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Adultery आखिर ससुरजी घुस ही गए मेरी चुत में
#1
आखिर ससुरजी घुस ही गए मेरी चुत में



































cool2

...................................................................

Angry Shy Big Grin
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
फेमिली में मैं मेरे पति प्रदीप, मेरे ससुर जी रसिकलाल और मेरा छोटा सा बेटा किरण इतने हें. ससुर जी का बिझनेस बड़ा है और हमें खाने पीने की कोई कमी नहीं ह मेरे पिताजी का फेमिली बहुत ग़रीब था. चार बहनों में मैं सब से बड़ी संतान थी. मेरी मा लंबी बीमारी बाद मर गयी तब में सोलह साल की थी. मा के इलाज वास्ते पिताजी ने क्या कुछ नहीं किया, ढेर सारा कर्ज़ा हो गया. पिताजी रेवेंयू ओफ़िस में क्लेर्क क नौकरी करते थे, उन के पगार से मांड गुज़रा होता था. में छ्होटे मोटे काम कर लेती थी. आमदनी का ओर कोई साधन नहीं था जिस से कर्ज़ा चुका सकें. लेनदार लोग तक़ाज़ा कर रहे थे. फ़िक्र से पिताजी की सेहत भी बिगड़ ने लगी थी.ऐसे में मेरे संभावित ससुर रसिकलाल मदद में आए. उन का एकलौता बेटा प्रदीप कंवारा था. दिमाग़ का थोड़ा सा बेकवार्ड हो ने से उसे कोई कन्या देता नहीं था. रसिकलाल की पत्नी भी छे महीनों पहले ही मर गयी थी, घर संभाल ने वाली कोई थी नहीं. उन्हों ने जब करज़े के बदले में मेरा हाथ माँगा तब पिताजी ने तुरंत ना बोल दी. में हाई स्कूल तक पढ़ी हुई थी, आगे कॉलेज में पढ़ने वाली थी. मेरे जैसी लड़की कैसे प्रदीप जैसे लड़के के साथ ज़िदगी गुज़ार सके ? मैने पिताजी से कहा : आप मेरी फिकर मत कीजिए, मेरी तीन बहनों की सोचिए. आप रिश्ता मंज़ूर कर दीजिए और सिर पर से करज़े का बोझ दूर कीजिए. में मेरी संभाल लूंगी.अपने हृदय पर पत्थर रख कर पिताजी ने मुज़े प्रदीप से ब्याह दी. तब में 18 साल की थी. में ससुराल आई. पहले ही दिन ससुरजी ने मुझे पास बीठा कर कहा : देख बेटी, में जानता हूँ की प्रदीप से शादी कर के तूने बड़ा बलिदान दिया है मेने तेरे पिताजी का कर्ज़ा भरावा दिया है लेकिन तूने जो किया है उस की क़ीमत पैसों में नहीं गीनी जाती. तूने तेरे पिताजी पर और मुझ पर भी बड़ा उपकार किया है में जवाब मे बोली : पिताजी…………उन्हों ने मुज़े बोलने नहीं दिया. कहने लगे : पहले मेरी सुन ले. बाद में कहना जो चाहे सो. ठीक है ?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
फेमिली में मैं मेरे पति प्रदीप, मेरे ससुर जी रसिकलाल और मेरा छोटा सा बेटा किरण इतने हें. ससुर जी का बिझनेस बड़ा है और हमें खाने पीने की कोई कमी नहीं ह मेरे पिताजी का फेमिली बहुत ग़रीब था. चार बहनों में मैं सब से बड़ी संतान थी. मेरी मा लंबी बीमारी बाद मर गयी तब में सोलह साल की थी. मा के इलाज वास्ते पिताजी ने क्या कुछ नहीं किया, ढेर सारा कर्ज़ा हो गया. पिताजी रेवेंयू ओफ़िस में क्लेर्क क नौकरी करते थे, उन के पगार से मांड गुज़रा होता था. में छ्होटे मोटे काम कर लेती थी. आमदनी का ओर कोई साधन नहीं था जिस से कर्ज़ा चुका सकें. लेनदार लोग तक़ाज़ा कर रहे थे. फ़िक्र से पिताजी की सेहत भी बिगड़ ने लगी थी.ऐसे में मेरे संभावित ससुर रसिकलाल मदद में आए. उन का एकलौता बेटा प्रदीप कंवारा था. दिमाग़ का थोड़ा सा बेकवार्ड हो ने से उसे कोई कन्या देता नहीं था. रसिकलाल की पत्नी भी छे महीनों पहले ही मर गयी थी, घर संभाल ने वाली कोई थी नहीं. उन्हों ने जब करज़े के बदले में मेरा हाथ माँगा तब पिताजी ने तुरंत ना बोल दी. में हाई स्कूल तक पढ़ी हुई थी, आगे कॉलेज में पढ़ने वाली थी. मेरे जैसी लड़की कैसे प्रदीप जैसे लड़के के साथ ज़िदगी गुज़ार सके ? मैने पिताजी से कहा : आप मेरी फिकर मत कीजिए, मेरी तीन बहनों की सोचिए. आप रिश्ता मंज़ूर कर दीजिए और सिर पर से करज़े का बोझ दूर कीजिए. में मेरी संभाल लूंगी.अपने हृदय पर पत्थर रख कर पिताजी ने मुज़े प्रदीप से ब्याह दी. तब में 18 साल की थी. में ससुराल आई. पहले ही दिन ससुरजी ने मुझे पास बीठा कर कहा : देख बेटी, में जानता हूँ की प्रदीप से शादी कर के तूने बड़ा बलिदान दिया है मेने तेरे पिताजी का कर्ज़ा भरावा दिया है लेकिन तूने जो किया है उस की क़ीमत पैसों में नहीं गीनी जाती. तूने तेरे पिताजी पर और मुझ पर भी बड़ा उपकार किया है में जवाब मे बोली : पिताजी…………उन्हों ने मुज़े बोलने नहीं दिया. कहने लगे : पहले मेरी सुन ले. बाद में कहना जो चाहे सो. ठीक है ?
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#4
अब तू मुज़ पर एक एहसान ओर कर दे. जल्दी से मुज़े एक पोता दे दे. समजी ? मुज़े बच्चा चाहिए. प्रदीप मेरा अकेला है थोड़ा सा बेकवार्ड है उस के साथ तुज़े सलूकाई से काम लेना होगा. मेने डाक्टर रवि की राई ली है उन का कहना था की प्रदीप जैसे लड़के नपुंसक होते हें और बाप नहीं बन सकते. लेकिन में ये मानने तैयार नहीं हूँ मेने क्या कहूँ तुझ से ? तू जो मेरी बेटी बराबर हो ? ख़ैर, माफ़ करना मुज़े साफ़ साफ़ बताना पड़ेगाउन्हों ने नज़र फिरा ली. बोले : मैने उन का वो..वो देखा है टटार हुआ देखा है मुझे विश्वास है की वो तेरे साथ शारीरिक संबंध कर सकेगा और बच्चा पैदा कर सकेगा. मेरी ये विनती है की तू ज़रा सब्र से काम लेना, जैसी ज़रूर पड़े वैसी उसे मदद करना.ये सब सुन कर मुझे शरम आती थी. मेरा चहेरा लाल लाल हो गया था और में उन के सामने देख नहीं सकती थी. मेने कुछ कहा नहीं. वो आगे बोले : तुमारी सुहाग रात परसों है आज नहीं. में तुज़े एक किताब देता हूँ पढ़ लेना, सुहाग रात पर काम आएगी. और मुझ से शरमाना मत, में तेरे पिता जैसा ही हूँमुझ से नज़र चुराते हुए उन्हों ने मुज़े किताब दी और चले गाये किताब काम शास्त्र की थी. मैने ऐसी किताब के बारे में सुना था लेकिन कभी देखी नहीं थी. किताब में चुदाई में लगे हुए कपल्स के फ़ोटो थे. मैं ख़ूब जानती थी की चुदाई क्या होती है लंड क्या है छूट क्या है सब. फिर भी फ़ोटो देख कर मुझे शरम आ गयी इन में से काई फ़ोटो ऐसे थे की जिस के बारे में मैने कभी सोचा तक ना था. एक फ़ोटो में औरत ने लंड मुँह में लिया था, छी छी इतना गंदा ? दूसरे में वही औरत की भोस आदमी चाट रहा था. एक में आदमी का पूरा लंड औरत की गांड में घुसा हुआ दिखाया था. कई फ़ोटो में एक औरत दो दो आदमी से चुदवाती दिखाई थी. ये देखने में में इतनी तल्लीन हो गयी थी की कब प्रदीप कमरे में आए वो मुज़े पता ना चला.आते ही उस ने पीछे से मेर आँखें पर हाथ रख दया और बोले : कौन हूँ में ? मेने उन की कलाइयाँ पकड़ ली और बोली : छोड़िये कोई देख लेगा. मुज़े छोड़ कर वो सामने आए और बोले : क्या पढ़ती हो ? कहानियाँ की किताब है ? अब मेरे लिए समस्या हो गयी की उन को चुदाई के फ़ोटू वाली किताब कैसे दिखा उन.
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#5
किताब छुपा कर मेने कहा : हाँ, कहानियाँ की किताब है रात आप से कहूँगी.ख़ुश हो कर वो चला गया. कितना भोला था ? उस की जगह दूसरा होता तो मुज़े छेड़े बैना नहीं जाता. दो दिन दरमियान मेने देखा की लोग प्रदीप की हाँसी उड़ा रहे थे. कोई कोई भाभी कहती : देवर्जी, देवरानी ले आए हो तो उन से क्या करोगे ? उन के दोस्त कहते थे : भाभी गरम हो जाय और तेरी समाज में ना आय तब मुज़े बुला लेना. एक ने तो सीधा पूछा : प्रदीप, चूत कहाँ होती है वो पता है ? मुज़े उन लोगों की मज़ाक पसंद ना आई. अब में मेरे ससुरजी के दिल का दर्द समाज सकी. मुज़े उन दोनो पैर तरस भी आया. मैने निर्धार किया की मैं बाज़ी अपने हाथ ले लूंगी और सब की ज़ुबान बंद करवा दूँगी, चाहे मुज़े जो कुछ भी करना पड़ेतीसरी रात सुहाग रात थी. मेरी उमर की दो काज़ीन ननदो ने मुझे सजाया सँवारा और शयन कमरे में छोड़ दिया. दुसरी एक चाची प्रदीप को ले आई और दरवाज़ा बंद कर के चली गयी में घुमटा तान कर पलंग पर बैठी थी. घुँघट हटाने के बदले प्रदीप ने नीचे झुक कर झाँखने लगा. वो बोला : देख लिया, मैने देख लिया. तुम को मैने देख लिया. चलो अब मेरी बारी, मे छुप जाता हूँ तुम मुझे ढूँढ निकालो.छोटे बच्चे की तरह वो चुपा छुपी का खेल खेलना चाहता था. मुझे लगा की मुझे ही लीड लेनी पड़ेगी. घुँघट हटा कर मेने पूछा : पहले ये बताओ की मैं तुम्हे पसंद हूँ या नहीं. प्रदीप शरमा कर बोला : बहुत पसंद हो. मुहे कहानियाँ सुनाएगी ना ? में : ज़रूर सुना उंगी. लेकिन थोड़ी देर मुझ से बातें करो. प्रदीप : कौन सी कहानी सुनाएगी ? वो किताब वाली जो तुम पढ़ रही थी वो? में : हाँ, अब ये बताओ की में तुमारी कौन हूँ प्रदीप : वाह, इतना नहीं जानती हो ? तू मेरी पत्नी हो और में तेरा पतिमें : पति पत्नी आपस में मिल कर क्या करते हें ? प्रदीप : में जनता हूँ लेकिन बता उंगा नहीं. में :क्यूं ? प्रदीप : वो जो सुलेमान है नाकहता है की पति पत्नी गंदा करते हें. मैने पूछा नहीं की सुलेमान कौन था, मैं बोली : गंदा माइने क्या ? नाम तो कहो, में भी जानू तो प्रदीप : चोदते हें. लंबा मुँह कर के में बोली : अच्छा ? बीन बोले उस ने सिर हिला कर हा कही. गंभीर मुँह से फिर मेने पूछा : लेकिन ये चोदना क्या होता है ? प्रदीप : सुलेमान ने कभी मुज़े ये नहीं बताया. शरमा ने का दिखावा कर के मेने कहा : में जानती हूँ कहूँ ? प्रदीप : हाँ, हाँ. कहो तोउस रात प्रदीप ने बताया की कभी कभी उस का लंड खड़ा होता था. कभी कभी स्वप्न दोष भी होता था. रसिकलाल सच कहते थे, उन्हों ने प्रदीप का खड़ा लंड देखा होगा. मेने आगे बातें चलाई : ये कहो, मुझ में सब से अच्छा क्या लगता है तुम्हे ? मेरा चहेरा ? मेरे हाथ ? मेरे पाँव ? मेरे ये..? मेने उन का हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया. प्रदीप : कहूँ ? तेरे गाल. में : मुझे पप्पी दोगे ?प्रदीप : क्यूं नहीं ? उस ने मेरे गाल पैर किस की. मेने उस के गाल पैर की. उनके लिए ये खेल था. मैने जैसा मुँह से मुँह लगाया की उस ने झटके से छुड़ा लिया और बोला : छी छी, ऐसा गंदा क्यूं करती हो ? में : गंदा सही, तुम्हे मीठा नहीं लगता ? प्रदीप : फिर से करो तो. मैने फिर मुँह से मुँह लगा कर किस किया.प्रदीप : अच्छा लगता है करो ना ऐसी पप्पी. मैने किस करने दिया. मैने मुँह खोल कर उस के होठ चाटे तब फिर वो ही सिलसिला दोहराया. मेने पूछा : प्यारे, पप्पी करते करते तुम को ओर कुछ होता है ? प्रदीप शरमा कर कुछ बोला नहीं. मैने पूछा : नीचे पिसब की जगह में कुछ होता है ना ?
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#6
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#7
(25-08-2022, 10:54 AM)varunsingh1990 Wrote: Waiting for thw update....

Namaskar Namaskar Namaskar
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#8
(25-08-2022, 10:54 AM)varunsingh1990 Wrote: Waiting for thw update....

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#9
Osssum
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#10
(25-08-2022, 10:54 AM)varunsingh1990 Wrote: Waiting for thw update....

(25-08-2022, 03:46 PM)neerathemall Wrote:
Namaskar Namaskar Namaskar

(25-08-2022, 04:23 PM)neerathemall Wrote:
[Image: f5108b1abc70c3c4812c55a25a07c8cc.gif]

(25-08-2022, 06:32 PM)vbhurke Wrote: Osssum
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#11
 Inayat Sharma



https://www.cinejosh.com/gallery-large/2...tills.html


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#12
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#13
रोको !
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#14
(25-08-2022, 04:23 PM)neerathemall Wrote:
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#15
प्रदीप : तुम को कैसे मालूम ? में : मैं स्कूल में पढ़ी हूँ इस लिए कहो,, उधर गुदगुदी होती है ना ? प्रदीप : किसी से कहना मतमें : नहीं कहूँगी. में तुमारी पत्नी जो हूँ प्रदीप : मेरी नुन्नी में गुदगुदी होती है और कड़ी हो जाती है में : मैं देख सकती हूँ ? प्रदीप : नहीं. अच्छे घर की लड़कियाँ लड़ाकों की नुन्नी नहीं देखा करती.मैं : में तो स्कूल में ऐसा पढ़ी हूँ की पति पत्नी बीच कोई सीक्रेट नहीं है पत्नी पति की नुन्नी देख सकती है और उन से खेल भी सकती है पति भी अपनी पत्नी की वो वो… भोस देख डकाता है तुम ने मेरी देखनी है ? प्रदीप : पिताजी जानें गे तो बड़ी पिटाई होगी. में : श्ह्ह्हह.. कौन कहेगा उन से ? हमारी ये गुप्त बात रहेगी, कोई नहीं जान पाएगा. प्रदीप : हाँ, हाँ. कोई नहीं जान पाएगा. में : खोलो तो तुमारा पाजामा. पाजामा खोलने में मुझे मदद करनी पड़ी. निकर उतारी तब फ़ान फ़नाता हुआ उस का सात इंच का लंबा लंड निकल पड़ा. में ख़ुश हो गयी मैने मुट्ठी में पकड़ लिया और कहा : जानते हो ? ये तुमारी नुन्नी नहीं है ये तो लंड है प्रदीप : तू बहुत गंदा बोलती हो. मैने लंड पर मूट मारी और पूछा : कैसा लगता है ? लंड ने एक दो ठुमके लगाए. वो बोला : बहुत गुदगुदी होती है मैं : मेरी भोस देखनी नहीं है ?प्रदीप : हाँ, हाँ. मेरे वास्ते शरमा ने का ये वक़्त नहीं था.मैं पलंग पर चित लेट गयी घाघरी उठाई और पेंटी उतर दी. वो मेरी नंगी भोस देखता ही रह गया. बोला : में छू सकता हूँ ? मैं : क्यूं नहीं ? मेने जो तुमारा लंड पकड़ रक्खा हैडरते डरते उस ने भोस के बड़े होठ छुए. मेरे कहने पर चौड़े किए. भीतरी हिस्सा काम रस से गिला था. आश्चर्य से वो देखता ही रहा. मेऐन : देखा ? वो जो चूत है ना, वो इतनी गहरी होती है की सारा लंड अंदर समा जाय. प्रदीप : हो सकता है लेकिन चूत में लंड पेल ने की क्या ज़रूरत ? मैं : प्यारे, इसे ही चुदाई कहते हें. प्रदीप : ना, ना, तुम झूठ बोलती हो. मैं : में क्यूं झूठ बोलूं ? तुम तो मेरे प्यारे पति हो. मेने अभी अपनी भोस दिखाया की नहीं ?प्रदीप : में नहीं मानता. मैं : क्या नहीं मानते ? प्रदीप : वो जो तुम कहती हो ना की लंड चूत में डाला जाता है मुझे वो किताब याद आ गयी मैने कहा : ठहरो, में कुछ दिखाती हूँ किताब के पहले पन्ने पर रसिकलाल का नाम लिखा हुआ था. वो दिखा कर मेने कहा :ये किताब पिताजी की है पिक्चर देख वो हेरान रह गया. मेने कहा : देख लिया ना ? अब तसल्ली हुई की चुदाई में क्या होता है ? उन पैर कोई असर ना पड़ा. वो बोला : मुज़े पिसब लगी हैमें : जाइए पीसाब कर ने के बाद लंड पानी से धो लीजिए, वो पिसब कर आया. उस का लंड नर्म हो गया था.

मैने लाख सहलाया, फिर से हिला नहीं. मुँह में ले कर चुस ती, लेकिन प्रदीप ने ऐसा करने ना दिया. रात काफ़ी बीत चुकी थी. में एक्साइट हो गयी थी लेकिन प्रदीप अनारी था. लंड खड़ा होने पैर भी उस के दिमाग़ में चोद ने की इच्छा पेदा नहीं हुई थी. वो बोला : भाभी, मुज़े नींद आ रही है उस रात से वो मुझे भाभी कहने लगा. मैने उसे गोद में ले कर सुलाया तो तुरंत नींद में खो गया. मैने सोचा आगे आगे चुदाई के पाठ पढ़ा उंगी और एक दिन उस का लंड मेरी चूत में ले कर चुदवा उंगी ज़रूर. लेकिन मेरे नसीब में कुछ ओर लिखा था. उन के कुछ शरारती दोस्तों ने उन के दिल में ठसा दिया की चूत में दाँत होते हैं नूनी जो चूत में डाली तो चूत उसे काट लेगी, फिर वो पीसाब कहाँ से करेगा. मेने लाख समझाया लेकिन वो नहीं माना. मैने कहा की उंगलियाँ डाल कर देख लो की अंदर दाँत है या नहीं. वो भी नहीं किया उस ने. बीन चुदवाये में कम्वारी ही रहरसिकलाल की पहचान वाले और प्रदीप के कई मुँह-बोले दोस्तों में से कितने भी ऐसे थे जिस ने मुझ पर बुरी नज़र डाली. दूर के एक देवर ने खुला पूछ लिया : भाभी, प्रदीप चोद ना सके तो गभराना नहीं, मैं जो हूँ चाहे तब बुला लेना. उन सब को मैने कह दिया की प्रदीप मेरे पति हें और मुझे अच्छी तरह चोद ते हें. दिन भर मैं उन सब का हिम्मत से सामना करती थी, रात अनारी बालम से बीन चुदवाये फूट फूट कर रो लेती थी. रसिकलाल लेकिन हुशियार थे, उन को तसल्ली हो गयी थी की प्रदीप ने मुझे चोदा नहीं था. मुझे शक है की चुपके से वो हमारे बेडरूम में देखा करते थे.
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