18-08-2022, 09:33 PM
कहानी के अंतिम चैप्टर को पढ़ने से पहले
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.
मेरी ये कहानी मम्मी और बेटे के प्यार, romance, emotion, incest relation, और किस्मत क्या क्या रंग दिखाती है उस पर आधारित है।
-----------+-++--+--मनीष का मानसी बनने का सफर ----------_---------+++-------------------------
समय रात के 10:10 नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, हम शताब्दी एक्स्प्रेस में बैठकर ग्वालियर अपने घर के लिए चल दिये मेरी मम्मी ने अपना सिर पापा के कंधे पर रख दिया। उन्हे इस तरह बैठे देखकर मुझे और सभी को मेरे पापा मम्मी दुनिया के बेस्ट कपल नजर आ रहे थे।
हम तीनो के दिमाग में बहुत से सवाल उठ रहे थे और उनके जबाब हमारे पास नही है।
मनीष की एक तरफ तो उसकी प्यारी मम्मी है जो न जाने क्यों मनीष को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है पापा, जिससे मनीष को बेइंतहा प्यार है पर ये बात वो खुद नहीं समझ सकते है. यहां एक ओर तो मनीष के दिल की उलझन है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे सवाल भी है जो उसके अस्तित्व से जुड़े है. जब मनीष का जीवन उसे दो-राहे पर ले जाएगा तब मनीष कौनसा रास्ता चुनेगा?
इस कहानी का अंतिम चैप्टर लिखने का समय अब आ गया है। ये चैप्टर कहानी का अंजाम तय करेगा की कहानी का अंत है या शुरुआत।
कहानी के अंतिम चैप्टर को पढ़ने से पहले
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.
-------------------------उलझन----------------
हम तड़के ही ग्वालियर अपने घर पहुँचकर अपने अपने रूम में चल गये। और एक नई सुबह का एक नई उम्मीद के साथ अपने काम में व्यस्त हो गये।
मेरी, मम्मी, और पापा तीनो की जिंदगी change हो गयी थी। मेरे मम्मी पापा के बीच में प्यार रोमांस, सेक्स भी खतम होने की कगार पर आ पहुँच था। शायद इसकी दो वजह थी।
एक
मेरी मम्मी की मुझे लड़की बनाने की जिद
दूसरी
मेरा सच जो मेरे मम्मी पापा के रिश्तों के बीच दीवार बन गया है।
समय अपनी रफ्तार से निकल रहा था। 6 महीने हो गये थे।
एक सुबह कुछ किन्नर (हिजडा) हमारे घर आये और मेरे पापा से बात करने लगे। मै और मम्मी छत से छिपकर पापा और उनकी बाते सुन रहे थे जो हमें ठीक से सुनाई नही दे रही थी। आधे घंटे बाद मेरे पापा ने उनके हाथ जोड़े और उन्होंने किन्नर (हिजडा) ने आशीर्वाद दिया और चले गये।
थोड़ी देर बाद पापा ऊपर घर में आ गये मम्मी ने पूछा क्या हुआ तो पापा ने मेरी तरफ बड़ी बेबसी और लाचारी से देखा पापा की आँखों में आँसू थे।
मम्मी ने फिर पूछा तो मम्मी का हाथ पकड़कर अपने बेड रूम में ले गये और
बोले हमारा बेटा आज से हम दोनों के अलावा किसी के साथ घर से बाहर नही जायेगा। किन्नर (हिजडा) इसे ले जाने के लिए आये थे। वो बोले ये इस समाज में नही रह सकता है और अगर आपको आगे आने वाली परेशानियों से बचना हो तो इसे हमें दे दीजिये।
मम्मी बोली किन्नर (हिजडा) को ये पता कैसे चला तो पापा बोले पता नही शायद हमारे बेटे या तुम ने किसी को सच बता दिया हो। मम्मी बोली नही हम दोनों ने किसी को कुछ नही बताया।
पापा बोले खैर छोड़ो किन्नर (हिजडा) अब नही आएँगे मैने उनसे बात कर ली है और वो अपना आशीर्वाद दे गये है।
उन्होंने ही कहा है कि इसे अकेले घर से बाहर लड़को की तराह ही निकले, जमाना खराब है।
उस दिन से मेरी घर से बाहर जाने की आजादी भी पूरी तरह खतम हो गयी और बस कॉलेज और घर के बीच में ही मेरा दायरा हो गया।
अगले दिन मनीष … … आ गया तू?”, कॉलेज से बस अभी घर आया ही था कि मुझे अपनी मम्मी की आवाज़ सुनाई दी. शायद अपने कमरे में थी वो.
“हाँ, मम्मी.”, हा जवाब दिया. मेरे चेहरे में न तो कोई ख़ुशी थी और न कोई और भाव. बस एक साधारण सा चेहरा था ।
“अच्छा.. जल्दी इधर आ.”, मम्मी की फिर आवाज़ आई तो मे चलकर मम्मी के कमरे में गया.
मम्मी ने कमरे में अपने बिस्तर पर बहुत से कपडे फैला रखे थे. शायद आज अपनी अलमारी साफ़ कर रही थी वो. मुझे देखते ही मम्मी के चेहरे पर ख़ुशी से एक बड़ी मुस्कान खिल उठी थी.
“अच्छा… देख तो इसमें से कौनसी साड़ियाँ तुझे पसंद है. पिछले २-३ साल में शादियों में बहुत सी गिफ्ट में मिली है मुझे. तेरी बुआ और ताई ने भी तो दी है. पर कभी इन्हें पहनने का मौका नहीं मिलता. आखिर इतनी सारी साड़ियाँ है मेरे पास. ये सब तो बिना पहने ही पड़े पड़े धुल खा रही है.”, मम्मी बोली. और ये कहते वक़्त उनके हाव भाव बड़े ड्रामेटिक से थे.
“अब तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो मम्मी?”, मैने झुंझलाते हुए कहा.
तो मम्मी ने प्यार से सर पर हाथ फेरा और फिर मेरा हाथ प्यार से पकड़ते हुए बोली, “अरे इन सबके तो ब्लाउज भी सिले हुए है. तू २-३ साड़ियाँ पसंद तो कर. तो मैं फिर इनके ब्लाउज को तेरे साइज़ के लिए एडजस्ट कर लूंगी.”
“मुझे नहीं पहनना साड़ी वाड़ी. तुम ही पहनना इनको जब मौका मिले.”, मै अभी भी झुंझला रहा था.
“अरे बेटा. अपनी मम्मी के लिए तू एक साड़ी पहन लेगा तो कुछ बिगड़ जायेगा क्या? तुझसे कुछ मांगती हूँ मैं भला?”, मम्मी ने मुझ को गले से लगा लिया.
“तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी रहती हो मम्मी? और अब ये साड़ी?”, मैने थोडा गुस्से में मम्मी से कहा.
“बेटा तू तो जानता ही है. चल अब ज्यादा बहस मत कर. देख ये फिरोज़ी रंग वाली तो तुझ पर बहुत अच्छी लगेगी. तू २ और पसंद कर ले.”, मम्मी मेरे तन पर फिरोजी रंग की साड़ी लगाते हुए बोली. मम्मी के दिल में मेरे लिए कितना प्यार था ये तो साफ़ दिख रहा था. मै भी ज्यादा देर और मम्मी को टाल नहीं सकता था. मैने आखिर २ साड़ी को निकाल कर अलग कर लिया. मैने बस मम्मी की इच्छा पूरी करने के लिए कोई भी २ साड़ी चुन लिया था… ये तो मेरा दिल ही जाने. पर हलकी साड़ियाँ ही मैने पसंद की थी. सिल्क की भारी साड़ियों को तो मैने देखा तक नहीं.
मेरी चॉइस देखकर मम्मी बड़ी खुश हुई. “अच्छा आज शाम तक मैं ब्लाउज सिल देती हूँ इनके. आज शाम को एक साड़ी तो पहनकर देख ही लेना तू. तुझे अच्छा लगेगा.”, मम्मी ख़ुशी से बोली.
""थोडा अजीब सा ही रिश्ता था ये एक माँ और बेटे के बीच. वरना ऐसी बातें तो एक मम्मी सिर्फ अपनी बेटी के साथ करती है"".
मम्मी के साथ बात करने के बाद से मै थोडा चिडचिडा सा गया था. और कुछ देर अकेले में समय बिताना चाहता था.
मै अपने कमरे की ओर बढ़ चला. मुझे पता था कि एक बार अपने कमरे में जाकर अपने कपडे बदल लिए तो फिर दोबारा कल कॉलेज जाने के पहले घर से बाहर नहीं निकल सकूँगा . और इसी चारदीवारी के अन्दर रहूँगा. शायद इसलिए मै कुछ देर के लिए ही सही घर के बाहर अकेले बैठना चाहता था.
अपने कमरे में पहुच कर मैने अपनी शर्ट खोली और फिर उसी शर्ट के अन्दर छुपे हुए मेरे लम्बे बाल अब दिखने लगे. हाँ, मेरे बाल बेहद लम्बे थे जो मेरी कमर तक आते थे. घने और रेशमी बाल.. इतने सुन्दर की कोई भी लड़की वैसे बालो के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. पर मै उन्हें पोनीटेल बना कर छिपा के रखता था.
फिर भी सबको पता तो था कि मेरे बाल लम्बे है. पर इतने आकर्षक और रेशमी घने है इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था. मैने हमेशा की तरह अपनी पोनीटेल को कंधे की एक ओर किया और शर्ट के अन्दर पहनी हुई इनर को निकालने लगा. पर इनर के अन्दर मैने और भी कुछ पहना हुआ था.
वो एक टाइट सी स्पोर्ट्स ब्रा थी. उस ब्रा को पहनकर मुझे घुटन सी होती थी. फिर भी उसे पहनना मेरी मजबूरी थी. और फिर मैने जैसे ही उस स्पोर्ट्स ब्रा को उतारा तो मेरे सपाट से दिखने वाले सीने पर अचानक ही भरे पूरे स्तन बाहर निकल आये. जैसे न जाने कब से वो स्तन भी स्पोर्ट्स ब्रा से निकल कर आज़ाद होना चाहते थे. उन स्तनों के निप्पल भी उभर कर बाहर आ गए थे… और कुछ दर्द कर रहे थे.
मुझे डॉ रेखा ने बताया था कि बचपन से ही मेरे अन्दर एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम था. इसलिए मेरे शरीर में कुछ स्त्रियों जैसे बदलाव हो रहे थे. उसके इलाज के लिए ही मम्मी मुझे सुबह शाम कुछ गोलियां खाने को देती थी. पर मुझ को समझ आ रहा था कि उन गोलियों का उस पर असर नहीं हो रहा था. तभी तो मेरे स्तन समय के साथ बढ़ते ही जा रहे थे. पता नहीं कब तक मै इन्हें दुनिया की नज़रो से छिपा कर रख सकूंगा।
मेरे शरीर के एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम का असर सिर्फ स्तनों तक नहीं था. जब मैने अपनी पेंट उतारी तो साफ़ झलकता था कि मेरी हिप में भी किसी सामान्य लड़के के मुकाबले कुछ ज्यादा उभार था. शायद इसलिए मुझे लडको की अंडरवियर सही फिट नहीं आती थी. इसलिए मुझे लड़कियों की पेंटी पहनना पड़ता था. और इस वक़्त मै सिर्फ पेंटी पहना हुआ था. टाइट ब्रा से निकलकर मुझे अब कुछ अच्छा लग रहा था.
मैने अपने घर के रोज वाले कपड़े पहनने के लिए अपनी अलमारी की दराज खोला और उसमे से एक ब्रा निकाला. मेरे पास ६-७ अलग अलग रंगों ब्रा थी और सभी पर फूल के प्रिंट बने हुए थे जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं आते थे. पर मेरी मम्मी ने मेरे लिए यही सब ब्रा दी थी, मै खुद दुकान जाकर ब्रा पसंद करने मे संकोच जो करता था, और आखिर स्वाभाविक भी था. आखिर कौनसा लड़का अपनी मम्मी के साथ ब्रा की दुकान जाकर ब्रा पसंद करता? पर मेरी मम्मी ने कहा था कि यही सब ब्रा मेरे स्तनों को आराम देगी.
और फिर मै अपने मुलायम झूलते हुए स्तनों पर एक पीली रंग की ब्रा चढाने लगा. जितनी आसानी से मैने ब्रा के हुक अपनी पीठ पर लगा लिए अब इसकी आदत हो गयी थी. लम्बी पोनीटेल और ब्रा-पेंटी में मेरा शरीर किसी लड़की के शरीर से कम नहीं लगता था. भले मुझे फूल प्रिंट वाली ब्रा पसंद न हो पर मेरे नर्म मुलायम स्तनों को ब्रा पहनकर ही आराम मिलता था.
अब फिर आईने के सामने खड़ा होकर मै खुद को देखने लगा. और सोचने लगा कि कब दवाइयां मुझ पर असर करेगी और मै एक लड़के की तरह दिखने लगूँगा.
फिर मैने अपनी अलमारी से एक सलवार सूट निकाला. मेरी मम्मी कहा करती है कि जब तक मै ठीक नहीं हो जाता उसके लिए यही कपडे ठीक है. सलवार का पैजामा पहनने के बाद मैने ऊपर से ढीली सी कुर्ती पहना. जहाँ मेरी मम्मी की कुर्ती उनके शरीर के कर्व को पूरी तरह से निखारती थी वहीँ मेरी ढीली कुर्ती मेरे शरीर के कर्व को जितना हो सके उतना छुपाती थी पर पूरी तरह नहीं.
मैने आईने के सामने अपने हाथो से अपनी कुर्ती को अपने हाथो से खिंच कर ज़रा टाइट करके देखा जैसे मम्मी की कुर्ती होती थी. ऐसा करने पर मेरे स्तन भी मम्मी की तरह ही एक आकर्षक फिगर दे रहे थे.
शायद मै भी मम्मी की तरह ही हॉट लगता टाइट कुर्ती में. मै खुद को आईने में वैसे देखते हुए सोचने लगा. और फिर मेरे बाल तो मम्मी के बालो से भी लम्बे और ज्यादा आकर्षक थे. अब मैने अपनी पोनीटेल का रबर निकाल दिया और मेरे बाल पूरी तरह खुले हुए थे… सुन्दर… लम्बे … आकर्षक. और फिर मै अपने दोनों हाथो से अपने बालो को तीन भागो में बांटकर उसकी चोटी बनने लगा. मेरी मम्मी मुझे समझाती है कि चोटी बनाकर रखेगा तो बाल झडेंगे नहीं और सुन्दर बने रहेंगे. चोटी बनाकर मै अब पूरी तरह लड़की लग रहा था. और यही कारण था कि मै घर आने के बाद घर की चारदीवारी में कैद रहने को मजबूर था. पिछले २ सालो में आये हुए मेरे शरीर में बदलाव का राज अलावा सिर्फ मेरी पापा मम्मी जानती थी…
मै अपनी सलवार कुर्ती के साथ दुपट्टा नहीं ओढ़ता था. क्योंकि वह यह कपडे सिर्फ सहूलियत के लिए पहनता था लड़की बनने के लिए नहीं. और फिर मुझे लड़कियों की तरह अपनी काया दुसरे की नजरो से कम से कम घर के अन्दर छिपाने की ज़रुरत नहीं थी. इसलिए दुपट्टे को सँभालने के झंझट से दूर ही रहता था. और फिर मै अपने कमरे में ही पढाई करने में जुट गया. घर में मेरे पास वैसे भी और कुछ करने को नहीं था.
शाम का वक़्त हो गया था. और मै अब भी कमरे में बैठ कर पढाई कर रहा था कि तभी मेरी मम्मी बेहद ख़ुशी के साथ मेरे कमरे में आ पहुंची. “ बेटा”, मम्मी ने कहा और प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगी.
“क्या हुआ मम्मी? बहुत खुश लग रही हो.”, मैने कहा.
“देख ये ब्लाउज मैंने तेरी साइज़ के लिए छोटा कर दिया है. एक बार ज़रा ट्राई करके देखना तो सही कि फिटिंग सही आ रही है.”, मम्मी बोली.
मम्मी इसे अभी करना ज़रूरी है क्या?”, मैने अपनी लम्बी चोटी को एक ओर कर वापस अपनी किताबो में घुसते हुए कहा.
“बेटा. देख ले एक बार. यदि सही फिटिंग रही तो बाकी के ब्लाउज भी ऐसे ही सिल दूँगी.”, मम्मी ने बड़ी हसरत के साथ कहा.
“ठीक है. मम्मी”, मैने कहा फिर मैने मम्मी के हाथ से ब्लाउज लिया और अपनी कुर्ती उतारकर वो ब्लाउज पहनने लगा. मुझे ये सब करते हुए और लड़कियों के कपडे पहनते हुए थोड़ी शर्म भी आती थी अपनी मम्मी के सामने पर शायद अब तक मैने अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया था.
मै धीरे धीरे अपनी ब्रा के ऊपर ब्लाउज पहनकर ब्लाउज के हुक सामने की ओर एक एक कर लगाने लगा. एक एक हुक के साथ वो ब्लाउज जैसे मेरे शरीर का हिस्सा बनता जा रहा था. ब्लाउज की कटोरियाँ मेरे स्तनों पर बिलकुल सही फिट आ रही थी और जब सारे हुक लग गए तो मेरा ब्लाउज मेरे स्तनों के साथ बिलकुल एकाकार हो गया.
“अच्छा. बता कैसा लग रहा है पहन कर?”, मम्मी ने पूछा तो मैने इधर उधर पलटकर ब्लाउज को खुद पर देखा और कहा,”मुझे तो कम्फ़र्टेबल लग रहा है मम्मी.”
पर मम्मी की नज़र ब्लाउज के आस्तीन पर पड़ी. “ये थोड़ी ढीली लग रही है.”, मम्मी ने ब्लाउस की आस्तीन के अन्दर दो उंगलियाँ डालते हुए बोली. “.. पर मम्मी.. थोड़ी ढीली आस्तीन तो सही है न? आरामदेह रहेगी”
“मम्मी. ब्लाउज अच्छा तभी लगता है जब आस्तीन बिलकुल फिट आये. ढीली आस्तीन अच्छी नहीं दिखती है साड़ी के साथ.”, मम्मी ने अपने अनुभव से कहा.
और फिर मम्मी ने मेरी पीठ की ओर देखते हुए बोली, “मैं ज़रा ब्लाउज का गला बड़ा कर देती हूँ. इतना छोटा गला मेरी जैसी ओल्ड फैशनड औरतों पर ठीक लगता है. मेरी जवान बेटी के ब्लाउज में और मेरी ब्लाउज में कुछ तो फर्क होना चाहिए न?”
मै अपनी मम्मी की बात सुन शर्मा गया. और फिर झट से मैने अपना ब्लाउज उतारकर मम्मी को दे दिया और फिर कुर्ती पहन लिया.
“अच्छा. चल मैं ये सब ब्लाउज कल तक सिल दूँगी. अभी तो मम्मी बेटी ज़रा खाना खा लेती है.”, मम्मी ने मेरा हाथ पकड़कर हँसते हुए बोली.
“मम्मी. तुम भी न.”, मैने शर्माते हुए कहा.
मै भले लड़कियों के कपडे पहनता था पर कभी भी लड़कियों की तरह हाव-भाव करने की कोशिश नहीं करता था. फिर भी कभी कभी अपने आप मेरे भाव लड़कियों की तरह हो जाते थे. और ये भी ऐसा ही कुछ समय था.
“अरे… मैं तो बेहद उत्साहित हूँ. कल जब तुझे साड़ी पहनाऊँगी तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी. पहली बार अपनी बेटी को साड़ी पहने देखूँगी न. मुझे यकीन नहीं होता कि मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गयी है.”, मम्मी अब मुझ को छेड़ने लगी । मै शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ मेरी मम्मी मेरे साथ करती ही रहती थी. और फिर हम दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए ।
जारी है......
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.
मेरी ये कहानी मम्मी और बेटे के प्यार, romance, emotion, incest relation, और किस्मत क्या क्या रंग दिखाती है उस पर आधारित है।
-----------+-++--+--मनीष का मानसी बनने का सफर ----------_---------+++-------------------------
समय रात के 10:10 नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, हम शताब्दी एक्स्प्रेस में बैठकर ग्वालियर अपने घर के लिए चल दिये मेरी मम्मी ने अपना सिर पापा के कंधे पर रख दिया। उन्हे इस तरह बैठे देखकर मुझे और सभी को मेरे पापा मम्मी दुनिया के बेस्ट कपल नजर आ रहे थे।
हम तीनो के दिमाग में बहुत से सवाल उठ रहे थे और उनके जबाब हमारे पास नही है।
मनीष की एक तरफ तो उसकी प्यारी मम्मी है जो न जाने क्यों मनीष को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है पापा, जिससे मनीष को बेइंतहा प्यार है पर ये बात वो खुद नहीं समझ सकते है. यहां एक ओर तो मनीष के दिल की उलझन है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे सवाल भी है जो उसके अस्तित्व से जुड़े है. जब मनीष का जीवन उसे दो-राहे पर ले जाएगा तब मनीष कौनसा रास्ता चुनेगा?
इस कहानी का अंतिम चैप्टर लिखने का समय अब आ गया है। ये चैप्टर कहानी का अंजाम तय करेगा की कहानी का अंत है या शुरुआत।
कहानी के अंतिम चैप्टर को पढ़ने से पहले
आप लोग इस कहानी के सभी भाग "मेरा प्यार भरा परिवार" -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 जरूर पढ़ें जिससे आप कहानी को ठीक से समझ पायेगे.
-------------------------उलझन----------------
हम तड़के ही ग्वालियर अपने घर पहुँचकर अपने अपने रूम में चल गये। और एक नई सुबह का एक नई उम्मीद के साथ अपने काम में व्यस्त हो गये।
मेरी, मम्मी, और पापा तीनो की जिंदगी change हो गयी थी। मेरे मम्मी पापा के बीच में प्यार रोमांस, सेक्स भी खतम होने की कगार पर आ पहुँच था। शायद इसकी दो वजह थी।
एक
मेरी मम्मी की मुझे लड़की बनाने की जिद
दूसरी
मेरा सच जो मेरे मम्मी पापा के रिश्तों के बीच दीवार बन गया है।
समय अपनी रफ्तार से निकल रहा था। 6 महीने हो गये थे।
एक सुबह कुछ किन्नर (हिजडा) हमारे घर आये और मेरे पापा से बात करने लगे। मै और मम्मी छत से छिपकर पापा और उनकी बाते सुन रहे थे जो हमें ठीक से सुनाई नही दे रही थी। आधे घंटे बाद मेरे पापा ने उनके हाथ जोड़े और उन्होंने किन्नर (हिजडा) ने आशीर्वाद दिया और चले गये।
थोड़ी देर बाद पापा ऊपर घर में आ गये मम्मी ने पूछा क्या हुआ तो पापा ने मेरी तरफ बड़ी बेबसी और लाचारी से देखा पापा की आँखों में आँसू थे।
मम्मी ने फिर पूछा तो मम्मी का हाथ पकड़कर अपने बेड रूम में ले गये और
बोले हमारा बेटा आज से हम दोनों के अलावा किसी के साथ घर से बाहर नही जायेगा। किन्नर (हिजडा) इसे ले जाने के लिए आये थे। वो बोले ये इस समाज में नही रह सकता है और अगर आपको आगे आने वाली परेशानियों से बचना हो तो इसे हमें दे दीजिये।
मम्मी बोली किन्नर (हिजडा) को ये पता कैसे चला तो पापा बोले पता नही शायद हमारे बेटे या तुम ने किसी को सच बता दिया हो। मम्मी बोली नही हम दोनों ने किसी को कुछ नही बताया।
पापा बोले खैर छोड़ो किन्नर (हिजडा) अब नही आएँगे मैने उनसे बात कर ली है और वो अपना आशीर्वाद दे गये है।
उन्होंने ही कहा है कि इसे अकेले घर से बाहर लड़को की तराह ही निकले, जमाना खराब है।
उस दिन से मेरी घर से बाहर जाने की आजादी भी पूरी तरह खतम हो गयी और बस कॉलेज और घर के बीच में ही मेरा दायरा हो गया।
अगले दिन मनीष … … आ गया तू?”, कॉलेज से बस अभी घर आया ही था कि मुझे अपनी मम्मी की आवाज़ सुनाई दी. शायद अपने कमरे में थी वो.
“हाँ, मम्मी.”, हा जवाब दिया. मेरे चेहरे में न तो कोई ख़ुशी थी और न कोई और भाव. बस एक साधारण सा चेहरा था ।
“अच्छा.. जल्दी इधर आ.”, मम्मी की फिर आवाज़ आई तो मे चलकर मम्मी के कमरे में गया.
मम्मी ने कमरे में अपने बिस्तर पर बहुत से कपडे फैला रखे थे. शायद आज अपनी अलमारी साफ़ कर रही थी वो. मुझे देखते ही मम्मी के चेहरे पर ख़ुशी से एक बड़ी मुस्कान खिल उठी थी.
“अच्छा… देख तो इसमें से कौनसी साड़ियाँ तुझे पसंद है. पिछले २-३ साल में शादियों में बहुत सी गिफ्ट में मिली है मुझे. तेरी बुआ और ताई ने भी तो दी है. पर कभी इन्हें पहनने का मौका नहीं मिलता. आखिर इतनी सारी साड़ियाँ है मेरे पास. ये सब तो बिना पहने ही पड़े पड़े धुल खा रही है.”, मम्मी बोली. और ये कहते वक़्त उनके हाव भाव बड़े ड्रामेटिक से थे.
“अब तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो मम्मी?”, मैने झुंझलाते हुए कहा.
तो मम्मी ने प्यार से सर पर हाथ फेरा और फिर मेरा हाथ प्यार से पकड़ते हुए बोली, “अरे इन सबके तो ब्लाउज भी सिले हुए है. तू २-३ साड़ियाँ पसंद तो कर. तो मैं फिर इनके ब्लाउज को तेरे साइज़ के लिए एडजस्ट कर लूंगी.”
“मुझे नहीं पहनना साड़ी वाड़ी. तुम ही पहनना इनको जब मौका मिले.”, मै अभी भी झुंझला रहा था.
“अरे बेटा. अपनी मम्मी के लिए तू एक साड़ी पहन लेगा तो कुछ बिगड़ जायेगा क्या? तुझसे कुछ मांगती हूँ मैं भला?”, मम्मी ने मुझ को गले से लगा लिया.
“तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी रहती हो मम्मी? और अब ये साड़ी?”, मैने थोडा गुस्से में मम्मी से कहा.
“बेटा तू तो जानता ही है. चल अब ज्यादा बहस मत कर. देख ये फिरोज़ी रंग वाली तो तुझ पर बहुत अच्छी लगेगी. तू २ और पसंद कर ले.”, मम्मी मेरे तन पर फिरोजी रंग की साड़ी लगाते हुए बोली. मम्मी के दिल में मेरे लिए कितना प्यार था ये तो साफ़ दिख रहा था. मै भी ज्यादा देर और मम्मी को टाल नहीं सकता था. मैने आखिर २ साड़ी को निकाल कर अलग कर लिया. मैने बस मम्मी की इच्छा पूरी करने के लिए कोई भी २ साड़ी चुन लिया था… ये तो मेरा दिल ही जाने. पर हलकी साड़ियाँ ही मैने पसंद की थी. सिल्क की भारी साड़ियों को तो मैने देखा तक नहीं.
मेरी चॉइस देखकर मम्मी बड़ी खुश हुई. “अच्छा आज शाम तक मैं ब्लाउज सिल देती हूँ इनके. आज शाम को एक साड़ी तो पहनकर देख ही लेना तू. तुझे अच्छा लगेगा.”, मम्मी ख़ुशी से बोली.
""थोडा अजीब सा ही रिश्ता था ये एक माँ और बेटे के बीच. वरना ऐसी बातें तो एक मम्मी सिर्फ अपनी बेटी के साथ करती है"".
मम्मी के साथ बात करने के बाद से मै थोडा चिडचिडा सा गया था. और कुछ देर अकेले में समय बिताना चाहता था.
मै अपने कमरे की ओर बढ़ चला. मुझे पता था कि एक बार अपने कमरे में जाकर अपने कपडे बदल लिए तो फिर दोबारा कल कॉलेज जाने के पहले घर से बाहर नहीं निकल सकूँगा . और इसी चारदीवारी के अन्दर रहूँगा. शायद इसलिए मै कुछ देर के लिए ही सही घर के बाहर अकेले बैठना चाहता था.
अपने कमरे में पहुच कर मैने अपनी शर्ट खोली और फिर उसी शर्ट के अन्दर छुपे हुए मेरे लम्बे बाल अब दिखने लगे. हाँ, मेरे बाल बेहद लम्बे थे जो मेरी कमर तक आते थे. घने और रेशमी बाल.. इतने सुन्दर की कोई भी लड़की वैसे बालो के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. पर मै उन्हें पोनीटेल बना कर छिपा के रखता था.
फिर भी सबको पता तो था कि मेरे बाल लम्बे है. पर इतने आकर्षक और रेशमी घने है इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था. मैने हमेशा की तरह अपनी पोनीटेल को कंधे की एक ओर किया और शर्ट के अन्दर पहनी हुई इनर को निकालने लगा. पर इनर के अन्दर मैने और भी कुछ पहना हुआ था.
वो एक टाइट सी स्पोर्ट्स ब्रा थी. उस ब्रा को पहनकर मुझे घुटन सी होती थी. फिर भी उसे पहनना मेरी मजबूरी थी. और फिर मैने जैसे ही उस स्पोर्ट्स ब्रा को उतारा तो मेरे सपाट से दिखने वाले सीने पर अचानक ही भरे पूरे स्तन बाहर निकल आये. जैसे न जाने कब से वो स्तन भी स्पोर्ट्स ब्रा से निकल कर आज़ाद होना चाहते थे. उन स्तनों के निप्पल भी उभर कर बाहर आ गए थे… और कुछ दर्द कर रहे थे.
मुझे डॉ रेखा ने बताया था कि बचपन से ही मेरे अन्दर एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम था. इसलिए मेरे शरीर में कुछ स्त्रियों जैसे बदलाव हो रहे थे. उसके इलाज के लिए ही मम्मी मुझे सुबह शाम कुछ गोलियां खाने को देती थी. पर मुझ को समझ आ रहा था कि उन गोलियों का उस पर असर नहीं हो रहा था. तभी तो मेरे स्तन समय के साथ बढ़ते ही जा रहे थे. पता नहीं कब तक मै इन्हें दुनिया की नज़रो से छिपा कर रख सकूंगा।
मेरे शरीर के एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम का असर सिर्फ स्तनों तक नहीं था. जब मैने अपनी पेंट उतारी तो साफ़ झलकता था कि मेरी हिप में भी किसी सामान्य लड़के के मुकाबले कुछ ज्यादा उभार था. शायद इसलिए मुझे लडको की अंडरवियर सही फिट नहीं आती थी. इसलिए मुझे लड़कियों की पेंटी पहनना पड़ता था. और इस वक़्त मै सिर्फ पेंटी पहना हुआ था. टाइट ब्रा से निकलकर मुझे अब कुछ अच्छा लग रहा था.
मैने अपने घर के रोज वाले कपड़े पहनने के लिए अपनी अलमारी की दराज खोला और उसमे से एक ब्रा निकाला. मेरे पास ६-७ अलग अलग रंगों ब्रा थी और सभी पर फूल के प्रिंट बने हुए थे जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं आते थे. पर मेरी मम्मी ने मेरे लिए यही सब ब्रा दी थी, मै खुद दुकान जाकर ब्रा पसंद करने मे संकोच जो करता था, और आखिर स्वाभाविक भी था. आखिर कौनसा लड़का अपनी मम्मी के साथ ब्रा की दुकान जाकर ब्रा पसंद करता? पर मेरी मम्मी ने कहा था कि यही सब ब्रा मेरे स्तनों को आराम देगी.
और फिर मै अपने मुलायम झूलते हुए स्तनों पर एक पीली रंग की ब्रा चढाने लगा. जितनी आसानी से मैने ब्रा के हुक अपनी पीठ पर लगा लिए अब इसकी आदत हो गयी थी. लम्बी पोनीटेल और ब्रा-पेंटी में मेरा शरीर किसी लड़की के शरीर से कम नहीं लगता था. भले मुझे फूल प्रिंट वाली ब्रा पसंद न हो पर मेरे नर्म मुलायम स्तनों को ब्रा पहनकर ही आराम मिलता था.
अब फिर आईने के सामने खड़ा होकर मै खुद को देखने लगा. और सोचने लगा कि कब दवाइयां मुझ पर असर करेगी और मै एक लड़के की तरह दिखने लगूँगा.
फिर मैने अपनी अलमारी से एक सलवार सूट निकाला. मेरी मम्मी कहा करती है कि जब तक मै ठीक नहीं हो जाता उसके लिए यही कपडे ठीक है. सलवार का पैजामा पहनने के बाद मैने ऊपर से ढीली सी कुर्ती पहना. जहाँ मेरी मम्मी की कुर्ती उनके शरीर के कर्व को पूरी तरह से निखारती थी वहीँ मेरी ढीली कुर्ती मेरे शरीर के कर्व को जितना हो सके उतना छुपाती थी पर पूरी तरह नहीं.
मैने आईने के सामने अपने हाथो से अपनी कुर्ती को अपने हाथो से खिंच कर ज़रा टाइट करके देखा जैसे मम्मी की कुर्ती होती थी. ऐसा करने पर मेरे स्तन भी मम्मी की तरह ही एक आकर्षक फिगर दे रहे थे.
शायद मै भी मम्मी की तरह ही हॉट लगता टाइट कुर्ती में. मै खुद को आईने में वैसे देखते हुए सोचने लगा. और फिर मेरे बाल तो मम्मी के बालो से भी लम्बे और ज्यादा आकर्षक थे. अब मैने अपनी पोनीटेल का रबर निकाल दिया और मेरे बाल पूरी तरह खुले हुए थे… सुन्दर… लम्बे … आकर्षक. और फिर मै अपने दोनों हाथो से अपने बालो को तीन भागो में बांटकर उसकी चोटी बनने लगा. मेरी मम्मी मुझे समझाती है कि चोटी बनाकर रखेगा तो बाल झडेंगे नहीं और सुन्दर बने रहेंगे. चोटी बनाकर मै अब पूरी तरह लड़की लग रहा था. और यही कारण था कि मै घर आने के बाद घर की चारदीवारी में कैद रहने को मजबूर था. पिछले २ सालो में आये हुए मेरे शरीर में बदलाव का राज अलावा सिर्फ मेरी पापा मम्मी जानती थी…
मै अपनी सलवार कुर्ती के साथ दुपट्टा नहीं ओढ़ता था. क्योंकि वह यह कपडे सिर्फ सहूलियत के लिए पहनता था लड़की बनने के लिए नहीं. और फिर मुझे लड़कियों की तरह अपनी काया दुसरे की नजरो से कम से कम घर के अन्दर छिपाने की ज़रुरत नहीं थी. इसलिए दुपट्टे को सँभालने के झंझट से दूर ही रहता था. और फिर मै अपने कमरे में ही पढाई करने में जुट गया. घर में मेरे पास वैसे भी और कुछ करने को नहीं था.
शाम का वक़्त हो गया था. और मै अब भी कमरे में बैठ कर पढाई कर रहा था कि तभी मेरी मम्मी बेहद ख़ुशी के साथ मेरे कमरे में आ पहुंची. “ बेटा”, मम्मी ने कहा और प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगी.
“क्या हुआ मम्मी? बहुत खुश लग रही हो.”, मैने कहा.
“देख ये ब्लाउज मैंने तेरी साइज़ के लिए छोटा कर दिया है. एक बार ज़रा ट्राई करके देखना तो सही कि फिटिंग सही आ रही है.”, मम्मी बोली.
मम्मी इसे अभी करना ज़रूरी है क्या?”, मैने अपनी लम्बी चोटी को एक ओर कर वापस अपनी किताबो में घुसते हुए कहा.
“बेटा. देख ले एक बार. यदि सही फिटिंग रही तो बाकी के ब्लाउज भी ऐसे ही सिल दूँगी.”, मम्मी ने बड़ी हसरत के साथ कहा.
“ठीक है. मम्मी”, मैने कहा फिर मैने मम्मी के हाथ से ब्लाउज लिया और अपनी कुर्ती उतारकर वो ब्लाउज पहनने लगा. मुझे ये सब करते हुए और लड़कियों के कपडे पहनते हुए थोड़ी शर्म भी आती थी अपनी मम्मी के सामने पर शायद अब तक मैने अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया था.
मै धीरे धीरे अपनी ब्रा के ऊपर ब्लाउज पहनकर ब्लाउज के हुक सामने की ओर एक एक कर लगाने लगा. एक एक हुक के साथ वो ब्लाउज जैसे मेरे शरीर का हिस्सा बनता जा रहा था. ब्लाउज की कटोरियाँ मेरे स्तनों पर बिलकुल सही फिट आ रही थी और जब सारे हुक लग गए तो मेरा ब्लाउज मेरे स्तनों के साथ बिलकुल एकाकार हो गया.
“अच्छा. बता कैसा लग रहा है पहन कर?”, मम्मी ने पूछा तो मैने इधर उधर पलटकर ब्लाउज को खुद पर देखा और कहा,”मुझे तो कम्फ़र्टेबल लग रहा है मम्मी.”
पर मम्मी की नज़र ब्लाउज के आस्तीन पर पड़ी. “ये थोड़ी ढीली लग रही है.”, मम्मी ने ब्लाउस की आस्तीन के अन्दर दो उंगलियाँ डालते हुए बोली. “.. पर मम्मी.. थोड़ी ढीली आस्तीन तो सही है न? आरामदेह रहेगी”
“मम्मी. ब्लाउज अच्छा तभी लगता है जब आस्तीन बिलकुल फिट आये. ढीली आस्तीन अच्छी नहीं दिखती है साड़ी के साथ.”, मम्मी ने अपने अनुभव से कहा.
और फिर मम्मी ने मेरी पीठ की ओर देखते हुए बोली, “मैं ज़रा ब्लाउज का गला बड़ा कर देती हूँ. इतना छोटा गला मेरी जैसी ओल्ड फैशनड औरतों पर ठीक लगता है. मेरी जवान बेटी के ब्लाउज में और मेरी ब्लाउज में कुछ तो फर्क होना चाहिए न?”
मै अपनी मम्मी की बात सुन शर्मा गया. और फिर झट से मैने अपना ब्लाउज उतारकर मम्मी को दे दिया और फिर कुर्ती पहन लिया.
“अच्छा. चल मैं ये सब ब्लाउज कल तक सिल दूँगी. अभी तो मम्मी बेटी ज़रा खाना खा लेती है.”, मम्मी ने मेरा हाथ पकड़कर हँसते हुए बोली.
“मम्मी. तुम भी न.”, मैने शर्माते हुए कहा.
मै भले लड़कियों के कपडे पहनता था पर कभी भी लड़कियों की तरह हाव-भाव करने की कोशिश नहीं करता था. फिर भी कभी कभी अपने आप मेरे भाव लड़कियों की तरह हो जाते थे. और ये भी ऐसा ही कुछ समय था.
“अरे… मैं तो बेहद उत्साहित हूँ. कल जब तुझे साड़ी पहनाऊँगी तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी. पहली बार अपनी बेटी को साड़ी पहने देखूँगी न. मुझे यकीन नहीं होता कि मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गयी है.”, मम्मी अब मुझ को छेड़ने लगी । मै शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ मेरी मम्मी मेरे साथ करती ही रहती थी. और फिर हम दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए ।
जारी है......