01-02-2023, 07:50 PM
गांव में फुफेरे भाई के साथ
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Incest गांव में फुफेरे भाई के साथ
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01-02-2023, 07:50 PM
गांव में फुफेरे भाई के साथ
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
01-02-2023, 07:52 PM
वैधानिक चेतावनी
जिन्हें रिश्तों में चुदाई पढ़ना अच्छा नहीं लगता, उनसे कहना चाहूंगी कि वो लोग अभी कहानी पढ़ना बंद करके कोई दूसरी कहानी को पढ़ सकते हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
01-02-2023, 07:54 PM
मेरा नाम सुहानी चौधरी है. हालांकि मैं हूँ तो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से, पर पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गई थी … तो अब दिल्ली वाली ही हो गयी हूँ.
मैं दिखने में काफी सुंदर और आकर्षक हूँ. मेरा चेहरा भी बहुत प्यारा है, बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम सा है. खिले खिले बाल हैं और शरीर भी अच्छा है, रंग भी गोरा है और फ़िगर भी 34-25-36 का है. बाकी आप सब लोग अपने विचारों में मेरी अब तक छवि बना ही चुके होंगे, तो जैसी मर्जी आए … अपने सपनों में मेरे जिस्म के साथ खेल सकते हैं. मैं और मेरे घरवाले एक पारिवारिक समारोह में एक रिश्तेदार के यहां गांव गए हुए थे. क्योंकि फंक्शन बड़ा था इसलिए काफी रिश्तेदार इकट्ठा हुए थे. यह फंक्शन काफी दिनों तक चलने वाला था. मैं काफी सालों बाद किसी पारिवारिक समारोह में जा रही थी इसलिए सब रिश्तेदारों को थोड़ा थोड़ा भूल भी गयी थी, पर कुछ याद भी थे. वहां पर सब रिश्तेदारों का रुकने का अच्छा प्रबंध किया हुआ था. अच्छी बात ये थी कि सारे बड़े लोगों को रहने के लिए अलग घर में कमरे दिए गए थे. और जो कम उम्र के थे, उनके लिए अलग घर में स्थान दिया गया था ताकि सब समय का भरपूर आनन्द लें. मैं जहां रुकी थी, वहां मेरे सारे रिश्तेदारों के बच्चे और भतीजे वगैरह रुके हुए थे. उन्हीं में एक लड़का था विपिन. वो मेरी बुआ का लड़का था. वो भी अपने घर से इसी भवन में रहने आ गया था जबकि उसका घर इसी गांव में था. विपिन को वैसे तो मैं बचपन से जानती थी. उसकी उम्र उस वक़्त 19 साल के लगभग की थी, जब उसके साथ मेरे जिस्मानी सम्बन्ध बने. जब मैं छोटी थी तो गर्मियों की छुट्टियों में उसके घर में जाती थी. उन दिनों हम दोनों खूब मस्ती करते थे. फिर हम सब बड़े होते चले गए तो आना जाना और बातचीत काफी कम हो गयी थी. क्योंकि मैं उम्र में उससे कुछ साल बड़ी थी इसलिए वो मुझे दीदी कह कर बुलाता था. शुरू में तो हम दोनों ज्यादा बातचीत नहीं कर पाए, पर फिर धीरे धीरे घुलते मिलते चले गए. एक दिन दोपहर में सब लोग खा पीकर एक दूसरे के साथ गप्पें मार रहे थे. धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि विपिन कभी कभी मुझे देखता रहता था और जब वापस उसे देखती, तो नजर इधर उधर कर लेता था. शुरू में तो मैंने ऐसा वैसा कुछ नहीं सोचा, पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि लौंडा नया नया जवान हुआ है … इसलिए शायद वैसे ही आकर्षित होगा. इसलिए मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. धीरे धीरे हम सब साथ में घुलने मिलने लगे. कभी कभी गलती से अगर मेरे शरीर का कोई हिस्सा विपिन से छू जाता तो वो असहज हो जाता था. एक बार ऐसे ही हम दोनों थोड़ा अलग से होकर बात कर रहे थे तो मैंने अंजाने में उसका हाथ पकड़ लिया. फिर तो बस वो हकला हकला कर बोलने लगा. मैंने सोचा शायद शर्मा गया होगा या लड़कियों के साथ ज्यादा घुलता मिलता नहीं होगा. मैंने ऐसे ही बातों बातों में मज़ाक में उससे पूछा- क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है? ये सुनकर तो वो बिल्कुल शर्मा गया और बोला- क्या दीदी आप भी ना, ऐसी कोई बात नहीं है. मैंने मज़ाक भरे लहजे में कहा- अरे चलो कोई बात नहीं, कभी दिल्ली आना. मैं पक्का तुम्हारी गर्लफ्रेंड बनवा दूंगी. वो शर्मा गया. फिर मैंने पूछा- कैसी लड़की पसंद है तुम्हें? उसने थोड़ा शर्माते हुए कहा- बिल्कुल आप जैसी. मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए उसे प्यार से चपत लगा दी और बोली- क्या कहा तुमने! विपिन थोड़ा सकपकाते हुए बोला- अरे मेरा मतलब आप जैसे स्वभाव की. मैंने मज़ाक करते हुए कहा- मेरे जैसी मिलनी तो मुश्किल है, चलो मुझे ही बना लेना. बस जहां मैं बोलूं, घुमा देना और कुछ अच्छा सा खिला देना. उसने बोला- ठीक है दीदी. मैंने आगे बोला- और हां, दिल्ली में गर्लफ्रेंड को दीदी नहीं बुलाते. वो हंस दिया. फिर बस हम इधर उधर की बात करके अपने अपने कमरों में चले गए. धीरे धीरे मुझे ये भी समझ आ गया कि वो मौका पाकर मेरे शरीर के अलग अलग हिस्सों को निहारता रहता है. एक दिन वो दूर बैठा हुआ था तो मैंने देखा कि वो फोन में देखते हुए अपने लंड को हल्के हाथों से सहला रहा है. मैं समझ तो गयी पर सोचा कि चलो इसे डराती हूँ. मैं उसके पास पीछे से गयी और ‘हौ …’ करके डरा दिया. हड़बड़ाहट में उसके हाथ से फोन फर्श पर गिर गया. मैंने नीचे फोन पर देखा, तो उस पर मेरी ही फोटो खुली हुई थी और इधर विपिन का लंड खड़ा हो रखा था. अब मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये क्या कर रहा था. मैंने कहा- ये क्या कर रहे थे? विपिन हड़बड़ाते हुए बोला- दीदी वो मैं … मैं … व्वो वो कुछ नहीं. मैंने थोड़ा गुस्से से में कहा- ये सब क्या है … मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं कि ना समझ सकूँ कि तुम क्या कर रहे थे? पहले तो मुझे गुस्सा आया पर फिर थोड़ी देर बाद मैंने सोचा कोई बात नहीं सुहानी, लड़का नया नया जवान हुआ है, खूबसूरत जिस्म देख कर बहक गया होगा. वैसे भी तू इतनी खूबसूरत है तो क्या फर्क पड़ गया. क्यों बात का बतंगड़ बना रही. मैंने ऐसे ही हल्का सा चांटा मारते हुए कहा- सुधर जाओ बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो … इस सब में मत पड़ो. बस मैं मुस्कुराती हुई वहां से चली गयी. मेरी कोई कठोर प्रतिक्रिया ना होने से विपिन के अरमानों को तो जैसे हवा मिल गयी. अब तो वो जब-तब मेरी फोटो खींचने लगा. मैंने भी कोई ज्यादा विरोध नहीं किया; उल्टा मैं ही उसे छेड़ देती, कभी आंख मार देती, कभी हाथ भींच देती. मैंने सोचा कि लगता है इस बार यहां कुछ एक्शन होने वाला है. ये मैंने महसूस किया है दोस्तो … कि हम सभी के साथ कभी न कभी ऐसा होता है कि जो कुछ भी होने वाला होगा, तो हमें पहले ही उसका आभास सा हो जाता है. मैंने भी फैसला किया कि जो होगा देखा जाएगा. अब तो मैं भी हर छोटे-छोटे काम के लिए विपिन को ही बुलाने लगी. कभी हम बाजार जाते, कभी खेतों में, कभी कभी ऐसे ही घूमने निकल जाते. इधर विपिन भी बाइक पर जाते हुए जानबूझ कर बाइक के ब्रेक जोर से लगा देता था ताकि मेरे बूब्स उसकी कमर से रगड़ जाएं. कभी कभी मैं जानबूझ कर इस तरीके से छेड़ देती थी कि उसकी पैंट में हरकत हो जाए. शुरू में तो मैं ये सब बस उसे छेड़ने के कर रही थी पर धीरे धीरे मुझे इस सब में मजा आने लगा था. हो सकता है आप में से कुछ पाठकों ये सब गलत लगे, पर आप सबमें से कुछ लोगो के साथ तो ऐसा जरूर हुआ होगा कि अपनी रिश्तेदारी में ही किसी पर दिल आ गया होगा … या कम से कम अच्छा तो लगने लगा होगा. खैर … आप वो सब छोड़ कर सिर्फ कहानी का लुत्फ लीजिये. धीरे धीरे हमारे बीच और नजदीकियां आती चली गईं, पर घरवाले और बाकी लोग इस सबसे अंजान थे. एक दिन रात को सब सोने की तैयारी कर रहे थे पर मुझे नींद नहीं आ रही थी. तो मैंने टाइमपास करने के लिए अपने लैपटाप पर एक फिल्म लगा ली और इयरफोन लगा कर फिल्म देखने लगी. एक एक करके ज़्यादातर लोग सो गए. फिर थोड़ी देर में विपिन मेरे पास घुटनों के बल चलता हुआ आया और बोला- दीदी, मुझे भी दिखा दो फिल्म! मुझे नींद नहीं आ रही है. मैंने कहा- ठीक है आ जा. और वो मेरी चादर में ही आ गया. मैंने एक इयरफोन उसके कान में लगा दिया और एक अपने कान में. अब हम दोनों फिल्म देखने लगे. फिल्म के बीच बीच में मेरे और उसके पैर आपस में छुए जा रहे थे पर मैं इस बात से अंजान थी क्योंकि मेरा ज्यादा ध्यान फिल्म में था. हालांकि विपिन को मेरे चिकने पैरों से पैर छू जाने से हल्की हल्की उत्तेजना होती जा रही थी. पर फिर भी वो फिल्म देखने में लगा हुआ था. कुछ देर बाद विपिन बोला- दीदी, क्या मैं आपका हाथ पकड़ सकता हूँ. मैं फिल्म में इतनी व्यस्त थी कि मैंने बिना कुछ पूछे उसके हाथ में अपना हाथ दे दिया. हम दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ था और चादर के अन्दर किया हुआ था. तभी अचानक से फिल्म में एक चुंबन का दृश्य आ गया और उसी के ठीक बाद सेक्स सीन भी, तो हम दोनों एकदम से जाम हो गए. मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी और विपिन भी थोड़ा असहज सा हो कर ठीक से बैठ गया. कुछ पल तो हम दोनों ही सीन को बुत बने देखते रहे. फिर मैंने फिल्म रोकी और बोली- मैं पानी पीकर आती हूँ. मैं उसके ऊपर को होती हुई घुटनों के बल वहां से बाहर निकल गयी और रसोई में पानी पीने चली गयी. मेरे पीछे-पीछे विपिन भी आ गया. मेरे दिमाग में अब भी फिल्म का सीन ही चल रहा था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. विपिन भी मेरे पास आकर पानी पीने लगा. और जैसे ही उसने पानी पीना खत्म किया, पता नहीं मुझे क्या जुनून सा आया, मैंने एकदम से उसको बांहों में भर लिया और जोर से उसके होंठों पर किस कर दिया. किस के बाद कुछ पलों के लिए इसी अवस्था में खड़ी रही. वो भी मुझे चूमे जा रहा था. शायद हम दोनों ही उस वक़्त कुछ नहीं सोच रहे थे, बस जवानी के आग में एक दूसरे के होंठों को चूम रहे थे और हमारी आंखें बंद थीं. कुछ ही पलों में मुझे होश आया कि मैं ये क्या कर रही हूँ और तुरंत हट गयी. इसके बाद मैंने उससे सॉरी कहा और नीचे देख कर शर्मिंदा सी होकर वहां से निकल कर अपनी चादर में आ गयी. कुछ देर में विपिन भी आ गया. मैंने अब फिल्म देखना बंद कर दिया और लैपटाप बंद करके चादर में मुँह देकर सोने की कोशिश करने लगी. मैं काफी कन्फ्यूज थी, शर्म आ रही थी और सोच रही थी कि ये मैंने क्या कर दिया. मैं विपिन को कैसे चूम सकती हूँ. वो मेरी बुआ का लड़का है, एक तरीके से मेरा भाई है. ये गलत है. फिर अगले ही पल ये सोच रही थी कि सही गलत की क्या बात है. किसी ने देखा थोड़े ही है … और उसने मुझे रोका क्यों नहीं. इस घटना के बाद किस्मत हम दोनों को अलग अलग मौकों पर अकेले मिलने का मौका देने लगी. कभी हम दोनों को एक साथ बाज़ार जाना पड़ता, कभी कहीं कभी कहीं. हम दोनों ने उस रात के बारे में कोई बात नहीं की थी और सब कुछ सामान्य चल रहा था. पर अब मुझे उसके साथ थोड़े गंदे वाले ख्याल भी आने लगे थे और शायद उसे भी आते होंगे. मुझे भी वो उस तरह से पसंद आने लगा था और उसे मैं! दो दिन तक तो ऐसे ही चला. फिर एक दिन विपिन के पापा ने उससे बोला- जा बेटा खेत में चला जा, लाइट आ गयी होगी तो 2-3 घंटे तक ट्यूबवेल चला देना. फिर जब खेत भर जाए तो बंद करके आ जाना. मैं भी घर पर बोर हो रही थी तो मैंने कहा- मैं भी चली जाऊं क्या, यहां थोड़ा अजीब सा लग रहा है. फूफा जी बोले- हां हां क्यों नहीं, जाओ खेतों में घूम आओ, तुम शहर के बच्चों को गांव की ताज़ी हवा कम ही मिलती है. मैं हंस दी. फिर फूफा जी ने विपिन से कहा- जाओ बेटा, सुहानी को भी खेत में घुमा लाओ. विपिन ने बाइक स्टार्ट की और मुझे देख कर शैतानी भरी स्माइल दे दी. मैंने भी उसके सिर में हल्का सा चांटा मारा और पीछे बैठ गयी. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
01-02-2023, 08:02 PM
कुछ देर तक तो हम दोनों कुछ नहीं बोले, फिर विपिन मुझे गांव वगैरह के बारे में बताने लगा.
थोड़ी देर बाद हम दोनों खेत में पहुंच गए. उधर सब अपने अपने खेतों में दूर दूर काम कर रहे थे. विपिन ने ट्यूबवेल वाले कमरे का ताला खोल लिया पर गेट नहीं खुल रहा था. मैंने पूछा- क्या हुआ? वो बोला- अरे कुछ नहीं, जंग लगने की वजह से ये दरवाजा फंस जाता है और बहुत जोर लगाने पर खुलता है. खैर … थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद उसने जोर से धक्का लगा कर गेट खोला और ट्यूबवेल चला दिया. फिर उसने ट्यूबवेल की हौदी की तरफ इशारा करते हुए कहा- देखो दीदी, ये होता गांव का स्विमिंग पूल. मैंने कहा- अच्छा, हमारे यहां तो काफी बड़ा होता है. विपिन बोला- यहां ज्यादा बड़ा तो नहीं होता, पर पानी लगातार बहता रहता है. कितनी गर्मी हो रही है, मैं नहा लेता हूँ. मैंने कहा- मैं एक्सट्रा कपड़े नहीं लाई वरना मैं भी नहा लेती. विपिन बोला- अरे दीदी मन है तो नहा लो, यहां कोई नहीं आता. मेरे एक जोड़ी कपड़े अन्दर रखे हैं. आप नहा कर उन्हें पहन लेना. फिर जब ये वाले सूख जाएं तो वापस पहन लेना. पहले तो मैंने ऐसे ही ना-नुकर सी की, पर फिर सोचा कि नहा ही लेती हूँ. विपिन हौदी में उतर गया था. मैं हौदी की दीवार पर चढ़ गयी तो विपिन ने अपना हाथ दिया और मैं भी सूट सलवार पहने ही उसमें उतर गयी. विपिन को कच्छे में देखा तो उसके आधे नंगे शरीर को देख कर मेरे अन्दर के अरमान भी हल्के हल्के जागने लगे थे और शायद उसके भी अरमान जग रहे थे. एक दो बार तो मेरा मन हुआ कि उसे जोर से किस कर लूं पर मैंने अपने आप को रोका हुआ था. फिर हम दोनों मस्ती करते हुए नहाने लगे. हम दोनों दुनिया की फिक्र छोड़ कर खूब मस्ती से ट्यूबवेल के पानी में नहाए. लगभग आधा घंटा के बाद मैं नहा चुकी तो वहां से निकल गयी और ट्यूब वेल वाले कमरे में कपड़े बदलने चली गयी. मैंने गेट हल्का सा उड़काया और अपने सारे गीले कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गयी. फिर मैंने विपिन के कपड़े उठाए और शर्ट पहन ली. फिर हल्का सा गेट खोल कर विपिन को अपने कपड़े सुखाने के लिए पकड़ा दिए. अब मैं बाक़ी के कपड़े पहनने के लिए देखने लगी. मैंने देखा पर मुझे पैंट नहीं मिल रही थी. मैंने विपिन को आवाज देकर पूछा- पैंट कहां है? उसने बोला- वहीं दरवाजे के पीछे तो टंगी है. मैंने कहा- नहीं है. उसने बोला- अरे होगी वहीं … और कहां जाएगी. मैंने बोला- नहीं है बाबा, यहां सिर्फ शर्ट थी. विपिन एकदम से बोला- अरे सॉरी दीदी … वो तो पापा शायद घर ले गए होंगे धुलवाने के लिए! मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- ये क्या मज़ाक है … अब मैं यहां क्या पहनूं? विपिन बोला- कोई बात नहीं, आप थोड़ी देर ऐसे ही अन्दर कुंडी लगा कर बैठो … एक घंटे में कपड़े सूख जाएंगे, तब पहन कर बाहर आ जाना. उस वक़्त मैं मजबूर थी क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था. मैं उस कमरे के अन्दर एक चारपाई पर सिर्फ शर्ट में बैठी हुई थी. कुछ देर बाद लाइट चली गयी तो कमरे में अंधेरा हो गया. मैं थोड़ा घबरा सी गयी तो मैंने विपिन को आवाज लगाई. उसने कहा- कोई बात नहीं दीदी, मैं यहीं बाहर हूँ, अभी आ जाएगी लाइट. लगभग 5 मिनट बाद लाइट भी आ गयी. मैंने विपिन को बता दिया कि लाइट आ गयी है. उसने कहा- ट्यूबवेल चला दो, अपने आप नहीं चलेगा. मैंने कहा- मुझे चलाना नहीं आता. उसने कहा- अरे जो मैं बता रहा हूँ, वो बटन दबा दो. मैंने कहा- मुझे नहीं पता, यहां इतने सारे तार हैं, मुझे बिजली से डर लगता है. विपिन बोला- ठीक है, मैं चला देता हूँ … आप गेट खोलो. मैं बोली- अरे ऐसे कैसे गेट खोल दूं, मेरे कपड़े दो. उसने बोला- कपड़े तो अभी बिल्कुल गीले हैं. आप ऐसा करो गेट के पीछे छुप जाओ, मैं नहीं देखूंगा और मोटर भी चला दूंगा. मैंने कहा- अरे लाओ गीले कपड़े ही पहन लूंगी, कोई बात नहीं. विपिन बोला- आप डरो मत, एक मिनट भी नहीं लगेगा और काम हो जाएगा. मैंने सोचा कि थोड़ी सी देर की बात ही है, खोल देती हूँ गेट. मैंने कहा- ठीक है. पर देखा कि गेट के पीछे का हैंडल टूटा हुआ था. मैंने कहा- मैं क्या पकड़ कर खोलूं, गेट का हैंडल तो टूटा हुआ है, कुछ पकड़ने को है ही नहीं. उसने कहा- अरे हां वो हैंडल लगवाना था, कोई बात नहीं, आप कुंडी खोल दो. मैं बाहर से धक्का लगा कर खोल दूंगा. मैं गेट की आड़ में खड़ी हो गयी और कुंडी खोल दी. विपिन ने अभी भी अपने सारे कपड़े उतार रखे थे. वो सिर्फ कच्छे में अन्दर आ गया. अन्दर आ कर उसने कहा- गेट पकड़ कर रखना वरना हवा से बंद हो जाएगा. मैं पीछे छुपे-छुपे ही गेट पकड़ लिया और विपिन मोटर चलाने लगा. मैंने अपनी शर्ट को नीचे सरकाने के लिए जैसे ही हाथ से पकड़ा मेरे हाथ से गेट छूट गया और धड़ाम से बंद हो गया. विपिन भागा भागा आया और गेट पकड़ने की कोशिश की, पर तब तक वो फंस गया था. विपिन बोला- ये क्या किया दीदी, अब फंस गया ना गेट. एक पल के लिए हम दोनों भूल गए कि हम दोनों ही आधे नंगे है. फिर थोड़ी देर बाद सब सामान्य हुआ तो विपिन ने बोला- कोई बात नहीं, आप चारपाई पर बैठो. मैं कुछ जुगाड़ करके गेट खोलता हूँ. पर ऐसे माहौल में ध्यान तो भटकता ही है. मैं विपिन के आधे नंगे शरीर को देख रही थी और वो मेरी नंगी टांगों को. कुछ देर तक ऐसे ही हम एक दूसरे को देखते रहे. मैंने कहा- प्लीज ऐसे मत देखो ना, मुझे शर्म आती है. विपिन बोला- तो आप भी तो मत देखो न, मुझे भी शर्म आती है. पर ना चाहते हुए भी हम दोनों बार बार एक दूसरे को ही देख रहे थे. अब तक मुझे समझ आ चुका था कि आज कुछ कांड होने जा रहा है. फिर हम दोनों ही वहां पड़ी चारपाई पर थोड़ा सा दूर दूर बैठ गए. काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे और एक दूसरे को देख देख कर हल्के हल्के उत्तेजित होते रहे. फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं खुद ही उसकी तरफ धीरे धीरे खिसकने लगी और वो मेरी तरफ. अब हम दोनों काफी नजदीक बैठे थे. मैं ऊपर उसकी आंखों में देख रही थी और वो मेरी आंखों में. तभी मेरा हाथ अपने आप उसकी छाती और बाजुओं पर फिरने लगा, मानो मेरा शरीर मेरे बस में नहीं था और अपने आप चल रहा था. धीरे धीरे मैं थोड़ा सा उचक कर उसके होंठों के पास अपने होंठ ले गयी. एक पल के लिए मैंने उसकी आंखों में देखा और बस अगले ही पल हमारे होंठ मिल गए. हम दोनों की आंखें बंद हो गईं. इस वक़्त हम दोनों दुनिया की फिक्र से दूर, एक दूसरे के होंठों को किस कर रहे थे बिना कुछ बोले, बिना कुछ सोचे समझे. हम बस एक दूसरे के होंठों को हल्के हल्के दबा कर छू रहे थे. फिर मैंने आंखें खोलीं और हल्के हल्के मुस्कुराते हुए नीचे हो गयी. उधर विपिन भी मुस्कुरा रहा था. हमारे बीच रिश्तेदारी की दीवार गिर चुकी थी. विपिन बोला- दीदी … मैंने उसकी बात काटते हुए कहा- स्श्ह … बस तुरंत अपने होंठ उसके होंठ पर रख कर जोर से दबाए और जोर जोर से चूमने लगी. अब विपिन भी जोर जोर से मेरे होंठों को अन्दर बाहर करते हुए चूस रहा था और हम ऐसे ही कुछ देर तक एक दूसरे में खोये हुए किस करते रहे. आखिर जब किस करके मन भर गया, तब हम अलग हुए. मेरे अन्दर हवस की आग लगी हुई थी और उधर विपिन का लंड भी पूरा खड़ा ही चुका था. विपिन मुझे देख कर एक बार मुस्कुराया और बस मुझे जोर से धकेल कर दीवार से सटा दिया. अब वो ऊपर नीचे हो होकर जबरदस्ती मेरे होंठों को किस करने लगा. मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी और कमरे का माहौल और गर्माता जा रहा था. करीब दो मिनट तक वो ऐसे ही मुझे दबाए जोर जोर से चूमता रहा. वो बीच बीच में बोलता रहा- आह … आहह … दीदी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ … उमम्ह … पुच्छह … पुच्छ … आपको पता नहीं, मैंने इस पल का कितना इंतज़ार किया है … मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी कि एक दिन मैं आपके इतने करीब आ जाऊंगा. वो किसी प्यासे की तरह मेरे होंठों को जोर जोर से चूस चूस कर अपनी प्यास बुझाता रहा. इधर उसका जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ रहा था और उसका लंड मेरे चूत को रगड़ रगड़ कर मेरी प्यास बढ़ा रहा था. जब उसका मेरे होंठों को चूस कर पूरा मन भर गया, तो वो एक पल को रुका. हमने एक दूसरे की आंखों में देखा और फिर से एक दूसरे के चेहरे को, गर्दन को, कंधों को किस करते हुए आगे बढ़ने लगे. अब तो कोई शंका ही नहीं थी कि आगे क्या होना है. विपिन ने खुद ही मेरी शर्ट के बटन एक एक करके खोलना शुरू कर दिए. जैसे ही उसने ऊपर के 3 बटन खोले, मुझे एक बार फिर से ख्याल आया कि ये मैं क्या कर रही हूँ. ये मेरा रिश्ते में भाई है, मैंने इसके साथ ऐसे कैसे कर सकती हूँ. मैंने कहा- रुको विपिन, हमें यहीं रुक जाना चाहिए, मत भूलो मैं तुम्हारी बहन हूँ. प्लीज रुक जाओ. मैंने उसके हाथ अपनी शर्ट के बटन पर ही रोकने चाहे. पर विपिन इस कदर जोश में था कि उसने कहा- आज मत रोको दीदी, वरना मैं मर जाऊंगा, आज हम दोनों सिर्फ एक लड़का और लड़की हैं और हमारा रिश्ता सिर्फ जिस्मों का है. मुझे आपका जिस्म भोगना है. आज मत रोको मुझे. इसी के साथ ही उसने मेरी शर्ट के दोनों हिस्सों को पकड़ा और जोर से फाड़ कर पीछे को खोल दी. इसके साथ ही मेरा आगे का शरीर उसके आगे नंगा हो गया. मैंने शर्म के मारे अपने बूब्स को हथेलियों से ढक लिया और टांगें भी आपस में मोड़ कर सिकोड़ सी लीं ताकि विपिन से अपनी जवानी छुपा सकूँ. विपिन मेरे करीब आया और धीरे से अपनी नंगी बहन के कंधों पर हाथ रख कर बोला- दीदी, इधर देखो मेरी आंखों में. मैंने शर्माते हुए उसकी आंखों में देखा. उसने बड़े प्यार से कहा- दीदी, आप घबराओ मत … हमारी ये बात किसी को पता नहीं चलेगी. सब हम दोनों के बीच ही रहेगा. मैंने भी हल्का सा सिर सहमति में हिलाया. फ़िर विपिन ने मेरी हथेलियों को पकड़ा और धीरे धीरे उन्हें जबरदस्ती नीचे करने लगा. शुरू में मैंने हल्का सा विरोध किया, पर धीरे धीरे उसने मेरे दोनों हाथ नीचे कर ही दिए. फ़िर विपिन धीरे धीरे अपने हाथ मेरे बूब्स पर ले गया और उन्हें हल्के हल्के दबाने लगा. इसके साथ ही उसने मेरी चूचियों को हल्के हल्के मसलना भी शुरू कर दिया. कुछ देर बाद मैं भी पूरे जोश में आ गई थी तो उसका पूरा साथ दे रही थी. अब मैंने अपनी शर्ट भी पूरी उतार दी थी और उसके सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थी. इस वक़्त विपिन मेरी छाती को चूम रहा था और मेरे दूध सख्त होते जा रहे थे. उधर विपिन के कच्छे में उसका लंड फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था. मैंने खुद को विपिन से झटके से अलग किया. इससे विपिन एकदम से चौंक गया. उसने पूछा- क्या हुआ दीदी? मैंने एक पल को बहुत ही गंभीर भाव से उसे देखा, फिर अगले ही पल मैं भी मुस्कुरा दी और घुटनों के बल बैठ गयी. मैंने उसका कच्छे एक झटके में नीचे सरका दिया. उसका लंड एकदम से हाथी की सूंड की तरह ऊपर नीचे झूलते हुए मेरे सामने खड़ा था. मैंने ऊपर विपिन की आंखों में देखा और मेरी आंखों में देख कर पूछा- दीदी, मैंने सुना है कि शहर में लड़कियां लड़कों का लंड मुँह में ले कर चूस लेती हैं. ऐसा सच है क्या? मैंने एक शैतानी भरी मुस्कुराहट दी और कहा- तुम्हें क्या लगता है? बस ये कह कर मैंने उसका लंड पकड़ लिया, लंड की जड़ से ऊपर तक हाथ फेरा और उसे एक दो बार प्यार से सहलाया. फिर अचानक से उसके लंड को किस कर दिया. विपिन की तो मानो जान ही ऊपर को निकल गयी. उसने जोर की आहह … भरी. मैंने थोड़ा कसके मुट्ठी बंद करके उसके लंड पर पीछे को दबाया तो उसके लंड का सुपारा बाहर आ गया. मैंने कहा- देखते जाओ शहर में क्या क्या करती है लड़कियां … मैंने अपने बंद होंठ उसके लंड पर दबाते हुए सुपारे को होंठों से रगड़ा और धीरे धीरे लंड मुँह में लेते हुए चूसने लगी. विपिन तो सातवें आसमान पर उड़ने लगा था, उसकी आंखें बंद हो गई थीं और उसके मुँह से बस ‘आहह … स्स … आहह … दीदी … आहह … बहुत मजा आ रहा है … आहह … दीदी …’ की आवाजें निकल रही थीं. इस वक्त वो बड़ी मस्ती भरी आहें और कराहें अपने मुँह से निकाल रहा था. मैंने धीरे धीरे लंड चूसने की रफ्तार बढ़ा दी और उसकी उत्तेजना बढ़ती चली गयी. दोस्तो, आपको मेरी नंगी बहन की कहानी में मजा आ रहा होगा. यदि आपका लंड खड़ा हो गया है तो अभी हिलाना मत. विपिन जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
01-02-2023, 08:07 PM
कुछ पल बाद ही उसके लंड में लहरें सी उठने लगीं.
मैं समझ गयी कि अब ये झड़ने वाला है. मैंने तुरंत ही उसे मुँह से निकाला, पर विपिन ने ‘आहह … दीदी आ … आहह … कहा और मेरा सिर पकड़ कर अपने लंड पर पूरा दबा दिया. उसी पल उसका वीर्य मेरे मुँह में ही झड़ने लगा, उसकी तेज तेज पिचकारियां मुझे अपने मुँह में महसूस हो रही थीं और कुछ ही पलों में मेरे होंठों के किनारे से वीर्य रिस कर भी आने लगा था. इसके साथ ही विपिन थोड़ा सा ठंडा पड़ गया और लंड को मुँह से निकाल कर साइड में चारपाई पर बैठ गया. मैं भी मुँह साफ करके पानी से कुल्ला करके उसके बगल में बैठ गयी. हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही नंगे चारपाई पर बैठे रहे, पर किसी के पास कुछ कहने को नहीं था. विपिन और मैं दोनों ही खुश थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. मैंने थोड़ा गंभीर से स्वर में कहा- ये हमने क्या कर दिया, सॉरी मैं अपने आपको रोक नहीं पायी और ये सब हो गया. वो कुछ नहीं बोला. मैंने फिर से कहा- अब जो हो गया सो हो गया, समझ लो कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों इस हादसे को भूल जाते हैं. विपिन ने कहा- ये क्या बात हुई दीदी, अभी तक कुछ हुआ ही नहीं. इसमें क्या भूलने वाला है? मैंने कहा- क्यों, अब क्या करना रह गया है. विपिन थोड़ा चिढ़ते हुए सा बोला- अच्छा मज़ाक कर लेती हो दीदी, सेक्स तो हुआ ही नहीं. मैंने कहा- ओह … तो अब तुम्हें वो भी करना है. विपिन बोला- हां दीदी, प्लीज दीदी, मान जाओ ना! मैंने कहा- नहीं यार, यहां नहीं … कोई आ जाएगा तो मुसीबत हो जाएगी. विपिन बोला- यहां कोई नहीं आएगा. घर पर सब लोग व्यस्त हैं. और हम दोनों तो बता कर आए हैं ना! मैं जानबूझ कर उसको परेशान करने के लिए नकली नखरे करती रही और उसे कुछ ऐसे ही टालती रही. लगभग 20-25 मिनट बाद मैंने कहा- ये सब चीज की पर्मिशन नहीं लेते, जो करना होता हैं, कर देते हैं. मैंने मुस्कुराते हुए उसे आंख मार दी. विपिन ये सुन कर खड़ा हो गया और मैं भी खड़ी हो गयी. फिर तो बस एक पल एक दूसरे की आंखों में देखा और अगले ही पल हम दोनों एक दूसरे के होंठों को जोर जोर से किस करने लगे. अपने अपने होंठ खोल खोल कर हमारी जीभें आपस में लड़ने लगीं. धीरे धीरे हमारे जिस्म फिर से गर्माने लगे. अब हम दोनों किस करते हुए हाथ से एक दूसरे के जिस्म को ऊपर नीचे छूते हुए किस कर रहे थे. मैंने किस करते करते ही फिर से विपिन का लंड पकड़ लिया और उसको हाथ से ऊपर नीचे करके सहलाने लगी. इससे लंड धीरे धीरे सख्त होने लगा. कमरे में हमारे चुम्बनों की आवाजें आ रही थीं ‘पुच्छह … पुच्छह … च्प्प … उमम्ह च्प्प …’ अब तो कोई ऐसी बात बची ही नहीं थी कि क्या होना है. मैंने ही आगे बढ़ते हुए विपिन से कहा- चारपाई पर बैठ जाओ. वो तुरंत बैठ गया. मैं उसके आगे घुटनों के बल बैठी और उसकी और देख कर मुस्कुराई. फिर उसका लंड हाथ में भर कर एक बार ऊपर से नीचे तक सहलाया. मैंने उसे हल्के से किस किया और बिना कुछ कहे उसे अपने मुँह के अन्दर लेकर ऊपर नीचे करके चूसने लगी. विपिन ने पीछे चारपाई पर हाथ टिका लिए और आंख बंद करके मुस्कुराते हुए ‘उम्म … उम्म …’ करते हुए इस पल का आनन्द लेने लगा. उसका लंड मेरे मुँह में ही सख्त होने लगा, मैं चूसते हुए उसे जीभ से भी सहला रही थी जिससे उसे और जोश आ रहा था. लगभग एक मिनट में ही वो सख्त हो कर पूरा तैयार था. मैंने लंड चूसना रोका और खड़ी हो गयी. मैं बोली- आगे भी मुझे ही बताना पड़ेगा या तुम भी कुछ करोगे? विपिन मुस्कुराया और बोला- नहीं दीदी अब मैं अपने आप कर लूंगा. आप बैठो … अब मेरी बारी. मैं उसकी जगह बैठ गयी और वो मेरी जगह खड़ा हो गया. मैंने अपनी टांगें खोल कर चौड़ी कर दीं और उसको इशारा कर दिया. अब विपिन घुटनो के बल बैठ गया और मेरी चूत को देखने लगा. फिर उसने धीरे से अपना मुँह पास किया और चूत को किस कर दिया. मुझे बहुत मजा सा आया. फिर मुझसे रुका नहीं गया तो मैंने उसके सिर को बालों से पकड़ा और अपनी चूत पर दबा दिया. मैं मादक भाव में बोली- चूत चाट न चूतिए. मेरे दबाये दबाये ही विपिन ने अपनी जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया. वो कुत्ते की तरह ऊपर नीचे जीभ फेरते हुए मेरी प्यासी चूत चाटने लगा और मुझे बहुत मजा आना शुरू हो गया. मैंने उसका सिर पकड़ा हुआ था और मेरी आंखें बंद थीं. मैंने अपने सर को ऊपर को किया हुआ था. अब मेरे मुँह से मादक कराहें निकलना शुरू हो गई थीं ‘उम्महह … उम्महह … चाट साले स्सी … स्सी …’ मेरी चूत अन्दर से पूरी गीली होकर चिकनी हो चुकी थी और सेक्स के लिए ऐसी उतावली हो रही थी, मानो उसमें चीटियां काट रही हों. फिर अचानक से मैंने उसे रोकते हुए कहा- बस अब और नहीं, अब तो चोद ही दो मुझे … अब मैं और नहीं रुक सकती. मैं तुरंत चारपाई पर सीधी होकर लेट गयी और बोला- अब जल्दी से शुरू करो विपिन. मेरी चूत में आग लग गई है. विपिन बोला- अभी लो दीदी. वो मेरी टांगों के ऊपर आकर घुटने मोड़ कर बैठ गया. इसके बाद वो मेरे ऊपर झुकता चला गया और घुटने और कोहनी के बल मेरे ऊपर आकर चढ़ सा गया. उसका ज़्यादातर वजन मेरे ऊपर नहीं, चारपाई पर था हालांकि हमारे जिस्म बिल्कुल चिपके हुए थे. पहले उसने मेरे होंठों को किस किया और फिर हाथ नीचे ले जाकर अपने लंड को पकड़ कर मेरी चूत का रास्ता ढूंढने लगा. जैसे ही उसकी लंड मेरे चूत के दरवाजे पर छुआ, मेरे मुँह से हल्की सी ‘स्सी …’ की आवाज निकली. मैंने कहा- हां बस यहीं पर … आंह डाल दो जल्दी से. उसका लंड सामान्य से हल्का सा बड़ा था और लंड का मुँह खाल से बाहर था. धीरे धीरे उसने एक दो बार ऊपर नीचे चूत का मुहाना रगड़ा और उसके दरवाजे में सटा कर हल्के हल्के ऊपर को सरकने लगा. धीरे धीरे उसका लंड मेरी चूत को खोलता हुआ उसमें समाने लगा. मुझे हल्का सा दर्द भी हुआ इसलिए मैं उसकी आंखों में देखती हुई अपने होंठ खोल कर हल्के हल्के से ‘आहह … आहह … स्सी … स्सी …’ करने लगी. मेरी चूत चिकनी होने की वजह से उसका लंड धीरे धीरे मेरी चूत को खोलता हुआ उसमें समाता जा रहा था. विपिन भी हल्के हल्के से ‘आहह … आहह …’ कर रहा था क्योंकि उसे भी अन्दर डालने में थोड़ा दम लगाना पड़ रहा था. आखिरकार उसका पूरा लंड अन्दर चला गया और हम दोनों के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई. मैंने हां में सिर हिलाते हुए उसे इशारा किया कि शुरू कर दे अपनी बहन की चूत चुदाई. फिर तो बस उसने घुटनों के बल आगे पीछे सरकते हुए मेरी चुदाई शुरू कर दी. मेरे मुँह से हल्की तेज सी ‘आहह … आहह … आ … आ … आहह … स्सी …’ की कामुक सिसकारियां निकल रही थीं. उसके हर धक्के के साथ पट्ट पट्ट की आवाज आती थी और लंड चूत के अन्दर पेलते हुए आगे पीछे हिल रहा था. इससे उसका पूरा लंड आधे से ज्यादा बाहर आ जाता और फिर अंत तक अन्दर जाकर टकरा जाता. हम दोनों 5 मिनट तक इसी पोजीशन में चुदाई करते रहे. फिर जब थोड़ा थक गए तो उसने लंड निकाल लिया और साइड में लेट कर हम दोनों थोड़ा सुस्ताने लगे. जब आराम हो गया तो वो बोला कि दीदी कैसा लगा मेरा लौड़ा? मैंने कहा- अच्छा है, पर इतना आराम से क्यों कर रहे हो, थोड़ा तो जंगलीपना दिखाओ न … मेरा पहली बार नहीं है, तो डरो मत, थोड़ा तेज तेज करो. उसमें ज्यादा मजा आता है. विपिन बोला- तो ठीक है, अब आप खड़ी हो जाओ और दीवार की तरफ झुक जाओ. मैंने सोचा कि अब आएगा मजा, ये साला कुतिया बना कर भी चोदना जानता है. मैं तुरंत ही वैसे खड़ी हो गयी. विपिन पीछे से अपना लंड सहलाता हुआ आया. वो बोला- अब देखो मेरा जंगलीपना. उसने मेरी चूत पर लंड रखा और मेरे कंधों को पकड़ लिया. मेरी चूत लंड का वार झेलने को रेडी हो गई थी. उसने कहा- तैयार हो? मैंने पीछे देखते हुए कहा- हां, पेलो. उसने सिर्फ इतना कहा- तो ये लो. और उसने बड़ी तेज झटके से अपना लंड मेरी चूत में अंत तक पूरा घुसा दिया. मुझको ऐसी उम्मीद नहीं थी कि साला एक बार में पूरा पेल देगा. मेरे मुँह से जोर की ‘आहह … मादरचोद … फाड़ेगा क्या?’ निकल गई. विपिन हंसने लगा और बोला- अभी कैसे फटेगी चूत … अभी तो लंड अन्दर घुसेड़ा है … अब आप देखो दीदी मेरा जंगलीपना. अब विपिन ने जोर जोर से मुझे आगे पीछे धक्के मारते हुए चोदना शुरू कर दिया और मेरी जोर जोर की ‘आहह … आहह … मर गई आई … मम्मी रे आई … धीरे आहह … स्सी …’ की चीखें निकलने लगी थीं. उसके धक्के मेरे पूरे जिस्म को हिला रहे रहे थे. जैसे ही वो तेज़ी से लंड अन्दर डालता तो उन झटकों से मेरे बूब्स थर-थर हिलने लगते. चार पांच झकों के बाद मैं मस्त हो गई और बोलने लगी- आंह चोदते रहो जोर जोर से आहह … आहह … बहुत मजा आ रहा है! विपिन भी ‘आहह … आहह …’ करते हुए पूरी ताकत से मुझे चोद रहा था. हम दोनों के पसीने छूट गए थे, पर चुदाई फुल स्पीड पर चालू थी. जब सांस बुरी तरह फूल गई तो मैंने ही कहा- रुक जाओ प्लीज … मेरी सांस फूल गयी है. विपिन भी थक गया था तो धीरे धीरे चोदते हुए रुक गया. इस बार हम ज्यादा देर नहीं रुके और एक मिनट तक आराम करके फिर से चुदाई को तैयार थे. मैं चारपाई पर बैठी हुई थी, तो विपिन एकदम से मेरे पास आया और मेरी टांगें हवा में उठा दीं, जिससे मैं चारपाई पर कमर के बल लेट गयी. विपिन ने अपना लंड मेरी चूत से सटाया. मैंने कहा- अब रुकना मत जब तक मैं झड़ ना जाऊं! विपिन ने अपना लंड एक झटके में अन्दर डाला और पट्ट-पट्ट जोर जोर से चोदने लगा. वो पूरा लंड बाहर निकालता और फिर पूरा अन्दर डाल देता. मैं भी खुल कर चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी. मैंने चिल्लाती हुई कह रही थी- आहह … आहह … उम्म … फाड़ दे साले आह … स्सी … चोद मां के लौड़े साले विपिन अपनी बहन को चोदता रह … आह रुकना मत … बहुत मजा आ रहा है. थोड़ी देर में विपिन बोला कि बस दीदी मेरा होने वाला है. मैंने कहा- तू चोदता रह … मैं भी झड़ने वाली हूँ. उसने मुझे चोदने में अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी. हम दोनों पसीने से तर हो गए थे. मेरे पूरे जिस्म में आनन्द की लहरें उठ रही थीं. नस नस में आनन्द भर गया था. मैं ‘आहह … आहह … बस्स … बस्स … हां और तेज … और तेज …’ कर रही थी. बस सैलाब आने को हो गया था. मैंने उसको अपनी बांहों में जकड़ कर रोक लिया और ऊपर को गांड उचकाते हुए लंड अन्दर लिए ही फच्छ फच्छ करके झड़ने लगीं. लंड के किनारे से मेरा पानी भी निकलने लगा और मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी. विपिन भी अब भी तेज तेज भरी हुई चूत में फच्छ फच्छ धक्के मार रहा था और अगले कुछ पलों के बाद वो एकदम से रुका और जोर से ‘आहह …’ करते हुए मेरी चूत में ही झड़ गया. उसके लंड ने मेरी चूत में पिचकारी भर दी और वो भी मेरे ऊपर आकर गिर गया. हम दोनों जोर जोर से हांफ रहे थे. कुछ देर तक हम ऐसे ही पड़े रहे. जब सांसें काबू में आ गईं तो तब उसने अपना मुरझाया हुआ लंड निकाला और साइड में खड़ा हो गया. विपिन बोला- अरे दीदी, आपकी चूत से तो मेरा दूध निकल रहा है. मैंने मज़ाक में कहा- चलो अच्छा है अब मैं तुम्हारे बच्चे की मां बन जाऊंगी. इससे विपिन के चेहरे का रंग उड़ गया और वो बोला- ये क्या बोल रही हो दीदी? मैंने खिलखिला कर हंसते हुए कहा- अरे तू डर मत, मैं मज़ाक कर रही थी. मैं घर जाकर गर्भनिरोधक गोली खा लूंगी. विपिन बोला- यार, आपने तो मेरी गांड ही फाड़ दी. मैंने कहा- साले फाड़ तो तूने मेरी दी. विपिन बोला- तो क्या हुआ … आपको मजा भी तो आया ना! मैंने कहा- हां ब्रो सिस फक़ में मजा तो बहुत आया. फिर मैंने ट्यूबवेल के पानी से खुद को साफ किया. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
16-01-2024, 04:31 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
21-03-2024, 03:34 PM
(01-02-2023, 07:52 PM)neerathemall Wrote: जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
22-03-2024, 09:58 AM
Nice story
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