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Incest दीदी ने रात में बुलाया पेलवाने को
#1
दीदी ने रात में बुलाया पेलवाने को

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
मेरी कजिन का नाम कोमल था, वो मेरी बड़ी बुआ की बेटी थी, जिनका स्वर्गवास हो चुका था और उसके पिताजी कुछ ज्यादा कमाते भी नहीं थे. वो पास ही के गांव में रहते थे. उसकी उम्र उस समय 18 वर्ष थी.
मेरे पिताजी ने उसके अच्छे भविष्य का सोच और उसे आगे की पढ़ाई के लिए हमारे यहां ले आए.

एक दिन मैं कॉलेज से घर लौटा तो उसको मैंने घर में पाया. मैंने उसे एक लम्बे अरसे के बाद देखा था तो पहले तो मैं उसको पहचान ही नहीं पाया. वो अब काफी बदल चुकी थी. उसका सांवला रंग, अच्छी देह और सवा पांच फुट की हाइट, उस पर तने हुए मस्त बोबे, चौड़ी गांड … बड़ी मस्त माल में बदल चुकी थी वो. इस वक्त दीदी ने सलवार कुर्ता पहन रखा था, जो उसे एकदम फिट आ रहा था.
मैंने ध्यान से उसको निहारा तो उसकी सुन्दरता मुझे घायल करने लगी. उसने एक नथनी डाली हुई थी, जो कि मेरा ध्यान बार बार खींच रही थी. वो सच में खूबसूरत लग रही थी. मुझे तो मानो प्यार सा हो गया था.

हमने खूब बातें की. जैसे तैसे दिन खत्म हुआ, अब वक्त सोने का हो चला था. हमारे घर में दो कमरे थे. एक में मम्मी पापा सोते थे, एक में मैं और मेरी बहन सोती थी. पर अब दीदी आ गयी थी, उसे कहां एडजस्ट करें. तो ये डिसाइड किया कि उसे हमारे रूम में ही सोना पड़ेगा क्योंकि हॉल में तो रात में सर्दी लगेगी.

सब सोने लगे. मैं, दीदी और मेरी बहन भी बिस्तर पर लेट गए. दीदी हम दोनों के बीच में सोई, क्योंकि हम दोनों भाई बहन को उससे बातें जो करनी थीं. फिर कुछ देर बात करके हम सो गए.

दीदी ने अब पढ़ाई चालू कर दी. एक दो दिन में उसकी ट्यूशन भी चालू हो गई जो कि दोपहर में होती थी. दिन गुजरते गए.. मैं बस दीदी की खूबसूरती को निहारता रहता था, छुप छुप कर उसे बाथरूम में नहाते देखता. जब वो पेशाब करने या हगने जाती थी, तब किसी न किसी तरह उसको देखने का प्रयास करता रहता. उसकी काली चूत थी, जिस पर बालों का जंगल उगा था, जो कि पेशाब करते वक्त पूरा गीला हो जाता था. जिसे वो अच्छे से झटक कर साफ करती थी.

मेरी हवस दिनों दिन उसके लिए बढ़ रही थी. मैं हर कीमत पर उसे पाना चाहता था, चोदना चाहता था. मुझे सेक्स का पूरा पता था, बहुत से सेक्स वीडियो देखे थे, लंड भी हिलाना जानता था, मेरा लंड तब शायद 4-5 इंच का ही रहा होगा.

एक दिन दोपहर की बात है, दीदी ट्यूशन जाने के लिए रेडी हो रही थी. तभी मैंने हमारे दरवाजे के गैप से देखा, वो सफेद ब्रा पैंटी में थी. क्या मस्त बूब्स थे उसके.. और छोटी से टाईट पेंटी में उसकी गांड ऐसे उठी हुई थी.. मानो स्वर्ग का दरवाजा देख लिया हो. मैं उसे इस रूप में देख कर दंग रह गया. वो परी सी लग रही थी. इस तरह से उसे देख कर उसके लिए मेरी वासना और बढ़ गयी. मेरा लंड तो बस तरस रहा था. चार पांच मिनट तक मैंने उसे ऐसे देखा, फिर उसने कपड़े पहन लिए और मैं वहां से चला गया.

उस रात जब हम सोये, तो मैं अपनी नजरें दीदी के बोबों से हटा ही नहीं पा रहा था. खैर कुछ ही देर बाद सब सो गए. बस मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं तो दीदी का वही रूप सोच सोच कर बस पागल हुआ जा रहा था.

तभी दीदी ने करवट बदली और अब उसकी गांड मेरी तरफ हो गयी. वो दूसरी चादर में लेटी थी. मैंने अपनी चादर भी उसके ऊपर डाल दी और फिर धीरे से उसकी चादर में घुस गया. उसे अपने बगल में भर लिया. मैंने नोटिस किया कि उसका कुर्ता कुछ ऊपर की ओर उठा हुआ है. चूंकि मैं उसको बगल में भरे हुए था, तो मेरा हाथ सीधा उसके खुले पेट पर पड़ गया. मैंने धीरे से हाथ कुर्ते में डालना शुरू किया. उसने कोई हरकत नहीं दिखाई, तो मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. मैंने हाथ और अन्दर डाला तो मेरा हाथ सीधा उसकी ब्रा की पट्टी पर लगा. मुझे उसके गोल बड़े बड़े बोबे महसूस होने लगे थे. मैंने हिम्मत करके हाथ ब्रा के अन्दर डाल दिया.

सच बोलूँ तो उस वक्त मैं बहुत डरा हुआ था. मुझे ये डर लग रहा था कि कहीं ये जाग गयी, तो क्या होगा.
मगर दूसरी तरफ मेरी हवस मुझे हिम्मत दे रही थी. मैंने कुछ देर तक धीरे धीरे उसके बूब्स दबाये. फिर ज्यादा रिस्क ना लेते हुए मैंने हाथ बाहर निकाल कर सो गया.

सुबह सब माहौल नार्मल था, शायद उसे इस बात का एहसास नहीं हुआ था.

फिर रात हुई, हम सब कल के जैसे सोए, पर मुझे नींद कहां थी. आज भी वही सब वापस हुआ. इस बार मैंने कुर्ता ऊपर किया और हाथ अन्दर डाल कर उसके बोबे दबाने लगा. उसने कोई हलचल नहीं दिखाई. शायद उसे पता नहीं था या वो बहुत गहरी नींद में थी.

मैंने एक बोबे को ब्रा ऊपर से ही बाहर निकाला और दबाने लगा. मेरी सगी बहन पास में ही सो रही थी. मुझे उसके जागने का भी डर था, मगर न जाने मैं ये सब कैसे कर पा रहा था.
दीदी की पीठ मेरी तरफ थी … मतलब कि मैंने अभी तक उसके बूब्स देखे नहीं थे, सिर्फ फील किये थे.

अब मैं क्या करता, उसको मेरी तरफ मोड़ना मुश्किल था.. ज्यादा जबर्दस्ती से वो उठ सकती थी. मेरी तो सांसें रुक रुक कर आ रही थीं. मैं उससे चिपक कर सोया था, मेरा ध्यान उसकी गांड पर गया, जो मेरी जांघ से सटी थी. मैंने दूसरे हाथ से उसकी गांड का स्पर्श किया, बहुत बड़ी पहाड़ी थी. मैं धीरे धीरे उसके चूतड़ों पर हाथ फेर रहा था. मुझे उसकी पैंटी का एहसास हुआ. मैंने सलवार के अन्दर से हाथ डाला तो उसकी पैंटी का रबर हाथ आया. मैं ज्यादा अन्दर हाथ नहीं डाल सकता था क्योंकि उसने नाड़ा बांधा हुआ था. मैं बस इतना ही कर पाया और उससे ऐसी ही अवस्था में रख कर सो गया.

सुबह रोज़ की तरह नार्मल पाया, सब सामान्य था.

आज शनिवार था मतलब कल कॉलेज की छुट्टी थी. मुझे संडे को जल्दी नहीं उठना होगा. मैं खुश था कि आज रात कुछ ज्यादा होगा. इसी खुशी के मारे दिन निकल ही नहीं रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#3
रात आयी और हम सो गए. मैं जागता रहा. मैं रोज़ तकरीबन सबके सोने के एक घंटा तक वेट करता था. मैंने फिर से उसके बूब्स को फील करना चालू किया. ये तो जैसे रोज़ होने लगा था. मैं सीधा ही ब्रा के अन्दर घुस गया और दबाने लगा. फिर मैंने अपना हाथ उसकी सलवार में हाथ डाला और नाड़ा खोल दिया, जिससे उसकी सलवार ढीली पड़ गयी. अब मैंने अपना हाथ उनकी पैंटी में डाला और उसकी गांड को फील करने लगा.

ये सब बहुत हॉट था. मेरा लंड तो बस फट रहा था कि अचानक ही उसने करवट ली और मेरा हाथ उसकी गांड को पकड़े नीचे दब गया. शायद ये उसी भी एहसास हो गया, वो उठ गई.
मैंने जल्दी से हाथ हटाया, तो उसने बोला- क्या हुआ?
मैंने सोते हुए नाटक किया और नींद में बोला कि मेरा हाथ आपके नीचे हो गया था.
वो वापस सो गई.

कुछ देर बाद वो उठी और बाथरूम जा कर आयी. उसे ये तो पता चल ही गया था कि उसकी सलवार का नाड़ा ढीला है.. और उसके बूब्स ब्रा से बाहर हैं.

उसे शक तो पक्का हो ही गया था, मगर वो कुछ बोली नहीं. वो बाथरूम से वापस आयी, तब तक उसके कपड़े ठीक हो चुके थे.

मैं समझ गया कि इसे सब पता चल गया है. हम सब सोने लगे. थोड़ी देर हुई तो मुझे लगा कि ये सो गई. मैं ऐसे ही पड़ा रहा. अभी वो मेरी तरफ मुँह करके सोई थी. मैंने फिर हरकत की, उसे बगल भरी, पीछे से उसकी गांड का स्पर्श किया. वो ऐसे ही सोती रही, मुझे एहसास हो गया कि सो गई. मैंने गांड में हाथ डालना चाहा, मगर नाड़ा टाइट बंधा था, तो मैंने कुर्ता ऊपर किया और पीछे से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा.

मेरा मुँह उसके बूब्स के बहुत करीब था मेरी सांसें उसके बूब्स पर टकरा रही थीं. मैंने जोर से गर्म गर्म सांसें उसके बूब्स पर मारीं, इससे हवस बढ़ती है और यही हुआ.

वो हिली तो मैंने हाथ फेरना भी जारी रखा. तभी उसने भी मुझे बगल भर ली और अपना एक पैर मेरे ऊपर डाल दिया. मैं समझ गया कि वो गर्म हो रही थी. मैंने उसकी गांड दबाना शुरू किया, तो उसके हाथ में भी हलचल हुई. वो अपने नाखून मेरी पीठ में चुभोने लगी. मैं समझ गया कि ये जग रही है, बस बयां नहीं करना चाहती.

उसके चेहरे से उसकी हवस साफ जाहिर हो रही थी. उसके होंठ खुले थे, जिनमें से अब हल्की कामुक सिसकारियों की आवाज सुनाई पड़ रही थी. अब मैं जब जब उसकी गांड दबाता, वो तब तब एक मीठी से सिसकारी भर लेती और मेरे पीठ पर नाखून गड़ा देती.

मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया. उसके होंठों के पास ले गया और बहुत ही धीरे से अपने होंठों को उसके होंठों से लगा दिया. उसकी मुँह से निकली गर्म हवा मेरे मुँह में मैं महसूस कर पा रहा था. मैंने धीरे से अपनी जुबान बाहर निकाली और उसके मुँह में डाल दी. मेरी जीभ उसकी मुँह में चली गयी. अन्दर उसकी जीभ से मेरी जीभ जा टकराई.

आह … ये बहुत ही अनोखा अहसास था. उसने भी रेसपोंड किया, वो भी अपनी जीभ को हलचल में लायी और कुछ ही पलों में हम दोनों की जीभ लड़ने लगी. वो मेरे जीभ चूसती, मैं उसकी.. और हम एक दूसरे को बांहों में लिए हुए एक दूसरे से चिपक रहे. किस लेते लेते ही मैंने अपना हाथ आगे किया और उसकी सलवार का नाड़ा दे खोला. फिर हाथ आगे करके उसकी पैंटी में डाल दिया.

चूत पर हाथ लगा तो मानो जैसे अन्दर तो बालों का जंगल उगा था. ढेर सारे घने बाल हाथ में आ गए. मैं समझ गया कि इसने आज तक कभी बाल बनाये ही नहीं हैं. पर ये और भी ज्यादा हॉर्नी था. मैं उसकी चूत पर हाथ फेरता गया और आखिर में मुझे चूत का एहसास हुआ. वो बहुत ही फूली हुई थी और बहुत नरम थी मानो जैसे स्पंज और भट्टी की तरह तप रही थी.

मैंने जैसे ही चूत को छुआ दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. शायद वो आगे नहीं बढ़ना चाहती थी. मैंने फिर कोशिश की तो उसने हाथ बाहर निकाल दिया और गांड से लगा दिया. मैं समझ गया कि ये शायद कुछ और चाहती है इसीलिए मैंने जबरदस्ती नहीं जताई.

उसने अपनी आंखें अभी भी बंद ही रखी थीं. तभी उसने करवट बदली और मेरी तरफ पीठ कर ली. मैंने कुर्ते में हाथ डाल दिया और बोबे बाहर निकाल दिए. अब मैं उसके मम्मे दबाने लगा. मैं रोज़ दबा दबा कर बोर हो गया था. आज मैं उन्हें पीना चाहता था. मैंने दीदी को मेरी तरफ घुमाया, तो वो आसानी से घूम गयी. उसके बूब्स मेरे सामने आ गए थे. रूम की लाल लाइट में उसके वो मादक बोबे सच में क्या छटा बिखेर रहे थे, क्या बताऊं आपको … मैं वो फीलिंग बयान नहीं कर सकता. उसके निप्पल और भी काले और मादक थे. मैंने एक को मुँह में ले लिया.. और पीछे हाथ करके उसकी गांड में डाल कर दबाने लगा. वो भी सिसिया रही थी. उसका एक हाथ मेरी गांड दबा रहा था और नीचे वाले हाथ खाली पड़ा था.

मैंने उसे पकड़ ओर अपना लंड उसके हाथ में दे दिया, वो लंड दबाने लगी थी. उसने मेरा लंड दबा दबा कर दर्द कर पैदा कर दिया था. कभी मैं उसे चूम रहा था, तो कभी उसके बोबे को चूस रहा था.

कमरे का माहौल बहुत गर्म हो गया था. वो अधनंगी थी और मेरे भी शॉर्ट्स नीचे हुए थे. ये सब आधा घंटा चला और मेरा पानी निकल गया. मेरा अंडरवियर गीला हो गया और उसका कुर्ता भी मेरे लंड के माल से गीला हो गया. मैंने अपना लंड भी उसके कुर्ते से ही साफ किया और हम सो गए.

सुबह रोज़ की तरह सब नार्मल था, ना उसने रात का कोई जिक्र किया. ना कोई दिन भर मेरी उससे कोई बात हुई.

दिन बीत गया, फिर से रात आयी और वही हुआ जो कल हुआ था. मगर इस बार मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और मैं ज्याफ देर तक रुका भी नहीं. सोने के 15 मिनट बाद ही चालू हो गया था.
अब ये रोज़ होने लगा, वो रोज़ मेरा पानी निकाल कर सोती थी. ये रोज़ लगभग दो घंटे तक चलता था.

एक दिन दीदी बोली- अब से मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर पढूंगी.
तो मैं भी इसमें शामिल हो गया. हम रात में एक दूसरे को आनन्द देते और सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने बैठ जाते. सर्दी का मौसम चल रहा था. जाहिर सी बात है, बहुत सर्दी पड़ रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
एक दिन दीदी ने सुबह बोला- रवि मुझे बहुत सर्दी लग रही है.
मैंने उसे चादर दे दी थी, मगर 5 मिनट बाद वो वापस बोली कि मुझे बहुत सर्दी लग रही है, प्लीज मुझे तेरी चादर में आने दे.

मैंने हां कहा और हम दोनों एक चादर में आ गए और ऊपर से एक और चादर डाल ली.

उसने कहा- आज मुझे वाकयी में बहुत सर्दी लग रही है, मैं सो जाती हूँ, तू कुछ देर बाद मुझे उठा देना.
मैंने कहा- ठीक है.

वो मुझे बगल में भर के सो गई. मेरी गोद में किताब रखी थी, जो अब किसी काम की नज़र नहीं आ रही थी. मैंने उसे साइड में रख दिया. रूम की लाइट्स अभी ऑन ही थीं. मैंने दीदी की पीठ को सहलाना चालू किया और उसके चेहरे की खूबसूरती को निहारा. सोती हुई वो बहुत ही मासूम और खूबसूरत लग रही थी. फिर मैंने अपना हाथ नीचे ले जाते हुए उसकी गांड को दबाया और हाथ अन्दर डाल दिया. मेरा हाथ आधा ही गया क्योंकि वो पूरी लेटी हुई नहीं थी. दूसरे हाथ से मैंने उसके कुर्ते के ऊपर से बोबे बाहर निकाल दिए और दबाने लगा.

दीदी का चेहरा मेरे सीने से सटा था और उसकी तेज़ सांसें में फील कर सकता था. एकाएक मेरे लंड पर उसका हाथ आ गया और वो लंड को दबाने लगी. उसने मेरा लंड बाहर निकाला और उसे ऊपर नीचे करने लगी. वो अभी भी अपना मुँह नीचे किये हुए थी.

मैंने उसे धीमी सी आवाज में कहा- इसे चूसो ना प्लीज.

उसने मेरी तरफ देखा और हमारी नजरें मिल गईं. जैसे वक्त रुक गया.. सब सुन्न हो गया. अचानक से वो मेरे चेहरे की ओर बढ़ी और मुझे बेतहाशा चूमने लगी. हमारा चुम्बन काफी लंबा चला और फिर वही हुआ, जो होना था. वो नीचे झुकी और मेरा लंड चूसने लगी. वो चादर से ढकी हुई थी, जो कि और भी हॉट लग रहा था.

उसने लंड चूसा और मेरा पानी निकाल कर मेरे पास कान में आकर बोली- अब मेरा भी पानी निकाल.. मेरी उसे जुबान से चाट.
मैं कुछ कहता या करता तब तक उसने मेरे लंड को चाट कर साफ कर दिया.
फिर वो मेरे कान में आकर दुबारा बोली- अब तू मेरी चाट.

हम दोनों ने पोजीशन चेंज की. मैं चादर के अन्दर गया और वो टांगें खोल कर बैठी रही. मैंने उसकी सलवार निकाली और पैंटी भी हटा दी. मैंने पहली बार उसकी चूत देखी थी. मैं पागल हुए जा रहा था, बस उसे खाने का मन कर रहा था. उसकी बुर पर घने बाल थे. मैंने उन्हें साइड में किया और उसकी काली झिल्ली मेरे सामने आ गयी. साफ जाहिर था, वो वर्जिन थी.
फिर मैं चूत चाटने लगा. करीब 10 मिनट बाद वो झड़ गई. हमने किस किया और वापस सो गए.

अब तो ये रोज़ का काम हो गया था. बस अब उसे चोदना बाकी था. फिर एक दिन मैंने उससे बोला कि क्या हम आगे नहीं बढ़ सकते?
उसने कहा- उससे बच्चा होने का डर है और मेरी अभी सील भी नहीं टूटी है.. इसलिए मुझे अभी डर लगता है.
मैं उसका डर समझ गया मगर मैं उसे चोदना भी चाहता था. यूं ही दिन निकलने लगे, मगर मैं उसे चोद नहीं पाया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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