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26-12-2023, 02:04 PM
(This post was last modified: 26-12-2023, 09:25 PM by deo.mukesh. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सच और फैंटेसी का गरमागरम संगम.
दोस्तों सबसे पहले मै आप सबको बता देना चाहता हूँ की ये एक लम्बी या पूरी कहानी शायद नहीं हो सकेगी क्योंकि मै बहुत कोशिश कर चूका हूँ पिछले ५ साल से की अपने अन्दर की ख्वाहिशों फंटेसी को लिख कर एक मुकम्मल कहानी का रूप दे सकूँ मगर मै फिसड्डी निकला. मै कहानी नहीं लिख सकता हूँ, अतः आप सब से गुजारिश है की जो भी एक हॉट प्लाट को कहानी का रूप दे सके, तो आप सब आजाद हैं और मै invite भी करता हूँ की मेरे प्लाट को आप अपने मजबूत लेखनी से आगे बढ़ाये.
मेरी सारी कहानियों का थीम मां और ककोल्ड बेटा ही होगा. मुझे माँ को एक खुले किताब की तरह अपनी जवानी का मजा लेते हुए देखने की हमेशा हसरत रहती है.
तो दोस्तों इस कहानी को शुरू करते हैं,,,, और आपसब भी इस कहानी को अपने हिसाब से जितना गरम और कामुक रूप दे सकें,,, आप सब का स्वागत रहेगा.
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मम्मी 8 महीने से बिना लंड के चुदाई की आग में जल रही थी. ढाबा पर खा पीकर चारपाई पर सो रहे ड्राईवरों लंड किसी रंडी या अपनी अपनी बीबियों की याद में खड़ा होकर उनकी लुंगी से बहार निकल कर असमान की तरफ खड़े होकर सलमी दे रहा था,,, कई सारे लंड खुले आसमान के नीचे देखकर मम्मी की गरम गद्रे बुर ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया और मम्मी कुछ बड़ा डेरिंग करने के लिए मजबूर होने लगी. आखिर चूत की आग का सवाल था.
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17-03-2025, 10:39 PM
(This post was last modified: 21-03-2025, 04:59 PM by deo.mukesh. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मम्मी 48 साल की थीं, लेकिन उनकी जवानी अभी भी किसी 30 साल की औरत को मात देती थी. उनकी जवानी अभी भी ऐसी थी कि राह चलते मर्दों की नज़रें उनकी गदराई कमर और भारी चूचियों पर ठहर जाया करती थीं। साड़ी में लिपटी उनकी काया किसी मादक सपने जैसी थी—पतली कमर पर कसी हुई साड़ी, गहरी नाभि जो कभी-कभी पल्लू के हटने से झलकती थी, और भारी चूचियाँ जो ब्लाउज़ में कैद होने को तैयार नहीं थीं।उनकी आँखों में एक अजीब सा नशा रहता था, जो शायद 8 महीने से बिना चुदाई के जल रही उनकी बुर की तपिश से आता था।
मैं, उनका बेटा, उनकी इस हालत को देखकर अंदर ही अंदर तड़पता था। मेरे लिए मम्मी एक खुली किताब थीं—एक ऐसी औरत, जो अपनी जवानी को हर पल जीना चाहती थी। मेरी फैंटेसी थी कि मैं उन्हें किसी गैर मर्द के नीचे तड़पते हुए देखूँ, उनकी सिसकारियाँ सुनूँ, और उनकी बुर की आग को ठंडा होता देखूँ। शायद ये मेरी ककोल्ड सोच थी, पर ये सच था।
उस रात हम कही दूर के सफर में एक ढाबे पर रुके थे। ढाबे की हल्की रोशनी में चारपाइयों पर कुछ ड्राइवर सो रहे थे। उनकी लुंगियाँ नींद में इधर-उधर सरक गई थीं, और उनके मोटे-मोटे लंड आसमान की तरफ तनकर सलामी दे रहे थे। मैंने देखा कि मम्मी की नज़र बार-बार उन लंडों पर ठहर रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा खिसक गया था, और उनकी भारी साँसों से उनकी चूचियाँ ऊपर-नीचे हो रही थीं।
"क्या हुआ मम्मी, तुम्हारी तबीयत ठीक तो है न ?" मैंने धीमी आवाज़ में पूछा, हालाँकि मुझे जवाब पहले से पता था।
"कुछ नहीं, बेटा," मम्मी ने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में एक कंपन था। वो उठीं और ढाबे के किनारे की ओर चल दीं, जहाँ अंधेरा थोड़ा गहरा था। मैं चुपचाप उनके पीछे गया।
वहाँ एक काला, मज़बूत ड्राइवर चारपाई पर सो रहा था। उसकी लुंगी पूरी तरह हट चुकी थी, और उसका लंड—लगभग 8 इंच का—पत्थर की तरह खड़ा था। मम्मी ने एक पल उसे देखा, फिर अपनी साड़ी को थोड़ा ऊपर उठाया। उनकी मोटी, गोरी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। उनकी बुर से रस टपक रहा था—मैंने देखा कि उनकी साड़ी का निचला हिस्सा गीला हो चुका था।
उनकी आँखें उस लंड पर टिकी थीं। "तेरी माँ की जवानी अब और बेकार नहीं जाएगी। 8 महीने से ये आग जल रही है... अब इसे बुझाना ही पड़ेगा।" ये मैंने अपने मन मे सोचा ।
मम्मी के इस खुले ढाबे ओर हरकत में एक बेशर्मी थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
मम्मी की बैकस्टोरी मेरे दिमाग में कौंध गई। पापा से उनकी शादी 25 साल पहले हुई थी। पापा सरकारी नौकरी मे थे और पापा की मम्मी से उम्र का फासला बहुत बड़ा था, पापा मम्मी से 22 साल उम्र मे बड़े थे। शुरू में सब ठीक था, पर पिछले कुछ सालों से पापा फिजिकली इनेक्टिव हो गए थे। हायाद ये उम्र का असर था, पापा 60 के करीब पहुँच गए थे और उछ ही महीने मे रिटाइर होने वाले थे नौकरी से, जबकि मम्मी की जवानी और चुदाई का खुमार तो अभी अपने उफान पर पहुंचा ही था। मम्मी की चुदाई की भूख कभी खत्म नहीं हुई थी। गाँव में लोग उन्हें "रसीली रानी" कहकर चिढ़ाते थे, क्योंकि उनकी जवानी और कामुकता छुपाए नहीं छुपती थी। एक बार गाँव के मेला में एक जवान लड़के ने मम्मी की कमर पर हाथ रख दिया था, और मम्मी ने उसे थप्पड़ मारने के बजाय बस मुस्कुरा दिया था। उस दिन से मेरे मन में ये ख्याल घर कर गया था कि मम्मी की बुर की प्यास आम मर्दों से नहीं बुझने वाली।
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मम्मी से 22 साल बड़े होने की वजह से उनकी शादी शुरू से ही एक समझौता थी। पापा का ध्यान हमेशा नौकरी और परिवार चलाने पर रहा, लेकिन मम्मी की जवानी की भूख को वो कभी समझ ही नहीं पाए। अब तो पापा की उम्र और कमज़ोरी ने उन्हें बिस्तर पर बेकार बना दिया था। मम्मी की तड़प मेरे लिए कोई राज़ नहीं थी। मैं, उनका 24 साल का बेटा, उनकी इस हालत को देखकर अंदर ही अंदर उत्तेजित होता था मुझे ये बहुत पसंद था की मेरी मम्मी अपनी जवानी को किसी गैर मर्द के साथ मज़े लेते हुए जीएँ, और मैं छिपकर वो सब देखूँ।
उस रात हम एक ढाबे पर रुके थे। पापा हमें यहाँ छोड़कर आगे चले गए थे—किसी काम के सिलसिले में। ढाबे की मद्धम रोशनी में कुछ ट्रक ड्राइवर चारपाइयों पर लेटे हुए थे। उनकी लुंगियाँ नींद में इधर-उधर खिसक गई थीं, और उनके तने हुए लंड हवा में सलामी दे रहे थे। मैं एक कोने में चारपाई पर लेटा हुआ था, लेकिन मेरी नज़र मम्मी पर थी। वो ढाबे की छोटी सी रसोई के पास खड़ी थीं, जहाँ से ड्राइवरों की चारपाइयाँ साफ दिख रही थीं। उनकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था, और उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं।
मम्मी ने अपनी साड़ी को थोड़ा कसकर बाँधा और रसोई के पास बने पानी के मटके की ओर बढ़ीं। उनकी चाल में एक अजीब सी लचक थी, जो शायद उनकी बुर की तड़प से आ रही थी। मैंने देखा कि एक ड्राइवर—काला, मज़बूत, और भारी भरकम—उनकी तरफ घूर रहा था। उसकी आँखों में हवस साफ झलक रही थी। वो अपनी चारपाई से उठा और मम्मी के पास आया।
"पानी चाहिए, भाभी?" उसने भारी आवाज़ में पूछा, और अपने हाथ से मटके का ढक्कन हटाया।
"हाँ... गला सूख रहा है," मम्मी ने धीमी, नशीली आवाज़ में कहा। उनकी नज़रें उस ड्राइवर के चौड़े सीने पर टिक गईं। वो जानबूझकर धीरे-धीरे पानी पीने लगीं, और पानी का एक छींटा उनके होंठों से होते हुए उनकी साड़ी पर गिरा, जो उनकी चूचियों के उभार को और नुमायाँ कर गया।
"अकेली हो क्या यहाँ?" ड्राइवर ने थोड़ा करीब आते हुए पूछा। उसकी नज़र अब मम्मी की साड़ी के गीले हिस्से पर थी।
"हाँ... पति तो काम पर गए हैं," मम्मी ने जवाब दिया, और अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा और ढीला छोड़ दिया। उनकी बातों में एक छुपी हुई न्योता था। मैं छिपकर ये सब देख रहा था—मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
ड्राइवर ने एक गंदी मुस्कान दी और कहा, "रात बड़ी ठंडी है, भाभी। चारपाई पर अकेले नींद नहीं आएगी।"
"तो क्या करूँ?" मम्मी ने आँखें झुकाते हुए पूछा, लेकिन उनकी आवाज़ में एक मोहक पुकार थी। वो जानती थीं कि वो क्या चाहती हैं, पर औरत की शर्म अभी भी उन्हें पूरी तरह खुलने से रोक रही थी।
तभी दूसरा ड्राइवर, जो पास ही लेटा था, उठकर आया। वो थोड़ा पतला, लेकिन चुस्त-दुरुस्त था। "अरे भैया, भाभी को परेशान मत करो," उसने मज़ाक में कहा, पर उसकी नज़र भी मम्मी की कमर पर टिक गई। "हम सब यहाँ हैं ना, भाभी की रात को ठंडी नहीं होने देंगे।"
मम्मी ने हल्के से मुस्कुराया और कहा, "तुम लोग तो बड़े मददगार हो। पर मैं अकेली औरत हूँ, ढाबे पर ऐसे कैसे भरोसा करूँ?" उनकी बातों में नखरा था, जो ड्राइवरों को और उकसा रहा था।
"अरे भाभी, हमारा भरोसा देख लो," पहले ड्राइवर ने अपनी लुंगी को थोड़ा ढीला करते हुए कहा। उसका तना हुआ लंड अब साफ़ दिख रहा था। मम्मी की नज़र वहाँ गई, और उनकी साँसें एक पल के लिए रुक गईं। वो पीछे हटीं, लेकिन उनकी आँखों में शर्म के साथ-साथ हवस भी थी।
"ये क्या बेशर्मी है?" मम्मी ने बनावटी गुस्से में कहा, पर उनकी आवाज़ काँप रही थी। वो रसोई की ओर मुड़ीं, लेकिन जानबूझकर अपनी साड़ी का पल्लू ज़मीन पर गिरने दिया। उनकी नंगी कमर और गहरी नाभि अब ड्राइवरों के सामने थी। दोनों ड्राइवर एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए—उन्हें मौका मिल गया था।
मैं अंधेरे में छिपा हुआ ये सब देख रहा था। मम्मी की हर हरकत मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी। ड्राइवर अब उनके करीब आने की कोशिश कर रहे थे, और मम्मी भी धीरे-धीरे उनके जाल में फँस रही थीं।
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17-03-2025, 10:54 PM
(This post was last modified: 21-03-2025, 05:01 PM by deo.mukesh. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(17-03-2025, 10:39 PM)deo.mukesh Wrote:
मम्मी 48 साल की थीं, लेकिन उनकी जवानी अभी भी किसी 30 साल की औरत को मात देती थी. उनकी जवानी अभी भी ऐसी थी कि राह चलते मर्दों की नज़रें उनकी गदराई कमर और भारी चूचियों पर ठहर जाया करती थीं। साड़ी में लिपटी उनकी काया किसी मादक सपने जैसी थी—पतली कमर पर कसी हुई साड़ी, गहरी नाभि जो कभी-कभी पल्लू के हटने से झलकती थी, और भारी चूचियाँ जो ब्लाउज़ में कैद होने को तैयार नहीं थीं।उनकी आँखों में एक अजीब सा नशा रहता था, जो शायद 8 महीने से बिना चुदाई के जल रही उनकी बुर की तपिश से आता था।
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मैं अंधेरे में छिपा हुआ ये सब देख रहा था। मम्मी की हर हरकत मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी। ड्राइवर अब उनके करीब आने की कोशिश कर रहे थे, और मम्मी भी धीरे-धीरे उनके जाल में फँस रही थीं।"
ढाबे की हवा में ठंडक थी, लेकिन मम्मी के जिस्म से उठती गर्मी उस ठंड को चुनौती दे रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू ज़मीन पर गिरा हुआ था, और उनकी नंगी कमर चाँदनी में चमक रही थी। वो रसोई की ओर मुड़ीं, लेकिन उनकी चाल में एक अजीब सी थिरकन थी—जैसे वो ड्राइवरों को और ललचाना चाहती हों। मैं अंधेरे में एक टूटी चारपाई के पीछे छिपा हुआ था, मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं। मेरा दिल चाहता था कि मम्मी इस खेल को और आगे बढ़ाएँ, और मैं चुपचाप सब देखता रहूँ।
पहला ड्राइवर—काला और मज़बूत, जिसका नाम शायद रामू था—मम्मी के पीछे-पीछे रसोई की ओर बढ़ा।
दूसरा ड्राइवर—पतला लेकिन चुस्त, जिसे मैंने "संजू" कहते सुना—हँसते हुए बोला, "रामू भैया, भाभी को अकेले मत छोड़ो। रात लंबी है, हम भी तो मौज लें।" उसकी आवाज़ में मज़ाक था, लेकिन उसकी नज़रें मम्मी की गदराई गांड पर टिकी थीं।
मम्मी ने पलटकर दोनों को देखा। उनकी आँखों में बनावटी गुस्सा था, लेकिन होंठों पर एक हल्की मुस्कान भी थी। "तुम लोग भी ना, बड़े बेशर्म हो," उन्होंने कहा और झुककर अपना पल्लू उठाने लगीं। जानबूझकर वो इतना नीचे झुकीं कि उनकी साड़ी का ऊपरी हिस्सा ढीला हो गया, और उनकी भारी चूचियाँ ब्लाउज़ में से बाहर झाँकने लगीं। रामू की आँखें चमक उठीं। उसने अपनी लुंगी को थोड़ा और ढीला किया और करीब आते हुए बोला, "भाभी, बेशर्मी तो तुम भी कम नहीं कर रही हो। ये पल्लू बार-बार क्यों गिर रहा है?"
मम्मी ने पल्लू को कंधे पर डालते हुए कहा, "हवा का क्या करूँ? ये साड़ी भी पुरानी हो गई है, ढंग से रहती ही नहीं।" उनकी आवाज़ में एक नखरा था, जो ड्राइवरों को और उकसा रहा था।
संजू ने पास आकर कहा, "तो भाभी, नई साड़ी ले लो। हमारी कमाई का कुछ हिस्सा तुम्हारे काम आएगा।" वो हँसा, लेकिन उसकी नज़र मम्मी की नाभि पर टिक गई थी।
मम्मी ने एक गहरी साँस ली और रसोई की चौकी पर बैठ गईं। उनकी साड़ी उनकी जाँघों तक सरक गई थी, और उनकी गोरी, मोटी जाँघें चाँदनी में नहा रही थीं। "कमाई की बात मत करो," मम्मी ने धीरे से कहा, "मेरे पति की कमाई भी कम नहीं थी। सरकारी नौकरी में थे, अब रिटायर होने वाले हैं।"
(बोलते हुए मम्मी ने मन ही मन कहा - "पर क्या फायदा? जवानी का मज़ा तो लेना पड़ता है ना?")
रामू ने मौके का फायदा उठाया। वो मम्मी के पास चौकी पर बैठ गया और बोला, "तो भाभी, जवानी का मज़ा हमसे ले लो। हम ट्रक वाले भले ही गरीब हों, पर मजा देने में कोई कमी नहीं है।" उसने अपनी लुंगी को थोड़ा और खिसकाया, और उसका तना हुआ लंड अब साफ़ दिख रहा था। मम्मी की नज़र वहाँ गई, और उनकी साँसें एक पल के लिए रुक गईं। वो उठने की कोशिश करने लगीं, लेकिन संजू ने दूसरी तरफ से उनकी कमर को हल्के से पकड़ लिया।
"अरे भाभी, कहाँ भाग रही हो?" संजू ने नशीली आवाज़ में कहा। "रात अभी बाकी है। ढाबे पर अकेली औरत को ऐसे छोड़ना ठीक नहीं।" उसका हाथ मम्मी की कमर पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। मम्मी ने उसका हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उनकी हरकत में मना करने की ताकत नहीं थी। "छोड़ो मुझे," मम्मी ने कहा, पर उनकी आवाज़ में एक अजीब सी कशिश थी।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की बैकस्टोरी मेरे दिमाग में कौंध रही थी। पापा से उनकी शादी तब हुई थी, जब मम्मी सिर्फ 23 की थीं और पापा 45 के। गाँव में लोग कहते थे कि मम्मी को पापा ने अपनी सरकारी नौकरी से खरीद लिया था। शुरू के सालों में मम्मी ने सब सह लिया, लेकिन जैसे-जैसे पापा की उम्र बढ़ी, उनकी मर्दानगी खत्म होती गई। मम्मी की बुर की आग कभी ठंडी नहीं हुई। एक बार गाँव के सरपंच ने मम्मी को अपने खेत में अकेले देखकर छेड़ने की कोशिश की थी। मम्मी ने उसे धक्का दे दिया था, लेकिन बाद में मम्मी को उनकी किसी सहेली से बात करते हुए सुन था की सरपंच की इस हरकत से उनकी बुर में एक अजीब सी गुदगुदी हुई थी।
अब ढाबे पर वो पल फिर आ गया था। रामू ने मम्मी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "भाभी, इतनी ठंड में अकेले कैसे सोओगी? हमारी चारपाई पर आ जाओ, गर्मी दे देंगे।" उसकी बात में गंदगी थी, लेकिन मम्मी ने सिर्फ मुस्कुराकर कहा, "तुम लोग बड़े शैतान हो। मुझे नींद आ रही है, सोने दो।" वो उठीं और अपनी चारपाई की ओर चल दीं, लेकिन जानबूझकर अपनी साड़ी को ज़मीन पर घसीटते हुए चलीं। उनकी गांड की थिरकन ड्राइवरों को पागल कर रही थी।
रामू और संजू एक-दूसरे को देखकर हँसे। "ये भाभी तो माल है," रामू ने धीरे से कहा। "दिखती शरीफ है, पर अंदर से रंडी है। इसे गरम करना पड़ेगा।" संजू ने जवाब दिया, "चिंता मत कर, भैया। रात अभी बाकी है। ढाबे का सन्नाटा हमारा साथ देगा।"
मैं अपनी चारपाई के पीछे साँस रोककर ये सब सुन रहा था। मम्मी अपनी चारपाई पर लेट गईं, लेकिन उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी। वो करवट लेकर सोने की कोशिश कर रही थीं, पर उनकी साँसों की गति बता रही थी कि उनकी बुर की आग अब बेकाबू हो रही थी। ड्राइवर अब प्लान बना रहे थे, और मैं चुपचाप इंतज़ार कर रहा था कि ये खेल आगे कैसे बढ़ेगा।
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(17-03-2025, 10:54 PM)deo.mukesh Wrote:
ढाबे की हवा में ठंडक थी, लेकिन मम्मी के जिस्म से उठती गर्मी उस ठंड को चुनौती दे रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू ज़मीन पर गिरा हुआ था, और उनकी नंगी कमर चाँदनी में चमक रही थी। वो रसोई की ओर मुड़ीं, लेकिन उनकी चाल में एक अजीब सी थिरकन थी
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मैं अपनी चारपाई के पीछे साँस रोककर ये सब सुन रहा था। मम्मी अपनी चारपाई पर लेट गईं, लेकिन उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी। वो करवट लेकर सोने की कोशिश कर रही थीं, पर उनकी साँसों की गति बता रही थी कि उनकी बुर की आग अब बेकाबू हो रही थी। ड्राइवर अब प्लान बना रहे थे, और मैं चुपचाप इंतज़ार कर रहा था कि ये खेल आगे कैसे बढ़ेगा।
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ढाबे का सन्नाटा अब और गहरा हो गया था। चाँदनी की हल्की रोशनी में मम्मी अपनी चारपाई पर लेटी थीं। उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी, और पल्लू उनकी चूचियों को ढकने में नाकाम हो रहा था। उनकी साँसें तेज़ थीं, जैसे उनकी बुर की आग अब उन्हें सोने न दे रही हो। मैं अपनी चारपाई के पीछे छिपा हुआ था, मेरी नज़रें मम्मी और ड्राइवरों पर टिकी थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में तड़प रहा था, लेकिन मैं चुप था—बस देखना और सुनना चाहता था।
रामू और संजू अपनी चारपाइयों पर बैठे थे, मम्मी से थोड़ी दूर। वो आपस में फुसफुसा रहे थे, और उनकी बातें हवा में तैरकर मेरे कानों तक पहुँच रही थीं। रामू ने अपनी लुंगी को ठीक करते हुए धीरे से कहा, "संजू, ये भाभी तो साली हरामी रंडी है। देख कैसे अपनी गांड मटकाकर हमें ललचा रही है।" उसकी आवाज़ में हवस थी, और वो मम्मी की तरफ घूर रहा था।
संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, ये चुड़क्कड़ माल है। साड़ी में लिपटी है, पर लगता है इसकी बुर नंगी होकर लंड माँग रही है। साली की चूचियाँ देख—कितनी मस्त हैं, दबाने को जी चाहता है।" उसने अपनी लुंगी के ऊपर से अपने लंड को सहलाया, और उसकी आँखें मम्मी की जाँघों पर टिक गईं।
मम्मी करवट लिए लेटी थीं, लेकिन मुझे यकीन था कि वो ये फुसफुसाहट सुन रही थीं। उनकी साँसें और तेज़ हो गई थीं, और उनकी उंगलियाँ साड़ी के किनारे को हल्के से दबा रही थीं। बाहर से वो शांत दिख रही थीं, पर उनकी बुर का रस उनकी जाँघों को गीला कर रहा था—ये मैं उनकी साड़ी के गीले धब्बे से समझ गया। वो ड्राइवरों की गालियों से उत्तेजित हो रही थीं, लेकिन अपनी शर्म को ढाल बनाए रख रही थीं।
रामू ने फिर फुसफुसाते हुए कहा, "संजू, इस रंडी की चूत में कितनी आग होगी, सोच। 8 महीने से बिना लंड के तड़प रही है। साली को चारपाई पर पटककर चोद दूँ, तो सारी शराफत निकल जाएगी।" उसकी बात सुनकर संजू की हँसी छूट गई। "हाँ भैया, इस मादरचोद को एक बार लंड मिल जाए, तो ढाबे पर चीख-चीखकर चुदवाएगी। देखो ना, कैसे अपनी साड़ी ढीली छोड़ रखी है—साली लंड की भूखी है।"
मम्मी ने करवट बदली। उनकी साड़ी अब उनकी जाँघों से और ऊपर सरक गई थी, और उनकी गोरी, मोटी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। वो ड्राइवरों की गालियाँ सुन रही थीं, और उनकी उंगलियाँ अब साड़ी के नीचे अपनी बुर की तरफ बढ़ रही थीं। बाहर से वो सोने का नाटक कर रही थीं, लेकिन उनकी हरकत बता रही थी कि वो खुद को छूने से रोक नहीं पा रही थीं।
मैं ये सब देखकर पागल हो रहा था। मम्मी के लिए "रंडी", "चुड़क्कड़", "मादरचोद" जैसी गालियाँ मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थीं। मेरे मन में उनकी चुदाई का ख्याल बार-बार आ रहा था, और मैं चाहता था कि ड्राइवर अब कुछ करें।
रामू उठा और मम्मी की चारपाई के पास आया। वो धीरे से बोला, "भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?" उसकी आवाज़ में मक्कारी थी। मम्मी ने आँखें खोलीं और बनावटी गुस्से में कहा, "तुम लोग सोने क्यों नहीं देते? बार-बार परेशान कर रहे हो।" लेकिन उनकी आवाज़ काँप रही थी, और उनकी नज़र रामू के तने हुए लंड पर ठहर गई।
"अरे भाभी, हम तो मदद करना चाहते हैं," संजू ने पास आते हुए कहा। "रात ठंडी है, और तुम अकेली हो। हमारी चारपाई पर आ जाओ, गर्मी दे देंगे।" उसने अपनी लुंगी को हल्के से खिसकाया, और उसका लंड अब आधा बाहर झाँक रहा था। मम्मी ने एक पल उसे देखा, फिर नज़रें फेर लीं। "बेशर्म कहीं के," उन्होंने धीरे से कहा, लेकिन उनकी साड़ी को कसने की कोशिश में उनका हाथ काँप रहा था।
रामू ने हँसते हुए कहा, "भाभी, बेशर्मी तो तुम्हारी साड़ी कर रही है। देखो कैसे सरक रही है।" वो मम्मी के और करीब आया और उनकी चारपाई के किनारे पर बैठ गया। उसका हाथ मम्मी की जाँघ के पास हवा में रुक गया, जैसे वो इजाज़त का इंतज़ार कर रहा हो। मम्मी ने कुछ नहीं कहा, बस अपनी साँसों को काबू करने की कोशिश करती रहीं।
संजू ने फिर फुसफुसाकर रामू से कहा, "देख भैया, इस रंडी की बुर तो गीली हो रही है। साली अभी भी शरीफ बन रही है, पर अंदर से चुदने को तैयार है।" मम्मी ने ये सुना, और उनकी उंगलियाँ साड़ी के नीचे और सख्ती से दब गईं। उनकी बुर का रस अब साड़ी को भिगो रहा था, लेकिन वो बाहर से शांत बनी रहीं।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। ड्राइवरों की गालियाँ और मम्मी की उत्तेजना मुझे पागल कर रही थी। रात अब और गहराने वाली थी, और ये खेल अभी शुरू ही हुआ था।
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भाग 4: गालियों की गूँज और बुर की आग
ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब संजू की गोद में तड़प रही थीं। उनकी साड़ी खिसक चुकी थी, और रामू पीछे से उनकी चूचियों को दबा रहा था। लेकिन अभी खेल शुरू ही हुआ था। रामू और संजू ने मम्मी को चारपाई पर पटका, और फिर वो दोनों थोड़ा पीछे हटकर आपस में फुसफुसाने लगे। उनकी बातें इतनी धीमी थीं कि मम्मी को सुनने के लिए कान लगाने पड़ रहे थे, लेकिन हर शब्द उनकी बुर में आग लगा रहा था।
रामू ने संजू की तरफ देखकर होंठों पर जीभ फेरी और कहा, "देख भाई, ये साली रंडी कितनी मस्त माल है। इसकी बुर तो देख, साड़ी के नीचे से भी गीली चमक रही है। लगता है ये हरामज़ादी चुदने के लिए पैदा हुई है।"
संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, और इसकी गांड तो देखो, साली कुतिया की तरह गदराई हुई है। इसे पटककर चोदें तो सारा ढाबा इसकी चीखों से गूँज उठे। ये भोसड़ीवाली शरीफ बन रही है, लेकिन अंदर से पूरा भट्ठा जल रहा है।"
मम्मी चारपाई पर लेटी हुई थीं, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उन्होंने अपनी आँखें हल्की-सी खुली रखीं, जैसे सोने का नाटक कर रही हों, लेकिन ड्राइवरों की गालियाँ उनके कानों में शहद की तरह घुल रही थीं। "रंडी... हरामज़ादी... भोसड़ीवाली..."—ये शब्द उनके दिमाग में गूँज रहे थे। उनकी उंगलियाँ फिर से साड़ी के ऊपर से उनकी बुर की तरफ खिसकीं, और वो धीरे-धीरे उसे सहलाने लगीं। बाहर से वो शांत दिख रही थीं, लेकिन अंदर उनकी हवस जाग चुकी थी।
रामू ने फिर फुसफुसाते हुए कहा, "संजू, इस मादरचोद की चूचियाँ देख। साली की ब्लाउज़ में कैद दो पहाड़ हैं। इन्हें मसलकर लाल कर दूँगा। और इसकी नाभि में तो पूरा हाथ डालकर मज़े ले सकता हूँ।"
संजू ने अपनी लुंगी को ठीक करते हुए जवाब दिया, "भैया, मुझे तो इसकी बुर चाहिए। साली की चूत इतनी रसीली है कि चाटते-चाटते रात बीत जाए। ये रंडी बाहर से नखरे दिखा रही है, लेकिन इसके अंदर चुदाई की भूखी शेरनी छिपी है।"
मम्मी की सिसकारी अब दब नहीं रही थी। उनकी बुर गीली हो चुकी थी, और साड़ी का कपड़ा उनकी जाँघों से चिपक गया था। ड्राइवरों की गालियाँ सुनकर उनकी उत्तेजना चरम पर पहुँच रही थी। "मादरचोद... रंडी... भोसड़ीवाली..."—हर गाली उनके जिस्म में बिजली की तरह दौड़ रही थी। लेकिन वो अभी भी बाहर से सोने का नाटक कर रही थीं, जैसे कुछ सुन ही न रही हों।
रामू ने मम्मी की तरफ देखा और संजू से बोला, "चल भाई, इस कुतिया को अब और तड़पाने का क्या फायदा? इसके भोसड़े में आग लगी है, इसे ठंडा करना पड़ेगा।" वो मम्मी के पास आया और उनकी साड़ी को पूरी तरह खींचकर हटा दिया। मम्मी की नंगी जाँघें और गीली बुर अब उनके सामने थी।
संजू ने पास आकर मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबाया और बोला, "भाभी, अब नाटक बंद करो। तुम्हारी चूत की गर्मी हमें दिख रही है। साली रंडी, अब तेरे लिए दो लंड तैयार हैं।"
मम्मी ने आँखें खोलीं और बनावटी गुस्से से कहा, "ये क्या बदतमीजी है? मुझे छोड़ दो, मैं शरीफ औरत हूँ।" लेकिन उनकी आवाज़ में वो मज़बूरी नहीं थी जो पहले थी। उनकी नज़र संजू के तने हुए लंड पर अटक गई, और उनकी जीभ अनायास ही होंठों पर फिर गई।
रामू ने हँसते हुए कहा, "शरीफ औरत? साली, तेरी बुर का पानी बता रहा है कि तू कितनी शरीफ है। अब चुपचाप लंड ले, वरना ढाबे में सबको बुलाकर तेरी चुदाई का तमाशा बनवा देंगे।"
मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया, लेकिन उनकी बुर की खुजली अब बर्दाश्त से बाहर थी। वो चारपाई पर पीछे हटीं और बोलीं, "तुम लोग बहुत गंदे हो... मुझे अकेला छोड़ दो..." लेकिन उनकी आँखों में हवस साफ झलक रही थी।
संजू ने उनकी कमर पकड़कर अपनी ओर खींचा और बोला, "अब छोड़ने का टाइम गया, रंडी। तेरी बुर का भोसड़ा बनाने का वक्त आ गया है।" उसने अपनी लुंगी उतार दी, और उसका लंड मम्मी के मुँह के पास आ गया। रामू ने पीछे से मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ से आज़ाद कर दिया और उन्हें मसलने लगा।
मम्मी की सिसकारी अब खुलकर बाहर आ रही थी—"आह्ह... ना... छोड़ो..." लेकिन उनका जिस्म उनके शब्दों का साथ नहीं दे रहा था। ड्राइवरों की गालियाँ और उनकी हरकतें मम्मी को जन्नत की सैर करा रही थीं।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की हालत और ड्राइवरों की गंदी बातें मुझे भी उत्तेजित कर रही थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। अब अगला सीन चुदाई का होने वाला था, और मैं इंतज़ार कर रहा था कि मम्मी की शर्म आखिरकार हवस के आगे कब हार मानेगी।
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17-03-2025, 11:33 PM
(This post was last modified: 17-03-2025, 11:34 PM by deo.mukesh. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(17-03-2025, 11:07 PM)deo.mukesh Wrote:
ढाबे का सन्नाटा अब और गहरा हो गया था। चाँदनी की हल्की रोशनी में मम्मी अपनी चारपाई पर लेटी थीं। उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी, और पल्लू उनकी चूचियों को ढकने में नाकाम हो रहा था। उनकी साँसें तेज़ थीं, जैसे उनकी बुर की आग अब उन्हें सोने न दे रही हो। मैं अपनी चारपाई के पीछे छिपा हुआ था, मेरी नज़रें मम्मी और ड्राइवरों पर टिकी थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में तड़प रहा था, लेकिन मैं चुप था—बस देखना और सुनना चाहता था।
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भाग 4: गालियों की गूँज और बुर की आग
रामू और संजू ने मम्मी को चारपाई पर पटका, और फिर वो दोनों थोड़ा पीछे हटकर आपस में फुसफुसाने लगे। उनकी बातें इतनी धीमी थीं कि मम्मी को सुनने के लिए कान लगाने पड़ रहे थे, लेकिन हर शब्द उनकी बुर में आग लगा रहा था।
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मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की हालत और ड्राइवरों की गंदी बातें मुझे भी उत्तेजित कर रही थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। अब अगला सीन चुदाई का होने वाला था, और मैं इंतज़ार कर रहा था कि मम्मी की शर्म आखिरकार हवस के आगे कब हार मानेगी।
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भाग 5: यादों की आग और ढाबे की चिंगारी
ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब रामू और संजू के बीच फँसी हुई थीं। रामू उनकी चूचियों को ब्लाउज़ से आज़ाद करके मसल रहा था, और संजू उनकी कमर पकड़कर अपने तने हुए लंड को उनके मुँह के पास ले आया था। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... छोड़ो..."—अब खुलकर निकल रही थीं, लेकिन उनका जिस्म उनकी बातों का साथ नहीं दे रहा था। उनकी साड़ी पूरी तरह खिसक चुकी थी, और उनकी गीली बुर चाँदनी में चमक रही थी। ड्राइवरों की गालियाँ—"रंडी... भोसड़ीवाली... चुड़क्कड़"—उनके कानों में गूँज रही थीं, और उनकी उत्तेजना चरम पर थी।
लेकिन तभी, रामू की उंगलियाँ जब उनकी बुर को सहलाने लगीं, मम्मी की आँखें बंद हो गईं। उनकी साँसें और तेज़ हुईं, और उनके दिमाग में अचानक एक पुरानी याद तैर गई—उनकी सहेली, शांति, की याद। शांति हमारे घर में काम करने वाली बाई थी। उम्र में मम्मी से 5-6 साल छोटी, लेकिन जिस्म से उतनी ही गदराई। शांति और मम्मी का रिश्ता सिर्फ मालकिन और नौकरानी का नहीं था—वो एक-दूसरे की सबसे गहरी राज़दार थीं।
एक दोपहर की बात थी, जब पापा ऑफिस गए थे और मैं कॉलेज में था। शांति घर में बर्तन धो रही थी, और मम्मी नहाकर बाहर आई थीं। सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में मम्मी की चूचियाँ गीली थीं, और शांति की नज़र उन पर ठहर गई थी। "दीदी, आप तो अभी भी जवान लगती हो," शांति ने हँसते हुए कहा था। "ये चूचियाँ देखो, कितनी टाइट हैं। आदमी सब को पागल कर देंगी।"
मम्मी ने शरमाते हुए जवाब दिया था, "चुप कर, शांति। मेरी जवानी का क्या फायदा? तेरे मालिक तो अब आंटी ही हो उनकी उमर कितनी हो गई है।" लेकिन उनकी आँखों में एक चमक थी। शांति ने बर्तन छोड़कर मम्मी के पास आते हुए कहा, "तो क्या हुआ, दीदी? जवानी को मज़े लेने मे कौन स रोक टोंक है कहते हुए उसने आँख मारी।
उस दिन शांति ने मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबाया था। "आह्ह..." मम्मी की सिसकारी निकल गई थी। फिर शांति ने अपना हाथ मम्मी के पेटीकोट में डाला और उनकी बुर को सहलाते हुए कहा, "दीदी, आपकी चूत तो अभी भी रसीली है। इसे लंड चाहिए, या मेरी उंगलियाँ ही काफी हैं?" मम्मी ने शर्म से मुँह फेर लिया था, लेकिन उनकी सिसकारियाँ—"आह्ह... शांति... और..."—बता रही थीं कि उन्हें मज़ा आ रहा था।
उसके बाद दोनों की बातचीत और गहरी हो गई थी। शांति मम्मी को अपने गाँव के मर्दों की कहानियाँ सुनाती थी—"एक बार एक लेडीज टेलर ने मुझे खेत में पटककर चोदा था, दीदी। उसका लंड इतना मोटा था कि मेरी चूत दो दिन तक दुखती रही।"—और मम्मी उसे अपनी जवानी के किस्से सुनाती थीं—"शादी से पहले एक लड़का मेरे पीछे पड़ा था। एक बार उसने मुझे बाग में पकड़कर मेरी चूचियाँ दबाई थीं। मुझे गुस्सा तो आया, पर मज़ा भी आया था।"
ये यादें मम्मी के दिमाग में अब तूफान की तरह घूम रही थीं। रामू की उंगलियाँ उनकी बुर में अंदर-बाहर हो रही थीं, और संजू का लंड उनके होंठों को छू रहा था। मम्मी को शांति की बात याद आई—"दीदी, किसी मर्द का लंड ले लो। तुम्हारी बुर इसके लिए बनी है।"—और उनकी हवस अब बेकाबू हो गई।
रामू ने फुसफुसाते हुए संजू से कहा, "देख भाई, इस रंडी की चूत तो साली भट्ठी की तरह गरम है। इस हरामज़ादी को चोदने में मज़ा आएगा।" संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली की गांड भी मस्त है। इसे पेलते वक्त इसकी चीखें सुनकर ढाबा गूँज उठेगा।"
मम्मी ने ये गालियाँ सुनीं, और उनकी बुर से रस की धार छूट गई। शांति की उंगलियों की याद और ड्राइवरों की गंदी बातें उन्हें पागल कर रही थीं। बाहर से वो अभी भी कमज़ोर विरोध कर रही थीं—"नहीं... ये गलत है..."—लेकिन उनकी आँखें संजू के लंड को निहार रही थीं।
संजू ने मम्मी का मुँह पकड़ा और अपना लंड उनके होंठों पर रगड़ा। "चूस ले, रंडी," उसने कहा। "तेरी शराफत अब ढोंग बन गई है।" मम्मी ने एक पल हिचकिचाई, फिर उनकी जीभ बाहर निकली और उन्होंने संजू के लंड को चाटना शुरू कर दिया। "आह्ह..." संजू की सिसकारी निकली।
रामू ने मम्मी की टाँगें फैलाईं और उनकी बुर पर अपनी जीभ रख दी। "साली, तेरी चूत का स्वाद तो मस्त है," उसने कहा और चाटने लगा। मम्मी की सिसकारियाँ अब खुलकर निकल रही थीं—"आह्ह... रामू... और..."—शांति की यादें और ढाबे की हवस अब एक हो गई थीं।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का शांति के साथ वो अंतरंग पल मेरे लिए नया था, लेकिन उनकी चुदाई का ये नज़ारा मेरी फैंटेसी को सच कर रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। ढाबे की रात अब और गरम होने वाली थी।
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भाग 6: यादों का उफान और चुदाई की आग
ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब पूरी तरह ड्राइवरों के हवाले थीं। संजू का मोटा लंड उनके मुँह में था, और वो उसे चूस रही थीं—धीरे-धीरे, फिर तेज़ी से। उनकी जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी, और संजू की सिसकारियाँ—"आह्ह... चूस साली..."—हवा में गूँज रही थीं। रामू नीचे था, मम्मी की टाँगें फैलाकर उनकी बुर को चाट रहा था। उसकी जीभ मम्मी की रसीली चूत में गहरे तक जा रही थी, और मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और अंदर..."—अब बेकाबू हो रही थीं। उनकी साड़ी कहीं गायब हो चुकी थी, और उनका नंगा जिस्म चाँदनी में नहा रहा था।
लेकिन जैसे ही रामू की जीभ उनकी बुर के और गहरे कोने को छूती, मम्मी की आँखें फिर से बंद हो जातीं। उनकी साँसें रुक जातीं, और उनके दिमाग में शांति की आवाज़ गूँजने लगती। वो दोपहर फिर से उनकी आँखों के सामने थी—जब शांति ने बर्तन छोड़कर मम्मी के साथ गरम बातें शुरू की थीं।
"दीदी, सच बताओ," शांति ने एक दिन हँसते हुए पूछा था, जब मम्मी सिर्फ पेटीकोट में बैठी थीं। "शादी से पहले कोई लड़का था ना तुम्हारे पीछे? कोई ऐसा जो तुम्हें छू लेता था?" उसकी आँखों में शरारत थी। मम्मी ने पहले तो मुँह फेर लिया था, लेकिन शांति के बार-बार पूछने पर वो टूट गई थीं।
"हाँ था," मम्मी ने धीरे से कहा था, उनकी आवाज़ में एक अजीब सी कशिश थी। "गाँव का एक लड़का था—रामलाल। मेरी उम्र का, लेकिन मुझसे कहीं ज़्यादा शैतान। एक बार मैं खेत में अकेली थी, पानी लेने गई थी। वो पीछे से आया और मुझे दबोच लिया।"
शांति की आँखें चमक उठी थीं। "फिर क्या हुआ, दीदी? बताओ ना, पूरा!" उसने मम्मी की चूचियों को हल्के से दबाते हुए कहा। मम्मी की सिसकारी निकल गई थी—"आह्ह..."—और वो बोल पड़ी थीं। "उसने मुझे पकड़कर ज़मीन पर लिटा दिया। मेरी साड़ी ऊपर उठाई और मेरी चूचियों को दबाने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरी नाभि तक गई थीं। मैं चिल्लाना चाहती थी, लेकिन मेरे मुँह से सिर्फ सिसकारियाँ निकलीं—‘रामलाल... छोड़ दे...’। पर वो नहीं रुका। उसने मेरी जाँघों को फैलाया और मेरी बुर को छू लिया।"
शांति ने अपनी उंगलियाँ मम्मी की बुर पर फेरते हुए पूछा था, "फिर? उसने चोदा तुम्हें?" मम्मी ने शर्म से सिर झुका लिया था। "नहीं... वो पूरा नहीं कर पाया। गाँव के कुछ लोग पास आ गए, और वो भाग गया। लेकिन उसकी उंगलियों की गर्मी मुझे आज तक याद है।"
शांति ने हँसते हुए कहा था, "दीदी, तुम तो सच्ची रंडी हो। उस दिन अगर लोग न आते, तो तुम खेत में चुद ही जातीं। तुम्हारी बुर को तो लंड की आदत डालनी चाहिए।" उसने मम्मी की बुर में अपनी उंगली डाल दी थी, और मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... शांति..."—कमरे में गूँज उठी थीं।
अब ढाबे पर, रामू की जीभ और संजू का लंड मम्मी को वही गर्मी दे रहा था जो रामलाल की उंगलियों ने दी थी। उनकी यादें और वर्तमान एक हो गए थे। मम्मी ने संजू के लंड को मुँह से निकाला और हाँफते हुए बोलीं, "आह्ह... तुम लोग मुझे मार डालोगे..." लेकिन उनकी आँखों में शर्म की जगह अब सिर्फ हवस थी।
रामू ने उनकी बुर से मुँह हटाया और फुसफुसाते हुए संजू से कहा, "देख भाई, इस रंडी का भोसड़ा तो साला पूरा गीला हो गया है। साली हरामज़ादी की चूत चाटने में मज़ा आ गया। अब इसे पेलने का वक्त है।"
संजू ने मम्मी के बाल पकड़कर उनकी तरफ देखा और बोला, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली का मुँह भी गर्म है। साली ने मेरा लंड चूस-चूसकर लाल कर दिया। अब इसकी गांड भी मारेंगे।" उनकी गालियाँ हवा में तैर रही थीं, और मम्मी हर शब्द को सुन रही थीं। उनकी बुर से रस की धार बह रही थी, लेकिन वो बाहर से अभी भी कमज़ोर विरोध कर रही थीं—"नहीं... ये ठीक नहीं..."
रामू ने मम्मी की टाँगें और चौड़ी कीं और अपना लंड उनकी बुर पर रगड़ा। "ठीक नहीं है तो क्या, रंडी?" उसने कहा। "तेरी चूत तो साला लंड के लिए चिल्ला रही है।" उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और उसका मोटा लंड मम्मी की बुर में पूरा घुस गया। "आह्ह्ह..." मम्मी की चीख निकल पड़ी, और उनकी आँखों में रामलाल की याद फिर कौंध गई।
संजू ने मम्मी का मुँह फिर अपने लंड से भर दिया और बोला, "चूस साली, तेरी चीखें बाद में सुनेंगे।" मम्मी अब पूरी तरह उनकी गिरफ्त में थीं। रामू नीचे से उनकी बुर को पेल रहा था, और संजू ऊपर से उनके मुँह को चोद रहा था। उनकी सिसकारियाँ और ड्राइवरों की गालियाँ ढाबे के सन्नाटे को तोड़ रही थीं—"आह्ह... चोदो मुझे... साले हरामी..."
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की शांति के साथ वो बातचीत और रामलाल की यादें मेरे लिए नई थीं, लेकिन उनकी चुदाई का ये नज़ारा मेरी ककोल्ड फैंटेसी को पूरा कर रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था, और मैं चाहता था कि ये रात कभी खत्म न हो।
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(17-03-2025, 11:33 PM)deo.mukesh Wrote: भाग 5: यादों की आग और ढाबे की चिंगारी
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भाग 6: यादों का उफान और चुदाई की आग
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भाग 7: चुदाई का तूफान और यादों की बौछार
ढाबे की चारपाई अब चुदाई का अखाड़ा बन चुकी थी। रामू मम्मी की बुर में अपने मोटे लंड को ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था। हर धक्के के साथ मम्मी की चूचियाँ उछल रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और तेज़..."—हवा में गूँज रही थीं। संजू उनके मुँह को चोद रहा था, उसका लंड मम्मी के गले तक जा रहा था। मम्मी की आँखें आधी खुली थीं, और उनकी जीभ संजू के लंड को चाट रही थी। उनकी बुर से रस की धार बह रही थी, जो चारपाई को गीला कर रही थी।
रामू ने मम्मी की टाँगें अपने कंधों पर उठाईं और और गहराई से धक्के मारने लगा। "साली रंडी, तेरी चूत तो साला भट्ठी है," उसने हाँफते हुए कहा। "इसे चोदने में मज़ा आ रहा है।" संजू ने मम्मी के बाल पकड़कर अपना लंड और अंदर ठूँसा और बोला, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली का मुँह भी गर्म है। साली चूसने में मस्त है।"
मम्मी अब पूरी तरह हवस में डूबी थीं। उनकी शर्म का नाटक खत्म हो चुका था। लेकिन जैसे ही रामू का लंड उनकी बुर के सबसे गहरे कोने को छूता, उनकी आँखें फिर बंद हो जातीं, और उनके दिमाग में एक और सेक्सी याद तैर जाती—शांति के साथ एक और गरम पल।
वो एक गर्मियों की दोपहर थी। पापा ऑफिस में थे, और मैं कहीं बाहर गया था। मम्मी और शांति घर में अकेली थीं। मम्मी उस दिन सिर्फ एक पतली साड़ी में थीं, बिना ब्लाउज़ के। गर्मी से परेशान होकर वो पंखे के नीचे लेटी थीं, और उनकी साड़ी उनकी जाँघों तक सरक गई थी। शांति पास बैठी थी, और उसकी नज़र मम्मी की चूचियों पर थी, जो साड़ी के नीचे से साफ़ दिख रही थीं।
"दीदी, आपकी दूध उबल रही है hehehehe," शांति ने नशीली आवाज़ में कहा था। "ये चूचियाँ तो साली किसी को पागल कर दें। कभी किसी ने इन्हें चूसा है क्या?" उसने मम्मी की साड़ी को हल्के से खींचा, और उनकी एक चूची बाहर आ गई।
मम्मी ने शरमाते हुए कहा था, "शांति, क्या करती है? कोई देख लेगा।" लेकिन उनकी साँसें तेज़ हो गई थीं।
शांति ने हँसते हुए जवाब दिया, "कोई नहीं देखेगा, दीदी। बस मैं हूँ यहाँ।" फिर उसने मम्मी की चूची को अपने मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। "आह्ह..." मम्मी की सिसकारी निकल पड़ी थी। शांति की जीभ उनकी चूची के निप्पल पर घूम रही थी, और उसका एक हाथ मम्मी की बुर की तरफ बढ़ गया था। "दीदी, तुम्हारी बुर भी गीली हो रही है," शांति ने कहा था। "कभी किसी मर्द ने इसे चाटा है?"
मम्मी ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया था, "नहीं... बस एक बार वो रामलाल था, लेकिन वो पूरा नहीं कर पाया।" शांति ने मम्मी की साड़ी को पूरी तरह हटाया और उनकी बुर पर अपनी जीभ रख दी। "तो आज मैं चाटूँगी," उसने कहा और उनकी रसीली चूत को चूसने लगी। मम्मी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं—"आह्ह... शांति... और..."—और उनका जिस्म तड़प रहा था। शांति ने हँसते हुए कहा था, "दीदी, तुम्हें लंड चाहिए। मेरी जीभ से काम नहीं चलेगा। किसी मर्द को ढूँढो, जो तुम्हारी बुर का भोसड़ा बना दे।"
अब ढाबे पर, रामू और संजू वही कर रहे थे जो शांति ने कहा था। रामू ने मम्मी को चारपाई पर उल्टा कर दिया और उनकी गांड को ऊपर उठाया। "साली, तेरी गांड तो साला मक्खन है," उसने कहा और अपना लंड उनकी बुर में फिर से घुसा दिया। मम्मी की चीख निकली—"आह्ह... धीरे..."—लेकिन उनकी गांड अब हवा में थी, और वो रामू के हर धक्के का जवाब अपनी कमर हिलाकर दे रही थीं।
संजू ने मम्मी का मुँह छोड़ दिया और उनकी चूचियों को मसलने लगा। "भैया, इस रंडी की चूचियाँ तो देखो," उसने फुसफुसाते हुए कहा। "साली की बुर के साथ-साथ इन्हें भी चोदना चाहिए।" रामू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भाई, इस हरामज़ादी का पूरा जिस्म चुदाई के लिए बना है। इसकी गांड भी मारेंगे, रुक।"
मम्मी की यादों में शांति की जीभ और ढाबे पर रामू का लंड अब एक हो गए थे। उनकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं—"आह्ह... चोदो मुझे... और तेज़..."—और उनकी बुर से रस की बौछार छूट रही थी। रामू ने उनकी गांड पर एक ज़ोरदार चपत मारी और बोला, "साली कुतिया, अब तेरी गांड की बारी है।" उसने अपना लंड उनकी बुर से निकाला और उनकी गांड के छेद पर रगड़ा।
मम्मी ने एक पल के लिए साँस रोकी। "नहीं... वहाँ नहीं..." उन्होंने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में वो मज़बूरी नहीं थी। संजू ने उनकी चूचियों को चूसते हुए कहा, "चुप रह, भोसड़ीवाली। तेरी गांड भी चुदने के लिए बनी है।" रामू ने एक धक्का मारा, और उसका लंड मम्मी की गांड में घुस गया। "आह्ह्ह..." मम्मी की चीख ढाबे के सन्नाटे को चीर गई।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की शांति के साथ वो गरम दोपहर और ढाबे की ये चुदाई मेरे लिए एक सपना सच होने जैसा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था, और मैं चाहता था कि ये तूफान और तेज़ हो।
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भाग 7: शर्म का टकराव, यादों की हवस, और मटकती कमर
ढाबे की चारपाई पर मम्मी की चुदाई अब चरम पर थी। रामू उनकी बुर को ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था, उसका मोटा लंड हर धक्के के साथ उनकी चूत के अंदर तक जा रहा था। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और तेज़..."—हवा में गूँज रही थीं। संजू उनकी चूचियों को मसल रहा था, और कभी-कभी उन्हें चूसते हुए उनकी निप्पल को दाँतों से हल्का सा काट रहा था। मम्मी का नंगा जिस्म चाँदनी में चमक रहा था, और उनकी बुर से रस की धार चारपाई को गीला कर रही थी।
रामू ने मम्मी को उल्टा किया और उनकी गांड को ऊपर उठाया। "साली, तेरी गांड तो मक्खन है," उसने कहा और अपना लंड उनकी बुर से निकालकर उनकी गांड के छेद पर रगड़ा। मम्मी की साँस एक पल के लिए रुक गई। "नहीं!" उन्होंने चीखते हुए कहा, और अपने जिस्म को पीछे खींच लिया। "गांड नहीं... ये दर्द मैं नहीं सह सकती।" उनकी आवाज़ में डर था, लेकिन साथ ही एक गुस्सा भी।
रामू ने हँसते हुए कहा, "अरे रंडी, तेरी गांड भी तो चुदने लायक है।" उसने फिर से कोशिश की, अपना लंड उनकी गांड पर दबाया। संजू ने मम्मी की कमर पकड़कर उन्हें रोकने की कोशिश की और बोला, "चुप रह, भोसड़ीवाली। तेरी गांड मारकर मज़ा लेंगे।" लेकिन मम्मी अब गंभीर हो गईं।
"सुनो," मम्मी ने हाँफते हुए कहा, "मैं कहीं भाग तो रही नहीं। मेरी बुर तुम्हें दे ही दी, उसे चोदो जितना चाहो। लेकिन गांड का दर्द मुझे बर्दाश्त नहीं।" उनकी आवाज़ में एक अजीब सा हक था। रामू और संजू एक-दूसरे को देखकर रुक गए। मम्मी का सहयोगी रवैया देखकर रामू ने अपना लंड वापस उनकी बुर की तरफ किया और बोला, "ठीक है, साली। तेरी चूत ही काफी है।" संजू ने भी उनकी चूचियों को छोड़ दिया और हँसते हुए कहा, "चल भैया, इस रंडी की बुर का भोसड़ा बनाते हैं।"
मम्मी ने राहत की साँस ली, लेकिन उनकी उत्तेजना कम नहीं हुई। जैसे ही रामू ने फिर से उनकी बुर में धक्के शुरू किए, उनकी आँखें बंद हो गईं, और उनके दिमाग में एक और सेक्सी याद तैर गई—इस बार उनकी पुरानी सहेली, कमला, के साथ। कमला गाँव की एक शादीशुदा औरत थी, जो मम्मी की जवानी के दिनों में उनकी दोस्त थी।
एक बार गाँव के मेले में, जब मम्मी और कमला अकेले घूम रही थीं, कमला ने मम्मी को एक सुनसान कोने में खींच लिया था। "देख, पदमा ," कमला ने हँसते हुए कहा था (मम्मी का नाम पदमा था), "तेरी कमर की लचक देखकर मर्द तो पागल हो जाते हैं। कभी किसी के साथ मज़े लिए हैं?" मम्मी ने शरमाते हुए कहा था, "नहीं, बस वो रामलाल था, लेकिन वो पूरा नहीं हुआ।"
कमला ने अपनी साड़ी का पल्लू हटाया और अपनी चूचियाँ दिखाते हुए कहा, "मेरे पति ने मुझे कल रात चोदा था। देख, मेरी चूचियाँ अभी भी लाल हैं।" फिर उसने मम्मी की साड़ी को ऊपर उठाया और उनकी जाँघों को सहलाते हुए कहा, "तेरी बुर को भी लंड चाहिए। चल, मेले में कोई जवान लड़का ढूँढते हैं।"
उस दिन दोनों ने एक ठेले वाले को छेड़ा था—मम्मी ने अपनी कमर मटकाकर उसे ललचाया, और कमला ने उससे गंदी बातें की थीं। वो लड़का उनकी तरफ लपका था, लेकिन मम्मी डर गई थीं और भाग आई थीं। बाद में कमला ने हँसते हुए कहा था, "पदमा , तू डरपोक है। तेरी बुर की आग को कोई मर्द ही बुझाएगा।"
अब ढाबे पर, रामू की धक्कों की रफ्तार बढ़ गई थी। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... चोदो..."—और तेज़ हो रही थीं। तभी एक नया ड्राइवर, जो अब तक दूर चारपाई पर सो रहा था, उनकी चीखों से जाग गया। उसका नाम था बबलू—लंबा, गोरा, और जवान। वो उठकर पास आया और बोला, "ये क्या तमाशा है, भाइयो?" उसकी नज़र मम्मी के नंगे जिस्म पर पड़ी, और उसका लंड उसकी लुंगी में तन गया।
रामू ने हँसते हुए कहा, "आ जा बबलू, इस रंडी की चूत का मज़ा ले। साली मस्त माल है।" बबलू ने मम्मी को देखा और बोला, "सच में माल है। लेकिन पहले इसे नचाओ, देखें ये कितना गरम है।"
मम्मी ने ये सुना और एक पल के लिए रुक गईं। रामू ने अपना लंड उनकी बुर से निकाला, और संजू ने उन्हें उठाकर खड़ा कर दिया। "चल, भोसड़ीवाली, नाच दिखा," संजू ने कहा। मम्मी की साँसें अभी भी तेज़ थीं, लेकिन कमला की याद ने उनके अंदर एक शरारत जगा दी। वो उठीं, अपनी साड़ी को कमर तक बाँधा, और ढाबे की खुली जगह में नाचने लगीं।
उनकी कमर लचक रही थी, उनकी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और उनकी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। रामू, संजू, और बबलू तीनों उन्हें घूर रहे थे। "साली, क्या मटकती है!" बबलू ने कहा और अपनी लुंगी उतार दी। मम्मी का नाच अब और गरम हो गया—वो अपनी चूचियों को हिलातीं, अपनी गांड को मटकातीं, और ड्राइवरों को उकसातीं।
रामू ने फुसफुसाते हुए कहा, "देख भाई, ये रंडी तो साली नाचने में भी चुड़क्कड़ है। इसकी बुर को फिर से पेलना पड़ेगा।" बबलू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ, लेकिन पहले इसे और नचाओ। ये माल पूरा ढाबा गरम कर देगी।"
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का सेक्सी नाच और उनकी कमला के साथ वो याद मेरी फैंटेसी को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे थे। रात अभी बाकी थी, और ये खेल और तेज़ होने वाला था।
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(17-03-2025, 11:59 PM)deo.mukesh Wrote: भाग 7: चुदाई का तूफान और यादों की बौछार
ढाबे की चारपाई अब चुदाई का अखाड़ा बन चुकी थी। रामू मम्मी की बुर में अपने मोटे लंड को ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था। हर धक्के के साथ मम्मी की चूचियाँ उछल रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और तेज़..."
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भाग 8 : शर्म का टकराव, यादों की हवस, और मटकती कमर
.. मम्मी का सेक्सी नाच और उनकी कमला के साथ वो याद मेरी फैंटेसी को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे थे। रात अभी बाकी थी, और ये खेल और तेज़ होने वाला था।
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भाग 9 : आर्केस्ट्रा वाली रांड और हवस की लहरें
ढाबे का माहौल अब पूरी तरह गरम हो चुका था। मम्मी का सेक्सी नाच देखकर रामू, संजू, और बबलू की आँखों में हवस की चमक दोगुनी हो गई थी। उनकी कमर की लचक और चूचियों की उछाल ने ड्राइवरों को पागल कर दिया था। रामू ने ताली बजाते हुए कहा, "साली, तू तो मस्त नाचती है। अब कुछ ऐसा नाच दिखा कि हमारे लंड फिर से खड़े हो जाएँ।" संजू ने हँसते हुए जोड़ा, "हाँ, भोसड़ीवाली, तेरी चूत को चोदने का मूड फिर से बन जाए।"
मम्मी हाँफ रही थीं, उनकी साड़ी अभी भी कमर तक बँधी थी। वो कोई प्रोफेशनल नाचने वाली तो थीं नहीं, लेकिन ड्राइवरों की फरमाइश और उनकी गालियों ने उनके अंदर की हवस को और भड़का दिया था। तभी बबलू, जो नया ड्राइवर था, उठा और ढाबे के कोने में रखे पुराने टीवी की ओर बढ़ा। "रुक जाओ, भाइयो," उसने कहा। "इस रंडी को असली नाच सिखाते हैं।" उसने टीवी ऑन किया और एक पुरानी कैसेट डाल दी—भोजपुरी का एक अश्लील आइटम नंबर शुरू हो गया।
टीवी से गाना गूँजा—"चढ़ गइल जवानी रसगुल्ला, चूत मरैया बवाल..."—और स्क्रीन पर एक आइटम गर्ल छोटी चोली और लहंगे में मटक रही थी। बबलू ने मम्मी की तरफ देखकर कहा, "चल, भौजी , इस तरह नाच। अपनी चूचियाँ हिला, गांड मटका, और हमें गरम कर।" रामू और संजू तालियाँ बजाने लगे।
मम्मी ने टीवी की ओर देखा। वो प्रोफेशनल तो नहीं थीं, लेकिन गाने की बीट और आइटम गर्ल के स्टेप्स ने उनके जिस्म में बिजली दौड़ा दी। "मैं... मैं ऐसा कैसे करूँ?" उन्होंने शरमाते हुए कहा, लेकिन उनकी आँखें बबलू के तने हुए लंड पर टिक गई थीं। संजू ने पास आकर कहा, "कर ले, रंडी। तेरी साड़ी में तो कुछ दिखेगा नहीं। इसे उतार, फिर नाच।"
रामू और बबलू ने तालियाँ बजाईं। "हाँ, साली, नंगी होकर नाच," रामू ने चिल्लाया। मम्मी एक पल रुकीं, फिर इठलाते हुए गोल-गोल घूमने लगीं। ड्राइवरों ने उनकी साड़ी का किनारा पकड़ा और धीरे-धीरे उसे खींचना शुरू किया। मम्मी ने विरोध नहीं किया—वो घूमती रहीं, और साड़ी उनके जिस्म से फिसलती चली गई। अब वो सिर्फ छोटे ब्लाउज़ और पेटीकोट में थीं।
उनका ब्लाउज़ पहले ही तंग था, और चुदाई के दौरान इसके सारे बटन टूट चुके थे। सिर्फ एक बटन बचा था, जो उनकी भारी चूचियों को मुश्किल से थामे हुए था। उनकी चूचियाँ आधे बाहर लटक रही थीं, और हर हलचल के साथ उछल रही थीं। पेटीकोट उनकी नाभि से बहुत नीचे बँधा था—उनकी चूत के मुँह से बस थोड़ा ऊपर। उनकी गोरी जाँघें और गदराया जिस्म अब आइटम गर्ल जैसा लग रहा था।
टीवी पर अगला गाना शुरू हुआ—"लहंगा उठाके चूत दिखा दे, रस टपके मुँह में डाल दे..."—और मम्मी ने स्टेप्स की नकल शुरू की। वो अपनी कमर को मटकाने लगीं, हाथों को हवा में लहराया, और अपनी चूचियों को जानबूझकर हिलाया। ड्राइवर चिल्लाने लगे—"वाह, साली, क्या माल है!" "मटका और, रंडी!"—और उनका मूड फिर से गरम हो गया। माहौल अब किसी ऑर्केस्ट्रा के रंडी नाच जैसा बन गया था।
जैसे ही मम्मी नाच रही थीं, उनके दिमाग में एक और पुरानी याद उमड़ आई—इस बार उनकी एक और सहेली, राधा, के साथ। राधा मोहल्ले की एक बदनाम औरत थी, जो अपने पति के साथ खुलेआम मज़े लेती थी। एक बार मम्मी उनके घर गई थीं, और राधा ने उन्हें अपने बिस्तर पर बिठाया था। "पदमा , तू अपनी जवानी बर्बाद कर रही है," राधा ने कहा था। "देख, मैं अपने मर्द के साथ क्या-क्या करती हूँ।"
फिर राधा ने अपनी साड़ी उतारी और सिर्फ ब्लाउज़-पेटीकोट में मम्मी के सामने नाचने लगी। "ये देख," उसने कहा और अपनी चूचियाँ ब्लाउज़ से बाहर निकालकर हिलाईं। "मेरा मर्द मुझे रात को नंगी नचाता है, फिर चोदता है। तू भी ऐसा कर।" राधा ने मम्मी की साड़ी खींचने की कोशिश की थी, और मम्मी शरमाकर हँस पड़ी थीं। "पागल है तू," मम्मी ने कहा था, लेकिन उनकी बुर उस दिन गीली हो गई थी। राधा ने हँसते हुए कहा था, "तेरी चूत को नाच और लंड चाहिए, पदमा । ढूँढ ले कोई।"
अब ढाबे पर, राधा की वो बात सच हो रही थी। मम्मी का नाच और तेज़ हो गया—वो अपनी गांड को मटकातीं, अपनी चूचियों को उछालतीं, और ड्राइवरों को उकसातीं। बबलू ने पास आकर कहा, "साली, तू तो सच्ची आइटम गर्ल है। अब हमारी बारी है।" उसने अपना लंड बाहर निकाला और मम्मी की तरफ बढ़ा।
रामू ने टीवी की आवाज़ तेज़ की—"चूत मरैया बवाल..."—और मम्मी की कमर पकड़कर उन्हें अपनी ओर खींचा। "नाच काफी हुआ, रंडी," उसने कहा। "अब फिर से चुदाई शुरू करें?" संजू ने उनकी चूचियों को दबाते हुए कहा, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली की बुर का रस फिर से चखना है।"
मम्मी हाँफ रही थीं, उनकी यादों में राधा का नाच और ढाबे का माहौल उनकी हवस को भड़का रहा था। वो बोलीं, "ठीक है... लेकिन धीरे..."—उनकी आवाज़ में अब शर्म नहीं, सिर्फ नशा था।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का आइटम नंबर और राधा की याद मेरे लिए एक नया तमाशा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था, और ये रात अब और गरम होने वाली थी।
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(18-03-2025, 12:20 AM)deo.mukesh Wrote: भाग 9 : आर्केस्ट्रा वाली रांड और हवस की लहरें
ढाबे का माहौल अब पूरी तरह गरम हो चुका था। मम्मी का सेक्सी नाच देखकर रामू, संजू, और बबलू की आँखों में हवस की चमक दोगुनी हो गई थी। उनकी कमर की लचक और चूचियों की उछाल ने ड्राइवरों को पागल कर दिया था। रामू ने ताली बजाते हुए कहा, "साली, तू तो मस्त नाचती है। अब कुछ ऐसा नाच दिखा कि हमारे लंड फिर से खड़े हो जाएँ।" संजू ने हँसते हुए जोड़ा, "हाँ, भोसड़ीवाली, तेरी चूत को चोदने का मूड फिर से बन जाए।"
========================== भाग 9: मम्मी का चीरहरण और लंड की भूख (सेक्सी नौटंकी)
ढाबे का माहौल अब किसी रंडीखाने के ऑर्केस्ट्रा से कम नहीं था। टीवी पर भोजपुरी आइटम नंबर—"चूत मरैया बवाल..."—की धुन गूँज रही थी, और मम्मी की मटकती कमर ने रामू, संजू, और बबलू को फिर से हवस में डुबो दिया था। उनका नाच खत्म हुआ ही था कि बबलू ने चिल्लाकर कहा, "साली, तू तो आइटम गर्ल से भी मस्त है। लेकिन ये साड़ी अभी भी क्यों बँधी है? इसे उतार, फिर असली मज़ा लेंगे।"
मम्मी हाँफ रही थीं, उनकी साड़ी पहले से ही कमर तक बँधी थी। उनकी चूचियाँ ब्लाउज़ के एक बचे हुए बटन के पीछे उछल रही थीं, और पेटीकोट उनकी चूत के ठीक ऊपर टिका था। रामू और संजू ने तालियाँ बजाईं। "हाँ, रंडी, नंगी हो जा," रामू ने कहा। "तेरी चूत को फिर से चोदने का मन कर रहा है।"
मम्मी ने एक पल के लिए अपनी आँखें नीची कीं, फिर फिल्मी हीरोइन की तरह नाटक शुरू कर दिया। "नहीं... ये क्या कर रहे हो?" उन्होंने काँपती आवाज़ में कहा और अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया, जैसे कोई विलेन उनकी इज़्ज़त लूटने आया हो। "मुझे छोड़ दो... मैं शरीफ औरत हूँ..." उनकी आवाज़ में बनावटी डर था, लेकिन उनकी आँखों में शरारत चमक रही थी।
रामू ने हँसते हुए उनकी साड़ी का किनारा पकड़ा और खींचा। "शरीफ औरत?" उसने मज़ाक उड़ाया। "साली, तेरी बुर का रस बता रहा है कि तू कितनी शरीफ है।" मम्मी ने अपने जिस्म को पीछे खींचा और चिल्लाईं, "नहीं... मत करो... मेरी इज़्ज़त मत लूटो!" लेकिन साथ ही वो धीरे-धीरे गोल-गोल घूमने लगीं, ताकि साड़ी उनके जिस्म से आसानी से फिसल सके।
संजू ने दूसरी तरफ से साड़ी पकड़ी और ज़ोर से खींचा। "चुप रह, भोसड़ीवाली," उसने कहा। "तेरी इज़्ज़त तो हम पहले ही चोद चुके हैं।" मम्मी का चीरहरण अब शुरू हो गया था। वो इठलाती हुई घूम रही थीं, उनकी साड़ी उनके जिस्म से एक-एक करके परतें उतर रही थीं। "हाय राम... मेरे साथ ये क्या हो रहा है?" मम्मी ने ड्रामाई अंदाज़ में कहा, लेकिन उनकी कमर की लचक और चूचियों की उछाल बता रही थी कि ये उनका सेक्सी नाटक था।
बबलू ने पास आकर साड़ी का आखिरी छोर पकड़ा और एक झटके में उसे पूरा खींच दिया। "साली, अब नंगी हो जा," उसने चिल्लाया। साड़ी ज़मीन पर गिर गई, और मम्मी सिर्फ टूटे हुए ब्लाउज़ और नीचे बँधे पेटीकोट में रह गईं। उनका ब्लाउज़ अब सिर्फ एक बटन के सहारे था, उनकी भारी चूचियाँ बाहर लटक रही थीं। पेटीकोट उनकी नाभि से इतना नीचे था कि उनकी चूत का ऊपरी हिस्सा झाँक रहा था। उनका ये रूप ड्राइवरों को और सेड्यूस कर रहा था।
मम्मी ने अपने हाथों से चूचियों को ढकने की नौटंकी की और बोलीं, "हाय... मेरी लाज मत लूटो..." लेकिन उनकी उंगलियाँ जानबूझकर अपनी चूचियों को दबा रही थीं। रामू ने हँसते हुए कहा, "साली, तेरी लाज तो तेरा नाच लूट रहा है। अब चुपचाप हमारे लंड चूस।"
तभी दो नए ड्राइवर, जो पहली चुदाई के बाद ढाबे पर आए थे, पास आ गए। एक का नाम था लल्लन—मोटा, काला, और भारी भरकम। दूसरा था छोटू—पतला लेकिन चालाक। दोनों ने मम्मी को नंगा देखा, और उनके लंड उनकी लुंगियों में तन गए। लल्लन ने बबलू से कहा, "ये माल कहाँ से लाए? साली की चूचियाँ तो मस्त हैं।" छोटू ने जोड़ा, "हाँ, इस रंडी को हम भी चखेंगे।"
मम्मी ने नए ड्राइवरों को देखा, और उनकी आँखों में एक नई चमक आई। वो अपने नाटक को छोड़कर इठलाती हुई उनकी तरफ बढ़ीं। "तुम लोग भी?" उन्होंने नशीली आवाज़ में कहा। "मुझे तो पहले ही लूट लिया गया है।" फिर वो घुटनों के बल बैठ गईं और लल्लन की लुंगी खींच दी। उसका मोटा, काला लंड बाहर आया। मम्मी ने उसे हाथ में लिया और चूसना शुरू कर दिया—"म्म्म..."—उनकी जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी।
लल्लन की सिसकारी निकली—"आह्ह... साली, क्या चूसती है!" मम्मी ने फिर छोटू की लुंगी उतारी और उसका पतला लेकिन लंबा लंड अपने मुँह में लिया। वो बारी-बारी से दोनों के लंड चूस रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ—"म्म्म... आह्ह..."—हवा में गूँज रही थीं। रामू, संजू, और बबलू पास खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। "साली, चार-चार लंड चूस लेगी क्या?" संजू ने हँसते हुए कहा।
जैसे ही मम्मी लल्लन और छोटू के लंड चूस रही थीं, उनके दिमाग में एक और पुरानी याद उमड़ आई—इस बार उनकी एक और सहेली, माया, के साथ। माया गाँव की एक विधवा थी, जो अपनी हवस के लिए मशहूर थी। एक बार मम्मी और माया नदी किनारे नहाने गई थीं। माया ने अपनी साड़ी उतारी और नंगी नहाने लगी। "पदमा , तू भी नंगी हो जा," उसने कहा था। "यहाँ कोई नहीं देखेगा।"
मम्मी ने हिचकिचाते हुए अपनी साड़ी उतारी थी, और माया ने उनकी चूचियों को देखकर कहा था, "तेरे ये मम्मे तो किसी को पागल कर देंगे।" फिर उसने मम्मी को पानी में खींचा और उनकी बुर को छूते हुए कहा, "तेरी चूत को मज़े चाहिए। मैंने तो कई मर्दों के लंड चूसे हैं। तू भी आज़मा।" माया ने हँसते हुए पानी में मम्मी की चूचियों को चूसा था, और मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... माया..."—नदी के किनारे गूँज रही थीं।
अब ढाबे पर, मम्मी माया की सलाह को सच कर रही थीं। वो लल्लन और छोटू के लंड चूस रही थीं, और उनकी हवस भरी यादें उनकी बुर को और गीला कर रही थीं। बबलू ने पास आकर कहा, "साली, अब हमारी बारी है।" मम्मी ने लल्लन का लंड मुँह से निकाला और बोलीं, "सबकी बारी आएगी..."—उनकी आवाज़ में नशा था।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का चीरहरण, उनका नाटक, और नए ड्राइवरों के लंड चूसना मुझे पागल कर रहा था। रात अभी और गरम होने वाली थी।
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दोस्तों आपलोगों को ये कहानी कैसी लगी है अबतक अपना फीडबैक कमेन्ट करके जरूर बताइए ताकि मेरा उत्साह भी बढ़े, ये कहानी को ज्यादा लंबा नहीं खिचूँगा क्योंकि पहले ही मैंने इस कहानी को शुरू मे ही काफी बड़े अपडेट के साथ पोस्ट कर रखा है। हाँ आप सबके फीडबैक के आकॉर्डिंग इस कहानी को थोड़ा और उत्तेजक और एंटेरटैनिंग बनाने मे जरूर मदद मिलेगी। धन्यवाद
- मुकेश
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(26-12-2023, 02:04 PM)deo.mukesh Wrote: सच और फैंटेसी का गरमागरम संगम.
दोस्तों सबसे पहले मै आप सबको बता देना चाहता हूँ की ये एक लम्बी या पूरी कहानी शायद नहीं हो सकेगी क्योंकि मै बहुत कोशिश कर चूका हूँ पिछले ५ साल से की अपने अन्दर की ख्वाहिशों फंटेसी को लिख कर एक मुकम्मल कहानी का रूप दे सकूँ मगर मै फिसड्डी निकला. मै कहानी नहीं लिख सकता हूँ, अतः आप सब से गुजारिश है की जो भी एक हॉट प्लाट को कहानी का रूप दे सके, तो आप सब आजाद हैं और मै invite भी करता हूँ की मेरे प्लाट को आप अपने मजबूत लेखनी से आगे बढ़ाये.
मेरी सारी कहानियों का थीम मां और ककोल्ड बेटा ही होगा. मुझे माँ को एक खुले किताब की तरह अपनी जवानी का मजा लेते हुए देखने की हमेशा हसरत रहती है.
तो दोस्तों इस कहानी को शुरू करते हैं,,,, और आपसब भी इस कहानी को अपने हिसाब से जितना गरम और कामुक रूप दे सकें,,, आप सब का स्वागत रहेगा.
***** कहानी का विषय टाइटल पड़ कर ही मम्मी की रसीली चूत की याद आ गई, हाय मम्मी
// सुनील पंडित // 
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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beautiful! but please involve son! Have him use mom then share her with others for his enjoyment
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(26-03-2025, 06:30 AM)whocarez Wrote: beautiful! but please involve son! Have him use mom then share her with others for his enjoyment
शुक्रिया आपकी राय के लिए. मगर थोडा सा प्रोब्लम है वो ये की मै आज तक इसी फंतासी के साथ जवान हुआ की अपनी माँ को दुसरो लोगो के सामने नंगा होते उनसे चुदते हुए देखूं तो मेरी इमेजिनेशन हमेशा इस तरह की रही. बेशक मुझे भी ये पसंद है की अपनी माँ को सिर्फ दुसरो से चुदते देखने के सिवाय उसको दुसरो से चुदवाने में भी मै अपने तरफ से पहल करूँ, फिर भी आपने जो राय डी है उसके आधार पर भी कहानी लिखूंगा, बस सिर्फ ये देखना है की इसी कहानी के साथ उसको जोडू या ये कहानी ख़त्म करके मम्मी को शेयर करने का मजा दूसरी कहानी में जोडूं
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