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Adultery चचेरे भाई की दिलकश बीवी
#1
चचेरे भाई की दिलकश बीवी

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
मेरा चचेरा भाई और उसकी बीवी मेरे बगल वाले फ्लैट में रहने के लिए आये. उसकी सुन्दरता पर मैं ऐसा मोहित हुआ कि …

‘नमस्ते भईया!’
एक दिन एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. अचानक से इस शब्द ने मेरी तंद्रा भंग कर दी.
वो आवाज ऐसी मीठी लगी कि उसके बाद मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म हो गया.

सामने एक सम्पूर्ण नारी को देखकर हृदय के किसी कोने से आकर्षित होने वाली भावनाओं की अनुभूति सी हुई।
सिर से पैर तक रतिरूपी नारी को इतने पास से देखकर कामदेव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

यह थी रेनू … मेरे दूर के चाचा के बेटे वैभव की पत्नी.

वो दोनों नवविवाहित थे और मेरे फ्लैट के साथ लगते एक डबल बेडरूम फ्लैट में रहने आये थे।
24 वर्षीय वैभव और मैं वैसे तो हमउम्र थे मगर उसकी शादी मुझसे पहले हो गयी थी.

इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी.
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
चचेरे भाई की दिलकश बीवी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
(17-06-2022, 04:30 PM)neerathe mall Wrote: fight fight
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी.
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.

पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे.
पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.

अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था.
रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.

वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.

फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया।
उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।

मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।

उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।

धीरे-धीरे दिन गुजरते गए मगर उस यौवना का आकर्षण कब प्रेम में परिवर्तित हो गया पता भी न चला। जब कभी मुझे मौक़ा मिला, मैं उसके बाथरूम में जाकर उसके अंतःवस्त्रों को हाथ में लेकर ऐसा महसूस करता कि जैसे वो मेरे आगोश में हो।

समय सदैव एक सा नहीं रहता. इतने दिनों से उसके यौवन के रसस्वादन और दर्शन की जो कल्पनायें की थीं वो एक सब अधूरी सी छोड़कर वैभव और रेनू यह फ्लैट छोड़कर चले गये.
उन दोनों में मतभेद रहते थे और शायद वे अपने झगड़े को मेरे सामने उजागर करना नहीं चाहते थे.

आप कितना भी बचिए लेकिन विपरीत लिंगी के लिए प्रेम के साथ कहीं न कहीं वासना दबे पैर आ ही जाती है. एकांत के क्षणों में तो कामदेव वासना के रथ पर सवार रहते हैं।

वो चली गयी लेकिन जैसे मेरी आत्मा को साथ ले गयी.
जो आकर्षण एक अरसे से दबा हुआ था वो बाहर आने को मचलने लगा। मैंने उसे व्हाट्सएप पर फॉलो करना शुरू कर दिया. उसके हर फ़ोटो को सेव करना, स्टेटस पर कमेंट देना शुरू कर दिया।

उसने मुझसे व्हाट्सएप पर बातचीत शुरू कर दी. मैंने उसे सब कुछ सच-सच बता दिया।
मेरा सच सामने आया तो उसका भी दिल खुल गया और उसने बताया कि वो भी मुझे पसंद करती थी.

उस दिन मैंने अपनी किस्मत को खूब कोसा. जिस रूप की देवी को मैं अपने इतने करीब रहते हुए पूज सकता था, मैं उस मौके से चूक गया.
काश ये हिम्मत मैं कुछ साल पहले कर पाता.

फिर इससे पहले कि मेरा प्यार परवान चढ़ता … उसके पति ने उसके फोन में मेरे मैसेज देख लिए।
उस वक्त सब कुछ ख़त्म हो गया।
मगर वो आकर्षण उसी स्तर पर था जो उससे पहली बार मिलकर उत्पन्न हुआ था।

उसको लेकर मन में न जाने कितनी बार कितने प्रकार के कामुक विचार आये और कितनी बार संयम टूटा।

बीतते वक्त के साथ अब वो एक बेहद समझदार और सुलझी हुई महिला में परिवर्तित हो चुकी थी।
मैं भी विवाहित हो चुका था किंतु मेरी पत्नी भी रेनू के लिए मेरी आसक्ति को तृप्त न कर पायी थी.

रेनू के सपने उसे हमेशा से व्यथित करते थे. वो एक स्वावलंबी और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। उसके अंदर की छटपटाहट को मैंने कई बार महसूस किया था। उसका ज्ञान और दर्शन सीमित था और पारिवारिक दायित्वों ने पैरों में बेड़ियां डाल रखी थीं.

खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिशों को दफ़न कर वो जमीं पर चलने में ही संतोष किये हुए थी.
मैंने उसे कई बार वासना के सागर में उतारने की कोशिश की मगर उसकी तैरने की क्षमता पर संदेह था मुझे.

पुरुष शुरू से ही काम-वासना से पीड़ित रहा है, ना जाने कितने रजवाड़े इस वासना की आग में जल गए। स्त्री अगर रतिरूप है तो वो ज्ञानपुंज भी है।

स्त्रियों ने सदैव पुरुषों को मार्गदर्शित किया है. पुरूष की काम वासना का अंत ही स्त्री है. चाहे वो किसी रूप में करे, गुरु बनकर या रति के रूप में। मेरे लिये वो एक मार्गदर्शक बन गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
मगर इतने वर्षों के बाद आज भी हम दोनों आपस में बेहद खुले हुए बहुत अच्छे मित्र थे किंतु फिर भी बात नहीं कर पाते थे।
यही सोचता रहा कि मित्रता पर वासना का बोझ पड़ गया तो वो संबंध कहीं टूट न जाये.

कुछ वक्त और बीत जाने के बाद आखिरकार रेनू ने मुझे मिलने की स्वीकृति दे दी. उस वक्त मेरे मन उपवन में हर्ष के हजारों फूल खिल उठे थे. मेरे घर से उसके घर की दूरी मात्र 20 मिनट की ही थी.

मैंने शाम का खाना हल्का ही खाया ताकि स्वास्थ्य खराब ना हो। रात में सही से नींद नहीं आ रही थी. 8-9 साल पहले मिली उस नवयौवना का यौवन बार-बार नेत्रों के सामने आ रहा था।

उसके उन माँसल नितंबों को न जाने मैंने कितनी बार कामुक कल्पनाओं में दुलारा था। उसने वैभव के दफ्तर जाने के बाद सुबह 9 बजे बुलाया था।

उस सुबह का समय पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। 8.45 बजे उसकी कॉल आयी और मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा जिस पर पर मैंने कई बार कल्पनाओं का सफर किया था।

दरवाजे पर पहुंचकर कांपते हाथों से डोरबेल बजाई.
जैसे ही दरवाजा खुला और सामने साक्षात रतिरूपी उस अप्सरा को साड़ी में देखा तो जैसे कामदेव ने बाणों की बरसात कर दी।

“दरवाजे से ही देख कर जाना है क्या?” उसने हँसते हुए कहा और धीरे से हाथ पकड़ कर मुझे अन्दर बुला लिया।
उस दिन पहली बार उसने मेरे शरीर को छुआ था.

मानो जिस्म में करंट सा दौड़ गया हो. अंदर आकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर एक मादक मुस्कान थी।
वो पहले से और ज्यादा सम्मोहक हो गयी थी. उसका हर अंग पहले से ज्यादा मादक और मांसल हो गया था।

समय ने उसके जिस्म में और भी अधिक सौंदर्य भर दिया था। उसने अपनी 3 साल की बेटी को दूसरे कमरे में टी.वी. चलाकर बाहर से बन्द कर दिया।

“चाय लोगे या ठंडा?” उसने तंद्रा भंग करते हुए कहा.
मैंने मुस्कराकर कर उसके होंठों की तरफ इशारा किया और वो किचन की ओर चल दी. आज भी वो माँसल नितंबों का घर्षण वैसा ही था जो किसी भी पुरूष का पुरूषत्व हिला दे।

वो इठलाती हुई रसोई में चली गई. उसको भी अपनी कमनीय काया का ज्ञान था।
ये नजारा देखने के बाद मेरे कई सालों के संयम के बाँध की दीवारें कमजोर होकर उसके नितम्बों के घर्षण से टूट चुकी थीं।

वासना से वशीभूत होकर मैं रसोई में गया और उसके माँसल और सुपुष्ट नितंबों को देखने लगा. उसने पीछे मुड़कर देखा और मुस्करा दी। उसने मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.

मैंने उसके मजबूत कंधों को अपने हाथों से पकड़कर उसकी गर्दन पर चुम्बन अंकित कर दिए।

वो चुम्बनों से सिहर उठी और पलट कर मेरे सीने से चिपट गयी और सीने के बालों में उंगलियां फिराने लगी।

मेरे हाथ उसके सौंदर्य के पर्वतीय स्थलों का भ्रमण करने लगे और उसके माँसल नितंबों को पहली बार सहलाया।
चाय और कामुकता दोनों ही उफान पर थे. अब या तो चाय पीनी थी या यौवनरस।

कामुकता ने यौवनरस चुना और मैं रेनू को उठाकर बेडरूम में ले आया.
उसकी आंखों में वासना और प्यास के डोरे तैर रहे थे।

उसकी साड़ी को उसके मादक जिस्म के आगोश से मैंने अलग किया.
उसने दोनों हाथों से अपने पूर्णविकसित वक्षस्थल को छुपा लिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#7
मैंने धीरे से रेनू की गर्दन के पीछे और नग्न क़मर को चूमा तो उसके माँसल नितंबों में एक कंपन सा हुआ और उसके मुंह से एक सीत्कार सी निकली।
जब वो दोनों हाथों से वक्षस्थल को छुपा रही थी तो मैंने चुपके से उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया.
जब तक वो पेटीकोट पकड़ती वो उसके पैरों में गिर चुका था।
पहली बार उसके नितंबों को इतने करीब से देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी. उसके माँसल नितंब मेरी कामुक कल्पनाओं से भी कामुक थे।
मैंने धीरे से उसके नितम्बों को दोनों हाथों से छुआ.
मुझे अहसास हुआ कि उसके नितंब कितने कोमल और माँसल हैं। उसके नितंबों को आहिस्ता-आहिस्ता दबाना और सहलाना शुरू किया तो रेनू की मादक आहें बेडरूम को संगीतमय बनाने लगीं।
उसने वासना के वशीभूत होकर अपने वक्षस्थल को अपने ही हाथों से दबाना शुरू कर दिया.
मैंने पीछे से उसकी ब्रा के हुक खोल दिये और धीरे से उसके अतिविकसित स्तनों को ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिया।
अब तक उसके दोनों स्तनों के बीच कत्थई रंग के चूचक तन कर खड़े हो गए थे, मानो दो कबूतर उड़ने को तैयार हों।
अब वो सिर्फ पैंटी में थी. वो एक हाथ से चूचों को छुपाने की कोशिश कर रही थी और दूसरे हाथ से योनि द्वार की रक्षा कर रही थी।
मैंने उसके एक चूचक को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया तो उसका शरीर नृत्य सा करने लगा। वो मदहोशी की हालत में आँखों को बंद करके अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को सहला रही थी.
फिर मैंने दूसरे चूचक को भी न्याय देते हुए मुँह में ले लिया और अपने दोनों हाथों से उसके नितंबों को दबाने लगा।
शायद वो काफी समय से प्यार से वंचित थी. अब वो कुछ हिंसक सी होने लगी थी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों में लेकर काफी देर तक चूसा।
अब उसके हाथ भी अमर्यादित होने लगे थे. वो शायद सुख के साधन को ढूँढने लगे थे।
इसी बीच मैंने उसके हर खुले अंग पर अपने होंठों से स्पर्श किया.
फिर उसकी गुलाबी पैंटी को धीरे से नीचे खिसकाया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
शायद अभी भी कुछ शर्म की बची हुई दीवार गिरनी बाकी थी.
मैंने अपने हाथ को उसके सम्पूर्ण योनि प्रदेश पर रख दिया और आहिस्ता से दबाना शुरू किया तो वो सिहर सी उठी और मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया.
इसी बीच मैंने उसकी पूरी पैंटी उतार दी। सामने नग्न हल्के काले बालों से ढकी हुई अत्यंत उभरी हुई सी योनि थी। ईश्वर ने उस रतिरूपा का हर अंग फुरसत से बनाया था.
उसकी योनि को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो कई वर्ष से विवाहिता स्त्री है. उसकी योनि अभी भी कमसिन थी। शायद मेरे चचेरे भाई के लिंग ने उसकी योनि को वह प्यार नहीं दिया था जिसकी वो हकदार थी.
मैंने एक हाथ से उसकी योनि को स्पर्श किया और उंगली से उसके योनि द्वार पर दस्तक दी.
एक उंगली से योनि की दोनों दरारों को खोला तो उंगलियों में कुछ चिपचिपाहट सी महसूस हुई. शायद वो योनिरस था।
कब मेरे होंठ उसके योनिद्वार से चिपक गए पता ही नहीं चला. मेरी इस हरकत ने उसे बेड पर लेटने को मजबूर कर दिया और वो दोनों टांगें खोल कर लेट गयी.
मुझे उसकी योनि की खुशबू मदहोश कर रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
मैंने धीरे-धीरे उसका सारा योनि रस चाट लिया। जैसे ही मेरी जीभ योनिछिद्र के अन्दर जाती तो उसके नितंब स्वत ही उठ जाते थे।
मैंने देखा कि योनिद्वार के नीचे एक छोटा सा छिद्र जो इस क्रिया में हल्का सा खुल जाता था.

योनिरस से भीगी हुई उंगली मैंने उस छिद्र में डाली तो रेनू का शरीर अकड़ सा गया.
शायद ये उस छिद्र में पहला प्रवेश था।

उसकी माँसल जाँघें, समतल पेट, गहरी नाभि, अतिविकसित वक्षःस्थल, मादक और माँसल नितंब किसी को भी पागल बना सकते थे।

अब शायद रेनू भी संयम की रेखा पार कर चुकी थी. उसने मुझे देखा और मुस्कराकर अगले कदम के लिए आमंत्रित किया। अब युद्ध का आरम्भ होना था.

मैंने स्वयं पर नियंत्रण किया और उसकी योनि को फिर से मुखमैथुन का सुख दिया.
अब वो चरम पर थी.

मैंने अपने लिंग को उसकी छोटी सी माँसल योनि के योनिछिद्र पर रखा तो रेनू मचल सी उठी।

जैसे-जैसे लिंग उसके योनिद्वार के अंदर जा रहा था, उसकी सिसकारियों की आवाज मादक होती जा रही थी।
पूरा लिंग योनि में जाते ही उसने एक मादक आह भरी और मुझे एहसास हुआ कि उसकी योनि न जाने कितने दिनों से अनछुई थी।

लिंग जैसे ही योनि की दीवारों से टकराया उसने मुझे कसकर अपनी छाती से चिपका लिया और मैंने उसके कत्थई चूचक को चूसना शुरू कर दिया। अब वो नितंबों को उठा-उठाकर मेरे लिंग को घर्षण दे रही थी।

बीच में दो बार वो ढीली पड़ी लेकिन फिर से उसी गति से साथ देने लगी। आज शायद वो मुझे अपनी योनि में समा लेना चाहती थी. फिर मैंने उसे ऊपर आने को बोला.

उसने मुझे नीचे लिटाया और अपने हाथों से लिंग को योनिछिद्र में प्रवेश करवाकर मेरे ऊपर उछलने लगी. वो जिस गति से उछल रही थी उसके वक्ष भी उसी गति से उछल कर मुझे पागल बना रहे थे।

मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। अब हम दोनों स्खलन की ओर बढ़ रहे थे. मानो बेड पर सच में युद्ध चल रहा हो। उसका हर झटका लिंग को उसकी योनि की दीवारों से टकराता था.

शायद उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था। अचानक उसने धक्कों की गति बढ़ा दी और मैंने भी उसके स्तनों को कसकर पकड़ लिया।

हम दोनों के मुंह से आह-आह की कामुक आवाजें निकल रही थीं।
अचानक वो धड़ाम से मेरे सीने पर आ गिरी और बोली- हो गया!
मैंने भी उसी समय उसके नितंबों को कसकर पकड़ते हुए योनि को लिंग पर दबाया और सारा वीर्य उसकी योनि की गहराई में छोड़ दिया।

मेरी जांघों पर उसकी योनि से निकला हुआ योनिरस और वीर्य का मिश्रण बह रहा था।

हम दोनों ने एक दूसरे को देखा. दोनों की आँखों में संतुष्टि और थकान दिख रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#9
कुछ समय तक वो मेरे ऊपर लेटी ही रही जब तक कि मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर नहीं आ गया। हम दोनों के साथ हमारे दोनों महारथी भी घमासान युद्ध करके थक चुके थे।

मैंने रेनू के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। 10 मिनट के बाद वो बेड से उठी और कपड़े से अपनी योनि और मेरी जाँघें साफ कीं.

इस समय वो पूर्ण नग्नावस्था में थी. उसके इस मादक रूप को देखने के लिए में इतने वर्ष तरसा था। उसके शरीर का एक-एक कटाव लाजवाब था।

“अब तो चाय पीओगे या कुछ और?” उसने तंज कसते हुए पूछा.
“फ़िलहाल चाय ले आओ और भी बहुत कुछ पीना है.” मैंने उसके चूचक को दाँतों से काटते हुए बोला।

अब आगे की भाभी की चूत की कहानी:

वो किचन की ओर मुड़ी. हे ईश्वर … क्या नज़ारा था … उसके दोनों माँसल नितंबों का आपस में घर्षण देखकर बेजान से पड़े लिंग में फिर करण्ट सा दौड़ गया।

उसका गदराया हुआ जिस्म बिना कपड़ों के कहर बरपा रहा था. साक्षात रतिदेवी के रूप में थी रेनू!
मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं फिर किचन में चला गया और उसको पीछे से दबोच लिया.

मेरा लिंग उसके माँसल नितंबों की दरारों के बीच में फंस कर कसमसा रहा था।
“चाय तो बना लेने दो?”. उसने मुझे रोकने की कोशिश की.

मैंने कुछ नहीं सुना और घुटनों के बल बैठ गया और उसके नितंबों को चूमने लगा और एक हाथ से उसकी योनि को सहलाने लगा।

उसकी योनि फिर से गीली हो गयी थी.
अपनी दो उंगलियां योनिछिद्र के अंदर डाल कर मैं घुमाने लगा.

जैसे ही उंगलियां योनि की दीवारों से टकरातीं रेनू चिहुंक उठती। फिर से चाय और रेनू का जिस्म, दोनों उफान पर थे।

फिर मैंने अपने होंठों को उसकी योनि की पंखुड़ियों के ऊपर रखा. उसने मेरा सिर कस कर पकड़ लिया और योनि के अंदर दबाने लगी. मैंने धीरे-धीरे उसकी भगनासा को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया.

उसकी योनि ने रस छोड़ना शुरू कर दिया. मैंने एक उंगली योनिरस में गीली करके उसके गुदाद्वार में धीरे से घुसा दी. अब रेनू के लिए एक साथ योनि मुखमैथुन और गुदामैथुन सहन करना मुश्किल हो रहा था।

फिर मैंने उसकी गुदा में दो उंगलियां घुसा दीं. उसकी हल्की सी चीख़ निकल गयी. वो चाय छानने लगी और मैं उसे गुदामैथुन का आनंद देता रहा. उसके गोल-गोल माँसल नितंब लिंग को गुदाद्वार में प्रवेश की चुनौती दे रहे थे।

उसने गाउन पहन कर अपनी बेटी को चाय-बिस्कुट और कुछ चॉकलेट देकर फिर से दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया।
बेडरूम में आकर उसने गाउन उतार दिया. हम दोनों ने नग्नावस्था में चाय नाश्ता किया और उसने एक हसरत भरी नजरों से मेरे मुरझाये हुए लिंग को देखा।

चाय नाश्ता करने के बाद वो आकर मेरे पास लेट गयी और हम दोनों पुरानी बातें करने लगे.
इस दौरान उसके हाथ मेरे लिंग को सहलाते रहे।

मैंने उसको उल्टा लिटा कर उसकी पीठ, क़मर और नितंबों की शिलाओं को सहलाते हुए होंठों से बहुत प्यार किया।

वो पलट गई और अपने चूचक को मेरे मुँह में दे दिया. मैंने उसके चूचक से दूध निकालने का बहुत प्रयास किया और दोनों हाथों से उसके पूर्णविकसित स्तनों का मर्दन किया.

धीरे से उसके पेट को चूमते हुए उसकी योनि पर होंठ रख दिये. शायद उसको भी मेरा योनि चूसना बहुत पसंद आ रहा था. मैंने उसकी योनि की दोनों दीवारों को थोड़ा सा खोला अंदर की ओर, योनि गुलाबी रंग की होती जा रही थी।

हल्के काले बाल उसकी योनि को और कामुक बना रहे थे.
मैंने दो उंगलियां उसकी योनि में डाल कर घर्षण शुरू किया और होंठों से उसकी योनि को चाटना जारी रखा।

रेनू के लिए अब खुद को संभालना मुश्किल हो गया था. वो अपने नितंबों को उछालने लगी थी।
उसने ना जाने कितनी बार योनिरस छोड़ा और मैं सारा योनिरस पीता गया.

वो बुरी तरह से हांफने लगी थी.
उसने मेरे लिंग को पकड़ कर मर्दन शुरू कर दिया. वो अब लिंग को योनि में समा लेना चाहती थी।

“ये तैयार क्यों नहीं हो रहा है?” वो लिंग को योनि पर रगड़ती हुई कामुक आवाज में बोली।
मैंने उसे मुखमैथुन करने को बोला. वो कुछ झिझकी मगर फिर तुरंत लिंग को मुँह में ले लिया।

वो धीरे-धीरे मुझे मदहोश कर रही थी. मेरा लिंग पूरा खडा हो चुका था. कभी दाँतों से काटती तो कभी पूरा लिंग गले तक ले जाती. कभी अण्डकोषों को मुँह में भर कर चूसती और लिंगमुंड को जीभ से धीरे-धीरे सहलाती।

उसके मुखमैथुन ने मुझे कामवासना के स्वर्ग में पहुंचा दिया. मुझे लगने लगा कि कहीं मेरा संयम इसके मुँह में ही न टूट जाये।
“अरे कहीं मेरा वीर्य तुम्हारे मुँह में ना निकल जाए.” मैंने उसको सचेत करते हुए कहा.

वो मेरे लिंगमुंड को दांतों से काटते हुए बोली- मेरा तो सारा योनिरस ना जाने कितनी बार पी लिया और अपना एक बार भी नहीं पिलाओगे? मुझे तुम्हारे वीर्य का स्वाद लेना है।

फिर मैंने उसे थोड़ी सी पोजीशन बदलने को कहा।
अब मेरा मुँह उसकी योनि पर था और उसके मुँह में मेरा लिंग. वो कभी मुँह में ही पूरा लिंग दबा लेती, मानो अंदर से वीर्य खीचना चाहती हो और इधर मेरी जीभ उसको नितंब उछालने पर विवश कर रही थी।
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#10
मेरे अण्डकोषों को धीरे-धीरे सहलाकर वो मुझे उसकी योनि को दाँतों से काटने पर मजबूर कर देती थी। मैं भी उसकी योनि के दोनों होंठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा.

उसके मुँह में मेरा लिंग होने की वज़ह से वो सीत्कार भी नहीं पा रही थी, मगर उसके नितंब सिकुड़ जाते थे।
“मैं झड़ने वाला हूँ!” मैंने उत्तेजना को संभालते हुए कहा.

तभी उसने मेरे लिंग का अपने मुँह में और दबाव बढ़ा दिया, वो सच में सारा वीर्य निचोड़ लेना चाहती थी. लिंग ने भी उसके मुँह में झटके मारना शुरू कर दिया और लिंग ने सारा गर्म-गर्म लावा रेनू के मुँह में छोड़ दिया.

रेनू ने मेरे वीर्य की एक-एक बूंद को लिंग के अंदर से चूस लिया। उसकी योनि भी मुझे प्यासा नहीं छोड़ रही थी. इस बार उसकी योनि ने ढे़र सारा गर्म योनिरस छोड़ दिया.

उसके नितंब अकड़ से गये, मानो सारा योनिरस बाहर फेंक देना चाहते हों. मैंने सारा योनिरस चाट-चाट कर साफ कर दिया. अब उसकी योनि योनिछिद्र से अंदर तक गुलाबी दिख रही थी।

रेनू और मैं हांफने लगे।

मगर दोनों की आंखों में एक संतुष्टि थी, जैसे आज वर्षों की प्यास बुझ गयी हो।
मैंने समय देखा तो उसने कहा- अरे अभी तो बहुत समय है, अभी तो इसको एक और चढ़ाई करनी है.
… और कहते हुए उसने मेरे लिंग को मुँह में भर लिया।

एक लाजवाब मुखमैथुन के बाद हम दोनों ने काफी देर तक आराम किया।
फिर उसने पूछा- खाने में क्या खाओगे?
“जो तुम अच्छा बनाती हो वो बना लो.” मैंने भी प्यार से जवाब दे दिया.

उसने सारी तैयारी पहले से ही कर रखी थी। वो किचन का काम बिना कपड़ों के ही कर रही थी. उसको इस तरह बिना कपड़ों में काम करते देखना सच में शब्दों में वर्णित करना मुश्किल है।

आटा गूँथते समय उसके माँसल नितंबों में जो कंपन हो रहा था वो मुझे फिर उसके पास खींच रहा था. उसके स्तन मानो आटा गूँथने में हाथों की मदद कर रहे हों।

जितनी ताकत से वो हाथ चलाती उतनी गति से उसका वक्षस्थल हिल रहा था। उसकी शारीरिक गतिविधियों ने लिंग में फिर से रक्तसंचार बढ़ा दिया।

मैंने किचन से नारियल तेल उठाया और उसके माँसल नितंबों पर मलना शुरू कर दिया।
रेनू को मेरे लक्ष्य का अनुमान नहीं था. मैंने धीरे-धीरे उसके गुदाद्वार में नारियल के तेल से भीगी हुई उंगलियां घुसानी शुरू कर दीं।

नारियल की चिकनाहट उसे दर्द का अहसास नहीं होने दे रही थी और वो रोटियाँ बनाने में व्यस्त रही। मेरी उंगलियों ने नारियल के तेल के साथ उसके गुदाद्वार का रास्ता थोड़ा सा सुगम कर दिया.

रेनू इस अप्राकृतिक मैथुन का भरपूर आनंद ले रही थी।

फिर मैंने उसे थोड़ा सा झुकाया और गुदाद्वार को ध्यान से देखा.
छेद थोड़ा सा चौड़ा हो गया था.

अब तक रेनू आता गूँथ चुकी थी.
मैंने अपने तने हुए लिंग को नारियल के तेल में डुबोकर लिंगमुण्ड उसकी गुदाद्वार पर रखा।

वो शायद इस हमले से अंजान थी. मैंने थोड़ा सा झुक कर एक हल्का सा झटका मारा तो लिंग छेद से फिसल गया.
मैंने थोड़ा सा नितंबों को चौड़ा कर फिर छेद पर निशाना लगाया.

इस बार लिंग उसके सँकरे गुदाद्वार में आधे से ज्यादा घुस चुका था।
रेनू के मुँह से चीख सी निकल गयी और वो सीधी खड़ी हो गयी. अपने गुदाद्वार को सहलाने लगी।

“अरे डरो मत … वैसे भी रास्ता तो बन ही गया है, अब तो मजे ले लो.” मैंने उसको मनाते हुए कहा.

मगर वो नहीं मानी.
मैंने फिर उंगलियों से गुदामैथुन जारी रखा.
नारियल का तेल उसकी गुदा में अंदर तक भर गया था.

धीरे-धीरे रेनू भी नितंबों को सिकोड़ने लगी. उसे असीम आनंद की अनुभूति होने लगी थी।

इसी समय मैंने उसे रसोई की स्लैब पर पूरा झुकाया और चिकने लिंग को गुदाद्वार में धीरे से घुसाना शुरू कर दिया.
इस बार रेनू लिंग लेने को तैयार थी.

जैसे-जैसे लिंग अंदर जा रहा था, लिंग को उतनी ही मेहनत करनी पड़ रही थी. आगे गुदा मार्ग बहुत संकीर्ण था।

अथक प्रयास और रेनू के सहयोग से पूरा लिंग उसकी गुदा में समा गया.
उसके मुँह से एक आह … निकली। मैंने धीरे-धीरे लिंग आगे-पीछे करना शुरू किया.

लिंग खींचते समय उसकी गुदा की अंदरूनी त्वचा भी लिंग के साथ खिंचती हुई सी प्रतीत होती थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#11
उसका गुदा मार्ग कुछ सुगम हो गया था। अब मैंने उसके नितंबों को पकड़कर तेज-तेज धक्के लगाने शुरू कर दिये.

मेरे हर धक्के पर वो आह-आह … करने लगी. उसके स्तन भी धक्कों के साथ उछल पड़ते थे।
“और तेज … और अदंर डालो … फाड़ दो आज … आह्ह … और तेज … और तेज!” कहते हुए वो धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगी,

10 मिनट के भरपूर गुदामैथुन का रेनू ने सम्पूर्ण आनन्द लिया.
स्खलन से पूर्व मैंने पूछा- अन्दर छोड़ दूँ या मुँह में लोगी?

उसने तुरंत पलट कर पूरा लिंग मुँह में ले लिया. मानो किसी बच्चे को लॉलीपॉप मिल गया हो. वो सब कुछ भूल कर लिंग को चूसने लगी.

कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती और कभी लिंग को हाथ में लेकर मसल देती. फिर एक झटके में सारा गर्म लावा उसके मुँह में छूट गया। उसने वीर्य की एक-एक बूंद पी ली और मैं लगभग निढाल सा हो गया।

मैं जितनी बार उसके माँसल नितंब देखता, पता नहीं कहाँ से लिंग में जान आ जाती. आज सुकून था कि उसके नितंबों का भी भोज कर लिया था।

फिर उसने खाना बना लिया.
वह अपनी बेटी को खाना देने गयी तो वो गहरी नींद में सो रही थी. रेनू ने उसके कमरे का दरवाजा फिर से बंद कर दिया.

हम दोनों ने फिर नग्नावस्था में ही भोजन किया. शायद आज हम दोनों ने कपड़े न पहनने की कसम खा रखी थी।

खाना खाने के बाद हल्की सी नींद आ गयी. फिर अचानक आँख खुल गयी तो देखा कि रेनू मुँह में लिंग लिए चूस रही थी.

शायद उसकी योनि अभी भी प्यासी थी.
थोड़ी ही देर में उसने मेरे लिंग में फिर रक्तसंचार भर दिया और वो पुनः चढ़ाई के लिए तैयार हो गया।

मैंने रेनू को सीधा पीठ के बल लिटाया. उसकी दोनों टांगों को घुटनों से मोड़कर थोड़ा सा चौड़ा कर दिया और उसकी योनि को होंठों से चूसना शुरू कर दिया.

जीभ को उसके गुदाद्वार से योनिछिद्र तक फिराना शुरू कर दिया और जैसे ही जीभ योनिछिद्र के अंदर जाती, वो कांप उठती.

रेनू फिर से गर्म होकर नितंबों को उछालने लगी। इस बार मैंने उसके योनिछिद्र पर लिंगमुंड रख कर एक जोरदार झटका मारा. पूरा लिंग एक बार में ही अंदरूनी दीवारों से जाकर टकरा गया.

इस जोरदार आक्रमण से रेनू चीख पड़ी और मुझे कसकर दबोच लिया।
मैंने उसके खड़े हो चुके चूचकों को चूसना शुरू कर दिया. अब लिंग को उसकी उम्मीद से ज्यादा धीमे-धीमे आगे-पीछे करना शुरू कर दिया.

वो मेरे नितंबों को दबा कर लिंग को और गहराई में ले जाने लगी।
जैसे जैसे घर्षण बढ़ रहा था, उसके नितंबों में भी उछाल आना शुरू हो गया. मैं बीच में धक्के बन्द कर देता तो वो नितंबों को उठा देती।

उस दिन उसे स्लो मोशन में मैथुन कर मैंने बहुत तड़पाया. फिर उसको घोड़ी बनने को बोला तो वो तुरंत बन गयी।
बाप रे … घोड़ी बनते ही उसके माँसल नितंब और बड़े लगने लगे. मैंने लिंग उसके योनिछिद्र पर लगाया और तेज गति से प्रहार शुरू कर दिया. रेनू भी यही चाहती थी.

मेरे हर झटके से उसके स्तन झूले की तरह हिल जाते और एक दो बार मैंने लिंग उसके गुदाछिद्र में भी डाल दिया. मगर वो योनि की संतुष्टि चाहती थी। मेरे हर धक्के पर वो आह-आह और कामुक सीत्कार निकाल रही थी।

उसे योनि के अंतिम पड़ाव पर लिंग का टकराना मदहोश कर रहा था. उसके माँसल नितंबों के बीच से लिंग अंदर-बाहर जाना मुझे रोमांचित कर रहा था। जिन नितंबों की कल्पना में मैंने कितनी बार वीर्य बहाया था, आज उन दोनों माँसल नितंबों के ऊपर मेरा अधिकार था.

इतने में ही रेनू ने योनिरस छोड़ दिया और मुझे रुकने को कहा. मैंने उसके योनिछिद्र से रस से सना हुआ लिंग बाहर निकाला। लिंग बाहर निकलते ही रेनू ने मुँह में लेकर साफ कर दिया.

अब मेरी बारी थी. मैंने उसकी दोनों टाँगें चौड़ी करके उसकी योनि का सारा योनिरस साफ कर दिया. मेरे खड़े लिंग को देखकर रेनू मेरे ऊपर चढ़ गई और उसने लिंग के ऊपर तीव्र गति से उछलना शुरू कर दिया।

मेरा लिंग भी चरम आकार में आकर उसकी योनि की गहराई को नाप रहा था। उसके उछलते हुए स्तनों को देखकर लिंग और जोश में आ रहा था। कामयुद्ध अब अंतिम चरण में था. कोई भी योद्धा हार मानने को तैयार नहीं था।

उसकी योनि संकुचित होकर मेरे लिंग को अंदर ही अंदर दबाने लगी।
पूरा बेडरूम आहों, कामुक सीत्कारों और शारीरिक घर्षण की मधुर आवाज़ों से गूँज रहा था। अचानक रेनू ने उछलने की गति बढ़ा दी.

अब मेरे लिए संयम मुश्किल हो गया। सच में … इस मैथुन में रेनू ने मुझे हरा दिया था. अब वो हिंसक होकर अपने नितंबों से मेरी जांघों पर प्रहार कर रही थी।

एक वो क्षण आया … जब दोनों का गर्म लावा एक साथ निकला। रेनू निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गयी.
मैंने उसके होंठों को चूम लिया और कहा- तुमने आज मुझे तृप्ति दी है, जो मुझे आज मिला है उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी.

अब हम पूर्णरूप से संतुष्ट हो चुके थे मगर साथ ही थक भी चुके थे। मैंने कपड़े पहनने शुरू किए. वो अभी भी नग्नावस्था में लेटी हुई थी. उसका योनिछिद्र थोड़ा सा खुल सा गया था।

शायद वो अभी भी एक युद्ध के लिए तैयार थी लेकिन समय को ध्यान में रखकर मैं चलने लगा।

उसने जाने से पहले उसी नग्नावस्था में मेरे लिए चाय बनाई.

उसके नितंबों का उठाव आज कुछ ज्यादा लग रहा था. शायद मेरे लिंग ने उसके नितंबों को थोड़ा चौड़ा कर दिया था। मैंने चाय बनने के समय में उसके नितंबों को चूमा और सहलाया.

अगर समय का अभाव न होता तो लिंग फिर से नितंबों पर प्रहार के लिए खड़ा हो गया था।

चाय पीकर उसने मुझसे फिर आने का वादा लिया और उसके नितंबों पर एक चपत लगा कर मैं घर से निकल दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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