Thread Rating:
  • 2 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Thriller छलावा
#1
रश्मि सिंह (प्रोटागोनिस्ट) 
उम्र: 23 वर्ष  
भूमिका: राष्ट्रीय जांच विंग (NIW) की भारतीय जासूस  
शारीरिक लक्षण: रश्मि सिंह की ऊंचाई 5'8'' है और उसका वजन लगभग 57 किलो है। उसका शरीर एक आदर्श संतुलन और फिटनेस का प्रतीक है। हर मांसपेशी में आत्मसंयम और मेहनत का स्पष्ट चित्रण है। उसकी शारीरिक संरचना 34-26-34 के अनुपात में है, जो उसकी कठोर मेहनत और जिम में बिताए गए घंटों की कहानी बयां करती है। उसकी लंबी, सुंदर टांगें और सुडौल कूल्हे, उसकी फिटनेस के सबूत हैं।  
पृष्ठभूमि: रश्मि के माता-पिता का जब वह केवल 12 साल की थी, गैंगस्टरों ने मर्डर कर दिया था। इसके बाद, उसे अपने पिता के दोस्त के घर पली-बढ़ी, जो अब NIW के प्रमुख हैं।  
शिक्षा: पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातक और मास्टर डिग्री।  
व्यक्तित्व: रश्मि एक मजबूत, स्वतंत्र, और भावनात्मक रूप से जटिल महिला है। वह उच्च दबाव में काम करती है, और आइशा के साथ उसकी गहरी भावनात्मक संबंध हैं।  

---

शाम का समय था, और सूर्य की किरणें धीरे-धीरे क्षितिज में समा रही थीं। रश्मि सिंह आईने के सामने खड़ी थी, अपने बालों की लटों को सलीके से सँवारते हुए। उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास था, जो हर कदम पर महसूस हो रहा था। उसकी आँखों में एक असामान्य चमक थी, जैसे वह केवल अपनी उपस्थिति को नहीं, बल्कि अपने आत्मविश्वास को भी संजो रही हो।  

उसके बाल हल्के कर्ल में थे, जो उसकी गर्दन के ऊपर गिर रहे थे, जैसे वो एक चित्र का हिस्सा हों। उसकी छोटी-सी बिंदी और चमकीली ज्वेलरी ने उसकी सुंदरता को और निखार दिया था, जैसे वह एक पूर्ण रूप में बसी हो।  

रश्मि ने शानदार बेज और गोल्डन रंग का लहंगा पहना था, जिसमें नाजुक एम्ब्रॉयडरी की गई थी। लहंगे की कढ़ाई ने उसकी सुंदरता और भी उभार दी थी, मानो वह खुद को किसी नई पहचान में देख रही हो। उसकी शारीरिक संरचना ने इस पोशाक को और भी प्रभावशाली बना दिया था।  

रश्मि का कद 5'8" था और शारीरिक माप 36-28-36 थे। उसकी खूबसूरत और सुडौल काया के हर हिस्से में कड़ी मेहनत और आत्मसंयम की छाप थी। उसके लंबी और सुडौल टांगें उसकी चाल में एक आकर्षक लय और संतुलन भर देती थीं।  

कमरे की हल्की रोशनी में उसकी त्वचा एक अद्वितीय चमक बिखेर रही थी, जैसे वह किसी परी की तरह खड़ी हो। उसकी मुस्कान में एक गहरी संतुष्टि थी, जैसे वह अपनी बाहरी और आंतरिक सुंदरता को पूरी तरह से महसूस कर रही हो।  

"आज का दिन खास है," उसने मन ही मन सोचा, और अपनी मुस्कान को और भी गहरा कर दिया। यह सिर्फ बाहरी तैयारी नहीं थी, बल्कि अपने भीतर के आत्मविश्वास को खोजने का एक प्रयास था। "ओफ्फो! मैं लेट हो रही हूँ, मुझे साफिया को भी पिक करना है," उसने खुद से कहा।  

साफिया खान, रश्मि की सबसे पहली और प्रिय दोस्त थी। उसके बिना दिन अधूरा सा लगता था। रश्मि ने एक आखिरी बार आईने में खुद को देखा, फिर अपनी कार की चाबी उठाई और साफिया के घर की ओर बढ़ चली।  

---

घर की ओर:

रश्मि अपनी कार से साफिया के घर पहुंची। दरवाजे पर दस्तक देते ही सामने अमीना आंटी खड़ी थीं। हल्के गुलाबी सलवार-कुर्ते में लिपटीं, उनके चेहरे पर एक खास चमक थी। उम्र के साथ आई गहराई और गरिमा उनकी सुंदरता को और भी निखार रही थी। उनकी गोरी, मुलायम त्वचा में हल्की सुनहरी आभा थी, जो मानो हर पल उनके सौंदर्य को और बढ़ा रही थी। उनकी बड़ी, दयालु आँखों में एक अद्भुत आकर्षण था, मानो उन्होंने जीवन की कठिनाइयों को आत्मसात कर एक विशेष नज़ाकत में बदल दिया हो। अमीना आंटी का शरीर एक संतुलन में था—चौड़े कंधे और मजबूत छाती उनके आत्मविश्वास का प्रतीक थे। उनकी हल्की मुस्कान हमेशा उनके होंठों पर ठहरी रहती थी, जो उनके शांत, आत्मीय व्यक्तित्व को उजागर कर रही थी।  

“रश्मि बेटा, तुम कितनी प्यारी लग रही हो आज!” अमीना ने मुस्कुराते हुए कहा।  

रश्मि ने आंटी को दुआ में सिर झुका कर प्रणाम किया और कहा: "आइशा कॉलेज चली गई है?"  

"हाँ, वो लोग तो तैयारी करने सुबह से चले गये हैं।" अमीना आंटी ने तुरंत जवाब दिया।  

"और अहमद?" रश्मि ने उत्सुकता से पूछा।  

अमीना ने हल्की हंसी में कहा, "पड़ा होगा वहीं कहीं मस्जिद के पास अपने दोस्तों के साथ, और क्या काम है उसका?"  

रश्मि ने सिर हिलाते हुए कहा, "सच में, वो तो बस वहीं रहता है। कभी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता।"  

कुछ देर बाद, साफिया दरवाजे से बाहर आई। उसने काले रंग का बुर्का पहन रखा था। साफिया, रश्मि की बचपन की दोस्त थी, और दोनों ने BJMC और MJMC साथ ही किए थे। संघर्षों के बावजूद, साफिया ने खुद को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाया था। उसकी अंतर्मुखी और शांत स्वभाव की छवि उसके आत्मविश्वास में झलकती थी, जो उसकी सादगी को और बढ़ा देती थी।  

रश्मि ने थोड़े गुस्से से कहा, "आंटी, आज भी?"  

अमीना ने जवाब दिया, "मैंने कुछ नहीं कहा है, वो अपनी मर्जी से पहनी है।"  

रश्मि ने कुछ नहीं कहा और साफिया के साथ बाहर आ गई।  

जब वे कार में बैठ गईं, तो रश्मि ने चुटकी लेते हुए कहा, "तू नहीं छुप सकती साफिया, तेरी खूबसूरती के ये बड़े बड़े उभार, ये ऊपर जो दिख रहे हैं, वैसे ही झलकते हैं। इसे उतार दे, आज हम सब दोस्त हैं।"  

साफिया थोड़ी मुस्कुराई और रश्मि की बात मानकर बुर्का हटा दिया। हल्का नीला और सफेद कुर्ता उसकी गोरी, मुलायम त्वचा को और निखार रहा था। साफिया की ऊंचाई लगभग 5'5" (165 सेमी) थी, और उसकी शारीरिक माप 34-30-34 (चेस्ट-फेस-हिप) थी। कुर्ते के नीचे, उसका सुडौल शरीर और बेलनाकार कूल्हे, उसके आत्मविश्वास का प्रमाण बन गए थे। उसकी आँखों में चमक और मुस्कान में एक खास आकर्षण था, जो उसे और भी सुंदर बना रहा था।  

रश्मि ने कहा, "देख, अब तू कितनी सही लग रही है, वाह! क्यों न इसे हमेशा के लिए छोड़ दे? तेरा ये लुक तो सच में सबको आकर्षित करता है।"  

साफिया ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुकाया, और रश्मि की बातों में कुछ सच्चाई महसूस की।  

---

साफिया का संघर्ष:

साफिया खान, 21 वर्ष की उम्र में, अपने जीवन के सबसे मुश्किल वक्त से गुजर रही थी। जब वह केवल 15 साल की थी, तब उसके अब्बू अचानक सबको छोड़कर चले गए। उस दिन का शून्य आज भी उसके दिल में एक ठंडी परछाई की तरह था। उसके अब्बू का बिना कुछ बताए घर छोड़ जाना, साफिया के लिए एक ऐसे खालीपन का कारण बन गया था, जिसे भर पाना असंभव सा लगता था। उसकी माँ, अमीना, अकेले अपने तीन बच्चों की परवरिश कर रही थीं। घर की स्थितियों ने साफिया को एक बड़ी जिम्मेदारी का अहसास दिलाया था, और इसी कारण वह अक्सर अपनी दुनिया से ही कट गई थी। उसकी आंखों में कई बार गहरे दर्द और चुप्प की छाया होती थी, जैसे वह किसी विशाल शून्य में खो जाने का डर रखती हो।

कॉलेज के समय में एक दिन, रश्मि और साफिया एक पार्क में बैठकर बातें कर रही थीं। सूरज की हल्की किरणें पत्तियों से छनकर उनके चेहरे पर पड़ रही थीं। रश्मि ने साफिया से उसके अब्बू के बारे में पूछा, “क्या हुआ तुम्हारे अब्बू को?”

साफिया ने हल्का सा मुँह चिढ़ाते हुए कहा, “पता नहीं यार, हमें छोड़कर कहीं चले गए हैं। उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया है। अब तो हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा, क्या करेंगे, कैसे रहेंगे…” उसकी आवाज़ में गुस्सा और दर्द था, जैसे कुछ चीज़ें बर्दाश्त नहीं हो रही थीं। वह उन शब्दों के साथ बहुत सारी चुप्पी को समेटे हुए थी, जो उसे अंदर से खा रही थी।

रश्मि ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “तुम रो सकती हो, कोई बात नहीं। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” उसकी बातों ने साफिया का दिल हल्का किया, और उसे लगा कि वह अकेले नहीं है।

साफिया की आँखों में आंसू थे, लेकिन वह अपनी भावनाओं को छुपाने की कोशिश कर रही थी। धीरे से बोली, “अम्मी इतनी मेहनत कर रही हैं, और मुझे लगता है मैं कुछ भी नहीं कर पा रही।"

रश्मि ने उसकी आँखों में गहरी नज़र डालते हुए कहा, “तुम्हारी अम्मी को तुम पर बहुत गर्व होगा। तुम बहुत मजबूत हो, और ये सब भी सही हो जाएगा, बस वक्त की बात है।” रश्मि की बातों में वह ताकत थी, जो साफिया को खुद पर विश्वास दिला देती थी। वह जानती थी कि सच्ची दोस्ती का मतलब कभी हार मानना नहीं होता।

कुछ दिन बाद, जब साफिया को पैसों की तंगी का सामना करना पड़ा, तो रश्मि ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी बचत से पैसे दिए। साफिया ने हैरानी से देखा और बोली, “तुम्हें मेरी मदद नहीं करनी चाहिए थी।” उसकी आंखों में एक सवाल था, क्या सच में रश्मि उसे इस हद तक अपना समझती थी?

रश्मि मुस्कुराते हुए बोली, “यार, तुम मेरे लिए सब कुछ हो। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो, और मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगी। मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारी मदद कर पाई।” रश्मि की इन बातों में एक गहरी सच्चाई थी, जो साफिया के दिल को छू गई।

साफिया ने रश्मि की बातें सुनकर सोचा, कि दूसरों से मदद लेना कोई कमजोरी नहीं होती। उसने महसूस किया कि उसकी दोस्ती ने उसे एक नई ताकत दी थी, और अब वह खुद को और भी मजबूत महसूस करने लगी थी। वह समझ गई कि रश्मि के बिना उसकी दुनिया कुछ अधूरी सी है। जब भी उसे किसी चीज़ की ज़रूरत होती, रश्मि बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी मदद करती, और यह भरोसा साफिया के लिए एक अनमोल तोहफा था।

इस तरह, उनकी दोस्ती और भी गहरी होती चली गई, और हर मुश्किल ने उन्हें और भी करीब ला दिया। दोनों की ज़िन्दगी में एक-दूसरे का साथ न केवल सहारा था, बल्कि यह एक नई उम्मीद भी बन गई थी, कि मुश्किलें चाहे जैसी भी हों, दोस्ती का रिश्ता हमेशा मजबूत रहेगा।


कॉलेज में दोस्त और फेयरवेल:


कॉलेज में पहुंचने पर रश्मि और साफिया का स्वागत उनके दोस्तों ने किया, जिनमें आर्यन, नताशा और समीर शामिल थे। पूरे कॉलेज में एक उत्सव का माहौल था, जहाँ सभी लोग अपनी पुरानी यादों और अनुभवों को साझा कर रहे थे। रश्मि और साफिया ने एक कोने में बैठकर कॉलेज के दिनों की यादों को ताजा किया, जैसे उन यादों को एक बार फिर से जी रहे हों।

"याद है, पहली बार जब हम कॉलेज आये थे? तुम कितनी घबराई हुई थी!" रश्मि ने हंसते हुए कहा, और उसकी हंसी ने साफिया के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी।

साफिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "और तुम कितनी आत्मविश्वासी लग रही थीं। बिल्कुल उस दिन से आज तक तुम वही हो!"

आर्यन ने चुटकी लेते हुए कहा, "हाँ, लेकिन उसके बाद साफिया के आत्मविश्वास ने भी किसी रॉकेट की तरह उड़ान भरी!" सभी हंसी में शामिल हो गए, और नताशा ने हल्के से कहा, "बिल्कुल, साफिया! अब तुम तो सबकी प्यारी हो।"

यह बातचीत हंसी-ठिठोली में बदल गई, और सभी दोस्तों के चेहरे पर खुशी की झलक दिखाई देने लगी। इसी बीच, आइशा भी वहां आ गई। वह अपनी चुलबुली मुस्कान के साथ रश्मि और साफिया के बीच की हंसी-ठिठोली में शामिल हो गई। "क्या बात है, दीदी? तुम दोनों फिर से पुरानी बातें कर रही हो?" उसने चिढ़ाते हुए कहा।

आइशा, जो साफिया की छोटी बहन थी, अपनी मासूमियत और चुलबुले अंदाज के लिए जानी जाती थी। हलके रंग की ड्रेस पहनने के कारण उसकी मासूमियत और खूबसूरती और भी निखर रही थी। उसकी त्वचा बेबी-पिंक थी, और उसकी मुस्कान बिल्कुल आकर्षक थी। उसकी उम्र लगभग 19 साल थी, और वह अपनी उम्र से कुछ छोटी दिखती थी।

आइशा की शारीरिक संरचना पतली और संतुलित थी, और उसकी छाती और कूल्हों का आकार मध्यम था, जो उसे एक युवा और आकर्षक रूप देता था। उसके काले, घने बाल खुले हुए थे, जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। वह हमेशा आधुनिक फैशन के कपड़े पहनती थी, जो उसके आत्मविश्वास को दर्शाते थे। आइशा की आंखों में हमेशा एक चंचलता और मासूमियत होती, जो उसे सबकी प्रिय बनाती थी।

"आइशा, तुम भी तो कुछ कहो!" रश्मि ने हंसी-हंसी में कहा, और आइशा ने चंचलता से कहा, "मैं बस यह सोच रही थी कि आज रात को आप स्टेज पर जो डांस दिखाने वाली हो, उससे यहां के सब बेचारों का क्या होगा!" उसकी बात ने सबको हंसी में डाल दिया।

फेयरवेल पार्टी का जश्न:

फेयरवेल पार्टी का माहौल उत्साही और जोश से भरपूर था। जैसे ही रश्मि स्टेज पर आई, उसकी उपस्थिति ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उसने अपनी नीली फिटिंग वाली ड्रेस पहनी थी, जो उसके शरीर की हर खूबसूरत आकृति को उभार रही थी। उसके बाल कंधों से लहराते हुए गिर रहे थे, जो उसे और भी आकर्षक बना रहे थे। जैसे ही संगीत की धुन शुरू हुई, रश्मि ने अपने पैरों को हल्के से म्यूजिक के बीट्स के साथ थिरकाना शुरू किया। उसकी हर हरकत में एक अनोखा आत्मविश्वास था; वह अपने हाथों को हवा में लहराते हुए, उन्हें खूबसूरती से ऊपर उठाती, जैसे वह दर्शकों के दिलों को छू रही हो।

जब गाना रोमांटिक मोड़ पर पहुंचा, रश्मि ने अपने हाथों को अपने दिल की ओर रखा, जैसे वह अपने जज़्बातों को दर्शकों के साथ साझा कर रही हो। उसकी आँखों में चमक थी, जो दर्शकों से सीधा संपर्क बना रही थी। उसकी मुस्कान में ऐसा जादू था, जो किसी भी व्यक्ति को अपनी ओर खींच सकता था। जैसे ही गाना तेज हुआ, रश्मि ने अपने मूवमेंट्स को और ऊर्जावान बना दिया। वह कूदती और घूमती, उसके पैरों की गति इतनी तेज थी कि ऐसा लगता था जैसे वह हवा में उड़ रही हो।

जैसे ही वह स्टेज के एक कोने में पहुंची और अपनी कलाई को लहराया, दर्शकों की तालियों की गूंज ने हॉल को भर दिया। रश्मि जानती थी कि उसे न केवल नृत्य करना है, बल्कि दर्शकों को एक ऐसा अनुभव देना है, जो उन्हें हमेशा याद रहे। उसकी ड्रेस, उसकी चाल और उसका आत्मविश्वास सब कुछ मिलकर एक अद्भुत नजारा बना रहे थे।

जब पार्टी खत्म हुई, तो सभी दोस्त एक-दूसरे से गले मिल रहे थे, और अपनी यादों को संजोते हुए पल भर के लिए सभी के चेहरे पर एक संतुष्टि और खुशी की झलक थी। तभी समीर ने कहा, "अरे, क्यों न हम एक ड्रिंक पार्टी कर लें? मेरी कार में थोड़ी शराब है, हम वहीं मज़ा कर सकते हैं।"

साफिया ने थोड़ी आशंका से देखा, "पर मैं नहीं पीऊँगी।"

रश्मि ने उसे समझाते हुए कहा, "चलो, साफिया! थोड़ा मस्ती भी तो जरूरी है।" हालांकि साफिया ने खुद को इससे दूर रखा, लेकिन आइशा ने थोड़ी ली। साफिया को यह पसंद नहीं आया, क्योंकि उसे लगा कि आइशा को यह नहीं करना चाहिए था।

"तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था, आइशा," साफिया ने चिंता भरी आवाज में कहा।

आइशा ने चिढ़ाते हुए कहा, "अरे, थोड़ा मज़ा तो करो! ये पार्टी है, साफिया!" लेकिन वह साफिया के प्रति भी चिंतित थी। इस बीच, रश्मि ने हल्का सा मज़ाक करते हुए आइशा का समर्थन किया, "देखो साफिया, थोड़ी मस्ती भी ज़रूरी है। आइशा बस थोड़ी खुश थी।"

रश्मि ने दोनों को गाड़ी में बैठाया और उन्हें घर छोड़ने का निर्णय लिया। रास्ते में आइशा ने रश्मि की तारीफ की। "आपका डांस तो ऐसा था, जैसे कोई सपना सच हो गया हो। मैं तो बस आपको देखती रह गई! वाव!" आइशा की आँखों में खुशी के आंसू थे।

रश्मि ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "तुम्हारी तारीफों का क्या? तुम भी अपनी बहन की तरह बहुत खूबसूरत हो।"

जब रश्मि अपने घर पहुँची, तो उसने पार्टी की सभी यादों को मन में फिर से ताजा किया। उसे अपने दोस्तों की हंसी, उनकी बातें और खासकर आइशा की मासूमियत याद आई। साफिया की चिंताओं के बावजूद, वह जानती थी कि आइशा ने थोड़ी मस्ती बस की है, और रश्मि ने उसे थोड़ा और खुलकर जीने के लिए प्रेरित किया। उसने बिस्तर पर लेटते हुए सोचा, "यह रात सच में खास थी।" और धीरे-धीरे नींद में खो गई, यह सोचते हुए कि अगले कदम क्या होंगे।




रिजल्ट डे की शुरुआत:


रश्मि उस सुबह जल्दी उठ जाती है, जैसे ही उसकी आँखें खुलती हैं, उसे ऐसा लगता है कि दिल की धड़कनें तेज़ हो गई हैं, जैसे कुछ खास होने वाला हो। नर्वसनेस और बेचैनी ने उसे घेर लिया है, और वह खुद को शांत करने की कोशिश करती है, लेकिन यह असंभव सा लगता है। उसने हल्की ग्रे रंग की टी-शर्ट पहनी है, जो धूप में एकदम पारदर्शी हो गई है, और उसकी काली ब्रा का उभार उसे असमंजस में डालता है। यह साधारण सी पोशाक उसके अंदर चल रहे द्वंद्व को उजागर करती है। आत्म-विश्वास की चाहत और मानसिक तनाव के बीच वह कहीं खो सी गई है।

वह बालकनी में खड़ी होकर आसमान को निहारती है। नीला आकाश, सूरज की किरणें, और हल्की सी हवा—सभी कुछ उसे शांति का अहसास दिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन उसकी आँखों में एक खास सी चमक है, जिसमें उम्मीदें और चिंताएँ एक साथ समाहित हैं। वह कुछ पल के लिए बंद आँखों से अपने माता-पिता की यादों में खो जाती है, जैसे वह उन्हें इस खास मौके पर अपनी दुआओं में शामिल करना चाहती है। एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर तैरने लगती है, लेकिन यह मुस्कान थोड़ी सी मायूसी भी छिपाए हुए है।

कुछ देर बाद, उसने एक सिगरेट निकाली और सुलगाई। धीरे-धीरे धुआं उसके होंठों से बाहर निकलता है, जैसे सारी चिंताएँ एक-एक करके हवा में उड़ रही हों। धुएँ के साथ, उसकी घबराहट भी थोड़ा हल्की हो जाती है। यह सिगरेट उसकी शांति के लिए एक छोटे से सहारे के जैसे थी, जो उसे थोड़ी राहत देती है, जैसे वह कुछ समय के लिए खुद को भूल जाने की कोशिश कर रही हो।

जैसे ही उसने लैपटॉप खोलने का मन बनाया, वेबसाइट खुलते ही उसके दिल की धड़कन तेज हो जाती है। रश्मि अपने अंदर के संघर्ष को महसूस करती है, उस रास्ते को याद करती है जो उसने तय किया—हर चुनौती का सामना किया, हर दर्द को सहा, और अब वह उस लम्हे के करीब आ चुकी थी, जिसका उसे वर्षों से इंतजार था।

रिजल्ट का खुलासा:

वेबसाइट पर रिजल्ट की जानकारी दिखाई देती है। उसकी आँखें एक पल के लिए थम जाती हैं, जैसे दिल ने धड़कना बंद कर दिया हो। उसने न केवल परीक्षा पास की है, बल्कि वह टॉपर्स में से एक है। यह सोचते ही उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ जाते हैं। एक छोटी सी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल उठती है, जो उसके भीतर की हार न मानने की भावना को व्यक्त करती है। यह मुस्कान उसकी मेहनत, उसके संघर्ष और अब तक के सफर का प्रतीक बन जाती है।

रश्मि की आँखों में चमक होती है, जैसे वह अपनी पूरी दुनिया को जीत चुकी हो, और फिर उसे अपनी माँ-पापा की याद आती है। उनकी दुआओं का एहसास होता है, जैसे वे वहीं कहीं उसके साथ हैं, इस पल को महसूस कर रहे हैं। उसने जो पाया है, वह न केवल अपनी मेहनत से, बल्कि अपने परिवार की प्रेरणा से भी है।


जश्न का मूड:


रश्मि की आँखों में खुशी और गर्व की चमक थी, जैसे उसकी मेहनत का फल अब उसे मिल चुका हो। उसके दिल में एक ताजगी और आत्मविश्वास का अहसास था। वह चाहती थी कि इस खुशी को वह अपने करीबी दोस्तों के साथ बांटे, जिन्होंने हमेशा उसका साथ दिया था। सबसे पहले, उसने साफिया और आइशा को कॉल किया, और उसकी आवाज़ में जो उत्साह था, वह साफ तौर पर महसूस हो रहा था। “तुरंत आओ! हमें जश्न मनाना है!” वह बोली, और फोन रखने के बाद, उसकी आँखों में एक हल्की सी मुस्कान आ गई, जैसे वह इस पल का पूरी तरह से लुत्फ़ उठाने के लिए तैयार हो।

कुछ ही मिनटों में, साफिया और आइशा उसके घर पहुँच जाती हैं। जैसे ही साफिया ने रश्मि को देखा, वह दौड़कर उसे गले लगा लेती है। “तुमने यह कर दिखाया, रश्मि!” वह चिल्लाती है, और रश्मि का दिल ख़ुशी से भर जाता है। साफिया की हर बात में एक ऐसा प्यार था, जो रश्मि को कभी-कभी अपनी सारी परेशानियों को भूलने में मदद करता था। जब साफिया घर में प्रवेश करती है, तो उसकी नजर रश्मि पर पड़ती है, और वह चिढ़ाते हुए कहती है, “ओह, वाह! क्या तुमने यह ड्रेस अपने ब्रा के विज्ञापन के लिए पहना है?” उसकी आवाज में हल्का मजाक था, और रश्मि इस पर मुस्कराती है। साफिया के साथ रश्मि की दोस्ती इतनी गहरी थी कि वह हर मजाक को सच्ची खुशी के रूप में लेती थी।

आइशा भी मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखती है, और उसकी आँखों में गर्व की चमक होती है। "मैं जानती थी दीदी, आप सफल होंगी!" आइशा का उत्साह पूरी तरह से रश्मि के दिल तक पहुँचता है। वे तीनों मिलकर एक छोटा सा जश्न मनाने लगती हैं, और इस छोटी सी खुशी को साझा करते हुए हर पल को महसूस करती हैं। आइशा के हाथ में एक बड़ा चॉकलेट केक था, जिसे उसने खास इस मौके के लिए तैयार किया था। साफिया के हाथ में रश्मि की पसंदीदा कैफे कॉफी थी, जो इस पल को और भी खास बना रही थी।

जब वे एक साथ केक काटते हैं, रश्मि की आँखों में गर्व के साथ एक नई चमक दिखाई देती है। जैसे ही साफिया रश्मि को केक खिलाने के लिए आगे बढ़ती है, वह मजाक करते हुए कहती है, “चखो, चखो! यह तुम्हारी मेहनत की मिठास है!” रश्मि मुँह चिढ़ाते हुए जवाब देती है, “तुम्हें तो अपनी ड्रेसिंग सेंस में सुधार करना पड़ेगा। यह बुर्का अब नहीं चलेगा! अगली बार मैं तुम्हें कपड़ों की दुकान ले जाऊँगी और खुद ही तुम्हारे लिए कपड़े चुनूँगी।” साफिया हंसते हुए जवाब देती है, “हाँ, मैडम! आपकी रुखाई के सामने कौन टिक सकता है?” इसके बाद तीनों मिलकर हंस पड़ती हैं, और उनका जश्न और भी खुशनुमा हो जाता है। यह उनकी दोस्ती का वह पल था, जो हमेशा के लिए उनकी यादों में बसा रहेगा।

अचानक एक कॉल:

लेकिन जश्न के बीच अचानक रश्मि के फोन पर एक कॉल आती है। वह खुशी से फोन उठाती है, लेकिन जब स्क्रीन पर देखा कि कॉल NIW के ऑफिस से है, तो उसकी धड़कनें तेज हो जाती हैं। “नमस्ते, रश्मि,” फोन पर एक गंभीर आवाज़ सुनाई देती है। “हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि आपकी ट्रेनिंग अगले दो दिनों में शुरू होने वाली है। यह ट्रेनिंग अत्यंत कठिन और गुप्त होगी, और आपको NIW की ट्रेनिंग सेंटर में रिपोर्ट करना होगा।”

यह सुनकर रश्मि का दिल थोड़ा सा घबराया हुआ महसूस करता है। उसकी आँखों में एक तेज चमक थी, लेकिन अंदर की घबराहट और उथल-पुथल उसे परेशान कर रही थी। वह खुद से सोचने लगी, “क्या मैं इसके लिए तैयार हूँ?” यह एक नया और चुनौतीपूर्ण सफर था, लेकिन साथ ही एक मौका भी था, जो उसने हमेशा चाहा था। क्या वह इसके लिए पूरी तरह से तैयार थी? उसकी सारी खुशियाँ थोड़ी देर के लिए सुसुप्त हो जाती हैं, और वह इस नए मोड़ के लिए खुद को तैयार करने लगती है।


नई शुरुआत की तैयारी:


कॉल खत्म होते ही, रश्मि अपने कमरे में जाती है, जहाँ की दीवारें उसके सपनों और आशाओं से भरी हैं। कमरे में छाई शांति के बीच, वह अपने बैग को खोलती है और उसमें ज़रूरी चीज़ें पैक करने लगती है। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान है, क्योंकि उसे इस नए सफर की शुरुआत का अहसास होता है। फिर भी, दिल के भीतर एक हलका डर और घबराहट भी है, क्योंकि वह जानती है कि यह सफर आसान नहीं होने वाला। कपड़े, ज़रूरी सामान, और ट्रेनींग के लिए आवश्यक चीज़ों को ध्यान से पैक करते हुए, उसकी आँखों में एक नई ललक है, लेकिन उसकी चिंता और आशंका भी साफ झलकती है।

साफिया और आइशा उसके पास खड़ी हैं, म्यूजिक की हल्की धुन कमरे में गूंज रही है, जिससे माहौल और भी जीवंत हो गया है। तभी उसकी नज़र एक पुरानी चीज़ पर पड़ती है – उसके पिता का सिक्युरिटी बैज। वह उसे उठाती है, और एक गहरी साँस लेकर उसे अपने हाथ में पकड़ती है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं, क्योंकि यह बैज उसके लिए सिर्फ एक धातु का टुकड़ा नहीं था, बल्कि एक प्रेरणा का प्रतीक था। यह उसे हमेशा याद दिलाता था कि उसने अपने पिता से किस प्रकार की हिम्मत और साहस पाया था।

वह उस बैज को अपने बैग में रखती है, और धीरे-से फुसफुसाते हुए कहती है, “मैं आपको गर्वित करूंगी।” उसकी आँखों में एक दृढ़ संकल्प और आत्म-विश्वास था। इस छोटी सी वस्तु के साथ, वह अपने भविष्य की ओर पहला कदम बढ़ाने के लिए तैयार होती है, यह जानते हुए कि यह यात्रा उसके माता-पिता के सपने को पूरा करने की दिशा में एक अहम कदम है।

मीर का कॉल:

जैसे ही रश्मि पैकिंग खत्म कर रही थी, उसका फोन बजता है। स्क्रीन पर समीर का नाम देखकर, उसकी आँखों में एक हल्की मुस्कान आ जाती है। समीर, जो हमेशा चुलबुला और आकर्षक रहता है, और जिसकी पार्टी वाली रातों की चर्चाएँ अक्सर होती थीं, उसे अब भी थोड़ा चिढ़ाने का मौका मिल रहा था।

समीर: "अरे, क्या बात है, मिस जासूस! सुनकर बहुत अच्छा लगा कि तुमने फोड़ दिया। मुझे तो लगा था कि तुम्हारा रिजल्ट सुनकर हर कोई जलकर भुनभुनाने लगेगा! हे हे हे।"

रश्मि (थोड़ा चिढ़ाते हुए): "क्या तुम हमेशा इसी तरह दूसरों को चिढ़ाते हो, समीर?"

समीर: "अरे, मैं तो बस तुम्हारी तारीफ कर रहा हूँ। तुमने सबकी बोलती बंद कर दी। लेकिन एक बात बताओ, अब जब तुम इतनी मशहूर हो गई हो, क्या तुम मुझसे भी दोस्ती रखोगी?"

रश्मि (मुस्कुराते हुए): "क्यों नहीं, लेकिन तुम्हारी फ्लर्टिंग से तो बचना पड़ेगा।"

समीर: "ओह, क्यों? क्या तुम्हें मेरे जैसा हैण्डसम और अमीर लड़का पसंद नहीं? तुम जानती हो, मैं तुम्हारे लिए एक पूल साइड पार्टी ऑर्गनाईज़ कर रहा हूँ शाम में, आ जाओ, मजा आएगा।"

रश्मि (थोड़ी चिढ़कर): "समीर, इतना समय नहीं है अभी मेरे पास और मैंने तुम्हारे पैसे के लिए तुमसे दोस्ती नहीं कर रखी है।"

समीर: "नहीं, नहीं, मैं जानता हूँ। मैं तो बस तुम्हें इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहा हूँ। पर तुम्हें यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में पैसे से ही सब कुछ नहीं मिलता, कभी-कभी फ्लर्टिंग भी ज़रूरी है। हे हे हे।"

समीर फिर कहता है: "तो क्या तुम अपने मिशन पर मुझे अपने साथ ले चलोगी? मैं तुमसे बेहतर जासूस बनने की कोशिश करूँगा। क्या तुम मुझसे सीखोगी?"

रश्मि: "समीर, तुम कभी गंभीर नहीं हो सकते! मुझे नहीं लगता कि तुम किसी मिशन के लिए सही हो। तुम्हें तो बस अपनी कार और पार्टी का ही ध्यान रहता है।"

समीर (हंसते हुए): "चलो, यह तो मजेदार होगा! और तुम जानती हो, तुम चाहो तो मैं तुम्हें तुम्हारे ट्रेनिंग सेंटर तक छोड़ सकता हूँ अपनी कार से, क्या कहती हो?"

रश्मि: "नहीं चाहिए मुझे, चली जाऊँगी मैं और वैसे भी वहां तुम्हें घुसने नहीं दिया जायेगा। ध्यान रखना, समीर! अगर तुमने मुझे और चिढ़ाया, तो मैं अपनी ट्रेनिंग के बाद तुम्हें एक मिशन पर भेजने का विचार करूंगी, जहाँ तुम्हें सच में स्पाई बनने का मौका मिले।"

समीर: "ओह, डार्लिंग, मुझे तो खुशी होगी! बस तुम पर कोई भी खतरा नहीं होना चाहिए। हे हे हे।"

वे दोनों हंसते हैं, और कॉल खत्म होने के बाद, रश्मि हल्की मुस्कान के साथ सोचती है कि समीर का चुलबुला अंदाज कभी-कभी उसे परेशान करता है। हालांकि, उसे यह भी पता है कि वह समीर को ज्यादा पसंद नहीं करती, लेकिन उसके पिता की अमीरी और राजनीतिक कनेक्शन के कारण, वह जानती है कि भविष्य में समीर उसके लिए एक उपयोगी व्यक्ति साबित हो सकता है। इस सोच के साथ, वह अपने नए सफर की तैयारी में जुट जाती है, यह समझते हुए कि दोस्ती और नेटवर्किंग का महत्व कभी-कभी भविष्य के लिए अनमोल हो सकता है।

जुदाई का पल:

रश्मि जब अपने घर से निकलने लगती है, तो साफिया और आइशा उससे मिलकर उसे शुभकामनाएं देती हैं। आइशा की आँखों में हल्की सी नमी होती है, लेकिन वह इसे छिपाने की कोशिश करती है। आइशा रश्मि को आखिरी बार गले लगाती है और कहती है, "मैं आपका इंतजार करूंगी, आप जल्दी लौटिएगा।" रश्मि उसकी बातों को महसूस करती है और मुस्कराते हुए वादा करती है, "जल्द लौटूंगी, आइशा।"

ट्रेनिंग सेंटर के लिए रवाना:

जैसे ही रश्मि ट्रेनिंग सेंटर की ओर रवाना होती है, उसके मन में दृढ़ता और जोश का एक मिश्रण होता है। अब उसके सामने सिर्फ एक लक्ष्य है - एक बेहतरीन जासूस बनकर देश की सेवा करना।
[+] 1 user Likes rashmimandal's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
Good start
Like Reply
#3
Upcoming Scene1: रश्मि ने धीरे-धीरे नृत्य करना शुरू किया, जैसे वह एक नए अनुभव में डूब रही हो। उसके हाथों ने अपनी ब्लाउज की बटन खोलने की शुरुआत की, जैसे कि वह अपने भीतर छुपी इच्छाओं को आज़माने की कोशिश कर रही हो। जब उसने ब्रा के हुक को खोला, तो उसके दिल की धड़कनें तेजी से बढ़ गईं। यह एक ऐसा क्षण था जिसमें वह अपनी सीमाओं को परख रही थी, एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रही थी जहां वह स्वतंत्र थी।


Upcoming Scene2: ऊफ्फ्फ शालिनी ने कहा, उसकी आवाज़ में एक कोमलता थी। उसने अपने होंठों को थोड़ा और आगे बढ़ाते हुए उसके होंठों को चूमा, जैसे वह एक खूबसूरत फूल को चूम रही हो।


Upcoming Scene3: स्तनों को धीरे-धीरे खोलना शुरू किया, आयेशा की आँखों में चमक आ गई। वह जैसे उस क्षण के लिए वर्षों से तरस रही थी। उसकी सांसें धीमी हो गईं, जैसे समय ने भी उस पल को थाम लिया हो। उसे एहसास हुआ कि यह वह क्षण है जिसे उसने हमेशा अपनी कल्पनाओं में देखा था।
Like Reply
#4
और इधर आयेशा और जारा के घर में


अहमद खान
उम्र: 18 वर्ष  
भूमिका: आइशा का छोटा भाई।  
शारीरिक लक्षण: पतला, सामान्य कद 5"7'।  
पृष्ठभूमि: वह अभी 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है और ज्यादातर समय अपने दोस्तों के साथ मस्जिद के पास बिता देता है। पढ़ाई में रुचि कम है और उसे अपनी माँ से अक्सर डांट मिलती है।  
व्यक्तित्व: बातूनी, बिगड़ा हुआ, पारंपरिक दृष्टिकोण रखने वाला, और आइशा के आधुनिक कपड़ों और जीवनशैली को नापसंद करता है।  
महत्वपूर्ण रिश्ते: आइशा के साथ करीबी रिश्ता है, लेकिन उसकी परंपरावादी सोच और आइशा के आधुनिक विचारों के बीच तनाव है।  

अमीना खा

अमीना 39 की उम्र में भी ताजगी और दिलकशी से भरी हुई हैं। उनका चेहरा तंदरुस्त और चमकदार है, जो उनकी सलीकेदार जीवनशैली का परिचायक है। गहरी, चमकदार आँखों में तजुर्बे और ममता की झलक साफ दिखाई देती है।  
अमीना - शारीरिक विवरण:  
आकार: 34-28-36 (छाती-कमर-कूल्हे का माप)  
कद: 5'6'' (168 सेंटीमीटर / 1.68 मीटर)  
वजन: 68 किलोग्राम  

उनका हल्का भरा हुआ बदन मातृत्व और देखभाल की भावना से सराबोर लगता है। औसत कद-काठी में औरतों वाली नफासत भरी गोलाई है, जिससे उनका व्यक्तित्व न ज़्यादा दुबला है और न ही बहुत भारी।  
अमीना आमतौर पर घर में पारंपरिक सलवार-कुर्ता पहनती हैं, जो उनकी शख्सियत और तहज़ीब को दर्शाता है। बाहर जाते समय, वह हमेशा बुर्क़ा पहनती हैं, जो उनकी सादगी और नियम की पाबंद होने की गवाही देता है।  
उनके लंबे, काले बाल अक्सर बंधे रहते हैं। उनकी चाल में सहजता और तहम्मुल है, जो आत्मविश्वास और समझदारी की झलक देता है।  

अमीना खान के शारीरिक ख़ाके में एक प्रकार की नफासत और वकार झलकता है। उनके सीने का भरा हुआ उभार मादरियत और ममता को उजागर करते हैं। हल्का भरा पेट उनकी उम्र और अनुभवों की ओर इशारा करता है।  
मध्यम आकार की मजबूत टांगें उनके स्थायित्व और मज़बूती को दिखाती हैं, और सम्पूर्ण गोलाई लिए भरावदार नितंब उनके व्यक्तित्व में एक संतुलित नज़ाकत और वकार भरते हैं।  

अहमद आज बहुत थका हुआ था। उसने अपने दोस्तों के साथ मस्जिद के पास क्रिकेट खेला था और पूरे दिन की मेहनत के बाद आज उसने 150 रन बनाए थे। बहुत लम्बे रन लगाने के कारण वह काफी थका हुआ था। आंगन के एक कोने में रखे बिस्तर पर लेटकर वह आराम कर रहा था, आँखें बंद किए, शरीर को थोड़ी राहत देने की कोशिश कर रहा था।  
इतने में आंगन में आवाज आई, अमीना बाजार से सब्ज़ी लेकर घर लौटी थी। वह धीरे-धीरे आंगन में आई और अहमद को देखकर उसकी चुप्पी टूट गई।  

“कहाँ था तू? घर में कितना काम था, हमेशा घूमता रहता है, कुछ काम नहीं करता!” अमीना ने गुस्से में आकर कहा। उसकी आवाज़ में तिरस्कार था, जैसे अहमद की लापरवाही से वह परेशान हो चुकी थी।  
अहमद थककर आँखें खोलते हुए कुछ पल शांत रहा। फिर उसने हलके से मुस्कुराते हुए जवाब दिया,  

“अम्मी, तू काम तो बता, सब कर दूँगा अभी।”  

अमीना का चेहरा और भी सख्त हो गया। “क्या ख़ाक करेगा तू?” उसने व्यंग्यात्मक रूप से कहा, फिर गुस्से से रसोई की ओर बढ़ गई।  

अहमद खीझते हुए बिस्तर से उठा, लेकिन उसकी थकान और अम्मी की बातों ने उसे एक पल के लिए चुप रहने पर मजबूर कर दिया। उसने सोचा, "घर का काम करना तो आसान नहीं है, पर क्या करें, अम्मी की बातें तो सुननी ही पड़ती हैं।"

अहमद धीरे-धीरे रसोई की तरफ बढ़ा, उसकी अम्मी अभी भी उसे डांट रही थी, “तुझसे कभी कोई उम्मीद नहीं रही, हमेशा यही सब करता है।” जब अमीना रसोई में आई, तो उसने अपना सिर ढकने वाला कपड़ा हटा दिया और बुर्के की जिप थोड़ी सी खोल दी, कुछ दिनों पहले से साफिया ने अमीना के लिए नया बुर्का अमेज़न से ऑर्डर किया था, अमीना को ये पसंद नहीं था क्योंकि ये सामने जिप से खुलता था, पर जब वह सर भी थक लेती थी तो जिप पता नहीं चलता था और अभी ये कपड़ा नया था तो बाहर जाते समय वह यही पहन लेती है।

अहमद ने चुपचाप, थकी हुई आवाज में कहा, “अम्मी, पानी दे दो।”

अम्मी ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए बर्तन में पानी डालते हुए कहा, "तुझसे किसी काम की उम्मीद ही नहीं है।" फिर अचानक, रसोई में रखी कुछ सब्जियाँ गिर गईं। अम्मी नीचे झुककर उन्हें उठाने लगीं, और इस दौरान अहमद उनके बिलकुल सामने आ खड़ा हुआ था। उसकी नजरें चुपचाप अम्मी पर थीं, जो अब भी बिना रुके डांट रही थी, लेकिन अहमद ने एक पल के लिए उनकी हालत को देखा, उनकी अम्मी की झुकी हुई पीठ को महसूस किया।  
फिर अमीना आराम से रसोई में बैठकर सब्ज़ी काटने लगीं, उन्हें जल्दी थी, उन्होंने सोचा कपड़े बाद में बदलती हूँ, पहले कुछ काम तो निपटाऊँ।  
अहमद चुपचाप खड़ा था, उसकी नज़रें अपनी अम्मी पर ठहर गईं। उसकी अम्मी के पहनावे में हल्की सी बेफिक्री और सहजता थी, जैसे वह बिना किसी अतिरिक्त विचार के घर के कामों में जुटी हुई हों। इस बार, वह पहले से कहीं ज्यादा शांत था, जबकि उसकी अम्मी उसकी परवाह नहीं कर रही थी, बस अपने काम में लगी हुई थी।

उसकी आँखें अमीना के बुर्के पर टिक गईं। एक क्षण के लिए, वह अपनी कल्पनाओं में खो गया।

अहमद: (सोचते हुए) "अम्मी कितनी मजबूत हैं। उनका सब्र और लगन हमेशा मेरा हौसला अफजाई करता है। जब वे अपने काम में लगी होती हैं, तो उनकी उपस्थिति में एक विशेष आकर्षण होता है। उनका बुर्का उन्हें और भी खूबसूरत बनाता है। वह सोचने लगा कि जब वह बुर्का पहनती हैं......तो... तो उनका ऊपरी बड़ा उभार...... हमेशा मेरी नजर वहां जाती है। कभी-कभी सोचता हूँ, कि क्या उनके भीतर एक अलग खूबसूरती होगी जो मैं नहीं देख सकता...?"

उसकी यह सोच उसे थोड़ी दुविधा में डाल देती है।

अहमद: (थोड़ा झिझकते हुए) "कभी-कभी मुझे लगता है कि उनके बारे में सोचते समय मैं इज्जत भूल जाता हूँ। लेकिन ऐसा क्यों है?"

उसने अपने विचारों को नियंत्रित करने की कोशिश की। यह समझते हुए कि अमीना उसकी अम्मी हैं......

अहमद: (सोचते हुए) "अम्मी कितनी मजबूत हैं। उनके व्यक्तित्व में कुछ खास है जो मुझे खींचता है।"

एक क्षण के लिए, वह अपनी सोच में खो गया। उसकी नजर अमीना के बुर्के के नीचे छिपे हुए "बड़े उभारों" पर गई, और उसे एहसास हुआ कि उसके मन में एक नया हलचल पैदा हो रहा है।

अहमद: (झिझकते हुए) "क्या हो रहा है मुझे, पर ये कैसे होंगे अन्दर? क्या उनका 'उभार' ऐसे ही है जैसे बाहर से नजर आता है या अन्दर से ये कुछ अलग दिखते होंगे? क्या मैं कभी जान पाऊंगा......? नहीं, मैं हमेशा उनकी इज्जत करूंगा।"

उसकी आँखें अमीना की ओर ध्यान से देख रही थीं, और उसने महसूस किया कि इस विचार से उसके मन में एक खींचाव था। लेकिन वह खुद को रोकने की कोशिश करता है।

अहमद: (आवाज में हल्की निराशा) "ये विचार ठीक नहीं हैं। मेरी अम्मी हैं, और मुझे उनकी इज्जत करनी चाहिए। लेकिन कैसे ?"

वह एक गहरी सांस लेता है, और फिर अपने मन में एक नई सोच को लाता है।

अहमद: (सोचते हुए) "मैं हमेशा उनकी इज्जत करूंगा, लेकिन यह सोचने में कोई बुराई नहीं है कि वे कितनी अजब हैं। यह सोचने में क्या बुरा है कि उनके अंदर एक ताक़त है जो मुझे खींचती है?"

यह सब सोचते अहमद बाहर निकल अपने कमरे में चला जाता है।


अहमद अपने कमरे की हल्की रोशनी में अकेला था, ठंडी शाम का वक्त। उसकी आँखें बंद थीं, मगर उसके ज़हन में एक तस्वीर बार-बार उभर रही थी — उसकी अम्मी, अमीना। वह उन्हें याद करते हुए सोचने लगा, कितनी प्यारी हैं मेरी अम्मी। उनके चेहरे पर हमेशा एक सजीव मुस्कान होती थी, जो उसके दिल को सुकून देती थी। अमीना का शरीर थोड़ा चब्बी था, और जब वह बुर्का पहनती थीं, तो उनका व्यक्तित्व और भी खूबसूरत लगता था।
आज, उसके ज़हन में अमीना की तस्वीर ने एक अलग ही दिशा पकड़ ली थी। वह याद करने लगा कि कैसे उन्होंने उसे अपने प्यार और तवज्जो से बड़ा किया। उसकी यादों में, अमीना का हँसता हुआ चेहरा, उनकी सादगी और। मगर इस बार, उसके जज़्बात थोड़े गहरे हो गए थे। उसे एहसास हुआ कि अमीना के लिए उसके दिल में एक तवज्जो थी, एक खींचाव जो उसकी मासूमियत को चुनौती दे रहा था।
जैसे-जैसे वह अमीना के बारे में सोचता गया, उसके मन में एक गर्मी सी महसूस होने लगी। वह अपने शरीर को छूने लगा, उसकी छूने की इच्छा में एक अलग ही उत्तेजना थी। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी अम्मी को सोचने लग । उसकी सोच में अमीना की छवि और स्पष्ट हो गई — उनकी सुगंध, उनका स्पर्श, और जब वह उसे गले लगाती थीं तो जो गर्मी महसूस होती थी। अमीना के प्रति उसके मन में एक गहरी चाहत जाग गई थी, जो उसे भीतर से जगा रही थी। वह जानता था कि यह सब ठीक नहीं था, फिर भी वह अपने इन भावनाओं को अनदेखा नहीं कर सका। क्या यह सही है? उसने अपने आप से पूछा, लेकिन उसकी उम्र और जिज्ञासा ने उसे और भी उत्सुक बना दिया।

उसने अपनी आँखें खोलीं और दीवार पर लगे अमीना के एक फ़ोटो की ओर देखा। क्या मैं उन्हें सच में इस तरह सोच रहा हूँ? यह विचार उसके मन में बार-बार घूमने लगा। वह अमीना के प्रति अपने आकर्षण को महसूस कर रहा था, जो उसे अंदर से और भी आकर्षित कर रहा था। उसकी सोच में धीरे-धीरे एक ख्याल आया — क्या अगर वह इन भावनाओं को समझे और उन्हें स्वीकार करे? उसने फिर से अपने आप को महसूस किया और एक नई ऊर्जा से भर गया। इस ऊर्जा ने उसे खुद को छूने के लिए मजबूर किया, उसके शरीर की संवेदनाएं और अधिक तीव्र हो गईं। वह अमीना की यादों में खोकर अपने भीतर की जिज्ञासा को और गहराई से समझने की कोशिश करने लगा। जैसे-जैसे वह अपने अंदर की चाहत को समझने लगा, उसने अपने भीतर एक नया अनुभव पाया। वह जानता था कि यह एक जटिल भावना है, लेकिन इस पल ने उसे अपने भीतर की गहराई को समझने का एक अवसर दिया।

अहमद की सोच में अमीना की छवि घुलने लगी, लेकिन अब उसके विचारों का एक अलग ही मोड़ था। वह उसकी मुस्कान, उसकी आँखों की चमक के साथ-साथ उनके शरीर के बारे में भी सोचने लगा। उसे याद आया कि कैसे अमीना की उपस्थिति हमेशा उसे सुरक्षा और सुकून देती थी। लेकिन इस पल में, वह उसके शरीर की आकृति के बारे में भी सोचने लगा — उसकी पतली कमर, लंबी गर्दन, और उसके उभरे हुए कंधे। जैसे-जैसे उसकी सोच में गहराई होती गई, वह महसूस करने लगा कि उसकी चाहत केवल एक बच्चे की मासूमियत नहीं थी, बल्कि कुछ और भी था। उसने अपने मन में सोचते-सोचते उसे अपने करीब लाने की इच्छा का अनुभव किया, जैसे कि उसकी बाहों में उसे समेट लेना चाहता हो। उसकी धड़कन तेज हो गई, और वह जानता था कि ये विचार उसे एक नई दिशा में ले जा रहे हैं। वह अमीना के प्रति अपने आकर्षण को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अब केवल अम्मी का प्यार नहीं था, बल्कि उसमें एक अनजान खिंचाव भी शामिल हो गया था। क्या यह ठीक है? उसने अपने आप से सवाल किया। उसे एहसास हुआ कि ये भावनाएँ उसे अंदर से जला रही थीं, और वह इस उलझन में था कि उसे इनका सामना करना चाहिए या नहीं।


जैसे ही उसने अम्मी के बारे में सोचा, उसे उनकी उपस्थिति का अहसास हुआ। उनकी आँखें कितनी सुंदर हैं, उसने सोचते हुए मन में कहा। उसके मन में उनकी फिज़िकल उपस्थिति की ओर भी एक आकर्षण उभरने लगा। यह सोच उसे एक अजीब सी उत्तेजना दे रही थी, जो उसे भीतर से झकझोर रही थी।

अमीना के शरीर की आकृति और उनके स्तनों की छवि उसके मन में आ गई, और वह उनके प्रति अपने आकर्षण को समझने की कोशिश करने लगा। क्या यह ठीक है? उसने खुद से सवाल किया, लेकिन उसकी उम्र और जिज्ञासा ने उसे और अधिक उलझन में डाल दिया। इस पल में, उसे अपनी अम्मी के प्रति यह भावना स्वीकार करने में कठिनाई हो रही थी, जो उसे एक अलग दिशा में ले जा रही थी। उसकी धड़कनें तेज हो गईं, और वह अपने अंदर की इस जटिलता का सामना करने की कोशिश करने लगा।
जैसे ही वह अमीना के बारे में सोचने लगा, उसकी कल्पना में उनकी छवि और भी गहरी हो गई। वह धीरे-धीरे अपने मन में उन क्षणों की कल्पना करने लगा जब अमीना ने उसे गोद में लिया था, उसकी मुस्कान, उसकी ममता, और अचानक उसे उनके शरीर की एक अलग छवि ने घेर लिया।


उसने एक पल के लिए सोचा कि अगर वह उन्हें बिना कपड़ों के देखता, तो वह कैसी दिखतीं। उसकी सोच ने उसे एक तरह की जिज्ञासा और उत्तेजना से भर दिया। क्या यह ठीक है? यह सवाल उसके मन में उभरने लगा।
वह जानता था कि यह भावना एक जटिलता पैदा कर रही थी। अमीना उसकी अम्मी थीं, और उनके प्रति उसकी सोच उसे असहज कर रही थी। फिर भी, उसने महसूस किया कि यह केवल एक आकर्षण नहीं था, बल्कि उसके भीतर की खोज और उसके बढ़ते वयस्कता का हिस्सा था। उसने उनके नाजुक कंधों, उनके फुलाए हुए गाल और उस गर्मजोशी को महसूस किया, जो हमेशा उसे सुरक्षा देती थी।
उसकी कल्पना में अमीना की छवि और भी गहरी हो गई। यह सोच उसे और भी उत्तेजित कर रही थी। उसने अपनी भावनाओं के प्रवाह को महसूस किया और उस पल की उत्तेजना में खो गया।
उसने अपनी उत्तेजना का अनुसरण करते हुए, अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने का निर्णय लिया। यह एक जटिलता थी, एक संघर्ष जो उसे अपनी पहचान और भावनाओं के साथ समझौता करने पर मजबूर कर रहा था।

अहमद के मन में अचानक एक छवि उभरी। उसने अपनी अम्मी, अमीना को बुर्के में देखा। बुर्का उनकी खूबसूरती को छिपाने की बजाय और अधिक आकर्षक बना रहा था। अहमद ने महसूस किया कि उनके ऊपरी बड़े उभार बुर्के से भी झलक रहे थे, जैसे कि वे स्वतंत्रता की तलाश में हों।

उसकी आँखों के सामने उनकी छवि उभरी, और उसके मन में अनायास ही एक उत्तेजक विचार आया। "उनकी निप्पल्स कैसी दिखती होंगी?" यह विचार उसके मन में आया,
यह सोच उसके दिमाग में घूमने लगी, उसने सोचते-सोचते अपने शरीर को छुआ, उसे एहसास हुआ कि उसकी भावनाएं उसे कहां ले जा रही हैं।

अमीना की छवि उसकी सोच में धीरे-धीरे घुलने लगी। उसने अपना हाथ धीरे धीरे अपनी अंडरवियर के अन्दर डाला वह उनके प्रति अपने आकर्षण को महसूस करने लगा, जो उसे भीतर से जगा रहा था। वह अपने हाथ से पकड़ कर अपने लिंग को छूने लगा, वह जानता था कि यह एक जटिल भावना है, लेकिन उसकी उम्र और जिज्ञासा ने उसे और भी उत्सुक बना दिया।

वह अपने लिंग को जोर जोर से झटके मारने लगा, जब वह अमीना के बारे में सोच रहा था, उसे अपने भीतर एक अलग ही उत्तेजना महसूस हो रही थी। वह अपनी अम्मी को पूरी तरह नंगी देखना चाहता था पर वह जानता था कि यह सब ठीक नहीं था, फिर भी वह उस क्षण में डूबता चला गया, वह तब तक लिंग हिलाता रहा जब तक वह शांत ना हो गया, अपनी इच्छाओं के बीच उलझा हुआ।
Like Reply
#5
Upcoming: इसी बीच, दोनों हंसते हुए एक-दूसरे की आँखों में देख रही थीं कि अचानक दरवाजा खुला। शालिनी मैम बिना किसी चेतावनी के कमरे में प्रवेश कर गईं, पूरी नग्न अवस्था में।


Upcoming: मोहित (धीरे से, बहुत आत्मविश्वास से): "हम दोनों जानते हैं कि छत पर जो बाथरूम है, उसमें एक खिड़की है जिससे हम उन्हें नहाते हुए देख सकते हैं। वैसे भी, कोई वहां नहीं जाता, तो हम दोनों के लिए यह आसान हो सकता है। सायमा आंटी जैसे ही उपार आयेंगी, एक छत के दरवाजे के पास और एक खिड़की के पास रहेंगे। क्या कहता है? तुझे देखना है ना अपनी अम्मी के दूध?"

ईशान (डरा हुआ और उलझन में): "लेकिन, मोहित. . . .ऐसा कैसे कर सकते हैं. . . . . अम्मी. . . . ."

upcoming: शालिनी ने अपनी जांघों को थोड़ा सा उठाते हुए कहा, “आओ, मेरे पास आओ।” उनके दिलों की धड़कनें तेज हो गईं, और वे दोनों शालिनी के पास जाने के लिए खींचे गए। शालिनी ने अपने हाथों से उनकी कमर को पकड़ते हुए धीरे-धीरे उन्हें अपने करीब खींचा। वे उसके शरीर की गर्मी और सुगंध को महसूस कर रहे थे।
Like Reply
#6
अहमद अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था, रात का सन्नाटा कमरे में गहरी चुप्पी बनाए हुए था। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसके मन में हलचल मची हुई थी। कुछ अजीब और उलझी हुई सोचें उसकी मस्तिष्क में घूम रही थीं। अमीना—उसकी अम्मी—का चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था।

आज, दिनभर जो कुछ भी हुआ था, वह उसे समझ नहीं पा रहा था। उसका दिल भारी था, जैसे उसने कुछ ऐसा किया हो जो नहीं करना चाहिए था। आज कुछ ऐसा घटित हुआ था, जो उसके लिए गलत था, लेकिन वह इसे रोक नहीं सका। जब भी वह अमीना के बारे में सोचता, उसके मन में कुछ और ही उथल-पुथल होती थी। एक खींचतान, एक अजीब आकर्षण। उसकी अम्मी का शरीर, उसके रूप और उसकी उपस्थिति, जैसे वह उसके मन को एक जगह पर जकड़ लेती थी।

वह अपनी आँखें बंद करके सिर के नीचे तकिये को दबा रहा था, और फिर अचानक कुछ छवियाँ उसकी आँखों के सामने आ गईं। उसकी अम्मी का बुर्का, जो पानी से भीगा हुआ था, और जो कपड़े थे वे थोड़े पारदर्शी हो गए थे। वह छवि उसे अंदर तक तोड़ रही थी, और वह सोचने लगा कि क्या यह सही था, क्या उसे इन विचारों को महसूस करना चाहिए था?

उसने अपने सिर को हाथों से पकड़ लिया और दो बार अपनी मस्तिष्क पर मारा। उसकी स्थिति इतनी कमजोर और निराशाजनक हो चुकी थी कि वह खुद से भी नफरत करने लगा। उसकी कमजोरी, उसकी असहायता, ये सब उसे भीतर से घेर रहे थे।

फिर अचानक, एक ख्याल आया। उसका दोस्त मोहित। मोहित, जो पढ़ाई में बहुत अच्छा था, और जो हमेशा उसे समझाता था, उसे मदद करता था। मोहित के पास सलाह होती थी, मोहित हमेशा सेंसिबल और स्मार्ट दिखता था। वह और अहमद अच्छे दोस्त नहीं थे, वह बहुत समय एक-दूसरे के साथ नहीं बिताते थे, लेकिन कॉलेज में मिलते रहते थे। जब भी अहमद को पढ़ाई से जुड़ी कोई समस्या होती, मोहित हमेशा मदद करता था। अहमद के लिए मोहित एक आदर्श था, जिसे वह अपनी स्थिति से बाहर निकलने का तरीका मानता था।

"क्या मैं मोहित से अपनी परेशानी शेयर कर सकता हूँ?" यह सवाल अहमद के दिमाग में गूंजने लगा। फिर वह झिझकते हुए सोचने लगा, "क्या मुझे अपनी अम्मी के बारे में बात करनी चाहिए? क्या यह सही है?" लेकिन उसकी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि उसे अब कोई और रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। उसकी हालत इतनी कमजोर हो चुकी थी कि वह सोचने लगा कि शायद मोहित की सलाह से कुछ हल मिल सकता है।

आखिरकार, उसने फैसला किया कि वह मोहित से बात करेगा। शायद वह उसे इस उलझन से बाहर निकाल सके।

सुबह का वक्त था, अहमद ने अपने दिमाग में कई बार यही सोचा था कि उसे मोहित से बात करनी चाहिए, लेकिन फिर भी एक डर और असमंजस उसके दिल में था। कल रात जो उसने महसूस किया था, उसे किसी से शेयर करना आसान नहीं था। मोहित उसकी मदद कर सकता था, लेकिन क्या वह समझ पाएगा? क्या वो इसे ठीक से सुन पाएगा? अहमद अपने विचारों में उलझा हुआ था।

उसने मोहित को कॉल किया। मोहित खुशी-खुशी बोला, "क्या हाल है यार? कुछ पूछना है क्या?"

अहमद ने धीरे से कहा, "मोहित, क्या तुम फ्री हो?"

"हाँ, बिल्कुल! आज तो रविवार है, चलो नदी के किनारे मिलते हैं। वहाँ चाय पिएंगे और थोड़ा आराम से बात करेंगे। जो भी जानना है, तुझे।" मोहित का यही अंदाज अहमद को थोड़ा सुकून देता था। मोहित का आत्मविश्वास, उसका ठंडा और आरामदायक तरीके से बात करने का तरीका, अहमद के लिए मददगार था।

अहमद ने मोहित के साथ मिलने की सहमति दी और थोड़ी देर में वे नदी के किनारे उस पुराने पेड़ के नीचे बैठ गए, जहाँ मोहित ने चाय मंगवाई थी। दोनों चाय पी रहे थे और हवा में हलकी ठंडक थी। लेकिन अहमद का मन अभी भी पूरी तरह से अशांत था।

मोहित ने ध्यान से अहमद को देखा और पूछा, "बोल भाई, क्या दिक्कत है?"

अहमद एक पल के लिए चुप रहा। शब्द उसके मुंह से बाहर नहीं निकल रहे थे। वह सोच रहा था, "कैसे कहूँ, कैसे समझाऊँ? क्या यह कहना सही होगा?"

मोहित ने उसे फिर से प्रोत्साहित किया, "क्या है? बोल ना, जो भी हो, हम कोई हल निकाल लेंगे।"

इससे अहमद को थोड़ा साहस मिला, लेकिन फिर भी उसकी आवाज कांप रही थी। उसने एक गहरी सांस ली और कहा, "मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है, बहुत ही अजीब... मैं... मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।"

मोहित ने एक पल के लिए उसकी आंखों में देखा, फिर धीरे से पूछा, "क्या अजीब? क्या महसूस हो रहा है?"

अहमद का दिल तेज़-तेज़ धड़क रहा था। "कभी-कभी जब मैं, जब मैं…अम्मी को देखता हूँ, तो... मुझे एक अजीब सा फीलिंग महसूस होता है।"

मोहित का चेहरा तुरंत बदल गया, वह चौंक गया। "क्या? ये क्या बोल रहा है?"

अहमद ने झट से कहा, "नहीं! मैं... जानबूझकर ऐसा नहीं करता, ये बस... खुद-ब-खुद हो जाता है, मोहित... मुझे नहीं पता कैसे समझाऊं। ऐसा लगता है जैसे जब भी मैं घर पर होता हूँ, बस इन्हीं के बारे में सोचता रहता हूँ... अम्मी... ऐसा लगता है जैसे मेरा दिमाग बार-बार वहीं चला जाता है। मेरी आँखें... बस वहीं जाती हैं, और मैं इसे रोक नहीं पाता। जैसे वह हमेशा मेरे ख्यालों में रहती हैं, और मैं इसे हटा नहीं पाता जब मैं उन्हें देखता हूँ...।

मोहित की आंखों में और भी हैरानी थी, "उन्हें देखता हूँ! क्या मतलब है उन्हें देखता हूँ?"

अहमद की आंखें जमीन पर गड़ी हुई थीं। "मतलब... कभी-कभी... जैसे...जैसे वह पानी से...भींग जाती है... या...या ... कपड़े थोड़ा खींच जाते हैं, तो मैं उन्हें देखता हूँ...मतलब ऐसे अच्छा। ये बहुत अजीब है, और... मैं जब उन्हें बुर्का...बुर्का पहने देखता हूँ... तो मुझे लगता है... जैसे वह बहुत हसीन हैं...और...और उनका जिस्म उम्दा है। और फिर, मेरा ध्यान उनकी छाती की ओर, उनके बदन की तरफ चला जाता है।"

मोहित की आँखें चौड़ी हो गईं, वह थोड़ा असहज महसूस कर रहा था। वह कुछ कहने के लिए सोच ही रहा था, तब अहमद ने और भी जारी किया, "एक दिन जब वह बाजार से वापस आईं, मैं ऊपर अपने कमरे में था तू तो जनता है छत में सिर्फ मेरा कमरा और एक वॉशरूम है, जाते वक्त उस दिन साफिया दीदी घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दी थी, मैं ऊपर ही सो रहा था।

आवाज सुनकर मैं नीचे आया, मुझे लगा अम्मी किचन में हैं, मैं किचन की तरफ बढ़ा। जैसे ही मैंने सामने देखा किचन के अंदर, अम्मी...अम्मी..वहां बैठी थीं, शायद उन्हें लगा था घर में कोई नहीं है। घर में बाहर से ताला लगा था तो शायद उन्होंने ज्यादा सोचा भी नहीं, और आते वक्त को दरवाजा अंदर से बंद कर आई थी।

मैं वहां पहुंचा तो देखा.... वो....फर्श में...अपना दोनों पैर किचन के दरवाजे की ओर ही करके बैठी हुईं थीं, उनका दोनों हाथ पीछे था....और.... और वो अपना सिर ऊपर उठा कर देख रहीं थीं...... उन्होंने बदन से... बुर्का निकाल कर वही रख दिया था और.... उन्होंने अपना कुर्ता भी निकाल दिया था..अम्मी....वो सिर्फ ब्रा में थीं....अहमद की आवाज में एक गहरी हिचक थी,  
... मैं.... उन्हें देख रहा था और मुझे ऐसा अजीब सा लगा। और मुझे समझ में नहीं आया कि क्या हुआ मुझे, लेकिन मैं उनको देखे जा रहा था।

अहमद ने थोड़ी देर चुप रहते हुए फिर कहा, "मैं वहाँ खड़ा था, बस उन्हें देख रहा था, हैरान होकर। मैं उनका पूरा बदन देख रहा था, मैं उनको ऐसे देखने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा था, और फिर अचानक मुझे एहसास हुआ कि वह अपना सिर थोड़ा हिला रही हैं। मुझे डर था कि वह मुझे देख लेगी, इसलिए मैं भागकर वहां से निकल गया। उस दिन के बाद, बस... सब कुछ अजीब हो गया और उसने हिम्मत कर रात वाली बात मोहित को बताई।"

अहमद की आवाज धीरे-धीरे धीमी हो गई और वह सिर झुका कर चुप हो गया। इस सारी बात को कहने में उसे काफी संकोच हो रहा था, लेकिन अब जैसे ही उसने यह सब कह दिया, उसे थोड़ी राहत महसूस हुई। वह हल्का महसूस कर रहा था, जैसे किसी से साझा किया हो जो उसकी बात समझेगा।

मोहित कुछ देर चुप रहा। अहमद के शब्दों को सुनते हुए, उसका मन भी भटकने लगा था। मोहित के भीतर भी एक हलचल मच गई थी, जैसे ही अहमद ने उस दिन का दृश्य बताया, मोहित के मन में उन क्षणों की कल्पना आ गई। उसकी आँखों के सामने अमीना आंटी का वह दृश्य उभरने लगा—वह रसोई में बैठी हुई थी, उसकी आँखें ऊपर की ओर थीं, और उसके पैरों की स्थिति, जैसे वह आराम से बैठी हो, थोड़ा खिंच कर। मोहित ने खुद को उस दृश्य में खोते हुए महसूस किया, जैसे वह खुद अमीना आंटी को देख रहा हो। उसके भीतर एक अजीब-सी बेचैनी महसूस हो रही थी, जैसे वह इस दृश्य से बाहर नहीं निकल पा रहा था। अमीना आंटी का बदन, उनकी आँखों में असमंजस और उसकी शांति, इन सबकी कल्पना करते हुए, मोहित ने महसूस किया कि वह खुद को खो रहा है। उसके मन में यह सवाल भी आ रहा था कि अमीना आंटी कैसी दिख रही होंगी उस स्थिति में, और उनका बदन, उनका भरा हुआ शरीर—यह सब उसके दिमाग में एक तस्वीर की तरह तैरने लगा था।

मोहित के अंदर कुछ हलचल हुई, और एक क्षण के लिए उसे यह महसूस हुआ कि वह इस विचार से बाहर नहीं निकल पा रहा था। लेकिन फिर उसने खुद को संभाला और एक गहरी सांस ली। "अहमद, देखो," उसने आवाज को शांत रखते हुए कहा, "तू अकेला नहीं है। ये सब समझना बहुत मुश्किल है, और तेरी स्थिति भी ऐसी है कि तू इन चीज़ों को समझने में उलझा हुआ है। यार, अमीना आंटी का आकर्षण समझना मुश्किल नहीं है। खासकर जब वो बुर्का पहनती हैं... उनकी मौजूदगी ही कुछ और होती है। लेकिन यह ठीक नहीं है, यार। इन सब में ज्यादा नहीं फसना चाहिए तुझे।" (उसकी आवाज में एक अजीब सी गंभीरता थी, जैसे वह अहमद को और गहराई से टटोल रहा हो।

मोहित ने खुद को पूरी तरह से संयमित किया, लेकिन उसके भीतर की भावना को दबाना आसान नहीं था। वह अहमद को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था, जबकि वह खुद उन विचारों को खारिज करने में संघर्ष कर रहा था। पर अंदर ही अंदर उसका शातिर दिमाग चल रहा था।

मोहित: "देख यार, मैं समझता हूँ कि तू अमीना आंटी के बारे में क्या महसूस करता है, पर... जब वो बुर्का पहनती हैं, तो उनकी शारीरिक बनावट को देखते हुए... सच कहूँ तो, कोई भी अजनबी उनकी तरफ देखे बिना नहीं रह सकता।" "तेरी स्थिति समझ सकता हूँ, लेकिन इससे बाहर निकलने के लिए तुझे खुद को संभालना पड़ेगा। हमें इसका हल ढूँढना होगा, कुछ तो करना होगा, समझे?" मोहित ने अपनी आवाज में संयम बनाए रखते हुए कहा।

अहमद की आँखों में फिर से एक राहत थी, जैसे उसने पहली बार अपने अंदर का दर्द बाहर निकाला हो। उसकी स्थिति अब थोड़ी हलकी हो गई थी।

मोहित की बातों ने उसे थोड़ा सहारा दिया, लेकिन उसके अंदर हलचल कम नहीं हुई थी। वह बार बार सोच रहा था, क्या उनसे मोहित को बता कर सही किया?


एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी, जैसे सूरज की ढलती रोशनी छनकर आ रही हो। अहमद टूटा हुआ सा खड़ा था, उसकी उंगलियां बालों में उलझी हुई थीं, आंखें लाल और बेचैन, अपने इकबाल की बोझ से दबी हुईं। मौन उनके बीच भारी था, जैसे हर सांस किसी अनकही बात का बोझ उठाए हुए हो। मोहित वहीँ खड़ा था, चेहरा बाहरी तौर पर शांत, लेकिन मन के अंदर तस्वीरों की बाढ़ उमड़ रही थी जिसे वह दबाने की कोशिश कर रहा था।

मोहित ने आवाज में चिंता और चालाकी का मिश्रण लाते हुए खामोशी को तोड़ा, "अहमद, तुम्हें यह बात अपनी अम्मी से कहनी चाहिए। शायद उनके पास इसका कोई हल हो," उसने धीरे से कहा, अपनी आवाज में एक मासूमियत का लहज़ा घोलते हुए।

अहमद की आंखें डर से चौड़ी हो गईं। "मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनसे इस बारे में बात कर सकूं," उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसके शब्दों में शर्म का असर साफ था।

मोहित के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान उभरने को थी, जिसे उसने जल्दी से दबा लिया। वह थोड़ा झुककर और गंभीरता से बोला, "ठीक है, अगर तुम नहीं कर सकते, तो मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं। मैं उनसे बात करूंगा," उसने कहा, उसकी आंखें अहमद की आंखों में एक ऐसी गहराई से टकरा रही थीं जो एक पल के लिए बेचैन कर देने वाली थी। "कम से कम उन्हें पता तो चलेगा कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, और हो सकता है, वे समझें और तुम्हें इससे बाहर निकालने में मदद करें।"

अहमद के चेहरे पर एक पल के लिए संकोच की झलक आई, जो जल्द ही राहत की सांस में बदल गई। वह थकी हुई कुर्सी पर वापस झुका। मोहित ने मौके का फायदा उठाया, थोड़ा और झुकते हुए बोला, "और सुनो, अहमद, ये उतना अजीब नहीं है जितना तुम सोचते हो। आंटी... वो खूबसूरत हैं। ऐसे ख्यालों को रोकना मुश्किल है। मुझे यकीन है, वे समझेंगी, शायद ये जानकर खुश भी हों कि तुम उन्हें इतनी गहराई से महसूस करते हो।"

कुछ पल के लिए, फिर से खामोसी छा गयी। मोहित के शब्दों के मायने हवा में तैरते रहे, अनदेखे और प्रभावशाली। अहमद ने सिर हिलाया, अपनी उलझनों में इतना डूबा हुआ कि उसने मोहित की आँखों में छुपे उस चमक को नहीं देखा—एक चमक जो राज़ और गहरी दबी हुई इच्छाओं की गवाह थी।

अहमद की आँखों में अब कोई शक नहीं था। मोहित ने उसके दिल में धीरे-धीरे वो बीज बो दिए थे, जो अब उसके मन में ख्वाबों के रूप में पनप रहे थे। अहमद ने जो महसूस किया था, उसकी गहरी ग़लतफ़हमियाँ अब उसे पूरी तरह से घेरने लगीं। मोहित की बातों ने उसके मन में एक अजीब सी उम्मीद और शंका पैदा कर दी थी—उसने सोचा, शायद सचमुच अम्मी से ये सब बात करनी चाहिए, शायद सचमुच वह उसकी मदद कर सकती हैं। लेकिन वह खुद में इतना कमजोर था कि अपने डर और लज्जा को पार नहीं कर सका।

"तुम ठीक कहते हो मोहित," अहमद ने धीरे से कहा, "मुझे लगता है, मुझे अम्मी से बात करनी चाहिए। पर... मुझे यकीन नहीं है कि वह समझ पाएंगी।"

मोहित ने उसे समझाने के अंदाज में जवाब दिया, "नहीं यार, तुम समझ नहीं रहे। यह तो एक ऐसा एहसास है जो हम सब कभी न कभी महसूस करते हैं। तुम अकेले नहीं हो। और अगर तुम चाहो तो मैं इस बारे में बात कर सकता हूँ, ताकि आंटी को पता चले।"

अहमद की नजरें गड़ी हुई थीं, लेकिन उसकी दिमागी हालत में एक अजीब सा भ्रम था। मोहित के शब्द उसे शांत करने के बजाय और उलझा रहे थे, लेकिन उसे लगा कि शायद यह वही रास्ता है जो उसे चाहिए था।

मोहित के मन में एक अलग ही दुनिया चल रही थी। अहमद की बातों को सुनते हुए, वह अंदर ही अंदर मुस्कुरा रहा था। उसे खुद पर गर्व था कि उसने अहमद को इतना आसानी से समझा लिया। लेकिन जो सच्चाई उसकी आँखों में छिपी थी, वह कहीं और थी—उसका दिमाग उस पर काबू पाने को बेताब था।

उसने कल्पना की कि अमीना आंटी घर पर अकेली होंगी—एकदम शांत, आराम से। उसका मन तेजी से दौड़ रहा था, सोचते हुए कि वह क्या कर सकता है। उसकी आँखों के सामने अमीना की छवि उभर आई—वह अक्सर अपने घर में एक सादा सलवार-कुर्ता पहनती थी, लेकिन उसने कल्पना की, क्या होगा अगर वह सिर्फ ब्रा में हो, हल्की सी... उसकी शारीरिकता के हर हिस्से को महसूस करने की इच्छा उसे चुपके से सता रही थी। वह जानता था कि यह सब एक खतरनाक खेल है, लेकिन यह उसकी मानसिक स्थिति का हिस्सा था। उसने खुद को यह समझाने की कोशिश की कि इस सब का एक उद्देश्य था—अहमद की मदद करने के लिए। लेकिन अंदर ही अंदर, एक गहरी चाहत थी, जो उसे नहीं रोक पा रही थी।

“यह समय और अहमद दोनों ही मेरे हाथ में हैं,” मोहित ने सोचा। “अगर मैं इस मौके को सही तरीके से इस्तेमाल करूं, तो अमीना आंटी का ध्यान अपनी तरफ खींच सकता हूँ। वह जो भी करें, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा... लेकिन ये पल मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं।”

अहमद: (थोड़ी दबी आवाज में) ठीक है, तुम बात करो अम्मी से, तुम उन्हें बता दो, फिर तुम मुझे बताना, क्या कहा उन्होंने

अब मोहित के मन में एक और योजना चल रही थी—एक योजना जो बहुत जटिल थी, और जो उसके खुद के इरादों को पूरा करने के लिए थी। उसकी आँखों में जो चमक थी, वह अब और भी तीव्र हो गई थी। वह जानता था कि अहमद का विश्वास हासिल करने के बाद, वह अमीना आंटी तक अपनी पहुँच बना सकता था। एक ऐसा समय जब अमीना घर पर अकेली होती—आधे दिन के बीच का वह समय जब वह आम तौर पर आराम करती, जब अमीना किसी से कोई उम्मीद नहीं करती थी, यही वह समय था जब मोहित ने खुद को तैयार किया था।

"देखो, अहमद," मोहित ने हसरत भरे अंदाज में कहा, "हम वक्त तय करते हैं। जब आंटी अकेली होतीं हैं, ये एक मौका हो सकता है...मैं जाऊंगा और उन्हें बताऊंगा की तुम्हारी तबियत ऐसे ख़राब रहती है, मतलब उन्हें बताऊंगा कि कैसे तुम परेशान रहते हो, क्यों परेशान रहते हो, मुझे लगता है, अमीना आंटी को यह सब जानने का हक है। वह समझेंगी। शायद वह खुश भी होंगी कि तुम उन्हें इतनी इज्जत देते हो।"

अहमद थोड़ा चौंका, लेकिन उसे लगा कि मोहित की बातें शायद सच हो सकती हैं। उसे खुद को यकीन दिलाने की कोशिश करने में मदद मिली थी।
Like Reply




Users browsing this thread: 1 Guest(s)