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Adultery संस्कारी वाइफ इंटरफेथ स्टोरी
#1
पार्ट 3 

वसुधा के घर में उसकी सहेली निशा अभी अभी अपने दूसरे मर्द के साथ रंगरलियां मनके आई थी 
वसुधा एक नजर उसे ध्यान से देख रही थी के वो जब आई तब कैसे हाल में थी और अब कैसे हाल में हे सर से लेके पैर तक बिखर गई थी सारी भी ठीक से बदन पे टीक नही रही थी वसुधा ने देखा के ब्लाउज के बीच उसकी छाती पे जहा मंगलसूत्र लटक रहा था वह कुछ लाल निशान थे और वेसे ही निशान उसके गले में भी थे। उससे पता लग रहा था के कितनी हवस से उस मर्द ने निशा के साथ  किया हे पर निशा के चेहरे पे तो एक अलग ही मुस्कान थी एक उम्दा संतुष्टि को पा के आई हो इस तरह उसके चेहरे की लाली बयान कर रही थी। 

सोफा पे बैठे बैठे निशा पानी पिया गहरी सांसे अब शांत हुई उसने अपनी सारी और ब्लाउज को ठीक करना सुरु किया।

वसुधा बस उसे देखे जा रही थी। और अचानक बोल पड़ी

वसुधा: तूझे शर्म आनी चाहिए निशा,,,, हा तुझे ही कह रही हूं अब तो दोस्ती इतनी हो गई ही के तुझे भले बुरे की समझ दे सकू इस तरह से बेशर्म होक किसी और मर्द के साथ ये सोभा नही देता तुझे घर परिवार का तो सोच अपनी इज्जत का सोच। 

निशा: तुजे क्या लगता है मेने कुछ सोचा नहीं होगा ? मेरे घर में में सबको खुश रखती हु सब का खयाल रखती हु सब की हर एक जरूरतों का खयाल रखती हू में वसु। पर मेरा क्या ? क्या मुझे जीने का हक नहीं ही हम ओरतो को जीने का हक नहीं है क्या ???  मेरी जरूरत का क्या? मेरा पति एक महीने के लिए घर आता है उसमे भी वो मुझे टाइम नही देता तो में क्या करू तूझे नही पता क्या अंदर की आग कैसी होती है औरत की 

देख वसु में सब जानती हु और समझती हु जो मुझे नही मिला में उसे दूसरे तरीके से मजबूर होके हासिल किया है और तूझे नही पता यार ये बोहोत जबरजस्त आदमी हे मेने सोचा था के बस एक दो बार कर के सब बंद करदूंगी पर जब इस ने पहली बार किया तभी में पागल हो गई , 

वसुधा: ध्यान से निशा की सारी बात सुन ने के बाद उसे भी अंदर से एहसास हुआ के निशा का दोष नही हे और कही न कही वो भी उस से रीलेट कर रही थी। 

वसुधा ने पूछा: क्यू ऐसा क्या ही इस आदमी में ? 

निशा: क्या बताऊं अब में तूझे एक बार गई और बस सबकुछ लूटा के आई हू,,, जिस तरह से ये आदमी करता है उफ्फ,,,, हमारे लोग में शायद ही ऐसा कोई करता हो मेरे पति तो कुछ नही है उसका नाम वाहिद है। हा ,., है वसु वो,,,,उसकीi बॉडी क्या बताऊं हट्टा कट्टा है एकदम छोड़ी छाती और बड़ी बड़ी जांघें पूरा तगड़ा मर्द लगता है 
"एक हाथ की उंगलियों को अपने दूसरे हाथ की कलाई पे रख हथेली सीधी कर के"। इशारे से,,,  इतना बड़ा है वसु उसका हाए सच कह रही हु जान निकल देता है मेरी ओर थकता हि नही है ऐसा मर्द मेने नही देखा मुझे पागल बना के रखा हे उसने । 

वसुधा: जब निशा ने हथेली वाला इशारा किया तो वसुधा की आंखे शर्म से झुक गई। और उसकी बाते सुन के उसके बदन में आग सी लगने लगी थी। अपनी सहेली अपनी मुंह जुबानी जो सुना रही थी अंदर से ये बाते पिघला देने वाली थी पर वसुधा अपने आप को काबू में करते हुए

"बस बस" ये सब मुझे नही सुन ना,,,,

निशा: हस्ते हुए तू नही समझेगी,,,,  मेरे अंदर तो खूटा गाड़ दिया हे उसने में तो बंध गई हू उस सांड से। 
तुझे आज एक फोटो भेजूंगी देखना फिर बताना के केसा है। 

वसुधा : ना बाबा मुझे कुछ नहीं देखना में मेरे नीरव के साथ खुश हू तेरी रंग रालिया तुझे मुबारक। 

फिर बात बात में दोनो ने हसी मजाक भी किया और वसुधा ने चाय पिला के निशा को विदा किया। शाम को नीरव आया डिनर हुआ पर अब भी वसुधा के दिमाग से वो बाते जो आज निशाने कही थी वो जा नही रही थी अब उत्तेजना के साथ वो मर्द कोन है केसा हे ये सारे सवाल और भी उमड़ने लगे थे खयालों खयालों में उसे भी पता नहीं चला था के आज दिन भर उसकी पैंटी गीली रही थी। 

रात के 11 बजे । 

बिस्तर में दोनो सोए थे वसुधा और नीरव आज वसुधा एक अलग मूड में और बोहोत ही उत्तेजित थी उसने नीरव को बाहों में लेके चूमना शुरू करदिया और अपनी तरफ से ? ग्रीन सिंगल दे दिया क्यू की आज जो उसने निशा की बाते और उसकी चुदाई सुनी थी उसके बाद तो वसुधा अभी एक जल बिना मछली के जैसे तड़प रही थी। कुछ देर नीरव ने वसुधा को चूमने और चाट ने के बाद उसका सिल्की गाऊन ऊपर कर के  अपने हथियार को उसके अंदर डाल दिया । अंदर लेते ही वसुधा ने नीरव को बाहों मे भर के अपनी टांगो को लपेट के निराव कि कमर के दोनो तरफ़ से जकड़ लिया और अपनी कमर को ऊपर करते हुए अपने पति को अपने आगोश में भर के आंखे बंद कर अपने चरम सुख की तलास में लग गई।

इधर नीरव ने भी अपना काम शुरू करदिया फैली हुई टांगो के बीच वो अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए सुरु हो गया पति पत्नी के बीच का ये माहोल वैसे तो नॉर्मल था पर आज वसुधा एक अलग रूप में थी नीरव को बेतहसा चूमती सहलाती उसके सर को पकड़ के अपनी छाती में दबा देती उसकी पीठ को कस के अपनी ओर दबा लेती। आज उसकी तड़प बोहोत बढ़ गई थी करीब 5 मिनिट होने को थे और तभी   "फच्च,,,फच्च,,,फच्च,,,,  की आवाजे वसुधा की टांगो के बीच से आने लगी नीरव लगा हुआ था जम के पर इस तरह से वसुधा के अंदर का चिकना गरम रस का सेलाब सुरु हुआ की दूसरे ही पल वो अपना काबू खोने लगा आज उसे उतनी गर्मी महसूस हुई अंदर के वो उस गर्मी को झेल नहीं पाया और तुरंत ही उसके हथियार डाल दिए उबाल पड़ा वो वसुधा के अंदर उसके वीर्य का स्खलन वसुधा के अंदर हो गया।

दूसरे ही पल वो साइड में आके गिर पड़ा हाफते हुए,,,,,,वसुधा स्तब्ध थी,,, उसे ऐसा लगा के उसके अरमान को किसी ने कुचल दिया उसके अंदर की गर्मी सुरु होने से पहले खत्म हो गई, वो टांगे फैलाई पड़ी रही कुछ बोल भी नहीं सकती थी दूसरे ही पल उसे निशा की वो बात याद आई के क्यू वो उस मर्द के साथ गई क्यू उसने ये कदम उठाया,,,, वसुधा अपनी दुविधा में फसी रात भर सो नहीं पाई अलग अलग खयालों ने उसे घेर के रखा और उसकी प्यास रात भर अधूरी रही,,,,,,,, 

(Next part will be introduction of Vahid)
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#2
part 3 se shuruwat ,first and second part kaha hai

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