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सुनील की रंडी रुकसाना ......
#1
  • रुकसाना की भड़कती  जवानी[/url]
(ये कहनी मे मैने कुछ अपने हिसाब से बदली हु पर कहानी सेम है)
[size=undefined]लेखक: रुकसाना 
रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। रुखसाना के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो रुखसाना के लिये ये अच्छा तजुर्बा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है... और किसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसलिये रुखसाना की शादी फ़ारूक के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।
शादी कहिये या समझौता... पर सच तो यही था कि शादी के बाद रुखसाना को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला। बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए देख लिया।
जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू किया था कि फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो रुखसाना को तलाक़ दे देगा... और उसकी बुरी हालत कर देगा। रुखसाना ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी। जितने दिन अज़रा उनके यहाँ रुकती... फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने लगते। ये सब देख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ अज़रा के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।
रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की... लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई। फिर रुखसाना ने सानिया... जो कि फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सानिया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। रुखसाना कभी सोचती थी कि सानिया ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है... उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके... नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।
फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में सुनील आया।
सुनील की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजूएशन कर लिया था। उसके घर पर सिर्फ़ सुनील और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही पिता की मौत के बाद माँ ने सुनील को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया। उसके पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी मिल गये थी। सिर्फ़ दो जने थे... इसलिये पैसो की कभी तंगी महसूस नहीं हुई। सुनील की पढ़ायी लिखायी भी एक साधारण से स्कूल और फिर सरकारी कॉलेज से हुई थी... इसलिये सुनील की माँ को उसकी पढ़ायी लिखायी का ज्यादा खर्च नहीं उठाना पढ़ा। सुनील पढ़ायी लिखायी में बेहद होशियार भी था। ग्रैजूएशन करते ही सुनील ने रेलवे में नौकरी के लिये फ़ॉर्म भर दिये थे। उसके बाद परिक्षायें हुई और सुनील का चयन हो गया और जल्दी ही सुनील को पोस्टिंग भी मिल गयी। सुनील बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंकि सुनील की पोस्टिंग बिहार में हुई थी। सुनील पंजाब का रहने वाला था। इसलिये वहाँ नहीं जाना चाहता था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के... कैसी उनकी भाषा होगी... बस यही सब ख्याल सुनील के दिमाग में थे।
सुनील की माँ भी उदास थी पर सुनील के लिये सुकून की बात ये थी कि दस दिन बाद ही सुनील की माँ का रिटायरमेंट होने वाला था। इसलिये वो अब सुकून के साथ बिना किसी टेंशन के सुनील के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। जिस दिन माँ को नौकरी से रिटायरमेंट मिला... उसके अगले ही दिन सुनील बिहार के लिये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के स्टेशन पर उसे क्लर्क नियुक्त किया गया था। जब सुनील वहाँ पहुँचा और स्टेशन मास्टर को रिपोर्ट किया तो उन्होंने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट सुनील को दे दिया।
जब सुनील फ़्लैट के अंदर गया तो अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया। फ़र्श जगह -जगह से टूटा हुआ था... दीवारों पर सीलन के निशान थे... बिजली की फ़िटिंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब सुनील ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की तो उसने सुनील से कहा कि उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है... एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम अज़मल था।
अज़मल: "यार सुनील कुछ दिन गुजारा कर लो... फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ!"
सुनील: "ठीक है सर!"
उसके बाद अज़मल ने सुनील को उसका काम और जिम्मेदारियाँ समझायीं! सुनील की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही थी। धीरे-धीरे सुनील की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कर्मचारियों से भी होने लगी। जब कभी सुनील फ़्री होता तो ऑफ़िस से बाहर निकल कर प्लेटफ़ोर्म पर घूमने लगता... सब कुछ बहुत अच्छा था। सिर्फ़ सुनील के फ़्लैट को लेकर अज़मल भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। सुनील उससे बार-बार शिकायत नहीं करना चाहता था। एक दिन सुनील दोपहर को जब फ़्री था तो वो ऑफ़िस से निकल कर बाहर आया तो देखा अज़मल भी प्लैटफ़ोर्म पर कुर्सी पर बैठे हुए थे। सुनील को देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया।
अज़मल: "सॉरी सुनील यार... तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा हूँ!"
सुनील: "कोई बात नहीं सर... अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है... ये मुझे भी पता है!"
अज़मल: "और बताओ मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ... अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना!"
सुनील: "सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता... आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो किराये पर ही रूम दिलवा दें!"
अज़मल (थोड़ी देर सोचने के बाद): "अच्छा देखता हूँ!"
तभी अज़मल की नज़र प्लैटफ़ोर्म पे थोड़ी सी दूर फ़ारूक पर पड़ी। फ़ारूक रेल यातायात सेवा महकमे में ऑफिसर था। उसका ऑफिस प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग में था। उसे देख कर अज़मल ने फ़ारूक को आवाज़ लगायी।
अज़मल: "अरे फ़ारूक यार ज़रा सुनो तो!"
फ़ारूक: "हुक्म कीजिये अज़मल साहब!" फ़ारूक उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। फ़ारूक और अज़मल दुआ सलाम के बाद बात करने लगे।
अज़मल: "फ़ारूक यार! ये सुनील है... अभी नया जॉइन हुआ है इसके लिये कोई किराये पर रूम ढूँढना है... तुम तो यहाँ करीब ही रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!"
फ़ारूक: "जरूर... कमरा मिलने में तो कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये...! कितना बजट है सुनील तुम्हारा?"
सुनील : "अगर दो-तीन हज़ार किराया भी होगा तो भी चलेगा!"
अज़मल: "और हाँ... रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनासिब रहेगा ताकि इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना हो!"
फ़ारूक (थोड़ी देर सोचने के बाद बोला): "सुनील अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर... बाथरूम टॉयलेट सब अलग है ऊपर... बस सीढ़ियाँ बाहर की बजाय घर के अंदर से हैं... अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो... और रही खाने के बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी मिल जायेगा... पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं... है क्या कहते हो?"
सुनील: "जी आपका ऑफर तो बहुत अच्छा है... आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दूँ आपको?"
फ़ारूक के जाने के बाद सुनील ने अज़मल से पूछा कि क्या फ़ारूक के घर पर रहना ठीक होगा... तो उसने हंसते हुए कहा, "यार सुनील तू आराम से वहाँ रह सकता है... वैसे तुझे पता है कि ये जो फ़ारूक है ना बड़ा पियक्कड़ किस्म का आदमी है... रोज रात को दारू पिये बिना नहीं सोता... वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर... बहुत अच्छी फ़ैमिली है और तुझे घर का बना खाना भी मिल जायेगा!"
शाम को सुनील अपने ऑफिस से निकल कर फ़ारूक के ऑफ़िस में गया जो प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ था और फ़ारूक को अपनी रज़ामंदी दे दी। फ़ारूक बोला, "तो चलो मेरे घर पर... रूम देख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना वहाँ पर!"
सुनील ने फ़ारूक की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों फ़ारूक के स्कूटर पर बैठ के उसके घर पहुँचे तो फ़ारूक ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो फ़ारूक ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले को कहा, "क्या हुआ इतनी देर क्यों लगा दी!" सुनील बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। घर बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत फूल-पौधे लगे हुए थे। फ़ारूक की आवाज़ सुन कर सुनील ने दरवाजे पर नज़र डाली।
सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी... उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल संवारने का ब्रश था... उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जिसमें उसका जिस्म कयामत ढा रहा था। सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरता देख वो लड़की मार्बल के फर्श पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अंदर चली गयी। तभी फ़ारूक ने सुनील से कहा, "सुनील ये मेरी बेटी सानिया है... आओ अंदर चलते हैं...!"
सुनील उसके साथ अंदर चला गया। अंदर जाकर उसने सुनील को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बिठाया और अंदर जाकर आवाज़ दी, "रुखसाना... ओ रुखसाना! कहा चली गयी... जल्दी इधर आ!" और फिर फ़ारूक सुनील के पास जाकर बैठ गया।
रुखसाना जैसे ही रूम मैं पहुँची तो फ़ारूक उसे देख कर बोला, "ये सुनील है... हमारे स्टेशन पर नये क्लर्क हैं... इनको ऊपर वाला कमरा दिखाने लाया था... अगर इनको रूम पसंद आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे... जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर!"
सुनील: "अरे नहीं फ़ारूक भाई... इसकी कोई जरूरत नहीं है!"
फ़ारूक: "चलो यार चाय ना सही... एक-एक पेग हो जाये!"
सुनील: "नहीं फ़ारूक भाई... मैं पीता नहीं... मुझे बस रूम दिखा दो!" सुनील ने फ़ारूक से झूठ बोला था कि वो ड्रिंक नहीं करता पर असल में वो भी कभी-कभी ड्रिंक कर लिया करता था।
रुखसाना ने बड़ी खुशमिजाज़ी से सुनील को सलाम कहा तो उसने एक बार रुखसाना की तरफ़ देखा। वो सर झुकाये हुए उनकी बातें सुन रही थी। रुखसाना ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से दुपट्टा अपने सीने पे लिया हुआ था। खुले लहराते लंबे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊँची हील की चप्पल पहनी हुई थी। रुखसाना की आकर्षक शख्सियत से सुनील काफ़ी इंप्रेस हुआ। रुखसाना को भी सुनील शरीफ़ और माकूल लड़का लगा। सुनील भी अच्छी पर्सनैलिटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती जिस्म था और उसके चिकने चेहरे पे कम्सिनी और मासूमियत की झलक थी। दिखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टूडेंट जैसा लगता था।
फ़ारूक बोले, "चलो तुम्हें रूम दिखा देता हूँ!" फिर सुनील फ़ारूक के साथ छत पर चला गया। सुनील को घर और ऊपर वाला रूम बेहद पसंद आया। अंदर बेड, दो कुर्सियाँ और स्टडी टेबल मौजूद थी। बाथरूम और टॉयलेट छत के दूसरी तरफ़ थे लेकिन वो भी साफ़-सुथरे थे। रूम देखने के बाद सुनील ने फ़ारूक से पूछा, "बताइये फ़ारूक भाई... कितना किराया लेंगे आप...?" फ़ारूक ने सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा, "अरे यार जो भी तुम्हारा बजट हो दे देना!"
रूम का और खाने-पीने का मिला कर साढ़े तीन हज़ार महीने का किराया तय करने के बाद फिर सुनील ने फ़ारूक से रुखसाना और उसके रिश्ते के बारे में पूछा तो फ़ारूक ने बताया कि रुखसाना उसकी बीवी है। सुनील को लगा था कि रुखसाना फ़ारूक की बड़ी बेटी है शायद।
फ़ारूक: "वो दर असल सुनील बात ये है कि, रुखसाना मेरे दूसरी बीवी है। जब मैं चौबीस साल का था तब मेरी पहली शादी हुई थी और पहली बीवी से सानिया हुई थी... शादी के तेरह साल बाद मेरी पहली बीवी की मौत हो गयी... फिर मैंने अपनी बीवी की मौत के बाद अढ़तीस साल की उम्र में रुखसाना से शादी की। रुखसाना की भी पहले शादी हुई थी... लेकिन उसके शौहर की भी मौत हो गयी और बाद में जब रुखसाना तेईस साल की थी तब मेरी और रुखसाना की शादी हुई!"
अब सारा मसला सुनील के सामने था। थोड़ी देर बाद सुनील वापस चला गया। अगले दिन शाम को सुनील फ़ारूक के साथ ऑटो से अपना सामान ले कर आ गया और फिर अपना सामन ऊपर वाले रूम में सेट करने लगा।
फ़ारूक: "अच्छा सुनील... गरमी बहुत है... तुम नहा धो लो... फिर रात के खाने पर मिलते हैं!" उसके बाद नीचे आने के बाद फ़ारूक ने रुखसाना से बोला, "जल्दी से रात का खाना तैयार कर दो... मैं थोड़ी देर बाहर टहल कर आता हूँ!" ये कह कर फ़ारूक बाहर चला गया। रुखसाना जानती थी कि फ़ारूक अब कहीं जाकर दारू पीने बैठ जायेगा और पता नहीं कब नशे में धुत्त वापस आयेगा। इसलिये उसने खाना तैयार करना शुरू कर दिया। आधे घंटे में रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना तैयार कर लिया। अभी वो खाना डॉयनिंग टेबल पे लगा ही रही थी कि लाइट चली गयी। ऊपर से इतनी गरमी थी कि नीचे तो साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।
रुखसाना ने सोचा कि क्यों ना सुनील को ऊपर ही खाना दे आये। इसलिये उसने खाना थाली में डाला और ऊपर ले गयी। जैसे ही वो ऊपर पहुँची तो लाइट भी आ गयी। सुनील के रूम की तरफ़ बढ़ते हुए उसके ज़हन में अजीब सा डर उमड़ रहा था। रूम का दरवाजा खुला हुआ था। रुखसाना सिर को झुकाये हुए रूम में दाखिल हुई तो उसके सैंडलों की आहट सुन कर सुनील ने पीछे पलट कर उसकी तरफ़ देखा।
"हाय तौबा..." रुखसाना ने मन में ही आह भरी क्योंकि सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर पहने खड़ा था उसने ऊपर बनियान वगैरह कुछ नहीं पहना हुआ था। रुखसाना की नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयीं... एक दम चौड़ा सीना माँसल बाहें... एक दम कसरती जिस्म! रुखसाना ने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कोशिश की... पर पता नहीं क्यों बार-बार उसकी नज़रें सुनील की चौड़ी छाती पर जाकर टिक जाती।
रुखसाना: "जी वो मैं आपके लिये खाना लायी थी!"
अभी सुनील कुछ बोलने ही वाला था कि एक बार फिर से लाइट चली गयी और रूम में एक दम से घुप्प अंधेरा छा गया। एक जवान लड़के के साथ अपने आप को अंधेरे रूम में पा कर रुखसाना एक दम से घबरा गयी। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "मैं नीचे से एमर्जेंसी लाइट ला देती हूँ!" पर सुनील ने उसे रोक दिया, "अरे नहीं आप वहीं खड़ी रहिये... आप मुझे बता दो एमर्जेंसी लाइट कहाँ रखी है... मैं ले कर आता हूँ!" रुखसाना ने उसे बता दिया कि एमर्जेंसी लाइट नीचे डॉयनिंग टेबल पे ही रखी है तो सुनील अंधेरे में नीचे चला गया और फिर थोड़ी देर बाद सुनील एमर्जेंसी लाइट ले कर आ गया और उसे टेबल पर रख दिया।
जैसे ही एमर्जेंसी लाइट की रोशनी रूम में फैली तो रुखसाना की नज़र एक बार फिर उसके गठीले जिस्म पर जा ठहरी। पसीने से भीगा हुआ उसका कसरती जिस्म एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो। रुखसाना को सबसे अच्छी बात ये लगी कि सुनील के सीने या पेट पर एक भी बाल नहीं था। बिल्कुल चीकना सीना था उसका। रुखसाना को खुद आपने जिस्म पे भी बाल पसंद नहीं थे और वो बाकायदा वेक्सिंग करती थी। यहाँ तक कि अपनी चूत भी एक दम साफ़ रखती थी जबकि उसे चोदने वाला या उसकी चूत की कद्र करने वाला कोई नहीं था। तभी सुनील उसकी तरफ़ बढ़ा और रुखसाना की आँखों में झाँकते हुए उसके हाथ से खाने की थाली पकड़ ली। रुखसाना ने शरमा कर नज़रें झुका ली और हड़बड़ाते हुए बोली, "मैं बाहर चारपाई बिछा देती हूँ... आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीजिये...!"
रूखसाना बाहर आयी और बाहर चारपाई बिछा दी। सुनील भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया।
"फ़ारूक भाई कहाँ हैं...?" सुनील ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए पूछा पर रुखसाना ने सुनील की आवाज़ नही सुनी... वो तो अभी भी उसके बाइसेप्स देख रही थी। जब रुखसाना ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया तो वो उसकी और देखते हुए दोबारा फ़ारूक के बारे में पूछने लगा। सुनील की आवाज़ सुन कर रुखसाना होश में आयी और एक दम से झेंप गयी और सिर झुका कर बोली "पता नहीं कहीं पी रहे होंगे... रात को देर से ही घर आते हैं!"
सुनील: "अच्छा कोई बात नहीं... उफ़्फ़ ये गरमी... इतनी गरमी में खाना खाना भी मुश्किल हो जाता है!"
रुखसाना सुनील की बात सुन कर रूम में चली गयी और हाथ से हिलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी और सुनील के पास जाकर बोली, "आप खाना खा लीजिये... मैं हवा कर देती हूँ...!"
सुनील: "अरे नहीं-नहीं... मैं खा लुँगा आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं!"
रुखसाना: "इसमें तकलीफ़ की क्या बात है... आप खाना खा लीजिये!"
सुनील चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा और रुखसाना सुनील के करीब चारपाई के बगल में दीवार के सहारे खड़ी होकर खुद को और सुनील को पंखे से हवा करने लगी। "अरे आप खड़ी क्यों हैं... बैठिये ना!" सुनील ने उसे यूँ खड़ा हुआ देख कर कहा।
"नहीं कोई बात नहीं... मैं ठीक हूँ...!" रुखसाना ने अपने सर को झुकाये हुए कहा।
सुनील: "नहीं रुखसाना जी! ऐसे अच्छा नहीं लगता मुझे कि मैं आराम से खाना खाऊँ और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा दें... मुझे अच्छा नहीं लगता... आप बैठिये ना!" अंजाने में ही उसने रुखसाना का नाम बोल दिया था पर उसे जल्दी ही एहसास हो गया। "सॉरी मैंने आप का नाम लेकर बुलाया... वो जल्दबाजी में बोल गया!"
रुखसाना: "कोई बात नहीं...!"
सुनील: "अच्छा ठीक है... अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहुँगा क्योंकि मैं फ़ारूक साहब को भाई बुलाता हूँ... अगर आपको बुरा ना लगे।"
रुखसाना: "जी मुझे क्यों बुरा लगेगा!"
सुनील: "अच्छा भाभी जी... अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी!"
सुनील की बात सुन कर रुखसाना को हंसी आ गयी और फिर सामने चारपाई पे पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और पंखा हिलाने लगी। सुनील फिर बोला, "भाभी जी एक और गुज़ारिश है आपसे... प्लीज़ आप भी मुझे 'आप-आप' कह कर ना बुलायें... उम्र में मैं बहुत छोटा हूँ आपसे... मुझे नाम से बुलायें प्लीज़!"
"ठीक है सुनील अब चुपचाप खाना खाओ तुम!" रुखसाना हंसते हुए बोली। उसे सुनील का हंसमुख मिजाज़ बहोत अच्छा लगा।
सुनील खाना खाते हुए बार-बार रुखसाना को चोर नज़रों से देख रहा था। एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में रुखसाना का हुस्न भी दमक रहा था। बड़ी- बड़ी भूरे रंग की आँखें... तीखे नयन नक्श... गुलाब जैसे रसीले होंठ... लंबे खुले हुए बाल... सुराही दार गर्दन... रुखसाना का हुस्न किसी हूर से कम नहीं था।
रुखसाना ने गौर किया कि सुनील की नज़र बार-बार या तो ऊँची हील वाली चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों पर या फिर उसकी चूचियों पर रुक जाती। गहरे नीले रंग की कमीज़ में रुखसाना की गोरे रंग की चूचियाँ गजब ढा रही थी... बड़ी-बड़ी और गोल-गोल गुदाज चूचियाँ। इसका एहसास रुखसाना को तब हुआ जब उसने सुनील की पतली ट्रैक पैंट में तने हुए लंड की हल चल को देखा। खैर सुनील ने जैसे तैसे खाना खाया और हाथ धोने के लिये बाथरूम में चला गया। इतने में लाइट भी आ गयी थी। जब वो बाथरूम में गया तो रुखसाना ने बर्तन उठाये और नीचे आ गयी। नीचे आकर उसने बर्तन किचन में रखे और अपने बेड पर आकर लेट गयी, "ओहहहह आज ना जाने मुझे क्या हो रहा है....?" अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे। बेड पर लेटे हुए उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की तो सुनील का चिकना चेहरा और उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाइसेप्स उसकी आँखों के सामने आ गये। पेट के निचले हिस्से में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था... रह-रह कर इक्कीस साल के नौजवान सुनील की तस्वीर आँखों के सामने से घूम जाती।
रुखसाना पेट के बल लेटी हुई अपनी टाँगों के बीच में अपना हाथ चूत पर दबा कर अपने से पंद्रह साल छोटे लड़के का तसव्वुर कर कर रही थी... किस तरह सुनील उसकी चूचियों को निहार रहा था... कैसे उसकी ऊँची हील की चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों को देखते हुए सुनील का लंड ट्रैक पैंट में उछल रहा था। रुखसाना का हाथ अब उसकी सलवार में दाखिल हुआ ही था कि तभी वो ख्वाबों की दुनिया से बाहर आयी जब सानिया रूम में अंदर दाखिल होते हुए बोली... "अम्मी क्या हुआ खाना नहीं खाना क्या?"
रुखसाना एक दम से बेड पर उठ कर बैठ गयी और अपनी साँसें संभालते हुए अपने बिखरे हुए बालों को ठीक करने लगी। सानिया उसके पास आकर बेड पर बैठ गयी और उसके माथे पर हाथ लगा कर देखते हुए बोली, "अम्मी आप ठीक तो हो ना?"
रुखसाना: "हाँ... हाँ ठीक हूँ... मुझे क्या हुआ है?"
सानिया: "आपका जिस्म बहोत गरम है... और ऊपर से आपका चेहरा भी एक दम लाल है!"
रुखसाना: "नहीं कुछ नहीं हुआ... वो शायद गरमी के वजह से है... तू चल मैं खाना लगाती हूँ!"
फिर रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना खाया और किचन संभालने लगी। तभी फ़ारूक भी आ गया। जब रुखसाना ने उससे खाने का पूछा तो उसने कहा कि वो बाहर से ही खाना खा कर आया है। फ़ारूक शराब के नशे में एक दम धुत्त बेड पर जाकर लेट गया और बेड पर लेटते ही सो गया। रुखसाना ने भी अपना काम खतम किया और वो लेट गयी। करवटें बदलते हुए कब उसे नींद आयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह- सुबह फ़ारूक ने ऊपर जाकर सुनील के रूम का दरवाजा खटकटाया। सुनील ने दरवाजा खोला तो फ़ारूक सुनील को देखते हुए बोला "अरे यार सुनील... मुझे माफ़ कर दो... कल तुम्हारा यहाँ पहला दिन था... और मेरी वजह से..."
सुनील: "अरे फ़ारूक भाई कोई बात नहीं... अब जबकि मैं आपके घर में रह रहा हूँ तो मुझे बेगाना ना समझें..!"
फ़ारूक: "अच्छा तुम तैयार होकर आ जाओ... आज नाश्ता नीचे मेरे साथ करना!"
सुनील: "अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आता हूँ!"
फ़ारूक नीचे आ गया और रुखसाना को जल्दी नाश्ता तैयार करने को कहा। थोड़ी देर बाद सुनील तैयार होकर नीचे आ गया। रुखसाना ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए सुनील के जानिब देखा तो उसने रुखसाना को सलाम कहा। रुखसाना ने भी मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया और नाश्ता रख कर फिर से किचन में आ गयी। नाश्ते के बाद सुनील और फ़ारूक स्टेशन पर चले गये।
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#2
Part 2

अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं... दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!"

फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ... फिर परसों साथ में चलेंगे!"

उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा अज़रा ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और फ़ारूक डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा कि ऊपर सुनील को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस दिन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब अज़रा नीचे आयी तो रुखसाना ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के नियत ठीक नहीं लग रही थी।

रुखसाना की कमर का दर्द आज बिल्कुल ठीक हो चुका था लेकिन वो नाटक ज़ारी रखे हुए बिस्तर पे लेटी रही। अज़रा से उसने एक-दो बार बाम से मालिश भी करवायी। इस दौरान रुखसाना ने फिर नोटिस किया कि अज़रा सज-धज के ग्यारह बजे तक बार-बार किसी ना किसी बहाने से चार पाँच बार ऊपर जा चुकी थी। रुखसाना को कुछ गड़बड़ लग रही थी। फिर सुनील नीचे आया और रुखसाना के रूम में जाकर उसका हाल चल पूछा। रुखसाना बेड से उठने लगी तो उसने रुखसाना को लेटे रहने को कहा और कहा कि वो बाज़ार जा रहा है... अगर किसी चीज़ के जरूरत हो तो बता दे... वो साथ में लेता आयेगा। रुखसाना ने कहा कि किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। सुनील बाहर चला गया और दोपहर के करीब डेढ़-दो बजे वो वापस आया।

उसके बाद रुखसाना की भी बेड पे लेटे-लेटे आँख लग गयी। अभी उसे सोये हुए बीस मिनट ही गुजरे थे कि तेज प्यास लगने से उसकी आँख खुली। उसने अज़रा को आवाज़ लगायी पर वो आयी नहीं। फिर वो खुद ही खड़ी हुई और किचन में जाकर पानी पिया। फिर बाकी कमरों में देखा पर अज़रा नज़र नहीं आयी। बाहर मेन-डोर भी अंदर से बंद था तो फिर अज़रा गयी कहाँ! तभी उसे अज़रा के सुबह वाली हर्कतें याद आ गयी... हो ना हो दाल में जरूर कुछ काला है... कहीं वो सुनील पर तो डोरे नहीं डाल रही? ये सोचते ही पता नहीं क्यों रुखसाना का खून खौल उठा। वो धड़कते दिल से सीढ़ियाँ चढ़ के ऊपर आ गयी। जैसे ही वो सुनील के दरवाजे के पास पहुँची तो उसे अंदर से अज़रा की मस्ती भरी कराहें सुनायी दी, "आहहह आआहहह धीरे सुनील डर्लिंग... आहहह तू तो बड़ा दमदार निकला... मैं तो तुझे बच्चा समझ रही थी.... आहहह ऊहहह हायऽऽऽ मेरी फुद्दी फाड़ दीईई रे.... आआहहहह मेरी चूत... सुनीललल!"

ये सब सुन कर रुखसाना तो जैसे साँस लेना ही भूल गयी। क्या वो जो सुन रही थी वो हकीकत थी! रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो थोड़ा सा खुला हुआ था। अभी वो दरवाजे की तरफ़ धीरे से बढ़ ही रही थी कि उसे सुनील की आवाज़ सुनायी दी, "साली तू तो मुझे नामर्द कह रही थी... आहहह आआह ये ले और ले... ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में साली... अगर रुखसाना भाभी घर पर ना होती तो आज तेरी चूत में लौड़ा घुसा-घुसा कर सुजा देता!"

अज़रा: "हुम्म्म्म हायऽऽऽ तो सुजा दे ना मेरे शेर... ओहहह तेरी ही चूत है... और तू उस गश्ती रुखसाना की फ़िक्र ना कर मेरे सनम... वो ऊपर चढ़ कर नहीं आ सकती.... और अगर आ भी गयी तो क्या उखाड़ लेगी साली!"

रुखसाना धीरे- धीरे काँपते हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास पहुँची और अंदर झाँका तो अंदर का नज़ारा देख कर उसके होश ही उड़ गये। अंदर अज़रा सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी बेड पर घोड़ी बनी हुई झुकी हुई थी और सुनील भी बिल्कुल नंगा उसके पीछे से अपना मूसल जैसा लौड़ा तेजी से अज़रा की चूत के अंदर-बाहर कर रहा था। अज़रा ने अपना चेहरा बिस्तर में दबाया हुआ था। उसका पूरा जिस्म सुनील के झटकों से हिल रहा था। "आहहह सुनील मेरी जान... मैंने तो सारा जहान पा लिया... आहहह ऐसा लौड़ा आज तक नहीं देखा... आहहह एक दम जड़ तक अंदर घुसता है तेरा लौड़ा... आहहह मेरी चूत के अंदर इस कदर गहरायी पर ठोकर मार रहा है जहाँ पहले किसी का लौड़ा नहीं गया... आहहह चोद मुझे फाड़ दे मेरी चूत को मेरी जान!"

रुखसाना ने देखा दोनों के कपड़े फ़र्श पर तितर-बितर पड़े हुए थे। टेबल पे शराब की बोतल और दो गिलास मौजूद थे जिससे रुखसाना को साफ़ ज़ाहिर हो गया कि सुनील और अज़रा ने शराब भी पी रखी थी। इतने में सुनील ने अपना लंड अज़रा की चूत से बाहर निकला और बेड पर लेट गया और अज़रा फ़ौरन सुनील के ऊपर चढ़ गयी। अज़रा ने ऊपर आते ही सुनील का लंड अपने हाथ में थाम लिया और उसके लंड के सुपाड़े को अपनी चूत के छेद पर लगा कर उसके लंड पर बैठ गयी... और तेजी से अपनी गाँड ऊपर नीचे उछलते हुए चुदाने लगी। सुनील का चेहरा दरवाजे की तरफ़ था। तभी उसकी नज़र अचानक बाहर खड़ी रुखसाना पर पड़ी और दोनों की नज़रें एक दूसरे से मिली। रुखसाना को लगा कि अब गड़बड़ हो गयी है पर सुनील ने ना तो कुछ किया और ना ही कुछ बोला। उसने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अज़रा के नंगे चूतड़ों को दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों तरफ़ फ़ैला दिया।
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#3
Part 3


सामने कुर्सी पर बैठ गया और रुखसाना भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की। इस दौरान सुनील ने रुख्सना से पूछा, "भाभी अब आपकी कमर का दर्द कैसा है?"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "अरे अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूँ... कल तूने इतनी अच्छी मालिश जो की थी!"

अपना शर्बत का खाली गिलास साइड टेबल पे रखते हुए सुनील उससे बोला, "भाभी आप उल्टी लेट जाओ... मैं एक बार और बाम से आपकी मालिश कर देता हूँ...!"

रुखसाना मना किया कि, "नहीं सुनील! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ..!" लेकिन सुनील भी फिर इसरार करते हुए बोला, "भाभी आप मेरे लिये इतना कुछ करती है... मैं क्या आपके लिये इतना भी नहीं कर सकता... चलिये लेट जाइये!"

रुखसाना सुनील के बात टाल ना सकी और अपना खाली गिलास टेबल पे रखते हुए बोली, "अच्छा बाबा... तू मानेगा नहीं... लेटती हूँ... पहले सैंडल तो खोल के उतार दूँ!"

"सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी... इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं... आप ऐसे ही लेट जाइये!" सुनील किसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला तो रुखसान को हंसी आ गयी और वो उसकी बात मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंकि आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसलिये उसकी कमर पीछे से सुनील की आँखों के सामने थी। सुनील ने बाम को पहले अपनी उंगलियों पर लगाया और रुखसाना की कमर को दोनों हाथों से मालिश करना शुरू कर दिया। "एक बात बता सुनील! तुझे मेरा ऊँची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?" रुखसाना ने पूछा तो इस बार सुनील का चेहरा शरम से लाल हो गया। वो झेंपते हुए बोला, "जी... जी भाभी आप सही कह रही हैं... आपको अजीब लगेगा लेकिन मुझे लेडिज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं... और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल पहने रहती हैं!"

"अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है... और मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगा... मैं तेरे जज़्बात समझती हूँ... कुछ कूछ होता है... है ना?" रुखसाना हंसते हुए हुए बोली। सुनील के हाथों की मालिश से पिछले दिन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। सुनील के हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। रुखसाना को मज़ाक के मूड में देख कर सुनील भी हिम्मत करते हुए बोला, "भाभी... आपकी स्किन कितनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम... भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो... पूरी कमर पे नीचे तक अच्छे से मालिश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।" रुखसाना ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। रुखसाना को पिछली रात मालिश से बहुत सुकून मिला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसलिये उसने ना-नुक्कर नहीं की। जैसे ही रुखसाना की साड़ी ढीली हुई तो सुनील ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपनी उंगलियों को डाल कर उसे नीचे सरका दिया पर रुखसाना को तभी एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। रुखसाना ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी... पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब सुनील की नज़रों के सामने थे।

सुनील ने कोई रीऐक्शन नहीं दिखाया और धीरे-धीरे कमर से मालिश करते हुए अपने हाथों को रुखसाना के चूतड़ों की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया। उसके हाथों का लम्स रुखसाना के जिस्म के हर हिस्से को ऐसा सुकून पहुँचा रहा था जैसे बरसों के प्यासे को पानी पीने के बाद सुकून मिलता है। वो चाहते हुए भी एतराज नहीं कर पा रही थी। वो बस लेटी हुई उसके छुने के एहसास का मज़ा ले रही थी। रुखसाना की तरफ़ से कोई ऐतराज़ ना देख कर सुनील की हिम्मत बढ़ी और अब उसने रुखसाना के आधे से ज्यादा नंगे हो चुके गुदाज़ चूतड़ों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया। रुखसाना की साड़ी और पेटीकोट सुनील के हाथ से टकराते हुए थोड़ा-थोड़ा और नीचे सरक जाते। रुखसाना को एहसास हो रहा था कि अब सुनील को उसके चूतड़ों के बीच की दरार भी दिखायी दे रही होगी। उसने शरम के मारे अपने चेहरे को तकिये में छुपा लिया और अपने होंठों को अपने दाँतों में भींच लिया ताकि कहीं वो मस्ती में आकर सिसक ना पड़े और उसकी बढ़ती हुई शहवत और मस्ती का एहसास सुनील को हो। सुनील उसके दोनों गोरे-गोरे गोल-गोल चूतड़ों को बाम लगाने के बहाने से सहला रहा था। रुखसाना को भी एहसास हो रहा था कि सुनील बाम कम लगा रहा था और सहला ज्यादा रहा था। जब रुखसाना ने फिर भी ऐतराज ना किया तो सुनील और नीचे बढ़ा और चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा। थोड़ी देर बाद उसके हाथों की उंगलियाँ रुखसाना की गाँड की दरार में थी। फिर उसने अचानक से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को हाथों से चौड़ा करते हुए फैला कर बीच की जगह देखी तो रुखसाना साँस लेना ही भूल गयी। रुखसाना को एहसास हुआ की शायद सुनील ने उसके चूतड़ों के फैला कर उसकी गाँड का छेद और चूत तक देख ली होगी लेकिन रुखसाना अब तक सुनील हाथों के सहलाने और मसलने से बहुत ज्यादा मस्त हो गयी थी और उसकी चूत गीली और गीली होती चली जा रही थी। वो ये सोच कर और शरमा गयी कि सुनील उसकी बिल्कुल मुलायम और चिकनी चूत को देख रहा होगा जिसे उसने आज सुबह ही शेव किया था। उसकी चिकनी चूत को देखने वाला आज तक था ही कौन लेकिन उसके घर में रहने वाला किरायेदार आज उसके चूतड़... उसकी गाँड और उसकी चिकनी चूत को देख रहा था और वो भी पड़े-पड़े नुमाईश कर रही थी। ये सोच कर उसका दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा कि कहीं सुनील को उसकी चूत के गीलेपन का एहसास ना हो जाये।
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#4
Part 4

और ना ही कोई चूमा चाटी की चुदाई का आखिर था तो वो भी नया खिलाड़ी। दो बार अज़रा को चोदा था और आज रुखसाना को दूसरी बार चोद रहा था। करीब दस मिनट बाद रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसकी चूत के नसें ऐंठने लगी हों। रुखसाना को अपनी चूत की दीवारें सुनील के लंड के इर्द गिर्द कसती हुई महसूस होने लगी और फिर उसकी चूत से पानी का दरिया बह निकला। रुखसाना झड़ कर बेहाल हो गयी। "ओहहह सुनीईईल मेरीईईई जाआआआन आँहहहह...!" रुखसाना ने जोर से चींखते हुए सुनील को अपनी बाहों में कस लिया। सुनील ने उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए पूछा, "क्या कहा भाभी आपने?" रुखसाना अभी भी झड़ रही थी और चूत में अभी भी जकड़ाव हो रहा था। रुखसाना मस्ती की बुलंदी पर थी। रुखसाना ने मस्ती में आकर सुनील होंठों को चूम लिया। "मेरी जान... मेरे दिलबर..." कहते हुए रुखसाना सुनील के सीने में सिमटती चली गयी। सुनील ने फिर तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिये और रुखसाना की चूत के अंदर अपने वीर्य की बौछार करने लगा। झड़ते हुए उसने झुक कर रुखसाना के एक मम्मे को मुँह में भर लिया। सुनील के मुँह और जीभ का लम्स अपने मम्मे और अंगूर के दाने जितने बड़े निप्पल पर महसूस हुआ तो एक बार फिर से रुखसाना की चूत ने झड़ना शुरू कर दिया। उसकी चूत ने पता नहीं सुनील के लंड पर कितना पानी बहाया।

वो दोनों उसी तरह ना जाने कितनी देर लेटे रहे। सुनील रुखसाना के नंगे मुलायम जिस्म को सहलाता रहा और रुखसाना भी इसका लुत्फ़ उठाती रही। रुखसाना को लग रहा था कि ये हसीन पल कभी खत्म ना हों लेकिन फिर वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े ढूँढे और सिर्फ़ कमीज़ पहनने के बाद लाइट ऑन की। सुनील बेड से उठा और रुखसाना का हाथ पकड़ कर बोला, "क्या हुआ?" रुखसाना ने उसकी तरफ़ देखा और फिर शरमा कर नज़रें झुका ली, "सलील अकेला है मुझे जाने दे!"

सुनील बोला, "थोड़ी देर और रुको ना!" तो रुखसाना एक सुनील के नंगे लंड पे एक नज़र डालते हुए बोली, "जाना तो मैं भी नहीं चाहती... लेकिन अभी मुझे जाने दे... अगर वो उठ गया तो मसला हो जायेगा!"

सुनील कुछ नहीं बोला और मुस्कुरा कर उसे जाने दिया। रुखसाना ने अपने बाकी कपड़े उठाये और सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए सुनील के कमरे से बहार निकली और सीढ़ियाँ उतर कर नीचे चली गयी। शराब और ज़ोरदार चुदाई के लुत्फ़ की खुमारी से वो खुद को हवा में उड़ता हुआ महसूस कर रही थी। अपने बेडरूम का दरवाजा खोल कर अंदर झाँका तो सलील अभी भी सो रहा था। बेडरूम में आकर उसने दरवाजा बंद किया और रात के कपड़े पहन कर लेट गयी। रात कब नींद आयी उसे पता नहीं चला। सुबह उठ कर नहा-धो कर तैयार होने के बाद उसने नाश्ता तैयार किया । सुनील नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना के चेहरे पर अभी भी लाली थी... वो अभी भी उसके साथ नज़रें नहीं मिला पा रही थी। सलील की मौजूदगी में दोनों कुछ बोले नहीं। नाश्ता करते हुए सुनील ने टेबल के नीचे रुखसाना का हाथ पकड़ा तो वो अचानक से हड़बड़ा गयी लेकिन सुनील ने उसका हाथ छोड़ा नहीं बल्कि रुखसाना का हाथ अपनी गोद में खींच कर पैंट के ऊपर से लंड पे रख के दबाने लगा। इस सबसे बेखबर सलील सामने बैठा चुपचाप नाश्ता कर रहा था लेकिन रुखसाना की तो धड़कनें तेज़ हो गयीं और चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया। फिर नाश्ता करके सुनील तो चला गया लेकिन रुखसाना के जज़बातों को भड़का गया।

सारा दिन रूकसाना का दिल खिला-खिला रहा। सलील की बचकानी बातें सुन कर हंसते-खेलते दिन निकला। आज रुखसाना के खुश होने की वजह और भी थी। उसे नहीं पता था कि उसका ये उठाया हुआ कदम उसे किस मुक़ाम की ओर ले जायेगा या आने वाले वक़्त में उसकी तक़दीर में क्या लिखा हुआ था। पर अभी तो वो सातवें आसमान पे थी और ज़िंदगी में पहली बार इतनी खुशी मीली थी उसे।
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#5
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रुकसाना सुनील के लिए तैयार ऐसे हुयी
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#6
Update. 5

थी और ना ही कभी रुख्सआना ने ऐसे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया था। रुखसाना को बिल्कुल भी बुरा या अजीब नहीं लगा बल्कि सुनील के मुँह से अपनी चूत की इस तरह तारीफ़ सुनकर वो गुदगुदा गयी थी। "ऊँम्म... खुदा के लिये ऐसी बातें ना कर सुनील!" रुखसाना मस्ती में बंद आँखें किये हुए लड़खड़ाती ज़ुबान में बोली।

"क्यों ना करूँ भाभी... ऐसी बातें सुन कर ही तो चुदाई का मज़ा आता है..!" सुनील ने अपने लंड के सुपाड़ा से रुखसाना की चूत की फ़ाँकों के बीच में रगड़ा तो रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसका दिल अभी धड़कना बंद कर देगा। "उफ़्फ़्फ़...!" सुनील के मुँह से निकला और उसने अपने लंड के सुपाड़े को ठीक रुखसाना की चूत के ऊपर रखा और उसके ऊपर झुकते हुए उसके गालों को चूमा। "सीईईई...." रुखसाना के तो रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गयी। फिर सुनील उसके गालों को चूमते हुए रुखसाना के होंठों पर आ गया। सुनील उसके होंठों को एक बार फिर से अपने होंठों में लेकर चूमने वाला था... ये सोचते ही रुखसाना की चूत फुदकने लगी... लंड को जैसे अंदर लेने के लिये मचल रही हो। फिर तो जैसे सुनील उसके होंठों पर टूट पड़ा और उसके होंठों को चूसने लगा। सुनील से अपने होंठ चुसवाने में और उसकी ज़ुबान के अपनी ज़ुबान के साथ गुथमगुथा होने से रुखसाना को इस कदर लुत्फ़ मिल रहा था कि वो बेहाल होकर सुनील से लिपटती चली गयी। इसी दौरान सुनील का लंड भी धीरे-धीरे रुख़साना की चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। जैसे ही सुनील का लंड रुखसाना की चूत के गहराइयों में उतरा तो उसने रुखसाना के होंठों को छोड़ दिया और झुक कर उसके दांये मम्मे के निप्पल को मुँह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। रुखसाना एक दम मस्त हो गयी और उसकी बाँहें सुनील की पीठ पर थिरकने लगी। सुनील पिछली रात की तरह जल्दबाज़ी में नहीं था। वो कभी रुखसाना के होंठों को चूसता तो कभी उसके मम्मों को! उसने रुखसाना के निप्पलों को निचोड़-निचोड़ कर लाल कर दिया।

रुखसाना के होंठों में भी सरसराहट होने लगी थी और जब सुनील उसके होंठों को चूसना छोड़ता तो खून का दौरा उसके होंठों में तेज हो जाता और तेज सरसराहट होने लगती। रुखसाना का दिल करता कि सुनील उसके होंठों को चूमता ही रहे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में ले कर सुनील चूसता ही रहे..! रुक़साना की दोनों चूचियों और निप्पलों का भी यही हाल था लेकिन सुनील के लिये उसके होंठों और दोनों चूचियों और निप्पलों को एक वक़्त में एक साथ चूसना तो मुमकिन नहीं था। नीचे रुखसाना की फुद्दी भी फुदफुदा रही थी। रुखसाना इतनी मस्त हो गयी थी कि उसकी फुद्दी सुनील के लंड पे ऐंठने लगी जबकि अभी तक सुनील ने एक भी बार अपने मूसल लंड से उसकी चूत में वार नहीं किया था। वो रुखसाना की चूत में लंड घुसाये हुए उसके मम्मों और होंठों को बारी-बारी चूस रहा था और रुखसाना मस्ती में आँखें बंद किये हुए सिसकती रही और फिर उसकी चूत के सब्र का बाँध टूट गया। रुखसाना काँपते हुए झड़ने लगी पर सुनील तो अभी भी उसके मम्मों और होंठों का स्वाद लेने में ही मगन था। सुनील को भी एहसास हो गया था कि रुखसाना फिर झड़ चुकी है।

फिर सुनील उठा और घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को सुपाड़े तक रुखसाना की चूत से बाहर निकाल-निकाल कर अंदर बाहर करने लगा। लंड चूत के पानी से चिकना होकर ऐसे अंदर जाने लगा जैसे मक्खन में गरम छुरी। "भाभी देखो ना आपकी चूत मेरे लंड को कैसे चूस रही है..... आहहह देखो ना..!" रुकसाना उसके मुँह से फिर ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर फिर मस्ती में भर गयी। वो पूरी रोशनी में सुनील के सामने अपनी टाँगें फैलाये हुए एक दम नंगी होकर उसका लंड अपनी चूत में ले रही थी और सुनील उसकी चूत में अपने लंड को अंदर-बाहर कर रहा था। "आहहह देखो ना भाभी... आपकी चूत कैसे मेरे लंड को चूम रही है... देखो आहहह सच भाभी आपकी चूत बहुत गरम है!" सुनील झटके मारते हुए बोले जा रहा था।

रुखसाना की पहाड़ की चोटियों की तरह तनी हुई गुदाज़ चूचियाँ सुनील के धक्कों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। "ऊँऊँहह सुनील... मेरे दिलबर ऐसी बातें ना कर... मुझे शर्म आती है!" रुखसाना की बात सुनकर सुनील ने दो तीन जोरदार झटके मारे और अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया। "देखो ना भाभी... आपकी चूत की गरमी ने मेरे लंड के टोपे को लाल कर दिया है!" सुनील की ये बात सुनकर रुखसाना मस्ती में और मचल गयी। रुखसाना ने अपनी मस्ती और नशे से भरी हुई आँखों से नीचे सुनील की रानों की तरफ़ नज़र डाली तो उसे सुनील के लंड का सुपाड़ा नज़र आया जो किसी टमाटर की तरह फूला हुआ एक दम लाल हो रखा था। रुखसाना मन ही मन सोचने लगी कि सच में चूत के गरमी से उसके लंड का टोपा लाल हो सकता है..!
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#7
Update  6


"आप भी कुछ कहो ना भाभी प्लीज़ एक बार... आपको भी ज्यादा मज़ा आयेगा!" सुनील ने ज़ोर दिया तो रुखसाना फुसफुसा कर बोली, "हाय अल्लाहा मुझे शरम आती है..!"

"ये शरम छोड़ कर करो ना चुदाई की बातें... भाभी आपको मेरी कसम!" सुनील की बात ने तो जैसे रुखसाना के दिल पर ही छुरी चला दी हो। "मुझसे नहीं होगा सुनील... अपनी कसम तो ना दे... प्लीज़ अब ऐसे तड़पा नहीं और जल्दी अंदर कर... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा!"

रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर अपने लंड को रगड़ते सुनील फिर बोला, "लेकिन ये तो बताओ कि क्या अंदर करूँ?" रुखसाना अपनी नशे और चुदास में बोझल आँखों से सुनील के लंड के सुपाड़ा को देखते हुए बेकरार होके बड़ी मुश्किल से बोली, "ये... अपना ल...लंड... कर ना प्लीज़!" सुनील अभी भी उसकी चूत के बाहर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ रहा था। सुनील ने फिर रुखसाना को तड़पाते हुए पूछा, "कहाँ डालूँ अपना लंड भाभी... और क्या करूँ खुल के बताओ ना।" अब रुकसाना का सब्र जवाब दे गया और वो तमाम शर्म और हया छोड़ कर नशे में लरजती आवाज़ में गुस्से से कड़ाक्ते बोली, "अरे मादरचोद क्यों तड़पा रहा है मुझे... ले अब तो डाल अपना लंड... मेरी चूत में और चोद मुझे..!"

"ये हुई ना बात भाभी... अब आपको रंडी बना के चोदने में मज़ा आयेगा!" कहते हुए सुनील ने अपने लंड को हाथ से पकड़ कर रुखसाना की आँखों में झाँका और फिर लंड को उसकी चूत के छेद पर टिकाते हुए ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआय अल्लाआहहह!" रुखसाना की फुद्दी की दीवारें जैसे मस्ती में झूम उठी हों.., मर्द क्या होता है... ये आज उसे एहसास हो रहा था। रुखसाना ने सुनील को कसकर अपने आगोश में लेते हुए अपने ऊपर खींचा और उसके आँखों में आँखें डाल कर बोली, "सुनील मेरी जान! चोद मुझे... इतना चोद मुझे कि मेरा जिस्म पिघल जाये... बना ले मुझे अपनी रंडी...!" ये कहते हुए उसके होंठ थरथराये और चूत ऐंठी... जैसे कि आज उसकी चूत ने अपने अंदर समाये लंड को अपना दिलबर मान लिया हो..!

रुखसाना की आरज़ू थी कि सुनील उसके होंठों को फिर बुरी तरह से चूमे... उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में लेकर चूसे... और ये सोच कर ही रुखसाना के होंठ काँप रहे थे...! शायद सुनील भी उसके दिल के बात समझ गया था। वो रुखसाना के होंठों पर टूट पड़ा और अपने दाँतों से चबाने लगा... हल्के-हल्के धीरे से कभी उसके होंठ चूसता तो कभी होंठों को काटता... मीठा सा दर्द होंठों पर होता और मज़े के लहर उसकी चूत में दौड़ जाती। रुखसाना उससे चिपकी हुई उसके जिस्म में घुसती जा रही थी। रुखसाना का दिल कर रहा था कि दोनों जिस्म एक हो जायें... एक होकर फिर कभी दो ना हों....! सुनील का लंड फिर उसकी चूत की गहराइयों को नापने लगा था और अनकटे मोटे लंड के घस्से चूत में कितने मज़ेदार होते हैं... ये रुखसाना ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसकी मस्ती भरी सिस्कारियाँ और बढ़ने लगीं और पूरे कमरे में गूँजने लगीं।

रुखसाना अब खुद अपनी टाँगों को उठाये हुए सुनील से चुदवा रही थी। मस्ती के पल एक के बाद एक आते जा रहे थे। सुनील के धक्कों से उसका पूरा जिस्म हिल रहा था और फिर से वही मुक़ाम... चूत ने लंड को चारों ओर से कस लिया... और अपना प्यार भरा रस सुनील के लंड की नज़र करने लगी। सुनील के वीर्य ने भी मानो उसकी प्यासी बियाबान चूत की जमीन पर बारिश कर दी हो । रुखसाणा का पूरा जिस्म झटके खाने लगा। उसे सुनील की मनी अपनी चूत की गहराइयों में बहती हुई महसूस होने लगी। बेइंतेहा लुत्फ़-अंदोज़ तजुर्बा था... रुखसाना सोचने लगी कि क्यों उसने अब तक अपनी जवानी ज़ाया की।

रुखसाना कमज़ कम तीन बार झड़ चुकी थी। सुनील अब उसकी बगल में लेटा हुआ रुखसाना के जिस्म को सहला रहा था। रुखसाना अचानक बिस्तर से उठने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। "कहाँ जा रही हो भाभी... एक बार और करने दो ना?" उसने रुखसाना को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

"उफ़्फ़्फ़ मुझे पेशाब लगी है... पेशाब तो करके आने दे ना... फिर कर लेना... वैसे खुल कर बोल कि क्या करना है!" रुखसाना हंसते हुए बोली तो सुनील भी उसके साथ हंस पड़ा। रुखसाना पे अभी भी शराब का नशा हावी था। जब वो झूमती हुई बिस्तर से उठ के नंगी ही टॉयलेट जाने लगी तो हाई हील के सैंडल में चलते हुए उसके कदम नशे में लड़खड़ा रहे थे। नशे में लड़खड़ाती हुई मादरजात नंगी रुखसाना के बलखाते हुस्न को सुनील ने पीछे से देखा तो उसके लंड में सनसनी लहर दौड़ गयी लेकिन फिर वो रुखसाना को सहारा देने के लिये उठा कि कहीं वो गिर ना पड़े... क्योंकि बाथरूम और टॉयलेट कमरे से थोड़ा हट के छत के दूसरी तरफ़ थे। जब सुनील लड़खड़ाती रुखसाना को सहारा दे कर कमरे से बाहर निकल कर छत पर आया तो पास ही छत की परनाली देख कर रुख्सना से बोला, "भाभी इस नाली पे ही मूत लो ना!"

"हाय अल्लाह... यहाँ तेरे सामने मैं... कैसे?" रुखसाना लरजती आवाज़ में नखरा करते हुए बोली तो सुनील मुस्कुराते हुए बोला, "अब मुझसे शर्माने के लिये बचा ही क्या है... यहीं कर लो ना?" रुखसाना को बहुत तेज पेशाब आया था और नशे की हालत में उसने और ना-नुक्कर नहीं की। सुनील ने सहारा दे कर रुखसाना को परनाली के पास मूतने के लिये बिठा दिया। जैसे ही उसकी चूत से मूत की धार निकली तो बहुत तेज आवाज़ हुई। नशे में भी रुखसाना के चेहरे पे शर्म की लाली आ गयी। सुनील बड़े गौर से रुखसाणा को मूतते देख रहा था। चाँदनी रात में रुखसाना का नंगा जिस्म दमक रहा था। उसके बाल थोड़े बिखर गये थे लेकिन बालों में झुमर अभी भी मौजूद था। सोने के झूमर... गले का हार... कंगन और सुनहरी सैंडल भी चाँदनी में चमक रहे थे। करीब एक मिनट तक रुखसाना की चूत से मूत की धार बाहती रही और वो होंठों पे शर्मीली सी मुस्कान लिये सुनील की नज़रों के सामने मूतती रही। ये नज़ारा देख कर सुनील का लंड फिर टनटनाने लगा। रुखसाना का मूतना बंद होने के बाद सुनील उसका हाथ पकड़ के उसे खड़ा करते हुए बोला, "भाभी मुझे भी मूतना है... अब आप मेरी भी तो मदद कर दो ना!"

"तो मूत ले ना... मैं क्या मदद करूँगी इसमें!" रुखसाना बोली तो सुनील उसे छत की मुंडेर के सहारे खड़ा करके उसकी आँखों में झाँकते हुए शरारत से बोला, "मेरा लंड पकड़ कर करवा दो ना भाभी!" फिर सुनील के लंड को अपनी काँपती उंगलियों में पकड़ कर रुखसाना ने उसे मोरी की तरफ़ करते हुए झटका दिया और मुस्कुराते हुए बोली, "हाय अल्लाह बड़ा बेशर्म और शरारती है तू... ले कर अब....!" सुनील के लंड से पेशाब की धार निकली तो रुखसाना का पूरा जिस्म काँप गया और उसकी नज़रें सुनील के लंड और उसमें से निकलती पेशाब की धार पे जम गयीं और साँसें भी फिर से तेज हो गयी।

मूतने के बाद दोनों वापस कमरे में आये और बिस्तर पे लेटते ही सुनील ने रुखसाना का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया। उस रात उसने रुखसाना को फिर से चोदा। इस बार रुखसाना के कहने पे सुनील ने उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदा क्योंकि रुखसाना भी वैसे ही चुदना चाहती थी जैसे उसने अज़रा को सुनील से चुदते देखा था। करीब एक बजे दोनों थक कर एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये। सुबह सढ़े चार बजे रुखसाना की आँख खुली तो उसने सुनील को जगा कर कहा कि वो उसे नीचे उसके बेडरूम तक छोड़ आये। सुनील नंगी रुखसाना को ही सहारा दे कर नीचे ले गया क्योंकि इस वक़्त इस हालत में शरारा पहनने की तो रुखसाना की सलाहियत थी नहीं। अपने बेडरूम में आकर उसने एक नाइटी पहनी और सलील की बगल में लेट कर सो गयी। सुबह वो देर से उठी। उसके जिस्म में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था। गनिमत थी कि सलील अभी भी सोया हुआ था।

सुनील हर रोज़ आठ बजे तक नाश्ता करके स्टेशन चला जाता था। वो भी आज नौ बजे नीचे आया और तीनों नाश्ता करने लगे। आज रुखसाना बिल्कुल नहीं शर्मा रही थी बल्कि सलील की मौजूदगी में नाश्ता करते हुए उसने सुनील के साथ आँखों-आँखों में इशारों से ही काफ़ी बातें की। नाश्ते के बाद किचन में बर्तन रखते वक़्त जब दोनों अकेले थे तो सुनील ने रुखसाना को अपने आगोश में भर कर उसके होंठों को चूम लिया। रुक़साना भी उससे लिपटते हुए बोली, "सुनील... आज छुट्टी ले ले ना प्लीज़... नज़ीला भाभी तो बारह बजे तक आकर सलील को ले जायेंगी... उसके बाद तू और मैं...!"

"हाय भाभी... चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन आज छुट्टी नहीं ले सकुँगा... लेकिन इतना वादा करता हूँ कि शाम को जल्दी आ जाऊँगा और फिर तो पूरी शाम और पूरी रात जब तक आप कहोगी आपकी सेवा करुँगा!" सुनील उसका गाल सहलाते हुए बोला। "ठीक है... मुझे अपने दिलबर का इंतज़ार रहेगा... इसका ख्याल रखना!" रुखसाना पैंट के ऊपर से ही सुनील का लंड दबाते हुए बोली। एक रात में वो बेशर्म होकर बिल्कुल खुल गयी थी। उसके बाद सुनील ये कह कर चला गया कि वो आज शाम का खाना ना बनाये। उसके बाद नज़ीला भी आकर सलील को ले गयी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और ऊपर जा कर सुनील का कमरा भी ठीकठाक किया और फिर बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगी। रुखसाना को एक-एक पल बरसों जैसा लग रहा था। फ़ारूक पाँच दिन बाद आने वाला था और सानिया भी अपने मामा के घर से जल्दी ही वापिस आने वाली थी।

सुनील ने जल्दी आने का वादा किया था लेकिन फिर भी उसे आते-आते पाँच बज गये। रुखसाना तब तक सज-संवर कर तैयार हो चुकी थी और थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर गेट तक जा-जा कर देख रही थी। सुनील के घर में दाखिल होते ही दोनों एक दूसरे से लिपट गये। फिर सुनील फ्रेश होने के लिये ऊपर जाने लगा तो खाने के पैकेट टेबल से उठाते हुए रुखसाना ने ज़रा मायूस से लहज़े में पूछा, "सुनील आज तू वो बोतल... मतलब व्हिस्की नहीं लाया?" रुखसाना की बात सुनकर सुनील को यकीन नहीं हुआ। आज रुखसाना का खुलापन और ये बदला हुआ अंदाज़ देख कर सुनील को बेहद खुशी हुई। "क्या बात है भाभी जान.... कल तो आप नखरे कर रही थीं और आज खुद ही?" सुनील उसे छेडते हुए बोला। "कल से पहले कभी पी नहीं थी ना... मुझे अंदाज़ा नहीं था कि शराब के नशे की खुमारी इतनी मस्ती और सुकून अमेज़ होती है!" रुकसाना ने कहा तो सुनील ने अपने बैग में से रॉयल- स्टैग व्हिस्की की बोतल निकाल कर रुखसाना के सामने टेबल पे रख दी।

फिर अगले तीन दिनों तक हर रोज़ शाम को सुनील के घर आते ही दोनों शराब के नशे में चूर नंगे होकर रंगरलियों में डुब जाते। देर रात तक रुखसाना के बेडरूम में खूब चुदाई और ऐश करते। रुखसाना तो जैसे इतने सालों का चुदाई की कमी पूरा कर लेना चाहती थी और पुरजोश खुल-कर उसने सुनील के जवान लंड से चुदाई का खूब मज़ा लिया।

फिर चार दिन बाद सुनील के स्टेशान जाने के बाद डोर-बेल बजी। रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला तो बाहर सानिया और उसके मामा खड़े थे। रुखसाणा ने सलाम किया और उनको अंदर आने को कहा। सानिया के मामा और उनके घर का हालचाल पूछने के बाद रुखसाना ने उनके लिये चाय नाश्ते के इंतज़ाम किया। चाय नाश्ते के बाद सानिया के मामा ने वापस जाने का कहा तो रुखसाना ने फ़ॉर्मैलिटी के तौर पे उन्हें थोड़ा और रुकने को कहा पर वो नहीं माने। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ़ सानिया को छोड़ने की खातिर ही आये थे क्योंकि सानिया के कॉलेज की छुट्टीयाँ खतम हो रही थीं और कल से उसकी क्लासें भी शुरू होने वाली थी।

सानिया के आने से घर में रौनक जरूर आ गयी थी पर रुकसाना को एक गम ये था कि अब उसे और सुनील को मौका आसानी से नहीं मिलेगा। पिछले पाँच दिनों में हर रोज़ शाम से देर रातों तक बार-बार चुदने के बाद रुखसाना को तो जैसे सुनील के लंड की आदत सी लग गयी थी। उस दिन शाम को जब बाहर डोर-बेल बजी तो सानिया ने जाकर दरवाजा खोला। सानिया ने सुनील को सलाम कहा और सुनील अंदर आकर चुपचाप ऊपर चला गया। उस दिन कुछ खास नहीं हुआ।

सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और उसे बस से जाना पड़ता था। कईं बार उसे देर भी हो जाती थी। अगले दिन सुनील सुबह जब नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना ने गौर किया कि सानिया बार-बार चोर नज़रों से सुनील को देख रही थी। सानिया उस वक़्त कॉलेज जाने के लिये तैयार हो चुकी थी। उसने सफ़ेद रंग की कुर्ती के साथ नीले रंग की बेहद टाइट स्किनी-जींस पहनी हुई थी जिसमें उसका सैक्सी फिगर साफ़ नुमाया हो रहा था। उसने सफ़ेद रंग के करीब तीन इंच ऊँची हील वाले सैंडल भी पहने हुए थे जिससे टाइट जींस में उसके चूतड़ और ज्यादा बाहर उभड़ रहे थे।

उस दिन सानिया कुछ ज्यादा ही सुनील की तरफ़ देख रही थी। इस दौरान कभी जब सुनील सानिया की तरफ़ देखता तो वो नज़रें झुका कर मुस्कुराने लग जाती। सुनील ने पहले अज़रा की चुदी चुदाई फुद्दी मारी थी और फिर बाद में रुखसाना की बरसों से बिना चुदी चूत। सुनील ने उससे पहले कभी चुदाई नहीं करी थी लेकिन उसे जानकारी तो पूरी थी। इस बात का तो उसे पता चल गया था कि औरत जिसके बच्चे ना हो और जो कम चुदी हो उसकी चूत ज्यादा टाइट होती है। और फिर जब एक जवान लड़के को चुदाई की लत्त लग जाती है तो वो कहीं नहीं रुकती... खासतौर पर उन लड़कों के लिये जिन्होंने ऐसी औरतों से जिस्मानी रिश्ते बनाये हों... जो उम्र में उनसे बड़ी हों और जो उन्हें किसी तरह के बंधन में ना बाँध सकती हों... जैसे की रुखसाना। वो जानता था कि रुखसाना उसे किसी तरह अपने साथ बाँध कर नहीं रख सकती। अब वो उस आवारा साँड कि तरह हो गया था जिसे सिफ़ चूत चाहिये थी... हर बार नयी और बिना किसी बंधन की!

रुखसाना ने उस दिन सानिया के बर्ताव पे ज्यादा तवज्जो नहीं दी क्योंकि वो तो खुद सानिया की नज़र बचा कर सुनील के साथ नज़रें मिला रही थी। सुनील ने नाश्ता किया और बाइक बाहर निकालने लगा तो सानिया दौड़ी हुई किचन में आयी और रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील से कहो ना कि वो मुझे कॉलेज छोड़ आये!" रुखसाना ने बाहर आकर सुनील से पूछा कि क्या वो सानिया को कॉलेज छोड़ सकता है तो सुनील ने भी हाँ कर दी। सुनील ने बाइक स्टार्ट की और सानिया उसके पीछे बैठ गयी। सुनील के पीछे बैठी सानिया बेहद खुश थी। भले ही दोनों में अभी कुछ नहीं था पर सानिया सुनील की पर्सनैलिटी से उसकी तरफ़ बेहद आकर्षित थी। दोनों में कोई भी बातचीत नहीं हो रही थी। सानिया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और कॉलेज से घर तक के रास्ते में बहुत सी ऐसी जगह भी आती थी जहाँ पर एक दम विराना सा होता था। थोड़ी देर बाद कॉलेज पहुँचे तो सानिया बाइक से नीचे उतरी और अपने बैक-पैक को अपने कपड़े पर लटकाते हुए सुनील को थैंक्स कहा। सुनील ने सानिया की तरफ़ नज़र डाली। उसकी सुडौल लम्बी टाँगें और माँसल जाँघें स्कीनी जींस में कसी हुई नज़र आ रही थी... उसके मम्मे उसकी कुर्ती के अंदर ब्रा में एक दम कसे हुए पहाड़ की चोटियों की तरह तने हुए थे। सुनील की हम-उम्र सानिया अपनी ज़िंदगी के बेहद नज़ुक मोड़ पर थी।

जब उसने सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरते देखा तो वो सिर झुका कर मुस्कुराने लगी और फिर पलट कर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। सुनील वहाँ खड़ा सानिया को अंदर जाते हुए देख रहा था... दर असल वो पीछे सानिया के चूतड़ों को घूर रहा था। सानिया ने अंदर जाते हुए तीन-चार बार पलट कर सुनील को देखा और हर बार वो शर्मा कर मुस्कुरा देती। तभी सानिया के सामने से दो लड़के गुजरे और कॉलेज से बाहर आये। दोनों आपस में बात कर रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि सुनील सानिया के साथ आया है। वो दोनों सुनील के करीब ही खड़े थे जब उनमें से एक लड़का बोला, "यार ये सानिया तो एक दम पटाखा होती जा रही है... साली के मम्मे देख कैसे गोल-गोल और बड़े हो गये हैं..!" तो दूसरा लड़का बोला, "हाँ यार साली की गाँड पर भी अब बहुत चर्बी चढ़ने लगी है... देखा नहीं साली जब हाई हील वाली सैंडल पहन के चलती है तो कैसे इसकी गाँड मटकती है... बस एक बार बात बन जाये तो इसकी गाँड ही सबसे पहले मारुँगा!"

सुनील खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा था पर सुनील कुछ बोला नहीं। उसने बाइक स्टार्ट की और काम पर चला गया। सुनील के दिमाग में उन लड़कों की बातें घूम रही थी और उनकी बातें याद करते हुए उसका लंड उसकी पैंट में अकड़ने लगा था। सुनील ने करीब एक बजे तक काम किया और फिर लंच किया। सुबह से उसका लंड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। सुनील ने एक बार घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और फिर अज़मल से किसी जरूरी काम का बहाना बना कर दो घंटे की छुट्टी लेकर बाहर आ गया। उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर के तरफ़ चल पढ़ा। उन लड़कों की बातों ने सुनील का दिमाग सुबह से खराब कर रखा था... वो जानता था कि रुखसाना इस समय घर पे अकेली होगी। सुनील की बाइक हवा से बातें कर रही थी और पंद्रह मिनट में वो घर के बाहर था। उसने घर के गेट के बाहर सड़क पे ही बाइक लगायी और अंदर जाकर डोर-बेल बजायी। सुनील ने रुखसाना को निकलने से पहले ही फोन कर दिया था इसलिये वो भी तैयार होकर बेकरारी से सुनील के आने का इंतज़ार कर रही थी। घंटी की आवाज सुनते ही उसने फ़ौरन दरवाजा खोल दिया।

अंदर दाखिल होते ही सुनील ने रुखसाना को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। "आहहह दरवाजा तो बंद कर लेने दे!" रुखसाना मचलते हुए बोली। फिर सुनील ने रुखसाना को अपनी बाहों में उठा लिया और उसे उठा कर ड्राइंग रूम में ले आया। फिर उसे सोफ़े के सामने खड़ी करते हुए रुखसाना को पीछे से बाहों में भर लिया और मेरे उसकी गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ने लगा। रुकसाना ने मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं। "हाय सुनील मेरी जान... अच्छा है तू आ गया... मैं तो कल पूरी रात अपने इस दिलबर की याद में तड़पती रही!" रुखसाना उसके लंड को पैंट के ऊपर से दबाते हुए बोली। सुनील कुछ नहीं बोला। वो शायद किसी और ही धुन में था। उसने रुखसाना की गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ना ज़ारी रखा और फिर एक हाथ से रुखसाना की गाँड को पकड़ कर मसलने लगा।

जैसे ही सुनील ने अपने हाथों से रुखसाना के चूतड़ों को दबोच कर मसला तो रुखसाना की तो साँसें ही उखड़ गयी। आज वो बड़ी बेदर्दी से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को अलग करके फैला रहा था और मसल रहा था। उसके कड़क मर्दाना हाथों से अपनी गाँड को यूँ मसलवाते हुए रुखसाना एक दम हवस ज़दा हो गयी उसकी आँखें बंद होने लगी... दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। फिर अचानक ही सुनील के दोनों हाथ रुखसाना की सलवार के आगे जबरदन तक पहुँच गये। रुकसाना ने आज इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई थी। जैसे ही सुनील को एहसास हुआ कि रुखसाना ने इलास्टिक वाली सलवार पहनी हुई है तो उसने दोनों तरफ़ सलवार में अपनी उंगलियों को फंसा कर रुखसाना की सलवार नीचे सरका दी। रुखसाना ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी थी और जैसे ही सलवार नीचे हुई तो सुनील ने उसे सोफ़े की ओर ढकेला। रुखसाना ने हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहनी हुई थी तो सुनील के धकेलने से उसका बैलेंस बिगड़ गया और सोफ़े की और लुढ़क गयी। रुखसाना ने सोफ़े की बैक पर अपने दोनों हाथ जमाते हुए दोनों घुटनों को सोफ़े पर रख लिया।

रुखसाना सोचने लगी कि, "हाय आज क्या सुनील यहाँ ड्राइंग रूम में ही मुझे नंगी करके इस तरह मुझे चोदेगा!" ये सोच कर रुखसाना के चेहरे पर शर्म से सुर्खी छा गयी। "ओहहहह सुनील यहाँ मत करो ना... बेडरूम में चलते हैं...!" रुकसाना ने सिसकते हुए मस्ती में लड़खड़ाती हुई ज़ुबान में सुनील को कहा। पर सुनील नहीं माना और उसने पीछे से रुखसाना की कमीज़ का पल्ला उठा कर उसकी कमर पर चढ़ा दिया। रुखसाना की सलवार पहले से ही उसकी रानों में अटकी हुई थी। फिर रुखसाना को कुछ सरसराहट की आवाज़ आयी तो उसने गर्दन घुमा कर पीछे देखा कि सुनील अपनी पैंट की जेब में से कोई ट्यूब सी निकाल रहा है जिसपे "ड्यूरेक्स के-वॉय जैली" लिखा था। सुनील ने ये अभी घर आते हुए रास्ते में केमिस्ट की दुकान से खरीदी थी। फिर सुनील ने अपनी पैंट और अंडरवियर नीचे किया और धीरे से काफ़ी सारी के-वॉय जैली अपने लंड पर गिरा कर उसे मलने लगा। रुखसाना अपने चेहरे को पीछे घुमा कर अपनी नशीली आँखों से उसे ये सब करता हुआ देख रही थी। फिर सुनील ने जैली की उस ट्यूब को वहीं सोफ़े पर एक तरफ़ उछाल दिया फिर वो रुखसाना के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ कर झुका और अगले ही पल उसके लंड का मोटा गरम सुपाड़ा रुकसाना की चूत की फ़ाँकों को फ़ैलाता हुआ उसकी चूत के छेद पर आ लगा।

रुखसाना को ऐसा लगा मानो चूत पर किसी ने सुलगती हुई सलाख रख दी हो। उसने सोफ़े की बैक को कसके पकड़ लिया। सुनील ने रुखसाना के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर जोर से फैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अंदर घुसता चला गया। रुखसाना एक दम से सिसक उठी, "हाआआआय अल्लाआआआहहह .. मैं मरीईईईई!" सुनील ने अपना लंड जड़ तक उसकी चूत में घुसेड़ा हुआ था। सुनील ने वैसे ही झुक कर फिर से सोफ़े पे पड़ी के-वॉय जैली की वो ट्यूब उठायी और रुखसाना की गाँड के ऊपर करते हुए के-वॉय जैली को गिराने लगा। जैसे ही जैली की पिचकारी रुखसाना की गाँड के छेद पर पड़ी तो वो बुरी तरह से मचल उठी। सुनील ने ट्यूब को नीचे रखा और फिर अपना लंड धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अंदर-बाहर करने लगा।

गाँड से बहती हुई जैली नीचे सुनील के लंड और रुखसाना की चूत पर आने लगी। तभी सुनील ने वो किया जिससे रुखसाना एक दम से उचक सी गयी पर सुनील ने उसे उसकी कमर से कसके पकड़ लिया। दर असल सुनील ने अपनी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया। रुखसाना की कमर को पकड़ते ही सुनील ने तीन चार जबरदस्त वार उसकी चूत पर किये तो चूत बेहाल हो उठी और मस्ती आलम में रुखसाना में मुज़ाहिमत करने की ताकत नहीं बची थी। सुनील ने फिर से रुखसाना की गाँड को दोनों हाथों से दबोच कर फैलाया और फिर अपने दांये हाथ के अंगूठे से रुखसाना की गाँड के छेद को कुरेदने लगा।

रुखसाना की कमर उसके अंगूठे की हर्कत के साथ एक के बाद एक झटके खाने लगी। सुनील का लंड एक रफ़्तार से रुखसाना की चूत के अंदर बाहर हो रहा था और उसका अंगूठा अब रुखसाना की गाँड के छेद को और जोर से कुरेदने लगा था। रुखसाना इतनी गरम हो चुकी थी कि अब वो सुनील की मुखालिफ़त करने की हालत में नहीं थी। वो जो भी कर रहा था रुखसाना मज़े से सिसकते हुए उसका लंड अपनी चूत में लेते हुए करवा रही थी। सुनील ने उसकी गाँड के छेद को अब उंगली से दबाना शुरू कर दिया। के-वॉय जैली की वजह से और सुनील की उंगली की रगड़ की वजह से रुखसाना की गाँड का कुंवारा छेद नरम होने लगा और उसे अपनी गाँड के छेद पर लज़्ज़त-अमेज़ गुदगुदी होने लगी थी जिसे महसूस करके उसकी चूत और ज्यादा पानी बहा रही थी। बेहद मस्ती के आलम में रुखसाना को इस वक़्त कहीं ना कहीं शराब की तलब हो रही थी क्योंकि चार-पाँच दिन उसने शराब के नशे की खुमारी में ही सुनील के साथ चुदाई का खूब मज़ा लूटा था और चुदाई के लुत्फ़ और मस्ती में शराब के नशे की मस्ती की अमेज़िश से रुखसाना को जन्नत का मज़ा मिलता था। फिर सुनील ने अपनी उंगली को धीरे-धीरे से रुखसाना की गाँड के छेद पर दबाया और उंगली का अगला हिस्सा रुखसाना की गाँड के छेद में उतरता चला गया। पहले तो रुखसाना को कुछ खास महसूस नहीं हुआ पर जैसे ही सुनील की आधे से थोड़ी कम उंगली उसकी गाँड के छेद में घुसी तो रुखसाना को तेज दर्द महसूस हुआ। "आआहहह सुनीईईल मत कर.... दर्द हो रहा है!" रुखसाना चींखी तो सुनील शायद समझ गया कि रुखसाना की गाँड का छेद एक दम कोरा है। वो कुछ पलों के लिये रुका और फिर उतनी ही उंगली रुखसाना की गाँड के छेद के अंदर बाहर करने लगा।

सुनील ने रुखसाना की चूत से अपने लंड को बाहर निकाला और फिर गाँड के छेद से उंगली को निकाल कर चूत में पेल दिया और चूत में अंदर-बाहर करते हुए घुमाने लगा। "हाआआय मेरे जानू ये क्या कर रहे हो तुम ओहहह... अपना लंड... मेरा प्यारा दिलबर... उसे मेरी चूत में वापस डाल ना...!" अपनी चूत में अचानक से मोटे लंड की जगह पतली सी उंगली महसूस हुई तो रुखसाना तड़पते हुए बोली। सुनील ने फिर से उसकी चूत में से उंगली बाहर निकाली और चूत में अपना मूसल लंड घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसकी उंगली रुखसाना की चूत के पानी से एक दम तरबतर हो चुकी थी। उसने फिर उसी उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद पर लगाया और रुखसाना की चूत के पानी को गाँड के छेद पर लगाते हुए तर करने लगा। रुखसाना को ये सब थोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन मस्ती में उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सुनील ने फिर से अपनी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में घुसेड़ दी लेकिन इस बार सुनील ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखायी और अगले ही पल उसकी पूरी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में थी।

रुखसाना दर्द से एक दम कराह उठी। भले ही दर्द बहोत ज्यादा नहीं था पर रुखसाना को अब तक सुनील के इरादे का अंदाज़ा हो चुका था और वो सुनील के इरादे से घबरा कर वो कराहते हुए बोली, "हाय सुनील... ये... ये क्या कर रहा है जानू... वहाँ से उंगली निकाल ले... बहोत दर्द हो रहा है!" पर सुनील ने उसकी कहाँ सुननी थी। सुनील अब उस उंगली को रुखसाना की गाँड के छेद में अंदर बाहर करने लगा। रुखसाना को थोड़ा दर्द हो रहा था पर कुछ ही पलों में उसकी गाँड का छेद नरम और फिर और ज्यादा नरम पड़ता गया। उसकी चूत के पानी और के-वॉय जैली ने गाँड के छेद के छाले की सख्ती बेहद कम कर दी थी। अब तो सुनील बिना किसी दुश्वारी के रुखसाना की गाँड को अपनी उंगली से चोद रहा था। रुखसाना भी अब फिर से एक दम मस्त हो गयी। हवस और मस्ती के आलम में रुखसाना को ये भी एहसास नहीं हुआ कि कब सुनील की दो उंगलियाँ उसकी गाँड के छेद के अंदर-बाहर होने लगी। कभी दर्द तो कभी मज़ा... कैसा अजीब था ये चुदाई का मज़ा। फिर सुनील ने अपना लंड रुखसाना की चूत से बाहर निकला और उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। उसकी इस हर्कत से रुखसाना एक दम दहल गयी, "नहीं सुनील.... खुदा के लिये... ऐसा ना कर... मैं दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी..!
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#8
Nice update
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#9
Nice update fast
कायर पति
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#10
मजबूर (एक औरत की दास्तान) By bestforu83 (Tushar)
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#11
(19-07-2023, 11:11 PM)ShakirAli Wrote: मजबूर (एक औरत की दास्तान) By bestforu83 (Tushar)
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अरे मैने कब कहा की ये मैने लिखी हु मुझको ये स्टोरी अच्छी लगी इस लिए यहा पर पोस्ट करी हु बस अगर अल्लाह चाहेंगे तो मै इसमें कुछ फेल बदल करूंगी आगे ...
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#12
[Image: IMG-20230720-070211.jpg]
Azara aur ruksana ke sauahr sath ghumne huye
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#13
Part 7


लेकिन सुनील तो जैसे रुखसाना की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसने दो तीन बार अपने लंड का सुपाड़ा रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ा और फिर धीरे-धीरे उसकी गाँड के छेद पर दबाता चला गया। जैसे ही उसके सुपाड़े का अगला हिस्सा उसकी गाँड के छेद में उतरा तो रुखसाना बिदक कर आगे हो गयी... दर्द बहद तेज था।" नहीं सुनील नहीं... मेरे जानू मुझसे नहीं होगा... प्लीज़ तुझे हो क्या गया है...?" रुख्साना अपने चूतड़ों को एक हाथ से सहलाते हुए रिरिया कर बोली। रुखसाना ने अज़रा को कईं दफ़ा फ़ारूक से अपनी गाँड मरवाते हुए देखा था लेकिन रुखसाना को इस बात का डर था कि एक तो उसकी गाँड बिल्कुल कुंवारी थी और फिर फ़ारूक और सुनील के लंड का कोई मुकाबला नहीं था। सुनील का तगड़ा-मोटा आठ इंच लंबा मूसल जैसा लंड वो कैसे बर्दाश्त करेगी अपनी कोरी गाँड में!

"भाभी जान कुछ भी हो... मुझे आज आपकी गाँड मारनी ही है...!" ये कह कर उसने रुखसाना को सोफ़े से खड़ा किया और उसकी रानों में फंसी सलवार खींच कर उतार दी। फिर उसने रुखसाना को खींचते हुए सामने बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया। फिर रुखसाना की टाँगों को पकड़ कर उसने उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसकी गाँड के छेद पर टिका दिया। रुखसाना समझ चुकी थी कि अब सुनील उसकी एक नहीं सुनने वाला। "आहिस्ता से करना जानू!" रुखसाना ने अपने हाथों में बिस्तर की चादर को दबोचते हुए कहा और अगले ही पल गच्च की एक तेज आवाज़ के साथ सुनील का लौड़ा रुखसाना की गाँड के छेद को चीरता हुआ आधे से ज्यादा अंदर घुस गया। दर्द के मारे रुखसाना का पूरा जिस्म ऐंठ गया... आँखें जैसे पत्थरा गयीं... मुँह खुल गया... और वो साँस लेने के लिये तड़पने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतनी वहशियत से पेश आयेगा।

"बस भाभी हो गया.. बसऽऽऽ हो गया..!" और सुनील ने उतने ही आधे लंड को रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसके हर धक्के के साथ रुखसाना को अपनी गाँड के छेद का छल्ला भी अंदर-बाहर खिंचता हुआ महसूस हो रहा था पर सुनील का लंड के-वॉय जैली और रुखसाना की चूत के पानी से एक दम भीगा हुआ था। इसलिये गाँड का छेद थोड़ा नरम हो गया था और फिर एक मिनट बीता... दो मिनट बीते... फिर तीन मिनट किसी तरह बीते और रुखसाना की गाँड में उठा दर्द अब ना के बराबर रह गया था। अब सुनील के लंड के सुपाड़े की रगड़ से रुखसाना को अपनी गाँड के अंदर की दीवारों पर मज़ेदार एहसास होने लगा था। रुखसाना ज़ोर-ज़ोर से "आआहह ओहह" करती हुई दर्द और मस्ती में सिसकने लगी।

"अभी भी दर्द हो रहा है क्या भाभी!" सुनील ने अपने लंड को और अंदर की ओर ढकेलते हुए पूछा। "आँआँहहह हाँ थोड़ा सा हो रहा है... ऊँऊँहहह लेकिन अब मज़ाआआ भी आआआँ रहा है आआआहहह...!" रुखसाना सिसकते हुए बोली। धीरे-धीरे अब सुनील का पूरा का पूरा लंड रुखसाना की गाँड के अंदर-बाहर होने लगा और दर्द और मस्ती की तेज़-तेज़ लहरें अब रुखसाना के जिस्म में दौड़ रही थी। काले रंग के ऊँची हील वाले सैंडल में रुखसाना के गोरे-गोरे पैर जो सुनील के कंधों पर थे उन्हें रूकसाना ने मस्ती में सुनील की गर्दन के पीछे कैंची बना कर कस लिया। रुखसाना का एक हाथ उसकी खुद की चूत के अंगूर को रगड़ रहा था। धीरे-धीरे सुनील के धक्कों की रफ़्तार बढ़ने लगी और फिर वो रुखसाना की गाँड के अंदर झड़ने लगा। उसके साथ ही रुखसाना की चूत ने भी धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। सुनील ने अपना लंड बाहर निकाला और रुखसाना की कमीज़ के पल्ले से उसे पोंछ कर उसने आगे झुक कर रुखसाना के होंठों पे चूमा और फिर ये बोल कर कमरे से बाहर चला गया कि उसे जल्दी से वापस स्टेशन पहुँचना है। रुखसाना थोड़ी देर लेटी रही और सुनील भी वापस चला गया। थोड़ी देर बाद रुखसाना उठी और बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गाँड को अच्छे से साफ़ किया और बाहर आकर अपनी सलवार पहन कर फिर लेट गयी। उसकी गाँड में मीठी-मीठी सी कसक अभी भी उठ रही थी।

शाम को सुनील घर वापस आया तो सानिया भी कॉलेज से वापस आ चुकी थी। सुनील ऊपर चला गया। शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और लाइट एक बार फिर से गुल थी। सानिया पढ़ने के बहाने ऊपर छत पर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। रुखसाना नीचे काम में मसरूफ़ थी। जब सुनील ने सानिया को बाहर छत पर देखा तो वो भी रूम से निकल कर बाहर आ गया और हवा खाने के लिये इधर उधर टहलने लगा। सानिया चोर नज़रों से बार-बार सुनील की ओर देख रही थी।

"कैसा रहा आज कॉलेज में?" सुनील ने सानिया के पास से गुज़रते हुए पूछा तो सानिया उसकी के आवाज़ सुन कर एक दम चौंकी और फिर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा रहा...!"

सुनील फिर से सानिया के पास से गुज़रते हुए बोला, "एक बात पूछूँ?" सानिया ने अपनी नज़रें किताब में गड़ाये हुए कहा, "पूछो!"

"क्या कॉलेज में ऐसे टाइट कपड़े पहन कर जाना जरूरी है... सलवार कमीज़ पहन कर नहीं जा सकते?" सानिया को सुनील के ये सवाल अजीब सा लगा तो वो बोली, "क्यों... सभी लड़कियाँ ऐसे ही कपड़े पहनती हैं इसमें क्या गलत है?"

"नहीं गलत तो नहीं है पर वो बस जब तुम कॉलेज के अंदर जा रही थी तो सामने से दो लड़के आ रहे थे बाहर की तरफ़ और तुम्हारे बारे में कुछ गलत कह रहे थे!" सुनील बोला।

"क्या बोल रहे थे वो?" सानिया ने पूछा तो सुनील बोला, "छोड़ो तुम... मैं तुम्हे नहीं बता सकता कि कैसे-कैसे गंदे कमेंट कर रहे थे तुम्हारे बारे में!" ये सुनकर सानिया बीच में ही बोली, "वो लड़के हैं ही ऐसे आवारा... उनके तो कोई मुँह भी नहीं लगता!"

सुनील ने आगे कहा, "वैसे वो जो भी बोल रहे थे तुम्हारे बारे में... है तो वो सच!" सुनील की बात सुन कर सानिया हैरान-परेशान रह गयी और उसके मुँह से निकला, "क्या?"

"हाँ सच कह रहा हूँ अगर समय आया तो तुम्हें जरूर बताऊँगा कभी!" ये कह कर सुनील अपने कमरे में चला गया। सानिया ऐसी बातों से अंजान नहीं थी। बीस साल की कॉलेज में पढ़ने वाली आज़ाद ख्यालों वाली काफ़ी तेज तर्रार लड़की थी। पंद्रह-सोलह साल की उम्र में ही उसने खुद-लज़्ज़ती करनी शुरू कर दी थी। कॉलेज में अपनी सहेलियों से उनके बॉय-फ्रेंड्स के साथ चुडाई के किस्से भी सुनती थी तो दिल तो उसका भी बेहद मचलता था लेकिन खुद को अभी तक उसने किसी लड़के को छूने नहीं दिया था। उसे रोमांटिक और सैक्सी कहानियाँ-किस्से पढ़ने का बेहद शौक था और हर रोज़ रात को केले ये मोमबत्ती से खुद-लज़्ज़ती करके अपनी चूत का पानी निकालने के बाद ही सोती थी। भले ही उसकी चूत में आज तक कोई लंड नहीं घुसा था लेकिन वो मोमबत्ती या बैंगन जैसी बेज़ान चीज़ों से अपनी सील पता नहीं कब की तोड़ चुकी थी॥

खैर उस रात कुछ खास नहीं हुआ। सानिया की मौजूदगी में सुनील और रुखसाना दूर-दूर ही रहे। रुखसाना की गाँड में वैसे अभी तक दर्द की मीठी-मीठी लहरें रह-रह कर उठ जाती थीं और वो अपनी गाँड सहलाते हुए उस रात खूब सोयी। अगले दिन फ़ारूक भी वापस आ गया। फ़ारूक के आने से वैसे ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा क्योंकि वो तो अपनी बीवी पे ज़रा भी ध्यान देता नहीं था और रात को शराब के नशे में इतनी गहरी नींद सोता था कि अगर रुकसाना उसकी बगल में भी सुनील से चुदवा लेती तो फ़रूक को पता नहीं चलता। सबसे बड़ा खतरा सानिया से था क्योंकि वो शाम को कॉलेज से घर आने के बाद ज्यादातर घर पे ही रहती थी और उसकी खुद की भी नज़र सुनील पे थी। अब तो सुनील और रुखसाना को कभी चार-पाँच मिनट के लिये भी मौका मिलता तो दोनों आपस में लिपट कर चूमते हुए एक दूसरे के जिस्म सहला लेते या कभी रुखसाना खाना देने के बहाने ऊपर जाकर सुनील के कमरे में कभी उससे लिपट कर उसके साथ खूब चूमा-चाटी करती और कभी उसका लंड चूस लेती या कभी मुमकिन होता तो दोनों जल्दबाजी में चुदाई भी कर लेते लेकिन पहले की तरह इससे ज्यादा मौका उन्हें नहीं मिल रहा था। रुखसाना तो सुनील के लंड की बेहद दीवानी हो चुकी थी। अगले दो-तीन हफ़्तों में एक-दो बार तो फ़ारूक को बेडरूम में गहरी नींद सोता छोड़कर रात के दो बजे रुखसाना ने सुनील के कमरे में जाकर उससे चुदवाया लेकिन खौफ़ की वजह से रुखसाना बार-बार ऐसी हिम्मत नहीं कर सकती थी। चुदाई का सबसे अच्छा मौका दोनों को तब मिलता जब हफ़्ते में एक-दो बार सुनील मौका देखकर दोपहर को स्टेशन पे कोई बहाना बना कर थोड़ी के लिये घर आ जाता और फिर दोनों अकेले में मज़े से चुदाई कर लेते। सुनील का मन होता तो रुखसाना खुशी-खुशी उससे अपनी गाँड भी मरवा लेती। अब तो रुखसाना के जिस्म में हवस ऐसे जाग गयी थी की सुनील का तसव्वुर करते हुए उसे रोज़ाना कमज़ कम एक-दो दफ़ा किसी बेजान चीज़ के ज़रिये खुद-लज़्ज़ती करनी पड़ती थी।

एक दिन ऐसे ही रुखसाना को दोपहर में चोदने के बाद सुनील वापस स्टेशान पहुँचा और अपनी टेबल पे जा कर काम में मसरूफ़ हो गया। जिस कमरे में सुनील का टेबल था उस कमरे में तीन बड़े कैबिन भी बने हुए थे जो ऊपर से खुले थे। एक तरफ़ स्टेशन मास्टर अज़मल का कैबिन था और सुनील के पीछे की तरफ़ दो और कैबिन थे जिनमें रशीदा और नफ़ीसा नाम की औरतें बैठती थीं। सुनील का अपना कैबिन नहीं था और उस कमरे में एक खिड़की के पास थोड़ी सी जगह में सुनील की टेबल थी। जब भी कोई उन तीन कैबिन में आता-जाता तो सुनील के पीछे से गुज़र कर जाता था।

रशीदा और नफ़ीसा दोनों ही रेलवे में काफ़ी सीनियर ऑफ़िसर थीं और दोनों सीधे डिविज़नल ऑफिस में रिपोर्ट करती थीं। रशीदा की उम्र चवालीस-पैंतालीस के करीब थी और उसके बच्चे अमरीका में पढ़ाई कर रहे थे और उसके शौहर कोलकाता में एक बड़ी मल्टीनेश्नल कंपनी में काफ़ी ऊँची पोस्ट पे काम करते थे। रशीदा अपनी बुजुर्ग सास के साथ तीन बेडरूम के बड़े फ्लैट में रहती थी उसके शौहर महीने में एक-दो बार आते थे। रशीदा ने कोलकाता के लिये अपने ट्राँसफ़र की अर्ज़ी भी रेलवे में लगा रखी थी। रशीदा अपने शौहर के साथ कईं दूसरे मुल्कों की सैर भी कर चुकी थी। रशीदा काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली औरत थी... और बेहद रंगीन मिजाज़ थी। शादीशुदा ज़िंदगी के बीस-इक्कीस सालों में वो करीब डेढ़-दो दर्जन लंड तो ले ही चुकी थी पर वो हर किसी ऐरे-गैरे के साथ ऐसे ही रिश्ता नहीं बना लेती थी।

नफ़ीसा भी रशीदा की हम-उम्र थी और उसी की तरह काफ़ी पढ़ी लिखी और आज़ाद खयालों वाली रंगीन औरत थी। नफ़ीसा का एक ही बेटा था जो अलीगढ़ युनीवर्सिटी में पढ़ रहा था। उसके शौहर का तीन साल पहले बहुत बुरा हादसा हो गया था जिसकी वजह से उसके शौहर को लक़वा मार गया था और वो बिस्तर पर ही पड़े रहते थे। उनकी देखभाल के लिये उन्होंने एक कामवाली को रखा हुआ था जो उनके सरे काम करती थी। नफ़ीसा के शौहर हादसे से पहले इंकम टैक्स कमीश्नर थे और अब उन्हें अच्छी पेंशन मिलती थी और पहले भी नम्बर-दो का खूब पैसा कमाया हुआ था। उनकी माली हालत बेहद अच्छी थी। नफ़ीसा शहर से थोड़ा सा बाहर अपने खुद के बड़े बंगले में रहती थी जो उसके शौहर का पुश्तैनी घर था। घर काफ़ी बड़ा था जिसमें छः बेडरूम थे... तीन नीचे और तीन पहली मंजिल पर और इसके अलवा बड़ा लॉन और स्विमिंग पूल भी था। नफ़ीसा कद-काठी और शक़्ल-सूरत में बिल्कुल बॉलीवुड की हिरोइन ज़रीन खान की तरह दिखती थी। जहाँ तक उसकी रंगीन मिजाज़ी का सवाल है तो नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा से भी बहुत आगे थी। शादी से पहले भी और शादी के बाद अब तक नफ़ीसा अनगिनत लंड ले चुकी थी और वो अमीर-गरीब... जान-अंजान... कमिस्न लड़कों से बूढ़ों तक हर तरह के लोगों से चुदवा चुकी थी। चुदाई के मामले में नफ़ीसा किसी तरह का कोई गुरेज़ नहीं करती थी। हकीकत में चाहे कभी अमल न किया हो लेकिन तसव्वुर में तो अक्सर जानवरों से भी चुदवा लेती थी।

तो दोनों औरतें में काफ़ी बातें एक जैसी थीं। दोनों ही खूभ पढ़ी-लीखी और अच्छे पैसे वाले घरों से होने के साथ-साथ खुद भी ऊँची पोस्ट पे काम करती थीं। दोनों ही काफी खूबसूरत और सैक्सी फिगर वाली चुदैल औरतें थीं और दोनों खूब बन-ठन कर अपनी-अपनी कारों से काम पे आती थीं। इसके अलावा दोनों सिर्फ़ गहरी सहेलियाँ ही नहीं थी बल्कि उनका आपस में जिस्मानी लेस्बियन रिश्ता भी था।

शाम के वक़्त अपना काम निपता कर सुनील अपनी कुर्सी पर आँखें मूँद कर बैठ गया और स्टेशन मास्टर अज़मल भी बाहर निकल गया था। अज़मल बाहर गया तो उधर दोनों औरतें शुरू हो गयी। नफ़ीसा अपने कैबिन में से निकल कर सुनील के सामने रशीदा के कैबिन में जा कर बैठ गयी। "और रशीदा कल तो तेरे हस्बैंड आये हुए थे... खूब चुदाई की होगी तुम लोगों ने...!" नफ़ीसा चहकते हुए बोली तो रशीदा ने उसे खबरदार करते हुए कहा, "शशशऽऽऽ अरे धीरे बोल... वो नया लड़का सुनील भी है... अगर उसने सुन लिया तो..!"

नफ़ीसा बोली, "अरे सुन लेगा तो क्या होगा... उसके पास भी तो लंड है... और सारी दुनिया करती है ये काम हम क्यों किसी से डरें..!"

"अरे नहीं यार अच्छा नहीं लगता... अगर सुन लेगा तो क्या सोचेगा बेचारा..!" रशीदा ने कहा तो नफ़ीसा उसे टालते हुए बोली, "तू वो छोड़.. बता ना... कल तो जरूर तेरी गाँड का बैंड बजाया होगा खुर्शीद साहब ने..!"

रशीदा मायूस से लहज़े में बोली, "अब उनमें वो बात नहीं रही यार... ऊपर से इतनी तोंद बाहर निकल लायी है.. दो तीन धक्कों में ही उनकी साँस फूलने लगती है..!"

"तो मतल्ब कुछ नहीं हुआ हाऽऽ...?" नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा बोली, "अरे नहीं वो बात नहीं है... पर अब वो मज़ा नहीं रहा... एक तो उनका मोटापा और अब उम्र का असर भी होने लगा है... कितनी बार कह चुकी हूँ कि जिम जाया करें... कसरत वसरत करने... पर मेरी सुनते ही कहाँ है वो..!"

"मतलब तेरी गाँड का बैंड नहीं बजा इस बार हेहेहे!" नफ़ीसा हंसते हुए बोली। "अरे कहाँ यार... चूत और गाँड दोनों मारी... पर बड़ी मुश्किल से चार पाँच धक्के में उनका पानी निकल जाता है... अब तो काफ़ी वक़्त से लंड भी ढीला पड़ने लगा है... तुझे तो मालूम ही है... जब तक लौड़ा इंजन के पिस्टन की तरह चूत को चोद-चोद कर पानी नहीं निकाले और गाँड मराते हुए से पुर्रर्र- पुर्रर्र की आवाज़ ना आये तो मज़ा कहाँ आता है और उसके लिये मोटा सख्त लंड चाहिये.... तू सुना तेरी कैसी चल रही है... तेरा भतीजा तो तेरी गाँड की बैंड तो बजा ही रहा होगा..!"

नफ़ीसा मायूस होकर बोली, "हम्म्म क्या यार... क्यों दुखती रग़ पर हाथ रखती हो यार... उसकी अम्मी ने एक दिन देख लिया था तब से वो घर नहीं आया...!"

.

"चल पहले तो काफी ऐश कर ली तूने उसके साथ... देख कितनी मोटी गाँड हो गयी है तेरी..." रशिदा बोली।

"यार चूत तक तो ठीक था लड़का पर साले का पाँच इंच का लंड क्या खाक मेरी गाँड की बैंड बजाता... सिर्फ़ दो इंच ही अंदर जाता था... बाकी दो-तीन इंच तो चूतड़ों में ही फँस कर रह जाता था...!" नफ़ीसा की ये बात सुनकर रशीदा खिलखिला कर जोर से हंसने लगी। "रशीदा तुझे वो आदमी याद है... जो उस दिन इस स्टेशन पर गल्ती से उतर गया था..." नफ़ीसा की बात सुनते ही रशीदा की चूत से पानी बाहर बह कर उसकी पैंटी को भिगोने लगा और वो आह भरते हुए बोली, "यार मत याद दिला उसकी... साले का क्या लंड था... एक दम मूसल था मूसल..!"

"हाँ यार... मर्द हो तो वैसा... साले ने हम दोनों की गाँड रात भर बजायी थी... गाँड और चूत दोनों का ढोल बजा दिया था... कैसे गाँड से पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें निकल रही थी तेरी..." नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने भी पलट कर हंसते हुए कहा, "और तेरी गाँड ने क्या कम पाद मारे थे... साले के धक्के थे ही इतने जबरदस्त कि साली गाँड हवा छोड़ ही देती थी पर हम दोनों ने भी मिलकर सुबह तक उसे गन्ने की तरह चूस डाला था।"

"हाँ रशीदा यार! मेरी तो अभी से गाँड और चूत में खुजली होने लगी है... कुछ कर ना यार... कहीं से लंड का इंतज़ाम कर!" नफ़ीसा ने आह भरते हुए कहा तो रशीदा बोली, "यार वैसे लौंडे तो बहोत पीछे है पर साला काम का कौन सा है... पता नहीं चलता!"

ये सुनकर नफ़ीसा भी बोली, "यार मेरा भी यही हाल है... कितनों के साथ कोशिश करके देख चुकी हूँ लेकिन वो मज़ा नहीं आया! पर मैं नज़रें जमाये हुए हूँ... तू भी देख शायद कोई काम का लौंडा मिल जाये... वैसे हम दोनों तो हैं ही एक-दूसरे के लिये..... आजा मेरे घर आज रात को...!"

उधर कैबिन के बाहर अपनी कुर्सी पे बैठा सुनील उनकी बातों को सुन कर एक दम हैरान था। उनकी बातें सुन कर उसका लंड एक दम तन चुका था और अब दर्द भी करने लगा था। सुनील इतना तो जान ही गया था कि ये साली दोनों हाई-क्लॉस और शरीफ़ दिखाने वाली औरतें कितनी चुदैल हैं और उसे अब उनकी दुखती रग का भी पता था। नफ़ीसा और रशीदा दोनों बेहद सैक्सी जिस्म वाली खूबसूरत औरतें थीं। दोनों करीब साढ़े पाँच फुट लंबी थीं। दोनों ज्यादातर सलवार-कमीज़ ही पहनती थीं और ऊँची पेन्सिल हील वाली सेन्डल पहनने से उनकी बड़ी-बड़ी गाँड बाहर की ओर निकली हुई होती थी। सुनील पहले भी अक्सर चोर नज़रों से इन दोनों औरतों को देखा करता था... खासतौर पर इसलिये कि उसे ऊँची हील के सैंडल पहनने वाली औरतें खास पसंद आती थीं। लेकिन ये दोनों औरतें काफी रोबदार और सीनियर ऑफ़िसर थीं और वो महज़ नया-नया कलर्क लगा था... इसलिये रोज़ सुबह की औपचारिक सलाम-नमस्ते के अलावा कभी उनसे कोई बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी। डिपार्टमेंट भी अलग होने की वजह से सुनील का उनसे कोई काम भी नहीं पड़ता था कि कोई काम को लेकर ही बात हो पाती। लेकिन अब वो उन दोनों की असलियत जान गया था।

अगले दिन सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर और टी-शर्ट पहन कर ही स्टेशन पर गया। ये सुनील ने पहले से प्लैन कर रखा था। जब सुनील स्टेशन पर पहुँचा तो अज़मल ने सुनील से पूछा, "अरे यार क्या बात है... आज नाइट सूट में ही चले आये हो... खैरियत तो है..?"

"हाँ सर सब ठीक है.. बस थोड़ी सी तबियत खराब थी... इसलिये नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया... ऐसे ही चला आया..!" सुनील ने सफ़ाई पेश की तो अज़मल बोला, "यार अगर तबियत खराब थी तो फ़ोन कर देते... और आज घर पर आराम कर लेते..!"

सुनील बोला, "सर घर में पड़ा-पड़ा भी बोर हो जाता.. और वैसे भी यहाँ काम होता ही कितना है..!"

अज़मल ने कहा कि "हाँ वो तो है... वैसे दवाई तो ली है ना?"

"जी सर ले ली है..!" ये कहकर सुनील जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और फाइल खोलकर अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा और रशीदा भी आ गयीं और सुनील से 'गुड मोर्निंग' के बाद वो भी अपने-अपने कैबिन में जा कर अपने कामों में मसरूफ़ हो गयीं।

थोड़ी देर बाद अज़मल प्लैटफ़ोर्म पर राउँड पे चला गया और उसके थोड़ी देर बाद रशीदा अपने कैबिन से बाहर निकली कर टॉयलेट की तरफ़ गयी तो मार्बल चिप वाले सिमेंट के पर्श पे सैंडल खटखटाती हुई वो सुनील के पीछे से गुजरी। दो छोटे-छोटे टॉयलेट उसी रूम में पीछे की तरफ़ थे जिनमें एक लेडीज़ था और एक जेंट्स का। सुनील की नज़र जैसे ही तंग कमीज़ और चुड़ीदार सलवार में कैद रशीदा की गाँड पर पड़ी तो उसका लंड तुनक उठा और उसका लंड ट्रैक-सूट के पजामे में कुलांचें मारने लगा। सुनील ने जो प्लैन सोचा था अब उसको काम में लाने का समय आ गया था। "आहह कैसी दिखती होगी रशीदा की गाँड... कितनी मोटी गाँड है साली की... एक बार मिल जाये तो आहहह.!" ये सोचते हुए सुनील का लंड पूरी औकात में आ गया। सुनील का लंड उसके ट्रैक-सूट के पजामे में तन कर तम्बू सा बन गया जो बाहर से देखने से साफ़ पता चल रहा था। थोड़ी देर बाद जब रशीदा के ऊँची हील के सैंडलों की फर्श पे खटखटा कर चलने की आवाज़ आयी तो सुनील अपनी पीठ पीछे टिका कर कुर्सी पर लेट सा गया और अपने पायजामे के ऊपर से अपने लंड को जड़ से पकड़ लिया ताकि वो ज्यादा से ज्यादा बड़ा दिख सके। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वही हुआ जो सुनील चाहता था। जब रशीदा वापस आयी और सुनील के पीछे से गुज़रने लगी तो उसकी नज़र सुनील पर पड़ी जो अपने हाथ से अपने लंड को पायजामे के ऊपर से पकड़े हुए था। रशीदा एक दम धीरे-धीरे चलने लगी और सुनील के लंड का मुआयना करने लगी पर वो रुक नहीं सकती थी और वो वापस अपने कैबिन में गयी और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने नफ़ीसा को धीरे से बुलाया और अपने कैबिन में आने को कहा। नफ़ीसा अपने कैबिन से निकल कर रशीदा के कैबिन में गयी और एक कुर्सी रशीदा के करीब सरका कर बैठ गयी।

रशीदा धीरे से बोली, "अरे यार नफ़ीसा! लगता है आज सुनील का लंड उसे तंग कर रहा है... देख साला बाहर कैसे अपने लंड को पकड़ कर बैठा है!"

.

नफ़ीसा ने पूछा, "तूने देखा क्या उसे अपना पकड़े हुए...?"

रशीदा बोली, "हाँ अभी देखा है... जब मैं टॉयलेट से वापस आ रही थी... यार देख तो सही!"

.

नफ़ीसा उठी और रशीदा के कैबिन से निकल कर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। जब वो सुनील के पीछे से गुजरी तो उसने तिरछी नज़रों से सुनील की तरफ़ देखा जो अभी भी अपने आँखें बंद किये हुए कुर्सी पे आधा लेटा हुआ था। सुनील ने अभी भी अपना लंड हाथ में पायजामे के ऊपर से थाम रखा था। नफ़ीसा अच्छे से तो नहीं देख पायी और वो टॉयलेट में चली गयी। नफ़ीसा के जाने के बाद सुनील उठा और टॉयलेट की तरफ़ चला गया। वो जेंट्स टॉयलेट में घुसा और जानबूझ कर कुछ "आहह आहहह" की आवाज़ की और अपने पजामे को नीचे सरका दिया।

सुनील को पता था कि अज़मल जल्दी वापस नहीं आने वाला था। सुनील ने अपने टॉयलेट का दरवाजा थोड़ा सा खोल रखा था और दीवार की तरफ़ देखते हुए अपने लंड को हाथ से सहलाने लगा। नफ़ीसा बगल वाले टॉयलेट में बैठी हुई सुनील की आवाज़ सुन कर चौंक गयी। वो टॉयलेट से बाहर आयी तो उसने देखा कि साथ वाले जेंट्स टॉयलेट का दरवाजा ज़रा सा खुला हुआ था। अंदर लाइट जल रही थी जिससे अंदर का नज़ारा साफ़ दिखायी दे रहा था। नफ़ीसा धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दीवार से सटते हुए उसने अंदर झाँका। उसके ऊँची हील वाले सैंडल की आवाज़ ने सुनील को उसकी मौजूदगी से आगाह करवा दिया। सुनील ने अपने लंड को जड़ से पकड़ कर दबाया और उसका लंड और लंबा हो गया। जैसे ही नफ़ीसा ने अंदर देखा तो उसका केलजा मुँह को आ गया।

अंदर सुनील अपने मूसल जैसे लंड को हिला रहा था। सुनील के अनकटे लंड की लंबाई और मोटाई देख कर नफ़ीसा की चूत कुलबुलाने लगी और गाँड का छेद फुदकने लगा। सुनील ने थोड़ी देर अपने लंड का दीदार नफ़ीसा को करवाया और ट्रैक सूट का पायजामा ऊपर करने लगा। नफ़ीसा जल्दी से वापस रशीदा के कैबिन में गयी और रशीदा के पास आकर बैठ गयी। उसकी साँसें उखड़ी हुई थी और आँखों में जैसे हवस का नशा भरा हो। "क्या हुआ नफ़ीसा... तेरी साँस क्यों फूली है...?" रशीदा ने नफ़ीसा के सुर्ख चेहरे और उखड़ी हुई साँसों को देख कर पूछा। "पूछ मत यार... क्या लौड़ा है साले अपने नये हीरो का... माशाल्लह... इतना बड़ा और मूसल जैसा लंड... साला जैसे गाधे का लंड हो...!"

रशीदा: "क्या बोल रही है यार तू...?"

नफ़ीसा: "सच कह रही हूँ यार... तू भी अगर एक दफ़ा देख लेती तो तेरी चूत में भी बिजलियाँ कड़कने लगती... साले का ये लंबा लंड है... और इतना मोटा...!" नफ़ीसा ने हाथ से इशारा करते हुए दिखाया।

रशीदा: "सच कह रही है तू?"

नफ़ीसा: "हाँ सच में तेरी इस मोटी गाँड की कसम...!"

रशीदा: "चुप कर रंडी... साली जब देखो मेरी गाँड के पीछे ही पड़ी रहती है...!"

नफ़ीसा: "तो क्या बोलती है... साले चिकने को फंसाया जाये...?"

रशीदा: "पता नहीं यार... हमारे साथ जॉब करता है और बहोत जुनियर भी है... और जवान खून है... अगर साले ने बाहर किसी के सामने कुछ बक दिया तो खामाखाँ मसला हो जायेगा!"

नफ़ीसा: "अरे यार कुछ नहीं होता... तू तो हमेशा ऐसे ही ऐसे ही बेकार में घबराती है... साले को साफ़-साफ़ बोल देंगे कि मज़ा लो और अपना-अपना रास्ता नापो... बोल तू बात करेगी या मैं करूँ उससे बात!"

रशीदा: "अच्छा-अच्छा मैं देखती हूँ... पहले ये तो मालूम हो कि साले का लौड़ा चूत और गाँड मारने के लिये बेकरार है भी या नहीं...!"

नफ़ीसा: "यार कुछ भी कर पर जल्दी कर... मेरी चूत और गाँड दोनों छेदों में खुजली हो रही है... जब से उसका लंड देखा है..!"

रशीदा: "हाँ-हाँ पता है... इसी लिये तुझे बात करने नहीं भेज रही... तू तो वहीं सलवार खोल के खड़ी हो जायेगी उसके सामने... अब तू अपने कैबिन में जा कर बैठ... मैं देखती हूँ कि अपना चिकना हाथ आने वाला है कि नहीं...!"

नफ़ीसा अपने कैबिन में वापस चली गयी और रशीदा उठ कर सुनील के पास गयी और सुनील के पास जाकर कुर्सी पर बैठते हुए हंस कर बोली, "और सुनील कैसे हो... क्या बात है आज बड़े फ़ॉर्मल कपड़ों में जोब पर चले आये..!"

नफ़ीसा के इस तरह अचानक अपनी टेबल पे बैठ कर उससे बात करने से सुनील पहले तो थोड़ा घबरा गया लेकिन जल्दी ही संभल गया। उसे उम्मीद तो थी ही कि दोनों औरतों में कोई तो पहल करेगी। सुनील संभलते हुए बोला, "वो मैडम बस ऐसे ही... आज तबियत थोड़ी खराब थी... नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया तो ऐसे ही चला आया..!"
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#14
Part 8
रसीदा और नफ़िज़ा चुदने की फिराक मे सुनील से

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रशीदा थोड़ा सा झुक कर अपना दुपट्टा गर्दन में ऊपर खींच कर सुनील को अपनी कमीज़ के गहरे गले से अंदर कैद दोनों खरबूजों के बीच की घाटी का दीदार करवाती हुई बोली, "उफ़्फ़ ये गरमी भी ना... और कहाँ पर रह रहे हो!"

सुनील: "ये वो जो ट्रेफ़िक डिपार्ट्मेंट में ऑफ़िसर हैं ना फ़ारूक साहब... उन्ही के घर पर पेईंग गेस्ट रह रहा हूँ!"

रशीदा: "अच्छा वो फ़ारूक... कितना किराया ले रहा है वो तुमसे?"

सुनील: "ये खाने का मिला कर साढ़े-तीन हज़ार रुपये दे रहा हूँ..!"

रशीदा: "ये तो बहोत ज्यादा है... पहले बताया होता तो तुम्हें नफ़ीसा के घर में रूम दिलवा देती... उसका इतना बड़ा बंगला है... और रहने वाले सिर्फ़ दो जने हैं... बेटा उनका बाहर अलीगढ़ में पढ़ रहा है...!"

.

सुनील: "कोई बात नहीं मैडम मैं ठीक हूँ... कोई दिक्कत नहीं है वहाँ!"

रशीदा: "और कभी हमारे साथ भी बैठ कर बातें वातें कर लिया करो... यूँ अकेले बैठे-बैठे बोर नहीं हो जाते?"

सुनील: "जी मैडम जरूर... वो बस मैं सोचता था कि आप दोनों इतनी सीनियर हैं तो शायद आप दोनों को बुरा ना लगे कि मैं आपको परेशान कर रहा हूँ!"

रशीदा: "अरे सीनियर्स के साथ क्या बातें करने की कोई पाबंदी है.. हम क्या खा जायेंगी तुम्हें!"

सुनील: "ओहह सॉरी मैडम मेरा मतलब वो नहीं था... वैसे मैं भी बोर हो जाता हूँ... घर जाकर भी अकेले रूम में बैठा-बैठा उकता जाता हूँ..!"

रशीदा: "तुम्हारे कोई दोस्त या कोई गर्ल-फ़्रेंड नहीं है क्या..!"

सुनील: "जी नहीं मैडम वैसे भी नया हूँ यहाँ पे...!"

रशीदा: "इसी लिये तो कह रही हूँ... ज़रा मिलोजुलो लोगों से... बातचीत करो... तुम हैंडसम हो... अच्छी शक़्ल सूरत है... बॉडी भी अच्छी बनायी हुई है... क्या प्रॉब्लम हो सकती है!"

सुनील: "पर मैडम आप तो जानती है ना... आज कल की लड़कियों को बस महंगे-महंगे गिफ़्ट चाहिये और बदले में क्या... बस पैसे बर्बाद..!"

रशीदा: "अच्छा शाम को क्या कर रहे हो..?"

सुनील: "जी मैडम... कुछ खास नहीं!"

रशीदा: "तो चलो आज नफ़ीसा के घर में पार्टी करते हैं... ड्रिंक तो कर ही लेते हो ना?"

सुनील: "जी कभी-कभी!"

रशीदा: "और कोई शौक भी है तो बता दो... उसका अरेंजमेंट भी कर लेंगे..!"

सुनील: "जी शौक तो बहुत हैं... जैसे-जैसे जान पहचान बढ़ेगी... आपको पता चल जायेगा...!"

रशीदा: "अच्छा ऐसी बात है... चलो देखते हैं..!"

इस दौरान सुनील बार-बार रशीदा की बड़ी- बड़ी चूचियों को उसकी कमीज़ के गहरे गले में से देख रहा था और रशीदा टाँग पर टाँग चढ़ा कर बैठी हुई अपनी टाँग हिला रही थी तो सुनीळ की नज़रें उसके ऊँची हील वाले कातिलाना सैंडल से भी नहीं हट रही थी। रशीदा भी सुनील के लंड को ट्रैक-पैंट में झटके खाता हुआ साफ़ देख रही थी। फिर रशीदा उठी और अपनी मोटी गाँड मटकाते हुए जाने लगी। "भूलना नहीं आज शाम नफ़ीसा के घर पर... नफ़ीसा से घर का अड्रेस समझ लेना..." रशीदा ने जाते हुए कहा।

थोड़ी देर बाद नफ़ीसा उसके पास आयी, "तो क्या इरादा है सुनील!" सुनील ने चौंक कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा... "जी मैडम इरादा तो नेक है बस आपके हुक्म का इंतज़ार है...!" नफ़ीसा अपने होंठों को दाँतों में दबाते हुए बोली, "अच्छा ये लो इसमें मेरा अड्रेस लिखा है और मोबाइल नम्बर भी... अगर रास्ता ढूँढने में तकलीफ़ हो तो फ़ोन कर देना!"

सुनील: "जी मैडम ठीक है... वैसे आपके घर वाले मतलब आपके हस्बैंड को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?"

नफ़ीसा: "अरे नहीं... वो तो बिल्कुल पेरलाइज़्ड हैं... बिस्तर से उठ तक नहीं सकते हैं!" ये कह कर नफ़ीसा भी चली गयी।

दोनों औरतें शाम को एक घंटा पहले ही निकल गयीं। दोनों पहले रशीदा के फ़्लैट में गयी और वहाँ पर रशीदा ने अपनी एक सलवार-कमीज़... नाइटी... सैंडल वगैरह और कुछ समान लिया। रशीदा ने अपनी सास को भी बताया कि वो आज रात को नफ़ीसा के घर पर ही रहेगी। ये कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि वो अक्सर नफ़ीसा के घर रात बिताया करती थी। रशिदा ने अपनी कार नहीं ली और दोनों नफ़ीसा की कार में ही उसके घर की तरफ़ रवाना हो गयीं। नफ़ीसा ने रस्ते में से खाने पीने की कुछ चीज़ें खरीदीं और फिर घर पहुँची।

घर आकर उसने अपनी नौकरानी ज़ोहरा को बुलाया। उसने ज़ोहरा को रात का खाना तैयार करने के लिये कहा और उसे कहा कि वो गोल्ड-फ्लेक सिगरेट के दो पैकेट और ऑफिसर चाइस व्हिस्की की दो बोतलें अपने शौहर से मंगवा दे। ये भी कोई नयी बात नहीं थी क्योंकि नफ़ीसा अक्सर ज़ोहरा के शौहर के ज़रिये शराब और सिगरेट खरीदवाया करती थी। नफ़ीसा ने उसे पैसे दिये और ज़ोहरा पास ही अपने घर चली गयी। उसका शौहर जाकर सिगरेट के पैकेट और व्हिस्की की बोतलें ले आया और ज़ोहरा ने वो नफ़ीसा को लाकर दे दी। रात के चुदाई की पार्टी का इंतज़ाम हो चुका था और दोनों चुदैल औरतें नया बकरा हलाल करने के लिये बेकरार थीं।

दूसरी तरफ़ सुनील ने भी अपना काम खतम किया और स्टेशन से बाहर आकर अपना मोबाइल निकाल कर घर पर फ़ोन किया। फ़ोन सानिया ने उठाया तो सुनील ने उसे कहा कि आज रात कुछ जरूरी काम से उसे स्टेशन पर ही रुकना पड़ेगा। सुनील कुछ देर बज़ार में घूमता रहा। जब अंधेरा होने लगा तो उसका फ़ोन बजने लगा। फ़ोन रशीदा का था, "हैलो सुनील... कहाँ रह गये?"

"जी अभी आ रहा हूँ... थोड़ी ही देर में पहुँच जाऊँगा!" सुनील ने कहा तो रशीदा ने "ठीक है... जल्दी आओ..." कह कर फ़ोन काट दिया। सुनील ने बाइक नफ़ीसा के घर की तरफ़ घुमा दी। सुनील जानता था कि आज रात बहुत लंबी होने वाली है और दोनों औरतें बेहद चुदैल हैं... इसलिये वो एक दवाई की दुकान पर रुका और एक दो गोली वायग्रा की ले ली। वैसे तो सुनील के जिस्म और लंड में इतनी जान थी कि वो एक साथ नफ़ीसा और रशीदा की चुदाई तसल्ली से कर सकता था पर सुनील आज उन दोनों की गाँड और चूत पर अपने लंड की ऐसी छाप छोड़ना चाहता था कि वो दोनों उसके लंड की गुलाम हो जाये। सुनील ये भी जानता था कि नफ़ीसा और रशीदा दोनों मालदार औरतें है और दोनों के पास बहुत पैसा है। वो वक़्त आने पर सुनील की कोई भी जरूरत पूरी कर सकती थीं। लेकिन उसके लिये सुनील को पहले उन दोनों को अपने लंड का आदी बनाना था जैसे उसने रुखसाना को अपने लंड की लत्त लगा दी थी। यही सोच कर उसने वायग्रा खरीद ली और नफ़ीसा के घर के तरफ़ चल पड़ा। थोड़ी ही देर में वो नफ़ीसा के घर के पास पहुँच गया और उसने रशीदा को फ़ोन किया।

"हाँ बोलो सुनील... कहा पहुँचे?" रशीदा ने फोन उठाते ही पूछा। "मैडम मैं उस गली में पहुँच गया हूँ पर यहाँ सभी इतने बड़े-बड़े बंगले हैं कि समझ में नहीं आ रहा कि नफ़ीसा मैडम का घर कौन सा है!" सुनील ने पूछा तो रशीदा ने उसे समझाया, "देखो तुम सीधे गली के एंड में आ जाओ... राइट साइड पर सबसे आखिरी घर है... उसके सामने खाली प्लॉट है..!"

"ठीक है समझ गया मैडम!" सुनील ने फ़ोन काटा। "रशीदा क्या हुआ... पहुँचा कि नहीं अभी तक..." नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा अपने होंठों पे बेहद कमीनी मुस्कान के साथ बोली, "हाँ पहुँच गया है... तू जाकर गेट खोल और उसकी बाइक अंदर करवा ले... बहोत दिनों बाद साला आज तगड़ा बकरा हाथ में आया है... खूब मजे से उसे हलाल करके अपनी हसरतें पूरी करेंगी दोनों मिलकर!"

नफ़ीसा ने बाहर जाकर गेट खोला और इतने में सुनील की बाइक उसके घर के सामने थी। सुनील ने अपनी बाइक अंदर कर ली और नफ़ीसा ने अंदर से गेट बंद करते हुए पूछा, "ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई तुम्हें घर ढूँढने में...?"

"जी नहीं!" नफ़ीसा ने कॉटन का पतला सा हल्के सब्ज़ रंग का स्लीवलेस और तंग कमीज़ और नीचे सफ़ेद चुड़ीदार सलवार पहनी हुई थी। उसने दुपट्टा भी नहीं लिया हुआ था और उसकी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही लो-कट था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ करीब-करीब आधी नंगी थीं और बाहर आने को उतावली हो रही थी। इसके अलावा नफिसा ने पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के बेहद सैक्सी सैंडल पहन रखे थे। ये सब देखते ही सुनील के लंड में सरसराहट होने लगी।

तजुर्बेकार नफ़ीसा भी सुनील की नज़र को फ़ौरन ताड़ गयी और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो अंदर चलो... यहीं खड़े- खड़े देखते रहोगे क्या?" नफ़ीसा पहचान गयी थी कि उन दोनों को सुनील को अपने हुस्न ओर अदाओं से पटाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। नफ़ीसा उसे साथ लेकर हाल में पहुँची। नफ़ीसा का घर सच में बहुत बड़ा था। घर के सामने एक बड़ा लॉन था और पीछे की तरफ़ स्विमिंग पूल था... नफ़ीसा के ससुर बहुत बड़े जागीरदार हुआ करते थे और अपनी ढेर सारी दौलत और जायदाद वो नफ़ीसा के शौहर के नाम छोड़ गये थे।

नफ़ीसा ने उसे सोफ़े पर बिठाया और बोली कि वो आराम से बैठे और वो अभी आती है! सुनील ने ऐसा शानदार सजा हुआ ड्राइंग रूम और फ़र्निचर सिर्फ़ फ़िल्मों में ही देखा था। "जी वो रशीदा मैडम कहाँ हैं?" सुनील ने नफ़ीसा से पूछा। "रशीदा चेंज करने गयी है... अभी आती है..!" ये कह कर नफ़ीसा किचन में चली गयी और फिर एक गिलास में कोल्ड ड्रिंक ले आयी और सुनील को देने के बाद बोली, "तुम बैठो मैं भी चेंज करके आती हूँ..!"

जैसे ही नफ़ीसा गयी तो सुनील ने वायग्रा की एक गोली निकाली और कोल्ड-ड्रिंक के साथ निगल ली। थोड़ी देर बाद नफ़ीसा बाहर आयी तो सुनील के मुँह से सीटी निकल गयी और धड़कनें तेज़ हो गयीं। नफ़ीसा ने सिर्फ़ मैरून रंग का छोटा सा मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में मेल खाते मैरून रंग के ही पहले जैसे पाँच-छः इंच ऊँची पेंसिल हील के बारीक स्ट्रैप वाले सैंडल। नसीफ़ा की लंबी-लंबी और सुडौल टाँगें और गोरी माँसल जाँघें बिल्कुल नंगी सुनील की नज़रों के सामने थीं। उसका लंड तो उसी वक़्त टनटना गया। उसे ये तो पता था कि आज रात दोनों औरतों ने उसे चुदाई के मक़सद से ही बुलाया है लेकिन ये नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी बेधड़क नंगी हो जायेगी। ये औरतें उसकी उम्मीद से काफ़ी ज्यादा ही फ़ॉर्वर्ड और बोल्ड थीं।

नफ़ीसा ने ज़रा इतराते हुए पूछा, "ऐसे क्या देख रहे हो...?"

सुनील खुद को संभालते हुए बोला, "वो... वो कुछ नहीं.. वो आप आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं!"

"अच्छा! वैसे तुम्हे मुझ में क्या खूबसूरत लगता है...?" नफ़ीसा ने पूछा तो सुनील बोला, "जी सब कुछ...!" नफ़ीसा मुस्कुराते हुए बोली, "फिर तो सब कुछ देखना भी चाहते होगे...!"

सुनील: "जी अगर आप मौका दें तो!"

नफ़ीसा ने सुनील के पास आकर अपना एक पैर उठा कर सोफ़े पे सुनील की जाँघों के बीच मे रखा दिया और बोली, "मौके तो आज तुम्हें ऐसे-ऐसे मिलेंगे कि तुमने सोचा भी नहीं होगा... ज़रा मेरी सैंडल का बकल तो कस दो... थोड़ा लूज़ लग रहा है!"

सुनील को ऐसी आशा नहीं थी... ये तो खुला-खुला आमंत्रण था। सुनील थोड़ा नरवस हो गया। उसने काँपते हुए हाथों से नफ़ीसा के सैंडल की बकल खोल कर उसकी सुईं अगले छेद में डाल कर बकल फिर बंद कर दिया। नफ़ीसा ने फिर दूसरा पैर वैसे ही सुनील की जाँघों के बीच में रख दिया... इस बार उसके सैंडल का पंजा और पैर की उंगलियाँ सीधे उसके टट्टों और लंड को छू रहे थे। सुनील का लंड उसके ट्रैक-पैंट में कुलांचे मारने लगा। सुनील ने उस सैंडल की बकल भी काँपते हुए हाथों से कस दी। नफ़ीसा के सैंडल इतने सैक्सी थे कि सुनील का मन हुआ कि झुक कर उसके सैंडल और नरम-नरम गोरे पैर चूम ले। नफ़ीसा के पैरों के उंगलियों में नेल-पॉलिश भी मैरूण ही थी।

"घबरा नहीं सुनील आज की रात तुम्हारे लिये यादगार होने वाली है... अभी तो कईं सर्प्राइज़ मिलने हैं... चल आजा!" ये कह कर नफ़ीसा आगे चलने लगी। सुनील खड़ा होकर नफ़ीसा के पीछे जाने लगा। नफ़ीसा उसे घर के पीछे स्विमिंग पूल की तरफ़ ले गयी। अंधेरा हो चुका था लेकिन स्विमिंग पूल के चारों तरफ़ बहुत खूबसूरत रंगबिरंगी रोशनी की हुई थी। वहाँ एक लंबी सी कुर्सी पर रशीदा आधी लेटी हुई थी। उसने भी नफ़ीसा की तरह मैरून रंग का मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में काले रंग के ऊँची पेंसिल हील वाले बेहद कातिलाना सैंडल मौजूद थे। रशीदा ने अपनी एक टाँग लंबी कर बिछायी हुई थी और दूसरी को घुटने से मोड़ा हुआ था। उसके एक हाथ में शराब का गिलास और सिगरेट थी। "ओहह सुनील आओ... कब से हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे... यहाँ बैठो..." रशीदा ने उसे अपने पास बिठा लिया और उसकी जाँघ को सहलाते हुए बोली "सुनील क्या लोगे..!"

"जी आप जो भी प्यार से पिला दें वो मैं पी लुँगा!" सुनील ने जवाब दिया। सुनील को एहसास हो गया था कि वो शिकार करने आया था लेकिन यहाँ तो उसका ही शिकार होने वाला था।

"माशाल्लह... यार तुम तो बहोत चंट हो बातें बनाने में!" रशीदा बोली तो सुनील फिर तपाक से बोला, "जी बनाने में ही नहीं... करने में भी चंट हूँ..!" ये सुनकर रशिदा सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए बोली, "क्यों नफ़ीसा.... लगता है आज की रात यादगार होने वाली है..!"

नफ़ीसा ने पास में टेबल पर रखी व्हिस्की की बोतल से एक गिलास में व्हिस्की और सोडा डाल कर सुनील को दी और फिर रशीदा के गिलास में भी एक और नया पैग बना कर दिया और अपने लिये भी एक पैग बनाया। फिर उसने अपने लिये सिगरेट सुलगायी और सुनील को भी सिगरेट पेश की तो सुनील ने मना कर दिया। तीनों साथ में बैठ कर व्हिस्की पीने लगे। सुनील खुद तो सिगरेट नहीं पीता था लेकिन ये दोनों औरतें सिगरेट पीती हुई बेहद सैक्सी और कातिल लग रही थीं उसे। रशीदा ने अपनी सिगरेट और पैग खतम किया और अपने गिलास को टेबल पर रख कर खड़ी हो गयी, "चलो पूल में चलते हैं... उफ्फ बहोत गरमी है यहाँ पर..!" ये कहते हुए उसने अपने बाथरोब की बेल्ट को खोला और बाथरोब उतार दिया। सुनील की आँखें एक दम से चौंधिया गयी। रशीदा का फिगर देखते ही सुनील को सन्नी लियॉन की याद आ गयी।

रत्ति भर भी कम नहीं था रशीदा का जिस्म... वैसे ही अढ़तीस साइज़ के बड़े-बड़े तने हुए मम्मे और वैसे ही बाहर की तरफ़ निकली हुई गाँड... लाल रंग की छोटी सी लेस की ब्रा के साथ जी-स्ट्रिंग की चिंदी सी लाल पैंटी और ऊँची हील के सैंडल में क़हर ढा रहा था। अब रशीदा अगर सन्नी लियॉन थी तो नफ़ीसा तो कहाँ कम थी... फिगर के साथ-साथ शक़्ल-सूरत में भी हुबहु बॉलीवुड हिरोइन ज़रीन खान लगती थी। नफ़ीसा ने भी अपना पैग खतम किया और सिगरेट का आखिरी कश लगा कर ऐशट्रे में बुझा दी और अपना बाथरोब उतार दिया। उसने नीचे काले रंग की ब्रा और काले रंग की ही जी-स्ट्रिंग पैंटी पहनी हुई थी। अपने आप को इन दोनों गज़ब की सैक्सी औरतों के बीच पाकर सुनील का लंड उसके ट्रैक सूट के पायजामे में कुलांचे मारने लगा। वैसे तो रुखसाना भी रशीदा और नफ़ीसा से फिगर और खूबसूरती में कम नहीं थी लेकिन ये दोनों बेहद तेजतर्रार... डॉमिनेटिंग और बेतकल्लुफ़ थीं और रुखसाना थोड़ी शर्मिली और नरम थी।

"अब तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो... चलो कपड़े उतारो..!" नफ़ीसा ने कहा तो सुनील ने एक दम चौंकते हुए खड़े होकर अपनी टी-शर्ट उतार दी। फिर उसे याद आया कि आज तो उसने जानबूझ कर सुबह ट्रैक-पैंट के नीचे अंडरवियर पहना ही नहीं था तो वो एक दम से रुक गया। "क्या हुआ सुनील... कोई प्रोब्लेम है..?" कहते हुए रशीदा अपने सैंडल पहने हुए ही पूल में उतर गयी।

"जी मैडम वो मैंने नीचे अंडरवियर नहीं पहना!" सुनील झेंपते हुए बोला तो रशीदा हंसते हुए बोली, "तो यहाँ कौन सा कोई तुम्हें देख रहा है.... सिर्फ़ हमारे अलावा... यार कोई बात नहीं... आजा..!" नफ़ीसा ने अपने और रशीदा के लिये एक-एक पैग और बनाया और दोनों गिलास लेकर वो भी सैंडल पहने हुए ही स्विमिंग पूल मैं उतर गयी। स्विमिंग पूल ज्यादा गहरा नहीं था और सिर्फ़ कमर तक ही पानी था। सुनील ने सोचा कि साला ये तो सीधे चुदाई का आमंत्रण है... ऐसा मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिये। सुनील ने अपना ट्रैक-सूट वाला पायजामा भी उतार दिया। नर्वस होने के कारण उसका लंड लटक सा गया था। सुनील का पहला पैग अभी खतम नहीं हुआ था। उसने अपना गिलास पूल के किनारे पे रखा और अपने झूलते हुए लंड को लेकर स्विमिंग पूल में उतर गया। जैसे ही सुनील पूल के अंदर आया तो नफ़ीसा उसके करीब आ गयी और उसके होंठों पर अपना गिलास लगाते हुए बोली, "एक जाम इस नयी दोस्ती के नाम!" सुनील ने एक सिप लिया और मुस्कुरा कर नफ़ीसा की तरफ़ देखा। रशीदा भी सुनील के करीब आयी और उसने भी अपने गिलास को सुनील के होंठों की तरफ़ बढ़ा दिया। नफ़ीसा सुनील की चौड़ी छाती को अपने एक हाथ से सहला रही थी। सुनील ने रशीदा के गिलास से भी एक सिप लिया।

सुनील ने पूल के किनारे रखा हुआ अपना गिलास उठा लिया और फिर तीनों धीरे-धीरे सिप करने लगे। रशीदा और नफ़ीसा दोनों अपने एक-एक हाथ से सुनील के चौड़े सीने को सहला रही थी। सुनील का लंड अब फिर खड़ा होने लगा था। आखिर वो बिल्कुल नंगा दो-दो इतनी सैक्सी और करीब-करीब नंगी हसीनाओं से घिरा हुआ स्विमिंग पूल में मौजूद था और ऊपर से दोनों हुस्न की मल्लिकाओं ने पूल के अंदर भी हाई हील वाले सैंडल पहने हुए थे। सुनील को तो अपनी किस्मत पे विश्वास ही नहीं हो रहा था। रशीदा बीच-बीच में अपना हाथ नीचे सुनील के पेट की ओर ले जाती तो कभी नफ़ीसा उसकी जाँघों को अपने हाथ से सहलाने लग जाती। सुनील का लंड अब धीरे-धीरे फिर से अपनी औकात में आने लगा था। सुनील भी उन दोनों के जिस्म छुना उनके मम्मे और गाँड दबाना चाहता था लेकिन उन दोनों का दबदबा ही ऐसा था कि सुनील की खुद से हिम्मत नहीं हुई। रशीदा ने जब सुनील के लंड को खड़ा होते देखा तो उसकी आँखों में चमक आ गयी और टाँगें थरथराने लगी। सुनील के खड़े होते हुए लंड का साइज़ देख कर रशीदा को समझ आया कि क्यों नफ़ीसा सुबह सुनील का लंड देख कर इतनी बेकरार हो रही थी। उसने इशारे से नफ़ीसा को नीचे की और देखने को कहा तो नफ़ीसा की चूत भी सुनील के अकड़ते हुए लंड को देख कर फुदफुदाने लगी।

रशीदा ने गटक कर अपना पैग खतम करते हुए कहा, "नफ़ीसा चलो ना अब खाना खाते हैं... बहुत हो गया..!" ये सुनकर सुनील के तो खड़े लंड पे जैसे धोखा हो गया। उसे लग रहा था कि अभी बात शायद आगे बढ़ेगी। दोनों औरतें उसे इस तरह क्यों तड़पा रही थीं। दो-दो रसगुल्ले उसके सामने थे... उसे तरसा रहे थे लेकिन वो खा नहीं पा रहा था।

तीनों पूल से बाहर आये और नफ़ीसा ने सुनील को एक तौलिया दिया। सुनील ने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा और फिर अपने कपड़े उठा लिये। नफ़ीसा और रशीदा ने वहाँ पर बने हुए बाथरूम में जाकर अपनी गीली पैंटी और ब्रा उतार दीं लेकिन सैंडल अभी भी नहीं उतारे। फिर तौलिये से अपने जिस्म और सैंडल वाले पैर सुखा कर दोनों ने अपने-अपने बाथरोब पहने और तीनों घर के अंदर आ गये। अंदर आकर तीनों ने वैसे ही खाना खाया और फिर शराब पीने लगे। शराब और शबाब का नशा अब तीनों पर हावी होने लगा था। दोनों औरतें खुल कर बाथरोब में छुपे हुए अपने हुस्न का दीदार सुनील को कराने लगी थीं। सुनील जानबूझ कर सावधानी से थोड़ी-थोड़ी ही शराब पी रहा था लेकिन दोनों औरतें बे-रोक पैग लगा रही थीं और एक के बाद एक सिगरेट फूँक रही थीं और नशे में झूमने लगी थीं। सुनील का तो बुरा हाल हो चुका था। तौलिये के अंदर उसका लंड धड़क-धड़क कर फुफकारें मार रहा था। "तो सुनील तू कह रहा था कि तेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है..!" रशीदा ने नफ़ीसा की ओर देखते हुए कहा। दोनों औरतें अब तुम से तू पे आ गयी थीं।

"जी नहीं है!" सुनील ने भी नफ़ीसा के ओर देखते हुए कहा तो नफ़ीसा बोली, "तो इश्क़ के खेल में अभी अनाड़ी हो..?"

"जी हाँ! इश्क़ के खेल में शायद अनाड़ी हूँ पर मस्ती के खेल में नहीं..!" सुनील ने जवाब दिया। रशीदा बोली, "ओहो... तू तो फिर बड़ा छुपा रुस्तम निकला... यार नफ़ीसा मैंने कहा था ना अपना सुनील जितना मासूम दिखता है... उतना है नहीं..!"

नफ़ीसा सिगरेट का कश लगाते हुए आँखें नचाते हुए बोली, "तो तू मस्ती करने में अनाड़ी नहीं है... हमें भी तो पता चले कि तूने कहाँ और किसके साथ और कितनी मस्ती की है..!"

सुनील का सब्र टूटा जा रहा था। "छोड़िये ना मैडम... वो सब पुराने किस्से हैं...!" सुनील बोला तो नफ़ीसा अपनी कुर्सी से उठी और बड़ी ही अदा के साथ चलते हुए सुनील के करीब आयी और अपनी एक बाँह सुनील की गर्दन में डाल कर सुनील के गोद में बैठ गयी और रशीदा की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा... चाहे तो आज मस्ती के नये किस्से बना ले... क्या ख्याल है..?"

"ख्याल तो बहुत बढ़िया है...!" सुनील बोला। सुनील के कुलांचे मार रहे लंड की नफ़ीसा चुभन अपनी गाँड के नीचे महसूस कर रही थी। वो हंसते हुए बोली, "हाँ खूब पता चल रहा है कि तू क्या चाहता है!" "वो कैसे...?" सुनील ने पूछा तो नफ़ीसा बोली, "वो ऐसे कि तेरा हथियार जो बार-बार मेरे चूतड़ों पर जोर-जोर से ठोकरें मार रहा है..!"

सुनील बोला, "लेकिन मेरे अकेले के चाहने से क्या होगा..?"

"ओह हो... अब तू इतना नादान तो नहीं है... तू भी समझ तो गया ही होगा कि हम दोनों भी यही चाहती हैं!" ये कहते हुए नफ़ीसा सुनील की गोद से खड़ी हुई और सुनील का हाथ पकड़ कर झूमती हुई चलती हुई उसे बेडरूम की तरफ़ ले जाने लगी। रशीदा भी नशे में झूमती हुई उनके पीछे चल पड़ी। नफ़ीसा के मुकाबले रशीदा कुछ ज्यादा नशे में थी जबकी शराब दोनों ने तकरीबन बराबार ही पी थी... शायद इसलिये कि नफ़ीसा अक्सर शराब पीने की आदी थी जबकि रशिदा को कभी-कभार ही मौका मिलता था। नफ़ीसा की सोहबत में ही उसने शराब और सिगरेट पीना शुरू की थी।

बेडरूम में पहुँच कर नफ़ीसा ने सुनील को धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और रशीदा ने भी अंदर आकर पीछे से कमरे के दरवाजा को लॉक कर दिया। नफ़ीसा बेड पर चढ़ी और सुनील के ऊपर झुकते हुए बोली तो "बर्खुरदार... ज़रा हमें भी तो बता कि तू क्या-क्या जानता है!" दूसरी तरफ़ रशीदा भी बेड पर सुनील के दूसरी तरफ़ करवट के बल लेट गयी और सुनील के चौड़े सीने को एक हाथ से सहलाते हुए अपनी एक टाँग उठा कर सुनील के टाँगों पर रख दी। "जी बहुत कुछ जानता हूँ..!" सुनील ने अपने दोनों तरफ़ लेटी हुई मस्त चुदैल औरतों को देख कर कहा जो उम्र में उससे दुगुनी से ज्यादा बड़ी थीं। "रशीदा तुझे स्ट्राबेरी फ्लेवर बहोत पसंद है ना..?" नफ़ीसा की ये बात सुन कर सुनील चौंक गया कि अब साला स्ट्राबेरी फ्लेवर बीच में कहाँ से आ गया। "हाँ यार बेहद पसंद है..!" रशीदा बोली तो नफ़ीसा ने उसे कहा कि "तो उस मिनी-फ्रिज में तेरे लिये कुछ है... जा निकाल कर ले आ!"

रशीदा उठी और बेडरूम के एक कोने में मेज के नीचे रखे छोटे से फ़्रिज को खोला। उसमें एक काँच के बड़े से गिलास में स्ट्राबेरी फ़्लेवर की क्रीम मौजूद थी। उसे देख कर रशीदा की आँखों में चमक आ गयी। रशीदा वो क्रीम भरा गिलास लेकर बेड पर आकर बैठ गयी। उसने एक बार नफ़ीसा की तरफ मुस्कुराते हुए देखा तो नफ़ीसा ने सुनील के तौलिये को पकड़ कर खींचा पर तौलिया सुनील के वजन से दबा हुआ था। सुनील ने खुद ही अपने चूतड़ उचका कर तौलिया अपने जिस्म से अलग करके फेंक दिया। सुनील का आठ इंच से लंबा और खूब मोटा मूसल जैसा लंड झटके खाते हुए फुफकारने लगा जिसे देख कर दोनों चुदैल राँडों के मुँह से सिसकरी निकल गयी!। "याल्लाहा ऊँऊँहह नफ़ीसा... ये तो बहोत तगड़ा... घोड़े जैसा है..!" रशीदा ने सुनील के लंड को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए कहा। "मैंने तो सुबह ही तुझे बता दिया था... साले ऐसे घोड़े की ही तो सवारी करने में मज़ा है.. आज तो हमारी किस्मत खुल गयी... यार सुनील पहले मालूम होता कि तू अपनी टाँगों के दर्मियान इस कदर लंबा और मोटा लौड़ा छुपाये हुए है तो आल्लाह कसम पहले दिन ही तेरे से चुदवा लेती..!" ये कहते हुए नफ़ीसा ने हाथ बढ़ा कर सुनील के लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसके लंड के आगे की चमड़ी पीछे की तरफ़ सरकायी तो सुनील के लंड का सुपाड़ा लाल टमाटर की तरह चमकने लगा जिसे देख कर दोनों की चूत कुलबुलाने लगी। रशीदा जल्दी से स्ट्राबेरी क्रीम का गिलास सुनील के लंड के ठीक ऊपर ले जाकर उस पर ठंडी क्रीम टपकाने लगी। ठंडी क्रीम को अपने लंड पर गिरता महसूस करके सुनील एक दम से सिसक उठा। "क्या हुआ बर्खुरदार?" नफ़ीसा ने सुनील को सिसकते हुए देख कर पूछा। "आहहह बहुत ठंडा है मैडम!" सुनील ने सिसकते हुए कहा।

"थोड़ा सा इंतज़ार कर... अभी देखना तेरे इस लंड को कितनी गरमी मिलने वाली है!" नसीफ़ा बोली। सुनील का लंड पूरी तरह से क्रीम से भीग गया। रशीदा ने गिलास नीचे रखा और सुनील की जाँघों के पास मुँह करके पेट के बल लेट गयी। दूसरी तरफ़ ठीक वैसे ही नफ़ीसा भी लेट गयी। रशीदा लंड पर झुकी और अपने होंठों को सुनील के लंड के मोटे सुपाड़े पर लगा दिया। सुनील मस्ती से सिसक उठा और उसने रशीदा के खुले हुए बालों को कसके पकड़ लिया। रशीदा ने इस बात का बुरा नहीं माना और अपने होंठों को सुनील के लंड के सुपाड़ा के चारों तरफ़ कसती चली गयी। थोड़ी ही देर में सुनील के लंड का सुपाड़ा रशीदा के मुँह में था और वो उसे अपने होंठों से दबा-दबा कर चूसने लगी। दूसरी तरफ़ से नफ़ीसा ने भी देर ना की और अपनी ज़ुबान और होंठों से सुनील के लंड के निचले हिस्सों और टट्टों को चाटने लगी। सुनील के लंड को अब दोहरी मार पड़ रही थी और ऊपर से वायग्रा का भी असर था। सुनील का लंड एक दम अकड़ गया था। सुनील ने अपने दूसरे हाथ से नफ़ीसा के खुले हुए बालों को पकड़ लिया। दोनों औरतें सुनील के लंड पर कुत्तियों की तरह टूट पड़ी। रशीदा तो सुनील के लंड को चूसने में मश्गूल थी और नफ़ीसा कभी सुनील के लंड की लंबाई पर अपनी ज़ुबान फिराती तो कभी सुनील की गोटियों को पकड़ कर मुँह में भर कर चूसने लगती।
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#15
[Image: IMG-20230720-070103.jpg]
westridge school
रसीदा और नसीफा
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#16
Part 9
सुनील आँखें बंद किये हुए जन्नत सा मज़ा ले रहा था। नफ़ीसा और रशीदा जिस जोशीले अंदाज़ में सुनील के लंड को चूस और चाट रही थीं... देखने से लग रहा था कि जैसे सामने किसी पोर्न मूवी का मंज़र चल रहा हो। थोड़ी ही देर में सुनील के लंड से क्रीम बिल्कुल सफ़ाचट हो चुकी थी और लंड उन दोनों के थूक से पुरी तरह सन गया। जैसे ही रशीदा ने सुनील के लंड को अपने मुँह से बाहर निकला तो नफ़ीसा ने लपक कर उसे अपने मुँह में भर लिया। 'पक-पक' 'गलप --गलप' जैसी आवाज़ें पूरे कमरे में गूँजने लगीं। "नफ़ीसा यार बे-इंतेहा मज़ा आ रहा है... एक मुद्दत से ऐसे जवान लंड का ज़ायका नहीं चखा था..." रशीदा बोली। नफ़ीसा ने सुनील के लंड को मुँह से बाहर निकाल कर अपने हाथ से हिलते हुए कहा, "हाँ सच रशिदा... मैंने कईं जवान लौड़े चूसे हैं लेकिन ऐसा कमाल का लंड कभी नहीं चूसा... अलाह कसम मज़ा आ गया यार.. दिल करता है रोज़ इस लंड के चुप्पे लगाऊँ!" ये कहते हुए उसने फिर से सुनील के लंड को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

नफ़ीसा का बेडरूम चुसाई की आवाज़ों से भर गया था। रशीदा बोल "यार... पहले तू इस लौड़े की सवारी करेगी क्या?" नफ़ीसा ने सुनील का लंड मुँह से बाहर निकाल कर अपने हाथ से मुठियाते हुए पूछा तो रशीदा बिना कुछ बोले उठ कर बैठ गयी उसने अपना बाथरोब निकाल कर फेंक दिया। दूसरी तरफ़ नफ़ीसा ने भी अपना बाथरोब उतार कर फेंक दिया और अब दोनों ऊँची हील के सैंडलों के अलावा सुनील की तरह मादरजात नंगी हो गयीं। दोनों सुनील के अगल-बगल में लेट कर उसके ऊपर झुक गयीं। दोनों की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियाँ सुनील के चेहरे के ऊपर झूलने लगीं जिसे देख सुनील की आँखों में चमक आ गयी। नफ़ीसा के निप्पल कुछ ज्यादा ही लंबे और मोटे थे जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे चींख-चींख कर कह रहे हों कि आओ हमें मुँह में भर कर निचोड़ लो! सुनील ने भी एक पल की देर नहीं की और अपने सिर को थोड़ा सा ऊपर उठा कर नफ़ीसा की चूंची के निप्पल को मुँह में भर लिया। नफ़ीसा सुनील के ऊपर झुक गयी और अपनी चूंची को सुनील के मुँह में और ज्यादा ठेल दिया। सुनील ने भी उसकी चूंची और निप्पल को अपने होंठों में दबा-दबा कर चूसना शुरू कर दिया। "आहहहह हाँआँऽऽ चूस सुनील.... आहहहह बहोत अच्छा लग रहा है..!" और उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर सुनील के लंड को पकड़ कर मुठियाना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ़ लेटी रशीदा सुनील के टट्टों के साथ खेलने लगी। सुनील ने कभी सोचा नहीं था कि ये दोनों औरतें उसे इतना मज़ा देंगी। नफ़ीसा की चूंची को थोड़ी देर चूसने के बाद उसने चूंची को मुँह से बाहर निकला और रशीदा के तरफ़ देखा।

रशीदा ने अपनी एक चूंची को हाथ में पकड़ कर अपने निप्पल की ओर नोकदार बनते हुए उसे सुनील के मुँह से सटा दिया। सुनील ने भी फौरन मुँह खोल कर रशीदा की चूंची को मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया। रशीदा की मस्ती में आँखें बंद होने लगी। उसका हाथ सुनील के चौड़े सीने पर तेजी से घूमने लगा। दूसरी तरफ़ लेटी नफ़ीसा उठ कर सुनील के ऊपर आ गयी और अपने घुटनों को सुनील की कमर के दोनों तरफ़ रख कर बैठते हुए सुनील के लंड को हाथ से पकड़ लिया। अपनी चूत की फ़ाँकों पर जैसे ही उसने सुनील के लंड का सुपाड़ा रगड़ा तो वो एक दम से सिसक उठी, "आहहहह सुनील... तेरा लंड तो बेहद गरम है साले..!" नफ़ीसा की आवाज़ सुन कर रशीदा ने भी अपने मम्मे को सुनील के मुँह से बाहर निकला और नसीफ़ा को फटकारते हुए बोली, "साली नसीफ़ा चूतमरानी... तूने ही तो मुझे पहले सवारी करने को कहा था और अब खुद मौका मिलते ही इसके लंड पे सवार हो गयी तू!"

"अरे यार नाराज़ क्यों होती है गुदमरानी... तू भी सवार हो जा... हम दोनों एक साथ बारी-बारी से जगह बदल- बदल कर पूरी रात सवारी करेंगी इस घोड़े की!" नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने सुनील के सिर के दोनों तरफ़ अपने घुटनों को बेड पर रखा जिससे रशीदा की गंजी चिकनी चूत ठीक सुनील के चेहरे के ऊपर आ गयी। रशीदा और नफ़ीसा दोनों एक दूसरे के तरफ़ मुँह करके सुनील के ऊपर बैठी हुई थीं और उनके घूटने एक दूसरे के घुटनों से सटे हुए थे। रशीदा ने अपनी चूत के होंठों को फैलाते हुए अपनी चूत के दाने (क्लिट) को दिखाते हुए कहा, "देख सुनील ये है औरतों का ट्रिगर... मालूम है ये औरतों का सबसे सेन्सिटिव हिस्सा होता है!" सुनील आँखें फ़ाड़े रशीदा की गुलाबी चूत के छेद और दाने को अपने आँखों के तीन-चार इंच के फ़ासले पर देख रहा था। "चल अब तेरी बारी है हमें मज़ा देने की... इसे चूस..!" नफ़ीसा भी मस्ती में बोली, "हाँ सुनील चाट ले... इस रस का ज़ायका हासिल करने के लिये तो मर्द तरसते रह जाते है..!"

रशीदा ने अपने चूतड़ हिलाते हुए अपनी चूत के दाने को दो उंगलियों के दर्मियान दबाते हुए रगड़ा तो वो छोटे से बच्चे के लंड की तरह फूल गया। रशीदा सिसकते हुए बोली, "ये वो चीज़ है सुनील जिससे हर लड़की और औरत पिघल जाती है... एक बार अगर तूने किसी की चूत या दाने को चूस लिया... तो वो खुद ब-खुद तेरे लंड के नीचे आ जायेगी... मेरी बात याद रखना!" और ये कहते हुए रशीदा ने अपनी चूत सुनील के होंठों के और करीब कर दी। सुनील ने फ़ौरन रशीदा की चूत के छेद पर अपने होंठों को लगा दिया कुछ पलों के लिये सुनील की नाक और साँसों में चूत की तेज़ महक समा गयी। जैसे ही उसने रशीदा के चूत के छेद पर अपने होंठों लगाया तो रशीदा का पूरा जिस्म काँप उठा... उसकी कमर झटके खाने लगी। "आआहहह सुनील ओहहहह आँहहहह सीईईऽऽऽ आँहहह ऊऊईईईईं आआहहहल्लाआआह सुनीईईल येस्सऽऽऽ सक मीईईई... आआहहह!" सुनील को समझते देर नहीं लगी कि रशीदा जो कह रही है... वो एक दम सच है अपने ऊपर रशीदा को यूँ तड़पते देख कर उसने रशीदा की चूत के दाने को अपने होंठों में भर कर और जोर-जोर से चूसना शुरू कर दिया। रशीदा एक दम से मचल उठी, "ओहहहह सुनीईईल आहहहह आँहहह रियली में बेहद अच्छा आआआह लग रहा है..हाय अल्लाआआहाआआ मेरी फुद्दी आहहह ओहहहह सीईईईई!"

दूसरी तरफ़ सुनील को अपना लंड किसी गीली और गरम चीज़ में घुसता हुआ महसूस हुआ। "आहहह सुनील... तेरा लंड तो सच में बहोत मोटाआआ है... आहहहह मेरी फुद्दी ओहहहह आहहहहह..!" नफ़ीसा धीरे-धीरे सुनील के लंड पर अपनी चूत को दबाती जा रही थी और सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की चूत के अंदर उसकी दीवारों से रगड़ खाता हुआ अंदर जाने लगा। नफ़ीसा के जिस्म अपनी चूत की दीवारों पर सुनील के लंड के रगड़ को महसूस करके थरथराने लगा। उसने अपने आप को किसी तरह से संभालते हुए अपने सामने रशीदा के कंधों पर हाथ रख दिये जो उस वक़्त सुनील के मुँह के ऊपर बैठी उससे अपनी चूत चुसवाते हुई बेहद मस्त हो चुकी थी। "हाय रशीदा ये लौड़ा तो नाफ़ तक अंदर जा रहा है!"

रशीदा भी मस्ती में सिसकते हुए बोली, "आहहहह तो साली ले ले ना पूरा का पूरा अंदर... मज़ा आ जायेगा... आहहह मेरी चूत तो बुरी तरह से फ़ुदक रही है... आहहहह सुनील चूस्स्स्स नाआआ ज़ोर-ज़ोर से!" नफ़ीसा ने अब धीरे-धीरे अपनी गाँड को ऊपर-नीचे करते हुए सुनील के लंड पर अपनी चूत को चोदना शुरू कर दिया था। सुनील का लंड कुछ ही पलों में नफ़ीसा की चूत के चिकने पानी से भीग कर चिकना हो गया और तेजी से अंदर-बाहर होने लगा। "आहहह साले ऐसा लौड़ा रोज़-रोज़ नहीं मिलता चुदवाने के लिये... आआआहहहहह ओहहह ऊहहहह रशीदा मेरी चूत... आहहह कब से घोड़ों और गधों के लौड़ों से चुदने के ख्वाब देखती थी.... आहहह आआआज आआआल्लाआआहह ने मेरी दुआआआ कुबूल कर ली..!" सुनील भी अब तेजी से अपने लंड को ऊपर के तरफ़ उछालने लगा। नफ़ीसा की चूत में सुनील का लंड 'फच्च-फच्च' की आवाज़ करते हुए अंदर-बाहर होने लगा।

नफ़ीसा ने अपने सामने सुनील के चेहरे के ऊपर बैठी रशीदा को अपनी बांहों में जकड़ लिया और रशीदा के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर दिया। रशीदा भी पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। दोनों पागलों की तरह एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए एक दूसरे के मुँह में अपनी ज़ुबाने घुसेड़ने लगीं। सुनील ये देख तो नहीं सकता था क्योंकि उसकी आँखें रशीदा के चूतड़ों के पीछे थी लेकिन उसे समझ आ गया था कि दोनों औरतें एक दूसरे से चिपकी हुई चूमा-चाटी में शरीक हैं। सुनील ने रशीदा की चूत के दाने को अपने होंठों में और जोर-जोर से दबा कर चूसना शुरू कर दिया और रशीदा एक दम से मचल उठी। उसका जिस्म अचानक अकड़ कर जोर-जोर से झटके खने लगा। उसने नफ़ीसा को कस के जकड़ किया और अपने होंठों को उसके होंठों से अलग करके जोर-जोर से सिसकते हुए चींखने लगी, "ओहहहह सुनीईईईल आहहहह सुनील मेरी फुद्दी आहहहह हायऽऽऽऽ ओहहहह सीईईईईईई ऊँहहहह सुनीईईईल लेऽऽऽऽ मेरीईईईई फुद्दी के पानी का ज़ायक़ा चख आहहहह ओहहहह!"

रशीदा की चूत से पानी बह निकला और वो काँपते हुए झड़ने लगी और थोड़ी देर बाद निढाल होकर सुनील के बगल में लुढ़क गयी। सुनील का पूरा चेहरा रशीदा की चूत के पानी से भीग गया था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को सुनील के लंड पर तेजी से ऊपर-नीचे उछालना शुरू कर दिया और सुनील भी पूरे जोश में अपने चूतड़ उठा-उठा कर नीचे से नफ़ीसा की चूत में अपना लौड़ा ठोकने लगा। थोड़ी देर बाद ही नफ़ीसा की चूत ने भी सुनील के लंड पर पानी छोड़ना शुरू कर दिया और नफ़ीसा भी सुनील के ऊपर लुढ़क गयी। तीनों आपस में लिपटे हुए थोड़ी देर तक अपनी साँसें दुरस्त करते रहे। इस दौरान दोनों औरतों ने सुनील के चेहरे को चाट-चाट कर साफ़ कर दिया जो कि रसीदा की चूत के पानी से सना हुआ था। "ओहहह सुनील तूने तो कमल ही कर दिया..!" रशीदा उसके लंड को हवस ज़दा नज़रों से घूरते हुए बोली। रशीदा को नसीफ़ा आँखों से कुछ इशारा करते हुए बोली, "अरे यार सुनील के लौड़े की सवारी करने से पहले अपनी स्पेशल शेंपेन तो पिला दे!" ये सुनकर रशीदा के होंठों पे कुटिल मुस्कान फैल गयी। सुनील फिर चकरा गया कि अब ये कौनसा नया ट्विस्ट है। "जरूर मेरी जान मुझे वैसे भी लगी हुई थी... बाथरूम में चलेगी मेरे साथ या यहीं ले आऊँ... सुनील भी लेगा क्या?" रशीदा बेड से उठते हुए बोली। "तू यहीं ले आ यार... क्यों सुनील तू भी लेगा ना रशीदा की बनायी हुई स्पेशल शेम्पेन!" सुनील ने पहले कभी शेम्पेन नहीं पी थी और इन दोनों चुदैल औरतों की बातों से उसे शक सा हो रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है। इसलिये जब उसने पूछा कि वो दोनों कैसी शेम्पेन की बात कर रही हैं तो दोनों जोर-जोर से हंसने लगी। फिर नफ़ीसा ने हंसी रोकते हुए बताया कि वो दर असल रशीदा के पेशाब की बात कर रही हैं तो ना चाहते हुए भी सुनील को बेहद अजीब लगा और वो फ़ौरन अजीब सा मुँह बनाते हुए बोला, "नहीं नहीं... मुझे नहीं चाहिये!" रशिदा हंसते हुए बोली, "कोई बात नहीं यार... कोई जबर्दस्ती नहीं है!" ये कह कर रशीदा ने मेज पर से दो बड़े-बड़े गिलास उठाये और नशे में झूमती हुई बाथरूम में चली गयी।

रशीदा बाथरूम में कमोड पर बैठ कर गिलासों में मूतने लगी। उसने अभी एक गिलास अपने मूत से भर कर नीचे रखने के बाद दूसरे गिलास में मूतना शुरू ही किया था कि उसे बाहर से नफ़ीसा के तेज सिसकने और कराहने की आवाज़ आयी। "साली राँड चूतमरनी कहीं की... लगता है फिर से उसका लंड चूत में ले कर चुदवाना शुरू कर दिया.... भोंसड़ी की... मुझे भी चुदवाने देगी कि नहीं!" रशीदा बड़बड़ायी। दोनों गिलास अपने मूत से भरने के बाद बाकी उसने कमोड में मूत दिया। जब वो मूत से भरे गिलास लेकर बाहर आयी तो उसने देखा कि नफ़ीसा बेड पर कुत्तिया की तरह अपनी गाँड पीछे की और निकाल कर अपनी कोहनियाँ बिस्तर पर टिकाये हुए झुकी हुई थी। सुनील बिस्तर पर अपने घुटनों को मोड़ कर कुत्तिया बनी नफ़ीसा के ऊपर चढ़ा हुआ था और सुनील का लंड नफ़ीसा की गाँड के छेद में बुरी तरह फंसा हुआ था। "आहहह सुनील आराम सेऽऽऽ ओहहहह तेरा लौड़ा तो मेरी गाँड ही फाड़ देगा.. हाय अल्लाहऽऽ.. मर गयी मैं...!" पीछे खड़ी रशीदा ने एक गिलास बेड की साइड टेबल पे रखा और अपनी सहेली को इस तरह चींखते देख कर मुस्कुरायी और एक गिलास अपने हाथ में पकड़े हुए बेड पर चढ़ गयी। फिर गिलास में से अपने ही मूत के दो तीन घूँट पी कर सुनील के पीठ को सहलाते हुए बोली, "बहोत खूब सुनील... सुभानल्लाह... बजा दे इस गाँडमरी की गाँड का ढोल... पूरे घर में इसकी गाँड का ढोल बजता हुआ सुनायी देना चाहिये..!"

नफ़ीसा सिसकते हुए बोली, "आअहहह चुप कर साली ओहहह हाय अल्लाह आँहहह गाँड मरवाने का असली मज़ा तो ऐसे मूसल जैसे लंड से ही आता है... इस दर्द में भी लज़्ज़त है मेरी जान... अभी थोड़ी देर में मेरी गाँड का ढोल नहीं... पियानो बजता सुनायी देगा तुझे कुत्तिया!" सुनील का अभी आधा लंड ही नफ़ीसा की गाँड में उतरा था और नफ़ीसा को मस्ती और दर्द की तेज लहर अपनी गाँड में महसूस होने लगी थी। सुनील धीरे-धीरे अपना आधा लंड ही नफ़ीसा की गाँड के अंदर बाहर करने लगा। "सुनील यार... ऐसे मज़ा नहीं आयेगा हमारी नफ़ीसा को.. एक नंबर की गाँडमरी है ये... जोर से चाँप साली की गाँड को... फिर देख कैसे इसकी गाँड से पादने की आवाज़ें आती हैं!" रशिदा गिलास में से अपना मूत सिप करते हुए बोली। नफ़ीसा रशीदा की तरफ़ देखते हुए थोड़ा चिढ़ कर बोली, "तू क्यों फ़िक्र कर रही है कुत्तिया... तेरी गाँड का ढोल भी आज फटेगा सुनील के लंड से..!"

"ओहहह भोंसड़ी की... तू इसका लौड़ा छोड़े तब ना... तू ही मरवा ले पहले अपनी गाँड!" रशीदा बोली और गिलास में बचा अपना मूत गतक-गटक पी कर खाली गिलास साइड में रख दिया। सुनील अब नॉर्मल स्पीड से नफ़ीसा की गाँड के छेद में अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था। नफ़ीसा की गाँड अब सुनील के मोटे लंड के मुताबिक एडजस्ट हो गयी थी और उसका दर्द का एहसास बिल्कुल खतम हो चुका था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ ढकेलना शुरू कर दिया। "आहहहहह ओहहहह येस्स्सऽऽऽ सुनील... और तेज़ मार मेरी गाँड... पूरा का पूरा घुसा दे अपना लौड़ा.... ओहहहह... मैं भी देखूँ कि कितनी अकड़ है तेरे लौड़े में... आहहह आँआहहहहहह...!" सुनील अब पूरी ताकत के साथ अपना मोटा मूसल जैसा लंड नफ़ीसा की गाँड के छेद में अंदर तक पेलने लगा और नफ़ीसा भी किसी मंझी हुई रंडी की तरह अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ सुनील के लंड पर ढकेलने लगी।

सुनील ने नफ़ीसा की गाँड को चोदते हुए एक दम से अपने लंड को पूरा बाहर निकला तो उसने देखा कि नफ़ीसा की गाँड का छेद और आसपास का हिस्सा एक दम सुर्ख हो चुका था और अगले ही पल उसने फिर से अपने लंड को एक ही बार में नफ़ीसा की गाँड के छेद में पेल दिया। जैसे ही सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की गाँड के छेद के अंदर की तरफ़ हवा को दबाते हुए बढ़ा और जड़ तक अंदर घुसा तो हवा गाँड के छेद से पुर्रर्र की आवाज़ करते हुए बाहर निकली जिसे सुनते ही नफ़ीसा की गाँड और फुद्दी में सरसराहट दौड़ गयी। "ऊऊऊहहह आआओहहह सुनीईईल तूने तो कमाल ही कर दिया... आहहह मार मेरी गाँड और जोर-जोर से... आँआँहहह ओंओंओंहहहह हाँआआआ ऐसे ही... शाबाश मेरे शेर ओअहहह और तेज... पाद निकाल दे... सुनील... फक मॉय ऐस ओहहहह ओंओंहहह!"

सुनील अब बिना किसी परवाह के नफ़ीसा की गाँड में अपना लंड तेजी से अंदर-बाहर कर रहा था और बीच-बीच में नफ़ीसा की गाँड में से हवा बाहर निकल कर पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ करती और सुनील की जाँघें नफ़ीसा के मोटे चूतड़ों के साथ टकराते हुए ठप-ठप की आवाज़ करती जो कमरे के अंदर नफ़ीसा की मस्ती भरी सिसकियों के साथ गूँजने लगी। थोड़ी ही देर में नफ़ीसा को अपनी गाँड और चूत के छेद में सरसराहट बढ़ती हुई महसूस हुई और फिर नफ़ीसा की चूत ने अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। नफ़ीसा आगे की तरफ़ लुढ़क गयी और सुनील का गंदा सना हुआ लंड नफ़ीसा की गाँड से बाहर आकर हवा में झटके खाने लगा।

इस दौरान रशीदा ये सब देखते हुए अपनी चूत को रगड़ रही थी और जैसे ही उसने नफ़ीसा का काम होते देखा तो उसने नफ़ीसा की गाँड में से निकला और गंदगी से सना हुआ लंड लपक कर अपने मुँह में भर लिया और बड़े मज़े से उसे चूस कर साफ़ करने लगी। रशीदा की ये हरकत देखकर सुनील भौंचक्का रह गया लेकिन सुनील ने सोचा कि ये चुदैल औरतें जब पेशाब पी सकती हैं तो फिर ये हर्कत भी उनसे अप्रत्याशित तो नहीं है। चार-पाँच मिनट में ही रशीदा ने उसका लंड चूस-चूस कर और चाटते हुए बिल्कुल साफ़ कर दिया। जितने मज़े और बेसाख्तगी से रशिदा ने नफ़ीसा की गाँड में से निकला गंदा लंड चूस कर साफ़ किया था उससे साफ़ ज़हिर था कि ये उसके लिये कोई नयी बात नहीं थी। सुनील का लंड वायग्रा के असर के कारण अभी भी अकड़ा हुआ था। सुनील पीठ के बल लेटा हुआ था और रशीदा भूखी कुत्तिया की तरह सुनील के ऊपर चढ़ गयी और जोशीले अंदाज़ में सुनील के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर टिका दिया और गप्प से सुनील के लंड पर अपनी चूत को दबाते हुए बैठ गयी। एक ही पल में सुनील का लंड नफ़ीसा के चूत की गहराइयों में समा चुका था।

"ओहहहह हाऽऽय अलाहऽऽ तेरा लौड़ा तो सच में बहोत बड़ा है सुनील... कमीना नाफ़ तक पहुँच गया महसूस हो रहा है!" रशीदा जोर से सिसकते हुए बोली। "क्यों आपको अच्छा नहीं लगा..." सुनील ने पूछा तो रशीदा उसकी आँखों में झाँकती हुई बोली, "ओहहहह सुनील... ऐसा लौड़ा हासिल करने के लिये ना जाने कितनी मुद्दत से तरस रही थी... काश कि तू दस साल पहले ही मेरी जवानी में मिला होता... ओहहह सुनील... तेरे जैसे लंड वाले लड़के से चुदने का मज़ा ही कुछ और है...!"

"तो अब आप कौन सा बुड्ढी हो गयी हो... एक दम सैक्सी और हॉट हो आप!" सुनील बोला तो रशीदा ने कहा, "अरे मेरी जान... तेरी उम्र का मेरा बेटा है...!" रशीदा ने अपने हाथों को सुनील की चौड़ी छाती पर रखा और अपनी गाँड को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। सुनील का लंड रशीदा की पनियाई हुई चूत में रगड़ खाता हुआ अंदर-बाहर होने लगा। अपनी चूत और गाँड दोनों चुदवा चुकी नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा के पेशाब से भरा गिलास होंठों से लगा कर सिप करती हुई अपनी नशीली आँखों से उन दोनों को देख कर फिर से सुरूर और मस्ती में आने लगी थी। सुनील रशीदा की चूत में अपना लंड पेलते हुए उसकी गाँड को अपने हाथों से दबा-दबा कर मसलने लगा। नफ़ीसा ने गिलास में भरा रशीदा का सारा मूत पीने के बाद खाली गिलास साइड-टेबल पे रखा और अपने होंठों पे ज़ुबान फिराती हुई वो रशीदा के पीछे आ गयी और बोली, "सुनील चल इस साली राँड की गाँड को खोल दे तो मैं इसकी गाँड को नरम कर दूँ... फिर इसकी गाँड का ढोल भी तो बजाना है..!"

सुनील ने रशीदा की गाँड को दोनों तरफ़ से पकड़ कर फैला दिया। जैसे ही रशीदा की गाँड का छेद नफ़ीसा की हवस ज़दा आँखों के सामने आया तो नफ़ीसा ने झुक कर अपनी ज़ुबान रशीदा की गाँड के छेद पर लगा दी। "ऊँऊँहहहह याल्लाहऽऽऽ... आहहहह ओहहह नफ़ीसाऽऽऽ मेरीईईई जान क्या कर रही है.... ओहहहह सक मीईईई ओहहह येस्स्स्स.!" सुनील के लौड़े पर ऊपर-नीचे कूदती हुई रशीदा अपनी गाँड के छेद पर नफ़ीसा की ज़ुबान महसूस करती हुई मचल कर जोर से सिसक उठी। नीचे लेटा सुनील रशीदा की मस्ती भरी सिसकारियाँ सुन कर और ज्यादा जोश में आ गया और अपनी कमर को तेजी से ऊपर की ओर उछालने लगा। सुनील का लंड रेल-इंजन के पिस्टन की तरह रशीदा की चूत के अंदर बाहर होने लगा। "ओहहहह सुनील आहहहह ऐसे ही... और तेज़ तेज़ ऊऊऊँऊँहहह ऊऊऊहहहह ओहहहह सुनील मेरी जान...!" रशीदा अब एक दम मस्त हो चुकी थी। उसने झुक कर सुनील के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उधर नफ़ीसा पीछे से रशीदा की गाँड में अपनी ज़ुबान घुसेड़-घुसेड़ कर चूसती हुई रशीदा की मस्ती में इज़ाफ़ा कर रही थी। लेस्बियन चुदाई के वक़्त दोनों औरतें अक्सर एक दूसरी की गाँड ज़ुबान से चाटने के साथ-साथ गाँड में अंदर तक उंगलियाँ घुसेड़-घुसेड़ कर गंदगी से सनी हुई उंगलियाँ खूब मज़े से चाट जाती थीं और एक-दूसरे के पाद सूँघने में भी उन्हें बेहद मज़ा आता था।

रशीदा के मुँह से "ऊँहहह ऊँहहह" जैसी सिसकारियों के आवाज़ें आने लगी और फिर उसका जिस्म एक दम ऐंठने लगा। जिस्म का सारा लहू उसे अपनी चूत की तरफ़ दौड़ता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल रशीदा की चूत से गाढ़े लेसदार पानी की धार बह निकाली। रशीदा बुरी तरह काँपते हुए झड़ने लगी और फिर सुनील के ऊपर निढाल होकर गिर पढ़ी। रूम में एक दम से सन्नाटा सा छा गया। थोड़ी देर बाद साँसें बहाल होने पर रशीदा सुनील के ऊपर से उतर कर बेड पे लेट गयी सुनील ने नफ़ीसा के कहने पर रशीदा की गाँड के नीचे एक तकिया लगा कर उसकी गाँड ऊपर उठा दी। नफ़ीसा ने पहले ही उसकी गाँड के छेद को अपनी जीभ और उंगलियों से चोद कर नरम कर दिया था। सुनील ने जैसे ही अपने लंड का सुपाड़ा रशीदा की गाँड के छेद पर रख कर दबाया तो सुनील के लंड का सुपाड़ा रशीदा की गाँड के छेद को फैलाता हुआ अंदर की ओर फिसल गया। सुनील के लंड का सुपाड़ा जैसे ही रशीदा की गाँड के छेद में घुसा तो रशीदा की आँखें फैल गयी और साँसें जैसे अटक गयी हों। "सुनील... फ़िक्र करने के जरूरत नहीं है... शाबाश मेरे शेर... फाड़ दे इस राँड की गाँड भी...!" नफ़ीसा ने नीचे झुक कर सुनील के टट्टों को सहलाते हुए कहा। रशीदा पत्थरायी हुई आँखों से सुनील को देख रही थी और अगले ही पल सुनील ने एक ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआयल्लाआआआआह.. फाआआड़ दी ना मेरी गाँड ओहहहहह.. ऊँऊँहहह.!"

"अभी तो शुरुआत है मेरी जान... आगे-आगे देख कितना मज़ा आता है... देख तेरी गाँड के आज कैसे चिथड़े उड़ते हैं..!" नफ़ीसा ने कहा और फिर सुनील से बोली, "सुनील कोई रहम मत करना इस राँड पे... खूब गाँड मरवायी हुई है इसने... कुछ नहीं होगा इसे!" ये सुनते ही सुनील ने एक बार और करारा झटका मार कर अपना पूरा का पूरा लंड रशीदा की गाँड के छेद में चाँप दिया। रशीदा के चेहरे पर दर्द के आसार देख कर नफ़ीसा का दिल उसके लिये पिघल गया। उसने झुक कर पहले रशीदा की चूत की फ़ाँकों को फैलाया और उसकी चूत के मोटे अंगूर जैसे दाने को बाहर निकला कर अपने मुँह में भर लिया। जैसे ही रशीदा के चूत का दाना नफ़ीसा के मुँह में गया तो रशीदा एक बार फिर से सिसक उठी, "आआहहहह चूस साआलीईईई... मेरीईईई चूत ओहहह नफ़ीसाआआआ... चाट ले मेरे चूत ओहहहह देख तेरे सहेली की चूत ने आज कितना रस बहाया है..!"

नफ़ीसा ने भी रशीदा की बात सुनते हुए उसकी चूत के छेद पर अपना मुँह लगा दिया और उसकी चूत की फ़ाँकों और छेद को चाटते हुए उसकी चूत से निकल रहे गाढ़े लेसदार पानी को चाटने लगी। उसने रशीदा की चूत चाटते हुए सुनील की जाँघ पे चपत लगा कर धक्के लगाने का इशारा किया और सुनील ने धीरे-धीरे अपना लंड बाहर निकाल कर अंदर पेलना शुरू कर दिया। सुनील का लंड पुरी तरह फंसता हुआ रशीदा की गाँड के छेद के अंदर-बाहर हो रहा था। रशीदा की चूत चाटते हुए नफ़ीसा की नाक सुनील के लंड की जड़ में टकरा रही थी। कुछ ही पलों में रशीदा भी अपने रंग में आ गयी। सुनील का लंड जब उसकी गाँड के छेद में अंदर-बाहर होता तो उसके जिस्म में मस्ती की लहरें दौड़ जातीं। "ओहहहह सुनील येस्स्स फक मॉय ऐस ओहहहहहह फाड़ दे मेरी गाँड... ओहह आहहहह ऊँहहहह आहहहहह.!"

सुनील ने भी ऐसे कस-कस के शॉट्स लगाये कि रशीदा की गाँड में सुरसुरी दौड़ने लगी। अब सुनील अपना पूरा लंड बाहर निकाल-निकाल कर रशीदा की गाँड में पेल रहा था और रशीदा की चूत का पानी और नफ़ीसा का थूक बह कर सुनील के लंड गीला कर रहा था। एक बार फिर से वही पुर्रर्र-पुर्रर्र की आवाज़ें रशीदा की सिसकारियों के साथ मिलकर पूरे कमरे में गूँजने लगी। रशीदा और नफ़िसा दोनों की चूत की धुनकी बज उठी... खासतौर पर रशीदा की चूत बुरी तरह कुलबुलाने लगी और वो "आहहहह ओहहहह सुनील... आहहहहह ऊँहहह आआईईई" करते हुए झड़ने लगी। सुनील ने भी अपनी रफ़्तार को चरम तक पहुँचा दिया जिससे बेड भी चरमराने लगा। "ओहहहह सुनील इसकी गाँड के अंदर नहीं झड़ना... हमें तेरे लंड के पानी का ज़ायक़ा चखना है...!" नफ़ीसा बोली तो सुनील ने जल्दी से अपना लंड बाहर निकाल लिया। नफ़ीसा ने जल्दी से घुटनों के बल बैठते हुए सुनील के लंड को अपने हाथ में ली लिया और उसके लंड के सुपाड़ा पर अपनी जीभ फेरते हुए उसपे अपनी सहेली की गाँड की गंदगी चाटने लगी। रशीदा भी भी रंडी की तरह सुनील के टट्टों को अपने मुँह मैं भर कर चूसने लगी और अपनी ही गाँड का ज़ायक़ा लेने लगी। कुछ ही पलों में सुनील के लंड की नसें फूलने लगी और फिर जैसे ही दोनों रंडियों को अंदाज़ा हुआ कि सुनील के लंड से अब मनी इखराज़ होने वाली है... दोनों ने अपने मुँह खोल लिये और फिर सुनील के लंड से वीर्य की लंबी-लंबी पिचकारियाँ निकलने लगी जो सीधा जाकर दोनों के मुँह और मम्मों पर गिरने लगी। सुनील के लंड इतना पानी निकला कि दोनों के चेहरे और मम्मे पूरी तरह से सन गये। फिर सुनील झड़ने के बाद बेड पर लेट गया और दोनों औरतें एक दूसरे का चेहरे और मम्मे चाटते हुए सुनील की मनी का ज़ायका लेने लगीं। तीनों सुबह तीन बजे तक चुदाई का खेल खेलते रहे और सुबह तीन बजे सोये।
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#17
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रशीदा और नसिफा सुनील से चुदते हुए और एक दुसरो को चुदवाते हुए
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#18
Update
कायर पति
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#19
Update
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#20
Part 1 or Part 2 ke darmiyaan kahani missing hai… copy paste mei chook ho gayi lagta hai… barhaal Part 1 ke aage se original kahani is tarah hai…. 

पार्ट 1 के बाद continuity के साथ पूरी कहानी यहाँ से आगे पढ़े

इसी तरह दो हफ़्ते गुज़र गये। फ़ारूक और सुनील हर रोज़ नाश्ता करने के बाद साथ-साथ स्टेशन जाते। फिर शाम को छः-सात बजे के करीब कभी दोनों साथ में वापस आते और कभी सुनील अकेला ही वापस आता। फ़ारूक जब सुनील के साथ वापस आता तो भी थोड़ी देर बाद फिर शराब पीने कहीं चला जाता और देर रात नशे की हालत में लौटता। सुनील ज्यादातर शाम को ऊपर अपने कमरे में या छत पे ही गुज़ारता था। रुखसाना उसे ऊपर ही खाना दे आती थी। सुनील की खुशमिजाज़ी और अच्छे रवैये से रुखसाना के दिल में उसके लिये उल्फ़त पैदा होने लगी थी। उसे सुनील से बात करना अच्छा लगता था लेकिन उसे थोड़ा-बहोत मौका तब ही मिलता था जब वो उसे खाना देने ऊपर जाती थी। सुनील खाने की या उसकी तारीफ़ करता तो उसे बहोत अच्छा लगता था। रुखसाना ने नोट किया था कि सुनील भी कईं दफ़ा उसे चोर नज़रों से निहारता था लेकिन रुखसाना को बुरा नहीं लगता था क्योंकि सुनील ने कभी कोई ओछी हर्कत या बात नहीं की थी। उसे तो बल्कि खुशी होती थी कि कोई उसे तारीफ़-अमेज़ नज़रों से देखता है।
एक दिन शाम के छः बजे डोर-बेल बजी तो रुखसाना ने सोचा कि सुनील और फ़ारूख आ गये हैं। उसने सानिया को आवाज़ लगा कर कहा कि, "तुम्हारे अब्बू आ गये है, जाकर डोर खोल दो!"
सानिया बाहर दरवाजा खोलने चली गयी। सानिया ने उस दिन गुलाबी रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जो उसके गोरे रंग पर क़हर ढा रहा था। गरमी होने की वजह से वो अभी थोड़ी देर पहले ही नहा कर आयी थी। उसके बाल भी खुले हुए थे और बला की क़यामत लग रही थी सानिया उस दिन। रुखसाना को अचानक महसूस हुआ कि जब सुनील देखेगा तो उसके दिल पर भी सानिया का हुस्न जरूर क़हर बरपायेगा।
सानिया दरवाजा खोलने चली गयी। रुखसाना बेडरूम में बैठी सब्जी काट रही थी और आँखें कमरे के दरवाजे के बाहर लगी हुई थी। तभी उसे बाहर से सुनील की हल्की सी आवाज़ सुनायी दी। वो शायद सानिया को कुछ कह रहा था। रुखसाना को पता नहीं क्यों सानिया का इतनी देर तक सुनील के साथ बातें करना खलने लगा। वो उठ कर बाहर जाने ही वाली थी कि सुनील बेडरूम के सामने से गुजरा और ऊपर चला गया। उसके पीछे सानिया भी आ गयी और सीधे रुखसाना के बेडरूम में चली आयी।
इससे पहले कि रुख्सना सानिया से कुछ पूछ पाती वो खुद ही बोल पड़ी, "अम्मी आज रात अब्बू घर नहीं आयेंगे... वो सुनील बोल रहा था कि आज उनकी नाइट ड्यूटी है...!" सानिया सब्जी काटने में रुखसाना की मदद करने लगी। रुखसाना सोच में पड़ गयी कि आखिर उसे हो क्या गया है... सुनील तो शायद इसलिये सानिया से बात कर रहा था कि आज फ़ारूक घर पर नहीं आयेगा... यही बताना होगा उसे... पर उसे क्या हुआ था को वो इस कदर बेचैन हो उठी... अगर वैसे भी सानिया और सुनील आपस में कुछ बात कर भी लेते है तो इसमें हर्ज ही क्या है... वो दोनों तो हम उम्र हैं... कुंवारे हैं और वो एक शादीशुदा औरत है उम्र में भी उन दोनों से चौदह-पंद्रह साल बड़ी।
रुखसाना को सानिया और सुनील का बात करना इस लिये भी अच्छा नहीं लगा था कि जब से सुनील उनके यहाँ रहने आया था तब से सानिया के तेवर बदले-बदले लग रहे थे... कहाँ तो हर रोज़ सानिया को ढंग से कपड़े पहनने और सजने संवरने के लिये जोर देना पड़ता था और कहाँ वो इन दिनों नहा-धो कर बिना कहे शाम को कॉलेज से लौट कर तैयार होती और आइने के सामने बैठ कर अच्छे से मेक-अप तक करने लगी थी। इन दो हफ़्तों में उसका पहनावा भी बदल गया था। यही सब महसूस करके रुखसाना को सानिया के ऊपर शक सा होने लगा। 
फिर रुखसाना ने सोचा कि अगर सानिया सुनील को पसंद करती भी है तो उसमें सानिया की क्या गल्ती है... सुनील था ही इतना हैंडसम और चार्मिंग लड़का कि जो भी लड़की उसे देखे उस पर फ़िदा हो जाये। रुखसाना खुद भी तो इस उम्र में सुनील पे फ़िदा सी हो गयी थी और अपने कपड़ों और मेक-अप पे पहले से ज्यादा तवज्जो देने लगी थी। रुखसाना उठी और सानिया को सब्जी काट कर किचन में रखने के लिये कहा। फिर आईने के सामने एक दफ़ा अपने खुले बाल संवारे और थोड़ा मेक-अप दुरुस्त किया। रुखसाना घर के अंदर भी ज्यादातर ऊँची हील वाली चप्पल पहने रहती थी लेकिन अब मेक-अप दुरुस्त करके उसने अलमारी में से और भी ज्यादा ऊँची पेंसिल हील वाली सैंडल निकाल कर पहन ली क्योंकि इन दो हफ़्तों में सुनील की नज़रों से रुखसाना को उसकी पसंद का अंदाज़ा हो गया था। सुनील की नज़र अक्सर हील वाली चप्पलों में रुखसाना के पैरों पे अटक जाया करती थी। सैंडलों के बकल बंद करके वो एक गिलास में ठंडा पानी लेकर ऊपर चली गयी। सोचा कि सुनील को प्यास लगी होगी तो गरमी में उसे फ़्रिज का ठंडा पानी दे आये लेकिन इसमें उसका खुद का मकसद भी छुपा था। जैसे ही रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो सुनील अचानक से बाहर आ गया। उसके जिस्म पर सिर्फ़ एक तौलिया था... जो उसने कमर पर लपेट रखा था। शायद वो नहाने के लिये बाथरूम में जा रहा था।
रुखसाना ने उसकी तरफ़ पानी का गिलास बढ़ाया तो सुनील ने शुक्रिया कह कर पानी का गिलास लेते हुए पानी पीना शुरू कर दिया। रुखसाना की नज़र फिर से सुनील की चौड़ी छाती पर अटक गयी। पसीने की कुछ बूँदें उसकी छाती से उसके पेट की तरफ़ बह रही थीं जिसे देख कर रुखसाना के होंठ थरथराने लगे। सुनील ने पानी खतम किया और रुखसाना की तरफ़ गिलास बढ़ाते हुए बोला, "थैंक यू भाभी जी... लेकिन आप ने क्यों तकलीफ़ उठायी... मैं खुद ही नीचे आ कर पानी ले लेता!" रुखसाना ने नोटिस क्या कि सुनील उसके काँप रहे होंठों को बड़ी ही हसरत भरी निगाहों से देख रहा था। सुनील उसे निहारते हुए बोला, "भाभी जी कहीं बाहर जा रही हैं क्या...?"
रुखसाना चौंकते हुए बोली, "नहीं तो क्यों!" 
"नहीं बस वो आपको इतने अच्छे से तैयार हुआ देख कर मुझे ऐसा लगा... एक बात कहूँ भाभी जी... आप खूबसूरत तो हैं ही और आपके कपड़ों की चॉईस... मतलब आपका ड्रेसिंग सेंस भी बहुत अच्छा है... जैसे कि अब ये सैंडल आपकी खूबसूरती कईं गुना बढ़ा रहे हैं। सुनील से इस तरह अपनी तारीफ़ सुनकर रुखसाना के गाल शर्म से लाल हो गये। फ़रूक से तो कभी उसने अपनी तारीफ़ में दो अल्फ़ाज़ भी नहीं सुने थे। सिर झुका कर शरमाते हुए वो धीरे से बोली, :बस ऐसे ही सजने-संवरने का थोड़ा शौक है मुझे!" फिर वो गिलास लेकर जोर-जोर से धड़कते दिल के साथ नीचे आ गयी।
जब रुखसाना नीचे पहुँची तो सानिया खाना तैयार कर रही थी। सानिया को पहले कभी इतनी लगन और प्यार से खाना बनाते रुखसाना कभी नहीं देखा था। थोड़ी देर में ही खाना तैयार हो गया। रुखसाना ने सुनील के लिये खाना थाली में डाला और उसने सोचा क्यों ना आज सुनील को खाने के लिये नीचे ही बुला लूँ। उसने सानिया से कहा कि वो खाना टेबल पर लगा दे जब तक वो खुद ऊपर से सुनील को बुला कर लाती है। रुखसाना की बात सुन कर सानिया एक दम चहक से उठी। 
सानिया: "अम्मी सुनील आज खाना नीचे खायेगा?"
रुखसाना: "हाँ! मैं बुला कर लाती हूँ..!"
रुखसाना ऊपर की तरफ़ गयी। ऊपर सन्नाटा पसरा हुआ था। बस ऊँची पेंसिल हील वाले सैंडलों में रुखसाना के कदमों की आवाज़ और सुनील के रूम से उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनायी दी रही थी। रुखसाना धीरे-धीरे कदमों के साथ सुनील के कमरे की तरफ़ बढ़ी और जैसे ही वो सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो अंदर का नज़ारा देख कर उसकी तो साँसें ही अटक गयीं। सुनील बेड के सामने एक दम नंगा खड़ा हुआ था। उसका जिस्म बॉडी लोशन की वजह से एक दम चमक रहा था और वो अपने लंड को बॉडी लोशन लगा कर मुठ मारने वाले अंदाज़ में हिला रहा था। सुनील का आठ इंच लंबा और मोटा अनकटा लंड देख कर रुखसाना की साँसें अटक गयी। उसके लंड का सुपाड़ा अपनी चमड़ी में से निकल कर किसी साँप की तरह फुंफकार रहा था।
क्या सुपाड़ा था उसके लंड का... एक दम लाल टमाटर के तरह इतना मोटा सुपाड़ा... उफ़्फ़ हाय रुखसाना की चूत तो जैसे उसी पल मूत देती। रुखसाना बुत्त सी बनी सुनील के अनकटे लंड को हवा में झटके खाते हुए देखने लगी... इस बात से अंजान कि वो एक पराये जवान लड़के के सामने उसके कमरे में खड़ी है... वो लड़का जो इस वक़्त एक दम नंगा खड़ा है। तभी सुनील एक दम उसकी तरफ़ पलटा और उसके हाथ से लोशन के बोतल नीचे गिर गयी। एक पल के लिये वो भी सकते में आ गया। फिर जैसे ही उसे होश आया तो उसने बेड पर पड़ा तौलिया उठा कर जल्दी से कमर पर लपेट लिया और बोला, "सॉरी वो मैं... मैं डोर बंद करना भूल गया था...!" अभी तक रुखसाना यूँ बुत्त बन कर खड़ी थी। सुनील की आवाज़ सुन कर वो इस दुनिया में वापस लौटी। "हाय अल्लाह!" उसके मुँह से निकला और वो तेजी से बाहर की तरफ़ भागी और वापस नीचे आ गयी।
रुखसाना नीचे आकर कुर्सी पर बैठ गयी और तेजी से साँसें लेने लगी। जो कुछ उसने थोड़ी देर पहले देखा था... उसे यकीन नहीं हो रहा था। जिस तरह से वो अपने लंड को हिला रहा था... उसे देख कर तो रुखसाना के रोंगटे ही खड़े हो गये थे... उसकी चुत में हलचल मच गयी थी और गीलापन भर गया था। तभी सानिया अंदर आयी और उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली, "अम्मी सुनील नहीं आया क्या?"
रुखसाना: "नहीं! वो कह रहा है कि वो ऊपर ही खाना खायेगा!"
सानिया: "ठीक है अम्मी... मैं खाना डाल देती हूँ... आप खाना दे आओ...!"
रुखसाना: "सानिया तुम खुद ही देकर आ जाओ... मेरी तबियत ठीक नहीं है...!" सुनील के सामने जाने की रुखसाना की हिम्मत नहीं हुई। उसे यकीन था कि अब तक सुनील ने भी कपड़े पहन लिये होंगे... इसलिये उसने सानिया से खाना ले जाने को कह दिया।
सानिया बिना कुछ कहे खाना थाली में डाल कर ऊपर चली गयी और सुनील को खाना देकर वापस आ गयी और रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील पूछ रहा था कि आप खाना देने ऊपर नहीं आयीं... आप ठीक तो है ना...?" रुखसाना ने एक बार सानिया की तरफ़ देखा और फिर बोली, "बस थोड़ी थकान सी लग रही है... मैं सोने जा रही हूँ तू भी खाना खा कर किचन का काम निपटा कर सो जाना!" सानिया को हिदायत दे कर रुखसाना अपने बेडरूम में जा कर दरवाजा बंद करके बेड पर लेट गयी। उसके दिल-ओ-दिमाग पे सुनील का लौड़ा छाया हुआ था और वो इस कदर मदहोश सी थी कि उसने कपड़े बदलना तो दूर बल्कि सैंडल तक नहीं उतारे थे। ऐसे ही सुनील के लंड का तसव्वुर करते हुए बेड पर लेट कर अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया हल्के-हल्के उस पर अपनी चूत रगड़ने लगी। फिर अपना हाथ सलवार में डाल कर चूत सहलाते हुए उंगलियों से अपनी चूत चोदने लगी। आमतौर पे फिर जब वो हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती करती थी तो इतने में उसे तस्क़ीन हासिल हो जाती थी लेकिन आज तो उसकी चूत को करार मिल ही नहीं रहा था। 
थोड़ी देर बाद वो उठी और बेडरूम का दरवाजा खोल कर धीरे बाहर निकली। अब तक सानिया अपने कमरे में जा कर सो चुकी थी। घर में अंधेरा था... बस एक नाइट-लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। रुखसाना किचन में गयी और एक छोटा सा खीरा ले कर वापस बेडरूम में आ गयी। दरवाजा बंद करके उसने आनन फ़ानन अपनी सलवार और पैंटी उतार दी और फिर वो बेड पर घुटने मोड़ कर लेटते हुए खीरा अपनी चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। उसकी बंद आँखों में अभी भी सूनील के नंगे जिस्म और उसके तने हुए अनकटे लौड़े का नज़ारा था। करीब आठ-दस मिनट चूत को खीरे से खोदने के बाद उसका जिस्म झटके खाने लगा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसके बाद रुखसाना आसूदा होकर सो गयी।
अगले दिन सुबह सुबह जब रुखसाना की आँख खुली तो खुद को बिस्तर पे सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए नंगी हालत में पाया। सुनील के लिये जो पेंसिल हील के सैंडल पिछली शाम को पहने थे वो अब भी पैरों में मौजूद थे। बिस्तर पे पास ही वो खीरा भी पड़ा हुआ था जिसे देख कर रुखसाना का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसकी सलवार और पैंटी भी फर्श पर पड़े हुई थी। उसने कमरे और बिस्तर की हालत ठीक की और फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी। इतने में फ़ारूक वापिस आ गया और सानिया और रुखसाना से बोला कि सानिया की मामी की तबियत खराब है और इसलिये वो सानिया को कुछ दिनो के लिये अपने पास बुलाना चाहती है। फ़ारूक ने सानिया को तैयार होने के लिये कहा। रुखसाना ने जल्दी से नाश्ता तैयार किया और नाश्ते की ट्रे लगाकर सानिया से कहा कि वो ऊपर सुनील को नाश्ता दे आये। आज सानिया और भी ज्यादा कहर ढा रही थी।
रुखसाना ने गौर किया कि सानिया ने मरून रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था। उसका गोरा रंग उस मरून जोड़े में और खिल रहा था और पैरों में सफ़ेद सैंडल बेहद सूट कर रहे थे। रुखसाना ने सोचा कि आज तो जरूर सुनील सानिया की खूबसूरती को देख कर घायल हो गया होगा। सानिया नाश्ता देकर वापस आयी तो उसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान थी। फिर थोड़ी देर बाद सुनील भी नीचे आ गया। रुखसाना किचन में ही काम कर रही थी कि फ़ारूक किचन मैं आकर बोला, "रुखसाना! मैं शाम तक वापस आ जाऊँगा... और हाँ आज अज़रा भाभीजान आने वाली हैं... उनकी अच्छे से मेहमान नवाज़ी करना!"
ये कह कर सानिया और फ़ारूक चले गये। रूखसाना ने मन ही मन में सोचा कि "अच्छा तो इसलिये फ़ारूक सानिया को उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था ताकि वो अपनी भाभी अज़रा के साथ खुल कर रंगरलियाँ मना सके।" सानिया समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से फ़ारूक और अज़रा को एहतियात बरतनी पड़ती थी। रुखसाना की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं। 
फ़ारूक के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का इंजिनियरिंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्डिंग स्कूल में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसलिये अज़रा भाभी हर महीने दो-चार दिन के लिये फ़ारूक के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी। कभी-कभार फ़ारूक को भी अपने पास बुला लेती थी। अज़रा वैसे तो फ़ारूक के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में फ़ारूक से छोटी थी। अज़रा की उम्र करीब बयालीस साल थी लेकिन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। रुखसाना की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न से नवाज़ा था और अज़रा को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी। फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था जबकि रुखसाना हुस्न और खूबसूरती में अज़रा से बढ़कर ही थी।
अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी। रुखसाना को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर बिठाया। "और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!" रुखसाना किचन से पानी लाकर अज़रा को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।
अज़रा: "मैं ठीक हूँ... तू सुना तू कैसी है?"
रुखसाना: "मैं भी ठीक हूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?"
अज़रा: "तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!"
रुखसाना किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत अज़रा को देकर बोली, "भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ...!" रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी। गिरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी और रुखसाना को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। "हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!"
अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, "आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!" ये बात सही थी कि रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी। 
अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, "घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!"
डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, "भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?"
अज़रा: "अरे फ़ारूक मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!" 
सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार किया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था जिसे अज़रा ने बनाया था। 
उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि रुखसाना सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था। 
"फ़ारूक मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!" अज़रा ने फ़ारूक का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
फ़ारूक: "क्या हुआ जानेमन... किस बात की कमी है?"
अज़रा: "हम्म देखो ना... पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!"
फ़ारूक: "आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!"
"अरे फ़ारूक़ मियाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है...!" अज़रा ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद अज़रा फ़ारूक के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। रुखसाना के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, "फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही हूँ!"
फ़ारूक: "क्यों अब क्या हो गया..?"
अज़रा: "मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी... ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है... मुझे इसकी चाकरी नहीं करनी... मैं घर जा रही हूँ कल!"
रुखसाना को बेहद खुशी महसूस हुई कि चलो सीढ़ियों से गिरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना की वो ज़ाहिर कर रही थी। उसे गिरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेकिन शाम तक दवाई और बाम से मालिश करने कि वजह से उसका दर्द बिल्कुल दूर हो चुका था लेकिन वो अज़रा को परेशान करने के लिये दर्द होने का नाटक ज़ारी रखे हुए थी।
फ़ारूक: "अज़रा मेरे जान... कल मत जाना...!"
अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं... दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!"
फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ... फिर परसों साथ में चलेंगे!"
उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा अज़रा ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और फ़ारूक डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा कि ऊपर सुनील को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस दिन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब अज़रा नीचे आयी तो रुखसाना ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के नियत ठीक नहीं लग रही थी।
रुखसाना की कमर का दर्द आज बिल्कुल ठीक हो चुका था लेकिन वो नाटक ज़ारी रखे हुए बिस्तर पे लेटी रही। अज़रा से उसने एक-दो बार बाम से मालिश भी करवायी। इस दौरान रुखसाना ने फिर नोटिस किया कि अज़रा सज-धज के ग्यारह बजे तक बार-बार किसी ना किसी बहाने से चार पाँच बार ऊपर जा चुकी थी। रुखसाना को कुछ गड़बड़ लग रही थी। फिर सुनील नीचे आया और रुखसाना के रूम में जाकर उसका हाल चल पूछा। रुखसाना बेड से उठने लगी तो उसने रुखसाना को लेटे रहने को कहा और कहा कि वो बाज़ार जा रहा है... अगर किसी चीज़ के जरूरत हो तो बता दे... वो साथ में लेता आयेगा। रुखसाना ने कहा कि किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। सुनील बाहर चला गया और दोपहर के करीब डेढ़-दो बजे वो वापस आया। 
उसके बाद रुखसाना की भी बेड पे लेटे-लेटे आँख लग गयी। अभी उसे सोये हुए बीस मिनट ही गुजरे थे कि तेज प्यास लगने से उसकी आँख खुली। उसने अज़रा को आवाज़ लगायी पर वो आयी नहीं। फिर वो खुद ही खड़ी हुई और किचन में जाकर पानी पिया। फिर बाकी कमरों में देखा पर अज़रा नज़र नहीं आयी। बाहर मेन-डोर भी अंदर से बंद था तो फिर अज़रा गयी कहाँ! तभी उसे अज़रा के सुबह वाली हर्कतें याद आ गयी... हो ना हो दाल में जरूर कुछ काला है... कहीं वो सुनील पर तो डोरे नहीं डाल रही? ये सोचते ही पता नहीं क्यों रुखसाना का खून खौल उठा। वो धड़कते दिल से सीढ़ियाँ चढ़ के ऊपर आ गयी। जैसे ही वो सुनील के दरवाजे के पास पहुँची तो उसे अंदर से अज़रा की मस्ती भरी कराहें सुनायी दी, "आहहह आआहहह धीरे सुनील डर्लिंग... आहहह तू तो बड़ा दमदार निकला... मैं तो तुझे बच्चा समझ रही थी.... आहहह ऊहहह हायऽऽऽ मेरी फुद्दी फाड़ दीईई रे.... आआहहहह मेरी चूत... सुनीललल!"
ये सब सुन कर रुखसाना तो जैसे साँस लेना ही भूल गयी। क्या वो जो सुन रही थी वो हकीकत थी! रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो थोड़ा सा खुला हुआ था। अभी वो दरवाजे की तरफ़ धीरे से बढ़ ही रही थी कि उसे सुनील की आवाज़ सुनायी दी, "साली तू तो मुझे नामर्द कह रही थी... आहहह आआह ये ले और ले... ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में साली... अगर रुखसाना भाभी घर पर ना होती तो आज तेरी चूत में लौड़ा घुसा-घुसा कर सुजा देता!"
अज़रा: "हुम्म्म्म हायऽऽऽ तो सुजा दे ना मेरे शेर... ओहहह तेरी ही चूत है... और तू उस गश्ती रुखसाना की फ़िक्र ना कर मेरे सनम... वो ऊपर चढ़ कर नहीं आ सकती.... और अगर आ भी गयी तो क्या उखाड़ लेगी साली!"
रुखसाना धीरे- धीरे काँपते हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास पहुँची और अंदर झाँका तो अंदर का नज़ारा देख कर उसके होश ही उड़ गये। अंदर अज़रा सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी बेड पर घोड़ी बनी हुई झुकी हुई थी और सुनील भी बिल्कुल नंगा उसके पीछे से अपना मूसल जैसा लौड़ा तेजी से अज़रा की चूत के अंदर-बाहर कर रहा था। अज़रा ने अपना चेहरा बिस्तर में दबाया हुआ था। उसका पूरा जिस्म सुनील के झटकों से हिल रहा था। "आहहह सुनील मेरी जान... मैंने तो सारा जहान पा लिया... आहहह ऐसा लौड़ा आज तक नहीं देखा... आहहह एक दम जड़ तक अंदर घुसता है तेरा लौड़ा... आहहह मेरी चूत के अंदर इस कदर गहरायी पर ठोकर मार रहा है जहाँ पहले किसी का लौड़ा नहीं गया... आहहह चोद मुझे फाड़ दे मेरी चूत को मेरी जान!"
रुखसाना ने देखा दोनों के कपड़े फ़र्श पर तितर-बितर पड़े हुए थे। टेबल पे शराब की बोतल और दो गिलास मौजूद थे जिससे रुखसाना को साफ़ ज़ाहिर हो गया कि सुनील और अज़रा ने शराब भी पी रखी थी। इतने में सुनील ने अपना लंड अज़रा की चूत से बाहर निकला और बेड पर लेट गया और अज़रा फ़ौरन सुनील के ऊपर चढ़ गयी। अज़रा ने ऊपर आते ही सुनील का लंड अपने हाथ में थाम लिया और उसके लंड के सुपाड़े को अपनी चूत के छेद पर लगा कर उसके लंड पर बैठ गयी... और तेजी से अपनी गाँड ऊपर नीचे उछलते हुए चुदाने लगी। सुनील का चेहरा दरवाजे की तरफ़ था। तभी उसकी नज़र अचानक बाहर खड़ी रुखसाना पर पड़ी और दोनों की नज़रें एक दूसरे से मिली। रुखसाना को लगा कि अब गड़बड़ हो गयी है पर सुनील ने ना तो कुछ किया और ना ही कुछ बोला। उसने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अज़रा के नंगे चूतड़ों को दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों तरफ़ फ़ैला दिया।
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