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Incest भाई बहन की आपस में चुदाई
#1
Heart 
भाई बहन की आपस में चुदाई










जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
जब मेरी जवानी चढ़नी सुरु हुयी तो मेरे मन में भी किसी लड़की को छूने की इच्छा होती थी मै भी किसी लड़की की चुत देखना चाहता था | जब मै कोई लड़की अपने सामने देखता था तो मेरे मन में इच्छा जाग उठती थी चुदाई की जब कभी कही कोई लड़की दिख जाती थी तो मेरे लंड अपने आप पेंट में झटके मारने लगता था | और रात में मस्ताराम डॉट नेट मोबाइल में खोल कर कहानी पढ़ते हुए मुठ मार कर सो जाता था यही प्रकिया रोज रोज करता था पर कोई लड़की को छूने का मौका नहीं मिलता था | अब तो कोई भी भाई चाची या कोई भी दिख जाता मेरी इच्छा हो जाती सोचने लगता काश मेरे से एक बार करवा लेती तो मै धन्य हो जाता पर दोस्तों जब किस्मत में नहीं लिखा हो तो कुछ भी नहीं होता बस मुठ मार के काम चलाना पड़ता है वही हालत मेरी भी हो रही थी |

अब हर लड़की औरत में मुझे बस चुत ही दिखती थी की इसके पास भी एक चुत है जो मेरे लंड के काम आती अगर ये राजी हो जाती | एक बार मैंने अपनी सगी बड़ी बहन को कपड़े बदलते समय ब्रा और पैंटी में देखा. जो मैंने देखा उसने मेरे दिल में घर कर लिया और में काफ़ी उत्तेजित भी हुआ. पहले तो मुझे शरम आई के अपनी सगी बहन को भी में वासना भरी निगाहा से देखता हूँ. लेकिन उसे वैसे अधनन्गी अवस्था में देखकर मेरे बदन में जो काम लहरे उठी थी और में जितना उत्तेजीत हुआ था वैसा मुझे पहले कभी महसूस नही हुआ था. बाद में मै अपनी बहन को अलग ही निगाह से देखने लगा. मुझे एक बार चुदाई की कहानियो की एक हिन्दी की किताब मिली वो किताब और किसी की नहीं बल्कि मस्ताराम की लिखी हुयी थी | उस किताब में कुछ कहानियाँ ऐसी थी जिनमें नज़दीकी रिश्तेदारो के लैंगिक संबंधो के बारे में लिखा था.

जिनमें भाई-बहन के चुदाइ की कहनी भी थी जिसे पढ़ते समय बार बार मेरे दिल में मेरी बहन, शालू दीदी का ख़याल आ रहा था और में बहुत ही उत्तेजीत हुआ था. वो कहानियाँ पढके मुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि इस तरह के नाजायज़ संबंध इस दुनिया में है और में ही अकेला ऐसा नही हूँ जिसके मन में अपनी बहन के बारे में कामवसना है. मेरी बहन, शालू दीदी, मेरे से ७ साल बड़ी थी. में जब १५ साल का था तब वो २३ साल की थी. उसका एकलौता भाई होने की वजह से वह मुझे बहुत प्यार करती थी. काफ़ी बार वो मुझे प्यार से अपनी बाँहों में भरती थी, मेरे गाल की पप्पी लेती थी. में तो उस की आँख का तारा था. हम एक साथ खेलते थे, हंसते थे, मज़ा करते थे. हम एक दूसरे के काफ़ी करीब थे. हम दोनो भाई-बहन थे लेकिन ज़्यादातर हम दोस्तों जैसे रहते थे.


हमारे बीच भाई-बहन के नाते से ज़्यादा दोस्ती का नाता था और हम एक दूसरे को वैसे बोलते भी थे. शालू दीदी साधारण मिडल-क्लास लड़कियो जैसी लेकिन आकर्षक चेहरे वाली थी. इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है | उसकी फिगर सेक्सी वग़ैरा नही थी लेकिन सही थी. उसके बदन पर सही जगह उठान और गहराइया थी. उसका बदन ऐसा था जो मुझे बेहद पागल करता था और हर रोज मुझे मूठ मारने के लिए मजबूर करता था. घर में रहते समय उसे पता चले बिना उसे वासना भरी निगाहा से निहारने का मौका मुझे हमेशा मिलता था
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
उसके साथ जो मेरे दोस्ताना ताल्लूकात थे जिसकी वजह से जब वो मुझे बाँहों में भरती थी तब उसकी गदराई छाती का स्पर्श मुझे हमेशा होता था. हम कही खड़े होते थे तो वो मुझ से सट के खडी रहती थी, जिससे उसके भरे हुए चुत्तऱ और बाकी नज़ूक अंगो का स्पर्श मुझे होता था और उससे में उत्तेजीत होता था. इस तरह से शालू दीदी के बारे में मेरा लैंगिक आकर्षण बढत ही जा रहा था.

शालू दीदी के लिए में उसका नटखट छोट भाई था. वो मुझे हमेशा छोट बच्चा ही समझती थी और पहलेसे मेरे सामने ही कपड़े वग़ैरा बदलती थी. पहले मुझे उस बारे में कभी कुछ लगता नही था और में कभी उसकी तरफ ध्यान भी नही देता था. लेकिन जब से मेरे मन में उसके प्रति काम वासना जाग उठी तब से वो मेरी बड़ी बहन ना रहके मेरी कामदेवी बन गयी थी. अब जब वो मेरे सामने कपड़े बदलती थी तब में उसे चुपके से कामूक निगाह से देखता था और उसके अधनन्गे बदन को देखने के लिए छटपटाता था. जब वो मेरे सामने कपड़े बदलती थी तब में उसके साथ कुछ ना कुछ बोलता रहता था जिसकी वजह से बोलते समय में उसकी तरफ देख सकता था और उसकी ब्रा में कसी गदराई छाती को देखता था. कभी कभी वो मुझे उसकी पीठपर अपने ड्रेस की झीप लगाने के लिए कहती थी तो कभी अपने ब्लाउस के बटन लगाने के लिए बोलती थी. उसकी जिप या बटन लगाते समय उसकी खुली पीठपर मुझे उसकी ब्रा की पत्तियां दिखती थी. कभी सलवार या पेटीकोट पहनते समय मुझे शालू दीदी की पैंटी दिखती थी तो कभी कभी पैंटी में भरे हुए उसके चुत्तऱ दिखाई देते थे. उसके ध्यान में ये कभी नही आया के उसका छोट भाई उसकी तरफ गंदी निगाह से देख रहा है.
दीदी की ब्रा और पैंटी मुझे घर में कही नज़र आई तो उन्हे देखकर में काफ़ी उत्तेजीत हो जाता था. ये वही कपड़े है जिस में मेरी बहन की गदराई छाती और प्यारी चूत छुपी होती है इस ख़याल से में दीवाना हो जाता था. कभी कभी मुझे लगता था के में ब्रा या पैंटी होता तो चौबीस घंटे मेरी बहन की छाती या चूत से चिपक के रह सकता था. जब जब मुझे मौका मिलता था तब तब में शालू दीदी की ब्रा और पैंटी चुपके से लेकर उसके साथ मूठ मारता था. में उसकी पैंटी मेरे लंडपर घिसता था और उसकी ब्रा को अपने मुँहपर रखकर उसके कप चुसता था. जब में उसकी पहनी हुई पैंटी को मूँह में भरकर चुसता था तब में काम वासना से पागल हो जाता था. उस पैंटी पर जहाँ उसकी चूत लगती थी वहाँ पर उसकी चूत का रस लगा रहता था और उसका स्वाद कुछ अलग ही था. मेरे कड़े लंडपर उसकी पैंटी घिसते घिसते में कल्पना करता था के में अपनी बहन को चोद रहा हूँ और फिर उसकी पैंटी पर में अपने वीर्य का पानी छोडकर उसे गीला करता था.


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#4
शालू दीदी के नाज़ुक अंगो को छू लेने से में वासना से पागल हो जाता था और उसे छूने का कोई भी मौका में छोडता नही था. हमारा घर छोटा था इसलिए हम सब एक साथ हाल में सोते थे और में शालू दीदी के बाजू में सोता था. आधी रात के बाद जब सब लोग गहरी नींद में होते थे तब में शालू दीदी के नज़दीक सरकता था और हर तरह की होशीयारी बरतते में उससे धीरे से लिपट जाता था और उसके बदन की गरमी को महसूस करता था. उसके बड़े बड़े छाती के उभारो को हलके से छू लेता था. उसके चुत्तऱ को जी भर के हाथ लगाता था और उनके भारीपन का अंदाज़ा लेता था. उसकी जाँघो को में छूता था तो कभी कभी उसकी चूत को कपड़े के उपर से छूता था. मेरे मन में मेरी बहन के बारे में जो काम लालसा थी उस बारे में मेरे माता, पिता को कभी कुछ मालूम नही हुआ. उन्हे क्या? खुद शालू दीदी को भी मेरे असली ख़यालात का कभी पता ना चला के में उसके बारे में क्या सोचता हूँ. मेरे असली ख़यालात के बारे में किसी को पता ना चले इसकी में हमेशा खबरदारी लेता था.

 मेरे मन में शालू दीदी के बारे में काम वासना थी और में हमेशा उसको चोदने के सपने देखता था लेकिन मुझे मालूम था के हक़ीकत में ये नासंभव है. मेरी बहन को चोदना या उसके साथ कोई नाजायज़ काम संबंध बनाना ये महज एक सपना ही है और वो हक़ीकत में कभी पूरा हो नही सकता ये मुझे अच्छी तरह से मालूम था. इसलिए उसे पता चले बिना जितना हो सके उतना में उसके नज़ूक अंगो को छूकर या चुपके से देखकर आनंद लेता था और उसे चोदने के सिर्फ़ सपने देखता था. जब शालू दीदी 26 साल की हो गयी तब उसकी शादी के लिए लडके देखना मेरे माता, पिता ने चालू किया. हमारे रिश्तेदारो में से एक 34 साल के लडके का रिश्ता उसके लिए आया.


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#5
लड़का नाशिक में रहता था. उसके माता, पिता नही थे. उसकी एक बड़ी बहन थी जिसकी शादी हुई थी और उसका ससुराल नाशिक में ही था. अलग प्लोत पर लडके का खुद का मकान था. उसका खुद का राशन का दुकान था जिसे वो मेहनत कर के चला रहा था. शालू दीदी ने बीना किसी ऐतराज से यह रिश्ता मंजूर कर लिया. लेकिन मुझे इस लडके का रिश्ता पसंद नही था. शालू दीदी के लिए ये लडका ठीक नही है ऐसा मुझे लगता था और उसकी दो वजह थी. आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | एक वजह ये थी की लड़के की उम्र 34 साल का था यानी शालू दीदी से काफ़ी बड़ा था. शादी नही हुई इसलिए उसे लड़का कहना चाहिए नही तो वो अच्छा ख़ासा अधेड उम्र जैसा आदमी था.

इसलिए वो मेरी जवान बहन को कितना सुखी रख सकता है इस बारे में मुझे आशंका थी. और उनकी उम्र के ज़्यादा फरक की वजह से उनके ख़यालात मिलेंगे के नही इस बारे में भी मुझे आशंका थी. सिर्फ़ उसका खुद का मकान और दुकान है इसलिए शायद शालू दीदी ने उसके लिए हां कर दी थी. दूसरी वजह ये थी के उसके साथ शादी हो गयी तो मेरी बहन मुझसे दूर जाने वाली थी. उसने अगर कल्याण का लडक पसंद किया होता तो शादी के बाद वो कल्याण में ही रहती और मुझे उससे हमेशा मिलना आसान होता. लेकिन मेरी बहन की शादी के बारे में में कुछ कर नही सकता था, ना तो मेरे हाथ में कुछ भी था.इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है |  देखते ही देखते उसकी शादी उस लडके से हो गयी और वो अपने ससुराल, नाशिक में चली गयी. उसकी शादी से में खुश नही था लेकिन मुझे मालूम था के एक ना एक दिन ये होने ही वाला था. उसकी शादी होकर वो अपने ससुराल जाने ही वाली थी, चाहे उसका ससुराल नाशिक में हो या कल्याण में. यानी मेरी बहन मुझसे बिछडने वाली तो थी ही और मुझे उसके बिना जीना तो था ही.


शालू दीदी के जाने के बाद में उसके जवान बदन को याद कर के और उसकी कुछ पुरानी ब्रा और पैंटी हमारे अलमारी में पडी थी, उसका इस्तेमाल कर के में मूठ मारता था और मेरी काम वासना शांत करता था. दीदी हमेशा त्योहार के लिए या किसी ख़ास दिन की वजह से मायके यानी हमारे घर आती थी और चार आठ दिन रहती थी. जब वो आती थी तब में ज़्यादा तर उसके आजू बाजू में रहता था. में उसके साथ रहता था, उसके साथ बातें करता रहता था. गये दिनो में क्या क्या, कैसे कैसे हुआ ये में उसे बताता रहता और उसके साथ हँसी मज़ाक करता था. इस तरह से में उसके साथ रहके उसको काम वासना से निहाराता रहता था और उसके गदराए बदन का स्पर्श सुख लेता रहता था
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#6
शादी के बाद शालू दीदी कुछ ज़्यादा ही सुंदर, सुडौल और मादक दिखने लगी थी. उसकी ब्रा, पैंटी चुपके से लेकर में अब भी मूठ मारता था. उसकी ब्रा और पैंटी चेक करने के बाद मुझे पता चला के उनका नंबर बदल गया था. इसका मतलब ये था के शादी के बाद वो बदन से और भी भर गयी थी. अगर बहुत दिनो से शालू दीदी मायके नही आती तो में उससे मिलने नाशिक जाता था. में अगर उसके घर जाता तो दो चार दिन या तो एक हफ़्ता वहाँ रहता था. उसके पति दिनभर दुकानपर रहते थे. खाना खाने के लिए वो दोपहर को एक घंटे के लिए घर आते थे और फिर बाद में सीधा रात को दस बजे घर आते थे. दिनभर शालू दीदी घर में अकेले ही रहती थी.


जब में उसके घर जाता था तो सदा उसके आसपास रहता था. भले ही में उसके साथ बातें करता रहता था या उसके किसी काम में मदद करता रहता था लेकिन असल में मैं उसके गदराए अंगो के उठान और गहराइयों का, उसकी साड़ी और ब्लाउस के उपर से जायज़ा लेता था. और इधर से उधर आते जाते उसके बदन का अनजाने में हो रहे स्पर्श का मज़ा लेता था. उसके कभी ध्यान में ही नही आई मेरी काम वासना भरी नज़र या वासना भरे स्पर्श! उसने सपने में भी कभी कल्पना की नही होगी के उसके सगे छोट भाई के मन में उसके लिए काम लालसा है.</p><p>शादी के बाद एक साल में शालू दीदी गर्भवती हो गयी. सातवे महीने में डिलीवरी के लिए वो हमारे घर आई और नववे महीने में उसे लड़का हुआ. बाद में दो महीने के बाद वो बच्चे के साथ ससुराल चली गयी. बाद में तीन चार साल ऐसे ही गुजर गये और उस दौरान वो वापस गर्भवती नही रही. वो और उसका पति शायद अपने एक ही लडके से खुश थे इसलिए उन्होने दूसरे बच्चे के बारे में सोचा नही.</p><p>इस दौरान मैंने मेरी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई ख़तम की और में एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करने लगा. कॉलेज के दिनो में कई लड़कियो से मेरी दोस्ती थी और दो तीन लड़कियो के साथ अलग अलग समय पर मेरे प्रेम सम्बन्ध भी थे. एक दो लड़कियो को तो मैंने चोदा भी था और उनके साथ सेक्स का मज़ा भी लूट लिया था. लेकिन फिर भी में अपनी बहन की याद में काम व्याकूल होता था और मूठ मारता था. शालू दीदी के बारे में काम भावना और काम लालसा मेरे मन में हमेशा से थी. मेरे मन के एक कोने के अंदर एक आशा हमेशा से रहती थी के एक दिन कुछ चमत्कार होगा और मुझे मेरी बहन को चोदने को मिलेगा.

   में जैसे जैसे बड़ा और समझदार होते जा रहा था वैसे वैसे शालू दीदी मेरे से और भी दिल खोल के बातें करने लगी थी और मुझसे उसका व्यवहार और भी ज़्यादा दोस्ताना सा हो गया था. हम दोस्तो की तरह किसी भी विषयपर कुछ भी बातें करते थे या गपशप लगते थे. आम तौर पे भाई-बहन लैंगिक भावना या कामजीवन जैसे विषयपर बातें नही करते है लेकिन हम दोनो धीरे धीरे उस विषयपर भी बातें करने लगे. हालाँकी मैंने शालू दीदी को कभी नही बताया के मेरे मन में उसके लिए काम वासना है. यह तक के मेरे कॉलेज लाइफ के प्रेमसंबंध या सेक्स लाइफ के बारे में भी मैंने उसे कुछ नही बताया. उसकी यही कल्पना थी के सेक्स के बारे में मुझे सिर्फ़ कही सुनी बातें और किताबी बातें मालूम है.</p>
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#7
समय गुजर रहा था और में २२ साल का हो गया था. शालू दीदी भी २८ साल की हो गयी थी. शालू दीदी की उम्र बढ़ रही थी लेकिन उसके गदराए बदन में कुछ बदलाव नही आया था. मुझे तो समय के साथ वो ज़्यादा ही हसीन और जवान होती नज़र आ रही थी. कभी कभी मुझे उसके पति से ईर्षा होती थी के वो कितना नसीब वाला है जो उसे शालू दीदी जैसी हसीन और जवान बीवी मिली है. लेकिन असलीयत तो कुछ और ही थी.<br /> मुझे शालू दीदी के कहने से मालूम पड़ा के वो अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नही है. उसके वयस्क पति के साथ उसका कामजीवन भी आनंददायक नही है. शादी के बाद शुरू शुरू में उसके पति ने उसे बहुत प्यार दिया. उसी दौरान वो गर्भवती रही और उन्हे लड़का हुआ. लेकिन बाद में वो अपने बच्चे में व्यस्त होती गयी और उसके पति अपने धांडे में उलझते गये. इस वजह से उनके कामजीवन में एक दरार सी पड गयी थी जिसे मिटाने की कोशिश उसके पति नही कर रहे थे. एक दूसरे से समझौता, यही उनका जीवन बन रहा था और धीरे धीरे शालू दीदी को ऐसे जीवन की आदत होती जा रही थी. दिखने में तो उनका वैवाहिक जीवन आदर्श लग रहा था लेकिन अंदर की बात ये थी के शालू दीदी उससे खुश नही थी.</p><p>भले ही मेरे मन में शालू दीदी के बारे में काम भावना थी लेकिन आखीर में उसका सगा भाई था इसलिए मुझे उसकी हालत से दुख होता था और उसकी मानसिकता पर मुझे तरस आता था. आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इसलिए में उसे हमेशा तसल्ली देता था और उसकी आशाएँ बढ़ाते रहता था. उसे अलग अलग जोक्स, चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था. में हमेशा उसे हंसाने की कोशिश करता रहता था और उसका मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशिश में रहता था.</p><p>जब वो हमारे घर आती थी या फिर में उसके घर जाता था, तब में उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था. कभी शापींग के लिए तो कभी सिनेमा देखाने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूमने जाया करते थे. इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है | कई बार में उसे अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाने लेके जाया करता था. शालू दीदी के पसंदीदा और उसे खुश करने वाली हर वो बात में करता था, जो असल में उसके पति को करनी चाहिए थी
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#8
एक दिन में ऑफीस से घर आया तो मा ने बताया के शालू दीदी का फ़ोन आया था और उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है. हमेशा की तरह उसके पति को अपनी दुकान से फुरसत नही थी उसे हमारे घर ला के छोडने की इसलिए शालू दीदी पुछ रही थी कि मुझे समय है क्या, जा के उसे लाने के लिए. शालू दीदी को लाने के लिए उसके घर जाने की कल्पना से में उत्तेजीत हुआ. चार महीने पहीले में उसके घर गया था तब क्या क्या हुआ ये मुझे याद आया.</p><p>दिनभर शालू दीदी के पति अपनी दुकानपर रहते थे और दोपहर के समय उसका लड़का नर्सरी स्कूल में जाया करता था. इसलिए ज़्यादा तर समय दीदी और में घर में अकेले रहते थे और में उसे बिना जीझक निहाराते रहता था. काम करते समय दीदी अपनी साड़ी और छाती के पल्लू के बारे में थोड़ी बेफिकर रहती थी जिससे मुझे उसके छाती के उभारो की गहराईयो अच्छी तरह से देखने को मिलती थी. फर्शपर पोछा मारते समय या तो कपड़े धोते समय वो अपनी साड़ी उपर कर के बैठती थी तब मुझे उसकी सुडौल टाँगे और जाँघ देखने को मिलती थी..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#9
<br /> दोपहर के खाने के बाद उसके पति निकल जाते थे और में हॉल में बैठकर टीवी देखते रहता था. बाद में अपना काम ख़तम कर के शालू दीदी बाहर आती थी और मेरे बाजू में दीवानपर बैठती थी. हम दोनो टीवी देखते देखते बातें करते रहते थे. दोपहर को दीदी हमेशा सोती थी इसलिए थोड़े समय बाद वो वही पे दीवानपर सो जाती थी.
</p><p>जब वो गहरी नींद में सो जाती थी तब में बीना जीझक उसे बड़े गौर से देखता और निहारता रहता था. अगर संभव होगा तो में उसके छाती के उप्पर का पल्लू सावधानी से थोड़ा सरकाता था और उसके उभारों की सांसो के तालपर हो रही हलचल को देखते रहता था. और उसका सीधा, चिकना पेट, गोला, गहरी नाभी और लचकदार कमर को वासना भरी आँखों से देखते रहता था. कभी कभी तो में उसकी साड़ी उप्पर करने की कोशिश करता था लेकिन उसके लिए मुझे काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी और में सिर्फ़ घुटने तक उसकी साड़ी उप्पर कर सकता था.

</p><p>उनके घर में बंद रूम जैसा बाथरूम नही था बल्की किचन के एक कोने में नहाने की जगह थी. दो बाजू में कोने की दीवार, सामने से वो जगह खुली थी और एक बाजू में चार फूट उँची एक छोटी दीवार थी. शालू दीदी सुबह जल्दी नहाती नही थी. सुबह के सभी काम निपटने के बाद और उसके पति दुकान में जाने के बाद वो आराम से आठ नौ के दरम्यान नहाने जाती थी. उसका लड़का सोता रहता था और दस बजे से पहले उठता नही था. में भी सोने का नाटक करता रहता था. नहाने के लिए बैठने से पहले शालू दीदी किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी. में जिस रूम में सोता था वो किचन को लगा के था. में शालू दीदी की हलचल का जायज़ा लेते रहता था और जैसे ही नहाने के लिए वो किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी वैसे ही में उठकर चुपके से बाहर आता था

.</p><p>किचन का दरवाजा पुराने स्टाइल का था यानी उस में वर्टीकल गॅप थी. वैसे तो वो गॅप बंद थी लेकिन मैंने गौर से चेक करके मालूम कर लिया था के एक दो जगह उस गॅप में दरार थी जिसमें से अंदर का कुछ भाग दिख सकता था. नहाने की जगह दरवाजे के बिलकूल सामने चार पाँच फूट पर थी. दबे पाँव से में किचन के दरवाजे में जाता था और उस दरार को आँख लगाता था. मुझे दिखाई देता था के अंदर शालू दीदी साड़ी निकाल रही थी. बाद में ब्लाउस और पेटीकोट निकालकर वो ब्रा और पैंटी पहने नहाने की जगह पर जाती थी. फिर गरम पानी में उसे चाहिए उतना ठंडा पानी मिलाके वो नहाने का पानी तैयार करती थी
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#10
फिर ब्रा, पैंटी निकालकर वो नहाने बैठती थी. नहाने के बाद वो खडी रहती थी और टावेल ले के अपना गीला बदन पौन्छती थी. फिर दूसरी ब्रा, पैंटी पहन के वो बाहर आती थी. और फिर पेटीकोट, ब्लऊज पहने के वो साड़ी पहन लेती थी. पूरा समय में किचन के दरवाजे के दरार से शालू दीदी की हरकते चुपके से देखता रहता था. उस दरार से इतना सब कुछ साफ साफ दिखाई नही देता था लेकिन जो कुछ दिखता था वो मुझे उत्तेजीत करने के लिए और मेरी काम वासना भडकाने के लिए काफ़ी होता था.</p><p>वो सब बातें मुझे याद आई और शालू दीदी को लाने के लिए में एक पैर पर जाने के लिए तैयार हो गया. मुझे टाइम नही होता तो भी में टाइम निकालता था. दूसरे दिन ऑफीस जा के मैंने इमर्जेंसी लीव डाल दी और तीसरे दिन सुबह में नाशिक जानेवाली बस में बैठ गया. दोपहर तक में शालू दीदी के घर पहुँच गया. मैंने जान बुझकर शालू दीदी को खबर नही दी थी के में उसे लेने आ रहा हूँ क्योंकी मुझे उसे सरप्राइज करना था. उसने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही अश्चर्य से वो चींख पडी और खुशी के मारे उसने मुझे बाँहों में भर लिया. इसका पूरा फ़ायदा ले के मैंने भी उसे ज़ोर से बाँहों में भर लिया जिससे उसकी छाती के भरे हुए उभार मेरी छाती पर दब गये. बाद में उसने मुझे घर के अंदर लिया और दीवानपर बिठा दिया.<br /> दोपहर के खाने के बाद उसके पति निकल जाते थे और में हॉल में बैठकर टीवी देखते रहता था. बाद में अपना काम ख़तम कर के शालू दीदी बाहर आती थी और मेरे बाजू में दीवानपर बैठती थी. हम दोनो टीवी देखते देखते बातें करते रहते थे. दोपहर को दीदी हमेशा सोती थी इसलिए थोड़े समय बाद वो वही पे दीवानपर सो जाती थी.</p><p>जब वो गहरी नींद में सो जाती थी तब में बीना जीझक उसे बड़े गौर से देखता और निहारता रहता था. अगर संभव होगा तो में उसके छाती के उप्पर का पल्लू सावधानी से थोड़ा सरकाता था और उसके उभारों की सांसो के तालपर हो रही हलचल को देखते रहता था. और उसका सीधा, चिकना पेट, गोला, गहरी नाभी और लचकदार कमर को वासना भरी आँखों से देखते रहता था. कभी कभी तो में उसकी साड़ी उप्पर करने की कोशिश करता था लेकिन उसके लिए मुझे काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी और में सिर्फ़ घुटने तक उसकी साड़ी उप्पर कर सकता था
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#11
उनके घर में बंद रूम जैसा बाथरूम नही था बल्की किचन के एक कोने में नहाने की जगह थी. दो बाजू में कोने की दीवार, सामने से वो जगह खुली थी और एक बाजू में चार फूट उँची एक छोटी दीवार थी. इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है | शालू दीदी सुबह जल्दी नहाती नही थी. सुबह के सभी काम निपटने के बाद और उसके पति दुकान में जाने के बाद वो आराम से आठ नौ के दरम्यान नहाने जाती थी. उसका लड़का सोता रहता था और दस बजे से पहले उठता नही था. में भी सोने का नाटक करता रहता था. नहाने के लिए बैठने से पहले शालू दीदी किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी. में जिस रूम में सोता था वो किचन को लगा के था. में शालू दीदी की हलचल का जायज़ा लेते रहता था और जैसे ही नहाने के लिए वो किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी वैसे ही में उठकर चुपके से बाहर आता था.</p><p>किचन का दरवाजा पुराने स्टाइल का था यानी उस में वर्टीकल गॅप थी. वैसे तो वो गॅप बंद थी लेकिन मैंने गौर से चेक करके मालूम कर लिया था के एक दो जगह उस गॅप में दरार थी जिसमें से अंदर का कुछ भाग दिख सकता था. नहाने की जगह दरवाजे के बिलकूल सामने चार पाँच फूट पर थी. दबे पाँव से में किचन के दरवाजे में जाता था और उस दरार को आँख लगाता था. मुझे दिखाई देता था के अंदर शालू दीदी साड़ी निकाल रही थी. बाद में ब्लाउस और पेटीकोट निकालकर वो ब्रा और पैंटी पहने नहाने की जगह पर जाती थी. फिर गरम पानी में उसे चाहिए उतना ठंडा पानी मिलाके वो नहाने का पानी तैयार करती थी.</p><p>फिर ब्रा, पैंटी निकालकर वो नहाने बैठती थी. नहाने के बाद वो खडी रहती थी और टावेल ले के अपना गीला बदन पौन्छती थी. फिर दूसरी ब्रा, पैंटी पहन के वो बाहर आती थी. और फिर पेटीकोट, ब्लऊज पहने के वो साड़ी पहन लेती थी. पूरा समय में किचन के दरवाजे के दरार से शालू दीदी की हरकते चुपके से देखता रहता था. उस दरार से इतना सब कुछ साफ साफ दिखाई नही देता था लेकिन जो कुछ दिखता था वो मुझे उत्तेजीत करने के लिए और मेरी काम वासना भडकाने के लिए काफ़ी होता था.
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#12
वो सब बातें मुझे याद आई और शालू दीदी को लाने के लिए में एक पैर पर जाने के लिए तैयार हो गया. मुझे टाइम नही होता तो भी में टाइम निकालता था. दूसरे दिन ऑफीस जा के मैंने इमर्जेंसी लीव डाल दी और तीसरे दिन सुबह में नाशिक जानेवाली बस में बैठ गया. दोपहर तक में शालू दीदी के घर पहुँच गया. मैंने जान बुझकर शालू दीदी को खबर नही दी थी के में उसे लेने आ रहा हूँ क्योंकी मुझे उसे सरप्राइज करना था. उसने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही अश्चर्य से वो चींख पडी और खुशी के मारे उसने मुझे बाँहों में भर लिया. इसका पूरा फ़ायदा ले के मैंने भी उसे ज़ोर से बाँहों में भर लिया जिससे उसकी छाती के भरे हुए उभार मेरी छाती पर दब गये. बाद में उसने मुझे घर के अंदर लिया और दीवानपर बिठा दिया.

</p><p>रात को शालू दीदी के पति आए और मुझे देखकर उन्हे भी आनंद हुआ. हमने यहाँ वहाँ की बातें की और उन्होने मेरे बारे में और मेरे माता, पिता के बारे में पुछा. उन्होने मुझे दो दिन रहने को कहा और फिर बाद में शालू दीदी को आठ दिन के लिए हमारे घर ले जाने के लिए कहा. मैंने उन्हे ठीक है कहा.</p><p>दूसरे दिन दोपहर को शालू दीदी और में उसकी ननद के घर जाने के लिए तैयार हो रहे थे. शालू दीदी ने हमेशा की तरह बिना संकोच मेरे सामने कपड़े बदल लिए और मैंने भी मेरी आदत की तरह उसके अध नंगे बदन का चुपके से दर्शन लिया. बहुत दिनो के बाद मैंने मेरी बहन को ब्रा में देखा. उफ़!! कितनी बड़ी बड़ी लग रही थी उसकी चुचीया! | देखते ही मेरा लंड उठने लगा और मेरे मन में जंगली ख़याल आने लगे कि तरार से उसकी ब्रा फाड़ दूं और उसकी भरी हुई चुचीया कस के दबा दूं. लेकिन मेरी गान्ड में उतना दम नही था
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#13
बाद में तैयार होकर हम बस से उसकी ननद के घर गये और मेरे भांजे यानी मेरी बहन के लडके को हम वहाँ मिले. अपने मामा को देखकर वो खुश हो गया. हम मामा-भांजे काफ़ी देर तक खेलते रहे. मैंने जब उसे पुछा के अपने नाना, नानी को मिलने वो हमारे घर आएगा क्या तो उसने नही कहा. उसके जवाब से हम सब हंस पड़े. दीदी ने उसे बताया के वो आठ दिन के लिए कल्याण जा रही है और उसे अपनी आंटी के साथ ही रहना है तो वो हंस के तैयार हो गया. बाद में मैं और दीदी बस से उसके पति की दुकान पर गये. एकाद घंटा हमलोग वहाँ पर रुके और फिर वापस घर आए. बस में चढते, उतरते और भीड़ में खड़े रहते मैंने अपनी बहन के मांसल बदन का भरपूर स्पर्शसूख् लिया.
</p><p>घर आने के बाद वापस शालू दीदी का कपड़े बदलने का प्रोग्राम हो गया और वफ़ादार दर्शक की तरह मैंने वापस उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार लिया. जब से में अपनी बहन के घर आया था तब से में कामूक नजरसे उसका वस्त्रहरण करके उसे नंगा कर रहा था और उसे चोदने के सपने देख रहा था. मुझे मालूम था के ये संभव नही है लेकिन यही मेरा सपना था, मेरा टाइमपास था, मेरा मूठ मारने का साधन था.

</p><p>दूसरे दिन दोपहर को में हॉल में बैठकर टीवी देख रहा था. शालू दीदी मेरे बाजू में बैठकर कुछ कपडो को सी रही थी. हमलोग टीवी देख रहे थे और बातें भी कर रहे थे. में रिमोट कंट्रोल से एक के बाद एक टीवी के चनेल बदल रहा था क्योंकी दोपहर के समय कोई भी प्रोग्राम मुझे इंटारेस्टेंग नही लगा रहा था. आखीर में एक मराठी चनेलपर रुक गया जिसपर आड़ चल रही थी. ऱिमोट बाजू में रखकर मैंने सोचा के आड़ ख़त्म होने के बाद जो भी प्रोग्राम उस चनेलपर चल रहा होगा वो में देखूँगा. आड़ ख़त्म हो गयी और प्रोग्राम चालू हो गया
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#14
उस प्रोग्राम में वो कल्याण के नज़दीकी हिल स्टेशन के बारे में जानकारी दे रहे थे. पहले उन्होने लोनावाला के बारे में बताया. फिर वो खपोली के बारे में बताने लगे. खपोली के बारे में बताते समय वो खपोली के हरेभरे पहाड़, पानी के झरने और प्रकृती से भरपूर अलग अलग लुभावनी जगह के बारे में वीडियो क्लिप्स दिखा रहे थे. स्कूल के बच्चो की ट्रिप, ऑफीस के ग्रूपस, प्रेमी युगल और नयी शादीशुदा जोड़ी ऐसे सभी लोग खपोली जा के कैसे मज़ा करते है यह वो डक्युमेन्टरी में दिखा रहे थे. कितनी सुंदर जगह है ना खपोली!
शालू दीदी ने टीवी की तरफ देखकर कहा.

हाँ! बहुत ही सुंदर है! में गया हूँ वहाँ एक दो बार मैंने जवाब दिया.सच? किसके साथ, राहुल शालू दीदी ने लाड से मुझे पुछा.</p><p>एक बार मेरे कॉलेज के ग्रूप के साथ और दूसरी बार हमारी सोसयटी के लडको के साथ

तुम्हे तो मालूम है, राहुल. शालू दीदी ने दुखी स्वर में कहा,अपनी नाशिक-कल्याण बस खपोली से होकर ही जाती है और जब जब में बस से वहाँ से गुज़रती हूँ तब तब मेरे मन में इच्छा पैदा होती है की कब में यह मनमोहक जगह देख पाऊँगी. क्या कह रही हो, दीदी? मैंने आश्चर्या से उसे पुछा,तुमने अभी तक खपोली नही देखा है?
नही रे, राहुल.. मेरा इतना नसीब कहाँ कमाल है, दीदी! तुम अभी तक वहाँ गयी नही हो? नाशिक से तो खपोली बहुत ही नज़दीक है और जीजू तुझे एक बार भी वहाँ नही लेके गये? में नहीं मानता, दीदी तुम मानो या ना मानो! लेकिन में सच कह रही हूँ. तुम्हारे जीजू के पास टाइम भी है क्या मेरे लिए शालू दीदी ने नाराज़गी से कहा. ओहा! कम ऑन, दीदी! तुम उन्हे पुछो तो सही. हो सकता है वो काम से फूरसत निकालकर तुझे ले जाए खपोलीमैंने बहुत बार उन्हे पुछा है, राहुल ,शालू दीदी ने शिकायत भरे स्वर में कहा,

लेकिन हर समय वो दुकान की वजह बताकर नही कहते है. इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है | तुम्हे बताऊ, राहुल? तुम्हारे जीजू ना. ऱोमान्टीक ही नही है. अब तुम्हे क्या बताऊ? शादी के बाद हम दोनो हनीमून के लिए भी कही नही गये थे. उन्हे रोमान्टीक जगहपर जाना पसंद नही है. उनका कहना है के ऐसी जगह पर जाना याने समय और पैसा दोनो बरबाद करना है</p><p>मुझे तो पहले से शक था के मेरे जीजू वयस्क थे इसलिए उन्हे रोमांस में इंटरेस्ट नही होगा. और उनसे एकदम विपरीत, शालू दीदी बहुत रोमाटीक थी. शालू दीदी के कहने पर मुझे बहुत दुख हुआ और तरस खा कर मैंने उससे कहा,
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#15
>दीदी! अगर तुन्हे कोई ऐतराज ना हो तो में तुम्हे ले जा सकता हूँ खपोली</p><p>सच, राहुल</p><p>शालू दीदी ने फुर्ती से कहा और अगले ही पल वो मायूस होकर बोली</p><p>काश! तुम्हारे जीजू ने ऐसा कहा होता? क्योंकी ऐसी रोमाटीक जगह पर अपने जीवनसाथी के साथ जाने में ही मज़ा होता है. भाई और बहन के साथ जाने में नही.</p><p>कौन कहता है ऐसा??</p><p>मैंने उच्छलकर कहा सुनो, दीदी! जब तक हम एक दूसरे के साथ कम्फर्टेबल है और वैसी रोमाटीक जगह का आनंद ले रहे है तो हम भाई-बहन है इससे क्या फ़रक पड़ता है? और वैसे भी हम दोनो में भाई-बहन के नाते से ज़्यादा दोस्ती का नाता है. हम तो बिलकूल दोस्तो जैसे रहते है. है के नही, दीदी?</p><p>हां रे मेरे भाई. मेरे दोस्त!!</p><p>शालू दीदी ने खुश होकर कहा</p><p>लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है के मेरे पति के साथ ऐसी जगह जाना ही उचीत है.</p><p>तो फिर मुझे नही लगता के तुम कभी खपोली देख सकोगी, दीदी. क्योंकी जीजू को तो कभी फूरसत ही नही मिलेगी दुकान से</p><p>हां, राहुल! ये भी बात सही है तुम्हारी. ठीक है!.. सोचेंगे आगे कभी खपोली जाने के बारे में</p><p>आगे क्या, दीदी! हम अभी जा सकते है खपोली</p><p>अभी? क्या पागल की तरह बात कर रहे हो</p><p>शालू दीदी ने हैरानी से कहा.</p><p>अभी यानी. परसो हम कल्याण जाते समय, दीदी!</p><p>मैंने हंस के जवाब दिया.</p><p>कल्याण जाते समय</p><p>शालू दीदी सोच में पड गयी,</p><p>ये कैसे संभव है, राहुल?</p><p>क्यों नही, दीदी?<br /> में उत्साह से उसे बताने लगा,</p><p>सोचो! हम परसो सुबह कल्याण जा रहे है अपने घर, बराबर? आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हम यहाँ से थोड़ा जल्दी निकलेंगे और खपोली पहुँचते ही वहाँ उतर जाएँगे. फिर वो दिन भर हम खपोली घूमेंगे और फिर दूसरे दिन सुबह की बस से हम हमारे घर जाएँगे.</p><p>वो तो ठीक है. लेकिन रात को हम खपोली में कहाँ रहेंगे? शालू दीदी ने आगे पुछा.</p><p>कहाँ यानी? होटल में, दीदी!</p><p>मैंने झट से जवाब दिया.</p><p>होटल में??</p><p>शालू दीदी सोच में पड गयी,</p><p>लेकिन में क्या कहती हूँ. हम उसी दिन रात को कल्याण नही जा सकते क्या?</p><p>जा सकते है ना, दीदी! लेकिन उससे कुछ नही होगा सिर्फ़ हमारी भागदौड ज़्यादा होगी. क्योंकी हम पूरा खपोली घूमेंगे जिससे रात तो होगी ही. और फिर तुम तो पहली बार खपोली देखोगी और घुमोगी तो उस में समय तो जाने ही वाला है. और घूम के तुम ज़रूर थक जाओगी और तुम्हे फिर आराम की ज़रूरत पडेगी. इसलिए रात को होटल में रुकना ही ठीक रहेगा<
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#16
ओहा, कम आन, दीदी! हम अजनबी तो नही है. और हम भाई-बहन है तो क्या हुआ, हम दोस्त भी तो है. तुम्हे ज़रा भी अजीब नही लगेगा वहाँ. तुम सिर्फ़ देखो, तुम्हे बहुत मज़ा आएगा वहाँ.हां! हां! मुझे मालूम है वो. मेरे प्यारे भाई!!ऐसा कहके उसने मज़ाक में मेरा गाल पकड़कर खींच लिया और मुझे ऐसे उसका गाल खींचना अच्छा नही लगता.

ईई. दीदी!! तुम्हे मालूम है ना मुझे ऐसे करना पसंद नही. में क्या छोटा हूँ अभी? अब में काफ़ी बड़ा हो गया हूँ.

ओ.हो, हो, हो!! तुम बड़े हो गये हो? तुम सिर्फ़ बदन से बढ़ गये हो, राहुल! लेकिन अपनी इस दीदी के लिए तुम छोटे भाई ही रहोगे. ऐसा कहकर उसने मुझे बाँहों में ले लिया,
नन्हा सा. छोटा. भाई! एकदम मेरे बच्चे जैसा!ओहा, दीदी! तुम मुझे बहुत बहुत अच्छी लगती हो. तुम हमेशा खुश रहो ऐसा मुझे लगता है. और उसके लिए में कुछ भी करने को तैयार हूँ ऐसा कहकर मैंने भी उसे ज़ोर से आलिंगन दिया.
मुझे मालूम है वो, राहुल! मुझे मालूम है! मुझे भी तुम बहुत अच्छे लगते हो. तुम मेरे भाई हो इस बात का मुझे हमेशा फक्र होता है.उस समय अगर मुझे किस चीज़ का अहसास हो रहा था तो वो चीज़ थी मेरे सीने पर दबी हुई, मेरी बड़ी बहन की भरी हुई छाती!!जैसा हमने तय किया था वैसे तीसरे दिन सुबह हम कल्याण जाने के लिए तैयार हो गये. हमे ठीक तरह से जाने के लिए कह के और यात्रा की शुभकामनाएँ दे के शालू दीदी के पति हमेशा की तरह अपनी दुकान चले गये. सब काम निपटने के बाद शालू दीदी ने मुझे कहा बाहर जाकर अगले नुक्कड से रिक्शा ले के आओ तब तक वो साड़ी वग़ैरा पहन के तैयार होती है. में गया और रिक्शा लेकर आया. रिक्शा वाले को बाहर रुका के में अंदर आया और शालू दीदी को जल्दी चलने के लिए पुकारने लगा. वो तैयार होकर बाहर आई और उसे देखकर में हैरान रह गया.
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#17
(07-03-2019, 10:11 AM)neerathemall Wrote: भाई बहन की आपस में चुदाई

[Image: 0_992.jpg]https://images.azpornpics.com/galleries/.../0_992.jpg
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#18
[Image: 1_224.jpg]
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#19
[Image: 2_297.jpg]
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#20
[Image: 3_482.jpg]
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