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मस्तकाम एपिसोड 1 - गांव की हसीना
गांव की उस संकरी गली में, जहां हवा में मिट्टी की खुशबू और फूलों की महक मिलकर एक अनोखी जादू पैदा करती थी, वहां रहती थी राधा। राधा, उम्र करीब 25 साल की, गोरी-चिट्टी, लंबे काले बालों वाली, और ऐसी आंखें जो किसी को भी अपनी गहराई में डुबो दें। उसके बदन की बनावट ऐसी थी कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं। ऊंची छाती, पतली कमर और भरी हुई जांघें – वो चलती तो लगता जैसे हवा में लहरें उठ रही हों। लेकिन राधा का दिल अभी तक किसी के लिए नहीं धड़का था। वो अपने पिता की इकलौती बेटी थी, और घर संभालने में लगी रहती। गांव का नाम था सरायपुर, जहां जिंदगी धीमी रफ्तार से चलती थी, लेकिन इच्छाएं तेज थीं।
एक दिन, गांव में एक नया मेहमान आया – विक्रम। विक्रम शहर से आया था, अपनी दादी की संपत्ति संभालने। उम्र 28 साल, लंबा-चौड़ा कद, मजबूत बाजू और वो मुस्कान जो किसी का भी दिल चुरा ले। वो इंजीनियर था, लेकिन गांव की हवा में कुछ दिनों के लिए रुकना चाहता था। उसकी दादी का पुराना घर गांव के बाहर था, जहां से राधा का घर दिखता था। पहली ही मुलाकात में विक्रम की नजर राधा पर पड़ी। वो नदी किनारे कपड़े धो रही थी। उसकी साड़ी भीगी हुई थी, जो उसके बदन से चिपक गई थी, और उसके उभार साफ नजर आ रहे थे। विक्रम की सांस रुक गई। "कौन है ये हसीना?" उसने मन ही मन सोचा।
राधा ने भी विक्रम को देखा। वो मजबूत कंधों वाला आदमी, जो शहर की तरह कपड़े पहने था – जींस और शर्ट। उसकी आंखों में एक चमक थी, जो राधा को अजीब सी गुदगुदी दे गई। शाम को जब राधा घर लौटी, तो उसके मन में विक्रम का चेहरा घूम रहा था। रात को सोते वक्त, वो अपने बदन को छूकर सोचने लगी – क्या कभी कोई मर्द उसे ऐसे छुएगा जैसे वो खुद को छू रही है? उसकी उंगलियां उसके स्तनों पर फिसलीं, और वो कराह उठी। लेकिन वो जानती थी, गांव में ऐसी बातें छिपाकर रखनी पड़ती हैं।
अगले दिन, विक्रम ने बहाना बनाकर राधा के घर का रास्ता लिया। वो दादी के घर से कुछ सामान लेने आया था, लेकिन असल में राधा से मिलना चाहता था। राधा बाहर झाड़ू लगा रही थी। "बहनजी, क्या यहां पानी मिल सकता है?" विक्रम ने पूछा। राधा ने मुस्कुराकर हां कहा और अंदर से पानी लाई। पानी देते वक्त उनकी उंगलियां छू गईं, और दोनों के बदन में电流 दौड़ गया। विक्रम ने कहा, "मैं नया हूं यहां, नाम विक्रम है। आप?" "राधा," उसने शरमाते हुए कहा। बातों-बातों में विक्रम ने बताया कि वो शहर से है, और राधा ने गांव की कहानियां सुनाईं। लेकिन दोनों की नजरें एक-दूसरे के बदन पर थीं। विक्रम की आंखें राधा की छाती पर ठहर गईं, जहां ब्लाउज से उसके उभार झांक रहे थे। राधा ने नजरें झुका लीं, लेकिन उसके मन में एक आग सुलग रही थी।
शाम को, विक्रम नदी किनारे गया। वहां राधा फिर से थी, इस बार अकेली। वो नहा रही थी, लेकिन कपड़े पहने हुए। पानी में उसका बदन चमक रहा था। विक्रम छिपकर देख रहा था। राधा ने साड़ी ऊपर की, और उसकी जांघें दिखीं – गोरी, चिकनी। विक्रम का मन हुआ कि वो दौड़कर उसे छू ले। लेकिन वो रुका। राधा ने महसूस किया कि कोई देख रहा है, लेकिन वो डरी नहीं। उल्टा, वो जानबूझकर अपनी साड़ी थोड़ी और ऊपर की, जैसे विक्रम को ललचा रही हो। विक्रम बाहर आया। "राधा, तुम यहां?" उसने कहा। राधा मुस्कुराई, "हां, नहा रही हूं। तुम?" "सैर करने आया था," विक्रम ने झूठ बोला।
दोनों पानी के किनारे बैठ गए। बातें शुरू हुईं। विक्रम ने राधा का हाथ पकड़ा। "तुम बहुत खूबसूरत हो," उसने कहा। राधा शरमा गई, लेकिन हाथ नहीं छुड़ाया। विक्रम की उंगलियां उसके हाथ पर फिसलीं, और धीरे-धीरे ऊपर की ओर। राधा की सांस तेज हो गई। "विक्रम जी, ये ठीक नहीं," उसने कहा, लेकिन उसकी आंखें कुछ और कह रही थीं। विक्रम ने उसे अपनी ओर खींचा, और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। राधा की आंखें बंद हो गईं। वो चुंबन इतना गहरा था कि दोनों के बदन में आग लग गई। विक्रम की जीभ राधा की जीभ से मिली, और वो एक-दूसरे को चूमते रहे। विक्रम का हाथ राधा की कमर पर गया, फिर ऊपर की ओर। उसने उसके ब्लाउज के बटन खोले, और उसके स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। विक्रम ने उन्हें छुआ, दबाया। राधा कराह उठी, "आह... विक्रम..."
वे दोनों झाड़ियों के पीछे चले गए। विक्रम ने राधा की साड़ी उतारी। उसका नंगा बदन चांदनी में चमक रहा था। राधा ने विक्रम की शर्ट उतारी, उसके सीने को चूमा। विक्रम का पुरुषत्व सख्त हो चुका था। राधा ने उसे छुआ, और विक्रम सिसकार उठा। "राधा, मैं तुम्हें चाहता हूं," उसने कहा। राधा ने हां में सिर हिलाया। विक्रम ने उसे जमीन पर लिटाया, उसके पैर फैलाए। उसकी योनि गीली हो चुकी थी। विक्रम ने अपना लिंग उसमें प्रवेश कराया। राधा चीख उठी, लेकिन दर्द खुशी में बदल गया। विक्रम धक्के मारने लगा, तेज-तेज। राधा की कराहें हवा में गूंज रही थीं – "आह... विक्रम... और तेज..." दोनों के बदन पसीने से भीगे थे। विक्रम ने उसके स्तनों को चूसा, काटा। राधा ने उसके कंधों पर नाखून गड़ा दिए।
कुछ देर बाद, दोनों चरम पर पहुंचे। विक्रम ने अपना बीज राधा के अंदर छोड़ा, और दोनों थककर लेट गए। राधा विक्रम के सीने पर सिर रखकर लेटी। "ये हमारा राज रहेगा," उसने कहा। विक्रम ने हां कहा। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी। अगले दिनों में, वे रोज मिलते। कभी खेत में, कभी जंगल में। एक दिन, खेत में काम करते वक्त, विक्रम राधा के पास आया। वो अकेली थी। उसने उसे पीछे से पकड़ा, उसके स्तनों को दबाया। राधा मुड़ी, "कोई देख लेगा।" लेकिन विक्रम नहीं माना। उसने उसकी साड़ी ऊपर की, और पीछे से प्रवेश किया। राधा झुक गई, और विक्रम ने तेज धक्के मारे। हवा में उनकी सांसों की आवाज गूंज रही थी। राधा का पानी निकला, और विक्रम भी झड़ गया।
फिर एक रात, विक्रम के घर में। दादी सो गई थीं। राधा चुपके से आई। विक्रम ने उसे बिस्तर पर लिटाया। इस बार, वो धीरे-धीरे करना चाहता था। उसने राधा के पूरे बदन को चूमा – गले से शुरू करके, स्तनों पर, पेट पर, जांघों पर। राधा की योनि पर उसकी जीभ पहुंची। राधा तड़प उठी, "आह... क्या कर रहे हो?" विक्रम ने चाटना जारी रखा, और राधा का पानी निकल गया। फिर राधा ने विक्रम का लिंग मुंह में लिया। वो चूस रही थी, जैसे कभी न रुकेगी। विक्रम के मुंह से सिसकारियां निकल रही थीं। आखिर में, वो राधा के ऊपर चढ़ा, और घंटों तक वे एक-दूसरे में खोए रहे। राधा की कराहें कमरे में गूंजती रहीं – "विक्रम... मैं तुम्हारी हूं... और जोर से..."
लेकिन गांव छोटा था। अफवाहें फैलने लगीं। राधा के पिता को शक हुआ। एक दिन, वो राधा को डांटते हुए बोले, "तू क्या कर रही है? तेरी शादी तय हो गई है।" राधा रो पड़ी। विक्रम से मिलकर उसने कहा, "हमें भागना होगा।" विक्रम तैयार था। लेकिन भागने से पहले, वे आखिरी बार मिले। जंगल में, बारिश हो रही थी। दोनों भीगे हुए थे। विक्रम ने राधा को पेड़ से सटा दिया, उसकी साड़ी उतारी। बारिश के पानी में उनका बदन चिपक रहा था। विक्रम ने उसे उठाया, उसके पैर कमर पर लपेटे, और खड़े-खड़े प्रवेश किया। राधा चीख रही थी, "आह... विक्रम... मत रुको..." बारिश की बूंदें उनके बदन पर गिर रही थीं, और उनकी इच्छाएं चरम पर थीं। वे दोनों एक साथ झड़े, और बारिश में लेट गए।
अगली सुबह, वे भाग गए। शहर की ओर। लेकिन रास्ते में, एक होटल में रुके। वहां, विक्रम ने राधा को नई जिंदगी का वादा किया। रात को, होटल के कमरे में, वे फिर एक हुए। इस बार, राधा ऊपर थी। वो विक्रम के ऊपर बैठी, ऊपर-नीचे हो रही थी। उसके स्तन उछल रहे थे। विक्रम ने उन्हें पकड़ा, दबाया। राधा की गति तेज हो गई, "आह... विक्रम... मैं आ रही हूं..." दोनों का चरम एक साथ आया।
शहर पहुंचकर, वे खुश थे। लेकिन राधा को गांव की याद आती। विक्रम उसे हर रात प्यार करता, उसके बदन को पूजता। एक दिन, विक्रम के फ्लैट में, वो बाथरूम में नहा रही थी। विक्रम अंदर आया, उसे दीवार से सटा दिया। पानी गिर रहा था, और विक्रम ने पीछे से प्रवेश किया। राधा की कराहें बाथरूम में गूंज रही थीं – "विक्रम... और गहरा..." वे घंटों तक ऐसे ही रहे।
समय बीतता गया। राधा और विक्रम की जिंदगी अब एक थी। लेकिन उनकी इच्छाएं कभी कम नहीं हुईं। हर रात, नई तरीके से वे एक-दूसरे को संतुष्ट करते। राधा अब खुल गई थी, वो विक्रम से कहती, "आज मुझे बांधकर करो।" विक्रम ने उसे बिस्तर से बांधा, उसके बदन को चाटा, काटा। राधा तड़प रही थी, "आह... छोड़ो मुझे... नहीं, मत छोड़ो..." विक्रम ने प्रवेश किया, और राधा चीख उठी। उनकी रातें ऐसी ही गुजरतीं।
एक साल बाद, राधा गर्भवती हुई। लेकिन उनकी कामवासना नहीं रुकी। विक्रम धीरे-धीरे करता, राधा के बढ़े हुए स्तनों को चूसता। राधा कहती, "विक्रम, तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूं।" वे खुश थे। गांव की हसीना अब शहर की रानी थी, लेकिन उसकी आग अभी भी जल रही थी।
गांव की उस संकरी गली में, जहां हवा में मिट्टी की खुशबू और फूलों की महक मिलकर एक अनोखी जादू पैदा करती थी, वहां रहती थी राधा। राधा, उम्र करीब 25 साल की, गोरी-चिट्टी, लंबे काले बालों वाली, और ऐसी आंखें जो किसी को भी अपनी गहराई में डुबो दें। उसके बदन की बनावट ऐसी थी कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं। ऊंची छाती, पतली कमर और भरी हुई जांघें – वो चलती तो लगता जैसे हवा में लहरें उठ रही हों। लेकिन राधा का दिल अभी तक किसी के लिए नहीं धड़का था। वो अपने पिता की इकलौती बेटी थी, और घर संभालने में लगी रहती। गांव का नाम था सरायपुर, जहां जिंदगी धीमी रफ्तार से चलती थी, लेकिन इच्छाएं तेज थीं।
एक दिन, गांव में एक नया मेहमान आया – विक्रम। विक्रम शहर से आया था, अपनी दादी की संपत्ति संभालने। उम्र 28 साल, लंबा-चौड़ा कद, मजबूत बाजू और वो मुस्कान जो किसी का भी दिल चुरा ले। वो इंजीनियर था, लेकिन गांव की हवा में कुछ दिनों के लिए रुकना चाहता था। उसकी दादी का पुराना घर गांव के बाहर था, जहां से राधा का घर दिखता था। पहली ही मुलाकात में विक्रम की नजर राधा पर पड़ी। वो नदी किनारे कपड़े धो रही थी। उसकी साड़ी भीगी हुई थी, जो उसके बदन से चिपक गई थी, और उसके उभार साफ नजर आ रहे थे। विक्रम की सांस रुक गई। "कौन है ये हसीना?" उसने मन ही मन सोचा।
राधा ने भी विक्रम को देखा। वो मजबूत कंधों वाला आदमी, जो शहर की तरह कपड़े पहने था – जींस और शर्ट। उसकी आंखों में एक चमक थी, जो राधा को अजीब सी गुदगुदी दे गई। शाम को जब राधा घर लौटी, तो उसके मन में विक्रम का चेहरा घूम रहा था। रात को सोते वक्त, वो अपने बदन को छूकर सोचने लगी – क्या कभी कोई मर्द उसे ऐसे छुएगा जैसे वो खुद को छू रही है? उसकी उंगलियां उसके स्तनों पर फिसलीं, और वो कराह उठी। लेकिन वो जानती थी, गांव में ऐसी बातें छिपाकर रखनी पड़ती हैं।
अगले दिन, विक्रम ने बहाना बनाकर राधा के घर का रास्ता लिया। वो दादी के घर से कुछ सामान लेने आया था, लेकिन असल में राधा से मिलना चाहता था। राधा बाहर झाड़ू लगा रही थी। "बहनजी, क्या यहां पानी मिल सकता है?" विक्रम ने पूछा। राधा ने मुस्कुराकर हां कहा और अंदर से पानी लाई। पानी देते वक्त उनकी उंगलियां छू गईं, और दोनों के बदन में电流 दौड़ गया। विक्रम ने कहा, "मैं नया हूं यहां, नाम विक्रम है। आप?" "राधा," उसने शरमाते हुए कहा। बातों-बातों में विक्रम ने बताया कि वो शहर से है, और राधा ने गांव की कहानियां सुनाईं। लेकिन दोनों की नजरें एक-दूसरे के बदन पर थीं। विक्रम की आंखें राधा की छाती पर ठहर गईं, जहां ब्लाउज से उसके उभार झांक रहे थे। राधा ने नजरें झुका लीं, लेकिन उसके मन में एक आग सुलग रही थी।
शाम को, विक्रम नदी किनारे गया। वहां राधा फिर से थी, इस बार अकेली। वो नहा रही थी, लेकिन कपड़े पहने हुए। पानी में उसका बदन चमक रहा था। विक्रम छिपकर देख रहा था। राधा ने साड़ी ऊपर की, और उसकी जांघें दिखीं – गोरी, चिकनी। विक्रम का मन हुआ कि वो दौड़कर उसे छू ले। लेकिन वो रुका। राधा ने महसूस किया कि कोई देख रहा है, लेकिन वो डरी नहीं। उल्टा, वो जानबूझकर अपनी साड़ी थोड़ी और ऊपर की, जैसे विक्रम को ललचा रही हो। विक्रम बाहर आया। "राधा, तुम यहां?" उसने कहा। राधा मुस्कुराई, "हां, नहा रही हूं। तुम?" "सैर करने आया था," विक्रम ने झूठ बोला।
दोनों पानी के किनारे बैठ गए। बातें शुरू हुईं। विक्रम ने राधा का हाथ पकड़ा। "तुम बहुत खूबसूरत हो," उसने कहा। राधा शरमा गई, लेकिन हाथ नहीं छुड़ाया। विक्रम की उंगलियां उसके हाथ पर फिसलीं, और धीरे-धीरे ऊपर की ओर। राधा की सांस तेज हो गई। "विक्रम जी, ये ठीक नहीं," उसने कहा, लेकिन उसकी आंखें कुछ और कह रही थीं। विक्रम ने उसे अपनी ओर खींचा, और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। राधा की आंखें बंद हो गईं। वो चुंबन इतना गहरा था कि दोनों के बदन में आग लग गई। विक्रम की जीभ राधा की जीभ से मिली, और वो एक-दूसरे को चूमते रहे। विक्रम का हाथ राधा की कमर पर गया, फिर ऊपर की ओर। उसने उसके ब्लाउज के बटन खोले, और उसके स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। विक्रम ने उन्हें छुआ, दबाया। राधा कराह उठी, "आह... विक्रम..."
वे दोनों झाड़ियों के पीछे चले गए। विक्रम ने राधा की साड़ी उतारी। उसका नंगा बदन चांदनी में चमक रहा था। राधा ने विक्रम की शर्ट उतारी, उसके सीने को चूमा। विक्रम का पुरुषत्व सख्त हो चुका था। राधा ने उसे छुआ, और विक्रम सिसकार उठा। "राधा, मैं तुम्हें चाहता हूं," उसने कहा। राधा ने हां में सिर हिलाया। विक्रम ने उसे जमीन पर लिटाया, उसके पैर फैलाए। उसकी योनि गीली हो चुकी थी। विक्रम ने अपना लिंग उसमें प्रवेश कराया। राधा चीख उठी, लेकिन दर्द खुशी में बदल गया। विक्रम धक्के मारने लगा, तेज-तेज। राधा की कराहें हवा में गूंज रही थीं – "आह... विक्रम... और तेज..." दोनों के बदन पसीने से भीगे थे। विक्रम ने उसके स्तनों को चूसा, काटा। राधा ने उसके कंधों पर नाखून गड़ा दिए।
कुछ देर बाद, दोनों चरम पर पहुंचे। विक्रम ने अपना बीज राधा के अंदर छोड़ा, और दोनों थककर लेट गए। राधा विक्रम के सीने पर सिर रखकर लेटी। "ये हमारा राज रहेगा," उसने कहा। विक्रम ने हां कहा। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी। अगले दिनों में, वे रोज मिलते। कभी खेत में, कभी जंगल में। एक दिन, खेत में काम करते वक्त, विक्रम राधा के पास आया। वो अकेली थी। उसने उसे पीछे से पकड़ा, उसके स्तनों को दबाया। राधा मुड़ी, "कोई देख लेगा।" लेकिन विक्रम नहीं माना। उसने उसकी साड़ी ऊपर की, और पीछे से प्रवेश किया। राधा झुक गई, और विक्रम ने तेज धक्के मारे। हवा में उनकी सांसों की आवाज गूंज रही थी। राधा का पानी निकला, और विक्रम भी झड़ गया।
फिर एक रात, विक्रम के घर में। दादी सो गई थीं। राधा चुपके से आई। विक्रम ने उसे बिस्तर पर लिटाया। इस बार, वो धीरे-धीरे करना चाहता था। उसने राधा के पूरे बदन को चूमा – गले से शुरू करके, स्तनों पर, पेट पर, जांघों पर। राधा की योनि पर उसकी जीभ पहुंची। राधा तड़प उठी, "आह... क्या कर रहे हो?" विक्रम ने चाटना जारी रखा, और राधा का पानी निकल गया। फिर राधा ने विक्रम का लिंग मुंह में लिया। वो चूस रही थी, जैसे कभी न रुकेगी। विक्रम के मुंह से सिसकारियां निकल रही थीं। आखिर में, वो राधा के ऊपर चढ़ा, और घंटों तक वे एक-दूसरे में खोए रहे। राधा की कराहें कमरे में गूंजती रहीं – "विक्रम... मैं तुम्हारी हूं... और जोर से..."
लेकिन गांव छोटा था। अफवाहें फैलने लगीं। राधा के पिता को शक हुआ। एक दिन, वो राधा को डांटते हुए बोले, "तू क्या कर रही है? तेरी शादी तय हो गई है।" राधा रो पड़ी। विक्रम से मिलकर उसने कहा, "हमें भागना होगा।" विक्रम तैयार था। लेकिन भागने से पहले, वे आखिरी बार मिले। जंगल में, बारिश हो रही थी। दोनों भीगे हुए थे। विक्रम ने राधा को पेड़ से सटा दिया, उसकी साड़ी उतारी। बारिश के पानी में उनका बदन चिपक रहा था। विक्रम ने उसे उठाया, उसके पैर कमर पर लपेटे, और खड़े-खड़े प्रवेश किया। राधा चीख रही थी, "आह... विक्रम... मत रुको..." बारिश की बूंदें उनके बदन पर गिर रही थीं, और उनकी इच्छाएं चरम पर थीं। वे दोनों एक साथ झड़े, और बारिश में लेट गए।
अगली सुबह, वे भाग गए। शहर की ओर। लेकिन रास्ते में, एक होटल में रुके। वहां, विक्रम ने राधा को नई जिंदगी का वादा किया। रात को, होटल के कमरे में, वे फिर एक हुए। इस बार, राधा ऊपर थी। वो विक्रम के ऊपर बैठी, ऊपर-नीचे हो रही थी। उसके स्तन उछल रहे थे। विक्रम ने उन्हें पकड़ा, दबाया। राधा की गति तेज हो गई, "आह... विक्रम... मैं आ रही हूं..." दोनों का चरम एक साथ आया।
शहर पहुंचकर, वे खुश थे। लेकिन राधा को गांव की याद आती। विक्रम उसे हर रात प्यार करता, उसके बदन को पूजता। एक दिन, विक्रम के फ्लैट में, वो बाथरूम में नहा रही थी। विक्रम अंदर आया, उसे दीवार से सटा दिया। पानी गिर रहा था, और विक्रम ने पीछे से प्रवेश किया। राधा की कराहें बाथरूम में गूंज रही थीं – "विक्रम... और गहरा..." वे घंटों तक ऐसे ही रहे।
समय बीतता गया। राधा और विक्रम की जिंदगी अब एक थी। लेकिन उनकी इच्छाएं कभी कम नहीं हुईं। हर रात, नई तरीके से वे एक-दूसरे को संतुष्ट करते। राधा अब खुल गई थी, वो विक्रम से कहती, "आज मुझे बांधकर करो।" विक्रम ने उसे बिस्तर से बांधा, उसके बदन को चाटा, काटा। राधा तड़प रही थी, "आह... छोड़ो मुझे... नहीं, मत छोड़ो..." विक्रम ने प्रवेश किया, और राधा चीख उठी। उनकी रातें ऐसी ही गुजरतीं।
एक साल बाद, राधा गर्भवती हुई। लेकिन उनकी कामवासना नहीं रुकी। विक्रम धीरे-धीरे करता, राधा के बढ़े हुए स्तनों को चूसता। राधा कहती, "विक्रम, तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूं।" वे खुश थे। गांव की हसीना अब शहर की रानी थी, लेकिन उसकी आग अभी भी जल रही थी।