉली उसके बगल में लेटी थी, उसकी आंखें आधे बंद, बदन में एक मीठा दर्द लेकिन मजा की लहरें, वह सोच रही थी – "पापा का लंड कितना मजबूत, मेरी चूत को भर दिया, लेकिन अब क्या?" हरजीत ने पॉली को अपनी मजबूत बाहों में खींचा, उसके गाल पर किस किया, "पॉली... मेरी बेटी... तू कितनी सुंदर है, तेरी चूत ने मुझे पागल कर दिया।" पॉली शरमाई, लेकिन उसके मन में एक रोमांटिक भावना जाग रही थी, पापा का प्यार, उसकी मजबूत छाती पर सिर रखकर वह बोली, "पापा... आपने मुझे इतना मजा दिया, लेकिन ये गलत है न?" हरजीत ने उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, "गलत नहीं बेटी, ये प्यार है, बाप-बेटी का गहरा प्यार। मैं तुझे हमेशा खुश रखूंगा।" वह पॉली के होंठों पर धीरे से किस किया, जीभ मिलाई, पॉली की सांस तेज हो गई, वह जवाब देने लगी, उनके होंठ एक-दूसरे से चिपक गए, जैसे कोई रोमांटिक फिल्म का सीन। हरजीत का हाथ पॉली के स्तनों पर गया, धीरे से दबाया, निप्पल्स को उंगलियों से सहलाया, "पॉली... तेरे स्तन कितने कोमल, जैसे कोई फूल।" पॉली कराही, "पापा... आह... प्यार से करो..." हरजीत ने एक निप्पल मुंह में लिया, धीरे चूसने लगा, जीभ से चाटता, हल्का काटता, पॉली का बदन थरथरा उठा, "पापा... अच्छा लग रहा... और चूसो..."
हरजीत ने पॉली को पलटा, उसके पीछे लेट गया, उसकी गांड पर हाथ फेरा, "पॉली, तेरी गांड कितनी गोल, मुलायम... मैं इसे भी प्यार करूंगा।" पॉली शरमाई, "पापा... वहां?" हरजीत ने कहा, "हां बेटी, प्यार हर जगह होता है। डर मत, मैं धीरे करूंगा।" वह पॉली की गांड पर किस किया, जीभ से चाटा, छेद पर जीभ फेरी। पॉली तड़प उठी, "पापा... आह... गुदगुदी... लेकिन अच्छा..." हरजीत ने तेल लिया, पॉली की गांड पर मालिश की, उंगली से छेद पर रब किया, धीरे उंगली अंदर डाली। पॉली चीखी, "आह... दर्द... निकालो पापा..." लेकिन हरजीत ने धीरे अंदर-बाहर किया, "शांत बेटी, मजा आएगा..." दर्द मजा में बदला, पॉली कराही, "पापा... हां... और..." हरजीत ने अपना लंड तेल से चिकना किया, पॉली की गांड पर रगड़ा, "बेटी, अब लंड लो..." पॉली डरी, "धीरे पापा..." हरजीत ने धक्का मारा, हेड अंदर, पॉली चीखी, "आह... फट गई... निकालो..." लेकिन हरजीत ने धीरे आगे बढ़ाया, आधा अंदर, पॉली की आंसू निकले, "पापा... दर्द बहुत..." हरजीत ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स पिंच किए, "प्यार से सहन कर बेटी..." वह धीरे धक्के मारे, पॉली की गांड फैली, दर्द मजा में बदला, "पापा... अब अच्छा... और तेज..." हरजीत ने स्पीड बढ़ाई, पॉली की गांड थपथपाती, वह कराही, "आह... पापा... चोदो... तेरे लंड ने फाड़ दिया... लेकिन मजा..." हरजीत ने जोर से धक्के मारे, पॉली के बाल पकड़े, "बेटी... तेरी गांड कितनी टाइट..." पॉली झड़ी, गांड सिकुड़ी। हरजीत ने बाहर निकाला, पॉली के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। पॉली ने निगला, "पापा... प्यार है ये?" हरजीत ने गले लगाया, "हां बेटी, हमारा प्यार।" पूरी रात हरजीत ने पॉली की गांड मारी, रोमांटिक किस से शुरू, वाइल्ड धक्कों तक, पॉली चिल्लाती लेकिन मजा लेती। सुबह, पॉली थककर सोई, हरजीत मुस्कुराया। पॉली अब पापा की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई
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प्रेम की आग
महाराष्ट्र के एक छोटे से तटीय गांव में, जहां समुद्र की लहरें किनारे पर धीरे-धीरे ठहरतीं और हवा में नमकीन खुशबू और नारियल के पेड़ों की सरसराहट घुली रहती, वहां रहती थी एक युवा लड़की नाम प्रिया। प्रिया, 24 साल की, गांव की सबसे कोमल और रोमांटिक लड़की थी, जिसका बदन जैसे किसी कविता से निकला हो – गोरी स्किन जो चांदनी रात में चमकती, लंबे काले बाल जो हवा में लहराते और कमर तक पहुंचते, 34C के कोमल स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में हल्के से उभरते, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती लेकिन स्पर्श करने पर गर्माहट देती, और कूल्हे जो चलते वक्त धीरे-धीरे हिलते जैसे कोई लय हो। उसकी गांड मुलायम और गोल, छूने पर जैसे मखमल, और चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, लेकिन इच्छाओं से भरी, जो रातों में हल्की गीली हो जाती। प्रिया का जीवन सादा था – दिन में घर का काम, शाम को समुद्र किनारे टहलना, और रातों में सपने देखना किसी राजकुमार के। वह रोमांटिक किताबें पढ़ती, प्यार की कल्पना करती, लेकिन कभी किसी लड़के से बात नहीं की, शरमाती। गांव में एक लड़का था नाम विक्रम, 26 साल का, मछुआरा, मजबूत बदन वाला, गोरा रंग, लंबे बाल जो हवा में उड़ते, और मुस्कान जो दिल जीत लेती। उसका लंड 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो प्रिया को देखकर सख्त हो जाता। विक्रम प्रिया को पसंद करता, लेकिन उसकी भोलीपन से डरता, धीरे-धीरे उसे फंसाना चाहता था।
कहानी की शुरुआत उस शाम से हुई, जब प्रिया समुद्र किनारे टहल रही थी। सूरज डूब रहा था, लाल रंग की किरणें पानी पर चमक रही थीं। प्रिया की साड़ी हवा में लहरा रही थी, बाल उड़ रहे थे। विक्रम मछली पकड़कर लौट रहा था, प्रिया को देखा। "प्रिया, शाम को अकेली टहल रही हो?" वह बोला, मुस्कुराते हुए। प्रिया शरमा गई, "विक्रम... हां, बस ऐसे ही।" विक्रम करीब आया, "साथ चलूं? अंधेरा हो रहा है।" प्रिया का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रास्ते में बातें हुईं – समुद्र की, गांव की, सपनों की। विक्रम ने कहा, "प्रिया, तू बहुत सुंदर है, जैसे कोई परी।" प्रिया शरमाई, "मत बोलो ऐसे..." लेकिन मन में एक मीठी गुदगुदी हुई। अगले दिन, विक्रम ने प्रिया को फिर बुलाया, "आज शाम समुद्र किनारे चलें, मैं कुछ दिखाऊंगा।" प्रिया गई, विक्रम ने उसे एक शेल दिया, "ये तेरे लिए, तेरी आंखों जैसा सुंदर।" प्रिया मुस्कुराई, "थैंक यू विक्रम..." विक्रम ने हाथ पकड़ा, "प्रिया, मुझे तू पसंद है।" प्रिया का चेहरा लाल हो गया, "विक्रम... मैं... नहीं जानती..." विक्रम ने धीरे से उसके गाल पर हाथ रखा, "डर मत, मैं सिखाऊंगा।" वह प्रिया को चूमने लगा, होंठों पर होंठ, धीरे-धीरे, जीभ मिलाई। प्रिया की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी, उसकी सांस तेज हो गई। विक्रम का हाथ प्रिया के कमर पर गया, उसे करीब खींचा। "प्रिया... तेरा बदन कितना गर्म," वह फुसफुसाया। प्रिया कराही, "विक्रम... ये क्या... अच्छा लग रहा है..." विक्रम ने प्रिया के ब्लाउज पर हाथ फेरा, हल्के से स्तनों को छुआ। प्रिया तड़प उठी, "आह... मत करो..." लेकिन वह रुकी नहीं। विक्रम ने कहा, "प्रिया, चल घर चलें, वहां बताऊंगा।"
घर पहुंचकर, विक्रम प्रिया को अपने कमरे में ले गया, जहां सिर्फ एक बिस्तर और लैंप था। "प्रिया, लेट," वह बोला। प्रिया लेटी, विक्रम उसके बगल में। वह प्रिया को चूमने लगा, गले पर, कान पर, "प्रिया, तू मेरी है।" प्रिया की सांस तेज, "विक्रम... मैं डर रही हूं..." विक्रम ने प्रिया की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन खोले, ब्रा उतारी। प्रिया के स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "प्रिया, क्या सुंदर स्तन," विक्रम बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, धीरे चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता। प्रिया कराही, "आह... विक्रम... ये क्या... बदन में आग लग रही..." विक्रम का हाथ प्रिया की चूत पर गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। "प्रिया, तेरी चूत गीली है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां फेरी। प्रिया चीखी, "आह... वहां... मत छुओ... लेकिन रुको मत..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, धीरे अंदर-बाहर किया। प्रिया तड़पती, "आह... विक्रम... और..." विक्रम ने दो उंगलियां डालीं, स्पीड बढ़ाई, क्लिट रब किया। प्रिया का पानी निकला, "विक्रम... मैं... आह..." वह झड़ गई। "ये क्या हुआ?" प्रिया हांफते हुए बोली। विक्रम मुस्कुराया, "ये मजा है प्रिया, प्यार का।"
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार। प्रिया की आंखें चौड़ी, "ये क्या विक्रम? इतना बड़ा..." विक्रम बोला, "ये लंड है, इससे प्यार होता है। छू।" प्रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, "आह... कितना गर्म..." विक्रम ने कहा, "चूस प्रिया।" प्रिया ने मुंह में लिया, धीरे चूसने लगी, जीभ से चाटती। विक्रम कराहा, "आह... प्रिया... अच्छा..." प्रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा। विक्रम ने प्रिया के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "प्रिया, डालूं?" प्रिया बोली, "हां... लेकिन धीरे..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, प्रिया चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। प्रिया की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "विक्रम... अब अच्छा... चोदो..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, प्रिया के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरी जीभ..." विक्रम ने उसके स्तनों को चूसा, निप्पल्स काटे, प्रिया झड़ गई। विक्रम ने बाहर निकाला, प्रिया के मुंह में झाड़ दिया। प्रिया ने निगला, "विक्रम, प्यार है ये?"
अगले दिनों, विक्रम प्रिया को सिखाता। सुबह, नदी किनारे, विक्रम प्रिया की चूत चाटता, "प्रिया, तेरी चूत मीठी।" प्रिया कराही, "आह... विक्रम..." शाम को, जंगल में, विक्रम प्रिया को चोदता, पीछे से। प्रिया की प्यास बढ़ी, वह विक्रम से कहती, "आज गांड में..." विक्रम ल्यूब लगाता, धीरे डालता। प्रिया चीखी, "दर्द... लेकिन मजा..." विक्रम धक्के मारते, प्रिया झड़ती। प्रिया अब भोली नहीं, विक्रम के प्यार में खोई हुई थी, इच्छाओं की दुनिया में डूबी।
विक्रम की जिंदगी अब प्रिया के इर्द-गिर्द घूम रही थी। उस शाम के बाद, जब उन्होंने पहली बार एक-दूसरे के बदन को छुआ था, विक्रम की रातें बेचैन हो गई थीं। वह समुद्र किनारे की उस मुलाकात को बार-बार याद करता, प्रिया के कोमल होंठों का स्वाद जो अभी भी उसके मुंह में महसूस होता, उसके स्तनों की नरमी जो उसके हाथों में जैसे घुल गई थी, और उसकी चूत की गर्माहट जो उसकी उंगलियों पर अभी भी चिपकी हुई लगती। प्रिया की भोली आंखें जो उत्तेजना में चमकती थीं, उसकी शरमाती मुस्कान जो धीरे-धीरे कराह में बदल गई थी, और उसका मासूम बदन जो विक्रम के स्पर्श से थरथराता था – सब कुछ विक्रम को पागल कर रहा था। वह दिन-रात सोचता, कैसे प्रिया को फिर मिले, कैसे उसे और करीब लाए, उसके होंठ चूमे, उसके स्तनों को दबाए, उसके निप्पल्स को काटे, उसकी चूत में उंगलियां डालकर उसे तड़पाए, और आखिरकार अपना लंड उसकी टाइट चूत में घुसाकर जोर-जोर से धक्के मारे, उसकी चीखें सुनकर खुद को कंट्रोल न कर पाए। लेकिन प्रिया गांव की लड़की थी, घर की मर्यादा में बंधी, पिता की सख्ती और मां की नजरें – मिलना आसान नहीं था। विक्रम मछली पकड़ते वक्त, नाव पर बैठे, प्रिया की याद में खो जाता, उसका लंड पैंट में सख्त हो जाता, वह सहलाता, ऊपर-नीचे करता, प्रीकम लीक करता, लेकिन मजा नहीं आता, क्योंकि वह प्रिया की गर्म चूत की कल्पना करता, उसके जूसेज का स्वाद, उसकी कराहें "विक्रम... आह... और गहरा..."। "प्रिया... तू मेरी है, तेरी चूत सिर्फ मेरी," वह फुसफुसाता, और फैसला करता कि आज मिलना है, चाहे कुछ भी हो।
अगली शाम, विक्रम तैयार हुआ। वह पहले से ज्यादा उत्साहित था, क्योंकि पिछली मुलाकात में प्रिया ने वादा किया था कि वह मिलेगी। वह नहाया, ठंडे पानी से बदन को साफ किया, अपने लंड को सहलाया जैसे वह प्रिया की चूत की कल्पना कर रहा हो, फिर साफ कपड़े पहने – सफेद शर्ट जो उसके चौड़े कंधों पर फिट बैठती, और जींस जो उसके मजबूत थाइज को हाइलाइट करती, उसके उभार को हल्का दिखाती। बालों में कंघी की, थोड़ा परफ्यूम लगाया जो मस्की और मर्दाना था, और प्रिया के घर की ओर चल पड़ा। गांव की गलियां संकरी और घुमावदार थीं, शाम का धुंधलका छा रहा था, घरों से चूल्हों का धुंआ निकल रहा था, बच्चे खेल रहे थे, और कुत्ते भौंक रहे थे। विक्रम का दिल जोर से धड़क रहा था, सांसें तेज, वह सोच रहा था – प्रिया से क्या कहेगा, कैसे उसे छुएगा, उसके होंठ चूमेगा, उसके स्तनों को दबाएगा, उसके निप्पल्स को चूसेगा, उसकी चूत को चाटेगा जब तक वह तड़प न उठे, और फिर अपना लंड उसकी टाइट चूत में धीरे-धीरे घुसाएगा, उसके दर्द भरी कराहें सुनेगा "विक्रम... दर्द हो रहा... लेकिन रुको मत..."। प्रिया का घर गांव के बीच में था, छोटा सा लेकिन साफ-सुथरा, सामने छोटा सा आंगन जहां फूल लगे थे, और पीछे छोटा सा बगीचा। विक्रम पहुंचा, हाथ कांपते हुए दरवाजा खटखटाया। दिल की धड़कन इतनी तेज कि लगता जैसे बाहर सुनाई दे रही हो। वह इंतजार करता रहा, सेकंड जैसे घंटे लग रहे थे। दरवाजा खुला, लेकिन प्रिया नहीं थी – उसकी मां शांता खड़ी थी। शांता, 45 साल की, एक साधारण लेकिन अभी भी आकर्षक गृहिणी, जिसका बदन उम्र के साथ थोड़ा भरा हो गया था लेकिन गर्माहट से भरा – गोरी स्किन जो शाम की रोशनी में चमकती, छोटे बाल कान तक, 36D के स्तन जो साड़ी में छिपे लेकिन उभरे हुए, कमर थोड़ी मोटी लेकिन कूल्हे चौड़े जो चलते वक्त हिलते, और गांड भरी हुई जो साड़ी में लहराती। शांता के पति मछुआरे थे, शाम को देर से लौटते, और वह घर संभालती। "कौन है बेटा?" शांता ने पूछा, उनकी आवाज नरम लेकिन थकी हुई। विक्रम हड़बड़ाया, उसका प्लान बिगड़ गया, "आंटी... प्रिया घर है?" शांता ने विक्रम को ऊपर से नीचे देखा, उसकी मजबूत बॉडी, चेहरे की मासूमियत लेकिन आंखों की आग, और मुस्कुराई, "नहीं बेटा, वह सहेली के घर गई है, रात देर से आएगी। तू बैठ, चाय पी ले, बाहर अंधेरा हो रहा है।" विक्रम का मन निराश हुआ, लेकिन शांता को देखकर एक नई उत्तेजना जागी – शांता की साड़ी गीली लग रही थी, शायद नहाकर आई थी, ब्लाउज चिपका हुआ था, उसके स्तनों के उभार साफ दिख रहे थे, निप्पल्स की आउटलाइन जो हल्के सख्त लगते, और उसकी कमर से नीचे साड़ी उसके कूल्हों से चिपकी हुई, गांड की शेप दिखा रही थी। विक्रम का लंड हल्का सख्त हो गया, वह सोचा – प्रिया नहीं है, लेकिन आंटी अकेली है, क्या करूं? शांता चाय बनाने किचन गई, उसकी गांड लहराती हुई, विक्रम की नजरें ठहर गईं, उसका लंड पूरी तरह सख्त।
शांता चाय लेकर आई, झुककर ट्रे रखी, उसके स्तन झांक रहे थे, गहरी क्लिवेज दिख रही थी, निप्पल्स की डार्क आउटलाइन, विक्रम की आंखें वहां अटक गईं। "बेटा, चाय पी, गर्म है," शांता बोली, लेकिन विक्रम का दिमाग कुछ और सोच रहा था। वह बोला, "आंटी, आप अकेली रहती हो दिन भर? पति जी शाम को आते हैं?" शांता बैठ गई, चाय का कप हाथ में, "हां बेटा, दिन भर घर का काम, बच्चे कॉलेज, शाम को पति आते हैं। लेकिन तू प्रिया से मिलने आया था?" विक्रम ने हिम्मत की, शांता का हाथ पकड़ा, "आंटी, प्रिया अच्छी है, लेकिन आप भी बहुत सुंदर हो। आपकी आंखों में एक उदासी है, जैसे कोई प्यास हो।" शांता चौंकी, उसका हाथ छुड़ाया, "ये क्या कह रहा है बेटा? मैं तेरी मां जैसी हूं, गलत है ये।" लेकिन शांता की आंखों में एक चमक थी, सालों की अकेली रातें याद आईं, उसके पति का ठंडा व्यवहार, और विक्रम की युवा बॉडी उसे उत्तेजित कर रही थी। विक्रम नहीं रुका, वह करीब आया, शांता के गाल पर हाथ रखा, "आंटी, मैं आपको खुश कर सकता हूं, जैसे कोई औरत की प्यास बुझाता है।" शांता चिल्लाई, "रुक जा विक्रम... ये क्या कर रहा है? मैं प्रिया की मां हूं, तू उसका दोस्त है, जाओ यहां से!" वह उठने लगी, लेकिन विक्रम मजबूत था, उसने शांता को पकड़ा, सोफा पर गिरा दिया, उसके ऊपर चढ़ गया। "आंटी, शांत हो जाओ, मैं आपको मजा दूंगा, चिल्लाओ मत, कोई सुन लेगा।" शांता ने विरोध किया, हाथ-पैर मारे, "छोड़ मुझे... बदतमीज... मैं तेरी मां हूं... निकल जा!" लेकिन विक्रम ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जोर से चूमा, जीभ अंदर डाल दी, शांता की सांस रुक गई, वह विरोध करती रही लेकिन विक्रम का बदन उसके बदन से दबा था, उसका सख्त लंड शांता की जांघ पर रगड़ रहा था। शांता की चूत में एक गर्माहट फैलने लगी, सालों की प्यास जाग रही थी, "उम्म... मत कर... विक्रम... आह..." वह चिल्लाई लेकिन आवाज कमजोर हो गई।
विक्रम ने शांता की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन जोर से खोले, ब्रा फाड़कर उतार दी। शांता के भरे हुए स्तन बाहर आ गए – 36D के, थोड़े ढीले लेकिन निप्पल्स डार्क और सख्त, उत्तेजना से फूल गए। विक्रम ने एक स्तन मुंह में ले लिया, जोर से चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, दांतों से काटता, "आंटी... क्या माल है तेरे टिट्स, इतने भरे... चूसूंगा सारा दूध निकालकर。" शांता चिल्लाई, "आह... मत काट... दर्द हो रहा... छोड़ मुझे..." लेकिन उसके बदन में मजा आने लगा, निप्पल्स से电流 जैसा दौड़ रहा, चूत गीली हो गई। वह विरोध करती रही, हाथ से विक्रम को धक्का देती, लेकिन विक्रम मजबूत था, वह उसके दूसरे स्तन को दबाता, पिंच करता, "चिल्ला आंटी, लेकिन मजा ले... तेरी चूत गीली हो रही है, मैं जानता हूं।" शांता की पैंटी गीली हो गई थी, वह कराही, "नहीं... मत कर... लेकिन आह... हां... और चूस..." उसकी आवाज बदल गई, विरोध मजा में बदल रहा था। विक्रम ने शांता की साड़ी पूरी उतार दी, पेटीकोट फाड़ा, पैंटी गीली थी, जूसेज से चिपचिपी। "आंटी, देख तेरी चूत कितनी गीली, मेरे लिए बह रही है," वह बोला, पैंटी फाड़कर उतार दी, उंगलियां चूत पर रब की। शांता चिल्लाई, "आह... मत छुओ वहां... निकाल... लेकिन रुको मत... और रब..." विक्रम ने दो उंगलियां अंदर डालीं, जोर से अंदर-बाहर किया, क्लिट को थंब से मसला। शांता तड़प उठी, "आह... विक्रम... दर्द... लेकिन मजा... और तेज..." वह झड़ गई, पानी विक्रम के हाथ पर, बिस्तर गीला। "ये क्या... आह... अच्छा लगा," शांता हांफते हुए बोली, अब मजा लेने लगी, विरोध भूल गई।
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड लाल और चमकता। शांता की आंखें चौड़ी, "इतना बड़ा... मत डाल... फट जाएगी..." लेकिन विक्रम ने कहा, "आंटी, मजा आएगा, ले ले।" वह शांता के मुंह में लंड डाला, "चूस आंटी, जैसे लॉलीपॉप।" शांता पहले हिचकिचाई, "नहीं... गंदा है..." लेकिन फिर मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से चाटती, गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग। विक्रम कराहा, "आह... आंटी... तेरे मुंह की गर्मी... चूस जोर से..." शांता अब मजा ले रही थी, "उम्म... तेरे लंड का स्वाद... मीठा..." विक्रम ने शांता को लिटाया, पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "आंटी, डाल रहा हूं।" शांता चिल्लाई, "धीरे... दर्द होगा..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, शांता चीखी, "आह... निकाल... फट गई..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। शांता की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "आह... हां... अब अच्छा... चोद..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, शांता के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरा लंड... मेरी चूत को फाड़ रहा... लेकिन मजा... आह..." विक्रम ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, शांता झड़ गई, चूत सिकुड़ी। विक्रम ने जोर से धक्के मारे, शांता चीखती रही, "हां... चोद... फाड़ दे... आह..." विक्रम ने बाहर निकाला, शांता के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। शांता ने निगला, "ये... अच्छा लगा... लेकिन प्रिया को मत बताना।" विक्रम बोला, "आंटी, राज रहेगा, लेकिन फिर आऊंगा।" शांता मुस्कुराई, "हां... आना... तेरे लंड की प्यास लग गई।" प्रिया घर आई, लेकिन कुछ पता नहीं चला। शांता अब विक्रम की प्यासी हो गई थी, इच्छाओं में खोई।
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[img=539x2614] ![[Image: 9d3976be-9085-11f0-af84-0242ac110002.jpg]](https://i.ibb.co/qMXsQ9dk/9d3976be-9085-11f0-af84-0242ac110002.jpg) [/img]
साली की साजिश
राजस्थान के उदयपुर शहर में, जहां पलास झील की शांत लहरें पहाड़ों से बातें करतीं और हवा में राजसी महलों की पुरानी खुशबू, बाजारों की मसालेदार महक और दूर किसी मंदिर की घंटियों की आवाज घुली रहती, वहां रहता था एक व्यापारी परिवार। परिवार का मुखिया था विक्रम, 32 साल का, शहर में कपड़ों की बड़ी दुकान चलाता, मजबूत कद-काठी वाला, गोरा रंग, मूंछें घनी और आंखों में व्यापार की चालाकी लेकिन दिल में एक नरमी। विक्रम का बदन जिम से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मोटी छाती जो शर्ट से उभरती, मजबूत बाजू जो मेहनत से बने, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं, 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो उत्तेजना में और सख्त हो जाता, प्रीकम लीक करता। विक्रम की बीवी थी राधा, 30 साल की, घर की मालकिन, संस्कारी लेकिन अंदर से आग वाली – गोरी स्किन, लंबे काले बाल जो दुपट्टे में छिपे रहते, 38D के भरे हुए स्तन जो सलवार कमीज में से उभरते, पतली कमर जो उम्र के साथ थोड़ी मोटी हो गई लेकिन आकर्षक, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं। राधा की गांड भरी हुई, मुलायम, और चूत बालों वाली लेकिन गर्म, पति के लंड की प्यासी, लेकिन विक्रम व्यस्त रहता, रात को थककर सो जाता, महीने में दो-चार बार चोदता, वो भी जल्दबाजी में, राधा को अधूरा छोड़कर। राधा चुप रहती, लेकिन मन में इच्छाएं सुलगती, रातों में खुद को छूती, उंगलियां चूत में डालकर कल्पना करती विक्रम के लंड की, उसके धक्कों की। लेकिन परिवार की साली नेहा, राधा की बहन, 25 साल की, जो शहर में पढ़ाई करती और छुट्टियों में आती, वह विक्रम पर फिदा थी। नेहा का बदन जवानी की आग से सुलगता – गोरी स्किन जो चांदनी में चमकती, लंबे भूरे बाल जो कंधों तक लहराते और हवा में उड़ते, 36C के सख्त स्तन जो टाइट कुर्ती में से उभरते लेकिन छूने पर गर्माहट देते, पतली कमर जो जींस में लिपटी रहती लेकिन स्पर्श पर थरथराती, और चौड़ी कूल्हे जो चलते वक्त लहरातीं जैसे कोई हसीना हो। उसकी गांड गोल और उभरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा क्लीन शेव्ड, गुलाबी और टाइट, जो रातों में गीली हो जाती लेकिन वह समझ नहीं पाती। नेहा विक्रम पर फिदा थी, लेकिन जीजा होने के कारण मन मारती, लेकिन मन में साजिश रचती कि कैसे विक्रम को फंसाए, उसके लंड को महसूस करे, उसके धक्कों से तड़पे। राधा अच्छी थी, लेकिन नेहा की जलन से अनजान, वह सोचती नेहा उसकी बहन है, घर की।
कहानी की शुरुआत उन गर्मियों की छुट्टियों से हुई, जब नेहा कॉलेज से घर आई। नेहा तैयार थी अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए – वह जानती थी विक्रम उसे देखता है, लेकिन राधा के कारण रुकता है। नेहा ने सोचा, धीरे-धीरे विक्रम को ललचाऊंगी, उसकी इच्छाएं जगाऊंगी, उसके लंड को सख्त करूंगी, और फिर उसे अपना बनाऊंगी। पहली शाम, नेहा घर पहुंची, विक्रम दुकान से लौटा था। नेहा ने कहा, "जीजू, मैं आ गई, छुट्टियां मनाने।" विक्रम मुस्कुराया, "आओ साली जी, घर रोशन हो गया।" नेहा ने हग किया, उसके स्तन विक्रम की छाती से दबे, विक्रम ने महसूस किया, उसका लंड हल्का सख्त। नेहा बोली, "जीजू, आप कितने मजबूत हो, आपकी बाहें..." विक्रम शरमाया, "नेहा, तू भी बड़ी हो गई है।" राधा खुश, "बहन, आ, खाना खा।" लेकिन नेहा की आंखें विक्रम पर ठहरीं। रात को, नेहा तैयार हुई – छोटी नाइटी पहनी, जो उसके स्तनों की आउटलाइन दिखाती, निप्पल्स हल्के उभरे, और नीचे शॉर्ट्स जो उसकी गांड को उभारती। वह पानी पीने किचन गई, विक्रम वहां था, चाय बना रहा। "जीजू, पानी दो न," नेहा बोली, झुककर फ्रिज से बोतल निकाली, उसके स्तन झांक रहे थे। विक्रम की नजर ठहर गई, उसका लंड सख्त हो गया। "नेहा... तू... ये क्या पहना है?" नेहा मुस्कुराई, "जीजू, गर्मी है, आप को बुरा लगा?" विक्रम की सांस तेज, "नहीं... लेकिन... राधा देख लेगी।" नेहा करीब आई, "जीजू, राधा दीदी सो गई है, आप मुझे देख रहे हो?" विक्रम का हाथ नेहा की कमर पर गया, "नेहा... तू बहुत सुंदर है..." नेहा कराही, "जीजू... छुओ न..." विक्रम ने नेहा को काउंटर से सटा लिया, चूमने लगा, होंठों पर होंठ, जीभ मिलाई। नेहा की सांस तेज, "जीजू... आह... प्यार से..." विक्रम का हाथ नेहा के स्तनों पर गया, नाइटी के ऊपर से दबाया, "नेहा... क्या सख्त स्तन..." नेहा कराही, "जीजू... दबाओ... चूसो..." विक्रम ने नाइटी उतारी, ब्रा खोला, नेहा के स्तन बाहर – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "नेहा, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से चाटता, काटता। नेहा तड़प उठी, "आह... जीजू... काटो... चूसो..." विक्रम का हाथ नेहा की चूत पर गया, शॉर्ट्स में, पैंटी गीली। "नेहा, तेरी चूत गीली है," वह बोला, शॉर्ट्स उतारकर उंगलियां फेरी। नेहा चीखी, "आह... जीजू... वहां... और..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, नेहा की चूत टाइट, लेकिन गीली। "नेहा, कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। नेहा का पानी निकला, "जीजू... मैं... आह..." वह झड़ गई। विक्रम ने अपना लंड निकाला, नेहा ने देखा, "इतना बड़ा..." विक्रम ने नेहा के मुंह में डाला, "चूस नेहा।" नेहा चूसने लगी, विक्रम कराहा, "आह... नेहा..." विक्रम ने नेहा के पैर फैलाए, लंड चूत में डाला। नेहा चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे धक्के मारे, नेहा कराही, "जीजू... चोदो... मजा आ रहा..." विक्रम ने स्पीड बढ़ाई, नेहा झड़ी, विक्रम ने अंदर झाड़ दिया। नेहा अब देवर की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई नेहा की साजिश कामयाब हो रही थी। विक्रम अब नेहा की याद में खोया रहता, राधा से कम बात करता। नेहा ने अगला कदम उठाया – रात को, जब राधा सो गई, नेहा विक्रम के कमरे में चली गई। "जीजू, मैं डर गई हूं, सो नहीं पा रही," वह बोली, नाइटी में, स्तन उभरे। विक्रम का दिल धड़का, "नेहा... राधा जाग जाएगी..." लेकिन नेहा बेड पर लेट गई, "जीजू, पकड़ो मुझे।" विक्रम ने नेहा को गले लगाया, चूमने लगा, नेहा की सांस तेज, "जीजू... आह... प्यार से..." विक्रम का हाथ नेहा के स्तनों पर गया, नाइटी के ऊपर से दबाया, "नेहा... क्या सख्त..." नेहा कराही, "जीजू... दबाओ... चूसो..." विक्रम ने नाइटी उतारी, ब्रा खोला, नेहा के स्तन बाहर – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "नेहा, क्या सुंदर," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से चाटता, काटता। नेहा तड़प उठी, "आह... जीजू... काटो... चूसो..." विक्रम का हाथ नेहा की चूत पर गया, पैंटी गीली। "नेहा, तेरी चूत गीली है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां फेरी। नेहा चीखी, "आह... जीजू... वहां... और..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, नेहा की चूत टाइट, लेकिन गीली। "नेहा, कितनी टाइट," वह बोला, अंदर-बाहर किया। नेहा का पानी निकला, "जीजू... मैं... आह..." वह झड़ गई। विक्रम ने अपना लंड निकाला, नेहा ने देखा, "इतना बड़ा..." विक्रम ने नेहा के मुंह में डाला, "चूस नेहा।" नेहा चूसने लगी, विक्रम कराहा, "आह... नेहा..." विक्रम ने नेहा के पैर फैलाए, लंड चूत में डाला। नेहा चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे धक्के मारे, नेहा कराही, "जीजू... चोदो... मजा आ रहा..." विक्रम ने स्पीड बढ़ाई, नेहा झड़ी, विक्रम ने अंदर झाड़ दिया। नेहा अब देवर की आग में जल रही थी, इच्छाओं में खोई।
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गाँव की नई बहू
गर्मियों की वो शाम थी जब सूरज डूबते-डूबते आसमान को लाल रंग से रंग दे रहा था। गाँव का नाम था हरिपुरा, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव जीवन को सरलता देता था। लेकिन इस सरलता के पीछे छिपी थीं वो अनकही कामुकताएँ जो गाँव के युवाओं के मन में उथल-पुथल मचा देती थीं। राजू, उम्र के बीसवें पायदान पर खड़ा एक सुदृढ़ काया वाला लड़का, अपने पिता के खेतों में काम करता था। उसके पिता, रामलाल, एक सख्त स्वभाव के किसान थे, जो दिन-रात खेतों में लगे रहते। राजू का बड़ा भाई, श्याम, शहर में नौकरी करता था और हाल ही में उसकी शादी हुई थी। नई बहू का नाम था राधा।
राधा की आमदनी ने पूरे गाँव में हलचल मचा दी थी। वो शहर से आई थी, लेकिन उसकी सादगी और सुंदरता गाँव की मिट्टी से कहीं ज्यादा मोहक लगती थी। लंबे काले बाल, जो कमर तक लहराते, गोरा रंग जो सूरज की किरणों में चमकता, और वो आँखें जो किसी को भी अपनी गहराई में खींच लेतीं। उसकी उम्र महज इक्कीस साल की थी, लेकिन उसके बदन में वो नरमी थी जो किसी को भी पागल कर दे। शादी के बाद श्याम उसे गाँव ले आया था, लेकिन शहर की नौकरी के कारण वो जल्द ही वापस चला गया, छोड़कर राधा को अकेली। रामलाल ने उसे अपना बेटा-बहू समझा और राजू को हिदायत दी कि बहू का ख्याल रखना।
राजू को राधा पहली नजर में ही भा गई। वो सुबह-सुबह खेत जाते वक्त राधा को झरोक से पानी डालते देखता, उसके हाथों की चूड़ियाँ खनकतीं, साड़ी का पल्लू हवा में लहराता। लेकिन राजू जानता था कि ये सब सोचना पाप है। फिर भी, रात को सोते वक्त उसके मन में राधा की तस्वीर घूम जाती। उसका बदन गर्म हो जाता, हाथ नीचे की ओर चला जाता, और वो कल्पना करता कि राधा उसके पास है।
एक दिन, दोपहर का वक्त था। सूरज इतना तेज था कि खेतों में काम करना मुश्किल हो गया। राजू घर लौटा तो देखा कि माँ रसोई में व्यस्त है और राधा आँगन में कपड़े धो रही है। उसकी साड़ी गीली हो गई थी, जिससे उसके स्तन साफ दिख रहे थे। वो हल्की सी नारंगी साड़ी पहने थी, जो उसके गोरे बदन पर चिपक गई थी। राजू की नजरें ठहर गईं। राधा ने महसूस किया और मुस्कुराई, "भैया, आप आ गए? पानी पियो ना, गर्मी बहुत है।"
राजू ने हिचकिचाते हुए पानी पिया। उसके हाथ काँप रहे थे। राधा ने तौलिया दिया, जो उसके कंधे पर रखा था। जैसे ही राजू ने तौलिया लिया, उनके हाथ छू गए। वो स्पर्श बिजली की तरह था। राजू का दिल धक-धक करने लगा। राधा की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, शायद शहर की पढ़ाई ने उसे खुला सोचने वाला बना दिया था। "भैया, आप थक गए होंगे। अंदर आइये, मैं पैर दबा दूँ?" राधा ने हँसते हुए कहा।
राजू का मुँह सूख गया। "नहीं भाभी, मैं ठीक हूँ।" लेकिन राधा ने उसका हाथ पकड़ लिया और अंदर ले गई। कमरे में कूलर चल रहा था, हल्की ठंडक। राधा ने राजू को चारपाई पर बिठाया और उसके पैरों पर हाथ फेरने लगी। उसके हाथ नरम थे, जैसे रेशम। राजू की साँसें तेज हो गईं। वो नीचे देख रहा था, राधा की साड़ी का ब्लाउज से उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। हर मालिश के साथ, राधा का स्पर्श ऊपर की ओर बढ़ रहा था। "भैया, आपके पैर कितने मजबूत हैं। खेत का काम तो कठिन होता है।" राधा की आवाज में एक मिठास थी।
राजू कुछ बोल न पाया। उसका लिंग सख्त हो गया, पैंट में तनाव महसूस हो रहा था। राधा ने महसूस किया, उसकी नजर नीचे गई और वो मुस्कुराई। "भैया, आपको आराम मिल रहा है?" राजू ने सिर हिलाया। तभी माँ की आवाज आई, "राधा, खाना तैयार?" राधा उठी, लेकिन जाते-जाते राजू के कंधे पर हाथ रखा, "बाद में फिर आना।"
रात को खाना खाने के बाद, राजू बाहर घूम रहा था। चाँदनी रात थी, गाँव शांत। वो सोच रहा था राधा के बारे में। तभी राधा आँगन में आई, साड़ी में लिपटी, बाल खुले। "भैया, नींद नहीं आ रही?" राजू चौंका। "हाँ भाभी, गर्मी है।" राधा पास आई, "चलो, नदी किनारे चलें। वहाँ ठंडक मिलेगी।"
राजू का दिल जोर से धड़का। दोनों नदी की ओर चले। रास्ते में बातें हुईं – शहर की, गाँव की। राधा ने बताया कि श्याम भैया कितने व्यस्त रहते हैं, कभी समय नहीं देते। राजू ने सुना, लेकिन मन में कुछ और चल रहा था। नदी किनारे पहुँचकर दोनों बैठ गए। पानी की कलकल ध्वनि, हवा का स्पर्श। राधा ने साड़ी का पल्लू ठीक किया, लेकिन हवा ने उसे उड़ा दिया। उसके स्तन आधे नंगे हो गए। राजू की नजरें चिपक गईं। राधा ने नोटिस किया, लेकिन ढका नहीं। बल्कि, हल्के से हँसी, "भैया, यहाँ कोई नहीं है। शर्माने की क्या बात।"
राजू का चेहरा लाल हो गया। "भाभी, मैं..." राधा ने उसका हाथ पकड़ा, "राजू, तुम्हें अच्छी लगती हूँ ना?" राजू ने सिर हिलाया। राधा करीब आई, उसके होंठ राजू के कानों से सट गए, "मुझे भी तुम्हारी नजरें अच्छी लगती हैं। श्याम भैया तो दूर हैं, यहाँ अकेलापन सताता है।"
राजू का बदन सुलग उठा। उसने राधा को गले लगा लिया। राधा की साँसें तेज थीं। उनके होंठ मिले, पहली बार। वो चुंबन गहरा होता गया। राजू के हाथ राधा की पीठ पर फेरने लगे, साड़ी की गांठ खुलने लगी। राधा ने धीरे से राजू का हाथ नीचे ले जाकर दबाया। "धीरे भैया, सब कुछ धीरे-धीरे।"
वो रात भर नदी किनारे रहे। चुंबन के बाद, राजू ने राधा के स्तनों को छुआ। वो नरम, गोल थे। राधा की सिसकियाँ निकलीं, "आह राजू... हल्के से..." राजू ने ब्लाउज खोला, ब्रा हटाई। उसके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। वो चूसने लगा, राधा के हाथ उसके बालों में उलझ गए। नीचे हाथ गया, राधा की साड़ी ऊपर सरका दी। उसकी चूत गीली थी, पैंटी से रस टपक रहा। राजू ने उंगली डाली, राधा चीखी, "ओह... राजू... बस..."
लेकिन वो रुके नहीं। राधा ने राजू का पैंट खोला। उसका लंड बाहर आया, मोटा, लंबा। राधा ने उसे पकड़ा, सहलाया। "कितना बड़ा है... श्याम का तो आधा भी नहीं।" वो मुस्कुराई। धीरे-धीरे, राधा ने मुँह में लिया। राजू की जान निकलने लगी। जीभ घुमाती, चूसती। राजू के हाथ राधा के सिर पर, धीरे दबाव।
फिर, राधा लेट गई। "आ जा राजू... मुझे अपना बना ले।" राजू ऊपर चढ़ा। लंड चूत पर रगड़ा। राधा तड़पी, "अंदर... डाल दे..." एक धक्के में अंदर। राधा चीखी, "आह्ह्ह... दर्द... लेकिन अच्छा दर्द..." राजू धीरे-धीरे 움직ा। धप-धप की आवाज नदी की कलकल में घुल गई। हर धक्के के साथ राधा की सिसकियाँ बढ़ीं। "हाँ राजू... तेज... और तेज..."
वे घंटों चले। राजू ने राधा के अंदर झड़ दिया। दोनों पसीने से तर, गले लगे लेटे रहे। "यह राज़ रहेगा हमारा," राधा ने फुसफुसाया। राजू ने हामी भरी। लेकिन ये तो शुरुआत थी। गाँव में और रातें बाकी थीं।
भाग २: खेतों की छिपी मुलाकात
अगले दिन सुबह, राजू खेत गया। मन में राधा का चित्र घूम रहा था। हर पौधे को देखते हुए वो कल्पना करता कि राधा के बदन की तरह नरम। दोपहर को, जब सूरज चढ़ा, राजू ने देखा कि राधा खेत की ओर आ रही है। टोकरी में खाना। "भैया, माँ ने भेजा है।" लेकिन उसकी आँखों में शरारत थी।
खेत के बीच में, भूसे की आड़ में, राधा ने टोकरी रखी। "खाना खाओ, फिर..." राजू ने खाना निगला भी नहीं, राधा को खींच लिया। इस बार तेजी से। साड़ी उतारी, नंगी राधा। उसके स्तन हवा में लहराए। राजू ने चूसे, काटा। राधा की चीखें खेतों में गूँजीं, लेकिन कोई सुनने वाला न था। "राजू... यहाँ? कोई देख लेगा..." लेकिन वो खुद ही राजू के लंड पर हाथ फेर रही थी।
राजू ने राधा को भूसे पर लिटाया। पैर फैलाए, चूत पर जीभ लगाई। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... कभी ऐसा नहीं हुआ... श्याम तो..." राजू ने चाटा, रस चूसा। राधा का बदन काँप उठा। फिर, लंड अंदर। इस बार कुत्ते की तरह। राधा आगे झुकी, गांड ऊपर। राजू पीछे से धक्के मारता। धप्प... धप्प... फच... फच... आवाजें। राधा के बाल पकड़े, खींचे। "हाँ भैया... जोर से... चोदो मुझे..."
वे पसीने से भीग गए। राजू ने गांड में उंगली डाली, राधा चिल्लाई, "नहीं... वहाँ दर्द..." लेकिन राजू नहीं रुका। धीरे-धीरे, गांड में लंड रगड़ा। राधा रोई, लेकिन मजा आया। पहली बार गांड मारी। झड़ते वक्त दोनों चीखे।
शाम को घर लौटे। माँ ने कुछ शक नहीं किया। लेकिन राधा की चाल में लचक थी, राजू की आँखों में चमक। रात को, जब सब सोए, राधा राजू के कमरे में आई। "भैया, आज और..." दरवाजा बंद किया। अंधेरे में, धीरे-धीरे कपड़े उतारे। राजू ने राधा को गोद में उठाया, दीवार से सटाया। खड़े-खड़े चोदा। राधा के पैर कमर पर लपेटे। धक्के ऊपर-नीचे। "आह्ह्ह... राजू... मार डालोगे..."
सारी रात यही चला। सुबह तक थकान। लेकिन ये भूख बढ़ रही थी। गाँव के तालाब पर, जंगल में, हर जगह उनकी मिलन की कहानियाँ बन रही थीं।
भाग ३: खतरे की छाया
कुछ दिन बाद, श्याम शहर से लौटा। राधा घबरा गई। लेकिन श्याम व्यस्त था, राधा को समय ही न दिया। एक रात, श्याम सो गया, राधा चुपके राजू के पास। "भैया, सह लो ना... बिना तुम्हारे..." लेकिन श्याम जाग गया। शक हुआ। "राधा, कहाँ जाती हो रात को?" राधा ने बहाना बनाया।
अगले दिन, श्याम खेत गया। राजू से बात की। लेकिन मन में शक। शाम को, वो छिपकर देखने लगा। राधा और राजू तालाब पर मिले। श्याम ने देखा सब। गुस्सा आया, लेकिन वो चुप रहा। रात को, श्याम ने राधा को पकड़ा। "कौन है वो?" राधा रोई, सच बता दिया। श्याम गुस्से में, लेकिन शहर जाकर सोचा।
श्याम चला गया। अब राजू-राधा खुले। घर में ही। माँ को बहाना बनाकर। एक दिन, माँ गई पड़ोस। राजू ने राधा को रसोई में खींचा। चूल्हे पर सटाकर चोदा। राधा की साड़ी ऊपर, गांड पर धक्के। "आह्ह्ह... जल जाएगी... चूल्हा..." लेकिन मजा दोगुना। फिर, बेडरूम में। ६९ पोजीशन। राजू चूत चाटे, राधा लंड चूसे। फच... चूस... चाट... आवाजें।
झड़ने के बाद, लेटे रहे। "भाभी, हमेशा साथ रहोगी?" राधा मुस्कुराई, "हाँ राजू... तुम्हारा लंड मेरा है।"
लेकिन गाँव में अफवाहें फैलीं। एक दिन, पंडित जी ने देख लिया। लेकिन राजू ने डराया।
दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन राजू और राधा की प्यास कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। श्याम शहर वापस चला गया था, और घर में अब सिर्फ रामलाल, माँ, राजू और राधा थे। रामलाल सुबह से शाम तक खेतों में व्यस्त रहते, माँ घर के कामों में। ये मौका राजू और राधा के लिए स्वर्ग जैसा था। लेकिन अब वे सावधान हो गए थे, क्योंकि गाँव में अफवाहें फैलने लगी थीं। पड़ोसी की बेटी ने एक बार उन्हें जंगल में देख लिया था, लेकिन राधा ने उसे चुप करा दिया। फिर भी, खतरा था। इसलिए उन्होंने घर के अंदर ही अपनी दुनिया बसानी शुरू कर दी।
एक शाम की बात है। सूरज डूब चुका था, लेकिन गर्मी अभी भी हवा में तैर रही थी। राजू छत पर लेटा था, तारों को देखते हुए। उसके मन में राधा की यादें घूम रही थीं – उसकी नरम त्वचा, वो सिसकियाँ, वो स्पर्श जो उसे पागल बना देता। तभी सीढ़ियों से चूड़ियों की खनक सुनाई दी। राजू ने देखा, राधा ऊपर आ रही है। वो हल्की सी नीली साड़ी पहने थी, जो उसके बदन पर ऐसे चिपकी थी जैसे दूसरी त्वचा। बाल खुले, कंधों पर लहराते। "भैया, नींद नहीं आ रही? मैं भी ऊपर आ गई, ठंडी हवा लेने।" राधा ने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखों में वो शरारत थी जो राजू अच्छे से पहचानता था।
राजू उठा, राधा के पास आया। छत पर कोई नहीं था, गाँव सो चुका था। सिर्फ चाँद की रोशनी और दूर से कुत्तों की भौंकने की आवाज। राजू ने राधा का हाथ पकड़ा, "भाभी, आज यहाँ? अगर कोई देख लेगा..." राधा ने उंगली उसके होंठों पर रखी, "शश्श... कोई नहीं आएगा। माँ-पापा सो गए हैं। और मुझे आज कुछ नया चाहिए।" वो राजू को छत के कोने में ले गई, जहाँ पुरानी चारपाई पड़ी थी। राधा ने साड़ी का पल्लू गिरा दिया, उसके स्तन ब्लाउज में कैद, लेकिन निप्पल सख्त होकर उभरे हुए थे। राजू की साँसें तेज हो गईं।
धीरे से, राजू ने राधा को चारपाई पर बिठाया। उसके घुटनों पर बैठकर, ब्लाउज के हुक खोले। एक-एक करके, हुक खुलते गए। पहला हुक – राधा की साँस रुकी। दूसरा – उसके स्तन थोड़े बाहर झाँके। तीसरा – पूरी तरह खुल गया। ब्रा नहीं थी अंदर, सीधे नंगे स्तन। गोल, भरे हुए, गुलाबी निप्पल चाँदनी में चमक रहे थे। राजू ने हाथ से सहलाया, नरमी महसूस की। "भाभी, कितने मुलायम... जैसे रसभरी।" राधा हँसी, "चखो तो सही, भैया।" राजू ने मुँह लगाया, एक निप्पल को चूसा। जीभ घुमाई, हल्के से काटा। राधा की सिसकी निकली, "आह्ह्ह... राजू... धीरे... लेकिन मत रुकना।"
राधा के हाथ राजू के सिर पर, बालों को खींचते हुए। राजू ने दूसरा स्तन पकड़ा, दबाया। दूध की तरह नरम, लेकिन गर्म। वो चूसता रहा, चाटता रहा। राधा का बदन काँपने लगा। नीचे हाथ सरकाया, साड़ी की सिलवटों में। पेटीकोट ऊपर किया, पैंटी गीली हो चुकी थी। राजू ने उंगली से छुआ, रस टपका। "भाभी, इतनी गीली... मेरे लिए?" राधा ने सिर हिलाया, "हाँ राजू... सिर्फ तुम्हारे लिए। अब और मत तड़पाओ।"
राजू ने राधा को लिटाया। साड़ी पूरी उतार दी। अब राधा नंगी, चाँदनी में चमकती। उसके पैर फैलाए, चूत पर बालों की हल्की लकीर। राजू ने जीभ लगाई, चाटा। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... राजू... वहाँ... जीभ... अंदर..." राजू ने जीभ अंदर डाली, रस चूसा। राधा के कूल्हे ऊपर उठे, सिसकियाँ तेज। "हाँ... चाटो... सारा रस पी लो..." राजू ने उंगली भी डाली, दो उंगलियाँ। अंदर-बाहर। फच... फच... की आवाज छत पर गूँजी। राधा का बदन ऐंठा, वो झड़ गई। रस राजू के मुँह पर।
अब बारी राजू की। राधा उठी, राजू का पैंट खोला। लंड बाहर आया, सख्त, नसें फूली हुईं। राधा ने पकड़ा, सहलाया। "कितना मोटा... राजू, आज मुझे ऊपर रहना है।" राजू लेटा, राधा ऊपर चढ़ी। लंड चूत पर रगड़ा, धीरे से अंदर लिया। "आह्ह्ह... कितना गहरा... भर गया..." राधा ऊपर-नीचे होने लगी। धीरे पहले, फिर तेज। उसके स्तन उछलते, राजू ने पकड़े, दबाए। "हाँ भाभी... राइड करो... जोर से..." राधा की कमर घुमती, धक्के लगाती। फच... धप... की आवाजें। चाँद देख रहा था उनकी रासलीला।
राधा थकी नहीं, पोजीशन बदली। अब पीछे मुड़ी, गांड राजू की ओर। रिवर्स काउगर्ल। लंड फिर अंदर। राधा उछलती, गांड हिलाती। राजू ने गांड पर थप्पड़ मारा, "हाँ भाभी... हिलाओ... कितनी सेक्सी गांड..." राधा चीखी, "मारो राजू... थप्पड़... और..." थप... थप... की आवाज। राजू ने उंगली गांड में डाली, राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... वहाँ... हाँ... अब लंड डालो वहाँ..."
राजू उठा, राधा को घोड़ी बनाया। पहले चूत में धक्के, फिर लंड बाहर निकाला, गांड पर रगड़ा। राधा का रस चिकना कर रहा था। धीरे से दबाव, टिप अंदर। राधा रोई, "दर्द... लेकिन मत रुकना..." आधा अंदर, फिर पूरा। राजू धीरे-धीरे चोदने लगा। राधा की सिसकियाँ मिली चीखों में। "आह्ह्ह... राजू... फाड़ दो... गांड..." तेज धक्के। धप्प... धप्प... राजू के अंडे टकराते। दोनों पसीने से तर। आखिर राजू झड़ गया, गांड में। राधा भी साथ झड़ी।
वे लेटे रहे, साँसें सामान्य हुईं। राधा राजू के सीने पर सिर रखकर, "राजू, ये प्यार कभी खत्म न हो।" राजू ने गले लगाया, "नहीं होगा भाभी।" लेकिन अगले दिन, एक नया ट्विस्ट इंतजार कर रहा था। श्याम का दोस्त गाँव आया, और शक की छाया फिर घनी हो गई।
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गर्मियों की वो शाम
हैलो दोस्तों, मेरा नाम राजू है। उम्र अभी बीस साल की है, और मैं एक छोटे से गाँव में रहता हूँ, जहाँ हवा में हमेशा मिट्टी की खुशबू घुली रहती है। हमारा गाँव मध्य प्रदेश के एक कोने में बसा है, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव ही जीवन का आधार है। पापा किसान हैं, माँ घर संभालती हैं, और बड़ा भाई शादी के बाद शहर चला गया है नौकरी करने। लेकिन भाभी... अरे भाभी का नाम सुनते ही दिल में एक अजीब सी हलचल सी हो जाती है। उनका नाम है सीमा, उम्र करीब छब्बीस साल की, और वो जब गाँव आई थीं, तो पूरे मोहल्ले के लड़कों की नींद उड़ा दी थी।
वो शाम थी जून की, जब गर्मी इतनी तेज़ हो जाती है कि पेड़ों की छाँव भी गर्म लगने लगती है। मैं खेत से लौट रहा था, कंधे पर हँसिया लटका हुआ, और पसीने से पूरा बदन भीगा हुआ। सूरज डूबने को था, लेकिन वो लालिमा अभी भी आसमान को रंग रही थी। रास्ते में एक छोटा सा तालाब पड़ता है, जहाँ गाँव की औरतें स्नान करने जाती हैं। मैंने सोचा, थोड़ा ठंडा हो लूँ, तो तालाब की ओर मुड़ गया। लेकिन जैसे ही करीब पहुँचा, मुझे आवाज़ें सुनाई दीं – हल्की हँसी और पानी के छींटों की आवाज़।
मैंने झाड़ियों के पीछे छिपकर झाँका। वहाँ भाभी थीं। अकेली। उनकी साड़ी उतरकर किनारे पर रखी हुई थी, और वो सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में पानी में उतर रही थीं। भाभी का शरीर... उफ़, क्या कहूँ? गोरा-चिटा, जैसे दूध में डूबा हुआ। उनकी कमर पतली थी, लेकिन कूल्हे इतने चौड़े कि देखते ही मन में एक उत्तेजना सी दौड़ जाती। ब्लाउज़ उनके भरे हुए स्तनों को मुश्किल से समेटे हुए था, और जब वो पानी में झुकीं, तो वो गोलाई बाहर झाँकने लगी। पानी उनके लंबे काले बालों को भीगो रहा था, जो पीठ पर लहरा रहे थे।
मैं वहीं खड़ा हो गया, साँसें थम सी गईं। भाभी ने पानी में डुबकी लगाई, और ऊपर आते ही उनके होंठों पर पानी की बूँदें चमक रही थीं। उन्होंने आँखें बंद करके सिर पीछे किया, जैसे थकान मिटा रही हों। उनकी गर्दन लंबी और सुंदर, जैसे किसी राजकुमारी की। मैंने महसूस किया कि मेरा लंड कड़क हो रहा है, पैंट में दबाव सा महसूस हो रहा। मैंने हाथ से दबाने की कोशिश की, लेकिन नज़रें भाभी से हट ही नहीं रही थीं। वो पानी से बाहर निकलीं, और पेटीकोट से पानी टपक रहा था, जो उनकी जाँघों पर चमक रहा था। जाँघें मोटी, लेकिन नरम लग रही थीं, जैसे रुई की।
अचानक भाभी ने सिर घुमाया। मैंने झटके से पीछे हटना चाहा, लेकिन पैर फिसल गया। एक शाखा टूटने की आवाज़ हुई। भाभी चौंक गईं। "कौन है वहाँ?" उनकी आवाज़ मीठी, लेकिन डर भरी। मैं चुप रहा, लेकिन दिल धक-धक कर रहा था। वो साड़ी उठाकर लपेटने लगीं, जल्दी-जल्दी। लेकिन फिर मुस्कुराईं। "राजू? तू है ना?"
मैं बाहर आ गया, सिर झुकाए। "हाँ भाभी... मैं... बस ठंडा होने आया था।"
वो हँसीं, लेकिन आँखों में शरारत थी। "ठीक है, लेकिन अगली बार चोरी-चोरी मत देखना। आ जा, साथ में नहा लें। गर्मी बहुत है।"
मेरा मुंह सूख गया। भाभी ने ब्लाउज़ उतार दिया? नहीं, वो अभी भी पहने हुए थीं, लेकिन साड़ी ठीक से लिपटी नहीं थी। उनकी नाभि दिख रही थी, गोल और गहरी। मैं पानी में उतर गया, लेकिन नज़रें नीची। भाभी ने पानी उछाला मेरी ओर। "क्या शरमाता है? तू तो बड़ा हो गया अब।"
हम हँसे, लेकिन मेरी हँसी में घबराहट थी। पानी में खेलते हुए, भाभी का हाथ मेरी पीठ पर लगा। वो नरम स्पर्श... जैसे बिजली का झटका। "तेरा बदन कितना मज़बूत हो गया है, राजू। खेतों का कमाल है।" उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर घूमीं, हल्के से। मैंने कुछ न कहा, बस महसूस किया कि लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया है। पानी के नीचे छिपा हुआ, लेकिन दर्द सा हो रहा था।
शाम ढल गई। हम बाहर निकले। भाभी ने साड़ी पहनी, लेकिन उनके बाल अभी भी गीले थे, जो कंधों पर लहरा रहे थे। "चल, घर चलें। आज रात तेरे भाई का फोन आया था, वो कल आ रहे हैं। लेकिन तू आज रात मेरे साथ सोना। अकेले डर लगता है।"
मेरा दिल जोर से धड़का। भाई कल आ रहे हैं? लेकिन रात भाभी के साथ? घर पहुँचते-पहुँचते अंधेरा हो चुका था। माँ ने खाना परोसा, लेकिन मैं कुछ खा न सका। भाभी की नज़रें मुझ पर पड़ रही थीं, जैसे कुछ कह रही हों। रात के दस बजे, माँ-पापा सो गए। भाभी ने मुझे बुलाया, "राजू, आ जा ऊपर।"
उनका कमरा छत पर था, एक छोटा सा मचान। गर्मी से खिड़की खुली थी, चाँदनी फैली हुई। भाभी बिस्तर पर लेटी हुई थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी हुई, जाँघें दिख रही थीं। "गर्मी है ना? तू भी लेट जा।" मैं बिस्तर के किनारे लेटा। लेकिन नींद कहाँ आ रही थी? भाभी करवट ले रही थीं, उनका शरीर मेरे करीब सरक रहा था। उनकी साँसें मेरी गर्दन पर लग रही थीं, गर्म और तेज़।
"राजू, तू सोया नहीं?" उनकी आवाज़ फुसफुसाहट में।
"नहीं भाभी... गर्मी।"
"मैं भी नहीं। आ, मालिश कर दूँ तुझे।" वो उठीं, और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगीं। उनके हाथ नरम, तेल लगे हुए जैसे। धीरे-धीरे हाथ नीचे सरकने लगे, कमर पर। मैं सिहर उठा। "भाभी..."
"शशश... चुप। आराम दे।" उनका हाथ मेरी जाँघ पर पहुँचा। मैंने साँस रोकी। लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। भाभी ने महसूस किया, मुस्कुराईं। "क्या है ये? तू तो पुरुष हो गया लगता है।"
मैं शरम से लाल हो गया। लेकिन भाभी ने हाथ नहीं हटाया। धीरे से दबाया। "दर्द हो रहा है ना? मैं ठीक कर दूँ।"
भाग २: रात की उत्तेजना
रात के बारह बज चुके थे। चाँदनी कमरे को रोशन कर रही थी, और बाहर मेंढकों की आवाज़ें गूँज रही थीं। भाभी का हाथ अभी भी मेरी जाँघ पर था, हल्का दबाव डालते हुए। मैंने कुछ बोलना चाहा, लेकिन गला सूखा हुआ था। "भाभी, ये... ये ठीक नहीं। भैया..."
"भैया कल आएँगे। आज रात सिर्फ़ हम हैं।" उनकी आँखें चमक रही थीं, जैसे भूखी शेरनी की। वो करीब सरकीं, उनका स्तन मेरी बाँह से सटा। वो नरमी... उफ़, जैसे बादाम का हलवा। ब्लाउज़ के अंदर से गर्माहट महसूस हो रही थी। भाभी ने मेरी शर्ट उतार दी, धीरे से। "देख, कितना पसीना आ गया।"
मैं नंगा ऊपरी बदन हो गया। भाभी की उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगीं, निप्पल्स पर। एक अजीब सी सनसनी हुई, जैसे करंट दौड़ गया। "भाभी... अह्ह..." मैं सिसकारी भर आया। वो हँसीं, मीठे स्वर में। "पसंद आया? और भी मज़ा आएगा।"
उन्होंने मेरी पैंट की नाड़ा खींची। मैंने रोकना चाहा, लेकिन हाथ काँप रहे थे। पैंट नीचे सरक गई, और मेरा लंड बाहर उछल पड़ा। कड़क, लाल, नसें फूली हुईं। भाभी ने देखा, आँखें फैल गईं। "वाह राजू... कितना बड़ा है। तेरे भाई से भी ज्यादा।" उन्होंने हाथ में लिया, धीरे से सहलाया। ऊपर-नीचे। मैंने आँखें बंद कर लीं, सुख की लहर दौड़ गई।
"भाभी... ये पाप है।"
"प्यार पाप नहीं होता।" वो झुकीं, और होंठ लंड के सिरे पर रख दिए। गर्म, नम। जीभ बाहर निकली, चाटने लगी। मैं चिल्ला पड़ा, लेकिन दबा लिया। "अह्ह... भाभी... कितना अच्छा लग रहा है।" वो मुस्कुराईं, और मुंह में ले लिया। आधी लंबाई। चूसने लगीं, धीरे-धीरे। लार टपक रही थी, चटक-चटक की आवाज़। मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था, कसकर पकड़ लिया।
दस मिनट तक चूसती रहीं, कभी तेज़, कभी धीमे। मेरा वीर्य बाहर आने को था, लेकिन वो रुक गईं। "अभी नहीं। पहले तू मुझे खुश कर।" उन्होंने साड़ी उतार दी। ब्लाउज़ खोला। स्तन बाहर आ गए – बड़े, गोल, भूरे निप्पल्स तने हुए। मैंने छुआ, नरम लेकिन भरे हुए। दबाया, दूध निकलने लगा लगे। भाभी सिसकारीं, "चूस राजू... चूस अपनी भाभी के चुचे।"
मैं झुका, मुंह में लिया। चूसने लगा, जीभ से घुमाया। भाभी कराहने लगीं, "हाँ... ऐसे ही... अंदरूनी आग बुझा दे।" उनका हाथ मेरे सिर पर दबा रहा। दूसरा स्तन भी चूसा, काटा हल्के से। दांतों से। भाभी का बदन काँप रहा था।
फिर पेटीकोट उतारा। भाभी नंगी हो गईं। उनकी चूत... साफ़ शेव्ड, गुलाबी, नम चमक रही। "छू राजू... देख कितनी गीली हो गई तेरे लिए।" मैंने उँगली डाली, अंदर गर्माहट। भाभी ने कमर उभारी, "अंदर-बाहर कर... तेज़।" मैंने दो उँगलियाँ डाल दीं, चोदने लगा। पानी बहने लगा, बिस्तर गीला। भाभी की कराहें तेज़, "हाँ... चोद... अपनी भाभी की भोसड़ी चोद।"
मैं सहन न सका। ऊपर चढ़ गया। लंड चूत पर रगड़ा। भाभी ने हाथ से पकड़कर अंदर किया। "डाल राजू... भर दे मुझे।" मैंने धक्का मारा। अंदर सरक गया, गर्म, तंग। भाभी चीखी, "आह्ह... कितना मोटा है।" मैं रुका, फिर धीरे-धीरे हिलने लगा। हर धक्के में भाभी की चीखें, "हाँ... गहरा... फाड़ दे।"
रात भर चोदा। कभी मिशनरी, कभी डॉगी। भाभी ऊपर आकर नाचीं, स्तन उछल रहे। सुबह तक थक गए। लेकिन भाई आने वाले थे...
सुबह की पहली किरण कमरे में घुसी, चिड़ियों की चहचहाहट से नींद टूटी। मैंने आँखें खोलीं, तो देखा भाभी मेरी बाँहों में सिमटी हुई थीं, नंगी, उनकी साँसें मेरी छाती पर गर्म हवा की तरह लग रही थीं। रात की याद आई – वो कराहें, वो धक्के, वो चूमाचाटी। मेरा लंड फिर से हलचल करने लगा, लेकिन मैंने खुद को रोका। भाई आज आने वाले थे, और घर में माँ-पापा नीचे थे। भाभी की चूत अभी भी गीली लग रही थी, रात के रस से चिपचिपी। मैंने धीरे से उँगली फेरकर देखा, भाभी सिहर उठीं, लेकिन सोई रही।
मैं उठा, कपड़े पहने। भाभी की नंगी पीठ पर चादर डाली, उनके कूल्हों की गोलाई अभी भी दिख रही थी, जैसे आम के फल। नीचे उतरा, तो माँ चाय बना रही थीं। "बेटा, रात ठीक से सोया?" मैंने हाँ कहा, लेकिन दिल में घबराहट थी। क्या माँ को कुछ पता चला? लेकिन नहीं, वो मुस्कुरा रही थीं। पापा खेत जाने की तैयारी कर रहे थे। "राजू, आज तू भाभी को मदद कर देना घर के काम में। भैया आएंगे तो शाम का खाना अच्छा बनाना।"
दिन चढ़ा। भाभी नीचे आईं, साड़ी ठीक से लिपटी, लेकिन आँखों में वो शरारत। बाल बंधे हुए, लेकिन एक लट माथे पर लहरा रही। वो रसोई में गईं, मैं पीछे-पीछे। "भाभी, रात कैसी रही?" मैंने फुसफुसाकर पूछा। वो मुस्कुराईं, "बहुत अच्छी, लेकिन अभी थकान है। तूने तो मुझे थका दिया।" उनका हाथ मेरी कमर पर लगा, हल्के से दबाया। मैंने देखा, कोई नहीं था आसपास। मैंने भाभी को दीवार से सटाया, होंठ उनके होंठों पर रख दिए। चूमा, जीभ अंदर डाली। भाभी ने आँखें बंद कर लीं, सिसकारी भरी। "राजू... माँ आ जाएगी।"
लेकिन मैं रुका नहीं। हाथ साड़ी के अंदर डाला, जाँघों पर फेरा। भाभी की चूत फिर गीली हो रही थी। उँगली डाली, अंदर-बाहर। भाभी काँपने लगीं, "अह्ह... मत कर... लेकिन रुक मत।" पाँच मिनट तक ऐसे ही, फिर माँ की आवाज़ आई। हम अलग हुए। भाभी का चेहरा लाल, साँसें तेज़।
दोपहर हुई। भाभी खेत में घास काटने गईं। मैं भी साथ चला गया। खेत सुनसान, चारों तरफ हरी फसलें लहरा रही थीं। सूरज ऊपर, लेकिन हवा ठंडी। भाभी झुकी हुई घास काट रही थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी, जाँघें दिख रही। मैं पीछे से देख रहा था, उनकी गांड की गोलाई, जैसे दो तकिए। मैं करीब गया, कमर पकड़ी। "भाभी, मदद करूँ?" वो मुड़ीं, "हाँ, लेकिन किस काम की?" आँखों में इशारा।
मैंने भाभी को घास पर लिटा दिया। साड़ी ऊपर की, पेटीकोट खोला। चूत नंगी, गुलाबी, चमक रही। मैंने जीभ लगाई, चाटने लगा। भाभी की कराह, "आह्ह... राजू... क्या कर रहा है... खेत में?" लेकिन पैर फैला दिए। मैंने जीभ अंदर डाली, चूसा। भाभी के हाथ मेरे बालों में, दबा रही। दस मिनट तक चाटा, भाभी झड़ गईं, रस बहा। "अब तू... अपना डाल।"
मैंने पैंट खोली, लंड बाहर। भाभी ने मुंह में लिया, चूसा। गर्म, नम। फिर मैंने चूत में डाला, धक्के मारे। खेत में धमाकेदार चुदाई। भाभी की चीखें, लेकिन दूर तक कोई नहीं। "फाड़ दे... अपनी भाभी को... हाँ... गहरा।" मैंने तेज़ किया, वीर्य अंदर छोड़ा। हम थककर लेट गए, आसमान देखते हुए।
शाम हुई। भाई आए। ट्रेन से, थके हुए। "राजू, कैसा है?" मैंने गले लगाया, लेकिन मन में डर। भाभी ने खाना परोसा, लेकिन नज़रें मुझसे मिला रही थीं। रात हुई। भाई भाभी के कमरे में गए। मैं नीचे सोया, लेकिन नींद नहीं। ऊपर से आवाज़ें – भाई की खर्राटे। भाभी नीचे आईं, पानी पीने के बहाने। "राजू... भैया सो गए। आ जा ऊपर।"
मैं चुपके से ऊपर गया। भाई सोए हुए। भाभी ने मुझे बिस्तर पर खींचा। "जल्दी कर... लेकिन धीरे।" मैंने साड़ी उतारी, स्तन चूसे। भाभी सिसकारीं, लेकिन दबाकर। लंड चूत में डाला, धीमे धक्के। भाई बगल में सोए, हम चोद रहे। उत्तेजना दोगुनी। भाभी झड़ीं, मैं भी। फिर नीचे आ गया।
लेकिन अगली सुबह, भाई ने कुछ अजीब देखा। क्या पता चलेगा?
भाग ४: रहस्य का खुलना और नई शुरुआत
अगली सुबह, सूरज निकला। मैं उठा, तो देखा भाई बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे। चेहरा गंभीर। "राजू, आ जा बैठ।" मैं गया, दिल धक-धक। भाभी रसोई में, लेकिन कान लगाए। भाई बोले, "रात मैं जागा था। सब देखा।" मेरा चेहरा सफेद पड़ गया। "भैया... वो..."
भाई हँसे। "डर मत। मैं जानता हूँ। भाभी खुश नहीं थी मेरे साथ। मैं बाहर जाता हूँ, दारू पीता हूँ। लेकिन तूने उसे खुशी दी।" मैं हैरान। भाई ने कहा, "गाँव में ऐसे चलता है। लेकिन सावधान रहना। अब हम तीनों मिलकर मज़ा करेंगे।" भाभी बाहर आईं, शरमाती हुई। भाई ने भाभी को गोद में उठाया, चूमा। "आज रात तीनों साथ।"
दिन बीता। रात हुई। कमरा बंद। भाई ने भाभी की साड़ी उतारी, मैं देखता रहा। भाई का लंड छोटा था, लेकिन कड़क। भाभी ने दोनों को मुंह में लिया, बारी-बारी। "दो-दो लंड... उफ़।" भाई ने चूत में डाला, मैं गांड में। भाभी चीखी, "आह्ह... फट गई... लेकिन मज़ा आ रहा।" रात भर थ्रीसम। कभी भाई ऊपर, कभी मैं। भाभी थक गईं, लेकिन खुश।
अब हर रात ऐसी। गाँव की जिंदगी बदल गई।
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