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चित्रा और मैं
जिस्मों की आग
.
काफी पुरानी बात है। मैं कक्षा 11 में था, और 18 की उम्र पार करके ही ग्यारहवीं में पहुंचा था। उस उम्र के लगभग सभी लड़कों की तरह मैं भी हर समय काफी हॉर्नी रहता था। क्लास में अपनी पेंसिल या रबर नीचे गिरा देता सिर्फ इसलिए, कि पीछे बैठी लड़की अगर ज़रा भी टांगें चौड़ी करके बैठी हो, तो पेंसिल उठाने के लिए जब झुकूंगा तो उसकी स्कर्ट के नीचे झाँक कर देख सकूं।
ज़्यादातर तो स्कर्ट लम्बी होने की वजह से उसके नीचे दिखता ही नहीं था, या कभी इत्तेफ़ाक़ से सफ़ेद या लाल पैंटी दिख जाती थी। परन्तु इस चक्कर में तो एक बार पीछे बैठी चंद्रा की झांटें दिख गयी थी, जब उसकी पैंटी एक साइड से एक-दम ऊपर उसकी चूत की फांकों के बीच तक खिसक गयी थी। उस दिन मुझसे वही पेंसिल दो बार नीचे गिरी थी।
पापा के ऑफिस चले जाने के बाद छुप कर मम्मी को नंगा नहाते हुए देखने के लिए कभी-कभी कोई बहाना बना कर कॉलेज ना जाता, और उन्हें देख कर लौड़े (जिसे मैं अपना प्यारा मुन्ना कहता हूँ ) को निकाल कर रूमाल में मुठ मार लिया करता था।
ख़ास मज़ा तो मम्मी को अपनी झाटों से भरी चूत धोते हुए देखने में आता था, जब वह टांगें चौड़ी किये हुए पटले पर बैठी अपनी चूत की फांकें अलग करती, और झुक कर लोटे से उस पर पानी डालती थीं। वोह भी क्या दिन थे। चूत से झांटें कोई औरत शेव नहीं करती थी।
और ठीक ही तो है, बिना झांटों के चूत तो एक बेकार सी दरार जैसी ही दिखती है, जैसे किसी बच्ची की। मम्मी की जैसी झांटों से ढकी नंगी चूत का ख्याल आते ही मेरे लौड़े का सुपाड़ा फूल कर लाल हो जाता और उसकी टोपी गीली होने लगती।
एक बात और, घर मैं केवल 2 घंटे के लिए सुबह 6 से 8 तक ही पानी आता था और 7 से 8 तक कम प्रेशर पर, तो हम सब का नहाना सुबह ही हो जाता था। पापा जल्दी ऑफिस चले जाते थे, और मम्मी नहाने के बाद केवल साड़ी लपेट कर बिना ब्लाउज और पेटीकोट पहने किचन में खाना वगैरह के सिलसिले में लगी रहती थी, या कभी अगर नहाई ना होती तो केवल नाइटी में (बिना ब्लाउज और पैंटी के) होती थी।
अक्सर नाइटी पीछे से मम्मी के चूतड़ों के बीच दरार में फंसी होती थी और सामने से बड़े-बड़े मम्मों की क्लीवेज और दोनों नोकीले निप्पल दिखते थे।
बाजार घूमते हुए भी मेरी नज़र हमेशा आंटियों और लड़कियों की चूची और चूतड़ों पर ही रहती थी, और लौड़े को काफी मुश्किल से काबू में रख पाता था।
कुछ औरतों की हिप्स काफी चौड़ी होती, और चलते समय उनके चूतड़ ऊपर-नीचे होते देख तो बड़ा मज़ा आता था। मैंने कई पैंटों में तो जेब में छेद कर लिया था, जिससे कि ज़रुरत पड़ने पर जेब में हाथ डाल कर लौड़ा काबू में कर सकूं।
कभी कभार जब किसी औरत या लड़की को चलते-चलते अनायास अपनी चूत पल भर के लिए खुजाते अगर देख लेता, तो फ़ौरन जेब में हाथ डाल कर थिरकते लंड को संभालना पड़ता था, और उसी समय मुट्ठ मारने को जी करता था।
बेहद इच्छा थी कि कोई काली झांट वाली लड़की नंगी होकर मुझे अपनी चूत अच्छी तरह देखने, छूने, और सूंघने और चाट या चूस लेने दे। और मैं भी उसे अपना लौड़ा और लटकन अच्छी तरह और खूब देर तक सहला लेने दूँ और खूब चुसवाऊँ। पर ये सब ख्याली पुलाव तो तब तक सिर्फ सोच ही में था।
उस ज़माने में औरतों की बाजार वाली पैंटी या मर्दों के अंडरवियर तो थे ही नहीं, घरों के बाहर बाकी कपड़ों के साथ औरतों की लाल या सफ़ेद घर की बनी हुई चड्ढी और मर्दों के ढ़ीले जांघिये सूखा करते थे।
चड्ढी पर अक्सर चूत के पानी का हल्का पीला सा निशान भी नज़र आ जाता था और थोड़े ज्यादा पीले निशान में तो थोड़ी चूत की महक भी मैंने सूंघी थी। ज़ाहिर है, सूंघ कर चेहरे पर मुस्कान और लौड़े मैं सुरसुराहट भी हुई थी, ख्यालों मैं झांटों से भरी चूत जो दिख गयी थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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13-03-2024, 10:41 AM
(This post was last modified: 13-03-2024, 12:03 PM by neerathemall. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
मम्मी सिर्फ ब्लाउज और ढीले पेटीकोट में ही सोती थी, और जब पापा टूर पर जाते तो मैं देर तक पढ़ाई के बहाने जगा रहता क्योंकि मम्मी गहरी नींद मैं टांगें मोड़ कर सोती थी, और अक्सर टांगें चौड़ी होने से उनकी झांटें साफ़ दिखती थीं।
ऐसे में मैं कच्छे का नाडा खोल कर आराम से दो या कभी तीन बार झांटें देखते हुए मुठ मार के सोता, तो मुझे खूब गहरी नींद आती थी। एक-आध बार तो मैंने उनको नींद में अपनी चूत खुजाते हुआ भी देखा था! मेरे तो तब रोंगटे खड़े हो जाते थे, लौड़े के साथ-साथ।
खैर, अब अपनी उस असली वारदात पर आता हूँ जिसकी वजह से मेरे सारे सेक्सी सपने पूरे हुए और जिसकी वजह से मैं यह सब बता रहा हूँ। एक दिन पापा ने घर आके बताया कि मेरी कजिन चित्रा को हमारे पास आ कर रहना होगा, क्योंकि उन्हें बारहवीं कक्षा का बोर्ड एग्जाम उसी शहर से देना था।
चित्रा तीन बहनों में दूसरी थी और काफी सांवली चपटे से चेहरे वाली स्कर्ट-ब्लाउज में रहने वाली लड़की थी, जो 18 साल कि हो चुकी थी। और बस किसी तरह से पास होने भर के नंबर लाने की फिराक में थी। मैं यह सुन कर मन ही मन काफी खुश हुआ, कि चलो एक लड़की जिसका मन पढ़ाई में कम लगता था, और मुझसे कुछ महीने ही बड़ी थी, हमारे साथ रहेगी कुछ समय तक।
और असल में ज़्यादा खुशी इसलिए हुई कि चित्रा का अगर पढ़ाई में कम मन लगता था, तो ज़रूर कुछ दूसरी खुराफात करती और सोचती तो होगी ही। और अगर पट गयी तो दोनों खूब मज़े करेंगे एक दूसरे के साथ।
चित्रा के आने के बाद हम लोगों के रूटीन में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया था, सिवाय इसके की मुझे नहा कर थोड़ा और जल्दी निकल आना पड़ता था। क्यूंकि मैं कॉलेज जाता था, और चित्रा की तो प्रेप-लीव चल रही थी। पर उसे नल में से पानी जाने से पहले ही बाथरूम जाना होता था।
मैंने पूछा क्यों, तो बोली कि बाल्टी में भरे हुए पानी से नहाने में वो मज़ा नहीं है जो कि नल से गिरते पानी की धार से नहाने में आता है। बात आयी-गयी हो गई। फिर मैनें एक-दो दिन बाद नोटिस किया, कि चित्रा की सभी स्कर्ट में दो पॉकेट ज़रूर थी, और हर समय उसका एक या दूसरा हाथ जेब में ही होता है।
ख़ैर, यह भी आई-गयी सी बात होने से पहले मैंने एक और काफी इंटरेस्टिंग चीज़ नोटिस की। रात को हम चारों एक लाइन से एक ही जगह कवर्ड और ढके हुए वरांडे में सोते थे, पहले पापा, फिर मम्मी, चित्रा, और मैं। कई रात देखा कि चाहे कितनी भी गर्मी हो, चित्रा को एक चादर तो ओढ़नी ही होती थी, और अक्सर (लगभग रोज़) उसका एक हाथ अधखुली सी टांगों के बीच होता था!
सोचा, यह भी शायद मेरी तरह अपनी चूत में मुठ मारती होगी, लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि लड़की आखिर करती क्या है अपनी चूत में मज़े लेने के लिए। जैसे मैं लौड़े का सुपाड़ा जल्दी-जल्दी खोलता-बंद करता हूँ?
धीरे-धीरे चूत पर से चित्रा की चादर भी ऊपर नीचे होती दिखती थी, और वह मेरी तरफ थोड़ा मुड़ के यह काम करती थी, जिससे दूसरी तरफ लेटी मेरी मम्मी को उसकी ये हरकत ना दिखाई दे। मतलब साफ़ था, चित्रा भी दिन में कम से कम एक बार तो अपनी चूत अच्छी तरह रगड़ती ही थी, और सोने से पहले तो शायद रोज़।
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मन ही मन मैं भी खुश था कि बस एक मौके की ज़रुरत थी, और चित्रा पट तो जायगी ही। क्योंकि उसे भी तो बस एक मौके की ही तो तलाश होगी मेरी तरह। और फिर ख्यालों में मुझे हम दोनों नंगे होकर मेरे लौड़े और बॉल्स, और उसकी चूची और चूत से खेलते हुए महसूस होते।
बस यही समझ में नहीं आता कि चूत को आखिर किस तरह या कहाँ छूना पड़ता होगा मस्ती दिलाने के लिए? फिर नींद आ जाती और अगले दिन कॉलेज में दिन भर यही बात दिमाग में घूम रही होती थी और कई बार कॉलेज के बाथरूम में जाकर लौड़ा हिलाना पड़ता था। क्लास में भी फटी जेब में से लौड़े के सुपाड़े को कभी सहलाता, कभी खोलता/बंद करता और अगर चिपचिपा रस निकलने लगता, तो जेब से हाथ बाहर कर लेता।
अक्सर कॉलेज में अब मेरा लौड़ा हर समय खड़ा सा ही रहता था और दोपहर टिफ़िन खाने के टाइम भी मुझे अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे ही खाना खा लेना पड़ता था।
कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, और फिर कॉलेज के दिनों में चित्रा और मैं या तो एक-आध मामूली सी बात कर लेते, या मैं दूर से उसका हाथ उसकी अपनी स्कर्ट की जेब में देख कर अपने लौड़े में सुरसुराहट महसूस कर लेता।
हर रात चित्रा हाथ से अपनी चूत से खेलती हुई तो मालूम देती ही थी। रोज़ यह भी सोचता कि उससे ऐसी-वैसी बातें करूं भी तो कैसे? एक लड़की से लंड-चूत की बातें करने के लिए तो बहुत हिम्मत से काम लेना पड़ता है,और सही मौक़ा भी तो चाहिए।
लेकिन एक बात तो तय थी, जब भी मेरा हाथ मेरी पैंट की जेब में होता तो उसकी नज़र मेरी पैंट की ज़िप पर और मेरी नज़र उसकी स्कर्ट के अंदर टटोली जा रही चूत पर जाती ही थी।
इसके बाद हम आपस में चाहे कुछ भी बातें ना भी करें, मगर हम दोनों के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तो रहती ही थी। मैं बस यही सोचता कि आखिर आगे कुछ बात कैसे और कब की जाए।
मन ही मन यह सोच कर खुश हो लेता था कि उसके चेहरे की हल्की मुस्कान का मतलब भी यही था, कि उसके दिमाग में भी कुछ मेरे साथ मज़े लिए जा सकते हैं यह ज़रूर होगा। और वो भी सोचती होगी कि बड़ी होने के नाते पहल करे भी तो कैसे? और कब, क्योंकि घर में हम दोनों का अकेले होना भी तो ज़रूरी था।
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इत्तेफ़ाक़ से अगले शनिवार को ही मम्मी-पापा को सुबह 6 बजे एक सत्संग में जाना था, और चित्रा और मैं भी उस दिन जल्दी उठ गए थे। पापा-मम्मी के चले जाने के बाद मैंने चित्रा कहा कि पहले वह नहा ले क्योंकि नल में 7 बजे तक अच्छा पानी आएगा, और उसे पानी आते-आते नलके की धार में ही नहाने में अच्छा लगता था।
मैं कमरे में डाइनिंग टेबल पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। जैसे ही चित्रा ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया, मैंने सोचा उसको कपड़े उतारते और नंगा होकर नहाते हुए झाँक कर देखता हूँ, जैसे मम्मी को देखा करता था। मैं दबे पाँव उठ कर बाथरूम की प्राइवेट बालकनी में खुलने वाले दरवाज़े पर जाकर उसमें एक छेद में से सांस रोक कर अंदर झाँकने लगा। अंदर जो हो रहा था वह देख कर मेरी धड़कन तेज़, चेहरा लाल, और लौड़ा टन्न हो गया।
चित्रा अपना ब्लाउज और स्कर्ट उतार चुकी थी, और पीछे हाथ करके ब्रा का हुक खोल रही थी। मैंने भी झट अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया, और एक हाथ में लौड़ा और दूसरे में बॉल्स थाम लिए। डर कोई था ही नहीं, क्योंकि मम्मी-पापा जा चुके थे।
चित्रा ने ब्रा उतार कर अपने मम्मों को फ्री किया, और दोनों हाथ में एक-एक मम्मा पकड़ा और उनको ऊपर नीचे किया जैसे उनका वज़न तौल रही हो। चूचियों को ऊपर उठा कर ध्यान से देखा, और लम्बी जीभ निकाल कर दोनों पर जीभ फेरी। चूचियां तन गयीं तो उन्हें थोड़ा मसला। फिर कच्छी उतार कर खूंटी पर टाँग दी।
खूँटी उसी दरवाज़े पर थी जिससे मैं अंदर झाँक रहा था, तो चित्रा की झांटें मुझे बहुत पास से दिख गयीं। चूत की फांकें थोड़ी फूली हुई थीं और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। बाथरूम की तेज़ रोशनी में 18 साल की एक-दम नंगी सांवली चित्रा को मैं चार फुट की दूरी से आराम से देख रहा था, बिना पकड़े जाने के डर के।
चित्रा की चूत का एरिया काली मुलायम झांटों से ढका था। थोड़ा झुक कर चित्रा ने अपनी चूत को देखा, और तीन-चार बार झांटों को धीरे-धीरे सहला कर एक पाँव उठा कर उल्टी रखी बाल्टी पर टिका दिया। ऐसा करने से उसकी झांटें नीचे की तरफ से अलग हुई तो चूत की फांकें भी अलग हुई और चूत के अंदर का पिंक हिस्सा थोड़ा नज़र आने लगा। इधर मेरे हाथ में लौड़ा झटके मार रहा था और उधर बाथरूम के अंदर चित्रा अपनी चूत रगड़ रही थी एक हाथ से, और दूसरे हाथ से कभी एक चूची तो कभी दूसरी चूची मसली जा रही थी।
थोड़ी देर तक यह करने के बाद चित्रा ने चूची से हाथ हटा कर नल को बस इतना खोला कि उसमे से एक पतली-सी धार लगातार गिरती रहे। पटले को पानी की गिरती धार के नीचे खिसकाया और उस पर बैठ कर जांघें चौड़ी करके चूत को गिरते पानी के नीचे कर लिया। अब चूत पर लगातार नल से पानी की धार गिर रही थी, और चित्रा ने अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टिका रखे थे। कभी-कभी अपने चूतड़ थोड़ा उठा कर पानी की धार को चूत के अलग-अलग हिस्सों पर गिराती तो उसका पेट अंदर जाता और लम्बी सांस उसे आ जाती। मैं दरवाज़े की दरार पर आँख लगा कर लौड़े को थामे मस्त खड़ा नंगी चित्रा और उसकी चूत पर पानी गिराने कि हरकत देखे जा रहा था।
थोड़ी देर बाद चित्रा ने दोनों हाथों से नल की टोंटी के पीछे के पाइप को पकड़ लिया। उसने अपना सर अपने एक कंधे पर टिका रखा था, और रह-रह कर उसका बदन कंपकंपाता और गहरी सांस आ जाती थी उसको। फिर एक हाथ नल से हटा कर एक-एक करके दोनों मम्मे सहलाये और फिर एक चूची को मसलते-मसलते गांड धीरे-धीरे आग-पीछे करके पानी की धार को चूत पर ऊपर से नीचे तक कई बार गिराया।
मेरी धड़कनें बेहद तेज़ होने के बावजूद, मुझे तो पता था कि घर में दूसरा कोई नहीं था। तो मैं आराम से देख सकता था, और जब तक पूरा मज़ा नहीं ले लेती तब तक चित्रा बाहर आने वाली नहीं है। मैंने भी चित्रा को देखते-देखते दोनों हाथ से लौड़े और बॉल्स को खूब खुल कर आराम से सहलाया।
एक बार सोचा कि धीरे से बाथरूम के दरवाज़े पर दस्तक दूँ, या उसे पुकारूँ, परन्तु ऐसा नहीं किया, यह सोच कर कि वह हड़बड़ा जाएगी और यह नज़ारा बंद हो जाएगा। और फिर कहीं मेरी शिकायत ही ना कर दे। थोड़ी दूर से ही सही, और उसके अपने हाथों से ही, पर पहली बार किसी एक दम नंगी लड़की को चूत में मज़े लेते हुए देख ही लिया मैंने आखिरकार।
एक और चीज़ देख कर और भी मस्त हो गया था, चित्रा की काफी घनी झांटें थीं, और बाकी बदन एक-दम चिकना। मम्मे ऐसे कि हाथ भर जाय और चूची चूसने लायक तनी हुई। वैसे ही झांकते हुए मुझे दो बार रूमाल में मुठ मारनी पड़ी, जब तक चित्रा ने एक ज़ोरदार थिरकन और लम्बी सांस के बाद अपनी जांघें कई बार खोली, और बंद कीं, आगे झुक कर चूत और गांड को साबुन से धोया, नल बंद किया, उठ कर चूत को तौलिया से पोंछा, और बाकी नहाना किये बिना ही सफ़ेद पैंटी और ब्रा पहन कर बाहर आने के लिए तैयार होने लगी। मैं भी दो बार तो लौड़े को झाड़ चुका था। पजामा ऊपर करके फिर मैं डाइनिंग टेबल पर आ कर अखबार पढ़ने लगा, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
चित्रा ने नाहा कर आने पर मुझसे जल्दी नहाने को कहा और बोली कि फिर एक साथ नाश्ता करेंगे। मैंने कहा,”पहले नाश्ता ही कर लेते हैं क्योंकि मैं तो बाल्टी में भरे पानी से भी नहा लूँगा।” तो नाश्ता लाने के लिए जाते-जाते बोली,”नल की धार और ताज़े पानी में नहाने का तो मुकाबला ही नहीं, लेकिन तुम्हारी जैसी मर्ज़ी।”
१.५
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ड्राइंग रूम में दीवान पर चित्रा की पढ़ाई के लिए छोटी टांग वाली एक स्टडी डेस्क रक्खी रहती थी, और वहीं वो या तो अल्थी-पालथी मार के या फिर कभी एक टांग नीचे लटका के पढ़ने के लिए बैठती थी। दीवान और चित्रा के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं पढ़ाई करता था। उस दिन भी वो वहीं बैठी थी एक टांग नीचे करके, और लग रहा था कि बड़े ध्यान से कुछ लिख रही थी।
हाँ, उसके कान लाल तो थे ही, और चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि उसकी धड़कन अभी तक थोड़ी तेज़ ही थी। मेरा भी लौड़ा चित्रा को उस हालत में देख कर काफ़ी फूल सा गया, और इससे पहले कि वह खड़ा होकर तम्बू बनाये, मैं भी चुप-चाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के कितने मज़े होते हैं। पहली बात, लौड़ा ना होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं ना हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो मम्में और चूचियां भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं, और
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और चूची चुसवाने में तो उन्हें बहुत मज़ा आता ही होगा। चूत तो है ही बड़े काम की चीज़।
मेरे तो इन ख्यालों से ही लौड़े पर असर होने लगा था, और यह चाहते हुए कि चित्रा मेरी पैंट को हल्का सा उठते हुए भांप तो ले, कुर्सी पर धीरे से अपने आप को एडजस्ट कर रहा था। 18 भी क्या उम्र होती है, बाथरूम में मुठ मारने के बाद भी प्यारे मुन्ने को चैन ना था, और मुझे मालूम था कि चित्रा चाहे कितनी भी पढ़ने का नाटक कर रही हो, पर उसकी चूत तो मुझे बाथरूम में नंगा देख कर गीली ज़रूर हो गयी होगी।
पर मैंने तो सोच ही लिया था कि पहल वो ही करे तो ठीक था, इसलिए भी कि अगर वो पहले कुछ करेगी तो हरगिज़ मेरी
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शिकायत तो कर ही नहीं सकती।
मेरी सोच इस बार फिर सच निकली।
जब चित्रा ने अपनी नीचे लटक रही टांग को पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखा, और दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये तो उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी थी, जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी थी, और काली झांटें पैंटी की दोनों साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं।
मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी। और उसने शायद यह जान-बूझ कर किया था। लग रहा था कि चित्रा ने मुझे दिखाने के लिए ही एक बार अपनी टांग उठाई और फिर वापस नीचे रख ली। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी।
मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी, जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा था।
हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना और एक-दूसरे की तरफ देखे बिना ही आपस में बहुत कुछ कह दिया था। और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे। ज़रूर चित्रा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।
थोड़ी और देर पढ़ाई का नाटक करने के बाद अचानक चित्रा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठ कर मुझसे बोली “मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।”
मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए चित्रा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली “यार तुम तो कॉलेज चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ? और सच तो यह है कि मुझे तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल में शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले लड़के से और सेट हो जाऊंगी।
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बहुत बोर होती हूँ अकेली यहाँ घर पर तुम्हारे कॉलेज चले जाने के बाद। यहाँ कोई दोस्त भी तो नहीं है आस-पास में, समझ नहीं आता कि दिन कैसे काटूँ?” तो मैंने पूछा “आप अपने घर पर खाली समय में क्या करती थीं?” वोह बोली कि “वहां अपनी बहनों और सहेलियों से गप लड़ाती थी, या उनके साथ घूमने निकल जाती थी।” मैंने कहा कि ‘यह समस्या तो है, लेकिन इसमें मैं क्या मदद करूं?”
चित्रा बोली कि “वह सोच के बताएगी और पूछा कि मैं कॉलेज मे़ अपने दोस्तों के साथ किस टॉपिक पर अक्सर बातें करता हूँ?” अब मेरी बारी थी सोच में पड़ने की, लेकिन बहुत हिम्मत करके बोल ही पड़ा मैं: “हम लड़के लोग तो ज़्यादातर कुछ एडल्ट टॉपिक्स पर बातें ही करते हैं, या फिर कभी क्रिकेट, टेनिस या फुटबॉल के मैच चल रहे होते हैं तो उनके बारे में बातें होती हैं।”
साफ़ दिखाई दे रहा था कि चित्रा की आँखों में मेरे जवाब से अचानक एक चमक सी आ गयी थी। उसने अपनी कुर्सी थोड़ी मेरे पास खिसकाते हुए कहा “थोड़ा खुल कर बताओ ना-एडल्ट टॉपिक्स पर बातें मतलब? क्या बताते या पूछते हो?” मैंने टालते हुए कहा “में आपको ऐसी-वैसी बातें जो मेरे दोस्त लोग करते हैं कैसे बताऊँ?आप कहीं मुझसे पूछ कर मेरे बताने से मम्मी से मेरी शिकायत तो नहीं कर दोगी?”
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चित्रा काफ़ी मिन्नतें सी करती हुई बोली “यार तुम तो मुझे अभी ठीक से पहचाने ही नहीं हो। एडल्ट टॉपिक्स पर तो मैं और मेरी फ्रेंड्स भी बातें करते हैं और उस तरह की बातों में ही तो मन लगा रहता है ना। अब मैं चाची से तो ये सब बातें कर नहीं सकती, और बचे एक तुम।
और फिर तुम हो भी तो इतने हैंडसम और थोड़े से दुष्ट भी, तुम भी नहीं बताओगे तो मैं कहाँ जाउंगी? तुमसे मिलते ही मुझे तो लगने लगा था कि यहां तुम्हारे साथ मज़े से यह बोर्ड एग्जाम तक का टाइम कट जाएगा, और तुम्हें तो लग रहा है कि मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी ”
चित्रा ने रुआंसी सी शक्ल बना कर बोला। मुझे उस पर तरस आ गया और सबसे ज़्यादा मज़ा तो यह सुन कर आया था कि उसे भी एडल्ट और उस तरह की बातों में ही तो मज़ा आता था।
मैंने खड़ा हो कर एक हाथ चित्रा के कंधे पर रख के बोला “आप यहां थोड़े दिन के लिए ही आई हो, मुझसे बड़ी हो, और मैं आपको खुश ही देखना चाहता हूँ। और आप खुद ही कह रही हो कि मेरी शिकायत नहीं करोगी तो मैंने मान लिया।
लेकिन एडल्ट टॉपिक्स जैसी बातों में तो कुछ ऐसे वैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होता है, वह सब मैं कैसे बोलूंगा? और आजकल तो लेटेस्ट एक मस्तराम नाम के लेखक की किताबें भी आ गयी हैं जिनमे सब कुछ खुल्लम-खुल्ला लिखा रहता है, ऐसा मैंने अपने दोस्तों से सुना है।”
चित्रा का चेहरा मेरी बातें सुन कर एक-दम रिलैक्स हो गया। वो बोली “हाँ! मस्तराम की किताबों के बारे में तो मेरी फ्रेंड्स भी खुसर-पुसर करती हैं। और तुम पूछ रहे हो ऐसे-वैसे शब्द कैसे बोलूंगा, है ना? रोज़ तो हम सब बार-बार और चाहे कोई भी बात पे चाचा से ‘बुरचोद’ ये या ‘माचोद’ सुनते हैं ना?
जैसे कि यह बोलने में या सुनने में कोई बिग डील नहीं है? या जब गुस्से में होते हैं तो ‘माँ-चोद’ या ‘बैन-चोद’ भी सुनने में आता है ना? बस चाची और मैं या तुम और हमारे माँ-बाप हमारे सामने साफ़-साफ़ आपस की बातों में बुर, चूत, लौड़ा, लंड, झांट, भोंसड़ा, गांड, और साफ़ लफ़्ज़ों में मादर-चोद या बे्हन-चोद नहीं बोलते हैं।
लेकिन कभी सोचा है, इसीलिये तुम और तुम्हारे दोस्त या मैं और मेरी सहेलियां आपस में कुछ भी कहने में झिझकते नहीं हैं? हम और तुम भी बेझिझक एक दूसरे से इन सब तरह की बातें करें अकेले में तो क्या प्रॉब्लम है? और बोलूं ? कोई पर्दा भी नहीं रहेगा मेरी तरफ से हमारे बीच, और मैंने भी मस्तराम के बारे में सुना है, मुझे भी वो किताबें पढ़नी हैं बस अकेले में तुम्हारे साथ।
मुझे तो ज़रा भी शर्म या झिझक नहीं हुई तुमसे यह कहने में। हम सब फ्रेंड्स भी आपस में कभी कभी ‘चूतिया मत बना यार’ जैसी बातें भी करती हैं। मैं अपनी क्लास में कई लड़कियों को जानती हूँ जो अपने बॉय-फ्रेंड्स से रेगुलरली अपने या उनके घर पर रोज़ मौज-मस्ती भी करती हैं।
फिर क्या तुम्हारी क्लास में ऐसे लड़के नहीं है जिन्होंने कई लड़कियों को फंसा रखा है? मैंने तो अपने मन की सारी बात तुमसे कह दी, अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी।”
यह सब चित्रा के मुँह से सुन कर मेरी कुछ देर के लिए तो बोलती ही बंद हो गयी और मैं भौंचक्का उनको बस देखता रह गया। चित्रा खिलखिला कर ज़ोर से हंसी और फिर उसने खड़े होकर अपनी बाहें खोली और मुझ से चिपक कर खूब मेरे चेहरे को किस किया और बोली “बड़े भोले हो यार तुम, ठीक तो हो ना, और अब तुम्हें क्या कहना है?”
मैंने बड़ी सी मुस्कराहट के साथ फिर उन्हें गले लगाया और इस बार मैंने उन्हें सारे चेहरे पर किस करते हुए कहा “चित्रा बहन यू आर द बेस्ट इन द वर्ल्ड”, और दोनों पास पास की कुर्सियों पर बैठ गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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इतना सब कुछ इतनी जल्दी हम दोनों के साथ हो गया था कि दोनों की साँस में साँस आने में समय लगा। इससे पहले कि हम और कुछ बात करते दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने जाकर देखा तो पड़ोस वाली आंटी आयी थीं यह बताने कि उनके घर में फ़ोन करके मेरे पापा ने उनको बताया है कि वो लोग रात को डिनर के बाद तक ही आएंगे, और चित्रा और में उनके आने का इंतज़ार तब तक ना करें।
हम वापस आ कर बैठ गए, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा रिलैक्स्ड थे, और खूब सारी बातें करने के मूड में थे। इस बार मैं पहले बोला “चित्रा बहन आपको—” मेरा इतना कहना था कि चित्रा मेरी बात काटते बोल पड़ी “ये क्या आप-आप लगा रखी है तुमने? बंद करो ये फॉर्मेलिटी और मुझे चित्रा या ‘तुम’ ही बुलाया करो ” “ओके” मैं बोला, “यह बताना चाहता था कि आज मैंने तुम्हें बाथरूम के दरवाज़े की दरार से झाँक कर नंगा नहाते हुए देखा था।”
वह हंसी और बोली “अच्छा तो बताओ क्या देखा तुमने?” मैंने कहा “तुम तो बहुत ही अनोखे तरीके से मास्टरबेट कर रही थीं यार, बिल्कुल बिना हाथ लगाए अपनी चूत को, नहाने के बहाने बाथरूम में बैठी। कैसे सीखा ये तरीका?” “अरे ये तो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है तुम लड़कों के लिए।
चूत में जो सही जगह नल से पानी की धार गिराने में मज़ा आता है और कितनी देर तक आता रहता है इसका अंदाज़ तो सिर्फ खुद लड़की या फिर उसको बेहद प्यार करने वाला और मज़ा दिलाने में ही मज़ा लेने वाला लड़का ही जान सकता है” चित्रा ने मुझे समझाया।
“ओह्ह्ह्ह यह तो मुझे भी तुमसे सीखना पड़ेगा, सिखाओगी ना?” मैंने कहा। “ओके” चित्रा बोली “लेकिन पहले ज़रा खड़े होकर मेरे सामने तो आओ। और ये जान लो की मैंने भी उसी दरार से तुम्हें भी नंगा और लौड़े पर साबुन लगाते हुए भी देखा है। और जैसे मैंने कहा था, अब सब कुछ खुल्लम-खुल्ला भी देखने वाली हूँ।” मैं तो हैरान था कि चित्रा ने यह सब कुछ कह भी दिया बिना किसी संकोच के, और मुझसे कहलवा भी लिया, जैसे रिहर्सल करके ही आयी हो यहाँ।
मैं जा खड़ा हुआ उसके सामने तो चित्रा ने पहले मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरे होठों पर किस किया। फिर अपना चेहरा हटा कर बोली “कैसा लगा?” मेरा तो सर चकरा सा गया था! मैंने बिना कुछ बोले उसे ठीक उसकी तरह बस किस कर लिया फिरसे। “ओह, इसका मतलब अच्छा लगा तुम्हें। पता है, मैंने पहली बार किसी को होठों पर चूमा है?” मैंने भी अपना हाथ खड़ा करके कहा “मेरी भी पहली किस थी यह।” “चाचा और चाची तो डिनर तक आएंगे, तब तक और खुल्लम-खुल्ला मस्ती करें?” चित्रा ने पूछा।
मैंने हिम्मत करके जवाब में चित्रा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा, और उसके एक मम्मे पर अपना हाथ रख दिया। फुल मज़े लेने के मूड में चित्रा ने खुद ही मेरा दूसरा हाथ अपने दूसरे मम्मे पर रखते हुए बोली “लो दबा लो इन्हें मेरे मम्मों को।” मैंने उन्हें दबाया तो लौड़े पर असर होना ही था, तो मेरी पैंट पर तम्बू बनते हुए उसने देखा, और मेरी पैंट और ढीली चड्डी उतार दी। और मुझसे मेरी शर्ट और बनियान भी उतरवा दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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