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धन्नो द हाट गर्ल
27th August 2010
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दोस्तो मैं एक और कहानी आपकी पेशेखिदमत करने जा रहा हूँ |
पात्र (किरदार) परिचय ---
01. धन्नो- कहानी की हीरोइन, उम्र 20 साल, बी.ए. की स्टूडेंट, रंग गोरा, चाची के साथ रहती है।
02. सोनाली- धन्नो की चाची, विधवा, उम्र 38 साल, अच्छा फिगर, बिल्कुल गोरी।
03. बिंदिया- सोनाली की बड़ी बेटी, उम्र 20 साल, बी.ए. की स्टूडेंट, रंग गोरा,
04. करुणा- सोनाली की छोटी बेटी, उम्र 18 साल, रंग गोरा, खूबसूरत, बड़ी-बड़ी चूचियां और चूतड़।
05. जय- सोनाली का चोदू,
06. आकाश जय का बास
07. रोहन- बिंदिया का बायफ्रेंड
08. कृष्णा- धन्नो का क्लासमेट, गुन्डा, बड़े बाप का बेटा
09. करिश्मा- कृष्णा की गर्लफ्रेंड,
10. शाहिद खान- आकाश का दोस्त, बिजनेसमैन।
11. मोहित- सोनाली की चचेरी मौसी का बेटा, क़द 59” इंच, रंग गोरा, गठीला जिश्म
12. पूनम- पड़ोसन और सोनाली की दोस्त,
13. कमल- पूनम का पति, उम्र 35 साल, क़द 5'8" इंच, रंग सांवला, हट्टा-कट्टा जवान
14. सोनू(सुरेश) सब्जीवाला, उम्र 30 साल, क़द 56 इंच, लण्ड 82" इंच लंबा 3” मोटा, रंग गोरा, ग्रामीण।
15. रिया- मोहित की मंगेतर
16. मनीष- गाँव के मुखिया का बेटा, करुणा का मंगेतर
17. रवि गाँव के मुखिया का दूसरा बेटा, धन्नो का मंगेतर
18. प्रवीण- ट्रेन में सहयात्री
19. राधा- प्रवीण की पत्नी, ट्रेन में सहयात्री
20. शिल्पा- ठाकुर की नौकरानी।
21. सूरज- शिल्पा का यार
22. कविता- शिल्पा की माँ, रंग गोरा, कद लंबा, मस्त फिगर, चूचियां 38" इंच, गाण्ड बहुत बड़ी
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मेरा नाम धन्नो है। 20 साल की उमर में ही मेरे माँ बाप का एक दुर्घटना में मौत हो गई। मेरा इस दुनियां में माँ बाप के अलावा सिर्फ एक चाची थी। मैं उसी के साथ रहने लगी। मेरी चाची की उमर 38 साल है। उसका नाम सोनाली है और वो विधवा है। क्योंकी चाचा की मौत 4 साल पहले हो चुकी है, 38 साल की होने के बावजूद उनका फिगर अच्छा है, वो बिल्कुल गोरी है। उसकी दो बेटियां हैं, एक 20 साल की बिंदिया, वो मेरे साथ बी.ए. की स्टूडेंट है और दूसरी 19 साल की करुणा, वो दूसरे साल की स्टूडेंट है। मेरे चाचा एक बैंक मैनेजर थे। इसीलिए हमारा उनकी पेंशन से गुजारा हो जाता था। दोनों बेटियां अपनी माँ की तरह दोनों बिल्कुल गोरी हैं और मेरा रंग भी गोरा है।
एक दिन कालेज में मुझे सिर में दर्द हो गया। मैं बिंदिया को बताकर घर चली गई। घर का दरवाजा अंदर से बंद था। मैंने घंटी बजाई, कोई 5 मिनट के बाद आँटी ने दरवाजा खोला। आँटी के बाल बिखरे हुए थे।
मुझे देखकर चाची हैरानी से पूछी- “धन्नो इतनी जल्दी कैसे आ गई?”
मैंने कहा- “मेरे सिर में दर्द है...”
आँटी ने कहा- “चलो अपने कमरे में, मैं गोली लेकर आती हूँ..."
मेरे कमरे में पहुँचते ही मुझे कुछ आवाज सुनाई दी। मैं जल्दी से जाकर दरवाजे की पीछे खड़ी होकर देखने लगी। बाहर एक हैंडसम आदमी खड़ा था।
सोनाली- “जय जल्दी जाओ मेरी भांजी आ गई है...”
जय गुस्से में- “उस रंडी को भी अभी आना था, मैं रात को आऊँगा..." और आँटी के गुलाबी होंठों पे एक चुंबन जड़ दिया।
सोनाली- “अभी जाओ भी, किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जायगा..." और आँटी ने जय को धकेलते हुए बाहर निकल दिया।
मैं जल्दी से जाकर बेड पर लेट गई। आँटी गोली और पानी लेकर आई, वो मैंने खा ली।
आँटी ने कहा- “तुम आराम करो मुझे बहुत काम है..." और चली गई।
मैं सोचने लगी की यह जय कौन है? और आँटी का उससे क्या चक्कर है? मेरा सिर फट रहा था। मैंने फैसला किया की रात को मैं पता लगाऊँगी, और मैं नींद के आगोश में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो बिंदिया और करुणा घर पर थी।
आँटी ने मुझे देखा और पूछा- “अब कैसी हो?”
मैंने कहा- “अब कुछ बेहतर हूँ...”
आँटी ने कहा- “चलो फ्रेश हो जाओ मैं खाना लगाती हूँ..”
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मैं फ्रेश होकर वापस आई तो खाना टेबल पर लग चुका था। हम सभी ने खाना खाया और आपस में बातें करने लगे। कब दिन बीत गया पता ही नहीं चला और रात को पढ़ाई करने के बाद आँटी हमारे लिए दूध लेने गई। मैंने टायलेट के लिए बाथरूम की तरफ जाते हुए देखा की आँटी दूध में कुछ मिला रही हैं। मैं जल्दी से टायलेट करके अपने कमरे में चली गई। आँटी कमरे में दूध लेकर आ गई।
मैंने आँटी से कहा- “आप दूध रख दो, मैं पी लूंगी...”
आँटी ने कहा- “बेटा मैं जा रही हूँ, मगर दूध पी लेना...”
आँटी के जाने के बाद मैंने दूध उठाकर फेंक दिया। एक घंटे बाद आँटी कमरे में आई। मैं कंबल डालकर सोने का नाटक करने लगी। ऑटी मुझे सोता हुआ देखकर चली गई। जैसे-जैसे टाइम गुजरता जा रहा था मेरे दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं। रात को 12:00 बजे दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने जल्दी से जाकर दरवाजे के की-होल से देखने की कोशिश की।
मेरा नशीब अच्छा था की बाहर तेज रोशनी थी। मैंने देखा की जय ने अंदर आते ही आँटी को बाहों में भर लिया और किसों की बौछार कर दी।
आँटी अपने आपको छुड़ाते हुए बोली- “मैं भागी थोड़ी जा रही हूँ कमरे में तो चलो...”
जय आँटी को गोद में उठाकर कमरे में चला गया। मैं आँटी के कमरे की तरफ गई। दरवाजा अंदर से बंद था मगर खिड़की थोड़ी खुली हुई थी। मैं थोड़ा साइड में होकर अंदर देखने लगी। जय ने आँटी के गुलाबी होंठों को चूसते हुए अपनी जुबान अंदर डाल दी जो आँटी बड़े मजे से चूसने लगी। जय ने आँटी की नाइटगाउन उतार दी। अब आँटी सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। आँटी के 38डी की गोरी-गोरी चूचियां ब्रा फाड़कर बाहर आने को मचल रही थीं, और आँटी का गोरा जिम चमक रहा था।
जय ने आँटी की ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा के हुक खुलते ही जय गुलाबी निपलों पर टूट पड़ा। आँटी सिसक रही थी। जय कभी एक चूची चूसता तो कभी दूसरी।
यह सब देखकर मेरी हालत बिगड़ने लगी। मेरा हाथ खुद ही नीचे चला गया और पैंटी के ऊपर से अपनी चूत सहलाने लगी।
अब जय नीचे होता हुआ आँटी की पैंटी उतारने लगा। पैंटी उतारने के बाद जय आँटी की गुलाबी और कोरी चूत को चूमते हुए अपने हाथों से चूत के दोनों होंठों को अलग करके अपनी जुबान लाल हिस्से में डाल दी। आँटी मजे की जन्नत में डूब गई। जय अपनी पूरी जुबान बहुत तेजी से अंदर-बाहर कर रहा था।
मेरा हाथ भी अब तेज हो चुका था।
अचानक आँटी बहुत जोर से चीखी- “जय मैं आई..”
जय का पूरा चेहरा पानी से भीग गया। वो पानी जय बड़े मजे से चाट रहा था।
यह सब देखकर मेरे होंठ खुश्क हो गये और मैं मजे और लज्जत से बेहोश होने लगी। दो मिनट बाद मुझे होश आया, मेरा हाथ और पैंटी गीले हो चुके थे। यह मेरा पहला ओर्गेज्म था। मैंने फिर अंदर देखा।
जय अपनी पैंट और शर्ट उतार चुका था। उसके अंडरवेर में तंबू बना हुआ था। मैंने अपनी सहेलियों से सुना था की मर्द शादी के बाद अपने लण्ड से औरत को चोदता है। आँटी ने जय का अंडरवेर उतारा और एक बहुत लंबा और मोटा लण्ड जो बिल्कुल गोरा था, उछलकर आँटी के मुँह के सामने आ गया। आँटी लण्ड की ऊपर वाली चमड़ी अलग करके गुलाबी टोपे को चूसने लगी। आँटी के चूसने से लण्ड और बड़ा होता गया। आँटी अपने कोमल हाथों से लण्ड को आगे-पीछे कर रही थी और टोपा चूस रही थी। आँटी के दोनों हाथों में वो लण्ड बड़ी मुश्किल से आ रहा था।
मैं यह देखकर फिर से गरम हो गई और अपनी चूत सहलाने लगी।
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जय ने आँटी के मुँह से लण्ड निकालकर सीधा लेटाया। उसके नरम दूध चाटते हुए आँटी की टाँगें अपने कंधों पर रख ली। जय अपना लण्ड आँटी की चूत पर रगड़ने लगा। आँटी अब बहुत तेज सिसक रही थी और अपने गोरे और मोटे चूतड़ उछाल रही थी।
सोनाली- “जय अब डाल भी दो, अब बर्दाश्त नहीं होता...”
जय ने यह सुनते ही अपने लण्ड को चूत के मुँह पर रखकर एक जोर का झटका मारा। जय का पूरा लण्ड आँटी की चूत में था और फिर से सारा बाहर निकालकर अंदर डाल देता और ऐसे ही जय धक्के मारने लगा।
आँटी बोली- “ओईईई ऐसे ही मेरे राजा बहुत मजा आ रहा है...”
अब जय आँटी को धक्के लगाते हुए चूचियां भी चूस रहा था।
पांच मिनट बाद आँटी चीखी- “जय मैं आ रही हूँ जोर-जोर से धक्के लगाओ...”
जय अब बहुत तेज धक्के मारने लगा।
आँटी- “हाँ ऐसे ही जय, आई लव यू...” और आँटी की चूत से पानी बहने लगा।
जय ने दो मिनट बाद आँटी को उल्टा कुतिया की तरह लेटाया और अपना लण्ड पीछे से आँटी की चूत में डाल दिया, और धक्के लगाते हुए एक उंगली थूक से गीली करके आँटी की गाण्ड में डाल दी।
आँटी उछल पड़ी- “जय यह क्या कर रहे हो? पीछे मत करो दर्द होता है..”
जय ने अपनी स्पीड तेज कर दी। आँटी अब जोर-जोर से सिसक रही थी। जय ने दूसरी उंगली भी आँटी की गाण्ड में डाल दी। आँटी थोड़ा उछली मगर तेज धक्कों की वजह से वो मजे में डूबी हुई थी।
अचानक आँटी चिल्लाने लगी- “मैं आईइ..” और आँटी फिर से झड़ने लगी।
उधर मैं भी लज्जत की गहराइयों में चली गई।
जय ने मौका देखकर ढेर सारा थूक अपने लण्ड और आँटी की गाण्ड पे लगाया इससे पहले आँटी कुछ समझती, जय ने एक जोर का धक्का मार दिया। आँटी जोर से चील्लाई ‘अह्ह... मर गई' और झटपटाने लगी। मगर जय ने उसे कसकर पकड़ रखा था। जय का आधा लण्ड आँटी की गाण्ड में था।
आँटी की आँखों से आँसू निकल रहे थे, और वो जय को गाली देते हुए कह रह थी- “कुत्ते कमीने... चूत से पेट नहीं भरा जो मेरी गाण्ड फाड़ दी...”
जय गाली सुनकर गुस्से में आकर आँटी के मुँह को हाथों से बंद करके एक और जोरदार धक्का मार दिया और लण्ड आँटी की गाण्ड में जड़ तक घुस गया और खून के फौव्वारे बहने लगे। आँटी की पूँ-हूँ की आवाज आने लगी। मगर जय अब एक जानवर बन चुका था।
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जय ने अपना लण्ड बाहर खींचकर फिर एक ही झटके में अंदर डालते हुए आँटी से कहा- “साली, छिनाल, रंडी चूत बहुत मजे से मरवाती है और गाण्ड के नाम से नखरे करती हो... अगर आराम से देती तो तुम्हारी ऐसी । हालत नहीं होती...” और जय ने धक्कों की रफ्तार बहुत तेज कर दी और हाँफते हुए आँटी के ऊपर गिर गया। जय का लण्ड सिकुड़कर बाहर निकल आया। लण्ड पे जय का पानी और आँटी का खून लगा हुआ था।
मैं यह देखकर बहुत डर गई और अपने कमरे में आकर सो गई।
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धन का सपना
रिक्शावाला हर रोज की तरह सुबह मैं और बिंदिया कालेज के लिए तैयार होकर जाने लगे। हमारा कालेज घर से एक कीलोमीटर दूर है, इसीलिए हम दोनों डेली रिक्शा से कालेज जाती हैं। आज भी हम रिक्शा से जा रहे थे। मैं अपने खयालों में खोई हुई थी। अचानक मैंने देखा की रिक्शा कालेज की बजाए किसी और जगह जा रहा है।
मैंने रिक्शेवाले से कहा- “भाई कहाँ जा रहे हो? हमें कालेज जाना है...”
रिक्शेवाले ने कहा- “मुझे थोड़ा काम था इसीलिए इस तरफ आ गया। यहाँ से कालेज का शार्ट कट है। मैं जल्दी से आपको कालेज पहुँचा दूंगा...”
बिंदिया बोली- “हाँ दीदी यहाँ से कालेज दूर नहीं है और इस गरीब का काम भी हो जायगा...”
मैंने कहा- “चलो ठीक है...”
रिक्शा चलता हुआ एक सुनसान जगह पर आकर रुक गया। यहाँ पर घने पेड़ों के अलावा कुछ नहीं था।
मैंने कहा- यहाँ क्यों रोक दिया?
रिक्शेवाले ने हँसते हुए कहा- “यहीं तो काम है...”
मैं बहुत डर गई। मैंने गुस्से से कहा- “क्या काम है?”
रिक्शेवाले ने एक उंगली सीधी करके दिखाई।
मैंने कहा- “अच्छा जल्दी से कर लो...”
रिक्शावाला कुछ दूर जाकर अपनी जिप खोलकर पेशाब करने लगा। अचानक उसने जिप बंद किए बगैर हमारी तरफ मुँह कर लिया, तो उसकी पैंट के बाहर एक बहुत मोटा और बड़ा काला लण्ड लटक रहा था।
मेरे तो होश ही उड़ गये। मैंने कहा- “यह क्या बदतमीजी है?”
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तभी मैंने देखा की बिंदिया वहाँ पहुँच गई और उसका लण्ड अपने हाथों से सहलाने लगी। मेरा मुँह हैरत से फटा जा रहा था।
मैंने बिंदिया से कहा- “तुम क्या कर रही हो?”
बिंदिया ने हँसते हुए कहा- “धन्नो, तुम अब भी बच्ची हो क्या? आओ इसका स्वाद चख लो और मजे लो...” कहकर बिंदिया अपना मुँह खोलकर लण्ड चूसने लगी।
लण्ड बढ़ता हुआ बड़ा हो गया। यह लण्ड जय से बड़ा और भयानक था। मैं आँखें फाड़कर देख रही थी। तभी बिंदिया उसके लण्ड को मुँह से निकालकर मेरी तरफ आई और मुझे खींचते हुए उस रिक्शेवाले की तरफ ले जाने लगी। मैं भी अपने आपको रोक ना पाई और बिंदिया के साथ जाने लगी।
बिंदिया ने उस रिक्शेवाले का लण्ड मेरे हाथ में थमा दिया। मुझे जाने क्या हुआ मैं उस लण्ड को आगे-पीछे करने लगी और नीचे बैठ गई। अचानक वो रिक्शावाला अपना लण्ड मेरे होंठों पे रगड़ने लगा। मुझपे नशा होने लगा और मैंने अपना मुँह खोल दिया और उसने लण्ड को मुँह में डाल दिया। मुझे उसके लण्ड से कुछ अजीब सी गंध आ रही थी, मगर मुझे अच्छा भी लग रहा था। उस रिक्शेवाले ने अपना लण्ड मेरे मुंह से निकालकर मेरे होंठ पे चूमने लगा और अपनी जुबान मेरे मुँह में डालने लगा।
मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैं भी उसका साथ देने लगी, और अपनी जुबान उसके मुँह में डाल दी। वो उसे बड़े प्यार से चाटने लगा और उसने मुझे सीधा लेटा दिया। अब वो मेरे ऊपर था। उसने नीचे होते हुए मेरी स्कर्ट के ऊपर ही मेरी चूचियां सहलाने लगा। मैं मजे से सिसकने लगी।
अचानक बिंदिया ने कहा- “देर हो रही है जल्दी से करो..."
वो रिक्शावाला नीचे होते हुए मेरी पैंटी उतारने लगा। पैंटी उतारकर उसने मेरी चूत पर अपना मुँह रखा और चाटने लगा। मैं मजे से अपना सिर पटकने लगी और उसके सिर को जोर से अपनी चूत पर दबाने लगी। रिक्शावाला अपना मुँह हटाकर एक उंगली पर थूक लगाकर मेरी चूत में डालने लगा। पहले मुझे थोड़ा दर्द हुआ मगर फिर मजा आने लगा। अब वो अपनी पूरी उंगली अंदर-बाहर कर रहा था।
फिर उसने अपनी दो उंगलियां अंदर डाल दी और मुझे फिर से दर्द होने लगा मगर थोड़ी ही देर में मुझे इतना मजा आने लगा की मैं मजे से अपने चूतड़ उठाने लगी और मैं झड़ गई। रिक्शावाले ने मौका देखकर मेरी गीली चूत पर अपना लण्ड रगड़ा और थोड़ा थूक लगाकर मेरी चूत में एक जोरदार धक्का मारा। मेरे मुँह से एक जोरदार चीख निकली।
बिंदिया ने मुझे उठाते हुए कहा- “क्या हुआ दीदी..
.” * * * * * * * * * *धन्नो का सपना समाप्त
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मैं आँख मलते हुए उठी और कहा- “कुछ नहीं एक डरावना सपना था..." और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चली गई मेरी पैंटी पूरी गीली थी। मैं सोचने लगी की शुकर है एक सपना था, और फिर सपना याद करके हँसने लगी बिंदिया ऐसी नहीं हो सकती जैसा सपने में थी। मैं नहाने बाथरूम में चली गई।
मेरी जांघों के बीच चूत में सुरसुरी हो रही थी। मैंने अपने कपड़े उतारे और आईने में अपने आपको निहारने लगी। मेरी चूचियां बिल्कुल गोल-गोल और दूध की तरह सफेद थीं। मैंने नीचे देखा तो हैरत में पड़ गई। मेरी छोटी सी चूत फूलकर डबल रोटी की तरह मोटी गई थी। मैं अपनी टाँगें फैलाकर बड़े गौर से देखने लगी। मेरी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे। मैं उनपे हाथ फेरने लगी। मेरी चूत के अंदर गुदगुदी और मजे का अहसास हो रहा था। मैं मजे के सागर में गोते खा रही थी।
मैं अपनी जांघे फैलाकर चूत को गौर से देखने लगी। चूत के ऊपर एक छोटा सा दाना था, उसके ठीक नीचे एक सीधी लकीर खींची हुई थी। मैंने अपने हाथों से चूत की फांकों को अलग किया और अंदर देखने की कोशिश करने लगी। मुझे लाल और गुलाबी रंग के अलावा कुछ नजर नहीं आया। मैं अपने हाथ ऊपर करके चूत के दाने को रगड़ने लगी। वहाँ हाथ लगाते ही आनंद के मारे मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं अपने हाथ नीचे करके चूत की फांकों को मसलने लगी। मेरे मुँह से उत्तेजना के मारे सिसकियां निकलने लगी, और मैं एक दूसरी दुनियां में चली गई। मैंने तेज साँसें लेते हुए अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और झड़ने लगी। मेरे हाथ गीले हो गये और मैं वापस होश में आने लगी। मेरी चूचियां अब भी बड़ी तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी।
मैं जल्दी से नहाकर बाहर आ गई। मैं तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई। आँटी टेबल पर नाश्ता लगा चुकी थी। आज सनडे था, कालेज भी नहीं जाना था। खाना खाने के बाद आँटी बर्तन उठाने लगी, वो थोड़ा लंगड़ाकर चल रही थी।
मैंने आँटी से पूछा- “आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं?”
सोनाली- “बेटा बाथरूम में नहाते हुए पैर फिसल गया था...” आँटी ने जवाब दिया।
मैं अपने कमरे में चली गई और गुजरी हुई रात के बारे में सोचने लगी।
तभी आँटी के कमरे से फोन की घंटी बजने लगी। आँटी कमरे की तरफ बढ़ी। मैं चुपके से खिड़की के पास आ गई और गौर से आँटी की आवाज सुनने लगी।
आँटी ने फोन उठाकर इधर-उधर देखा और बोली- “तुम बहुत जालिम हो जय। मेरी गाण्ड अब भी दर्द कर रही है। आज रात मत आना...” कहकर आँटी फोन सुनने लगी, फिर कहा- “तुम मेरी बात नहीं मानोगे, अच्छा आ जाना मगर मेरी गाण्ड सूजी हुई है वहाँ पे कुछ मत करना...” कहकर आँटी ने फोन रख दिया।
शाम को बिंदिया ने कहा- “चलो बाजार से कुछ सामान लेकर आते हैं...”
रास्ते में मैंने पूछा- “क्या खरीदना है?”
बिंदिया शर्माकर बोली- “मुझे कुछ अंडरगार्मेंट्स खरीदने हैं.”
मार्केट में पहुँचते ही एक लड़का बिंदिया को इशारे करने लगा। बिंदिया भी मुश्कुराकर जवाब दे रही थी।
मैंने पूछा- क्या माजरा है?
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बिंदिया मुझे एक माल में ले गई। वहाँ से उसने कुछ ब्रा खरीदी। आँटी की तरह बिंदिया की चूचियां भी बहुत बड़ी-बड़ी हैं। बिंदिया ने 38 नंबर की ब्रा खरीदी थी। वापस आते हुए मैं बिंदिया से उस लड़के के बारे में पूछने लगी। ज्यादा जोर देने पर उसने बताया की वो लड़का उसके साथ कालेज में पढ़ता है और उसका नाम रोहन है। वो मुझसे प्यार करता है और मैं भी उसे पसंद करती हूँ।
मैंने रास्ते में उससे पूछा- “यह सब कब से चल रहा है, और तुम दोनों कितने आगे बढ़ चुके हो?”
बिंदिया ने कहा- दो महीने हुए हैं और हमने अब तक बातों के अलावा कुछ नहीं किया।
घर पहुँचकर मैं बिंदिया के कमरे में चली गई और हम दोनों बातें करने लगे। मैंने बिंदिया से कहा- “आज रात तुम मेरे कमरे में सो जाओ...”
बिंदिया फौरन मान गई। आँटी को भी मैंने मना लिया। पढ़ाई करने के बाद बिंदिया और मैं मेरे कमरे में आ गये। आँटी दूध लेकर आ गई। मैंने आँटी से दूध लिया और टेबल पर रख दिया। आँटी के जाने के बाद मैंने दूध फेंक दिया।
बिंदिया मेरी तरफ हैरत से देखने लगी और पूछने लगी- “तुमने दूध क्यों फेंक दिया धन्नो?”
मैंने बिंदिया को आँटी और जय के बारे में सब कुछ बता दिया।
बिंदिया का मुँह मेरी बातें सुनकर खुला रह गया और वो हैरत से कहने लगी- “धन्नो तुमको जरूर कुछ गलतफहमी हुई है। मेरी माँ ऐसी नहीं हो सकती...”
तभी मुझे आँटी के आने की आहट सुनाई दी मैंने बिंदिया को कहा- “जल्दी से सोने की आक्टिंग करो...”
आँटी हमें सोता हुआ देखकर ग्लास उठाकर चली गई। आँटी के जाने के बाद बिंदिया उठी, उसकी साँसें अब भी ऊपर-नीचे हो रही थीं। मुझे ना जाने क्या हुआ की मैंने बिंदिया की चूचियां थाम ली और उन्हें दबाने लगी। बिंदिया की चूचियां बहुत नरम थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की जैसे कोई फोम का टुकड़ा हाथ में हो।
बिंदिया ने उखड़ती हुई साँसों से कहा- “आहहह... धन्नो क्या कर रही हो?”
मैंने उसकी ना सुनते हुए अपना हाथ नीचे सरकाते हुए उसकी सलवार में घुसा दिया और कच्छी के ऊपर से ही । उसकी योनि को रगड़ने लगी। बिंदिया अब मजे से पागल हो रही थी और तेजी से सिसकते हुए अपनी टाँगें चौड़ी कर दी, और अपनी आँखें बंद कर ली। मैंने आगे बढ़ते हुए अपना हाथ उसकी कच्छी में डाल दिया और उसकी चूत का छेद ढूँढ़ने लगी।
अब बिंदिया मजे से छटपटा रही थी। बिंदिया ने अपना हाथ भी सलवार में घुसा दिया और मेरे हाथ को पकड़कर आगे-पीछे करने लगी। मैं अपनी उंगली से उसकी चूत के दाने को टटोलने लगी, और उंगली नीचे करके चूत के छेद में फिराने लगी। उसकी चूत रस से गीली हो चुकी थी। मैंने अपना हाथ बिंदिया की सलवार से बाहर निकाला, और वो कुछ समझ पाती इससे पहले मैंने उसकी सलवार नीचे उतार दी और कच्छी भी नीचे सरका दी। मैं अपना मुँह उसकी गीली चूत के पास ले गई, तो उसकी चूत से भीनी-भीनी महक आ रही थी।
मुझे बिंदिया की चूत की महक बहुत अच्छी लग रही थी। मैं अपनी नाक उसकी चूत के करीब करके उसकी महक सँघते हुए अपने हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगी। बिंदिया के मुँह से अब लंबी-लंबी साँसें और सिसकियां निकल रही थीं। मैंने अपना मुँह बिंदिया की चूत में घुसा दिया और उसकी फाँकें चूसने लगी। उसकी चूत चाटने में मुझे बहुत मजा आ रहा था, क्योंकी उसकी चूत का स्वाद बहुत बढ़िया था।
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बिंदिया काँपने लगी। कुछ देर फांकों को चाटने के बाद मैंने बिंदिया की पूरी चूत को दबोच लिया। मैंने अपनी जीभ निकालकर चूत की फांकों और उसकी पतली दरार को चाटने लगी। अब बिंदिया बहुत जोर से सिसक रही थी। उसकी साँसों की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी और तड़प सहन ना करते हुए बिंदिया की योनि से नदियां बहने लगी, और उसकी आँखें बंद हो गई। वो अपने पहले ओर्गेज्म का भरपूर लुत्फ़ उठा रही थी।
उसके योवन रस से मेरा पूरा चेहरा भीग चुका था, मैं अपनी जीभ से बिंदिया का पूरा योवन रस चाट रही थी। उसका स्वाद मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। बिंदिया अब होश में आने लगी और अपनी आँखें खोलकर मेरी तरफ देखने लगी।
मैंने पूछा- मजा आया?
बिंदिया ने शर्म के मारे अपनी गर्दन हिलाकर हाँ कहा।
तभी बाहर से दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने बिंदिया से कहा- “जल्दी अपने कपड़े पहनो। आज मैं तुम्हें लाइव शो दिखाती हूँ..” कहकर मैं जल्दी से उठी और दरवाजे के की-होल से देखने लगी।
बिंदिया भी मेरे पीछे खड़ी होकर देखने लगी। जय अंदर आते ही आँटी के नरम होंठों पे फ्रेंच-किस करने लगा। आँटी ने भी उसका साथ देते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया। जय ने आँटी से अलग होते हुए दरवाजा बंद किया और आँटी के साथ कमरे में चला गया। मैं जल्दी से बिंदिया को लेकर खिड़की के पास आ गई और अंदर देखने लगी। आँटी ने जय के सारे कपड़े एक-एक करके उतार दिए। जय अब सिर्फ एक अंडरवेर में खड़ा था।
जय- “आज बड़े मूड में हो मेरी रानी...” कहते हुये जय ने आँटी को बाहों में भरना चाहा।
मगर आँटी जय को बेड पर गिराते हुए उसके ऊपर चढ़ गई, और अपनी जुबान निकालकर जय के जिश्म को चाटने लगी और उसकी छाती को अपने मुँह में ले लिया। आँटी जय की छाती चाटते हुए उसे अपने दाँतों से हल्का-हल्का काट रही थी। जय मजे से उछल रहा था।
यह सब देखकर मेरी और बिंदिया की साँसें अटकने लगी। बिंदिया ने मुझे पीछे से जोर से दबोच लिया और अपने हाथ मेरी छातियों पे रख लिया। बिंदिया की तेज साँसें मेरे मुँह के करीब महसूस हो रही थीं।
आँटी ने बैठकर एक नजर जय पर डाली और एक लंबी साँस लेते हुए सीधी होकर जय के ऊपर बैठ गई। आँटी ने एक हाथ अपनी कमीज में डाला और अपनी एक छाती बाहर निकाली। उसकी भरी-भरी एक चूची कमीज के बाहर लटक रही थी। गुलाबी रंग का निपल उत्तेजना की वजह से सीधा खड़ा था। उसने एक नजर जय पे डाली, और अपने हाथों से अपनी छाती दबाने लगी।
जय बड़े गौर से आँटी को घूर रहा था और अपने एक हाथ से अंडरवेर के ऊपर से ही अपने लण्ड को सहला रहा था। आँटी ने जय का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी छाती पे रख दिया, और अपने हाथ के दबाव से छाती दबाने लगी। आँटी ने अपने दूसरे हाथ से जय की चड्ढी नीचे सरका दी। जय का खड़ा लण्ड आँटी के सामने था। वो। पहले भी कई-कई बार इस लण्ड से खेल चुकी थी। मगर फिर भी इतना बड़ा और मोटा लण्ड देखकर उसके दिल की धड़कनें तेज होने लगी। आँटी अपने हाथ को बढ़ाकर लण्ड अपनी मुट्ठी में लेकर सहलाने लगी। आँटी का। हाथ अब पूरे लण्ड पर ऊपर-नीचे हो रहा था।
जय की आँखें मजे से बंद होने लगी। जय के हाथ का दबाव भी आँटी की छाती पे बढ़ता जा रहा था। आँटी ने एक लंबी साँस ली और नीचे झुककर जय का लण्ड अपने मुँह में भर लिया। आह्ह्ह... जय के मुँह से आऽs निकल गई। जय ने एक हाथ से आँटी की छाती सहलाते हुए दूसरे हाथ से उसके सिर को पकड़ लिया।
आँटी लण्ड का चौथा हिस्सा ही अपने मुँह में ले पा रही थी, और वो मोटा इतना था की उसे अपना पूरा मुँह खोलना पड़ रहा था। फिर भी आँटी के दाँत लण्ड को छू रहे थे। आँटी ने फिर भी लण्ड को चूसना जारी रखा और अपने मुँह को लण्ड के ऊपर-नीचे करती रही, और हाथ से लण्ड सहलाती और हिलाती रही।
जय अपना हाथ आँटी के सिर से हटाकर उसकी दूसरी छाती को बाहर निकालने की कोशिश करने लगा, मगर आँटी के झुके होने के कारण वो ऐसा नहीं कर पा रहा था। आँटी ने लण्ड चूसते हुए ही अपना हाथ कमीज में डालकर अपनी दूसरी छाती को बाहर निकाल लिया। जय के दोनों हाथ छातियों पे टूट पड़े और उन्हें मसलने और बेदर्दी से दबाने लगे। जय अब झड़ने वाला था क्योंकी वो अपनी कमर को जोर-जोर हिला रहा था। आँटी भी अपने हाथों को जोर-जोर से आगे-पीछे करते हुए जोर से चूसने लगी।
अचानक जय ने आँटी के सिर को पकड़कर लण्ड पर जोर से दबा दिया, और अपना लण्ड जितना हो सकता था। अंदर सरका दिया और तेज सिसकियों के साथ झड़ने लगा।
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आँटी ने अपनी आँखें बंद कर ली, लगता था वो भी जय के साथ झड़ रही हैं, क्योंकी आँटी की पैंटी और सलवार गीली हो गई थी। जय का लण्ड आँटी की हलक तक अंदर था। इसीलिए आँटी को उसका सारा माल पीना पड़ा। थोड़ी देर बाद जय ने अपना लण्ड आँटी के मुँह से निकाला, आँटी खांस रही थी और कुछ रुका हुआ माल नीचे गिरने लगा। ऑटी ने नीचे गिरा हुआ माल अपनी जुबान निकालकर चाट लिया और जय के लण्ड को भी अच्छी तरह साफ कर दिया।
मैं और बिंदिया अपनी पैंटी और कच्छी नीचे करके एक दूसरे की चूत को ना जाने कितनी बार झड़ा चुकी थी।
जय ने आँटी से कहा- “तुम्हें मैंने अपने प्रमोशन के बारे में बताया था तुम्हें याद है?"
आँटी ने कहा- “हाँ याद है, कब हो रहा है तुम्हारा प्रमोशन?”
जय- “तुम्हें मेरी मदद करनी होगी तभी मेरा प्रमोशन होगा। आकाश मेरे प्रमोशन के खिलाफ है...”
आँटी- “यह आकाश कौन है? और भला मैं क्या कर सकती हूँ?”
जय- “मेरे बास का नाम आकाश है और वो लड़कियों का बहुत शौकीन है। तुम्हें उसे खुश करना होगा...”
आँटी- “तुमने मुझे क्या रंडी समझकर रखा है जो जिसके साथ तुम कहोगे मैं सो जाऊँगी..." आँटी ने गुस्से से कहा- “तुम किसी रंडी को उसके पास क्यों नहीं ले जाते?”
जय- “वो बहुत खेला हुआ खिलाड़ी है, वो सिर्फ घरेलू औरतों को पसंद करता है। रंडी को वो जल्दी से पहचान लेगा। मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं माँगा। तुम्हें मेरे लिए यह काम करना होगा। मैं सारी उमर तुम्हारा गुलाम बनकर रहूँगा..."
आँटी ने पूछा- “अच्छा ठीक है। मगर यह कैसे होगा?”
जय- “वो तुम मुझ पर छोड़ दो जानेमन.. मैं रात को उसे यहाँ भेज दूंगा...”
जय ने आँटी को बाहों में भरते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके सारे कपड़े उतार दिए। जय ने आँटी की छाती अपने मुँह में भरते हुए अपने दाँतों से उसकी छाती पे काटने लगा। आँटी सिसकने लगी और जय को अपनी छाती पे दबाने लगी। थोड़ी देर छाती चाटने के बाद जय अपने मुँह को नीचे ले जाने लगा और आँटी की चूत के दाने को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
आँटी मजे से- “ओहह... आअह्ह्ह...” करके सिसकने लगी।
जय ने अपना मुँह दाने से हटाते ही आँटी की चूत के होंठों को एक दूसरे से अलग किया और अपनी जीभ निकालकर अंदर डाल दी। जय अपनी पूरी जीभ आँटी की चूत में डालकर अंदर-बाहर कर रहा था। आँटी मजे से पागल होकर जय को अपने ऊपर खींचकर 69 पोजीशन में ले आई और जय के लण्ड को अपने कोमल हाथों से ऊपर-नीचे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ दुखने लगा तो उसने जय का लण्ड अपने मुँह में डालकर दोनों हाथों से उसे आगे-पीछे करने लगी। आँटी जय का लण्ड चूसते हुए कभी बाहर निकालकर उसे अपनी जुबान से ऊपर से नीचे तक चाटती हुई अंडों को भी अपने मुँह में भर लेती।
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जय का लण्ड अब फिर से पूरी तरह तन चुका था। उसने आँटी को सीधा लेटाते हुए उसकी दोनों टाँगों को घुटनों तक मोड़ दिया। इस पोजीशन में आँटी की फूली हुई चूत बिल्कुल बाहर आ चुकी थी। जय ने अपना लण्ड आँटी की गीली चूत पे रखा और एक झटका मारा, तो जय का आधा लण्ड अंदर जा चुका था। जय ने अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकालकर एक और जोर का झटका मारा, जय का लण्ड पूरा आँटी की चूत में था।
आँटी मजे से कराह उठी- “आहह्ह...”
जय ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ आँटी के गुलाबी होंठों पर रख दिए। आँटी के मुँह से आह निकल गई और दोनों के होंठ एक दूसरे से मिल गये। जय होंठों का रस चूसते हुए नीचे से तेज धक्के लगाने लगा। आँटी मजे से हवा में उड़ रही थी। आँटी ने जय को जोर से दबोचकर चुंबन में जय का साथ देने लगी और अपने चूतड़ उठाकर धक्कों का जवाब देने लगी। जय अपने हाथों से आँटी की बड़ी-बड़ी चूचियां मसलने लगा। आँटी तीन तरफा हमला ना सहते हुए झड़ने लगी। आँटी के झड़ने के बाद जय ने अपनी स्पीड बहुत तेज कर दी। आँटी ने अपनी जुबान जय मुँह में डाल दी।
जय पागलों की तरह आँटी की जुबान को चूसता हुआ धक्के लगाने लगा। कुछ मिनट बाद जय ने आँटी के मुँह से अपनी जुबान निकालकर आँटी की टाँगें हवा में उठा ली और अपना पूरा लण्ड बाहर निकालकर जड़ तक धक्के लगाने लगा और 8-10 धक्कों के बाद आँटी की चूत में झड़ने लगा। आँटी की चूत से पानी की बूंदें नीचे गिरने लगी। जय हाँफता हुआ आँटी के ऊपर ढेर हो गया।
मैं और बिंदिया जल्दी से अपने कमरे में आ गये और दरवाजा बंद कर लिया। मैं और बिंदिया अंदर आते ही एक दूसरे से लिपट गये, क्योंकी हम दोनों चाची और जय की रोमांचक चुदाई देखकर बहुत गर्म हो गई थी। बिंदिया ने मुझे अपनी बाँहों में लेते हुए अपने गुलाबी होंठ मेरे सुलगाते गर्म होंठों पर रख दिए। मेरा सारा बदन मजे से अकड़ने लगा।
इससे पहले कभी किसी ने भी मुझे चुंबन नहीं दिया था। मैं पागलों की तरह बिंदिया के होंठ की तरह बिंदिया से लिपट गई और उसके होंठ चूसने लगी। मैंने अपनी जीभ निकालकर बिंदिया के मुँह में डाल दी। वो मेरी जीभ को पकड़कर चूसने लगी, और अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दी, जिसे मैं चाटने लगी। कुछ देर एक दूसरे की जीभ चाटने के बाद बिंदिया ने मेरी बाहों को ऊपर उठाया और मेरी कमीज उतार दी। मेरी साँसें उखड़ने लगी और मेरी चूचियां मेरी साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगी।
मेरी चूचियां बिंदिया जितनी बड़ी नहीं थी मगर बिल्कुल गोल-गोल और ऊपर उठी हुई थी। बिंदिया मेरी ब्रा के ऊपर से ही मेरी छातियों को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए मेरे पीछे आ गई और मेरी ब्रा के हुक खोल । दिए। ब्रा उतारने के बाद बिंदिया ने पीछे से ही अपनी चूचियां मेरी पीठ से रगड़ते हुए मेरी छातियों को अपने हाथों से दबाने लगी। अचानक बिंदिया ने मेरे कंधे को चूमते हुए मेरे कान की एक लौ अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मेरी मुँह से सिसकियां निकलने लगी। बिंदिया मेरे तने हुए सख़्त निपलों को अपनी उंगलियों से खींचने लगी।
मेरे मुँह से एक हल्की चीख निकल गई- “ऊऊईई... बिंदिया क्या कर रही हो?” मैंने बिंदिया का हाथ हटाते हुए उसे सीधा किया और उसकी बाँहें उठाकर उसकी कमीज उतार दी।
बिंदिया की बड़ी-बड़ी चूचियां ब्रा को फाड़कर बाहर निकलने के लिए मचल रही थीं। मैंने उसकी ब्रा भी निकाल दी। बिंदिया की छातियां बहुत बड़ी थी। उसके निपल तनकर मोटे हो गये थे। बिंदिया मुझे बाहों में लेते हुए अपनी चूचियां मेरी छातियों से रगड़ने लगी। हम दोनों के जिश्म बहुत गर्म हो गये थे, चूचियां आपस में टकराने से हम दोनों के कड़े निपलों एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे और हम दोनों मजे से सिसक रहे थे।
बिंदिया ने नीचे होकर मेरी एक छाती को अपने मुँह में भर लिया और उसे बड़े जोर से चाटने लगी। मेरे सारे बदन में बिजली दौड़ने लगी और मजे से मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं बिंदिया के सिर को पकड़कर अपनी छाती पर दबाने लगी। बिंदिया ने अब मेरी दूसरी छाती अपने मुँह में ले ली और पहली वाली को हाथों से सहलाने लगी। अब बिंदिया नीचे होते हुए मेरी नाभि पर आ गई और अपनी जीभ निकालकर मेरी नाभि को चाटने लगी और मेरी सलवार को उतारकर मेरी चड्ढी के ऊपर से मेरी चूत को सहलाने लगी।
मेरे मुँह से सिसकियां निकल रही थी।
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अचानक बिंदिया ने मुझे बेड पर लेटाते हुए अपनी सलवार और चड्ढी निकाल दी। अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। बिंदिया की चूत पे हल्के बाल थे, और उत्तेजना के मारे वो टमाटर की तरह लाल हो गई थी।
बिंदिया मेरे पास आई और मेरी कच्छी भी उतार दी। वो मेरी चूत को बड़े गौर से देख रही थी। मेरी चूत बहुत गीली हो चुकी थी और उससे कुछ पानी की बूंदें निकलकर मेरी जांघों तक आ रही थी। बिंदिया मेरी टाँगों को। खोलकर मेरी चूत के नरम होंठों को सहलाने लगी। मेरी साँसें रुकने लगी। मुझे आज जैसा मजा अपने हाथों से भी नहीं आया था।
मैंने मजे से सिसकते हुए अपना एक हाथ उसके हाथ के ऊपर रख लिया और दूसरा हाथ उसकी भारी भरकम नितंबों पे रखकर सहलाने लगी। बिंदिया ने अपने गरम होंठ मेरी चूत पर रख दिए। वो मेरी चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रही थी। मेरी आँखें बंद होने लगी और मैं जोर से सिसकने लगी ‘ऊहह... आह्ह्ह..' और मैंने अपनी टाँगें जितनी हो सकती थी खोल दी। बिंदिया की जीभ मेरी चूत को बहुत तेजी से चाट रही थी। मैं अपने हाथ बिंदिया के रेशमी बालों में डालकर उसका सिर सहला रही थी। अचानक बिंदिया ने मेरी चूत के होंठ खोलकर अपनी जीभ अंदर डाल दी।
मैं मजे से सातवें आसमान का सैर करने लगी। मैं अपने काबू में नहीं थी। मैंने बिंदिया को अपनी चूत पर बहुत जोर से दबा दिया। उसकी पूरी जीभ मेरी चूत के अंदर थी और वो मेरी चूत को अंदर से चाट रही थी। मेरी साँसे उखड़ने लगी और मैं एक बड़ी सिसकी के साथ ‘ओहईई... बिंदिया' कहते हुए झड़ गई। मैं एकदम से निढाल हो गई और ना जाने कितनी मनी मेरे अंदर से निकली थी जो बिंदिया ने एक-एक कतरा तक मेरी गुलाबी चूत से चूस लिया। मैं ऐसे शांत हो गई जैसे समुंदर तूफान के बाद शांत हो जाता है।
बिंदिया अब उठकर मेरे ऊपर आ गई और मेरी चूत के पानी से भीगे होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मुझे बिंदिया के मुँह से भीनी-भीनी खुश्बू आ रही थी। मेरा जिश्म फिर से गर्म होने लगा। मैंने बिंदिया को नीचे लेटाते हुए उसकी बड़ी-बड़ी छातियों को अपने मुँह में ले लिया और उसके निपलों को चूसने लगी।
इस बार सिसकने की बारी बिंदिया की थी। मैं बिंदिया की नरम छातियों को हाथों से रगड़ते हुए नीचे जाने लगी। मैंने अपना मुँह बिंदिया की चूत पे रखा, उसकी चूत से चिपचिपा सा पानी निकल रहा था। मुझे उसके चूत से मदहोश करने वाली महक आ रही थी। उसकी चूत के होंठ गुलाबी और फूले हुए थे। मैंने अपनी जीभ बाहर । निकालकर उसकी चूत के होंठ पर रख दिए और जीभ अंदर डालकर उसकी बहती मनी को चाटने लगी। उसकी मनी का स्वाद बहुत अजीब था, मगर मुझे वो बहुत अच्छा लग रहा था।
बिंदिया के मुँह से अब सिसकियां निकलने लगी, और वो अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी। मैंने उसकी चूत को पूरा अपने मुँह में लेकर अपनी साँस पीछे खींची। बिंदिया अपने नितंब उछालते हुए जोर से सिसकी ‘ओऊऊ... और अपनी मनी से मेरे मुँह को भरने लगी। उसकी मनी का स्वाद अंजाना था मगर मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने उसकी सारी मनी चाट ली, और उसके साइड में जाकर लेट गई। बिंदिया ने लज्जत से बंद की हुई अपनी आँखें खोली और मुझे देखकर मुश्कुराई और मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
बिंदिया- “धन्नो तुम बिल्कुल सच कह रही थी। माँ तो किसी अंजान आदमी से चुदवा रही थी...”
मैंने बिंदिया के नंगे नितंब पे अपना हाथ फेरते हुए कहा- “इसमें आँटी का कोई कसूर नहीं है...”
बिंदिया हैरत से बोली- “तुम क्या बोलना चाहती हो, क्या वो यह सब सही कर रही है?”
मैं- “हाँ। तुम खुद सोचो की तुम यह सब देखकर इतनी गर्म हो गई, आँटी तो शादीशुदा थी, अंकल के गुजर जाने के बाद उसकी भी कुछ जरूरतें होंगी, इसीलिए उसने जय को अपना सहारा बना लिया..." और हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में कब नींद की आगोश में चले गये पता ही नहीं चला।
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* * * * * * * * * *सोनाली का सपना ******************
जय के बास आकाश के साथ सोनाली जय के जाने के बाद आकाश के बारे में सोचने लगी, जय ने उसे आकाश के बारे में कुछ भी नहीं बताया था। यह आकाश पता नहीं किस उमर का होगा? और उसका लण्ड पता नहीं कैसा होगा? और उसकी शकल ना जाने कैसी होगी? यह सोचते हुए सोनाली नींद के आगोश में चली गई।
दूसरी रात को 12:00 दरवाजा खटकने की आवाज आई। सोनाली जल्दी से उठकर दरवाजा खोलने गई। उसने आज अपने आपको बहुत अच्छे तरीके से मेकअप किया था और बिल्कुल नये कपड़े पहने थे। वो आज बेहद खूबसूरत लग रही थी। दरवाजा खोलते ही उसका मुँह हैरत से फटा रह गया। जय के साथ एक 55 साल का बूढ़ा जिसकी लंबाई कोई 5'5" इंच और उसका चेहरा बिल्कुल काला था, खड़ा था।
जय ने कहा- “यह मेरा बास आकाश है इसकी अच्छे तरीके से खातिरदारी करना, मैं चलता हूँ...”
वो बूढ़ा सोनाली को ऊपर से नीचे तक बहुत गौर से घूर रहा था, जैसे सोनाली उसके सामने नंगी खड़ी है, और आगे बढ़कर सोनाली का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले जाने लगा।
सोनाली किसी बुत की तरह उसके साथ अंदर जाने लगी। कमरे में पहुँचते ही उस बूढ़े ने सोनाली के कोमल होंठों पे अपने काले होंठ रख दिए। वो सोनाली के होंठों को पूरा अपने मुँह में लेकर चूस रहा था। सोनाली थोड़ा गरम होने लगी और अपना हाथ उस बूढे के सिर में डालकर सहलाने लगी। बूढ़े ने अपनी जुबान सोनाली के मुँह में। डाल दी और अपने हाथ सोनाली की बड़ी-बड़ी छातियों पे रखकर दबाने लगा।
सोनाली की मुँह से आह्ह्ह' निकल गई। सोनाली बूढ़े की जुबान को पकड़कर चाटने लगी।
अब वो बूढ़ा सोनाली की कमीज निकालने लगा। सोनाली ने अपनी बाहों को ऊपर उठा लिया। बूढ़ा कमीज उतारते ही सोनाली के गोरे बदन और बड़ी-बड़ी चूचियों को देखकर लार टपकाने लगा, और कहने लगा- “जय ने तो बहुत मस्त माल फँसाकर रखा है."
सोनाली की बड़ी-बड़ी चूचियों को ब्रा भी पूरा ढक नहीं पा रही थी। बूढ़े ने आगे बढ़कर ब्रा के ऊपर से ही चूचियों के बीच में अपना मुँह रख लिया और अपने हाथ पीछे लेजाकर ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा के हटते ही सोनाली की बड़ी-बड़ी चूचियां लटकने लगी। बूढ़े ने सोनाली की एक चूची को अपने मुँह में ले लिया और बड़े जोर से चूसने लगा, और उसे अपने दाँतों से काटने लगा।
आँटी के मुँह से हल्की चीख निकल गई- “ऊऊईई... इतने जोर से मत करो दर्द हो रहा है...”
वो बूढ़ा आँटी की बात को अनसुना करते हुए उसकी चूचियों को बारी-बारी बड़े जोर से चूसने लगा। आँटी के मुँह से सिसकियां निकलती रही। बूढ़ा अपना मुँह सोनाली की चूचियों से हटाते हुए नीचे जाने लगा और आँटी की सलवार खोलकर कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत पे अपना मुँह रखकर चाटने लगा, और अपने हाथ उसकी कच्छी में डालकर उसे उतार दिया।
सोनाली की गोरी चूत और उसकी चूत के गुलाबी होंठ देखकर बूढ़े के मुँह से लार टपकने लगी। उसने आज तक इतनी गोरी और सुंदर औरत को नहीं चोदा था। उसने आँटी को सीधा लेटाकर उसकी टाँगों को चौड़ा किया और अपना मुँह उसकी चूत के दाने पे रखकर उसे चूसने लगा। सोनाली की तेज सिसकियां निकलने लगी।
अचानक उस बूढ़े ने उसके दाने को चूसते हुए उसकी चूत में अपनी एक उंगली घुसा दी, और उसे आगे-पीछे करने लगा। आँटी की टाँगें अपने आप चौड़ी होने लगी। बूढ़े ने अपनी उंगली सोनाली की चूत से निकाली और अपने मुँह में लेकर उसका रस चाटने लगा और फिर से उंगली उसकी चूत में डालकर उसे सोनाली के मुँह के पास ले गया और कहा- “साली अपनी चूत का स्वाद चख, बहुत ही टेस्टी है...”
सोनाली ने अपना मुँह खोल दिया और अपनी चूत का रस चाटने लगी।
बूढ़ा फिर नीचे जाकर उसकी चूत को चाटने लगा, और अपनी जीभ निकालकर सोनाली की चूत के दाने को चाटते हुए अपनी जुबान उसकी चूत के गुलाबी होंठों पे रख ली और उसे पूरा अपने मुँह में लेकर चाटने लगा। बूढ़ा चूत के होंठ चाटते हुए अपनी जीभ सोनाली के गाण्ड के सुराख तक लेजाकर चाटने लगता। सोनाली अब जोर से सिसकते हुए कह रही थी- “ऊऊहह.. हाँ ऐसे ही करो बहुत मजा आ रहा है...”
बूढ़ा अब सोनाली की पूरी गाण्ड को अपने मुँह में लेकर चाट रहा था, और अपनी दो उंगलियां उसकी चूत में अंदर-बाहर कर रहा था। सोनाली अपनी मंजिल के बहुत करीब थी। वो अपने चूतड़ ऊपर उठा रही थी। बूढे ने अपनी उंगलियां निकालकर अपनी जीभ को कड़ा किया और उसे सोनाली की चूत में अंदर डाल दिया। बूढ़े की जीभ बहुत बड़ी थी। वो उसके बहुत अंदर तक जा रही थी। सोनाली का बदन अकड़ने लगा और उसने बूढ़े के सिर को पकड़ लिया और अपनी चूत पे दबाने लगी। बूढ़े ने जीभ को अंदर-बाहर करते हुए अपनी एक उंगली उसकी गाण्ड में डाल दी।
आँटी की बर्दाश्त की सीमा टूट गई और वो- “ऊऊऊईईई... मैं आई..” कहते हुए बूढ़े के मुँह में झड़ने लगी।
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बूढ़ा उसकी सारी मनी चाटने लगा और उसकी सारी चूत ऊपर से नीचे तक चाटते हुए साफ कर दिया। आँटी ने बूढ़े को बेड पर पटक दिया और उसके सारे कपड़े निकालने लगी, चड्ढी उतारते ही आँटी का मुँह फटा रह गया, एक पतला और छोटा काला लण्ड उसकी आँखों के सामने था।
आँटी को बहुत गुस्सा आया। मगर जय के प्रमोशन का सोचते हुए कुछ ना बोली और मन ही मन में सोचने लगी- “साला हरामी बूढ़ा इतनी छोटी सी लुली लेकर भी लड़कियों के शौक रखता है...”
बूढ़े ने आगे बढ़कर सोनाली को अपने नीचे दबोच लिया और अपनी लुली उसके मुँह में घुसाने लगा। सोनाली को उसकी लुली से बहुत बदबू आ रही थी।
आँटी ने अपना मुँह जोर से बंद कर दिया और कहा- “मैं इसे नहीं चाहूँगी तुम इसे नीचे घुसाकर अपना काम करो...”
बूढ़े ने गुस्से से कहा- “रंडी अपनी चूत मुझसे चटवाती हो और मेरा लण्ड लेने में नखरे करती हो..” और अपने अपना हाथ से सोनाली की चूची को मसल दिया।
सोनाली के मुँह से चीख निकली और उसका मुँह खुल गया। बूढ़े ने अपना लण्ड उसके मुँह में घुसा दिया और मुँह में लण्ड घुसते ही बूढ़ा काँपने लगा और सोनाली के मुँह में फुस्स हो गया। सोनाली के मुँह से उसका पानी नीचे गिरने लगा। सोनाली ने उसका लण्ड अपने मुँह से निकाला और उसका सारा पानी थूकते हुए बाहर फेंक दिया, और जोर से हँसने लगी।
सोनाली ने कहा- “साले बूढ़े इतना छोटा लण्ड लेकर फिरते हो और लड़कियों का शौक रखते हो, लड़कियों को बड़ा और तगड़ा लण्ड चाहिये, तुम्हारे जैसी लुली नहीं..." बूढ़े ने एक जोर का चांटा सोनाली को मारा तो उसके मुँह से चीख निकल गई और वो चौंक कर नींद से उठ गई। उसका सारा जिश्म पशीने में भीगा हुआ था।
सोनाली ने उठते हुए एक पानी का गिलास पिया और सपने के बारे में सोचकर मुश्कुराने लगी। अभी तो सुबह के 7:00 बजे थे। सोनाली उठकर नहाने चली गई। उसने बाथरूम में आकर अपने कपड़े उतारे और अपने आपको निहारने लगी। वो सपना देखकर बहुत गर्म हो गई थी, उसने शावर ओन किया और ठंडा पानी अपने-अपने जिश्म पर गिरते ही उसे कुछ सुकून मिला।
* * * * * * * * * * सोनाली का सपना समाप्त
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सोनाली ने साबुन उठाया और जिश्म पर लगाते हुए अपनी चूत पर मलने लगी। सोनाली की आँखें बंद होने लगी। उसने साबुन नीचे रखा और अपनी एक उंगली अपनी चूत में डाल दी और आगे-पीछे करने लगी, अपने दूसरे हाथ से अपनी छाती के निपल को मसलने लगी। अचानक उसने अपनी दूसरी उंगली भी अपनी चूत में। डाली और बड़े जोर से आगे-पीछे करने लगी। वो अपने दूसरे हाथ से चूत के दाने को रगड़ने लगी। वो झड़ने के बिल्कुल करीब थी थी, और वो तेज सांस लेते हुए झड़ गई। कुछ देर बाद वो बाथरूम से बाहर निकली और नाश्ता बनाने लगी। नाश्ता करने के बाद उसकी दोनों बेटियां और भांजी पढ़ने के लिए चली गई, और वो अपने घर का काम करने लगी।
ऐसे ही कब दिन निकल गया और रात को वो सबको दूध पिलाकर जय के आने का इंतजार करने लगी। वो । सारा दिन आकाश के बारे में सोचते हुए बहुत गर्म हो चुकी थी। अचानक दरवाजे के खटकने की आवाज आते ही उसने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला, तरी सामने जय के साथ एक 40 साल का बहुत सुंदर दिखने वाला शख्स खड़ा था। उसका कद कोई 6 फूट था, और उसका रंग गोरा था।
उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए सोनाली को कहा- “हेलो मेरा नाम आकाश है...”
सोनाली जैसे नींद से जागी और अपना हाथ बढ़ाकर उससे कहा- “मेरा नाम सोनाली है...”
जय और आकाश सोनाली के साथ अंदर दाखिल हुए। जय ने सोनाली को कहा- “मैं जा रहा हूँ, तुम आकाश सर का खयाल रखना..." और वो वहाँ से चला गया।
सोनाली दरवाजा बंद करके आकाश को अंदर अपने कमरे में ले गई। आकाश ने बिस्तर पे बैठते ही सोनाली को अपने साइड में बैठाकर उस अपनी बाँहों में ले लिया, सोनाली शर्म से कुछ हिचकिचा रही थी। उसने सोनाली का चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया। सोनाली भी उसकी बाहों में लिपट गई। आकाश ने उसके गुलाबी होंठों पे अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूमने लगा।
सोनाली तो पहले से ही बहुत गर्म थी। वो भी चुंबन का जवाब देने लगी।
आकाश ने सोनाली के नीचे वाले होंठ को अपने दांतों के बीच दबाकर धीरे-धीरे काटना शुरू कर दिया। आकाश ने अपनी जीभ सोनाली के मुँह में डाल दी, तो वो उसे ऐसे चाटने लगी जैसे उसे कोई मीठा फल मिल गया हो। कुछ देर आकाश उसे ऐसे चूमता रहा, फिर उसने सोनाली की कमीज और ब्रा उतार दी और उसकी भारी-भारी चूचियां बड़े गौर से देखने लगा। आकाश ने आगे बढ़ते हुए अपने होंठ सोनाली की चूची की एक निपल को अपने मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगा। सोनाली के सारे बदन में सिहरन सी होने लगी।
आकाश एक चूची को अपने मुँह में लेकर चूसता और दूसरी को अपने हाथ से मसलता। सोनाली उत्तेजना में अपने सिर को पटकने लगी। एक निपल को कुछ देर चूसने के बाद वो दूसरी निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा। सोनाली से अब रहा नहीं गया और उसने आकाश को थोड़ा दूर धकेलते हुए उसकी शर्ट और पैंट उतार दी और चड्ढी के ऊपर से उसके खड़े लण्ड को अपनी मुट्ठी में ले लिया। उसका लिंग बहुत बड़ा था। सोनाली अपनी मुठ्ठी से उसे टटोलने लगी। उसकी उत्तेजना यह जानकर और बढ़ गई की आकाश का लण्ड जय के लण्ड से बड़ा था। आकाश ने आगे बढ़कर सोनाली की सलवार और कच्छी भी उतार दी और भूखी नजरों से सोनाली की गुलाबी चूत को देखने लगा।
सोनाली भी आकाश के गठीले बदन को बड़ी गौर से देख रही थी। सोनाली ने आगे बढ़कर आकाश की पैंट और अंडरवेर निकाल दिया। आकाश का लण्ड देखकर सोनाली के मुँह से हल्की आह निकल गई- “आपका बहुत बड़ा है..” कहते हुए उसने आकाश के लण्ड को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और आगे-पीछे करने लगी।
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आकाश के लण्ड के छेद पर एक बूंद प्री-कम की चमक रही थी। सोनाली ने अपनी जीभ निकाली और उसके प्रीकम की बूंद को चाट लिया। आकाश के मुँह से हल्की सिसकी निकली। सोनाली अपनी जीभ उसके लण्ड के सुपाड़े पर फिराने लगी और उसे अपने मुँह में लेकर चाटने लगी।
आकाश ने- “आहहह... ऊऊहह..” करते हुए सोनाली के सिर को पकड़ लिया और अपने लण्ड पर दबाने लगा। अचानक आकाश ने उसके सिर को पकड़कर एक जोर का धक्का मारा, तो सोनाली को लगा जैसे आकाश का लण्ड उसका गला फाड़कर पेट में घुस जाएगा, और वो दर्द से छटपटाने लगी। उसने फिर से लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर से अंदर धकेल दिया।
कुछ देर बाद सोनाली को भी अच्छा लगने लगा और उसका बदन अकड़ने लगा और निपलों तनने लगे। सोनाली की चूत से ढेर सारा रस निकलता हुआ उसकी जांघों से होता हुआ उसकी घुटनों को गीला कर रहा था।
आकाश ने अपना लण्ड सोनाली मुँह से निकालते हुए उसे उठाकर बेड पर लेटा दिया। सोनाली ने अपनी टाँगें फैला दी। आकाश सोनाली की चमकती चूत को देखते हुए अपना लण्ड चूत पर रख दिया। सोनाली उसके चहरे को निहार रही थी, मगर उसका सारा ध्यान आकाश के लण्ड पर था की वो कब उसकी चूत की भूख मिटाएगा। उत्तेजना के मारे सोनाली की चूत के होंठ खुल गए। आकाश ने एक जोर का धक्का मारा और पूरा लण्ड सरकता हुआ अंदर तक चला गया।
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सोनाली चीख उठी- “ऊऊऊ... ओफफ्फ़... आहहह..” उसे ऐसे लगा जैसे लण्ड उसके पूरे बदन को चीर कर रख देगा। सोनाली ने अपनी टाँगें आकाश की कमर में जकड़ रखी थी, उसके मुँह से हल्की चीखें निकल रही थी। मगर अपनी टाँगों से वो आकाश को अपनी योनि पे दबा रही थी।
आकाश ने अपना लण्ड बाहर खींचा, उसके लण्ड के साथ सोनाली का पानी भी निकल गया। सोनाली को ऐसा लगा जैसे आकाश का लण्ड पिस्टन की तरह बाहर जाते हुए अपने साथ उसकी चूत के रस को बाहर खींचता हुआ ले जा रहा हो। सोनाली झड़ते ही हाँफने लगी।
आकाश ने धक्के लगाने शुरू कर दिये। कुछ ही देर में सोनाली फिर से गर्म हो गई। आकाश अब सोनाली की चूत से लण्ड निकालकर सीधा लेट गया और सोनाली को ऊपर आने को कहा। सोनाली ने उठते हुए आकाश के लण्ड को देखा। अपने ही रस से भीगा हुआ मोटा लण्ड उसे पागल बना रहा था। सोनाली उसकी कमर के दोनों ओर अपने घुटनों को रखकर अपनी चूत को आसमान की ओर तने लण्ड पर रखा, और फिर अपने हाथों से आकाश के लण्ड को अपनी चूत पर सेट किया और अपनी कमर को नीचे दबाया, आकाश के लण्ड का कुछ हिस्सा अंदर चला गया। सोनाली के मुँह से हल्की आह निकल गई।
आकाश ने अपने दोनों हाथों से सोनाली की छातियों को थाम लिया और दबाने लगा। सोनाली ने अपना सारा बोझ आकाश पर डालते हुए उसके पूरे लण्ड को अपनी चूत में ले लिया और अपनी चूत को ऊपर-नीचे करने लगी। आकाश सोनाली की छातियों को जोर से दबाते हुए उसकी एक चूची को मसल देता कभी दूसरी को। सोनाली मजे से ‘आअहह्ह... ओईई... करते हुए अपने चूतड़ को आकाश के लण्ड के टोपे तक ले जाती और अपने पूरे बोझ के साथ नीचे बैठ जाती। वो उत्तेजना के मारे पागल हो रही थी, और आकाश के लण्ड पे तेजी से ऊपरनीचे हो रही थी। अचानक सोनाली आअह्ह... करते हुए आकाश के लण्ड से दूसरी बार झड़ गई और हाँफते हुए निढाल होकर उसके ऊपर लेट गई।
आकाश ने सोनाली के होंठ चूमते हुए उसे अपने ऊपर से उठाया और उसे खींचकर बेड के किनारे हाथ और पैरों के बल ऊंचा किया। आकाश ने बेड के पास जमीन पर खड़े होकर पीछे से सोनाली की चूत में लण्ड डाल दिया और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। आकाश के धक्के इतने जोर के थे की सोनाली उसके हर धक्के के साथ चीख उठती। पूरे कमरे में सोनाली की उत्तेजना की आवाजें गूंज रही थी। सोनाली की ऐसी शानदार चुदाई पहले कभी नहीं हुई थी।
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आकाश किसी माहिर खिलाड़ी की तरह सोनाली की एक घंटे तक लगातार चुदाई करता रहा, और उसने अपना सारा वीर्य सोनाली की चूत में भर दिया। सोनाली आकाश का गर्म वीर्य अंदर महसूस करते ही तीसरी बार झड़ गई और निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी। आकाश कुछ देर सोनाली के बदन पर पड़ा रहा और फिर साइड में होकर लेट गया। सोनाली की चूत से आकाश का वीर्य सफेद चादर को गीला कर रहा था।
सोनाली आज बहुत खुश थी, आकाश को अपनी बाँहों में ले लिया और उसके होंठों को चूमते हुए कहा- “अब मैं आपसे दूर नहीं जा सकती, आपने मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा मजा दिया है...”
आकाश ने सोनाली को अपनी बाहों में भरते हुए उसे अपने सीने पर लिटा लिया। सोनाली ने नीचे सरकते हुए आकाश के सीने को चूमा और उसके सीने के बालों में हाथ फेरने लगी और अपनी जीभ निकालकर आकाश के निपल पर फिराने लगी। फिर वो सरकते हुए नीचे जाने लगी और उसके लण्ड के घने बालों पे अपने मुँह को। रखकर एक गहरी साँस ली। फिर अपनी जीभ को उसके नरम पड़े लण्ड पर फिराने लगी। सोनाली की उंगलियां आकाश के बालों पर फिर रही थी।
आकाश- “क्यों मन नहीं भरा?” आकाश ने सोनाली से पूछा।
सोनाली- “उम्म्म्म
... नहीं..."
आकाश ने उसकी छाती के निपलों को मसलते हुए अपने लण्ड की ओर इशारा करते हुए पूछा- “कैसा लगा यह?”
सोनाली- “बहुत अच्छा... जी करता है की इसे अपनी चूत में ही डाले रखें..” यह कहते हुए उसने आकाश का ढीला लण्ड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी।
आकाश का लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। सोनाली ने आकाश के लण्ड के मोटे छेद पे जीभ रखी और उस जोर से चाटने लगी। वो अपने हाथ आकाश के अंडों में डालकर उसे सहलाते हुए अपनी जीभ नीचे लेजाकर चाटने लगी। आकाश के मुँह से आह्ह्ह... की आवाज निकली। उसने सोनाली को बेड पर सीधा लेटा दिया और उसकी चूचियों को चाटते हुये नीचे बढ़ने लगा और सोनाली की गीली चूत पर होंठ रख दिए।
सोनाली की आँखें मजे से बंद होने लगी। आकाश ने अपनी जीभ निकाली और सोनाली की चूत की दरार को । अपने हाथों से खोलते हुए अंदर घुसा दिया। सोनाली आनंद के मारे अह्ह... करते हुए अपने हाथों को आकाश के बालों में डालकर सहलाने लगी।
आकाश अपनी जीभ को बहुत अंदर तक पेल रहा था और अपने हाथों को सोनाली के भारी चूतड़ों में डालकर उसे दबाते हुए अपनी उंगलियों से उसकी गाण्ड को कुरेदने लगा। सोनाली मजे से सिसक रही थी। आकाश ने सोनाली को घोड़ी बनाकर लेटाया और अपना लण्ड पीछे से सोनाली की चूत में घुसा दिया और धक्के लगाने लगा।
सोनाली भी मजे से अपने चूतड़ आकाश के लण्ड पर दबाने लगी। सोनाली की चूत बहुत गीली थी, आकाश के धक्कों के साथ पच-पच की आवाज सारे कमरे में गूजने लगी। आकाश धक्के लगाते हुए अपने दोनों हाथों से सोनाली की दोनों बड़ी-बड़ी चूचियों को मसलने लगा। अब आकाश तूफान की रफ़्तार के साथ सोनाली चोद रहा था। सोनाली के मुँह से जोर की सिसकियां निकल रही थीं। अचानक सोनाली का बदन अकड़ने लगा और अपने
चूतड़ों को तेजी के साथ आकाश के लण्ड पर दबाने लगी और आह्ह्ह करते हुए झड़ने लगी। आकाश तब तक धक्के मरता रहा, जब तक सोनाली झड़कर शांत हो गई।
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सोनाली झड़ने के बाद लण्ड को अपनी चूत से निकालकर सीधा बैठ गई और अपनी चूत के रस से गीले लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। सोनाली ने अपना पूरा मुँह खोल रखा था और आकाश का लण्ड जितना हो सकता था अंदर ले लिया और अपने नरम होंठों से आगे-पीछे करने लगी।
आकाश की आँखें मजे से बंद होने लगी। सोनाली आकाश के लण्ड को अपने मुँह से बाहर निकलते हुए उसे ऊपर से नीचे तक अपनी जीभ से चाटने लगी और अपना दूसरे हाथ से उसकी आँड को सहलाने लगी। आकाश ने सोनाली को बेड पर गिराते हुए उसके ऊपर चढ़कर अपना लण्ड उसकी दोनों चूचियों के बीच रखा और धक्के लगाने लगा। इस पोजीशन में आकाश का लण्ड सोनाली की चूचियों के बीच होता हुआ उसके होंठों को छूता। सोनाली अपना मुँह खोलकर सुपाड़े को चाट लेती। आकाश ने सोनाली की दोनों चूचियां कसकर पकड़ रखी थी और अपना लण्ड उनके बीच बहुत जोर से आगे-पीछे कर रहा था। आकाश का बाँध अब टूटने वाला था।
सोनाली ने आकाश से कहा- “अपना वीर्य मेरे मुँह में छोड़ना...”
आकाश ने अपना लण्ड उसके मुँह में डालकर वीर्य से भरने लगा। सोनाली ने वीर्य की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरने दी और सारा वीर्य पी लिया। सोनाली अब निढाल होकर बेड पर लेट गई।
आकाश बाथरूम से फ्रेश होकर आया और सोनाली के होंठों पर चुंबन देते हुए कहा- “मैं जा रहा हूँ, यह मेरा फोन नंबर है। जब आप फोन करेंगी मैं हाजिर हो जाऊँगा."
सोनाली उसके साथ दरवाजे तक आ गई और उसके जाने के बाद दरवाजा बंद करके अपने कमरे में आकर धन्नो और बिंदिया के बारे में सोचने लगी, क्योंकी शाम को सोनाली ने बिंदिया और धन्नो की बातें सुन ली थी। सोनाली को पता चल चुका था की उसके बारे में बिंदिया और धन्नो सब कुछ जान चुकी हैं। इसीलिए आज उसने दूध की बजाए खाने में दवा मिला दी थी। वो नहीं चाहती थी की बिंदिया और सोनाली उसे रोज देखें। क्योंकी वो यह सब देखकर गलत रास्ते पर जा सकती थी। यही सोचते हुए उसे नींद आ गई।
सुबह को मैं और बिंदिया तैयार होकर साथ में कालेज जाने लगी। मैंने बिंदिया से कहा- “रात को मुझे नींद आ गई थी क्या तुमने कुछ देखा था...”
बिंदिया ने कहा- “मुझ भी नींद आ गई थी...”
धन्नो- “मुझे तो उस रात के बारे में सोचते हुए गुदगुदी होती है...”
हम बातें करते हुए कालेज पहुँच गये। मैं अपने क्लास में चली गई। बिंदिया अपने क्लास में पहुँचते ही रोहन के साथ जाकर बैठ गई।
एक पीरियड के बाद रोहन ने बिंदिया से कहा- “खाली पीरियड है चलो पार्क में बैठकर बातें करते हैं...” और दोनों पार्क में आकर बैठ गये।
रोहन ने बातें करते हुए अपना हाथ बिंदिया के हाथ के ऊपर रख दिया। बिंदिया अपने हाथ पर मर्द का स्पर्श पाते ही सिहर उठी। उसे कभी किसी मर्द ने छुआ तक नहीं था। रोहन का मजबूत हाथ उसे पागल बना रहा था। रोहन ने बिंदिया के हाथ पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया। रोहन पहले कभी भी बिंदिया को हाथ लगाता था तो वो उसे अपने आपसे परे धकेल देती थी। लेकिन आज बिंदिया भी रोहन को नहीं रोक रही थी। रोहन ने आगे बढ़ते हुए बिंदिया के सिर को अपने कंधे से उठाया और उसके तपते होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
बिंदिया मजे से हवा में उड़ने लगी। उसके सारे बदन में चींटियां रेंग रही थी। तभी पार्क के बाहर किसी के कदमों की आवाज सुनकर बिंदिया ने रोहन को परे धकेलते हुए अपने आपको ठीक किया। बिंदिया की साँसें अभी तक बहुत तेज चल रही थीं। उसने अपनी साँसों को ठीक किया।
तभी वहाँ से एक जोड़ा गुजरता हुआ चला गया।
रोहन ने बिंदिया को बैठने को कहा मगर वो डर रही थी के कहीं कोई और ना आ जाए। बिंदिया ने रोहन से कहा- “चलो क्लास शुरू हो गई होगी, क्लास में चलते हैं...” और रोहन के साथ क्लास में आ गई।
मैं भी खाली पीरियड देखकर बाहर चली आई और पार्क में आकर बैठ गई और किताब खोलकर पढ़ने लगी। तभी मुझे कुछ अजीब आवाज सुनाई दी। मैंने गौर से सुना की किसी लड़की के हँसने की आवाज थी जो पार्क के दूसरी तरफ से आ रही थी।
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