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सामूहिक सम्भोग()
#1
सामूहिक सम्भोग

अदलाबदली

अदलाबदली




जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
इस कहानी के सारे पात्र १८ वर्ष से ज्यादा आयु के हैं. गोपनीयता के हेतु पात्रोंके नाम बदले हुए है. हम एक शादीशुदा भारतीय कपल हैं - राज (२८) और सुनीता (२४).
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
सुनीता की जुबानी

पिछले एक साल से राज अपनी बैंक में पदोन्नति (प्रमोशन) के लिए पूरी कोशिश कर रहा था मगर किसी न किसी कारण से बात बन नहीं रही थी. अब गुस्से में आकर, राज ने दुसरे बैंकोंमें नौकरी ढूंढना शुरू कर दिया. पता चला की एक बड़ी बहु राष्ट्रीय (मल्टी नेशनल) बैंक अपनी नयी शाखा (ब्रांच) के लिए मैनेजर की तलाश में हैं.
राजने तुरंत वहाँ के लिए अर्जी दे दी और तीन दिन में साक्क्षातकार (इंटरव्यू) के लिए बुलावा भी आ गया.
जैसे ही राज कमरे में दाखिल हुआ, उसे "हे राज, तुम और यहाँ?" एक परिचित आवाज़ ने स्वागत किया.
कमरे में तीन आदमी बैठे थे, जिसमे से बीचमें बैठा हुआ राज के कॉलेज का सीनियर रोहित था.
रोहित के पिताजी सरकारी नौकरी में उच्च पद पर थे और उन्हींके कारण रोहित को उस बहु राष्ट्रीय बैंक का मुख्य अधिकारी (जनरल मैनेजर) बनाया गया था.
इंटरव्यू के बाद दोनों दोस्तोंने आपस में चाय पी और बाते हुई.
राजने सारा किस्सा बताया और कहा, "यार रोहित, यह नौकरी लग जाए तो मेरी किस्मत खुल जायेगी. तनख्वा भी अच्छी रहेगी और इतने बड़े बैंक में काम करने के बाकी लाभ भी."
रोहितने कहा, "देखते हैं मैं क्या कर सकता हूँ! वैसे भी अबतक आये सारे उम्मीदवारोंमें तुम्हारा ही पलड़ा सबसे भारी है."
फिर जब घर की बातें निकली तब रोहितने बताया की उसकी पत्नी माधुरी डिलीवरी के लिए अपने मइके गयी है.
"कल शाम को मेरे घर पर आ जाओ डिनर के लिए," राजने तुरंत कह दिया.
"अच्छा, ठीक है."
घर आते ही राजने मुझे सब बताया. अगले दिन मैं और सारिका ने मिलकर बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया, साथमें महंगी वाली वाइन, बाहर से मिठाई सारा इंतज़ाम बढ़िया था. फिर घर को सजाके खुशबू वाला सेंट छिड़क दिया.
सारिका ने कहा, "दीदी, आप दोनों रोहित की अच्छी खातिरदारी करो. मैं दूकान पर रूपेश का हाथ बटाने चली जाती हूँ."
मैंने भी पीले रंग का डीप नैक स्लीवलेस ब्लाउज और नीले रंग की पारदर्शी साड़ी पहनी. साढ़े पांच बजे ही राज रोहित को लेकर घर में दाखिल हुआ.
"वॉव राज, तुम्हारा घर और पत्नी दोनों भी सुन्दर हैं यार," रोहित ने मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा.
"थैंक यू रोहित जी," मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
"अरे रोहित जी नहीं, सिर्फ रोहित!"
"अच्छा बाबा, थैंक यू सिर्फ रोहित!"
"सुनीता, आज कितने दिनों के बाद मैं खुल कर हंस रहा हूँ."
सभी हंसी मजाक करते रहे और फिर हम तीनो साथ में बैठकर वाइन और नमकीन का स्वाद लेने लगे.
"लीजिये रोहित, मैं थोड़ी और वाइन आपके ग्लास में भर देती हूँ," कहते हुए मैंने झुककर अपने वक्षोंका दर्शन रोहित को कराया.
फिर पल्लू ठीक करते हुए उसे एक मुस्कान देते हुए बैठ गयी.
खाने पीने का दौर नौ बजे तक चला. अब रोहित भी बेशर्मी से मेरे कैसे हुए वक्षोंको और मेरी साड़ी में झलकते हुए नितम्बोँको ताड़ रहा था.
निकलते हुए हाथ मिलाने के बाद, मैंने उसे गले लगाते हुए कानोंमें कहा, "आशा हैं की राज को यह पोस्ट मिल जाए और हम ऐसे ही मिलते रहेंगे!"
"हाँ हाँ, क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे, और राज तो मेरा जिगरी यार हैं. उसके लिए जो कुछ हो सकता हैं, मैं ज़रूर करूंगा."
बाद में राज से पता चला की इस नयी नौकरी में अभी के मुक़ाबले दुगनी से भी ज्यादा वेतन (सैलरी) था और जोइनिंग बोनस मिलने के भी अपेक्षा थी.
"अगर ये नौकरी तुम्हे मिल गयी तो हम और भी अच्छे ढंग से रह सकेंगे, और फिर वो सोने का कमरपट्टा भी तुम मुझे दिला सकोगे," राज के निप्पल्स को चूमते हुए मैंने रात को कहा.
"हाँ सुनीता रानी, मगर यह रोहित साला मानने को तैयार नहीं लग रहा हैं. मेरा कॉलेज में सिर्फ सीनियर ही नहीं था, हम अच्छे दोस्त भी थे. अब जनरल मैनेजर बन गया हैं तो दोस्त के जैसा बर्ताव नहीं कर रहा हैं साला," राज गुस्से में था.
"ठीक है, कुछ दिन इंतज़ार करके देखो. शायद कुछ अच्छी खबर आ जाए," मैंने धीरज बंधाते हुए कहा.
उस रात चुदाई भी नहीं हुई क्योंकि राज काफी अपसेट था. मैंने भी रूपेश और सारिका को एक दिन बाहर सोने के लिए कह दिया था.
दो दिन बाद जब राज बैंक से लौटा तब से उखड़ा हुआ था. मेरा और सारिका की हंसी मज़ाक और आलिंगन चुम्बन भी उसे आज अच्छे नहीं लग रहे थे.
"सारिका, आज तुम जरा रूपेश के साथ दुकान पर रहो. मुझे राज का मूड ठीक करना पडेगा."
"ठीक हैं दीदी।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
जैसे ही सारिका चली गयी मैंने राज के गलेमें अपनी बाहें डालकर पूंछा, "क्या बात हैं मेरे राजा, आज कुछ नाराज़ लग रहे हो?"

"नहीं डार्लिंग, कुछ नहीं. बस ऐसे ही थका हुआ हूँ."
"नहीं, मैं तुम्हे अच्छे से जानती हूँ. कुछ तो बात हैं."
"सुनीता, नयी नौकरी में दो गुना सैलरी, एक लाख का जोइनिंग बोनस और हो सकता है की बैंक की तरफसे दो बैडरूम का फ्लैट भी मिल जाए."
"यह तो बड़ी ख़ुशी की बात हैं, इसमें परेशान होने का क्या कारण हैं?"
"यह सब पाने के लिए.."
"पाने के लिए क्या?"
"जाने दो रानी, हम जैसे हैं वैसे ही अच्छे है!"
"तुम्हे मेरी सौगंध हैं, बताओ क्या बात हैं," मैंने पूंछा.
"रोहित की शर्त हैं की... "
"क्या हुआ राज, तुम अच्छे से बताओ।"
"वो तुम्हारे साथ दो दिन और तीन रात बिताने के बाद हि तुम्हारे हाथ में मेरा अपॉइंटमेंट लेटर देगा."
मेरे तो पैरोंतले से जैसे जमीन खिसक गयी.
हाँ, यह सच बात हैं की मैं रूपेश और नीरज के साथ कई बार सम्भोग कर चुकी थी, मगर वो मेरी और राज की मर्ज़ी से हुआ था.
अब मैं जान गयी की घर लौटने के बाद से ही राज इतना अपसेट क्यों हैं.
"रोहित तो तुम्हारा अच्छा दोस्त हैं फिर उसने ऐसी शर्त क्यों रक्खी?"
"उसकी बीवी चार महीने से अपने मैके में है और मुझे लगता हैं तबसे वो शायद भूखा शेर बन गया हैं. जिस दिन तुम्हे डिनर के समय देखा, शायद तभी उसने मन बना लिया था की तुम्हे चोदे बगैर वो यह नौकरी मुझे नहीं देगा."
काफी देर तक हम दोनों उलझे रहे, समझ में नहीं आ रहा था क्या किया जाए.
आधी रात को मैंने राज का लौड़ा चूसना शुरू किया. आज वो इतना अपसेट था की उसका लौड़ा कड़क भी नहीं हो रहा था.
उसकी गोटिया सहलाते हुए मैं बोली, "राज डार्लिंग, हमारे सुनहरे भविष्य के लिए मैं दो दिन रोहित के साथ बिताने के लिए राजी हूँ."
"नहीं सुनीता रानी, मैं नहीं चाहता की तुम अपने मन को मारकर ये कदम उठाओ."
"नहीं राज, बहुत सोच कर मैंने यह फैसला किया हैं," उसके लंड को सहलाते और चाटते हुए मैं बोली.
"मैं नहीं चाहता की तुम.."
"राज, सिर्फ दो दिन की बात हैं, उसके बाद हमारी पूरी जिंदगी बदल जायेगी. बस उसे कंडोम पहनना होगा, क्योंकि मैं नहीं चाहती की उसके कारण मुझे कोई गुप्तरोग हो जाए."
अब राज का लंड खड़ा हो गया था और उसने मुझे घोड़ी बनाकर चोदना शुरू किया, शायद उस समय वो मेरी आँखों में आँखें डालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.
"आह आह चोदो मुझे राज, कितना सख्त और मोटा लंड है तुम्हारा, आह, कितना मज़ा आ रहा हैं."
शायद एक नए लंड से चुदने की कल्पनासे मैं उत्तेजित हो रही थी.
"ले मेरी जान, ले, ये ले मेरा लौड़ा तेरी इस चिकनी चुत में डालकर सारी रात तुझे चोद डालूँगा आज!"
पच पच ऐसी अावाज़ोंसे उसका लौड़ा मेरी चुत के अंदर बाहर हो रहा था और मैं भी गांड पीछे की ओर धकेलते हुए उसे और सुख दे रही थी. लग रहा था की मेरे किसी और पराये मर्द से चुदने के बारे में सोच कर राज भी काफी एक्साइटेड हो गया था.
"आह, आह, क्या मजा आ रहा हैं तेरी चुत से आज मेरी जान," कहते हुए अब वो मेरे ३८ इंच के झूलते हुए वक्ष मसलने लगा. एक हाथ से चूँची और निप्पल मसलकर दुसरे हाथ की ऊँगली अब मेरी गांड के अंदर डाल दी.
अब तक मेरी चुत दो बार पानी छोड़ चुकी थी मगर राज का लौड़ा पानी छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था.
लगातार दस मिनट तक डॉगी पोजमें मुझे चोदने के बाद उसने कहा, "डार्लिंग, अब तुम ऊपर आ जाओ."
राज पीठके बलपर लेट गया और मैं उसके लंडपर अपनी चुत सेट करके उछलने लगी.
अब वो दोनों हाथोंसे मेरी चूचियाँ मसलते हुए मेरी आँखों में आँखे डाल कर बोला, "क्या सचमुच तुम रोहित से दो दिन और तीन रात चुदोगी?"
"हाँ मेरे राजा, तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ डार्लिंग, तेरी ख़ुशी के लिए."
इतना कहकर मैं और भी जोरसे उसके लंडपर कूदने लगी. अपने मजबूत हाथोंसे उसने मेरी गांड पकड़ी और और ताकत लगाकर मुझे नीचे से चोदने लगा.
"ओह फक मेरे राजा और चोदो मुझे और और.. आह आह, यस, फक में हार्ड राज, चोदो मुझे, यसऽऽ.... ओह, माय गाडऽऽऽ... येसऽऽऽ.."
अब राजका छूटने वाला था इसलिए उसने मुझे अपने लौंडेपर से उठाया और सिक्सटी नाइन की पोज में लिटा दिया. वो मेरी गीली चुत चाटने लगा और मैं मेरे योनि रस से भरा उसका कड़क लंड लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी. एक जोरदार आवाज़ के साथ राज मेरे मुँह में स्खलित हो गया.
इस बात को सिर्फ मैं और राज ही जानते थे और मेरी सारिका रूपेश को बताने की हिम्मत नहीं हुई.
राज ने भी कहा, "ये सिर्फ हम दोनोंके बीच ही रहेगा. किसी औरको पता नहीं चलना चाहिए."
दो दिन बाद राजने मुझे बताया की रोहित बिना कंडोम सेक्स ही चाहता हैं. उसके लिए वो टेस्ट करके रिपोर्ट दिखाने को भी तैयार हैं मगर चुदाई कंडोम के बगैर ही होनी चाहिए. शर्त के मुताबिक़ मुझे भी टेस्ट करके रिपोर्ट दिखाना था, ताकि उसे भी विश्वास हो जाए की मैं एकदम सेफ हूँ.
आने वाले दिनोंमें दोनोंके टेस्ट हो गए और दोनोंके के रिपोर्ट्स ठीक ही आये.
शुक्रवार की शाम को एक बड़ी मर्सिडीज़ गाडी नीचे आकर रुकी. मैं पहले से ही तैयार होकर साथमें छोटा सा बैग लेकर घर में बैठी थी. ड्राइवर ऊपर आकर मुझे ले गया.
कार में पीछे रोहित बैठा हुआ था. उसने मेरा हाथ चूमकर मेरा अभिवादन किया.
"हेलो सुनीता।"
"हाय रोहित, कैसे हो आप?"
"मैं तो ठीक हूँ, आप बला की ख़ूबसूरत लग रही हो."
"अरे अब मुझे सिर्फ सुनीता कहके पुकारो, ये आप वाप छोड़ दो."
मैंने मन ही मन सोचा, साला ये हरामी मुझे तीन रात और दो दिन चोदने वाला है और यहाँ आप आप का नाटक कर रहा हैं.
सफर के दौरान हमने यहाँ वहां की बाते की और मैं मुस्कुराते हुए उसपर मेरे हुस्न के तीर चला रही थी. ड्राइवर शीशे में से हमको बारी बारी देख रहा था, इसलिए रोहित ने भी कारमें कुछ नहीं किया.
आधे घंटे के सफर के बाद हम लोग फार्म हाउस पहुँच गए. वहाँ कार के रुकते ही, एक नौकर भागता हुआ आया और द्वार खोल कर हम दोनोंको अंदर ले गया. मेरा और रोहित का सामान भी उसने उठाया और मास्टर बैडरूम में रख दिया. रोहित ने उसे ५०० की नोट पकड़ाई और वो गायब हो गया. मैं अंदर बाथरूम में फ्रेश होकर झीनी से गुलाबी नाइटी पहन कर आयी, तबतक मेजपर वाइन, नमकीन, पकोड़े, फ्रूट्स और ड्राई फ्रूट्स जमाकर नौकरानी चली गयी थी.
रोहित अंदर जाकर एक पतली लुंगी और सफ़ेद कुरता पहनकर आ गया. वैसे दिखने में वो भी ठीक ठाक था, मगर मैं मजबूरी में चुदने जा रही थी, न की मेरी अपनी इच्छा से!
मैंने मुस्कुराकर अंगड़ाई लेते हुए कहा, "अब आगे का क्या प्रोग्राम हैं रोहित?"
उसने मुझे बाहोंमे लिया और मेरे होठोंपर अपने होंठ रख दिए. इसका मतलब साफ़ था की अब दिन रात सिर्फ चुदाई ही चुदाई होने वाली थी.
"सुनीता, मैं कई दिनोंसे प्रेम का प्यासा हूँ. अब मेरी प्यास बुझा दो. मैं चाहता हूँ की तुम्हे भी पूरा सुख मिले," मेरे होंठ चूमते हुए और मेरी जीभ को चूसते हुए उसने कहा.
मैंने अपनी आँखें मूँद ली और उसके जीभ से अपनी जीभ मिला दी. अब उसने मुझे कसके बाहोंमे लिया और उसका कड़क लंड मेरी चुत पर दबने लगा.
"हाँ रोहित, हम दोनों एक दुसरे को जी भर के सुख देंगे।"
एक ही झटके में उसने मुझे उठाया और पलंग पर लिटा दिया. मेरी नाइटी ऊपर हो गयी और मेरी मांसल जाँघे उसकी आँखोने देख ली. मेरे पैरोंको चूमते हुए उसने मेरी जाँघे सहलाना शुरू किया. एक नए मर्द का स्पर्श थोड़ा अजीब, थोड़ा अलग और शायद थोड़ा अच्छा भी लगने लगा था.
मैंने अपनी आँखे बंद की और उसके प्यार का आनंद लेने लगी. अगले दस मिनट तक उसने मेरी जांघोंको स्पर्श और चुम्बनोंसे उत्तेजित कर दिया. अब तक मेरी पैंटी गीली भी हो चुकी थी. मैं जान बूझकर शर्माने का नाटक कर रही थी ताकि उसे लगे की सचमुच मैं आज तक सिर्फ अपने पति राज से ही चुदी हूँ.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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