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Adultery बचपन का साथी
#1
बचपन का साथी


ए साल की मस्ती के बाद मैं करीब एक महीने तक शांत रही, इस बीच केवल पति के ही साथ 2 बार संभोग हुआ और फिर एक महीना ऐसे ही बिना संभोग के बीत गया. केवल दूसरों को कैमरे पर सेक्स का मजा लेते देते देखती रही.

इस दौरान कविता से मेरी काफी नजदीकियां बढ़ गयी थीं. वो हमेशा मुझे फ़ोन कर बातें करती रहती थी या वीडियो कॉल कर मुझे देखना पसंद करती थी.

मैं ये बात समझ गयी थी कि उसे समलैंगिक सम्भोग पसंद है, इसी वजह से मुझसे इतना बात करती थी.

इसी दौरान एक दिन मेरे घर पर प्रीति आयी हुई थी और उसी वक्त कविता ने वीडियो कॉल किया. वो मेरे साथ बैठी प्रीति को देख मुग्ध हो गयी. ठीक इसी के बाद उसने मुझ पर जोर देना शुरू कर दिया कि प्रीति के साथ उसकी मुलाकात करवाऊं.

मैंने उससे कुछ समय मांगा क्योंकि मुझे यकीन तो था नहीं कि प्रीति समलैंगिक रिश्तों को पसंद करती थी. दूसरी तरफ मुझे ये भी डर था कि मेरी दोहरी जीवनशैली का उसे पता चल सकता था. इसलिये मैं कविता को किसी न किसी बहाने से टालने लगी.

इसी तरह 15-20 दिन गुजर गए और एक दिन मैं पति के साथ बाजार गयी हुई थी. हम दोनों कुछ फल और सब्जियां खरीद रहे थे. तभी एक बड़ी सी गाड़ी हमारे सामने आकर रुकी. उस गाड़ी में एक आदमी और उसका ड्राइवर था. मुझे देख कर वो मुस्कुराया, मैं कुछ देर सोच में पड़ गयी, पर जब मैंने उसे ध्यान से देखा, तो वो मुझे जाना पहचाना चेहरा लगा.

मुझे अचानक से याद आया कि ये सुरेश है, जो मेरे साथ बचपन में पढ़ता था.
सुरेश हम दोनों के पास आया और मुझे बोला- पहचाना मुझे?
मैं थोड़ी आश्चर्य से देखती हुई बोली- हां, पहचान लिया.


फिर उसने मेरे पति को अपने बारे में बताया और फिर उन दोनों की जान पहचान हो गयी.

अब मैं सुरेश के बारे में बताती हूँ, सुरेश और मैं एक साथ ही स्कूल में पढ़े थे, वो मेरे ही गांव का था. उसके पिता सरकारी नौकरी में थे और हम 3 सहेलियां और वो अच्छे दोस्त थे. उसके पिता के पास काफी पैसा था तो वो आगे पढ़ने के लिए बाहर चला गया. अब सुरेश कोयले की इसी सरकारी कंपनी में एक बड़ा अधिकारी है और हाल ही में उसका तबादला यहां हुआ है.

हम दोनों की उम्र बराबर है, इसलिए मेरे पति को आप कह कर बात कर रहा था. मेरे पति को भी जब लगा कि उसकी इस सरकारी नौकरी की वजह से उसका काम निकल सकता है, तो उन्होंने फ़ौरन उसे हमारे घर बुला लिया और चाय नाश्ता करवाया. इसी बीच बातों-बातों में पता चला कि उसकी केवल एक बेटी है, जो बाहर पढ़ रही और पत्नी का 2 साल पहले बीमारी की वजह से स्वर्गवास हो गया.

ये सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा, इसलिए मैंने उससे कहा- जब हम लोग एक ही शहर में रहते हैं, तो जब मन हो … खाना खाने आ जाया करे.
मेरे पति ने भी इस बात का समर्थन किया और उसने भी कहा कि जरूर आएगा.


उस दिन वो चाय नाश्ता करके चला गया और फिर रविवार को आया. 

मैंने उसे सम्मान से बिठाया और खाना पीना दिया. वो मेरे पति से काफी घुल मिल गया था. मुझे भी अच्छा लग रहा था कि चलो इतने सालों के बाद कोई तो बचपन का साथी मिला, पर ये अंदेशा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है.

खैर इसी तरह करीब एक महीने तक हर शनिवार और रविवार वो हमारे घर आ जाता, कभी दिन या कभी रात में.

फिर एक दिन मेरे पति बाहर गए थे और मैं अकेली थी. उस दिन न तो रविवार था न शनिवार. अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया. मैंने दरवाजा खोला, तो सामने सुरेश था.
मुझे कोई खासा हैरानी नहीं हुई क्योंकि वो मेरे बचपन का दोस्त था.


वो अन्दर आया, तो मैंने उसे बिठाया और खाना आदि खिलाया. 

खाना खाते हुए उसने बताया कि आज उसे डॉक्टर के पास जाना था, इसलिए छुट्टी ले रखी थी.

मैंने भी खाना खा लिया और फिर दोनों बातें करने लगे. हम अपनी पुरानी बचपन की यादें करते हुए हंसी मजाक करने लगे.

तब उसने बताया कि उस समय उसने मुझे एक पेन दिया था, जो कि दो रुपये का था … और मैंने अभी तक उसका उधार नहीं चुकाया था. बात अब इसी एक बिंदु पर अटक गई और हंसी मजाक करते हुए मैं उसे उसके पैसे देने लगी.

उस वक्त का दो रुपया भी आज के हिसाब से बहुत ज्यादा था. हमारे बीच हंसी मजाक चलता रहा और मैं पैसे उसके हाथ में जबरदस्ती थमाने लगी. इसी लेने देने के जोर जबरदस्ती में अचानक उसका हाथ मेरे स्तनों से जा लगा और फिर हम दोनों शांत हो गए.
उसने भी शर्मिंदगी सी महसूस करते हुए नजरें झुका लीं और मैं भी शर्माती हुई उससे अलग होकर बैठ गयी.


थोड़ी देर हम यूँ ही चुप बैठे रहे. फिर उसने जाने को बोला और जाने लगा.
वो अभी दरवाजे तक भी नहीं पहुंचा था कि पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने उससे रुकने को बोल दिया.
मैंने कहा- रुक जाओ, अकेले मेरा भी मन नहीं लगता … थोड़ी देर और बातें करते हैं.


वो शायद इसी ऑफर का इन्तजार कर रहा था, वो रुक गया और वापस आकर बैठ गया. हमने फिर से हल्की फुल्की बातों से सुख दुख कहना शुरू किया. फिर बात उसके अकेलेपन की शुरू हो गयी.
उसने बताया के पत्नी के गुजरने के बाद वो बिलकुल अकेला हो गया है.


[Image: 74758229_008_69b7.jpg]

मैंने भी अपनी जीवन की सारी बात कहनी शुरू कर दी. मैंने उसे बताया कि कैसे मैं ससुराल वालों से परेशान होकर यहां आयी और अब यहां भी अकेली रहती हूँ … क्योंकि पति ज्यादातर बाहर रहते हैं.

चूंकि हम दोनों बचपन के दोस्त थे, सो ज्यादा देर दिल की बात दिल में न रख सके और उसने खुल कर तो नहीं, पर ये इशारा दे दिया था कि उसे एक साथी की कमी महसूस हो रही है.

इस बात को अनदेखा करती हुई मैं अन्दर रसोईघर में चली गयी और बोली- मैं चाय बना कर लाती हूं.

चाय बना कर मैं अभी कप में डाल ही रही थी कि सुरेश वहां पहुंच गया.
मैं चौंक गयी, पर खुद को संभाला और उसे चाय दी.




वो चाय पीते पीते बात करने लगा और फिर एक ऐसा सवाल उसने मुझसे पूछा, जिसके बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं था. उसने मुझसे पूछा कि मैं बचपन के दिनों में उसके बारे में क्या सोचती थी.
मैंने सीधा सा उत्तर दिया कि हम एक ही गांव के थे और केवल दोस्त ही समझते थे.


फिर उसने मुझसे कहा कि वो मेरे बारे में कुछ और ही समझता था.
मैं बात समझ गयी, पर अनजान बन उस बात को टालना चाही.
पर चाय खत्म होते होते उसने आखिर अपने दिल में छुपी बात कह दी कि वो मुझसे प्यार करता था. 


गांव में ये सब नहीं चलता था और दूसरी जाति में शादी भी नहीं होती थी. ये सब बात हमें बहुत कम उम्र में ही सिखा दिया गया था.

मैं उससे कन्नी काटती हुई बाहर निकली और उसे कहा- काफी देर से तुम यहां हो … किसी ने देखा तो गलत समझेगा.
मैंने उसे जाते जाते साफ साफ कह दिया कि हम दोनों के अपने अपने परिवार हैं और ऐसी पुरानी बातें करने से कोई मतलब नहीं बनता.


वो रूखे मन से चला तो गया, पर मुझे कुछ अलग सा महसूस हुआ कि आखिर उसने बेमतलब पुरानी बात क्यों की, जबकि हम जब साथ थे, उस वक्त न करके आज इतने सालों बाद की.
मैं काफी देर तक सुरेश के सोच में डूबी रही. फिर 8 बज चुके थे.


उधर पति ने फोन करके बोल दिया था कि वो दो दिन के बाद आएंगे. फिर मुझे कुछ याद आया और मैंने सुरेश को फ़ोन लगाया. उससे पूछा कि अगर वो मुझसे प्यार करता था, तो सरस्वती के साथ उसका क्या था?
तब उसने मुझे बताया कि वो सरस्वती से मुझे पटाने के लिए ही बात करता था. मैं नहीं जानती कि वो सच कह रहा था या झूठ … पर मुझे उस वक़्त ऐसा लगता था कि दोनों का चक्कर है.


अब मैं आपको कुछ देर अपने बचपन में ले चलती हूँ क्योंकि ये कहानी इसी बचपन के दोस्त की है.

हम एक गांव के 4 दोस्त थे, जिनमें से सुरेश ही एक लड़का था … बाकी हम 3 सहेलियां थीं. मैं, सरस्वती और विमला. हमारा स्कूल 4 किलोमीटर हमारे गांव से दूर था और केवल हम चार ही अपने गांव से पढ़ने जाते थे. हम 3 सहेलियों के पिता ठेकेदारी में एक ही जगह काम करते थे और सुरेश के पिता सरकारी नौकरी में थे. गांव में लड़कियों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता था, इसलिए हम शुरूआती पढ़ाई के बाद पास के कॉलेज में पढ़ने चले गए. 

विमला और मैं और सरस्वती, इंटर के बाद गांव में ही रहीं और फिर सबसे पहले उसी की शादी हो गयी. सुरेश दसवीं के बाद ही बाहर चला गया था, पर जब कभी गांव आता तो हम सबसे जरूर मिलता. उसका रुझान ज्यादातर सरस्वती पर ही रहता, इस वजह से विमला मुझसे कहा करती कि इन दोनों का चक्कर है.

पर उस समय ये प्यार मोहब्बत करना तो दूर की बात, लोग आपस में बातें भी नहीं करते थे. खासकर गांव का माहौल तो बहुत अलग होता था, जात-पात का समाज में भेदभाव बहुत था. 

हमारे गांव में 3 अलग अलग जाति के लोग थे, जिनमें से हम चारों थे. मेरी और विमला की जाति एक थी, बाकी सरस्वती और सुरेश अलग अलग जाति के थे. पर चाहे जितनी भी बंदिश हों … लोग, जिनको मौका मिलता है, अपने तरह से छुप-छिपा कर मौज मस्ती कर ही लेते हैं. वैसे दसवीं तक तो हमें इन सब चीजों के बारे में नहीं पता था. ये सब तो कॉलेज जाने के बाद पता चला. 

कॉलेज में बहुत से लड़के हमें भी परेशान करते थे, मगर हम सबसे बच के रहते थे. क्योंकि वो ऐसा जमाना था, जहां कौमार्य बहुत मायने रखता था. शादी से पहले संभोग एक पाप समझा जाता था और हम लड़कियों में ये भावना पैदा की गई थी कि मर्द पहचान लेते थे कि हमारा कौमार्य भंग हुआ या नहीं. इसी वजह से अगर कोई लड़की किसी से प्यार करती भी थी, तो संभोग से दूर रहती थी. क्योंकि यदि उसकी शादी किसी और से हुई, तो उसके मर्द को पता चल जाएगा. 

अभी का दौर बहुत बदल गया है. मैं करीबन 5 साल से एक वयस्क साइट की सदस्य हूँ और ये मैंने जाना कि कौमार्य अब कोई मायने नहीं रखता. छोटे शहरों और गांवों में आज भी ये प्रचलन है …

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 मगर बड़े शहरों में ये अब छोटी बात है … और आजकल की फिल्मों में भी यही सब दिखाया जाता है.

तो ये सारी बातें थीं, पर मेरे दिमाग में ये चल रहा था कि आखिर इतने सालों के बाद सुरेश ने मुझसे आज ये बात क्यों कही.

उस दिन मैंने उसे साफ साफ कह दिया था कि इस बारे में दोबारा न चर्चा करे और मैंने फ़ोन रख दिया. पर मेरी बेचैनी कम नहीं हो रही थी. मैं सोच में डूब गई थी. मैं अपनी पुरानी जिंदगी में खो गयी और रात भर यही सब सोच सोच कर सोई ही नहीं. एक एक कड़ियां खुद जोड़ने लगी, क्यों मैं सरस्वती और सुरेश पर ज्यादा ध्यान देती थी, क्यों विमला से उनके बारे में सुनना चाहती थी, क्यों एक समय के बाद मुझे सरस्वती से जलन सी होने लगी थी.

अगली सुबह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी, जब कि मैं रात में देरी से सोई थी फिर भी. 

खैर … भला हो नए जमाने का कि फ़ोन की वजह से मेरे पास विमला का नंबर था और मैंने उसे फ़ोन लगाया. उससे बात घुमा फिरा कर मैंने सरस्वती का नंबर लिया. फिर इतने सालों के बात उससे बात हुई, मैंने उससे हाल चाल पूछे. मिलने को हम शादी के बाद भी बहुत बार गांव में मिले थे … मगर कभी नंबर नहीं लिया था. दिन भर बात करने के बाद जब मुझे लगा कि अब हम बचपन की तरह से मिल गए हैं.

तब मैंने उसे सुरेश के बारे में बताया. सुरेश का नाम सुनते ही वो ऐसे चहक उठी जैसे उसका पुराना प्यार हो. तब मुझे लगा कि सुरेश झूठ बोल रहा था. वो सरस्वती से ही प्यार करता था. पर कुछ देर और बात करने के बाद उसने मुझे बताया कि सुरेश मुझसे प्यार करता था और मुझे मनाने के लिए सरस्वती से हमेशा कहता रहता था. 

अब मेरी दुविधा तो दूर हो गयी, पर इस उम्र में ये कह कर आखिर सुरेश क्या करना चाहता था. वैसे मेरी जीवनशैली अब बहुत अलग थी. मेरी दोहरी जिंदगी थी. एक सीधी साधी घरेलू महिला की, तो दूसरी कामक्रीड़ा की अभिलाषी … बरसों की प्यासी महिला की.

इस अवस्था में प्यार का इजहार करना तो केवल एक ही ओर इशारा कर रहा था और वो इशारा शरीर की भूख की तरफ का था. पर एक बार ये भी ख्याल आया कि शायद बचपन की अभिलाषा इस उम्र में इसलिए निकल आयी … क्योंकि उस वक्त हिम्मत नहीं हुई होगी और अब कुछ हो नहीं सकता … इसलिए बात कह कर अपना मन हल्का करना चाहता हो.

मैं फिर से दुविधा में फंस गयी, जहां मुझे 90% शरीर की भूख लग रही थी, वहीं 10% मन की बात पर जा रहा था. अगर 90% वाली बात सही हो गयी, तो फिर कोई परेशानी नहीं थी. मगर इस 90% के चक्कर में 10% वाली बात सच हुई, तो फिर मेरी बुरी छवि उसके सामने आ जाएगी. बस अब सब कुछ साफ हो गया था … इसलिए कोई दुविधा नहीं थी. सुरेश के मन में क्या है, ये मैंने उसी पर छोड़ दिया.

दोपहर सुरेश ने फ़ोन किया और मुझसे माफी मांगी, मैंने भी पुरानी बात कह कर और अपना दोस्त समझ माफ कर दिया. हम फिर से पहले जैसे हो गए.
पति घर पर नहीं थे, सो अकेला लग रहा था. मैंने उससे कहा- शाम चाय पीने आ जाना.

मुझे उसके लिए अब कुछ प्यार होने लगा था. मैं शादीशुदा थी और कई पुरुषों के साथ सेक्स भी कर चुकी थी. ये सब सोच कर मुझे लगा कि सुरेश बचपन का साथी है और वर्तमान दौर में वो पत्नी के न रहने से सेक्स का भूखा भी है. मुझे उससे सम्भोग की बात भी मन में आई, लेकिन मैंने इस विचार को सुरेश की पहल पर छोड़ने का निश्चय किया और उसके आने का इन्तजार करने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
yourock congrats
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
(10-01-2024, 12:14 PM)neerathemall Wrote: yourock congrats
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
(10-01-2024, 12:14 PM)neerathemall Wrote: yourock congrats
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
शाम वो करीब 7 बजे आया, हम चाय पीते हुए बात करने लगे और 8 बज गए. 
अब रात हो चुकी थी, तो मैंने उससे खाने के लिए भी पूछ लिया और रात 9 बजे तक मैंने खाना बना लिया. खाते पीते और बातें करते 10 बज गए और फिर पता नहीं, वो बात घुमा फिरा कर अपनी बीवी और अकेलेपन की बात करने लगा.
मुझे उसकी बातों पर थोड़ा संदेह होने लगा और फिर मैं बहाने बनाने लगी ताकि वो मेरे घर से चला जाए. पर वो हिलने का नाम नहीं ले रहा था और मेरा डर और उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी.
किसी तरह वो जाने को राजी हुआ, तो मेरी जान में जान आयी.
वो मुझे जाने को बोल कर बाहर की ओर बढ़ने लगा. तब मैं भी उसके पीछे जाने लगी कि उसके जाते ही मैं दरवाजा बंद कर दूँ.

अभी वो दरवाजे के पास ही पहुंचा था कि अचानक से वो मेरी तरफ पलट गया. मैं एकदम से चौंक गयी, पर मैं जब तक कुछ समझ पाती कि उसने झट से मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया.
मैं उसके विरोध में चिल्लाती कि उसने अपने होंठों से मेरे मुँह को बंद कर दिया. मैं एक पल के लिए भौचक्की रह गई, पर अगले ही पल उससे दूर होने के लिए संघर्ष करने लगी. उधर उसने अपनी पूरी ताकत से एक हाथ से मुझे पकड़ रखा था, दूसरे हाथ से मेरे बालों को.
दो मिनट तक वो मेरे होंठों के रस को जबरदस्ती चूसता रहा और मैं संघर्ष करती रही. उसकी चूमाचाटी से मुझे अन्दर से आग लगने लगी थी. तब भी इस वक्त मुझे उससे छूटना ज्यादा जरूरी लगने लगा था.
आखिरकार मैं जोर लगाकर उससे अलग हुई और पलट कर भागना चाहा मगर उसके चंगुल में मेरी साड़ी और ब्लाउज थे. साड़ी का पल्लू मेरे स्तनों से हट गया और उसकी गांठ मेरे कमर से खुल गयी. वहीं दूसरी तरफ से मेरा ब्लाउज फट कर एक स्तन का हिस्सा उसी के हाथ में रह गया.
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, मुझे जिधर जगह मिली, मैं भागने लगी. फिर मैं भीतर कमरे में चली गयी और दरवाजा बंद कर लिया. पर मेरी किस्मत इतनी खराब थी या पता नहीं मुझे किस मोड़ पर ले जाना चाहती थी कि क्या बोलूं. उस दरवाजे का कुंडा ही टूटा था. मैं जैसे तैसे भागती हुई एक कोने में सिमट गई और साड़ी उठा कर उससे अपना शरीर ढकने का प्रयास करने लगी. 
कुछ ही पलों में सुरेश मेरे पीछे पीछे कमरे में हांफता हुआ आया और गरम नजरों से मुझे घूरने लगा. उसकी आँखों में वासना की ललक थी. मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी बल्कि शर्म से अपनी नजरें छुपाने की कोशिश कर रही थी.
धीरे-धीरे वो मेरे नजदीक आने लगा. फिर मेरे मुँह से उससे दूर होने वाली बातें निकलनी शुरू हो गईं.
मैं उससे बोली- ये तुम क्या कर रहे हो सुरेश, मैं शादीशुदा हूँ और तुम मेरे दोस्त हो. ऐसा तुम सोच भी कैसे सकते हो.

पर वो चुपचाप मेरी ओर बढ़ता चला आया और फिर मेरे बदन से मेरी साड़ी अलग करने में लग गया. मैं भी उसकी चुप्पी से समझ गयी कि अब मेरे लिए बच पाना नामुमकिन है. मैंने कभी ये सोचा भी नहीं था, मैं उसके साथ सम्भोग की बात सोचने तो लगी थी मगर ये सब इस तरह से होगा, ये मैंने नहीं सोचा था. मैं सेक्स करने को तैयार भी थी फिर भी मुझसे जब तक हो रहा था मैं विरोध करती रही.
वो मेरी साड़ी मुझसे छीनने में सफल हो गया और मेरी बांहों को जकड़ कर मेरे गालों, गले और स्तनों के इर्द-गिर्द चूमने लगा. मैं निरंतर उससे खुद से दूर करने का प्रयास करती रही, पर वो पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था. 
मेरा ब्लाउज तो एक तरफ से फट ही गया था, सो उसे उतारने में ज्यादा देर नहीं लगी. एक कोने में वो मुझे खड़े खड़े पागलों की तरह चूमे जा रहा था. वो मुझे चूमते हुए कभी मेरे स्तनों को दबाता, कभी चूतड़ों को, कभी जांघों को सहलाता और मैं बस उसके हाथ झटकती रहती.
मैं अब केवल ब्रा और पेटीकोट में थी और मेरे साथ जोर जबरदस्ती में उसने सट से खींच मेरी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया. नाड़ा खुलते ही मेरा पेटीकोट नीचे गिर गया. मैं घर पर पैंटी नहीं पहनती हूँ और मेरे दोनों हाथ मेरी योनि को छुपाने में लग गए.
इससे उसे एक सुनहरा सा अवसर मिल गया और वो दोनों हाथों से मेरे एक एक स्तन को दबाते हुए मुझे चूमने लगा. मैं दोनों हाथों से अपनी योनि को ढक कर उसके चूमाचाटी को सहती रही. 
फिर उसने हाथ पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया. मैं अब कुछ नहीं कर सकती थी, उसने जबरदस्ती खींच कर मेरी ब्रा भी मुझसे अलग कर दी थी. मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी थी. मेरे पास कोई रास्ता नहीं था. उसने मुझे छोड़ तो दिया, पर खुद के कपड़े उतारने लगा.




[Image: 62344424_001_ab3f.jpg]
मैं उसके आगे एक हाथ से दोनों स्तनों को और एक हाथ से योनि को छुपाने के प्रयास करती रही. अब तो मैंने किसी तरह की विनती भी करनी बंद कर दी थी.
कुछ ही पलों में वो अपने कपड़े उतार खुद भी नंगा हो गया. उसका लिंग किसी गुस्सैल नाग सा तन कर फनफना रहा था. काला लिंग बालों से घिरा करीबन 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा था. उसके लिंग के सुपारे के ऊपर की चमड़ी हल्की सी खुली थी, जिसमें उसका मूत्र द्वार दिख रहा था और चिपचिपी पानी की बूंद सी निकल रही थी.
उसके इस आकार के लिंग को देख कर मेरी कामना भी भड़कने लगी थी.
अब वो मेरी ओर बढ़ा और मेरे दोनों हाथों को पकड़ मेरे स्तनों और योनि से हटा कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया. वो मुझे फिर से चूमने लगा. उसका सख्त कड़क लिंग मुझे मेरी नाभि के इर्द गिर्द चुभता सा महसूस होने लगा. अब मैंने सोच लिया कि इसे जो भी करना है, कर लेने देती हूँ क्योंकि विरोध का कोई लाभ नहीं था.
वैसे भी मुझे कोई खासा फर्क तो पड़ने वाला नहीं था क्योंकि मैं खुद काम की प्यासी रहा करती हूं. पर ये मेरे बचपन का मित्र था, इस बात से अटपटा सा लग रहा था.
मैंने तो अब तक कईयों बार अनजान व्यक्तियों के साथ संभोग किया था, सो अब मैंने सोचा कि सुरेश का साथ देना ही उचित होगा. पर मैं अपनी तरफ से कोई हरकत नहीं कर रही थी, बस जैसा वो कर रहा था, करने दे रही थी.
उसने जी भर कर मेरे स्तनों को चूसा, दूध पिया, जहां जहां मर्ज़ी हुई मुझे चूमा और धीरे धीरे मुझे जमीन पर गिराते हुए लिटा दिया.
मैं सामान्य नजरों से उसे देखे जा रही थी और वो भी बीच बीच में मुझे देखता मगर उसकी आँखों में सिवाए वासना के कुछ नहीं दिख रहा था.
वो अब मेरे ऊपर आ गया था और मेरी दोनों जांघें फैला कर वो बीच में आ गया. उसने अपने लिंग को हाथ में लेकर 2-3 बार आगे पीछे हिलाया और मेरी योनि पर सुपारा खोल मेरी योनि के छेद से भिड़ा दिया.
[Image: 62344424_010_c7ad.jpg]



मेरी योनि अब बालों से घिरी हुई थी. उसे शायद मेरी योनि का द्वार नहीं दिख रहा था, इसलिए उसने लिंग को पकड़ कर सुपारे से मेरे छेद को टटोलने सा किया और लिंग टिका दिया. 
फिर वो अपने दोनों हाथ मेरे सिर के अगल बगल रख कर मेरे ऊपर झुक गया. पर उसने अपना वजन मुझ पर नहीं डाला था. जब उसकी संभोग की स्थिति पक्की बन गयी थी तो उसने कमर के जोर से अपने कड़ियल लिंग को मेरी योनि में धकेलना शुरू किया और मैं दर्द से चिहुंकने लगी.
मेरी योनि बिल्कुल सूखी थी. अनायास ही सम्भोग की स्थिति बन जाने से, कुछ डर और घबराहट की वजह से मेरी योनि गीली ही नहीं हुई थी. जिसके कारण जब वो अपना लिंग धकेलता, मेरी योनि की पंखुड़ियां अन्दर की ओर खिंचती, जिससे मुझे दर्द होता. 
काफी देर मेहनत करने के बाद भी उसका लिंग मेरी योनि में नहीं घुसा और दर्द की वजह से मैं अपनी जांघें सिकोड़ लेटी रही, जिससे वो और परेशान होता रहा. उसके लिंग धकेलने के क्रम में मेरी योनि में खिंचाव ऐसा होता कि मैं उसकी छाती, तो कभी कमर पर नाखून गड़ा देती और उसे रोकने का प्रयास करती.[Image: 62344424_013_5853.jpg]


किसी तरह इतना संघर्ष करने के बाद एक बार के धक्के में उसका सुपारा योनि में घुस गया, पर मेरी चीख निकल गयी- आआ ईईई!
अपने होंठों को भींचती हुई मैं कसमसाने लगी. मुझे ऐसा लगा कि मानो योनि की दोनों पंखुड़ियां, योनि के भीतर की तरफ मुड़ कर अन्दर को चली गयी हों.

उसे भी शायद अपने लिंग की चमड़ी में खिंचाव महसूस हुआ, तभी उसने लिंग वापस बाहर खींच लिया और हाथ में थूक लगा कर सुपाड़े से जड़ तक मल लिया. फिर दोबारा थूक हाथ में लिया और मेरी योनि पर मल कर, एक उंगली से भीतर भी मल दिया.
किसी ने सही कहा है कि जब तक खुद पर न बीते, दर्द कोई दूसरे का समझ नहीं सकता. उसको खुद के लिंग पर दर्द हुआ था, तभी उसने मेरी योनि के दर्द को समझा था. 
अब उसने फिर से लिंग पकड़ कर मेरी योनि की छेद पर टिका कर हल्के हल्के अन्दर धकेलना शुरू किया. कोई 3-4 बार में उसका लिंग सुपारे से थोड़ा ज्यादा मेरी योनि में चला गया. मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो कोई गर्म लोहे का सरिया हो. 
फिर इसी तरह कई बार करके उसने करीबन पूरा लिंग मेरी योनि के अन्दर घुसा दिया. 
मैं ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करती रही.[Image: 62344424_015_cc00.jpg]
उसकी जांघों का हिस्सा मेरी योनि के किनारों से सटने लगा था और सुपारे के स्पर्श से मेरी बच्चेदानी में गुदगुदाहट भी हो रही थी. मुझे लगा कि उसका समूचा लिंग मेरी योनि में चला गया. उसके लिंग की मोटाई की वजह से अब भी मेरी योनि की दीवार फैल रही थी और खिंचाव महसूस हो रहा था.
तभी उसने एक जोर का धक्का मारा, मैं अभी तक ‘आह … ओह्ह …’ कर ही रही थी. तभी मेरी आवाज आआइई में बदल गयी. अब जाकर उसका पूरा लिंग घुसा था और मेरी बच्चेदानी मानो सुपारे से दब गई हो, मुझे ऐसा महसूस हुआ.
पर मेरी इस पीड़ा से उसे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि अगले ही पल उसने हौले हौले लिंग मेरी योनि में अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया. मैं कुछ देर तो दर्द से वैसे ही कराहती रही, पर कुछ क्षणों के बाद उसके धक्कों से मुझे राहत सी मिलनी शुरू हो गयी और अब अच्छा लगने लगा था.[Image: 62344424_032_163d.jpg]
करीबन 10 मिनट तक वो उसी धीमी गति से धक्के मारते हुए संभोग करता रहा. 
मुझे लगा था कि जिस प्रकार से वो उत्तेजित था, दस मिनट में ही झड़ जाएगा. मगर अब ऐसा लगने लगा था कि ये संभोग का दौर लंबा चलेगा. अब उसकी उत्तेजना में भी वृद्धि दिख रही थी और कमर भी तेज चलने लगी थी.
इधर मेरी योनि ने भी सब स्वीकार लिया था और अपना रस छोड़ते हुए अपनी स्वीकृति दे दी. मैं अब भी कराह रही थी मगर अब ये आनन्द की कराह थी. मेरी मादक सिस्कारियां अब उसे और तेज होने का न्यौता दे रही थीं … उसे खुल कर संभोग करने की बात कह रही थीं.
मैं अपनी बांहों में उसे पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगी और जांघें और चौड़ी करने लगी. वो भी मेरी मस्ती से समझ गया था कि अब मैं विरोध नहीं बल्कि साथ दूंगी, इसलिए उसने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और धक्के मारते हुए मेरे स्तनों को बा री बारी से चूसने लगा.
मैं भी अब पूरी तरह से उत्तेजित हो गयी थी, जिसके वजह से उसे अपना दूध पिलाने में सहयोग करने लगी. साथ ही मैं अब उसके सिर को सहलाती, तो कभी टांगों से उसकी जांघों को जकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए चूतड़ों को उठा देती.
अब हम दोनों आनन्द में खो गए थे और हमारा लक्ष्य केवल चरमसुख पाना था. हम दोनों का बदन गर्म होकर अब पसीना छोड़ने लगा था और वो हांफता हुआ मेरे होंठों को चूमने लगा.
मेरी भी स्थिति अब ये थी कि मैं चूमने में उसका खुल कर साथ दे रही थी. हम दोनों धक्कों के साथ एक दूसरे के होंठों को चूसते, जुबान को चूसते, एक दूसरे के मुँह से निकलती लार को पीते. इस बीच वो दोनों हाथों से मेरे बड़े-बड़े स्तनों को दबाता रहता. मुझे दर्द तो होता … मगर मजा भी आ रहा था. ठीक इसी तरह वो एक लय में धक्के मारता और फिर जोर जोर के 3-4 टापें मार कर फिर वापस उसी लय में धक्के मारने लगता.[Image: 72411892_180_29fb.jpg]
मैं उसकी हर टाप पर उसे पूरी ताकत से पकड़ लेती और जोरों से हर टाप पर आह … आह.. चिल्ला देती. फिर जब वो एक लय में धक्के देना शुरू करता, तो मैं अपनी पकड़ ढीली कर देती. 
शायद अब 20 मिनट से ज्यादा हो चुका था और हम दोनों पसीने से तर हो चुके थे. सुरेश के पसीने की खुशबू मुझे और पागल बना रही थी. उसके सिर से पसीना टपक कर मेरी गर्दन के पसीने से मिलने लगा था. उसके सीने का पसीना मेरे सीने के पसीने से मिलने लगा था और अंडकोषों से पसीना मेरी योनि के पानी जांघों के किनारों के पसीने से मिल कर मेरे चूतड़ों की घाटी से होता हुआ फर्श पर गिरने लगा. मेरे कराहने, उसके हांफने और संभोग की क्रिया से हो रही थप-थप की आवाज से कमरा गूंजने लगा था.
हम दोनों सांपों की तरह लिपटने लगे थे और उसके हांफने से मुझे अंदाज हो गया था कि वो बहुत थक गया था. मुझे उसके लिंग में पहले की भाँति तनाव महसूस नहीं हो रहा था. इधर मेरी वासना की चिंगारी भी अपने शिखर पर आ गई थी और शर्म करने का कोई लाभ नहीं था, तो उससे कहने का मन बना लिया.
मैंने बोला- सुरेश बिस्तर पर चलो. 
मेरी बात सुन कर उसने जबरन 4-5 धक्के लगाए और हांफता हुआ वो खड़ा हो गया. उसका लिंग मेरी योनि के रस से नहाया हुआ और हल्का स्थूल पड़ा लटक सा रहा था. उसका पूरा बदन पसीने में डूबा हुआ था. मैं भी उठ कर बैठी, तो मेरी योनि के किनारे गोलाकार में सफेद झाग सा बना हुआ था. वो बिस्तर के पास गया और मैं भी. 
मैंने उससे बोला- तुम लेट जाओ.
मेरे कहते ही वो लेट गया और मैं उसके लिंग के ऊपर टांगें फैला कर बैठ गयी. इतनी देर में उसकी थकान थोड़ी दूर हो गई थी. मैंने उसके लिंग को पकड़ 8-10 बार हिलाया, तो उसका लिंग वापस पूरे तनाव में आकर कड़क हो गया.
लिंग इतना अधिक चिपचिपा था कि हिलाने के क्रम में मेरे हाथ से फिसल जा रहा था. खैर अब तो दोनों ही एक किश्ती में सवार हो चुके थे और लक्ष्य भी एक ही था.
मैंने उसके कड़क टनटनाते हुए लिंग को योनि की छेद में टिकाया और बैठ गयी. उसका लिंग सर्र से मेरी योनि में घुस गया. मुझे उसके लिंग की फूली हुई नसें ऐसी महसूस हुईं मानो वे मेरी योनि की नसों से ताल मेल बिठा रही हों. नसों में तेज दौड़ता हुआ खून मानो मुझे कोई संदेश भेज रहा हो. 
मैंने अपने घुटने मोड़े, हाथ उसके सीने पर रखा और अपनी कमर से दबाव बनाते हुए आगे की ओर धक्का लगाना चालू कर दिया. चार धक्कों में ही सुरेश के चेहरे का आव भाव बदल गया. वो मस्ती से भर गया और मेरी कमर पकड़ कर मुझे सहारा देते हुए अपने होंठों को भींचते हुए कराहने लगा.
उसे भी समझ आ गया होगा कि मैं इस कामक्रीड़ा के खेल में कितनी माहिर हूँ. मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ चुकी थी कि कुछ ही पलों में पूरे लय में धक्के लगाने लगी. मेरी मस्ती इतनी बढ़ गयी थी कि बस दिमाग में झड़ जाने की चाहत थी.
मैं बहुत गर्म हो चुकी थी और लग रहा था कि किसी भी पल झड़ जाऊंगी. इसलिए मैं एक लय में धक्के मारे जा रही थी. मेरे मुँह से आह.. आह.. आह.. एक सुरताल में निकल रहा था और मन में बस चरमसुख चरमसुख और चरमसुख था. आनन्द इतना अधिक बढ़ चुका था कि अब तो कोई मुझे रोक नहीं सकता था. [Image: 46312898_011_a9c4.jpg]मेरे दिमाग में बस यही था कि अब हुआ … अब हुआ.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
अब आगे
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#7
(10-01-2024, 12:16 PM)neerathemall Wrote: अब आगे

अब आगे:
तभी मेरी एक तेज ‘आआइई … उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ आवाज निकली और बस मेरी योनि से रस की फुहार छूट पड़ी. मैं थरथराने लगी और अपनी योनि को लिंग पर धकेलते हुए उसके सीने पर गिर पड़ी. मैंने उसे पूरी ताकत से पकड़ लिया और अपने चूतड़ों तब तक हिलाती रही जब तक कि मेरा सारा रस न निकल गया.
मेरे शांत होते ही उसने नीचे से अपने चूतड़ों को उछालना शुरू कर दिया. पर मेरे वजन के कारण उससे उतना जोर नहीं लग पा रहा था. उसने जोर लगा कर मुझे पलट दिया और मेरे ऊपर आ गया. मैं पेट के बल हो गयी थी इसलिए उसने जल्दी से तकिया लिया और मेरे पेट के नीचे रख कर मेरे चूतड़ों को थोड़ा ऊपर उठा दिया. मेरे दोनों चूतड़ों को फैला कर जांघों के बीच आकर तेज़ी से लिंग मेरी योनि में घुसाने लगा.[Image: 43742837_015_7c2c.jpg]
मेरे मोटे चूतड़ और कम ऊँचाई की वजह से उसका लिंग मेरी योनि में गहराई तक नहीं जा रहा था. उसने धक्के मारते हुए मुझे अपनी तरफ खींचना और सही जगह पर लाने की कोशिश करनी शुरू कर दी. वो ऐसे कर रहा था, जैसे कोई मजदूर भारी भरकम बोरी को जगह पर लाने के लिए करता है[Image: 72802674_123_9100.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
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#9
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#10
धीरे धीरे आखिरकार मेरे सहयोग से मुझे कुतिया वाली अवस्था में ले आया और फिर एक लय में दमादम धक्के मारने लगा. मैं भी एक लय में कराहने लगी और चादर को मुठ्ठी में भर लिया. उसका लिंग मेरी योनि में ऐसे चल रहा था मानो मेरी नाभि को भेद देगा.[Image: 15206819_014_2e0a.jpg]
कोई 5-7 मिनट तक लगातार एक ही रफ्तार से धक्के मारने के बाद वो अपनी मर्दानी आवाज में कराह उठा और पूरी ताकत से एक जोर का धक्का दे मारा. मैं और जोर से कराही और उसका लिंग मेरी योनि की गहराई में जा धंसा. मेरी बच्चेदानी के मुँह में लिंग का सुपारा जा लगा. उसी समय सुरेश मेरे ऊपर गिर गया. गिरते ही उसने एक हाथ ले जाकर मेरे पेट के नीचे से मुझे पकड़ा और दूसरे हाथ में मेरे एक स्तन को दबोच लिया.
अब वो हिचकी खाने की तरह कराह कराह कर अपनी कमर से झटके मारने लगा. उन हिचकियों के साथ साथ अपना वीर्य भी पिच-पिच कर छोड़ते हुए मेरी बच्चेदानी के मुँह में भरने लगा.[Image: 15206819_015_f960.jpg]
धीरे धीरे उसके झटके भी कम पड़ने लगे और वीर्य की बूंदें भी कम होती चली गईं. मैं उसके गर्म वीर्य का एहसास कभी नहीं भूल सकती. मुझे उसका एक अलग ही आनन्द मिला.
जब उसकी थैली पूरी खाली हो गयी, तो वो मेरे ऊपर से लुढ़क कर नीचे गिर गया. उसके गिरते ही मेरी योनि से उसका लिंग बाहर आ गया और गाढ़ा सफेद झाग सा वीर्य धीरे धीरे रिसता हुआ मेरी जांघों की ओर बहने लगा. जब तक मैं गर्म थी, मुझे कुछ एहसास नहीं हो रहा था … मगर ठंडी पड़ते ही कमर, चूतड़ों, स्तनों और पेट में हल्का हल्का दर्द उठने लगा. 
मैं थोड़ी देर उसी तरह अपने चूतड़ों को उठाया, बिस्तर पर सिर गाड़े, आंखें बंद किए यूं ही सुस्ताती रही. वो उधर तेज साँसों से हांफता हुआ सुस्ताता रहा. 
कुछ देर के बाद वो फिर मेरे पास आया और बोला- सॉरी सारिका, मैं जबरन नहीं करना चाहता था. मैंने इतना बोला तुम्हें … पर तुमने मेरी बात नहीं सुनी. मैं बचपन से तुमसे प्यार करता आया हूँ और जब तुम्हें न पा सका, तब मजबूर हो गया.
अब ये कह कर भी क्या फायदा था, उसे जो चाहिए था, उसने कर ही लिया. मैंने भी सोचा कि ये कुछ नया तो नहीं हुआ मेरे साथ … इसलिए मैं भी सब भूल गयी. 
वो अपने कपड़े पहन चला गया और मैं कुछ देर वैसी ही पड़ी रही.
फिर मैंने एक तौलिया लपेट कर उठकर दरवाजा बंद किया और वापस आकर लेट गयी. पता नहीं ये क्या था. एक पल के लिए ऐसा लगा कि न मैं उसे दो रुपया उधार लौटने की कोशिश करती, न वो बहकता. एक पल के लिए लगा वो 2 रुपए का उधार ही चुकता कर गया.
अपनी आंखें बंद करते ही उसके साथ संभोग के एक एक दृश्य मेरे सामने आने लगे. जबरदस्ती ही सही, पर मुझे लगने लगा कि उसने मुझे अपने वश में कर लिया था. मुझे बार बार उसका कठोर लिंग दिखता, कभी ये दृश्य मन में बनता कि उसका लिंग मेरी बच्चेदानी पर बार बार चोट कर रहा था. कभी उसका बालों से भरा मर्दाना सीना दिखता, तो कभी मजबूत बाजू … तो कभी उसके चेहरे का भाव, जो वो मुझे धक्के मारते हुए बना रहा था … सब याद आ रहा था.
मैंने बहुत कोशिश की कि ये सब बात मेरे मन से निकल जाएं पर हो ही नहीं पा रहा था. शायद महीनों बाद संभोग के सुख मिला … या अपना था, इसलिए उसके प्रति सोच बनी रही थी.
मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा था. मेरी योनि में अभी भी वीर्य गहराई तक कुछ कुछ बाकी था, जो रिस रिस कर बाहर आ रहा था और चिपचिपे और गीलेपन का अहसास दिला रहा था. योनि में चिपचिपाहट, मुझे पल पल उसके लिंग से वीर्य छूटने सा दिखता.
अब एक बज गए थे, पर नींद नहीं आ रही थी. एक बार ख्याल आया कि सुरेश को फोन कर बहुत गालियां दूं, पर फिर रुक गयी. कुछ देर बाद क्या दिमाग में आया कि मैंने उसे एक संदेश भेज दिया और लिखा- तुम बहुत बदमाश हो.
दो मिनट बाद उसका फ़ोन आ गया. 
मैं सोच रही थी कि वो सो गया होगा. अब मैंने सोचा कि अपने दिल की भड़ास निकाल लूं … पर ये मुझपे ही भारी पड़ गया. 
उसने ऐसे मुझसे बातें करनी शुरू की कि मेरा दिल पिघल गया. शायद मुझे भी उसका साथ अच्छा लगा, इसलिए मैं अपने गुस्से को दिखा ही नहीं पाई.
उसने बताया कि दो साल में ये दूसरी बार उसे संभोग के मौका मिला. बीवी के जाने के बाद बहुत अकेला लगता था उसे. 
उसकी बात जानकर मेरे दिल में भी हुआ कि उसने कुछ गलत नहीं किया … और मैंने भी मान लिया कि दोस्त की ही तो मदद की है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#11
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और मैंने भी मान लिया कि दोस्त की ही तो मदद की है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
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#13
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Veronica Rodriguez
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#14
(11-01-2024, 11:54 AM)neerathemall Wrote:
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और मैंने भी मान लिया कि दोस्त की ही तो मदद की है.
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#15
yourock yourock yourock
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#16
(11-01-2024, 11:54 AM)neerathemall Wrote:
और मैंने भी मान लिया कि दोस्त की ही तो मदद की है.
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#17
(11-01-2024, 11:18 AM)neerathemall Wrote:
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