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यह कहानी काल्पनिक है जिसका सत्य से कोई लेना देना नही। कहानी बहुत ही अच्छे विचार से बनाया गया है। कृपया इस कहानी को उत्तम सहयोग दे।
साल 1990
यह कहानी की शुरुआत होती है भोपाल के सेंट्रल जेल से। 28 साल की महिला जेल से बाहर निकलती है। सलवार कमीज में एक दूध सा रंग और दिलकश चेहरा। पांच साल जेल में रह चुकी इस महिला का नाम सुप्रिया है। सुप्रिया जो बहुत ही अच्छे और साफ दिल की औरत है। फिर क्यों उसे जेल जाना पड़ा ?
कहानी की शुरुआत होती है 5 साफ पहले जब उसने एक आदमी का कत्ल किया। वो आदमी उसका पति अनिल श्रीवास्तव था। अनिल जो एक बड़ा बिजनेसमैन था और बहुत ही नीच और खराब आदमी था। शराब और ड्रग्स की लत लगने से वो अक्सर सुप्रिया को मारता पीटता और कभी कभी हवेली के कोठरी में बंद करता। अनिल का दरअसल एक लड़की के साथ प्रेम संबंध था लेकिन सुप्रिया से शादी उसकी मजबूरी थी। अनिल के पिता ने सुप्रिया के साथ उसकी शादी करवाई और स्वर्गवास हो गए।
अनिल अक्सर सुप्रिया से तलाक लेने का दबाव उसपर बनाता लेकिन सुप्रिया मानने से साफ साफ इंकार करती। फिर क्या वो रोज जानवरो की तरह सुप्रिया को मारता और भद्दी भद्दी गालियां देता। एक दिन नशे की हालत में अनिल सुप्रिया को चाकू दिखाकर डरा रहा था। उसका इरादा अब सुप्रिया का कत्ल करने का था। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे धक्का दिया और अनिल के हाथ से चाकू छीन लिया। अनिल ने दुबारा उसपर हमला किया। अपने बचाव में सुप्रिया ने उसे गलती से चाकू से मार दिया।
सुप्रिया में कत्ल का इल्ज़ाम लगा। सुप्रिया लगातार अपना बचाव कोर्ट में किया लेकिन आखिर में जज साहब ने उसे 15 साल जेल की सजा सुनाई। सुप्रिया ने फिर भी हार नही मानी और कैसे लड़ती रही। आखिर में सबूत गवाह के तहत सुप्रिया निर्दोष साबित हुई । जज ने सुप्रिया को जेल में बिताए पांच साल सजा के बदले 25 लाख रुपए का मुहावजा दिया और बदले में एक सरकारी नौकरी भी दिलाई।
सुप्रिया ने 15 लाख रुपए लिया और नौकरी अपने सबसे वफादार नौकर सरजू के बेटे को दिलवाई।
सरजू जो अनिल के घर काम करता था। सरजू सुप्रिया का बहुत खयाल रखता था। सरजू की उमर 68 साल की थी। सरजू अक्सर बीमार रहने लगा और इसी के चलते अपने गांव चला गया।
जेल से छूटने के बाद सुप्रिया को घर नहीं मिला। कोई देने को तैयार नहीं था। सुप्रिया हताश हो गई। आखिर में सुप्रिया को सरजू को चिट्ठी मिली जिसमे सरजू ने उसे अपने गांव बुलाया।
सुप्रिया इस दुनिया से मिलो दूर सरजू के गांव चली गई। सरजू का गांव झारखंड में स्तिथ धनबाद शहर के अंतू में था। अंतू गांव वैसे बहुत ही पुराना और शहर से ज्यादा दूर था। सुप्रिया ने पास पैसे थे और अब घर भी मिल गया। सुप्रिया को घर मिलने में काफी दिक्कत हुई थी लेकिन सरजू ने व्यवस्था बना ली थी। सरजू के घर में दो कमरा था। एक में वो खुद रहता है और दूसरे में बेटा रहता था। सरजू के बेटे का नाम मोहन था। मोहन जो जब सुप्रिया के 15 लाख रुपए मिले तो सबसे पहले वो शहर चला गया और उन में से कुछ 5 लाख घर बनवाए दिल्ली में 7 लाख का घुस देकर नौकरी हासिल की और 2 लाख सरजू के देखभाल में डाले। सुप्रिया को उन पैसों की जरूरत नहीं थी क्योंकि एक सरकारी नौकरी जो मिल गई थी। सुप्रिया को अंतू गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में नौकरी मिली। तंखा भी अच्छी ही थी। सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और 12 बजे दोपहर को वापिस आती। सिर्फ चार घंटे की नौकरी। बाकी के वक्त वो खाली रहती तो घर में ही ट्यूशन लगा लिया। 1 से 7 क्लास के बच्चे आते। कॉलेज के बच्चे ज्यादातर मजदूर परिवार से थे तो फीस भी सुप्रिया बहुत कम लेती। अपने ट्यूशन का वक्त शाम 4 बजे से 7 बजे रखा। करीब 70 छात्र पढ़ते।
ट्यूशन की जगह थी गांव से बाहर एक छोटी सी झोपडी। झोपडी एक अधेड़ उमर के आदमी की थी। झोपडी दो थे एक उस आदमी के और उसने सुप्रिया को ट्यूशन के लिए दिया। बदले में सुप्रिया उसका घर चल सके इसीलिए भाड़े के पैसे अधेड़ आदमी को देती। भाड़ा भी ठीक ठाक था।
उस अधेड़ आदमी का नाम बिरजू था। बिरजू की उमर 60 साल की थी। बिरजू गांव के मंदिर की सफाई करता और थोड़े बहुत पैसे उसी से कमा लेता। बिरजू की एक बुरी आदत थी। वो शराब बहुत पीता था। दोपहर को काम करके वापिस आता और पीकर सो जाता। कई दफा रात के वक्त सुप्रिया उसे खाना देती। बस खाता और सो जाता। सुप्रिया को उसकी ये आदत अच्छी नही लगती।
अक्टूबर का महीना था। रोज की तरह कॉलेज में सुप्रिया गई और अपना काम करने लगी। बच्चो को पढ़ाकर सुबह ग्यारह बजे स्टाफ रूम में आई। ज्यादातर टीचर महिलाएं ही थी जो काफी बड़ी उमर की थी। सुप्रिया वैसे स्टाफ रूम में बच्चो की किताबे चेक करती और चाय पीती। बाकी की बड़ी उमर महिलाए उससे बाते करती। वह सभी टीचर्स दूसरे गांव के थे। दोपहर 12 बजे घंटी बाजी और बच्चे शोर मचाने हुए अपने घर के लिए निकले। कॉलेज से घर का फासला ज्यादा नही था। सुप्रिया पैदल चलते चलते घर पहुंची। सामने देखा तो सरजू बीड़ी पी रहा था और खटिया पे लेटा हुआ था। सुप्रिया को देखते ही बैठ गया और बोला "सुप्रियाजी कैसा रहा आज का दिन ?"
सुप्रिया हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए "कितनी बार कहा आपसे सिर्फ सुप्रिया ही बुलाओ। समझ में नहीं आता इतनी सी बात ?"
अपनी जीभ कोहलके से दातों में दबाते हुए काम पकड़ते बोला "माफ करो भूल गया सुप्रिया।"
हल्की सी मुस्कान देते हुए सुप्रिया बोली "चलो जल्दी से उठो और खाने के लिए बैठो। मैं रोटी बनाती हूं।"
सुप्रिया जल्दी से कमरे गई। साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही बिस्तर पर लेट गई। दस मिनिट आखें बंद करके लेटी और फिर हाथ पैर धोकर साड़ी वापिस पहनकर रसोईघर गई। सरजू भी रसोईघर घुसा और खाने के लिए बैठ गया। सुप्रिया रोटी बनाकर सरजू को दे रही थी। सरजू खाना खा रहा था।
"अरे सुनो सुप्रिया। वो बिरजू आज घर आया था।"
"क्या काम था उसे ?"
"उसे खाना चाहिए था। मैने उसे रूखा सूखा खाना दे दिया।"
"अरे तो ठहरने को कह देते मैं बनाकर खिला देती।"
"एक काम करो आज शाम ट्यूशन जा रही हो तो खाना ले जाना।"
"ठीक है। लेकिन एक बात सनलो। उसका शराब बंद करो वरना मार जाएगा किसी दिन।"
"कुछ नही होगा। अब बस करो रोटी बनाना मेरा हो गया।"
"अच्छा सुनो। आज शाम बाजार जा रहे हो ?"
"हां। कोई सामान लेना है क्या ?"
"हां मैंने कुछ सामान की लिस्ट बनाई है उसे लेकर आना।"
"चलो ठीक है लेकिन आज रात खाना मत बनाना।"
"क्यों ?"
"आज न्योता है संभू के घर बस वहां जाऊंगा।"
"ठीक है। अब चलो सो जाओ। दोपहर हो गई।"
"ठीक। काम के बाद कमरे में आना। मेरा पैर दबा देना।"
"हां आ जाऊंगी।"
सुप्रिया काम पूरा करके पान बनाया और ले गई सरजू के कमरे में। सरजू खटिया पर लेटा हुआ था। सुप्रिया उसके पैर के पास आकर बैठी और पैर दबाने लगी।
"एक बात बताइए सुबह जो आपको मैंने दिया था वो पूरा हक या नहीं ?"
"कौन सा काम ?"
"मेरे ब्लाउज का बटन टूट गया था उसे सिलना था आपको।"
"अरे हां रुको आज जल्द से जल्द सील दूंगा। तुम धागा और ब्लाउज लाओ।"
"आपसे एक काम भी ठीक से नही होता। कल वार्षिक उत्सव है कॉलेज का क्या पहनूंगी ?"
"आज ही कर दूंगा। पहले अपना ब्लाउज लेकर आओ।"
वैसे देखा जाए तो सरजू और सुप्रिया के बीच कोई खास उमर का दीवार नही था। सरजू बुड्ढा भले ही हो लेकिन दोनो एक दूसरे से खुलकर बात करते है। सरजू को सिलाई का काम अच्छे से आता है और इसीलिए सुप्रिया के कपड़े भी सिल देता है। दोनो साथ में रहते तो ज्यादा भेदभाव भी नही रहता। वैसे भी बेटे मोहन के जाने के बाद सरजू की जिम्मेदारी सुप्रिया को मिली।
दोपहर बीता और शाम हुई। सुप्रिया अपनी किताबे लेकर गई बिरजू के झोपडी पर। ट्यूशन का वक्त हो चुका था। बिरजू इस वक्त बगलवाली झोपडी में नही था। सुप्रिया समझ गईं के फिर पीने गया होगा बिरजू। बच्चो को ट्यूशन पढ़ाया और शाम 7 बजे अंधेरा छाने लगा। बच्चे घर को चल दिए। सुप्रिया को पता था की सरजू आज रात खाना नही खायेगा। सोचा आज झोपडी में ही खाना बना ले ताकि वो और बिरजू दोनो खाना खा ले। झोपडी की चाबी थी सुप्रिया के पास। झोपडी में घुसी तो देखा की कटहल पड़ा हुआ था। सुप्रिया ने कटहल की सब्जी बनाई और चावल भी। खाने को चूल्हे पे चढ़ाया। अपने बाल बंधे और कमर पे साड़ी खोसकर झाड़ू लिया और साफ सफाई करने लगी। इतने में बिरजू आ गया। सुप्रिया ने घर साफ कर लिया। बिरजू नशे की हालत में था।
नशे में झूलता हुआ बिरजू बोला "तुम यहां ? घर नही गई ?"
"आज सरजू बाहर न्योता में खाना खाने गया। सोचा इधर खा लूं। इस बहाने तुम्हे गरम खाना भी मिल जाएगा। चलो हाथ मुंह धो लो और बैठ जाओ।"
बिरजू लड़खडाकर आगे बढ़ा और हाथ पैर धोकर नशे में खुलते बैठ गया।
मुंह बिगाड़ते हुए सुप्रिया बोली "ये शराब की बुरी आदत छोड़ दो। समझे वरना मार जाओगे।"
बिरजू बोला "बात ऐसी नही है सुप्रिया। वो क्या है ना आज दुकानवाले ने जबरजस्ती पीला दिया। मेरा पीने का इरादा नहीं था।"
"एक बेलन उठाकर मरूंगी। झूट मत बोलो। बेवकूफ।"
खाने का निवाला लेते हुए बिरजू बोला "वह क्या खाना बना है। गरम गरम कटहल की सब्जी और चावल। वाह तुम्हारे हाथ में जादू है सुप्रिया।"
"हां हां मारो मस्का और हां कल बाजार जाकर सब्जी खरीद लेना। तुम्हारे घर में सब्जी नही है।"
"हां ले आऊंगा।"
बिरजू खाना खा लिया और सुप्रिया ने भी। बिरजू को खटिया पे लेटा दिया और बिरजू भी गहरी नींद में था। झोपडी का दरवाजा बंद करके रात के अंधेरे में अपने घर पहुंची। सरजू घर पर नही था। सुप्रिया समझ गई की आज उसे आने में वक्त लगेगा। उस वक्त गांव में बिजली नही होती थी। इसीलिए सुप्रिया ने लालटेन जलाया और अपने साड़ी उतारकर कमरे में लेट गई। ब्लाउज और पेटीकोट में उसका जिस्म हसीन लग रहा था। गर्मी भी थी और थकान भी। ब्लाउज पेटीकोट में वो लालटेन के उजाले में लेट गई। थकान के मारे उसने कमरे का दरवाजा बंद नही किया सोचा बाद में बंद कर देगी लेकिन देखते देखते उसे नींद आ गई। आधी रात सरजू वापिस आया और चाबी घर की उसके पास भी थी। सरजू घर में घुसा और दबे पांव अपने कमरे की तरफ चल दिया। रास्ते में ही सुप्रिया का खुला कमरा दिखा। लालटेन की रोशनी में वो लेटी हुई थी।
"सुनो सुप्रिया मैं आ गया।"
नींद टूटते हुए सरजू को देखकर आलस भरे आवाज में सुप्रिया बोली "अरे सरजू खटखटा कर आते मैने साड़ी उतारी हुई है।"
"अरे तुम्हारे कमरे का दरवाजा खुला था। चलो में भी चला सोने। लेकिन मेरा पान कहा है ?"
हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए सुप्रिया बोली "रहने दो। मैं बना देती हूं।" उठकर सुप्रिया रसोई गई और पान का बक्सा लेकर आई।
(आप शायद ये सोच रहे होने की ब्लाउज पेटीकोट में सुप्रिया सरजू के सामने इतने आराम से क्यों बात चीत कर रही है ? दरअसल जब वो जालिम अनिल उसके साथ बूरा व्यव्हार करता तब उसकी कई दफा इज्जत सरजू ने बचाई। सरजू ने इससे भी बुरे परिस्थिति में देखा। इसीलिए दोनो को कोई फर्क नहीं पड़ता एक दूसरे के काम कपड़े पहरे रहने से।)
सरजू अपने खटिया पे लेट गया और उसी के बगल बैठी सुप्रिया पान बना रही थी।
"रात के १ बजे पान खाना है इनको। अक्कल सच में तुम्हारी घास चरने गई क्या ?"
"अरे इसके बिना मजा नही आता। तुम वैसे भी कितना अच्छा पान बनाती हो। दुलनवाला भी तुम्हारे पान के सामने कुछ नही।"
"ये मस्का मरना बंद करो और सुनो वार्षिक उत्सव के अगले दिन से 14 दीनो तक कॉलेज में छुट्टी रहेगी।"
"चलो ठीक है। मैं बाजार होकर आया। सामान घर में रखवा दिया था।"
"धत्त एक काम रह गया।"
"कौन सा काम ?"
"मेरी ब्रा। मुझे ब्रा भी खरीदना था।"
"चिंता मत करो वो में लेकर आया हूं पद्मा की दुकान से।"
"चलो अच्छा है। वैसे भी मेरी ब्रा पूरानी हो गई थी। तुम कल सुबह जल्दी उठ जाना। कल गाय को भी चराना है और दूध निकालना है।"
"मैं क्यों ? वो बिरजू क्या कर रहा है ?"
"शरण पीकर खटिया पे पड़ा है। बड़ी मुश्किल से खाना खिलाकर सुलाया।"
"यह बिरजू भी हद होती है। अब इतनी सुबह उठना पड़ेगा।"
"और क्या नहीं तो चाय कैसे बनेगा और तुम्हे दूध भी दोपहर को नही मिलेगा।"
"ठीक है। चलो सोने का वक्त हो गया।" बिरजू ने पान मुंह में डालकर कहा।
"कहां सोनेवाले हो ?"
"आंगन में। आज गर्मी भयंकर है।"
"हां सही कहा। मेरी तो हालत खराब हो गई। सुनो मेरा दरवाजा खुला रहेगा। आंगन से हवा आती है। कमरा बंद करके सोई तो गर्मी से हालत बिगड़ जाएगी।"
"ठीक है। लेकिन ब्लाउज पेटीकोट में सोगी? बाहर दरवाजे पे मेरी खटिया होगी।"
"कभी औरत बनकर देखो। दिन भर काम करो और नींद आए तो भी गर्मी में।"
"अरे तो एक काम करो तुम भी आंगन में आ जाओ।"
"नही बिलकुल नहीं। मच्छर का क्या होगा ?"
"तुम आओ खटिया लेकर मैं सुखा घास जलाकर राख दूंगा"
सुप्रिया ने अपनी और सरजू की खटिया को आंगन में रखा। ब्लाउज पेटीकोट में लेटी सुप्रिया को हल्की सी नींद आने लगी। वही सरजू घास में आग लाकर खटिया के पास रख दिया और बगल के खटिया में लेटा।
"अब कुछ ठीक है सरजू। वैसे मच्छर ने बहुत परेशान किया।"
"हां मैं भी शर्ट उतार दूं। वरना नींद नही आयेगी।"
दोनो सो गए। वैसे दोनो ऐसे रहते है जैसे एक ही उमर के हो। लेकिन सुप्रिया को गांव में रहना अच्छा लग रहा था। सुप्रिया अक्सर रात के वक्त ब्लाउज पेटीकोट में रहती लेकिन पिछले हफ्तों से सरजू के सामने ऐसे आई। सरजू को भी कोई फर्क नही पड़ता। उसे कहा मन सुप्रिया की खूबसूरती को निहारे। कभी सुप्रिया को उस तरह से नही देखा।
सुबह पांच बजे सरजू की नींद उड़ी। उठकर सबसे पहले गाय को चराने गया। फिर करीब आधे घंटे खेत का चक्कर लगाकर आया। कुआं से पानी निकला और आंगन में रख दिया। गहरी नींद में सो रही सुप्रिया को नींद से जगाया और नहाने को कहा।
वैसे आपको बता दूं पहले के जमाने स्नानघर में दरवाजे नही होते सिर्फ पर्दा होता था। स्नानघर भी बहुत छोटा होता था। उधर सुप्रिया नहाने गई और सरजू गाय का दूध निकलकर दूध को उबालने लगा। सुप्रिया भी नहाकर बाहर आई और आंगन में साड़ी पहनने लगी।
(स्नानघर छोटा होने से गीले फर्श पर साड़ी पहनना आसान नहीं इसीलिए स्नानघर के बाहर आंगन में साड़ी पहनने लगी।)
पेटीकोट और ब्रा पहन लेने के बाद सुप्रिया को याद आया की ब्लाउज तो वो भूल गई। तुरंत अपने कमरे में पहुंची तो ब्लाउज नही मिला।
ऊंची आवाज दी सरजू को "सरजू मेरा ब्लाउज कहा रखा हैं तुमने"
"अरे वो तो मेरे कमरे में रह गया। रुको देता हूं।"
"हां जल्दी करो। और चाय मत बनाना। मैं बना लूंगी। तुम तब तक नहा लो।"
सरजू दौड़ता हुआ आया और ब्लाउज लेकर कमरे का दरवाजा खटखटाया। हाथ बाहर निकलते हुए सुप्रिया ने ब्लाउज ले लिया। सरजू तुरंत गया नहाने। सुबह के सात बज चुके थे और लाल की साड़ी में सज धज्के सुप्रिया तैयार हो गई वार्षिक उत्सव के लिए। रसोईघर जाकर चाय बनाने लगी और तब तक सरजू आ गया। दोनो ने चाय पीया और इतने में सुप्रिया के जाने का वक्त हो गया।
"सुनो सरजू अब तुम आराम करो और हां अगर बिरजू आए तो उसे बता देना की कुआं से पानी निकालकर पेड़ पौधों को पानी सीच दे।" अपने बटुए से 10 रुपए निकालकर बोली "उसे दे देना और कहना की शराब न पीएं।"
"हां और सुप्रिया आज खाने में क्या बना है ?"
"मैने आज आलू को सब्जी बनाई है। वापिस आकर रोटी बना दूंगी। चलो अब ८ बजने वाले है। मुझे देर हो रही है।"
सुप्रिया तुरंत चली गई कॉलेज। तो दोस्तो ये है तीनो को जिंदगी। अब आगे देखो कि इस जिंदगी में सरलता कितनी होगी।
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Superb story.. Amazing skill..
Pls update soon.. Can't wait.
Supriya ko dono buddhe ke sath maje karvao.
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कॉलेज में वार्षिक उत्सव का आरंभ हुआ। सभी बच्चे सांकृतिक गीत एवं नृत्य का प्रदर्शन कर रहे थे। सभी बच्चे बहुत प्यारे लग रहे थे। बच्चो के साथ साथ लोगो की नजर सुप्रिया पर भी थी। लाल साड़ी में सुप्रिया जैसे अप्सरा लग रही थी। सभी औरतें तो जैसे उसे मन ही मन अंग्रेज कह रहे थे। आपस में एक दूसरे से बात कर रही औरतें तो जैसे सुप्रिया के बारे में ही बात कर रहे थे। तारीफ के तो जैसे पूल बंध दिए थे।
वार्षिक उत्सव पूरा होने के बाद सभी मां बाप टीचर्स से बात कर रहे थे। सुप्रिया से मिलने एक अधेड़ उमर का आदमी आया। उसकी उमर 65 साल और बाजार में छोटी सी साड़ी को दुकान चलाता है। उसका नाम गंगू था।
"नमस्ते मैडम।" गंगू ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया।
सुप्रिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "नमस्ते कैसे है आप ?"
"जी मैं ठीक हूं। मेरा नाम गंगू है और मै साड़ी की चोटी सी दुकान चलाता हूं। मेरा पोता पहली कक्षा में आप ही के क्लास में पढ़ता हैं। उसका नाम अरविंद है।"
"अरे हां अरविंद। बहुत ही होशियार और अच्छा बच्चा हैं। पढ़ाई में बहुत मन लगा रहता है।"
"उसी के वजह से आपसे मिलने आया। पूरे दिन आपको बात करता है।"
"उसके मां बाप नही आए ?"
"नही। दरअसल उसके मां बाप दो साल पहले हादसे में गुजर गए। उसकी अकेले देखभाल मैं हो करता हूं।"
"मुझे माफ करिए। मुझे पता नही था।"
"कोई बात नही। होनी को कौन टाल सकता है।"
सुप्रिया को बहुत बूरा लगा और बोली "अरविंद की चिंता मत करिए। उसके लिए मैं हूं।"
"आप है इसीलिए चिंता नहीं। आप सरजू के साथ रहती है ना ?"
"हां लेकिन आप ये बताइए आप तो दुकान में रहते है तो अरविंद का खयाल कौन रखता है ?"
"जी मेरे घर के आगे ही दुकान है। दुकान के पीछे एक कमरा और रसोई है। उसी में हम दोनो रहते है।"
"आपका दुकान कहा है ?"
"जी बाजार के कोने नदी के पास।"
"कभी जरूरत हो तो जरूर साड़ी देंगे न आप कम दाम में ?" सुप्रिया ने मजाक करते हुए पूछा।
"अरे मैडम आप अरविंद की मैडम मतलब मेरी भी। आपको मुफ्त में दे देंगे।"
सुप्रिया हस्ते हुए बोली "कोई जरूरत नहीं इसकी और हां मेरा नाम मैडम नही सुप्रिया है।" सुप्रिया मुस्कुराते हुए बोली।
"अच्छा तो बताइए कब भेंट होगी ?"
"बहुत जल्द।"
फिर दोपहर के 2 बज गए। देर हो गई और सुप्रिया भी जल्द से जल्द घर पहुंची। जल्दी से रसोईघर गई और रोटी बनाकर सरजू को खिलाया।
"आज देर हो गई आने में।"
सरजू रोटी खाते हुए बोला "देर भले आई लेकिन हाथ मुंह धो लेती नहाने कितनी थकान लगी होगी। मेरा खाना हो गया। अब तुम भी खा लो।"
"आज भूख नहीं है। एक काम करो तुम भी सो जाओ और मैं भी सो जाती हूं। 2 हफ्ते तक ट्यूशन भी बंद रहेगा। मैं चली सोने और हां आज थकान बहुत लगी है। कुछ काम हो तो बताना।"
"तुम चाहो तो छत के कमरे में सो जाओ। छत पे हवा आ रही हैं।"
"तुम सही कह रहे हो।"
सुप्रिया छत के कमरे में गई। कमरा बहुत छोटा था और सिर्फ एक खटिया ही था। सुप्रिया ने साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही लेट गई। बहती और सन्नाटे ने सुप्रिया को नींद दिलाने में मदद की। सरजू दोपहर अपने कमरे में था। आज मौसम थोड़ा बहुत अच्छा था इसीलिए वो भी अच्छी नींद लिए हुए था। रही बात बिरजू की तो वो शराब के नशे में डूबा हुआ था।
देखा जाए तो सुप्रिया नर्क की जिंदगी से बाहर निकल गई। एक तो पति द्वारा दी गई यातनाएं और जेल के गंदे 5 साल। शाम का वक्त हो गया लेकिन सुप्रिया अब तक गहरी नीद में थी। सरजू भी सोचा कि उसे उठना अभी सही नही होगा इसीलिए उठाया नही। लेकिन फिर शाम भी बीता और रात हुई। रात के 8 बज गए लेकिन अभी भी सुप्रिया का कोई आने जाने का नामु निशान नही। अब सरजू ने सोचा की क्यों न चाय बनाकर उसे उठाया जाए। तुरंत रसोईघर गया और अपने और सुप्रिया के लिए चाय बनाया। सुप्रिया के लिए ऊपर छत गया। अंधेरा हो चुका था। Jeb me माचिस और हाथ में चाय की दो प्याली। कमरे में पड़े लालटेन को जलाया और फिर चाय लेकर अंदर घुसा। ब्लाउज पेटीकोट में पड़ी सुप्रिया को हल्के से नींद से जगाया।
सुप्रिया की नींद खुली और आंखे मीचोलते हुए अंगड़ाई लेकर बोली "इतना अंधेरा। काफी देर तक सोई।"
सुप्रिया को सरजू चाय देते हुए कहा "हां इसीलिए चाय लाया हूं।"
सरजू नीचे बैठ गया।
"अरे सरजू नीचे गंदा है। आप एक काम कारोपर बैठ जाओ। मेरी साड़ी वापिस करना।"
सरजू ने साड़ी वापिस की तो देखा कि साड़ी जमीन पर होने से गंदी हो गई।
"लगता है हम नीचे चलना होगा। चलो आओ नीचे।"
सुप्रिया चाय लेकर नीचे उतरी और सरजू साड़ी लेकर नीचे आया। दोनो आंगन में खटिया पर बैठे थे।
"चाय काफी अच्छी बनी है सरजू।"
"अच्छी लगी तुम्हे ?"
"हां चीनी में सही मिश्रण। नींद उड़ गई। वैसे आज खाने में क्या खाओगे ?"
"आज मन नही है खाना खाने का।"
"क्यों ?"
"सिर में दर्द हो रहा है।"
"इसका मतलब भूखे पेट सो जाओगे ?"
"पता नही दर्द सह नहीं जा रहा है ।"
"एक काम करो मैं तुम्हारा सिर दबा देती हूं। और हां बिना कोई सवाल किए जाओ और पहले तेल लेकर आओ।"
सरजू बिना सवाल किए तेल लेकर आया और दे दिया सुप्रिया को। सुप्रिया ने उसके सिर को अपने गोद में रखा और तेल से सिर दबाने लगी। सरजू को हल्का सा आराम मिलने लगा और आंखे बंद करके लेट गया। तेल का अच्छे से चंपी करके सुप्रिया ने उसके सिर दर्द को जैसे गायब हो कर दिया।
"अब कैसा लग रहा है तुम्हे सरजू ?"
"हम्म्म बहुत अच्छा। अब सिर दर्द गायब हुआ। लेकिन अब हम चलना चाहिए रसोईघर में खाना बनाने के लिए।"
"चलो तो फिर।"
लालटेन की रोशनी में सुप्रिया ने खाना बनाया और दोनो ने साथ में खाना खाया। झूठे बर्तन को आंगन में सुप्रिया साफ करने लगी। वही सरजू भी गहरी नींद में सो गया। सुप्रिया सारा काम करके अपने कमरे में चली गई। अगले दिन छुट्टी का पहला दिन था तो सुप्रिया ने सबसे पहले घर की साफ सफाई करने का फैसला किया। सरजू भी लग गया काम में। गाय को चराना और दूध निकालना। आज घर की सफाई अच्छे से हो रही थी। झाड़ू पोंछा लगाने के बाद सुप्रिया आंगन की भी साफ सफाई की। करीब सुबह के 11 बज चुके थे। आज दोपहर का खाना सरजू ने बनाया। खाने में खिचड़ी था। काम पूरा करके सुप्रिया नहाने वाली थी। सरजू कुआं से पानी लेकर आंगन में रख दिया। जल्दी से नहा धोकर सुप्रिया आंगन में सदी बदलने लगी। नहाने के बाद सरजू के साथ आज जल्दी खाना खा लिया।
दोनो फिर दोपहर को घर के पिछवाड़े बड़े नीम के पेड़ के नीचे खटिया डालकर बैठे थे।
"आज सुप्रिया घर जैसे चमक रहा है। वह अच्छा लग रहा है।"
"लगेगा क्यों नही। आखिर ४ घंटे तक काम किया है।"
"हां थक गई होगी तुम।"
"हम्म कुछ खास नहीं। सुनो वैसे मुझे आज शाम बाजार जाना है साड़ी लेने। तुम्हे कुछ चाहिए ?"
"नही नही। वैसे सुनो कल कही घूमने चले ?"
"कहां ?"
"अरे गांव से थोड़े दुर मेला लगा है। कल शाम चले ?"
"हां बिलकुल। बड़ा मजा आएगा।" सुप्रिया उत्सुकता से बोली।
शाम हो गया। सुप्रिया बाजार जाने के लिए तैयार हुई। शाम 4 बजे वो निकल पड़ी। रास्ते में सोची की बीच में बिरजू का घर पड़ता है। एक बार मिलकर चली जाए। झोपडी के पास आई तो बिरजू सो रहा था। सुप्रिया की आहट से उठ गया और एक ही झटके में बैठ गया।
"अरे सुप्रिया यहां कैसे आना हुआ ?"
"बस हाल चाल पूछने आई थी।"
"हां ठीक हूं। बस अभी थोड़ी देर बाद बाहर जाऊंगा।"
"शराब पीने ?" सुप्रिया ने ताना मारते हुए कहा।
"तुम्हारी समस्या ही यही है सुप्रिया। तुम मुझे शराबी ही समझती हो। क्या लगता है तुम्हे ? मैं कोई दूसरे काम से बाहर नहीं जा सकता ?"
"नही। वैसे बिरजू मैं बाजार जा रही हूं। तुम्हारे लिए कुछ लेकर आऊं?"
"नही।"
"सुनो कल दोपहर घर पर खाना खाने आ जाना।"
"ठीक है।"
सुप्रिया पहुंची बाजार और वहां वो "गंगू साड़ीवाला" नाम के दुकान में गई जो गंगू की थी। दुकान और गंगू का घर सटा हुआ था। वैसे एक कमरा दुकान तो दूसरा गंगू का था। एक छोटा सा रसोई और एक बैठने के लिए कमरा।
उस वक्त गंगू दो ग्राहकों को सामान देकर आराम से बैठा।
"क्या मुझे यहां साड़ी मिलेगी ?" एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सुप्रिया बाहर खड़ी थी।
सुप्रिया को देख गंगू मुस्कुराया और बोला "आओ ना सुप्रिया। ये दुकान साड़ी की है और आपकी ही है।"
"सिर्फ मेरी ही दुकान है ?"
"अरे ये दुकान हर ग्राहक की है।"
"तो फिर अगर मेरी है तो आप पैसे लेंगे नही न ?" सुप्रिया ने चिढ़ाते हुए पूछा।
"आप हमारे पोते अरुण की टीचर है आपके लिए मुफ्त।"
"तो फिर चलिए बताइए साड़ी।"
गंगू पीले रंग की एक कढ़ाई वाली साड़ी लेकर आया।
"वह ये तो बहुत खूबसूरत है। और बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन पहले ये बताओ की आप चाय लेंगी या दूध ?"
"जी इसकी जरूरत नहीं। आप तकलीफ मत लीजिए।"
"नही आपको कुछ लेना होगा।"
"आप क्यों इतनी तकलीफ ले रहे है ?"
"अरे आप मेरे पोते की टीचर है और पहली बार दुकान में आई है।"
"नही पहले साड़ी दिखाइए।"
"आप देखिए में जल्दी से रसोई से चाय बनाकर लाता हूं।"
"पहले साड़ी दीजिए फिर चाय पीते है।"
"तो चलिए पहले ये काम निपटा देते है।"
सुप्रिया बोली "आप कोई ऐसी साड़ी दीजिए जिसमे ब्लाउज sleveless हो।"
"देखिए इस पूरे गांव में एक ही ऐसी दुकान हैं जिसमे sleveless साड़ी मिलती है और वो मेरी ही दुकान है।"
"अरे वाह तो दिखाइए। लेकिन कौन से रंग की साड़ी सही होगी ?"
"देखिए sleveless ब्लाउज में काला और लाल रंग है। लेकिन मेरी बात मानिए आप काले रंग को चुनिए।"
"और साड़ी लाल रंग की ?"
"वाह बिलकुल सही।"
"तो ये दो पैक कर दीजिए। और रसोई कहा है ?"
"अरे आप तकलीफ न ले मैं चाय बना लूंगा।"
"चुपचाप अपना काम करे। मुझे मेरा काम करने दे।"
मुस्कुराते हुए गंगू बोला "अंदर जाते ही रसोईघर मिल जाएगा।"
सुप्रिया जानेवाली थी कि पीछे से गंगू बोला "आप वो साड़ी पहनकर आइए ताकि पता चले कि फिट है साड़ी का ढीला।"
सुप्रिया गई साड़ी लेकर कमरे में और साड़ी बदला। लाल रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में जैसे स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। उसी साड़ी में वो रसोईघर पहुंची और चाय बनाया। तब तक गंगू तीन ग्राहकों को साड़ी बेच चुका था। अंदर से गंगू को आवाज आई सुप्रिया के बुलाने की। गंगू भी दुकान का शटर बंद किया और अंदर आ गया घर में।
सुप्रिया को नए साड़ी में जब गंगू ने देखा तो देखता ही रह गया और बोला "तुम्हे चोट तो नही लगी ना ?"
सुप्रिया को कुछ समझ में न आया और हैरानी से पूछी "ये क्या पूछ रहे है आप ?"
"अरे स्वर्ग से आई अप्सरा जब धरती पर गिरेगी तो पूछना पड़ेगा ही न।"
अपनी तारीफ सुनकर जोर से हस्ते हुए सुप्रिया बोली "वाह क्या गजब की तारीफ है। सुनकर तो मजा ही आ गया।"
"चलिए सुप्रिया भीतर चलकर बैठते है।"
दोनो अंदर गए और चाय पीने लगे।
"वैसे गंगू ये sleveless ब्लाउज बहुत अच्छा है। गर्मी के मौसम में काम आएगा। वैसे इसके कपड़े नही आपके पास ?"
"देखिए कपड़े में de doonga lekin ये sleveless ब्लाउज आपको सिलवाना पड़ेगा किसी दर्जी के पास।"
"हो जाएगा। मुझे वो कपड़े भी देना। कौन से रंग के है ?"
"पीला, लाल, हरा और सफेद रंग के भी है।"
"इन चारो रंग के एक एक ब्लाउज दे दो।"
"हां लेकिन आप कॉलेज में भी इसे पहन सकती है। गर्मी के मौसम में कोई परेशानी नहीं होगी।"
"बिलकुल सही कहा आपने। बहुत आराम भी है इसे पहनने में।"
"चलिए मैं आपका सामान पैक करके आता हूं।"
सुप्रिया ने साड़ी change की और वहा सामान लेकर गंगू अंदर आया।
"चलिए गंगुजी मैं चलती हूं। बताइए कितना हुआ ?"
"पैसे मत दीजिए। आपके लिए फ्री।"
"अच्छा ? ज्यादा उधार न रखिए चुपचाप बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन एक शर्त पर।"
"कौन सी शर्त ?"
"देखिए आप तो रोज रोज आएंगी नही। फोर मुलाकात कैसे होगी ?"
"ओह तो फिर आप कभी कभी आ जाइए कॉलेज में मिलने और शाम को कभी कभी मैं। यहां आ जाऊंगी।"
"तो फिर ठीक है।"
सुप्रिया गंगू को पैसा देकर घर के लिए निकली। घर पहुंचते ही सरजू को साड़ी दिखाई और ब्लाउज सिलने को कहा। सरजू मान गया। दोनो साथ में खाना खाए और आंगन में एक एक खटिया पे लेटकर बात करने लगे।
"आज तो मौसम जैसे जानलेवा। गर्मी का हाल तो पूछो ही मत।" सुप्रिया ने साड़ी उतरते हुए कहा। ब्लाउज पेटीकोट में लेट गई।
"तुम रात के लिए कोई कपड़ा ले लो। कोई हल्का और आरामदायक।"
"कोई खास जरूरत नही। वैसे साड़ी उतारने के बाद कुछ हवा आती है।"
"रात के वक्त ठीक और दोपहर का क्या ?"
"दोपहर को भी वही। सुनो मेरी पीठ में दर्द आज बहुत हो रहा है। कोई दवाई है ?"
"एक काम करो लेती रही। मैं पीठ दबा देता हूं।"
"हां ये सही है।"
"उल्टा लेट जाओ।"
सरजू सुप्रिया के खटिया पे आया और पीठ दबाने लगा।
"आआह्ह क्या बात है। अब अच्छा लग रहा है।"
सरजू अच्छे से पीठ दबाने लगा और कहा "थोड़ा कम अकड़ा करो। अगर काम न हो पाए तो jabarjasti काम मत करो। आज पूरे दिन जो सफाई की है ना उसका नतीजा है यह पीठ दर्द।"
"पता नही सरजू आज क्यों इतना दर्द कर रहा है। लेकिन एक बात कहूंगी। तुम्हे मसाज करना बड़े अच्छे से आता है।"
"अरे ये तो कुछ भी नही। मुझे और भी बहुत कुछ आता है।"
जचा ? तो बताओ और क्या क्या आता है तुम्हे ?"
"वो वक्त आने पर बताऊंगा। अभी चलो सो जाओ और हां कल बिरजू आनेवाला है ?"
"हां बात तो को मैंने।"
"रहने दो नही आयेगा।"
"क्यों ?"
"आज उसने दो bottle चढ़ा ली। दोपहर तक नशा नहीं उतरेगा।"
"मन करता है उसे अच्छा खासा डांट लगा दूं।"
"कोई फायदा नहीं। वो शराबी सुधरेगा नही।"
"चलो अब सो जाओ। शुक्रिया मेरा दर्द खत्म करने के लिए।"
दोनो आंगन में अपने अपने खटिया पे सो गए। नजाने क्यों सुप्रिया को जानना था की क्यों बिरजू इतना पीता है। अगली सुबह दिन ऐसे ही चलने लगे। अपनी छुट्टी में मस्त सुप्रिया आराम कर रही थी। सरजू ब्लाउज सील रहा था। आखिर कड़ी सालो बाद सुप्रिया को sleveless ब्लाउज में देखेगा। वैसे जब सुप्रिया हवेली में थी तब भी sleveless ब्लाउज की आदत रहती थी उसे। वक्त के गहरे घाव में रहकर जैसे वो कही खो गई थी लेकिन इस गांव में आने के बाद अब वो कुछ निखरकर बाहर आ रही है। सुप्रिया दोपहर अपने कॉलेज का का रही थी। काम पूरा करके खुद के लिए और सरजू दोनो के लिए चाय बनाया।
"सुप्रिया ब्लाउज सील लिया। एक बार पहनकर बताओ।"
"वह दिखने में बहुत अच्छा लग रहा है।"
सुप्रिया साड़ी बदलने गई। सरजू आज शाम मेला जाने की तैयारी कर रहा था। मेला जाने के लिए कपड़े बदला। सुप्रिया जब साड़ी बदलकर उसके सामने आई तो वो तो देखता रह गया। वही सालो पुरानी खूबसूरती वापिस आ गई हो ऐसा लग रहा था। काले रंग का sleveless ब्लाउज लाल साड़ी में अप्सरा बनी सुप्रिया सरजू के सामने खड़ी थी। सरजू तो जैसे देखता हो रह गया।
"कैसी लग रही हूं मैं ?" सुप्रिया ने एक मोहकभरी अदा से कहा।
"बहुत खूबसूरत। कितने दिनों बाद तुम्हे पहले जैसा देखा। शब्द नही है मेरे पास बोलने को।"
"तो फिर चले मेला में ?"
दोनो चल दिए मेला देखने।
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Superb update.
Ab kuch hot scene bhi lao kahani me. ????
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सुप्रिया और सरजू मेला के लिए निकले। रास्ते में दोनो बात करते हुए चल रहे थे।
"ये मेला यहां से कितना दूर है ?" सुप्रिया ने पूछा।
"बस तीन गांव पर करके मेला आ जाएगा।"
"मैने गांव का मेला नही देखा।"
"तो अब देखलो। तुम्हे मजा आएगा।"
दोनो मेला पहुंचे। सुप्रिया की खूबसूरती के मोहित हुआ पड़ा सरजू नहाने क्यों अपनी नजर उसपर रखा हुआ था।
"वाह कितना अच्छा लग रहा है यहां। बच्चे झूला खुल रहे है, लोग नाच गा रहे है। अरे वाह पानी पूरी की दुकान। चलो ना सरजू बहुत दिन हुए पानी पूरी खाए।"
"चलो सुप्रिया मैं भी आज पानी पूरी का आनंद लूंगा।"
दोनो पानी पूरी की दुकान में पहुंचे। आज सुप्रिया ने पानी पूरी का जैसे रिकॉर्ड बना दिया। करीब 40 से भी ज्यादा गोल गप्पे खाए। दुलानवाला भी बोला पड़ा "लगता है आज मेमसाब सबको गोल गप्पे की प्रतियोगिता में हरा देगी। सबसे ज्यादा आपने ही खाया है।"
"हां भैया अब बस आज के लिए काफी है।"
फिर सुप्रिया और सरजू आगे बढ़े और चाट का आनंद लिया।
"क्या सरजू। तुम तो कुछ खा ही नहीं रहे हो।"
"अरे इस बुढ़ापे में ज्यादा खाना आसान नहीं।"
"कुछ नही होता ये बुढ़ापा। खाने का जवान और बुड्ढे से क्या लेना देना ?"
करीब तीन घंटे तक दोनो मेला में खूब घूमे फिरे। अब देखते देखते अंधेरा होने लगा। दोनो वापिस घर की तरफ चल दिए। दोनो का पेट भरा हुआ था। सुप्रिया और सरजू घर पहुंचे। घर के दरवाजे के बाहर एक चिट्ठी पड़ी थी।
"ये किसकी चिट्ठी है सरजू ?"
"तुम जाओ कपड़े बदले मैं देखता हूं।"
सुप्रिया थकी हुई थीं इसीलिए साड़ी उतारने लगी। फिर पता नही खुद को aayne में देख रही थी। इस sleveless ब्लाउज और पेटीकोट में खुद की सुंदरता को कुछ देर तक निहारने लगी। अचानक से चिल्लाते हुए उत्साह से साथ दौड़ते हुए सरजू बीमा पूछे सुप्रिया के कमरे में घुस गया।
"सरजू यह क्या है मैं कपड़े बदल रही थी। घुस आए रूम में।"
"अरे उसमे क्या ब्लाउज पेटीकोट में तो हो। अगर ये चिट्ठी पढ़ी तो तुम भी पागल हो जाएगी।"
"क्या है इसमें ?" सुप्रिया चिट्ठी पढ़ने लगी।
चिट्ठी सरकार की तरफ से था। दरसल कॉलेज में सुप्रिया का प्रमोशन हो गया। अब वो प्रिनिसिपल बनानेवाली थी। चिट्ठी खत्म होते ही टीचर की सारी जिम्मेदारी और पढ़ाई को छोड़ प्रिंसिपल की जिम्मेदारी संभालने होगी। अब दिन में सिर्फ एक ही पीरियड लेंगी। ये पढ़कर सुप्रिया तो जैसे पागल सी हो गई और खुशी से सरजू के गले लग गई।
"सरजू मैं कितनी खुश हूं आज। मैने अपनी मेहनत से ये सफलता हासिल की। सरजू तुमने मेरे लिए कितनी मेहनत की। सरजू।" कसके सुप्रिया ने सरजू को गले लगा लिया। पता नही इस हरकत से सरजू की दिल की धड़कन बढ़ गई। इतनी गोरी और मखमली सा बदन आज उसे लिपटा हुआ था। सरजू ने भी दोनो हाथो से सुप्रिया को कस लिया और सिर को इसके नरम और नंगे कंधे पे टिका लिया। सुप्रिया का मुलायम स्तन सरजू के सीने से चिपका हुआ था।
"सुप्रिया बहुत बहुत बधाई। आज मैं बहुत खुश हूं।" अभी भी दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे।
"अच्छा सुप्रिया इतने दिनो बाद कोई खुश खबरी आई।"
"सरजू सिर्फ तुमने ये मुमकिन किया। तुम ना होते तो कुछ न होता।"
सरजू अलग हुआ और कहा "तुम्हारी मेहनत है। मैंने बस थोड़ा सा साथ दिया।"
दोनो बहुत खुश थे। दोनो ने देर तक बाते करे और सो गए। अगले दिन सुप्रिया थोड़ी देर से उठी और आंगन में आ गई। वहां देखा तो सरजू चाय बना रहा था। दोनो ने साथ में चाय पिया। फिर सुप्रिया नहाने चली गई। आज जैसे वो काफी खुश थी। जैसे दुनिया की सारी खुशी उसे मिल गई हो।
सुप्रिया ने सोचा कि आज आज बाजार जाकर सामान लेकर आए। सुप्रिया गई बाजार में वहां सामान लिया और हॉस्पिटल में जाकर सरजू का रिपोर्ट भी लिया। रिपोर्ट सही थी।
सुप्रिया बाहर आई तो देखा कि गंगू अपने पोते के साथ दिखा। सुप्रिया मिलने चली गई।
"नमस्ते गंगूजी कैसे है आप ?"
गंगू का पोता अनिल जब सुप्रिया को देखा तो पैर छूकर खड़ा हो गया। उसकी हालत थोड़ी सुस्त लग रही थी। दरअसल उसे तेज बुखार था।
"अरे कुछ नही सुप्रिया मेमसाब बस बुखार है साहब जी को तो बस।यहां आ गए।"
"अरे ऐसे कैसे बुखार हुआ ?"
"कुछ नही बस खेल कूद का नतीजा। डॉक्टर ने आराम करने को कहा।"
दोनो ने कुछ देर बात किया लेकिन सुप्रिया को कुछ सही नही लगा और सभी अलग हुए।
घर वापिस आए तो सरजू को भी तैयार करना था। सरजू छह दिनों के लिए बाहर जानेवाला था। सरजू को दोस्त के साथ बनारस जाना था। सरजू चला गया। अब सुप्रिया अकेली पड़ गई। फिर उसे गंगू के पोते अनिल की याद आई और सोचा मिलने चली जाए।
रात के ८ बजे अंधेरा हो गया और गंगू दुकान बंद करके घर आया। अनिल को सोता देख बोला "उठ बेटा थोड़ा खाना खा ले वरना ठीक कैसा होगा ?"
"नही दादा आप अच्छा खाना नही बनते। मुझे नहीं खाना।"
"मेरे बच्चे मैं कोशिश कर रहा हूं। चल मेरे लाडले उठ जा।"
तभी दरवाजे से दस्तक आई। गंगू ने देखा तो सुप्रिया थी। गंगू मुस्कुराते हुए बोला "मेमसाब आप ?"
"सिर्फ सुप्रिया नाम से बुलाओ। मेमसाब नही।"
"इतनी रात यहां?"
"अनिल को देखने आई थी।"
"देखलो वैसे साहब खाना नही खा रहे। बोलते है को अच्छा नहीं बनता।"
सुप्रिया बिना बोले अंदर रसोई में गई और सब्जी चखा बिना नमक के। सुप्रिया बाहर आई और बोली "ऐसे कैसे खाना बनाते है आप यह दोपहर का बिना नमक का लगता है। रहने दो मैं जल्दी से खिचड़ी बना देती हूं।"
"मेमसाब आप भी ना। रहने दो।"
"चुप रहो जल्दी से समान लाने में मदद करो।"
गंगू भी कुछ न बोला और मदद करने लगा। खिचड़ी बनाकर सुप्रिया ने अनिल को खिलाया। अनिल को अच्छा लगा और आराम से सो गया।
"बहुत बहुत शुक्रिया आपका नही तो लाड साहब भूखे रहते।"
"चलिए आप भी खा लीजिए।" सुप्रीम ने कहा। दोनो ने खाना खाया और फिर लालटेन की रोशनी में बैठ गए।
"वैसे आप आई और लाड साहब बड़े अच्छे से खा पीकर सो गए।"
"चलिए गंगूजी मुझे चलना होगा। काफी देर हो गई।"
"अरे इतने अंधेरे में कैसे ? आज आप यहां रुक जाइए।"
"लेकिन आपको तकलीफ होगी।सी
"लो। कैसी तकलीफ। चलिए आप यहां रह जाइए।"
"लेकिन अनिल की नींद उड़ जाएगी। उसे कमरे में रहने दो।"
"हां तो एक काम करिए हम कही और चलकर सोते है। ऊपर छत पर दो खटिया है। आपको सुविधा में भी कमी नहीं होगी।"
सुप्रिया मान गई। दोनो छत पर चले गए। रात का सन्नाटा और चांदनी रात। दोनो को नींद नहीं आ रही थी।
"वैसे सुप्रिया आप ऐसा मत आया करे वरना मुझे और अनिल को आदत पड़ जाएगी।"
"इसमे क्या हुआ ? हम एक ही गांव में रहते है और अभी तो सरजू भी नही है। सोचा था आज देख लूं।"
"सरजू कहा गया ?"
"अपने दोस्त के साथ बनारस छह दिन बाद वापिस आएगा।"
"क्या बात है। फिर तो अच्छा है।"
"लेकिन इतने रात आपके घर आई और आप परेशान हुए।"
"कुछ भी परेशान नहीं हुआ। मुझे बहुत अच्छा लगा आप आई। कितने दिनों बाद कोई आया यहां।"
"वैसे एक बात कहूं बुरा मत मानिए।"
"कहो कहो सुप्रिया।"
"आप ठीक से देखभाल नही कर रहे है। लगता है मुझे ही अनिल। खयाल रखना होगा।"
"हां वैसे भी एक औरत ही बच्चो का खयाल रख सकती है।"
"अब चिंता न करिए। आप अब मेरे निगरानी में है। Apka bhi खयाल रखना होगा।"
दोनो हंसने लगे।
"सुप्रिया जी वैसे एक बात कहूं आपको ?"
"हां कहिए।"
"आपका कोई पति नही क्या ?"
"नही। वैसे कौन मुझसे शादी करेगा। इस गांव में जो रहती हूं।" सुप्रिया ने मजाक में कहा।
"पागल होगा वो जो आपसे शादी न करे। दूध सी गोरी और जवान।"
सुप्रिया ने छेड़ते हुए कहा "तो आप करोगे क्या ?"
गंगू जोर से हंसते हुए कहा "मुझसे शादी करेगी तो कुछ नही मिलेगा।"
"मिलेगा न। नई नई साडिया और क्या चाहिए।"
"तो फिर बताओ कब करें शादी ?" गंगू ने मजाक में कहा।
सुप्रिया को भी अच्छा लग रहा था गंगू के साथ। और अपने सुंदरता को तारीफ भी सुनना चाहती थी।
"चलो अभी कर ले।" सुप्रिया ने मजाक में कहा।
"चलो तो फिर सुप्रिया मेरी पत्नी।"
"और गंगू मेरा पति एक बूढ़ा पति।"
"वैसे पत्नीजी अब मुझे पति का हक निभाने दो।"
"क्या करना होगा ?"
"मेरे पैर छुओ और आशीर्वाद लो।"
सुप्रिया ने मजाक में पैर छुआ और कहा "आपकी पत्नी आपका आशीर्वाद चाहती है।"
"सदा सुहागन रहो। लेकिन तुमसे मुझे एक शिकायत है।"
"बोलिए पतिजी। क्या किया मैंने ?"
"पहली बात। तुम इतनी खूबसूरत और मैने बदसूरत बुड्ढा। भला कोई वजह बताओ मेरी पत्नी होनेका।"
"आपके साड़ी की दुकान।"
"वाह खूब।"
"और आप हमारे पति क्यों बने ?"
"एक जवान खूबसूरत स्त्री जब मिल जाए तो जाने क्यों दूं ?" इतना कहकर गंगू ने सुप्रिया के दोनो कंधे पे हाथ रख दिया।
"अच्छा तो मैं खूबसूरत हूं इसीलिए ? ऐसा क्या है मुझमें ?"
"उसके लिया मेरे साथ रेहान होगा तो जवाब मिलेगा।"
"तो फिर ठीक है अब देखते है इस पति के जवाब को।"
"लेकिन सुप्रिया क्या तुम्हे लगता नही ? की एक पति के साथ तुम्हे वक्त बिताना चाहिए ?"
"हां लेकिन मेरा पति छत पर ले आया। भला उसका कोई कमरा नही तो कैसे दिन में वक्त बिताऊं ?"
"फिर चलो अब हम कमरे में चलेंगे।" गंगू ने मजाक में सुप्रिया का हाथ पकड़ा और अपने छोटे से कमरे ले गया।
दोनो आयना के सामने खड़े हो गए। सुप्रिया ने मस्ती में कहा "देखो तो सही एक पति पत्नी की जोड़ी को।"
"हां जैसे जन्म जन्म के साथी।" गंगू ने सुप्रिया के दोनो कंधे पे हाथ रख पीछे खड़ा हुआ।
"जन्म जन्म के साथी ?"
गंगू सुप्रिया के कमर पे हाथ रखा और पीछे से लिपटते हुआ कहा "गंगू और सुप्रिया एक दूसरे के साथी।"
नज़ाने क्यों दोनो खुद को भूलने लगे और पति पत्नी की तरह बाते करने लगे। सुप्रिया हल्के से गंगू के हाथ को अपने कमर पे दबाते हुए कहा "किसी की नजर न लगे इस जोड़ी को।"
दोनो एक दूसरे की आंखों में देखने लगे और गले लग गए।
"सुप्रिया मेरी खूबसूरत पत्नी।" इतना कहकर गंगू ने हल्के से सुप्रिया को बिस्तर पे लिटाया और कहा "मेरी पत्नी दुनिया की सबसे खूबसूरत पत्नी।" यह कहकर रोने लगा।
"क्या हुआ गंगू मुझे माफ करो। मेरा कोई गलत इरादा नहीं था।" सुप्रिया को बूरा लगा।
दरअसल गंगू को सुप्रिया से सच्चा प्यार हो गया और भावनाओं में आकर ये सब कह बैठा। उस लम्हे के बाद दोनो के बीच कुछ भी बात चीत न हुई। गंगू के साथ हुई बातो से सुप्रिया को अजीब सा अपनापन लगा।
अगले दिन सुप्रिया घर वापिस आई और दिन बीतने लगा और सुप्रिया को घर में अकेलापन सताने लगा। आखिर में ६ दिन बीते और रात के वक्त सरजू वापिस आया।
सरजू ने सुप्रिया को बहुत याद किया। सुप्रिया को मिलते ही सरजू बोला "तुम्हे वापिस देख अच्छा लगा। आखिर कुछ भी कहो दुनिया के हर सुंदर जगह घूम लो लेकिन स्वर्ग अपने घर में ही है।"
सुप्रिया बोली "अगली बार इतने दिनो के लिए अकेला न छोड़ना। तंग आ गई थी अकेले रहकर।"
"अरे बाबा हां अगली बार हम दोनो चलेंगे कहीं घूमने। अब जल्दी से बिस्तर लगाओ थोड़ा आराम कर लूं।"
"आपका कमरा तैयार है।" सुप्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे नही सुप्रिया मुझे तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना है। बहुत याद किया तुम्हे। अब मुझे हर वक्त तुम्हारा साथ चाहिए। चलो साथ में आंगन में सोएंगे"
सुप्रिया भी साड़ी उतरकर रोज की तरह ब्लाउज पेटीकोट में आ गई। दोनो एक एक खटिया में लेटे।
"अच्छा सरजू मेरे लिए कुछ लाए या नहीं ?"
"लाया हूं एक साड़ी लेकिन कल दिखाऊंगा।"
"लेकिन तुम काफी थक गए होंगे।"
"तुम्हे देखकर सारी थकान उतर गई। सच कहूं सुप्रिया तुम्हारे बिना दिल नही लग रहा था। बस इतना मन में था कि जल्द से जल्द तुम्हारे पास आऊं। बहुत सोचा तुम्हारे बारे में।"
"मैंने भी तुम्हे याद किया। लेकिन एक बात है तुम्हारे बिना घर खंडार लग रहा था।" इतना कहकर सुप्रिया सरजू के खटिया पे आया।
सरजू बहे फैलाए लेटा और सुप्रिया को अपने बगल लिटाया। सुप्रिया सरजू के हाथ पर सिर लगाए लेट गई। सरजू बोला "आह अब उतरी थकान सच में सुप्रिया बहुत याद किया तुम्हे।" यह कहकर सरजू ने सुप्रिया को गले लगा लिया।
सुप्रिया ने हल्के से सरजू की तरफ करवट लेकर मुड़ी और कहा "सच कहूं तो इतने सालो बाद किसी को से न पाने पर अच्छा नही लग रहा था। सरजू एक बात पूछूं"
"पूछो।"
"मुझे याद करने की कोई वजह ?"
सरजू हंसते हुए बोला "कोई किसी अपने को याद वजह से करते है ? जायस सी बात है तुम्हे याद करने की वजह भी यही है। तुम साथ होती हो अच्छा लगता है। वैसे भी एक जवान खूबसूरत औरत जब आपके घर हो तो उसे दूर नही जाया करते।" हल्के से मजाकी मूड में सरजू ने हाथ आगे बढ़ाकर सुप्रिया के चिकने पीठ को सहलाया।
"सरजू दुबारा इतने दिनो के लिए अकेले छोड़कर नही जाना।"
"नही जाऊंगा अब चलो जाओ अपने खटिया पे और सो जाओ।"
"नही आज नही जाऊंगी। इतने दिनो बाद आने की सजा है ये। इसी खटिया में रहूंगी।"
सरजू हल्के से सुप्रिया के कमर पे हाथ रखकर कहा "तो फिर चलो मुझे कोई ऐतराज नहीं।"
दोनो एक दूसरे से लिपटकर लेट गए। सुप्रिया से बजाने अब सरजू को प्यार होने लगा। सुप्रिया के गालों को कई दफा चूमा। दोनो ऐसे ही सो गए।
अगले दिन दोनो सुबह देर से उठे। सुप्रिया की आंखे खुली तो खुद को सरजू के बगल पाया। हल्के से सरजू के गाल पे थप्पड़ लगाते हुए कहा "उठो बुड्ढे बहुत हुआ सोना।"
सरजू हल्के से आंखे मसलता हुआ बोला "हम्म्म काफी देर हो गई। चलो मैं गाय को चारा देकर आता हूं।"
सरजू गाय को चारा देने गया। सुप्रिया ने घर में झाडू लगाया। अब वो sleveless ब्लाउज पेटीकोट में रहती बिना किसी संकोच के। झाड़ू के बाद वो नहाने गई और सरजू बाहर कुएं के पास नहा लिया। नहाने के बाद आंगन गया कपड़ा सुखाने। सुप्रिया भी slevelss ब्लाउस पेटीकोट पहने बाहर आई। बदन भीगा हुआ और बाहर आंगन में सरजू के सामने बालो को झटक रही थी। बालो को सुलझाते हुए बोली "सरजू मेरी साड़ी दो। वहां लटकी हुई है।"
"कौन सी लाल वाली ?"
"हां"
सरजू साड़ी देते हुए सुप्रिया के सामने पड़ी खटिया पे बैठ गया। सुप्रिया अपने गीले कपड़े सुखाने लगी। उसके बाद साड़ी पहनने लगी। दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए।
"वैसे सुप्रिया आज खाने में क्या बनाओगी ?"
"तुम बताओ।"
"आज पराठा खाने का मन है।"
"हां ठीक है लेकिन रसोई में जरा हाथ बटाना।"
"हां ठीक है लेकिन आखिर में तुमने मेरे beg से साड़ी निकाल ही ली।"
"आखिर इतनी खूबसूरत साड़ी लाए हो तो पहनी क्यों न ?"
सरजू सुप्रिया के पीछे गया और कसके बाहों में भर लिया और कहा "सुप्रिया इसी खूबसूरती को याद करके खरीदा।"
सुप्रिया शर्मा गई और बोली "लेकिन मैंने आपके लिए कुछ नहीं लिया।"
"जिसके पास सब कुछ हो उसे क्या जरूरत है कैसी चीज की ?"
"सब कुछ मतलब ?"
"तुम। जिसमे मेरी खुशी, अपनापन सब कुछ हो।" यह कहकर सरजू सुप्रिया के मुलायम कंधे पे सिर रख दिया।
सुप्रिया सिर को हाथ से सहलाते हुए बोली "तुम्हारी बाते बड़ी अच्छी है। इसे रोज याद करती थी मैं। अब चुपचाप मेरे साथ रसोई चलो। आज तुम्हे पूरे दिन अपने आस पास रखूंगी। बहुत रहे मेरे बिना। अब ऐसे नही जाने दूंगी।"
"और मैं भी। आज तुम खाने के बाद मेरे साथ बात करोगी और कोई भी प्रकार का काम नहीं। तुम्हारे साथ एक एक पल को गुजरना है। अब चलो कुछ देर मुझे शती से अपने से लगाओ।"
सरजू सुप्रिया को अपनी गोदी में बिठाया और सुप्रिया के सीने पे सिर रख दिया। सुप्रिया सरजू के सिर को सहलाते हुए बाहों में भर लिया।
"सरजू। पता नही तुम्हारे बिना जीना कैसे होगा ?"
"मुझे भी तुम्हारे बिना जीना अच्छा नही लगेगा। जब तक साथ हूं खुश रहूंगा।"
दोनो कुछ वक्त के लिए सब भूलकर एक दूसरे की बाहों में थे। फिर दोनो ने खाना बनाया और खाना खाया।
दोपहर सरजू अपने कमरे में था और सुप्रिया का इंतजार कर रहा था। सुप्रिया अपने कमरे में सामान ठीक कर रही थी और उसके बाद साड़ी बदलने वाली थी। कुछ समय बीत और सरजू चिल्लाते हुए बोला "सुप्रिया आओ ना कितना वक्त लगेगा"
"आ रही हूं। रुको तो सही।" सुप्रिया बिस्तर पर पड़े सामान को ठीक करने लगी।
सरजू भी सब्र खोने लगा और घुस गया सुप्रिया के कमरे में। काम निपटाकर सुप्रिया साड़ी बदल रही थी।
"कितना इंतजार करवाओगी ?"
सुप्रिया sleveless ब्लाउस पेटीकोट में थी और बोली "साड़ी तो बदलने दो।"
सरजू हाथ पकड़ते हुए बोला "उसके बिना भी तुम मेरे साथ रहती हो। कोई जरूरत नहीं साड़ी पहनने की।"
सुप्रिया हंसते हुए बोली "सब्र नहीं है तुम्हे। पागल बुड्ढे।"
दोनो सरजू के कमरे आए और बिस्तर पर लेटे। सरजू बोला "सुप्रिया एक दूसरे को खूब वक्त दे रहे हैं। अच्छा लग रहा है।"
"मुझे भी। छुट्टी तक सिर एक दूसरे के साथ समझे ?"
सरजू सुप्रिया के कमर पे हाथ रखकर बोला "हां। अब चलो कल की थकान गई नही। चलो मुझे सुला दो।"
सुप्रिया ने सरजू को खुद के सीने से लगाया और सुलाने लागी।
"सुप्रिया बहुत महक रही हो।"
"मैंने कुछ लगाया नही। लेकिन तुम बहुत पसीना बहा रहे हो। कुर्ता उतार दो।"
सरजू ने कुर्ता उतार और उसका बुद्धा शरीर और सफेद बालों वाली छाती सुप्रिया। के सामने था। सुप्रिया ने उसे बाहों में भरकर कहा "सो जाओ। आराम करो।"
सुप्रिया और सरजू दोनो ने ऐसे ही छुट्टी के दिन बीता लिए। कॉलेज खुला और नए जिम्मेदारी के साथ सुप्रिया आगे बढ़ी। वक्त भी बीतने लगा और सुप्रिया भी अपने जिंदगी में खुश थी। सुप्रिया को एक चीज ढलती और वो था गंगू। उस रात के बाद गंगू उससे मिला ही नहीं। करीब 40 दिन हो गए लेकिन मिला ही नहीं। सुप्रिया का दिन फिर खाली जाने लगा darsal सरजू के दोस्त का देहांत हुआ इसीलिए वो बनारस गया पूरी विधि के लिए। करीब ३ हफ्ता लगेगा।
40 दिन बाद
देखते देखते दिसंबर का महीना आया और रोज की तरह सुबह 9 बजे अपना एक लेक्चर पूरा करके सुप्रिया ऑफिस में थी। करीब कुछ दिनों से धूप नही आई और बारिश की भी अगाही थी।
खाली वक्त रहता तो हिसाब किताब की जांच करती। ऑफिस के पीछे एक बगीचा भी था। सुप्रिया ने देखा तो अभी सिर्फ 11 ही बजे थे। अपने काम में लगी सुप्रिया के ऑफिस पर किसी ने दस्तक दी।
फाइल को देखते हुए सुप्रिया ने बिना उस आदमी की तरफ देखे उसे अंदर आने को कहा। वो आदमी गंगू था। गंगू ने देखा तो लाल रंग sleveless ब्लाउज में सुप्रिया क्रीम रंग की साड़ी में थी।
"नमस्ते सुप्रिया।" गंगू ने कहा।
सुप्रिया आवाज सुनते ही पहचान गई और देखा तो गंगू ही था। वैसे सुप्रिया गंगू से नाराज़ थी।
"हां बोलिए क्या काम है ?"
"जी वो पोते का फीस चुकाने आया था तो सोचा आपसे मिल लूं।"
"आप जा सकते है।" सुप्रिया ने रूखे आवाज में कहा।
"मेरी बात तो सुनिए।"
"क्या सुनू ? इतनी कोशिश की लेकिन आप मिले ही नही। अब क्या कहने आए है आप ?"
"माफी मांगने आया।"
"मेरा दिल दुखाने के लिए ? आपको अपना मानती थी लेकिन आप है कि मेरे दिल को बार बार ठेस पहुंचाते रहे।"
"माफ करदो। वो क्या है मुझे बूरा लगा इस रात में जो हुआ। मुझे ये सब नही करना चाहिए था। आपकी सुंदरता से बेकाबू हो गया।"
सुप्रिया उठी और कहा "यहां नही कही और चलकर बात करते है।"
सुप्रिया ने उसी वक्त आधे दिन की छुट्टी ले ली। सुप्रिया और गंगू कॉलेज से बाहर निकले।
"गंगूजी आपने मेरा दिल दुखाया। क्यों मुझसे दूर रहे ?"
"दरसल मुझे पछतावा था उस रात का।"
"को हुआ वो हमारे मजाक की वजह से हुआ और उसमे मैने भी साथ दिया था।"
"यही बात आज समझ में आई इसीलिए मिलने आया।"
"बहुत गंदे हो आप। दिल भी तोड़ते हो और मिलकर आशाएं बांध देते हो।"
"कैसी आशा।"
"अपनेपन वाले रिश्ता की।"
"सुप्रिया क्या तुम मेरे घर चलोगी ? थोड़ा साथ में बात करेंगे।"
दोनो चुप रहे और घर आ गए। गंगू ने दरवाजा बंद किया। सुप्रिया खामोश थी। गंगू पानी लेकर आया और पूछा "क्या आपने मुझे माफ किया ?"
सुप्रिया घुसा दिखाते हुए बोली "दुबारा मुंजे अकेला छोड़ा तो जान ले लूंगी।"
"अब बिल्कुल अकेला नहीं छोडूंगा।"
"एक तो दिल में जगह बनाते हो और भाग जाते हो। किंतना रोई मैं आपको याद किया। पता नही काम वक्त में आपको अपना मान लिया। रोज सोचती की तुम कब आओगे।"
"मैं भी आपके बारे में ही सोचता।"
"एकदम घटिया आदमी हो तुम।" रोते हुए सुप्रिया मुड़ गई।
गंगू ने है से सुप्रिया को पीछे से छुआ। सुप्रिया ने घुसे से झटक लिया। गंगू ने फिर छुआ तो वोही हुआ। आखिर में मजबूती से गंगू ने सुप्रिया को पीछे से बाहों में भर लिया। सुप्रिया ने झटकना बंद कर दिया।
गंगू ने पीठ को चूमते हुए कहा "अब कभी नहीं छोड़कर जाऊंगा।"
सुप्रिया गंगू की तरफ मुड़ी और कहा "गंगू अब छोड़कर न जाना। बहुत याद किया तुम्हे। अब चुपचाप मेरे पास रहना वरना मुझे बूरा कोई नही।"
"आज मेरे पास रह जाओ।"
"हां मैं हूं तुम्हारे पास।"
गंगू ने सुप्रिया के होठ को चूम लिया और कहा "प्यार हो गया है तुमसे।"
"ऐसा न करो गंगू नही तो बेकाबू हो जाऊंगी। फिर कही तुम्हे चाहने ना लगूं।"
"अब मुझे करने दो जो करना है।" गंगू ने साड़ी का पल्लू गिरा दिया और कहा "आज मैं इसी इरादे से आया था की तुम्हे यहां लेकर आऊं और फिर तुम्हे अपना बना लूं। अब मेरा इरादा हैं तुम्हे अपने पास ही रखने का। देखो आज तुम्हे यहां लेकर आया हूं। आज कोई दूरी नही। आज के बाद सुप्रिया तुम मेरी हो।"
"हां मैं तुम्हारी हूं। बस अब आओ मेरी बाहों में इस जिस्म को तुम्हारे प्यार की प्यास है।"
"चलो मेरे कमरे में। जहां से रुके उसे खत्म करेंगे।"
सुप्रिया जब अंदर आया तो देखा की कमरे में गंगू ने उसकी तस्वीर रखी थी। वो तस्वीर जो कॉलेज के वार्षिक उत्सव का था।
"यह तस्वीर कैसे मिली ?" सुप्रिया ने पूछा।
"दुकानवाले से ली।"
"कब ?"
"उसी दिन। जब से तुम्हे देखा। जानती हो सुप्रिया ? मुझे तुमसे पहली नजर में प्यार हो गया था। रोज तुम्हे याद करता। कसम खा ली थी की तुम्हे अपना बनाऊंगा। जब से तुमसे अलग हुआ इसी के सहारे जी रहा हूं।"
सुप्रिया दौड़ते हुए गंगू के होठ को चूमते हुए बोली "अब मैं आ गई हूं। आज तुमसे कहती हूं की तुमने मुझे हासिल कर लिया।"
सुप्रिया दो कदम पीछे गई और पल्लू गिरते हुए कहा "आओ गंगू कर लो मुझे पूरी तरह से हासिल। आज मैं खुले आवाज में कहती हूं कि गंगू ने मुझे पा लिया। अब गंगू का मुझपर पूरा हक है। आओ गंगू अब देर ना करो।"
गंगू ने सुप्रिया को बाहों में भर लिया और कहा "आज के बाद तुम्हे मैं अपनी पत्नी से भी ज्यादा मानूंगा।"
गंगू ने सुप्रिया के बदन से एक एक करके कपड़े उतार दिया और बिस्तर पे लिटाया। सुप्रिया के हाथ आगे करते हुए कहा "आओ गंगू। अब मुझे न तड़पाओ और मेरे जिस्म को प्यार की बारिश में भीगा दो।"
गंगू आगे बढ़ा और सुप्रिया के ऊपर लेट गया। दोनो ने एक दूसरे के होठ को चूमना शुरू किया। सुप्रिया का दूध जैसा गोरा जिस्म गंगू के कोयले काले शरीर के गिरफ्त में आ गया। गंगू ने सुप्रिया के गर्दन और पूरे गले को चाटा। सुप्रिया ने अपनी जुबान बाहर निकला। गंगू ने उसकी जुबान को अपनी जुबान से मिलाया और फिर सुप्रिया के मुंह को थूक से भर दिया।
अपने काले लिंग को गोरी योनि के डालकर धक्का मरने लगा। दोनो की आंखे मिली। सुप्रिया को एहसास होने लगा को उसने क्या कर दिया। आखिर उसका आकर्षण सरजू भी है। खुद से कहने लगी "क्या हो रहा है मेरे साथ ? गंगू के साथ बिस्तर में जो कर रही हूं वो सुख और खुशियों में इजाफा लाता है लेकिन सरजू तो मेरा पहला प्यार है। यह क्या हो रहा है। क्यों दोनो बुड्ढे लोगो से प्यार हुआ मुझे। क्यों दोनो के लिए दिल धड़क रहा है ? सरजू और गंगू के साथ जिंदगी बिताना ही मेरे जिंदगी का मकसद तो नही ? सालो से दर्द और डर के साथ जीने के बाद आज दोनो ने मुझे खुशी दी। हां मैं यही करूंगी। चाहे जमाना जो कहे। मुझे दोनो की होना है। दोनो के बिना मैं अपनी जान दे दूंगी। सुप्रिया अब से यही तेरी जिंदगी है। इन दोनो की हो जा। अब यह चाहे तकदीर का फैसला हो या तेरा।"
"Aaaahhhh सुप्रिया मैं आने वाला हूं।" यह कहकर गंगू खाद गया। सुप्रिया को आज सबसे बड़ी खुशी मिली। गंगू की आंखे बंद थी। सुप्रिया ने कहा "आज मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली गंगू।"
"हां सुप्रिया आज मैने तुम्हे हासिल कर लिया। अब बाकी की जिंदगी तुम्हारे साथ प्यार करके गुजरूंगा।" गंगू स्तन चूसने लगा। सुप्रिया हंसते हुए बोली "ओह मेरे गंगू तुम्हारे प्यार ने मुझे पागल कर दिया। नजानें इस बुड्ढे से प्यार कैसे हो गया ?" दोनो साथ में कुछ वक्त सहवास के आनंद में डूबे। दोपहर २ बजे दोनो अलग हुए। अनिल के आने का वक्त था। सुप्रिया साड़ी पहनकर जाने लगी की गंगू ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी और खींचा। दोनो ने एक दूसरे को चूमा।
"गंगू अनिल आ जाएगा। अब थोड़ा सब्र करो। मैं वापिस आऊंगी।"
"नही। अब नही जाओगी यहां से। अनिल के सोने के बाद तुम्हारे साथ फिर से सहवास करूंगा। आज इतना भड़ास निकलूंगा कि तुम थक जाओगी लेकिन मैं नही। चलो अब से हम दोनो का कमरा एक और मेरी पत्नी बनकर रहना होगा तुम्हे।"
"थोड़ा सब्र करो गंगू। बहुत जल्द हम शादी करेंगे।"
"अब चलो अंदर आओ। आज ऐसे नही जाने दूंगा। एक गोरी जवान औरत मेरे प्यार में फंसी है। अब सारी जिंदगी मेरे नाम करना होगा। चलो अनिल के खाने के बाद मेरे कमरे आ जाओ।"
"ओह मेरे गंगू पहले खाना बना लूं। फिर तुम्हारे साथ वक्त गुजरूंगी। पागल बुड्ढे मुझे लत लगा रहे हो अपनी। जी कर रहा है अभी तुम्हे खुद से बांध लूं। अनिल के बाद मुझे वापिस वोही गंगू चाहिए जिसने मुझे अपने जाल में फंसाया है। लगता है आज मेरी खैर नहीं।"
"आज तुम्हे पता चलेगा कि प्यार कैसे एक बुड्ढा इंसान करता है। बहुत तड़पा तुम्हारे लिए।"
अनिल जब आया तो सुप्रिया को सामने देख बोला "आप यहां ? क्या मेरे लिए खाना बनाओगी टीचर ?"
सुप्रिया अनिल को गले लगाते हुए बोली "हां। जल्दी से मुंह हाथ धो लो। फिर हम साथ में खाना खायेंगे।"
अनिल अपने कमरे में गया। पीछे से गंगू सुप्रिया के नितंब पे चुटकी लगाते हुए कहा "रसोई घर चलो।" कमर पे हाथ रखकर रसोईघर में ले गया ओर kiss करने लगा।
"रुक भी जाओ वरना आ जायेगा अनिल।"
गंगू कमर पे चिकोटी भरते हुए कहा "जल्दी से अपनी ब्रा मेरे हाथ में दो वरना यही पर शुरू हो जाऊंगा। मेरी बुलबुल।"
"नही बिलकुल नहीं।"
"अच्छा तो ऐसे नही मानोगी।" कहते ही सुप्रिया का पल्लू गिरा दिया और दोनो हाथो से स्तन को दबाने लगा।
"चोदो भी। रुको।" सुप्रिया ने जल्दी से ब्रा अंदर से निकाला और गंगू को दे दिया।
ब्रा को सूंघते हुए गंगू ने कहा "एक घंटे के अंदर आ जाना वरना पेंटी लेने आ जाऊंगा और फिर उसके बाद अनिल का भी खयाल नहीं रखूंगा। सीधा उठाकर ले जाऊंगा।"
"हां आ जाऊंगी। फिर जो चाहे करना मेरे साथ।"
गंगू चला गया। सुप्रिया हल्के से मुस्कुराते हुए बोली "यह बुड्ढा आज नही छोड़ेगा। चलो जल्दी से काम कर लूं क्योंकि मुझसे भी काबू नही हो रहा। आज दोपहर गंगू के साथ मजे करूंगी। आ रही मेरे बुड्ढे पति। इस जवान और खुबसूरत पत्नी को बहोंके भरने को तैयार रहो।"
सुप्रिया ने अनिल को खाना खिलाया और खटिया में सुला दिया। उसके बाद हल्की सी मुस्कान के साथ गंगू के कमरे में आई। दरवाजा अंदर से बंद किया। सामने देखा तो बिस्तर में गंगू bra को सूंघते हुए कहा "अब आ जाओ। मेरी पत्नी। यह कपड़े उतारो और धीमी धीमi कदम के साथ मेरी बाहों में आ जाओ।"
बड़े ही मोहक अंदाज में सुप्रिया ने साड़ी का पल्लू सरकाया और धीरे धीरे सारे कपड़े उतार दिया। फिर आहिस्ता आहिस्ता चलकर बिस्तर के पास पहुंची। गंगू ने तुरंत हाथ पकड़ा और खीच लिया अपनी तरफ। सुप्रियांके बदन को घूरने लगा जिसकी वजह से सुप्रिया शर्मा गई।
"जरा मेरे लिंग की सेवा करो।"
सुप्रिया ने लिंग हाथ में लिया और मुंह में धीरे धीरे डालने लगी। गंगू ने आंखे बंद करते हुए कहा "सच में तुम पर नजर डालकर अच्छा किया। जल्द ही तुम मेरी हो गई। तुम मेरी हो सुप्रिया। जब से तुम्हे देखा तब से फैसला कर लिया था की तुम्हे मेरी बनाऊंगा। आज के बाद से मुझे किसी से प्यार करनेवाला कोई मिला।"
गंगू आगे बढ़ा और सुप्रिया के योनि का सेवन किया। योनि पे गंगू का जुबान पड़ते ही सुप्रिया चीख पड़ी। दोनो हाथो से बिस्तर को मुट्ठी में सिकुड़ लिया और आंखे बंद करते हुए बोली "आआआह्हह और तेज और तेज।"
गंगू ने दोनो हाथो से स्तन को मसलने लगा। फिर उसके बाद योनि में लिंग डालकर धक्का मरने लगा। पूरा बिस्तर हिल रहा था। गंगू ने सुप्रिया के बगल (armpit) जो बहुत ही साफ था उसे चाटने लगा। धक्का इतना तेज था के पलंग के हिलने की आवाज ने कमरे में खलबली मचा दी। काले बदन को दूध जैसे गोरे और मखमली सुंदर शरीर पर गिरा दिया। ठंडी के मौसम में बदन की घिसाई ने गर्मी का माहोल बना दिया। गंगू का तेज रफ्तार सुप्रिया को चरम सुख दिए जा रहा था। गंगू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था सुप्रिया के साथ सेक्स करने में। दोपहर का माहोल कब अंधेरे में बदल गया पता ही न चला। दोनो थककर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे। शाम के पांच बजे और देखा की अंधेरा हो गया। अनिल भी उठ गया। दोनो प्रेमी अनिल की निगाहों से बचकर बाहर आए।
"गंगू मुझे अब चलना होगा।" सुप्रिया जाने ही वाली थी की गंगू ने हाथ पकड़ते हुए कहा "अभी नही। आज रात नही जाने दूंगा। आज रात मेरे साथ बिताओ।"
"लेकिन।"
"अब तुम यहां से तब तक नहीं जाओगी जब तक तुम्हारा प्रेमी सरजू वापिस न आ जाए।"
"क्या मतलब ?" सुप्रिया ने थोड़े हैरानी से पूछा।
"मेरा मतलब साफ साफ है कि तुम उसे प्यार करती हो। मेरे साथ भी ये सब कर रही हो। मुझे भी ऐसा ही प्यार करती हो तुम। झूट मत बोलो। मुझे कोई ऐतराज नहीं। तुम हम दोनो को प्यार करो।"
सुप्रिया गले लगते हुए बोली "तुम बहुत अच्छे हो।"
"लेकिन मेरी एक शर्त है।"
"कैसी शर्त ?"
"तुम हमेशा उसके पास रहो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन तुम्हे आज मुझे शादी करनी होगी।"
"में वादा करती हूं। मेरी शादी तुमसे ही होगी लेकिन उसमे मेरा सरजू भी शामिल होगा।"
"शादी के बाद तुम उसके साथ जरूर रह सकती हो। अब बस हम दोनो को भरपूर प्यार देने की जिम्मेदारी तुम्हारी।"
"I love you" यह कहकर दोनो एक दूसरे से लिपट गए।
"अब जल्दी से खाना बनाओ और अपनी ब्रा पेंटी मेरे हवाले करो। जल्दी मेरे पास आओ।" गंगू ने कहा।
"आ जाऊंगी। तब तक इन दोनो से काम चलाओ।"
गंगू बहुत खुश था। आखिर उसने पूरी तरह से सुप्रिया को हासिल कर लिया। सुप्रिया ने अनिल को खाना खिलाया और फिर पूरी रात गंगू के साथ बिताया।
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27-10-2024, 10:17 PM
काफी दिन बीते और देखे तो सुप्रिया और गंगू के रिश्तों में मिठास बढ़ने लगी। गंगू ने सुप्रिया का अच्छे से खयाल रखा और सुप्रिया ने गंगू और उसके परिवार की खूब सेवा की। गंगू बहुत इंतजार कर रहा था सुप्रिया से शादी करने के लिए।
सुप्रिया को सरजू की भी याद आ रही थी। आखिर में दिसंबर के बीच में सरजू आया। सरजू को वापिस देख सुप्रिया बहुत खुश हुई। सरजू दोपहर को आ गया था।
"कैसी हो सुप्रिया मुझे याद किया ?" सरजू ने मजाक में पूछा।
"हां लेकिन तुमने याद किया ?"
"क्या सांस लेना इंसान भूल सकता है ? वैसे क्या सरजू सुप्रिया के बिना रह सकता है ?"
आज सुप्रिया ने तय कर लिया था की सरजू को अपना जिस्म देकर रहेगी। सुप्रिया आगे बढ़ी और सरजू के होठ पे होठ रखकर कहा "अगर मैं तुम्हारी सांसे हूं तो तुम मेरी भी।"
"सुप्रिया यह क्या किया तुमने ? क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ?"
"हां। और तुम ?"
सरजू सुप्रिया को अपनी ओर खींचा और कहा "बेहद प्यार करता हूं। तब से जब से तुम मेरी जिंदगी में आई। उससे शादी करके।"
"तो मुझे यहां लाने के पीछे तुम्हारा प्यार था ?"
"हां। लेकिन मर्यादा की वजह से न कर पाया।"
"अगर मैं तुम्हे कहूं की मर्यादा तोड़ दो तो ?"
"तो फिर तुम्हे अपना बनाकर रहूंगा।" यह कहकर सरजू ने सुप्रिया का पल्लू गिरा दिया और गले लग गया।
"ओह सरजू क्या हमारा मिलन ही जिंदगी का मकसद था ?"
"पता नही लेकिन सुप्रिया तुम्हे पाने के लिए में कितना बेताब था। जी चाह रहा था की तुमसे पहले ही शादी कर लूं। अगर पता होता की तुम मुझे चाहती हो तो आज हमारे कई बच्चे भी होते।" सरजू ने हंसते हुए कहा।"
बाहों में कसे सुप्रिया को अपने कमरे में ले गया सरजू। सुप्रिया के बदन से कपड़े हटाने लगा। साड़ी उतरकर और फिर एक एक करके सारे कपड़े उतारकर नग्न अवस्था में उसे अपने बिस्तर पे लिटा दिया। खुद भी निर्वस्त्र होकर अपने ऊपर सुप्रिया को लिटाया। सुप्रिया जैसे एक भूखे शेरनी की तरह सरजू पे टूट पड़ी। होठ से हाथ मिलाकर आज सरजू को अपने आगोश में करनेवाली थी। उसके बुड्ढे शरीर को अपने जवानी से भरपूर जिस्म से चिपका लिया। लेकिन अब बारी सरजू की थी। सरजू से तेजी से करवट बदला और पूरी तरह से सुप्रिया के ऊपर लेट गया। मुलायम और गोरे हाथो को ऊपर किया और बगल (armpit) की भीनी खुशबू से उत्तेजित होने लगा। अपने पान से सने लाल लाल जुबान को बाहर निकाला और बगल चाटने लगा। सुप्रिया इतनी गोरी थी तो सरजू कोयले से भी काला। सरजू ने हल्के से अपने दांत सुप्रिया के मुलायम कंधे पे गड़ा लिया और हल्के से काट लिया।
सिसकारी लगाते हुए सुप्रिया की आंखों में मदहोशी छाई थी। सरजू मुलायम स्तन को चूमते हुए अपने जुबान से चाटने लगा। फिर उसके बाद सुप्रिया की गोरी गोरी गहरी नाभी को चूमने लगा। वही सुप्रिया बिस्तर के चादर को मुट्ठी में समेट लिया। सुप्रिया के साफ और गोरे गोरे योनि में अपना लाल जुबान डालते हुए सरजू उसे चूसने लगा। सुप्रिया का शरीर जैसे मचलने लगा। अपने दोनो पैरो को ऊपर करके सरजू के कंधो पे रख दिया और दोनो हाथो से उसके सिर को पकड़ा। सरजू तेजी से जुबान अंदर बाहर कर रहा था। अपने दोनो हाथो से सुप्रिया के स्तन को दबाने लगा।
"हम्म सरजू और जोर से। रुको मत।"
"सुप्रिया तुम सिर्फ मेरी हो।"
"हां सरजू अब जल्दी से अपने प्रेम को वर्षा मेरे अंदर करो."
सरजू समझ गया और अपना काला लिंग हाथ में लिया और योनि में डालकर धक्का मारने लगा। सुप्रिया की आंखे बंद हो गई और धक्के का मजा लेने लगी। उसकी आंखों में एक तस्वीर दिख रही थी जिसमे वो एक शादी के जोड़े में है और उसका दूल्हा गंगू था। तो दूसरे तस्वीर में एक बच्चा उसकी गोद में था को सरजू का था। दोनो बुड्ढों को अपने जिंदगी से जाने देना नही चाहती थी। आंखे खोली तो सामने सरजू धक्का दे रहा था सिर इसके होठ को चाट रहा था।
"आआह्ह सरजू ऐसे क्या देख रहे हो ?"
"देख रहा हूं अपनी मालकिन को जिसका मालिक एक मैं बन गया।"
"मेरे दिल के मालिक।" सुप्रिया ने फिर से सरजू को चूम लिया।
सरजू आखिर में झड़ गया और दोनो एक दूसरे की बाहों में को गए। जब दोनो की आंखे खुली तो अंधेरा हो चुका था। सुप्रिया बिना कपड़े के ही लालटेन जला दी और खुद के जिस्म को चादर में लपेटकर छत पर चली गई। पीछे से उसे देख नंगे शरीर के साथ सरजू भी चाट पहुंचा। दोनो खंडर कमरे में एक दूसरे से लिपटकर खटिया में लेते हुए थे।
सुप्रिया सरजू को प्यार से देख रही थी। सरजू बोला "सुप्रिया तुम्हारी आंखे देखकर लग रहा है की तुम कुछ कहना चाहती हो।"
सुप्रिया ने हिम्मत जुटाते हुए अपने और गंगू के बारे में बात की। उसकी यह बात सुनकर सरजू हंसने लगा और कहा "देखो सुप्रिया। में तुम्हे सालो से चाहता हूं। तुमने नरक भोगा है। अब जो तुम चाहो वो कर सकती हो। घबराओ मत में तुम्हारा साथ दूंगा। लेकिन......."
"लेकिन क्या ? देखो मेरा एक परिवार है और अगर उन्हें पता चला की तुम और मैं जिस्मानी ताल्लुकात रखते है तो कुछ कहेंगे नही लेकिन दिल के अंदर मेरे प्रति मान नहीं रहेगा। तुम समझ रही हो न।"
"हां।"
"देखो सुप्रिया मुझे एक परिवार तुम्हारे साथ बसाना है लेकिन शादी नामुमकिन है। क्यों न हम एक समझौता करे ?"
"क्या ?"
"क्या तुम हम दोनो को प्यार करती हो ?"
"जान से भी ज्यादा।"
"अगर मैं। कहूं कि तुम गंगू से शादी कर लो। लेकिन मुझे भी प्यार दो तो ?"
"में तैयार हूं।"
"सुप्रिया मैं चाहता हूं कि तुम खुश रहो। जाओ सुप्रिया गंगू से शादी करके घर बसाओ। और रही बात मेरी तो जब मैं बुलाऊं तो मेरे पास चली आना। "
सुप्रिया सरजू को होठ को चूमते हुए बोली "जिंदगी के अंत तक मैं तुम्हारा साथ दूंगी। जब तक सरजू है तब तक उसका प्यार सुप्रिया ही रहेगी।"
"वो तो है ही। चलो मेरे साथ।"
"कहां ?"
"जहां अब से तुम्हे होना चाहिए।"
सरजू सुप्रिया को घर से बाहर ले गया और रात के सन्नाटे और अंधेरे में सरजू गांव से बाहर सुप्रिया को गंगू के घर ले गया। गंगू के घर का दरवाजा खटखटाया। नींद में आंखे मसलते हुए गंगू ने जब सुप्रिया और सरजू को देखा तो हैरान हो गया।
गंगू बोला "सुप्रिया इतनी रात को यहां अकेले ? ये क्या हुआ तुम्हे ? पागल हो क्या ?"
तभी पीछे से सरजू बोला "यह अकेली नहीं आई है। में इसे लाया तुम्हारे पास।"
गंगू पूछा "सरजू भाई साहब लेकिन क्यों ?"
"मुझे सब कुछ पता चल गया। पता चल गया कि कैसे तुम मेरी सुप्रिया से प्यार करते हो । कैसे तुमने उसे अपना बनाया।"
गंगू बोला "माफ करना सरजू। मुझे पता नहीं था कि तुम उससे प्यार करते हो वरना मैं ये सब नहीं करता. में अब सुप्रिया से दूर रहूंगा।"
सरजू गुस्सा दिखाते हुए बोला "फिर नामर्द वाली बात। फिर से मेरी सुप्रिया को दर्द पहुंचना चाहते हो ? देख रही हो सुप्रिया इस डरपोक से मुहब्बत करती हो ?"
"तो फिर क्या करूं भाई। आप इससे प्यार करते हो। "
"तो क्या हम दोनो इससे प्यार नही कर सकते ?"
गंगू कुछ न बोला।
"देखो गंगू हम दोनो बूढ़े है और हमे मिली है एक जवान और खूबसूरत औरत। हमे प्यार किया कोई जोर जबर्दस्ती नही। सुप्रिया हम दोनो को प्यार देने को तैयार है फिर रुकावट क्यों ?"
गंगू के चेहरे पर मुस्कान आईं। सरजू ने सुप्रिया का हाथ गंगू के हाथ में थामते हुए कहा "खुश रखोगे मेरी सुप्रिया को ?"
"हां लेकिन आप भी इसे प्यार करना।" गंगू ने कहा।
"करूंगा लेकिन पहले अब ये तुम्हारी है। अब जलसे जल्द इसे भुला दो इसकी पुरानी जिंदगी को। अब इससे शादी कर लो।"
गंगू सुप्रिया की और देखते हुए कहा "करोगी मुझसे शादी ?"
सुप्रिया शरमाते हुए बोली "हां।"
सरजू बोला "गंगू अब तुम दोनो को ये गांव छोड़कर जाना होगा। वहां जाओ जहां कोई तुम्हे न परेशान करे।"
गंगू बोला "मेरी पहली पत्नी के घर रहेंगे। अब उस खंडर में कोई नहीं रहता। वो गांव भी खाली है। चलो सुप्रिया आज रात ही हम यहां से चले जाते है।"
फिर क्या हुआ। सुप्रिया और गंगू अपना सामान बांधकर रातों रात गांव से बाहर चले गए और संचार नाम के गांव में चले गए। उसे गांव में कोई नहीं रहता। एक हफ्ते में गंगू ने एक आदमी को अपनी दुकान में रखा और खुद मालिक की तरह हिसाब किताब लेता। जिस आदमी को गंगू ने काम में रखा वो बिरजू है। बिरजू को शराब से छुड़वाने के लिए सुप्रिया ने ही गंगू को उसे दुकान पर रखने को कहा।
गंगू ने गांव के एक मंदिर में सुप्रिया से शादी कर ली। दोनों संचार में एक खंडर से घर को अपना बना लिया। उसकी साफ सफाई में सरजू ने भी साथ दिया। कुछ दिनों में घर बनाने के बाद सुप्रिया वहीं से कॉलेज जाती और काम करती। गंगू अब सारे दिन घर पर रहता। अपने पोते को रिश्तेदार के पास भेज दिया ताकि वो सुप्रिया के साथ वक्त बिता सके। थोड़ा वक्त लगा लेकिन गंगू के रिश्तेदारों ने खुले मन से सुप्रिया को स्वीकार कर लिया। सिर्फ इतना ही नहीं, घर को ठीक करने में कई रिश्तेदारों ने सुप्रिया की मदद भी की।
अब तो बस सुप्रिया अपने जिंदगी में खुश थी। गंगू का भरपूर प्यार मिलता। सरजू ने शादी के बाद से सुप्रिया को मिला नहीं। सुप्रिया को गंगू ने कहा कि वो कभी कभी कुछ दिनों के लिए सरजू के पास चली जाए और थोड़ा उसका ख्याल रखे।
लग रहा था जैसे खुशियां सुप्रिया के जीवन में च गई हो लेकिन ऐसा न था। शादी के ६ महीने बाद सुप्रिया के जिंदगी में दुःख का सैलाब आया। जी हां। सुप्रिया का प्यार सरजू दिल के दौरे पड़ने से उसकी मौत हुई। सुप्रिया जैसे टूट गई और उसे दुख से बाहर निकलने में गंगू ने बहुत मेहनत की। सुप्रिया को जीना पड़ेगा ऐसा गंगू ने समझाया क्योंकि उसके पेट में गंगू के चार महीने का बच्चा पल रहा था। सुप्रिया को इस दर्द से दूर किया ५ महीने बाद उसके बच्चे सने जो दुनिया में आ चुका था।
सुप्रिया को एक बेटा हुआ था। और वो बच्चा गंगू का ही था। अब देखना ये है कि आगे सुप्रिया की जिंदगी में क्या क्या होगा।
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9
साल 1993
वक्त एक ऐसा पहलू है जो बदलते ही इंसान के हालादो को बदल देता है। सुप्रिया 30 साल की हुई तो गंगू 68 साल का। सरजू के जाने के बाद सुप्रिया टूट जरूर गई थी लेकिन गंगू और उसके बच्चे ने उसे संभाला और दुख से बाहर निकाला। गंगू और सुप्रिया का बेटा वक्त के साथ साथ घर में रौनक ला रहा था। गंगू और सुप्रिया खुश तो थे लेकिन पूरी तरह से नहीं। दोनों में सेक्स होता लेकिन पहले से ज्यादा नहीं। गंगू भी अब वापिस अपने दुकान जाता और काम करता। हफ्ते में तीन दिन उसी गांव में रहता। लेकिन वहां पर उसे सुप्रिया और बच्चे की चिंता रहती। संचार गांव में कोई रहता नहीं था। पूरे गांव में उसी का परिवार था। अपने इस चिंता को दूर करने के लिए गंगू ने अपने चाचा को संचार गांव में बुलाया।
गंगू के चाचा का नाम जग्गू है। जग्गू वैसे बहुत बूढ़ा है और अब उसका कोई नहीं। वैसे वो बीमार रहता है। गंगू ने सोचा कि सुप्रिया की चिंता भी उसे परेशान नहीं करेगी। इसी वजह से जग्गू को अपने घर हमेशा के लिए रहने को बुलाया।
वैसे आपको बता दूं जग्गू के बारे में। जग्गू 85 साल का बूढ़ा आदमी है। जग्गू गंगू के बहुत दूर का चाचा है और दिखने में काला और गंजा है। हल्का सा पेट बाहर निकाला हुआ है।
"सुप्रिया मैने तुमसे कहा था न मेरे चचा के बारे में। बस थोड़ी देर में वो आ रहे है। बस उनके आने से में वापिस अपने गांव जाकर बेफिक्र होकर काम करूंगा।"
"आप भी न मेरी चिंता इतनी क्यों करते है ? मैं कॉलेज से वापिस घर आकर घर को अंदर से बंद करके रखती हूं। ताकि कोई कुछ न कर सके और वैसे भी यह हैं खाली ही तो है।"
"मैं जानता हूं मेरी जान लेकिन फिर भी तुम्हारी फिक्र होती है। अब चाचा आ जाएंगे तो घर थोड़ा भरा रहेगा। तुम्हे रोज बच्चे को लेकर कॉलेज में उसको देखभाल भी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"
"अच्छा ठीक है। मैं कॉलेज से जब वापिस आऊंगी तो बच्चे और चाचाजी का ख्याला रखूंगी।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूमते हुए बोला "ये हुई न बात। देखो सुप्रिया अब चाचा का ख्याल तुमने रखना है। उन्हें वक्त भी देना होगा और मेरे गैरहाजरी में तुम्हे उनके पास रहना होगा।"
"आप जैसा कहें मै वैसा करूंगी।"
तभी दरवाजे पर एक ने दस्तक दी। गंगू दौड़ते हुए दरवाजा खोला तो सामने जग्गू खड़ा था। हाथ में समान लिए और चेहरे पर थकान लिए जग्गू खड़ा था।
"नमस्ते चाचा कैसे है आप ?"
"मैं ठीक हूं। और बता तेरी दुल्हन कहां है ?" जग्गू ने अपनी बात जैसे ही पूरी की कि सुप्रिया सामने आ गई।
लाल रंग की साड़ी, सफेद रंग sleveless ब्लाउज में बेहद सुंदर अप्सरा जैसी सुप्रिया जग्गू के पास आई और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सुप्रिया को खूबसूरती को देख जग्गू जैसे हक्का बक्का सा हो गया। वो तो बस सुप्रिया की खूबसूरती को देखता रह गया। कैसे करके खुद को वापिस लाए हुए जग्गू ने कहा "जीती रहो। कैसी हो तुम ? और लल्ला कहा है ?"
"अभी लेकर आई।"
सुप्रिया अपने बेटे को लेकर आई। बच्चे को देखते ही मन ही मन में जग्गू बोला "मां की तरह बेटा भी सुंदर। वाह भगवान इस बच्चे को देख जैसे आपके दर्शन हो रहे हो ऐसा लग रहा है। इसका खयाल मै रखूंगा। एक सेवक की तरह। मेरा प्यार दुलारा।"
"चाचा तो आप आराम कीजिए। सुप्रिया जाओ जाकर कुछ खाने को लेकर आओ।"
जग्गू को आते ही सुप्रिया को घर में चहल पहल दिखी। वो खुश हुई। ऐसे ही कुछ दिन बीते और जग्गू घर में आराम से रहने लगा। गंगू हर हफ्ते सोमवार से गुरुवार अपने पुराने दुकान जाता और वहीं रहता। अब उसे बीवी बच्चों की चिंता कम होने लगी। आखिर जग्गू जो आ गया।
सुप्रिया सुबह 8 बजे कॉलेज जाती और बारह बजे वापिस घर आती। रही बात बच्चे की को जग्गू खयाल रखता। जग्गू बच्चे को को जैसे खुद के साथ रखता। लेकिन सुप्रिया के आती ही बच्चे को मां के पास सौंप देता। सब कुछ ठीक था लेकिन जग्गू के दिमाग में जैसे सुप्रिया चने लगीं। सुप्रिया वैसे अभी पूरी तरह से जग्गू के साथ घुली मिली नहीं। जग्गू जब से सुप्रिया को देखा तब से बेचैन होने लगा। सुप्रिया को देखना अब उसका मन और शौख बन गया।
एक दिन की बात है जब शनिवार का दिन था और कॉलेज में छुट्टी थी। सुप्रिया घर में थी। सुप्रिया बच्चे को खिला पिलाकर सुला दी। उसने सोचा कि जग्गू के लिए चाय बना दे। चाय बनकर जग्गू के कमरे गई।
जग्गू अपने कमरे में था। सुप्रिया की आहट सुनकर मन में उत्सुकता आ गईं।
"अंदर आऊं चाचाजी ?"
"अरे आओ सुप्रिया आओ। चाय लाई हो ?"
"हां सोचा आज आपके साथ चाय ली जाए।"
दोनों साथ में बैठे। सुप्रिया खटिया के पास पड़े कुर्सी पर बैठी। दोनों चाय पी रहे थे।
"और बताइए चाचा आपको यहां कैसा लगा ?"
"गांव खाली है और सुंदर है।"
"मतलब आपको यहां अच्छा लग रहा है।"
"मैने ये कब कहा कि मुझे यहां पर अच्छा लग रहा है ?"
"मतलब आपको यहां पर अच्छा नहीं लग रहा ?"
"हां बिल्कुल सही। मुझे अच्छा नहीं लग रहा।" जग्गू ने थोड़ा उदास होकर कहा।
"लेकिन क्यों ?"
"पहले ये बताओ कि मुझे यहां क्यों बुलाया गया ?"
सुप्रिया ने हल्के से कहा "हमारा और घर का ख्याल रखने के लिए ?"
"बिल्कुल। और मेरा क्या ? मेरा कौन ख्याल रखेगा ?"
सुप्रिया कुछ न बोली। बस चुप होकर हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी गलती मानते हुए बोली "मैं"
"तो क्या आप मेरा ख्याल रख रही है ? क्या आप मुझसे मिलती है रोज ? भाई मै भी तो आपका हूं। लेकिन शायद आपत्ति नहीं मुझे अपना।"
"तो आप जो बताइए मुझे क्या करना होगा ?" सुप्रिया ने हल्के सी मुस्कान देते हुए पूछा।
"देखो यहां मेरे और तुम्हारे अलावा कोई नहीं। क्यों न साथ रहकर एक दूसरे का वक्त अच्छा बनाए।"
"पक्का अब मैं आपके साथ रहूंगी।"
जग्गू ने मजाक में कहा "फिर तो अब मेरा तुम पर हक भी होगा।"
"आपका मुझपर पूरा हक है। आप बोलो मुझे क्या करना होगा ?"
"सबसे पहले चलो मेरे साथ कहीं घूमने। कोई जगह है जहां हम दोनों घूम सके ?"
"हां है न। पास में नदी है वहां बहुत अच्छी हवा और मौसम है। उधर चलते है।"
"और बच्चे का क्या करे ?"
"वो जल्दी नहीं उठेगा। और वैसे भी नदी थोड़े दूर ही तो है।"
"तो चलें सुप्रिया ?"
"चलो।"
जग्गू ने अपना हाथ सुप्रिया की ओर बढ़ाया। सुप्रिया ने उसके हाथ को थामते हुए उठ गई। दोनों के हाथ मिले और दोनों घर से बाहर चल दिए। जग्गू तिरछी नजरों से सुप्रिया को देख रहा था। काले रंग की साड़ी और काले रंग की sleveless ब्लाउज में सुप्रिया जग्गू को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। दोनों नदी के पास आ पहुंचे।
नदी के पास पड़े फूल की डाली को तोड़ जग्गू ने सुप्रिया के बालों पर लगाया।
"अब इस फूल की खूबसूरती बढ़ी।"
पानी की परछाई से खुद को देख सुप्रिया मुस्कुरा दो और बोली "ये तो सच में बहुत खूबसूरत है।"
"तुम जिसे चाहो उसे अनमोल बना सकती हो। बस एक बार देखकर तो देखो।"
"अच्छा ? क्या सबूत है ?"
"यह पानी इसका सबूत है।"
जग्गू ने पानी को हथेली में रखकर सुप्रिया के नंगे कंधे पर रखा। पानी की कुछ बूंदे सुप्रिया के गोरे कंधे पर रह गया। उन बूंदों को देख ऐसा लगा कि पानी नहीं हीरे का टुकड़ा हो। इतना सुंदर देह था सुप्रिया का।
"तुम्हारे इस शरीर ने पानी को हीरा बना दिया।"
जग्गू के इस हरकत और बात ने सुप्रिया को अंदर तक रोमांचित कर दिया। वो समझ नहीं पा रही थी कि जग्गू चाचा के इस व्यवहार को रोके या चलने दें। सुप्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि चाचा के साथ मर्यादा में कैसे रहे।
"मैने कुछ गलत कहा क्या ?"
सुप्रिया कुछ बोल न सकी वो बस शर्म और मर्यादा में चुप रही। जग्गू थोड़ा आगे बढ़ा और बोला "तुम तो इस हवा को महका दो।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू आगे बोला "जब यह हवाएं तुम्हारे जिस्म पर पड़ती है तो वो भी सुगंधित बन जाता होगा। सुप्रिया सच बताओ। क्या तुम सच में अप्सरा हो या सपना ?"
सुप्रिया शर्म से पिघल रही थी। जग्गू अब आगे बढ़ने लगा और सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला "सुप्रिया तुम मुझे उकसा रही हो। एक बूढ़े इंसान को उकसा रही हो।"
जग्गू दूसरा हाथ सुप्रिया के गले पर रखते हुए बोला "सच कहूं तो अब मेरे पास वक्त ही वक्त है इस खूबसूरत औरत के साथ अकेले में रहने का। और अब मैं खुद को तुम्हारी ओर आने से रोक नहीं पा रहा ।" इतना कहकर जग्गू ने सुप्रिया के गाल को चूमने गया कि सुप्रिया झटके से उठी और बिना कहे भाग गई वहां से।
जग्गू मुस्कुराते हुए खुद से बोला "सुप्रिया आज तुम जा रहीं हो लेकिन कब तक मुझसे दूर रहोगी। मुझे तुम चाहिए।"
लाज शर्म में डूबी सुप्रिया ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और वो लंबी लंबी सांसे लेने लगी। जग्गू के साथ जो हुआ उसे सोचकर हैरान हो रही थी। करीब दो घंटे तक सुप्रिया खुद को सम्भल रही थीं।
दोपहर हुआ और खाने का वक्त हो गया था। सुप्रिया ने सोचा कि जग्गू चाचा भूखे होंगे। उन्हें खाना देने के लिए सुप्रिया रसोईघर में घुसी। रसोईघर में सुप्रिया के साथ जग्गू भी घुसा। जग्गू को खाना खिलाकर सुप्रिया बिना कुछ बोल चली गई।
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जून का महीना था। सुबह सुबह पक्षियों की किलकारी ने सुप्रिया को नींद से जगाया। सुप्रिया नींद से जागकर सुबह सुबह कॉलेज जाने को तैयार होने लगी। सुबह के 5 बजे थे। सुप्रिया घर के आंगन में आई और अपनी साड़ी बाहर लटकाई। खुद नहाने अन्दर चली गई।
नहाने के बाद ब्लाउज और पेटीकोट में सुप्रिया बाहर आंगन आई अपनी साड़ी लेने लेकिन सुप्रिया जैसे ही बाहर आई की सने जग्गू को देखा। जग्गू sleveless ब्लाउज और पेटीकोट में देख सुप्रिया को बस देखता रह गया। शर्म से भागते हुए सुप्रिया अंदरवापिस चली गई।
"ये आप क्या कर रहे है जग्गू जी आप ऐसे कैसे यहां आ गए ? चले जाइए।"
जग्गू बोला "अरे मैं तो बस ऐसे ही आया था लेकिन मैने देखा कि तू।हरि सदी गिरी हुई है सो मैने उठा लिया। रस्सी टूटी हुई है और शादी जमीन पर गिर गई। मैने उसे ठीक किया।"
"अच्छा ठीक है जाइए यहां से।"
"पहले मैं तुम्हे साड़ी तो दे दूं।"
" आप रखकर चले जाएं मैं ले लूंगी।"
जग्गू हंसते हुए बोला "रस्सी टूट गई है सुप्रिया अब वापिस जमीन पर रखूंगा तो खराब हो जायेगा। मैं आ रहा हूं तुम्हे देने।"
सुप्रिया ने अंदर से हाथ बाहर निकाला लेकिन जग्गू ने साड़ी नहीं दी।
"अब दे भी दो साड़ी।"
"नहीं दे सकता। अंदर फर्श गीला होगा। कैसे पहनोगी ? एक काम करते है। पास के कमरे में शादी पहन लो। आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया चिढ़ते हुए बोली "आप क्यों ऐसा कर रहे है। मैं बिना साड़ी के हूं।"
"अरे सुप्रिया मै तो बस मदद कर रहा हूं। और तुम गुस्सा कर रही हो।"
"आप से दो साड़ी मैं कमरे में चली जाऊंगी।"
"अच्छा ठीक है।"
सुप्रिया ने हाथ बाहर फैलाया। जग्गू ने दूसरे हाथ से सुप्रिया का हाथ पकड़ लिया और साड़ी देते हुए कहा "जल्दी आओ सुप्रिया।"
सुप्रिया की जान में जान आई। लेकिन गुस्सा भैंसे आ रहा था। शादी पहनने के बाद सुप्रिया बाहर आई। सुप्रिया अपने कमरे जैसे ही घुसी कि देखा उसके कमरे में जग्गू था।
"ये क्या है ? आप इस तरह से मेरे कमरे में कैसे घुस गए ?" सुप्रिया ने गुस्से में कहा।
"अरे हमारा बच्चा रो रहा था उसे चुप करवा रहा था। अब देखो वापिस सो गया।"
"हमारा बच्चा ? ये क्या बकवास है ?"
"अरे सुप्रिया। गंगू मेरा बेटा है तो उसका बेटा मेरा बेटा। और वैसे भी तुम भी मेरी ही न। कल तुमने ही तो कहा था कि मेरा तुम पर हक है।"
जग्गू वहां से चल गया। सुप्रिया फिर अपने कॉलेज गई और बच्चे को जग्गू के पास छोड़ गई।
कॉलेज में जाकर भी सुप्रिया को चैन नहीं मिल रहा था। जग्गू तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गया। आखिर करे तो करे क्या ?"
सुप्रिया सोच रही थी कि आखिर कब तक वो जग्गू से भागती रहेगी। क्या गंगू को इसके बारे में बता दे ? लेकिन ये भी सही न लगा। क्योंकि इससे जग्गू और गंगू के रिश्ते खराब हो जायेगा।
आखिर दोपहर हो गई और सुप्रिया घर वापिस आई। घर आके देखा कि उसका बेटा गहरी नींद में सो रहा है और पास में पड़े दूध की बोतल ? खाली थी। मतलब जग्गू ने उसे दूध पिलाकर सुला दिया। सुप्रिया अपने कपड़े आंगन में वापिस लेने गई जो सूखने को रखा था। वहां पहुंची तो देखा कि कपड़े है ही नहीं।
सुप्रिया ने सोचा कि आखिर सारे कपड़े गए कहां। जग्गू के भी कपड़े नहीं थे। सुप्रिया जग्गू के कमरे की तरफ गई। वहां देखा कि उसकी ब्रा और पेटीकोट कपड़े सहित उसके कमरे में है। सुप्रिया को यह बिल्कुल भी अच्छा न लगा और वो दौड़ते हुए जग्गू के कमरे में घुसी।
सुप्रिया को अंदर देख जग्गू खुशी से उठ गया और बोला "आ गई तुम ? बहुत देरी की आने में। आओ न मेरे पास।"
"क्या मैं पूछ सकती हूं कि मेरे कपड़े तुम्हारे कमरे में क्या कर रहे है ?"
"अरे हां। वो क्या है न कि कपड़े मेरे और तुम्हारे सुख गए तो सोचा बाहर हवा की वजह से न उसे तो इसीलिए मैने अपने कमरे में रख लिया।"
"मेरे कपड़े वापिस करो।" सुप्रिया ने सख्त आवाज में कहा।
"तो ले लो न। मैने कहां माना किया।"
सुप्रिया कपड़े लेकर बाहर चली गई। सुप्रिया दोपहर को अपने बिस्तर पर लेती हुई थी। वो किसी गहरी सोच में थी कि बाहर खिड़की से जग्गू उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। सुप्रिया ने जग्गू को देख लिया।
"तुम यहां क्या कर रहे हो ?" सुप्रिया ने गुस्से से पूछा।
"देखो न मैं अकेला हूं। और तुम लेटी हुई हो। वैसे भी गंगू ने तुमसे कहा था न मेरे पास रहने को।"
सुप्रिया कुछ न बोली। अगले ही पल खिड़की से कूदकर जग्गू उसके कमरे में आ गया।
"देखो अब तुम हद पार कर रहे हो। ऐसे कैसे आ गए अंदर ?"
"अरे सुप्रिया। तुम क्यों इतना गुस्सा करती हो। वैसे भी मेरा हक है तुम पर ऐसा कहा था न तुमने ?"
"तो मैं क्या करें ?"
"मुझे हक जताने दो।" इतना कहकर जग्गू पास आ गया सुप्रिया के।
सुप्रिया कुछ न कह सकी। जग्गू हल्के से सुप्रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "पूरे गांव में हम अकेले है। क्यों न मुझे इसका फायदा उठाना चाहिए।"
"बकवास बंद करो।"
जग्गू सुप्रिया के कमर पर हाथ रखकर कहा "देखो सुप्रिया अब तो सिर्फ मै ही यहां पर हूं और मुझसे क्यों दूर भाग रही हो ?"
"ये मत करो। तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो ?"
जग्गू सुप्रिया को पीछे से जकड़ते हुए कहा "क्योंकि तुम मेरी हो।"
"बस बहुत हुआ।"
जग्गू सुप्रिया के कंधे को चूमते हुए कहा "सुप्रिया तुम मेरी हो जाओ। वरना मुझे तो तुम रोक नहीं सकती। चुपचाप मेरी बाहों में आ जाओ। क्योंकि अब तुम मुझसे भाग नहीं सकती।" जग्गू सुप्रिया को बिस्तर पर लिटा दिया और कहा "सुप्रिया अब तुम्हे मेरा होना ही होगा। क्योंकि मैं तुम्हे अब यहां से कभी जाने नहीं दूंगा।"
जग्गू ने सुप्रिया के नाभि को चूम लिया। सुप्रिया की आँखें बंद रह गई और बोली "छोड़ दो मुझे। ये सही नहीं है।"
जग्गू फिर से नाभि को चूमते हुए बोला "एक आदमी को औरत की जरूरत रहती है। और तुम मेरी जरूरत को पूरा करो। मुझसे जिस्मानी सम्बन्ध बना लो। अब सिर्फ यहां मैं ही रहूंगा। और तुम्हे अपना जिस्म मेरे हवाले करना ही होगा।"
जग्गू सुप्रिया के ऊपर लेट गया और इस बार तो सीधा सुप्रिया के सीने पर सिर रखते हुए हाथ उसके स्तन पर रखते हुए कहा "सुप्रिया अगर तुम मेरा साथ दे दो तो मैं तुम्हे खुश रखूंगा। हम दोनों अकेले एक दूसरे को सुख देंगे। सुप्रिया बस एक बार मेरी हो जाओ।"
"जग्गू ये सही नहीं है। तुम ऐसा नहीं कर सकते। मैं गंगू की अमानत हूं।" सुप्रिया इससे पहले कुछ बोल कि जग्गू ने उसके होठ को चूम लिया।
अब जग्गू इससे पहले आगे बढ़े की बच्चे के रोने की आवाज आई। सुप्रिया को खुद से अलग करते हुए जग्गू भाग और बच्चे को चुप करने लगा। सुप्रिया को बहुत अजीब लगा। आखिर जग्गू बच्चे को लेकर इतना गंभीर क्यों रहता हैं। जग्गू बच्चे को रसोई ले गया और वहां से दूध गरम कर कटोरी और चम्मच से दूध पिला रहा था।
सुप्रिया ने एक चीज को ध्यान में रखा जो था जग्गू का बच्चे के प्रत्ये प्रेम और चिंता।
रात हुई और सभी लोग सोने चले गए। सुप्रिया ने जब अपने बच्चे कौशिक को देखा तो उसका शरीर तप रहा था। 1 साल का बच्चा बुखार से तप रहा था। सुप्रिया नाहित घबरा गई। हॉस्पिटल भी दूर था। सुप्रिया ने सोचा कि इतनी रात को कैसे भी करके डॉक्टर के पास जाएगी। सुप्रिया कौशिक को लेकर कमरे से बाहर निकली तो सामने जग्गू को देखा। जग्गू को कौशिक कि तबियत के बारे में बताया।
जग्गू बोला "अरे इतनी रात हॉस्पिटल नहीं खुला रहता। एक काम करो। जल्दी से रसोईघर है और गरम पानी लेकर आओ। मैं कुछ करता हूं।"
सुप्रिया कुछ न बोली। जग्गू थोड़ा सा अधैर्य होकर बोला "अरे जो भी। ऐसा खड़ी मत रहो।"
सुप्रिया तुरंत गरम पानी और कपड़ा लेकर आई। जग्गू बच्चे के सिर पर गर्म पानी से भीगा कपड़ा रख दिया। कुछ देर तक कौशिक को सेका। कौशिक को थोड़ी राहत मिली।
"अब सुनो सुप्रिया। कौशिक को अलग से कमरे में रखो और हां पूरा रजाई से उसे ढांक दो। उसके शरीर को गर्मी की जरूरत है। पसीने से उसके शरीर का ताप उतरेगा।"
सुप्रिया ने वही किया। कौशिक गहरी नींद में था। उसे अलग कमरे में रखकर लालटेन लेकर सुप्रिया बाहर आई। जग्गू बाहर आंगन में था।
"आप सो जाइए। काफी रात हो गई।" सुप्रिया ने कहा।
"इसकी जरूरत नहीं। तुम सो जाओ। वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही।"
"देखिए कौशिक का मै खयाल रख लूंगी। आप सो जाइए।"
"तुम सो जाओ। मैं ठीक हूं।"
"वैसे आपने जो किया उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।"
जग्गू बोला पड़ा "पागल हो क्या ? कौशिक मेरा बच्चा है। उसके लिए कुछ भी करूंगा। और ये धन्यवाद शब्द अपने पास रखो। अपनो के लिए कोई भी ये काम कर सकता है। अब जाओ चुप चाप सो जाओ। कल काम पर भी तुम्हे जान है।
सुप्रिया को यह बात अच्छी लगी और वो चली गई सोने। जग्गू रात भर कौशिक के लिए जग।
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दो दिन में कौशिक की तबियत ठीक हो गई। इन दो दिन के बीच सुप्रिया की तरफ जग्गू ने देखा भी नहीं था। जग्गू ने कौशिक की बहुत सेवा की। कौशिक पूरी तरह से ठीक हो गया। अब तो गंगू भी वापिस आ गया था। तीन दिन के लिए गंगू घर आया था।
गंगू और जग्गू दोनों साथ में रहते।
"और बताओ चाचा। सुप्रिया ने परेशान तो नहीं किया ?" गंगू ने पूछा।
"नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं। लेकिन तुम इतनी कम बार क्यों आते हो ?"
"क्या करूं चाचा। काम बहुत रहता है। और अब एक बूरी खबर भी है।"
"क्या ?" जग्गू ने हैरान होकर पूछा।
"अरे अंतू गांव का अगले महीने साल गिरा है। अगले महीने गांव के पास दो गांव में मेला भी है। ये सब के कारण मैं एक महीने वहां ही रहूंगा। क्या करूं काम भी तो इतना है।"
जग्गू मन ही मन बोला "यह तो अच्छी बात नहीं। इस वक्त तो कौशिक को तुम्हारी जरूरत है। आखिर ऐसे कैसे चलेगा ?"
गंगू को जागी ने बहुत समझाया लेकिन गंगू माना नहीं। ऐसे ही रात हो गईं। सभी सोने की तैयारी कर रहे थे। कौशिक जग्गू से अलग हो नहीब्राह था इसीलिए वो जग्गू के साथ ही सोएगा। सुप्रिया ने भी काम पूरा किया और अपने कमरे चली गई।
लालटेन लेकर कमरे में गई तो देखा गंगू नंगा लेटा हुआ था। सुप्रिया समझ गई कि आज गंगू उसके साथ संभोग करने चाहता हैं। गंगू ने सुप्रिया को पास आने का इशारा किया।
"आओ मेरी रानी। उतारो ये कपड़े और अपने पति की बाहों में आ जाओ। बहुत कमर मटकाती हो न। आज तो तुम्हे छोडूंगा नहीं।"
सुप्रिया बिस्तर के पास पहुंची कि गंगू ने हाथ पकड़ लिया और बिस्तर पर अपने पास खींचा। तुरंत सुप्रिया के पल्लू को नीचे गिरते हुए नाभि को चूमते हुए बोला "वहां जब भी तुम्हे याद करता था न मुझे तो सच में आग सी लग जाती थी।"
"मुझे भी तो अंदर से आग लगती थी। तुम तो आते नहीं। अब एक महीना कैसे रहूंगी ?"
"कल का छोड़ अभी का देख मेरी रानी। बहुत आग भरी है मुझमें आज रात उतर दूंगा।"
"वह मेरे बूढ़े पति तो उतारो न मुखपर अपनी गर्मी।"
गंगू सुप्रिया के बदन से सारे कपड़े उतार दिया। सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। सुप्रिया ने गंगू को बाहों में भर लिया। कुछ देर होठ से होठ चुंबन के बाद गंगू ने सुप्रिया के हाथ ऊपर कर दिया और बगल को सूंघते हुए कहा "इसकी खुशबू अलग हैं। सच में मैने तुम जैसी जवान और खूबसूरत औरत को प्यार में फसाकर शादी कर ही लिया।"
सुप्रिया के योनि में लिंग डालते हुए गंगू धक्का देने लगा। सुप्रिया संभोग के आनंद में डूब गई और बोली "तुमसे शादी करके मैने सबसे अच्छा काम किया। आखिर मेरी जवानी तुम्हारे काम आ गई।"
"आह्ह्ह तुम्हारी जवानी को तो मैं ही भोग सकता हूं। सुप्रिया ऊऊ आह आह बहुत कमर मटकाकर चलती हो न। नजाने कितने मर्दों को मार दिया तुमने।"
शिल्पा के मुंह में थूक डालते हुए गंगू शिल्पा के कंधे को हल्के से काटा और बोला "क्या नाजुक जिस्म से तुम्हारा। इसके तो हर हिस्से को प्यार करूंगा। बोलो सुप्रिया मुझसे प्यार करती हो न।"
सुप्रिया धक्का खाते हुए बोली "तुम तो मेरे जिस्म में बस चुके हो। आदत हो गई तुम्हारी। और जोर से। पागल हूं तुम्हारे प्यार में। गंगू मुझे हर रोज ऐसे ही बिस्तर पर प्यार करो। रोज तुम्हारी याद में तड़पती हूं। पागल कर दिया तुमने मुझे। प्लीज मेरे होठ पर होठ डालो न।"
गंगू सुप्रिया के होठ को चूसता रहा। धक्का देते देते वो अंदर तक झड़ गया। अब सुप्रिया को उल्टा करके लिंग गांड़ में घुस दिया।
"साड़ी में गेंद मटकाती हों न। आज इसको पूरी तरह से फाड़ दूंगा।" गुनगुने सुप्रिया की गेंद में जोर का थप्पड़ मारा।
"आह मेरे ज़ालिम मर्द। तुम्हारे लिए जिन्हें ये जिस्म। रोज इसे अपने शरीर से डबल और मेरी जवानी को लूटते रहो।"
"तुम्हे बिस्तर पर इतना प्यार करता हूं लेकिन मन नहीं भरता।"
गंगू दोनों हाथों से स्तन को दबाकर गांड़ पर धक्का दिए जा रहा था। सुप्रिया की आवाज निकलने लगी। सुप्रिया और गंगू के संभोग को बाहर दरवाजे पर कान लगाए जग्गू सुन रहा था। उसके अंदर अब आग बढ़ने लगी। वो बस गंगू के जाने का इंतजार कर रहा था।
संभोग के आनंद में डूबी सुप्रिया का जोश ठंडा पड़ गया जब लंबे समय के संभोग के बाद गंगू थका हारा लेट गया। सुप्रिया बहुत संतुष्ट महसूस कर रही थी। दिन घंटे तक दोनों मियां बीवी नंगे एक दूसरे को बाहों में सो रहे थे। तभी रात के करीब 2 बजे गंगू की आंख खुली और वो फिर से शुरू हो गया। सुप्रिया के स्तन को चूमने चाटने लगा। इस बार पहले से ज्यादा तेजी से सुप्रिया के साथ संभोग कर रहा था।
ऐसे ही दो दिन कब नीत गए पता न चला। फिर आया रविवार की रात और गंगू अंतू गांव वापिस चल गया। जग्गू अब पूरे एक महीना सुप्रिया के साथ अकेला रहेगा और दूर दूर तक कोई नहीं आएगा उनके बीच।
अगली सुबह सुप्रिया कॉलेज जाने के लिए उठ गईं। नहा धोकर वो साड़ी पहनकर कॉलेज के तैयार हुई। वो रसोईघर पहुंची और अपने लिए चाय बनाया। जग्गू के लिए भी चाय बनाया। जग्गू के कमरे में सुप्रिया आ पहुंची। उस वक्त जग्गू अपने बिस्तर पर था। सुप्रिया को देख बोला "तुम मुझे सोने कब दोगी ?"
सुप्रिया हरिना होकर पूछी "मैने क्या किया ? अभी अभी तो आई मैं।"
जग्गू बोला "ऐसी जवानी सामने रहेगी तो नींद कैसे आएगी ?"
"देखो फालतू की बात मत करो। मुझे जाना है काम पर।"
जग्गू पूछा "कॉलेज जा रही हो ? मत जाओ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि बारिश आनेवाली है। और कॉलेज करीब नहीं है।"
"वो मेरी समस्या है। मैं देख लूंगी।"
सुप्रिया कॉलेज के लिए निकल गई। कॉलेज पहुंचते ही दरवाजा बंद दिखा कॉलेज का। सुप्रिया ने देखा कि गेट पर नोटिस चिपका हुआ था जिसमें लिखा था कि कॉलेज एक हफ्ते तक नहीं खुलेगा क्योंकि भारी बारिश की आगाही है। सुप्रिया को फिर बदल गरजने की आवाज आई।
सोचा जल्द से जल्द घर पहुंच जाए। सुप्रिया को रोज लेने छोड़ने का काम साइकिल रिक्शा चलानेवाला लल्लन नाम का आदमी करता है। लल्लन की उम्र 66 साल की है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से ये काम करना पड़ता है। (खैर लल्लन का किरदार अभी जरूरी नहीं है)
लल्लन सुप्रिया को घर छोड़ने के लिए रिक्शा को आगे बढ़ाया। घर कॉलेज से 8 किलोमीटर दूर है। 45 मिनिट लगता है रास्ता पूरा करने में। सुप्रिया बस घर से नजदीक पहुंच ही रखी थी जोरदार बारिश आ गई। सुप्रिया भागते हुए घर की तरफ बड़ी। घर तक पहुंची थी कि पूरा बदन और कपड़ा भीग गया। काले साड़ी और sleveless ब्लाउज में सुप्रिया का पूरा बदन पानी की गिरफ्त में आ गया।
घर के अंदर घुसते ही सुप्रिया ने देखा कि उसका कमरे की खिड़की खुली थी जिस वजह से फर्श पर पानी भर गया। खिड़की के पास पड़े सारे कपड़े भीग गए। सुप्रिया के लिए जैसे मुसीबत सी आ गई। खिड़की बंद करके देखा कि कमरा रहने लायक नहीं था। अब करे तो क्या करे। 3 कमरे और थे लेकिन साफ सफाई बाकी थी। यही बात सोचते सोचते सुप्रिया को 20मिनिट लग गए। शरीर गीले होने की वजह से ठंडी लगने लगी। तभी जग्गू आया और बोला "कहा था न मैने भीग जाओगी लेकिन मेरी बात कौन मानता है।"
"हां बात तो सही कही थी आपने।"
"कॉलेज से वापिस क्यों आई ?"
सुप्रिया ने जग्गू को सारी बात बताई। बात सुनकर जग्गू खुश हुआ। पूरे एक हफ्ते सुप्रिया और वो अकेले रहेंगे वो भी पूरे दिन।
"अरे देखो कैसे तुम्हारा बदन भीगा हुआ है। आओ मेरे कमरे में आओ और कपड़े बदल लो। तुम्हारी एक साड़ी मैने संभलकर रखी है।"
सुप्रिया के पास कोई चारा न था। और वो जग्गू के कमरे चली गई। जग्गू पीछे पीछे आकर कमरे में पहुंच गया।
सुप्रिया बोली "जाओ यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"अरे मैने कब मना किया। मेरे सामने भी बदल सकती हो।" जग्गू ने छेड़ते हुए कहा।
"चुप करो। परेशान मत करो और जो यहां से मुझे कपड़े बदलने है।"
"वैसे सुप्रिया जल्दी करना।"
सुप्रिया के पास गुस्सा करने का वक्त नहीं था। अपने कपड़े बदलकर सुप्रिया बाहर आई। पीले रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में वो बाहर निकली। सुप्रिया जानती थी कि जग्गू उसके पीछे पड़ा रहेगा। सुप्रिया मुख्य दरवाजे पर बैठकर बारिश को देख रही थी। पूरा खाली हैं और कोई चहल पहल नहीं। सुप्रिया को यह गांव जैसे अच्छा लगा। कोई नहीं मिलो दूर। नदी कई सारे खंडर घर। जिधर चाहे उधर रह सकती है, कोई कुछ नहीं बोलेगा। बारिश बहुत तेजी से चल रही थी। सुप्रिया मगन होकर खो गई। रही बात कौशिक की तो जग्गू ने उसे सुला दिया। उसके बाद जग्गू मुख्य दरवाजे के पास बैठी सुप्रिया के पास पहुंचा। पीछा से जग्गू ने सुप्रिया के पास आकर बोला "क्या देख रहीं हो मेरी बुलबुल ?"
"यही देख रही हूं कि इस खूबसूरत जगह पर आप जैसे बेकार आदमी कहां से आ गया ?"
"अरे वाह। क्या जवाब दिया।"
सुप्रिया तिरछी मुस्कान के साथ बोली "आप एक शादीशुदा औरत के पीछे क्यों पड़े हों?"
"प्यार में हिस्सा बांटने।"
"कहना क्या चाहते हो ?"
"मुझे पता है अगर मैने कुछ बोल दिया तो तुम्हे बुरा लग जायेगा।"
"अगर हिम्मत है तो साफ साफ बोलो।"
"सरजू और गंगू दोनों को तो तुम प्यार करती थी।"
सुप्रिया बोली "जिस एहसास के बारे में न पता हो तो मत ही बोलो।"
"वो एहसास मुझे भी चाहिए। मुझे सिर्फ तुम चाहिए।" इतना कहकर जग्गू सुप्रिया को पीछे से बाहों में भर लिया।
"छोड़ो मुझे। ये गलत कर रहे हो।"
"प्यार करता हूं तुमसे। तुम्हारी जवानी ने मुझे पागल कर दिया।" जग्गू सुप्रिया को मजबूती से बाहों में भर लेता है।
"जग्गू छोड़ो ये सब। तुम ऐसा मत करो।"
जग्गू सुप्रिया है हाथ पकड़ लिया और जबरजस्ती अपने कमरे में ले गया। सुप्रिया नजाने क्यों अपना जोर नहीं लगा पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को लेकर अपने कमरे में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुप्रिया तो जैसे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। जग्गू सुप्रिया को दोनों कंधे पर हाथ रखा और उसकी आंखों में देख रहा था।
"सुप्रिया आज हमारे बीच कोई नहीं आएगा।" सुप्रिया को जग्गू ने बिस्तर पर लिटा दिया। सुप्रिया जैसे प्रतिकार देते देते थक गई। अगर प्रतिकार करेगी तो भिन्कू फायदा नहीं। पूरे गांव में कोई नहीं। मिलो दूर कोई नहीं और ऊपर से बिगड़ता मौसम। जग्गू अपने कपड़े उतार चुका था। उसके पूरे काले शरीर पर सफेद बाल थे। चमड़ी पूरी तरह से लटकी हुई थी। और उसी काले बूढ़े शरीर को लेकर सुप्रिया के करीब आया और बोला "आज मुझे तुम्हारा जिस्म चाहिए।"
"ये ठीक नहीं जग्गू। छोड़ दो मुझे।"
"सुप्रिया आज तुम्हारे साथ जो होगा उसे रोकने के लिए कोई नहीं है मिलो दूर तक। तुम चीखों चिल्लाओ लेकिन कोई नहीं आ पाएगा। बस सुप्रिया एक बार मेरी हो जाओ।"
जग्गू के दिमाग में संभोग इस तरह घुस गया कि आज सुप्रिया के साथ वो जोर जबरजस्ती भी कर सकता है। सुप्रिया के पल्लू को हटाकर जग्गू बोला "जब भी तुम इन साड़ी में चलती थी नजाने इतनी आग लगती थी दिल पर की पूछो मत।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को हल्के से चूमते हुए बोला "गांगुनके साथ संभोग करते वक्त तो बहुत आवाजें निकल रही थी। अब मेरी बारी। गंगू का एहसास तुम्हे बुला दूंगा। आज के बाद तुम्हारे जिस्म पर मेरा हक होगा।"
जाग सुप्रिया के गोरे पैर को चूमने लगा।
"देखो कितना सुंदर है ये जिस्म। सुप्रिया तुमने सच्ची में मुझे अपनी ओर आकर्षित किया है। अब तो रोज ऐसे ही तुम्हारे साथ बिस्तर पर दिन गुजरूंगा।"
"जग्गू छोड़ो ये सब। क्यों आखिर मुझे पाने के लिए हदें पार कर रहे हो ?"
"क्योंकि अब यही रास्ता बचा है।"
"मैं कैसे तुम्हे अपना जिस्म दे सकती हूं। मेरे और गंगू के रिश्ते में कड़वाहट भर जाएगी।"
"कोई कड़वाहट नहीं भरेगी। क्योंकि अब गंगू भी यहां ज्यादा नहीं रहता। उसे क्या हमारे बारे में पता चलेगा।"
जग्गू ने पल्लू पर हाथ रखा। पल्लू पर हाथ पड़ते ही सुप्रिया ने हाथ को पकड़ते हुए रोका और कहा "देखो ये सही नहीं कर रहे। तुम इस जल्दबाजी सोच में मुश्किलें खड़ी कर रहे हो। मेरी और अपनी भी।"
"मुश्किलें खड़ी हो सकती है मेरे लिए अगर तुम मुझे न मिली। सुप्रिया आज जितना भी कोशिश कर लो। मैं रुकनेवाला नहीं।"
सुप्रिया का पल्लू खींचकर जमीन पर गिरा दिया। सुप्रिया के स्तन की दरार को देख जग्गू से रहा नहीं गया और तुरंत उल्टा होकर सुप्रिया को अपने ऊपर लिटाकर पीछे से ब्लाउज को खोलकर फेक दिया। फिर ब्रा को जबरजस्ती के साथ खोलकर फेक दिया। कुछ ही पल में सुप्रिया के बदन में एक भी कपड़ा न बचा।
"सुप्रिया आज तुम्हे बताऊंगा कि मैं तुम्हे पाने के लिया क्या क्या कर सकता हूं।"
सुप्रिया को बिस्तर पर सीधा लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया और स्तन को चूसने लगा। सुप्रिया ने अब विरोध करना बंद कर दिया। जग्गू गले को चूमकर जुबान बाहर निकालकर चाटने लगा।
"सुप्रिया इस तड़प ने मुझे क्या से क्या बना दिया। अब से तुम्हे मेरे साथ भी संभोग करना होगा। अब बहुत जल्द गंगू से ज्यादा मैं इसी कमरे में तुमसे प्यार करूंगा। भूल जाओ अब गंगू के कमरे को और मेरे कमरे में अब से तुम रहोगी।"
सुप्रिया के नाभि को चूमते हुए बोला "शहर से आई यह पारी हम गांव के बुढ़े लोगों की अमानत है।"
"तुमने जबरजस्ती क्यों की। छोड़ दो मुझे वरना आज मर्यादा टूट जायेगा।"
सुप्रिया की बात सुनकर जग्गू खुश हुआ और बोला "अब से कोई मर्यादा नहीं सुप्रिया। गंगू वहां और तुम उसके चाचा के बिस्तर में। और फिर क्या पता यहीं चाचा तेरा हमसफर बन जाए।"
"लगता है जग्गू अब तुमसे लड़ने का कोई फायदा नहीं क्योंकि तुम मुझे छोड़नेवाले नहीं।"
जग्गू सुप्रिया के होठ को चूमने लगा। होठ के अंदर अपनी जीभ को डालते हुए जग्गू सुप्रिया को गरम करने में कामयाब हो रहा था।
"सुप्रिया। तुम्हे जब पहली बार देख तभी से सोच लिया था कि तुम्हे मैं संभोग का साथ बनकरो रहूंगा।"
जग्गू सुप्रिया के योनि पर अपनी जीभ डाल चुका था। सुप्रिया की आँखें बंद हो गई और वो सिसकारियां लेने लगी। वो अब इतनी गरम हों गई कि जोश में एक हाथ जग्गू के और पर रखकर योनि पर चेहरा उसका दबाने लगी। जग्गू के लिए अब समझो इशारा ही काफी था। तुरंत अपने लिंग को योनि में डालकर सुप्रिया के ऊपर लेटकर धक्का मारने लगा। फिर दोनों हाथों से स्तनों को दबाकर चूमने लगा सुप्रिया के होठ को।
दोनों फिर एक दूसरे की आंखों में आंखे डालकर देखने लगे। दोनों ने जैसे अब एक दूसरे को स्वीकार कर लिया।
"तुम सुप्रिया अब से मेरी हो। अब जो मेरा मन करेगा वो मैं तुम्हारे साथ करूंगा।"
सुप्रिया की आँखें बंद हो गईबौर वो मीठे दर्द को झेलते हुए पूरी तरह से खुद को जग्गू के हवाले कर देती है। जग्गू सुप्रिया के गले को चाटते हुए हल्के से दांत से काटता है। सुप्रिया दर्द से चिल्लाई।
"आराम से जग्गू मैं भागे थोड़ी न जा रही हूं।"
"भागकर कहां जाओगी ? और अगर भागने में सफल हुई तो कैसे करके ढूंढ लूंगा और यहां कैदी बनाकर संभोग करूंगा।"
जग्गू ने धक्का जारी रखा और आखिर में वो सुप्रिया की योनि में झड़ गया। दोनों जैसे हफ्ते हुए बिस्तर पर नंगे सो गए। बारिश अभी भी जारी है। दोनों की नींद जब उड़ी तो जग्गू ने फिर संभोग जारी रखा। देखते देखते रात से सुबह कब हुई दोनों को पता न चला।
सुबह होते ही सुप्रिया उठी तो देखा कि जग्गू बिस्तर पर नहीं है। बाहर जाकर देख तो जग्गू कौशिक के साथ है और वो उसे खिला रहा है। सुप्रिया यह देखकर मुस्कुरा दी। सुप्रिया अपने आप से बोली "कितना खयाल रखते है जग्गू मेरे कौशिक का। सच में गंगू को कौशिक की चिंता करने की जरूरत नहीं। आखिर जग्गू जो है।"
सुप्रिया ने घर को थोड़ी सफाई को और फिर नहाने के लिए गई। जग्गू ने कौशिक को सुला दिया। सुप्रिया को ढूंढते ढूंढते बाथरूम के बाहर आया। ये वो जमाना है जहां गांव में बाथरूम का दरवाजा नहीं पर्दा होता था। जग्गू पर्दे को हटाकर अंदर घुस आया। सुप्रिया नग्न अवस्था में थी। सुप्रिया चौक गई और बोली "जग्गू ये क्या है। अंदर क्यों आए ?"
बाथरूम काफी बड़ा होने को वजह से सुप्रिया उठकर किनारे आ गई। जग्गू सुप्रिया का हाथ खींचकर बाहों में भरते हुए बोला "तुम्हारे साथ नहाने आया हूं। और वैसे भी ये घर और तुम मेरी हो मेरा जो मर्जी करेगा वो करूंगा।"
सुप्रिया शरमाते हुए बोली "बदमाश हो तुम।"
"तो आओ न मेरी रानी इस बदमाश के साथ नहाने।"
"कहां ?"
घर के छत पर। बारिश में नहाने।"
"रुको मुझे कपड़े पहनने दो।"
"पहन लो वैसे भी उतर हो दूंगा कुछ ही देर में।"
ब्लाउज पेटीकोट में खड़ी सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू घर की छत पर ले गया। सुप्रिया का बदन इतना गोरा था कि कोई भी आदमी उसके बदन को देख बौखला जाए। जग्गू और सुप्रिया हाथ पकड़कर एक दूसरे का बारिश का आनंद ले रहे थे। जग्गू घुटने के बल बैठा और सुप्रिया के कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसके गोरे गोरे पेट को चूम रहा था। सुप्रिया ने दोनों हाथ से जग्गू के चेहरे को अपने पेट पर दना दिया। बारिश की बूंदे गोरे पेट पर पड़ते ही जग्गू उस पानी को मुंह में भरकर पी रहा था। सुप्रिया ने अपने ब्लाउज और ब्रा को उतारकर दूर फेक दिया। जग्गू उठ गया और सुप्रियाको गले लगा लिया। उसके स्तन को जोर जोर से मसलकर चूस रहा था। सुप्रिया ने जग्गू के कपड़े को उतारकर फेक दिया। दोनों एक दूसरे को बाहों मेंखो गए। सुप्रिया को छत की जमीन पर लिटाकर जग्गू उसके ऊपर लेट गया। दोनों बारिश में भीगकर एक दूसरे का संभोग में साथ दे रहे थे। सुप्रिया के पेटीकोट को ऊपर करके जग्गू अपने लोग को योनि में डालकर धक्का देने लगा। बारी के ठंडे पानी में दोनों का बदन संभोग की आग में तप रहा था। जग्गू और सुप्रिया लंबे समय तक एक दूसरे के बदन को घिस रहे थे। उसके बाद जग्गू सुप्रिया को योनि में झड़ गया।
सुप्रिया का हाथ पकड़कर जग्गू उसे अपने कमरे में ले गया और फिर सुप्रिया की आवाज़ पूरे घर में गूंजने लगी।
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