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Incest फुफेरे भाई के साथ
#1
फुफेरे भाई के साथ

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
उस समय मेरी उम्र 23 साल थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
मैं और मेरे घरवाले एक पारिवारिक समारोह में एक रिश्तेदार के यहां गांव गए हुए थे.
क्योंकि फंक्शन बड़ा था इसलिए काफी रिश्तेदार इकट्ठा हुए थे.

यह फंक्शन काफी दिनों तक चलने वाला था.

मैं काफी सालों बाद किसी पारिवारिक समारोह में जा रही थी इसलिए सब रिश्तेदारों को थोड़ा थोड़ा भूल भी गयी थी, पर कुछ याद भी थे.

वहां पर सब रिश्तेदारों का रुकने का अच्छा प्रबंध किया हुआ था.
अच्छी बात ये थी कि सारे बड़े लोगों को रहने के लिए अलग घर में कमरे दिए गए थे.
और जो कम उम्र के थे, उनके लिए अलग घर में स्थान दिया गया था ताकि सब समय का भरपूर आनन्द लें.

मैं जहां रुकी थी, वहां मेरे सारे रिश्तेदारों के बच्चे और भतीजे वगैरह रुके हुए थे.

उन्हीं में एक लड़का था विपिन.
वो मेरी बुआ का लड़का था. वो भी अपने घर से इसी भवन में रहने आ गया था जबकि उसका घर इसी गांव में था.

विपिन को वैसे तो मैं बचपन से जानती थी.
उसकी उम्र उस वक़्त 19 साल के लगभग की थी, जब उसके साथ मेरे जिस्मानी सम्बन्ध बने.

जब मैं छोटी थी तो गर्मियों की छुट्टियों में उसके घर में जाती थी. उन दिनों हम दोनों खूब मस्ती करते थे.
फिर हम सब बड़े होते चले गए तो आना जाना और बातचीत काफी कम हो गयी थी.

क्योंकि मैं उम्र में उससे कुछ साल बड़ी थी इसलिए वो मुझे दीदी कह कर बुलाता था.

शुरू में तो हम दोनों ज्यादा बातचीत नहीं कर पाए, पर फिर धीरे धीरे घुलते मिलते चले गए.

एक दिन दोपहर में सब लोग खा पीकर एक दूसरे के साथ गप्पें मार रहे थे.

धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि विपिन कभी कभी मुझे देखता रहता था और जब वापस उसे देखती, तो नजर इधर उधर कर लेता था.

शुरू में तो मैंने ऐसा वैसा कुछ नहीं सोचा, पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि लौंडा नया नया जवान हुआ है … इसलिए शायद वैसे ही आकर्षित होगा.
इसलिए मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

धीरे धीरे हम सब साथ में घुलने मिलने लगे.
कभी कभी गलती से अगर मेरे शरीर का कोई हिस्सा विपिन से छू जाता तो वो असहज हो जाता था.

एक बार ऐसे ही हम दोनों थोड़ा अलग से होकर बात कर रहे थे तो मैंने अंजाने में उसका हाथ पकड़ लिया.
फिर तो बस वो हकला हकला कर बोलने लगा.
मैंने सोचा शायद शर्मा गया होगा या लड़कियों के साथ ज्यादा घुलता मिलता नहीं होगा.

मैंने ऐसे ही बातों बातों में मज़ाक में उससे पूछा- क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?
ये सुनकर तो वो बिल्कुल शर्मा गया और बोला- क्या दीदी आप भी ना, ऐसी कोई बात नहीं है.

मैंने मज़ाक भरे लहजे में कहा- अरे चलो कोई बात नहीं, कभी दिल्ली आना. मैं पक्का तुम्हारी गर्लफ्रेंड बनवा दूंगी.
वो शर्मा गया.

फिर मैंने पूछा- कैसी लड़की पसंद है तुम्हें?
उसने थोड़ा शर्माते हुए कहा- बिल्कुल आप जैसी.

मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए उसे प्यार से चपत लगा दी और बोली- क्या कहा तुमने!
विपिन थोड़ा सकपकाते हुए बोला- अरे मेरा मतलब आप जैसे स्वभाव की.

मैंने मज़ाक करते हुए कहा- मेरे जैसी मिलनी तो मुश्किल है, चलो मुझे ही बना लेना. बस जहां मैं बोलूं, घुमा देना और कुछ अच्छा सा खिला देना.
उसने बोला- ठीक है दीदी.

मैंने आगे बोला- और हां, दिल्ली में गर्लफ्रेंड को दीदी नहीं बुलाते.
वो हंस दिया.

फिर बस हम इधर उधर की बात करके अपने अपने कमरों में चले गए.
धीरे धीरे मुझे ये भी समझ आ गया कि वो मौका पाकर मेरे शरीर के अलग अलग हिस्सों को निहारता रहता है.

एक दिन वो दूर बैठा हुआ था तो मैंने देखा कि वो फोन में देखते हुए अपने लंड को हल्के हाथों से सहला रहा है.
मैं समझ तो गयी पर सोचा कि चलो इसे डराती हूँ.

मैं उसके पास पीछे से गयी और ‘हौ …’ करके डरा दिया.

हड़बड़ाहट में उसके हाथ से फोन फर्श पर गिर गया.
मैंने नीचे फोन पर देखा, तो उस पर मेरी ही फोटो खुली हुई थी और इधर विपिन का लंड खड़ा हो रखा था.

अब मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये क्या कर रहा था.

मैंने कहा- ये क्या कर रहे थे?
विपिन हड़बड़ाते हुए बोला- दीदी वो मैं … मैं … व्वो वो कुछ नहीं.

मैंने थोड़ा गुस्से से में कहा- ये सब क्या है … मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं कि ना समझ सकूँ कि तुम क्या कर रहे थे?

पहले तो मुझे गुस्सा आया पर फिर थोड़ी देर बाद मैंने सोचा कोई बात नहीं सुहानी, लड़का नया नया जवान हुआ है, खूबसूरत जिस्म देख कर बहक गया होगा. वैसे भी तू इतनी खूबसूरत है तो क्या फर्क पड़ गया. क्यों बात का बतंगड़ बना रही.

मैंने ऐसे ही हल्का सा चांटा मारते हुए कहा- सुधर जाओ बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो … इस सब में मत पड़ो.
बस मैं मुस्कुराती हुई वहां से चली गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#4
मेरी कोई कठोर प्रतिक्रिया ना होने से विपिन के अरमानों को तो जैसे हवा मिल गयी.

अब तो वो जब-तब मेरी फोटो खींचने लगा.
मैंने भी कोई ज्यादा विरोध नहीं किया; उल्टा मैं ही उसे छेड़ देती, कभी आंख मार देती, कभी हाथ भींच देती.

मैंने सोचा कि लगता है इस बार यहां कुछ एक्शन होने वाला है.

ये मैंने महसूस किया है दोस्तो … कि हम सभी के साथ कभी न कभी ऐसा होता है कि जो कुछ भी होने वाला होगा, तो हमें पहले ही उसका आभास सा हो जाता है.

मैंने भी फैसला किया कि जो होगा देखा जाएगा.

अब तो मैं भी हर छोटे-छोटे काम के लिए विपिन को ही बुलाने लगी. कभी हम बाजार जाते, कभी खेतों में, कभी कभी ऐसे ही घूमने निकल जाते.
इधर विपिन भी बाइक पर जाते हुए जानबूझ कर बाइक के ब्रेक जोर से लगा देता था ताकि मेरे बूब्स उसकी कमर से रगड़ जाएं.

कभी कभी मैं जानबूझ कर इस तरीके से छेड़ देती थी कि उसकी पैंट में हरकत हो जाए.
शुरू में तो मैं ये सब बस उसे छेड़ने के कर रही थी पर धीरे धीरे मुझे इस सब में मजा आने लगा था.

हो सकता है आप में से कुछ पाठकों ये सब गलत लगे, पर आप सबमें से कुछ लोगो के साथ तो ऐसा जरूर हुआ होगा कि अपनी रिश्तेदारी में ही किसी पर दिल आ गया होगा … या कम से कम अच्छा तो लगने लगा होगा.

खैर … आप वो सब छोड़ कर सिर्फ कहानी का लुत्फ लीजिये.

धीरे धीरे हमारे बीच और नजदीकियां आती चली गईं, पर घरवाले और बाकी लोग इस सबसे अंजान थे.

एक दिन रात को सब सोने की तैयारी कर रहे थे पर मुझे नींद नहीं आ रही थी.
तो मैंने टाइमपास करने के लिए अपने लैपटाप पर एक फिल्म लगा ली और इयरफोन लगा कर फिल्म देखने लगी.

एक एक करके ज़्यादातर लोग सो गए.

फिर थोड़ी देर में विपिन मेरे पास घुटनों के बल चलता हुआ आया और बोला- दीदी, मुझे भी दिखा दो फिल्म! मुझे नींद नहीं आ रही है.
मैंने कहा- ठीक है आ जा.

और वो मेरी चादर में ही आ गया.
मैंने एक इयरफोन उसके कान में लगा दिया और एक अपने कान में.
अब हम दोनों फिल्म देखने लगे.

फिल्म के बीच बीच में मेरे और उसके पैर आपस में छुए जा रहे थे पर मैं इस बात से अंजान थी क्योंकि मेरा ज्यादा ध्यान फिल्म में था.

हालांकि विपिन को मेरे चिकने पैरों से पैर छू जाने से हल्की हल्की उत्तेजना होती जा रही थी. पर फिर भी वो फिल्म देखने में लगा हुआ था.

कुछ देर बाद विपिन बोला- दीदी, क्या मैं आपका हाथ पकड़ सकता हूँ.
मैं फिल्म में इतनी व्यस्त थी कि मैंने बिना कुछ पूछे उसके हाथ में अपना हाथ दे दिया.

हम दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ था और चादर के अन्दर किया हुआ था.
तभी अचानक से फिल्म में एक चुंबन का दृश्य आ गया और उसी के ठीक बाद सेक्स सीन भी, तो हम दोनों एकदम से जाम हो गए.

मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी और विपिन भी थोड़ा असहज सा हो कर ठीक से बैठ गया.
कुछ पल तो हम दोनों ही सीन को बुत बने देखते रहे.

फिर मैंने फिल्म रोकी और बोली- मैं पानी पीकर आती हूँ.
मैं उसके ऊपर को होती हुई घुटनों के बल वहां से बाहर निकल गयी और रसोई में पानी पीने चली गयी.

मेरे पीछे-पीछे विपिन भी आ गया.
मेरे दिमाग में अब भी फिल्म का सीन ही चल रहा था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

विपिन भी मेरे पास आकर पानी पीने लगा.
और जैसे ही उसने पानी पीना खत्म किया, पता नहीं मुझे क्या जुनून सा आया, मैंने एकदम से उसको बांहों में भर लिया और जोर से उसके होंठों पर किस कर दिया.
किस के बाद कुछ पलों के लिए इसी अवस्था में खड़ी रही.
वो भी मुझे चूमे जा रहा था.

शायद हम दोनों ही उस वक़्त कुछ नहीं सोच रहे थे, बस जवानी के आग में एक दूसरे के होंठों को चूम रहे थे और हमारी आंखें बंद थीं.

कुछ ही पलों में मुझे होश आया कि मैं ये क्या कर रही हूँ और तुरंत हट गयी.

इसके बाद मैंने उससे सॉरी कहा और नीचे देख कर शर्मिंदा सी होकर वहां से निकल कर अपनी चादर में आ गयी.

कुछ देर में विपिन भी आ गया.
मैंने अब फिल्म देखना बंद कर दिया और लैपटाप बंद करके चादर में मुँह देकर सोने की कोशिश करने लगी.

मैं काफी कन्फ्यूज थी, शर्म आ रही थी और सोच रही थी कि ये मैंने क्या कर दिया. मैं विपिन को कैसे चूम सकती हूँ. वो मेरी बुआ का लड़का है, एक तरीके से मेरा भाई है. ये गलत है.

फिर अगले ही पल ये सोच रही थी कि सही गलत की क्या बात है. किसी ने देखा थोड़े ही है … और उसने मुझे रोका क्यों नहीं.

इस घटना के बाद किस्मत हम दोनों को अलग अलग मौकों पर अकेले मिलने का मौका देने लगी.
कभी हम दोनों को एक साथ बाज़ार जाना पड़ता, कभी कहीं कभी कहीं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
हम दोनों ने उस रात के बारे में कोई बात नहीं की थी और सब कुछ सामान्य चल रहा था.
पर अब मुझे उसके साथ थोड़े गंदे वाले ख्याल भी आने लगे थे और शायद उसे भी आते होंगे.
मुझे भी वो उस तरह से पसंद आने लगा था और उसे मैं!

दो दिन तक तो ऐसे ही चला.

फिर एक दिन विपिन के पापा ने उससे बोला- जा बेटा खेत में चला जा, लाइट आ गयी होगी तो 2-3 घंटे तक ट्यूबवेल चला देना. फिर जब खेत भर जाए तो बंद करके आ जाना.

मैं भी घर पर बोर हो रही थी तो मैंने कहा- मैं भी चली जाऊं क्या, यहां थोड़ा अजीब सा लग रहा है.
फूफा जी बोले- हां हां क्यों नहीं, जाओ खेतों में घूम आओ, तुम शहर के बच्चों को गांव की ताज़ी हवा कम ही मिलती है.
मैं हंस दी.

फिर फूफा जी ने विपिन से कहा- जाओ बेटा, सुहानी को भी खेत में घुमा लाओ.

विपिन ने बाइक स्टार्ट की और मुझे देख कर शैतानी भरी स्माइल दे दी.
मैंने भी उसके सिर में हल्का सा चांटा मारा और पीछे बैठ गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
कुछ देर तक तो हम दोनों कुछ नहीं बोले, फिर विपिन मुझे गांव वगैरह के बारे में बताने लगा.
थोड़ी देर बाद हम दोनों खेत में पहुंच गए.

उधर सब अपने अपने खेतों में दूर दूर काम कर रहे थे.

विपिन ने ट्यूबवेल वाले कमरे का ताला खोल लिया पर गेट नहीं खुल रहा था.

मैंने पूछा- क्या हुआ?
वो बोला- अरे कुछ नहीं, जंग लगने की वजह से ये दरवाजा फंस जाता है और बहुत जोर लगाने पर खुलता है.

खैर … थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद उसने जोर से धक्का लगा कर गेट खोला और ट्यूबवेल चला दिया.

फिर उसने ट्यूबवेल की हौदी की तरफ इशारा करते हुए कहा- देखो दीदी, ये होता गांव का स्विमिंग पूल.
मैंने कहा- अच्छा, हमारे यहां तो काफी बड़ा होता है.

विपिन बोला- यहां ज्यादा बड़ा तो नहीं होता, पर पानी लगातार बहता रहता है. कितनी गर्मी हो रही है, मैं नहा लेता हूँ.
मैंने कहा- मैं एक्सट्रा कपड़े नहीं लाई वरना मैं भी नहा लेती.

विपिन बोला- अरे दीदी मन है तो नहा लो, यहां कोई नहीं आता. मेरे एक जोड़ी कपड़े अन्दर रखे हैं. आप नहा कर उन्हें पहन लेना. फिर जब ये वाले सूख जाएं तो वापस पहन लेना.

पहले तो मैंने ऐसे ही ना-नुकर सी की, पर फिर सोचा कि नहा ही लेती हूँ.

विपिन हौदी में उतर गया था.
मैं हौदी की दीवार पर चढ़ गयी तो विपिन ने अपना हाथ दिया और मैं भी सूट सलवार पहने ही उसमें उतर गयी.
विपिन को कच्छे में देखा तो उसके आधे नंगे शरीर को देख कर मेरे अन्दर के अरमान भी हल्के हल्के जागने लगे थे और शायद उसके भी अरमान जग रहे थे.

एक दो बार तो मेरा मन हुआ कि उसे जोर से किस कर लूं पर मैंने अपने आप को रोका हुआ था.

फिर हम दोनों मस्ती करते हुए नहाने लगे.

हम दोनों दुनिया की फिक्र छोड़ कर खूब मस्ती से ट्यूबवेल के पानी में नहाए.

लगभग आधा घंटा के बाद मैं नहा चुकी तो वहां से निकल गयी और ट्यूब वेल वाले कमरे में कपड़े बदलने चली गयी.

मैंने गेट हल्का सा उड़काया और अपने सारे गीले कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गयी.
फिर मैंने विपिन के कपड़े उठाए और शर्ट पहन ली. फिर हल्का सा गेट खोल कर विपिन को अपने कपड़े सुखाने के लिए पकड़ा दिए.

अब मैं बाक़ी के कपड़े पहनने के लिए देखने लगी.

मैंने देखा पर मुझे पैंट नहीं मिल रही थी. मैंने विपिन को आवाज देकर पूछा- पैंट कहां है?
उसने बोला- वहीं दरवाजे के पीछे तो टंगी है.

मैंने कहा- नहीं है.
उसने बोला- अरे होगी वहीं … और कहां जाएगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
मैंने बोला- नहीं है बाबा, यहां सिर्फ शर्ट थी.
विपिन एकदम से बोला- अरे सॉरी दीदी … वो तो पापा शायद घर ले गए होंगे धुलवाने के लिए!

मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- ये क्या मज़ाक है … अब मैं यहां क्या पहनूं?
विपिन बोला- कोई बात नहीं, आप थोड़ी देर ऐसे ही अन्दर कुंडी लगा कर बैठो … एक घंटे में कपड़े सूख जाएंगे, तब पहन कर बाहर आ जाना.

उस वक़्त मैं मजबूर थी क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था.
मैं उस कमरे के अन्दर एक चारपाई पर सिर्फ शर्ट में बैठी हुई थी.

कुछ देर बाद लाइट चली गयी तो कमरे में अंधेरा हो गया.
मैं थोड़ा घबरा सी गयी तो मैंने विपिन को आवाज लगाई.

उसने कहा- कोई बात नहीं दीदी, मैं यहीं बाहर हूँ, अभी आ जाएगी लाइट.
लगभग 5 मिनट बाद लाइट भी आ गयी.

मैंने विपिन को बता दिया कि लाइट आ गयी है.
उसने कहा- ट्यूबवेल चला दो, अपने आप नहीं चलेगा.

मैंने कहा- मुझे चलाना नहीं आता.
उसने कहा- अरे जो मैं बता रहा हूँ, वो बटन दबा दो.

मैंने कहा- मुझे नहीं पता, यहां इतने सारे तार हैं, मुझे बिजली से डर लगता है.

विपिन बोला- ठीक है, मैं चला देता हूँ … आप गेट खोलो.
मैं बोली- अरे ऐसे कैसे गेट खोल दूं, मेरे कपड़े दो.

उसने बोला- कपड़े तो अभी बिल्कुल गीले हैं. आप ऐसा करो गेट के पीछे छुप जाओ, मैं नहीं देखूंगा और मोटर भी चला दूंगा.
मैंने कहा- अरे लाओ गीले कपड़े ही पहन लूंगी, कोई बात नहीं.

विपिन बोला- आप डरो मत, एक मिनट भी नहीं लगेगा और काम हो जाएगा.
मैंने सोचा कि थोड़ी सी देर की बात ही है, खोल देती हूँ गेट.
मैंने कहा- ठीक है.

पर देखा कि गेट के पीछे का हैंडल टूटा हुआ था.

मैंने कहा- मैं क्या पकड़ कर खोलूं, गेट का हैंडल तो टूटा हुआ है, कुछ पकड़ने को है ही नहीं.
उसने कहा- अरे हां वो हैंडल लगवाना था, कोई बात नहीं, आप कुंडी खोल दो. मैं बाहर से धक्का लगा कर खोल दूंगा.

मैं गेट की आड़ में खड़ी हो गयी और कुंडी खोल दी. विपिन ने अभी भी अपने सारे कपड़े उतार रखे थे. वो सिर्फ कच्छे में अन्दर आ गया.
अन्दर आ कर उसने कहा- गेट पकड़ कर रखना वरना हवा से बंद हो जाएगा.

मैं पीछे छुपे-छुपे ही गेट पकड़ लिया और विपिन मोटर चलाने लगा.
मैंने अपनी शर्ट को नीचे सरकाने के लिए जैसे ही हाथ से पकड़ा मेरे हाथ से गेट छूट गया और धड़ाम से बंद हो गया.

विपिन भागा भागा आया और गेट पकड़ने की कोशिश की, पर तब तक वो फंस गया था.
विपिन बोला- ये क्या किया दीदी, अब फंस गया ना गेट.

एक पल के लिए हम दोनों भूल गए कि हम दोनों ही आधे नंगे है.
फिर थोड़ी देर बाद सब सामान्य हुआ तो विपिन ने बोला- कोई बात नहीं, आप चारपाई पर बैठो. मैं कुछ जुगाड़ करके गेट खोलता हूँ.

पर ऐसे माहौल में ध्यान तो भटकता ही है.
मैं विपिन के आधे नंगे शरीर को देख रही थी और वो मेरी नंगी टांगों को.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
कुछ देर तक ऐसे ही हम एक दूसरे को देखते रहे.

मैंने कहा- प्लीज ऐसे मत देखो ना, मुझे शर्म आती है.
विपिन बोला- तो आप भी तो मत देखो न, मुझे भी शर्म आती है.

पर ना चाहते हुए भी हम दोनों बार बार एक दूसरे को ही देख रहे थे.
अब तक मुझे समझ आ चुका था कि आज कुछ कांड होने जा रहा है.

फिर हम दोनों ही वहां पड़ी चारपाई पर थोड़ा सा दूर दूर बैठ गए.

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे और एक दूसरे को देख देख कर हल्के हल्के उत्तेजित होते रहे.

फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं खुद ही उसकी तरफ धीरे धीरे खिसकने लगी और वो मेरी तरफ.

अब हम दोनों काफी नजदीक बैठे थे.
मैं ऊपर उसकी आंखों में देख रही थी और वो मेरी आंखों में.

तभी मेरा हाथ अपने आप उसकी छाती और बाजुओं पर फिरने लगा, मानो मेरा शरीर मेरे बस में नहीं था और अपने आप चल रहा था.

धीरे धीरे मैं थोड़ा सा उचक कर उसके होंठों के पास अपने होंठ ले गयी.
एक पल के लिए मैंने उसकी आंखों में देखा और बस अगले ही पल हमारे होंठ मिल गए.

हम दोनों की आंखें बंद हो गईं.
इस वक़्त हम दोनों दुनिया की फिक्र से दूर, एक दूसरे के होंठों को किस कर रहे थे

बिना कुछ बोले, बिना कुछ सोचे समझे. हम बस एक दूसरे के होंठों को हल्के हल्के दबा कर छू रहे थे.
फिर मैंने आंखें खोलीं और हल्के हल्के मुस्कुराते हुए नीचे हो गयी.
उधर विपिन भी मुस्कुरा रहा था. हमारे बीच रिश्तेदारी की दीवार गिर चुकी थी.

विपिन बोला- दीदी …
मैंने उसकी बात काटते हुए कहा- स्श्ह …

बस तुरंत अपने होंठ उसके होंठ पर रख कर जोर से दबाए और जोर जोर से चूमने लगी.

अब विपिन भी जोर जोर से मेरे होंठों को अन्दर बाहर करते हुए चूस रहा था और हम ऐसे ही कुछ देर तक एक दूसरे में खोये हुए किस करते रहे.

आखिर जब किस करके मन भर गया, तब हम अलग हुए.
मेरे अन्दर हवस की आग लगी हुई थी और उधर विपिन का लंड भी पूरा खड़ा ही चुका था.

विपिन मुझे देख कर एक बार मुस्कुराया और बस मुझे जोर से धकेल कर दीवार से सटा दिया.
अब वो ऊपर नीचे हो होकर जबरदस्ती मेरे होंठों को किस करने लगा.

मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी और कमरे का माहौल और गर्माता जा रहा था.
करीब दो मिनट तक वो ऐसे ही मुझे दबाए जोर जोर से चूमता रहा.

वो बीच बीच में बोलता रहा- आह … आहह … दीदी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ … उमम्ह … पुच्छह … पुच्छ … आपको पता नहीं, मैंने इस पल का कितना इंतज़ार किया है … मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी कि एक दिन मैं आपके इतने करीब आ जाऊंगा.
वो किसी प्यासे की तरह मेरे होंठों को जोर जोर से चूस चूस कर अपनी प्यास बुझाता रहा. इधर उसका जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ रहा था और उसका लंड मेरे चूत को रगड़ रगड़ कर मेरी प्यास बढ़ा रहा था.

जब उसका मेरे होंठों को चूस कर पूरा मन भर गया, तो वो एक पल को रुका.
हमने एक दूसरे की आंखों में देखा और फिर से एक दूसरे के चेहरे को, गर्दन को, कंधों को किस करते हुए आगे बढ़ने लगे.

अब तो कोई शंका ही नहीं थी कि आगे क्या होना है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
विपिन ने खुद ही मेरी शर्ट के बटन एक एक करके खोलना शुरू कर दिए.

जैसे ही उसने ऊपर के 3 बटन खोले, मुझे एक बार फिर से ख्याल आया कि ये मैं क्या कर रही हूँ. ये मेरा रिश्ते में भाई है, मैंने इसके साथ ऐसे कैसे कर सकती हूँ.

मैंने कहा- रुको विपिन, हमें यहीं रुक जाना चाहिए, मत भूलो मैं तुम्हारी बहन हूँ. प्लीज रुक जाओ.

मैंने उसके हाथ अपनी शर्ट के बटन पर ही रोकने चाहे.
पर विपिन इस कदर जोश में था कि उसने कहा- आज मत रोको दीदी, वरना मैं मर जाऊंगा, आज हम दोनों सिर्फ एक लड़का और लड़की हैं और हमारा रिश्ता सिर्फ जिस्मों का है. मुझे आपका जिस्म भोगना है. आज मत रोको मुझे.

इसी के साथ ही उसने मेरी शर्ट के दोनों हिस्सों को पकड़ा और जोर से फाड़ कर पीछे को खोल दी.

इसके साथ ही मेरा आगे का शरीर उसके आगे नंगा हो गया.
मैंने शर्म के मारे अपने बूब्स को हथेलियों से ढक लिया और टांगें भी आपस में मोड़ कर सिकोड़ सी लीं ताकि विपिन से अपनी जवानी छुपा सकूँ.

विपिन मेरे करीब आया और धीरे से अपनी नंगी बहन के कंधों पर हाथ रख कर बोला- दीदी, इधर देखो मेरी आंखों में.
मैंने शर्माते हुए उसकी आंखों में देखा.

उसने बड़े प्यार से कहा- दीदी, आप घबराओ मत … हमारी ये बात किसी को पता नहीं चलेगी. सब हम दोनों के बीच ही रहेगा.
मैंने भी हल्का सा सिर सहमति में हिलाया.

फ़िर विपिन ने मेरी हथेलियों को पकड़ा और धीरे धीरे उन्हें जबरदस्ती नीचे करने लगा.
शुरू में मैंने हल्का सा विरोध किया, पर धीरे धीरे उसने मेरे दोनों हाथ नीचे कर ही दिए.

फ़िर विपिन धीरे धीरे अपने हाथ मेरे बूब्स पर ले गया और उन्हें हल्के हल्के दबाने लगा.
इसके साथ ही उसने मेरी चूचियों को हल्के हल्के मसलना भी शुरू कर दिया.

कुछ देर बाद मैं भी पूरे जोश में आ गई थी तो उसका पूरा साथ दे रही थी.

अब मैंने अपनी शर्ट भी पूरी उतार दी थी और उसके सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थी.

इस वक़्त विपिन मेरी छाती को चूम रहा था और मेरे दूध सख्त होते जा रहे थे.

उधर विपिन के कच्छे में उसका लंड फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था.

मैंने खुद को विपिन से झटके से अलग किया.
इससे विपिन एकदम से चौंक गया.
उसने पूछा- क्या हुआ दीदी?

मैंने एक पल को बहुत ही गंभीर भाव से उसे देखा, फिर अगले ही पल मैं भी मुस्कुरा दी और घुटनों के बल बैठ गयी.

मैंने उसका कच्छे एक झटके में नीचे सरका दिया.
उसका लंड एकदम से हाथी की सूंड की तरह ऊपर नीचे झूलते हुए मेरे सामने खड़ा था.

मैंने ऊपर विपिन की आंखों में देखा और मेरी आंखों में देख कर पूछा- दीदी, मैंने सुना है कि शहर में लड़कियां लड़कों का लंड मुँह में ले कर चूस लेती हैं. ऐसा सच है क्या?
मैंने एक शैतानी भरी मुस्कुराहट दी और कहा- तुम्हें क्या लगता है?

बस ये कह कर मैंने उसका लंड पकड़ लिया, लंड की जड़ से ऊपर तक हाथ फेरा और उसे एक दो बार प्यार से सहलाया.
फिर अचानक से उसके लंड को किस कर दिया.

विपिन की तो मानो जान ही ऊपर को निकल गयी.
उसने जोर की आहह … भरी.

मैंने थोड़ा कसके मुट्ठी बंद करके उसके लंड पर पीछे को दबाया तो उसके लंड का सुपारा बाहर आ गया.
मैंने कहा- देखते जाओ शहर में क्या क्या करती है लड़कियां …

मैंने अपने बंद होंठ उसके लंड पर दबाते हुए सुपारे को होंठों से रगड़ा और धीरे धीरे लंड मुँह में लेते हुए चूसने लगी.
विपिन तो सातवें आसमान पर उड़ने लगा था, उसकी आंखें बंद हो गई थीं और उसके मुँह से बस ‘आहह … स्स … आहह … दीदी … आहह … बहुत मजा आ रहा है … आहह … दीदी …’ की आवाजें निकल रही थीं.

इस वक्त वो बड़ी मस्ती भरी आहें और कराहें अपने मुँह से निकाल रहा था.

मैंने धीरे धीरे लंड चूसने की रफ्तार बढ़ा दी और उसकी उत्तेजना बढ़ती चली गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
(16-08-2022, 01:57 PM)neerathemall Wrote: Tongue Arrow Namaskar
फुफेरे भाई के साथ

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#11
Nice story
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