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30-03-2019, 11:46 AM
by: सुकान्त शर्मा
मित्रो, मेरी पिछली हिन्दी सेक्स स्टोरी
अनोखी चूत चुदाई की वो रात
में मैंने अपनी बहूरानी के साथ हुई आकस्मिक चुदाई का विस्तृत वर्णन किया था कि कैसे मैं छत पर बनी एकांत कोठरी में नंगा होकर लेटा हुआ मुठ मार रहा था, तभी मेरी बहूरानी वहाँ आई और अंधेरे में उसने मुझे अपना पति समझ कर मुझसे चुदवाने को रति केलि करना शुरू कर दी।
मैंने बहुत प्रयास किया कि हम ससुर बहू के बीच यौन सम्बन्ध न बन पायें लेकिन मेरी बहूरानी अदिति की यौन चेष्टाओं से मेरे संस्कार पराजित हुए और मैंने उसे रिफ्लेक्स एक्शन वासना के वशीभूत हो कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और हम ससुर बहू संभोगरत हो गए।
फिर आनन्ददायक सम्भोग के उपरान्त बहूरानी के सो जाने के बाद मैं चुपके से बाहर निकल कर नीचे कहीं सो गया।
पिछली कहानी मैंने इसी मुकाम पर ला कर जानबूझ कर अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज के पाठक पाठिकाओं के बुद्धि विवेक पर छोड़ दी थी कि वे जैसे चाहें इस सत्य कथा को लें क्योंकि इसके बाद जो कुछ घटित हुआ वो मेरे संस्कारों के सर्वथा विपरीत था और समझ भी आ गया था कि पर-स्त्री की चूत कितनी शक्तिमान होती है जिसने देवों को भी भ्रमित कर लुभाया है; अनेक ऋषियों ने अपनी जीवन भर की तपस्या को क्षण मात्र में इस चूत के लिए न्यौछावर कर दी, इसका कारण बनी मेनका, उर्वशी, रम्भा…
और हाँ, कई पाठकों ने अपनी पसन्द नापसन्द की प्रतिक्रियाएँ भी लिखीं. यह भी कमेन्ट आया कि अब इस कहानी के आगे कोई तर्कसंगत ‘प्लॉट’ बनाना संभव ही नहीं है।
इन सभी पाठकों के विचारों को मेरा नमन जिन्होंने मुझे इस कथा को आगे लिखने को प्रेरित किया।
अब आगे:
मैं चोरों की तरह दबे पांव नीचे उतरा और गद्दों के ढेर में से गद्दा तकिया निकाल मेहमानों के बीच बिछा कर लेट गया। मन में तरह तरह की आशंकाएँ और तनाव था। बहूरानी को चोदने के बाद मुझे कोई पछतावा तो नहीं था क्योंकि मैंने वैसा कभी नहीं चाहा था जो कुछ हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ था, हाँ मुझे अफ़सोस जरूर हो रहा था उस बात पर!
सोने के प्रयास में उनींदा सा जाग रहा था, कभी नींद का झोंका सा आता लेकिन नींद उड़ जाती।
रात की चुदाई ने मुझे भरपूर मज़ा दिया था, बहूरानी के जवान जिस्म का वो आलिंगन, उसके भरे भरे मुलायम से मम्मे और उसकी वो कचोरी सी फूली हुई नर्म गर्म टाइट चूत और उसका वो कमर उठा उठा के मेरा लंड लीलना सब कुछ मुझमें मादक उत्तेजना फिर से भरने लगा।
लेकिन मैंने उन विचारों से जैसे तैसे ध्यान हटाया और अपने बेटे अभिनव के बारे में सोचने लगा।
मेरा पुत्र अभिनव कहाँ था? बहूरानी के साथ चूत चुदाई का प्रोग्राम फिक्स करने के बाद वो क्यों नहीं गया ऊपर कोठरी में?
इतना मुझे विश्वास था कि अभिनव ऊपर कोठरी में नहीं गया था क्योंकि अंधेरी कोठरी में मैंने बिखरे सामन को खिसका के लेटने लायक जगह बनाई थी और वहाँ कोई ऐसा चिह्न नहीं था कि कोई वहाँ गया था!
फिर कहाँ था अभिनव?
दूसरा टेंशन मेरे दिमाग में यह था कि बहूरानी को क्या सचमुच पता नहीं चल पाया था कि वो किस से चुद गई थी?
और अगर अदिति ने अभिनव से रात की चुदाई के आनन्द के बारे में बात छेड़ी तो भेद खुल ही गया होगा!
अगर अभिनव ही पहले अदिति को यह बता दे कि वो किसी कारणवश नहीं मिल पाया था तो अदिति भी कुछ नहीं बताने वाली अभिनव को!
लेकिन फिर अदिति के मन में यह चिंता सताएगी कि उसके पति ने नहीं तो फिर उसे अंधेरे में किसने चोद डाला? और उससे ज्यादा चिन्ता उसे इस बात की हो जायेगी कि चोदने वाला तो उसे पहचानता है कि वो किसे चोद रहा है लेकिन वह चोदने वाले को नहीं पहचान सकी!
अब मेहमानों से भरे घर में कई सारे आदमी हैं कौन होगा वो… और अब वो उसे दिन में देख के कैसे मन ही मन खुश हो रहा होगा… वो कैसे सबके सामने आंख उठा कर चल पाएगी??
इत्यादि इत्यादि…
इन्ही चिंताओं के कारण सो जाना संभव ही नहीं हो पाया, मैं सुबह जल्दी ही पांच बजे उठ गया और नित्य की तरह फ्रेश होकर मोर्निंग
वाक को निकल गया।
लौटकर रोज की तरह स्नान ध्यान करते करते सात बज गये, फिर मैंने अभिनव की तलाश करने का निश्चय किया कि वो कहाँ था।
तभी मुझे रानी आती दिखाई दी, उसे देखते ही मेरे मन में किसी चोर के जैसा डर लगा, आखिर मुझे ज़िन्दगी में पहली बार अपनी बीवी से बेवफाई करनी पड़ी थी।
‘अरे बेगम साहिबा, कुछ चाय वाय पिलवा दे यार, कब से इंतजार में बैठा हूँ।’ प्रत्यक्षतः मैंने मुस्कुराते हुए रानी से चाय की फरमाइश की।
‘चाय अदिति बना रही है, अभी लाती ही होगी।’ रानी बोली।
‘अच्छा, और अपने साहबजादे कहाँ हैं? सोकर उठा या नहीं वो?’ मैंने अभिनव के बारे में पूछा।
‘अभी नहीं उठा, रात को देर तक सबका पीना पिलाना होता रहा, फिर सब लोग खाना खा के मिश्रा जी के यहाँ सोने चले गये थे, वहीं सो रहा होगा अभी!’ रानी बोली।
‘हम्म्म्म…’ तो ये बात थी। शादी में अभिनव की उमर के कई रिश्तेदार भी आये थे और ये सब ड्रिंक बियर वगैरह का शौक तो शादी ब्याह में चलता ही रहता है और जिन मिश्रा जी का जिक्र यहाँ हुआ वो मेरे पड़ोसी हैं, उनके यहाँ के दो कमरे हमने खाली करवा लिए थे मेहमानों के लिए!
तो अब तस्वीर कुछ साफ़ हो गई थी कि अभिनव ने बहू अदिति से चुदाई का प्रोग्राम तो बनाया लेकिन वो रिश्तेदारों के साथ ड्रिंक पार्टी करने लगा और फिर बगल के मकान में जाकर सो गया।
अब ऐसे में उसका अदिति से मिलने जाने का सवाल ही नहीं उठता।
तो क्या अदिति को भी पता चल चुका होगा अब तक कि उसका पति अभी तक मिश्रा जी के यहाँ सो रहा है? यह स्वाभाविक सा प्रश्न मेरे भीतर से उठा।
लेकिन मैं निश्चिन्त नहीं हो पाया… पर मन कुछ हल्का हो गया था और स्वस्थ तरीके से सोचने लगा था।
तभी मन में विचार कौंधा कि अगर अदिति को यह बात पता लग चुकी है कि अभिनव रात में कहीं और सोया था तो उसके चेहरे पर भय और घबराहट झलकनी चाहिए क्योंकि वो अभी अपने चोदने वाले से अनजान है।
यह गुणा भाग दिमाग में आते ही मेरा मन हल्का हो गया; तभी अदिति चाय लाती हुई दिखी।
नहाई धोई बहूरानी बहुत उजली उजली सी, खिली खिली सी लग रही थी, ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी रूपराशि को, उसके मदमस्त यौवन को, उसके उत्तेजक कामुक सौन्दर्य को नज़र भर कर निहारा।
साढ़े पांच फुट की ऊँचाई लिए तना हुआ गोरा गुलाबी जिस्म, गोल मासूम सा मनमोहक चेहरा, भरा भरा निचला होंठ जिससे शहद जैसा रस टपकने को ही था; यही होंठ तो कल मेरे लंड को प्यार से चूम रहे थे, चूस रहे थे।
चटख हरे रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका गोरा गुलाबी तन अलग ही छटा बिखेर रहा था, तिस पर उसके हाथों में रची सुर्ख लाल मेहंदी, कलाई गले कानों में झिलमिलाते सोने के गहनें; उसके ब्लाउज पर उभरे हुए उसके स्तनों के मदमस्त उभार, गले में पड़ा मंगलसूत्र गले के नीचे बनी स्तनों की घाटी में जा छुपा था।
हाथों में चाय की ट्रे थामे वो गजगामिनी अपने कजरारे नयन झुकाये धीरे धीरे मेरी ओर चली आ रही थी, मेरी नज़र रह रह कर उसके वक्ष के उभार निहारती और फिर उसकी जांघों के मध्य जा कर ठहर जाती; वहीं तो उसकी वो टाइट कसी हुई चूत छिपी थी जहाँ अब से कोई पांच छः घंटे पहले मेरा लंड अन्दर बाहर हो रहा था और वो उछल उछल कर उसे फाड़ डालने की जिद कर रही थी।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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30-03-2019, 11:47 AM
वो चुदाई याद आते ही मेरे लंड ने कड़क होकर ठुमका सा लगाया उम्म्ह… अहह… हय… याह… जैसे फिर से वही चूत दिलवाने की जिद कर रहा हो।
क्या वो ही आनन्द फिर से मिल सकता है मुझे? औरत जब एक बार किसी परपुरुष से चुद जाए और चरमसुख भोग ले तो दुबारा उसी पुरुष से चुदवाने की चाह उसके मन में हमेशा बनी रहती है, इशारा करने भर की देर है और वो तुरन्त राजी हो जायेगी ऐसा मेरा विश्वास था।
और लंड के मुंह से जब एक बार पराई चूत का रस लग जाए तो वो उसी चूत में बार बार डुबकी लगाना चाहता है।
जीवन भर की तपस्या जब एक बार भंग हो ही गई तो अब क्या आदर्शवादी बने रहना? क्यों न नई चूत का मज़ा बार बार लिया जाए! आखिर घर में ही तो है!
ऐसे न जाने कितने कुत्सित कामुक विचार बहूरानी का रूप देखते ही मेरे मन में घिर आये।
छीः… कैसे गन्दे ख्याल मेरे मन में आने लगे थे, मैंने उन्हें तुरन्त झटक दिया।
बहूरानी के माथे पर पड़ीं चिन्ता की लकीरें भी मैंने देखीं तो मुझे लगा कि वो किसी न किसी टेंशन में जरूर है, हो सकता है उसे रात की चुदाई की बातें याद आते आते कुछ शक हुआ हो, वैसे भी मेरे लंड का आकार प्रकार उसे चकित तो कर ही रहा था। शायद उत्तेजना वश वो मुझे अपना पति ही समझती रही होगी और बाद में स्वस्थ चिन्तन करने पर उसका शक मजबूत हुआ हो?
जो भी कारण रहा हो, पर मुझे वो थोड़ी सी एब्नार्मल / असामान्य लग रही थी।
‘नमस्ते पापा जी, लीजिये आपकी चाय!’ बहू रानी हमेशा की तरह आत्मीयता से मेरे चरण स्पर्श कर बोली।
‘सदा खुश रहो अदिति बेटा!’ मैंने भी सदा की तरह उसके सर को छू कर उसे आशीर्वाद दिया और चाय सिप करने लगा।
जल्दी ही मुझे यह ख्याल आया कि अभी कुछ देर बाद ही अदिति को यह बात पता चलनी ही है कि अभिनव रात भर कहाँ था, फिर उसके मन मस्तिष्क पर क्या क्या गुजरेगी… उसे तो सारे के सारे पुरुष रिश्तेदार अपने चोदू ही नज़र आयेंगे कि ना जाने पिछली रात को किसका लंड उसकी चूत में आ जा रहा था।
कितना तनाव होगा बेचारी को! वो तो किसी से भी नज़र नहीं मिला पाएगी।
ऐसे विचार आते आते मैं खुद टेंशन में आ गया क्योंकि उस बदहवास हालत में अपनी बहूरानी को देखना मुझे कतई गंवारा नहीं था; ऐसे तो बेचारी का न जाने क्या हाल हो जाएगा।
अब जल्द से जल्द मुझे ही कोई निर्णय लेना था तो चाय पीकर मैंने अदिति को आवाज लगाई।
‘आई पापा!’ वो बोली और मेरे सामने आ खड़ी हुई।
‘देखो बेटा, जरा अभिनव को फोन तो लगा और बुला उसे, कुछ काम है उससे; वो कल रातभर से बगल वाले मिश्रा जी के यहाँ और रिश्तेदारों के साथ सो रहा है।’
मैंने ‘रात भर’ शब्द थोड़ा जोर देकर बोला।
मेरी बात सुनते ही अदिति बहू रानी के चेहरे का रंग उड़ गया और अब वो चिंतित और घबराई सी लगने लगी।
‘अभी बुलाती हूँ।’ वो बोली और तेज तेज क़दमों से चलती हुई दूसरे कमरे में चली गई।
मेरा उद्देश्य पूरा हो गया था। देर सवेर तो उसे यह बात पता चलना ही थी कि उसका पति रात को कहीं और सो रहा था। फिर यह समझने में उसे क्या देर लगती कि वो कल रात किसी और से ही चुद गई है।
मैं दोपहर लंच तक उस पर निगाह रखता रहा, बहूरानी के चेहरे पर भय, चिन्ता और घबराहट स्पष्ट झलक रही थी, उसकी मनःस्थिति को मैं अच्छे से समझ रहा था, उसे सिर्फ यही चिन्ता सताये जा रही होगी कि इतने सारे रिश्तेदारों में वो कौन था जिससे वो कल रात चुदी थी।
अब उसे यही डर हमेशा सताता रहेगा कि ज़िन्दगी के किस मोड़ पर कोई उसे उस रात की चुदाई याद दिला देगा और कहेगा कि उस रात तेरे साथ वो सब करने वाला मैं ही था।
वो तो यह सुन कर जीते जी मर जायेगी।
बहूरानी की ऐसी दशा देखना मेरे लिए भी असह्य हो चला था, अगर उसके यह चिन्ता दूर न हुई तो यह तनाव उसका सुख चैन छीन के उसके जीवन में जहर सा भर देगा।
ये सब बातें विचार करके मैंने अदिति को सब कुछ बताने का निश्चय कर लिया।
गलती न मेरी थी न उसकी… जो हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ!
यही सब बातें मैंने उसे बताने समझाने का सोच लिया।
लंच के बाद सभी लोग आराम के मूड में आ गये और यहाँ वहाँ लुढ़क गये। फिर मैं भी अपने कमरे में चला गया, वहाँ और कोई भी नहीं था, मैंने मौका ठीक समझ अदिति को अपने पास बुलाया।
वो डरी हुई सी मुद्रा में मेरे सामने आ खड़ी हुई।
‘क्या बात है बेटा, तुम सुबह से ही परेशान और किसी गहरी चिन्ता में दिख रही हो. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’ मैंने बड़े प्यार से उससे पूछा।
‘जी, पापा जी, ऐसी कोई बात नहीं, मैं ठीक हूँ, बस थोड़ी थकावट सी है और कोई बात नहीं!’ उसने बात को टालने की तरह जवाब दिया।
‘देखो बेटा, घबराओ मत, तुम्हारी चिन्ता का कारण मुझे पता है, तुम किसी भी बात की चिन्ता फिकर मत करो।’
‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’
// सुनील पंडित //
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‘देखो, घबराओ मत, तुम्हारी चिन्ता का कारण मुझे पता है, तुम किसी भी बात की चिन्ता फिकर मत करो।’
‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’
‘देखो अदिति बेटा, मुझे सब पता है कि तुझे किस बात का टेंशन है, अब मैं इस बात को कैसे कहूँ… देखो, ध्यान से सुनना बेटा! गलती न तुम्हारी थी न मेरी… वो सब आकस्मिक ही हुआ, कल रात मैंने अपना बिस्तर ऊपर सामान वाली कोठरी में लगा लिया था और मैं
जैसे रोज सोता हूँ वैसे ही निर्वस्त्र सो रहा था। अब मुझे क्या पता था कि कोई आधी रात के बाद वहाँ आ जाएगा।’
मेरी बात सुनते ही अदिति ने सर झुका लिया।
‘और फिर मैंने कितना प्रयास किया था उन सब बातों से बचने का… लेकिन तू तो पूरी निर्वस्त्र होकर मुझसे लिपटी जा रही थी और तो और मेरा लिंग भी तूने अपने मुंह में भर के चूसा और न जाने क्या क्या…’ मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘पापा जी, सारी की सारी गलती मेरी ही थी, मेरा ही दिमाग ख़राब हो गया था, अभिनव ने ही मुझे वहाँ ऊपर वाले कमरे में बुलाया था लेकिन वो खुद यहाँ सबके साथ पार्टी करता रहा ऊपर गया ही नहीं! मैं उससे मिलने को बहुत उतावली और बेचैन थी इसलिए अभिनव के धोखे में आपसे लिपट गई और तरह तरह से रिझाने मनाने लगी, मैं समझी थी कि मेरे इंतज़ार में अभिनव लेटा है, मुझे माफ़ कर दीजिये!’
‘लेकिन अदिति बेटा, कम से कम तुम्हें अपने पति और दूसरे आदमी में फर्क तो पहचानना चाहिए था?’
‘पापाजी, शुरू शुरू में तो मुझे आपमें और अभिनव में मुझे कोई फर्क नहीं लगा, पर जब मैंने आपका वो अंग पकड़ा तो मुझे लगा कि यह तो अभिनव के अंग से बहुत मोटा और लम्बा है लेकिन मैंने अपनी उत्तेजना में इसे भी अपना वहम समझा और फिर जब आप मुझमें समा गये थे तब भी मुझे लगा कि यह कोई और आदमी है। फिर उस स्टेज पर मैं क्या कर सकती थी तो जो हो रहा था वो होने दिया।’
‘फिर जब सुबह मैं सोकर उठी तो अकेली थी, अगर रात अभिनव मेरे साथ होता तो वो तब तक सो रहा होता क्योंकि वो काफी देर तक सोता है। मैं समझ गई थी कि मैं छली जा चुकी हूँ और तभी से चिन्ता में थी पता नहीं वो कौन था जिसे अनजाने में ही मैंने अपना तन सौंप दिया था। आपने अच्छा किया जो मुझे हकीकत बता दी, नहीं तो मैं पता नहीं क्या करती!’
‘पापा जी, भगवान् जी गवाह हैं कि इसके पहले अभिनव के सिवा किसी और ने मुझे गलत नीयत से छुआ भी नहीं था। मैंने अपना कौमार्य भी सुहागरात को अभिनव को ही समर्पित किया था। पापा जी, मैं यकीन करो, मैं ऐसी वैसी बिल्कुल नहीं हूँ, आपने तो बहुत कोशिश की थी कि गलत काम न करो मेरे साथ लेकिन मेरी ही मति मारी गई थी; मैं आपको तरह तरह से उत्तेजित कर रही थी फिर आप भी कहाँ तक खुद पर काबू रख सकते थे।’
अदिति रुआंसी होकर बोली और मेरे कदमों में सर झुका कर रोने लगी।
और जल्दी ही उसका रोना थोड़ा तेज हो गया।
रोने की आवाज सुन के कोई भी आ सकता था, ‘अदिति बेटा, कोई बात नहीं, चल भूल जा उस बात को!’ मैंने उसे सांत्वना दी लेकिन उसकी रुलाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर मैंने अदिति को पकड़ के उठाया और अपने से लगा कर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना देने लगा। मेरे आत्मीय आलिंगन की अनुभूति कर अदिति का रोना और तेज हो गया जैसे कि बच्चों में होता ही है।
‘अब जल्दी से चुप हो जा, देख मेहमानों से भरा घर है, कोई भी तेरे रोने की आवाज सुन के कभी भी यहाँ आ सकता है।’ मैंने उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी।
मेरी बात सुन के अदिति ने खुद पर कंट्रोल किया और उसका सुबकना कम हो गया लेकिन वो मेरे आलिंगन में बंधी रही।
मैंने प्यार से उसके आंसू अपने रुमाल से पौंछ दिए और उसे फिर से कलेजे से लगा लिया और उसकी पीठ और सर पर आहिस्ता आहिस्ता दुलारते हुए उसे शान्त करने लगा, वो भी मेरी छाती में सिर छुपाये चुप बंधी रही मुझसे!
समय जैसे थम सा गया और दो जिस्म जैसे आपस में बातें करने लगे।
सांसारिक रिश्तों के बंधनों से अलग स्त्री-पुरुष, नर-मादा जिस्मों का मिलन अपनी ही रागिनी छेड़ देता है, प्रकृति के अपने स्वतंत्र नियम हैं, युवा भाई बहन, पिता पुत्री इत्यादि को इसीलिए एकान्त में एक साथ रहने, सोने को मना किया गया है। उत्तरी दक्षिणी ध्रुवों में परस्पर खिंचाव होता ही एक दूजे में समा जाने के लिए…
हमारे बीच भी वही हुआ, मेरे स्नेह प्यार का बंधन, आलिंगन बहुत जल्दी काम-पाश में बदलने लगा और अब मेरे बाहुपाश में जकड़ी हुई एक भरपूर जवान नारी देह थी जिसे मैंने कल रात पूर्ण नग्न रूप में भोगा था।
// सुनील पंडित //
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बहूरानी अदिति के जिस्म की उष्णता, उसके गुदाज भरे भरे स्तनों का वो मादक स्पर्श मुझमें वासना की आग भरने लगा जिसके प्रत्युत्तर में मेरे लंड ने फुंफकार कर बहूरानी के जिस्म में टोहका लगा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।
जिसके जवाब में मुझे लगा कि जैसे अदिति ने अपना बदन मेरे और नजदीक ला दिया हो!
आखिर अब तो वो जान ही गई थी पिछली रात वो मुझसे ही चुदी थी और उसका तन मन भी जरूर उसी सुख की लालसा फिर से करने लगा होगा।
हालांकि मेरे भीतर से आत्मा का एक क्षीण सा प्रतिवाद उठा, मेरे संस्कारों ने मुझे झिंझोड़ा, चेताया कि यह पाप मार्ग है, अब भी संभल जा लेकिन मन ने अपना ही तर्क दिया कि जब एक बार चोद लिया या चोदना पड़ा तो अब क्या आदर्शवादी बने रहना?
और मैं चाह कर भी अदिति को अपने बाहुपाश से मुक्त न कर सका और न अदिति ही मुझसे छूटने का कोई प्रयास कर रही थी जबकि मेरा खड़ा लंड उसके पेट पर दस्तक दे ही रहा था और यह भी संभव नहीं था कि वो लंड के स्पर्श से अनजान रही हो!
‘अदिति बेटा तू बहुत अच्छी है!’ मैंने कहा और उसका गाल चूम लिया।
‘अच्छा? वो कैसे पापा जी?’ वो मेरी आँखों में आँखें डाल के बोली और उसकी बाहें मेरे इर्द गिर्द और कस गईं।
‘बताऊंगा, पहले यह बता कि जो रिश्ता कल अनजाने में बन गया उसमें तुझे कुछ आनन्द आया था या नहीं?’
‘कैसे बताऊँ पापाजी, वैसा स्वर्गिक सुख मुझे कभी नहीं मिला! मेरा तन मुझे इतना आनन्द भी दे सकता है मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी इसकी!’ वो आँखें झुका कर धीमे से बोली।
‘तो फिर वही रिश्ता हमारे बीच फिर से बन सकता है न?’
‘मैं क्या बोलूं पापा जी? कल तो गलती से गलती हो गई मेरे से लेकिन बहुत रिस्क है इसमें! कभी बात खुल गई तो मैं मर ही जाऊँगी।’
‘सिर्फ एक बार और मिल ले बेटा, दो तीन दिन बाद तो अभिनव की छुट्टियाँ ख़त्म हो जायेंगी फिर तू उसके साथ चली ही जायेगी न!’
‘पापा जी अब मैं आपको मना भी कैसे कर सकती हूँ आपको उस काम के लिए, जैसे आप चाहो!’ वो सर झुका कर धीमे स्वर में बोली।
‘थैंक यू बेटा!’ मैंने कहा और फिर से बहूरानी को चूम लिया।
‘पापा जी, अब बताओ मैं कैसे अच्छी लगी थी आपको?’ अब वो थोड़ा इठला कर बोली।
‘मेरे कहने का मतलब था तेरा वो नया रूप जो कल मैंने देखा, कितनी सजीली रसीली, मस्त मदमस्त है तू!’ मैंने कहा और उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी ब्रा का हुक छेड़ने लगा।
‘हुंम्म, ऐसा क्या नया लगा मुझमें जो मम्मी जी में नहीं है?’ वो मेरे सीने में अपना मुंह छिपाकर बोली।
‘तेरा ये जवान जिस्म ये भरे भरे बूब्स और…’ मैंने कहा और एक हाथ उसके ब्लाउज में घुसा कर दूध को मुट्ठी में भर लिया।
‘और क्या पापा जी?’
‘और तेरी ये…’ मैंने वाक्य को अधूरा छोड़ कर साड़ी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाया।
‘ये क्या?’
‘तुम्हारी प्यारी रसीली कसी हुई टाइट चूत!’ मैं उसके कान में फुसफुसाया।
‘धत्त…. कैसे गन्दे शब्द बोलते हो आप? मुझे जाने दो अब!’ वो बोली और मुझसे छूटने का उपक्रम करने लगी।
लेकिन मैंने उसे जोर से चिपटा लिया और उसके होठों पर होंठ रख दिए।
उसने कुछ देर अपने होंठ मुझे चूसने दिए फिर छिटक कर अलग हो गई- कोई आ जाएगा पापा जी, मैं जाती हूँ, आप आज रात को भी वहीं छत पर कोठरी में ही सोना!’ वो कहती हुई भाग गई।
मेरा मन अब प्रफुल्लित हो गया था और सारी चिन्ताएं मिट गईं थी।
दोपहर के तीन बजने वाले थे, पिछली रात सो न पाने की वजह से एक नींद लेने का मन कर रहा था।
सो कर उठा तो टाइम पांच से ऊपर ही हो गया था, अब मन में अजीब सी उमंग और युवाओं जैसा उत्साह और जोश रगों में ठाठें मार रहा था।
वाशरूम में जाकर अपनी झांटें कैंची से कुतर दीं, झांटों के ठूंठ चूत के दाने से रगड़ कर संगिनी को एक अलग ही आनन्द देते हैं और मैं वही मज़ा अपनी बहूरानी की चूत को देना चाहता था।
और फिर अच्छे से नहा धोकर तैयार हो गया।
शाम घिरने लगी थी तो मैं मेहमानों के चाय पानी, डिनर का इंतजाम करने में व्यस्त हो गया। इसी बीच ऊपर जाकर कोठरी में एक बार झाँकने का मन हुआ। फिर ध्यान आया कि वहाँ का बल्ब तो कब का फ्यूज है; कुछ सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और एक तेज रोशनी वाला नया एल ई डी बल्ब ले जाकर वहाँ लगा दिया।
कोठरी तेज रोशनी में नहा गई।
देखा तो चकित रह गया, कोई आकर वहाँ की साफ़ सफाई कर गया था, तीन मोटे मोटे गद्दे का बिस्तर बिछा था जिस पर धुली हुई बेडशीट बिछी थी और तीन चार मोटे मोटे तकिये और एक सफ़ेद नेपकिन भी बिस्तर पर पड़ा था।
यह सब देख मैं मन ही मन मुस्कुराया कि कितनी सुघड़ और चतुर है मेरी बहूरानी!
अँधेरा घिरते ही अभिनव एंड पार्टी ने कल वाला बियर और ड्रिंक्स का दौर शुरू कर दिया, मैंने भी कोई टोका टाकी करना मुनासिब नहीं समझा, मेरे लिए तो ये और भी अच्छी बात थी कि अब बेटे की तरफ से भी कोई चिन्ता नहीं रहेगी।
सबका खाना पीना होते होते टाइम ग्यारह से ऊपर का ही हो गया। अभिनव एंड पार्टी कल रात की ही तरह मिश्रा जी के यहाँ शिफ्ट हो गई और बाकी मेहमान भी कल ही की तरह एडजस्ट हो गये।
मेरी आँखें अदिति को खोज रहीं थीं लेकिन पट्ठी कहीं नज़र ही नहीं आई।
मैंने भी अपनी ऊपर वाली कोठरी की राह ली और जा कर लेट गया।
‘अदिति आयेगी?’ यह प्रश्न मन में उठा साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा के लंड को सहलाया।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
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टाइम ग्यारह से ज्यादा हो गया, मैं ऊपर वाली कोठरी में जाकर लेट गया।
‘अदिति आएगी?’ यह प्रश्न मन में उठा, साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा कर लंड को सहलाया।
‘जरूर आयेगी… जब उसे कल की चुदाई बार बार याद आयेगी और उसकी चूत में सुरसुरी उठेगी तो आना ही पड़ेगा!’ मेरे मन ने जैसे मुझे जवाब दिया।
‘वो घर की बहू है, उसे भी तो तमाम जिम्मेवारियाँ निभानी हैं, उसके मायके से भी कितनी लेडीज आई हुईं हैं, सबको एंटरटेन करना पड़ रहा होगा।’ यही सब सोचते सोचते मैं सोने की कोशिश करने लगा।
पर नींद कहाँ, आ भी कैसे सकती थी!
यूं ही ऊंघते ऊँघते पता नहीं कितनी देर बीत गई, फिर किसी की धीमी पदचाप सुनाई दी, दरवाजा धीरे से खुला कोई भीतर घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।
उस नीम अँधेरे में मैंने अदिति को उसके जिस्म से उठती परफ्यूम की सुगंध से पहचाना! हाँ वही थी!
वो चुपके से आकर मेरे बगल में लेट गई।
‘पापा जी. सो गये क्या?’ वो धीमे से फुसफुसाई।
‘नहीं, बेटा. तुम्हारा ही इंतज़ार था!’ मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।
‘मेरा इंतज़ार क्यूँ? मैंने यहाँ आने को थोड़े ही बोला था।’ बहू रानी मेरे बालों में उँगलियों से कंघी करती हुई बोली।
‘फिर भी मुझे पता था कि तुम आओगी, आईं या नहीं?’ कहते हुए मैंने उसके दोनों गाल बारी बारी से चूम लिए।
‘पापाजी, वो तो नीचे सोने की जगह ही कहीं नहीं मिली तो आ गई!’ वो बोली और मेरी बांह में चिकोटी काटी।
बदले में मैंने उसके दोनों मम्मे दबोच लिए और उसके होंठों का रस पीने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और चुम्बनों का दौर चल पड़ा।
कभी मेरी जीभ उसके मुंह में कभी उसकी मेरे मुंह में… कितना सरस… कितना मीठा मुंह था बहूरानी का! बताना मुश्किल है।
‘अदिति बेटा!’
‘हाँ पापा जी!’
‘आज मैं तुझे जी भर के प्यार करना चाहता हूँ।’
‘तो कर लीजिये न अपनी मनमानी, मैं रोकूंगी थोड़े ही!’
‘मैं लाइट जलाता हूँ, पहले तो तेरा हुस्न जी भर के देखूंगा!’
‘नहीं पापा जी, लाइट नहीं. कल की तरह अँधेरे में ही करो।’
‘मान जा न… मैं तुझे जी भर के देखना चाहता हूँ आज!’
‘नहीं, पापा जी, मैं अपना बदन कैसे दिखाऊं आपको? बहुत शर्म आ रही है।’
वो मना करती रही लेकिन मैं नहीं माना और उठ कर बत्ती जला दी, तेज रोशनी कोठरी में फैल गई और बहूरानी अपने घुटने मोड़ के सर झुका के लाज की गठरी बन गई।
मैं उसके बगल में लेट गया और उसे अपनी ओर खींच लिया वो लुढ़क कर मेरे सीने से आ लगी।
बहूरानी ने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी और मम्मों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था।
सबसे पहले मैंने उसका दुपट्टा उससे अलग किया, उसकी गहरी क्लीवेज यानि वक्ष रेखा नुमायां हो गई। गोरे गोरे गदराये उरोजों का मिलन स्थल कैसी रमणीक घाटी के जैसा नजारा पेश करता है।
मैंने बरबस ही अपना मुंह वहाँ छिपा लिया और दोनों कपोतों को चूमने लगा, उन्हें धीरे धीरे दबाने मसलने लगा, भीतर हाथ घुसा कर स्तनों की घुण्डी चुटकी में मसलने लगा।
ऐसे करते ही बहूरानी की साँसें भारी हो गईं।
फिर उसके बदन को बाहों में भर कर मैं उस पर चढ़ गया उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा फिर लाज से उसका मुख लाल पड़ गया। गले को चूमते ही उसने अपनी बाहें मेरे गले में पिरो दीं और होंठ से होंठ मिला दिए।
बहूरानी का नंगा जिस्म
फिर मैं बहूरानी को कुर्ता उतारने को मनाने लगा, बड़ी मुश्किल से उसने मुझे कुर्ता उतारने दिया।
कुर्ता के उतरते ही मैंने उसकी सलवार का नाड़ा एक झटके में खोल दिया और उसे भी खींच के एक तरफ फेंक दिया। ऐसा करते ही बहू रानी ने अपना मुंह हथेलियों से छिपा लिया लेकिन मैंने दोनों कलाइयाँ पकड़ कर अलग कर दीं और उसका जिस्म निहारने लगा.
बहूरानी अब सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में मेरे सामने लेटी थी। ऐसा क़यामत ढाने वाला हुस्न तो मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था, साक्षात रति देवी की प्रतिमूर्ति थी वो तो!
मेरे यूँ देखने से अदिति ने अपनी आँखें मूंद लीं और उसका चेहरा आरक्त हो गया।
उसके काले काले घने बालों के चोटी भी मैंने खोल दी और उसके बालों को यूं ही छितरा दिया, घने बादलों के बीच गुलाबी चाँद सा खिल उठा उसका चेहरा!
हल्के गुलाबी रंग की डिजाइनर ब्रा पैंटी में बहूरानी का हुस्न बेमिसाल लग रहा था। ब्रा में छिपे बड़े बड़े बूब्स उसकी साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ रहे थे और पैंटी के ऊपर से दिख रहा उसकी चूत का उभरा हुआ त्रिभुज जिसके मध्य में त्रिभुज को विभाजित करती उसकी चूत की दरार की लाइन का मामूली सा अहसास हो रहा था।
साढ़े पांच फुट का कद, सुतवां बदन, न पतला न मोटा, जहाँ जितनी मोटाई गहराई अपेक्षित होती है बिल्कुल वैसा ही सांचे में ढला बदन, चिकनी मांसल जांघें और उनके बीच बसी वो सुख की खान!
जैसे कई दिनों का भूखा खाने पर टूट पड़ता है, वैसे ही मेरी हालत हो रही थी कि जल्दी से बहूरानी की चड्डी भी उतार फेंकू और उसकी टाँगें अपने कंधों पे रख के अपने मूसल जैसे लंड को एक ही झटके में उसकी चूत में पेल दूं!
लेकिन नहीं, अगर कोई पैसे से खरीदी गई रंडी वेश्या रही होती तो जरूर मैं उसे वैसी ही बेदर्दी से चोदता लेकिन अपनी बहूरानी की तो बड़े प्यार और एहतियात से लेने का मन था मेरा!
फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और पूरा नंगा हो गया, मेरा लंड तो पहले ही बहूरानी की छिपी चूत देखकर फनफना उठा था। मैं नंगा ही बहूरानी के ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने काटने लगा।
बहूरानी का बदन भी अब गवाही दे रहा था कि वो मस्ता गई है लेकिन लाज की मारी अभी भी आँखें मूंदें पड़ी थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ ले जा कर ब्रेजरी का हुक खोल दिया और उसके कन्धों के ऊपर से स्ट्रेप्स पकड़ कर ब्रा का खींच लिए!
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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वाऊ… 34 इंची ब्रा मेरे हाथ में थी अदिति के नग्न स्तन का जोड़ा मुझे एक क्षण को दिखा पर उसने तुरन्त अपनी बाहें अपने मम्मों पर कस दीं।
‘अदिति बेटा, देखने दे ना!’ मैंने कहा।
‘ऊं हूं…’ उसके मुंह से निकला और वो पलट के लेट गई। मैं भी उसकी नंगी पीठ पर लेट गया और उसकी गर्दन चूमने लगा, नीचे हाथ डाल कर उसके नंगे बूब्स अपनी मुट्ठियों में भर लिए और उन्हें मसलने लगा।
उधर मेरा लंड उसकी उसकी जाँघों के बीच रगड़ रहा था और उसके मांसल कोमल नितम्बों का स्पर्श मुझे बड़ा ही प्यारा लग रहा था, तभी सोच लिया था कि बहू की गांड भी एक बार जरूर मारूंगा आज!
उसकी गुदाज सपाट पीठ को चूमते चूमते मैं नीचे की तरफ उतरने लगा. उसके जिस्म से उठती वो मादक भीनी भीनी सी महक एक अजीब सा नशा दे रही थी।
उसकी कमर को चाटते चूमते मैंने उसकी पैंटी में अपनी उँगलियाँ फंसा दीं और उसे नीचे खिसकाना चाहा, लेकिन तभी बहूरानी पलट कर चित हो गई।
‘पापाजी, मुझे तो अब नींद आ रही है आप तो बत्ती बुझा दो अब और मुझे सोने दो!’ बहूरानी बड़े ही बेचैन स्वर में बोली।
‘अभी से कहाँ सोओगी बेटा जी. इन पलों का मज़ा लो, ये क्षण जीवन में फिर कभी नहीं आयेंगे।’ मैंने कहा और उसका एक मम्मा मुंह में लेकर चूसने लगा।
बहू रानी का शरीर शिथिल पड़ने लगा था और वो गहरी गहरी साँसें भरने लगी थी। मतलब साफ़ था कि अब वो चुदास के मारे बेचैन होने लगी थी उसकी पैंटी के ऊपर की नमी गवाही दे रही थी कि उसकी चूत अब पनिया गई है।
फिर मैं उठ कर बैठ गया और उसके पैर की अंगुलियाँ और तलवे जीभ से चाटने लगा। मेरा ऐसे करते ही बहूरानी अपना सर दायें बाएं झटकने लगी और अपने बूब्स खुद अपने ही हाथों में भर के दबाने लगी।
जैसे ही मैंने उसकी पिंडलियों को चाटते चाटते चूम चूम के जाँघों को चाटना शुरू किया, वो आपे से बाहर हो गई और अपनी कमर उछालने लगी।
बहूरानी की नंगी चूत
अब बहूरानी की पैंटी उतारने का सही समय आ गया था, मैंने उसकी पैंटी को उतारना शुरू किया।
बहूरानी ने झट से अपनी कमर ऊपर उठा दी जैसे वो खुद भी यही चाह रही थी।
बहूरानी की गीली पैंटी उसकी चूत से चिपटी हुई सी थी उसके उतरते ही उसकी नंगी चूत मेरे सामने थी।
कल जब मैंने उसे चोदा था तो उस पर झांटें उगी थी पर आज वो एकदम चिकनी थी।
‘वाओ! क्या बात है!’ अचानक मेरे मुंह से निकला।
‘क्या हुआ पापा जी, चौंक क्यों गये?’ अदिति मुस्कुरा कर बोली।
‘अदिति बेटा कल तो यहाँ घना जंगल था? और आज मैदान सफाचट कैसे हो गया?’ मैंने उसकी चूत को सहलाते हुए पूछा।
‘मुझे क्या पता कौन चर गया पूरी घास? मैं तो अपने काम में बिजी थी सारा दिन!’ वो हंस कर बोली।
‘अभी देखना मैं इसमें अपना हल चला के इसे जोत देता हूं और बीज भी बो देता हूं फिर देखना कितनी मस्त फसल उगती है।’ मैंने कहा।और उसकी चूत में उंगली घुसा दी।
‘उई माँ…उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ वो बोली और अपनी टाँगें ऊपर उठा के मोड़ लीं।
बहूरानी के बदन की गोरी गुलाबी जाँघों के बीच वो सांवली सी गद्देदार फूली हुई चूत कितनी मनोहर लग रही थी, चूत के ऊपर बाएं होंठ पर गहरा काला तिल था जो उसे और भी सेक्सी बना रहा था।
मैंने झट से अपने होंठ बहूरानी की चूत पर रख दिए और उसे ऊपर से ही चाटने लगा। उसकी चूत का चीरा ज्यादा बड़ा नहीं कोई चार अंगुल जितना ही था लम्बाई में!
मेरे चाटते ही बहू के मुंह से कामुक आहें कराहें निकलने लगीं।
‘अदिति बेटा!’ मैंने कहा।
तो उसने प्रश्नवाचक नज़रों से मुझे देखा।
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‘अदिति बेटा!’ मैंने कहा।
तो उसने प्रश्नवाचक नज़रों से मुझे देखा।
‘खोल दो इसे अपने हाथों से!’ मैंने कहा।
उसने झट से अपना हाथ अपनी चूत पर रखा और अंगूठे और उंगली के सहारे उसने अपनी चूत को यूं ओपन कर दिया जैसे हम अपने टच स्क्रीन फोन पर कोई फोटो ज़ूम करते हैं!
‘ऐसे नहीं… अपने दोनों हाथ से खोलो अच्छी तरह से मेरी तरफ देखते हुए!’ मैंने कहा।
‘आप तो मुझे बिल्कुल ही बेशर्म बना दोगे आज! ऐसे तो मैंने अभिनव के सामने भी नहीं खोल के परोसी कभी!’ वो शरमा कर बोली।
‘देखो बेटा, जो स्त्री सम्भोग काल में बिल्कुल निर्लज्ज होकर भांति भांति की काम केलि करती हुई अपने हाव भाव से, अपनी अदाओं से, अपने गुप्त अंगों को प्रदर्शित कर अपने साथी को लुभा लुभा कर उसे उत्तेजित कर समर्पित हो जाती है वही हमेशा उसकी ड्रीम गर्ल बन के रहती है।’ मैंने कहा और उसकी चूत को चुटकी में भर के हिलाया।
‘ठीक है पापा जी, समझ गई यह ज्ञान!’ वो बोली और उसने झट से अपने दोनों हाथ अपनी चूत पर रखे और उंगलियों से उसे पूरा फैला दिया और मेरी होठों पर मीठी मुस्कान लिए मेरी आँखों में झाँकने लगी।
मुझे लड़की का यह पोज बहुत ही पसन्द आता है जब वो चुदासी होकर चुदवाने को अपनी चूत अपने दोनों हाथों से खोलकर चोदने को आमंत्रित करती है।
उसके वैसे करते ही चूत के भीतर का लाल तरबूज के जैसा रसीला गूदा दिखने लगा. साथ ही उसकी चूत का दाना खूंटे जैसा उभर के लपलपाने लगा।
फिर मैंने उसके दोनों बूब्स कस के पकड़ लिए और जैसे ही मैंने उसकी चूत के दाने पर जीभ रखी वो उत्तेजना के मारे उछलने लगी और उसकी चूत मेरी नाक से आ टकराई।
लेकिन मैंने उसकी जांघें कस के दबा के उसकी चूत को गहराई तक चाटने लगा, उसकी चूत रस बरसाने लगी। साथ साथ मैं उसका कुच मर्दन भी करता जा रहा था।
उत्तेजना के मारे अदिति ने बेडशीट को अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया और अपनी चूत बार बार ऊपर उछालने का प्रयास करने लगी।
‘जीभ मत डालो पापा जी.. असली चीज डाल दो अब तो! नहीं रहा जा रहा अब!’ वो अपनी कमर उचका के बोली।
‘क्या डाल दूं अदिति? उसका नाम तो बताओ?’
‘अपना पेनिस!’
‘हिंदी में बताओ न?’
‘अपना लिंग डाल दो न पापा जी!’
‘लिंग नहीं कोई और नाम बताओ!’ मुझे अदिति को सताने में मजा आ रहा था।
‘उफ्फ… मुझे कुछ नहीं पता अब! मत करो आप कुछ!’ वो थोड़ा झुंझला के बोली लेकिन मैंने उसकी चूत चाटना और बूब्स मसलना जारी रखा।
मुझे बहूरानी की चूत मारने की कोई जल्दी नहीं थी, मुझे अपने पे पूरा कंट्रोल था, बस चूत को खूब देर तक रस ले ले चाटना मुझे बहुत पसन्द है, और वही मैं करने लगा।
भला अदिति बहूरानी की चूत चाटने चूमने का ऐसा बढ़िया मौका जीवन में दुबारा मिले न मिले, किसे पता?
‘आह.. हूं… करो… मत करो! मान जाओ पापा .. सुनो!’
‘हाँ बोलो बेटा जी?’ मैंने उसकी चूत के दाने को चुभला कर पूछा।
‘अपना लंड घुसा दो अब जल्दी से…’ अदिति ने अपनी कमर उछाली।
‘कहाँ लोगी.. यहाँ लोगी?’ मैंने उसकी गांड के छेद को सहलाते हुए पूछा।
‘धत्त… वहाँ नहीं, कल की तरह मेरी वेजाइना में डाल के जल्दी से फक कर दो मुझे!’ वो मिसमिसाते हुए बोली।
‘वेजाइना नहीं, अपनी बोली में कहो कि कहाँ लोगी मेरा लंड?’ मैंने उसकी नारंगियों को मसकते हुए पूछा।
‘मेरी योनि में घुसा दो अब लंड को!’ उसने जैसे रिक्वेस्ट सी की।
‘योनि नहीं, कोई दूसरा नाम बताओ इसका तभी मिलेगा मेरा लंड!’ मैंने उसे और सताया फिर उसके भगान्कुर को होठों में ले के चुभलाने लगा।
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‘योनि नहीं, कोई दूसरा नाम बताओ इसका, तभी घुसाऊँगा लंड!’ मैंने उसे और तंग किया फिर उसके भगांकुर को होंठों में लेकर चुभलाने लगा।
‘उफ्फ पापा जी, आप और कितना बेशर्म बनाओगे मुझे आज… लो मेरी चूत में पेल दो अपना लंड और चोदो मुझे जल्दी से!’ बहूरानी अपनी चूत मेरे मुंह पर मारती हुई बेसब्री से बोली।
चूत के रस से मेरी नाक, मुंह भीग गया।
बहूरानी अब अच्छे से अपने पे आ गई थी, लड़की जब पूरी गर्म हो जाए, अपने पे आ जाए तो फिर वो चूत में लंड लेने के लिए कुछ भी कर सकती है।
‘अदिति बेटा, थोड़ा सब्र और कर, बस एक बार लंड दो चूस दे मेरा अच्छे से, फिर तेरी मस्त चुदाई करता हूँ।’ मैंने उसकी चूची मरोड़ते हुए कहा।
उसके न कहने का तो प्रश्न ही नहीं था अब… मैं उठ कर पालथी मार के बैठ गया, मेरा लंड अब मेरी गोद में 90 डिग्री पर खड़ा था।बहू रानी ने झट से लंड की चमड़ी चार पांच ऊपर नीचे की फिर झुक कर लंड को मुंह में भर लिया और कल ही की तरह चूम चूम कर चाट चाट कर चूसने लगी।
बहूरानी के मेहंदी रचे गोरे गोरे हाथों में मेरा काला कलूटा लंड कितना मस्त दिख रहा था, देखने में ही मज़ा आ गया।
बहूरानी कभी मेरी और देख देख के सुपारा चाटती कभी मेरे टट्टे सहलाती। मेरे ऊपर झुकने से उसकी नंगी गोरी पीठ मेरे सामने थी जिस पर उसके रेशमी काले काले बाल बिखरे हुए थे।
मैंने उसकी पीठ को झुक कर चूम लिया और हाथ नीचे ले जा कर उसके कूल्हों पर थपकी दे दे कर सहलाने लगा।
इस तरह मेरे झुकने से मेरा लंड उसके गले तक जा पहुंचा और वो गूं गूं करने लगी जैसे उसकी सांस अटक रही हो।
मैं फिर सीधा बैठ गया तो बहूरानी ने लंड मुंह से बाहर निकाल लिया लेकिन उसकी लार के तार अभी भी मेरे लंड से जुड़े हुए थे और उसका मुखरस उसके होंठों के किनारों से बह रहा था।
उसने फिरसे लंड मुंह में ले लिया और मैंने उसका सर अपने लंड पर दबा दिया और नीचे से उसका मुंह चोदने लगा। ऐसे एक दो मिनट ही चोद पाया मैं उसका मुंह कि वो हट गई।
‘बस, पापाजी. सांस फूल गई मेरी. अब नहीं चूसूंगी; इसे अब जल्दी से घुसा दो मेरी चूत में!’ वो तड़प कर बोली।
मैंने भी वक्त की नजाकत को समझते हुए उसकी गांड के नीचे एक मोटा सा तकिया लगा दिया जिससे उसकी चूत अच्छे से उभर गई।
बहू रानी की चूत में पुनः लंड
तकिया लगाने से बहूरानी की कमर का नीचे का हिस्सा एक दर्शनीय रूप ले चुका था, अदिति ने अपनी घुटने ऊपर मोड़ लिए थे जिससे उसकी जांघे वी शेप में हो गईं और नीचे उसकी चूत की दरार अब पूरी तरह से खुली हुई नज़र आ रही थी और उसकी चूत का छेद साफ़ साफ़ दिखने लगा था जो कि उत्तेजना वश धड़क सा रहा था।
उसके कोई दो अंगुल नीचे उसकी गांड का छिद्र अपनी विशिष्ट सिलवटें लिए अलग ही छटा बिखेर रहा था।
एक बार मन तो ललचा गया कि पहले गांड में ही पेल दूं लंड को लेकिन मैंने इस तमन्ना को अगले राउंड के लिए सेव कर लिया।
लंड पेलने से पहले मैंने बहूरानी के मम्मों को एक बार और चूसा, गालों को काटा और फिर नीचे उतर कर चूत को अच्छे से चाटा।
‘अब आ भी जाओ पापा जी, समा जाओ मुझमें… और मत सताओ मुझे, अब नहीं रहा जाता ले लो मेरी कल की तरह!’ अदिति बहुत ही कामुक और अधीर स्वर में बोली।
‘ये लो अदिति बेटा!’ मैं बोला और लंड को उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया और फिर वहीं घिसने लगा।
‘पापा जी, जरा आराम से डालना, बहुत मोटा है आपका! दया करना अपनी बहू पे!’ अदिति ने जैसे विनती की मुझसे!
‘अदिति बेटा, थोड़ा हिम्मत से काम लेना, अब मोटे को मैं दुबला पतला नहीं कर सकता, जैसा भी है कल की तरह चूत अपने आप संभाल लेगी इसे!’
‘जी, पापा जी!’
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‘और अब इधर देख, मेरी आँख से आँख मिलाती रहना और चुदती रहना!’
‘ठीक है अब आ भी जाओ जल्दी!’ वो बोली और मेरी आँखों में अपनी आँखें डाल दीं।
मैंने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखा और प्यार से धकेल दिया उसकी चूत में।
चूत बहुत ही चिकनी और रसीली हो गई थी, इस कारण सुपारा निर्विरोध घुस गया बहूरानी की बुर में! उसके मुंह पर थोड़ी पीड़ा होने जैसे भाव आये लेकिन वो मेरे आँखों में झांकती रही।
कुछ ही पलों बाद मैं लंड को पीछे खींच कर एक बार में ही पेल दिया उसकी चूत में!
‘हाय मम्मी जी… मर गई. कैसे निर्दयी हो पापा जी आप?’ वो बोली और मुझे परे धकेलने लगी।
मैंने उसके प्रतिरोध की परवाह किये बिना लंड को जरा सा खींच कर फिर से पूरी ताकत से पेल दिया उसकी चूत में!
इस बार मेरी नुकीली झांटें चुभ गईं उसकी चूत में और वो फड़फड़ा उठी।
फिर दोनों दूध कस के दबोच के उसका निचला होंठ चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी। बहूरानी मेरी जीभ चूसने लगी और मैं उसके निप्पल चुटकी में भर के नीम्बू की तरह निचोड़ने लगा।
ऐसे करने से उसकी चुदास और प्रचण्ड हो गई और वो अपनी कमर हिलाने लगी।
फिर मैंने उसकी दोनों कलाइयाँ पकड़ कर उसकी ताबड़तोड़ मस्त चुदाई शुरू कर दी और अपनी झांटों से चूत में रगड़ा मारते हुए उसे चोदने लगा।
बहूरानी के मुंह से कामुक किलकारियाँ निकलने लगीं और वो नीचे से अपनी चूत उठा उठा के मुझे देने लगी।
बस फिर क्या था, कोठरी में उसकी चूत से निकलती फच फच की आवाज और उसकी कामुक कराहें गूंजने लगीं।
‘अच्छे से कुचल डालो इस चूत को पापा जी! बहुत सताती है ये मुझे! आज सुबह से ही जोर की खुजली उठ रही है इसमें उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
‘अदिति मेरी जान… ये लो फिर!’ मैंने कहा और उसकी चूत कुचलने लगा जैसे मूसल से ओखली में कूटते हैं, और आड़े, तिरछे, सीधे शॉट मारने लगा।
‘हाँ, पापा राजा… बस ऐसे ही चोदते रहो अपनी बहू को… हाँ आ… याआअ… फाड़ डालो इसे पापा!’
इसी तरह की चुदाई कोई दस बारह मिनट ही चली होगी कि मैं झड़ने पे आ गया।
‘अदिति बेटा, अब मेरा निकलने वाला है, कहाँ लोगी इसे!’
‘मैं तो एक बार झड़ भी चुकी हूँ पापा, अब फिर से झड़ने वाली हूँ… आप मेरी चूत में ही झड़ जाओ, बो दो अपना बीज अपनी बहू की बुर में!’ वो मस्ता के बोली।
लगभग आधे मिनट बाद ही बहूरानी ने मुझे कस के भींच लिया और और कल की ही तरह अपनी टाँगें मेरी कमर में लपेट के कस दीं और मुझे प्यार से बार बार चूमने लगी।
मेरे लंड से भी रस की बरसात होने लगी और उसकी चूत में convulsions होने लगे मतलब मरोड़ उठने लगे, चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ने छोड़ने लगीं जिससे मेरे वीर्य की एक एक बूँद उसकी चूत में निचुड़ गई।
अदिति इस तरह मुझे काफी देर तक बांधे रही अपने से! जब वो बिलकुल नार्मल हो गई तब जाकर उसने मुझे रिलीज किया। मेरा लंड भी सिकुड़ कर बाहर निकल गया।
फिर उसने चूत से बह रहे मेरे वीर्य और चूतरस के मिश्रण को नैपकिन से पौंछ डाला और मेरा लंड भी अच्छे से साफ़ करके सुपारा फोरस्किन से ढक दिया।
चुदाई के बाद बहुत देर तक हम दोनों बाहों में बाहें डाले चिपके लेटे रहे। बहू रानी के नंगे गर्म जिस्म का स्पर्श कितना सुखद लग रहा था उसे शब्दों में बताना मेरे लिए संभव नहीं है।
‘पापा जी, कर ली न आपने अपने मन की? अब बत्ती बुझा दो और सो जाओ आप भी!’ बहूरानी उनींदी सी बोली।
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‘पापा जी, आपने कर ही ली न अपने मन की! अब लाइट बंद कर दो और सो जाओ आप भी!’ बहू रानी उनींदी सी बोली।
बहू रानी की गांड
‘इतनी जल्दी नहीं बेटा रानी, अभी तो एक राउंड तेरी इस गांड का भी लेना है।’ मैंने कहा और उसकी गांड को प्यार से सहलाया।
‘नहीं पापा जी, वहाँ मैंने कभी कुछ नहीं करवाया. वहाँ नहीं लूंगी मैं आपका ये मूसल। फिर तो मैं खड़ी भी नहीं हो पाऊँगी।’ उसने साफ़ मना कर दिया।
‘अदिति बेटा, गांड में भी चूत जैसा ही मस्त मस्त मज़ा आता है लंड जाने से, तू एक बार गांड मरवा के तो देख, मज़ा न आये तो कहना!’
‘न बाबा, बहुत दर्द होगा मुझे वहाँ! अगर आपका मन अभी नहीं भरा तो चाहे एक बार और मेरी चूत मार लो आप जी भर के!’ वो बोली।
‘अरे तू एक बार ट्राई तो लंड को उसमें, फिर देखना चूत से भी ज्यादा मज़ा तुझे तेरी ये चिकनी गांड देगी।’
ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें कर कर के मैंने बहूरानी को गांड मरवाने को राजी किया, आखिर वो बुझे मन से मान गई मेरी बात- ठीक है पापा जी, जहाँ जो करना चाहो कर लो आप, पर धीरे धीरे करना!
‘ठीक है बेटा, अब तू जरा मेरा लंड खड़ा कर दे पहले अच्छे से!’
मेरी बात सुन के बहूरानी उठ के बैठ गई और मेरे लंड को सहलाने मसलने लगी, जल्दी ही लंड में जान पड़ गई और वो तैयार होने लगा।
फिर मैंने बहूरानी को अपने लंड पे झुका दिया, मेरा इशारा समझ उसने लंड को मुंह में ले लिया और कुशलता से चूसने लगी।
कुछ ही देर में लंड पूरा तन के तमतमा गया, फिर मैंने उसे जल्दी से डोगी स्टाइल में कर दिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा जिससे वो अच्छे से पनिया गई, फिर लंड को उसकी चूत में घुसा कर चिकना कर लिया और फिर बाहर निकाल कर गांड के छेद पर टिका दिया।
गांड के छेद थोड़ा अपना थूक भी लगाया और बड़ी सावधानी से अदिति की कमर पकड़ कर लंड को उसकी गांड में घुसाने लगा।
कुछ प्रयासों बाद मेरा सुपारा गांड में घुसने में कामयाब हो गया।
‘उई माँ… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मर गई पापा जी, निकाल लो इसे, बहुत दर्द हो रहा है वहाँ पे!’ बहू रानी दर्द से तड़प कर बोली।
मगर मैंने उसकी बात को अनसुना करके धीरे धीरे पूरा लंड पहना दिया उसकी गांड में और रुक गया।
अदिति ने अपनी गांड ढीली कर के लंड को एडजस्ट कर लिया।
‘आपने तो आज मार ही डाला पापा जी, बहुत दर्द हो रहा है, जैसे सुहागरात को मेरी चूत की सील टूटी थी उतना ही दर्द हुआ आज भी!’
‘बस बेटा अब देख, कैसे मज़े आते हैं तुझे गांड में लंड के!’ मैंने कहा और लंड को आहिस्ता आहिस्ता आगे पीछे करने लगा।
यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
बीच बीच में लंड पर थूक भी लगाता जाता ताकि उसका लुब्रीकेशन बना रहे।
जल्दी लंड सटासट चलने लगा उसकी गांड में! बहूरानी को भी अब मज़ा आने लगा था और वो मस्त आवाजें निकालने लगी।
फिर मैंने उसकी चूत में दो उंगलियाँ घुसा दीं और गांड स्पीड से मारने लगा।
‘हाँ पापा जी, अब मज़ा आने लगा है, जल्दी जल्दी स्पीड से करो आप!’ मैंने तुरन्त अपनी स्पीड बढ़ा दी और निश्चिन्त होकर दम से गांड मारने लगा।
फिर मैंने बहूरानी के बाल पकड़ कर अपनी कलाई में लपेट खींच लिए जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और इसी तरह चोटी खींचते हुए अब मैं बेरहमी से गांड में धक्के मारने लगा।
बहू को ससुर से गांड मरवा कर मज़ा आया
मस्त हो गई बहूरानी! वो भी अपनी गांड को मेरे लंड से ताल मिला कर आगे पीछे करने लगी।
फिर मैं रुक गया मगर बहूरानी नहीं, वो अपनी ही मस्ती में अपनी कमर चलाते हुए लंड लीलती रही।
कितना कामुक नज़ारा था वो!
मैं तो स्थिर रुका हुआ था और बहूरानी अपनी गांड को आगे पीछे करती हुई मज़े ले रही थी, जब वो पीछे आती हो मेरा लंड उसकी गांड में घुस जाता और वो आगे होती तो बाहर निकल आता!
इस तरह बड़े लय ताल के साथ बहुत देर तक बहू खेलती रही।
मैं अब उसकी चूत में उंगली करता जा रहा था और वो अपने आप में मग्न कमर चलाये जा रही थी। आखिर इस राउंड का भी अंत हुआ और मैं उसकी गांड में ही झड़ गया और लंड सिकुड़ कर स्वतः ही बाहर आ गया और बहूरानी औंधी ही लेट गई बिस्तर पर…
मैं भी उसी के ऊपर लेट गया और अपनी साँसें काबू करने लगा।
‘मज़ा आया बेटा?’
‘हाँ, पापा जी. बहुत मज़ा आया, शुरू में तो बहुत दर्द हुआ, बाद में चूत जैसा ही मज़ा वहाँ भी आया।’ वो बोली और उठ कर कपड़े पहनने लगी।
मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए और लेट गया।
‘चलो अब सो जाओ पापा, बहुत रात हो गई, तीन तो बजने वाले ही होंगे। पापाजी मैं जल्दी उठ के अँधेरे में ही नीचे चली जाऊँगी, आप आराम से सोते रहना!’ वो बोली।
‘ठीक है बेटा, गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्ज़!’ मैं जम्हाई लेते हुए बोला।
‘गुड नाईट पापा जी!’ वो बोली और मुझसे लिपट के सो गई।
तो मित्रो, इस तरह हम ससुर बहू लिपट कर सो गये।
मेरी नींद खुली तो दिन चढ़ आया था, बहू रानी पता नहीं कब उठ कर चली गई थी पर उसके जिस्म की खुशबू अभी भी कोठरी में रची बसी थी।
हमारे यहाँ परिवार में शादी के बाद सोमवार को सत्यनारायण की कथा होती है तो कथा का आयोजन होते ही सारे मेहमान विदा हो हो के चले गये।
अभिनव की छुट्टियाँ भी ख़त्म हो गईं तो वो भी बहू को ले के चला गया।
इस घटना के कोई डेढ़ महीने बाद मैं अभिनव के पास चला गया। असली मकसद तो बहूरानी को चोदना ही था तो अभिनव के ऑफिस जाते ही हम लोग शुरू हो गये।
मैं तीन दिन रुका वहाँ पे और बहूरानी को अनगिनत बार चोद चोद कर अपनी हर कल्पना साकार कर ली, दीवार के सहारे खड़ा करके, शावर के नीचे नहाते हुए और जितने आसन मुझे आते थे वो सब के सब बहूरानी की चूत में लगा के चोदा उसे!
हाँ, एक बार उसकी झांटें भी मैंने खुद साफ़ कीं जैसे कि अपनी पत्नी रानी की करता हूँ हमेशा!
मित्रो कहानी अब समाप्त… उम्मीद है सबको मज़ा आया होगा और सबने अपने अपने लंड चूत को भी मज़ा दिया होगा साथ साथ!
कृपया अपने अपने विचार, कमेंट्स लिखें और मुझे भी नीचे लिखे पते पर ई मेल करें कि आपको कहानी कैसी लगी क्या अच्छा लगा और क्या नहीं!
// सुनील पंडित //
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// बहूरानी की चूत की प्यास //
प्रस्तुत कहानी मेरी पिछली कहानियों
अनोखी चूत चुदाई की वो रात
अनोखी चूत चुदाई के बाद
की अगली और अंतिम कड़ी है. तो इस रसभरी सत्य कथा का मज़ा लीजिये और पढ़ते पढ़ते जैसे चाहें मज़ा लीजिये पर मुझे अपने कमेंट्स नीचे लिखी मेल आई डी पर जरूर लिखिए. आपके कमेंट्स ही तो हम लेखकों का पारश्रमिक है और प्रोत्साहन भी.
पहले मैं पहले की कहानी संक्षेप में दुहरा देता हूँ.
मेरी इकलौती बेटी की शादी और विदाई हो चुकी थी, घर मेहमानों से भरा हुआ था. मैं पिछले पंद्रह दिनों से दिन रात एक किये हुए था, न ठीक से सोना न खाना.
बेटी की विदाई का दूसरा दिन था, कई मेहमान जा चुके थे, अभी भी घर मेहमानों से भरा हुआ था. मैं रात में सोने की जगह तलाश कर रहा था पर सब जगह भरी हुई थीं.
फिर मुझे ऊपर छत पर बनी कोठरी का ध्यान आया, मैं गद्दों के ढेर में से बिस्तर लेकर ऊपर वाली कोठरी में पहुंच गया सोने के लिए. वहां का बल्ब फ्यूज हो चुका था अतः अंधेरे में ही वहां पड़े सामान को खिसका कर मैंने अपने सोने लायक जगह बनाई और लेटते ही मुझे मुठ मारने की इच्छा होने लगी क्योंकि पिछले महीने भर से बीवी की चूत नसीब नहीं हुई थी. अतः मैं पूरा नंगा होकर मूठ मारने लगा.
तभी अचानक कोई साया कोठरी में घुसता है और अपने पूरे कपड़े उतार कर मुझसे नंगा होकर लिपट जाता है. उसकी आवाज से मैं पहचानता हूं कि वो मेरी इकलौती बहूरानी अदिति थी जो मुझे अपना पति समझ के सम्भोग करने के लिए उकसाती है, मुझसे लिपटती है, मेरा लंड चूसने लगती है. मैं खुद को बचाने की बहुत कोशिश करता हूं पर मेरी कामना भी जाग जाती है और मैं अपनी बहूरानी को चोद डालता हूं. अभी तक बहूरानी को पता नहीं रहता कि मैं, ससुर उसे चोद रहा है. सुबह होते ही मैं निकल लेता हूं.
बाद में बहूरानी को पता चलता है कि वो पिछली रात किसी और से ही चुद गयी थी तो वो टेंशन में आ जाती है कि इतने सारे मेहमानों में वो पता नहीं किससे चूत मरवा बैठी. उसकी चिंता मुझसे देखी नहीं जाती और उसे मैं बता देता हूं कि पिछली रात मैं ही ऊपर कोठरी में उसके साथ था. इसके बाद हम ससुर बहू के सेक्स सम्बन्ध बन जाते हैं और मैं उसे कई बार और चोदता हूं.
फिर बहूरानी मेरे बेटे के साथ चली जाती है जहां वो नौकरी करता था.
इन सब बातों के बाद कई महीने यूं ही गुजर गए. मैं भी अदिति के साथ अपने उस रिश्ते को भुलाने की कोशिश करता रहा और समय के साथ धीरे धीरे वो सब बातें भूलती चली गईं. ज़िन्दगी फिर से पुरानी स्टाइल में चलने लगी.
अदिति बहूरानी का फोन हर दूसरे तीसरे दिन मेरी धर्मपत्नी के फोन पर आता ही रहता था. वो लोग ज्यादातर घर गृहस्थी और रसोई से सम्बंधित बातें ही करती थीं.
‘मम्मी, आज इनको पालक छोले की सब्जी खानी है जैसी आप बनाती हो, आप मुझे गाइड करो कैसे बनाना है’; ‘मम्मी आम का अचार डालना है आज, आप बता दो कैसे क्या क्या करते हैं’ इत्यादि इत्यादि. सास बहू की ऐसी ही घरेलू बातें होती रहतीं फोन पर.
हां अदिति मेरे बारे में अपनी सास से जरूर पूछ लेती हर बार कि पापा जी कैसे हैं. लेकिन बहूरानी ने मेरे फोन पर कभी भी फोन नहीं किया और न ही मैंने उसके फोन पर कभी किया. कभी कोई जरूरी बात होती भी तो अपने बेटे के फोन पर बात कर लेता था.
मैं बहूरानी के इस तरह के व्यवहार से बेहद संतुष्ट था. मुझसे कई बार अपनी चूत चुदवाने के बाद भी वो मेरे साथ बिल्कुल नार्मल बिहेव कर रही थी जैसे कि हम दोनों के बीच कुछ ऐसा वैसा हुआ ही न हो या वो मुझसे चुदवाने के पहले किया करती थी.
दिन यूं ही गुजर रहे थे. हालांकि मुझे अदिति बहूरानी के साथ बिताये वो अन्तरंग पल याद आते तो मन में फिर से उसकी चूत चाटने और चोदने की इच्छा बलवती हो उठती; उसके मादक हुस्न और भरपूर जवां नंगे जिस्म को भोगने की छटपटाहट और उसकी चूत में समा जाने की ललक मुझे बेचैन करने लगती. लेकिन मैं ऐसी कामुक कुत्सित इच्छाओं को बलपूर्वक मन में ही दबा देता था. आखिर वो मेरी बहूरानी, मेरे घर की लाज थी.
हालांकि उसके साथ इन अनैतिक रिश्तों की शुरुआत उसी की तरफ से अनजाने में ही हुई थी फिर बाद में वो और मैं दोनों चुदाई के इस सनातन खेल में लिप्त हो गए थे.
बहू रानी मेरे लम्बे मोटे दीर्घाकार लंड की दीवानी हो चुकी थी तो मैं भी उसकी कसी हुई चूत का दास हो चुका था. उसके यहां से जाने के बाद वो पागलपन, वो चाहतें धीरे धीरे स्वतः ही कमजोर पड़ने लगीं. अच्छा ही था एक तरह से. ऐसे अनैतिक रिश्ते भले ही कितना मज़ा दें लेकिन एक बार बात खुलने के बाद ज़िन्दगी में हमेशा के लिए जहर घोल जाते हैं; जीवन नर्क बन जाता है और इंसान खुद की और अपनों की नज़र में हमेशा के लिए गिर जाता है. कई लोग तो आत्महत्या तक कर डालते हैं.
समय गुजरने के साथ मैंने खुद पर काबू पाना सीख लिया और वो सब बातें मैंने सदा सदा के लिए दिमाग से निकाल दीं.
लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता; कोई कितनी भी चतुराई दिखा ले लेकिन होनी के आगे उसकी एक नहीं चलती.
एक दिन की बात है सुबह का टाइम था कोई आठ बजने वाले होंगे कि वाइफ के फोन की घंटी बजी. पत्नी किचन से चाय लेकर आ ही रही थी. उसने चाय टेबल पर रखी और फोन ले लिया.
“अदिति का फोन है.” वो मुझसे बोली.
“हां, अदिति कैसी है तू?”
जवाब में अदिति ने भी कुछ कहा.
“बहूरानी, मैं कैसे आ सकती हूं. तू तो जानती है घर संभालना इनके बस का नहीं. दूध वाला, सब्जी वाला, धोबी ये वो पचास झंझट होते हैं गृहस्थी में. और तू अपनी कामवाली को तो जानती ही है कितनी मक्कार है काम करने में, उसके सिर पर खड़े होकर काम करवाओ तभी करती है; अगर मैं तेरे पास आ गई तो समझ लो घर का क्या हाल करेगी वो और सबसे बड़ी बात तू तो जानती ही
है मेरे घुटने का दर्द; स्टेशन की भीड़ भाड़ में पुल चढ़ना उतरना मेरे बस का अब नहीं रह गया. हफ्ते दस दिन की ही तो बात है तू ही आ जा न यहां पर!” पत्नी बोली.
जवाब में अदिति ने क्या कहा मुझे नहीं पता.
“अच्छा ठीक है बहू, जमाना खराब है. मैं इनसे बात करके इन्हें कल भेज दूंगी, तू चिंता मत करना.”
कुछ देर सास बहू में और बातें हुईं और फोन कट गए.
// सुनील पंडित //
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“सुनो जी, आपके लाड़ले को कंपनी वाले दस दिन की ट्रेनिंग पर बंगलौर भेज रहे हैं. अदिति मुझे बुला रही थी वहां रहने के लिए. मैं तो जा नहीं पाऊँगी, आप ही चले जाओ बहू के पास कल शाम की ट्रेन से. वहां वो अकेली कैसे रहेगी. आप तो जानते हो ज़माना कितना ख़राब है आजकल!”
“अरे तो अदिति को यहीं बुला लो ना. गुड़िया की शादी के बाद से आई भी नहीं है वो!” मैंने कहा.
“मैंने तो कहा था उससे आने के लिए पर वो कह रही है कि अगले महीने उसका कोई एग्जाम है बैंक में पी ओ. का वो उसकी तैयारी कर रही है. अब उसके भी करियर की बात है. आप ही चले जाओ कल!” पत्नी ने कहा.
“ठीक है. मैं कल शाम को चला जाऊंगा.” मैंने संक्षिप्त सा जवाब दिया और चाय पीने लगा.
मेरे हां कहने के बाद पत्नी जी ने अदिति बहूरानी को तुरंत फोन मिलाया. फोन कनेक्ट होते ही- हां अदिति बेटा सुन, मैंने इनसे कह दिया है तेरे यहां जाने के लिए. ये कल शाम की ट्रेन से बैठ जायेंगे; और सुन मैं इनके साथ तेरे लिए दही बड़े भी भेज रही हूं इमली की चटनी के साथ, तेरे को बहुत पसंद हैं ना!
पत्नी जी के इतना कहते ही बहूरानी की हंसी की धीमी खनक मेरे कानों में पड़ी. सास बहू की कुछ और बातें हुईं और फोन कट गया.
“आप चाय पियो मैं जाती हूं अब. उड़द की दाल भिगो देती हूं. कल दही बड़े बना दूंगी आप ले जाना!” पत्नी जी मुझसे बोलीं और चली गयीं.
“मैं और अदिति बहूरानी अकेले एक ही घर में, और तीसरा कोई नहीं; वो भी पूरे दस दिन और दस रातें!” ऐसा सोचते हुए मेरे दिल की धड़कन असामान्य रूप से बढ़ गई. ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था कभी ये दिन भी हमारे जीवन में आयेंगे जब मैं और बहूरानी यूं अकेले रहेंगे एक ही घर में; जो बातें मैंने अपने दिलो दिमाग से बिल्कुल निकाल दीं थीं लेकिन वक़्त के एक पल ने सब कुछ बदल कर रख दिया था जैसे.
जब मैं और बहूरानी घर में अकेले होंगे तीसरा कोई नहीं होगा तो क्या मैं या वो अपने पर काबू रख सकेंगे?
शायद नहीं.
इतिहास खुद को पुनः दोहराने वाला था जल्दी ही.
अदिति के साथ की गई पिछली चुदाईयां फिर से सजीव हो उठीं. एक एक बात याद आने लगी. वो छत के ऊपर वाले अँधेरे कमरे में अदिति के साथ पहली चुदाई जिसमें उसे नहीं पता था कि वो अपने ससुर से चुदवा रही है, फिर बाद की चुदाई के नज़ारे मेरे दिमाग में से गुजरने लगे. कितने प्यार से लंड चूसती है मेरी बहूरानी और कितने समर्पित भाव से अपनी चूत मुझे देती है, जैसे
कोई अनुष्ठान, कोई यज्ञ हो. अब तो वो चूत लंड चुदाई जैसे शब्द भी खूब बोलती है चुदते टाइम.
ये सब पिछली बातें सोच सोच के मेरे लंड में फिर से जोश भरने लगा.
अब जब अदिति को तो पता चल ही चुका है कि मैं उसके पास परसों सुबह पहुंच जाऊंगा; तो क्या वो भी अभी मेरी ही तरह ही सोच रही होगी इस टाइम, क्या उसकी चूत भी मेरे लंड की याद में रसीली हो उठी होगी और उसकी पैंटी गीली हो गई होगी?
पर इन सवालों का फिलहाल मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
तो अगले दिन शाम तक पत्नी जी ने मेरे जाने की तैयारियां कर दीं. दही बड़े, चटनी, आम नींबू के अचार, मूंग की दाल की बड़ी, पापड़ ये सब अच्छी तरह से पैक करके मुझे दे दिया. कुल मिलाकर कोई पांच सात किलो वजन तो हो ही गया था. मैंने अपनी तरफ से भी पूरी तैयारी कर ली थी; वैसे मुझे तैयारी करनी भी क्या थी. सिर्फ अपनी झांटें शेव करनी थी सो अपने लंड को बढ़िया चिकना कर लिया ताकि बहूरानी को मेरा लंड चूसने में, अगर वो चाहेगी, तो कोई परेशानी, कोई असुविधा न हो.
तो मित्रो मैंने जाने के लिए तत्काल में अपना आरक्षण सुबह ही करा लिया था. ऐ. सी. सेकेण्ड में कोई जगह नहीं मिली 18 वेटिंग आ रही थी, आप सबको तो पता ही है कि ऐ.सी. की वेटिंग बहुत कम कन्फर्म होती है. अगर ऐ.सी. टू के कई कोच लगे हों तो शायद हो भी जाय. पर मेरी वाली ट्रेन में ऐ.सी.टू का सिर्फ एक ही कोच लगता था. तो 18 वेटिंग कन्फर्म होने का सवाल ही नहीं था.
लेकिन सौभाग्य से ऐ.सी. थर्ड में तीन बर्थ उबलब्ध थीं मैंने फुर्ती से अप्लाई किया तो मेरी बर्थ कन्फर्म हो गई. हालांकि मुझे मिडल बर्थ मिली जो मुझे अच्छी नहीं लगती लेकिन अदिति बहूरानी से पुनर्मिलन में इन छोटी मोटी परेशानियों से कोई फर्क नहीं, अगर जनरल क्लास में भी जाना पड़ता तब भी मैं एक पैर पर खड़े होकर जाने को तैयार था.
मिडल और अपर बर्थ का एक फायदा भी होता है. आप नीचे बैठी लड़कियों या महिलाओं की क्लीवेज और मम्में बड़े आराम से तक सकते हैं निहार सकते हैं. आजकल की लेडीज दुपट्टा तो डालती नहीं, ऊपर से ब्रा भी स्टाइलिश पहनती हैं जिसमें उनके मम्मों का आकार प्रकार अत्यंत लुभावना होकर उभरता है, अपर बर्थ्स का ये सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है कि आप चाहो तो आराम से किसी हसीना के मस्त मस्त मम्मों का दीदार करते हुए आराम से चादर के नीचे लंड को हिला हिला के मुठ मार सकते हो कोई देखने वाला टोकने वाला नहीं.
नीचे बैठी हसीना को आप अपने ख्यालों में लाकर तरह तरह से चोदते हुए मूठ मार सकते हो.
तो उस दिन ट्रेन निर्धारित समय से बीस बाईस मिनट देरी से आई. मेरी वाली बर्थ के नीचे वाली लोअर बर्थ पर एक चौबीस पच्चीस साल की आकर्षक नयन नक्श वाली खूबसूरत महिला थी उसने ब्लैक टॉप और जीन्स पहन रखा था. वो एक हाथ में सिक्स इंच वाला स्मार्ट फोन लिये नेट सर्फ़ कर रही थी, दूसरे हाथ से एक अंग्रेजी पत्रिका के पन्ने भी पलटे जा रही थी. ट्रेन की खिड़की की तरफ वाले प्लग में उसने अपना लैपटॉप लगा रखा था.
ऐ.सी.कोच में ज्यादातर ऐसे ही नज़ारे देखने को मिलते हैं. हर कोई अपने आप को ख़ास और व्यस्त दिखलाने का प्रयास करता है.
सौभाग्य से नीचे वाली महिला, नहीं, उसे महिला कहना अनुचित होगा, लड़की के टॉप का गला कुछ ज्यादा ही बड़ा था जिससे उसके अधनंगे बूब्स के दर्शन मुझे बहुत पास से बड़ी अच्छी तरह से हो रहे थे, मतलब आँखें सेंकने यानि चक्षु चोदन का पूरा पूरा इंतजाम था.
उसके सामने वाली बर्थ पर एक ताजा ताजा जवान हुई छोरी थी जो किसी मोटी किताब के पन्ने पलट रही थी और एक नोटबुक में कुछ लिखती भी जा रही थी साथ में बार बार अपना मोबाइल भी चेक करती जाती, शायद उसका कल कोई एग्जाम था जिसकी तैयारी में थी.
यही सब देखते देखते मुझे नींद आने लगी साथ ही पेशाब भी लग आई थी. मैं उठा और टॉयलेट में घुसा और जल्दी जल्दी निबटने लगा. नज़र सामने पड़ी तो दीवार पर जगह जगह चूत के चित्र बने हुए थे साथ में कॉल गर्ल्स के फोन नम्बर शहर के नाम के साथ लिखे थे. हो सकता है ये असली कालगर्ल्स के नंबर हों या किसी ने किसी लड़की को परेशान करने के लिए उसके असली नम्बर शहर के नाम के साथ लिख दिए हों.
कई चित्रों में चूत में लंड घुसा था और चूत की शान में कई शायरी भी लिखीं थीं. ऐसे अश्लील चित्र हमारी ट्रेन्स के लगभग हर टॉयलेट में मिल जाते हैं. पता नहीं किस तरह के लोग ये सब गन्दगी फैलाते हैं. महिलायें भी ये सब देखती पढ़ती होंगी. कुछ सिरफिरे लोग किसी लड़की से चिढ़ कर उसका नंबर इस तरह शहर के नाम के साथ लिख देते हैं फिर लोग उन्हें कॉलगर्ल समझ कर फोन करते हैं.
अंत में उस बेचारी लड़की को वो नम्बर हटाना ही पड़ता है.
टॉयलेट से वापिस आकर मैं सोने की कोशिश करने लगा. मेरा स्टेशन सुबह पांच बजे आना था तो मैं सुबह चार बजे ही उठ गया.
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