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08-03-2019, 11:11 AM
दोस्तों ! नमस्कार !
मैं कई कहानियां literotica dot com (किन्ही कारणों से ) अलग अलग नाम से पोस्ट की थी (जैसे की masterji1970, seksyseema, seemawithravi, raviram69 आदि), जो की मैं इस BIG PLATFORM पर पोस्ट करने जा रहा हूँ //
आपसे सहयोग की उम्मीद //से ...
आपका
// सुनील पण्डित //
(suneeellpandit)
// दोस्तों ये कहानी का पूरा का पूरा श्रेय इसके असली लेखक का है //
दोस्तो, मेरा नाम राज शर्मा है. मेरी हाइट 5 फुट 8 इंच है और मैं अच्छी पर्सनेलिटी का आदमी हूँ. मैं केवल अपने अनुभव ही लिखता हूँ, जो पाठकों को अच्छे लगते हैं.
आज जो कहानी लिख रहा हूँ, यह उस वक्त की बात है जब मैं चंडीगढ़ में नया-नया गया था. उस वक्त मेरी उम्र 22 वर्ष थी. मैंने एम.बी.ए. के कोर्स में एडमिशन लिया था. हॉस्टल में कमरा नहीं मिलने के कारण रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था और मैं पहले किसी दोस्त के कमरे में ठहरा था. उस दोस्त ने मुझे बताया कि यहां पर मकानों के बाहर ‘टू लेट’ (किराये के लिए) के बोर्ड लगे होते हैं और उसके लिए संडे के दिन, जब घर के मालिक घर में होते हैं तो कमरा ढूंढने के लिए चक्कर लगाने होते हैं और जहां भी ‘टू लेट’ का बोर्ड दिखाई देता है, वहां जाकर बात करनी होती है.
मैं आने वाले संडे को चंडीगढ़ के कुछ पुराने सेक्टर के चक्कर लगाने लगा और मुझे एक जगह कॉर्नर के मकान पर ‘टू लेट’ का बोर्ड दिखाई दिया. जब मैंने नीचे आँगन में खड़ी एक बहुत ही सुंदर सी लेडी से पूछा कि क्या कमरा खाली है? तो उन्होंने बताया कि बीच वाले फ्लोर में जो रहते हैं, उनसे बात करो.
मैं सीढ़ियों से होता हुआ बीच वाले पोर्शन में गया. वहाँ एक कॉलेज के प्रोफेसर रहते थे. उनके 4 और 6 साल के दो बच्चे थे और एक सुंदर, मस्त-सी बीवी थी. दरअसल वे दोनों ही परिवार उस मकान में किराए पर रहते थे.
प्रोफेसर साहब के पास बीच वाला पोर्शन और ऊपर टॉप में, फ्रंट में एक वन रूम सेट था जिसके पीछे खुली छत थी. मैंने प्रोफेसर साहब से मुलाकात की, प्रोफेसर साहब बहुत ही व्यस्त आदमी थे, वह बच्चों को अलग-अलग बैचेज़ में ट्यूशन पढ़ाते थे, उन्हें बिल्कुल भी फुर्सत नहीं होती थी. वह ऊपर वाला कमरा किराए पर देना चाहते थे. जब उन्होंने मेरे बारे में पूछा तो कहने लगे कि कमरा बहुत छोटा है और थोड़ी सी ही जगह है. उन्होंने बताया कि जगह कम होने की वजह से हम यह कमरा किसी परिवार वाले को नहीं दे सकते, अतः हमें कोई बैचलर ही चाहिए.
// सुनील पंडित //
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मैंने प्रोफेसर साहब को बताया कि मैं कुंवारा ही हूं और स्टूडेंट हूँ, आपको किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होगी.
मेरी बातों से वह प्रभावित हुए. जब उन्होंने पूछा कि खाने का कैसे करोगे?
तो मैंने कहा- देख लेंगे, किसी होटल वगैरह में खा लूंगा या टिफिन मंगवा लूंगा. प्रोफेसर साहब ने कहा कि कमरे के अंदर जो सामान पड़ा है वह वहीं रहेगा और छत के ऊपर हम लोग भी आते-जाते रहेंगे.
मैंने उनसे कहा इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है, यह कमरा आप अपना ही समझो और मुझे आप अपना छोटा भाई समझो.
वह मेरी बातों से खुश हो गए और उन्होंने मुझे वह कमरा किराए पर दे दिया. उन्होंने बताया कि वह बहुत बिज़ी रहते हैं और चाहते हैं कि यहां पर किसी प्रकार की डिस्टरबेंस न हो.
मैंने कहा- ठीक है, जैसा आप चाहेंगे वैसा ही होगा.
जब हम बातें कर रहे थे तो उनकी हसीन बीवी साथ बैठी थी. प्रोफेसर साहेब शरीर से मोटी तोंद वाले, गंजे व्यक्ति थे, उनकी आँखों पर मोटा चश्मा चढ़ा था, और वे खुश्क टाइप के आदमी थे. उनकी आयु लगभग 45 साल लग रही थी. उनकी बीवी उनसे बिल्कुल अलग थी. बीवी की आयु लगभग 35 साल की थी, लेकिन वह लेडी देखने में 30 साल की जवान लड़की लग रही थी, जिसका फिगर 36 -34 -38 होगा. उनकी हाइट 5 फुट 3 इंच होगी, वह थोड़ी सी प्लस साइज़ थी, जो मेरी भी पसंद है. मुझे पतली, ज़ीरो फिगर वाली लेडी पसंद नहीं हैं.
मैं उनको भाभी कहकर बुलाने लगा. जब मैंने पूछा कि मैं इस कमरे में कब शिफ्ट करूं तो प्रोफेसर साहेब बोले कि अब आपकी और मेरी इस विषय पर अधिक बात नहीं होगी, आप मेरी वाइफ हिमानी से ही सारी बातें डिस्कस कर लेना, और वह बच्चे पढ़ाने लगे.
// सुनील पंडित //
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हिमानी भाभी को प्रोफेसर साहेब हेमा कहते थे.
हेमा भाभी मुझे ऊपर कमरा दिखाने ले गई. सीढ़ियों पर वह आगे चल रही थीं जिससे उनकी सुन्दर मचलती हुई गाण्ड और मोटी गुदाज गोरी पिंडलियाँ दिखाई दे रही थीं.
उन्होंने कमरा दिखाया. कमरा साफ सुथरा था. उसमें बेड लगा हुआ था, एक छोटा सा टेबल, एक चेयर और एक तीन सीटर सोफ़ा लगा था.
वह बोली- यह हमारा सामान है और यहीं रहेगा.
मैंने कहा- ठीक है, मुझे तो बल्कि ये सामान चाहिए भी.
जब मैंने पूछा कि मैं कब आ सकता हूँ?
तो वह बोली- जब आप चाहो, आप बेशक कल से ही आ जाओ, हमें कोई ऐतराज़ नहीं है.
मैंने उनसे कहा- कल मुझे यूनिवर्सिटी जाना होगा, यदि आपको ऐतराज़ न हो तो मैं आज से ही आ जाता हूँ.
भाभी जी कहने लगी- हमें क्या एतराज़ है, आप आ जाओ.
दोस्तो! हेमा भाभी के बात करने के तरीके और उनकी नशीली आंखों से मुझे लग रहा था कि यह लेडी इस प्रोफेसर के मतलब की नहीं है और यह ज़रूर पट जाएगी. हेमा भाभी हमेशा मेक-अप करके रहती थी. उनके बॉब कट घुंघराले बाल थे, बड़े करीने से वह साड़ी पहनती थी, स्लीवलेस ब्लाउज़ में उनकी बड़ी-बड़ी खड़ी चूचियां और साड़ी में कसी हुई उनकी भरी हुई गांड किसी भी आदमी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी. उनमें जो ख़ास बात थी वह यह थी कि उनकी नशीली आंखें और जब भी वह बाहर जाती थीं तो आंखों के ऊपर बहुत ही सुंदर गॉगल्स लगाकर जाती थी.
जब मस्ती से चलती थी तो अड़ोस-पड़ोस के आदमी उन्हें देखे बगैर नहीं रहते थे और पड़ोस की लेडीज उनसे चिढ़ती थी, परन्तु वह मस्त रहती थी.
वह मकान तीन मंज़िला था. सामने के आँगन से ऊपर सीढ़ियाँ जाती थीं. सीढ़ियों में घुसते ही एक दरवाजा ग्राउंड फ्लोर के लिए था, जो अक्सर बंद रहता था, एक फर्स्ट फ्लोर के लिए था और अंत में सीढ़ियाँ मेरे कमरे तक जाती थीं.
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जो ग्राउंड फ्लोर पर फैमिली रहती थी उसमें तीन ही लोग थे. दो मियां बीवी और एक उनकी 3 साल की बच्ची. वह लेडी भी लगभग 30 साल की थी और वह भी बहुत ही सुंदर, गोरी, थोड़े छोटे कद और गुदाज शरीर की थी. उसकी भी चूचियां और गांड बहुत मस्त थी, उस भाभी का नाम लता था, जो भुवनेश्वर की रहने वाली थी. उनका फिगर भी हेमा भाभी की ही तरह था, परन्तु उनका रंग थोड़ा ज्यादा गोरा था. उनके पति एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे और अक्सर टूर पर रहते थे, जो महीने-महीने बाद आते थे. लता भाभी थी तो बहुत सुन्दर परन्तु घर पर ढीली सी साड़ी, सर्दी के कारण सिर पर स्कार्फ, पैरों में जुराबें और गर्म स्वेटर पहनती थी, जिसमें उनका हुस्न छिपा हुआ रहता था.
मैं उसी दिन ऑटो से अपने दोस्त के यहां से अपना सूटकेस और छोटा-मोटा सामान ले आया और अपना सामान तीसरी मंज़िल पर बने कमरे में रख लिया.
जब मैं बाहर से आ रहा था तो ग्राउंड फ्लोर वाली लता भाभी मेरे सामान को देख कर बोली- आप यहां रहने आए हैं?
मैंने कहा- जी हां.
उन्होंने पूछा- आप कहां सर्विस करते हैं?
तो मैंने बता दिया कि मैं तो एक स्टूडेंट हूँ.
जब मैंने कमरे में सामान रखा तो उस वक्त शाम के 5:00 बज गए थे. नीचे से हेमा भाभी मेरे कमरे की सेटिंग देखने आई. जैसे ही वह कमरे में आई, कमरा उनके परफ्यूम की खुशबू से भर गया. वह बहुत धीरे-धीरे और बड़ी अदा से बात करती थी, आंखें हमेशा उनकी ऐसे रहती थी जैसे उन्होंने ड्रिंक किया हो.
उन्होंने मुझसे पूछा- किसी चीज की जरुरत तो नहीं है?
मैंने कहा- नहीं भाभी जी, मेरे पास सभी चीजें हैं, आप फिक्र न करें, मैं अपना काम करता रहा और हेमा भाभी को बैठने को कहा.
भाभी जी थोड़ी सी देर चेयर पर बैठी और कुछ थोड़ा बहुत मेरे बारे में और मेरी फैमिली के बारे में जानकर कहने लगी- अब मैं चलती हूँ, नीचे खाना बनाने का काम करना है.
मैंने जब भाभी जी से पूछा- आप दिनभर क्या करती हैं?
तो उन्होंने बताया- प्रोफेसर साहब को तो फुर्सत नहीं है, वे तो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते रहते हैं. मैं जब अकेली बोर होती हूं तो थोड़ा मार्केट में घूमने चली जाती हूँ.
पास में ही मार्केट था.
मैंने कहा- भाभी जी! आप जब चाहें इस कमरे में आ सकती हैं, छत के ऊपर बैठ सकती हैं, इसे आप अपना ही कमरा समझो.
वह कहने लगी- ठीक है, मुझे आपका स्वभाव बड़ा पसंद आया और मैं भी यही चाहती थी कि कोई ऐसा लड़का यहां आए जो थोड़ी बहुत मेरी भी हेल्प कर दे.
मैंने कहा- आपको जो हेल्प मुझसे चाहिए, वह मैं करूंगा.
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उन्होंने बड़ी अच्छी स्माइल दी और कहने लगी- ठीक है, आज का खाना मैं ही आपके लिए भिजवा देती हूँ, कल से आप अपना कोई इंतजाम कर लेना.
दोस्तो! पहली बार मुझे पता लगा कि औरतों के अंदर बहुत ज्यादा ईर्ष्या होती है. ग्राउंड फ्लोर पर जो उड़ीसा का परिवार रहता था उसमें लता भाभी और उनके पति को हेमा भाभी से और उनके फैशन करने से बड़ी चिढ़ थी और वे उसको पसंद नहीं करते थे. असल में दोनों लेडीज़ का सुंदरता में कॉम्पिटिशन था और दोनों ही अपनी अपनी जगह हिरोइनों की तरह सुन्दर थीं.
मैंने अपने खाने का अरेंजमेंट एक होटल से कर लिया था वहां से डेली टिफिन आ जाता था. जब भी मैं नीचे जाता तो मेरी मुलाकात लता भाभी और उनके हस्बैंड से होती रहती थी, लता भाभी मुझसे बातें करने का बहाना ढूंढती रहती थी. अक्सर फ्रंट के आँगन में खड़ी या बैठी रहती थी.
तीन चार दिन बाद वह अपने हस्बैंड के साथ बाहर खड़ी थी, उन्होंने मुझे अपने घर पर अन्दर बुलाया और मेरा नाम पूछा. मैंने उन्हें बताया कि मेरा नाम राज शर्मा है. मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ और अपने बारे में कुछ बातें बताई. उन्होंने भी कुछ बातें बताई.
तब तक लता भाभी मेरे लिए चाय बिस्कुट वगैरह लेकर आई. कुछ ही देर में उन्होंने हेमा भाभी के बारे में बातें शुरू कर दी और उनकी बातों से मुझे पता लगा कि लता भाभी उनके सजने-संवरने और अदाओं से चिढ़ती थी.
उनकी बातों से मुझे ऐसा लगा कि वह मुझे अपनी साइड करना चाहती थी.
मगर मैं चुप रहा.
वह मकान एक कॉर्नर का मकान था, उसमें हम तीनों ही किरायेदार थे. मकान मालिक कहीं बाहर दूसरे शहर में रहता था. एक हफ्ते बाद लता भाभी के पति मिस्टर हरिदास 20-25 दिन के लिए दक्षिण भारत के टूर पर मार्केटिंग के सिलसिले में चले गए थे.
एक रोज़ सुबह ही मैंने पिछले आँगन में नीचे झाँक कर देखा तो मैं दंग रह गया. लता भाभी सुबह ही नहाने के बाद पिछले आँगन में तुलसी के पौधे की पूजा कर रही थी. उन्होंने नहाने के बाद अपने शरीर पर एक पतली सी, झीनी सी साड़ी घुटनों से ऊपर लपेट रखी थी जिसके नीचे उन्होंने न ब्लाउज, न ब्रा और न ही पेटीकोट पहना था, वह लगभग नंगी दिख रही थी, उनकी बड़ी-बड़ी खड़ी चूचियां और सुन्दर सुडौल चूतड़ उस कपड़े में से साफ़ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने नहाने के बाद अपने चूतड़ों तक लंबे बाल खुले छोड़ रखे थे. उनकी नंगी गोल गुदाज बाजू, गर्दन, आधी नंगी छाती और सुडौल गोरी पिडलियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी.
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08-03-2019, 11:17 AM
वह 5 मिनट तक हर रोज़ लगभग 8 बजे ऐसे ही पूजा करती थी, जिसे मैं हर रोज़ चोरी से देखने लगा था और हर रोज वहीं खड़ा होकर हाथ से अपना पानी निकाल लेता था.
एक दिन हेमा भाभी ने मुझसे पूछा- राज भैया! आपको स्कूटर चलाना आता है?
मैंने कहा- जी हां आता है.
तो वह कहने लगी- मुझे बाज़ार में थोड़ा काम है, प्रोफेसर साहब बिजी हैं, तो आप थोड़ी देर के लिए मुझे स्कूटर पर बाज़ार में ले चलो.
मैंने कहा- ठीक है.
स्कूटर सीढ़ियों में खड़ा होता था. मैं तैयार हुआ, स्कूटर बाहर निकाला और हेमा भाभी को पीछे बैठाकर मार्केट की ओर निकल गया। बाहर जाते हुए लता भाभी ने हमें देख लिया था और उनके चेहरे से लगा कि वह जलकर खाक हो गई थी.
स्कूटर पर हेमा भाभी मेरे साथ बेफिक्री से बैठी थी, उनके पट, चुचे और शरीर बार बार मुझसे टच हो रहे थे जिससे मेरा शरीर रोमांच से भर गया था. वैसे तो मार्किट पास ही थी, परन्तु उन्हें दूसरी मार्किट में जाना था.
मैं स्कूटर थोड़ा तेज़ चला रहा था और कोई सामने आ जाता था तो एकदम ब्रेक मारते ही भाभी मुझसे लगभग सट जाती थी. उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी सीट पकड़ रखी थी. उनके व्यवहार से ज़रा भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें मुझमें कोई रूचि है. लेकिन उनके शरीर छूने से और बदन की खुशबू से मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी तीन-चार दुकानों पर गई, मैं बाहर खड़ा रहता था.
काम ख़त्म होने के बाद उन्होंने अपने हाथ में कुछ थैले लिए और मेरे पीछे फिर बैठ गई. सामान के साथ बैठते हुए उन्हें थोड़ी दिक्कत हो रही थी अतः उन्होंने सभी थैलों को अपनी गोद में रखा और बैठते हुए मेरा कन्धा पकड़ लिया.
मैंने हिम्मत करके कहा- भाभी, आप मुझे पकड़ लो वर्ना गिर जाओगी.
उन्होंने मुझे कमर से पकड़ लिया और कहने लगी- मैंने सोचा कभी तुम बुरा न मान जाओ, इसलिए नहीं पकड़ रही थी.
मैंने कहा- आप निश्चिन्त होकर बैठें और जैसे मर्ज़ी पकड़ें.
मैं जानबूझ कर थोड़ा ब्रेक मारने लगा तो भाभी की छातियाँ लगभग मुझसे चिपकने लगी.
हम घर आ गए, लता भाभी ने फिर हमें अच्छी तरह बैठे देख लिया था और उन्होंने अपना मुंह बिचका लिया था. इस प्रकार से हेमा भाभी मुझसे स्कूटर पर बैठकर अपने काम करवाने लगी. मेरा भी धीरे-धीरे हौसला बढ़ता गया और हेमा भाभी भी कुछ-कुछ मुझमें रूचि लेने लगी थी.
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Bahut hi sandar suruwat hai
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08-03-2019, 12:31 PM
(This post was last modified: 08-03-2019, 12:32 PM by suneeellpandit. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
हुस्न की जलन बनी चूत की अगन-2
इस चोदन कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि चंढ़ीगढ़ में मैंने एक रूम किराये पर लिया मगर साथ में ही मिली दो गर्म भाभियां, दोनों ही हुस्न की मल्लिकाएँ थीं और शायद एक दूसरी से जलती थीं.
अब आगे:
प्रोफेसर साहब और उनके दोनों बच्चे सुबह 8 बजे कॉलेज और कॉलेज चले जाते थे. मैं यूनिवर्सिटी 10 बजे जाता था. इन दो घंटों में हेमा भाभी मुझे कई बार अपने छोटे मोटे काम के बहाने अपने घर नीचे बुला लेती थी.
एक दिन जब हेमा भाभी स्टूल पर चढ़कर ऊपर की अलमारी से कुछ सामान निकाल रही थी तो उनका पाँव लड़खड़ा गया और वह सामान सहित मेरे ऊपर गिर गई और जब मैंने उन्हें संभालना चाहा तो हम आपस में एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे के ऊपर गिर गए. मेरे दोनों हाथों में भाभी के मम्मे आ गए और भाभी बिल्कुल मेरे ऊपर गिरी और सामान भाभी के पांव पर गिर गया.
भाभी ने गाउन पहना हुआ था और उनका गाउन उनकी जांघों तक उल्टा हो गया था जिससे मैंने भाभी के पूरे पट और गुदाज गोरी चिकनी नंगी टांगें देख ली थीं. भाभी के पाँव में चोट लग गई थी. उनसे चला नहीं गया तो मैंने उनकी कमर में हाथ डाल कर बेड पर बैठा दिया.
क्या गुदाज शरीर था उनका.
जब उन्होंने गाउन ऊपर किया तो उनकी गोरी पिंडली लाल हो गई थीं. उन्होंने मुझसे अलमारी से आयोडेक्स निकालने को कहा. मैं आयोडेक्स निकाल लाया और भाभी की गोरी पिंडली पर आयोडेक्स लगाने लगा. उन्होंने अपना गाउन घुटनों तक उठा लिया था और मैं फर्श पर बैठ कर आयोडेक्स लगाने लगा. सामान और स्टूल गिरने की आवाज़ सुनकर नीचे से लता भाभी ऊपर आ गई और उन्होंने मुझे हेमा भाभी के नंगे पाँव में दवाई लगाते देख लिया था.
मैंने लोअर और टीशर्ट पहन रखी थी और घर पर मैं लोअर के नीचे अंडरवियर नहीं पहनता हूँ. मेरा 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड भाभी के गुदाज पट और पाँव देखकर टाइट होने लगा था, परन्तु मैं बैठा था इसलिए दिखाई नहीं दे रहा था.
जब मैं दवाई वापिस रखने के लिए उठा तो लोअर में उभार साफ़ दिखाई देने लगा था जिसे दोनों भाभियों ने साफ देख लिया था. लता भाभी मुस्कराने लगी थी.
उन्होंने पूछा- क्या हुआ?
तो हेमा भाभी ने बता दिया कि सामान उतारते वक्त मैं गिर गई थी, राज सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था तो आवाज सुन कर अन्दर आ गया।
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भाभी ने लता भाभी को नहीं बताया कि इसे मैंने बुलाया था और मैं राज के ऊपर गिरी थी.
मैं वहां से निकल कर ऊपर अपने कमरे में चला गया और फिर तैयार होकर यूनिवर्सिटी निकल गया. शनिवार को मेरी क्लास नहीं होती थी, बाकी सभी अपने अपने काम पर जाते थे.
अगले दिन होली थी. मैं अपने कमरे में बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था. अचानक ग्राउंड फ्लोर वाली लता भाभी मेरे कमरे में आई और मेरे चेहरे को गुलाल से मल दिया और कहा- होली मुबारक हो.
मैं बैठा रहा.
उन्होंने कहा- मुझे रंग नहीं लगाओगे?
मैंने लता भाभी के लिफाफे से ही गुलाल लिया और थोड़ा सा चुटकी भर कर उनके माथे पर लगा दिया.
लता भाभी बोली- ऐसे होली खेलते हैं?
“हेमा की तो टांगों में लगा रहे थे!” इतना कहते ही उन्होंने दोबारा मुट्ठी भरकर गुलाल मेरे चेहरे पर ज़बरदस्ती रगड़ दिया और अपना हाथ मेरी छाती में घुसा कर रगड़ने लगी. लता लगभग मुझसे लिपट गई थी.
मैंने भी लता के पॉलिथीन से मुट्ठी भरकर गुलाल उनके गालों पर रगड़ा और उन्हीं की तरह हाथों को उनके गले से रगड़ता रहा. भाभी नीचे झुक गई. मेरा लंड अकड़ने लगा था. मैंने उनको पीछे से पकड़ा और अपने लंड को उनके चूतड़ों पर अड़ा कर उनके गालों और ब्लाऊज पर गुलाल मसलने लगा.
लता भाभी बोली- छोड़ो कोई आ जायेगा.
मैंने भाभी को छोड़ दिया.
परन्तु भाभी गर्म हो चुकी थी और मेरा लंड भी तन चुका था. भाभी में दोबारा जोश भर गया और दरवाज़े को हाथ मार कर बंद कर दिया और मुझे फिर रंग लगाने लगी. मैंने उन्हें धक्का देकर पेट के बल बेड पर गिरा दिया और उन्हें पीछे से अपने नीचे दबा कर गुलाल रगड़ता रहा.
लता दिखाने के लिए पूरा ज़ोर लगाकर विरोध करती रही. जैसे ही मैंने बलाऊज में हाथ डालना चाहा तो वह नाराज़ हो गई. मैंने उसे छोड़ दिया. लता ने अपने कपड़े ठीक किये और बोली- बस और कुछ नहीं.
मैंने कहा- सॉरी भाभी जी, लेकिन शुरुआत तो आपने ही की थी.
भाभी चुपचाप नीचे चली गई लेकिन उनको मेरे मोटे लंड की फीलिंग पूरी हो चुकी थी.
नहाने के लगभग दो घंटे बाद मैंने मेरी आगे की बालकॉनी से नीचे देखा, लता बाहर खड़ी थी. मैं यह देखने के लिए कि भाभी नाराज तो नहीं है, नीचे गया और मैंने फिर कहा- सॉरी भाभी जी.
उसके बाद क्या हुआ:
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लता भाभी अदा से मुस्कराकर बोली- अच्छा छोड़ो अब, आज सांय को मुझे पिक्चर दिखा कर लाओ?
मैं खुश हो गया, मैंने कहा- ठीक है, 6 से 9 बजे वाले शो में चलते हैं।
वह बोली- तीन टिकट ले आना, बच्ची भी साथ चलेगी लेकिन हेमा को पता नहीं चलना चाहिए, हम पिक्चर हाल में ही मिलेंगे.
मैंने कहा- ठीक है.
और मैं पास के थिएटर के तीन एडवांस टिकट लास्ट लाइन के कार्नर की सीट के ले आया.
हम अलग-अलग पौने छः बजे पिक्चर हाल पहुँच गए. हाल लगभग खाली था. बच्ची को कॉर्नर की सीट पर बैठा दिया. बैठते ही लता बोली- हेमा के साथ कहाँ तक पहुंचे हो?
मैंने कहा- जहाँ तक आपने देखा था.
वह बोली- झूठ बोल रहे हो, वह तो आप पर पूरे डोरे डाल रही है, कैसे स्कूटर पर चिपक कर बैठती है.
मैंने कहा- भाभी! आपकी कसम है, मैंने कुछ नहीं किया है।
वह बोली- हेमा मुझसे ज्यादा सुन्दर है क्या?
मैंने थोड़ा मक्खन लगाते हुए कहा- कहाँ हेमा और कहाँ आप, आप तो अप्सरा जैसी हैं।
भाभी खुश हो गईं. मैंने सोच लिया था कि आज लता को कस कर चोदना है.
मैंने धीरे से लता भाभी के हाथ पर हाथ रख दिया, उन्होंने बच्ची की तरफ देखा और कुछ नहीं कहा. बच्ची सोने लगी थी.
मैंने लता का हाथ पकड़े-पकड़े उसे किस कर लिया.
भाभी बोली- कोई देख लेगा.
मैंने कहा- यहाँ अँधेरे में कौन देखेगा?
मैंने धीरे-धीरे लता के ब्लाऊज़ के ऊपर हाथ फिरना शुरू किया, लता ने थोड़ी देर बाद ब्लाऊज़ के ऊपर के दो-तीन हुक खोल दिए. मैंने झट से लता के मम्मों को पकड़ लिया और मसलने लगा. लता भाभी आँखें बंद करके चेयर पर पसर गई. मैंने लता भाभी की साड़ी ऊपर उठा कर उसके पटों (जांघों) पर हाथ फिराया. कुछ देर में लता ने अपनी टांगों को थोड़ा चौड़ा किया तो मैंने अपना हाथ उनकी चूत तक पहुंचा दिया, लता ने पैंटी नहीं पहनी थी.
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मैं उनकी चिकनी और गीली चूत पर हाथ फिराता रहा. कुछ देर बाद लता ने अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया. मेरा मोटा और बड़ा लंड पैंट को फाड़ रहा था. लता ने लंड की पूरी लंबाई और मोटाई अपने हाथ से नाप ली थी. वह बिल्कुल गर्म हो गई और चुदास से भर गई थी. हम ऐसे ही एक दूसरे के अंगों को छेड़ते और मसलते रहे.
थोड़ी देर में इंटरवल हो गया. हमने अपने कपड़े ठीक किये, लता की चूत पानी छोड़ चुकी थी.
लता बोली- राज! चलो, घर चलते हैं, उठो यहाँ से.
हम बाहर आ गए. उस वक्त 7.30 बजे थे.
लता ने कहा- मैं घर चलती हूँ, तुम कुछ देर बाद मेरे घर ही आ जाना, तब तक मैं खाना बनाती हूँ, खाना इकट्ठे खाएंगे, तुम मेरे घर सीढ़ियों वाले दरवाज़े से आना जिससे कोई देख न सके, मैं दरवाजा अन्दर से खोल कर रखूंगी.
मैं टाइम पास करने के लिए एक बार में बैठ कर बियर पीने लगा. लगभग एक घंटे बाद मैं लता भाभी के घर पहुंचा. वह खाना बना कर नहा चुकी थी. बच्ची को भाभी ने ड्राइंग रूम में रखे दीवान पर सुला दिया था.
भाभी ने सीढ़ियों और बाहर के दोनों दरवाज़े बंद कर दिए.
दरवाज़े बंद होते ही मैंने भाभी को बाँहों में उठा लिया और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए और उन्हें चूसने लगा.
भाभी बोली- थोड़ा सब्र करो, पहले खाना खा लो.
हमने फटाफट खाना खाया, बल्कि भाभी ने पहला कौर मेरे मुंह में अपने हाथ से दिया और मैंने भी वैसे ही किया.
खाना खाने के बाद भाभी बोली- तुम यहीं ड्राइंग रूम में 10 मिनट बैठो, मैं आती हूँ, तुमने अन्दर नहीं आना है.
करीब 10 मिनट बाद भाभी ने मुझे कहा- राज! अन्दर आ जाओ.
जैसे ही मैं अन्दर गया, मेरी आँखें खुली की खुली रह गई, भाभी एक पारदर्शी, स्लीवलेस, पिंक छोटी सी झालर वाली नाईटी में थी, जो केवल उनकी ब्लैक प्रिंट वाली पैन्टी को मुश्किल से ढके हुए थी. भाभी ब्लू फिल्मों की हीरोइन लग रही थी. नाईटी में से उनके चुचे साफ़ दिखाई दे रहे थे, उन्होंने अपनी जुल्फें खुली छोड़ रखीं थी.
मैं एक टक देखता रहा.
भाभी बोली- हर रोज़ सुबह-सुबह ऊपर खड़े हो कर यही देखते हो न, आज अच्छी तरह से देख लो.
मैं हैरान रह गया.
दोस्तो! औरत वैसे ही अनजान बनी रहती है लेकिन वह आदमी की हरकतों को सब जानती है.
मैंने झट से भाभी को गोद में उठा लिया और उनके गालों और होंठों को चूसने लगा.
भाभी बोली- गालों पर निशान मत डालना.
हमने खड़े-खड़े बहुत देर तक स्मूच किया. मैंने भाभी के गोरे बदन को हर जगह चूमा और उनके हुस्न की मुक्त कंठ से तारीफ की.
अपनी तारीफ़ सुनकर भाभी बोली- हेमा के पास क्या है, जो वह लोगों को दिखाने की कोशिश करती है.
मैं समझ गया था कि मुझे जो कुछ मिल रहा है वह औरतों की ईर्ष्या की वजह से मिल रहा है.
मुझे भाभी नाईटी में बहुत सेक्सी लग रही थी. मैंने भाभी की चूत पर पैन्टी के ऊपर से हाथ फिराया, पैंटी गीली हो चुकी थी. मैंने अपने हाथ से भाभी की पैंटी निकाल दी.
लता भाभी की सफ़ेद जांघें और केले के पेड़ जैसी शेप की टांगें, सुन्दर गुदाज गोल चूतड़, गज़ब ढहा रहे थे. उनके चिकने पेट पर बच्चा होने का कोई निशान नहीं था. लता भाभी कुल मिला कर स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी.
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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भाभी बोली- देवर जी, ऐसा हुस्न देखा है कभी?
मैं भाभी की कमज़ोरी पहचान गया था. उन्हें अपनी तारीफ सुननी थी जो उनका पति कभी नहीं करता था. मैंने भाभी को मक्खन लगाते हुए कहा- भाभी सच में आप अप्सरा लग रही हैं.
मैंने भाभी के पाँव को थोड़ा खड़े-खड़े खोला और उनकी चूत और चूतड़ों पर अच्छे से हाथ फिराया और फिर जमीन पर बैठ कर चूत को मुंह और जीभ से चाटने लगा.
लता भाभी पूछने लगी- क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है और कभी ये काम किया है?
तो मैंने कहा- भाभी, मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है और न ही आज तक मैंने किसी की चूत मारी है.
लता भाभी यह सुन कर खुश हो गई.
दोस्तो! जिस प्रकार आदमी यह सोचता है कि मुझे किसी कुंवारी लड़की की चूत मारने को मिले, उसी प्रकार औरत भी यह चाहती है कि उसे भी बिल्कुल कुंवारा लड़का मिले, जिसने पहले कभी चूत न मारी हो.
कहानी अगले भाग में जारी है.
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हुस्न की जलन बनी चूत की अगन-3
मेरा उत्तर सुनकर लता भाभी एकदम रोमांचित हो गई और मुझसे लिपट गई; कहने लगी- देवर जी, यह मेरी खुशकिस्मती है कि आपका लंड फर्स्ट टाइम मेरी चूत में जाएगा और आप पहली बार मुझे चोदोगे.
मैं लता भाभी को तरह-तरह से चूमने लगा और उनकी चूचियों को पीने लगा.
लता भाभी के हाथ मेरे लंड तक पहुंच गए, उन्होंने कहा- राज आपने तो मेरा सब कुछ देख लिया, अपना हथियार तो दिखाओ.
यह सुनते ही मैंने अपने सारे कपड़े निकाल दिए और जैसे ही मैंने अंडरवियर नीचे किया, मेरा 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड बाहर निकाला तो लण्ड एकदम झटके से बाहर निकल कर मेरे पेट पर लगा.
लता एकदम ज़ोर से बोली- ओ माई गॉड, ये क्या है?
मैंने कहा- जो आपके पति के पास है, वही मेरे पास है.
लता भाभी बोली- उनका तो आपसे आधा लंबा और पतला सा है, लगभग 4 इंच का.
उसने कहा- ये तो घोड़े जैसा है.
लता मेरे लंड को हाथ से ऊपर-नीचे करने लगी.
लता भाभी ने लंड को हाथों में पकड़ लिया और नीचे होकर अपने मुंह में चूसने लगी. लता भाभी के मुंह में मेरा लंड इस प्रकार फंसा हुआ था कि उन्हें सांस लेना भी मुश्किल हो गया था. भाभी कहने लगी- राज, यह तो बहुत मोटा है, मेरे हसबैंड का तो बिल्कुल ही छोटा सा है.
मैं खड़े-खड़े लता भाभी को कभी सामने से बांहों में लेकर उनके चूतड़ों को सहलाता तो कभी उनके चूतड़ों की तरफ अपना लंड लगाकर आगे से उनके मम्मों को भींचने लगता. लता भाभी का बुरा हाल हो गया था. उनकी चूत बार-बार पानी छोड़े जा रही थी और मैं बार-बार उनकी चूत को मसल रहा था.
मैंने खड़े-खड़े भाभी की टांगों को थोड़ा चौड़ा किया और चूत के ऊपर अपने लंड का सुपारा टिका दिया. चूत पर लंड का सुपाड़ा टिकते ही लता भाभी ने अपनी आंखें बंद कर ली और तरह-तरह की शी… शी… की आवाज़ निकालने लगी.
कुछ देर लंड को चूत के दाने पर रगड़ने के बाद भाभी कहने लगी- राज, अब ज्यादा मत तड़पाओ और इसको अंदर डाल दो.
मैंने भाभी के गाउन को उतार दिया और उनको बिल्कुल नंगी करके बेड पर लिटा दिया. मैं भाभी के पांव की तरफ गया और उनके दोनों घुटनों को खोलकर उनकी सुंदर चूत को देखा.
‘ओह माई गॉड!’ क्या कमाल की चिकनी और मलाई जैसी गोरी और छोटी सी सुन्दर चूत दिखाई दी. एकदम साफ़ चूत पर बाहर दो फूली हुई गोरी पुट्टियां, उनको मैंने अपनी उँगलियों से अलग किया तो अन्दर, सुन्दर दो गुलाबी रंग की छोटी गुलाब की छोटी पंखुड़ियां जैसे चूत के होंठ, और उनके अन्दर पानी छोड़ने से गीला हुआ गुलाबी छोटा सा छेद दिखाई दिया.
भाभी की चूत का दाना किसमिस जैसा था जो फूल कर छोटे अंगूर जैसा हो गया था.
मैंने भाभी की चूत को चूमा, उसके अंदर अपनी जीभ डाली और भाभी के दाने को अपने होठों से चूसा, तो भाभी बेड के ऊपर अपना सिर मारने लगी और मुझे अपने ऊपर खींचने लगी. मुझसे बोली- राज! बस करो, अब अंदर डाल दो.
मैंने भाभी के घुटनों को थोड़ा मोड़ा और लंड को चूत के छेद पर सेट किया.
चूत बिल्कुल गीली हो चुकी थी और मेरा लंड भी भाभी के थूक से गीला हो चुका था.
फिर वह भी कहने लगी- राज! बिल्कुल धीरे-धीरे डालना, मैंने कभी इतना मोटा लंड न देखा है और न ही चूत में लिया है. इससे तो लगता है मेरी चूत आज फट ही जाएगी.
मैंने भाभी से कहा- मैं बिल्कुल धीरे-धीरे डालूंगा, आप चिंता न करें.
भाभी कहने लगी- ठीक है, जो तुम्हें ठीक लगता है उस तरह से करो.
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मैंने भाभी की चूत पर थोड़ा सा लंड का दबाव दिया तो लंड का सुपारा चूत के नर्म और छोटे से पिंक छेद के अंदर चला गया.
भाभी कहने लगी- राज, थोड़ा धीरे करना.
मैंने भाभी से कहा- भाभी, आपको भैया अच्छी तरह से नहीं चोदते क्या?
तो भाभी कहने लगी- उनकी तो आप बात ही छोड़ो, अब हमारे अंदर यह संबंध रहा ही नहीं है, शादी के 7 साल हो चुके हैं, और कहावत है कि 7 साल के बाद आदमी का औरत से मन भर जाता है परन्तु तुम्हारे भैया का तो 3 साल में ही भर गया था, आज बहुत दिनों बाद तुम मेरी चूत की आग को शांत करोगे.
बातें करते-करते मैंने लंड को थोड़ा और ज़ोर लगा कर अन्दर किया और आधा लंड भाभी की चूत में घुसेड़ दिया. भाभी थोड़ा असहज लग रही थी तो मैंने भाभी के होंठों पर किस किया और एक ज़ोर का धक्का लगा कर पूरा लंड अन्दर घुसेड़ दिया.
भाभी उस धक्के के लिए तैयार नहीं थी और जैसे ही पूरा लंड चूत के अंदर फंसा, भाभी की एकदम चीख निकल गई, बोली- राज! मुझे मार ही दिया, इतना मोटा लंड है तुम्हारा.
कुछ देर तक मैंने अपने लंड की हरकत रोक दी और लंड को चूत में डाल कर भाभी के ऊपर लेट गया और भाभी को प्यार करने लगा.
कुछ देर बाद लता भाभी बोली- अब ठीक लग रहा है, धीरे-धीरे करो.
मैं लंड को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगा. लंड पूरा भाभी की बच्चेदानी के ऊपर लग रहा था. कुछ ही देर में जब सब कुछ सेट हो गया और भाभी को मज़ा आने लगा तो लता भाभी ने अपनी टांगें मेरी टांगों के अंदर फंसा दी.
मैं समझ गया कि अब भाभी को मज़ा आने लगा है. उनके टांगे फसाने से मैं ज्यादा ऊपर नहीं उठ पा रहा था, मैंने भाभी की टांगों को अपने हाथों में लिया और चूत के ऊपर अच्छी तरह से चढ़कर लंड से ठुकाई करने लगा.
भाभी कहने लगी- आह … आए …. हाय … मार दिया … मार दिया … इतना बड़ा लंड … इतना मोटा … उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैंने पहली बार लिया है. तुम तो असली मर्द हो, तुमने पहली बार मेरी चूत मारी है, मैंने तुम्हारे कुंवारेपन को तोड़ दिया. मुझे बहुत मजा आ रहा है, राजा! मुझे चोदो, चोदो … मुझे … हाय … हाय … आई …
करते हुए भाभी अपना सिर बेड पर इधर-उधर मारती रही.
जैसे-जैसे मैं भाभी की चूत में धक्के लगा रहा था, उसी रफ्तार से भाभी की चूचियां उनकी छाती पर ज़ोर-ज़ोर से हिल रही थी.
भाभी कहने लगी- और ज़ोर से करो मेरे राजा. आज तो मज़ा दे दिया तुमने. सच में … अब मैं हर रोज़ तुमसे चुदा करूंगी, हाय मेरी जान … करो … करो … करो, मेरे राजा!
और अचानक भाभी का शरीर अकड़ने लगा, उन्होंने ज़ोर से मुझे अपनी बांहों में कसकर अपनी छाती के साथ भींच लिया और भाभी की चूत ने पानी छोड़ दिया.
भाभी कहने लगी- मेरा तो हो गया है. अब तुम अपना काम कर लो.
मैंने उसी पॉजीशन में भाभी की टांगों को अपने कंधों पर उठा लिया और धकाधक चुदाई जारी रखी.
मार्च का महीना था, हम दोनों उस कमरे में पसीना-पसीना हो गए थे. मैं बेड से नीचे उतरा और भाभी को बेड के किनारे पर घसीट कर उनकी चूत में दोबारा लंड डाल कर उन्हें पेलने लगा.
भाभी ने कहा- मुझे दर्द होने लगा है.
तो मैंने उनकी चूत में 15-20 ज़बरदस्त झटके लगाए और उनकी चूत को अपने लंड के वीर्य की पिचकारियों से भर दिया. लगभग 10-15 पिचकारियों के बाद मेरा लंड शांत हुआ और मैं भाभी को ऊपर सरका कर उनके ऊपर ही लेट गया. मैं दोनों हाथों में उनके चेहरे को पकड़कर प्यार करने लगा. मैंने भाभी की चूचियों पर काटने के निशान बना दिए थे. भाभी पूरी तरह संतुष्ट हो चुकी थी.
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे ऊपर से हटने का इशारा किया. मैंने अपने लंड को बाहर निकाला, लंड के बाहर निकलते ही ढेर सारा वीर्य उनकी चूत से निकल कर उनके चूतड़ों को भिगोता हुआ बेड की चादर पर गिरने लगा.
भाभी लेटी रही, मैं उठकर बाथरुम में चला गया, जब वापस आया तो भाभी भी उठ कर बाथरुम जाने लगी तो खड़े होते ही उनकी चूत से वीर्य निकल कर उनके पटों से होता हुआ नीचे उनके घुटनों तक बह रहा था और भाभी अपनी टाँगें चौड़ी करके लड़खड़ाती हुई चल रही थी.
भाभी बाथरूम गई और अपनी चूत को साफ करके आई. आने के बाद भाभी ने वही गाउन फिर पहन लिया और रसोई से मेरे लिए गर्म दूध और कुछ ड्राई फ्रूट लेकर आई, मुझसे कहने लगी- मेरे राजा, आज जिंदगी में तुमने जो मेरी चुदाई की है वह सदा याद रहेगी.
इस पूरी चुदाई में रात के 11:00 बज गए थे. मैंने दूध पिया और कुछ ड्राई फ्रूट खाए, गर्म दूध पीने के बाद मेरे अंदर फिर जोश पैदा हो गया, मैंने भाभी को उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया और प्यार करने लगा. मैंने भाभी की सुंदरता की खूब तारीफ की और कहा- हेमा भाभी तो आपके मुकाबले में कुछ भी नहीं है, उसके पट मैंने देखे हैं.
मैंने वह सारी बात बता दी जब वह मेरे ऊपर गिरी थी, मैंने उनको बताया कि हेमा भाभी ने आपसे बात छुपा ली थी.
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08-03-2019, 12:45 PM
भाभी मुस्कुराने लगी और मुझे कहने लगी- अब तुमने मेरा शरीर और मेरी चूत सब देख ली है, जरा उसका भी हिसाब किताब चेक करो.
मैंने भाभी से कहा- मैं आपको छोड़कर अब दूसरी के पास नहीं जाऊंगा.
तो भाभी कहने लगी- कोई बात नहीं, एक बार देखो तो, मुझमें और उसमें क्या अंतर है?
मैंने कहा- ठीक है अगर वह अपने आप अपनी चूत मुझे देंगी, तो मैं ले लूंगा, वरना मैं खुद ट्राई नहीं करूंगा.
ऐसे ही बातें करते-करते मैं भाभी के होंठ और चूचियां पीने लगा और चूत के ऊपर हाथ लगाने लगा, भाभी फिर गर्म हो गई और उन्होंने मुझे बेड पर धक्का देकर नीचे लिटा लिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गई. उन्होंने मेरे खड़े लंड को अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चूत पर सेट करके नीचे की तरफ बैठ गई, भाभी के बैठते ही पूरा लंड चूत में घुस गया, भाभी मेरे लंड की सवारी करने लगी और फटाफट अपने चूतड़ों को ऊपर उछाल-उछाल कर लंड को अंदर-बाहर करने लगी.
कुछ देर बाद ही जब उनकी चूत से पानी छूट गया तो एकदम शांत होकर मेरे ऊपर लेट गई.
कुछ देर बाद भाभी मेरे ऊपर से उतर कर मेरी साइड में लेट गई, मैंने भाभी की टांगों के ऊपर अपनी एक टांग रखी और उनकी गर्दन के नीचे से हाथ डालकर उनको अपनी साइड में लेकर सीने से चिपका लिया. मेरा लंड अभी भी खड़ा था जो भाभी की चूत से टकरा रहा था, मैंने भाभी की पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया उनके चूतड़ों को सहलाया, उनके पटों को सहलाया.
भाभी कहने लगी- राज! अब आप अपने कमरे में चले जाओ, बहुत देर हो चुकी है.
मैंने भाभी से कहा- एक बार ज़रा घोड़ी बन कर और चोदना चाहता हूँ.
भाभी कहने लगी- वो कल कर लेना.
लेकिन मैंने कहा- अब मेरा तो खड़ा हो चुका है, इसे तो छुटवाना ही नहीं है.
भाभी कहने लगी- ठीक है, कर लो!
और नाईटी पहने-पहने घोड़ी बन गई.
मैं बेड से नीचे खड़ा हो गया. नाईटी भाभी के चूतड़ों को आधा ढके हुए थी और आधे चूतड़ दिखाई दे रहे थे. मैं भाभी के गोरे और सुडौल चूतड़ों पर हाथ फिराने लगा. भाभी की गाण्ड का छेद भी बिल्कुल पिंक था.
मैंने जब लंड को गाण्ड के छेद पर रखा तो भाभी बोली- गन्दा काम नहीं.
मैं भी गांड में ज्यादा इंटरेस्टेड नहीं था, अतः मैंने उनके पटों के बीच में से उभरी चूत को उँगलियों से अलग किया, उनकी टांगों को थोड़ा चौड़ा किया और लंड अन्दर जाने की जगह बना कर, सुपारा चूत के बीच में रख कर, एक ही झटके में पूरा लंड अन्दर तक ठोक दिया.
भाभी इस झटके के लिए तैयार नहीं थी, वह एकदम चिहुंक गई और आ … आ … आ … की आवाज़ से इकट्ठी हो गई.
भाभी बोली- जान ही निकाल दी.
थोड़ी देर बाद भाभी ने अपने चूतड़ों को थोड़ा हिलाया और लण्ड को चूत में अच्छे से सेट करके बोली- अब करो.
मैंने भाभी की कमर पर और उनके बालों पर हाथ फिराया और थोड़ा आगे हाथ करके उनके चूचों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और धीरे-धीरे लण्ड को पूरा-पूरा बाहर निकाल कर भाभी को पीछे से चोदने लगा.
थोड़ी देर बाद भाभी की वासना फिर भड़क गई और मुझे बोली- राज! ज़रा ज़ोर-ज़ोर से तेज़-तेज़ करो, बहुत ही मज़ा आ रहा है.
मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और लगभग 5 मिनट की चुदाई के बाद भाभी की बुर ने फिर पानी छोड़ दिया और भाभी ने अपनी छाती और चूचियाँ बेड पर टिका ली.
ऐसा करने से चूत बिल्कुल मेरे लण्ड के निशाने पर आ गई. मैंने भाभी की जांघों को हाथों से पकड़ कर ज़बरदस्त 20-25 झटके मारे और मेरा लण्ड वीर्य की फिर से पिचकारियाँ मारने लगा.
पिचकारियाँ लगते-लगते भाभी बेड पर पसर गई और मैं भी अपना लण्ड अन्दर डाले डाले, उन्हें पसरे हुए ही पीछे से वीर्य की अंतिम बून्द तक चोदता रहा और उनके ऊपर ही लेट गया. भाभी मेरे नीचे दबी पड़ी थी.
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटाया और बोली- अब जाओ अपने कमरे में, मुझे तो तोड़ कर ही रख दिया है.
रात के 1 बजे का समय हो गया था, मैं अपने कपड़े पहन कर लता भाभी के ड्राइंग रूम वाले दरवाजे से निकल कर चुपचाप अपने कमरे में चला गया. हेमा भाभी का दरवाजा बंद था, किसी को कुछ भी नहीं पता लगा और मैंने लगभग 5 घंटे चुदाई का आंनद लिया और दिया.
मैं और लता भाभी चुपचाप हर रोज़ चुदाई करते रहे और जैसे कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपता, हमारे इस खेल का हेमा भाभी को शक हो गया था.
हुस्न की जलन की यह कहानी जारी रहेगी.
बने रहिये (सुनील पण्डित )
// सुनील पंडित //
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