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Misc. Erotica Shital Ka Samarpan
#1
नमस्कार दोस्तों, मैं बंटी एक बार फिर से आपका स्वागत करता हूँ और पेश करता हूँ आपलोगों की मनपसंद कहानी "शीतल का समर्पण". इस कहानी को आप सबने दूसरे साइट पे बहुत पसंद किया है और इसी वजह से मैं फिर से इसे यहाँ आपलोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।

इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है और उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है और अगर ऐसा कुछ होता है तो यह मात्र एक संयोग हो सकता है। इस कहानी का उद्देश्य सिर्फ लोगों का मनोरंजन करना है और किसी भी धर्म, जाती, भाषा, समुदाय का अपमान करना नहीं।

इस कहानी के कुछ दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं, पाठकगण कृपया अपने विवेक से निर्णय लें। यह कहानी मात्र वयस्कों के लिए लिखी गयी है, इसलिए 18 वर्ष से अधिक की उम्र होने पर ही आप इस कहानी को पढ़ें।


आपके कमेंट और सुझाव सादर आमंत्रित हैं जिससे मुझे खुद को और कहानी को बेहतर बनाने में सहयोग मिले। आशा करता हूँ की यहाँ भी आप इसे पसंद करेंगे और मेरा उत्साहवर्धन करते रहेंगे। धन्यवाद.....
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
yes... waiting for this awesome story
[+] 2 users Like krishkish's post
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#3
भाई, यह xossip फोरम में कामुक कहानियों में से एक है। क्या आप पुराने हिस्से को पोस्ट करेंगे या नए सिरे से लिखेंगे?
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#4
ager tum puri story copy paste karne ke badle xossip pe likhi story me kuch naya add kar ke likho to maja aayega.

vese bhi ye story xossip pe padhi he to kuch naya padhne ko mile is story me jiyada maja aayega.
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#5
ये कहानी है शीतल की। शीतल के समर्पण की। मात्र 23 साल की शीतल शर्मा अपनी कमसिन काया से किसी भी मर्द के जिस्म में उबाल ला सकती थी। शीतल बेहद खूबसूरत और मासूम चेहरे वाली लड़की थी जिसका कमसिन जिस्म कातिल अंदाज़ का था। 32-26-34 के फिगर के साथ किसी भी देखनेवाले को वो मदमस्त कर सकती थी। लेकिन इस मादक जिस्म के वाबजूद शीतल एक बेहद ही शरीफ लड़की थी और यकीन मानिये की उसका कभी किसी के साथ कोई चक्कर नहीं रहा।

बचपन से वो लड़कों को अपनी तरफ आकर्षित होता देखती आयी थी और बहुत ही सलीके से इसे इग्नोर भी करती आई थी। वो ऐसे माहौल में पली बढ़ी थी, जहाँ लोगों की मदद करना, शिष्टाचार से रहना सीखी थी। घमंड और बदतमीज़ी से कोसों दूर थी इस कहानी की हेरोइन शीतल शर्मा।

अमीर और बड़े घर में पली बढ़ी शीतल की अभी नयी नयी शादी हुई थी। अभी वो मात्र 23 साल की थी और अपने जवान जिस्म और मन में ढेरों अरमान लिए वो अपने पति के घर आई थी। उसका पति विकास एक बैंक में काम करता था। अभी शीतल की शादी के 3 महीने हुए थे और ये तीन महीने बड़े ही मज़े से गुजरे थे शीतल के।

पति के साथ मालदीव में एक शानदार हनीमून मनाकर लौटी थी शीतल। उसके मन में अपने होने वाले पति के लिए जो जो अरमान थे, वो सब पूरा करता था विकास। विकास हैंडसम था और साथ ही साथ अपनी बीवी का बहुत खयाल रखता था। वो भी शीतल जैसी पत्नी पाकर बहुत खुश था और दोनों एक दूसरे से प्यार करते हुए दिन बिता रहे थे। शीतल अपनी जिंदगी से पूरी तरह खुश थी और उसे अपने जीवन से कोई समस्या, कोई कमी नहीं थी।

विकास का ट्रांसफर अब एक दूसरे शहर में हो गया था। विकास नए शहर में जाकर ज्वाइन कर चुका था और जब तक वो वहाँ शिफ्ट नहीं करता, तब तक उसने अपनी अप्सरा जैसी बीवी को अपने घर में अपने मम्मी पापा के पास पहुँचा दिया था।

एक सप्ताह बीत चुका था लेकिन विकास को उस नए शहर में ढंग का घर नहीं मिल पा रहा था। विकास होटल में रहा था पुरे सप्ताह और उसकी नयी नवेली बीवी अपने ससुराल में। दोनों एक दूजे से दूर ऐसे दिन बिता रहे थे जैसे 5 दिन नहीं, सदियाँ बीत गयी हों। शुक्रवार की रात में जब दोनों का मिलन हुआ तो ऐसा लगा जैसे कितने जनम बाद दोनों मिले हों।

2 दिन रहने के बाद फिर से विकास अपने काम पे चला गया और फिर से दोनों विरह की आग में दिन गुजारने लगे। ये सप्ताह विकास ने किसी तरह गुजारा और एक घर रेंट पे ले लिया। विकास को कोई घर मिल ही नहीं रहा था जिसमे वो सपरिवार यहाँ रह सके।

विकास के बैंक के पियोन मक़सूद ने उसे एक घर बताया जिसे विकास ने आनन फानन में देखकर पसंद भी कर लिया रेंट पे लेने के लिए एडवांस भुगतान भी कर दिया। वो खुश था कि अब उसे और दूर नहीं रहना पड़ेगा अपनी बीवी से।


विकास ने जिस घर को रेंट पर लिया था वो एक मुसलमान का घर था। घर का मालिक वसंत खान 50 साल की उम्र का अधेड़ व्यक्ति था और वो अकेला रहता था। मक़सूद ने बताया था कि उसकी बीवी की एक दुर्घटना में मौत हो गयी थी और उसके बच्चे बाहर में रहते हैं। वसंत के बांकी रिश्तेदार गाँव में रहते हैं, बस वही यहाँ शहर में रहता है और मेन रोड में इसकी जूतों की एक अच्छी सी दुकान है।

वसंत का घर बहुत बड़ा था और उसने पूरा ग्राउंड फ्लोर विकास को किराया पर दे दिया था। बाहर एक बड़ा सा गेट था और उससे सटा हुआ ही एक छोटा सा गेट था। गेट के ऊपर पोर्टिको था जिसके नीचे गैरेज एरिया था। गेट से अंदर घुसते ही दाहिनी तरफ एक दरवाजा था जिसके अंदर 3 बेड रूम, बड़ा सा हॉल, बड़ा सा किचन सहित एक छोटा सा कमरा भी था जो विकास को किराए पर मिला था। पुरे घर में अच्छे क्वालिटी का मार्बल लगा हुआ था, हर कमरे में कबर्ड बना हुआ था और पूरा घर बहुत अच्छा बना हुआ था।

उस दरवाजे के बगल से ही एक सीढ़ी ऊपर छत पर जाती थी। छत पर पहुँचते ही बाएं तरफ एक छोटा सा कमरा बना हुआ था जो कबाड़ और पुरानी चीजों से भरा हुआ था। उसके बाद आधा छत खाली था और उसके बाद 1 बैडरूम, हॉल, किचन वाला घर बना हुआ था, जिसमे वसंत खान अकेला रहता था। पुरे छत पे चारो तरफ से 4' की बाउंडरी की हुई थी।

घर जितना बड़ा था, उस हिसाब से विकास को कम किराये पर ही वो मिला था। विकास शुक्रवार को रात में घर गया और रविवार को सारे सामानों और शीतल के साथ नए घर में शिफ्ट होने आ गया। शीतल को भी ये घर बहुत पसंद आया था। पिछला वाला घर जिसमे वो रही थी, वो थोड़ा छोटा था लेकिन ये घर शीतल की पसंद के अनुसार था।

नया जगह था, नए नए लोग थे तो शीतल को अजीब भी लग रहा था, लेकिन उसे ख़ुशी थी की वो अपने पति के साथ है। शीतल के मम्मी, पापा और बहन संजना भी यहाँ कुछ दिन के लिए आए और फिर उसके सास ससुर और ननद विनीता भी। सबको ये घर बहुत पसंद था।

शीतल बेहद हसीं थी और अमीर और खुले विचारों वाले घर के होने की वजह से उसके कपड़े भी आधुनिक डिजाईन के ही थे। शीतल शादी के पहले भी ज्यादातर कपड़े इंडियन एथनिक डिजाईन के ही पहनती थी और अब शादी के बाद भी वो ऐसा ही करती थी। लेकिन उन कपड़ों में थोड़ा खुलापन होता था और ये आम बात थी शीतल के लिए। और शीतल ऐसी थी की वो जो कुछ भी पहने, लोगों को अच्छी ही लगती थी।

नयी नयी शादी होने की वजह से उसका बदन भी थोड़ा खिल गया था और मेकअप और ज्वैलरी की वजह से वो और भी ज्यादा हसीन लगती थी। बड़ी बड़ी ऑंखें और उन आँखों में काजल, पहले से ही गुलाबी होठ और उन होठों पे बस लिप ग्लोज लगाने से होठ लाल हो जाते थे। माँग में सिन्दूर, पुरे हाथों में भरी भरी चूड़ियाँ, पैरों में पायल, बिछिया, अंगूठी। जब शीतल चलती थी तो पायल और चूड़ियों की आवाज़ घर में छन छन कर गूँजते रहते थे।

जब शीतल घर से बाहर निकलती थी तो सब उसे देखते रहते थे। औरतें ये सोचती थी की कितनी अच्छी है और मर्द ये सोचते थे की क्या मस्त माल है। शीतल को इन सब की आदत बचपन से ही थी और अगर वो किसी को खुद को देखते या घूरते देखती थी, तो उसे वो आसानी से इग्नोर कर देती थी।


2-3 महीने होते होते शीतल की खूबसूरती की चर्चा पुरे मोहल्ले में होने लगी थी। शीतल भीड़ में भी चमक जाती थी। लेकिन इन सबसे अंजान वो मज़े से अपनी ज़िंदगी जी रही थी। विकास भी इतनी खूबसूरत बीवी पाकर बहुत खुश था। हालाँकि उसने शीतल को बताया था कि जब तुम मार्केट जाती हो तो सब तुम्हे घूरते रहते हैं। कभी कभी तो शीतल हंसकर बात टाल जाती और कभी कभी बोलती की ये बचपन से देखती आ रही हूँ।

विकास को भी ये बात पता था कि खूबसूरत लड़कियों और औरतों को सब कैसे देखते हैं, और अगर शीतल जैसी नयी नवेली दुल्हन छोटे शहर में रोड पे निकले, तो लोग तो आँखें फाड़ कर देखेंगे ही। विकास ने शीतल को कभी किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया और ना ही कभी ये बोला की कैसी ड्रेस पहनो या नहीं पहनो। उसे भी अच्छा लगता था कि सब उसकी बीवी की तारीफ करते हैं या उसकी बीवी की सुंदरता के सब दिवाने हैं।

वसंत रोज सुबह 9 बजे अपनी जूतों की दुकान पर चला जाता था और फिर दोपहर में 1 बजे आता था। 2 घंटे घर में आराम करने के बाद वो फिर 3 बजे अपने दुकान के लिए निकल जाता था। फिर रात में 8 बजे वो दूकान बढ़ाने के बाद वापस घर पे आता था और फिर सो जाता था। ये उसका रोज का नियम था। अपने सारे काम भी वो खुद करता था। खुद खाना बनाना, साफ सफाई करना, कपड़े धोने इत्यादि सारे काम वो खुद करता था और उसने अपने घर के लिए कोई नौकर नहीं रखा था। हाँ, दुकान पर 2 स्टाफ रखे हुए थे।


विकास भी सुबह 9 बजे तक नहा धो कर रेडी हो जाता था और अपनी प्यारी बीवी के हाथों का बना नाश्ता करके और लंच लेकर वो ऑफिस चला जाता था और फिर शाम में 6-7 बजे तक वापस आता था। दोनों की ज़िंदगी बड़े प्यार और मस्ती के साथ कट रही थी। जब उसके घर से सारे गेस्ट वापस चले गए तो दोनों फिर से एक सप्ताह के लिए एक हिल स्टेशन से घूम आये थे।

शीतल और विकास दोनों अभी अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी की पूरी मस्ती उठाना चाहते थे, और दोनों में से कोई भी अभी बच्चा नहीं चाहता था। शीतल को उसके घरवालों और ससुरालवालों दोनों ने बोला था इसके लिए, लेकिन विकास नहीं चाहता था तो वो भी अपने पति की इच्छा में शामिल थी।

शादी के बाद जब पहली बार शीतल को मेन्सट्रूअल पीरियड हुआ, तभी दोनों ने ये डीसाइड कर लिया था कि पहला बच्चा 2 साल बाद प्लान करेंगे और विकास ने शीतल को 6 महीने तक गर्भधारण रोकने वाली दवाई ला कर खिला दिया था। अब जब शीतल की शादी के 6 महीने हो गए थे तो विकास ने फिर से वही गोली शीतल को खिला दिया था, जिससे अब शीतल फिर से 6 महीने के लिए गर्भवती नहीं होती।


दोनों फुल मस्ती कर रहे थे और शीतल अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश थी। जब उसकी शादी हो रही थी तो उसे लगा भी था कि इतने कम उम्र में उसकी शादी क्यों हो रही है, लेकिन अब उसे लग रहा था कि शादी करके उसके माँ बाप ने उसके साथ बहुत अच्छा किया था।
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#6
nice start
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#7
Nice age likho story achi h mane phly Adhi PADI thi jab tak xossip site band ho gayi thi
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#8
nice start
Love You Guys
LOLO
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#9
शीतल रोज सवेरे जागती और नित्य क्रिया के बाद नहाकर फिर पूजा करती थी और फिर चाय बनाकर विकास को जगाती थी और फिर नाश्ता बनाने में लग जाती थी। विकास के जाने से पहले वो नाश्ता और लंच बना लेती थी और विकास को दे देती थी। उसके बाद उसके पास कुछ विशेष काम रह नहीं जाता था।

शीतल अपने कपड़े छत पर सूखने देती थी। आधा छत जो खाली था, उसपे कपड़े टाँगने के लिए रस्सी बंधी हुई थी और शीतल वहीँ पे अपने कपड़े सूखने के लिए फैलाती थी। वो विकास के जाने के बाद अपने कपड़े छत पे फैला देती थी और शाम में उन्हें नीचे अपने पास ले आती थी।

आज जब शीतल अपने कपड़े लेकर अपने रूम में आयी और उसे समेट कर उसकी जगह पर रखने लगी तो उसकी नज़र अपने पैंटी पर गयी। शीतल के पैंटी ब्रा भी महंगे और डिज़ाइनर थे। उसे अपनी पैंटी थोड़ी टाइट लगी। शीतल पैंटी को उलट पुलट कर देखने लगी, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। उसे लगा की हो सकता है कि सुबह में ठीक से साफ़ नहीं हुआ होगा।


अगले दिन भी यही हुआ। आज भी जब शीतल अपनी पैंटी को मोड़ कर रखने लगी तो उसे अपना पैंटी काफी कड़ा जैसा लग रहा था। शीतल आज सुबह पैंटी को अच्छे से साफ की थी और ये उसे याद था। वो पैंटी को गौर से देखने लगी और सामने वाला हिस्सा अंदर से जो उसकी चुत के सामने होता, वहाँ कुछ दाग जैसा था, और वही कड़ा था।

उसे समझ नहीं आया की ये क्या है। वो जो पैंटी अभी पहनी हुई थी, उसे देखि तो उसकी पैंटी सुखी हुई थी और ऐसा कुछ भी नहीं लगा हुआ था वहाँ। रात में वो विकास के साथ सेक्स भी नहीं की थी। वो आज भी इग्नोर कर दी और पैंटी को मोड़ कर रख ली।

अगले दिन नहाने के बाद वो पैंटी को अच्छे से देखि और उसे अच्छे से साफ की। आज भी जब वो कपड़े उठाने गयी तो सबसे पहले वो वहीँ छत पे ही अपनी पैंटी देखने लगी। वो अपनी पैंटी ब्रा को खुल्ले में नहीं सूखने देती थी, उसके ऊपर कोई और कपड़ा रख दिया करती थी। उसकी पैंटी का अंदरूनी हिस्सा आज भी कड़ा हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। उसे लगा की कहीं उसे कोई बीमारी तो नहीं है या कहीं वो जो डिटर्जेंट इस्तेमाल कर रही है, उसमे तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन इसी डिटर्जेंट को तो वो बहुत दिनों से इस्तेमाल कर रही थी।

आज शीतल जो पैंटी ब्रा पहनी हुई थी, वो उसे विकास ने हनीमून पर खरीद दिया था। ये डिज़ाइनर पैंटी ब्रा था और पूरी तरह से ट्रांसपेरेंट था। शीतल इसे बस आज दूसरी बार पहन रही थी। अगले दिन जब शीतल कपड़े उठाने गयी तो आज भी वो छत पे ही सबसे पहले अपनी पैंटी को देखी। उसकी गुलाबी डिज़ाइनर पारदर्शी पैंटी का अंदरूनी हिस्सा भी टाइट था।

शीतल पैंटी को गौर से देखने लगी तो उसे कुछ दाग जैसा नज़र आया। पैंटी का जो हिस्सा चुत के सामने होता है, वहाँ कुछ ऐसा दाग था जैसे कोई लिक्विड बूंद बूंद करके वहाँ गिरा हो। ये पैंटी नयी थी और शीतल इसे सुबह में अच्छे से साफ की थी।

शीतल उस दाग को अच्छे से देखने लगी और फिर उसे छू कर देखने लगी की वो क्या हो सकता है। उसे कुछ समझ नहीं आया तो वो पैंटी को नाक के पास ले आयी और उसे सूँघने लगी। एक अजीब सी गंध शीतल के नाक में गयी, जो उसे बहुत अच्छा लगा था। वो फिर से उसे सूँघने जा रही थी तो फिर उसे ख्याल आया की वो छत पे है और अगर कोई उसे इस तरह अपनी पैंटी सूंघते देख रहा होगा तो वो क्या सोंचेगा। शीतल शर्मा शर्मा गयी और जल्दी से मुस्कुराते हुए सारे कपड़े उठायी और नीचे ले आयी।

नीचे आते ही शीतल सारे कपड़ों को बेड पर फेंकी और पैंटी उठाकर उसे देखने लगी और फिर से सूँघने लगी। वो गहरी साँस लेकर पैंटी सूँघ रही थी और उस खुशबू को अपने सीने में भर रही थी। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। पैंटी का वो हिस्सा जहाँ दाग लगा हुआ था, शीतल के नाक से सटा हुआ था और शीतल उसे सूँघ रही थी और फिर भी उसका मन नहीं भर रहा था।

पैंटी शीतल के होठ में सट रहा था और खुद ब खुद शीतल की जबान बाहर निकल आयी और शीतल अपनी पैंटी के उस हिस्से को चाट कर देखने लगी। एक अजीब सा नशा चढ़ रहा था उसके ऊपर। जो पैंटी वो अभी पहनी हुई थी, वो भी गीली होने लगी थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की उसकी पैंटी से ऐसी खुशबू क्यों आ रही है, लेकिन ये खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। शीतल के जेहन में वो खुशबू बस गयी थी।

आमतौर पर शीतल शाम के वक़्त कपड़े उठाने छत पे जाती थी, लेकिन अगले दिन वो थोड़ी जल्दी ही कपड़े लाने छत पे चली गयी। उसे देखना था कि आज भी उसकी पैंटी से वही खुशबू आ रही है क्या। आज भी वो सबसे पहले अपनी पैंटी के पास ही पहुँची और उसे उठायी।

शीतल के दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। पैंटी पर चुत वाली जगह पर कुछ लिक्विड गिरा हुआ था जो अभी पूरी तरह सूखा नहीं था और इसलिए शीतल की पैंटी थोड़ी गीली ही थी। शीतल इधर उधर देखी और जब उसे कोई नहीं दिखा तो वो अपनी गीली पैंटी को नाक के पास लेकर सूँघि। वही खुशबू ..... कल से थोड़ी ज्यादा।

शीतल जल्दी से बाँकी कपड़ों को उठायी और जल्दी से नीचे जाने लगी। वो अभी सीढ़ियों पर ही पहुँची थी। यहाँ उसे कोई नहीं देख सकता था। वो अपनी पैंटी को सूँघने लगी। वो अपने कमरे में आयी और सारे कपड़ो को बेड पे फेंकी और फिर अच्छे से लाइट में पैंटी पे लगे दाग को देखने लगी। उसे समझ नही आ रहा था कि ये किस चीज़ का दाग उसकी पैंटी पर लग रहा है। लेकिन उसे वो खुशबू बहुत अच्छा लग रहा था। वो आज भी पैंटी को अपनी जीभ से सटा कर देखी तो उसे वो टेस्ट भी अजीब सा, लेकिन अच्छा लगा था।

शीतल न तो कभी अपने पति का लण्ड चूसी थी और न ही कभी विकास ने उसे ऐसा करने को कहा था। विकास ने भी शीतल की चुत को कभी भी चाटा चूसा नहीं था। शीतल अभी तक कभी भी ठीक से पोर्न भी नहीं देखी थी। 2-4 बार उसकी सहेलियों ने उसे छुप छुपा कर दिखाया था, लेकिन थोड़ा सा देखने के बाद वो मना कर देती थी और कहती थी की "छिह, ये क्या गन्दा गन्दा चीज़ देख रही हो तुमलोग।" एक बार विकास ने भी उसे दिखाया था तो शीतल विकास को भी डाँट दी थी की "ये सब देखने में तुम्हे शर्म नहीं आती की दूसरी लड़कियों को ये सब करता देख रहे हो। और ये लड़कियाँ कितनी गन्दी और बेशर्म हैं, इन्हें शर्म नहीं आती की इस तरह सबके सामने ये काम करवा रही हैं।"


शीतल को समझ नहीं आया की उसकी पैंटी पे सूखने के बाद कौन सा दाग लग जाता है और ये किस चीज़ की खुशबू है। वो सुबह नहाने से पहले भी अपनी पैंटी को सूंघकर देखी थी, लेकिन उस वक़्त उसे बहुत घिन्न आयी थी। शीतल इसी निष्कर्ष पर पहुँची थी की आसपास का कोई लड़का उसकी पैंटी पर कोई परफ्यूम की बूंदें गिरा जाता होगा।

शीतल ये सोच कर शर्मा भी गयी थी की कोई लड़का उसकी पैंटी ब्रा को देखता है, छूता है। उसे शर्म लग रहा था कि वो कैसी कैसी पैंटी ब्रा पहनती है, ये अगल बगल के किसी लड़के को पता होगी। लेकिन कौन होगा वो जो इस तरह करता है और इस तरह छत पे कौन आ सकता है। शीतल सोची की ये बात वो विकास को रात में बताएगी, लेकिन वो बता नहीं पाई।

वो खुशबू शीतल के दिमाग में रच बस गयी थी। अगले दिन शीतल थोड़ा और जल्दी कपड़े लेने छत पे आ गयी। उसकी पैंटी वहीँ थी और उसी कपड़े के नीचे थी, जहाँ वो सुबह में रख कर आई थी। लेकिन आज उसकी पैंटी और ज्यादा गीली थी और चुत के पास वाली जगह पर कोई गाढ़ा सफ़ेद द्रव लगा हुआ था, जिसे देखकर शीतल का दिमाग सन्न रह गया।

'ये तो वीर्य है !!!!' शीतल की शादी के 6 महीने हो गए थे और वो अब वीर्य को पहचानती थी। कन्फर्म होने के लिए वो अच्छे से पैंटी को देखी और उसका मन घृणा से और गुस्से से भर गया। वो इधर उधर देखने लगी जिससे उसे पता चल जाये की ये किसकी हरकत है और वो उसे इस गिरी हुई हरकत के लिए मज़ा चखाये। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि कैसे कैसे पागल इंसान होते हैं।

उसका मन घृणा से भरा हुआ था कि किसी आदमी का वीर्य उसकी पैंटी पे लगा हुआ है और वो पैंटी वो हाथ से उठायी हुई है। वो विकास का वीर्य भी अपने बदन पे गिरने नहीं देती थी। जैसे ही विकास अपना लण्ड उसकी चुत से बाहर निकालता था, वो खुद भी साइड हो जाती थी और विकास को भी साइड कर देती थी, ताकि वीर्य टपक कर उसके बदन पे न गिर जाए और तुरंत ही अपनी पैंटी पहन लेती थी।

शीतल का मन हुआ की पैंटी को फेंक दे, लेकिन वो इस तरह खुलेआम पैंटी कहीं भी नहीं फेंक सकती थी। फिर अचानक उसके दिमाग में ये ख्याल आया की रोज तो उसकी पैंटी पे इस वीर्य का ही दाग लगता होगा, जिसे वो इस तरह सूँघती है और चाटती भी है। वो इस ख्याल से ही शर्मा गयी की वो किसी अनजान आदमी का वीर्य सूँघती है और चाटती भी है, और अभी जो पैंटी वो पहनी हुई है, उसका जो हिस्सा अभी उसकी चुत से सटा हुआ है, वहाँ भी उसी का वीर्य लगा हुआ है।

शीतल की पहनी हुई पैंटी गीली होने लगी। वो वहीँ छत पर ही पैंटी को सूँघि तो वही मदहोश कर देनेवाली खुशबू आ रही थी। और ज्यादा तेज़, और ज्यादा मादक। शीतल जल्दी से एक हाथ में बाँकी कपड़े उठायी और एक हाथ में पैंटी को ऐसे पकड़े हुए थी की वीर्य लगा हुआ हिस्सा ऊपर रहे और पोछा न जाये।

शीतल जैसे ही सीढ़ी पर पहुँची तो वो फिर से पैंटी पर लगे वीर्य को सूँघने लगी। आज उसे सबसे ज्यादा मज़ा आ रहा था। आज उसे पता था कि वो क्या सूँघ रही है। एक अनजान आदमी का वीर्य। उसकी चुत गीली हो रही थी। वो उस गाढ़े सफ़ेद ड्रा पर हल्का सा जीभ सटाई और फिर तुरंत हटा ली।

एक पल के लिए उसे बुरा लगा, लेकिन तुरंत उसे लगा की रोज़ तो चाटती ही हूँ। आज उसपे पूरा खुमार चढ़ रहा था। वो फिर से वीर्य को जीभ पे सटाई और अच्छे से उसका टेस्ट ली। उसकी चुत का गीलापन बढ़ गया।

शीतल रूम में आयी और बाँकी कपड़ों को फेंक कर अच्छे से पैंटी पे लगे वीर्य को देखने लगी और फिर सूँघने लगी। वो फिर से वीर्य पे जीभ सटाई और धीरे धीरे उसे चाटने लगी। वो किसी और आदमी का वीर्य चाट रही थी, जो वो अपने पति के साथ भी नहीं की थी। शीतल की चुत गीली होती जा रही थी। वो 2-3 बार अपने ड्रेस के ऊपर से ही अपनी चुत सहलाई। उसे इससे ज्यादा कुछ पता ही नहीं था।

रात में जब वो सोने आयी तो आज पहली बार वो पहल की और विकास से अपनी चुदाई करवाई। लेकिन आज पहली बार उसे लगा की जितना मज़ा आना चाहिए था, उतना मज़ा नहीं आया। उसे लगा की विकास को और अंदर तक लण्ड डालना चाहिए था। उसे लगा की विकास को और देर तक उसे चोदना चाहिए था। लेकिन वो कह न सकी। विकास करवट बदल कर सो गया और शीतल उसे पीछे से पकड़ कर उसके बदन से सटी हुई इस उम्मीद में सोने लगी की शायद विकास एक बार फिर से उसे चोदे। लेकिन उनलोगों में एक रात में दो बार चुदाई कभी नहीं हुई थी, तो आज भी नहीं हुई।

अगला दिन संडे था और विकास घर पे ही था और मकान मालिक वसंत चाचा कहीं बाहर गए हुए थे। आज जब शीतल अपने कपड़े लेकर आई तो उसकी पैंटी ऐसे ही थी। वो गौर से देखी, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। वो बाँकी दूसरे कपड़ों को देखने लगी की हो सकता है कि आज पैंटी की जगह ब्रा या किसी और कपड़े पर लगाया हो, लेकिन ऐसा नहीं था। शीतल को लगा की हो सकता है कि आज विकास घर पर है, इसलिए वो लड़का डर कर नहीं आया हो। शीतल खुश भी हुई लेकिन वो प्यासी ही रही उस मादक खुशबू के लिए।

शीतल का मूड ऑफ हो गया। विकास ने उससे पूछा भी की "क्या हुआ?" लेकिन शीतल कोई जवाब नहीं दी। शीतल की चुत में अंदर चींटियाँ चल रही थी। वो चाहती थी की विकास उसे आज दिन में ही चोद ले। लेकिन अपने संस्कार और शर्मों हया की वजह से वो रात में भी विकास को बोल नहीं पाई और विकास अपनी प्यासी बीवी को तड़पता हुआ छोड़ कर सो गया। वैसे भी वो लोग रोज सेक्स नहीं करते थे। विकास अगर चाहता भी था तो शीतल मना कर देती थी। और यही वजह है कि विकास आज कोई कोशिश ही नहीं किया था।

अब शीतल उस खुशबू के लिए पागल होने लगी थी। वो शाम का इंतज़ार कर रही थी की फिर से वीर्य को सूँघ पाए और उसे चाट पाए। वो जल्दी से छत पे जाना चाहती थी, ताकि ताज़ा वीर्य उसे मिले। लेकिन इसमें रिस्क था कि कहीं ऐसा न हो की वो लड़का उसकी पैंटी पे वीर्य गिरा ही ना पाए। और वैसे भी अभी छत पर वसंत चाचा थे।

वसंत के जाने के आधे घंटे तक शीतल बेचैनी से इधर उधर टहलती रही, ताकि उस लड़के को उसकी पैंटी पे वीर्य टपकाने का वक़्त मिल सके और फिर वो छत पे आ गयी। वो आते ही इधर उधर देखी की शायद कोई उसे दिख जाए, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। वो अपनी पैंटी उठायी।

उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। "उफ़्फ़" ताज़ा गरमा गरम वीर्य उसकी पैंटी पर चमक रहा था। वो वीर्य की खुशबू ली और उसकी चुत गीली हो गयी। वो बाँकी कपड़ों को उठायी और सीढ़ी पे आते ही वीर्य को सूँघने लगी और चाटने लगी। आज उसे वीर्य चाटने में कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही थी।

वो नीचे आयी और अच्छे से वीर्य देखने और सूँघने लगी और फिर अच्छे से उसे चाटने लगी। अब उसे यकीन हो गया था कि वीर्य बहुत टेस्टी और मज़ेदार चीज़ है। वो उसे अच्छे से टेस्ट करना चाहती थी।

अगले दिन शीतल वसंत चाचा के जाते ही सीढ़ी का गेट आपस में सटा दी और गेट के नीचे से झांककर अपने कपड़े देखने लगी। उसे पूरा यकीन था कि अब वो लड़का आएगा और उसकी पैंटी पे वीर्य गिरायेगा। वो देखना चाहती थी की वो लड़का कौन है, और क्या क्या करता है उसकी पैंटी के साथ। कैसे वीर्य गिराता है। वो कभी लण्ड से वीर्य निकलते नहीं देखी थी। विकास हर बार उसकी चुत के अंदर ही वीर्य गिराता था।

आधे घंटे हो गए और जब कोई नहीं आया तो शीतल उदास हो गयी। उसका मन हुआ की कपड़े छत पे ही छोड़ देती हूँ। हो सकता है कि वो नहीं आया हो, बाद में आये। शीतल टहलती हुई छत पे आयी और बेमन से कपड़े उठाने लगी। जैसे ही वो पैंटी उठायी तो उसका कालेजा धक्क से रह गया।

उसकी पैंटी गीली थी और उसपर वीर्य लगा हुआ था। शीतल इधर उधर देखी, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। उसे यकीन नहीं हुआ की ऐसा कैसे हुआ। वसंत चाचा के जाने के तुरंत बाद वो सीढ़ी पे आकर छुप गयी थी और तब से लगातार अपने कपड़े पे नज़र बनाये हुए थी, लेकिन छत पर कोई नहीं आया था।

शीतल कपड़े नीचे ले आयी और फिर से पैंटी को सूँघने चाटने लगी। अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वो जानना चाहती थी की कौन ऐसा कर रहा है। उसकी चुत गीली हो गयी थी। रात में फिर से वो विकास के बदन से चिपक कर सोने लगी तो विकास उसके बदन को सहलाने लगा।

वो विकास का साथ देने लगी और आज फिर से उसकी चुदाई हुई, लेकिन आज भी शीतल को उसी तरह लगा की कुछ कमी रह गयी है। विकास का वीर्य तो उसकी चुत में गिर गया लेकिन उसकी चुत का रस निकला ही नहीं। शीतल चुदवाने के बाद भी उसी तरह प्यासी रही, जैसे दिन में थी।

अगले दिन आज फिर से शीतल वसंत चाचा के जाते ही सीढ़ियों पर आ गयी और गेट सटा कर अपने कपड़ों को देखने लगी। उसे लगा की हो सकता है कि कल उसने ठीक से ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन आज भी कोई नहीं दिखा उसे। अभी 15 मिनट भी नहीं हुए थे की अब वो नहीं रुक पायी और छत पर आ गयी।

वो अपनी पैंटी के पास पहुँची तो उसके होश उड़ गए थे। उसकी पैंटी आज भी गीली थी और ताज़ा ताज़ा गरमा गरम वीर्य उसकी पैंटी पर चमक रहा था। शीतल शॉक्ड हो गयी थी। उसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था। उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि वो जो सोच रही है वो सच भी हो सकता है।

'क्या वसंत चाचा ऐसा करते हैं !!!!'
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#10
शीतल आज बहुत परेशान रही। उसने आज वीर्य के साथ कुछ नहीं किया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी पैंटी पे वीर्य उसका मकान मालिक वसंत चाचा गिरा रहा था। शीतल के दिमाग में पिछले 6 महीने के सारे दृश्य आँखों के सामने से गुजर रहा था और उसे एक भी वाकया ऐसा याद नहीं आया जब उसने वसंत को खुद को घूरते पाया हो या उसमे इंटरेस्ट लेते देखा जो। और बाँकी सारे लोग उससे बात करना चाहते थे, उसे घूरते थे, उसके बदन के उतार चढ़ाव को देखते थे, लेकिन वसंत चाचा ने कभी ऐसी कोई हरकत की हो, शीतल को ये याद नहीं था।

विकास के ऑफिस का पियोन मक़सूद उसे बुरी तरह घूरता था। शीतल उस दिन को याद कर रही थी जिस दिन शीतल पहली बार यहाँ आयी थी और उसका सामान शिफ्ट हो रहा था, तो मक़सूद को विकास ने यहीं बुला लिया था मदद करने के लिए। मक़सूद ऐसे उसके बदन को निहार रहा था कि शीतल का बदन हिल गया था और उसकी आँखों में शीतल खुद को नंगी महसूस कर रही थी। उसके बाद भी जब जब मक़सूद ने उसे देखा है, उसी तरह देखा है। लेकिन वसंत चाचा जैसा आदमी जिसने कभी उसे ठीक से नज़र उठा कर भी नहीं देखा, ऐसी कोई हरकत करेगा, ऐसा उसकी समझ से परे था। लेकिन अभी तक जो उसे समझ रहा था, उसमे से तो यही बात निकल कर आ रही थी।

शीतल अभी तक ये बात किसी को नहीं बताई थी। अपने विकास को भी नहीं। वसंत के जाने के बाद शीतल छत पर आयी और प्लान बनाने लगी की कैसे वसंत चाचा को ये ओछी हरकत करते रंगे हाथों पकड़ा जा सके। वो पूरा प्लान बना ली और नीचे अपने रूम में चली गयी।

शीतल दोपहर में छत पर जाकर सीढ़ी के बगल में बने स्टोर रूम में जाकर छुप गयी और देखने लगी की कैसे क्या होता है। 1 बजने वाले थे और वसंत के आने का वक़्त हो ही चला था। थोड़ी ही देर में बाहर का मेन गेट खुलने की आवाज़ हुई तो शीतल और सतर्क होकर बैठ गयी। उसे डर भी लग रहा था और अजीब सी फीलिंग हो रही थी।

अचानक से उसके दिमाग में ये आया की 'वसंत चाचा तो 2 घंटे तक यहीं रहेंगे और वो तो यहाँ से निकल भी नहीं पायेगी। और अगर वसंत चाचा मेरी पैंटी पे वीर्य नहीं गिराते होंगे और उन्होंने मुझे यहाँ छुपी हुई देख लिया तो फिर वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे।' अब तो वो यहाँ से निकल भी नहीं सकती थी। वो सीढ़ियों पर वसंत के चलने की आहट सुन रही थी और हर कदम के साथ उसकी धड़कन तेज़ हो रही थी।

वसंत ऊपर आया और सीधा चलता हुआ अपने घर में चला गया। जाते वक़्त वो शीतल की ब्रा पैंटी को देखता गया जो शीतल आज अच्छे से फैला कर सूखने के लिए टांगी थी। शीतल की डर से अब हालत खराब हो रही थी और वो सोच रही थी की किसी तरह से यहाँ निकला जाये। लेकिन वसंत के घर का दरवाजा खुला था तो वो यहाँ से बाहर नहीं निकल सकती थी।

लगभग 10 मिनट बीत गए थे और शीतल पसीने से भीग गयी थी। थोड़ी देर बाद वसंत अपने रूम से बाहर आया। उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और अभी लुंगी और गंजी में था। शीतल अपनी सांसों को रोक ली। वसंत शीतल की पैंटी के पास आया और उसे गौर से निहारने लगा। वो लुंगी के ऊपर से अपने लण्ड को सहला रहा था।

वसंत की लुंगी सामने से खुली थी और जब वो लण्ड सहला रहा था तो शीतल को उसकी नंगी जाँघ दिख रही थी। वसंत ने इधर उधर देखा और फिर पैंटी और ब्रा को रस्सी से उतारकर मुँह के पास लाकर सूँघने लगा। फिर वसंत चलता हुआ स्टोर रूम के सामने आ गया क्यों की यहाँ से उसे दूसरे छत से कोई नहीं देख पाता।

शीतल वसंत को अपनी तरफ आता देखी तो उसकी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे अटक गयी। वसंत अब स्टोर रूम के दरवाजे के ठीक सामने खड़ा था और दरवाजे में बने सुराख़ से उसके पीछे शीतल छुप कर वसंत को देख रही थी।

वसंत ने अब लुंगी को किनारे कर दिया और लण्ड बाहर निकाल कर उसे सहलाने लगा। शीतल और वसंत के बीच में मात्र 4-5 फिट का फासला था। शीतल की नज़र वसंत के लण्ड पर पड़ी और अचानक से शीतल को अपनी चुत पर चींटियाँ रेंगती हुई महसूस हुई। उसका मुँह खुला का खुला रह गया। 'इतना ब....ड़ा!' लण्ड इतना बड़ा भी होता होगा, ऐसा उसने सोचा भी नहीं था। पहली बार वो विकास के अलावा किसी और लण्ड देख रही थी और भी इतने करीब से।

वसंत ने शीतल की पैंटी को अपने लण्ड पर लपेट लिया और लण्ड को पकड़ कर हाथ आगे पीछे करने लगा। वसंत के एक हाथ में शीतल की ब्रा थी जिसे वो सूँघ रहा था और ऐसे मसल रहा था जैसे उसकी चुच्ची मसल रहा हो। वो ब्रा के निप्पल वाली जगह को चूम रहा था और दाँत में ऐसे फसा रहा था जैसे शीतल के निप्पल को दाँत से काट रहा हो। पैंटी को अपने लण्ड पे लपेट कर वो मुठ मारे जा रहा था।


वसंत के लण्ड को देखकर और उसे अपने पैंटी ब्रा के साथ इस तरह करता देख कर शीतल की चुत भी गीली हो गयी थी और साथ ही साथ उसे वसंत पे गुस्सा भी आ रहा था कि कितना नीच है ये इंसान। क्या यही वो इंसान है जिसके बारे में वो कितना अच्छा सोंचती थी और जिसके लिए उसके मन में कितनी इज़्ज़त थी।

थोड़ी देर तक वसंत इसी तरह करता रहा और फिर उसने ब्रा को स्टोर रूम की दिवार से बाहर निकले छड़ पर टाँग दिया और पैंटी को लण्ड से अलग कर लिया। उसने एक हाथ में पैंटी को अच्छे से इस तरह फैला लिया की उसके अंदर का वो हिस्सा जो चुत से सटा रहता है, वो उसके सामने था और दूसरे हाथ से लण्ड को सहलाता रहा।
[Image: 99346435_img_20180222_005630.jpg]
अब शीतल को लण्ड और अच्छे से दिख रहा था। लण्ड अभी अपने फुल साइज में था। शीतल गौर से लण्ड को देख रही थी। उसके लम्बाई मोटाई को मापने की कोशिश कर रही थी। विकास के लण्ड का दोगुना लम्बा और तीन गुना मोटा। शीतल को चुत में खुजली सी महसूस हुई और उसका हाथ अपने आप अपनी चुत पर चला गया।

वसंत का लण्ड अब वीर्य उगलने वाला था। उसने लण्ड को छोड़ दिया और पैंटी को लण्ड के सामने ले आया। लण्ड अभी पूरी तरह अकड़ कर खड़ा था और 2-3 सेकंड बाद उसने एक झटका मारा। वसंत ने लण्ड को फिर से हाथ से पकड़ लिया और लण्ड से एक मोटी सी सफ़ेद सी धार निकली और पैंटी पर चुत वाली जगह पे जमा हो गया। [Image: 99346695_img_20180814_234808.jpg]

शीतल आँख फाड़े वसंत के लण्ड को देख रही थी की किस तरह लण्ड से वीर्य गिरता है। लण्ड झटका मार रहा था और हर झटके के साथ ढेर सारा वीर्य शीतल की पैंटी पर जमा होता जा रहा था। शीतल की चुत अचानक से बहुत गीली हो गयी थी।

वसंत ने पैंटी को स्टोर रूम के छड़ पर ठीक से रखा और जल्दी से ब्रा उठाकर लण्ड के सामने ले आया। अब वो अपने बीर्य को ब्रा के एक कप में भर रहा था। थोड़ी देर तक झटके मारने के बाद जब लण्ड ने वीर्य गिराना बंद कर दिया तो वसंत ने ब्रा के दूसरे कप से अपने लण्ड को अच्छे से पोछ लिया।


वसंत ने अपने लुंगी को ठीक किया और फिर अपने वीर्य से भरी शीतल की पैंटी और ब्रा को उसी जगह पर जैसे टँगा था, उसी तरह टाँग दिया और अपने कमरे में चला गया। शीतल के चुत की खुजली काम नहीं हो रही थी। वो अपनी जगह पर ही थी लेकिन अब उसका हाथ कपड़ों के अंदर जाकर उसकी गीली चुत पर था। शीतल नाईट सूट वाले टॉप ट्राउजर में था और उसका हाथ ट्राउजर और पैंटी के अंदर चुत पे था। शीतल अपनी चुत को सहला रही थी और उसका मन कर रहा था कि ऊँगली को चुत में डाले, लेकिन वो स्टोर रूम में थी और वहाँ उतना जगह भी नहीं था और वो छिप कर बैठी हुई थी।

शीतल की आँखों के सामने वही दृश्य बार बार घूम रहा था जब वसंत उसकी पैंटी और ब्रा को अपने वीर्य से भर रहा था। शीतल का मन हुआ की अपनी पैंटी और ब्रा को उठा ले और उसे सूँघे, चाटे, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सकती थी। वसंत ने अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया और अच्छा मौका देखते ही शीतल चुपके से स्टोर रूम से निकली और नीचे अपने रूम में आ गयी।


उसकी साँसे तेज़ चल रही थी और आँखों के सामने वसंत का विकराल लण्ड घूम रहा था और उससे ढेर सारा वीर्य झटके मारता हुआ गिर रहा था। वीर्य उसकी पैंटी और ब्रा पे गिरा हुआ था, लेकिन वो उसे ला नहीं पा रही थी। उससे नीचे रहा नहीं जा रहा था और वो वसंत के जाने का इंतज़ार कर रही थी।

शीतल हॉल में सोफे पर बैठ गयी थी और ट्राउजर और पैंटी को नीचे करके अपनी टाँगों को फैला ली थी और चुत सहला रही थी। अब उसे अच्छा लग रहा था। उसकी चुत पूरी गीली थी। उसकी ऊँगली चुत के छेद पर थी और फिर ऊँगली सरकती हुई गीली चुत के अंदर जा पहुँची। शीतल को और मज़ा आया और वो चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा कर रही थी और उसे बहुत मज़ा आ रहा था।

वो पैंटी और ट्राउजर को पूरा नीचे कर दी और दोनों पैरों को पूरा फैलाकर चुत को अच्छे से फैला ली और सोफे पे अच्छे से लेटकर चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। उसे नहीं पता था कि ऐसा करने पर इतना मज़ा आता है। शीतल को अपनी चूचियाँ भारी और टाइट लगने लगी। वो अपने टॉप को और ब्रा को भी ऊपर कर ली और एक हाथ से अपनी चुच्ची मसलने लगी। उसे और मज़ा आने लगा। वो अपने ही निप्पल को मसल रही थी और चुचियों को हिला रही थी। [Image: 99346967_img_20180807_035314.jpg]

वो पागल हुई जा रही थी। ऐसी अगन उसके बदन में आजतक नहीं लगी थी। उत्तेजना में उसके मुँह से आह ऊह की आवाज़ निकल रही थी और वो जोर जोर से चुत में ऊँगली अंदर बाहर करती जा रही थी। उसकी कमर ऊपर उठी और उसके चुत ने पानी छोड़ दिया। शीतल को अपनी ऊँगली पे चारो तरफ से झरने की तरह पानी गिरता हुआ महसूस हुआ और उसकी साँसे धौकनी की तरह चलने लगी।

शीतल ऊँगली चुत से निकाल ली और सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ी। उसकी चुत से काम रस बहकर सोफे पे रिसने लगा। उसे बहुत मज़ा आया था। इतना मज़ा तो आजकल उसे विकास से चुदवा कर भी नहीं आया था। वो इसी तरह आँखें बंद किये सोफे पे लेटी रही।
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#11
Bhai english fornt me likho. Mujhe hinde parne nehi ati
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#12
थोड़ी देर बाद शीतल के अंदर के संस्कार और शरीफ औरत जागी। उसे बुरा लगने लगा की वो ये क्या कर रही है। वो ठीक से बैठ गयी और अपने कपड़े ठीक कर ली। वो खुद से शर्मा रही थी। आज पहली बार वो इस तरह कपड़े उतारकर अपनी चुत में ऊँगली की थी। 'मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और किसी और के बारे में सोचना भी पाप है। ये क्या हो गया था मुझे जो मैं इस तरह करने लगी थी। छिह... कितना गन्दा काम की मैं।'

शीतल को वसंत पे गुस्सा आने लगा की कितना घटिया इंसान है वो जो अपने से आधे उम्र की औरत के साथ ऐसा घटिया हरक़त करता है। 'ऐसा सोंचते हुए और करते हुए उसे घिन्न नहीं आयी। उसे बुरा नहीं लगा की वो मेरे कपड़ों को गन्दा कर रहा है। क्या मिला वसंत चाचा को ऐसा करके। आज विकास के आते ही मैं उसे ये सारी बात बताऊँगी और हम यह घर छोड़कर किसी और जगह घर ले लेंगे। दिन भर अकेली रहती हूँ। जो आदमी ऐसा सोचता है मेरे बारे में, पता नहीं कब क्या कर दे। नाह, मैं अब यहाँ रहूँगी ही नहीं।'

शीतल गहरी सोच में थी। उसके मन में कई तरह की बातें आती जा रही थी। 'ये मर्द जात होती ही ऐसी है। जहाँ सुन्दर औरत दिखी नहीं की लार टपकने लग जाती है। विकास ही कम है क्या। उस दिन दुकान में उस लड़की की क्लीवेज दिख रही थी तो कैसे झांक झांक कर देख रहा था उसे। उसके बगल में इतनी सुंदर बीवी थी, फिर भी वो दूसरे लड़की की चुच्ची झांक रहा था, वसंत चाचा तो फिर भी वर्षों से अकेले रहते हैं। लेकिन इन्होंने कभी मुझे घूरा नहीं है! क्या पता छुप छुप कर देखते हों। मैं थोड़े ही उन्हें देखते रहती थी की मुझे देख रहे की नहीं।'

'वो तो उनका बस नहीं चलता। वरना इस तरह अकेले में मेरे कपड़ों के साथ ऐसी छिछोरी हरकत करते हैं, तो मेरे बारे में सोंच कर ही करते होंगे। वो मेरी पैंटी और ब्रा पर नहीं, मुझे चोद कर मेरे चुत पे वीर्य गिराते होंगे। उनका बस चले तो पता नहीं क्या क्या करे मेरे साथ और कैसे कैसे करे। उन्हें शर्म भी नहीं। उनकी बेटी की उम्र की हूँ मैं।'

शीतल अपनी सोच में मगन थी। 'तो क्या हुआ। बेटी की ही उम्र की तो मक़सूद की भी हूँ। लेकिन वो तो ऐसे देखता है मेरे बदन को जैसे नंगी खड़ी हूँ मैं उसके सामने। और सिर्फ मक़सूद ही क्या, कितने लोग हैं जो इस तरह देखते हैं मुझे। और सब मेरे बारे में तो यही सब सोचते होंगे और सबके मन में ख्वाहिश तो यही होगी की मुझे चोदे, मेरे बदन को मसले। वसंत चाचा को मैं देख ली, बाँकी सब को नहीं देखी, बस यही अंतर है।'

'आखिर वसंत चाचा तो इतने सालों से अकेले रह रहे हैं। कम से कम मुझे मक़सूद या किसी और की तरह घूरते तो नहीं, मेरे बदन को आँखों से नापते तो नहीं। कम से कम मैं तो इतने दिन में कभी उन्हें खुद को देखते नहीं देखी। मुझे तो सब घूरते हैं। रिक्शेवाला, फलवाला, दुकानदार सब। और मेरे जैसी औरत को बिना घूरे रहना भी तो बहुत बड़ा काम है।'

'मेरे लिए ये कपड़े सामान्य हैं, मैं ऐसे ही कपड़े बचपन से पहनती आयी हूँ। लेकिन उनके लिए तो ये कपड़े बहुत ही सेक्सी होंगे। लेकिन मैं अब बुरका पहनकर भी तो नहीं रहूँगी। और मन में अगर कोई बात हो तो फिर कपड़ा कोई भी हो, अरमान तो मचलेंगे ही। फिर तो मैं साड़ी या सलवार सूट में भी आग लगाती हुई दिखूंगी उन्हें। मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं। और जितनी जल्दी हो सके यहाँ से घर बदल लूँगी।'

'जो इंसान इतने समय से बिना औरत के गुजारा कर रहा है, उसके सामने अचानक से मेरे जैसी कमसिन, हसीन और सेक्सी औरत आ जाये, तो उसके मन के सोये अरमान तो जागेंगे ही। वो तो सच में वसंत चाचा जैसा आदमी है जो मुझे देखता भी नहीं है और जो भी करता है छुप छुपा कर करता है। अगर इनकी जगह कोई मक़सूद जैसा कोई आदमी होता तो कब का मेरा रेप कर चुका होता। विकास तो मेरे से एक सप्ताह दूर रहकर ही पागल होने लगा था।'

'नहीं, अब उनके सामने भी नहीं जाऊँगी। क्या पता वो भी खुद को नहीं रोक पाए या कभी ऐसा हुआ की वो भी मेरा रेप कर ही न दें। दिन भर तो अकेली ही रहती हूँ मैं। अब ये घर तुरंत बदलना है और यहाँ से दूर हो जाना है। यही मेरे लिए भी ठीक है और वसंत चाचा के लिए भी।

वो अपनी सोच में ही डूबी रही और वसंत के जाने की आहट सुनकर वो अपने ख्यालों के भंवर से बाहर निकली। वसंत के जाते ही शीतल छत पर आ गयी और अपने कपड़े समेटने लगी। उसकी पैंटी और ब्रा दोनों अभी भी गीले ही थे। कपड़े उठाते वक़्त वो सोच रही थी की अब से पैंटी ब्रा को छत पर सूखने देगी ही नहीं।

शीतल सारे कपड़ों को रूम में रखी और पैंटी ब्रा को धोने बाथरूम में आ गयी। पैंटी पे सफ़ेद वीर्य अभी तक हल्का हल्का दिख रहा था। उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घूम गया। वसंत का लण्ड उसकी आँखों में चमक गया। उसके कितने सामने था। वो ब्रा भी देखने लगी। उसका भी कप अभी तक गीला था। शीतल लण्ड से वीर्य को गिरता देख रही थी की कैसे इतने बड़े और मोटे लण्ड से इतना सारा वीर्य गिरा था। शीतल कभी वीर्य को ऐसे गिरता नहीं देखी थी। विकास उसकी चुत में ही वीर्य गिराता था, लेकिन उसे अंदाज़ा था कि विकास के लण्ड से इसका आधा वीर्य भी नहीं गिरता होगा।


शीतल की चुत गीली होने लगी। फिर से उसपे खुमार छाने लगा। वो पैंटी को नाक के पास ले आयी और उफ़्फ़.... वही अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू उसके नथुने से टकराई जिसे वो अपने सीने में भरती चली गयी। वो वीर्य पे जीभ सटाई तो उसका वही टेस्ट मिला उसे जिसकी वो दीवानी थी। शीतल अपने जीभ की नोक से पैंटी पे लगे वीर्य को छुई थी तो अचानक से उसे एहसास हुआ की वो वसंत के लण्ड के टोपे पे जीभ सटाई है। उसे अजीब सा लगने लगा और वो शर्मा गयी।
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शीतल का हाथ फिर से ट्राउजर के ऊपर से अपनी चुत पर चला गया। उसे मज़ा नहीं आया तो वो हाथ को पैंटी के अंदर कर दी। उसके बदन में आग लग रही थी। वो वापस हॉल में आ गयी और पैंटी ब्रा को सोफा पर रख दी और फिर अपने ट्राउजर और पैंटी को पूरा उतारकर रख दी। अभी भी उसका मन नहीं भरा तो वो टॉप और ब्रा को भी उतार दी और पूरी नंगी हो गयी। उसका बदन फिर से आग में पूरी तरह से तप रहा था।

शीतल सोफा पर बैठ गयी और हाथ में पैंटी लेकर उसे चाटने लगी और इमेजिन कर रही थी की वसंत उसी तरह उसके सामने खड़ा है और उसके लण्ड को वो चाट रही है। उसने पैंटी को रख दिया और ब्रा को उठा ली और सूँघने चाटने लगी। उसे सुकून नहीं मिल रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे चुत के अंदर कुछ रेंग रहा हो। वो वसंत के वीर्य लगे पैंटी को चुत पे रगड़ने लगी और ऊँगली को चुत में डालकर ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो पागलों की तरह अपनी कमर उछालने लगी जैसे वो चुद रही हो और उसकी चुत में उसकी ऊँगली नहीं, वसंत का मोटा काला लण्ड हो।
[Image: 99432147_img_20190222_115507.jpg]
शीतल ब्रा के कप को अपने मुँह पे रख ली और हाथ के सहारे अपने जिस्म को ऊपर उठायी कमर उठाकर चुदवाने जैसे ऊँगली अंदर बाहर करते हुए कमर ऊपर नीचे करने लगी। वो जोर जोर से चुत में उँगली अंदर बाहर कर रही थी और इमेजिन कर रही थी की वसंत उसे फुल स्पीड में चोद रहा है। शीतल की चुत ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया और शीतल हाँफती हुई सोफे पे निढाल हो कर पड़ गयी। पहली बार से ज्यादा हाँफ रही थी शीतल और पहली बार से ज्यादा मज़ा भी आया था उसे।

शीतल फिर से सोफे पे ही पड़ी रही। उसकी आंखें बंद थी और चेहरे पे असीम सुख था। पूरा नंगा जिस्म पसीने से भीग गया था। हवा उसके जिस्म को ठंडक पहुँचा रही थी। शीतल इसी तरह लेटी रही और उसकी आँख लग गयी। वो इसी तरह नंगी ही सोफे पे ही सो गयी। [Image: 99432245_img_20180820_010601.jpg]


जब से शीतल बड़ी हुई थी, तब से ये पहली बार हुआ था कि वो इस तरह घर में नंगी हुई थी और नंगी सोई थी। यहाँ तक की शादी के बाद भी वो कपड़े पहनकर ही रूम से बाहर निकलती थी और बाथरूम या किचन में जाती थी। विकास बोलता भी था कि यहाँ कौन तुम्हे देख रहा है जो कपड़े पहनकर बाहर जा रही हो। ऐसे ही नंगी हो आओ बाथरूम से या नंगी ही सो जाओ, लेकिन शीतल शर्म की वजह से ऐसा कर नहीं पाती थी। चुदाई के बाद भी तुरंत ही वो अपने कपड़े पहन लेती थी, लेकिन आज वो आने मन से घर में नंगी हुई थी और एक के बाद एक और बार चुत में ऊँगली कर पानी निकाली थी और फिर नंगी ही सोई थी।

लगभग 5 बजे शीतल की नींद खुली तो उसे खुद पे शर्म भी आया और आश्चर्य भी हुआ की ये क्या हो गया है उसे आज। उसे अपनी हरकत पर बहुत बुरा भी लग रहा था और जो मज़ा उसे आया था, इससे उसे अच्छा भी लग रहा था। वो बाथरूम जाकर नहा ली और वसंत के वीर्य वाली पैंटी ब्रा को भी धो दी।
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#13
awwwww.... awesome
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#14
Nice update
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#15
शाम में जब विकास घर आया, तब तक शीतल वसंत के बारे में काफी कुछ सोच चुकी थी और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि विकास को बताये की नहीं और अगर बताये तो कैसे बताये। रात को खाना खाते वक़्त शीतल विकास से वसंत के बारे में पूछी "क्या हुआ था वसंत चाचा की वाइफ को?" विकास को भी बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं था। जो उसे मक़सूद ने बताया था, वही उसने शीतल को बता दिया "पता नहीं, बहुत पहले ही किसी रोड एक्सीडेंट में मर गयी थी शायद।"

शीतल फिर आगे पूछी "तो बच्चों का क्या हुआ? वो कहाँ हैं?" विकास बोला "उतना मुझे भी पता नहीं। बच्चे अब काफी बड़े हो गए हैं और बाहर ही रहते हैं कहीं। लेकिन वसंत चाचा यहीं रहते हैं, अकेले।" शीतल की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। पूछी "तो वसंत चाचा ने दूसरी शादी क्यों नहीं की। इनलोगों में तो 4 शादियाँ कर सकते हैं न। फिर भी इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की?" विकास हँसता हुआ बोला "मुझे क्या मालूम उन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की। लेकिन बस इतना पता है कि इन्होंने उसी वक़्त कह दिया था कि दूसरी शादी कभी नहीं करूँगा।

शीतल के स्वभाव के अनुसार वसंत पे उसे दया आने लगी की कोई इंसान इतने साल अकेले कैसे गुजार सकता है। घर के सारे काम और जिस्म की बाँकी जरूरतें... कैसे कोई खुद को इतनी तकलीफ दे सकता है। और ऐसे में अगर मेरे जैसी कोई औरत अचानक से इतने सामने रहेगी तो भला उसकी तकलीफ तो और बढ़ ही जायेगी। इसके बाद भी अगर ये इतने सालों से खुद पे काबू किये हुए हैं तो ये तो बड़ी बात है। ये तो सरासर मेरी गलती है और मुझे ही जल्द से जल्द यहाँ से दूर हो जाना चाहिए।


शीतल विकास को कुछ नहीं बताई। उसके दिमाग में बहुत उथल पुथल मची हुई थी। कभी उसकी नज़रों में वसंत की कोई गलती नहीं दिखती थी तो कभी उसे लगता कि वसंत गिरा हुआ आदमी है और कभी लगता कि वसंत की ऐसी हरकत का कारण उसका यहाँ आना था। शीतल 1 बजे तक काफी उधेड़बुन में थी। अपने दिमाग में चल रहे जंग की वजह से वो पैंटी ब्रा छत पर सूखने तो दे दी थी, लेकिन अब क्या करे वो निर्णय नहीं ले पा रही थी।

कभी वो सोच रही थी की पैंटी ब्रा वापस ले आये और फिर कभी सोचती की 'मेरे पैंटी ब्रा को हाथ में लेने और उसपे अपना वीर्य गिराने से अगर वसंत चाचा को संतुष्टि मिलती है तो मैं इसमें खलल क्यों डालूँ। कहीं ऐसा न हो की जो ख़ुशी उन्हें इतने सालों बाद मिली है, वो चीज़ भी छिना जाने से वो अपसेट न हो जाये। अकेला इंसान के मन में बहुत सारी बातें चलती रहती है। इसलिए जो वो कर रहे हैं, उन्हें करने देती हूँ। मैं सोच लूँगी की मुझे पता ही नहीं है और मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं। अगर मैं नहीं जानती होती तो मुझे क्या पता की कौन मेरे बारे में क्या सोचता है और मुझे सोच सोच कर क्या करता है। हो सकता है कि पहले भी मेरे पैंटी ब्रा के साथ कोई आदमी ये काम करता हो, लेकिन मुझे तो नहीं पता न।'


शीतल ये सब काफी देर से सोच रही थी। 'वो जो कर रहे हैं, उन्हें करने देने में ही उनकी भलाई है। और उन्हें थोड़े पता है कि मुझे पता है कि वो मेरे पैंटी ब्रा के साथ क्या करते हैं। पता नहीं कल क्या हो गया था मुझे। मैं तो पागल हो गयी थी। मुझे भी ये सब कुछ सोचना ही नहीं है। न तो मैं जानती हूँ की वसंत चाचा मेरे कपड़ों के साथ क्या करते हैं और न ही मैं अब इस बारे में कुछ सोचूंगी। जैसे पहले रहती थी, उसी तरह रहूँगी। इन सबसे बेखबर। जैसे पहले देर से कपड़े उठाकर लाती थी, उसी तरह अब फिर से भी जाऊँगी। तब तक वीर्य भी सुख जायेगी और मैं कोई मतलब नहीं रखूँगी।'

'म्म्म.... कितनी अच्छी खुशबू आती है लेकिन वीर्य की। और उनका लण्ड भी कितना बड़ा है। विकास का तो उसका आधा भी नहीं होगा। कल तो इतनी डरी हुई थी की ठीक से देख भी नहीं पाई थी। आज भी जाकर देख लूँ क्या। कितना सारा वीर्य निकलता है यार! पूरी पैंटी भीग गयी थी, ब्रा का एक कप भी भीग गया था। वो तो पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराएंगे ही, चाहे मैं छिप कर देखूँ या नहीं। तो क्यों न ऐसा करूँ की उन्हें अपना मज़ा लेने दूँ और मैं छिप कर अपना मज़ा ले लेती हूँ। उन्हें वीर्य गिराकर मज़ा आएगा और मुझे वीर्य गिरता देखकर और उसे सूँघ चाट कर। आखिर वो मेरी पैंटी है यार। इतना तो हक़ बनता है मेरा।'


सोचते सोचते 1 बजने वाले थे। शीतल उठी और छत पर स्टोर रूम में छिपने चल दी। 'अगर वसंत चाचा ने देख लिया तो? तो क्या, बोल दूँगी की मैं तो देखने आयी थी की कौन मेरी पैंटी ब्रा के साथ ऐसा करता है। मुझे क्या पता था कि ये आप हैं।' ऐसा सोचते ही शीतल का डर कम हो गया और वो अपनी जगह पे जाकर छिप गयी। हालाँकि इसके बाद भी उसके दिल की धड़कन जोरों से धड़क रही थी।


तय वक़्त पर वसंत घर आया और अपने रूम में चला गया और फिर थोड़ी देर बाद लुंगी गंजी में बाहर निकला। शीतल की धड़कन तेज़ हो गयी। वसंत ने पैंटी ब्रा को रस्सी से उतार लिया और स्टोर रूम के सामने आकर खड़ा हो गया। वसंत लुंगी के अंदर कुछ नहीं पहना हुआ था। उसने लुंगी साइड किया और उसका लण्ड चमक उठा। शीतल आज और अच्छे से लण्ड को देख रही थी। वसंत का लण्ड उसकी नज़रों से मात्र एक डेढ़ मीटर दूर होगा और अगर दरवाज़ा नहीं होता और शीतल छुपी हुई नहीं होती तो हाथ बढ़ा कर लण्ड को छू सकती थी।
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शीतल के हिसाब से वसंत का लण्ड बहुत ज्यादा लम्बा, काला और बहुत ही मोटा था और उसका सामने का हिस्सा पूरा चमकता हुआ दिख रहा था। वसंत फुल स्पीड में शीतल के नाम का मूठ मार रहा था और उसके ठीक सामने बैठी शीतल वीर्य के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी। उसे डर भी लग रहा था और मज़ा भी आ रहा था।

वसंत के लण्ड ने पिचकारी की तरह तेज़ धार के साथ सफ़ेद गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया जिसे वसंत ने शीतल के ब्रा के दोनों कपों में भर दिया और फिर तुरंत ही पैंटी को लण्ड पे दबा कर उसे भिगोने लगा।
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जब उसका लण्ड शांत हो गया तो उसने फिर से शीतल की पैंटी ब्रा को उसके जगह पे टाँग दिया और अपने कमरे में आता हुआ दरवाज़ा बंद कर लिया।

शीतल की चुत गीली हो गयी थी। उसका मन कर रहा था कि फिर से कल की तरह नंगी होकर इस वीर्य को चाटे, सूँघे। अब उसके लिए यहाँ एक लम्हा भी गुजारना मुश्किल हो रहा था। वसंत के रूम का दरवाज़ा बंद हो गया था तो शीतल धीरे से निकली और नीचे आने लगी। फिर वो सोचने लगी की 'वसंत चाचा तो अंदर चले गए और अब 3 बजे बाहर निकलेंगे। आज मैं उतनी देर तो पैंटी ब्रा छत पे नहीं रहने दूँगी। थोड़ी देर बाद ही उसे उठाकर नीचे ले आऊँगी।'

वो अभी अपने घर के गेट तक भी नहीं पहुँची थी की फिर वो सोची 'जब वसंत चाचा के जाने से पहले ही कपड़ों को नीचे ले आना है तो आधे घंटे बाद लाऊँ या अभी लाऊँ, क्या अंतर पड़ता है। आज मैं जल्दी कपड़े लेने आ गयी, इसमें कोई बड़ी बात तो नहीं।'

शीतल साधारण चाल चलती हुई छत पे आयी और ऐसे अपने कपड़े उठाने लगी जैसे उसे ये सब कुछ पता ही नहीं हो। अपनी पैंटी ब्रा को उठाते वक़्त ही उसकी नज़र ताज़ा वीर्य पर पड़ी और उसकी चुत पूरी गीली हो गयी। वो सारे कपड़े समेट तुरंत नीचे चल दी।

शीतल दौड़ती हुई नीचे आयी और बाँकी सारे कपड़े को टेबल पर फेंकी और वसंत के वीर्य से भीगी अपनी पैंटी ब्रा देखने लगी। पैंटी अलग अलग जगह से भीगा हुआ था लेकिन ब्रा के दोनों कप वीर्य से चिप चिप कर रहे थे। शीतल ब्रा को सूँघि। उसकी चुत तो पहले ही से गीली थी, अब और गीली हो गयी। शीतल तुरंत अपने सारे कपड़े उतार दी और पूरी नंगी हो गयी।

वो ब्रा को सूँघ रही थी और कप में लगे ताज़ा वीर्य में जीभ सटा कर उसका टेस्ट की। 'मम्मम.... वसंत चाचा.... कितना टेस्टी वीर्य है।' शीतल उस पैंटी को पहन ली। 'ये वीर्य मेरी चुत के लिए निकला होगा। इसे अपनी चुत से सटा तो लूँ। वसंत चाचा पैंटी पर वीर्य थोड़े गिराते हैं, वो तो मुझे चोद कर मेरी चुत में वीर्य गिराते हैं।' शीतल ब्रा को भी अपनी चुच्ची पे रख ली और पहन ली। वो पीछे हुक तो नहीं लगायी थी, लेकिन चुच्ची को कप में भर जरूर ली थी।

शीतल को बहुत मज़ा आ रहा था वीर्य लगे पैंटी ब्रा को पहनकर। वो हॉल में और रूम में इधर उधर टहलने लगी और खुद को आईने में देखी। वो आईने के सामने ब्रा को चुच्ची से अलग की तो उसकी चुच्ची वसंत के वीर्य से चमक रही थी। शीतल ब्रा को चेहरे पे रख ली और वीर्य को सूँघते हुए चाटने लगी। शीतल वापस हॉल में आ गयी और पैंटी उतारकर चुत में ऊँगली करने लगी।


शीतल फिर से पागलों की तरह कर रही थी। वो चुच्ची मसल रही थी, चुत में जोर जोर से ऊँगली कर रही थी। उसका मन नहीं भर रहा था। वो तड़प रही थी। फिर उसके चुत ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया। जोर जोर से साँस लेती हुई शीतल सोफे पे निढाल हो पड़ी।

थोड़ी देर बाद जब शीतल रिलैक्स हुई तो आज फिर से उसे आप पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन उसका आज का गुस्सा कल से कम था। इन 24 घंटों में उसके दिमाग में बहुत कुछ चला था और वो खुद को समझा चुकी थी की वसंत बहुत अच्छा आदमी है और शीतल अपनी चुत में ऊँगली कर और वसंत उसके कपड़े पर वीर्य गिरा कर कोई गलती या पाप नहीं कर रहे।

दौड़ कर नीचे आने और जल्दी से पैंटी ब्रा पे लगे वीर्य को सूँघने चाटने के चक्कर में शीतल अपने घर का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी। शीतल सोफे से उठी और नहाने जाने लगी तो उसकी नज़र दरवाज़े पर गयी। वो शॉक्ड हो गयी क्यों की वो अभी तक पूरी नंगी ही थी।

'हे भगवान ! मैं पागल हो गयी हूँ क्या ! ऐसे गेट खोलकर नंगी घूम रही हूँ और क्या क्या कर रही हूँ। कहीं किसी ने देखा तक नहीं।' शीतल दौड़ कर दरवाज़ा बंद कर दी। थोड़ी देर बाद वो रिलैक्स हुई। 'अभी कौन देखता। मेन गेट बंद ही है और वसंत चाचा तो अपने कमरे में होंगे और 3 बजे नीचे आएंगे। शीतल निश्चिन्त हो गयी और नहाने चल दी। चुत से पानी बहाने के बाद वो खुद को गन्दा गन्दा महसूस करने लगती थी और नहाने के बाद उसे फ्रेश लगता था।


रात में फिर शीतल विकास के साथ वसंत के बारे में ही बात कर रही थी। वो वसंत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रही थी। बोली "वसंत चाचा इतने साल से अकेले रहे कैसे। मुझे तो आश्चर्य लगता है। मतलब सोचो की खाना बनाना, बर्तन धोना, कपड़े साफ़ करना, घर साफ़ करना, फिर दूकान भी जाना। कभी तबियत खराब होती होगी तो कितनी परेशानी होती होगी" विकास बस शीतल की बात को सुन रहा था। बोला "हम्म... होती तो होगी ही। लेकिन ये तो अब वही जाने की कैसे अकेले रह रहे हैं इतने साल से।"

शीतल बोली "और इन सबके अलावा और चीज़ भी तो है। तुम मेरे से एक सप्ताह दूर रहे थे तो पागल बन गए थे। सोचो वसंत चाचा कितने साल से अकेले हैं।" विकास मुस्कुराता हुआ बोला "जिसके पास तुम्हारे जैसी मस्त बीवी हो, वो तो एक सप्ताह में पागल होगा ही।" फिर वो थोड़ा रोमांटिक होता हुआ बोला "मैं बहुत खुशनसीब हूँ की तुम्हारी जैसी खूबसूरत और अच्छी बीवी मेरी ज़िन्दगी में आयी।

अब हँसने की बारी शीतल की थी। बोली "इतनी भी तो खूबसूरत नहीं हूँ।" विकास ने शीतल को पीछे से पकड़ लिया और बोला "तुम माल हो। मस्त माल। सब तुम्हे हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। खुद मेरा लण्ड कितनी बार टाइट हो जाता है तुम्हारे गोरे चिकने बदन को देखकर। जब तुम्हारे रसगुल्ले को हिलता देखता हूँ तो होश खो बैठता हूँ। तुमसे दूर होकर तो मैं पागल ही हो जाऊंगा।" ऐसी तारीफ सुनकर शीतल भी खुश हो गयी और इमोशनल भी।

बोली "वही तो सोच रही हूँ की वसंत चाचा कैसे इतने साल से अकेले रह रहे होंगे। उन्होंने तो पूरी तरह खुद को अकेला कर लिया है। न तो किसी से ज्यादा बात करते हैं, न कहीं आते जाते हैं। न ही कोई उनके यहाँ आते जाते हैं।" विकास ऊब गया था। बोला "अब ये तो वही जाने। हम लोगों को इससे क्या। जब तक यहाँ हैं, तब तक है, फिर कहीं और चले जायेंगे। बस।"


लेकिन शीतल की सोच ऐसी नहीं थी। उसे वसंत चाचा से हमदर्दी हो गयी थी। बोली "कल रात में हम वसंत चाचा को खाने पर बुला लेते हैं। जो इंसान इतने सालों से अकेला ज़िन्दगी गुजार रहा है, उसे हम एक वक़्त डिनर तो करा ही सकते हैं। शायद हमसे थोड़ी देर बातें करके उन्हें कुछ अच्छा लगे।" विकास को इसमें कोई बुराई नहीं लगी। बोला "ठीक है, जैसी मैडम की इच्छा।" शीतल खुश हो गयी। बोली "तुम कल सुबह ही उन्हें बोल देना।"

अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते जुलते रहना, अच्छे से रिश्ते निभाना दोनों पति पत्नी को पसंद था और दोनों के परिवारों की यही आदत थी। लेकिन जब से शीतल यहाँ आयी थी तो अपने आप में और अपने गेस्ट में ही व्यस्त रही थी। कभी वो विकास के साथ बाहर घूमने चली गयी थी तो कभी उसके ससुराल वाले और मायके वाले यहाँ आ गए थे। इसलिए शीतल को ज्यादा मौका ही नहीं मिला था यहाँ लोगों से ज्यादा घुलने मिलने का।

विकास ने शीतल को अपनी बाँहों में भर लिया और बोला "क्या बात है, आजकल वसंत चाचा का ज्यादा ही ख्याल रखा जा रहा है।" विकास ने शरारती मुस्कान के साथ शीतल को छेड़ने के लिए इस बात को कहा था, लेकिन शीतल शर्मा गयी और अंदर से डर भी गयी। बोली "क्या तुम भी कुछ भी बोल देते हो। कहाँ वो 50-55 साल का आदमी और कहाँ मैं।"

विकास ने शीतल की नाइटी को ढीला कर दिया और उसे अपने बदन से चिपका लिया। शीतल भी कोई विरोध नहीं की। वो भी मूड में थी। दोनों रोज सेक्स नहीं करते थे। कभी कभी तो सप्ताह और 15 दिन भी हो जाता था। विकास उसे चूमता हुआ उसका बदन सहलाने लगा। शीतल खुद को नंगी होने दी और विकास के नंगे होने का इंतज़ार करने लगी। थोड़ी ही देर में दोनों पुरे नंगे थे और शीतल गौर से विकास का लण्ड देख रही थी।
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वसंत का लण्ड शीतल की नज़रों के सामने घूम गया। विकास का लण्ड उसका आधा भी नहीं था और पतला भी था। शीतल को लगा की ये तो किसी बच्चे का लण्ड है वसंत के लण्ड के सामने। शीतल विकास के लण्ड को हाथ में पकड़ ली और सहलाने लगी। वो लण्ड के चमड़े को आगे पीछे कर रही थी और फिर चमड़े को सुपाड़े से नीचे कर दी। अचानक ऐसे करने पे उसे दर्द हुआ और उसने शीतल को मना कर दिया।

शीतल उठ कर अच्छे से बैठ गयी और लण्ड को दोनों हाथों में लेकर सहलाने लगी। शीतल के इस रूप को देखकर विकास आश्चर्यचकित था। अब तक शीतल सेक्स में विकास को या तो करने दे देती थी और कभी कभार उसका साथ देती थी, लेकिन आज तो वो खुद लीड कर रही थी। अभी 2 दिन पहले भी शीतल पहल की थी, लेकिन आज तो वो हद ही कर रही थी।

विकास का लण्ड पूरा टाइट हो गया था। उसने शीतल को सीधा लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया। शीतल विकास के लण्ड को चूमना चाहती थी, उसके वीर्य की खुशबू लेना चाहती थी। लेकिन विकास शीतल के पैरों के बीच में आ गया और लण्ड को चुत के अंदर डाल कर धक्के लगा था। लण्ड के अंदर जाते ही और चुत के दिवार से रगड़ खाते ही शीतल भी गर्मा गयी और पैरों को अच्छे से फैला कर विकास को अपने अंदर सामने लगी।

विकास अचानक लण्ड को चुत में दबा कर शीतल के ऊपर लेट गया और हाँफने लगा। पहले तो शीतल को कुछ समझ ही नहीं आया और फिर उसे चुत के अंदर लण्ड का झटका और वीर्य की गर्मी महसूस हुई। शीतल शॉक्ड हो गयी। अभी तो वो शुरू भी नहीं हो पाई थी। अभी तो चुदाई शुरू ही हुआ था और विकास ने हार मान लिया। विकास इतनी जल्दी भी ख़त्म नहीं होता था, पता नहीं आज उसे क्या हुआ था कि 8-10 धक्के लगाते ही वो झड़ गया था।

थोड़ी देर बाद विकास शीतल के ऊपर से उतर गया और बगल में होकर सो गया। शीतल को नींद नहीं आयी और वो अपनी प्यासी चुत लिए रात भर करवट बदलती रही।
[Image: 99643826_img_20180424_072122.jpg]
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#16
weldone bhai....
thanks dear
is kahani ko repost karne ke liye... aur wo bhi hindi fonts me....
keeo posting
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#17
Bhaiya iska English font me hai?? Pdf mil Sakta hai kya??
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#18
दिन में शीतल फिर से दोपहर का वेट कर रही थी। अब उसके मन में कोई द्वन्द नहीं चल रहा था। उसने खुद को समझा लिया थी की वसंत चाचा अच्छे आदमी हैं और इतने वर्षों से अकेले रह रहे हैं। मैंने उनके सोये अरमान जगा दिए हैं। उनका मन करता होगा की मेरे साथ वक़्त बिताने का, मेरे बदन को छूने का, लेकिन वो खुद को सम्हाले हुए हैं। मेरी तरफ देखते भी नहीं की पता नहीं मैं क्या सोचूँ और इसलिए छिप कर मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराते हैं।

उन्हें इसी से ख़ुशी मिलती है तो भला मैं क्यों उसमे खलल डालूँ। वो भिगोते रहे मेरे पैंटी ब्रा को अपने वीर्य से, इसमें मेरा कोई नुकसान तो नहीं है, और मुझे भी तो अच्छा लगता है उनका वीर्य सूँघकर। उन्हें पता तो है नहीं की मैं उन्हें रोज अपना लण्ड हिलाते देखती हूँ और फिर उनके वीर्य को सूँघती चाटती हूँ। वो अपना मज़ा करते रहें और मैं अपना मज़ा लेती रहूँगी।


एक बजने में जब कुछ देर बाँकी था तो वो जाकर अपने जगह पे छिप गयी। शीतल आज अपनी ट्रांसपेरेंट डिज़ाइनर पैंटी ब्रा को सूखने के लिए दी थी और अच्छे से फैला कर उसे टाँगी थी। वसंत को जब मज़ा मिल ही रहा था तो अच्छे से मिलता। पैंटी ब्रा इस तरह टाँगी गयी थी की किसी की भी नज़र उसपे चली जाती। वसंत जब अपने रूम में जा रहा था तो शीतल की सेक्सी पैंटी ब्रा को देखता जा रहा था।


रोज की तरह वसिम लुंगी गंजी में रूम से निकला और शीतल की पैंटी ब्रा को उठा कर स्टोर रूम के सामने खड़ा हो गया। आज न तो शीतल की सांसें तेज़ चल रही थी और ना ही धड़कन। शीतल अब पूरी तरह से मज़बूत थी। वसंत ने अपने लुंगी को किनारे किया और लण्ड को सामने कर उसे हिलाने लगा।

थोड़ी ही देर बाद उसने लुंगी को नीचे गिरा दिया और नीचे से नंगा हो गया। छत के इस हिस्से से उसे कोई नहीं देख सकता था। उसका मोटा लण्ड उसके हाथ में एक मोटे डंडे की तरह चमक रहा था और वसंत उसे पकड़ कर आगे पीछे करता हुआ शीतल के नाम की मुठ मार रहा था। और शीतल उससे कुछ ही कदम दूर बैठ कर उसे ऐसा करता देख रही थी।

लुंगी नीचे गिरते ही अब शीतल के दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। अब वसंत का लण्ड पूरी तरह उसके सामने चमक रहा था। वो और अच्छे से उस मोटे लण्ड को देख रही थी। थोड़ी देर तक वसंत उसके पैंटी ब्रा को चूमता मसलता रहा और लण्ड को हाथ में पकड़ कर आगे पीछे करता रहा। फिर उसने पैंटी को लण्ड के सामने कर के फैला दिया और वसंत का लण्ड झटके मरता हुआ वीर्य फेकने लगा।

शीतल को साफ साफ वीर्य निकलता हुआ दिख रहा था। पूरा लण्ड अच्छे से उसकी नज़रों के सामने था। आज उसने वीर्य सिर्फ पैंटी पे गिराया और ब्रा के कप से अपने लण्ड को पोछ लिया। शीतल की पैंटी पूरी भर गयी थी वसंत के वीर्य से। वसंत ने लुंगी पहन लिया और पैंटी ब्रा को उसकी जगह पर टाँग कर अपने घर में आ गया और गेट बंद कर लिया।


अब वसंत के अंदर गए 2 मिनट भी नहीं हुए थे, लेकिन शीतल के लिए इंतज़ार करना मुश्किल हो रहा था। शीतल धीरे से स्टोर रूम से बाहर निकली और अपने कपड़े समेटने लगी। अभी उसकी चुत गीली थी और उसका बदन काँप रहा था। उसकी पैंटी पे वसंत का वीर्य अभी भी उसी तरह लगा हुआ था। शीतल जल्दी से नीचे आयी और गेट बंद करते हुए वो बाँकी सारे कपड़ों को टेबल पे फेंक कर उस वीर्य से भरी पैंटी को अपने चेहरे पे रख ली। पैंटी पे लगा वीर्य उसके चेहरे को भिगोने लगा और उसकी मदहोश कर देने वाली खुशबू उसके सीने में भरती चली गयी।

शीतल तुरंत अपने सारे कपड़े उतार फेंकी और पूरी नंगी होकर अपनी चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो वीर्य चाट रही थी। वो पागलों की तरह अपने बदन को हिला रही थी। वो ऊँगली को और अंदर लेना चाह रही रही लेकिन ऊँगली अब और अंदर नहीं जा सकता था। वो छटपटा रही थी। कभी इधर से ऊँगली डालने की कोशिश कर रही थी तो कभी उधर से। कभी चुत को सोफे पे रगड़ रही थी तो कभी टेबल पे। फिर उसकी चुत से जब काम रस निकला तब उसे राहत मिला।

शीतल फिर से नंगी ही सोफे पे सो रही और जागने के बाद भी शाम तक नंगी ही घर के काम करती रही। नंगे रहने पे उसे अच्छा लग रहा था। वसंत के वीर्य ने उसके अंदर के काम ज्वाला को भड़का दिया था। जो शीतल कभी नंगी नहीं रहती थी, वो अब हमेशा नंगी ही रहना चाहती थी। विकास के आने से पहले वो नहा कर फ्रेश हो गयी और विकास का इंतज़ार करने लगी। वो शाम के दावत का इंतज़ार कर रही थी।

विकास के आने के बाद पता चला की विकास ने वसंत को आमंत्रित ही नहीं किया था। शीतल उससे झगड़ा करने लगी और डाँटने लगी। विकास ने तुरंत ही वसंत को कॉल किया और उसे अपने यहाँ आज रात के खाने पे बुला लिया। वसंत को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी। वो आसानी से तैयार हो गया।


विकास खाना बनाने में अपनी खूबसूरत पत्नी की मदद करने लगा। दोनों बातें कर रहे थे की वसंत चाचा इतने लंबे वक़्त से अकेले रह रहे हैं और खुद सारा काम कर रहे हैं तो हम काम से कम सप्ताह में एक बार तो उन्हें अपने यहाँ लंच या डिनर पर आमंत्रित कर ही सकते हैं।

शीतल वसंत पे दया दिखाते हुए उसे अपने यहाँ बुलाई थी। वसंत को बहुत कम मौका मिलता होगा उसे देखने का। दिन भर वो रहता नहीं था और जब रहता भी था तो उस वक़्त शीतल अपने घर के अंदर रहती थी। शीतल को लगा की 'वो मेरे से मिलेगा, मेरे से बातें करेगा तो उसके अंदर जो कुंठा दबी हुई है, हो सकता है कि वो बाहर निकले और फिर उसे अच्छा लगे। वो चाहते होंगे की मेरे से बात करें, मेरे करीब आएं लेकिन डर शर्म झिझक की वजह से ऐसा कर नहीं पाते होंगे। वो अंदर ही अंदर खुद को दबाये हुए हैं, घुट रहे हैं। उनके अंदर की घुटन को निकालने की जरूरत है।'

वसंत के आने का वक़्त हो चला था तो वो तैयार होने चली गयी। शाम से वो बहुत सोच चुकी थी की वो क्या पहने और आखिर में यही सोची की उसे साड़ी ही पहनना चाहिए। शीतल जो साड़ी चुनी थी वो एक डिज़ाइनर साड़ी थी। शीतल साड़ी को नाभि से 4" नीचे से पहनी थी और उसकी चिकनी पेट और कमर वसंत पे बिजली गिराने के लिए तैयार थे। स्लीवलेस ब्लाउज से उसकी क्लीवेज बाहर झाँक रही थी। पीठ पर बस एक पट्टी थी और उसकी गोरी चिकनी पीठ चमक रही थी। शीतल तैयार हो गयी और वो बेहद ही हसीन लग रही थी। साड़ी का आँचल ट्रांसपेरेंट था जिसके अंदर से उसकी चिकनी पेट और ब्लाउज के उभार झलक रहे थे।

ऐसा नहीं था कि शीतल आज कुछ नया कर रही थी। उसकी ज्यादातर साड़ियां ऐसी ही थी। यही तो परेशानी थी उसकी। उसके लिए ये साधारण सी बात थी, लोग उसे देखते ही थे। वो इतनी खूबसूरत है तो भला इसमें वो क्या कर सकती है। वो कभी भी उनकी परवाह नहीं की जो उसे ललचाई नज़रों से देखते थे। लेकिन वसंत उसे देखता नहीं है। खुद की इच्छा को दबा लेता है और अंदर ही अंदर घुट रहा है। और यही वजह है कि उसे वसंत से हमदर्दी हो गयी थी। वो उसकी मदद करना चाहती थी। वो चाहती थी की वसंत उसे देखे, उससे बातें करे। अपने दुःख दर्द को उससे साझा करे।

शीतल हमेशा ऐसे ही कपड़े पहनती थी, फिर भी विकास ने उसे छेड़ते हुए कहा "आज तो वसंत चाचा पे तुम बिजलियाँ गिराने वाली हो।" शीतल शर्मा कर मुस्कुरा दी और बोली "धत...क्या तुम भी।" वैसे उसका इरादा यही था।

वसंत खान 52 साल का हो चूका था और उसकी बीवी को मरे 20 साल हो चूका था। वो बहुत शरीफ और शांत आदमी था। मोहल्ले में और शहर में उसकी इज़्ज़त थी। बाज़ार में उसके जूतों की काफी पुरानी दुकान थी। वसंत एक शरीफ आदमी था और कोई आदमी ऐसा नहीं था जो उसपे ऊँगली उठा सके। बच्चों के बड़े हो जाने के बाद पिछले काफी समय से वो अपनी जिंदगी अकेले ही गुजार रहा था।

जब उसने विकास को अपना घर पे किराये पे दिया था तो उसे नहीं पता था कि उसकी शांत ज़िन्दगी में अब हलचल मचने वाली है। वसंत भले ही अकेला रहता था लेकिन औरत नाम की बला की कभी उसे जरूरत महसूस नही हुई। हाँ अपने दोस्तों मक़सूद और फ़िरोज़ के साथ कभी कभी वो रंडियों के पास जाता था, लेकिन वो भी तभी जब वो लोग ज़िद करते थे और वो भी छः महीने साल भर पे।

शीतल को उसने पहली बार उसी दिन देखा था जिस दिन वो पहली बार यहाँ आयी थी और घर का सामान शिफ्ट कर रही थी। शीतल नीचे ज़मीन पे बैठी हुई कोई पैकेट खोल रही थी। शीतल थी तो लेग्गिंग्स कुर्ती में, लेकिन नीचे बैठे होने की वजह से वसंत को उसके सीने के उभार बाहर झांकते दिखे थे। उसका कसा हुआ बदन और नयी दुल्हन का श्रीगार देख कर वसंत के मन में हलचल मच गयी थी। माँग में चमकता हुआ सिन्दूर, माथे पे बिंदी, सीने के उभारों पर लटकता हुआ मंगलसूत्र और हाथों की चूड़ियों ने वसंत के मन के तालाब में कंकर मार दिया था और शांत जल में लहरें खेलने लगी थी।

उस दिन शाम में मक़सूद जब उसके दूकान पर आया था तो शीतल के बारे में बहुत देर तक बोलता रहा था। "क्या माल है मेरे बॉस की, कितना मस्त बदन है साली का, क्या मस्त चूचियाँ हैं, क्या मस्त गांड है। खूब दबा कर चोदता होगा विकास सर। उसपर से अभी नयी नयी शादी हुई है तब तो रात रात भर चुदाई ही चलती होगी।" वसंत बस सुनता रहा था। उसके बाद शीतल जब भी उसे दिखी थी तो उसके दिल में कुछ हुआ था। शीतल उसके बदन में हलचल मचा जाती थी। कभी साड़ी में तो कभी शॉर्ट्स में तो कभी कुर्ती में तो कभी वन पीस में।

वसंत शीतल को अच्छे से देखना चाहता था, उसके करीब आना चाहता था, लेकिन फिर उसे अपने और शीतल विकास के उम्र का ख्याल आया। वसंत ने अपने आपको सम्हालना शुरू किया लेकिन ये नशा जिसपे चढ़ जाए वो कैसे खुद को सम्हाल सकता है। एक दिन जब वसंत दुकान जाने के लिए सीढ़ियों से उतर रहा था तो शीतल अपने घर से बाहर निकली। अचानक से इस तरह शीतल को देख कर वसंत के दिल की धड़कन रुक गयी थी। शीतल ट्राउजर और टॉप पहने हुए बाहर निकली और सब्जी वाले से सब्जी ले रही थी।

वसंत शीतल के बगल से होता हुआ रोड पर आ गया और उसकी नज़र शीतल के बदन पर पड़ी। आज वो बहुत करीब से शीतल के बदन के कटाव को देख रहा था। अचानक से वसंत की नज़र शीतल की चुचियों पर गयी। टाइट टॉप के ऊपर से शीतल का बायां निप्पल का उभार दिख रहा था। वसंत की साँस रुक गयी और नज़र वहीँ अटक गयी। अगले ही पल उसे ध्यान आया की वो रोड पर है तो वो अपने रास्ते आगे बढ़ गया।

आज दिन भर वसंत शीतल के बारे में ही सोचता रहा। अच्छी बातें भी और बुरी बातें भी। 'इस तरह निप्पल दिखाते हुए रोड पे है, कपड़े पहनने का सलीका नहीं है, इतनी भी अकल नहीं की अब वो कुँवारी लड़की नहीं है, शादी शुदा औरत है। इस तरह तो रंडियाँ भी नहीं करती यहाँ। पता नहीं कैसी औरत है। पहले भी किसी से चक्कर रहा होगा। ऐसी औरतों का ही ऐसा काम है।' दोपहर में जब वो वापस आया तब भी शीतल और उसके निप्पल के उभार उसके दिमाग में घूम रहे थे।

ऊपर छत पे आते ही उसकी नज़र शीतल के कपड़ों पर गयी और जब उसने कपड़े बदल लिए तो बाहर आकर वो अच्छे से शीतल के कपड़ों को देखने लगा। उसे शीतल की पैंटी ब्रा दिखी तो उसका लण्ड टाइट होने लगा। यही पैंटी उसकी चुत पे रगड़ाती होगी, इसी ब्रा में वो मुलायम चुच्ची और निप्पल रखे जाते होंगे। वो पैंटी ब्रा को अपने लण्ड पर लगा कर रगड़ने लगा और फिर थोड़ा किनारे होकर स्टोर रूम के गेट के सामने होकर अच्छे से पैंटी ब्रा देखने लगा और लण्ड पे रगड़ने लगा।

वो इमेजिन कर रहा था कि शीतल की चुच्ची को मसल रहा है और उसे चोद रहा है। जब उसके लण्ड से वीर्य निकलने वाला था तो उसने पैंटी पर वीर्य को गिरा दिया और फिर उसे वापस से उसी जगह पर रख दिया जहाँ से उसे उठाया था। वसंत को बहुत मज़ा आया था और फिर रोज वो इस काम को करने लगा था। उस दिन के बाद से वसंत शीतल के बारे में बहुत कुछ सोचने लगा था और दिन प्रतिदिन शीतल के बारे में उसकी भूख बढ़ती जा रही थी लेकिन इसके साथ ही वो खुद पे और काबू रखता जा रहा था।

आज जब विकास के उसे अपने यहाँ खाने पे बुलाया था तो उसे जाने में कोई बुराई नज़र नहीं आयी थी। बस उसने खुद को याद दिला लिया था कि शीतल के सामने उसे खुद पर नियंत्रण रखना है। वो अपने वक़्त पे घर आ गया और फ्रेश होने लगा। उसने सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन लिया था और फिर विकास के घर पर आ गया। शीतल बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही थी और गेट पर नॉक होते ही वो दौड़कर गेट खोली। विकास टीवी देख रहा था और जितनी देर में वो उठता, तब तक शीतल गेट खोल चुकी थी।

गेट खुलते ही जैसे वसंत पर बिजली गिर पड़ी। वसंत ने शीतल को जब भी देखा था तो दूर से देखा था। इतने करीब से शीतल को देखने का पहला मौका था उसका। और वो भी तब जब शीतल पूरी तरह से सजी संवरी हुई थी। वसंत का बदन सिहर उठा।

शीतल बिजली गिराते हुए दरवाजे के बीच में खड़ी थी। ट्रांसपेरेंट साड़ी के अंदर से झाँकता हुआ गोरा चिकना कमसिन बदन। मांग में सिन्दूर, माथे पे लाल बिंदी, आँखों में काजल, होठों पर मैरून लिपस्टिक, कानो में लटकती हुई बालियां, गले में एक चेन क्लीवेज तक और मंगलसूत्र ब्लाउज के ऊपर से होते हुए पेट तक, कसे हुए ब्लाउज के ऊपर से झाँकती हुई चूचियाँ, गोरा चिकना पेट नाभि के नीचे तक, दोनों हाथ साड़ी से मैच करती हुई चूड़ियों से भरी हुई, पैरों में पायल, साक्षात अप्सरा लग रही थी शीतल शर्मा। वसंत उसे देखता ही रह गया। उसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी।


जब शीतल मुस्कुराती हुई खनकती आवाज़ में "आइये न चाचा जी" बोलती हुई दरवाजे के आगे से हटी, तब वसंत झटके से होश में आया। वसंत "आं...हाँ.... बोलता हुआ अंदर आया। अंदर जाती हुई शीतल विकास को आवाज़ लगायी "उठिये न, देखिये वसंत चाचा आये हैं। कब से टीवी ही देख रहे हैं।" वसंत शीतल की गोरी चमकती हुई पीठ और कमर में हो रही थिरकन को देखकर सम्मोहित सा हो गया था। विकास तब तक वसंत का स्वागत करने के लिए उठ चुका था। बोला "आइये अंकल, बैठिये। कैसे हैं? वसंत अब सम्हल चूका था। "सब बढ़िया, आप सुनाइए।" बोलता हुआ सोफे पर बैठ गया।

विकास और वसंत बातें करने लगे थे। शीतल तुरंत ही किचन से एक ट्रे में पानी और कोल्डड्रिंक गिलास में लेकर आ गयी और मुस्कुराते हुए दोनों को सर्व की। शीतल के झुकते ही उसकी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर छलकने को मचल जाती थी। शीतल वापस किचन में चल दी। बहुत मुश्किल से वसंत खुद को शीतल के ब्लाउज में झाँकने से और किचन में वापस जाते वक़्त उसकी कमर और गांड देखने से रोक पाया।

शीतल भी एक ग्लास में कोल्डड्रिंक लेकर उनलोगों के पास आ गयी और एक सोफा पर बैठकर उनके बातचीत का हिस्सा बनने की कोशिश करने लगी। उसका मकसद बस यही था कि वो वसंत की नज़रों के सामने रहे ताकि वसंत उसे अच्छे से देख पाए। लेकिन वसंत शीतल की तरफ एक बार भी नहीं देख रहा था और न ही उससे बात कर रहा था।

थोड़ी देर बाद शीतल खाना लगा दी। शीतल जान बूझकर वसंत को खाना सर्व करने में ज्यादा वक़्त लगा रही थी, लेकिन वसंत उसकी तरफ देख ही नहीं रहा था। शीतल ऐसे ही बहुत खूबसूरत थी और आज ये साड़ी और मेकअप के साथ तो वो क़यामत ढा रही थी। वसंत पे क्या असर पड़ रहा था ये तो वसंत जाने, लेकिन अपनी बीवी को देखकर विकास का लण्ड जरूर करवट ले रहा था।

विकास और वसंत में कई तरह की बातें होती रही और धीरे धीरे बात वसंत के ज़िन्दगी पे आ गयी और वसंत ने बताया ने की उसने अपनी बेगम के इंतेक़ाल के बाद दूसरा निकाह क्यों नहीं किया। एक तो वो अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था और उसके बाद 2 और लड़कियों के करीब आया लेकिन उसमे भी उसे धोखा ही मिला तो फिर तभी उसने फैसला कर लिया की अब कभी दूसरा निकाह करेगा ही नहीं। विकास के ये पूछने पर की "इतना लंबा वक़्त हो गया तो कभी जिस्मानी जरूरत महसूस नहीं हुई।" वसंत बस मुस्कुरा कर रह गया।

खाना खाने के थोड़ी देर बाद वसंत ऊपर अपने घर चला गया। शीतल खाना खाने बैठी तो विकास बोल पड़ा "आज तो वसंत चाचा पे क़यामत ढा रही थी।" शीतल हँस पड़ी। बोली "क्या तुम भी, फिर शुरू हो गए।" शीतल थोड़ी देर रुकी और फिर बोली " इतना सजना तो बेकार हो गया न, वसंत चाचा ने तो देखा ही नहीं मुझे।" शीतल इस तरह बोली थी की विकास भी साथ में हँस पड़ा।

विकास उसे वसंत के साथ हुई अपनी बातचीत के बारे में बताया तो शीतल बोली "कितने शरीफ और नेक इंसान हैं वसंत चाचा। इतने दिनों में मैं पहला इंसान ऐसा देखी हूँ जो मुझे घूरते नहीं और देखने का मौका मिलने पर भी देखते नहीं। वो भी तब जब वो इतने सालों से अकेले अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। नहीं तो मैंने हर किसी को छिपा कर या दिखा कर आँखों से अपने बदन को नापते देखा है। मुझे पता है मर्द लोग कैसे होते हैं, औरत का जिस्म देखने का कोई मौका नहीं छोड़ते।"

विकास चुप रहा। शीतल सही कह रही थी। वो खुद ऐसा था। औरत को देखने का मर्दों का नजरिया ही दूसरा होता है। थोड़ी देर बाद विकास बोला "तो तुम वसंत चाचा को दिखाने के लिए ही इतना सजी थी।" उसने ये बात मज़ाक में कहा था क्यों की उसे पता था कि शीतल इसी तरह मेकअप करती है। शीतल भी मज़ाक में ही जवाब दी "तो, तुम्हे क्या लग रहा था कि तुम्हारे लिए की हूँ। वो आज पहली बार हमारे घर आये तो उनके लिए ही तैयार हुई न। लेकिन हाय रे मेरी किस्मत, इतना मेहनत की लेकिन उन्होंने मुझे देखा तक नहीं।" फिर से दोनों साथ में हँसने लगे।


शीतल रूम में आ गयी थी और अपनी साड़ी और ज्वैलरी उतारने लगी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसकी इतनी मेहनत बेकार गयी। कितने जतन से वो सजी थी ताकि वसंत उसे अच्छे से और नज़दीक से देख पाए और उसे अच्छा लगे। वो उससे बात करे, हँसी मज़ाक करे और अच्छा महसूस कर पाए, लेकिन बात करना तो दूर, उसने देखा तक नहीं ठीक से। 'इतना भी क्या शरीफ बनना और इतना भी क्या खुद पे नियंत्रण रखना की सामने हो तो देखना भी नहीं और बाद में पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर उसे चोदने का सोचते हुए बीर्य निकलना और फिर उसी पैंटी ब्रा को वीर्य से गीला कर देना। जब इतना ही है तो फिर बाथरूम में वीर्य गिराइए, मेरी पैंटी ब्रा को क्यों भिगोते हैं।'


शीतल नाईट सूट पहन ली और बिस्तर पर आ गयी। विकास का लण्ड तो पहले से ही टाइट था, उसने शीतल के बदन पे हाथ लगाया तो शीतल उसे मना कर दी। 'मुझे नहीं चुदवाना इस बच्चे टाइप के लण्ड से। 2 मिनट होगा नहीं की वीर्य टपका कर खुद तो सो जायेगा और फिर मैं रात भर तड़पती रहूँगी। एक तो वो वसंत चाचा हैं जिनके पास इतना बड़ा मोटा मूसल टाइप का लण्ड है और उसका वीर्य वो मेरे पैंटी ब्रा पे बहा देते हैं ये सोचकर की मुझे चोद रहे हैं, लेकिन सामने मिलने पर देखते तक नहीं। दोनों का काम मुझे तड़पाना है। वो अकेले में तड़पेंगे और ये चैन की नींद सोयेगा। इसलिए तुम भी तड़पो पतिदेव, तुम दोनों तड़पो। तुम्हे चुत हासिल है पर मैं दूँगी नहीं और वसंत चाचा ने तो खुद सोच रखा है कि उन्हें तड़पना है। शीतल बहुत कुछ सोचती हुई सो गयी।
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#19
वसंत रूम में घुसते ही नंगा हो गया और अपने टाइट लण्ड को सहलाने लगा। नीचे शीतल जैसी गर्म माल उसके लिए तैयार होकर बैठी थी लेकिन वो उसे ठीक से देख भी नहीं पाया। उसे खुद पे गुस्सा भी आ रहा था और उसे शीतल की हरकतें भी याद आ रही थी। वो शीतल के कातिल बदन को याद करता हुआ लण्ड सहलाने लगा और फिर वीर्य निकलने के बाद ही वो सो पाया।

वो शीतल को पाना चाहता था, उसके नंगे बदन से खेलना चाहता था, उसकी गोल और नर्म मुलायम चुचियों को जोर जोर से मसलना चाहता था, उसकी चुत में अपना वीर्य भरना चाहता था। लेकिन उसे डर लगता था अपनी बदनामी से, समाज से। शीतल उससे आधे उम्र की थी और शादी शुदा औरत थी, किसी और का हक़ था उसपे। अपने मन में वो शीतल के बारे में बहुत कुछ सोचता रहा। अगर वो सही समझ रहा था तो वो शीतल को पा सकता था और जहाँ तक रिस्क नहीं था वहाँ तक तो चेक किया ही जा सकता था।


अगले दिन दोपहर होते ही शीतल वसंत के लण्ड का दर्शन करने के लिए अपनी जगह पर पहुँच गयी। अब शीतल को बिल्कुल डर नहीं लगता था और वो ऐसे स्टोर रूम में बैठ गयी थी जैसे ये कोई सामान्य सी साधारण सी बात हो। वो अपने मन में सोच ली थी की 'अगर वसंत ने मुझे देख भी लिया तो परेशानी की कोई बात नहीं है। वो छुप कर मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिरा रहा है, मैं तो ये पता लगाने छत पे छुपी हूँ की आखिर वो कौन है जो रोज रोज मेरी पैंटी ब्रा को गीला कर देता है।'

उसके मन में हालाँकि एक डर ये जरूर था कि 'अगर वसंत ने उसे छुपे हुए देख लिया या अगर कहीं उसे पता चल गया कि मैं छुप कर उसे ऐसा करते देखी हूँ तो कहीं वो शर्मिंदगी का शिकार न हो जाए और कुछ नुकसान न कर ले अपना। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं खुद बाहर आ जाऊँगी और उसे समझाऊँगी की वो कुछ गलत नहीं कर रहा है और किस वजह से ऐसा कर रहा है। तब हो सकता है कि वो मेरे से अच्छे से खुल कर बात कर पाए और रिलैक्स हो पाए।' शीतल बहुत कुछ सोचती रही लेकिन अपनी जगह पे बैठी रही।

वसंत ऊपर आया और अपने रूम में चला गया और फिर रोज की तरह अपने कपड़े बदल कर अपने काम में लग गया। आज भी उसने लुंगी को नीचे गिरा दिया और शीतल को चोदता हुआ इमेजिन करके मूठ मारने लगा। शीतल आज भी अच्छे से उसके लण्ड को देख रही थी और अपने मन मस्तिष्क में उसे उतार रही थी। इतना मोटा लम्बा और टाइट लण्ड को इतने सामने से नंगा देखकर उसकी चुत तो गीली होनी ही थी, लेकिन आज उसे ज्यादा गीलापन महसूस हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि वो लण्ड को पकड़ कर देखती की कैसा लगता है, कितना बड़ा है, कितना टाइट है। लेकिन नज़रों के इतने सामने होने के बाद भी वो ऐसा कर नहीं सकती थी।

वसंत के लण्ड ने वीर्य छोड़ दिया और फिर से वसंत ने पैंटी ब्रा को गीला कर दिया और फिर उसे वापस अपनी जगह पर टाँग कर अपने घर में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया। 2 मिनट भी नहीं हुए थे की शीतल स्टोर रूम से बाहर आ गयी और आज सिर्फ अपनी पैंटी ब्रा को लेकर नीचे आ गयी। अपने बाँकी कपड़े वो छत पर ही रहने दी। सीढ़ियों पे आते ही शीतल पैंटी और उसपे लगे वीर्य को देखने लगी और फिर उसे अपने होठों से लगाते हुए सूँघने लगी और उसका स्वाद चखने लगी।

उसे वसंत पे बहुत गुस्सा आ रहा था। 'ये क्या पागलपन है यार। सामने होती हूँ तो बात करना तो दूर, देखता भी नहीं है और यहाँ रोज पैंटी ब्रा के साथ खेलकर उसे वीर्य से भिगो देता है। इतना ही मन में आग है मुझे लेकर तो मेरे से बात करो, देखो मुझे, छेड़ो मुझे, पटाओ मुझे। शायद आराम मिले, शायद अच्छा लगे मेरे करीब आकर। लेकिन ये क्या बात हुई की खुद को दबा कर रखना है और अकेले में मेरे बारे में पता नहीं क्या क्या सोचते रहना है। अपने मन में तो क्या क्या नहीं कर चुका होगा मेरे साथ। पता नहीं कितनी तरह से चोद चूका होगा। लेकिन फिर इतना शरीफ बनकर क्यों रहना। और अगर शरीफ बनकर ही रहना है तो फिर मेरे पैंटी ब्रा को भी क्यों गीला करना।'


शीतल नीचे आ गयी और वो भी रोज की तरह पूरी नंगी हो गयी और चुत सहलाने लगी। वीर्य की खुशबू से उसकी चुत का गीलापन बढ़ गया और वो वीर्य को सूँघते चाटते हुए चुत में ऊँगली करने लगी और फिर चुत से पानी निकालने के बाद भी नंगी ही पड़ी रही। अब उसे नंगी रहने में ही अच्छा लगता था।

3 बजे जब वसंत वापस दुकान जाने के लिए अपने घर से निकला तो उसकी नज़र शीतल के कपड़ों पे गयी जहाँ आज बाँकी सारे कपड़े तो थे, बस उसकी पैंटी ब्रा नहीं थी। कल और पर्सों भी उसके दुकान जाने से पहले ही शीतल अपने कपड़े नीचे ले जा चुकी थी। लेकिन आज वो सिर्फ पैंटी ब्रा ले गयी थी, तो इसका मतलब था कि शायद उसे पता चल गया है। वसंत एक अनजाने डर से भर गया लेकिन वो निश्चिन्त था।

'शीतल ये बात विकास को बता सकती है लेकिन विकास कभी भी मेरे से ये पूछने नहीं आएगा। और अगर आएगा भी तो मैं मुकर जाऊँगा और उसपे मेरा वीर्य है ये साबित करने के लिए उसे DNA टेस्ट करवाना होगा। DNA टेस्ट करवाना इतना भी आसान और मामूली काम नहीं है। अब बस ये देखना है कि इसका रिएक्शन क्या पड़ा है शीतल पे। मेरे ख्याल से तो अच्छा ही असर पड़ा है, उसका असर तो कल रात दिख ही रहा था। जैसा मैं समझ रहा हूँ उस हिसाब से तो पासे सही पड़ रहे हैं।' अपने मन में बहुत कुछ सोचता हुआ वसंत सीढ़ियों से नीचे आया और शीतल के गेट पे नॉक किया।

अपने जवानी के दिनों में वसंत ने बहुत सारी लड़कियों को पटाया था और उनके साथ जिस्मानी संबंध भी बनाया था। उसका निकाह भी लव मैरिज था और शादी के बाद भी उसने 2 लड़कियों को पटा कर चोदा था। लेकिन उसके बाद उसने ये सब छोड़ दिया था। अपनी बीवी की मौत के बाद भी 2 औरतों के करीब आया था वो, लेकिन फिर उसने ये सब छोड़ दिया था। और अब कई सालों बाद शीतल ने उसके सोये अरमानो को जगा दिया था।

वसंत अपने समय में इस कला में माहिर था कि लड़कियों और औरतों को पटाते कैसे हैं। लेकिन यहाँ वो बहुत दिन बाद इस खेल को खेल रहा था और अब बीच में जनरेशन गैप था। और अब अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो बहुत बेइज़्ज़ती हो जानी थी, इसलिए वो बहुत सोच विचार कर फूंक फूंक कर कदम आगे बढ़ा रहा था। अक्सर उसके मन में ये आता रहता था कि ये सही नहीं होगा, लेकिन वो इससे ज्यादा खुद पे काबू नहीं कर सकता था।

शीतल नंगी ही थी और आराम से लेटी हुई टीवी देख रही थी। दरवाजे पे नॉक होते ही वो हड़बड़ा गयी। 'अभी कौन हो सकता है?' वो अपने कपड़े ढूंढने लगी। वो जल्दी से अपनी पैंटी पहन ली लेकिन ब्रा पहनने में लेट हो रहा था। दरवाजे पे फिर से नॉक हुआ तो शीतल पूछी "कौन है?" उधर से वसंत की आवाज़ आयी "मैं हूँ। वसंत।"

शीतल का दिल जोरों से धड़क गया। 'ये यहाँ क्यों आये हैं अभी। कहीं मुझे देख तो नहीं लिए। शायद सिर्फ पैंटी ब्रा ले कर आई तो शक तो नहीं हो गया कि मुझे पता है। अब पता है तो पता है।' ब्रा का हुक नहीं लग रहा था तो शीतल ब्रा रख दी और "आ रही हूँ।" बोलती हुई अपनी एक नाईट गाउन उठा कर पहनने लगी। 'पता नहीं क्या बोलेंगे।'


शीतल हड़बड़ाती हुई गेट खोली। "आइये न वसंत चाचा। अंदर आइये।" वसंत के एक नज़र शीतल को देखा और बोला "नहीं, बस दुकान जा रहा हूँ। रात में आने में थोड़ी देर हो जायेगी। बस यही बोलने आया था। आपलोग गेट बंद कर लीजियेगा और जब मैं आऊँगा तो बस जरा उस वक़्त गेट खोल दीजियेगा।" ये सब सुनकर शीतल सामान्य हो चुकी थी। बोली "ठीक है। कितने बजे तक आएँगे आप?"

वसंत अब शीतल को नहीं देख रहा था। वो बहुत ही विनम्रता से बोला "मैं 10:30 -11:00 तक आ जाऊँगा। आपलोगों को ज्यादा परेशानी तो नहीं होगी न। मैं आकर कॉल कर दूँगा।" शीतल अपनी कातिल मुस्कान फेंकती हुई बोली "अरे नहीं नहीं... इसमें परेशानी वाली कौन सी बात है। उस वक़्त तक तो हम जगे ही रहते हैं।" वसंत "ठीक है" बोलकर जाने लगा तो शीतल को लगा की 'मौका अच्छा है। वैसे भले कभी देखते नहीं या बात नहीं करते, लेकिन अभी तो बात हो रही है न। और कल विकास था तो हो सकता है कि मन हो फिर भी कुछ बोल नहीं पा रहे हों। अभी तो मैं अकेली हूँ न।'

शीतल भूल गयी थी की वो बिना ब्रा के है। बोली "आइये न, चाय बनाती हूँ।" वसंत "न न चलता हूँ अभी।" बोलता हुआ बाहर निकल गया। शीतल को बुरा भी लगा की उसके बुलाने के बाद भी वसंत अंदर नहीं आया। 'पता नहीं मेरे से इतना भागते क्यों हैं। 2 मिनट बैठ कर बात कर लेते तो क्या हो जाता। सामने रहने पर देखना भी नहीं और अकेले में पता नहीं क्या क्या सोचना। वाह!'

बाहर आते ही वसंत संतुष्ट था। शीतल का रिएक्शन कुछ भी गलत नहीं था। या तो उसे पता ही नहीं चला था और अगर पता चला था तो फिर उसे बुरा नहीं लगा था। शीतल को देखकर वसंत का लण्ड टाइट हो गया था। उसकी पारखी निगाहों ने एक नज़र में ही ये ताड़ लिया था कि शीतल अंदर बिना ब्रा के थी। चुच्ची की गोलाई नाईट गाउन से सटी हुई थी और शीतल के बदन के हरकत करने पे वाइबरेट कर रही थी।

वसंत सोचता हुआ दुकान जा रहा था कि 'शीतल सिर्फ पैंटी ब्रा ही छत से क्यों लायी थी और अभी बिना ब्रा के क्यों थी? कहीं वो नंगी तो नहीं थी अपने घर में और जब मैंने आवाज़ दिया तो बस नाइटी पहन कर आ गयी। नाइटी के अंदर पैंटी भी नहीं पहनी थी क्या? और अगर सच में ऐसा है तो मतलब मेरी जान की चुत गर्म हो गयी है। तब तो मज़ा आ जायेगा। लेकिन मुझे थोड़ा सब्र से और अच्छे से आगे बढ़ना होगा।' वसंत बहुत कुछ सोचता हुआ दुकान बढ़ चला। उसके दिमाग में हर वक़्त शीतल ही समायी थी और उसकी नज़रों में शीतल का जिस्म।
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#20
आज रात में भी शीतल विकास से वसंत के बारे में ही बात कर रही थी। बोली "वसंत चाचा आज देरी से आएंगे। गेट बंद कर लेने बोले हैं और जब वो आएंगे तो कॉल कर लेंगे, तब गेट खोलना होगा।" विकास बोला "ठीक है। कितने बजे तक आएंगे। शीतल बोली "10:30-11:00 तक बोलकर गए हैं।" विकास "हम्म ठीक है। खोल देना तुम्ही। तुम तो जगी ही रहोगी उस वक़्त तक।" बोलकर बिस्तर पर लेट गया। शीतल कुछ नहीं बोली।

विकास पूछा "कब बोले थे तुम्हे?" शीतल बोली "दोपहर में जब दुकान जा रहे थे तब।" विकास मुस्कुराता हुआ शीतल को छेड़ता हुआ बोला "तुम्हे कल देखकर मन नहीं भरा होगा, इसलिए फिर से देखने का मन किया होगा इसलिए आये होंगे। क्या पहनी हुई थी तुम?" शीतल ऊपर से तो छिड़ती हुई बोली लेकिन अंदर ही अंदर खुश होती हुई बोली "नंगी थी। तुम्हे तो और कुछ सूझता ही नहीं। वो देखते भी नहीं मेरी तरफ। वो बहुत शरीफ और अच्छे आदमी हैं। मैं बोली भी की अंदर आइये, चाय पीजिये लेकिन नहीं रुके। बस बोले और बाहर से ही तुरंत चले गए।" विकास कुछ नहीं बोला।

विकास उसी तरह मुस्कुराता हुआ बोला "तुम्हे दिखाकर थोड़े ही देखते होंगे। तुम्हारे जैसी हूर को बिना देखे कोई रह ही नहीं सकता है। उनकी तो बात छोड़ो, मैं तुम्हारा पति हूँ, फिर भी मेरा मन ललच जाता है।" शीतल बोली "वही तो मैं भी सोचती हूँ। मुझे सब देखते हैं, सब। लेकिन उनकी नज़र कभी नहीं उठती मेरे पर।" विकास बोला "उन्हें शर्म आती होगी की अगर तुमने देखते हुए देख लिया तो क्या सोचोगी की इतना उम्रदराज होकर तुम्हे देख रहा है। इसलिए तुम्हे छिप कर चोर नज़रों से देखते होंगे। हम मर्द लोग ऐसे ही होते हैं।"

शीतल को विकास की बात में दम नज़र आया। 'सही बात है। उन्हें उम्र के फासले की वजह से शर्म आती है। हैं भी तो मेरे से दुगुने उम्र के। इसलिए वो मेरे से दूर रहते हैं कि मैं क्या सोचूंगी, मेरे पति क्या सोचेंगे। इसलिए चाह कर भी मेरे से बात नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते होंगे। मुझे ही कुछ करना होगा।'

सोचती हुई वो विकास को बोली "तुम तो हो ही कमीने। मुझे पता है तुम किस किस को और कैसे कैसे छिप कर देखते हो। मुझे तो उनके बारे में सोच सोच कर दया आती है। इतने सालों से अकेले रह रहे हैं। किसी से बात नहीं करते हैं। कोई आता जाता भी नहीं है। अंदर ही अंदर घुट रहे होंगे वो। हम ही पहले हैं जिसे घर किराये पर दिए हैं। नहीं तो इतने बड़े घर में अकेले रहना।" विकास बस "हम्म" कर के रह गया। शीतल आगे बोली "इंसान को बात करना चाहिए। बात करने से किसी को बोलने से मन हल्का होता है। तुमसे भी बात नहीं करते।" विकास सोने लगा था।

शीतल चुप हो गयी और अभी की तैयारी करने लगी। वो सोच ली की 'अब उसे ही आगे बढ़ना होगा और कुछ करना होगा।' दोपहर में तो वो हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। विकास अब सुबह ही जागने वाला था। शीतल का मन हुआ की 'सच में नंगी ही जाकर गेट खोल देती हूँ, फिर देखती हूँ की बूढ़े मियाँ देखते हैं कि नहीं।' शीतल शरारती मुस्कान हँस दी।

वो अभी वही नाईट गाउन पहनी हुई थी। विकास के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वो नाईट गाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे की तरफ खिंच ली और कॉलर को थोड़ा फैला दी। अब उसकी दोनों गोलाई गहराई के साथ बाहर झांक रही थी। शीतल मन ही मन सोची 'अब तो देखेंगे न।' शीतल चेहरे को साफ कर ली और क्रीम और डिओड्रेन्ट लगा ली। अब वो वसंत के लिए दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी।

शीतल को नींद नहीं आ रही थी। वो मन ही मन सोच रही थी क्या बात करेगी और गेट खोलते वक़्त क्या करेगी। लेकिन शीतल की इतनी हिम्मत नहीं हुई की वो वसंत से कोई भी बात कर पाए। वो अपने नाइटी को ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गयी तो कहीं वही मुझे गलत टाइप की ना समझ ले। फिर शीतल को ख्याल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हूँ तो उन्हें लगेगा कि मैं जग कर उनका इंतज़ार कर रही थी। लेकिन अगर मैं नींद में रहूँगी तब तो इस तरह जा सकती हूँ।

वो फिर से ब्रा उतार दी और नाइटी को सामने से नीचे कर ली। अब चलने पर उसकी चूचियाँ आराम से गोल गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चुच्ची में हो रही थिरकन साफ साफ दिख रही थी। शीतल अपने बाल बिखरा दी और उनींदी जैसा चेहरा बना ली। 11 बज गए थे और वसंत का कॉल अब तक नहीं आया था। शीतल बाहर हॉल में बैठी हुई बहुत कुछ सोच रही थी और उसकी चुत गीली हो रही थी। वो अपनी पैंटी भी उतार दी।

शीतल 2-3 बार बाहर झांक कर आ गयी थी, लेकिन वसंत नहीं आये थे। शीतल का मन हुआ की 'मैं ही कॉल करके पूछ लेती हूँ' लेकिन फिर उसे ये ठीक नहीं लगा और उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद विकास के मोबाइल की घंटी बजी। शीतल दौड़कर फ़ोन उठायी तो वसंत चाचा लिखा हुआ था। शीतल अपनी सांसो को सम्हाली और और ऐसे "हेल्लो" बोली जैसे बहुत नींद में हो। उधर से वसंत की आवाज़ आयी "बाहर आ गया हूँ, दरवाजा खोल दीजिये।" शीतल उसी तरह से "हम्म... आती हूँ।" बोली और फ़ोन कट कर दी।

शीतल खुद को आईने ने देखी और नाइटी एडजस्ट कर ली। शीतल बाहर आई और लाइट ऑन कर दी। शीतल नाइटी को फिर से नीचे कर ली और देख ली की उसकी क्लीवेज अच्छे से दिख रही है। शीतल ऐसे मेन गेट खोलने लगी जैसे बहुत नींद से जागकर आयी हो। शीतल दरवाजा खोल दी और गहरी नींद में होने जैसी एक्टिंग करते हुए सर झुकाए खड़ी रही।

गेट खुलते ही वसंत की आँखों के सामने शीतल की गोरी चूचियाँ चमक रही थी। उसका लण्ड तो फ़ोन ओर शीतल की आवाज़ सुनकर ही टाइट हो गया था कि वो दरवाजा खोलने आ रही थी। उसे तुरंत समझ आ गया कि शीतल अभी भी बिना ब्रा के है। उसका मन किया कि हाथ आगे बढ़ाये और ईन रसगुल्लों को जोर से मसल कर निचोड़ दे और चूस ले। जितना उसने सोच विचार किया था उस हिसाब से शीतल थोड़ा मोड़ा नाटक के अलावा उसे मना नहीं करेगी और अपनी चुचियों से उसे खेलने देगी। लेकिन वसंत ऐसा करना नहीं चाहता था।


वसंत ने खुद पे काबू किया और बोला "सॉरी, मेरी वजह से आपलोगों को परेशानी उठानी पड़ी।" शीतल उलटे कदम ही पीछे होती हुई बोली ताकि वसंत अच्छे से उसकी चुच्ची की थिरकन को देख सके। 'कल विकास के सामने इन्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन अभी मैं अकेली हूँ और उनकी तरफ देख भी नहीं रही।' बोली "इसमें परेशानी की क्या बात है।"

वसंत ने गेट लॉक कर दिया और ऊपर जाने लगा। शीतल को फिर से बुरा लगने लगा की वसंत तो जा रहा है। वो तुरंत बोली "खाना खाकर आये हैं या अभी बनाएंगे। आइये यहीं खा लीजिये, हैं बनाकर रखी हूँ।" वसंत ने फिर से बस एक झलक शीतल को देखा और फिर दूसरी तरफ देखता हुआ बोला "नहीं, शुक्रिया। मैं खाकर आया हूँ। सो जाइये आप। मैंने आपको परेशान कर दिया।" बोलता हुआ वसंत सीढ़ियों पर चल दिया और शीतल खड़ी रह गयी।


उसे यकीन नहीं हुआ की वसंत ऐसा आदमी है। उसे लगा था कि इस तरह के कपड़े और अकेलापन पाकर वो शीतल से बात करेगा और फिर शीतल उसे समझ पायेगी। उसे गुस्सा भी आ रहा था कि वो इस तरह सिर्फ नाइटी पहनकर उसके लिए खड़ी है, उसे दिखाने के लिए अपनी पैंटी ब्रा भी उतार दी है और वो उसे ऐसे ही खड़ी छोड़कर चला गया। शीतल को विकास की याद आयी की 'उम्र के फासले की वजह से वो शर्मा जाता होगा और तुम्हे नहीं देखता होगा, नहीं तो उसका मन भी करता होगा तुमसे मस्ती करने का।'

शीतल का गुस्सा और बढ़ गया। उसका मन किया कि अभी वसंत पे बरस पड़े। उसे खींच कर रोक ले और उससे पूछे की अगर अभी नज़र उठा कर देख भी नहीं सकते, बात भी नहीं कर सकते हैं तो फिर दिन में क्या करते हैं। दिन में क्यों मेरे कपड़े के साथ अपनी वासना शांत करते हैं। लेकिन गुस्से में भी शीतल इतनी हिम्मत नहीं कर पाई। वो 2-3 सीढ़ी चढ़ी भी, लेकिन इतने में ही उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। एक औरत कैसे किसी मर्द को जाकर ये कह सकती थी।

शीतल का गुस्सा शांत हो गया और वो अंदर आकर अपने घर का दरवाजा बंद कर ली। वो सोचने लगी 'वो तो वही कर रहे हैं जो एक शरीफ इंसान को करना चाहिए। मैं क्यों रंडियों की तरह कर रही हूँ। वो अकेले में कुछ भी करें, मुझे तो परेशान नहीं कर रहे। कितने अच्छे हैं कि मन में मेरे बारे में कुछ भी सोचे लेकिन अकेले में मौका मिलने के बाद भी मेरे से बात तक करना नहीं चाहते। ये कितना मुश्किल काम होगा की जिसके साथ आप बहुत कुछ करने के लिए तड़प रहे हैं, वो अकेले सामने हो फिर भी आप उससे बात भी न करें, उसे देखे भी नहीं। मुझे चुदवाने का मन होता है लेकिन अगर विकास उस रात नहीं चोदता तो कितनी तड़प जाती हूँ की शर्म से उसे बोल भी नहीं पाती। आप बहुत महान इंसान हो वसंत चाचा, देवता हो। लेकिन अब मैं आपको घुट घुट कर मरने नहीं दूँगी।' शीतल सोच ली की वो कल दिन में इस बारे में वसंत से बात करेगी। उसे समझाएगी और उससे खुल कर बात करेगी।

शीतल अपनी पैंटी पहन ली और अपने बिस्तर पर आ गयी। वो वसंत के बारे में सोचती हुई सो गयी। नींद में आते ही उसकी नाइटी इधर उधर हो गयी और वो विकास से सट गयी थी। शीतल नींद में थी और उसे लग रहा था कि वसंत उसके बगल में सोया हुआ था। वो विकास को पकड़ ली थी तो विकास का हाथ भी नींद में ही शीतल के बदन पे रेंगने लगा था। नाइटी के अंदर कोई और कपड़ा था नहीं तो तुरंत ही विकास का हाथ शीतल की चुत और चुच्ची पे पहुँच गया था। शीतल को लग रहा था की वसंत उसके बदन को सहला रहा है तो वो विकास का पूरा साथ दे रही थी।

विकास ने नाइटी को ऊपर कर दिया और अपने ट्राउजर और चड्डी को नीचे करकर शीतल के ऊपर आ गया। शीतल की चुत गीली थी और तुरंत ही विकास ने अपना लण्ड शीतल की चुत के अंदर डाल दिया और धक्के लगाने लगा। शीतल "आह" करती हुई अपने दोनों पैरों को पूरा फैला दी और लण्ड और अंदर लेने के लिए कमर उछालने लगी। उसे लगा की वसंत ने उसकी चुत में लण्ड डाल दिया है और चोद रहा है। वो "आम्म्मह... उह..." करती हुई पूरी मस्ती में वसंत का लण्ड और अंदर जाने का इंतज़ार कर रही थी।

विकास शीतल के ऊपर लेटा हुआ था और उसके चेहरे होठ को चूम रहा था। शीतल पूरी मस्ती में थी और उसे लग रहा था कि अभी वसंत ने और धक्का मारेगा और उसका लण्ड और अंदर उसकी चुत में घुसेगा। वो विकास के होठ को अच्छे से चूमते हुए उसके पीठ कमर को सहला रही थी और लण्ड और अंदर आने का इंतज़ार करती हुई मस्ती में चुदवा रही थी। विकास भी और गर्म हो गया था और 8-10 धक्कों के बाद उसने वीर्य गिरा दिया। जैसे ही शीतल को चुत में वीर्य का एहसास हुआ उसकी आंखें खुल गयी और अपने ऊपर विकास को देखते ही अचानक से उसका मूड खराब हो गया। उसे बहुत गुस्सा आया और वो तुरंत विकास को अपने ऊपर से उतार दी। उसका मन हुआ की विकास को डाँटने का, चीखने चिल्लाने का। लेकिन वो मन मसोस कर रह गयी और उठ कर बाथरूम चली गयी।

शीतल नाइटी उतार दी और नंगी हो गयी। पेशाब करने के बाद वो अपनी चुत सहलाने लगी। वो सोचने लगी की 'कितना अच्छा लग रहा था अभी जब तक उसकी आंखें बंद थी। वसंत चाचा मेरे बदन को सहला रहे थे, मेरी चुच्ची को चूस रहे थे, मसल रहे थे, मेरी चुत को सहला रहे थे। आह काश की अभी वसंत चाचा ही होते मेरे ऊपर, विकास नहीं होता। वसंत चाचा ही मुझे चोद रहे होते। आह उनका मोटा लण्ड कितना अंदर तक घुसता मेरी चुत में। आह वसंत चाचा, आपने पकड़ क्यों नहीं लिया गेट पे मुझे।
उतार देते मेरी नाइटी को और देखते मेरे नंगे जिस्म को। देखते की आपके लिए मैं अंदर से नंगी थी। देखते उस जगह को जहाँ मैं पैंटी ब्रा पहनती हूँ। छूते उस जगह को। चूमते मसलते। जो वीर्य आप मेरे पैंटी ब्रा पे गिराते हैं, वो उस जगह पे गिराते जहाँ मैं उन्हें पहनती हूँ। पैंटी को लण्ड पे रगड़ते हैं आप, चुत पे लण्ड को रगड़ लेते। आह.... वसंत चाचा चोद लेते मुझे। डाल देते अपना मोटा मूसल लण्ड मेरी चुत में और तब वीर्य गिराते वहाँ। आह... मम्मम.... वसंत चाचा.... आह.....।'

शीतल की चुत पानी छोड़ दी और वो हाँफने लगी। वो अच्छे से चुत को पोछ ली और नाइटी को बाथरूम में ही छोड़ दी। अब उसे अच्छा लग रहा था। शीतल नंगी ही बाथरूम से बाहर निकली और किचन में जाकर पानी पियी। विकास गहरी नींद सो रहा था। उसे देखते ही शीतल का मूड खराब हो गया और वो दूसरे रूम में सोने जाने लगी, लेकिन फिर उसे लगा की ऐसा करना ठीक नहीं रहेगा। वो वहीँ पे लेट गयी और सोने लगी। आज पहली बार शीतल रात में विकास के घर में होते हुए नंगी सो रही थी। लेकिन नींद उसकी आँखों से गायब था।

शीतल सोचने लगी 'ये क्या कर रही थी मैं। कैसा सपना था ये की मैं मेरा पति मुझे चोद रहा था लेकिन मैं सपना देख रही थी की मैं वसंत चाचा से चुदवा रही हूँ। क्या मैं सच में वसंत चाचा से चुदवाना चाहती हूँ।' शीतल सोच में पड़ गयी। 'क्या सच में ऐसा है? हाँ, तभी तो मैं ऐसे गयी थी दरवाजा खोलने। अगर वसंत चाचा मुझे पकड़ लेते या कुछ करते तो क्या मैं उन्हें रोक पाती? बिल्कुल नहीं। मैं उनसे चुदवाना चाहती हूँ तभी तो उनके वीर्य की खुशबू मुझे पागल बना देती है।'

शीतल बैचैन होने लगी। 'जो आदमी मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराता है तो वो मुझे चोदने का सोचकर ही ऐसा करता होगा, कोई भजन गाकर तो ऐसा नहीं ही करता होगा। वो भी मुझे चोदना ही चाहते हैं। मुझे चोदकर ही वो शांत हो पाएंगे। मेरी चुत में वीर्य गिराने के बाद ही उनके मन को सुकून मिलेगा। ये सालों का अकेलापन पैंटी में वीर्य गिराने और बातें करने से दूर नहीं होगा। जब तक वो मुझे अपनी बाहों में भरकर अच्छे से मन भर कर चोद नहीं लेंगे, तब तक उनका अकेलापन, उनकी घुटन दूर नहीं होगी।'

शीतल बहुत बड़ा फैसला ले रही थी। 'मुझे उनसे चुदवाना ही होगा। कल मुझे उनसे खुल कर बात करनी होगी और मेरा जिस्म हाज़िर है उनकी मदद के लिए। मैंने उनके सोये अरमान जगाए हैं, मेरी वजह से वो आदमी तड़प रहा है तो ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उन्हें इससे बाहर निकालूँ। मेरे बदन को देखकर उनकी ऐसी हालत हुई है तो मेरे बदन को पाकर वो सुकून पाएंगे। मैं अपना बदन उन्हें सौंप दूँगी। उन्हें मुझे चोदना है तो मैं चुदवाऊँगी वसंत चाचा से। उन्हें अपनी बेटी की उम्र की औरत को चोदकर सुकून मिलेगा तो मैं भी अपने बाप के उम्र के आदमी से चुदवाने के लिए तैयार हूँ।'

शीतल अपने फैसले को मजबूत कर रही थी की फिर से उसके दिमाग में ख्याल आया 'मैं रण्डी बन गयी हूँ क्या जो दूसरे मर्द से चुदवाने की बात सोच रही हूँ। ऐसा सोच कर भी मैं पाप कर रही हूँ। ये अपने पति को धोखा देना है। वसंत के बड़े लण्ड के लालच में मैं विकास को धोखा देने के बारे में सोच रही हूँ। विकास मेरा पति है, कितना प्यार करता है मेरे से।'

फिर से शीतल के मन में वही शैतानी ख्याल आया 'इसमें धोखा देने जैसी कोई बात नहीं है। मैं बस वसंत की मदद करना चाहती हूँ क्यों की वो इस हालत में मेरी वजह से आया है। इतने सालों से वो अकेला है और अब मेरी वजह से तड़प रहा है। ये मेरा फ़र्ज़ है कि मैं उसकी मदद करूँ। और मैं उससे चुदवाने तो नहीं जा रही, मैं बोली की अगर मुझे अपना जिस्म देकर भी उसकी मदद करनी पड़ी तो मैं करुँगी। और अगर वो मुझे एक बार चोद ही लेगा तो क्या हो जायेगा, कौन सा मैं रोज चुदवाऊँगी उससे। एक बार चुदवा कर वो ठीक हो जायेंगे तो इसमें विकास को धोखा देने वाली कोई बात नहीं है।'
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