Yesterday, 04:42 AM
मेरा नाम निशाबाला है. मैं २७ वर्ष की हूँ. मेरी एक बेटी भी है ; मेरी एक छोटी बहन भी है जो २३ साल की है. उसकी भी एक बच्ची है . मेरी छोटी बहन का नाम उषाबाला है. हम दोनों बहनें एक एस्कोर्ट क्लब में मर्दों की हमबिस्तर होने का काम करती हैं. हमें इसमें तनिक भी लज्जा या शर्म नहीं है. आजकल पुरुष ऐसी चटक छोकरियाँ चाहते हैं जो हमबिस्तर होने के दौरान बेशर्मी के साथ अश्लील बोल कर उन्हें मज़ा दे.
प्रायः हम दोनों की बुकिंग एक साथ होती है.
हम दोनों ने पहले मोडलिंग का काम किया, अर्धनग्न और नग्न. फिर एक लिक-कला मंडली के थिएटर में उत्तेजक नृत्य व अश्लील बोल गाने का काम किया; फिर डांस क्लब में केबरे गर्ल बन नंगी नाचने का काम किया. तत्पश्चात एस्कोर्ट क्लब ज्वाइन किया. यहाँ हमें आमदनी ज्यादा होने लगी. परसों मेरे पास एक प्रोडूसर सेठ आया, उसने नगी-फिल्म में काम का भरोसा दिया है.
तीन दिन पहले हम दोनों बहनों को एक एजेंट के मार्फ़त एक भद्र परिवार ने बुक किया. हम बहनों को इस परिवार के सभी सदस्यों के साथ निहायत गन्दी, भद्दी व अश्लील काम-क्रीड़ा करनी थी जो कि हमारा पवित्र पेशा, प्रोफेशनल सर्विस है. यहाँ हमें दादा, पिता व पुत्र की तिकड़ी के साथ उन्हें खुश करना था और साथ ही पिता की सुमधुर दो पुत्रियों के साथ व उनकी अम्मी के साथ लेज्बियन कृत्य भी करना था. यह कठिन काम था. क्योंकि कुल छह लोगों के साथ नग्न होकर चुदाई का खेल खेलना था.
दादा जी का नाम दंडकप्रसाद था, वे ६७ वर्ष के हो चुके थे, उनका पुत्र चंडूप्रसाद ४७ का था, व उनका पौत्र अर्थात चंडूप्रसाद का पुत्र गंडकप्रसाद २७ का अर्थात मेरी उम्र का. उसकी दो बहनें २५ व २३ वर्ष की थीं. माता ४३ वर्ष की सुघड़ पुष्ट व मरदान थी.
हम दोनों बहनें पहले पहल दादा जी के सत्कार के लिए इठलाती हुईं उनके दुर्लभ शरीर की पास पहुँचीं. दादाजी, कहना पड़ेगा कि काफी तगड़े व बलिष्ठ थे. उन्होंने सीधा हमारी गांड पर धौल जमाया और हमें भद्दा इशारा किया कि हम उनके हथियार अर्थात लंड को अपने कोमल मखमली हाथों से सहलाएं. मैं २७ की व मेरी बहन २३ की, तो हम दोनों ने उनके लंड पर हाथ जमाया, और फुसफुसाकर उनसे बोली – ” दादा जी आपका लौड़ा तो बहुत मोटा, कड़ा, मस्त-गरम है; आह दादाजी! आपका लंड तो बड़ा पुष्ट है, आह दादाजी, ये तो और मोटा लम्बा हो रहा!! ” बता दूं कि दादा जी के लंड के चहुँ और घनी झांटें थीं. उनका अंडकोष भी भारी था.
दादा जी एक साथ हम दो बहनों की गांड को दबा-दबा कर छेड़ रहे थे. उन्होंने अब हमें नंगी हो जाने को कहा – ” नंगी हो जाओ मेरी बुलबुलों! ” यह कह कर उन्होंने शीघ्रता से हम दो छोकरियों को नग्न कर डाला. फिर वो खुद मादरजात नंगे हो गए. जब मैंने दादा जी को पूर्ण नग्न देखा तो मैं सहम गई. उनकी जांघें बहुत भरी और चौड़ी थीं; अंडकोष ऐसे जैसे सांड के हों, और लंड बड़ा लम्बा-मोटा. हाय राम ये कैसे हमारी छोटी चूत में फंसेगा? फिर मैं सोचने लगी, ” दादा जी एक साथ हम दो को कैसे चोदेंगे?? ” मेरी छोटी बहन तो दादा जी का करार बदन देख सहम गई. शायद दादा ने हमारी घबराहट ताड़ ली. वे अपने सहायकों से बोले. ” अरे बच्चियों को कुछ मीठा-मीठा खाने को दो. उनके कहने की देर थी की थोड़ी देर में ही गंडकप्रसाद की दो बहनें कलाकंद, गुलाबजामुन व रसगुल्ले ले कर आ गईं. हमें दिया तो हम नंगी अवस्था में ही वह मिठाई खाने, चाटने व निगलने लगीं. रसगुल्ले व गुलाबजामुन की चाशनी में इलायची घुली हुई थी. विपरीत इसके दादा जी शराब गटक रहे थे. मैंने मन में कहा – आज हमारी खैर नहीं. मेरी छोटकी बहन चाव से चाशनी चूंस रही थी. छोटकी की चूत बहुत ही नन्ही और नाजुक थी. मैं सोचने लगी दादा इसमें अपना लंड कैसे घुसाएंगे? खून आ जाएगा!
जैसे ही हमने मिठाई ख़त्म की दादा हम दोनों की चूत में अंगुली डालने की तैय्यारी करने लगे. वे हौले-हौले हमारी चूत को सहलाने लगे. उन्होंने हमारी टंगे चौड़ी कर दी. फिर वो अंगुली फंसाने को लपके, चूत के भीतर अंगुली मारने. दादा ने तब मुझे आँख मारी – कहा – ” बड़की, तू पहले आएगी या छोटकी को पहले चोदूं? ” मैं हँसते हुए दादा प्यारे के पास सरक गई. वो मेरे पर चढ़ गए. आह, उनका तोंद वाला पेट मेरे कोमल पेट से सता, और उन्होंने दो अंगुल घुसेड़ कर मेरी चूत चौड़ी की. फिर उन्होंने फ़ोर्स से, वेग से अपना टन्नाया हुआ लौड़ा मेरी चूत में फंसा दिया, शायद तीन इंच जरूर. दादा मुझे छोड़ते हुए मेरी छोटी बहन की चूत में भी एक हाथ से अंगुल गड़ा रहे थे. साथ ही वे दूसरे हाथ की एक अंगुल मेरी गांड में गड़ा रहे थे, आह! मुझे पहले तो दर्द हुआ, पर कोई पंद्रह मिनट बाद धीरे-धीरे दादा ने अपना लंड ५ इंच भीतर पेल दिया तब मुझे भी मज़ा आने लगा. फिर तो मैं लज्जाहीन हो कहने लगी – ” दादा, और जोश से छोड़ो अपनी नन्ही मुन्नी को!!
फिर दादा दंडकप्रसाद ने मुझे पौन घंटे रगड़ कर चोदा. मेरी सांस फूल गई.
प्रायः हम दोनों की बुकिंग एक साथ होती है.
हम दोनों ने पहले मोडलिंग का काम किया, अर्धनग्न और नग्न. फिर एक लिक-कला मंडली के थिएटर में उत्तेजक नृत्य व अश्लील बोल गाने का काम किया; फिर डांस क्लब में केबरे गर्ल बन नंगी नाचने का काम किया. तत्पश्चात एस्कोर्ट क्लब ज्वाइन किया. यहाँ हमें आमदनी ज्यादा होने लगी. परसों मेरे पास एक प्रोडूसर सेठ आया, उसने नगी-फिल्म में काम का भरोसा दिया है.
तीन दिन पहले हम दोनों बहनों को एक एजेंट के मार्फ़त एक भद्र परिवार ने बुक किया. हम बहनों को इस परिवार के सभी सदस्यों के साथ निहायत गन्दी, भद्दी व अश्लील काम-क्रीड़ा करनी थी जो कि हमारा पवित्र पेशा, प्रोफेशनल सर्विस है. यहाँ हमें दादा, पिता व पुत्र की तिकड़ी के साथ उन्हें खुश करना था और साथ ही पिता की सुमधुर दो पुत्रियों के साथ व उनकी अम्मी के साथ लेज्बियन कृत्य भी करना था. यह कठिन काम था. क्योंकि कुल छह लोगों के साथ नग्न होकर चुदाई का खेल खेलना था.
दादा जी का नाम दंडकप्रसाद था, वे ६७ वर्ष के हो चुके थे, उनका पुत्र चंडूप्रसाद ४७ का था, व उनका पौत्र अर्थात चंडूप्रसाद का पुत्र गंडकप्रसाद २७ का अर्थात मेरी उम्र का. उसकी दो बहनें २५ व २३ वर्ष की थीं. माता ४३ वर्ष की सुघड़ पुष्ट व मरदान थी.
हम दोनों बहनें पहले पहल दादा जी के सत्कार के लिए इठलाती हुईं उनके दुर्लभ शरीर की पास पहुँचीं. दादाजी, कहना पड़ेगा कि काफी तगड़े व बलिष्ठ थे. उन्होंने सीधा हमारी गांड पर धौल जमाया और हमें भद्दा इशारा किया कि हम उनके हथियार अर्थात लंड को अपने कोमल मखमली हाथों से सहलाएं. मैं २७ की व मेरी बहन २३ की, तो हम दोनों ने उनके लंड पर हाथ जमाया, और फुसफुसाकर उनसे बोली – ” दादा जी आपका लौड़ा तो बहुत मोटा, कड़ा, मस्त-गरम है; आह दादाजी! आपका लंड तो बड़ा पुष्ट है, आह दादाजी, ये तो और मोटा लम्बा हो रहा!! ” बता दूं कि दादा जी के लंड के चहुँ और घनी झांटें थीं. उनका अंडकोष भी भारी था.
दादा जी एक साथ हम दो बहनों की गांड को दबा-दबा कर छेड़ रहे थे. उन्होंने अब हमें नंगी हो जाने को कहा – ” नंगी हो जाओ मेरी बुलबुलों! ” यह कह कर उन्होंने शीघ्रता से हम दो छोकरियों को नग्न कर डाला. फिर वो खुद मादरजात नंगे हो गए. जब मैंने दादा जी को पूर्ण नग्न देखा तो मैं सहम गई. उनकी जांघें बहुत भरी और चौड़ी थीं; अंडकोष ऐसे जैसे सांड के हों, और लंड बड़ा लम्बा-मोटा. हाय राम ये कैसे हमारी छोटी चूत में फंसेगा? फिर मैं सोचने लगी, ” दादा जी एक साथ हम दो को कैसे चोदेंगे?? ” मेरी छोटी बहन तो दादा जी का करार बदन देख सहम गई. शायद दादा ने हमारी घबराहट ताड़ ली. वे अपने सहायकों से बोले. ” अरे बच्चियों को कुछ मीठा-मीठा खाने को दो. उनके कहने की देर थी की थोड़ी देर में ही गंडकप्रसाद की दो बहनें कलाकंद, गुलाबजामुन व रसगुल्ले ले कर आ गईं. हमें दिया तो हम नंगी अवस्था में ही वह मिठाई खाने, चाटने व निगलने लगीं. रसगुल्ले व गुलाबजामुन की चाशनी में इलायची घुली हुई थी. विपरीत इसके दादा जी शराब गटक रहे थे. मैंने मन में कहा – आज हमारी खैर नहीं. मेरी छोटकी बहन चाव से चाशनी चूंस रही थी. छोटकी की चूत बहुत ही नन्ही और नाजुक थी. मैं सोचने लगी दादा इसमें अपना लंड कैसे घुसाएंगे? खून आ जाएगा!
जैसे ही हमने मिठाई ख़त्म की दादा हम दोनों की चूत में अंगुली डालने की तैय्यारी करने लगे. वे हौले-हौले हमारी चूत को सहलाने लगे. उन्होंने हमारी टंगे चौड़ी कर दी. फिर वो अंगुली फंसाने को लपके, चूत के भीतर अंगुली मारने. दादा ने तब मुझे आँख मारी – कहा – ” बड़की, तू पहले आएगी या छोटकी को पहले चोदूं? ” मैं हँसते हुए दादा प्यारे के पास सरक गई. वो मेरे पर चढ़ गए. आह, उनका तोंद वाला पेट मेरे कोमल पेट से सता, और उन्होंने दो अंगुल घुसेड़ कर मेरी चूत चौड़ी की. फिर उन्होंने फ़ोर्स से, वेग से अपना टन्नाया हुआ लौड़ा मेरी चूत में फंसा दिया, शायद तीन इंच जरूर. दादा मुझे छोड़ते हुए मेरी छोटी बहन की चूत में भी एक हाथ से अंगुल गड़ा रहे थे. साथ ही वे दूसरे हाथ की एक अंगुल मेरी गांड में गड़ा रहे थे, आह! मुझे पहले तो दर्द हुआ, पर कोई पंद्रह मिनट बाद धीरे-धीरे दादा ने अपना लंड ५ इंच भीतर पेल दिया तब मुझे भी मज़ा आने लगा. फिर तो मैं लज्जाहीन हो कहने लगी – ” दादा, और जोश से छोड़ो अपनी नन्ही मुन्नी को!!
फिर दादा दंडकप्रसाद ने मुझे पौन घंटे रगड़ कर चोदा. मेरी सांस फूल गई.