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Adultery लुक्का - छीप्पी
#1
Heart 
अपडेट -- 1


'का हो काका? का हाल बा? अकेले-अकेले चीलम फूंक रहे हो?






गाँव के आखीरी छोर से, आम के पेंड़ो की बारी शुरु होती है। और उसी आम के बगीचे में एक झोपड़ी बनी थी। और उस झोपड़ी के सामने एक 48 वर्ष का आदमी, धोती - कुर्ता में खाट बीछा कर बैठा था। और चीलम फूंक रहा था।


वो 48 वर्ष के आदमी के कानो में जैसे ही आवाज़ गूँजी, वो नज़र उठा कर देखा तो, एक 20 साल का लड़का चला आ रहा था। वो लड़का काफी गठीले बदन का था। साँवले रंग का लड़का था। पर चेहरे की गढ़न काफी शानदार थी, जो उस लड़के को आकर्षक बना रहा था।


वो लड़का करीब आते हुए, खाट पर बैठ गया।

'अरे बबलू बेटा! का हाल है? आज मेरे अड्डे पर कैसे?'


तो मतलब उस लड़के का नाम बबलू था। खैर बबलू ने उस आदमी को जवाब में कहा-


बबलू -- अरे बनवारी काका! अब क्या करुँ, घर पर खाली बैठा था तो, सोचा तुम्हारे ही तरफ़ घुम आता हूँ।

बनवारी -- ठीक कीया बेटा! चल अब आ गया है तो, बोल तेरे लीए भी चीलम बना देता हूँ।


बबलू -- अरे क्यूँ गज़ब कर रहे हो काका? तुमको तो पता है ना, की अगर कहीं मेरी अम्मा को पता चल गया तो...कयामत आ जायेगी!


बबलू की बात सुनकर, बनवारी एक चीलम का कश लेते हुए खुद से बोला-

"कयामत तो तुम्हरी अम्मा है ही, बबलू बेटा! तूझे नही पता की, कीतनो के लंड में आग लगा कर बैठी है तुम्हरी अम्मा! साला उमर ना बीत जाये, और सपने में ही चोदता रह जांउ,"


बबलू -- का सोंचने लग गये काका?

बनवारी चीलम का कश लेकर मुस्कुराते हुए बोला-


बनवारी -- अरे बबलू! तू भी ना अपनी अम्मा से बहुत डरता है रे!


बबलू -- अम्मा है हमरी काका, इस लीये डरता हूँ।


बनवारी ने एक चीलम का कश लेते हुए...


बनवारी -- अरे बेटा! औरतों को तू नही जानता! तूझे पता नही है, औरतें डरने वाले मर्द को पसंद नही करती हैं। अरे औरतों से क्या डरना?


बबलू -- काका मैं कीसी औरत से नही डरता। वो तो बस अपनी अम्मा से!! क्यूकीं वो मेरी अम्मा है।


बनवारी -- अम्मा है तो का औरत नही है का? बुरा मत मानना बेटा, लेकीन एक बात कहता हूँ और शायद तूने सुना भी होगा। पूरे गाँव वाले कहते हैं की तेरी अम्मा से खूबसूरत औरत कोई नही है। और सब के सब मादरचोद लोग तेरी अम्मा के आगे-पीछे घुमते रहते है। मगर तेरी अम्मा तो देवी है देवी। कभी भी कीसी को घास तक नही डाली।


एक पल के लीए बबलू को गुस्सा तो आया पर अपनी माँ की देवी जैसी नीयत के बारे में सुनकर वो खुश हो गया...


बबलू -- सही कहते हो काका। हमरी अम्मा तो सच में देवी है, इसीलीए तो मैं अपनी अम्मा की सब बात मानता हूँ, और उसे खुश रखता हूँ।


बनवारी -- बात तो तेरी ठीक है बेटा, पर बुरा ना लगे तो एक बात कहूँ?


बबलू -- अरे बुरा काहे लगेगा काका? कहो ?


बनवारी -- देख बेटा, माना तू अपनी अम्मा को खुश रखता है। पर वो पूरी तरह से खुश नही है...बेटा!


बनवारी की बात सुनकर, बबलू थोड़ा हैरानी में-


बबलू -- पूरी तरह...खुश नही है!


बनवारी बबलू की बात खत्म होते ही झट से बोल पड़ा...


बनवारी -- हाँ...बेटा! खुश नही है।


बबलू -- पर काका...मैं तो अपनी अम्मा को कभी उदास नही देखा।


बनवारी -- अरे बेटा! तू एक बेटे की नज़र से अपनी अम्मा को देखता है। इसलीए तूझे उसकी उदासी नही दीखती।


बबलू -- बेटे की नज़र से! काका तुम का बोल रहे हो, मेरी तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है।


बनवारी -- देख बेटा, माना वो तेरी माँ है। पर वो भी एक औरत ही है, बाकी औरतो की तरह उसे भी वो सब करने का मन होता है। जो एक औरत एक मर्द के सांथ करती है। पर वो एक वीधवा और संसकारी औरत है बेटा! मरद के खत्म होने के बाद वो बाहर ऐसे काम नही करेगी। इज्जत की डर से। इसलीए उसने सारे अरमानो को अपने सीने में दबा कर रख दीया है।


बनवारी की बात बबलू बड़ी ध्यान से सुन रहा था। उसे गुस्सा नही आया पर सोंच में जरुर पड़ गया। बबलू के पास बनवारी काका से पूछने के लीए कुछ नही था। इसलीए वो उठा और खामोशी से वहाँ से घर की तरफ लौट गया।



@@@@@

बबलू अपने घर पहुँचा तो पाया, आँगन में उसकी माँ सुधा और एक औरत बैठी बाते कर रही थी। बबलू को देखते ही सुधा बोली-

सुधा -- अरे बेटा कहाँ गया था? मैं तूझे कब से ढुंढ़ रही हूँ?


बबलु अपने माँ के बगल में खाट पर बैठते हुए बोला-


बबलू -- वो अम्मा, मैं थोड़ा बनवारी काका के इधर चला गया था।

सुधा -- ठीक है! इतना मत घूमा कर, जा-जाकर कुछ सब्जीया तोड़ ले आ।


उसके बाद बबलू उठ कर घर के बाहर नीकल जाता है। और घर के पीछवाड़े सब्जीया तोड़ने चला जाता है।

आगन मे बैठी सुधा उस औरत से बात कर रही थी। वो औरत सुधा से बोली-


"अरे सुधा, अपने बेटे को का खीला रही है रे? एकदम पहलवान बनते जा रहा है!"


सुधा को उस औरत पर गुस्सा आ गया...और मन में (ई हरज़ाई मेरे बेटे को नज़र ना लगा दे।)

ये सोंचते हुए सुधा अपने गुस्से पर काबू पाते हुए थोड़ी मुस्कुरा कर बोली-


सुधा -- अरे का खीला रही हूँ माला...जो सब खीलाते हैं वही मैं भी खीलाती हूँ। वो तो मेरा बेटा रोज कसरत करता है, इसलीए उसका शरीर थोड़ा गठीला हो गया है।


माला -- अरे थोड़ा का, पूरा गठीला और मज़बूत है। छातीया देखी है का अपने बेटे की, कीतनी चौंड़ी हैं। एक बार कीसी को जकड़ ले तो छुड़ा ना पाये।


माला की बात सुनते हुए सुधा मन ही मन खुश भी हो रही थी।


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#2
अपडेट -- २


गन्ताक से आगे...


माला की बात सुनकर, सुधा मन ही मन खुश भी हो रही थी। तभी माला एक बार फीर से बोल पड़ी...


माला -- अरे तूझे पता है, आज सरपंच जी ने गाँव में पीक्चर लगवाने के लीए कहा है। सब लोग तो आ रहे है तू भी आयेगी?


सुधा -- तू ही देख फीलम-वीलम मैं कहां देखती हूं रे?


सुधा की बात सुनकर, माला बोली-


माला -- तो मतलब की तू नही आयेगी?


सुधा -- मैं नही देखती फीलम, तो क्या करुंगी आके?


सुधा की बात पर माला थोड़े नाटकी अदांज में बोली--


माला -- तू आयेगी तो कीसी और को सुकुन जो मीलेगा।


और ये बोलकर माला मुस्कुरा पड़ती है। माला की बातो पर, सुधा थोड़ा हड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखी और फीर बोली-


सुधा -- पगला गई है का? कुछ भी अनाप-शनाप बके जा रही है। अगर कहीं बबलू ने सुन लीया तो, क्या सोचेगा मेरे बारे में?


माला -- ओ...हो, बेटे की बड़ी चींता है। और बेचारे सरपंच जी, जो कब से तेरे इंतज़ार में दीन काट रहे हैं। उनके बारे में कोई चींता नही?


सुधा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे। गोरे मुखड़े पर पसीने के फुवारे छलकने लगे थे, पर वो कश्मकश में थी....


सुधा -- ये का बक रही है? धीरे बोल धीरे, तू मुझे मरवायेगी कभी। तूझे पता है की, मुझे ये सब पसंद नही फीर भी ,तू सरपंच जी की फरीयादे लेकर पहुंची रहती है।


माला -- हाँ तो काहे ना आऊं, सरपंच जी भले आदमी है। उनकी तड़प मुझसे देखी नही जाती...समझी।


सुधा भी एकदम से बोल पड़ी...


सुधा -- इतनी ही फीक्र है तो, तू ही लेट जा सरपंच जी के नीचे।


माला भी बातो में कहाँ पीछे रहने वाली थी...


माला -- लेट जाती! पर सरपंच जी की जान तो तूझमें अटकी पड़ी है। हमारी जैसी औरतो को भला कौन पुछेगा?


सुधा ये सुनकर थोड़ा सा शर्मा जाती है, और शर्माते हुए बोली...


सुधा -- हां...तो, मै क्या करुं? मुझे ये सब पसंद नही है।


सुधा को शर्माते देख, माला खाट पर से उठते हुए बोली-


माला -- ठीक है! जैसी तेरी मर्ज़ी। अच्छा मैं चलती हूँ।


और ये कहकर माला वहाँ से चली जाती है। माला के जाते ही बबलू भी सब्जीयां तोड़ कर आ जाता है। और सब्जीयों को खाट पर रखते हुए बोला...


बबलू -- अम्मा...ये ले सब्जीयाँ।


और ये कहकर, बबलू वहीं खाट पर बैठ जाता है। सुधा बबलू को पास बैठी देख थोड़ी हीचकीचाते हुए बोली...


सुधा -- सु...सुना है की, आज गाँव में फीलम लगेगी! तो तू भी जायेगा देखने?


अपनी माँ की बात सुनकर, बबलू बोला-


बबलू -- हाँ अम्मा! इतने दीनो बाद तो लगता है। तो देखने तो जरुर जाउगां। तू भी चल ना अम्मा! तू तो कभी जाती ही नही है।

बबलू की बात सुनकर, सुधा कुछ सोंच में पड़ गयी। और फीर कुछ सोंचने के बाद बोली...


सुधा -- हां...तो, तूने कभी चलने के लीए बोला ही नही, तो क्या अकेली जाती?


ये सुनकर बबलू मुस्कुराते हुए बोला-


बबलू -- अरे अम्मा, तू भी ना! गांव की सब औरते जाती है। माला काकी भी जाती है, तो उसके सांथ चली जाया कर।


सुधा अपने मन में सोंचते हुए ( अरे बेटा, अब तूझे कैसे समझाउं की मैं क्यूँ नही जाती? ये सरपंच जी भी ना, पता नही इनको का हो गया है? जीद पकड़ कर बैठ गये हैं, एक बार बोल दीया है उन्हे की ये सब मुझे पसंद नही पर फीर भी। चली जाती हूँ आज और एक आखीरी बार समझाती हूँ।)


'क्या सोचने लग गयी अम्मा?'


बबलू की आवाज सुधा के कानो में पड़ते ही, वो सोंच की दुनीया से बाहर आते हुए बोली...


सुधा -- अरे...वो, वो मैं सोंच रही थी की, तू ठीक कहता है। गाँव की सभी औरते तो जाती है, तो मैं भी उनके सांथ ही चली जाउंगी।


बबलू -- और नही तो क्या माँ? अच्छा ठीक है, जल्दी से खाना - पीना बना ले, ८ बजे से फीलम चालू हो जायेगी।


सुधा मुस्कुराते हुए...

सुधा -- ठीक है मेरा लल्ला!

और ये कहकर वो उठ कर रसोंई घर की तरफ चली जाती है...


@@@@@

माला जैसे ही अपने घर पहुंची, तो देखी की उसकी बेटी रीता और बहू सीमा बैठ कर बाते कर रहीं थी।


माला ४२ साल की एक सांवले और भरे बदन की औरत थी। इसका मरद बनवारी के सांथ गांजे और दारु में ही धुत्त रहता है और खेतों पर ही सोता है।

माला का एक बेटा रमेश, जो की २३ साल का था, और पीछले वर्ष ही उसकी शादी सीमा से हुई थी। रमेश बाहर शहर में अपने मामा के सांथ पेपर मील की एक कंपनी में काम करता था।


सीमा भी भरे बदन की लड़की थी। २0 साल की उम्र में ही, सीमा का सेहतमंद मांसल और गोरा बदन देखकर कोई भी अपना होश खो दे, थी तो वो २0 साल की पर गांड की चौंड़ाई और चूंचो की उचाई देखकर पूरी औरत की तरह दीखती थी।

और वहीं रीता भी २0 साल की थी, अपनी माँ माला पर गयी थी। सांवला रंग पर कटीला बदन था, सूट और सलवार में उसके केंद्र बींदू ही प्रकट रहता है। गाँव के लड़के भी इसके पीछे हमेशा कोशिश करते रहते है।


खैर ये बात तो रही माला के परीवार के, माला अपनी बहू और बेटी को बात करते देख बोली--


माला -- अरे महरानीयों, बाते ही करती रहोगी या खाना-पीना भी बनायेगी।


रीता -- ओ...हो, आ गयी महारानी! खुद तो गाँव भर में घुमती रहती है, और बोल हम लोग को रही है।


माला -- कहां गाँव में घूमती हूं रे, वो तो मैं सुधा के घर जाती हूँ बस।


रीता -- हाँ...हां पता है। चल भौज़ी खाना-पीना बना लेते है, आज फीलम देखने भी चलेगें।


रीता की बात सुनकर, सीमा वहां से उठते हुए आँगन की तरफ चल देती है, जहाँ रसोंई घर था। रीता भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी तो माला बोली...


माला -- अच्छा...! तेरे बापू खाना खाने आये थे क्या?

माला की आवाज़ सुनकर, रीता के कदम वहीं रुक जाते है। और अपनी माँ की तरफ घुमते हुए अपने दोनो हांथ अपनी कमर पर रख कर बोली-


रीता -- हाँ...आये थे आपके पतिदेव! लेकीन एक बात बोल देती हूँ अपने मरद को थोड़ा समझा लो, जब भी आते हैं, मेरी नीगोड़ी चूंचीयों को घूरते रहते है। समझा लो...घूरना है तो तेरी चूंचीयों को घूरे मेरी नही। नही तो कभी मुड़ खराब हुआ तो, ठूंस दूंगी अपनी चूंचीयां तेरे मरद के मुह में।


माला का मुह खुला का खुला रह गया। माला को ये तो पता था की, रीता बड़ी बोलबाली वाली लड़की है, पर उसने सोंचा न था की रीता ऐसी बाते भी कर सकती है, वो हैरत से अपना मुह खोले बोली--


माला -- अरे हरजाई, का बोल रही है? लाज-शरम धो कर पी गयी है का? वो तेरे बापू है।


रीता थोड़ी और नज़दीक आते हुए...


रीता -- ओ...हो , बड़ी आयी। बापू है मेरे! तो मैं क्या करुँ? उनको समझाओ ना, वो तो बेशर्मो की तरह मेरी चूंचों को घूरते रहते हैं। और मैने कुछ क्या बोल दीया तो, मैं बुरी हो गयी...?


माला -- ओ...मेरी बीटीया! मैं तूझे भला-बुरा थोड़ी बोल रही हूँ। और तूझे तो अपने बापू का पता ही है, वो तो गांजे और दारू के नशे में धुत्त रहते है, तो उन्हे होश कहां रहता है की, वो क्या कर रहे है क्या नही?


रीता एक बार फीर भाव को बदलते हुए बोली-


रीता -- हाँ तो ये सब तेरी वज़ह से ही तो हो रहा है।


अपनी बेटी की बात सुनकर, माला थोड़ा हैरत भरी आवाज़ में बोली-


माला -- मेरी वज़ह से!!


रीता -- और नही तो क्या? जब देखो तब गाँव में घूमती रहती है। थोड़ा बापू के सांथ भी रहा कर। तू बापू की औरत है, तेरा फर्ज़ है बापू को खुश रखना, पर तू तो ना जाने कीसको खुश कर रही है, घूम-घूम कर!


अपने उपर उठे कीचड़ को देखकर माला गुस्से में बोली...

माला -- चुप कर ! कुछ भी बोले जा रही है। मुझे खराब औरत बोल रही है, बेशरम लड़की! अब एक और शब्द भी मत बोलना।


माला का गुस्सा देखकर, रीता भी थोड़े गुस्से में बोली...


रीता -- खराब औरत बोल नही रही, बल्की तू है। मुझे पता है तेरे और उस भोले सरपंच के बारे में...समझी। अब मुह मत खुलवा मेरा.....बस अपने मरद को समझा दे। और हाँ, अभी सरपंच ने तूझे जीस काम पर लगाया है ना, वो भी मुझे अच्छे से पता है। पर वो सुधा काकी है सुधा काकी, तेरी जैसी नही जो, अपनी टांगे सरपंच के आगे खोल दे...


माला चुप-चाप खड़ी होकर अपनी बेटी की तीखी बाते सुने जा रही थी। पर कुछ बोल नही पायी...

और इधर रीता अपनी माँ को पलटनी देकर रसोंई घर की तरफ नीकल पड़ी थी।

माला के पैरों तले जमीन खीसक चुकी थी। उसे ताज़ुब हो रहा था की, जीस संबध के बारे में गाँव में कीसी को भनक तक ना लगी...उसके बारे में रीता को कैसे पता चल गया? और तो और वो सुधा को सरपंच के लीये मना रही है, इस बारे में भी रीता को कैसे पता चल गया?


सवालों के ढेर में कुदी माला...धीरे से खाट पर बैठ जाती है। Arrow Arrow
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#3
अपडेट...३





गन्ताक से आगे... Heart Heart Heart



 रात हो गयी थी। गाँव में सबके घरो में आज खाना-पीना जल्दी बन गया था। बबलू भी खाट पर बैठ कर खाना खा रहा था। और उसकी माँ बगल में बैठ कर पंखा डोला रही थी।



बबलू -- अम्मा मैं खा चूका हूँ। तू भी खा ले और माला काकी के सांथ चली आना...


बबलू की बात सुनते हुए, सुधा थाली को उठाते हुए खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली--


सुधा -- ठीक है ल्ल्ला, मैं आ जाउगीं।

और ये कहते हुए, सुधा थाली लेकर चली जाती है। बबलू भी घर से नीकल कर सरपंच के घर पर आ गया था। सरपंच के घर के सामने काफी जगह थी। जहां एक तरफ औरते बैठी थी और दूसरी तरफ मर्द बैठे थे। भीड़ तो इकट्ठा थी। और अब बबलू भी पहुंच गया था...


"अरे बबलू कीतना देर लगा दीया बे आने में"

एक लड़के ने कहा...। उस लड़के की बात सुनकर बबलू ने कहा-


बबलू -- अरे राजू...खाना खा रहा था, इसलीए देरी हो गयी।


राजू -- अरे बबलू...आज तो तेरी माल एकदम पटाखा लग रही है। वो देख...

ये कहते हुए राजू ने बबलू को दूसरी तरफ देखने का इशारा कीया। बबलू ने भी जब उस तरफ देखा तो, वो बस देखता रह गया। उस तरफ ४ से ५ लड़कीयों का गोल खड़ा था। उसमें से एक गोरी-चीट्टी लड़की घाघरा-चोली पहने खड़ी, हसं-हसं कर बाकी खड़ी लड़कीयों से बात कर रही थी।


हसंते हुए उस लड़की के अगंर जैसे गालो में गड्ढे पड़ जाते। जो उसकी खुबसूरत मी और चार चांद लगा देती। हरे रंग की चोली में उस लड़की वक्षस्थल अत्यधीक उभार के सांथ उसके चोली की शोभा बढ़ा रही थी। चीकना गोरा पेट...बीज़ली की रौशनी में चमक रहा था। बबलू की नज़र उस लड़की के चीकन पेट में केंद्रीत गहरी नाभी पर अटक गयी। और जब नाभी पर से नजर फीसली तो, मटके के जैसे कटाव लीये कमर और कुल्हो पर आकर अटक गयी।


बबलू के मन में सीरहन उठने लगा। उसका मन उस लड़की के कामुक और मस्त जीस्म को छुने को मचलने लगा...।


बबलू एकदम दीवानो की तरह उस लड़की में खो गया था। की तभी एक आवाज़ ने उसे झींझोड़ा...


"ओ...हो, दीवाने की आँखें तो हट ही नही रही है।"

ये अनजानी आवाज़ कान में पड़ते ही, बबलू घुमते हुए देखा तो, एक २0 साल का लड़का खड़ा था। उसे देखते ही बबलू के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उमड़ने लगी। बबलू के चेहरे पर गुस्सा देखकर राजू ने बबलू की बाँहे पकड़ते हुए...


राजू -- चल बबलू...हम उधर बैठते है।

राजू की बात सुनकर, बबलू उस लड़के को घूरते हुए वहां से जाने लगता है की तभी वो लड़का...


"अरे...जा जा, तू सीर्फ देखता ही रहेगा नामर्दो की तरह।"

ये कहते हुए वो लड़का और उसके सांथ खड़े दो लड़के भी हसंने लगते है। बबलू का दीमाग घूमा और उसके कदम वापस से उस लड़के की तरफ बढ़े और उसके नज़दीक आकर रुक गये...


बबलू उसे देखते हुए मुस्कुरा कर बोला--


बबलू -- ह्म्म... वो तो बेटा वक्त बतायेगा, की कौन मर्द है और कर नामर्द! तू खेल...काज़ल के आगे पीछे घूम कर अपनी दूम हीला। कुत्ते की तरह समझा।


बबलू की बाते उस लड़के के दील पर लगी और गुस्से में बौखला गया और बोला-


"राजन नाम है मेरा, कोई ऐरा गैरा लड़का नही, इस गाँव के सरपंच का बेटा हूँ, मेरे सामने तेरी कोई औकात नही। अपनी औकात में रह और काज़ल का पीछा छोड़ दे समझा। क्यूँकी मैं उससे प्यार करता हूँ॥


अब बबलू एक बार फीर मुस्कुराया और बोला-


बबलू -- चल ठीक है! अगर मैने तेरी बात मान भी ली तो, मुझे क्या मीलेगा?


बबलू की बात सुनकर राज़न के चेहरे पर खुशी की झलक उमड़ी...और झट से बोला-


राजन -- तू...तूझे जो चाहिए, वो तू मांग,।


बबलू , राजन की नज़रो में घूर कर देखते हुए धीरे से बोला-


बबलू -- तेरी बहन दे...दे!


'कमीने...ए....'

चील्लाते हुए राजन ने बबलू का गीरेबान पकड़ लीया...

राज़न -- अपनी औकात में रह कमीने, नही तो इस गाँव में नही दीखाई देगा।

बबलू -- क्यूँ ? गाँव तेरे बाप का है?

राज़न -- ऐसा ही समझ, ये गाँव मेरे बाप का ही है।

बबलू -- तू और तेरा बाप, हरामी की औलाद हो। पता है तेरे बाप के बारे में, लोगो को मजबूर करके उनकी ज़मीने हड़पना ही तेरे बाप का काम है। औकात मेरी नही अपनी देख हरामी की औलाद।


बबलू की बात सुनकर, राजन गुस्से में पागल हो गया। और हांथ से एक घूंसा बबलू के पेट पर जड़ दीया।

अब तो बबलू का भी पारा गरम हो गया...और उछलते हुए एक लात राजन के सीने पर ज़ड़ दीया। राजन थोड़ी दूर जाते हुए धड़ाम से गीर पड़ा।


राज़न के गीरते ही, वहां खड़े सब लोग चौंक जाते है। तब तक सुधा भी  माला के सांथ आ जाती है। जब तक सुधा और खड़े लोग कुछ समझ पाते, तब तक बबलू अपने लातो से राजन को कुंचने लगता है।


ये देखकर सुधा और सरपंच एक सांथ दौड़े कुछ और लोग भी पीछे-पीछे दौड़े और बबलू को पकड़ने लगे।


सुधा -- रुक जा बेटा! क्या कर रहा है? छोड़ उसे।

सुधा बबलू को पकड़कर खींचते हुए बोली थी...


बबलू भी शांत हो कर उसे छोड़ देता है। और वहां से चला जाता है...

बबलू को गुस्से में जाते देख, सुधा भी उसके पीछे जाने लगती है की, तभी माला ने उसका हांथ पकड़ कर रोकते हुए बोली--


माला -- अरे सुधा तू कहां जा रही है?


सुधा -- अरे देखती नही की बबलू कीतने गुस्से में गया है?


सुधा की बात सुनकर सरपंच ने जवाब में कहा-

सरपंच -- अरे सुधा, बच्चे हैं। कीसी बात पर आपस में झगड़ गये होंगे, तुम चींता मत करो बबलू अभी आ जायेगा। मुझे पता है की, गलती इस नालायक की ही होगी।


और कहते हुए सरपंच ने राजन को एक थप्पड़ जड़ दीया। और दुसरा थप्पड़ मारने के लीए हांथ उठाया ही था की, सुधा ने सरपंच का हांथ पकड़ लीया और...


सुधा -- ये आप का कर रहे हैं...सरपंच जी? अभी आप ने खुद ही कहा की बच्चे है ऐसे ही झगड़ गये होंगे, तो फीर काहे मार रहे हो? राजन बेटा तू जा!


और ये कहते हुए सुधा ने सरपंच का हांथ छोड़ दीया। राजन भी वहां से चला गया...


सरपंच सुधा की आँखों में प्यार से देखते हुए बोला-


सरपंच -- मै तुमको बता नही सकता सुधा की मुझे कीतना अच्छा लग रहा है, जो आज तुम आयी हो।


सरपंच की बाते सुनकर, सुधा ने अपनी नज़र आस-पास घुमायी तो, पायी की लोग उन्हे ही देख रहे थे। सुधा झट से बोल पड़ी...


सुधा -- सरपंच जी! मुझे आपसे बात करनी है। २ घंटे बाद पुरानी कॉलेज पर आ जाईयेगा।


और ये कहकर सुधा माला के साथ उस तरफ चल पड़ती है जहाँ गाँव की बाकी औरते बैठी थी।

@@@@@

बबलू अपने घर की तरफ बुदबुदाते हुए गुस्से में चला जा रहा था...

'मादरचोद...रंडी की औलाद, काज़ल को छोंड़ तू! काज़ल तो क्या अब गाँव की सब लड़कीयों की फुद्दी मारुगां॥'


खुद से बुदबुदाते हुए बबलू चला जा रहा था। वो अपने घर पहुंच कर बाहर ही खाट पर लेट गया।

--@@@@@


अंधेरा हो गया था। आसमान में तारे टीमटीमा रहे थे। सरपंच के घर पर भीड़ बैठी फील्म देख रही थी। एक तरफ औरत थी तो दुसरी तरफ मर्द और बच्चे, लौंडे और बूढ़े भी आँखें फाड़े देख रहे थे।

तभी कुछ देर में सुधा उठते हुए माला से बोली-


सुधा -- माला मैं जा रही हूँ।

माला ने सुधा का हांथ पकड़ते हुए उसे रोकते हुए बोली-


माला -- अरे सुधा, अभी तो फीलम भी खतम नही हुई हैं, कम से कम एक फीलम तो देख ले।

सुधा -- नही रे माला, बबलू घर पर अकेला है। मुझे जाना पड़ेगा।

और ये कहकर सुधा वहां से चली जाती है। सुधा को जाते देख, थोड़ी ही देर में सरपंच भी बहाने से सौंच के डीब्बे में पानी भरकर, उसी तरफ चल पड़ता है। सब को लगा सरपंच जी सौंच के लीए जा रहे है। मगर माला को पता था की, सरपंच कहा गया है।


इधर पुराने कॉलेज पर सुधा खड़ी थी। और सरपंच का इतंज़ार कर रही थी। सुधा को डर भी लग रहा था की, कही गाँव के कीसी ने उसे सरपंच के सांथ देख लीया तो गज़ब हो जायेगा।


सुधा वही कॉलेज के रास्ते के कीनारे खड़ी सरपंच का इतंजार कर रही थी, की तभी उसे कीसी के कदमो की आहट सुनाई पड़ी। उसका दील धड़कने लगा, और उसे पसीने भी आने लगे।

तभी वो कदमो की आहट उसके एकदम नज़दीक आ गयी। अंधेरा घना था, इसलीए वो एक दुसरे को देख नही पाये। मगर सुधा समझ गयी थी की ये सरपंच जी ही है। इसलीए वो अपना पैर दो बार ज़मीन पर पटक देती है। जीससे उसके पैरों में पहने पायल छनक पड़ते है। ये इशारा था सरपंच के लीए की सुधा वही खड़ी है, ताकी अंधेरे में सरपंच को ढुंढने में कोई परेशानी ना हो।


सरपंच अब सुधा के एकदम नज़दीक खड़ा था। सुनसान अधेंरी रात में रास्ते पर खड़ी सुधा की तेज चल रही सांसे सरपंच के कानो में सुनाई पड़ा तो...


सरपंच -- मुझे तो यकीन नही हो रहा है सुधा की, तुमने मुझे अकेले बात करने के लीए बुलाया है।

सरपंच की बात सुनकर, सुधा अपनी तेज चल रही सांसो को काबू करते हुए बोली--


सुधा -- देखीए सरपंच जी, मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ, आप एक भले आदमी है। मगर आप का यूँ मुझे पाने की जीद, मुझे अच्छा नही लगता। मैं एक वीधवा हूँ , और एक जवान लड़के की माँ भी। मेरे लीए ये सब करना थोड़ा भी अच्छा नही लगता। मैं आपको एक बार फीर यही समझाने के लीए बुलायी थी, की आप मेरे बारे इतना   मत सोचा करो, क्यूंकी ये सब मुझे अच्छा नही लगता।


इतना बोलकर सुधा चुप हो जाती है। और अब सरपंच ने मुह खोला-


सरपंच -- मुझे पता है सुधा, की तुम्हारे लीए ये सब करना ठीक नही। बल्की मैं तो कहता हूँ की, कीसी भी औरत के लीए कीसी पराये मर्द के बारे में सोंचना गलत है। मैं तुम्हारी इज्जत समजता हूँ, इसीलीए कभी कोई ऐसी-वैसी हरकत कीया क्या तुम्हारे सांथ? मगर अब क्या करुँ? जब मेरा दील नही मानता तो, ये हर समय तुम्हारे बारे में ही सोंचता रहता है। मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ की, तुम्हे चाह कर भी भूल नही पाता। मुझे पता है, की ये गलत है। मगर दील नही मानता सुधा...तुम ही बताओ की मैं क्या करुँ?


सरपंच की प्यार भरी बाते सुनकर, सुधा भी स्तब्ध रह गयी। उसे भी समझ नही आ रहा था की वो क्या बोले...

सरपंच ने भी जब देखा की, सुधा कुछ नही बोल रही है तो, वो हीम्मत करके अंधेरे में ही अपना हांथ आगे बढ़ा देता है, और सुधा की कलाई को पकड़ लेता है।

और इधर सुधा जैसे ही अपने हांथो पर कुछ महसूस करती है, वो डर जाती है और घबराने लगती है। उसने बीना देरी के, अपना हांथ झटकते हुए छुड़ा कर बोली--


सुधा -- सरपंच जी, अब आप हद पार कर रहे है। मैने आपसे कहा ना, मुझे ये सब पसंद नही। मैं उस तरह की औरत नही। जो लूक्का - छीप्पी का खेल खेलती हैं। मैं खुश हूँ मेरी छोटी सी दुनीया में। और मैं नही चाहती की, ऐसे काम करके अपनी खुशी में आग लगा लूँ। मुझे जो कहना था वो मैने कह दीया, अब आगे से मुझसे दूर रहना।


सुधा की बातों से सरपंच का दील टुट गया। वो एक बार फीर बोला-


सरपंच -- क्यूँ तड़पा रही हो सुधा? अब मुझसे ये तड़प बर्दाश्त नही होता। मैं तुम्हारे बीना मर जाउगां।


सुधा, सरपंच की बात सुनकर इस बार थोड़ा गुस्से में बोली-


सुधा -- जो करना है करो! मैं तो आप को समझा-समझा कर थक चूकी। मैं जा रही हूँ...


और ये कहते हुए सुधा रास्ते पर अपने कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ नीकल पड़ती है...


सरपंच अभी भी वहीं खड़ा हांथ मलता रह जाता है।

@@@@@

'उठ जा बेटा...! कीतना सोयेगा? देख सूरज भी नीकल आया।'


सुधा ,बबलू के खाट के बगल में खड़ी होकर बबलू को उठाते हुए बोली-

बबलू भी अपनी माँ के झींझोड़ने की वज़ह से, कसमसाते हुए उठते हुए बोला-


बबलू -- सोने दे ना अम्मा!

सुधा -- नही, अब बहुत सो लीया। चल उठ जा।


इस बार बबलू कुछ नही बोलता और उठ कर खाट पर बैठ जाता है। बबलू को देखकर सुधा मुस्कुराते हुए उसके बगल में खाट पर बैठते हुए बोली--


सुधा -- कल गुस्से में क्यूँ चला गया? और झगड़ा क्यूँ कर लीया था?


बबलू ने एक नज़र अपनी माँ को आँखें मलते हुए देखा और बोला-


बबलू -- अरे अम्मा, वो ऐसे ही बातो - बातों में झगड़ा हो गया था।


बबलू की बात सुनकर, सुधा एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोली-


सुधा -- अम्मा हूँ तेरी! मुझे सब पता है की, तेरी और राज़न की कीस बात पर झगड़ा हुआ था।


बबलू के तो चेहरे के रंग उड़ गये! और हीचकीचाते हुए बोला...

बबलू -- तू...तूझे पता है?


सुधा, बबलू की बात सुनते हुए, मजाकीया अंदाज में अपना एक हांथ बबलू के कंधे पर रखते हुए बोली-


सुधा -- और नही तो का? मुझे सब पता है।


बबलू -- क...क्या पता है अम्मा?

सुधा -- यही की, तेरे और राजन के बीच काज़ल को लेकर झगड़ा हुआ था। क्यूँ सच कहा ना?


बबलू के चेहरे पर अब असमंजस के भाव थे। उसे समझ में नही आ रहा था की, उसकी माँ को कैसे पता चला की काज़ल की वजह से लड़ाई हुई थी। वो घबरा कर खाट पर से उठते हुए बोला-


बबलू -- क...क्या बोल रही है अम्मा? भ...भला काज़ल के लीये म...मै झगड़ा क्यूँ करने लगा? वो तो बस ऐसे ही कहा सुनी में झगड़ा हो गया।


बबलू की हकलाहट देख कर, सुधा अपने मुह पर हांथ रख कर अपनी हसीं को रोकने की कोशिश करते हुए बोली--


सुधा -- अच्छा...! तो शायद मुझे ही गलतफहमी हो गयी थी। मुझे लगा तू भी शायद काज़ल को पसंद करता होगा। राजन तो काज़ल को पसंद करता ही है पूरा गाँव जानता है। मुझे लगा इसी बात पर झगड़ा हुआ होगा।


बबलू एक ठंढी सांस लेते हुए...

बबलू -- अरे अम्मा, मुझे काज़ल पसंद नही। और वैसे भी...जब देखो तब वो उस कमीने राज़न से ही तो बात करती रहती है। मुझे नही पसंद है वो...क्यूँ पसंद करू? मुझसे बात भी तो नही करती! जलती है वो मुझसे! मैं नही सोचता उसके बारे में॥


बबलू की बात सुनते हुए सुधा समझ गयी की, बबलू, काजल को कीतना चाहता हैं। वो बबलू को अपनी तरफ घुमाते हुए बोली...


सुधा -- सही कह रहा है बेटा! लड़कीयों की कमी थोड़ी है। देखना मैं अपने बेटे के लीए उससे भी खुबसूरत लड़की ले-कर आउगीं।


अपनी माँ की बाते सुनकर, बबलू थोड़ा मुस्कुराया और सुधा के फूल जैसे फूले हुए गाल को अपनी हथेलीयों में लेते हुए बोला-


बबलू -- मुझे लड़की-वड़की कुछ नही चाहिए, मैं तो जींदगी भर अपनी अम्मा के सांथ रहूगां।


अपने बेटे की बात सुनकर, सुधा का दील खुश हो गया। और उसने अपने गुलाबी होंठो से बबलू के गाल को चूमते हुए बोली-


सुधा -- हाय रे मेरा लल्ला! कीतना प्यार करता है अपनी माँ से। मुझे तो पता ही न था।


बबलू अपनी माँ की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला-


बबलू -- अम्मा! एक बात बोलू?

सुधा -- एक क्या दो बोल।

बबलू -- मुझे ना...मुझे ना...मुझे ना...


सुधा -- हे भगवान! आगे भी बोलेगा?

सुधा अपना माथा पीटते हुए बोली थी--


बबलू -- मुझे ना जोर से हगने को लगी है।

और ये कहते हुए बबलू हसंते हुए खाट के चारो तरफ भागने लगता है, और ये सुनकर सुधा का मुह खुला का खुला रह गया और वो भी हसंते हुए बबलू के पीछे भागती हुई...


सुधा -- अरे...बेशरम, रुक तूझे बताती हूँ। बीगड़ा जा रहा है तू!


@@@@@

माला सुबह-सुबह उठ कर, भैंसो को चारा डाल रही थी। तभी उसका मरद हाथ में लाठी लीए खांसते हुए आया और घर के बाहर बीछे खाट पर बैठ जाता है।


अपने मरद को देखकर, माला गुस्से में झल्ला गयी। और चारा छोड़ते हुए अपने मरद के पास जाकर खड़ी होकर गुस्से में बोली--


माला -- तुम्हारा दीमाग खराब हो गया है का...चीलम फूंक-फूंक कर?

४६ वर्षीय माला का मरद (भानू) अपनी औरत की गुस्से से भरी आवाज़ सुनकर बोला...


भानू -- का हो गया? सुबह-सुबह इतना काहे भड़क रही हो?


माला -- ओ...हो, बड़े भोले बन रहे हो। जैसे कुछ पता ही ना हो!


भानू भी हैरान होते हुए...

भानू -- अरे का कर दीया? बोलोगी भी?


ये सुनकर माला गुस्से में...

माला -- का बोलूं? मुझे तो बोलते हुए भी शरम आ रही है। कैसी नज़र से देखते हो रीता को? अरे तुम्हरी बीटीया है! इतना भी शरम नही का?

ये सुनते ही, भानू का गला सूख गया। और नीचे सर झुका कर बैठा रहा...

अपने मरद को चुप बैठा देख माला फीर से गुस्से में बोली-


माला -- चुप काहे बैठो हो, तुम्हारी वज़ह से दो बात रीता मुझे सुना कर चली गयी...! और तुम बेशरमो की तरह बैठो हो।

माला की बात भानू सुन ना सका, और उठ कर वहां से चला जाता है, माला अभी भी बुदबुदा रही थी।

रीता ओसार में खड़ी ये सब सुन रही थी। और जब माला घर के अंदर घुसी तो...


रीता -- वाह ! का बात है अम्मा? तुमने तो बापू को धो कर रख दीया।


माला अपनी बेटी की बात सुनते हुए खाट पर बैठते हुए बोली...


माला -- बोलूं नही तो और का करु? भला कोई बाप ऐसा करता है का?


रीता अपनी माँ के पास आते हुए बगल में बैठते हुए बोली...


रीता -- अच्छा! और तुम जो कर रही हो उसका का? उसके लीए तुझ पर कौन चील्लायेगा?


ये सुनकर माला गुस्से में झल्लाते हुए...


माला -- का कीया है मैने? कुछ भी उल्टा-सीधा इल्ज़ाम लगाये जा रही है!


रीता हसंते हुए...


रीता -- अच्छा...! वो सरपंच जी का खेतो वाला कमरा याद है या भूल गयी अम्मा? अच्छा वो छोड़...वो तेल की शीशी तो याद होगी, जीसमे से तेल नीकाल कर तूने सरपंच के डंडे पर रगड़ा था। याद है? बोल ना याद है?


"हां...हां याद है, रगड़ा था मैने सरपंच के लंड पर तेल। यही सुनना चाहती थी ना तू, सुन लीया अब खुश है। और का बोली थी तू, की मै तेरे बापू के सांथ समय नही बीताती! अरे ये सब तेरे बापू के वज़ह से ही तो हुआ है। सरपंच से कर्ज़ा लेकर दारु-गांजा पीता है कमीना, कर्ज़ा लौटाने की औकात नही इसलीए सरपंच के नीचे बीछ गयी।


कहते हुए माला रोने लगी...! अपनी माँ को रोता देख रीता को भी अपने आप पर गुस्सा आया। और फीर धीरे से एक हांथ अपनी माँ के कंधे पर रखते हुए बोली--


रीता -- माफ़ कर दे माँ, मुझे पता नही था की, तू ये सब कर्ज़े ना चुका पाने की वज़ह से कर रही है। माफ़ कर दे माँ।


माला झट से रीता के सीने से लग जाती है, और रोने लगती है। रीता अपनी माँ के सर पर हांथ फेरते हुए बोली--


रीता -- अच्छा अब रो मत, नही तो अभी यहीं नंगी करके चोद दूंगी।


रोती हुई माला ये सुनकर हसं पड़ती है और इस गंदी बात पर प्यार से वो रीता को मारने लगती है।


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#4
बहुत ही सुंदर शुरूवात हुई है story की
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#5
(04-05-2022, 06:34 AM)Bandabia Wrote: बहुत ही सुंदर शुरूवात हुई है story की

thank you bhai,,
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#6
अपडेट...४



दोपहर हो गयी थी, गर्मी का मौसम था तो, बाहर लू चल रही थी। सुधा घर पर अकेली थी। बबलू गाँव के पुरानी कॉलेज की तरफ राजू के सांथ गया था।


सुधा ओसार में लेटी थी, गर्मी की वज़ह से उसे पसीने आ रहे थे। वो एक हांथ में लीए खाट पर लेटी पंखा डोलाते हुए खुद से बोली...


सुधा -- इतनी भींषण गर्मी पड़ रही है, और ये लड़का घूमने नीकला है। आने दो उसे आज खबर लेती हूँ उसकी।


खुद से कहते हुए, सुधा ने अपनी साड़ी का पल्लु हटा कर बगल में कर दीया। उसका गोरा पेट पसीने में चमक रहा था। उसके ब्लाउज़ भी कुछ हद तक भीग कर उसकी मस्तानी और पहाड़ी जैसी चूंचीयों से चीपक गये थे। ब्लाउज के अंदर ब्रा के उभार साफ प्रदर्शीत हो रहे थे। और चूंचीयों का मांसल उभार ब्लाउज़ से बाहर नीकल कर झांक रहे थे।

सुधा जीस अवस्था में लेटी थी। उस अवस्था में वो कामुकता की देवी लग रही थी। अगर कोई भी उसे इस हालत में देख लेता तो होश खो देता।

सुधा लेटे-लेटे पंखा डोला रही थी, मगर गर्मी इतनी थी की, पंखे की हवा से उसे चैन नही मीला। उसने पंखे को एक तरफ रख दीया, और अपनी सारी खोलने लगी,,

कुछ ही पल में सुधा के बदन पर से सारी भी अलग हो गयी थी। और वो अब सीर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में लेटी थी।

कमर पर बधां पेटीकोट उसके चौंड़े कुल्हे को अत्याधीक आकर्षक बना रहा था। पेटीकोट के नाड़ा बांधने वाले जगह पर कुछ ५ से ६ इंच तक का गैप था। जहां से नाड़ा नीकलता है। और उसी गैप में से सुधा की सफेद रंग की कच्छी दृश्यमान हो रही थी। हल्की सी ही सही मगर उस कच्छी को कोइ अगर इस समय देख लेता तो, लंड अकड़ जाता।

सुधा को अब कुछ गर्मी से राहत मीली थी। उसने अपनी आँखे बंद कर ली, और पंखे डोलाने लगी। मगर वो शायद भूल गयी थी, की उसने दरवाज़ा बंद नही कीया था।

सुधा तो पंखा डोलाते हुए लेटी थी, मगर तभी अचानक से दरवाज़ा खुला, सुधा को लगा की बबलू है। और वो वैसे ही लेटी अपनी आँखें बंद कीये बोली-


सुधा -- आ गया! इतनी गर्मी है बाहर लू चल रही है। और तू है की घूम रहा है?


ये बोलकर सुधा चुप हो जाती है। और पंखा डोलाने लगती है। जब उसे कुछ देर से कोई जवाब नही मीला तो...


सुधा -- कुछ बोलेगा भी, या चुप ही रहेगा? चल अच्छा ठीक है। अब बाहर मत जाना,।


और ये बोलकर सुधा ने अपनी आँखें जैसे ही खोली, उसके सर से आसमान उड़ गया हो मानो, वो सोच रही थी की, बबलू होगा मगर सामने तो सरपंच खड़ा था। और अपनी आँखे फाड़े सुधा के कामुक जीस्म को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था।

सुधा भी एक पल के लीए स्तब्ध रह गयी, उसे अभी भी अपनी अवस्था के बारे में चेतना ना थी। वो भी सरपंच को देखकर चौंक गयी थी। तभी अचानक सुधा की नज़र सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से पर पड़ी। तो उसका मुह खुला का खुला रह गया।

सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से में जोर-जोर की हलचल हो रही थी। सुधा को समझते देर ना लगी की, ये सरपंच का लंड है। सुधा ने झट से अपनी नज़र वहां से हटा लीया, और जैसे ही उसे अपनी अवस्था का ज्ञात हुआ,  वो हड़बड़ाते हुए खाट पर पड़ी अपनी सारी उठाते हुए खुद को ढकते हुए खड़ी हो गयी...और वो गुस्से में आँखे लाल करते हुए बोली--


सुधा -- आप सच में पागल हो गये हैं का सरपंच जी? बेशर्मो की तरह मेरे घर में घुस आये और मुझे ऐसी नज़रों से देख रहे...छी: !  मैं तो आपको भला आदमी समझती थी, पर तुम तो हैवान हो।


कहते हुए सुधा अपने आप को अच्छे से ढकने लगी। वहां खड़ा सरपंच सुधा का गुस्सा देखकर बोला--


सरपंच -- माफ़ करना सुधा, मैं अचानक से घर में घुस आया। पर मुझे जरा भी अंदाजा न था की, तुम इस अवस्था में होगी। मुझे लगा बबलू भी घर पर होगा। इसलीए मैं...मेरी गलती को माफ़ कर दो सुधा।


सुधा -- माफ़ कर दूँ, कीतनी बार माफ़ कर दूँ? कल रात को ही बोली थी की.....मेरा पीछा छोड़ दो, पर आप आज़ फीर से आ गये।


सुधा की बात सुनते हुए, सरपंच ने अपने कुर्ते के जेब में हांथ डालते हुए कुछ नीकलते हुए बोला--


सरपंच -- मैं तो ये तुम्हारी चैन लौटाने आया था सुधा। शायद तुम कल फीलम देखने आयी थी तो गीर गयी थी।


सरपंच की बात सुनते ही, सुधा ने एक हांथ से अपनी गर्दन को टटोला तो पायी, की उसकी गर्दन में चेन नही था। सुधा कुछ बोलती, उससे पहले ही सरपंच ने चेन को पास में रखे मेज़ पर रख दीया। और दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए रुक कर बोला-


सरपंच -- एक बार फीर से माफी मांगता हूं सुधा।


और कहते हुए...सरपंच घर के बाहर चला गया। सुधा वही खड़ी दरवाजे की तरफ मुर्ती बने देखती रहती है.....

@@@@@


इधर बबलू, राजू के सांथ पुरानी कॉलेज के एक पेंड़ के नीचे बैठा था। कॉलेज के चारो तरफ उंची-उंची चहरदीवाल खड़ी थी। इस लीए लू का हवा भी उतना नही लग रहा था।


ठंढी हवाएं लेते हुए, बबलू ने राजू की तरफ देखते हुए कहा-


बबलू -- यार राजू, ये मादरचोद राजन की माँ चोदने का मन कर रहा है मेरा।


अचानक! से राजू हसंने लगा, शायद वो बबलू की बात पर ही हसं रहा था। बबलू उसको हसंते देख...


बबलू -- हसं क्यूँ रहा है? मजाक लग रहा है क्या तुझे?

ये सुनकर राजू बोला...


राजू -- अबे वो सरपंच की औरत है। और तू उसे चोदेगा? वैसे माल तो बहुत करारी है, चोदने में तो मजा ही आ जायेगा! पर वो हांथ नही आने वाली...! कुछ उल्टा-सीधा हुआ तो बदनामी होगी वो अलग सरपंच के लट्ठेर गांड मार देंगे...समझा! अपनी नही तो सुधा काकी के इज्जत के बारे में सोंच और भूल जा।


राजू की बात पर बबलू सोंच में पड़ गया। और थोड़ी देर बात बोला...


बबलू -- सही कह रहा है यार! मेरी अम्माँ तो बदनामी से मर ही जायेगी। पर साला क्या करें? ये नीचे वाला मीया अकड़ते रहता है, फुद्दी के लीए।


राजू -- सही कह रहा है यार! हांथ से फेंट-फेंट कर भी थक गया हूँ। पर क्या करें? जब फुद्दी नसीब में ही नही है तो?

राजू ने थोड़ा उदासी भरे लहजे में बोला था। दोनो कुछ देर के लीए शांत बैठे थे। तभी बबलू...


बबलू -- अच्छा राजू! मुझे ना तुझसे इक बात पुछनी थी।


राजू -- तो पूंछ ना?


बबलू -- नही यार! छोड़ अच्छा नही लगेगा।


बबलू की बात सुनकर, राजू बबलू की तरफ देखते हुए बोला--


राजू -- मुझे पता है, 'तू क्या पूछना चाहता है? मेरी अम्मा औ सरपंच के बारे में ना?


बबलू तो चौंक गया! वो सोंचने लगा की इसे कैसे पता चल गया की, मैं यही बात पूँछना चाहता हूँ? बबलू थोड़ा हीचकीचाते हुए जवाब मे कहा-


बबलू -- ह...हाँ।


राजू -- अब क्या कर सकते है यार! अफवाह तो फैली है। पता नही सच है या झूंठ? अम्मा कहती है झूंठ है।


बबलू -- अबे झूंठ ही होगा! लोगो का क्या है, उन्हे तो ऐसी बाते उड़ाने में मज़ा आता है।


ये सुनकर राजू   थोड़ा उदास होते हुए बोला..


राजू -- पता नही यार! ये औरतों का कुछ पता नही चलता!! इनके दील में कुछ और रहता है; जुबान पर कुछ और।


राजू को यूँ उदास देख कर बबलू ने बात पलटते हुए कहा...


बबलू -- अरे मैं भी ना कीतना पागल हूँ, कुछ भी बात करने लगता हूँ। छोड़ ये सब।


राजू -- नही यार! जो बात है वही कीया तूने। मैं कहता हूँ की, अगर मेरी माँ को ये सब करना ही था तो, उस सरपंच के सांथ ही क्यूँ? कल को वो राज़न मज़े लेने पहुंच जायेगा। सच बोलूं तो, तू बहुत कीस्मतवाला है, जो तूझे इतनी अच्छी अम्मा मीली। कभी कोई गलत काम नही कीया।


बबलू को अपनी अम्मा के चरीत्र और पवीत्रता को सुनकर खुशी तो हुई पर राजू के उदास चेहरे को देखकर जाहीर न कर सका।


बबलू -- अबे साले, ये सब अफवाह है और कुछ नही। छोड़ वो सब और चल घर चल। नही तो तेरा पता तो नही, पर मेरी खैर नही।


और ये कहते हुए दोनो अपने-अपने घर की तरफ चल पड़ते है।


पैदल चलते हुए रास्ते में, काज़ल का घर पड़ता है। बबलू जैसे ही काज़ल के घर के नज़दीक पहुचां॥ उसके कदम खुद ब खुद रुक जाते है। वो कुछ देर तक काजल के घर के रास्ते पर खड़ा रहा, और फीर कुछ सोंचते हुए अपने कदम काज़ल के घर की तरफ बढ़ा दीया।


घर के दरवाज़े पर पहुंच कर, बबलू ने दरवाजा खटखटाया।

कुछ ही देर में दरवाजा खुला और सांमने काज़ल खड़ी थी।


काज़ल तो चौंक गयी! और मुह खोलते हुए...


काज़ल -- बबलू....!


बबलू तो काजल की कज़रारी आँखों में खो गया था। कीतनी प्यारी आँखें थी काजल की। एक दम चंचल। बबलू को काज़ल की चौंकने वाली बात मानो सुनायी ही नही पड़ी। वो तो इस समय काज़ल की झील जैसी आँखों में तैर रहा था।

मगर काज़ल को जब बबलू की तरफ से कोई भी उत्तर ना मीला तो, वो एक बार फीर बोल पड़ी...


काज़ल -- सुनाई नही दीया क्या?


इस बार बबलू को झील सी आँखों में तैरते हुए काजल की मीठी मगर तीखी आवाज़ भी सुनाई पड़ी तो,


बबलू -- ह...हां।


काज़ल -- यहां क्या कर रहे हो तूम?


बबलू -- क्या कर रहा हूँ मतलब? आ नही सकता क्या? कॉलेज पर बैठा था, घर जा रहा था प्यास लगी थी तो चला आया।


काज़ल -- ओह...प्यास लगी थी? तो तुम्हे पूरे गाँव में सीर्फ मेरा ही घर दीखा पानी पीने के लीए?


इस बार बबलू थोड़ा अँदाज में खड़े होते हुए, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखो में प्यार भर कर बोला...


बबलू -- घर तो मेरा भी पास में है। मगर इस घर में मेरी जान है ना। तो अपनी जान के हांथो से पानी पीकर सीर्फ गले की ही प्यास नही दील और आँखों की भी प्यास बुझ जायेगी।


बबलू की प्यार भरी बाते सुनकर, काज़ल आँखे तरेरते हुए बोली...


काज़ल -- पानी नही, मैं तो जहर पीला दूँ।


बबलू मुस्कुराते हुए...घर के अंदर घुसते हुए। काज़ल को कस कर अपनी बाहों में भरते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला--


बबलू -- मेरे हुज़ुर, आपके हांथों से वो भी खुशी-खुशी पी लूंगा।


काज़ल तो कीसी मुर्ती की तरह बबलू की बाहों में खड़ी, हैरत से बबलू की तरफ देखती रही। कुछ देर तक दोनो यूं ही एक दुसरे की बाहों में खड़े आँखो में आँखे डाले देखते रहते है की, तभी एक अनज़ानी आवाज़ ने उन्हे ज़मीन पर पटक दीया...


'आय...हाय,  देखो तो ज़रा इन प्यार के पंछी को। मैं यहां खड़ी हूँ पर फीर बेशर्मो की तरह एक दुसरे की बाहों में पड़े है। वाह!


काज़ल तो झट से बबलू से अलग हो जाती है। और बबलू भी हैरानी से उस आवाज़ का पीछा करता है तो पाया की, सामने एक ३८ या ३९ साल की औरत खड़ी थी।


उस औरत ने काले रंग की साड़ी पहनी थी। मांसल बदन की गोरी-चीट्टी औरत थी। वो खड़ी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।


उस औरत को देखकर, काज़ल घबरा गयी...


काज़ल -- ब...बुवा, वो...वो इस कमीने ने जबरदस्ती कीया।


बबलू भी घबरा गया, और बहुत डर भी गया था। उसे लगा की कहीं ये औरत माँ को ना बता दे...


बबलू कुछ बोल ना सका, और सर नीचे कर के खड़ा हो गया।

बबलू को यूँ सर नीचे कर खड़ा देख, वो औरत बोली--


'लगता है, हुज़ुर की प्यास बुझ गयी?'


बबलू और काज़ल ने उस औरत की आवाज़ तो सुनी मगर दोनो चोरो की तरह चुप-चाप खड़े रहे।

'अरे तुम दोनो इतना डर क्यूँ रहे हो? मैं कुछ नही करुंगी। काज़ल जा एक लोटा पानी ला और बबलू को पीला। बेचारे को बहुत प्यास लगी है।


काजल -- जी...बुआ!

और कहते हुए काज़ल ने एक बार बबलू को घूरा और पानी लाने चली गयी।


काजल के जाते ही। वो औरत मुस्कुराते हुए...


'अब बैठ भी जा! क्या खड़े हो कर पीयेगा?'


बबलू कुछ बोला नही और धीरे-धीरे कदमो के सांथ चलते हुए खाट पर बैठ जाता है।

तभी काजल पानी लेकर आ जाती है, और अपनी बुआ की तरफ बढ़ाते हुए

काज़ल -- मंजू बुआ...ये लो पानी, इसे पीला दो और जाने के लीए कह दो।


और फीर पानी का लोटा अपनी बुआ को पकड़ाते हुए वो वहां से चली जाती है...

काज़ल को जाते हुए देख मंजू मुस्कुरायी और पानी का लोटा देते हुए, वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है।
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#7
गजब स्टोरी है
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#8
(अपडेट -- ६)

-- लुक्का - छीप्पी --


पानी देते हुए मंजू नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है। बबलू भी खाट पर बैठा पानी पीते हुए बोला--


बबलू -- बु...बुआ अम्मा को मत बताना! तेरे हांथ जोड़ता हूँ ।


बबलू की गीड़गीड़ाहट सुनकर मंजू थोड़ा मुस्कुरायी और फीर बोली...


मंजू -- अरे पगले, कब तक छुपायेगा अपनी अम्मा से। आज नही तो कल बताना ही पड़ेगा ना। की तू काज़ल को पसंद करता है।


बबलू पानी पीकर लोटे को नीचे ज़मीन पर रखते हुए बोला...


बबलू -- बात तो ठीक है बुआ। लेकीन जब तक काज़ल भी मुझे पसंद नही करने लगती, तब तक मैं अम्मा से ये बात नही बता सकता...


'और बताना भी मत,'

ये आवाज़ काज़ल की थी, जो अंदर वाले दरवाज़े पर खड़ी होकर बोली थी...


काजल -- क्यूंकी मैं तूझे कभी पसंद नही करने वाली।


काज़ल की बात सुनकर, मंजू ने अपना झट से काजल को डाटते हुए बोली...


मंजू -- चूप कर तू! कुछ भी बड़बड़ाये जा रही है। अरे का कमी है बबलू में? ५ बीघा खेत भी है। और तूझे पसंद भी करता है।


काजल -- पसंद तो मुझे राज़न भी करता है बुआ, और वो तो सरपंच का बेटा है। ५ नही ५0 बीघा जमीन है, और उपर से पढ़ा लीखा भी। मैं भी १२वी तक पढ़ी हूँ। और ये कमीना तो, ८वी फेल है। मैं भला ऐसे लड़के के सांथ ज़ींदगी कैसे बीता सकती हूँ। जो मुझसे भी कम पढ़ा लीखा है।


काजल की बात सुनकर मंजू कुछ बोलने ही वाली थी की, बबलू ने उसे रोकते हुए कहा...


बबलू -- रुक जा बुआ। काज़ल ठीक कह रही है। मैने ही कभी इस बात पर ध्यान नही दीया था। सच ही बोल रही है। मैं ८वी फेल और ये १२वी पास, जोड़ी ठीक नही कुछ।


ये कहते हुए, बबलू खाट पर से उठा और काजल के नज़दीक जाते हुए रुक कर बोला--


बबलू -- तू...तू ठीक कहती है काज़ल, ते...तेरे लीए राजन ही ठीक है। ५0 बीघा जमीन, पढ़ा लीखा। सही है...! म...मैं अब तेरे पीछे नही आउगां। पर तूझसे एक बात बोलूगा की, क्या हम दोस्त बन कर नही रह सकते?


बबलू के आवाज से साफ पता चला रहा था की, ये उसके दील टुटने की आवाज़ है। आवाज़ में हकलापन उसके दील के दर्द को बयां कर रहे थें। जीसे मंजू ने तो भांप लीया था। मगर शायद काज़ल को उसके दील की कुछ पड़ी ही ना थी। काज़ल के चेहरे पर मुस्कान बीखर पड़ी...


काज़ल -- अरे बुद्धू, मैं तेरी कोयी दुश्मन थोड़ी हूँ॥ वो तो तू मेरे आगे-पछे कुत्ते की तरह घूमता था। इसलीए मैं तुझे पसंद नही करती थी। दोस्ती करने में मुझे कोई प्रॉबलम नही है। आज से हम अच्छे दोस्त है।

ये बोलकर काज़ल मुस्कुरा पड़ती है। काजल का मुस्कुराता हुआ प्यारा चेहरा देखकर बबलू भी मुस्कुराते हुए बोला...


बबलू -- पहली बार तूने मुझसे ढंग से सीधे मुह बात की है पगली। मुझे पता होता की दोस्ती करने पर तू उल्टा से सीधा हो जायेगी तो मैं कब की दोस्ती कर ली होती पगली।


बबलू की बात सुनकर, काज़ल मुह बनाते हुए बोली...

काजल -- मैं पगली नही हूँ, हां।

ये वाक्या काज़ल ने इतनी नटखटी अंदाज़ में बोली थी की, बबलू का मन लुभा गया काज़ल की अदा पर...

लेकीन खुद को संभालते हुए वो भी कुछ अंदाज में बोला...


बबलू -- बड़ी आयी...! मुझे पागल बोलती है तो नही। खुद पर पड़ी तो मुहं टेढ़ा हो गया।


बबलू की बात सुनकर, काज़ल कुछ बोलने ही वाली थी की...तब तक मंजू ने बीच में ही बात काटते हुए बोली...


मंजू -- अरे...अरे, तुम दोनो का फीर से झगड़ा शुरु हो गया। बबलू तू बैठ मैं तूझे कुछ खाने को लेकर आती हूँ।


बबलू चौंकते हुए...

बबलू -- अरे नही बुआ, मैं घर जा रहा हूँ, नही तो अम्मा आज़ आसमान सर पर उठा लेगी...बाद में कभी खा लूंगा। अभी तो मुझे घर जाना है।


और ये बोलकर बबलू वहाँ से चला जाता है।

@@@@@

इधर घर पर सुधा खाट पर बैठी, बबलू का इंतज़ार कर रही थी की, तभी बबलू आ गया...

बबलू को देखते ही, सुधा उसे आँखें तरेरने लगी। और ये देखकर बबलू सकते में आ जाता है। तभी...


सुधा -- खुब आवारों की तरह घूम लें। मेरी बात का तुझ पर कुछ असर तो होता नही है ना। इतनी लू चल रही है, फीर भी बाहर घूम रहा है।

बबलू का मन वैसे ही उतरा था। आज उसका प्यार जो दूर हो गया था। इसलीए वो कुछ बोला नही और चुप-चाप खड़ा रहा। बबलू को यूँ चुप खड़ा देख...


बबलू -- खाली मुह झुका कर खड़ा रह बस, पता है ना ,अम्मा है थोड़ी देर चील्लायेगी फीर चुप हो जायेगी।

इस बार बबलू ने अपना मुह खोला और...

बबलू -- अम्मा...! मैं आ रहा था। वो मैं थोड़ा सुमन काकी के घर चला गया था। इसी लीए देरी हो गयी।

सुधा -- अच्छा...! तो तू सुमन के घर गया था। पर सुमन तो मायके गयी है, फीर कीससे मीलने गया था? काज़ल से? वाह! तू तो बहुत बड़ा कमीना नीकला रे, मैं तो तूझे भोला समझती थी। मौका देखकर घुस गया घर में॥


बबलू को इस वक्त बात करने का ज़रा भी मन न था। उसे अपनी माँ की बातों पर चीड़चीड़ापन आने लगा...

बबलू -- अरे अम्मा! ऐसा कुछ नही है! मंजू बुआ भी है घर पर, और मैने तुझे बताया था ना की, मुझे काज़ल पसंद नही।


बबलू की बात सुनकर, सुधा मन ही मन मुस्कुरायी और...

सुधा -- काज़ल पसंद नही, या काज़ल को राज़न पसंद है ।

राजन का नाम सुनकर, बबलू के अंदर गुस्से का लावा भड़कने लगा। पर गुस्से को बड़ी मुस्कील से दबाते हुए...


बबलू -- पता है तो क्यूँ परेशान कर रही है मुझे? और वैसे भी आज मेरी और काजल की बात हो गयी है। अब हम-दोनो एक अच्छे दोस्त है बस, और कुछ नही।

और ये कहते हुए बबलू अपने कमरे में चला जाता है।

सुधा उसे जाते हुए देखती रहती है। सुधा को पता था की, बबलू अंदर से दुखी है। और ये सोंचकर वो भी उदास हो जाती है, और घर से बाहर नीकलते हुए पेंड़ की छांव में खाट बीछा कर बैठ जाती है। और सोंचते हुए...

'ये काज़ल को भी पता नही क्या हो गया है? मेरा बेटा उससे इतना प्यार करता है, पर उसे मेरे बेटे की तड़प का कुछ पड़ी ही नही।'


और ये सोचते हुए अचानक से उसे सरपंच की याद आ जाती है, और वो फीर से सोंचने लगती है...


'जीस तरह मेरा बेटा, काजल से प्यार करता है। उसी तरह सरपंच भी तो मुझसे प्यार करते हैं। अगर मैं सरपंच से प्यार नही करती, तो काज़ल भी गलत नही है। जब काज़ल मेरे बेटे से प्यार ही नही करती तो, वो हाँ कैसे बोल सकती है? पर मेरे बेटे में कमी क्या है? जो वो उससे प्यार नही करती। मेरा सरपंच जी को प्यार न करना उसका कारण ये है की मैं वीधवा हूँ। मान-मर्यादा इज्जत ये सब मेरे हांथ में है। और एक वीधवा के लीए ये सब करना ठीक नही।'


खुद के ही सवालों में उलझी थी सुधा, तभी उसे कीसी के आवाज़ ने झींझोड़ा...


'अरे सुधा...! कहाँ खोयी...खोयी सी है?'

सुधा ने सर घुमाते हुए पाया की, ये माला की आवाज़ थी। जो अब तक खाट पर बैठ गयी थी।

सुधा -- अरे कहीं नही रे...बस ऐसे ही।

माला -- अच्छा! मुझे लगा की, सरपंच जी के खयालो में खोयी है।


सुधा ये सुनकर मुह बनाते हुए...

सुधा -- आ गयी सरपंच जी की चमची। भला मैं क्यूँ सोंचने लगी सरपंच जी का बारे में।


माला मुस्कुराते हुए...अपने ब्लाउज़ में से कुछ नीकालते हुए...

सुधा -- अब मुझे क्या पता?   सरपंच जी ने पायल भेजा है तेरे लीए।

ये कहकर माला ने चमचमाती हुई पायल सुधा के हांथो में रख देती है। पायल इतनी खुबसूरत थी की, सुधा एक पल के लीए उस पायल को देखती रह जाती है। और सुधा का चेहरा देखकर माला बोली...


माला -- का देख रही है सुधा? सुंदर है ना?

सुधा अभी भी हैरत से देखते हुए बोली...

सुधा -- दैया रे...ई तो बहुत महगां लग रहा है।


माला -- सरपंच जी ने दीया है तो, कीमती तो होगा ही।


माला की बात सुनकर, सुधा माला की तरफ़ देखते हुए बोली...

सुधा -- पर माला, ये सब क्यूँ? क्या अब सरपंच जी मेरी कीमत लगायेगें?

सुधा की बात पर माला झट से बोल पड़ी...


माला -- अरे नही सुधा! ये क्या बोल रही है तू? सरपंच जी तो ये पायल वापस सोनार को लौटा रहे थे। पर मैने ही रोक दीया। पूछने पर सरपंच जी ने बताया की...सुधा को ये सब अच्छा नही लगेगा! उसे लगेगा की मैं उसे लालच दे रहा हूँ, तो मैं नही चाहता की, सुधा की नज़रों में मेरी जो भी थोड़ी बहुत इज्जत बची है, वो भी खत्म हो जाये।

और देख ना वही हुआ! तूने वही सोंचा जो सरपंच जी ने कहा था।


सुधा तो सोंच में पड़ गयी...!

सुधा -- सर में सरपंच जी ने ऐसा कहा?

माला -- हां पगली...! तू माने या ना माने। पर सरपंच जी तूझे बेपनाह प्यार करते है। पर तू है की, सरपंच जी को तड़पा रही है।

खैर अब जब तूझे ये पायल नही चाहिए तो, मैं सरपंच जी को वापस कर दूंगी।



और ये कहते हुए माला सुधा के हांथ से पायल लेते हुए उठ कर जाने लगती है की तभी...


सुधा -- माला...रुक!

माला सुधा की आवाज़ सुनकर रुक जाती है, सुधा खड़ी होते हुए माला के पास जाती है और...


सुधा -- लगता है, सरपंच जी ऐसे नही सुधरेगें। अब गाँव के सामने बेइज्जत करना ही पड़ेगा। आज एक आखीरी बार उन्हे समझाउगीं। उनसे कहना रात १२ बजे पुरानी कॉलेज पर मीले। और सच बोल रही हूँ माला, ये आखीरी बार समझाउगी। अब जा...! जाकर बोल देना।


माला अपना सा मुह बनाये वहां से चली जाती है।

@@@@@

शाम के ५ बज रहे थे। भानू अपने खेत में बने झोपड़े में खाट पर बैठा था। तभी झोपड़े का दरवाज़ा खुला, भानू ने सर उठा कर देखा तो सामने रीता खड़ी थी।

अपनी बेटी को देखकर, भानू अपना सर नीचे कर लेता है। ये देख कर रीता अपने बापू के नज़दीक आते हुए खड़ी हो जाती है। और चुलबुली आवाज़ में बोली...


रीता -- बापू तुम कहा घूम रहे हो? खाना खाने क्यूँ नही आये?

अपनी बेटी की बात सुनकर भानू अपना सर नीचे कीये ही दबी आवाज़ में बोला...


भानू -- का मुह लेकर आउँ बेटी? तेरी अम्मा ने मुझे ज़लील कर दीया है। वैसे गलती मेरी ही है बेटी! पर तूझे अपनी अम्मा से ये बात बोलने के बजाय मुझसे बोल देती तो। मैं आगे से ऐसी गलती नही करता, और नाही जलील होता।

रीता -- ओहो...बापू! तुम भी ना। मैने तुमसे इस लीए कुछ नही कहा, क्यूँकी मैं चाहती हूँ की मेरा बापू ये गलती करे।


रीता के ऐसा बोलते ही, भानू का दीमाग झन्ना गया। और कुछ बोलने के लीए जैसे ही अपना सर उठाया ही था की, उसे जोर का झटका लगा।

रीता सफेद रंग की ब्रा में खड़ी थी। उसका कमीज़ उसके एक हाँथ में था। भानू का सर और ज्यादा तब चकरा गया जब उसने देखा की, रीता ने ब्रा के अंदर रोटी भरी हुई थी। दोनो चूंचको के उपर रोटी और ब्रा का पर्दा था। पर फीर भी रीता के चूंचें काफी बड़े लग रहे थे।


अपनी बेटी को इस अवस्था में देखकर, भानू के हैरत में तो था पर अंदर खुन भी उबलने लगा था। भानू अपना मुह फाड़े रीता को देख रहा था की तभी रीता बोली...

रीता -- अब का करती बापू? घर में खाना खत्म हो चूका था। दो रोटी बची थी। अब दो रोटी हांथ में लेकर आती तो अच्छा नही लगता ना। इसलीए यहां छुपा कर लायी हूँ। अम्मा से मत बताना बापू।


भानू ये सुनते हुए, हा में सर हीलाते हुए स्वीकृती देता है। ये देखकर रीता खुश होते हुए...झपट कर अपने बापू के पास खाट पर बैठते हुए बोली--


रीता -- मेरे प्यारे बापू!! चलो अब जल्दी से रोटी नीकालो और खा लो, भूंख लगी होगी तुमको।
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#9
बहुत ही बढ़िया अपडेट था | काजोल ने तो सही कहा है, खुद से कम पढ़ने और कुछ ना करने वाले लड़के से क्यूँ प्यार करेगी वो | सरपंच और सुधा की बीच अब क्या होगा देखते हैं |
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#10
jabardast update hai bas kahani aage bhi chlte rhne cchahiye
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#11
Mast update... waiting for more
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#12
Super story bhai please continue.
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#13
Please update bro
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#14
(10-05-2022, 10:25 AM)Eswar P Wrote: Please update bro

shaam tak update aa jayega
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#15
Ok bro thankyou
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#16
Bro waiting
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#17
Bro update
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#18
(12-05-2022, 05:06 PM)Eswar P Wrote: Bro update

sorry bro thoda busy tha, aaj raat tak update aa jayega
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#19
(12-05-2022, 08:39 PM)dilbarraj1 Wrote: sorry bro thoda busy tha, aaj raat tak update aa jayega

Nice, 

waiting for more.........

Ye dil mange more... Ha ha ha ☺️
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#20
Bhai update nahi dena hai to boldo yaar
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