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Adultery मेरा प्यार भरा परिवार (final of truth)
#1
कहानी के अंतिम चैप्टर को पढ़ने से पहले 
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.



मेरी ये  कहानी मम्मी और बेटे के प्यार, romance, emotion, incest relation, और किस्मत क्या क्या रंग दिखाती है उस पर आधारित है।



-----------+-++--+--मनीष का मानसी बनने का सफर ----------_---------+++-------------------------


समय रात के 10:10 नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, हम शताब्दी एक्स्प्रेस में बैठकर ग्वालियर अपने घर के लिए चल दिये मेरी मम्मी ने अपना सिर पापा के कंधे पर रख दिया। उन्हे इस तरह बैठे देखकर मुझे और सभी को मेरे पापा मम्मी दुनिया के बेस्ट कपल नजर आ रहे थे।

हम तीनो के दिमाग में बहुत से सवाल उठ रहे थे और उनके जबाब हमारे पास नही है।


  मनीष  की एक तरफ तो उसकी प्यारी मम्मी है जो न जाने क्यों मनीष को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है पापा, जिससे मनीष को बेइंतहा प्यार है पर ये बात वो खुद नहीं समझ सकते है. यहां एक ओर तो मनीष के दिल की उलझन है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे सवाल भी है जो उसके अस्तित्व से जुड़े है. जब मनीष का जीवन उसे दो-राहे पर ले जाएगा तब मनीष कौनसा रास्ता चुनेगा?


इस कहानी का अंतिम चैप्टर लिखने का समय अब आ गया है। ये चैप्टर कहानी का अंजाम तय करेगा की कहानी का अंत है या शुरुआत। 


कहानी के अंतिम चैप्टर को पढ़ने से पहले 
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.


-------------------------उलझन----------------


हम  तड़के ही ग्वालियर अपने घर पहुँचकर अपने अपने रूम में चल गये। और एक नई सुबह का एक नई उम्मीद के साथ अपने काम में व्यस्त हो गये। 

मेरी, मम्मी, और पापा तीनो की जिंदगी change हो गयी थी। मेरे मम्मी पापा के बीच में प्यार रोमांस, सेक्स भी खतम होने की कगार पर आ पहुँच था। शायद इसकी दो  वजह थी। 

एक
मेरी मम्मी की मुझे लड़की बनाने की जिद

दूसरी
मेरा सच जो मेरे मम्मी पापा के रिश्तों के बीच दीवार बन गया है। 

समय अपनी रफ्तार से निकल रहा था। 6 महीने हो गये थे। 


एक सुबह कुछ किन्नर (हिजडा) हमारे घर आये और मेरे पापा से बात करने लगे। मै और मम्मी छत से छिपकर पापा और उनकी बाते सुन रहे थे जो हमें ठीक से सुनाई नही दे रही थी। आधे घंटे बाद मेरे पापा ने उनके हाथ जोड़े और उन्होंने किन्नर (हिजडा) ने आशीर्वाद दिया और चले गये। 


थोड़ी देर बाद पापा ऊपर घर में आ गये मम्मी ने पूछा क्या हुआ तो पापा ने मेरी तरफ बड़ी बेबसी और लाचारी से देखा पापा की आँखों में आँसू थे।


मम्मी ने फिर पूछा तो मम्मी का हाथ पकड़कर अपने बेड रूम में ले गये और
  बोले हमारा बेटा आज से हम दोनों के अलावा किसी के साथ घर से बाहर नही जायेगा। किन्नर (हिजडा) इसे ले जाने के लिए आये थे। वो बोले ये इस समाज में नही रह सकता है और अगर आपको आगे आने वाली परेशानियों से बचना हो तो इसे हमें दे दीजिये। 


मम्मी बोली किन्नर (हिजडा) को ये पता कैसे चला तो पापा बोले पता नही शायद हमारे बेटे या तुम ने किसी को  सच बता दिया हो। मम्मी बोली नही हम दोनों ने किसी को कुछ नही बताया।

पापा बोले खैर छोड़ो किन्नर (हिजडा) अब नही आएँगे मैने उनसे बात कर ली है और वो अपना आशीर्वाद दे गये है। 
उन्होंने ही कहा है कि इसे अकेले घर से बाहर लड़को की तराह ही निकले, जमाना खराब है। 

उस दिन से मेरी घर से बाहर जाने की आजादी भी पूरी तरह खतम हो गयी और बस स्कूल और घर के बीच में ही मेरा दायरा हो गया। 


अगले दिन मनीष … … आ गया तू?”, स्कूल से बस अभी घर आया ही था कि मुझे अपनी मम्मी की आवाज़ सुनाई दी. शायद अपने कमरे में थी वो.

“हाँ, मम्मी.”, हा जवाब दिया. मेरे चेहरे में न तो कोई ख़ुशी थी और न कोई और भाव. बस एक साधारण सा चेहरा था । 

“अच्छा.. जल्दी इधर आ.”, मम्मी की फिर आवाज़ आई तो मे चलकर मम्मी के कमरे में गया.

मम्मी ने कमरे में अपने बिस्तर पर बहुत से कपडे फैला रखे थे. शायद आज अपनी अलमारी साफ़ कर रही थी वो. मुझे देखते ही मम्मी के चेहरे पर ख़ुशी से एक बड़ी मुस्कान खिल उठी थी.

“अच्छा… देख तो इसमें से कौनसी साड़ियाँ तुझे पसंद है. पिछले २-३ साल में शादियों में बहुत सी गिफ्ट में मिली है मुझे. तेरी बुआ और ताई ने भी तो दी है. पर कभी इन्हें पहनने का मौका नहीं मिलता. आखिर इतनी सारी साड़ियाँ है मेरे पास. ये सब तो बिना पहने ही पड़े पड़े धुल खा रही है.”, मम्मी बोली. और ये कहते वक़्त उनके हाव भाव बड़े ड्रामेटिक से थे.

“अब तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो मम्मी?”, मैने झुंझलाते हुए कहा.

तो मम्मी ने प्यार से  सर पर हाथ फेरा और फिर मेरा हाथ प्यार से पकड़ते हुए बोली, “अरे इन सबके तो ब्लाउज भी सिले हुए है. तू २-३ साड़ियाँ पसंद तो कर. तो मैं फिर इनके ब्लाउज को तेरे साइज़ के लिए एडजस्ट कर लूंगी.”



“मुझे नहीं पहनना साड़ी वाड़ी. तुम ही पहनना इनको जब मौका मिले.”, मै अभी भी झुंझला रहा था.

“अरे बेटा. अपनी मम्मी के लिए तू एक साड़ी पहन लेगा तो कुछ बिगड़ जायेगा क्या? तुझसे कुछ मांगती हूँ मैं भला?”, मम्मी ने मुझ को गले से लगा लिया.

“तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी रहती हो मम्मी? और अब ये साड़ी?”, मैने थोडा गुस्से में मम्मी से कहा.

“बेटा तू तो जानता ही है. चल अब ज्यादा बहस मत कर. देख ये फिरोज़ी रंग वाली तो तुझ पर बहुत अच्छी लगेगी. तू २ और पसंद कर ले.”, मम्मी मेरे तन पर फिरोजी रंग की साड़ी लगाते हुए बोली. मम्मी के दिल में मेरे लिए कितना प्यार था ये तो साफ़ दिख रहा था. मै भी ज्यादा देर और मम्मी को टाल नहीं सकता था. मैने आखिर २ साड़ी को निकाल कर अलग कर लिया. मैने बस मम्मी की इच्छा पूरी करने के लिए कोई भी २ साड़ी चुन लिया था… ये तो मेरा दिल ही जाने. पर हलकी साड़ियाँ ही मैने पसंद की थी. सिल्क की भारी साड़ियों को तो मैने देखा तक नहीं.



मेरी चॉइस देखकर मम्मी बड़ी खुश हुई. “अच्छा आज शाम तक मैं ब्लाउज सिल देती हूँ इनके. आज शाम को एक साड़ी तो पहनकर देख ही लेना तू. तुझे अच्छा लगेगा.”, मम्मी ख़ुशी से बोली.

""थोडा अजीब सा ही रिश्ता था ये एक माँ और बेटे के बीच. वरना ऐसी बातें तो एक मम्मी सिर्फ अपनी बेटी के साथ करती है"".


मम्मी के साथ बात करने के बाद से मै थोडा चिडचिडा सा गया था. और कुछ देर अकेले में समय बिताना चाहता था. 


मै अपने कमरे की ओर बढ़ चला. मुझे पता था कि एक बार अपने कमरे में जाकर अपने कपडे बदल लिए तो फिर  दोबारा कल स्कूल जाने के पहले घर से बाहर नहीं निकल सकूँगा . और इसी चारदीवारी के अन्दर रहूँगा. शायद इसलिए मै कुछ देर के लिए ही सही घर के बाहर अकेले बैठना चाहता था.


अपने कमरे में पहुच कर मैने अपनी शर्ट खोली और फिर उसी शर्ट के अन्दर छुपे हुए मेरे लम्बे बाल अब दिखने लगे. हाँ, मेरे बाल बेहद लम्बे थे जो मेरी कमर तक आते थे. घने और रेशमी बाल.. इतने सुन्दर की कोई भी लड़की वैसे बालो के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. पर मै उन्हें पोनीटेल बना कर छिपा के रखता था. 


फिर भी सबको पता तो था कि मेरे बाल लम्बे है. पर इतने आकर्षक और रेशमी घने है इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था. मैने हमेशा की तरह अपनी पोनीटेल को कंधे की एक ओर किया और शर्ट के अन्दर पहनी हुई इनर को निकालने लगा. पर इनर के अन्दर मैने और भी कुछ पहना हुआ था. 


वो एक टाइट सी स्पोर्ट्स ब्रा थी. उस ब्रा को पहनकर मुझे घुटन सी होती थी. फिर भी उसे पहनना मेरी मजबूरी थी. और फिर मैने जैसे ही उस स्पोर्ट्स ब्रा को उतारा तो मेरे सपाट से दिखने वाले सीने पर अचानक ही भरे पूरे स्तन बाहर निकल आये. जैसे न जाने कब से वो स्तन भी स्पोर्ट्स ब्रा से निकल कर आज़ाद होना चाहते थे. उन स्तनों के निप्पल भी उभर कर बाहर आ गए थे… और कुछ दर्द कर रहे थे. 


मुझे  डॉ रेखा ने बताया था कि बचपन से ही  मेरे अन्दर एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम था. इसलिए मेरे शरीर में कुछ स्त्रियों जैसे बदलाव हो रहे थे. उसके इलाज के लिए ही मम्मी मुझे सुबह शाम कुछ गोलियां खाने को देती थी. पर मुझ को समझ आ रहा था कि उन गोलियों का उस पर असर नहीं हो रहा था. तभी तो मेरे स्तन समय के साथ बढ़ते ही जा रहे थे. पता नहीं कब तक मै इन्हें दुनिया की नज़रो से छिपा कर रख सकूंगा। 


मेरे शरीर के एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम का असर सिर्फ स्तनों तक नहीं था. जब मैने अपनी पेंट उतारी तो साफ़ झलकता था कि मेरी हिप में भी किसी सामान्य लड़के के मुकाबले कुछ ज्यादा उभार था. शायद इसलिए मुझे लडको की अंडरवियर सही फिट नहीं आती थी. इसलिए मुझे लड़कियों की पेंटी पहनना पड़ता था. और इस वक़्त मै सिर्फ पेंटी पहना हुआ था. टाइट ब्रा से निकलकर मुझे अब कुछ अच्छा लग रहा था.


मैने अपने घर के रोज वाले कपड़े पहनने के लिए अपनी अलमारी की दराज खोला और उसमे से एक ब्रा निकाला. मेरे पास ६-७ अलग अलग रंगों ब्रा थी और सभी पर फूल के प्रिंट बने हुए थे जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं आते थे. पर मेरी मम्मी ने मेरे लिए यही सब ब्रा दी थी, मै खुद दुकान जाकर ब्रा पसंद करने मे संकोच जो करता था, और आखिर स्वाभाविक भी था. आखिर कौनसा लड़का अपनी मम्मी के साथ ब्रा की दुकान जाकर ब्रा पसंद करता? पर मेरी मम्मी ने कहा था कि यही सब ब्रा मेरे स्तनों को आराम देगी. 


और फिर मै अपने मुलायम झूलते हुए स्तनों पर एक पीली रंग की ब्रा चढाने लगा. जितनी आसानी से मैने ब्रा के हुक अपनी पीठ पर लगा लिए अब इसकी आदत हो गयी थी. लम्बी पोनीटेल और ब्रा-पेंटी में मेरा शरीर किसी लड़की के शरीर से कम नहीं लगता था. भले मुझे फूल प्रिंट वाली ब्रा पसंद न हो पर मेरे नर्म मुलायम स्तनों को ब्रा पहनकर ही आराम मिलता था.



अब फिर आईने के सामने खड़ा होकर मै खुद को देखने लगा. और सोचने लगा कि कब दवाइयां मुझ पर असर करेगी और मै एक लड़के की तरह दिखने लगूँगा.


फिर मैने अपनी अलमारी से एक सलवार सूट निकाला. मेरी मम्मी कहा करती है कि जब तक मै ठीक नहीं हो जाता उसके लिए यही कपडे ठीक है. सलवार का पैजामा पहनने के बाद मैने ऊपर से ढीली सी कुर्ती पहना. जहाँ मेरी मम्मी की कुर्ती उनके शरीर के कर्व को पूरी तरह से निखारती थी वहीँ मेरी ढीली कुर्ती मेरे शरीर के कर्व को जितना हो सके उतना छुपाती थी पर पूरी तरह नहीं.


मैने आईने के सामने अपने हाथो से अपनी कुर्ती को अपने हाथो से खिंच कर ज़रा टाइट करके देखा जैसे मम्मी की कुर्ती होती थी. ऐसा करने पर मेरे स्तन भी मम्मी की तरह ही एक आकर्षक फिगर दे रहे थे.


[Image: IMG-20220818-212839.jpg]




शायद मै भी मम्मी की तरह ही हॉट लगता टाइट कुर्ती में. मै खुद को आईने में वैसे देखते हुए सोचने लगा. और फिर मेरे बाल तो मम्मी के बालो से भी लम्बे और ज्यादा आकर्षक थे. अब मैने अपनी पोनीटेल का रबर निकाल दिया और मेरे बाल पूरी तरह खुले हुए थे… सुन्दर… लम्बे … आकर्षक. और फिर मै अपने दोनों हाथो से अपने बालो को तीन भागो में बांटकर उसकी चोटी बनने लगा. मेरी मम्मी मुझे समझाती है कि चोटी बनाकर रखेगा तो  बाल झडेंगे नहीं और सुन्दर बने रहेंगे. चोटी बनाकर मै अब पूरी तरह लड़की लग रहा था. और यही कारण था कि मै घर आने के बाद घर की चारदीवारी में कैद रहने को मजबूर था. पिछले २ सालो में आये हुए मेरे शरीर में बदलाव का राज  अलावा सिर्फ मेरी पापा मम्मी जानती थी…  


मै अपनी सलवार कुर्ती के साथ दुपट्टा नहीं ओढ़ता था. क्योंकि वह यह कपडे सिर्फ सहूलियत के लिए पहनता था लड़की बनने के लिए नहीं. और फिर मुझे लड़कियों की तरह अपनी काया दुसरे की नजरो से कम से कम घर के अन्दर छिपाने की ज़रुरत नहीं थी. इसलिए दुपट्टे को सँभालने के झंझट से  दूर ही रहता था. और फिर मै अपने कमरे में ही पढाई करने में जुट गया. घर में मेरे पास वैसे भी और कुछ करने को नहीं था.



शाम का वक़्त हो गया था. और मै अब भी कमरे में बैठ कर पढाई कर रहा था कि तभी मेरी मम्मी बेहद ख़ुशी के साथ मेरे कमरे में आ पहुंची. “ बेटा”, मम्मी ने कहा और प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगी.

“क्या हुआ मम्मी? बहुत खुश लग रही हो.”, मैने कहा.

“देख ये ब्लाउज मैंने तेरी साइज़ के लिए छोटा कर दिया है. एक बार ज़रा ट्राई करके देखना तो सही कि फिटिंग सही आ रही है.”, मम्मी बोली.

मम्मी इसे अभी करना ज़रूरी है क्या?”, मैने अपनी लम्बी चोटी को एक ओर कर वापस अपनी किताबो में घुसते हुए कहा.

“बेटा. देख ले एक बार. यदि सही फिटिंग रही तो बाकी के ब्लाउज भी ऐसे ही सिल दूँगी.”, मम्मी ने बड़ी हसरत के साथ कहा.

“ठीक है. मम्मी”, मैने कहा  फिर मैने मम्मी के हाथ से ब्लाउज लिया और अपनी कुर्ती उतारकर वो ब्लाउज पहनने लगा. मुझे ये सब करते हुए और लड़कियों के कपडे पहनते हुए थोड़ी शर्म भी आती थी अपनी मम्मी के सामने पर शायद अब तक मैने अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया था. 


मै धीरे धीरे अपनी ब्रा के ऊपर ब्लाउज पहनकर ब्लाउज के हुक सामने की ओर एक एक कर लगाने लगा. एक एक हुक के साथ वो ब्लाउज जैसे मेरे शरीर का हिस्सा बनता जा रहा था. ब्लाउज की कटोरियाँ मेरे स्तनों पर बिलकुल सही फिट आ रही थी और जब सारे हुक लग गए तो मेरा ब्लाउज मेरे स्तनों के साथ बिलकुल एकाकार हो गया.


“अच्छा. बता कैसा लग रहा है पहन कर?”, मम्मी ने पूछा तो मैने इधर उधर पलटकर ब्लाउज को खुद पर देखा और कहा,”मुझे तो कम्फ़र्टेबल लग रहा है मम्मी.”

पर मम्मी की नज़र  ब्लाउज के आस्तीन पर पड़ी. “ये थोड़ी ढीली लग रही है.”, मम्मी ने ब्लाउस की आस्तीन के अन्दर दो उंगलियाँ डालते हुए बोली. “.. पर मम्मी.. थोड़ी ढीली आस्तीन तो सही है न? आरामदेह रहेगी”


“मम्मी. ब्लाउज अच्छा तभी लगता है जब आस्तीन बिलकुल फिट आये. ढीली आस्तीन अच्छी नहीं दिखती है साड़ी के साथ.”, मम्मी ने अपने अनुभव से कहा.


और फिर मम्मी ने मेरी पीठ की ओर देखते हुए बोली, “मैं ज़रा ब्लाउज का गला बड़ा कर देती हूँ. इतना छोटा गला मेरी जैसी ओल्ड फैशनड औरतों पर ठीक लगता है. मेरी जवान बेटी के ब्लाउज में और मेरी ब्लाउज में कुछ तो फर्क होना चाहिए न?”


मै अपनी मम्मी की बात सुन शर्मा गया. और फिर झट से मैने अपना ब्लाउज उतारकर मम्मी को दे दिया और फिर कुर्ती पहन लिया.

“अच्छा. चल मैं ये सब ब्लाउज कल तक सिल दूँगी. अभी तो मम्मी बेटी ज़रा खाना खा लेती है.”, मम्मी ने मेरा हाथ पकड़कर हँसते हुए बोली.

“मम्मी. तुम भी न.”, मैने शर्माते हुए कहा.
 मै भले लड़कियों के कपडे पहनता था पर कभी भी लड़कियों की तरह हाव-भाव करने की कोशिश नहीं करता था. फिर भी कभी कभी अपने आप मेरे भाव लड़कियों की तरह हो जाते थे. और ये भी ऐसा ही कुछ समय था.


“अरे… मैं तो बेहद उत्साहित हूँ. कल जब तुझे साड़ी पहनाऊँगी तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी. पहली बार अपनी बेटी को साड़ी पहने देखूँगी न. मुझे यकीन नहीं होता कि मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गयी है.”, मम्मी अब मुझ को छेड़ने लगी । मै शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ मेरी मम्मी मेरे साथ करती ही रहती थी. और फिर हम दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए । 



जारी है......
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#2
मै शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ मेरी मम्मी मेरे साथ करती ही रहती थी. और फिर हम दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए । 


मैने और मम्मी ने बस अभी खाना खत्म ही किया था। रोज की तरह ही  मम्मी अपनी पसंद का टीवी सीरीअल देखने वाली थी। मुझे उनके सीरीअल इतने पसंद न आते थे। फिर भी अपनी मम्मी की खुशी के लिए वो उनके साथ बैठकर उन्हे देख लेता था। कभी कभी उन सीरीअल को देखकर मै सोचता था जैसे कि उन सीरीअल की दुनिया मे सिर्फ औरतें ही रह गई थी जो सब कुछ करती थी फिर चाहे वो घर संभालना हो या बिजनेस या फिर कोई साजिश करना। आदमी तो सिर्फ जैसे नाम के लिए होते थे। उनका कोई ज्यादा काम नहीं होता था। मेरी अपनी लाइफ भी टीवी की लाइफ से बहुत अलग नहीं थी। मै मम्मी के साथ रहता था वो भी लड़कियों की तरह। 


भले मुझ को टीवी सीरीअल इतने पसंद न थे, फिर भी मै उन्हे गौर से देखता था।  उनसे मै कुछ न कुछ सीखता था। शायद मुझे इन सब की कभी जरूरत न पड़े,
 पर यदि मै अपने एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम के लिए जो दवाइयाँ लेता था, उसने अपना असर न दिखाया तो मेरे पास एक औरत की तरह जीवन बीताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहेगा।



“काश ऐसा दिन कभी न आए जब उसे पूरी तरह से लड़की बन कर रहना पड़े।”, मै मन ही मन सोचता और भगवान से प्रार्थना करता। मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी पर इतना मुझे समझ आता था कि सोसाइटी मे औरत का जीवन कई संघर्षों से भर होता है।


बेटा, मेरे सीरीअल का समय हो रहा है। तू जाकर कपड़े बदल आ। मैं भी सीरीअल शुरू होने के पहले सारे बर्तन समेट कर आती हूँ “, मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान वापस वर्तमान मे आया।

मम्मी, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। कपड़े मैं बाद मे बदल लूँगा।”, मैने मम्मी से कहा।


“न.. मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ। कहो”, मम्मी ने मुझे लड़की की तरह कहने के लिए प्यार से कहा। “बेटा, तू यदि सही तरह से बोलने की प्रैक्टिस न करे तो तुझे आगे चलकर मुश्किल होगी न?”, मम्मी ने प्यार से समझाया। ये सब आखिर इसलिए तो हो रहा था ताकि यदि मुझे भविष्य मे लड़की बनना पड़े तो मुझे मुश्किलों का सामना न करना पड़े।

“अच्छा मम्मी, मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ।”, मैने थोड़ा अनमने मन से कहा।


नहीं, बर्तन तो मैं समेट लूँगी। तू जाकर कपड़े बदल ले। तुझे भी आराम लगेगा। “, मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा| 


अपने कमरे मे मैने जाकर अपनी अलमारी खोली। वहाँ २-३ मैक्सियाँ थी जिसमे से एक मैक्सी मैने पहनने के लिए निकाल ली। अपनी सलवार कुर्ती उतार कर कुछ देर तो मैने अपनी काया को देखा। एक तरफ तो मेरे स्तन उभर रहे थे और वहीं दूसरी तरफ मेरी पेन्टी के अंदर मेरे पुरुष लिंग मे भी उम्र के साथ कुछ बदलाव आ रहे थे। किसी भी किशोर किशोरी के लिए उसके तन मे आने वाले बदलाव कन्फ्यूज़ करने वाले होते है, पर मेरे लिए तो यह बदलाव और भी अजीब थे। मै लड़का हू या लड़की ये तो मै खुद नहीं समझ पाता था।


इससे पहले कि मै  अपनी स्थिति को सोचकर और परेशान होता, मैने झट से मैक्सी पहन ली। वो कॉटन की सॉफ्ट सी मैक्सी थी। चाहे जो भी हो, मुझे मैक्सी पहनकर कंफरटेबल महसूस होता था। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे,  मैक्सी मे मुझे सीने के पास और कसाव महसूस होने लगा था। आखिर मेरे स्तन जो धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। 


कभी कभी तो मुझे अपने बढ़ते स्तनों को देखकर गुस्सा आता था, पर कभी कभी मुझे ये भी लगता था कि काश मेरे स्तन मम्मी की तरह बड़े और भरे हुए होते। फिर भी वो इतने छोटे भी न थे कि कोई भी अनदेखा कर सके। मै अपने स्तनों का वजन  ब्रा और कंधों पर महसूस कर सकता था। और यदि किसी दिन मै ब्रा न पेहनु तो मेरी पीठ मे दर्द भी होने लगता था।



मैक्सी पहनकर जब मै चलता तो कमर के नीचे जो खुलापन  महसूस होता, वो मुझे अच्छा लगता था। मैक्सी की कोमलता मुझे लुभाती थी। अजीब सा दवन्द था मेरे मन मे भी। मुझे लगता था कि मैक्सी इतनी कंफरटेबल है कि लड़का हो या लड़की, हर किसी को मैक्सी पहनकर ही सोना चाहिए। खैर, अब तक मम्मी ने टीवी चालू कर दिया था तो मै भी चलकर अपनी मम्मी के पास आकर सोफ़े मे उनके बगल मे बैठ गया।
फिर भी यूं ही हँसते खेलते कब उस सीरीअल को देखते हुए आधा घंटा बीत गया, हम दोनों को पता ही नहीं चला। 


स्कूल से आने के बाद मेरा और मम्मी के बीच का रिश्ता कब माँ-बेटे से माँ-बेटी के रिश्ते मे बदल जाता था पता ही नहीं चलता था। रोज स्कूल जाने से पहले मै एक लड़के की तरह ही शुरुआत करता पर फिर धीरे धीरे रात होते तक लड़की के रूप मे पूरी तरह ढलने लगता। और इस वक्त मेरे लिए जितना संभव था, अपनी मम्मी की बेटी ही था।

अच्छा चल बेटा। अब रात हो गई है। तू जाकर अब सो जा। सुबह ६ बजे स्कूल के लिए उठना भी तो है।”, मम्मी ने गंभीर होते हुए कहा।

“ठीक है मम्मी।  गुड नाइट “


“अच्छा एक बात सुन.. चाहे तो चोटी खोलकर जूड़ा बनाकर सो जाना। और सोने के पहले दांतों को ब्रश करने के बाद, अपनी ब्रा उतारना मत भूलना”,  रात को लड़कियों को ब्रा उतारकर ही सोना चाहिए। दिन मे स्तनों को सपोर्ट चाहिए होता है पर रात को उन्हे खुला रखना स्तनों के आराम के लिए जरूरी है। अब ये बात एक मम्मी अपनी बेटी को नहीं सिखाएगी तो कौन सिखाएगा उसे?”, 


मम्मी ने ऐसे कहा जैसे ये कोई मामूली बात हो। मगर मेरे लिए ये बात मामूली कहाँ थी? एक लड़की की तरह हँसना, बाते करना और एक बेटी की तरह व्यवहार करना फिर भी थोड़ा आसान है। मगर शरीर मे आने वाला ये बदलाव मेरे लिए वास्तविकता थी जो उसे इस सच से वाकिफ कराता था कि मै शायद एक दिन पूरी तरह से लड़की ना बन जाए। इस सच को मै अनदेखा करना चाहता था मगर मेरे स्तन हर पल मुझे आभास कराते थे।

मम्मी
की कही हुई बात से मेरा मन विचलित हो गया था। फिर भी किसी तरह मै नजरे झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ चला था।


वही दूसरी ओर, मै अपने कमरे मे अपनी ब्रा उतारने के बाद अपनी मैक्सी पहने हुए सो गया। अपने पैरों को घुटनों के पास मोड़कर खुद को मैक्सी की गर्माहट मे खुद को ढाँढ़स बँधाते हुए इस सपने के साथ कि शायद एक दिन जब सो कर जागू तब सब कुछ ठीक हो चुका होगा, मेरी मुश्किलें खत्म हो जाएगी और मुझे एक दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि मै लड़का हू या लड़की।



जारी है।
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#3
शायद एक दिन जब सो कर जागू तब सब कुछ ठीक हो चुका होगा, मेरी मुश्किलें खत्म हो जाएगी और मुझे एक दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि मै लड़का हू या लड़की।

सुबह के ६ बजते ही मेरे  कमरे का अलार्म बज उठा, और उसी अलार्म के साथ मम्मी की आवाज आई। “ बेटा तू उठ गया?” ये मम्मी भी न कमाल की थी। रात तक तो मुझे बेटी की भांति संबोधित कर रही थी पर सुबह उठते ही वही बेटी बेटा बन जाती थी। शायद वो इसलिए कि आखिर मुझ को सुबह सुबह घर से निकलते ही एक लड़के का सामान्य जीवन जीना होता था। और इसी की तैयारी मेरी मम्मी घर से ही शुरू कर देती थी।



मेरे पास एक लड़के का शरीर होने की वजह से एक परेशानी और थी जिससे हर टीन-एजर लड़का गुज़रता है। शरीर मे नए बढ़ते हॉर्मोन की वजह से मेरा पुरुष लिंग उनके काबू मे नहीं रहता, और एक डर हमेशा लगा रहता है कि कहीं लिंग का ये बेकाबूपन कोई देख न ले। 


और सुबह सुबह तो ये परेशानी और भी ज्यादा होती है। मेरी भी यही परेशानी थी। मेरा लिंग सुबह सुबह तना हुआ होता था। इससे पहले की मेरी मम्मी मेरे कमरे मे अंदर आए मुझे जल्दी से कुछ करना होगा। पर करे तो करे क्या? लंड के उभार को गलती से छु दो तो वो और भी बेकाबू होने लगता है। इस समस्या से बचने के लिए एक बार स्कूल मे मेरे दोस्तों ने  एक तरीका बताया था पर मुझे वो तरीका सोचकर ही पसंद नहीं आया। ऐसा सभी लड़कों के साथ होता है .. जो भले दोस्तों के सामने कुछ भी कहे पर भीतर ही भीतर वो जानते है कि वो शरीर के इन बदलावों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है।


सुबह के ६ बजते ही मेरे  कमरे का अलार्म बज उठा, और उसी अलार्म के साथ मम्मी की आवाज आई। “ बेटा तू उठ गया?” ये मम्मी भी न कमाल की थी। रात तक तो मुझे बेटी की भांति संबोधित कर रही थी पर सुबह उठते ही वही बेटी बेटा बन जाती थी। शायद वो इसलिए कि आखिर मुझ को सुबह सुबह घर से निकलते ही एक लड़के का सामान्य जीवन जीना होता था। और इसी की तैयारी मेरी मम्मी घर से ही शुरू कर देती थी।



मेरे पास एक लड़के का शरीर होने की वजह से एक परेशानी और थी जिससे हर टीन-एजर लड़का गुज़रता है। शरीर मे नए बढ़ते हॉर्मोन की वजह से मेरा पुरुष लिंग उनके काबू मे नहीं रहता, और एक डर हमेशा लगा रहता है कि कहीं लिंग का ये बेकाबूपन कोई देख न ले। 


और सुबह सुबह तो ये परेशानी और भी ज्यादा होती है। मेरी भी यही परेशानी थी। मेरा लिंग सुबह सुबह तना हुआ होता था। इससे पहले की मेरी मम्मी मेरे कमरे मे अंदर आए मुझे जल्दी से कुछ करना होगा। पर करे तो करे क्या? लंड के उभार को गलती से छु दो तो वो और भी बेकाबू होने लगता है। इस समस्या से बचने के लिए एक बार स्कूल मे मेरे दोस्तों ने  एक तरीका बताया था पर मुझे वो तरीका सोचकर ही पसंद नहीं आया। ऐसा सभी लड़कों के साथ होता है .. जो भले दोस्तों के सामने कुछ भी कहे पर भीतर ही भीतर वो जानते है कि वो शरीर के इन बदलावों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है।


बेटा। चल अब जल्दी से उठ जा और नहा ले। मैं तेरे लिए टिफ़िन बना रही हूँ। जल्दी से तैयार हो जाना।”, आखिर मे मम्मी कमरे मे मुझे जगाने के लिए आ ही गई थी। वो तो समय रहते मैने बिस्तर पर उठकर खुद को चादर से पूरी तरह ढँक लिया था जिससे अपने लंड के उभार को छिपा सका।


“हाँ मम्मी मैं अभी जाता हूँ।”, मैने अपने बालों का जूड़ा खोलते हुए बंद सी आँखों के साथ कहा।

“मेरा प्यार राजा बेटा।”, मम्मी ने मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और वापस किचन की ओर चली गई।


मम्मी के जाते ही मैने चैन की सांस ली और चादर हटाकर उठने को तैयार होने लगा। चादर के हटाते ही मेरा मैक्सी मे  लिंग उभर कर टेंट बनाया हुआ था। मेरी कोमल सी मैक्सी उस उभार को छिपाने के लिए काफी नहीं थी। मुझे तो अपनी पेन्टी पर भी अचरज होता था क्योंकि एक ओर तो वो मेरे बड़े कूल्हों से चिपककर उन्हे जगह पर हिलने से रोकती थी पर वही दूसरी ओर मेरे लिंग पर मेरी पेन्टी कमजोर साबित होती थी। फिर भी उसी अवस्था मे उठकर मै अपने बाथरूम की ओर जाने लगा। ये तो अच्छा था कि मेरा अपना बाथरूम था।


पर मेरी मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती थी। मेरे शरीर मे कुछ दूसरे हॉर्मोन भी थे जो अपना असर कहीं और भी दिखा रहे होते थे। सुबह सुबह की ठंडक मे मेरे निप्पल कठोर होकर मेरी मैक्सी से साफ झलक रहे होते थे। क्योंकि मै रात को बिना ब्रा के सोता था, तो निप्पल को छिपाने के लिए मेरे पास कुछ न था।


 पीछले कुछ महीनों से मैने नोटिस किया था कि मेरे निप्पल का आकार बढ़ता जा रहा था और  निप्पल के चारों ओर का गोला और बड़ा होते हुए गहरे रंग का होने लगा था। लगभग १.५ साल पहले जब मेरे स्तन उभरना शुरू ही हुए थे तब मेरे सीने पर हर वक्त एक दर्द रहा करता था। पीछले कुछ महीनों से वो दर्द अब कम हो गया था पर अब ये नए परिवर्तन आ रहे थे। गहरे और बड़े निप्पल सुबह सुबह जब कठोर होते तो मुझे असहज लगता। शारीरिक बदलाव किसी भी लड़के या लड़की को उलझन मे डाल देते है पर मेरे लिए तो ये समस्या किसी के भी मुकाबले दुगुनी थी।
फिलहाल तो मैने बाथरूम जाकर ब्रा और अपनी पेन्टी उतार कर नहाने लगा। 

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स्कूल मे बायोलोजी की क्लास मे मैने दो अलग अलग तरह के शरीर देखे थे पर मेरा शरीर तो जैसे उन दोनों शरीरों का मिलन प्रतीत होता था। मैने अपने शरीर के बारे मे तो  क्लास मे कभी पढ़ा ही नहीं था। इसी वजह से मेरे मन मे थोड़ी कुंठा भी रहती थी कि वो सभी से अलग है।


नहाने के बाद मैने रोज की ही तरह टाइट स्पोर्ट्स ब्रा पहनी। मुझे अंदाजा होने लगा था कि ये स्पोर्ट्स ब्रा अब ज्यादा दिनों तक मेरी असलियत को दुनिया से छिपा के नहीं रख सकेगी। फिर भी जब तक संभव हो कोशिश तो करनी ही थी। क्या पता किसी दिन  दवाइयों के असर से ये समस्या सुलझ जाए? और फिर पेन्टी और स्कूल की यूनिफॉर्म पहनकर, मैने बालों की पोनीटैल बनाई और घर से निकलने को तैयार था। मम्मी ने  टिफ़िन भी तैयार कर लिया था। टिफ़िन बैग मे रखकर मैने घड़ी की ओर देखा। स्कूल शुरू होने मे २५ मिनट थे। उसे स्कूल जाने के लिए से १५ मिनट लगते थे तो काफी समय था ।




जारी है.....
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#4
----------------पहली बार साड़ी--------------



 मे स्कूल से जैसे ही घर आया मम्मी ने  बैग लिया और  खाना लगाने लगी। मै भी हाथ धोकर टेबल पर आ चुका था।


मम्मी बोली बेटा आज मेरी सहेली की बेटी की सगाई है और तेरे पापा तो बाहर गये है, इसलिए हम दोनों को 
शाम को चलना है, और मै तुझे ठीक से तैयार करूँगी। 


खाना हो जाने के बाद जब मै अपने कमरे की ओर कपड़े बदलने जाने ही वाला था कि  मम्मी मेरे  पास आई। उनके हाथों मे कुछ साड़ियाँ थी। आखिर यही तो वजह थी उनकी खुशी की।

बेटा … उस दिन तूने ये २ साड़ियाँ पसंद किया था न? मैंने भी अपनी पसंद से २ और साड़ियाँ चुनकर तेरे लिए इन चारों साड़ियों के ब्लाउज सिए है। देख न इनमे से तू कौनसी साड़ी पहनेगा आज?”, मम्मी ने कहा।

मैने एक बार फिर मम्मी कि तरफ देखा और बोला, मम्मी इतने जल्दी तुमने चारों के ब्लॉउज़ सील दिए?”


“ये लो मम्मी। तुम्हारी खुशी के लिए आज मैं साड़ी भी पहन लेता हूँ। ये वाली साड़ी मुझे अच्छी लग रही है।”, मैने कहा।


कमरे मे मै एक आईने के सामने खड़े होकर मम्मी का इंतज़ार कर रहा था। तभी मम्मी आई और  हाथ मे कुछ कपड़े पकड़ाते हुए बोली, “जा ये पेटीकोट और ब्रा पहनकर आजा। मैं यही तेरा इंतज़ार करती हूँ।”

मैने अपनी मम्मी की ओर जरा शंका से देखा।  “अरे देख क्या रहा है। जल्दी बदलकर आ न!”

मै चुपचाप बाथरूम मे आ गया। “आखिर मम्मी को ये नई ब्रा देने की क्या जरूरत पड़ गई? मेरे पास तो पहले ही कई ब्रा है”, मै मन ही मन सोचते हुए अपने कपड़े उतारने लगा। स्कूल शर्ट के बाद अपनी स्पोर्ट्स ब्रा उतारकर उसे बेहद चैन महसूस हुआ। 


मैने मम्मी की दी हुई लाल रंग की ब्रा की ओर देखा। थोड़ी प्लेन सी थी मगर बेहद खूबसूरत थी। जैसी ब्रा मेरे पास पहले से थी, उनमे जो फूल पत्ती के प्रिन्ट थे मुझे वो पसंद नहीं आते थे। मगर ये ब्रा कुछ अलग थी। फेमिनीन होते हुए भी थोड़ी न्यूट्रल डिजाइन थी उसकी और उसे बेहद अच्छी लग रही थी। फिर भी कुछ तो अलग था उस ब्रा में जो मै समझ नहीं पा रहा था।


मैने स्ट्रेप्स मे अपने हाथ डाले और जब पीछे हुक लगाने की कोशिश किया तब महसूस हुआ कि यह ब्रा अंदर से कुछ सॉफ्ट थी जिसकी वजह से उसके निप्पल को कुछ आराम लग रहा था। “चलो कम्फ्टबल तो है यह ब्रा।”, मैने मन ही मन सोचा और फिर कंधे पर ब्रा के स्ट्रेप्स की लंबाई एडजस्ट करने लगा। इतने दिनों मे वह ये तो सिख चुका था कि नई ब्रा के साथ लंबाई एडजस्ट करनी पड़ती है। लड़कों की बनियान की तरह नहीं कि बस सीधे पहन लो बिना कुछ सोचे समझे। लड़कियों के हर कपड़े मे कुछ न कुछ ध्यान देना पड़ता है।


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बाथरूम मे ही खड़े खड़े मैने आईने मे खुद को देखा तो  लगा कि मेरे स्तन कुछ ज्यादा उठे और उभरे हुए लग रहे है। और दोनों स्तनों के बीच गहराई भी ज्यादा दिख रही थी। ब्रा के अंदर जो सॉफ्ट लेयर थी उसकी वजह से उसके स्तन और बड़े भी लग रहे थे। 


मुझे लगा कि शायद मैने स्ट्रेप्स को कुछ ज्यादा छोटा कर दिया है तभी मेरे स्तन ज्यादा उभरे हुए और बड़े लग रहे है। इसलिए मैने उन्हे फिर से एडजस्ट करने की कोशिश किया पर फिर भी स्तनों के उभार पर कुछ ज्यादा फर्क न पड़ा। “अब तो मम्मी से ही हेल्प लेनी पड़ेगी”, मैने सोचा। 



और फिर मैने अपनी पोनीटैल को खोल और अपने लंबे बालों को सामने लाकर अपने स्तनों के बीच की गहराई को उनसे ढंकने की कोशिश करने लगा। उस वक्त लाल रंग की ब्रा मेरे स्किन के रंग पर अच्छी तरह से निखर रही थी और मै अपने बालों को सहेजते हुए बेहद खूबसूरत लग रहा था।



[Image: IMG-20220820-205700.jpg]



उसके बाद मैने अपनी यूनिफॉर्म की पेंट उतारी और पेटीकोट पहनने लगा। पेटीकोट का आकार कुछ ऐसा था कि  कूल्हों पर बिल्कुल फिट आ रहा था। मैने पेटीकोट का नाड़ा कुछ वैसे ही बांधा जैसे अक्सर  अपनी सलवार का बांधता था। अब बाथरूम से बाहर निकलने से पहले उसने एक बार फिर से खुद को एक साइड पलटकर देखा तब उसे एहसास हुआ कि उसके स्तन आज लगभग मम्मी के स्तनों के बराबर लग रहे है। 

मम्मी को याद करते ही उसके चेहरे पर खुशी आ गई। साथ ही अपने स्तनों के बड़े आकार को देखकर उसे एक संकोच भी हो रहा था। किसी तरह संकोच करते हुए वो अपने सीने को अपने हाथों और बालों से ढँकते हुए बाथरूम से बाहर आया।



“क्या हुआ? तेरा चेहरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है?”, मम्मी ने पूछा।

“मम्मी .. वो बात ये है ..”, मै नजरे झुकाकर कहने मे झिझक महसूस कर रहा था। “हाँ, बोल न”, मम्मी बोली।

“मम्मी, बात ये है कि मुझे लगता है कि इस ब्रा मे कुछ प्रॉब्लेम है। इसे पहनकर मेरे साइज़ मे कुछ फर्क आ गया है।”, किसी तरह से शरमाते हुए मैने बात कह ही दी।


मम्मी ने मुसकुराते हुए मेरा  हाथ हटाया और बोली,”पगली, सब ठीक तो लग रहा है। ये पुश अप ब्रा है। इसका तो काम ही है कि स्तनों को थोड़ा लिफ्ट दे।”

“मम्मी!”, मै शरमाते हुए मम्मी को रोकने की कोशिश करने लगा।

“चल अब ज्यादा शर्मा मत। उभरे हुए शेप के साथ साड़ी तुझ पर और निखर कर आएगी। ले अब ये ब्लॉउज पहन ले।”

“मम्मी! ये कैसा ब्लॉउज़ है?”, मैने जैसे ही ब्लॉउज़ देखा उसके तो जैसे होश ही उड़ गए।
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#5
क्यों? क्या परेशानी है इसमे?”

मम्मी.. तुम देख रही हो न! इसकी पीठ कितनी गहरी है। ऐसे ब्लॉउज़ को पहनने से अच्छा तो मैं ब्रा के साथ ही साड़ी पहन लेती हूँ।”, मैने कहा।

“छी, कैसी बातें करती है? हाँ ये ब्लॉउज़ थोड़ा मॉडर्न है। मैंने सोचा कि कम से कम एक ब्लॉउज़ तो थोड़ा फैशनेबल सिलूँ। मुझे क्या पता था कि तू वही साड़ी चुनेगी जिसके साथ का मैंने ये ब्लॉउज़ सिया था।”

“तो तभी तुम्हारे चेहरे पर वो खुशी थी। हाँ? मैं तभी जान गई थी कि जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है।”, मैने कहा, “मैं नहीं पहनूँगी ये ब्लॉउज़। मैं कोई दूसरी साड़ी पहन लूँगी।”


“बेटा तू ज्यादा ईमोशनल ड्रामा मत कर हाँ। जैसा बोल रही हूँ, मेरी बात मान ले। देखना अच्छी लगेगी तू इसमे।”, मम्मी हार नहीं मानने वाली थी।

“ठीक है। दो मुझे ब्लॉउज़।”, मम्मी के हाथ से ब्लॉउज़ लिया और खड़े होकर उसे पहनने लगा। “दुनिया मे शायद मैं अकेली हूँ जिसकी मम्मी उससे एक्सपोस करा रही है।”

बेटा यदि तुझे ड्रामा करना आता है तो मैं भी तेरी मम्मी हूँ। अब नखरे करना बंद कर।”

“ठीक है ठीक है।”, मैने ब्लॉउज़ के हुक लगाते हुए कहा। जब मम्मी ने इसके पहले कल उसे ब्लॉउज़ ट्राई कराया था तो उसमे बाँहें थी और थोड़ी ढीली भी थी। इस ब्लॉउज़ मे तो स्लीव भी नहीं थी और ऊपर से उसके स्तनों पर बेहद टाइट भी लग रहा था। टाइट न सही पर बिल्कुल चुस्त फिट आ रहा था। ये सब मेरी पुशअप ब्रा का कमाल था।


बेटा। सच कह रही हूँ। तू तो अभी से बहुत सुंदर लग रही है। बिल्कुल जैसे मैंने सोचा था। चल अब जरा इधर आ, मैं तुझे साड़ी पहना दूँ”

मम्मी कि बात सुन मै शर्मा गया या यूं कहे कि मै शर्मा गई। ब्रा, पेटीकोट और अब ब्लॉउज़ पहनकर अब मै शायद मन से भी लड़की बनने लगा था।

मम्मी ने मेरी चुनी हुई साड़ी को खोला तो मम्मी उसकी खूबसूरती को देखते ही रह गई। मैने इस साड़ी को पहले इस तरह से देखा नहीं था। मम्मी के पास आकर मैने साड़ी के कपड़े को छूकर देखा तो उसने महसूस किया कि ऐसा कपड़ा आजके पहले उसने कभी नहीं पहना था। कुछ तो खास बात थी उस साड़ी के स्पर्श मे। 


और फिर मम्मी ने साड़ी का एक छोर लेकर मेरे सामने ही घुटनों के बल खड़ी हो गई, अब मुझे साड़ी जो पहनानी थी। पहली साड़ी पहनने का पल जितना खूबसूरत एक बेटी के लिए होता है उतना ही खूबसूरत ये उसकी मम्मी के लिए भी होता है। 


मम्मी ने साड़ी का एक छोर पकड़ और मेरे की दाई ओर पेटीकोट के अंदर उसका एक हिस्सा डालकर वो मेरी कमर पर लपेटने लगी। धीरे धीरे अपनी उंगलियों से मेरी कमर मे साड़ी को पेटीकोट के अंदर डालती हुई मम्मी साड़ी को ऐसे करीने से लपेट रही थी कि साड़ी मे एक भी सिलवट न पड़े।


 साड़ी का निचला हिस्सा मेरे पैरों को छु रहा था। अपनी मम्मी को इतनी गंभीरता के साथ साड़ी पहनाते हुए देखकर मेरा दिल बहुत खुश हो रहा था। और ज्यों ज्यों साड़ी मेरे तन पर लिपटती जाती, मुझे एक कोमलता का एहसास होता।

 मम्मी ने अब साड़ी को मेरे कूल्हों पर लपेटकर अपने हाथों से उसकी सिलवटे दूर कर दी थी। यूं तो साड़ी हल्की थी पर फिर भी उसका भार अब मै महसूस कर रही थी। कितना अच्छा लग रहा था मुझे। अपने अंदर होने वाली खुशी को मै खुद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर एक कपड़े को पहनकर ऐसी खुशी क्यों महसूस हो रही है? शायद मै समझ रहा था कि साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है बल्कि नारीत्व का एक हिस्सा है जो उसके अंदर की नारी को जीवंत स्वरूप दे रहा था।


ब्लॉउज़ और साड़ी के बीच मेरी नाभि और कमर की खूबसूरती कई गुना बढ़ा चुकी थी। नाभि भी भला खूबसूरत लग सकती है? मैने तो सोचा तक नहीं था। पर आज जैसे मेरी नाभि दिख रही थी, उसकी खूबसूरती देखने लायक थी।


मम्मी ने साड़ी को लपेटते हुए मेरी नाभि के नीचे तक लाकर अब उठ खड़ी हुई। उन्होंने अब साड़ी के दूसरे लंबे छोर को पकड़ और उसमे कुछ मोड़ बनाती हुई एक बार फिर मेरी कमर से लपेटते हुए सामने लाकर ब्लॉउज़ पर से ले जाते हुए करीने से मेरे कंधे पर रखा। अब साड़ी का वो छोर मेरे कंधे से होते हुए पीछे से  घुटनों तक लटक रहा था। मम्मी ने थोड़ा पीछे होकर उस छोर की लंबाई को देखा। लंबाई से संतुष्ट होकर उन्होंने मेरी नाभि के नीचे फंसी हुई साड़ी को निकाल अपनी उंगलियों से वहाँ प्लेट बनाने लगी।


बेटा तुझे साड़ी पहनना सीखने मे थोड़ा समय लगेगा। पर जब तू सीख लेगी न, देखना तुझे बहुत अच्छा लगेगा। पर आज तू पहली बार साड़ी पहन रही है इसलिए मैं तुझे सीखा नहीं रही हूँ। पर फिर भी कुछ बातों का ध्यान रखना। साड़ी मे यहाँ कमर के नीचे यूं कम से कम ५ प्लेट बननी चाहिए। और ये देख रही है .. ? ये कंधे से लटका हुआ खुला छोर? इसको पल्लू कहते है और ये कम से कम घुटनों तक आना चाहिए।”

“मम्मी, मैं जानती हूँ पल्लू क्या होता है!”, मै हँसते हुए बोला।


फिर मम्मी ने कंधे पर रखे हुए पल्लू को पकड़ा और फिर उसे बड़े ही नजाकत से बराबर हिस्सों मे मोड़ने लगी। और फिर अपनी उंगलियों से उस पल्लू की लंबाई को बिल्कुल सीध मे खींचकर उन्होंने मेरे कंधे पर एक बार फिर रखा और फिर थोड़ा खींचकर उसकी लंबाई सही की। 


मैने पहली बार कुछ इस तरह पहना था जिसमे मेरी कमर खुली रहे।  साड़ी मेरे कंधों पर से होते हुए  नाभि के बिल्कुल करीब से जाती हुई बेहद सुंदर लग रही थी। और दूसरा हिस्सा मेरे स्तनों पर चढ़कर  ब्लॉउज़ को ढँक रहा था। साड़ी की खूबसूरती वाकई मे उसके पहनने के तरीके मे भी होती है। पुशअप ब्रा की वजह से मेरे  स्तन बड़े लग रहे थे और बड़े स्तनों पर  साड़ी और भी खिल रही थी। 


[Image: d7c5448d19c0058d47ec721f788393bb-indian-...gender.jpg]




माँ के चेहरे के भाव देखकर मुझे समझ आ गया था कि अब साड़ी पहनना हो चुका है। 


“अरे, अभी कहाँ? अभी तो तुझे गहने पहनाना है।”, मम्मी बोली। 

“हाँ ” फिर मम्मी २ कंगन दिए और कहा, “अच्छा अब जरा इन्हे पहन ले।”


 “रुक जरा। पहले ये मॉइस्चराइज़र हाथों पे लगा ले फिर कंगन आसानी से पहन सकेगी तू” और मम्मी ने  कलाई और हाथों पर मॉइस्चराइज़र लगाया और फिर मेरे हाथों को अपने हाथ मे लेकर उसे कुछ इस तरह से मोड़ा कि कंगन बेहद आसानी से मेरी कलाई मे चले गए। अपने दोनों हाथों मे कंगन को देखकर मेरी खुशी और बढ़ गई और चेहरे पर मुस्कान आ गई। 


“अब झुमके पहनने की बारी”, मम्मी चहकते हुए बोली। “पर मम्मी मेरे कानों मे तो छेद नहीं है।”, मैने कहा।

“तेरे कानों मे एक दिन छेद भी कर देंगे पर अभी तो मैंने ये खास झुमके लिए है जिसके लिए तुझे कानों मे छेद करने की जरूरत नहीं है।”, मम्मी ने कहा और मेरे कानों पर उन झुमकों को प्रेस करके पहना दिए। “मम्मी झुमकों को पहनकर मेरे कान भारी लग रहे है।”, मैने कहा। “बस कुछ समय की बात है, तुझे उनकी भी आदत हो जाएगी।”, मम्मी ने मेरे चेहरे को प्यार से अपने कोमल हाथों से छूकर कहा।

“मम्मी अब तो मैं तैयार हो गई हूँ न? अब मैं खुद को देख आऊँ?”, 

मम्मी मुस्कुराई और उस कमरे मे बिस्तर के एक किनारे बैठकर बोली, “बड़ी जल्दी है तुझे। मुझे एक बार तुझे पूरी तरह सजा तो लेने दे।”, मम्मी हंस पड़ी।


सुन .. तू यहाँ बिस्तर किनारे नीचे बैठ। मैं पहले तेरे बाल संवार दूँ। थोड़े बिखरे लग रहे है।”, मम्मी बोली।


मुझे साड़ी पहनकर बहुत खुशी हो रही थी। साड़ी संभालना या पहनना भले  मुश्किल हो पर उसकी खूबसूरती और उसके वजह से होने वाली खुशी की वजह मै जानता था । इतना प्यारा अनुभव तो मुझे कभी सलवार पहनकर नहीं हुआ था। क्योंकि मै अक्सर सलवार बिना दुपट्टे के पहनता था शायद इसलिए वो अनुभव नहीं कर सका था जो दुपट्टा मुझे करा सकता था। और फिर सलवार मे मेरी कमर यूं इस तरह खुली न होती थी और न ही मेरी पीठ इस तरह कभी खुली रहती थी। मेरे सलवार सचमुच बोरिंग थे।


मम्मी ने मेरे लंबे बालों को अपने हाथों मे लिया और फिर उन्हे कंघी से सँवारने लगी। बेटा, तेरे बाल सचमुच घने लंबे और सुंदर है। इतने घने बाल तो कभी मेरे भी न थे। इनको तू हमेशा संभालकर रखना और इन्हे कभी छोटा मत कराना। इतने लंबे बालों के साथ तो तेरे बालों मे कई तरह की स्टाइल भी की जा सकती है। अच्छा अब ये बात कि तुझे कैसे बाल रखना है?”


मैने कुछ देर सोचा पर मुझे हेयरस्टाइल का कोई अंदाज नहीं था। मै तो बस पोनीटेल और चोटी बनाना ही जानता था। “मम्मी तुम उन्हे ने खुला रख दो।”, मम्मी ने कुछ देर मेरे बालों को संवार और फिर उन लंबे बालों को सीधाकर मेरी पीठ पर छोड़ दिया। मेरे रेशमी बालों का स्पर्श मुझ को मेरी नंगी खुली पीठ पर महसूस हुआ। आज तो मुझे सब कुछ अच्छा लग रहा था।
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#6
और फिर मम्मी ने मेरा चेहरा और अपनी ओर घुमाया और फिर अपने हाथों मे एक लिप्स्टिक लेकर जैसे ही मेरी ओर आगे बढ़ाया तो मै चीख पड़ा, “मम्मी लिप्स्टिक! नहीं।”  “ बेटा, ऐसे नखरे भी न कर। देख लाल रंग की लिप्स्टिक है। तेरी साड़ी के ब्लॉउज़ के रंग से मैच कर रही है। मेरी बात मान, अच्छी लगेगी तुझ पर।”


और मम्मी ने बिना मेरी सुने  लिप्स्टिक लगाने लगी। मेरे होंठों पर लिप्स्टिक का असर किसी जादू से कम नहीं था। लिप्स्टिक लगाने के बाद जब मैने अपनी दोनों होंठों को आपस मे छुआ तो लिप्स्टिक महसूस हुई। मुझे सच मे अच्छा लगा। मै खुद को अब तक देख नहीं सकता था पर अब खुद को लिप्स्टिक के साथ देखने को आतूर था।

फिर अंत मे मम्मी ने अपने हाथ मे एक बिंदी के पैकेट से एक छोटी सी लाल रंग की गोल बिंदी निकाली और मेरे माथे पर लगाकर मेरे चेहरे को छूकर बोली, “अब तू तैयार हो गई है। जा खुदको आईने में देखकर आजा”

मम्मी के ये शब्द सुनते ही मेरे चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। मै तुरंत उठ खड़ा हुआ और जल्दी से बाथरूम के आईने की ओर बेसब्री से जाने के लिए उसने पहला कदम बढ़ाया। पर हाय , यह क्या? मेरा पैर  साड़ी पर पड़ गया और लड़खड़ा गया।


मम्मी मुझे लड़खड़ाते देखकर हंस पड़ी पर फिर जल्दी ही उससे बड़े प्यार से समझाते हुए बोली, “बेटा, साड़ी पहनकर ऐसे जल्दबाजी नहीं करते। जरा संभलकर। साड़ी को संभालकर चलोगी तो तुम्हारी शोभा और बढ़ेगी। पहले अपनी साड़ी को धीमे से अपने एक हाथ की उंगलियों से उठाओ” मैने मम्मी के कहे अनुसार वैसे ही किया।

“.. और अब दूसरे हाथ से पल्लू को पकड़कर धीरे धीरे चलकर बाथरूम जाओ”, मम्मी ने आगे कहा।

मम्मी की बात मानते हुए मै धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा।  दिल की धड़कने तेज हो गई थी। और बेसब्री से आगे बढ़ते हुए जब  बाथरूम पहुंचा तो आईने के सामने  एक बेहद खूबसूरत औरत को देखा जो खुद को देखकर लजा रही थी। लिप्स्टिक से सजे होंठ के साथ उसकी मुस्कान बेहद मोहक थी। ब्लॉउज़ के ऊपर प्लेट की हुई साड़ी उसका आँचल बेहद मोहक था जिस पर फूलों के प्रिन्ट उस पर बेहद सुंदर लग रहे थे। कमर के नीचे भी उसकी साड़ी की प्लेट किसी फूल की भांति खिल रही थी। उसके हाथ मे लंबा पल्लू उसके कंधे से झूलता हुआ बेहद सुंदर लग रहा था। आज साड़ी ने मुझको वो महसूस कराया था जो मै आजतक नहीं कर पाया था। 


खुदको आईने मे इतना खूबसूरत देखकर मै जैसे खुद से ही शर्मा गया था।  अपने एक हाथ की उंगलियों से अपने चेहरे पर आते हुए बालों को एक ओर करते हुए अपने कान के पीछे किया और कानों मे सजे खूबसूरत झुमके देख उन्हे निहारने लगा। और फिर अपने आँचल को अपने स्तनों के ऊपर अपनी उंगलियों से छूते हुए  अपने नेकलेस को छूकर निहारा और आईने मे देख खुद से कहा, “मैं मानसी हूँ। और मैं खूबसूरत हूँ।”

आज साड़ी ने मुझे महसूस करा ही दिया था कि मै भी खूबसूरत है।
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#7
----------_--------पापा------------------



तभी फोन बजने लगा मम्मी ने उठाया। 
कब आ रहे हो तुम? तुम्हारा कबसे इंतज़ार कर रही हूँ मैं।”

“तुम तो जानती ही हो मेरा काम। अभी भी ३ दिन और बचे है। मैं भी तो घर आने को उतना ही बेताब हूँ तभी तो इतनी रात को जागकर तुम्हें फोन कर रहा हूँ।”, पापा ने कहा।

“अब इतना लंबा इंतज़ार नहीं किया जाता मुझसे । अकेली पड़ चुकी हूँ मैं। अब थक भी गई हूँ। , मम्मी बोली।

“बस कुछ दिन और संभाल लो । तब हमारे पास इतने पैसे होंगे कि बेटे के इलाज मे जितनी भी जरूरत होगी हम उसे पूरा कर सकेंगे।”, पापा ने कहा। 

“बेटा कैसा है?”, पापा ने मम्मी से पूछा।

“अच्छा है।”


“मनिशा वो खुश तो है न?”, एक चिंतित पिता ने पूछा।

“हाँ। बहुत खुश है।”, मम्मी ने कहा और फिर थोड़ा रुककर बोली, “पता है आज मैंने उसे पहली बार साड़ी पहनाई है। बहुत खूबसूरत लग रहा है साड़ी में। अभी अंदर कमरे मे साड़ी पहनकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा है।”


साड़ी! हमारा बेटा इतना बड़ा हो गया है।”, पापा की आवाज मे एक अजीब सा दर्द था।  जो अपने बेटे की स्थिति जानता थे। अपने बेटे को धीरे धीरे यूं बेटी बनते देख कहीं न कहीं उसे दुख भी होता था। मम्मी को डर लगता था कि कहीं पापा मुझ को इस तरह देखकर अंदर से टूट न जाए।


मनिशा। मैं बेटे को देख सकता हूँ?”, पापा ने मम्मी से पूछा।

, तुम उसे इस तरह देख सकोगे? तुम क्यों खुद को दर्द देना चाहते हो राजीव?”, मम्मी ने कहा।

मनिशा, यदि मैं अपने बेटे को इस वक्त सहारा न दे सका तो मैं आगे कैसे उसका साथ पाऊँगा? हम दोनों मे दूरी न बढ़ जाएगी। मैंने इस बारे मे बहुत सोचा है और मैंने तय किया है कि उसकी इस यात्रा मे मैं उसके साथ रहूँगा और उसे इस तरह से झूठलाकर नहीं जियूँगा।”



“ठीक है। मैं अभी अंदर जाकर बात कराती हूँ। शायद अब तक वाईफाई भी चालू हो गया होगा।”,मम्मी बोली और फोन लेकर अंदर आ गई।

मम्मी की बात सुनते ही मेरे चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। मै अपने पापा से वो कैसे नजरे मिलाएगा इस वक्त? वो भी जब उसने साड़ी पहना हुआ है और ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से लड़की लग रहा है? अपने पापा के लिए तो वो बेटा ही था। अब कैसे बात करेगा वो पापा से? अचानक ही उसे खुद पर शर्म महसूस होने लगी। जिस साड़ी से वो बहुत खुश था वही साड़ी उसे अब एक जंजाल लगने लगी।



मम्मी जो ही मेरे हाथ मे फोन पकड़ाया, मेरी नजरे झुक गई। अपने पिता से ये साड़ी ये बिंदी ये ब्लॉउज़ और ये लिप्स्टिक अब कैसे छिपाता मै। और नजरे झुकाए हुए ही मैने सिर्फ इतना कहा, “पापा” 

 
“बेटा”, पापा की आवाज भी अपने बेटे को देख लड़खड़ा गई।


मैने सुबकते हुए ही कहा, “आई ऐम सॉरी पापा”

“अरे सॉरी किस लिए बेटा?”

“आपको मुझे इस तरह देखना जो पड़ रहा है। पापा मैं आगे से ये सब कुछ नहीं करूंगा। मैं आपका बेटा ही रहूँगा।”, मै अब भी सुबक रहा था।

“बेटा जरा मेरी ओर एक बार देखना।”

पापा के कहने पर आखिर मैने विडिओ की ओर देखा।

“बेटा पता है जब तुम्हारा जनम होने वाला था। तब तो हमको पता भी नहीं था कि हमारा बेटा पैदा होने वाला है या बेटी। पर मैंने तभी तुम्हारी मम्मी से कहा था कि हमारी जो भी संतान होगी मैं उसे हमेशा प्यार करूंगा। और बेटा, अब जो भी हो रहा है वो तुम्हारे या हमारे वश मे तो है नहीं। तुम दुखी क्यों होते हो? बस इतना याद रखना कि तुम्हारे पापा तुमसे हमेशा प्यार करते है। और जो भी होगा, तुम रहोगे तो हमारे बेटे ही न? अब रोना बंद करो और जरा मुस्कुराओ।”, पापा ने कहा।


और मै किसी तरह अपने आँसू पोंछ कर मुस्कुराने की कोशिश करने लगा।


पापा से बात करके मेरे दिल का बोझ भी उतर गया था।

“ऐसे क्या देख रही हो, मम्मी?”, मैने अपनी साड़ी मे लजाते हुए मम्मी से पूछा। मेरी नजरे कभी मम्मी के चेहरे को देखती तो कभी अपने हाथ मे पकड़े हुए पल्लू को जिसपर के फूलों के प्रिन्ट उसे लुभा रहे थे।

“कुछ नहीं, बस अपनी खूबसूरत बेटी को निहार रही हूँ। किसी की नजर न लगे मेरी बेटी को।”, मम्मी खिलखिलाकर बोली।

मम्मी तुम भी न कभी कभी इतनी ओल्ड फ़ैशनड हो जाती हो!”, 

“ठीक है। तू कहती है तो मैं थोड़ी मॉडर्न हो जाती हूँ। अब जरा इधर देख।”, मम्मी ने कहा और अपने हाथ मे पकड़े हुए फोन मे कैमरा ऑन कर मेरी फोटो खींचने की कोशिश करने लगी।

“मम्मी! ये क्या कर रही हो?”, मैने मम्मी के कैमरा के आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“अरे फ़ोटो ही तो खींच रही हूँ। तू जरा एक स्माइल तो करना।”, मम्मी बोली।


मुझे पोज करना नहीं आता मम्मी”, मैने कहा।

“अरे इतना भी मुश्किल नहीं है। तू एक बार कोशिश तो कर।”, मम्मी बोली।

 कहा, “रुक मैं बताती हूँ तुझे।”

“सबसे पहले तो अपने घुटनों को पास लेकर आ। लड़कियां घुटनों को यूं दूर दूर नहीं रखती।”, मम्मी ने कहा।

मैने भी कहे अनुसार अपने दोनों घुटनों को बेहद पास ले आया। इतने पास कि  जांघें आपस मे स्पर्श करने लगी। इतने पास कि पेन्टी के अंदर मेरा लिंग कुछ दब सा गया था। जांघों का स्पर्श उसके लिए एक नया अनुभव था।


 अक्सर मै सलवार या पेंट पहना होता था इसलिए हमेशा मेरी जांघों के बीच कोई कपड़ा हुआ करता था। पर आज  पेन्टी से नीचे उसके पैर पूरी तरह से पेटीकोट के अंदर खुले हुए थे। उस स्पर्श से मुझे लगा जैसे मै अपने ही शरीर से कितना अनजान था। अपनी ही चिकनी जांघें उसे छूआती हुई अच्छी लग रही थी। फिर मम्मी ने पास आकर  कमर की नीचे की प्लेटस को सुंदर तरीके से सजाया। 

“मम्मी इस पल्लू को कहाँ रखूँ?”, मुझको अब भी समझ नहीं आ रहा था कि अपने पल्लू का क्या करे।


इसे यूं सामने लाकर अपने हाथ से पकड़ लेना।”, मम्मी ने मेरी बांह के नीचे से पल्लू को सामने लाकर मेरी गोद मे रखा। अब पल्लू और साड़ी दोनों ही खूबसूरत लग रही थी।  पोज लगभग तैयार था।

बेटा क्यों न हम छत पर चलकर फोटो खींचे? वहाँ रोशनी अच्छी आएगी।”, मम्मी ने कहा।

“नहीं मम्मी वहाँ किसी ने मुझे देख लिया तो क्या करूंगी मैं?”,  पर मम्मी आज ऐसे कहाँ मानने वाली थी।

“तू चिंता क्यों करती है? कोई नहीं देखेगा तुझे। छत पर एक ओर जहां दीवार है न, हम वहाँ जाकर फोटो खींचेंगे।”, मम्मी ने अपनी बात से मुझे मानने के लिए मजबूर कर ही दिया।

 सीढ़ी पर पहुंचते ही मम्मी ने मुझे रोक और बोली, “देख सीढ़ी पर चढ़ते वक्त साड़ी पर थोड़ा ध्यान देना होता है। यदि ध्यान नहीं दोगी तो खुद ही अपनी साड़ी पर पैर रख दोगी और फिर या तो तुम गिर पड़ोगी या तुम्हारी साड़ी खुल जाएगी। इसलिए जरा ध्यान से मेरी ओर देखना कि कैसे चढ़ते है साड़ी पहन कर।”, मम्मी ने कहा। 


“सबसे पहले तो अपनी उंगलियों से यूं अपनी साड़ी की प्लेटस को ऐसे पकड़ते है और फिर उसे यूं इतना उठाओ कि साड़ी पर पैर पड़ने की संभावना न रहे।”, और फिर माँ बेटी सीढ़ी पर चढ़ने लगी।


 मैने देखा कि मेरा लंबा पल्लू सीढ़ियों से लग रहा है तो मैने अपनी मम्मी को चलते देखा कि वो कैसे अपने पल्लू को मैनेज कर रही है। मम्मी को देखकर मैने अपने दूसरे हाथ से अपने पल्लू को पीछे कमर और कूल्हों से होते हुए सामने अपनी नाभि के पास लाया और अपने हाथ मे उसे पकड़कर चढ़ने लगी।  एक औरत की भांति चलने मे मज़ा भी आ रहा था।


मेरी साड़ी के अंदर का पेटीकोट  कदमों को बड़े ही प्यार से रोकता भी था कि वो लड़कों की तरह लंबे लंबे कदम न ले सके सीढ़ी चढ़ते वक्त मेरी साड़ी  कूल्हों पर रगड़ खाती और  दिल मे कुछ गुदगुदी सी कर देती।  साड़ी तो साड़ी आज पुशअप ब्रा की वजह से मेरे स्तन भी बड़े लग रहे थे और जो रहरहकर मेरी बाँहों से रगड़ खाते और उसके स्त्रीत्व की भावना को और मजबूत करते। स्लीवलेस ब्लॉउज़ मे बाँहों मे ब्लॉउज़ की कटोरी मे मेरे स्तन छूआना मुझे बहुत लुभा रहा था। और फिर सीढ़ी चढ़ते वक्त जो उन्मे उछाल  महसूस करती तो अंदर ही अंदर खुद ही शर्मा जाती।


 दरवाजा खोलने के पहले मेरे अंदर एक डर आ गया था। यदि किसी ने उसे देख लिया तो  निश्चित मज़ाक उड़ाएगा। मम्मी ने मेरे चेहरे पर वो डर देख लिया था।

“अरे इतना घबरा क्यों रही है तू? मैं हूँ न तेरे साथ। मैं पहले देखकर आती हूँ कि छत पर हमें कोई देख तो नहीं सकेगा।”, मम्मी ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकालने लगी।  और अपनी दिशा बदलकर अब मेरे कंधे पर  साड़ी के साथ कुछ करने लगी।

“क्या कर रही हो मम्मी?”, मैने नर्वस होते हुए कहा।


“बस ये पिन खोल रही हूँ ताकि तेरा पल्लू खुला रहे मेरी साड़ी की तरह।”, मम्मी ने कहा।





“देख तू यूं ही चिंता कर रही थी। तुझे तो साड़ी संभालना अच्छे से आता है।”, मम्मी ने कहा और दरवाजे से छत पर चली गई। छत पर मम्मी ने इधर उधर देखा और जब सब कुछ साफ दिखाई दिया तो मम्मी ने संजु को छत पर आने का इशारा किया।




मम्मी की बात सुनकर मै मुस्कुरा दिया। 


 ठंडी ठंडी हवा अब मेरे ब्लॉउज़ से होकर  अंदर तक जा रही थी। अब तो मेरे उरोज़ों मे भी हल्की गुलाबी ठंड से रोंगटे खड़े हो रहे थे और मेरे निप्पल हल्के से फूलकर कड़े हो रहे थे। यह सब अनुभव मुझे ब्रा के अंदर  हो रहा था 

नोट: मेरी छत पर खींची हुई सभी तस्वीरें


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#8
मेरी कहानी अब मेरी बेटी मानसी की जुबानी - 

मेरे बेटे मनीष का मानसी बनने का सफर

 -------------- शादी में मिलन -----------


शाम हो चुकी थी मै अपनी मम्मी के साथ उनकी सहेली के बेटी की शादी में चल दिया। मम्मी मुझे रास्ते भर कहती रही बेटा अब तुझे लड़की बनकर ही सबसे मिलना है। 


लड़की की शादी वाले घर में न जाने कितने काम होते है. और ऐसे ही एक घर में किसी अच्छी औरत की तरह मम्मी भी सभी कामो में हाथ बताने में व्यस्त थी. आज कुछ घंटो में संगीत शुरू होने के पहले कुछ रस्में हो रही थी जिसमे मैं दुल्हन की मदद कर रही थी जो की मेरी हमउम्र थी. 

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यकीन ही नहीं होता था कि  मैं लीला को जानती भी नहीं थी और आज मैं उसकी शादी में अच्छी सहेली बनकर वहां थी. तभी दुल्हन की माँ मेरे पास आई और बोली, “मानसी, ३ घंटे में संगीत शुरू हो जाएगा. जा तू भी  जाकर साड़ी बदलकर तैयार हो जा. और सीधे संगीत वाले हॉल में आ जाना. आज बहुत मस्ती करनी है तुम लड़कियों को! खूब नाचना गाना है.. तू अच्छा सा लहंगा या साड़ी पहन कर आना. हाँ.”


“जी चाची. हाँ मुझे भी तैयार होने में समय लगेगा.”, मैं अपने बिखर चुके बालों को कानो के पीछे फंसती हुई अपनी साड़ी को समेटते हुए बोली. अब तो अपने हाथों से साड़ी के आँचल को बार बार अपने ब्लाउज के ऊपर ठीक करना जैसे मेरी आदत हो गयी है.

अपने कमरे में आकर हाथ-मुंह अच्छी तरह से धोकर अब मैं तैयार होने लगी थी. मैंने पहले से ही संगीत में पहनने के लिए एक हलकी ऑरेंज रंग की सैटिन साड़ी चूस करके रखी थी. वैसे तो दिन में भी मैंने नीली रंग की सैटिन साड़ी पहनी थी, पर मेरा सैटिन से प्यार ही इतना है कि दोबारा पहनने से खुद को रोक नहीं सकी मैं. वैसे भी आज संगीत में डांस करते वक़्त सैटिन या फिर शिफ्फौन की साड़ी ही बेस्ट होती… लहंगा तो मैं शादी के वक़्त पहनने वाली थी तो आज साड़ी ही ठीक रहेगी. मैंने सोचा… और अपनी पहनी हुई साड़ी उतारकर एक ओर  करके रखने लगी. 


उसके बाद अपना ब्लाउज उतारने के लिए हुक खोलने लगी. सच कह रही हूँ … बूब्स के ऊपर ब्लाउज उतारते और पहनते वक़्त हुक लगाने खोलने में बड़ा मज़ा आता है. भले  ब्लाउज टाइट हो तो उसको किसी भी बूब्स पर पहनने का मज़ा ही कुछ और है. और इस साड़ी के साथ तो मेरा ब्लाउज भी डिज़ाइनर वाला है… कितनी खुश थी मैं उसको पहनते वक़्त. फिर अच्छी तरह से मेकअप करने के बाद मैंने पेटीकोट बदला और अपनी साड़ी पहननी शुरू की. सैटिन की साड़ी बदन पर चढ़ते ही मेरे जिस्म में कुछ कुछ होने लगा.


 मैं खुद को आईने में देखकर हंसती रही. आज तो पूरी रात यूँ ही खुबसूरत दिखूंगी मैं… न जाने कितने लडको की नज़रे रहेंगी मुझ पर! फिर मैंने दीपिका पदुकोने के तरह अपनी साड़ी की पतली पतली प्लेट बनाकर अपने ब्लाउज पर पिन कर दी. इस तरह से क्लीवेज और कमर दिखाती हुई पतली प्लेट के साथ साड़ी पहनना आजकल मेरी जैसी दुबली पतली और लम्बी लड़कियों में फैशन है.

२ घंटे खुद को सँवारने के बाद बार बार अपने मेकअप को ठीक करने के बाद जब मैं संतुष्ट हो गयी तो अपनी एक पर्स उठायी और उसमे अपने मेकअप का सारा सामान रख दिया. आखिर मेरी जैसी लड़की को किसी सामान्य लड़की के मुकाबले मेकअप का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है.. क्या पता कब ज़रुरत पड़ जाए. और फिर अपनी बड़ी सी पर्स को कंधे पर टांग कर देखने लगी कि वो मेरी साड़ी से मैच कर रही है या नहीं. अब मैंने हील्स पहनी और फिर एक बार अपने सुन्दर बालों को स्टाइल करके घर के निचे आ गयी.


घर के निचे से शादी के मेहमान कार से उस हॉल जा रहे थे जहाँ संगीत होना था. वो हाल घर से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर था… तो मैंने सोचा कि क्यों न पैदल ही जाया जाए. वैसे भी सैटिन साड़ी पहनकर चलने में भी कितना मज़ा आता है! पर चाची जी ने मुझे देखा तो उन्होंने एक लड़के को मेरे साथ भेज दिया ताकि मैं अकेली खुबसूरत सजी संवारी लड़की सड़क पर न चलू. “हाय… अब तो सड़क पर मुझे कोई छेड़ भी नहीं पायेगा.”, मैं थोड़ी सी उदास हो गयी. पर जल्दी ही मैं उस चम्पू लड़के के साथ हॉल पहुच गयी. वहां पर लीला और उसकी सहेलियां बहने हॉल में जाने को तैयार थी. कितनी खुबसूरत लग रही थी सभी अपनी रंग-बिरंगी साड़ियों और लहंगे में.. और आज उनकी तरह मैं भी उनके साथ इसमें शामिल हो रही थी. मेरा तो सपना सच हो रहा था.

मुझे आते देख लीला तुरंत मेरे पास आई और मेरा हाथ खिंच कर मुझे एक और हमारी उम्र की लड़की से मिलवाने ले आई. थोड़ी कम हाइट की, गोल गोल चेहरे वाली, भरी-पूरी बदन वाली ये लड़की ऐसी लगती थी जैसे एक बच्चे की माँ हो. पर लीला ने कहा, मानसी, ये रश्मि है… मेरी चचेरी बहन सोम्या की सहेली है. ये भी तुम्हारी तरह स्कूल वाली है. वैसे तो आसपास मेरी सभी बहने तुम्हारे साथ रहेगी पर तुम दोनों अकेली न फील करो इसलिए तुम्हारा परिचय करा रही हूँ.”


रश्मि ने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी. उसके भरे-पुरे तन के अनुरूप उसने खुला पल्ला रखा हुआ था जिससे उसका पेट छिप रहा था पर क्लीवेज साफ़ दीखता था. जैसी भी हो सेक्सी तो लग रही थी रश्मि. उसको देखकर साफ़ पता चल रहा था कि उसको साड़ी पहनने की आदत नहीं है और बस स्पेशल मौके पर ही दूसरो की मदद से पहन पाती होगी. आजकल की लडकियां भी न.. समझती नहीं कि साड़ी कितनी आसानी से रोज़ पहनी जा सकती है.


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मुझे देखते ही रश्मि इतने जोर से मुस्कुराई और मुझसे ऐसे जोरो से गले लग गयी जैसे कि मुझे सालो से जानती हो. उसके और मेरे बूब्स भी उसके गले लगाने से दब गए थे. मैं तो थोड़ी आश्चर्य में थी पर औरतों की ख़ुशी के बीच मैं भी खुश थी तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

तब तक लीला अपनी बहनों और सहेलियों के साथ सीढ़ी चढ़कर ऊपर हॉल की तरफ जाने लगी. संगीत शुरू होने वाला था. उनको अपना लहंगा उठाकर जाते देखने का दृश्य बड़ा ही सुन्दर था. मैंने भी उनके पीछे बढ़ने के लिए अपनी उँगलियों से अपनी साड़ी की प्लेट पकड़ी और साड़ी को सलीके से ऊपर उठाकर सीढ़ियों पर चढ़ने को तैयार होने लगी जैसे औरतें अपनी साड़ी उठाकर चढ़ती है. पर तभी रश्मि ने जोर से अपनी कुंहनी से मेरे बूब्स पर वार किया… और मैं आश्चर्य से सिर्फ “आउच” कह सकी. और फिर उसने मेरी बांह को पकड़ कर उससे जोर से अपने बूब्स दबा दिए.. और बोली, मानसी, चलो न हम भी चलते है.”


“चल ही तो रही हूँ.”, मैंने अपने बूब्स पर हाथ रखते हुए कहा. और फिर एक बार अपनी साड़ी उठायी और पर्स संभाले चढ़ने लगी. मुझे देखकर रश्मि ने भी साड़ी उठायी और अपने खुले पल्ले से स्ट्रगल करते हुए मेरे पीछे पीछे आने लगी. पिछले दो महीनो में मैं बहुत सी लड़कियों से सहेली की तरह गले मिली हूँ… और हमारे बूब्स भी एक दुसरे को छूआते रहे है पर रश्मि ने जैसे अपने बूब्स जोरो से मेरी बांह में दबाये थे.. वैसा आजतक किसी लड़की ने मेरे साथ नहीं किया था. 


मैं यही सोच रही थी कि अपनी उँगलियों के बीच प्लेट के निचे मुझे उसके बूब्स के स्पर्श की वजह से मेरा खड़ा होता हुआ लंड महसूस हुआ. “ओहो… ये क्या हो रहा है? मेरी नाज़ुक पेंटी तो इस खड़े होते लंड को छुपा नहीं पाएगी.”, मैं मन ही मन सोचने लगी. वो तो प्लेट पकड़ कर साड़ी उठाने के बहाने से वो लोगो की नजरो से छुपा हुआ था. मैं मन ही मन अपने तने हुए लिंग की वजह से शर्म से पानी पानी हो रही थी. किस्मत से ऊपर हाल पहुचते तक वो वापस नार्मल हो गया. कहाँ घर से निकलते वक़्त मैं आज लडको के सपने देख रही थी और कहाँ एक लड़की मुझे छेड़ रही थी!


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मानसी… प्लीज़ मेरा पर्स एक बार संभालना… मैं ज़रा एक बार फेसबुक पर अपनी फोटो तो डाल लू.”, रश्मि ने कहा और धम्म से अपना पर्स मेरी गोद पर रख दिया. मेरे खड़े लंड पे!! और फिर किसी तरह अपने बिखरते गिरते खुले पल्ले को संभालती हुई किसी तरह अपने फ़ोन से फेसबुक पर कुछ कुछ मेसेज करने लगी. और कुछ देर के बाद फ़ोन को मेरी गोद में रखे हुए उसके पर्स में रखकर अपना एक हाथ मेरी गोद पर रख कर स्टेज की ओर देखने लगी जहाँ लीला की सहेलियां इस वक़्त डांस कर रही थी. “अब क्या होगा मेरा? रश्मि को मेरी कमर के निचे की असलियत पता चल गयी तो?”, मुझे चिंता होने लगी.


पर रश्मि एक कदम आगे थी. वो तो खुद ही अपने हाथ को पर्स के निचे से मेरी साड़ी की प्लेट के बीच डालती हुई मेरे खड़े लंड को महसूस कर रही थी. और उसे अपनी उँगलियों से उकसा भी रही थी. सच तो रश्मि को पता चल गया था. पर कैसे? मैं किसी तरह वहां उसे उसका पर्स पकड़ा कर अपनी पर्स और पल्लू से अपने खड़े लंड को छुपाती हुई वहां से उठना चाहती थी …


 रश्मि ने किसी से अभी कुछ कह दिया तो क्या होगा सोचकर ही मुझे डर लग रहा था. पर उसने मेरे उठते ही मेरा हाथ खिंच लिया और बोली, “मानसी, बैठो न कितना मज़ा आ रहा है यहाँ. कहाँ जाओगी तुम वैसे?” और वो मेरी ओर देखकर कुछ अलग तरह से हँसने लगी.

हाँ स्टेज पर सभी के डांस देखकर अच्छा तो लग रहा था. और फिर रश्मि ने सच जानते हुए भी मुझे आगे परेशान नहीं किया. पर फिर लीला ने सभी लड़कियों को साथ में अंत में डांस करने के लिए बुलाया.. जिसमे मैं और रश्मि भी शामिल थी. और पूरे डांस के समय रश्मि मेरे साथ साथ ही चिपकी रही. और तो और वो अपनी गांड को भी मेरे कमर के निचले हिस्से से रगड़ रगड़ कर डांस कर रही थी. सभी लोगो के बीच मेरे लंड को छुपा पाना कितना मुश्किल हो रहा था! 


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बार बार पल्लू से उसको ढंकते हुए मुझे बहुत शर्म आ रही थी. और फिर शर्म के मारे मैं किसी तरह रश्मि से बचती हुई बाथरूम की ओर भागी जहाँ मैं अपने इरेक्शन का कुछ कर सकू… न जाने कैसी ख़राब किस्मत थी मेरी. कहाँ मैं दुसरे लडको के लंड खड़े करने के सपने देख कर आई थी… और आज खुद को संभाल नहीं पा रही थी!


डांस करते वक़्त भी रश्मि मुझसे चिपक चिपक कर डांस कर रही थी … और मैं किसी तरह अपनी साड़ी की प्लेट के पीछे अपने खड़े लंड को छुपा रही थी.
बाथरूम में आकर मैं अपनी साड़ी को हिलाती हुई अपने जोशीले लंड को ठंडा करने की कोशिश करने लगी 


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और अपने पल्लू से अपने पसीने को पोंछने लगी. किसी तरह मेरा लंड थोडा नार्मल होने लगा. फिर मैंने अपनी पर्स से एक और पेंटी निकाली जो मैंने एक्स्ट्रा रखी थी, अब उसे पहनकर थोडा नार्मल रह सकूंगी मैं.



पर मेरी मुसीबत अब तक ख़त्म कहाँ हुई थी. मेरे पीछे पीछे मुझे ढूंढते हुए रश्मि भी बाथरूम आ गयी. उसको देखते ही मैं गुस्से में आ गयी और उस पर चीख उठी.. “तू चाहती है क्या है मुझसे रश्मि? हाँ, मेरा लंड है… तू क्यों पीछे पड़ी है मेरे? तुझे जिसे भी बताना है बता दे. मैं डरने वाली नहीं हूँ तुझसे”

मुझे चीखते देख रश्मि ने मेरा तुरंत मुंह बंद किया और बोली, “संजना… ये क्या कर रही है? धीरे बोल. सबको पता चल जायेगा”

संजना? ये तो मेरे फेसबुक के fake. प्रोफाइल का नाम था. उसको कैसे पता चला?

“यार कब से तुझे फेसबुक पे मेसेज कर रही हूँ पर तू फ़ोन देख ही नहीं रही है.  नम्रता नाम है मेरा फेसबुक पर. फेसबुक पर हम दोस्त नहीं है पर तुम्हारी प्रोफाइल देखी थी मैंने. तुम्हे देखते ही पहचान गयी थी मैं. इसलिए तुम्हारी बगल से ही तुमको फ़ोन पर मेसेज किया पर तुमने अपना फ़ोन देखा ही नहीं. बार बार तुमको इशारे कर रही थी पर तुम समझ ही नहीं रही थी.”, रश्मि यानी नम्रता ने बोली.


और मैं हैरत में उसकी ओर देखते रह गयी. मैंने पर्स से फ़ोन निकाला तो उसके कई मेसेज थे. वो मेसेज पढ़ते ही मुझे हँसी आ गयी.

“तुम्हारी तरह मैं भी औरत बनकर रह रही हूँ बाहर की दुनिया में. किस्मत से सौम्या नाम की लड़की सहेली मिल गयी. और उसने मुझे कहा कि मैं ये शादी अटेंड करके देखू. सौम्या को भी नहीं पता है कि मैं क्या हूँ. लड़कियों के साथ शादी में मुझे अच्छा लग रहा है पर क्योंकि तुम भी मेरे जैसी हो, तो तुम्हारे साथ अपना राज़ शेयर करके मैं ज्यादा बेफिक्र होकर मस्ती करना चाहती थी.”, रश्मि ने कहा.

उसकी बातें सुनकर मैं मुस्कुरा दी. और उसके करीब आ गयी.

“मानसी.. मैं इसी बिल्डिंग में ऊपर के होटल में ठहरी हूँ. तुम संगीत के बाद मेरे पास आओगी तो खूब बात कर सकूंगी तुम से.”, उसने कहा.

“हाँ ज़रूर”, मैं मुस्कुराकर उसका हाथ पकड़कर बोली.


और फिर रश्मि ने मेरी ओर कुछ ख़ास नजरो से देखा और बोली, “वैसे मेरे बूब्स असली है. और मैं लंड भी अच्छा चूस लेती हूँ. तुम्हारे लंड की प्यास बुझानी हो तो मैं रहूंगी तुम्हारे लिए” रश्मि ने एक बार फिर मेरी साड़ी को वहां छुआ जहाँ मेरा लंड था.

मैं भी उसके और करीब आ गयी और बोली, “वैसे मैंने आजतक किसी का लंड चुसी नहीं हूँ… पर मुझे यकीन है कि मैं भी अच्छे से चूसूंगी. मेरी लंड चूसने की प्यास को बुझाने दोगी तुम?” मैंने भी उसकी साड़ी को वहां छुआ और उसके लंड को सहलाने लगी और उसके होंठो को चूमने लगी.

“रुक जाओ न मानसी.. कोई आ जाएगा.”, रश्मि बोली और शर्मा गयी.

हम दोनों संगीत के बाद की रात को लेकर उतावली हो चुकी थी. आज हम दोनों  मिलकर अपने सपने सच करने वाली थी. हम दोनों ने एक दुसरे का हाथ थामा और मुस्कुराते हुए बाहर चली आई. बाहर हम दोनों को इतने पास देखकर कुछ लड़के हमें घूरने लगे… और हम दोनों उन लडको को देखकर बस खिलखिलाकर हँस दी.


अब हमें किसी और लड़के की ज़रुरत नहीं थी. क्योंकि मेरे पास रश्मि थी… मैं तो अब बस बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी जब मैं उसके लंड को अपने हाथो में पकड़ कर हिलाऊंगी… और मेरी चूड़ियां खनकेगी.. और जब उसकी पेंटी में उसका लंड तन जाएगा… तब मैं उसे अपने बड़े रसीले होंठो से चूस लूंगी. यह सब सोचते सोचते ही मेरे लंड में हलचल हो रही थी. मैं रश्मि की कमर पे हाथ रखकर मुस्कुराने लगी और वो भी.
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