01-02-2023, 09:10 PM
(मनीष)बिना सोचे समझे बहन के पति से चुद गई-
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Adultery बिना सोचे समझे बहन के पति से चुद गई- (मनीष)
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01-02-2023, 09:10 PM
(मनीष)बिना सोचे समझे बहन के पति से चुद गई-
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
01-02-2023, 09:45 PM
मेरे पति एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर हैं और घर से बाहर रहते हैं.
घर में मेरे अलावा मेरे ससुर और मेरे दो बच्चे रहते हैं. मुझे भगवान ने वो सब कुछ दिया है जो एक लड़की शादी से पहले अपने मन में इच्छा रखती है. मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं और हमारी सेक्स लाइफ भी बहुत अच्छी है. मेरे पति जब भी घर आते हैं तो हम दोनों बहुत सेक्स करते हैं. घर में हमारे अलावा सिर्फ मेरे ससुर हैं, जो कि नीचे की मंजिल में रहते हैं और वो ऊंचा सुनते हैं. उनके अलावा मेरे घर में और कोई नहीं है. मैं और मेरे पति हर तरीके से सेक्स करते हैं. हमें सेक्स के लिए 3-4 महीनों में 10 से 15 दिन ही मिलते हैं. या ये कहो कि हम दोनों बहुत खुल कर इंजॉय करने वाले दंपति हैं. अब जो Xxx साली चुदाई कहानी मैं लिखने वाली हूँ, इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाएगा. लोग कहते हैं कि कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसा इत्तेफाक हो जाता है, जिसकी उसने कभी उम्मीद ही न की होती है. यह बात आज से एक साल पहले की है. उस दिन में बाथरूम में नहा रही थी. मेरे दोनों बच्चे कॉलेज गए हुए थे. तभी किसी काम से मेरी छोटी बहन का पति मनीष मेरे घर आ गया. कुछ देर तक उसने नीचे मेरे ससुर से बात की, फिर वो ऊपर की मंजिल पर आ गया. ऊपर आकर जब उसने मुझे कहीं नहीं देखा, तो जीजी बोलकर पुकारने लगा. मैंने जब उसकी आवाज सुनी, तो मैं सकपका गयी कि ये अचानक से कैसे आ गया. फिर कुछ सोचकर मैंने उसे बाथरूम से ही आवाज दी कि आप कुछ देर इंतजार करें, मैं अभी नहा रही हूँ. मैं सोचने लगी कि अब क्या करूं क्योंकि मेरे बाथरूम से निकलने का रास्ता मेरी बैठक के सामने से था और बाथरूम में मैं सिर्फ टॉवल ही पहन सकती थी. मेरे पास कोई और कपड़े नहीं थे. मैं हमेशा बाथरूम में सिर्फ टॉवल ही लाती थी. ब्रा पैंटी और बाकी के कपड़े मैं बाद में कमरे में जाकर पहनती थी. इसका कारण यही था कि मेरे घर में कोई नहीं आता था. मैं अब बहुत ही असमंजस में थी कि क्या करूं. मेरे सामने कोई चारा नहीं था तो मैंने निश्चय किया कि बाथरूम से भाग कर निकलूंगी. यह सोचकर मैंने सावधानी से दरवाजा खोलकर इधर उधर देखा और जल्दी से भागने की कोशिश की कि जल्दी से अपने बेडरूम में पहुंच जाऊं. पर मेरी फूटी किस्मत कि हड़बड़ी में मेरा पैर फिसल गया और मैं वहीं बैठक के सामने गिर पड़ी. इसे कहते हैं अनहोनी, कहां मैं मनीष के सामने जाना नहीं चाहती थी और अब वहीं उसके सामने जमीन पर नंगी पड़ी थी. मेरी तौलिया भी मेरे जिस्म से अलग हो गई थी. मनीष भी भागकर मेरे पास आ गया और पूछने लगा- अरे जीजी, कहीं लगी तो नहीं? वो मुझे आंखें फाड़ कर देख रहा था. मैं शर्म के कारण जमीन में धंसी जा रही थी क्योंकि मेरा नंगा जिस्म मनीष के सामने था. मैंने जल्दी से टॉवल उठा कर अपने ऊपर डाल लिया. लेकिन टॉवल से सिर्फ मेरे मम्मों और मेरी चूत के ऊपर का थोड़ा सा हिस्सा ही ढका हुआ था. गिरने की वजह से मेरी कमर में धमक लग गयी थी. मैं दोहरी मार से मरी जा रही थी. मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरी कमर मेरा साथ नहीं दे रही थी. फिर मैंने याचना भरी नजरों से मनीष की तरफ देखा तो उसने मेरी स्थिति देखकर मुझे सहारा देकर उठाया. इससे मैं एक बार से फिर नंगी हो गयी. मनीष ने ही नीचे से टॉवल उठाकर मुझे लपेट दी. उसके हाथों ने जब मुझे टॉवल पहनाई, तब उसके हाथ कांप रहे थे. इसका मुझे अहसास मुझे उसकी पैंट के उभार ने बता दिया था. वो मेरे एकदम सामने बस कुछ इंच की दूरी पर ही था जिससे मैं उसकी बढ़ती हुई सांसों की आवाज को सुन सकती थी. फिर वो मुझे सहारा देते हुए मेरे बेडरूम में लेकर आ गया. जब वो मुझे पकड़कर बेडरुम में ला रहा था तब उसकी उंगलियां मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से को टच कर रही थीं. बेडरूम में आकर मैं अपने बेड पर बैठ गयी. मनीष मेरे सामने खड़ा था और मेरे अधनंगे शरीर का अपनी आंखों से रसपान कर रहा था. जब उसकी आंखें मेरी आंखों से मिलीं तो पता ही नहीं चला कि मुझे क्या हो गया. मैं कब बहक गयी. हमेशा से ही पतिव्रता रही सुधा कब एक गैर मर्द की बांहों में चली गयी. जब होश आया तो मनीष मेरे होंठों को चूस रहा था और उसके हाथ मेरे पूरे शरीर का जायजा ले रहे थे. उसकी जीभ मेरे मुँह में थी और मैं उसे चूस रही थी. जैसे ही मुझे होश आया ओर मेरे दिमाग ने मुझसे कहा कि ये गलत है, मैंने मनीष को अपने से दूर करना चाहा. लेकिन उसने मुझे और कसके पकड़ लिया और मेरी कान की लौ को जीभ से चुभलाते हुए बोला- सुधा, अब हम इतने आगे बढ़ गए है कि अब पीछे लौटना न मेरे लिए संभव है और न तुम्हारे लिए. मनीष मुझे मेरे नाम से बुला रहा था. हालांकि उसकी और मेरी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था लेकिन वो रिश्ते में तो मुझसे छोटा था. मैंने उसे फिर भी रोकना चाहा- मनीष ये गलत है. मैं तुम्हारी बीवी की बड़ी बहन हूँ. ये गलत है. अगर किसी को पता चल गया तो मैं कहीं भी मुँह दिखाने लायक नहीं रहूंगी. लेकिन मनीष पर तो शायद वासना का भूत चढ़ गया था. वो मेरी किसी भी बात को सुन ही नहीं रहा था. उसने मेरी टॉवल खींच कर दूर फेंक दी और मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया. मैं अभी भी उसे अपने से दूर करना चाहती थी. मैं जितना भी उसे दूर करना चाहती, वो मुझसे उतना ही चिपकता जाता. फिर उसने मुझे बेड पर पीठ के बल लेटा दिया. अब तो मेरी स्थिति और भी दयनीय हो गयी थी क्योंकि मेरे चूतड़ों से ऊपर का हिस्सा बेड के ऊपर था और मेरी टांगें नीचे लटक रही थीं. मनीष भी मेरी टांगों के बीच मेरे ऊपर अधलेटा सा हो गया था. उसका लंड पैंट के ऊपर से ही मेरी चूत पर अड़ सा गया था. मेरी भी मनोस्थिति अब ऐसी हो गयी कि मेरा मन और दिल चाह रहा था कि जो हो रहा है, उसे होने दूँ. पर मेरा दिमाग कह रहा था कि ये गलत है. फिर भी मैंने अपने आपको काबू में करके एक बार आखिरी कोशिश करने की सोची और अपनी पूरी ताकत से मनीष को अपने ऊपर से हटाना चाहा. पर इसका उल्टा ही असर हुआ. मनीष ने मुझे और कसके एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना पैंट और अंडरवियर उतारने लगा. ऊपर से उसने अपने मुँह से मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा. अपना पैंट ओर अंडरवियर उतार कर उसने अपना लंड मेरी चूत की फांकों में फिट कर दिया और मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए. जैसे ही मेरी चूत पर उसका लंड का स्पर्श हुआ, मैं एकदम से सिहर सी गयी क्योंकि दो महीने से मेरी चुदाई नहीं हुई थी. मैं भी अन्दर से चाहने लगी थी कि अब जल्दी से लंड चूत के अन्दर जाकर मेरी प्यास बुझा दे. लेकिन मैं फिर भी ऊपर से आनाकानी करने लगी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मनीष बाद में मुझे गलत समझे. फिर मनीष ने चूत पर लंड फिट करके जैसे ही धक्का मारा, मैंने अपनी कमर हिला दी. उसका लंड फिसल गया. उसने फिर से अपने लंड को पकड़ा और वापस मेरी चूत की फांकों में ऊपर-नीचे रगड़ा. फिर छेद पर टिका कर हल्के से धकेला तो उसका सुपारा अन्दर घुस गया. मैंने तड़प कर छूटने की कोशिश की पर मनीष मुझे कस कर पकड़े हुए था जिससे उससे छूट पाना मेरे लिए मुश्किल ही था. हालांकि मैं भी अब छूटना नहीं चाहती थी. लेकिन मैं इस तरह से चुदना भी नहीं चाहती थी क्योंकि मेरे पति ने हमेशा प्यार से सेक्स किया था. फिर अभी तो मेरी चूत भी गीली नहीं हुई थी. लेकिन मैं क्या करती. वो मुझे ऐसे ही चोदना चाहता था. अगर वो मेरी आंखों में देखता, तो शायद समझ जाता. पर उस पर तो वासना का भूत चढ़ा हुआ था. इसके बाद उसने अपना हाथ हटा लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ लिए, मेरे एक दूध को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. मेरी ऐसी हालत हो गई थी कि मैं कुछ कर ही नहीं सकती थी. मेरे दोनों हाथ उसके बस में थे. मेरी चूत में उसके लंड का पूरा सुपारा घुस चुका था और मेरा एक चूचुक उसके मुँह में था. मैं एक जल बिन मछली की भांति तड़पने लगी … आखिर मैं भी एक औरत थी. फिर मनीष ने मुझे देखा कि अब मैं नॉर्मल थी, तो उसने मेरे हाथ छोड़ दिए और मेरे मम्मों को अपने दोनों हाथों में लेकर मसलते हुए अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ने लगा. जैसे ही उसका लंड अन्दर घुसा, मुझे हल्का दर्द होने लगा. शायद उसका लंड मोटा था या फिर काफी दिनों से मेरी चुदाई नहीं हुई थी या मेरी चूत गीली नहीं थी. कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उसने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय मम्मीईई मर गईई … नहीं … नहीं … छोड़ दो … मैं मर जाऊंगी … ओह्ह मां! मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी. उसका लंड मेरी चूत फाड़ते हुए काफी अन्दर घुस गया था. फिर उसने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और और धीरे-धीरे धक्के देने लगा. शायद उसे भी थोड़ी तकलीफ हो रही थी क्योंकि मेरी चूत गीली नहीं थी. मैंने अपनी आंखें खोलीं और एक बार उसकी तरफ देखा. उसने अपने नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से ऐसे दबा रखा था जैसे कोई बहुत ताकत लगाने के समय कर लेता है. वो मेरी चूत में ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वो खुद भी अन्दर घुस जाना चाहता हो. मनीष का लंड करीब एक तिहाई मेरी चूत में था … लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका लंड शायद मेरे पति से मोटा हो और बड़ा भी. या फिर ये कहो कि इस पोजीशन में छोटा लंड भी बड़ा लगता है. या यूं कहो कि पराया माल हमेशा अच्छा लगता है. अब मेरी चूत भी हल्की गीली हो चली थी और पहले जैसा कुछ भी दर्द नहीं हो रहा था. तभी मनीष ने मेरे मम्मों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर एक जोरदार धक्का मार कर अपना लंड मेरी चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया. मुझे ऐसा लगा कि उसका लंड मेरी बच्चेदानी फाड़ कर अन्दर घुस गया हो. मेरे मुँह से चीख निकल गयी- ओह्ह ओह्ह मां मर गईईई … आह … कोई तो बचाओ आहह … इस जालिम से. इस तरह मेरे पति ने मुझे कभी भी नहीं चोदा था. पर ये तो बड़ा ही बेरहम हो रहा था. फिर उसने धीमे धीमे धक्के मारना चालू कर दिया. जिससे मेरी चूत गीली होने लगी और उसके लंड को भी मेरी चूत ने एडजस्ट कर लिया. मुझे मजा आने लगा लेकिन मेरी टांगें अभी भी नीचे लटक रही थीं. जिस वजह से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी. मैंने उससे इशारे से उसे अपनी परेशानी बतायी हालांकि अभी भी मैं उससे नजर नहीं मिला पा रही थी. आखिर वो मेरी छोटी बहन का पति था. मेरा इशारा समझ कर मनीष ने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया और मुझे बेड पर सही से लेटा दिया. उसने जल्दी से मेरे चूतड़ों के नीचे एक तकिया रख दिया. अब वो वापस से मेरी टांगों के बीच आ गया. वो फिर से अपना लंड मेरी चूत की फांकों में रख कर रगड़ने लगा जिससे मेरी चूत में चीटियां सी रेंगने लगीं. मेरे दोनों हाथ अपने आप उठ गए और मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया. फिर मैंने उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों मम्मों के चूचक पकड़ लिए और मसलने लगा. साथ ही अपना लंड मेरी फांकों में रगड़ने लगा. अब मेरी टांगें अपने आप उठ गईं और उसके चूतड़ों पर अपनी टांगों को फंसा कर मैं उसे अपनी तरफ खींचने लगी. मेरा उतावलापन देख कर मनीष ने अपना लंड मेरी चूत के छेद पर लगा कर एक ही झटके में पूरा जड़ तक घुसेड़ दिया. मेरे मुँह से वापस से ‘आहह … यहांहा बेदर्दी … ओहहह … मार दिया …’ निकल गया. मैंने मनीष से कहा- मेरे भोले राजा आराम से करो … मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ. आराम से चोद ले … फ्री का माल मत समझ.! मनीष हंस कर बोला- सुधा मेरी जान, आह … तू तो अपनी बहन से भी मस्त माल है. इतना मजा तो मुझे कभी तेरी बहन को चोद कर नहीं आया. आज तो मैं तुझे चोद चोद कर तेरा कचूमर निकाल दूँगा. मनीष अब तू तड़ाक की भाषा पर आ गया था. हालांकि मुझे ये सब पसंद नहीं था लेकिन मैंने उस समय कुछ बोलना उचित नहीं समझा. मनीष ने वापस से अपना लंड खींच कर सिर्फ सुपारा मेरी चूत में रख कर वापस एक करारा झटका मार दिया. उसका लंड मेरी चूत के अंतिम छोर तक घुसता चला गया. मैं बस कराह कर रह गयी. मेरे मुँह से बस आहहह … ओह हहह … की आवाजें निकलने लगीं. लेकिन उस पर मेरी कराहों का कोई असर नहीं हो रहा था. वो बस अपना पूरा लंड निकालता और एक ही झटके में घुसेड़ देता. उसका लंड सीधा मेरी बच्चेदानी पर चोट कर रहा था. थोड़ी ही देर में मुझे मजा आने लगा और मैं अपनी टांगें उठा कर उसके लंड का स्वागत करने लगी. मनीष के झटके बहुत ही जबरदस्त लग रहे थे जिससे थोड़ी ही देर में मेरी चूत पानी छोड़ने लगी. मैंने अपनी दोनों टांगें उठाकर मनीष की कमर पर लपेट दी और बड़बड़ाने लगी- आहह जानू … मजा आ गया … आह्ह … तेरा लंड … आह्ह … हाय … आह्ह … और जोर से … आह्ह और जोर से! बस ये सब बोलती हुई मैं झड़ गयी पर उसका अभी नहीं हुआ था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 12:40 AM
मनीष ने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया, उसने मुझसे चूतड़ों को ऊपर करने को कहा.
मैंने कर दिए. उसने अपना लंड मेरी चूत में पीछे से घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे दोनों मम्मों को पकड़ कर मसलने लगा. पीछे से उसका लंड मुझे और भी मोटा लग रहा था. मेरी चूत फट जाएगी ऐसा मुझे लगने लगा. मैं फिर से कराहने लगी- आहह ओह्ह ओह्ह मां मर गईईई … आह … कोई तो बचाओ आहह … इस जालिम से. मैं जितना भी कराहती, मनीष उतना ही जोर से धक्का मार देता. कुछ देर बाद मुझे उसने फिर से सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख कर मेरी टांगें फैला दीं और लंड अन्दर घुसा दिया. वो मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा. हमें चुदाई करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था. मेरी चूत में अब जलन होने लगी थी. मुझे उसके धक्के असहय से लगने लगे और मैं सोचने लगी कि ये अब जल्दी से झड़ जाए. उसके धक्के अब और तेज होते जा रहे थे, शायद वो अब झड़ने के करीब ही था. मैं भी अब चाहती थी कि मैं भी दुबारा से मनीष के साथ ही झड़ जाऊं क्योंकि उस वक़्त साथ में झड़ने से जो मजा आता है, वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है. मैंने मनीष के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके चूतड़ों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लंड मेरी चूत में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके. फिर मैंने उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगी. मनीष ने भी मेरे चूचुकों को पकड़कर मसलना शुरू कर दिया. उसकी चुदाई बहुत बेरहम थी पर पता नहीं मुझे मजा भी बहुत आ रहा था. ऐसा मजा मैंने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किया था. तभी उसने मेरे मम्मों को कसके पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में घुसा दिया. वो झड़ने लगा. उसका सुपारा फूल कर और भी मोटा हो गया था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा पेट फाड़ कर बाहर आ जाएगा. मैं मस्ती ओर दर्द से कराहने लगी और मैंने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी. उसके लंड से पहले एक पिचकारी और फिर अनगिनत पिचकारियां निकलने लगीं. उसका सुपारा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर फसा हुआ पिचकारी मार रहा था. मैं बता नहीं सकती कि ये अहसास शब्दों में कैसे बयान करूं. मैंने अपने जीवन में अपने पति के साथ इतना सेक्स किया लेकिन ऐसा अहसास कभी नहीं किया था. इसने तो मुझे पागल कर दिया था. हालांकि मुझे काफी दर्द भी हो रहा था पर उसके गर्म गर्म वीर्य की बौछार होते ही मैं भी झड़ने लगी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया. मनीष मेरे ऊपर ऐसे ही काफी देर लेटा रहा. उसका सुपारा अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. ये अहसास मैंने पहली बार किया. मैंने मनीष से पूछा तो उसने बताया- मेरे साथ यह हमेशा होता है इसलिए मेरी बीवी प्रिया उसके साथ खुश नहीं रहती. मेरे लंड का सुपारा कुत्तों के जैसे फूल जाता है और उसकी चूत में दर्द होने लगता है. उस समय हम दोनों को ही होश नहीं था कि ये हमने क्या किया. बाद में जब मुझे होश आया तो मैं उठकर रोने लगी कि ये क्या हुआ. अगर मेरे गर्भ में बच्चा ठहर गया तो मैं क्या करूंगी. हम दोनों का ही नशा उतर चुका था. अब हमें अहसास हो रहा था कि हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. मनीष भी अब हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा- जीजी माफ कर दो, पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं- मनीष हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. ऊपर से तुमने अपना पानी मेरी चूत में ही छोड़ दिया. अब जल्दी से जाओ और एक आईपिल ले कर आओ तब तक मैं इधर सम्हालती हूँ. मनीष नीचे गया तो मेरे ससुर उसे रोककर पूछने लगे- अरे बेटा कहां जा रहे हो. अभी तो खाने का टाइम हो रहा है. खाना खाकर जाना. मैं मन में कहने लगी कि खाना खाकर … उसने आपकी बहू की इज्जत ही खा ली. मनीष मेरे ससुर से बोला- हां बाबू जी, अभी इधर थोड़ा काम है, उसको निपटा कर आता हूं. फिर खाना खाकर ही जाऊंगा. मैं भी जल्दी से बाथरूम गयी क्योंकि उसका वीर्य मेरी जांघों पर बह रहा था. बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत को देखा तो मैं सन्न रह गयी. मेरी चूत एकदम लाल पड़ गयी थी. उस कमीने ने बहुत ही बेदर्दी से पेला था. अब मैंने जल्दी से अपनी चूत की सफाई की और किचन में आकर खाना बनाने लगी क्योंकि मेरे ससुर के खाने का समय हो गया था. फिर अपने ससुर को खाना देकर मैं अपने और मनीष के लिए रोटियां सेंकने लगी. मैं मन में सोचने लगी कि ये गलत हुआ या सही. इतने में ही मनीष वापस आ गया. वो सीधा किचन में ही आ गया और उसने मुझे वो टेबलेट दे दी. वो वहीं खड़ा हो गया. जब हम दोनों की नजर मिली तो मैं बहुत शर्मा गयी. मनीष भी बहुत शर्मा रहा था. फिर वो बोला- मैं जा रहा हूँ. मैं- खाना खा कर जाना. तो मनीष कहने लगा- जीजी, वो जो मैंने उस समय आपसे तू तड़ाक से बोला, उसके लिए मुझे माफ़ कर देना. वो क्या है कि ये मेरी आदत है. जिससे मैंने आपको भी ऐसे ही बोल दिया. मैं आप लोगो को क्या बताऊं कि मैं उस समय शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी. मेरे ही किचन में मेरी छोटी बहन का पति मुझसे ऐसी बातें कर रहा था. इसको कहते हैं इत्तेफाक. आज मैं इस इत्तेफाक की वजह से पराये मर्द से चुद चुकी थी और वो पराया मर्द अभी भी मेरी किचन में मौजूद था. हम दोनों की इच्छा अब दुबारा से वो सब करने की हो रही थी जो कुछ देर पहले इत्तेफाक से हुई थी. कुछ देर ऐसे ही मनीष मुझसे बात करता रहा. फिर मेरे पास आकर बोला- जीजी, क्या हम लोग एक बार और वही गलती कर सकते हैं? मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. हालांकि मेरी भी इच्छा हो रही थी लेकिन मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. इस अचानक हुए हमले से मैं हड़बड़ा गयी और मेरे मुँह से एकदम निकल गया कि पहले रोटी तो बना लूं. मेरे मुँह से ऐसा सुनते ही वो तो किचन में ही शुरू हो गया. उसने अपने हाथ मेरे गाउन में घुसा कर मेरे दूध पकड़ लिए और उन्हें बेदर्दी से मसलने लगा. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी- हहहह ओह्ह … आह … रुक जाओ ओह्ह! पर वो अब कहां मानने वाला था … उसने वहीं अपने सारे कपड़े निकाल दिए और पीछे से मेरा गाउन उठाया और अपना लंड मेरी गांड पर घिसने लगा. मैं एकदम डर गई कि अगर इसने गांड में लंड घुसा दिया तो मेरी तो जान ही निकल जाएगी. हालांकि मैं अपने पति से काफी बार गांड मरवा चुकी थी. पर पता नहीं इससे क्या होगा. न बाबा न … इसका जंगलीपन में अभी थोड़ी देर पहले ही देख चुकी थी. मैं गैस बंद करके पलट गई. दूसरी तरफ मैं भी अब खुलकर मजा लेना चाहती थी क्योंकि जब बेवफाई ही करनी है तो खुलकर करो. बात यह भी थी कि जब चूत को पराया लंड मिलता है तो वो भी अच्छे से टसुए बहाती है. मैं पलटकर मनीष से बोली- क्यों प्रिया नहीं देती क्या … या वो भी कहीं दूसरी जगह तुम्हारी तरह मुँह मारती है? मनीष- नहीं, वो बात नहीं है … दरअसल वो जल्दी झड़ जाती है, फिर वो आगे और करने नहीं देती. फिर वो आपकी तरह इतनी खुली भी नहीं है. जैसे आप चूत लंड बोल रही हो, वैसे वो नहीं बोलती. वो शर्माती बहुत है. ऊपर से उसका ऑपरेशन होने के बाद उसकी चूत बहुत खुली खुली सी हो गयी है. मैं मनीष को छेड़ती हुई बोली- एक काम करो, अपनी बीवी को कुछ दिनों के लिए मेरे पति के पास छोड़ दो, वो पूरा खोल देंगे. मनीष- फिलहाल तो मैं उनकी बीवी को अच्छी तरह से खोल देना चाहता हूँ. उसने किचन में ही मेरा गाउन उतार कर फेंक दिया. मैं ‘रुको रुको …’ ही करती रह गयी. उसने मुझे स्लैब के सहारे झुका दिया और पीछे से मेरे दूध दबाते हुए मेरी पूरी पीठ पर चूमने लगा. उसके हाथ मेरे पूरे शरीर पर घूम रहे थे और उसकी जीभ मेरी पीठ से होते हुए मेरे चूतड़ों पर घूम रही थी जिससे मेरी टांगें खुद ब खुद फैलती जा रही थीं. अब उसने मुझे पलट दिया. वो मेरी दोनों टांगों के बीच बैठा था और मेरी चूत में उंगली कर रहा था. उसने पहले मेरी नाभि और पेट में ढेर सारा चुम्बन किए, फिर मेरी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपने दोनों हाथों से मेरी चूत के दोनों होंठों को फैला दिया और अपनी जीभ और दांतों से मेरी चूत और भग्नासा को काटने चाटने लगा. मैं इतनी गीली हो चुकी थी कि क्या कहूँ … ऐसा लगने लगा था, जैसे मेरी जान ही निकल जाएगी. थोड़ी देर बाद उसने मेरी चूत को और फैला दिया, तो मैं कराह उठी. फिर वो अपनी जीभ को मेरी चूत के छेद में धकेलने लगा. उसके इस तरह करने से मैं और भी उत्तेजित हो रही थी और ऐसा लगने लगा था कि अब ये मुझे ऐसे ही झड़ जाने पर मजबूर कर देगा. मैंने उसके सर को पकड़ा और बालों को खींचते हुए ऊपर उठाने का प्रयास करने लगी ताकि हम चुदाई शुरू करें! पर वो मेरी चूत से हिलने को तैयार नहीं था. तभी उसने मेरी दोनों टांगों को उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और अपना मुँह मेरी चूत से चिपका कर चूसने लगा. वो चूत ऐसे पी रहा था जैसे रस पीना चाहता हो. मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने दोनों जांघों के बीच उसके सर को कस कर दबा लिया पर उस पर तो कोई असर ही नहीं था. वो कभी अपनी जुबान को मेरी चूत के छेद में घुसाने का प्रयास करता तो कभी मेरी चूत के होंठों को दांतों से खींचता तो कभी मेरी दाने को काट लेता. मैं कराहती हुई मजे लेती रही. मैं अब उससे विनती करने लगी- आह्ह.. बस करो … और शुरू करो न! पर वो शायद कुछ और ही सोचे बैठा था. मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाई और भलभलाकर झड़ने लगी. मैंने उसके सर के बालों को इतनी बुरी तरह खींच लिया कि उसके कुछ बाल मेरे हाथों में आ गए. मनीष ने मेरा पूरा रस पीकर ही मुझे छोड़ा. मैं हांफ रही थी, मैं वहीं जमीन पर ही बैठ गयी. मेरे बैठने से उसका लंड मेरे मुँह के सामने लटक रहा था. पहली बार मैंने उसका लंड देखा, जिस लंड से में एक बार चुद भी चुकी थी. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया. उसका लंड एकदम काले नाग की तरह फुंफकार रहा था जबकि मेरे पति का लंड गोरा है. इसका लंड था तो मेरे पति की ही तरह, पर थोड़ा टेड़ा था, एकदम केले के तरह. मनीष के लंड की थोड़ी मोटाई भी ज्यादा थी जिससे मेरी उस समय चीखें निकल रही थीं. आखिर मेरा पतिव्रत धर्म भ्रष्ट करने वाले में कुछ स्पेशल होना ही चाहिए. लंड की मोटाई ज्यादा होने से हर औरत को सुख ज्यादा ही मिलता है क्योंकि मोटा लंड जब चूत में घुसता है, तो वो चूत की दीवारों को फैलाता हुआ घुसता है. जिससे चूत को अच्छी रगड़ मिलती है. एक बात और भी थी कि इसके लंड का सुपारा एकदम लाल टमाटर की तरह था. काले लंड पर लाल सुपारा बहुत ही आकर्षक लग रहा था. मैंने लंड को हाथ से पकड़ ऊपर-नीचे किया तो उसका सुपारा खुलने और बंद होने लगा. फिर मैंने सुपारे को बाहर करके अपनी जुबान उसके नुकीले सुपारे के छोटे से छेद पर रख दी. मेरे ऐसा करते ही मनीष के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसने मेरा सिर पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया. मनीष बहुत ही उतावला लड़का था. मैंने उसे हाथ के इशारे से मना किया और उसके सुपारे को अपने मुँह में लेकर ऐसे चूसा, जैसे लॉलीपॉप हो. मनीष की तो जान ही हलक में फंस गयी. मैं उसे और ज्यादा तड़पाना चाहती थी तो मैं सिर्फ सुपारे को मुँह में दबा कर चूस रही थी. कभी उसे दांतों से दबा लेती तो कभी उसके छेद में जीभ को नुकीला करके मनीष को तड़पा रही थी. मनीष ज्यादा देर तक मुझे झेल नहीं पाया और उसने जबरदस्ती मेरे मुँह से लंड निकाल कर मुझे किचन की स्लैब पर झुका दिया. बिजली की फुर्ती से उसने अपना लंड मेरी गांड पर लगा कर मेरे दूध पकड़ लिए. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 12:49 AM
घबरा गई इसलिए जल्दी से घूम कर उसे गालियां देने लगी- साले फ्री का माल समझा है क्या … पहले अपनी बीवी की और अपनी बहन की गांड मार, फिर मेरे पास आना!
मनीष हाथ जोड़ कर कहने लगा- जीजी आपकी गांड बहुत मस्त है, प्लीज एक बार मार लेने दो! पर मैंने साफ मना कर दिया- नहीं अगर चूत मारनी है, तो आओ … नहीं तो घर जाओ. मनीष मेरे तेवर देख कर डर गया और चूत मारने के लिए राजी हो गया. क्योंकि जो राजी से मिल रहा है, उसे ले ले … नहीं तो वो भी हाथ से चला जाएगा. यह सोचकर उसने मुझे वापस से स्लैब पर झुका दिया और मेरे पीछे आकर अपना सुपारा मेरी चूत के छेद पर भिड़ा दिया. फिर मेरे दूध पकड़ कर उसने एक ही झटके में पूरा लंड घुसेड़ दिया. मेरे मुँह से ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई …’ की चीख निकल गयी. उसका लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ मेरी बच्चेदानी पर जाकर अड़ गया. वो यहीं नहीं रुका, उसने तो एकदम राजधानी एक्सप्रेस चला दी. मैं तो उसके धक्कों की कायल हो गयी. वो पूरा लंड बाहर निकालता और एक ही झटके में पूरा घुसेड़ देता. थोड़ी ही देर में मेरी हालत पतली हो गयी. मैं उसे बेडरूम में चलने को बोलने लगी … क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. फिर मनीष ने ऐसे ही मुझे गोदी में उठा लिया. उसका लंड पीछे से मेरी चूत में था और वो मुझे मेरे ही घर में ऐसे घूम रहा था जैसे मैं उसकी बीवी हूँ. फिर वो मुझे बेडरूम में ले आया और मुझे बेड पर पटक दिया. वो वापस से मेरी चूत पर झुक गया, उसने वापस से मेरी चूत को अपने मुँह में भर लिया. मैं तो बुरी तरह से झनझना रही थी, मेरी हालत बहुत ख़राब हो रही थी. मनीष का मुँह, मैं पैर से … तो कभी हाथ से चूत पर दबाने लगी थी. इसके थोड़ी देर बाद ही वो उठा और अपना खड़ा लंड मेरे होंठों से भिड़ा दिया तो मैंने उसे मुँह में ले लिया. थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद वो उठा और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मेरी टांगों के बीच आ गया. अब उसने मेरी टांगें फैलाईं और अपना लंड मेरी चूत की फांकों में रगड़ने में लगा. मैं- मनीष अब मत तड़पाओ … जल्दी से अन्दर आ जाओ. वो शायद मेरे बोलने का ही इंतजार कर रहा था, उसने मेरी जांघें पकड़ीं और एक ही झटके में पूरा लंड मेरी चूत में समा गया. चूत के गीली होने से एक बार में ही लंड सीधा मेरी बच्चेदानी से जाकर टकरा गया. मेरे मुँह से वापस चीख निकल गई. आज मैं इतना चीख रही थी, जितना मैं अपनी पिछली दस साल की शादीशुदा जिंदगी में नहीं चीखी थी. इसका कारण उसका लंड था, जो जरूरत से ज्यादा मोटा और टेड़ा था और मेरी चूत को फाड़ने पर तुला हुआ था. मनीष जोर जोर से धक्के मार रहा था. मेरी सांसें बड़ी तेज चल रही थीं और मेरे मुँह से तो ‘आह्ह … ह्ह्ह … हुन्न्न … न्न्न … आउच्च … चच्छक …’ की आवाजें निकल रही थीं. वो लगातार मुझे चोदता जा रहा था. करीब दस मिनट बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मैं मनीष से कहने लगी- आआ ह्ह्ह जान … जरराआआ जोअर से आउच्च … च्च्च्च … च्च्छ्ह्हह तेज करो … मजा आआ … रहा आआ आ है. फिर एक जोरदार चीख के साथ मैं उससे लिपट गई और झड़ गई. पर वो अभी तक नहीं झड़ा था, उसका लंड ऐसे ही लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. पता नहीं कितना स्टेमिना था उसक अन्दर! वो तो झटके मारे जा रहा था, कमरे में फच फच की आवाजें आ रही थीं. मेरी कराहें पूरे रूम में गूंज रही थीं. आज तो मैं खूब जोर जोर से चिल्ला रही थी क्योंकि आज मुझे सही मायनों में मर्द का लंड मिला था. थोड़ी देर बाद उसने मुझे पलट दिया और मेरी चूत के नीचे दो तकिया लगा दिए जिससे मेरे चूतड़ पीछे की तरफ उठ गए. मैंने सोचा कि वो पीछे से चोदेगा क्योंकि सुबह भी उसने मुझे ऐसे चोदा था. पर उसकी नियत में कुछ और ही था जिसे मैं बाद में समझ पाई. फिर पीछे से उसने मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल दिया. इसके बाद जो उसने धक्के मारने चालू किए कि क्या बताऊं. मैं तो बुरी तरह से आगे पीछे हो रही थी, मेरे दूध तो ऐसे हिल रहे थे कि लग रहा था कि ये तो नीचे लटक कर अलग हो जाएंगे. मेरे मुँह से बस ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई … ही निकल रहा था. वो साला मेरी चूत की रगड़ाई, मसलाई और पिसाई में लगा था. थोड़ी देर बाद मनीष ने मेरी चूत से लंड निकाल लिया और मेरी गांड के छेद पर अपना लंड को टिका कर धक्का मार दिया. लंड मेरी चूत के पानी से गीला था जिससे उसका सुपारा मेरी गांड के अन्दर चला गया और मेरी तो जान ही गले में आ गई. मेरे मुँह से ‘अहह मम्मी ओह्ह मार दिया जालिम ने आइ … इइइ …. इस्स्सीईई … बाहरर निकालो … उई मर गई …’ बस इतना ही निकल पाया. मैं उस पर चिल्लाने लगी- साले, फ्री का माल समझ रखा है क्या … निकालो बाहर ओह्ह मम्मी मर गयी निकाल कमीने … मेरी गांड फट गई. जा अपनी बीवी की गांड फाड़ … अपनी बहन की गांड फाड़! पर उस पर कोई असर नहीं हो रहा था, वो तो बस मेरी ही गांड फाड़ने पर तुला हुआ था. फिर उसने लंड थोड़ा पीछे किया, तो मेरी जैसे जान में जान आई. पर वो वहीं पर लंड को आगे पीछे करने लगा. वो बोलने लगा- बस जीजी जीजी, बस हो गया. मैं उसे अभी भी गाली दे रही थी. पर अब तक इतनी देर में दर्द थोड़ा कम हुआ ही था कि इस बार उसने पूरा जोर लगा कर करारा धक्का मार दिया. इस अचानक हमले से मैं तो घबरा ही गई और मुँह तकिए में दबा कर चीखने और रोने लगी. ऐसा लग रहा था कि मेरी गांड फट गई और उसमें से खून आने लगा हो. मेरे मुँह से बस ‘आह … आईईइ उई … नहीं … आह्ह बहुत दर्द हो रहा है … उईई उइ … रूको … आह्ह … निकाल लो.’ निकल रहा था. मैं दर्द के मारे आगे को सरकना चाहती थी, मगर मनीष ने मजबूती से मेरी कमर को पकड़ रखा था. मनीष- आह्ह … मज़ा आ गया … जीजी … क्या मस्त गांड है आपकी … आह्ह … बहुत टाइट है … ले आह्ह … संभाल आह्ह. उसने धक्के मारने चालू कर दिए. उस जालिम को बिल्कुल तरस नहीं आ रहा था. थोड़ी देर में दर्द कुछ कम होने लगा और कुछ राहत महसूस होने लगी थी. लेकिन तभी उसने गांड से लंड निकल कर मेरी चूत में घुसेड़ दिया. अब वो बारी बारी मेरी चूत और गांड मार रहा था. करीब आधे घंटे तक मेरी धकापेल चुदाई करने के बाद उसने मुझे पीठ के बल लेटा दिया और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत में लंड पेल दिया. इस आसन में लंड सीधा अन्दर तक चोट करता है. शायद वो झड़ने बाला था. मैंने उसका इरादा समझ कर उसे चूत में निकलने को मना किया. मनीष बोलने लगा- जीजी चूत में पानी निकालने में अलग ही मजा आता है … प्लीज आप टेबलेट खा लेना. मैं- कमीने तू बहुत हरामी है. टेबलेट खा लेना … जैसे मैं कोई रंडी हूँ. लेकिन वो कह तो सही रहा था. औरतों को अगर गर्भ ठहरने का खतरा न हो तो वो हमेशा चूत में ही स्खलन चाहती हैं क्योंकि जब चूत में गर्म गर्म वीर्य की बौछार होती है तो उसका मजा अलग ही होता है. मर्दो को तो मजा आएगा ही क्योंकि लंड को जो अहसास चूत के अन्दर मिलता है, वो कहीं और कहां मिलेगा. फिर उसने मेरे दूध मसलते हुए जो रेल चलाई कि मेरी तो चूत चरमरा गई. उसके हर धक्के पर मेरे मुँह से ‘आह मम्मी मर गयी ईई …’ निकल रहा था. मनीष के मुँह से भी अब मादक आवाजें निकलने लगी थीं- उहह उहह … मेरी जान आह्ह … आह्ह … बस आ गया … आह्ह … ले उहह … उहह. उसने अपने लंड को आखिरी झटका मार कर लंड को मेरी बच्चेदानी के मुँह में फंसा दिया. उसका सुपारा पहले की भांति ओर ज्यादा फूल गया. मेरी जान हलक में फंस गयी. मेरी बच्चेदानी में फंसे उसके सुपारे से वीर्य की पिचकारी निकलने लगी. वीर्य के गर्म अहसास से मेरी भी चूत बहने लगी. हम दोनों ही मस्ती में झड़ने लगे थे. पता नहीं कितनी देर तक वो ऐसे ही झड़ता रहा और उसका वीर्य मेरी चूत से होते हुए मेरी बच्चेदानी को भरता रहा. मैं भी बेसुध सी उसके नीचे पड़ी रही. मेरे दूध उसके भरे हुए सीने से दबे कराह रहे थे. उसका लंड मेरी चूत में फंसा पड़ा था. सही मायनों में आज में जन्नत में थी. लेकिन इस बार जब उसका लंड नहीं सिकुड़ा तो मैं उससे पूछने लगी. मनीष डरते डरते बोला- वो जीजी जब मैं आपके लिए टेबलेट लेने गया था. तो मैंने भी सेक्स की एक गोली लेकर खा ली थी. अब जाकर मेरी समझ में आया कि ये क्यों इतनी देर से मेरी चूत फाड़ रहा था … और अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. मैं उसे गाली देने लगी- कमीने, गोली खाकर मेरी हालत खराब कर दी. मैं सोच रही थी कि इतनी देर से निकल क्यों नहीं रहा. अब निकाल जल्दी से … मेरी चूत जल रही है. मनीष डर गया और उसने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया. मुझे ऐसा लगा कि लंड के साथ मेरी चूत की दीवारें भी बाहर आ जाएंगी. उसका लंड अभी भी लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. जिससे वो भी परेशान था और वो मेरी तरफ बड़ी लाचारी से देख रहा था. मुझे भी उस पर तरस आ गया तो मैंने उसे इजाजत दे दी कि जल्दी से अपना पानी निकाल ले. मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया. वो बहुत ज्यादा खुश हो गया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रखकर मेरी चूत में लंड पेल दिया. मेरे मुँह से कराह निकल गयी. मेरी चूत बिल्कुल सूखी हुई थी जिससे मुझे दर्द हो रहा था. करीब 15 मिनट तक चोदने के बाद भी उसका पानी नहीं निकल रहा था. मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी, मेरी चूत की दीवारें छिल गयी थीं. वो जब लंड बाहर निकाल कर चूत में पेलता तो ऐसा लगता जैसे मेरी चूत फट जाएगी. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मेरी चूत में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी कि अब वो और पिलाई छेल सके. मैंने उसे लंड निकालने को बोला. उसकी इच्छा तो नहीं थी लेकिन मेरी परेशानी समझ कर उसने लंड चूत से निकाल लिया. मैं अब घबरा भी रही थी क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया और उसकी खाल पीछे करके सुपारा मुँह में ले लिया. उस समय मुझे यही सबसे अच्छा तरीका लगा. मैंने अपने होंठों को को उसके लंड पर कस लिया और उसे धीमे धीमे धक्के मारने का इशारा किया. मनीष भी मेरे मेरे मुँह को पकड़ कर मेरा मुँह चोदने लगा. साथ में ही वो मेरे मम्मों को मसलने लगा. मैं भी अब जल्दी से निपटना चाहती थी तो अपने होंठों को कस लिया और उसके सुपारे को चूसने लगी. कभी मैं उसके सुपारे के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगती, तो कभी उसके अंडकोष चूसने लगती. मनीष मेरी चुसाई ज्यादा देर सह नहीं पाया और उसका सुपारा फूलने और पिचकने लगा. मैं समझ गयी कि उसका पानी निकलने वाला है. मैंने जैसे ही उसका लंड मुँह से निकालना चाहा, वैसे ही कमीने ने मेरे मम्मों को मसलते हुए अपना लंड मेरे मुँह में पूरा ठूंस दिया, जिससे उसका सुपारा मेरे हलक में जाकर फंस गया. मेरे मुँह से ‘गु उंगगु …’ की आवाज आने लगी पर उसने मुझे नहीं छोड़ा और उसके सुपारे ने पिचकारियों की बौछार मेरे हलक में छोड़ दी. मैं क्या करती … मुझे मजबूरी में उसका सारा वीर्य पीना पड़ा. कमीने ने एक एक बूंद निकाल कर ही अपना लंड मेरे मुँह से निकाला. फिर वो वहीं बेड पर मेरे पास गिर पड़ा और हांफने लगा. हम दोनों Xxx जीजा साली की ही हालात ऐसी थी कि पूछो मत. कुछ देर बाद मैंने उसे उठाया क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. हम दोनों जल्दी से उठे और बाथरूम जाकर अपने आपको साफ किया. मेरी चुत, गांड और मेरे मम्मों की हालत बहुत ही खराब हो गई थी. फिर मनीष अपने घर चला गया और मैं बिस्तर पर लेट गयी. मेरा पूरा शरीर टूट रहा था, पर मन में एक सुकून भी था. पता नहीं ये कैसा दर्द था कि इसमें भी अपना अलग ही आनन्द था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 04:45 PM
(This post was last modified: 02-02-2023, 04:46 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(01-02-2023, 09:10 PM)neerathemall Wrote: 1 पति एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर हैं और घर से बाहर रहते हैं. घर में मेरे अलावा मेरे ससुर और मेरे दो बच्चे रहते हैं. मुझे भगवान ने वो सब कुछ दिया है जो एक लड़की शादी से पहले अपने मन में इच्छा रखती है. मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं और हमारी सेक्स लाइफ भी बहुत अच्छी है. मेरे पति जब भी घर आते हैं तो हम दोनों बहुत सेक्स करते हैं. घर में हमारे अलावा सिर्फ मेरे ससुर हैं, जो कि नीचे की मंजिल में रहते हैं और वो ऊंचा सुनते हैं. उनके अलावा मेरे घर में और कोई नहीं है. मैं और मेरे पति हर तरीके से सेक्स करते हैं. हमें सेक्स के लिए 3-4 महीनों में 10 से 15 दिन ही मिलते हैं. या ये कहो कि हम दोनों बहुत खुल कर इंजॉय करने वाले दंपति हैं. अब जो हुआइसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाएगा. लोग कहते हैं कि कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसा इत्तेफाक हो जाता है, जिसकी उसने कभी उम्मीद ही न की होती है. यह बात आज से एक साल पहले की है. उस दिन में बाथरूम में नहा रही थी. मेरे दोनों बच्चे कॉलेज गए हुए थे. तभी किसी काम से मेरी छोटी बहन का पति मनीष मेरे घर आ गया. कुछ देर तक उसने नीचे मेरे ससुर से बात की, फिर वो ऊपर की मंजिल पर आ गया. ऊपर आकर जब उसने मुझे कहीं नहीं देखा, तो जीजी बोलकर पुकारने लगा. मैंने जब उसकी आवाज सुनी, तो मैं सकपका गयी कि ये अचानक से कैसे आ गया. फिर कुछ सोचकर मैंने उसे बाथरूम से ही आवाज दी कि आप कुछ देर इंतजार करें, मैं अभी नहा रही हूँ. मैं सोचने लगी कि अब क्या करूं क्योंकि मेरे बाथरूम से निकलने का रास्ता मेरी बैठक के सामने से था और बाथरूम में मैं सिर्फ टॉवल ही पहन सकती थी. मेरे पास कोई और कपड़े नहीं थे. मैं हमेशा बाथरूम में सिर्फ टॉवल ही लाती थी. ब्रा पैंटी और बाकी के कपड़े मैं बाद में कमरे में जाकर पहनती थी. इसका कारण यही था कि मेरे घर में कोई नहीं आता था. मैं अब बहुत ही असमंजस में थी कि क्या करूं. मेरे सामने कोई चारा नहीं था तो मैंने निश्चय किया कि बाथरूम से भाग कर निकलूंगी. यह सोचकर मैंने सावधानी से दरवाजा खोलकर इधर उधर देखा और जल्दी से भागने की कोशिश की कि जल्दी से अपने बेडरूम में पहुंच जाऊं. पर मेरी फूटी किस्मत कि हड़बड़ी में मेरा पैर फिसल गया और मैं वहीं बैठक के सामने गिर पड़ी. इसे कहते हैं अनहोनी, कहां मैं मनीष के सामने जाना नहीं चाहती थी और अब वहीं उसके सामने जमीन पर नंगी पड़ी थी. मेरी तौलिया भी मेरे जिस्म से अलग हो गई थी. मनीष भी भागकर मेरे पास आ गया और पूछने लगा- अरे जीजी, कहीं लगी तो नहीं? वो मुझे आंखें फाड़ कर देख रहा था. मैं शर्म के कारण जमीन में धंसी जा रही थी क्योंकि मेरा नंगा जिस्म मनीष के सामने था. मैंने जल्दी से टॉवल उठा कर अपने ऊपर डाल लिया. लेकिन टॉवल से सिर्फ मेरे मम्मों और मेरी चूत के ऊपर का थोड़ा सा हिस्सा ही ढका हुआ था. गिरने की वजह से मेरी कमर में धमक लग गयी थी. मैं दोहरी मार से मरी जा रही थी. मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरी कमर मेरा साथ नहीं दे रही थी. फिर मैंने याचना भरी नजरों से मनीष की तरफ देखा तो उसने मेरी स्थिति देखकर मुझे सहारा देकर उठाया. इससे मैं एक बार से फिर नंगी हो गयी. मनीष ने ही नीचे से टॉवल उठाकर मुझे लपेट दी. उसके हाथों ने जब मुझे टॉवल पहनाई, तब उसके हाथ कांप रहे थे. इसका मुझे अहसास मुझे उसकी पैंट के उभार ने बता दिया था. वो मेरे एकदम सामने बस कुछ इंच की दूरी पर ही था जिससे मैं उसकी बढ़ती हुई सांसों की आवाज को सुन सकती थी. फिर वो मुझे सहारा देते हुए मेरे बेडरूम में लेकर आ गया. जब वो मुझे पकड़कर बेडरुम में ला रहा था तब उसकी उंगलियां मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से को टच कर रही थीं. बेडरूम में आकर मैं अपने बेड पर बैठ गयी. मनीष मेरे सामने खड़ा था और मेरे अधनंगे शरीर का अपनी आंखों से रसपान कर रहा था. जब उसकी आंखें मेरी आंखों से मिलीं तो पता ही नहीं चला कि मुझे क्या हो गया. मैं कब बहक गयी. हमेशा से ही पतिव्रता रही सुधा कब एक गैर मर्द की बांहों में चली गयी. जब होश आया तो मनीष मेरे होंठों को चूस रहा था और उसके हाथ मेरे पूरे शरीर का जायजा ले रहे थे. उसकी जीभ मेरे मुँह में थी और मैं उसे चूस रही थी. जैसे ही मुझे होश आया ओर मेरे दिमाग ने मुझसे कहा कि ये गलत है, मैंने मनीष को अपने से दूर करना चाहा. लेकिन उसने मुझे और कसके पकड़ लिया और मेरी कान की लौ को जीभ से चुभलाते हुए बोला- सुधा, अब हम इतने आगे बढ़ गए है कि अब पीछे लौटना न मेरे लिए संभव है और न तुम्हारे लिए. मनीष मुझे मेरे नाम से बुला रहा था. हालांकि उसकी और मेरी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था लेकिन वो रिश्ते में तो मुझसे छोटा था. मैंने उसे फिर भी रोकना चाहा- मनीष ये गलत है. मैं तुम्हारी बीवी की बड़ी बहन हूँ. ये गलत है. अगर किसी को पता चल गया तो मैं कहीं भी मुँह दिखाने लायक नहीं रहूंगी. लेकिन मनीष पर तो शायद वासना का भूत चढ़ गया था. वो मेरी किसी भी बात को सुन ही नहीं रहा था. उसने मेरी टॉवल खींच कर दूर फेंक दी और मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया. मैं अभी भी उसे अपने से दूर करना चाहती थी. मैं जितना भी उसे दूर करना चाहती, वो मुझसे उतना ही चिपकता जाता. फिर उसने मुझे बेड पर पीठ के बल लेटा दिया. अब तो मेरी स्थिति और भी दयनीय हो गयी थी क्योंकि मेरे चूतड़ों से ऊपर का हिस्सा बेड के ऊपर था और मेरी टांगें नीचे लटक रही थीं. मनीष भी मेरी टांगों के बीच मेरे ऊपर अधलेटा सा हो गया था. उसका लंड पैंट के ऊपर से ही मेरी चूत पर अड़ सा गया था. मेरी भी मनोस्थिति अब ऐसी हो गयी कि मेरा मन और दिल चाह रहा था कि जो हो रहा है, उसे होने दूँ. पर मेरा दिमाग कह रहा था कि ये गलत है. फिर भी मैंने अपने आपको काबू में करके एक बार आखिरी कोशिश करने की सोची और अपनी पूरी ताकत से मनीष को अपने ऊपर से हटाना चाहा. पर इसका उल्टा ही असर हुआ. मनीष ने मुझे और कसके एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना पैंट और अंडरवियर उतारने लगा. ऊपर से उसने अपने मुँह से मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा. अपना पैंट ओर अंडरवियर उतार कर उसने अपना लंड मेरी चूत की फांकों में फिट कर दिया और मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए. जैसे ही मेरी चूत पर उसका लंड का स्पर्श हुआ, मैं एकदम से सिहर सी गयी क्योंकि दो महीने से मेरी चुदाई नहीं हुई थी. मैं भी अन्दर से चाहने लगी थी कि अब जल्दी से लंड चूत के अन्दर जाकर मेरी प्यास बुझा दे. लेकिन मैं फिर भी ऊपर से आनाकानी करने लगी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मनीष बाद में मुझे गलत समझे. फिर मनीष ने चूत पर लंड फिट करके जैसे ही धक्का मारा, मैंने अपनी कमर हिला दी. उसका लंड फिसल गया. उसने फिर से अपने लंड को पकड़ा और वापस मेरी चूत की फांकों में ऊपर-नीचे रगड़ा. फिर छेद पर टिका कर हल्के से धकेला तो उसका सुपारा अन्दर घुस गया. मैंने तड़प कर छूटने की कोशिश की पर मनीष मुझे कस कर पकड़े हुए था जिससे उससे छूट पाना मेरे लिए मुश्किल ही था. हालांकि मैं भी अब छूटना नहीं चाहती थी. लेकिन मैं इस तरह से चुदना भी नहीं चाहती थी क्योंकि मेरे पति ने हमेशा प्यार से सेक्स किया था. फिर अभी तो मेरी चूत भी गीली नहीं हुई थी. लेकिन मैं क्या करती. वो मुझे ऐसे ही चोदना चाहता था. अगर वो मेरी आंखों में देखता, तो शायद समझ जाता. पर उस पर तो वासना का भूत चढ़ा हुआ था. इसके बाद उसने अपना हाथ हटा लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ लिए, मेरे एक दूध को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. मेरी ऐसी हालत हो गई थी कि मैं कुछ कर ही नहीं सकती थी. मेरे दोनों हाथ उसके बस में थे. मेरी चूत में उसके लंड का पूरा सुपारा घुस चुका था और मेरा एक चूचुक उसके मुँह में था. मैं एक जल बिन मछली की भांति तड़पने लगी … आखिर मैं भी एक औरत थी. फिर मनीष ने मुझे देखा कि अब मैं नॉर्मल थी, तो उसने मेरे हाथ छोड़ दिए और मेरे मम्मों को अपने दोनों हाथों में लेकर मसलते हुए अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ने लगा. जैसे ही उसका लंड अन्दर घुसा, मुझे हल्का दर्द होने लगा. शायद उसका लंड मोटा था या फिर काफी दिनों से मेरी चुदाई नहीं हुई थी या मेरी चूत गीली नहीं थी. कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उसने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय मम्मीईई मर गईई … नहीं … नहीं … छोड़ दो … मैं मर जाऊंगी … ओह्ह मां! मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी. उसका लंड मेरी चूत फाड़ते हुए काफी अन्दर घुस गया था. फिर उसने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और और धीरे-धीरे धक्के देने लगा. शायद उसे भी थोड़ी तकलीफ हो रही थी क्योंकि मेरी चूत गीली नहीं थी. मैंने अपनी आंखें खोलीं और एक बार उसकी तरफ देखा. उसने अपने नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से ऐसे दबा रखा था जैसे कोई बहुत ताकत लगाने के समय कर लेता है. वो मेरी चूत में ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वो खुद भी अन्दर घुस जाना चाहता हो. मनीष का लंड करीब एक तिहाई मेरी चूत में था … लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका लंड शायद मेरे पति से मोटा हो और बड़ा भी. या फिर ये कहो कि इस पोजीशन में छोटा लंड भी बड़ा लगता है. या यूं कहो कि पराया माल हमेशा अच्छा लगता है. अब मेरी चूत भी हल्की गीली हो चली थी और पहले जैसा कुछ भी दर्द नहीं हो रहा था. तभी मनीष ने मेरे मम्मों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर एक जोरदार धक्का मार कर अपना लंड मेरी चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया. मुझे ऐसा लगा कि उसका लंड मेरी बच्चेदानी फाड़ कर अन्दर घुस गया हो. मेरे मुँह से चीख निकल गयी- ओह्ह ओह्ह मां मर गईईई … आह … कोई तो बचाओ आहह … इस जालिम से. इस तरह मेरे पति ने मुझे कभी भी नहीं चोदा था. पर ये तो बड़ा ही बेरहम हो रहा था. फिर उसने धीमे धीमे धक्के मारना चालू कर दिया. जिससे मेरी चूत गीली होने लगी और उसके लंड को भी मेरी चूत ने एडजस्ट कर लिया. मुझे मजा आने लगा लेकिन मेरी टांगें अभी भी नीचे लटक रही थीं. जिस वजह से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी. मैंने उससे इशारे से उसे अपनी परेशानी बतायी हालांकि अभी भी मैं उससे नजर नहीं मिला पा रही थी. आखिर वो मेरी छोटी बहन का पति था. मेरा इशारा समझ कर मनीष ने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया और मुझे बेड पर सही से लेटा दिया. उसने जल्दी से मेरे चूतड़ों के नीचे एक तकिया रख दिया. अब वो वापस से मेरी टांगों के बीच आ गया. वो फिर से अपना लंड मेरी चूत की फांकों में रख कर रगड़ने लगा जिससे मेरी चूत में चीटियां सी रेंगने लगीं. मेरे दोनों हाथ अपने आप उठ गए और मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया. फिर मैंने उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों मम्मों के चूचक पकड़ लिए और मसलने लगा. साथ ही अपना लंड मेरी फांकों में रगड़ने लगा. अब मेरी टांगें अपने आप उठ गईं और उसके चूतड़ों पर अपनी टांगों को फंसा कर मैं उसे अपनी तरफ खींचने लगी. मेरा उतावलापन देख कर मनीष ने अपना लंड मेरी चूत के छेद पर लगा कर एक ही झटके में पूरा जड़ तक घुसेड़ दिया. मेरे मुँह से वापस से ‘आहह … यहांहा बेदर्दी … ओहहह … मार दिया …’ निकल गया. मैंने मनीष से कहा- मेरे भोले राजा आराम से करो … मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ. आराम से चोद ले … फ्री का माल मत समझ.! मनीष हंस कर बोला- सुधा मेरी जान, आह … तू तो अपनी बहन से भी मस्त माल है. इतना मजा तो मुझे कभी तेरी बहन को चोद कर नहीं आया. आज तो मैं तुझे चोद चोद कर तेरा कचूमर निकाल दूँगा. मनीष अब तू तड़ाक की भाषा पर आ गया था. हालांकि मुझे ये सब पसंद नहीं था लेकिन मैंने उस समय कुछ बोलना उचित नहीं समझा. मनीष ने वापस से अपना लंड खींच कर सिर्फ सुपारा मेरी चूत में रख कर वापस एक करारा झटका मार दिया. उसका लंड मेरी चूत के अंतिम छोर तक घुसता चला गया. मैं बस कराह कर रह गयी. मेरे मुँह से बस आहहह … ओह हहह … की आवाजें निकलने लगीं. लेकिन उस पर मेरी कराहों का कोई असर नहीं हो रहा था. वो बस अपना पूरा लंड निकालता और एक ही झटके में घुसेड़ देता. उसका लंड सीधा मेरी बच्चेदानी पर चोट कर रहा था. थोड़ी ही देर में मुझे मजा आने लगा और मैं अपनी टांगें उठा कर उसके लंड का स्वागत करने लगी. मनीष के झटके बहुत ही जबरदस्त लग रहे थे जिससे थोड़ी ही देर में मेरी चूत पानी छोड़ने लगी. मैंने अपनी दोनों टांगें उठाकर मनीष की कमर पर लपेट दी और बड़बड़ाने लगी- आहह जानू … मजा आ गया … आह्ह … तेरा लंड … आह्ह … हाय … आह्ह … और जोर से … आह्ह और जोर से! बस ये सब बोलती हुई मैं झड़ गयी पर उसका अभी नहीं हुआ था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 04:49 PM
मनीष ने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया, उसने मुझसे चूतड़ों को ऊपर करने को कहा.
मैंने कर दिए. उसने अपना लंड मेरी चूत में पीछे से घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे दोनों मम्मों को पकड़ कर मसलने लगा. पीछे से उसका लंड मुझे और भी मोटा लग रहा था. मेरी चूत फट जाएगी ऐसा मुझे लगने लगा. मैं फिर से कराहने लगी- आहह ओह्ह ओह्ह मां मर गईईई … आह … कोई तो बचाओ आहह … इस जालिम से. मैं जितना भी कराहती, मनीष उतना ही जोर से धक्का मार देता. कुछ देर बाद मुझे उसने फिर से सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख कर मेरी टांगें फैला दीं और लंड अन्दर घुसा दिया. वो मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा. हमें चुदाई करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था. मेरी चूत में अब जलन होने लगी थी. मुझे उसके धक्के असहय से लगने लगे और मैं सोचने लगी कि ये अब जल्दी से झड़ जाए. उसके धक्के अब और तेज होते जा रहे थे, शायद वो अब झड़ने के करीब ही था. मैं भी अब चाहती थी कि मैं भी दुबारा से मनीष के साथ ही झड़ जाऊं क्योंकि उस वक़्त साथ में झड़ने से जो मजा आता है, वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है. मैंने मनीष के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके चूतड़ों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लंड मेरी चूत में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके. फिर मैंने उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगी. मनीष ने भी मेरे चूचुकों को पकड़कर मसलना शुरू कर दिया. उसकी चुदाई बहुत बेरहम थी पर पता नहीं मुझे मजा भी बहुत आ रहा था. ऐसा मजा मैंने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किया था. तभी उसने मेरे मम्मों को कसके पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में घुसा दिया. वो झड़ने लगा. उसका सुपारा फूल कर और भी मोटा हो गया था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा पेट फाड़ कर बाहर आ जाएगा. मैं मस्ती ओर दर्द से कराहने लगी और मैंने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी. उसके लंड से पहले एक पिचकारी और फिर अनगिनत पिचकारियां निकलने लगीं. उसका सुपारा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर फसा हुआ पिचकारी मार रहा था. मैं बता नहीं सकती कि ये अहसास शब्दों में कैसे बयान करूं. मैंने अपने जीवन में अपने पति के साथ इतना सेक्स किया लेकिन ऐसा अहसास कभी नहीं किया था. इसने तो मुझे पागल कर दिया था. हालांकि मुझे काफी दर्द भी हो रहा था पर उसके गर्म गर्म वीर्य की बौछार होते ही मैं भी झड़ने लगी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया. मनीष मेरे ऊपर ऐसे ही काफी देर लेटा रहा. उसका सुपारा अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. ये अहसास मैंने पहली बार किया. मैंने मनीष से पूछा तो उसने बताया- मेरे साथ यह हमेशा होता है इसलिए मेरी बीवी प्रिया उसके साथ खुश नहीं रहती. मेरे लंड का सुपारा कुत्तों के जैसे फूल जाता है और उसकी चूत में दर्द होने लगता है. उस समय हम दोनों को ही होश नहीं था कि ये हमने क्या किया. बाद में जब मुझे होश आया तो मैं उठकर रोने लगी कि ये क्या हुआ. अगर मेरे गर्भ में बच्चा ठहर गया तो मैं क्या करूंगी. हम दोनों का ही नशा उतर चुका था. अब हमें अहसास हो रहा था कि हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. मनीष भी अब हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा- जीजी माफ कर दो, पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं- मनीष हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. ऊपर से तुमने अपना पानी मेरी चूत में ही छोड़ दिया. अब जल्दी से जाओ और एक आईपिल ले कर आओ तब तक मैं इधर सम्हालती हूँ. मनीष नीचे गया तो मेरे ससुर उसे रोककर पूछने लगे- अरे बेटा कहां जा रहे हो. अभी तो खाने का टाइम हो रहा है. खाना खाकर जाना. मैं मन में कहने लगी कि खाना खाकर … उसने आपकी बहू की इज्जत ही खा ली. मनीष मेरे ससुर से बोला- हां बाबू जी, अभी इधर थोड़ा काम है, उसको निपटा कर आता हूं. फिर खाना खाकर ही जाऊंगा. मैं भी जल्दी से बाथरूम गयी क्योंकि उसका वीर्य मेरी जांघों पर बह रहा था. बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत को देखा तो मैं सन्न रह गयी. मेरी चूत एकदम लाल पड़ गयी थी. उस कमीने ने बहुत ही बेदर्दी से पेला था. अब मैंने जल्दी से अपनी चूत की सफाई की और किचन में आकर खाना बनाने लगी क्योंकि मेरे ससुर के खाने का समय हो गया था. फिर अपने ससुर को खाना देकर मैं अपने और मनीष के लिए रोटियां सेंकने लगी. मैं मन में सोचने लगी कि ये गलत हुआ या सही. इतने में ही मनीष वापस आ गया. वो सीधा किचन में ही आ गया और उसने मुझे वो टेबलेट दे दी. वो वहीं खड़ा हो गया. जब हम दोनों की नजर मिली तो मैं बहुत शर्मा गयी. मनीष भी बहुत शर्मा रहा था. फिर वो बोला- मैं जा रहा हूँ. मैं- खाना खा कर जाना. तो मनीष कहने लगा- जीजी, वो जो मैंने उस समय आपसे तू तड़ाक से बोला, उसके लिए मुझे माफ़ कर देना. वो क्या है कि ये मेरी आदत है. जिससे मैंने आपको भी ऐसे ही बोल दिया. मैं आप लोगो को क्या बताऊं कि मैं उस समय शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी. मेरे ही किचन में मेरी छोटी बहन का पति मुझसे ऐसी बातें कर रहा था. इसको कहते हैं इत्तेफाक. आज मैं इस इत्तेफाक की वजह से पराये मर्द से चुद चुकी थी और वो पराया मर्द अभी भी मेरी किचन में मौजूद था. हम दोनों की इच्छा अब दुबारा से वो सब करने की हो रही थी जो कुछ देर पहले इत्तेफाक से हुई थी. कुछ देर ऐसे ही मनीष मुझसे बात करता रहा. फिर मेरे पास आकर बोला- जीजी, क्या हम लोग एक बार और वही गलती कर सकते हैं? मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. हालांकि मेरी भी इच्छा हो रही थी लेकिन मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. इस अचानक हुए हमले से मैं हड़बड़ा गयी और मेरे मुँह से एकदम निकल गया कि पहले रोटी तो बना लूं. मेरे मुँह से ऐसा सुनते ही वो तो किचन में ही शुरू हो गया. उसने अपने हाथ मेरे गाउन में घुसा कर मेरे दूध पकड़ लिए और उन्हें बेदर्दी से मसलने लगा. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी- हहहह ओह्ह … आह … रुक जाओ ओह्ह! पर वो अब कहां मानने वाला था … उसने वहीं अपने सारे कपड़े निकाल दिए और पीछे से मेरा गाउन उठाया और अपना लंड मेरी गांड पर घिसने लगा. मैं एकदम डर गई कि अगर इसने गांड में लंड घुसा दिया तो मेरी तो जान ही निकल जाएगी. हालांकि मैं अपने पति से काफी बार गांड मरवा चुकी थी. पर पता नहीं इससे क्या होगा. न बाबा न … इसका जंगलीपन में अभी थोड़ी देर पहले ही देख चुकी थी. मैं गैस बंद करके पलट गई. दूसरी तरफ मैं भी अब खुलकर मजा लेना चाहती थी क्योंकि जब बेवफाई ही करनी है तो खुलकर करो. बात यह भी थी कि जब चूत को पराया लंड मिलता है तो वो भी अच्छे से टसुए बहाती है. मैं पलटकर मनीष से बोली- क्यों प्रिया नहीं देती क्या … या वो भी कहीं दूसरी जगह तुम्हारी तरह मुँह मारती है? मनीष- नहीं, वो बात नहीं है … दरअसल वो जल्दी झड़ जाती है, फिर वो आगे और करने नहीं देती. फिर वो आपकी तरह इतनी खुली भी नहीं है. जैसे आप चूत लंड बोल रही हो, वैसे वो नहीं बोलती. वो शर्माती बहुत है. ऊपर से उसका ऑपरेशन होने के बाद उसकी चूत बहुत खुली खुली सी हो गयी है. मैं मनीष को छेड़ती हुई बोली- एक काम करो, अपनी बीवी को कुछ दिनों के लिए मेरे पति के पास छोड़ दो, वो पूरा खोल देंगे. मनीष- फिलहाल तो मैं उनकी बीवी को अच्छी तरह से खोल देना चाहता हूँ. उसने किचन में ही मेरा गाउन उतार कर फेंक दिया. मैं ‘रुको रुको …’ ही करती रह गयी. उसने मुझे स्लैब के सहारे झुका दिया और पीछे से मेरे दूध दबाते हुए मेरी पूरी पीठ पर चूमने लगा. उसके हाथ मेरे पूरे शरीर पर घूम रहे थे और उसकी जीभ मेरी पीठ से होते हुए मेरे चूतड़ों पर घूम रही थी जिससे मेरी टांगें खुद ब खुद फैलती जा रही थीं. अब उसने मुझे पलट दिया. वो मेरी दोनों टांगों के बीच बैठा था और मेरी चूत में उंगली कर रहा था. उसने पहले मेरी नाभि और पेट में ढेर सारा चुम्बन किए, फिर मेरी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपने दोनों हाथों से मेरी चूत के दोनों होंठों को फैला दिया और अपनी जीभ और दांतों से मेरी चूत और भग्नासा को काटने चाटने लगा. मैं इतनी गीली हो चुकी थी कि क्या कहूँ … ऐसा लगने लगा था, जैसे मेरी जान ही निकल जाएगी. थोड़ी देर बाद उसने मेरी चूत को और फैला दिया, तो मैं कराह उठी. फिर वो अपनी जीभ को मेरी चूत के छेद में धकेलने लगा. उसके इस तरह करने से मैं और भी उत्तेजित हो रही थी और ऐसा लगने लगा था कि अब ये मुझे ऐसे ही झड़ जाने पर मजबूर कर देगा. मैंने उसके सर को पकड़ा और बालों को खींचते हुए ऊपर उठाने का प्रयास करने लगी ताकि हम चुदाई शुरू करें! पर वो मेरी चूत से हिलने को तैयार नहीं था. तभी उसने मेरी दोनों टांगों को उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और अपना मुँह मेरी चूत से चिपका कर चूसने लगा. वो चूत ऐसे पी रहा था जैसे रस पीना चाहता हो. मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने दोनों जांघों के बीच उसके सर को कस कर दबा लिया पर उस पर तो कोई असर ही नहीं था. वो कभी अपनी जुबान को मेरी चूत के छेद में घुसाने का प्रयास करता तो कभी मेरी चूत के होंठों को दांतों से खींचता तो कभी मेरी दाने को काट लेता. मैं कराहती हुई मजे लेती रही. मैं अब उससे विनती करने लगी- आह्ह.. बस करो … और शुरू करो न! पर वो शायद कुछ और ही सोचे बैठा था. मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाई और भलभलाकर झड़ने लगी. मैंने उसके सर के बालों को इतनी बुरी तरह खींच लिया कि उसके कुछ बाल मेरे हाथों में आ गए. मनीष ने मेरा पूरा रस पीकर ही मुझे छोड़ा. मैं हांफ रही थी, मैं वहीं जमीन पर ही बैठ गयी. मेरे बैठने से उसका लंड मेरे मुँह के सामने लटक रहा था. पहली बार मैंने उसका लंड देखा, जिस लंड से में एक बार चुद भी चुकी थी. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया. उसका लंड एकदम काले नाग की तरह फुंफकार रहा था जबकि मेरे पति का लंड गोरा है. इसका लंड था तो मेरे पति की ही तरह, पर थोड़ा टेड़ा था, एकदम केले के तरह. मनीष के लंड की थोड़ी मोटाई भी ज्यादा थी जिससे मेरी उस समय चीखें निकल रही थीं. आखिर मेरा पतिव्रत धर्म भ्रष्ट करने वाले में कुछ स्पेशल होना ही चाहिए. लंड की मोटाई ज्यादा होने से हर औरत को सुख ज्यादा ही मिलता है क्योंकि मोटा लंड जब चूत में घुसता है, तो वो चूत की दीवारों को फैलाता हुआ घुसता है. जिससे चूत को अच्छी रगड़ मिलती है. एक बात और भी थी कि इसके लंड का सुपारा एकदम लाल टमाटर की तरह था. काले लंड पर लाल सुपारा बहुत ही आकर्षक लग रहा था. मैंने लंड को हाथ से पकड़ ऊपर-नीचे किया तो उसका सुपारा खुलने और बंद होने लगा. फिर मैंने सुपारे को बाहर करके अपनी जुबान उसके नुकीले सुपारे के छोटे से छेद पर रख दी. मेरे ऐसा करते ही मनीष के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसने मेरा सिर पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया. मनीष बहुत ही उतावला लड़का था. मैंने उसे हाथ के इशारे से मना किया और उसके सुपारे को अपने मुँह में लेकर ऐसे चूसा, जैसे लॉलीपॉप हो. मनीष की तो जान ही हलक में फंस गयी. मैं उसे और ज्यादा तड़पाना चाहती थी तो मैं सिर्फ सुपारे को मुँह में दबा कर चूस रही थी. कभी उसे दांतों से दबा लेती तो कभी उसके छेद में जीभ को नुकीला करके मनीष को तड़पा रही थी. मनीष ज्यादा देर तक मुझे झेल नहीं पाया और उसने जबरदस्ती मेरे मुँह से लंड निकाल कर मुझे किचन की स्लैब पर झुका दिया. बिजली की फुर्ती से उसने अपना लंड मेरी गांड पर लगा कर मेरे दूध पकड़ लिए. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 04:49 PM
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मनीष ने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया, उसने मुझसे चूतड़ों को ऊपर करने को कहा. मैंने कर दिए. उसने अपना लंड मेरी चूत में पीछे से घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे दोनों मम्मों को पकड़ कर मसलने लगा. पीछे से उसका लंड मुझे और भी मोटा लग रहा था. मेरी चूत फट जाएगी ऐसा मुझे लगने लगा. मैं फिर से कराहने लगी- आहह ओह्ह ओह्ह मां मर गईईई … आह … कोई तो बचाओ आहह … इस जालिम से. मैं जितना भी कराहती, मनीष उतना ही जोर से धक्का मार देता. कुछ देर बाद मुझे उसने फिर से सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख कर मेरी टांगें फैला दीं और लंड अन्दर घुसा दिया. वो मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा. हमें चुदाई करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था. मेरी चूत में अब जलन होने लगी थी. मुझे उसके धक्के असहय से लगने लगे और मैं सोचने लगी कि ये अब जल्दी से झड़ जाए. उसके धक्के अब और तेज होते जा रहे थे, शायद वो अब झड़ने के करीब ही था. मैं भी अब चाहती थी कि मैं भी दुबारा से मनीष के साथ ही झड़ जाऊं क्योंकि उस वक़्त साथ में झड़ने से जो मजा आता है, वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है. मैंने मनीष के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके चूतड़ों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लंड मेरी चूत में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके. फिर मैंने उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगी. मनीष ने भी मेरे चूचुकों को पकड़कर मसलना शुरू कर दिया. उसकी चुदाई बहुत बेरहम थी पर पता नहीं मुझे मजा भी बहुत आ रहा था. ऐसा मजा मैंने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किया था. तभी उसने मेरे मम्मों को कसके पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में घुसा दिया. वो झड़ने लगा. उसका सुपारा फूल कर और भी मोटा हो गया था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा पेट फाड़ कर बाहर आ जाएगा. मैं मस्ती ओर दर्द से कराहने लगी और मैंने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी. उसके लंड से पहले एक पिचकारी और फिर अनगिनत पिचकारियां निकलने लगीं. उसका सुपारा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर फसा हुआ पिचकारी मार रहा था. मैं बता नहीं सकती कि ये अहसास शब्दों में कैसे बयान करूं. मैंने अपने जीवन में अपने पति के साथ इतना सेक्स किया लेकिन ऐसा अहसास कभी नहीं किया था. इसने तो मुझे पागल कर दिया था. हालांकि मुझे काफी दर्द भी हो रहा था पर उसके गर्म गर्म वीर्य की बौछार होते ही मैं भी झड़ने लगी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया. मनीष मेरे ऊपर ऐसे ही काफी देर लेटा रहा. उसका सुपारा अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. ये अहसास मैंने पहली बार किया. मैंने मनीष से पूछा तो उसने बताया- मेरे साथ यह हमेशा होता है इसलिए मेरी बीवी प्रिया उसके साथ खुश नहीं रहती. मेरे लंड का सुपारा कुत्तों के जैसे फूल जाता है और उसकी चूत में दर्द होने लगता है. उस समय हम दोनों को ही होश नहीं था कि ये हमने क्या किया. बाद में जब मुझे होश आया तो मैं उठकर रोने लगी कि ये क्या हुआ. अगर मेरे गर्भ में बच्चा ठहर गया तो मैं क्या करूंगी. हम दोनों का ही नशा उतर चुका था. अब हमें अहसास हो रहा था कि हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. मनीष भी अब हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा- जीजी माफ कर दो, पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं- मनीष हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी. ऊपर से तुमने अपना पानी मेरी चूत में ही छोड़ दिया. अब जल्दी से जाओ और एक आईपिल ले कर आओ तब तक मैं इधर सम्हालती हूँ. मनीष नीचे गया तो मेरे ससुर उसे रोककर पूछने लगे- अरे बेटा कहां जा रहे हो. अभी तो खाने का टाइम हो रहा है. खाना खाकर जाना. मैं मन में कहने लगी कि खाना खाकर … उसने आपकी बहू की इज्जत ही खा ली. मनीष मेरे ससुर से बोला- हां बाबू जी, अभी इधर थोड़ा काम है, उसको निपटा कर आता हूं. फिर खाना खाकर ही जाऊंगा. मैं भी जल्दी से बाथरूम गयी क्योंकि उसका वीर्य मेरी जांघों पर बह रहा था. बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत को देखा तो मैं सन्न रह गयी. मेरी चूत एकदम लाल पड़ गयी थी. उस कमीने ने बहुत ही बेदर्दी से पेला था. अब मैंने जल्दी से अपनी चूत की सफाई की और किचन में आकर खाना बनाने लगी क्योंकि मेरे ससुर के खाने का समय हो गया था. फिर अपने ससुर को खाना देकर मैं अपने और मनीष के लिए रोटियां सेंकने लगी. मैं मन में सोचने लगी कि ये गलत हुआ या सही. इतने में ही मनीष वापस आ गया. वो सीधा किचन में ही आ गया और उसने मुझे वो टेबलेट दे दी. वो वहीं खड़ा हो गया. जब हम दोनों की नजर मिली तो मैं बहुत शर्मा गयी. मनीष भी बहुत शर्मा रहा था. फिर वो बोला- मैं जा रहा हूँ. मैं- खाना खा कर जाना. तो मनीष कहने लगा- जीजी, वो जो मैंने उस समय आपसे तू तड़ाक से बोला, उसके लिए मुझे माफ़ कर देना. वो क्या है कि ये मेरी आदत है. जिससे मैंने आपको भी ऐसे ही बोल दिया. मैं आप लोगो को क्या बताऊं कि मैं उस समय शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी. मेरे ही किचन में मेरी छोटी बहन का पति मुझसे ऐसी बातें कर रहा था. इसको कहते हैं इत्तेफाक. आज मैं इस इत्तेफाक की वजह से पराये मर्द से चुद चुकी थी और वो पराया मर्द अभी भी मेरी किचन में मौजूद था. हम दोनों की इच्छा अब दुबारा से वो सब करने की हो रही थी जो कुछ देर पहले इत्तेफाक से हुई थी. कुछ देर ऐसे ही मनीष मुझसे बात करता रहा. फिर मेरे पास आकर बोला- जीजी, क्या हम लोग एक बार और वही गलती कर सकते हैं? मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. हालांकि मेरी भी इच्छा हो रही थी लेकिन मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. मुझे चुपचाप देखकर मनीष मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर मेरे दूध दबाने लगा. उसने पीछे से ही मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. इस अचानक हुए हमले से मैं हड़बड़ा गयी और मेरे मुँह से एकदम निकल गया कि पहले रोटी तो बना लूं. मेरे मुँह से ऐसा सुनते ही वो तो किचन में ही शुरू हो गया. उसने अपने हाथ मेरे गाउन में घुसा कर मेरे दूध पकड़ लिए और उन्हें बेदर्दी से मसलने लगा. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी- हहहह ओह्ह … आह … रुक जाओ ओह्ह! पर वो अब कहां मानने वाला था … उसने वहीं अपने सारे कपड़े निकाल दिए और पीछे से मेरा गाउन उठाया और अपना लंड मेरी गांड पर घिसने लगा. मैं एकदम डर गई कि अगर इसने गांड में लंड घुसा दिया तो मेरी तो जान ही निकल जाएगी. हालांकि मैं अपने पति से काफी बार गांड मरवा चुकी थी. पर पता नहीं इससे क्या होगा. न बाबा न … इसका जंगलीपन में अभी थोड़ी देर पहले ही देख चुकी थी. मैं गैस बंद करके पलट गई. दूसरी तरफ मैं भी अब खुलकर मजा लेना चाहती थी क्योंकि जब बेवफाई ही करनी है तो खुलकर करो. बात यह भी थी कि जब चूत को पराया लंड मिलता है तो वो भी अच्छे से टसुए बहाती है. मैं पलटकर मनीष से बोली- क्यों प्रिया नहीं देती क्या … या वो भी कहीं दूसरी जगह तुम्हारी तरह मुँह मारती है? मनीष- नहीं, वो बात नहीं है … दरअसल वो जल्दी झड़ जाती है, फिर वो आगे और करने नहीं देती. फिर वो आपकी तरह इतनी खुली भी नहीं है. जैसे आप चूत लंड बोल रही हो, वैसे वो नहीं बोलती. वो शर्माती बहुत है. ऊपर से उसका ऑपरेशन होने के बाद उसकी चूत बहुत खुली खुली सी हो गयी है. मैं मनीष को छेड़ती हुई बोली- एक काम करो, अपनी बीवी को कुछ दिनों के लिए मेरे पति के पास छोड़ दो, वो पूरा खोल देंगे. मनीष- फिलहाल तो मैं उनकी बीवी को अच्छी तरह से खोल देना चाहता हूँ. उसने किचन में ही मेरा गाउन उतार कर फेंक दिया. मैं ‘रुको रुको …’ ही करती रह गयी. उसने मुझे स्लैब के सहारे झुका दिया और पीछे से मेरे दूध दबाते हुए मेरी पूरी पीठ पर चूमने लगा. उसके हाथ मेरे पूरे शरीर पर घूम रहे थे और उसकी जीभ मेरी पीठ से होते हुए मेरे चूतड़ों पर घूम रही थी जिससे मेरी टांगें खुद ब खुद फैलती जा रही थीं. अब उसने मुझे पलट दिया. वो मेरी दोनों टांगों के बीच बैठा था और मेरी चूत में उंगली कर रहा था. उसने पहले मेरी नाभि और पेट में ढेर सारा चुम्बन किए, फिर मेरी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपने दोनों हाथों से मेरी चूत के दोनों होंठों को फैला दिया और अपनी जीभ और दांतों से मेरी चूत और भग्नासा को काटने चाटने लगा. मैं इतनी गीली हो चुकी थी कि क्या कहूँ … ऐसा लगने लगा था, जैसे मेरी जान ही निकल जाएगी. थोड़ी देर बाद उसने मेरी चूत को और फैला दिया, तो मैं कराह उठी. फिर वो अपनी जीभ को मेरी चूत के छेद में धकेलने लगा. उसके इस तरह करने से मैं और भी उत्तेजित हो रही थी और ऐसा लगने लगा था कि अब ये मुझे ऐसे ही झड़ जाने पर मजबूर कर देगा. मैंने उसके सर को पकड़ा और बालों को खींचते हुए ऊपर उठाने का प्रयास करने लगी ताकि हम चुदाई शुरू करें! पर वो मेरी चूत से हिलने को तैयार नहीं था. तभी उसने मेरी दोनों टांगों को उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और अपना मुँह मेरी चूत से चिपका कर चूसने लगा. वो चूत ऐसे पी रहा था जैसे रस पीना चाहता हो. मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने दोनों जांघों के बीच उसके सर को कस कर दबा लिया पर उस पर तो कोई असर ही नहीं था. वो कभी अपनी जुबान को मेरी चूत के छेद में घुसाने का प्रयास करता तो कभी मेरी चूत के होंठों को दांतों से खींचता तो कभी मेरी दाने को काट लेता. मैं कराहती हुई मजे लेती रही. मैं अब उससे विनती करने लगी- आह्ह.. बस करो … और शुरू करो न! पर वो शायद कुछ और ही सोचे बैठा था. मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाई और भलभलाकर झड़ने लगी. मैंने उसके सर के बालों को इतनी बुरी तरह खींच लिया कि उसके कुछ बाल मेरे हाथों में आ गए. मनीष ने मेरा पूरा रस पीकर ही मुझे छोड़ा. मैं हांफ रही थी, मैं वहीं जमीन पर ही बैठ गयी. मेरे बैठने से उसका लंड मेरे मुँह के सामने लटक रहा था. पहली बार मैंने उसका लंड देखा, जिस लंड से में एक बार चुद भी चुकी थी. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया. उसका लंड एकदम काले नाग की तरह फुंफकार रहा था जबकि मेरे पति का लंड गोरा है. इसका लंड था तो मेरे पति की ही तरह, पर थोड़ा टेड़ा था, एकदम केले के तरह. मनीष के लंड की थोड़ी मोटाई भी ज्यादा थी जिससे मेरी उस समय चीखें निकल रही थीं. आखिर मेरा पतिव्रत धर्म भ्रष्ट करने वाले में कुछ स्पेशल होना ही चाहिए. लंड की मोटाई ज्यादा होने से हर औरत को सुख ज्यादा ही मिलता है क्योंकि मोटा लंड जब चूत में घुसता है, तो वो चूत की दीवारों को फैलाता हुआ घुसता है. जिससे चूत को अच्छी रगड़ मिलती है. एक बात और भी थी कि इसके लंड का सुपारा एकदम लाल टमाटर की तरह था. काले लंड पर लाल सुपारा बहुत ही आकर्षक लग रहा था. मैंने लंड को हाथ से पकड़ ऊपर-नीचे किया तो उसका सुपारा खुलने और बंद होने लगा. फिर मैंने सुपारे को बाहर करके अपनी जुबान उसके नुकीले सुपारे के छोटे से छेद पर रख दी. मेरे ऐसा करते ही मनीष के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसने मेरा सिर पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया. मनीष बहुत ही उतावला लड़का था. मैंने उसे हाथ के इशारे से मना किया और उसके सुपारे को अपने मुँह में लेकर ऐसे चूसा, जैसे लॉलीपॉप हो. मनीष की तो जान ही हलक में फंस गयी. मैं उसे और ज्यादा तड़पाना चाहती थी तो मैं सिर्फ सुपारे को मुँह में दबा कर चूस रही थी. कभी उसे दांतों से दबा लेती तो कभी उसके छेद में जीभ को नुकीला करके मनीष को तड़पा रही थी. मनीष ज्यादा देर तक मुझे झेल नहीं पाया और उसने जबरदस्ती मेरे मुँह से लंड निकाल कर मुझे किचन की स्लैब पर झुका दिया. बिजली की फुर्ती से उसने अपना लंड मेरी गांड पर लगा कर मेरे दूध पकड़ लिए. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 04:52 PM
(01-02-2023, 09:10 PM)neerathemall Wrote: 3 घबरा गई इसलिए जल्दी से घूम कर उसे गालियां देने लगी- साले फ्री का माल समझा है क्या … पहले अपनी बीवी की और अपनी बहन की गांड मार, फिर मेरे पास आना! मनीष हाथ जोड़ कर कहने लगा- जीजी आपकी गांड बहुत मस्त है, प्लीज एक बार मार लेने दो! पर मैंने साफ मना कर दिया- नहीं अगर चूत मारनी है, तो आओ … नहीं तो घर जाओ. मनीष मेरे तेवर देख कर डर गया और चूत मारने के लिए राजी हो गया. क्योंकि जो राजी से मिल रहा है, उसे ले ले … नहीं तो वो भी हाथ से चला जाएगा. यह सोचकर उसने मुझे वापस से स्लैब पर झुका दिया और मेरे पीछे आकर अपना सुपारा मेरी चूत के छेद पर भिड़ा दिया. फिर मेरे दूध पकड़ कर उसने एक ही झटके में पूरा लंड घुसेड़ दिया. मेरे मुँह से ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई …’ की चीख निकल गयी. उसका लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ मेरी बच्चेदानी पर जाकर अड़ गया. वो यहीं नहीं रुका, उसने तो एकदम राजधानी एक्सप्रेस चला दी. मैं तो उसके धक्कों की कायल हो गयी. वो पूरा लंड बाहर निकालता और एक ही झटके में पूरा घुसेड़ देता. थोड़ी ही देर में मेरी हालत पतली हो गयी. मैं उसे बेडरूम में चलने को बोलने लगी … क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. फिर मनीष ने ऐसे ही मुझे गोदी में उठा लिया. उसका लंड पीछे से मेरी चूत में था और वो मुझे मेरे ही घर में ऐसे घूम रहा था जैसे मैं उसकी बीवी हूँ. फिर वो मुझे बेडरूम में ले आया और मुझे बेड पर पटक दिया. वो वापस से मेरी चूत पर झुक गया, उसने वापस से मेरी चूत को अपने मुँह में भर लिया. मैं तो बुरी तरह से झनझना रही थी, मेरी हालत बहुत ख़राब हो रही थी. मनीष का मुँह, मैं पैर से … तो कभी हाथ से चूत पर दबाने लगी थी. इसके थोड़ी देर बाद ही वो उठा और अपना खड़ा लंड मेरे होंठों से भिड़ा दिया तो मैंने उसे मुँह में ले लिया. थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद वो उठा और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मेरी टांगों के बीच आ गया. अब उसने मेरी टांगें फैलाईं और अपना लंड मेरी चूत की फांकों में रगड़ने में लगा. मैं- मनीष अब मत तड़पाओ … जल्दी से अन्दर आ जाओ. वो शायद मेरे बोलने का ही इंतजार कर रहा था, उसने मेरी जांघें पकड़ीं और एक ही झटके में पूरा लंड मेरी चूत में समा गया. चूत के गीली होने से एक बार में ही लंड सीधा मेरी बच्चेदानी से जाकर टकरा गया. मेरे मुँह से वापस चीख निकल गई. आज मैं इतना चीख रही थी, जितना मैं अपनी पिछली दस साल की शादीशुदा जिंदगी में नहीं चीखी थी. इसका कारण उसका लंड था, जो जरूरत से ज्यादा मोटा और टेड़ा था और मेरी चूत को फाड़ने पर तुला हुआ था. मनीष जोर जोर से धक्के मार रहा था. मेरी सांसें बड़ी तेज चल रही थीं और मेरे मुँह से तो ‘आह्ह … ह्ह्ह … हुन्न्न … न्न्न … आउच्च … चच्छक …’ की आवाजें निकल रही थीं. वो लगातार मुझे चोदता जा रहा था. करीब दस मिनट बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मैं मनीष से कहने लगी- आआ ह्ह्ह जान … जरराआआ जोअर से आउच्च … च्च्च्च … च्च्छ्ह्हह तेज करो … मजा आआ … रहा आआ आ है. फिर एक जोरदार चीख के साथ मैं उससे लिपट गई और झड़ गई. पर वो अभी तक नहीं झड़ा था, उसका लंड ऐसे ही लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. पता नहीं कितना स्टेमिना था उसक अन्दर! वो तो झटके मारे जा रहा था, कमरे में फच फच की आवाजें आ रही थीं. मेरी कराहें पूरे रूम में गूंज रही थीं. आज तो मैं खूब जोर जोर से चिल्ला रही थी क्योंकि आज मुझे सही मायनों में मर्द का लंड मिला था. थोड़ी देर बाद उसने मुझे पलट दिया और मेरी चूत के नीचे दो तकिया लगा दिए जिससे मेरे चूतड़ पीछे की तरफ उठ गए. मैंने सोचा कि वो पीछे से चोदेगा क्योंकि सुबह भी उसने मुझे ऐसे चोदा था. पर उसकी नियत में कुछ और ही था जिसे मैं बाद में समझ पाई. फिर पीछे से उसने मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल दिया. इसके बाद जो उसने धक्के मारने चालू किए कि क्या बताऊं. मैं तो बुरी तरह से आगे पीछे हो रही थी, मेरे दूध तो ऐसे हिल रहे थे कि लग रहा था कि ये तो नीचे लटक कर अलग हो जाएंगे. मेरे मुँह से बस ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई … ही निकल रहा था. वो साला मेरी चूत की रगड़ाई, मसलाई और पिसाई में लगा था. थोड़ी देर बाद मनीष ने मेरी चूत से लंड निकाल लिया और मेरी गांड के छेद पर अपना लंड को टिका कर धक्का मार दिया. लंड मेरी चूत के पानी से गीला था जिससे उसका सुपारा मेरी गांड के अन्दर चला गया और मेरी तो जान ही गले में आ गई. मेरे मुँह से ‘अहह मम्मी ओह्ह मार दिया जालिम ने आइ … इइइ …. इस्स्सीईई … बाहरर निकालो … उई मर गई …’ बस इतना ही निकल पाया. मैं उस पर चिल्लाने लगी- साले, फ्री का माल समझ रखा है क्या … निकालो बाहर ओह्ह मम्मी मर गयी निकाल कमीने … मेरी गांड फट गई. जा अपनी बीवी की गांड फाड़ … अपनी बहन की गांड फाड़! पर उस पर कोई असर नहीं हो रहा था, वो तो बस मेरी ही गांड फाड़ने पर तुला हुआ था. फिर उसने लंड थोड़ा पीछे किया, तो मेरी जैसे जान में जान आई. पर वो वहीं पर लंड को आगे पीछे करने लगा. वो बोलने लगा- बस जीजी जीजी, बस हो गया. मैं उसे अभी भी गाली दे रही थी. पर अब तक इतनी देर में दर्द थोड़ा कम हुआ ही था कि इस बार उसने पूरा जोर लगा कर करारा धक्का मार दिया. इस अचानक हमले से मैं तो घबरा ही गई और मुँह तकिए में दबा कर चीखने और रोने लगी. ऐसा लग रहा था कि मेरी गांड फट गई और उसमें से खून आने लगा हो. मेरे मुँह से बस ‘आह … आईईइ उई … नहीं … आह्ह बहुत दर्द हो रहा है … उईई उइ … रूको … आह्ह … निकाल लो.’ निकल रहा था. मैं दर्द के मारे आगे को सरकना चाहती थी, मगर मनीष ने मजबूती से मेरी कमर को पकड़ रखा था. मनीष- आह्ह … मज़ा आ गया … जीजी … क्या मस्त गांड है आपकी … आह्ह … बहुत टाइट है … ले आह्ह … संभाल आह्ह. उसने धक्के मारने चालू कर दिए. उस जालिम को बिल्कुल तरस नहीं आ रहा था. थोड़ी देर में दर्द कुछ कम होने लगा और कुछ राहत महसूस होने लगी थी. लेकिन तभी उसने गांड से लंड निकल कर मेरी चूत में घुसेड़ दिया. अब वो बारी बारी मेरी चूत और गांड मार रहा था. करीब आधे घंटे तक मेरी धकापेल चुदाई करने के बाद उसने मुझे पीठ के बल लेटा दिया और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत में लंड पेल दिया. इस आसन में लंड सीधा अन्दर तक चोट करता है. शायद वो झड़ने बाला था. मैंने उसका इरादा समझ कर उसे चूत में निकलने को मना किया. मनीष बोलने लगा- जीजी चूत में पानी निकालने में अलग ही मजा आता है … प्लीज आप टेबलेट खा लेना. मैं- कमीने तू बहुत हरामी है. टेबलेट खा लेना … जैसे मैं कोई रंडी हूँ. लेकिन वो कह तो सही रहा था. औरतों को अगर गर्भ ठहरने का खतरा न हो तो वो हमेशा चूत में ही स्खलन चाहती हैं क्योंकि जब चूत में गर्म गर्म वीर्य की बौछार होती है तो उसका मजा अलग ही होता है. मर्दो को तो मजा आएगा ही क्योंकि लंड को जो अहसास चूत के अन्दर मिलता है, वो कहीं और कहां मिलेगा. फिर उसने मेरे दूध मसलते हुए जो रेल चलाई कि मेरी तो चूत चरमरा गई. उसके हर धक्के पर मेरे मुँह से ‘आह मम्मी मर गयी ईई …’ निकल रहा था. मनीष के मुँह से भी अब मादक आवाजें निकलने लगी थीं- उहह उहह … मेरी जान आह्ह … आह्ह … बस आ गया … आह्ह … ले उहह … उहह. उसने अपने लंड को आखिरी झटका मार कर लंड को मेरी बच्चेदानी के मुँह में फंसा दिया. उसका सुपारा पहले की भांति ओर ज्यादा फूल गया. मेरी जान हलक में फंस गयी. मेरी बच्चेदानी में फंसे उसके सुपारे से वीर्य की पिचकारी निकलने लगी. वीर्य के गर्म अहसास से मेरी भी चूत बहने लगी. हम दोनों ही मस्ती में झड़ने लगे थे. पता नहीं कितनी देर तक वो ऐसे ही झड़ता रहा और उसका वीर्य मेरी चूत से होते हुए मेरी बच्चेदानी को भरता रहा. मैं भी बेसुध सी उसके नीचे पड़ी रही. मेरे दूध उसके भरे हुए सीने से दबे कराह रहे थे. उसका लंड मेरी चूत में फंसा पड़ा था. सही मायनों में आज में जन्नत में थी. लेकिन इस बार जब उसका लंड नहीं सिकुड़ा तो मैं उससे पूछने लगी. मनीष डरते डरते बोला- वो जीजी जब मैं आपके लिए टेबलेट लेने गया था. तो मैंने भी सेक्स की एक गोली लेकर खा ली थी. अब जाकर मेरी समझ में आया कि ये क्यों इतनी देर से मेरी चूत फाड़ रहा था … और अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. मैं उसे गाली देने लगी- कमीने, गोली खाकर मेरी हालत खराब कर दी. मैं सोच रही थी कि इतनी देर से निकल क्यों नहीं रहा. अब निकाल जल्दी से … मेरी चूत जल रही है. मनीष डर गया और उसने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया. मुझे ऐसा लगा कि लंड के साथ मेरी चूत की दीवारें भी बाहर आ जाएंगी. उसका लंड अभी भी लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. जिससे वो भी परेशान था और वो मेरी तरफ बड़ी लाचारी से देख रहा था. मुझे भी उस पर तरस आ गया तो मैंने उसे इजाजत दे दी कि जल्दी से अपना पानी निकाल ले. मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया. वो बहुत ज्यादा खुश हो गया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रखकर मेरी चूत में लंड पेल दिया. मेरे मुँह से कराह निकल गयी. मेरी चूत बिल्कुल सूखी हुई थी जिससे मुझे दर्द हो रहा था. करीब 15 मिनट तक चोदने के बाद भी उसका पानी नहीं निकल रहा था. मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी, मेरी चूत की दीवारें छिल गयी थीं. वो जब लंड बाहर निकाल कर चूत में पेलता तो ऐसा लगता जैसे मेरी चूत फट जाएगी. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मेरी चूत में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी कि अब वो और पिलाई छेल सके. मैंने उसे लंड निकालने को बोला. उसकी इच्छा तो नहीं थी लेकिन मेरी परेशानी समझ कर उसने लंड चूत से निकाल लिया. मैं अब घबरा भी रही थी क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया और उसकी खाल पीछे करके सुपारा मुँह में ले लिया. उस समय मुझे यही सबसे अच्छा तरीका लगा. मैंने अपने होंठों को को उसके लंड पर कस लिया और उसे धीमे धीमे धक्के मारने का इशारा किया. मनीष भी मेरे मेरे मुँह को पकड़ कर मेरा मुँह चोदने लगा. साथ में ही वो मेरे मम्मों को मसलने लगा. मैं भी अब जल्दी से निपटना चाहती थी तो अपने होंठों को कस लिया और उसके सुपारे को चूसने लगी. कभी मैं उसके सुपारे के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगती, तो कभी उसके अंडकोष चूसने लगती. मनीष मेरी चुसाई ज्यादा देर सह नहीं पाया और उसका सुपारा फूलने और पिचकने लगा. मैं समझ गयी कि उसका पानी निकलने वाला है. मैंने जैसे ही उसका लंड मुँह से निकालना चाहा, वैसे ही कमीने ने मेरे मम्मों को मसलते हुए अपना लंड मेरे मुँह में पूरा ठूंस दिया, जिससे उसका सुपारा मेरे हलक में जाकर फंस गया. मेरे मुँह से ‘गु उंगगु …’ की आवाज आने लगी पर उसने मुझे नहीं छोड़ा और उसके सुपारे ने पिचकारियों की बौछार मेरे हलक में छोड़ दी. मैं क्या करती … मुझे मजबूरी में उसका सारा वीर्य पीना पड़ा. कमीने ने एक एक बूंद निकाल कर ही अपना लंड मेरे मुँह से निकाला. फिर वो वहीं बेड पर मेरे पास गिर पड़ा और हांफने लगा. हम दोनों Xxx जीजा साली की ही हालात ऐसी थी कि पूछो मत. कुछ देर बाद मैंने उसे उठाया क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. हम दोनों जल्दी से उठे और बाथरूम जाकर अपने आपको साफ किया. मेरी चुत, गांड और मेरे मम्मों की हालत बहुत ही खराब हो गई थी. फिर मनीष अपने घर चला गया और मैं बिस्तर पर लेट गयी. मेरा पूरा शरीर टूट रहा था, पर मन में एक सुकून भी था. पता नहीं ये कैसा दर्द था कि इसमें भी अपना अलग ही आनन्द था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
02-02-2023, 04:54 PM
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घबरा गई इसलिए जल्दी से घूम कर उसे गालियां देने लगी- साले फ्री का माल समझा है क्या … पहले अपनी बीवी की और अपनी बहन की गांड मार, फिर मेरे पास आना! मनीष हाथ जोड़ कर कहने लगा- जीजी आपकी गांड बहुत मस्त है, प्लीज एक बार मार लेने दो! पर मैंने साफ मना कर दिया- नहीं अगर चूत मारनी है, तो आओ … नहीं तो घर जाओ. मनीष मेरे तेवर देख कर डर गया और चूत मारने के लिए राजी हो गया. क्योंकि जो राजी से मिल रहा है, उसे ले ले … नहीं तो वो भी हाथ से चला जाएगा. यह सोचकर उसने मुझे वापस से स्लैब पर झुका दिया और मेरे पीछे आकर अपना सुपारा मेरी चूत के छेद पर भिड़ा दिया. फिर मेरे दूध पकड़ कर उसने एक ही झटके में पूरा लंड घुसेड़ दिया. मेरे मुँह से ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई …’ की चीख निकल गयी. उसका लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ मेरी बच्चेदानी पर जाकर अड़ गया. वो यहीं नहीं रुका, उसने तो एकदम राजधानी एक्सप्रेस चला दी. मैं तो उसके धक्कों की कायल हो गयी. वो पूरा लंड बाहर निकालता और एक ही झटके में पूरा घुसेड़ देता. थोड़ी ही देर में मेरी हालत पतली हो गयी. मैं उसे बेडरूम में चलने को बोलने लगी … क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. फिर मनीष ने ऐसे ही मुझे गोदी में उठा लिया. उसका लंड पीछे से मेरी चूत में था और वो मुझे मेरे ही घर में ऐसे घूम रहा था जैसे मैं उसकी बीवी हूँ. फिर वो मुझे बेडरूम में ले आया और मुझे बेड पर पटक दिया. वो वापस से मेरी चूत पर झुक गया, उसने वापस से मेरी चूत को अपने मुँह में भर लिया. मैं तो बुरी तरह से झनझना रही थी, मेरी हालत बहुत ख़राब हो रही थी. मनीष का मुँह, मैं पैर से … तो कभी हाथ से चूत पर दबाने लगी थी. इसके थोड़ी देर बाद ही वो उठा और अपना खड़ा लंड मेरे होंठों से भिड़ा दिया तो मैंने उसे मुँह में ले लिया. थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद वो उठा और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मेरी टांगों के बीच आ गया. अब उसने मेरी टांगें फैलाईं और अपना लंड मेरी चूत की फांकों में रगड़ने में लगा. मैं- मनीष अब मत तड़पाओ … जल्दी से अन्दर आ जाओ. वो शायद मेरे बोलने का ही इंतजार कर रहा था, उसने मेरी जांघें पकड़ीं और एक ही झटके में पूरा लंड मेरी चूत में समा गया. चूत के गीली होने से एक बार में ही लंड सीधा मेरी बच्चेदानी से जाकर टकरा गया. मेरे मुँह से वापस चीख निकल गई. आज मैं इतना चीख रही थी, जितना मैं अपनी पिछली दस साल की शादीशुदा जिंदगी में नहीं चीखी थी. इसका कारण उसका लंड था, जो जरूरत से ज्यादा मोटा और टेड़ा था और मेरी चूत को फाड़ने पर तुला हुआ था. मनीष जोर जोर से धक्के मार रहा था. मेरी सांसें बड़ी तेज चल रही थीं और मेरे मुँह से तो ‘आह्ह … ह्ह्ह … हुन्न्न … न्न्न … आउच्च … चच्छक …’ की आवाजें निकल रही थीं. वो लगातार मुझे चोदता जा रहा था. करीब दस मिनट बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मैं मनीष से कहने लगी- आआ ह्ह्ह जान … जरराआआ जोअर से आउच्च … च्च्च्च … च्च्छ्ह्हह तेज करो … मजा आआ … रहा आआ आ है. फिर एक जोरदार चीख के साथ मैं उससे लिपट गई और झड़ गई. पर वो अभी तक नहीं झड़ा था, उसका लंड ऐसे ही लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. पता नहीं कितना स्टेमिना था उसक अन्दर! वो तो झटके मारे जा रहा था, कमरे में फच फच की आवाजें आ रही थीं. मेरी कराहें पूरे रूम में गूंज रही थीं. आज तो मैं खूब जोर जोर से चिल्ला रही थी क्योंकि आज मुझे सही मायनों में मर्द का लंड मिला था. थोड़ी देर बाद उसने मुझे पलट दिया और मेरी चूत के नीचे दो तकिया लगा दिए जिससे मेरे चूतड़ पीछे की तरफ उठ गए. मैंने सोचा कि वो पीछे से चोदेगा क्योंकि सुबह भी उसने मुझे ऐसे चोदा था. पर उसकी नियत में कुछ और ही था जिसे मैं बाद में समझ पाई. फिर पीछे से उसने मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल दिया. इसके बाद जो उसने धक्के मारने चालू किए कि क्या बताऊं. मैं तो बुरी तरह से आगे पीछे हो रही थी, मेरे दूध तो ऐसे हिल रहे थे कि लग रहा था कि ये तो नीचे लटक कर अलग हो जाएंगे. मेरे मुँह से बस ‘अह्ह … ह्ह … ह्ह्ह … धीरे … मर गई … ही निकल रहा था. वो साला मेरी चूत की रगड़ाई, मसलाई और पिसाई में लगा था. थोड़ी देर बाद मनीष ने मेरी चूत से लंड निकाल लिया और मेरी गांड के छेद पर अपना लंड को टिका कर धक्का मार दिया. लंड मेरी चूत के पानी से गीला था जिससे उसका सुपारा मेरी गांड के अन्दर चला गया और मेरी तो जान ही गले में आ गई. मेरे मुँह से ‘अहह मम्मी ओह्ह मार दिया जालिम ने आइ … इइइ …. इस्स्सीईई … बाहरर निकालो … उई मर गई …’ बस इतना ही निकल पाया. मैं उस पर चिल्लाने लगी- साले, फ्री का माल समझ रखा है क्या … निकालो बाहर ओह्ह मम्मी मर गयी निकाल कमीने … मेरी गांड फट गई. जा अपनी बीवी की गांड फाड़ … अपनी बहन की गांड फाड़! पर उस पर कोई असर नहीं हो रहा था, वो तो बस मेरी ही गांड फाड़ने पर तुला हुआ था. फिर उसने लंड थोड़ा पीछे किया, तो मेरी जैसे जान में जान आई. पर वो वहीं पर लंड को आगे पीछे करने लगा. वो बोलने लगा- बस जीजी जीजी, बस हो गया. मैं उसे अभी भी गाली दे रही थी. पर अब तक इतनी देर में दर्द थोड़ा कम हुआ ही था कि इस बार उसने पूरा जोर लगा कर करारा धक्का मार दिया. इस अचानक हमले से मैं तो घबरा ही गई और मुँह तकिए में दबा कर चीखने और रोने लगी. ऐसा लग रहा था कि मेरी गांड फट गई और उसमें से खून आने लगा हो. मेरे मुँह से बस ‘आह … आईईइ उई … नहीं … आह्ह बहुत दर्द हो रहा है … उईई उइ … रूको … आह्ह … निकाल लो.’ निकल रहा था. मैं दर्द के मारे आगे को सरकना चाहती थी, मगर मनीष ने मजबूती से मेरी कमर को पकड़ रखा था. मनीष- आह्ह … मज़ा आ गया … जीजी … क्या मस्त गांड है आपकी … आह्ह … बहुत टाइट है … ले आह्ह … संभाल आह्ह. उसने धक्के मारने चालू कर दिए. उस जालिम को बिल्कुल तरस नहीं आ रहा था. थोड़ी देर में दर्द कुछ कम होने लगा और कुछ राहत महसूस होने लगी थी. लेकिन तभी उसने गांड से लंड निकल कर मेरी चूत में घुसेड़ दिया. अब वो बारी बारी मेरी चूत और गांड मार रहा था. करीब आधे घंटे तक मेरी धकापेल चुदाई करने के बाद उसने मुझे पीठ के बल लेटा दिया और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत में लंड पेल दिया. इस आसन में लंड सीधा अन्दर तक चोट करता है. शायद वो झड़ने बाला था. मैंने उसका इरादा समझ कर उसे चूत में निकलने को मना किया. मनीष बोलने लगा- जीजी चूत में पानी निकालने में अलग ही मजा आता है … प्लीज आप टेबलेट खा लेना. मैं- कमीने तू बहुत हरामी है. टेबलेट खा लेना … जैसे मैं कोई रंडी हूँ. लेकिन वो कह तो सही रहा था. औरतों को अगर गर्भ ठहरने का खतरा न हो तो वो हमेशा चूत में ही स्खलन चाहती हैं क्योंकि जब चूत में गर्म गर्म वीर्य की बौछार होती है तो उसका मजा अलग ही होता है. मर्दो को तो मजा आएगा ही क्योंकि लंड को जो अहसास चूत के अन्दर मिलता है, वो कहीं और कहां मिलेगा. फिर उसने मेरे दूध मसलते हुए जो रेल चलाई कि मेरी तो चूत चरमरा गई. उसके हर धक्के पर मेरे मुँह से ‘आह मम्मी मर गयी ईई …’ निकल रहा था. मनीष के मुँह से भी अब मादक आवाजें निकलने लगी थीं- उहह उहह … मेरी जान आह्ह … आह्ह … बस आ गया … आह्ह … ले उहह … उहह. उसने अपने लंड को आखिरी झटका मार कर लंड को मेरी बच्चेदानी के मुँह में फंसा दिया. उसका सुपारा पहले की भांति ओर ज्यादा फूल गया. मेरी जान हलक में फंस गयी. मेरी बच्चेदानी में फंसे उसके सुपारे से वीर्य की पिचकारी निकलने लगी. वीर्य के गर्म अहसास से मेरी भी चूत बहने लगी. हम दोनों ही मस्ती में झड़ने लगे थे. पता नहीं कितनी देर तक वो ऐसे ही झड़ता रहा और उसका वीर्य मेरी चूत से होते हुए मेरी बच्चेदानी को भरता रहा. मैं भी बेसुध सी उसके नीचे पड़ी रही. मेरे दूध उसके भरे हुए सीने से दबे कराह रहे थे. उसका लंड मेरी चूत में फंसा पड़ा था. सही मायनों में आज में जन्नत में थी. लेकिन इस बार जब उसका लंड नहीं सिकुड़ा तो मैं उससे पूछने लगी. मनीष डरते डरते बोला- वो जीजी जब मैं आपके लिए टेबलेट लेने गया था. तो मैंने भी सेक्स की एक गोली लेकर खा ली थी. अब जाकर मेरी समझ में आया कि ये क्यों इतनी देर से मेरी चूत फाड़ रहा था … और अभी भी मेरी चूत में फंसा पड़ा था. मैं उसे गाली देने लगी- कमीने, गोली खाकर मेरी हालत खराब कर दी. मैं सोच रही थी कि इतनी देर से निकल क्यों नहीं रहा. अब निकाल जल्दी से … मेरी चूत जल रही है. मनीष डर गया और उसने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया. मुझे ऐसा लगा कि लंड के साथ मेरी चूत की दीवारें भी बाहर आ जाएंगी. उसका लंड अभी भी लोहे की रॉड की तरह तना हुआ था. जिससे वो भी परेशान था और वो मेरी तरफ बड़ी लाचारी से देख रहा था. मुझे भी उस पर तरस आ गया तो मैंने उसे इजाजत दे दी कि जल्दी से अपना पानी निकाल ले. मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया. वो बहुत ज्यादा खुश हो गया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रखकर मेरी चूत में लंड पेल दिया. मेरे मुँह से कराह निकल गयी. मेरी चूत बिल्कुल सूखी हुई थी जिससे मुझे दर्द हो रहा था. करीब 15 मिनट तक चोदने के बाद भी उसका पानी नहीं निकल रहा था. मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी, मेरी चूत की दीवारें छिल गयी थीं. वो जब लंड बाहर निकाल कर चूत में पेलता तो ऐसा लगता जैसे मेरी चूत फट जाएगी. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मेरी चूत में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी कि अब वो और पिलाई छेल सके. मैंने उसे लंड निकालने को बोला. उसकी इच्छा तो नहीं थी लेकिन मेरी परेशानी समझ कर उसने लंड चूत से निकाल लिया. मैं अब घबरा भी रही थी क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया और उसकी खाल पीछे करके सुपारा मुँह में ले लिया. उस समय मुझे यही सबसे अच्छा तरीका लगा. मैंने अपने होंठों को को उसके लंड पर कस लिया और उसे धीमे धीमे धक्के मारने का इशारा किया. मनीष भी मेरे मेरे मुँह को पकड़ कर मेरा मुँह चोदने लगा. साथ में ही वो मेरे मम्मों को मसलने लगा. मैं भी अब जल्दी से निपटना चाहती थी तो अपने होंठों को कस लिया और उसके सुपारे को चूसने लगी. कभी मैं उसके सुपारे के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगती, तो कभी उसके अंडकोष चूसने लगती. मनीष मेरी चुसाई ज्यादा देर सह नहीं पाया और उसका सुपारा फूलने और पिचकने लगा. मैं समझ गयी कि उसका पानी निकलने वाला है. मैंने जैसे ही उसका लंड मुँह से निकालना चाहा, वैसे ही कमीने ने मेरे मम्मों को मसलते हुए अपना लंड मेरे मुँह में पूरा ठूंस दिया, जिससे उसका सुपारा मेरे हलक में जाकर फंस गया. मेरे मुँह से ‘गु उंगगु …’ की आवाज आने लगी पर उसने मुझे नहीं छोड़ा और उसके सुपारे ने पिचकारियों की बौछार मेरे हलक में छोड़ दी. मैं क्या करती … मुझे मजबूरी में उसका सारा वीर्य पीना पड़ा. कमीने ने एक एक बूंद निकाल कर ही अपना लंड मेरे मुँह से निकाला. फिर वो वहीं बेड पर मेरे पास गिर पड़ा और हांफने लगा. हम दोनों Xxx जीजा साली की ही हालात ऐसी थी कि पूछो मत. कुछ देर बाद मैंने उसे उठाया क्योंकि मेरे बच्चों के आने का टाइम हो गया था. हम दोनों जल्दी से उठे और बाथरूम जाकर अपने आपको साफ किया. मेरी चुत, गांड और मेरे मम्मों की हालत बहुत ही खराब हो गई थी. फिर मनीष अपने घर चला गया और मैं बिस्तर पर लेट गयी. मेरा पूरा शरीर टूट रहा था, पर मन में एक सुकून भी था. पता नहीं ये कैसा दर्द था कि इसमें भी अपना अलग ही आनन्द था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
21-06-2024, 10:41 AM
Super story
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