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Adultery बरसात की एक रात पूनम के साथ (II)
#1
बरसात की एक रात पूनम के साथ   (II)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
बात उस समय की है जब मैं पटना में रह कर इन्जिनीयरिंग की तैयारी कर रहा था, तब मेरी उम्र करीब 19 साल थी। मैंने जरूरत के हिसाब से सारे ट्यूशन लेने शुरु कर लिये थे। मेरी अंग्रेजी थोड़ी कमजोर थी, तो मैं अंग्रेजी के लिए भी ट्यूशन पढ़ता था।

वहाँ मेरी मुलाकात बहुत लड़के-लड़कियों से हुई। मेरी अंग्रेजी भी सुधरने लगी। मेरी मुलाकात वहाँ पूनम से हुई। पूनम देखने में साधारण सी लम्बी सी पतली सी लड़की थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मुझे उसकी सादगी बहुत पसन्द आई। पहली ही मुलाकात में मैं उसे चाहने लगा था। मैंने उससे बात करने की ठानी।

उस दिन हमारा भाषण यानि speech की क्लास थी, सो मैंने उसे स्टेज पर आमन्त्रित किया। वो शायद स्टेज पर नहीं आना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे फिर भी बुला लिया।

उसने स्टेज पर जाकर अपना भाषण खत्म किया। उसने काफ़ी अच्छा भाषण दिया।

जब हमारी क्लास खत्म हुई, तो मैंने उससे पूछा- तुम जाना क्यो नहीं चाहती थी?

वो बोली- मुझे घबराहट हो रही थी।

मैंने उससे मुस्कुराते हुए फिर पूछा- अब तो नहीं हो रही ना घबराहट?

तो उसने मुस्कुराते हुए ही बोला- नहीं !

मैंने बोला- बहुत अच्छा !

और हम चले गये।

पूनम के बारे में बता दूँ, तो वो 18 साल की साधारण सी दिखने वाली लड़की थी, असल में वो काफ़ी सुन्दर थी, पढ़ाई में भी अच्छी थी। उसके साथ कुछ भी गलत करने का मन नहीं कर सकता था।

मेरा मन उससे दोस्ती करने का हुआ तो मैंने उससे कहा- पूनम, मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।

तो उसने कहा- ठीक है।

उसके बाद से हम हमेशा साथ में ही बैठते थे। तो दोस्तो के ताने आने शुरु हो गये कि कभी तो हमारे साथ भी समय गुजारो। पर हम दोनों ने इस बात पर गौर नहीं किया। हम अंग्रेजी की क्लास के बाद ख़ुदाबक्श लाईब्रेरी जाते थे, साथ में पढ़ाई करने के लिए। हमारी दोस्ती धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। हम अब ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताने लगे।

ऐसे ही तीन महीने बीत गये, मुझे अब लग रहा था कि मैं उससे प्यार करने लगा था। पर मैं सही समय का इंतजार करने लगा उससे अपने मन की बात बोलने के लिए।

मैंने बात करने के लिये उसे अपने हॉस्टल के नज़दीक के PCO का नम्बर दे दिया था।

एक दिन उसने खुद से मुझे फ़ोन किया और कहा- मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ।

मैंने कहा- हाँ, तो ठीक है, हम क्लास में मिलते हैं ना।

तो उसने कहा- नहीं, क्लास में नहीं, कहीं और ! तुम दरभंगा हाऊस आ सकते हो?

मैंने बोला- दरभंगा हाऊस? यह कहाँ है?

"तुम्हें नहीं पता?"

"नहीं !"

"एक काम करो, लाईब्रेरी के पास आ जाओ, हम वहीं से चलते हैं।"

मैंने कहा- ओ के, ठीक है, मैं आता हूँ।

मैं तैयार होकर वहाँ के लिए निकला। मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि वो अभी तक नहीं आई है। मैंने थोड़ा इंतजार किया, थोड़ा और किया, अब मुझे गुस्सा आने लगा, अभी कुछ बोलने ही वाला था कि वो मुझे दिखी। मेरा दिल धक से रह गया। वो काले रंग के सूट में थी और क्या बताऊँ वो किसी हुस्नपरी से कम नहीं लग रही थी।

इत्तेफ़ाक से मैंने पर्पल शर्ट, ब्ल्यू जीन्स के साथ पहना था।

वो मुस्कुराते हुये आई और बोली- काफ़ी देर से खड़े हो क्या?

मैंने झूठ बोल दिया- अरे नहीं, मैं भी बस अभी अभी आया हूँ।

वो बोली- चलो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
और मैं उसके साथ आज्ञाकारी बच्चे की तरह चल पड़ा। मेरी पहली बार नीयत बिगड़ने लगी। हम कभी साथ में चलते तो मैं कभी उसके पीछे होकर उसे निहारता। बला की खूबसुरत लग रही थी वो, आगे से भी और पीछे से भी।

मेरी नीयत उसे पकड़ कर चूमने की होने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा ही था तो वो बोल पड़ी- मनोज, ऐसा ना करो, हाथ छोड़ो।

मैंने उसे देखा और उसका हाथ छोड़ दिया, सोचने लगा कि इसे क्या काम आ गया है जो इसने मुझे यहाँ बुलाया है।

उसके ऐसा कहने से मेरा मूड खराब हो चुका था, फिर भी मैं उसके साथ जा रहा था। हम दरभंगा-हाऊस के अन्दर गये तो मैं यह देखकर काफ़ी हर्षित हुआ। यह गंगा नदी के किनारे है और बगल में काली मन्दिर भी है। मुझे नदी किनारे बैठना बहुत पसन्द था और अभी भी पसन्द है।

तो पूनम ने वहाँ एक कोने का जगह देखी और हम वहाँ बैठ गये। हम कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे लेकिन एक-दूसरे को नहीं देख रहे थे।थोड़ी देर बाद मैंने ही बोलना शुरू किया और पूछा- क्या बात है पूनम, मुझे यहा क्यों बुलाया है?

उसने कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही मन नहीं लग रहा था, तो मैंने सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ। क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?

मैंने कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं है, लेकिन मैं चिन्तित हो गया था कि क्या हो गया भला।

"मेरा मन आज कुछ उचाट हो रहा था, तो सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा हैं कि तुम्हें अच्छा नहीं लगा, तो चलो, हम यहाँ से चलते हैं !"

"अरे कहा ना, ऐसी कोई बात नहीं है।"

"पक्की बात?" उसने पूछा।

"हाँ सच कह रहा हूँ।" और मैं मुस्कुरा दिया।

वो मुझसे उसके घर के बारे बात करने लगी। बात-बात में उसने बताया कि उसकी छोटी बहन की मौत उसकी वज़ह से हुई, और कह कर रोने लगी क्योंकि आज उसकी छोटी बहन का जन्मदिन था और इसीलिये वो मिलना मुझसे चाहती थी।

मैंने डरते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, हल्के से दबाया और कहा- ऐसा मत करो पूनम, तुम्हारी बहन को दुख होगा। और जिसका समय हो जाता है उसे जाना ही पड़ता है ना ! दुखी होने से गया हुआ वापिस नहीं आता ! तुम खुश रहोगी तो उसकी आत्मा को भी सुकून मिलेगा।

और उसे मैंने अपने तरफ़ हौले से खींचा, उसने अपना सर मेरे कन्धे पर रख दिया और उसने अपनी आँखें बन्द कर ली।

मैं धीरे-धीरे उसके कन्धे और उसके बांह को सहलाने लगा। वो अभी भी रो रही थी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछने लगा, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी।

वो अभी बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके कपोल सुर्ख हो गये थे, उसके होंठ पतले थे। मैंने पहली बार उसका चेहरा इतने करीब से देखा था। मन हो रहा था कि मैं उसके होठों को चूम लूँ पर डर भी लग रहा था।

मैं वैसे ही उसका चेहरा पकड़े रहा तो उसने अपनी आँखें खोली और पूछने लगी- ऐसे क्या देख रहे हो?

"बहुत खूबसूरत लग रही हो पूनम तुम !" मैंने बोला।

"हम्म, क्यों झूठ बोल रहे हो ! मैं और सुन्दर?" वो बोली।

"अरे नहीं, मैं सच बोल रहा हूँ !" मैंने कहा।

और मैंने अपना सिर उसके सिर से सटा दिया। हमारी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगी। मैं उसकी साँसों की खुशबू में खोने लगा। हम दोनों की आँखें बन्द होने लगी।

फ़िर मैंने अपनी आँखें खोली तो उसने भी अपनी आँखें खोल ली और हमने एक-दूसरे को देखा, फ़िर मैंने उसके कन्धों को पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। हमारी आँखें एक-दूसरे को देख रही थी। उसने फ़िर अपनी आँखें बन्द कर ली और मैं उसके लबों को चूमने लगा, थोड़ी देर में वो भी मेरा साथ देने लगी और मेरे होठों को चूसने लगी।

मैं अब उसको अपनी बाँहों में भींचने लगा। उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। हम एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे।

तभी एक पत्थर हमारे आगे आकर गिरा तो हमे होश आया कि हम किसी सार्वजनिक स्थल पर बैठे हुए हैं।
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#4
हम अलग हो गये, उसने अपने आप को ठीक किया। हम एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे और एक दूसरे का हाथ पकड़ वहाँ से चल दिये।

हमारा प्यार बढ़ने लगा। हम अक्सर पार्क में मिलने लगे और मौका मिलता था तो हम एक-दूसरे को चूमते थे, प्यार करते थे।

फ़िर हम अपनी परीक्षा में व्यस्त हो गये। परीक्षाएँ खत्म होने के बाद सब अपने-अपने घर को जाने लगे।

मैंने पूनम से पूछा- तुम भी घर जा रही हो?

और उदास हो गया।

"नहीं !" उसने कहा।

"सच्ची?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

"सच्ची मुच्ची !" उसने हँसकर मुझे चूमते हुए कहा।

"क्यों, घर पर क्या बोला है?" मैंने पूछा।

"मैंने बोला है कि मैं अगले महीने के पहले हफ़्ते में आऊँगी।" वो मुस्कुराते हुए बोली।

अभी वो मेरे गोद में थी, फ़िर हम एक-दूसरे से शरारतें करने लगे, सताने और फ़िर चूमने और लगे।

शाम को मैं उसे उसके पी जी होस्टल छोड़ने गया। वो दो और लड़कियों के साथ रहती थी। हम वहाँ पहुँचे तो उसकी एक रूममेट जो कि एकदम माल लग रही थी, वो पूनम के गले लगी और बोली- तूने आने में देर कर दी। मैं अब जा रही हूँ।

वो दोनों मेरे तरफ़ देख कर हँसने लगी। मैंने भी अपना हाथ उठा कर 'हाय' बोला तो बदले में उन्होंने भी हाथ उठा कर अभिवादन किया। फ़िर वो चली गई तो पूनम मेरे पास आई और बोली- ये मेरी रूम-मेट हैं।

मैं उसे 'बाय' बोल कर अपने होस्टल चला आया। उस समय मोबाईल का इतना प्रचलन नहीं था। तो मैं उसे फ़ोन भी नहीं कर सकता था पर उसके यहाँ फोन था तो मैं उसे डिनर के बाद फ़ोन किया। हमने इधर-उधर की बातें की और अगले दिन मिलने के लिये बोल कर फ़ोन रख दिया।

सुबह में हम क्लास के बाहर मिले तो मैंने उससे पूछा- मूवी देखने चलना है?

"नहीं !" वो बोली- कहीं और चलते हैं।

"कहाँ?" मैंने पूछा।

"इधर-उधर, गोलघर चलो।"

"मौसम देखा है. कभी भी बारिश हो सकती है !"

"तो क्या हुआ. चलना है?"

मैंने बोला 'चलो' और हम चल दिये। हमने आटो लिया और वहाँ पहुँच गये। हम ऊपर तक गये और वहाँ खड़े होकर बात करने लगे। वो बोली- आज से वो चार दिनों के लिये अकेली हो जायेगी।

"क्यो?" मैंने पूछा।

फ़िर मैंने खुद ही समझ कर बोला- अच्छा, वो तुम्हारी दूसरी रूम-मेट भी जा रही है क्या?"

"हाँ !" उसने बोला।

"मैं तो बोर हो जाऊँगी। तुम क्या करोगे?" उसने मुझसे पूछा।

मैं रोमांटिक मूड में था तो मैंने बोल दिया 'तुमसे प्यार'

कहा और कह कर हम दोनों ही हँस पड़े।

तभी बारिश आ गई। हम दोनों नीचे आते आते पूरे ही भीग गये। फिर वो थोड़ी रोमांटिक होने लगी। हमें एक-दूसरे का स्पर्श अच्छा लगने लगा, मैं बोला- चलो मैं तुम्हें होस्टल छोड़ देता हूँ।

"ठीक है !" वो बोली।

हमने रिक्शा लिया और चल दिये।
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#5
तभी बारिश आ गई। हम दोनों नीचे आते आते पूरे ही भीग गये। फिर वो थोड़ी रोमांटिक होने लगी। हमें एक-दूसरे का स्पर्श अच्छा लगने लगा, मैं बोला- चलो मैं तुम्हें होस्टल छोड़ देता हूँ।

"ठीक है !" वो बोली।

हमने रिक्शा लिया और चल दिये।

रास्ते भर हम एक-दूसरे का हाथ मसल रहे थे। उसके हॉस्टल पहुँचने के बाद बारिश और तेज होने लगी तो पूनम ने बोला कि बारिश कम हो जाये तो चले जाना।

मैं तो यही चाहता था कि मैं अभी पूनम को छोड़ कर नहीं जाऊँ तो मैं उसके साथ उसके कमरे में चला गया।

बहुत अच्छे तरीके से कमरे को सजाया था उसने। मैंने देख रहा था तभी वो तौलिया लेकर आई और बोली- सर पोंछ लो।

मैंने उसी से बोल दिया- तुम ही पोंछ दो।

वो हँसी और मेरा सिर तौलिये से पोंछने लगी। फ़िर वो सामने आकर अपने बालों को तौलिये से पोंछने लगी। उस समय वो और भी खूबसूरत लगने लगी। हमारे कपड़े अभी भी भीगे हुये थे। अभी मैंने पूनम को पूरा निहारना शुरू किया तो वो शरमा गई। मैं उठा, पूनम के पास आया, उसे उठाया और मैंने अपने गले से लगा लिया और अपने में भींच लिया।

एक बारगी तो वो हल्के से बोली- मनोज !

मैंने उसे अनसुना कर दिया और उसे और कस कर भींच लिया। अब उसने भी अपनी हाथों को मेरे पीठ पर ना शुरू कर दी। मेरा लण्ड जो 7 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा है, सलामी देने लग़ा और उसकी चूत के पास सट रहा था। मुझसे बरदाश्त नहीं हुआ तो मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर दबा दिया। वो थोड़ी सहमी लेकिन उसने भी इसमें मेरी मदद की।

अब मैंने उसका चेहरा उठाया और उसके होंठों को चूमने और चूसने लगा। वो भी मेरा साथ देने लगी। हमने लगभग आधे घंटे तक एक-दूसरे को चूमा, फ़िर मैंने उसका एक हाथ उठा कर अपने लण्ड पर रख दिया। उसने अपना हाथ हटा लिया।

मैंने उसका हाथ दुबारा अपने खड़े हुए लण्ड पर रखा। इस बार उसने मेरा लण्ड धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। मैं उत्तेजित होने लगा। यह मेरा पहली बार था जब किसी लड़की का हाथ मेरे लण्ड को छू रहा था। मैं उसे पागलों की तरह चूमे जा रहा था।

फ़िर मेरे हाथों ने हरकत करनी शुरू की, मेरे हाथ उसकी चूचियों को सहलाने लगे। उसके उरोज कड़े हो गये थे। जब मैंने उसके चुचे दबाये तो उसके मुँह से सीऽऽऽऽऽ की हल्की-सी सिसकारी निकल गई।

मैंने उसे अलग किया, उसकी आँखों में देखा। हम दोनों के चेहरे पर कोई भी भाव नहीं था। मैंने उसके कुरते को निकाल कर अलग किया। उसने कोई भी विरोध नहीं किया। वो मेरे सामने केवल उजली ब्रा और काली पजामी में थी, कयामत लग रही थी।

मैं उसे देखने लगा, वो शरमा गई, बोली- ऐसे मत देखो, मुझे शर्म आ रही है।

कह कर अपने हाथों से अपने वक्ष को ढकने लगी। मैंने उसके हाथों को हटा कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया, अपने सीने से लगा लिया।उसने मेरा शर्ट उतार दिया। मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी। हमने एक-दूसरे को गले लगा लिया। पहली बार किसी लड़की का स्पर्श हुआ था। पूरे शरीर में तरंगें उठने लगी। उसके कड़े चुचे मेरे सीने में गड़ने लगे लेकिन अच्छा भी लग रहा था।

मैंने पूनम से बोला- पूनम, यह मेरा पहली बार है।

वो बोली- मेरा भी।

मैंने पूछा- कोई आएगा तो नहीं ना?

वो बोली- नहीं, कोई नहीं है, अगले 4 दिनों तक तुम चाहो तो 4 दिन आराम से मेरे साथ रह सकते हो।

मैंने कहा- नेकी और पूछ पूछ !

और हम हँसने लगे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#6
हमने फ़िर चूमाचाटी करना शुरू किया। अब मैंने अपना हाथ पजामी के ऊपर से उसकी चूत पर रखा तो वो चिहुँक गई। वह भी अपना हाथ मेरे लण्ड पर रखकर सहलाने लगी। हम दोनों गर्म होने लगे। अब हम जंगलियों की तरह चुम्बन करने लगे, एक-दूसरे को खा जाना चाहते थे हम।

उसने मेरे जीन्स के बटन खोल के अपना हाथ अन्दर डाल कर मेरे लण्ड को पकड़ लिया और उसे आगे-पीछे करने लगी। मैंने भी उसकी पजामी के अन्दर हाथ डाल कर उसकी चूत पर हाथ रख दिया। वो फ़िर चिहुंक गई। वो पूरी तरह से गीली हो गई थी। वो मेरा लण्ड और मैं उसकी चूत को सहला रहा था। फ़िर हमने अपने बाकी बचें हुए कपड़े भी उतार दिये।

हम बिल्कुल नंगे थे एक-दूसरे के सामने।

मैंने उसे लिटा दिया और मैं उसके ऊपर लेट गया, हमारी साँसें टकरा रही थी, हम पूरी मस्ती में थे। मैं उसकी सुराहीदार गर्दन को चूमने लगा। वो और मस्त हो गई और उसकी सिसकारी और तेज़ हो गई- आऽऽऽ अऽऽऽ मनोज़ऽऽऽऽऽ अऽ !

मैं अब उसकी चूचियों से चूस कर खेल रहा था। वो भी पूरे मस्ती में थी और सेक्सी आवाज़ें निकालने लगी- ओहऽऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ मनोज़, मनोज़ ! करने लगी।

मैं और नीचे जाते हुए अब उसके चूत के पास मेरा मुँह था। मैंने नंगी फ़िल्मों में देखा था सो मैं वही करने जा रहा था। तो उसने रोक दिया- छीः ! नहीं मनोज़।

मैंने बोला- अरे कुछ नहीं होगा। तुम्हें अच्छा लगेगा।

कहकर मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ लगा दी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी।

"आहहहहहहहहहऽऽऽऽऽऽ मनोज़, आहहहह...नहीईईईई, मनोज़ अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है, कुछ करो प्लीज।"

कहकर मेरा चेहरा अपने चूत पर दबाने लगी। उसके चूत से नमकीन पानी आने लगा।

मैं उठा और अपना लण्ड उसके होठों में लगा दिया तो वो बोली- नहीं, मैं नहीं करूँगी।

मैंने बोला- कम ऑन पूनम, तुम्हें अच्छा लगेगा। मुझे तुम्हारा अच्छा लगा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#7
थोड़ा ना-नुकुर के बाद वो मान गई। उसने मुँह में मेरा लण्ड लिया। बहुत अजीब लेकिन सुखद एहसास था। उसके मुँह की गर्मी मेरे लण्ड को बहुत अच्छी लग रही थी। लेकिन उसने तुरंत ही निकाल लिया, पहली बार था शायद इसिलिए उसे अच्छा नहीं लग रहा था।

अब वो बोली- अब कुछ करो मनोज़ जल्दी। यह कहानी आप HotSexStory.xyz पर पढ़ रहे हैं।

मैंने पूछा- तुम्हें मेरा लण्ड चूसना अच्छा नहीं लगा क्या?"

वो थोड़ी शरमा कर बोली- अच्छा लगा मुझे, लेकिन अब बाद में।

मैंने बोला- ठीक है।

अब मैं उसके ऊपर था और अपने लण्ड को उसके चूत पर रख कर बोला- पूनम, थोड़ा दर्द होगा, सह लोगी ना?

उसने हल्के से 'हाँ' में सिर हिला दिया। मैंने अपना लण्ड उसके चूत पर लगा कर एक हल्का सा धक्का दिया तो मेरा सुपारा अन्दर चला गया !

"आहहहहहहहह" उसके मुँह से हल्की सी चीख निकली।

मैंने एक और धक्का दिया, मेरा 3 इंच लण्ड उसके चूत में चला गया, इस बार वो थोड़ा तेज़ चीखी और बोली- मनोज़, बाहर निकाल लो, बहुत दर्द हो रहा है।

मैंने बोला- तुमने ही बोला था ना कि तुम दर्द सह लोगी।

इतना बोल मैंने एक और धक्का दिया।

"आअआ आआआ आआआआ सऽऽअऽऽऽऽऽऽऽ"

उसकी झिल्ली के पास आकर मेरा लण्ड अटक गया, मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरा लण्ड अन्दर जा क्यों नहीं रहा है। पूनम दर्द में थी, मैंने पूनम से पूछा- मेरा अन्दर क्यों नहीं जा रहा है पूनम?

वो बोली- हमारे अन्दर झिल्ली होती है, तुम्हारा वहीं पर अटका हुआ है, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, निकाल लो ना मनोज़ प्लीज।

मैं बोला- पूनम आज मत रोको प्लीज।

कह कर मैंने एक और ज़ोरदार धक्का दिया, इस बार उसकी फ़ाड़ते हुये मेरा लण्ड पूरा घुस गया। इस बार उसकी काफ़ी तेज़ चीख़ निकल गई, उसकी आँखों में आँसू आ गये और मैं डर गया था कि चीख सुन कर कोई आ ना जाये।

मैं धक्के मारना बंद कर उसके होंठों को चूमने लगा। जब वो थोड़ी शांत हुई तो वो खुद ही अपने कमर उठा कर मेरा लण्ड अन्दर लेने लगी।

"ठीक हो?" मैंने पूछा।

"चुद रही हूँ तो मैं ठीक कैसे हो सकती हूँ?" कह कर मुस्कुराई।

उसे ऐसा कहते सुन मुझमें पता नहीं कहाँ से जोश आ गया, मैं तेज़ तेज़ धक्के मारने लगा, हमारी मस्ताई आवाज़ें पूरे कमरे में गूंज रही थी।

"आआआआहहहह, ओहह, मनोज़ऽऽऽ आआआहहहह मर गई मैं, धीरे आआहहहह !"

10 मिनट की चुदाई के बाद उसका शरीर अकड़ने लगा, वो बोली- तेज़ और तेज़ आआआहह ह आआहहह हहह" कह कर मुझे कस कर पकड़ लिया।

मैं रुक गया, कुछ देर बाद उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया, मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो वो शरमाते हुये बोली- मेरा हो गया।

मैंने बोला- मेरा तो बाकी है.

बोल कर मैं तेज़ तेज़ धक्के मारने लगा। फ़िर से पूरे कमरे में आहें गूंजने लगी।

20-30 तेज़ धक्के मारने के बाद मेरा निकलने वाला था, मैंने पूनम को बोला- पूनम, मैं झड़ने वाला हूँ।

वो तपाक से बोली- अन्दर नहीं गिराना।

तो मैंने अपना लण्ड बाहर निकाल कर उसकी चूत पर मुठ मारने लगा तो उसने मेरा लण्ड अपने हाथों में लिया मेरा मुठ मरवाने लगी। मैं उसे चूम रहा था और उसके हाथ मेरा काम कर रहे थे।

"तेज़ पूनम तेज़ ! मेरा निकलने वाला है।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
वो तेज़ तेज़ हिलाने लगी।

"आआहहहह्हह पूनमऽऽऽऽऽ !" बोल कर मैं उसके हाथों में झड़ गया। मैं उसके ऊपर ही लेट गया और चूमने लगा। वो मुझे कस कर पकड़े हुये थी। हम दोनों आनन्द में सराबोर थे। उठ कर देखा तो पूरे बिस्तर पर खून फ़ैला थ।

हम फ़िर लेट गये। मैं फ़िर उठा और उसके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाकर पूछा- तुम रो क्यों रही थी?

तो वो हँसते हुये मुझे गले लगाते हुये और चूमते हुए बोली- अरे बुद्धू, दर्द से मेरे आँखों में आँसू आ गये थे।

मैंने पूछा- पूनम, तुम्हें बुरा तो नहीं लगा ना?

तो वो मेरे होंठों को चूमते हुये बोली- नहीं।

और इस तरह से हमने पहली बार सेक्स किया। उस दिन हमने पूरी रात सेक्स का मज़ा लिया। हमने 4 बार और सेक्स किया उस दिन।

अगले 4 दिनों तक हम बिल्कुल पति-पत्नी की तरह रहे और प्यार करते रहे।

4 दिनों के बाद हम अपने काम में लग गये। हम रोज़ मिलते थे।

एक दिन अचानक वो मुझे बिना बताये अपने घर चली गई हमेशा के लिये।

मेरा भी नामांकन पुणे के इंजिनियरिग कॉलेज में हो गया। मैं उसे हमेशा याद करता था। मेरे पास अभी भी मोबाईल नहीं था और घर से उतने पैसे नहीं मिलते थे कि मैं हमेशा उससे बात कर पाता।

एक दिन फ़ोन किया तो पता चला कि उसकी मौत हो गई। उसको ब्लड कैंसर था और उसने मुझे नहीं बताया था कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा, क्योंकि मैं उसे बहुत प्यार करने लगा था। मैं फोन पकड़े वैसा-का वैसा ही खड़ा रहा।
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#9
(16-08-2022, 05:09 PM)fneerathemall Wrote:
बरसात की एक रात पूनम के साथ   (II)

yourock
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