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समलैंगिक डॉ राखी का खौफनाक कदम
#1
समलैंगिक डॉ राखी का खौफनाक कदम

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
सभी पात्र तथा स्थान  व घट्नाए कल्प्निक है ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
करिअर बनाने के चक्कर में डा. राखी वर्मा की शादी की उम्र निकली जा रही थी. उस के दिल की बात समझने वाली खास सहेली कंचन पटेल थी, जो उस पर जान छिड़कती थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
[Image: samlangik.jpg?fit=1024%2C680&ssl=1]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
वाराणसी में कपसेठी  क्षेत्र के ग्रामीण इलाके मटुकामें तन्हा जिंदगी गुजार रही
डा. राखी वर्मा की वह रात भी करवटें बदलती गुजरी. दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे. वह अपने करिअर को ले कर चिंतित थी. उस ने होम्योपैथी में डाक्टरी की पढ़ाई पूर कर ली थी, लेकिन डाक्टरी में मन नहीं लग रहा था. वह कोई ऐसा सामाजिक काम करना चाहती थी, जिस से उस का समाज में रुतबा बने और मन को संतुष्टि भी मिले.
लेकिन उस रात बेचैनी किसी और बात को ले कर थी. मन में बारबार खास सहेली कंचन का खयाल आ रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि जिसे वह दिलोजान से चाहती है, आखिर वह उस की शादी में रोड़ा क्यों अटका रही है?
कंचन पटेल पास में रहने वाली ब्यूटीशियन थी. अपना ब्यूटीपार्लर चलाती थी. उस की अपनी छोटी सी दुनिया थी, जिस में पति के अलावा 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन के अलावा कोई और था तो वह थी सहेली राखी वर्मा.
दरअसल, 30 के करीब हो चुकी डा. राखी वर्मा को अपने मन के लायक एक जीवनसाथी का इंतजार था. ऐसा हमसफर, जो उस के मन को समझे, उसे तहेदिल से प्यार करे.
उस की भावनाओं और विचारों का सम्मान करे. उस के हर इशारे को समझते हुए उस की सभी बातों को मानने के लिए तत्पर रहे. इन सब से बड़ी महत्त्वाकांक्षा थी कि उसे ऐसा पति चाहिए था, जो उस की सैक्स की जरूरतों को भी पूरा कर सके.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
यही सब सोचसोच कर उस की रातें अकसर करवटें लेते बीतती थीं. देह की आग में वह सुलगती रहती थी. उसे वह अपनी सहेली कंचन से मिल कर शांत करने की कोशिश तो करती थी, लेकिन उस से पुरुष के देह सुख जैसा आनंद नहीं मिल पाता था, बल्कि उस की आग और भड़क जाती थी.

एक रात राखी कुछ ज्यादा ही बेचैन थी. उस के दिमाग में एक साथ कई बातें चल रही थीं. अपनी सहेली कंचन की कुछ बातों को ले कर वह गुस्से में भी थी. हालांकि कुछ दिन पहले उस की कंचन के साथ जो बहस हुई थी, उस में गलती उसी की ही थी. इस के लिए उस ने माफी भी मांग ली थी. फिर भी राखी को बारबार यह महसूस हो रहा था कि कंचन उस का भविष्य चौपट करना चाहती है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
यही सब सोचतेसोचते उस ने मोबाइल लिया और एक वीडियो देखने लगी. मोबाइल देखते हुए कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगले रोज को राखी की नींद काफी देर से खुली थी. घर में अकेली रहती थी. अपनी मरजी की मालकिन थी. उस के 2 भाई सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी करते थे.
‘अरे बाप रे! साढ़े 8 बज गए!! मोबाइल का अलार्म क्यों नहीं बजा.’ भुनभुनाती हुई रेखा अपने कपड़े दुरुस्त करने लगी, ‘अरे, मेरे कपड़े किस ने खोले? ब्रा कहां चली गई? यहां कौन आया था रात को? कोई तो नहीं, दरवाजे की कुंडी तो भीतर से लगी है.’ खुद से बड़बड़ाती हुई बैड के किनारे झांक कर देखा और
नीचे जमीन पर पड़ी ब्रा को उठा कर
पहनने लगी.
उस की नजर सामने के शीशे पर पड़ गई और अपने बदन को देख कर शरमा कर खुद से ही बोली, ‘इतनी सुंदर तो देह है मेरी… कंचन कैसे कहती है कि वह सैक्सी नहीं दिखती है. आज मैं बताती हूं उसे कि सैक्सी क्या होती है?’
इसी के साथ उस ने कंचन को फोन मिला दिया. कई बार घंटी बजने के बाद भी उस ने फोन नहीं उठाया.
‘‘लगता है पति को काम पर भेजने की तैयारी कर रही होगी,’’ बोलती हुई राखी ने फोन काट दिया और उसे चार्ज करने को लगा दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
थोड़ी देर में ही नहाधो कर राखी कमरे में आ गई. चार्जिंग में लगे मोबाइल को देखा. कंचन की 3 मिस काल आ चुकी थीं. उस ने तुरंत कंचन को काल कर दिया.

कंचन ने भी काल रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो! हां राखी, बोलो. तुम को तो पता ही है सुबहसुबह बहुत काम होता है. सब के लिए नाश्तापानी बनाना होता है. पति को काम पर ले जाने के लिए अलग से कुछ पकाना होता है. खैर, बोलो किसलिए फोन किया है?’’
‘‘अरे, कोई खास बात नहीं, मन नहीं लग रहा था. बड़ी मुश्किल से रात गुजरी है. काम निपटा कर आ जा न, कुछ देर साथ बैठेंगे, गप्पें लड़ाएंगे. तुम्हें एक जरूरी बात भी बतानी है.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
दिन के साढ़े 10 बजे के करीब कंचन राखी के पास आ गई थी. उस के आते ही राखी उस के गले लग गई. बोलने लगी. ‘‘चलो, मेरे कमरे में. घर में कोई नहीं है. हफ्तों हो गए तुम्हारे साथ एकांत में समय बिताए. तुम से बहुत बातें करनी हैं. कल तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया था, वह भी तो जानना है कि आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘लगता है, तुम आज भी मुझ से नाराज हो,’’ कंचन को न जाने क्यों
लगा कि राखी ने उसे किसी बहाने से बुलाया है.
‘‘नहीं कंचन, तुम्हारी जैसी मेरी कोई सहेली न पहले थी और न हो पाएगी. मैं भला तुम से क्यों नाराज रहने लगी. बस, एक ही बात मन में खटकती रहती है…’’
राखी की बात पूरी करने से पहले ही कंचन बोल पड़ी, ‘‘कौन सी बात?’’
‘‘वही जो तुम ने मेरे होने वाले ससुराल वालों से कही है,’’ राखी शिकायती लहजे में बोली.
‘‘तुम ने मेरी बात का गलत मतलब लगा लिया है. मैं ने तो उन्हें सिर्फ इतना कहा कि मेरी सहेली की नाक पर गुस्सा बैठा रहता है, लेकिन तुरंत वह कहां गायब हो जाता है उसे भी नहीं मालूम पड़ता. वह बहुत ही अच्छे दिल की लड़की है,’’ कंचन ने सफाई दी.
‘‘तुम्हारी इसी बात के कारण ही अब वे हम से रिश्ता नहीं करना चाहते,’’ राखी बोली.
‘‘अब देखो राखी, इस में मेरा क्या कसूर है, जो उन्होंने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया. चलो, आज ही उस लड़के से मिल कर बात करती हूं. तुम भी साथ रहना.’’
‘‘और तुम ने लड़के को जो वीडियो दिखाया था, उस का क्या?’’
‘‘वीडियो? कैसा वीडियो?’’ कंचन चौंकती हुई बोली.
‘‘आयहाय! इतनी भोली मत बनो,’’ राखी बोली.
‘‘देखो, तुम मुझे गलत समझ रही हो. मैं किसी वीडियो के बारे में नहीं जानती,’’ कंचन बोली.
‘‘यह देखो, वह वीडियो तुम ने जिसे भेजा, उसी ने मुझे भेज कर शादी भी तोड़ दी,’’ राखी बोली और अपने मोबाइल में एक वीडियो प्ले कर कंचन की आंखों के सामने कर दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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