मेरी ४0 साल की माँ कामिनी (परिवर्तित नाम) की गदराई जवानी की यात्रा, जिसमे अलग अलग यात्रियों ने सवारी की. और मेरी मम्मी ट्रेन में सफ़र करते करते खुद एक ट्रेन की तरह हो गयी जिसमे अक्सर लोगों ने बेटिकट सफ़र किया.
मम्मी की गांड में 40 साइज़ की जंघिया आती थी ओ कमर तक़रीबन 36 का था और मम्मी की चूची 38 की थी.
हमलोग मुंबई के एक स्लम इलाके में झोपड़पट्टी में रहते थे. वैसे तो हमलोग बंगाल के थे. प्रसिद्द सोनागाछी जिले के एक गाँव में हमारा घर था, कर्ज में फंसे होने के कारण काम के लिए हमलोग मुंबई आ गए थे.
मेरा बाप मेरे बचपन में ही एक एक्सीडेंट में गुजर गया था. तो सिर्फ मै और मेरी मम्मी ही थे.
2010 का सितम्बर का महिना. हमने त्योहारों के शुरुआत होने के मद्देनजर दो महीने अपने घर सोनागाछी जाने की तयारी शुरू कर दी.
तक़रीबन ३ दिन की सफ़र होनी थी. शाम 5 बजे हमारी ट्रेन अपने सफ़र पर खुल गयी.
दो से ३ घंटे में ट्रेन का डब्बा पूरा खचाखच भर गया कहीं ठीक से पैर रखने तक की जगह नहीं बची थी.
मम्मी ने साड़ी ब्लाउज और पेटीकोट पहना हुआ था अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी. ट्रेन दौड़ रही ठी और मम्मी खिड़की के पास ही बैठी हुई थी तो खिड़की से आने वाली हवा के झोंको से मम्मी को नींद आ गयी और मम्मी का पल्लू उसके कंधे से उतर का नीचे गोद में गिर गया. मम्मी का दूध से लबालब लदकता मम्मा पसीने की बूंद से और खिड़की के उस तरफ से डूबता हुए सूरज की रौशनी से चमकने लगा.
हमारी सीट वाले कम्पार्टमेंट में लगभग सब मजदूरी करने वाले ही लड़के और मर्द और उनकी औरते भरी हुई थी, किसी की सीट थी तो कोई नीचे पेपर बिछा के बैठे लेटे पड़े थे, और अन्धेरा होने लग गया था. 4-5 औरते. थी और कोई 10 12 मर्द . सभी औरतों में एक सिर्फ मेरी मम्मी ही उन्मुक्त थी और मम्मी की चुचियों के नज़ारे सबको लाइव शो की तरह दिख रहे थे. मैंने ध्यान दिया था की जहाँ सभी मर्द मम्मी की गदराई जब्वानी से अपनी आँख सेक रहे थे और मन ही मन मम्मी को चोद रहे थे वही उन औरतों में एक जलन और कुढ़न दिख रही थी.
मम्मी की गांड में 40 साइज़ की जंघिया आती थी ओ कमर तक़रीबन 36 का था और मम्मी की चूची 38 की थी.
हमलोग मुंबई के एक स्लम इलाके में झोपड़पट्टी में रहते थे. वैसे तो हमलोग बंगाल के थे. प्रसिद्द सोनागाछी जिले के एक गाँव में हमारा घर था, कर्ज में फंसे होने के कारण काम के लिए हमलोग मुंबई आ गए थे.
मेरा बाप मेरे बचपन में ही एक एक्सीडेंट में गुजर गया था. तो सिर्फ मै और मेरी मम्मी ही थे.
2010 का सितम्बर का महिना. हमने त्योहारों के शुरुआत होने के मद्देनजर दो महीने अपने घर सोनागाछी जाने की तयारी शुरू कर दी.
तक़रीबन ३ दिन की सफ़र होनी थी. शाम 5 बजे हमारी ट्रेन अपने सफ़र पर खुल गयी.
दो से ३ घंटे में ट्रेन का डब्बा पूरा खचाखच भर गया कहीं ठीक से पैर रखने तक की जगह नहीं बची थी.
मम्मी ने साड़ी ब्लाउज और पेटीकोट पहना हुआ था अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी. ट्रेन दौड़ रही ठी और मम्मी खिड़की के पास ही बैठी हुई थी तो खिड़की से आने वाली हवा के झोंको से मम्मी को नींद आ गयी और मम्मी का पल्लू उसके कंधे से उतर का नीचे गोद में गिर गया. मम्मी का दूध से लबालब लदकता मम्मा पसीने की बूंद से और खिड़की के उस तरफ से डूबता हुए सूरज की रौशनी से चमकने लगा.
हमारी सीट वाले कम्पार्टमेंट में लगभग सब मजदूरी करने वाले ही लड़के और मर्द और उनकी औरते भरी हुई थी, किसी की सीट थी तो कोई नीचे पेपर बिछा के बैठे लेटे पड़े थे, और अन्धेरा होने लग गया था. 4-5 औरते. थी और कोई 10 12 मर्द . सभी औरतों में एक सिर्फ मेरी मम्मी ही उन्मुक्त थी और मम्मी की चुचियों के नज़ारे सबको लाइव शो की तरह दिख रहे थे. मैंने ध्यान दिया था की जहाँ सभी मर्द मम्मी की गदराई जब्वानी से अपनी आँख सेक रहे थे और मन ही मन मम्मी को चोद रहे थे वही उन औरतों में एक जलन और कुढ़न दिख रही थी.


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