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Fantasy छोटी छोटी कहानियां
#1
कहानी नंबर १
जीवन एक कड़वा सत्य।

   जिंदगी यह शब्द छोटा लेकिन मायने बहुत। कभी खुशी, कभी ग़म, तकलीफ, राहत और न जाने क्या क्या गुण इस छोटे शब्द में छुपे है। हर इंसान को यह देखने को मिलता है। 

यह कहानी है एक औरत को जिसका नाम अनन्या है। अनन्या जो ३१ वर्षीय बेहद खूबसूरत और अकेली रहने वाली औरत हैं । अनन्या के जिंदगी में कोई नहीं। मां बाप बचपन में ही चल बसे और रही बात पति की तो वो भी कुछ खास खुशी न दे पाया। एक बीमारी से मारा गया। अनन्या अकेली रहती और नौकरी में एक सरकारी स्कूल में अकाउंटेंट की नौकरी करती। सुबह ७ बजे से दोपहर १ बजे तक काम और बाकी के दिन कुछ खास नहीं करने को। लेकिन पिछले १ हफ्ते से वो स्कूल से एक जगह जाने लगी जो उसे जिंदगी के महत्वपूर्ण चरण को अंजाम देता है। उसे चरण का नाम है सहानुभूति। 

    स्कूल से छूटकर अनन्या दोपहर की कड़कती धूप में साड़ी पहनी पैदल चल रही थी। एक गली से गुजरते हुए वो एक सुनसान जगह आ पहुंची। वो जगह भूतो का वास लाग रहा था। सालो पुराने इस जगह को लोग छोड़कर चले गए। भूकंप से ग्रसित यह जगह एक वक्त लोगो के रहने की जगह थीं करीब ३० घर इधर थे परंतु अब जैसे टूटा फूटा खंडर। यह घर अंग्रेजो के जमाने से था लेकिन कभी भी यह घर गिर सकता है। 

    अनन्या एक सड़े हुए मकान में पहुंची। दरवाजा एक २० साल लड़के ने खोला। वो रोते हुए अनन्या को देखा। 

"कैसे है वो ?" अनन्या ने पूछा। 
"कुछ भी ठीक नहीं।" वो रोते हुए अनन्या से लिपट गया। 

    अनन्या ने उसे शांत किया और सामने वाले कमरे में आ पहुंची। कमरा बहुत की खराब था। दीवारे टूटी हुई और पंखा भी टूटा हुआ खर खर चल रहा था। सामने एक खटिया में ७८ साल का बूढ़ा इंसान लेता हुआ था। उस बुड्ढे इंसान का नाम चीनू था। चीनू जो स्कूल में एक जमाने चौकीदार था लेकिन बीमारी की वजह से उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। अनन्या का जब कोई नहीं था तब उसने अनन्या को सहारा दिया और दुःख के समय मानसिक तौर से ठीक किया। चीनू एक दुबला पतला और खत्म शरीर इंसान है। अपने पोते के साथ अकेला इस वीरान में रहता है। पैसे नही और पोता चाय की दुकान में काम करता। कुछ पैसे जमा करता लेकिन दादा के इलाज में चला जाता। 

     चीनू डिप्रेशन में था और उसे एक सहारे की जरूरत थी। अनन्या रोज उसे दोपहर को मिलने जाती। अनन्या को सामने देख चीनू बोला कापते हुए "अनन्या तुम क्यों देर लगा दी आने में जल्दी आओ मेरे पास ।"

अनन्या ने साड़ी का पल्लू हटाया और चीनू के पास आ गई। पीले रंग के ब्लाउज और पेटीकोट में वो चीनू के बगल खटिया पर लेट गई। खटिया पर लेटे चीनू अनन्या से लिपट गया और कपते हुए बोला "अनन्या देर मत करना वरना किसी दिन में मार जाऊंगा।"

अनन्या के सीने पे सर रखकर चीनू लेता हुआ था। अनन्या ने सीने से चीनू को लगाया हुआ था। चीनू के सिर को चूमते हुए कहा "दवाई क्यों नहीं ले रहे तुम ?"

"नही जीना मुझे। मुझे अब मुक्ति चाहिए।" चीनू रोने लगा। 

"क्यों चीनू ?"

"सब चले गए, कोई नहीं इस संसार में ।"

"मेरा भी तो कोई नहीं आपके सिवाय।" अनन्या ने चीनू को बाहों में कसके रखा। चीनू अनन्या के गले को चूमते हुए कहा "अनन्या मुझे नींद नहीं आ रही।"

अनन्या ने चीनू को चूमते हुए कहा "कोशिश करो।"

   चीनू अनन्या के स्तन को हाथो से मसलने लगा और गालों को चूमने लगा। चीनू को एक प्रेम की आवश्कता थी जो अनन्या उसे देती है। चीनू अनन्या के हॉट को चूमने लगा और बोला "में तुम्हारे बिना नहीं जी सकता अनन्या।" इतना कहकर अनन्या के navel पे kiss किया। अनन्या को कुछ देर तक ऐसे ही हर जगह चूमा और सो गया। अनन्या भी सो गई। कुछ देर बाद चीनू ने अनन्या के बाकी के कपड़े उतार दिया और कमजोर शरीर से अनन्या को चाटने लगा। दिमाग कम काम कर रहा था चीनू का। अनन्या को बोला "अनन्या क्या मैं तुम पर बोझ हूं ?"

अनन्या ने कहा "बिलकुल नहीं चिनूजी आप मेरे अपने हो। अपने कहा कोई बोझ होते है ?"

"अनन्या मेरा शरीर काम नहीं करता लेकिन पता नहीं तुम मेरे जैसे बुड्ढे को क्यों रोज मिलती हो और वक्त मेरे साथ गुजारती हो ?"

"आपकी वजह से जिंदगी में मुझे पता चला कि हर दर्द का इलाज है सहानुभूति और प्रेम सत्कार।"

अनन्या और चीनू नग्न अवस्था में थे। चीनू अपना लिंग अनन्या के योनि में डालकर धक्का देता और अनन्या भी पूरा साथ देती। चीनू अनन्या कुछ घंटे ऐसे ही रहते और चीनू थका हरा अनन्या के शरीर पे लेट जाता। अनन्या ऐसे ही रोज दोपहर चीनू से मिलती। वक्त गुजरता गया और चीनू स्वस्थ हो गया। लेकिन डॉक्टर ने अनन्या को साफ साफ बता दिया कि अगर वो उसे छोड़ देगी तो वो फिर से पागल हो जाएगा और फिर मर भी सकता है। 

    अनन्या के बारे में चीनू का पोता जनता था और उसने अनन्या से गुजारिश की कि वो चीनू से शादी कर ले। ताकि वो स्वस्थ रहें । अनन्या का कोई नहीं है इस दुनिया में। इस स्वार्थ भरी दुनिया में एक चीनू ने ही उसे सहारा दिया और दुनिया के लालच से बचाया। अनन्या ने कोई देरी नहीं को फैसला सुनाने में। 

     अनन्या ने चीनू से शादी कर ली। दोनो कुश रहने लगे। करीब पांच साल बाद चीनू के पोते की शादी हुई और वो दूसरी जगह चला गया लेकिन फोन द्वारा उनका हाल चाल पूछता । अनन्या और चीनू को दो बच्चो का सुख मिला। अनन्या और चीनू ने एक दूसरे को सहानुभूति के जरिए जीना सिखाया। दोनो अपने बच्चो के साथ उसी खंडर में रहते और खुशी से रहते।
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#2
अगली कहानी का शीर्षक

प्रेम या एहसान ।

पात्र :- चित्रा २६ वर्षीय सुंदर कन्या और पूरे गांव में मशहूर उसकी सुंदरता।

[Image: 1644861578662-IMG-6822-24695-1646652720-500-659.jpg]

मंगूलाल :- एक बुड्ढा इंसान जो गांव को राक्षसों से बचाता हैं । ८० वर्षीय बुड्ढा

[Image: images-15.jpg]
d&d online dice roll

अब देखना ये है कि कैसे इन दोनों का मिलन होगा ? क्या आप इस कहानी को आगे जानना चाहते है ?
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#3
बात है 19वी सदी की। राजस्थान के लुगार गांव की ये कहानी है। यह गांव को किसी की बुरी नजर लाग गई। यह गांव जो सुख और समृद्ध से भरा था आज उसमे दैत्य राक्षसों की नजर लाग गई। गांव के लोगो को सताने का काम करते। उनके लोगो को मारते और उनका शिकार करते। राक्षस अपनी छोटी सी सेना लेकर गांव पर चढ़ाई करता।

उसकी एक ही मांग थी और वो थी चित्रा। चित्रा जो एक खूबसूरत और दिलकश औरत थी। इतनी खूबसूरत की अगर बाहर निकले तो लोगो का ध्यान उसकी और मोहित हो जाता। एक बड़े जमींदार की इकलौती बेटी ।

[Image: images-17.jpg]

दैत्यों का राजा उसे प्यार करता और उससे शादी करना चाहता लेकिन ऐसे हैवान और डरावने चेहरे से कौन शादी करता ? उसने धमकी दी की अगर चित्रा उसकी न हुई तो पूरे गांव को खत्म कर देगा और ऐसा उसने किया भी। गांव में उसका आतंक बढ़ गया और देशत हद से ज्यादा। क्रुर और हैवान उसका दूसरा नाम था।

[Image: images-16.jpg]

गांव के लोगो ने फैसला किया कि चित्रा को उसके हवाले कर दे जिससे गांव में शांति आ जाएगी। सभी ने उसके हवेली pe चढ़ाई की और चित्रा को गांव के बीच ला खड़ा किया। सभी भीड़ कहने लगी "चली जाओ यहां से हमारे लोगो को बक्शो। चित्रा रोने लगी और मां बाप भी रोने लगे। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। एक आदमी ने चित्रा को बाहर कर दिया लेकिन चित्रा नही मानी तो तलवार से उस पर आक्रमण करने गया। चित्रा पे तलवार लगने वाली थी की us आदमी का हाथ एक बुड्ढे आदमी ने पकड़ा। उस आदमी का नाम हल्दी था। हल्दी अपने १० आदमियों के साथ वहा हथियार के साथ आया। उनके लोगो का सरदार मंगूलाल था। मंगूलाल और उसके १० लोगो को फौज बहुत बड़े जादूगर थे। उनके आते ही सब डर से कांपने लगे। वह सभी लोग बुड्ढे और सालो से श्राप की वजह से जीवित थे।

"क्या हुआ क्यों इसे बाहर कर रहे हो गांव से ?" हल्दी ने गुस्से से पूछा।

एक आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा "मालिक इस लड़की पर दैत्य राजा की नजर है और उसने इसी वजह से गांव पे हमला किया। हमारे लोग मर रहे है।"

सभी लोग रोने लागे।

"बेवकूफों दैत्य कुंवारी स्त्री को नहीं लेते। विवाह करा दो इसका फिर समस्या खत्म।" मंगूलाल ने कहा।

"नही हो सकता । क्योंकि जिसने इसे शादी को उसे दैत्य मार डालेगा। हम इसे दैत्य के हवाले करेंगे।"

मंगूलाल ने तलवार निकलते हुए कहा "कोई आगे बढ़ा तो मार दूंगा उसे। इसका कोई दोष नही।"

"लेकिन मालिक हमारी भी गलती नही लेकिन करीब १०० से ज्यादा लोग मारे गए इसकी वजह से।"

"कोई बात नही यह लड़की हमारे साथ चलेगी।" हल्दी ने कहा।

"नही हो सकता। कोई कुंवारी लड़की किसी गैर आदमी के साथ नही जा सकती।"

सभी लोग थू थू करने लागे। मंगूलाल चिल्लाके बोला "इससे में शादी करूंगा और इसके रक्षा की जिम्मेदारी मेरी।"

सभी लोग स्तब्ध रह गए लेकिन दूसरा कोई चारा भी नहीं था। मंगूलाल ने चित्रा से उसी वक्त मंडप पे शादी कर ली। चित्रा को विदाई हुई और वो मंगूलाल और उसके १० बुड्ढे लोगो के साथ पालकी में चल दी। मंगूलाल से कसम खाई की चित्रा को राक्षस से मुक्ति दिलाकर रहेगा और इज्जत पर कोई आंच नहीं आने देगा।

मंगूलाल चित्रा और अपने आदमियों के साथ लकीरा गांव पे गया । लकिरा गांव में सिर्फ यही लोग ही रहते थे। पूरा गांव वीरान और सुनसान है। इस बड़े गांव में चित्रा मंगूलाल और १० लोग रहनेवाले थे। अब देखना यह है की कैसे मंगूलाल चित्रा को बचाएगा।

यह कहानी सिर्फ २ एपिसोड में पूरा हो जाएगा।

चित्रा

[Image: images-18.jpg]

मंगूलाल

[Image: images-15.jpg]
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#4
मंगूलाल की फौज चित्रा को लेकर गांव में पहुंची। गांव सालो से खाली और खंडर था। कोई यहां रहता नही सिवाय इन बुड्ढे लोगो के। यह सभी बुड्ढे लोगो को राक्षसों ने श्राप दिया। ये लोगों ने अपना परिवार खो दिया। करीब २००० लोगो का खुले कत्लेआम हुआ और इन्ही सब से बदला लेना चाहते है ये जादूगर लोग। इन सब जादूगरों की खास बात

मंगूलाल - अग्नि को निगल सकता है और अग्नि वर्षा भी कर सकता है।
हल्दी - अपने जादू से बर्फ बना सकता है इंसानों को।
सुक्र - तूफान का जादूगर।
सांभा - लोगो के दिमाग में घुस सकता है।
बाकी सभी लोगो के पास अलग अलग विद्या है।

      ये सभी बुड्ढे दिखाने में काले और मेले लगते है क्योंकि कोई उनको पहचान न ले। चित्रा और मंगूलाल मिट्टी के घर में आ पहुंचे। घर बहुत बड़ा था। चित्रा घबराई हुई थी। उसे बुरा लग रहा था की उसकी शादी एक जवान नही बल्कि मेले कुचले बुड्ढे से हुई जो उसके दादा से भी बड़ा था। लेकिन यही बुड्ढा इसे बचा सकता था तो अब सत्य को स्वीकारना जरूरी था। मंगूलाल और चित्रा पति पत्नी है यही सत्य है।

मंगूलाल का कमरा बहुत बड़ा था लेकिन खंडर। मंगूलाल ने अपने बिस्तर के बगल में चित्रा के लिए बिस्तर लगवाया । चित्रा ने साड़ी बदल लिया। वो बिस्तर पर लेटी तभी मंगूलाल को देखकर खड़ी हो गईं । मंगूलाल बिस्तर पे बैठा और कड़क आवाज में बोला "एक बात समझलो। अब से तुम मेरी पत्नी हो और अब से तुम्हे बचाने को रक्षा करने की जिम्मेदारी मेरी । इस घर में तुम पूरी तरह से स्वतंत्र हो। को मन करे वो करो। ये गांव इतना बड़ा है की पूरा शहर आ जाए तो भी कम। लेकिन जब भी कही निकालना तो बस बता देना जिससे सुरक्षा में कोई कमी न बाकी हो।"

चित्रा कुछ बोले बिना बैठ गई और मंगूलाल को दूध का गलास दिया। मंगूलाल दूध पीकर लेट गया और चित्रा से कहा "कल तुम्हारा पहला दिन होगा इसीलिए खाना तुम ही रोज बनाओगी। तुम्हारा काम बस खाना बनाना और बाकी के दिन जो करना चाहो करो।

   मंगूलाल और चित्रा सो गए। इस किल्ले जैसे मिट्टीवाले बड़े हवेली का देखभाल सभी बुड्ढे करते है। हर एक घंटे एक आदमी पहरा देता। चित्रा सोच रही थी की कहा वो रूप की रानी इन बुड्ढे लोगो के साथ रहनेवाली हैं। मंगूलाल खर्राटे मारकर सो रहा था। चित्रा को देखते देखते नींद आ गई और वो गहरी नींद में सो गई।

    सुबह हुई और चित्रा उठ गई। चित्रा के साथ मंगूलाल भी उठ गया। चित्रा ने देखा तो मंगूलाल खैली छोटे से लंगोट में था और पूरे शरीर में सफेद बाल और काला शरीर। चमड़ी लटकी हुई। मंगूलाल स्नान करने चला गया। चित्रा ने कमरे की सफाई की। मंगूलाल वापिस आया और बोला "तुम भी चलो नहाने।"

चित्रा शर्मा गई। वो चल दी। घर केनपीचे एक बहुत ही बड़ा और सुंदर तालाब है। चित्रा नहाने गई और मंगूलाल बहुत दूर चला गया और गांजा फूकने लगा। चित्रा नहाने लगी तालाब में। दूध सा गोरा रंग जब उसका पानी में उतरा तो पानिंके आर पार भी उसका शरीर उसे दिखा। चित्रा नहाकर निकली और साडी पहन लिया। चित्रा ने देखा कि नहाते वक्त मंगूलाल दूसरी ओर पीठ करके बैठा था। और उसकी नजर दूसरी जगह पर थी। वो लगातार चित्रा को छोड़कर सभी जगह नजर घुमा रहा था ताकि हमला अगर हो तो जवाब उसका दे सके। चित्रा को लेकर वापिस हवेली गया। 

    चित्रा रसोईघर गई और खाना बनाने लगी। दोपहर का वक्त हुआ और चित्रा ने खाना बना लिया। सभी लोग एक की लाइन में बैठ गए खाना खाने। मंगूलाल ने जैसे ही खाने का निवाला मुंह में डाला उसे तो जैसे आनंद का अनुभव हुआ। खाना बहुत स्वादिष्ट और उत्तम। 

हल्दी बोल पड़ा "भाभीजी बहुत ही बढ़िया स्वाद है । मैने ऐसा खाना कितने सालो बाद खाया।"

 सभी लोग खुश हुए। बार बार चित्रा की तारीफ कर रहे थे। मंगूलाल ने कुछ न कहा। न तारीफ की और न अपने चेहरे का हाव भाव बदला। लेकिन उसे भोजन  बहुत पसंद आया। 

    ऐसे कुछ दिन बीत गए। सभी लोग चित्रा के साथ खुश थे। जब मन करता लोग उसके साथ बात करते और कुछ भी बनवाके खा लेते। उन सभी लोगो को चित्रा के साथ अच्छा लगने लगा। एक रात सभी लोगो ने संगीत का आयोजन किया। 

     चित्रा बीच में बैठी थी। सभी लोग अलग अलग instrument बजा रहे थे और आवाज चित्रा की थी। चित्रा के सुर इतने सुरीले की बेजान शरीर में जान आ जाएं और किसी को मोह ले वैसा। सभी लोग मोहित हो गए। मंगूलाल को भी बहुत अच्छा लगा। लेकिन तभी एक जोर का धमाका हुआ। बाहर सभी ने देखा कि रक्षाशो की सेना ने हवेली को चारो तरफ से घेर लिया । मंगूलाल ने अग्नि तंत्र से आक्रमण किया तो हल्दी ने तीर चलाया। सुक्र ने ऐसा भयानक तूफान पैदा किया की चन्द देर में आधी सेना ध्वस्त हुई। करीब १ हजार तीर हवेली की तरफ आई। चित्रा को बचाते हुए मंगूलाल ने उसे अपनी और खींचा और कमरे में ले गया। इन सब में उसके पैर और हाथ पर तीर लगा। सभी बच गए लेकिन मंगूलाल घायल हुआ। सांभा ने तोप से आक्रमण किया और ऐसा भयानक आक्रमण किया की सभी लोग भाग गए। 

     मंगूलाल बेहोश हुआ। सभी लोग उसे लेकर कमरे में गए। उसका इलाज हुआ। चित्रा ने इलाज अकेले ही कर दिया। मंगूलाल खतरे से बाहर । चित्रा रोने लगी कि उसकी वजह से ये सब हो रहा है। चित्रा  मंगूलाल की सेवा में  लग गई। चित्रा ने मंगूलाल के प्रत्ये मान आने लगा। हवेली की सुरक्षा बढ़ा दी गई। अब ज्यादातर चित्रा ही मंगूलाल के साथ रहती। मंगूलाल और चित्रा अब वक्त बिताने लगे। चित्रा को मंगूलाल अब अच्छे लगने लगे। दोनो साथ में घूमते,  बाते करते, कभी कभी सभी के साथ पुरानी बाते करते। चित्रा और मंगूलाल जंगल में घूमते और पूरे दिन वहा रहते। 

    एक दिन मंगूलाल ने चित्रा को लेकर जंगल गया। जंगल में बारिश हुई। दोनो दौड़ते हुए झोपड़ी में जा पहुंचे। दोनो का बदन भीग चुका था। चित्रा पल्लू को हटाकर बैठ गई। मंगूलाल ने जब चित्रा को देखा तो सामने बिना पल्लू के चित्रा को देखता रह गया । अब देखना ये है की आगे यानी आखिरी एपिसोड में क्या होगा ।
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#5
चित्रा के बदन से पल्लू हटा हुआ था। उसका गोरा बदन जैसे खुली किताब को तरह मंगूलाल के सामने प्रस्तुत थी। मंगूलाल तो जैसे इस खूबसूरती में डूब गया। चित्रा के भीगे बदन को देखकर वो बिना देरी किए आगे बढ़ा और उसके ब्लाउज को उतार फेका। मंगूलाल ने अपनी आला बांध की और अपने सिर को चित्रा के सीने पर रख लिया। चित्रा को जैसे बिजली का झटका लगा। एक काले और बुड्ढे इंसान ने उसके जिस्म को अपने बाहों में भर लिया। 

     मंगूलाल अब चित्रा के सीने और स्तन को चूमने लगा। अपनी जुबान को बाहर निकाला और चाटने लगा चित्रा का स्तन। चित्रा के अंदर काम की अग्नि ने अपना रोश प्रगट किया और वो अपने दोनो हाथो से मंगूलाल के सिर को अपने स्तनों पे दबा दिया। बारिश की बढ़ती गति को मात दे रही थी दोनो की प्रेम गति।

"तुम मेरी हो चित्रा।" मंगूलाल चित्रा के होठ को चूमते हुए बोला।

"क्या आप मुझे पसंद करते है ?"

"ओह चित्रा तुम मुझे पहली नजर में भा गई थी लेकिन इस बुढ़ापे का क्या करूं। शर्म आ रही थी। तुम इतनी खूबसूरत और जवान और कहां मैं काला और बदसूरत बुड्ढा।"

"इसमें शर्म कैसी ? आप मर्द है सच्चे मर्द।" 

"सच्चा मर्द ? मतलब ?"

चित्रा ने मंगूलाल के हाथ को अपने सीने पे रखते हुए कहा "इस दिल की आवाज आपको मर्द कहती है। आपने अकेले उठकर मेरा बचाव किया। मेरे लिए उस शैतान की फौज से लड़ पड़े। बाकी सभी गांव के मर्द हाथो में चूड़ियां पहने बैठे थे। आपने जब मुझसे शादी की में तब से आपकी होना चाहती थी।"

"एक बुड्ढे आदमी की होना चाहती हो तुम ? कभी कभी लगता है को तुमसे शादी करके मैंने तुम्हारी जिंदगी खराब कर दी।" मंगूलाल हताश होकर पीछे मुड़ा।

चित्रा मंगूलाल को सीने से लगाया और कहा "एक औरत को उस मर्द की तलाश होती है जो उसका खयाल रखें और सुरक्षित रखे। आपके बुढ़ापे से मेरा कोई लेना देना नहीं। आपसे प्यार हो गया मुझे। अगर आप मुझे नही स्वीकारते तो मैं मर जाना पसंद करूंगी।"

"ऐसा मत कहो। मैं तुम्हे स्वीकारता हूं। अब बस उस शैतान को मार दूं। फिर तुम्हे हमेशा के लिए इस गांव में बसा लूंगा।"

"और दिल में ?" चित्रा ने हल्के से मजाक करते हुए पूछा।

"इस दिल में बसाउंगा लेकिन एक शर्त है।"

"कैसी शर्त ?"

"देखो मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया। मुझे एक परिवार चाहिए। मुझे तुमसे बच्चे चाहिए। मैं चाहता हूं की तुम मुझे बाप बनने का सुख दो। मेरे बच्चो की मां बनो।"

"मुझे मंजूर है। अब अगर तुम मेरे जिस्म से लिपट जाओ तो हमारे बच्चे होंगे।"

मंगूलाल खुश होकर चूमने लगा चित्रा को बिस्तर पे लेटा दिया। धीरे धीरे करके चित्रा के जिस्म से कपड़े हटाने लगा। सोना से भी ज्यादा चमक दे रहा था चित्रा का गोरा जिस्म। मंगूलाल अपने कपड़े उतारकर उसके बगल लेता। एक काला और लटकती चमड़ी चित्रा के सामने था। चित्रा ने हल्के से मंगूलाल के सीने पे सिर रखा और बेतहाशा होठ को चूमने लगी। अपने सिर को सीने पे रखकर चित्रा बोली "वैसे मंगुजी आज प्यार की शुरुआत कहा से करेंगे आप ?"

मंगूलाल चित्रा को लेता दिया और उसके ऊपर चढ़ गया। पहले तो स्तन गले और कंधे को चूमा और फिर नीचे जाकर गोरे गोरे योनि के पास गया और बोला "आज इससे प्यार की शुरआत होगी।" इतना कहकर चित्रा के दोनो पैरो को फैलाया और योनि को चूमने लगा। चित्रा के शरीर में जैसे आग सी लग गई। चित्रा की आंखे बंद हो गई। दोनो हाथो से कसके बिस्तर को पकड़ा मांगू ने जुबान को योनि के अंदर डाला और एक हाथ से स्तन दबाया तो दूसरे हाथ से नितंब। बीच बीच में योनि को थूक से भी भरता। 

     उसके बाद मांगू ने अपना लिंग योनि में पहली बार डाला। चित्रा का दर्द से बूरा हाल हुआ। उसका आज पहला सहवास था। मांगू को बाहों में भरके चित्रा दर्द को बुला चुकी थी। मांगू लगातार चित्रा को धक्का दे रहा था और आखिर में मांगू चित्रा की योनी में झड़ गया। दोनो प्रेमी थके हुए थे और पूरी रात भर सहवास किया और सुबह की पहली किरण तक किया। अब दोनो के बीच कोई दीवार नही। मंगू और चित्रा अब एक ही बिस्तर पे सोते। मांगू हर रोज चित्रा को प्यार करता। 

       एक दिन चित्रा और मंगूलाल अपने बिस्तर पे थे कि अचानक से बहुत बड़ा धमाका हुआ। मंगूलाल जब बाहर निकाला तो देखा की शैतान की बड़ी सी फौज ने गांव को घेर लिया।

   मंगूलाल और उसके आदमियों ने तय कर ही लिया की आज शैतान को मारकर रहेंगे। मंगूलाल ने सबसे पहले अग्नि वर्षा की लेकिन शैतान की फौज उसपर हावी हुई। मंगूलाल ने गांव के पिछले हिस्से को संभालकर रखा, हल्दी ने बर्फ की वर्षा कर बाकी अपने लोगो के साथ गांव के आगे के हिस्से को संभाला, शुक्र ने तूफान लाकर तबाही मचाई। इन सब में शैतान अकेला पड़ गया। शैतान पर किसी ने हमला नही किया। उसे अंदर आने दिया। शैतान अपने कुछ आदमियों के साथ अंदर आया। उसके हवेली में आने के बाद सभी ने पूरे गांव को घेर लिया और शैतान अकेला हवेली में फस गया। सांबा जानता था आगे क्या करना है। वो सीधा शैतान के दिमाग में घुसा। शैतान के दिमाग में घुसते ही उसने शैतान की फौज पर हमला किया। 

     करीब पांच घंटे तक संघर्ष चला और आखिर में शैतान को दस बुड्ढे ने मिलकर मारा। शैतान का खेल खत्म। इस युद्ध में हवेली और सभी लोगो का घर तबाह हो गया। मंगूलाल, सांबा, शुक्र, हल्दी के अलावा सभी बुड्ढे मारे गए। उन पांच बुड्ढा का अंतिम संस्कार अच्छे से हुआ। 

     कुछ दिनों के बाद  सभी लोग गांव के इक्कठा हुए और जश्न मनाया। गांव के सरपंच ने कहा "हमारे गांव पर शैतान का कब्जा खत्म। मंगूलाल और उनकी फौज ने कर दिखाया। हम सभी आपके आभारी है। बताइए आपको क्या चाहिए।"

मंगूलाल चित्रा की और देखते हुए कहा "मुझे जो चाहिए वो मिल गया। अब मेरे दोस्तो से पूछो।"

सभी गांव वाले हल्दी की ओर देखने लगे। हल्दी ने एक ही बार में कहा "मुझे एक खूबसूरत और जवान स्त्री चाहिए। जिससे में विवाह करूं। मैं जानता हूं की मैं ८० साल का बुड्ढा हूं लेकिन मुझे सांबा और शुक्र को किसी जवान स्त्री की जरूरत है।"

चित्रा ने हल्के से मुस्कान के साथ अपने तीन जवान सहेलियों को बुलाया और तीन बुड्ढे के हवाले करते हुए पूछा "गांववालो क्या आप इस रिश्ते से खुश है।"

उन तीन जवान लड़कियों ने गांववालों से पहले ही बोल दिया "हमे मंजूर है। हमारी रक्षा की इन लोगो ने। हमे बुड्ढे ही सही लेकिन रक्षा करनेवाला पति चाहिए।"

आखिर में उन तीन बुड्ढे ने चित्रा के साखी से शादी कर ली। चारो जोड़ी खुशी से विदा हुए आई गांव से बहुत दूर अपने अलग सी दुनिया में बस गए। 

१० साल बाद

मंगूलाल और चित्रा के ७ बच्चे हुए तो हल्दी ६ बच्चो का बाप बना, शुक्र ६ और सांबा ८ बच्चो का बाप बना। 

अब यह ३५ लोगो ने एक बड़ा सा गांव बसाया और खुशी खुशी से रहने लगे।
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#6
कहानी नंबर ३ :- जिंदगी एक सफर। 

किरदार : राजिया शाह उमर २६ साल। एक वैश्या। जो अपने पैसे से घर चलाती है।

अब्दुल हमीद : एक बुड्ढा आदमी। 10 साल पहले एक स्कूल का चौकीदार था। उमर ६७ साल

रजाक हमीद : अब्दुल का बड़ा भाई। उमर ७० साल। कोठे का चौकीदार।

     जिंदगी तीन अक्षर से बना एक शब्द है जिसके अंदर दुनिया का हर तजुर्बा समय हुआ है। सुख, दुख, सत्य असत्य जैसे अनेकों अनुभवों का संगरहकेंद्र है। जिंदगी में कब क्या हो जाए, किसी को भी पता नही। क्यों इतनी अजीब है ये जिंदगी ? कभी कोई अपना पराया तो कोई अजनबी अपना हो जाता है। 

     बात है साल 1990 की। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिल्ले की। अंबासा नाम का गांव था जिसमे आबादी कुछ खास नहीं थी। उस गांव में एक घर था जिसमे राजिया शाह और उसकी अम्मी बेनज़ीर शाह रहती थी। दोनो अकेले रहते थे। बेनज़ीर वैसे एक वैश्या थी और राजिया उसकी नाजायज औलाद। लेकिन दोनो साथ में रहते थे। नाजिया एक खूबसूरत की पारी और रंग इतना गोरा की कोई भी उसपे फिदा हो जाए। कोठे पे नाचना, गाना और लोगो का कुछ वक्त दिल बहलाना अपने गीत से। 

     समाज में ऐसे लोगो की कोई इज्ज़त खास नहीं होती। कोई अगर चाहे तो भी राजिया से निकाह नहीं कर सकता। राजिया दिन में घर पर रहती तो रात में नाचती गाती। वैसे राजिया का कई बड़े लोगो के साथ शारीरिक तालुकात हो चुके थे लेकिन एक साल से उसने ये सब छोड़ दिया। नाजिया हर सुबह दोपहर कोठे जाती और वहां के वेश्यो के साथ बाते करती और रात को महफिल सजाती। यूं कहे तो रात 8 से 12 बजे पूरा मेरठ उसका होता। लेकिन राजिया किसी को भी अपने पास नही आने देती। लोग बस उसे पाने के सपने ही देख पाते। 

      राजिया पूरे कोठे में अगर कैसी की इज्जत करती तो वो सिर्फ रजाक हमीद की को कोठी का चौकीदार था। रजाक एक बुड्ढा और दिल का शरीफ इंसान था। रजाक ही एक ऐसा आदमी था जिसका हर वक्त हाल चाल राजिया पूछती। 

      बात करे रजाक के परिवार की तो वो कोठे से 5 किलोमीटर दूर एक छोटे से घर में रहता जिसमे उसका भाई अब्दुल रहता। अब्दुल एक समय सरकारी स्कूल का चौकीदार  था और उसने कई पैसे जुटा रखे थे। पैसे उतने जितने में उनके कुछ सालो का खान पान निकल सके। अब्दुल बुढ़ापे की वजह से बीमार पड़ने लगा। उसकी एक बेगम थी जो बीमारी से चल बसी। परिवार तो जैसे उसकी किस्मत में न था। बेटे अपनी बेगम के गुलाम होकर रह गए और एक कैदी की तरह अपने वालिद से दूर मुंबई चले गए। अब्दुल दिन पर दिन दुखी  और अकेला रहता। इसी वजह से उसकी तबियत बिगड़ने लगी। रजाक को तो जैसे चिंता सताने लगी। 

     रजाक जहां रोज समय से कोठे पर आता लेकिन अब वो कई दफा नही आ पाता था। कोठे की मालकिन बेगम नुसरत को ये बात सही नही लगती। वैसे बेगम नुसरत ६० साल की है और वो ३५ साल से ये कोठा चला रही है।  

    एक दिन दोपहर रजाक कोठे पे आया। तभी बेगम नुसरत ने उसे रोका और पूछा "रजाक मिया आपको में पिछले ३० सालो से जानती हूं। आप हर वक्त समय पर आते लेकिन अब क्या हो गया ? कही तबियत को खराब नही रहती ?"

"ऊपरवाले के रहम से में ठीक हूं लेकिन मेरा भाई बहुत बीमार रहता है।"

"कौन अब्दुल ?"

"हां मालकिन।"

"अब्दुल तो मेरे भाई जैसा है और आप भी। बताइए कितने पैसे चाहिए आपको ?" नुसरत ने अपना बटुआ आगे किया।

रजाक रोकते हुए बोला "ऐसा मत करिए आप। शर्मिंदा ना करिए। आपका वैसे भी हिमपर बहुत एहसान है।"

"लेकिन रजाक आजतक मैने तुम्हारे लिए किया ही क्या है ?"

"बहुत कुछ किया है आपने। आपने हम नौकरी दी और इज्जत भी।"

"आपकी इज्जत यहां हर कोई करता है। आपने कभी भी कोठे पे काम कर रही लड़कियों को छुआ भी नहीं। जबकि हर मर्द ने कोठे की लड़कियों के साथ मुफ्त में रात गुजारी। आप जानते है की महीने में यह पे काम करनेवाले मर्द को दो दिन मुफ्त में लड़कियों के साथ सोने को मिलता है। एक आप ही है जिसने ऐसा नहीं किया।"

"लेकिन अब जरूरत पड़ेगी मुझे।"

"मतलब ?"

"देखिए नुसरत बेगम । मेरी एक मजबूरी है। मेरे भाई के डॉक्टर ने कहा की मेरे भाई को एक औरत के सहारे की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मर सकता है वो।"

"या अल्लाह ये तो बहुत बड़ी बात है।"

"देखिए नुसरत बेगम अगर आप मुझे गलत न समझे तो मैं चाहता हूं की आपके कोठे से कोई जवान औरत मेरे भाई को ठीक कर दे। मैं पैसे भी देने को तैयार हूं।"

नुसरत थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "आप क्यों मुझे शर्मिंदा कर रहे है? आप पैसे की बात न करे। आपको कोई जरूरत नहीं पैसे देने की। क्या आप मुझे अपनी बहन मानते है ?"

"हां।"

"मुझेपर भरोसा करिए। मैं आपके भाई के लिए एक जवान औरत का बंदोबस्त कर दूंगी। पैसे देने की जरूरत नहीं।"

"लेकिन....."

रजाक की बात को काटकर नुसरत ने कहा "लेकिन वेकिन कुछ नही। आपकी मैं बहुत इज्जत करती हूं और अब्दुल की भी। समझलो मेरी तरफ से एक बहन का फर्ज। आप चलिए मेरे साथ।"

 नुसरत रजाक को कमरे में ले गई। वहां उसे सोफे पे बिठाया। उस वक्त राजिया अपने दोस्तो के साथ बात कर रही थी। नुसरत ने राजिया को बुलाया और अब्दुल और रजाक के बारे में बताया। राजिया बोली "लेकिन ये कैसे हो सकता है ? मैं कैसे एक बुड्ढे आदमी के साथ ?"

"दिल्ली राजिया अब्दुल मेरा भाई है। अब तुम मेरे लिए ये कर लो। तुम जानती हो रजाक को वो एक शरीफ इंसान है। कम से कम मेरे लिए ये कर लो।"

राजिया मान गई। नुसरत ने राजिया को रजाक से मिलवाया। 

"तो रजाक भाई। करना क्या है ?" नुसरत ने पूछा। 

"राजिया को मेरे भाई के रहना होगा। उसे एक साथी की तरह रहना होगा। राजिया तुम्हारा एहसान नहीं भूलूंगा। तुम महान हो।" रजाक हाथ जोड़कर रोने लगा।

राजिया ने रजाक को शांत करवाया और कहा "मुझे शर्मिंदा ना करे। आपकी बहुत इज्जत करती हूं मैं। आपके लिए कुछ भी कर सकती हूं। बताइए लब और कहां जाना है ?"

अपने आंसू पोंछे हुए रजाक बोला "आज ही मेरे साथ मेरे घर चलो।"

नुसरत ने कहा "मैं गाड़ी भिजवाती हूं और अब से दोनो को तब तक आने की जरूरत नहीं जब तक अब्दुल ठीक न हो जाए। राजिया सिर्फ अब्दुल ही नही बल्कि रजाक भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। दोनो का खयाल रखना और उनके साथ ही रहना।"

"जी बेगम।" राजिया ने कहा। 

राजिया और रजाक दोनो घर पहुंचे। घर बहुत ही टूटा फूटा और छोटा था। घर गांव से बहुत अलग था। पास में कुआं और घना सा बगीचा था। 

"तो फिर राजिया आज से तुम्हे अब्दुल के साथ उसी के कमरे में रहना होगा।"

"अब्दुल क्या मुझे रहने देगा ?" राजिया ने पूछा। 

"अब्दुल की ही ख्वाहिश है किसी औरत के साथ रहने का। वो तुम्हे रहने देगा। बस रजिया एक बात याद रखना। अब्दुल जो चाहे उसे वो करने देना। बाकी मैं भी साथ रहूंगा।"

     राजिया को अजीब लग रहा था की वो दो बुड्ढो के साथ रहेगी और तो और अब्दुल और रजाक काले और उमर से ज्यादा बुड्ढे और कहा वो दूध सी सुंदर और जवान। सबसे पहले रजाक ने दोनो को मिलवाया। अब्दुल राजिया की सुंदरता का मुरीद हो गया लेकिन दिल में प्यार की हल्की की जगह बनाने लगी। 

राजिया ने सबसे पहले रसोई घर का काम किया। दोनो के लिए खाना बनाया और खाना खिलाया। बहुत सालो बाद दोनो को किसी औरत के हाथ का खाना नसीब हुआ। कहना खाने के बाद अब्दुल अपने कमरे में चला गया। राजिया ने रसोई की सफाई की। रजाक राजिया के साथ था। 

"वैसे राजिया मैं कहना चाहता हूं कि किसी भी चीज की तुम्हे  जरूरत पड़े तो मुझे कहना जरूर। मेरा कमरा अब्दुल के कमरे के सामने ही है। बस इतना जरूर कहूंगा। मेरे भाई को ठीक कर दो।" रजाक भावुक हो गया। 

"चिंता मत करिए रजाक जी। अब्दुल मेरी जिम्मेदारी हैं। अब उसे हर हाल में मैं ठीक करके रहूंगी। वैसे भी अब आपका ध्यान भी मुझे ही रखना है। आप अकेले अब से खुद को न समझे। जब दिल करे मुझसे बात करने का तो आ जाना।"

"सच्ची ?" रजाक ने पूछा।

"क्यों ऐसा पूछा आपने ?"

"इतने सालो बाद कोई आया है इस घर में  और वो मेरे साथ समय भी बिताएगा।"

"मैं कुछ घंटों के लिए थोड़ी ना हूं। मैं यहां ही रहूंगी। आधी रात को भी मिलना हो कहना।"

राजिया काम पूरा करके अब्दुल के कमरे गई। रजाक भी अपने कमरे में गया। राजिया को देखकर अब्दुल बोला "आप राजिया आओ।"

"राजिया अब्दुल के बगल लेट गई। अब्दुल राजिया को देखने लगा और कहा "वैसे एक बात बताओ। तुम क्या घायल तो नही हुई थी ना जब अल्लाह ने जन्नत से तुम्हे यहां पे भेजा तो ?"

राजिया इस बात से हसने लगी और बोली "बात तो सोचने वाली की आपने। मुझे इसके बारे में सोचना चाहिए था।"

"वैसे राजिया एक बात है। आज कितने दिनों बाद हमने खाना खाया।"

"कैसा था खाना ? कही बूरा तो नही बनाया मैने ?"

अब्दुल राजिया से लिपट गया और बोला "बहुत अच्छा बना था खाना।" अब्दुल राजिया आगे बोला "वैसे ठंडी का मौसम है। आ जाओ रजाई में वरना ठंड लग जायेगा।" अब्दुल राजिया को अपने रजाई में ले लिया। दोनो एक ही रजाई में थे। अब्दुल राजिया के गाल को हल्के से चूमते हुए बोला "चलो अब सो जाते है। रात बहुत हो गई। "

     राजिया ने भी आंखे बंद कर ली। अब्दुल राजिया के कंधे पे सिर रखा और एक हाथ से राजिया के कुर्ती के अंदर डाला और नंगे पेट पे हाथ रखकर सो गया। अब्दुल के चुन से राजिया को अजीब का करंट लग रहा था। उसका खुरदुरा हाथ को अपने पेट पे महसूस कर रही थी। गरम सांसे कंधे से होकर गले पे जा रहा था। अब्दुल गहरी नींद में आ गया। नरम नरम पेट को अपने हाथ से मसल भी देता अब्दुल। राजिया को नींद नही आ रही थी। राजिया को पता नही था लेकिन कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गई थी। राजिया ने कंबल को हटाया। अब्दुल की नींद उड़ी और बोला "राजिया तुम ठीक हो ना ?"

अब्दुल को नींद में लाने के लिए राजिया ने उसके सिर को सीने से लगाया और कहा "सो जाओ अब्दुल।"

अब्दुल नींद में बोला "तुम्हारे साथ सोने में मजा आ रहा है।" अब्दुल ने हल्के से राजिया के सीने को चूम लिया।

राजिया ने अब्दुल के चेहरे को सीने से लगाया हुआ था और सुला दिया। कमरे का दरवाजा खुला था। राजिया ने देखा की कमरे के बाहर रजाक खड़ा था। रजाक को अपने पास बुलाया और पूछा "नींद नही आ रही आपको ?"

रजाक ने कहा "नही। वैसे अब्दुल काफी गहरी नींद में है।"

राजिया ने हल्के से सिर को हाथ से सहलाते हुए कहा "हां। वैसे भी इनका सोना भी जरूरी है। लेकिन नींद मुझे भी नही आ रही।"

"ऐसी बात हो तो चलो मेरे साथ। थोड़ा बहुत बात चीत करेंगे फिर नींद भी आ जायेगी।"

राजिया को रजाक की बात सही लगी और अब्दुल को आराम से लेटाकर उठ गई। राजिया और रजाक कमरे के बाहर गए। 

"राजिया मेरे कमरे चलो। ठंडी बहुत है। बाहर चलोगी तो ठंड लग जाएगी।"

"तो फिर चलो।"

 दोनो कमरे में आए। रजाक बोला "बैठो राजिया। आओ कंबल ओढ़ लो।"

राजिया ने कंबल ओढ़ा और रजाक को भी साथ में कंबल के अंदर आने को कहा। दोनो एक ही कंबल में बिस्तर पे बैठे बैठे बात कर रहे थे। यहां वहां की बात कर रहे थे।

"वैसे एक बात बताई रजाक आप आज इतनी रात तक क्यों जगे हुए है ?"

"पता नही आज थोड़ा सा सिर दर्द हो रहा था इसीलिए।"

"पागल है क्या आप ? सिर दर्द के बावजूद भी आप मुझसे बात कर रहे है ? आपको सोना चाहिए या फिर सोने की कोशिश करनी चाहिए। एक काम करो मैं आपका सिर दबा देती हूं।"

राजिया रजाक के सिर को गोदी पे रख देती है और सिर दबाने लगती है। रजाक को हल्का सा अच्छा महसूस हो रहा था। 

"ओह राजिया अब अच्छा लग रहा है। थोड़ा सिर हल्का हो रहा है।"

"अभी थोड़ी देर और लेटे रहो मैं ठीक कर देती हूं।"

"लेकिन राजिया तुम्हे अब्दुल की देखभाल करने के लिए लाया हूं। मेरा बोझ मत उठाओ।"

"चुप चाप सो जाओ। यहां आकार लग रहा है की तुम्हारी भी देखभाल करनी चाहिए।"

"फिर तो तुम हम दोनो के पीछे थक जाओगी। तुम आराम करो।"

"करूंगी लेकिन पहले सो जाओ।"

    रजाक राजिया के गोद में सिर रखकर सो गया। देखते देखते राजिया को भी नींद आ गई और वो रजाक के बगल सो गई। सुबह जब रजाक की नींद उड़ी तो देखा की राजिया सो रही है। रजाक के साथ साथ राजिया की भी नींद उड़ी।

"तुम सो जाओ रजाक मैं अब्दुल को देख आती हूं।" 

राजिया उठकर जा ही रही थी की रजाक बोला "सुनो राजिया अगर अब्दुल सो रहा हो तो उसे सोने दो।"

राजिया गई तो देखा अब्दुल अभी भी गहरी नींद में सो रहा है। राजिया बाहर आई और रजाक के कमरे में गई।

"वो सो रहे हैं"

"सोने दो। वैसे भी ठंडी का मौसम है। कुछ काम नही है। तुम भी सो जाओ। अब्दुल के कमरे में।"

"नही नही। मुझे पहले नहाना है।"

"इतनी ठंडी में सुबह सुबह ?"

"हां।"

राजिया बगल वाले स्नानघर में गई। उस स्नानघर में दरवाजा नही लगा हुआ था सिर्फ पर्दा ही लगा हुआ था। राजिया टोरेंट नहा ली। पानी बहुत ठंडा था। राजिया तुरंत नहाई। नहाने के बाद वह ही कपड़े पहनने लगी। कमीज के बाद ब्रा पहना लेकिन कुर्ती उठाने गई की कीर्ति गिर गया फर्श पे और गीला हो गया। अब करे तो क्या करे। राजिया ठंडी से ठिठुर रही थी। तो फिर ब्रा में ही बाहर आई और कपड़े सुखाने लगी। आंगन में कपड़े लटकाया। राजिया जल्दी से अब्दुल के कमरे गई। सामने देखा तो अब्दुल जग चुका था। राजिया को bra में देखा। उसके गोरे गोरे ऊपरी बदन को देखा अब्दुल ने। अब्दुल बोला "जल्दी से कुर्ती पहन लो वरना ठंड लग जाएगी।"

"हां लेकिन मेरा सामान कहा है ?" राजिया ने पूछा। 

"अरे हट वो तो रजाक के कमरे में है।"

राजिया भी जल्दबाजी में bra में ही रजाक के कमरे चली गई। अब्दुल की तरह रजाक भी राजिया के गोरे बदन को देखता रह गया।

"तुम इधर क्या कर रही हो ? कपड़े कहा है तुम्हारे ?"

"अब्दुल ने बताया तुम्हारे कमरे में है।"

"क्या वो तो तुम्हारे पास था।"

राजिया सोच में पड़ गई। फिर उसे याद आया की सामान गाड़ी से निकलना भूल गई थी। 

"धत्त सामान गाड़ी में ही छुट गया। अब ?"

"रुको मेरे कुर्ते चलेंगे ?"

"अरे नही उसे तो मैंने अभी दो दिया और वैसे भी कितने गंदे थे वो। तुम बाजार से कुछ ला सकते हो ?"

"अरे खड़े के मौसम में बंद है बाजार और अभी बारिश भी होगी।"

"या अल्लाह। ये सारी मुश्किलों को एक साथ हो आना था ।" राजिया सिर पे हाथ रखते हुए बोली। तब तक अब्दुल भी आ गया कमरे में।

"पहले एक काम करो कंबल ओढ़ लो वरना ठंड लग जाएगी।" अब्दुल ने कहा।"

"वैसे अब्दुल तुम्हारी तबियत कैसी है ?" राजिया ने पूछा। 

"अभी थोड़ी थकान है। मैं थोड़ी देर और सोने वाला हूं।"

"तुम लोगो के लिए चाय बनाउ?"

"नही राजिया मैं भी सोनेवाला हूं।" रजाक ने कहा। 

"एक काम करो। राजिया तुम मेरे साथ चलो। थोड़ी देर हम सो जाते है और वैसे भी bra में ठंडी लग जाएगी।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के दोनो कंधे पे हाथ रखा और अपने साथ ले चला। राजिया भी ठंड की वजह से अब्दुल से लिपट गई। अब्दुल राजिया को अपने कमरे लेकर आया और दरवाजा बंद कर दिया। दोनो बिस्तर पे कंबल के अंदर आ गए। अब्दुल अचानक जोर जोर से हसने लगा। राजिया को थोड़ा अजीब सा लगा। 

"ऐसे हंस क्यों रहे है आप ?" राजिया ने पूछा। 

"बूरा मत मानना राजिया लेकिन तुम्हारी किस्मत पे हंसी आ रही है।"

"मेरी किस्मत ? मतलब ?"

"मतलब ये को तुम जब से इस घर में आई हो तब से तुम्हारे साथ ही उल्टा हो रहा है। कपड़े तुम्हारे गीले हुए, सन गाड़ी में छूट गया, बाजार बंद है, बारिश भी होनेवाली है और तुम इस bra में। सब उल्टा हो रहा है यहां पे।"

राजिया हल्के से मुंह बिगड़ते हुए "आपको बहुत मजा आ रहा है ? संभालके शायद आगे आपके साथ न उल्टा हो जाए।"

"लेकिन एक बात कहूंगा। पहली बार किसी खातून को यूं बाहर bra में देख रहा हूं।"

"अब जैसी मेरी किस्मत।"

"लेकिन राजिया तुम आई तो घर कुछ अच्छा लग रहा है। ये सोचो न तुम आई और हमारा दिन कुछ अच्छा सा हो रहा है।"

राजिया को बात अच्छी लगी और बोली "वाह बाते करना कोई आपसे ही सीखे। बुरी बात को अच्छी बात में तब्दील कर दिया।"

"नही राजिया ये सच है। तुम आई तो जैसे घर का खाना नसीब हुआ, बहुत दीनो बाद एक अच्छी नींद मिली, तुम्हारी हालत देख आज इतने दिनो बाद हसने का मौका मिला। सच में राजिया तुम जैसे एक अच्छे सपने की तलाश हो या हकीकत की।"

राजिया और अब्दुल दोनो एक दूसरे को देखते रह गए। 

"वैसे राजिया एक बात की इजाजत लूं अगर बूरा न मानो तो ?"

"किस चीज की इजाजत ?"

"राजिया मुझे कुछ देर के लिए तुमसे लिपटकर सोना है।"

राजिया ने अब्दुल को बाहों में भर लिया और सिर पे हल्के से चुंबन  देते हुए कहा "अब्दुल तुम खुद को अकेला मत समझना। मैं हूं तुम्हारे साथ।"

अब्दुल ये बात सुनकर रोने लगा। 

"अब्दुल तुम रो रहे हो?" राजिया ने आंख से आंसू पोंछे हुए पूछा।

"पहली बार किसी ने ऐसी बात की।"

"ओह अब्दुल कितने बदसूरत लगते हो रोते हुए वैसे भी बुड्ढे हो और भी बेकार लगते हो।"

अब्दुल पूछा "तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो ?"

"तुम खुद ही एक मजाक हो। तुम्हारा क्या मजाक उड़ाया जायेगा।"

अब्दुल हस्ते हुए बोला "अभी बताता हूं तुझे।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के कमर पे गुदगुदी करने लगा। राजिया गुदगुदी की वजह से हसने लगी और बोली " हा हा हा अब्दुल छोड़ो मुझे। अब्दुल बदमाश बुड्ढे।"

अब्दुल बैठ गया और लेटी राजिया को गुदगुदी करते हुए कहा "अब मजाक उड़ा मेरा।" दोनो हसने लगे। फिर अब्दुल राजिया के ऊपर लेट गया और बोला "ओह राजिया तुम तो मेरी जान ले लोगी। इतना भी हसाओ मत।"

"मैं तुम्हारी क्यों जान लूंगी। जान तो तुमने मेरी ले ली। इतनी गुदगुदी कौन करता है। वैसे मुझे पता नही था की ये बुड्ढा अब्दुल मजाक भी करता है।"

अब्दुल राजिया के गाल को चूमते हुए बोला "वैसे तुम्हारी कमर बहुत अच्छी है। मजा आ गया।"

"चुप बदमाश। अब जल्दी कंबल के अंदर आओ वरना मुझे ठंड लग जाएगी।"

"रुको मैं तुम्हारी ठंड भागता हूं।" अब्दुल कंबल के अंदर घुसा और राजिया ने नंगे पेट पे सिर रख दिया। राजिया के जिस्म में करंट दौड़ पड़ा।

"आह अब्दुल क्या कर रहे हो ?"

"गर्मी दे रहा हूं। अब में तुम्हारे पेट पे सिर रखूंगा और मेरी गरम सांसें तुम्हारे पेट पे आएगी। गरम महसूस होगा तुम्हे।"

"लेकिन तुम्हारी दाढ़ी का क्या ?"

"तुम चुपचाप सो जाओ। वैसे भी तुम्हारा पेट कितना मुलायम है।"

राजिया हसने लगी और अपने दोनो हाथो से अब्दुल के चेहरे को पेट पे दबा दिया और कहा "ये तरकीब अच्छी है।"

अब्दुल ने दोनो हाथो को राजिया के कंधे पे रखा और पेट पे मुंह रखा हुआ था और अचानक से चूमते हुए कहा "तुम्हारा पेट इतना मखमल है वाह।" 

"Hmm अब सो जाओ।" फिर दोनो ने आंखे बंद कर ली। राजिया ने बड़े से कंबल को सिर तक ढाक दिया। दोनो को गरम सांसें कंबल में घूमती रही और राजिया का पेट अब्दुल के चेहरे से ढका हुआ था।
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#7
देखते देखते दोपहर हो गई। बारिश बहुत तेज़ी से शुरू हो गई और ठंडी ने अपनी हद पार कर ली। राजिया और अब्दुल अभी भी बिस्तर पे थे। दोनो को नींद तो उड़ गई लेकिन ज्यादा ठंडी की वजह से रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। अब्दुल राजिया के बगल लेता हुआ था और कसके उसे पकड़ा हुआ था। 

"कितनी ठंडी है राजिया।"

"सुनो अब्दुल मैं खाना बनाने जा रही हूं। तुम लेट जाओ और हां दवाई लेकर आती हूं।" राजिया उठकर सबसे पहले अब्दुल को दवाई दी और कहा "चुपचाप लेते रहो। मैं खाना बनाकर आती हूं।"

राजिया जानेवाली थी कि अब्दुल ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "वैसे मेरी नींद बहुत अच्छी रही।"

राजिया समझ गईं और बोली "बदमाश।"

अब्दुल राजिया को अपनी तरफ खींचा और पेट को चूमते हुए कहां "वैसे तुम कहो तो कुछ देर और गर्मी में रहोगी ?"

"कोई जरूरत नहीं। अगर बिस्तर पे रही तो खाना कौन बनाएगा ?"

"चलो जल्दी काम करो और मेरे पास आओ।" अब्दुल ने कहा। 

"हां आ जाऊंगी। कही भाग नही जाऊंगी।"

राजिया रसोई को तरफ जा रही थी। कमरे से बाहर आई तो सामने रजाक का कमरा खुला हुआ था और रजाक लेटा हुआ था। रजाक ने राजिया को देखते कहा "बाहर क्या कर रही हो ? ठंडी लग जाएगी।"

"अरे नही मैं जा रही हूं खाना बनाने।"

"अच्छा। चलो मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं।"

रजाक और राजिया रसोईघर में पहुंचे। ठंडी की वजह से रसोईघर में रहना मुश्किल हो रहा था। चूल्हे के लिए लकड़ी भी नही थी।

"अब क्या करे ? चूल्हे के लिए लकड़ी भी नही है " राजिया ने हैरान होकर कहा। 

"अरे लकड़ी को बगलवाले कमरे में है। मैं लेकर आता हूं।"

"अरे लेकिन जाओगे कैसे उस घर में ? बारिश बहुत जोर से हो रही है।"

"अरे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। अभी आता हूं।"

कहने को रजाक ने के दिया। लेकिन इस ठंडी और मूसलधार बारिश में जाए तो जाए कैसे ? रजाक दौड़ते हुए गया और बगलवाले छोटे कमरे का ताला खोला। लेकिन इतने में ही उसका आधा बदन भीग चुका था। स्वेटर भी भी भीग चुका था। कैसे करके ताला खोलकर लकड़ियां इक्कठी की और बोरी में भरकर घर की तरफ भागा। घर पहुंचते पहुंचते पूरी तरह से बदन भीग गया था। ठंड से अब शरीर कांप रहा था। राजिया देखी तो हैरान हो गई। 

"अरे आपके सारे कपड़े अभी सूखने को रखे है। अब ये बचा कपड़ा भी गीला हो गया। अब क्या करेंगे ?"

"कुछ नही। सबसे पहले राजिया तुम लकड़ियों को चूल्हे में जलाओ मैं कुछ करता हूं अपने लिए।"

राजिया भी ठंडी से कांप रही थी। आखिर bra ही तो पहना था ऊपर। रजाक के पास सिर्फ एक लूंगी बची थी। जल्दी से अपने गीले कपड़े स्वेटर को उतारा और लूंगी पहन लिया। लूंगी पहनकर कांपते हुए रसोईघर आया। राजिया को रजाक सिर्फ लुंगी में दिखा। ऊपर का शरीर पूरा काला और बुढ़ापे से शरीर लटका हुआ था। चेहरे पर लंबी सफेद दाढ़ी और टोपी। ऊपर पहने के लिए कोई कपड़ा नहीं था। राजिया थोड़ा सा हंस दी। रजाक को अजीब लगा।

"तुम्हे हंसी क्यों आ रही है ? 

"बस आ रही है। पहले मेरे कपड़े गीले हुए। मैं ब्रा में हूं और आप भी ऊपर से बिना कपड़े के।" राजिया ने कहा। 

"हां बात तो सही है। हम दोनो बिना ऊपरवाले कपड़े के। अजीब सा दिन है आज।"

"रसोईघर में भी कितनी ठंडी है।"

"एक काम करो राजिया तुम चूल्हे के पास ताप लो। मैं रसोई को अंदर से बंद कर देता हूं। ताकि ठंडी हवा अंदर न आए।" 
   
     दरवाजा अंदर से बंद करके दोनो साथ में चूल्हे के पास बैठ गए। राजिया ने खिचड़ी चढ़ाई। दोनो आग का ताप ले रहे थे। रजाक राजिया के दूध से गोरे बदन को देख रहा था। राजिया के ऊपरी शरीर देखकर रजाक जैसे मोहित हो गया। बंध रसोईघर का अंधेरा और ऊपर आग की हल्की रोशनी में राजिया का बदन सोने सा चमक रहा था।  लेकिन ठंडी की वजह से कांप भी रहा था। राजिया समझ गई की ठंडी से रजाक की हालत बहुत खराब हो गई है।  राजिया को भी कोई संकोच नहीं दोनो बुड्ढे के साथ रहने में और वो भी बिना कपड़े पे भी। वैसे भी दोनो बुड्ढे सज्जन भी थे। 

"आप ठंडी से बदहाल महसूस कर रहे हैं। चलिए आप खाना खा लीजिए फिर रजाई में सो जाना।" राजिया ने रजाक को खिचड़ी खिलाया। उसके बाद अब्दुल को खिचड़ी खिलाया और दवाई देकर सुला दिया। 

ठंड से बदहाल रजाक अपने कमरे में गया और रजाई में घुस गया। राजिया उसके कांपते शरीर को देखकर कमरे में आई और कमरे को अंदर से बंद कर दिया। 

"राजिया तुम यहां ? जाओ अब्दुल के पास जाओ। वो अकेला पड़ जाएगा।"

"कुछ मत कहो। वो अभी सो रहे है। चलिए आपका हाथ पैर घिस देती हूं। थोड़ी सी गर्मी आएगी।"

रजाक ने राजिया के दोनो नरम कंधे पे हाथ रखकर कहा "देखो तुम्हारा शरीर ठंडा पड़ रहा है। चलो मेरे साथ लेट जाओ। मैं कुछ नही सुनूंगा। चलो तुम भी आराम कर लो।"

   राजिया रजाक दोनो साथ में लेट गए। दोनो के ऊपर शरीर में कपड़ा नहीं था। रजाक बोला "बूरा न मानो राजिया तो तुम्हे अब्दुल के पास होना चाहिए। मेहरबानी करके अब्दुल के पास जाओ।"

राजिया को बात माननी पड़ी। वो अब्दुल के कमरे गई और रजाई में घुस गई। अब्दुल को आंखे खुली और राजिया को बाहों में भरते हुए कहा "राजिया ठंडी कितनी है। और तुम बाहर ऐसे मत घूमो। कितनी ठंडी है। मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही थी।"

"मेरी फिक्र ?"

"हां। वैसे भी तुम्हारे साथ रहना जो है। तुम एक काम करो मैं तुम्हारे ऊपर लेट जाता हूं और तुम मुझसे लिपट जाओ।"

    अब्दुल ने वही किया। राजिया को गर्मी की जरूरत थी। उसने अब्दुल को अपने ऊपर लेटा लिया।

अब्दुल ने भावनाओ में आकर राजिया के गाल को चूम लिया और कहा "राजिया क्या तुम मेरे लिए आई हो ? सच बताओ। क्या तुम वोही हो जो महफिलों में गाया करती है ?"

"क्या आपको में नापाक औरत लगती हूं ?"

"या अल्लाह ये क्यों कहा ?"

"क्योंकि मैं महफिलों में गाती हूं।"

"खुदा के वास्ते ऐसा न कहो। तुम एक पाल औरत हो। मैं एक बुड्ढा इंसान हूं। तुम मेरे लिए आई हो यहां। ताकि मैं ठीक हो जाऊं। लेकिन क्यों ? क्यों अपना वक्त बरबाद कर रही हो ?"

"क्योंकि रजाक बहुत अच्छे इंसान है। वैसे भी मेरी इज्जत की आपने। इससे बढ़कर और क्या चाहिए एक औरत को।"

"बस भी करो राजिया इतना न सेवा करो। कल कही आदत न पद जाए मुझे तुम्हारी।"

"इस आदत को छूटने में जन्म भी लग जाए तब तक आपके साथ रहूंगी।"

"राजिया अभी भी वक्त है सोच लो। चली जाओ यहां से। तुम्हे आगे की जिंदगी जीनी है।"

"कैसी जिंदगी ? फिर वोही लोगो की बुरी नजर। समाज में अजीब सा बर्ताव। इससे अच्छा यहां है। सुकून और दुनिया की गंदी नजर से दूर।"

"राजिया एक चीज मांगू तुमसे ? अगर दे सको तो।"

"बोलिए न।"

"मेरे भाई रजाक का भी खयाल रखना। मेरे जितने पैसे है वो तुम्हे दे दूंगा। लेकिन वो को मांगे उसे दे दो।"

"जिंदगी में पैसा ही सेवा की कीमत नही होती। अगर आप मेरी इज्जत करते है तो पैसे को बीच में ना लाए।"

"ओह राजिया तुम महान हो। लेकिन अभी मुझे तुमसे कुछ चाहिए।"

"क्या ?"

"मैं तुम्हे बेतहाशा चूमना चाहता हूं। क्या इस घर में तुमसे ये अधिकार मांगू ?"

"अब्दुल आप जो करना चाहे करिए क्योंकि आज तक जिस मर्द ने मुझसे ये चीज मांगी उसकी नियत में सम्मान नही था। मुझे पता है। आप मेरी इज्जत करते है।"

"राजिया तुम कितनी खूबसूरत हो। क्या इस बूढ़े इंसान को चूमकर उसे अच्छा महसूस करा सकती हो ?"

राजिया मुस्कुराई और अब्दुल के गाल को चूमते हुए कहा "अब कैसा लग रहा है ?"

"मेरी राजिया बहुत अच्छा।" अब्दुल ने राजिया के गले को चूमने शुरू किया। आनंद में राजिया की आंखे बंद हुई। शरीर में गरम सासों का बहाव दिल में धकधक सा बढ़ा रहा था। अब्दुल ने अपनी जुबान बाहर निकाली और हल्के से गले पर घूमने लगा। 

"तुम शहद की मिठास हो। लेकिन एक चीज की कमी है इस शहद में।"

"कैसी कमी ?" राजिया ने आश्चर्य से पूछा। 

"शहद मतलब जब दिल चाहे तब लिया जा सकता हैं उसे। हर वक्त उससे मिठास मिलती है। क्या यह शहद मुझे जब चाहे मिल सकता है ?"

"जब तुम चाहो इस शहद को ले सकते हो।"

"फिर तो आज इस शहद को चखकर रहूंगा।"

अब्दुल ने राजिया के होठ को चूमा। राजिया ने भी साथ दिया। अब्दुल नीचे गया और राजिया के नाभी को चूमा और कहा "इस मिठास को मैं धीरे धीरे और आराम से चखूंगा।" अब्दुल राजिया को गले लगाते हुए कहा "is waqt रजाक को भी तुम्हारी जरूरत है। जाओ उसके पास।"

"और तुम ? तुम्हारा क्या ?"

"अब मुझे तुम मिल गई। अगर मुझे अच्छी नींद देना चाहती हो तो एक बार मुझे होठों से लगा लो।"

"अब्दुल तुम खुद ही कर लेते।" राजिया ने अब्दुल के होठ को चूमा और कहा "मैं यहां ही हूं। जब चाहो और जिस दिन दिल करे मेरे साथ जो करना चाहो कर लेना।"

"वक्त आने पर तुम्हे एहसास जरूर दिलाऊंगा की तुम्हारे लिए मेरे दिल में क्या है। अब जाओ और रजाक के साथ थोड़ा वक्त बिताओ। मेरी परवाह मत करो। आखिर उसे भी किसी के साथ की जरूरत है।"

     राजिया अब्दुल को चूमकर बिस्तर से उठी। अब्दुल ने पीछे से कहा "राजिया इस ब्रा में कमाल लगती हो। इसे रोज पहना करो।"

"तुम बड़े बदमाश हो अब्दुल।"

"लेकिन राजिया मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताने में मजा आया।"

     राजिया मुस्कुराकर चली गई। सामने रजाक के कमरे में गायिंको कंबल में रजाक लेटा हुआ कांप रहा था। रजाक राजिया को देखकर बोला "अब्दुल कैसा है ?"

"उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा।"

"तुम चली आई ? देखो राजिया सो जाओ। हम दोनो का खयाल रखते रखते बीमार पड़ जाओगी ।"

राजिया ने दरवाजा बंद करते हुए कहा "दरवाजा क्यों खुला रखते हो ? ठंड बढ़ जाएगी"

"वो क्या है ना मुझे आदत है। अब्दुल का ध्यान रखता हूं ना।"

"अब जरूरत नहीं इसकी। मैं हूं ना।"

राजिया रजाई में घुसी। राजिया मन ही मन खुद से कहा "अब यही तेरा काम है राजिया। दोनो को खुश रख और दोनो बुड्ढे इंसान को अपनापन दो। भूल जा इस उमर की सरहद। अगर मुझे जिंदगी भी बितानी पड़ी तो बैताऊंगी। राजिया खुद की जिंदगी दोनो के हवाले कर दे।"

राजिया रजाई में घुसी और बोली "अब मै थोड़ी देर आराम कर सकती हूं।"

"आओ अंदर आओ राजिया। ठंड लग जाएगी।"

राजिया रजाक के बुड्ढे सीने पे हाथ रखते हुए "कंबल को सिर के ऊपर रख दो। सिर से पाओ तक दोनो कंबल में आ जायेंगे।"

"लेकिन थोड़ा सटकर सोना पड़ेगा।"

राजिया ने कंबल में खुद को और रजाक को घुसा दिया। दोनो का शरीर पूरी तरह से कंबल में सा गया। कंबल के हल्की सी रोशनी थी बाकी अंधेरा। राजिया रजाक से सट गई और बोली "तुम भी थोड़ा नजदीक आओ।"

"तुम्हे गलत तो नहीं लगेगा ?"

"बेवकूफ मत बनिए। अब चलो भी।"

दोनो एक दूसरे से लिपट गए। दोनो के ऊपरी नंगे जिस्म जुड़ गए। 

"ओह राजिया कमबख्त ठंडी क्या क्या करवाती है।"

"रजाक जरा अपने हाथ आगे बढ़ाओ और मेरी पीठ को घीस दो ना।"

रजाक ने दोनो हाथ आगे किया। राजिया के दोनो स्तन रजाक के सीने से दब गए। रजाक की सांसें ऊपर नीचे होने लगी। दोनो की गरम सांसें कंबल में फेल गई। रजाक राजिया के पीठ पे हाथ घिसने लगा। 

"रजाक अब अच्छा लग रहा है।" इतना कहकर राजिया ने हल्के से रजाक से गले पे अपने गले को लगाया दोनो में अब एक इंच का भी फैसला न रहा । राजिया के स्तन रजाक के सीने से पूरी तरह से दब रहा था।  रजाक को अच्छा लग रहा था। 

"रजाक अब गरम महसूस हुआ ?"

"हां अब बहुत अच्छा लग रहा है। और तुम्हे कैसा लग रहा है ?"

"बहुत अच्छा।"

"तुम्हारे शरीर में एक भी बाल नहीं है। जरा अपना बगल (armpit) दिखाओगी?"

राजिया ने दोनो हाथ ऊपर किया। मुलायम और साफ बगल देख रजाक बोला "तुम काफी खयाल रखती हो अपने शरीर का।"

"वैसे अगर में कपड़े के होती तो तुम्हे पता न चलता। मेरे कपड़े पे ना होने से काफी कुछ पता चल तुम्हे।" राजिया ने छेड़ते हुए कहा। 

"तुम भी मजाक अच्छा कर लेती हो।" 

दोनो एक दूसरे से चिपककर लेते हुए थे। रजाक ने हल्के से चुम्मी दी राजिया को। राजिया ने रजाक के दाढ़ी को सहलाते हुए कहा "सच कहूं तो ये जगह वाकई अच्छी जगह है।"

"इस जगह में क्या है ?" रजाक ने पूछा। 

"अपनापन और शांति। मुझे कितने सालो बाद किसी के साथ अच्छा लग रहा है। आप और अब्दुल के साथ जैसे एक रिश्ता सा बनता नजर आ रहा है। रजाक पता नही क्यों मुझे यहां बस जाने का मन कर रहा है।"

"तो बस जाओ ना राजिया। हम तीनो एक दूसरे का खयाल रखेंगे और साथ रहेंगे।" इतना कहकर रजाक ने राजिया के ब्रा का हुक खोल दिया। राजिया ने ब्रा उतार दिया और फैलते हुए कहा "रजाक मेरे सीने से लग जाओ।"

रजाक ने राजिया के नंगे स्तन को हाथो से थमा और दबाने लगा। राजिया होश खो बैठी और बोली "कही मुझे तुम दोनो की आदत न पद जाए। संभालकर रजाक क्योंकि अगर पद गई आदत तो फिर हमेशा इधर रह जाऊंगी।"

"तो समझो अब वक्त आ गया है। अब से तुम यहां रहोगी।"

"रजाक क्या एक हमसफर बनकर ?"

"हां। लेकिन तुम्हे अब्दुल को भी अपना सब कुछ देना होगा। खुद को सौप दो।"

"सौप दिया। तुम दोनो के हवाले खुद को कर दिया। अब रजाक आज सारी हदें पार कर लो और साबित करो की मैं तुम्हारी हूं।"

रजाक राजिया के स्तन को चूसने लगा। राजिया ने कसके बाहों में भर लिया। अपनी लुंगी उतारकर पूरी तरह से नंगा होकर राजिया से कमीज को उतार दिया। अपने लिंग को योनि में डालते हुए कहा "मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है राजिया। तुमसे प्यार कर बैठा हूं।"

"रजाक अगर मोहब्बत हुई है तो रुको मत।"

  रजाक योनि में लिंग डालकर धक्का देने लगा। आज उसे जिंदगी को बड़ी खुशी मिलनेवाली थी। राजिया को ये एहसास अच्छा लगा। एक काले बुड्ढे से प्यार हो गया उसे ऐसी कल्पना भी नहीं की थी राजिया ने। दोनो कामवासना में लगे थे और शरीर की गर्मी इतनी बड़ी की पसीने आने लगे। रजाई को हटाकर राजिया ने चिल्लाते हुए कहा "रजाक तुम मेरे हो। सिर्फ मेरे। अब से में तुम्हारी और अब्दुल को हुई। खुदा के वास्ते मुझसे अलग न होना।"

"आह राजिया अब हम कोई जुदा नही कर सकता।"

धक्का मरते मारते रजाक आखिर में योनि में झड़ गया। दोनो को मोहोब्बा का मीठा एहसास हुआ। दोनो बिस्तर पे बेजान से लिए हुए थे। 

राजिया ने रजाक से कहा "मुझे जाना होगा।"

"कहा ?"

"आज अब्दुल को ये बताने की मुझे तुम दोनो से मोहोब्बत हुई है।"

     राजिया अब्दुल के कमरे गई और फिर उसके बाद जो राजिया ने रजाक के साथ किया वोही अब्दुल के साथ। अब्दुल ने भी राजिया के साथ सेक्स किया। अब ये प्यार का रिश्ता तीनों के बीच क्या रंग लायेगा ये आपको आगे पता चलेगा।
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#8
अब्दुल और रजाक को राजिया का प्यार मिला। अब दोनो सिर्फ राजिया की चाहत में थे। राजिया ने दिल से ये फैसला किया की अब वो उन दोनो के साथ ही रहेगी। दोनो से मिल रहे प्यार से वो खुश थी। 

      रात का सन्नाटा और बारिश के थम जाना। अब्दुल और राजिया निर्वस्त्र लेते हुए थे। अब्दुल राजिया के चेहरे को सहलाते हुए कहा "आज तो जैसे मजा आ गया। वैसे राजिया तुम्हारा एक एक अंग जैसे खजाना। वैसे एक बात पूछूं?"

"हां पूछो।"

"हम दोनो में से किसके साथ अच्छा लगा ?"

"इस बात का जवाब थोड़ा सा लंबा है। सुनना चाहेंगे।"

अब्दुल राजिया के स्तन को चूमते हुए कहा "के भी दो जानेमन। कही फिर से शुरू ना हो जाऊं मैं।"

"तो फिर सुनो। तुम एक प्यासे प्रेमी हो। जब तुम मेरे शरीर को चूम रहे थे, तो खुद को काबू करना मेरे लिए आसान नहीं था। जी कर रहा था की सारी हदें पार कर लूं। फिर तुम्हारे प्यार करने का तरीका भी थोड़ा जालिम है।"

"वो कैसे ?"

"जब तुम धीरे धीरे मेरे बदन को चाटते हो तो इतनी बिजली शरीर में दौड़ती है को जान निकल जाती है। लेकिन सच में अब्दुल तुम मुझे प्यार भी देते हो।"

"और मेरे भाई रजाक का क्या खयाल है।"

"माफ करना अब्दुल लेकिन रजाक को एक अदा है। वो जैसे एक जवान आशिक की तरह मेरे बदन के साथ खेलता है। मेरे नीतम में जब अपना लिंग डालते है तो मैं पागल हो जाती हूं। रजाक को में बहुत ज्यादा प्यार करती हूं। तुम्हे बूरा तो नही लगा न ?"

अब्दुल राजिया को बाहों में भरते हुए "बिलकुल भी नही। बस ऐसे ही हम दोनो की इच्छा पूरी करो। हम दोनो ने बरसो से खुशी को महसूस नहीं किया। अब जल्दी से उठो और मेरे नहाने का इंतजाम करो। चलो जल्दी करो।"

      राजिया ने पानी गरम किया और स्नानघर में रखा। अब्दुल भी वहां आया और कहा "राजिया आज तुमसे एक बात कहूं ?"

"हां बोलो ना।"

"वैसे रजाक मेरा भाई नही है।"

"तो फिर कौन है वो ?"

"दरअसल हम बचपन के दोस्त है। हमारा परिवार सब अलग है। लेकिन गरीबी की वजह से रजाक का परिवार कभी बसा नही और मेरा बसा हुआ परिवार मुझे छोड़कर चला गया। तभी से हम दोनो साथ में भाई की तरह रहते है।"

"आपका परिवार कहा है ?"

"मुंबई में मुझसे दूर। अब वो कभी वापिस नही आयेंगे।" इतना कहकर अब्दुल रोने लगा। 

राजिया अब्दुल को गले लगाते हुए "कोई जरूरत नहीं है हम इस दुनिया कि। मै हूं ना। दोनो को इतना प्यार करूंगी की को प्यार तुम्हे बरसो से खुद से दूर रखा वो प्यार तुम्हारी बची हुई जिंदगी को बनाएगी।"

अब्दुल राजिया के होठ को चूमते हुए "अब बस राजिया हमेशा के लिए यहां बस जाओ। दुनिया को हमारे नामू निशान ना मिले।"

"अब चलो नहाने वरना पानी ठंडा हो जाएगा।"

राजिया बाहर जानेवाली थी कि अब्दुल ने उसका हाथ पकड़ा और बोला "आज साथ में नहाएंगे। आओ मेरी जान मेरी बाहों में।"

"तुम लगता है मुझे ऐसे ही पागल कर दोगे। चलो अब्दुल ले लो मुझे बाहों में।"

अब्दुल ने पानी के एक मग को राजिया के बदन पे डालने लगा। गरम पानी से राजिया को अच्छा लगने लगा। 

"सिर्फ पानी ही डालोगे या फिर इस बदन के साथ कुछ करोगे।"

अब्दुल राजिया के नाभी को चाटने लगा और बोला "तुम्हारा बदन इतना कामुक है की मन नहीं भरता। ओह मेरी राजिया जरा मेरे शरीर को भी गर्माहट दो।"

राजिया ने अब्दुल के लिंग को पकड़ा और मुंह में डालकर हिलाने लगी।

"आह मजा आ रहा है।" काफी देर बाद आखिर में अब्दुल झड़ गया। दोनो ने साथ में स्नान किया। अब्दुल राजिया के बदन को पोछते हुए कहा "तुम यहां रहो मैं रजाक के पास। आज क्यों न उसके साथ थोड़ा मजा किया जाए।"

"क्या करेंगे हम ?" राजिया ने पूछा। 

अब्दुल राजिया के कान पे सब बताया। राजिया सीधा रजाक के कमरे में गई। देखा तो रजाक था ही नही। अब्दुल ने फिर बताया कि बाहर नलके के पास एक और बाथरूम है। वहां नहा रहा होगा।

"ठीक है फिर में वहा जाती हूं।" 

अब्दुल राजिया को कहा "आज ब्रा में जाओ। जरा उसे भी अपना जलवा दिखाओ।"

"हां आज तो रजाक को खैर नहीं।"

राजिया बाहर गई तो देखा की बाथरूम का दरवाजा खुला था। रजाक नहा चुका था और बदन को पोंछ रहा था। रजाक को नजर राजिया पे गौ जो बाजार ब्रा और कमीज में खड़ी थी। 

"तुम ? चलो जाओ अंदर और मेरे आने का इंतजार करो।" रजाक ने कहा। 

अब रजाक अपने कपड़े लेने जाए उससे पहले ही राजिया ने कपड़े चीन लिए। 

"ये क्या मजाक है राजिया मेरे कपड़े दो।"

"ऐसे नही मिलेगा आओ ले जाओ।" राजिया इतना कहकर दौड़ने लगी और घर की तरफ गई। 

"सुनो राजिया। मजाक मत करो। सुनो भी। चलो रूक भी जाओ।" रजाक राजिया के पीछे दौड़ते हुए अंदर आया। देखा तो अब्दुल और राजिया सामने खड़े खड़े हंस रहे थे।

"ओह तो ये दोनो को बदमाशी है। नालायको। राजिया मेरा कपड़ा दो।"

राजिया ने हाथ आगे बढाया जिसमे कपड़े थे। रजाक आगे बढ़ा और हाथ से लेने गया को इतने में राजिया ने कपड़े को पानी से भरी बाल्टी में फेक दिया। कपड़े गीले हो गए। 

"ये क्या ? मेरे कपड़े ?"

राजिया हस्ते हुए बोली "आज भी नंगे रहो। समझे।" 

"देखो राजिया ये बदमाशी सही नही।" रजाक ने कहा। 

"जो भी हो। मुझे ये अब्दुल ने कहा ऐसा करने को। चलो अब तुम्हारी फूटी किस्मत।  चलो अब्दुल मेरा कपड़ा वापिस करो।"

"हां हां जरूर करता हूं।" अब्दुल ने राजिया के कपड़े पानी में फेक दिए। 

"बदमाश अब्दुल मेरे कपड़े खराब कर दिए ?" राजिया चिल्लाई।

रजाक हंसने लगा और बोला "अब तुम भी बिना कपड़े की।"

राजिया रजाक से सीने से लिपटकर बोली "दिल्ली ने रजाक तुम्हारी राजिया के साथ धोखा किए इस अब्दुल ने। हम दोनो के कपड़े खराब करके हंस रहा है।"

"लेकिन अब नही हंसेगा।" इतना कहकर राजिया ने पानी को बाल्टी उठाई और अब्दुल के ऊपर फेक दिया। अब्दुल पूरी तरह से गीला हो गया और अब उसके कपड़े भी खराब। 

"कमीनें मेरे कपड़े खराब किए।" 

     तीनों हंसने लगे। 

"अब हम तीनो क्या आज बिना कपड़े के रहेंगे ?" राजिया ने पूछा। 

"हां और अब इस राजिया ने हमारे कपड़े खराब किए। क्या बोलता है रजाक क्या करे इसका ?"

"इसको सजा मिलेगी।" रजाक ने कहा। 

"कौन सी सजा ?" राजिया ने पूछा। 

"अभी बताते है।" रजाक और अब्दुल आगे बढ़े और राजिया को उठा लिया। दोनो राजिया को बिस्तर पे गिरा दिया।दोनो  राजिया के बगल लेट जाएं राजिया दोनो बुड्ढे के बीच लेटी हुई थी।

"क्या बोलता है रजाक अब सजा दे इसे ?"

"हां। सबसे पहले अब्दुल मैं दूंगा इसे सजा।" इतना कहकर रजाक ने राजिया को होठ को चूमा। 

"अरे रजाक ये कोई सजा हुई ? इसे तो मैं सजा दूंगा।" इतना कहकर अब्दुल ने राजिया के ब्रा की स्ट्रिप खोल दी और कहा "अगली सजा तेरी तरफ से रजाक।"

"हां रजाक मुझे सजा दो। मैं तुम्हारी दोषी हूं।" राजिया हंसते हुए बोली। 

रजाक हल्के से राजिया के कंधे को चाटने लगा और फिर अपने हाथ से स्तन को दबाने लगा।"

"आह रजाक मुझे सजा दो। आह मजा आ रहा है।"

तीनों हंसने लगे और फिर अब्दुल नज़ाने क्यों रो पड़ा। 

"क्या हुआ अब्दुल ? तुम रो क्यों रहे हो ? ये आंसू क्यों ?"

"ये तो खुशी के आंसू है। कितने दिनों बाद आज खुलकर हंसे है ना हम रजाक ?"

"हां अब्दुल आज कितना अच्छा लग रहा है।" रजाक ने कहा।

"सच कहूं रजाक हमे एक नई  जिंदगी दी है राजिया ने । अगर ये ना होती तो कितना मुश्किल हो गया था मेरा जीना। मेरे लिए रजाक तू इसे लाया। दोस्त तेरा एहसान नहीं भूलूंगा। तू दोस्त जरूर है लेकिन भाई से कम नहीं।"

"देखो अगर पुरानी जिंदगी के बारे में अभी भी बात कर रहे हो तो में यहां से जा रही हूं।" राजिया ने कहा। 

"नही राजिया तुम क्यों जा रही हो।"

"देखो मेरे साथ रहना है तो पूरानी जिंदगी को भूल जाओ। सच्चाई ये है की अब में आ गई। तुम्हारी हमसफर। अब ये रोना धोना है या फिर मुझे प्यार ?"

रजाक राजिया के स्तन को दबाते हुए कहा "प्यार तो जमके करेंगे। चल अब्दुल आज राजिया को दिखा दे की प्यार हम कैसे करेंगे।"

दोनो ने एक साथ राजिया के हाथ ऊपर किए और गोरे बगल को चाटने लगे। फिर एक एक ने स्तनपान किया। अब्दुल स्तन चूस रहा था तो रजाक योनि चूस रहा था। राजिया इतना अच्छा महसूस कर रही थी की उसकी खुशी का ठिकाना नहीं। दोनो पैरो को फैलाकर योनि का आनंद ले रहा था रजाक। 

"राजिया क्या इस स्तन में दूध नहीं है ?" अब्दुल ने पूछा।

"अरे बेवकूफ ये मां थोड़ी ना बनी है।" 

मां का नाम सुनकर राजिया की बरसो से  एक इच्छा। वापिस जागी। उसे निकाह करके घर बसाना था और बच्चे की मां बनाकर एक अच्छी जिंदगी गुजारने की इच्छा थी। राजिया ने सोचा की क्यों न दोनो में से किसी एक से निकाह करके सुखी जीवन बसाए।

रजाक ने लिंग डाला राजिया के योनि में और अब्दुल ने नितम में लिंग डाला। दोनो काले बूढ़ों के बीच गोरी जवान राजिया रजाक की आंखों में आंखे डालकर देख रही थी। दोनो की आंखे मिली। दोनो एक दूसरे की आंखों में खोए हुए थे। मोहोब्बत की आग तीनों में लगी हुई थी। प्यार के खेल को पूरा करके तीनों नग्न अवस्था में सोए हुए थे। 

     देखते देखते शाम हुई और राजिया ने खाना बनाया तीनों ने साथ में खाना खाया। दोनो बुड्ढे देख रहे थे कि राजिया किसी विचार में थी।

"अरे राजिया किस विचार में पड़ी हुई है ?" रजाक ने पूछा। 

"हां एक बात के बारे में सोच रही हूं।" 

"बोल क्या सोच रही है ?" अब्दुल ने कहा। 

"पता नही जब रजाक ने मां बनानेवाली बात कही तो मुझे अपनी पूरानी इच्छा याद आई।"

"कौन सी इच्छा ?" रजाक ने पूछा। 

"देखिए आप दोनो को अपनी पूरानी इच्छा की बात कहूं तो मेरी इच्छा थी एक परिवार। मेरा निकाह हो और मेरे भी बच्चे हो। परिवार सुखी रहे और बड़ा भी रहे। "

"परिवार का सुख तो बस एक सपना है। जो मेरा तो पूरा नहीं हुआ।" रजाक ने कहा। 

"सच कहूं तो परिवार से मेरा विश्वास उठ गया।" अब्दुल ने कहा ।

"ऐसा मत कहो। मेरा कोई नही थम सिवाय अम्मी के। मुझे भी एक बड़े से परिवार के साथ जीने की तमन्ना है।"

"तो तुम ही बताओ। क्या चाहती हो ?" अब्दुल ने पूछा। 

"क्या मुझसे कोई निकाह करेगा ?" 

"तुमसे निकाह कौन नही करना चाहता ? तुम हो ही इतनी खूबसूरत। तुम बताओ किस्से निकाह करोगी।"

"मुझे आप दोनो में से किसी एक से निकाह करना है।"

अब्दुल हंस पड़ा और बोला "हम बुड्ढे हो गए है भला अब क्या निकाह करेंगे ?"

"मेरे लिए इतना नही कर सकते ? क्या मेरी इच्छा पूरी नहीं करेंगे आप दोनो ?"

"अरे तो बोल ना तू किस्से करेगी निकाह ?" अब्दुल ने पूछा। 

"सच कहूं तो मैं रजाक से निकाह करूंगी।"

"मुझसे क्यों ?"

"क्योंकि मेरी तरह आपका भी कभी कोई परिवार नही हुआ। इसीलिए मुझे रजाक से निकाह करना है। रजाक क्या आप मूझसे निकाह करेंगे ?"

"क्या तुम निकाह के बाद अब्दुल को प्यार करोगी ?" रजाक ने पूछा। 

"मेरी जान है आप दोनो। आप दोनो से प्यार में मरते दम तक करूंगी।"

"तो फिर मुझे निकाह का प्रस्ताव मंजूर है। देखो राजिया अब्दुल मेरा सच्चा दोस्त है। मेरे साथ अगर अब्दुल भी तुम्हारे साथ रहे तो हम तीनो एक दूसरे के सुख दुख के साथी बन पाएंगे।"

"तो मेरे यार कब करोगे निकाह ?"

"कल ही करेंगे। मस्जिद जाकर निकाह कल ही करेंगे।" राजिया ने कहा। 

       उसी रात राजिया रजाक को लेकर अपने घर गई और अपने अम्मी के साथ निकाह की बात की। अम्मी ने सबसे पहले एतराज जताया क्योंकि रजाक बहुत ही ज्यादा बुड्ढा था और तो और राजिया के दादा के उमर का। लेकिन राजिया ने उनको समझाया और आखिर में अम्मी को बात माननी पड़ी। अम्मी मानेगी क्योंकि उसे कभी परिवार का सुख नही मिला। राजिया किसकी औलाद है वो उसे पता है लेकिन इसका असली पिता समाज के से उसे स्वीकार नहीं। वैसे उसका असली पिता कौन है ये आपको आगे पता चलेगा। 

       राजिया की अम्मी चाहती थी की उसका संसार बसे और राजिया को खुश देखकर वो भी खुश। राजिया की अम्मी ने खुशी खुशी रजाक को अपना दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया। बेनज़ीर आखिर में अपनी बेटी के लिए बहुत खुश थी। 

"राजिया जरा बाहर जाना। मुझे रजाक से अकेले में बात करनी है।"

"ठीक है अम्मीजान।"

रजाक और बेनजीर अकेले थे। 

"रजाक में जानती हूं कि आप मुझसे कमसे कम 15 साल बड़े है। राजिया से तो पूरे 44 साल बड़े है। लेकिन क्या आप उनसे खुश रख पाएंगे ?"

"अल्लाह की कसम में पूरी कोशिश करूंगा।"

"बात कोशिश की नही रजाक। आप बस खुश रखे। मेरी बात माने दुनिया इस निकाह को सही नही मानेगी। आप क्यों न निकाह के बाद राजिया को दूर लेकर चले जाएं।"

"मैं भी यही सोच रहा था। सोच रहा हूं अजमेर चला जाऊं।"

"वहां कोई है आपका ?"

"हां मेरा एक भाई रहता है और वहां मेरी कुछ जमीन भी है।"

"अरे वाह फिर तो ये सही है। लेकिन वहां लोग ?"

"चिंता मत करिए वहां दूर दूर तक कोई नही रहता। जिस जमीन में मेरा मकान है वहां कोई खास लोग नही रहते।"

"तो रजाक मियां अब निकाह की तैयारी करिए । बहुत जल्द अब हमारी बेटी आपकी हो जाएगी।" दोनो हंसने लगे।

"वहां बाहर बरामदे में अब्दुल और राजिया एक दूसरे को चूम रहे थे। 

"सिर्फ कल की बात है जानेमन फिर तो पूरी तरह से तुम हमारी और हम जो चाहे वो कर सकते है।" अब्दुल ने कहा। 

"सही कहां अब्दुल। अल्लाह जल्द से जल्द कल का दिन लाए और उसके बाद मेरी और रजाक की पहली रात होगी। जहां मेरा शौहर मुझसे जी भरके अपना प्यार बरसाएगा।"

"और मेरा क्या ?"

"सुहागरात में सिर्फ रजाक। क्योंकि आखिर निकाह उससे ही हुआ है।"

"लगता है मेरे जाने का वक्त आ गया।" अब्दुल ने हताश होकर बोला। 

"उसके अगले दिन सिर्फ तुम मेरे साथ और कोई नही। फिर अपनी इस जानेमन के साथ जो करना चाओ कर लेना।"

"तुम्हे तो पूरे दिन bra में रखूंगा। अब छोड़ो ये सब और जल्दी से मेरे मुंह मीठा कर दो।"

राजिया ने अब्दुल के होठ को चूमा। अपनी जुबान उसके मुंह में डालकर अब्दुल के जुबान के साथ खेलने लगी।  थोड़ी ही देर में रजाक और बेनजीर के आने की आवाज आई। 

"अब्दुलजी रूक जाए। अम्मीजान आ रही है।"

"हां राजिया। अभी तो अम्मी आ गई कल कौन आएगा ? फिर कौन बचाएगा तुमको मुझसे ?"

दोनो वापिस आए और अपना फैसला सुनाया। 

"लेकिन अजमेर में हम करेंगे क्या ?" राजिया ने पूछा। 

"सुनो राजिया वैसे तो तुम कॉलेज तक पढ़ चुकी हो। अजमेर से थोड़े दुर जहां रजाक का घर है वहां एक स्कूल है। वहां तुम पढ़ा सकती हो।" बेनज़ीर ने कहा। 

"और तो और वहां एक मदरसा भी है जिसमे अब्दुल बच्चो को पढ़ा सकता है और मैकू और नौकरी कर लूंगा।"

"वैसे बात तो सही है लेकिन अब्दुल की जमीन का क्या ?"

"वो मैं बेच दूंगा। वैसे भी मेरा तुम दोनो के अलावा और है कौन ?"

"तो बात खतम कल मस्जिद में दोनो का निकाह होगा और कुछ दिनों में तीनो अजमेर चले जाना।"

      अगले दिन सुबह रजाक और राजिया ने मस्जिद में निकाह कर लिया। कुछ दिनों तक तीनो में बहुत प्यार चला। अगले महीने अब्दुल ने अपनी जमीन का सौदा कर लिया और तीनो अजमेर चले जाएं अजमेर से करीब १०० किलोमीटर दूर रजाक का गांव था। ये गांव अजमेर जिला का हिस्सा है। गांव में बहुत कम लोग रहते है और रजाक का घर लोगो से दूर एक जंगल के पास है। उसके आस पास की कुछ जमीन  उसकी हैं । 

    तीनों अब वहां रहने लगे। तय अनुसार राजिया एक दिन रजाक के साथ तो दोसर दिन अब्दुल के साथ। तीनों के प्यार बेशुमार रहा। राजिया स्कूल में टीचर बन गई। सुबह ८ बजे स्कूल जाती और दोपहर १२ बजे घर। उसी स्कूल में रजाक को हिसाब किताब की नौकरी मिली। और रही बात अब्दुल की चार घंटे मदरसे में जाकर पढ़ाता। तीनों को अच्छी तंखा भी मिल जाती। ऐसे ही एक साल बीत गया। राजिया ने रजाक के बेटे को जन्म दिया। बेटे का नाम यूसुफ रखा गया। तीनों की जिंदगी खूब अच्छी काटने लगी। 

     लेकिन ये कहानी का अंत है ? नही कहानी अब आगे बढ़ेगी एक मोड़ के साथ जो आपके आगे जाकर पता चलेगा।
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#9
वक्त के साथ साथ ज़ख्म भी ठीक हो जाते है और तीनो की जिंदगी में खुशियों ने भी धीरे धीरे दस्तक दी। तीनों अपने जिंदगी में अच्छे से चल रहे थे। लेकिन किसी को क्या पता था की राजिया का बीता हुआ कल उसके सामने आएगा। एक ऐसा कल जो उसके साथ घाट चुकी थी लेकिन उसके बारे में राजिया को कुछ भी पता नही। 

     अलीगढ़ के एक आलीशान हवेली में जहां दरवाजे के बाहर करीब 5 मजबूत चौकीदार थे और उस हवेली का मालिक ज़िया उल रहमान हवेली के कमरे में तैयार हो रहा था। करीब 500 करोड़ की संप्पति रखनेवाला पूरे उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत प्रतिष्ठा रखता था। सऊदी अरब और लंदन में अपना बिजनेस चलता था। लंदन में आलीशान होटल का बिजनेस और सऊदी अरब में एक तेल की कंपनी में पैसे डालकर आगे बढ़ा। इसके अलावा पूरे उत्तर प्रदेश में करीब टॉप 10 अमीरों में उसका नाम था। ज़िया उल रहमान के 2 बेटे थे। एक रफीक और दूसरा करीम। रफीक 35 तो करीम 30 का। दोनो बेटे नालायक। दोनो ने शादी नही की और पूरे दिन आवारा गर्दी और गंदे गंदे काम करते। कोठे में दिन निकलते और चरस गांजा में दिन गुजारते। 60साल का ज़िया उल रहमान को अपने विरासत की चिंता सताने लगी। उसकी बेगम चार साल पहले मर गई। 

     अपने बड़े काफिले के साथ वो मेरठ पहुंचा बेनजीर से मिलने। भला बेनजीर के साथ उसका क्या ताल्लुख था  ? इस बात को जानने के लिए हम चलना होगा 28 साल पहले यानी साल 1963। उस वक्त बेनजीर पूरे शहर की मशहूर तवायत थी जिसका दीदार करने बड़े बड़े लोग ही आते थे। उन में से ज़िया उल रहमान भी था। उन दिनों उसका नाच देखते देखते ज़िया उल रहमान उसका दीवाना हो गया। दोनो में मुलाकाते होने लगी और मुलाकात मोहोब्बत में तब्दील हो गया। बाद में पता चला की बेनजीर उसके बच्चे की मां बननेवाली है। ज़िया को समाज का डर सताने लगा और उसने दबाव डाला बच्चा गिराने का पर बेनजीर नही मानी। बेनज़ीर ने उससे मिलने से मना कर दिया। वॉट बीतता गया और ज़िया उल रहमान को चिंता सताने लगी बेनजीर की। बेनज़ीर से प्यार भी करता था। वो हर महीने पैसे भेजता है। लेकिन बेनजीर से मिलने की हिम्मत नही जूटा पाता। लेकिन आज अपने नालायक बच्चो को देख उसने समाज का डर छोड़ दिया और मिलने चला गया बेनजीर से और अपनी बेटी को लेने के इरादे से। 

     बेनज़ीर से जब ज़िया उल रहमान मिला उसी के घर। बेनज़ीर ने काफिले को देखा तो कुछ नही कहा। घर के अंदर चली और तो और ज़िया की तरफ देखा भी नहीं। 

"कैसी हो बेनजीर ?" 

"आपको उससे क्या ? यहां क्यों आए हो ?" बेनज़ीर ने गुस्से से पूछा। 

"मैं जानता हूं आप हमसे खफा है। लेकिन अब न होइए। हम अपनी बेटी को लेने आए है।"

"भाड़ में जाओ। तुम्हारी बेटी ? तुम जैसे नीच और निहायती घटिया इंसान की परछाई भी मेरी बेटी पर नही पड़नी चाहिए। बेशर्मी की सारी हदें आज तुमने पर कर दी। तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई इतना सब करने के बावजूद भी हमसे यहां मिलने आए ?"

"देखो बेनजीर तुम जानती नही मैं कैसे हलाद से गुजर रहा हूं। मुझे दिल की बीमारी है। मैं कभी भीनमार सकता हूं।"

"तो मैं और राजिया जीना छोड़ दे ? वैसे भी तुम्हारे बच्चे कब काम आयेंगे। जाओ यहां से गंदी नाली के कीड़े।"

"मेरे बच्चे बहुत नालायक और नापाक इंसान है। मैं उनके नाम की फूटी कौड़ी भी नही रखूंगा। वो लोगो इतने गंदे है की उन पर कई औरतों के बलात्कार के case चल रहे है। उन्हें दो साल पहले ही जायदाद और घर से निकल दिया है।"

"पता है आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यों है ? क्योंकि तुमने कई लोगो की बद्दुआ ली हुई है और खास करके मेरी। आज अच्छा लग रहा है तुम्हे तड़पता देख। निकल जाओ इससे पहले चाकू से तुम्हारी हत्या कर दूं। वैसे भी कुत्ते से भी गंदी हालत होगी तुम्हारी। बदजाद की औलाद।"

इतना सुनकर ज़िया उल रहमान फूट फूटकर रोने लगा और हाथ जोड़कर गुहार लगाने लगा। उसे रोता देख बेनजीर का दिल पसीज गया। 

"चाहते क्या हो तुम ?"

"अपनी राजिया को बेटी बनाकर समाज के सामने अपनाना चाहता हूं।"

"ये मुश्किल है उसका निकाह हो गायन अब उसे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। वो तो तुम्हे जानती भी नही।"

"तुमने उसे मेरे बारे में नही बताया ? और उन पैसों का क्या को में तुम्हे हर महीने भेजता हूं ?"

"इन पैसों को में सभी वैश्या पे बाट देती हूं जिनका कोई सहारा नहीं और वो अनाथ भी है। इस गंदे पैसे का अच्छे जगह इस्तमाल होता है। वाई बता भी दूं आपको कि राजिया भी तवायत थी लेकिन आज वो एक सुखी जीवन बिता रही है ।"

"क्या मेरी राजिया भी ? या अल्लाह मैंने क्या किया बेचारी कितने बुरे दौर से गुजरी। कौन है वो फरिश्ता जिसने उसको अपनाया। 

बेनज़ीर ने सब कुछ बताया की कैसे राजिया का निकाह रजाक से हुआ। रजाक एक बुड्ढे इंसान से हुआ। 

"अपने हमारी बेटी का निकाह एक गलीज और बदसूरत बुड्ढे इंसान से करवाया ?"

"हमने नही। राजिया ने अपनी मर्जी से किया। वो उस आदमी से बेहद प्यार करती है।"

"मैं आज अपनी बेटी से मिलकर रहूंगा। उसके बाद आपको अपने घर ले जाऊंगा।"

"बेटी को ले जाना हो तो ले जाओ। लेकिन मैं आपके साथ नही आऊंगी। आपकी सजा यही है की आप अकेले बिना किसी जीवनसाथी के मरे। और हां दुबारा कभी वापिस नही आना और अपने पैसे अपनी गांड़ में घुसा लेना।" बेनज़ीर ने दरवाजा मुंह पे बंद कर दिया। 

    ज़िया अपने बड़े काफिले के साथ अजमेर पहुंचा और दो दिन का रास्ता तय करके रजाक के घर गया। रजाक उस वक्त अपने बच्चे को खिला रहा था। राजिया और अब्दुल दोनो काम कर रहे थे। अब्दुल सफाई कर रहा था तो राजिया खाना बना रही थीं।  उनके घर के बाहर करीब पांच गाड़ियों को काफिले आई। राजिया को समझ में नहीं आया की ये काफिला इधर क्यों आया। 

राजिया ने देखा कि ज़िया उल रहमान उसके घर की तरफ आया और फिर उसके सामने। 

"आप कौन है ? कही कोई रास्ता तो नही भूल गए ?" रजाक ने पूछा। 

"रास्ता भूल गया था लेकिन आज सही मंजिल पहुंचा।"

"आप किस लिए यहां आए है ?" अब्दुल ने पूछा। 

"बड़े अजीब आदमी हो मियां घर आए इंसान को अंदर आने को नही कहा। 

तीनों थोड़े घबराए हुए थे। ज़िया उल रहमान का रौब ऐसा था। अंदर आकर ज़िया बैठ गया और राजिया के करीब आया और कहा "मेरी राजिया। मेरी बेटी तू दिखाने में बिलकुल अपनी मां पे गई है।" इतना कहकर राजियांको अपने सीने से लगा लिया।

राजिया आखिर ठहरी तो नरम दिल की। बाप को आज पहली बार मिला नाजाने क्यों इसके सीने से लग कर अंतर आत्म ने उसे माफ कर देने को कह। 

"क्या हम इतने बुरे है कि आप हमसे मिलने तक नही आए ?" राजिया ने रोते हुए पूछा। 

ज़िया ने माफी मांगी और अपने बुरे दौर से गुजर रहे जीवन की बात कही। बेटे नालायक और अपराधी। बीवी मार गई और अब विरासत को चलनेवाला कोई नही। आखिर अब वो राजिया को अपने साथ ले जाकर रहेगा। 

"तुम्हारी अम्मी मेरे साथ नही आना चाहती।"

"मत कोशिश करो अब्बू अम्मी एक स्वाभिमान औरत है। अब आपसे कभी नही मिलेगी।"

ज़िया रजाक को देखता रहा और राजिया के बेटे यूसुफ को सीने से लगाते हुए कहा "रजाक अब वक्त आ गया है तुम्हारा और अब्दुल का हमारे साथ चलने का। रजाक अभी इसी वक्त अपना सामान बांधो ओर चलो।"

ज़िया के जोर देने पर सभी लोग उसके साथ चल दिए। ज़िया अब अपने जिंदगी का आखिरी वक्त परिवार के साथ बिताना चाहता था। और सब अच्छा भी होने लगा। रजाक को अपनाकर अलीगढ़ का सारा कारोबार सौप दिया ज़िया उल रहमान ने। रही बात अब्दुल की तो उसे अपने आदमियों के साथ लंदन भेज दिया होटल बिजनेस सभलने के लिए। अब्दुल को न चाहते हुए भी जाना पड़ा। अब्दुल अकेला सा पड़ गया। राजिया के लिए ये थोड़ा दुख का लम्हा था। अब्दुल के साथ ज़िया का खास आदमी तौफीक था। तौफीक जिसकी उम्र 65 साल की थी। 

     वक्त बीतने लगा और साल आया 1992 का जब राजिया ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया और वो लड़की हुई। दो साल में राजिया दो बच्चो की मां बनी। अब्दुल एक साल से राजिया से दूर रहा। लेकिन अब बहुत जल्द अब्दुल के जिंदगी में एक औरत आएगी को उसकी जिंदगी बदल देगी।
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#10
Superb story boss aage v badhao
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#11
Nice story
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