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Adultery शर्मिली भाभी
#1
शर्मिली भाभी




thanks 
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
हमारा परिवार एक बहुत ही आदर्श परिवार है सभी बड़े उँचे विचारों वाले लोग हैं। केवल मुझे छोड़ कर, हमारी मताजी की सोच है कि लड़्की हमेंशा अपने से छोटे घर की लानी चाहिये ताकि वो घर में असानी से निभा सके और अपनी लड़्की को हमेशा अपने से बड़े घर में देनी चाहिये, ताकि वो सुखी रह सके। सो मेंरे परिवार ने अपने उच्च विचारों के अनुसार मेंरे बड़े भाई की शादी एक अत्यन्त ही गरीब घर की लड़्की से कर दी उनकी इतनी भी हैसियत नहीं थी कि वो लोग अपनी लड़्की को ढंग के दो जोड़ी कपड़े भी दे सके। लेकिन गरीब होने के बाद भी वे बड़े खुद्दार लोग थे कभी किसी को अपनी गरीबी क अह्सास नहीं होने देते थे। उन्होने अपनी लड़्की को जैसा कि आम मध्यम वर्गीय गरीब परिवारों में शिक्षा दी जाती है वो सभी शिक्षा दि थी जैसे हर परिस्थिति में रहना , सब के साथ तालमेल रखना परिवार में कभी किसी कि चुगली न करना आदि आदि। वैसे भी मेंरी भाभी के परिवार की आर्थिक स्थिती मध्यम ही रही है बचपन से उनके परिवार ने अनेंक आर्थिक विषमताएं देखी है सो परिवार के लोग वैसे ही बड़े शालीन एवं विनम्र हैं।

भाभी कालेज भी पैदल ही आना जान करती थी उनके कालेज में भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे और जो थे वो भी कुछ खास नहीं थे, गरीबॊं के वैसे भी ज्यादा दोस्त नहीं होते है।धन की की कमी इंन्सान को जीवन मे बड़ा ही संकुचित एवं आत्मविश्वास विहिन बना देते है। मेंरी भाभी के साथ भी कुछ ऎसा ही था वो बहुत ही सकुचा कर रहती थी अन्यन्त अल्प बात करती थी । किसी भी बात का "जी" "अच्छा" "ठीक है" ऎसे ही जवाब देती थी बहुत ही संभल कर बोलती थी उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकि बातों से कोई भी सदस्य नारज ना होने पाये। कभी कुछ गलत हो जाये तो भी शिकायत नहीं करती थी।शायद उसे अभी अपनी तीन जवान बहनों कि शादी कि चिंता मन ही मन सता रही थी इसलिये उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकी वजह से उसके परिवार का नाम खराब ना हो और उसकी बहनॊं कि शादी में कोई अड़्चन ना आये। गरीब मध्यम वर्गीय परिवारों के लिये तो वैसे भी ईज्जत ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मेंरी मां तो बड़ी खुश थी ऎसी शर्मिली बहू को पाकर।

मुझे अपनी भाभी कि जो बात सबसे ज्यादा पसंद थी वो था उसका शानदार जिस्म। गोरा बदन,सुंदर चेहरा,बेह्तरीन चिकनी एवं मोटी जांघे,बाहर की तरफ़निकलती हुई गोल गोल मोटी मोटी गांढ़ और मदहोश करने वाली रसीली शानदार उभारों वाली उसकी दोनों छातियां। मैं तो जब भी उसे देखता मेरा लंड़ खड़ा हो जाता और मुझे ऎसी ईच्छा होती कि मै इसे तुरंत नंगी कर ड़ालू और उसकी रसीली छातियों में भरे हुए जवानी के रस को जी भर कर पिऊ। लेकिन ये एक सच्चाई थी कि वो रसीली छातियां और मखमली चूत मेंरी नही थी। ये सोच कर मेंरा मन अपने भाई के प्रति थोड़ी देर के लिये घृणा से भर जाता।

मेंरा भाई वैसे भी उस बेह्तरीन जवान पुदी का मजा नहीं ले पाता था क्योंकि उसकी नौकरी ही ऎसी थी महिने में बीस दिन तो बो बाहर ही रहता था। बचे हुए दस दिनों में सात दिन उसे शहर में अपनी टिम के साथ घूमना होता था।अब तीन दिन में नंगा नहायेगा क्या ? और निचोडे़गा क्या? सो किसी-किसी महिने तो भाभी बिन चुदी ही रह जाती थी। कभी कभी मुझे ऎसा विचार आता कि भाभी के लिये ऎसे विचार मन में लाना गलत है, लेकिन जैसे ही भाभी मेंरे साम्ने आती मेंरी कामवासना मेंरी अन्तरात्मा पर हावी हो जाती और मैं फ़िर से उत्तेजित हो जाता और उसको चोदने के खयाल में डूब जाता । मेंरे लिये तो भाभी को चोदना अब एक मिशन बन चुका था, मैं मन ही मन अपनी भाभी के उपर न्योछावर हो चुका था और उसके बेह्तरिन जिस्म का दिवाना बन गया था। अब तो रात दिन मेंरे मन में भाभी को चोदने का ही खयाल रहता था।

भाभी का शर्मिलापन मेंरे लिये काफ़ी सुखद और मेंरी योजना में काफ़ी सहायक था। मैने तय कर लिया कि ऎसे भाभी के जिस्म को चोदने का खयाल कर के मुठ्ठ मारने से कुछ हासिल नही होने वाला उसे पाने के लिये प्रयास करना पड़ेगा। वैसे भी जिस इंसान के लिये इस बेह्तरीन पुदी को घर में लाया गया था उसे तो इसे ठीक से देखने की भी फ़ुर्सत नहीं थी चोदने की बात तो बहुत दूर थी। दौलत और जवानी दोनों ही उपभोग करने पर हि सुख देते हैं अन्यथा दोनों बोझ बन कर रह जाते है। दौलत और औरत की जवानी दोनों को ही अपनी रक्षा के लिये मजबूत कंधो के सहारे की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कोई भी लूट कर ले जा सकता है। मेंरे घर में भी जवानी की दौलत खुले आम घूम रही थी और उसका रखवाला गायब था। सो मैंने उसे लूटने का फ़ैसला कर लिया था। बस प्रयास करना था और अवसर हासिल करना था ।
अब मैने भाभी के ज्यादा से ज्यादा करीब रहेने का विचार कर लिया। जब भी भाभी घर में अकेले मिलती मैं उससे काफ़ी सट कर या करीब खड़े रहने का ही प्रयास करता, और मौका मिलते ही मैं उसके गदराए बदन पर कहीं पर भी हाथ लगाने से नहीं चुकता और ऎसे जाहिर करता जैसे ये सब अन्जाने में हो गया है। भाभी के अकेले मेरे सामने से गुजरते ही मैं उसके रसीले बदन को निहरने लगता विशेषकर उसकी शानदार उभरों वाली रसीली छातीयों को । ऎसा नहीं है कि उसे ये सब पता नहीं था उसे अब मुझ पर कुछ कुछ शंका होने लगी थी, और मैं चाहता भी यही था कि तुझे कुछ समझ तो आए मेंरी जान । मै अकेले में जब भी उससे बात करता तो मेंरा ध्यान पूरी तरह से उसकी अनछुई कड़्क जवानी के रस से भरपूर छातीयों पर ही रहता । झिनी साड़ी के भीतर से दिखने वाले उसकी छाती के क्लिवेज का तो मैं दिवाना बन गया था। और मैं भी उसे बुरी तरह से घूर कर उसे पूरी तरह से समझा देता था कि मैं तेरे कौन से अंग को निहार रहा हूं। वो बुरी तरह से झेंप जाती थी,लेकिन हाय रे उसकी शरम वो चाह कर भी मेंरे सामने अपना पल्लु ठीक नहीं कर पाती थी, और मैं उसके शर्म का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए उसके जिस्म को घूरने का पूरा मजा लेने लगा।और इसी शर्म का लाभ उठाते हुए मैं उसकी जवान बुर का रस भी पीना चाह्ता था।

इसी तरह से कुछ दिन बीत गये और मेंरे मन का ये ड़र निकल गया कि कहीं ये मेंरी हरकतों को घर में मेरी मां या बहन को न बता दे। इस बीच दो-तीन बार भाई का फ़ॊन आया लेकिन उसकी बातों से कहीं नही लगा कि मेंरी गदराई स्वप्न सुंदरी ने उसे इस बारे में कुछ भी बताया हो ।

उसने एक बार मुझ से फ़ॊन पर कहा कि अपनी भाभी से खाली काम ही करवाता है कि उसे घूमाने भी ले जाता है, देख वो बहुत चुप रहने वाली लड़्की है उसे कोई तकलीफ़ भी होगी तो वो अपने मुंह से नही बोलेगी शरम और झिझक तो जैसे वो दहेज में लाई है। मां को तो अपने पूजा पाठ और किटी पार्टी से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती होगी, और दिया (मेंरी छोटी बहन) को अपने कालेज,ट्यूशन,पढाई और दोस्तों से। तू अक्सर घर के काम से बाहर बजार वगैरे जाता है तो कभी ले जाय कर उसे साथ में , इसी बहाने उसे शहर के बारे में कुछ तो जानकारी होगी और उसका भी मन लगा रहेगा। मैं तो मन ही मन बड़ा खुश हो गया, उसने तो जैसे मेंरे मुह की बात छीन ली मुझ से। मैने भी फ़ौरन हां कर दी और भाभी के
सामने ही झूठ बोल दिया कि भैया मैं तो कहता हूं लेकिन वो ही नहीं चलती तो मैं क्या करुं, आप ही बोल दो भाभी को ऎसा कह कर मैंने भी को फ़ोन पकड़ा दिया। लेकिन वाह री भाभी उसने एक बार भी भाई से ये नहीं कहा कि मैंने तो ऎसा कभी बोला ही नहीं। वो तो बस जी, हां, अच्छा ऎसे ही बोलती
रही। फ़िर उसने फ़ोन मां को दिया, भाई ने मां को भी वही बात बोली जो उसने मुझ से कही थी, मां ने हंसते हुए कहा तुझे वहां बैठ कर भी चैन नहीं है क्या ? सारा दिन क्या रश्मी (मेंरी भाभी) के बारे में ही सोचता है, काम में मन लगता है कि नहीं ? तू चिंता न कर बेटा मैं तुषार से कह दूंगी वो कभी घर के काम से बाहर जायगा तो कभी रश्मी को ले जाया करेगा। मां ने भाभी की तरफ़ देख कर व्यंग से कहा मुझे तो शक है कि इसके मुंह मे जुबान भी है या नहीं। खैर तू छोड़ बेटा इन सब बातों को हम सब सम्भाल लेंगे मैने तेरे लिये मिर्ची का अचार बना कर रखा है, अगली बार जब तू आयेगा तो ले जाना अपने साथ। खाने का ध्यान रखता है कि नहीं ? जवाब मे उसने कहा तू चिंता न कर मां लेकिन इस बार चेवड़ा और लड्डू ज्यादा देना मेरे कमीने दोस्तों को ये कुछ ज्यादा पसंद है और ये समय से पहले ही खतम हो जाते हैं। मां ने खिलखिलाते हुए कहा ठीक है बेटा इस बार मैं ज्यादा बना दुंगी।
और सुन इस बार तुझे इन चीजों में नया स्वाद मिलेगा क्योंकि इस बार ये सब तेरी गूंगी गुड़ीया से बनवाउंगी। इसी तरह मां बेटे में घरेलु बातें होती रही।

मां जब फ़ोन पर बात कर रही थी तो उसकी पीठ हमारी तरफ़ थी। इसलिये मैं बेखौफ़ भाभी से लगभग सट कर खड़ा था और मेंरा हाथ भाभी के पंजो से टकरा रहे थे। और वो किंकर्तव्यमूढ़ अपना सर जमीन की तरफ़ कर के खड़ी थी। उसके इस निर्विरोध रवैये से मेंरा हौसला बढा और मैने और थोड़ा जोर से उसके हाथों अपना हाथ टकराने लगा। अब मैं पूरी तरह से भाभी से सट कर खड़ा हो गया और मेंरा पूरा हाथ भाभी से चिपक गया । उसके नाजुक बदन की गर्मी से मेंरा लण्ड़ खड़ा हो गया। अब मैने अपना हाथ भाभी की जांघो से धीरे धीरे टकराना शुरु कर दिया। वो पूर्ववत खड़ी रही। अब मैने थोड़ी और हिम्मत करते हुए हाथ हल्का सा पिछे करते हुए उसकी गांड़ पर अपना हाथ मारने लगा। कुछ सेकण्ड़ तक उसकी गांड़ में हाथ टकराने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी गांड़ पर ही रख दिया और धीरे से अपना हाथ घूमाते हुए अपना पंजा उसकी गांड़ पर रख दिया। पंजा उसकी गांड़ पर रख्ते ही वो थोड़ी चिंहुकी और हौले से मेंरी तरफ़ देखा। लेकिन मैं पूरी तरह अन्जान बन कर खड़ा रहा और मां बेटे के फ़ोन पर बात को सुनने का और जबरन मुस्कुराने का नाटक करता रहा। मेंरे लिये ये लिका छिपी अब बर्दाश्त के बाहर होते जा रही थी मैं जल्द ही नतीजा हासिल करना चाह्ता था लेकिन अपने जोश पर होश का कंट्रोल जरुरी था। खैर मैने थोड़ा और प्रयास करते हुए उसकी दांई गांड़ से अपना हाथ घुमाते
हुए उसकी बाई गांड़ पर घुमाते हुए उसके कमर और पीठ पर घुमाते हुए उसके कंधो पर रख दिया जैसे दोस्तों के कंधो पर रख्ते है।
मेंरे हाथ उसके कंधो पर ठीक उसकी ब्रा की पट्टी पर थे,अब मैंने अपनी ऊंगलियों को ढीला छोड़ दिया और अब वो ठीक उस जगह के उपर थी जहां से उसके स्तन काउभार शुरु हो रहा था। बेचारी, अब समझ कर भी अनजान बनने की उसकी बारी थी। घर में मेंरे रुतबे और मान को देखते हुए और अपने घर की हालत तथा एक शादी लायक बहन सहित तीन बहनॊं के घर में बैठे रहने की परिस्थिती तथा पति के लगातार घर से दूर रहने के हालात और अपनी स्वयं की शारीरिक जरुरत इन तमाम बातों ने उसके सामने ऎसे हालत पैदा कर दिये थे कि शायद अभी चुप्पी साधे रखने में ही उसकी भलाई थी। उसकी बेबसी का अब मैं भरपूर मजा ले रहा था, मुझे इस बात का पूरा यकीन हो गया था कि अकेले में शायद भले ही वो मुझे कुछ कहने का साह्स करे लेकिन सब के सामने मुझे कहने या मेंरे बारे में कुछ भी बुरा बोलने का साहस उसमें नही था।

इन बातों का अहसास होते ही और तमाम परिस्थिती अपने पक्ष में होते देख मैंने अपने मन में अपार शांति का अनुभव किया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#3
मैने एक बार अपनी मां की तरफ़ देखा वो अभी भी पूरी तल्लीनता से भाई से बात कर रही थी, उसकी तरफ़ से आश्*वस्त हो कर मैंने अब पूरी निर्भिकता से अपनी भाभी की तरफ़ देखा उसकी नजरें पूरी तरह से जमीन पर गड़ी हुई थी, अब मैने उसके स्तनों पर नजर ड़ाली, किसी अनहोनी की आशंका में उसकी सांसे कुछ तेज हो गई थी और वो जरा जोर से गहरी सांस ले रही थी। गहरी सांसे लेने के कारण उसके स्तन उपर नीचे हो रहे थे, जब उसके दोनों स्तन उपर की तरफ़ उठते तो मेंरी उंगलियां उसके स्तनों के उभार शुरु होने वाले स्थान से काफ़ी नीचे तक अपने आप चली जाती और उसके स्तन का काफ़ी हिस्सा उससे छुआ जाता।मैं अपनी भाभी के शरीर से उसी तरह चिपका हुआ था जैसे लोहा चुंबक से। लेकिन इस तरह स्तन के छुआने से मेंरे लिये खुद पर कबू रखना मुश्किल हो रहा था। कहीं मां के सामने कुछ गड़्बड़ न हो जाय इसलिये मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया और फ़िर से उसे रश्मी भाभी की बड़ी बड़ी नरम गांड़ के पास स्थापित कर दिया, चार पांच बार हल्के से अपने हाथ को उसकी गांड़ से टकराने के बाद मैंने अपना हाथ हिलाना बंद कर दिया और मेंरा हाथ अब उसकी गांड़ से चिपक गया।
३०-४० सेकण्ड़ तक उसी तरह से अपना हाथ का उपरी भाग उसकी गांड़ पर रखने के बाद मैंने फ़िर से अपने हाथ को घुमा लिया और अपनी हथेली को उसकी गांड़ से लगा दिया, अब उसकी गांड़ मेंरी हथेली में थी। अब तक उसे पूरी तरह से यकीन हो चुका था कि मैं उसके शरीर से खेल रहा हूं। और यही मैं चाहता भी था।

इस बीच मेंरी मां और भाई के बीच फ़ोन पर संवाद जारी था

मां - बेटा राज क्या तुम इस बार छुट्टी में थोड़े ज्यादा समय के लिये घर आ सकते हो?
राज - क्यों मां ?
मां - दरअसल मैं तुम से तुषार के विवाह के बारे में बात करना चाहती हूं?
राज - लेकिन मां अभी तो वो पढ़ रहा है न?
मां - हां, लेकिन समय जाते कहां पता चलता है? और फ़िर ये उसका अखीरी साल ही तो है न कालेज का? और फ़िर तुम्हारे पापा ने कह दिया है कि कालेज खत्म करने के बाद तुषार
उनका बीमा का काम ही संभालेगा सो नौकरी की चिंता जैसी कोई बात उसके साथ नहीं है।
राज - तो तुमने कोई लड़की देखी है उसके लिये?
मां - हां और मुझे तो बेहद पसंद भी है और तुषार को भी।
राज - अच्छा!! कौन है मां वो खुशनसीब लड़की?
मां - सुधा। अगर तुन्हें कोई आपत्ति न हो तो।
राज ने लग्भग चिखते हुए कहा - क्या!!!!! सुधा!!!!! , भला ममममुझे क्या आपत्ति हो सकती है। रश्मी से पूछो।
मां - अरे हमारी तरफ़ से बात तो बही चलाएगी न। लेकिन तू साफ़ साफ़ बता कि तुझे अपनी साली सुधा से तुषार की शादी में कोई ऎतराज तो नहीं है न?
राज - क्या मां , भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, बल्कि ये तो रश्मी के लिये भी बहुत अच्छा होगा उसे यहां अपनी बहन की कंपनी मिल जायेगी। और वो काफ़ी भले लोग है, और मैं सुधा को अच्छी तरह से जानता हूं काफ़ी सरल और शांत लड़की है वो। मां मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

इधर मां के मुंह से अपनी बहन और मेंरी शादी की बात सुन कर मेंरी गुलबदन रश्मी जान बुरी तरह चौंक गई और आश्*चर्य से कभी मां की तरफ़ तो कभी कभी मेंरी तरफ़ देख रही थी। और मैंने भी मौके का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अपनी हसीना की गांड़ को जरा जोर से दबा दिया। और उसकी गांड़ में हल्के से हाथ घुमाते हुए उसकी अंडरवियर को तलाशते हुए अपना हाथ उसकी अंडरवियर के उभार पर रख दिया। अब वो अपने प्रति मेंरी हवस को समझ चुकी थी लेकिन अब तो वो चाह कर भी न तो मेंरे घर में और ना ही अपने घर में कुछ बता सकती थी। मेंरे एक ही दांव ने उसको चारों खाने चित्*त कर दिया था और वो लाजवाब हो गई थी।
अचानक उसने मां से कहा कि उसे भाई से कुछ बात करनी है, मां ने भी तत्काल अपनी बात खतम करते हुए फ़ोन उसे दे दिया जैसे ही फ़ोन उसने लिया मेरा दिल धड़कनेलगा और मेंरी गांड़ फ़टने लगी कि ये क्या बोलेगी। उसने फ़ोन हाथ में लेकर भाई से कहा-

रश्मी भाभी- आप कब आ रहे हैं यहां?
राज - अभी तो नहीं, और इस बार आने में थोडा़ देर हो सकती है क्योंकि यहां काम कुछ ज्यादा है। इस बार केवल एक दिन के लिये ही आ पाउंगा क्योंकि उसके तुरंत बाद मुझे छ: महिने की ट्रेनिंग के लिये बंगलौर जाना है और उस दौरान हम अपना परिवार साथ नही रख सकते। ट्रेनिंग के खतम होने के बाद मुझे २ वर्ष के लिये किसी भी शहर मे काम करना होगा। वहां तुम साथ रह सकती हो लेकिन तुम तो देखती हो न कि मै कैसे महीने भर तक घर बाहर ही रहता हूं। सो, पराए शहर में मैं तुम्हें कई दिनों तक अकेले रखना ठीक नहीं समझता कम से कम अपने परिवार में तुम सुरक्षित तो हो। रश्मी मेंरे नौकरी में अच्छी जगह बनाने के लिये तुम्हें इतना सहयोग तो देना पडे़गा।
रश्मी भाभी - ठीक है जैसा उचित समझें किजीये। आने के पहले फ़ोन करना मत भूलना, अच्छा रखती हूं। ऎसा कह कर उसने फ़ोन रख दिया।

उसके फ़ोन रखते ही मेंरी जान में जान आई, उसके फ़ोन लेते समय मुझे ये भय सता रहा था कि कहीं वो रिश्ते के लिये मना न कर दे और मेंरे बारे में भाई को न बता दे। अब उसकी तरफ़ से मेंरा मन सदा के लिये निर्भय हो चुका था।

मां तो भाभी को फ़ोन देते ही यह कह कर चली गई कि उसे बहुत नींद आ रही है। इधर भाभी ने फ़ोन रखते ही मेंरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा और कहा सुधा इनती पसंद थी तो मुझे क्यों नहीं बताया, मैने मन में सोचा अगर तुझे बताता तो शायद बात बिगड़ भी सकती थी। लेकिन मैं मुस्कुराते रहा और कहा वो मेंरी मां है और मेंरे बात कतने से ही मेंरे इशारों को समझ गई आप शायद नहीं समझ पाती, उसने कहा कर के तो देखते एक बार। मैंने तपाक से जवाब दिया आप कहां समझती है मेंरे इशारे। वो बुरी तरह से झेंप गई और अपना सर निचे कर दिया और कहा ऎसा नहीं है इतनी मूर्ख और नादान भी नहीं हूं मैं समझने वाले सारे ईशारे समझ ही समझ जाती हूं, अब जिन्हें समझना ही नहीं है ऎसे ईशारों को समझने से क्या मतलब। मैने भी तत्काल कहा मुझे क्या पता आप कौन से इशारे समझती हैं? और कौन से नहीं इसीलिये मैने मां से कहा । उसने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल एक व्यंग भरी नजर से मुझे देखा और हौले से मुस्कुरा दिया। फ़िर उसने धीरे से कहा चलिये अब आपके साथ ड़बल रिश्ता होने जा रहा है बहुत बधाई आपको। मैने मन में कहा ड़बल नहीं मेंरी जान ट्रिपल रिश्ता कायम होने जा रहा है। लेकिन प्रत्यक्षत: केवल थैंक्स भाभी कहा। उसने कहा मुझे बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूं गुड़ नाईट, और ऎसा कह कर वो धीरे धीरे सीढीयों की तरफ़ बढने लगी, चलते वक्*त उसकी बड़ी बड़ी गांड़ हौले हौले हील रही थी और उसकी टाइट साड़ी से उसकी अंड़रवियर का उभार साफ़ दिख रहा था जिसे देख कर मेंरा लण्ड़ बुरी तरह से खड़ा हो गया। मेंरी किस्मत में अभी कुछ दिन और तड़फ़ना लिखा था, उसने उपर जाते हुए एक तिरछी नजर मुझ पर ड़ाली और हमारी नजर मिलते ही अपनी नजर निचे कर दिया लेकिन वो अपनी हल्की मुस्कान को मुझ से नहीं छिपा सकी और वो तेजी से सीढीयां चढते हुए अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
मैं भाभी को अपने कमरे में घुसते तक देखता रहा जैसे ही वो कमरे में गई मेंरे दिमाग में तुरंत ये विचार आया कि अब ये नंगी हो कर अपने कपड़े बदलेगी। ये विचार आते ही मैं तत्काल हरकत में आया और दौड़ते हुए उपर की तरफ़ भागा। कमरे के हाल की सीढीयां तीसरी मंजिल मे मेरे कमरे के पास जा कर खतम होती थी, सीढीयों के खतम होते ही सीधे हाथ की तरफ़ मुड़ने पर २-३ कदमों के बाद मेंरे कमरे का दरवाजा था, और उसके बाद थोड़ा आगे जा कर फ़िर सीधे मुड़ने पर ४-५ कदमों के फ़ासले से मेंरी गुलबदन हसीना रश्मी जान के कमरे का दरवाजा, और उसके २-३ कदमों के बाद एक छोटी सी २ टप्पे वाली सीढी थी जिसे लांघ कर छत पर जाया जा सकता था। उसी छत पर भाभी के कमरे की एक मध्यम आकार की खिड़की थी जिस पर गर्मी से बचाव के लिये कूलर लगा कर रखा था।
चूंकि अभी गर्मी के दिन नहीं थे इसलिये कूलर का उपयोग नहीं होता था और बंद ही रहता था। मैने अपने खाली समय में छत में जा कर उस कूलर के पिछले हिस्से से उसमें लगी खस को काफ़ी कुछ निकाल दिया था और एक जगह से छेद जैसा बना दिया था, कूलर के उसी छेद से मैं भाभी के कमरे की हर चीज को असानी से देख सकता था। मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ़ गया और फ़िर वहां से तेज चाल चलते हुए रश्मी के कमरे दरवाजे के पास जा कर खड़ा हुआ और दरवाजे पर कान लगा कर सुनने की कोशीश करने लगा कि अंदर मेंरी जानेमन क्या कर रही है? मुझे अंदर उसके चहल कदमी की अवाज आई और फ़िर कुछ ही क्षणों में मुझे उसके कपड़ों की अलमारी के खुलने की अवाज आई। मैं तत्काल वहां से हट कर छत में चला गया। वहां घुप्प अंधकार छाया हुआ था बादलों की वजह अकाश में तारे भी नहीं दिख रहे थे।

मैं सीधे कूलर के पास गया और उसके खस को हटा कर बनाए हुए छेद में आंख गड़ाकर देखने लगा। मुझे अंदर का दृष्य उसके कमरे की ट्यूब लाईट की रोशनी के कारण साफ़ दिखई दे रहा था, उसने अलमारी से अपना नाइट गाउन बाहर निकाल कर आल्मारी को बंद किया और वो पलंग की तरफ़ गई वहां उसने अपना गाउन रखा और और उसने अपने पल्लु को हटा कर नीचे गिरा दिया अब उसका ब्लाउस साफ़ दिखाइ दे रहा था अब उसने अपने लहंगे में फ़ंसी साड़ी को भी निकाल कर अलग कर दिया । वो अब केवल लहंगे और ब्लाउस में खड़ी थी । तभी अचानक वो चलते हुए कूलर की तरफ़ बढी मैने देखा चलते वक्त उसके वक्ष बेहतरीन अंदाज में हिल रहे थे। कूलर के ठीक नीचे टी.वी. था वो उसके पास आइ और टी.वी. चालू कर दिया। अब वो t.v. देखते हुए ही अपना हाथ अपने ब्लाउस की तरफ़ ले गई और उसने उसका पहला बटन खोल दिया अगर छत में कूलर न होता तो मेंरे और उसके बीच केवल एक हाथ का ही अंतर था। इतने पास से उसका बदन देखने से मेंरा मुंह सूखने लगा और लंड़ ने अंदर बगावत कर दी अब मुझे उसको संभालना मुश्किल हो रहा था। जैसे ही उसने अपने ब्लाउस का पहला बटन खोला मुझे उसकी क्लीवेज साफ़ दिखाई देने लगी अब लंड़ बुरी तरह से कड़क हो गया था और उसे संभालने में मुझे दिक्कत होने लगी मैने उसे सीधा करने के लिये जैसे ही खड़ा होने की कोशीश की उत्तेजना के कारण मै हल्का सा कूलर से टकरा गया और थोड़ी सी टकराने की अवाज हुइ मैं घबड़ा गया और कूलर के पास से हट गया और अपने लंड़ को सीधा किया। मुझे ऎसा लगा कि मैं वहां से भाग जाऊं लेकिन रश्मी का गदराया बदन देखने की चाहत में फ़िर जोखिम उठाते हुए कूलर में आंख गड़ाकर अंदर देखने लगा।

t.v. चलने की वजह से उसने उस अवाज को नहीं सुना था , मैने देखा वो उसी जगह खडी थी टी.वी. देखते हुए अब तक उसने अपने ब्लाउस के सभी बटन खोल लिये थे और उसकी ब्लाउस के अंदर से मुझे उसकी गुलाबी ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी। उसकी छातीयां पूरी गोलाईयां लिये थी और वो पूरी तरह से कड़क थी लग्भग ३८ की साईज और पूरी तरह से कड़क स्तन मेंरा लंड़ अपने आप हरकत करने लगा और झटके देने लगा। अब उसने अपना ब्लाउस भी नीचे गीरा दिया और वो केवल लहंगे और ब्रा में मेरे ठीक सामने खड़ी थी। मेंरा ऎसा मन हुआ की अभी उसके कमरे में जा कर उसको चोद डालूं। ब्लाउस नीचे गीरा देने के बाद उसने t.v. देखते हुए अपना हाथ अपने लहंगे के नाडे पर रखा और धीरे से नाड़ा खोल कर उसे छोड़ दिया उसका लहंगा अपने आप नीचे गीर गया । अब एक अनिद्द सुंदरी मेरे सामने केवल पेन्टी और ब्रा में खड़ी थी और मैं उसे देखने के अलावा कुछ भी कर पाने की स्थीति में नही था। मैंने अपने लंड़ को जोर से दबा लिया । केले के पत्तों की तरह चिकनी जांघ और कमर में फ़ंसी गुलाबी पेन्टी उसकी खुबसूरती को और बढा रहे थे।चूंकी वो खिड़की के काफ़ी करीब खड़ी इसलिये मुझे
सब साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था। उसकी गुलाबी पेन्टी से उसकी चूत का उभार साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था।

अब क्लाईमेक्स शुरु होने वाला था, उसने अपने हाथों से अपनी ब्रा की पट्टी को कंधो से नीचे गीरा दिया और इधर मेंरे दिल की धड़्कन तेज होने लगी। अब उसने अपनी ब्रा को हाथों से घुमाते हुए उसके पिछले हिस्से आगे कर लिया याने ब्रा के हुक सामने आ गये इस्के कारण अब वो लगभग नंगी हो चुकी थी उसके विशाल तने हुए स्तन मेंरी नजरों के सामने झूल रहे थे और मेंरी जवानी को ललकार रहे थे। अब उसने अपने ब्रा के हुक को खोला और अपनी छातीयों ब्रा के बंधन से अजाद कर दिया। अब वो मेंरे सामने जवानी के रस से भरपूर अपनी गदराइ हुई छातीयों को खोले हुए नंगी खड़ी थी।मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था,
मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से रश्मी के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।

 

Posted : 12/06/2011 8:51 am

  Anonymous

(@Anonymous)

 

कमरे के अंदर का दृष्य अब और भी उत्तेजक हो चुका था,मैने देखा कि रश्मी अब वापस पलंग की तरफ़ जा रही है अपने नाईट गाउन को पहनने के लिये और वो पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,इतनी देर में उसने अपनी पेन्टी भी उतार फ़ेंकी थी। उसकी पूरी तरह से अनावृत निर्वस्त्र बड़ी बड़ी भरपूर गोलाईयों वाली मांसल गांड़ चलते समय बड़े मोहक अंदाज मे हील रही थी। मै कुछ क्षण के लिये उसकी उत्तेजक गांड़ की अंतहीन दरार में खो गया।अब मेंरा हाथ धीरे धीरे अपने लंड़ पर आगे पीछे सरकने लगा और मैं रश्मी के नंगे जिस्म को देखते हुए मुठ्ठ मारने लगा। तभी अचानक उसके कमरे में फ़ोन बज उठा, फ़ोन की घंटी सुन कर उसके बढते कदम रुक गए और वो वहीं ठिठक कर खड़ी हो गई। शायद वो ये अंदाज लगाने की कोशीश कर रही थी इस वक्त किस्का फ़ोन हो सकता है। कहीं गाउन पहनने के चक्कर में फ़ोन बंद न हो जाय ये सोच कर तुरंत पलटी और उसके पलटते ही मेरे पूरे शरीर में हजारों वाट का करंट दौड़ गया, कितनी खूबसूरत नंगी थी मेंरी रश्मी भाभी। वो उसी तरह नंगी ही दौड़ते हुए t.v. की तरफ़ दौड़ी,फ़ोन वहीं रखा था उसके उपर। भाभी जब नंगी दौड़ कर फ़ोन की तरफ़ आ रही थी तो उसके दोनो वक्ष बुरी तरह से उछल रहे थे और एक दूसरे से टकरा रहे थे,ऎसा दृष्य को देख कर मेंरे मन में हाहाकार मच गया और मैं उत्तेजना के अत्यधिक आवेश में कूलर को ही अपने आगोश में लेकर उसे चुमने लगा।अंदर नंगी भाभी और बाहर उसका नंगा देवर दिवाना। दोनों ही अपने अपने कारणॊ से अधूरे और प्यासे थे। देवर तो पहले से ही पागल हो चुका था और रश्मी की बुर चोदने के लिये तड़फ़ रहा था, और रश्मी उसे अभी और थोड़ी चिंगारी और वज्रपात की जरुरत थी अपने ही देवर के साथ अवैध
संबंध बनाने के लिये।

औरत दो ही कारणों से अपनी लक्षमण रेखा को लांघती है पहला यदी पति इस लायक है तो वो उसे बचाने के लिये अपने घर की दहलीज लांघ कर यम के दरबार से भी अपने पति के प्राण वापस ले आती है और दूसरा यदि वो नालायक है और उसके मनोभावों को नहीं समझता तब वो इस दिवार को लांघ कर लाती है अपना यार और फ़िर शुरु होता है पति-पत्नी और "वो" का अंतहीन सिलसिला । रश्मी के लिये राज अभी तक दूसरे दर्जे वाला ही पति ही साबित हुआ था । उसकी शादी जरुर हुई थी और उसे एक बड़े घर की बहू होने का पूरा सम्मान भी मिला था अपने ससुराल से और समाज से लेकिन पति के जिस प्यार के लिये स्त्री यम से भी लड़ने का साहस जुटा लेती है उसका एक अंश भी राज उसे नहीं दे पाया था और न ही उसके पास इसके लिये समय था और न उसकी इतनी समझ थी। पति की इस बेरुखी से उपजे खालीपन ने रश्मी को शर्मिली से गूंगी भी बना दिया था। तुषार ने रश्मी के इस खालीपन को पकड़ लिया था और इसीलिये इस गदराइ हसीना की बुर चोदने के लिये पागल था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
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#8
रोटी का मतलब किसी भूखे इंसान से पूछो तो वो बतायेगा उसका मतलब या फ़िर उससे पूछो जो पाने के लिये जी तोड़ मेहनत करते हैं । किसी 5 स्टार होटल में अपने कुत्ते के साथ जाने वाला इंसान कभी भी रोटी का महत्व नहीं समझ सकता।


रश्मी भूखी तो कई महिनों से थी लेकिन जैसे ज्यादा उपवास करने से भूख का अहसास खतम हो जाता है और इंसान का शरीर उस भूख के साथ समझौता कर लेता है,वैसे ही रश्मी को भी कामवासना का अहसास खतम हो चुका था। वो खुद को बूढी समझने लगी थी लेकिन तुषार ने उसकी बुर चोद कर उसे जवान होने का अहसास करा दिया था।


रश्मी और तुषार की अन्तरात्माएं तो पहले ही मौन धारण कर चुकी थी, सो पाप का अहसास जैसी कोई बात दोनों के मन में दूर दूर तक नहीं थी। और तुषार तो वैसे भी ये मान कर चल रहा था कि अपनी भाभी को चोदना उसका धरम है, सो वो अपनी भाभी को चोदने का पुनित धार्मिक कार्य पूरे मनोयोग से कर रहा था।


रश्मी भी तुषार से एक बार चुदने के बाद काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी,अपने शरीर में उसे एक अजीब बेचैनी जो महसूस होते रहती थी जिसे वो समझ नहीं पाती थी,उसकी वो बेचैनी और वो आकुलता शांत हो गई थी। एक बार की चुदाई ने ही उसके मन और मस्तिष्क को प्रसन्न कर दिया और sex उसके लिये एक दवा का काम कर रहा था क्योंकि इसने महिनों से चले आ रहे रश्मी के अवसाद को खत्म कर दिया था। वो पुर्ननवीन हो गई थी और अपने जवान होने के अहसास ने उसे प्रसन्नचित्त कर दिया था।


जैसे महिंनो की तपिश के बाद जब सावन की पहली बौछार धरती पर गिरती है तो धरती झूम उठती है और पेड़,पौधे झूम झूम कर सावन का स्वागत करते है,रश्मी भी वैसे ही झूम रही थी और तुषार के लंड़ का अपनी चूत में स्वागत कर रही थी।लेकिन सावन की केवल पहली बौछार ही धरती की प्यास नहीं बुझा पाती बल्की पहली बौछार के मिट्टी में लगते ही वतावरण में मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबु चारों तरफ़ फ़ैल जाती है और गर्मी की तपिश की बिदाई का संकेत दे देती है वैसे ही रश्मी भी अपनी पहली

चुदाई से खुश जरूर थी लेकिन संतुष्*ट नहीं थी बल्कि इस चुदाई ने उसकी चुदने की भूख को और बढा दिया था और उसे और भी मादक बना दिया था। तुषार उसकी इस मादकता को महसूस कर रहा था।


नग्न रश्मी की मादक अदाओं ने तुषार को उत्तेजना की चरम उंचाईयों तक पहुंचा दिया और उसका लंड़ और भी कड़क हो गया अब वो और तेजी से रश्मी की चूत में प्रहार करने लगा उसने रश्मी के दोनों विशाल स्तन अपने हाथों पकड़ लिये और उसे मसलने लगा रश्मी भी वासना के सागर में तैरने लगी और अपनी कमर को झटके मार मार कर उछालने लगी और उसके लंड़ को अपनी चूत की गहराईयों तक पहुंचाने मे तुषार का साथ देने लगी।


तुषार एक तरफ़ तो रश्मी की चूत में तजी से अपना लंड़ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरी तरफ़ उसके स्तनों को मसले जा रहा था अब रस्मी ने अपने हाथ उसके दोनों हाथ पर रख लिये और उसे मसलने लगी वो अपनी छातियों को और भी जोर मसलने के लिये उसे उकसा रही थी। कुछ देर के बाद उसने अपने हाथ उसके हाथों से हटाए और वो अपने हाथों से उसकी पीठ ,बाहों और सिर को सहलाने लगी।


रश्मी के नरम हाथों के अपने बदन में घुमने से तुषार को बेहद आनंद आ रहा था और अब मारे उत्तेजना के उसने रश्मी के दोनों स्तनों को छोड़ दिया और उसके जिस्म पर लुड़क गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया, दोनों के नंगे जिस्म एक बार फ़िर गुत्थम गुत्था हो गये और तुषार अब रश्मी के होठों पर अपने होठ रख देता है और उसे चूसने लगता है।


कुछ देर तक उसके होठों को चूसने के बाद तुषार अपनी जीभ उसके होठों पर फ़िराने लगता है और फ़िर घिरे से उसके मुंह के अंदर अपनी जीभ ड़ाल देता है और उसकी जिभ से रगड़्ने लगता है। तुषार की जीभ के अपनी जिभ से टकराने से रश्मी को बेहद मजा आने लगता है और वो उसकी जीभ को चूसने लगती है। कुछ देर तक अपनी जीभ रश्मी के मुंह में अपनी जीभ रखने के बाद वो उसे बाहर निकालता है और रश्मी को उसकी जीभ अपने मुंह के अंदर ड़ालने के लिये कहता है। रश्मी अपनी जीभ उसके मुंह में ड़ालती है तो तुषार उसे चूसने लगता है। रश्मी की जीभ चूसने से उसे ऐसा आनंद मिलता है की वो सब कुछ भूल कर उसी काम में लग जाता है।


रश्मी के मुंह से निकलने वाले रस से तुषार साराबोर हो जाता है और वो उसे पीने लगता है। दोनों ने एक दूसरे को जोर से भींच कर रखा हुआ था और बारी बारी एक दूसरे के मुंह मे अपनी जीभ ड़ालते और एक दूसरे को उसे चूसने का आनंद दे रहे थे। लगभग १५-२० मीनट तक इस क्रिया को दोहराने से दोनों के शरीर में ऐसी गर्मी पैदा हो जाती है कि दोनों ही पसीने से लथपथ हो जाते है। गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि तुषार को रश्मी को अपनी बाहों से छोड़ना पड़्ता है और फ़िर से उकड़ू बैठ कर उसे चोदने लगता है।


तुशार ने अपने हाथ अब कालीन पर रखे हुए थे और वो रस्मी की बूर में तजी से लंड़ पेल रहा था तभी रश्मी तुषार के हाथ को उठाकर अपने स्तन में रखने का प्रयास करती है तुशार समझ जाता है कि वो अपने स्तन को मसलवाना चाहती है लेकिन वो अपने हाथ उसके स्तन पर नहीं रखता और उसे कहता है " जान, जैसा तुम मेंरे हाथों से इसे मसलवाना चाहती हो तुम वैसे ही इसे मसलो तभी मुझे समझ आयेगा कि तुमको क्या और कैसे इसे मसलवाना पसंद है। रश्मी पहले तो मना करती है और कहती है " नहीं, मुझे शरम आती है" तुशार कहता है " जब मसलवाने में शरम नहीं आती तो फ़िर खुद मसलने में कैसी शरम, प्लीज करो जो मैं कहता हुं तुमको ऐसा करते देख कर मुझे मजा आता है और मैं और भी उत्तेजित होता हुं। अब नखरे मत करो और करो जो मैं कहता हुं sex करते समय शर्म मत किया करो नही तो इसका पूरा मजा कभी भी नहीं ले पाओगी।" रश्मी उसकी बात मान लेती है और अपने हाथों से अपने स्तनों को मसलने लगती है।


अपने बड़े बड़े स्तनों को जब रश्मी अपने ही हाथों से मसलने लगती है तो उस्के दोनों विशाल स्तन कभी उपर कभी नीचे तो कभी दांए बांए हिलने लगते है। ऐसे अपने ही हाथॊ से अपने स्तनों को मसलते हुए रश्मी बला की कामुक लग रही थी और उसने तुषार की उत्तेजना को और भी चरम शिखर तक पहुंचा दिया। तुषार लगातार अपने लंड़ से रश्मी की बुर में अपना लंड़ अंदर बाहर कर रहा था। कुछ देर तक ऐसे ही उसे चोदने के बाद वो अपना लंड़ उसकी चूत से बाहर निकालता है तो रश्मी बेचैन हो जाती है और हवा में ही जोर जोर से अपनी कमर उछालने लगती है । वो दर असल कुछ और देर तक उसके लंड़ का मजा लेना चाहती थी वो अपने स्खलन पर पहुंचने ही वाली थी कि तुषार ने अपना लंड़ उसकी चूत से बाहर निकाल लिया।


असल में तुषार अब उसे घोड़ी बना कर चोदना चाहता था और इसी लिये उसने अपना लंड़ बाहर निकाला था। तुषार उसे पलटने के लिये कहता है , रश्मी अभी और चुदना चाहती थी इसलिये उसकी बात मानने के अलावा उसके पास कोई भी चारा नहीं बचा था और वो पलट जाती है, अब तुशार उसे अपनी कमर को उपर उठाने के लिये कहता है रश्मी अपनी कमर उठाकर घोड़ी बन जाती है ।
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Sharma
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May 7, 2021
#32
031...

अब रश्मी के दोनों विशाल स्तन नीचे की तरफ़ लटक जाते है और उसकी दोनों विशाल बड़ी गांड़े तुषार की तरफ़ खुली पड़ी थी। उसकी नंगी गांड़ो को देखते ही तुशार पागल हो जाता है और उसे जोरों से चूमने लगता है फ़िर वो अपना लंड़ उसकी गांड़ो के पास ले जाता है और उसकी चूत को तलाशते हुए अपना लंड़ उसकी चूत में फ़िर से घुसा देता है और रश्मी को पीछे से चोदने लगता है।


रश्मी अब अपनी गांड़ॊ को हिला हिला कर उसका लंड़ अपनी चूत में ले रही थी और तुशार भी बड़ी तेजी से अपना लंड़ उसकी चूत में ड़ाल रहा था। गांड़ उठा कर चुदवाने के कारण तुषार को रश्मी की गांड़ साफ़ दिखाई दे रही थी। अब वो अपने मुंह में थोड़ा सा थूक भर कर उसकी गांड़ के छेद मे ड़ाल देता है और उसकी गांड़ के छेद को अपनी अंगूठे से दबा देता है और उसे धीरे धीरे मसलने लगता है।


अपनी चूत में तुषार का लंड़ और गांड़ में अंगूठा रगड़े जाने से वो और भी उत्तेजित हो जाती है और अपनी गांड़ो को और भी जोरों से हिलाने लगती है उससे उसकी बड़ी बड़ी गांड़ भी तेजी से हिलने लगती है जिससे उसकी कामुकता और भी बढ़ जाती है। अब तुषार उत्तेजना के मारे अपनी एक उंगली उसकी गांड़ मे ड़ाल देता है और उसे अंदर बाहर करने लगता है और अपने लंड़ से उसकी बूर चोदना भी जारी रखता है।


अपने दोनों छेदों में लगातार प्रहार से रश्मी उत्तेजना के मारे पागल हो जाती है और थरथराने लगती है। उसे ऐसा लगा कि यदि थोड़ी देर तक और उसके साथ ऐसा हुआ तो वो मारे उत्तेजना के बेहोश हो जायेगी । उसकी सांसे उखड़्ने लगती है और वो वो खुद पर पर काबू नहीं रख पाती और कुछ ही क्षणों में आह्ह्ह्ह्ह्ह ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ आईमांऽऽऽऽऽऽ की अवाज निकालते हुए स्खलित हो जाती है।


स्खलित होते ही वो चैन की सांस लेती है और उसका शरीर ढीला पड़ जाता है वो निढाल हो कर वहीं करपेट पर ही सो जाती है लेकिन इधर तुशार का माल अभी नहीं गिरा था इसलिये वो रश्मी को फ़िर से खींच कर आने पास करता है उसको पीछे से थोड़ा उठा कर अपनी जांघो के पास रखता है और उसकी चूत में लंड़ ड़ाल उसे चोदने लगता है।


वो समझ जाता है कि अब ये झड़ चुकी है तो इस बार वो भी तेजी से अपना लंड़ अंदर बाहर करने लगता और कुछ ही देर में वो झड़ जाता है और जैसे उसका माल बाहर आता है तो वो अपना लंड़ उसकी चूत से बाहर निकालता है और अपना पूरा माल उसकी गांड़ में उंडेल देता है।और वो रश्मी के उपर ही लेट जाता है।


कुछ देर तक रश्मी के उपर सोये रहने के बाद तुषार उठता है और घड़ी की तरफ़ देखता है । ११ बज चुके थे और आधे घंटे में उन्हें नीचे पहुंच जाना था इसलिये वो नंगी सोई पड़ी रश्मी को हिलाता है जो अभी तक हांफ़ रही थी और लंबी सांसे रही थी। वो उसे धीरे से कहता है रश्मी ११ बज चुके है हमें आधे घंटे में नीचे पहुंचना है।


११ बजने का नाम सुनते ही रश्मी हड़्बड़ा कर खड़ी होती है और सीधे बाथरुम में पहुंच कर शावर चालू कर फ़िर से स्नान करने लगती है। उसे आज पूजा का सामान भी खरिदना था इसलिये वो इस हालत में बजार नहीं जा सकती थी। वो लग्भग दस मीनट तक नहाने के बाद बाहर आती है और जल्दी से अपने कपड़े पहनने लगती है। तभी उसका ध्यान तुषार की तरफ़ जाता है लेकिन वो कमरे में नहीं था और उसके कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था। दर असल वो रश्मी की पिछे वाली बाल्कनी से अपनी बाल्कनी में कूद कर अपने कमरे में जा चुका था।


लगभग १५ मीनट में साड़ी पहन कर और तैयार हो कर नीचे की तरफ़ जाने लगती है । तुशार के कमरे के पास निकलते हुए वो उसके कमरे के दरवाजे पर थपथपाते हुए नीचे उतर जाती है। जैसे ही नीचे पहुंचती है उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रहती जब वो तुषार को नाशते की टेबल पर बैठ कर नाश्ता करते हुए देखती है।


तुशार उसकी तरफ़ देखता है और मुस्कुरा देता है और कहता है अब कैसी तबीयत है आपकी भाभी? यदि तबियत ठीक नहीम लग रही है तो थोड़ा और सो लिजिये और ऐसा बोल कर वो हल्के से अपनी एक आंख दबा देता है। रश्मी भी प्रतुत्तर में ज्यादा कुछ नहीं कहती केवल इतना ही कहती है कि अब तबियत पहले से कफ़ी बेहतर है।


तभी उसके ससुर बोलते हैं " अरे बेटा टाइम खराब मत करो जल्दी से तुम भी नाश्ता कर लो तो हम चलें बाजार , आज सारा दिन लगने वाला इसी काम में । फ़िर वो तुषार की मां से कहने लगते है अरे भई जब तक ये दोनों नाश्ता करते हैं तुम एक बार फ़िर से अपनी लिस्ट चेक कर लो कहीं कुछ छूट ना जाय , फ़िर आज के बाद हमें समय नहीं मिलने वाला बाजार वगैरह जाने के लिये। तुशार की मां उन्हें कहती है आप चिंता मत करो सारी लिस्ट तैयार और कहीं कुछ भी नहीं छूटा है लिखने से हम पिछले तीन दिन से इस लिस्ट को तैयार् कर रहे हैं। उसके पिताजी आश्वस्त हो जाते हैं और कहते है " तो ठीक है अब मैं गाड़ी बाहर निकालता हूं और तुम लोग भी बिना देरी किये जल्दी से गाड़ी में आ कर बैठो। ऐसा बोल कर वो अपने घर् के गैरेज से गाड़ी निकालने के लिये निकल जाते हैं।

...............................................................the end.............................................................
Reactions:Napster, aalu and Raj_Singh

Sharma
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374
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May 7, 2021
#33
is story ke original writer ko thanks....wo jaha v ho.....
Reactions:Napster, SKYESH and Raj_Singh

Sharma
Member
374
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May 7, 2021
#34
No one interested....
Reactions:Napster and SKYESH
aamirhydkhan
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May 8, 2021
#35
nice story
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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